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Adultery परिवार कैसा है

सबसे गरम किरदार

  • रमा

  • खुशबू

  • राधा

  • सोभा


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mentalslut

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रात का सन्नाटा कमरे को अपनी गिरफ्त में जकड़ चुका था। पीली लाइट की लहरें दीवारों पर नाच रही थीं, मानो कोई पुरानी यादें जाग उठी हों। रामा बिस्तर पर लेटी थी, साड़ी की सिलवटें उसके बदन से चिपकी हुईं, पेट की नरम चमड़ी पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं। हवा में उसकी खुशबू फैली थी – वो गुलाबी मादकता, जो रवि के सीने को चीर रही थी। उसका दिल धड़क रहा था, जैसे कोई अनकही पीड़ा जागी हो, लेकिन आंखों में वो चमक... ममता की आड़ में छिपी वो लालसा, जो शर्म से कांप रही थी।

रावी उसके बगल में था, बदन की गर्मी माँ को छू रही थी। उसके मांसपेशियाँ तनी हुईं, सांसें भारी – जैसे कोई पुराना ज़ख्म फिर से हरा हो गया हो। धीरे से उसका हाथ रामा की जांघ पर सरका, उंगलियों की गर्माहट साड़ी को भेदते हुए। "मम्मी . कल का ट्रिप... तू मेरे साथ चलेगी न? प्लीज... मैं बिना तेरे के जाना ही नहीं चाहता। तू जानती है न, तेरे बिना ये जिंदगी... जैसे अधूरी सी लगती है। वो सब दोस्त... वो हंसी-मजाक... सब बेमानी हो जाता है। तू मेरी... मेरी ताकत है, मम्मी ।" उसकी आवाज कांप रही थी, नरमी से भरी, लेकिन आंखों में वो दर्द – जैसे बचपन की वो एकाकी रातें लौट आई हों, जब वो मम्मी की गोद में छिपा करता था। वो जानता था, ये सिर्फ ट्रिप नहीं; ये एक और कदम था उस गहरे गड्ढे की ओर, जो वो खुद खोद रहा था, लेकिन प्यार के नाम पर।

रमा का दिल बैठ गया। वो सिर घुमाकर बालों की लटें चेहरे पर गिरने देती रही – काले, रेशमी, जो उसके गालों को सहला रही थीं। "रवि.. बेटा, तू क्या कह रहा है? ये सब... ये कैसे हो सकता है?" उसकी आवाज टूट गई, जैसे कोई पुरानी चिट्ठी फट गई हो, आंसू किनारों पर ठहर गए। "तेरे चार दोस्त... वो सब जवान, भूखे। मैं तेरी माँ हूँ, रवि... तेरी वो माँ जो तुझे गोद में खिलाती थी, तेरी हर शरारत को छिपाती थी। अगर ये राज़ खुल गया – ये पाप, ये गलती जो हमने की – तो क्या बचेगा? तेरी माँ की इज्जत... तेरी ज़िंदगी, तेरी वो मुस्कान जो तू दोस्तों के बीच बिखेरता है... सब धूल में मिल जाएगा। सोच बेटा, क्या तू वो सब देख पाएगा? क्या तू अपनी माँ को... वो नजरों से देखते हुए सह पाएगा?" आंसू उसके गालों पर लुढ़क आए, लेकिन हाथ अनजाने में बेटे की छाती पर चला गया। वहाँ धड़कन महसूस हो रही थी – तेज, बेकाबू, जैसे कोई तूफान दबा हो। शर्म उसे खा रही थी, लेकिन वो स्पर्श... वो गर्माहट, जो उसके निप्पल्स को साड़ी के नीचे सख्त कर रही थी, उसे रोक नहीं पा रही थी।

रवि ने धीरे से मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन आंखों में वो आग – प्यार और जलन का मिला-जुला जहर। वो और करीब सरका, होंठ माँ के कान के पास। गर्म सांसें रामा को झुरझुरी दे रही थीं, जैसे कोई पुरानी याद जगा रही हों। "मम्मी.. इज्जत? अरे, इज्जत तो तूने कल रात खुद को सौंप दी थी न कुतिया ? याद है न, जब तू मेरे... मेरे लंड को मुंह में ले रही थी, वो गर्माहट तेरी जीभ पर लिपटी हुई... वो नमकीन रस, जो तू चूस रही थी जैसे कोई भूखी हो, जैसे वो तेरी प्यास बुझा रहा हो। तू कसमसा रही थी, 'बेटा... और गहरा... मम्मी को दर्द दे, लेकिन रुको मत... ये दर्द ही तो मेरा सुख है।' और फिर जब मैं तेरी चूत में घुसाया ... वो टाइट गर्मी, वो चिपचिपा रस जो मेरे साथ बह रहा था, जैसे हम दोनों एक हो रहे हों। तू रो रही थी, 'हाय राम... ये पाप है, बेटा। तू मम्मी को रंडी बना रहा है... लेकिन ये सुख, ये तेरी गर्माहट... मुझे छोड़ ना, कभी मत छोड़ना।' मैं जानता हूँ, मम्मी. तू शर्मिंदा है। मैं भी हूँ। हर रात ये सोचकर मैं खुद को कोसता हूँ। लेकिन ये... ये हमारा राज़ है। हमारा प्यार। जो दुनिया को न दिखे, लेकिन हमें बांधे रखे।"

रमा की सांसें रुक सी गईं। चेहरा लाल हो गया, शर्म से जलता हुआ, लेकिन हाथ बेटे की कमर पर कस गया – नाखून चुभे, दर्द और मोह का मिश्रण। "रवि... चुप कर, बेटा। वो गलती थी... तेरी वो आंखें, वो स्पर्श जो मुझे कमजोर कर देते हैं। तू जानता है न, मैं तेरे लिए कुछ भी कर सकती हूँ... लेकिन ये?" उसकी आवाज में आंसू थे, लेकिन गहराई में वो कशमकश – डर, प्यार, और वो गुप्त उत्तेजना जो उसे कांपने पर मजबूर कर रही थी। "लेकिन कल... वो लड़के... अजय, विक्की... अगर उन्होंने मुझे छुआ? अगर तेरी मम्मी की वो कमजोरी... वो गीलापन, वो सिहरन महसूस की? तू क्या करेगा, रवि? सोच, तेरे सीने में वो जलन... जैसे कोई आग लगी हो, जो तुझे अंदर से जला दे। क्या तू सह पाएगा वो दर्द?"

रावी ने साड़ी का पल्लू हल्का सा खींचा, माँ की चोली के ऊपर से ब्रेस्ट को छुआ – सॉफ्ट, गोल, निप्पल पर उंगली घुमाई। रामा की सिसकी निकल गई, कमर अनजाने में उभर आई। "मम्मी... हाँ, जलूँगा। वो जलन ही तो मेरा नशा है – तुझे देखकर, तुझे छूते हुए, तुझे किसी और के हाथों में कल्पना करके।" उसकी आवाज में वो दर्द साफ था, जैसे कोई पुराना घाव फिर से खुल गया हो। "कल तू मेरी गर्लफ्रेंड बनेगी। कोई नहीं जानेगा तू मेरी मम्मी है। बस... थोड़ा मज़ा, थोड़ा वो दर्द जो हमें जोड़े रखे। सोच, कार में पीछे बैठी तू... अजय का हाथ तेरी जांघ पर सरकेगा, वो फुसफुसाएगा, 'रामा, तेरी ये स्किन... इतनी नरम, इतनी गर्म... मैं पागल हो जाऊँ तुझे छूकर। विक्की कान में झुककर कहेगा, 'गर्लफ्रेंड... तेरी चूत का स्वाद लूँ... जीभ से चाटूँ, वो मीठा रस निगलूँ... तू सिसकेगी मेरे नाम से, लेकिन मुझ को मत बताना – ये हमारा छोटा सा राज़ बनेगा।' रोहन तेरी गांड पर थप्पड़ मारेगा, हल्का लेकिन जलन भरा, 'रामा रानी... ये गांड... मेरा लंड खाएगी? चिपचिपा वीर्य भर दूँगा अंदर, तू कांपेगी सुख से, लेकिन वो शर्म तेरी आंखों में... वो तो मुझे और पागल कर देगी।' मनीष तेरे मुंह के पास आएगा, 'चूस ले... जैसे रवि का चूसती है, वो नमकीन स्वाद चख... लेकिन मेरा... मेरा तो और गहरा, और गाढ़ा। तू रोयेगी सुख से।' मैं आगे मिरर से देखूँगा.कितना मज़ा आएगा सोच मेरी कुतिया मम्मी.. मेरा दिल फटेगा, लेकिन तू मेरी रहेगी रांड। ये हमारा प्यार है, मम्मी.. दर्द भरा, लेकिन हमारा। जो हमें जीने का बहाना देता है।"

