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Adultery परिवार कैसा है

सबसे गरम किरदार

  • रमा

  • खुशबू

  • राधा

  • सोभा


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Sushil@10

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सुबह की धूप आंगन में फैल चुकी थी, लेकिन किचन का कोना अभी भी छाया में डूबा था —वहां की हलचल किसी को न पता थी । सोभा का चाय का ट्रे गिरा ही था, लेकिन अब वो मेज पर लेटी हुई थी, साड़ी कमर तक लुढ़की हुई , चूत और गांड नंगी चमक रही थी । राजन का लंड अभी भी अंदर धंसा था, गर्म वीर्य की चिपचिपाहट महसूस हो रही थी —वो धीरे-धीरे धक्के मार रहा था, जैसे आखिरी सिप ले रहा हो। "उफ्फ बिटिया... तेरी चूत... कितनी टाइट हो गई सुबह-सुबह। रात भर चोदी, फिर भी सिकुड़ रही है मेरे लंड पर।" सोभा की सांसें तेज, आंखें बंद—"पापा... आह... बस... दर्द हो रहा है... लेकिन... मजा भी... चोदो ना... जोर से .."

उमाकांत पीछे खड़ा था , अपना लंड सहलाता—सोभा की गांड देखकर आग लग गयी उसको । "राजन... दो यार... अब मेरी बारी। राजन मुस्कुराया, लंड बाहर निकाला—चूत से वीर्य टपकने लगा, सोभा सिहर गई। "लो चाचा... ले ले अपनी रंडी को। लेकिन धीरे... वरना चीख मारेगी।" उमाकांत ने सोभा को पलटा, कुत्ते की तरह खड़ा किया—गांड ऊपर, हाथ मेज पर टिकाए। उंगली पहले डाली, गीला किया थूक से—"साली... कितनी गर्म... रात का नशा बाकी है क्या? चोदूंगी मैं तेरी गांड, देख।" सोभा कांप गयी लेकिन कमर झुकाई—"हां चाचा... चोदो... गांड फाड़ दो... पापा ने चूत भरी है, अब तुम्हारी बारी..."

राजन सामने आया, लंड सोभा के मुंह पर रगड़ा—गीला, चूत का रस चिपका। "चूस बिटिया... साफ कर दे पापा का लंड। तू... हमारी चुदक्कड़ बनी रहेगी आज।" सोभा मुंह खोली, चूसने लगी—गले तक लेती, लार टपकती। "मम्म... पापा... स्वाद... अपना ही... उफ्फ..." उमाकांत ने पीछे से घुसाया, गांड में—एक झटके में आधा अंदर चला गया । सोभा चीखी, लेकिन मुंह भरा था—"आह्ह्ह... चाचा... फट गई... धीरे..." उमाकांत हंसा, कमर पकड़कर धक्के मारने लगा—"धीरे क्या रंडी? तू तो रात को गिड़गिड़ा रही थी... 'और जोर से चाचा... गांड चोदो...' अब शरम क्या? ले... ले..." धप-धप की आवाज गूंजी, किचन में—सोभा का शरीर झटक मारने लगा , दूध लहरा रहे थे।

राजन बाल पकड़कर मुंह में धक्के दे रहा था —"हां कुतिया... दोनो छेद भरे हैं तेरे... सुबह का नाश्ता हो गया। चूस... और जोर से..." सोभा की आंखों से आंसू आ गए, लेकिन आनंद से—चूत से फिर पानी बहने लगा, उंगली खुद डाल ली। "पापा... चाचा... मैं... आ रही हूं... फाड़ दो... सब..." उमाकांत ने स्पीड बढ़ाई, गांड सिकुड़ने लगी—"उफ्फ... साली... गांड कस रही... झड़ रहा हूं..." गर्म होकर झड़ी अंदर, सोभा का क्लाइमैक्स फूटा—शरीर कांपकर रुक गया। राजन भी मुंह में झाड़ दिया—"पी ले बिटिया... सब... तेरी दवाई।"

तीनों हांफते गिरे—सोभा बीच में, राजन-उमाकांत दोनों तरफ। पसीना से लथ पथ, लेकिन मुस्कानें तीनो के चेहरे पर। "पापा... चाचा... ये... रोज हो?" सोभा फुसफुसाई, शरम से। राजन ने चुंबन लिया—"हां रंडी... तू हमारी है अब। गांव सो रहा है, लेकिन हम जागेंगे।" उमाकांत हंसा—"अगली बार... आंगन में... खुला खेलेंगे।"




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स्कूल की घंटी बज चुकी थी, लेकिन उमेश का दिमाग कहीं और था। प्रिंसिपल शर्मा के केबिन में बुलावा आया था –खुशबू के बारे में बात करनी है ।" उमेश का दिल धक् से रह गया। वो जानता था, शर्मा वो राक्षस है जो खुशबू को पहले ही चख चुका था। लेकिन रोक पाना मुश्किल था। बाहर निकलते हुए, उसने खुशबू को मैसेज किया: "बेटी, शाम 6 बजे होटल रॉयल पैलेस। प्रिंसिपल साहब से मिलना है।

