• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery परिवार कैसा है

सबसे गरम किरदार

  • रमा

  • खुशबू

  • राधा

  • सोभा


Results are only viewable after voting.

mentalslut

Member
196
695
94
शाम की धूप अब हल्की-हल्की लालिमा लिए गाँव की सड़कों पर बिखर रही थी। स्कूल की घंटी बजी ही थी कि उमेश ने अपनी साइकिल उठाई—दिन भर क्लास लेते हुए मन भटक रहा था, लेकिन अब खुशबू को लेने का बहाना था। "आज तो जल्दी निकलूँगा... बेटी को कॉलेज से लूँगा, रास्ते में बातें करेंगे।" वो साइकिल पर सवार हो गया, हवा में गर्मी अभी भी बची थी, लेकिन सूरज डूबने को था। कॉलेज पहुँचा—खुशबू बाहर इंतजार कर रही, सलवार-कमीज में, बाल हवा में लहराते। "पापा... आज आए? सर ने क्लास लंबी कर दी थी। चलो... घर चलें।" खुशबू ने साइकिल के पीछे बैठते हुए कहा, हाथ पापा की कमर पर हल्का रखा। उमेश ने साइकिल चलाई, "हाँ बेटा... सर के साथ क्लास कैसी रही? कुछ... खास तो नहीं हुआ?" आवाज हल्की, लेकिन जिज्ञासा साफ।

खुशबू ने कमर पर हाथ कस दिया, हवा में साइकिल की रफ्तार। "पापा... सर... हाँ... क्लास के बाद केबिन में बुलाया। बोले, 'डाउट क्लियर कर लो।' लेकिन... हाथ कमर पर... चूचियाँ छुईं। मैंने कहा, 'सर... धीरे... क्लास खत्म हो गई।' लेकिन वो... दबाने लगे। 'मुझे थप्पड़ मार मार के चोदा...उमेश की साइकिल हल्की लड़खड़ा गई—मन मे सोचा साली कुतिया अभी भी चुद कर आयी है..उफ्फ... सोचकर ही... गर्म हो गया। रास्ता बदल लूँ... घर की बजाय... पार्क चलें? शाम है... हवा अच्छी लगेगी।" मन में उत्तेजना—'घर जाने से पहले... पार्क में... अकेले...।' खुशबू ने हँसकर सिर टिकाया, "पापा... हाँ... पार्क... अच्छा रहेगा।

साइकिल पार्क की ओर मुड़ी—शहर के किनारे का छोटा पार्क, शाम 6 बजने को था। गेट पर ताला लटक रहा, सिक्योरिटी राजन (55 साल का, मोटा-तगड़ा, सफेद दाढ़ी, पुरानी यूनिफॉर्म) खड़ा। "साहब... बंद हो गया... शाम 6 हो गए।" उमेश ने साइकिल रोकी, जेब से नोट निकाला—50 का। "भैया... अंदर घुसने दे... बेटी के साथ हवा लेंगे। बस 15 मिनट।" राजन ने नोट पकड़ा, मुस्कुराया—'ये टीचर... बेटी के साथ... लेकिन पैसे दे रहा .. ठीक।' "ठीक है साहब... लेकिन जल्दी... कोई देख लेगा तो...।" गेट खोला। उमेश ने साइकिल अंदर रखी, पार्क के कोने की बेंच पर चले—एक पुरानी बेंच, पेड़ों की छाया में, चाँदनी हल्की-हल्की। "खुशबू... आ... पास बैठ। साली तू अभी चुद कर आयी है छिनाल ... मैं गर्म हो गया रंडी । तेरी चूत... सर के लंड से... गीली हो गई न?" उमेश ने बेटी को गोद में बिठा लिया—हल्का दबाया, सलवार पर हाथ फेरा ।

खुशबू सिहरी, लेकिन मुस्कुराई—गोद में समा गई। "पापा... हाँ... गीली हो गई... सर ने जोर से चोदा ... 'रंडी... तेरी चूत... फाड़ दूँगा।' मैं चीखी... लेकिन मजा आया । आप... आज पार्क..मे लाये पापा . अच्छा किया।" उमेश का चेहरा अपनी बेटी गर्दन पर—हल्का चाटा, जीभ रगड़ी। "खुशबू... तेरी गर्दन... कितनी गर्म है .. पागल हो गया हूं ... सर का सोचकर। नीचे... मेरा लंड... तेरी गांड पर घिस रहा... महसूस हो रहा?" सलवार पर दबाव—लंड घिसने लगा। खुशबू ने कमर हिलाई, "आह पापा... हाँ... घिस रहा... गर्म लग रहा... गांड पर... सिहरन हो रही। आप... पागल हो गए हो ... लेकिन मजा आ रहा ।" उमेश ने गर्दन चाटी—जोर से, जीभ घुमाई। "बेटा... तेरी गर्दन... पसीना... चूस रहा... गर्म... साली... तेरी गांड... मेरे लंड पर रगड़ रही।" हाथ ऊपर कर मादरचोद —सलवार के ऊपर से चूचियाँ पकड़ीं, जोर से दबाया—मसलने लगा। "उफ्फ... तेरी चूचियाँ... कितनी टाइट है रंडी । बोल... 'पापा... दर्द... लेकिन... गर्म हो रही हूं ।'" खुशबू सिसकी, "आह पापा... हाँ... मसलो जोर से ... दर्द हो रहा ... लेकिन चूत... गीली..हो रही . आपका लंड... गांड पर... घिस रहा... मजा आ रहा ।"

राजन गेट पर खड़ा था, लेकिन चुपके से अंदर झाँका—चाँदनी में वो दृश्य... टीचर अपनी बेटी को गोद में, गर्दन चाट रहा, चूचियाँ मसल रहा। 'उफ्फ... ये... पिता-पुत्री? साला...ये हो क्या रहा है . लेकिन... उत्तेजित हो गया।' मन में हलचल, लेकिन चुप रहा—देखता रहा।

उमेश ने मसलना जारी रखा —जोर-जोर से, चूचियाँ लाल कर दी । "खुशबू... तेरी चूचियाँ...कितनी..गर्म...है.. साली ... साली कुतिया ... पार्क में... कोई देख लेगा... लेकिन... थूक दे... अपने हाथ पर... गीला करके मसलूँ।" खुशबू ने कामुक नजरों से पापा की आँखों में देखा—हाथ उठाया, थूक गिराया—गर्म, चिपचिपा। "पापा... ले... मेरा थूक... गीला... मसल लो।" उमेश ने थूक चूचियों पर लगाया—मसलने लगा, चिकना। "उफ्फ... बेटा... तेरा थूक... चूचियों पर... चिकना... लग रहा ... लाल हो गईं। तेरी आँखें... कितनी गरम... पापा को पागल कर रही।" खुशबू सिसकी, "पापा... हाँ... मसलो ... थूक से... गर्म लग रहा... आपकी उँगलियाँ... निप्पल पर... कट रहा... दोनों हाँफे। राजन देखता रहा—'पापा-पापा'... मुंह से सुनकर उत्तेजित, हाथ नीचे... हल्का सहलाया। "साला... ये मदरचोद अपनी बेटी के साथ मज़े कर रहा . इसकी बेटी भी कितनी सेक्सी है साली रंडियो की तरह अपनी दूध मसलवा रही अपने बाप से उफ्फ्फ
 

brij1728

माँ लवर
1,014
1,032
158
शाम की धूप अब हल्की-हल्की लालिमा लिए गाँव की सड़कों पर बिखर रही थी। स्कूल की घंटी बजी ही थी कि उमेश ने अपनी साइकिल उठाई—दिन भर क्लास लेते हुए मन भटक रहा था, लेकिन अब खुशबू को लेने का बहाना था। "आज तो जल्दी निकलूँगा... बेटी को कॉलेज से लूँगा, रास्ते में बातें करेंगे।" वो साइकिल पर सवार हो गया, हवा में गर्मी अभी भी बची थी, लेकिन सूरज डूबने को था। कॉलेज पहुँचा—खुशबू बाहर इंतजार कर रही, सलवार-कमीज में, बाल हवा में लहराते। "पापा... आज आए? सर ने क्लास लंबी कर दी थी। चलो... घर चलें।" खुशबू ने साइकिल के पीछे बैठते हुए कहा, हाथ पापा की कमर पर हल्का रखा। उमेश ने साइकिल चलाई, "हाँ बेटा... सर के साथ क्लास कैसी रही? कुछ... खास तो नहीं हुआ?" आवाज हल्की, लेकिन जिज्ञासा साफ।

खुशबू ने कमर पर हाथ कस दिया, हवा में साइकिल की रफ्तार। "पापा... सर... हाँ... क्लास के बाद केबिन में बुलाया। बोले, 'डाउट क्लियर कर लो।' लेकिन... हाथ कमर पर... चूचियाँ छुईं। मैंने कहा, 'सर... धीरे... क्लास खत्म हो गई।' लेकिन वो... दबाने लगे। 'मुझे थप्पड़ मार मार के चोदा...उमेश की साइकिल हल्की लड़खड़ा गई—मन मे सोचा साली कुतिया अभी भी चुद कर आयी है..उफ्फ... सोचकर ही... गर्म हो गया। रास्ता बदल लूँ... घर की बजाय... पार्क चलें? शाम है... हवा अच्छी लगेगी।" मन में उत्तेजना—'घर जाने से पहले... पार्क में... अकेले...।' खुशबू ने हँसकर सिर टिकाया, "पापा... हाँ... पार्क... अच्छा रहेगा।

साइकिल पार्क की ओर मुड़ी—शहर के किनारे का छोटा पार्क, शाम 6 बजने को था। गेट पर ताला लटक रहा, सिक्योरिटी राजन (55 साल का, मोटा-तगड़ा, सफेद दाढ़ी, पुरानी यूनिफॉर्म) खड़ा। "साहब... बंद हो गया... शाम 6 हो गए।" उमेश ने साइकिल रोकी, जेब से नोट निकाला—50 का। "भैया... अंदर घुसने दे... बेटी के साथ हवा लेंगे। बस 15 मिनट।" राजन ने नोट पकड़ा, मुस्कुराया—'ये टीचर... बेटी के साथ... लेकिन पैसे दे रहा .. ठीक।' "ठीक है साहब... लेकिन जल्दी... कोई देख लेगा तो...।" गेट खोला। उमेश ने साइकिल अंदर रखी, पार्क के कोने की बेंच पर चले—एक पुरानी बेंच, पेड़ों की छाया में, चाँदनी हल्की-हल्की। "खुशबू... आ... पास बैठ। साली तू अभी चुद कर आयी है छिनाल ... मैं गर्म हो गया रंडी । तेरी चूत... सर के लंड से... गीली हो गई न?" उमेश ने बेटी को गोद में बिठा लिया—हल्का दबाया, सलवार पर हाथ फेरा ।