रामा की आंखें बंद हो गईं, सांसें तेज। कल्पना में वो खो गई – शर्म से रोना आ रहा था, लेकिन चूत में वो सिहरन... बेटे का हाथ नीचे सरक गया, पेटीकोट में उंगली डाल दी। "हाय बेटा... तू मुझे मार डालेगा इस जलन से। ठीक है... चलूँगी। लेकिन वादा कर... राज़ न खुलने देना। मैं तेरी गर्लफ्रेंड... बस। और रास्ते में... ज्यादा न होने देना, वरना ये जलन हमें खा जाएगी।" रवि ने अपना लंड बाहर किया – कड़ा, नसों भरा, टिप से रस टपकता। माँ का हाथ पकड़कर रखा, वो हिलाने लगी – गर्माहट, चिपचिपाहट। वीर्य का छींटा आया, गर्म, कमरे में वो नमकीन गंध फैल गई। दोनों गले लगे, सांसें मिलीं – प्यार, पाप, लालसा... सब एक हो गया।


सुबह की पहली किरणें खिड़की से चुपके घुसीं, कमरे को सोने सी चमक दी। रामा आईने के सामने खड़ी थी – लाल साड़ी लिपटी, उसके कर्व्स को गले लगा रही, जैसे कोई राज़मयी मूर्ति। ब्रेस्ट्स ऊपर उभरे, कमर की नाजुक चमड़ी हवा में सिहर रही। होंठों पर लाली, लेकिन आंखों में वो घबराहट – मिश्रित उत्साह और डर, जैसे कोई युद्ध का आह्वान हो। दिल धड़क रहा था, पुरानी यादों से बोझिल।

बाहर हॉर्न बजा – गूंजदार, बेस से भरा। रवि ने दरवाजा खोला, SUV खड़ी थी – काली, विशाल, इंजन की गड़गड़ाहट हवा को कांपा रही थी। अंदर चारों: अजय ड्राइव पर, विक्की बगल, पीछे रोहन-मनीष। उनकी हंसी रुकी, जैसे सांस थम गई। "रवि! रेडी हो भाई? अरे वाह... ये क्या कमाल लाया तू?" अजय की आवाज कट गई, जब रमा बाहर आई।

उसकी साड़ी हवा में लहराई, कूल्हों की मटक – सम्मोहक, लेकिन आंखों में वो शर्म। ब्रेस्ट्स हर कदम पर हिले, चूड़ियाँ खनकीं, परफ्यूम की लहर सबको मदहोश। "हेलो बॉयज... मैं रमा। रवि की... गर्लफ्रेंड।" उसकी मुस्कान शरारती लगने की कोशिश में, लेकिन आवाज में वो कांप – डर, कि कहीं राज़ न फूट पड़े। "आज का ट्रिप... मज़ेदार होगा न? लेकिन... धीरे-धीरे चलना, वरना दिल धड़क जाएगा सबका।"

विक्की का मुंह सूख गया। "फक यार रवि.. तूने छुपाया था इतना! रमा... वाह, तू तो... आग लगाने वाली लग रही है। पीछे आ ना, हम तेरी केयर करेंगे... वादा, तुझे कभी ऊबने न देंगे।" सबकी नजरें चिपक गईं – रोहन की जांघों पर, मनीष ब्रेस्ट्स पर। चलो, बैठ जाओ। जगह तेरे लिए गरम करके रखी है, लेकिन तेरी गर्मी तो सबको पिघला देगी।" रवि ने हाथ थामा, कान में फुसफुसाया: "मम्मी... देख, सब तेरे दीवाने हो रहे है । एंजॉय कर... लेकिन याद रख, ये जलन हमारी है। तू मेरी।" रमा शरमाई, SUV में घुसी – पीछे, रोहन-मनीष के बीच। विक्की बीच में घुसा। कार चल पड़ी, इंजन की दहाड़ दिलों को हिला रही।

हाईवे पर कार दौड़ी – हवा तेज, धूप चुभन वाली, रेडियो की धुनें दिल की धड़कन से ताल मिला रही। रवि ड्राइव पर, लेकिन रियरव्यू मिरर से चिपका – चेहरा तमतमाया, सीने में वो जलन, लंड पैंट में दबा, दर्द से सिहर रहा। पीछे रमा फंसी – लेदर सीटें गर्म, साड़ी चिपक रही, तीनों की बॉडी हीट उसे घेर रही। परफ्यूम मिक्स पसीने की गंध से – मदहोश करने वाली, लेकिन उसके दिल में डर था।

शुरू शांत रही, लेकिन विक्की ने हाथ सरकाया – जांघ पर, साड़ी ऊपर से रगडा। "ओप्स... रमा, जगह तंग है न? लेकिन तेरी ये स्किन... सिल्क सी लग रही है, इतनी नरम कि हाथ हटाने का मन ही न करे। रवि लकी है यार, ऐसी गर्लफ्रेंड मिली तो।" रमा सिहरी, लेकिन रवि का सिग्नल मिरर से: "हाँ..." रोहन कान में झुका, सांसें गर्म, गले पर लगीं: "रमा... तू कितनी खूबसूरत है, जैसे कोई सपनों की परी। रवि ने बताया नहीं था... अगर तू मेरी होती, तो मैं रोज तेरी चूत चाटता, जीभ से अंदर तक... वो गीला रस, मीठा-स्लिपरी, निगलता जाऊँ जैसे कोई अमृत हो। तू सिसकती रहती, 'रोहन... हाय... और गहरा... लेकिन ये गलत है, रुको न... शर्म आ रही है।' वो शर्म तेरी आंखों में... वो तो मुझे और पागल कर देगी, रमा। तू सह पाएगी ऐसी कल्पना?" उसकी आवाज में वो भूख, लेकिन रमा की आंखों में आंसू – "रोहन... मत कहो ऐसा। मैं... मैं डर रही हूँ। ये सब... रवि को चुभेगा।"

रामा की सांस तेज हो गयी, चूत में सिहरन – गीलापन महसूस हुआ, शर्म से। मनीष ने चोली पर हाथ रखा, दूध दबाया – सॉफ्ट, उभरा। "रमा... ये तो... कमाल के हैं, इतने गोल, इतने नरम कि दबाने का मन बार-बार करे। ब्रा उतार दे चुपके से, बस एक झलक... रवि सोचता होगा तू शर्मीली है, लेकिन तू... तू तो ज्वाला है अंदर से। कल्पना कर न... जंगल में रुकें, मैं तुझे लिटाऊँ घास पर। लंड तेरे मुंह में डालूँ... चूस ले धीरे-धीरे, नमकीन टिप चख, वो रस तेरी जीभ पर लिपट जाए। तू रोयेगी, 'मनीष... फाड़ दे मेरा मुंह, लेकिन धीरे... ये दर्द सुख दे रहा है, जैसे कोई पुरानी प्यास बुझ रही हो।' रवि को क्या पता, तू कितनी वाइल्ड हो सकती है।" रमा ने हाथ हटाने की कोशिश की, लेकिन आवाज कांपी: "मनीष... बस करो... रवि देख रहा है। ये... ये मजाक लग रहा है, लेकिन दिल डूब रहा है मेरा।"

विक्की हंसा, म्यूजिक तेज: "हाँ रमा... सुन न, मेरा लंड... मोटा, काला। तेरी चूत फाड़ देगा वो, अंदर तक घुसकर। तू चिल्लाएगी, 'विक्की... आह... तुम्हारा तो रवि से भी बड़ा है, इतना गाढ़ा, इतना गर्म... ये दर्द... हाय, ये सुख मुझे मार डालेगा।' थप्पड़ मारूँगा तेरी गांड पर – जलन वाली, लाल निशान छोड़कर। तू चिल्लाएगी दर्द से, लेकिन रुकेगी नहीं, कमर उभारेगी और कहेगी, 'और मारो... ये जलन ही तो मुझे जीने का बहाना दे रही।' हम चारों... तेरे ऊपर टूट पड़ेंगे। रस चाटेंगे तेरे बदन से, चोदेंगे हर तरफ से... तू हमारी रानी बनेगी, वीर्य से तरबतर। चेहरे पर, चूत में, गांड में... गर्म छींटे, नमकीन स्वाद। रोहन की उंगली साड़ी में – चूत छुई, गीली। चाट ली, "मम्म... रमा, तेरा रस... स्वर्ग जैसा, मीठा लेकिन नमकीन। तू कांप क्यों रही? डर या... ये चाहत जो अंदर जाग रही है?" मनीष ने निप्पल चूसा – चपचप आवाज, गीली। रमा सिसकी भर रही थी – शर्म से आंखें बंद, लेकिन कमर उभर रही, आंसू बह रहे। "बस... रुको सब... ये बहुत हो रहा। रवि.. वो देख रहा है, मेरा दिल फट रहा। लेकिन... हाय, ये सिहरन..."

