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रात भर चुदाई के बाद जब सुबह कमला की आँख खुलती है वह अपने आप को नग्न पाती है। उसके दोनों दूध वैध जी के सीने में दबे हुए थे और गांड पर उनका हाथ रखा हुआ था। ये देख कमला शर्म से पानी-पानी हो जाती है और जल्दी से उठ कर स्नान घर में घुस के स्नान कर तैयार होती है और आ कर वैध जी को उठाती है।
वैध जैसे नींद से जगते हुए आंखे खोलता है और कमला को देखता है उसके चेहरों की चमक देखते ही वैध का लिंग खड़ा होने लगता है। वह कमला को खा जाने वाली नज़र से ऊपर से नीचे देखता है। कमला की छोटे कद काठी पर उसके बड़े स्तन और चुतड़ कहर ढा रहे थे और वैध उठ कर कमला को पकड़ने के लिए आगे बढ़ता है। कमला फुर्ती दिखाते हुए पीछे हो जाती हैं।
कमला: रात भर चोद के मन नहीं भरा आपका।
वैध: तुझे दिन भर चौदु तो भी मेरा मन ना भरे।
कमला: आपको मैं जब दिन रात दूंगी तभी दिन रात पेलोगे।
वैध: देखते हैं, तुम खुद आओगी मेरे पास।
कमला: पर अभी महल में मेरी हाजिरी का वक्त है। और उदास होते हुए कहती हैं अभी नहीं फिर कभी।
वैध: ठीक है जाओ कमला जी।
कमला देवरानी से मिलने निकल पड़ती है।
इधर महारानी सुबह सवरे उठ कर तैयार होती है और पीले रंग की साडी पहन कर पूजा समग्री इक्कठी कर जो उसके कक्ष में छोटा-सा मंदिर था उसमे पूजा करने लगती है।।
हाथ जोड़े वंदना करती हुई देवरानी किसी देवी से कम नहीं लग रही थी । वह देवी जिसका जीवन सम्मान, मर्यादा और जीवन में ईश्वर से प्रेम और उसके चलने के रास्ते पर चलने के अलावा कुछ नहीं है। ये वही देवरानी है जो हर दर्द सह कर भी अपने परिवार का साथ देती रही और कभी उफ तक नहीं की।
महारानी पूजा भजन समाप्त कर अब भगवान से धीरे-धीरे बात करने लगती है।
देवरानी: बलदेव को पांच वर्ष बाद देखने पर मैंने दुलार दिया, मेरे साथ झील के किनारे, खेल-खेल में वह मेरे गले लग गया था, फिर एक दूसरे से हंसी मजाक हुआ और-और कुश्ती मैदान में तो वह मेरा हाथ थामे बैठा रहा। इस सब से मैं हल्का उत्तेजित-सी हो गई थी क्योंकि में एक माँ के साथ स्त्री भी तो हूँ। मुझे माफ़ कर दो। क्षमा कर दो, भगवान!
महारानी: भगवान में बड़ी दुविधा में हूँ, मेरा धर्म मेरी मर्यादा मुझे इस बात का आज्ञा नहीं देती कि मैं अपने पति को छोड़ किसी और से सम्बंध रखूं पर में क्या करूं? भगवान अब मुझ से ये पीड़ा बर्दाश्त नहीं होती (रोने लगती है) ।
भगवान शेर सिंह मझे बहुत चाहता है और में उसका दिल नहीं तोड़ सकती। मुझे माफ़ कर देना भगवान पर में आज उसे पत्र दूंगी और रोते हुए अपना माथा टेकती है। "मेरी इच्छा पूरी हो जाए, तभी एक फूल नीचे भगवान के चरणों में देवरानी के सर के पास गिरा"
इधर दरवाज़े के पीछे कमला देवरानी की हर बात सुन रही थी, जैसे कमला अंदर आने लगी वह कमला की आहट देवरानी सुन चुप गई थी।
कमला: (मन में) हाय राम ये महारानी! अपने पुत्र को अपनी सुंदर दिखा कर उसका लंड खड़ा कर दिया और अब शेर सिंह के लिए भगवान को मना रही है।
उस दिन कैसे बिना साडी के ब्लाउज में ही अपने पुत्र के सामने आ गई थी, इस से पूछूंगी ये बात तो यही कहेगी कि मेरा बेटा ही तो हैं इसीलिए ब्लाउज में बाहर आई। कोई गैर तो नहीं ।
"हाये राम अब तो बलदेव के लिए चुनौती और बढ़ गई है" कमीनी की सुंदरता और चाल ऐसी है कि इसे देख कर तो मैंने हर किसी को आहे भरते हुए देखा है। भला इसका बेटे को जो अभी कच्चा कुवारा है कभी स्त्री को छूवा भी नहीं वह भला कैसे ना इस जैसी घोड़ी के प्रेम में पड़ जाए। "
कमला तभी महारानी! महारानी कहाँ हो! कह कर कक्ष में अंदर आती है।
कमला को देख देवरानी अपने आसु पोंछ कर खड़ी हो जाती है और मस्कुराते हुए।
महारानीः "बोलो कमला"
कमला: कैसी हो महारानी?
महारानीः में खुश हूँ।
कमला: (मन में-तुझे तो लंड चाहिए पर तेरे बेटे का क्या जो तेरे प्यार में पागल हुआ है)
कमला: आपने पत्र का कुछ उत्तर देने का सोचा।
देवरानी: हाँ मुझे कुछ समय दो में उत्तर लिख देती हूँ।
कमला: वैसे आज इस पीली साडी में जच रही हो आप! बिलकुल देवी जैसी लग रही हो।
देवरानीः धन्यवाद।
कमला: (मन में तुम महारानी पत्र दो! शेर सिंह को पर वह तो मिलेगा बलदेव को ही और मेरे रहते हुए बलदेव का दिल टूट नहीं सकता और तुम किसी और की नहीं हो सकती और कातिल मुस्कान देती है।)
देवरानी: मुस्कुरा क्यों रही हो?
कमला: बस ऐसे ही कुछ याद आ गया।
देवरानी: वैसे आज तुम बड़े सवेरे आगयी।
कमला (मन में सोचती है किवो बता दे की वह आज वैध से चुद कर आई है फिर कहती है नहीं अभी नहीं।)
कमला वहा से विदा लेती है और देवरानी सबको घर में प्रसाद देने लगती है पर उसे बलदेव नहीं दिखता।
देवरानी प्रसाद की थाली ले कर ऊपर बलदेव के कक्ष में जाति है जहाँ बलदेव अपनी तलवार को देख रहा था। जैसे ही वह अपने माता को आते हुए देखता है झट से तलवार को रख कर अपनी माता के चरण स्पर्श करता है।
बलदेव: माते!
