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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–18





पलक:- ये जो प्रजाति थी वो अच्छी थी या बुरी?


आर्यमणि:- बुरे तो राक्षस भी नहीं थे। उन्हें पृथ्वी पर रक्षा करने के लिए भेजा गया था और रक्षा शब्द से ही राक्षस बना। अब क्या कहा जा सकता है। ये अच्छे प्रजाति की एक विकृति स्वभाव की रीछ थी, जिसे यहां कैद किया गया था। शायद वो सिद्धि प्राप्त थी इसलिए तो हिमालय से इतनी दूर लाकर इसे कैद किया गया था। मंत्र के वश में थी, जिसे कल रात आज़ाद कर दिया गया। 500 दिन का वक़्त है, उसके बाद वो क्या-क्या कर सकती है, ये तो वही बताएगी।


पलक:- तुम्हे इतना कैसे मालूम है आर्य?


आर्यमणि:- मेरे दादा, वर्धराज कुलकर्णी, विशिष्ठ प्रजातियों का अध्ययन और उनके जीवन के बारे में सोध करते थे। साथ में एक इतिहासकार भी रहे है। बचपन में उन्होंने मुझे अपनी गोद में बिठाकर बहुत सारी बातों का पुरा ज्ञान दिया था। वो मंत्र और उनकी शक्ति को भी एक साइंस ही मानते थे, जो पंचतत्व में बदलाव लाकर इक्छा अनुसार परिणाम देता था। जिसे चमत्कार कहते है, जो लोग केवल काल्पनिक मानते है।"

"घर जब पहुंचो तो एक बड़ा सा नाद लेना, उसमे पुरा पानी भरकर थोड़ा सा गंगा जल मिला देना और छाल सहित पोटली को उस नाद में डूबो देना। याद रहे बिना गंगा जाल वाले पानी में डुबोए उस कपड़े को छूने की कोशिश भी मत करना। यदि पानी का रंग लाल हुआ तो समझना रक्त मोक्ष श्राप से बंधी थी। और यदि रंग नीला हुआ तो समझना विश मोक्ष श्राप से बंधी थी।


पलक:- लेकिन तुम ये मुझसे क्यों कह रहे हो करने। तुम्हे इतनी जानकारी है तो तुम ही इस जीव को देखो ना।


आर्यमणि:- "मुझे जितना ज्ञान था मैंने बता दिया। प्रहरी के इतिहास की कई सारी पुस्तकें है। यधपी कभी किसी प्रहरी का पाला वकृत रीछ और उसके साथी किसी विकृत महाज्ञानी से नहीं हुआ हो, लेकिन किसी ना किसी के जानकारी में तो ये पुरा मामला जरूर होगा क्योंकि ऐसा तो है नहीं की वैधायाण भारद्वाज के बाद सुपरनेचुरल आए थे, और केवल उन्हें ही अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।"

"वैधायाण भारद्वाज और उनके अनुयाई ने भी कहीं ना कहीं से तो ये सब सिखा ही था। तो इतिहास में कहीं ना कहीं तो इस बांधी हुई रीछ स्त्री का भी जिक्र मिल जाएगा। बिना उसके हम कुछ नहीं कर सकते।"


पलक:- और जब मुझसे पूछेंगे की मुझे ये सब कैसे पता चला तो मै क्या जवाब दूंगी। उनके होने वाले जमाई ने पुरा रिसर्च किया है।


आर्यमणि:- उनसे कहना तुम जिस लड़के के साथ घूमने गई थी वह जबरदस्ती प्रतिबंधित क्षेत्र ले गया। मुझे भी जानने की जिज्ञासा थी कि यहां ऐसा क्या हुआ था, जो यह क्षेत्र प्रतिबंधित है? फिर सबको बताना कि तुम्हे हवा में कुछ अजीब सा महसूस हुआ और तुमने आदिकाल बंधन पुस्तिका का स्मरण किया जिसका ज्ञान प्रहरी शिक्षण के दूसरे साल में दिया जाता है।


पलक:- हां समझ गई आगे याद आ गया। वहीं लिखा हुआ है हवा में छोटी सी अजीब बदलावा का पीछा किया जाए तो बड़े रहस्य के वो करीब पहुंचा देता है। मंत्र पुस्तिका के कारण ये पोटली बनाई और अनुसंधान भेजने के लिए ले आयी। रीछ के बारे में भी पढ़ी हूं और वो गड्ढे की कहानी से जोड़ दूंगी।


आर्यमणि:- ये हुई ना मेरी रानी जैसा सोच और दबदबा।


पलक:- आर्य तुम्हे अपने परिवार को लेकर काफी दुख होता होगा ना। तुम्हारे ज्ञानी दादा जी को कितना बेइज्जत करके महाराष्ट्र से निकलने पर मजबूर कर दिया। तुम्हारी मां..


आर्यमणि:- हूं..


पलक:- माफ करना... मेरी सासू मां प्यार में थी, जैसे मै हूं, गलती मेरे मामा से हुई क्योंकि उन्होंने आत्महत्या चुना, लेकिन सजा तुम्हारी मां को मिली।


आर्यमणि:- छोड़ो बीते वक़्त को, तैयार रहना जल्द ही मै तुम्हे चूमने वाला हूं। शायद सोमवार को ही मेरा मंगल हो जाए। और एक बात, हम इतने क्लोज हो गए है कि तुम्हरे हाव-भाव अब कहीं जाता ना दे, हमारे बीच कुछ है।


पलक:- क्यों ये रिश्ता सीक्रेट रखना है क्या?


आर्यमणि:- हमारा रिश्ता अरेंज होगा और सभी लोग हाथ पकड़कर हमारा रिश्ता करवाएंगे।


पलक:- क्यों तुमने सब पहले से प्लान कर रखा है क्या?


आर्यमणि:- लक्ष्य पता है, कर्म कर रहा हूं, बस दिमाग खुले रखने है और सही वक़्त पर सही नीति… फिर तो ठीक वैसा ही होगा जैसा सोचा है, बस तुम ये जाहिर नहीं होने देना की हम एक दूसरे में डूब चुके है।


पलक:- जो आज्ञा महाराज।


पलक, आर्यमणि को तेजस दादा के शॉपिंग मॉल, बिग सिटी मॉल के पास छोड़ दी और खुद घर लौट गई। पलक जिस अंदाज़ में गई थी और जिस अंदाज़ में लौटी उसे देखकर तो पूरे घरवाले हसने लगे।… "क्या हुआ पलकी, उस लड़के ने तुझे पानी में धकेल दिया क्या।"


पलक:- मै वाकी वुड्स के प्रतिबंधित क्षेत्र में गई थी।


उज्जवल और नम्रता हड़बड़ा कर उसके पास पहुंचे। उनके आखों में गुस्सा साफ देखा जा सकता था। पलक सारी बातें बताती हुई एक नाद मंगवाई और छाल में बंद उस पोटली को डूबो दी। पोटली का रंग नीला पड़ गया। नीला रंग देखकर पिता उज्जवल और पलक दोनो के मुंह से निकल गया… "विष मोक्ष श्राप"।


किसी असीम शक्ति को बांधने के लिए २ तरह के श्राप विख्यात थे। पहला बंधन श्राप था "रक्त मोक्ष श्राप"। इस बंधन को बांधने के लिए 5 अलग–अलग जीवों के साथ एक इंसान की बलि दी जाती थी। इंसानी बलि भी केवल तब मान्य थी, जब वह स्वेक्षा से दी जाए। यूं तो लोग उन असीम शक्तियों वालों से इतना सताए हुए होते थे कि उसे मिटाने की चाह में हंसी–खुशी तैयार हो जाते थे। परंतु असीम सिद्धि प्राप्त या शक्तियों वाले किसी भी ऐसे प्राणी को छुड़ाने वाले, उनके अनुयाई की भी कमी नही थी। सभी मंत्रो के सुरक्षित जाप के बाद बंधन बांधने वाले ज्ञानियों की बलि चढ़ाकर श्राप मुक्त किया जा सकता था।


वहीं दूसरी ओर "विष मोक्ष श्राप" में 5 ज्ञानी सुरक्षित मंत्र जाप करते थे और अनुष्ठान पूर्ण होने के बाद सभी विष पीकर अपने प्राण त्याग देते थे। वह विष इतना खास था की सेवन के कुछ क्षण बाद तो उनके हड्डियों तक के सबूत नहीं मिलते थे। इतिहास में विष मोक्ष श्राप की विधि तो बताई गई है, लेकिन कितनो को विष मोक्ष श्राप से बंधा गया, इसका कोई उल्लेख नहीं। क्यूंकि गुप्त रूप से विष मोक्ष श्राप की अनुष्ठान होता था और कहीं कोई प्रमाण ही नही बचता... साथ ही साथ इस बंधन को तोड़ तो खुद उन ज्ञानियों के पास भी नहीं था, जो हर तरह के श्राप का ज्ञान रखते थे। इसलिए यदि कोई विष मोक्ष श्राप से बंधा है, तब तो वह जरूर असीम शक्तियों का मालिक होगा। और यदि किसी ने विष मोक्ष श्राप को उलट कर, किसी विकृत को कैद से बाहर निकाला है, फिर तो वह साधक और भी ज्यादा खतरनाक होगा...


विष मोक्ष श्राप का नाम सुनकर पलक और उज्जवल एक दूसरे का मुंह देखने लगे। पलक मन ही मन रीछ स्त्री के शक्तियों की कल्पना कर अपने पिता से पूछने लगी… "बाबा ये रीछ स्त्री कितनी खतरनाक हो सकती है।"..


उज्जवल:- रीछ प्रजाति को इतिहास में श्रेष्ठ मानव माना गया था। कहा जाता है भालू के पूर्वज यही है। इनका क्षेत्र उस समय के तात्कालिक भारतवर्ष में से दक्षिण और हिमालय की तराई में था। दक्षिण में रीछ प्रजाति के बड़े–बड़े राज्य थे, जिसपर रावण ने अपना आधिपत्य जमा लिया था। ऐसे श्रेष्ठ जाती का कोई शापित विकृति है तो उसका अंदाजा लगा पाना भी मुश्किल होगा कि ये हम सब के लिए कितना ख़तरनाक हो सकती है। रिक्ष स्त्री को विष मोक्ष श्राप से मुक्त करने वाला भी कोई विकृति ज्ञानी होगा। घातक जोड़ी है जो समस्त पृथ्वी पर राज कर सकती है। हमे अपात कालीन बैठक बुलानी होगी और इतिहास के ज्ञानियों से हमे बात करनी होगी। पलक तुमने बहुत अच्छा काम किया है। मै तुम्हे प्रहरी की उच्च सदस्यता देते हुए, तुम्हे विशिष्ठ जीव खोजी साखा का अध्यक्ष नियुक्त करता हूं। प्रहरी उच्च सदस्यों के होने वाले बैठक में तुम्हारा आना अनिवार्य होगा।


पलक:- हम्मम ! ठीक है बाबा।


नम्रता:- 3 लाख खर्च तो नहीं कि ना.. चल अब पार्टी दे। उच्च सदस्य। मतलब कई साल का सफर तूने 4 घंटे में तय कर लिया।


पलक:- ठीक है ले लेना पार्टी। अब खुश ना।


नम्रता:- बेहद ही खुश हूं। और बाबा का चेहरा तो देख अंदर ही अंदर कितना खुश हो रहे है।


उज्जवल:- पलक के लिए तो खुश हूं, लेकिन आने वाले संकट को लेकर चिंतित। हमारा काम केवल पोस्ट बांटना नहीं बल्कि दो दुनिया के बीच दीवार की तरह खड़ा रहना है, ताकि कोई एक दूसरे को परेशान ना करे।


पलक से मिली जानकारी को उज्जवल ने प्रहरी के सभी उच्च सदस्यों से साझा कर दिया। विषय की गंभीरता को देखते हुए, अध्यक्ष विश्व देसाई ने आपातकालीन बैठक बुलाई, जिसमे तात्कालिक सभी सदस्य के साथ संन्यास लिए जीवित सदस्य भी सामिल होंगे। शुरवात मीटिंग की अध्यक्षता विश्व देसाई लेंगे, उसके बाद कमान संभालेंगे सुकेश भारद्वाज।


आपातकालीन बैठक की बात सुनकर भूमि भी वापस नागपुर लौट चुकी थी। भूमि के लौटते ही आर्यमणि को ना चाहते हुए भी अपनी मासी के घर से दीदी के घर वापस आना पड़ा। सोमवार को कॉलेज में फिर एक बार जिल्लत झेलने के बाद आर्यमणि भूमि के घर लौट आया था।


शाम का वक्त था जब भूमि लौटी। आर्यमणि अपने दीदी के गले लगते पूछने लगा कैसा रहा ट्रिप। भूमि मुस्कुराकर जर उसे कही अच्छा रहा। फिर वो थोड़ा आराम करने चली गई और रात के तकरीबन 10 बजे पूरे फुरसत के साथ, अपने भाई के साथ बैठी।


भूमि:- क्या मेरा बच्चा, अब बता क्या बात है?


आर्यमणि:- मेरी छोड़ो और अपनी परेशानी बताओ। मै जानता हूं आप जिस काम से गई थी, उसे अधूरा छोड़कर आयी हो। कोई न, मै फ्री ही बैठा हूं। आपका वो काम मैं कर दूंगा, भरोसा रखो मुझपर।


भूमि:- तू तो आएगा नहीं प्रहरी बनने। मै, जयदेव और रिचा बस प्रहरी के बीच पल रहे आस्तीन के सांप को ढूंढ रही हूं।


आर्यमणि:- आप भी वही सोच रही है ना जो मै सोच रहा हूं।


भूमि:- और मेरा भाई क्या सोच रहा है?


