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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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छुटकी -होली दीदी की ससुराल में

भाग १११ पंडित जी और बुच्ची की लिख गयी किस्मत पृष्ठ ११३८

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छुटकी -होली दीदी की ससुराल में

भाग १११ पंडित जी और बुच्ची की लिख गयी किस्मत
२८,५३,५०१
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जबतक सूरजु की माई ये किस्सा सुना रही थीं की एक ज्योतिषी आये /आयीं

ज्योतिषी जी लगता है सीधे बनारस से आये थे, पोथी पत्रा समेटे, माथे पे त्रिपुण्ड, खूब गोरे, थोड़े स्थूल, धोती जैसे तैसे बाँधी, ऊपर से कुरता पहने, एक हाथ में चिमटा भी,खड़का के बोले,

" अलख निरंजन, अलख निरंजन, किसी को बच्चा न हो रहा हो, कोई लंड के बिन तरस रही हो, बाबा सब का हल करेंगे, सबकी परेशानी दूर करेंगे, सबका भाग बाँचेंगे "

चुनिया तो आज अपनी सहेली बुच्ची की ऐसी तैसी करवाने पे जुटी है, बस ज्योतिषी जी का पैर पकड़ लिया और छोड़ने को तैयार नहीं,...

" आप मेरी इस बेचारी सहेली का कल्याण कर दीजिये, बहुत परेशान है बेचारी,… जो दक्षिणा कहियेगा देगी, आप की सब बात मानेगी, "

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" अच्छा तो ये दूल्हे की बहिनिया भी है " पंडित जी ने बुच्ची के गोरे गोरे मुखड़े को देख कर कहा,

" सगी से बढ़कर, …सगी तो कोई है नहीं तो ये सगी से बढ़कर, राखी यही बांधती है, सब रसम बहन वाली यही " मुन्ना बहु ने जोर से हंकार लगाई
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और ज्योतिषी जी बैठ गए, बुच्ची का बायां हाथ पकड़ लिया और सब ओर देख के बोले,

" यह छिनरिया क भौजाई कौन है "

इमरतिया, मुन्ना बहु, रामपुर वाली भाभी सब ने जोर की हंकार लगाई, लेकिन डांट पड़ी इमरतिया को, और हुकुम हुआ,



" ये कहती है की कोरी है, अभी तक लंड का सुख नहीं लिया तो पहले खोल के जांच कर के मुझे दिखाओ "

जबतक इमरतिया आती रामपुर वाली भाभी ने बुच्ची का हाथ पकड़ के खड़ा कर दिया और छोटी सी स्कर्ट कमर पे, इमरतिया और मुन्ना बहु ने बुच्ची को जकड़ लिया और रामपुर वाली ने पहले तो हथेली से सबको दिखाते हुए बुच्ची की बुर को रगड़ा थोड़ी देर और जब पनिया गयी तो दोनों फांको को पूरी ताकत से फ़ैलाने की कोशिश की,

बुच्ची की बुरिया सच में नहीं खुल पायी, बड़ी मुश्किल से, कोई बहुत कोशिश करेगा तो बस पतली वाली ऊँगली वो भी एक, तेल वेल लगा के, कलाई की पूरी ताकत से एक पोर भी घुस जाए तो बड़ी बात,

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और सब भौजाइयों का मन खुश हो गया, कोई अपने भाइयों के मजे के बारे में सोच के, कोई देवरों के लेकिन सबसे ज्यादा इमरतिया मुस्करा रही थी, आज तो उसने घोंट के देख भी लिया था, अब तक परपरा रही थी, टमाटर ऐसा मोटा सुपाड़ा था सूरजु का और कड़ा भी कितना, और कमर में जोर तो, सांड मात। और इस पतली संकरी दरार में जाएगा, लेकिन जाएगा तो जाएगा, भैया बहिनिया का रिश्ता है, बिना चुदे तो बचेगी नहीं,

लेकिन इमरतिया का ध्यान टूटा ज्योतिषी जी की डांटसे,

" कौन भौजाई है कोहबर रखाने वाली, सुन लो कान और गांड दोनों खोल के, कल सांझ होने के पहले, ये अपने भाई से, दूल्हे से चुद जानी चाहिए, और झूठ मुठ का नहीं, सच्ची, कम से कम दो भौजाइयां, इस स्साली की बुर में ऊँगली डाल के मलाई जांचेगी तब माना जाएगा इसने अपने भैया क मलाई घोंट ली है "
 
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बुच्ची -पिछवाड़े काला तिल
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" एकदम पंडित जी,"मुन्ना बहु और इमरतिया दोनों बोली।

लेकिन चुनिया के मन में तो अपने भाई का फायदा नाच रहा था, गप्पू बेचारा जब से आया था बुच्ची का जोबन लूटने के पीछे पड़ा था। और चुनिया भी चाहती थी, उसे अपनी सहेली को चिढ़ाने का, छेड़ने का मौका मिल जाता, तो ज्योतिषी जी का गोड़ तो वो पकड़े ही थी, कुछ उनसे कुछ अपनी सहेली बुच्ची से गुहार लगाने लगी,

" हे खाली अपने भाई को दोगी या हमारे भाई को भी चिखाओगी. .... बेचारा गप्पू इतने दिन से दो इंच की चीज के लिए निहोरा कर रहा है /"
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' अरे भौजाई के भाई का तो पहला हक़ है, भौजाई की ननद पे, लेकिन चलो अब बियाह बैठा है तो दूल्हा के बाद इसके भाई का ही, गप्पू का ही गप्प करना, और वो भी एक दिन के अंदर ही, कल सांझी तक दुलहे क मलाई और परसों तक गप्पू का, जो नखड़ा करें ये तो सब भौजाई पकड़ के जबरदस्ती आपन आपन भाई चढ़ा दें इसके ऊपर "

ज्योतिषी ने फैसला सुना दिया,

लेकिन बुच्ची का हाथ देखते देखते उनके माथे पे बल पड़ गए



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जैसे कोई बहुत बड़ी परेशानी सामने आ गयी हो, फिर अपने कागज भी देखा उन्होंने और जैसे अपने से बोलीं "

ये बरात जाने के पहले ही बड़ी मुसीबत है "

" का हुआ पंडित जी " बुच्ची भी परेशान हो के बोली,

लेकिन बुच्ची की बात अनसुनी कर के उन्होंने रामपुर वाली भाभी से कहा,

" जरा देख तो इस स्साली रंडी के गाँड़ पे, दाएं चूतड़ पे कोई तिल तो नहीं है "

बस रामपुर वाली भाभी को मौका मिल गया, बुच्ची को उन्होंने खड़ी किया, और फ्राक उठा के दोनों चूतड़ फैला के खुद भी देखा,… सबको दिखाया।


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था।

खूब बड़ा सा काल तिल, दाएं चूतड़ पे एकदम गाँड़ की दरार के बगल में, चूतड़ दोनों खूब मस्त, फूले फूले बहुत ही टाइट, कैसे कसे और दरार एकदम चिपकी कसी।

" उपाय बताइये, महाराज " मुन्ना बहु हाथ जोड़ के बोली, फिर कहा " तिल तो है "

" उपाय तोहरे, कुल भौजाई लोगन के हाथ में हैं, पहले तो दूल्हा से इसकी गाँड़ मरवाओ, और बुर के टाइम भले ही एक दो बूँद सरसों का तेल , लेकिन गाँड़ एकदम सूखी,


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बहुत हुआ तो दूल्हा का लौंड़ा चूस चूस के जितना गीला कर ले इनकी ये बहिनिया और अपने हाथ से उसका लौंडा पकड़ के इसकी सूखी गाँड़ में सटा के, तीन धक्के में पूरा लंड अंदर होना चाहिए जड़ तक "

ज्योतिषी जी बोले।
लेकिन पंडित जी ने अभी भी अपना गोड़ पकडे चुनिया की ओर देखा और सीरियस हो के चुनिया से पूछा,
" दूल्हे का कोई स्साला है क्या "
चुनिया का मुंह एक डीएम खिल गया, मुस्करा के बोली, है ना, मेरा भाई गप्पू।
और पंडित जी ने बिना चुनिया के चेहरे पर से ध्यान हटाए, गंभीरता पूर्वक फैसला सुनाया
" उपाय है, बारात बिना बिघन के जायेगी और उपाय है वही स्साला, उसी के हाथ में है सब कुछ। दूल्हे की बहिन पहले दूल्हे से गांड मरवायेगी, दूल्हे की भौजाई के सामने तो इस काले तिल का असर कम होगा, लेकिन पूरा असर जाएगा, जब दूल्हे का साला, इस काली तिल वाली की गांड मारेगा,
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और फिर से बरात जाने के ठीक पहले, सब के सामने, जैसे कुल रस्मे नाउन कराती है ये रस्म भी करानी होगी, आँगन में निहुरा के दूल्हे के साले से क्या नाम बयाया था तूने, " उन्होंने फिर चुनिया से पूछा
गप्पू , चुनिया ने पट जवाब दिया।

" हाँ तो उसी गप्पू से आँगन में सब लड़कियों औरतों के सामने गांड मरवायेगी

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और कभी भी उस को मना नहीं करेगी, वतरण दूल्हे की बहिन के पिछवाड़े के काले तिल का तो बड़ा दोष है, ये तो अच्छा हुआ मैंने देख लिया "

