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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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भाग:–148


आर्यमणि वही मंत्र लगातार जाप करने लगा। धीरे–धीरे उसका रक्त संचार बढ़ता रहा। पहले अपने अंतर्मन में जोड़ जोड़ से कहने लगा, फिर जैसे आर्यमणि के होंठ खुलने लगे हो.. पहले धीमे बुदबुदाने जैसी आवाज। फिर तेज, और तेज और एक वक्त तो ऐसा आया की "अहम ब्रह्मास्मी" वहां के फिजाओं में चारो ओर गूंजने लगा।

नाक, कान और आंख के नीचे से कई लाख छोटे–छोटे परिजिवी निकल रहे थे। रूही अचेत अवस्था में वहीं रेत में पड़ी तड़प रही थी और इधर जबसे आर्यमणि की आवाज उन फिजाओं में गूंजी, फिर तो विवियन अपने 5 लोगों की टीम के साथ आर्यमणि के पास पहुंच चुका था।

आर्यमणि की आंखें खुल चुकी थी। शरीर अब सुचारू रूप से काम करने लगा था। विवियन बिना कुछ सोचे अपने आंखों से वो लेजर चलाने लगा। उसके साथ उसके साथी भी लगातार लेजर चला रहे थे। आर्यमणि अपने शरीर को पूरा ऊर्जावान बनाते, अपने बदन के पूरे सतह पर टॉक्सिक को रेंगने दिया। रूही को देखकर मन व्याकुल जरूर था, लेकिन दिमाग पूर्ण संतुलित। वायु विघ्न मंत्र का जाप शुरू हो चुका था। शरीर के सतह पर पूरा टॉक्सिक रेंग रहा था और पूरा शरीर ही अब आंख से निकलने वाले लेजर किरणों को सोख सकता था। आर्यमणि बलवानो की पूरी की पूरी टोली से उसका बल छीन चुका था।

विवियन के साथ पहले मात्र 5 एलियन लेजर से प्रहार कर रहे थे। 5 से फिर 25 हुये और 25 से 50। देखते ही देखते मारने का इरादा रखने वाले सभी 100 एलियन झुंड बनाकर एक अकेले आर्यमणि को मारने की कोशिश में जुट गये।

इसके पूर्व... रात में जब अलबेली और इवान अपने कास्टल पहुंचे तब खुशी के मारे उछल पड़े। उत्साह अपने पूरे चरम पर था और दोनो अपने वेडिंग नाइट की तैयारी देखकर काफी उत्साहित हो गये... रात के करीब 12.30 बज रहे होंगे। विवाहित जोड़ा अपने काम क्रीड़ा में लगा हुआ था, तभी उनके काम–लीला के बीच खलल पड़ गया। उसके कमरे का दरवाजा कोई जोड़, जोड़ से पिट रहा था।

अलबेली:– ऑफ ओ इवान, अंदर डालकर ऐसे रुको मत.… मजा किडकिड़ा हो जाता है...

इवान:– कोई दरवाजे पर है।

अलबेली:– मेरे जलते अरमान को आग न लगाओ और तेज–तेज धक्का लगाओ...

इवान कुछ कहता उस से पहले ही दरवाजा खुल गया। दोनो चादर खींचकर खुद को ढके। अलबेली पूरे तैश में आती.… "संन्यासी सर आपको देर रात मस्ती चढ़ी है क्या?"

संन्यासी शिवम्:– सबकी जान खतरे में है। कपड़े पहनो हम अभी निकल रहे हैं।

इवान:– ये क्या बकवास है... आप निकलो अभी इस कमरे से...

अलबेली:– इवान वो सबकी जान के बारे में बात कर रहे है...

इवान:– नही मुझे यकीन नही... ये ओजल का कोई प्रैंक है...

संन्यासी शिवम:– यहां से अभी चलो। एक पल गवाने का मतलब है, किसी अपने के जान का खतरा बढ़ गया...

इवान:– ठीक है पीछे घूम जाइए...

संन्यासी शिवम पीछे घूम गया। दोनो बिना वक्त गवाए सीधा अपने ऊपर कपड़े डाले। तीनो जैसे ही नीचे ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचे सारा स्टाफ उन्हे घेरकर प्यार से पूछने लगा की वो कहां जा रहे थे? संन्यासी शिवम् शायद बातचीत में वक्त नहीं गवाना चाहता था। अपने सूट बूट वाले कपड़े के किनारे से वो 5 फिट का एक दंश निकाले। (दंश किसी जादूगर की छड़ी जैसी होती है जो नीचे से पतला और ऊपर से हल्का मोटा होता है)

संन्यासी शिवम् वह दंश निकालकर जैसे ही भूमि पर पटके, ऐसा लगा जैसे तेज विस्फोट हुआ हो और उन्हे घेरे खड़ा हर आदमी बिखर गया। "लगता है वाकई बड़ी मुसीबत आयी है। शिवम् सर पूरे फॉर्म में है।"… अलबेली साथ चलती हुई कहने लगी। तीनो बाहर निकले। बाहर गप अंधेरा। संन्यासी शिवम ने दंश को हिलाया, जिसके ऊपरी सिरे से रौशनी होने लगी।

थोड़ा वक्त लगा लेकिन जैसे ही सही दिशा मिली सभी पोर्ट होकर सीधा शादी वाले रिजॉर्ट पहुंचे। शादी वाले रिजॉर्ट तो पहुंच गये पर रिजॉर्ट में कोई नही था। संन्यासी शिवम् टेलीपैथी के जरिए ओजल और निशांत से संपर्क करने लगे।

संन्यासी शिवम्:– तुम दोनो कहां हो?

निशांत:– पूरा अंधेरा है। बता नही सकता कहां हूं। चारो ओर से हमले हो रहे है, और कोई भी होश में नही।

संन्यासी शिवम्:– ओजल कहां है?

निशांत:– वही इकलौती होश में है, और मोर्चा संभाले है। मुझे किसी तरह होश में रखी हुई है, वरना मेरा भ्रम जाल भी किसी काम का नही रहता।

संन्यासी शिवम्:– क्या संन्यासियों की टोली भी बेहोश है?

निशांत:– हां... आप जल्दी से आओ वरना मैं ज्यादा देर तक होश में नही रहने वाला। मैं बेहोश तो यहां का भ्रम जाल भी टूट गया समझो।

संन्यासी शिवम्:– सब बेहोश भी हो गये तो भी यहां कोई चिंता नहीं है। जर्मनी के जंगल मे हम इन्हे इतना डरा चुके थे, कि जबतक बड़े गुरुदेव (आर्यमणि) मरते नही, तब तक वो किसी को भी हाथ नही लगायेगा। तुम लोगों को तो केवल चारा बनाया जायेगा, असली निशाना तो गुरुदेव (आर्यमणि) ही होंगे। हौसला रखो हम जल्द ही पहुंच रहे हैं।

संन्यासी शिवम् मन में चले वार्तालाप को अलबेली और इवान से पूरा बताने के बाद..... “तुम दोनो उनकी गंध सूंघो और पता लगाओ कहां है।”...

एलियन थे तो प्रहरी समुदाय का ही हिस्सा। उन्हे गंध मिटाना बखूबी आता था। विवियन के साथ आया हर एलियन प्रथम श्रेणी का नायजो था। यानी की फर्स्ट लाइन सुपीरियर शिकारी से एक पायदान ऊपर। सभी 100 प्रथम श्रेणी के नायजो अपने साथ 5 फर्स्ट लाइन सुपीरियर शिकारी को लेकर चले थे। उन सभी 500 शिकारियों का काम था, आर्यमणि के दोस्त और परिवार को एक खास किस्म के कीड़ों का सेवन करवाकर, उन्हे अगवा कर लेना। ये वही कीड़ा था, जो आर्यमणि के केक में भी मिला था। जिसके शरीर में जाने के कारण आर्यमणि हील भी नही पा रहा था। देखने में वह कीड़ा किसी छोटे से कण जैसे दिखते, पर एक बार जब शरीर के अंदर पहुंच गये, फिर तो सामने वाला उन नायजो के इशारे का गुलाम। और गुलाम पूरे परिवार और दोस्तों को बनाना था ताकि आर्यमणि को घुटनों पर लाया जा सके।

सभी लोगों ने पेट भर–भर कर कीड़ों वाला खाना खाया था, सिवाय ओजल के। वह पिछले 8 दिन से किसी सिद्धि को साध रही थी, इसलिए आचार्य जी द्वारा जो झोले में फल मिला था, उसी पर कुल 10 दिन काटना था। जितना पानी आचार्य जी ने दिया, उतना ही पानी अगले 10 दिन तक पीना था। बस यही वजह थी कि ओजल होश में थी और जब एलियन दोस्त और परिवार के सभी लोगों को ले जाया जा रहा था, तब खुद को अदृश्य रखी हुई थी।

हालांकि संन्यासी शिवम् और निशांत की बात ओजल ने भी सुनी थी। पर थोड़ा भी ध्यान भटकाने का मतलब होता दुश्मन को मौका देना इसलिए वह चुप चाप पूरे माहोल पर ध्यान केंद्रित की हुई थी। वैसे इस रात का एक पक्ष और भी था, अलबेली, इवान और संन्यासी शिवम्। ये तीनों भी रेगिस्तान के किसी कास्टल में पहुंचे थे। वैसे तो तीनो को ही खाने खिलाने की जी तोड़ कोशिश की गयी, किंतु अलबेली और इवान इतने उतावले थे कि दोनो सीधा अपने सुहाग की सेज पर पलंग तोड़ सुगरात मनाने चले गये। फिर एक राउंड में ये कहां थकने वाले थे। संन्यासी शिवम जब दोनो के कमरे में दाखिल हुये, तब तीसरे राउंड के मध्य में थे।

वहीं संन्यासी शिवम देर रात भोजन करने बैठे थे। पहला निवाला मुंह के अंदर जाता उस से पहले ही ओजल, खतरे का गुप्त संदेश भेज चुकी थी। कुल मिलाकर तीनो ने कास्टल का कुछ भी नही खाया था। वहीं कास्टल में रुके नायजो की भिड़ को यह आदेश मिला था कि तीनो (इवान, अलबेली और संन्यासी शिवम) में से कोई भी किसी से संपर्क नही कर पाये।

कुल मिलाकर बात इतनी थी कि रात के 2 बजे तक 4 लोग होश में थे। ओजल जो की पूरे परिवार को सुरक्षित की हुई थी। अलबेली, इवान और संन्यासी शिवम उसके मदद के लिये पहुंच रहे थे। इवान और अलबेली ने महज 2 मिनट में पकड़ लिया की गंध को मिटा दिया गया है। संन्यासी शिवम थोड़े चिंतित हुये किंतु अलबेली और इवान उनकी चिंता मिटते हुये वह निशान ढूंढ निकाले जो ओजल पीछे छोड़ गयी थी।

ओजल निशान बनाती हुई सबका पीछा कर रही थी और उन्ही निशान के पीछे ये तीनों भी पहुंच गये। ये तीनों जैसे ही उस जगह पहुंचे, आग की ऊंची लपटें जल रही थी और 3 लोगों के चीखने की आवाज आ रही थी। उन्ही चीख के बीच ओजल भी दहाड़ी.... “क्यों बे चूहों किस बिल में छिप गये। कहां गयी तुम्हारी बादल, बिजली और आग की करामात। चलो अब बाहर आ भी जाओ। देखो तुम्हारे साथी कैसे तड़प रहे है।”...

इतने में ही ठीक अलबेली और इवान के 2 कदम आगे रेत में छिपा नायजो रेत से निकलकर हमला किया और फिर वापस रेत में। अलबेली और इवान के बीच आंखो के इशारे हुये और दोनो ने एक साथ रेत में अपना पंजा घुसाकर चिल्लाए..... “क्यों री झल्ली रेत में हाथ डालकर 10 किलोमीटर की जगह को ही जड़ों में क्यों न ढक दी।”

ओजल यूं तो जड़ों को फैलाना भूल गयी थी। फिर भी खुद को बचाती.... “चुप कर अलबेली। मैं कुछ नही भूली थी, बल्कि रेगिस्तान में उगने वाले पौधों की जड़ें मजबूत ही न थी।”...

अलबेली:– बहानेबाज कहीं की। खजूर की जड़ें मजबूत ना होती हैं? नागफणी की जड़ें मजबूत ना होती हैं। फिर मेरी जड़ों में ये 350 एलियन कैसे फंस गये?

इवान:– तुम दोनो बस भी करो। ना वक्त देखती ही न माहोल, केवल एक दूसरे से लड़ना है।

इवान की डांट खाकर दोनो शांत हुये जबकि झगड़े के दौरान ही सभी थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी को ये लोग पकड़ चुके थे। फिर तो इन सबको तबियत से ट्रीटमेंट दिया गया। पहले शरीर के हर हिस्से में मोटे कांटों का मजा लिये, उसके बाद जिस अग्नि को अपने हाथों से नियंत्रित करते थे, उसी में जलकर स्वाहा हो गये।

सुबह के लगभग 5 बज चुके थे। परिवार के जितने सदस्य और मित्र थे, सब के सब बेहोश पड़े थे। संन्यासी शिवम् उनकी हालत का जायजा ले रहे थे। इतने में ओजल, अलबेली और इवान तीनो ही सबको हील करने जा रहे थे।

संन्यासी शिवम्:– नही, कोई भी अपने खून में उस चीज का जहर मत उतारो जो इन सबके शरीर में है।

ओजल:– शिवम सर लेकिन हील नही करेंगे तो सब बेहोश पड़े रहेंगे। जहर का असर फैलता

संन्यासी शिवम्:– आचार्य जी से मेरी बात हो गयी है। जो इनके शरीर में डाला गया है, वो कोई जहर नही बल्कि एक विशेस प्रकार का जीव है। दिखने में ये किसी बालू के कण जितने छोटे होते है, लेकिन किसी सजीव शरीर में जाकर सक्रिय हो जाते है। एक बार यह सक्रिय हो गये फिर ये जब शरीर से बाहर निकलेंगे तभी मरेंगे, वरना किसी भी विधि से इस कीड़े के मूल स्वरूप को बदल नही सकते।

इवान:– फिर हम क्या करे?

संन्यासी शिवम्:– पूरे परिवार को इस्तांबुल एयरपोर्ट लेकर चलो। सबके टिकट बने हुये है। इस्तांबुल से सभी लॉस एंजिल्स जायेंगे। रास्ते में इनके अंदर के जीवों का भी इलाज हो जायेगा।

कुछ ही देर में सब गाड़ी पर सवार थे। संन्यासी शिवम टेलीपैथी के जरिए एक–एक करके सबके दिमाग में घुसे और “अहम ब्रह्मास्मी” का जाप करने लगे। सबने देखा कैसे एक–एक करके हर किसी के शरीर से करोड़ों की संख्या में कीड़े निकल रहे थे और बाहर निकलने के साथ ही कुछ देर रेंगकर मर जाते।

सुबह के लगभग 11 बजे तक सबको लेकर ये लोग सीधा इस्तांबुल के एयरपोर्ट पर पहुंचे, जहां लॉस एंजिल्स जाने वाली प्लेन पहले से रनवे पर खड़ी थी। पूरे परिवार के लोग जब पूर्णतः होश में आये तब खुद को एयरपोर्ट के पास देखकर चौंक गये। हर किसी को रात का खाना खाने के बाद सोना तो याद था पर एयरपोर्ट कैसे पहुंचे वह पूरी याद ही गायब। वैन में ही पूरा कौतूहल भरा माहोल हो गया।

बेचारा निशांत हर कोई उसी के कपड़े फाड़ रहा था जबकि वह भी उसी कीड़े का शिकर हुआ था, जिस कीड़े ने सबको अपने वश में कर रखा था। लागातार बढ़ते विवाद और समय की तंगी को देखते हुये संन्यासी शिवम् सबको म्यूट मोड पर डालते...... "ये सब आर्यमणि का सरप्राइज़ है। आप सब लॉस एंजिल्स पहुंचिए, आगे की बात आपको आर्यमणि ही बता देगा।"…

संन्यासी शिवम के कहने पर वो लोग शांत हुये। सभी लगभग सुबह के 11 बजे तक उड़ान भर चुके थे, सिवाय निशांत, ओजल, इवान और अलबेली के। जैसे ही सब वहां से चले गए.… "शिवम सर, जीजू और दीदी पर भी हमला हुआ होगा क्या?"… ओजल चिंता जताती हुई पूछी।

संन्यासी:– आर्यमणि आश्रम के गुरुदेव है। सामने खड़े होकर उनकी जान निकालना इतना आसान नहीं होगा। सबलोग वहां चलो जहां हमे कोई न देख सके।

साबलोग अगले 5 मिनट में आर्यमणि वाले कास्टल पहुंच गये। अगले 10 मिनट में ओजल, इवान और अलबेली ने पूरे कास्टल को छान मारे लेकिन वहां कोई नही था। इवान, संन्यासी का कॉलर पकड़ते... "कहां गए मेरे बॉस और दीदी... आपने तो कहा था कि बॉस आश्रम के गुरुदेव है। सामने से उन्हे हराना संभव नही...

ओजल:– हम यहां नही रुक सकते। हवाई गंध को महसूस करते उन तक जल्दी पहुंचते है...

संन्यासी शिवम्:– वहां पहुंचकर भी कोई फायदा नही होगा... हम रेगिस्तान के इतने बड़े खुले क्षेत्र को नहीं बांध सकते। तुम लोग कुछ वक्त दो...

इतना कहकर संन्यासी शिवम् वहीं नीचे बैठकर ध्यान लगाने लगे। वो जैसे ही ध्यान में गये, इवान और अलबेली उस जगह से निकलने की कोशिश करने लगे। लेकिन खुले दरवाजे के बीच जैसे कोई पारदर्शी दीवार लगी हो... "ये कौन सा जादू तुम लोगों ने किया है। यहां का रास्ता खोलो हमे रूही और दादा (आर्यमणि) को ढूंढने बाहर जाना है।"

निशांत:– यहां से कोई बाहर नही जायेगा। सुना नही संन्यासी शिवम् ने क्या कहा?

ओजल:– तुम दोनो खुद पर काबू रखो…

अलबेली:– काबू की मां की चू… दरवाजा खोलो या फिर मैं इस संन्यासी का सर खोल देती हूं।

सबके बीच गहमा गहमी वाला माहोल शुरू हो चुका था। इसी बीच संन्यासी शिवम का ध्यान टूटा... "ओजल, निशांत तुम दोनो से इतना हल्ला गुल्ला की उम्मीद नही थी। इवान और अलबेली को शांत करने के बदले लड़ रहे थे। तुम दोनो भी शांत हो जाओ। गुरुदेव (आर्यमणि) और रूही, दोनो यहीं आ रहे है। तुम लोग जल्दी से जाओ एक खाली बेड, चादर, गरम पानी, और वहीं किचन में नशे में इस्तमाल होने वाली कुछ सुखी पत्तियां होंगी उन्हें ले आओ। तुम दोनो (ओजल और निशांत) अपना झोला लेकर आये हो?

