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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–17



पलक:– प्रहरी के कई उच्च अधिकारी को लगता है कि तुम्हारे दादा वर्घराज कुलकर्णी की सारी सिद्धियां तुम में है। तो कई लोगों का मानना है कि मैत्री लोपचे के प्यार में तुम एक वेयरवोल्फ बन गए थे। पर एक वेयरवोल्फ किसी प्रहरी के यहां कैसे रह सकता है, इसलिए खुद ही वो लोग इस बात का खंडन कर देते है। बाद में इस बात का भी खंडन कर देते हैं कि जब तुम ७–८ साल के थे तब तुम्हारे दादा जी इस दुनिया में नही रहे। फिर उनकी सिद्धि तुम्हारे अंदर कैसे आ सकती है? लेकिन हर किसी को लगता है कि तुम कुछ हो.… उनके लिए तुम किसी रिसर्च सब्जेक्ट की तरह हो, जिसपर कोई नतीजा नहीं निकलता.…



आर्यमणि, खुलकर हंसते... "फिर किस निष्कर्ष पर पहुंचे"…

पलक:– सब के सब दुविधा में है। किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके। लेकिन हर किसी को लगता है कि तुम में कुछ तो खास है...

आर्यमणि:– और मेरी रानी को क्या लगता है?

पलक, आर्यमणि के गले लगकर... "मुझे तो बस तुम्हारे साथ सुकून मिलता है।"…

आर्यमणि, अपने बाजुओं में पलक को भींचते... "और क्या लगता है?"…

पलक:– यही की हमे अब रुक जाना चाहिए वरना मैं खुद को अब रोक नही पाऊंगी...

आर्यमणि:– मैं भी तो यही चाहता हूं कि रुको मत...

अपनी बात कहकर आर्यमणि ने थोड़ा और जोड़ से पलक को अपनी बाजुओं में भींच लिया। पलक कसमसाती हुई.… "आर्य प्लीज छोड़ दो... रोमांस तो हवा हो गई, उल्टा मेरी पूरी हड्डियां चटका दिए।"

आर्यमणि, पलक को खुद से अलग करते... "तुम्हे छोड़ने की एक जरा इच्छा नहीं... जल्दी से मेरा ध्यान किसी और विषय पर ले जाओ"…


पलक:– ध्यान भटकने के लिए तो पहले से विषय है। उस वेयरवॉल्फ ने ऐसा क्यों कहा कि ये इलाका उन जैसे (वेयरवोल्फ) और हमारे जैसों (प्रहरी) के लिए प्रतिबंधित है, तुम्हारा नाम क्यों नहीं ली।


आर्यमणि:- क्योंकि मै दोनो में से कोई भी नहीं हूं।

पलक:– तो फिर तुम क्या हो?

आर्यमणि:– एक और प्रहरी जो मेरे बारे में जानना चाहती है। लेकिन मैं अपनी रानी को बता दूं कि मैं सिर्फ एक आम सा इंसान... जो न तो शिकारी है न ही वेयरवोल्फ। ठीक वैसे जैसे निशांत, चित्रा और माधव है।


पलक को किसी और जवाब की उम्मीद थी। शायद प्रहरी जो आकलन कर रहे थे.. "आर्यमणि में कुछ तो खास है।" बस इसी से मिलता–जुलता की आर्यमणि में क्या खास है। लेकिन आर्यमणि बड़ी चतुराई से बात टाल गया और उसका जवाब सुनकर पलक का खिला सा चेहरा मायूसी में छोटा हो गया। आर्यमणि, पलक के सर को अपने सीने से लगाकर, उसपर हाथ फेरते हुए कहने लगा…. "तुम क्यों इतनी बातो का चिंता करती हो। मै क्या हूं वो मत ढूंढो, हम दोनों एक दूसरे के लिए क्या है, इसमें विश्वास रखो। तुम जब आर्य और पलक को एक मानकर चलोगी ना, फिर तुम्हे पूर्ण रूप से आर्य और पूर्ण रूप से पलक भी समझ में आ जाएगी। और यदि तुम बिना पलक के अधूरे आर्य को ढूंढोगी तो ऐसे ही आर्य तुम्हे उम्र भर अजीब लगता रहेगा।


पलक, उसके पेट से लेकर पीठ तक अपनी हाथ लपेटती…. "पता नहीं ये प्रेम है या कुछ और। लेकिन तुमसे दूर होती हूं तब तुमसे लिपटकर रहने की इक्छा होती है और जब पास होते हो तो धड़कने पूरी तेज। इतनी तेज की मै अपनी भावना ठीक से जाहिर नहीं कर पाती। क्या मुझे प्यार हुआ है?"


आर्यमणि:- हां शायद...


दोनो सुकून के प्यारे से पल को भुनाने लगे। कुछ समय बीतने के बाद… "पलक यहां तो धूप बढ़ रही है, कहीं और चले क्या।"..


पलक:- चलो लॉन्ग ड्राइव पर चलते है। जहां जी करेगा वहां रुकेंगे, और ढेर सारी मस्ती करेंगे।


आर्यमणि:- किस्स के नाम पर तो ताला लगा है, मस्ती क्या खाक करेंगे। तुम्हे गोद में उठाया था तो दिल कर रहा था कि होंठ से होंठ लगाकर चूमते हुए ऊपर तक लेकर आऊं।


पलक:- और ऊपर लाकर कंट्रोल नहीं होता तो मुझे इधर-उधर हाथ लगाते और बाद में फिर..


आर्यमणि:- उफ्फ ! क्या रौंगटे खड़े करने वाले ख्याल है। पलक तुम्हारे साथ मुझे एडवांटेज है। इन सब मामले में जो बात दिमाग में भी नहीं रहती, वो भी तुम डाल देती हो। फिलहाल..


पलक:- हां फिलहाल…


आर्यमणि:- फिलहाल इस जगह पर आते ही अब कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि यह एक विकृति स्थल है और मुझे अब जरा पता लगाने दो की यहां कल रात हुआ क्या था? और क्यों ये इलाका सुपरनैचुरल और शिकारियों के लिए प्रतिबंधित है?


पलक:- और ये पता कैसे लगाएंगे?


आर्यमणि:- ये माटी है ना। लोग इसे कितनी भी मैली कर दे, अपने अंदर सब ज़हर समाकर, ऊपर से उन्हें पोषण ही देती है। मै भी इस माटी से मदद मांगता हूं, ये किसका मैल छिपाकर प्रकृति का मनमोहक नजारा दी हुई थी?


पलक आर्यमणि की बात बड़े ध्यान से सुनती हुई उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लगी। दोनो 100 कदम चले होंगे, तभी एक स्थान को देखकर आर्यमणि रुकने के लिए कहा। नीचे बैठकर उसने हाथो में मिट्टी उठाई और उसे सूंघने लगा।… "खून है यहां, किसी तरह का अनुष्ठान हुआ था। खोदने के लिए कुछ है क्या?"..


पलक:- बैग में एक छोटा सा चाकू है।


आर्यमणि, पलक को घूरते हुए… "मेरा गला काटने के लिए तो नहीं लेकर घूम रही थी।"..


पलक, अपने बैग से चाकू निकालकर उसके गले पर रखती… "ये जान और ये आर्य, दोनो मेरे है। इसपर नजर डालने वालों को छिलने के लिए रखी हूं।"..


आर्यमणि उसके हाथो से चाकू लेकर जमीन कि भुरभुरी मिट्टी हटाते… "ऐसे अदाएं मत दिखाओ की मै खुद को रोक नहीं पाऊ। तुम्हारे पास कोई ग्लोब्स या पॉलीथीन है।"


पलक:- नहीं।


आर्यमणि:- पीछे रहना और किसी चीज को छूना मत।


पलक:- हम्मम ! ठीक है।


आर्यमणि तेजी से गया और पेड़ की लंबी चौड़ी छाल छीलकर ले आया। बड़े ही ऐतिहात से मिट्टी के अंदर के समान को निकला। अंदर से फूल, माला, कुछ हड्डियां और कपाल निकली। सब समनो को देखकर पलक, आर्यमणि से पूछने लगी…. "ये सब क्या है आर्य।"..


