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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
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Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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भाग:–45





आर्यमणि को लौटे २ दिन हो गये थे किंतु भूमि का शोक और क्रोध कम होने का नाम ही नही ले रहा था। पहले दिन आर्यमणि ने यथा संभव समझाने की कोशिश तो किया था, लेकिन शायद भूमि कुछ सुनने को तैयार नही थी। २ दिन बाद आर्यमणि से रहा नही गया। उसके मानसिक परिस्थिति का सीधा असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी होता। कितनी ही मिन्नतें किया तब भूमि साथ आने को तैयार हुई। लेकिन इस बार आर्यमणि अकेले कोशिश नही करना चाहता था, इसलिए साथ में निशांत को ले लिया।


तीनों ही एक मंदिर में बैठे। भूमि कुछ देर तक शांत होकर मां दुर्गा की प्रतिमा को देखती रही, फिर अचानक ही उसके आंखों से आंसू निकल आये.… "रिचा और पैट्रिक ने क्या नही किया मेरे लिये और मैं यहां एक असहाय की तरह बैठी उसके मरने की खबर पर आंसू बहा रही"…


आर्यमणि, भूमि के आंखों से आंसू साफ करने लगा। इधर निशांत अपने शब्द तीर छोड़ते.… "रिचा भी तो कोई साफ प्रहरी नही थी। अपने ब्वॉयफ्रेंड मानस के साथ मिलकर वह भी तो साजिश ही कर रही थी दीदी"…


भूमि, लगभग चिल्लाती हुई... "जिसके बारे में पता नही हो, उसपर ऐसे तंज़ नही करते समझे।"…


आर्यमणि:– ऐसा क्या हो गया दीदी... निशांत पर क्यों भड़क रही हो...


भूमि खींचकर एक थप्पड़ मारती.… "तू बस अपने ही धुन में रह। सरदार खान को जाकर बस चुनौती दे, और मैं तेरे किये को अपना बताकर आज ये दिन देख रही। उन सबको यही लगता है कि तेरे पीछे से मैं ही सब कुछ करवा रही।


आर्यमणि:– आप किसके पीछे है? मेरे कुछ करने का असर आपकी टीम पर कैसे,... कभी कुछ बताया है आपने?


भूमि:– मुझे कुछ नहीं बताना केवल रीछ स्त्री चाहिये। सबको मारने के बाद कहां गयि वो?


निशांत:– यहीं नागपुर में आयि है।


भूमि आश्चर्य से.… "क्या?"


निशांत:– हां बिलकुल... रीछ स्त्री के नाम पर सरदार खान ने ही तो सबकी बलि ले ली थी। वहां जो भी बवंडर और जादुई खेला था, वह तो बस कंप्यूटराइज्ड था। जादुई हमला मंत्र से होता है। आपको आश्चर्य नही हुआ कि हवा के बवंडर से भाले और तीर निकल रहे थे....


भूमि अपना सर झुका कर निशांत की बातों पर सोच रही थी। ऊपर आर्यमणि अपनी आंखें बड़ी किये सवालिया नजरों से घूरने लगा, मानो कह रहा हो... "ये क्या गंध मचा रहा है।"…. निशांत भी उसे शांत रहने और आगे साथ देने का इशारा कर दिया। कुछ देर तक भूमि सोचती रही...


भूमि:– तुम्हारी बातों का क्या आधार है? क्या तुमने वहां सरदार खान को देखा था?


आर्यमणि:– तेनु वहां का मुखिया बना था। उसे पता है कि सरदार खान वहां था।


भूमि:– तुम दोनो को पक्का यकीन है...


दोनो एक साथ... "हां"..


भूमि, ने 2–3 कॉल किये। थोड़ा जोड़ देकर पूछी और बात सच निकली। सरदार खान को सतपुरा के जंगल में देखा गया था। भूमि गहरी श्वास लेती... "रिचा मेरी बुराई करती थी। वह हमारे परिवार के खिलाफ बोलती थी।हर जगह मुझे और भारद्वाज खानदान को कदमों में लाने की साजिश करती हुई पायि जाती थी। इसलिए वह दूसरे खेमे की चहीती हो गयि और वहां की सभी सूचना मुझ तक मिल जाती। पहले तो हम दोनो को मामला सीधा लगा, जिसमे पैसे और पावर के कारण करप्शन दिखता है। लेकिन यहां उस से भी बड़ी कुछ और बात थी।"..


आर्यमणि:– कौन सी बात दीदी...


भूमि:– मुझे बस अंदेशा है अभी। सरदार खान का नाम आ गया, मतलब इन सबके पीछे भी वही है...


आर्यमणि:– पहेलियां क्यों बुझा रही हो दीदी, पूरी बात बताओ?