ओजल, और निशांत दोनो एक साथ... “हां शिवम सर”...

संन्यासी शिवम्:– ठीक है यहां छोड़कर जाओ...

चारो ही भाग–भाग कर सारा सामान वहीं नीचे ग्राउंड फ्लोर पर सजा चुके थे। जैसे ही उनका काम खत्म हुआ, सबकी नजर दरवाजे पर थी। बस चंद पल हुये होंगे, सबको आर्यमणि दूर से आते दिख गया। जैसे ही आर्यमणि दरवाजे तक आया, संन्यासी शिवम् ने अपना जाल खोल दिया। आर्यमणि अंदर और फिर से दरवाजा को बांध दिया।
Puri family ko chare ki tarah prayog karke arya ko marne ki sajis rachi gyi hai Jise arya ne guru Nishi ke swapn se sikh lekr unke margdarsan se bahar aaya or un hamlavaro ki shakti hi sokh liya, ab dekhte hai itne sare nayjo ki shakti sokhne se kya dush-parinam hua hai arya pr...

Albeli ivan Ojal or Nishant sabne apna prasanshan best to nhi diya fir bhi sanyashi shivam ke sath hone pr or unke margdarsan me puri family ko bcha laye or unhe bhej diya bahar, Dekhte hai ab vo kyA karte hai vha...

Shivam ji ne sabhi pariwar ke logo ke dimag me ghush kr unhe un kido se mukt kr diya hai vahi arya ke castal me bhi pahuch gye hai or ab ye nashe ki pattiya kyo mangvai, Kon si siddhi kr rhi thi Ojal Jisme usko apne sath laye gye fal or pani hi pina tha, kya guru ji ko pahle hi abhash ho gya tha isliye unhone Ojal or Nishant ke Jholo me saman dalvaya tha...

Superb bhai sandar jabarjast lajvab amazing with awesome writing skills bhai
 

Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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Very Exciting ☺️...

... लास्ट मोमेंट पर करते क्या हो..

अलबेली चिढ़ती हुई.… "मेरे मुंह पर छींटे उड़ा देता है। 😄😂😄😂😄🤞😆😆😂🤣
 

Bhupinder Singh

Well-Known Member
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भाग:–153


दिन बहुत शानदार कट रहे थे। जिस उद्देश्य से आर्यमणि आइलैंड पहुंचा था उसे पूरा करने में लगा हुआ था। अपने साथ–साथ अल्फा पैक को भी एक स्तर ऊंचा प्रशिक्षित कर रहा था। हफ्ते में एक दिन एमुलेट परीक्षण भी करते। जितने प्रकार के पत्थर लगे हुये थे उनके अच्छे और बुरे प्रभावों का मूल्यांकन भी जारी था। सब कुछ अपनी जगह पर बिलकुल सही तरीके से आगे बढ़ रहा था।

किंतु जिस जिज्ञासा में आर्यमणि यहां आया था, वो अब तक पूरा नहीं हुआ था। आर्यमणि जब अपने बचपन से दादा जी की यादें ले रहा था, तब उसे एक पुराना किस्सा याद आया जो आर्यमणि को काफी आकर्षित करती थी... जलपड़िया। आर्यमणि के दादा जी अक्सर इसी आइलैंड का जिक्र करते, जिसके तट पर जलपड़ियां आती थी। आर्यमणि रोज रात को एक बार समुद्र किनारे जाता और निराश होकर लौट आता।

अल्फा पैक को आये लगभग 2 महीने बीत चुके थे। रूही लगभग 3 मंथ की प्रेगनेंट थी। अब उसका पेट बाहर आने लगा था। आर्यमणि, अलबेली और इवान तीनो ही उसका पूरा ख्याल रखते थे। एक दिन आर्यमणि ने खुद ही कहा की, यदि तीनो (रूही, इवान और अलबेली) चाहे तो मछली या फिर भेड़ का मांस खा सकते है। अजीब सी हंसी के साथ रूही भी प्रतिक्रिया देती हुई भेंड़ के विषय में कहने लगी... "जिसे पाला हो उसे ही खाने कह रहे। वैसे भी अब तो कभी ख्यालों में भी नॉन वेज नही आता।"…

आर्यमणि मुस्कुराते हुये रूही के बात का अभिवादन किया। इसी बीच एक दिन सभी बैठे थे, तभी रूही, अलबेली से उसके प्रेगनेंसी के बारे में पूछने लगी। अलबेली शर्माती हुई... "क्या तुम भी भाभी" कहने लगी.. फिर तो रूही का जो ही छेड़ना शुरू हुआ... "रात को तो पूरा कॉटेज हिलता रहता है, फिर भी रिजल्ट नही आया"..

अलबेली:– रिजल्ट अभी नही आयेगा... इतनी जल्दी बच्चा क्यों, अभी मेरी उम्र ही क्या है...

रूही:– हां ये तो सही है... नही लेकिन फिर भी... लास्ट मोमेंट पर करते क्या हो..

अलबेली चिढ़ती हुई.… "मेरे मुंह पर छींटे उड़ा देता है। आज कल बॉस भी तो यही करते होंगे। क्योंकि अंदरूनी मामले पर तो प्रतिबंध लगा हुआ होगा न"..

रूही:– कहां रे… बर्दास्त ही नही होता.. अंदर डाले बिना मानते ही नही..

अलबेली:– वो नही मानते या तुमसे ही बर्दास्त नही होता...

दोनो के बीच शीत युद्ध तब तक चलता रहा जब तक की वहां इवान और आर्यमणि नही आ गया। दोनो पहुंचते ही कहने लगे... "आज छोटी बोट में समुद्र घूमने चलेंगे"…

अलबेली:– नही बोट बहुत ही ऊपर उछाल मारती है, भाभी को परेशानी होगी...

रूही:– अरे दिल छोटा न करो... हम क्रूज लेकर चलते हैं न.. वहीं बीच में तुम लोग थोड़ा बोट से भी घूम लेना..

इवान:– ग्रेट आइडिया दीदी। और आज रात क्रूज में ही बिताएंगे..

सब लोगों की सहमति हो गयी... क्रूज का लंगर उठाया गया। इंजन स्टार्ट और चल पड़े सब तफरी पर। 20 नॉटिकल माइल की दूरी तय करने बाद क्रूज को धीमा कर दिया गया और छोटी बोट पानी में उतारी गई। आर्यमणि और इवान बोट में सवार होकर वहीं घूमने लगे। उनके बोट के साथ साथ कई डॉल्फिन उछलती हुई तैर रही थी। काफी खूबसूरत नजारा था। रूही और अलबेली दोनो क्रूज के किनारे पर बैठकर यह खूबसूरत दृश्य देख रही थी। दिन ढलने को आया था। सूरज की लालिमा चारो ओर के नजारे को और भी खूबसूरत बना रही थी। रूही हाथ के इशारे से दोनो को वापस बुलाने लगी।

लौटते ही आर्यमणि ने क्रूज को वापस आइलैंड की ओर घुमाया और सबके साथ आकर डूबते सूरज को देखने का रोमांच लेने लगा। लेकिन उनके इस रोमांच में आसमानी चीते यानी की बाज ने आकर खलल डाल दिया। पता नही कहां से और कितनी तेजी में आये, लेकिन जब वो आये तो आसमान को ढक दिया। आमुमन बाज अकेले ही शिकार करते है लेकिन यहां तो, 1 नही, 10 नही, 100 नही, 1000 नही, लगभग 10000 से भी ज्यादा की संख्या में बाज थे।

बाज काफी तेजी से उड़ते हुए आइलैंड के ओर बढ़ रहे थे। उनकी इतनी तादात देखकर, आर्यमणि ने सबको खुले से हटने का इशारा किया। ये लोग डेक एरिया से हटकर जैसे ही अंदर घुसकर दरवाजा बंद किये, दरवाजे पर ही कई बाज हमला करने लगे। लेकिन ऐसा लग रहा था कि आर्यमणि और उसका पैक मुख्य शिकार नही थे, इसलिए कुछ देर की नाकाम कोशिश के बाद वो सब वापस झुंड में चले गये.…

"बाप रे हम वेयरवुल्फ को भी भयभीत कर गये ये बाज। मेरा कलेजा तो अब भी धक–धक कर रहा है"… रूही पानी का घूंट लेती हुई कहने लगी...

अलबेली:– बॉस हमे खतरे का आभाष नही हुआ लेकिन आप कैसे भांप गये...

आर्यमणि:– पता नही... बाज की इतनी संख्या देखकर अंदर से भय जैसा लगा... लेकिन ये बाज इतनी संख्या में आइलैंड पर जा क्यों रहे थे? क्या ये हम पर हमला करते...

इवान:– बाज अकेला शिकारी होता है। जितनी इनकी संख्या थी उस हिसाब तो ये आइलैंड का पूरा जंगल साफ कर देंगे...

आर्यमणि:– हां लेकिन सोचने वाली बात तो ये भी है कि उस जंगल में तो बाज को बहुत सारे शिकर मिलेंगे। यदि शिकारी पक्षी और शिकार के बीच में कोई रोड़ा डालने आये, फिर तो बाज पहले रोड़ा डालने वाले निपटेगा। यहां तो बाज इतनी ज्यादा संख्या में है कि एक शिकार के पीछे कई बाज एक–दूसरे से लड़ ले।

अलबेली:– बॉस क्या लगता है, क्या हो सकता है? किसी प्रकार का तिलिस्म तो नही?

आर्यमणि क्रूज के 360⁰ एंगल कैमरे को बाज के उड़ने की दिशा में करते... "ये बाज हमारे जंगल या मैदानी भाग में नही रुक रहे बल्कि पहाड़ के उस पार का जो इलाका है.. आइलैंड का दूसरा हिस्सा उस ओर जा रहे”...

अलबेली:– वहां ऐसा कौन सा शिकार होगा जो इतने बाज एक साथ जा रहे... कोई जंग तो नही हो रही.. बाज और किसी अन्य जीव में..

आर्यमणि:– ये तो वहीं जाकर पता चलेगा...

रूही:– वहां जाने की सोचना भी मत… समझे तुम.. आज इस क्रूज से कोई बाहर नहीं जायेगा... जंजीरों में आर्यमणि को जकड़ दो...

आर्यमणि:– सर पर आग लेकर जाऊंगा.. कुछ नही होगा..

रूही:– हां तो जब इतना विश्वास है तो मैं भी साथ चलूंगी...

"मैं भी" "मैं भी"… साथ में इवान और अलबेली भी कहने लगे...

क्रूज को सही जगह लगाकर, सभी लंगर गिड़ा दिये। चारो तेजी से अपने आशियाने के ओर भागे और सीधे अपने–अपने बाइक निकाल लिये। सभी जंगल को लांघकर पहाड़ तक पहुंचे और पहाड़ के संकड़े रास्ते से ऊपर चढ़ने लगे। कुछ दूर आगे बढ़े थे, तभी सामने शेर आ गया। ऐसे खड़ा था मानो रास्ता रोक रहा हो। आर्यमणि एक्सीलरेटर दबाकर जैसे ही थोड़ा आगे बढ़ता, शेर अपना पंजा उठाकर मानो पीछे जाने कह रहा था।

आर्यमणि बाइक से नीचे उतरकर, शेर के सामने आया, और नीचे बैठ कर उस से नजरे मिलाने लगा। ऐसा लगा मानो शेर उस ओर जाने से मना कर रहा था। आर्यमणि भी सवालिया नजरों से शेर को ऐसे देखा मानो पूछने की कोशिश कर रहा हो क्यों... शेर आर्यमणि का रास्ता छोड़ पहाड़ के बीच से चढ़ाई वाले रास्ते पर जाने लगा। आर्यमणि रुक कर समझने की कोशिश कर ही रहा था कि तभी शेर रुककर एक बार पीछे मुड़ा और आर्यमणि को देखकर दहाड़ा।

आर्यमणि:– बाइक यहीं खड़ी कर दो, और मशाल लेकर शेर के पीछे चलो...

अलबेली:– बॉस लेकिन दीदी इस हालत में चढ़ाई कैसे करेगी...

आर्यमणि, रूही को अपने गोद में उठाते... "अब ठीक है ना"…

सभी शेर के पीछे चल दिए। 2 पहाड़ियों के बीच से यह छोटा रास्ता था जो तकरीबन 1500 से 1600 फिट ऊपर तक जाता था। काफी उबर–खाबर और हल्की स्लोपिंग वाला रास्ता था, जो चढ़ने में काफी आसान था।

तकरीबन 500 फिट चढ़ने के बाद चट्टानों के बीच शेर का पूरा एक झुंड बैठा हुआ था। जैसे ही अपने इलाके में उन्हे वेयरवुल्फ की गंध लगी, सभी उठ खड़े हुए। तभी वो शेर आर्यमणि के साथ खड़ा हुआ जो ठीक सामने वाले शेर के झुंड के सामने था।

आर्यमणि के साथ खड़े होकर वह शेर गुर्राया, और पूरा झुंड ही शांत हो गया। एक बार फिर वह शेर आगे बढ़ा, मानो अपने पीछे आने कह रहा हो। सभी उसके पीछे चल दिये। वह शेर उन्ही चट्टानों के बीच बनी एक गुफा में घुसा। उस गुफा में एक शेरनी लेटी हुई थी। आंखों के नीचे से जैसे आंसू निकल रहे हो और आस पास 2–3 शेर के बच्चे बार–बार उसके पेट में अपना सर घुसाकर उसे उठाने की कोशिश कर रहे थे।

रूही उस शेरनी के पास पहुंचकर जैसे ही उसके पेट पर हाथ दी, वह शेरनी तेज गुर्राई... "आर्य, बहुत दर्द में है।".. रूही अपनी बात कहकर उसका दर्द अपनी हथेली में समेटने लगी। आर्यमणि उसके पास पहुंचकर देखा। गर्दन के पास बड़ा सा जख्म था। आर्यमणि ने तुरंत इवान को बैग के साथ गरम पानी लाने के लिए भी बोल दिया।

सारा सामान आ जाने के बाद आर्यमणि ने उस शेरनी का उपचार शुरू कर दिया। लगभग 15 मिनट लगे होंगे, उसके घाव को चिड़कर मवाद निकलने और पट्टियां लगाकर हील करने में। 15 मिनट बाद वो शेरनी उठ खड़ी हुई। पहले तो वो अपने बच्चे से लाड़ प्यार जताई फिर रूही के सामने आकर, उसके पेट में अपना सर इतने प्यार से छू, मानो उसके पेट को स्पर्श कर रही हो।..

आर्यमणि:– रूही पेट से अपना कपड़े ऊपर करो..

आर्यमणि की बात मानकर जैसे ही रूही ने कपड़ा ऊपर किया, वह शेरनी अपने पूरे पंजे से रूही के पेट को स्पर्श की। उस वक्त उस शेरनी के चेहरे के भाव ऐसे थे, मानो वो गर्भ में पल रहे बच्चे को महसूस कर मुस्कुरा रही हो। उसे अपने अंतरात्मा से आशीर्वाद दे रही थी। और जब वो शेरनी अपना पंजा हटाई, उसके अगले ही पल इवान, अलबेली और आर्यमणि को देखकर गरजने लगी... "चलो रे सब, लगता है ये शेरनी रूही के साथ कुछ प्राइवेट बातें करेंगी"…

तीनो बाहर निकल गये और चारो ओर के माहौल का जायजा लेने लगे... "बॉस वो बाज का झुंड ठीक पहाड़ी के उस पार ही होगा न"…

आर्यमणि:– हां इवान होना तो चाहिए... चलो देखा जाए की वहां हो क्या रहा है...

तीनो पहाड़ के ऊपर जैसे ही चढ़ने लगे, वह शेर एक बार फिर इनके साथ हो लिया। तीनो पहाड़ी की चोटी तक पहुंच चुके थे, जहां से उस पार का पूरा इलाका दिख रहा था। लेकिन जैसे ही तीनो ने उस पार जाने वाली ढलान पर पाऊं रखा, एक बार फिर वो शेर उनका रास्ता रोके खड़ा था.…

आर्यमणि:– लगता है ये किसी प्रकार का बॉर्डर है.. दाएं–बाएं जाकर देखो वो बाज का झुंड कहीं दिख रहा है क्या? ..

तीनो अलग–अलग हो गये... कुछ देर बाद अलबेली... "ये क्या बला है... दोनो यहां आओ।" आर्यमणि और इवान तुरंत ही अलबेली के पास पहुंचे और नीचे का नजारा देख दंग रह गये... "आखिर ये क्या बला है।"… सबके मुंह से यही निकल रहा था।

आंखों के आगे यकीन न होने वाला दृश्य था। ऐसा जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। एक भयानक काल जीव, जिसकी आंखें ही केवल इंसान से 4 गुणी बड़ी थी। उसका शरीर तो गोल था लेकिन वो गोलाई लगभग 5 मीटर में फैली होगी और उसकी लंबाई कम से कम 300 से 400 मीटर की तो रही ही होगी। ऐसा लग रहा था मानो 6–7 ट्रेन को एक साथ गोल लपेट दिया गया हो।

यहां यही सिर्फ इकलौता हैरान करने वाला मंजर नही था। नीचे आर्यमणि को वो भी दिखा जिसकी तलाश उसे यहां तक खींच लाई थी, जलपड़ियां। और वहां केवल जलपडियां ही नही थी बल्कि उनके साथ जलपड़ा का भी झुंड था। वो भी 5 या 10 का झुंड नही बल्कि वो सैकड़ों के तादात में थे। और उन सब जलपाड़ियों के बीच संगमरमर सा सफ़ेद और गठीला बदन वाला आदमी भी खड़ा था। उसका बदन मानो चमकते उजले पत्थर की तरह दिख रहा था और हर मसल्स पूरे आकार में।

वह आदमी अपने हाथ का इशारा मात्र करता और बाज के झुंड से सैडकों बाज अलग होकर उस बड़े से विशाल जीव के शरीर पर बैठकर, उसकी चमड़ी को भेद रहे थे। जहां भी बाज का झुंड बैठता, वहां 1,2 जलपड़ी जाकर खड़ी हो जाती। ऐसे ही कर के उस बड़े से जीव के बदन के अलग–अलग हिस्से पर बाज बैठा था और वहां 2–3 जलपड़ियां थी...