रावी मिरर से देख रहा था "उफ्फ्फ कितनी बड़ी रांड है मेरी मम्मी, पहले नखरे कर रही थी साली कुतिया अब सबके बीच कैसे रंडियो की तरह खुद को मसलवा रही "
 
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mentalslut

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कार की चरमराहट रुकते ही सब कुछ शांत हो गया, लेकिन वो शांति जंगल की तरह भारी थी – हवा में मिट्टी, गीली पत्तियों और दूर कहीं बहते नाले की महक घुली हुई। सूरज की किरणें पेड़ों के पत्तों से छनकर नीचे गिर रही थीं, धब्बेदार रोशनी में जमीन पर सूखे पत्तों की कुरकुराहट हर कदम पर साफ सुनाई दे रही थी । SUV के दरवाजे खुले, और ठंडी हवा रमा के चेहरे पर चली – लेकिन उसके अंदर की उत्तेजना अब ठंडक से कांप रही थी, जैसे कोई दबी हुई आग हवा लगते ही भड़कने को तैयार हो। रास्ते भर की वो फुसफुसाहटें, हाथों की हल्की-हल्की चुभन, कान में वो शब्द जो शर्म से जलाते थे... सब उसके बदन में जमा हो चुके थे। चूत अभी भी हल्की गीली थी, साड़ी के नीचे असहज चिपचिपाहट महसूस हो रही थी , और अब... एक नई मजबूरी। पेशाब की सनसनाहट – तेज, बेकाबू, जो उसे शर्म से लाल कर रही थी, खासकर यहां, जहां हर तरफ आंखें लगी हुई लगती थीं।

सब बाहर उतर आए – रवि कार के पास खड़ा, हाथ जेब में डाले, आंखों में वो बेचैनी जो वो छिपाने की कोशिश कर रहा था। अजय और विक्की ट्रंक से सामान निकाल रहे थे – टेंट का सामान, पानी की बोतलें – हंसते-मजाक करते, लेकिन उनकी नजरें बार-बार रमा पर ठहर रही थीं, जैसे कोई अनकही बात लटकी हो। रोहन और मनीष उसके थोड़ा करीब थे, उनकी बॉडी की गर्मी हवा में घुली हुई, पसीने की हल्की महक मिक्स हो रही। रमा ने रवि का हाथ पकड़ा, उंगलियां हल्की कांप रही थीं – नरम, थोड़ी गीली हथेली से पसीना ट्रांसफर हो रहा। वो करीब सरकी, आवाज इतनी धीमी कि सिर्फ बेटे को सुनाई दे: "रवि.... मुझे... पेशाब लग गया है। बहुत... दबाव है। लेकिन यहां... सबके सामने... शर्म आ रही है। कहीं ले जा ना... चुपके से, प्लीज।" उसकी आंखें नीची, गालों पर हल्का लालिमा, लेकिन सांसों में वो हल्की सिहरन – रास्ते की यादें उसे और उत्तेजित कर रही थीं, जो वो खुद से ही नफरत कर रही थी।

रवि का दिल धक् से रह गया। मिरर से उसने रास्ते का सब देखा था – वो स्पर्श, वो सिसकियां – लेकिन ये... ये रोजमर्रा का था, उसका लंड हल्का सख्त होने लगा, जेलसी और उत्तेजना का मिश्रण जो उसे अंदर से खा रहा था। वो मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन आवाज में हल्की कड़वाहट: ". अरे, कोई बात नहीं। मैं ही ले चलूं? बस..." इससे पहले कि वो बोल पाता, रोहन ने सुना – उसकी तेज सुनने वाली, या शायद जानबूझकर। "क्या हुआ रमा ? पेशाब? अरे यार, जंगल में तो ये नॉर्मल है! चल, मैं और मनीष ले चलते हैं। रवि, तू यहां रह... सामान संभाल ले। हम तेरी गर्लफ्रेंड को 'सेफ' पहुंचा देंगे।" मनीष ने हल्का सा हंसते हुए कंधा उचकाया, आंखों में शरारत लेकिन आवाज कैजुअल: "हां भाई... रमा, घबराना मत। हमने ऐसे ही कैंपिंग की है पहले। झाड़ियों की तरफ चल, प्राइवेसी मिल जाएगी। वरना... होल्ड करने में दिक्कत होगी न?"

रमा घबरा गई, रवि की ओर देखा – आंखों में वो साइलेंट प्लेड, जैसे कह रही हो 'मुझे बचा लो'। लेकिन रवि ने सिर हिलाया, फुसफुसाया, आवाज में वो दर्द जो वो दबा रहा था: "जाओ मम्मी... मैं यहां हूं। बस... ज्यादा देर मत करना। और... एंजॉय मत करना इतना।" रोहन ने रमा का हाथ पकड़ लिया – मजबूत लेकिन नरम पकड़, जो उसे हल्का खींच रही थी, जैसे कोई दोस्त हो। मनीष दूसरी तरफ, कमर पर हल्का हाथ रखा – सपोर्टिव लगने की कोशिश में। दोनों उसे ले चले – झाड़ियों की गहराई में, जहां पेड़ों की छांव घनी थी, हवा में मिट्टी की नम महक और पत्तों की सड़ी-मीठी गंध मिक्स हो रही। रमा के कदम लड़खड़ा रहे थे, साड़ी हल्की लहरा रही, लेकिन अंदर की मजबूरी उसे तेज चला रही – हर कदम पर पेशाब का दबाव बढ़ रहा, शर्म से पेट में गुदगुदी सी हो रही। रास्ते भर रोहन ने हल्का सा कहा, आवाज कम: "रमा... तू शरमाते हुए कितनी नॉर्मल लग रही है। रवि को बता न कभी, कि जंगल में ऐसे... मजेदार हो जाता है। लेकिन रिलैक्स, हम सिर्फ मदद कर रहे हैं।"

झाड़ियों के बीच पहुंचे – एक छोटा सा खुला स्पॉट, चारों तरफ घने पौधे, जमीन नरम लेकिन असमान, पत्तों से ढकी हुई। रोहन ने रमा को घुमाया, आंखों में हल्की शरारत लेकिन मुस्कान फ्रेंडली: "यहां ठीक है न रमा? कोई नहीं देखेगा। साड़ी ऊपर कर ले... हम... मुंह फेर लेंगे अगर तू कहे।" मनीष ने पीछे से हल्का गले लगाने जैसा किया, लेकिन सिर्फ सपोर्ट के लिए, सांसें गर्दन पर लगीं: "हां... घबराओ मत। पेशाब तो सब करते हैं। लेकिन तेरी तरह... थोड़ा... स्पेशल लगता है। बस, हम बाहर खड़े रहते हैं?" रमा की सांसें तेज हो गईं, शर्म से आंखें नीची: "हां... प्लीज, मुंह फेर लो। मैं... अकेले कर लूंगी। थैंक यू।" लेकिन मजबूरी ने हार मान ली। वो साड़ी पकड़कर हल्का ऊपर की, पेटीकोट सरकाया – चूत आंशिक नंगी, हल्की गीली चमक वाली, बालों की नेचुरल झाड़ी। पेशाब की धार निकली – गर्म, सुनहरी लेकिन अनियमित, जमीन पर गिरकर हल्की सिसकी जैसी आवाज कर रही, फूटते हुए छोटे-छोटे छींटे। हवा में हल्की नमकीन, तीखी गंध फैल गई, जो जंगल की महक से मिक्स होकर और इंटेंस हो गई। रमा ने आंखें बंद कीं, सांस रोकी – शर्म से चेहरा जल रहा था, लेकिन राहत भी मिल रही थी।

