भाग:–80
रात काफी हो गयी थी। ओशुन मेरा हाथ थामे चल रही थी। उस पेड़ को स्पर्श करने के बाद मै हर स्पर्श को जैसे मेहसूस कर सकता था। काफी सौम्य और बिल्कुल नाजुक हथेली थी ओशुन की। जैसे ही अचानक फिर ख्याल आया पानी का… "ओशुन टॉप नीचे करो और मुझे अपने स्तन दिखाओ।"..
ओशुन:- क्या ?
मै:- टॉपलेस हो जाओ..
ओशुन मेरे आखों में झांकी, कुछ पल खामोशी से वो मेरे अंदर तक झांकने की कोशिश करती रही। फिर आहिस्ते से अपने स्ट्रिप को खिसकाकर अपनी ड्रेस को नीचे जाने दी। उसके स्तन की वास्तविक हालत देखकर मै सिहर गया।… "क्या मै इनपर हाथ रख सकता हूं।"… ओशुन इस तरह से हंसी मानो मुझे बेवकूफ कह रही हो। उसने पलकें झुकाकर अपनी रजामंदी दी और मैं अपना हाथ उसके स्तन पर उसी सौम्यता से रखा जैसे उस मृग अथवा पेड़ पर रखा था और ओशुन की पीड़ा को मेहसूस करने लगा।
मैं आंख खोलकर ओशुन के चेहरे को देखने लगा। उसके चेहरे पर असीम सुकून के भाव थे, जो चेहरे से पढ़ा जा सकता था। धीरे-धीरे मेरे नब्ज में ओशुन का उतरता दर्द सामान्य होने लगा। वह अपने अंदर पुरा सुकून मेहसूस करती गहरी श्वांस खींची और मेरे हाथ को अपने सीने से हटाकर सीधा मेरे ऊपर पुरा वजन दे दी, मानो कह रही थी प्लीज अब मुझसे खड़ा नहीं रहा जा सकता। और मेरे ऊपर पुरा भार देकर वो सुकून से श्वांस लेने लगी।
कुछ देर तक ओशुन अभूतपूर्व सुकून को मेहसूस कर रही थी, मानो किसी ने उसके हृदय की धड़कन को पुनर्जीवित कर दिया हो, जो एक लंबे समय से धड़क तो रही थी, लेकिन अंदर वो ऊर्जा नहीं थी। ओशुन अपने सुकून के पल में इस कदर खोई की उसे एहसास तक ना रहा की कब सुबह भी हो गयी। दूर से आती वुल्फ साउंड सुनकर ओशुन गहरी नींद से जागी। जब वो अपने आसपास का माहौल देखी, "ओह नो" उसके होटों पर थी और प्यारी सी मुस्कान चेहरे पर। वो खड़ी होकर मुझे देख रही थी और मुस्कराते चेहरे पर थोड़ी सी अफ़सोस की भावना थी।
तभी मै झुका और उसके ड्रेस को उसके पाऊं से ऊपर किया और कंधे तक चढ़ाया। मुझे देखकर वो मुस्कुराई और मुड़कर अपने कदम बढ़ा रही थी। मैं भी मुस्कुराते हुये झोपड़ी के ओर कदम बढ़ा दिया। मै भी मुस्कुराया वो भी मुस्कुराई, शायद मैं भी उसे नजर भर देखना चाहता था और शायद उसके दिल की भी यही इक्छा थी। हम दोनों ही पलटे। एक दूसरे को देखकर चेहरा खिला हुआ था और नजरे एक दूसरे पर बनी हुई।
तभी ओशुन अपने कदम बढ़ाकर अपनी ऐरियों को ऊपर की, अपने हाथ मेरे कांधे पर डाली और अपने होंठ को मेरे होंठ से स्पर्श करती अपनी आंखे मूंद ली। बिल्कुल ठंडा और मुलायम स्पर्श था, जो दिल में हलचल मचा गया। उस स्पर्श को मेहसूस करने के लिये दिल कबसे ना जाने व्याकुल हो। आहिस्ते से मैंने भी अपने होंठ उसके होंठ से स्पर्श किये। ठंडे और मुलायम होटों के स्पर्श और चेहरे पर टकराती गर्म श्वांस, दिल में प्यारी सी बेचैनी दे रही थी। हम दोनों के जज्बात लगभग एक जैसे थे। तभी कानो में फिर से वुल्फ साउंड गूंजी, और ओशुन किस्स को तोड़ती थोड़ी झुंझलाई.. "ऑफ ओ, हनी मै जारा इन्हे शांत करके आयी, तब तक प्लीज तुम झोपड़ी में ही रहना।"..