इवान:– साला यहां कोई हॉलीवुड फिल्म की शूटिंग तो नही चल रही। एक विशाल काल जीव कल्पना से पड़े। आकर्षक और मनमोहनी जलपाड़ियां जिसके बदन पर जरूरी अंग को थोड़ा सा ढकने मात्र के कपड़े पहने है। उनके बीच मस्कुलर बदन का एक आदमी जिसके शरीर के हर कट को गिना जा सकता था। और वो आदमी अलौकिक शक्तियों का मालिक जो बाज को कंट्रोल कर रहा है...

अलबेली:– इवान तुम्हारी इतनी बकवास में एक ही काम की चीज है। वो आदमी बाज को कंट्रोल कर रहा है। हां लेकिन वो बाज को कंट्रोल क्यों कर रहा और क्या मकसद हो सकता है उस जीव के शरीर पर बाज को बिठाने का?

आर्यमणि:– वो बाज से इलाज करवा रहा है।

दोनो एक साथ.… "क्या?"

आर्यमणि:– हां वो बाज से इलाज करवा रहा है। उस काल जीव के पेट में तेज पीड़ा है, शायद कुछ ऐसा खा लिया जो पचा नहीं और पेट में कहीं फसा है, जो मल द्वारा भी नही निकला। जिस कारण से उस जीव की पूरी लाइन ब्लॉक हो गई है। अंदर शायद काफी ज्यादा इन्फेक्शन भी हो.. वह काल जीव काफी ज्यादा इंफेक्टेड है..

इवान:– बॉस इतनी समीक्षा...

आर्यमणि:– बाज का एक झुंड उसके पेट में छेद कर चुका था। उसके अंदर से निकली जहरीली हवा के संपर्क मात्र से सभी मारे गये... और वो जीव थोड़ी राहत महसूस कर रहा था...

आर्यमणि बड़े ध्यान से सबकुछ होते देख रहा था, तभी उसकी नजरे किसी से उलझी। बड़ी तीखी नजर थी, नजर मिलने मात्र से ही दिमाग जैसे अंदर से जलने लगा हो। आर्यमणि विचलित होकर वहां से हटा। वह 5 कदम पीछे आया कि नीचे धम्म से गिड़ गया। अलबेली और इवान तुरंत आर्यमणि को संभालने पहुंचे, तभी उन्हे एहसास हुआ की आर्यमणि बहुत तकलीफ में है। ये बात शायद रूही ने भी महसूस किया, वो भी तुरंत वहां पहुंच चुकी थी।

तीनो आर्यमणि को उठाकर गुफा में ले आये और उसके हाथ को थाम आर्यमणि का दर्द खींचने लगे। लेकिन ऐसा लग रहा था जैस दर्द में कोई गिरावट ही नही हो रही है, बल्कि वक्त के साथ वो और भी बढ़ता जा रहा था। रूही के आंखों मे आंशु आ चले... "क्या हुआ आर्य को.. अचानक ऐसा क्या हुआ जो इनके शरीर का दर्द बढ़ता ही जा रहा है?"…
Nice update
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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भाग:–149


इसके पूर्व आर्यमणि जैसे ही उन कीड़ों की कैद से आजाद हुआ सबसे पहला ख्याल रूही पर ही गया। अचेत अवस्था में वो बुरी तरह से कर्राह रही थी। विवियन और बाकी एलियन को तो यकीन तक नही हुआ की आर्यमणि के शरीर से कीड़े निकल चुके है। वो लोग झुंड बनाकर आर्यमणि पर हमला करने लगे, किंतु आर्यमणि के शरीर की हर कोशिका सक्रिय थी और किसी भी प्रकार के टॉक्सिक को खुद में समाने के लिये उतने ही सक्षम। बदन के जिस हिस्से पर लेजर की किरण और उन किरणों के साथ कितने भी भीषण प्रकोप क्यों नही बरसते, सब आर्यमणि के शरीर में गायब हो जाते।

विवियन और उसके सकड़ो साथी परेशान से हो गये। वहीं आर्यमणि रूही की हालत देखकर अंदर से रो रहा था। किसी तरह खुद पर काबू रखकर आर्यमणि ने आस–पास के माहोल को भांपा। उसपर लगातार एलियन के हमले हो रहे थे। सादिक यालविक और उसका बड़ा सा पैक आराम से वहीं बैठकर तमाशा देख रहा था। आर्यमणि पूरी समीक्षा करने के बाद तेज दौड़ने के लिये पोजिशन किया। किंतु जैसे ही 2 कदम आगे बढ़ाया वह तेज टकराकर नीचे रेत पर बिछ गया।

आर्यमणि को ध्यान न रहा की वह किरणों के एक घेरे में कैद था। किरणों का एक विचित्र गोल घेरा जिसे आर्यमणि पार ना कर सका। आर्यमणि हर संभव कोशिश कर लिया किंतु किरणों के उस गोल घेरे से बाहर नही निकल सका। विवियन और उसकी टीम भी जब लेजर की किरणों से आर्यमणि को मार न पाये, तब उन लोगों ने भी विश्राम लिया। वो सब भी आर्यमणि की नाकाम कोशिश देख रहे थे और हंस रहे थे।

विवियन:– क्या हुआ प्योर अल्फा, किरणों की जाल से निकल नही पा रहे?

आर्यमणि:– यदि निकल गया होता तो क्या तू मुझसे ऐसे बात कर रहा होता।

विवियन:– अकड़ नही गयी हां। आर्यमणि सर तो बड़े टसन वाले वेयरवोल्फ निकले भाई। सुनिए आर्यमणि सर यहां हमे कोई मारकर भी चला जाये, तो भी तुम उस घेरे को पार ना कर पाओगे। चलो अब तुम्हे मै एक और कमाल दिखाता हूं। दिखाता हूं कि कैसे हम घेरे में फसाकर अपने किसी भी शक्तिशाली दुश्मन को पहले निर्बल करते है, उसके बाद उसके प्राण निकालते हैं।

आर्यमणि:– फिर रुके क्यों हो? तुम अपना काम करो और मैं अपना...

आर्यमणि अपनी बात कहकर आसान लगाकर बैठ गया। वहीं विवियन ने गोल घेरे के चारो ओर छोटे–छोटे रॉड को गाड़ दिया, जिसके सर पर अलग–अलग तरह के पत्थर लगे हुये थे। गोल घेरे के चारो ओर रॉड लगाने के बाद विवियन पीछे हटा। देखते ही देखते रॉड पर लगे उन पत्थरों से रौशनी निकलने लगी जो आर्यमणि के सर से जाकर कनेक्ट हो गयी।

आर्यमणि ने वायु विघ्न मंत्र का जाप तो किया पर उन किरणों पर कुछ भी असर न हुआ। फिर आर्यमणि ने उन किरणों को किसी टॉक्सिक की तरह समझकर खुद में समाने लगा। जितनी तेजी से वह किरण आर्यमणि के शरीर में समाती, उतनी ही तेजी से उसके शरीर से काला धुवां निकल रहा था। यह काला धुवां कुछ और नहीं बल्कि आर्यमणि के शरीर में जमा टॉक्सिक था, जो बाहर निकल रहा था।

पहले काला धुवां बाहर निकला उसके बाद उजला धुवां। उजला धुवां आर्यमणि के शरीर का शुद्ध ऊर्जा था, जो शरीर से निकलकर हवा में विलीन हो रहा था। धीरे–धीरे उसकी शक्तियां हवा में विलीन होने लगी। आर्यमणि खुद में कमजोर, काफी कमजोर महसूस करने लगा। आसान लगाकर बैठा आर्यमणि कब रेत पर लुढ़का उसे खुद पता नही चला।

आर्यमणि के शरीर की ऊर्जा, उजली रौशनी बनकर लगातार निकल रही थी। वह पूर्ण रूपेण कमजोर पड़ चुका था। आंखें खुली थी और होश में था, इस से ज्यादा आर्यमणि के पास कुछ न बचा था। तभी वहां आर्यमणि के जोर–जोर से हंसने की आवाज गूंजने लगी। किसी तरह वह खुद में हिम्मत करके अट्टहास से परिपूर्ण हंसी हंस रहा था।

विवियन:– लगता है मृत्यु को करीब देख इसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया है।

आर्यमणि बिना कोई जवाब दिये हंसता ही रहा काफी देर तक सबने उसकी हंसी सुनी। जब बर्दास्त नही हुआ तब यालविक पैक का मुखिया सादिक यालविक चिल्लाते हुये पूछने लगा..... “क्यों बे ऐसे पागल की तरह क्यों हंस रहा है?”...

आर्यमणि:– अपने परिवार को धोखा दिया। नेरमिन से दुश्मनी भी हो ही जाना है, लेकिन जिस शक्ति के लिये तूने शिकारियों का साथ दिया, वो तुझे नही मिलेगी।

आर्यमणि इतना धीमे बोला की सबको कान लगाकर सुनना पड़ा। 3 बार में सबको उसकी बात समझ में आयी। आर्यमणि की बात पर विवियन ठहाके मारकर हंसते हुये..... “तुझे क्या लगता है हम अपनी बात पर कायम न रहेंगे। सादिक न सिर्फ तेरी शक्तियां लेगा बल्कि सरदार खान की तरह ही वह भी एक बीस्ट अल्फा बनेगा। बस थोड़ा वक्त और दे। अभी तेरी थोड़ी और अकड़ हवा होगी, फिर तू खुद भी देख लेगा, कैसे तेरी शक्तियां सादिक की होती है।”

आर्यमणि समझ चुका था कि विवियन खुद ये घेरा खोलने वाला है। पूरे मामले में सबसे अच्छी ये बात रही की किसी का भी ध्यान रूही पर नही गया। आर्यमणि ने सबका ध्यान अपनी ओर ही बनवाए रखा। वह कमजोर तो पड़ ही चुका था बस दिमाग को संतुलित रखे हुये था। आर्यमणि सोच चुका था कि घेरा खुलते ही उसे क्या करना है।

10 मिनट का और इंतजार करना पड़ा। आर्यमणि की जब आंखे बंद हो रही थी, ठीक उसी वक्त किरणों का वह घेरा खुला। किरणों का घेरा जैसे ही खुला, पंजे के एक इशारे मात्र से ही आर्यमणि ने सबको जड़ों में ढक दिया। आर्यमणि के अंदर इतनी जान नही बाकी थी कि वह खड़ा भी हो सके। यह बात आर्यमणि खुद भी समझता था, इसलिए सबकुछ जैसे पहले से ही सोच रखा हो।

सबको जड़ों में ढकने के बाद खुद को और रूही को भी जड़ों में ढका। कास्टल के रास्ते पर जड़ों की लंबी पटरी ही जैसे आर्यमणि ने बिछा रखी थी। जड़ें दोनो को आगे भी धकेल रही थी और उन्हे जरूरी पोषण भी दे रही थी। लगभग 3 किलोमीटर तक जड़ों पर खिसकने के बाद आर्यमणि के अंदर कुछ जान वापस आयी और वह रूही को उठाकर कैस्टल के ओर दौड़ लगा दिया।

आर्यमणि जैसे ही कास्टल के अंदर पहुंचा, इवान उसकी गोद से रूही को उठाकर सीधा बेड पर रखा। संन्यासी शिवम् भी उतनी ही तेजी से अपना काम करने लगे। और इधर आर्यमणि, जैसे ही उसकी नजर अपने लोगों पर पड़ी... वो घुटनो पर आ गया और फूट–फूट कर रोने लगा। ओजल नीचे बैठकर, अपने दोनो हाथ से आर्यमणि के आंसू पूछती... "बॉस, दीदी को कुछ नही हुआ है... उसका इलाज चल रहा है।"…

"सब मेरी गलती है... सब मेरी गलती है... मुझे इतने लोगों से दुश्मनी करनी ही नही चाहिए थी"… आर्यमणि विलाप करते हुये बड़बड़ाने लगा।

ओजल:– संभालो बॉस, खुद को संभालो...

आर्यमणि:– रूही.. कहां है... कहां है रूही"…

ओजल:– यहीं पास में है।

आर्यमणि:– हटो मुझे उसे हील करना है... सब पीछे हटो..

तभी संन्यासी शिवम पीछे मुड़े और दंश को भूमि पर पटकते... "अशांत मन केवल तबाही लाता है। अभी रूही का जिस्म हील करेंगे तो हमेशा के लिये 10 छेद उसके बदन में रह जाएंगे। खुद को शांत करो"…

संन्यासी शिवम की बात सुनने के बाद आर्यमणि पूरा हताश हो गया। वहीं जमीन पर बैठकर रूही, रूही बड़बड़ाने लगा। दूसरी ओर जड़ों में फसे एलियन ने पहले खुद को जड़ों से आजाद किया, बाद में सादिक यालक और उसके पूरे पैक को। कुछ ही देर में कास्टल के दरवाजे पर पूरी फौज खड़ी थी। फौज लगातार अंदर घुसने का प्रयास कर रही थी, लेकिन दरवाजे के 10 कदम आगे ही हवा में जैसे किसी ने दीवार बना दिया हो। सभी दरवाजे से 10 कदम की दूरी पर खड़े थे।

संन्यासी शिवम्:– गुरुदेव दुश्मन द्वार खड़े है। मैं रूही को देखता हूं, आपलोग उन बाहर वाले दुश्मनों को देखिए।

आर्यमणि:– हां सही कह रहे आप।

संन्यासी शिवम्:– ओजल अपने दंश से सामने की सुरक्षा दीवार गिरा दो।

कास्टल के ग्राउंड फ्लोर पर संन्यासी शिवम, रूही का इलाज शुरू कर चुके थे। पूरी अल्फा पैक कास्टल के दरवाजे से बाहर कतार लगाये खड़ी थी। उधर से विवियन चिल्लाया.... “तुम लोग बहुत टेढ़ी जान हो... तुम्हारी दुर्दशा हो गयी फिर भी बच गये। तुम्हारी बाजारू पत्नी के शरीर में इतने छेद हुये, लेकिन लेजर के साथ–साथ उसके भीषण जहर से भी बच गयी। कमाल ही कर दिया। अच्छा हुआ जो तुम और तुम्हारे लोग कतार लगाकर अपनी मौत के लिये पहले ही सामने आ गये।”

इवान कुछ तो कहना चाह रहा था किंतु आर्यमणि ने इशारे में बस चुप रहने के लिये कहा। उधर निशांत इशारे में सबको समझा चुका था कि आस पास का दायरा पूरे भ्रम जाल में घिरा हुआ है। तभी एक बड़े विस्फोट के साथ बाहर की अदृश्य दीवार टूट गयी। जब रेत और धूल छंटा तब वहां इकलौत आर्यमणि अपना पाऊं जमाए खड़ा था। बाकी अल्फा पैक सदस्य पर विस्फोट का ऐसा असर हुआ की वो लोग कई फिट पीछे जाकर कास्टल की दीवार से टकराये। दरअसल मंत्र उच्चारण के बाद ओजल द्वारा कल्पवृक्ष दंश को संतुलित रूप से भूमि पर पटकना था, किंतु ओजल से थोड़ी सी चूक हो गयी और दीवार गिराने वाले विस्फोट का असर न सिर्फ विपक्षी को हुआ बल्कि आंशिक रूप से अल्फा पैक पर भी पड़ा।

असर तो आर्यमणि पर भी होता लेकिन विस्फोट के ठीक पहले आर्यमणि के हाथ में उसका एम्यूलेट पहुंच चुका था। बाकी के अल्फा पैक अपना धूल झाड़ते खड़े हुये। सबसे ज्यादा गुस्सा निशांत को ही आया। गुस्से में झुंझलाते हुये..... “तुम (ओजल) कभी भी नही सिख सकती क्या? विस्फोट का असर खुद के खेमे पर भी कर दी।”..

ओजल:– निशांत सर अभी सिख ही रही हूं। किसी वक्त आप भी कच्चे होंगे...

निशांत:– कच्चा था लेकिन अपनी बेवकूफी से अपने लोगों के परखच्चे नही उड़ाता था। पागल कहीं की...

इवान:– अरे वाह एमुलेट वापस आ गया।

दरअसल एक–एक करके सबके एमुलेट लौट आये थे। हवा में बिखरे रेत जब आंखों के आगे से हटा, दृष्टि पूरी साफ हो चुकी थी। विपक्ष दुश्मनों के आगे की कतार तो जैसे गायब हो चुकी थी, लेकिन बाकी बचे लोग हमला बोल चुके थे। बेचारे एलियन और यालवीक की सेना अपनी मौत को मारने की कोशिश में जुटे थे।

इनकी कोशिश तो एक कदम आगे की थी। जिस जगह अल्फा पैक खड़ी थी उसके आस पास की जगह पर गोल–गोल घेरे बन रहे थे। गोला इतना बड़ा था कि उसमे आराम से 4–5 लोग घिर जाये। हर कोई जमीन पर किरणों के बने गोल घेरे साफ देख सकते थे। एक प्रकार का एलियन महा जाल था, जिसमे अल्फा पैक को फसाकर मारने की कोशिश की जा रही थी।

किंतु निशांत के भ्रम जाल में पूरे एलियन उलझ कर रह गये। विवियन को भी समझ में आ गया की उनका पाला किस से पड़ा है। किरणों के गोल जाल में जब अल्फा पैक नही फंसा तब विवियन ने टर्की के स्थानीय वेयरवोल्फ को इशारा किया। वुल्फ पैक का मुखिया सादिक यालविक, इशारा मिलते ही आर्यमणि पर हमला करने के लिये कूद गया।

सादिक याल्विक लंबी दहाड़ लगाकर सीधा आर्यमणि के ऊपर छलांग लगा चुका था। किंतु भ्रम जाल के कारण सादिक यालविक को लग रहा था कि वह आर्यमणि के ऊपर कूद रहा है और आर्यमणि साफ देख सकता था कि सादिक ने एक हाथ बाएं छलांग लगाया था। आर्यमणि ने पंजा झटक कर अपने क्ला को बाहर निकाला और जैसे ही सादिक याल्विक उसके हाथ के रेंज में आया फिर तो आर्यमणि ने अपना पंजा सीधा सादिक यालविक के सीने में घुसेड़ कर उसे हवा में ही टांग दिया। पूरा यालविक पैक ही दर्द भरी दहाड़ लगाते आर्यमणि के ऊपर हमला कर चुका था।

अल्फा पैक जो पीछे खड़ी थी, वह बिना वक्त गवाए तेज दौड़ लगा चुके थे। एमुलेट के पावर स्टोन ने फिर तो सबको ऐसा गतिमान किया की सभी कुछ दूर के दौड़ने के बाद जब छलांग लगाये, फिर तो हवा में कई फिट ऊंचा उठे और सीधा जाकर वुल्फ के भिड़ में गिरे। ओजल अपना कल्पवृक्ष दंश जब चलाना शुरू की फिर तो सभी वुल्फ ऐसे कट रहे थे, मानो गाजर मूली कटना शुरू हो चुके हो।

अलबेली और इवान तो पंजों से सबको ऐसे फाड़ रहे थे कि उसे देखकर यालविक पैक के दूसरे वुल्फ स्थूल पड़ जाते। भय से हृदय में ऐसा कंपन पैदा होता की डर से अपना मल–मूत्र त्याग कर देते। महज 5 मिनट में ही यालविक पैक को चिड़ने के बाद सभी एक साथ गरजते..... “बॉस यालविक पैक साफ हो गया। बेचारा सादिक आपके पंजों पर टंगा अकेला जिंदा रह बचा है।”...

