सुबह की धूप आंगन में फैल चुकी थी, लेकिन किचन का कोना अभी भी छाया में डूबा था —वहां की हलचल किसी को न पता थी । सोभा का चाय का ट्रे गिरा ही था, लेकिन अब वो मेज पर लेटी हुई थी, साड़ी कमर तक लुढ़की हुई , चूत और गांड नंगी चमक रही थी । राजन का लंड अभी भी अंदर धंसा था, गर्म वीर्य की चिपचिपाहट महसूस हो रही थी —वो धीरे-धीरे धक्के मार रहा था, जैसे आखिरी सिप ले रहा हो। "उफ्फ बिटिया... तेरी चूत... कितनी टाइट हो गई सुबह-सुबह। रात भर चोदी, फिर भी सिकुड़ रही है मेरे लंड पर।" सोभा की सांसें तेज, आंखें बंद—"पापा... आह... बस... दर्द हो रहा है... लेकिन... मजा भी... चोदो ना... जोर से .."
उमाकांत पीछे खड़ा था , अपना लंड सहलाता—सोभा की गांड देखकर आग लग गयी उसको । "राजन... दो यार... अब मेरी बारी। राजन मुस्कुराया, लंड बाहर निकाला—चूत से वीर्य टपकने लगा, सोभा सिहर गई। "लो चाचा... ले ले अपनी रंडी को। लेकिन धीरे... वरना चीख मारेगी।" उमाकांत ने सोभा को पलटा, कुत्ते की तरह खड़ा किया—गांड ऊपर, हाथ मेज पर टिकाए। उंगली पहले डाली, गीला किया थूक से—"साली... कितनी गर्म... रात का नशा बाकी है क्या? चोदूंगी मैं तेरी गांड, देख।" सोभा कांप गयी लेकिन कमर झुकाई—"हां चाचा... चोदो... गांड फाड़ दो... पापा ने चूत भरी है, अब तुम्हारी बारी..."
राजन सामने आया, लंड सोभा के मुंह पर रगड़ा—गीला, चूत का रस चिपका। "चूस बिटिया... साफ कर दे पापा का लंड। तू... हमारी चुदक्कड़ बनी रहेगी आज।" सोभा मुंह खोली, चूसने लगी—गले तक लेती, लार टपकती। "मम्म... पापा... स्वाद... अपना ही... उफ्फ..." उमाकांत ने पीछे से घुसाया, गांड में—एक झटके में आधा अंदर चला गया । सोभा चीखी, लेकिन मुंह भरा था—"आह्ह्ह... चाचा... फट गई... धीरे..." उमाकांत हंसा, कमर पकड़कर धक्के मारने लगा—"धीरे क्या रंडी? तू तो रात को गिड़गिड़ा रही थी... 'और जोर से चाचा... गांड चोदो...' अब शरम क्या? ले... ले..." धप-धप की आवाज गूंजी, किचन में—सोभा का शरीर झटक मारने लगा , दूध लहरा रहे थे।
राजन बाल पकड़कर मुंह में धक्के दे रहा था —"हां कुतिया... दोनो छेद भरे हैं तेरे... सुबह का नाश्ता हो गया। चूस... और जोर से..." सोभा की आंखों से आंसू आ गए, लेकिन आनंद से—चूत से फिर पानी बहने लगा, उंगली खुद डाल ली। "पापा... चाचा... मैं... आ रही हूं... फाड़ दो... सब..." उमाकांत ने स्पीड बढ़ाई, गांड सिकुड़ने लगी—"उफ्फ... साली... गांड कस रही... झड़ रहा हूं..." गर्म होकर झड़ी अंदर, सोभा का क्लाइमैक्स फूटा—शरीर कांपकर रुक गया। राजन भी मुंह में झाड़ दिया—"पी ले बिटिया... सब... तेरी दवाई।"
तीनों हांफते गिरे—सोभा बीच में, राजन-उमाकांत दोनों तरफ। पसीना से लथ पथ, लेकिन मुस्कानें तीनो के चेहरे पर। "पापा... चाचा... ये... रोज हो?" सोभा फुसफुसाई, शरम से। राजन ने चुंबन लिया—"हां रंडी... तू हमारी है अब। गांव सो रहा है, लेकिन हम जागेंगे।" उमाकांत हंसा—"अगली बार... आंगन में... खुला खेलेंगे।"
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स्कूल की घंटी बज चुकी थी, लेकिन उमेश का दिमाग कहीं और था। प्रिंसिपल शर्मा के केबिन में बुलावा आया था –खुशबू के बारे में बात करनी है ।" उमेश का दिल धक् से रह गया। वो जानता था, शर्मा वो राक्षस है जो खुशबू को पहले ही चख चुका था। लेकिन रोक पाना मुश्किल था। बाहर निकलते हुए, उसने खुशबू को मैसेज किया: "बेटी, शाम 6 बजे होटल रॉयल पैलेस। प्रिंसिपल साहब से मिलना है।
