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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–79






मेरे ज्यादा तेज दौड़ने की कोई सीमा नहीं थी। मै जंगल के उस हिस्से में महज चंद मिनट में पहुंच गया जहां से आने में मैंने कई दिन लगा दिये थे। मैं ब्लैक फॉरेस्ट के 2 क्षेत्र के सीमा पर खड़ा था... पीछे इंसानों का इलाका और सामने दरिंदो का।


मै कुछ असमंजस में था लेकिन तभी पहली बार मै अपने होश में बला की उस खूबसूरत, नीले नैनो वाली लड़की को देख रहा था, जिसका नाम ओशुन था। मै इस पल यहां था और अगले ही पल ओशुन के करीब। पत्तों की सरसराहट और हवा के कम्पन की आवाज से वो मेरी ओर मुड़ी, लेकिन तुरंत ही मै घूमकर सामने, वो सामने देखी तो मैं पीछे। लगभग 5 मिनट तक उसे परेशान करने के बाद ठीक ओशुन के सामने खड़ा हो गया।


ओशुन जैसे ही मुझे देखी, मेरा हाथ थामकर वो तेजी से भागी, मै भी उसके साथ भगा। हम दोनों ही भाग रहे थे… "क्या हुआ, मेरा स्पीड टेस्ट ले रही हो?'


ओशुन:- किसी मूर्ख की मूर्खता पर रो रही हूं और उसे छिपाने जा रही।


मै उसकी बात सुनकर थोड़ा निराश हो गया और उससे हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगा… ओशुन मेरे ओर पलटी, उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान थी। वो तेजी से दौड़ती हुई बस इतना ही कही… "जहां ले चल रही हूं वहां चलकर गुस्सा कर लेना। बस अभी चलते रहो।"..


मै उसकी बात सुनकर ना नहीं कर पाया। हम दोनों जंगल के पूर्वी क्षेत्र में थे, जहां झोपड़ी बना हुआ था। एक झोपड़ी का दरवाजा खुला और शुरू होते ही झोपड़ी खत्म। वहां एक बिस्तर लगी हुई थी। थोड़ी सी खाली जगह और कुछ छोटे-छोटे हथियार दीवार पर टंगे थे। आते ही ओशुन ने चादर बदली और साफ चादर बिछाकर बैठने को कहने लगी।


मै:- ये किसका झोपड़ी है..


ओशुन:- मै यहां रहती हूं।


मै:- लेकिन तुम तो अपने पैक के साथ वुल्फ हाउस में रहती हो ना?


ओशुन:- नहीं, मेरा कोई पैक नहीं है। मै एक वेयर कैयोटी हूं।


मै:- वेयर कायोटि क्या वेयरवुल्फ से अलग होते है।


ओशुन:- हां बहुत अलग होते है। अब तुम यहां आराम करो। मै वुल्फ हाउस के चक्कर लगाकर आती हूं। और प्लीज यहां से बाहर मत जाना। कहो तो तुम्हारे पाऊं पर जाऊं।


मै:- नहीं मै कहीं नहीं जाऊंगा, तुम वुल्फ हाउस से हो आओ।


यूं तो जंगल में लगभग शाम जैसा ही माहौल होता था, लेकिन पूर्णिमा के ठीक एक दिन पहले चांद लगभग पुरा ही था। जितनी घनघोर और काली ये जंगल होनी चाहिए थी, उतनी काली नहीं थी, शायद चंद्रमा का ही हल्का-हल्का प्रभाव था।


ना निकलने कि बात मानकर भी झोपड़ी से निकल आया और वहां आस–पास घूम रहा था। थोड़ी दूर आगे ही एक मैदानी भाग था, जहां छोटा सा एक झील था और झील के किनारे खड़ी थी ओशुन। अपने पतले से उजले लिबास को बदन पर लपेट चांद की रौशनी में खड़ी वो झील को निहार रही थी। मैंने भी एक नजर उस झील को देखा, मुझे कुछ खास नहीं लगी। इसलिए मै वापस ओशुन पर नजर गड़ाये उसे देखने लगा। उसने अपने कंधे से सरकाक लिबास को पाऊं में गिरा दी। फिर अपनी पैंटी को निकालकर उसी के ऊपर डाल दी और झील में नहाने के लिए कुद गयी।


उसके भींगे लंबे बाल जो कंधे से आगे के ओर जा रहे थे और पानी में डूबे उसके सीने से उपरी भाग दिख रहा था। उसे छिपकर देखने का आनंद ही कुछ और था। कामुकता में वशीभूत होकर मैंने भी उस झील में छलांग लगा दिया। पानी में हुई इस हलचल से ओशुन सचेत तो हुई किन्तु जबतक वो समझ पाती की कौन है, मै उसके पीछे खड़ा था।..


ओशुन:– मना की थी ना बाहर नहीं आने।


मैं पीछे से उसके पेट को अपनी बाहों में जकड़ा और उसके गर्दन को चूमते हुये… "बाहर नहीं आता तो ये नजारा कहां से देखने को मिलता।"..


"ये अच्छा तरीका नहीं है आर्य, छोड़ो मुझे और जाओ यहां से।".… ओशुन मेरी पकड़ से छूटने की कोशिश करती हुई, शिकायती लहजे में कहने लगी।


मै वासना की आग में जल रहा था और थोड़ा हट दिखाते हुये अपने हाथ ऊपर करके, उसके उन खूबसूरत उरोजो के ओर ले जाना लगा, जिसके उभार सीने से बिल्कुल खड़े और इतने विकसित थे कि जिन्हे पूरे हाथ में भरकर उन्हें अपने गिरफ्त में करने का एक अलग ही आनंद था। बस ऐसे ही कुछ कल्पना के साथ मैंने अपने हाथ ऊपर बढ़ा तो दिये, किन्तु बीच में ही ओशुन मेरे दोनो हाथ को पकड़ती… "इसे जबरदस्ती करना कहते है आर्य। प्लीज मुझे इरिटेट मत करो वरना अच्छा नहीं होगा।"


ओशुन का नया खिला योबन था और मैं किशोरावस्था से जवानी के दहलीज पर कदम ही रखा था। उसके नग्न बदन का खिंचाव ही अजब था, वो मुझे रोकने की कोशिश कर रही थी और मै जोर लगाकर अपने हाथ ऊपर बढ़ा रहा था। मेरे हाथ को रोक पाना ओशुन के वश में नहीं था। वो कोशिश तो करके देख चुकी थी उसके बावजूद भी मेरे हाथ उसके दोनो स्तन के ऊपर थे और मेरे पूरे हथेली के गिरफ्त में।


मादक एहसास था वो। उसके गोलाकार और सुडोल स्तन मेरे हाथो में थे और ओशुन की सभी कोशिश नाकामयाब हो रही थी।… "आर्य….. मेरे बदन से हाथ हटाओ अभी।"… वो गुस्से में चिल्लाई और मै उसके गर्दन पर अपना जीभ के नोक को लगाकर धीरे-धीरे उसके कानों के ओर बढ़ने लगा। पानी में हल्का हिलकोर होने लगा और ओशुन का बदन सिहरने लगा। अंदर से उसे गुदगुदा एहसास हो रहा था, और उसकी हल्की छटपटाहट, पानी में मधुर छप–छप की आवाज पैदा कर रही थी।


मैं लगातार उसके स्तन पर हाथ की पकड़ को मजबूत किये, उसके गर्दन पर अपनी जीभ चला रहा था। और वो छटपटाती हुई बस किसी तरह रुकने के लिये कह रही थी। अरमान तो मुझे बहुत कुछ करने का था लेकिन ओशुन शायद इसके लिए तैयार नहीं थी। कब उसने अपना शेप शिफ्ट किया और छोटी सी लोमड़ी में तब्दील होकर मेरे गिरफ्त से छूटकर भागी, मुझे पता भी नहीं चला। मै बस अपना हाथ मलते रह गया। कुछ देर पानी में ही खड़ा रहा, फिर वासना जब शांत हुई तो पानी से निकलकर बाहर आया।


बाहर निकलकर जैसे ही मै थोड़ा आगे बढ़ा, ओशुन अपने उजले लिबास पहने सामने खड़ी थी। बदन हल्का गिला होने के कारण छाती से उसके कपड़ा चिपका हुआ था। ब्रा ना पहनने के कारण उसके पूरे स्तन के आकर दिख रहा था। कपड़ा इतना पतला था की उसके मादक स्तन झलक रहे था। जैसे ही ओशुन की नजरों ने मेरी नजरों का पीछा शुरू की, मै अपनी नजरें चुराते धीमे से "सॉरी" कहने लगा।


ओशुन अपने कदम बढ़ाती.. "इट्स ओके, मै समझ सकती हूं, तुम थोड़े एक्साइटेड हो गये थे।"..