पंडित जी ने रास्ता बता दिया, बरात के बिना बिघन के जाने का, और सबको देख कर बोले

" फिर बरात बिना किसी बिघन के चली जायेगी "
और सब औरतों ने गहरी सांस ली।

और अगली बात उन्होंने बुच्ची से की,

" हे बुआ बनने का तो बहुत मन कर रहा होगा, तोहार नयकी भौजी कितने दिन में बियाय दें बोल "

मुस्कराते हुए ख़ुशी से बुच्ची बोली, " अरे जउने दिन हमार भैया उनकी फाड़ें, जउने दिन हमरे घरे आएँगी, ओकरे ठीक नौ महीने बाद न एक दिन जयादा न एक दिन कम "


" तो नौ महीना में बुआ बनने के लिए जो कहूँगी वो करोगी ना "

" एकदम पंडित जी " ख़ुशी से बुच्ची बोली।
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" तो बरात बिदा कराये के जब सब लौटेंगी न तो ओकरे बाद तुरंत ही, बिना घर में घुसे, घर के बाहर बाहर, नौ लौंडो, मर्दो की मलाई, वो भी लगातार, एक मलाई गिराय के निकरे, तो दूसरा तैयार रहे अंदर पेलने के लिए, नौ मर्दो की मलाई बुरिया में ले के ही घर में घुसना , नौ से ज्यादा हो सकते हैं कम नहीं। बस दुल्हिन नौ महीने में लड़का जनेगी "

" एकदम पंडित जी हमार जिम्मेदारी, हम आपने साथ ले जाके, अपनी ननद को घोटवाएंगी, बाईसपुरवा में न लंड की कमी न मलाई की "
मुन्ना बहु ने जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली,



पठान टोली वाली नयकी सैयदायिन भौजी बोलीं
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" अरे पंडित जी की बात कौन टाल सकता है वो भी इत्ते शुभ काम के लिए, नौ बार तो ही मलाई घोंटनी है, अरे बुच्चिया तीन छेद हैं तीनो में एक साथ और नौ लौंडो का इंतजाम रहेगा, एक बार में तीन चढ़ेंगे तीनो बिल में आधे घंटे में मलाई निकाल के,
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तीन मुठियाते रहेंगे, फिर वो तीन, और उसके बाद फिर से तो डेढ़ दो घंटे में बुच्ची ननद घोंट लेंगी नौ बार मलाई "

पंडित जी ने मुस्करा के हामी भर दी। मलाई किसी छेद में जाए, बस बुच्ची की देह में जाए, उसी से असर हो जायेगा, हाँ उसके बाद लौंडो की मर्जी


लेकिन शादी बियाह में एक मुसीबत हो तो


ज्योतिषी जी पतरा बिचार रहे थे फिर बुच्ची से बोले, " बरात चली तो जायेगी लेकिन बियाहे में ठनगन, "
बेचारी बड़की ठकुराइन दूल्हे की माई का मुंह मुरझा गया, इतना मुश्किल से तो सूरजु बियाह के लिए तैयार हुए, ससुराल वाले एक नकचढ़े, लड़की पढ़ी लिखी है हाईस्कूल का इम्तहान दी है और ऊपर से अब ये मुसीबत, कहीं किसी बात पे बरात वापस न कर दें, नाक कटेगी उनकी दोनों हाथ जोड़ के अंचरा पकड़ के पंडित जी के गोड़ लगती बोलीं

" पंडित जी कउनो उपाय बताइये, अब सब आप ही के हाथ में हैं,... जो कहियेगा वही होगा।"
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पंडित जी ने एक बार फिर गाँव की औरतो की ओर देखा फिर उनकी निगाह बुच्ची के चेहरे पे टिक गयी,

" उपाय है तो लेकिन बड़ा मुश्किल है, हो नहीं पायेगा " बड़ी सीरियसली वो बोले, फिर जोड़ा, ' होनी को कौन टाल सकता है " और ठंडी सास ली, लम्बी
अब चुनिया के साथ बुच्ची ने भी गोड़ पकड़ लिया

" बोलिये न पंडित जी, कुछ भी करुँगी मैं अपने भैया के लिए, भाभी के लिए कोई उपाय तो होगा।
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और गाँव की औरतों ने भी हामी भरी

और एक बार फिर गांव की भौजाइयों को उन्होंने काम सौंप दिया,

" बियाह बैठने के पहले कम से कम दस बार, दूल्हे की बहिनिया पे, और दस बार मतलब दस मरद चढ़ जाएँ, एक मरद कितनी बार पेलेगा, उसकी मर्जी, हाँ दस से ज्यादा हो सकता है कम नहीं "
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और यह जिम्मेदारी भी मुन्ना बहू ने अपने ऊपर ले ली, उनके दिमाग में भरौटी, अहिरौटी, पसियाने के वो लौंडे घूम रहे थे जो चोदते नहीं फाड़ते थे, नोच के रख देते थे और उनकी चुदी, फिर एक तो किसी लंड से घबराती नहीं थी और दूजे बिना लंड के रह नहीं सकती थी, चार पांच लौंडो का मन तो रोज रखेगी, और ऊपर से सूरजु क माई खुदे बोलीं,

" मुन्ना बहु, देवरानी उतारना है तो ये जिम्मेदारी तोहार "
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और अब बुच्ची की लिख गयी थी,

जो लंड के नाम से चिढ़ती थी वो एक से एक छिनारों का नंबर डकाने वाली थी

लेकिन अब ज्योतिषी जी के टारगेट पे दूल्हे की माँ आ गयीं।
 
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दूल्हे की माई –

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लेकिन ज्योतिषी जी की निगाहें किसी और ढूंढ रही थीं,

" अरे दूल्हे क महतारी कहाँ है, न जाने कौन कौन से चुदवाय के गाभिन हुयी हो, अपने भोसड़े से लौंडा निकाली हो, ओकर नूनी सहराये सहराये के तेल लगाए के बड़ा की हो, कहाँ है छिनार "

" अरे इधर हैं, "

एक साथ दसो औरतों की आवाज आयी और सबसे जोरदार आवाज थी, सूरजु की बूआ, कांती बूआ और मामी की, ख़ास तौर से छोटी मामी की।


एक की भौजाई तो दूसरे की ननद,

और भौजाई तो गाँव क कितनी सूरजु क माई के उम्र की लड़कियों की,जब बियाह के आयीं, गौने उतरीं तो कुछ उनकी सास ने सिखाया कुछ मौके का संस्कार, जात बिरादरी अपनी जगह लेकिन गाँव क रिश्ता, खून के रिश्ते से भी बड़ा, तो जो उनकी सास की समौरिया सब सास, सबका गोड़ छूती थीं वो बिना जात बिरादर देखे, चाहे काम वाली भी हो और गाँव की जितनी लड़कियां सब उनकी ननद और सबकी सूरजु क माई भौजाई,
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सूरजु क माई क उमर क लड़कियों की, कुछ पांच दस साल छोट, लेकिन ननद तो ननद, पैदायशी छिनार, और खाली बबुआन की नहीं, उनकी सास ने सिखाया था, बाईसपुरवा एक गाँव है, भले टोले २२ हों, जाति बिरादरी, काम काज अगली जगह, गाँव क रिश्ता अपनी जगह, और सूरजु क माई ने वो बात गाँठ बाँध ली, तो जब गाने में गरियाना शुरू करती तो चमरौटी, अहिरौटी, भरौटी क कउनो बिटिया बचती नहीं, और सबके बियाहे में कउनो टोला हो, कोहबर में ननदोई क रगड़ाई में सबसे आगे, आखिर गाँव क दमाद, उनका नन्दोई, कउनो बिरादरी का हो, कउनो टोला का हो, है तो ननदोई, उनकी सुकुवार ननद को ले जा रहा है तो उसकी माई बहिन गरियाई ही जायेगी,



तो सूरजु की माई ने सबको खाली नेवता नहीं भेजवाया था, बल्कि चिट्ठी भी,

"बिना बूआ के आँगने में नाचे भतीजे क बियाह नहीं होता,,,,, कुल तुम्ही लोगो को सम्हारना है,"



और कुछ तो आ ही गयी थीं, बाकी बरात बिदा करने के पहले, पक्का, और सब की सब बियाहता, लड़कोर, दो चार तो दमाद परछ चुकीं, बहू उतरा चुकीं, मायके और ससुरार दोनों जगह की खेली खायी तो आज कौन लाज शर्म, उहो भौजी की रगड़ाई में, भतीजे क बियाह में,...तो अब सब सूरजु की माई की सब ननदें उनके पीछे पड़ गयीं , खाली बबुआने की नहीं, अहिरौटी, भरौटी कउनो टोला बचा नहीं था

" खड़ी करो रंडी को, अभी उसका भी,... "

पंडित जी हँसते बोले, और भरौटी, अहिरौटी की दो औरतें, गाँव की लड़कियां जो शादी के लिए ही आयी थीं, सूरजु के माई की समौरिया, गाँव के रिश्ते से ननद, उन दोनों ने पकड़ के खड़ा कर दिया और उनका हाथ पंडित जी के आगे,

सूरजु का माई भी मजा ले रही थी, बियाह शादी में यही सब तो मजा है, अपने मायके में सूरजु क कउनो मामी बची नहीं थी, जनको सूरजु की माई ने नंगा करके न नचाया हो, अँगने में, बियाह में, बरात जाने के बाद,



लेकिन पंडित जी ने हाथ देखने से हाथ देखने से मना कर दिया, और सूरजु की माई की नन्दो को गरियाया अलग से,



" अरे हाथ तो मैं कुँवार लड़कियों का नहीं देखती, ....जेकरे भोसड़े से वो लौंडा निकला है, वो भोंसड़ा देखूंगी, खोल के, फैला के छू के, रगड़ के, तब पता चलेगा, इस रंडी क हाल,.... खोल स्साली का, "


