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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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38,721
259
Aapko bhi dard hota hai :shocked: Aap to maya moh aur sukh dukh se bahut door hain na :?:
jeena isi ka naam hai...................

apne swayam ke kaam, krodh, mad, lobh, moh, trishna, bhay aur sukh-dukh se vichlit nahin hota .............. yahi moksh hai
lekin dusron ka to vichalit karta hai......... khaskar jab wo us kasht ko dur karne mein saksham naa ho


is update mein meri samvedna bhabhi ke sath hain

thakur sahab aur vaibhav se samvedna nahin, unki pratikriya ka intzar hai ............
 

Luckyloda

Well-Known Member
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158
अध्याय - 63
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



अब तक....

"अब तो नर संघार होगा अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर के हलक से एकाएक गुर्राहट निकली____"अभी तक हम चुप थे लेकिन अब हमारे दुश्मन हमारा वो रूप देखेंगे जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी न की होगी। एक एक को अपनी जान दे कर इस सबकी कीमत चुकानी होगी।"


कहने के साथ ही दादा ठाकुर ने शेरा को वापस चलने का हुकुम दिया। इस वक्त उनके चेहरे पर बड़े ही खूंखार भाव नज़र आ रहे थे। दादा ठाकुर को अपने जलाल पर आया देख अर्जुन सिंह पहले तो सहम सा गया लेकिन फिर राहत की सांस ली। जीप वापस हवेली की तरफ चल पड़ी थी। वातावरण में एक अजीब सी सनसनी जैसे माहौल का आभास होने लगा था। ऊपर वाला ही जाने कि आने वाले समय में अब क्या होने वाला था?

अब आगे....


दादा ठाकुर के पहुंचने से पहले ही हवेली तक ये ख़बर जंगल में फैलती आग की तरह पहुंच गई थी कि जगताप और अभिनव को हवेली के दुश्मनों ने जान से मार डाला है। बस फिर क्या था, पलक झपकते ही हवेली में मानों कोहराम मच गया था। नारी कंठों से दुख-दर्द और करुणा से मिश्रित चीखें पूरी हवेली को मानों दहलाने लगीं थी। हवेली की ठकुराईन सुगंधा देवी, मझली ठकुराईन मेनका देवी, और हवेली की लाडली बेटी कुसुम इन सबका मानों बुरा हाल हो गया था। जगताप के दोनों बेटे विभोर और अजीत भी रो रहे थे और सबको सम्हालने की कोशिश कर रहे थे। हवेली में काम करने वाली नौकरानियां और नौकर सब के सब इस घटना के चलते दुखी हो कर रो रहे थे।

उस वक्त तो हवेली में और भी ज़्यादा हाहाकार सा मच गया जब दादा ठाकुर हवेली पहुंचे। उन्हें बखूबी एहसास था कि जब वो हवेली पहुंचेंगे तो उन्हें बद से बद्तर हालात का सामना करना पड़ेगा और साथ ही ऐसे ऐसे सवालों का भी जिनका जवाब दे पाना उनके लिए बेहद मुश्किल होगा। अंदर से तो अब भी उनका जी चाह रहा था कि औरतों की तरह दहाड़ें मार मार कर रोएं मगर बड़ी मुश्किल से उन्होंने अपने जज़्बातों को कुचल कर खुद को जैसे पत्थर का बना लिया था। पूरा नरसिंहपुर हवेली के बाहर जमा था, जिनमें मर्द और औरतें तो थीं ही साथ में बच्चे भी शामिल थे। सबके सब रो रहे थे। जैसे जैसे ये ख़बर फैलती हुई लोगों के कानों तक पहुंच रही थी वैसे वैसे हवेली के चाहने वाले हवेली की तरफ दौड़े चले आ रहे थे।

"कहां है हमारा बेटा जगताप और अभिनव?" दादा ठाकुर अभी बैठक में दाखिल ही हुए थे कि अचानक उनके सामने सुगंधा देवी किसी जिन्न की तरह आ गईं और रोते हुए उनसे मानों चीख पड़ीं____"आप उन दोनों को सही सलामत अपने साथ क्यों नहीं ले आए?"

