मेरी ससुरार का गांव -
घर घर की कहानी
और फिर गाँव का हर किस्सा, मेरे जमाने का ही नहीं उनके ज़माने का,
यानी उनकी गाँव के रिश्ते की ननदें, मेरी बुआ सास, उनकी जेठानिया, मेरी चचिया सास सब, लेकिन ज्यादातर उनकी ननदों का और एक से एक हॉट किस्से, और गाँव के मर्दो के भी
एक दिन मैंने उन्हें ककोल्ड टाइप कोई बात बतायी, कुछ मरद होते हैं की उनके सामने कोई दूसरा मरद उनकी औरत पे चढ़े तो उन्हें अच्छा लगता है, कई तो अपने हाथ से पकड़ के अपनी मेहरारू की बिल में
मेरी सास हँसते हुए लहालोट, मुझे दबोच के कस के चूमते हुए बोलीं
" अरे तुम तो पढ़ी लिखी, पढ़ी बात कह रही हो, मैं तो आँखों देखी, तुम भी उनको देखी हो मिली हो और जो अपने मरद के सामने दूसरे मर्द के बीज से जुड़वाँ तोहार ननद है उनहू से, "
और जब उन्होंने नाम बताया तो मेरे तो पैरों से जमीन निकल गयी, दोनों जुड़वा बहने मेरी मंझली की उम्र की, इस साल दोनों का दसवा था
हम सब भौजाइयां उन दोनों को छुई मुई कहते थे, लजाती इतनी थीं और गुदगुदी भी दोनों को खूब लगती थी, वैसे तो कहीं शहर में , लखनऊ, इलाहाबाद कही, लेकिन दोनों अपने ननिहाल गर्मी की छुट्टी में महीने भर और जाड़े में भी दस पंद्रह दिन, तो सबसे खूब घुली मिली और उसके अलावा, शादी बियाह तीज त्यौहार,
और गाँव हो या शहर, ननदें जितनी छिड़ती हैं, लजाती हैं मजाक से उछलती है भौजाइयां उतनी ही ज्यादा और गाँव में तो और ज्यादा खुल के ही
कोई नाउन कहारीन उन दोनों को देख के चिढ़ा के गाना शुरू कर देती है
" बिन्नो तेरी अरे बिन्नो तेरी भो, बिन्नो तेरी भो, "
और वो दोनों चिढ के अपनी माँ से शिकायत करतीं, ' मम्मी देखिये भौजी छेड़ रही हैं "
तो कोई भौजाई और आग लगाती , " तो तुम दोनों को मालूम है क्या, भो से क्या, "
और वो कहारिन छेड़ती " अरे अभी से भोंसड़ा हो गया है क्या, जो भो से,... और फिर गाना पूरा कराती
" बिन्नो तेरी भोली सुरतिया, बिन्नो तेरी बू , बिन्नो तेरी बु "
एक बार मैं और पीछे पड़ गयी, मैंने गुलबिया के इशारा किया और उसने फ्राक उठा दी और मैंने चड्ढी पकड़ के, सर सररर , नीचे और गुलाबी दरवाजा दिख गया '
" अरे झूठे तुम लोग भोंसड़ा कह रही थी देख अभी तो झांटे भी ठीक से नहीं आयी हैं " दोनों को चिढ़ाते मैं बोली। ननद तो ननद। ननद की उम्र थोड़े ही देखि जाती है
अगले दिन दोनों शलवार पहन के आयीं तो बस एक भौजाई ने एक हाथ पकड़ा और दूसरे ने दूसरा और आराम से मैंने धीरे धीरे शलवार का नाडा खोल दिया।
वो बेचारी अपनी माँ से शिकायत करतीं लेकिन हम सब की बुआ सास, उलटे हम सब का साथ देतीं, बोलतीं
" अरे तुम सब क भौजाई बहुत सोझ हैं, हम लोगन क भौजाई तो दो दो ऊँगली एक साथ सीधे अंदर तक डाल के हाल चाल लेती थीं, मलाई चेक करती थीं। तुम सब क भाई रोज तोहरे भौजाई क नाड़ा खोलते हैं,... तो उन सब का भी तो हक़ है "
और रतजगे में हम सब की सास लोग बुआ की खूब, सब से पहले उन्ही का पेटीकोट खुलता था।
लेकिन वो खूब हंसमुख, खुल के मजाक वाली, तो मेरी सास ने उन के कुंवारेपन से लेकर कैसे उनके मरद को दूसरे को उनके ऊपर चढ़ाने का
.....सुनाऊँगी, वो सब किस्सा भी सुनाऊँगी और मेरी सास ने न सिर्फ अपनी ननदों का बल्कि गाँव के मर्दो का भी
एक दिन मैंने उनसे सुगना के ससुर का , हम दोनों सब्जी काट रहे थे, तो एक एक किस्सा और तभी ग्वालिन चाची आ गयीं और गुलबिया की सास तो और, सुगना के ससुर सूरजबली सिंह का जिससे, इमरतिया, उस का भी पूरा किस्सा
तो गाँव के एक एक मरद का, ....पठान टोली के सैय्यद लोगो का भी
मेरी सास के साथ एक बहुत अच्छी बात थी, कोई टोला हो कोई पुरवा, कोई बिरादरी, बरात बिदा करनी हो, दुल्हिन उतारनी हो या बेटी क बिदाई , वो सबसे आगे, और अब उनके साथ मैं भी। भले मैं साल भर पहले की ही गौने की उतरी लेकिन हर जगह, सुख दुःख में सास के साथ मैं भी
और सास की सहेलियां थीं, ग्वालिन चाची, गुलबिया क सास, बड़की नाउन, हों या पंडाइन चची सब पुरवा में , सब से मेरी भी तो सास के सामने वो लोग खुल के बात करतीं, और मुझे भी गाँव भर के मर्दो का औरतों का हाल और पांच दिन में बहुत कुछ पता चला
तो पांच दिन के बाद मेरे सास का बेटा आया और फिर,....
बताउंगी, वो सब किस्सा भी
लेकिन उसके पहले दो बातें एक तो अब तक कहानी काफी कुछ क्रमानुसार चल रही थी एक एक दिन की हाल चाल जैसी लेकिन अब एक प्रकरण शुरू करुँगी तो उसके कुछ हिस्से मेरे गाँव में आने के पहले के होंगे तो कुछ बाद के लेकिन वो सब एक साथ ही और एक किस्सा ख़त्म होने के बाद दूसरा और छुटकी वाला सबसे बाद में जब वो बैंगलोर से लौट आएगी तो
और दूसरी बात
अगला किस्सा होगा सुगना और उनके ससुर का,
कुछ झलक तो पहले मिल गयी थी बस बात वहीँ से शुरू करुँगी
वाह कोमल मैम
तीनों कहानियों पर ताबड़तोड़ अपडेट।
इस कहानी वाले अपडेट ने तो सारी कसर ही निकाल दी।
रही बात सुगना और ससुर की तो इस फोरम पर उपलब्ध एक कहानित "तनी धीरे ... दुखाता.... " जैसा कुछ लगता है।
खैर अब आपने पाठकों की सुध ली है तो बहुत कुछ धमाकेदार होने की आशा है।
सादर