धार धीरे-धीरे रुकी, लेकिन रोहन ने मुड़कर देख लिया – घुटनों पर हल्का झुका, आंखें उत्सुक लेकिन कंट्रोल्ड: "रमा... सॉरी, बस चेक कर रहा था... सब ठीक? वाह... ये... नेचुरल लग रहा। लेकिन अगर... तू ठीक हो, तो क्या हम... थोड़ा क्लोजर आ सकते हैं? रास्ते में तो छुआ था न, ये भी वैसा ही।" उसकी आवाज में हल्की बेचैनी, जैसे वो खुद को रोक रहा हो। मनीष ने ब्रेस्ट की तरफ हल्का हाथ बढ़ाया, लेकिन रुका: "रमा... तू गीली लग रही है अभी भी। रास्ते की वजह से? हम... मदद करें? अगर तू कहे तो।" रमा कांप रही थी – शर्म से आंसू कगार पर, लेकिन चूत में वो हल्की सिहरन, वो खालीपन जो रास्ते की यादों से भरा था। वो सरक गई, आवाज कटी-फटी: "नहीं... रोहन, मनीष... ये... बहुत हो गया। रवि बाहर इंतजार कर रहा है। चलो वापस... प्लीज।" लेकिन रोहन का हाथ धीरे से चूत के पास आया – न छुआ, बस करीब: "बस एक सेकंड... सोच न, अगर मैं... छू लूं? हल्का सा। तू सह पाएगी? रवि को पता नहीं चलेगा।"

मनीष ने पीछे से कमर पकड़ी, हल्का दबाव: "हां रमा... रिलैक्स। तेरी सांसें तेज हैं... शायद तुझे भी... अच्छा लगे।" रमा ने विरोध किया, लेकिन कमजोर – हाथ पकड़कर हटाने की कोशिश, लेकिन बॉडी ने साथ नहीं दिया। रोहन की उंगली हल्की सरकी – चूत पर, गीलेपन को महसूस करते हुए। "आह... गर्म है। रमा... तू वेट?" वो अपना पैंट का बटन खोला, लंड आधा बाहर – मोटा, लेकिन नर्वस सा, टिप हल्की चमक वाली। रगड़ा चूत पर – गर्म, चिपचिपा लेकिन हल्का टच। कान में फुसफुसाया, सांसें अनियमित: "सोच... अगर घुसा दूं... धीरे से। 'रोहन... हाय... रुको न...' लेकिन तू रुकेगी नहीं। मैं... जोर न दूंगा।"

मनीष ने चोली की तरफ हाथ सरकाया, निप्पल को हल्का दबाया – सॉफ्ट, लेकिन रमा सिहर गई। "चूस लेगी? बस... मुंह में। रवि सोचेगा तू अभी भी... लेकिन ये हमारा छोटा सा..." रामा की सिसकी निकल गई, लेकिन होंठ हल्के खुले – शर्म से, लेकिन कशमकश में। लंड अंदर सरका, चपचप की हल्की आवाज। रोहन पीछे से हल्का घुसा – चूत में, गीली लेकिन टाइट, धीमी रिदम। "आह रमा... स्लो... ठीक?" झाड़ियों में सांसें दबी हुईं, पत्तों की सरसराहट कवर कर रही, लेकिन रवि बाहर खड़ा था – कान लगाए, दिल की धड़कन तेज, जंगल की शांति में वो हल्की आवाजें सुनते हुए। सीने में जलन अब दर्द बन चुकी थी, लेकिन वो हिल न सका – बस देखता रहा, दूर से, अपनी माँ को...
 
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रात जंगल में गहरा चुकी थी – चांद की ठंडी, धुंधली रोशनी पेड़ों की पत्तियों पर हल्की-हल्की लहरें डाल रही थी, लेकिन हवा में वो नमी भरी ठंडक जो हड्डियों तक उतर जाती। दूर कहीं उल्लू की आवाज गूंज रही थी , और मिट्टी-फूलों की मिश्रित महक हवा में लटकी हुई, थोड़ी सड़ी-सी, थोड़ी ताज़ा। तंबू के अंदर सब थके-हारे लेटे थे – ट्रिप की दिनभर की दौड़-धूप ने बॉडी को सुन्न कर दिया था। अजय और विक्की अपनी नींद में हल्के खर्राटे ले रहे, स्लीपिंग बैग में उलझे हुए। रवि बगल में लेटा, आंखें बंद करने की कोशिश कर रहा, लेकिन मन बेचैन – दिन भर की वो चुपके-चुपके नजरें, रामा की दबी सिसकियां झाड़ियों से... सब उसे अंदर से जला रहा था, जैसे कोई धीमी आग सुलग रही हो। लेकिन रमा... वो तो अभी भी उसके दिमाग में घूम रही थी। तंबू के कोने में लेटी, साड़ी अभी भी उलझी हुई, बदन पर दिन की धूल और पसीने की हल्की चिपचिपाहट बाकी। नींद न आ रही थी उसे – चूत में वो हल्का गीलापन, वो सिहरन जो झाड़ियों में रोहन और मनीष के स्पर्श से जागी थी, अब रात की ठंडक में और सताने लगी। शर्म से सीना भारी हो रहा था, आंखें नम हो रही, लेकिन लालसा... वो तो खून में घुली हुई लग रही, रोकने न दे रही।

धीरे से वो उठी – साड़ी की सिलवटें सरकाईं, चोली को हल्का ठीक किया, लेकिन ब्रेस्ट्स अभी भी भारी, निप्पल्स साड़ी के नीचे चुभ रहे, ठंडी हवा से सिहरन हो रही। तंबू का जिपर हल्के से खोला – वो खट-खट की आवाज तंबू के अंदर गूंजी, लेकिन सबकी सांसें एकसरी लगीं। बाहर की ठंडी हवा उसके चेहरे पर लगी – झुरझुरी दे गई, स्किन पर कांपन दौड़ा उसके। वो चुपके से बाहर निकली, पैरों तले सूखे पत्तों की कुरकुराहट दबी हुई, लेकिन हर कदम पर दिल धड़क रहा था, जैसे कोई चोर रात में भाग रहा हो। लेकिन कहीं गहराई में... वो हल्का उत्साह, जो डर से मिलकर और तीखा हो गया। "बस... थोड़ा हवा खा लूं," वो मन ही मन बुदबुदाई, लेकिन मोबाइल पर वो मैसेज झाड़ियों से आया था – "रमा... रात को आना। इंतजार है।" वो जानती थी, ये गलत था... रवि की वो नजरें दिन भर, वो जेलसी... उसे और उकसा रही थीं, जैसे कोई सजा हो।

झाड़ियों के पास पहुंची – चांदनी में दो साये खड़े, लेकिन हल्की घबराहट के साथ। रोहन और मनीष, शर्ट उतारी हुई, सिर्फ शॉर्ट्स में – मांसपेशियां चांदनी में चमक रही थी , लेकिन पसीने की हल्की चमक से लग रहा था कि वो भी बेचैन थे। रोहन ने पहले देखा, मुस्कुराने की कोशिश की – लेकिन आवाज में हल्की सांस फूली: "रमा... आ गई। सोचा न था... तू आएगी। रवि सो रहा न?" मनीष करीब आया, हाथ कमर पर रखा – गर्म, लेकिन हल्का कांपता पकड़, जैसे वो खुद को कंट्रोल कर रहा हो। "हाय रमा... दिन भर... तेरी याद सता रही। वो... झाड़ी वाला सीन... तेरी वो गर्माहट। अब रात है, कोई डर नहीं। लेकिन... तू ठीक तो है?" रमा शरमाई, आंखें नीची की , लेकिन हाथ खुद चले गए – रोहन की छाती पर, जहां दिल की धड़कन तेज महसूस हो रही, पसीने की हल्की नमकीन महक नाक में घुस रही। "तुम... पागल हो। अगर रवि जाग गया तो? मैं... उसकी... गर्लफ्रेंड हूँ। ये... गलत लग रहा।" लेकिन आवाज कांप रही थी , आंखों में वो चमक – लालच की, जो शर्म से लड़ रही।

रोहन ने साड़ी का पल्लू हल्का खींचा, होंठ चूमने की कोशिश की – गर्म, लेकिन हेजिटेंट, जीभ अंदर सरकाई लेकिन रुकी। रमा की सिसकी निकल गई, हल्की लेकिन दबी – हाथ अनजाने में मनीष के शॉर्ट्स की तरफ सरक गए, लंड को हल्का छुआ, कड़ा लेकिन गर्म। "आह रोहन... धीरे... लेकिन... हां, अगर... तू चाहे तो।" मनीष ने पीछे से ब्रेस्ट दबाए, लेकिन नरम: "रमा... तेरी ये चूचियाँ... दिन भर घूरा, लेकिन अब... अगर तू कहे तो। रंडी सी लग रही तू आज रात, कुतिया जैसी भूखी।" वो चोली हल्की खींची, निप्पल को मुंह में लिया – चूसने की हल्की चपचप आवाज आयी, जीभ घुमाई, लेकिन दांत हल्के से । रमा की कमर अनजाने में उभर आई, साड़ी नीचे सरक गई, ठंडी हवा चूत पर लगी। "हाय मनीष... दर्द. हो रहा है .. लेकिन... अच्छा लग रहा। रोहन... नीचे... छू ना... प्लीज।" रोहन घुटनों पर बैठा, पेटीकोट ऊपर किया – चूत हल्की गीली, चांदनी में चमक। उंगली डाली, धीरे अंदर-बाहर: "रमा... कितनी... गर्म है रे कुतिया। दिन का... अभी बाकी है ? लेकिन... तू सह पा रही? छिनाल तू, रवि की गर्लफ्रेंड बनकर भी ये सब।" वो जीभ लगाई, गहरा लेकिन स्लो – स्वाद मीठा, नमकीन, । रामा की सांसें तेज हो गयी , हाथ रोहन के बालों में – दबा रही, लेकिन कांपते हुए: "रोहन... हाय... और... लेकिन रवि... अगर..."