दादा ठाकुर ने कोई जवाब नहीं दिया। असल में वो जवाब देने की मानसिकता में थे ही नहीं। उनके अंदर तो इस वक्त भयानक चक्रवात सा चल रहा था जिसे वो किसी तरह सम्हाले हुए थे। उनके साथ दूसरे गांव का उनका मित्र अर्जुन सिंह भी था और साथ ही कुछ और भी लोग जिनसे उनके घनिष्ट सम्बन्ध थे।

"आप चुप क्यों हैं?" जब दादा ठाकुर कुछ न बोले तो ठकुराईन सुगंधा देवी बिफरे हुए अंदाज़ में चीख पड़ीं_____"आप बोलते क्यों नहीं कि हमारे बेटे कहां हैं? क्या हमें इतना भी हक़ नहीं है कि अपने बेटों के मुर्दा जिस्मों से लिपट कर रो सकें? आप इतने पत्थर दिल कैसे हो सकते हैं दादा ठाकुर? क्या उनके लहू लुहान जिस्मों को देख कर भी आपका कलेजा नहीं फटा?"

"खुद को सम्हालिए ठकुराईन।" अर्जुन सिंह ने बड़े धैर्य से कहा_____"ठाकुर साहब पर ऐसे शब्दों के वार मत कीजिए। वो अंदर से बहुत दुखी हैं।"

"नहीं, हर्गिज़ नहीं।" सुगंधा देवी इस बार गुस्से से चीख ही पड़ीं_____"ये किसी बात से दुखी नहीं हो सकते क्योंकि इनके सीने में जज़्बातों से भरा दिल है ही नहीं। ये भी अपने बाप पर ग‌ए हैं जिन्हें लोगों को दुख और कष्ट देने में ही खुशी मिलती थी। हमने न जाने कितनी बार इनसे पूछा था कि हवेली के बाहर आख़िर ऐसा क्या चल रहा है जिसके चलते हमारे अपनों के साथ ऐसी घटनाएं हो रहीं हैं लेकिन ये हमेशा हमसे सच को छुपाते रहे। अगर हम कहें कि जगताप और अभिनव की मौत के सिर्फ और सिर्फ आपके ये ठाकुर साहब ही जिम्मेदार हैं तो ग़लत न होगा। इनकी चुप्पी और बुजदिली के चलते आज हमने अपने शेर जैसे दोनों बेटों को खो दिया है।"

कहने के साथ ही सुगंधा देवी फूट फूट कर रो पड़ीं। उनके जैसा ही हाल मेनका और कुसुम का भी था। दोनों के मन में कहने के लिए तो बहुत कुछ था मगर दादा ठाकुर से कभी जुबान नहीं लड़ाया था इस लिए ऐसे वक्त में भी कुछ न कह सकीं थी। बस अंदर ही अंदर घुटती रहीं। इधर सुगंधा देवी की बातों से दादा ठाकुर के अंदर जो पहले से ही भयंकर चक्रवात चल रहा था वो और भी भड़क उठा। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता वो तेज़ी से अंदर की तरफ बढ़ते चले गए। कुछ देर में जब वो लौटे तो उनके हाथ में बंदूक थी और आंखों में धधकते शोले। उनके तेवर देख सबके सब दहल से गए। अर्जुन सिंह फ़ौरन ही उनके पास गए।

"नहीं ठाकुर साहब, ऐसा मत कीजिए।" अर्जुन सिंह ने कहा_____"अभी ऐसा करना कतई उचित नहीं है। हमें सबसे पहले ये पता करना होगा कि मझले ठाकुर जगताप और बड़े कुंवर अभिनव पर किसने हमला किया था?"