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छोटी मामी और कांती बूआ, सूरजु का माई का पेटीकोट उठाने लगीं, लेकिन पंडित जी ने रामपुर वाली भाभी को इशारा किया बस वो आ गयी मैदान में, भले उनकी सास लगे, लेकिन सास की रगड़ाई का मजा ही अलग है,

" अरे ढक्क्न उठाने से कुछ नहीं होगा, ढक्क्न फिर गिर जाएगा, मैं बताती हूँ, रामपुर वाली भाभी बोलीं,


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सूरजु का माई क हाथ तो दोनों , उनकी ननदो के कब्जे में था, वो लाख चूतड़ पटके न वो हाथ छुड़ा सकती थीं, न रामपुर वाली भौजी का हाथ रोक सकती थीं।

बस रामपुर वाली भौजी को मौका मिला गया,

आराम आराम से उन्होंने दूल्हे की माई के पेटीकोट का नाड़ा उनके पेटीकोट से न सिर्फ खोला, बल्कि बाहर निकाल दिया,

और उनकी अहिरौटी वाली ननद के हाथ,

बड़ा जांगर था उस अहिरिनिया के हाथ में, अपनी भौजी का नाडा तोड़ के चार टुकड़े कर के चारो कोनो में फेंक दिया,


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और पेटीकोट सररर कर नीचे सरक गया,



मान गए सब लोग रामपुर वाली भौजी को,

अब नाड़ा सिर्फ दूल्हे की माई का खुला ही नहीं, बल्कि पेटीकोट से बाहर भी हो गया, और चार टुकड़े में, अब चाह के भी वो पेटीकोट नहीं पहन सकतीं,
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नाड़ा ही नहीं तो बांधेगी, क्या,


पेटीकोट भी छोटी मामी ने उठा लिया और उठा के कमरे के दूसरे कोने में,

और अब उनकी ननदिया, सूरजु की माई, एकदम, उन्होंने कोशिश भी की की हथेली से चुलबुलिया को ढंक ले,

लेकिन हाथ तो उनके दोनों ननदों के कब्जे में थे

और क्या बुलबुल थी, देख के कोई नहीं कह सकता था ऐसे तगड़े जवान मरद की माँ हैं,


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बड़ी बहन या हद से हद भाभी ही लगतीं, खैर चिढ़ाती भी सूरजु को वो वैसे हीं थीं ,

घर में वैसे भी खाली माँ बेटा तो कोई जायदा छिपाव, दुराव था भी नहीं, और सूरजु एक नंबर का लजाधुर तो जितना भौजाइयां छेड़तीं उससे ज्यादा, सूरजु की माई, और शादी तय होने के बाद तो और एकदम खुल के मजाक करती थीं,

इमरतिया साथ हो तो और मजे से छेड़ती थीं,

और वैसे भी उस जमाने में जल्दी शादी, और जहाँ नीचे के मैदान में खून खच्चर शुरू हुआ तो गौना, जेठ में ( जून ) में बियाह हुआ, अगहन ( नवंबर ) में गौना, पहले रात में ही सील टूटी, पलंग क पाटी टूटी और नौ महीने में सूरजु बाहर,



गोरी तो थी हीं, अँजोरिया अस रूप, चिकनी मांसल केले के तने सी जाँघे, रेशमी, छूते ही जैसे पुरइन के पात से पानी की बूँद सरक जाए, लेकिन जान मार रही थी, सूरजु की माई की बुर,

ऐसी रसीली तो नयी दुल्हिन की नहीं होती, पावरोटी ऐसी फूली, दोनों फांके चिपकी,


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जैसे गलबाहें बांधे दो अठखेलियां करती हुयी सहेलियां, झांटे तो जैसे कभी आयी नहीं थी, जिस मरद का हकीम लुकमान के नुस्खे से न खड़ा होता हो, उसका ऐसे मालपूवे को देख के सांड़ को मात करेगा,

सूरजु की माई हाथ से ढक नहीं सकती थीं,

पेटीकोट मिल भी जाए तो अब उसमे नाड़ा नहीं था, तो उन्होंने जाँघे कस के भींचने की कोशिश की

पर छोटी मामी सतर्क थीं, उन्होंने रामपुर वाली भौजी को इशारा किया लेकिन उन्हें इशारे की जरूरत नहीं थी,

पहले ही वो सवधान थीं और अपने दोनों उन्होंने सूरजु की माई के दोनों टांगों के बीच डाल के फैला दिया, अब वो लाख कोशिश करें तो भी बुर चिपका नहीं सकती थी, और आगे से मुन्ना बहू और सूरजु की माई के मायके की एक भौजाई ने मिल के दोनों फांके बड़ी ताकत लगा के फैला दिया पूरी ताकत से, और अब लग रहा था भोंसड़ा, जिससे दूल्हा निकला, एकदम अंदर तक साफ़ साफ़ दिख रहा था

एकदम लाल गुलाबी सुरंग अंदर, खूब गीली, चाशनी बह रही थी


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और थोड़ी देर, घुमा घुमा के सब लड़कियों औरतों के सामने
 
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दूल्हा किससे जना


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और कांती बूआ ने पंडित जी से पूछ ही दिया, " दूल्हे का असली बाप कौन, हमरे भैया की…, ?

" ऐसे थोड़ी पता चली, " हंस के पंडित जी बोले, फिर जोड़ा, " अरे लेकिन मैंने एक से एक पंचभतारी रंडियों की पोल खोल दी है, अभी बताती हूँ, स्साली का भोंसड़ा फैलाओ, कस के, "

बस मुन्ना बहू और रामपुर वाली ने सूरजु क माई का बिल कस के फैलाई


लेकिन पंडित जी समझ गए थे की अभी भी बहुत टाइट है तो उन्होंने ऊँगली में थूक लगा के, पहले तो एक ऊँगली, फिर दूसरी ऊँगली किसी तरह कोहनी के जोर से पेली लेकिन बड़ी ताकत के बाद एक पोर घुसी, लेकिन फिर दूल्हे की माई ने खुद ढीली कर ली और गप्प से दोनों ऊँगली अंदर लील ली। पंडित जी गोल गोल घुमाने लगे, और अचानक जोर से बोलने लगे,

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" भौं भौं, भौं भौं "

सूरजु के मायके की भौजाइयां हँसते हुए बोलीं,

" दुलहवा" का कुत्ता क जनमल हो, ननद हमार कुकुरे से चोदावत थीं, ये तो अंदाज था लेकिन, "

तबतक छोटी मामी ने मामला साफ़ किया,

" अरे हम को तो मालूम है, शेरू, अलशेशियन, बड़का कुत्ता, सब लोग कहते थे बचपन से हमरी ननद का दुलरुआ, सोता भी इन्ही की कोठरी में था, तो बस उसी ने पेलवाये होंगी, तो उसका असर दूल्हे पे भी होगा "



सूरजु की माँ बजाय बुरा मानने के अपनी छोटी भौजाई को चिढ़ाते बोलीं,

" अरे सोचने, संकोचने क बात नहीं है, मौका अच्छा है घोंट के देख ला, अगर गाँठ बाँध ले, और रगड़ रगड़ के पेल दे तो समझ ला "

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लेकिन तबतक सिन्पो सिन्पो करते गदहे क बोली बोलने लगीं तो कांती बूआ चिढ़ाते बोलीं

" का भौजी,.... गदहों से "

अबकी बड़ी मामी ने मोर्चा सम्हाला, बोलीं

" अरे तो हमरे ननद को समझती का हो, बचपन का छिनार, इनके मायके का किस्सा हमरे पुछा। और गदहवा कौन इहो हम बताय दे रहे हैं,

अरे हमरे रामू धोबी क बड़का गदहवा, एक दिन धोबिन खुदे हमसे कह रही थीं, बिन्नो सबसे प्यार करती थीं, सबका दिल रखती थीं, यहां तक की जउन हमार बड़का गदहवा बा, उसको भी जब आवें सहलावे, पुचकारे, और वो भी बिनु को देख के हाथ भर क निकाल लेता था। फिर धोबिन कुछ रुक के हमसे बोलीं, 'ये बात केहू से कहियेगा नहीं, एक दिन हम देखे तो बिन्नो, पहले चारो ओर देखीं, गदहवा क लौंड़ा तो बिन्नो को देख के ही फनफनाने लगता था, तो बस बिन्नो, पकड़ के ओकर लौंड़ा सहराने लगीं। हम देख रहे थे छिप के लेकिन बोले नहीं, गाँव का बिटिया, "

"तो ननद रानी ओहि गदहवा क घोंट क,.... गाभिन हुयी हो का "
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लेकिन तब तक पंडित जी घोड़े की तरह हिनहिनाने लगे थे और सब लड़कियां जोर से हंसी,

"तो सूरजु भैया घोड़े क जामल हैं ,"

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लेकिन पंडित जी ने ध्यान नहीं दिया, और इधर उधर देखते हुए छोटी मामी को देख के मुस्कराने लगे, बोले तोहार मर्द

मामी भी हंसी और बोलीं

" एंकर छोट भाई, इनको पेलते थे ये तो हमको जल्द ही मालूम हो गया था, एक दिन हम पूछ लिए की चुदाई क कुल गुण कहाँ सीखे हो तो हंस के बोले, तोहार ननद, बड़ी दीदी, आपने बियाहे के बाद, खुदे एक दिन चढ़ के हमको जबरदस्ती चोद दी थीं,



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फिर हमने भी पटक के उनको नीचे कर दिया और ऊपर चढ़ के चोदा, वही सिखायीं,"



लेकिन ये हमको अंदाज नहीं था की हमरे मरद इनको गाभिन भी किये हैं,काहो ननद रानी, सूरजु के मामा, गाभिन कर के गौने में भेजे थे की चौथी में जब गए थे तब गाभिन किये थे ?