देवरानी चाह तो यही थी के वह उसे गले लगाये पर वह कुछ सोच कर ऐसा नहीं करती।
देवरानी: बेटा ये लो प्रसाद।
बलदेव प्रसाद लेते हुए।
बलदेव: माँ ये बहुत स्वादिष्ट है। माँ आज इस पीली साडी में देवी लग रही हो।
देवरानी बस मुस्कुरा देती है और अपने दोनों हाथो से थाली पकड़े घूम के बाहर जाने लगती है।
देवरानी की खुशी की चाल में उसके बड़े दोनों नितांब के पट अलग ही थिरकन पैदा कर रहे थे। एक दूजे से लड़ रहे थे और धक्का मुक्की कर के एक दूसरे को बाहर फेक रहे थे और ये सब बलदेव बड़े गौर से देख रहा था।
देवरानी को यू मटकते देख बलदेव का लंड खड़ा हो जाता है वह झट से अपने लैंड पर हाथ रख कर मसल देता है "आह! माँ कब देखने को मिलेगी मुझे तेरी रस की गगरी?"
बलदेव: (मन में कोई बात नहीं माँ तुम शेर सिंह से कभी मिलाप नहीं कर सकोगी क्यू के शेर सिंह में ही हूँ और तुम जब तक ये तय लोगी के तुम्हे उसके साथ जाना है मैं तुम्हे अपने प्यार में दीवाना कर दूंगा और मुस्कुरा देता है।
राज दरबार लगा हुआ था और राजा राजपाल के पास सेनापति आ कर एक संदेश सुनाता है।
सेनापति: महाराज राजा रतन सिंह का संदेश आया है उनको कहा है कि उनके राज्य "कुबेरी" पर बाहरी आक्रमण का अंदेशा है । इसलिए हमें सैनिक एकत्रित कर वहा सैनिक बल बढ़ाने के लिए कहा गया है।
राजपाल: अवश्य हम राजा रतन के साथ हमेशा से हैं और इस कठित परिस्थति में भी हम उनके साथ रहेंगे।
सेनापति: जी महाराज।
राजपाल: सेनापति तुम सेना तैयार करो हमें अतिशिघ्र "कुबेरी" कूच करना होगा।
बात ये थी राजा रतन ने अपने लोभ के लिए उनके राज्यों को जीत लिया था और अपने राज्य को सोने और जवाहरत से भर दिया था । जिसकी भनक बहारी राजाओ तक पहुँच गई थी और सब चाह रहे थे के वे कुबेरी राज्य को लूट ले।
इधर दोपहर के भोजन के बाद देवरानी पत्र लिख लेती है और अपने पास संभल के रख लेती है और खुशी के मारे कमला को बुलाने के लिए वह तेजी से चलते हुए अपने कक्ष से बाहर आ रही होती है उसका पैर फिसल जाता है और वह मुह के बल गिरने वाली ही कि किसि का हाथ उसकी कमर पर लगता है।
वो हाथ देवरानी के नाभी के पास से दबोच लेते हैं और दूसरा हाथ उसकी बांह पकड़ लेता हैं । ऐसे अचानक गिरने से डरके और अपने आप को किसी के द्वारा पकड़े जाने से देवरानी आश्चर्य चकित हो कर पहले अपने सांसों को संभलती है फिर पीछे देखती है।
पिछले बलदेव खड़ा था उसे देख देवरानी मुस्कुरा देती है।
देवरानी: धन्यवाद बेटा मुझे बच लिया तुमने (अपने कमर के पकड़ने जाने से थोड़ा शर्मा जाती है अंदर से।)
बलदेव: माँ धन्यवाद किस लिए? । आपकी रक्षा तो मेरा फ़र्ज़ है।
फिर बलदेव मुस्कुराते हुए वह से चला जाता है।
बलदेव मन में"आप एक बार धन्यवाद बोल दोगी पर में तो आपको जीवन भर संभलने के लिए बेकरार हूँ।"
घाटराष्ट्र में सैनिक अभ्यास में जुट जाते हैं और तैयारी कर रहे थे राजा रतन सिंह के राज्य जाने की क्योंकि आज ही महाराजा को संदेश मिला था कि राजा रतन को अपने राज्य की सुरक्षा के लिए सैनिक बल की आवश्यकता होगी।
सैनिको को इकठ्ठा कर सेनापति उन्हें जरूरी बाते बता रहा था और दूसरी तरफ राजा राजपाल राज दरबार में अपने मंत्रियों और अपनी पत्नी सृष्टि के साथ बैठ अपने रणनीति पर बात कर रहे थे।
कुछ देर पूरी तयारी हो जाती है और राजा राजपाल के जाने का समय हो गया था तो वहा पर राजा राजपाल एक ऐलान करता है।
राजपाल: राज दरबार के मंत्री गण आज में दूर देश की यात्रा पर जा रहा हूँ। जहाँ भीषण युद्ध होने की संभावना है, इस लिए मेरी अनुपस्थिति में मेरा हर कार्य महारानी सृष्टि करेगी।
राजा के ये कहते ही तालियो की गूंज राज सभा में होती है। इस बीच दरबार में देवरानी और बलदेव भी आ जाते हैं और इस बात को सुन दोनों के दिल को ठेस पंहुचती है।
सेनापति राजपाल को कहते हैं "महाराज चलें" और राजपाल को शुभ कामना दे कर जाने लगते हैं। राजा राजपाल अपनी पहली पत्नी शुष्टि के पास जा कर उसको कार्य समझते हुए विदा ले कर आगे बढ़ता है पर उसे पास बैठी देवरानी नहीं दिखती, देवरानी खड़ी हो कर जैसे ही राजा राजपाल के पास आने लगती है तो।
सृष्टि: महाराज समय ज्यादा हो गया है अब आप जाए और सेनापति की आवाजाही का इशारा करती है वह राजपाल को लेकर जल्दी से सैनिक बल के पास ले जाता है।
नियम अनुसर बलदेव भी घोडे पर सवार हो कर अपने पिता और सेना को घाटराष्ट्र की सीमा तक छोड़ने जाता है और सीमा तक पाहुच कर अपने घोडे से नीचे से उतर कर अपने पिता के चरण छू कर आज्ञा लेता है।
राजपाल: बलदेव तुम्हें महारानी सृष्टि जो काम देगी वह तुम्हें करना है और तुम हमेशा राज्य सेवा के लिए खड़े रहना है।
राजपाल: जी महाराज।
राजपाल: जाओ अब।
ये कह कर राजपाल आगे की ओर बढ़ता जाता है पर वही खड़ा बलदेव सोचता है।
"जाते जाते पिता जी ने मुझे पुत्र का स्नेह नहीं दिया न गले से लगाया उनकी नजर में सिर्फ परिवार का एक सदस्य हूँ। मेरे से बात भी कि पर माँ को तो जैसे नजरअंदाज कर बिना कुछ बोले विदा हो गए और सब कुछ बड़ी माँ सृष्टि को सौंप दिया, जैसे मेरा और मेरी माँ का कोई हक नहीं है।"
और बलदेव एक जोर से चीख निकल कर चिल्लाता है और कहता है "इन सब अपमानो का बदला लिया जाएगा!" और फिर अपने घोडे को घाटराष्ट्र की ओर मोड़ देता है।
महल पहुच कर सीधा अपने माँ देवरानी के कक्ष में जाता है जहाँ देवरानी बैठ कर कुछ सोच रही थी।
"क्या में इतनी बुरी हूँ जो महाराज मुझसे बोले बिना ही चले गए और हर बार मुझे राज दरबार में सबके सामने बेइज्जत कर देते हैं?" देवरानी की आंखों के आंसू अब सूख चुके थे। देवरानी जैसे ही ध्यान से आईने में देखती है तो पाती है उसे बलदेव निहार रहा था।
बलदेव देवरानी के पास आ कर उसके कंधो पर हाथ रख कर "मां तुम कितनी सुंदर हो कितनी अच्छी हो!"