आर्यमणि:- यही की कैसे भारद्वाज खानदान गुमनामी में जाता रहा है? कैसे उसके करीबी ठीक उसी वक़्त परेशान कर दिए जाते है जब भारद्वाज अपनी जड़ें प्रहरी में मजबूत कर रहा होता है? क्यों शुरू से प्रहरी के नेक्स्ट जेनरेशन के बीच झगड़ा होता रहा है और इन्हीं झगड़ों को देखकर मौसा जी ने अपने दो पैदा हुए बेटो का गला घोंटा, ताकि जब ये बड़े हो तो तीनों भाई दुश्मन बनकर परिवार में शक्ल ना देखे और समुदाय मे एक दूसरे का विरोध करते रहे?


भूमि:- तुम्हारे दादा को प्रहरी से बेज्जत करके निकाला, इसलिए ऐसा सोच रहा है ना?


आर्यमणि:- केवल मेरे दादा के साथ ऐसा हुआ था। मेरी मां का मायका कितना सुदृढ़ था। उनके बाबा ने कितनी संपत्ति अर्जी थी मुंबई में। यदि बीते जेनरेशन के मनीष मिश्रा (अक्षरा भारद्वाज का छोटा भाई और पलक का छोटा मामा) की शादी जया जोशी से होती, तो भारद्वाज का करीबी इकलौता मिश्र परिवार और भी सुदृढ़ होता, ऊपर से सुना है मां उस समय की बेस्ट थी, जैसा कि आप आज है। यदि मनीष मिश्रा के साथ जया जोशी की शादी होती तो भारद्वाज के करीबी, इकलौता मिश्रा परिवार भी आज खड़ा होता।


भूमि:- हम्मम ! मतलब तू यहां आया है अपने परिवार के आशुओं का हिसाब लेने।


आर्यमणि:- इतने साल बाद जब लौटा तो लगा कि मैंने कितना बड़ा पाप किया है। लेकिन जब गौर किया तो मां ने अपना अस्तित्व खोया था। भारद्वाज परिवार के करीबी मेरे दादा को किसी की साजिश का शिकार होना पड़ा था। कोई एक कुल तो है जो भारद्वाज को शुरू से तोड़ने का काम करते आ रहा है और पीढ़ी दर पीढ़ी अपने परिवार के पाठसाला में सबको यही सिक्षा से रहा है या रही है।


भूमि:- "हां मै भी बिल्कुल यही सोच रही थी। इसलिए 10 दिन के लिए बाहर गई थी ताकि उन्हें लग जाए कि तुम्हरे ऊपर मेरा हाथ बिल्कुल भी नहीं। जो लड़का पैदल एक पुरा देश के बराबर जंगल को लांघ गया है, उसका तो ये लोग कुछ नहीं बिगाड़ पाते लेकिन जबतक तू पुरा उलझता नहीं, तबतक उसे तुम्हारे पूरे ताकत का अंदाज़ा होता नहीं। जब तुम्हारे ताकत का अंदाजा होता तब वो जरूर किसी ना किसी शिकारी को ये काम देते। मै बस उसी के इंतजार में थी।


आर्यमणि:- खैर आपको पहले ये बात करनी थी। कल आपके बहुत से प्रहरी कम हो जाएंगे। क्योंकि जिसने मेरे परिवार के साथ जाने अंजाने में साजिश रची, उसका पता तो मुझे कबका चल चुका है।


भूमि:- सुन मेरे भाई, तुम कल जो भी पता करना है वो करो, लेकिन किसी प्रहरी को मारना मत। अभी हम बहुत बड़ी मुसीबत में है। कोई कमीना भी हुआ, तो क्या हुआ। हो सकता है उसकी जानकारी से हम उस जीव पर विजय प्राप्त ले।


आर्यमणि:- कौन सा जीव दीदी।


भूमि:- अभी जाकर सो जा, आराम से सब बता दूंगी। सुन मै यहां 3 दिन बाद आने वाली हूं, तो लोगों को पता नहीं चलना चाहिए। और एक बात, मै यहां नहीं हूं ये सोचकर तुझे उकसाने के लिए डायरेक्ट अटैक होंगे। हो सके तो 2-3 दिन कॉलेज ना जा। प्रहरी की मीटिंग से फ्री होकर मै कॉलेज को देखती हूं।


आर्यमणि:- दीदी जाकर सो जाओ और मेरी चिंता छोड़ दो। रही बात कॉलेज की तो वहां का लफड़ा मै खुद निपट लूंगा। हां मेरे एक्शन का इंपैक्ट देखना हो तो कल कॉलेज का सीसी टीवी कैमरा हैक कर लेना। मुख्य साजिशकर्ता का पता मिले या ना मिले लेकिन मैंने किसी को प्रोमिस किया है कि कल ही काम खत्म होगा।
 

Lib am

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पलक:- ये जो प्रजाति थी वो अच्छी थी या बुरी?


आर्यमणि:- बुरे तो राक्षस भी नहीं थे। उन्हें पृथ्वी पर रक्षा करने के लिए भेजा गया था और रक्षा शब्द से ही राक्षस बना। अब क्या कहा जा सकता है। ये अच्छे प्रजाति की एक विकृति स्वभाव की रीछ थी, जिसे यहां कैद किया गया था। शायद वो सिद्धि प्राप्त थी इसलिए तो हिमालय से इतनी दूर लाकर इसे कैद किया गया था। मंत्र के वश में थी, जिसे कल रात आज़ाद कर दिया गया। 500 दिन का वक़्त है, उसके बाद वो क्या-क्या कर सकती है, ये तो वही बताएगी।


पलक:- तुम्हे इतना कैसे मालूम है आर्य?


आर्यमणि:- मेरे दादा, वर्धराज कुलकर्णी, विशिष्ठ प्रजातियों का अध्ययन और उनके जीवन के बारे में सोध करते थे। साथ में एक इतिहासकार भी रहे है। बचपन में उन्होंने मुझे अपनी गोद में बिठाकर बहुत सारी बातों का पुरा ज्ञान दिया था। वो मंत्र और उनकी शक्ति को भी एक साइंस ही मानते थे, जो पंचतत्व में बदलाव लाकर इक्छा अनुसार परिणाम देता था। जिसे चमत्कार कहते है, जो लोग केवल काल्पनिक मानते है।"

"घर जब पहुंचो तो एक बड़ा सा नाद लेना, उसमे पुरा पानी भरकर थोड़ा सा गंगा जल मिला देना और छाल सहित पोटली को उस नाद में डूबो देना। याद रहे बिना गंगा जाल वाले पानी में डुबोए उस कपड़े को छूने की कोशिश भी मत करना। यदि पानी का रंग लाल हुआ तो समझना रक्त मोक्ष श्राप से बंधी थी। और यदि रंग नीला हुआ तो समझना विश मोक्ष श्राप से बंधी थी।


पलक:- लेकिन तुम ये मुझसे क्यों कह रहे हो करने। तुम्हे इतनी जानकारी है तो तुम ही इस जीव को देखो ना।


आर्यमणि:- "मुझे जितना ज्ञान था मैंने बता दिया। प्रहरी के इतिहास की कई सारी पुस्तकें है। यधपी कभी किसी प्रहरी का पाला वकृत रीछ और उसके साथी किसी विकृत महाज्ञानी से नहीं हुआ हो, लेकिन किसी ना किसी के जानकारी में तो ये पुरा मामला जरूर होगा क्योंकि ऐसा तो है नहीं की वैधायाण भारद्वाज के बाद सुपरनेचुरल आए थे, और केवल उन्हें ही अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।"

"वैधायाण भारद्वाज और उनके अनुयाई ने भी कहीं ना कहीं से तो ये सब सिखा ही था। तो इतिहास में कहीं ना कहीं तो इस बांधी हुई रीछ स्त्री का भी जिक्र मिल जाएगा। बिना उसके हम कुछ नहीं कर सकते।"


पलक:- और जब मुझसे पूछेंगे की मुझे ये सब कैसे पता चला तो मै क्या जवाब दूंगी। उनके होने वाले जमाई ने पुरा रिसर्च किया है।


आर्यमणि:- उनसे कहना तुम जिस लड़के के साथ घूमने गई थी वह जबरदस्ती प्रतिबंधित क्षेत्र ले गया। मुझे भी जानने की जिज्ञासा थी कि यहां ऐसा क्या हुआ था, जो यह क्षेत्र प्रतिबंधित है? फिर सबको बताना कि तुम्हे हवा में कुछ अजीब सा महसूस हुआ और तुमने आदिकाल बंधन पुस्तिका का स्मरण किया जिसका ज्ञान प्रहरी शिक्षण के दूसरे साल में दिया जाता है।


पलक:- हां समझ गई आगे याद आ गया। वहीं लिखा हुआ है हवा में छोटी सी अजीब बदलावा का पीछा किया जाए तो बड़े रहस्य के वो करीब पहुंचा देता है। मंत्र पुस्तिका के कारण ये पोटली बनाई और अनुसंधान भेजने के लिए ले आयी। रीछ के बारे में भी पढ़ी हूं और वो गड्ढे की कहानी से जोड़ दूंगी।


आर्यमणि:- ये हुई ना मेरी रानी जैसा सोच और दबदबा।


पलक:- आर्य तुम्हे अपने परिवार को लेकर काफी दुख होता होगा ना। तुम्हारे ज्ञानी दादा जी को कितना बेइज्जत करके महाराष्ट्र से निकलने पर मजबूर कर दिया। तुम्हारी मां..


आर्यमणि:- हूं..


पलक:- माफ करना... मेरी सासू मां प्यार में थी, जैसे मै हूं, गलती मेरे मामा से हुई क्योंकि उन्होंने आत्महत्या चुना, लेकिन सजा तुम्हारी मां को मिली।


आर्यमणि:- छोड़ो बीते वक़्त को, तैयार रहना जल्द ही मै तुम्हे चूमने वाला हूं। शायद सोमवार को ही मेरा मंगल हो जाए। और एक बात, हम इतने क्लोज हो गए है कि तुम्हरे हाव-भाव अब कहीं जाता ना दे, हमारे बीच कुछ है।


पलक:- क्यों ये रिश्ता सीक्रेट रखना है क्या?


आर्यमणि:- हमारा रिश्ता अरेंज होगा और सभी लोग हाथ पकड़कर हमारा रिश्ता करवाएंगे।


पलक:- क्यों तुमने सब पहले से प्लान कर रखा है क्या?


आर्यमणि:- लक्ष्य पता है, कर्म कर रहा हूं, बस दिमाग खुले रखने है और सही वक़्त पर सही नीति… फिर तो ठीक वैसा ही होगा जैसा सोचा है, बस तुम ये जाहिर नहीं होने देना की हम एक दूसरे में डूब चुके है।


पलक:- जो आज्ञा महाराज।


पलक, आर्यमणि को तेजस दादा के शॉपिंग मॉल, बिग सिटी मॉल के पास छोड़ दी और खुद घर लौट गई। पलक जिस अंदाज़ में गई थी और जिस अंदाज़ में लौटी उसे देखकर तो पूरे घरवाले हसने लगे।… "क्या हुआ पलकी, उस लड़के ने तुझे पानी में धकेल दिया क्या।"


पलक:- मै वाकी वुड्स के प्रतिबंधित क्षेत्र में गई थी।


उज्जवल और नम्रता हड़बड़ा कर उसके पास पहुंचे। उनके आखों में गुस्सा साफ देखा जा सकता था। पलक सारी बातें बताती हुई एक नाद मंगवाई और छाल में बंद उस पोटली को डूबो दी। पोटली का रंग नीला पड़ गया। नीला रंग देखकर पिता उज्जवल और पलक दोनो के मुंह से निकल गया… "विष मोक्ष श्राप"।


किसी असीम शक्ति को बांधने के लिए २ तरह के श्राप विख्यात थे। पहला बंधन श्राप था "रक्त मोक्ष श्राप"। इस बंधन को बांधने के लिए 5 अलग–अलग जीवों के साथ एक इंसान की बलि दी जाती थी। इंसानी बलि भी केवल तब मान्य थी, जब वह स्वेक्षा से दी जाए। यूं तो लोग उन असीम शक्तियों वालों से इतना सताए हुए होते थे कि उसे मिटाने की चाह में हंसी–खुशी तैयार हो जाते थे। परंतु असीम सिद्धि प्राप्त या शक्तियों वाले किसी भी ऐसे प्राणी को छुड़ाने वाले, उनके अनुयाई की भी कमी नही थी। सभी मंत्रो के सुरक्षित जाप के बाद बंधन बांधने वाले ज्ञानियों की बलि चढ़ाकर श्राप मुक्त किया जा सकता था।


वहीं दूसरी ओर "विष मोक्ष श्राप" में 5 ज्ञानी सुरक्षित मंत्र जाप करते थे और अनुष्ठान पूर्ण होने के बाद सभी विष पीकर अपने प्राण त्याग देते थे। वह विष इतना खास था की सेवन के कुछ क्षण बाद तो उनके हड्डियों तक के सबूत नहीं मिलते थे। इतिहास में विष मोक्ष श्राप की विधि तो बताई गई है, लेकिन कितनो को विष मोक्ष श्राप से बंधा गया, इसका कोई उल्लेख नहीं। क्यूंकि गुप्त रूप से विष मोक्ष श्राप की अनुष्ठान होता था और कहीं कोई प्रमाण ही नही बचता... साथ ही साथ इस बंधन को तोड़ तो खुद उन ज्ञानियों के पास भी नहीं था, जो हर तरह के श्राप का ज्ञान रखते थे। इसलिए यदि कोई विष मोक्ष श्राप से बंधा है, तब तो वह जरूर असीम शक्तियों का मालिक होगा। और यदि किसी ने विष मोक्ष श्राप को उलट कर, किसी विकृत को कैद से बाहर निकाला है, फिर तो वह साधक और भी ज्यादा खतरनाक होगा...