खुशबू सिहरी, लेकिन मुस्कुराई—गोद में समा गई। "पापा... हाँ... गीली हो गई... सर ने जोर से चोदा ... 'रंडी... तेरी चूत... फाड़ दूँगा।' मैं चीखी... लेकिन मजा आया । आप... आज पार्क..मे लाये पापा . अच्छा किया।" उमेश का चेहरा अपनी बेटी गर्दन पर—हल्का चाटा, जीभ रगड़ी। "खुशबू... तेरी गर्दन... कितनी गर्म है .. पागल हो गया हूं ... सर का सोचकर। नीचे... मेरा लंड... तेरी गांड पर घिस रहा... महसूस हो रहा?" सलवार पर दबाव—लंड घिसने लगा। खुशबू ने कमर हिलाई, "आह पापा... हाँ... घिस रहा... गर्म लग रहा... गांड पर... सिहरन हो रही। आप... पागल हो गए हो ... लेकिन मजा आ रहा ।" उमेश ने गर्दन चाटी—जोर से, जीभ घुमाई। "बेटा... तेरी गर्दन... पसीना... चूस रहा... गर्म... साली... तेरी गांड... मेरे लंड पर रगड़ रही।" हाथ ऊपर कर मादरचोद —सलवार के ऊपर से चूचियाँ पकड़ीं, जोर से दबाया—मसलने लगा। "उफ्फ... तेरी चूचियाँ... कितनी टाइट है रंडी । बोल... 'पापा... दर्द... लेकिन... गर्म हो रही हूं ।'" खुशबू सिसकी, "आह पापा... हाँ... मसलो जोर से ... दर्द हो रहा ... लेकिन चूत... गीली..हो रही . आपका लंड... गांड पर... घिस रहा... मजा आ रहा ।"

राजन गेट पर खड़ा था, लेकिन चुपके से अंदर झाँका—चाँदनी में वो दृश्य... टीचर अपनी बेटी को गोद में, गर्दन चाट रहा, चूचियाँ मसल रहा। 'उफ्फ... ये... पिता-पुत्री? साला...ये हो क्या रहा है . लेकिन... उत्तेजित हो गया।' मन में हलचल, लेकिन चुप रहा—देखता रहा।

उमेश ने मसलना जारी रखा —जोर-जोर से, चूचियाँ लाल कर दी । "खुशबू... तेरी चूचियाँ...कितनी..गर्म...है.. साली ... साली कुतिया ... पार्क में... कोई देख लेगा... लेकिन... थूक दे... अपने हाथ पर... गीला करके मसलूँ।" खुशबू ने कामुक नजरों से पापा की आँखों में देखा—हाथ उठाया, थूक गिराया—गर्म, चिपचिपा। "पापा... ले... मेरा थूक... गीला... मसल लो।" उमेश ने थूक चूचियों पर लगाया—मसलने लगा, चिकना। "उफ्फ... बेटा... तेरा थूक... चूचियों पर... चिकना... लग रहा ... लाल हो गईं। तेरी आँखें... कितनी गरम... पापा को पागल कर रही।" खुशबू सिसकी, "पापा... हाँ... मसलो ... थूक से... गर्म लग रहा... आपकी उँगलियाँ... निप्पल पर... कट रहा... दोनों हाँफे। राजन देखता रहा—'पापा-पापा'... मुंह से सुनकर उत्तेजित, हाथ नीचे... हल्का सहलाया। "साला... ये मदरचोद अपनी बेटी के साथ मज़े कर रहा . इसकी बेटी भी कितनी सेक्सी है साली रंडियो की तरह अपनी दूध मसलवा रही अपने बाप से उफ्फ्फ
Wow, waiting for next one
 
  • Like
Reactions: bigbolls5

mentalslut

Member
196
695
94
शाम की लाली अब धीरे-धीरे मिट रही थी, पार्क की चांदनी हल्की-हल्की बिछी हुई, लेकिन राजन की सांसें अभी भी भारी थीं। वो गेट के पास खड़ा, हाथ में लाठी थामे, लेकिन आंखें उसी बेंच की तरफ टिकीं—जहां उमेश अपनी बेटी को गोद में बिठाए, चूचियां मसल रहा था, थूक की चिकनाहट उंगलियों पर चमक रही थी । 'उफ्फ... ये टीचर साला, अपनी बेटी के साथ... कितना गर्म हो रहा हूं मैं। लंड तो फड़क रहा है, जैसे सालों बाद जवान हो गया है ।' राजन ने जीभ चाटी, पैंट के अंदर हाथ सरकाया हल्का सा, लेकिन रुक गया—नहीं, अभी नहीं। वो देखता रहा, सिसकारियां दबाईं, जब तक उमेश ने खुशबू को उठाया, सलवार ठीक की, और फुसफुसाते हुए—"चल बेटा, घर चलें... कल फिर।" दोनों साइकिल की तरफ बढ़े, राजन ने गेट खोला, मुस्कुराता हुआ—"साहब, सावधानी से... रास्ता अंधेरा है।" लेकिन मन में हलचल—'साली बेटी... कितनी रसीली, चूचियां लाल हो गईं मसलने से। घर जाकर... उफ्फ, दारू पीनी पड़ेगी, ये आग बुझाने को।'

उमेश-खुशबू चले गए, साइकिल की घंटी की आवाज दूर हो गई, तो राजन ने गेट बंद किया, ताला लगाया। पार्क खाली था अब, सिर्फ पेड़ों की सरसराहट। वो लाठी टेकता हुआ बाहर निकला, लेकिन सीधे घर नहीं—पास के ठेके की तरफ। शाम का ठेका चहल-पहल से भरा, लेकिन राजन को कौन पूछे? "भैया, एक पव्वा दे... तेज वाली।" कांच की बोतल पकड़ी, पैसे फेंके, और बाहर ही एक पेड़ के नीचे बैठ गया—नीम की छाया में, दूर से सड़क की लाइटें झिलमिलातीं। पहला घूंट नीचे उतरा, गले में जलन, लेकिन सीने में वो गर्मी फैल गई—पार्क वाली यादें ताजा हो गईं। 'साला उमेश... बेटी की चूचियां मसल रहा, थूक लगाकर... मैं तो कभी सोचा भी न था ऐसे। लेकिन आज... लंड खड़ा हो गया देखकर।' दूसरा घूंट लिया आंखें बंद—खुशबू की सिसकी गूंज रही मन में, उमेश की फुसफुसाहट। दारू ने सिर भारी कर दिया, लेकिन नीचे की आग और तेज हो गयी । बोतल आधी हो गई, तो राजन उठा—पैर लड़खड़ा रहे थे , लेकिन घर की तरफ। बस सो जाऊंगा। ये नशा... कल तक भूल जाऊंगा।'

घर पहुंचा, छोटा-सा मकान, दीवारें पुरानी, लेकिन अंदर की रोशनी हल्की। दरवाजा खोला, तो सोभा वहां—28 की विधवा, पति को गए दो साल हो गए, लेकिन चेहरा अभी भी ताजा, आंखों में वो उदासी जो कभी-कभी मुस्कान में छिप जाती। वो चोली-पेटीकोट में थी, साधारण सा, लेकिन शाम की गर्मी में पसीना चिपका हुआ—चोली के अगले बटन खुले, चूचियां हल्की उभरीं, पेटीकोट कमर पर लिपटा हुआ । "पापा... इतनी रात को? ठेके गए थे न?" सोभा ने मुस्कुराते हुए पूछा, हाथ में थाली—रात का खाना गर्म कर रही थी शायद । राजन की नजरें ठहर गईं—पहली बार ऐसे, जैसे कोई औरत हो सामने, बेटी नहीं। चोली के नीचे वो गोलाई, पेटीकोट की लाइन जो कूल्हों पर... 'उफ्फ... सोभा... ये क्या सोच रहा हूं? मेरी बेटी... विधवा हो गई, लेकिन इतनी... रसीली?' शर्मिंदगी चढ़ आई गालों पर, नजरें हटाईं, लेकिन दिल धक-धक। "हां बेटा... काम था... थक गया हूं। तू... खाना लगा दे।" आवाज कांपी हल्की, वो अंदर चला गया, लेकिन मन में वो पार्क वाली आग अब सोभा पर शिफ्ट हो गई। 'नहीं राजन... पागल मत हो। ये तो तेरी औलाद... लेकिन दारू ने... उफ्फ, आंखें हट ही नहीं रही।'

रात गहराई, चूल्हे की लौ चटक रही थी —सोभा रोटियां बेल रही थी आटा गूंथते हुए। राजन बाहर बरामदे में बैठा, नशा चढ़ा हुआ, आंखें चूल्हे की तरफ। सोभा झुकी, चोली आगे की तरफ खुली—चूचियां हिल रही उसकी लौ की रोशनी में, निप्पल की छाया साफ दिख रही । हर रोटी पलटने पर वो हलचल, पसीना चोली पर चिपका, गीला सा। राजन का गला सूखा—'आह... कितनी नरम लग रही... हिल रही हैं जैसे... दूध भरी। नशे की वजह से... मन में गंदी तस्वीरें उमड़ी । छू लूं तो क्या... नहीं, बेटी है।' लेकिन नजरें न हटीं, लंड फिर से सरकने लगा, पैंट में दबाव। सोभा ने महसूस किया—पापा की नजरें चूचियों पर ठहरीं है वो मुड़ी, आंखें मिलीं। चेहरा लाल हो गया, शर्म से नीचे देख लिया—"पापा... रोटी... खा लो। गर्म है।" आवाज हल्की, कांपती, लेकिन आंखों में कुछ—वो जानती थी, विधवा की जिंदगी में ये नजरें... पहली बार पापा से। राजन ने सिर हिलाया, "हां... बेटा... अच्छी बनी हैं।" लेकिन मन में आग—'साली... शर्मा क्यों गई? जानती है ना... या...?'

रात और गहरी हो गई थी , सोभा सोने चली गई—अपने कमरे में, साड़ी उतारकर पेटीकोट-चोली में ही। राजन बेचैन, नशा उतर रहा था, लेकिन नीचे की जलन नहीं। बाथरूम की तरफ बढ़ा, दरवाजा बंद किया—अंधेरा, सिर्फ छोटी सी खिड़की से चांदनी। सोभा की धुलाई हुई पैंटी वहां लटकी—सफेद, कॉटन की, लेकिन इस्तेमाल की नमी अभी बची। राजन ने हाथ बढ़ाया, कांपते हुए पकड़ी—नाक से सटा ली। 'उफ्फ... सोभा की... बेटी की महक... गीली... चूत की बू... साली विधवा, कितने दिनों से... ये सोचकर...' सिसकारी निकली, जीभ चाटी—हल्का नम, पसीने और कुछ की। लंड बाहर निकाला, मोटा, नसें फूलीं—हाथ ऊपर-नीचे, तेज। 'रंडी... सोभा रंडी... तेरी चूत की बू... पापा को पागल कर दे रही विधवा साली, चूचियां हिलाती रहीं चूल्हे पर... ले, तेरी पैंटी पर... मेरा रस!' गालियां मन में, लेकिन जोर से फुसफुसाईं—शरीर कांपा, गाढ़ा वीर्य फूट गया , पैंटी पर चिपक गया, गर्म, चिपचिपा। राजन हांफा, शर्म फिर चढ़ आई—'ये क्या किया... बेटी की... कल सुबह... धो लेगी, लेकिन... अगर जान गई तो?' पैंटी वापस लटकाई, बाहर निकला, लेकिन नींद न आई—मन में सिर्फ सोभा की चूचियां घूम रही..