मनीष ने शॉर्ट्स उतारे, लंड बाहर – मोटा, टिप हल्की चमक वाली। "रमा... अगर तू... चूस लेगी? बस... अगर मन हो। रवि सोचेगा तू शरमाती है, लेकिन तू... रंडी जैसी कुतिया है साली । मुंह खोल... अंदर तक ले।" रमा झुकी, होंठ लपेटे – चूसने लगी, जीभ टिप पर, लेकिन गले तक न जाकर। चपचप की हल्की आवाज, सांसें भारी हो गयी । "मम्म... मनीष... तेरा... बड़ा लग रहा। रोहन... अब... अगर घुसा तो?" रोहन खड़ा हुआ, लंड चूत पर रगड़ा – गर्म, चिपचिपा लेकिन स्लो। एक धक्के में अंदर, लेकिन धीरे: "आह रमा... टाइट.है .. गरम... ठीक है ? ले छिनाल, तेरी चूत तो रवि के लिए नहीं बनी, हमारी कुतिया है तू।" वो जोर से नहीं, लेकिन रिदम में ठोकने लगा – पेल-पेल, गांड पर हल्का थप्पड़ मारने लगा , चटाक की आवाज लेकिन दबी रह गयी । रामा चीखी दबी आवाज़ में: "हाय... दर्द हो रहा ... लेकिन... और रोहन। मनीष... मुंह... मत रुको।"

मनीष ने बाल हल्के पकड़े, मुंह में सरकाया – अंदर तक लेकिन कंट्रोल्ड। "हां रमा... लेकिन... तू ठीक है ? रवि बाहर... सो रहा, तू यहां... लेकिन अगर तू कहे तो रुक जाएं। रंडी, चूस ले जोर से, तेरी तरह की छिनाल को तो यही सूट करता।" रमा की आंखें नम हो गयी , लेकिन कमर हिल रही: "नहीं... बस... चोदो... लेकिन धीरे धीरे । " रोहन तेज हुआ – पसीना टपक रहा था , बदन चिपक गए, हवा में पसीने की नमकीन महक फैल गयी । "रमा... आ... रहा हूं... ले? कुतिया, भर ले अपनी चूत।" पहला छींटा चूत में – गर्म, लेकिन कम, भरता हुआ। मनीष भी: "मुंह में... निगल... अगर... रंडी, सब पी ले।" रमा कांपी, रस निगला – नमकीन स्वाद जीभ पर, कड़वा लेकिन मिक्स। दोनों ने बदला – मनीष चूत में, रोहन मुंह में । ताबड़तोड़ लेकिन थका हुआ चुदाई – सिसकियां, थप्पड़ों की हल्की जलन, लेकिन रात की थकान से सांसें छोटी। आखिर में रामा लेटी, बदन पर वीर्य के हल्के निशान – चूत से टपकता, मुंह से लटका, ठंडी हवा से सिहरन। "हाय... तुमने... थका दिया। लेकिन... मजा... आया, लेकिन शर्म आ रही ..."

रवि... वो सब देख रहा था। झाड़ी के पीछे छिपा, सांसें रोकी हुई, लेकिन पत्तों की सरसराहट में हल्की आवाजें सुनाई दे रही थी । दिल जल रहा थी – , लेकिन लंड... पैंट में दबा, फटने को। "मम्मी.. तू... मेरी... लेकिन ये... रंडी सी हो गई तू, कुतिया... छिनाल... क्यों?" हाथ पैंट में सरक गया, हिला रहा खुद को...

रामा थककर तंबू में लौटी – साड़ी उलझी, चेहरे पर वो हल्की चमक लेकिन आंखें थकी, लाल। रवि जागा सा किया, आंखों में सवाल लेकिन बोला नहीं। रमा शरमाई, बिस्तर पर लेट गयी – गाल लाल, आंखें नीची, सांसें अभी भी तेज। "रवि... बेटा... मैं... बाहर हवा लेने गई थी। तू... सो जा।" लेकिन उत्साह... वो तो छिप न सका, साड़ी हल्की सरकाई, चूत के पास हाथ: "देख... कितनी... गीली हो गई। लेकिन... अगर तू... चट ले तो?" रवि कांपा, लेकिन करीब आया – गंध महसूस हुई, वीर्य की नमकीन, मिक्स। "माँ... ये... किसकी है ?" रमा ने सिर हिलाया, शर्म से : "चुप... बस... चाट ले। तेरी माँ... गंदी हो गई। लेकिन तू... मेरा बेटा... साफ कर दे।" रवि झुका, जीभ लगाई – चूत पर, वीर्य चाटा। गाढ़ा, चिपचिपा, दोस्तों का रस लेकिन माँ का मिक्स। "आह माँ... स्वाद... नमकीन. है .. लेकिन... पागल कर देगा। रंडी... तू... लेकिन मेरी।" रमा सिसकी भर रही, हाथ बेटे के सिर पर: "हां बेटा... अंदर तक ... चूस ले सब। शर्म... आ रही... लेकिन ये... हाय। अब... मुंह खोल।" वो झुकी, थूक गोला बनाया – गर्म, चिपचिपा – रवि के मुंह में थूक दिया। "पी ले बेटा... माँ का... उनके साथ। ये... ... हमारा... प्यार है ।"

रवि निगला – कड़वा, मीठा मिश्रण, गले में अटका सा। दोनों गले लगे, सांसें मिलीं – शर्म, लालसा, प्यार... सब एक, लेकिन रात की ठंडक में कांपते हुए। जंगल की रात अभी लंबी थी, लेकिन नींद... दूर।
 

Iron Man

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सुबह की पहली किरणें जंगल के तंबुओं पर धीरे-धीरे फैल रही थीं, ठंडी हवा में ओस की बूंदें पत्तियों पर चमक रही थीं। दूर कहीं पक्षियों की चहचहाहट हवा में घुली हुई लग रही थी। कैंपफायर की राख अभी हल्की गर्म थी, उससे उठती धुएं की हल्की महक सबके नथुनों को सहला रही थी – लकड़ी की कड़वाहट और रात की नमी का मिश्रण। रवि तंबू से बाहर निकला, आंखें थकी हुईं लेकिन मन में वो बेचैनी जो रात भर सुलगती रही। नींद अधूरी थी, लेकिन आज का दिन... कुछ वैसा ही था जैसा वो कल्पना करता रहा। वो जानता था, रमा उसकी "गर्लफ्रेंड" थी – बस इतना ही। माँ-बेटे का वो राज़ अभी छिपा हुआ था, लेकिन हवा में तैर रहा लगता था।

रमा तैयार हो चुकी थी। लाल साड़ी उसके बदन से चिपकी हुई थी, जैसे कोई नरम लिफाफा जो हर कर्व को सहलाता हो। ब्लाउज का गहरा नेक उसके भारी स्तनों को उभार रहा था – गोल, नरम, हर सांस के साथ हल्के से हिलते हुए, जैसे कोई लयबद्ध नृत्य। निप्पल्स की हल्की आउटलाइन ब्लाउज के नीचे झलक रही थी, पीली ब्रा की कगार से वो रहस्यमयी छाया। कमर नंगी, पेट की मुलायम चमड़ी पर नाभि की गहराई हल्की सी चमक रही, जैसे कोई गुप्त निमंत्रण दे रही हो । साड़ी का पल्लू थोड़ा सरका हुआ था, जो उसके चौड़े कूल्हों को और उभार रहा – मोटी, गोल गांड हर कदम पर हल्की लहर की तरह मटक रही। उसके मोटे होंठ लाल लिपस्टिक से चमक रहे थे, नरम और रसीले, बोलते समय हल्के से कांपते। बाल खुले, काले घने लहराते हुए कंधों पर बिखरे, और परफ्यूम की वो मादक गंध – गुलाब की मिठास और चंदन की गर्माहट – हवा में फैल रही थी , जैसे कोई अदृश्य स्पर्श। वो जानती थी, ये लुक... खतरे से भरा था। लेकिन अंदर की वो सुलगती आग उसे रोकने न दे रही।