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पंडित जी मजे कभी ऊँगली सूरजु की माई की बुर में करते तो कभी गोल गोल घुमाते,

और सामने से उन्होंने सबको हटा दिया था, जिससे लड़कियां औरतें सब अच्छी तरह देख लें, फिर इशारे से उन्होंने बुच्ची को अपने पास बुलाया और अंगूठे से अब क्लिट रगड़ने लगे, दूल्हे की माई अच्छी तरह पनिया गयी थीं, बुर से पानी निकल रहा था, तभी उन्होंने बूआ की ओर देखा, और बोला, " तोहरे भाई का भी अंदाज लगा "

और पंडित जी ने सूरजु की माई की गीली गीली बुर से पानी में भीगी, रस में डूबी ऊँगली को निकाला और सीधे बुच्ची के मुंह में, और बुच्ची भी प्यार से चाटने चूसने लगी।

और पंडित जी ने बिचार दिया,

" देखा ये पहली बार हो रहा है की मैं साफ साफ़ नहीं बता सकता, ....काहें की ये एक ही दिन, कुत्ता, गदहा, घोडा और फिर छोटी मामी की ओर इशारा करके, ' इनके मरद से और अपने मरद से सबसे चुदवायी, पांच पांच लौंड़ा घोंटने वाली तो कम ही मिलती है लेकिन एक दिन में ही कुत्ता, गदहा, घोडा अपने भाई और मरद सब का बीज घोंट के गाभिन होने वाली पहली हैं ये,

लेकिन असली बात ये नहीं है १२ दिन बाद बियाह है बेटवा का तो ये सब बताओ की अब ये किससे चोदवाएंगी,? "



सबसे पहले जवाब कांती बुआ ने दिया, " दूल्हा के फूफा से, अपने नन्दोई से "



हँसते हुए छोटी मामी बोलीं, " दूल्हे के मामा से, जिसके बीज से दुलहा जनमा है "

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इक गाँव की चाची थीं वो क्यों मौका छोड़ती, बोलीं " अपने देवर से "

सूरजु की माई की एक छोटी बहन आयी थीं, मौके से वो भी नहीं चुकीं बोलीं, " दूल्हे के मौसा से "
 
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दूल्हा किस पे चढ़ेगा ?
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पंडित जी ने मुस्कराकर सब औरतों लड़कियों से सवाल किया, असली बात ये है १२ दिन बाद बियाह है बेटवा का तो ये सब बताओ की अब ये,… किससे चोदवाएंगी, दूल्हा क माई किससे चुदवाएंगी, कौन चढ़ेगा उनके ऊपर

सबसे पहले जवाब कांती बुआ ने दिया, " दूल्हा के फूफा से, अपने नन्दोई से "

हँसते हुए छोटी मामी बोलीं, " दूल्हे के मामा से, जिसके बीज से दुलहा जनमा है "

इक गाँव की चाची थीं वो क्यों मौका छोड़ती, बोलीं " अपने देवर से "

सूरजु की माई की एक छोटी बहन आयी थीं, मौके से वो भी नहीं चुकीं बोलीं, " दूल्हे के मौसा से "

पंडित जी ने हर जवाब पे उन्ह कर दिया

तबतक बुच्ची क्लास के तेज बच्चों की तरह हाथ खड़ा कर के बोली,


" मैं बताऊं "
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" बोल छिनार, गलत जवाब होगा तो अभी तोहार गांड मार ली जायेगी " मुस्करा के पंडित जी बोले,

" इनको चोदेगा, और कोई नहीं, ....दुलहा,… हमार भाई ",

सूरजु की माई को देखते हँसते हुए बुच्ची बोली


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और पंडित जी ने खुश हो के बुच्ची को गले लगा लिया, और बोले

" सही जवाब "

-खूब जोर से हो हो हुआ और सबसे ज्यादा हल्ला हुआ सूरजु के ननिहाल वालों की ओर से, सूरजु की जो मामी लोग आयी थी, सूरजु की माई की भौजाइयां, क्या हल्ला किया और सूरजु की माई की ननदों ने भी लेकिन सबपे भारी पड़ी लड़कियां, बुच्चिया की सहेली शीलवा, चुनिया, गाँव की बेला, गुड्डी, गीता, और यहाँ तक की भरौटी, कहरौटी की लड़कियां भी,

आखिर बुच्ची उन्ही सब की समौरिया था, उन सबकी सहेली, साथ खेली खायी

और बुच्ची ने सही जवाब दिया था सब भौजाइयों, मामी और बूआ लोगो से आगे बढ़ के,


दूल्हे की माई पे दूल्हा चढ़ेगा, ....उन सब का भाई


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बड़की ठकुराइन थोड़ा बुच्ची को देख के बनावटी गुस्से में गुस्साहुईं , फिर मुस्करायीं, और फिर लजा गयीं, और अब उनके लजाने को देख के खूब जोर से हल्ला हुआ और हल्ले में सबसे ज्यादा तेज आवाज अबकी बुच्ची की ही थी,

" तो कौन कौन शामिल होगा,यह पुण्य काम में, ...अगर दूल्हे की छिनार माई छिनरपन करे, दूल्हे को चढ़वाने में, जो उन्हें पकड़ के, हाथ गोड़ छान के"

पंडित जी ने सब लड़कियों और औरतों की ओर देख के पूछा,

" अरे हम लोग हैं न दूल्हे क मामी, कउनो ना इंसाफ़ी नहीं होने देंगे, हंसहंस के कुंवारेपन में दूल्हे क मामा क घोंटी हैं हमार छिनार ननद तो हमरे भांजे के साथ दूल्हे के साथ कौन कंजूसी, हम का खुदे पकड़ के चढ़ाएंगे अपने मर्द की रखैल के को, दूल्हे के मामा चोदी को "

छोटी मामी सब मामियों की ओर से बोलीं, अब मिला था उन्हें अपनी ननद की रगड़ाई का मौका,

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और फिर दूल्हे की बूआ भी मैदान में आ गयीं, सबसे तेज कांती बूआ, बुच्ची क मौसी,

" अरे कैसे नहीं घोंटेंगी, हम लोग काहे के लिए , हमर भौजी, आज तक केहू को मना नहीं की तो दूल्हे को मना करेंगी ? फिर पंडित के पतरा में लिखा है तो करना ही होगा, सीधे से नहीं तो जबरदस्ती , इनकी भौजाई, ननद कुल मिल के,...."

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सूरजु की मामियां और बूआ सब एक साथ हो गयी थीं सूरजु की माई के खिलाफ तो सूरजु की महतारी की जम के रगड़ाई होनी ही थी और बड़की ठकुराइन यही सब तो चाहती थीं, एकलौते बेटवा क शादी है, खूब खुल के मस्ती हो

और बहुये भी आज सासो के खिलाफ, और लीड कर रही थीं रामपुर वाली भौजी जोर से बोलीं,

" असली मजा तो तभी आएगा, जब हमर देवर दिन दहाड़े सब के सामने चढ़ेगा, हमारे सास पर। एक तो शिलाजीत खा खा के, गदहा घोडा से पेलवा के, सांड़ पैदा की हैं, रोज बहुये झेलती हैं तो एक दिन सास भी मजा लें, और बरात जाने के पहले बल्कि मटमंगरा के बाद, आम वाली बगिया में दिन दहाड़े और तनिको नखड़ा की तो हम सब हैं ही न। फिर पंडित जी की बात झूठ नहीं हो सकती, असगुन होगा, घोंटना तो पड़ेगा ही, आखिर कल की वो पढ़ी लिखी दर्जा दस वाली दुलहिनिया आके घोंटेंगी, तो इनके चुदे चुदाए भोंसडे में कौन दिक्कत होगी, दूल्हे का घोंटने में,...
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और एक बार फिर लड़कियों की आवाजों ने रेस जीत ली और अब सबसे खुल के मजा ले रही थीं अहिरौटी, भरौटी कहरौटी वालियां लेकिन सबसे आगे बढ़ के बोल रही थी बुच्ची, सब लड़कियों की ओर देख के, सबको दिखा के बोली,

" अरे हम सब इतने जन है ना , मिल के छाप लेंगे,....

