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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–152


कुछ दूर आगे लगभग 1000 मीटर से जायदा गहराई का इतना बड़ा भंवर बना हुआ था जिसमे बड़े–बड़े 10 जहाज एक साथ दम तोड़ दे। और नजरें ऊपर जब गयी तो आगे और पीछे से एक साथ इतनी ऊंची लहर की दीवार दिख रही थी, जिसने महासागर के पानी को सीधा आकाश से ही मिला दिया था। दम साधे अपनी श्वांस रोककर पूरा अल्फा पैक ही हैरान थे।

ऐसा भयावाह नजारा था जिसे देखकर सभी के रौंगटे खड़े हो गये। रूही, इवान और अलबेली एक दूसरे के हाथ इस कदर मजबूती से थामे थे, मानो भयभीत करने वाले इस मंजर में एक दूसरे को हिम्मत दे रहे थे। वहीं आर्यमणि अपनी छाती चौड़ी किये क्रूज के छत पर खड़ा था। एक फिसलंदार सतह जो इतनी हिलती थी की उसपर पाऊं ही न जमा पाये, खड़े होना तो दूर की बात थी।

आर्यमणि ने क्रूज ठीक आगे निगलने वाले भंवर को देखा। उस भंवर के आगे खड़ा आसमान को छूते लहर को देखा। सिर्फ इतना ही नहीं मौत अपनी पूर्ण चपेट में लेने के लिये पीछे भी खड़ी थी। पीछे भी एक लहर आसमान को छू रही थी। आर्यमणि फिर भी निर्भीक खड़ा रहा। अपने एमुलेट को हाथ में थामकर इतनी तेज दहाड़ लगाया की उसके दहाड़ की भीषण कंपन में दोनो लहरें इस कदर गायब हो गयी मानो उसका अस्तित्व कभी था ही नही।

आर्यमणि दहाड़ लगाने के ठीक बाद छत से एक लंबी दौड़ लगाया और हवा में कई फिट ऊंचा छलांग लगा चुका था। रूही, अलबेली और इवान की नजर जब आर्यमणि पर गयी तीनो की ही श्वास पतली होने लगी। भीषण महासागर में बने भंवर के ऊपर उन्हे कण के बराबर का एक इंसान ही दिखा। समुद्री तूफान और भंवर के ठीक ऊपर हवा में था आर्यमणि। तेजी से नीचे गिड़कर आर्यमणि भंवर की गहराई में था। बड़ा सा गोल भंवर के ठीक बीच आर्यमणि फंसा था और गिरने के साथ ही उसने अपने अंदर की वह दहाड़ निकाली की भंवर की गहराई पूरे महासागर में फैल गयी।

कहां गया भंवर और उसके एक किलोमीटर की गहराई कुछ पता ही नही चला। बस क्रूज ने इतना तेज झटका खाया की रूही, अलबेली और इवान मुंह के बल गिर गये। सारी बाधाओं को ध्वस्त करने के बाद क्रूज एक बार फिर अपनी गति से आगे बढ़ी। लेकिन महासागर के इस हिस्से में जैसे पग–पग पर बाधायें बिछी हुई थी। आगे बढ़ते ही इतना तेज तूफान आया की उस तूफान ने पूरे क्रूज को ही सीधा खड़ा कर दिया। तिलिस्म सिर्फ इतना ही नहीं था, बल्कि तूफानी हवा ने जैसे ही क्रूज को खड़ा किया, वह पानी में डूबा नही बल्कि उसके नीचे का पूरा पानी ही गायब था।

महासागर जो कई किलोमीटर गहरी थी, उसका पानी गायब होते ही कई किलोमीटर की खाई बना चुकी थी और उस खाई में क्रूज बड़ी तेजी से गिड़ी। किंतु कई तरह के अभिमंत्रित मंत्र से बंधा यह क्रूज महासागर की गहराई में टकराने से पहले ही पानी के सतह पर एक बार फिर तैर रहा था। एक पल में गिर रहे थे अगले पल तैर रहे थे। जितनी भी तिलिस्मी बाधा थी, उन्हे काटते हुये क्रूज तेजी से आसानी से आगे बढ़ रही थी, बस अल्फा पैक कभी ऊपर तो कभी नीचे की दीवारों से टकरा रहे थे।

भोर हो रही थी। सूर्य अपनी लालिमा बिखेर रही थी। दूर–दूर तक दिख रहा महासागर शांत था। वहीं दूर महासागर के बीच ऊंचे पहाड़ जंगलों से घिरा एक टापू भी दिख रहा था। अल्फा पैक ने सभी बेहोश पड़े क्रू मेंबर के शरीर को हील करने के बाद उन्हे बिस्तर पर लिटा दिया। सारा काम समाप्त कर पूरा अल्फा पैक डेक पर आराम से बैठकर उगते सूरज का लुफ्त उठा रहे थे।

एक–एक करके सारे क्रू मेंबर जाग रहे थे और टापू को देखकर उतने ही खुश। कैप्टन भी वह अजूबा टापू देख रहा था, जिसकी कहानी बताने आज तक कोई जहाजी वापस नहीं लौटा। जागते ही उसने सबसे पहले अपने सिस्टम को ही चेक किया। लेकिन आश्चर्य तब हो गया जब रात के वक्त जिस जगह पर कैप्टन ने विश्राम करने का सोचा, उस से कुछ दूर आगे की फुटेज के बाद कुछ था ही नही। कितने नॉटिकल माइल क्रूज चल चुकी थी उसका भी ब्योरा नहीं। संपर्क प्रणाली तो सुचारू रूप से काम कर रही थी, लेकिन किसी भी पोर्ट पर संपर्क नही हो पा रहा था।

कप्तान, आर्यमणि के पास आकर अपनी कुर्सी लगाते.... “सर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि आपने सबको बेहोश करके महासागर का वह इलाका पार कर लिया, जहां महासागर प्रचंड हो जाता है। नेविगेशन कर रहे 2 सेलर अपने केबिन में मुझे सोए हुये मिले जिन्हे रात की कोई बात याद नही।”...

आर्यमणि:– कप्तान साहब आपको क्या लगता है, रात को क्या हुआ होगा?

कैप्टन:– बस उसी का तो अनुभव लेना था। उन रास्तों पर क्या हुआ था, उसकी तो कल्पना भी नहीं कर सकता।

आर्यमणि:– कुछ बातों की जिज्ञासा न हो तो ही बेहतर है। आप और पूरा क्रू मेरे साथ है इसलिए इस आइलैंड पर सब सुरक्षित है। आगे का संभालिये, देखिये हम इनगल्फ आइलैंड पहुंच चुके।

कैप्टन अपने केबिन में घुसे। वहां से सभी क्रू मेंबर को जरूरी दिशा निर्देश देने लगे। शिप के क्रू मेंबर शिप को उसकी सही जगह लगाने लगे, जबतक आर्यमणि जेट के पास पहुंचा।… "देखे इसे चलाया कैसे जा सकता है।"..

आर्यमणि ध्यान लगाने लगा। धीरे–धीरे यादों की गहराई में और वहां जेट उड़ाने के पहले दिन से लेकर आखरी दिन तक की याद थी। मुस्कुराते हुए आर्यमणि की आंखें खुली और जेट से वो आइलैंड के चक्कर लगाने लगा। तकरीबन 45 किलोमीटर में यह आइलैंड फैला था जिसमे विशाल जंगल और पहाड़ थे। क्षेत्रफल को लेकर आर्यमणि के मन में दुविधा जरूर हुई लेकिन इस बात को फिलहाल नजरंदाज करते अपने तंबू लगाने की जगह को उसने मार्क कर दिया। एक चक्कर काटने के बाद जेट क्रूज पर लैंड हो चुकी थी और आर्यमणि सीधा कैप्टन के पास पहुंचा।

कप्तान:– सर आपने कभी बताया नही की आप एक पायलट भी है।

आर्यमणि:– तुम कहो तो तुम्हे भी पायलट बना दे।

कप्तान:– फिर कभी सर... अभी हमारे लिये क्या ऑर्डर है..

आर्यमणि:– जैसा की आपको बताया गया है की ये सफर लंबा होने वाला है। इसलिए जबतक मेरा यहां काम खत्म नहीं हो जाता तबतक मैं यहां रुकने वाला हूं। टापू के एक मैदानी भाग के मैने मार्क कर दिया है जहां मैं सबके रहने का इंतजाम करता हूं। अभी के लिये आप अपने क्रू के साथ क्रूज में ही रहिए, और हमारे भीकल्स को किनारे उतारने का इंतजाम कीजिये। बाकी कोई इमरजेंसी हो तो वाकी से संपर्क कीजिएगा...

कप्तान, आर्यमणि के कहे अनुसार करने लगा। जिप लाइन जोड़ दी गई। मजबूत वायर जो 100 टन से ऊपर का वजन संभाल सकती थी। कार्गो पैकिंग में 2 मिनी–ट्रक थी, जो चारो ओर से चौड़ी पट्टियों में लिपटी थी। एक मजबूत एडवांस्ड मिलिट्री जीप के साथ पहाड़ी और जंगल में इस्तमाल होने वाली 3 बाइक थी।

हुक के सहारे फसाकर सभी गाड़ियों को किनारे तक पहुंचाया गया। क्रू मेंबर वहीं क्रूज में ही रुके बाकी गाड़ियों के साथ आर्यमणि चल पड़ा। किनारे से तकरीबन 6 किलोमीटर अंदर मार्क की हुई जगह पर सब पहुंचे। यह इस आइलैंड का मैदानी भाग था जहां 5–6 फीट का जंगली झाड़ उगा हुआ था।

बड़े–बड़े टूल बॉक्स जरूरत के कई समान लोड किये दोनो ट्रक को उस जगह तक पहुंचाया गया। अलबेली और इवान उस जगह के चारो ओर के झाड़ को साफ करने लगे, वहीं आर्यमणि बड़ी सी आड़ी लेकर जंगल में घुसा। वहां आर्यमणि सबसे बूढ़ा पेड़ ढूंढने लगा जिसकी स्वयं मृत्यु की इक्छा हो। 4 ऐसे मोटे वृक्ष मिल गए। आर्यमणि उन वृक्षों को काटना शुरू किया। शाम तक में 2 वृक्ष काट कर छोटे छोटे टुकड़ों में विभाजित कर चुका था।

आज का दिन खत्म हो रहा था, इसलिए आर्यमणि ने अपना काम रोक दिया। इधर अलबेली और इवान ने मिलकर मैदानी भाग के बड़े–बड़े झाड़ को साफ कर चुके थे, जहां इनका टेंट लगता। इन तीनों के अलावा रूही भी अपना काम कर रही थी। वह जंगल से कुछ खाने के लिए ढूंढ लाई। हां एक बात जो चारो के साथ हो रही थी, उस जगह कई तरह के जानवर थे, जो इनको देखकर रास्ता बदल लेते।

इवान और अलबेली का काम भी खत्म हो गया था। उन्होंने तो झाड़ के 8–10 पहाड़ खड़े कर दिये, जिन्हे सूखने के बाद इस्तमाल में लाया जाता। दोनो ने मिलकर लगभग 500 मीटर के इलाके को साफ कर चुके थे। देखने मे वह जगह काफी खूबसूरत लग रही थी। बीच में ही टेंट लग चुके थे और रूही आग पर तरह–तरह के खाने पका रही थी। इनके खाने में, जंगल से मिले कुछ बीज, नए तरह के फल और कुछ हरी पत्तियां थी।

पत्ती का सूप किसी आनंदमय भोजन से कम नही था। उसके अलावा उबले बीज स्वाद में काफी करवा था लेकिन फिर भी पोषण के लिए खा लिये। अगली सुबह से फिर इनका काम शुरू हो गया। कटे हुए पेड़ को छिलना उनसे चौड़े तख्ते निकलना। ये बात तो चारो को माननी पड़ी की लकड़ी छिलना और उनसे पल्ले निकलना बड़ा टेढ़ा काम था। लकड़ी के 2 मोटे सिल्ले को बर्बाद करने के बाद, तब कहीं जाकर समझ में आया की ढंग का पल्ला कैसे निकालते हैं। वो तो वहां 3 साल पढ़ी एक सिविल इंजीनियर रूही थी, जिसने अपने मजदूरों का मार्गदर्शन किया, तब जाकर सही से काम होना शुरू हुआ था। हां लेकिन अंत में वीडियो ट्यूटोरियल का सहारा लेना पड़ा था वो अलग बात थी।

काम करते हुये सबको 5 दिन हो चुके थे। लकड़ी के सैकड़ों पल्ले निकल चुके थे। छटे दिन से आर्यमणि लकड़ी के पल्ले निकालने का काम कर रहा था, इधर अलबेली और इवान कॉटेज के फाउंडेशन का काम कर रहे थे। ये लोग अपने काम में लगे हुये थे, जब एक घायल शेर उस मैदानी भाग में पहुंच गया।

धारियों को देखकर पता चल रहा था की ये कोई माउंटेन लायन है। शेर घायल जरूर था लेकिन जैसे ही चारो को देखा तेज दहाड़ लगा दिया। आर्यमणि उसके आंखों में झांका और वो शेर शांत होकर बैठ गया। चारो उसके पास पहुंचे। पेट के पास कटा हुआ था जिसका जख्म अंदर तक था। आर्यमणि फर्स्ट एड कीट निकाला। जख्म के हिस्से को चीरकर वहां का सारा मवाद निकाला और पट्टियां लगाकर उसे हील करने लगा। जैसे–जैसे शेर का दर्द गायब हो रहा था, सुकून से वो अपनी आंखें मूंदेने लगा। आर्यमणि जब अपना काम करके हटा, शेर फुर्ती से उठ खड़ा हुआ और अपनी खुशी की दहाड़ लगाकर वहां से भाग गया।

सभी लोग वापस से काम पर लौट गये। यूं तो रूही भी काम करना चाहती थी, पर उसकी परिस्थिति को देखते उसे बस खाना बनाना और झड़ने से पानी लाने का काम दिया गया था। 15 दिनों में वहां 5 बड़े से कॉटेज तैयार थे। प्राइवेसी के लिये कई पार्टीशन किये गये थे। मूलभूत सुविधा के साथ कॉटेज रहने के लिये तैयार था।

15 दिन बाद पूरे क्रू मेंबर को टापू पर बुलाया गया। जब वो लोग मैदानी भाग में आये जहां कॉटेज बना हुआ था, वो जगह देखकर दंग थे। पूरे रास्ते पर चलने के लिए पत्थर बिछा हुआ था। इलाके में बड़ी सी फेंसिंग की गई थी। इसी के साथ 5 कॉटेज एक निश्चित दूरी पर थे। कॉटेज के चारो ओर बागवानी के लिए जमीन छोड़ी गई थी और बाकी जगह पर पत्थर को खूबसूरती से बिछाकर फ्लोर बनाया गया था।

जगह इतनी खूबसूरत थी कि सबको पसंद आना ही था। क्रूज से घर की जरूरतों के सारे सामान लाये गये। हां लेकिन न तो आर्यमणि और न ही किसी को भी ये पता था की क्रू मेंबर अपने साथ हंटिंग का सामान भी लाये थे। और तो और किसी भी खूबसूरत सी दिखने वाली जगह पर जब रहने जाओ, तब पता चलता है कि वहां रहना कितना मुश्किल होता है।

जिस दिन सभी क्रू मेंबर को रहने बुलाया गया उसी शाम आर्यमणि ने बुलेट फायरिंग सुनी। फायरिंग जहां से हुई, वहां अलबेली और इवान तुरंत पहुंचे और लोगों शिकार करने से रोकने लगे। इस चक्कर में क्रूज के सिक्योरिटी गार्ड और इवान के बीच बहस भी हो गयी। बहस इतनी बढ़ गयी की सिक्योरिटी गार्ड अपने हाथ का राइफल इवान के ऊपर तान दिया। अलबेली तैश में आ गयी। उसने राइफल की नली को पकड़कर हवा में कर दी और खींचकर उस सिक्योरिटी गार्ड को तमाचा मारती.... “मजा आया... यदि और शिकार करने का भूत सवार हो तो बता देना, थप्पड़ मार–मार कर सबके गाल की चमड़ी निकाल दूंगी।”...