खुशबू ने पढ़ा, सिहर गई। कल रात का दर्द अभी भी था, लेकिन उत्तेजना भी। "हाँ पापा... आ रही हूं। लेकिन... डर लग रहा।" वो टाइप किया, लेकिन डिलीट कर दिया। शाम को वो साड़ी पहनकर निकल पड़ी – लाल, थोड़ी ट्रांसपेरेंट, जो उसके कर्व्स को हाइलाइट करे। होटल के कमरे में घुसते ही, वो सीन देखा: उमेश बिस्तर पर बैठा था, शर्मा खड़ा – हाथ में व्हिस्की का ग्लास, चश्मा चढ़ाए, मुस्कुराता हुआ।

"आ गई मेरी प्यारी स्टूडेंट?" शर्मा ने कहा, दरवाजा बंद करते हुए। उसकी आवाज में वो ताना था, जो बॉस की तरह लगे। "बैठो, खुशबू। या... लेट जाओ। आज क्लास स्पेशल है।"

खुशबू ने उमेश की तरफ देखा, वो सिर झुकाए था। "पापा... ये?" वो बुदबुदाई।

शर्मा हंस पड़ा, ग्लास रखकर उमेश के पास आया। "अरे उमेश, शर्मा मत। तू तो बड़ा होशियार निकला। अपनी ही बेटी को चोदा, और मुझे भी शेयर किया। कल रात पार्क में क्या हो रहा था, वो तो मैंने देख लिया था। गेटकीपर राजन ने बता दिया सब – तू अपनी रंडी बेटी को बेंच पर रगड़ रहा था। और अब... होटल? हाहा, तू तो ककौल्ड किंग है!"

उमेश का चेहरा लाल हो गया। वो उठा, लेकिन शर्मा ने कंधे पर हाथ रख दिया। "बैठ जा, भाई। गुस्सा मत। देख, तेरी बेटी कितनी हॉट है। मैंने तो बस मदद की। कल स्कूल में केबिन में... वो चीखें, 'सर... हल्के से'। लेकिन तू जानता है ना, रंडियां चीखती ही हैं।" शर्मा ने खुशबू को घूरा, जो अब बिस्तर पर किनारे बैठी थी।

"शर्मा साहब... प्लीज। वो मेरी बेटी है।" उमेश की आवाज कांप रही थी, लेकिन आंखों में वो चमक – ईर्ष्या की, लेकिन उत्तेजना की भी।

"बेटी? हाहा! तेरी बेटी तो मेरी रखैल है अब। और तेरी भी। देख, उमेश... तू बाहर जा, दरवाजे पर खड़ा हो। सुन ले सब। या... अंदर ही रह। तेरी मर्जी। लेकिन आज ये रंडी हम दोनों की है।" शर्मा ने खुशबू का हाथ पकड़ा, खींचकर अपनी गोद में बिठा दिया। खुशबू सिहर गई, लेकिन विरोध नहीं किया। उसके मन में डर था, लेकिन वो गर्मी... कल रात की तरह।

उमेश हिल गया। "नहीं... मैं... मैं देखता हूं। लेकिन... हल्के से।" वो बोला, कुर्सी पर जाकर बैठ गया। उसका लंड पहले ही सख्त हो रहा था – ये अपमान, ये शेयरिंग।

शर्मा ने साड़ी का पल्लू खींच लिया। खुशबू के स्तन ब्लाउज में उभरे। "देख, उमेश... तेरी बेटी के ये चुचे। कितने रसीले है तू तो रोज चूसता होगा ना?" शर्मा ने ब्लाउज खोला, एक स्तन बाहर निकाला। निप्पल पर जीभ फेरी। "आह... खुशबू, बोल... कैसा लग रहा? तेरे पापा देख रहे हैं।"

खुशबू की सांस तेज़ हो गई। "सर... आह... अच्छा लग रहा। लेकिन... पापा... मत देखो।" वो बोली, लेकिन आंखें उमेश पर। उसके शरीर में वो कंपन – दर्द का डर, लेकिन मजा भी आ रहा था

"चुप रंडी!" शर्मा ने जोर से थप्पड़ मारा – चेहरे पर, हल्का लेकिन जलन भरा। "पापा देखें या ना देखें, तू तो हमारी कुतिया है। बोल, 'हाँ सर, चोदो मुझे'।"

खुशबू का गाल लाल हो गया। दर्द में आंसू आ गए, लेकिन नीचे गीलापन महसूस हुआ। "हाँ सर... चोदो मुझे। पापा... सॉरी... लेकिन... अच्छा लग रहा।" वो सिसकी, लेकिन कमर हिलाने लगी।

उमेश का हाथ अपनी पैंट पर सरक गया। "खुशबू... तू... एंजॉय कर रही? मैं... मैं कुछ नहीं कहूंगा। बस... देख लूं।" उसकी आवाज में वो ककौल्ड वाइब – अपमान में मजा आ रहा था ।

शर्मा ने हंसकर खुशबू को बिस्तर पर पटक दिया। साड़ी ऊपर सरका दी, पैंटी फाड़ दी। "देख उमेश, तेरी बेटी की चूत... बालों वाली, गीली। तूने तो इसे पहली बार चोदा होगा ना? और अब... मेरी बारी।" वो अपना लंड बाहर निकाला – मोटा, नसों वाला। खुशबू की चूत पर रगड़ा। "बोल रंडी, किसका लंड बड़ा? तेरे पापा का या मेरा?"