सुबह की पहली किरणें खिड़की से चुपके से घुस रही थीं, लेकिन सोभा की आंखें पहले ही खुल चुकीं—रात की नींद टूटी-फूटी, मन में वो अजीब सी हलचल। वो बिस्तर से उठी, पेटीकोट ठीक किया,

बाहर आकर पापा के कमरे की तरफ बढ़ी—राजन अभी सो रहा, सांसें भारी, चादर नीचे सरकी। सोभा ने हल्के से कंधा झटका, "पापा... उठिए... सुबह हो गई। चाय बना दूं?" आवाज नरम, लेकिन आंखों में चमक—कल की नजरें याद आ रही। राजन की आंखें खुलीं, धीरे से—सुबह की नींद में धुंधली, लेकिन सामने सोभा... चोली में काली-काली चूचियां, निप्पल उभरे हुए, पेटीकोट कमर पर लिपटा। 'उफ्फ... बेटी... ये क्या... इतनी...' बूढ़ा लंड हिल गया, पैंट में तनाव—सुबह की सुस्ती मिट गई, खड़ा होने लगा। नजरें ठहर गईं उन काले गोले पर, जैसे दूध भरी कलियां। शर्म चढ़ आई, नजर हटाई, लेकिन दिल में आग—'नहीं... ये तो सोभा... लेकिन कल रात... पैंटी...' "हां बेटा... उठ रहा हूं। तू... जा, तैयार हो जा।" लेकिन नीचे दबाव बढ़ता जा रहा।

सोभा मुस्कुराई—वो जानती थी, पापा की नजरें कहां ठहरीं। मन में खुशी की लहर, 'पापा... मुझे ऐसे देख रहे... विधवा हूं, लेकिन... आज...' गांड हल्की सी मतका ली, पेटीकोट की लहर—चली गई बाहर, कदमों में शरारत। राजन बिस्तर पर लेटा रहा पल भर, लंड को दबाया, 'साला... बेटी पर... पागल हो गया हूं।' लेकिन उठा, बाहर आया—बरामदे में सोभा झुकी हुई, झाड़ू लगाती। पेटीकोट ऊपर सरका, गांड की गोलाई झलक रही, लेकिन आगे... चोली खुली सी, आधे काले दूध बाहर आने को बेताब हो रहे थे —निप्पल कड़े, लौ की तरह चमकते। हर झाड़ू के झटके पर हिलाव, जैसे बुला रही हों। राजन की सांस अटक गई, 'आह... कितने बड़े... काले... छू लूं तो नरम होंगे।' खड़ा हो गया पूरा लंड, पैंट तन गई। सोभा ने महसूस किया—पीछे से वो नजरें, गर्म हो गयी । अंदर से खुशी उमड़ आई, 'पापा... देख रहे... शर्म क्यों न आएं?' लेकिन कुछ बोली नहीं, बस झुककर और झाड़ू लगाई, चूचियां और हिलाईं।

राजन पास आया, आवाज दबाई, "सोभा... आज ड्यूटी नहीं जाऊंगा। पार्क... छुट्टी लूंगा। तू... चाय बना।" सोभा मुड़ी, मुस्कान—'ड्यूटी नहीं... मतलब... आज घर पर?' "हां पापा... बना दूंगी।" राजन बाहर निकला, मन भटकता—गांव की गली में, ठेके के पास। 'नशा... चाहिए, ये आग बुझाने को।' गंजा लिया, दो-चार तंबाकू के साथ—पीने लगा धीरे-धीरे, धुआं फेफड़ों में। सिर भारी, लेकिन नीचे की भूख और तेज। आते वक्त दुकान से दो चॉकलेट ले ली—पुरानी आदत, बेटी को खुश करने की। 'सोभा... ये लेगी तो मुस्कुराएगी।'

घर लौटा, सोभा चाय देने आयी —चॉकलेट देखते ही आंखें चमक गईं। "पापा... ये... मेरे लिए?" खुशी से चेहरा खिला, विधवा की उदासी मिट गई। "हां बेटा... तू... खा ले।" सोभा ने पैकिंग खोली, बाप के सामने ही चट-चट चाटने लगी—जीभ पर रगड़कर, होंठ चूसकर। 'मम्म... कितना स्वादिष्ट... पापा लाए।' राजन देखता रहा, गंजे का नशा चढ़ने लगा —चॉकलेट की चिकनाहट जीभ पर, सोभा की लार... उफ्फ। "सोभा... एक कौर... दे ना।" आवाज में लालच, नशे की मस्ती। सोभा हंसी, चॉकलेट आगे बढ़ाई—आंखों में चमक, वासना की हल्की सी लहर। . जैसे...' राजन ने हाथ बढ़ाया, लेकिन चॉकलेट छोड़ दी—सीधा मुंह में मुंह डाल दिया, जीभ पर लगे चॉकलेट को चाटने लगा। 'उफ्फ... मीठा... तेरी लार... चिकना...' जीभ घुमाई, चूसने लगा—चॉकलेट और लार का मिक्स

सोभा सिहर गई, हाथ से धकेलने लगी—"पापा... क्या... रुको..." लेकिन कमजोर सा धक्का, मन में सिहरन। राजन नहीं माना, नशे में—जीभ चूसने लगा, लार से चिपचिपी, चॉकलेट के टुकड़े मुंह में आ गए 'आह... बेटा... तेरी जीभ... कितनी नरम... चूसूंगा...' सोभा की सांसें तेज हो गयी , धकेलती लेकिन आंखें बंद—'पापा... ये... गलत... लेकिन... ' कमरा गर्म हो गया, हवा में वो मीठी गंध...

राजन की सांसें अब जानवरों जैसी हो चुकी थीं, गंजे का नशा और सोभा की चूत का वो गर्म, गीला घेरा—सब मिलकर उसे पागल बना रहा था। चाटते-चाटते बस... सहन न हुआ। वो पीछे हटा थोड़ा, पैंट की डोर खींची—बूढ़ा लेकिन मोटा, काला लंड बाहर उछला, नसें फूलीं, सुपाड़ा चमकता हुआ। 'उफ्फ... सोभा... तेरी चूत... ले ले...' बिना सोचे, सीधा पीछे से पकड़ा सोभा का कमर, लंड का सिरा चूत के होंठों पर रगड़ा—गीला था, फिसलन भरा। एक झटके में धकेल दिया, पूरा अंदर... कसाव इतना कि राजन की सिसकारी निकल गई।

सोभा चीखी—"आह्ह्ह... पापा... दर्द... इतना... बड़ा..." शरीर झटका, खाट पकड़ ली जोर से, आंखें नम हो गईं। लेकिन दर्द में वो गर्मी... चूत फटने जैसी, लेकिन सालों की प्यास भरी। राजन रुका नहीं, कमर पकड़कर दे-दाना-दन शॉट मारने लगा—हर धक्के में लंड पूरा अंदर-बाहर, चूत की दीवारें रगड़ रही। सोभा के काले दूध झूलने लगे, आगे-पीछे लहराते, निप्पल हवा काटते। "ले साली कुतिया... हरामी... ले बाप का लंड अपनी बूर में साली!" राजन की आवाज कर्कश, नशे में गालियां फूट पड़ीं—जैसे सालों दबी हुईं, अब बाहर। हर शॉट के साथ कमर का झटका, सोभा की गांड उसके पेट से टकराती, ताली की आवाज।

बाप के मुंह से वो गालियां... सोभा के कान जलने लगे, लेकिन नीचे आग लग गई—चूत और कस गई, लंड को चूसी जैसे। 'पापा... कुतिया कह रहे... लेकिन... कितना गर्म...' शर्म से गाल लाल, लेकिन कमर अपने आप हिलने लगी—पीछे से धक्का देती, गांड ऊपर उठाती। "आह... पापा... हाँ... मारो... गहरा..." सिसकियां अब आनंद की, पानी फिर टपकने लगा, लंड पर चिकना। राजन कराहा—"कितनी गर्म है साली छिनाल ... तेरी बूर... दूध निकाल रही मेरे लंड को... ले... ले..." धक्के तेज हो गए , पसीना टपक रहा दोनों का कमरा गंध से भरा—नशे, पसीने, चूत के रस का। सोभा का शरीर कांपने लगा, चरम पर—"पापा... आ... आ रहा... आह्ह्ह!" और फूट पड़ा, चूत सिकुड़ गई, पानी लंड पर बहा। राजन भी झटका खाया—"हां... रंडी... ले... मेरा रस..." गर्म धार अंदर फेंकी, पूरा भर दिया। दोनों हांफने लगे, राजन का वजन सोभा पर गिरा, लंड अभी भी अंदर..

कुछ पल वैसे ही रुके, सांसें धीमी हुईं—राजन ने धीरे से सोभा को सीधा किया, खाट पर लिटाया, चोली ठीक की हल्के से। चेहरा देखा—नम आंखें, लेकिन मुस्कान किनारों पर। "कैसा लगा बेटी... पापा का लण्ड..?" आवाज अब नरम, लेकिन नशे की मस्ती बची। सोभा मुस्कुराई, होंठ काटे—"पापा... दर्द... लेकिन... अच्छा... बहुत..." शब्द हल्के, शर्म से नीचे देख लिया, लेकिन आंखों में चमक—वो संतुष्टि वाली।

राजन का मन फिर भड़का—ये मुस्कान, ये शर्म... उफ्फ। हाथ उठाया, जोर से एक थप्पड़ गाल पर मारा—चटाक की आवाज। सोभा सिहर गई, गाल लाल, लेकिन आंखें चमक उठीं—मस्त हो गई, शरीर में वो रफ वाली सिहरन। भावनाओं पर काबू रखा उसने लेकिन आवाज कांपी—"मारो नहीं पापा... दर्द होता है ." लेकिन लहजे में वो कामुकता... जैसे बोल रही हो, और मारो, गहरा। राजन हंसा कर्कश से—"ऐसे तो सावित्री दिखती है मादरचोद कुतिया... लेकिन कितनी गर्म है अंदर से... अब तुझे रोज अपनी रंडी बनाकर चोदूंगा, रखैल बना दूंगा..." दो और थप्पड़ मारे, गालों पर—जोर से, लेकिन प्यार भरे। सोभा सिसकी, "आह... पापा..." शर्म से चेहरा छिपा लिया, लेकिन कमर हल्की सी हिली—नीचे फिर गीलापन।

राजन उठा, लंड अभी भी आधा खड़ा, पैंट ठीक की। "चुप... अब आराम कर।" बाहर चला गया, बरामदे में—हवा लेने को। मन में हलचल—'ये क्या हो गया... बेटी को... लेकिन... कितना मजा आया ..' सोभा लेटी रही, गाल सहलाती, मुस्कुराती—शर्म और खुशी से...
 

mentalslut

Member
196
695
94
स्कूल की आखिरी घंटी बजते ही क्लासरूम खाली हो गया था, लेकिन रवि और उसके साइंस टीचर, मिस्टर वर्मा—एक 45 साल का मोटा-तगड़ा आदमी, चश्मा लगाए, सफेद शर्ट पर दाग—अभी भी अंदर ही थे। मेज पर एक पुरानी बॉटल पड़ी थी, देसी दारू की, दो गिलास भरे हुए। नशा चढ़ रहा था, हवा में वो तीखी बू घुली हुई, क्लासबोर्ड पर चॉक की धूल। रवि ने घूंट भरा, सिर झटका—"सर... ये तो कमाल की है। घर से चुरा लाया।" वर्मा हंसा,, गिलास टकराया—"हां बेटा... स्कूल में दारू... मजा दोगुना हो गया तू तो बड़ा शौकीन लगता है। गर्लफ्रेंड है तेरी? कोई कॉलेज वाली?"