अपने भैया से बेईमानी नहीं होने देंगे, आखिर पतरा में लिखा है , पंडित जी बोल रहे हैं तो सगुन है , एक दो बार घोंट लेंगी तो का हुआ और तनिको नखड़ा की न तो हम सब हैं न पंडित जी, आप की कउनो बात झूठ नहीं होगी "

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दूल्हे की माई धीरे धीरे मुस्कराते सब सुन रही थीं, लेकिन बुच्चीबुच्ची की बात सुन के सूरजु की माई से चुप नहीं रहा गया।

यही बुच्ची की माई को बुच्ची की उम्र ही थीं बल्कि थोड़ी छोटी ही रही होंगी, इस गाँव में होली पे भांग पिला के नंगे नचाया था, इस घर के आंगन में दूल्हे के बाबू और चाचा दोनों साथ साथ चढ़े थे , बुच्ची क माई पे, और कुल भौजाई सामने,अदल बदल कर उनके दोनों भाई दोनों छेद में तीन बार पानी डाले थे,

और वो चाहती भी थीं बुच्ची अपने ननिहाल में जरा खुल के मजा ले, इसलिए इमरतिया और मुन्ना बहू दोनों को उन्होंने बुच्ची के पीछे चढ़ाया था, और अब वो खुद गरमा रही थी, स्साली एकदम अपनी माँ पे गयी थी, तो मुस्करा के बुच्ची को चिढ़ाते हुए वो बोलीं,

" अरे सूप तो सूप बोले चलनी बोले जिसमें बहत्तर छेद, खुद तो अपने भैया क लौंड़ा देख के घबड़ा गयी, आज तक तो घोंट नहीं पायी, तो हमको का बोल रही हो, पहले तू तो घोंट अपने भैया का, दूल्हे का, ....फिर,"
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और यहीं उनकी बात बुच्ची ने पकड़ ली, और हंस के बोली, " बस इतनी सी बात, कल सूरज डूबे के पहले, सूरजु भैया क हम घोंट लेंगे "

लेकिन सूरजु क माई तो खेली खायी का पेटीकोट फाड़ देती थीं, बुच्ची तो अभी सीख रही थी, वो बुच्ची के पीछे पड़ गयी,

" अरे रंडी क जनी, क्या घोंट लेगी, ...कहाँ घोंट लेगी, ....स्साली तेरी माँ की,... मौसी की गांड मारुं, नाम लेने में तो तेरी गांड फट रही है,..... घोंटेंगी का "
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अब ये चैलेंजे था बुच्ची के लिए।

वो खुल के बोली,

" अपने भैया का, सूरजु भैया क लंड घोंट लूंगी कल सूरज डूबने के पहले, अपनी बिन चुदी, कच्ची कोरी बुर में ठीक। लेकिन अब बिना हमरे भैया से चुदवाये आपकी भी बचत नहीं है,... सीधे से तो नहीं जबरदस्ती और हम सब के सामने "
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बुच्ची की बात सुन के पंडित जी बहुत खुश और उसको दबोच के खुल के बुच्ची की चूँची दबाते बोले

" सही बात "

और पंडित जी ने कस के बुच्ची की चूँची नीबू की तरह निचोड़ते हुए इमरतिया, मुन्ना बहू और गाँव की बाकी भौजाइयों की ओर देखते हुए उन्हें उकसाया,

" हे स्साली इस लौंडिया ने दूल्हे की बहिनिया ने सही जवाब दिया तो इसको इनाम तो मिलना चाहिए ना "

" एकदम " सब भौजाइयां समझती हुयी, हंसती हुईं एक आवाज में बोली।

" तो गाँव क कउनो लौण्डा बचाना नहीं चाहिए जिसका लौंड़ा ये न घोंटी हो, इससे बढ़िया इनाम का होगा, बस एक बार ये अपने भैया से फड़वाय ले, इसके बाद दुनो छेद से सडका टपकता रहना चाहिए दिन रात, "

अब तो भरौटी, अहिरौटी, कहारौटी की सब भौजाइयां, काम करनेवालियाँ एकदम खुश,

पठान टोली वाली नयकी सैयदायिन भौजी बुच्ची को चिढ़ाती बोलीं, " अरे अब तो न हमारे कोई देवर बचेंगे न भाई "


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लेकिन ननदे कौन कम थीं, जवाब पठान टोला वाली नजमा ने ही अपनी भाभी को दिया,

" अरे भाभी जान, आप लोगो से न तो कोई अपना देवर बचता है न भाई तो हम ननदों का नंबर कहा से आएगा "


और असली हथोड़े की मार की मुन्ना बहू ने बुच्ची और पंडित जी दोनों से एक साथ बोला

" न हम भौजाई के देवरन क कमी न भाई क, फिर बियाह शादी क घर, लौंडन से कचमच कचमच हो रहा है, अरे पंडित जी का आशिर्बाद , एक क्या, एक साथ दो दो तीन तीन चढ़वाऊंगी, सीधे से नहीं तो जबरदस्ती, बारी बारी से का मजा आएगा, यह छिनार को .

लेकिन अभी असली बात तो दूल्हे की माई की थी और छोटी मामी ने अपनी ननद की बात आगे बढ़ाई,

" अरे यह गाँव क हो या हमरे गाँव में, हमरे ससुरार में बिना भाई क लंड घोंटे, बहिन को झांट नहीं आती लेकिन दूल्हे का माई क बताइये "



और पंडित जी ने इमरतिया और मुन्ना बहू को देख कर उस विषय पर भी प्रकाश डाला

और आग्गे का प्रोग्राम बता दिया, इमरतिया और मुन्ना बहू की ओर देखकर,

" जो जो दूल्हे की भौजाई हैं उनकी जिम्मेदारी, सहला के, चूस के चूम के, पहले दूल्हे का लंड खड़ा करें "

लेकिन उनकी बात आगे बढ़ी नहीं की इमरतिया मार गुस्से के लाल, जोश में खड़ी हो गयी,

" हे पंडित जी धोतिया खींच लेब तोहार जो हमरे देवर क कुछ बोला, अरे हमरे देवर का हरदम खड़ा रहता है, और बहिन महतारी क खाली नाम ले ला, ओकरे आगे , बस अइसन फनफना के लौंड़ा खड़ा होता है की खड़ी पक्की दीवार छेद दे, बहिन महतारी कौन चीज हैं। :

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और इमरतिया ने कोहनी तक अपना हाथ दिखा के कहा

" अस है हमरे देवर क, गदहा घोडा झूठ, तो लंड तो हमारे देवर क खड़ा ही है, बस आगे की बात करा "

और आगे की बात भी हो गयी, घर में कमरे में क्या मजा, अरे जंगल में मोर नाचा तो किसने देखा, तो बड़की बगिया में


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जहाँ मटमंगरा होगा, बस वहीं, दूल्हे के ऊपर दूल्हे की महतारी चढ़ाई जाएंगी, दूल्हे की आँख मूँद के,

" दूल्हे क महतारी को हम लोग पकडे रहेंगे कहीं बड़का खूंटा देख के भाग न जाए "

हँसते हुए छोटी मामी बोलीं तो छटक के सूरजु की माई बोली इमरतिया और बुच्ची से

" तू लोग अपने देवर और भाई को सम्हालना, मैं न डरने वाली, न घबराने वाली, जिसके बाप का रोज निचोड़ के रख देती थीं "

और तय यह हुआ की बस तीन चार दिन बाद, गाँव की अमराई में, लड़कियों बहुओं की जिम्मेदारी होगी, दूल्हे को छाप के पटक के लिटाने की, खूंटा खड़ा करने की, दूल्हे की बूआ और मामी सब, मतलब दूल्हे की महतारी की ननदें और भाभियाँ मिल के दूल्हे की महतारी को खड़े खूंटे पे चढ़ायेंगी, बुच्ची अपने भैया का खूंटा उनकी बिल फैला के सटायेगी, और फिर अहिरौटी, भरौटी वाली और बाकी सब बहुएं मिल के अपनी सास को अपने देवर के खूंटे पे गपागप गपागप

लेकिन उनकी बात पूरी नहीं हो पायी, किसी लड़की ने पंडित जी की धोती खींच दी, दूसरे ने कुर्ता



और कौन, मंजू भाभी थीं,

पंडित बन के आयी थीं, फिर तो उसके नीचे का उनका पेटीकोट खुला, ब्लाउज खुला और अब नन्दो की बारी थीं



उसके बाद तो एकदम मस्ती, करीब घंटे भर



दो बजे सभा विसर्जित हुयी, और सूरजु की माई सबसे गले मिली, गाँव का रिवाज था जो भी आता था उसे सवा सेर गुड़ की डाली मिलती थीं आज उसके साथ आधा सेर लड्डू भी था, और सबसे वो बोलती गयीं, " कल भी आना है और आज से भी ज्यादा मस्ती होगी कल, और लड़कियों को तो जरूर आना है "

दस पन्दरह मिनट में सब खाली हो गया, हाँ कोहबर रखाने वाली, इमरतिया, मंजू भाभी, मुन्ना बहू, बुच्ची और शीला कोहबर में गयीं और आज उनके साथ रामपुर वाली भाभी भी थीं।
 
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सुरजू
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बेचारे सुरजू की हालत खराब थी,



इमरतिया ने जो आठ दस छेद किये थे उनके कमरे की खिड़की में, बाहर का हाल खुलासा दिख रहा था, आवाज तो पहले भी छन छन के आती थी, लेकिन आज तो एक एक गाना, वो सोचते भी नहीं थी की औरते, ऐसे गाली दे सकती है, चलो काम करने वाली, आपस में और कुछ जो भौजाई लगाती थीं, उनसे भी, ख़ास कर मुन्ना बहू तो बिना गरियाये, चिढ़ाए छोड़ती नहीं थी,

' ये जो आगे लटकाये घुमते हो न खाली मूतने के लिए नहीं है,' या कभी उन्हें जल्दी होती थी, तो, " का बहिन चोदने जा रहा हो जो इतनी जल्दी है, बहुत गर्मायी है तोहार बहिनिया "

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पर आज तो, हद थी, रामपुर वाली भौजी, उनके ननिहाल की, छोटी मामी, और यहाँ तक की लड़कियां, रामपुर वाली भौजी की छुटकी बहिनिया, चुनिया, कैसे खुल के बुच्चिया को गरिया रही थी थी, और बुच्ची भी मजा ले रही थी।