"आह... सर... आपका... बड़ा। पापा का... प्यारा है। लेकिन... अंदर डालो ना।" खुशबू बोली, पैर फैलाते हुए। उसकी आंखें बंद हो गयी लेकिन मुस्कान। दर्द का इंतज़ार, लेकिन उत्तेजना ज्यादा।

शर्मा ने एक झटके में अंदर घुसेड़ दिया। "ले कुतिया ! तेरी चूत फाड़ दूंगा। रंडी बेटी... पापा के सामने चुद रही है। कैसा लग रहा?" वो धक्के मारने लगा, हर धक्के के साथ थप्पड़ – चूचियों पर, जांघों पर। "चटक! ले ये... तेरी गांड भी लाल कर दूंगा।"

खुशबू चीखी, लेकिन चीख में आनंद। "आह... सर... हाँ... फाड़ दो। पापा... देखो... कितना अच्छा... आह... थप्पड़ मारो और!" वो कराह रही थी, हाथ ऊपर करके। उसके शरीर पर लाल निशान पड़ रहे थे, लेकिन वो कमर उठा रही थी – मैच कर रही धक्कों से। "पापा... आप भी... आओ ना। छुओ मुझे।"

उमेश उठा, करीब आया। लेकिन शर्मा ने धक्का दिया। "रुक मादरचोद पहले देख। तेरी बेटी मेरी है अभी। देख कैसे चुद रही। बोल खुशबू, तेरे पापा को बोल – 'पापा, मैं रंडी हूं, तुम्हारी नहीं, सबकी'।"

खुशबू ने उमेश की तरफ देखा, आंखों में चमक आ गयी । "पापा... हाँ... मैं रंडी हूं। तुम्हारी... लेकिन सबकी भी। आह... सर... तेज़... चोदो! ले थप्पड़... आह... पापा, देखो... कितना मजा आ रहा। तुम्हारा लंड... हिला लो।"

उमेश ने पैंट खोली, हिलाने लगा। "हाँ बेटी... तू एंजॉय कर। मैं... मैं खुश हूं। देखकर।" उसकी सांसें तेज़, आंसू थे – लेकिन वीर्य टपक रहा था।

शर्मा ने और तेज़ किया। "ले कुतिया! तेरी चूत का रस... निकल रहा। उमेश, देख... तेरी बेटी स्क्वर्ट करेगी। बोल रंडी, 'मैं प्रिंसिपल की रण्डी हूं'।" थप्पड़ की बौछार हो गयी – चेहरे पर, गांड पर।

"हाँ... सर... मैं आपकी कुतिया हूं! आह... आ रहा... कम... अंदर ही!" खुशबू चिल्लाई, शरीर कांप गया। वो चरम पर पहुंच गई, रस बहा दिया। शर्मा ने भी झटके मारे, अंदर गिरा दिया। "ले... भर दिया तेरी चूत को। अब तेरे पापा की बारी। लेकिन... तू मेरी रंडी है।"

उमेश झपटा, खुशबू को चूमा। "बेटी... तू परफेक्ट है। अब... मेरी बारी। लेकिन... सर के बिना मत भूलना।" वो अंदर घुसा, शर्मा के रस के ऊपर। खुशबू ने दोनों को गले लगाया। "हाँ पापा... दोनों के साथ। थप्पड़ मारो... गालियां दो... मजा आ रहा!"

शर्मा ने पीछे से गांड में उंगली डाली। "हाँ रंडी... आज रात भर चुदेगी। उमेश, तू बाहर जा... हम अकेले एंजॉय करेंगे। कल स्कूल में... और स्टूडेंट्स को बुलाऊं?"

उमेश सिहर गया, लेकिन मुस्कुराया। "जो आप कहें साहब... बस मेरी बेटी खुश रहे।"
Nice update and awesome story
 
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rajeev13

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कैसी लग रही कहानी.. कुछ चेंज करना हो तो बताइये
कहानी बहुत ही बेहतर जा रही है बस थोड़ा लेखन में सुधार कर लेंगे तो और बेहतरीन हो सकती है !
 
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कहानी बहुत ही बेहतर जा रही है बस थोड़ा लेखन में सुधार कर लेंगे तो और बेहतरीन हो सकती है !
जैसे आप बताये
 
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दो दिन बाद, हरि का फोन आया। "रूमा, तैयार हो जा। हम बस से आ रहे हैं। राधा को घुमाने ले जा रहे हैं – तेरे घर। शाम तक पहुंच जाएंगे।" हरि की आवाज में वो उत्साह था, जो रूमा जानती थी – सिर्फ घूमने का नहीं। रूमा ने हंसकर कहा, "भाई, आ जाओ। लेकिन राधा को मत डराना। वो तो अभी बच्ची है।" हरि ने ठहाका लगाया, "बच्ची? होली वाले दिन तो तूने देखा ना, कैसे भांग के नीचे सिहर रही थी। ठीक है, शाम को मिलते हैं।"

बस स्टेशन पर हरि और राधा चढ़े। आखिरी सीट – खाली, परफेक्ट। हरि ने राधा को खींचकर गोद में बिठा लिया। बस चल पड़ी, धक्के लगने लगे। "बेटी... देख, बस कितनी हिल रही। जैसे तू मेरी गोद में।" हरि ने कान में फुसफुसाया, हाथ कमर पर। राधा शरमा गई, लेकिन सिर टिका दिया। "पापा... लोग देख लेंगे। लेकिन... आ जाओ।" वो बुदबुदाई, साड़ी का पल्लू ढीला करके।

