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Update 19
एकांश कन्फ्यूज़ था, निराश था और गुस्सा भी था, क्या हो रहा है क्यू हो रहा है उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, उसे अक्षिता के बर्ताव के पीछे का रीज़न समझ नहीं आरहा था, अक्षिता के पिता की बोली गई बातों को वो समझने मे लगा हुआ था
उस बात को आज दो दिन हो गए थे और इन दो दिनों मे हर बढ़ते मिनट के साथ एकांश और भी ज्यादा फ्रस्ट्रैट हो रहा था और अक्षिता का ऑफिस ना आना उसे बिल्कुल रास नहीं आ रहा था और साथ ही ये भी सच था के अक्षिता के शब्दों ने उसे ठेस पहुचाई थी लेकिन उसने उन शब्दों को दिल से नहीं लगाया था अक्षिता कीसी गहरी मुसीबत मे थी ये वो जानता था और साथ ही वो अक्षिता को भी अच्छे से जानता था के वो जानबुझ कर कभी कीसी से रुडली बात करने वालों मे से नहीं थी
एकांश अब अपना पैशन्स खोने लगा था, वो बस सब सच जानना चाहता था और वो ये भी जानता था के इसमे एक बार फिर उसके दिल के टूटने मे आसार थे लेकिन वो रिस्क लेने के लिए तयार था
एकांश के पास खोने को कुछ नहीं था, अक्षिता पहले ही उसकी जिंदगी मे जा चुकी थी और एकांश अब इस दर्द के साथ जीना सिख चुका था लेकिन अमर की बताई बातई ने उसमे एक नई उम्मीद सी जगाई थी जो उस दिन अक्षिता के तीखे शब्दों से खत्म सी हो रही थी
एकांश बस ये जानना चाहता था के अक्षिता ठीक है या नहीं लेकिन कैसे ये उसे समझ नहीं आ रहा था.... वो उसे कॉल नहीं कर सकता था क्युकी उसे पता था अक्षिता उसके कॉल नहीं उठाएगी, कल भी जब उसने ऑफिस ने उसे कॉल लगाया था तब उसने कॉल नहीं उठाया था और वो कॉल वॉयसमेल पे चला गया था, उसने इस बारे मे अक्षिता के दोस्तों से भी पूछा था लेकिन उन्होंने ये कह दिया के वो ठीक है और उनका जवाब एकांश को संतुष्ट नहीं कर पाया था
एकांश ऑफिस से अपने घर की ओर निकल गया था लेकिन उसने दिल दिमाग मे बस अक्षिता ही छाई हुई थी और एकांश ने अपनी गाड़ी अक्षिता के घर की ओर मोड दी और उसके घर के सामने जाकर रुका, एकांश अपनी गाड़ी से उतरा और उसने अक्षिता के घर की ओर देखा जहा एकदम अंधेरा था और एकदम ही शांति थी
घर मे कोई भी लाइट नहीं जल रही थी और दरवाजे पर ताला लगा हुआ था, एकांश ने सोचा के वो कही बाहर गए होंगे तो वो भी वहा से चला गया
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अगला दिन एकांश के लिए काफी भारी था उसकी बैक तो बैक मीटिंग्स थी और आज उसे कई डीलस् फाइनल करनी थी और कुछ प्रोजेक्ट्स चल रहे थे उनकी भी डेड्लाइन थी तो एकांश का पूरा ध्यान अपने काम पर था और जब भी वो रोहन या स्वरा को देखता उनसे मिलता तो कुछ पता चलेगा इस उम्मीद मे उन्हे देखता लेकिन वो दोनों ही एकांश को देख नजरे चुराने लगते थे
“कम इन” एकांश ने अपने केबिन मे दरवाजे पर नॉक सुन कहा
“एकांश, अब बता क्यू बुलाया है इतनी जल्दी मे” अमर अंदर आया और एकांश के सामने रखी खुर्ची पर बैठते हुए बोला
“पता नहीं भाई, मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है, लग रहा है कुछ तो बुरा होने वाला है कुछ तो गलत हो रहा है और मैं उसमे कुछ नहीं कर पा रहा हु” एकांश ने कहा
“क्या हुआ है बताएगा”
“डर लग रहा है भाई”
“कैसा डर” अब अमर भी परेशान हो रहा था
“सच का डर, मुझे सच जानना है लेकिन ये भी पता है के सच अपने साथ दर्द और तकलीफ दोनों लाएगा, ऊपर से अक्षिता ऑफिस नहीं आ रही है ना मेरे कॉल उठा रही है और जब कल मैं उसके घर गया तो वहा भी कोई नहीं था अब मुझे समझ नहीं आ रहा मैं क्या करू?” एकांश ने अपने हाथों पे अपना सर टिकाते हुए कहा
“एकांश, थोड़ा रीलैक्स कर और मुझे बता तूने आंटी से इस बारे मे बात नहीं की?”