आर्यमणि:- बताता हूं, तुम जरा पीछे हो जाओ पहले, और कुछ भी हो मुझे छूना मत। समझ गई।


पलक अपना सर हां में हिलती हुई, चार कदम पीछे हो गई… आर्यमणि अपना शर्ट उतार कर नीचे जमीन में बिछाया और पलक उसके बदन पर गुदे टैटू को गौर से देखने लगी। बांह पर राउंड शेप में, संस्कृत के कुछ शब्द लिखे हुए थे। पीठ पर भगवान शिव की बड़ी सी टैटू। जितने भी टैटू थे, दिखने में काफी आकर्षक लग रहा था।


आर्यमणि भूमि के अंदर से निकले सामान को बांधकर एक पोटली बनाया और ठीक उसके पास जमीन को 5 इंच खोदकर अपना दायां पंजा उसके अंदर डाल दिया। बाएं हाथ की मुट्ठी बनाकर पीछे कमर तक ले गया और दायां हाथ के फैले पंजे के क्लॉ भूमि के अंदर घुस गए। दिमाग के अंदर सारी छवि बननी शुरू हो गई। इधर पलक पीछे खड़ी होकर सब देख रही थी।


जैसे ही थोड़ा वक्त बिता, आर्यमणि का पूरा शरीर ही नीला दिखने लगा था और वो अपनी जगह से हिल नहीं रहा था। तकरीबन 10 मिनट तक बिना हिले एक ही अवस्था में रहने के बाद, आर्यमणि अपनी आखें खोला। आर्यमणि अपने हाथ को साफ करने के बाद, छाल का एक मजबूत कवर बनाया और पोटली को छाल के बीच डालकर… "पलक इसे ऊपर से पकड़ना और आराम से कार की डिक्की में रख देना। तुम जबतक ये सब करो मै कार के पास तुम्हे मिलता हूं।"


आर्यमणि चारो ओर का जायजा लेते पश्चिम के रास्ते चल दिया, जहां कुछ दूर आगे झील था। पूरा मुवाएना करने के बाद आर्यमणि पलक के पास पहुंचकर…. "तुम्हे तैरना आता है।"..


पलक:- हां आता है।


आर्यमणि:- चलो मेरे साथ..


पलक:- लेकिन आर्य सुनो तो…


आर्यमणि:- चलो भी..


पलक को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, वो आर्यमणि के साथ चल दी।… "आर्य अब ये तो नहीं कहोगे ना कि हम इस झील में तैरने वाले है।"..


आर्यमणि, पलक की बातो पर ध्यान ना देकर उसका हाथ पकड़ा और तेजी से दौड़ लगाते हुए झील के अंदर चला गया… "बहुत शरारती हो तुम आर्य।"


आर्यमणि अब भी कोई उत्तर नहीं दे रहा था, वो बस पलक का हाथ पकड़ कर एक दिशा में तैरते जा रहा था। आर्यमणि पलक के साथ तैरते हुए झील के इस किनारे से उस किनारे तक चला आया। और थोड़ी ही दूर आगे जाने के बाद.. एक बड़ा सा गड्ढा उसे नजर आने लगा… "पलक मोबाइल लाई हो।"..


पलक:- मुझे लगा ही था कि तुम झील में मुझसे तैराकी ना करवा दो इसलिए मैंने मोबाइल कार में ही छोड़ दिया।


आर्यमणि:- स्मार्ट गर्ल.. किसी को पकड़ो यहां की तस्वीरें लेनी है।


किसी को पकड़ना क्या था वहां पर दो लड़के पुलिस के साथ खुद ही पहुंच रहे थे। .. पुलिस आर्यमणि और पलक को देखकर… "चला रे, भिड़ ना लगाओ।"..


आर्यमणि:- हमलोग प्रेस से है सर.. ये गड्ढा हमे अजीब लग रहा है और आप भी यहां आए है, इसका मतलब कुछ तो राज ये गड्ढा समेटे है। तो बताइए सर, क्या है इसकी कहानी..


पुलिस, अपनी वर्दी टाईट करते… "देखिए वो क्या है।"..


आर्यमणि:- एक मिनट सर, आपका मोबाइल दीजिए ना। पहले यहां को बारीक तस्वीर ले लूं, फिर आप का स्टेटमेंट रिकॉर्ड करके कल अखबार में छपने के लिए भेज दूंगा।


पुलिस:- हां हां क्यों नहीं…


आर्यमणि, मंहगा मोबाइल फोन देखकर.… "क्या बात है सर काफी तरक्की में हो"


पुलिस:- मेरे साला ने गिफ्ट किया है।


आर्यमणि हर एंगल से वहां की तस्वीर लेने लगा। उसके बाद पुलिस की तस्वीर लेते हुए… "हां सर अभी कहिए।"..


पुलिस:- कल रात को यहां कुछ हलचल हुई। पन ये लोग का कहना है कि यहां गड्ढे से कोई भूत निकला और लोगों को मारकर गायब हो गया। इन लोगों के हिसाब से... रात का अंधेरा था और गड्ढे के पास हलचल देखकर लोग इधर कू आए। पन जब आए तो फिर लौटकर नहीं गए। पहले गड्ढे में गिरे और लाश पानी से निकली। इधर तो आबरा का डाबरा चल रहा है।


पुलिस के पास खड़ा एक लड़का…. "साहेब मुनीर काका ने खुद देखा, जब वो भूत दोनो को मार रहे थे। 10 फिट लंबा भूत बिल्कुल काला और अजीब से आंख। मुनीर काका के साथ वो दोनो आदमी भी जा रहे थे। अचानक ही तीनों को यहां गड्ढे के पास कुछ दिखा। मुनीर काका तो रुक गए लेकिन जैसे ही वो दोनो गड्ढे के पास पहुंचे भूत ने दोनो को खींच लिया। दोनो के गर्दन को अपने २ फिट जितने बड़े पंजे में जैसे ही दबोचा ना, उन दोनों के शरीर के अंदर से लाल रंग का धुआं निकलकर, उसके नाक में समा गया और वो भूत इन दोनों को इसी गड्ढे में डालकर गायब हो गया।


आर्यमणि:- सर लाश का फिर तो पोसटमार्टम हुआ होगा।


पुलिस:- इसलिए तो अरेस्ट करने आए रे बाबा। अब मर्डर भूत ने किया या सौतन ने या किसी इंसान ने, उसका पोस्टमार्टम होना तो चाहिए था ना। अब इनको पोस्टमार्टम के लिए बोला तो पुरा गांव हमे घेरकर कहता है, लाश शापित था पुरा गांव खत्म हो जाएगा और इसलिए रात को ही जला दिया।


आर्यमणि:- छोड़ो ना साहेब मै इसे गड्ढे में फिसलकर पानी में डूबने से मौत छाप देता हूं। गड्ढा भरवा दो साहेब वरना आज रात फिर भूत आ जाएगा और इनकी कहानी सच हो की ना हो लेकिन आपकी परमानेंट ड्यूटी यहीं लग जाएगी।


आर्यमणि की बात सुनकर थानेदार हसने लगा। थानेदार ने दोनो से नाम पूछा और अपनी जीप से ले जाकर दोनो को उस पार छोड़ दिया। आर्यमणि और पलक ने थानेदार को धन्यवाद कहा और दोनो कार से वापस निकल गए। इससे पहले कि पलक अपने पजल हुए माइड को, कुछ सवाल पूछकर राहत देती आर्यमणि कहने लगा… "प्रतिबंधित क्षेत्र में एक विकृति रीछ स्त्री थी जो पिछले 2600 साल से सजा भुगत रही थी। सजा अपने पूर्ण जीवन काल तक की थी"..


पलक:- क्या मतलब है तुम्हारा एक रीछ स्त्री।


आर्यमणि:- "रामायण काल में एक प्रजाति का उल्लेख है रीछ, जिसमें जाम्बवंत जी का नाम प्रमुख था। जिन्होंने श्री हनुमान जी को उनकी शक्तियों का स्मरण करवाया था और लक्ष्मण जी जब मूर्छित थे तब हनुमान जी और विभीषण जी, जाम्बवंत जी के पास गए थे। तब उन्होंने ही हिमालय के ऋषभ और कैलाश पर्वत जाकर संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा था।"

"ये प्रजाति मानव जाति की सबसे श्रेष्ठ प्रजातियों में से एक थी जो इंजिनियरिंग और साइंस में काफी आगे थे। मना ये जाता है कि इन लोगों ने एक ऐसा यंत्र का निर्माण किया था जो विषैले परमाणु निगल जाते थे। ये लोग दीर्घ आयु होते थे। जाम्बवंत जी की उम्र बहुत लंबी थी। 5,000 वर्ष बाद उन्होंने श्रीकृष्ण के साथ एक गुफा में स्मयंतक मणि के लिए युद्ध किया था। भारत में जम्मू-कश्मीर में जाम्बवंत गुफा मंदिर है। जाम्बवंत जी की बेटी के साथ भगवान श्री कृष्ण ने विवाह किया था।


पलक:- ये विकृति रीछ स्त्री कितना खतरनाक हो सकती है।


आर्यमणि:- अगर इन लोगो की बात पर यकीन करें तो उसने केवल गला पकड़ कर दो लोगों के रक्त को कण में बदल दिया और अपने अंदर समा ली।


पलक:- ये जो प्रजाति थी वो अच्छी थी या बुरी?
 