मै पीछे से ओशुन का हाथ पकड़ कर रोकते… "सॉरी खुद के लिये कह रहा था। तुम्हे देखकर तो तम्मना वही है बस उमंग थोड़े काबू में है।"


ओशुन मेरे ओर मुड़ती… "ये क्या है आर्यमणि, मतलब किसी लड़की के साथ जबरदस्ती करना और उसके बाद भी खड़े होकर ऐसी बातें कर रहे हो। ये गलत है।"..


मै:- गलत सही मै नहीं जानता। एक तो तुम इतनी कामुक और दिलकश हो की तुम्हारी सूरत दिल में उतर जाती है। उसपर से तुम्हारा ये कातिलाना बदन, तुम जानती हो जब तुम्हे बिना कपड़ों के देखा तो मेरी यहां क्या हालत हुई थी।


ओशुन:- बिना कपड़ों के देखोगे तो क्या जबरदस्ती करोगे. ..


मै:- तुम्हे ऐसी हालत में देखकर जो मेरा रेप हो गया उसका क्या?


ओशुन:- हीहीहीही.. तुम्हारा तो यहां महीनों रेप होता रहा था आर्य। पिछले कुछ दिनों से यहां नहीं हो तो सबकी जिंदगी बोरिंग सी हो गयी हैं।


मुझे उसकी बात पर काफी तेज गुस्सा आया और मैंने खींचकर एक तमाचा जड़ दिया। उसका हाथ छोड़कर मै उस झोपड़ी में चला आया और हर पल मेरे अंदर हो रहे विलक्षित बदलाव को मै बस मेहसूस तो कर सकता था, लेकिन शायद रोक नहीं सकता था। मुझे अब बॉब की बातें भी सही लगने लगी थी कि मै खुद के लिये और दूसरे के लिए खतरनाक हूं। मुझे ओशुन का गुस्सा होना भी जायज लग रहा था। लेकिन फिर भी ना तो जबरदस्ती ओशुन के बदन को हाथ लगाने का रत्ती भर भी अफ़सोस था और ना ही बॉब को लगभग जान से मारने कि कोशिश पर कोई पछतावा, बस खुद पर ही गुस्सा आ रहा था।


मैंने तय कर लिया की जब मेरी बॉडी खून के एक-एक कतरे को निचोड़े जाने के बाद हील कर सकती है तो खुद पर हुए अत्याचार को मैं क्यों नहीं हील कर सकता। मै गुस्से में बाहर निकला और अपनी भड़ास निकालने के लिए पूरे जोड़ से एक बड़े से घने पेड़ पर मारना शुरू कर दिया। मुझे जितनी तकलीफ होती उतनी ही जोड़ से चिल्लाते हुये मै पेड़ पर मार रहा था। जोर और भी ज्यादा जोर, मेरे हाथ से खून निकलना शुरू हो गया। ऐसा लगा जैसे हड्डियां टूट चुकी है। लेकिन अंदर का गुस्सा शांत नही हो रहा था और मै लगातार मारते ही जा रहा था।


"तुम जब गुस्से होते हो तो तुम्हे देखने से लगता है जैसे काले बालों वाला खाल में कोई शैतान काम कर रहा हो। और जब नजदीक जाता हूं तो पाता चलता है तुम किसी हैवान में बदल चुके हो। जब तुम वॉर्डरोब फेक रहे थे तब भी और जब तुम एक टीनएजर के साथ पानी में जबरनदस्ती कर रहे थे तब भी। और अभी जब इस बेजुबान और स्थिर पेड़ पर अत्याचार कर रहे हो तब भी।"..


बॉब मेरे पीछे खड़ा होकर अपनी बात कह रहा था और उसके पास ओशुन खड़ी थी। मैं इतने अंधेरे में भी दोनों का चेहरा साफ–साफ देख सकता था। हांफती हुई मेरी श्वांस चल रही थी और बॉब ने तभी 4-5 तस्वीर खींची जिसका फ़्लैश मेरे चेहरे पर पड़ा। मै अपने श्वांस को काबू किया। धीरे-धीरे शायद मै वापस जानवर से इंसान बना और तब ओशुन मेरे पास आती हुई कहने लगी…. "आर्य, खुद को सजा देकर क्या करोगे, जो हो उसे कबूल करके आगे बढ़ो। तुम खुद के बदलाव को मेहसूस नहीं करना चाहते।"..


मै:- सॉरी बॉब..


ओशुन:- और मुझ जैसी नाजुक लड़की को जो दैत्य बनकर डराया, उसके लिये माफी कौन मांगेगा। तुम जानते हो पानी में मुझसे 4–5 फिट लंबे लग रहे थे और चौड़े इतने की मुझ जैसी 4 ओशुन को भी तुम अकेले ढक लो। ऐसा लग रहा था किसी बिल्ली के साथ कोई बब्बर शेर सेक्स की कोशिश कर रहा है। मेरे तो प्राण हलख में आ गये थे।


मै:- सॉरी ओशुन.. अब से बॉब तुम जो बोलोगे मैं वही करूंगा।


बॉब:- तुमने इस विशाल पेड़ को तकलीफ़ पहुंचाई है, इसके दर्द को तुम मेहसूस करो।


मै:- कैसे..


बॉब:- ठीक वैसे ही जैसे उस हिरण का दर्द तुमने मेहसूस किया था। जब तुम उसके दर्द को मेहसूस करते उसपर हाथ फेर थे, वो काफी शांत और पिरा मुक्त मेहसूस कर रही थी। शायद वो हिरण उतनी घायल नहीं थी, इसलिए तुम्हे अपने अंदर हिरण का दर्द मेहसूस नहीं हुआ, लेकिन ये पेड़ लगभग रो रहा है। ये भी ठीक उसी प्रकार घायल है जैसे वो हिरण थी।


बॉब की बात कुछ-कुछ समझ में आ रही थी, और कुछ बातें अजीब थी। लेकिन फिर भी मै उसका कहा मानते पेड़ को घायल समझकर बिल्कुल उसी एहसाह में अपने हाथ लगाने लगा। आंख मूंदे बिल्कुल सौम्यता से... कुछ पल बीते होंगे जब मुझे अजीब सा लगने लगा। ऐसा लगा नसों में खून नहीं बल्कि पीड़ा दौड़ रहा है, जो खून की धारा के बिल्कुल उल्टी ऊपर की ओर जा रही थी। मै जब आंख खोला तब देख सकता था कि मेरी नशें, स्किन से कुछ सेंटीमीटर ऊपर उभरी हुई थी। हर एक नब्ज उभरी हुई दिख रही थी जो पेड़ से उसका दर्द अपने अंदर खींच रही थी। यह मुझे असहनीय पीड़ा दे रही थी और मुझे चिल्लाने पर मजबूर कर रही थी। ऐसा लगा जैसे मेरी आखों की नसें फट जायेगी। आंखों तक की सारी नशें बिल्कुल उभरी हुई मेहसूस हो रही थी और जैसे छोटे–छोटे कीड़े रेंग रहे हो, ठीक उसी प्रकार आंखों की नशों के अंदर कुछ रेंगने का एहसास था। लेकिन ना तो मै चिल्लाया और ना ही अपना हाथ हटाया।