विष मोक्ष श्राप का नाम सुनकर पलक और उज्जवल एक दूसरे का मुंह देखने लगे। पलक मन ही मन रीछ स्त्री के शक्तियों की कल्पना कर अपने पिता से पूछने लगी… "बाबा ये रीछ स्त्री कितनी खतरनाक हो सकती है।"..


उज्जवल:- रीछ प्रजाति को इतिहास में श्रेष्ठ मानव माना गया था। कहा जाता है भालू के पूर्वज यही है। इनका क्षेत्र उस समय के तात्कालिक भारतवर्ष में से दक्षिण और हिमालय की तराई में था। दक्षिण में रीछ प्रजाति के बड़े–बड़े राज्य थे, जिसपर रावण ने अपना आधिपत्य जमा लिया था। ऐसे श्रेष्ठ जाती का कोई शापित विकृति है तो उसका अंदाजा लगा पाना भी मुश्किल होगा कि ये हम सब के लिए कितना ख़तरनाक हो सकती है। रिक्ष स्त्री को विष मोक्ष श्राप से मुक्त करने वाला भी कोई विकृति ज्ञानी होगा। घातक जोड़ी है जो समस्त पृथ्वी पर राज कर सकती है। हमे अपात कालीन बैठक बुलानी होगी और इतिहास के ज्ञानियों से हमे बात करनी होगी। पलक तुमने बहुत अच्छा काम किया है। मै तुम्हे प्रहरी की उच्च सदस्यता देते हुए, तुम्हे विशिष्ठ जीव खोजी साखा का अध्यक्ष नियुक्त करता हूं। प्रहरी उच्च सदस्यों के होने वाले बैठक में तुम्हारा आना अनिवार्य होगा।


पलक:- हम्मम ! ठीक है बाबा।


नम्रता:- 3 लाख खर्च तो नहीं कि ना.. चल अब पार्टी दे। उच्च सदस्य। मतलब कई साल का सफर तूने 4 घंटे में तय कर लिया।


पलक:- ठीक है ले लेना पार्टी। अब खुश ना।


नम्रता:- बेहद ही खुश हूं। और बाबा का चेहरा तो देख अंदर ही अंदर कितना खुश हो रहे है।


उज्जवल:- पलक के लिए तो खुश हूं, लेकिन आने वाले संकट को लेकर चिंतित। हमारा काम केवल पोस्ट बांटना नहीं बल्कि दो दुनिया के बीच दीवार की तरह खड़ा रहना है, ताकि कोई एक दूसरे को परेशान ना करे।


पलक से मिली जानकारी को उज्जवल ने प्रहरी के सभी उच्च सदस्यों से साझा कर दिया। विषय की गंभीरता को देखते हुए, अध्यक्ष विश्व देसाई ने आपातकालीन बैठक बुलाई, जिसमे तात्कालिक सभी सदस्य के साथ संन्यास लिए जीवित सदस्य भी सामिल होंगे। शुरवात मीटिंग की अध्यक्षता विश्व देसाई लेंगे, उसके बाद कमान संभालेंगे सुकेश भारद्वाज।


आपातकालीन बैठक की बात सुनकर भूमि भी वापस नागपुर लौट चुकी थी। भूमि के लौटते ही आर्यमणि को ना चाहते हुए भी अपनी मासी के घर से दीदी के घर वापस आना पड़ा। सोमवार को कॉलेज में फिर एक बार जिल्लत झेलने के बाद आर्यमणि भूमि के घर लौट आया था।


शाम का वक्त था जब भूमि लौटी। आर्यमणि अपने दीदी के गले लगते पूछने लगा कैसा रहा ट्रिप। भूमि मुस्कुराकर जर उसे कही अच्छा रहा। फिर वो थोड़ा आराम करने चली गई और रात के तकरीबन 10 बजे पूरे फुरसत के साथ, अपने भाई के साथ बैठी।


भूमि:- क्या मेरा बच्चा, अब बता क्या बात है?


आर्यमणि:- मेरी छोड़ो और अपनी परेशानी बताओ। मै जानता हूं आप जिस काम से गई थी, उसे अधूरा छोड़कर आयी हो। कोई न, मै फ्री ही बैठा हूं। आपका वो काम मैं कर दूंगा, भरोसा रखो मुझपर।


भूमि:- तू तो आएगा नहीं प्रहरी बनने। मै, जयदेव और रिचा बस प्रहरी के बीच पल रहे आस्तीन के सांप को ढूंढ रही हूं।


आर्यमणि:- आप भी वही सोच रही है ना जो मै सोच रहा हूं।


भूमि:- और मेरा भाई क्या सोच रहा है?


आर्यमणि:- यही की कैसे भारद्वाज खानदान गुमनामी में जाता रहा है? कैसे उसके करीबी ठीक उसी वक़्त परेशान कर दिए जाते है जब भारद्वाज अपनी जड़ें प्रहरी में मजबूत कर रहा होता है? क्यों शुरू से प्रहरी के नेक्स्ट जेनरेशन के बीच झगड़ा होता रहा है और इन्हीं झगड़ों को देखकर मौसा जी ने अपने दो पैदा हुए बेटो का गला घोंटा, ताकि जब ये बड़े हो तो तीनों भाई दुश्मन बनकर परिवार में शक्ल ना देखे और समुदाय मे एक दूसरे का विरोध करते रहे?


भूमि:- तुम्हारे दादा को प्रहरी से बेज्जत करके निकाला, इसलिए ऐसा सोच रहा है ना?


आर्यमणि:- केवल मेरे दादा के साथ ऐसा हुआ था। मेरी मां का मायका कितना सुदृढ़ था। उनके बाबा ने कितनी संपत्ति अर्जी थी मुंबई में। यदि बीते जेनरेशन के मनीष मिश्रा (अक्षरा भारद्वाज का छोटा भाई और पलक का छोटा मामा) की शादी जया जोशी से होती, तो भारद्वाज का करीबी इकलौता मिश्र परिवार और भी सुदृढ़ होता, ऊपर से सुना है मां उस समय की बेस्ट थी, जैसा कि आप आज है। यदि मनीष मिश्रा के साथ जया जोशी की शादी होती तो भारद्वाज के करीबी, इकलौता मिश्रा परिवार भी आज खड़ा होता।


भूमि:- हम्मम ! मतलब तू यहां आया है अपने परिवार के आशुओं का हिसाब लेने।


आर्यमणि:- इतने साल बाद जब लौटा तो लगा कि मैंने कितना बड़ा पाप किया है। लेकिन जब गौर किया तो मां ने अपना अस्तित्व खोया था। भारद्वाज परिवार के करीबी मेरे दादा को किसी की साजिश का शिकार होना पड़ा था। कोई एक कुल तो है जो भारद्वाज को शुरू से तोड़ने का काम करते आ रहा है और पीढ़ी दर पीढ़ी अपने परिवार के पाठसाला में सबको यही सिक्षा से रहा है या रही है।


भूमि:- "हां मै भी बिल्कुल यही सोच रही थी। इसलिए 10 दिन के लिए बाहर गई थी ताकि उन्हें लग जाए कि तुम्हरे ऊपर मेरा हाथ बिल्कुल भी नहीं। जो लड़का पैदल एक पुरा देश के बराबर जंगल को लांघ गया है, उसका तो ये लोग कुछ नहीं बिगाड़ पाते लेकिन जबतक तू पुरा उलझता नहीं, तबतक उसे तुम्हारे पूरे ताकत का अंदाज़ा होता नहीं। जब तुम्हारे ताकत का अंदाजा होता तब वो जरूर किसी ना किसी शिकारी को ये काम देते। मै बस उसी के इंतजार में थी।


आर्यमणि:- खैर आपको पहले ये बात करनी थी। कल आपके बहुत से प्रहरी कम हो जाएंगे। क्योंकि जिसने मेरे परिवार के साथ जाने अंजाने में साजिश रची, उसका पता तो मुझे कबका चल चुका है।


भूमि:- सुन मेरे भाई, तुम कल जो भी पता करना है वो करो, लेकिन किसी प्रहरी को मारना मत। अभी हम बहुत बड़ी मुसीबत में है। कोई कमीना भी हुआ, तो क्या हुआ। हो सकता है उसकी जानकारी से हम उस जीव पर विजय प्राप्त ले।


आर्यमणि:- कौन सा जीव दीदी।


भूमि:- अभी जाकर सो जा, आराम से सब बता दूंगी। सुन मै यहां 3 दिन बाद आने वाली हूं, तो लोगों को पता नहीं चलना चाहिए। और एक बात, मै यहां नहीं हूं ये सोचकर तुझे उकसाने के लिए डायरेक्ट अटैक होंगे। हो सके तो 2-3 दिन कॉलेज ना जा। प्रहरी की मीटिंग से फ्री होकर मै कॉलेज को देखती हूं।


आर्यमणि:- दीदी जाकर सो जाओ और मेरी चिंता छोड़ दो। रही बात कॉलेज की तो वहां का लफड़ा मै खुद निपट लूंगा। हां मेरे एक्शन का इंपैक्ट देखना हो तो कल कॉलेज का सीसी टीवी कैमरा हैक कर लेना। मुख्य साजिशकर्ता का पता मिले या ना मिले लेकिन मैंने किसी को प्रोमिस किया है कि कल ही काम खत्म होगा।
मतलब कोई बड़ी ही साजिश चल रही है और वो शायद देसाई परिवार हो सकता है उस साजिश का सूत्रधार। मगर जो अभी की समस्या है जीव वाली उसको उजागर आर्य ने किया है तो इसका मतलब उसको इसका निवारण करना भी आता होगा।

अब अगले दिन आर्य क्या क्या करने वाला है ये तो अगले अपडेट में ही पता चलेगा जैसे की चमचों की पिटाई, पलक को प्रेम निवेदन और भी पता नही क्या क्या चल रहा होगा आर्य के दिमाग में। बहुत ही शानदार और जानदार अपडेट।
 

arish8299

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भाग:–17



पलक:– प्रहरी के कई उच्च अधिकारी को लगता है कि तुम्हारे दादा वर्घराज कुलकर्णी की सारी सिद्धियां तुम में है। तो कई लोगों का मानना है कि मैत्री लोपचे के प्यार में तुम एक वेयरवोल्फ बन गए थे। पर एक वेयरवोल्फ किसी प्रहरी के यहां कैसे रह सकता है, इसलिए खुद ही वो लोग इस बात का खंडन कर देते है। बाद में इस बात का भी खंडन कर देते हैं कि जब तुम ७–८ साल के थे तब तुम्हारे दादा जी इस दुनिया में नही रहे। फिर उनकी सिद्धि तुम्हारे अंदर कैसे आ सकती है? लेकिन हर किसी को लगता है कि तुम कुछ हो.… उनके लिए तुम किसी रिसर्च सब्जेक्ट की तरह हो, जिसपर कोई नतीजा नहीं निकलता.…



आर्यमणि, खुलकर हंसते... "फिर किस निष्कर्ष पर पहुंचे"…

पलक:– सब के सब दुविधा में है। किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके। लेकिन हर किसी को लगता है कि तुम में कुछ तो खास है...

आर्यमणि:– और मेरी रानी को क्या लगता है?

पलक, आर्यमणि के गले लगकर... "मुझे तो बस तुम्हारे साथ सुकून मिलता है।"…

आर्यमणि, अपने बाजुओं में पलक को भींचते... "और क्या लगता है?"…

पलक:– यही की हमे अब रुक जाना चाहिए वरना मैं खुद को अब रोक नही पाऊंगी...

आर्यमणि:– मैं भी तो यही चाहता हूं कि रुको मत...

अपनी बात कहकर आर्यमणि ने थोड़ा और जोड़ से पलक को अपनी बाजुओं में भींच लिया। पलक कसमसाती हुई.… "आर्य प्लीज छोड़ दो... रोमांस तो हवा हो गई, उल्टा मेरी पूरी हड्डियां चटका दिए।"

आर्यमणि, पलक को खुद से अलग करते... "तुम्हे छोड़ने की एक जरा इच्छा नहीं... जल्दी से मेरा ध्यान किसी और विषय पर ले जाओ"…


पलक:– ध्यान भटकने के लिए तो पहले से विषय है। उस वेयरवॉल्फ ने ऐसा क्यों कहा कि ये इलाका उन जैसे (वेयरवोल्फ) और हमारे जैसों (प्रहरी) के लिए प्रतिबंधित है, तुम्हारा नाम क्यों नहीं ली।


आर्यमणि:- क्योंकि मै दोनो में से कोई भी नहीं हूं।

पलक:– तो फिर तुम क्या हो?

आर्यमणि:– एक और प्रहरी जो मेरे बारे में जानना चाहती है। लेकिन मैं अपनी रानी को बता दूं कि मैं सिर्फ एक आम सा इंसान... जो न तो शिकारी है न ही वेयरवोल्फ। ठीक वैसे जैसे निशांत, चित्रा और माधव है।


पलक को किसी और जवाब की उम्मीद थी। शायद प्रहरी जो आकलन कर रहे थे.. "आर्यमणि में कुछ तो खास है।" बस इसी से मिलता–जुलता की आर्यमणि में क्या खास है। लेकिन आर्यमणि बड़ी चतुराई से बात टाल गया और उसका जवाब सुनकर पलक का खिला सा चेहरा मायूसी में छोटा हो गया। आर्यमणि, पलक के सर को अपने सीने से लगाकर, उसपर हाथ फेरते हुए कहने लगा…. "तुम क्यों इतनी बातो का चिंता करती हो। मै क्या हूं वो मत ढूंढो, हम दोनों एक दूसरे के लिए क्या है, इसमें विश्वास रखो। तुम जब आर्य और पलक को एक मानकर चलोगी ना, फिर तुम्हे पूर्ण रूप से आर्य और पूर्ण रूप से पलक भी समझ में आ जाएगी। और यदि तुम बिना पलक के अधूरे आर्य को ढूंढोगी तो ऐसे ही आर्य तुम्हे उम्र भर अजीब लगता रहेगा।


पलक, उसके पेट से लेकर पीठ तक अपनी हाथ लपेटती…. "पता नहीं ये प्रेम है या कुछ और। लेकिन तुमसे दूर होती हूं तब तुमसे लिपटकर रहने की इक्छा होती है और जब पास होते हो तो धड़कने पूरी तेज। इतनी तेज की मै अपनी भावना ठीक से जाहिर नहीं कर पाती। क्या मुझे प्यार हुआ है?"