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I love Fantasy and Sci-fiction story.
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भाग:–17



पलक:– प्रहरी के कई उच्च अधिकारी को लगता है कि तुम्हारे दादा वर्घराज कुलकर्णी की सारी सिद्धियां तुम में है। तो कई लोगों का मानना है कि मैत्री लोपचे के प्यार में तुम एक वेयरवोल्फ बन गए थे। पर एक वेयरवोल्फ किसी प्रहरी के यहां कैसे रह सकता है, इसलिए खुद ही वो लोग इस बात का खंडन कर देते है। बाद में इस बात का भी खंडन कर देते हैं कि जब तुम ७–८ साल के थे तब तुम्हारे दादा जी इस दुनिया में नही रहे। फिर उनकी सिद्धि तुम्हारे अंदर कैसे आ सकती है? लेकिन हर किसी को लगता है कि तुम कुछ हो.… उनके लिए तुम किसी रिसर्च सब्जेक्ट की तरह हो, जिसपर कोई नतीजा नहीं निकलता.…



आर्यमणि, खुलकर हंसते... "फिर किस निष्कर्ष पर पहुंचे"…

पलक:– सब के सब दुविधा में है। किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके। लेकिन हर किसी को लगता है कि तुम में कुछ तो खास है...

आर्यमणि:– और मेरी रानी को क्या लगता है?

पलक, आर्यमणि के गले लगकर... "मुझे तो बस तुम्हारे साथ सुकून मिलता है।"…

आर्यमणि, अपने बाजुओं में पलक को भींचते... "और क्या लगता है?"…

पलक:– यही की हमे अब रुक जाना चाहिए वरना मैं खुद को अब रोक नही पाऊंगी...

आर्यमणि:– मैं भी तो यही चाहता हूं कि रुको मत...

अपनी बात कहकर आर्यमणि ने थोड़ा और जोड़ से पलक को अपनी बाजुओं में भींच लिया। पलक कसमसाती हुई.… "आर्य प्लीज छोड़ दो... रोमांस तो हवा हो गई, उल्टा मेरी पूरी हड्डियां चटका दिए।"

आर्यमणि, पलक को खुद से अलग करते... "तुम्हे छोड़ने की एक जरा इच्छा नहीं... जल्दी से मेरा ध्यान किसी और विषय पर ले जाओ"…


पलक:– ध्यान भटकने के लिए तो पहले से विषय है। उस वेयरवॉल्फ ने ऐसा क्यों कहा कि ये इलाका उन जैसे (वेयरवोल्फ) और हमारे जैसों (प्रहरी) के लिए प्रतिबंधित है, तुम्हारा नाम क्यों नहीं ली।


आर्यमणि:- क्योंकि मै दोनो में से कोई भी नहीं हूं।

पलक:– तो फिर तुम क्या हो?

आर्यमणि:– एक और प्रहरी जो मेरे बारे में जानना चाहती है। लेकिन मैं अपनी रानी को बता दूं कि मैं सिर्फ एक आम सा इंसान... जो न तो शिकारी है न ही वेयरवोल्फ। ठीक वैसे जैसे निशांत, चित्रा और माधव है।


पलक को किसी और जवाब की उम्मीद थी। शायद प्रहरी जो आकलन कर रहे थे.. "आर्यमणि में कुछ तो खास है।" बस इसी से मिलता–जुलता की आर्यमणि में क्या खास है। लेकिन आर्यमणि बड़ी चतुराई से बात टाल गया और उसका जवाब सुनकर पलक का खिला सा चेहरा मायूसी में छोटा हो गया। आर्यमणि, पलक के सर को अपने सीने से लगाकर, उसपर हाथ फेरते हुए कहने लगा…. "तुम क्यों इतनी बातो का चिंता करती हो। मै क्या हूं वो मत ढूंढो, हम दोनों एक दूसरे के लिए क्या है, इसमें विश्वास रखो। तुम जब आर्य और पलक को एक मानकर चलोगी ना, फिर तुम्हे पूर्ण रूप से आर्य और पूर्ण रूप से पलक भी समझ में आ जाएगी। और यदि तुम बिना पलक के अधूरे आर्य को ढूंढोगी तो ऐसे ही आर्य तुम्हे उम्र भर अजीब लगता रहेगा।


पलक, उसके पेट से लेकर पीठ तक अपनी हाथ लपेटती…. "पता नहीं ये प्रेम है या कुछ और। लेकिन तुमसे दूर होती हूं तब तुमसे लिपटकर रहने की इक्छा होती है और जब पास होते हो तो धड़कने पूरी तेज। इतनी तेज की मै अपनी भावना ठीक से जाहिर नहीं कर पाती। क्या मुझे प्यार हुआ है?"


आर्यमणि:- हां शायद...


दोनो सुकून के प्यारे से पल को भुनाने लगे। कुछ समय बीतने के बाद… "पलक यहां तो धूप बढ़ रही है, कहीं और चले क्या।"..


पलक:- चलो लॉन्ग ड्राइव पर चलते है। जहां जी करेगा वहां रुकेंगे, और ढेर सारी मस्ती करेंगे।


आर्यमणि:- किस्स के नाम पर तो ताला लगा है, मस्ती क्या खाक करेंगे। तुम्हे गोद में उठाया था तो दिल कर रहा था कि होंठ से होंठ लगाकर चूमते हुए ऊपर तक लेकर आऊं।


पलक:- और ऊपर लाकर कंट्रोल नहीं होता तो मुझे इधर-उधर हाथ लगाते और बाद में फिर..


आर्यमणि:- उफ्फ ! क्या रौंगटे खड़े करने वाले ख्याल है। पलक तुम्हारे साथ मुझे एडवांटेज है। इन सब मामले में जो बात दिमाग में भी नहीं रहती, वो भी तुम डाल देती हो। फिलहाल..


पलक:- हां फिलहाल…


आर्यमणि:- फिलहाल इस जगह पर आते ही अब कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि यह एक विकृति स्थल है और मुझे अब जरा पता लगाने दो की यहां कल रात हुआ क्या था? और क्यों ये इलाका सुपरनैचुरल और शिकारियों के लिए प्रतिबंधित है?


पलक:- और ये पता कैसे लगाएंगे?


आर्यमणि:- ये माटी है ना। लोग इसे कितनी भी मैली कर दे, अपने अंदर सब ज़हर समाकर, ऊपर से उन्हें पोषण ही देती है। मै भी इस माटी से मदद मांगता हूं, ये किसका मैल छिपाकर प्रकृति का मनमोहक नजारा दी हुई थी?


पलक आर्यमणि की बात बड़े ध्यान से सुनती हुई उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लगी। दोनो 100 कदम चले होंगे, तभी एक स्थान को देखकर आर्यमणि रुकने के लिए कहा। नीचे बैठकर उसने हाथो में मिट्टी उठाई और उसे सूंघने लगा।… "खून है यहां, किसी तरह का अनुष्ठान हुआ था। खोदने के लिए कुछ है क्या?"..


पलक:- बैग में एक छोटा सा चाकू है।


आर्यमणि, पलक को घूरते हुए… "मेरा गला काटने के लिए तो नहीं लेकर घूम रही थी।"..


पलक, अपने बैग से चाकू निकालकर उसके गले पर रखती… "ये जान और ये आर्य, दोनो मेरे है। इसपर नजर डालने वालों को छिलने के लिए रखी हूं।"..


आर्यमणि उसके हाथो से चाकू लेकर जमीन कि भुरभुरी मिट्टी हटाते… "ऐसे अदाएं मत दिखाओ की मै खुद को रोक नहीं पाऊ। तुम्हारे पास कोई ग्लोब्स या पॉलीथीन है।"


पलक:- नहीं।


आर्यमणि:- पीछे रहना और किसी चीज को छूना मत।


पलक:- हम्मम ! ठीक है।


आर्यमणि तेजी से गया और पेड़ की लंबी चौड़ी छाल छीलकर ले आया। बड़े ही ऐतिहात से मिट्टी के अंदर के समान को निकला। अंदर से फूल, माला, कुछ हड्डियां और कपाल निकली। सब समनो को देखकर पलक, आर्यमणि से पूछने लगी…. "ये सब क्या है आर्य।"..


आर्यमणि:- बताता हूं, तुम जरा पीछे हो जाओ पहले, और कुछ भी हो मुझे छूना मत। समझ गई।


पलक अपना सर हां में हिलती हुई, चार कदम पीछे हो गई… आर्यमणि अपना शर्ट उतार कर नीचे जमीन में बिछाया और पलक उसके बदन पर गुदे टैटू को गौर से देखने लगी। बांह पर राउंड शेप में, संस्कृत के कुछ शब्द लिखे हुए थे। पीठ पर भगवान शिव की बड़ी सी टैटू। जितने भी टैटू थे, दिखने में काफी आकर्षक लग रहा था।


आर्यमणि भूमि के अंदर से निकले सामान को बांधकर एक पोटली बनाया और ठीक उसके पास जमीन को 5 इंच खोदकर अपना दायां पंजा उसके अंदर डाल दिया। बाएं हाथ की मुट्ठी बनाकर पीछे कमर तक ले गया और दायां हाथ के फैले पंजे के क्लॉ भूमि के अंदर घुस गए। दिमाग के अंदर सारी छवि बननी शुरू हो गई। इधर पलक पीछे खड़ी होकर सब देख रही थी।


जैसे ही थोड़ा वक्त बिता, आर्यमणि का पूरा शरीर ही नीला दिखने लगा था और वो अपनी जगह से हिल नहीं रहा था। तकरीबन 10 मिनट तक बिना हिले एक ही अवस्था में रहने के बाद, आर्यमणि अपनी आखें खोला। आर्यमणि अपने हाथ को साफ करने के बाद, छाल का एक मजबूत कवर बनाया और पोटली को छाल के बीच डालकर… "पलक इसे ऊपर से पकड़ना और आराम से कार की डिक्की में रख देना। तुम जबतक ये सब करो मै कार के पास तुम्हे मिलता हूं।"


आर्यमणि चारो ओर का जायजा लेते पश्चिम के रास्ते चल दिया, जहां कुछ दूर आगे झील था। पूरा मुवाएना करने के बाद आर्यमणि पलक के पास पहुंचकर…. "तुम्हे तैरना आता है।"..