अलबेली के एक्शन पर बाकी के तीन सिक्योरिटी गार्ड अपने रिएक्शन देते उसके ओर लपके और वो तीनो भी इवान के हाथ का कड़क थप्पड़ खाकर शांत हो गये.... “मेरी बीवी ने बोल दिया न शिकार नही तो मतलब नहीं। हमसे उलझने की सोचना भी मत वरना गाल के साथ–साथ पूरे शरीर की चमड़ी उतार दूंगा।”...

इस एक छोटे से वार्निंग के बाद सबके दिमाग ठिकाने आ गये, लेकिन मन में भड़ास तो आ ही गयी थी। ऊपर से जब क्रू मेंबर के सामने उस जंगल की पत्तियों के सूप, उबले बीज और कसैला स्वाद वाला फल दिया गया, सबने खाने से इंकार कर दिया। उन्हे तो बस नमक मिर्च डालकर भुना मांस ही खाना था।

पहले ही रात में भयंकर गहमा–गहमी हो गयी। अगली सुबह तो और भी ज्यादा माहौल खराब हो गया, जब पानी के लिये इन्हें 5 किलोमीटर अंदर झरने तक जाना पड़ा। उसमे भी वो लोग झड़ने का पानी नहीं पीना चाहते थे। कुल मिलाकर एक दिन पहले उन्हे रहने बुलाया और अगले दिन ही सभा लग गयी, जहां पूरा क्रू वापस जाने की मांग करने लगे।

अब कर भी क्या सकते थे, अगली सुबह ही वो लोग मिनीजेट से न्यूजीलैंड रवाना होते। रात को चुपके से आर्यमणि भ्रमण पर निकला और क्रूज चलाने से लेकर नेविगेशन करना सब सीख गया। वहीं इंजन विभाग वाला काम रूही को दे दिया गया और वो क्रूज इंजन के बारे में पूरी जानकारी लेकर निकली। इलेक्ट्रिक इंजन और इलेक्ट्रिसिटी को देखने वाले जितने टेक्नीशियन थे, उनका काम इवान और अलबेली सीखकर निकले। अंत में सबने अपने ज्ञान को एक दूसरे से साझा किया और हंसते हुये सोने चल दिये।

अगली सुबह सबको लेकर मिनिजेट उड़ चला। उस आइलैंड के सबसे नजदीकी देश न्यूजीलैंड ही था, जहां उन सबको छोड़कर आर्यमणि वापस उस आइलैंड पर आ गया। न्यूजीलैंड गया तो रूही की डिमांड पर कई सारे चीजें लेकर भी आया। इतना सामान की पूरा जेट सामानो से भड़ा था। हां लेकिन केवल रूही के जरूरत का ही समान नही था, बल्कि कई और जरूरत की चीजें भी थी।

अब चूंकि 5 कॉटेज की जरूरत नही थी इसलिए आर्यमणि ने 2 कॉटेज को ही डिवेलप करने का सोचा। वैसे मसाला आ जाने के बाद खाने का जायका कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था। इस आइलैंड पर करने को बहुत कुछ था। सुबह 4 बजे सब जागकर ध्यान करते। जिसमे आर्यमणि को छोड़कर किसी को मजा नही आता। आर्यमणि जैसे ही ध्यान में जाता बाकी सभी सोने चले जाते।

फिर होता मंत्र उच्चारण। जिसे सब मना कर चुके थे, लेकिन आर्यमणि सबको जबरदस्ती मंत्र उच्चारण करने कहता। साथ ही साथ रूही के पेट पर प्यार से हाथ फेरते अपने होने वाले बच्चे को भी वो बहुत कुछ सिखाया करता था। दिन के समय चारो जंगल में निकलते। ये चारो का सबसे प्यारा काम था। जो दर्द में दिखे उनका दर्द दूर करना। फिर चाहे वो पेड़ हो या कोई शाकहारी या मांसहारी जानवर।

बड़े से फेंसिंग के अंदर उन्होंने भेड़ पालना शुरू किया। भेड़ के आ जाने से खाने पीने का मजा ही अलग हो गया। क्योंकि दूध की अब कोई कमी नही थी। हां लेकिन भेड़ का दूध पीकर रात को भेड़िए पागल हो जाते थे और सहवास के दौरान दोनो (आर्यमणि और इवान) इतने जोश में होते की रात को पूरा थक कर ही सोते थे।

जिस माउंटेन लायन की जान इन लोगों ने बचाई थी वह अक्सर इनके फेंस के पास दिख जाता। लायन के आते ही पालतू भेड़ में डर का माहोल पैदा हो जाता, लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ की शेर ने इन भेड़ पर हमला किया हो। फेंस के आगे धीरे–धीरे हर घायल जानवर का ठिकाना हो गया था। ऐसा लग रहा था जैसे वहां के जानवरों के लिये कोई डॉक्टर पहुंचा हो।

 

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भाग:–153


दिन बहुत शानदार कट रहे थे। जिस उद्देश्य से आर्यमणि आइलैंड पहुंचा था उसे पूरा करने में लगा हुआ था। अपने साथ–साथ अल्फा पैक को भी एक स्तर ऊंचा प्रशिक्षित कर रहा था। हफ्ते में एक दिन एमुलेट परीक्षण भी करते। जितने प्रकार के पत्थर लगे हुये थे उनके अच्छे और बुरे प्रभावों का मूल्यांकन भी जारी था। सब कुछ अपनी जगह पर बिलकुल सही तरीके से आगे बढ़ रहा था।

किंतु जिस जिज्ञासा में आर्यमणि यहां आया था, वो अब तक पूरा नहीं हुआ था। आर्यमणि जब अपने बचपन से दादा जी की यादें ले रहा था, तब उसे एक पुराना किस्सा याद आया जो आर्यमणि को काफी आकर्षित करती थी... जलपड़िया। आर्यमणि के दादा जी अक्सर इसी आइलैंड का जिक्र करते, जिसके तट पर जलपड़ियां आती थी। आर्यमणि रोज रात को एक बार समुद्र किनारे जाता और निराश होकर लौट आता।

अल्फा पैक को आये लगभग 2 महीने बीत चुके थे। रूही लगभग 3 मंथ की प्रेगनेंट थी। अब उसका पेट बाहर आने लगा था। आर्यमणि, अलबेली और इवान तीनो ही उसका पूरा ख्याल रखते थे। एक दिन आर्यमणि ने खुद ही कहा की, यदि तीनो (रूही, इवान और अलबेली) चाहे तो मछली या फिर भेड़ का मांस खा सकते है। अजीब सी हंसी के साथ रूही भी प्रतिक्रिया देती हुई भेंड़ के विषय में कहने लगी... "जिसे पाला हो उसे ही खाने कह रहे। वैसे भी अब तो कभी ख्यालों में भी नॉन वेज नही आता।"…

आर्यमणि मुस्कुराते हुये रूही के बात का अभिवादन किया। इसी बीच एक दिन सभी बैठे थे, तभी रूही, अलबेली से उसके प्रेगनेंसी के बारे में पूछने लगी। अलबेली शर्माती हुई... "क्या तुम भी भाभी" कहने लगी.. फिर तो रूही का जो ही छेड़ना शुरू हुआ... "रात को तो पूरा कॉटेज हिलता रहता है, फिर भी रिजल्ट नही आया"..

अलबेली:– रिजल्ट अभी नही आयेगा... इतनी जल्दी बच्चा क्यों, अभी मेरी उम्र ही क्या है...

रूही:– हां ये तो सही है... नही लेकिन फिर भी... लास्ट मोमेंट पर करते क्या हो..

अलबेली चिढ़ती हुई.… "मेरे मुंह पर छींटे उड़ा देता है। आज कल बॉस भी तो यही करते होंगे। क्योंकि अंदरूनी मामले पर तो प्रतिबंध लगा हुआ होगा न"..

रूही:– कहां रे… बर्दास्त ही नही होता.. अंदर डाले बिना मानते ही नही..

अलबेली:– वो नही मानते या तुमसे ही बर्दास्त नही होता...

दोनो के बीच शीत युद्ध तब तक चलता रहा जब तक की वहां इवान और आर्यमणि नही आ गया। दोनो पहुंचते ही कहने लगे... "आज छोटी बोट में समुद्र घूमने चलेंगे"…

अलबेली:– नही बोट बहुत ही ऊपर उछाल मारती है, भाभी को परेशानी होगी...

रूही:– अरे दिल छोटा न करो... हम क्रूज लेकर चलते हैं न.. वहीं बीच में तुम लोग थोड़ा बोट से भी घूम लेना..

इवान:– ग्रेट आइडिया दीदी। और आज रात क्रूज में ही बिताएंगे..

सब लोगों की सहमति हो गयी... क्रूज का लंगर उठाया गया। इंजन स्टार्ट और चल पड़े सब तफरी पर। 20 नॉटिकल माइल की दूरी तय करने बाद क्रूज को धीमा कर दिया गया और छोटी बोट पानी में उतारी गई। आर्यमणि और इवान बोट में सवार होकर वहीं घूमने लगे। उनके बोट के साथ साथ कई डॉल्फिन उछलती हुई तैर रही थी। काफी खूबसूरत नजारा था। रूही और अलबेली दोनो क्रूज के किनारे पर बैठकर यह खूबसूरत दृश्य देख रही थी। दिन ढलने को आया था। सूरज की लालिमा चारो ओर के नजारे को और भी खूबसूरत बना रही थी। रूही हाथ के इशारे से दोनो को वापस बुलाने लगी।

लौटते ही आर्यमणि ने क्रूज को वापस आइलैंड की ओर घुमाया और सबके साथ आकर डूबते सूरज को देखने का रोमांच लेने लगा। लेकिन उनके इस रोमांच में आसमानी चीते यानी की बाज ने आकर खलल डाल दिया। पता नही कहां से और कितनी तेजी में आये, लेकिन जब वो आये तो आसमान को ढक दिया। आमुमन बाज अकेले ही शिकार करते है लेकिन यहां तो, 1 नही, 10 नही, 100 नही, 1000 नही, लगभग 10000 से भी ज्यादा की संख्या में बाज थे।

बाज काफी तेजी से उड़ते हुए आइलैंड के ओर बढ़ रहे थे। उनकी इतनी तादात देखकर, आर्यमणि ने सबको खुले से हटने का इशारा किया। ये लोग डेक एरिया से हटकर जैसे ही अंदर घुसकर दरवाजा बंद किये, दरवाजे पर ही कई बाज हमला करने लगे। लेकिन ऐसा लग रहा था कि आर्यमणि और उसका पैक मुख्य शिकार नही थे, इसलिए कुछ देर की नाकाम कोशिश के बाद वो सब वापस झुंड में चले गये.…

"बाप रे हम वेयरवुल्फ को भी भयभीत कर गये ये बाज। मेरा कलेजा तो अब भी धक–धक कर रहा है"… रूही पानी का घूंट लेती हुई कहने लगी...

अलबेली:– बॉस हमे खतरे का आभाष नही हुआ लेकिन आप कैसे भांप गये...

आर्यमणि:– पता नही... बाज की इतनी संख्या देखकर अंदर से भय जैसा लगा... लेकिन ये बाज इतनी संख्या में आइलैंड पर जा क्यों रहे थे? क्या ये हम पर हमला करते...

इवान:– बाज अकेला शिकारी होता है। जितनी इनकी संख्या थी उस हिसाब तो ये आइलैंड का पूरा जंगल साफ कर देंगे...

आर्यमणि:– हां लेकिन सोचने वाली बात तो ये भी है कि उस जंगल में तो बाज को बहुत सारे शिकर मिलेंगे। यदि शिकारी पक्षी और शिकार के बीच में कोई रोड़ा डालने आये, फिर तो बाज पहले रोड़ा डालने वाले निपटेगा। यहां तो बाज इतनी ज्यादा संख्या में है कि एक शिकार के पीछे कई बाज एक–दूसरे से लड़ ले।

अलबेली:– बॉस क्या लगता है, क्या हो सकता है? किसी प्रकार का तिलिस्म तो नही?

आर्यमणि क्रूज के 360⁰ एंगल कैमरे को बाज के उड़ने की दिशा में करते... "ये बाज हमारे जंगल या मैदानी भाग में नही रुक रहे बल्कि पहाड़ के उस पार का जो इलाका है.. आइलैंड का दूसरा हिस्सा उस ओर जा रहे”...

अलबेली:– वहां ऐसा कौन सा शिकार होगा जो इतने बाज एक साथ जा रहे... कोई जंग तो नही हो रही.. बाज और किसी अन्य जीव में..

आर्यमणि:– ये तो वहीं जाकर पता चलेगा...

रूही:– वहां जाने की सोचना भी मत… समझे तुम.. आज इस क्रूज से कोई बाहर नहीं जायेगा... जंजीरों में आर्यमणि को जकड़ दो...

आर्यमणि:– सर पर आग लेकर जाऊंगा.. कुछ नही होगा..

रूही:– हां तो जब इतना विश्वास है तो मैं भी साथ चलूंगी...

"मैं भी" "मैं भी"… साथ में इवान और अलबेली भी कहने लगे...

क्रूज को सही जगह लगाकर, सभी लंगर गिड़ा दिये। चारो तेजी से अपने आशियाने के ओर भागे और सीधे अपने–अपने बाइक निकाल लिये। सभी जंगल को लांघकर पहाड़ तक पहुंचे और पहाड़ के संकड़े रास्ते से ऊपर चढ़ने लगे। कुछ दूर आगे बढ़े थे, तभी सामने शेर आ गया। ऐसे खड़ा था मानो रास्ता रोक रहा हो। आर्यमणि एक्सीलरेटर दबाकर जैसे ही थोड़ा आगे बढ़ता, शेर अपना पंजा उठाकर मानो पीछे जाने कह रहा था।

आर्यमणि बाइक से नीचे उतरकर, शेर के सामने आया, और नीचे बैठ कर उस से नजरे मिलाने लगा। ऐसा लगा मानो शेर उस ओर जाने से मना कर रहा था। आर्यमणि भी सवालिया नजरों से शेर को ऐसे देखा मानो पूछने की कोशिश कर रहा हो क्यों... शेर आर्यमणि का रास्ता छोड़ पहाड़ के बीच से चढ़ाई वाले रास्ते पर जाने लगा। आर्यमणि रुक कर समझने की कोशिश कर ही रहा था कि तभी शेर रुककर एक बार पीछे मुड़ा और आर्यमणि को देखकर दहाड़ा।

आर्यमणि:– बाइक यहीं खड़ी कर दो, और मशाल लेकर शेर के पीछे चलो...