लेकिन उनके आँख के सामने जो घूम रही थी, सोच के तन्ना रहा था, बार बार होंठों पे मुस्कराहट आ रही थी, मन से हट नहीं रहा था,



उनकी माई की,
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फिर सूरजु को इमरतिया की बात याद आ गयी, स्साले, जब सोचोगे तो लंड बुर चूत ही सोचो और वही बोल, कुछ और बोले तो तो तेरी, और माई ने भी बोला था की इमरतिया भौजी की बात मानना, बार बार आँख के सामने वही घूम रही थी,

माई की बुर

एकदम मस्त, पेलने लायक, कचकचा के पूरे ताकत से
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असल में इसके पहले उसने बुर ठीक से देखि कहाँ थी, हाँ इमरतिया भौजी की, देखी भी, ली भी, छुई भी,

पर एक तो बंद कोठरी में एकदम अँधेरा सा था, दुसरे लजा रहा था और फिर उसकी आँखे तो बार बार चोरी छुपे, इमरतिया का गदराया जोबन देख रहे थीं, पहले भी मन करता था, बस दबा दे, चूस ले, भौजी क बड़ी बड़ी चूँची, तो उसके चक्कर में भौजी का चूँची,

वैसे तो भौजी ने बुच्ची क बुरिया भी खोल के खूब देर तक दिखायी थी, ठीक से दरार दिख भी नहीं रही थी ऐसी चिपकी, जहानत भी नहीं

लेकिन फिर वही लजाने वाली बात और बुच्ची का समझेगी की भैया कैसे बेशर्म की तरह देख रहे हैं , तो मन तो बहुत कर रहा था लेकिन लजा के आँख नीचे,



पर माई की, उन्हें या किसी को भी, नहीं पता था की मैं देख रहा हूँ,


फिर लाइट बहुत जबरदस्त थी, ऊपर से रामपुर वाली भौजी और छोटी मामी, दो बड़ी बड़ी टार्च ले कर सीधे माई की बुरिया के ऊपर, और रामपुर वाली भौजी चिढ़ा भी रही थी, गा रही थीं,


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"बाइस्कोप देखो, बाइस्कोप देखो, देखो देखो, देखो तमाशा देखो, दूल्हा क माई क बुरिया देखो, "

एकदम साफ़, कितनी मुलायम, चिकनी टाइट, पावरोटी ऐसी फूली फूली, और दोनों फांके एकदम संतरे की फांक ऐसी रसीली लगरही थी, मुंह में लेके चूसने में चाटने में कितना मजा आएगा लेकिन सबसे ज्यादा अंदर पेलने में



और सब औरतें यहाँ तक की लड़कियां कैसे उसी का नाम ले ले के माई को चिढ़ा रही थीं

और माई भी ऊपर से और आग में घी डालरही थी,

" ले आओ अपने भाई को, तुम सब के सामने न चोद दिया उस बहनचोद को, बहुत लम्बा मोटा कर रही हो, एक बार में पूरा घोंटूंगी
और निचोड़ के रख दूंगी, जिस बहनचोद के बाप के ऊपर चढ़ के कितनी बार चोद दिया, तो उसके बेटे को, "
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और फिर बुच्ची को देख के तो एकदम पीछे पड़ गयी थीं



" स्साली खुद तो घबड़ा रही हो अपने भाई का लेने से और मुझसे, " ;


लेकिन बुच्ची खूब गर्मायी थी, सूरजु सोच के, बुच्ची को याद करके मुस्कराये , कैसे माई को पट से जवाब दिया

" मैं क्यों घबड़ाउंगी, मेरा तो भाई है, मैं तो जब चाहे तब ले लूंगी, और आधा तिहा नहीं पूरा घोंटूंगी "


माई और छोटी मामी बुच्ची के पीछे पड़ गयीं,

" फट जायेगी, कोई मोची सिल भी नहीं पायेगा, चिथड़े चिथड़े कर देगा वो, दो दिन तक चल नहीं पाओगी, खूब खून खच्चर होगा, "

हसंते हुए वो लोग बुच्ची को चिढ़ा रही थीं।

" होगा तो होगा, और मुझे मोची से सिलवाने की क्या जरुरत, और मेरा भाई है मैं तो अब बिना घोंटे छोडूंगी नहीं, चाहे वो चिथड़े चिथड़े करे, चाहे खून खच्चर हो, अरे दर्द तो होगा मुझे न, चिल्लाऊंगी तो मैं न, किसी की गांड काहे फट रही है, भाई का लौंड़ा बहन नहीं घोंटेंगी तो कौन घोटेंगा, और जो दस दिन बाद आ रही हैं, मेरे भैया से चुदवाने, अपने माई बाप को छोड़ के, ....आखिर मेरे भैया के लंड के लिए

तो, तो वो ले सकती है तो मैं क्यों नहीं, एक ही साल तो मुझसे बड़ी है "

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बुच्ची
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और सूरजु के सामने बार बार बुच्ची की तस्वीर, सिर्फ आज की नहीं पिछले सालों की भी, लड़कियां सच में जल्दी जवान होती है और गाँव की तो और, साल दो साल पहले राखी में,

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यही आयी थी, अपने छोटे छोटे चूजे, बस आना ही शुरू हुए थे, उभार के उन्हें चिढ़ाते हुए पूछ रही थी,

" भैया, मिठाई खानी है, ऐसे नहीं मिलेगी, एक बार मुंह खोल के मांगना पड़ेगा, "

उनकी निगाह उन्ही कच्चे टिकोरों पर चिपकी थी, ललचा तो वो भी रहे थे,


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लेकिन उस समय लंगोट की पाबंदी, गुरु जी का हुकुम, अखाड़े का अनुशासन, और ये बात बुच्ची को भी मालूम थी इसलिए और ललचाती थी, और अब तो उससे भी बहुत बड़े हो गए थे, देख के किसी का भी फनफना जाए, और अब तो लंगोट की पाबंदी भी नहीं,

ललचा तो वो अब भी रहे थे लेकिन बस अभी थी थोड़ा बहुत, कुछ लाज, कुछ सीधे होने की इमेज, लेकिन अब और नहीं,

कैसे सबेरे सबेरे जब इमरतिया भौजी ने बुच्ची की फ्राक उठा दी, उस की गुलबिया, कैसे रसीली पनियाई, मीठी मीठी लग रही थी, ताज़ी जलेबी फेल,

लेकिन बुच्ची ने ढंकने की छिपाने की कोई कोशिश नहीं की, बल्कि टुकुर टुकुर उन्हें देख रही थी, मुस्करा रही थी, वही लजा के आँख नीचे कर लिए, और आज रात में जब खाना ले के आयी, तो वो और इमरतिया भौजी, सोच के सूरजु का फनफना रहा था,

" हे छिनार, अरे हमरे देवर की गोद में बैठ के अपने हाथ से खिलाओ, ऐसे ननद नहीं हो "

इमरतिया ने न सिर्फ बोला बल्कि धक्का देके उसे सुरजू की गोद में, और भौजी वो भी इमरतिया जैसी हो, साथ ही साथ उसने सुरजू की गोद से वो तौलिया खींच दिया और ननद की स्कर्ट उठा दी,



तबतक घिस्सा मार के, बुच्ची अपने भैया की गोद में बैठ चुकी थी और इमरतिया की बात का जवाब सीधे सुरजू को देते मुस्करा के आँख नचा के बोली,

" हे भैया, अपने हाथ से खिलाऊंगी, और तोहें अब आपन हाथ इस्तेमाल ये बहिनिया के रहते इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है "

" और क्या बहिनिया तोर ठीक कह रही है लेकिन कल की लौंडिया, गिर पड़ेगी, कस के अपने हाथ से पकड़ लो इसे " इमरतिया ने मुस्करा के सुरजू को ललकारा, बुच्ची के आने के पहले ही दस बार वो समझा चुकी थी, अब लजाना छोड़े, बुच्ची के साथ खुल के मजा ले, वो कच्ची उम्र की लौंडिया खुल के बोलती है, मजे लेती है सुरजू पीछे रहा जाता है।



सुरजू ने हाथ कमर पे लगाया लेकिन इमरतिया ने पकड़ के सीधे गोल गोल चूँचियों पे ," एकदम बुरबक हो का, अरे बिधना इतना बड़ा बड़ा गोल गोल लड़की की देह में बनाये हैं पकड़ने के लिए और तू " और ये करने के पहले बुच्ची का टॉप भी उठा दिया,



अब सुरजू के दोनों हाथ बुच्ची के बस जस्ट आ रहे उभारो पे, एकदम रुई के फाहे जैसे, उसे लग रहा था किसी ने दोनों हाथो में हवा मिहाई आ गयी हो, वो बस हिम्मत कर के छू रहा था और नीचे अब बुच्ची के खुले छोटे छोटे चूतड़ों से रगड़ के उसका खूंटा एकदम करवट ले रहा था और ऊपर से बुच्ची और डबल मीनिंग डायलॉग बोल के

" भैया पूरा खोल न मुंह, अरे जैसा हमार भौजी लोग बड़ा बड़ा खोलती हैं, क्यों भौजी " इमरतिया को चिढ़ाती बुच्ची बोली

और जिस तरह से बुच्ची सूरजु की गोद में बैठी थी सूरजु का खुला खूंटा एकदम बुच्ची की बिल पे सटा चिपका, और उस बदमाश ें खुद अपने हाथ से सीधे भैया के मस्ताए लंड को पकड़ लिया और अपनी बिल के ऊपर सुपाड़ा पागल हो रहा था, उस दर्जा नौ वाली टीनेजर की कच्ची कसी फांको पे रगड़ रहा था, धक्के मार रहा था।