"मै बोर हो जाऊंगा ओशुन"… "ठीक है एक काम करो झील के उस पार कम से कम 20 किलोमीटर दूर जब जाओगे एक छोटी सी बस्ती दिखेगी। बस वहीं आस पास टहलना, मै वहीं आकर मिलती हूं।"… इतना कहकर ओशुन मुड़ गयी लेकिन एक कदम आगे गयी होगी की वो फिर पलटी और मेरे होटों पर अपने होटों का छोटा सा स्पर्श देती… "मै जल्दी आयी"
ओशुन शायद वहां कुछ और देर रुकती तो वो जा नहीं पाती इसलिए शायद इस बार जब मुड़ी तो बिजली की रफ्तार पकड़ ली। मै भी उल्टी दिशा में दौड़ लगा दिया। कुछ ही पल में मै उस बस्ती के पास था। बस्ती तो वहां थी, लेकिन वहां कोई इंसान नहीं था। मुझे थोड़ी हैरानी हुई और जिज्ञासावश एक झोपड़ी में घुसा।
दरवाजा को खोलने के लिये दरवाजे पर मैंने हथेली रखा ही था कि वो स्पर्श मुझे विचलित कर गयी। मैंने अपनी हथेली दरवाजे से टिकाकर अपनी आंख मूंद लिया और फिर झटके से अपने हाथ पीछे खींच लिया। उस दरवाजे पर जैसे किसी के आतंक की कहानी लिखी हुई थी। दरवाजा खोलकर जैसे ही मैं अंदर पहुंचा लगा कि कोई है, लेकिन ये मेरा भ्रम मात्र था। ओशुन जिस झोपड़ी में रहती थी और यह झोपड़ी, दोनो की बनावट लगभग एक सी थी। केवल फर्क सिर्फ इतना था कि यहां की खाली झोपड़ी में किसी के होने का विचलित एहसास था, जबकि वहां सुकून था।
मै एक-एक करके हर झोपड़ी के दरवाजे पर हाथ रखा और हर दरवाजे पर लगभग एक जैसा ही अनुभव था। हर झोपड़ी के अंदर, वहां के आस–पास के खुले माहोल, हर चीज में कुछ तो ऐसा था, जो मुझे किसी के होने का एहसास तो करवाता, किन्तु वहां कोई होता नहीं। मै वहां से निकलकर बाहर आया। विचलित मन में कई सारे सवाल उठ रहे थे। मै बैठकर मुसकुराते हुये बस इतना ही सोच रहा था कि…. "क्या बदलाव इतना विचलित करता है। मै पहले दिन से ही जैसे ब्लैक फॉरेस्ट की दुनिया में उलझता सा जा रहा हूं। मैंने तो इस जगह का नाम ही पजल लैंड रख दिया, क्या हो रहा था, क्यों हो रहा था, कुछ भी समझ में आने वाला नही।"
फिर दिखी एक परी। ओशुन सामने से चली आ रही थी। उसका हुस्न जैसे दिल में उतर रहा था। लहराती हुई चली आ रही थी। खुद को अच्छे से संवारा था। पहले से कुछ अलग लेकिन काफी दिलकश दिख रही थी। ओशुन के शरीर से लिपटा गहरे नीले रंग का कपड़ा, उसके मनमोहक रूप को और भी निखार रहा था। मेरे करीब वो पहुंची, और मुझे खड़ा होने के लिये कहने लगी। मै उसके आखों में देखते खड़ा हो गया। हम दोनों ही खड़े थे और दोनो की नजरें एक दूसरे से मिल रही थी। वो मेरा हाथ थामकर नीचे घुटनों पर बैठ गयी। जब वो बैठी हम दोनों ही समझ गये की क्या होने वाला है। दोनो के ही चेहरे पर मुस्कान छाई हुई थी।
ओशुन अपने घुटने पर बैठकर धीमे से कहने लगी… "अपनी नजरे मुझ पर से हटाओ वरना मेरी धड़कने इतनी बेकाबू हो जाएगी की मै तुम्हारी तरह शेप शिफ्ट कर चुकी रहूंगी।"..