“करने की कोशिश की थी उसी दिन लेकिन मा घर पर नहीं है और मैं ये बात फोन पर नहीं करना चाहता”
“तो उन्हे कॉल करके पुछ वो कब आ रही है और तुम्हें उनसे कुछ जरूरी बात करनी है”
“तुझे क्या लगता है मैंने बात नहीं की है उन्होंने कहा है जल्दी आएंगी लेकिन उसको भी दो दिन हो गए है रुक एक और बार कॉल लगाता हु” और इतना बोल एकांश ने अपना फोन उठाया और तभी उसके लपटॉप पर एक ईमेल आया, एकांश वैसे तो इस वक्त उस ईमेल को देखने के मूड मे नहीं था लेकिन ये ईमेल उस इंसान से आया था जिसे देखने के लिए वो बेचैन था
“एकांश, क्या हुआ?” एकांश के रुके हाथ देख अमर ने पूछा
“अक्षिता का ईमेल आया है” एकांश ने थोड़ा एक्सईट होकर कहा और ईमेल ओपन किया
एकांश ने ईमेल पढ़ा, फिर एक और बार पढ़ा, फिर एक और बार पढ़ा मानो कन्फर्म कर रहा हो के उसने सही पढ़ा है ना और फिर वही सुन्न का सपनी खुर्ची पर बैठा रहा
“एकांश क्या है ईमेल मे” अमर ने जब अपने दोस्त के चेहरे के बदलते हाव भाव देखे तब पूछा
“वो चली गई” एकांश ने स्क्रीन को देखते हुए कहा
“क्या मतलब?” अमर भी अपनी जगह से उठ एकांश के पास आया
“उसने जॉब से रिजाइन कर दिया है” एकांश ने अमर को देखते हुए कहा
“क्या?? क्यू??” अमर भी ये बात सुन एकांश जितना ही शॉक था
एकांश बस उस ईमेल को गुस्से मे घूर रहा था, उसके अंदर गुस्सा उबलने लगा था वही अमर बस देखने के अलावा कुछ और नहीं कर पा रहा था और एकांश ने अपना फोन उठाया
“मिस पूजा मिस्टर रोहन और मिस स्वरा को अभी मेरे केबिन मे आने कहो” और इतना कह कर एकांश ने फोन पटक दिया
अमर एकांश को शांत करने की कोशिश मे लगा हुआ था
“एकांश रीलैक्स, इस मामले को आराम से हँडल करना होगा ऐसे गुस्से से काम नहीं चलेगा” अमर ने कहा
“रीलैक्स, रीलैक्स कैसे करू डैम इट” एकांश ने गुस्से मे टेबल पर मुक्का मारते हुए कहा, उसका आवाज भी चढ़ गया था और केबिन के बाहर तक सुनाई आ रहा था और एकांश की गुस्से वाली आवाज सुन स्वरा और रोहन दोनों दरवाजे पर ही ठिठके जो अभी अभी वहा पहुचे थे, उन्होंने एकदूसरे को देखा और फिर दरवाजा खटखटाया
“कम इन” एकांश ने चीख कर रहा और वो दोनों थोड़ा डरते हुए ही अंदर आए
“कहा है वो?” एकांश ने गुस्से मे अपने दाँत पीसते हुए पूछा
“कौन सर?” रोहन ने कहा और एकांश ने उसे एकदम गुस्से से घूरा
“वो.. वो अपने घर ही होगी सर” स्वरा ने कहा
“फिर ये क्या है?” एकांश ने अपना लपटॉप उन दोनों की ओर घुमाया
रोहन और स्वरा ने एकदूसरे को देखा और फिर लपटॉप के पास गए उसमे क्या लिखा है देखने, उस ईमेल को पढ़ते हुए रोहन और स्वरा दोनों की आंखे हैरत मे बड़ी हो गई थी और जब उनका पढ़ना हो गया तो एकांश और अमर ने उन्हे देखा
वो ईमेल पढ़ है रोहन और स्वरा दोनों ही एकांश जीतने ही शॉक थे और स्वरा की तो आंखे मे आँसू भी जमने लगे थे, उन दोनों को ही अक्षिता के इस कदम की उम्मीद नहीं थी
“अब बताओ उसने रिजाइन क्यू किया” एकांश ने पूछा
“हमे इस बारे मे कुछ नहीं पता सर” रोहन ने साफ साफ कह दिया