हरि ने होंठ उसके गले पर रखे। "देखेंगे तो क्या? तू मेरी रंडी बेटी है। चूम लूं?" वो बोला, और जीभ निकालकर चाटा – गर्म, गीली। राधा सिहर गई, "आह पापा... हाँ... लेकिन धीरे।" हरि ने मुंह चिपका दिया – जीभें लड़ रही थीं, लार टपक रही। "उम्म... बेटी, तेरी थूक... अमृत है । चूस ले तेरा दूध।" हरि ने ब्लाउज में हाथ डाला, स्तन निचोड़ने लगा – जोर से, निप्पल मरोड़ते हुए..राधा की सांस तेज़ हो गई, "पापा... दर्द हो रहा... लेकिन अच्छा लग रहा । और निचोड़ो।"

बस के धक्कों से हरि का लंड सख्त हो गया। "बेटी... देख, क्या हो गया। चूस ले। कोई नहीं देखेगा।" हरि ने पैंट का जिपर खोला, लंड बाहर निकाल लिया – मोटा, नसों वाला। राधा ने झुककर मुंह में लिया। "उम्म... पापा का... इतना बड़ा है ।" वो चूसने लगी, जीभ घुमाते। हरि उसके बाल पकड़कर धक्का दे रहा था। "हाँ रंडी... अंदर तक ले। बस वाले सब सोचेंगे तू... मेरी कुतिया। आह... निकलने वाला है ।"

रूमा के घर पहुंचे तो शाम हो चुकी। रमा ने दरवाजा खोला, राधा को गले लगाया। "अरे मेरी भतीजी, कितनी बड़ी हो गई। आओ अंदर।" लेकिन हरि की आंखें रूमा पर – साड़ी में वो कर्व्स, रसोई से आ रही। "बहन... तू अभी भी वैसी ही है गरमागरम।" हरि ने फुसफुसाया। र मा शरमा गई, "भाई... राधा के सामने मत बोलो। आओ, चाय बनाती हूं।"

रसोई में रमा काम कर रही थी – सब्जी काटते। हरि पीछे से चिपक गया, लंड रगड़ते। "रमा... बस में राधा ने इतना उकसाया। अब तू... खड़ी-खड़ी ले ले।" वो बोला, साड़ी ऊपर सरका दी। रूमा ने छुरी रखी, "भाई... अंदर राधा है। लेकिन... हाँ... डाल दो।" हरि ने पैंट गिराई, चूत में घुसेड़ दिया – खड़े-खड़े, दीवार से सटाकर। "आह बहन... तेरी चूत... कितनी टाइट है रे। ले... धक्के मादरचोद ।" वो मारने लगा, हाथ से गांड पकड़कर। रमा कराही, "आह भाई... तेज़... लेकिन शश्... आवाज मत। राधा सुन लेगी।"

राधा बाहर से झांक रही थी, लेकिन अंदर आ गई। "मामा ... मॉम... क्या?" वो सिहर गई। हरि नहीं रुका, "बेटी... आ... देख तेरी मॉम कैसे चुद रही। तेरी बारी भी।" रमा चरम पर थी," हरि ने झटके मारे, "निकल रहा...कुतिया बहन, मुंह खोल।" वो बाहर निकाला, रमा घुटनों पर आ गयी । हरि ने वीर्य फेंका – आधा रूमा के मुंह में, आधा राधा को बुलाकर उसके मुंह में। "ले बेटी... पापा का दूध। चख।" राधा ने निगला, "पापा... उफ्फफ्फ्फ़" रमा ने चाटा, "भाई... तू पागल है। लेकिन... मजा आया।"

शाम को उमेश घर लौटा। राधा को देखा – 18 की, कर्वी, साड़ी में वो फिगर। उमेश का लंड सख्त हो गया । "अरे... राधा कितनी... सुंदर है बेटी ।" वो बोला, आंखें घुमाते हुए । उमेश ने खाने के बाद खुशबू को इशारा किया। कमरे में ले जाकर, "बेटी... राधा को देखा? वो फिगर... मैं पागल हो जाऊंगा। तू... पटाने में मदद कर। छत पर ले जा। मैं आऊंगा।"

खुशबू मुस्कुराई, "पापा... ठीक है। लेकिन जो करना अच्छे से करना

पढ़ाई शुरू हुई । राधा ने गलती की। उमेश ने थप्पड़ मारा – हल्का, गाल पर। "गलत! ध्यान दे।" राधा सिहर गई, "अंकल... सॉरी।" लेकिन गर्मी लगी उसे । खुशबू ने भी गलती की, थप्पड़ खाया। "आह पापा... हल्के मारो ।" दोनों गरम हो गईं – सांसें तेज़।

उमेश ने राधा के सामने खुशबू का ब्लाउज खींचा, दूध दबाने लगा "देख राधा... तेरी दीदी के चुचे। कितने सॉफ्ट है। तू भी तो ऐसी ही होगी।" राधा डर गई, "अंकल... क्या ये?" लेकिन सब समझ गई

उमेश ने कहा, "दोनों... ब्लाउज खोलो। नंगे करो चुचे। पढ़ाई के साथ।" दोनों ने खोला – दूध बाहर किये । अगला सवाल गलत, उमेश ने थप्पड़ मारा – खुशबू के दूध पर , "चटक!" फिर राधा के, "ले रंडी! गलत जवाब।" राधा चीखी, "आह अंकल... दर्द... लेकिन... गरम लग रहा।" खुशबू कराही, "पापा... और मारो। सही लग रहा।" दोनों की निप्पल सख्तहो गयी