अलबेली:– बॉस लेकिन दीदी इस हालत में चढ़ाई कैसे करेगी...

आर्यमणि, रूही को अपने गोद में उठाते... "अब ठीक है ना"…

सभी शेर के पीछे चल दिए। 2 पहाड़ियों के बीच से यह छोटा रास्ता था जो तकरीबन 1500 से 1600 फिट ऊपर तक जाता था। काफी उबर–खाबर और हल्की स्लोपिंग वाला रास्ता था, जो चढ़ने में काफी आसान था।

तकरीबन 500 फिट चढ़ने के बाद चट्टानों के बीच शेर का पूरा एक झुंड बैठा हुआ था। जैसे ही अपने इलाके में उन्हे वेयरवुल्फ की गंध लगी, सभी उठ खड़े हुए। तभी वो शेर आर्यमणि के साथ खड़ा हुआ जो ठीक सामने वाले शेर के झुंड के सामने था।

आर्यमणि के साथ खड़े होकर वह शेर गुर्राया, और पूरा झुंड ही शांत हो गया। एक बार फिर वह शेर आगे बढ़ा, मानो अपने पीछे आने कह रहा हो। सभी उसके पीछे चल दिये। वह शेर उन्ही चट्टानों के बीच बनी एक गुफा में घुसा। उस गुफा में एक शेरनी लेटी हुई थी। आंखों के नीचे से जैसे आंसू निकल रहे हो और आस पास 2–3 शेर के बच्चे बार–बार उसके पेट में अपना सर घुसाकर उसे उठाने की कोशिश कर रहे थे।

रूही उस शेरनी के पास पहुंचकर जैसे ही उसके पेट पर हाथ दी, वह शेरनी तेज गुर्राई... "आर्य, बहुत दर्द में है।".. रूही अपनी बात कहकर उसका दर्द अपनी हथेली में समेटने लगी। आर्यमणि उसके पास पहुंचकर देखा। गर्दन के पास बड़ा सा जख्म था। आर्यमणि ने तुरंत इवान को बैग के साथ गरम पानी लाने के लिए भी बोल दिया।

सारा सामान आ जाने के बाद आर्यमणि ने उस शेरनी का उपचार शुरू कर दिया। लगभग 15 मिनट लगे होंगे, उसके घाव को चिड़कर मवाद निकलने और पट्टियां लगाकर हील करने में। 15 मिनट बाद वो शेरनी उठ खड़ी हुई। पहले तो वो अपने बच्चे से लाड़ प्यार जताई फिर रूही के सामने आकर, उसके पेट में अपना सर इतने प्यार से छू, मानो उसके पेट को स्पर्श कर रही हो।..

आर्यमणि:– रूही पेट से अपना कपड़े ऊपर करो..

आर्यमणि की बात मानकर जैसे ही रूही ने कपड़ा ऊपर किया, वह शेरनी अपने पूरे पंजे से रूही के पेट को स्पर्श की। उस वक्त उस शेरनी के चेहरे के भाव ऐसे थे, मानो वो गर्भ में पल रहे बच्चे को महसूस कर मुस्कुरा रही हो। उसे अपने अंतरात्मा से आशीर्वाद दे रही थी। और जब वो शेरनी अपना पंजा हटाई, उसके अगले ही पल इवान, अलबेली और आर्यमणि को देखकर गरजने लगी... "चलो रे सब, लगता है ये शेरनी रूही के साथ कुछ प्राइवेट बातें करेंगी"…

तीनो बाहर निकल गये और चारो ओर के माहौल का जायजा लेने लगे... "बॉस वो बाज का झुंड ठीक पहाड़ी के उस पार ही होगा न"…

आर्यमणि:– हां इवान होना तो चाहिए... चलो देखा जाए की वहां हो क्या रहा है...

तीनो पहाड़ के ऊपर जैसे ही चढ़ने लगे, वह शेर एक बार फिर इनके साथ हो लिया। तीनो पहाड़ी की चोटी तक पहुंच चुके थे, जहां से उस पार का पूरा इलाका दिख रहा था। लेकिन जैसे ही तीनो ने उस पार जाने वाली ढलान पर पाऊं रखा, एक बार फिर वो शेर उनका रास्ता रोके खड़ा था.…

आर्यमणि:– लगता है ये किसी प्रकार का बॉर्डर है.. दाएं–बाएं जाकर देखो वो बाज का झुंड कहीं दिख रहा है क्या? ..

तीनो अलग–अलग हो गये... कुछ देर बाद अलबेली... "ये क्या बला है... दोनो यहां आओ।" आर्यमणि और इवान तुरंत ही अलबेली के पास पहुंचे और नीचे का नजारा देख दंग रह गये... "आखिर ये क्या बला है।"… सबके मुंह से यही निकल रहा था।

आंखों के आगे यकीन न होने वाला दृश्य था। ऐसा जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। एक भयानक काल जीव, जिसकी आंखें ही केवल इंसान से 4 गुणी बड़ी थी। उसका शरीर तो गोल था लेकिन वो गोलाई लगभग 5 मीटर में फैली होगी और उसकी लंबाई कम से कम 300 से 400 मीटर की तो रही ही होगी। ऐसा लग रहा था मानो 6–7 ट्रेन को एक साथ गोल लपेट दिया गया हो।

यहां यही सिर्फ इकलौता हैरान करने वाला मंजर नही था। नीचे आर्यमणि को वो भी दिखा जिसकी तलाश उसे यहां तक खींच लाई थी, जलपड़ियां। और वहां केवल जलपडियां ही नही थी बल्कि उनके साथ जलपड़ा का भी झुंड था। वो भी 5 या 10 का झुंड नही बल्कि वो सैकड़ों के तादात में थे। और उन सब जलपाड़ियों के बीच संगमरमर सा सफ़ेद और गठीला बदन वाला आदमी भी खड़ा था। उसका बदन मानो चमकते उजले पत्थर की तरह दिख रहा था और हर मसल्स पूरे आकार में।

वह आदमी अपने हाथ का इशारा मात्र करता और बाज के झुंड से सैडकों बाज अलग होकर उस बड़े से विशाल जीव के शरीर पर बैठकर, उसकी चमड़ी को भेद रहे थे। जहां भी बाज का झुंड बैठता, वहां 1,2 जलपड़ी जाकर खड़ी हो जाती। ऐसे ही कर के उस बड़े से जीव के बदन के अलग–अलग हिस्से पर बाज बैठा था और वहां 2–3 जलपड़ियां थी...

इवान:– साला यहां कोई हॉलीवुड फिल्म की शूटिंग तो नही चल रही। एक विशाल काल जीव कल्पना से पड़े। आकर्षक और मनमोहनी जलपाड़ियां जिसके बदन पर जरूरी अंग को थोड़ा सा ढकने मात्र के कपड़े पहने है। उनके बीच मस्कुलर बदन का एक आदमी जिसके शरीर के हर कट को गिना जा सकता था। और वो आदमी अलौकिक शक्तियों का मालिक जो बाज को कंट्रोल कर रहा है...

अलबेली:– इवान तुम्हारी इतनी बकवास में एक ही काम की चीज है। वो आदमी बाज को कंट्रोल कर रहा है। हां लेकिन वो बाज को कंट्रोल क्यों कर रहा और क्या मकसद हो सकता है उस जीव के शरीर पर बाज को बिठाने का?

आर्यमणि:– वो बाज से इलाज करवा रहा है।

दोनो एक साथ.… "क्या?"

आर्यमणि:– हां वो बाज से इलाज करवा रहा है। उस काल जीव के पेट में तेज पीड़ा है, शायद कुछ ऐसा खा लिया जो पचा नहीं और पेट में कहीं फसा है, जो मल द्वारा भी नही निकला। जिस कारण से उस जीव की पूरी लाइन ब्लॉक हो गई है। अंदर शायद काफी ज्यादा इन्फेक्शन भी हो.. वह काल जीव काफी ज्यादा इंफेक्टेड है..

इवान:– बॉस इतनी समीक्षा...

आर्यमणि:– बाज का एक झुंड उसके पेट में छेद कर चुका था। उसके अंदर से निकली जहरीली हवा के संपर्क मात्र से सभी मारे गये... और वो जीव थोड़ी राहत महसूस कर रहा था...

आर्यमणि बड़े ध्यान से सबकुछ होते देख रहा था, तभी उसकी नजरे किसी से उलझी। बड़ी तीखी नजर थी, नजर मिलने मात्र से ही दिमाग जैसे अंदर से जलने लगा हो। आर्यमणि विचलित होकर वहां से हटा। वह 5 कदम पीछे आया कि नीचे धम्म से गिड़ गया। अलबेली और इवान तुरंत आर्यमणि को संभालने पहुंचे, तभी उन्हे एहसास हुआ की आर्यमणि बहुत तकलीफ में है। ये बात शायद रूही ने भी महसूस किया, वो भी तुरंत वहां पहुंच चुकी थी।

तीनो आर्यमणि को उठाकर गुफा में ले आये और उसके हाथ को थाम आर्यमणि का दर्द खींचने लगे। लेकिन ऐसा लग रहा था जैस दर्द में कोई गिरावट ही नही हो रही है, बल्कि वक्त के साथ वो और भी बढ़ता जा रहा था। रूही के आंखों मे आंशु आ चले... "क्या हुआ आर्य को.. अचानक ऐसा क्या हुआ जो इनके शरीर का दर्द बढ़ता ही जा रहा है?"…

 

CFL7897

Be lazy
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Adventur journey ki shuruaat to Shandar Rahi...
Alpha pack ne Cruz ko chalane ka tarika sikhkar aur jo cru member the unko release kar Diye....

Yah Ek tarike se Alpha pack Ke Liye Hi Achcha tha Kyunki Kabhi Na Kabhi Inki sacchai Samne a jaati Bhale hi yah Unki Yadon ko Mita dete lekin ek sacchai khulne Ka Dar rahata Hai....

To Arya ka dusra Karan bhi hai island per aane ka vah Jal pariyon ko dhundhte Hue Yahan aaya hai aur Aakhir Mein vah unko Mil Bhi gai Do Ya Teen mahine ke bad..
Dekhte hain vah kalji kaun hai aur yah muscular body wala Jal para vah kya roll Nibhata hai Dushman Hai Ya dost.....
Shandar raha bhai...
 

shoby54

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भाग:–152


कुछ दूर आगे लगभग 1000 मीटर से जायदा गहराई का इतना बड़ा भंवर बना हुआ था जिसमे बड़े–बड़े 10 जहाज एक साथ दम तोड़ दे। और नजरें ऊपर जब गयी तो आगे और पीछे से एक साथ इतनी ऊंची लहर की दीवार दिख रही थी, जिसने महासागर के पानी को सीधा आकाश से ही मिला दिया था। दम साधे अपनी श्वांस रोककर पूरा अल्फा पैक ही हैरान थे।

ऐसा भयावाह नजारा था जिसे देखकर सभी के रौंगटे खड़े हो गये। रूही, इवान और अलबेली एक दूसरे के हाथ इस कदर मजबूती से थामे थे, मानो भयभीत करने वाले इस मंजर में एक दूसरे को हिम्मत दे रहे थे। वहीं आर्यमणि अपनी छाती चौड़ी किये क्रूज के छत पर खड़ा था। एक फिसलंदार सतह जो इतनी हिलती थी की उसपर पाऊं ही न जमा पाये, खड़े होना तो दूर की बात थी।

आर्यमणि ने क्रूज ठीक आगे निगलने वाले भंवर को देखा। उस भंवर के आगे खड़ा आसमान को छूते लहर को देखा। सिर्फ इतना ही नहीं मौत अपनी पूर्ण चपेट में लेने के लिये पीछे भी खड़ी थी। पीछे भी एक लहर आसमान को छू रही थी। आर्यमणि फिर भी निर्भीक खड़ा रहा। अपने एमुलेट को हाथ में थामकर इतनी तेज दहाड़ लगाया की उसके दहाड़ की भीषण कंपन में दोनो लहरें इस कदर गायब हो गयी मानो उसका अस्तित्व कभी था ही नही।

आर्यमणि दहाड़ लगाने के ठीक बाद छत से एक लंबी दौड़ लगाया और हवा में कई फिट ऊंचा छलांग लगा चुका था। रूही, अलबेली और इवान की नजर जब आर्यमणि पर गयी तीनो की ही श्वास पतली होने लगी। भीषण महासागर में बने भंवर के ऊपर उन्हे कण के बराबर का एक इंसान ही दिखा। समुद्री तूफान और भंवर के ठीक ऊपर हवा में था आर्यमणि। तेजी से नीचे गिड़कर आर्यमणि भंवर की गहराई में था। बड़ा सा गोल भंवर के ठीक बीच आर्यमणि फंसा था और गिरने के साथ ही उसने अपने अंदर की वह दहाड़ निकाली की भंवर की गहराई पूरे महासागर में फैल गयी।

कहां गया भंवर और उसके एक किलोमीटर की गहराई कुछ पता ही नही चला। बस क्रूज ने इतना तेज झटका खाया की रूही, अलबेली और इवान मुंह के बल गिर गये। सारी बाधाओं को ध्वस्त करने के बाद क्रूज एक बार फिर अपनी गति से आगे बढ़ी। लेकिन महासागर के इस हिस्से में जैसे पग–पग पर बाधायें बिछी हुई थी। आगे बढ़ते ही इतना तेज तूफान आया की उस तूफान ने पूरे क्रूज को ही सीधा खड़ा कर दिया। तिलिस्म सिर्फ इतना ही नहीं था, बल्कि तूफानी हवा ने जैसे ही क्रूज को खड़ा किया, वह पानी में डूबा नही बल्कि उसके नीचे का पूरा पानी ही गायब था।

महासागर जो कई किलोमीटर गहरी थी, उसका पानी गायब होते ही कई किलोमीटर की खाई बना चुकी थी और उस खाई में क्रूज बड़ी तेजी से गिड़ी। किंतु कई तरह के अभिमंत्रित मंत्र से बंधा यह क्रूज महासागर की गहराई में टकराने से पहले ही पानी के सतह पर एक बार फिर तैर रहा था। एक पल में गिर रहे थे अगले पल तैर रहे थे। जितनी भी तिलिस्मी बाधा थी, उन्हे काटते हुये क्रूज तेजी से आसानी से आगे बढ़ रही थी, बस अल्फा पैक कभी ऊपर तो कभी नीचे की दीवारों से टकरा रहे थे।

भोर हो रही थी। सूर्य अपनी लालिमा बिखेर रही थी। दूर–दूर तक दिख रहा महासागर शांत था। वहीं दूर महासागर के बीच ऊंचे पहाड़ जंगलों से घिरा एक टापू भी दिख रहा था। अल्फा पैक ने सभी बेहोश पड़े क्रू मेंबर के शरीर को हील करने के बाद उन्हे बिस्तर पर लिटा दिया। सारा काम समाप्त कर पूरा अल्फा पैक डेक पर आराम से बैठकर उगते सूरज का लुफ्त उठा रहे थे।

एक–एक करके सारे क्रू मेंबर जाग रहे थे और टापू को देखकर उतने ही खुश। कैप्टन भी वह अजूबा टापू देख रहा था, जिसकी कहानी बताने आज तक कोई जहाजी वापस नहीं लौटा। जागते ही उसने सबसे पहले अपने सिस्टम को ही चेक किया। लेकिन आश्चर्य तब हो गया जब रात के वक्त जिस जगह पर कैप्टन ने विश्राम करने का सोचा, उस से कुछ दूर आगे की फुटेज के बाद कुछ था ही नही। कितने नॉटिकल माइल क्रूज चल चुकी थी उसका भी ब्योरा नहीं। संपर्क प्रणाली तो सुचारू रूप से काम कर रही थी, लेकिन किसी भी पोर्ट पर संपर्क नही हो पा रहा था।

कप्तान, आर्यमणि के पास आकर अपनी कुर्सी लगाते.... “सर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि आपने सबको बेहोश करके महासागर का वह इलाका पार कर लिया, जहां महासागर प्रचंड हो जाता है। नेविगेशन कर रहे 2 सेलर अपने केबिन में मुझे सोए हुये मिले जिन्हे रात की कोई बात याद नही।”...