"अब किसी बात का पता करने का वक्त नहीं रहा अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर गुस्से में गुर्राए____"अब तो सिर्फ एक ही बात होगी और वो है_____नर संघार। हमें अच्छी तरह पता है कि ये सब किसने किया है, इस लिए अब उनमें से किसी को भी इस दुनिया में जीने का हक नहीं रहा।"

"माना कि आपको सब पता है ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा_____"लेकिन इसके बावजूद इस वक्त आपको ऐसा रुख अख्तियार करना उचित नहीं है। इस वक्त हवेली में आपका रहना बेहद ज़रूरी है और इस सबकी वजह से जो दुखी हैं उनको सांत्वना देना आपका सबसे पहला कर्तव्य है। एक और बात, हवेली के बाहर इस वक्त सैकड़ों लोग जमा हैं, वो सब आपके चाहने वाले हैं और इस सबकी वजह से वो सब भी दुखी हैं। उन सबको शांत कीजिए, समझाइए और उन्हें वापस घर लौटने को कहिए। इसके बाद ही आपको कोई क़दम उठाने के बारे में सोचना चाहिए।"

अर्जुन सिंह की बातों ने दादा ठाकुर के अंदर मानों असर डाला। जिसके चलते उनके अंदर का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ और फिर वो बैठक से बाहर आ गए। हवेली के सामने विसाल मैदान पर लोगों की भीड़ को देखते हुए उन्होंने बड़े ही शांत भाव का परिचय देते हुए उन सबका पहले तो अभिवादन किया और फिर सबको लौट जाने का आग्रह किया। आख़िर दादा ठाकुर के ज़ोर देने पर सब एक एक कर के जाने लगे किंतु बहुत से ऐसे अपनी जगह पर ही मौजूद रहे जो दादा ठाकुर के कहने पर भी नहीं गए। उनका कहना था कि जब तक हवेली के दुश्मनों को ख़त्म नहीं कर दिया जाएगा तब तक वो कहीं नहीं जाएंगे और खुद भी दुश्मनों को ख़त्म करने के लिए दादा ठाकुर के साथ रहेंगे।

वक्त और हालात की गंभीरता को देखते हुए अर्जुन सिंह ने बहुत ही होशियारी से दादा ठाकुर को कोई भी ग़लत क़दम उठाने से रोक लिया था और साथ ही हवेली की सुरक्षा व्यवस्था के लिए आदमियों को लगा दिया था। अपने एक दो आदमियों को उन्होंने अपने गांव से और भी कुछ आदमियों को यहां लाने का आदेश दे दिया था।

गांव के जो लोग रह गए थे उन्हें ये कह कर वापस भेज दिया गया था कि जल्दी ही उन्हें दुश्मनों को ख़त्म करने का अवसर दिया जाएगा। सब कुछ व्यवस्थित करने के बाद अर्जुन सिंह दादा ठाकुर को बैठक में ले आए। इस वक्त बैठक में कई लोग थे जो गंभीर सोच के साथ बैठे हुए थे। इधर दादा ठाकुर के चेहरे पर रह रह कर कई तरह के भाव उभरते और फिर लोप हो जाते। उनकी आंखों के सामने बार बार अपने छोटे भाई जगताप और उनके बेटे अभिनव का चेहरा उजागर हो जाता था जिसके चलते उनकी आंखें नम हो जाती थीं। ये वो ही जानते थे कि इस वक्त उनके दिल पर क्या बीत रही थी।

शहर से पुलिस विभाग के कुछ आला अधिकारी भी आए हुए थे जो ऐसे अवसर पर दादा ठाकुर को यही सलाह दे रहे थे कि खुद को नियंत्रित रखें। असल में कानून के इन नुमाइंदों को अंदेशा ही नहीं बल्कि पूरा यकीन था कि जो कुछ भी हुआ है उसके बाद बहुत कुछ अनिष्ट हो सकता है जोकि ज़ाहिर है दादा ठाकुर के द्वारा ही होगा इस लिए वो चाहते थे कि किसी भी तरह का अनिष्ट न हो। जगताप और अभिनव के मृत शरीरों की जांच करने के लिए उन्होंने अपने कुछ पुलिस वालों के साथ शहर भेज दिया था। हालाकि दादा ठाकुर ऐसा बिलकुल भी नहीं चाहते थे किंतु आला अधिकारियों के अनुनय विनय करने से उन्हें मानना ही पड़ा था।