उमेश ने पैंट खोली, लंड बाहर निकला । "देखो दोनों... ये तुम्हारे लिए है । आंखों में देखो।" वो हिलाने लगा, तेज़। "हाँ... राधा, तेरी आंखें... कितनी मासूम है । लेकिन चुचे... रंडी जैसे। खुशबू... तू तो मेरी कुतिया है ।" दोनों घूर रही, हाथ नीचे सरकाने लगीं। उमेश चरम पर आ गया , "निकल रहा... ले!" वीर्य फेंका – दोनों के दुध पर रगड़ा। "मल लो... मेरे राजा के दूध से।"

फिर थप्पड़ों की बौछार आ गयी जैसे – चूचियों पर , गालों पर। "रंडियां! कुतियां! गलत पढ़ाई के लिए ये सजा मिलेगी । लेकिन मजा आया ना?" उमेश बोला। राधा सिसकी, "हाँ अंकल... बहुत।"
 

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नीचे कमरे में हवा गरम हो चुकी थी। रमा की साड़ी आधी खुली पड़ी थी, ब्लाउज फटा हुआ था । हरि और रवि – – दोनों उसके दोनों स्तनों पर टूट पड़े थे। हरि ने बायां स्तन मुट्ठी में भर लिया, निचोड़ते हुए, "बहन... तेरे ये चुचे... कितने रसीले हैँ। वो जोर से दबा रहा था, निप्पल पिंच करते हुए। रवि दायां स्तन पकड़कर, "मम्मी... ये मेरा है। पापा ऊपर हैं, लेकिन मैं... आह... कितना सॉफ्ट हैँ कुतिया ।" वो बेदर्दी से मसल रहा था, जैसे भूखा बच्चा दूध निचोड़ रहा हो।

रमा की सांसें तेज़ हो गईं। वो कामुक हो चुकी थी – दो मर्दों के बीच, वो भी भाई और बेटा । "आह... भाई... रवि... हल्के से। दर्द हो रहा... लेकिन... मजा आ रहा। हाँ... और निचोड़ो। जैसे मैं तुम्हारी गुड़िया हूं।" वो कराही, कमर हिलाती हुआ । उसके नीचे गीलापन महसूस हो रहा था, पसीना चू रहा था । "रवि... तू तो मेरा बेटा हैँ ... लेकिन ये हाथ मम्मी पर लगा रहा या रण्डी पर। भाई... तू हमेशा ऐसा ही था, ना? बचपन से।"

हरि ने हंसकर थप्पड़ मारा – दूध पर, "चुप रंडी बहन! बचपन से? हाँ, लेकिन अब तू कुतिया बनी है। रवि, देख... तेरी मम्मी के निप्पल कितने सख्त। चूस ले।" रवि झुका और निप्पल मुंह में ले लिया – चूसते हुए काटा। रमा चीखी हल्के से, "आह बेटा... हाँ... चूस। भाई... तू भी... दूसरा।" हरि ने दूसरा चूसा, दांत से खींचा। रूमा का शरीर कांप गया

फिर रवि नीचे बैठ गया, रमा की साड़ी ऊपर सरका दी। "मम्मी... अब ये... तेरी चूत। मैं चाटूंगा।" वो घुटनों पर, जीभ निकालकर चूत पर फेरी – बालों वाली, गीली। "उम्म... मम्मी का रस... कितना स्वादिष्ट है। अमृत।" रवि चाटने लगा, जीभ अंदर-बाहर। रूमा के पैर कांप गए, "रवि... आह... बेटा... और तेज... हाँ... चाट। तेरी जीभ... जादू कर रही।"

हरि ने अपना काला लंड बाहर निकाला – मोटा, काला, नसों वाला। पैंट गिराई, रमा के मुंह के पास रगड़ा। "कुतिया अब ये चूस। तेरा भाई का लंड... याद है ना, बचपन में छुपकर देखा था। अब ले मुंह में।" रमा ने आंखें खोलीं, लंड पकड़ा। "भाई... इतना काला... बड़ा। हाँ... चूसूंगी।" वो मुंह खोला, सिर से चूसने लगी – जीभ घुमाते, अंदर लेते हुए। "हाँ रंडी... गला तक ले। कुतिया बहन... चूस।"

रवि चाटते-चाटते ऊपर देख रहा था। "मम्मी... पापा का लंड... नहीं, मामा का... कितना मोटा है । मैं भी... अपना निकालूं?" रमा ने लंड मुंह से निकाला, लार टपकाते। "हाँ बेटा... निकाल। लेकिन पहले... मैं चूसूंगी।" वो नीचे बैठ गई – फर्श पर, घुटनों पर। दोनों के सामने। हरि और रवि खड़े, लंड बाहर। रूमा ने बारी-बारी चूसना स्टार्ट किया बारी-बारी मुंह में लेती, हाथों से सहलाती। लार टपक रही थी उसकी, "हाँ... दोनों... मेरे राजा। चूसूंगी... रंडी की तरह।"