थोड़े वक़्त बाद धीरे-धीरे सब सामान्य होने लगा। बिल्कुल शांत और ख़ामोश। पेड़ पर हाथ रखने का अलग ही अनुभव था। ये बयान नहीं किया जा सकता। मै अपने मां के गोद जैसा सुकून मेहसूस कर रहा था। मुस्कान थी मेरे चेहरे पर और मै खुद में कुछ अच्छा मेहसूस कर रहा था। "आर्य एक अल्फा है।".... ओशुन की आखें बड़ी थी और चेहरे के भाव बिलकुल अलग थे।


बॉब मुस्कुरा रहा था लेकिन वो मुझे देखकर मुस्कुरा नहीं रहा था बल्कि ओशुन के भाव को देखकर मुस्कुरा रहा था। ओशुन के चेहरे के भाव और जहन में उठ रहे सवालों पर बॉब ने उसे कहा... "फर्स्ट अल्फा, अल्फा, बीटा, ओमेगा ये सब कुछ नहीं, आर्यमणि बस एक सुपरनैचुरल है। बाकी तुम जितना इसके करीब रहोगी उतना अच्छे से जान सकती हो।"..


ओशुन:- मतलब..


बॉब:- मतलब की तुम अगले 10 दिन तक इसके साथ रहो। वैसे भी कल पूर्णिमा है तो शायद ये तुम्हारे पास ही रहे तो ज्यादा अच्छा है। मै 10 दिन के लिये कुछ काम से जा रहा हूं, उसके बाद तुम्हारी जिम्मेदारी खत्म। अगर कोई समस्या हो तो बताओ।


ओशुन:- ये साढ़े 7 फिट लंबा और 3 फिट चौड़ा बिल्कुल काला बीस्ट वुल्फ और मै कहां 5 फिट 6 इंच की कमसिन सी लड़की, जो शेप शिफ्ट करती है तो नीचे जमीन में 4 फिट की फॉक्स रहती है। कहीं मुझे ये कच्चा ना चबा जाये।


बॉब:- हाहाहाहा.. बाकी बातो का डर ठीक है, लेकिन ये किसी भी शेप में रहे, मांस नहीं खाता। इसलिए फिक्र मत करो कच्चा नहीं चबायेगा।


ओशुन:- दिखने में बीस्ट वुल्फ और खाने से सकाहरी। कहीं मुझे चबाकर ही मनासहरी ना बन जाये।


बॉब:- ठीक है भाई आर्यमणि चलो चलते है।


ओशुन:- 10 दिन तो मेरे पास रहने दो बॉब फिर तुम इसे यहां से ले जाओगे। वहां से ये अपने घर लौट जायेगा। इसके साथ कुछ यादें मुझे भी समेट लेने दो। अब तक दर्द में ही देखी हूं इसे, कुछ दिन सामान्य रूप से बिना दर्द के इंसानी रूप में भी देख लेने दो। मेरे जहन में आर्यमणि की कुछ अच्छी यादें रहे।


बॉब:- ठीक है किड्स ख्याल रखना अपना और आर्यमणि जब ओशुन के ख्याल बेकाबू कर दे तो बस यहां किसी भी पेड़ पर ठीक वैसे ही हाथ रखना जैसा इस पेड़ पर रखे थे, तुम अपने आप शांत हो जाओगे।


मै:- शुक्रिया बॉब


रात काफी हो गयी थी। ओशुन मेरा हाथ थामे चल रही थी। उस पेड़ को स्पर्श करने के बाद मै हर स्पर्श को जैसे मेहसूस कर सकता था। काफी सौम्य और बिल्कुल नाजुक हथेली थी ओशुन की। जैसे ही अचानक फिर ख्याल आया पानी का… "ओशुन टॉप नीचे करो और मुझे अपने स्तन दिखाओ।"..
 
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भाग:–80






रात काफी हो गयी थी। ओशुन मेरा हाथ थामे चल रही थी। उस पेड़ को स्पर्श करने के बाद मै हर स्पर्श को जैसे मेहसूस कर सकता था। काफी सौम्य और बिल्कुल नाजुक हथेली थी ओशुन की। जैसे ही अचानक फिर ख्याल आया पानी का… "ओशुन टॉप नीचे करो और मुझे अपने स्तन दिखाओ।"..


ओशुन:- क्या ?


मै:- टॉपलेस हो जाओ..


ओशुन मेरे आखों में झांकी, कुछ पल खामोशी से वो मेरे अंदर तक झांकने की कोशिश करती रही। फिर आहिस्ते से अपने स्ट्रिप को खिसकाकर अपनी ड्रेस को नीचे जाने दी। उसके स्तन की वास्तविक हालत देखकर मै सिहर गया।… "क्या मै इनपर हाथ रख सकता हूं।"… ओशुन इस तरह से हंसी मानो मुझे बेवकूफ कह रही हो। उसने पलकें झुकाकर अपनी रजामंदी दी और मैं अपना हाथ उसके स्तन पर उसी सौम्यता से रखा जैसे उस मृग अथवा पेड़ पर रखा था और ओशुन की पीड़ा को मेहसूस करने लगा।


मैं आंख खोलकर ओशुन के चेहरे को देखने लगा। उसके चेहरे पर असीम सुकून के भाव थे, जो चेहरे से पढ़ा जा सकता था। धीरे-धीरे मेरे नब्ज में ओशुन का उतरता दर्द सामान्य होने लगा। वह अपने अंदर पुरा सुकून मेहसूस करती गहरी श्वांस खींची और मेरे हाथ को अपने सीने से हटाकर सीधा मेरे ऊपर पुरा वजन दे दी, मानो कह रही थी प्लीज अब मुझसे खड़ा नहीं रहा जा सकता। और मेरे ऊपर पुरा भार देकर वो सुकून से श्वांस लेने लगी।


कुछ देर तक ओशुन अभूतपूर्व सुकून को मेहसूस कर रही थी, मानो किसी ने उसके हृदय की धड़कन को पुनर्जीवित कर दिया हो, जो एक लंबे समय से धड़क तो रही थी, लेकिन अंदर वो ऊर्जा नहीं थी। ओशुन अपने सुकून के पल में इस कदर खोई की उसे एहसास तक ना रहा की कब सुबह भी हो गयी। दूर से आती वुल्फ साउंड सुनकर ओशुन गहरी नींद से जागी। जब वो अपने आसपास का माहौल देखी, "ओह नो" उसके होटों पर थी और प्यारी सी मुस्कान चेहरे पर। वो खड़ी होकर मुझे देख रही थी और मुस्कराते चेहरे पर थोड़ी सी अफ़सोस की भावना थी।


तभी मै झुका और उसके ड्रेस को उसके पाऊं से ऊपर किया और कंधे तक चढ़ाया। मुझे देखकर वो मुस्कुराई और मुड़कर अपने कदम बढ़ा रही थी। मैं भी मुस्कुराते हुये झोपड़ी के ओर कदम बढ़ा दिया। मै भी मुस्कुराया वो भी मुस्कुराई, शायद मैं भी उसे नजर भर देखना चाहता था और शायद उसके दिल की भी यही इक्छा थी। हम दोनों ही पलटे। एक दूसरे को देखकर चेहरा खिला हुआ था और नजरे एक दूसरे पर बनी हुई।


तभी ओशुन अपने कदम बढ़ाकर अपनी ऐरियों को ऊपर की, अपने हाथ मेरे कांधे पर डाली और अपने होंठ को मेरे होंठ से स्पर्श करती अपनी आंखे मूंद ली। बिल्कुल ठंडा और मुलायम स्पर्श था, जो दिल में हलचल मचा गया। उस स्पर्श को मेहसूस करने के लिये दिल कबसे ना जाने व्याकुल हो। आहिस्ते से मैंने भी अपने होंठ उसके होंठ से स्पर्श किये। ठंडे और मुलायम होटों के स्पर्श और चेहरे पर टकराती गर्म श्वांस, दिल में प्यारी सी बेचैनी दे रही थी। हम दोनों के जज्बात लगभग एक जैसे थे। तभी कानो में फिर से वुल्फ साउंड गूंजी, और ओशुन किस्स को तोड़ती थोड़ी झुंझलाई.. "ऑफ ओ, हनी मै जारा इन्हे शांत करके आयी, तब तक प्लीज तुम झोपड़ी में ही रहना।"..