सब इकट्ठा हो रहे थे। अजय और विक्की नक्शा फैलाए झुककर कुछ बुदबुदा रहे, रोहन और मनीष चाय के क्विक ब्रेकफास्ट को सेट कर रहे – प्लास्टिक के कपों में भाप उठ रही थी । "अरे यार, चलो आज झरना हिट करते हैं। रास्ता छोटा सा है, लेकिन व्यू... कमाल का होगा," अजय ने उत्साह से चिल्लाया, नक्शे पर उंगली रखते हुए। रवि मुस्कुराया, लेकिन उसकी नजरें रमा पर अटकीं। वो रोहन के पास खड़ी थी, हल्की हंसी के साथ बात कर रही थी । रोहन ने चाय का कप बढ़ाया, उंगलियां हल्के से छुईं – वो स्पर्श जानबूझकर था, लेकिन इतना हल्का कि सिर्फ वो दोनों ही महसूस करें। "रमा... सुबह-सुबह ही तू तो कयामत लग रही है। ये साड़ी... जैसे तेरे लिए ही सिली हो। लेकिन जंगल में सावधान रहना, कांटे हैं ना... तेरी ये खूबसूरती को खरोंच न लग जाए," रोहन की आवाज गहरी थी, आंखों में शरारत की चमक, लेकिन नीचे कहीं एक सच्ची तलब छिपी। वो जानता था, रमा सिर्फ एक चेहरा नहीं, एक पूरा रहस्य थी।

रमा ने कप लिया, मोटे होंठों से चाय का धीरा घूंट भरा – गर्मी उसके गले में उतरी, होंठ हल्के से कांपे। वो शरमाई, गालों पर हल्की लाली चढ़ी, लेकिन आंखें मिलाईं: "रोहन... तू तो हमेशा यही करता है न, ऐसे मीठे-मीठे जाल बुनता। जैसे कोई पुराना दोस्त... लेकिन आज जंगल में... थोड़ा अकेले घूमने का मन है। रवि तो व्यस्त रहेगा नक्शे में, तू... साथ चलेगा न? बस थोड़ी देर... इन रास्तों से डर लगता है मुझे।" उसकी आवाज नरम थी, लेकिन कशमकश भरी – शब्दों में हिचकिचाहट, जैसे वो खुद से लड़ रही हो। अंदर की उथल-पुथल... प्यार, डर, और वो लालसा जो शब्दों से बाहर थी। वो सोच रही थी, "ये सब गलत है... लेकिन ये स्पर्श... रवि की तरह ही गर्म क्यों लगता है? क्या मैं इतनी कमजोर हो गई हूं?"

मनीष करीब सरका आया, पीछे से कमर पर हल्का हाथ रखा – वो दबाव इतना सूक्ष्म था कि बाहर से दोस्ताना लगे, लेकिन अंदर जलन पैदा कर दे। "अरे रमा, रोहन अकेला? मैं भी तो हूं ना। तू अकेली मत घूम... हम दोनों हैं ना, संभाल लेंगे। देख न, तेरी ये... कमर कितनी नाजुक है। साड़ी में लहरा रही, जंगल में अगर फिसली तो... हम पकड़ लेंगे। लेकिन वादा कर... रवि को मत बताना, वरना वो जलन से तड़प जाएगा। तू उसकी गर्लफ्रेंड है न... लेकिन हम... तेरे पुराने दोस्त।" मनीष की सांसें उसके कान पर लगीं, गर्म और हल्की नमकीन – पसीने की वो हल्की गंध जो उत्तेजना बढ़ा दे। रामा सिहर उठी, स्तन हल्के से हिले, ब्लाउज में वो दबाव महसूस हुआ। "मनीष... शशश... चुप कर ना, सब सुन लेंगे। लेकिन हां... थोड़ा डर तो लगता ही है। रास्ता इतना कांटेदार... जैसे मेरी ये जिंदगी। रवि के साथ तो खुशी है, लेकिन कभी-कभी... ये अकेलापन सताता है। तुम्हारे जैसे दोस्त... बस, अच्छा लग जाता है। हाथ... मत छोड़ना बस।" लेकिन नीचे उत्साह की चमक – वो कबूल कर रही थी, धीरे-धीरे: "मैं... औरत हूं रोहन, मनीष। भूखी सी। लेकिन रवि... वो मेरा सबकुछ। ये राज़... कभी न खुलना चाहिए।"

रोहन ने उसका हाथ पकड़ा, उंगलियां धीरे से आपस में उलझाईं – वो गर्माहट धीरे-धीरे फैली, जैसे कोई धारा। "रमा... तेरी ये आंखें... सब बयान कर रही हैं। डर मत... हम तेरी रखवाली करेंगे। लेकिन सोच तो... झरने के पास, पानी की उस ठंडी धार में... अगर हम तीनों... थोड़ा खो जाएं। तेरे ये मोटे होंठ... पानी से भीगे... एक बार छू लूं? बस धीरे से, जैसे कोई अधूरा सपना। रवि तो दूर नक्शे में उलझा रहेगा, तू... हमारे साथ कुछ पल की हो जाए।" मनीष ने पीछे से गांड पर हल्का थप्पड़ मारा – चटाक की वो हल्की आवाज जंगल की सरसराहट में घुल गई, लेकिन साड़ी के नीचे जलन फैल गई। "हां रमा... ये... कितनी नरम, मोटी। दबा दूं? लेकिन वादा... चुप रहना। तेरी ये साड़ी... पानी में उतार दूं? वो भारी... आजाद हो जाएं। तू चिल्लाएगी शायद... लेकिन वो मजा? स्वर्ग सा।" रमा की सांसें तेज हो गईं, नीचे सिहरन दौड़ी – वो हंसकर बोली, लेकिन आवाज कांप रही: "तुम दोनों... पागल हो गए हो क्या? लेकिन हां... थोड़ा रोमांस... क्यों न हो? रवि व्यस्त तो रहेगा। चलो... निकल पड़ें।"

रवि झाड़ी के पीछे छिपा था, सब देख रहा। दिल में जलन की आग सुलग रही – लेकिन साथ ही वो उत्तेजना, जो लंड को सख्त कर रही। "वो मेरी है... लेकिन ये... मेरा ही राज़।" वो चुपके से पीछा करने लगा


दोपहर की धूप जंगल को चीर रही थी, पेड़ों की लंबी छांवें जमीन पर बिखरीं, हवा में पत्तों की सरसराहट और दूर झरने की धीमी गूंज जैसे कोई लय बना रही। लंच के बाद सब थकान में डूबे थे – अजय और विक्की तंबू में हल्की नींद ले रहे थे रवि नक्शे में उलझा सा व्यस्त था। लेकिन रमा... वो अकेली घूमने निकली, वही लाल साड़ी अब पसीने से चिपकी हुई – स्तन ब्लाउज में दबे, लेकिन हर कदम पर हल्के से दबाव महसूस हो रहा। मोटे होंठ सूखे लेकिन रसीले, गांड मटकते हुए रास्ता काट रही थी। परफ्यूम अब पसीने की हल्की नमकीन गंध से घुला, और भी मादक लग रहा था। अंदर की बेचैनी सुबह की फुसफुसाहटों से और भड़क रही थी। "क्यों ये सब? रवि के साथ तो शांति है... लेकिन इनकी नजरें... मुझे जिंदा कर देती हैं, जैसे कोई पुरानी भूख जागी हो।"

रोहन और मनीष चुपके से सरक आए – रोहन ने हाथ पकड़ा, मनीष ने कमर पर हल्का दबाव डाला। "रमा... अकेली क्यों? चल, हम ले चलें और गहराई में। झरना तो देख लिया, अब... असली मजा होगा। रवि सो रहा है न, कोई फर्क न पड़ेगा," रोहन की आवाज कांप रही थी – उत्साह में, लेकिन नीचे वो सम्मान जो उसे रोक रहा। "तू सिर्फ... खूबसूरत नहीं रमा। तेरी वो मुस्कान... मुझे अपना सा बना देती। लेकिन आज... थोड़ा बुरा बनूं? तू... तैयार तो है न?" रामा सिहर उठी, हाथ हल्का सा पीछे खींचा लेकिन ना न कही: "रोहन... डर तो लग रहा है। रवि... वो मेरा प्यार है, सबकुछ। लेकिन तुम्हारी ये गर्माहट... मुझे इतना कमजोर क्यों कर देती? ले चलो... लेकिन धीरे से, कोमलता से। अगर बुरा किया तो... मैं टूट जाऊंगी।" मनीष ने कान में फुसफुसाया, सांसें गर्म और करीब: "रमा... सुबह से तेरी ये... घूर रहा हूं। बुरा? हां, करूंगा। थप्पड़ मारूंगा, दबाऊंगा। लेकिन क्यों? क्योंकि तू भी तो चाहती है न... वो दर्द जो सुख में बदल जाए। रवि कभी ऐसा न करेगा। वादा कर... चिल्लाएगी, लेकिन रुकेगी नहीं। तेरे ये होंठ... मेरे पर लपेटेगी?"

