गाँव की कहानी, गाँव की भाषा, लेकिन असली बात तो आपकी तारीफ़ की है जो मेरा और कहानी दोनों का हौसला बढ़ाती हैUfff Komal ji aapki erotika ka jabaab nahin hai. Ekdam saral bhasha me bahut kuchh kah jati hain.
एकदम सही कहा आपने, दर्जा नौ में पढ़ने वाली, काचे टिकोरों का अहसास उसे भी लौंडो को भी और गाँव की भौजाइयों को भी, और अकेले जाड़े की रात में रजाई में रगड़ने का मौका,Ufff Komal ji kya samaa bandha hai Nanad Bhaujai ka. Buchhi jaisi kamsin adhkhili ke sath khelne ka mazaa bahut alag hota hai.
यह राज भी खुलेगा लेकिन काफी बाद में, हाँ उसमे कुछ आपकी कहानी का भी असर दिखेगा, बस इतना इशारा दे सकती हूँ की अगर आपको होलिका माई वाला सीन याद हो, तो उसमे होलिका माई ( भाग ६७ पृष्ठ ६४३ होलिका माई) ने अपनी उतरन, अपनी उतारी साडी कोमल को ही दी थी और उसका भी बहुत असर था,
वाह भौजी हो तो ऐसी. वो भौजी ही क्या. जो अपने देवर के खुटे का बखान ना करें. ऊपर से इमरतिया ने तो सूरजबली के खुटे को पूरा उजागर ही कर दिया. खूब हाथो से मला. एक बार तो इमरतिया भी डर गई. तो बखान गलत नहीं बिलकुल सही है. मगर बेचारे सूरजबली. उनके देवर. लज्जाते बहोत है. लेकिन इमरतिया ने समझा भी दिया. अपनी महतारी से डरते है ना. इस लिए मान गए. देवर का खुटा मथ ते हुए बुचि उनकी महतारी का नाम जरूर लिया. यह तो भउजीयो का हक़ है. अपने मरद हो या देवर. उनकी बहन महतारी को गरियाने का. माझा आ गया.फटा पोस्टर निकला हीरो,
खुला सुपाड़ा
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नहीं नहीं बित्ते भर का नहीं था, थोड़ा कम ही लग रहा था लेकिन अभी पूरा खड़ा भी नहीं था। मोटा खूब था, लेकिन भौजी ने कुछ देखा और गुस्से से आगबबूला,
" स्साले, अबे,..... एकदम ही बुरबक, कोई सिखाया भी नहीं, तोहरी बहिनी क बुर चोदो, बुच्ची बुरचोदी "
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और सूरजु की हिम्मत भी नहीं पड़ी की भौजी से पूछूं की क्या गड़बड़ हो गयी। बस उन्होंने सरसो के लेल की बोतल पकड़ के खोली , एक हाथ से थोड़ा सोया, थोड़ा जाएगा खूंटा पकड़ा और दूसरे हाथ से बोतल से कडुवा तेल, टप टप , टप टप, बूँद बूँद
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जैसे अखाड़े में उतरने से पहले पहलवान तेल पोत कर एकदम चपचप हो जाते हैं, जैसे मलखंभ को तेल पिलाया जाता है, बस एकदम उसी तरह वो मोटा मूसल तेल से डूबा, तेल छलक के बह रहा था, और फिर जब इमरतिया ने मुट्ठी में पकड़ा तो उसे अहसास हुआ की कितना मोटा है।
उसकी कलाई के बराबर तो होगा ही, मुश्किल से मुट्ठी में पकड़ में आ रहा था और कड़ा भी खूब, हाँ तेल से चुपड़े होने के बाद सटासट इमरतिया का हाथ चल रहा था, दो चार बार कस के मुठियाने के बाद उसने झटके से खींची और सुपाड़ा एकदम खुल गया,
खूब मोटा, एकदम गुस्साया जैसा, लाल, कड़ा मांसल, छोटे टमाटर जैसा, लंड से भी मोटा,
इमरतिया के मुंह में पानी भी आ गया और दहल भी गयी, इतना मोटा, इसे लेने में जनम की छिनार, जिस भोंसडे से चार पांच बच्चे निकल चुके होंगे उस भोसंडी वाली को भी पसीना छूट जाएगा और जो आ रही है तो तो एकदम कच्ची कोरी, बारी उम्र वाली,....
फिर इमरतिया के चेहरे पे हल्की सी मुस्कान आ गयी।
भेज रहे हैं महतारी बाप चुदवाने को तो चुदेगी, रोयेगी, चीखेगी, चूतड़ पटकेगी, महतारी क नाम ले के चिल्लायेगी, तो चिल्लाये, चुदवाने आएगी तो चोदी जायेगी और ह्च्चक के चोदी जायेगी, उसके खानदान वाले भी यद् करेंगे, बेटी को किस गाँव भेजा था, और इमरतिया की जिम्मेदारी है की अपने देवर को तैयार करे की, आनेवाली कितना भी चिचिचियाये , एक झटके में ये मोटा सुपाड़ा अंदर पेल दे,
और अपने चेहरे का भाव बदलते हुए, हड़काने वाले रूप में वो सूरजु पे चढ़ गयी,
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" एकदम बुरबक हो, दुल्हिन क घूंघट काहें, ओढ़ा के रखा था। बता दे रही हूँ ये सुपाड़ा अब हरदम खुला रहना चाहिए, नाही तो कल तोहरे महतारी के सामने खोल के देखब, अगर कहीं बंद मिला "
" नाही भौजी " महतारी के नाम पे सरजू की फटती थी, घबड़ा के वो बोला।
अब मुस्करा के इमरतिया ने पहले उसका गाल सहलाया और दुलराते उसके मोटे जबरदस्त सुपाड़े को अपनी तर्जनी से सहलाते बोली
" पागल, इसका ख्याल कर। असली खेल तो इसी का है, भाले की नोक है ये। बारह दिन बाद जब इम्तहान होगा मेरे देवर का न, तो बस इसी का दम देखना होगा। एकदम ही कसी होगी उसकी, दोनों फांके चिपकी, जैसी बुच्ची की हैं, एकदम वैसी।
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और उसको फैला के दरेररते, फाड़ते, फैलाते, एक धक्के में पूरा पेलना होगा। कल से दिन में चार बार तेल पिलाऊंगी इसको में और हदम खुला रखना "
ये कह के इमरतिया ने मोटे सुपाड़े को जरा सा दबाया और उसने अपनी इकलौती आँख, चियार दी।
बस बूँद बूँद सरसों का तेल, उसी छेद से होते हुए अंदर, सरसो के तेल की झार, चरपराहट, सरजू तिलमिला गए, लंड एकदम पत्थर का हो गया।
मस्ती से आँखे बंद हो गयी और अब क्या कोई ग्वालिन मथानी मथेगी, इमरतिया के दोनों हाथों के बीच जैसे सूरजु का वो खम्भा मथा जा रहा था। पहली बार कसी औरत का हाथ वहां पड़ा था और वो भी इमरतिया जैसी खेली खायी, और जिसके बारे में सोच सोच के सपने में कितनी बार सुरजू का पानी निकल चुका था। वो उ उ कर रहा था, कभी चूतड़ पटकता, कभी सिसक सिसक के, लेकिन इमरतिया ने रगड़ने मसलने की रफ़्तार कम नहीं की और पांच दस मिनट के बाद ही छोड़ा।
खूंटा अब एकदम पूरे जोश में था। एक बार मुट्ठी में कस के दबा के इमरतिया ने सरजू को छोड़ दिया और बुकवा ( उबटन ) के दोनों कटोरे लेकर उनके सिरहाने बैठ गयी और कंधे पर से होते हुए बुकवा लगाने लगी। और उसने वो बात छेड़ दी , जिसे करने में सुरजू को सबसे ज्यादा मजा आता था।