"मै बोर हो जाऊंगा ओशुन"… "ठीक है एक काम करो झील के उस पार कम से कम 20 किलोमीटर दूर जब जाओगे एक छोटी सी बस्ती दिखेगी। बस वहीं आस पास टहलना, मै वहीं आकर मिलती हूं।"… इतना कहकर ओशुन मुड़ गयी लेकिन एक कदम आगे गयी होगी की वो फिर पलटी और मेरे होटों पर अपने होटों का छोटा सा स्पर्श देती… "मै जल्दी आयी"


ओशुन शायद वहां कुछ और देर रुकती तो वो जा नहीं पाती इसलिए शायद इस बार जब मुड़ी तो बिजली की रफ्तार पकड़ ली। मै भी उल्टी दिशा में दौड़ लगा दिया। कुछ ही पल में मै उस बस्ती के पास था। बस्ती तो वहां थी, लेकिन वहां कोई इंसान नहीं था। मुझे थोड़ी हैरानी हुई और जिज्ञासावश एक झोपड़ी में घुसा।


दरवाजा को खोलने के लिये दरवाजे पर मैंने हथेली रखा ही था कि वो स्पर्श मुझे विचलित कर गयी। मैंने अपनी हथेली दरवाजे से टिकाकर अपनी आंख मूंद लिया और फिर झटके से अपने हाथ पीछे खींच लिया। उस दरवाजे पर जैसे किसी के आतंक की कहानी लिखी हुई थी। दरवाजा खोलकर जैसे ही मैं अंदर पहुंचा लगा कि कोई है, लेकिन ये मेरा भ्रम मात्र था। ओशुन जिस झोपड़ी में रहती थी और यह झोपड़ी, दोनो की बनावट लगभग एक सी थी। केवल फर्क सिर्फ इतना था कि यहां की खाली झोपड़ी में किसी के होने का विचलित एहसास था, जबकि वहां सुकून था।


मै एक-एक करके हर झोपड़ी के दरवाजे पर हाथ रखा और हर दरवाजे पर लगभग एक जैसा ही अनुभव था। हर झोपड़ी के अंदर, वहां के आस–पास के खुले माहोल, हर चीज में कुछ तो ऐसा था, जो मुझे किसी के होने का एहसास तो करवाता, किन्तु वहां कोई होता नहीं। मै वहां से निकलकर बाहर आया। विचलित मन में कई सारे सवाल उठ रहे थे। मै बैठकर मुसकुराते हुये बस इतना ही सोच रहा था कि…. "क्या बदलाव इतना विचलित करता है। मै पहले दिन से ही जैसे ब्लैक फॉरेस्ट की दुनिया में उलझता सा जा रहा हूं। मैंने तो इस जगह का नाम ही पजल लैंड रख दिया, क्या हो रहा था, क्यों हो रहा था, कुछ भी समझ में आने वाला नही।"


फिर दिखी एक परी। ओशुन सामने से चली आ रही थी। उसका हुस्न जैसे दिल में उतर रहा था। लहराती हुई चली आ रही थी। खुद को अच्छे से संवारा था। पहले से कुछ अलग लेकिन काफी दिलकश दिख रही थी। ओशुन के शरीर से लिपटा गहरे नीले रंग का कपड़ा, उसके मनमोहक रूप को और भी निखार रहा था। मेरे करीब वो पहुंची, और मुझे खड़ा होने के लिये कहने लगी। मै उसके आखों में देखते खड़ा हो गया। हम दोनों ही खड़े थे और दोनो की नजरें एक दूसरे से मिल रही थी। वो मेरा हाथ थामकर नीचे घुटनों पर बैठ गयी। जब वो बैठी हम दोनों ही समझ गये की क्या होने वाला है। दोनो के ही चेहरे पर मुस्कान छाई हुई थी।


ओशुन अपने घुटने पर बैठकर धीमे से कहने लगी… "अपनी नजरे मुझ पर से हटाओ वरना मेरी धड़कने इतनी बेकाबू हो जाएगी की मै तुम्हारी तरह शेप शिफ्ट कर चुकी रहूंगी।"..


अनायास ही मुझे आभाष हुआ कि मेरी धड़कने इतनी बढ़ चुकी है कि मै, मै ना होकर एक वुल्फ में तब्दील हो चुका था। मुझे अंदर ही अंदर अफ़सोस सा होने लगा। मेरे दैत्याकार हाथ जो इस वक़्त ओशुन के हाथ में था, उसमें मानो कोई जान नहीं बची हो। वो बेजान होकर बस लद गया। ओशुन शायद मेरी दिल की भावना समझ चुकी थी, वो फिर भी मेरा हाथ थामे रही। खुद की हालात जब बुरी लगी तो धड़कने भी काबू में थी और शरीर भी। हाथ बिल्कुल सामान्य दिखने लगा था, किन्तु भावनाएं पहली जैसी नहीं रही। लेकिन ये तो केवल मेरे दिल के हाल था। ओशुन मेरी कलाई थामे अब भी अपने घुटनों पर बैठी थी, वही प्यारी सी मुस्कान उसके मासूम से छोटे चहरे पर थी और अपने होंठ से मेरी कलाई चूमती… "आई लव यू"..


शायद कुछ गलत सुना क्या, मेरी आखें बड़ी हो गयी। आश्चर्य से मै ओशुन के ओर देखने लगा। "हीही".. की मीठी ध्वनि मेरे कानों में पड़ी। ओशुन एक बार फिर से कही। लेकिन इस बार खुल कर और चिल्लाकर कहने लगी… "मिस्टर आर्य, तुम्हे देखकर दिल जोड़ों से धड़कता है। आई लव यू।"..


वो अपनी भावना का इजहार करती हुई खड़ी हो गयी और अपने बांह मेरे गले में डालकर, मुस्कुराती वो मुझे देखती रही। "आहहह" क्या फीलिंग थी बिल्कुल अलग और रोमांचकारी। कमर में हाथ डालकर मैंने ओशुन को अपने ओर खींचा। अब वो बिल्कुल मुझ से चिपक चुकी थी। उसके वक्ष मेरे सीने से लगे थे। धड़कन की आवाज कानों में सुनाई दे रही थी। चेहरा हल्का पीछे था और उसका खिला रूप दिल में बस रहा था… "धक–धक.. धक–धक".. की जोड़ की आवाज मेरे सीने से आ रही थी। बेख्याली में मेरे आंख बंद होने लगे। श्वांस बिखरने सी लगी थी और उसके होंठ के नरम एहसास अपने होंठ से छूने के लिए दिल मचलने लगा था।


तभी ओशुन अपनी एक उंगली मेरे होंठ से टिका कर मेरे बढ़ते होंठों पर थोड़ा विपरीत फोर्स लगाई। मै रुककर सवालिया नजरो से उसे देखने लगा। मेरी नजरो को पढ़कर एक बार धीमे से हंसी… "हनी पहले तुम्हारे शेप शिफ्ट का कुछ करना होगा। अब मुझे नीचे उतारो।"..