देवरानी: चुप कर कुछ भी कहता है और लज्जा जाती है।
बलदेव: सच माँ मेरा बस चले तो मैं तुम्हें घाटराष्ट्र क्या पूरी दुनिया की महारानी बना दूं।
देवरानी: महारानी में समझबूझ होनी चाहिए।
बलदेव: तुम हर एक कार्य अपनी सूझ से कर सकती हो। यहाँ तक तुम पिता जी से भी ज्यादा सूझबूझ रखती हो।
ये सूर्य कर देवरानी मुस्कुरा देती है।
तभी एक सोने का हार निकल कर बलदेव आपने माँ जो कुर्सी पर बैठी थी उसके गले में बाँध देता है, अचानक से ऐसे हार पहचानने से वह समझ नहीं पाती वह क्या प्रतिक्रिया दे और वह सोने की हार की बनावट और कला में खो-सी जाती है।
बलदेव: अब तुम सच में पूरी दुनिया की सबसे प्यारी महारानी लग रही हो।
इतने सालो बाद अपने जिस्म पर ये हार की छुअन भर से देवरानी की रूह सीहर-सी जाती है। देवरानी होश में आते हुए।
देवरानी: ये कह से लाए तुम।
बलदेव: कहा से लाया ये मत पूछो तुम्हें पसंद आया या नहीं ये बताओ।
देवरानी: धन्यवाद बेटा तुम बिना कहे मेरे दिल की बात समझ गए।
बलदेव: हम्म! (प्यार से देखता है) ।
देवरानी: में कैसी लग रही हूँ इस हार में।
बलदेव: एक दम देवी जैसी. साक्षात् देवी जी आ गयी हो ऐसा लगता है।
ये सुन कर देवरानी खुश होते हुए।...
देवरानी: ठीक है कमला और राधा का भोजन बनाने में हाथ बटाने मैं रसोई में जा रही हूँ और बलदेव पीछे खड़े रह कर खुशी से इठलाती उसकी बड़े 44 की गांड को हिलते हुए देख रहा था।
देवरानी अपनी प्रशंसा से खुश होते हुए रसोई घर की ओर चलने लगती है।
देवरानी कोई बच्ची नहीं थी अपने बेटे को चुप चाप अपने पीछे खड़े देख निहारते देख वह समझ जाती है वह क्या देख रहा है और अंदर ही अंदर शर्मा से गड जाती है और उसके मन में कुछ भाव आता है और वह पलटती है।
देवरानी: मस्कुरते हुए बेटा वहा खड़े-खड़े क्या कर रहे हो?
बलदेव: हड़बड़ा जाता है "कुछ नहीं माँ।"
देवरानी: तुम्हें कुछ काम है?
बलदेव: नहीं।
देवरानी: तो तुम चाहो तो मेरे साथ रसोई में आ सकते हो ।
बलदेव: आप चलिए माँ मैं आता हूँ।
फिर देवरानी सोचते हुए "लगता है मुझे इसके लिए कन्या तलाशनी पड़ेगी। ये तो मेरे चूतड़ ऐसे घूरता है जैसे खा ही जाएगा।" और उसके चेहरे पर एक मुस्कान फेल जाती है "राम राम मैं ये क्या सोच रही हूं" बेटा है वह मेरा। इसने अभी-अभी जवानी की दहलीज पर कदम रखा है फिसल जाता है आदमी जवानी में। "
तभी उसके कान की आहट आती है पर वह अपने काम में लगी होती है, ये आहट किसी और की नहीं बलदेव की थी जो रसोई घर में आ जाता और जैसे वह रसोई घर में आता है, वैसे ही उसकी नजर बड़े चूतड़ों वाली रानी देवरानी पर पड़ती है।
बलदेव: (मन में-उह! क्या तगड़ी गांड है।) और फिर मुस्कराते हुए अपने माँ के पीछे लग जाता है और उसके आंखों पर अपने हाथ लगा कर बंद कर देता है।
देवरानी को मरदाना हाथ लगते हैं वह समझते देर नहीं लगती के ये बलदेव है।
देवरानी: खिल खिला के "बलदेव! ये तुम हो।"
बलदेव: माँ आप कैसे इतनी जल्दी समझ गई और अपना हाथ निचे कर लेता है, पर बलदेव एक दम देवरानी के पीछे होने की वजह से उसके हाथ देवरानी के दोनों चुतडो को छू लेता है और देवरानी फिर से अपने दोनों आँख मीच लेती है।
बलदेव अब साइड में खड़े हो कर माँ से बाते करने लगता है।
देवरानी: कैसे ना समझु भला तू मेरे जिगर का टुकड़ा है। कितनी ही रातो में तेरे बीमार होने पर जग कर बितायी है और कभी तू रोने लगता तो में नींद से भी उठ जाती थी।
बलदेव: पर मझे शादी नहीं करनी, मैं तो चाहता हूँ आपको देवी की तरह पूजू और आपकी बाकी जिंदगी से हर एक दर्द से दूर रखू।
देवरानी: तू मेरी रक्षा विवाह के बाद भी कर सकता है।
बलदेव: नहीं माँ आज देखा ही न तुम्हें कैसे पिता जी अपनी माता से बिना मिले जल्दबाजी में निकल गए।
देवरानी को याद आता है वह हमसे भी नहीं मिले।
बलदेव: बस यही होता है माँ को लोग भूल जाते हैं।
तभी वहा पर कमला आ जाती है।
कमला: महारानी मैं ले आई सब्जी।
कमला रसोइगर में दोनों को देख समझ जाति है कि यहाँ पर क्या चालू है और वह बलदेव को देख के आँख मरती है जिस पर बलदेव समझ कर मुस्कुरा देता है।
बलदेव: तो ठीक है माँ आप भोजन त्यार करो मैं आता हूँ।
कह कर बलदेव अपने कक्ष की और निकल जाता है।
रात के भोजन के बाद कमला देवरानी का पत्र ले कर बलदेव के कक्ष में जाती है।
कमला: ये लो आपकी देवरानी का उत्तर शेर सिंह।
बलदेव: हंसते हुए हाथ आगे बढ़ा कर पत्र देता है और अपने पास रख लेता है।
बलदेव: में बाद में पढ़ लूंगा।
कमला: क्या बात है तुम तो मेरे सामने पत्र पढ़ने में भी शर्मा रहे हो।
बलदेव: नहीं ऐसा नहीं है।
कमला: शर्माओगे तो देवरानी जैसी शेरनी की सवारी नहीं कर पाओगे।
बलदेव: चुप चाप देखता है कमला को।
कमला: सही कहती हूँ तुम्हें करिश्मा दिखाना होगा नहीं तो मालुम पड़ा तुम ही कुछ दिन बाद अपनी माँ के लिए वर ढूँढ रहे हो। और हसती है।
बलदेव: ऐसी बात मत करो।
कमला: अच्छा एक बात कहो तुम्हें सच में प्यार है ना देवरानी से।
बलदेव: कमला पहले मैं उनके दर्द दुख से जुड़ा और उनके करीब गया। फिर उनकी सुंदरता का कायल हो कर मेरा दिल उन पर फिदा हो गया, फिर उनके शरीरिक सुख की कमी देख उत्तेजना हुई पर मुझे अब ये सब मुझे बकवास लगता है।
कमला: फिर?