आर्यमणि:- हां शायद...


दोनो सुकून के प्यारे से पल को भुनाने लगे। कुछ समय बीतने के बाद… "पलक यहां तो धूप बढ़ रही है, कहीं और चले क्या।"..


पलक:- चलो लॉन्ग ड्राइव पर चलते है। जहां जी करेगा वहां रुकेंगे, और ढेर सारी मस्ती करेंगे।


आर्यमणि:- किस्स के नाम पर तो ताला लगा है, मस्ती क्या खाक करेंगे। तुम्हे गोद में उठाया था तो दिल कर रहा था कि होंठ से होंठ लगाकर चूमते हुए ऊपर तक लेकर आऊं।


पलक:- और ऊपर लाकर कंट्रोल नहीं होता तो मुझे इधर-उधर हाथ लगाते और बाद में फिर..


आर्यमणि:- उफ्फ ! क्या रौंगटे खड़े करने वाले ख्याल है। पलक तुम्हारे साथ मुझे एडवांटेज है। इन सब मामले में जो बात दिमाग में भी नहीं रहती, वो भी तुम डाल देती हो। फिलहाल..


पलक:- हां फिलहाल…


आर्यमणि:- फिलहाल इस जगह पर आते ही अब कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि यह एक विकृति स्थल है और मुझे अब जरा पता लगाने दो की यहां कल रात हुआ क्या था? और क्यों ये इलाका सुपरनैचुरल और शिकारियों के लिए प्रतिबंधित है?


पलक:- और ये पता कैसे लगाएंगे?


आर्यमणि:- ये माटी है ना। लोग इसे कितनी भी मैली कर दे, अपने अंदर सब ज़हर समाकर, ऊपर से उन्हें पोषण ही देती है। मै भी इस माटी से मदद मांगता हूं, ये किसका मैल छिपाकर प्रकृति का मनमोहक नजारा दी हुई थी?


पलक आर्यमणि की बात बड़े ध्यान से सुनती हुई उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लगी। दोनो 100 कदम चले होंगे, तभी एक स्थान को देखकर आर्यमणि रुकने के लिए कहा। नीचे बैठकर उसने हाथो में मिट्टी उठाई और उसे सूंघने लगा।… "खून है यहां, किसी तरह का अनुष्ठान हुआ था। खोदने के लिए कुछ है क्या?"..


पलक:- बैग में एक छोटा सा चाकू है।


आर्यमणि, पलक को घूरते हुए… "मेरा गला काटने के लिए तो नहीं लेकर घूम रही थी।"..


पलक, अपने बैग से चाकू निकालकर उसके गले पर रखती… "ये जान और ये आर्य, दोनो मेरे है। इसपर नजर डालने वालों को छिलने के लिए रखी हूं।"..


आर्यमणि उसके हाथो से चाकू लेकर जमीन कि भुरभुरी मिट्टी हटाते… "ऐसे अदाएं मत दिखाओ की मै खुद को रोक नहीं पाऊ। तुम्हारे पास कोई ग्लोब्स या पॉलीथीन है।"


पलक:- नहीं।


आर्यमणि:- पीछे रहना और किसी चीज को छूना मत।


पलक:- हम्मम ! ठीक है।


आर्यमणि तेजी से गया और पेड़ की लंबी चौड़ी छाल छीलकर ले आया। बड़े ही ऐतिहात से मिट्टी के अंदर के समान को निकला। अंदर से फूल, माला, कुछ हड्डियां और कपाल निकली। सब समनो को देखकर पलक, आर्यमणि से पूछने लगी…. "ये सब क्या है आर्य।"..


आर्यमणि:- बताता हूं, तुम जरा पीछे हो जाओ पहले, और कुछ भी हो मुझे छूना मत। समझ गई।


पलक अपना सर हां में हिलती हुई, चार कदम पीछे हो गई… आर्यमणि अपना शर्ट उतार कर नीचे जमीन में बिछाया और पलक उसके बदन पर गुदे टैटू को गौर से देखने लगी। बांह पर राउंड शेप में, संस्कृत के कुछ शब्द लिखे हुए थे। पीठ पर भगवान शिव की बड़ी सी टैटू। जितने भी टैटू थे, दिखने में काफी आकर्षक लग रहा था।


आर्यमणि भूमि के अंदर से निकले सामान को बांधकर एक पोटली बनाया और ठीक उसके पास जमीन को 5 इंच खोदकर अपना दायां पंजा उसके अंदर डाल दिया। बाएं हाथ की मुट्ठी बनाकर पीछे कमर तक ले गया और दायां हाथ के फैले पंजे के क्लॉ भूमि के अंदर घुस गए। दिमाग के अंदर सारी छवि बननी शुरू हो गई। इधर पलक पीछे खड़ी होकर सब देख रही थी।


जैसे ही थोड़ा वक्त बिता, आर्यमणि का पूरा शरीर ही नीला दिखने लगा था और वो अपनी जगह से हिल नहीं रहा था। तकरीबन 10 मिनट तक बिना हिले एक ही अवस्था में रहने के बाद, आर्यमणि अपनी आखें खोला। आर्यमणि अपने हाथ को साफ करने के बाद, छाल का एक मजबूत कवर बनाया और पोटली को छाल के बीच डालकर… "पलक इसे ऊपर से पकड़ना और आराम से कार की डिक्की में रख देना। तुम जबतक ये सब करो मै कार के पास तुम्हे मिलता हूं।"


आर्यमणि चारो ओर का जायजा लेते पश्चिम के रास्ते चल दिया, जहां कुछ दूर आगे झील था। पूरा मुवाएना करने के बाद आर्यमणि पलक के पास पहुंचकर…. "तुम्हे तैरना आता है।"..


पलक:- हां आता है।


आर्यमणि:- चलो मेरे साथ..


पलक:- लेकिन आर्य सुनो तो…


आर्यमणि:- चलो भी..


पलक को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, वो आर्यमणि के साथ चल दी।… "आर्य अब ये तो नहीं कहोगे ना कि हम इस झील में तैरने वाले है।"..


आर्यमणि, पलक की बातो पर ध्यान ना देकर उसका हाथ पकड़ा और तेजी से दौड़ लगाते हुए झील के अंदर चला गया… "बहुत शरारती हो तुम आर्य।"


आर्यमणि अब भी कोई उत्तर नहीं दे रहा था, वो बस पलक का हाथ पकड़ कर एक दिशा में तैरते जा रहा था। आर्यमणि पलक के साथ तैरते हुए झील के इस किनारे से उस किनारे तक चला आया। और थोड़ी ही दूर आगे जाने के बाद.. एक बड़ा सा गड्ढा उसे नजर आने लगा… "पलक मोबाइल लाई हो।"..


पलक:- मुझे लगा ही था कि तुम झील में मुझसे तैराकी ना करवा दो इसलिए मैंने मोबाइल कार में ही छोड़ दिया।


आर्यमणि:- स्मार्ट गर्ल.. किसी को पकड़ो यहां की तस्वीरें लेनी है।


किसी को पकड़ना क्या था वहां पर दो लड़के पुलिस के साथ खुद ही पहुंच रहे थे। .. पुलिस आर्यमणि और पलक को देखकर… "चला रे, भिड़ ना लगाओ।"..


आर्यमणि:- हमलोग प्रेस से है सर.. ये गड्ढा हमे अजीब लग रहा है और आप भी यहां आए है, इसका मतलब कुछ तो राज ये गड्ढा समेटे है। तो बताइए सर, क्या है इसकी कहानी..


पुलिस, अपनी वर्दी टाईट करते… "देखिए वो क्या है।"..


आर्यमणि:- एक मिनट सर, आपका मोबाइल दीजिए ना। पहले यहां को बारीक तस्वीर ले लूं, फिर आप का स्टेटमेंट रिकॉर्ड करके कल अखबार में छपने के लिए भेज दूंगा।


पुलिस:- हां हां क्यों नहीं…


आर्यमणि, मंहगा मोबाइल फोन देखकर.… "क्या बात है सर काफी तरक्की में हो"


पुलिस:- मेरे साला ने गिफ्ट किया है।


आर्यमणि हर एंगल से वहां की तस्वीर लेने लगा। उसके बाद पुलिस की तस्वीर लेते हुए… "हां सर अभी कहिए।"..


पुलिस:- कल रात को यहां कुछ हलचल हुई। पन ये लोग का कहना है कि यहां गड्ढे से कोई भूत निकला और लोगों को मारकर गायब हो गया। इन लोगों के हिसाब से... रात का अंधेरा था और गड्ढे के पास हलचल देखकर लोग इधर कू आए। पन जब आए तो फिर लौटकर नहीं गए। पहले गड्ढे में गिरे और लाश पानी से निकली। इधर तो आबरा का डाबरा चल रहा है।


पुलिस के पास खड़ा एक लड़का…. "साहेब मुनीर काका ने खुद देखा, जब वो भूत दोनो को मार रहे थे। 10 फिट लंबा भूत बिल्कुल काला और अजीब से आंख। मुनीर काका के साथ वो दोनो आदमी भी जा रहे थे। अचानक ही तीनों को यहां गड्ढे के पास कुछ दिखा। मुनीर काका तो रुक गए लेकिन जैसे ही वो दोनो गड्ढे के पास पहुंचे भूत ने दोनो को खींच लिया। दोनो के गर्दन को अपने २ फिट जितने बड़े पंजे में जैसे ही दबोचा ना, उन दोनों के शरीर के अंदर से लाल रंग का धुआं निकलकर, उसके नाक में समा गया और वो भूत इन दोनों को इसी गड्ढे में डालकर गायब हो गया।


आर्यमणि:- सर लाश का फिर तो पोसटमार्टम हुआ होगा।


पुलिस:- इसलिए तो अरेस्ट करने आए रे बाबा। अब मर्डर भूत ने किया या सौतन ने या किसी इंसान ने, उसका पोस्टमार्टम होना तो चाहिए था ना। अब इनको पोस्टमार्टम के लिए बोला तो पुरा गांव हमे घेरकर कहता है, लाश शापित था पुरा गांव खत्म हो जाएगा और इसलिए रात को ही जला दिया।


आर्यमणि:- छोड़ो ना साहेब मै इसे गड्ढे में फिसलकर पानी में डूबने से मौत छाप देता हूं। गड्ढा भरवा दो साहेब वरना आज रात फिर भूत आ जाएगा और इनकी कहानी सच हो की ना हो लेकिन आपकी परमानेंट ड्यूटी यहीं लग जाएगी।


आर्यमणि की बात सुनकर थानेदार हसने लगा। थानेदार ने दोनो से नाम पूछा और अपनी जीप से ले जाकर दोनो को उस पार छोड़ दिया। आर्यमणि और पलक ने थानेदार को धन्यवाद कहा और दोनो कार से वापस निकल गए। इससे पहले कि पलक अपने पजल हुए माइड को, कुछ सवाल पूछकर राहत देती आर्यमणि कहने लगा… "प्रतिबंधित क्षेत्र में एक विकृति रीछ स्त्री थी जो पिछले 2600 साल से सजा भुगत रही थी। सजा अपने पूर्ण जीवन काल तक की थी"..


पलक:- क्या मतलब है तुम्हारा एक रीछ स्त्री।


आर्यमणि:- "रामायण काल में एक प्रजाति का उल्लेख है रीछ, जिसमें जाम्बवंत जी का नाम प्रमुख था। जिन्होंने श्री हनुमान जी को उनकी शक्तियों का स्मरण करवाया था और लक्ष्मण जी जब मूर्छित थे तब हनुमान जी और विभीषण जी, जाम्बवंत जी के पास गए थे। तब उन्होंने ही हिमालय के ऋषभ और कैलाश पर्वत जाकर संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा था।"

"ये प्रजाति मानव जाति की सबसे श्रेष्ठ प्रजातियों में से एक थी जो इंजिनियरिंग और साइंस में काफी आगे थे। मना ये जाता है कि इन लोगों ने एक ऐसा यंत्र का निर्माण किया था जो विषैले परमाणु निगल जाते थे। ये लोग दीर्घ आयु होते थे। जाम्बवंत जी की उम्र बहुत लंबी थी। 5,000 वर्ष बाद उन्होंने श्रीकृष्ण के साथ एक गुफा में स्मयंतक मणि के लिए युद्ध किया था। भारत में जम्मू-कश्मीर में जाम्बवंत गुफा मंदिर है। जाम्बवंत जी की बेटी के साथ भगवान श्री कृष्ण ने विवाह किया था।


पलक:- ये विकृति रीछ स्त्री कितना खतरनाक हो सकती है।


आर्यमणि:- अगर इन लोगो की बात पर यकीन करें तो उसने केवल गला पकड़ कर दो लोगों के रक्त को कण में बदल दिया और अपने अंदर समा ली।


पलक:- ये जो प्रजाति थी वो अच्छी थी या बुरी?
Bahut romanchak kahani hai
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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भाग:–17



पलक:– प्रहरी के कई उच्च अधिकारी को लगता है कि तुम्हारे दादा वर्घराज कुलकर्णी की सारी सिद्धियां तुम में है। तो कई लोगों का मानना है कि मैत्री लोपचे के प्यार में तुम एक वेयरवोल्फ बन गए थे। पर एक वेयरवोल्फ किसी प्रहरी के यहां कैसे रह सकता है, इसलिए खुद ही वो लोग इस बात का खंडन कर देते है। बाद में इस बात का भी खंडन कर देते हैं कि जब तुम ७–८ साल के थे तब तुम्हारे दादा जी इस दुनिया में नही रहे। फिर उनकी सिद्धि तुम्हारे अंदर कैसे आ सकती है? लेकिन हर किसी को लगता है कि तुम कुछ हो.… उनके लिए तुम किसी रिसर्च सब्जेक्ट की तरह हो, जिसपर कोई नतीजा नहीं निकलता.…



आर्यमणि, खुलकर हंसते... "फिर किस निष्कर्ष पर पहुंचे"…

पलक:– सब के सब दुविधा में है। किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके। लेकिन हर किसी को लगता है कि तुम में कुछ तो खास है...