मैंने फिर से खुद की हालात पर गौर किया। किन्तु इस बार अफ़सोस नहीं था बल्कि ओशुन की बात सुनकर मै मुसकुराते हुए उसे नीचे उतार दिया। मुझे इस रूप में मुस्कुराते हुये देखकर ओशुन खुलकर हसने लगी। उसकी हसी कितनी प्यारी थी ये बयां कर पाना मुश्किल होगा। बस वो खुलकर हंस रही थी और मै उसे देखे जा रहा था।


"हनी जायंट शेप में तुम्हारी स्माइल कातिलाना थी। एक दम फाड़ू। सॉरी मै खुद को रोक नहीं पायी।"… ओशुन हंसती हुई अपनी बात रखी।


उसकी बात सुनकर मै फिर से मुस्कुरा दिया। कुछ समय हमलोग ने एक दूसरे में खोकर बिता दिया। हम दोनों जब बैठकर बातें कर रहे थे तब मै बार-बार ओशुन का चेहरा देख रहा था। मुझे पहली बार यह एहसास हो रहा था कि इंसान इस पृथ्वी के किसी भी कोने में क्यों ना रहते हो, भावनाएं हर किसी में होती है। हालांकि सुपरनैचुरल कल्चर प्रायः सब जगह एक जैसा ही होता है..


जैसे कि खुले विचार। ओपन सेक्स, अपने हिसाब से पार्टनर चुनना और पैक के साथ बंधकर रहना। लेकिन भारत की सभ्यता और जर्मनी की सभ्यता में काफी अंतर पाया जाता है। यूरोप के परिवेश में पले लड़के-लड़कियां और भारतीय परिवेश में पले बढ़े लड़के-लड़कियों में सभ्यता का अंतर तो होता ही है। वहां कितने भी ओपन ख्याल क्यों ना हो रिश्ते छिपाने पड़ते है। लेकिन यहां ऐसी बात नहीं थी। तो मन में कहीं ना कहीं ये भी था कि यहां भावनात्मक जुड़ाव, प्यार मोहब्ब्त ये सब थोड़े कम होते होंगे।


लेकिन जब आप वास्तव में इन इलाकों में रहते है तो कुछ अलग ही तस्वीर नजर आती है। बस ढोने वाले रिश्ते और रिश्ते में आयी दरार को ये बचाने कि ज्यादा कोशिश नहीं करते। लेकिन बाकी हर किसी की फीलिंग एक जैसी ही होती है। मै अब तक यहां कुछ लोगो से मिलकर काफी प्रभावित हुआ था। मैक्स, था तो एक शिकारी लेकिन मुसीबत में फसे इंसानों को वो अपने घर ले जाकर सेवा करता और उन्हें सुरक्षित निकालता। वहीं उसकी पत्नी थिया, जिसने पहली मुलाकात में ही मेरी काफी मदद की। उसके बाद उसका दोस्त बॉब, जिसे मैंने लगभग जान से ही मार दिया था, लेकिन फिर भी वो मेरे पीछे आया, और वो भी अपने अतीत के एक टूटे रिश्ते के कहने पर।


ओशुन के बारे में मै क्या बताऊं। शुरवात के दिनों में मै जब यहां आकर जहालत झेल रहा था, पता ना बेहोशी में उसने मेरे लिए क्या-क्या किया हो। ये उसने मुझे आज तक कभी नहीं बताया। मै तो यहां लोगो की मानसिकता का भनक भी नहीं लगा पाता, यदि ओशुन ने मुझे सब बताया ना होता। ना ही कभी मैक्स, थिया और बॉब से मिलता।


ओशुन के साथ बात करते-करते मै इन्हीं सब बातो में डूब सा गया। तभी वो मुझे ख्यालों से बाहर लाती हुई पूछने लगी… "क्या हुआ कहां खो गए।"..


मै:- कुछ नहीं, तुम बताओ तुमने मुझे यहां क्यों भेजा।


ओशुन:- ब्लैक फॉरेस्ट का वुल्फ गांव। वुल्फ हाउस से पहले यहां यही था। मेरा गांव। प्यारा गांव..


ओशुन अपनी बात कहते थोड़ी ख़ामोश दिख रही थी। मुझे उसके अंदर का दर्द कुछ-कुछ समझ में आ रहा था लेकिन मै उसका इतिहास पूछकर और दर्द में नहीं डालना चाहता था, इसलिए उसका हाथ थामकर मै वहां से चल दिया।


कुछ देर बाद हम उस छोटे से झोपड़ी में थे, जो इस वक़्त हमारा आशियाना था। मैंने जब उस झोपडी को अंदर से देखा तो देखकर खिल गया। एक लड़की जो प्यार में है फिर अपनी भावनाए दिखाने के लिए कितनी छोटी-छोटी चीजों पर काम करती है। वो झोपड़ी अंदर से बिल्कुल हमारी तरह खिली हुई थी। मानो ओशुन ने झोपड़ी के अंदर जान डालकर अपनी भावना मुझसे बयां कर रही हो।


झोपड़ी के अंदर जारा भी धूल के निशान नहीं, चारो ओर उजाला फैला हुआ था। धूल, मिट्टी और अंधेरे के कारण ना दिखने वाले दीवारों का रंग बिल्कुल श्वेत और उसके पर्दे गहरे हरे रंग के। हर दीवार के कोने में कुछ फूल टंगे हुए थे, जो चारो ओर प्यारी खुशबू बिखेर रही थी। मै वहां की खुशबू अपने जहन में उतारकर, दोनो बाहें फैलाये लेट गया। ओशुन भी मेरे साथ लेटती, मेरी ओर करवट ली और मेरे सीने से अपने सर को लगाकर सोने लगी।


रात भर का मै भी जगा था। उसपर इस वक़्त का एहसास काफी आनंदमय और सुखद था। मैं आंख मूंदकर ओशुन को खुद में मेहसूस करने लगा। उसे मेहसूस करते कब मेरी आंख लग गयी, मुझे पता ही नहीं चला। जब मेरी आंख खुली तब हल्का अंधेरा हो रहा था। ओशुन तो मेरे पास नहीं थी लेकिन उसका एक पत्र मेरे पास पड़ा था, जिसमें उसने मेरे लिए संदेश था।..

"मै वुल्फ हाउस जा रही हूं। बिस्तर पर तुम्हारे लिये कपड़े पड़े है, नहाकर ये कपड़े पहन लेना और प्लीज बाहर मत निकालना। मै चांद निकलने से पहले तुम्हारे पास आ जाऊंगी।"


शाम ढल चुकी थी, और मै नहाकर तैयार हो चुका था। बिस्तर पर बैठकर मै ओशुन के बारे में कुछ सोचूं, उससे पहले ही वो दरवाजा खोल कर अंदर। उफ्फ क्या क़यामत लग रही थी वो। ऐसा लग रहा था कोई जहरीली जादूगरनी अपने नीली आखों से मेरा कत्ल करने वाली है। उसपर से उसके गहरे लाल रंग वाला वो पतला सा कपड़ा, जिसके ऊपर उसके कंधे खुले थे और बीचोबीच एक छोटा सा नेकलेस लटक रहा था। उस नेकलेस के आखरी में लगा सितारों के एक पत्थर, काफी मनमोहक लग रहा था जो रह-रह कर मेरा ध्यान खींच रहा था।


"क्या देख रहे हो।" .. ओशुन मुसकुराते हुये मेरे करीब आकर बैठी और मुझसे पूछने लगी। मैं उसके नेकलेस में लगे सितारे को अपने हाथो में लेकर… "बहुत प्यारा लग रहा है ये।"…


ओशुन:- मेरी मॉम का है। ये जगह छोड़ने से पहले उन्होंने मुझे दिया था।


मै:- तुम्हारी मॉम तुम्हे छोड़कर चली गयी?


ओशुन:- हां मेरे पापा अपने पैक के साथ रुक गये, मेरी मॉम अपने पैक के साथ चली गयी। बस जाते–जाते मुझे ये निशानी देकर गयी।


हम दोनों की बातें अभी शुरू ही हुई थी, ठीक उसी वक़्त ऐसा लगा जैसे मेरे पूरे शरीर में खिंचाव सा हो रहा है। फिर भी मै उन खिंचाव पर ज्यादा ध्यान ना देते हुए… "तुम्हारी मॉम भी तुम्हारी तरह खुएबूरत होंगी।"..