“फिर ये अकेला वुल्फ बिना अपने पैक के करेगा क्या?”.... कहते हुये आर्यमणि ने अपना दूसरा पंजा सीधा उसके गर्दन में घुसाया और ऊपर के ओर खींचकर ऐसे फाड़ा जैसे किसी कपड़े में पंजे फंसाकर फाड़ते हो। पूरा चेहरा आड़ा तिरछा होते हुये फटा। सादिक यालविक का पार्थिव शरीर वहीं रेत पर फेंककर आर्यमणि चिल्लाया..... “ये हरमजादे एलियन अब तब अपने पाऊं पर क्यों है? वायु विघ्न मंत्र के साथ आगे बढ़ो और अपने क्ला से सबके बदन को चीड़ फाड़ दो। जलने का सुख तो बहुत से एलियन ने प्राप्त किया है, आज इन्हे दिखा दो की हम फाड़ते कैसे है। याद रहे इनके शरीर में एसिड दौड़ता है, इसलिए जब तुम इन्हें फाड़ो तो तुम्हारे पंजों में एसिड को भी जो गला दे, ऐसा टॉक्सिक दौड़ना चाहिए। चलो–चलो जल्दी करो, मेरे कानो में चीख की आवाज नही आ रही।”....

इवान अपनी तेज दहाड़ के साथ एलियन के ओर दौड़ते..... “बॉस बस एक मिनट में यहां का माहौल चींख और पुकार वाली होगी। और उसके अगले 5 मिनट में पूरा माहौल शांत।”...

अलबेली भी इवान के साथ दौड़ती..... “क्या बात है मेरे पतिदेव। आई लव यू”...

इवान एक पल रुककर अलबेली को झपट्टा मारकर चूमा और उसके अगले ही पल लंबी छलांग लगाकर धम्म से सीधा एलियन के बीच कूदा। इवान के पीछे अलबेली भी कुद चुकी थी। और उन दोनो के पीछे ओजल। इवान और अलबेली जबतक एक को चीड़–फाड़ रहे थे, तब तक ओजल अपने दंश को लहराकर जब शांत हुई चारो ओर कटे सर हवा में थे।

ओजल एक भीड़ को शांत कर दूसरे भिड़ को काटने निकल गयी। न तो क्ला निकला न ही फेंग। न ही एलियन के लेजर असर किये ना ही फसाने वाले गोल किरणे। बस ओजल का कल्पवृक्ष दंश था और चींख के साथ हवा में उड़ते धर से अलग सर। जबतक इवान और अलबेली दूसरी भिड़ तक पहुंचते तब तक ओजल दूसरी भिड़ काटकर तीसरी भिड़ के ओर प्रस्थान कर चुकी थी। पूर्ण रौद्र रूप में ओजल जैसे भद्र काली का रूप ले चुकी थी।

तीसरे भिड़ की ओर आगे बढ़ने के बजाय इवान और अलबेली वापस आकर निशांत के पास खड़े हो गये और चिल्लाते हुये बस ओजल को प्रोत्साहन दे रहे थे। एक बार जब ओजल शुरू हुई फिर तो महज 5 मिनट में एलियन को तादाद मात्र 1 बची थी। वो भी विवियन जीवित इसलिए बचा क्योंकि बदले मौहौल को देखकर वह सब छोड़ कर भाग रहा था।

ओजल भी उसे मारने के लिये दौड़ी ही थी कि इतने में पुलिस सायरन सुनकर वह रुक गयी। टर्की की स्थानीय पुलिस पहुंच चुकी थी। पुलिस को बुलाने में भी विवियन का ही हाथ था। आर्यमणि ने महज इशारे किये और पल भर में ही निशांत समझ चुका था कि क्या करना है। पुलिस आयी और गयी इस बीच में निशांत ने उसे वही दिखाया जिस से पुलिस जल्दी चली जाये। मौहौल जब शांत हुआ तब हर किसी में एक ही रोष था, विवियन जिंदा भाग गया।
Yalvik bhi sala Sardar khan ki pravatti vala tha isliye uske jinda rahne ka koi sawal hi nhi uthta tha, pr use marne ke Pahle arya ne usko pure pack ka Marta hua drisya dikhaya fir kahi jakr usko Mara gya...

Ojal ne to yha puri team ke sath hmara bhi dil ki dhadkan bdha di, Pahle dansh ko prayog me hui galti jo Aksar inexperience log kr jate hai vahi alian ke sar kat'te huye, ek baar to lga ki aisi honi chahiye apni fir dhyan se socha ki apni vali jb gussa hoti hai to kya karti hai or alag Ojal jaisi hui or usne gussa kiya to kya hoga... Na baba mujhe to apni vali hi thi hai, vaisa soch kr hi rongte khade ho gye the...

Sasura viviyan bhag gya, Lekin aaya to huriyant planet se tha mujhe lagta hai jb nishchal pahucha hoga udhar tb tk arya ne udhar ki gandgi saaf kr diya hoga ya kahe ki udhar ki gandgi vha se king ne bulva liya hoga kisi aur planet pr...

Action mind blowing tha Nainu bhaya pr Naina ji na dikhi comment karte huye, apne to conform bhi kr diya hai ki nishchal jald idhar aane vala hai vahi Hella hame Bhanvar 2 me dikhne vali hai sath hi astak ki vo bitiya bhi jo desert planet me mili thi or earth aa gyi thi...


Idhar aapne ek chij or conform ki thi, arya ne tb tk teliportation skill nhi sikha tha jb nishchal se mila tha us pani vale planet pr...

Superb mind-blowing Jabardast update bhai sandar with awesome writing skills
 

andyking302

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भाग:–152


कुछ दूर आगे लगभग 1000 मीटर से जायदा गहराई का इतना बड़ा भंवर बना हुआ था जिसमे बड़े–बड़े 10 जहाज एक साथ दम तोड़ दे। और नजरें ऊपर जब गयी तो आगे और पीछे से एक साथ इतनी ऊंची लहर की दीवार दिख रही थी, जिसने महासागर के पानी को सीधा आकाश से ही मिला दिया था। दम साधे अपनी श्वांस रोककर पूरा अल्फा पैक ही हैरान थे।

ऐसा भयावाह नजारा था जिसे देखकर सभी के रौंगटे खड़े हो गये। रूही, इवान और अलबेली एक दूसरे के हाथ इस कदर मजबूती से थामे थे, मानो भयभीत करने वाले इस मंजर में एक दूसरे को हिम्मत दे रहे थे। वहीं आर्यमणि अपनी छाती चौड़ी किये क्रूज के छत पर खड़ा था। एक फिसलंदार सतह जो इतनी हिलती थी की उसपर पाऊं ही न जमा पाये, खड़े होना तो दूर की बात थी।

आर्यमणि ने क्रूज ठीक आगे निगलने वाले भंवर को देखा। उस भंवर के आगे खड़ा आसमान को छूते लहर को देखा। सिर्फ इतना ही नहीं मौत अपनी पूर्ण चपेट में लेने के लिये पीछे भी खड़ी थी। पीछे भी एक लहर आसमान को छू रही थी। आर्यमणि फिर भी निर्भीक खड़ा रहा। अपने एमुलेट को हाथ में थामकर इतनी तेज दहाड़ लगाया की उसके दहाड़ की भीषण कंपन में दोनो लहरें इस कदर गायब हो गयी मानो उसका अस्तित्व कभी था ही नही।

आर्यमणि दहाड़ लगाने के ठीक बाद छत से एक लंबी दौड़ लगाया और हवा में कई फिट ऊंचा छलांग लगा चुका था। रूही, अलबेली और इवान की नजर जब आर्यमणि पर गयी तीनो की ही श्वास पतली होने लगी। भीषण महासागर में बने भंवर के ऊपर उन्हे कण के बराबर का एक इंसान ही दिखा। समुद्री तूफान और भंवर के ठीक ऊपर हवा में था आर्यमणि। तेजी से नीचे गिड़कर आर्यमणि भंवर की गहराई में था। बड़ा सा गोल भंवर के ठीक बीच आर्यमणि फंसा था और गिरने के साथ ही उसने अपने अंदर की वह दहाड़ निकाली की भंवर की गहराई पूरे महासागर में फैल गयी।

कहां गया भंवर और उसके एक किलोमीटर की गहराई कुछ पता ही नही चला। बस क्रूज ने इतना तेज झटका खाया की रूही, अलबेली और इवान मुंह के बल गिर गये। सारी बाधाओं को ध्वस्त करने के बाद क्रूज एक बार फिर अपनी गति से आगे बढ़ी। लेकिन महासागर के इस हिस्से में जैसे पग–पग पर बाधायें बिछी हुई थी। आगे बढ़ते ही इतना तेज तूफान आया की उस तूफान ने पूरे क्रूज को ही सीधा खड़ा कर दिया। तिलिस्म सिर्फ इतना ही नहीं था, बल्कि तूफानी हवा ने जैसे ही क्रूज को खड़ा किया, वह पानी में डूबा नही बल्कि उसके नीचे का पूरा पानी ही गायब था।

महासागर जो कई किलोमीटर गहरी थी, उसका पानी गायब होते ही कई किलोमीटर की खाई बना चुकी थी और उस खाई में क्रूज बड़ी तेजी से गिड़ी। किंतु कई तरह के अभिमंत्रित मंत्र से बंधा यह क्रूज महासागर की गहराई में टकराने से पहले ही पानी के सतह पर एक बार फिर तैर रहा था। एक पल में गिर रहे थे अगले पल तैर रहे थे। जितनी भी तिलिस्मी बाधा थी, उन्हे काटते हुये क्रूज तेजी से आसानी से आगे बढ़ रही थी, बस अल्फा पैक कभी ऊपर तो कभी नीचे की दीवारों से टकरा रहे थे।

भोर हो रही थी। सूर्य अपनी लालिमा बिखेर रही थी। दूर–दूर तक दिख रहा महासागर शांत था। वहीं दूर महासागर के बीच ऊंचे पहाड़ जंगलों से घिरा एक टापू भी दिख रहा था। अल्फा पैक ने सभी बेहोश पड़े क्रू मेंबर के शरीर को हील करने के बाद उन्हे बिस्तर पर लिटा दिया। सारा काम समाप्त कर पूरा अल्फा पैक डेक पर आराम से बैठकर उगते सूरज का लुफ्त उठा रहे थे।

एक–एक करके सारे क्रू मेंबर जाग रहे थे और टापू को देखकर उतने ही खुश। कैप्टन भी वह अजूबा टापू देख रहा था, जिसकी कहानी बताने आज तक कोई जहाजी वापस नहीं लौटा। जागते ही उसने सबसे पहले अपने सिस्टम को ही चेक किया। लेकिन आश्चर्य तब हो गया जब रात के वक्त जिस जगह पर कैप्टन ने विश्राम करने का सोचा, उस से कुछ दूर आगे की फुटेज के बाद कुछ था ही नही। कितने नॉटिकल माइल क्रूज चल चुकी थी उसका भी ब्योरा नहीं। संपर्क प्रणाली तो सुचारू रूप से काम कर रही थी, लेकिन किसी भी पोर्ट पर संपर्क नही हो पा रहा था।

कप्तान, आर्यमणि के पास आकर अपनी कुर्सी लगाते.... “सर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि आपने सबको बेहोश करके महासागर का वह इलाका पार कर लिया, जहां महासागर प्रचंड हो जाता है। नेविगेशन कर रहे 2 सेलर अपने केबिन में मुझे सोए हुये मिले जिन्हे रात की कोई बात याद नही।”...

आर्यमणि:– कप्तान साहब आपको क्या लगता है, रात को क्या हुआ होगा?

कैप्टन:– बस उसी का तो अनुभव लेना था। उन रास्तों पर क्या हुआ था, उसकी तो कल्पना भी नहीं कर सकता।

आर्यमणि:– कुछ बातों की जिज्ञासा न हो तो ही बेहतर है। आप और पूरा क्रू मेरे साथ है इसलिए इस आइलैंड पर सब सुरक्षित है। आगे का संभालिये, देखिये हम इनगल्फ आइलैंड पहुंच चुके।

कैप्टन अपने केबिन में घुसे। वहां से सभी क्रू मेंबर को जरूरी दिशा निर्देश देने लगे। शिप के क्रू मेंबर शिप को उसकी सही जगह लगाने लगे, जबतक आर्यमणि जेट के पास पहुंचा।… "देखे इसे चलाया कैसे जा सकता है।"..

आर्यमणि ध्यान लगाने लगा। धीरे–धीरे यादों की गहराई में और वहां जेट उड़ाने के पहले दिन से लेकर आखरी दिन तक की याद थी। मुस्कुराते हुए आर्यमणि की आंखें खुली और जेट से वो आइलैंड के चक्कर लगाने लगा। तकरीबन 45 किलोमीटर में यह आइलैंड फैला था जिसमे विशाल जंगल और पहाड़ थे। क्षेत्रफल को लेकर आर्यमणि के मन में दुविधा जरूर हुई लेकिन इस बात को फिलहाल नजरंदाज करते अपने तंबू लगाने की जगह को उसने मार्क कर दिया। एक चक्कर काटने के बाद जेट क्रूज पर लैंड हो चुकी थी और आर्यमणि सीधा कैप्टन के पास पहुंचा।

कप्तान:– सर आपने कभी बताया नही की आप एक पायलट भी है।

आर्यमणि:– तुम कहो तो तुम्हे भी पायलट बना दे।

कप्तान:– फिर कभी सर... अभी हमारे लिये क्या ऑर्डर है..

आर्यमणि:– जैसा की आपको बताया गया है की ये सफर लंबा होने वाला है। इसलिए जबतक मेरा यहां काम खत्म नहीं हो जाता तबतक मैं यहां रुकने वाला हूं। टापू के एक मैदानी भाग के मैने मार्क कर दिया है जहां मैं सबके रहने का इंतजाम करता हूं। अभी के लिये आप अपने क्रू के साथ क्रूज में ही रहिए, और हमारे भीकल्स को किनारे उतारने का इंतजाम कीजिये। बाकी कोई इमरजेंसी हो तो वाकी से संपर्क कीजिएगा...

कप्तान, आर्यमणि के कहे अनुसार करने लगा। जिप लाइन जोड़ दी गई। मजबूत वायर जो 100 टन से ऊपर का वजन संभाल सकती थी। कार्गो पैकिंग में 2 मिनी–ट्रक थी, जो चारो ओर से चौड़ी पट्टियों में लिपटी थी। एक मजबूत एडवांस्ड मिलिट्री जीप के साथ पहाड़ी और जंगल में इस्तमाल होने वाली 3 बाइक थी।

हुक के सहारे फसाकर सभी गाड़ियों को किनारे तक पहुंचाया गया। क्रू मेंबर वहीं क्रूज में ही रुके बाकी गाड़ियों के साथ आर्यमणि चल पड़ा। किनारे से तकरीबन 6 किलोमीटर अंदर मार्क की हुई जगह पर सब पहुंचे। यह इस आइलैंड का मैदानी भाग था जहां 5–6 फीट का जंगली झाड़ उगा हुआ था।

बड़े–बड़े टूल बॉक्स जरूरत के कई समान लोड किये दोनो ट्रक को उस जगह तक पहुंचाया गया। अलबेली और इवान उस जगह के चारो ओर के झाड़ को साफ करने लगे, वहीं आर्यमणि बड़ी सी आड़ी लेकर जंगल में घुसा। वहां आर्यमणि सबसे बूढ़ा पेड़ ढूंढने लगा जिसकी स्वयं मृत्यु की इक्छा हो। 4 ऐसे मोटे वृक्ष मिल गए। आर्यमणि उन वृक्षों को काटना शुरू किया। शाम तक में 2 वृक्ष काट कर छोटे छोटे टुकड़ों में विभाजित कर चुका था।

आज का दिन खत्म हो रहा था, इसलिए आर्यमणि ने अपना काम रोक दिया। इधर अलबेली और इवान ने मिलकर मैदानी भाग के बड़े–बड़े झाड़ को साफ कर चुके थे, जहां इनका टेंट लगता। इन तीनों के अलावा रूही भी अपना काम कर रही थी। वह जंगल से कुछ खाने के लिए ढूंढ लाई। हां एक बात जो चारो के साथ हो रही थी, उस जगह कई तरह के जानवर थे, जो इनको देखकर रास्ता बदल लेते।

इवान और अलबेली का काम भी खत्म हो गया था। उन्होंने तो झाड़ के 8–10 पहाड़ खड़े कर दिये, जिन्हे सूखने के बाद इस्तमाल में लाया जाता। दोनो ने मिलकर लगभग 500 मीटर के इलाके को साफ कर चुके थे। देखने मे वह जगह काफी खूबसूरत लग रही थी। बीच में ही टेंट लग चुके थे और रूही आग पर तरह–तरह के खाने पका रही थी। इनके खाने में, जंगल से मिले कुछ बीज, नए तरह के फल और कुछ हरी पत्तियां थी।

पत्ती का सूप किसी आनंदमय भोजन से कम नही था। उसके अलावा उबले बीज स्वाद में काफी करवा था लेकिन फिर भी पोषण के लिए खा लिये। अगली सुबह से फिर इनका काम शुरू हो गया। कटे हुए पेड़ को छिलना उनसे चौड़े तख्ते निकलना। ये बात तो चारो को माननी पड़ी की लकड़ी छिलना और उनसे पल्ले निकलना बड़ा टेढ़ा काम था। लकड़ी के 2 मोटे सिल्ले को बर्बाद करने के बाद, तब कहीं जाकर समझ में आया की ढंग का पल्ला कैसे निकालते हैं। वो तो वहां 3 साल पढ़ी एक सिविल इंजीनियर रूही थी, जिसने अपने मजदूरों का मार्गदर्शन किया, तब जाकर सही से काम होना शुरू हुआ था। हां लेकिन अंत में वीडियो ट्यूटोरियल का सहारा लेना पड़ा था वो अलग बात थी।

काम करते हुये सबको 5 दिन हो चुके थे। लकड़ी के सैकड़ों पल्ले निकल चुके थे। छटे दिन से आर्यमणि लकड़ी के पल्ले निकालने का काम कर रहा था, इधर अलबेली और इवान कॉटेज के फाउंडेशन का काम कर रहे थे। ये लोग अपने काम में लगे हुये थे, जब एक घायल शेर उस मैदानी भाग में पहुंच गया।