पलक:- हां आता है।


आर्यमणि:- चलो मेरे साथ..


पलक:- लेकिन आर्य सुनो तो…


आर्यमणि:- चलो भी..


पलक को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, वो आर्यमणि के साथ चल दी।… "आर्य अब ये तो नहीं कहोगे ना कि हम इस झील में तैरने वाले है।"..


आर्यमणि, पलक की बातो पर ध्यान ना देकर उसका हाथ पकड़ा और तेजी से दौड़ लगाते हुए झील के अंदर चला गया… "बहुत शरारती हो तुम आर्य।"


आर्यमणि अब भी कोई उत्तर नहीं दे रहा था, वो बस पलक का हाथ पकड़ कर एक दिशा में तैरते जा रहा था। आर्यमणि पलक के साथ तैरते हुए झील के इस किनारे से उस किनारे तक चला आया। और थोड़ी ही दूर आगे जाने के बाद.. एक बड़ा सा गड्ढा उसे नजर आने लगा… "पलक मोबाइल लाई हो।"..


पलक:- मुझे लगा ही था कि तुम झील में मुझसे तैराकी ना करवा दो इसलिए मैंने मोबाइल कार में ही छोड़ दिया।


आर्यमणि:- स्मार्ट गर्ल.. किसी को पकड़ो यहां की तस्वीरें लेनी है।


किसी को पकड़ना क्या था वहां पर दो लड़के पुलिस के साथ खुद ही पहुंच रहे थे। .. पुलिस आर्यमणि और पलक को देखकर… "चला रे, भिड़ ना लगाओ।"..


आर्यमणि:- हमलोग प्रेस से है सर.. ये गड्ढा हमे अजीब लग रहा है और आप भी यहां आए है, इसका मतलब कुछ तो राज ये गड्ढा समेटे है। तो बताइए सर, क्या है इसकी कहानी..


पुलिस, अपनी वर्दी टाईट करते… "देखिए वो क्या है।"..


आर्यमणि:- एक मिनट सर, आपका मोबाइल दीजिए ना। पहले यहां को बारीक तस्वीर ले लूं, फिर आप का स्टेटमेंट रिकॉर्ड करके कल अखबार में छपने के लिए भेज दूंगा।


पुलिस:- हां हां क्यों नहीं…


आर्यमणि, मंहगा मोबाइल फोन देखकर.… "क्या बात है सर काफी तरक्की में हो"


पुलिस:- मेरे साला ने गिफ्ट किया है।


आर्यमणि हर एंगल से वहां की तस्वीर लेने लगा। उसके बाद पुलिस की तस्वीर लेते हुए… "हां सर अभी कहिए।"..


पुलिस:- कल रात को यहां कुछ हलचल हुई। पन ये लोग का कहना है कि यहां गड्ढे से कोई भूत निकला और लोगों को मारकर गायब हो गया। इन लोगों के हिसाब से... रात का अंधेरा था और गड्ढे के पास हलचल देखकर लोग इधर कू आए। पन जब आए तो फिर लौटकर नहीं गए। पहले गड्ढे में गिरे और लाश पानी से निकली। इधर तो आबरा का डाबरा चल रहा है।


पुलिस के पास खड़ा एक लड़का…. "साहेब मुनीर काका ने खुद देखा, जब वो भूत दोनो को मार रहे थे। 10 फिट लंबा भूत बिल्कुल काला और अजीब से आंख। मुनीर काका के साथ वो दोनो आदमी भी जा रहे थे। अचानक ही तीनों को यहां गड्ढे के पास कुछ दिखा। मुनीर काका तो रुक गए लेकिन जैसे ही वो दोनो गड्ढे के पास पहुंचे भूत ने दोनो को खींच लिया। दोनो के गर्दन को अपने २ फिट जितने बड़े पंजे में जैसे ही दबोचा ना, उन दोनों के शरीर के अंदर से लाल रंग का धुआं निकलकर, उसके नाक में समा गया और वो भूत इन दोनों को इसी गड्ढे में डालकर गायब हो गया।


आर्यमणि:- सर लाश का फिर तो पोसटमार्टम हुआ होगा।


पुलिस:- इसलिए तो अरेस्ट करने आए रे बाबा। अब मर्डर भूत ने किया या सौतन ने या किसी इंसान ने, उसका पोस्टमार्टम होना तो चाहिए था ना। अब इनको पोस्टमार्टम के लिए बोला तो पुरा गांव हमे घेरकर कहता है, लाश शापित था पुरा गांव खत्म हो जाएगा और इसलिए रात को ही जला दिया।


आर्यमणि:- छोड़ो ना साहेब मै इसे गड्ढे में फिसलकर पानी में डूबने से मौत छाप देता हूं। गड्ढा भरवा दो साहेब वरना आज रात फिर भूत आ जाएगा और इनकी कहानी सच हो की ना हो लेकिन आपकी परमानेंट ड्यूटी यहीं लग जाएगी।


आर्यमणि की बात सुनकर थानेदार हसने लगा। थानेदार ने दोनो से नाम पूछा और अपनी जीप से ले जाकर दोनो को उस पार छोड़ दिया। आर्यमणि और पलक ने थानेदार को धन्यवाद कहा और दोनो कार से वापस निकल गए। इससे पहले कि पलक अपने पजल हुए माइड को, कुछ सवाल पूछकर राहत देती आर्यमणि कहने लगा… "प्रतिबंधित क्षेत्र में एक विकृति रीछ स्त्री थी जो पिछले 2600 साल से सजा भुगत रही थी। सजा अपने पूर्ण जीवन काल तक की थी"..


पलक:- क्या मतलब है तुम्हारा एक रीछ स्त्री।


आर्यमणि:- "रामायण काल में एक प्रजाति का उल्लेख है रीछ, जिसमें जाम्बवंत जी का नाम प्रमुख था। जिन्होंने श्री हनुमान जी को उनकी शक्तियों का स्मरण करवाया था और लक्ष्मण जी जब मूर्छित थे तब हनुमान जी और विभीषण जी, जाम्बवंत जी के पास गए थे। तब उन्होंने ही हिमालय के ऋषभ और कैलाश पर्वत जाकर संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा था।"

"ये प्रजाति मानव जाति की सबसे श्रेष्ठ प्रजातियों में से एक थी जो इंजिनियरिंग और साइंस में काफी आगे थे। मना ये जाता है कि इन लोगों ने एक ऐसा यंत्र का निर्माण किया था जो विषैले परमाणु निगल जाते थे। ये लोग दीर्घ आयु होते थे। जाम्बवंत जी की उम्र बहुत लंबी थी। 5,000 वर्ष बाद उन्होंने श्रीकृष्ण के साथ एक गुफा में स्मयंतक मणि के लिए युद्ध किया था। भारत में जम्मू-कश्मीर में जाम्बवंत गुफा मंदिर है। जाम्बवंत जी की बेटी के साथ भगवान श्री कृष्ण ने विवाह किया था।


पलक:- ये विकृति रीछ स्त्री कितना खतरनाक हो सकती है।


आर्यमणि:- अगर इन लोगो की बात पर यकीन करें तो उसने केवल गला पकड़ कर दो लोगों के रक्त को कण में बदल दिया और अपने अंदर समा ली।


पलक:- ये जो प्रजाति थी वो अच्छी थी या बुरी?
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The king

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भाग:–17



पलक:– प्रहरी के कई उच्च अधिकारी को लगता है कि तुम्हारे दादा वर्घराज कुलकर्णी की सारी सिद्धियां तुम में है। तो कई लोगों का मानना है कि मैत्री लोपचे के प्यार में तुम एक वेयरवोल्फ बन गए थे। पर एक वेयरवोल्फ किसी प्रहरी के यहां कैसे रह सकता है, इसलिए खुद ही वो लोग इस बात का खंडन कर देते है। बाद में इस बात का भी खंडन कर देते हैं कि जब तुम ७–८ साल के थे तब तुम्हारे दादा जी इस दुनिया में नही रहे। फिर उनकी सिद्धि तुम्हारे अंदर कैसे आ सकती है? लेकिन हर किसी को लगता है कि तुम कुछ हो.… उनके लिए तुम किसी रिसर्च सब्जेक्ट की तरह हो, जिसपर कोई नतीजा नहीं निकलता.…



आर्यमणि, खुलकर हंसते... "फिर किस निष्कर्ष पर पहुंचे"…

पलक:– सब के सब दुविधा में है। किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके। लेकिन हर किसी को लगता है कि तुम में कुछ तो खास है...