रवि मुस्कुराया, आंखें चमक उठीं—नशे में वो शरारत भरी। "सर... गर्लफ्रेंड नहीं, लेकिन एक आंटी पटा ली है। रोज चोदता हूं, उफ्फ... कितनी रसीली है।" वर्मा की भौंहें उठीं, उत्सुकता से झुका—"अरे... डिटेल में बता। कौन? कितनी उम्र? कैसी चुदाई की ?" रवि ने मोबाइल निकाला, गैलरी खोली—एक फोटो, रमा की, साड़ी में मुस्कुराती, लेकिन आंखों में वो कामुक चमक। "देखिए सर... ये है। रोज घर आती, चूत चाटता हूं, थप्पड़ मारता हूं... " वर्मा ने फोटो बढ़ाकर देखा, सांस अटक गई—रमा की चूचियां उभरीं, कमर की लहर। लंड सरक गया पैंट में, कड़ा। 'उफ्फ... ये तो... कितनी हॉट है ?' "बेटा... ये तो कमाल है। चोदने देगी मुझे? मैं... पैसे दूंगा। बोल, सेट कर।" रवि हंसा, लेकिन झिझका—"सर... सोचता हूं। वो तो मेरी... प्राइवेट है।" लेकिन नशे में मन डोल गया

साइड में जाकर फोन मिलाया, रमा को—"मां... सुन... मेरा साइंस टीचर... तुझे देखा फोटो मे । चोदना चाहता है। पैसे देगा।" रमा की सांस रुक गयी फोन पर—"क्या बकवास कर रहा रवि? तेरी मां की ... बदनामी होगी। ना!" लेकिन आवाज में हल्की सी कांप, वो पुरानी प्यास जागी। रवि ने जोर दिया—"मां... मजा आएगा। बस एक बार।" रमा चुप रही पल भर, फिर सिसकी जैसी—"ठीक... मान गई। उसे, शक न हो। पैसे ले लेना। और मेरे सामने मम्मी मत बोलना... मैं आ रही हूं थोड़ी देर में।" रवि का चेहरा खिला—"हां मम्मी .. आ जाओ।" फोन काटा, वापस आया—"सर... मान गई। आ रही है। लेकिन रंडी बोलना, पैसे देना।"

वर्मा उछल पड़ा, गिलास भरा—"वाह बेटा... तू कमाल है। आ... पेग बना।" दोनों हंसे, नशे में चढ़ते हुए। इधर रमा ने आईना देखा—दिल धक-धक। 'रवि... अपने टीचर के साथ उफ्फ्फ... लेकिन... उत्तेजना चरम पर चले जाना ...' सेक्सी ब्लाउज पहना, कसा हुआ, चूचियां उभरीं; पेटीकोट नीचे, काली साड़ी लिपटी, हल्का मेकअप—काजल आंखों पर, लाल लिपस्टिक होंठों पर चमकती। उमेश को बोली—"सुनिए जी... बाजार जा रही, सब्जी लूंगी।" बाहर निकली, साड़ी की लहर, गांड हल्की सी मतकाती।

स्कूल पहुंची, गेट से फोन किया —"रवि... कहां है?" रवि दौड़ा आया, मां का रूप देखा—लाल लिप्स, साड़ी में वो गोलाई... उफ्फ। वही गेट पर हाथ बढ़ाया, चूचियां पकड़ीं ब्लाउज के ऊपर से—मसलने लगा जोर से निप्पल पर अंगूठा मसल दिया "उफ्फ्फ मम्मी.. कितनी हॉट लग रही हो ... सर इंतजार कर रहा।" रमा सिहरी, लेकिन मुस्कुराई—"धीरे... अंदर ले चल।" रवि ने हाथ पकड़ा, क्लासरूम में ले गया। वर्मा ने देखा—आंखें फैल गईं—"रवि... ये... कितनी सेक्सी है। बाजारू रंडी लग रही... उफ्फ इसकी चूचियां... कमर..." पागलों की तरह झपटा, रमा को दीवार से सटा लिया, मुंह में मुंह—जोरदार किस करने लगा जानवरो की तरह जीभ अंदर, चूसने लगा। दारू की बू, तीखा स्वाद—रमा को और उत्तेजित कर दिया, सिहरन चूत में। "आह... सर... धीरे..." लेकिन हाथ वर्मा के बालों में, जीभ लिपटा दी। वर्मा के हाथ चूचियों पर—मसलने लगा, ब्लाउज दबाया।

इधर उमेश को शक हुआ—रमा की साड़ी, वो जल्दबाजी मे जाना । 'कहां बाजार...?' चुपके से पीछा किया, साइकिल पर। स्कूल पहुंचा—अपना पुराना स्कूल, दिल धक-धक हो गया । गेट से झांका, क्लासरूम की खिड़की से... और बस, सदमा लगा उसको । वर्मा—उसका सहकर्मी—रमा को किस कर रहा था चूचियां मसल रहा था जोर-जोर से, साड़ी के ऊपर से। और रवि... पीछे से साड़ी उठाकर, रमा की गांड पर मुंह सटा, चाट रहा था —जीभ दरार में, उमा की सिसकारियां.. उफ्फ्फ । 'ये... रमा... बेटे के साथ... टीचर के साथ...?' सदमा लगा उसे , लेकिन नीचे लंड सरक गया—ईर्ष्या की आग, लेकिन मजे की लहर। 'उफ्फ... मेरी रमा... चूचियां लाल हो गईं... रवि चाट रहा... मैं... देखता रहूं हमेशा तुझे ऐसे ही?' हाथ पैंट में सरका लिया, सहलाने लगा चुपके से, आंखें न हटें।

उमेश की सांसें अब रुक-रुक कर आ रही थीं, खिड़की की जाली से चिपका चेहरा, पसीना गालों पर लुढ़कता। अंदर का वो नजारा उसे पागल कर रहा था ... रमा की साड़ी आधी ऊपर, वर्मा का मुंह उसके होंठों पर चिपका, दारू की बू बाहर तक आ रही थी । वर्मा की मोटी उंगलियां ब्लाउज पर दबा रही, चूचियां लाल हो रही थी जैसे फूल कुचल दिए जाएं। और रवि... बेटा, पीछे से साड़ी उठाए, रमा की गांड पर जीभ फेर रहा था —दरार में घुसाकर चाट रहा था सिसकारियां दबाईं लेकिन जोर से। 'ये... मेरी पत्नी... बेटे के टीचर के साथ... और रवि... चाट रहा अपनी मां को?' नीचे का दर्द... वो तो उत्तेजना बन गया। लंड पैंट में फड़क रहा, हाथ अपने आप सरक गया—सहलाने लगा धीरे, जैसे खुद को सजा दे रहा हो लेकिन रुक न पा रहा। 'रमा... तेरी चूत... गीली हो गई होगी... वर्मा को... और रवि की जीभ... उफ्फ, क्या मजा आ रहा होगा तुझे।' आंखें न हटें, सांस तेज—

अंदर, वर्मा की किस अब गहरी हो चुकी थी—जीभ रमा के मुंह में घुसाई, चूस रहा था वो लाल लिपस्टिक को, दारू का स्वाद मिलाकर। "रंडी... तेरी जीभ... कितनी चिकनी... उफ्फ, चूचियां... मसल दूंगा फाड़ के..." वर्मा की आवाज भारी, नशे से कांपती, हाथ ब्लाउज के हुक खोलने लगे। रमा सिहर गई, लेकिन पीछे हटी नहीं—बल्कि कमर हिलाई, वर्मा के लंड पर रगड़ा पेटीकोट से। "आह सर... धीरे... रवि देख रहा... लेकिन... तेरी दारू... गर्म कर रही..." सिसकी निकली, लेकिन आंखों में चमक—वो प्यास वाली, जो रवि की कॉल से जागी थी। रवि पीछे से उठा, गांड चाटते हुए मुस्कुराया—"आंटी... सर को मजा दो... मैं पीछे से... तेरी गांड... चाटता रहूंगा।" जीभ फिर सटा ली, चूत के पास रगड़ी—गीलापन महसूस हुआ उसे , चाटा जोर से। रमा का शरीर कांप गया, चूचियां वर्मा के हाथों में दब रही, नीचे रवि की जीभ...

वर्मा ने ब्लाउज खोला, चूचियां बाहर—काले, भरे हुए, निप्पल कड़े। मुंह झुकाया, एक को चूसा जोर से, दांत गड़ा—"मम्म... रंडी... तेरे दूध... कितने मीठे... ले, काटूंगा।" रमा की सिसकी ऊंची—"आह... सर... दर्द...हो... रहा...लेकिन... चूसो... रवि... नीचे... गहरा चाट..." रवि ने पेटीकोट ऊपर सरकाया, चूत पर मुंह सटा—जीभ अंदर, चूसा पानी को। कमरा सिसकारियों से भर गया, दारू के गिलास भूल गए।

बाहर उमेश का हाथ तेज हो गया—सहलाते हुए सिसकी दबाई, 'रमा... तू... रंडी बनी... लेकिन... मैं... देखकर... उफ्फ...' वीर्य फूटने को था, लेकिन रुका—'अंदर जाऊं? या... इंतजार करूं?' तभी अंदर से रमा की चीख सी आई, वर्मा का लंड बाहर निकला...

वर्मा की सांसें अब जानवरों जैसी हो चुकी थीं, नशे और रमा की गर्माहट ने उसे बेकाबू कर दिया था। वो पीछे हटा थोड़ा, पैंट की डोर खींची—मोटा लंड बाहर उछला, काला, नसें फूलीं, सुपाड़ा गीलेपन से चमकता। "रंडी... तेरी चूत... ले ले..." बिना रुके, रमा को खींच लिया, क्लास की मेज के सहारे झुका दिया—कुत्तिया बना दिया, साड़ी-पेटीकोट ऊपर सरका। रमा की गांड नंगी हो गयी गोल, सफेद—बीच में चूत गीली, रवि की जीभ से चमकती। वर्मा ने कमर पकड़ी, लंड का सिरा रगड़ा चूत पर—फिसला, लेकिन एक झटके में धकेल दिया, पूरा अंदर। रमा की सिसकी निकल गई—"आह्ह... सर... इतना... मोटा... फट जाएगी..." दर्द में कांप गई, लेकिन कमर हल्की सी ऊपर उठाई, जैसे बुला रही हो।

वर्मा रुका नहीं, कमर पकड़कर दे-दाना-दन शॉट मारने लगा—हर धक्के में लंड गहरा अंदर-बाहर, चूत की दीवारें रगड़ रही। रमा के बड़े-बड़े दूध झूलने लगे, आगे-पीछे लहराते, निप्पल हवा काटते—जैसे कोई तूफान में लहरें। "साली चुदक्कड़ छिनाल .. कितनी टाइट है तेरी चूत... रवि कहां से लाया इस रांड को... इतना मजा पहली बार नहीं आया!" वर्मा की आवाज भारी, पसीने से तर, हर शॉट के साथ गाली फूट रही—नशे की मस्ती में, लेकिन भूखी। रवि पास खड़ा, मुस्कुराता—"सर... मेरी आंटी है... रोज चोदता हूं, लेकिन आज... तू तो कमाल कर रहा।" रमा की सिसकारियां तेज, दूध हिलते हुए—"आह... सर... गहरा... मारो... रवि... देख... तेरी आंटी... चुद रही..." चूत कस रही लंड को, पानी टपक रहा जांघों पर।

वर्मा का शरीर कांपने लगा, वीर्य फूटने को—"उफ्फ... रंडी... आने वाला... ले..." वो रमा को नीचे बिठा दिया, घुटनों पर—लंड बाहर निकाला, हाथ से सहलाया तेज। गाढ़ा रस फूट गया चेहरे पर—होंठों पर, आंखों के पास, फिर दूधों पर बहा, चूचियां चिपचिपी। रमा सिहर गई, लेकिन मुस्कुराई—हाथ उठाया और चेहरे पर मला रस को, जीभ निकालकर चाटा हल्का—"मम्म... सर का... गर्म. पानी .." दूधों पर भी रगड़ा, निप्पल पर चमकता छोड़ दिया। वर्मा हांफा, पैंट ठीक की—"कमाल की रंडी है तू . ले... 5000..." नोट निकाले, रमा के हाथ में ठूंस दिए। "फिर आना... अगली क्लास में।" मुस्कुराया, बाहर चला गया, कदम लड़खड़ाते।