अनायास ही मुझे आभाष हुआ कि मेरी धड़कने इतनी बढ़ चुकी है कि मै, मै ना होकर एक वुल्फ में तब्दील हो चुका था। मुझे अंदर ही अंदर अफ़सोस सा होने लगा। मेरे दैत्याकार हाथ जो इस वक़्त ओशुन के हाथ में था, उसमें मानो कोई जान नहीं बची हो। वो बेजान होकर बस लद गया। ओशुन शायद मेरी दिल की भावना समझ चुकी थी, वो फिर भी मेरा हाथ थामे रही। खुद की हालात जब बुरी लगी तो धड़कने भी काबू में थी और शरीर भी। हाथ बिल्कुल सामान्य दिखने लगा था, किन्तु भावनाएं पहली जैसी नहीं रही। लेकिन ये तो केवल मेरे दिल के हाल था। ओशुन मेरी कलाई थामे अब भी अपने घुटनों पर बैठी थी, वही प्यारी सी मुस्कान उसके मासूम से छोटे चहरे पर थी और अपने होंठ से मेरी कलाई चूमती… "आई लव यू"..
शायद कुछ गलत सुना क्या, मेरी आखें बड़ी हो गयी। आश्चर्य से मै ओशुन के ओर देखने लगा। "हीही".. की मीठी ध्वनि मेरे कानों में पड़ी। ओशुन एक बार फिर से कही। लेकिन इस बार खुल कर और चिल्लाकर कहने लगी… "मिस्टर आर्य, तुम्हे देखकर दिल जोड़ों से धड़कता है। आई लव यू।"..
वो अपनी भावना का इजहार करती हुई खड़ी हो गयी और अपने बांह मेरे गले में डालकर, मुस्कुराती वो मुझे देखती रही। "आहहह" क्या फीलिंग थी बिल्कुल अलग और रोमांचकारी। कमर में हाथ डालकर मैंने ओशुन को अपने ओर खींचा। अब वो बिल्कुल मुझ से चिपक चुकी थी। उसके वक्ष मेरे सीने से लगे थे। धड़कन की आवाज कानों में सुनाई दे रही थी। चेहरा हल्का पीछे था और उसका खिला रूप दिल में बस रहा था… "धक–धक.. धक–धक".. की जोड़ की आवाज मेरे सीने से आ रही थी। बेख्याली में मेरे आंख बंद होने लगे। श्वांस बिखरने सी लगी थी और उसके होंठ के नरम एहसास अपने होंठ से छूने के लिए दिल मचलने लगा था।
तभी ओशुन अपनी एक उंगली मेरे होंठ से टिका कर मेरे बढ़ते होंठों पर थोड़ा विपरीत फोर्स लगाई। मै रुककर सवालिया नजरो से उसे देखने लगा। मेरी नजरो को पढ़कर एक बार धीमे से हंसी… "हनी पहले तुम्हारे शेप शिफ्ट का कुछ करना होगा। अब मुझे नीचे उतारो।"..