आर्यमणि:– और मेरी रानी को क्या लगता है?

पलक, आर्यमणि के गले लगकर... "मुझे तो बस तुम्हारे साथ सुकून मिलता है।"…

आर्यमणि, अपने बाजुओं में पलक को भींचते... "और क्या लगता है?"…

पलक:– यही की हमे अब रुक जाना चाहिए वरना मैं खुद को अब रोक नही पाऊंगी...

आर्यमणि:– मैं भी तो यही चाहता हूं कि रुको मत...

अपनी बात कहकर आर्यमणि ने थोड़ा और जोड़ से पलक को अपनी बाजुओं में भींच लिया। पलक कसमसाती हुई.… "आर्य प्लीज छोड़ दो... रोमांस तो हवा हो गई, उल्टा मेरी पूरी हड्डियां चटका दिए।"

आर्यमणि, पलक को खुद से अलग करते... "तुम्हे छोड़ने की एक जरा इच्छा नहीं... जल्दी से मेरा ध्यान किसी और विषय पर ले जाओ"…


पलक:– ध्यान भटकने के लिए तो पहले से विषय है। उस वेयरवॉल्फ ने ऐसा क्यों कहा कि ये इलाका उन जैसे (वेयरवोल्फ) और हमारे जैसों (प्रहरी) के लिए प्रतिबंधित है, तुम्हारा नाम क्यों नहीं ली।


आर्यमणि:- क्योंकि मै दोनो में से कोई भी नहीं हूं।

पलक:– तो फिर तुम क्या हो?

आर्यमणि:– एक और प्रहरी जो मेरे बारे में जानना चाहती है। लेकिन मैं अपनी रानी को बता दूं कि मैं सिर्फ एक आम सा इंसान... जो न तो शिकारी है न ही वेयरवोल्फ। ठीक वैसे जैसे निशांत, चित्रा और माधव है।


पलक को किसी और जवाब की उम्मीद थी। शायद प्रहरी जो आकलन कर रहे थे.. "आर्यमणि में कुछ तो खास है।" बस इसी से मिलता–जुलता की आर्यमणि में क्या खास है। लेकिन आर्यमणि बड़ी चतुराई से बात टाल गया और उसका जवाब सुनकर पलक का खिला सा चेहरा मायूसी में छोटा हो गया। आर्यमणि, पलक के सर को अपने सीने से लगाकर, उसपर हाथ फेरते हुए कहने लगा…. "तुम क्यों इतनी बातो का चिंता करती हो। मै क्या हूं वो मत ढूंढो, हम दोनों एक दूसरे के लिए क्या है, इसमें विश्वास रखो। तुम जब आर्य और पलक को एक मानकर चलोगी ना, फिर तुम्हे पूर्ण रूप से आर्य और पूर्ण रूप से पलक भी समझ में आ जाएगी। और यदि तुम बिना पलक के अधूरे आर्य को ढूंढोगी तो ऐसे ही आर्य तुम्हे उम्र भर अजीब लगता रहेगा।


पलक, उसके पेट से लेकर पीठ तक अपनी हाथ लपेटती…. "पता नहीं ये प्रेम है या कुछ और। लेकिन तुमसे दूर होती हूं तब तुमसे लिपटकर रहने की इक्छा होती है और जब पास होते हो तो धड़कने पूरी तेज। इतनी तेज की मै अपनी भावना ठीक से जाहिर नहीं कर पाती। क्या मुझे प्यार हुआ है?"


आर्यमणि:- हां शायद...


दोनो सुकून के प्यारे से पल को भुनाने लगे। कुछ समय बीतने के बाद… "पलक यहां तो धूप बढ़ रही है, कहीं और चले क्या।"..


पलक:- चलो लॉन्ग ड्राइव पर चलते है। जहां जी करेगा वहां रुकेंगे, और ढेर सारी मस्ती करेंगे।


आर्यमणि:- किस्स के नाम पर तो ताला लगा है, मस्ती क्या खाक करेंगे। तुम्हे गोद में उठाया था तो दिल कर रहा था कि होंठ से होंठ लगाकर चूमते हुए ऊपर तक लेकर आऊं।


पलक:- और ऊपर लाकर कंट्रोल नहीं होता तो मुझे इधर-उधर हाथ लगाते और बाद में फिर..


आर्यमणि:- उफ्फ ! क्या रौंगटे खड़े करने वाले ख्याल है। पलक तुम्हारे साथ मुझे एडवांटेज है। इन सब मामले में जो बात दिमाग में भी नहीं रहती, वो भी तुम डाल देती हो। फिलहाल..


पलक:- हां फिलहाल…


आर्यमणि:- फिलहाल इस जगह पर आते ही अब कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि यह एक विकृति स्थल है और मुझे अब जरा पता लगाने दो की यहां कल रात हुआ क्या था? और क्यों ये इलाका सुपरनैचुरल और शिकारियों के लिए प्रतिबंधित है?


पलक:- और ये पता कैसे लगाएंगे?


आर्यमणि:- ये माटी है ना। लोग इसे कितनी भी मैली कर दे, अपने अंदर सब ज़हर समाकर, ऊपर से उन्हें पोषण ही देती है। मै भी इस माटी से मदद मांगता हूं, ये किसका मैल छिपाकर प्रकृति का मनमोहक नजारा दी हुई थी?


पलक आर्यमणि की बात बड़े ध्यान से सुनती हुई उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लगी। दोनो 100 कदम चले होंगे, तभी एक स्थान को देखकर आर्यमणि रुकने के लिए कहा। नीचे बैठकर उसने हाथो में मिट्टी उठाई और उसे सूंघने लगा।… "खून है यहां, किसी तरह का अनुष्ठान हुआ था। खोदने के लिए कुछ है क्या?"..


पलक:- बैग में एक छोटा सा चाकू है।


आर्यमणि, पलक को घूरते हुए… "मेरा गला काटने के लिए तो नहीं लेकर घूम रही थी।"..


पलक, अपने बैग से चाकू निकालकर उसके गले पर रखती… "ये जान और ये आर्य, दोनो मेरे है। इसपर नजर डालने वालों को छिलने के लिए रखी हूं।"..


आर्यमणि उसके हाथो से चाकू लेकर जमीन कि भुरभुरी मिट्टी हटाते… "ऐसे अदाएं मत दिखाओ की मै खुद को रोक नहीं पाऊ। तुम्हारे पास कोई ग्लोब्स या पॉलीथीन है।"


पलक:- नहीं।


आर्यमणि:- पीछे रहना और किसी चीज को छूना मत।


पलक:- हम्मम ! ठीक है।


आर्यमणि तेजी से गया और पेड़ की लंबी चौड़ी छाल छीलकर ले आया। बड़े ही ऐतिहात से मिट्टी के अंदर के समान को निकला। अंदर से फूल, माला, कुछ हड्डियां और कपाल निकली। सब समनो को देखकर पलक, आर्यमणि से पूछने लगी…. "ये सब क्या है आर्य।"..


आर्यमणि:- बताता हूं, तुम जरा पीछे हो जाओ पहले, और कुछ भी हो मुझे छूना मत। समझ गई।


पलक अपना सर हां में हिलती हुई, चार कदम पीछे हो गई… आर्यमणि अपना शर्ट उतार कर नीचे जमीन में बिछाया और पलक उसके बदन पर गुदे टैटू को गौर से देखने लगी। बांह पर राउंड शेप में, संस्कृत के कुछ शब्द लिखे हुए थे। पीठ पर भगवान शिव की बड़ी सी टैटू। जितने भी टैटू थे, दिखने में काफी आकर्षक लग रहा था।


आर्यमणि भूमि के अंदर से निकले सामान को बांधकर एक पोटली बनाया और ठीक उसके पास जमीन को 5 इंच खोदकर अपना दायां पंजा उसके अंदर डाल दिया। बाएं हाथ की मुट्ठी बनाकर पीछे कमर तक ले गया और दायां हाथ के फैले पंजे के क्लॉ भूमि के अंदर घुस गए। दिमाग के अंदर सारी छवि बननी शुरू हो गई। इधर पलक पीछे खड़ी होकर सब देख रही थी।


जैसे ही थोड़ा वक्त बिता, आर्यमणि का पूरा शरीर ही नीला दिखने लगा था और वो अपनी जगह से हिल नहीं रहा था। तकरीबन 10 मिनट तक बिना हिले एक ही अवस्था में रहने के बाद, आर्यमणि अपनी आखें खोला। आर्यमणि अपने हाथ को साफ करने के बाद, छाल का एक मजबूत कवर बनाया और पोटली को छाल के बीच डालकर… "पलक इसे ऊपर से पकड़ना और आराम से कार की डिक्की में रख देना। तुम जबतक ये सब करो मै कार के पास तुम्हे मिलता हूं।"


आर्यमणि चारो ओर का जायजा लेते पश्चिम के रास्ते चल दिया, जहां कुछ दूर आगे झील था। पूरा मुवाएना करने के बाद आर्यमणि पलक के पास पहुंचकर…. "तुम्हे तैरना आता है।"..


पलक:- हां आता है।


आर्यमणि:- चलो मेरे साथ..


पलक:- लेकिन आर्य सुनो तो…


आर्यमणि:- चलो भी..



पलक को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, वो आर्यमणि के साथ चल दी।… "आर्य अब ये तो नहीं कहोगे ना कि हम इस झील में तैरने वाले है।"..


आर्यमणि, पलक की बातो पर ध्यान ना देकर उसका हाथ पकड़ा और तेजी से दौड़ लगाते हुए झील के अंदर चला गया… "बहुत शरारती हो तुम आर्य।"


आर्यमणि अब भी कोई उत्तर नहीं दे रहा था, वो बस पलक का हाथ पकड़ कर एक दिशा में तैरते जा रहा था। आर्यमणि पलक के साथ तैरते हुए झील के इस किनारे से उस किनारे तक चला आया। और थोड़ी ही दूर आगे जाने के बाद.. एक बड़ा सा गड्ढा उसे नजर आने लगा… "पलक मोबाइल लाई हो।"..


पलक:- मुझे लगा ही था कि तुम झील में मुझसे तैराकी ना करवा दो इसलिए मैंने मोबाइल कार में ही छोड़ दिया।


आर्यमणि:- स्मार्ट गर्ल.. किसी को पकड़ो यहां की तस्वीरें लेनी है।


किसी को पकड़ना क्या था वहां पर दो लड़के पुलिस के साथ खुद ही पहुंच रहे थे। .. पुलिस आर्यमणि और पलक को देखकर… "चला रे, भिड़ ना लगाओ।"..


आर्यमणि:- हमलोग प्रेस से है सर.. ये गड्ढा हमे अजीब लग रहा है और आप भी यहां आए है, इसका मतलब कुछ तो राज ये गड्ढा समेटे है। तो बताइए सर, क्या है इसकी कहानी..


पुलिस, अपनी वर्दी टाईट करते… "देखिए वो क्या है।"..


आर्यमणि:- एक मिनट सर, आपका मोबाइल दीजिए ना। पहले यहां को बारीक तस्वीर ले लूं, फिर आप का स्टेटमेंट रिकॉर्ड करके कल अखबार में छपने के लिए भेज दूंगा।


पुलिस:- हां हां क्यों नहीं…


आर्यमणि, मंहगा मोबाइल फोन देखकर.… "क्या बात है सर काफी तरक्की में हो"


पुलिस:- मेरे साला ने गिफ्ट किया है।


आर्यमणि हर एंगल से वहां की तस्वीर लेने लगा। उसके बाद पुलिस की तस्वीर लेते हुए… "हां सर अभी कहिए।"..


पुलिस:- कल रात को यहां कुछ हलचल हुई। पन ये लोग का कहना है कि यहां गड्ढे से कोई भूत निकला और लोगों को मारकर गायब हो गया। इन लोगों के हिसाब से... रात का अंधेरा था और गड्ढे के पास हलचल देखकर लोग इधर कू आए। पन जब आए तो फिर लौटकर नहीं गए। पहले गड्ढे में गिरे और लाश पानी से निकली। इधर तो आबरा का डाबरा चल रहा है।


पुलिस के पास खड़ा एक लड़का…. "साहेब मुनीर काका ने खुद देखा, जब वो भूत दोनो को मार रहे थे। 10 फिट लंबा भूत बिल्कुल काला और अजीब से आंख। मुनीर काका के साथ वो दोनो आदमी भी जा रहे थे। अचानक ही तीनों को यहां गड्ढे के पास कुछ दिखा। मुनीर काका तो रुक गए लेकिन जैसे ही वो दोनो गड्ढे के पास पहुंचे भूत ने दोनो को खींच लिया। दोनो के गर्दन को अपने २ फिट जितने बड़े पंजे में जैसे ही दबोचा ना, उन दोनों के शरीर के अंदर से लाल रंग का धुआं निकलकर, उसके नाक में समा गया और वो भूत इन दोनों को इसी गड्ढे में डालकर गायब हो गया।


आर्यमणि:- सर लाश का फिर तो पोसटमार्टम हुआ होगा।


पुलिस:- इसलिए तो अरेस्ट करने आए रे बाबा। अब मर्डर भूत ने किया या सौतन ने या किसी इंसान ने, उसका पोस्टमार्टम होना तो चाहिए था ना। अब इनको पोस्टमार्टम के लिए बोला तो पुरा गांव हमे घेरकर कहता है, लाश शापित था पुरा गांव खत्म हो जाएगा और इसलिए रात को ही जला दिया।


आर्यमणि:- छोड़ो ना साहेब मै इसे गड्ढे में फिसलकर पानी में डूबने से मौत छाप देता हूं। गड्ढा भरवा दो साहेब वरना आज रात फिर भूत आ जाएगा और इनकी कहानी सच हो की ना हो लेकिन आपकी परमानेंट ड्यूटी यहीं लग जाएगी।


आर्यमणि की बात सुनकर थानेदार हसने लगा। थानेदार ने दोनो से नाम पूछा और अपनी जीप से ले जाकर दोनो को उस पार छोड़ दिया। आर्यमणि और पलक ने थानेदार को धन्यवाद कहा और दोनो कार से वापस निकल गए। इससे पहले कि पलक अपने पजल हुए माइड को, कुछ सवाल पूछकर राहत देती आर्यमणि कहने लगा… "प्रतिबंधित क्षेत्र में एक विकृति रीछ स्त्री थी जो पिछले 2600 साल से सजा भुगत रही थी। सजा अपने पूर्ण जीवन काल तक की थी"..