ओशुन:- हीहीही.. और मेरे डैड बदसूरत थे क्या?


मै:- कोई बेवकूफ और अड़ियल होगा, जो इतनी सुन्दर बीवी को जाने दिया।..


मै अपनी बात कह तो रहा था ओशुन से, लेकिन मुझे अंदर से कुछ अजीब, और दिल में ऐसी भावना जाग रही थी कि मै खतरे में हूं, ओशुन खतरे में है। वो दरिंदे ईडन के लोग हम पर हमला करने आ रहे है और मुझे किसी भी तरह से ओशुन की बचाना हैं। मै खुद में काफी विचलित मेहसूस करने के बावजूद, किसी तरह खुद को काबू किये हुये था और ओशुन का मुस्कुराता चेहरा इसमें मेरी पूरी मदद कर रहा था। शायद पहले पूर्णिमा का असर हो रहा था।


ओशुन:- मेरे डैडी बेवकूफ है और इस वक़्त तुम क्या कर रहे हो?


मै:- कुछ समझा नहीं..


ओशुन:- कुछ समझे नहीं या समझकर भी समझना नहीं चाहते। क्या तुम्हे यहां की खुशबू मेहसूस नहीं हो रही।


मै:- ओशुन सच कहूं तो इस वक़्त मुझे अजीब सी बेचैनी मेहसूस हो रही है। मेरा जी कर रहा है उस ईडन का मै गला धर से अलग कर दूं। उस लोपचे के शरीर के 100 टुकड़े करके पूछूं की मैत्री को क्यों उसने अकेले इंडिया जाने दिया। मुझे क्यों एक बार भी सूचना नहीं दिया।


मुझे ये एहसास ही नहीं हुआ कि कब मैंने अपना शेप शिफ्ट कर लिया और एक वेयरवुल्फ में तब्दील हो गया। ओशुन मेरी बात सुनकर मुस्कुराई और मेरा हाथ थामकर बोलने लगी… "अब भी मैत्री तुम्हारे दिल में है ना, इसलिए तुम मुझ से भावनात्मक जुड़ना नहीं चाहते। तालाब में केवल मेरे बदन को देखकर तुम एक्साइटेड हो गये थे।"..


ओशुन की बात सुनकर मै बिल्कुल ख़ामोश हो गया। मेरे अंदर की बेचैनी और घुटन एक किनारे और ओशुन का वो मुस्कुराता चेहरा दूसरी ओर, जो मुझसे ये जानने को इक्कछूक़ थी कि क्या मै उससे भावनाओ के साथ जुड़ा हूं, या केवल मेरी उत्तेजना थी जो तालाब के ओर मुझे खींच ले गयी थी?
 
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nain11ster

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Bhaisahab ke to bahot thath hai har taraf bas gift paison ki barish
Nain dada aap bhi is chote bhai par paiso ki barish kar hi dalo dikha to is duniya ko sirf kahani me nahi asal me bhi dada chote bhai par aise hi paise lutate hai
:( Giffu ke naam par apne pass bus Guffy hai... Wo bhi pata na kaun bil me chhip gaya hai... Mujhe na milta hai ju ko kahan se de dun us jalim guffy ko :banghead:
 

nain11ster

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Kab ke bichade mile hum aaj kya scene hai thoda fika laga par chala lenge
Ye Arya bada game bajayega shadyantra rachyita ke sath jo 1 sath badi asani se 2 Alfa ko tapkaye uske shakti ka andaja lagana asan nahi hai
Past me aisa kya huwa jo ek kamjor itna taqatwar huwa aur kya us house members ka unki bhi koi baat nahi dekhte kya hota hai
Is story me dada dadi bahot bade role nibha rahe hai har kisi ka ek powerfull rutba hai
Werewolf se shadi naam se mla ki fatna ityadi
Hahaha... U mean mujhe emo touch dena chahiye tha... Haan dena to tha lekin jahan background me itni chijen chal rahi ho tab emotions se jyada questions ho jate hain isliye wo actual emotions swalon ke niche kahin dab jate hain...

Welcome back aadi :hug:
 

krish1152

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भाग:–79






मेरे ज्यादा तेज दौड़ने की कोई सीमा नहीं थी। मै जंगल के उस हिस्से में महज चंद मिनट में पहुंच गया जहां से आने में मैंने कई दिन लगा दिये थे। मैं ब्लैक फॉरेस्ट के 2 क्षेत्र के सीमा पर खड़ा था... पीछे इंसानों का इलाका और सामने दरिंदो का।


मै कुछ असमंजस में था लेकिन तभी पहली बार मै अपने होश में बला की उस खूबसूरत, नीले नैनो वाली लड़की को देख रहा था, जिसका नाम ओशुन था। मै इस पल यहां था और अगले ही पल ओशुन के करीब। पत्तों की सरसराहट और हवा के कम्पन की आवाज से वो मेरी ओर मुड़ी, लेकिन तुरंत ही मै घूमकर सामने, वो सामने देखी तो मैं पीछे। लगभग 5 मिनट तक उसे परेशान करने के बाद ठीक ओशुन के सामने खड़ा हो गया।


ओशुन जैसे ही मुझे देखी, मेरा हाथ थामकर वो तेजी से भागी, मै भी उसके साथ भगा। हम दोनों ही भाग रहे थे… "क्या हुआ, मेरा स्पीड टेस्ट ले रही हो?'


ओशुन:- किसी मूर्ख की मूर्खता पर रो रही हूं और उसे छिपाने जा रही।


मै उसकी बात सुनकर थोड़ा निराश हो गया और उससे हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगा… ओशुन मेरे ओर पलटी, उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान थी। वो तेजी से दौड़ती हुई बस इतना ही कही… "जहां ले चल रही हूं वहां चलकर गुस्सा कर लेना। बस अभी चलते रहो।"..


मै उसकी बात सुनकर ना नहीं कर पाया। हम दोनों जंगल के पूर्वी क्षेत्र में थे, जहां झोपड़ी बना हुआ था। एक झोपड़ी का दरवाजा खुला और शुरू होते ही झोपड़ी खत्म। वहां एक बिस्तर लगी हुई थी। थोड़ी सी खाली जगह और कुछ छोटे-छोटे हथियार दीवार पर टंगे थे। आते ही ओशुन ने चादर बदली और साफ चादर बिछाकर बैठने को कहने लगी।


मै:- ये किसका झोपड़ी है..


ओशुन:- मै यहां रहती हूं।


मै:- लेकिन तुम तो अपने पैक के साथ वुल्फ हाउस में रहती हो ना?


ओशुन:- नहीं, मेरा कोई पैक नहीं है। मै एक वेयर कैयोटी हूं।


मै:- वेयर कायोटि क्या वेयरवुल्फ से अलग होते है।


ओशुन:- हां बहुत अलग होते है। अब तुम यहां आराम करो। मै वुल्फ हाउस के चक्कर लगाकर आती हूं। और प्लीज यहां से बाहर मत जाना। कहो तो तुम्हारे पाऊं पर जाऊं।


मै:- नहीं मै कहीं नहीं जाऊंगा, तुम वुल्फ हाउस से हो आओ।


यूं तो जंगल में लगभग शाम जैसा ही माहौल होता था, लेकिन पूर्णिमा के ठीक एक दिन पहले चांद लगभग पुरा ही था। जितनी घनघोर और काली ये जंगल होनी चाहिए थी, उतनी काली नहीं थी, शायद चंद्रमा का ही हल्का-हल्का प्रभाव था।


ना निकलने कि बात मानकर भी झोपड़ी से निकल आया और वहां आस–पास घूम रहा था। थोड़ी दूर आगे ही एक मैदानी भाग था, जहां छोटा सा एक झील था और झील के किनारे खड़ी थी ओशुन। अपने पतले से उजले लिबास को बदन पर लपेट चांद की रौशनी में खड़ी वो झील को निहार रही थी। मैंने भी एक नजर उस झील को देखा, मुझे कुछ खास नहीं लगी। इसलिए मै वापस ओशुन पर नजर गड़ाये उसे देखने लगा। उसने अपने कंधे से सरकाक लिबास को पाऊं में गिरा दी। फिर अपनी पैंटी को निकालकर उसी के ऊपर डाल दी और झील में नहाने के लिए कुद गयी।


उसके भींगे लंबे बाल जो कंधे से आगे के ओर जा रहे थे और पानी में डूबे उसके सीने से उपरी भाग दिख रहा था। उसे छिपकर देखने का आनंद ही कुछ और था। कामुकता में वशीभूत होकर मैंने भी उस झील में छलांग लगा दिया। पानी में हुई इस हलचल से ओशुन सचेत तो हुई किन्तु जबतक वो समझ पाती की कौन है, मै उसके पीछे खड़ा था।..