हरि की सांस तेज़ हो गई। "बस रमा... अब कुतिया बन जा। घुटनों पर... गांड ऊपर।" रमा कुत्ते की तरह हो गई – हाथ-पैरों पर, गांड ऊपर। हरि नीचे लेटा, चूत में लंड घुसेड़ दिया। "ले बहन... तेरी चूत... भर दूंगा।" वो धक्के मारने लगा, नीचे से ऊपर की ओर। रमा ची खी, "आह भाई... हाँ... फाड़ दो। और तेज .. आह!" रवि पीछे से, गांड पर थूक लगाया। "मम्मी... अब मैं... तेरी गांड।" वो अपना लंड दबाया – टाइट, दर्दनाक। "आह... मम्मी... कितनी टाइट।"

दोनों तबादतोड़ चोदने लगे – हरि चूत में धक्के, रवि गांड में। संतुलन बनाते, रमा बीच में लटकी। "आह... भाई... बेटा... मार डालोगे क्या। हाँ... तेज़... चोदो! रंडी हूं मैं... तुम्हारी।" रमा कराह रही थी, हरि ने थप्पड़ मारा – गांड पर, "चटक! ले कुतिया... तेरी चूत मेरा। रवि, तू गांड फाड़।" रवि ने भी थप्पड़ मारा पीठ पर, "मम्मी... हाँ... चीख... मजा आ रहा। तू हमारी रंडी है ।" धक्के तेज़ हो गए – चट-चट की आवाजें, रमा का रस बहने लगा। "आह... दोनों... कम... अंदर ही... भर दो!"

हरि पहले चरम पर, "निकल रहा बहन... ले चूत में!" रस गिराया। रवि ने गांड में, "मम्मी... हाँ... ले

हरि उठा, "अभी तो शुरूआत है कुतिया। बाथरूम... चल।" उन्होंने रमा को खींचा – नंगी, थकी। बाथरूम में खड़ा किया। हरि ने लंड पकड़ा, "बहन... अब ये... पेशाब ले । तेरे ऊपर।" गर्म धारा – रूमा के स्तनों पर, चेहरे पर। "आह भाई... ।" रवि ने भी, "मम्मी... मेरा भी। तू हमारी... गंदी रानी है ।" पेशाब की धाराएं – शरीर पर बह रही थी , रमा सिहर गयी। "हाँ... बेटा... भाई... सब कुछ... तुम्हारा है लेकिन... साफ करो ना... चाट लो।" वो हंस पड़ी, लेकिन आंखों में वो चमक – अपमान में आनंद।
 
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खाने के बाद घर में सन्नाटा छा गया। रमा और रवि नीचे सो चुके थे, थकान की वजह से। ऊपर छत पर उमेश और हरि – जीजा-साले – बैठे थे। हरि ने बोतल निकाली, "उमेश, ले भाई... आज का तोहफा। गांव से लाया था। थोड़ी पी ले," उमेश ने ग्लास भरा, "हाँ हरि... तू आया है, तो मूड फ्रेश हो गया । पहला घूंट नीचे। हवा ठंडी थी, लेकिन नशा चढ़ने लगा – धीरे-धीरे।

बातें शुरू हुईं नॉर्मल – गांव की, खेती की, फिर बेटियों पर। "हरि, राधा की शादी कब करेगा? कॉलेज खत्म हो रही ना?" उमेश ने पूछा, दूसरा ग्लास भरते। हरि ने सिर हिलाया, "अरे जीजा, जल्दी ही। लेकिन लड़का अच्छा मिले। तू बता, खुशबू की क्या सोचा है ? उमेश हंस पड़ा, "हाँ... शादी तो करनी है। लेकिन अभी... पढ़ाई पहले।

हरि ने तीसरा ग्लास थामा हरि भाई राधा के दूध कितने बड़े बड़े हैँ

हरि चौंका, ग्लास रुक गया। सन्नाटा। फिर अचानक ठहाका लगाया, "अरे उमेश! तेरी नज़र राधा के चुचों पर हैँ? हाहा, नशा चढ़ गया तेरे को । लेकिन... सच बोलूँ? तेरी खुशबू के बारे में सोचता हूँ तो... वो कमर, वो गांड। रंडी जैसी। चोदने को मन करता है।" हरि ने आंख मारी, लेकिन आवाज में वो गंदापन।

उमेश अंदर से सिहर गया – लंड सख्त हो गया। "हरि... तू... खुशबू को? वो मेरी बेटी.हैँ .. लेकिन हाँ, तू बोल तो सही रहा हैँ । राधा की चूत... बालों वाली होगी ना? चाटने लायक।" वो बोला, हाथ पैंट पर सरका दिया, हल्का सहलाने लगा। नशा चढ़ चुका था, आंखें लाल। हरि ने भी पैंट में हाथ डाला, "हाँ जीजा... राधा की चूत... तंग हैँ । लेकिन तेरी खुशबू... वो तो कुतिया बनी होगी तुझसे। चोदी है ना तूने?