आर्यमणि:– कप्तान साहब आपको क्या लगता है, रात को क्या हुआ होगा?

कैप्टन:– बस उसी का तो अनुभव लेना था। उन रास्तों पर क्या हुआ था, उसकी तो कल्पना भी नहीं कर सकता।

आर्यमणि:– कुछ बातों की जिज्ञासा न हो तो ही बेहतर है। आप और पूरा क्रू मेरे साथ है इसलिए इस आइलैंड पर सब सुरक्षित है। आगे का संभालिये, देखिये हम इनगल्फ आइलैंड पहुंच चुके।

कैप्टन अपने केबिन में घुसे। वहां से सभी क्रू मेंबर को जरूरी दिशा निर्देश देने लगे। शिप के क्रू मेंबर शिप को उसकी सही जगह लगाने लगे, जबतक आर्यमणि जेट के पास पहुंचा।… "देखे इसे चलाया कैसे जा सकता है।"..

आर्यमणि ध्यान लगाने लगा। धीरे–धीरे यादों की गहराई में और वहां जेट उड़ाने के पहले दिन से लेकर आखरी दिन तक की याद थी। मुस्कुराते हुए आर्यमणि की आंखें खुली और जेट से वो आइलैंड के चक्कर लगाने लगा। तकरीबन 45 किलोमीटर में यह आइलैंड फैला था जिसमे विशाल जंगल और पहाड़ थे। क्षेत्रफल को लेकर आर्यमणि के मन में दुविधा जरूर हुई लेकिन इस बात को फिलहाल नजरंदाज करते अपने तंबू लगाने की जगह को उसने मार्क कर दिया। एक चक्कर काटने के बाद जेट क्रूज पर लैंड हो चुकी थी और आर्यमणि सीधा कैप्टन के पास पहुंचा।

कप्तान:– सर आपने कभी बताया नही की आप एक पायलट भी है।

आर्यमणि:– तुम कहो तो तुम्हे भी पायलट बना दे।

कप्तान:– फिर कभी सर... अभी हमारे लिये क्या ऑर्डर है..

आर्यमणि:– जैसा की आपको बताया गया है की ये सफर लंबा होने वाला है। इसलिए जबतक मेरा यहां काम खत्म नहीं हो जाता तबतक मैं यहां रुकने वाला हूं। टापू के एक मैदानी भाग के मैने मार्क कर दिया है जहां मैं सबके रहने का इंतजाम करता हूं। अभी के लिये आप अपने क्रू के साथ क्रूज में ही रहिए, और हमारे भीकल्स को किनारे उतारने का इंतजाम कीजिये। बाकी कोई इमरजेंसी हो तो वाकी से संपर्क कीजिएगा...

कप्तान, आर्यमणि के कहे अनुसार करने लगा। जिप लाइन जोड़ दी गई। मजबूत वायर जो 100 टन से ऊपर का वजन संभाल सकती थी। कार्गो पैकिंग में 2 मिनी–ट्रक थी, जो चारो ओर से चौड़ी पट्टियों में लिपटी थी। एक मजबूत एडवांस्ड मिलिट्री जीप के साथ पहाड़ी और जंगल में इस्तमाल होने वाली 3 बाइक थी।

हुक के सहारे फसाकर सभी गाड़ियों को किनारे तक पहुंचाया गया। क्रू मेंबर वहीं क्रूज में ही रुके बाकी गाड़ियों के साथ आर्यमणि चल पड़ा। किनारे से तकरीबन 6 किलोमीटर अंदर मार्क की हुई जगह पर सब पहुंचे। यह इस आइलैंड का मैदानी भाग था जहां 5–6 फीट का जंगली झाड़ उगा हुआ था।

बड़े–बड़े टूल बॉक्स जरूरत के कई समान लोड किये दोनो ट्रक को उस जगह तक पहुंचाया गया। अलबेली और इवान उस जगह के चारो ओर के झाड़ को साफ करने लगे, वहीं आर्यमणि बड़ी सी आड़ी लेकर जंगल में घुसा। वहां आर्यमणि सबसे बूढ़ा पेड़ ढूंढने लगा जिसकी स्वयं मृत्यु की इक्छा हो। 4 ऐसे मोटे वृक्ष मिल गए। आर्यमणि उन वृक्षों को काटना शुरू किया। शाम तक में 2 वृक्ष काट कर छोटे छोटे टुकड़ों में विभाजित कर चुका था।

आज का दिन खत्म हो रहा था, इसलिए आर्यमणि ने अपना काम रोक दिया। इधर अलबेली और इवान ने मिलकर मैदानी भाग के बड़े–बड़े झाड़ को साफ कर चुके थे, जहां इनका टेंट लगता। इन तीनों के अलावा रूही भी अपना काम कर रही थी। वह जंगल से कुछ खाने के लिए ढूंढ लाई। हां एक बात जो चारो के साथ हो रही थी, उस जगह कई तरह के जानवर थे, जो इनको देखकर रास्ता बदल लेते।

इवान और अलबेली का काम भी खत्म हो गया था। उन्होंने तो झाड़ के 8–10 पहाड़ खड़े कर दिये, जिन्हे सूखने के बाद इस्तमाल में लाया जाता। दोनो ने मिलकर लगभग 500 मीटर के इलाके को साफ कर चुके थे। देखने मे वह जगह काफी खूबसूरत लग रही थी। बीच में ही टेंट लग चुके थे और रूही आग पर तरह–तरह के खाने पका रही थी। इनके खाने में, जंगल से मिले कुछ बीज, नए तरह के फल और कुछ हरी पत्तियां थी।

पत्ती का सूप किसी आनंदमय भोजन से कम नही था। उसके अलावा उबले बीज स्वाद में काफी करवा था लेकिन फिर भी पोषण के लिए खा लिये। अगली सुबह से फिर इनका काम शुरू हो गया। कटे हुए पेड़ को छिलना उनसे चौड़े तख्ते निकलना। ये बात तो चारो को माननी पड़ी की लकड़ी छिलना और उनसे पल्ले निकलना बड़ा टेढ़ा काम था। लकड़ी के 2 मोटे सिल्ले को बर्बाद करने के बाद, तब कहीं जाकर समझ में आया की ढंग का पल्ला कैसे निकालते हैं। वो तो वहां 3 साल पढ़ी एक सिविल इंजीनियर रूही थी, जिसने अपने मजदूरों का मार्गदर्शन किया, तब जाकर सही से काम होना शुरू हुआ था। हां लेकिन अंत में वीडियो ट्यूटोरियल का सहारा लेना पड़ा था वो अलग बात थी।

काम करते हुये सबको 5 दिन हो चुके थे। लकड़ी के सैकड़ों पल्ले निकल चुके थे। छटे दिन से आर्यमणि लकड़ी के पल्ले निकालने का काम कर रहा था, इधर अलबेली और इवान कॉटेज के फाउंडेशन का काम कर रहे थे। ये लोग अपने काम में लगे हुये थे, जब एक घायल शेर उस मैदानी भाग में पहुंच गया।

धारियों को देखकर पता चल रहा था की ये कोई माउंटेन लायन है। शेर घायल जरूर था लेकिन जैसे ही चारो को देखा तेज दहाड़ लगा दिया। आर्यमणि उसके आंखों में झांका और वो शेर शांत होकर बैठ गया। चारो उसके पास पहुंचे। पेट के पास कटा हुआ था जिसका जख्म अंदर तक था। आर्यमणि फर्स्ट एड कीट निकाला। जख्म के हिस्से को चीरकर वहां का सारा मवाद निकाला और पट्टियां लगाकर उसे हील करने लगा। जैसे–जैसे शेर का दर्द गायब हो रहा था, सुकून से वो अपनी आंखें मूंदेने लगा। आर्यमणि जब अपना काम करके हटा, शेर फुर्ती से उठ खड़ा हुआ और अपनी खुशी की दहाड़ लगाकर वहां से भाग गया।

सभी लोग वापस से काम पर लौट गये। यूं तो रूही भी काम करना चाहती थी, पर उसकी परिस्थिति को देखते उसे बस खाना बनाना और झड़ने से पानी लाने का काम दिया गया था। 15 दिनों में वहां 5 बड़े से कॉटेज तैयार थे। प्राइवेसी के लिये कई पार्टीशन किये गये थे। मूलभूत सुविधा के साथ कॉटेज रहने के लिये तैयार था।

15 दिन बाद पूरे क्रू मेंबर को टापू पर बुलाया गया। जब वो लोग मैदानी भाग में आये जहां कॉटेज बना हुआ था, वो जगह देखकर दंग थे। पूरे रास्ते पर चलने के लिए पत्थर बिछा हुआ था। इलाके में बड़ी सी फेंसिंग की गई थी। इसी के साथ 5 कॉटेज एक निश्चित दूरी पर थे। कॉटेज के चारो ओर बागवानी के लिए जमीन छोड़ी गई थी और बाकी जगह पर पत्थर को खूबसूरती से बिछाकर फ्लोर बनाया गया था।

जगह इतनी खूबसूरत थी कि सबको पसंद आना ही था। क्रूज से घर की जरूरतों के सारे सामान लाये गये। हां लेकिन न तो आर्यमणि और न ही किसी को भी ये पता था की क्रू मेंबर अपने साथ हंटिंग का सामान भी लाये थे। और तो और किसी भी खूबसूरत सी दिखने वाली जगह पर जब रहने जाओ, तब पता चलता है कि वहां रहना कितना मुश्किल होता है।

जिस दिन सभी क्रू मेंबर को रहने बुलाया गया उसी शाम आर्यमणि ने बुलेट फायरिंग सुनी। फायरिंग जहां से हुई, वहां अलबेली और इवान तुरंत पहुंचे और लोगों शिकार करने से रोकने लगे। इस चक्कर में क्रूज के सिक्योरिटी गार्ड और इवान के बीच बहस भी हो गयी। बहस इतनी बढ़ गयी की सिक्योरिटी गार्ड अपने हाथ का राइफल इवान के ऊपर तान दिया। अलबेली तैश में आ गयी। उसने राइफल की नली को पकड़कर हवा में कर दी और खींचकर उस सिक्योरिटी गार्ड को तमाचा मारती.... “मजा आया... यदि और शिकार करने का भूत सवार हो तो बता देना, थप्पड़ मार–मार कर सबके गाल की चमड़ी निकाल दूंगी।”...

अलबेली के एक्शन पर बाकी के तीन सिक्योरिटी गार्ड अपने रिएक्शन देते उसके ओर लपके और वो तीनो भी इवान के हाथ का कड़क थप्पड़ खाकर शांत हो गये.... “मेरी बीवी ने बोल दिया न शिकार नही तो मतलब नहीं। हमसे उलझने की सोचना भी मत वरना गाल के साथ–साथ पूरे शरीर की चमड़ी उतार दूंगा।”...

इस एक छोटे से वार्निंग के बाद सबके दिमाग ठिकाने आ गये, लेकिन मन में भड़ास तो आ ही गयी थी। ऊपर से जब क्रू मेंबर के सामने उस जंगल की पत्तियों के सूप, उबले बीज और कसैला स्वाद वाला फल दिया गया, सबने खाने से इंकार कर दिया। उन्हे तो बस नमक मिर्च डालकर भुना मांस ही खाना था।

पहले ही रात में भयंकर गहमा–गहमी हो गयी। अगली सुबह तो और भी ज्यादा माहौल खराब हो गया, जब पानी के लिये इन्हें 5 किलोमीटर अंदर झरने तक जाना पड़ा। उसमे भी वो लोग झड़ने का पानी नहीं पीना चाहते थे। कुल मिलाकर एक दिन पहले उन्हे रहने बुलाया और अगले दिन ही सभा लग गयी, जहां पूरा क्रू वापस जाने की मांग करने लगे।

अब कर भी क्या सकते थे, अगली सुबह ही वो लोग मिनीजेट से न्यूजीलैंड रवाना होते। रात को चुपके से आर्यमणि भ्रमण पर निकला और क्रूज चलाने से लेकर नेविगेशन करना सब सीख गया। वहीं इंजन विभाग वाला काम रूही को दे दिया गया और वो क्रूज इंजन के बारे में पूरी जानकारी लेकर निकली। इलेक्ट्रिक इंजन और इलेक्ट्रिसिटी को देखने वाले जितने टेक्नीशियन थे, उनका काम इवान और अलबेली सीखकर निकले। अंत में सबने अपने ज्ञान को एक दूसरे से साझा किया और हंसते हुये सोने चल दिये।

अगली सुबह सबको लेकर मिनिजेट उड़ चला। उस आइलैंड के सबसे नजदीकी देश न्यूजीलैंड ही था, जहां उन सबको छोड़कर आर्यमणि वापस उस आइलैंड पर आ गया। न्यूजीलैंड गया तो रूही की डिमांड पर कई सारे चीजें लेकर भी आया। इतना सामान की पूरा जेट सामानो से भड़ा था। हां लेकिन केवल रूही के जरूरत का ही समान नही था, बल्कि कई और जरूरत की चीजें भी थी।

अब चूंकि 5 कॉटेज की जरूरत नही थी इसलिए आर्यमणि ने 2 कॉटेज को ही डिवेलप करने का सोचा। वैसे मसाला आ जाने के बाद खाने का जायका कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था। इस आइलैंड पर करने को बहुत कुछ था। सुबह 4 बजे सब जागकर ध्यान करते। जिसमे आर्यमणि को छोड़कर किसी को मजा नही आता। आर्यमणि जैसे ही ध्यान में जाता बाकी सभी सोने चले जाते।