वाह इमरतिया वाह. अपने देवर को बातो मे उलझाकर उसे नार्मल कर दिया. मगर ध्यान तो तेरा उसके खुटे पर ही. अब पहलवान है. कभी किसी औरत को छुआ नहीं. कभी मलाई निकालने मुठिया या नहीं. तो ताकत तो होंगी ही. अब जो आएगी. उसकी चीखे गांव मे ही नहीं ज़िल्ले मे सुनाई देगी. वैसे सूरजबली मे पहलवानो के पुरे गुन तो है. देखा नहीं जीत के आया है.दंगल
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उसके दंगल जीतने की।
" बड़की ठकुराइन, तोहार माई कहत रहीं अबकी पंचमी को हमार देवर बहुत बड़ा दंगल जीते हैं, अरे पूरे गाँव जवार में, यहाँ तक की हमरे मायके में बड़ा हल्ला रहा, हम तो सबको बोले, की हमार लहुरा देवर हैं, एकदम ख़ास। " इमरतिया ने बाँहों पर बुकवा लगाते बात छेड़ी
,” कउनो तगड़ा पहलवान रहा का ? "
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" अरे भौजी तोहार और माई क आसीर्बाद,....वो ससुरा पूरे दस जिला में चैलेंज दिया था, तीन साल से पंचमी क दंगल वही जीतता था लेकिन अबकी तोहार लहुरा देवर भी तय कर लिए थे,..... तो हम पूरा तीन महीना तैयारी किये, ताकत तो थी ही उसमे लेकिन दांव पेंच कही पंजाब से सीख के आया था, और यहाँ के लोगों को अंदाज नहीं था, " सुरजू बोले।
" ताकत तो हमरे देवर में भी कोई से कम नहीं है लेकिन दांव पेंच कैसे, …जब दस जिला के पहलवान हार गए थे तो "
बाहों की मालिश करते इमरतिया बोली।
सूरजबली सिंह की बाँहों की मछलियां, ताकत देख रही थी वो और सोच रही थी की जब इन तगड़े हाथों से कच्ची कली की पतली नरम कलाइयां पकड़ के पूरी ताकत से अपना ये मोटा सुपाड़ा पेलेगा तो सच में चीख पूरे गाँव में तो सुनाई ही देगी, आनेवाली के मायके तक जायेगी।
सूरजबली सिंह मुस्कराये और बोले,
" भौजी, दांव पेंच और तोहार और माई का आसीर्बाद, एक तो वो जो जो पहलवान को वो हराये था तीन साल में उससे हम बात कर के सब पूछे, की कौन खास दांव हैं उसके, और हमरे गुरु जी, उनसे बात कर के, सब दांव की काट और फिर एक दो और अखाडा में जा के कुछ नयी नयी ट्रिक सीखे, एक जुडो वाले के पास भी, और फिर सब मिला के, …कुश्ती में ताकत के साथ साथ, दिमाग, हिम्मत और सबसे बड़ी बात ऐसा गुरु मिले जो कुल दांव जानता हो और सिखाये भी, और अगले के हर दांव की काट भी तो हामरे गुरु जी ने बहुतसाथ दिया .
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इमरतिया ने अब दूसरा दांव खेला, बुकवा लगाते हुए सुरजू के चेहरे पर वो झुकी, और चोली फाड़ते जोबन अब सुरजू के मुंह से बस इंच भर दूर रहे होंगे, खूंटा जोर से फड़कने लगा।
यही वो देखना चाहती थी, खूंटा लम्बा था, मोटा तो बहुत ही था, पहली बार लेने में तो उसका भी जाड़े में पसीना छूट जाएगा, कड़ा भी था एकदम टाइट,
लेकिन असली खेल था की कितनी देर तक कड़ा और खड़ा रह पाता है, जब खास तौर से न कोई उसे छू रहा हो न कोई सेक्स वाली बात हो रही हो, बुकवा लगाते दस मिनट हो गए थे लेकिन वो बांस अभी भी उसी तरह, कड़ा, खड़ा और फनफनाता
" तो हमर देवर कैसे उस ससुरे को " चौड़ी छाती पे बुकवा मलते इमरतिया ने पूछा
" अरे भौजी, तोहार देवर हई, तोहार, अपने गाँव क माई क नाक तो नहीं कटवानी थी न "
हँसते हुए सुरजू बोले, फिर समझाया
" तोहरे देवर को मालूम था की ताकत में वो हमसे बीस है तो हम शुरू में खाली बचते रहे, बस थोड़ी देर में वो थकने लगा, दूसरे हमको अंदाज लग गया की कौन कौन से दांव वो सोच के आया है। अब तक जितनी कुश्ती जीता था शुरू के पांच दस मिनट में हावी हो जाता था लेकिन अबकी दस पन्दरह मिनट तक तो अखाड़े में हम नचाये उसको, और जब वो थक गया, तो झुंझलाने लगा और बस, उसी क पोजीशन का फायदा उठा के और एक बार चित्त हो गया तो फिर उठने नहीं दिए "
सुरजू ने मुस्कराते हुए कहा।
इमरतिया अब तक जांघ पर बुकवा लगा रही थी और सोच रही थी जबरदस्त ताकत होगी इस के धक्के में , लेकिन देवर को छेड़ते बोली
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वाह री इमरतिया. देवर को मुठियाते पूरा खोल दिया. दोस्ती कर ली. अब तो खुल के बोल रहा है. सबसे ज्यादा वह कन्वर्सेशन पसब्द आया जब मुठियाते वक्त सूरजबली बोलता है.पेटीकोट का नाड़ा
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इमरतिया अब तक जांघ पर बुकवा लगा रही थी और सोच रही थी जबरदस्त ताकत होगी इस के धक्के में , लेकिन देवर को छेड़ते बोली
" पंचमी से भी तगड़ी कुश्ती होगी बारह दिन बाद एहि कोठरिया में, आ रही है तगड़ी पहलवान,। असली कुश्ती उस दिन होगी, देखती हूँ हमरी देवरानी को कितनी देर में पटखनी देते हो , इन्तजार नहीं कराउंगी। सांझ होते ही पहुंचा दूंगी लड़ना रात भर कुश्ती, "
सुरजू सोच सोच के मुस्कराने लगा, और जांघ पे एक कस के चिकोटी काट के इमरतिया ने एक सवाल पूछ लिया,
" ये बताओ, अब तक कितनो के पेटीकोट का नाड़ा खोले हो "
देवर भौजाई में अब दोस्ती हो गयी थी और झिझक भी ख़तम हो गयी थी, आधे घंटे से वो नंग धडंग, खूंटा खड़ा किये , सुरजू ने कबूल किया
" एक भी नहीं भौजी "
" अरे चलो तब तोहसे बुच्ची क शलवार का नाड़ा खुलवाउंगी,नाड़ा खोल लिए तो बुच्ची के शलवार के अंदर वाली बुलबुल तेरी, "
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हँसते हुए इमरतिया बोली और अब बुकवा सीधे देवर के खूंटे पे और थोड़ा सीरियस हो के समझाया,
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" अरे हमार और अपनी माई दुनो का नाक कटवाइबा ससुराल में। कोहबर में सलहज कुल सात गाँठ बाँध के गठरी देंगी और बोलेंगी, पाहुन बाएं हाथ से खोलो और खोल लिए तो समझूंगी की हमरे ननद क पेटीकोट क नाड़ा खोल पाओगे। दुल्हिन क, भौजाई, महतारी अस सिखाय समझाय के पेटीकोट का नाड़ा बाँधने का बता के भेजेंगी न घंटा भर तो लगा जाएगा, गाँठ ढूंढने में और रात गुजर जायेगी नाड़ा नहीं खुलेगा, ….