दोनों पागल हो गए – नशे में। गालियां उछलने लगीं। "हरि, तेरी बेटी राधा... उसके निप्पल चूसूंगा। गुलाबी होंगे।" उमेश हिलाते हुए बोला। हरि ने जोर से हंसा, "और मैं खुशबू की गांड फाड़ूंगा। तेरी रंडी बेटी... थप्पड़ मारकर चोदूंगा। ले... तेज़ हिला।" दोनों के हाथ तेज़ – । "कुतिया राधा... तेरी बेटी मेरी कु तिया बनेगी।"। "रंडी खुशबू... तेरी वाली को मेरे काले लंड पर बिठाऊंगा।" हरि जवाब देता। हंसी, गालियां, सहलाहट के साथ – छत पर आग लग गई।

उमेश ने फोन निकाला, नशे में कांपते हाथों से। "बस... अब बुला लेते हैं।" खुशबू को मैसेज किया "बेटी, छत पर आ। पापा इंतज़ार रहे।" राधा को हरि ने: "बेटी, ऊपर आ। पापा बुला रहे।" दोनों लड़कियां नीचे से उठीं, रात के 11 बज चुके। छत पर पहुंचीं तो सीन देखा – पिता नंगे लंड हिलाते, नशे में लाल आंखें। खुशबू चौंकी, "पापा... क्या ये? मामा..." राधा ने मुंह ढका, "पापा...

दोनों बापों ने इशारे से गाली दी – उंगली घुमाकर, "आओ रंडियों!" उमेश ने अपनी बेटी खुशबू को नहीं, राधा को इशारा किया। हरि ने खुशबू को। "राधा... आ मेरे पास।" उमेश ने धीरे बोला, लेकिन गंदी मुस्कान के साथ । राधा सिहर गई, लेकिन आई – हरि ने खुशबू को खींचा, "खुशबू... तू मेरी हैँ आज।"

उमेश ने राधा को घुटनों पर बिठाया, लंड उसके मुंह पर रगड़ा। "ले बेटी... चूस। तेरे पापा के जीजा का।" राधा ने आंखें बंद कीं, मुंह खोला और – लंड अंदर ले लिया । "उम्म... अंकल..बहुत. बड़ा हैँ आपका ।" वो चूसने लगी, जीभ घुमाते। हरि ने खुशबू को पकड़ा, लंड मुंह में ठूंसा। "ले रंडी... तेरे पापा के सामने चूस। काला लंड... चख।", "मामा... आह..."

लंड चूसते हुए दोनों बाप गंदी बातें करने लगे – एक-दूसरे की बेटी पर। उमेश ने राधा के बाल पकड़े, धक्का देते, "देख हरि... तेरी रंडी बेटी... कितनी अच्छी चूस रही। कुतिया राधा... गला तक ले। तेरी बेटी मेरी कुतिया।" हरि ने खुशबू को दबाया, "हाँ जीजा... और तेरी खुशबू... देख, लंड पर लार टपका रही। रंडी खुशबू... चूस काला लंड। तेरी बेटी मेरी गुलाम है ले थप्पड़!" हरि ने खुशबू के गाल पर हल्का थप्पड़ मारा।

उमेश ने भी राधा को थप्पड़ मारा – मुंह से लंड निकालकर। "चटक! ले कुतिया राधा... तेज़ चूस। तेरे पापा देख रहे।" राधा की आंखों में आंसू आ गए, लेकिन चूसती रही तेज़। "हाँ अंकल... गाली दो... मजा आ रहा।" खुशबू कराही, "मामा.. और गंदा बोलो... पापा... देखो... कितना मज़ा आ रहा।"

हरि ने हंसकर कहा, "उमेश... तेरी रंडी बेटी का मुंह... कितना गर्म है चोदूंगा इसे। राधा... तू तो मासूम लगती, लेकिन चूस रही जैसे कोई रण्डी हो।" उमेश "तेरी कुतिया बेटी... आह... निकलने वाला। लेकिन रुको... पहले और चूसाओ।" दोनों सहलाते रहे, गालियां उछालते – "रंडी है साली दोनों
 
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उद्धर राजन के घर के आंगन में धुआं उठ रहा था। राजन और उमाकांत – दोनों दोस्त – पुराने तख्त पर लेटे, चिलम में गंजा भरा। शाम ढल चुकी थी, लेकिन नशा चढ़ने लगा। राजन ने लंबा कश लिया, धुआं उगला, "उमाकांत...भाई जो भी बोल ये मेरी बेटी सोभा इतनी बड़ी चुदक्कड़ निकलेगी विश्वास नहीं होता।" उसकी आवाज भारी, नशे में लाल आंखें।

उमाकांत ने चिलम थामी, कश लिया। "हाँ राजन... बहुत आग है साली के अंदर.. पूरा लण्ड अंदर ले लेती है साली "हंस पड़ा, खांसते हुए। गंजा का नशा चढ़ रहा था – सिर भारी, लेकिन लंड सख्त।

राजन ने ठहाका लगाया, चिलम उमाकांत को थमाई। "सही चीज मिल गयी है ठोकने के लिए। ले, और गंजा पी। मस्त हो जाओ।" दोनों मस्त होकर चिलम साझा करने लगे – कश पर कश, धुआं घना। "सोभा की चूत... बालों वाली होगी। चाटूंगा। तू गांड मारना।" उमाकांत बोला। राजन ने सहमति में सिर हिलाया, "हाँ... और थप्पड़ मारेंगे। रंडी चीखेगी। चल, अब घर चलें। भूख लग गयी है – खाना भी खाना है, और वो भी।"