उमेश बाहर, खिड़की से सब देख रहा था —वीर्य उसके पैंट में चिपक चुका था, हाथ गीला। 'रमा... तू... रंडी बनी... लेकिन... कितना गर्म...' सदमा था, लेकिन मजा... वो गंदा, छिपा मजा। वो भागा, साइकिल पर कूदकर—घर की तरफ, मन मे उथल-पुथल मची थी. एक स्कूल टीचर ने अपने हवस मे अपने परिवार को कैसा बना दिया था

अंदर, वर्मा के जाते ही रमा उठी, साड़ी ठीक की हल्के से—चेहरे पर रस की चमक अभी बची, दूधों पर चिपका। वो नोट रवि को बढ़ाए, मुस्कुराती हुई लेकिन आंखें नम—"ले मेरे दलले बेटे... अपनी रंडी मां की पहली कमाई।" आवाज में शरारत, लेकिन वो मां वाली गर्माहट— रवि हंसा, नोट पकड़े, आंखों में चमक—"जब मां इतनी बड़ी छिनाल हो, तो दल्ला बनने में कैसी शर्म? तू तो कमाल है मम्मी ... सर को मज़ा दिया।" हाथ बढ़ा कर रमा के गाल पर रस मला—"ये... सर का निशान... घर ले चल कुतिया ।" रमा सिहरी, लेकिन हंस पड़ी—"हां... ले चल... लेकिन कपड़े ठीक कर।" दोनों ने साड़ी-शर्ट संभाली, लेकिन रमा के शरीर पर वर्मा का रस अभी चिपका था—चूचियां चमकतीं, चेहरा गीला। बाहर निकले, स्कूल के गेट से—हाथ में हाथ डाले , लेकिन आंखों में वो नशा बचा हुआ था । गली में चलते हुए रमा ने फुसफुसाया—"घर जाकर... ये रस... साफ करना पड़ेगा चाट चाट कर ?" रवि की सांस तेज हो गयी —"मम्मी साली कुतिया मादरचोद .. घर चल कुतिया की बच्ची .."
 

mentalslut

Member
196
695
94
घर की देहरी पार करते ही सब कुछ वैसा ही लग रहा था जैसे कुछ हुआ ही न हो—रमा की साड़ी पर वर्मा का रस सूख चुका था, । खाने की मेज पर चारों बैठे, दाल-चावल की थाली के साथ लेकिन आंखों में वो छिपी हुई शरारत। रमा ने रवि को देखा, इशारे से—कनखी से, जैसे कह रही हो "क्या करोगे आज ?" रवि मुस्कुराया, कटोरी में चावल डालते हुए, खुश्बू उमेश को देखकर नजरें मिलाईं—पिता की आंखों में कुछ अजीब सा,। ख़ुशबू ने मां को देखा, साड़ी के दाग हल्के से नजर आए, मन में सवाल उभरा लेकिन मुस्कुरा दी । "मां... आज खाना अच्छा बना," रमा हंसी, "हां बेटी... तेरे पापा को पसंद आया न?" उमेश ने सिर हिलाया

उमेश ने ख़ुशबू को देखा, आवाज हल्की कर के बोला —"बेटा... ऊपर छत पर चली जा। हवा ले लेंगी।" ख़ुशबू की आंखें चमक उठीं, सिर हिलाया—"हां पापा... चलती हूं।" सीढ़ियां चढ़ते हुए कमर हल्की सी लहराई, स्कर्ट मे । कुछ देर बाद उमेश उठा, रमा को देखा—"मैं भी छत पर तहल कर आता हूं... पेट भारी है।" रमा ने मुस्कुराया, लेकिन आंखों में चमक आ गयी —"हां... जाओ... ताजी हवा लगेगी।" उमेश के कदम ऊपर जाते ही रमा ने रवि को देखा, फुसफुसाकर बोली —"चला गया अपनी रंडी बेटी की गांड चाटने... तू... किचन में आ।" आवाज में शरारत थी लेकिन नीचे की सिहरन—वर्मा का रस चेहरे पर सूखा,। रवि मुस्कुराया, होंठ चाटे—"हाँ मम्मी... इंतजार कर रही है न तू?" रमा किचन में घुस गई, सिंक पर बर्तन रखे, लेकिन मन भटक रहा—रवि का इंतजार करने लगी ।

छत पर हवा ठंडी थी, चांदनी बिखरी हुई थी , लेकिन उमेश का लण्ड बिल्कुल गर्म था । ख़ुशबू को पीछे से पकड़ा, बहनों में मसल लिया—सीने से दबाया, सांसें तेज हो गयी । "पहले मेरा लंड चूस मादरचोद..." आवाज गुस्से मे थी —दिन भर का तनाव, वो स्कूल वाला नजारा मन में घूम रहा। ख़ुशबू हंसी, वो शरारती हंसी—"पापा... इतने गर्म हो ... आज क्या हुआ?" लेकिन घुटनों पर बैठ गई, स्कर्ट ऊपर सरकाई, उमेश का लंड बाहर निकाला—मोटा, कड़ा। मुंह खोला, पूरा अंदर ले लिया—जीभ घुमाई, चूसी जोर से, लार टपकने लगी उसके मुँह से..उमेश कराहा, बाल पकड़े—"हां... साली... गले तक... चूस..." ख़ुशबू की आंखें ऊपर हो गयी..पापा को देखती हुई —मुंह भरा, लेकिन मुस्कान के साथ । कुछ देर चूसने के बाद उमेश ने खींचा, खड़ा किया—"कुत्तिया बन... गांड ऊपर कर मादरचोद।" ख़ुशबू झुकी, दीवार पकड़ी—गांड ऊपर करके स्कर्ट सरकाई। उमेश ने थप्पड़ मारा—चटाक, तीन-चार जोरदार, गांड लाल हो गई। ख़ुशबू सिसकी—"आह... पापा... क्या हुआ... क्यों इतने गर्म हो रहे हो?" आवाज कांपी, दर्द से लेकिन सिहरन—गांड जल रही थी , लेकिन चूत गीली।

उमेश कुछ बोला नहीं, बस लंड पकड़ा, चूत पर रगड़ा—गीला था, फिसला। एक झटके में घुसा दिया, पूरा अंदर—"उफ्फ... तेरी चूत... कस रही है कुतिया ..." दे-दाना-दन शॉट मारने लगा, कमर का झटका जोरदार—हर धक्के में ख़ुशबू का शरीर लड़खड़ाया, सिसकारियां ऊंची। "पापा... आह... गहरा... फाड़ दो..." उमेश तेज चोदने लगा —मन में रमा का नजारा, लेकिन आग और भड़क गयी । आखिर फूट पड़ा, रस अंदर भर दिया—हांफते हुए रुका। कुछ देर बाद लंड बाहर निकाला, ख़ुशबू की तरफ किया—पेशाब की धार सीधे खुश्बू के पुरे शरीर पर . गर्म, पीली, उसके शरीर पर बहने लगी—चूचियां, पेट, जांघें गीली। ख़ुशबू का मुंह खुला रह गया—"पापा... ये...?" क्या हो गया आपको लेकिन मुस्कान किनारों पर फैली—'गंदा... लेकिन... पापा का...' वो हंस पड़ी हल्के से, गीले हाथ से सहलाई।

इधर किचन में रमा बर्तन धो रही थी, पानी की धार चल रही थी रवि घुसा पीछे से, चुपके—गर्दन पर जीभ सटा दी, चाटा धीरे, पसीना चखा। "मम्मी ... तेरी गर्दन... नमकीन.लग रही .." लेकिन जैसे ही चेहरा चाटा, वर्मा का रस का स्वाद आया—गाढ़ा, पुरुषों वाला। रवि का जोश भड़क गया, आंखें लाल—"उफ्फ... ये... सर का? जीभ बाहर, पूरा चेहरा चाटने लगा—होंठ, गाल, माथा—जोर से, कुत्ते की तरह। रमा सिहरी, सिंक पकड़ा—"आह रवि... धीरे... " लेकिन कमर हिलाई, पीछे दबाई। "बेटा... गांड में खुजली हो रही... चाट ना..." आवाज फुसफुसाई—बर्तन धोते हुए, लेकिन गांड ऊपर कर ली । रवि हंसा, घुटनों पर—"हां मम्मी .. .." पेटीकोट में मुंह घुसा दिया, साड़ी ऊपर कर के —गांड नंगी की जीभ सटा ली। चाटने लगा कत्तों की तरह—दरार में, चूत तक, जोर-जोर से, लाल कर दिया। रमा की सिसकी सिंक की धुन में घुली—"आह... बेटा... अंदर तक ... चाट... खुजली... मिटा दे..." बर्तन धूल गई, हाथ गीले, रवि की जीभ तेज हो गयी , चाट-चाट कर साफ कर'

सुबह की धूप अभी हल्की-हल्की थी, गांव की मिट्टी पर ओस की चमक आ चुकी थी..जब राजन की आंखें खुलीं। रात की नींद भारी थी, लेकिन मन में वो तृप्ति... सोभा का चेहरा, उसके दूधों की गर्माहट। वो उठा, कमरे से बाहर निकला—बरामदे में हवा ठंडी लगी, लेकिन आंगन की तरफ नजर गई तो सांस अटक गई। सोभा वहां नहा रही थी, पुराने हैंडपंप के नीचे—पानी की धार उसके भिगे बालों से लुढ़क रही, चोली-पेटीकोट भीगी हुई चिपक गई थी शरीर से। चूचियां उभरीं, काली-काली, निप्पल पानी की बूंदों से चमकते—वो हाथों से मसल रही थी हल्के से, साबुन लगाते हुए, लेकिन वो हलचल... जैसे जानबूझकर कर रही हो । राजन का गला सूख गया , लंड सरकने लगा पैंट में—'उफ्फ... बेटी... सुबह-सुबह... ये नजारा...' वो खाट पर बैठ गया, चुपके से पैंट में हाथ डाला, सहलाने लगा—धीरे-धीरे

"क्यों रे कुतिया... कैसे अपने दूध मसल रही साली..." आवाज गुस्से जैसे निकली, नशे की तरह भूखी, सोभा मुड़ी, पानी की धार रुक गई—चेहरा भिगा, लेकिन मुस्कान किनारों पर, शरारती सा । वो कुछ बोली नहीं, बस आंखों से देखा—वो नजरें जो कह रही थीं, 'पापा... जानती हूं तू देख रहा...' पंप बंद किया, भिगी चोली से पानी टपकता रहा, और सीधी चली आई—कदमों में हल्की लहर के साथ गांड मतकाती। राजन के पैरों के पास बैठ गई, घुटनों पर—आंखें ऊपर की पिता की आंखों में डूबीं, वो गर्माहट वाली। हाथ बढ़ाया, पैंट की डोर खींची—लंड बाहर आया, कड़ा, मोटा। बिना झिझके मुंह में ले लिया, जीभ घुमाई—चूसी धीरे धीरे लेकिन गहराई से, लार टपकने लगी मुँह से राजन की सिसकारी निकली—"आह... सोभा... तेरी जीभ... कितनी... गर्म...है रे " हाथ उसके भिगे बालों में, दबाया हल्का—गरम हो गया, नसें फूल गईं। 'बेटी... खुद से... उफ्फ, ये तो...'