बलदेव: अब मझे उनके सोच, उनके संयम, उनके सत्य और उनके भक्ति, उनके हृदय से प्रेम हो गया है और मुझे लगता है कैसे में उनसे बस दिन रात बाते करता रहूँ।
कमला: तो ऐसा है पर बात करो । साथ में तुम्हें उनके दर्द को दूर करना होगा, उनके शरीर से भी प्रेम करना होगा और उसे तुम्हें बताना होगा कि उसका शरीर कोई सामान्य नहीं और आखिरी उसके शरीर का इच्छा जो इतनी वर्षो से अधूरी ई है उसकी कमी भी दूर करनी होगी।
बलदेव इतना सब अपने और माँ के बारे में सुन शर्मा जाता है।
कमला: ठीक है आराम से पत्र पढ़ लो और जैसे तुम्हें महारानी को मनाना है मनाओ. कल मिलते हैं।
राजा रतन के राज्य कुबेरी में राजा राजपाल अपने सैनिकों के साथ पहुचते हैं और वहाँ उनका जोरदार स्वागत किया जाता है। कुबेरी बहुत बड़ा राज्य था और उतना ही बड़ा वहा का राज महल भी था। घटकराष्ट्र में तो सिर्फ एक घर नुमा राज महल था और राजदरबार अलग से था पर इसके उलट यहाँ राज महल के अंदर ही राज दरबार था और सैनिक से ले कर अतिथि निवास और रनिवास भी राजमहल के अंदर ही था। राजा रतन की तीन पत्निया थी पहली दोनों पत्नी आपस में बहने थी जिनके नाम रुकमणी और सुखमणि था और तीसरी का नाम एलिजा था।
पर एलिजा एक ब्रिटिशर थी, जो राजा रतन को एक राजा ने भेट के रूप में राजा रतन को दी थी।
रात के भोजन के बाद दोनों राजा एक हाल जैसी जगह पर बैठे हुए थे जिस पर कालीन बिछाया गया था और बैठने के लिए गद्दे भी रखे थे उनपर पर बैठ राजा राजपाल राजा रतन के साथ शराब की चुस्कीया ले रहा था।
राजा राजपाल: भाई मजा आया शराब बहुत अच्छी है।
राजा रतन: हाँ मजे करो भाई।
राजपाल: भाई मुझे ऐसा लग रहा हूँ जैसे मैं आसमान में उड़ रहा हूँ।
राजा रतन: हाँ ये विदेशी शराब है मित्र। तभी उनकी शराब खत्म हो जाती है और राजा राजपाल राजा रतन से और शराब मांगवाने के लिए कहते हैं, राजा रतन ताली मरता है सामने एक सुंदर गोरी आ कर खड़ी होती है।
राजा राजपाल: अरे मित्र ये तो विदेशी है।
राजा रतन: हाँ ये अंग्रेज है और यही मेरी तीसरी पत्नी एलिजा है।
राजपाल: आज सालो बाद मेरा लंड बहुत जोर से खड़ा हुआ है और वह भी तुम्हारी पत्नी एलिजा को देख के।
रतन असमंजस से राजपाल को देखता है।
राजपाल: मैं अपना सब कुछ तुम्हें देने के लिए तैयार हूँ जो मांगोगे वह दूंगा पर मुझे अभी एलिजा चाहिए।
रतन: होश में नहीं हो तुम राजपाल!
राजपाल: मैं होश में हूँ मित्र।
रतन: में कहू तो-तो क्या तुम अपना राज्य मुझे दे सकते हो?
राजपाल: बिलकुल बल्कि मैं तुम्हारी जिंदगी भर गुलाम बन के रह जाऊंगा।
राजा रतन एक लालची मनुष्य था वह अपना मौका देख कर मुस्कुराने लगा।
राजपाल: कहो रतन !
रतन: जाओ जी लो राजा! आज रात के लिए एलिजा तुम्हारी हुई।
और रतन फट से ताली बजाता है एलिजा वापस आती है और रतन जा कर उसके कान में कुछ कहता है। पहले तो एलिजा नहीं मानती पर राजा रतन के कड़े निर्देश के बाद वह तैयार हो जाती है।
राजपाल: बोलो राजा रतन तुम्हें क्या चाहिए।
रतन: अभी अपना काम करो तुम्हारे पर ये अहसान उधार रहा।
राजपाल: मैं भी वादा करता हु के सर काटा दूंगा पर अपना वादा नहीं भुलूंगा।
ये सुन रतन सिंह मस्कुराते हुए कक्ष के बाहर चला जाता है और एलिजा राजपाल सिंह के पास आ कर अपने ऊपर का वस्त्र खोल देती है।
राजा राजपाल उसके पास जा कर सीधा उसके गले लग कर उसके गांड को दबाने लगता है और उसके ओंठो को चूमने लगता है। एलिजा एक हाथ से राजपाल के धोती के ऊपर से उसके लिंग को पकड़ लेती है। राजा राजपाल अब उसे ढकेलते हुए गद्दे के तरफ ले जाता है। तभी एलिज़ा उसे रोक कर निचे बैठती है और राजपाल की धोती खोल कर उसका लिंग सहलाने लगती है और फिर "गलपप्पप" कर के पुरा लिंग निगल जाती है।
राजपाल: उहम्मम एलिजा हम्म!
एलिजा फटाफट लंड चुस रही थी और साथ में हाथ से मुठ भी मार रही थी। राजा राजपाल आँख बंद क्या सिस्की ले रहा था। अब राजपाल एलिजा को पकड़ता है और अपनी गोदी में ले कर बैठता है और उसके लाल सुरख ओंठो को चबाने लगता है और अपने हाथों से उसके भीतर के वस्त्र निकाल कर दोनों हाथो से उसके दूध का मर्दन करने लगता है।
एलिजा: आआआहहह!
राजपाल: ओह्ह एलिज़ा!
राजपाल से अब रहा नहीं जाता और एलिजा को अपने ऊपर ले कर एक जोरदार धक्का मारता है और एलिजा की चूत पक्क्क की आवाज के साथ खुलती है और राजपाल धपा दप पेलते जा रहा था।
कुछ दस मिनट की पिलाई के बाद एलिजा को सीधा लिटा कर दो तीन धक्के लगा राजपाल अपना पानी छोड़ देता है और हाफने लग जाता है।
उस रात एलिजा रात भर राजपाल के साथ बिताती है और राजपाल दो बार और एलिजा की चुदाई करता है।
इधर कमला के जाते ही बलदेव अपने कक्ष का दरवाजा बंद करके देवरानी का पत्र पढ़ना शुरू करता है
श्रीमन शेरसिंह!