धारियों को देखकर पता चल रहा था की ये कोई माउंटेन लायन है। शेर घायल जरूर था लेकिन जैसे ही चारो को देखा तेज दहाड़ लगा दिया। आर्यमणि उसके आंखों में झांका और वो शेर शांत होकर बैठ गया। चारो उसके पास पहुंचे। पेट के पास कटा हुआ था जिसका जख्म अंदर तक था। आर्यमणि फर्स्ट एड कीट निकाला। जख्म के हिस्से को चीरकर वहां का सारा मवाद निकाला और पट्टियां लगाकर उसे हील करने लगा। जैसे–जैसे शेर का दर्द गायब हो रहा था, सुकून से वो अपनी आंखें मूंदेने लगा। आर्यमणि जब अपना काम करके हटा, शेर फुर्ती से उठ खड़ा हुआ और अपनी खुशी की दहाड़ लगाकर वहां से भाग गया।

सभी लोग वापस से काम पर लौट गये। यूं तो रूही भी काम करना चाहती थी, पर उसकी परिस्थिति को देखते उसे बस खाना बनाना और झड़ने से पानी लाने का काम दिया गया था। 15 दिनों में वहां 5 बड़े से कॉटेज तैयार थे। प्राइवेसी के लिये कई पार्टीशन किये गये थे। मूलभूत सुविधा के साथ कॉटेज रहने के लिये तैयार था।

15 दिन बाद पूरे क्रू मेंबर को टापू पर बुलाया गया। जब वो लोग मैदानी भाग में आये जहां कॉटेज बना हुआ था, वो जगह देखकर दंग थे। पूरे रास्ते पर चलने के लिए पत्थर बिछा हुआ था। इलाके में बड़ी सी फेंसिंग की गई थी। इसी के साथ 5 कॉटेज एक निश्चित दूरी पर थे। कॉटेज के चारो ओर बागवानी के लिए जमीन छोड़ी गई थी और बाकी जगह पर पत्थर को खूबसूरती से बिछाकर फ्लोर बनाया गया था।

जगह इतनी खूबसूरत थी कि सबको पसंद आना ही था। क्रूज से घर की जरूरतों के सारे सामान लाये गये। हां लेकिन न तो आर्यमणि और न ही किसी को भी ये पता था की क्रू मेंबर अपने साथ हंटिंग का सामान भी लाये थे। और तो और किसी भी खूबसूरत सी दिखने वाली जगह पर जब रहने जाओ, तब पता चलता है कि वहां रहना कितना मुश्किल होता है।

जिस दिन सभी क्रू मेंबर को रहने बुलाया गया उसी शाम आर्यमणि ने बुलेट फायरिंग सुनी। फायरिंग जहां से हुई, वहां अलबेली और इवान तुरंत पहुंचे और लोगों शिकार करने से रोकने लगे। इस चक्कर में क्रूज के सिक्योरिटी गार्ड और इवान के बीच बहस भी हो गयी। बहस इतनी बढ़ गयी की सिक्योरिटी गार्ड अपने हाथ का राइफल इवान के ऊपर तान दिया। अलबेली तैश में आ गयी। उसने राइफल की नली को पकड़कर हवा में कर दी और खींचकर उस सिक्योरिटी गार्ड को तमाचा मारती.... “मजा आया... यदि और शिकार करने का भूत सवार हो तो बता देना, थप्पड़ मार–मार कर सबके गाल की चमड़ी निकाल दूंगी।”...

अलबेली के एक्शन पर बाकी के तीन सिक्योरिटी गार्ड अपने रिएक्शन देते उसके ओर लपके और वो तीनो भी इवान के हाथ का कड़क थप्पड़ खाकर शांत हो गये.... “मेरी बीवी ने बोल दिया न शिकार नही तो मतलब नहीं। हमसे उलझने की सोचना भी मत वरना गाल के साथ–साथ पूरे शरीर की चमड़ी उतार दूंगा।”...

इस एक छोटे से वार्निंग के बाद सबके दिमाग ठिकाने आ गये, लेकिन मन में भड़ास तो आ ही गयी थी। ऊपर से जब क्रू मेंबर के सामने उस जंगल की पत्तियों के सूप, उबले बीज और कसैला स्वाद वाला फल दिया गया, सबने खाने से इंकार कर दिया। उन्हे तो बस नमक मिर्च डालकर भुना मांस ही खाना था।

पहले ही रात में भयंकर गहमा–गहमी हो गयी। अगली सुबह तो और भी ज्यादा माहौल खराब हो गया, जब पानी के लिये इन्हें 5 किलोमीटर अंदर झरने तक जाना पड़ा। उसमे भी वो लोग झड़ने का पानी नहीं पीना चाहते थे। कुल मिलाकर एक दिन पहले उन्हे रहने बुलाया और अगले दिन ही सभा लग गयी, जहां पूरा क्रू वापस जाने की मांग करने लगे।

अब कर भी क्या सकते थे, अगली सुबह ही वो लोग मिनीजेट से न्यूजीलैंड रवाना होते। रात को चुपके से आर्यमणि भ्रमण पर निकला और क्रूज चलाने से लेकर नेविगेशन करना सब सीख गया। वहीं इंजन विभाग वाला काम रूही को दे दिया गया और वो क्रूज इंजन के बारे में पूरी जानकारी लेकर निकली। इलेक्ट्रिक इंजन और इलेक्ट्रिसिटी को देखने वाले जितने टेक्नीशियन थे, उनका काम इवान और अलबेली सीखकर निकले। अंत में सबने अपने ज्ञान को एक दूसरे से साझा किया और हंसते हुये सोने चल दिये।

अगली सुबह सबको लेकर मिनिजेट उड़ चला। उस आइलैंड के सबसे नजदीकी देश न्यूजीलैंड ही था, जहां उन सबको छोड़कर आर्यमणि वापस उस आइलैंड पर आ गया। न्यूजीलैंड गया तो रूही की डिमांड पर कई सारे चीजें लेकर भी आया। इतना सामान की पूरा जेट सामानो से भड़ा था। हां लेकिन केवल रूही के जरूरत का ही समान नही था, बल्कि कई और जरूरत की चीजें भी थी।

अब चूंकि 5 कॉटेज की जरूरत नही थी इसलिए आर्यमणि ने 2 कॉटेज को ही डिवेलप करने का सोचा। वैसे मसाला आ जाने के बाद खाने का जायका कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था। इस आइलैंड पर करने को बहुत कुछ था। सुबह 4 बजे सब जागकर ध्यान करते। जिसमे आर्यमणि को छोड़कर किसी को मजा नही आता। आर्यमणि जैसे ही ध्यान में जाता बाकी सभी सोने चले जाते।

फिर होता मंत्र उच्चारण। जिसे सब मना कर चुके थे, लेकिन आर्यमणि सबको जबरदस्ती मंत्र उच्चारण करने कहता। साथ ही साथ रूही के पेट पर प्यार से हाथ फेरते अपने होने वाले बच्चे को भी वो बहुत कुछ सिखाया करता था। दिन के समय चारो जंगल में निकलते। ये चारो का सबसे प्यारा काम था। जो दर्द में दिखे उनका दर्द दूर करना। फिर चाहे वो पेड़ हो या कोई शाकहारी या मांसहारी जानवर।

बड़े से फेंसिंग के अंदर उन्होंने भेड़ पालना शुरू किया। भेड़ के आ जाने से खाने पीने का मजा ही अलग हो गया। क्योंकि दूध की अब कोई कमी नही थी। हां लेकिन भेड़ का दूध पीकर रात को भेड़िए पागल हो जाते थे और सहवास के दौरान दोनो (आर्यमणि और इवान) इतने जोश में होते की रात को पूरा थक कर ही सोते थे।

जिस माउंटेन लायन की जान इन लोगों ने बचाई थी वह अक्सर इनके फेंस के पास दिख जाता। लायन के आते ही पालतू भेड़ में डर का माहोल पैदा हो जाता, लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ की शेर ने इन भेड़ पर हमला किया हो। फेंस के आगे धीरे–धीरे हर घायल जानवर का ठिकाना हो गया था। ऐसा लग रहा था जैसे वहां के जानवरों के लिये कोई डॉक्टर पहुंचा हो।
Fabulous excellent fantastic update bade bhai ❤️❤️😍😘😘😘😍❤️❤️😍😘😘😘😍❤️😍😍😘😘😘😍😍❤️❤️😍😍😘😘😍❤️❤️😍😘😘🤔😘😍❤️❤️😍😍😘😘😍😍❤️❤️😍😘😘😍❤️❤️❤️😍😘😘

Ye log akhir kar sab adchne par karke apni manjil tak aa hi gaye....

Vaha par ate samy to pura ka pura saman leke agye the....

Aur yaha par unone jo ped khud se hi marna cha rehe the unko Kat ko vaha par rehne laayk ghar bana Dale hey....
US sher ko thik kar ke vaha ke janvromey ye dikhaya ki is inse unko koi khtara nhi hey....

Aur ye sare crue members to sale Chale gaye hey..
Unko to sirf non veg hi chahiye tha...

Kya ohh doctor bhi chala gaya hey 🤔🤔🤔

Aur pure pack ne to yaha pey sab set hi kar dala hey...

Aur yaha pey bhedo ko paln kar ke apna udher nirvah kar rahe hey...

Aur ohh last mey sher bhi vapas agya hey jiska Inone इलाज kiya tha..
Apne dusre sathioyo ko leke yha par ilaj karwne keliye....
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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भाग:–150


पुलिस आयी और गयी इस बीच में निशांत ने उसे वही दिखाया जिस से पुलिस जल्दी चली जाये। मौहौल जब शांत हुआ तब हर किसी में एक ही रोष था, विवियन जिंदा भाग गया।

युद्ध का रेतीला मैदान पूरा साफ था। पुलिस भी धीरे–धीरे नजरों से ओझल हो रही थी। जैसे ही पुलिस अल्फा पैक के दृष्टि से ओझल हुई, आर्यमणि भागता हुआ कैसल पहुंचा। रूही अब भी अचेत अवस्था में थी। आर्यमणि, संन्यासी शिवम के आगे हाथ जोड़कर खड़ा होते... "मुझे माफ कर दीजिए, रूही के गम ने पागल कर दिया था।"…

संन्यासी शिवम:– आप मोह से बंधे है जो किसी भी परिस्थिति में नही जायेगी। माफी मत मांगिए गुरुदेव। मैं पूरी परिस्थिति का अवलोकन करने के बाद यही कहूंगा की आप जल्द से जल्द भारत लौट आइये। मारने की कोशिश करने वालों को केवल एक बार नसीब चाहिए।

आर्यमणि:– हां मैं समझ रहा हूं शिवम् सर। इसलिए तो मैं एकांतवास में प्रस्थान कर रहा हूं, जहां आप टेलीपोर्टेशन के जरिए भी नही पहुंच सकते। जहां के पारिस्थितिक तंत्र को वहां के निवासी जीव के अलावा कोई छेड़ नही सकता। जब वहां से लौटूंगा तब अपनी पूर्ण सिद्धि में रहूंगा और तब शुरू होगा इन परिग्रही को उनके सही स्थान पर भेजना।

संन्यासी शिवम्:– क्या आप शेषनाग लोक में जाने की सोच रहे है?

आर्यमणि:– हां बिलकुल सही समझे है। एक पूरी दुनिया जो आज भी नागराज की कुंडली पर घूमता है। पृथ्वी ग्रह के अंदर का एक ग्रह जिसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है।

संन्यासी शिवम्:– अनंत कीर्ति की पुस्तक को साथ लिये जाइएगा। वहां का विवरण मैं भी पढ़ना चाहूंगा। वैसे सिद्धि प्राप्त करने के लिये आपने काफी अनुकूल जगह को चुना है।

आर्यमणि:– आपका धन्यवाद। अब आप यदि रूही के विषय में कुछ बता देते तो मन को थोड़ी संतुष्टि मिल जाती। एक मन तो रूही पर ही अटका है।

संन्यासी शिवम्:– रूही की हालत ठीक है। आप दोनो का बच्चा भी स्वास्थ्य है। शायद रूही जानती थी कि कहां हमला हो रहा है इसलिए उसने अपने बच्चे को सुरक्षा देना पहली प्राथमिकता समझी...

आर्यमणि:– क्या वो लोग मेरे बच्चे को मार रहे थे...

संन्यासी:– अनजाने में ही सही लेकिन हां, उनका हमला पेट पर ही हुआ था... शिकारी का कुरुर नियम.. शिकार का पेट फाड़ दो... धीरे, धीरे खून बहने से शिकार दर्द और तड़प के साथ मरेगा और उनके साथी बौखलाहट में फसेंगे।

संन्यासी की बात सुनकर तो आर्यमणि के खून ने जैसे उबाल मार दिया हो। सन्यासी शिवम्, आर्यमणि के कंधे पर हाथ रखते... "गुरुदेव इतना गुस्सा जायज नहीं।”

आर्यमणि:– हम्मम… रूही कब तक होश में आयेगी...

संन्यासी:– रूही के नब्ज में जो जा रहा है उसे "सेल बॉडी सब्सटेंस" कहते है। शरीर में जहां कहीं भी क्षतिग्रस्त अंग हो, या शरीर का कोई हिस्सा पहले था, लेकिन बाद में किसी कारणवश पूर्ण रूप से गायब हो गया, उनकी जगह ये "सेल बॉडी सब्सटेंस" ले लेगा। ये “सेल बॉडी सब्सटेंस” शरीर का नेचुरल सेल ही होता है, जो शरीर के सभी क्षतिग्रस्त अंगों की कोशिकाओं को विकसित कर देता है। यही नहीं कोई अंग कट गया हो तो ये कोशिकाएं आपस में जुड़ती हुई उस पूरे अंग तक को विकसित कर सकती है। हां लेकिन रूही के बदन में आर–पार छेद हुआ था, इसलिए वह जगह नई कोशिकाओं से भर तो गई है किंतु पूरी तरह से हील होने में समय लगेगा...

आर्यमणि:– क्या मैं उसे हील कर दूं..

संन्यासी:– नही, कोशिकाएं आपस में जुड़ेंगी और फिर वहां के पूरे हिस्से को विकसित करेगी। यूं समझो की गड्ढे में कोई द्रव्य भरा है। आप हील करोगे तो वो द्रव्य सुख जायेगा। कोशिकाएं जुड़ तो जायेगी लेकिन गड्ढा पूरा भरेगा नही, जो रूही को तमाम उम्र परेशान करेगा। आप चिंता मत करो, उसकी खुद की हीलिंग ऐसी है कि वो कल तक लगभग पूरी रिकवर हो जायेगी। कल ही रूही को होश में आने दीजिए तो ज्यादा बेहतर होगा।

आर्यमणि:– मेरी पत्नी को बाजारू बनाया। उसके वस्त्र नोचे गये। पूरे परिवार को भी निशाना बनाया गया। यदि एलियन हमें मारने में सफल रहते, फिर वो लोग परिवार और दोस्तों को भी कहां छोड़ते। जिन्हे डराया था, वो तो मुझे ही डराने आ गये। रूही के जागने में अभी एक दिन का वक्त है, मुझे क्या करना चाहिए शिवम् सर?

संन्यासी शिवम:– सात्विक आश्रम पूरी दुनिया को काली शक्तियों से सुरक्षा का क्या भरोसा देगा, जब उसका रक्षक अपना और अपने कुटुंब की रक्षा ही न कर पाये। आप जो भी फैसला लीजिएगा उम्मीद है सबके हित में होगा।

आर्यमणि:– अल्फा पैक, ये नायजो जहां भी होंगे पेड़ पौधों की वहां कोई कमी नही होगी। हमे नायजो के किसी भी प्लेनेट पर जड़ों से खेलने का पूरा मौका मिलेगा। वहां हमे निशांत के भ्रम जाल का सहारा मिलेगा, तो नायजो के ऊपर ओजल की मंत्र शक्ति भी काम करेगी। अभी हमारे पास पूरे 24 घंटे है और इन 24 घंटों में हम नायजो को वह सबक सिखा सकते है, जिसको कल्पना किसी ने भी की न होगी।

निशांत:– तू करना क्या चाहता है?

आर्यमणि:– इनका मूल ग्रह, जिसे नायजो समुदाय अपना गृह ग्रह मानते है विषपर, वहां घुसकर उसके मुखिया को साफ कर देना।

अलबेली:– क्या एक देश के मुखिया को मार देना आसान होगा? और यदि आसान भी हो तो इसका परिणाम पृथ्वी पर क्या होगा?

आर्यमणि:– हम्मम... ठीक है पलक से कॉन्टैक्ट करो। कोई एक नाम और पता लो जहां वार करने से इनको पूरा अक्ल आ जाये।

निशांत:– उतना करने की जरूरत नही है। 24 घंटे में भारत से नायजो की जितनी आबादी साफ कर सकते हो कर दो। हम अंत में ये संदेश छोड़ देंगे की अगली बारी निशाना पृथ्वी के नायजो नही, बल्कि उनके मूल ग्रह जहां से खुद की उत्पत्ति मानते है, विषपर ग्रह के नाजयो का ये हाल करेंगे।

संन्यासी शिवम्:– गुरुदेव निशांत का सुझाव भी अच्छा है। बाकी अंतिम फैसला आपका।

आर्यमणि:– मुझे भी निशांत का सुझाव ज्यादा सही लगा। तो फिर चलो वन डे एक्शन खेलने...