आर्यमणि:– और मेरी रानी को क्या लगता है?

पलक, आर्यमणि के गले लगकर... "मुझे तो बस तुम्हारे साथ सुकून मिलता है।"…

आर्यमणि, अपने बाजुओं में पलक को भींचते... "और क्या लगता है?"…

पलक:– यही की हमे अब रुक जाना चाहिए वरना मैं खुद को अब रोक नही पाऊंगी...

आर्यमणि:– मैं भी तो यही चाहता हूं कि रुको मत...

अपनी बात कहकर आर्यमणि ने थोड़ा और जोड़ से पलक को अपनी बाजुओं में भींच लिया। पलक कसमसाती हुई.… "आर्य प्लीज छोड़ दो... रोमांस तो हवा हो गई, उल्टा मेरी पूरी हड्डियां चटका दिए।"

आर्यमणि, पलक को खुद से अलग करते... "तुम्हे छोड़ने की एक जरा इच्छा नहीं... जल्दी से मेरा ध्यान किसी और विषय पर ले जाओ"…


पलक:– ध्यान भटकने के लिए तो पहले से विषय है। उस वेयरवॉल्फ ने ऐसा क्यों कहा कि ये इलाका उन जैसे (वेयरवोल्फ) और हमारे जैसों (प्रहरी) के लिए प्रतिबंधित है, तुम्हारा नाम क्यों नहीं ली।


आर्यमणि:- क्योंकि मै दोनो में से कोई भी नहीं हूं।

पलक:– तो फिर तुम क्या हो?

आर्यमणि:– एक और प्रहरी जो मेरे बारे में जानना चाहती है। लेकिन मैं अपनी रानी को बता दूं कि मैं सिर्फ एक आम सा इंसान... जो न तो शिकारी है न ही वेयरवोल्फ। ठीक वैसे जैसे निशांत, चित्रा और माधव है।


पलक को किसी और जवाब की उम्मीद थी। शायद प्रहरी जो आकलन कर रहे थे.. "आर्यमणि में कुछ तो खास है।" बस इसी से मिलता–जुलता की आर्यमणि में क्या खास है। लेकिन आर्यमणि बड़ी चतुराई से बात टाल गया और उसका जवाब सुनकर पलक का खिला सा चेहरा मायूसी में छोटा हो गया। आर्यमणि, पलक के सर को अपने सीने से लगाकर, उसपर हाथ फेरते हुए कहने लगा…. "तुम क्यों इतनी बातो का चिंता करती हो। मै क्या हूं वो मत ढूंढो, हम दोनों एक दूसरे के लिए क्या है, इसमें विश्वास रखो। तुम जब आर्य और पलक को एक मानकर चलोगी ना, फिर तुम्हे पूर्ण रूप से आर्य और पूर्ण रूप से पलक भी समझ में आ जाएगी। और यदि तुम बिना पलक के अधूरे आर्य को ढूंढोगी तो ऐसे ही आर्य तुम्हे उम्र भर अजीब लगता रहेगा।


पलक, उसके पेट से लेकर पीठ तक अपनी हाथ लपेटती…. "पता नहीं ये प्रेम है या कुछ और। लेकिन तुमसे दूर होती हूं तब तुमसे लिपटकर रहने की इक्छा होती है और जब पास होते हो तो धड़कने पूरी तेज। इतनी तेज की मै अपनी भावना ठीक से जाहिर नहीं कर पाती। क्या मुझे प्यार हुआ है?"


आर्यमणि:- हां शायद...


दोनो सुकून के प्यारे से पल को भुनाने लगे। कुछ समय बीतने के बाद… "पलक यहां तो धूप बढ़ रही है, कहीं और चले क्या।"..


पलक:- चलो लॉन्ग ड्राइव पर चलते है। जहां जी करेगा वहां रुकेंगे, और ढेर सारी मस्ती करेंगे।


आर्यमणि:- किस्स के नाम पर तो ताला लगा है, मस्ती क्या खाक करेंगे। तुम्हे गोद में उठाया था तो दिल कर रहा था कि होंठ से होंठ लगाकर चूमते हुए ऊपर तक लेकर आऊं।


पलक:- और ऊपर लाकर कंट्रोल नहीं होता तो मुझे इधर-उधर हाथ लगाते और बाद में फिर..


आर्यमणि:- उफ्फ ! क्या रौंगटे खड़े करने वाले ख्याल है। पलक तुम्हारे साथ मुझे एडवांटेज है। इन सब मामले में जो बात दिमाग में भी नहीं रहती, वो भी तुम डाल देती हो। फिलहाल..


पलक:- हां फिलहाल…


आर्यमणि:- फिलहाल इस जगह पर आते ही अब कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि यह एक विकृति स्थल है और मुझे अब जरा पता लगाने दो की यहां कल रात हुआ क्या था? और क्यों ये इलाका सुपरनैचुरल और शिकारियों के लिए प्रतिबंधित है?


पलक:- और ये पता कैसे लगाएंगे?


आर्यमणि:- ये माटी है ना। लोग इसे कितनी भी मैली कर दे, अपने अंदर सब ज़हर समाकर, ऊपर से उन्हें पोषण ही देती है। मै भी इस माटी से मदद मांगता हूं, ये किसका मैल छिपाकर प्रकृति का मनमोहक नजारा दी हुई थी?


पलक आर्यमणि की बात बड़े ध्यान से सुनती हुई उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लगी। दोनो 100 कदम चले होंगे, तभी एक स्थान को देखकर आर्यमणि रुकने के लिए कहा। नीचे बैठकर उसने हाथो में मिट्टी उठाई और उसे सूंघने लगा।… "खून है यहां, किसी तरह का अनुष्ठान हुआ था। खोदने के लिए कुछ है क्या?"..


पलक:- बैग में एक छोटा सा चाकू है।


आर्यमणि, पलक को घूरते हुए… "मेरा गला काटने के लिए तो नहीं लेकर घूम रही थी।"..


पलक, अपने बैग से चाकू निकालकर उसके गले पर रखती… "ये जान और ये आर्य, दोनो मेरे है। इसपर नजर डालने वालों को छिलने के लिए रखी हूं।"..


आर्यमणि उसके हाथो से चाकू लेकर जमीन कि भुरभुरी मिट्टी हटाते… "ऐसे अदाएं मत दिखाओ की मै खुद को रोक नहीं पाऊ। तुम्हारे पास कोई ग्लोब्स या पॉलीथीन है।"


पलक:- नहीं।


आर्यमणि:- पीछे रहना और किसी चीज को छूना मत।


पलक:- हम्मम ! ठीक है।


आर्यमणि तेजी से गया और पेड़ की लंबी चौड़ी छाल छीलकर ले आया। बड़े ही ऐतिहात से मिट्टी के अंदर के समान को निकला। अंदर से फूल, माला, कुछ हड्डियां और कपाल निकली। सब समनो को देखकर पलक, आर्यमणि से पूछने लगी…. "ये सब क्या है आर्य।"..


आर्यमणि:- बताता हूं, तुम जरा पीछे हो जाओ पहले, और कुछ भी हो मुझे छूना मत। समझ गई।


पलक अपना सर हां में हिलती हुई, चार कदम पीछे हो गई… आर्यमणि अपना शर्ट उतार कर नीचे जमीन में बिछाया और पलक उसके बदन पर गुदे टैटू को गौर से देखने लगी। बांह पर राउंड शेप में, संस्कृत के कुछ शब्द लिखे हुए थे। पीठ पर भगवान शिव की बड़ी सी टैटू। जितने भी टैटू थे, दिखने में काफी आकर्षक लग रहा था।


आर्यमणि भूमि के अंदर से निकले सामान को बांधकर एक पोटली बनाया और ठीक उसके पास जमीन को 5 इंच खोदकर अपना दायां पंजा उसके अंदर डाल दिया। बाएं हाथ की मुट्ठी बनाकर पीछे कमर तक ले गया और दायां हाथ के फैले पंजे के क्लॉ भूमि के अंदर घुस गए। दिमाग के अंदर सारी छवि बननी शुरू हो गई। इधर पलक पीछे खड़ी होकर सब देख रही थी।


जैसे ही थोड़ा वक्त बिता, आर्यमणि का पूरा शरीर ही नीला दिखने लगा था और वो अपनी जगह से हिल नहीं रहा था। तकरीबन 10 मिनट तक बिना हिले एक ही अवस्था में रहने के बाद, आर्यमणि अपनी आखें खोला। आर्यमणि अपने हाथ को साफ करने के बाद, छाल का एक मजबूत कवर बनाया और पोटली को छाल के बीच डालकर… "पलक इसे ऊपर से पकड़ना और आराम से कार की डिक्की में रख देना। तुम जबतक ये सब करो मै कार के पास तुम्हे मिलता हूं।"


आर्यमणि चारो ओर का जायजा लेते पश्चिम के रास्ते चल दिया, जहां कुछ दूर आगे झील था। पूरा मुवाएना करने के बाद आर्यमणि पलक के पास पहुंचकर…. "तुम्हे तैरना आता है।"..