खुशबू ने पढ़ा, सिहर गई। कल रात का दर्द अभी भी था, लेकिन उत्तेजना भी। "हाँ पापा... आ रही हूं। लेकिन... डर लग रहा।" वो टाइप किया, लेकिन डिलीट कर दिया। शाम को वो साड़ी पहनकर निकल पड़ी – लाल, थोड़ी ट्रांसपेरेंट, जो उसके कर्व्स को हाइलाइट करे। होटल के कमरे में घुसते ही, वो सीन देखा: उमेश बिस्तर पर बैठा था, शर्मा खड़ा – हाथ में व्हिस्की का ग्लास, चश्मा चढ़ाए, मुस्कुराता हुआ।
"आ गई मेरी प्यारी स्टूडेंट?" शर्मा ने कहा, दरवाजा बंद करते हुए। उसकी आवाज में वो ताना था, जो बॉस की तरह लगे। "बैठो, खुशबू। या... लेट जाओ। आज क्लास स्पेशल है।"
खुशबू ने उमेश की तरफ देखा, वो सिर झुकाए था। "पापा... ये?" वो बुदबुदाई।
शर्मा हंस पड़ा, ग्लास रखकर उमेश के पास आया। "अरे उमेश, शर्मा मत। तू तो बड़ा होशियार निकला। अपनी ही बेटी को चोदा, और मुझे भी शेयर किया। कल रात पार्क में क्या हो रहा था, वो तो मैंने देख लिया था। गेटकीपर राजन ने बता दिया सब – तू अपनी रंडी बेटी को बेंच पर रगड़ रहा था। और अब... होटल? हाहा, तू तो ककौल्ड किंग है!"
उमेश का चेहरा लाल हो गया। वो उठा, लेकिन शर्मा ने कंधे पर हाथ रख दिया। "बैठ जा, भाई। गुस्सा मत। देख, तेरी बेटी कितनी हॉट है। मैंने तो बस मदद की। कल स्कूल में केबिन में... वो चीखें, 'सर... हल्के से'। लेकिन तू जानता है ना, रंडियां चीखती ही हैं।" शर्मा ने खुशबू को घूरा, जो अब बिस्तर पर किनारे बैठी थी।
"शर्मा साहब... प्लीज। वो मेरी बेटी है।" उमेश की आवाज कांप रही थी, लेकिन आंखों में वो चमक – ईर्ष्या की, लेकिन उत्तेजना की भी।
"बेटी? हाहा! तेरी बेटी तो मेरी रखैल है अब। और तेरी भी। देख, उमेश... तू बाहर जा, दरवाजे पर खड़ा हो। सुन ले सब। या... अंदर ही रह। तेरी मर्जी। लेकिन आज ये रंडी हम दोनों की है।" शर्मा ने खुशबू का हाथ पकड़ा, खींचकर अपनी गोद में बिठा दिया। खुशबू सिहर गई, लेकिन विरोध नहीं किया। उसके मन में डर था, लेकिन वो गर्मी... कल रात की तरह।
उमेश हिल गया। "नहीं... मैं... मैं देखता हूं। लेकिन... हल्के से।" वो बोला, कुर्सी पर जाकर बैठ गया। उसका लंड पहले ही सख्त हो रहा था – ये अपमान, ये शेयरिंग।
शर्मा ने साड़ी का पल्लू खींच लिया। खुशबू के स्तन ब्लाउज में उभरे। "देख, उमेश... तेरी बेटी के ये चुचे। कितने रसीले है तू तो रोज चूसता होगा ना?" शर्मा ने ब्लाउज खोला, एक स्तन बाहर निकाला। निप्पल पर जीभ फेरी। "आह... खुशबू, बोल... कैसा लग रहा? तेरे पापा देख रहे हैं।"
खुशबू की सांस तेज़ हो गई। "सर... आह... अच्छा लग रहा। लेकिन... पापा... मत देखो।" वो बोली, लेकिन आंखें उमेश पर। उसके शरीर में वो कंपन – दर्द का डर, लेकिन मजा भी आ रहा था
"चुप रंडी!" शर्मा ने जोर से थप्पड़ मारा – चेहरे पर, हल्का लेकिन जलन भरा। "पापा देखें या ना देखें, तू तो हमारी कुतिया है। बोल, 'हाँ सर, चोदो मुझे'।"
खुशबू का गाल लाल हो गया। दर्द में आंसू आ गए, लेकिन नीचे गीलापन महसूस हुआ। "हाँ सर... चोदो मुझे। पापा... सॉरी... लेकिन... अच्छा लग रहा।" वो सिसकी, लेकिन कमर हिलाने लगी।
उमेश का हाथ अपनी पैंट पर सरक गया। "खुशबू... तू... एंजॉय कर रही? मैं... मैं कुछ नहीं कहूंगा। बस... देख लूं।" उसकी आवाज में वो ककौल्ड वाइब – अपमान में मजा आ रहा था ।
शर्मा ने हंसकर खुशबू को बिस्तर पर पटक दिया। साड़ी ऊपर सरका दी, पैंटी फाड़ दी। "देख उमेश, तेरी बेटी की चूत... बालों वाली, गीली। तूने तो इसे पहली बार चोदा होगा ना? और अब... मेरी बारी।" वो अपना लंड बाहर निकाला – मोटा, नसों वाला। खुशबू की चूत पर रगड़ा। "बोल रंडी, किसका लंड बड़ा? तेरे पापा का या मेरा?"