आप का पत्र मिला, पढ़ कर अत्यंत प्रसन्नता हुई। आप और आपका दिल ठीक होगा ऐसी आशा करती हूँ। मैं एक स्त्री हूँ और मेरे लिए अपनी सीमा लंघना इतना आसान नहीं है, लेकिन जितना प्रेम आपने हमसे प्रकट किया है उसे देख कर मेरा मन भी डोल गया है और आपकी दासी बनाना चाहती हूँ, पर इस सब के लिए हमें सही समय का इंतजार करना होगी, आशा करती हूँ आप मेरी बात समझेंगे
आपकी
देवरानी
ये पढ़ कर बलदेव जहाँ हल्का-सा मुस्कुराया, वही भभित भी हुआ और वह हो भी क्यों ना? उसकी प्रेमिका किसी और के प्रेम की ओर अग्रसर हो रही थी। वह प्रेम पत्र को रख कर सोने की कोशिश करता है पर आँख बंद करते ही उसे देवरानी का चेहरा नजर आता है। कभी देवरानी हसती हस्ती, तो कभी मुस्कुराती। तो कभी गुस्से में बलदेव को देखती। बलदेव के दिल और दिमाग पर सिर्फ देवरानी छा गई थी इधर देवरानी इधर अपने कक्ष में वह सोने के समय पहनने वाली झीनी-सी पोशाक पहन कर लेटी थी।
वो लेटी हुई आज की घटनाओ के बारे में सोच रही थी। कैसे बलदेव उसकी तारीफ के पुल बाँध रहा था और कह रहा था वह शादी नहीं करेगा और हमेशा मेरे लिए मेरी सेवा में जीवन काटेगा। आज वर्षो बाद ऐसा लग रहा है कि कोई मेरी चिंता करता है। कसम से बहुत बड़े दिल वाला है मेरा बलदेव।
शेरसिंह भी तो मेरे लिए मर मिटने को तैयार है। अगर में शेरसिंह की बात मानी तो क्या बलदेव के मन में मेरा सम्मान मेरी इज्जत कम तो नहीं हो जायेगी? वह मुझसे नफरत तो नहीं करने लगेगा? पर मुझे ये दोनों उतने ही प्यारे हैं। एक आशिक है और एक लाडला बेटा। ये बात कमला से पूछूंगी फिर वह खुशी-खुशी सो जाती है।
सुबह सवेरे उठ कर देवरानी स्नान करती है। तैयार होने के लिए आईने के पास आ कर बैठती है और शेर सिंह के बारे में सोच कर खूब मन से सजती संवारती है। आज वह घाटराष्ट्र के सबसे बड़े देवी मंदिर जाने का निर्णय लेती है, फिर मंत्री को कह कर रथ मंगवा लेती है और एक घोड़े का रथ बिल्कुल तैयार महल के द्वार पर खड़ा था।
इधर राजकुमार बलदेव भी जल्दी उठ जाता है और स्नान कर पहले अपने दादी के कक्ष में जाता है और उनसे उनका हाल पूछ कर सोचता है बाहर जा कर एक बार वैध जी से पता करें कि दादी के उपचार में कोई कमी तो नहीं है। जैसे ही बाहर जाने लगता है सामने उसे देवरानी दिखती है।
जिसे देख बलदेव की लार टपकने लगती है। कल जहाँ देवरानी के नितांब कहर ढा रहे वही आज लग रहा था कि उसके कमल वक्ष साडी से बाहर आने को तडप रहे थे।
बलदेव: इतने बड़े वक्ष आज इसे देख तो मेरे दिन बन गया जैसे कल इनके उन्नत निताम्ब देख कर हुआ था।
बलदेव को अपने आप को ताड़ते हुए देख देवरानी हल्का-सा मुस्कुरा देती है और बलदेव कहता है।
बलदेव: माता कहा जा रही हो आप इतने सवेरे।
देवरानी: वह आज माता रानी के मंदिर जा रही थी।
बलदेव: पर किसके साथ?
देवरानी: सैनिक है ना।
बलदेव: माँ आप मेरे होते हुए किसी और के साथ क्यों?
देवरानी: मुझे लगा...
बलदेव: आपको लगा कि मैं नहीं जाऊंगा?
देवरानी: हम्म
तुम सुबह सांय युद्ध अभ्यास करते हो, थक जाते हो और देर तक सोते हो इसीलिए मैंने सोचा कहीं तुम ना जाओ।
बलदेव: माँ में भले ही कितना भी थका रहूँ पर आपका साथ देने के लिए हमेशा तत्पर रहूँगा। सदैव!
देवरानी: अच्छा चलो।
बलदेव: आप आगे से कोई भी ऐसा कोई कदम उठाने से पहले सोच लेना और ध्यान रखना।
देवरानी: अच्छा श्रीमन अब चले।
फिर वह दोनों बहार निकलते हैं और रथ के पास आते हैं बलदेव कहते हैं "सैनिक तुम जाओ रथ हम चलाएंगे!"
देवरानी: आश्चर्य से देखती है फिर वह रथ पर बैठ जाती है और बलदेव रथ को दौड़ाता है
कुछ दूरी तय कर दोनों मंदिर के पास पहुचते है और बलदेव मंदिर परिसर में अपना रथ खड़ा करता है और उतरता है और रथ पर बैठी देवरानी को अपना हाथ देता है और उन्हें नीचे उतारता है और उतरने के लिए अपने खुले केशो को पीछे हटा कर संभल कर उतारती देवरानी को देख बलदेव को जैसे स्वर्ग का आनंद मिलने लगता है। वह इतनी सुंदर लग रही थी और उस पारदर्शी साडी में उसके वक्ष कयामत लग रहे होते हैं।
रथ से उतारते समय ऐसा लग रहा जैसे देवरानी के वक्ष गिर जाएंगे। अपने बेटे की नज़र ऐसे अपने स्तनों पर देख देवरानी शर्मा जाती है और मन में भगवान को याद कर के आगे बढ़ती है और बलदेव के साथ मंदिर में चढ़ावा चढ़ाने की सामग्री ले कर मंदिर की सीढ़ियो पर चढ़ती है और बलदेव भी जा कर अपने माँ के साथ चढ़ावा चड्ढा कर माथा टेकता है।
देवरानी: (मन में) माता मुझे इतनी शक्ति दे की में हर परिस्थति से लड़ सकु, में अब खुश रहना चाहती हूँ, किसी ऐसे के साथ जो मेरा सम्मान करे मुझे दिल से प्रेम करे।
मैंने पत्नी धर्म बहुत निभाया पर मझे दुख के सिवा कुछ नहीं मिला। इस बार मुझे शेर सिंह के रूप में वह मिला है जो मेरा जीवन सफल कर सकता है, मुझे माफ कर देना पर में वही करूंगI जिससे अब मेरा जीवन ठीक हो।
बलदेव: (मन में) माता रानी में तेरा भक्त हूँ और मुझसे बड़ी भक्त मेरी माँ देवरानी है, जिसने जीवन में कोई सुख नहीं देखा। अगर संसार में तेरे नियम से पत्नी को सिर्फ खून के आंसू रोना है तो अब और नहीं। तू उतनी शक्ति दे के वह अपने जीवन में खुशियों लाने का फैसला खुद कर सके और रही बात मेरे प्रेम की तुझे पता है कि मेरा प्रेम कितना पवित्र है और हो भी क्यों न मैं उसे किसी अज्ञात पुरुष के पास भटकने के लिए भेज नहीं सकता, जिससे वह आगे माँ का साथ छोड़ दे और माँ को दुख दे।
मैंने एक पाप किया है प्रेम कर के, तो मैं इसको पूरा भी करूंगा शक्ति देना...