दोनों उठे, लड़खड़ाते। राजन का घर छोटा था, लेकिन आंगन खुला। अंदर रसोई से सोभा चूल्हे पर रोटी सेंक रही थी । 28 गद्दाराई लड़की साड़ी में कर्व्स – बड़े-बड़े स्तन, कमर पतली। उमाकांत ने पहले देखा, सिहर गया। "उफ्फ्फ.. कितनी गरम है।" वो फुसफुसाया। सोभा मुड़ी, "पापा जी... चाचा जी ? आ गए? खाना तैयार है। लेकिन... गंध... गंजा?" वो नाक सिकोड़ी, लेकिन मुस्कुराई।

उमाकांत मस्त था, सीधा सोभा के पास के पास गया । उसके स्तनों पर नजर फेरने लगा – ब्लाउज से उभरे। "सोभा रानी... तेरे ये चुचे... देखकर भूख लग गई।" वो झपटा, पीछे से गले लगाकर स्तन पकड़ लिए – जोर से निचोड़ते। "आह... कितने बड़े। दूध निकलेगा।" सोभा सिहर गई, चम्मच गिरा। "चाचा जी ... अरे... खाना... बाद में। पापा जी देख रहे।" लेकिन उसकी आवाज में वो कंपन – डर नहीं, उत्तेजना। राजन हंस पड़ा, "देखने दो। तू तो हमारी रंडी है। ले खाना दो।"

सोभा ने छुड़ाया, थाली में रोटी-सब्जी परोसी। आंगन में तीनों बैठे – मिट्टी के पात्रों में। खाते-खाते उमाकांत ने फिर हाथ बढ़ाया। सोभा के सिर पर हाथ फेरा, "बेटी ... बाल कितने सॉफ्ट। लेकिन नीचे... चूत गीली होगी ना?" सोभा शरमाई, "चाचा जी . खा लो पहले। गंदी बातें मत करो ।" लेकिन राजन ने भी सिर सहलाया, "गंदी? सच बोल रहा हूँ साली । तेरी चूत... कल रात चोदी, आज फिर चोदनी है ।"

खाते हुए दोनों ने गंदी बातें शुरू कीं। उमाकांत ने रोटी मुंह में देते हुए, स्तन पर हाथ रखा – निचोड़ते। "सोभा... ये दूध... चूसूं? इतना रस?" सोभा की सांस तेज़ हो गयी , "आह... छोड़ो... खाना गिर रहा।" लेकिन वो हिली नहीं। राजन ने पीछे से गांड पर हाथ मारा – मसलते हुए । "गांड... कितनी मोटी है साली फाड़ दूंगा। रंडी बेटी ... खाते हुए चुदेगी?" दोनों हंस पड़े। सोभा मस्त हो गई – नशे की हवा, स्पर्श। "पापा जी... चाचा.. हल्के । लेकिन... हाँ... मजा आ रहा। खा लो, फिर..." उसकी आंखें चमक रही थी ।

खाना खत्म हुआ । थालियां हटाईं। आंगन में ही उमाकांत ने सोभा को पकड़ लिया – दीवार से सटा दिया। "अब रंडी... मसल लूं।" हाथ ब्लाउज में – स्तन बेदर्दी से मसला। "आह... कितने भरे है । थप्पड़ मारूं?" वो चटक! – स्तन पर। सोभा चीखी, "आह... दर्द... लेकिन... और!" राजन पीछे से, साड़ी ऊपर सरका दी। गांड मसलने लगा, "कुतिया... तेरी गांड.. – रंडी,।" सोभा कराही, "हाँ पापा जी... गाली दो... मसलो। चाचा... चुचे... निचोड़ो।" दोनों गालियां बकने लगे – "रंडी... कुतिया... चूत फाड़ देंगे।" सोभा का शरीर गर्म हो गया रस टपक रहा था

फिर दोनों ने पैंट गिराई। लंड बाहर किया – राजन का सफेद, उमाकांत का काला। "चूस रंडी!" राजन ने मुंह में ठूंसा। सोभा घुटनों पर, चूसने लगी – अंदर तक, लार टपकाते। "उम्म... पापा जी...बहुत मोटा है ।" उमाकांत ने बाल पकड़े, "मेरी बारी। ले काला लंड।"

चूसते-चूसते उमाकांत ने उठाया, आंगन में लिटाया। "अब चोदेंगे।" पहले उमाकांत – चूत में घुसेड़ा। "ले रंडी... फाड़ दूंगा।" धक्के मारने लगा थप्पड़ों के साथ। "चटक! चीख कुतिया।" सोभा चिल्लाई, "आह... तेज़... हाँ!" राजन ने दूध चूसे। – राजन चूत में, "बेटी .. तेरी चूत... मेरी। ले धक्के।" उमाकांत गांड पर थप्पड़ मारने लगा। बारी-बारी दोनों ने उसके तीनो छेदो को भर दिया..सोभा चरम पर कई बार गयी , "आह... दोनों... भर दो!" दोनों ने सारा माल अंदर गिरा दिया

सोभा थकी लेटी हुई थी । दोनों दोस्त सांस लेते हुए , फिर गंदी बातें करने लगे । राजन ने चिलम जलाई, "उमाकांत... ये सोभा... सच्ची रंडी। हमारी रखैल। कल फिर चोदेंगे।" उमाकांत हंसा, "हाँ भाई... रखैल नंबर वन। उसके चुचे... गांड... सब हमारा। रंडी , चोदने की मशीन।" दोनों ठहाके लगाते, गंजा पीते है । सोभा मुस्कुराई, "हाँ... तुम्हारी रखैल। लेकिन थक गई।"
 
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