जंगल की गहराई में पहुंचे – घने पेड़ों के बीच नरम घास, हवा में मिट्टी की सोंधी खुशबू। रोहन ने रमा को पेड़ से सटा दिया, साड़ी का पल्लू धीरे से खींचा – वो गिरा, स्तन बाहर उभरे। "देख रमा... ये... कितने नरम, भारी। चूसूं? दांतों से हल्का काटूं?" वो झुका, निप्पल मुंह में लिया – चूसना शुरू, जोर से लेकिन धीरे-धीरे, दांत चुभाए । रमा सिसकी: "आह रोहन... दर्द... लेकिन हाय... मत रुको। दिल तो कह रहा गलत है... लेकिन बदन... कांप रहा। मनीष... तू... नीचे आ ना।" मनीष घुटनों पर बैठा, साड़ी ऊपर सरकाई – चूत नंगी, गीली चमकती। उंगली डाली, फिर दो: "रमा... कितनी सोखी। बुरा कर रहा हूं... फाड़ रहा। सोच, रवि बाहर... तू यहां... पिस रही। चिल्ला ना... 'मनीष...जोर से ... फाड़ दे कुतिया का !' और ये... थप्पड़ खाएगी।" चटाक-चटाक, हल्के थप्पड़, गांड लाल हो गई। रमा कांपी: "हाय... जलन हो रही ... लेकिन अच्छा लग रहा। तुम दोनों... मेरी कमजोरी हो। रवि को पता चला तो... सब खतम। लेकिन अब... कर लो... बुरे से, लेकिन प्यार से।"

रोहन ने लंड बाहर किया – मोटा, कड़ा, धमनियां उभरीं। चूत में धीरा धक्का लगाया : "ले रमा.कुतिया .. अंदर... तक ।" जोर-जोर से पेला, लेकिन लय में, थप्पड़ों की हल्की बरसात। मनीष मुंह में डाला: "चूस साली अंदर तक ... गला तक।" रमा बीच में फंसी – सिसकियां, सांसें टूटी। "आह... बुरा कर रहे हो... लेकिन ये... प्यार जैसा। रोहन... जोर से .. हाय... मनीष... निगल रही... वीर्य... दो ना!" वीर्य भरा – चूत में गर्म धारा, मुंह में गाढ़ा चिपचिपा। रमा लेटी रही, थकी लेकिन चमकती: "तुमने... बर्बाद तो किया... लेकिन जिंदा कर दिया। राज़... रखना, प्लीज।"

रवि पेड़ के पीछे छिपा, सब देख रहा। उत्तेजना की लहरें आ गयी उसके शरीर पर ।

रात जंगल में काली चादर ओढ़ चुकी थी – तम्बू के अंदर सब सो चुके थे – दोस्तों की खर्राटों की गूंज हल्की-हल्की आ रही, लेकिन रवि और रामा के बीच वो सन्नाटा... जो सांसों की गर्मी से भरा, पसीने और वीर्य की मिश्रित गंध जो हवा में लटक रही थी । दिन भर की थकान बदन में बसी थी – पसीने की चिपचिपाहट, चूत और लंड पर बाकी वो गीलापन जो दोस्तों की चुदाई से चिपका था, हर सांस के साथ याद दिलाता। रमा बिस्तर पर लेटी, साड़ी अभी भी उलझी हुई, पसीने की चमक उसके गालों पर, लेकिन आंखों में वो आग – दिन भर की लालसा, बेटे की जलन, और अब... अपनी ताकत, वो कंट्रोल जो उसे रानी सा महसूस करा रहा। चूत में सिहरन बाकी, वीर्य का नमकीन स्वाद जीभ पर चढ़ा, लेकिन वो मुस्कुरा रही थी अंदर से, होंठों पर वो हल्की कर्ल जो कह रही थी, "आज... तू मेरा गुलाम बनेगा, बेटा। तेरी जलन... मेरी ताकत, मेरी भूख।"

रवि उसके बगल में सरक आया – बदन की गर्मी माँ को छू रही, लेकिन उसके हाथ कांप रहे थे, उंगलियां हवा में लटक रही जैसे कोई अनजाना डर हो। वो जानता था, दिन भर छिपकर देखा सब – रोहन का वो क्रूर धक्का जो तेरी मम्मी की चीखें निकाल रहा था, मनीष का थप्पड़ जो गांड को लाल कर रहा, विक्की-अजय की फुसफुसाहटें जो हवा में गंदी कल्पनाओं की बूंदें बिखेर रही। दिल जल रहा था, लंड कड़ा हो चुका, टिप से रस टपक रहा पैंट में, लेकिन अंदर वो बेचैनी... जैसे कोई गुलामी की जंजीर खींच रही थी , शर्म और लालसा का गंदा मिश्रण जो सांसों को भारी कर रहा था । "मम्मी. जाग ना। दिन भर... तूने... आह, क्या-क्या किया? मैं... मैंने सब देखा। तेरी चीखें... तेरी वो सिसकियां... रोहन के नीचे तू... कांप रही थी। बताना... सब डिटेल से, माँ। " उसकी आवाज धीमी थी, टूटती-टूटती, हर शब्द में लालच भरा लेकिन डर से कांपता, जैसे वो खुद से लड़ रहा हो – सांसें तेज, छाती ऊपर-नीचे, आंखें माँ के चेहरे पर अटकीं, होंठ काटते हुए।

रमा ने आंखें खोलीं, नम लेकिन ताकतवर नजर से – वो नजर जो बेटे को नंगा कर रही, अंदर की कमजोरी उघाड़ रही। होंठों पर वो मुस्कान फैली, धीरे-धीरे, जैसे कोई शिकारी शिकार को देख रहा हो। हाथ बढ़ाया, बेटे की जांघ पर रखा, नाखूनों से हल्का खरोंचा – वो खरोंच जलन पैदा कर रही थी , लेकिन गर्माहट भी, जैसे कोई आग छू रही हो। "ओह बेटा... चुप रह ना, सब सो रहे हैं। लेकिन हां... सुन ले, हर डिटेल। रोहन ने पहले मेरी कमर पकड़ी, साड़ी ऊपर सरकाई... फिर उंगली डाली चूत में, गीली थी मैं पहले से ही – तेरी दोस्तों की गंदी बातों से, उनकी नजरों से जो सुबह से मेरी गांड घूर रही थी । 'रमा रंडी... तेरी चूत कितनी भूखी लग रही,' रोहन ने फुसफुसाया, उंगली घुमाई अंदर-बाहर, रस टपकने लगा। मैं चीखी, 'रोहन... आह, धीरे... फाड़ ना मत,' मनीष आया पीछे से, दूध दबाए जोर से – निप्पल पकड़े, मुड़के काटा, दांत चुभाए। 'चूसूंगा तेरे ये बड़े दूध, कुतिया... रवि के सामने तो शरमाती, लेकिन अकेले... रंडी बनी।' आह बेटा... सोच, तू बाहर झाड़ी में छिपा देख रहा था, मैं अंदर पिस रही – चूत में उंगली, दूध पर दांत, गांड पर थप्पड़। 'चटाक-चटाक' की आवाज... और मेरी सिसकी, 'हां मनीष... दर्द दो... लेकिन अंदर तक ।' तेरी मम्मी तेरे दोस्तों की कुतिया बनी, लेकिन तेरी खुशी के लिए। अब बोल... क्या फील हो रहा? तेरा लंड... कड़ा तो है ना?" रामा की आवाज नरम लेकिन कमांडिंग थी, हर शब्द में वो कामुकता जो हवा में घुल रही, सांसें गर्म उसके कान पर लग रही, परफ्यूम की मादक गंध मिक्स होकर पसीने की नमकीन से।