पलक:- क्या मतलब है तुम्हारा एक रीछ स्त्री।


आर्यमणि:- "रामायण काल में एक प्रजाति का उल्लेख है रीछ, जिसमें जाम्बवंत जी का नाम प्रमुख था। जिन्होंने श्री हनुमान जी को उनकी शक्तियों का स्मरण करवाया था और लक्ष्मण जी जब मूर्छित थे तब हनुमान जी और विभीषण जी, जाम्बवंत जी के पास गए थे। तब उन्होंने ही हिमालय के ऋषभ और कैलाश पर्वत जाकर संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा था।"

"ये प्रजाति मानव जाति की सबसे श्रेष्ठ प्रजातियों में से एक थी जो इंजिनियरिंग और साइंस में काफी आगे थे। मना ये जाता है कि इन लोगों ने एक ऐसा यंत्र का निर्माण किया था जो विषैले परमाणु निगल जाते थे। ये लोग दीर्घ आयु होते थे। जाम्बवंत जी की उम्र बहुत लंबी थी। 5,000 वर्ष बाद उन्होंने श्रीकृष्ण के साथ एक गुफा में स्मयंतक मणि के लिए युद्ध किया था। भारत में जम्मू-कश्मीर में जाम्बवंत गुफा मंदिर है। जाम्बवंत जी की बेटी के साथ भगवान श्री कृष्ण ने विवाह किया था।


पलक:- ये विकृति रीछ स्त्री कितना खतरनाक हो सकती है।


आर्यमणि:- अगर इन लोगो की बात पर यकीन करें तो उसने केवल गला पकड़ कर दो लोगों के रक्त को कण में बदल दिया और अपने अंदर समा ली।


पलक:- ये जो प्रजाति थी वो अच्छी थी या बुरी?
Kya hi manbhavan or rahasyo se bhara update tha bhai padhne me maza aa gya superb bhai jabarjast sandar...
Arya ke bare me prahari kya dharna rakhte hai yah to pta Chal gya or palak yah janne ki Kosis kr rhi thi ki arya vakay me hai kya uspr arya ka javab ka jvab mujhe lajvab kr gya bhai... Kitni hi gahrai se Usne baat ko ghumate huye sundar jvab diya...
Arya yha kyo aaya hai ye bhi pta chla, yha aapne jamvant ji or unki prajati ka varnan kiya or kya sandar varnan kiya bhai... 2600 saal ke liye ye riksh stri yha kaid thi aur ab us anusthan ke chalte sayad vo ajad ho gyi ho, arya ne unki scientific uplabdhi ke bare me btaya ki vo kitne advance the or ab hai jo kisi vyakti ko pakad kr uske khoon ko hi kan me badal kr Sara nigal gyi...
Ye tantra mantra apne palle to na padta vaise pr arya ka sarir nila pad jana or baad me fir sahi ho Jana, akhir or kya kya pta lgaya Usne jo un kankal ko potli bnakr gadi me rakhva liya...
Superb bhai lajvab...
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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भाग:–18





पलक:- ये जो प्रजाति थी वो अच्छी थी या बुरी?


आर्यमणि:- बुरे तो राक्षस भी नहीं थे। उन्हें पृथ्वी पर रक्षा करने के लिए भेजा गया था और रक्षा शब्द से ही राक्षस बना। अब क्या कहा जा सकता है। ये अच्छे प्रजाति की एक विकृति स्वभाव की रीछ थी, जिसे यहां कैद किया गया था। शायद वो सिद्धि प्राप्त थी इसलिए तो हिमालय से इतनी दूर लाकर इसे कैद किया गया था। मंत्र के वश में थी, जिसे कल रात आज़ाद कर दिया गया। 500 दिन का वक़्त है, उसके बाद वो क्या-क्या कर सकती है, ये तो वही बताएगी।


पलक:- तुम्हे इतना कैसे मालूम है आर्य?


आर्यमणि:- मेरे दादा, वर्धराज कुलकर्णी, विशिष्ठ प्रजातियों का अध्ययन और उनके जीवन के बारे में सोध करते थे। साथ में एक इतिहासकार भी रहे है। बचपन में उन्होंने मुझे अपनी गोद में बिठाकर बहुत सारी बातों का पुरा ज्ञान दिया था। वो मंत्र और उनकी शक्ति को भी एक साइंस ही मानते थे, जो पंचतत्व में बदलाव लाकर इक्छा अनुसार परिणाम देता था। जिसे चमत्कार कहते है, जो लोग केवल काल्पनिक मानते है।"

"घर जब पहुंचो तो एक बड़ा सा नाद लेना, उसमे पुरा पानी भरकर थोड़ा सा गंगा जल मिला देना और छाल सहित पोटली को उस नाद में डूबो देना। याद रहे बिना गंगा जाल वाले पानी में डुबोए उस कपड़े को छूने की कोशिश भी मत करना। यदि पानी का रंग लाल हुआ तो समझना रक्त मोक्ष श्राप से बंधी थी। और यदि रंग नीला हुआ तो समझना विश मोक्ष श्राप से बंधी थी।


पलक:- लेकिन तुम ये मुझसे क्यों कह रहे हो करने। तुम्हे इतनी जानकारी है तो तुम ही इस जीव को देखो ना।


आर्यमणि:- "मुझे जितना ज्ञान था मैंने बता दिया। प्रहरी के इतिहास की कई सारी पुस्तकें है। यधपी कभी किसी प्रहरी का पाला वकृत रीछ और उसके साथी किसी विकृत महाज्ञानी से नहीं हुआ हो, लेकिन किसी ना किसी के जानकारी में तो ये पुरा मामला जरूर होगा क्योंकि ऐसा तो है नहीं की वैधायाण भारद्वाज के बाद सुपरनेचुरल आए थे, और केवल उन्हें ही अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।"

"वैधायाण भारद्वाज और उनके अनुयाई ने भी कहीं ना कहीं से तो ये सब सिखा ही था। तो इतिहास में कहीं ना कहीं तो इस बांधी हुई रीछ स्त्री का भी जिक्र मिल जाएगा। बिना उसके हम कुछ नहीं कर सकते।"


पलक:- और जब मुझसे पूछेंगे की मुझे ये सब कैसे पता चला तो मै क्या जवाब दूंगी। उनके होने वाले जमाई ने पुरा रिसर्च किया है।


आर्यमणि:- उनसे कहना तुम जिस लड़के के साथ घूमने गई थी वह जबरदस्ती प्रतिबंधित क्षेत्र ले गया। मुझे भी जानने की जिज्ञासा थी कि यहां ऐसा क्या हुआ था, जो यह क्षेत्र प्रतिबंधित है? फिर सबको बताना कि तुम्हे हवा में कुछ अजीब सा महसूस हुआ और तुमने आदिकाल बंधन पुस्तिका का स्मरण किया जिसका ज्ञान प्रहरी शिक्षण के दूसरे साल में दिया जाता है।


पलक:- हां समझ गई आगे याद आ गया। वहीं लिखा हुआ है हवा में छोटी सी अजीब बदलावा का पीछा किया जाए तो बड़े रहस्य के वो करीब पहुंचा देता है। मंत्र पुस्तिका के कारण ये पोटली बनाई और अनुसंधान भेजने के लिए ले आयी। रीछ के बारे में भी पढ़ी हूं और वो गड्ढे की कहानी से जोड़ दूंगी।


आर्यमणि:- ये हुई ना मेरी रानी जैसा सोच और दबदबा।


पलक:- आर्य तुम्हे अपने परिवार को लेकर काफी दुख होता होगा ना। तुम्हारे ज्ञानी दादा जी को कितना बेइज्जत करके महाराष्ट्र से निकलने पर मजबूर कर दिया। तुम्हारी मां..


आर्यमणि:- हूं..


पलक:- माफ करना... मेरी सासू मां प्यार में थी, जैसे मै हूं, गलती मेरे मामा से हुई क्योंकि उन्होंने आत्महत्या चुना, लेकिन सजा तुम्हारी मां को मिली।


आर्यमणि:- छोड़ो बीते वक़्त को, तैयार रहना जल्द ही मै तुम्हे चूमने वाला हूं। शायद सोमवार को ही मेरा मंगल हो जाए। और एक बात, हम इतने क्लोज हो गए है कि तुम्हरे हाव-भाव अब कहीं जाता ना दे, हमारे बीच कुछ है।


पलक:- क्यों ये रिश्ता सीक्रेट रखना है क्या?


आर्यमणि:- हमारा रिश्ता अरेंज होगा और सभी लोग हाथ पकड़कर हमारा रिश्ता करवाएंगे।


पलक:- क्यों तुमने सब पहले से प्लान कर रखा है क्या?


आर्यमणि:- लक्ष्य पता है, कर्म कर रहा हूं, बस दिमाग खुले रखने है और सही वक़्त पर सही नीति… फिर तो ठीक वैसा ही होगा जैसा सोचा है, बस तुम ये जाहिर नहीं होने देना की हम एक दूसरे में डूब चुके है।


पलक:- जो आज्ञा महाराज।


पलक, आर्यमणि को तेजस दादा के शॉपिंग मॉल, बिग सिटी मॉल के पास छोड़ दी और खुद घर लौट गई। पलक जिस अंदाज़ में गई थी और जिस अंदाज़ में लौटी उसे देखकर तो पूरे घरवाले हसने लगे।… "क्या हुआ पलकी, उस लड़के ने तुझे पानी में धकेल दिया क्या।"


पलक:- मै वाकी वुड्स के प्रतिबंधित क्षेत्र में गई थी।


उज्जवल और नम्रता हड़बड़ा कर उसके पास पहुंचे। उनके आखों में गुस्सा साफ देखा जा सकता था। पलक सारी बातें बताती हुई एक नाद मंगवाई और छाल में बंद उस पोटली को डूबो दी। पोटली का रंग नीला पड़ गया। नीला रंग देखकर पिता उज्जवल और पलक दोनो के मुंह से निकल गया… "विष मोक्ष श्राप"।


किसी असीम शक्ति को बांधने के लिए २ तरह के श्राप विख्यात थे। पहला बंधन श्राप था "रक्त मोक्ष श्राप"। इस बंधन को बांधने के लिए 5 अलग–अलग जीवों के साथ एक इंसान की बलि दी जाती थी। इंसानी बलि भी केवल तब मान्य थी, जब वह स्वेक्षा से दी जाए। यूं तो लोग उन असीम शक्तियों वालों से इतना सताए हुए होते थे कि उसे मिटाने की चाह में हंसी–खुशी तैयार हो जाते थे। परंतु असीम सिद्धि प्राप्त या शक्तियों वाले किसी भी ऐसे प्राणी को छुड़ाने वाले, उनके अनुयाई की भी कमी नही थी। सभी मंत्रो के सुरक्षित जाप के बाद बंधन बांधने वाले ज्ञानियों की बलि चढ़ाकर श्राप मुक्त किया जा सकता था।


वहीं दूसरी ओर "विष मोक्ष श्राप" में 5 ज्ञानी सुरक्षित मंत्र जाप करते थे और अनुष्ठान पूर्ण होने के बाद सभी विष पीकर अपने प्राण त्याग देते थे। वह विष इतना खास था की सेवन के कुछ क्षण बाद तो उनके हड्डियों तक के सबूत नहीं मिलते थे। इतिहास में विष मोक्ष श्राप की विधि तो बताई गई है, लेकिन कितनो को विष मोक्ष श्राप से बंधा गया, इसका कोई उल्लेख नहीं। क्यूंकि गुप्त रूप से विष मोक्ष श्राप की अनुष्ठान होता था और कहीं कोई प्रमाण ही नही बचता... साथ ही साथ इस बंधन को तोड़ तो खुद उन ज्ञानियों के पास भी नहीं था, जो हर तरह के श्राप का ज्ञान रखते थे। इसलिए यदि कोई विष मोक्ष श्राप से बंधा है, तब तो वह जरूर असीम शक्तियों का मालिक होगा। और यदि किसी ने विष मोक्ष श्राप को उलट कर, किसी विकृत को कैद से बाहर निकाला है, फिर तो वह साधक और भी ज्यादा खतरनाक होगा...


विष मोक्ष श्राप का नाम सुनकर पलक और उज्जवल एक दूसरे का मुंह देखने लगे। पलक मन ही मन रीछ स्त्री के शक्तियों की कल्पना कर अपने पिता से पूछने लगी… "बाबा ये रीछ स्त्री कितनी खतरनाक हो सकती है।"..