एक बार जो फैसला हुआ उसका बाद तो जैसे अल्फा पैक कहर बनकर बरसे। अच्छे लोग जब बेरहम होते है, फिर कितने बेरहम हो सकते है, उसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण तो अल्फा पैक ने जर्मनी में दे ही दिया था। एक बार फिर अल्फा पैक अपने कुरुरता के चरम पर थे और जहां भी गये सबको जड़ों में लिटाकर कैस्टर ऑयल प्लांट के जहर का मजा देते चले।

आज ना तो किसी को जलाकर उसकी मौत को आसान किया गया और न ही मुंह बांधकर उनके चिल्लाने को बंद किया गया। जड़ों में लिपटे कांटों की अर्थी पर कैस्टर ऑयल का जहर नायजो के शरीर में उतर रहा था। और उनका कान फाड़ चिल्लाना सुनकर ही बचाने के लिये पहुंचे नायजो के हाथ और पाऊं कांपने लगे थे।

नायजो के 22 वर्किंग स्टेशन को महज 24 घंटे में मौत की भावायवाह पुकार में बदलकर अल्फा पैक वापस से रूही के पास पहुंच चुके थे, जिसकी सुरक्षा के लिये वहां ओजल को छोड़ दिया गया था। भारत में लगभग 60 हजार नायजो तकरीबन 6 से 8 घंटे तक गला फाड़ चिंखते ही रहे। जो उन्हे बचाने पहुंचे उन्होंने जड़ों को काटने की कोशिश किये, परंतु जितना जड़ों को काटते उस से दुगना जड़ पल भर में उग आता।

जैसे आर्यमणि के पास नाजयो के किरणों के गोल घेरे का तोड़ नही था, ठीक उसी प्रकार नायजो के पास अल्फा पैक के जड़ों का तोड़ नही था। जबकि नायजो खुद को पेड़ पौधों के संरक्षक पुकारते थे। जड़ों को काटकर हटाने के लिये सारे टेक्नोलॉजी का प्रयोग करके देख लिये। पेट्रोल में डुबाकर जड़ों में आग तक लगाकर देख लिये, किंतु आर्यमणि ने सबके किस्मत में धीमा मौत लिख दिया था और उन्हे वही भायवाह मौत मिली। दर्द भरी चींख के बीच शरीर के एक–एक कोशिकाओं को खराब करते आगे बढ़ता कैस्टर ऑयल प्लांट का जहर।

हर वर्किंग स्टेशन में किसी को भी हाथ लगाने से पहले पलक से संपर्क किया गया, ताकि जो नायजो अपने समुदाय को गलत मानते है और पलक के साथ उनसे लड़ने की सोच रहे थे, उनके साथ कुछ भी गलत न हो। नागपुर वर्किंग स्टेशन को छोड़कर महाराष्ट्र, गुजरात और बंगाल के लगभग हर उस स्टेशन में मौत का मंजर दिखा, जहां भी नायजो बहुतुल्य थे।

हर वर्किंग स्टेशन की दीवार पर बड़े–बड़े अक्षरों से लिख दिया गया.... “यदि अगली बार कोई तुच्ची हरकत हुई फिर आज का 24 घंटे का एक्शन 240 दिनो का होगा और नायजो बसने वाले सभी 5 प्लेनेट पर हम बराबर–बराबर 48 दिन तक का मौत का तांडव होगा। बस एक बार और जर्मनी की संधि का उल्लंघन करके तो दिखाओ।”

इतना बड़ा कांड था, हाई–टेबल की बैठक तुरंत ही बिठाई गयी। देश, दुनिया और ग्रहों के सभी नेता सभा करने बैठ गये। सभा के बीच में ही नायजो के आम लोग झुंड बनाकर पहुंच गये। आक्रोशित भिड़ ने अपने हाई–टेबल पर बैठे नेताओं को खूब गालियां दी। हाई–टेबल की बैठक दूसरे नायजो प्लेनेट से भी हो रही थी। वहां बैठे नेताओं को भी सबने खूब खरी–खोटी सुना दिया।

हाई–टेबल पर बैठे नेता, आर्यमणि को सबक सिखाने की बात कर रहे थे, जिसके जवाब में पूरी भिड़ अपने नेताओं के गले में रस्सी फसाकर उसे दीवार से टांगकर साफ कहने लगे.... “बात चीत से मसला हल करो। अब यदि आर्यमणि के जर्मनी संधि का उल्लघंन हुआ तो आर्यमणि बाद में अपना 48 दिन का तांडव दिखाएगा, उस से पहले हम सब तुम नेताओं को मारकर आत्महत्या कर लेंगे। आर्यमणि की दी हुई मौत दुश्मन को भी नसीब न हो।”..

पलक और उसके साथी भी भिड़ का हिस्सा थे। आर्यमणि का खौफ और उसका परिणाम देखकर सभी अंदर ही अंदर मुस्कुरा रहे थे और उन्होंने पूरे मीटिंग का नतीजा आर्यमणि तक पहुंचा दिया।

महज 24 घंटा और पलक ने जब अल्फा पैक के उठाए कदम का परिणाम बताया, तब पूरा अल्फा पैक सुकून में था। वहीं से सभी फिर टेलीपोर्ट होकर सीधा लॉस एंजिल्स पहुंच गये। 22 दिसंबर की शाम, लॉस एंजिल्स के किसी होटल में आर्यमणि, रूही के पास बैठा था। बेहोसी की दावा दिन में ही दी गई थी, इसलिए उसका असर खत्म होने को था। रूही अपनी चेतना में लौट रही थी। उसके बदन में हलचल को देख आर्यमणि उसका हाथ थामे आंख खोलने का इंतजार कर रहा था।

जैसे ही रूही की आंखें खुली वो झटके के साथ उठी और अपना पेट टटोलने लगी। जब उसे अपना बच्चा सुरक्षित महसूस हुआ, आंखों से झर, झर करते झरना बहना शुरू हो गया। आर्यमणि रूही को गले लगाकर उसे सांत्वना देता रहा... "आर्य, जिन्होंने हम पर हमला किया था, उन सबका क्या हुआ?"..

आर्यमणि:– उस मौजूदा घटना का मुखिया विवियन बस भाग गया, बाकी कोई नही बचा...

रूही, आर्यमणि से लिपट कर उसे काफी जोर से पकड़ ली... "आर्य, मुझे लगा अब हम दोबारा कभी यूं गले नही लग पाएंगे। अभी तो जिंदगी ने खुशियां देनी शुरू की थी, और इतनी जल्दी मैं मर जाऊंगी"…

आर्यमणि:– शांत हो जाओ... तुम्हे कुछ नही होगा। और याद है ना हम एक दूसरे से बोर होने तक साथ रहेंगे...

"आह" की दर्द भरी चींख रूही के मुंह से निकल गई। आर्यमणि अलग होते... "तुम ठीक तो हो न"..

रूही:– कंधे के पास दर्द उठा था...

आर्यमणि अपने हाथो से रूही का दर्द खिंचते.… "चिंता की कोई बात नही। अकेले शायद मैं तुम्हे खो देता। लेकिन सन्यासी शिवम् पहले ही खतरे को भांप गये थे। उसी ने पहले अपने पूरे परिवार को निकाला फिर निशांत, इवान, अलबेली और ओजल के साथ हमारी मदद के लिए पहुंच गये..."

रूही:– अपना पूरा परिवार अभी कहां है?...

आर्यमणि:– सभी यहीं, लॉस एंजिल्स में ही है। लेकिन हम दूसरे होटल में है और वो दूसरे... किसी को भी हमले के बारे में पता नही। मां, पापा, भूमि दीदी, चित्रा और माधव को यहां किसी प्रकार के सरप्राइज़ का झांसा देकर सबने पहले भेज दिया था।

रूही:– हां मेरे बदन का छेद ही उनके लिये सरप्राइज़ होगा..

आर्यमणि एक बॉटल आगे बढ़ाते… "वो तो सरप्राइज नही हो सकता, चाहो तो खुद जाकर आईने में देख लो। और ये बॉटल अपने पास रखो.. 20 एमएल सीरप दिन में कम से कम 5 बार पीना”

आर्यमणि की बात सुनकर रूही भागती हुई आईने के पास पहुंची और कंधे से अपने ड्रेस को सरकाकर देखने लगी। काफी हैरानी से वो अपने कंधे के छेद के बारे में पूछी। तब आर्यमणि ने बताया की उसका इलाज सन्यास शिवम् ने किया था। उनके पास कोई "सेल बॉडी सब्सटेंस" थे जो डैमेज सेल की जगह ले लेते हैं। बॉटल में पड़ा सीरप वही सेल बॉडी सब्सटेंस ही है।

रूही जितनी हैरान थी, उतनी ही खुश भी। अपनी दोनो बांह, आर्यमणि के गले में डालकर उसे प्यार से चूमती... "हर वक्त तुम मेरे पास ही रहना जान"….

"हां बाबा मैं तुम्हे छोड़कर कहीं नही जा रहा"…

आर्यमणि सुकून से बिस्तर पर टेक लगाए थे और रूही अपना सर उसके सीने से टिकाकर चैन का श्वांस ले रही थी। दोनो खामोश थे लेकिन धड़कने जैसे सुरमई संगीत बजा रही हो। कब दोनो की आंख लग गई पता ही नही चला।

अगली सुबह दोनो की नींद खुली। आर्यमणि आंख खोलते ही प्यार से रूही के होंठ चूमा और उसके जख्म देखने लगा... रूही भी मुस्कुराती हुई अपनी आंखें खोल दी और प्यार से गले में हाथ डालती... "क्या देख रहे हो जान"..

"जख्म भर गये है और निशान भी नही। दर्द हो रहा है क्या?"..

"हां जान दर्द हो रहा है"…

आर्यमणि अपने हाथ से दर्द खिंचते… "मुझे तो पता नहीं चल रहा"…

आर्यमणि टेक लगाए बैठा था, रूही ठीक उसके ऊपर आकर, अपने ड्रेस को कंधे से सरकाई और ब्रा का हुक खोलकर, आर्यमणि का हाथ अपने स्तन पर डालती... "यहां हाथों की मालिश चाहिए और"…

आर्यमणि, प्यार से स्तन को दबाते... "और क्या"..

रूही, प्यारी सी मुस्कान अपने चेहरे पर लाते, अपने कमर को आर्यमणि के कमर से थोड़ा ऊपर उठाई। हाथ नीचे ले जाकर उसके लोअर को नीचे खिसकती लिंग को मुट्ठी में दबोच कर उससे प्यार से सहलाने लगी। आर्यमणि का बदन सिहर गया, उसका लिंग पूरा खड़ा... रूही अपने गाउन को कमर के ऊपर लाती, लिंग को अपने योनि पर रखती... "और जान यहां अंदर हलचल मचा है"…

"आउच.. ओह्ह्ह…"… तेज झटके के साथ लिंग अंदर और रूही की सिसकारियां बाहर। आर्यमणि रूही को अपने ऊपर लिटा दिया। दोनो के होंठ एक दूसरे को चूस रहे थे और प्रेम लीला का मधुर आनंद उठा रहे थे।

चरम सुख प्राप्ति के बाद दोनो जैसे तृप्त हो गये हो। रूही आर्यमणि के ऊपर ही सुकून से लेट गई। दोनो की मध्यम चलती धड़कने एक दूसरे के होने का मधुर एहसास करवा रही थी। सुबह के 11 बज रहे होंगे, जब बिना दरवाजा खट–खटाए एक बार फिर ओजल, इवान और अलबेली अंदर घुस चुके थे। अंदर घुसते ही तीनो दरवाजे की ओर मुंह कर लिए.… "बॉस याद तो होना चाहिए था की एक चाबी हमे ये कहकर दिये थे कि दरवाजा मत खट–खटाना, रूही की नींद खुल सकती है।"…

भाग:–151


चरम सुख प्राप्ति के बाद दोनो जैसे तृप्त हो गये हो। रूही आर्यमणि के ऊपर ही सुकून से लेट गई। दोनो की मध्यम चलती धड़कने एक दूसरे के होने का मधुर एहसास करवा रही थी। सुबह के 11 बज रहे होंगे, जब बिना दरवाजा खट–खटाए एक बार फिर ओजल, इवान और अलबेली अंदर घुस चुके थे। अंदर घुसते ही तीनो दरवाजे की ओर मुंह कर लिए.… "बॉस याद तो होना चाहिए था की एक चाबी हमे ये कहकर दिये थे कि दरवाजा मत खट–खटाना, रूही की नींद खुल सकती है।"…

रूही:– मुंह फेर कर जो तुम सब दरवाजे के ओर देख रहे, वहीं तुम्हारे दाएं बड़ा सा आईना लगा है। चलो बाहर निकलो और दरवाजा लगाते जाना। ..

कुछ देर बाद तीनो टीन वुल्फ की हंसी पूरे कमरे में गूंज रही थी और बेचारे दोनो शर्माए–शर्माए मुंह छिपा रहे थे... "दोनो बेशर्मों (ओजल और इवान), तुम्हारी बड़ी बहन हूं। कुछ तो लिहाज रखो"…

अलबेली:– एक बार मेरा पति लिहाज भी रख ले, लेकिन ये ओजल…

ओजल अपनी आंखें दिखाती.… "ओजल क्या? बेशर्म औरत..."

अलबेली, ओजल का बाल नोचती... "औरत किसे बोल रही है कामिनी"…

ओजल, छूटकर आर्यमणि के पीछे आती... "तू औरत और कुछ दिन बाद तेरा भी मटका टंगा होगा"…

अलबेली:– चुप हो जा वरना मैं तेरा मुंह नोच लूंगी...

ओजल:– हां तो मैं भी पिल्स की कहानी बता दूंगी...

अलबेली बिलकुल शांत आंखों से जैसे मिन्नत कर रही हो। ओजल खी–खी–खी करती आर्यमणि के ऊपर लद गई और अपनी ललाट ऊपर करती... "आ गई काबू में बेलगाम"..

आर्यमणि:– अब तुम सब ये बकवास बंद करो। ओजल क्या तुम मुझे बताओगी की यहां मैं अपने खानदान को कौन सा सरप्राइज़ दे दूं?

ओजल:– क्या खूब याद दिलाया है... आओ मेरे साथ..

सभी एक साथ... "लेकिन कहां"..

ओजल:– बस चलो.. बिना किसी सवाल के...

सभी टैक्सी में ओजल के साथ निकले। ओजल उन्हे एक सी–पोर्ट पर ले आयी। पोर्ट को देखकर आर्यमणि कहने लगा.… "तुम्हे कैसे पता की हम यहां से अपना समुद्री सफर शुरू करेंगे"…

ओजल:– सरप्राइज़ ये नही की आप यहां से सफर शुरू करेंगे। सरप्राइज़ ये है की यहां से हम सब साथ निकलेंगे...

आर्यमणि, अपनी जगह खड़ा होते... "कोई 2 चमाट लगाओ इसे... इसे सरप्राइज़ नही शॉक देना कहते है।"..

ओजल:– पूरी बात जाने बिना समीक्षा करने की आदत छोड़ दो जीजू और कोई भी अब एक शब्द नही कहेगा..

सभी चुपचाप ओजल के साथ चल दिये। ओजल बोट के बीच से एक शानदार क्रूज के सामने खड़ी होकर... "चलो अंदर"..

कोई भी बिना कोई सवाल किए क्रूज पर चढ़ गया। ओजल उसे क्रूज घूमती.… "अपस्यु गुरुजी के ओर से तुम सबका वेडिंग गिफ्ट"…

सभी आश्चर्य से... "क्या?"..

ओजल:– देखा हो गये ना सरप्राइज़... जाओ घूम लो अपना क्रूज... बाकी की डिटेल मैं होटल में दूंगी...

करीब 2 घंटे बाद सब बाहर आये। अलबेली और इवान तो खुशी से ओजल को उठाकर हवा में उछाल रहे थे।… "ओजल, क्रूज पर 2 जेट भी है"…

ओजल:– हां, वो इमरजेंसी के लिये है। किसी समान की जरूरत हो तो जेट उड़ाए और पास के किसी शहर में पहुंच गये।

आर्यमणि:– हां लेकिन ये जेट उड़ेगा कैसे...

ओजल:– वो सब आपकी यादों में है बॉस, बस जब जेट उड़ाने की तीव्र इक्छा हो तब उड़ा लेना। और दूसरा जेट हमारा है। कुछ दिन तक सबके साथ समुद्री सफर करने के बाद उसी जेट से भारत के लिये उड़ान भरेंगे।

अलबेली:– हां और ये जेट उड़ाने का तरीका भी ओजल के दिमाग में होगा...

ओजल:– जी नहीं, 2 पायलट साथ चलेंगे... अब तुम भी चलो यहां से।

अलबेली:– तेरी भाभी हुई मैं, इज्जत से बात कर वरना तेरा रहना मुश्किल कर दूंगी..

ओजल:– हवा आने दे झल्ली... और जाकर अपने पति को संभाल...

तीनो की कमाल की नोकझोंक शुरू थी। हालाकि द्वंद तो अलबेली और ओजल के बीच था, लेकिन पक्षपात की लपटे इवान को घेर लेती... कभी बीवी का पक्ष लेने का इल्जाम, तो कभी बहन का...

23 और 24 दिसंबर तक बड़ा सा परिवार लॉस एंजिल्स शहर का लुफ्त उठाते रहे। वैसे भी क्रिसमस के समय था, पूरे शहर में ही जलसा हो रहा हो था। इस दौरान परिवार के सभी सदस्य लॉस एंजिल्स आने का कारण पूछते रहे लेकिन आर्यमणि उन्हे 25 दिसंबर तक रुकने कहा...

25 दिसंबर की शाम, सभी सी–पोर्ट पर थे। यहां भी जैसे मेला लगा हो। आज तो कई सारे बड़े–बड़े शानदार क्रूज समुद्र में तारे की तरह टिमटिमा रहे थे। ओजल ने कॉल किया और एक छोटी सी बोट उनके पास आकर खड़ी हुई...

भूमि, ओजल का कान पकड़ती.… "हमे कैसिनो में जुआ खिलवाने और नंगी लड़कियों का नाच दिखाने का सरप्राइज़ है.…"

ओजल:– आव... आई कान छोड़ो... पहले देखो फिर कहना...

केशव:– मैं क्या कह रहा था, तुम लोग अपना प्रोग्राम करो, मैं जरा यहां क्रिसमस का लुफ्त उठा लूं..

जया, केशव के कान खींचती... "ज्यादा नैन सुख मत लो.. और ओजल खबरदार जो हमे किसी बकवास जगह लेकर गई तो"...

छोटी सी बहस के साथ ही सभी बोट में बैठ गये। जया और भूमि तो बोट के बीच में बैठी क्योंकि लहरों पर बोट जब ऊपर उठ जाती तब इनके प्राण हलख से निकलने लगते थे। कुछ ही देर में चमचमाते क्रूज के बीच से होते हुए ये लोग अपने क्रूज पर पहुंचे। क्रूज पर चढ़ने से पहले ही एक बार फिर बहस का दौड़ शुरू हो चुका था।

क्रूज के ऊपर पहला कदम और माला लिये क्रूज के क्रू सबका स्वागत करने लगे। जैसे ही सभी अंदर आये.. ओजल ग्लास से टोस्ट करती... "आप सबका हंस क्रूज पर स्वागत है। आप सबका अपना और बॉस के घोटाले के पैसे से ली गई शिप"…

जैसे ही यह बात कान में गई, आर्यमणि ओजल के कान में फुसफुसाते.… "ये क्या बक रही हो"..

ओजल सबको दोनो हाथ दिखाती.… "आप लोग यहां के शानदार पकवान और मजेदार वाइन का लुफ्त लीजिए, जबतक हम कुछ डिस्कस कर लेते हैं। वहां से दोनो एक किनारे पहुंचे। आर्यमणि अब भी ओजल को सवालिया नजरों से देख रहा था।

"अरे जीजू ऐसे खतरनाक लुक मत दो। आपसे बिना पूछे हमने आपके 100 मिलियन इस शिप पर खर्च कर दिये।"..

आर्यमणि:– क्या???????