पलक:- हां आता है।


आर्यमणि:- चलो मेरे साथ..


पलक:- लेकिन आर्य सुनो तो…


आर्यमणि:- चलो भी..



पलक को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, वो आर्यमणि के साथ चल दी।… "आर्य अब ये तो नहीं कहोगे ना कि हम इस झील में तैरने वाले है।"..


आर्यमणि, पलक की बातो पर ध्यान ना देकर उसका हाथ पकड़ा और तेजी से दौड़ लगाते हुए झील के अंदर चला गया… "बहुत शरारती हो तुम आर्य।"


आर्यमणि अब भी कोई उत्तर नहीं दे रहा था, वो बस पलक का हाथ पकड़ कर एक दिशा में तैरते जा रहा था। आर्यमणि पलक के साथ तैरते हुए झील के इस किनारे से उस किनारे तक चला आया। और थोड़ी ही दूर आगे जाने के बाद.. एक बड़ा सा गड्ढा उसे नजर आने लगा… "पलक मोबाइल लाई हो।"..


पलक:- मुझे लगा ही था कि तुम झील में मुझसे तैराकी ना करवा दो इसलिए मैंने मोबाइल कार में ही छोड़ दिया।


आर्यमणि:- स्मार्ट गर्ल.. किसी को पकड़ो यहां की तस्वीरें लेनी है।


किसी को पकड़ना क्या था वहां पर दो लड़के पुलिस के साथ खुद ही पहुंच रहे थे। .. पुलिस आर्यमणि और पलक को देखकर… "चला रे, भिड़ ना लगाओ।"..


आर्यमणि:- हमलोग प्रेस से है सर.. ये गड्ढा हमे अजीब लग रहा है और आप भी यहां आए है, इसका मतलब कुछ तो राज ये गड्ढा समेटे है। तो बताइए सर, क्या है इसकी कहानी..


पुलिस, अपनी वर्दी टाईट करते… "देखिए वो क्या है।"..


आर्यमणि:- एक मिनट सर, आपका मोबाइल दीजिए ना। पहले यहां को बारीक तस्वीर ले लूं, फिर आप का स्टेटमेंट रिकॉर्ड करके कल अखबार में छपने के लिए भेज दूंगा।


पुलिस:- हां हां क्यों नहीं…


आर्यमणि, मंहगा मोबाइल फोन देखकर.… "क्या बात है सर काफी तरक्की में हो"


पुलिस:- मेरे साला ने गिफ्ट किया है।


आर्यमणि हर एंगल से वहां की तस्वीर लेने लगा। उसके बाद पुलिस की तस्वीर लेते हुए… "हां सर अभी कहिए।"..


पुलिस:- कल रात को यहां कुछ हलचल हुई। पन ये लोग का कहना है कि यहां गड्ढे से कोई भूत निकला और लोगों को मारकर गायब हो गया। इन लोगों के हिसाब से... रात का अंधेरा था और गड्ढे के पास हलचल देखकर लोग इधर कू आए। पन जब आए तो फिर लौटकर नहीं गए। पहले गड्ढे में गिरे और लाश पानी से निकली। इधर तो आबरा का डाबरा चल रहा है।


पुलिस के पास खड़ा एक लड़का…. "साहेब मुनीर काका ने खुद देखा, जब वो भूत दोनो को मार रहे थे। 10 फिट लंबा भूत बिल्कुल काला और अजीब से आंख। मुनीर काका के साथ वो दोनो आदमी भी जा रहे थे। अचानक ही तीनों को यहां गड्ढे के पास कुछ दिखा। मुनीर काका तो रुक गए लेकिन जैसे ही वो दोनो गड्ढे के पास पहुंचे भूत ने दोनो को खींच लिया। दोनो के गर्दन को अपने २ फिट जितने बड़े पंजे में जैसे ही दबोचा ना, उन दोनों के शरीर के अंदर से लाल रंग का धुआं निकलकर, उसके नाक में समा गया और वो भूत इन दोनों को इसी गड्ढे में डालकर गायब हो गया।


आर्यमणि:- सर लाश का फिर तो पोसटमार्टम हुआ होगा।


पुलिस:- इसलिए तो अरेस्ट करने आए रे बाबा। अब मर्डर भूत ने किया या सौतन ने या किसी इंसान ने, उसका पोस्टमार्टम होना तो चाहिए था ना। अब इनको पोस्टमार्टम के लिए बोला तो पुरा गांव हमे घेरकर कहता है, लाश शापित था पुरा गांव खत्म हो जाएगा और इसलिए रात को ही जला दिया।


आर्यमणि:- छोड़ो ना साहेब मै इसे गड्ढे में फिसलकर पानी में डूबने से मौत छाप देता हूं। गड्ढा भरवा दो साहेब वरना आज रात फिर भूत आ जाएगा और इनकी कहानी सच हो की ना हो लेकिन आपकी परमानेंट ड्यूटी यहीं लग जाएगी।


आर्यमणि की बात सुनकर थानेदार हसने लगा। थानेदार ने दोनो से नाम पूछा और अपनी जीप से ले जाकर दोनो को उस पार छोड़ दिया। आर्यमणि और पलक ने थानेदार को धन्यवाद कहा और दोनो कार से वापस निकल गए। इससे पहले कि पलक अपने पजल हुए माइड को, कुछ सवाल पूछकर राहत देती आर्यमणि कहने लगा… "प्रतिबंधित क्षेत्र में एक विकृति रीछ स्त्री थी जो पिछले 2600 साल से सजा भुगत रही थी। सजा अपने पूर्ण जीवन काल तक की थी"..


पलक:- क्या मतलब है तुम्हारा एक रीछ स्त्री।


आर्यमणि:- "रामायण काल में एक प्रजाति का उल्लेख है रीछ, जिसमें जाम्बवंत जी का नाम प्रमुख था। जिन्होंने श्री हनुमान जी को उनकी शक्तियों का स्मरण करवाया था और लक्ष्मण जी जब मूर्छित थे तब हनुमान जी और विभीषण जी, जाम्बवंत जी के पास गए थे। तब उन्होंने ही हिमालय के ऋषभ और कैलाश पर्वत जाकर संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा था।"

"ये प्रजाति मानव जाति की सबसे श्रेष्ठ प्रजातियों में से एक थी जो इंजिनियरिंग और साइंस में काफी आगे थे। मना ये जाता है कि इन लोगों ने एक ऐसा यंत्र का निर्माण किया था जो विषैले परमाणु निगल जाते थे। ये लोग दीर्घ आयु होते थे। जाम्बवंत जी की उम्र बहुत लंबी थी। 5,000 वर्ष बाद उन्होंने श्रीकृष्ण के साथ एक गुफा में स्मयंतक मणि के लिए युद्ध किया था। भारत में जम्मू-कश्मीर में जाम्बवंत गुफा मंदिर है। जाम्बवंत जी की बेटी के साथ भगवान श्री कृष्ण ने विवाह किया था।


पलक:- ये विकृति रीछ स्त्री कितना खतरनाक हो सकती है।


आर्यमणि:- अगर इन लोगो की बात पर यकीन करें तो उसने केवल गला पकड़ कर दो लोगों के रक्त को कण में बदल दिया और अपने अंदर समा ली।


पलक:- ये जो प्रजाति थी वो अच्छी थी या बुरी?
Nice update bhai or jab aryamani ka sharir jab pura neela ho gaya tha uske bare me palak ne kuch puchha kyo nahi waiting for next update
 
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पलक:– प्रहरी के कई उच्च अधिकारी को लगता है कि तुम्हारे दादा वर्घराज कुलकर्णी की सारी सिद्धियां तुम में है। तो कई लोगों का मानना है कि मैत्री लोपचे के प्यार में तुम एक वेयरवोल्फ बन गए थे। पर एक वेयरवोल्फ किसी प्रहरी के यहां कैसे रह सकता है, इसलिए खुद ही वो लोग इस बात का खंडन कर देते है। बाद में इस बात का भी खंडन कर देते हैं कि जब तुम ७–८ साल के थे तब तुम्हारे दादा जी इस दुनिया में नही रहे। फिर उनकी सिद्धि तुम्हारे अंदर कैसे आ सकती है? लेकिन हर किसी को लगता है कि तुम कुछ हो.… उनके लिए तुम किसी रिसर्च सब्जेक्ट की तरह हो, जिसपर कोई नतीजा नहीं निकलता.…



आर्यमणि, खुलकर हंसते... "फिर किस निष्कर्ष पर पहुंचे"…

पलक:– सब के सब दुविधा में है। किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके। लेकिन हर किसी को लगता है कि तुम में कुछ तो खास है...