उज्जवल:- रीछ प्रजाति को इतिहास में श्रेष्ठ मानव माना गया था। कहा जाता है भालू के पूर्वज यही है। इनका क्षेत्र उस समय के तात्कालिक भारतवर्ष में से दक्षिण और हिमालय की तराई में था। दक्षिण में रीछ प्रजाति के बड़े–बड़े राज्य थे, जिसपर रावण ने अपना आधिपत्य जमा लिया था। ऐसे श्रेष्ठ जाती का कोई शापित विकृति है तो उसका अंदाजा लगा पाना भी मुश्किल होगा कि ये हम सब के लिए कितना ख़तरनाक हो सकती है। रिक्ष स्त्री को विष मोक्ष श्राप से मुक्त करने वाला भी कोई विकृति ज्ञानी होगा। घातक जोड़ी है जो समस्त पृथ्वी पर राज कर सकती है। हमे अपात कालीन बैठक बुलानी होगी और इतिहास के ज्ञानियों से हमे बात करनी होगी। पलक तुमने बहुत अच्छा काम किया है। मै तुम्हे प्रहरी की उच्च सदस्यता देते हुए, तुम्हे विशिष्ठ जीव खोजी साखा का अध्यक्ष नियुक्त करता हूं। प्रहरी उच्च सदस्यों के होने वाले बैठक में तुम्हारा आना अनिवार्य होगा।


पलक:- हम्मम ! ठीक है बाबा।


नम्रता:- 3 लाख खर्च तो नहीं कि ना.. चल अब पार्टी दे। उच्च सदस्य। मतलब कई साल का सफर तूने 4 घंटे में तय कर लिया।


पलक:- ठीक है ले लेना पार्टी। अब खुश ना।


नम्रता:- बेहद ही खुश हूं। और बाबा का चेहरा तो देख अंदर ही अंदर कितना खुश हो रहे है।


उज्जवल:- पलक के लिए तो खुश हूं, लेकिन आने वाले संकट को लेकर चिंतित। हमारा काम केवल पोस्ट बांटना नहीं बल्कि दो दुनिया के बीच दीवार की तरह खड़ा रहना है, ताकि कोई एक दूसरे को परेशान ना करे।


पलक से मिली जानकारी को उज्जवल ने प्रहरी के सभी उच्च सदस्यों से साझा कर दिया। विषय की गंभीरता को देखते हुए, अध्यक्ष विश्व देसाई ने आपातकालीन बैठक बुलाई, जिसमे तात्कालिक सभी सदस्य के साथ संन्यास लिए जीवित सदस्य भी सामिल होंगे। शुरवात मीटिंग की अध्यक्षता विश्व देसाई लेंगे, उसके बाद कमान संभालेंगे सुकेश भारद्वाज।


आपातकालीन बैठक की बात सुनकर भूमि भी वापस नागपुर लौट चुकी थी। भूमि के लौटते ही आर्यमणि को ना चाहते हुए भी अपनी मासी के घर से दीदी के घर वापस आना पड़ा। सोमवार को कॉलेज में फिर एक बार जिल्लत झेलने के बाद आर्यमणि भूमि के घर लौट आया था।


शाम का वक्त था जब भूमि लौटी। आर्यमणि अपने दीदी के गले लगते पूछने लगा कैसा रहा ट्रिप। भूमि मुस्कुराकर जर उसे कही अच्छा रहा। फिर वो थोड़ा आराम करने चली गई और रात के तकरीबन 10 बजे पूरे फुरसत के साथ, अपने भाई के साथ बैठी।


भूमि:- क्या मेरा बच्चा, अब बता क्या बात है?


आर्यमणि:- मेरी छोड़ो और अपनी परेशानी बताओ। मै जानता हूं आप जिस काम से गई थी, उसे अधूरा छोड़कर आयी हो। कोई न, मै फ्री ही बैठा हूं। आपका वो काम मैं कर दूंगा, भरोसा रखो मुझपर।


भूमि:- तू तो आएगा नहीं प्रहरी बनने। मै, जयदेव और रिचा बस प्रहरी के बीच पल रहे आस्तीन के सांप को ढूंढ रही हूं।


आर्यमणि:- आप भी वही सोच रही है ना जो मै सोच रहा हूं।


भूमि:- और मेरा भाई क्या सोच रहा है?


आर्यमणि:- यही की कैसे भारद्वाज खानदान गुमनामी में जाता रहा है? कैसे उसके करीबी ठीक उसी वक़्त परेशान कर दिए जाते है जब भारद्वाज अपनी जड़ें प्रहरी में मजबूत कर रहा होता है? क्यों शुरू से प्रहरी के नेक्स्ट जेनरेशन के बीच झगड़ा होता रहा है और इन्हीं झगड़ों को देखकर मौसा जी ने अपने दो पैदा हुए बेटो का गला घोंटा, ताकि जब ये बड़े हो तो तीनों भाई दुश्मन बनकर परिवार में शक्ल ना देखे और समुदाय मे एक दूसरे का विरोध करते रहे?


भूमि:- तुम्हारे दादा को प्रहरी से बेज्जत करके निकाला, इसलिए ऐसा सोच रहा है ना?


आर्यमणि:- केवल मेरे दादा के साथ ऐसा हुआ था। मेरी मां का मायका कितना सुदृढ़ था। उनके बाबा ने कितनी संपत्ति अर्जी थी मुंबई में। यदि बीते जेनरेशन के मनीष मिश्रा (अक्षरा भारद्वाज का छोटा भाई और पलक का छोटा मामा) की शादी जया जोशी से होती, तो भारद्वाज का करीबी इकलौता मिश्र परिवार और भी सुदृढ़ होता, ऊपर से सुना है मां उस समय की बेस्ट थी, जैसा कि आप आज है। यदि मनीष मिश्रा के साथ जया जोशी की शादी होती तो भारद्वाज के करीबी, इकलौता मिश्रा परिवार भी आज खड़ा होता।


भूमि:- हम्मम ! मतलब तू यहां आया है अपने परिवार के आशुओं का हिसाब लेने।


आर्यमणि:- इतने साल बाद जब लौटा तो लगा कि मैंने कितना बड़ा पाप किया है। लेकिन जब गौर किया तो मां ने अपना अस्तित्व खोया था। भारद्वाज परिवार के करीबी मेरे दादा को किसी की साजिश का शिकार होना पड़ा था। कोई एक कुल तो है जो भारद्वाज को शुरू से तोड़ने का काम करते आ रहा है और पीढ़ी दर पीढ़ी अपने परिवार के पाठसाला में सबको यही सिक्षा से रहा है या रही है।


भूमि:- "हां मै भी बिल्कुल यही सोच रही थी। इसलिए 10 दिन के लिए बाहर गई थी ताकि उन्हें लग जाए कि तुम्हरे ऊपर मेरा हाथ बिल्कुल भी नहीं। जो लड़का पैदल एक पुरा देश के बराबर जंगल को लांघ गया है, उसका तो ये लोग कुछ नहीं बिगाड़ पाते लेकिन जबतक तू पुरा उलझता नहीं, तबतक उसे तुम्हारे पूरे ताकत का अंदाज़ा होता नहीं। जब तुम्हारे ताकत का अंदाजा होता तब वो जरूर किसी ना किसी शिकारी को ये काम देते। मै बस उसी के इंतजार में थी।


आर्यमणि:- खैर आपको पहले ये बात करनी थी। कल आपके बहुत से प्रहरी कम हो जाएंगे। क्योंकि जिसने मेरे परिवार के साथ जाने अंजाने में साजिश रची, उसका पता तो मुझे कबका चल चुका है।


भूमि:- सुन मेरे भाई, तुम कल जो भी पता करना है वो करो, लेकिन किसी प्रहरी को मारना मत। अभी हम बहुत बड़ी मुसीबत में है। कोई कमीना भी हुआ, तो क्या हुआ। हो सकता है उसकी जानकारी से हम उस जीव पर विजय प्राप्त ले।


आर्यमणि:- कौन सा जीव दीदी।


भूमि:- अभी जाकर सो जा, आराम से सब बता दूंगी। सुन मै यहां 3 दिन बाद आने वाली हूं, तो लोगों को पता नहीं चलना चाहिए। और एक बात, मै यहां नहीं हूं ये सोचकर तुझे उकसाने के लिए डायरेक्ट अटैक होंगे। हो सके तो 2-3 दिन कॉलेज ना जा। प्रहरी की मीटिंग से फ्री होकर मै कॉलेज को देखती हूं।


आर्यमणि:- दीदी जाकर सो जाओ और मेरी चिंता छोड़ दो। रही बात कॉलेज की तो वहां का लफड़ा मै खुद निपट लूंगा। हां मेरे एक्शन का इंपैक्ट देखना हो तो कल कॉलेज का सीसी टीवी कैमरा हैक कर लेना। मुख्य साजिशकर्ता का पता मिले या ना मिले लेकिन मैंने किसी को प्रोमिस किया है कि कल ही काम खत्म होगा।
Bish moksh kshrap or unse sambodhit jankariya kitna realistic impact de rhi thi bhai aapki kalam ki Yahi khasiyat hai Aap kuchh bhi likhte ho to total convincing Lagta hai, real world se jodkr reel world me le jate ho fantasy ki duniya me, Mai to murid hu hi pr meri baat se Lagbhag sabhi log sahmat honge...
Bhumi Di bhi aa gyi wapas riksh stri ka sunkr Vahi arya ke parivar ka past or unko nyay dilvane ki bate bhi pta chali, bhumi Di or arya dono hi Kosis kr rhe hai vahi bhumi Di ne arya ko Savdhan bhi kiya college me hone vali gatividhiyo ko lekr sath hi 3 din anupasthit rahne vali hai yah bhi btaya vahi arya ne somvar ko college me kya hoga isko live dekhne ka prastav bhi diya CCTV hack karke...
Mind blowing superb update bro Jabardast sandar lajvab
 

Kala Nag

Mr. X
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भाग:–17



पलक:– प्रहरी के कई उच्च अधिकारी को लगता है कि तुम्हारे दादा वर्घराज कुलकर्णी की सारी सिद्धियां तुम में है। तो कई लोगों का मानना है कि मैत्री लोपचे के प्यार में तुम एक वेयरवोल्फ बन गए थे। पर एक वेयरवोल्फ किसी प्रहरी के यहां कैसे रह सकता है, इसलिए खुद ही वो लोग इस बात का खंडन कर देते है। बाद में इस बात का भी खंडन कर देते हैं कि जब तुम ७–८ साल के थे तब तुम्हारे दादा जी इस दुनिया में नही रहे। फिर उनकी सिद्धि तुम्हारे अंदर कैसे आ सकती है? लेकिन हर किसी को लगता है कि तुम कुछ हो.… उनके लिए तुम किसी रिसर्च सब्जेक्ट की तरह हो, जिसपर कोई नतीजा नहीं निकलता.…



आर्यमणि, खुलकर हंसते... "फिर किस निष्कर्ष पर पहुंचे"…

पलक:– सब के सब दुविधा में है। किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके। लेकिन हर किसी को लगता है कि तुम में कुछ तो खास है...

आर्यमणि:– और मेरी रानी को क्या लगता है?

पलक, आर्यमणि के गले लगकर... "मुझे तो बस तुम्हारे साथ सुकून मिलता है।"…

आर्यमणि, अपने बाजुओं में पलक को भींचते... "और क्या लगता है?"…

पलक:– यही की हमे अब रुक जाना चाहिए वरना मैं खुद को अब रोक नही पाऊंगी...

आर्यमणि:– मैं भी तो यही चाहता हूं कि रुको मत...

अपनी बात कहकर आर्यमणि ने थोड़ा और जोड़ से पलक को अपनी बाजुओं में भींच लिया। पलक कसमसाती हुई.… "आर्य प्लीज छोड़ दो... रोमांस तो हवा हो गई, उल्टा मेरी पूरी हड्डियां चटका दिए।"

आर्यमणि, पलक को खुद से अलग करते... "तुम्हे छोड़ने की एक जरा इच्छा नहीं... जल्दी से मेरा ध्यान किसी और विषय पर ले जाओ"…


पलक:– ध्यान भटकने के लिए तो पहले से विषय है। उस वेयरवॉल्फ ने ऐसा क्यों कहा कि ये इलाका उन जैसे (वेयरवोल्फ) और हमारे जैसों (प्रहरी) के लिए प्रतिबंधित है, तुम्हारा नाम क्यों नहीं ली।


आर्यमणि:- क्योंकि मै दोनो में से कोई भी नहीं हूं।

पलक:– तो फिर तुम क्या हो?

आर्यमणि:– एक और प्रहरी जो मेरे बारे में जानना चाहती है। लेकिन मैं अपनी रानी को बता दूं कि मैं सिर्फ एक आम सा इंसान... जो न तो शिकारी है न ही वेयरवोल्फ। ठीक वैसे जैसे निशांत, चित्रा और माधव है।


पलक को किसी और जवाब की उम्मीद थी। शायद प्रहरी जो आकलन कर रहे थे.. "आर्यमणि में कुछ तो खास है।" बस इसी से मिलता–जुलता की आर्यमणि में क्या खास है। लेकिन आर्यमणि बड़ी चतुराई से बात टाल गया और उसका जवाब सुनकर पलक का खिला सा चेहरा मायूसी में छोटा हो गया। आर्यमणि, पलक के सर को अपने सीने से लगाकर, उसपर हाथ फेरते हुए कहने लगा…. "तुम क्यों इतनी बातो का चिंता करती हो। मै क्या हूं वो मत ढूंढो, हम दोनों एक दूसरे के लिए क्या है, इसमें विश्वास रखो। तुम जब आर्य और पलक को एक मानकर चलोगी ना, फिर तुम्हे पूर्ण रूप से आर्य और पूर्ण रूप से पलक भी समझ में आ जाएगी। और यदि तुम बिना पलक के अधूरे आर्य को ढूंढोगी तो ऐसे ही आर्य तुम्हे उम्र भर अजीब लगता रहेगा।


पलक, उसके पेट से लेकर पीठ तक अपनी हाथ लपेटती…. "पता नहीं ये प्रेम है या कुछ और। लेकिन तुमसे दूर होती हूं तब तुमसे लिपटकर रहने की इक्छा होती है और जब पास होते हो तो धड़कने पूरी तेज। इतनी तेज की मै अपनी भावना ठीक से जाहिर नहीं कर पाती। क्या मुझे प्यार हुआ है?"