“हमे लगा वो ब्रेक लेने के बाद ऑफिस आ जाएगी लेकिन हमे नहीं पता था वो रिजाइन ही करने वाली है” स्वरा ने रोते कहा
“तो तुम लोगों को सही मे नहीं पता उसने रिजाइन क्यू किया?” अमर ने पूछा
“नहीं, हमे सही मे कुछ नहीं पता” रोहन ने स्वरा को संभालते हुए कहा
एकांश गुस्से मे अपनी जगह से उठाया और अपना कोट उठाया और साथ मे गाड़ी की चाबिया
“एकांश कहा जा रहा है?” अमर ने एकांश का हाथ पकड़ उसे रोका
“उसके घर” एकांश ने अपना हाथ छुड़ाया और जल्दी से दरवाजे की ओर बढ़ा
“लेकिन क्यू?”
“मैं अब और नहीं रुक सकता अमर, मुझे अब जवाब चाहिए” और एकांश उनलोगों को वही छोड़ निकल गया और अमर भी तेजी से उसके पीछे भागा और रोहन और स्वरा भी उनके पीछे हो लिए
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अक्षिता के घर के रास्ते पर हर कोई क्षांत था, कर कीसी के मन मे एक अलग डर था, वहा पहुच कर पहले एकांश कार से उतरा उसके पीछे अमर फिर रोहन और स्वरा और उनलोगों ने एकांश को देखा जो अक्षिता के घर के दरवाजे को घूर रहा था, एकांश के मन मे जो डर था वो सच हो रहा था, अक्षिता के घर पर ताला लगा हुआ था,
वो चली गई थी
वो चली गई थी नौकरी छोड़ के
घर छोड़ के
ये शहर छोड़ के
उसे छोड़ के
एकांश से अब कंट्रोल नहीं हुआ उसने गुस्से मे दरवाजे के बाजू की दीवार पर मुक्का मार दिया, स्वरा भी अक्षिता न नंबर मिलाने मे लगी हुई थी लेकिन अक्षिता का फोन बंद आ रहा था, उसने उसके मा बाप को भी फोन लगाया लेकिन उनका फोन भी बंद ही था
और उसी टाइम एकांश का फोन बजने लगा जो उसने इग्नोर कर दिया लेकिन फोन बार बार बजे ही जा रहा था और जब फोन चौथी बार बजा तब एकांश ने अपनी जेब से फोन निकाला और देखा तो कॉल श्रेया का था, एकांश बस अभी फ्रस्ट्रैशन मे फोन फेकने ही वाला था के अमर ने उसके हाथ से उसका फोन लिया और कॉल ऐन्सर किया और फोन को स्पीकर पर रखा
“हैलो? एकांश, तुम कहा हो यार? और मेरा फोन क्यू नहीं उठा रहे थे ना ही कीसी मैसेज का जवाब दे रहे हो?” फोन के दूसरी ओर से श्रेया ने गुस्से मे कहा
“क्या हो गया श्रेया?” एकांश ने पूछा
“क्या हो गया? तुमको कोई आइडीया भी है यहा क्या हो रहा है?” श्रेया ने गुस्से मे चीख कर कहा
श्रेया को इतने गुस्से मे देख एकांश और अमर दोनों चौके,
“श्रेय क्या हुआ है?” एकांश ने आराम से पूछा
“मैं और मेरी फॅमिली इस वक्त तुम्हारे घर पर है” श्रेया ने कहा और वो चुप हो गई
“क्या? क्यू?” एकांश थोड़ा इस बात पर कन्फ्यूज़ हुआ
“उनकी बातों से और मेरे भाई के दीये हिंट से मैंने पता लगा लिया है के वो तुम्हारे पेरेंट्स से मिलने क्यू आए है” श्रेया ने कहा और अब एकांश अमर रोहन और स्वरा चारों के कान उस फोन पर थे जो इस वक्त कीसी टाइम बॉम्ब की तरह था जो कभी भी फट सकता है और अब श्रेया का आवाज भी धीमा हो गया था वो फुसफुसा के बात कर रही थी
“क्या पता लगा?” अमर ने भी फुसफुसा के पूछा
“तुम फुसफुसा क्यू रहे हो?” श्रेया
“तुम क्यों फुसफुसा रही हो?” अमर ने जवाब दिया
“अमर! तुम एकांश के साथ हो क्या?”