आर्यमणि:– और मेरी रानी को क्या लगता है?

पलक, आर्यमणि के गले लगकर... "मुझे तो बस तुम्हारे साथ सुकून मिलता है।"…

आर्यमणि, अपने बाजुओं में पलक को भींचते... "और क्या लगता है?"…

पलक:– यही की हमे अब रुक जाना चाहिए वरना मैं खुद को अब रोक नही पाऊंगी...

आर्यमणि:– मैं भी तो यही चाहता हूं कि रुको मत...

अपनी बात कहकर आर्यमणि ने थोड़ा और जोड़ से पलक को अपनी बाजुओं में भींच लिया। पलक कसमसाती हुई.… "आर्य प्लीज छोड़ दो... रोमांस तो हवा हो गई, उल्टा मेरी पूरी हड्डियां चटका दिए।"

आर्यमणि, पलक को खुद से अलग करते... "तुम्हे छोड़ने की एक जरा इच्छा नहीं... जल्दी से मेरा ध्यान किसी और विषय पर ले जाओ"…


पलक:– ध्यान भटकने के लिए तो पहले से विषय है। उस वेयरवॉल्फ ने ऐसा क्यों कहा कि ये इलाका उन जैसे (वेयरवोल्फ) और हमारे जैसों (प्रहरी) के लिए प्रतिबंधित है, तुम्हारा नाम क्यों नहीं ली।


आर्यमणि:- क्योंकि मै दोनो में से कोई भी नहीं हूं।

पलक:– तो फिर तुम क्या हो?

आर्यमणि:– एक और प्रहरी जो मेरे बारे में जानना चाहती है। लेकिन मैं अपनी रानी को बता दूं कि मैं सिर्फ एक आम सा इंसान... जो न तो शिकारी है न ही वेयरवोल्फ। ठीक वैसे जैसे निशांत, चित्रा और माधव है।


पलक को किसी और जवाब की उम्मीद थी। शायद प्रहरी जो आकलन कर रहे थे.. "आर्यमणि में कुछ तो खास है।" बस इसी से मिलता–जुलता की आर्यमणि में क्या खास है। लेकिन आर्यमणि बड़ी चतुराई से बात टाल गया और उसका जवाब सुनकर पलक का खिला सा चेहरा मायूसी में छोटा हो गया। आर्यमणि, पलक के सर को अपने सीने से लगाकर, उसपर हाथ फेरते हुए कहने लगा…. "तुम क्यों इतनी बातो का चिंता करती हो। मै क्या हूं वो मत ढूंढो, हम दोनों एक दूसरे के लिए क्या है, इसमें विश्वास रखो। तुम जब आर्य और पलक को एक मानकर चलोगी ना, फिर तुम्हे पूर्ण रूप से आर्य और पूर्ण रूप से पलक भी समझ में आ जाएगी। और यदि तुम बिना पलक के अधूरे आर्य को ढूंढोगी तो ऐसे ही आर्य तुम्हे उम्र भर अजीब लगता रहेगा।


पलक, उसके पेट से लेकर पीठ तक अपनी हाथ लपेटती…. "पता नहीं ये प्रेम है या कुछ और। लेकिन तुमसे दूर होती हूं तब तुमसे लिपटकर रहने की इक्छा होती है और जब पास होते हो तो धड़कने पूरी तेज। इतनी तेज की मै अपनी भावना ठीक से जाहिर नहीं कर पाती। क्या मुझे प्यार हुआ है?"


आर्यमणि:- हां शायद...


दोनो सुकून के प्यारे से पल को भुनाने लगे। कुछ समय बीतने के बाद… "पलक यहां तो धूप बढ़ रही है, कहीं और चले क्या।"..


पलक:- चलो लॉन्ग ड्राइव पर चलते है। जहां जी करेगा वहां रुकेंगे, और ढेर सारी मस्ती करेंगे।


आर्यमणि:- किस्स के नाम पर तो ताला लगा है, मस्ती क्या खाक करेंगे। तुम्हे गोद में उठाया था तो दिल कर रहा था कि होंठ से होंठ लगाकर चूमते हुए ऊपर तक लेकर आऊं।


पलक:- और ऊपर लाकर कंट्रोल नहीं होता तो मुझे इधर-उधर हाथ लगाते और बाद में फिर..


आर्यमणि:- उफ्फ ! क्या रौंगटे खड़े करने वाले ख्याल है। पलक तुम्हारे साथ मुझे एडवांटेज है। इन सब मामले में जो बात दिमाग में भी नहीं रहती, वो भी तुम डाल देती हो। फिलहाल..


पलक:- हां फिलहाल…


आर्यमणि:- फिलहाल इस जगह पर आते ही अब कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि यह एक विकृति स्थल है और मुझे अब जरा पता लगाने दो की यहां कल रात हुआ क्या था? और क्यों ये इलाका सुपरनैचुरल और शिकारियों के लिए प्रतिबंधित है?


पलक:- और ये पता कैसे लगाएंगे?


आर्यमणि:- ये माटी है ना। लोग इसे कितनी भी मैली कर दे, अपने अंदर सब ज़हर समाकर, ऊपर से उन्हें पोषण ही देती है। मै भी इस माटी से मदद मांगता हूं, ये किसका मैल छिपाकर प्रकृति का मनमोहक नजारा दी हुई थी?


पलक आर्यमणि की बात बड़े ध्यान से सुनती हुई उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लगी। दोनो 100 कदम चले होंगे, तभी एक स्थान को देखकर आर्यमणि रुकने के लिए कहा। नीचे बैठकर उसने हाथो में मिट्टी उठाई और उसे सूंघने लगा।… "खून है यहां, किसी तरह का अनुष्ठान हुआ था। खोदने के लिए कुछ है क्या?"..


पलक:- बैग में एक छोटा सा चाकू है।


आर्यमणि, पलक को घूरते हुए… "मेरा गला काटने के लिए तो नहीं लेकर घूम रही थी।"..


पलक, अपने बैग से चाकू निकालकर उसके गले पर रखती… "ये जान और ये आर्य, दोनो मेरे है। इसपर नजर डालने वालों को छिलने के लिए रखी हूं।"..


आर्यमणि उसके हाथो से चाकू लेकर जमीन कि भुरभुरी मिट्टी हटाते… "ऐसे अदाएं मत दिखाओ की मै खुद को रोक नहीं पाऊ। तुम्हारे पास कोई ग्लोब्स या पॉलीथीन है।"


पलक:- नहीं।


आर्यमणि:- पीछे रहना और किसी चीज को छूना मत।


पलक:- हम्मम ! ठीक है।


आर्यमणि तेजी से गया और पेड़ की लंबी चौड़ी छाल छीलकर ले आया। बड़े ही ऐतिहात से मिट्टी के अंदर के समान को निकला। अंदर से फूल, माला, कुछ हड्डियां और कपाल निकली। सब समनो को देखकर पलक, आर्यमणि से पूछने लगी…. "ये सब क्या है आर्य।"..


आर्यमणि:- बताता हूं, तुम जरा पीछे हो जाओ पहले, और कुछ भी हो मुझे छूना मत। समझ गई।


पलक अपना सर हां में हिलती हुई, चार कदम पीछे हो गई… आर्यमणि अपना शर्ट उतार कर नीचे जमीन में बिछाया और पलक उसके बदन पर गुदे टैटू को गौर से देखने लगी। बांह पर राउंड शेप में, संस्कृत के कुछ शब्द लिखे हुए थे। पीठ पर भगवान शिव की बड़ी सी टैटू। जितने भी टैटू थे, दिखने में काफी आकर्षक लग रहा था।


आर्यमणि भूमि के अंदर से निकले सामान को बांधकर एक पोटली बनाया और ठीक उसके पास जमीन को 5 इंच खोदकर अपना दायां पंजा उसके अंदर डाल दिया। बाएं हाथ की मुट्ठी बनाकर पीछे कमर तक ले गया और दायां हाथ के फैले पंजे के क्लॉ भूमि के अंदर घुस गए। दिमाग के अंदर सारी छवि बननी शुरू हो गई। इधर पलक पीछे खड़ी होकर सब देख रही थी।


जैसे ही थोड़ा वक्त बिता, आर्यमणि का पूरा शरीर ही नीला दिखने लगा था और वो अपनी जगह से हिल नहीं रहा था। तकरीबन 10 मिनट तक बिना हिले एक ही अवस्था में रहने के बाद, आर्यमणि अपनी आखें खोला। आर्यमणि अपने हाथ को साफ करने के बाद, छाल का एक मजबूत कवर बनाया और पोटली को छाल के बीच डालकर… "पलक इसे ऊपर से पकड़ना और आराम से कार की डिक्की में रख देना। तुम जबतक ये सब करो मै कार के पास तुम्हे मिलता हूं।"


आर्यमणि चारो ओर का जायजा लेते पश्चिम के रास्ते चल दिया, जहां कुछ दूर आगे झील था। पूरा मुवाएना करने के बाद आर्यमणि पलक के पास पहुंचकर…. "तुम्हे तैरना आता है।"..