आर्यमणि:- हां शायद...


दोनो सुकून के प्यारे से पल को भुनाने लगे। कुछ समय बीतने के बाद… "पलक यहां तो धूप बढ़ रही है, कहीं और चले क्या।"..


पलक:- चलो लॉन्ग ड्राइव पर चलते है। जहां जी करेगा वहां रुकेंगे, और ढेर सारी मस्ती करेंगे।


आर्यमणि:- किस्स के नाम पर तो ताला लगा है, मस्ती क्या खाक करेंगे। तुम्हे गोद में उठाया था तो दिल कर रहा था कि होंठ से होंठ लगाकर चूमते हुए ऊपर तक लेकर आऊं।


पलक:- और ऊपर लाकर कंट्रोल नहीं होता तो मुझे इधर-उधर हाथ लगाते और बाद में फिर..


आर्यमणि:- उफ्फ ! क्या रौंगटे खड़े करने वाले ख्याल है। पलक तुम्हारे साथ मुझे एडवांटेज है। इन सब मामले में जो बात दिमाग में भी नहीं रहती, वो भी तुम डाल देती हो। फिलहाल..


पलक:- हां फिलहाल…


आर्यमणि:- फिलहाल इस जगह पर आते ही अब कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि यह एक विकृति स्थल है और मुझे अब जरा पता लगाने दो की यहां कल रात हुआ क्या था? और क्यों ये इलाका सुपरनैचुरल और शिकारियों के लिए प्रतिबंधित है?


पलक:- और ये पता कैसे लगाएंगे?


आर्यमणि:- ये माटी है ना। लोग इसे कितनी भी मैली कर दे, अपने अंदर सब ज़हर समाकर, ऊपर से उन्हें पोषण ही देती है। मै भी इस माटी से मदद मांगता हूं, ये किसका मैल छिपाकर प्रकृति का मनमोहक नजारा दी हुई थी?


पलक आर्यमणि की बात बड़े ध्यान से सुनती हुई उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लगी। दोनो 100 कदम चले होंगे, तभी एक स्थान को देखकर आर्यमणि रुकने के लिए कहा। नीचे बैठकर उसने हाथो में मिट्टी उठाई और उसे सूंघने लगा।… "खून है यहां, किसी तरह का अनुष्ठान हुआ था। खोदने के लिए कुछ है क्या?"..


पलक:- बैग में एक छोटा सा चाकू है।


आर्यमणि, पलक को घूरते हुए… "मेरा गला काटने के लिए तो नहीं लेकर घूम रही थी।"..


पलक, अपने बैग से चाकू निकालकर उसके गले पर रखती… "ये जान और ये आर्य, दोनो मेरे है। इसपर नजर डालने वालों को छिलने के लिए रखी हूं।"..


आर्यमणि उसके हाथो से चाकू लेकर जमीन कि भुरभुरी मिट्टी हटाते… "ऐसे अदाएं मत दिखाओ की मै खुद को रोक नहीं पाऊ। तुम्हारे पास कोई ग्लोब्स या पॉलीथीन है।"


पलक:- नहीं।


आर्यमणि:- पीछे रहना और किसी चीज को छूना मत।


पलक:- हम्मम ! ठीक है।


आर्यमणि तेजी से गया और पेड़ की लंबी चौड़ी छाल छीलकर ले आया। बड़े ही ऐतिहात से मिट्टी के अंदर के समान को निकला। अंदर से फूल, माला, कुछ हड्डियां और कपाल निकली। सब समनो को देखकर पलक, आर्यमणि से पूछने लगी…. "ये सब क्या है आर्य।"..


आर्यमणि:- बताता हूं, तुम जरा पीछे हो जाओ पहले, और कुछ भी हो मुझे छूना मत। समझ गई।


पलक अपना सर हां में हिलती हुई, चार कदम पीछे हो गई… आर्यमणि अपना शर्ट उतार कर नीचे जमीन में बिछाया और पलक उसके बदन पर गुदे टैटू को गौर से देखने लगी। बांह पर राउंड शेप में, संस्कृत के कुछ शब्द लिखे हुए थे। पीठ पर भगवान शिव की बड़ी सी टैटू। जितने भी टैटू थे, दिखने में काफी आकर्षक लग रहा था।


आर्यमणि भूमि के अंदर से निकले सामान को बांधकर एक पोटली बनाया और ठीक उसके पास जमीन को 5 इंच खोदकर अपना दायां पंजा उसके अंदर डाल दिया। बाएं हाथ की मुट्ठी बनाकर पीछे कमर तक ले गया और दायां हाथ के फैले पंजे के क्लॉ भूमि के अंदर घुस गए। दिमाग के अंदर सारी छवि बननी शुरू हो गई। इधर पलक पीछे खड़ी होकर सब देख रही थी।


जैसे ही थोड़ा वक्त बिता, आर्यमणि का पूरा शरीर ही नीला दिखने लगा था और वो अपनी जगह से हिल नहीं रहा था। तकरीबन 10 मिनट तक बिना हिले एक ही अवस्था में रहने के बाद, आर्यमणि अपनी आखें खोला। आर्यमणि अपने हाथ को साफ करने के बाद, छाल का एक मजबूत कवर बनाया और पोटली को छाल के बीच डालकर… "पलक इसे ऊपर से पकड़ना और आराम से कार की डिक्की में रख देना। तुम जबतक ये सब करो मै कार के पास तुम्हे मिलता हूं।"


आर्यमणि चारो ओर का जायजा लेते पश्चिम के रास्ते चल दिया, जहां कुछ दूर आगे झील था। पूरा मुवाएना करने के बाद आर्यमणि पलक के पास पहुंचकर…. "तुम्हे तैरना आता है।"..


पलक:- हां आता है।


आर्यमणि:- चलो मेरे साथ..


पलक:- लेकिन आर्य सुनो तो…


आर्यमणि:- चलो भी..



पलक को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, वो आर्यमणि के साथ चल दी।… "आर्य अब ये तो नहीं कहोगे ना कि हम इस झील में तैरने वाले है।"..


आर्यमणि, पलक की बातो पर ध्यान ना देकर उसका हाथ पकड़ा और तेजी से दौड़ लगाते हुए झील के अंदर चला गया… "बहुत शरारती हो तुम आर्य।"


आर्यमणि अब भी कोई उत्तर नहीं दे रहा था, वो बस पलक का हाथ पकड़ कर एक दिशा में तैरते जा रहा था। आर्यमणि पलक के साथ तैरते हुए झील के इस किनारे से उस किनारे तक चला आया। और थोड़ी ही दूर आगे जाने के बाद.. एक बड़ा सा गड्ढा उसे नजर आने लगा… "पलक मोबाइल लाई हो।"..


पलक:- मुझे लगा ही था कि तुम झील में मुझसे तैराकी ना करवा दो इसलिए मैंने मोबाइल कार में ही छोड़ दिया।


आर्यमणि:- स्मार्ट गर्ल.. किसी को पकड़ो यहां की तस्वीरें लेनी है।


किसी को पकड़ना क्या था वहां पर दो लड़के पुलिस के साथ खुद ही पहुंच रहे थे। .. पुलिस आर्यमणि और पलक को देखकर… "चला रे, भिड़ ना लगाओ।"..


आर्यमणि:- हमलोग प्रेस से है सर.. ये गड्ढा हमे अजीब लग रहा है और आप भी यहां आए है, इसका मतलब कुछ तो राज ये गड्ढा समेटे है। तो बताइए सर, क्या है इसकी कहानी..


पुलिस, अपनी वर्दी टाईट करते… "देखिए वो क्या है।"..


आर्यमणि:- एक मिनट सर, आपका मोबाइल दीजिए ना। पहले यहां को बारीक तस्वीर ले लूं, फिर आप का स्टेटमेंट रिकॉर्ड करके कल अखबार में छपने के लिए भेज दूंगा।


पुलिस:- हां हां क्यों नहीं…


आर्यमणि, मंहगा मोबाइल फोन देखकर.… "क्या बात है सर काफी तरक्की में हो"


पुलिस:- मेरे साला ने गिफ्ट किया है।


आर्यमणि हर एंगल से वहां की तस्वीर लेने लगा। उसके बाद पुलिस की तस्वीर लेते हुए… "हां सर अभी कहिए।"..


पुलिस:- कल रात को यहां कुछ हलचल हुई। पन ये लोग का कहना है कि यहां गड्ढे से कोई भूत निकला और लोगों को मारकर गायब हो गया। इन लोगों के हिसाब से... रात का अंधेरा था और गड्ढे के पास हलचल देखकर लोग इधर कू आए। पन जब आए तो फिर लौटकर नहीं गए। पहले गड्ढे में गिरे और लाश पानी से निकली। इधर तो आबरा का डाबरा चल रहा है।


पुलिस के पास खड़ा एक लड़का…. "साहेब मुनीर काका ने खुद देखा, जब वो भूत दोनो को मार रहे थे। 10 फिट लंबा भूत बिल्कुल काला और अजीब से आंख। मुनीर काका के साथ वो दोनो आदमी भी जा रहे थे। अचानक ही तीनों को यहां गड्ढे के पास कुछ दिखा। मुनीर काका तो रुक गए लेकिन जैसे ही वो दोनो गड्ढे के पास पहुंचे भूत ने दोनो को खींच लिया। दोनो के गर्दन को अपने २ फिट जितने बड़े पंजे में जैसे ही दबोचा ना, उन दोनों के शरीर के अंदर से लाल रंग का धुआं निकलकर, उसके नाक में समा गया और वो भूत इन दोनों को इसी गड्ढे में डालकर गायब हो गया।


आर्यमणि:- सर लाश का फिर तो पोसटमार्टम हुआ होगा।


पुलिस:- इसलिए तो अरेस्ट करने आए रे बाबा। अब मर्डर भूत ने किया या सौतन ने या किसी इंसान ने, उसका पोस्टमार्टम होना तो चाहिए था ना। अब इनको पोस्टमार्टम के लिए बोला तो पुरा गांव हमे घेरकर कहता है, लाश शापित था पुरा गांव खत्म हो जाएगा और इसलिए रात को ही जला दिया।


आर्यमणि:- छोड़ो ना साहेब मै इसे गड्ढे में फिसलकर पानी में डूबने से मौत छाप देता हूं। गड्ढा भरवा दो साहेब वरना आज रात फिर भूत आ जाएगा और इनकी कहानी सच हो की ना हो लेकिन आपकी परमानेंट ड्यूटी यहीं लग जाएगी।


आर्यमणि की बात सुनकर थानेदार हसने लगा। थानेदार ने दोनो से नाम पूछा और अपनी जीप से ले जाकर दोनो को उस पार छोड़ दिया। आर्यमणि और पलक ने थानेदार को धन्यवाद कहा और दोनो कार से वापस निकल गए। इससे पहले कि पलक अपने पजल हुए माइड को, कुछ सवाल पूछकर राहत देती आर्यमणि कहने लगा… "प्रतिबंधित क्षेत्र में एक विकृति रीछ स्त्री थी जो पिछले 2600 साल से सजा भुगत रही थी। सजा अपने पूर्ण जीवन काल तक की थी"..


पलक:- क्या मतलब है तुम्हारा एक रीछ स्त्री।


आर्यमणि:- "रामायण काल में एक प्रजाति का उल्लेख है रीछ, जिसमें जाम्बवंत जी का नाम प्रमुख था। जिन्होंने श्री हनुमान जी को उनकी शक्तियों का स्मरण करवाया था और लक्ष्मण जी जब मूर्छित थे तब हनुमान जी और विभीषण जी, जाम्बवंत जी के पास गए थे। तब उन्होंने ही हिमालय के ऋषभ और कैलाश पर्वत जाकर संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा था।"
यहाँ तक बहुत जबरदस्त रहा है
"ये प्रजाति मानव जाति की सबसे श्रेष्ठ प्रजातियों में से एक थी जो इंजिनियरिंग और साइंस में काफी आगे थे। मना ये जाता है कि इन लोगों ने एक ऐसा यंत्र का निर्माण किया था जो विषैले परमाणु निगल जाते थे। ये लोग दीर्घ आयु होते थे। जाम्बवंत जी की उम्र बहुत लंबी थी। 5,000 वर्ष बाद उन्होंने श्रीकृष्ण के साथ एक गुफा में स्मयंतक मणि के लिए युद्ध किया था। भारत में जम्मू-कश्मीर में जाम्बवंत गुफा मंदिर है। जाम्बवंत जी की बेटी के साथ भगवान श्री कृष्ण ने विवाह किया था।
इस पर मैं कुछ भी कह नहीं सकता
क्यूंकि मैं पांच साल पहले गुजरात गया था वहाँ के दारूक वन में गाइड ने हमें जामवंत गुफा और उनकी कृष्ण जी लड़ाई की बात कही थी
पलक:- ये विकृति रीछ स्त्री कितना खतरनाक हो सकती है।


आर्यमणि:- अगर इन लोगो की बात पर यकीन करें तो उसने केवल गला पकड़ कर दो लोगों के रक्त को कण में बदल दिया और अपने अंदर समा ली।


पलक:- ये जो प्रजाति थी वो अच्छी थी या बुरी?
बाकी आप जो भी लिखते हैं रिसर्च के आधार पर ही लिखते हैं यह तो मानना पड़ेगा
 
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