ओजल:– अरे चील मारो... यदि अपने पैसे वापस चाहिए हो तो जब किनारे आना तो ये शिप हैंडओवर कर देना। 800 मिलियन की शिप 100 मिलियन में मिल रही फिर भी ऐसे रिएक्शन दे रहे। और यहां के जितने क्रू है उन्हे हमने हायर किया है। सबको अच्छी मोटी रकम सालाना देना है इसलिए आप जबतक चाहो समुद्री सफर का मजा ले सकते हो...

आर्यमणि:– 800 मिलियन डॉलर की शिप। अपस्यु पागल तो न हो गया। मुझसे 100 मिलियन लिये तो फिर बाकी के 700 मिलियन कहां से आये?

ओजल:– 400 मिलियन का तो हमें एफबीआई डायस्काउंट मिल गया था। बचे 300 मिलियन तो वो पैसे गुरु अपस्यु ने हवाला से लूटा था। वो सोच ही रहे थे कि उन पैसों का क्या करे, इतने में आपके महासागर में उतरने की कहानी सामने आ गयी।

आर्यमणि:– छोटे तो बड़ा दिलदार निकला। उस से कहना अपना काम आराम से खत्म करके एलियन के विषय पर ध्यान दे। उन्हे कैसे भागाना है, उसका पूरा ग्राउंड तैयार रखे। मै लौटकर सीधा उसी पर काम करूंगा।

ओजल:– “जब यहां गुरु जी की बातें उठी ही है तो मैं उनका संदेश दे दूं…. ये पूरा क्रूज हाई टेक है, किसी भी प्रकार की घुसपैठ हुई तो तुरंत सूचना मिल जायेगी। उसके अलावा कई सारे रक्षक मंत्र और पुराने पत्थर यहां रखे गये है जो काली शक्तियों को अंदर क्या इसके आस पास के दायरे से भी दूर रखेंगे... एक रबर बैंड सबके लिये है, इमरजेंसी के वक्त बस उसे थोडा सा घिसना है और जान बचाकर तब तक टाइम पास करना है, जबतक की मदद नही आ जाती। उन्होंने शख्त हिदायत दी है कि जिस दुश्मन को जानते नही, उनसे बिना बैकअप लड़ाई मोल न ले। ये आपके लिये नही बल्कि आपके साथ वालों की सुरक्षा के लिये जरूरी है।”

“आचार्य जी ने अपना संदेश होने वाली प्यारी सी बिटिया के लिये भेजा है। उन्होंने उनका नामकरण भी किया है... उन्होंने कहा है, होने वाली बिटिया काफी भाग्यशाली रहेगी और 4 शुभ योग में उसका जन्म होगा।”

आर्यमणि:– नाम क्या रखा है आचार्य जी ने...

ओजल:– अमेया... ओह हां आचार्य जी ने यह भी कहा था की जरूरी नही यही नाम हो। ये नामकरण उनकी ओर से एक सुझाव मात्र है...

आर्यमणि:– नही अच्छा नाम है। बताओ उन्हे ये तक पता है कि मेरी बेटी होने वाली है... मेरी लाडली.. और तुम उनके साथ क्या कर रही हो?

ओजल:– एक साधना में हूं... आचार्य जी ने कहा है जबतक साधना पूर्ण न हो किसी से जिक्र नहीं करने..

आर्यमणि:– बाप रे तुम्हारी भाषा तो काफी जटिल हो गयी है...

और दोनो हंसते हुए सभी के साथ हो लिये। इनका क्रूज लॉस एंजेलिस के समुद्र से उत्तरी प्रशांत महासागर की ओर बढ़ने लगा। करीब 4 दिन के लुभावना सफर और समुद्र के लहरों के बीच से ओजल पूरे परिवार को लेकर उड़ान भर चुकी थी। घर के सभी लोग संतुष्ट थे और उन्हें आर्यमणि के सफर की कोई चिंता नहीं थी।

इनका क्रूज अब उत्तरी प्रशांत महासागर से दक्षिणी प्रशांत महासागर की ओर चल दिया। एक ओर अलबेली और इवान थे, जिनका रोमांस इतना लंबा चल रहा था की पिछले 10 दिनों से कमरे के बाहर ही नहीं आये। वहीं रूही और आर्यमणि किनारे बैठकर घंटो महासागर की लहरों का लुफ्त उठाते और सतह पर तैरने वाले पानी के जीव को देखते रहते।

ढलती शाम और महासागर की लहरें जीवन को नया रोमांच दे रही थी। रूही, आर्यमणि के सीने पर अपना सर टिकाए डूबते सूरज को देखती हुई... "दिल में सुकून सा है। मैं बहुत खुश हूं आर्य"…

आर्यमणि, रूही के होटों पर प्यार से चुम्बन लेते... "मैं बता नही सकता... बस ऐसा लगता है की.. ऐसा लगता है"..

"कैसा लगता है आर्या"..

"ऐसा लगता है.. सारी उम्र तुम्हारे साथ ऐसे ही सुहाने सफर पर बीत जाये"..

"और हमारी बेटी... वो क्या इस संसार को जानेगी ही नही"…

"तुम भी ना... मतलब ठीक है वो संसार को जानेगी.. बस तुम सदा मेरे साथ रहो। प्यार आता है तुम्हे देखकर जो रुकता ही नही, बढ़ता ही चला जाता है"…

रूही, आर्यमणि के होटों को चूमती... "हां ऐसा ही मुझे भी लगता है"…

शहर की भीड़ से दूर। हर लड़ाई से दूर। प्यार की कस्ती में सवार दोनो चले जा रहे थे। हर शाम का लुफ्त उठाते। चलते हुए 16 दिन बीत चुके थे। क्रूज अब दक्षिणी प्रशांत महासागर में चल रही थी। ऐसी ही एक शाम प्यारी सी महफिल लगी थी। चारो समुद्र की लहरों का लुफ्त उठा रहे थे तभी उनके बीच डॉक्टर कृष्णन पहुंचते... "सर हम कहां जा रहे है। किसी से भी पूछो तो सब आपको पूछने बोलता। हम कब जमीन पर उतरेगा.. कब लोगों का इलाज करेगा"…

आर्यमणि:– कृष्णन तुम रूही का इलाज तो कर रहे न..

कृष्णन:– सार, हमको गरीब लोगों का सेवा करना है। अपने मां, अप्पा, चिनप्पा को दिखाना, मैं कितना मेहनत कर रहा।

रूही:– डॉक्टर साहब आपकी शादी हो गयी है?..

कृष्णन, शर्माते हुये... "नही मैम"

रूही:– कृष्णन वो अपने क्रू की इंजीनियर है न, एवलिन, उस से तुम्हारी बात चलाऊं...

कृष्णन जैसे खाब में खोया हो और मन के अंदर उसी अमेरिकन बाला की तस्वीर घूम रही हो। याद करके ही वो हिल गया... "क्या सच में मैडम ऐसा संभव है"..

रूही:– हां बिलकुल... जाओ बात तो करो...

कृष्णन वहां से चला गया और सभी लोग उसकी हालत देख हसने लगे। 2–3 दिन बाद अचानक ही गहमा गहमी होने लगी। आर्यमणि और बाकी सब लोग लॉबी में पहुंचे, जहां सभी क्रू मेंबर इकट्ठा थे। सभी हंस रहे थे और बीच में कृष्णन खड़ा था जिसे एवलिन भर–भर कर खड़ी खोटी सुना रही थी।... "हाउ डेयर यू, यू फक्किंग मॉरोन..इत्यादि इत्यादि... और बेचारा कृष्णन चुपचाप सुन रहा था। इसी बीच उसकी नजर आर्यमणि पर गयी... "मिस्टर आर्यमणि डॉक्टर कृष्णन को समझा लीजिए, दोबारा मुझसे फालतू की बात किया तो मैं उसे पानी में फेंक दूंगी"…

आर्यमणि, कृष्णन को लेकर अपने साथ आया... "क्या हो गया वो ऐसे भड़क क्यों गयी?"..

कृष्णन:– सर मैने तो केवल इतना कहा था की मुझसे शादी करेगी तो इलाज फ्री होता रहेगा..

आर्यमणि:– कृष्णन लव परपोजल देना था, न की बिजनेस एग्रीमेंट। वो लड़की 5 मिलियन यूएसडी सालाना कमाने वाली है और आप उसे फ्री इलाज का झांसा दे रहे थे....

कृष्णन:– तो मुझे क्या करना चाहिए..

आर्यमणि:– कोई मस्त रोमांटिक मूवी देखिए और कोशिश जारी रखिए...

डॉक्टर कृष्णन लग गया दूसरी ड्यूटी और तभी मिली आर्यमणि को राहत की बूटी। वरना तो दिन में 4 बार परेशान कर देता। कारवां आगे बढ़ते हुए प्रशांत महासागर और अंटार्टिका महासागर के बीच था। कैप्टन ने आकर आर्यमणि को तात्कालिक स्तिथि से अवगत करवाया।

आर्यमणि नेविगेशन मैप पर एक जगह प्वाइंट किया जो वर्तमान जगह से दक्षिण के ओर 1200 नॉटिकल माइल की दूरी पर था। कैप्टन उस प्वाइंट को ध्यान से देखते... "सर उस ओर कोई जहाज आज तक नही गया। हमे पता भी नही की वहां टापु है भी या नही"…

आर्यमणि:– कैप्टन आपकी बात में झूट की बू आ रही है। जो सच है वो न बताकर आप बात घुमा रहे हैं।

कैप्टन:– सर मेरे ख्याल से आप उस जगह न ही जाए तो बेहतर है। जिस प्वाइंट की बात आप कर रहे हैं, वो इनगल्फ आइलैंड है। बस यूं समझ लीजिए की आपने जहां पॉइंट किया है उस जगह पर जाने वाला कोई जहाज लौटा ही नही। और किसी भी प्रकार की सुनी सुनाई जानकारी पर यकीन करने वाले नही।

आर्यमणि:– बातें सुनी सुनाई हो या तथ्य से परिपूर्ण तुम तो सुनाओ।

कैप्टन:– तो सुनिए... जिस जगह को आपने पॉइंट किया है उसके 2 मिल के दायरे में महासागर का मिजाज ऐसा हो जाता है कि जहाज और उसके लोग कब काल की गाल में समा गये पता भी नही चलता। यदि पहली बढ़ा पार भी कर लिये तब आपका सामना होगा बड़े–बड़े काल जीवों का। ये इतने बड़े होते है कि पल भर में शिप को तबाह कर डूबा देते हैं।

आर्यमणि:– हां खतरनाक जगह तो है, लेकिन मैं उन्ही रहस्यों को खोज पर जा रहा हूं। यदि आपको ज्यादा डर लग रहा है तो मुझे ये जहाज चलाना सीखा दीजिए और आप अपने क्रू के साथ जेट से जहां मर्जी वहां जा सकते है।

कैप्टन:– ठीक है सर मैं क्रू मीटिंग बुलवा लेता हूं।

क्रू मीटिंग बुलाई गयी। 16 क्रू मेंबर में से 4 ने आइलैंड न जाने के पक्ष में वोट दिया और 12 जाने के लिये बहुत एक्साइटेड थे। अंत में यही फैसला हुआ की वो सभी चल रहे है। लगभग 8 दिन बाद क्रूज आइलैंड के समुद्री सीमा क्षेत्र के पास पहुंच चुकी थी। यदि सुनी सुनाई बात पर यकीन करे तो कुछ दूर आगे से पानी का वह क्षेत्र शुरू हो रहा था, जहां महासागर का मिजाज बदल जाता है।

चूंकि रात हो चुकी थी और आगे किस प्रकार की चुनौती मिलेगी उसका कोई अंदाजा नहीं था। इसलिए कप्तान ने रात भर विश्राम करने का फैसला लिया। क्रूज के इंजन को बिलकुल धीमा कर आगे बढ़ रहे थे। देर रात हुई होगी। 2 लोग नेविगेशन रूम में थे बाकी के क्रू आराम कर रहे थे। तभी नेविगेशन रूम में अचानक ही धुवां भर गया और वो दोनो क्रू मेंबर बेहोश।

कैप्टन के साथ समय बिताते हुये इवान को इंजन धीमा और तेज करने तो आ ही चुका था। इवान ने भी इंजन को तेज कर दिया। क्रूज अब काफी तेज गति से आगे भाग रही थी। अल्फा ने यही कोई 4 नॉटिकल माइल का सफर तय किया होगा, तभी आंखों ने वह हैरान करने वाला नजारा भी देखा जो हृदय की गति को ही रोक दे। कितना भी मजबूत दिलवाला क्यों न हो, जिसे अपने मृत्यु तक का भय नही, उनमें भी मृत्यु का भय डाल दे।

कुछ दूर आगे लगभग 1000 मीटर से जायदा गहराई का इतना बड़ा भंवर बना हुआ था जिसमे बड़े–बड़े 10 जहाज एक साथ दम तोड़ दे। और नजरें ऊपर जब गयी तो आगे और पीछे से एक साथ इतनी ऊंची लहर की दीवार दिख रही थी, जिसने महासागर के पानी को सीधा आकाश से ही मिला दिया था। दम साधे अपनी श्वांस रोककर पूरा अल्फा पैक ही हैरान थे।
Wao! Kya baat hai, cruse ship surprise ke rup me mili hai na sirf family ko Balki arya ko bhi, apasyu ne Ojal ke sath milkr Vahi arya ko uske baccha kab paida hoga or Vo kya hoga uska bhi btaya jo ki alag level ka surprise tha ek pita ke liye...

Sabko 25 Dec se ship me masti karvakr family ko bhej diya Ojal va sanyashi shivam ji ke sath...

Ek saval mere dimag me abhi abhi ubhar kr aaya ki kahi surpmarich ne hi to Inhe vikrit bhavna (pravatti) ka to nhi bnaya, kyoki jo log prakrati ke itne karib the unhe hi prakrati ke itne dur kr diya, disha bhramit karke, or Vaise bhi jb guru Nishi ke purvajo ko or nishchal ke purvajo ko bhramit ya kahe path bhrast kr diya, sarir bhrast kr diya to ye nayjo kis khet ki muli hain... 🤔

Arya log pahuch gye hai apni manjil ke mukh pr, apasyu ne ek hidayat salah ke rup me di ki arya ke action se bhale hi vo sab bach jaye lekin arya ko apne Har action ko aise soch kr aage Lana hoga Jisse Uske sath ke logo ko koi problem na ho, jaha tk ho sake to kisi or ko ab dushman bnane se parhej karne bhi kaha hai...

Arya logo ko ek rubber band bhi diya hai jo chhupne ke liye hai jb tk bahri sahayta nhi prapt ho jati, jo ki uttam vikalp hai aane vale nanhe mahman ko surakshit rakhne ke liye...

Nayjo ke kiye gye action ka jo arya and team ne reaction diya hai 24 ghante me usse un nayjo thekedaro ki gand hi faad di hai baki ke nayjo logo ne, palak bhi apne sathiyo ke sath andar se khush hai pr bahar se Usne bhi baki logo ka sath diya ki salo ab Yadi sandhi todi to sarvnash hi kr diya jayega arya team ke dwara...

Entry point pr tsunami ke Jaise lahro ne Charo taraf se gher liya hai arya ki ship ko Jise dekh aam logo ki ruh bhi kanp jaye...

Arya ki ship me kuchh prachin patthar lgaye gye hai Jisse kisi bhi tarah ki buri shakti uske pash bhi nhi bhatak sakti hai vahi sabhi ke amulet ladai ke baad unke pass pahuch gye the...

Vaise Yadi arya thoda sochta to vo police valo ko jado me kuchh Samay ke liye behosh kr deta ya unki yaade badal deta to Sayad us bhagode ko bhi turant maar diya jata...

Shivam ji ne arya ko jald hi vapas India lautne ko kaha hai or unka kahna bhi sahi hai ki Marne vale ko bas ek baar hi good luck chahiye hota hai, Unhone hi btaya ki arya naag lok ja rha hai jaha nishchal se mulakat hone vali hai...

Vaise kyA arya ne vo roshni ke jaal ke bahar gade gye rod me lage pattharo ke bare me socha hai jo logo ki power ko unse alag kr watawaran me chhod dete the yaha tk ki toxic ko bhi Kala dhua bnakr uda de rhe the...

Masti or pyar ka smagam dikhaya hai jaha arya or ruhi saririk maithun ko kam or ek dusre ki bhavna, vicharo or ankho se chhu kr baato se pyar jyada darsa rhe the Vahi dusri ore Albeli or Evan to kamre ke bahar hi nhi nikal rhe the, Vaise yah fark ruhi ki pregnancy ko lekr bhi tha jo mind blowing tha bhai jabarjast sandar lajvab amazing Superb updates Nainu bhaya
 

king cobra

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Pani wala kam rahta jaroor hai par samudri toofan ka samna bhi utna hi aasani se karta hai aur ye 1000km ki raftar wale plane usi toofan me kati patang ban jate hai... :D
samna kisko karna tha yahan to palat kar bhagne ki baat thi lekin bhagne se wo sab pata noi chalta Jo chal gaya hai
 

andyking302

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भाग:–153


दिन बहुत शानदार कट रहे थे। जिस उद्देश्य से आर्यमणि आइलैंड पहुंचा था उसे पूरा करने में लगा हुआ था। अपने साथ–साथ अल्फा पैक को भी एक स्तर ऊंचा प्रशिक्षित कर रहा था। हफ्ते में एक दिन एमुलेट परीक्षण भी करते। जितने प्रकार के पत्थर लगे हुये थे उनके अच्छे और बुरे प्रभावों का मूल्यांकन भी जारी था। सब कुछ अपनी जगह पर बिलकुल सही तरीके से आगे बढ़ रहा था।

किंतु जिस जिज्ञासा में आर्यमणि यहां आया था, वो अब तक पूरा नहीं हुआ था। आर्यमणि जब अपने बचपन से दादा जी की यादें ले रहा था, तब उसे एक पुराना किस्सा याद आया जो आर्यमणि को काफी आकर्षित करती थी... जलपड़िया। आर्यमणि के दादा जी अक्सर इसी आइलैंड का जिक्र करते, जिसके तट पर जलपड़ियां आती थी। आर्यमणि रोज रात को एक बार समुद्र किनारे जाता और निराश होकर लौट आता।

अल्फा पैक को आये लगभग 2 महीने बीत चुके थे। रूही लगभग 3 मंथ की प्रेगनेंट थी। अब उसका पेट बाहर आने लगा था। आर्यमणि, अलबेली और इवान तीनो ही उसका पूरा ख्याल रखते थे। एक दिन आर्यमणि ने खुद ही कहा की, यदि तीनो (रूही, इवान और अलबेली) चाहे तो मछली या फिर भेड़ का मांस खा सकते है। अजीब सी हंसी के साथ रूही भी प्रतिक्रिया देती हुई भेंड़ के विषय में कहने लगी... "जिसे पाला हो उसे ही खाने कह रहे। वैसे भी अब तो कभी ख्यालों में भी नॉन वेज नही आता।"…

आर्यमणि मुस्कुराते हुये रूही के बात का अभिवादन किया। इसी बीच एक दिन सभी बैठे थे, तभी रूही, अलबेली से उसके प्रेगनेंसी के बारे में पूछने लगी। अलबेली शर्माती हुई... "क्या तुम भी भाभी" कहने लगी.. फिर तो रूही का जो ही छेड़ना शुरू हुआ... "रात को तो पूरा कॉटेज हिलता रहता है, फिर भी रिजल्ट नही आया"..