"आह... सर... आपका... बड़ा। पापा का... प्यारा है। लेकिन... अंदर डालो ना।" खुशबू बोली, पैर फैलाते हुए। उसकी आंखें बंद हो गयी लेकिन मुस्कान। दर्द का इंतज़ार, लेकिन उत्तेजना ज्यादा।
शर्मा ने एक झटके में अंदर घुसेड़ दिया। "ले कुतिया ! तेरी चूत फाड़ दूंगा। रंडी बेटी... पापा के सामने चुद रही है। कैसा लग रहा?" वो धक्के मारने लगा, हर धक्के के साथ थप्पड़ – चूचियों पर, जांघों पर। "चटक! ले ये... तेरी गांड भी लाल कर दूंगा।"
खुशबू चीखी, लेकिन चीख में आनंद। "आह... सर... हाँ... फाड़ दो। पापा... देखो... कितना अच्छा... आह... थप्पड़ मारो और!" वो कराह रही थी, हाथ ऊपर करके। उसके शरीर पर लाल निशान पड़ रहे थे, लेकिन वो कमर उठा रही थी – मैच कर रही धक्कों से। "पापा... आप भी... आओ ना। छुओ मुझे।"
उमेश उठा, करीब आया। लेकिन शर्मा ने धक्का दिया। "रुक मादरचोद पहले देख। तेरी बेटी मेरी है अभी। देख कैसे चुद रही। बोल खुशबू, तेरे पापा को बोल – 'पापा, मैं रंडी हूं, तुम्हारी नहीं, सबकी'।"
खुशबू ने उमेश की तरफ देखा, आंखों में चमक आ गयी । "पापा... हाँ... मैं रंडी हूं। तुम्हारी... लेकिन सबकी भी। आह... सर... तेज़... चोदो! ले थप्पड़... आह... पापा, देखो... कितना मजा आ रहा। तुम्हारा लंड... हिला लो।"
उमेश ने पैंट खोली, हिलाने लगा। "हाँ बेटी... तू एंजॉय कर। मैं... मैं खुश हूं। देखकर।" उसकी सांसें तेज़, आंसू थे – लेकिन वीर्य टपक रहा था।
शर्मा ने और तेज़ किया। "ले कुतिया! तेरी चूत का रस... निकल रहा। उमेश, देख... तेरी बेटी स्क्वर्ट करेगी। बोल रंडी, 'मैं प्रिंसिपल की रण्डी हूं'।" थप्पड़ की बौछार हो गयी – चेहरे पर, गांड पर।
"हाँ... सर... मैं आपकी कुतिया हूं! आह... आ रहा... कम... अंदर ही!" खुशबू चिल्लाई, शरीर कांप गया। वो चरम पर पहुंच गई, रस बहा दिया। शर्मा ने भी झटके मारे, अंदर गिरा दिया। "ले... भर दिया तेरी चूत को। अब तेरे पापा की बारी। लेकिन... तू मेरी रंडी है।"
उमेश झपटा, खुशबू को चूमा। "बेटी... तू परफेक्ट है। अब... मेरी बारी। लेकिन... सर के बिना मत भूलना।" वो अंदर घुसा, शर्मा के रस के ऊपर। खुशबू ने दोनों को गले लगाया। "हाँ पापा... दोनों के साथ। थप्पड़ मारो... गालियां दो... मजा आ रहा!"
शर्मा ने पीछे से गांड में उंगली डाली। "हाँ रंडी... आज रात भर चुदेगी। उमेश, तू बाहर जा... हम अकेले एंजॉय करेंगे। कल स्कूल में... और स्टूडेंट्स को बुलाऊं?"
उमेश सिहर गया, लेकिन मुस्कुराया। "जो आप कहें साहब... बस मेरी बेटी खुश रहे।"