मैंने फिर से खुद की हालात पर गौर किया। किन्तु इस बार अफ़सोस नहीं था बल्कि ओशुन की बात सुनकर मै मुसकुराते हुए उसे नीचे उतार दिया। मुझे इस रूप में मुस्कुराते हुये देखकर ओशुन खुलकर हसने लगी। उसकी हसी कितनी प्यारी थी ये बयां कर पाना मुश्किल होगा। बस वो खुलकर हंस रही थी और मै उसे देखे जा रहा था।
"हनी जायंट शेप में तुम्हारी स्माइल कातिलाना थी। एक दम फाड़ू। सॉरी मै खुद को रोक नहीं पायी।"… ओशुन हंसती हुई अपनी बात रखी।
उसकी बात सुनकर मै फिर से मुस्कुरा दिया। कुछ समय हमलोग ने एक दूसरे में खोकर बिता दिया। हम दोनों जब बैठकर बातें कर रहे थे तब मै बार-बार ओशुन का चेहरा देख रहा था। मुझे पहली बार यह एहसास हो रहा था कि इंसान इस पृथ्वी के किसी भी कोने में क्यों ना रहते हो, भावनाएं हर किसी में होती है। हालांकि सुपरनैचुरल कल्चर प्रायः सब जगह एक जैसा ही होता है..
जैसे कि खुले विचार। ओपन सेक्स, अपने हिसाब से पार्टनर चुनना और पैक के साथ बंधकर रहना। लेकिन भारत की सभ्यता और जर्मनी की सभ्यता में काफी अंतर पाया जाता है। यूरोप के परिवेश में पले लड़के-लड़कियां और भारतीय परिवेश में पले बढ़े लड़के-लड़कियों में सभ्यता का अंतर तो होता ही है। वहां कितने भी ओपन ख्याल क्यों ना हो रिश्ते छिपाने पड़ते है। लेकिन यहां ऐसी बात नहीं थी। तो मन में कहीं ना कहीं ये भी था कि यहां भावनात्मक जुड़ाव, प्यार मोहब्ब्त ये सब थोड़े कम होते होंगे।
लेकिन जब आप वास्तव में इन इलाकों में रहते है तो कुछ अलग ही तस्वीर नजर आती है। बस ढोने वाले रिश्ते और रिश्ते में आयी दरार को ये बचाने कि ज्यादा कोशिश नहीं करते। लेकिन बाकी हर किसी की फीलिंग एक जैसी ही होती है। मै अब तक यहां कुछ लोगो से मिलकर काफी प्रभावित हुआ था। मैक्स, था तो एक शिकारी लेकिन मुसीबत में फसे इंसानों को वो अपने घर ले जाकर सेवा करता और उन्हें सुरक्षित निकालता। वहीं उसकी पत्नी थिया, जिसने पहली मुलाकात में ही मेरी काफी मदद की। उसके बाद उसका दोस्त बॉब, जिसे मैंने लगभग जान से ही मार दिया था, लेकिन फिर भी वो मेरे पीछे आया, और वो भी अपने अतीत के एक टूटे रिश्ते के कहने पर।
ओशुन के बारे में मै क्या बताऊं। शुरवात के दिनों में मै जब यहां आकर जहालत झेल रहा था, पता ना बेहोशी में उसने मेरे लिए क्या-क्या किया हो। ये उसने मुझे आज तक कभी नहीं बताया। मै तो यहां लोगो की मानसिकता का भनक भी नहीं लगा पाता, यदि ओशुन ने मुझे सब बताया ना होता। ना ही कभी मैक्स, थिया और बॉब से मिलता।
ओशुन के साथ बात करते-करते मै इन्हीं सब बातो में डूब सा गया। तभी वो मुझे ख्यालों से बाहर लाती हुई पूछने लगी… "क्या हुआ कहां खो गए।"..
मै:- कुछ नहीं, तुम बताओ तुमने मुझे यहां क्यों भेजा।
ओशुन:- ब्लैक फॉरेस्ट का वुल्फ गांव। वुल्फ हाउस से पहले यहां यही था। मेरा गांव। प्यारा गांव..