सूरजु यही सोच रहे थे, थोड़ा सा हिम्मत किये होते, खूंटे पे भौजी इतना तेल लगाए थीं, जरा सा धक्का मारे होते कम से कम सुपाड़ा फंस जाता, उस कच्ची चूत का कुछ तो रस मिल जाता, और वो एकदम मना नहीं करती, वही चूक गए,

लेकिन कल अगर अकेले आयी या इमरतिया भौजी भी साथ में रही तो बीना पेले छोड़ेगा नहीं


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अब एक बार लंड ने बुर का मजा ले लिया, शेर आदमखोर हो गया और चुनिया और बुच्ची की मस्ती देख के सूरजु की और हालत खराब थी

बुच्ची की खुली बुर, पे चुनिया मजे से अपनी हथेली रगड़ रही थी, फिर कउनो भरौटी वाली भौजी उसको ललकारी तो अपनी बुरिया बुच्ची के बुर पे रगड़ते, कुछ बुच्ची के कान में बोली तो बुच्ची जोर से हंस के जवाब दी,

" हमरे भैया तोहरी गांड क भाड़ बना देंगे, और बिना मारे छोड़ेंगे नहीं, "

चुनिया ने कुछ हंस के बुच्ची को चिढ़ाया तो बुच्ची बोली,

" हमार भैया हैं, चाहे अगवाड़ा लें, चाहे पिछवाड़ा लें, तोहार झांट काहे सुलगत बा, अरे इतना मन कर रहा है तो चल यार बचपन की सहेली हो. तोहें भी दिलवा दूंगी,... भैया संग मजा "


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और रामपुर वाली भौजी भी कितनी मस्त लग रही थीं,

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बुच्ची के पीछे वो भी पड़ी थीं, लेकिन सूरजु तो रामपुर वाली क पिछवाड़ा देख रहे थे और याद कर रहे थे की मुन्ना बहू एक दिन उन्हें चिढ़ा रही थी, 'देवर जिस औरत क पिछवाड़ा जितना चौड़ा, समझो उतनी बड़ी लंड खोर और झट से चुदवाने के लिए तैयार हो जायेगी, '

और रामपुर वाली तो मजाक में सबसे आगे



और छोटी मामी भी जिस तरह माई के साथ मजे ले रही थीं, और वो न जाने कब से सूरजु के पीछे पड़ी थीं, मजाक में तो रामपुर वाली का भी नंबर डका देती थीं, बिना गाली के बात नहीं करती थीं, चाहे जो हो, आते ही सूरजु से पूछा, " अभी तक किसी को पेले हो की नहीं, अरे अब तो लंगोट क कसम ख़तम हो गयी, अखाड़े से निकल आये हो "

फिर पहले लोवर के ऊपर से सहलाया, फिर जब तक सूरजु सम्हले, उनका हाथ रोके, छोटी मामी ने लोवर में हाथ डाल के दबोच लिया और सांप को मुठियाते छेड़ी, " वाकई बड़ा हो गया है, अब इसको जल्दी से बिल में घुसेड़ दे, '

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और फिर हलके से उनके कान में फुसफुसा के बोलीं,

" तेरी बरात जाने के पहले, मेरी बिल तो इसे निचोड़ ही लेगी, "

और जब भी उन्हें देखतीं तो आँचल तो सरक ही जाता, अंगूठे और ऊँगली से चुदाई का निशान बना के चिढ़ातीं,

" बोल, अभी हुआ की नहीं, अरे जल्दी से खाता खोल, वरना मैं ही नंबर लगा दूंगी, कब तक ऐसे लटकाये घूमोगे, पेलने, ठेलने की चीज है, धकेल दो, मौका देख के नहीं तो मैं खुद चढ़ के"

और आज तो छोटी मामी ने हद कर दी, माई को जब भी गरियाती, उसी का नाम ले के, " अरे चोदवाय लो, अइसन मोट बहुत दिन से नहीं घोंटी होंगी, और हम तो छोड़ेंगे नहीं, बिना चढ़े "


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सूरजु का बड़े जोर से सोच सोच के फनफना रहा था, एकदम खड़ा टनटनाया, इमरतिया भौजी ने सही कहा था,

"कउनो औरत, लौंडिया को देखों तो बस ये सोच, स्साले, की केतना मस्त माल है, पेलने में चूँची दबाने में केतना मजा आएगा, न उमर न रिश्ता,.... खाली चूत"

और ऊपर से बुच्चिया जिस तरह से खुल के अपनी चूत उसके खूंटे पे रगड़ी थी, खाना खिलाते समय, अब जब भी मौक़ा मिलेगा, बिना पेले छोड़ेंगे नहीं स्साली को।

सूरजु का मन कर रहा था अपने खूंटे को छू लें, पकड़ ले, लेकिन इमरतिया भौजी ने मना किया था,

" खबरदार, जो छुआ, अरे घर में बहन भौजाई है, तोहार महतारी, मामी, बुआ चाची है, "



लेकिन तभी कुछ आहट हुयी और उन्होंने चादर तान ली,



दरवाजा जरा सा खुला, फिर बंद हो गया।



मंजू भाभी थीं,

जब तक गाना बजाना चला, मरद तो आस पास नहीं फटक सकते थे, गाने की भनक भी नहीं, तो सीढ़ी का दरवाजा भी बंद था और उसमे ताला लगा था, चाभी मुन्ना बहु के पास, लेकिन दूल्हे को तो उसी कमरे में रहना था तो मंजू भाभी और मुन्ना बहु ने मिल के उसे भी बाहर से न सिर्फ बंद कर दिया, बल्कि दूल्हे के कमरे में बाहर से छह इंच का मोटा लाहौरी ताला लगा दिया, और चाभी मंजू भाभी ने अपने आँचल में बांध ली।



तो बस मंजू भाभी वही ताला खोल रही थीं, और उनसे नहीं रहा गया तो दरवाजा खोल के झाँक लिया, देवर सो रहा है या जाग रहा है



गाढ़ी नींद में चादर ताने सूरजु सो रहे थे, लेकिन, मंजू भाभी मुस्करायी, ' वो ' जाग रहा था, बित्ते भर से भी ज्यादा चादर तनी थी, एकदम खड़ी

मन तो उनका किया, कमरे में घुस के, चादर हटा के कम से कम मुंह में ले के एक बार चुभला लें, चूस ले, इमरतिया सही कहती थी,छिनार ने पक्का घोंटा होगा, बित्ते से भी बड़ा है और ज्यादा बड़ा है,

लेकिन छत पर अभी भी दूल्हे की माई थी, भरौटी वाकई कुछ औरतों से गले मिल रही थीं, मजाक कर रही थीं और समझा रही थी, '


अरे लड़कियों को तो जरूर, अरे बियाह शादी में तो कुल गुन ढंग देखती सीखती हैं, और कल हल्दी है, तो हल्दी में भी पक्का "



मुन्ना बहू, बुच्ची को ले कर कोहबर में अभी गयी थी और रामपुर वाली शीला के साथ, इमरतिया तो दूल्हे के माई के ही साथ थी



मंजू भाभी भी कोहबर में चली गयी और पीछे पीछे इमरतिया भी और कोहबर का दरवाजा भी रात भर के लिए बंद हो गया।

सूरजु क माई, अब छत पर अकेले बची थीं, कोहबर का दरवाजा भी अंदर से बंद हो गया था, और किसी तरह साड़ी लपेटे झपटे, और मुस्करा रही थीं,

' ये रामपुर वाली भी, असल छिनार है, लेकिन है मजेदार, पेटकोट का नाड़ा उनका ऐसा तोडा की पेटीकोट पहन भी नहीं सकती थीं वो, ब्लाउज तो खैर, कांति बूआ और छोटी मामी ने दो हिस्से में बराबर बराबर उनका बाँट लिया था, तो बस साड़ी लपेटे, और नीचे वो दोनों, इन्तजार भी कर रही होंगी, शादी बियाह का घर तो जमीन पे बिस्तर, और बड़ी बड़ी रजाई, एक कमरे में लड़कियां सब, और एक कमरे में औरतें, और एक एक रजाई में घुसूर मुसुर के तीन तीन चार चार, और उनकी रजाई में तो पहले ही कांती बूआ और छोटी मामी ने हक जमा लिया था, एक ओर भौजाई, एक ओर ननद और रात भर, बदमाशी दोनों की,



सूरजु क कोठरिया का दरवाजा, थोड़ा सा खुला था, और सूरजु की माई ने हलके से झाँका, " देखूं ओढ़े हैं ठीक से की नहीं "
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और जो देखा उन्होंने तो मुंह खुला का खुला रह गया, और सीना गज भर का, बल्कि ३६ नंबर वाला ४० नंबर का हो गया, किस महतारी का नहीं हो जाता देख कर,

गरम चादर, थोड़ी सरक गयी थी और जबरदंग मूसलचंद एकदम बाहर,

और सोते में ये हाल था, तो जगने पे तो, इमरतिया सही कहती थी, बित्ते से भी बहुत बड़ा, और सुपाड़ा एकदम खुला, लाल टमाटर, खूब मोटा,



उनकी भौजाइयां और ननदें तो ठीक, बहुये भी और सबसे आगे रामपुर वाली,

" मटकोर में बड़की बगिया में दूल्हे के खूंटे पे दूल्हे की माई को चढ़ाया जाएगा,"



