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Shayri chit chat

vihan27

Blood Makes Empire Not Tear
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चाँद भी शरमाए, जब तेरा नाम आए,
दिल मेरा धड़क-धड़क बस तुझे ही अपनाए।
है कोई जिस से तेरी यारी ना हो, आदमी इतना भी बाजारी ना हो,
मुझसे भी होकर वो आगे बढ़ चुका, दोस्त बचके अब तेरी बारी ना हो।
 
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Avaran

एवरन
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है कोई जिस से तेरी यारी ना हो, आदमी इतना भी बाजारी ना हो,
मुझसे भी होकर वो आगे बढ़ चुका, दोस्त बचके अब तेरी बारी ना हो।
Last line chhod ,Samjh kuch na aaya par sunn kar acha laga
 
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vihan27

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vihan27

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मंज़िलें लाख कठिन आएं गुज़र जाऊँगा
हौसला हार के बैठूंगा तो मर जाऊँगा

चल रहे थे जो मेरे साथ कहां हैं वो लोग
जो ये कहते थे कि रस्ते में बिखर जाऊँगा

दर-ब-दर होने से पहले कभी सोचा भी न था
घर मुझे रास न आया तो किधर जाऊँगा

याद रखे मुझे दुनिया तेरी तस्वीर के साथ
रंग ऐसे तेरी तस्वीर में भर जाऊँगा

लाख रोकें ये अँधेरे मेंरा रस्ता लेकिन
मैं जिधर रौशनी जाएगी उधर जाऊँगा

रास आई न मोहब्बत मुझे वर्ना 'साक़ी'

मैं ने सोचा था कि हर दिल में उतर जाऊँगा।।
 

vihan27

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सामने जब कोई भरपूर जवानी आए
फिर तबीअत में मिरी क्यूँ न रवानी आए

कोई प्यासा भी कभी उस की तरफ़ रुख़ न करे
किसी दरिया को अगर प्यास बुझानी आए

मैं ने हसरत से नज़र भर के उसे देख लिया
जब समझ में न मोहब्बत के मआनी आए

उस की ख़ुशबू से कभी मेरा भी आँगन महके
मेरे घर में भी कभी रात की रानी आए

ज़िंदगी भर मुझे इस बात की हसरत ही रही
दिन गुज़ारूँ तो कोई रात सुहानी आए

ज़हर भी हो तो वो तिरयाक़ समझ कर पी ले
किसी प्यासे के अगर सामने पानी आए

ऐन मुमकिन है कोई टूट के चाहे 'साक़ी'

कभी एक बार पलट कर तो जवानी आए।
 

vihan27

Blood Makes Empire Not Tear
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कौन पुर्सान-ए-हाल है मेरा
ज़िंदा रहना कमाल है मेरा

तू नहीं तो तिरा ख़याल सही
कोई तो हम ख़याल है मेरा

मेरे आसाब दे रहे हैं जवाब
हौसला कब निढाल है मेरा

चढ़ता सूरज बता रहा है मुझे
बस यहीं से ज़वाल है मेरा

सब की नज़रें मिरी निगाह में हैं

किस को कितना ख़याल है मेरा
 

vihan27

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मैं पयंबर तो नहीं, हूं तो पयंबर जैसा ।
कोई घर भी नहीं वीरान, मेरे घर जैसा ।

अहल ए दिल, दिल की नज़ाकत से है वाकिफ वरना काम लब्जों से भी ले सकते हैं खंजर जैसा ।

मेरी उसत का भी अंदाजा बहुत मुश्किल है
एक कतरा ही सही, हूं तो समुंदर जैसा ।

मैंने असाद को पत्थर का बना रखा है।
एक दिल है कि जो बनता नहीं पत्थर जैसा ।

हम फ़क़ीरों को कभी रास न आया वरना।

हमने पाया था मुक़दर तो सिकंदर जैसा ।
 
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