“हा”
“Am I on the speaker phone?”
“यस”
“तुम दोनों अपने सवाल जवाब बंद करोगे? और श्रेया मुझे बताओ क्या बात है” एकांश ने कहा
“ये लोग हम दोनों की.....”
“बोलो श्रेया”
“ये लोग हम दोनों की शादी कराने की प्लैनिंग कर रहे है” आर इसीके साथ श्रेया ने बॉम्ब फोड़ दिया
“क्या!!!!!!” एकांश ने एकदम जोर से कहा
“मुझे.... मुझे इस बारे मे कीसी ने भी कुछ नहीं कहा है” एकांश ने गुस्से मे अपने हाथ की मुट्ठीया भींचते हुए कहा
“मुझे भी इस बारे मे कुछ नहीं पता था एकांश मुझे तो ये अभी पता चला है वो भी इनडायरेक्टली, और ऐसा लग रहा है हम दोनों के पेरेंट्स इस बात से काफी खुश भी है” श्रेया ने कहा वही एकांश अब गुस्से मे उबल रहा था
“इसका मतलब मॉम वापिस आ गई है”
“हा वो भी यही है”
“तुम रुको मैं अभी आ रहा हु श्रेया” और इतना बोल एकांश अपनी कार की ओर बढ़ा और उसके पीछे अमर भी वही रोहन और स्वरा अपने रास्ते जाने के लिए मुड़े तो एकांश ने उन्हे रोक लिया
“तुम दोनों कहा जा रहे हो?”
“घर जा रहे है सर..” उन दोनों ने कहा
“तुम दोनों मेरे साथ आ रहे हो।“ एकांश ने ऑर्डर छोड़ते हुए कहा
“लेकिन क्यू सर?”
“मुझे कुछ जानना है और मुझे पता है तुम दोनों भी कुछ ना कुछ जानते हो तो चुप चाप कार मे बैठो”
अब कीसी के पास बोलने को कुछ नहीं था
कुछ ही देर मे वो एकांश के घर मे थे
एकांश और अमर घर मे घुसे और उनके पीछे रोहन और स्वरा जो उस बड़े से घर को देख रहे थे, सभी लोग मेन गेट से आए थे जहा वो अंदर चल रही बातचित और हसने की आवाजे सुन सकते थे और अब वो लोग लिविंग रूम मे थे जहा सब बात कर रहे थे
वो चारों घर मे लोगों को बात करता देख खड़े थे वही श्रेया अपनी सीट पर बैठी थी और उसके चेहरे से साफ समझ आ रहा था के उसे वहा नहीं रहना था, वही स्वरा के दिमाग मे अब भी अक्षिता का ही खयाल चल रहा था के वो कहा चली गई है कैसी है और रोहन की सोच भी स्वरा से कुछ अलग नहीं थी
अपनी मा को देखते ही एकांश का गुस्सा उबाल मारने लगा था जो अपने बेटे को अंधेरे मे रख यह खुश हो रही थी
‘ये मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती है?”
‘मेरी शादी की बात चल रही है वो भी मुझसे बिना पूछे?’
‘जबकि ये सब लोग जानते है मैं और श्रेया बस दोस्त है फिर भी ये लोग हमसे बगैर पूछे हमारा रिश्ता जड़ने चले है’
‘अब बस बहुत हो गया अब मैं जवाब लेकर रहूँगा’
“क्या चल रहा है यहा” एकांश ने कहा और उसने अपनी कडक और रौबदार आवाज से सबका ध्यान अपनी ओर खिच लिया था सब उसके चेहरे को देख रहे थे जो एकदम ईमोशनलेस था....
क्रमश: