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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–25





आर्यमणि वहां पहुंचकर नीचे बोर्ड पर अपना लात मारा और सभी स्विच एक साथ ऑन कर दिया। जैसे ही स्विच ऑन हुआ कुछ हल्की सी आवाज हुई।… "कमाल का सिविल इंजीनियरिंग है मौसा जी, स्विच कहीं है और दरवाजा कहीं और।" लेकिन इससे पहल की आर्यमणि उस गुप्त दरवाजे तक पहुंच पता, शांताराम के साथ कुछ हथियारबंद लोग अंदर हॉल में प्रवेश कर चुके थे।


इधर आवाज आना सुरु हुआ और पीछे से आ रही बू से आर्यमणि समझ चुका था कि वहां कुछ लोग पहुंच चुके है। लेकिन आर्यमणि सबको अनदेखा कर अपने काम में लगा रहा… "आर्य यहां क्या कर रहे हो।".... पीछे से नौकर शांताराम की आवाज आयि।


आर्यमणि:- सब लोग चले गए है काका और मै बिस्तर पर परे–परे उब गया हूं, शॉकेट से वायर निकाल रहा हूं, ये टीवी मुझे ऊपर के कमरे में चाहिए।


आर्यमणि बिना पीछे पल्टे जवाब दिया। तभी बहुत से लोगों में से किसी एक ने… "आप रहने दीजिए सर, मै नया टीवी मंगवा देता हूं।"… उसकी आवाज़ पर आर्यमणि पीछे पलट गया। आंखों के सामने कई गार्ड खड़े थे। सभी वर्दी में और अत्यआधुनिक हथियारों से लैस...…. "ये सब क्या है काका। इतने हथियारबंद लोग घर के अंदर।"..


शांताराम:- उन्हें लगा घर में कोई चोर घुस आया है, इसलिए ये लोग आ गये।


आर्यमणि:- हम्मम ! माफ कीजिएगा, मुझे इस घर के बारे में पता नहीं था। और हां टीवी रहने दीजिएगा, मै मासी को बोलकर मंगवा लूंगा।


आर्यमणि अपनी बात कहकर वहां से अपने कमरे में निकल गया। बिस्तर पर लेटकर वो अभी हुई घटना पर ध्यान देने लगा। नीचे लगे बोर्ड को ठोका और बड़ी ही धीमी आवाज़ जो मौसा–मासी के ठीक बाजू वाले कमरे से आयी। किताब घर से यह आवाज़ आयी थी।… "मंजिल तो यहीं है बस मंजिल की जाभी के बारे में ज्ञान नहीं। मौसा जी और तेजस दादा के करीब जाना होगा। हम्मम ! मतलब दोनो को कुछ काम का बताना होगा। इन्हे कुछ खास यकीन दिलाना होगा।"


आर्यमणि अपने सोच में डूबा हुआ था, तभी फिर से फोन की रिंग बजी, दूसरी ओर से मीनाक्षी थी। आर्यमणि ने जैसे ही फोन उठाया…. "तुझे टीवी चाहिए क्या आर्य।"..


आर्यमणि:- हद है टीवी वाली बात आपको भी बता दिया ये लोग। नहीं मासी मुझे नहीं चाहिए टीवी, दीदी से मेरी बात करवाओ।


भूमि:- क्या हुआ आर्य..


आर्यमणि:- दीदी यहां रहना मुझे कन्फ्यूजन सा लग रहा है। मै आपके साथ ही रहूंगा।


मीनाक्षी:- मै यही हूं और फोन स्पीकर पर है, मै भी सुन रही हूं।


भूमि:- आई रुको अभी। आर्य तू मेरे साथ ही रहना बस जरा अपनी सिचुएशन एक्सप्लेन कर दे, वरना मेरी आई को खाना नहीं पचेगा।


आर्यमणि:- मैं गहन सोच में था। मुझे लगा मैंने रीछ स्त्री और उसके साथी का लगभग पता लगा ही लिया। मेरे दादा अक्सर कहते थे, "बारीकियों पर यदि गौर किया जाय, फिर किसी भी सिद्धि के स्रोत का पता लगाया जा सकता है। सिद्धियां द्वारा बांधना या मुक्त करना उनका भी पता लगाया जा सकता है।" और जानती हो दीदी अपनी बात को सिद्ध करने के लिए उन्होंने एक ऐसी पुस्तक को खोल डाली जो आम इंसान नही खोल पाये। बस इसी तर्ज पर मैंने रीछ स्त्री के मुक्त करने की पूरी सिद्धि पर ध्यान दिया। बहुत सारे तर्क दिमाग में थे और मैं किसी नतीजे पर पहुंचना चाहता था। लेकिन नतीजे पर पहुंचने से पहले मुझे अपने दिमाग में चल रहे सभी बातों को बिलकुल साफ करना था। ध्यान भटकाने के लिए मैंने सोचा क्यों न आराम से शाम तक टीवी देखा जाये।

बस यही सोचकर हॉल से टीवी निकालकर अपने कमरे में शिफ्ट कर रहा था, तभी 10-15 हथियारबंद लोग आ गए। फिर उन्ही में से एक कहता है मै नई टीवी ला देता हूं। उसे मैने साफ कह दिया की मुझे कुछ भी मंगवाना हो तो वो मैं मासी से मंगवा लूंगा। और देखो इतना कहने के बावजूद भी 5 मिनट बाद मासी का कॉल आ गया। एक टीवी के लिए मै पुरा शर्मिंदा महसूस करने लगा। दीदी तुम ही बताओ मुझे कैसा लगना चाहिए?


सुकेश:- बस रे लड़के। ये सब मेरी गलती है। मै आकर बात करता हूं, और मुझे पता है तुम मेरे यहां वैसे भी नहीं रहेने वाले थे, रहोगे तो भूमि के पास ही। टीवी नहीं तो किसी और बहाने से, नहीं तो किसी और बहाने से।


आर्यमणि:- सॉरी मौसा जी।


जया:- इसका यही तो है बस सॉरी बोलकर बात खत्म करो। ये नहीं को मौसा से अच्छे से बात कर ले।


आर्य:- मौसा ने क्या गलत कहा है, सही ही तो कह रहे है। मेरा दिल कह रहा है कि मै दीदी के पास रहूं। अभी टीवी का इश्यू दिखा तो अपने आप बढ़ गया। कल को हो सकता है कोई और इश्यू हो। अब वो सही कह रहे है तो उसपर मै क्या झूठ कह दू, जबकि समझ वो सारी बात रहे है। मां अब ये दोबारा दिल रखने वाली बात मत करना। मै आप सब को दिल से चाहता हूं, हां साथ में पलक को भी। बस मुझ से ये दिल रखने वाली बातो को उम्मीद नहीं रखो, और ना ही मै अपनी बात से किसी का दिल तोड़ूंगा।


मीनाक्षी:- तेरे तो अभी से लक्षण दिख रहे है।


आर्य:- मै फोन रखता हूं। सब लोग आ जाओ फिर बातें होंगी।


मीनाक्षी:- देखा जया, उसे लग गया कि खिंचाई होगी तो फोन रख दिया। क्यों पलक सुनी ना की दोबारा सुना दूं, उसके दिल का हाल।


पलक बेचारी, पूरे परिवार के सामने पानी–पानी हो गई। लेकिन साथ ही साथ दिल में गुदगुदी सी भी होने लगी थी। सभी लोग शाम के 8 बजे तक लौट आए थे। आज काफी मस्ती हुई। आकर सभी लोग हॉल में ही बैठ गए। कहने को यहां थे तो 3 परिवार थे, लेकिन सबसे छोटा भाई अरुण और उसका पूरा परिवार लगभग कटा ही था। क्योंकि बच्चो को किसी भी भाई–बहन से मतलब नहीं था, अरुण और उसकी पत्नी प्रीति का छल उसके चेहरे से नजर आता था। बावजूद इसके कि उस वक़्त शादी से पहले जया क्यों भागी थी ये बात सामने आने के बाद भी, अरुण ने ऐसा रिएक्ट किया जैसे हो गया हमे क्या करना। जबकि इसी बात को लेकर जो उसने एक बार रिश्ता तोड़ा था फिर तो एक दूसरे को तब देख पाये जब फेसबुक का प्रसार हुआ था।


अगली सुबह सुकेश, भूमि, तेजस और आर्यमणि को अपने साथ लिया और किताब वाले घर में चला आया…. "बाबा, आप आर्य को अंदर ले जाने वाले हो।"..


सवाल की गहराई को समझते हुए सुकेश कहने लगा… "हां शायद। मुझे लगता है चीजें जितनी पारदर्शी रहे उतना ही अच्छा होगा। आर्य वैसे भी है तो परिवार ही।"..


तेजस:- लेकिन बाबा क्या वो चीजों को समझ पाएगा?


सुकेश:- जब मैंने फैसला कर लिया है तो कुछ सोच–समझकर ही किया होगा। और आज से आर्य तुम दोनो का उत्तरदायित्व है, जैसे मैंने तुम्हे चीजें समझाई है, तुम दोनो आर्य को समझाओगे।


आर्यमणि:- क्या कुछ ऐसा है जो मुझे नहीं जानना चाहिए था मौसा जी। या कल अंजाने में मैंने आपका दिल दुखा दिया।


सुकेश:- ज्ञान का प्रसार जितने लोगों में हो अच्छा होता है। बस बात ये है कि तुमसे जिस कार्य को सम्पन्न करवाना चाहते हैं, उसके लिए हमने 25 साल की आयु निर्धारित की है। वो भी केवल प्रहरी समूह के सदस्य के लिए। पहली बार किसी घर के सदस्य को वो चीजें दिखा रहे है।


आर्यमणि:- मौसा जी फिर ये मुझे नहीं देखना है। बाद में आप मुझे प्रहरी सभा में सामिल होने कहोगे और वो मैं नही कर सकता...


तेजस:- मेरी अनुपस्थिति में मेरा प्रतिनिधित्व तो करने जा सकते हो ना। भूमि के साथ खड़े तो हो सकते हो ना। पलक जब अपना जौहर दिखा रही होगी तो उसकी मदद कर सकते हो ना। चित्रा और निशांत के लिए खड़े तो रह सकते हो ना।


आर्यमणि:- सकते वाला तो बात ही नहीं है दादा, मै ही सबसे आगे खड़ा रहूंगा। मै लेकिन प्रहरी समूह का हिस्सा नहीं हूं, बस ये बात मै अभी से साफ कर रहा हूं।


सुकेश:- हम जानते है ये बात। जया और केशव का भी यही मत है, इसलिए उसने तुम्हे कभी प्रहरी समूह के बारे में नहीं बताया और ना ही उसके और हमरे बीच क्या बातें होती थी वो बताया होगा।


सभी लाइब्रेरी में थे। इनकी बातें चल रही थी। इसी बीच दीवार के किनारे से एक गुप्त दरवाजा खुल गया। अंदर का गुप्त कमरा तो वाकई काफी रहस्यमय था। पीछे एक पूरी लाइब्रेरी थी लेकिन इस गुप्त कमरे में भी कई सारी पुस्तक थी। दीवार पर कई सीसे के सेल्फ बने थे, जिसमे कई तरह की वस्तु थी। आर्यमणि उन वस्तुओं का प्रयोग नही जानता था, लेकिन सभी वस्तुओं में कुछ तो खास था। एक सेल्फ के अंदर एक लंबी सी छड़ी थी। ऐसा लग रहा था, मानो किसी जादूगर की छड़ी हो, जिसे दंश कहते थे।आर्यमणि जिज्ञासावश उस सेल्फ को हाथ लगा लिया।


उसने जैसे ही सेल्फ को छुआ, तेज सायरन बजने लगा। आगे चल रहे सुकेश ने पीछे मुड़कर देखा और तेजस को अपनी नजरों से कुछ समझाया। चंद सेकेंड तक अलार्म बजने के बाद बंद हो गया और तेजस उस शेल्फ के पास पहुंचते.…. "ये किसी महान ऋषि का दंश था। वह जब मरने लगे तब उन्होंने इसे प्रहरी समुदाय को सौंप दिया था, ताकि कोई गलत इस्तमाल न कर सके। तब से यह दंश प्रहरी के कड़ी सुरक्षा के बीच रखा गया है?"..


आर्यमणि:– वाउ!!! एक असली पौराणिक वस्तु, जिसे मंत्रों से सिद्ध किया गया है। क्या मैं इसे देख सकता हूं?


तेजस:– नही, इसे कोई हाथ नहीं लगा सकता...


आर्यमणि:– क्या बात कर रहे? क्या मौसा जी भी नही?


तेजस:– कोई नही, मतलब कोई नही...


आर्यमणि:– यदि कोई इसे चुरा ले, या फिर जबरदस्ती हाथ लगाने की कोशिश करे...


तेजस:– ऐसा कभी नहीं हो सकता...


आर्यमणि:– लेकिन फिर भी... यदि ऐसा हुआ तो?


सुकेश, थोड़ा गंभीर आवाज में.… "तेजस ने कहा न... ऐसा हो ही नही सकता... जो बात होगी ही नही उसमे दिमाग लगाने का कोई अर्थ नहीं... हमे ऊपर चलना चाहिए.…


सुकेश ने सबको आगे किया और खुद पीछे–पीछे चलने लगा। लाइब्रेरी के पीछे कमरा और कमरे के अंत में एक घुमावदार सीढ़ी जो ऊपर के ओर जा रही थी। ऊपर के १४ फिट वाले कमरे के पीछे का जो 8 फिट का हिस्सा छिपा था, उसी का रास्ता। आर्यमणि के लिए ऊपर और भी आश्चर्य था। 6 कमरे के पीछे बना 8 फिट चौड़ा 90 फिट लंबा गुप्त हॉल। चारो ओर दीवार पर हथियार टंगे थे। चमचमाती रसियन, जर्मन और यूएस मेड अत्याधुनिक हथियार रखे थे। उसी के नीचे कई साइज के तलवार, भाला, बरछी, जंजीर और ना जाने क्या-क्या। कमरे की दीवार पर तरह-तरह के स्लोक लिखे हुए थे। आर्य चारो ओर का नजारा देखते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था।


चलते-चलते दीदार उस पुस्तक के भी हुए जिसके आकर्षण में आर्यमणि नागपुर आया था। आर्यमणि सबके पीछे ही खड़ा था और उस पुस्तक को अपने पास होने का अनुभव कर रहा था। वो आगे बढ़कर जैसे ही उस पुस्तक को छूने के लिए अपना हाथ आगे बढाया… "नाह ! ऐसे नहीं। इसमें 25 अध्याय है और हर अध्याय को पढ़ने के लिए एक परीक्षा। कुल 25 परीक्षा देने होंगे तभी इस पुस्तक को हाथ लगा सकते हो, इसे पढ़ सकते हो। इसलिए तो इसके जानने की आयु भी हमने 25 वर्ष रखी है।"… शुकेश मुस्कुराते हुए पुस्तक खोलने की विधि का वर्णन करने लगा...


आर्यमणि:- और वो 25 परीक्षाएं क्या है मौसा जी?


सुकेश:- 25 अलग-अलग तरह के हथियारबंद लोगो से एक साथ लड़ना और जीत हासिल करना। लेकिन एक बात ध्यान रहे, लड़ाई के दौरान एक कतरा खून का बहना नहीं चाहिए।


आर्यमणि:- इस से अच्छा मै फिजिक्स, मैथमेटिक्स न पढ़ लूं। वैसे मौसा जी बिना परीक्षा दिए इस किताब को खोले तो..


सुकेश:- एक कोशिश करो, खोलकर दिखाओ इस पुस्तक को।


आर्यमणि आगे बढ़कर किताब के ऊपर ऐसे हाथ फेरा जैसे किसी मासूम बच्चे के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हो। हाथ लगने से ही किताब का रंग बदलना शुरू हो गया। ऊपर का जो काला कवर था वो बदलकर हरे रंग का हो गया और कुछ अजीब सा लिखा आ रहा था।


सुकेश आश्चर्य से आर्यमणि का चेहरा देखते हुए..… "तुमने अभी क्या किया?"


आर्यमणि:- केवल स्पर्श ही तो किया है, आप भी तो यहीं हो।


सुकेश:- किताब तुम्हारे स्पर्श को पहचानती हुई कह रही है, धन्यवाद जो तुम यहां तक पहुंचे, अपने लक्ष्य में कामयाब हो। किताब तुमसे खुश है।


आर्यमणि:- खुश होती तो खुल ना जाती। मुझे तो आप पर शक होता है कि आप कोई सॉलिड जादूगर हो।


सुकेश:- और तू ये क्यों बोल रहा है?


आर्यमणि:- क्योंकि आपने जो अभी किताब के साथ किया वो अद्भुत है। खैर जो भी हो यहां तक लाने का शुक्रिया। मेरी इंजिनियरिंग की बुक ही सही है, मै वही पढूंगा। हर 6 महीने में अपना एग्जाम दूंगा और कोशिश करूंगा किसी विषय में बैक ना लगे।


भूमि:- बाबा चिंता मत करो, इसे मै तैयार करूंगी।


आर्यमणि:- 25 लोग और 25 तरह के हथियार, दीदी मै तो सहिद ही हो जाऊंगा।


भूमि:- बात शहीद की नहीं बल्कि आनंत कीर्ति की है। बाकी मै हूं ना। चलो नीचे चला जाए। आर्य मेरे साथ रहना, मै चाहती हूं यदि मै कहीं भटकूं तो तुम मुझे संभालना।


आर्यमणि:- ठीक है दीदी।


भूमि और आर्यमणि सीधा पहुंचे गेस्ट रूम में, जहां मामा का परिवार रुका हुआ था। गेस्ट रूम का क्या नजारा था। भूमि और आर्यमणि एक ओर दरवाजे के बाहर देख रहे थे जहां हॉल में उसका पूरा परिवार बैठा था। नौकरों की कोई कमी नहीं फिर भी एक बहु अपने हाथ से चाय दे रही थी। बच्चे कभी अपने इस दादी तो कभी अपने उस दादी, तो कभी अपने दादा। जिसके साथ मन हुआ उसके साथ खेल रहे थे। अंदर मामा की फैमिली थी। मामा कुर्सी पर बैठकर मोबाइल चला रहे थे। मामी उसके बाजू में बैठकर मोबाइल चला रही थी। ममेरा भाई–बहन बिस्तर के दोनो किनारे पर लेटकर मोबाइल चला रहे थे। सभी मोबाइल चलाने में इतने मशगूल थे कि होश ही नहीं कमरे में कोई आया है।


भूमि:- वंश, नीर तुम दोनो बाहर जाओ। हमे कुछ जरूरी बात डिस्कस करनी है।


अरुण:- नहीं तुम रहने दो, हम अभी जाकर दीदी से ही डिस्कस कर लेते है।


भूमि:- कोई बात नहीं है मामा जी, जैसा आप ठीक समझे।


भूमि, आर्यमणि के साथ हॉल में चली आयी और पीछे-पीछे मामा और मामी भी.. अरुण, सुकेश के पास खड़ा होकर.… "बड़े जीजाजी, बड़ी दीदी आपसे कुछ बात करनी थी।"


सुकेश:- हां अरुण कहो ना।


अरुण:- जीजाजी वो मै बिजनेस में कहीं फंस गया हूं, आलम यें है कि यदि जल्द से जल्द मैटर सॉल्व नहीं किया तो हम सड़क पर आ जाएंगे।


सुकेश:- हम्मम ! कितने पैसे की जरूरत है।


इस से पहले की अरुण कुछ कहता, जया की भावना फूट पड़ी। अनायास ही उसके मुख से निकल गया.… "अरुण तू कितना स्वार्थी हो गया रे।"


अरुण, चिढ़ते हुए एक बार जया को देखा, इसी बीच उसकी पत्नी कहने लगी… "मुझे तो पहले से पता था कि हम रोड पर भी आ जाए तो भी ये हमारी मदद नहीं करेंगे। जान बूझकर हमे यहां अटकाकर रखे है।"..
 

Chutiyadr

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भाग:–३



आर्यमणि टार्च लेकर आगे बढ़ा और निशांत उसके पीछे-पीछे। दोनो कॉटेज के पीछे एक जगह पर खड़े हो गए और वहां की मिट्टी को खोदना शुरू किया।…. "हां यार ये तो ताजी खुदाई है।"… दोनो जल्दी-जल्दी खोदने लगे तभी आर्यमणि ने हाथ के इशारे से काम रोकने कहा… काम रोकते ही, वहां का पूरा माहोल शांत और किसी इंसान की बिलकुल धीमी आवाज सुनाई देने लगी। कॉटेज के खंडहर से बहुत ही धीमे किसी के दर्द भरी कर्रहट सुनाई दे रही थी। आवाज सुनकर दोनो एक दूसरे को हैरानी से देख रहे थे।


"आर्य तू खोद मैं खंडहर में देखता हूं।".. निशांत अपनी बात कहकर कॉटेज के ओर चल दिया, इधर बस 1 मिनट की खुदाई के बाद ही अंदर जो दफन था वो आंखों के सामने था... गहरा सदमा जैसे दफन था। गहरा आश्चर्य सा दफन था जैसे। आर्यमणि ने एक झलक मात्र तो देखा था और सदमे से वो चित गिड़ा। आर्यमणि को गहरा सदमा लगा। वह बेसुध होकर जमीन पर गिर गया और मुंह से बस मैत्री ही निकला.…


अंदर मैत्री की लाश थी, वो भी आधी। कमर के नीचे का पूरा हिस्सा गायब था और सीने पर वही लॉकेट रखा हुआ था जो मैत्री हमेशा पहना करती थी। आर्यमणि हैरानी से मैत्री को देखते हुए उसका चेहरे पर हाथ फेरने लगा। हाथ फेरने के क्रम में उसने वो लॉकेट जैसे ही अपने हाथ में लिया… कुछ अजीब सा नजारा आर्यमणि की आखों ने देखा। बिल्कुल सोच से परे। इससे पहले की आर्यमणि कुछ और सोचता, निशांत अंदर खंडहर से चिल्लाने लगा। आर्यमणि लॉकेट वापस रखकर गड्ढे को भड़ दिया और निशांत के पास पहुंचा।


आर्यमणि खंडहर में जैसे ही पहुंचा, वहां का नजारा भी बहुत अजीब था। एक बड़ा सा सरिया शूहोत्र के सीने में घुसा हुआ था। शूहोत्र की आंख हल्की खुली हुई और मुंह से दबी हुई दर्द भरी चींख निकल रही थी। शायद अपने दर्द पर काबू पाने की कोशिश कर रहा था। आर्यमणि शूहोत्र के सर पर हाथ रखते हुए निशांत को देखने लगा… "यार, इसे कौन यहां सुलाकर चला गया।"


दूसरी ओर निशांत अपना पूरा बैग खोल चुका था। आर्यमणि ने तुरंत शूहोत्र का ब्लड प्रेशर चेक किया… "निशांत ब्लड प्रेशर बढ़ा है, टैबलेट निकाल।"… ब्लड प्रेशर कम करने की टैबलेट निकालकर.… शूहोत्र इसे अपने जीभ के नीचे रखो, हम ये सरिया निकालने वाले है।" ..


शूहोत्र सहमति में अपना सर हिला दिया। टैबलेट उसके जीभ के नीचे डालकर, दोनो कुछ देर रुके फिर निशांत सुहोत्र का सर अपने हाथ से पकड़कर… "हम सरिया निकालने वाले है, तुम तैयार हो।"


जैसे ही शूहोत्र ने सहमति में सिर हिलाया, आर्यमणि और निशांत की नजरे भी एक दूसरे से सहमति बना रही थी। आर्यमणि शूहोत्र के मुंह में कपड़े का टुकड़ा पुरा ठूंसकर, निशांत को इशारा किया। निशांत पुरा जोड़ लगाकर सरिया को खींचने लगा। सरिया नीचे से जमीन के अंदर घुसे होने के कारण धीरे–धीरे निकल रहा था और इसी के साथ शूहोत्र की पीड़ा भी अपने चरम पर थी। ऐसा लग रहा था दर्द से उसकी आंख बाहर निकल आएगी।


शूहोत्र चिंख़ने के लिए पुरा गला फाड़ रहा था लेकिन मुंह में कपड़ा और कपड़े के बीच में आर्यमणि के हाथ होने के कारण, उसकी चींख गले में ही अटकी हुई थी। तभी अचानक शूहोत्र की आखें बिल्कुल पीली हो गई, कपड़े के बीच में घुसा हुआ आर्यमणि का टेढ़ा किया हुआ हाथ में ऐसा लगा जैसे किसी ने काफी नुकीली कील घुसाकर हथेली फाड़ दी हो।


सरिया निकालने के साथ ही शूहोत्र बेहोश हो गया और आर्यमणि तेज चिंख्ते हुए अपनी कलाई झटका और अपना हाथ शूहोत्र के मुंह से बाहर निकाला। आर्यमणि ने जैसे ही हाथ झटका खून कि बूंद निशांत के चेहरे पर गई… "आर्य तुझे चोट कैसे लगी।"..


आर्यमणि शांत रहने का इशारा करते हुए, टॉर्च की रौशनी को कलाई से ढक दिया…. "शूहोत्र को कोई मारने आया है, टॉर्च बंद कर।"…


तभी शूहोत्र आर्यमणि को खींचकर, उसका कान अपने होंठ के पास लाते…. "अभी समझने का वक़्त नहीं, यहां पुलिस बुलाओ, वरना तुम दोनो नहीं बचोगे। ये लोग प्रोफेशनल है, और अब तक पूरे जंगल में ट्रैप वायर बिछा चुके होंगे।"..


आर्यमणि:- निशांत ये लोग प्रोफेशनल है और जंगल में पुरा ट्रापवायर लगा है।


निशांत:- वायरलेस कर दे क्या?


आर्यमणि:- नहीं उन सबको खतरा हो सकता है। इसे लेकर हम छोटे रास्ते से जाएंगे। तुम बस शिकारी कुत्तों को भरमाने का इंतजाम करो।


निशांत:- समझो हो गया । तुम नीचे उतरने की व्यवस्था करो, मै इन शिकारी कुत्तों का इंतजाम करता हूं।


जंगल और यहां के शिकारियों से दोनो दोस्त काफी वाकिफ थे। इन्हे पता था कि जंगल के शिकारी, अपने शिकार के लिए शिकारी कुत्तों का इस्तमाल करते हैं जिसके सूंघने की क्षमता अद्भुत होती है।


इधर जबतक आर्यमणि ने छोटे रास्ते से जाने और 40 फिट नीचे खड़ी ढलान उतरने का इंतजाम किया, तबतक निशांत ने शिकारी कुत्तों के लिए जाल बुन दिया। कॉटेज से पीछे के ओर बढ़ने वाले पूरे रास्ते को, खून के अजीब गंध से भर दिया। जहां शूहोत्र को सरिया लगा था वहां पर भी खून को उड़ेल दिया, ताकि असली गंध शिकारी कुत्तों के नाक तक नहीं पहुंच पाए।


सब सेट हो गया था। जबतक ये दोनो शूहोत्र को लेकर निकलते, तबतक 20-25 टॉर्च की रौशनी उसी कॉटेज के ओर बढ़ रही थी। दोनो दोस्त ने उसे कंधे पर लादा और 40 फिट नीचे उतरकर, छोटे रास्ते से आगे बढ़ने लगे। खून की गंध ने उन छोटे रास्तों पर तो जैसे हलचल मचा रखा हो।


चारो ओर से आहट आने शुरू हो चुके थे। दोनो अपने साथ लाए छोटी सी मसाल जला लिए। वहां के जानवर आग और रौशनी देखकर कदम पीछे लेने लगे। लेकिन ये तो छोटे मोटे जानवर थे। रात का अंधेरा और इतना घने जंगल में जब खून कि बूंद गिरती हो तो भला शिकारी जानवरो को भनक क्यों ना लगे। देखते ही देखते तीनों को चारो ओर से लोमड़ीयां घेर चुकी थी। जैसे ही उनका पुरा झुंड ने तीनों को घेरा, लोमड़ियां तैयार हो चुकी थी हमला के लिए।


दर्द भरी आवाज़ में शूहोत्र कहने लगा…. "अंधेरा ही कर दो, और बढ़ते रहो। कोई जानवर हमला नहीं करेगा, ये मेरा वादा है। आगे एक किलोमीटर पर मेरी कार खड़ी है, जंगल से निकलकर सीधा एमजी हॉस्पिटल चलना।"


आर्यमणि ने विश्वास दिखाते हुए वहां अंधेरा कर दिया। निशांत और आर्यमणि दोनो को ऐसा लग रहा था मानो उसके साथ-साथ कई जानवर चल रहे है, लेकिन कोई हमला नहीं कर रहा।…. "कमाल है आर्य, पूर्णिमा की रात यहां की लोमड़ी आक्रमक नहीं है उल्टा हमारे साथ चल रही। ये ले एक और चमत्कार। कास कोहरे को छांटकर चांदनी की रौशनी आती तो मै देख पता कि यहां क्या हो रहा है?".. इधर शिकारियों का झुंड जैसे ही उस कॉटेज में पहुंचा, उनका मुखिया चिंखते हुए… "भाग गया वो कमीना। कैसे भी करके उसे ढूंढो। और खत्म कर दो।"


शिकारी कुत्तों को जैसे ही छोड़ा गया वो लोग दौड़ते हुए सीधा ट्रक पर पहुंच गए। वहां ट्रक को देखकर उनका मुखिया कहने लगा… "ओह तो हमारी जानकारी गलत थी, ये तो पूरी टीम के साथ आया है।"..


थोड़ी ही देर में वो लोग एमजी हॉस्पिटल में थे। शूहोत्र को इस हालत में देख तुरंत ही डॉक्टर इंड्रू गजमेर वहां पहुंची। शूहोत्र की हालत का जायजा लेकर उसे तुरंत ओटी में भेज दी और आर्यमणि के हाथ पर लगी पट्टी के नीचे बहते खून को देखती हुई कहने लगी…. "कव्या यहां आकर इस लड़के को अटेंड करो और इसकी चोट पर ड्रेसिंग करो।"… इंद्रू अपनी बात कहकर ओटी में निकल गई और काव्या, आर्यमणि को लेकर माइनर ओटी में चली आयी।


रात के तकरीबन 11.30 बज रहे थे। जैसे ही दोनो सिविल लाइन की सड़क से चलते हुए घर के ओर बढ़ रहे थे, सामने उनका रास्ता रोके चित्रा खड़ी थी…. "बाय आर्य, हम जा रहे हैं। यदि तुम मुझे बेहोश न करते तो शायद तुम्हे पता होता की पापा का ट्रांसफर हो चुका हैं। या फिर मेरे जाने का वैसे भी कोई अफसोस नहीं होता क्योंकि जब हम दोस्त ही नही तो फिर मेरे यहां रहने या ना रहने से तुम्हे क्या फक्र पड़ेगा। अब फिर कभी मैं जंगल के लिए नहीं रोकूंगी। तुम अपने मन मर्जी की करते रहो।"


चित्रा अपनी बात कहकर, निशांत का हाथ पकड़ी और वहां से सीधा अपने घर में चली गई। आर्यमणि थोड़ा मायूस जरूर हुआ सुनकर, लेकिन वो चुपचाप अपने घर चला आया। सुबह का पूरा माहौल ही कौतुहल से भरा हुआ था, जब पुलिस फोर्स एक सूचना के आधार पर जंगल पहुंची और वहां उन्हें ट्रक लगी मिली।


गंगटोक की हॉट न्यूज बनी हुई थी क्योंकि 2 आदमी के मरने कि खबर थी और मौके पर ट्रक मिली। और ट्रक में मिली आर्यमणि और निशांत की साइकिल। मामला ये नहीं था कि इनपर किसी भी तरह का खून करने का इल्ज़ाम था, बस मामला ये था कि इतनी रात को आखरी किसकी सूचना पर ये दोनो जंगल गए थे और पुलिस को क्यों नहीं इनफॉर्म किया?


आर्यमणि पूरी कहानी बनाते हुए कहा दिया… "निशांत जाने वाला था और उसकी जिद की वजह से वो जंगल गया था। जंगल जाकर उसे सिकारियों के होने का अनुभव हुआ और साथ में ये भी आभाष हुआ कि ये शिकारी पूरे जंगल में ट्रैप लगाए है, इसलिए रात को पुलिस को सूचित नहीं किया। ताकि कोई केजुअल्टी ना हो और खुद छोटे सस्ते से वापस आ गया।"..


जब क्रॉस वेरिफिकेशन हुआ तब आर्यमणि की सारी बातें सच निकली, केवल उसने शुहोत्र की पूरी कहानी को गायब कर दिया। लेकिन एक आश्चर्य की बात और हो गई जो आर्यमणि को अंदर ही अंदर खाए जा रही थी… "पुलिस को कॉटेज के पास मैत्री की लाश क्यों नहीं मिली?"..


कुलकर्णी जी ने क्या क्लास लगाई आर्यमणि की। वो तो इतने आक्रोशित थे कि गुस्से में उन्होंने 4-5 चमेट भी लगा दिया। केशव और जया को तो सोचकर ही प्राण सूखे जा रहे थे कि कल रात कुछ भी उंच–नीच हो जाती तो आर्यमणि का क्या होता? दोनो ही दंपति अब तूल गए आर्यमणि को नागपुर भेजने।


आर्यमणि:- पापा, मम्मी, आप का गुस्सा सही लेकिन मै अभी गंगटोक छोड़कर नहीं जाऊंगा।


केशव, गुस्से में उसका गला पकड़कर दबाते हुए…. "क्यों नहीं जाएगा यहां से? या फिर हमे चिता पर लिटाने के बाद तुम्हे अक्ल आएगी, की हम तुम्हारे बिना जी नहीं सकते।"..


आर्यमणि:- हां मै जानता हूं आप मेरे बिना जी नहीं सकते और मै मैत्री के बिना। ये बात आप नहीं जानते थे क्या पापा? मैंने आपसे कहा भी था मुझे जर्मनी भेज दो, तब तो आपने मुझे नहीं भेजा। तब आपका स्वार्थ, आपका प्यार, आपका बेटे के प्रति जिम्मेदारी आ गई, फिर आज क्यों मुझे भेज रहे हो?


जया, एक थप्पड़ लगाती…. "अभी इतना बड़ा हो गया है तू.… अपने पापा से ऊंची आवाज में बातें कर रहा। एक लड़की के प्यार को हमारे भावनाओं से तुलना कर रहा। एक बात मै साफ-साफ कहे देती हूं आर्य, आज ही तू यहां से भूमि के पास जाएगा।


आर्यमणि:- एक थप्पड़ क्या 10 मार लो, लेकिन मै अभी यहां से कहीं नहीं जाऊंगा। आप दोनो को पता है मै कोई ज़िद्दी नहीं, और ना ही आप लोगों को दुखी देखना चाहता हूं। लेकिन कल रात जब मै जंगल गया तो पीछे कई सारे सवाल छूट गए। जबतक मै उन सवालों के जवाब नहीं ढूंढ लेता, मै कहीं नहीं जाऊंगा।


दोनो दंपत्ति बात कर ही रहे थे, तभी हॉस्पिटल से कॉल आ गया। आर्यमणि, के पास 2 गार्ड को तैनात करके केशव उनसे साफ कहता गया, "आर्य निकलने की कोशिश करे तो सीधा पाऊं मे गोली मार देना।"


अपनी बात कहकर केशव और जया सीधा हॉस्पिटल पहुंचे। डॉक्टर इंड्रू गजमेर केशव और जया को अपने साथ लिए गई, जहां सुहोत्र एडमिट था। शूहोत्र को देखकर दोनो दंपत्ति थोड़ा हैरान होते.… "तुम यहां क्या कर रहे हो"?


शूहोत्र:- कैसी बातें करते हो, तुम्हारे बेटे ने कुछ भी नहीं बताया क्या?


जया:- क्या नहीं बताया?


शूहोत्र:- मैत्री का कत्ल हो गया और कल रात जिन 2 की लाश मैंने गिराई वो शिकारी थे। बदले मे उसने मेरे सीने मे भी सरिया घुसा दिया था।


मैत्री के मरने की खबर से ही जया और केशव के होश उड़ गए। दोनो आर्यमणि की हालत का अब पूरा अंदाजा लगा सकते थे। उसके बदले व्यवहार के पीछे का कारण समझ में आ चुका था... जया, शुहोत्र को सवालिया नजरों से देखती... "भाग्यशाली रहे जो शिकारियों के हाथ से बच निकले.….


शूहोत्र:- हां लेकिन मैत्री उतनी भाग्यशाली नहीं थी। ओह हां, अभी तो तुम दोनो का बेटा पागल बना हुआ होगा ना, मैत्री के कातिलों को ढूंढने के लिए।


जया:- अपनी जुबान संभाल कर। मैत्री ना तो तुम लोगों जैसी थी और वो ना कभी हो सकती थी। उसके कत्ल का सुनकर हमारे अंदर भी वही चल रहा है जो तुम्हारे अंदर। लेकिन आर्य को दूर ही रखो.…



शूहोत्र:- दूर रखना है तो ध्यान से सुन लो, मुझे शिकारियों से बचाकर यहां से सुरक्षित निकालो। वरना मैं तो अब किसी विधि जर्मनी निकल ही जाऊंगा, लेकिन जाने से पहले आर्यमणि को वो ज्ञान देता चला जाऊंगा, जिसके शाये से तुम अपने बेटे को दूर रखना चाहते थे।


केशव:- तुम्हे कब निकालना है?


शूहोत्र:- काफी गहरा ज़ख्म मिला है मुझे भी, लेकिन 2 दिन बाद की फ्लाइट है और मैं निश्चित जाऊंगा।


जया:- जिसने भी मैत्री को मारा है, फिर चाहे जो कोई भी हो, मेरा वादा है उसे मैं देख लूंगी। हमारा पूरा परिवार जिन मामलों से दूर है, उसमे घसीटने की कोशिश भी मत करना।


शूहोत्र:- ऐसा होता तो तुम्हारे बेटे को कल ही सरी बातें पता चल जाती। मेरी बहन को मार डाला, मै यहां पड़ा हूं, लेकिन फिर भी तुम दोनो को मैंने बुलवाया। मैं जानता हूं मैं यहां कुछ नहीं कर सकता। इसलिए जो कर सकते हैं, उन तक अपनी आवाज पहुंचा रहा हूं। मैं यहां खुद नहीं आया, मैत्री के पीछे आया था। हां लेकिन यहां से जाने से पहले इतना ही कहूंगा, मैत्री की चाहत ने उसकी जान ली है। पिछले कई सालों से मैत्री भी अपने परिवार की नहीं थी।


केशव:- हम आर्य को लेकर बहुत परेशान थे शायद यही वजह थी कि तुम्हारा दर्द देख नहीं पाए। तुम हॉस्पिटल से निकलने से पहले मुझे एक बार बता देना।


शूहोत्र:- तुमने इतना कह दिया काफी है। जाओ आर्यमणि को संभालो।


भले ही आर्यमणि खुद को कितना भी सामान्य दिखाने की कोशिश कर ले, किंतु मैत्री की लाश देखने के बाद वह बिल्कुल भी सामान्य नहीं हो सकता। मैत्री की मौत की खबर सुनने के बाद दोनो दंपत्ति जैसे बेचैन हो गए हो। क्योंकि उन्हें पता था कि आर्यमणि को पता है कि मैत्री की लाश शिकारियों ने गिराई है और वो सुराग ढूंढ कर उसके पीछे जायेगा... आर्यमणि उन शिकारियों के पीछे, जिसके शाए से भी अब तक आर्यमणि को दूर रखा गया था।


दोनो दंपत्ति हड़बड़ी में घर पहुंचे, लेकिन पता चला आर्यमणि गायब है। दोनो भागते हुए जंगल पहुंचे। 400 पुलिसवालों ने लोपचे के पूरे खंडहर को छान मारा लेकिन वहां कुछ नहीं मिला।


इसके पूर्व आर्यमणि गार्ड्स की आंखों में धूल झोंककर सीधा जंगल पहुंचा। बहुत देर तक वो मैत्री के कत्ल की सुराग ढूंढने की कोशिश करता रहा। उसे बहुत ज्यादा जानकारी हाथ तो नहीं लगी, लेकिन मैत्री का बैग जरूर मिला, जिसमे उसकी कई सारे सामान के साथ एक डायरी थी, और हर पन्ने पर आर्यमणि के लिए कुछ ना कुछ था। और उसी बैग से आर्यमणि के हाथ कुछ ऐसा भी लगा जिसे वह नजरंदाज नहीं कर सकता था.…
Yanha to kai suspense hai, lag raha hai Aaj ratjaga hone wala hai mera
 

jitutripathi00

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भाग:–25





आर्यमणि वहां पहुंचकर नीचे बोर्ड पर अपना लात मारा और सभी स्विच एक साथ ऑन कर दिया। जैसे ही स्विच ऑन हुआ कुछ हल्की सी आवाज हुई।… "कमाल का सिविल इंजीनियरिंग है मौसा जी, स्विच कहीं है और दरवाजा कहीं और।" लेकिन इससे पहल की आर्यमणि उस गुप्त दरवाजे तक पहुंच पता, शांताराम के साथ कुछ हथियारबंद लोग अंदर हॉल में प्रवेश कर चुके थे।


इधर आवाज आना सुरु हुआ और पीछे से आ रही बू से आर्यमणि समझ चुका था कि वहां कुछ लोग पहुंच चुके है। लेकिन आर्यमणि सबको अनदेखा कर अपने काम में लगा रहा… "आर्य यहां क्या कर रहे हो।".... पीछे से नौकर शांताराम की आवाज आयि।


आर्यमणि:- सब लोग चले गए है काका और मै बिस्तर पर परे–परे उब गया हूं, शॉकेट से वायर निकाल रहा हूं, ये टीवी मुझे ऊपर के कमरे में चाहिए।


आर्यमणि बिना पीछे पल्टे जवाब दिया। तभी बहुत से लोगों में से किसी एक ने… "आप रहने दीजिए सर, मै नया टीवी मंगवा देता हूं।"… उसकी आवाज़ पर आर्यमणि पीछे पलट गया। आंखों के सामने कई गार्ड खड़े थे। सभी वर्दी में और अत्यआधुनिक हथियारों से लैस...…. "ये सब क्या है काका। इतने हथियारबंद लोग घर के अंदर।"..


शांताराम:- उन्हें लगा घर में कोई चोर घुस आया है, इसलिए ये लोग आ गये।


आर्यमणि:- हम्मम ! माफ कीजिएगा, मुझे इस घर के बारे में पता नहीं था। और हां टीवी रहने दीजिएगा, मै मासी को बोलकर मंगवा लूंगा।


आर्यमणि अपनी बात कहकर वहां से अपने कमरे में निकल गया। बिस्तर पर लेटकर वो अभी हुई घटना पर ध्यान देने लगा। नीचे लगे बोर्ड को ठोका और बड़ी ही धीमी आवाज़ जो मौसा–मासी के ठीक बाजू वाले कमरे से आयी। किताब घर से यह आवाज़ आयी थी।… "मंजिल तो यहीं है बस मंजिल की जाभी के बारे में ज्ञान नहीं। मौसा जी और तेजस दादा के करीब जाना होगा। हम्मम ! मतलब दोनो को कुछ काम का बताना होगा। इन्हे कुछ खास यकीन दिलाना होगा।"


आर्यमणि अपने सोच में डूबा हुआ था, तभी फिर से फोन की रिंग बजी, दूसरी ओर से मीनाक्षी थी। आर्यमणि ने जैसे ही फोन उठाया…. "तुझे टीवी चाहिए क्या आर्य।"..


आर्यमणि:- हद है टीवी वाली बात आपको भी बता दिया ये लोग। नहीं मासी मुझे नहीं चाहिए टीवी, दीदी से मेरी बात करवाओ।


भूमि:- क्या हुआ आर्य..


आर्यमणि:- दीदी यहां रहना मुझे कन्फ्यूजन सा लग रहा है। मै आपके साथ ही रहूंगा।


मीनाक्षी:- मै यही हूं और फोन स्पीकर पर है, मै भी सुन रही हूं।


भूमि:- आई रुको अभी। आर्य तू मेरे साथ ही रहना बस जरा अपनी सिचुएशन एक्सप्लेन कर दे, वरना मेरी आई को खाना नहीं पचेगा।


आर्यमणि:- मैं गहन सोच में था। मुझे लगा मैंने रीछ स्त्री और उसके साथी का लगभग पता लगा ही लिया। मेरे दादा अक्सर कहते थे, "बारीकियों पर यदि गौर किया जाय, फिर किसी भी सिद्धि के स्रोत का पता लगाया जा सकता है। सिद्धियां द्वारा बांधना या मुक्त करना उनका भी पता लगाया जा सकता है।" और जानती हो दीदी अपनी बात को सिद्ध करने के लिए उन्होंने एक ऐसी पुस्तक को खोल डाली जो आम इंसान नही खोल पाये। बस इसी तर्ज पर मैंने रीछ स्त्री के मुक्त करने की पूरी सिद्धि पर ध्यान दिया। बहुत सारे तर्क दिमाग में थे और मैं किसी नतीजे पर पहुंचना चाहता था। लेकिन नतीजे पर पहुंचने से पहले मुझे अपने दिमाग में चल रहे सभी बातों को बिलकुल साफ करना था। ध्यान भटकाने के लिए मैंने सोचा क्यों न आराम से शाम तक टीवी देखा जाये।

बस यही सोचकर हॉल से टीवी निकालकर अपने कमरे में शिफ्ट कर रहा था, तभी 10-15 हथियारबंद लोग आ गए। फिर उन्ही में से एक कहता है मै नई टीवी ला देता हूं। उसे मैने साफ कह दिया की मुझे कुछ भी मंगवाना हो तो वो मैं मासी से मंगवा लूंगा। और देखो इतना कहने के बावजूद भी 5 मिनट बाद मासी का कॉल आ गया। एक टीवी के लिए मै पुरा शर्मिंदा महसूस करने लगा। दीदी तुम ही बताओ मुझे कैसा लगना चाहिए?


सुकेश:- बस रे लड़के। ये सब मेरी गलती है। मै आकर बात करता हूं, और मुझे पता है तुम मेरे यहां वैसे भी नहीं रहेने वाले थे, रहोगे तो भूमि के पास ही। टीवी नहीं तो किसी और बहाने से, नहीं तो किसी और बहाने से।


आर्यमणि:- सॉरी मौसा जी।


जया:- इसका यही तो है बस सॉरी बोलकर बात खत्म करो। ये नहीं को मौसा से अच्छे से बात कर ले।


आर्य:- मौसा ने क्या गलत कहा है, सही ही तो कह रहे है। मेरा दिल कह रहा है कि मै दीदी के पास रहूं। अभी टीवी का इश्यू दिखा तो अपने आप बढ़ गया। कल को हो सकता है कोई और इश्यू हो। अब वो सही कह रहे है तो उसपर मै क्या झूठ कह दू, जबकि समझ वो सारी बात रहे है। मां अब ये दोबारा दिल रखने वाली बात मत करना। मै आप सब को दिल से चाहता हूं, हां साथ में पलक को भी। बस मुझ से ये दिल रखने वाली बातो को उम्मीद नहीं रखो, और ना ही मै अपनी बात से किसी का दिल तोड़ूंगा।


मीनाक्षी:- तेरे तो अभी से लक्षण दिख रहे है।


आर्य:- मै फोन रखता हूं। सब लोग आ जाओ फिर बातें होंगी।


मीनाक्षी:- देखा जया, उसे लग गया कि खिंचाई होगी तो फोन रख दिया। क्यों पलक सुनी ना की दोबारा सुना दूं, उसके दिल का हाल।


पलक बेचारी, पूरे परिवार के सामने पानी–पानी हो गई। लेकिन साथ ही साथ दिल में गुदगुदी सी भी होने लगी थी। सभी लोग शाम के 8 बजे तक लौट आए थे। आज काफी मस्ती हुई। आकर सभी लोग हॉल में ही बैठ गए। कहने को यहां थे तो 3 परिवार थे, लेकिन सबसे छोटा भाई अरुण और उसका पूरा परिवार लगभग कटा ही था। क्योंकि बच्चो को किसी भी भाई–बहन से मतलब नहीं था, अरुण और उसकी पत्नी प्रीति का छल उसके चेहरे से नजर आता था। बावजूद इसके कि उस वक़्त शादी से पहले जया क्यों भागी थी ये बात सामने आने के बाद भी, अरुण ने ऐसा रिएक्ट किया जैसे हो गया हमे क्या करना। जबकि इसी बात को लेकर जो उसने एक बार रिश्ता तोड़ा था फिर तो एक दूसरे को तब देख पाये जब फेसबुक का प्रसार हुआ था।


अगली सुबह सुकेश, भूमि, तेजस और आर्यमणि को अपने साथ लिया और किताब वाले घर में चला आया…. "बाबा, आप आर्य को अंदर ले जाने वाले हो।"..


सवाल की गहराई को समझते हुए सुकेश कहने लगा… "हां शायद। मुझे लगता है चीजें जितनी पारदर्शी रहे उतना ही अच्छा होगा। आर्य वैसे भी है तो परिवार ही।"..


तेजस:- लेकिन बाबा क्या वो चीजों को समझ पाएगा?


सुकेश:- जब मैंने फैसला कर लिया है तो कुछ सोच–समझकर ही किया होगा। और आज से आर्य तुम दोनो का उत्तरदायित्व है, जैसे मैंने तुम्हे चीजें समझाई है, तुम दोनो आर्य को समझाओगे।


आर्यमणि:- क्या कुछ ऐसा है जो मुझे नहीं जानना चाहिए था मौसा जी। या कल अंजाने में मैंने आपका दिल दुखा दिया।


सुकेश:- ज्ञान का प्रसार जितने लोगों में हो अच्छा होता है। बस बात ये है कि तुमसे जिस कार्य को सम्पन्न करवाना चाहते हैं, उसके लिए हमने 25 साल की आयु निर्धारित की है। वो भी केवल प्रहरी समूह के सदस्य के लिए। पहली बार किसी घर के सदस्य को वो चीजें दिखा रहे है।


आर्यमणि:- मौसा जी फिर ये मुझे नहीं देखना है। बाद में आप मुझे प्रहरी सभा में सामिल होने कहोगे और वो मैं नही कर सकता...


तेजस:- मेरी अनुपस्थिति में मेरा प्रतिनिधित्व तो करने जा सकते हो ना। भूमि के साथ खड़े तो हो सकते हो ना। पलक जब अपना जौहर दिखा रही होगी तो उसकी मदद कर सकते हो ना। चित्रा और निशांत के लिए खड़े तो रह सकते हो ना।


आर्यमणि:- सकते वाला तो बात ही नहीं है दादा, मै ही सबसे आगे खड़ा रहूंगा। मै लेकिन प्रहरी समूह का हिस्सा नहीं हूं, बस ये बात मै अभी से साफ कर रहा हूं।


सुकेश:- हम जानते है ये बात। जया और केशव का भी यही मत है, इसलिए उसने तुम्हे कभी प्रहरी समूह के बारे में नहीं बताया और ना ही उसके और हमरे बीच क्या बातें होती थी वो बताया होगा।


सभी लाइब्रेरी में थे। इनकी बातें चल रही थी। इसी बीच दीवार के किनारे से एक गुप्त दरवाजा खुल गया। अंदर का गुप्त कमरा तो वाकई काफी रहस्यमय था। पीछे एक पूरी लाइब्रेरी थी लेकिन इस गुप्त कमरे में भी कई सारी पुस्तक थी। दीवार पर कई सीसे के सेल्फ बने थे, जिसमे कई तरह की वस्तु थी। आर्यमणि उन वस्तुओं का प्रयोग नही जानता था, लेकिन सभी वस्तुओं में कुछ तो खास था। एक सेल्फ के अंदर एक लंबी सी छड़ी थी। ऐसा लग रहा था, मानो किसी जादूगर की छड़ी हो, जिसे दंश कहते थे।आर्यमणि जिज्ञासावश उस सेल्फ को हाथ लगा लिया।


उसने जैसे ही सेल्फ को छुआ, तेज सायरन बजने लगा। आगे चल रहे सुकेश ने पीछे मुड़कर देखा और तेजस को अपनी नजरों से कुछ समझाया। चंद सेकेंड तक अलार्म बजने के बाद बंद हो गया और तेजस उस शेल्फ के पास पहुंचते.…. "ये किसी महान ऋषि का दंश था। वह जब मरने लगे तब उन्होंने इसे प्रहरी समुदाय को सौंप दिया था, ताकि कोई गलत इस्तमाल न कर सके। तब से यह दंश प्रहरी के कड़ी सुरक्षा के बीच रखा गया है?"..


आर्यमणि:– वाउ!!! एक असली पौराणिक वस्तु, जिसे मंत्रों से सिद्ध किया गया है। क्या मैं इसे देख सकता हूं?


तेजस:– नही, इसे कोई हाथ नहीं लगा सकता...


आर्यमणि:– क्या बात कर रहे? क्या मौसा जी भी नही?


तेजस:– कोई नही, मतलब कोई नही...


आर्यमणि:– यदि कोई इसे चुरा ले, या फिर जबरदस्ती हाथ लगाने की कोशिश करे...


तेजस:– ऐसा कभी नहीं हो सकता...


आर्यमणि:– लेकिन फिर भी... यदि ऐसा हुआ तो?


सुकेश, थोड़ा गंभीर आवाज में.… "तेजस ने कहा न... ऐसा हो ही नही सकता... जो बात होगी ही नही उसमे दिमाग लगाने का कोई अर्थ नहीं... हमे ऊपर चलना चाहिए.…


सुकेश ने सबको आगे किया और खुद पीछे–पीछे चलने लगा। लाइब्रेरी के पीछे कमरा और कमरे के अंत में एक घुमावदार सीढ़ी जो ऊपर के ओर जा रही थी। ऊपर के १४ फिट वाले कमरे के पीछे का जो 8 फिट का हिस्सा छिपा था, उसी का रास्ता। आर्यमणि के लिए ऊपर और भी आश्चर्य था। 6 कमरे के पीछे बना 8 फिट चौड़ा 90 फिट लंबा गुप्त हॉल। चारो ओर दीवार पर हथियार टंगे थे। चमचमाती रसियन, जर्मन और यूएस मेड अत्याधुनिक हथियार रखे थे। उसी के नीचे कई साइज के तलवार, भाला, बरछी, जंजीर और ना जाने क्या-क्या। कमरे की दीवार पर तरह-तरह के स्लोक लिखे हुए थे। आर्य चारो ओर का नजारा देखते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था।


चलते-चलते दीदार उस पुस्तक के भी हुए जिसके आकर्षण में आर्यमणि नागपुर आया था। आर्यमणि सबके पीछे ही खड़ा था और उस पुस्तक को अपने पास होने का अनुभव कर रहा था। वो आगे बढ़कर जैसे ही उस पुस्तक को छूने के लिए अपना हाथ आगे बढाया… "नाह ! ऐसे नहीं। इसमें 25 अध्याय है और हर अध्याय को पढ़ने के लिए एक परीक्षा। कुल 25 परीक्षा देने होंगे तभी इस पुस्तक को हाथ लगा सकते हो, इसे पढ़ सकते हो। इसलिए तो इसके जानने की आयु भी हमने 25 वर्ष रखी है।"… शुकेश मुस्कुराते हुए पुस्तक खोलने की विधि का वर्णन करने लगा...


आर्यमणि:- और वो 25 परीक्षाएं क्या है मौसा जी?


सुकेश:- 25 अलग-अलग तरह के हथियारबंद लोगो से एक साथ लड़ना और जीत हासिल करना। लेकिन एक बात ध्यान रहे, लड़ाई के दौरान एक कतरा खून का बहना नहीं चाहिए।


आर्यमणि:- इस से अच्छा मै फिजिक्स, मैथमेटिक्स न पढ़ लूं। वैसे मौसा जी बिना परीक्षा दिए इस किताब को खोले तो..


सुकेश:- एक कोशिश करो, खोलकर दिखाओ इस पुस्तक को।


आर्यमणि आगे बढ़कर किताब के ऊपर ऐसे हाथ फेरा जैसे किसी मासूम बच्चे के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हो। हाथ लगने से ही किताब का रंग बदलना शुरू हो गया। ऊपर का जो काला कवर था वो बदलकर हरे रंग का हो गया और कुछ अजीब सा लिखा आ रहा था।


सुकेश आश्चर्य से आर्यमणि का चेहरा देखते हुए..… "तुमने अभी क्या किया?"


आर्यमणि:- केवल स्पर्श ही तो किया है, आप भी तो यहीं हो।


सुकेश:- किताब तुम्हारे स्पर्श को पहचानती हुई कह रही है, धन्यवाद जो तुम यहां तक पहुंचे, अपने लक्ष्य में कामयाब हो। किताब तुमसे खुश है।


आर्यमणि:- खुश होती तो खुल ना जाती। मुझे तो आप पर शक होता है कि आप कोई सॉलिड जादूगर हो।


सुकेश:- और तू ये क्यों बोल रहा है?


आर्यमणि:- क्योंकि आपने जो अभी किताब के साथ किया वो अद्भुत है। खैर जो भी हो यहां तक लाने का शुक्रिया। मेरी इंजिनियरिंग की बुक ही सही है, मै वही पढूंगा। हर 6 महीने में अपना एग्जाम दूंगा और कोशिश करूंगा किसी विषय में बैक ना लगे।


भूमि:- बाबा चिंता मत करो, इसे मै तैयार करूंगी।


आर्यमणि:- 25 लोग और 25 तरह के हथियार, दीदी मै तो सहिद ही हो जाऊंगा।


भूमि:- बात शहीद की नहीं बल्कि आनंत कीर्ति की है। बाकी मै हूं ना। चलो नीचे चला जाए। आर्य मेरे साथ रहना, मै चाहती हूं यदि मै कहीं भटकूं तो तुम मुझे संभालना।


आर्यमणि:- ठीक है दीदी।


भूमि और आर्यमणि सीधा पहुंचे गेस्ट रूम में, जहां मामा का परिवार रुका हुआ था। गेस्ट रूम का क्या नजारा था। भूमि और आर्यमणि एक ओर दरवाजे के बाहर देख रहे थे जहां हॉल में उसका पूरा परिवार बैठा था। नौकरों की कोई कमी नहीं फिर भी एक बहु अपने हाथ से चाय दे रही थी। बच्चे कभी अपने इस दादी तो कभी अपने उस दादी, तो कभी अपने दादा। जिसके साथ मन हुआ उसके साथ खेल रहे थे। अंदर मामा की फैमिली थी। मामा कुर्सी पर बैठकर मोबाइल चला रहे थे। मामी उसके बाजू में बैठकर मोबाइल चला रही थी। ममेरा भाई–बहन बिस्तर के दोनो किनारे पर लेटकर मोबाइल चला रहे थे। सभी मोबाइल चलाने में इतने मशगूल थे कि होश ही नहीं कमरे में कोई आया है।


भूमि:- वंश, नीर तुम दोनो बाहर जाओ। हमे कुछ जरूरी बात डिस्कस करनी है।


अरुण:- नहीं तुम रहने दो, हम अभी जाकर दीदी से ही डिस्कस कर लेते है।


भूमि:- कोई बात नहीं है मामा जी, जैसा आप ठीक समझे।


भूमि, आर्यमणि के साथ हॉल में चली आयी और पीछे-पीछे मामा और मामी भी.. अरुण, सुकेश के पास खड़ा होकर.… "बड़े जीजाजी, बड़ी दीदी आपसे कुछ बात करनी थी।"


सुकेश:- हां अरुण कहो ना।


अरुण:- जीजाजी वो मै बिजनेस में कहीं फंस गया हूं, आलम यें है कि यदि जल्द से जल्द मैटर सॉल्व नहीं किया तो हम सड़क पर आ जाएंगे।


सुकेश:- हम्मम ! कितने पैसे की जरूरत है।


इस से पहले की अरुण कुछ कहता, जया की भावना फूट पड़ी। अनायास ही उसके मुख से निकल गया.… "अरुण तू कितना स्वार्थी हो गया रे।"