तो जैसे वो दंगल में तोहार गुरु थे न, और सब ट्रिक सीख के गए थे दंगल जीतने तो यह दंगल में भी गुरु,… बिना गुरु के न ज्ञान मिलता है न कोई बड़ा से बड़ा पहलवान दंगल जीत पाता है। "
इमरतिया की बात काट के उसको अपनी ओर खींचते उनके देवर बोले, " हमार गुरु हैं न हमार भौजी "
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इमरतिया क सीना ३६ से ३८ हो गया और कस कस के लंड को बुकवा लगाते मुठियाते बोली, " तो गुरु क कुल बात माननी होगी और जो जो सिखाऊं सीखना होगा "
" एकदम भौजी " सुरजू ने हाँ कर दी।
और मुस्करा के मक्खन लगाते जोड़ा, " जउन हमरे भौजी क हुकुम "
और भौजी ने उस मोटे खूंटे को मुठियाने की रफ्तार तेज कर दी। इतना बढ़िया लग रहा था पकड़ के दबाने में, बार बार इमरतिया यही सोच रही थी, इस मोटू को अंदर लेने में कितना मजा आएगा, हर छेद का मजा दूंगी इसको, स्साले को चूत का भूत न बना दिया,
लेकिन मुठियाने का असर सुरजू पर हुआ , वो बेचारा पहली बार किसी औरत के हाथ से मुठियाया जा रहा था, बस उसे लग रहा था अब गिरा, तब गिरा, और भौजी के हाथ में गिरने पे कितना ख़राब लगेगा, घबड़ा के वो बोला
" भौजी, हमार भौजी, छोड़ दा, नहीं तो, …"
" ना छोड़ब, हमरे देवर क है, काहें छोड़ी "
पहले आँख नचा के चिढ़ाते इमरतिया बोली, फिर अचानक सुरजू को हड़काते चालू हो गयी,
" अबे स्साले नाम लेने में तो तेरी गाँड़ फट रही है, मेरी देवरानी की कैसे फाड़ेगा ? तोहरे सामने, तोहार बहिन महतारी खुल के बोल रही थी और तू लजा रहे हो उहो भौजी से, अरे कल जउन कच्ची कली को को बियाह के ले आओगे, उससे अगले दिन जब उसकी नंदे पूछेंगी, " भौजी कल रात को क्या घोंटी" तो वो खुल के बोलेगी, " अरे तोहरे भैया क लंड, पूरा जड़ तक और निचोड़ के रख दिए " और तू, बोल क्या छोड़ू दू "
सुरजू को भी लगा की बात तो भौजी की सही है।
अभी थोड़ी देर पहले उनकी महतारी तो उनके सामने, कोई ठंड की बात कर रहा था , और कौन बुच्ची, तो कैसे बोलीं की अरे ठंड का इलाज लंड है। और वो यहाँ भौजाई के सामने
थोड़ा झिझकते बोला, " भौजी, हमार वो, ....हमार लंड,.... छोड़ दा "
" ना छोड़ब "
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चिढ़ाते हुए इमरतिया बोली, लेकिन उसने मुठियाना बंद कर दिया और खूंटे के जड़ पर जैसे डाक्टर नाड़ी देखते हैं छू के देखा। अभी झड़ने वाला नहीं था, बेकार घबड़ा रहा था और दबाये दबाये बोली
" चला छोट देवर क बात,… लेकिन एक बात और हमार सुन ला, आज से कउनो लड़की, मेहरारू को देखा तो सीधे ओकर चूँची, चाहे तोहरी बुच्ची क कच्चा टिकोरा हो या ओहु से छोट व खूब बड़ा बड़ा, बस सीधे उहे देखा और सोचा की केतना मजा आएगा, मीसने में रगड़ने में , न उम्र न नाता रिश्तेदारी,.... बस चूँची "
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सुरजू अब बदमाश हो रहा था, सीधे उसकी निगाह इमरतिया के चोली फाड़ जोबन पर थी, नुकीली चोली में एकदम पहाड़ लग रहे थे और जिस तरह इमरतिया सरजु के ऊपर झुकी थी , घाटी भी साफ़ दिख रही थी
" केहू क भौजी " मुस्करा के सीधे घूरते बोला,
इमरतिया समझ रही थी, मुस्करा के बोली " हाँ केहू क भी " और सुरजू का हाथ पकड़ के अपने जोबन पे खींच के रख दिया और बोली
" ऐसे ललचाते रह जाओगे, अरे मन करे तो सीधे ले लो, मांगो नहीं "

अरे मान गए कोमलजी. आज तक ऐसा तो किसी ने भी नहीं लिखा होगा. मतलब लिखा भी तो एरिटीका मे डर्टी. जिसे पढ़ने मे घिन आए. पर आप ने तो डर्टीनेस मे इरोटिका लिख दिया. जिसे पढ़ने मे मस्ती रोमांच आए.बुच्ची,.... और चाशनी से भरा कुल्हड़
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लेकिन तभी इमरतिया को अहसास हुआ की अभी भी आधा कटोरा बुकवा बचा है और पैरो में बुकवा लगाना है और थोड़ी देर में बुच्ची और शीला नीचे से खाना ले के आ रही होंगी और चार आने का खेल अभी बचा है तो वो पैरो में बुकवा लगाने लगी। और फिर थोड़े देर में ही सुका हाथ पूरे देह का बुकवा छुड़ाने के बाद वापस खूंटा पर
" अरे इसका भी बुकवा तो छुड़ा दूँ, लेकिन देवर जी अब आप आँख बंद कर लीजिये और जो कहूं वही सोचिये। " वो बोली।
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और खूंटा उसी तरह टनटनाया, फनफनाया, खड़ा था, लेकिन अब टाइम आ गया था, इमरतिया ने एक बार अपने देवर को ललचावाते, ललचाते, होठों पर जीभ फेर के, नीचे झुक के अपने जोबन की घाटियों को थोड़ा उभार के, देखा, और खूंटे को पकड़ के प्यार से बोली,