ओशुन अपनी बात कहते थोड़ी ख़ामोश दिख रही थी। मुझे उसके अंदर का दर्द कुछ-कुछ समझ में आ रहा था लेकिन मै उसका इतिहास पूछकर और दर्द में नहीं डालना चाहता था, इसलिए उसका हाथ थामकर मै वहां से चल दिया।
कुछ देर बाद हम उस छोटे से झोपड़ी में थे, जो इस वक़्त हमारा आशियाना था। मैंने जब उस झोपडी को अंदर से देखा तो देखकर खिल गया। एक लड़की जो प्यार में है फिर अपनी भावनाए दिखाने के लिए कितनी छोटी-छोटी चीजों पर काम करती है। वो झोपड़ी अंदर से बिल्कुल हमारी तरह खिली हुई थी। मानो ओशुन ने झोपड़ी के अंदर जान डालकर अपनी भावना मुझसे बयां कर रही हो।
झोपड़ी के अंदर जारा भी धूल के निशान नहीं, चारो ओर उजाला फैला हुआ था। धूल, मिट्टी और अंधेरे के कारण ना दिखने वाले दीवारों का रंग बिल्कुल श्वेत और उसके पर्दे गहरे हरे रंग के। हर दीवार के कोने में कुछ फूल टंगे हुए थे, जो चारो ओर प्यारी खुशबू बिखेर रही थी। मै वहां की खुशबू अपने जहन में उतारकर, दोनो बाहें फैलाये लेट गया। ओशुन भी मेरे साथ लेटती, मेरी ओर करवट ली और मेरे सीने से अपने सर को लगाकर सोने लगी।
रात भर का मै भी जगा था। उसपर इस वक़्त का एहसास काफी आनंदमय और सुखद था। मैं आंख मूंदकर ओशुन को खुद में मेहसूस करने लगा। उसे मेहसूस करते कब मेरी आंख लग गयी, मुझे पता ही नहीं चला। जब मेरी आंख खुली तब हल्का अंधेरा हो रहा था। ओशुन तो मेरे पास नहीं थी लेकिन उसका एक पत्र मेरे पास पड़ा था, जिसमें उसने मेरे लिए संदेश था।..
"मै वुल्फ हाउस जा रही हूं। बिस्तर पर तुम्हारे लिये कपड़े पड़े है, नहाकर ये कपड़े पहन लेना और प्लीज बाहर मत निकालना। मै चांद निकलने से पहले तुम्हारे पास आ जाऊंगी।"
शाम ढल चुकी थी, और मै नहाकर तैयार हो चुका था। बिस्तर पर बैठकर मै ओशुन के बारे में कुछ सोचूं, उससे पहले ही वो दरवाजा खोल कर अंदर। उफ्फ क्या क़यामत लग रही थी वो। ऐसा लग रहा था कोई जहरीली जादूगरनी अपने नीली आखों से मेरा कत्ल करने वाली है। उसपर से उसके गहरे लाल रंग वाला वो पतला सा कपड़ा, जिसके ऊपर उसके कंधे खुले थे और बीचोबीच एक छोटा सा नेकलेस लटक रहा था। उस नेकलेस के आखरी में लगा सितारों के एक पत्थर, काफी मनमोहक लग रहा था जो रह-रह कर मेरा ध्यान खींच रहा था।
"क्या देख रहे हो।" .. ओशुन मुसकुराते हुये मेरे करीब आकर बैठी और मुझसे पूछने लगी। मैं उसके नेकलेस में लगे सितारे को अपने हाथो में लेकर… "बहुत प्यारा लग रहा है ये।"…
ओशुन:- मेरी मॉम का है। ये जगह छोड़ने से पहले उन्होंने मुझे दिया था।
मै:- तुम्हारी मॉम तुम्हे छोड़कर चली गयी?
ओशुन:- हां मेरे पापा अपने पैक के साथ रुक गये, मेरी मॉम अपने पैक के साथ चली गयी। बस जाते–जाते मुझे ये निशानी देकर गयी।
हम दोनों की बातें अभी शुरू ही हुई थी, ठीक उसी वक़्त ऐसा लगा जैसे मेरे पूरे शरीर में खिंचाव सा हो रहा है। फिर भी मै उन खिंचाव पर ज्यादा ध्यान ना देते हुए… "तुम्हारी मॉम भी तुम्हारी तरह खुएबूरत होंगी।"..
ओशुन:- हीहीही.. और मेरे डैड बदसूरत थे क्या?