इस हरकत ने राजन को पागल बना दिया—नशे जैसा जोश, लेकिन प्यार भरा। वो उठा, सोभा को खींच लिया—भिगी चोली फाड़ दी, दूध बाहर, पानी की बूंदें लुढ़कतीं। "कुत्तिया बन... रंडियों की तरह..." आवाज भारी, लेकिन स्नेह से भरी। सोभा झुकी, आंगन की मिट्टी पर घुटनों पर—गांड ऊपर, भिगी, चमकती हुई । राजन ने कमर पकड़ी, लंड चूत पर रगड़ा—गीला था पानी से, फिसला। एक झटके में घुसा दिया, ताबड़तोड़ शॉट मारने लगा—दे-दाना-दन, हर धक्के में सोभा का शरीर लड़खड़ाया, सिसकारियां आंगन में गूंजीं। "आह... पापा... फाड़... दो... जोर से चोदो .." सोभा की आवाज टूटती, लेकिन कमर पीछे धकेल रही—पानी और रस मिलकर चिकना। राजन के हाथ दूधों पर—मसलते हुए, थप्पड़ मारते गांड पर—"साली... तेरी चूत... कस रही... ले बाप का..."आंगन गीला, लेकिन आग गर्म। आखिर फूट पड़ा, रस अंदर भर दिया—दोनों हांफे, राजन का वजन सोभा पर गिरा। कुछ पल वैसे ही, सांसे मिली दोनों कि

ड्यूटी का समय हो गया, राजन उठा—कपड़े पहने, लेकिन आंखें सोभा पर ठहरीं। "जा रहा हूं बेटा... शाम को आऊंगा ." फुसफुसाया, गाल पर किस किया। सोभा लेटी रही, भिगी, तृप्त—लेकिन जैसे ही पिता का कदम बाहर गया, शर्म की लहर दौड़ी। 'पापा... उनकी वशीकरण... वो प्यार... लेकिन... ये गलत है ... फिर भी... कितना मज़ा आया ' चेहरा हाथों में छिपा लिया, मुस्कान लेकिन आंखें नम—वो मिश्रित भाव, प्यार और पाप का। आंगन में अकेली, भिगी चोली सहलाती, मन में राजन की याद... शाम का इंतजार।


सुबह की धूप अभी गांव की गलियों में फैल ही रही थी कि रमा ने रवि को रोक लिया—स्कूल बैग कंधे पर लटकाए, लेकिन मां की आंखों में वो चमक देखकर रवि ठिठक गया। "रवि... आज मत जा... घर पर रह।" रमा की आवाज नरम थी, लेकिन सांसों में वो हल्की सी कांप—रात का नशा बाकी, वर्मा का स्वाद चेहरे पर सूखा लेकिन मन में ताजा। रवि की भौंहें उठीं, लेकिन मुस्कान फैल गई—"मां... क्या बात है? स्कूल मिस करूंगा?" रमा ने सिर हिलाया, उमेश और ख़ुशबू के जाने का इंतजार किया—दरवाजा बंद होते ही किचन की तरफ बढ़ी, रवि पीछे-पीछे। घर खाली हो गया, सिर्फ उनकी सांसें गूंज रही।

किचन में घुसते ही रवि ने पूछा, आवाज फुसफुसाई लेकिन उत्सुक—"क्या बात है मां... मुझे क्यों रोका? कोई बात ?" रमा मुस्कुराई, वो शरारती मुस्कान जो कह रही थी 'बेटा... तू जानता है...' पसीने से लथपथ चेहरा सहलाया, आंखें रवि की आंखों में डूबीं—गर्म, लालच भरी। बगल उठाई, ब्लाउज के नीचे से वो नमकीन गंध... "देख... बेटा... आज तेरी मां की बगल... चाट ले ना..." रवि की सांस अटक गई, उफ्फ... वो गर्माहट, पसीने की चिकनाहट। सीधा झुका, मुंह बगल में दबा दिया—ब्लाउज के ऊपर से ही चाटा, जीभ घुमाई, नमकीन स्वाद चखा। "उफ्फ मां... तेरा गर्म-गर्म पसीना... कितना... स्वादिष्ट.. है ." जोश में हाथ बढ़ाया और , ब्लाउज फाड़ दिया—हुक उछल गए, चूचियां बाहर, पसीने से चमकती। रवि का मुंह उन पर, चाटने लगा—चूचियां, बगलें, जीभ जोर से, कुत्ते की तरह। रमा सिहर गई, सिंक पकड़ा—"आह... बेटा... धीरे... लेकिन... चाट... और..."

रवि रुका नहीं, पेटीकोट ऊपर सरकाया—मां की गांड नंगी किया , पसीने वाली, गोल। पहले नाक सटा ली, जोर से सुँघा—"मम्म... मां की गांड... पसीने की बू... उफ्फ..." फिर मुंह लगाया, जीभ दरार में—चाटने लगा कत्तों की तरह, जोर-जोर से, लाल कर दिया। रमा का शरीर कांप गया, कमर हिली—"उफ्फ कुत्ते... मादरचोद... क्या कर रहा है... आह... अंदर तक चाट..." सिसकी निकली, लेकिन आनंद की—पानी टपकने लगा जांघों पर। रवि ने खींचा, मां को नीचे झुका दिया—सिंक के सहारे। लंड बाहर निकाला, मोटा, कड़ा—"ले साली कुतिया...छिनाल .. चूस..." सीधा मुंह में धकेल दिया। रमा की आंखें ऊपर कर के बेटे को देखती—किसी कुतिया की तरह चूसी, जीभ घुमाई, गले तक। "मम्म... बेटा... तेरा... गर्म...हो गया

रवि कराहा, बाल पकड़े—"हां मां... चूस... रंडी की तरह..." कुछ देर बाद खींचा, मां को कुत्तिया बना दिया—किचन की मिट्टी पर, गांड ऊपर। लंड चूत पर रगड़ा, घुसा दिया—ताबड़तोड़ शॉट, जब तक रमा थक न गई, सिसकारियां ऊंची हो गयी "आह... बेटा... फाड़... दे... चूत..." आखिर रवि झड़ गया रस मुंह में फेंका—रमा ने गटक लिया, हांफती मुस्कुराई—"बेटा... तेरा... मीठा...है दोनों लेटे रहे पल भर, पसीने में तर।

इधर स्कूल में ख़ुशबू प्रोफेसर शर्मा के केबिन में थी, दरवाजा बंद, लेकिन हवा गर्म। शर्मा की गोद में बैठी, स्कर्ट ऊपर, उसके हाथ चूचियों पर—मसल रहा ब्लाउज के ऊपर से। "प्रोफेसर... आह... दबा रहे हो... कितना जोर से..." ख़ुशबू फुसफुसाई, लेकिन कमर हिलाई, चूत उसके लंड पर रगड़ती। शर्मा सिसका—"रंडी... तेरी चूचियां... उफ्फ, कितनी कड़ी हो रही ... बोल, कल रात क्या किया? पापा ने चोदा ना?" ख़ुशबू हंसी, होंठ काटे—"हां सर... पापा ने... गांड मारी... लेकिन आज... तेरी बारी?" शर्मा का हाथ नीचे सरका, उंगली चूत में—"ले... गीली हो गई... साली..."

उधर उमेश और प्रिंसिपल साहब क्लास के बाद स्टाफरूम में थे, चाय के कप हाथ में, लेकिन बातें गर्म। प्रिंसिपल ने मुस्कुराते हुए पूछा—"उमेश... वो रंडी कौन थी? कल देखा... तेरी बेटी जैसी लगी।" उमेश शर्मा गया, चाय का घूंट लिया—गाल लाल, लेकिन नजरें नीचे। "सर... वो... मेरी बेटी खुशबू ही है।" प्रिंसिपल का मुंह खुला का खुला रह गया, चाय का कप रख दिया—"साले... बेटी को खुद भी चोदता है, और दूसरे से भी चुदवाता है? उफ्फ... तेरी औलाद... कमाल की कुतिया साली। रंडी..." हंसी देखने वाली , लेकिन आंखों में चमक—"फिर से कुछ प्रोग्राम बनाएं... तेरी बेटी है लेकिन... कितनी सेक्सी... चूत फाड़ दूंगा।" उमेश ने सिर हिलाया, शर्म लेकिन उत्तेजना से —"सर... देखिए... लेकिन हां... वो राज़ रहेगा।"
 

rajeev13

Active Member
1,702
2,203
159
आपकी कहानी और संवाद तो वाक़ई बहुत अच्छे हैं, लेकिन लेखन में वो भाव या जुड़ाव महसूस नहीं हो रहा मतलब मैं पूरी तरह connect नहीं कर पा रहा हूँ।
 
Last edited:

mentalslut

Member
196
695
94
शाम की धूप अब लालिमा लिए मिट रही थी, गांव की गलियां सुनसान, जब राजन और उसका पुराना दोस्त उमाकांत नीम के पेड़ के नीचे बैठे थे—गंजे की बीड़ी का धुआं हवा में घुला, सिर भारी लेकिन मन हल्का। राजन ने लंबा कश लिया, आंखें सिकोड़ी—"यार... ये गंजा... सालों का साथीहैं अपना ।" उमाकांत, 50 का बूढ़ा लेकिन हृष्ट-पुष्ट, हंसा —"हां रे... तू न हो तो दुनिया सूनी। लेकिन भूख लग रही ... कुछ खाने को मिले तो मज़ा आ जाए ।" राजन की आंखें चमक उठीं, नशे में वो भूख और गर्म—"चल... घर चल। सोभा बिटिया खाना बढ़िया बनाती है।" उमाकांत ने सिर हिलाया, मुस्कुराया—"हां... तेरी बिटिया... के हाथों में जादू हैं चल।"

घर पहुंचे, छोटे से आंगन में बैठे बैठे , बातें शुरू हुई —पुरानी यादें, गांव की अफवाहें। तभी सोभा चाय का ट्रे लिए आई—साड़ी साधारण सी पहनी थी लेकिन कमर की लहर, चूचियां उभरीं ब्लाउज में। राजन की नजरें ठहर गईं, गंजे का नशा चढ़ रहा था धीरे धीरे —'उफ्फ... ये दूध... कितने भरे भरे हैं साली के ... ..' लंड सरकने लगा उसका सांस भारी होने लगी । सोभा ने चाय रखी, शरमाई सी मुस्कान के साथ —"चाय पियो चाचा... पापा... गर्म है।" राजन की आंखें न हटीं, उमाकांत ने नोटिस किया—सोभा के जाते ही पूछा, फुसफुसाकर—"क्या रे... तेरी नजरें... बिटिया पर? कुछ तो बात हैं ।" राजन झेंप गया, चाय का घूंट लिया—"कुछ नहीं यार... नशा है।" लेकिन उमाकांत ने जोर दिया, "बोल... मैं हूं ना।" आखिर राजन हार गया, आवाज दबाई—"यार... रोज चोदता हूं... ... बिटिया... को मेरी रंडी बन गई हैं ।" उमाकांत की सांस अटक गई, लंड तन गया पैंट में—'उफ्फ... सोभा...?' "मेरा भी कुछ जुगाड़ कर यार... तेरी दोस्ती निभा।" राजन मना करता रहा—"नहीं... वो न मानेगी... शरमाएगी।" लेकिन उमाकांत के जोर पर राजन हार गया—"ठीक... चल, किचन में देखता हूं। तू चुपके से आ।"