" हे ललचा जिन, ...मिली १२ दिन बाद तोहार मिठाई, एकदम कसी कसी, टाइट, जैसे बुच्ची क है न एकदम वैसे ही। आ रही है घोंटने इस मोटू को, एकदम जड़ तक पेलना, अरे नहीं देखे तो हो तो बुच्ची को सोच के काम चलाओ बाबू। और ये जिन कहना बुच्ची छोट है, एकदम कुतरने लायक हैं उसकी कच्ची अमिया, पेलोगे तो पूरा घोंट लेगी जड़ तक। तोहरे भौजी क गारंटी, और वो तो, सोचो बाबू सूरज बली सिंह, बुच्ची क चोद रहे हो, आँख बंद कर के ओहि क ध्यान लगा के पेलो कस "
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और सुरजू की आंख बंद हो गयी, चेहरे पे एक गजब की मस्ती,.....इमरतिया की उँगलियों ने कस के उस मोटे गन्ने को दबोच लिया, क्या कोल्हू में गन्ना पिसता होगा, और हलके से नीचे से सुरजू ने चूतड़ उछाल के धक्का मारा, लेकिन इमरती ने उँगलियाँ ढीली नहीं की। पर पहलवान की ताकत उँगलियों के छल्ले से दरेररता, रगड़ता, लंड अंदर बाहर, और धीमे धीमे जोर और रफ़्तार दोनों बढ़ गयी।
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अब इमरतिया ने भी मुठियाना शुरू कर दिया। दोनों सिसक रहे थे, साँसे तेज तेज चल रही थीं, लग रहा था सुरजू सच में किसी कच्ची कली को अपनी पूरी ताकत से चोद रहे हैं,
हाँ हाँ हाँ और जोर से ओह्ह ओह्ह इमरतिया उकसा रही थी
नहीं नहीं भौजी, रुको निकल जाएगा, अबकी सच में निकल जाएगा, सूरज सिंह घबड़ा रहे थे
तो निकलने दो न, बस सोचो की बुच्ची की कच्ची बिन चुदी चूत में जा रहा है, एक एक बूँद बुच्ची घोंट रही है और जोर से धक्का मारो , आँखे एकदम बंद रखो इमरतिया बोली, और साड़ी के नीचे से ढका छुपा मिटटी का कुल्हड़ निकाल लिया। इमरतिया ने अब तेजी से हाथ चलाना शुरू कर दिया।
जैसे कोई ज्वालामुखी फटा हो, तेज सफ़ेद फव्वारा छूटा हो, सुरजू की आँखे बंद थी, चूतड़ ऊपर नीचे हो रहे थे, चेहरे पर अजब मजे का भाव था , पूरी देह का टेंशन अब धीरे धीरे ढीला हो रहा था।
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इमरतिया अनुभवी थी और इस पल के लिए पहले तैयार थी।
एक एक बूँद उसने कुल्हड़ में रोप लिया। जो सुपाड़े पे लिपटा था, उसे भी ऊँगली में लपेट के,। मन तो कर रहा था झुक के जीभ की टिप से चाट ले, सच में बहुत स्वादिष्ट लग रहा था, फिर लगा बुच्ची के साथ बेईमानी होगी, तो वो भी वापस कुल्हड़ के किनारे, और सरकते लुढ़कते पुढ़कते वो सफ़ेद बूंदे भी कुल्डह के अंदर,। लेकिन अभी भी थोड़ा माल अंदर बाकी था, और बेस पे जोर डाल के जैसे सहलाते सरकाते, इमरतिया ऊपर लायी एक दो बार हलके से मुठीयाया और दुबारा, ढेर सारा सफेदा सुपाड़े से निकल के बाहर और वो भी समेट के कुल्हड़ के अंदर, और चाशनी से भरा कुल्हड़ साड़ी के नीचे,
लेकिन अगले पांच दिन मिनट बहुत जरूरी थे, और सम्हल के, उस समय लड़के के मन में क्या गुजरता है, उसे देखना,
इमरतिया सुरजू को पकड़ के बगल में उसी चटाई पे लेट गयी और हलके हलके अपनी जीभ से कभी कान को छूती तो कभी गले को, कस नहीं बस टच। हाथ से खूब हलके से कभी उसके बाल सहला देती तो कभी हाथों को, इस समय सुरजू को जो महसूस हो रहा हो वो उसके मन के अंदर तक उतर आ जाय, उसे गलती से भी न लगे की उसने कुछ गलत किया, गलत सोचा, बुच्ची के बारे में ऐसा सोच के।
कभी ऊँगली की टिप से सुरजू के चौड़े सीने पे बस हलके से कुछ लिख देती, कुछ सहला देती
जैसे औरत नहीं चाहती की मरद झड़ने के तुरंत बाद उसके ऊपर से उठ के दूसरी ओर मुंह कर के लेट जाए उसी तरह आदमी भी, झड़ने के बाद के जो कुछ पल होते हैं वो धीरे धीरे कर के तन मन में उतर जाते हैं। दस मिनट तक इमरतिया ऐसे ही लेटी रही, फिर उठ के एक चादर सुरजू को ओढ़ा दिया और बोला,
" ऐसे लेटे रहो, कुछ देर तक और कुछ कपडा पहनने के चक्कर में मत रहना, नहीं तो देह क तेल बुकवा सब लग जाएगा। यह कोठरी में हमरे बिन कोई नहीं आएगा। बस थोड़ी देर में खाना ले के आती हूँ, जउन ताकत तोहार बुच्ची निचोड़ ली है न सब वापस आ जायेगी। आँखे बंद रखो और चददर ओढ़े रहो।
साड़ी बस इमरतिया ने लपेट ली और हाथ में कुल्हड़ ले के बाहर निकली। दरवाजा उसने कस के उठँगा दिया, और बाहर ही मुन्ना बहू मिल गयी। कुल्हड़ देख के मुस्करायी, जाते समय उसने देखा था।
इमरतिया ने मुस्करा के दिखाया, ' बुच्ची ननद के लिए शीरा "
"दैया रे इतना ज्यादा, एकबार क है " मुन्ना बहु बोली।
कुल्हड़ आधा से ज्यादा भरा था।
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तबतक मंजू भाभी दूल्हा के लिए रसगुल्ला ले के आ गयी, बस उसी में से थोड़ा सा शीरा उस मलाई वाले कुहड़ में
बुच्ची और शीला खाना ले कर आ रही थीं, लड़के को खाना खिलाने के बाद, जो औरतें लड़किया कोहबर की रखवारी में रहती थी वो सब एक साथ खाना खाती थीं और फिर छत का दरवाजा बंद हो जाता था, सुबह धूप निकलने के साथ ही खुलता।

क्या बात है कोमलजी. मान गए. भौजाई धर्म देवर हो या मरद. उसे बहन चोद मदरचोद बनाना है. कैसे बुचि की चूची दिखा कर उसे ललचा दिया. बुचि भी तैयार शिराह पिने को. मना नहीं करेंगी. ओर इमरतिया तो सूरजबली की महतारी भी तैयार की हुई है. तीन उंगलियों को गच से पेला है. शर्त के बाहने देवर को मस्त काबू मे रखा है. अब तो बेचारे को ठंडा करो.बुच्ची-- रसमलाई
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तिलक से बियाह तक सब रस्म रिवाज में सबसे ज्यादा दुर्गत, दुलहा की होती है और जलवा भी उसी का रहता है।
और दुर्गत ज्यादा होगी की जलवा, डिपेंड करता है, नाउन और भौजाई पर। एक कमरे में बंद, बाहर निकलना मना, एक कपडा पहने पहने , और निकलेगा भी तो नाउन के साथ और सब रस्म रिवाज के लिए, कभी कोहबर तो कभी,मांडव तो कभी, और उसी के सामने खुल के उस की माई बहिन गरियाई जाएंगी, हल्दी लगाते समय तेज भौजाई होंगी तो जरूर, ' इधर उधर ' हल्दी भी लगाएंगी, और चुमावन करते समय धक्का देके गिराने की भी कोशिश करेंगी। लेकिन कुछ मामलों में जलवा भी है, दूल्हे को जो उसकी भावज, नाउन कहेगी, वो सब खाने को मिलेगा, वो अपने हाथ से खिलाने को भी तैयार रहेगी, दोनों टाइम बुकवा लगेगा,
और यहाँ तो नाउन और भावज दोनों ही एक ही थी, इमरतिया, तो सूरज बाबू का जलवा था और इमरतिया ने उनको समझा भी दिया, " लाला मैं हूँ न एकदम मत घबड़ाना "
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और दूल्हे को जो छप्पन भोग मिलता था उसमे जो कोहबर रखाती थीं ननद भौजाई उनका भी हिस्सा होता था, और रात को कोहबर में जब सब सो जाते थे, उन्ही का राज होता था, फुल टाइम मस्ती।
और वैसे तो शादी का घर वो भी, बड़के घर की,.... हलवाई दस दिन से बैठा था, लेकिन सब मिठाई बन के भंडारे में और ताला बंद।
हाँ दूल्हे के नाम पे जरूर न सिर्फ ताला खुल जाता था बल्कि, हलवाई अलग से थोड़ी दूल्हे के नाम पे बना भी देता था। तो इमरतिया ने मंजू भाभी से कहा था दूल्हे के लिए एक कुल्हड़ में रसगुल्ला ले आएँगी और खाना ले आने की जिम्मेदारी बुच्ची और शीला दोनों लड़कियों की थी।
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मंजू भाभी से रसगुल्ले वाला कुल्हड़ लेकर, इमरतिया ने जो कुल्हड़ सूरजु के पास से लायी थी, उसमें थोड़ा सा शीरा मिला दिया और झट से बुच्ची की आँख बचा के ताखे पर रख दिया और बुच्ची से बोली,
' ले आयी हो देना भी तुम ही,... और ये रसगुल्ले वाला कुल्हड़ भी रख लो, रसगुल्ला तोहार भैया खाएंगे और शीरा तोहे मिलेगा, आखिर बहिनिया का हिस्सा होता है, भाई की थाली में, चलो "
और बुच्ची के साथ इमरतिया कोठरी में जहँ सूरजु अभी भी सिर्फ एक चादर ओढ़े बैठे थे। बुच्ची उन्हें देख के मुस्कराने लगी,
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एकदम मस्त माल लग रही थी खूब टाइट छोटी सी फ्राक में दोनों छोटे छोटे चूजे बाहर निकलने को बेताब थे, गोरा, भोला चेहरा, शैतानी से भरी बड़ी बड़ी आँखे, और सबसे बढ़के दोनों कच्ची अमिया, बस जैसे अभी कुतर ले कोई। और जिस तरह से थोड़ी देर पहले इमरतिया भौजी ने बुच्ची का का नाम ले ले कर मुट्ठ मारी था,
" एकदम कसी कसी फांक है दोनों चिपकी, मेहनत बहुत लगेगी, लेकिन देवर जी मजा भी बहुत आएगा जब ये मोटा सुपाड़ा अंदर घुसेगा "
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और सिखाया भी था, अपनी कसम देकर, ....:जो भी हो, आज से, बहन, महतारी, कोई,.... सीधे चूँची पे देखना "
और सूरजु के सीधे मुस्करा के बुच्ची की चूँची पे देखने का असर दोनों पर हुआ, बुच्ची कुनमुना रही थी , अजीब भी लग रहा था और अच्छा भी
और सूरजु के भी मन में बुलबुले उठ रहे थे
लेकिन सबसे ज्यादा मजा इमरतिया को आ रहा था, यही तो वो चाहती थी। वैसे भी आज रात को वो और मुन्ना बहु मिल एक बुच्ची का रस लेने वाली थीं और फिर सुरजू को छेड़ने, का चिढ़ाने का एक मौका मिल गया था,
" देने आयी हैं ये, तोहार बुच्ची, बोलीं आज भैया को हम देब,… तो काव काव देबू"
बुच्ची मुस्करायी और सुरजू का मुर्गा फड़फड़ाया, अब तो लंगोट का पिंजड़ा भी नहीं था।
सुबह से भौजाइयाँ सब मिल के बुच्ची के पीछे पड़ी थीं और सहेलियां भी डबल मीनिंग डायलॉग बोल बोल के उसे छेड़ रही थीं, फिर अभी तो सिर्फ इमरतिया भौजी और भैया थे और भैया तो वैसे बहुते सोझे, तो वो भी सुरजू से नजरे मिला के इमरतिया से शोख अदा में बोली,
" हमार भैया है,.... जउन जउन चीज माँगिहे, वो वो दे दूंगी "
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इमरतिया तो पक्की छिनार, बुच्ची के पीछे खड़ी थी, झट से हाथ बढ़ा क। उस किशोरी के दोनों हवा मिठाई को दबोच लिया और उभार के सुरजू को दिखाते बोली,
" मांग ला दुनो बालूशाही....., ये वाली। खूब मीठ है, मुंह में ले के चुभलाना, कुतर कुतर के खाना "