भूमि:– जल्द ही बताऊंगी, तब तक अपनी जिंदगी एंजॉय कर.… वैसे भी तुझसे इस बारे में बात करती ही भले सतपुरा वाला कांड होता की नही होता।


आर्यमणि:– अधूरी बातें हां..


भूमि:– थप्पड़ खायेगा फिर से...


निशांत:– लगता है मैं यहां पर हूं इसलिए नही बता रही..


भूमि:– बेटा तुम दोनो को मैं डिलीवरी के वक्त से जानती हूं। तेरे रायते भी यहां कुछ कम नहीं है निशांत। बस एक ही बात कहूंगी अपनी जिंदगी जी, और प्रहरी से पूरा दूरी बना ले। वक्त अब बिल्कुल सही नही, आपसी मौत का खेल शुरू हो गया है। अब रीछ स्त्री के नाम से सबकी बलि ली जायेगी, जैसे रिचा और पैट्रिक के साथ हुआ। आर्य बेटा प्लीज मेरी बात मान ले। देख तुझे मैं जल्द ही पूरी बात बता दूंगी... तू मेरा प्यारा भाई है कि नही..


आर्यमणि:– ठीक है दीदी, जैसा आप कहो... आज से मैं प्रहरी से दूर ही रहूंगा...


निशांत:– दीदी आप चिंता मत करो। आज से इसे मैं अपने साथ रखूंगा..


भूमि:– हां ये ज्यादा सही है...


आर्यमणि:– क्या सही है। सबकी जान खतरे में है और शांत रहने कह रहे...


भूमि:– मैं तो पहले ही १० सालों के लिए प्रहरी से बाहर हो गयि। यदि उन्हें मुझे मारना होता तो मेरी टीम के साथ मुझे भी ले जाते। उन्हे मुझसे कोई खतरा नही। तू भी किनारे हो जा, तुम्हे भी कोई खतरा नही.. आसान है..


आर्यमणि:– जैसा आप ठीक समझो... चलो चलते हैं यहां से...


कुछ वक्त बिता। धीरे–धीरे सब कुछ सामान्य होने लगा। आर्यमणि की जिंदगी कॉलेज, दोस्त और पलक के संग प्यार से बीत रहा था। ख्यालों में भी कुछ ऐसा नहीं चल रहा था, जो प्रहरी के संग किसी तरह के तालमेल को दर्शाते हो। सबकुल जैसे पहले की तरह हो चुका था। कॉलेज के वक्त को छोड़ दिया जाय तो, निशांत के साथ 5–6 घंटे गुजर ही जाते थे। बचा समय पलक और परिवार का।


निशांत की ट्रेनिंग भी शुरू हो चुकी थी। चर्चाओं के दौरान वह अपनी ट्रेनिंग की बातें साझा किया करता था। संन्यासी शिवम, निशांत से टेलीपैथी के माध्यम से बात किया करता था। दोनो रात के २ घंटे और सुबह के २ घंटे योग और मंत्र अभ्यास करते थे। वहीं बातों के दौरान, संन्यासी शिवम द्वारा आर्यमणि को दी गयि किताब के बारे में निशांत ने पूछ लिया। किताब के विषय में चर्चा करते हुए आर्यमणि काफी खुश नजर आ रहा था। यहां तक कि उसने यह भी स्वीकार किया कि उस पुस्तक का जबसे वह अनुसरण किया है, फिर प्रहरी एक साइड लाइन स्टोरी हो गयि और वह किताब मुख्य धारा में चली आयि।


अब इतना रायता फैलाने के बाद कोई पुस्तक के कारण शांत बैठ जाए, फिर तो उस पुस्तक के बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ जाती है। निशांत ने भी जिज्ञासावश पूछ लिया और फिर तो उसके बाद जैसे आर्यमणि किसी ख्यालों की गहराई में खो गया हो...


"वह किताब नही है निशांत, जीवन जीने का तरीका है। हमारे पुरातन सभ्यता की सबसे बड़ी पूंजी। हमारे दुनिया में होने का अर्थ। बाजार में बहुत से योग और अध्यात्म की पुस्तक मिलती है लेकिन एक भी पुस्तक संन्यासी शिवम की दी हुई पुस्तक के समतुल्य नही।"


आर्यमणि की भावना सुनकर निशांत हंसते हुये कह भी दिया.… "मुझे संन्यासियों ने मंत्र शक्ति दिखाकर अपने ओर खींच लिया और तुझे उस पुस्तक के जरिए"… निशांत की बात सुनकर आर्यमणि हंसने लगा। रोज की तरह ही दोनो दोस्त बात करते हुये रूही और अलबेली से मिलने ट्रेनिंग पॉइंट तक जा रहे थे। आज दोनो को पहुंचने में शायद देर हो चुकी थी। वहां चित्रा, अलबेली के साथ बैठी थी और दोनो आपसी बातचीत के मध्य में थे... "अपने पैक के मुखिया को गर्व महसूस करवाना तो हमारा एकमात्र लक्ष्य होता है। उसमे भी जब एक अल्फा आर्य भईया जैसा हो। जिस दिन हम सतपुरा से यहां पहुंचे थे, उसी दिन हमे बस्ती से निकाल दिया गया था।".... अलबेली, चित्रा के किसी सवाल का जवाब दे रही थी शायद।


आर्यमणि:- क्या कही..