अलबेली:– रिजल्ट अभी नही आयेगा... इतनी जल्दी बच्चा क्यों, अभी मेरी उम्र ही क्या है...

रूही:– हां ये तो सही है... नही लेकिन फिर भी... लास्ट मोमेंट पर करते क्या हो..

अलबेली चिढ़ती हुई.… "मेरे मुंह पर छींटे उड़ा देता है। आज कल बॉस भी तो यही करते होंगे। क्योंकि अंदरूनी मामले पर तो प्रतिबंध लगा हुआ होगा न"..

रूही:– कहां रे… बर्दास्त ही नही होता.. अंदर डाले बिना मानते ही नही..

अलबेली:– वो नही मानते या तुमसे ही बर्दास्त नही होता...

दोनो के बीच शीत युद्ध तब तक चलता रहा जब तक की वहां इवान और आर्यमणि नही आ गया। दोनो पहुंचते ही कहने लगे... "आज छोटी बोट में समुद्र घूमने चलेंगे"…

अलबेली:– नही बोट बहुत ही ऊपर उछाल मारती है, भाभी को परेशानी होगी...

रूही:– अरे दिल छोटा न करो... हम क्रूज लेकर चलते हैं न.. वहीं बीच में तुम लोग थोड़ा बोट से भी घूम लेना..

इवान:– ग्रेट आइडिया दीदी। और आज रात क्रूज में ही बिताएंगे..

सब लोगों की सहमति हो गयी... क्रूज का लंगर उठाया गया। इंजन स्टार्ट और चल पड़े सब तफरी पर। 20 नॉटिकल माइल की दूरी तय करने बाद क्रूज को धीमा कर दिया गया और छोटी बोट पानी में उतारी गई। आर्यमणि और इवान बोट में सवार होकर वहीं घूमने लगे। उनके बोट के साथ साथ कई डॉल्फिन उछलती हुई तैर रही थी। काफी खूबसूरत नजारा था। रूही और अलबेली दोनो क्रूज के किनारे पर बैठकर यह खूबसूरत दृश्य देख रही थी। दिन ढलने को आया था। सूरज की लालिमा चारो ओर के नजारे को और भी खूबसूरत बना रही थी। रूही हाथ के इशारे से दोनो को वापस बुलाने लगी।

लौटते ही आर्यमणि ने क्रूज को वापस आइलैंड की ओर घुमाया और सबके साथ आकर डूबते सूरज को देखने का रोमांच लेने लगा। लेकिन उनके इस रोमांच में आसमानी चीते यानी की बाज ने आकर खलल डाल दिया। पता नही कहां से और कितनी तेजी में आये, लेकिन जब वो आये तो आसमान को ढक दिया। आमुमन बाज अकेले ही शिकार करते है लेकिन यहां तो, 1 नही, 10 नही, 100 नही, 1000 नही, लगभग 10000 से भी ज्यादा की संख्या में बाज थे।

बाज काफी तेजी से उड़ते हुए आइलैंड के ओर बढ़ रहे थे। उनकी इतनी तादात देखकर, आर्यमणि ने सबको खुले से हटने का इशारा किया। ये लोग डेक एरिया से हटकर जैसे ही अंदर घुसकर दरवाजा बंद किये, दरवाजे पर ही कई बाज हमला करने लगे। लेकिन ऐसा लग रहा था कि आर्यमणि और उसका पैक मुख्य शिकार नही थे, इसलिए कुछ देर की नाकाम कोशिश के बाद वो सब वापस झुंड में चले गये.…

"बाप रे हम वेयरवुल्फ को भी भयभीत कर गये ये बाज। मेरा कलेजा तो अब भी धक–धक कर रहा है"… रूही पानी का घूंट लेती हुई कहने लगी...

अलबेली:– बॉस हमे खतरे का आभाष नही हुआ लेकिन आप कैसे भांप गये...

आर्यमणि:– पता नही... बाज की इतनी संख्या देखकर अंदर से भय जैसा लगा... लेकिन ये बाज इतनी संख्या में आइलैंड पर जा क्यों रहे थे? क्या ये हम पर हमला करते...

इवान:– बाज अकेला शिकारी होता है। जितनी इनकी संख्या थी उस हिसाब तो ये आइलैंड का पूरा जंगल साफ कर देंगे...

आर्यमणि:– हां लेकिन सोचने वाली बात तो ये भी है कि उस जंगल में तो बाज को बहुत सारे शिकर मिलेंगे। यदि शिकारी पक्षी और शिकार के बीच में कोई रोड़ा डालने आये, फिर तो बाज पहले रोड़ा डालने वाले निपटेगा। यहां तो बाज इतनी ज्यादा संख्या में है कि एक शिकार के पीछे कई बाज एक–दूसरे से लड़ ले।

अलबेली:– बॉस क्या लगता है, क्या हो सकता है? किसी प्रकार का तिलिस्म तो नही?

आर्यमणि क्रूज के 360⁰ एंगल कैमरे को बाज के उड़ने की दिशा में करते... "ये बाज हमारे जंगल या मैदानी भाग में नही रुक रहे बल्कि पहाड़ के उस पार का जो इलाका है.. आइलैंड का दूसरा हिस्सा उस ओर जा रहे”...

अलबेली:– वहां ऐसा कौन सा शिकार होगा जो इतने बाज एक साथ जा रहे... कोई जंग तो नही हो रही.. बाज और किसी अन्य जीव में..

आर्यमणि:– ये तो वहीं जाकर पता चलेगा...

रूही:– वहां जाने की सोचना भी मत… समझे तुम.. आज इस क्रूज से कोई बाहर नहीं जायेगा... जंजीरों में आर्यमणि को जकड़ दो...

आर्यमणि:– सर पर आग लेकर जाऊंगा.. कुछ नही होगा..

रूही:– हां तो जब इतना विश्वास है तो मैं भी साथ चलूंगी...

"मैं भी" "मैं भी"… साथ में इवान और अलबेली भी कहने लगे...

क्रूज को सही जगह लगाकर, सभी लंगर गिड़ा दिये। चारो तेजी से अपने आशियाने के ओर भागे और सीधे अपने–अपने बाइक निकाल लिये। सभी जंगल को लांघकर पहाड़ तक पहुंचे और पहाड़ के संकड़े रास्ते से ऊपर चढ़ने लगे। कुछ दूर आगे बढ़े थे, तभी सामने शेर आ गया। ऐसे खड़ा था मानो रास्ता रोक रहा हो। आर्यमणि एक्सीलरेटर दबाकर जैसे ही थोड़ा आगे बढ़ता, शेर अपना पंजा उठाकर मानो पीछे जाने कह रहा था।

आर्यमणि बाइक से नीचे उतरकर, शेर के सामने आया, और नीचे बैठ कर उस से नजरे मिलाने लगा। ऐसा लगा मानो शेर उस ओर जाने से मना कर रहा था। आर्यमणि भी सवालिया नजरों से शेर को ऐसे देखा मानो पूछने की कोशिश कर रहा हो क्यों... शेर आर्यमणि का रास्ता छोड़ पहाड़ के बीच से चढ़ाई वाले रास्ते पर जाने लगा। आर्यमणि रुक कर समझने की कोशिश कर ही रहा था कि तभी शेर रुककर एक बार पीछे मुड़ा और आर्यमणि को देखकर दहाड़ा।

आर्यमणि:– बाइक यहीं खड़ी कर दो, और मशाल लेकर शेर के पीछे चलो...

अलबेली:– बॉस लेकिन दीदी इस हालत में चढ़ाई कैसे करेगी...

आर्यमणि, रूही को अपने गोद में उठाते... "अब ठीक है ना"…

सभी शेर के पीछे चल दिए। 2 पहाड़ियों के बीच से यह छोटा रास्ता था जो तकरीबन 1500 से 1600 फिट ऊपर तक जाता था। काफी उबर–खाबर और हल्की स्लोपिंग वाला रास्ता था, जो चढ़ने में काफी आसान था।

तकरीबन 500 फिट चढ़ने के बाद चट्टानों के बीच शेर का पूरा एक झुंड बैठा हुआ था। जैसे ही अपने इलाके में उन्हे वेयरवुल्फ की गंध लगी, सभी उठ खड़े हुए। तभी वो शेर आर्यमणि के साथ खड़ा हुआ जो ठीक सामने वाले शेर के झुंड के सामने था।

आर्यमणि के साथ खड़े होकर वह शेर गुर्राया, और पूरा झुंड ही शांत हो गया। एक बार फिर वह शेर आगे बढ़ा, मानो अपने पीछे आने कह रहा हो। सभी उसके पीछे चल दिये। वह शेर उन्ही चट्टानों के बीच बनी एक गुफा में घुसा। उस गुफा में एक शेरनी लेटी हुई थी। आंखों के नीचे से जैसे आंसू निकल रहे हो और आस पास 2–3 शेर के बच्चे बार–बार उसके पेट में अपना सर घुसाकर उसे उठाने की कोशिश कर रहे थे।

रूही उस शेरनी के पास पहुंचकर जैसे ही उसके पेट पर हाथ दी, वह शेरनी तेज गुर्राई... "आर्य, बहुत दर्द में है।".. रूही अपनी बात कहकर उसका दर्द अपनी हथेली में समेटने लगी। आर्यमणि उसके पास पहुंचकर देखा। गर्दन के पास बड़ा सा जख्म था। आर्यमणि ने तुरंत इवान को बैग के साथ गरम पानी लाने के लिए भी बोल दिया।

सारा सामान आ जाने के बाद आर्यमणि ने उस शेरनी का उपचार शुरू कर दिया। लगभग 15 मिनट लगे होंगे, उसके घाव को चिड़कर मवाद निकलने और पट्टियां लगाकर हील करने में। 15 मिनट बाद वो शेरनी उठ खड़ी हुई। पहले तो वो अपने बच्चे से लाड़ प्यार जताई फिर रूही के सामने आकर, उसके पेट में अपना सर इतने प्यार से छू, मानो उसके पेट को स्पर्श कर रही हो।..

आर्यमणि:– रूही पेट से अपना कपड़े ऊपर करो..

आर्यमणि की बात मानकर जैसे ही रूही ने कपड़ा ऊपर किया, वह शेरनी अपने पूरे पंजे से रूही के पेट को स्पर्श की। उस वक्त उस शेरनी के चेहरे के भाव ऐसे थे, मानो वो गर्भ में पल रहे बच्चे को महसूस कर मुस्कुरा रही हो। उसे अपने अंतरात्मा से आशीर्वाद दे रही थी। और जब वो शेरनी अपना पंजा हटाई, उसके अगले ही पल इवान, अलबेली और आर्यमणि को देखकर गरजने लगी... "चलो रे सब, लगता है ये शेरनी रूही के साथ कुछ प्राइवेट बातें करेंगी"…

तीनो बाहर निकल गये और चारो ओर के माहौल का जायजा लेने लगे... "बॉस वो बाज का झुंड ठीक पहाड़ी के उस पार ही होगा न"…

आर्यमणि:– हां इवान होना तो चाहिए... चलो देखा जाए की वहां हो क्या रहा है...

तीनो पहाड़ के ऊपर जैसे ही चढ़ने लगे, वह शेर एक बार फिर इनके साथ हो लिया। तीनो पहाड़ी की चोटी तक पहुंच चुके थे, जहां से उस पार का पूरा इलाका दिख रहा था। लेकिन जैसे ही तीनो ने उस पार जाने वाली ढलान पर पाऊं रखा, एक बार फिर वो शेर उनका रास्ता रोके खड़ा था.…

आर्यमणि:– लगता है ये किसी प्रकार का बॉर्डर है.. दाएं–बाएं जाकर देखो वो बाज का झुंड कहीं दिख रहा है क्या? ..

तीनो अलग–अलग हो गये... कुछ देर बाद अलबेली... "ये क्या बला है... दोनो यहां आओ।" आर्यमणि और इवान तुरंत ही अलबेली के पास पहुंचे और नीचे का नजारा देख दंग रह गये... "आखिर ये क्या बला है।"… सबके मुंह से यही निकल रहा था।

आंखों के आगे यकीन न होने वाला दृश्य था। ऐसा जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। एक भयानक काल जीव, जिसकी आंखें ही केवल इंसान से 4 गुणी बड़ी थी। उसका शरीर तो गोल था लेकिन वो गोलाई लगभग 5 मीटर में फैली होगी और उसकी लंबाई कम से कम 300 से 400 मीटर की तो रही ही होगी। ऐसा लग रहा था मानो 6–7 ट्रेन को एक साथ गोल लपेट दिया गया हो।

यहां यही सिर्फ इकलौता हैरान करने वाला मंजर नही था। नीचे आर्यमणि को वो भी दिखा जिसकी तलाश उसे यहां तक खींच लाई थी, जलपड़ियां। और वहां केवल जलपडियां ही नही थी बल्कि उनके साथ जलपड़ा का भी झुंड था। वो भी 5 या 10 का झुंड नही बल्कि वो सैकड़ों के तादात में थे। और उन सब जलपाड़ियों के बीच संगमरमर सा सफ़ेद और गठीला बदन वाला आदमी भी खड़ा था। उसका बदन मानो चमकते उजले पत्थर की तरह दिख रहा था और हर मसल्स पूरे आकार में।

वह आदमी अपने हाथ का इशारा मात्र करता और बाज के झुंड से सैडकों बाज अलग होकर उस बड़े से विशाल जीव के शरीर पर बैठकर, उसकी चमड़ी को भेद रहे थे। जहां भी बाज का झुंड बैठता, वहां 1,2 जलपड़ी जाकर खड़ी हो जाती। ऐसे ही कर के उस बड़े से जीव के बदन के अलग–अलग हिस्से पर बाज बैठा था और वहां 2–3 जलपड़ियां थी...

इवान:– साला यहां कोई हॉलीवुड फिल्म की शूटिंग तो नही चल रही। एक विशाल काल जीव कल्पना से पड़े। आकर्षक और मनमोहनी जलपाड़ियां जिसके बदन पर जरूरी अंग को थोड़ा सा ढकने मात्र के कपड़े पहने है। उनके बीच मस्कुलर बदन का एक आदमी जिसके शरीर के हर कट को गिना जा सकता था। और वो आदमी अलौकिक शक्तियों का मालिक जो बाज को कंट्रोल कर रहा है...

अलबेली:– इवान तुम्हारी इतनी बकवास में एक ही काम की चीज है। वो आदमी बाज को कंट्रोल कर रहा है। हां लेकिन वो बाज को कंट्रोल क्यों कर रहा और क्या मकसद हो सकता है उस जीव के शरीर पर बाज को बिठाने का?

आर्यमणि:– वो बाज से इलाज करवा रहा है।

दोनो एक साथ.… "क्या?"

आर्यमणि:– हां वो बाज से इलाज करवा रहा है। उस काल जीव के पेट में तेज पीड़ा है, शायद कुछ ऐसा खा लिया जो पचा नहीं और पेट में कहीं फसा है, जो मल द्वारा भी नही निकला। जिस कारण से उस जीव की पूरी लाइन ब्लॉक हो गई है। अंदर शायद काफी ज्यादा इन्फेक्शन भी हो.. वह काल जीव काफी ज्यादा इंफेक्टेड है..

इवान:– बॉस इतनी समीक्षा...

आर्यमणि:– बाज का एक झुंड उसके पेट में छेद कर चुका था। उसके अंदर से निकली जहरीली हवा के संपर्क मात्र से सभी मारे गये... और वो जीव थोड़ी राहत महसूस कर रहा था...

आर्यमणि बड़े ध्यान से सबकुछ होते देख रहा था, तभी उसकी नजरे किसी से उलझी। बड़ी तीखी नजर थी, नजर मिलने मात्र से ही दिमाग जैसे अंदर से जलने लगा हो। आर्यमणि विचलित होकर वहां से हटा। वह 5 कदम पीछे आया कि नीचे धम्म से गिड़ गया। अलबेली और इवान तुरंत आर्यमणि को संभालने पहुंचे, तभी उन्हे एहसास हुआ की आर्यमणि बहुत तकलीफ में है। ये बात शायद रूही ने भी महसूस किया, वो भी तुरंत वहां पहुंच चुकी थी।

तीनो आर्यमणि को उठाकर गुफा में ले आये और उसके हाथ को थाम आर्यमणि का दर्द खींचने लगे। लेकिन ऐसा लग रहा था जैस दर्द में कोई गिरावट ही नही हो रही है, बल्कि वक्त के साथ वो और भी बढ़ता जा रहा था। रूही के आंखों मे आंशु आ चले... "क्या हुआ आर्य को.. अचानक ऐसा क्या हुआ जो इनके शरीर का दर्द बढ़ता ही जा रहा है?"…
Fabulous excellent fantastic outstanding update bade bhi...
😘😍❤️❤️😁😍😍😘😘😘😍❤️❤️❤️😍😍😘😘😍❤️❤️❤️😍😘😘😍❤️❤️❤️😍😍❤️❤️😁😍😘😍❤️❤️

Yaha pey Pura pack hi enjoy Kar raha hey...

Aur sab log yah ke ped fal ke vainjono Ko aswad le rahe hey...

Ye log un bajo ka parshn hal karne ja rahe the to bich mey hi ohh sher agya aur apne kabile ke tarf leke chal pada hey...

Vaha pay uski sherni jkhmi halt mey thi isiliye Ohh uska ilaj keliye Inka रस्ता roke tha...
Inone bhi uska dard kam krke uska ilaj kar rahi dala हे...

US sherni ne ruhi ke sath aise kya gupt gu karani thi akel mey 🤔🤔🤔🤔

Aur ye kya yaha par akhir kar arya ko jal priya to dikh gayi hey..
Aur ye kon baitha hey unke bich mey..

Kya ohh us samjdar ka king hey ya in sab jio ka shashk hi lagta hey..
Isiliye us Kal jiv ka ilaj kar raha tha.....

Aur usne aisa kya kiya arya ke sath ki usko itna dard ho raha hey....

Matlb ohh arya se bhi twkdwar hey....

Ab dekhte hey age kya hota hey....


😍😍😘😘❤️❤️❤️😍😘😘😘😘❤️😍😘
 
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