मै:- कोई बेवकूफ और अड़ियल होगा, जो इतनी सुन्दर बीवी को जाने दिया।..
मै अपनी बात कह तो रहा था ओशुन से, लेकिन मुझे अंदर से कुछ अजीब, और दिल में ऐसी भावना जाग रही थी कि मै खतरे में हूं, ओशुन खतरे में है। वो दरिंदे ईडन के लोग हम पर हमला करने आ रहे है और मुझे किसी भी तरह से ओशुन की बचाना हैं। मै खुद में काफी विचलित मेहसूस करने के बावजूद, किसी तरह खुद को काबू किये हुये था और ओशुन का मुस्कुराता चेहरा इसमें मेरी पूरी मदद कर रहा था। शायद पहले पूर्णिमा का असर हो रहा था।
ओशुन:- मेरे डैडी बेवकूफ है और इस वक़्त तुम क्या कर रहे हो?
मै:- कुछ समझा नहीं..
ओशुन:- कुछ समझे नहीं या समझकर भी समझना नहीं चाहते। क्या तुम्हे यहां की खुशबू मेहसूस नहीं हो रही।
मै:- ओशुन सच कहूं तो इस वक़्त मुझे अजीब सी बेचैनी मेहसूस हो रही है। मेरा जी कर रहा है उस ईडन का मै गला धर से अलग कर दूं। उस लोपचे के शरीर के 100 टुकड़े करके पूछूं की मैत्री को क्यों उसने अकेले इंडिया जाने दिया। मुझे क्यों एक बार भी सूचना नहीं दिया।
मुझे ये एहसास ही नहीं हुआ कि कब मैंने अपना शेप शिफ्ट कर लिया और एक वेयरवुल्फ में तब्दील हो गया। ओशुन मेरी बात सुनकर मुस्कुराई और मेरा हाथ थामकर बोलने लगी… "अब भी मैत्री तुम्हारे दिल में है ना, इसलिए तुम मुझ से भावनात्मक जुड़ना नहीं चाहते। तालाब में केवल मेरे बदन को देखकर तुम एक्साइटेड हो गये थे।"..
ओशुन की बात सुनकर मै बिल्कुल ख़ामोश हो गया। मेरे अंदर की बेचैनी और घुटन एक किनारे और ओशुन का वो मुस्कुराता चेहरा दूसरी ओर, जो मुझसे ये जानने को इक्कछूक़ थी कि क्या मै उससे भावनाओ के साथ जुड़ा हूं, या केवल मेरी उत्तेजना थी जो तालाब के ओर मुझे खींच ले गयी थी?
आर्य की हालत इस समय त्रिशंकु के जैसी हो गई है, वेरवॉल्फ से इंसान और इंसान से वेरवॉल्फ कब बन रहा है उसे ही पता नही चल रहा है ऊपर से ये ओशुन को देख कर बहकना, ये अलग कहानी है।
अच्छा हुआ बॉब ने आर्य को उसकी गलती से अवगत कराया और उसको उसकी हीलिंग पावर को सही से प्रयोग करना सिखाया। इस प्रयोग और उसके परिणामों ने भी आर्य को कुछ संतुलन दिया।
ओशुन का आर्य को उसके गांव भेजना और आर्य को उन भावनाओ से अवगत कराना भी एक तरीका था आर्य को आगे चल कर इडेन के खिलाफ युद्ध में सशक्त करने के लिए क्योंकि अंतहीन दर्द सह कर ही तो टू अल्फा बनता है वर्ना अभी तक तो आर्य बीस्ट अल्फा ही बना था और अब सीन 7 वाला दृश्य जिसमे आर्य सबसे पहले अपने ट्रू अल्फा रूप को आत्मसात करने वाला है।
शायद ओशुन से बिछड़ना भी तभी होगा। ओशुन के मां बाप के अतीत की भी कोई तो कहानी निकलने वाली है। गजब तो तब होगा जब ये पता चले की ईडन ही ओशुन की मां है और इसी वजह से आर्य शायद इन सब को जिंदा छोड़ कर वापस आ गया था। क्या धांसू अपडेट दे डाला है
nain11ster भाई।