किचन में घुसते ही राजन ने सोभा को पीछे से पकड़ा—हाथ गांड पर, मसलने लगा जोर से, नशे में भूखा—"बहुत मतक रही साली तू... ले... मसल दूं?" सोभा सिहर गई, बर्तन रखा, दिमाग में डर आया —"छोड़ो पापा... चाचा देख लेंगे...।" आवाज कांपी उसकी , लेकिन कमर हल्की सी दबाई। राजन हंसा, गर्दन पर सांस फेरा—"उसे सब मालूम चल गया है .. वो भी तुझे चोदना चाहता है... ।" सोभा का चेहरा सख्त हो गया , गुस्सा चढ़ा—"क्या... पापा... ये क्या बकवास कर रहे ? चाचा को...?" लेकिन तभी दरवाजा खुला, उमाकांत अंदर आया —चुपके से आया था, लेकिन अब खुलकर सामने आ गया । सोभा को खींच लिया अपनी तरफ , सीने से दबाया—"बेटा... मैं भी तेरे पापा जैसा ही हूं... दोस्त हूं उनका... तू... इतनी रसीली..हैं.. मुझे भी कुछ दे दे ." आवाज भारी, लेकिन स्नेह भरी—हाथ कमर पर।

सोभा शरमा गई, गाल लाल हो गयी...आंखें नीचे हो गयी उसकी —'चाचा... पापा के दोस्त... ..' मन में सिहरन हुई , प्यास जागी उसकी । धीरे से झुकी, उमाकांत के होंठों पर होंठ रख दिए—किस शुरू हुआ दोनों का...जीभ लिपटा दी, हल्के से चूसी। उमाकांत सिसका—"उफ्फ बिटिया... तेरी जीभ... कितनी नरम. है .." राजन नीचे झुका, सोभा का पेटीकोट ऊपर किया —गांड भीगी हुई पसीने से, जीभ फेरने लगा , चाटने लगा—दरार में, चूत तक, जोर से। "आह... पापा... चाचा... दोनों..." सोभा पागल सी हो गई, दोहरे हमले से—ऊपर तक चाटो पापा नीचे उफ्फ्फ। शरीर कांपने लगा, चूत से पानी बह गया —उमाकांत के हाथ पर टपका, गर्म धार। उमाकांत कुटिल हंसी हंसा..हाथ चाटा अपना —"बेटी... कितना पानी छोड़ रही तू... उफ्फ..." सोभा हांफी, आंखें नम हो गयी —"चाचा... बहुत प्यासी हूं... मेरा पति... कुछ न कर पाता था... सूखा जीवन हो गया था ..." उमाकांत ने गाल सहलाया—"हम दोनों हैं ना..बेटा . रोज तुझे चोदेंगे...।"

सोभा मुस्कुराई, घुटनों पर बैठ गई—दोनों की पैंट खींची, लंड बाहर निकला —दोनों मोटे, काले। बारी-बारी मुंह में लेने लगी—पहले राजन का, चूसी जोर से, जीभ घुमाई; फिर उमाकांत का, गले तक। राजन कराहा—"उफ्फ साली कुतिया... कितना मस्त चूसती है..." उमाकांत ने टोका—"गाली न दे यार... अपनी प्यारी बिटिया है।" राजन हंसा—"साली गाली सुनके ज्यादा गर्म हो जाती है... बहुत बड़ी चुदक्कड़ है कुतिया..." उमाकांत मुस्कुराया और मुंह से थूक निकाला—गर्म, चिपचिपा—अपने लंड पर गिराया। सोभा ने देखा, आंखों में आग नज़र आ रही थी —दोनों की नजरों में डूबी, जोर-जोर से चूसी थूक से चिकने लंड को, लार मिलाकर। "मम्म... चाचा... पापा... दोनों का... कितना गर्म..है ." उमाकांत सिसक गया —"सच में साली कुतिया... बहुत गर्म है..." सोभा मुस्कुराई, होंठ चाटे—'हां... गर्म हूं...'

फिर दोनों ने बारी-बारी चोदा रंडी के जैसे —पहले राजन ने चूत में घुसाया, ताबड़तोड़ धक्के, नशे में पागल हुआ था जैसे ; फिर उमाकांत ने गांड में—मोटा लंड फाड़ता हुआ, सोभा की सिसकारियां किचन में गूंजने लगी "आह... चाचा... और अन्दर ... पापा... चूत.. फाड़... दो ... दोनों..." पानी बहता रहा, पसीना टपकता। नशे की वजह से थकान हो गयी —आखिर तीनों थककर लेट गए, आंगन की खाट पर—सांसें मिलतीं, सोभा बीच में, दोनों के हाथ उसके दूधों पर मसलता रहा...नींद आई बहुत ही गहरी तीनो को
 

mentalslut

Member
196
695
94
सुबह की धूप आंगन में फैल चुकी थी, लेकिन किचन का कोना अभी भी छाया में डूबा—वहां की हलचल किसी को न पताथी । सोभा का चाय का ट्रे गिरा ही था, लेकिन अब वो मेज पर लेटी हुई थी, साड़ी कमर तक लुढ़की हुई थी , चूत और गांड नंगी चमक रही थी । राजन का लंड अभी भी अंदर धंसा था, गर्म वीर्य की चिपचिपाहट महसूस हो रही—वो धीरे-धीरे धक्के मार रहा था, जैसे आखिरी सिप ले रहा हो। "उफ्फ बिटिया... तेरी चूत... कितनी टाइट हो गई है सुबह-सुबह। रात भर चोदी, फिर भी सिकुड़ रही है मेरे लंड पर।" सोभा की सांसें तेज हो गयी , आंखें बंद—"पापा... आह... बस... दर्द हो रहा है... लेकिन... मजा भी आ रहा और भी...जोर से चोदो ना... अंदर तक ..."

उमाकांत पीछे खड़ा था , अपना लंड सहलाता हुआ —सोभा की गांड देखकर आग लग रही थी । "राजन... दो यार... अब मेरी बारी। राजन मुस्कुराया, लंड बाहर निकाला—चूत से वीर्य टपकने लगा, सोभा सिहर गई। "लो चाचा... ले ले अपनी रंडी को..उमाकांत ने सोभा को पलटा, कुत्ते की तरह खड़ा किया—गांड ऊपर, हाथ मेज पर टिकाए। उंगली पहले डाली, गीला किया थूक से—"साली... कितनी गर्म है .. रात का नशा बाकी है क्या? चोदूंगी मैं तेरी गांड, देख साली ।" सोभा कांप गयी , लेकिन कमर झुकाई—"हां चाचा... चोदो... गांड फाड़ दो... पापा ने चूत भरी है, अब तुम्हारी बारी..."

राजन सामने आया, लंड सोभा के मुंह पर रगड़ा—गीला, चूत का रस चिपका। "चूस बिटिया... साफ कर दे पापा का लंड। तू... हमारी चुदक्कड़ बनी रहेगी आज।" सोभा मुंह खोली, चूसने लगी—गले तक लेती, लार टपकती। "मम्म... पापा... स्वाद... अपना ही... उफ्फ..." उमाकांत ने पीछे से घुसाया, गांड में—एक झटके में आधा अंदर। सोभा चीखी, लेकिन मुंह भरा था—"आह्ह्ह... चाचा... फट गई... धीरे..." उमाकांत हंसा, कमर पकड़कर धक्के मारने लगा—"धीरे क्या रंडी? तू तो रात को गिड़गिड़ा रही थी... 'और जोर से चाचा... गांड चोदो...' अब शरम कर रही ? ले... ले..." धप-धप की आवाज गूंजी, किचन में—सोभा का शरीर झटक रहा था , दूध लहरा रहे थे।

राजन ने बाल पकड़कर मुंह में धक्के दे रहा था —"हां कुतिया... दोनो छेद भरे हैं तेरे... सुबह का नाश्ता हो गया। चूस... और जोर से..." सोभा की आंखों से आंसू आ गए, लेकिन आनंद से—चूत से फिर पानी बहने लगा, उंगली खुद डाल ली। "पापा... चाचा... मैं... आ रही हूं... फाड़ दो... सब..." उमाकांत ने स्पीड बढ़ाई, गांड सिकुड़ने लगी—"उफ्फ... साली... गांड कस रही तेरी .. झड़ रहा हूं..." गर्म झड़ी अंदर, सोभा का क्लाइमैक्स फूटा—शरीर कांपकर रुक गया। राजन भी मुंह में झाड़ दिया—"पी ले बिटिया... सब... तेरी दवाई है ।"

तीनों हांफते गिरे—सोभा बीच में, राजन-उमाकांत दोनों तरफ। पसीना चिपचिपा, लेकिन मुस्कान फ़ैल गयी । "पापा... चाचा... ये... रोज हो?" सोभा फुसफुसाई, शरम से। राजन ने चुंबन लिया—"हां रंडी... तू हमारी है अब। गांव सो रहा है, लेकिन हम जागेंगे।" उमाकांत हंसा—"अगली बार... आंगन में... खुला खेलेंगे।"..
 

mentalslut

Member
196
695
94
सुबह की धूप आंगन में फैल चुकी थी, लेकिन किचन का कोना अभी भी छाया में डूबा था —वहां की हलचल किसी को न पता थी । सोभा का चाय का ट्रे गिरा ही था, लेकिन अब वो मेज पर लेटी हुई थी, साड़ी कमर तक लुढ़की हुई , चूत और गांड नंगी चमक रही थी । राजन का लंड अभी भी अंदर धंसा था, गर्म वीर्य की चिपचिपाहट महसूस हो रही थी —वो धीरे-धीरे धक्के मार रहा था, जैसे आखिरी सिप ले रहा हो। "उफ्फ बिटिया... तेरी चूत... कितनी टाइट हो गई सुबह-सुबह। रात भर चोदी, फिर भी सिकुड़ रही है मेरे लंड पर।" सोभा की सांसें तेज, आंखें बंद—"पापा... आह... बस... दर्द हो रहा है... लेकिन... मजा भी... चोदो ना... जोर से .."

उमाकांत पीछे खड़ा था , अपना लंड सहलाता—सोभा की गांड देखकर आग लग गयी उसको । "राजन... दो यार... अब मेरी बारी। राजन मुस्कुराया, लंड बाहर निकाला—चूत से वीर्य टपकने लगा, सोभा सिहर गई। "लो चाचा... ले ले अपनी रंडी को। लेकिन धीरे... वरना चीख मारेगी।" उमाकांत ने सोभा को पलटा, कुत्ते की तरह खड़ा किया—गांड ऊपर, हाथ मेज पर टिकाए। उंगली पहले डाली, गीला किया थूक से—"साली... कितनी गर्म... रात का नशा बाकी है क्या? चोदूंगी मैं तेरी गांड, देख।" सोभा कांप गयी लेकिन कमर झुकाई—"हां चाचा... चोदो... गांड फाड़ दो... पापा ने चूत भरी है, अब तुम्हारी बारी..."