अरुण, चिढ़ते हुए एक बार जया को देखा, इसी बीच उसकी पत्नी कहने लगी… "मुझे तो पहले से पता था कि हम रोड पर भी आ जाए तो भी ये हमारी मदद नहीं करेंगे। जान बूझकर हमे यहां अटकाकर रखे है।"..
Aarya masoom bante hue badi chaturai se us gupt darwaje ke andar us library tk pahuch gya aur wo kitab uske sparsh ko pahchan gyi, jaise aarya hi usko khol sakta hai kahi ye adbhut kitab aarya ka dada ki to nahi hai.
Shanadar update bhai
 

Lib am

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भाग:–25





आर्यमणि वहां पहुंचकर नीचे बोर्ड पर अपना लात मारा और सभी स्विच एक साथ ऑन कर दिया। जैसे ही स्विच ऑन हुआ कुछ हल्की सी आवाज हुई।… "कमाल का सिविल इंजीनियरिंग है मौसा जी, स्विच कहीं है और दरवाजा कहीं और।" लेकिन इससे पहल की आर्यमणि उस गुप्त दरवाजे तक पहुंच पता, शांताराम के साथ कुछ हथियारबंद लोग अंदर हॉल में प्रवेश कर चुके थे।


इधर आवाज आना सुरु हुआ और पीछे से आ रही बू से आर्यमणि समझ चुका था कि वहां कुछ लोग पहुंच चुके है। लेकिन आर्यमणि सबको अनदेखा कर अपने काम में लगा रहा… "आर्य यहां क्या कर रहे हो।".... पीछे से नौकर शांताराम की आवाज आयि।


आर्यमणि:- सब लोग चले गए है काका और मै बिस्तर पर परे–परे उब गया हूं, शॉकेट से वायर निकाल रहा हूं, ये टीवी मुझे ऊपर के कमरे में चाहिए।


आर्यमणि बिना पीछे पल्टे जवाब दिया। तभी बहुत से लोगों में से किसी एक ने… "आप रहने दीजिए सर, मै नया टीवी मंगवा देता हूं।"… उसकी आवाज़ पर आर्यमणि पीछे पलट गया। आंखों के सामने कई गार्ड खड़े थे। सभी वर्दी में और अत्यआधुनिक हथियारों से लैस...…. "ये सब क्या है काका। इतने हथियारबंद लोग घर के अंदर।"..


शांताराम:- उन्हें लगा घर में कोई चोर घुस आया है, इसलिए ये लोग आ गये।


आर्यमणि:- हम्मम ! माफ कीजिएगा, मुझे इस घर के बारे में पता नहीं था। और हां टीवी रहने दीजिएगा, मै मासी को बोलकर मंगवा लूंगा।


आर्यमणि अपनी बात कहकर वहां से अपने कमरे में निकल गया। बिस्तर पर लेटकर वो अभी हुई घटना पर ध्यान देने लगा। नीचे लगे बोर्ड को ठोका और बड़ी ही धीमी आवाज़ जो मौसा–मासी के ठीक बाजू वाले कमरे से आयी। किताब घर से यह आवाज़ आयी थी।… "मंजिल तो यहीं है बस मंजिल की जाभी के बारे में ज्ञान नहीं। मौसा जी और तेजस दादा के करीब जाना होगा। हम्मम ! मतलब दोनो को कुछ काम का बताना होगा। इन्हे कुछ खास यकीन दिलाना होगा।"


आर्यमणि अपने सोच में डूबा हुआ था, तभी फिर से फोन की रिंग बजी, दूसरी ओर से मीनाक्षी थी। आर्यमणि ने जैसे ही फोन उठाया…. "तुझे टीवी चाहिए क्या आर्य।"..


आर्यमणि:- हद है टीवी वाली बात आपको भी बता दिया ये लोग। नहीं मासी मुझे नहीं चाहिए टीवी, दीदी से मेरी बात करवाओ।


भूमि:- क्या हुआ आर्य..


आर्यमणि:- दीदी यहां रहना मुझे कन्फ्यूजन सा लग रहा है। मै आपके साथ ही रहूंगा।


मीनाक्षी:- मै यही हूं और फोन स्पीकर पर है, मै भी सुन रही हूं।


भूमि:- आई रुको अभी। आर्य तू मेरे साथ ही रहना बस जरा अपनी सिचुएशन एक्सप्लेन कर दे, वरना मेरी आई को खाना नहीं पचेगा।


आर्यमणि:- मैं गहन सोच में था। मुझे लगा मैंने रीछ स्त्री और उसके साथी का लगभग पता लगा ही लिया। मेरे दादा अक्सर कहते थे, "बारीकियों पर यदि गौर किया जाय, फिर किसी भी सिद्धि के स्रोत का पता लगाया जा सकता है। सिद्धियां द्वारा बांधना या मुक्त करना उनका भी पता लगाया जा सकता है।" और जानती हो दीदी अपनी बात को सिद्ध करने के लिए उन्होंने एक ऐसी पुस्तक को खोल डाली जो आम इंसान नही खोल पाये। बस इसी तर्ज पर मैंने रीछ स्त्री के मुक्त करने की पूरी सिद्धि पर ध्यान दिया। बहुत सारे तर्क दिमाग में थे और मैं किसी नतीजे पर पहुंचना चाहता था। लेकिन नतीजे पर पहुंचने से पहले मुझे अपने दिमाग में चल रहे सभी बातों को बिलकुल साफ करना था। ध्यान भटकाने के लिए मैंने सोचा क्यों न आराम से शाम तक टीवी देखा जाये।

बस यही सोचकर हॉल से टीवी निकालकर अपने कमरे में शिफ्ट कर रहा था, तभी 10-15 हथियारबंद लोग आ गए। फिर उन्ही में से एक कहता है मै नई टीवी ला देता हूं। उसे मैने साफ कह दिया की मुझे कुछ भी मंगवाना हो तो वो मैं मासी से मंगवा लूंगा। और देखो इतना कहने के बावजूद भी 5 मिनट बाद मासी का कॉल आ गया। एक टीवी के लिए मै पुरा शर्मिंदा महसूस करने लगा। दीदी तुम ही बताओ मुझे कैसा लगना चाहिए?


सुकेश:- बस रे लड़के। ये सब मेरी गलती है। मै आकर बात करता हूं, और मुझे पता है तुम मेरे यहां वैसे भी नहीं रहेने वाले थे, रहोगे तो भूमि के पास ही। टीवी नहीं तो किसी और बहाने से, नहीं तो किसी और बहाने से।


आर्यमणि:- सॉरी मौसा जी।


जया:- इसका यही तो है बस सॉरी बोलकर बात खत्म करो। ये नहीं को मौसा से अच्छे से बात कर ले।


आर्य:- मौसा ने क्या गलत कहा है, सही ही तो कह रहे है। मेरा दिल कह रहा है कि मै दीदी के पास रहूं। अभी टीवी का इश्यू दिखा तो अपने आप बढ़ गया। कल को हो सकता है कोई और इश्यू हो। अब वो सही कह रहे है तो उसपर मै क्या झूठ कह दू, जबकि समझ वो सारी बात रहे है। मां अब ये दोबारा दिल रखने वाली बात मत करना। मै आप सब को दिल से चाहता हूं, हां साथ में पलक को भी। बस मुझ से ये दिल रखने वाली बातो को उम्मीद नहीं रखो, और ना ही मै अपनी बात से किसी का दिल तोड़ूंगा।


मीनाक्षी:- तेरे तो अभी से लक्षण दिख रहे है।


आर्य:- मै फोन रखता हूं। सब लोग आ जाओ फिर बातें होंगी।


मीनाक्षी:- देखा जया, उसे लग गया कि खिंचाई होगी तो फोन रख दिया। क्यों पलक सुनी ना की दोबारा सुना दूं, उसके दिल का हाल।


पलक बेचारी, पूरे परिवार के सामने पानी–पानी हो गई। लेकिन साथ ही साथ दिल में गुदगुदी सी भी होने लगी थी। सभी लोग शाम के 8 बजे तक लौट आए थे। आज काफी मस्ती हुई। आकर सभी लोग हॉल में ही बैठ गए। कहने को यहां थे तो 3 परिवार थे, लेकिन सबसे छोटा भाई अरुण और उसका पूरा परिवार लगभग कटा ही था। क्योंकि बच्चो को किसी भी भाई–बहन से मतलब नहीं था, अरुण और उसकी पत्नी प्रीति का छल उसके चेहरे से नजर आता था। बावजूद इसके कि उस वक़्त शादी से पहले जया क्यों भागी थी ये बात सामने आने के बाद भी, अरुण ने ऐसा रिएक्ट किया जैसे हो गया हमे क्या करना। जबकि इसी बात को लेकर जो उसने एक बार रिश्ता तोड़ा था फिर तो एक दूसरे को तब देख पाये जब फेसबुक का प्रसार हुआ था।


अगली सुबह सुकेश, भूमि, तेजस और आर्यमणि को अपने साथ लिया और किताब वाले घर में चला आया…. "बाबा, आप आर्य को अंदर ले जाने वाले हो।"..


सवाल की गहराई को समझते हुए सुकेश कहने लगा… "हां शायद। मुझे लगता है चीजें जितनी पारदर्शी रहे उतना ही अच्छा होगा। आर्य वैसे भी है तो परिवार ही।"..


तेजस:- लेकिन बाबा क्या वो चीजों को समझ पाएगा?


सुकेश:- जब मैंने फैसला कर लिया है तो कुछ सोच–समझकर ही किया होगा। और आज से आर्य तुम दोनो का उत्तरदायित्व है, जैसे मैंने तुम्हे चीजें समझाई है, तुम दोनो आर्य को समझाओगे।


आर्यमणि:- क्या कुछ ऐसा है जो मुझे नहीं जानना चाहिए था मौसा जी। या कल अंजाने में मैंने आपका दिल दुखा दिया।


सुकेश:- ज्ञान का प्रसार जितने लोगों में हो अच्छा होता है। बस बात ये है कि तुमसे जिस कार्य को सम्पन्न करवाना चाहते हैं, उसके लिए हमने 25 साल की आयु निर्धारित की है। वो भी केवल प्रहरी समूह के सदस्य के लिए। पहली बार किसी घर के सदस्य को वो चीजें दिखा रहे है।


आर्यमणि:- मौसा जी फिर ये मुझे नहीं देखना है। बाद में आप मुझे प्रहरी सभा में सामिल होने कहोगे और वो मैं नही कर सकता...


तेजस:- मेरी अनुपस्थिति में मेरा प्रतिनिधित्व तो करने जा सकते हो ना। भूमि के साथ खड़े तो हो सकते हो ना। पलक जब अपना जौहर दिखा रही होगी तो उसकी मदद कर सकते हो ना। चित्रा और निशांत के लिए खड़े तो रह सकते हो ना।


आर्यमणि:- सकते वाला तो बात ही नहीं है दादा, मै ही सबसे आगे खड़ा रहूंगा। मै लेकिन प्रहरी समूह का हिस्सा नहीं हूं, बस ये बात मै अभी से साफ कर रहा हूं।


सुकेश:- हम जानते है ये बात। जया और केशव का भी यही मत है, इसलिए उसने तुम्हे कभी प्रहरी समूह के बारे में नहीं बताया और ना ही उसके और हमरे बीच क्या बातें होती थी वो बताया होगा।


सभी लाइब्रेरी में थे। इनकी बातें चल रही थी। इसी बीच दीवार के किनारे से एक गुप्त दरवाजा खुल गया। अंदर का गुप्त कमरा तो वाकई काफी रहस्यमय था। पीछे एक पूरी लाइब्रेरी थी लेकिन इस गुप्त कमरे में भी कई सारी पुस्तक थी। दीवार पर कई सीसे के सेल्फ बने थे, जिसमे कई तरह की वस्तु थी। आर्यमणि उन वस्तुओं का प्रयोग नही जानता था, लेकिन सभी वस्तुओं में कुछ तो खास था। एक सेल्फ के अंदर एक लंबी सी छड़ी थी। ऐसा लग रहा था, मानो किसी जादूगर की छड़ी हो, जिसे दंश कहते थे।आर्यमणि जिज्ञासावश उस सेल्फ को हाथ लगा लिया।


उसने जैसे ही सेल्फ को छुआ, तेज सायरन बजने लगा। आगे चल रहे सुकेश ने पीछे मुड़कर देखा और तेजस को अपनी नजरों से कुछ समझाया। चंद सेकेंड तक अलार्म बजने के बाद बंद हो गया और तेजस उस शेल्फ के पास पहुंचते.…. "ये किसी महान ऋषि का दंश था। वह जब मरने लगे तब उन्होंने इसे प्रहरी समुदाय को सौंप दिया था, ताकि कोई गलत इस्तमाल न कर सके। तब से यह दंश प्रहरी के कड़ी सुरक्षा के बीच रखा गया है?"..


आर्यमणि:– वाउ!!! एक असली पौराणिक वस्तु, जिसे मंत्रों से सिद्ध किया गया है। क्या मैं इसे देख सकता हूं?


तेजस:– नही, इसे कोई हाथ नहीं लगा सकता...


आर्यमणि:– क्या बात कर रहे? क्या मौसा जी भी नही?


तेजस:– कोई नही, मतलब कोई नही...


आर्यमणि:– यदि कोई इसे चुरा ले, या फिर जबरदस्ती हाथ लगाने की कोशिश करे...


तेजस:– ऐसा कभी नहीं हो सकता...


आर्यमणि:– लेकिन फिर भी... यदि ऐसा हुआ तो?


सुकेश, थोड़ा गंभीर आवाज में.… "तेजस ने कहा न... ऐसा हो ही नही सकता... जो बात होगी ही नही उसमे दिमाग लगाने का कोई अर्थ नहीं... हमे ऊपर चलना चाहिए.…


सुकेश ने सबको आगे किया और खुद पीछे–पीछे चलने लगा। लाइब्रेरी के पीछे कमरा और कमरे के अंत में एक घुमावदार सीढ़ी जो ऊपर के ओर जा रही थी। ऊपर के १४ फिट वाले कमरे के पीछे का जो 8 फिट का हिस्सा छिपा था, उसी का रास्ता। आर्यमणि के लिए ऊपर और भी आश्चर्य था। 6 कमरे के पीछे बना 8 फिट चौड़ा 90 फिट लंबा गुप्त हॉल। चारो ओर दीवार पर हथियार टंगे थे। चमचमाती रसियन, जर्मन और यूएस मेड अत्याधुनिक हथियार रखे थे। उसी के नीचे कई साइज के तलवार, भाला, बरछी, जंजीर और ना जाने क्या-क्या। कमरे की दीवार पर तरह-तरह के स्लोक लिखे हुए थे। आर्य चारो ओर का नजारा देखते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था।


चलते-चलते दीदार उस पुस्तक के भी हुए जिसके आकर्षण में आर्यमणि नागपुर आया था। आर्यमणि सबके पीछे ही खड़ा था और उस पुस्तक को अपने पास होने का अनुभव कर रहा था। वो आगे बढ़कर जैसे ही उस पुस्तक को छूने के लिए अपना हाथ आगे बढाया… "नाह ! ऐसे नहीं। इसमें 25 अध्याय है और हर अध्याय को पढ़ने के लिए एक परीक्षा। कुल 25 परीक्षा देने होंगे तभी इस पुस्तक को हाथ लगा सकते हो, इसे पढ़ सकते हो। इसलिए तो इसके जानने की आयु भी हमने 25 वर्ष रखी है।"… शुकेश मुस्कुराते हुए पुस्तक खोलने की विधि का वर्णन करने लगा...