फिर होता मंत्र उच्चारण। जिसे सब मना कर चुके थे, लेकिन आर्यमणि सबको जबरदस्ती मंत्र उच्चारण करने कहता। साथ ही साथ रूही के पेट पर प्यार से हाथ फेरते अपने होने वाले बच्चे को भी वो बहुत कुछ सिखाया करता था। दिन के समय चारो जंगल में निकलते। ये चारो का सबसे प्यारा काम था। जो दर्द में दिखे उनका दर्द दूर करना। फिर चाहे वो पेड़ हो या कोई शाकहारी या मांसहारी जानवर।

बड़े से फेंसिंग के अंदर उन्होंने भेड़ पालना शुरू किया। भेड़ के आ जाने से खाने पीने का मजा ही अलग हो गया। क्योंकि दूध की अब कोई कमी नही थी। हां लेकिन भेड़ का दूध पीकर रात को भेड़िए पागल हो जाते थे और सहवास के दौरान दोनो (आर्यमणि और इवान) इतने जोश में होते की रात को पूरा थक कर ही सोते थे।

जिस माउंटेन लायन की जान इन लोगों ने बचाई थी वह अक्सर इनके फेंस के पास दिख जाता। लायन के आते ही पालतू भेड़ में डर का माहोल पैदा हो जाता, लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ की शेर ने इन भेड़ पर हमला किया हो। फेंस के आगे धीरे–धीरे हर घायल जानवर का ठिकाना हो गया था। ऐसा लग रहा था जैसे वहां के जानवरों के लिये कोई डॉक्टर पहुंचा हो।



Mast update tha bhai.... acha huwa bhaga diye un crew members ko...
 

krish1152

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भाग:–152


कुछ दूर आगे लगभग 1000 मीटर से जायदा गहराई का इतना बड़ा भंवर बना हुआ था जिसमे बड़े–बड़े 10 जहाज एक साथ दम तोड़ दे। और नजरें ऊपर जब गयी तो आगे और पीछे से एक साथ इतनी ऊंची लहर की दीवार दिख रही थी, जिसने महासागर के पानी को सीधा आकाश से ही मिला दिया था। दम साधे अपनी श्वांस रोककर पूरा अल्फा पैक ही हैरान थे।

ऐसा भयावाह नजारा था जिसे देखकर सभी के रौंगटे खड़े हो गये। रूही, इवान और अलबेली एक दूसरे के हाथ इस कदर मजबूती से थामे थे, मानो भयभीत करने वाले इस मंजर में एक दूसरे को हिम्मत दे रहे थे। वहीं आर्यमणि अपनी छाती चौड़ी किये क्रूज के छत पर खड़ा था। एक फिसलंदार सतह जो इतनी हिलती थी की उसपर पाऊं ही न जमा पाये, खड़े होना तो दूर की बात थी।

आर्यमणि ने क्रूज ठीक आगे निगलने वाले भंवर को देखा। उस भंवर के आगे खड़ा आसमान को छूते लहर को देखा। सिर्फ इतना ही नहीं मौत अपनी पूर्ण चपेट में लेने के लिये पीछे भी खड़ी थी। पीछे भी एक लहर आसमान को छू रही थी। आर्यमणि फिर भी निर्भीक खड़ा रहा। अपने एमुलेट को हाथ में थामकर इतनी तेज दहाड़ लगाया की उसके दहाड़ की भीषण कंपन में दोनो लहरें इस कदर गायब हो गयी मानो उसका अस्तित्व कभी था ही नही।

आर्यमणि दहाड़ लगाने के ठीक बाद छत से एक लंबी दौड़ लगाया और हवा में कई फिट ऊंचा छलांग लगा चुका था। रूही, अलबेली और इवान की नजर जब आर्यमणि पर गयी तीनो की ही श्वास पतली होने लगी। भीषण महासागर में बने भंवर के ऊपर उन्हे कण के बराबर का एक इंसान ही दिखा। समुद्री तूफान और भंवर के ठीक ऊपर हवा में था आर्यमणि। तेजी से नीचे गिड़कर आर्यमणि भंवर की गहराई में था। बड़ा सा गोल भंवर के ठीक बीच आर्यमणि फंसा था और गिरने के साथ ही उसने अपने अंदर की वह दहाड़ निकाली की भंवर की गहराई पूरे महासागर में फैल गयी।

कहां गया भंवर और उसके एक किलोमीटर की गहराई कुछ पता ही नही चला। बस क्रूज ने इतना तेज झटका खाया की रूही, अलबेली और इवान मुंह के बल गिर गये। सारी बाधाओं को ध्वस्त करने के बाद क्रूज एक बार फिर अपनी गति से आगे बढ़ी। लेकिन महासागर के इस हिस्से में जैसे पग–पग पर बाधायें बिछी हुई थी। आगे बढ़ते ही इतना तेज तूफान आया की उस तूफान ने पूरे क्रूज को ही सीधा खड़ा कर दिया। तिलिस्म सिर्फ इतना ही नहीं था, बल्कि तूफानी हवा ने जैसे ही क्रूज को खड़ा किया, वह पानी में डूबा नही बल्कि उसके नीचे का पूरा पानी ही गायब था।

महासागर जो कई किलोमीटर गहरी थी, उसका पानी गायब होते ही कई किलोमीटर की खाई बना चुकी थी और उस खाई में क्रूज बड़ी तेजी से गिड़ी। किंतु कई तरह के अभिमंत्रित मंत्र से बंधा यह क्रूज महासागर की गहराई में टकराने से पहले ही पानी के सतह पर एक बार फिर तैर रहा था। एक पल में गिर रहे थे अगले पल तैर रहे थे। जितनी भी तिलिस्मी बाधा थी, उन्हे काटते हुये क्रूज तेजी से आसानी से आगे बढ़ रही थी, बस अल्फा पैक कभी ऊपर तो कभी नीचे की दीवारों से टकरा रहे थे।

भोर हो रही थी। सूर्य अपनी लालिमा बिखेर रही थी। दूर–दूर तक दिख रहा महासागर शांत था। वहीं दूर महासागर के बीच ऊंचे पहाड़ जंगलों से घिरा एक टापू भी दिख रहा था। अल्फा पैक ने सभी बेहोश पड़े क्रू मेंबर के शरीर को हील करने के बाद उन्हे बिस्तर पर लिटा दिया। सारा काम समाप्त कर पूरा अल्फा पैक डेक पर आराम से बैठकर उगते सूरज का लुफ्त उठा रहे थे।

एक–एक करके सारे क्रू मेंबर जाग रहे थे और टापू को देखकर उतने ही खुश। कैप्टन भी वह अजूबा टापू देख रहा था, जिसकी कहानी बताने आज तक कोई जहाजी वापस नहीं लौटा। जागते ही उसने सबसे पहले अपने सिस्टम को ही चेक किया। लेकिन आश्चर्य तब हो गया जब रात के वक्त जिस जगह पर कैप्टन ने विश्राम करने का सोचा, उस से कुछ दूर आगे की फुटेज के बाद कुछ था ही नही। कितने नॉटिकल माइल क्रूज चल चुकी थी उसका भी ब्योरा नहीं। संपर्क प्रणाली तो सुचारू रूप से काम कर रही थी, लेकिन किसी भी पोर्ट पर संपर्क नही हो पा रहा था।

कप्तान, आर्यमणि के पास आकर अपनी कुर्सी लगाते.... “सर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि आपने सबको बेहोश करके महासागर का वह इलाका पार कर लिया, जहां महासागर प्रचंड हो जाता है। नेविगेशन कर रहे 2 सेलर अपने केबिन में मुझे सोए हुये मिले जिन्हे रात की कोई बात याद नही।”...

आर्यमणि:– कप्तान साहब आपको क्या लगता है, रात को क्या हुआ होगा?

कैप्टन:– बस उसी का तो अनुभव लेना था। उन रास्तों पर क्या हुआ था, उसकी तो कल्पना भी नहीं कर सकता।

आर्यमणि:– कुछ बातों की जिज्ञासा न हो तो ही बेहतर है। आप और पूरा क्रू मेरे साथ है इसलिए इस आइलैंड पर सब सुरक्षित है। आगे का संभालिये, देखिये हम इनगल्फ आइलैंड पहुंच चुके।

कैप्टन अपने केबिन में घुसे। वहां से सभी क्रू मेंबर को जरूरी दिशा निर्देश देने लगे। शिप के क्रू मेंबर शिप को उसकी सही जगह लगाने लगे, जबतक आर्यमणि जेट के पास पहुंचा।… "देखे इसे चलाया कैसे जा सकता है।"..

आर्यमणि ध्यान लगाने लगा। धीरे–धीरे यादों की गहराई में और वहां जेट उड़ाने के पहले दिन से लेकर आखरी दिन तक की याद थी। मुस्कुराते हुए आर्यमणि की आंखें खुली और जेट से वो आइलैंड के चक्कर लगाने लगा। तकरीबन 45 किलोमीटर में यह आइलैंड फैला था जिसमे विशाल जंगल और पहाड़ थे। क्षेत्रफल को लेकर आर्यमणि के मन में दुविधा जरूर हुई लेकिन इस बात को फिलहाल नजरंदाज करते अपने तंबू लगाने की जगह को उसने मार्क कर दिया। एक चक्कर काटने के बाद जेट क्रूज पर लैंड हो चुकी थी और आर्यमणि सीधा कैप्टन के पास पहुंचा।

कप्तान:– सर आपने कभी बताया नही की आप एक पायलट भी है।

आर्यमणि:– तुम कहो तो तुम्हे भी पायलट बना दे।

कप्तान:– फिर कभी सर... अभी हमारे लिये क्या ऑर्डर है..

आर्यमणि:– जैसा की आपको बताया गया है की ये सफर लंबा होने वाला है। इसलिए जबतक मेरा यहां काम खत्म नहीं हो जाता तबतक मैं यहां रुकने वाला हूं। टापू के एक मैदानी भाग के मैने मार्क कर दिया है जहां मैं सबके रहने का इंतजाम करता हूं। अभी के लिये आप अपने क्रू के साथ क्रूज में ही रहिए, और हमारे भीकल्स को किनारे उतारने का इंतजाम कीजिये। बाकी कोई इमरजेंसी हो तो वाकी से संपर्क कीजिएगा...

कप्तान, आर्यमणि के कहे अनुसार करने लगा। जिप लाइन जोड़ दी गई। मजबूत वायर जो 100 टन से ऊपर का वजन संभाल सकती थी। कार्गो पैकिंग में 2 मिनी–ट्रक थी, जो चारो ओर से चौड़ी पट्टियों में लिपटी थी। एक मजबूत एडवांस्ड मिलिट्री जीप के साथ पहाड़ी और जंगल में इस्तमाल होने वाली 3 बाइक थी।

हुक के सहारे फसाकर सभी गाड़ियों को किनारे तक पहुंचाया गया। क्रू मेंबर वहीं क्रूज में ही रुके बाकी गाड़ियों के साथ आर्यमणि चल पड़ा। किनारे से तकरीबन 6 किलोमीटर अंदर मार्क की हुई जगह पर सब पहुंचे। यह इस आइलैंड का मैदानी भाग था जहां 5–6 फीट का जंगली झाड़ उगा हुआ था।

बड़े–बड़े टूल बॉक्स जरूरत के कई समान लोड किये दोनो ट्रक को उस जगह तक पहुंचाया गया। अलबेली और इवान उस जगह के चारो ओर के झाड़ को साफ करने लगे, वहीं आर्यमणि बड़ी सी आड़ी लेकर जंगल में घुसा। वहां आर्यमणि सबसे बूढ़ा पेड़ ढूंढने लगा जिसकी स्वयं मृत्यु की इक्छा हो। 4 ऐसे मोटे वृक्ष मिल गए। आर्यमणि उन वृक्षों को काटना शुरू किया। शाम तक में 2 वृक्ष काट कर छोटे छोटे टुकड़ों में विभाजित कर चुका था।

आज का दिन खत्म हो रहा था, इसलिए आर्यमणि ने अपना काम रोक दिया। इधर अलबेली और इवान ने मिलकर मैदानी भाग के बड़े–बड़े झाड़ को साफ कर चुके थे, जहां इनका टेंट लगता। इन तीनों के अलावा रूही भी अपना काम कर रही थी। वह जंगल से कुछ खाने के लिए ढूंढ लाई। हां एक बात जो चारो के साथ हो रही थी, उस जगह कई तरह के जानवर थे, जो इनको देखकर रास्ता बदल लेते।

इवान और अलबेली का काम भी खत्म हो गया था। उन्होंने तो झाड़ के 8–10 पहाड़ खड़े कर दिये, जिन्हे सूखने के बाद इस्तमाल में लाया जाता। दोनो ने मिलकर लगभग 500 मीटर के इलाके को साफ कर चुके थे। देखने मे वह जगह काफी खूबसूरत लग रही थी। बीच में ही टेंट लग चुके थे और रूही आग पर तरह–तरह के खाने पका रही थी। इनके खाने में, जंगल से मिले कुछ बीज, नए तरह के फल और कुछ हरी पत्तियां थी।

पत्ती का सूप किसी आनंदमय भोजन से कम नही था। उसके अलावा उबले बीज स्वाद में काफी करवा था लेकिन फिर भी पोषण के लिए खा लिये। अगली सुबह से फिर इनका काम शुरू हो गया। कटे हुए पेड़ को छिलना उनसे चौड़े तख्ते निकलना। ये बात तो चारो को माननी पड़ी की लकड़ी छिलना और उनसे पल्ले निकलना बड़ा टेढ़ा काम था। लकड़ी के 2 मोटे सिल्ले को बर्बाद करने के बाद, तब कहीं जाकर समझ में आया की ढंग का पल्ला कैसे निकालते हैं। वो तो वहां 3 साल पढ़ी एक सिविल इंजीनियर रूही थी, जिसने अपने मजदूरों का मार्गदर्शन किया, तब जाकर सही से काम होना शुरू हुआ था। हां लेकिन अंत में वीडियो ट्यूटोरियल का सहारा लेना पड़ा था वो अलग बात थी।

काम करते हुये सबको 5 दिन हो चुके थे। लकड़ी के सैकड़ों पल्ले निकल चुके थे। छटे दिन से आर्यमणि लकड़ी के पल्ले निकालने का काम कर रहा था, इधर अलबेली और इवान कॉटेज के फाउंडेशन का काम कर रहे थे। ये लोग अपने काम में लगे हुये थे, जब एक घायल शेर उस मैदानी भाग में पहुंच गया।

धारियों को देखकर पता चल रहा था की ये कोई माउंटेन लायन है। शेर घायल जरूर था लेकिन जैसे ही चारो को देखा तेज दहाड़ लगा दिया। आर्यमणि उसके आंखों में झांका और वो शेर शांत होकर बैठ गया। चारो उसके पास पहुंचे। पेट के पास कटा हुआ था जिसका जख्म अंदर तक था। आर्यमणि फर्स्ट एड कीट निकाला। जख्म के हिस्से को चीरकर वहां का सारा मवाद निकाला और पट्टियां लगाकर उसे हील करने लगा। जैसे–जैसे शेर का दर्द गायब हो रहा था, सुकून से वो अपनी आंखें मूंदेने लगा। आर्यमणि जब अपना काम करके हटा, शेर फुर्ती से उठ खड़ा हुआ और अपनी खुशी की दहाड़ लगाकर वहां से भाग गया।