✮✮✮✮

"नहीं, ये नहीं हो सकता।" शेरा के मुख से सारी बातें सुनते ही मैं हलक फाड़ कर चीख पड़ा था और साथ ही शेरा का गिरेबान पकड़ कर गुस्से से बोल पड़ा_____"कह दो कि ये सब झूठ है। कह दो कि मेरे चाचा जी और मेरे भैया को कुछ नहीं हुआ है।"

बेचारा शेरा, आंखों में आसूं लिए कुछ बोल ना सका। उसे यूं चुप देख मेरा खून खौल उठा। दिलो दिमाग़ में बुरी तरह भूचाल सा आ गया। मारे गुस्से के मैंने शेरा को ज़ोर का धक्का दिया तो वो फिसलते हुए पीछे जा गिरा। उसने उठने की कोई कोशिश नहीं की। इधर मैं उसी गुस्से में आगे बढ़ा और झुक कर उसे उसका गिरेबान पकड़ कर उठा लिया।

"तुम्हारी ज़ुबान ख़ामोश क्यों है?" मैं ज़ोर से चीखा____"बताते क्यों नहीं कि किसी को कुछ नहीं हुआ है?"

घर के बाहर इस तरह का शोर शराबा सुन कर अंदर से सब भागते हुए बाहर आ गए। मुझे किसी आदमी के साथ इस तरह पेश आते देख सबके सब बुरी तरह चौंक पड़े थे।

"रुक जाइए वैभव महाराज।" वीरेंद्र फौरन ही मेरे क़रीब आ कर बोला____"ये क्या कर रहे हैं आप और ये आदमी कौंन है? इसने ऐसा क्या कर दिया है जिसके लिए आप इसके साथ इस तरह से पेश आ रहे हैं?"

वीरेंद्र के सवालों से आश्चर्यजनक रूप से मुझ पर प्रतिक्रिया हुई। मेरी हरकतों में एकदम से विराम सा लग गया। आसमान से गिरी बिजली जो कहीं ऊपर ही अटक गई थी वो अब जा कर मेरे सिर पर पूरे वेग से गिर पड़ी थी। ऐसा लगा जैसे जिस जगह पर मैं खड़ा था उस जगह की ज़मीन अचानक से धंस गई है और मैं उसमें एकदम से समा गया हूं। आंखों के सामने अंधेरा सा छा गया और इससे पहले कि चक्कर खा कर मैं वहीं गिर पड़ता वीरेंद्र ने जल्दी से मुझे सम्हाल लिया।

मेरी हालत देख कर सब के सब सन्नाटे में आ गए। हर कोई समझ चुका था कि कुछ तो ऐसा हुआ है जिसकी वजह से मेरी ऐसी हालत हो गई है। मुझे फ़ौरन ही बैठक में रखे लकड़ी के तख्त पर लेटा दिया गया और मुझ पर पंखा किया जाने लगा। मेरी हालत देख कर सब के सब चिंतित हो उठे थे। वहीं दूसरी तरफ घर के कुछ लोग शेरा से पूछ रहे थे कि आख़िर ऐसा क्या हुआ है जिसकी वजह से मेरी ये हालत हो गई है? उन लोगों के पूछने पर शेरा कुछ बोल नहीं रहा था। शायद वो समझता था कि सच जानने के बाद कोई भी इस सच को सहन नहीं कर पाएगा और यहां जिस चीज़ की वो सब खुशियां मना रहे थे उसमें विघ्न पड़ जाएगा।