और इमरतिया अब खुल के बुच्ची के बस आते हुए छोटे छोटे जोबन मसल रही थी, क्या कोई लौंडा मसलेगा।
लेकिन ये देख के सुरजू लजा गए,पर लग उनको यही रहा था की जैसे इमरतिया नहीं वही बुच्ची की कच्ची अमिया दबा रहे हों। और बुच्ची भी समझ गयी तो बात बदलते बोली,
" भैया ला रसगुल्ला खा, हमरे हाथ से ,...वैसे मीठ मीठ भौजी मिलेंगी और खूब बड़ा सा मुंह खोला एक बार में "
सच में सुरजू ने बड़ा सा मुंह खोल दिया और बुच्ची ने एक बार में ही पूरा रसगुल्ला डाल दिया पर इमरतिया कैसे कच्ची ननद को चिढ़ाने का मौका छोड़ती, बोली
" ऐसे हमर देवर भी एक बार में पूरा डालेंगे तो,... पता चलेगा "
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और अबकी लजाने की बारी बुच्ची की थी, बहाना बना के जाते वो बोली,
" शीला, और मंजू भाभी इन्तजार कर रही होंगी, भौजी आप भैया को खाना खिला के आइये "
;लेकिन दरवाजे पे ही इमरतिया ने उसे दबोच लिया और सरजू को दिखाते बोली
" आज तो भैया को रसगुल्ला खिलाई हो, कल ये वाली रसमलाई चखा देना और जब तक बुच्ची समझे एक झटके में फ्राक उठा के चड्ढी में बंद गौरैया सुरजू को दिखा दी।
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खूंटा एकदम टाइट हो गया, फिर वो बुच्ची के हाथ से रसगुल्ले का कुल्हड़ ले के बोली
" रसगुल्ला तो भैया खाये हैं लेकिन शीरा उनकर बहिनी खाएंगी "
एकदम भौजी , कह के खिलखिलाती, छुड़ा के बुच्ची बाहर।
और दरवाजा बंद कर के इमरतिया मुड़ के सुरजू को देखते आँख नचा के मुस्करा के बोली,
" कैसा लगा माल,... है न मस्त पेलने लायक। "
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" एकदम भौजी " सुरुजू के मुंह से निकल पड़ा। और खाने के लिए सुरजू ने थाली की ओर हाथ बढ़ाया की इमरतिया ने डपट दिया,
" रुक, स्साले, तेरी बहन की, अरे अब यहाँ तोहार हाथ का इस्तेमाल बंद, ये भौजाई काहें हैं ? : और उनके बगल में बल्कि करीब करीब गोद में बैठ के वो बोली, और इमरतिया ने सुरजू का हाथ खींच के अपने ब्लाउज पे रख लिया। साड़ी तो दरवाजा बंद होते ही उतर गयी थी और सुरजू ने वैसे भी सिर्फ चादर ओढ़ रखा था जो अब दूर पड़ी थी।
घोडा एकदम खड़ा था तैयार, फनफनाया।
" छोट छोट चूँची, बिन चुदी कसी कसी चूत, बहुत मन कर रहा है बुच्ची को पेलने का ? "
खड़े घोड़े पर चढ़ती, अपने मोटे मोटे चूतड़ उसपर रगड़ती, इमरतिया ने पहला कौर अपने हाथ से सुरजू को खिलाते चिढ़ाया।
सुरजू के दोनों हाथ कस के इमरतिया के चोली फाड़ते जोबना पे, पहली बार वो खुल के किसी का जोबन दबा रहा था , पहलवान का हाथ चुटपुट चुटपुट करते सब चुटपुटिया बटन खुल गयी। दो सूरज बाहर आ गए, सीधे सुरजू के हाथों में। यही तो वो चाहता था, कस कस के भौजाई के जोबना मसलते वो बोला
" भौजी हमार मन तो केहू और के पेले के करत बा,.... और आज से ना,.... न जाने कहिये से "
इमरतिया की देह गनगना गयी, उसको याद आया एक दिन बड़की ठकुराइन को तेल लगाते लगाते, चिढ़ाते, इमरतिया ने उनकी, सुरजू की माई की बुलबुल में एक साथ तीन ऊँगली पेल दी और वो जोर से चिहुँक के चीख उठी और उसे गरियाते बोलीं, " बहुत छनछनात हाउ ना, अपना पहलवान बेटवा चढ़ाय देब तोहरे ऊपर, फाड़ के चिथड़ा कर देगा, बोल पेलवाओगी "
" तोहरे मुंहे में घी गुड़, लेकिन अरे उ का पेले हमका, हम खुदे ओकरे ऊपर चढ़ के पेल देब देवर है "
और ये बोल के इमरतिया ने तीनो ऊँगली सुरजू की महतारी की बुरिया में गोल गोल घुमानी शुरू कर दी और वो मस्ती से पागल हो गयी।
एक कौर सुरजू को दिखा के सीधे अपने मुंह में डालती हुयी इमरतिया बोली,
" देवर उ तो पेले के लिए ना मिली " और बेचारे सुरजू का मुंह झाँवा हो गया, एकदम उदास जैसे सूरज पर पूर्ण ग्रहण लग गया हो।
इमरतिया को भी लगा की बेचारा देवर, अपने मुंह का कौर अपने मुंह से सीधे उसके मुंह में डालते कस के दोनों हाथ से उसके सर को पकड़ के बोली,
" इसलिए की, वो खुदे तोहें पटक के पेल देई, तोहसे पूछी ना। तोहार भौजाई, घबड़ा जिन। "
और ग्रहण ख़त्म हो गया, सूरज बाहर निकल आया। लेकिन कहते हैं न टर्म्स एंड कंडीशन अप्लाई तो भौजाई ने शर्ते लगा दी।
"पहली बात, बिना सोचे, भौजाई क कुल बात माना, सही गलत के चक्कर में नहीं पड़ना और दूसरी न उमर न रिश्ता, कउनो लड़की मेहरारू को देखो तो बस मन में पहली बात आनी चाहिए, स्साली चोदने में कितना मजा देगी। और देखो, एकदम सीधे उसकी चूँची को, कितनी बड़ी, कितनी कड़ी और तुरंत तो तोहरे मन क बात समझ जायेगी वो, देखो आज बुच्ची k चूँची देख रहे थे तो वो केतना गरमा रही थी एकदम स्साली पनिया गयी थी।"
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और सुरजू मान गए " सही है भौजी, तोहार बात एकदम सही है, लेकिन, कुल बात मानब लेकिन,...."