आर्यमणि:- और वो 25 परीक्षाएं क्या है मौसा जी?


सुकेश:- 25 अलग-अलग तरह के हथियारबंद लोगो से एक साथ लड़ना और जीत हासिल करना। लेकिन एक बात ध्यान रहे, लड़ाई के दौरान एक कतरा खून का बहना नहीं चाहिए।


आर्यमणि:- इस से अच्छा मै फिजिक्स, मैथमेटिक्स न पढ़ लूं। वैसे मौसा जी बिना परीक्षा दिए इस किताब को खोले तो..


सुकेश:- एक कोशिश करो, खोलकर दिखाओ इस पुस्तक को।


आर्यमणि आगे बढ़कर किताब के ऊपर ऐसे हाथ फेरा जैसे किसी मासूम बच्चे के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हो। हाथ लगने से ही किताब का रंग बदलना शुरू हो गया। ऊपर का जो काला कवर था वो बदलकर हरे रंग का हो गया और कुछ अजीब सा लिखा आ रहा था।


सुकेश आश्चर्य से आर्यमणि का चेहरा देखते हुए..… "तुमने अभी क्या किया?"


आर्यमणि:- केवल स्पर्श ही तो किया है, आप भी तो यहीं हो।


सुकेश:- किताब तुम्हारे स्पर्श को पहचानती हुई कह रही है, धन्यवाद जो तुम यहां तक पहुंचे, अपने लक्ष्य में कामयाब हो। किताब तुमसे खुश है।


आर्यमणि:- खुश होती तो खुल ना जाती। मुझे तो आप पर शक होता है कि आप कोई सॉलिड जादूगर हो।


सुकेश:- और तू ये क्यों बोल रहा है?


आर्यमणि:- क्योंकि आपने जो अभी किताब के साथ किया वो अद्भुत है। खैर जो भी हो यहां तक लाने का शुक्रिया। मेरी इंजिनियरिंग की बुक ही सही है, मै वही पढूंगा। हर 6 महीने में अपना एग्जाम दूंगा और कोशिश करूंगा किसी विषय में बैक ना लगे।


भूमि:- बाबा चिंता मत करो, इसे मै तैयार करूंगी।


आर्यमणि:- 25 लोग और 25 तरह के हथियार, दीदी मै तो सहिद ही हो जाऊंगा।


भूमि:- बात शहीद की नहीं बल्कि आनंत कीर्ति की है। बाकी मै हूं ना। चलो नीचे चला जाए। आर्य मेरे साथ रहना, मै चाहती हूं यदि मै कहीं भटकूं तो तुम मुझे संभालना।


आर्यमणि:- ठीक है दीदी।


भूमि और आर्यमणि सीधा पहुंचे गेस्ट रूम में, जहां मामा का परिवार रुका हुआ था। गेस्ट रूम का क्या नजारा था। भूमि और आर्यमणि एक ओर दरवाजे के बाहर देख रहे थे जहां हॉल में उसका पूरा परिवार बैठा था। नौकरों की कोई कमी नहीं फिर भी एक बहु अपने हाथ से चाय दे रही थी। बच्चे कभी अपने इस दादी तो कभी अपने उस दादी, तो कभी अपने दादा। जिसके साथ मन हुआ उसके साथ खेल रहे थे। अंदर मामा की फैमिली थी। मामा कुर्सी पर बैठकर मोबाइल चला रहे थे। मामी उसके बाजू में बैठकर मोबाइल चला रही थी। ममेरा भाई–बहन बिस्तर के दोनो किनारे पर लेटकर मोबाइल चला रहे थे। सभी मोबाइल चलाने में इतने मशगूल थे कि होश ही नहीं कमरे में कोई आया है।


भूमि:- वंश, नीर तुम दोनो बाहर जाओ। हमे कुछ जरूरी बात डिस्कस करनी है।


अरुण:- नहीं तुम रहने दो, हम अभी जाकर दीदी से ही डिस्कस कर लेते है।


भूमि:- कोई बात नहीं है मामा जी, जैसा आप ठीक समझे।


भूमि, आर्यमणि के साथ हॉल में चली आयी और पीछे-पीछे मामा और मामी भी.. अरुण, सुकेश के पास खड़ा होकर.… "बड़े जीजाजी, बड़ी दीदी आपसे कुछ बात करनी थी।"


सुकेश:- हां अरुण कहो ना।


अरुण:- जीजाजी वो मै बिजनेस में कहीं फंस गया हूं, आलम यें है कि यदि जल्द से जल्द मैटर सॉल्व नहीं किया तो हम सड़क पर आ जाएंगे।


सुकेश:- हम्मम ! कितने पैसे की जरूरत है।


इस से पहले की अरुण कुछ कहता, जया की भावना फूट पड़ी। अनायास ही उसके मुख से निकल गया.… "अरुण तू कितना स्वार्थी हो गया रे।"


अरुण, चिढ़ते हुए एक बार जया को देखा, इसी बीच उसकी पत्नी कहने लगी… "मुझे तो पहले से पता था कि हम रोड पर भी आ जाए तो भी ये हमारी मदद नहीं करेंगे। जान बूझकर हमे यहां अटकाकर रखे है।"..
कहानी में आर्य और कहानी के बाहर nain11ster भईया क्या ही गोली दे देते है, जैसे की tv वाली बात को घुमाकर रीछ स्त्री वाली बात पर और वहां से किताब तक जो घुमाया है वो तो गजब ही था। साथ में सबको मक्खन भी लगा दिया और सबके सामने पलक से प्यार का इजहार भी कर दिया। सही खेला रे आर्य।

उसके बाद ये लाइब्रेरी और फिर वो किताब, अब यहां लोचा ये है कि आर्य का हाथ लगते ही किताब ने रंग क्यों बदला, कहीं इस किताब का आर्य के दादा से तो कोई संबंध नहीं है और उनका वंशज होने के नाते, किताब आर्य को भी पहचान गई है या फिर आर्य का एक अलग श्रेणी का प्राणी होने के नाते किताब उसको अपना संरक्षक मानती है?

आखिर में कुत्ते की पूंछ अरुण और उसका परिवार जो अपनी औकात दिखाए बिना बाज नहीं आए। इस अरुण के पिछवाड़े में छाता डाल कर खोल देना चाहिए और फिर इसको मोर बना कर नचाना चाहिए। अब देखना है की इसकी खाट सुकेश खड़ी करता है या भूमि? अगर भूमि ने किया तो सच में मोर ही बना देगी।

क्या ही मस्त अपडेट दे डाला वाह, बस स्परिवार अरुण का बैंड बज जाता तो और भी मजा आ जाता। मगर हम अगले अपडेट तक वेट कर लेंगे।
 

The king

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भाग:–25





आर्यमणि वहां पहुंचकर नीचे बोर्ड पर अपना लात मारा और सभी स्विच एक साथ ऑन कर दिया। जैसे ही स्विच ऑन हुआ कुछ हल्की सी आवाज हुई।… "कमाल का सिविल इंजीनियरिंग है मौसा जी, स्विच कहीं है और दरवाजा कहीं और।" लेकिन इससे पहल की आर्यमणि उस गुप्त दरवाजे तक पहुंच पता, शांताराम के साथ कुछ हथियारबंद लोग अंदर हॉल में प्रवेश कर चुके थे।


इधर आवाज आना सुरु हुआ और पीछे से आ रही बू से आर्यमणि समझ चुका था कि वहां कुछ लोग पहुंच चुके है। लेकिन आर्यमणि सबको अनदेखा कर अपने काम में लगा रहा… "आर्य यहां क्या कर रहे हो।".... पीछे से नौकर शांताराम की आवाज आयि।


आर्यमणि:- सब लोग चले गए है काका और मै बिस्तर पर परे–परे उब गया हूं, शॉकेट से वायर निकाल रहा हूं, ये टीवी मुझे ऊपर के कमरे में चाहिए।


आर्यमणि बिना पीछे पल्टे जवाब दिया। तभी बहुत से लोगों में से किसी एक ने… "आप रहने दीजिए सर, मै नया टीवी मंगवा देता हूं।"… उसकी आवाज़ पर आर्यमणि पीछे पलट गया। आंखों के सामने कई गार्ड खड़े थे। सभी वर्दी में और अत्यआधुनिक हथियारों से लैस...…. "ये सब क्या है काका। इतने हथियारबंद लोग घर के अंदर।"..


शांताराम:- उन्हें लगा घर में कोई चोर घुस आया है, इसलिए ये लोग आ गये।


आर्यमणि:- हम्मम ! माफ कीजिएगा, मुझे इस घर के बारे में पता नहीं था। और हां टीवी रहने दीजिएगा, मै मासी को बोलकर मंगवा लूंगा।


आर्यमणि अपनी बात कहकर वहां से अपने कमरे में निकल गया। बिस्तर पर लेटकर वो अभी हुई घटना पर ध्यान देने लगा। नीचे लगे बोर्ड को ठोका और बड़ी ही धीमी आवाज़ जो मौसा–मासी के ठीक बाजू वाले कमरे से आयी। किताब घर से यह आवाज़ आयी थी।… "मंजिल तो यहीं है बस मंजिल की जाभी के बारे में ज्ञान नहीं। मौसा जी और तेजस दादा के करीब जाना होगा। हम्मम ! मतलब दोनो को कुछ काम का बताना होगा। इन्हे कुछ खास यकीन दिलाना होगा।"


आर्यमणि अपने सोच में डूबा हुआ था, तभी फिर से फोन की रिंग बजी, दूसरी ओर से मीनाक्षी थी। आर्यमणि ने जैसे ही फोन उठाया…. "तुझे टीवी चाहिए क्या आर्य।"..


आर्यमणि:- हद है टीवी वाली बात आपको भी बता दिया ये लोग। नहीं मासी मुझे नहीं चाहिए टीवी, दीदी से मेरी बात करवाओ।


भूमि:- क्या हुआ आर्य..


आर्यमणि:- दीदी यहां रहना मुझे कन्फ्यूजन सा लग रहा है। मै आपके साथ ही रहूंगा।


मीनाक्षी:- मै यही हूं और फोन स्पीकर पर है, मै भी सुन रही हूं।


भूमि:- आई रुको अभी। आर्य तू मेरे साथ ही रहना बस जरा अपनी सिचुएशन एक्सप्लेन कर दे, वरना मेरी आई को खाना नहीं पचेगा।


आर्यमणि:- मैं गहन सोच में था। मुझे लगा मैंने रीछ स्त्री और उसके साथी का लगभग पता लगा ही लिया। मेरे दादा अक्सर कहते थे, "बारीकियों पर यदि गौर किया जाय, फिर किसी भी सिद्धि के स्रोत का पता लगाया जा सकता है। सिद्धियां द्वारा बांधना या मुक्त करना उनका भी पता लगाया जा सकता है।" और जानती हो दीदी अपनी बात को सिद्ध करने के लिए उन्होंने एक ऐसी पुस्तक को खोल डाली जो आम इंसान नही खोल पाये। बस इसी तर्ज पर मैंने रीछ स्त्री के मुक्त करने की पूरी सिद्धि पर ध्यान दिया। बहुत सारे तर्क दिमाग में थे और मैं किसी नतीजे पर पहुंचना चाहता था। लेकिन नतीजे पर पहुंचने से पहले मुझे अपने दिमाग में चल रहे सभी बातों को बिलकुल साफ करना था। ध्यान भटकाने के लिए मैंने सोचा क्यों न आराम से शाम तक टीवी देखा जाये।

बस यही सोचकर हॉल से टीवी निकालकर अपने कमरे में शिफ्ट कर रहा था, तभी 10-15 हथियारबंद लोग आ गए। फिर उन्ही में से एक कहता है मै नई टीवी ला देता हूं। उसे मैने साफ कह दिया की मुझे कुछ भी मंगवाना हो तो वो मैं मासी से मंगवा लूंगा। और देखो इतना कहने के बावजूद भी 5 मिनट बाद मासी का कॉल आ गया। एक टीवी के लिए मै पुरा शर्मिंदा महसूस करने लगा। दीदी तुम ही बताओ मुझे कैसा लगना चाहिए?


सुकेश:- बस रे लड़के। ये सब मेरी गलती है। मै आकर बात करता हूं, और मुझे पता है तुम मेरे यहां वैसे भी नहीं रहेने वाले थे, रहोगे तो भूमि के पास ही। टीवी नहीं तो किसी और बहाने से, नहीं तो किसी और बहाने से।


आर्यमणि:- सॉरी मौसा जी।


जया:- इसका यही तो है बस सॉरी बोलकर बात खत्म करो। ये नहीं को मौसा से अच्छे से बात कर ले।


आर्य:- मौसा ने क्या गलत कहा है, सही ही तो कह रहे है। मेरा दिल कह रहा है कि मै दीदी के पास रहूं। अभी टीवी का इश्यू दिखा तो अपने आप बढ़ गया। कल को हो सकता है कोई और इश्यू हो। अब वो सही कह रहे है तो उसपर मै क्या झूठ कह दू, जबकि समझ वो सारी बात रहे है। मां अब ये दोबारा दिल रखने वाली बात मत करना। मै आप सब को दिल से चाहता हूं, हां साथ में पलक को भी। बस मुझ से ये दिल रखने वाली बातो को उम्मीद नहीं रखो, और ना ही मै अपनी बात से किसी का दिल तोड़ूंगा।


मीनाक्षी:- तेरे तो अभी से लक्षण दिख रहे है।


आर्य:- मै फोन रखता हूं। सब लोग आ जाओ फिर बातें होंगी।


मीनाक्षी:- देखा जया, उसे लग गया कि खिंचाई होगी तो फोन रख दिया। क्यों पलक सुनी ना की दोबारा सुना दूं, उसके दिल का हाल।


पलक बेचारी, पूरे परिवार के सामने पानी–पानी हो गई। लेकिन साथ ही साथ दिल में गुदगुदी सी भी होने लगी थी। सभी लोग शाम के 8 बजे तक लौट आए थे। आज काफी मस्ती हुई। आकर सभी लोग हॉल में ही बैठ गए। कहने को यहां थे तो 3 परिवार थे, लेकिन सबसे छोटा भाई अरुण और उसका पूरा परिवार लगभग कटा ही था। क्योंकि बच्चो को किसी भी भाई–बहन से मतलब नहीं था, अरुण और उसकी पत्नी प्रीति का छल उसके चेहरे से नजर आता था। बावजूद इसके कि उस वक़्त शादी से पहले जया क्यों भागी थी ये बात सामने आने के बाद भी, अरुण ने ऐसा रिएक्ट किया जैसे हो गया हमे क्या करना। जबकि इसी बात को लेकर जो उसने एक बार रिश्ता तोड़ा था फिर तो एक दूसरे को तब देख पाये जब फेसबुक का प्रसार हुआ था।


अगली सुबह सुकेश, भूमि, तेजस और आर्यमणि को अपने साथ लिया और किताब वाले घर में चला आया…. "बाबा, आप आर्य को अंदर ले जाने वाले हो।"..