जल्दी ही मेरी हालत में थोड़ा सुधार हुआ तो मुझे होश आया। मैं एकदम से उठ बैठा और बदहवास सा सबकी तरफ देखने लगा। हर चेहरे से होती हुई मेरी नज़र रागिनी भाभी पर जा कर ठहर गई। वो चिंतित और परेशान अवस्था में मुझे ही देखे जा रहीं थी। उन्हें देखते ही मेरे अंदर बुरी तरह मानों कोई मरोड़ सी उठी और मैं फफक फफक कर रो पड़ा। मुझे यूं रोते देख भाभी चौंकी और एकदम से घबरा ग‌ईं। वो फ़ौरन ही मेरे पास आईं और मुझे खुद से छुपका लिया।

"क्या हुआ वैभव?" वो मेरे चेहरे पर अपने कोमल हाथ फेरते हुए बड़े घबराए भाव से बोलीं_____"तुम इस तरह रो क्यों रहे हो? तुम तो मेरे बहादुर देवर हो, फिर इस तरह बच्चों की तरह क्यों रो रहे हो?"

भाभी की बातें सुनकर मैं और भी उनसे छुपक कर रोने लगा। मेरे अंदर के जज़्बात मेरे काबू में नहीं थे। सहसा मैं ये सोच कर कांप उठा कि भाभी को जब सच का पता चलेगा तो उन पर क्या गुज़रेगी? नहीं नहीं, उन्हें सच का पता नहीं चलना चाहिए वरना वो तो मर ही जाएंगी। एकाएक ही मेरे अंदर विचारों का और जज़्बातों का ऐसा तूफान उठा कि मैं उसे सम्हाल न सका। भाभी से लिपटा मैं बस रोए जा रहा था। मुझे रोता देख भाभी भी रोने लगीं। बाकी सबकी भी आंखें नम हो उठीं। किसी को भी समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसके चलते मैं इस तरह रोए जा रहा हूं। सबको किसी भारी अनिष्ट के होने की आशंका होने लगी थी। सबके ज़हन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे थे।

"तुम्हें मेरी क़सम है वैभव।" भाभी ने रूंधे हुए गले से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मुझे सच सच बताओ कि आख़िर क्या हुआ है? बाहर मौजूद शेरा ने तुमसे ऐसा क्या कहा है जिसे सुन कर तुम इस तरह रोने लगे हो?"

"सब कुछ ख़त्म हो गया भाभी।" भाभी की क़सम से मजबूर हो कर मैंने रोते हुए कहा तो भाभी को झटका सा लगा, बोली____"स..सब कुछ ख़त्म हो गया, क्या मतलब है तुम्हारा?"

"बस इससे आगे कुछ नहीं बता सकता भाभी।" मैंने उनसे अलग हो कर तथा खुद को सम्हालते हुए कहा____"क्योंकि ना तो मुझमें कुछ बताने की हिम्मत है और ना ही आप में से किसी में सुनने की।"

मेरी बात सुन कर जहां भाभी एकदम से अवाक सी रह गईं वहीं बाकी लोगों के चेहरे भी फक्क से पड़ गए। मैंने बड़ी मुस्किल से अपने जज़्बातों को काबू किया और तख्त से उठ कर खड़ा हो गया। मेरे लिए अब यहां पर रुकना मुश्किल पड़ रहा था। मैं जल्द से जल्द हवेली पहुंच जाना चाहता था। मैं अच्छी तरह समझ सकता था कि इस समय हवेली में मेरे अपनों का क्या हाल हो रहा होगा।

"मुझे सच जानना है वैभव।" भाभी ने कठोर भाव से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"आख़िर क्या छुपा रहे हो मुझसे?"
"बस इतना ही कहूंगा भाभी।" मैंने उनसे नज़रें चुराते हुए गंभीरता से कहा____"कि जितना जल्दी हो सके यहां से वापस हवेली चलिए। मैं बाहर आपके आने का इंतजार करूंगा।"