"बस देवर कल,.... आज आराम कर लो कल से तो तोहार ,..."
कह के बिना अपनी बात पूरी किये थाली उठा के चूतड़ मटकाते इमरतिया कमरे से बाहर।

कभी मेरे कदम डग मांगते तो आप ने संभाला. आप धीरज से काम लीजियेगा. आप जानते हो की आप के मुख्य रिडर्स कौन है. वो ऑनलाइन होते नहीं. ओर होते ही सब आप के पास ही पहले आते है. जब तक उनकी कमैंट्स ना आए धीरज से काम लीजिये. आप की परमानेंट रीडर और शुभचिंतक शैतान.अगला नंबर अपडेट का फागुन के दिन चार का है, मैंने तीनो कहानियों में अगस्त में अपडेट दे दिए लेकिन
फागुन के दिन चार में अपडेट ८ अगस्त को पोस्ट हुआ
दस दिन
दो कमेंट
आप ऐसे अब विरले पाठक ही बचे हैं जो नियमित सभी कहानियों पे आते हैं, पर कम से कम आठ दस हुंकारी भरने वाले हों तो कहानी कहने सुनाने का मजा है , वरना बस निहारते रहिये, रोज रोज फोरम खोलिये,
कोई आया की नहीं, किसी ने सांकल खटकायी की नहीं
कहानी लिख रही हूँ तो अपडेट भी दूंगी ही लेकिन कुछ लोग आते हैं, झूठी सच्ची तारीफ़ करते हैं तो अच्छा लगता है
कम से कम दो कहानियों में अपडेट कोशिश करूंगी इसी हफ्ते,

अरे वाह. मंजू भौजी से तो सूरजबली के महतारी के मायके से ही रिस्ता है. ओर है भी मंजू भौजी पूरी रमी हुई. गांव की शादी वार त्यौहार खूब खुलकर हिस्सा लेती है. सबसे बड़ी बात कच्ची कलियों की शोखिन भी. वो भी खास नांदियाओ के लिए.भाग 105 कोहबर और ननद भौजाई
मंजू भाभी
२६, ३२, ७५९
लेकिन कहते हैं न टर्म्स एंड कंडीशन अप्लाई तो भौजाई ने शर्ते लगा दी।
पहली बात, 'बिना सोचे, भौजाई क कुल बात माना, सही गलत के चक्कर में नहीं पड़ना और दूसरी न उमर न रिश्ता, कउनो लड़की मेहरारू को देखो तो बस मन में पहली बात आनी चाहिए, स्साली चोदने में कितना मजा देगी। और देखो, एकदम सीधे उसकी चूँची को, कितनी बड़ी, कितनी कड़ी और तुरंत तो तोहरे मन क बात समझ जायेगी वो, देखो आज बुच्चीकी चूँची देख रहे थे तो वो केतना गरमा रही थी,... एकदम स्साली पनिया गयी थी।"
और सुरजू मान गए " सही है भौजी, तोहार बात एकदम सही है, लेकिन, कुल बात मानब लेकिन,..."
"बस देवर ,कल . आज आराम कर लो,... कल से तो तोहार ,"
कह के बिना अपनी बात पूरी किये थाली उठा के चूतड़ मटकाते इमरतिया कमरे से बाहर।
और वहां मंजू भाभी कोहबर के कमरे में मोर्चा सम्हाले थीं।
मंजू भाभी में कई खास बातें थी और उनमे एक ये भी थी की जो पहली बार भी मिलता था उससे घंटे भर में ऐसी दोस्ती हो जाती थी जैसे लगता था की जन्म जिंदगी की दोस्ती, रिस्थ्तेदारी हो, और चाहे काम करने वालियां हो या स्कूल की लड़कियां सबमे दूध पानी की तरह मिल जाती थी। वै
से तो सुरजू के माई की मायके के रिश्ते की थीं।
बताया था न की सुरजू के पिता को अपने ससुराल से नवासा मिला था, उनकी माँ के घर में सगा न भाई था न बहन, लेकिन जमीन जायदाद बहुत ज्यादा, सौ बीघा से ज्यादा तो खाली गन्ना होता था, सुरजू की माई अक्सर बोआई कटाई के समय मायके जाती थीं, वहां की खेत बाड़ी देखने के लिए, और कई बार साथ में सुरजू भी अपने ननिहाल उनके साथ, और इमरतिया उनकी माई की ख़ास थी तो वो भी, साथ साथ।
मंजू भाभी से सुरजू के ननिहाल से ही इमरतिया की मुलाकात हुयी और मंजू भाभी भी सुरुजू की माई की ख़ास थी।
एकदम उसी पट्टी की, समझिये खानदान की ही बहू, लेकिन ऐसी खुशमिजाज, की, और मजाक में तो न रिश्ता देखती थीं न उमर।
वो वैसे तो बंबई रहती थीं, दो दो जवान होती लड़कियां, ....मरद का काम धंधा फैला था, लेकिन और कोई आये न आये, हर त्यौहार में वो गाँव में और कटाई, बुआई के अलावा, जाड़े गर्मी की छुट्टी में भी, साल में दो, तीन महीना का टाइम गाँव में ही बीतता था। उमर ३२ -३३ के आस पास होगी, लम्बी चौड़ी, खूब भरी भरी देह और ताकत भी थी, गाय भैंस दूह लेती थीं, बटुला भर खिचड़ी बिना सँडसी के हाथ से उतार लेती थी, सुरजू की माई तो लगती सास थीं, लेकिन मजाक में दोनों के बीच, ननद भाभी झूठ।
गाँव क कउनो बियाह नहीं जहाँ वो नहीं पहुँचती हो, और गारी सुरु होने पर ढोलक लेकर सबसे टनकदार आवाज में वही, और ऐसी खुली गारी की चमरौटी भरौटी वालिया भी कान में ऊँगली डाल लेती और महतारी को बेटे के नाम से भी गाली देने से नहीं चूकती।
तो वही मंजू भाभी,
हाँ एक बात और कच्ची कलियों का तो उन्हें खास शौक था और पटाने में भी माहिर थी, एक से एक लजाने शरमाने वाली खुद उनके सामने अपनी शलवार का नाडा खोल देती थी।
जब इमरतिया सूरजू को खिला के पहुंची , मंजू भाभी ने कोहबर में मोर्चा सम्हाल रखा था, रात के सोने का इंतजाम हो रहा था।