बलदेव जैसे अपने आँख खोलता है उसे सामने झुक कर प्रसाद की थाली लेने के लिए झुकी हुई देवरानी दिखती है। उसके वक्ष ऐसे लग रहे जैसे दो बड़े तरबूज हो। ये देख बलदेव मन पर मुश्किल से मन काबू करता है और वह कहता है
बलदेव: चलो माँ
जब वह मंदिर से बाहर आते हैं तो देखते हैं कि उसके रथ को कुछ बालक चलाने की कोशिश कर रहे हैं और घोड़े ने हमें रथ के पहिए को ले जा कर दो वृक्ष के बीच फसा दिया था और पहिया निकलकर टेढ़ा हो गया था।
बलदेव: बच्चो तुम सबने ये क्या कर दिया?
देवरानी: बच्चे हैं जाने दो! हम कुछ और प्रबंध लेंगे जाने का और वह चल कर आगे बढ़ती है।
पीछे से उसकी गांड देख बलदेव का लिंग फिर तन जाता है।
बलदेव को कुछ सूझता है और वह रथ से घोड़ा खोलने लगता है
अपने बेटे द्वारा अपने मोटे नितमब घुरे जाने से अंदर ही अंदर देवरानी की सांस दुगनी गति से चलने लगी।
वो दूर खड़े हो कर अपने आप को निहारती है और अपनी सुंदरता देख उसे खुद शर्म आ जाती है
देवरानी: (मन में) ये बलदेव भी ना ऐसे देखता है जैसे खा जाएगा अभी के अभी। पता नहीं इसके दिमाग में क्या चल रहा है।
तभी बलदेव आवाज लगाता है "मां आ जाओ हम इस घोड़े से जाएंगे।"
देवरानी: पर बेटा एक घोड़े पर कहीं गिर गए तो
बलदेव: घुड़सवारी आप नहीं में करूँगा! आप क्या समझती हो मुझे घुडसवारी नहीं आती।
देवरानी: मैंने ये तो नहीं कहा।
बलदेव: आप घबराए नहीं और मेरे आगे बैठे में आपको संभल लुंगा।
देवरानी अपने आपको देख फिर नीचे देखती है
देवरानी: (मन में) ये लड़का भी ना...मझे आज ये साडी नहीं पहननी चाहिए थी, ये घोड़े पर तो...
देवरानी ना चाहते हुए भी पहले घोड़े पर बैठ जाती है फिर बलदेव उसके पीछे बैठ जाता है। देवरानी की पीठ बलदेव से चिपक जाती है ये छुअन के एहसास से एक पल के लिए देवरानी आखे बंद कर लेती है ।
अब बलदेव घोडे को तेजी से दौड़ाने लगा। जब-जब वह लगाम खीचता है उसके दो कठोर हाथ रानी के बड़े-बड़े वक्ष को छु देते थे अंजाने में और उसके लंड पर देवरानी के बड़े नितम्ब और गांड का घर्षण होता था। हर बार हिलने पर इस रगड़ से देवरानी उत्तेजित हो गई थी और उसे बूरा भी लग रहा था और वही बलदेव का लिंग भी खड़ा हो चूका था और खूब अच्छे से नितम्बी को दरार और गांड के बीच में जगह बनाने की कोशिश कर रहा था।
कुछ देर वह दोनों महल पहुचे और देवरानी उतर कर जल्दी से अंदर चली गयी और बलदेव अश्व को एक ओर बाँधने लगता है।
देवरानी लंबी सांस लेते हुए अपने कक्ष में पहुँच आईने में अपने आप को देखती है। वह जहाँ-जहाँ रगड़ हुई थी वह जगह लाल हो गई थी। "कितना कठोर है बलदेव! बस रगड़ने ने ही मेरे दूध और चुतड लाल कर दिए।" और मर्दन करेगा तो? हाय राम में क्या सोच रही हूँ।
तभी कमला जड़ी बूटी का काढ़ा ले कर आती है।
कमला: ये लिजिए महारानी!
देवरानी: हाँ लाओ पी लेती हूँ।
कमला: आपने बताया नहीं आप आज कल रोज योग करती हो और ये काढ़ा क्यों पीती हो।
देवरानी: वह बस अच्छी सेहत के लये।
कमला: बनाओ मत रानी।
देवरानी: हाँ तो सुनो इस से जिस्म गठीला और मजबूत होता है जो काम क्रिया में मदद करता है। इसके सेवन से अच्छे-अच्छे मर्द भी मेरे सामने नहीं टिकेंगे।
कमला: हाँ मुझे पता है, पर ये किताबी बाते है।
देवरानी: तुम्हें कैसे पता?
कमला को एक झटका लगता है।
कमला: वह मुझे पढ़ना नहीं आता पर वह मैंने सुना है।
देवरानी: झूट मत कहो सच-सच कहो, कमला।
कमला: तो सुनो आपके पास जो किताब है वह वैधजी की है और मैंने वह पुस्तक आपके बिस्तर में देखी थी जब में सफाई कर ही थी। जिसमे अलग-अलग मुद्रा में सम्भोग के चित्र थे।
देवरानी: सुस्स् धीरे से बोलो!
कमला: आप डरती क्यों हो में तो कहती हो संभोग कि अलग-अलग क्रिया भी सीखो।
देवरानी (शर्म से) चुप रहो।
कमला: ये बताओ आप ये सब तैयारी कर रही हैं ना शेर सिंह के लिए?
देवरानी: हाँ! और सर नीचे कर लेती है
कमला और वह नहीं मिला तो...फिर ये आग बुझ जाएगी। बोलिये ना?
देवरानी: ऐसा नहीं है
कमला: मैं आपको एक राज की बात बताती हूँ मैंने अपनी प्यास बुझा ली किसी से!
देवरानी: किस से?
कमला: उसी से जिसकी पुस्तक से आप भी सीख रही हैं
देवरानी हेरत से देखती हो
"तुम्हारा मतलब वैध जी"
कमला: हाँ महारानी अब आप से क्या छुपाना।
देवरानी: पर कैसे?
फिर कमला महारानी देवरानी को सब उस दिन की बात बताती हैं
कमला: मैं आपके जैसी नहीं अच्छे समय आने की प्रतीक्षा में जीवन काट दूं। अच्छा समय लाना पड़ता है
देवरानी: हम्म पर अगर ये बात महाराज या किसी तक पहुच गई तो?
कमला: पहुचने दो मुझे डर नहीं है । प्रेम और सम्भोग मेरा अधिकार है और आपकी तरह क्या डर के इतना दूर सम्बंध बनाना कि मिलाप ही ना हो।
देवरानी: पर पास में कहा कोई है तू तो जानती है।
कमला: अच्छे से आस पास देखो कहीं दीया तले अँधेरा तो नहीं, अच्छे से देखो! अगर में तुम्हारी जगह होती तो में विधवा से सुहागन हो जाती उसे पा कर।
देवरानी इतनी बेवकूफ नहीं थी वह कमला का इशारा समझ जाती है कि महाराज का छोड कर घर में एक ही पुरुष था वह है बलदेव।
देवरानी: चुप कर कमिनी और फिर बैठ कर अपना व्यायाम करने लगती है ।
कमला: रानी याद रखो खुशी के लिए बलिदान तो देना ही पड़ता है ।
और कमला तुनक के बाहर चली जाती है
इधर अपने कक्ष में आकर बलदेव पत्र लिखता है और उसे अपने खीसे में छुपा लेता है थोड़ी देर बाद कमला उससे पत्र लेने आती है तो बलदेव को खुश पा कर...