ओशुन:– मना की थी ना बाहर नहीं आने।


मैं पीछे से उसके पेट को अपनी बाहों में जकड़ा और उसके गर्दन को चूमते हुये… "बाहर नहीं आता तो ये नजारा कहां से देखने को मिलता।"..


"ये अच्छा तरीका नहीं है आर्य, छोड़ो मुझे और जाओ यहां से।".… ओशुन मेरी पकड़ से छूटने की कोशिश करती हुई, शिकायती लहजे में कहने लगी।


मै वासना की आग में जल रहा था और थोड़ा हट दिखाते हुये अपने हाथ ऊपर करके, उसके उन खूबसूरत उरोजो के ओर ले जाना लगा, जिसके उभार सीने से बिल्कुल खड़े और इतने विकसित थे कि जिन्हे पूरे हाथ में भरकर उन्हें अपने गिरफ्त में करने का एक अलग ही आनंद था। बस ऐसे ही कुछ कल्पना के साथ मैंने अपने हाथ ऊपर बढ़ा तो दिये, किन्तु बीच में ही ओशुन मेरे दोनो हाथ को पकड़ती… "इसे जबरदस्ती करना कहते है आर्य। प्लीज मुझे इरिटेट मत करो वरना अच्छा नहीं होगा।"


ओशुन का नया खिला योबन था और मैं किशोरावस्था से जवानी के दहलीज पर कदम ही रखा था। उसके नग्न बदन का खिंचाव ही अजब था, वो मुझे रोकने की कोशिश कर रही थी और मै जोर लगाकर अपने हाथ ऊपर बढ़ा रहा था। मेरे हाथ को रोक पाना ओशुन के वश में नहीं था। वो कोशिश तो करके देख चुकी थी उसके बावजूद भी मेरे हाथ उसके दोनो स्तन के ऊपर थे और मेरे पूरे हथेली के गिरफ्त में।


मादक एहसास था वो। उसके गोलाकार और सुडोल स्तन मेरे हाथो में थे और ओशुन की सभी कोशिश नाकामयाब हो रही थी।… "आर्य….. मेरे बदन से हाथ हटाओ अभी।"… वो गुस्से में चिल्लाई और मै उसके गर्दन पर अपना जीभ के नोक को लगाकर धीरे-धीरे उसके कानों के ओर बढ़ने लगा। पानी में हल्का हिलकोर होने लगा और ओशुन का बदन सिहरने लगा। अंदर से उसे गुदगुदा एहसास हो रहा था, और उसकी हल्की छटपटाहट, पानी में मधुर छप–छप की आवाज पैदा कर रही थी।


मैं लगातार उसके स्तन पर हाथ की पकड़ को मजबूत किये, उसके गर्दन पर अपनी जीभ चला रहा था। और वो छटपटाती हुई बस किसी तरह रुकने के लिये कह रही थी। अरमान तो मुझे बहुत कुछ करने का था लेकिन ओशुन शायद इसके लिए तैयार नहीं थी। कब उसने अपना शेप शिफ्ट किया और छोटी सी लोमड़ी में तब्दील होकर मेरे गिरफ्त से छूटकर भागी, मुझे पता भी नहीं चला। मै बस अपना हाथ मलते रह गया। कुछ देर पानी में ही खड़ा रहा, फिर वासना जब शांत हुई तो पानी से निकलकर बाहर आया।


बाहर निकलकर जैसे ही मै थोड़ा आगे बढ़ा, ओशुन अपने उजले लिबास पहने सामने खड़ी थी। बदन हल्का गिला होने के कारण छाती से उसके कपड़ा चिपका हुआ था। ब्रा ना पहनने के कारण उसके पूरे स्तन के आकर दिख रहा था। कपड़ा इतना पतला था की उसके मादक स्तन झलक रहे था। जैसे ही ओशुन की नजरों ने मेरी नजरों का पीछा शुरू की, मै अपनी नजरें चुराते धीमे से "सॉरी" कहने लगा।


ओशुन अपने कदम बढ़ाती.. "इट्स ओके, मै समझ सकती हूं, तुम थोड़े एक्साइटेड हो गये थे।"..


मै पीछे से ओशुन का हाथ पकड़ कर रोकते… "सॉरी खुद के लिये कह रहा था। तुम्हे देखकर तो तम्मना वही है बस उमंग थोड़े काबू में है।"


ओशुन मेरे ओर मुड़ती… "ये क्या है आर्यमणि, मतलब किसी लड़की के साथ जबरदस्ती करना और उसके बाद भी खड़े होकर ऐसी बातें कर रहे हो। ये गलत है।"..


मै:- गलत सही मै नहीं जानता। एक तो तुम इतनी कामुक और दिलकश हो की तुम्हारी सूरत दिल में उतर जाती है। उसपर से तुम्हारा ये कातिलाना बदन, तुम जानती हो जब तुम्हे बिना कपड़ों के देखा तो मेरी यहां क्या हालत हुई थी।


ओशुन:- बिना कपड़ों के देखोगे तो क्या जबरदस्ती करोगे. ..


मै:- तुम्हे ऐसी हालत में देखकर जो मेरा रेप हो गया उसका क्या?


ओशुन:- हीहीहीही.. तुम्हारा तो यहां महीनों रेप होता रहा था आर्य। पिछले कुछ दिनों से यहां नहीं हो तो सबकी जिंदगी बोरिंग सी हो गयी हैं।


मुझे उसकी बात पर काफी तेज गुस्सा आया और मैंने खींचकर एक तमाचा जड़ दिया। उसका हाथ छोड़कर मै उस झोपड़ी में चला आया और हर पल मेरे अंदर हो रहे विलक्षित बदलाव को मै बस मेहसूस तो कर सकता था, लेकिन शायद रोक नहीं सकता था। मुझे अब बॉब की बातें भी सही लगने लगी थी कि मै खुद के लिये और दूसरे के लिए खतरनाक हूं। मुझे ओशुन का गुस्सा होना भी जायज लग रहा था। लेकिन फिर भी ना तो जबरदस्ती ओशुन के बदन को हाथ लगाने का रत्ती भर भी अफ़सोस था और ना ही बॉब को लगभग जान से मारने कि कोशिश पर कोई पछतावा, बस खुद पर ही गुस्सा आ रहा था।


मैंने तय कर लिया की जब मेरी बॉडी खून के एक-एक कतरे को निचोड़े जाने के बाद हील कर सकती है तो खुद पर हुए अत्याचार को मैं क्यों नहीं हील कर सकता। मै गुस्से में बाहर निकला और अपनी भड़ास निकालने के लिए पूरे जोड़ से एक बड़े से घने पेड़ पर मारना शुरू कर दिया। मुझे जितनी तकलीफ होती उतनी ही जोड़ से चिल्लाते हुये मै पेड़ पर मार रहा था। जोर और भी ज्यादा जोर, मेरे हाथ से खून निकलना शुरू हो गया। ऐसा लगा जैसे हड्डियां टूट चुकी है। लेकिन अंदर का गुस्सा शांत नही हो रहा था और मै लगातार मारते ही जा रहा था।


"तुम जब गुस्से होते हो तो तुम्हे देखने से लगता है जैसे काले बालों वाला खाल में कोई शैतान काम कर रहा हो। और जब नजदीक जाता हूं तो पाता चलता है तुम किसी हैवान में बदल चुके हो। जब तुम वॉर्डरोब फेक रहे थे तब भी और जब तुम एक टीनएजर के साथ पानी में जबरनदस्ती कर रहे थे तब भी। और अभी जब इस बेजुबान और स्थिर पेड़ पर अत्याचार कर रहे हो तब भी।"..