कुछ सोच के वो मुस्करायी,

सूरजु क बाबू, उनका भी तो, जबरदस्त था, आठ दस गाँव में, नाम था, सूरजु अस सोझ नहीं थे, कउनो कुँवार लड़की, औरत, और जो एक बार उनके नीचे आ जाती थी, तीन दिन टांग फैला के चलती थी और चौथे दिन खुद आ जाती थी, लेकिन उन्हें फरक नहीं पड़ता था, बंधे तो थे उन्ही के आँचल से, शाम को तो घर आते ही थे और फिर उनका नंबर लगता था, कुचल के रख देते थे



लेकिन उनके लड़के के आगे कुछ नहीं था, अगर उनका बित्ते भर का रहा होगा तो सूरजु का तो सोते में भी डेढ़ बित्ते का खड़ा है



लेकिन सूरजु क माई सोच में पड़ गयी, नयकी का कौन हाल होगा, उनको तो उनकी माई, सूरजु की नानी खूब समझा के भेजी थीं, अपने से जाँघे फैला लेना, देह ढील रखना, पलंग कस के पकड़ लेना, ज्यादा चीखना मत, बाहर ननदें कान पारे बैठी रहती हैं, और तेल वेळ लगा के,



लेकिन नयकी क माई, उनकी समधन तो गजब, बेटी बिहाने जा रही हैं लेकिन बस एक रट, " हमार बेटी पढ़ी लिखी है, सबकी तरह नहीं, पढ़ाई में मन लगता है उसका" अरे कौन समझाये उनको पढ़ाई के लिए नहीं चुदाई के लिए आ रही है, और रोज चोदी जायेगी, दोनों जून बिना नागा



लेकिन उनके दिमाग में रामपुर वाली का ख्याल आया, देवर देवरानी का ख्याल भौजी नहीं करेंगी तो कौन करेगा, वो और मुन्ना बहू मिल के,… नहीं तो मंजू भी

नयकी की बुरिया में कम से कम पाव भर ( २५० ग्राम ) कडुआ तेल, एक बार में नहीं तो दो तीन बार में, ….नखड़ा पेलेगी तो थोड़ा समझाय बुझाय के थोड़ी जबरदस्ती, ,,,कुछ तो चिकनाई रहेगी. और उनके साथ भी तो यही हुआ था, सगी जेठानी तो कोई थी नहीं, यही अहिराने और भरौटी की, यही मुन्ना बहू क सास, केतना सरसों क तेल,



और एक बार फिर उन्होंने अपने मुन्ना के मुन्ना को देखा और सोचा और इमरतिया तो परछाई की तरह साथ रहेगी तो वो तो बिना कहे अपना पेसल तेल दो चार बार लगा के चमका के, देवर को भेजेगी, लेकिन नयकी क बिलिया भी खूब चपाचप होनी चाहिए, सूरजु के बाबू तो बियाहे के पहले ही एकदम खिलाड़ी थे, लेकिन उनका बेटवा तो एकदम सोझ, लजाधुर, खाली अखाड़ा के दांव पेंच वाला, और दंगल जीत के आये तो कुल इनाम माई के गोड़े में, दस पांच गाँव नहीं चार पांच जिले में नाम है उनके बेटवा का, लेकिन अब तो, खैर इमरतिया तो थोड़ बहुत सिखाय पढ़े देगी , असल में खूब खायी, चुदी चुदाई औरतें ही मरदो को दांव पेंच अच्छे से सीखा पाती हैं, वो भी एक दो नहीं चार पांच, लेकिन कुँवारी भी, एकदम कच्ची कोरी भी, अरे एक बार सील तोड़े रहेगा, खून खच्चर देखे रहेगा तो घबड़ायेगा नहीं, तो नई दुल्हिन खूब नखड़ा करती है, भौजाई कुल सिखाई के भेजी रहती हैं, और ये तो ऐसे ही दस बार बोलेगी की मैं तो पढ़ाई वाली हूँ, और फिर एक से नहीं, बुच्चिया तो ठीक लेकिन कम से कम दो तीन और कच्ची कोरी, भरौटी में है एक दो, बुच्ची से भी कच्ची, कम उमर वाली लेकिन देह में करेर, मुन्ना बहू को बोलती हूँ, वो ये सब काम में तेज है, कल हल्दी में ले आएगी,



और उन्होंने मुन्ना बहू को आवाज लगाई, " हे मुन्ना बहू, नंदों क मजा बाद में लेना, मैं नीचे जा रही हूँ, सीढ़ी का दरवाजा बंद कर लो "



और वो सीढ़ी से उतर कर अपनी ननद ( कांती बूआ ) और भौजाई ( छोटी मामी ) का मजा लेने चल दी।
 
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rajkomal

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बेहद उम्दा और बेहतरीन | आपकी मेहनत दिख रही है | जितना सोचा था उससे भी बहुत अच्छा | यह ज्योतिष वाला आईडिया एकदम मस्त था. इसने सबको टारगेट भी दे दिया कि किसको क्या क्या करना है | अब देखना है जो आजतक आपकी किसी भी स्टोरी में नहीं हुआ | Son-Mom. मुझे केवल यह इंटरेस्ट है कि आप इसको किस तरह लिखेंगी | इस फोरम पर तो बहुत सारी स्टोरी इसी मिल जाती है किन्तु आप कैसा लिखेंगी यह देखना intersting होगा |
 

Chalakmanus

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छुटकी -होली दीदी की ससुराल में

भाग १११ पंडित जी और बुच्ची की लिख गयी किस्मत
२८,५३,५०१
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जबतक सूरजु की माई ये किस्सा सुना रही थीं की एक ज्योतिषी आये /आयीं

ज्योतिषी जी लगता है सीधे बनारस से आये थे, पोथी पत्रा समेटे, माथे पे त्रिपुण्ड, खूब गोरे, थोड़े स्थूल, धोती जैसे तैसे बाँधी, ऊपर से कुरता पहने, एक हाथ में चिमटा भी,खड़का के बोले,

" अलख निरंजन, अलख निरंजन, किसी को बच्चा न हो रहा हो, कोई लंड के बिन तरस रही हो, बाबा सब का हल करेंगे, सबकी परेशानी दूर करेंगे, सबका भाग बाँचेंगे "

चुनिया तो आज अपनी सहेली बुच्ची की ऐसी तैसी करवाने पे जुटी है, बस ज्योतिषी जी का पैर पकड़ लिया और छोड़ने को तैयार नहीं,...

" आप मेरी इस बेचारी सहेली का कल्याण कर दीजिये, बहुत परेशान है बेचारी,… जो दक्षिणा कहियेगा देगी, आप की सब बात मानेगी, "

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" अच्छा तो ये दूल्हे की बहिनिया भी है " पंडित जी ने बुच्ची के गोरे गोरे मुखड़े को देख कर कहा,

" सगी से बढ़कर, …सगी तो कोई है नहीं तो ये सगी से बढ़कर, राखी यही बांधती है, सब रसम बहन वाली यही " मुन्ना बहु ने जोर से हंकार लगाई
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और ज्योतिषी जी बैठ गए, बुच्ची का बायां हाथ पकड़ लिया और सब ओर देख के बोले,

" यह छिनरिया क भौजाई कौन है "

इमरतिया, मुन्ना बहु, रामपुर वाली भाभी सब ने जोर की हंकार लगाई, लेकिन डांट पड़ी इमरतिया को, और हुकुम हुआ,



" ये कहती है की कोरी है, अभी तक लंड का सुख नहीं लिया तो पहले खोल के जांच कर के मुझे दिखाओ "

जबतक इमरतिया आती रामपुर वाली भाभी ने बुच्ची का हाथ पकड़ के खड़ा कर दिया और छोटी सी स्कर्ट कमर पे, इमरतिया और मुन्ना बहु ने बुच्ची को जकड़ लिया और रामपुर वाली ने पहले तो हथेली से सबको दिखाते हुए बुच्ची की बुर को रगड़ा थोड़ी देर और जब पनिया गयी तो दोनों फांको को पूरी ताकत से फ़ैलाने की कोशिश की,

बुच्ची की बुरिया सच में नहीं खुल पायी, बड़ी मुश्किल से, कोई बहुत कोशिश करेगा तो बस पतली वाली ऊँगली वो भी एक, तेल वेल लगा के, कलाई की पूरी ताकत से एक पोर भी घुस जाए तो बड़ी बात,

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और सब भौजाइयों का मन खुश हो गया, कोई अपने भाइयों के मजे के बारे में सोच के, कोई देवरों के लेकिन सबसे ज्यादा इमरतिया मुस्करा रही थी, आज तो उसने घोंट के देख भी लिया था, अब तक परपरा रही थी, टमाटर ऐसा मोटा सुपाड़ा था सूरजु का और कड़ा भी कितना, और कमर में जोर तो, सांड मात। और इस पतली संकरी दरार में जाएगा, लेकिन जाएगा तो जाएगा, भैया बहिनिया का रिश्ता है, बिना चुदे तो बचेगी नहीं,

लेकिन इमरतिया का ध्यान टूटा ज्योतिषी जी की डांटसे,

" कौन भौजाई है कोहबर रखाने वाली, सुन लो कान और गांड दोनों खोल के, कल सांझ होने के पहले, ये अपने भाई से, दूल्हे से चुद जानी चाहिए, और झूठ मुठ का नहीं, सच्ची, कम से कम दो भौजाइयां, इस स्साली की बुर में ऊँगली डाल के मलाई जांचेगी तब माना जाएगा इसने अपने भैया क मलाई घोंट ली है "
Lo buchi ke chut fatai ka date bhi fix ho gaya.
 
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