कमला: महाराज के जाते ही तुम दोनों बड़े खुश लग रहे हो।
बलदेव: हम्म अब ज्यादा समय मिलता है।
कमला: तो बात कहाँ तक आगे बढ़ी?
बलदेव: उनके मन को समझना नामुमकिन है, वैसे कहते हैं ना कि स्त्री को कभी समझा नहीं जा सकता।
कमला: वह सब छोड़ो तुम बिंदास आगे बढ़ो। जो होना है आगे होगा। फिर बलदेव से पत्र ले कर चली जाती है और शाम को पत्र ले जा करके देवरानी को देती है। जिसे वह पढ़ना शुरू करती है।
"प्रिय देवरानी,
मैं संयम बरतने के लिए तैयार हूँ पर आखिरी कब तक? एक सीमा निर्धारित करो कि इतने दिनों में तुम सब छोड़ कर मेरे पास आजाओगी और युद्ध भी हुआ तो मुझे डर नहीं लगता।
में तुम्हें अत्यधिक प्रेम करता हु देवी
शेर सिंह"
पत्र पढ़ कर उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह इसका उत्तर क्या दे? और दूसरे मन में कमला की बात भी खाए जा रही थी।
वो दिन से बलदेव से दूर रहने का प्रयास करने लगती है और उससे बहुत कम मिलती है। ये सोच कर कि इस से बलदेव अपनी चाल चेक कर लेगा । वह लगातार 7 दिन तक उसके सामने नहीं जाती।
पर ये 7 डिनो में अहसास होता है कि जब वह बलदेव के साथ हस्ती खेलती है तभी उसे ये जीवन ठीक लग रहा था पर जब से उससे दूरी बनाई है तबसे जिंदगी बेरंग-सी है।
तभी उसके कानो में "माँ इधर आना।"
"बेटा मेरे व्यायाम का समय होगया है बोलो" और वह कमला को बुला कर बलदेव के पास भेज देती है। देवरानी: बेटा कमला को भेज रही हूँ उससे मदद ले लो।
बलदेव अंदर ही अंदर दुखी था पर जानबुझ कर चेहरे पर दुख नहीं आने देता है उसे यकीन था कि अगर उसका प्रेम सच्चा है तो जैसे मैं तड़प रहा हूँ वह भी तड़प रही होगी।
आज पूरे 7 दिन हो गए थे उसे बलदेव से अच्छे से बात किये हुए और ना तो देवरानी ने पत्र का उत्तर दिया था। अब शेर सिंह को भी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
देवरानी: (मन में) क्या करूं में शेर सिंह को कैसे बताऊ के मेरा पुत्र है। ऊस छोडना मेरे लिए आसान नहीं है और तो और ये बलदेव भी बहुत शारारती हो गया है। इसके पास जाना भी नहीं बनता दूर रहना भी नहीं बनता। पर बलदेव मेरे से कितना प्यार करता है। इतना दूर जाने के बाद भी बेचारा मेरे पीछे पड़ा रहता है। बुलाता रहता है। मैं इसे डांटते भगाते थक गई पर फिर वह नहीं थका।
सुबह भी देवरानी इन्हीं विचारो में खोई हुई थी " मैंने पिछले 7 दिनों से बलदेव से दूरी बनायी हुए थी फिर बलदेव में कोई बदला नहीं आया था, मैं जितना दूर भगती उतना ही बलदेव मेरे पास आ जाता है।
"बलदेव मुझ पर तो जान छिडकता है। कैसे मेरे हर छोटी-छोटी चीज का ख्याल रखता है और मेरे पास आने के लिए तड़पता रहता है।"
"कैसे मेरे दूध और नितम्बो को घुरता है। ऐसा लगता है मौका मिलते ही जैसे खा जाएगा, रोज देखता रहता है। मैं उसे नजर नदाज करने की कोशिश करती हूँ फिर भी वह मेरे पीछे लगा रहता है और मेरी आंखों में पता नहीं क्यों वह कुछ पढ़ने की कोशिश करता रहता है।"
"कही ये बलदेव वासना में आ कर ऐसा तो नहीं करता, अगर ऐसा होता तो... पर पिछले 7 दिनो से उसने मुझे छूआ भी नहीं है। मैंने उसे नजर अंदाज किया फिर भी वह मेरा कितना ख्याल रखता है।"
"अगर ये वासना नहीं तो क्या बलदेव मुझे चाहने लगा है, तो क्या उसे मझसे प्रेम हो गया है?"
"और ये कमला भी तो इशारो से कहती रहती है कुछ ना कुछ बलदेव को ले कर, तो क्या उसे बलदेव की सोच भांप ली है? अगर ऐसा है और वह किसी से कह दे तो क्या होगा?"
देवरानी ये सब बात सोचते हुए महल से निकल कर महल के पास के बाग में घूमने के लिए निकलती है, देवरानी आज काले रंग की साडी में अत्यंत सुंदर दिख रही थी।
photo uploader जाते जाते उसके मन में कुछ ख्याल आता है और वह वैध जी के कक्ष की ओर घूम जाति है।
जहाँ पर पहुचते उसके कानो में "आह उह हाय!" "या जोर से!" "हाए मर गई!" कि आवाज आने लगती है। देवरानी की धड़कन तेज होने लगती है और वह बाहर से अंदर का नजारा देखने की कोशिश करती हैं।
तभी उसकी नज़र खुले हुए खिड़की के दो पट के बीच की दरार देखती है, क्योंकी वैध जी ने खिड़की को सिर्फ सता दिया था औरवहाँ जगह होने के कारण से अंदर का दृश्य पूरा साफ़ दिख रहा था।
देवरानी जैसे वह-वह आँख गडा कर अंदर देखती है उसके हाथ पैरो में कम्पन-सी होने लगती है, क्योंकि अंदर का नजारा ही कुछ ऐसा था। अंदर कमला झुकीहुई थी और वैध जी सटास्ट अपना लंबा तगडा लौड़ा पेले जा रहे थे जिसकी वजह से कमला की कराहो की आवाज गूंज रही थी।
"उह्ह आह!" "धीरे से वैध जी।" उफ़! और फिर वैध जी एक और जोर का झटका मरते हैं अपने लौड़े को पूरा बाहर खींच के एक और जोर धक्का दे अंदर पेल देते हैं।
कमला: आआआआआआ आह मार डाला!
ये दृश्य देख देवरानी की चूत का दाना फड़कने लगता है और उसकी चुत पनिया जाती है। आज कम से कम 17 वर्षो बाद देवरानी ने चुदाई देखी थी और वह वैध का लौड़ा देख कर अपना हाथ चुत के पास ले जा कर मसल देती है।
कमला: हाय वैध जी क्या जालिम चुदाई करते हो। "आआआआआह्ह्ह!"