बॉब मेरे पीछे खड़ा होकर अपनी बात कह रहा था और उसके पास ओशुन खड़ी थी। मैं इतने अंधेरे में भी दोनों का चेहरा साफ–साफ देख सकता था। हांफती हुई मेरी श्वांस चल रही थी और बॉब ने तभी 4-5 तस्वीर खींची जिसका फ़्लैश मेरे चेहरे पर पड़ा। मै अपने श्वांस को काबू किया। धीरे-धीरे शायद मै वापस जानवर से इंसान बना और तब ओशुन मेरे पास आती हुई कहने लगी…. "आर्य, खुद को सजा देकर क्या करोगे, जो हो उसे कबूल करके आगे बढ़ो। तुम खुद के बदलाव को मेहसूस नहीं करना चाहते।"..


मै:- सॉरी बॉब..


ओशुन:- और मुझ जैसी नाजुक लड़की को जो दैत्य बनकर डराया, उसके लिये माफी कौन मांगेगा। तुम जानते हो पानी में मुझसे 4–5 फिट लंबे लग रहे थे और चौड़े इतने की मुझ जैसी 4 ओशुन को भी तुम अकेले ढक लो। ऐसा लग रहा था किसी बिल्ली के साथ कोई बब्बर शेर सेक्स की कोशिश कर रहा है। मेरे तो प्राण हलख में आ गये थे।


मै:- सॉरी ओशुन.. अब से बॉब तुम जो बोलोगे मैं वही करूंगा।


बॉब:- तुमने इस विशाल पेड़ को तकलीफ़ पहुंचाई है, इसके दर्द को तुम मेहसूस करो।


मै:- कैसे..


बॉब:- ठीक वैसे ही जैसे उस हिरण का दर्द तुमने मेहसूस किया था। जब तुम उसके दर्द को मेहसूस करते उसपर हाथ फेर थे, वो काफी शांत और पिरा मुक्त मेहसूस कर रही थी। शायद वो हिरण उतनी घायल नहीं थी, इसलिए तुम्हे अपने अंदर हिरण का दर्द मेहसूस नहीं हुआ, लेकिन ये पेड़ लगभग रो रहा है। ये भी ठीक उसी प्रकार घायल है जैसे वो हिरण थी।


बॉब की बात कुछ-कुछ समझ में आ रही थी, और कुछ बातें अजीब थी। लेकिन फिर भी मै उसका कहा मानते पेड़ को घायल समझकर बिल्कुल उसी एहसाह में अपने हाथ लगाने लगा। आंख मूंदे बिल्कुल सौम्यता से... कुछ पल बीते होंगे जब मुझे अजीब सा लगने लगा। ऐसा लगा नसों में खून नहीं बल्कि पीड़ा दौड़ रहा है, जो खून की धारा के बिल्कुल उल्टी ऊपर की ओर जा रही थी। मै जब आंख खोला तब देख सकता था कि मेरी नशें, स्किन से कुछ सेंटीमीटर ऊपर उभरी हुई थी। हर एक नब्ज उभरी हुई दिख रही थी जो पेड़ से उसका दर्द अपने अंदर खींच रही थी। यह मुझे असहनीय पीड़ा दे रही थी और मुझे चिल्लाने पर मजबूर कर रही थी। ऐसा लगा जैसे मेरी आखों की नसें फट जायेगी। आंखों तक की सारी नशें बिल्कुल उभरी हुई मेहसूस हो रही थी और जैसे छोटे–छोटे कीड़े रेंग रहे हो, ठीक उसी प्रकार आंखों की नशों के अंदर कुछ रेंगने का एहसास था। लेकिन ना तो मै चिल्लाया और ना ही अपना हाथ हटाया।


थोड़े वक़्त बाद धीरे-धीरे सब सामान्य होने लगा। बिल्कुल शांत और ख़ामोश। पेड़ पर हाथ रखने का अलग ही अनुभव था। ये बयान नहीं किया जा सकता। मै अपने मां के गोद जैसा सुकून मेहसूस कर रहा था। मुस्कान थी मेरे चेहरे पर और मै खुद में कुछ अच्छा मेहसूस कर रहा था। "आर्य एक अल्फा है।".... ओशुन की आखें बड़ी थी और चेहरे के भाव बिलकुल अलग थे।


बॉब मुस्कुरा रहा था लेकिन वो मुझे देखकर मुस्कुरा नहीं रहा था बल्कि ओशुन के भाव को देखकर मुस्कुरा रहा था। ओशुन के चेहरे के भाव और जहन में उठ रहे सवालों पर बॉब ने उसे कहा... "फर्स्ट अल्फा, अल्फा, बीटा, ओमेगा ये सब कुछ नहीं, आर्यमणि बस एक सुपरनैचुरल है। बाकी तुम जितना इसके करीब रहोगी उतना अच्छे से जान सकती हो।"..


ओशुन:- मतलब..


बॉब:- मतलब की तुम अगले 10 दिन तक इसके साथ रहो। वैसे भी कल पूर्णिमा है तो शायद ये तुम्हारे पास ही रहे तो ज्यादा अच्छा है। मै 10 दिन के लिये कुछ काम से जा रहा हूं, उसके बाद तुम्हारी जिम्मेदारी खत्म। अगर कोई समस्या हो तो बताओ।


ओशुन:- ये साढ़े 7 फिट लंबा और 3 फिट चौड़ा बिल्कुल काला बीस्ट वुल्फ और मै कहां 5 फिट 6 इंच की कमसिन सी लड़की, जो शेप शिफ्ट करती है तो नीचे जमीन में 4 फिट की फॉक्स रहती है। कहीं मुझे ये कच्चा ना चबा जाये।


बॉब:- हाहाहाहा.. बाकी बातो का डर ठीक है, लेकिन ये किसी भी शेप में रहे, मांस नहीं खाता। इसलिए फिक्र मत करो कच्चा नहीं चबायेगा।


ओशुन:- दिखने में बीस्ट वुल्फ और खाने से सकाहरी। कहीं मुझे चबाकर ही मनासहरी ना बन जाये।


बॉब:- ठीक है भाई आर्यमणि चलो चलते है।


ओशुन:- 10 दिन तो मेरे पास रहने दो बॉब फिर तुम इसे यहां से ले जाओगे। वहां से ये अपने घर लौट जायेगा। इसके साथ कुछ यादें मुझे भी समेट लेने दो। अब तक दर्द में ही देखी हूं इसे, कुछ दिन सामान्य रूप से बिना दर्द के इंसानी रूप में भी देख लेने दो। मेरे जहन में आर्यमणि की कुछ अच्छी यादें रहे।


बॉब:- ठीक है किड्स ख्याल रखना अपना और आर्यमणि जब ओशुन के ख्याल बेकाबू कर दे तो बस यहां किसी भी पेड़ पर ठीक वैसे ही हाथ रखना जैसा इस पेड़ पर रखे थे, तुम अपने आप शांत हो जाओगे।


मै:- शुक्रिया बॉब


रात काफी हो गयी थी। ओशुन मेरा हाथ थामे चल रही थी। उस पेड़ को स्पर्श करने के बाद मै हर स्पर्श को जैसे मेहसूस कर सकता था। काफी सौम्य और बिल्कुल नाजुक हथेली थी ओशुन की। जैसे ही अचानक फिर ख्याल आया पानी का… "ओशुन टॉप नीचे करो और मुझे अपने स्तन दिखाओ।"..
Nice update
 
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