कोहबर का फर्श कच्ची मिटटी का था, मुन्ना बहू और दोनों छोरियों, बुच्ची और शीला के साथ उन्होंने पहले फर्श पर दो गट्ठर पुआल का बिछवाया, और खुद मिल के फर्श पर पहले दरी, चादर और एक पतला सा गद्दा। गरम करने के लिए पुआल ही बहुत था, लेकिन एक बड़ी सी बोरसी में आग सुलगा के जो पहले छत पे रखी गयी थी, जिससे सब धुंआ निकल जाए, उसे भी अंदर कमरे में उन्होंने खुद लाकर रख दिय।
एक बड़ी सी रजाई भी रखी थी, जिसमे घुसर मूसर के चिपक के पांचो जन सो जाते।
खाने के पहले ही, पहल मंजू भाभी ने ही की, "अरे इतना गरमी लग रही है, साडी उतार दो सब जन, वैसे भी सोने में तुड़ मुड़ जायेगी “
और खुद उतार दी, और साथ में इमरतिया और मुन्ना बहू ने और तहिया के एक साइड में रख दी।
कच्चे टिकोरे किसे नहीं पसंद होते लेकिन मंजू भाभी को कुछ ज्यादा ही पसंद थे और उन्हें तरीके भी मालूम थे, कच्ची अमिया वालियों को पटाने के, तो जैसे ही उनकी सास ( सास ही तो लगेंगी ) और सहेली, सुरजू की माई ने बुच्ची को बोला रात में कोहबर में रुकने को, उनकी निगाह सीधे बुच्ची के चूजों पे और तुरंत उन्होंने हाथ उठा दिया, ' मैं भी रहूंगी, कोहबर रखवाई वालियों में ' वो समझ गयी थीं की शायद इमरतिया और मुन्ना बहु के अकेले बस का नहीं है दंद, फंद करके, बुच्चिया की चड्ढी उतरवाना, और इसलिए उनका रहना जरूरी था और एक बार चड्ढी उतर गयी तो सेंध भी लग जायेगी और बियाह के पहले ही उसको नंबरी चूत चटोरी और लंड खोर बना देंगी।
तो जब बुच्ची और इमरतिया दूल्हे के कमरे में थीं, मंजू भाभी ने मुन्ना बहू और शीला के साथ मिल के, प्लान पक्का कर लिया था,
मुन्ना बहू एक बार शीलवा को रंगे हाथ पकड़ चुकी थी गन्ने के खेत में भरौटी के दो लौंडो के साथ, दिन दहाड़े, तब से दोनों में खूब दोस्ती हो गयी थी।
मुन्ना बहू कौन कम छिनार थीं, रोज दो चार मोट मोट घोंटती थी।
इमरतिया, मुन्ना बहू और मंजू भाभी, साड़ी उतार के, जैसे रखीं, इमरतिया, शीला और बुच्ची को देख के मुन्ना बहू से मुस्करा के बोली, " अरे इन दोनों का भी तो उतरवाओ "
बुच्ची बचते हंस के बोली, " अरे भौजी, तू तीनो लोग तो अभी भी दो दो पहने हो, मैं तो खाली फ्राक पहने हूँ "
मंजू भौजी मुस्करा के बुच्ची को चिढ़ाते बोलीं, " तो चेक करूँ, मुन्ना बहू तानी उठाय दो बुच्चिया क फ्राक "
एक ओर से मुन्ना बहू तो दूसरी ओर से इमरतिया जैसे जंगल में हांका करके शिकार पकड़ते हैं, दोनों ओर से बढ़ी, और बुच्चिया बचने के लिए पीछे हटी, लेकिन बेचारी को क्या मालूम था खतरा पीछे ही था, उसकी पक्की सहेली और समौरिया, शीला।
शीला ने पीछे से बुच्ची का फ्राक उठा के झट से चड्ढी पकड़ ली, और नीचे खींचने लगी, और जब तक बुच्ची अपने हाथ से शीला का हाथ रोकती, इमरतिया और मुन्ना बहू ने एक एक हाथ पकड़ लिया और मुन्ना बहू शीला से हँसते हुए उकसाते बोली,
' अरे शीलवा आराम आराम से बहुत दिन बाद आज बुलबुल को हवा पानी मिलेगा , हम दुनो हाथ पकडे हैं, फड़फड़ाने दो। अभी कउनो देवर, इसका भाई होता तो खुदे उतार के बुरिया फैलाय के खड़ी हो जाती, भौजाई लोगन के सामने नखड़ा चोद रही है "
बुच्ची ने खूब गरियाया, शीला को, दोनों टांगों को चिपकाया, लेकिन शीला कौन कम थी। हँसते हँसते, कभी चिकोटी काट के, कभी गुदगुदी लगा के अपनी सहेली की चड्ढी निकाल के हवा में उछाल दी और मंजू भाभी ने कैच कर लिया।
" बोरसी में डाल देई, छिनरो " इमरतिया बुच्ची से बोली लेकिन मंजू भाभी ने वीटो कर दिया।
" अरे नहीं, मिठाई क ढक्क्न, एकरे भैया के ले जा के सुंघाना, चटवाना सबेरे सबेरे। पूछना दूल्हे से उनके किस बहिनिया का स्वाद है , सही पहचनाने में रसमलाई मिलेगी चाटने को, बोल बुचिया चटवायेगी न अपने भैया से "
और फिर मंजू भौजी ने शीला और बुच्ची के जरिये सारे ननदो के लिए फरमान जारी कर दिया,
" सुन ले, जउन जउन छेद खोल के सुनना हो, कउनो ननद हो, लड़की, मेहरारू, अगर ऊपर नीचे, कहीं ढक्कन लगाए के बियाहे तक आयी तो ओकर बिल और हमार मुट्ठी, ….अरे शादी बियाह क घर, लौंडों क भीड़, जब देखो तब स्कर्ट साड़ी उठावा, सटवावा, और गपाक से अंदर घोंट ला, और और वैसे भी कल से रात में गाना, रस्म रिवाज होगा तो कुल ननदो का तो खोल के देखा ही जाएगा, "
बुच्ची मुस्करा रही थी।
शीला हंस के बोली,
" भौजी की बात एकदम सही है, देखा हम तो पहले से ही,.. "
और झट से उसने अपनी घेरेदार स्कर्ट उठा दी। काली काली झांटो के झुरमुट में दोनों फांके साफ़ दिख रही थीं, बस हलकी सी दरार, लेकिन देखने वाला समझ सकता है, ज्यादा तो नहीं चली है, लेकिन खेत की जुताई हो चुकी है।
अच्छा चलो खाना खाओ, मुन्ना बहू बोली,
एक बड़ी सी थाली में फिर सब ननद भौजाई एक साथ और उसी तरह से हंसी मजाक, लेकिन अब बुच्ची भी मजाक का मजा ले रही थी। तब तक मुन्ना बहू को कुछ याद आया, वो इमरतिया से आँख मार के बोली,