सभी लोग वापस से काम पर लौट गये। यूं तो रूही भी काम करना चाहती थी, पर उसकी परिस्थिति को देखते उसे बस खाना बनाना और झड़ने से पानी लाने का काम दिया गया था। 15 दिनों में वहां 5 बड़े से कॉटेज तैयार थे। प्राइवेसी के लिये कई पार्टीशन किये गये थे। मूलभूत सुविधा के साथ कॉटेज रहने के लिये तैयार था।

15 दिन बाद पूरे क्रू मेंबर को टापू पर बुलाया गया। जब वो लोग मैदानी भाग में आये जहां कॉटेज बना हुआ था, वो जगह देखकर दंग थे। पूरे रास्ते पर चलने के लिए पत्थर बिछा हुआ था। इलाके में बड़ी सी फेंसिंग की गई थी। इसी के साथ 5 कॉटेज एक निश्चित दूरी पर थे। कॉटेज के चारो ओर बागवानी के लिए जमीन छोड़ी गई थी और बाकी जगह पर पत्थर को खूबसूरती से बिछाकर फ्लोर बनाया गया था।

जगह इतनी खूबसूरत थी कि सबको पसंद आना ही था। क्रूज से घर की जरूरतों के सारे सामान लाये गये। हां लेकिन न तो आर्यमणि और न ही किसी को भी ये पता था की क्रू मेंबर अपने साथ हंटिंग का सामान भी लाये थे। और तो और किसी भी खूबसूरत सी दिखने वाली जगह पर जब रहने जाओ, तब पता चलता है कि वहां रहना कितना मुश्किल होता है।

जिस दिन सभी क्रू मेंबर को रहने बुलाया गया उसी शाम आर्यमणि ने बुलेट फायरिंग सुनी। फायरिंग जहां से हुई, वहां अलबेली और इवान तुरंत पहुंचे और लोगों शिकार करने से रोकने लगे। इस चक्कर में क्रूज के सिक्योरिटी गार्ड और इवान के बीच बहस भी हो गयी। बहस इतनी बढ़ गयी की सिक्योरिटी गार्ड अपने हाथ का राइफल इवान के ऊपर तान दिया। अलबेली तैश में आ गयी। उसने राइफल की नली को पकड़कर हवा में कर दी और खींचकर उस सिक्योरिटी गार्ड को तमाचा मारती.... “मजा आया... यदि और शिकार करने का भूत सवार हो तो बता देना, थप्पड़ मार–मार कर सबके गाल की चमड़ी निकाल दूंगी।”...

अलबेली के एक्शन पर बाकी के तीन सिक्योरिटी गार्ड अपने रिएक्शन देते उसके ओर लपके और वो तीनो भी इवान के हाथ का कड़क थप्पड़ खाकर शांत हो गये.... “मेरी बीवी ने बोल दिया न शिकार नही तो मतलब नहीं। हमसे उलझने की सोचना भी मत वरना गाल के साथ–साथ पूरे शरीर की चमड़ी उतार दूंगा।”...

इस एक छोटे से वार्निंग के बाद सबके दिमाग ठिकाने आ गये, लेकिन मन में भड़ास तो आ ही गयी थी। ऊपर से जब क्रू मेंबर के सामने उस जंगल की पत्तियों के सूप, उबले बीज और कसैला स्वाद वाला फल दिया गया, सबने खाने से इंकार कर दिया। उन्हे तो बस नमक मिर्च डालकर भुना मांस ही खाना था।

पहले ही रात में भयंकर गहमा–गहमी हो गयी। अगली सुबह तो और भी ज्यादा माहौल खराब हो गया, जब पानी के लिये इन्हें 5 किलोमीटर अंदर झरने तक जाना पड़ा। उसमे भी वो लोग झड़ने का पानी नहीं पीना चाहते थे। कुल मिलाकर एक दिन पहले उन्हे रहने बुलाया और अगले दिन ही सभा लग गयी, जहां पूरा क्रू वापस जाने की मांग करने लगे।

अब कर भी क्या सकते थे, अगली सुबह ही वो लोग मिनीजेट से न्यूजीलैंड रवाना होते। रात को चुपके से आर्यमणि भ्रमण पर निकला और क्रूज चलाने से लेकर नेविगेशन करना सब सीख गया। वहीं इंजन विभाग वाला काम रूही को दे दिया गया और वो क्रूज इंजन के बारे में पूरी जानकारी लेकर निकली। इलेक्ट्रिक इंजन और इलेक्ट्रिसिटी को देखने वाले जितने टेक्नीशियन थे, उनका काम इवान और अलबेली सीखकर निकले। अंत में सबने अपने ज्ञान को एक दूसरे से साझा किया और हंसते हुये सोने चल दिये।

अगली सुबह सबको लेकर मिनिजेट उड़ चला। उस आइलैंड के सबसे नजदीकी देश न्यूजीलैंड ही था, जहां उन सबको छोड़कर आर्यमणि वापस उस आइलैंड पर आ गया। न्यूजीलैंड गया तो रूही की डिमांड पर कई सारे चीजें लेकर भी आया। इतना सामान की पूरा जेट सामानो से भड़ा था। हां लेकिन केवल रूही के जरूरत का ही समान नही था, बल्कि कई और जरूरत की चीजें भी थी।

अब चूंकि 5 कॉटेज की जरूरत नही थी इसलिए आर्यमणि ने 2 कॉटेज को ही डिवेलप करने का सोचा। वैसे मसाला आ जाने के बाद खाने का जायका कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था। इस आइलैंड पर करने को बहुत कुछ था। सुबह 4 बजे सब जागकर ध्यान करते। जिसमे आर्यमणि को छोड़कर किसी को मजा नही आता। आर्यमणि जैसे ही ध्यान में जाता बाकी सभी सोने चले जाते।

फिर होता मंत्र उच्चारण। जिसे सब मना कर चुके थे, लेकिन आर्यमणि सबको जबरदस्ती मंत्र उच्चारण करने कहता। साथ ही साथ रूही के पेट पर प्यार से हाथ फेरते अपने होने वाले बच्चे को भी वो बहुत कुछ सिखाया करता था। दिन के समय चारो जंगल में निकलते। ये चारो का सबसे प्यारा काम था। जो दर्द में दिखे उनका दर्द दूर करना। फिर चाहे वो पेड़ हो या कोई शाकहारी या मांसहारी जानवर।

बड़े से फेंसिंग के अंदर उन्होंने भेड़ पालना शुरू किया। भेड़ के आ जाने से खाने पीने का मजा ही अलग हो गया। क्योंकि दूध की अब कोई कमी नही थी। हां लेकिन भेड़ का दूध पीकर रात को भेड़िए पागल हो जाते थे और सहवास के दौरान दोनो (आर्यमणि और इवान) इतने जोश में होते की रात को पूरा थक कर ही सोते थे।

जिस माउंटेन लायन की जान इन लोगों ने बचाई थी वह अक्सर इनके फेंस के पास दिख जाता। लायन के आते ही पालतू भेड़ में डर का माहोल पैदा हो जाता, लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ की शेर ने इन भेड़ पर हमला किया हो। फेंस के आगे धीरे–धीरे हर घायल जानवर का ठिकाना हो गया था। ऐसा लग रहा था जैसे वहां के जानवरों के लिये कोई डॉक्टर पहुंचा हो।
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भाग:–153


दिन बहुत शानदार कट रहे थे। जिस उद्देश्य से आर्यमणि आइलैंड पहुंचा था उसे पूरा करने में लगा हुआ था। अपने साथ–साथ अल्फा पैक को भी एक स्तर ऊंचा प्रशिक्षित कर रहा था। हफ्ते में एक दिन एमुलेट परीक्षण भी करते। जितने प्रकार के पत्थर लगे हुये थे उनके अच्छे और बुरे प्रभावों का मूल्यांकन भी जारी था। सब कुछ अपनी जगह पर बिलकुल सही तरीके से आगे बढ़ रहा था।

किंतु जिस जिज्ञासा में आर्यमणि यहां आया था, वो अब तक पूरा नहीं हुआ था। आर्यमणि जब अपने बचपन से दादा जी की यादें ले रहा था, तब उसे एक पुराना किस्सा याद आया जो आर्यमणि को काफी आकर्षित करती थी... जलपड़िया। आर्यमणि के दादा जी अक्सर इसी आइलैंड का जिक्र करते, जिसके तट पर जलपड़ियां आती थी। आर्यमणि रोज रात को एक बार समुद्र किनारे जाता और निराश होकर लौट आता।

अल्फा पैक को आये लगभग 2 महीने बीत चुके थे। रूही लगभग 3 मंथ की प्रेगनेंट थी। अब उसका पेट बाहर आने लगा था। आर्यमणि, अलबेली और इवान तीनो ही उसका पूरा ख्याल रखते थे। एक दिन आर्यमणि ने खुद ही कहा की, यदि तीनो (रूही, इवान और अलबेली) चाहे तो मछली या फिर भेड़ का मांस खा सकते है। अजीब सी हंसी के साथ रूही भी प्रतिक्रिया देती हुई भेंड़ के विषय में कहने लगी... "जिसे पाला हो उसे ही खाने कह रहे। वैसे भी अब तो कभी ख्यालों में भी नॉन वेज नही आता।"…

आर्यमणि मुस्कुराते हुये रूही के बात का अभिवादन किया। इसी बीच एक दिन सभी बैठे थे, तभी रूही, अलबेली से उसके प्रेगनेंसी के बारे में पूछने लगी। अलबेली शर्माती हुई... "क्या तुम भी भाभी" कहने लगी.. फिर तो रूही का जो ही छेड़ना शुरू हुआ... "रात को तो पूरा कॉटेज हिलता रहता है, फिर भी रिजल्ट नही आया"..

अलबेली:– रिजल्ट अभी नही आयेगा... इतनी जल्दी बच्चा क्यों, अभी मेरी उम्र ही क्या है...

रूही:– हां ये तो सही है... नही लेकिन फिर भी... लास्ट मोमेंट पर करते क्या हो..

अलबेली चिढ़ती हुई.… "मेरे मुंह पर छींटे उड़ा देता है। आज कल बॉस भी तो यही करते होंगे। क्योंकि अंदरूनी मामले पर तो प्रतिबंध लगा हुआ होगा न"..

रूही:– कहां रे… बर्दास्त ही नही होता.. अंदर डाले बिना मानते ही नही..

अलबेली:– वो नही मानते या तुमसे ही बर्दास्त नही होता...

दोनो के बीच शीत युद्ध तब तक चलता रहा जब तक की वहां इवान और आर्यमणि नही आ गया। दोनो पहुंचते ही कहने लगे... "आज छोटी बोट में समुद्र घूमने चलेंगे"…

अलबेली:– नही बोट बहुत ही ऊपर उछाल मारती है, भाभी को परेशानी होगी...

रूही:– अरे दिल छोटा न करो... हम क्रूज लेकर चलते हैं न.. वहीं बीच में तुम लोग थोड़ा बोट से भी घूम लेना..

इवान:– ग्रेट आइडिया दीदी। और आज रात क्रूज में ही बिताएंगे..

सब लोगों की सहमति हो गयी... क्रूज का लंगर उठाया गया। इंजन स्टार्ट और चल पड़े सब तफरी पर। 20 नॉटिकल माइल की दूरी तय करने बाद क्रूज को धीमा कर दिया गया और छोटी बोट पानी में उतारी गई। आर्यमणि और इवान बोट में सवार होकर वहीं घूमने लगे। उनके बोट के साथ साथ कई डॉल्फिन उछलती हुई तैर रही थी। काफी खूबसूरत नजारा था। रूही और अलबेली दोनो क्रूज के किनारे पर बैठकर यह खूबसूरत दृश्य देख रही थी। दिन ढलने को आया था। सूरज की लालिमा चारो ओर के नजारे को और भी खूबसूरत बना रही थी। रूही हाथ के इशारे से दोनो को वापस बुलाने लगी।

लौटते ही आर्यमणि ने क्रूज को वापस आइलैंड की ओर घुमाया और सबके साथ आकर डूबते सूरज को देखने का रोमांच लेने लगा। लेकिन उनके इस रोमांच में आसमानी चीते यानी की बाज ने आकर खलल डाल दिया। पता नही कहां से और कितनी तेजी में आये, लेकिन जब वो आये तो आसमान को ढक दिया। आमुमन बाज अकेले ही शिकार करते है लेकिन यहां तो, 1 नही, 10 नही, 100 नही, 1000 नही, लगभग 10000 से भी ज्यादा की संख्या में बाज थे।

बाज काफी तेजी से उड़ते हुए आइलैंड के ओर बढ़ रहे थे। उनकी इतनी तादात देखकर, आर्यमणि ने सबको खुले से हटने का इशारा किया। ये लोग डेक एरिया से हटकर जैसे ही अंदर घुसकर दरवाजा बंद किये, दरवाजे पर ही कई बाज हमला करने लगे। लेकिन ऐसा लग रहा था कि आर्यमणि और उसका पैक मुख्य शिकार नही थे, इसलिए कुछ देर की नाकाम कोशिश के बाद वो सब वापस झुंड में चले गये.…

"बाप रे हम वेयरवुल्फ को भी भयभीत कर गये ये बाज। मेरा कलेजा तो अब भी धक–धक कर रहा है"… रूही पानी का घूंट लेती हुई कहने लगी...

अलबेली:– बॉस हमे खतरे का आभाष नही हुआ लेकिन आप कैसे भांप गये...

आर्यमणि:– पता नही... बाज की इतनी संख्या देखकर अंदर से भय जैसा लगा... लेकिन ये बाज इतनी संख्या में आइलैंड पर जा क्यों रहे थे? क्या ये हम पर हमला करते...

इवान:– बाज अकेला शिकारी होता है। जितनी इनकी संख्या थी उस हिसाब तो ये आइलैंड का पूरा जंगल साफ कर देंगे...

आर्यमणि:– हां लेकिन सोचने वाली बात तो ये भी है कि उस जंगल में तो बाज को बहुत सारे शिकर मिलेंगे। यदि शिकारी पक्षी और शिकार के बीच में कोई रोड़ा डालने आये, फिर तो बाज पहले रोड़ा डालने वाले निपटेगा। यहां तो बाज इतनी ज्यादा संख्या में है कि एक शिकार के पीछे कई बाज एक–दूसरे से लड़ ले।

अलबेली:– बॉस क्या लगता है, क्या हो सकता है? किसी प्रकार का तिलिस्म तो नही?

आर्यमणि क्रूज के 360⁰ एंगल कैमरे को बाज के उड़ने की दिशा में करते... "ये बाज हमारे जंगल या मैदानी भाग में नही रुक रहे बल्कि पहाड़ के उस पार का जो इलाका है.. आइलैंड का दूसरा हिस्सा उस ओर जा रहे”...

अलबेली:– वहां ऐसा कौन सा शिकार होगा जो इतने बाज एक साथ जा रहे... कोई जंग तो नही हो रही.. बाज और किसी अन्य जीव में..

आर्यमणि:– ये तो वहीं जाकर पता चलेगा...

रूही:– वहां जाने की सोचना भी मत… समझे तुम.. आज इस क्रूज से कोई बाहर नहीं जायेगा... जंजीरों में आर्यमणि को जकड़ दो...