कहने के साथ ही मैं तेज़ क़दमों के साथ बाहर आ गया। मेरे पीछे बैठक में सब के सब भौचक्के से खड़े रह गए थे। उधर मेरी बात सुनते ही भाभी ने बाकी सबकी तरफ देखा और फिर बिना कुछ कहे अंदर की तरफ चली गईं। उन्हें भी समझ आ गया था कि बात जो भी है बहुत ही गंभीर है और अगर मैंने वापस हवेली चलने को कहा है तो यकीनन उनका जाना ज़रूरी है।

बाहर आया तो देखा भाभी के पिता और उनके भाई शेरा के पास ही अजीब हालत में खड़े थे। उनकी आंखों में आसूं देख मैं समझ गया कि शेरा ने उन्हें सच बता दिया है। मुझे देखते ही वीरेंद्र मेरी तरफ लपका और मुझसे लिपट कर रोने लगा।

"ये सब क्या हो गया वैभव जी?" वीरेंद्र रोते हुए बोला_____"एक झटके में मेरी बहन विधवा हो गई। इतना बड़ा झटका कैसे बर्दास्त कर सकेगी वो?"

"चुप हो जाइए वीरेंद्र भैया।" मैंने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा____"भाभी को अभी इस बात का पता नहीं चलना चाहिए, वरना वो ये सदमा बर्दास्त नहीं कर पाएंगी। मैं इसी वक्त उन्हें ले कर गांव जा रहा हूं।"

"मैं भी आपके साथ चलूंगा।" वीरेंद्र अपने आंसू पोंछते हुए बोला____"ऐसे वक्त में हम आपको अकेला यूं नहीं जाने दे सकते।"

"सही कहा तुमने बेटे।" भाभी के पिता जी ने दुखी भाव से कहा_____"इस दुख की घड़ी में हम सबका वहां जाना आवश्यक है। एक काम करो तुम अपने भाइयों को ले कर जल्द ही इनके साथ यहां से निकलो।"

"नहीं बाबू जी।" मैंने कहा____"इन्हें मेरे साथ मत भेजिए। ऐसे में भाभी को शक हो जाएगा कि कोई बात ज़रूर है इस लिए आप इन्हें हमारे जाने के बाद आने को कहिए।"

मेरी बात सुन कर उन्होंने सिर हिलाया। अभी हम बात ही कर रहे थे कि तभी भाभी अपना थैला लिए हमारी तरफ ही आती दिखीं। उन्हें देख कर एक बार फिर से मेरे दिल पर मानों बरछियां चल गईं। मैं सोचने लगा कि इस मासूम सी औरत के साथ ऊपर वाले ने ऐसा ज़ुल्म क्यों कर दिया? बड़ी मुश्किल से तो उनकी जिंदगी में खुशियों के पल आए थे और अब तो ऐसा हो गया है कि चाह कर भी कोई उनके दामन में खुशियां नहीं डाल सकता था। मुझे समझ न आया कि मैं ऐसा क्या करूं जिससे मेरी भाभी को कोई दुख तकलीफ छू भी न सके। अपनी बेबसी और लाचारी के चलते मेरी आंखें छलक पड़ीं जिन्हें फ़ौरन ही पलट कर मैंने उनसे छुपा लिया।

कुछ ही देर में मैं जीप में भाभी को बैठा कर शेरा और अपने कुछ आदमियों के साथ अपने गांव नरसिंहपुर की तरफ चल पड़ा। मेरे बगल से भाभी बैठी हुईं थी। वो गुमसुम सी नज़र आ रहीं थी, ये देख मेरा हृदय ये सोच कर हाहाकार कर उठा कि क्या होगा उस वक्त जब उन्हें सच का पता चलेगा? आख़िर कैसे उस अहसहनीय दुख को सह पाएंगी वो? मैंने मन ही मन ऊपर वाले से उन्हें हिम्मत देने की फरियाद की।

गांव से निकल कर जब हम काफी दूर आ गए तो भाभी ने मुझसे फिर से पूछना शुरू कर दिया कि आख़िर क्या बात हो गई है? उनके पूछने पर मैंने बस यही कहा कि हवेली पहुंचने पर उन्हें खुद ही पता चल जाएगा। मैं भला कैसे उन्हें सच बता देता और उन्हें उस सच के बाद मिलने वाले दुख से दुखी होते देखता? जीवन में कभी ऐसा भी वक्त आएगा इसकी कल्पना भी नहीं की थी मैंने। आंखों के सामने बार बार अभिनव भैया का चेहरा दिखने लगता था और न चाहते हुए भी मेरी आंखें भर आती थीं। अपने आंसुओं को भाभी से छुपाने के लिए मैं जल्दी से दूसरी तरफ देखने लगता था। मेरा बस चलता तो किसी जादू की तरह सब कुछ ठीक कर देता और अपनी मासूम सी भाभी के पास किसी तरह की तकलीफ़ न आने देता मगर मेरे बस में अब कुछ भी नहीं रह गया था।

मुझे याद आया कि जो लोग मुझे चंदनपुर में जान से मारने के इरादे से आए थे उनमें से एक ने मुझे बताया था कि वो लोग किसके कहने पर मेरी जान लेने आए थे? साहूकारों पर तो मुझे पहले से ही कोई भरोसा नहीं था लेकिन वो इस हद तक भी जा सकते हैं इसकी उम्मीद नहीं की थी मैंने। मुझ पर उनका कोई बस नहीं चल पाया तो उन्होंने मेरे चाचा और मेरे बड़े भाई को मार दिया। मुझे समझ में नहीं आया कि ये सब कैसे संभव हुआ होगा उनके लिए? मेरे चाचा और भैया उन लोगों को कहीं अकेले तो नहीं मिल गए होंगे जिसके चलते वो उन्हें मार देने में सफल हो गए होंगे। ज़ाहिर है वो लोग पहले से ही इस सबकी तैयारी कर चुके थे और मौका देख कर वो लोग उन पर झपट पड़े होंगे।

सोचते सोचते मेरे अंदर दुख तकलीफ़ के साथ साथ अब भयंकर गुस्सा भी भरता जा रहा था। मैं तो पहले ही ऐसे हरामखोरों को ख़ाक में मिला देना चाहता था मगर पिता जी के चलते मुझे रुकना पड़ गया था मगर अब, अब मैं किसी के भी रोके रुकने वाला नहीं था। जिन लोगों ने चाचा जगताप और मेरे भाई की जान ली है उन्हें ऐसी मौत मारुंगा कि किसी भी जन्म में वो ऐसा करने की हिमाकत न कर सकेंगे।

क़रीब सवा घंटे बाद मैं हवेली पहुंचा। इस एहसास ने ही मुझे थर्रा कर रख दिया कि अब क्या होगा? मेरी भाभी कैसे इतने भयानक और इतने असहनीय झटके को बर्दास्त कर पाएंगी? मेरी नज़रें हवेली के विशाल मैदान के चारो तरफ घूमने लगीं जहां पर कई हथियारबंद लोग मुस्तैदी से खड़े थे। ज़ाहिर है वो किसी भी खतरे का सामना करने के लिए तैयार थे। वातावरण में बड़ी अजीब सी शान्ति छाई हुई थी किंतु हवेली के अंदर किस तरह का हड़कंप मचा हुआ है इसका एहसास और आभास मुझे बाहर से ही हो रहा था।

हवेली के मुख्य दरवाज़े के क़रीब जीप को मैंने रोका और फिर उतर कर मैं दूसरी तरफ आया। मैंने देखा भाभी मुख्य दरवाज़े की तरफ ही देखे जा रहीं थी। उनके मासूम से चेहरे पर अजीब से भाव थे। उन्हें देख कर एक बार फिर से मेरा हृदय हाहाकार कर उठा। मैंने बड़ी मुश्किल से अपने अंदर उठे तूफान को काबू किया और भाभी की तरफ का दरवाज़ा खोल दिया जिससे भाभी ने एक नज़र मुझे देखा और फिर सावधानी से नीचे उतर आईं।