रवि की सांस तेज हो गई, लंड फड़क रहा पैंट में, रस की गीलापन फैल रहा, लेकिन माँ का स्पर्श... वो कमजोरी ला रहा, घुटनों में कम्पन हो गया । रामा का हाथ ऊपर सरका, बेटे के छाती पर – नाखून चुभाए, हल्का दर्द लेकिन सिहरन, जैसे कोई करंट दौड़ गया। "और सुन बेटा... विक्की ने फुसफुसाया मेरे कान में, 'रमा... तेरी चूत चाटूं? जीभ घुसाकर रस निगलूं, तेरी गांड में उंगली डालूं – मीठा रस चखूं, कुतिया। तू रवि की गर्लफ्रेंड है, लेकिन हमारी रंडी।' मैं हंसी शरम से, लेकिन चूत गीली हो गई मेरी – साड़ी भिगो दी, रस टपकने लगा जांघों पर। 'विक्की... पागल, रवि देख लेगा,' मैंने कहा, लेकिन आंखें बंद कर लीं, कल्पना में। फिर अजय ने ड्राइव में मिरर से घूरा, 'तू आग है रमा, तेरी गांड मटक रही... चोदूं? लंड डालूं पीछे से, फाड़ दूं तेरी रंडी वाली चूत?' बेटा... तेरी माँ ने सब सहा, हर स्पर्श, हर गंदी बात – तेरी जलन को और भड़काने के लिए। लेकिन अब... तू मेरी दासी बनेगा। तेरी मम्मी का गुलाम। बोल... 'हां मम्मी , मैं तेरा गुलाम हूं।' " रवि कांपा, आंसू आंखों में चमके, लेकिन लालसा जीत गई – "हां मम्मी ... मैं... तेरा गुलाम हूं। उसकी आवाज कांप रही थी , लेकिन उत्तेजना से भरी, सांसें टूटी। रमा की उंगलियां नीचे सरकीं – पैंट में लंड पकड़ा, जोर से दबाया, नाखून चुभाए टिप पर। कड़ा, गर्म, लेकिन दर्द से सिहरा, रस बाहर आया। "हाय... बेटा, तेरा लंड कितना गुलाम सा कांप रहा। दिन भर की जलन... इसे और सख्त बना रही, रस टपका रही। लेकिन आज... तू मेरे तलवों का गुलाम। चाटेगा... मेरी धूल, मेरा पसीना।"

दोनों की सांसें मिलने लगीं – तंबू में गर्मी चिपचिपी हो गई, पसीने की बदबू फैल रही, साड़ी की सिल्क हवा में सरसराती। रमा ने साड़ी का पल्लू सरकाया, स्तन उभरे लेकिन बेटे को नीचे दबाया – पैर फैलाए, जंगल की धूल से सने, पसीने वाले तलवे, दिन भर की मिट्टी और पसीने की चिपचिपाहट से चमकते। "चाट बेटा... मेरे तलवे। धीरे-धीरे, जीभ से हर कण साफ कर। तेरी माँ की गुलामी... तेरी लालसा का रस है । बोल... 'मम्मी तेरे तलवे चाटूंगा, तेरा कुत्ता बनकर।'" रवि का दिल धक् से रह गया – शर्म से गाल लाल, लेकिन लंड और सख्त, वो झुका, जीभ निकाली – गर्म, कांपती, नरम। तलवे पर लगाई, चाटने लगा। चपचप की गंदी आवाज आयी , नमकीन स्वाद – पसीना, मिट्टी, दिन भर की धूल का मिश्रण, गंदा लेकिन मादक, जैसे कोई नशा जो सिर चढ़ रहा हो । "मम्म... मम्मी , तेरा स्वाद... गंदा, नमकीन... लेकिन आह, तेरी खुशी के लिए। हर कण... चाट रहा, जीभ घुमा रहा।" रवि की आवाज मुंह भरे, लेकिन समर्पित, सांसें तलवों पर लग रही थी । रामा सिसकी भरी, पैर दबाए बेटे के चेहरे पर – नरम लेकिन जोर से, उंगलियां नाक पर दबीं। "हां बेटा... अच्छे से चाट गुलाम। जीभ के बीच से... साफ कर मेरी धूल, मेरे पसीने का रस निगल। जैसे कोई भूखा कुत्ता गांड चूसती। 'मम्मा... तेरी उंगलियां... चूस रहा, नमकीन रस... स्वादिष्ट।' बोल!" रवि तेज हुआ – तलवे चाटे, उंगलियां मुंह में लीं, चूसीं जोर से, जीभ लपेटी हर कोने पर। "मम्मा... तेरी उंगलियां... चूस रहा हूँ..

रमा ने बेटे के बाल पकड़े, उंगलियां मुट्ठी में बंद, ऊपर खींचा – आंखों में आग, होंठ कांपते लेकिन क्रूर मुस्कान। "अब... मुंह खोल रे कुत्ते। फैलाओ होंठ... मेरी गंदगी लेने को।" रवि ने होंठ फैलाए – कांपते, गुलामी से भरे, जीभ बाहर लटकाई। रामा झुकी, थूक बनाया – गाढ़ा, चिपचिपा गोला, दिन भर के रस, वीर्य और पसीने का मिश्रण, गर्म और गंदा। धीरे से मुंह में गिराया, टपकते हुए। रवि ने निगला, गले में जलन हुई लेकिन उसको मज़ा आ गया , जीभ बाहर निकालकर दिखाया – नम, चमकदार, थूक चिपका। "माँ... तेरा थूक... अमृत सा, गाढ़ा... गंदा लेकिन प्यारा। और दो... धीरे-धीरे, मुंह भर दो।" रवि की आवाज कांपती है , लेकिन लालसा भरी, आंखें माँ के होंठों पर। राlमा हंसी, लेकिन क्रूर, गहरी सी – "हां गुलाम... ले मेरी कचरा, मेरी थूक की धार। दिन भर रोहन ने मेरी चूत भरी वीर्य से, मनीष ने मुंह... गर्म छींटे डाले, लेकिन तेरा मुंह... मेरी थूक की बाल्टी बनेगा। फिर थूक गिराया – बार-बार, मुंह भरा, चिपचिपा लसलसा, गालों से टपकता। रवि चाटता रहा, लंड फड़कता, रस बह रहा। "हाय... मम्मी , तू मेरी मालकिन है । तेरी गंदगी... मेरी लालसा है , निगल रहा है हर बूंद।"

रामा ने साड़ी ऊपर सरकाई, चूत दिखाई – गीली, चमकती, दिन भर के वीर्य से चिपचिपी, लालिमा लिए, रस टपकता जांघों पर। "अब... चाट मेरी चूत रे गुलाम। अंदर तक , जीभ घुसाकर। रोहन का वीर्य बाकी है... गाढ़ा, नमकीन – निगल ले सब। बोल... 'माँ, तेरी चूत चाटूंगा, तेरे दोस्तों का रस निगलूंगा।'" रवि झुका, होंठ लगाए – चूसने लगा, जीभ अंदर घुसाई, चपचप की गंदी आवाज, रस का स्वाद – नमकीन, गंदा, मिश्रित। रमा ने गांड उभारे, बेटे का सिर दबाया चूत पर – जोर से, बाल खींचे। "आह... हां बेटा, चाट रे कुत्ते। जीभ घुमाओ, क्लिट चूसो... 'मम्मा... रोहन का वीर्य... चाट रहा, तेरी चूत का रस... मीठा।' बोल, चिल्ला धीरे से!" रवि सिसका, मुंह भरा लेकिन बोला, जीभ बाहर-भीतर: "मम्मा... रोहन का वीर्य... चाट रहा हूँ , निगल रहा। तेरी चूत का रस... मीठा, गर्म... आह।" रमा तेज सांसें , लेकिन ताकत से, कूल्हे हिलाए: "हां... गुलाम,। कल और दोस्त चोदेंगे मुझे, तू चाटेगा उनका रस। लेकिन आज... वीर्य मत निकालना, बस चाटता रह।

रवि गले लग गया आखिर, सांसें मिलीं – गंदगी, थूक, पसीना... सब चिपका बदनों पर। "माँ... तेरी गुलाम हूँ ... हमेशा। तेरी लालसा... मेरी जिंदगी है ।" रमा मुस्कुराई, पैर फिर दबाए चेहरे पर: "हां बेटा... रात लंबी है। चाट... और चाट, मेरे कुत्ते बेटे ।
 
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