आर्यमणि:– सर पर आग लेकर जाऊंगा.. कुछ नही होगा..

रूही:– हां तो जब इतना विश्वास है तो मैं भी साथ चलूंगी...

"मैं भी" "मैं भी"… साथ में इवान और अलबेली भी कहने लगे...

क्रूज को सही जगह लगाकर, सभी लंगर गिड़ा दिये। चारो तेजी से अपने आशियाने के ओर भागे और सीधे अपने–अपने बाइक निकाल लिये। सभी जंगल को लांघकर पहाड़ तक पहुंचे और पहाड़ के संकड़े रास्ते से ऊपर चढ़ने लगे। कुछ दूर आगे बढ़े थे, तभी सामने शेर आ गया। ऐसे खड़ा था मानो रास्ता रोक रहा हो। आर्यमणि एक्सीलरेटर दबाकर जैसे ही थोड़ा आगे बढ़ता, शेर अपना पंजा उठाकर मानो पीछे जाने कह रहा था।

आर्यमणि बाइक से नीचे उतरकर, शेर के सामने आया, और नीचे बैठ कर उस से नजरे मिलाने लगा। ऐसा लगा मानो शेर उस ओर जाने से मना कर रहा था। आर्यमणि भी सवालिया नजरों से शेर को ऐसे देखा मानो पूछने की कोशिश कर रहा हो क्यों... शेर आर्यमणि का रास्ता छोड़ पहाड़ के बीच से चढ़ाई वाले रास्ते पर जाने लगा। आर्यमणि रुक कर समझने की कोशिश कर ही रहा था कि तभी शेर रुककर एक बार पीछे मुड़ा और आर्यमणि को देखकर दहाड़ा।

आर्यमणि:– बाइक यहीं खड़ी कर दो, और मशाल लेकर शेर के पीछे चलो...

अलबेली:– बॉस लेकिन दीदी इस हालत में चढ़ाई कैसे करेगी...

आर्यमणि, रूही को अपने गोद में उठाते... "अब ठीक है ना"…

सभी शेर के पीछे चल दिए। 2 पहाड़ियों के बीच से यह छोटा रास्ता था जो तकरीबन 1500 से 1600 फिट ऊपर तक जाता था। काफी उबर–खाबर और हल्की स्लोपिंग वाला रास्ता था, जो चढ़ने में काफी आसान था।

तकरीबन 500 फिट चढ़ने के बाद चट्टानों के बीच शेर का पूरा एक झुंड बैठा हुआ था। जैसे ही अपने इलाके में उन्हे वेयरवुल्फ की गंध लगी, सभी उठ खड़े हुए। तभी वो शेर आर्यमणि के साथ खड़ा हुआ जो ठीक सामने वाले शेर के झुंड के सामने था।

आर्यमणि के साथ खड़े होकर वह शेर गुर्राया, और पूरा झुंड ही शांत हो गया। एक बार फिर वह शेर आगे बढ़ा, मानो अपने पीछे आने कह रहा हो। सभी उसके पीछे चल दिये। वह शेर उन्ही चट्टानों के बीच बनी एक गुफा में घुसा। उस गुफा में एक शेरनी लेटी हुई थी। आंखों के नीचे से जैसे आंसू निकल रहे हो और आस पास 2–3 शेर के बच्चे बार–बार उसके पेट में अपना सर घुसाकर उसे उठाने की कोशिश कर रहे थे।

रूही उस शेरनी के पास पहुंचकर जैसे ही उसके पेट पर हाथ दी, वह शेरनी तेज गुर्राई... "आर्य, बहुत दर्द में है।".. रूही अपनी बात कहकर उसका दर्द अपनी हथेली में समेटने लगी। आर्यमणि उसके पास पहुंचकर देखा। गर्दन के पास बड़ा सा जख्म था। आर्यमणि ने तुरंत इवान को बैग के साथ गरम पानी लाने के लिए भी बोल दिया।

सारा सामान आ जाने के बाद आर्यमणि ने उस शेरनी का उपचार शुरू कर दिया। लगभग 15 मिनट लगे होंगे, उसके घाव को चिड़कर मवाद निकलने और पट्टियां लगाकर हील करने में। 15 मिनट बाद वो शेरनी उठ खड़ी हुई। पहले तो वो अपने बच्चे से लाड़ प्यार जताई फिर रूही के सामने आकर, उसके पेट में अपना सर इतने प्यार से छू, मानो उसके पेट को स्पर्श कर रही हो।..

आर्यमणि:– रूही पेट से अपना कपड़े ऊपर करो..

आर्यमणि की बात मानकर जैसे ही रूही ने कपड़ा ऊपर किया, वह शेरनी अपने पूरे पंजे से रूही के पेट को स्पर्श की। उस वक्त उस शेरनी के चेहरे के भाव ऐसे थे, मानो वो गर्भ में पल रहे बच्चे को महसूस कर मुस्कुरा रही हो। उसे अपने अंतरात्मा से आशीर्वाद दे रही थी। और जब वो शेरनी अपना पंजा हटाई, उसके अगले ही पल इवान, अलबेली और आर्यमणि को देखकर गरजने लगी... "चलो रे सब, लगता है ये शेरनी रूही के साथ कुछ प्राइवेट बातें करेंगी"…

तीनो बाहर निकल गये और चारो ओर के माहौल का जायजा लेने लगे... "बॉस वो बाज का झुंड ठीक पहाड़ी के उस पार ही होगा न"…

आर्यमणि:– हां इवान होना तो चाहिए... चलो देखा जाए की वहां हो क्या रहा है...

तीनो पहाड़ के ऊपर जैसे ही चढ़ने लगे, वह शेर एक बार फिर इनके साथ हो लिया। तीनो पहाड़ी की चोटी तक पहुंच चुके थे, जहां से उस पार का पूरा इलाका दिख रहा था। लेकिन जैसे ही तीनो ने उस पार जाने वाली ढलान पर पाऊं रखा, एक बार फिर वो शेर उनका रास्ता रोके खड़ा था.…

आर्यमणि:– लगता है ये किसी प्रकार का बॉर्डर है.. दाएं–बाएं जाकर देखो वो बाज का झुंड कहीं दिख रहा है क्या? ..

तीनो अलग–अलग हो गये... कुछ देर बाद अलबेली... "ये क्या बला है... दोनो यहां आओ।" आर्यमणि और इवान तुरंत ही अलबेली के पास पहुंचे और नीचे का नजारा देख दंग रह गये... "आखिर ये क्या बला है।"… सबके मुंह से यही निकल रहा था।

आंखों के आगे यकीन न होने वाला दृश्य था। ऐसा जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। एक भयानक काल जीव, जिसकी आंखें ही केवल इंसान से 4 गुणी बड़ी थी। उसका शरीर तो गोल था लेकिन वो गोलाई लगभग 5 मीटर में फैली होगी और उसकी लंबाई कम से कम 300 से 400 मीटर की तो रही ही होगी। ऐसा लग रहा था मानो 6–7 ट्रेन को एक साथ गोल लपेट दिया गया हो।

यहां यही सिर्फ इकलौता हैरान करने वाला मंजर नही था। नीचे आर्यमणि को वो भी दिखा जिसकी तलाश उसे यहां तक खींच लाई थी, जलपड़ियां। और वहां केवल जलपडियां ही नही थी बल्कि उनके साथ जलपड़ा का भी झुंड था। वो भी 5 या 10 का झुंड नही बल्कि वो सैकड़ों के तादात में थे। और उन सब जलपाड़ियों के बीच संगमरमर सा सफ़ेद और गठीला बदन वाला आदमी भी खड़ा था। उसका बदन मानो चमकते उजले पत्थर की तरह दिख रहा था और हर मसल्स पूरे आकार में।

वह आदमी अपने हाथ का इशारा मात्र करता और बाज के झुंड से सैडकों बाज अलग होकर उस बड़े से विशाल जीव के शरीर पर बैठकर, उसकी चमड़ी को भेद रहे थे। जहां भी बाज का झुंड बैठता, वहां 1,2 जलपड़ी जाकर खड़ी हो जाती। ऐसे ही कर के उस बड़े से जीव के बदन के अलग–अलग हिस्से पर बाज बैठा था और वहां 2–3 जलपड़ियां थी...

इवान:– साला यहां कोई हॉलीवुड फिल्म की शूटिंग तो नही चल रही। एक विशाल काल जीव कल्पना से पड़े। आकर्षक और मनमोहनी जलपाड़ियां जिसके बदन पर जरूरी अंग को थोड़ा सा ढकने मात्र के कपड़े पहने है। उनके बीच मस्कुलर बदन का एक आदमी जिसके शरीर के हर कट को गिना जा सकता था। और वो आदमी अलौकिक शक्तियों का मालिक जो बाज को कंट्रोल कर रहा है...

अलबेली:– इवान तुम्हारी इतनी बकवास में एक ही काम की चीज है। वो आदमी बाज को कंट्रोल कर रहा है। हां लेकिन वो बाज को कंट्रोल क्यों कर रहा और क्या मकसद हो सकता है उस जीव के शरीर पर बाज को बिठाने का?

आर्यमणि:– वो बाज से इलाज करवा रहा है।

दोनो एक साथ.… "क्या?"

आर्यमणि:– हां वो बाज से इलाज करवा रहा है। उस काल जीव के पेट में तेज पीड़ा है, शायद कुछ ऐसा खा लिया जो पचा नहीं और पेट में कहीं फसा है, जो मल द्वारा भी नही निकला। जिस कारण से उस जीव की पूरी लाइन ब्लॉक हो गई है। अंदर शायद काफी ज्यादा इन्फेक्शन भी हो.. वह काल जीव काफी ज्यादा इंफेक्टेड है..

इवान:– बॉस इतनी समीक्षा...

आर्यमणि:– बाज का एक झुंड उसके पेट में छेद कर चुका था। उसके अंदर से निकली जहरीली हवा के संपर्क मात्र से सभी मारे गये... और वो जीव थोड़ी राहत महसूस कर रहा था...

आर्यमणि बड़े ध्यान से सबकुछ होते देख रहा था, तभी उसकी नजरे किसी से उलझी। बड़ी तीखी नजर थी, नजर मिलने मात्र से ही दिमाग जैसे अंदर से जलने लगा हो। आर्यमणि विचलित होकर वहां से हटा। वह 5 कदम पीछे आया कि नीचे धम्म से गिड़ गया। अलबेली और इवान तुरंत आर्यमणि को संभालने पहुंचे, तभी उन्हे एहसास हुआ की आर्यमणि बहुत तकलीफ में है। ये बात शायद रूही ने भी महसूस किया, वो भी तुरंत वहां पहुंच चुकी थी।

तीनो आर्यमणि को उठाकर गुफा में ले आये और उसके हाथ को थाम आर्यमणि का दर्द खींचने लगे। लेकिन ऐसा लग रहा था जैस दर्द में कोई गिरावट ही नही हो रही है, बल्कि वक्त के साथ वो और भी बढ़ता जा रहा था। रूही के आंखों मे आंशु आ चले... "क्या हुआ आर्य को.. अचानक ऐसा क्या हुआ जो इनके शरीर का दर्द बढ़ता ही जा रहा है?"…
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shoby54

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भाग:–153


दिन बहुत शानदार कट रहे थे। जिस उद्देश्य से आर्यमणि आइलैंड पहुंचा था उसे पूरा करने में लगा हुआ था। अपने साथ–साथ अल्फा पैक को भी एक स्तर ऊंचा प्रशिक्षित कर रहा था। हफ्ते में एक दिन एमुलेट परीक्षण भी करते। जितने प्रकार के पत्थर लगे हुये थे उनके अच्छे और बुरे प्रभावों का मूल्यांकन भी जारी था। सब कुछ अपनी जगह पर बिलकुल सही तरीके से आगे बढ़ रहा था।

किंतु जिस जिज्ञासा में आर्यमणि यहां आया था, वो अब तक पूरा नहीं हुआ था। आर्यमणि जब अपने बचपन से दादा जी की यादें ले रहा था, तब उसे एक पुराना किस्सा याद आया जो आर्यमणि को काफी आकर्षित करती थी... जलपड़िया। आर्यमणि के दादा जी अक्सर इसी आइलैंड का जिक्र करते, जिसके तट पर जलपड़ियां आती थी। आर्यमणि रोज रात को एक बार समुद्र किनारे जाता और निराश होकर लौट आता।

अल्फा पैक को आये लगभग 2 महीने बीत चुके थे। रूही लगभग 3 मंथ की प्रेगनेंट थी। अब उसका पेट बाहर आने लगा था। आर्यमणि, अलबेली और इवान तीनो ही उसका पूरा ख्याल रखते थे। एक दिन आर्यमणि ने खुद ही कहा की, यदि तीनो (रूही, इवान और अलबेली) चाहे तो मछली या फिर भेड़ का मांस खा सकते है। अजीब सी हंसी के साथ रूही भी प्रतिक्रिया देती हुई भेंड़ के विषय में कहने लगी... "जिसे पाला हो उसे ही खाने कह रहे। वैसे भी अब तो कभी ख्यालों में भी नॉन वेज नही आता।"…

आर्यमणि मुस्कुराते हुये रूही के बात का अभिवादन किया। इसी बीच एक दिन सभी बैठे थे, तभी रूही, अलबेली से उसके प्रेगनेंसी के बारे में पूछने लगी। अलबेली शर्माती हुई... "क्या तुम भी भाभी" कहने लगी.. फिर तो रूही का जो ही छेड़ना शुरू हुआ... "रात को तो पूरा कॉटेज हिलता रहता है, फिर भी रिजल्ट नही आया"..

अलबेली:– रिजल्ट अभी नही आयेगा... इतनी जल्दी बच्चा क्यों, अभी मेरी उम्र ही क्या है...

रूही:– हां ये तो सही है... नही लेकिन फिर भी... लास्ट मोमेंट पर करते क्या हो..

अलबेली चिढ़ती हुई.… "मेरे मुंह पर छींटे उड़ा देता है। आज कल बॉस भी तो यही करते होंगे। क्योंकि अंदरूनी मामले पर तो प्रतिबंध लगा हुआ होगा न"..

रूही:– कहां रे… बर्दास्त ही नही होता.. अंदर डाले बिना मानते ही नही..

अलबेली:– वो नही मानते या तुमसे ही बर्दास्त नही होता...

दोनो के बीच शीत युद्ध तब तक चलता रहा जब तक की वहां इवान और आर्यमणि नही आ गया। दोनो पहुंचते ही कहने लगे... "आज छोटी बोट में समुद्र घूमने चलेंगे"…

अलबेली:– नही बोट बहुत ही ऊपर उछाल मारती है, भाभी को परेशानी होगी...

रूही:– अरे दिल छोटा न करो... हम क्रूज लेकर चलते हैं न.. वहीं बीच में तुम लोग थोड़ा बोट से भी घूम लेना..

इवान:– ग्रेट आइडिया दीदी। और आज रात क्रूज में ही बिताएंगे..