राजन सामने आया, लंड सोभा के मुंह पर रगड़ा—गीला, चूत का रस चिपका। "चूस बिटिया... साफ कर दे पापा का लंड। तू... हमारी चुदक्कड़ बनी रहेगी आज।" सोभा मुंह खोली, चूसने लगी—गले तक लेती, लार टपकती। "मम्म... पापा... स्वाद... अपना ही... उफ्फ..." उमाकांत ने पीछे से घुसाया, गांड में—एक झटके में आधा अंदर चला गया । सोभा चीखी, लेकिन मुंह भरा था—"आह्ह्ह... चाचा... फट गई... धीरे..." उमाकांत हंसा, कमर पकड़कर धक्के मारने लगा—"धीरे क्या रंडी? तू तो रात को गिड़गिड़ा रही थी... 'और जोर से चाचा... गांड चोदो...' अब शरम क्या? ले... ले..." धप-धप की आवाज गूंजी, किचन में—सोभा का शरीर झटक मारने लगा , दूध लहरा रहे थे।

राजन बाल पकड़कर मुंह में धक्के दे रहा था —"हां कुतिया... दोनो छेद भरे हैं तेरे... सुबह का नाश्ता हो गया। चूस... और जोर से..." सोभा की आंखों से आंसू आ गए, लेकिन आनंद से—चूत से फिर पानी बहने लगा, उंगली खुद डाल ली। "पापा... चाचा... मैं... आ रही हूं... फाड़ दो... सब..." उमाकांत ने स्पीड बढ़ाई, गांड सिकुड़ने लगी—"उफ्फ... साली... गांड कस रही... झड़ रहा हूं..." गर्म होकर झड़ी अंदर, सोभा का क्लाइमैक्स फूटा—शरीर कांपकर रुक गया। राजन भी मुंह में झाड़ दिया—"पी ले बिटिया... सब... तेरी दवाई।"

तीनों हांफते गिरे—सोभा बीच में, राजन-उमाकांत दोनों तरफ। पसीना से लथ पथ, लेकिन मुस्कानें तीनो के चेहरे पर। "पापा... चाचा... ये... रोज हो?" सोभा फुसफुसाई, शरम से। राजन ने चुंबन लिया—"हां रंडी... तू हमारी है अब। गांव सो रहा है, लेकिन हम जागेंगे।" उमाकांत हंसा—"अगली बार... आंगन में... खुला खेलेंगे।"




---

स्कूल की घंटी बज चुकी थी, लेकिन उमेश का दिमाग कहीं और था। प्रिंसिपल शर्मा के केबिन में बुलावा आया था –खुशबू के बारे में बात करनी है ।" उमेश का दिल धक् से रह गया। वो जानता था, शर्मा वो राक्षस है जो खुशबू को पहले ही चख चुका था। लेकिन रोक पाना मुश्किल था। बाहर निकलते हुए, उसने खुशबू को मैसेज किया: "बेटी, शाम 6 बजे होटल रॉयल पैलेस। प्रिंसिपल साहब से मिलना है।

खुशबू ने पढ़ा, सिहर गई। कल रात का दर्द अभी भी था, लेकिन उत्तेजना भी। "हाँ पापा... आ रही हूं। लेकिन... डर लग रहा।" वो टाइप किया, लेकिन डिलीट कर दिया। शाम को वो साड़ी पहनकर निकल पड़ी – लाल, थोड़ी ट्रांसपेरेंट, जो उसके कर्व्स को हाइलाइट करे। होटल के कमरे में घुसते ही, वो सीन देखा: उमेश बिस्तर पर बैठा था, शर्मा खड़ा – हाथ में व्हिस्की का ग्लास, चश्मा चढ़ाए, मुस्कुराता हुआ।

"आ गई मेरी प्यारी स्टूडेंट?" शर्मा ने कहा, दरवाजा बंद करते हुए। उसकी आवाज में वो ताना था, जो बॉस की तरह लगे। "बैठो, खुशबू। या... लेट जाओ। आज क्लास स्पेशल है।"

खुशबू ने उमेश की तरफ देखा, वो सिर झुकाए था। "पापा... ये?" वो बुदबुदाई।

शर्मा हंस पड़ा, ग्लास रखकर उमेश के पास आया। "अरे उमेश, शर्मा मत। तू तो बड़ा होशियार निकला। अपनी ही बेटी को चोदा, और मुझे भी शेयर किया। कल रात पार्क में क्या हो रहा था, वो तो मैंने देख लिया था। गेटकीपर राजन ने बता दिया सब – तू अपनी रंडी बेटी को बेंच पर रगड़ रहा था। और अब... होटल? हाहा, तू तो ककौल्ड किंग है!"

उमेश का चेहरा लाल हो गया। वो उठा, लेकिन शर्मा ने कंधे पर हाथ रख दिया। "बैठ जा, भाई। गुस्सा मत। देख, तेरी बेटी कितनी हॉट है। मैंने तो बस मदद की। कल स्कूल में केबिन में... वो चीखें, 'सर... हल्के से'। लेकिन तू जानता है ना, रंडियां चीखती ही हैं।" शर्मा ने खुशबू को घूरा, जो अब बिस्तर पर किनारे बैठी थी।

"शर्मा साहब... प्लीज। वो मेरी बेटी है।" उमेश की आवाज कांप रही थी, लेकिन आंखों में वो चमक – ईर्ष्या की, लेकिन उत्तेजना की भी।

"बेटी? हाहा! तेरी बेटी तो मेरी रखैल है अब। और तेरी भी। देख, उमेश... तू बाहर जा, दरवाजे पर खड़ा हो। सुन ले सब। या... अंदर ही रह। तेरी मर्जी। लेकिन आज ये रंडी हम दोनों की है।" शर्मा ने खुशबू का हाथ पकड़ा, खींचकर अपनी गोद में बिठा दिया। खुशबू सिहर गई, लेकिन विरोध नहीं किया। उसके मन में डर था, लेकिन वो गर्मी... कल रात की तरह।

उमेश हिल गया। "नहीं... मैं... मैं देखता हूं। लेकिन... हल्के से।" वो बोला, कुर्सी पर जाकर बैठ गया। उसका लंड पहले ही सख्त हो रहा था – ये अपमान, ये शेयरिंग।

शर्मा ने साड़ी का पल्लू खींच लिया। खुशबू के स्तन ब्लाउज में उभरे। "देख, उमेश... तेरी बेटी के ये चुचे। कितने रसीले है तू तो रोज चूसता होगा ना?" शर्मा ने ब्लाउज खोला, एक स्तन बाहर निकाला। निप्पल पर जीभ फेरी। "आह... खुशबू, बोल... कैसा लग रहा? तेरे पापा देख रहे हैं।"

खुशबू की सांस तेज़ हो गई। "सर... आह... अच्छा लग रहा। लेकिन... पापा... मत देखो।" वो बोली, लेकिन आंखें उमेश पर। उसके शरीर में वो कंपन – दर्द का डर, लेकिन मजा भी आ रहा था

"चुप रंडी!" शर्मा ने जोर से थप्पड़ मारा – चेहरे पर, हल्का लेकिन जलन भरा। "पापा देखें या ना देखें, तू तो हमारी कुतिया है। बोल, 'हाँ सर, चोदो मुझे'।"

खुशबू का गाल लाल हो गया। दर्द में आंसू आ गए, लेकिन नीचे गीलापन महसूस हुआ। "हाँ सर... चोदो मुझे। पापा... सॉरी... लेकिन... अच्छा लग रहा।" वो सिसकी, लेकिन कमर हिलाने लगी।

उमेश का हाथ अपनी पैंट पर सरक गया। "खुशबू... तू... एंजॉय कर रही? मैं... मैं कुछ नहीं कहूंगा। बस... देख लूं।" उसकी आवाज में वो ककौल्ड वाइब – अपमान में मजा आ रहा था ।

शर्मा ने हंसकर खुशबू को बिस्तर पर पटक दिया। साड़ी ऊपर सरका दी, पैंटी फाड़ दी। "देख उमेश, तेरी बेटी की चूत... बालों वाली, गीली। तूने तो इसे पहली बार चोदा होगा ना? और अब... मेरी बारी।" वो अपना लंड बाहर निकाला – मोटा, नसों वाला। खुशबू की चूत पर रगड़ा। "बोल रंडी, किसका लंड बड़ा? तेरे पापा का या मेरा?"

"आह... सर... आपका... बड़ा। पापा का... प्यारा है। लेकिन... अंदर डालो ना।" खुशबू बोली, पैर फैलाते हुए। उसकी आंखें बंद हो गयी लेकिन मुस्कान। दर्द का इंतज़ार, लेकिन उत्तेजना ज्यादा।

शर्मा ने एक झटके में अंदर घुसेड़ दिया। "ले कुतिया ! तेरी चूत फाड़ दूंगा। रंडी बेटी... पापा के सामने चुद रही है। कैसा लग रहा?" वो धक्के मारने लगा, हर धक्के के साथ थप्पड़ – चूचियों पर, जांघों पर। "चटक! ले ये... तेरी गांड भी लाल कर दूंगा।"

खुशबू चीखी, लेकिन चीख में आनंद। "आह... सर... हाँ... फाड़ दो। पापा... देखो... कितना अच्छा... आह... थप्पड़ मारो और!" वो कराह रही थी, हाथ ऊपर करके। उसके शरीर पर लाल निशान पड़ रहे थे, लेकिन वो कमर उठा रही थी – मैच कर रही धक्कों से। "पापा... आप भी... आओ ना। छुओ मुझे।"

उमेश उठा, करीब आया। लेकिन शर्मा ने धक्का दिया। "रुक मादरचोद पहले देख। तेरी बेटी मेरी है अभी। देख कैसे चुद रही। बोल खुशबू, तेरे पापा को बोल – 'पापा, मैं रंडी हूं, तुम्हारी नहीं, सबकी'।"

खुशबू ने उमेश की तरफ देखा, आंखों में चमक आ गयी । "पापा... हाँ... मैं रंडी हूं। तुम्हारी... लेकिन सबकी भी। आह... सर... तेज़... चोदो! ले थप्पड़... आह... पापा, देखो... कितना मजा आ रहा। तुम्हारा लंड... हिला लो।"

उमेश ने पैंट खोली, हिलाने लगा। "हाँ बेटी... तू एंजॉय कर। मैं... मैं खुश हूं। देखकर।" उसकी सांसें तेज़, आंसू थे – लेकिन वीर्य टपक रहा था।

शर्मा ने और तेज़ किया। "ले कुतिया! तेरी चूत का रस... निकल रहा। उमेश, देख... तेरी बेटी स्क्वर्ट करेगी। बोल रंडी, 'मैं प्रिंसिपल की रण्डी हूं'।" थप्पड़ की बौछार हो गयी – चेहरे पर, गांड पर।

"हाँ... सर... मैं आपकी कुतिया हूं! आह... आ रहा... कम... अंदर ही!" खुशबू चिल्लाई, शरीर कांप गया। वो चरम पर पहुंच गई, रस बहा दिया। शर्मा ने भी झटके मारे, अंदर गिरा दिया। "ले... भर दिया तेरी चूत को। अब तेरे पापा की बारी। लेकिन... तू मेरी रंडी है।"

उमेश झपटा, खुशबू को चूमा। "बेटी... तू परफेक्ट है। अब... मेरी बारी। लेकिन... सर के बिना मत भूलना।" वो अंदर घुसा, शर्मा के रस के ऊपर। खुशबू ने दोनों को गले लगाया। "हाँ पापा... दोनों के साथ। थप्पड़ मारो... गालियां दो... मजा आ रहा!"

शर्मा ने पीछे से गांड में उंगली डाली। "हाँ रंडी... आज रात भर चुदेगी। उमेश, तू बाहर जा... हम अकेले एंजॉय करेंगे। कल स्कूल में... और स्टूडेंट्स को बुलाऊं?"

उमेश सिहर गया, लेकिन मुस्कुराया। "जो आप कहें साहब... बस मेरी बेटी खुश रहे।"
 
Top