अपने सिर पर साड़ी का पल्लू डाले वो अंदर की तरफ बढ़ गईं तो मैंने जीप से उनका थैला लिया और शेरा को जीप ले जाने का इशारा कर के भाभी के पीछे हो लिया। जैसे जैसे भाभी अंदर की तरफ बढ़ती जा रहीं थी वैसे वैसे मेरी सांसें मानों रुकती जा रहीं थी। जल्दी ही भाभी बैठक को पार करते हुए अंदर की तरफ बढ़ गईं जबकि मैं बैठक में ही रुक गया। मेरी नज़र जब कुछ लोगों से घिरे पिता जी पर पड़ी तो मैं खुद को सम्हाल न सका। बैठक में बैठे लोगों को भी पता चल चुका था कि मैं आ गया हूं और साथ ही मेरे साथ भाभी भी आ गईं हैं। मैं बिजली की सी तेज़ी से पिता जी के पास पहुंचा और रोते हुए उनसे लिपट गया। मुझे यूं अपने से लिपट कर रोता देख पिता जी भी खुद को सम्हाल न सके। उनकी आंखों से आंसू बहने लगे और उनके अंदर का गुबार मानों एक ही झटके में फूट गया। मुझे अपने सीने से यूं जकड़ लिया उन्होंने जैसे उन्हें डर हो कि मैं भी उनसे वैसे ही दूर चला जाऊंगा जैसे चाचा जगताप और बड़े भैया चले गए हैं।

जाने कितनी ही देर तक मैं उनसे लिपटा रोता रहा और पिता जी मुझे खुद से छुपकाए रहे। उसके बाद मैं अलग हुआ तो अर्जुन सिंह ने मुझे एक कुर्सी पर बैठा दिया। तभी मेरे कानों में अंदर से आता रूदन सुनाई दिया। हवेली के अंदर एक बार फिर से चीखो पुकार मच गया था। मां, चाची, कुसुम के साथ अब भाभी का भी रूदन शुरू हो गया था। ये सब सुनते ही मेरा कलेजा फटने को आ गया। मेरी आंखें एक बार फिर से बरस पड़ीं थी।

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इस अपडेट ने रुला दिया भाई
 

avsji

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Shayad ek do update me abhi aur ye emotional mahaul rahega. Jo kuch bhi hua hai usse ubar pana itna asaan nahi hai haweli walo ke liye. Rahi baat kayaaso ki to situation ke anusaar jagtap par shak karna galat nahi tha...

Bura maanne wali koi baat nahi ki hai aapne. Aap mujhse bade hain aur apna chhota bhai samajh kar sneh karte hain mujhse. Yaha par kamdev bhaiya Sanju bhaiya aise hain jinhe main apna bada bhai maanta hu aur dil se waisa hi sammaan karta hu. Hasi makaak nok jhonk apni jagah hai..but reality yahi...khair meri life me abhi Jo kuch bhi hua hai wo to niyati ka hissa tha aur achha hi hua ki ek badi musibat se bach gaye ham log...

जी बिल्कुल!

abhi fir se ek jagah shadi ki baat chal rahi hai...man to nahi kar raha par ghar walo ka kahna maanna hi padega....

इस बारे में मैं केवल इतना कहूँगा कि इस तरह के शुभ कार्य में मन से लग कर हिस्सा लीजिए।
नहीं तो अगली लड़की के लिए बड़ी अपमानजनक बात होगी। अर्धांगिनी वो आपकी बनेगी - घरवालों की नहीं।
इसलिए मजबूरी में मत कीजिए ये काम - दिल से कीजिए। मानता हूँ, ये सब कहना मेरा प्लेस नहीं है, लेकिन फिर भी!
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
वापस आते ही पहली ही गेंद पर सिक्सर
जबरदस्त अपडेट
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Thanks
 
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