तभी कमला की नज़र खिड़की पर जाती है और उसे आभास होता है कि कोई है वहा पर । कमला थोड़ा गौर से देखती है तो उसे साड़ी का रंग दिखता है और उसे समझने में देर नहीं लगती कि वहाँ कौन है।
कमला: मन में - ये तो देवरानी है।
उषर वैध जी हमच-हमच कमला की चुत चौद रहे थे अपने मोटे लौड़े से।
वैध: तू तो साली बहुत गर्म है! ना जाने कितने बड़े लंड लिए होंगे तूने! तुझे क्या है।
कमला: हाँ मैं बहुत लंड ले चुकी हूँ। पर एक का लौड़ा इतना बड़ा है जिसे मेरी योनि भी झेल ना पाएगी । इसके साथ ही वैध फच कर एक और शॉट मरता है "ऐसा किसका लौड़ा देख लिया तूने"
कमला: बलदेव का!
वैध: तू उसका भी लेगी क्या?
कमला: नहीं बाबा नहीं मेरी तो जान ही चली जाए उसका लौड़ा नहीं हल्लबी लौड़ा है।
वैध: तुझे कैसे मालुम रंडी?
कमला: बस एक बार स्नान करते हुए देख लिया था।
वैध: अगर तेरी इतनी बड़ी चूत उसके लौड़े को नहीं ले सकती तो दुनिया में उसका लौड़ा कोई नहीं ले सकती।
कमला: नहीं मैं तो छोटे कद काठी की महिला हूँ। एक है जो उसका ले सकती है पर भारी तो उसे भी पड़ेगा लेने में।
वैध: कौन "(और र अपना लौड़ा पेलता खांसते हुए है फिर से पटना जारी रखता है।"
कमला: "आह वैध जी" और कौन उसकी माँ देवरानी।
ये सुन कर देवरानी और वैध दोनों आश्चर्य चकित होते हैं।
वैध: तुम पागल हो कुछ भी कहती हो।
कमला: सम्बंधों का असली मजा तो पागल बन कर आता है। वह ले सकती है।
वैध: कोई माँ भले कैसे ऐसे अपने पुत्र से कर सकती है?
कमला: अगर मेरा पुत्र होता बलदेव तो अब तक में उसके बच्चों की माँ बन गई होती। में केवल अपनी खुशी देखती हूँ।
वैध: तू तो है ही रंडी।
देवरानी ने वर्षो बाद ऐसा लौड़ा, चुदाई देखि थी और ऊपर से कमला की उत्तेजना से भरी बात को सुन कर उसकी चुत पसीजने लगती है और गला सुखने लगता है।
वो पानी पीने के लिए रसोई में जाने लगती है और सामने से बलदेव को आता देख एक बार रुक जाती है। बलदेव की नज़र अपनी माँ से मिलती है। देवरानी के आंखों में वासना थी । उसे छुपाते हुए बस बलदेव को देख एक मुस्कान देती है।
बलदेव (मन में) आज माँ इतने दिनों बाद मुझे मुस्कान दे कर देख रही है। आज तो वह अप्सरा से कम नहीं लग रही है, क्या गोरा बदन है क्या पहाड़ जैसे वक्ष है।
अपने आप को घुरता देख आज पता नहीं क्यों, देवरानी ना लज्जती है और ना ही अपने पल्लू को ठीक करती है। वह आगे रखे मटके की तरफ घूम जाती है और फिर नीचे पलट कर देखती है तो पाती है कि बलदेव अब उसके चुतर निहार रहा था। वह उसे एक कातिल मुस्कान देती है।
ऐसे देवरानी के वक्ष और नितम्ब देख कर और फिर देवरानी की मुद्रा और जैसे वह मटकते हुए चल के पानी के मटके के पास जाती है तो उसके चुतड काली साडी में साफ तौर से दिख रहे थे और ये खूबसूरत दृश्य देख बलदेव का हथियार अपने रूप में आ जाता है और जैसे ही देवरानी ने पलट कर एक मुस्कान दी बलदेव का लंड जोर से धोती के अंदर हिलोरा मारने लगा, उससे अब रहा नहीं जाता और पानी पी रही अपनी माँ के पास जाता है।
बलदेव झट से अपने दोनों हाथो सेउसके दोनों हाथो पकड़ लेता है। ऐसा करने से देवरानी की साड़ी का पल्लू नीचे गिर जाता है और उसके कड़क वक्ष देवरानी की गहरी सांस लेने से ऊपर नीचे हो रहे थे।
बलदेव: माँ रुको।
देवरानी पहले से उत्तेजित थी और बलदेव की ऐसी बाते सुन कर उसके सांस फुलने लगी।
देवरानी: हल्की आवाज में कहती है"हम्म! छोड़ो मुझे! मुझे जाने दो" या कहीं ना कहीं उसके मन में भी जाने की इच्छा नहीं थी।
बलदेव: माँ तुम कितनी सुंदर हो ये तो सुन लो।
फिर बलदेव अपना खड़ा लंड देवरानी के चूतड़ पर सटा देता है।
देवरानी: हम्म!
बलदेव: तुम्हारा ये गोरा रंग, तीखे नक्ष और तुम्हारा ये संगेमरमरी बदन, भगवान ने बड़ी फुर्सत से बनाया होगा।
फिर बलदेव कान के पास जा कर देवरानी को कहता है।
"मां भगवान ने आपको देव लोक के लिए बनाया था। पर तुम गलती से मनुष्यो की बीच आ गयी।"
"तुम एक अप्सरा हो।"
ये सुन कर देवरानी अपना आपा खो बैठती और उसके चुतड पर चुभ रहे बलदेव के लण्ड पर अपने बेशकीमती 44 के चुतडी पीछे करती है और एक लय में बलदेव के लौडे से देवरानी के चुतड रगड़ खा जाते हैं।
देवरानी के मुह से सिस्की निकल जाति है "आह! भगवान!"
तभी बलदेव आगे बढ़ कर अपने ओंठो को देवरानी के कान से दूर ले जा कर देवरानी के लाल हो चुके गाल पर ले जाता है।
"पुच्च पुच्च से साथ एक चुम्मा उसके गाल का ले लेता है।"
बलदेव: माँ!
देवरानी ने सोचा भी नहीं था कि बलदेव ऐसी हरकत करेगा वह झट से अपने चुतड वह पीछे से बलदेव के लंड से दूर करती है और आंखों फाड कर देख रही थी बलदेव को।
इस हमले से जैसे देवरानी का जैसे मोह भंग हो गया था और उत्तेजना से निकल कर उसने आपने आप पर काबू पा लिया था।
बलदेव मुस्कुराते हुए देवरानी को छोड़ बाहर चला जाता है।
देवरानी अपने आप को देखती है उसके बाल खुल गए थे और उसके पल्लू गिरने की वजह से उसके वक्ष साफ दिख रहे हैं।
देवरानी बलदेव के जाते वह सबसे पहले अपना पल्लू से अपने वक्ष ढकती है और अपने हाल देख कर सोचती है कैसे उसे अपना आपा खो कर अपना चुतड पीछे कर के लौड़े को मसला और बलदेव का उसके गाल पर चुम्मा से अभी तक उसके गाल लाल और गीला था, उसे लज्जा आ रही थी और एक अलग किस्म का मज़ा भी देवरानी को महसूस हुआ था, वह बस अपने आप पर मुस्कुरा देती है।