सब लोगों की सहमति हो गयी... क्रूज का लंगर उठाया गया। इंजन स्टार्ट और चल पड़े सब तफरी पर। 20 नॉटिकल माइल की दूरी तय करने बाद क्रूज को धीमा कर दिया गया और छोटी बोट पानी में उतारी गई। आर्यमणि और इवान बोट में सवार होकर वहीं घूमने लगे। उनके बोट के साथ साथ कई डॉल्फिन उछलती हुई तैर रही थी। काफी खूबसूरत नजारा था। रूही और अलबेली दोनो क्रूज के किनारे पर बैठकर यह खूबसूरत दृश्य देख रही थी। दिन ढलने को आया था। सूरज की लालिमा चारो ओर के नजारे को और भी खूबसूरत बना रही थी। रूही हाथ के इशारे से दोनो को वापस बुलाने लगी।

लौटते ही आर्यमणि ने क्रूज को वापस आइलैंड की ओर घुमाया और सबके साथ आकर डूबते सूरज को देखने का रोमांच लेने लगा। लेकिन उनके इस रोमांच में आसमानी चीते यानी की बाज ने आकर खलल डाल दिया। पता नही कहां से और कितनी तेजी में आये, लेकिन जब वो आये तो आसमान को ढक दिया। आमुमन बाज अकेले ही शिकार करते है लेकिन यहां तो, 1 नही, 10 नही, 100 नही, 1000 नही, लगभग 10000 से भी ज्यादा की संख्या में बाज थे।

बाज काफी तेजी से उड़ते हुए आइलैंड के ओर बढ़ रहे थे। उनकी इतनी तादात देखकर, आर्यमणि ने सबको खुले से हटने का इशारा किया। ये लोग डेक एरिया से हटकर जैसे ही अंदर घुसकर दरवाजा बंद किये, दरवाजे पर ही कई बाज हमला करने लगे। लेकिन ऐसा लग रहा था कि आर्यमणि और उसका पैक मुख्य शिकार नही थे, इसलिए कुछ देर की नाकाम कोशिश के बाद वो सब वापस झुंड में चले गये.…

"बाप रे हम वेयरवुल्फ को भी भयभीत कर गये ये बाज। मेरा कलेजा तो अब भी धक–धक कर रहा है"… रूही पानी का घूंट लेती हुई कहने लगी...

अलबेली:– बॉस हमे खतरे का आभाष नही हुआ लेकिन आप कैसे भांप गये...

आर्यमणि:– पता नही... बाज की इतनी संख्या देखकर अंदर से भय जैसा लगा... लेकिन ये बाज इतनी संख्या में आइलैंड पर जा क्यों रहे थे? क्या ये हम पर हमला करते...

इवान:– बाज अकेला शिकारी होता है। जितनी इनकी संख्या थी उस हिसाब तो ये आइलैंड का पूरा जंगल साफ कर देंगे...

आर्यमणि:– हां लेकिन सोचने वाली बात तो ये भी है कि उस जंगल में तो बाज को बहुत सारे शिकर मिलेंगे। यदि शिकारी पक्षी और शिकार के बीच में कोई रोड़ा डालने आये, फिर तो बाज पहले रोड़ा डालने वाले निपटेगा। यहां तो बाज इतनी ज्यादा संख्या में है कि एक शिकार के पीछे कई बाज एक–दूसरे से लड़ ले।

अलबेली:– बॉस क्या लगता है, क्या हो सकता है? किसी प्रकार का तिलिस्म तो नही?

आर्यमणि क्रूज के 360⁰ एंगल कैमरे को बाज के उड़ने की दिशा में करते... "ये बाज हमारे जंगल या मैदानी भाग में नही रुक रहे बल्कि पहाड़ के उस पार का जो इलाका है.. आइलैंड का दूसरा हिस्सा उस ओर जा रहे”...

अलबेली:– वहां ऐसा कौन सा शिकार होगा जो इतने बाज एक साथ जा रहे... कोई जंग तो नही हो रही.. बाज और किसी अन्य जीव में..

आर्यमणि:– ये तो वहीं जाकर पता चलेगा...

रूही:– वहां जाने की सोचना भी मत… समझे तुम.. आज इस क्रूज से कोई बाहर नहीं जायेगा... जंजीरों में आर्यमणि को जकड़ दो...

आर्यमणि:– सर पर आग लेकर जाऊंगा.. कुछ नही होगा..

रूही:– हां तो जब इतना विश्वास है तो मैं भी साथ चलूंगी...

"मैं भी" "मैं भी"… साथ में इवान और अलबेली भी कहने लगे...

क्रूज को सही जगह लगाकर, सभी लंगर गिड़ा दिये। चारो तेजी से अपने आशियाने के ओर भागे और सीधे अपने–अपने बाइक निकाल लिये। सभी जंगल को लांघकर पहाड़ तक पहुंचे और पहाड़ के संकड़े रास्ते से ऊपर चढ़ने लगे। कुछ दूर आगे बढ़े थे, तभी सामने शेर आ गया। ऐसे खड़ा था मानो रास्ता रोक रहा हो। आर्यमणि एक्सीलरेटर दबाकर जैसे ही थोड़ा आगे बढ़ता, शेर अपना पंजा उठाकर मानो पीछे जाने कह रहा था।

आर्यमणि बाइक से नीचे उतरकर, शेर के सामने आया, और नीचे बैठ कर उस से नजरे मिलाने लगा। ऐसा लगा मानो शेर उस ओर जाने से मना कर रहा था। आर्यमणि भी सवालिया नजरों से शेर को ऐसे देखा मानो पूछने की कोशिश कर रहा हो क्यों... शेर आर्यमणि का रास्ता छोड़ पहाड़ के बीच से चढ़ाई वाले रास्ते पर जाने लगा। आर्यमणि रुक कर समझने की कोशिश कर ही रहा था कि तभी शेर रुककर एक बार पीछे मुड़ा और आर्यमणि को देखकर दहाड़ा।

आर्यमणि:– बाइक यहीं खड़ी कर दो, और मशाल लेकर शेर के पीछे चलो...

अलबेली:– बॉस लेकिन दीदी इस हालत में चढ़ाई कैसे करेगी...

आर्यमणि, रूही को अपने गोद में उठाते... "अब ठीक है ना"…

सभी शेर के पीछे चल दिए। 2 पहाड़ियों के बीच से यह छोटा रास्ता था जो तकरीबन 1500 से 1600 फिट ऊपर तक जाता था। काफी उबर–खाबर और हल्की स्लोपिंग वाला रास्ता था, जो चढ़ने में काफी आसान था।

तकरीबन 500 फिट चढ़ने के बाद चट्टानों के बीच शेर का पूरा एक झुंड बैठा हुआ था। जैसे ही अपने इलाके में उन्हे वेयरवुल्फ की गंध लगी, सभी उठ खड़े हुए। तभी वो शेर आर्यमणि के साथ खड़ा हुआ जो ठीक सामने वाले शेर के झुंड के सामने था।

आर्यमणि के साथ खड़े होकर वह शेर गुर्राया, और पूरा झुंड ही शांत हो गया। एक बार फिर वह शेर आगे बढ़ा, मानो अपने पीछे आने कह रहा हो। सभी उसके पीछे चल दिये। वह शेर उन्ही चट्टानों के बीच बनी एक गुफा में घुसा। उस गुफा में एक शेरनी लेटी हुई थी। आंखों के नीचे से जैसे आंसू निकल रहे हो और आस पास 2–3 शेर के बच्चे बार–बार उसके पेट में अपना सर घुसाकर उसे उठाने की कोशिश कर रहे थे।

रूही उस शेरनी के पास पहुंचकर जैसे ही उसके पेट पर हाथ दी, वह शेरनी तेज गुर्राई... "आर्य, बहुत दर्द में है।".. रूही अपनी बात कहकर उसका दर्द अपनी हथेली में समेटने लगी। आर्यमणि उसके पास पहुंचकर देखा। गर्दन के पास बड़ा सा जख्म था। आर्यमणि ने तुरंत इवान को बैग के साथ गरम पानी लाने के लिए भी बोल दिया।

सारा सामान आ जाने के बाद आर्यमणि ने उस शेरनी का उपचार शुरू कर दिया। लगभग 15 मिनट लगे होंगे, उसके घाव को चिड़कर मवाद निकलने और पट्टियां लगाकर हील करने में। 15 मिनट बाद वो शेरनी उठ खड़ी हुई। पहले तो वो अपने बच्चे से लाड़ प्यार जताई फिर रूही के सामने आकर, उसके पेट में अपना सर इतने प्यार से छू, मानो उसके पेट को स्पर्श कर रही हो।..

आर्यमणि:– रूही पेट से अपना कपड़े ऊपर करो..

आर्यमणि की बात मानकर जैसे ही रूही ने कपड़ा ऊपर किया, वह शेरनी अपने पूरे पंजे से रूही के पेट को स्पर्श की। उस वक्त उस शेरनी के चेहरे के भाव ऐसे थे, मानो वो गर्भ में पल रहे बच्चे को महसूस कर मुस्कुरा रही हो। उसे अपने अंतरात्मा से आशीर्वाद दे रही थी। और जब वो शेरनी अपना पंजा हटाई, उसके अगले ही पल इवान, अलबेली और आर्यमणि को देखकर गरजने लगी... "चलो रे सब, लगता है ये शेरनी रूही के साथ कुछ प्राइवेट बातें करेंगी"…

तीनो बाहर निकल गये और चारो ओर के माहौल का जायजा लेने लगे... "बॉस वो बाज का झुंड ठीक पहाड़ी के उस पार ही होगा न"…

आर्यमणि:– हां इवान होना तो चाहिए... चलो देखा जाए की वहां हो क्या रहा है...

तीनो पहाड़ के ऊपर जैसे ही चढ़ने लगे, वह शेर एक बार फिर इनके साथ हो लिया। तीनो पहाड़ी की चोटी तक पहुंच चुके थे, जहां से उस पार का पूरा इलाका दिख रहा था। लेकिन जैसे ही तीनो ने उस पार जाने वाली ढलान पर पाऊं रखा, एक बार फिर वो शेर उनका रास्ता रोके खड़ा था.…

आर्यमणि:– लगता है ये किसी प्रकार का बॉर्डर है.. दाएं–बाएं जाकर देखो वो बाज का झुंड कहीं दिख रहा है क्या? ..

तीनो अलग–अलग हो गये... कुछ देर बाद अलबेली... "ये क्या बला है... दोनो यहां आओ।" आर्यमणि और इवान तुरंत ही अलबेली के पास पहुंचे और नीचे का नजारा देख दंग रह गये... "आखिर ये क्या बला है।"… सबके मुंह से यही निकल रहा था।

आंखों के आगे यकीन न होने वाला दृश्य था। ऐसा जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। एक भयानक काल जीव, जिसकी आंखें ही केवल इंसान से 4 गुणी बड़ी थी। उसका शरीर तो गोल था लेकिन वो गोलाई लगभग 5 मीटर में फैली होगी और उसकी लंबाई कम से कम 300 से 400 मीटर की तो रही ही होगी। ऐसा लग रहा था मानो 6–7 ट्रेन को एक साथ गोल लपेट दिया गया हो।

यहां यही सिर्फ इकलौता हैरान करने वाला मंजर नही था। नीचे आर्यमणि को वो भी दिखा जिसकी तलाश उसे यहां तक खींच लाई थी, जलपड़ियां। और वहां केवल जलपडियां ही नही थी बल्कि उनके साथ जलपड़ा का भी झुंड था। वो भी 5 या 10 का झुंड नही बल्कि वो सैकड़ों के तादात में थे। और उन सब जलपाड़ियों के बीच संगमरमर सा सफ़ेद और गठीला बदन वाला आदमी भी खड़ा था। उसका बदन मानो चमकते उजले पत्थर की तरह दिख रहा था और हर मसल्स पूरे आकार में।

वह आदमी अपने हाथ का इशारा मात्र करता और बाज के झुंड से सैडकों बाज अलग होकर उस बड़े से विशाल जीव के शरीर पर बैठकर, उसकी चमड़ी को भेद रहे थे। जहां भी बाज का झुंड बैठता, वहां 1,2 जलपड़ी जाकर खड़ी हो जाती। ऐसे ही कर के उस बड़े से जीव के बदन के अलग–अलग हिस्से पर बाज बैठा था और वहां 2–3 जलपड़ियां थी...

इवान:– साला यहां कोई हॉलीवुड फिल्म की शूटिंग तो नही चल रही। एक विशाल काल जीव कल्पना से पड़े। आकर्षक और मनमोहनी जलपाड़ियां जिसके बदन पर जरूरी अंग को थोड़ा सा ढकने मात्र के कपड़े पहने है। उनके बीच मस्कुलर बदन का एक आदमी जिसके शरीर के हर कट को गिना जा सकता था। और वो आदमी अलौकिक शक्तियों का मालिक जो बाज को कंट्रोल कर रहा है...

अलबेली:– इवान तुम्हारी इतनी बकवास में एक ही काम की चीज है। वो आदमी बाज को कंट्रोल कर रहा है। हां लेकिन वो बाज को कंट्रोल क्यों कर रहा और क्या मकसद हो सकता है उस जीव के शरीर पर बाज को बिठाने का?

आर्यमणि:– वो बाज से इलाज करवा रहा है।

दोनो एक साथ.… "क्या?"

आर्यमणि:– हां वो बाज से इलाज करवा रहा है। उस काल जीव के पेट में तेज पीड़ा है, शायद कुछ ऐसा खा लिया जो पचा नहीं और पेट में कहीं फसा है, जो मल द्वारा भी नही निकला। जिस कारण से उस जीव की पूरी लाइन ब्लॉक हो गई है। अंदर शायद काफी ज्यादा इन्फेक्शन भी हो.. वह काल जीव काफी ज्यादा इंफेक्टेड है..

इवान:– बॉस इतनी समीक्षा...

आर्यमणि:– बाज का एक झुंड उसके पेट में छेद कर चुका था। उसके अंदर से निकली जहरीली हवा के संपर्क मात्र से सभी मारे गये... और वो जीव थोड़ी राहत महसूस कर रहा था...

आर्यमणि बड़े ध्यान से सबकुछ होते देख रहा था, तभी उसकी नजरे किसी से उलझी। बड़ी तीखी नजर थी, नजर मिलने मात्र से ही दिमाग जैसे अंदर से जलने लगा हो। आर्यमणि विचलित होकर वहां से हटा। वह 5 कदम पीछे आया कि नीचे धम्म से गिड़ गया। अलबेली और इवान तुरंत आर्यमणि को संभालने पहुंचे, तभी उन्हे एहसास हुआ की आर्यमणि बहुत तकलीफ में है। ये बात शायद रूही ने भी महसूस किया, वो भी तुरंत वहां पहुंच चुकी थी।

तीनो आर्यमणि को उठाकर गुफा में ले आये और उसके हाथ को थाम आर्यमणि का दर्द खींचने लगे। लेकिन ऐसा लग रहा था जैस दर्द में कोई गिरावट ही नही हो रही है, बल्कि वक्त के साथ वो और भी बढ़ता जा रहा था। रूही के आंखों मे आंशु आ चले... "क्या हुआ आर्य को.. अचानक ऐसा क्या हुआ जो इनके शरीर का दर्द बढ़ता ही जा रहा है?"…

Nice update brother
Eagerly waiting for next....
 
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