सवाल की गहराई को समझते हुए सुकेश कहने लगा… "हां शायद। मुझे लगता है चीजें जितनी पारदर्शी रहे उतना ही अच्छा होगा। आर्य वैसे भी है तो परिवार ही।"..


तेजस:- लेकिन बाबा क्या वो चीजों को समझ पाएगा?


सुकेश:- जब मैंने फैसला कर लिया है तो कुछ सोच–समझकर ही किया होगा। और आज से आर्य तुम दोनो का उत्तरदायित्व है, जैसे मैंने तुम्हे चीजें समझाई है, तुम दोनो आर्य को समझाओगे।


आर्यमणि:- क्या कुछ ऐसा है जो मुझे नहीं जानना चाहिए था मौसा जी। या कल अंजाने में मैंने आपका दिल दुखा दिया।


सुकेश:- ज्ञान का प्रसार जितने लोगों में हो अच्छा होता है। बस बात ये है कि तुमसे जिस कार्य को सम्पन्न करवाना चाहते हैं, उसके लिए हमने 25 साल की आयु निर्धारित की है। वो भी केवल प्रहरी समूह के सदस्य के लिए। पहली बार किसी घर के सदस्य को वो चीजें दिखा रहे है।


आर्यमणि:- मौसा जी फिर ये मुझे नहीं देखना है। बाद में आप मुझे प्रहरी सभा में सामिल होने कहोगे और वो मैं नही कर सकता...


तेजस:- मेरी अनुपस्थिति में मेरा प्रतिनिधित्व तो करने जा सकते हो ना। भूमि के साथ खड़े तो हो सकते हो ना। पलक जब अपना जौहर दिखा रही होगी तो उसकी मदद कर सकते हो ना। चित्रा और निशांत के लिए खड़े तो रह सकते हो ना।


आर्यमणि:- सकते वाला तो बात ही नहीं है दादा, मै ही सबसे आगे खड़ा रहूंगा। मै लेकिन प्रहरी समूह का हिस्सा नहीं हूं, बस ये बात मै अभी से साफ कर रहा हूं।


सुकेश:- हम जानते है ये बात। जया और केशव का भी यही मत है, इसलिए उसने तुम्हे कभी प्रहरी समूह के बारे में नहीं बताया और ना ही उसके और हमरे बीच क्या बातें होती थी वो बताया होगा।


सभी लाइब्रेरी में थे। इनकी बातें चल रही थी। इसी बीच दीवार के किनारे से एक गुप्त दरवाजा खुल गया। अंदर का गुप्त कमरा तो वाकई काफी रहस्यमय था। पीछे एक पूरी लाइब्रेरी थी लेकिन इस गुप्त कमरे में भी कई सारी पुस्तक थी। दीवार पर कई सीसे के सेल्फ बने थे, जिसमे कई तरह की वस्तु थी। आर्यमणि उन वस्तुओं का प्रयोग नही जानता था, लेकिन सभी वस्तुओं में कुछ तो खास था। एक सेल्फ के अंदर एक लंबी सी छड़ी थी। ऐसा लग रहा था, मानो किसी जादूगर की छड़ी हो, जिसे दंश कहते थे।आर्यमणि जिज्ञासावश उस सेल्फ को हाथ लगा लिया।


उसने जैसे ही सेल्फ को छुआ, तेज सायरन बजने लगा। आगे चल रहे सुकेश ने पीछे मुड़कर देखा और तेजस को अपनी नजरों से कुछ समझाया। चंद सेकेंड तक अलार्म बजने के बाद बंद हो गया और तेजस उस शेल्फ के पास पहुंचते.…. "ये किसी महान ऋषि का दंश था। वह जब मरने लगे तब उन्होंने इसे प्रहरी समुदाय को सौंप दिया था, ताकि कोई गलत इस्तमाल न कर सके। तब से यह दंश प्रहरी के कड़ी सुरक्षा के बीच रखा गया है?"..


आर्यमणि:– वाउ!!! एक असली पौराणिक वस्तु, जिसे मंत्रों से सिद्ध किया गया है। क्या मैं इसे देख सकता हूं?


तेजस:– नही, इसे कोई हाथ नहीं लगा सकता...


आर्यमणि:– क्या बात कर रहे? क्या मौसा जी भी नही?


तेजस:– कोई नही, मतलब कोई नही...


आर्यमणि:– यदि कोई इसे चुरा ले, या फिर जबरदस्ती हाथ लगाने की कोशिश करे...


तेजस:– ऐसा कभी नहीं हो सकता...


आर्यमणि:– लेकिन फिर भी... यदि ऐसा हुआ तो?


सुकेश, थोड़ा गंभीर आवाज में.… "तेजस ने कहा न... ऐसा हो ही नही सकता... जो बात होगी ही नही उसमे दिमाग लगाने का कोई अर्थ नहीं... हमे ऊपर चलना चाहिए.…


सुकेश ने सबको आगे किया और खुद पीछे–पीछे चलने लगा। लाइब्रेरी के पीछे कमरा और कमरे के अंत में एक घुमावदार सीढ़ी जो ऊपर के ओर जा रही थी। ऊपर के १४ फिट वाले कमरे के पीछे का जो 8 फिट का हिस्सा छिपा था, उसी का रास्ता। आर्यमणि के लिए ऊपर और भी आश्चर्य था। 6 कमरे के पीछे बना 8 फिट चौड़ा 90 फिट लंबा गुप्त हॉल। चारो ओर दीवार पर हथियार टंगे थे। चमचमाती रसियन, जर्मन और यूएस मेड अत्याधुनिक हथियार रखे थे। उसी के नीचे कई साइज के तलवार, भाला, बरछी, जंजीर और ना जाने क्या-क्या। कमरे की दीवार पर तरह-तरह के स्लोक लिखे हुए थे। आर्य चारो ओर का नजारा देखते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था।


चलते-चलते दीदार उस पुस्तक के भी हुए जिसके आकर्षण में आर्यमणि नागपुर आया था। आर्यमणि सबके पीछे ही खड़ा था और उस पुस्तक को अपने पास होने का अनुभव कर रहा था। वो आगे बढ़कर जैसे ही उस पुस्तक को छूने के लिए अपना हाथ आगे बढाया… "नाह ! ऐसे नहीं। इसमें 25 अध्याय है और हर अध्याय को पढ़ने के लिए एक परीक्षा। कुल 25 परीक्षा देने होंगे तभी इस पुस्तक को हाथ लगा सकते हो, इसे पढ़ सकते हो। इसलिए तो इसके जानने की आयु भी हमने 25 वर्ष रखी है।"… शुकेश मुस्कुराते हुए पुस्तक खोलने की विधि का वर्णन करने लगा...


आर्यमणि:- और वो 25 परीक्षाएं क्या है मौसा जी?


सुकेश:- 25 अलग-अलग तरह के हथियारबंद लोगो से एक साथ लड़ना और जीत हासिल करना। लेकिन एक बात ध्यान रहे, लड़ाई के दौरान एक कतरा खून का बहना नहीं चाहिए।


आर्यमणि:- इस से अच्छा मै फिजिक्स, मैथमेटिक्स न पढ़ लूं। वैसे मौसा जी बिना परीक्षा दिए इस किताब को खोले तो..


सुकेश:- एक कोशिश करो, खोलकर दिखाओ इस पुस्तक को।


आर्यमणि आगे बढ़कर किताब के ऊपर ऐसे हाथ फेरा जैसे किसी मासूम बच्चे के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हो। हाथ लगने से ही किताब का रंग बदलना शुरू हो गया। ऊपर का जो काला कवर था वो बदलकर हरे रंग का हो गया और कुछ अजीब सा लिखा आ रहा था।


सुकेश आश्चर्य से आर्यमणि का चेहरा देखते हुए..… "तुमने अभी क्या किया?"


आर्यमणि:- केवल स्पर्श ही तो किया है, आप भी तो यहीं हो।


सुकेश:- किताब तुम्हारे स्पर्श को पहचानती हुई कह रही है, धन्यवाद जो तुम यहां तक पहुंचे, अपने लक्ष्य में कामयाब हो। किताब तुमसे खुश है।


आर्यमणि:- खुश होती तो खुल ना जाती। मुझे तो आप पर शक होता है कि आप कोई सॉलिड जादूगर हो।


सुकेश:- और तू ये क्यों बोल रहा है?


आर्यमणि:- क्योंकि आपने जो अभी किताब के साथ किया वो अद्भुत है। खैर जो भी हो यहां तक लाने का शुक्रिया। मेरी इंजिनियरिंग की बुक ही सही है, मै वही पढूंगा। हर 6 महीने में अपना एग्जाम दूंगा और कोशिश करूंगा किसी विषय में बैक ना लगे।


भूमि:- बाबा चिंता मत करो, इसे मै तैयार करूंगी।


आर्यमणि:- 25 लोग और 25 तरह के हथियार, दीदी मै तो सहिद ही हो जाऊंगा।


भूमि:- बात शहीद की नहीं बल्कि आनंत कीर्ति की है। बाकी मै हूं ना। चलो नीचे चला जाए। आर्य मेरे साथ रहना, मै चाहती हूं यदि मै कहीं भटकूं तो तुम मुझे संभालना।


आर्यमणि:- ठीक है दीदी।


भूमि और आर्यमणि सीधा पहुंचे गेस्ट रूम में, जहां मामा का परिवार रुका हुआ था। गेस्ट रूम का क्या नजारा था। भूमि और आर्यमणि एक ओर दरवाजे के बाहर देख रहे थे जहां हॉल में उसका पूरा परिवार बैठा था। नौकरों की कोई कमी नहीं फिर भी एक बहु अपने हाथ से चाय दे रही थी। बच्चे कभी अपने इस दादी तो कभी अपने उस दादी, तो कभी अपने दादा। जिसके साथ मन हुआ उसके साथ खेल रहे थे। अंदर मामा की फैमिली थी। मामा कुर्सी पर बैठकर मोबाइल चला रहे थे। मामी उसके बाजू में बैठकर मोबाइल चला रही थी। ममेरा भाई–बहन बिस्तर के दोनो किनारे पर लेटकर मोबाइल चला रहे थे। सभी मोबाइल चलाने में इतने मशगूल थे कि होश ही नहीं कमरे में कोई आया है।


भूमि:- वंश, नीर तुम दोनो बाहर जाओ। हमे कुछ जरूरी बात डिस्कस करनी है।


अरुण:- नहीं तुम रहने दो, हम अभी जाकर दीदी से ही डिस्कस कर लेते है।


भूमि:- कोई बात नहीं है मामा जी, जैसा आप ठीक समझे।


भूमि, आर्यमणि के साथ हॉल में चली आयी और पीछे-पीछे मामा और मामी भी.. अरुण, सुकेश के पास खड़ा होकर.… "बड़े जीजाजी, बड़ी दीदी आपसे कुछ बात करनी थी।"


सुकेश:- हां अरुण कहो ना।


अरुण:- जीजाजी वो मै बिजनेस में कहीं फंस गया हूं, आलम यें है कि यदि जल्द से जल्द मैटर सॉल्व नहीं किया तो हम सड़क पर आ जाएंगे।


सुकेश:- हम्मम ! कितने पैसे की जरूरत है।


इस से पहले की अरुण कुछ कहता, जया की भावना फूट पड़ी। अनायास ही उसके मुख से निकल गया.… "अरुण तू कितना स्वार्थी हो गया रे।"


अरुण, चिढ़ते हुए एक बार जया को देखा, इसी बीच उसकी पत्नी कहने लगी… "मुझे तो पहले से पता था कि हम रोड पर भी आ जाए तो भी ये हमारी मदद नहीं करेंगे। जान बूझकर हमे यहां अटकाकर रखे है।"..
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Kala Nag

Mr. X
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भाग:–24







जया, मीनाक्षी के ओर देखने लगी। मीनाक्षी एक ग्लास पानी पीते… "अक्षरा तुम्हारा भाई मनीष वुल्फबेन खाकर मरा था।"..


(वुल्फबेन एक प्रकार का हर्ब होता है जो आम इंसान में कोई असर नहीं करता लेकिन ये किसी किसी वेयरवुल्फ के सीने में पहुंच जाए तो उसकी मौत निश्चित है)


जैसे ही यह बात सामने आयी। हर किसी के पाऊं तले से जमीन खिसक चुकी थी। लगभग यहां पर हर किसी को पता था कि वुल्फबेन क्या होता है, कुछ को छोड़कर। और जिन्हे नहीं पता था, उसे शामलाल वहां से ले गया।


माहौल में बड़बड़ाना शुरू हो गया। हर किसी के चेहरे पर हजारों सवाल थे, जया सबको हाथ दिखती… "हमारी बातें सुनते रहिए सबको जवाब मिल जायेगा। किसी को घोर आश्चर्य में पड़ने की जरूरत नहीं है।"..


अक्षरा:- नही ऐसा कभी नहीं हो सकता। ये जया की एक घटिया सी चाल है, जिसे इसने कल रात तैयार किया होगा। दीदी (मीनाक्षी भारद्वाज) आप तो कहती थी जया ने आपको कुछ नहीं बताया? आपको इस विषय में कुछ पता ही नही। फिर मेरे भाई के लिए ऐसा कैसे कह सकती है?