पलक:- हां आता है।


आर्यमणि:- चलो मेरे साथ..


पलक:- लेकिन आर्य सुनो तो…


आर्यमणि:- चलो भी..



पलक को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, वो आर्यमणि के साथ चल दी।… "आर्य अब ये तो नहीं कहोगे ना कि हम इस झील में तैरने वाले है।"..


आर्यमणि, पलक की बातो पर ध्यान ना देकर उसका हाथ पकड़ा और तेजी से दौड़ लगाते हुए झील के अंदर चला गया… "बहुत शरारती हो तुम आर्य।"


आर्यमणि अब भी कोई उत्तर नहीं दे रहा था, वो बस पलक का हाथ पकड़ कर एक दिशा में तैरते जा रहा था। आर्यमणि पलक के साथ तैरते हुए झील के इस किनारे से उस किनारे तक चला आया। और थोड़ी ही दूर आगे जाने के बाद.. एक बड़ा सा गड्ढा उसे नजर आने लगा… "पलक मोबाइल लाई हो।"..


पलक:- मुझे लगा ही था कि तुम झील में मुझसे तैराकी ना करवा दो इसलिए मैंने मोबाइल कार में ही छोड़ दिया।


आर्यमणि:- स्मार्ट गर्ल.. किसी को पकड़ो यहां की तस्वीरें लेनी है।


किसी को पकड़ना क्या था वहां पर दो लड़के पुलिस के साथ खुद ही पहुंच रहे थे। .. पुलिस आर्यमणि और पलक को देखकर… "चला रे, भिड़ ना लगाओ।"..


आर्यमणि:- हमलोग प्रेस से है सर.. ये गड्ढा हमे अजीब लग रहा है और आप भी यहां आए है, इसका मतलब कुछ तो राज ये गड्ढा समेटे है। तो बताइए सर, क्या है इसकी कहानी..


पुलिस, अपनी वर्दी टाईट करते… "देखिए वो क्या है।"..


आर्यमणि:- एक मिनट सर, आपका मोबाइल दीजिए ना। पहले यहां को बारीक तस्वीर ले लूं, फिर आप का स्टेटमेंट रिकॉर्ड करके कल अखबार में छपने के लिए भेज दूंगा।


पुलिस:- हां हां क्यों नहीं…


आर्यमणि, मंहगा मोबाइल फोन देखकर.… "क्या बात है सर काफी तरक्की में हो"


पुलिस:- मेरे साला ने गिफ्ट किया है।


आर्यमणि हर एंगल से वहां की तस्वीर लेने लगा। उसके बाद पुलिस की तस्वीर लेते हुए… "हां सर अभी कहिए।"..


पुलिस:- कल रात को यहां कुछ हलचल हुई। पन ये लोग का कहना है कि यहां गड्ढे से कोई भूत निकला और लोगों को मारकर गायब हो गया। इन लोगों के हिसाब से... रात का अंधेरा था और गड्ढे के पास हलचल देखकर लोग इधर कू आए। पन जब आए तो फिर लौटकर नहीं गए। पहले गड्ढे में गिरे और लाश पानी से निकली। इधर तो आबरा का डाबरा चल रहा है।


पुलिस के पास खड़ा एक लड़का…. "साहेब मुनीर काका ने खुद देखा, जब वो भूत दोनो को मार रहे थे। 10 फिट लंबा भूत बिल्कुल काला और अजीब से आंख। मुनीर काका के साथ वो दोनो आदमी भी जा रहे थे। अचानक ही तीनों को यहां गड्ढे के पास कुछ दिखा। मुनीर काका तो रुक गए लेकिन जैसे ही वो दोनो गड्ढे के पास पहुंचे भूत ने दोनो को खींच लिया। दोनो के गर्दन को अपने २ फिट जितने बड़े पंजे में जैसे ही दबोचा ना, उन दोनों के शरीर के अंदर से लाल रंग का धुआं निकलकर, उसके नाक में समा गया और वो भूत इन दोनों को इसी गड्ढे में डालकर गायब हो गया।


आर्यमणि:- सर लाश का फिर तो पोसटमार्टम हुआ होगा।


पुलिस:- इसलिए तो अरेस्ट करने आए रे बाबा। अब मर्डर भूत ने किया या सौतन ने या किसी इंसान ने, उसका पोस्टमार्टम होना तो चाहिए था ना। अब इनको पोस्टमार्टम के लिए बोला तो पुरा गांव हमे घेरकर कहता है, लाश शापित था पुरा गांव खत्म हो जाएगा और इसलिए रात को ही जला दिया।


आर्यमणि:- छोड़ो ना साहेब मै इसे गड्ढे में फिसलकर पानी में डूबने से मौत छाप देता हूं। गड्ढा भरवा दो साहेब वरना आज रात फिर भूत आ जाएगा और इनकी कहानी सच हो की ना हो लेकिन आपकी परमानेंट ड्यूटी यहीं लग जाएगी।


आर्यमणि की बात सुनकर थानेदार हसने लगा। थानेदार ने दोनो से नाम पूछा और अपनी जीप से ले जाकर दोनो को उस पार छोड़ दिया। आर्यमणि और पलक ने थानेदार को धन्यवाद कहा और दोनो कार से वापस निकल गए। इससे पहले कि पलक अपने पजल हुए माइड को, कुछ सवाल पूछकर राहत देती आर्यमणि कहने लगा… "प्रतिबंधित क्षेत्र में एक विकृति रीछ स्त्री थी जो पिछले 2600 साल से सजा भुगत रही थी। सजा अपने पूर्ण जीवन काल तक की थी"..


पलक:- क्या मतलब है तुम्हारा एक रीछ स्त्री।


आर्यमणि:- "रामायण काल में एक प्रजाति का उल्लेख है रीछ, जिसमें जाम्बवंत जी का नाम प्रमुख था। जिन्होंने श्री हनुमान जी को उनकी शक्तियों का स्मरण करवाया था और लक्ष्मण जी जब मूर्छित थे तब हनुमान जी और विभीषण जी, जाम्बवंत जी के पास गए थे। तब उन्होंने ही हिमालय के ऋषभ और कैलाश पर्वत जाकर संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा था।"

"ये प्रजाति मानव जाति की सबसे श्रेष्ठ प्रजातियों में से एक थी जो इंजिनियरिंग और साइंस में काफी आगे थे। मना ये जाता है कि इन लोगों ने एक ऐसा यंत्र का निर्माण किया था जो विषैले परमाणु निगल जाते थे। ये लोग दीर्घ आयु होते थे। जाम्बवंत जी की उम्र बहुत लंबी थी। 5,000 वर्ष बाद उन्होंने श्रीकृष्ण के साथ एक गुफा में स्मयंतक मणि के लिए युद्ध किया था। भारत में जम्मू-कश्मीर में जाम्बवंत गुफा मंदिर है। जाम्बवंत जी की बेटी के साथ भगवान श्री कृष्ण ने विवाह किया था।


पलक:- ये विकृति रीछ स्त्री कितना खतरनाक हो सकती है।


आर्यमणि:- अगर इन लोगो की बात पर यकीन करें तो उसने केवल गला पकड़ कर दो लोगों के रक्त को कण में बदल दिया और अपने अंदर समा ली।


पलक:- ये जो प्रजाति थी वो अच्छी थी या बुरी?
ये अपडेट तो पढ़ लिया अब अगले का इंतजार है। ये आर्य भी कुछ ज्यादा ही सयाना है, बाते तो ऐसे घुमा देता है कि सामने वाले को पता भी नही चलने देता है। ऊपर से की भी बात की तह तक चुटकियों में पहुंच जाता है जैसे की अनुष्ठान का पता करना, फिर वहां का सारा सामान निकालना फिर वहां अंदर हाथ डाल कर पाता नही क्या खोजा? कहीं ये अनुष्ठान उसी रीछ स्त्री को मुक्त करने के लिए तो नही था तभी आर्य वहां से पलक को लेके झील के उस पार ले गया जहां दो मौत हुई थी।

अब तथ्य पर आगे क्या काम करने वाला है और उस अनुष्ठान के सामान से क्या अनुष्ठान करने वाले का पता करने वाला है आर्य?
जिस तरह से आर्य ने ये सब किया उससे क्या पलक को कुछ शक होने वाला है आर्य और उसके व्यक्तित्व पर? क्या पलक ये जानने की कोशिश करेगी कि आर्य किस श्रेणी में आता है?

पहेलियों से भरा हुआ रोमांचक अपडेट, अगले अपडेट का उत्सुकता से प्रतीक्षारत एक पाठक।
 
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