मीनाक्षी, सारे जरूरी दस्तावेज और अक्षरा के भाई के हाथों लिखी एक खत अक्षरा के हाथ में देती.…. "हां मै अब भी यही कहती हूं, मुझे तुम्हारे भाई के बारे में कुछ पता नहीं, बल्कि शुरू से सब कुछ पता है। यहां तक कि पूरी कहानी मेरी और केशव की लिखी हुई है। शादी के 1 दिन पूर्व मुझे मनीष मिला था। उसने बताया कि एक भटके हुए अल्फा पैक को झांसे में लेने के लिए मनीष ने उसके बीटा पर जाल फेका। मामला ये था कि वो बीटा जानती थी, मनीष एक शिकारी है।"

"मनीष, गया था उस बीटा को फसाने और खुद उसके बिछाये जाल में जाकर फंस गया। विदिशा के पास जब उसके पैक को खत्म किया जा रहा था, तब उसके अल्फा का पूरा पंजा मनीष के पेट में घुस गया। 2 हफ्ते बाद शादी थी और वो चाहकर भी किसी को बता नहीं पा रहा था। फिर मनीष ने अपने दोस्त केशव से ये बात बताई। लेकिन चूंकि केशव समुदाय से बाहर निकाला हुआ परिवार से था, इसलिए तुम लोगों को उसकी मौजूदगी खटकती रही।"

"केशव को जब ये मामला समझ में आया तब उसी ने मनीष को सुझाव दिया… "किसी तरह जया को घर से भागने के लिए राजी कर लिया जाय और उसे शादी से ठीक पहले भगा देना था। मनीष शादी टूटने का सोक सह नहीं पाया, इसलिए घर छोड़कर चला गया, ऐसा अफवाह उड़ा देना था।"

"जबकि मनीष घर छोड़ने के बाद वर्धराज कुलकर्णी यानी के केशव के बाबा के पास सिक्किम जाता। ताकि जब वो पूर्ण वेयरवुल्फ में विकसित हो जाता तब सिक्किम के जंगलों में वह निवास करता। यहां मनीष को लोपचे का पैक भी मिल जाता और सिक्किम में रहने के वजह से कभी-कभी उसका पूरा परिवार यहां आकर मिल भी लेता।"

"ये बात जब मुझे पता चली तो मुझे भी झटका सा लगा था। मनीष जैसे शिकारी के साथ ऐसा हादसा होना, मेरा दिल बैठ गया। बहुत रोया था वो मेरे पास। बस एक ही रट लगाए था, लोगों को जब पता चलेगा कि मनीष एक वेयरवुल्फ है, तो लोगो हसेंगे उसके परिवार पर।"

"जानते हो किसी लड़की को ऐसे शादी के लिए राजी करना कितना मुश्किल होता है, जिसमें उसे जिंदगी भर की जिल्लत झेलनी पड़े। आप दूसरों को कहने से पहले ये बात 10 बार सोचोगे। लेकिन मैंने तो अपनी प्यारी बहन को ही सजा दे दिया। मेरी जया भी कमाल की है.… मुझसे चहकती हुई कही थी, "दीदी, खानदान की पहली भगोड़ी शादी मुबारक हो।"

"अब शायद सबको समझ में आ गया होगा की क्यों मै आर्य के लिए इतनी पागल हूं। क्यों मै अपने बच्चो को और मै खुद छुट्टियों में आर्य पास रहती थी। ताकि कम से कम आर्य को ये कभी मेहसूस ना हो कि मेरी मां ने भागकर शादी की तो उसके परिवार से कोई मिलने नहीं आते। हां वो अलग बात है कि आर्य का इतिहास ही निराला है। महान सोधकर्ता और उतने ही सुलझे हुए एक महान ज्ञानी प्रहरी, वार्धराज का पोता है वो। उसके बाबा भी एक विद्वान व्यक्ति है तभी तो आईएएस है और मां एक खतरनाक ज्ञानी शिकारी जिसकी उतराधिकारी भूमि की हुंकार पूरा महाराष्ट्र सुनता है।"

"जिस उम्र में सबके बच्चे अक्षर पहचानने की कोशिश मे लगे रहते, अपने दादा के गोद में बैठकर आर्य कथाएं सुनता था और उसके दादा उसकी परीक्षा लेने के लिए जब एक कथा को दूसरी बार कहते, तो अपने दादा से तोतली और टूटी फूटी आवाज मे कहता था, "ये कथा तो सुन चुका हूं।"

"यहां मौजुद सभी लोगो से मेरा बच्चा आर्य बहुत ही समझदार और आज के युग का अपवाद बच्चा है। बहुत इज्जत करता है वो सबकी। गुस्से में भी पूरा संतुलन बनाए रखता है। पूरे होश में रहकर फैसला लेता है। मेरे बच्चे की इक्छा थी कि उसके पिता को उसका पैतृक जगह पर खुशी से आने का मौका मिले। उसके मां को मायके मिले, इसलिए सबको ये बात बता रही हूं। वरना मनीष के लिए हम ये बात किसी को नहीं बताते। अंत तक लोग एक ही बात जानते कि जया अपने प्रेमी के साथ भाग गई और मनीष ने आत्महत्या चुना।"


मीनाक्षी ने जब राज से पर्दा उठाया तब पुरा परिवार ही मानो जया के क़दमों में गिर गया था। हर कोई पछता रहा था। कोई छुपके तो कोई खुलकर अपनी ग़लती की माफी मांग रहा था। कहने और बोलने के लिए किसी के पास कोई शब्द ही नहीं थे। भूमि और तेजस दोनो कुछ ज्यादा ही भावुक हो गए। जया के गाल चूमते हुए कहने लगे… "आप पर फक्र जैसा मेहसूस हो रहा है। जी करता है लिपट कर रोते रहे।"


मीनाक्षी, जया के कान में फिर से वही बहू वाली बात दोहराने लगी। तब जया ने भी कान में धीमे से कह दिया, "जाने दो दीदी फिर कभी बात कर लेंगे। दोनो बहन अभी इस विषय पर बात कर ही रही थी कि राजदीप कहने लगा… "काकी, अगर जया आंटी को बुरा ना लगे तो मै अपने परिवार के ओर से प्रस्ताव रखना चाहूंगा।"..


मीनाक्षी:- अब ये मत कह देना की तू अक्षरा को मेंटल हॉस्पिटल भेज रहा है।


मीनाक्षी की बात सुनकर सभी लोग हसने लगे… "अरे नहीं काकी, मै तो ये कह रहा था कि मुझे पलक के लिए आर्य दे दो। और ये बात अभी-अभी मेरे दिमाग में नहीं आया, बल्कि कई सालो से भूमि दीदी के दिमाग में थी। मुझे भी उन्होंने कुछ दिन पहले ही बताया। मुझे तब भी आर्य पसंद था और अब तो पलक के लिए उससे बेहतर कोई लड़का मुझे नजर ही नहीं आ रहा।"..


मीनाक्षी:- क्यों उज्जवल बाबू देख रहे हो जमाना। खुद की शादी हुई नहीं, उससे छोटी नम्रता की शादी हुई नहीं और सबसे छोटी का लगन की बात कर रहा है।


भूमि:- हुई कैसे नहीं है। लगभग हो ही गई समझो। वो तो चाकू वाला कांड हो गया, वरना 2 दिन पहले मुक्ता का रिश्ता राजदीप से और माणिक का रिश्ता नम्रता से तय हो जाना था। चाकू वाले कांड के बाद मुझे यकीन था कि अब दोनों परिवार के बीच क मामला सैटल हो ही जाना है। इसलिए महानुभावों, जिसका नंबर जैसे आए उसका फाइनल करते चलो ना रे बाबा।"

"छोटे हैं सबसे तो सबसे आखिरी मे शादी करेंगे, तबतक हक से प्रेमी जोड़े की तरह उड़ते फिरेंगे। हमे भी कोई फ़िक्र ना रहेगी की किसके साथ दोनो घूम रहे। सहमत हो तो हां कहो, वरना मै अपने बच्चे को कह दुं, जा बेटा जबतक मै तेरे लिए को लड़की ना देख लेती, तबतक गर्लफ्रेंड-ब्वॉयफ्रेंड खेल ले। उधर से कोई पसंद आयी तो ठीक वरना किसी से तय कर दूंगी रिश्ता।


जया:- मतलब सबके शादी की मिडीएटर तू ही है।


भूमि:- मासी मै अपने बच्चे के लिए ये रिश्ता फाइनल करती हूं।


जया:- बच्चा तो ठीक है, लेकिन ये जयदेव कहां है, दादी तो बन गए नानी कब बनूंगी, उसपर भी बात कर ले।


भूमि:- खामोश बिल्कुल जया कुलकर्णी। अभी मेरा मुद्दा किनारे रखो। हद है ये आर्य कहां है उसे बुलाओ और सामने बिठाओ… मासी, आई, देख लो अपनी बहू को। पीछे की बात ना है सामने ही बता दो कैसी लगी...


मीनाक्षी:- हम दोनों को तो सीढ़ियों पर ही पसंद आ गई थी। बाकी अभी जमाना वो नहीं है। आर्य और पलक को सामने बिठाओ और उनसे भी पूछ लो।


पीछे से वैदेही आर्य को लेकर नीचे आ गई। उसे ठीक पलक के सामने बिठाया गया। आर्य को देखकर अक्षरा… "मेरे पास एक और चाकू है। पेट के दूसरे हिस्से में जगह है तो घोपा लो।"


आर्य:- सॉरी आंटी।


भूमि:- लड़की तेरे सामने है, ठीक से देख ले और बता कैसी लगी। बाद में ये ना कहना कि पूरे परिवार ने घेर कर फसाया है। पलक तुम भी देख लो। और हां जो भी हो दोनो क्लियर बता देना। किसी को चाहते हो कोई दिल में पहले से बसा है.. फला, बला, टला कुछ भी...


आर्य, पलक को एक नजर देखते… "मुझे पलक पसंद है।"


पलक:- मुझे भी आर्य पसंद है लेकिन अभी मै लगन नहीं करूंगी।


भूमि:- पढ़ाई पूरी होने के बाद ठीक रहेगा।


पलक:- हम्मम !


भूमि:- तो ठीक है, राजदीप और नम्रता की शादी के बाद अच्छा सा दिन देखकर दोनो की सगाई कर देंगे और पढ़ाई के बाद दोनो की शादी। बाकी लेन–देन।की बात आप सब फाइनल कर लो।


मीनाक्षी:- मेरा बेटा अभी से बीएमडब्लू बाइक पर चढ़ता है इसलिए उसे एक बीएमडब्लू कार तो चाहिए ही।


भूमि:- ठीक है दिया..


जया:- लेकिन तू क्यों देगी..


भूमि:- मेरी बहन है, एक बहन नम्रता को उतराधिकारी घोषित की हूं, तो दूसरी को उसके बराबर का कुछ तो दूंगी ना। इसलिए जल्दी-जल्दी डिमांड बताओ, इसके शादी कि सारी डिमांड मेरे ओर से।


राजदीप:- दीदी सब तुम ही कर दोगी तो फिर हम क्या करेंगे?


भूमि:- तू दूल्हे की जूते चोरी करना।


पूरे परिवार में हंसी-खुशी का माहौल सा बन गया। इतने बड़े खुशी के मौके पर सभी लोग गाड़ियों में भर के "अदसा मंदिर" के ओर निकल गए। पूरा परिवार साथ था केवल आर्यमणि को छोड़कर। वो रुकने का बहाना करके घर में ही लेटा रहा। एक सत्य ये भी था कि चाकू लगने के 2 घंटे तक आर्यमणि ने घाव को भरने नहीं दिया था। लेकिन जैसे ही वो हॉस्पिटल से बाहर आया, उसके कुछ पल बाद ही आर्यमणि का घाव भर चुका था।


हर रोज वो ड्रेसिंग से पहले खुद के पेट में चाकू घोपकर घाव को 2 दिन पुराना बनाता ताकि किसी को भी किसी बात का शक ना हो। पूरे परिवार के घर से निकलते ही, आर्यमणि अपने काम में लग गया। वैधायण और उसके कई अनुयायि के सोध की वो किताब, एक अनंत कीर्ति की किताब, जिसमे कई राज छिपे थे।


नियामतः ये किताब भारद्वाज परिवार की मिल्कियत नहीं थी और खबरों की माने तो वो किताब इस वक़्त आर्यमणि के मौसा सुकेश भारद्वाज के पास रखी हुई थी। आर्यमणि पहले से ही अपनी मासी और मौसा के कमरे में था, और पिछले 3 दिनों से हर चीज को बारीकी से परख रहा था।


ऊपर के जिस कमरे में आर्यमणि था उसे भ्रमित तरीके से बनाया गया था। आर्यमणि जिस बड़े से कमरे में था, उस इकलौते कमरे की लंबाई लगभग 22 फिट थी, जबकि उसके बाएं ओर से लगे 6 कमरे थे, जिनकी लंबाई 14 फिट की थी। पीछे का 8 फिट का हिस्सा शायद कोई गुप्त कमरा था जिसका पता आर्यमणि पिछले 2 दिन से लगा रहा था।


गुप्त कमरा था इसलिए वहां जबरदस्ती नहीं जाया जा सकता था क्योंकि सुरक्षा के पुरा इंतजाम होगे और एक छोटी सी भुल मंजिल के करीब दिखती चीजों को मंजिल से दूर ले जाती। आर्यमणि बड़े ही इत्मीनान से रास्ता ढूंढ रहा था तभी उसके मोबाइल की रिंग बजी…. "हां पलक"..


पलक:- वो इन लोगों ने कहा कि मै तुमसे..


आर्य, अपना पूरा ध्यान दरवाजा खोलने में लगाते हुए… "हां पलक।"..


पलक:- इन लोगों ने मुझसे कहा कि मै तुमसे पूछ लूं, दवा लिए की नहीं..


आर्य:- सुनो पलक तुम इतना "इन लोगों में और उन लोगों में" मत पड़ो, जब इक्छा हो तब फोन कर लिया करो।..


"इनको–उनको, इनको–उनको, इनको–उनको… ओह माय गॉड ये गुप्त कमरे का दरवाजा इंडायेक्ट भी तो हो सकता है।"… पलक का दूसरों को नाम लेकर आर्यमणि फोन करना, 3 दिन से फंसे एक गुत्थी के ओर इशारा कर गया... आर्यमणि संभावनाओं पर विचार करते...


"अगर मै यहां कोई सुरक्षित कमरा बना रहा होता तो कैसे बनाता। 6 लगातार कमरे के पीछे है वो गुप्त कमरा। मुझे अगर इन-डायरेक्ट रास्ता देना होता तो कहां से देता। ऐसी जगह जहां सबका आना जाना हो, जहां सब कुछ नजर के सामने हो।"..


आर्यमणि अपने मन में सोचते हुए खुश होने लगा।… "आर्य क्या तुम मुझे सुन रहे हो।" उस ओर से पलक कहने लगी।… "हेय पलक, मैंने दावा ले ली है। और हां लव यू बाय"… आर्यमणि फोन रखकर नीचे हॉल में पहुंचा और चारो ओर का जायजा लेने लगा। ना फ्लोर में कुछ अजीब ना दीवाल में कुछ अजीब, तो फिर गुप्त कमरे का रास्ता होगा कहां से। आर्यमणि की आखें लाल हो गई, दृष्टि बिल्कुल फोकस और चारो ओर का जायजा ले रहा था। दीवार के मध्य में जहां टीवी लगीं हुई थी, वहां ठीक नीचे 3–4 स्विच और शॉकैट लगा हुआ था। वहां वो इकलौता ऐसा बोर्ड था जो हॉल में लगे बाकी बोर्ड से कुछ अलग दिख रहा था।


आर्यमणि वहां पहुंचकर नीचे बोर्ड पर अपना लात मारा और सभी स्विच एक साथ ऑन कर दिया। जैसे ही स्विच ऑन हुआ कुछ हल्की सी आवाज हुई।… "कमाल का सिविल इंजीनियरिंग है मौसा जी, स्विच कहीं है और दरवाजा कहीं और।" लेकिन इससे पहल की आर्यमणि उस गुप्त दरवाजे तक पहुंच पता, शांताराम के साथ कुछ हथियारबंद लोग अंदर हॉल में प्रवेश कर चुके थे।
तो पारिवारिक मिलन हो गया
राजा को आधिकारिक तौर पर रानी की प्राप्ति हो गई
कुछ राज जो बर्षों से छुपे हुए थे समाने आ गए
आर्यमणि को अपने अज्ञात वास में जरूर कुछ उपलब्धियां प्राप्त हुए हैं
जैसे उसके ज़ख़्मों का शीघ्र भर जाना
अब उसे घर में कुछ होने का संदेह है जिसके निवारण हेतु उत्सुक व जिज्ञासु आर्यमणि को रोकने शांताराम कुछ गार्ड्स के साथ आ पहुँचा है

बढ़िया nain11ster भाई बहुत बढ़िया
 
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