अलबेली:- हम परेशान नहीं करना चाहते थे आपको।


आर्यमणि:- मै जानता था ऐसा कुछ होने वाला है। चिंता मत करो तुम्हे तुम्हारे घर ले जाने आया हूं, लेकिन वादा करो वहां तुम कुछ गड़बड़ नहीं करोगी, वरना हम सबके लिये मुश्किलें में बढ़ जाएगी। रूही कहां है..


अलबेली:– अपनी टेंपररी ब्वॉयफ्रेंड के साथ घूमने... हिहिहिहि...


चित्रा:– अब मुझे ही चिढ़ाने लगी...


अलबेली, अपने दोनो कान पकड़कर, मासूम सा चेहरा बनाती... "सॉरी दीदी"..


निशांत:– तुम दोनो कब आयि चित्रा..


चित्रा:– आज सोची की हम चारो मिलकर कहीं धमाल करते है। इसलिए तुम दोनो को लेने यहीं चली आयि।


आर्यमणि:– ठीक है फिर जैसा तुम कहो। मैं जरा रूही और अलबेली के घर की समस्या का समाधान कर दूं, फिर वहीं से निकल चलेंगे.…


सहमति होते ही आर्यमणि ने एक धीमा संकेत दिया जिसे सुनकर रूही, माधव के साथ वापस आयी। …. "चित्रा, माधव को बहुत डारा कर रखी हो यार, एक किस्स कही देने तो लड़का 2 फिट दूर खड़ा हो गया।"….


चित्रा, माधव को आंख दिखती….. "क्या है, कहीं खुद को उसका सच का बॉयफ्रेंड तो नहीं समझ रहे थे माधव। दाल में जरूर कुछ काला है इसलिए रूही कह रही है। जरूर तुमने किस्स करने की कोशिश की होगी।


माधव:- इ तो हद हो गई। रूही ने सब साफ़ साफ़ कह दिया फिर भी तुम हमसे ही मज़े लेने पर तुल जाओ चित्रा। बेकार मे इतना सुनने से तो अच्छा था एक झन्नाटेदार चुम्मा ले ही लेते।


"तुमलोग एक मिनट जरा शांत रहो।"… कहते हुए आर्य ने कॉल उठाया… "हां दीदी"….. उधर से जो भी बात हुई हो… "ठीक है दीदी, आता हूं मै।"..


"चलो वापस। तुम दोनो (रूही और अलबेली) भी आओ मेरे साथ।"… सभी कार से निकल गये। रास्ते में आर्यमणि ने रूही और अलबेली को एक फ्लैट में ड्रॉप करते हुए कहने लगा… "फिलहाल तुम दोनो यहां एडजस्ट करो। कोई स्थाई पता ढूंढ़ता हूं। जरूरत का लगभग समान है। रूही, अलबेली का ख्याल रखना। अभी अनुभव कम है और यहां आसपास लोगो को कटने या चोट लगने से खून निकलते रहता है।"..


रूही:- अलबेली के साथ-साथ मुझे भी कंट्रोल करना होगा। फिलहाल तो हम लेथारिया वुलपिना से काम चला लेंगे।


आर्यमणि:- यहां शिकारियों का पूरा जाल बसता है रूही। एक छोटी सी गलती पूरे पैक को मुसीबत में डाल देगी, बस ये ख्याल रखना।


अलबेली:- भईया हमे ट्विन वोल्फ वाले जंगल का इलाका दे दो। वहीं कॉटेज बनाकर रह लेंगे।


आर्यमणि:- हम्मम ! मै देखता हूं क्या कर सकता हूं, फिलहाल यहां एडजस्ट करो। और ये कुछ पैसे रखो, काम आयेंगे।


आर्यमणि उन्हें समझाकर 20 हजार रूपए दिया और वहां से निकल गया। निशांत, माधव और चित्रा को लेकर अपनी मासी के घर चला आया। घर के अंदर कदम रखते ही, माणिक और मुक्ता से परिचय करवाते हुए सभी कहने लगे… "यही है आर्य।" माहोल थोड़ा तड़कता भड़कता था और यहां सरप्राइज इंजेगमेंट देखने को मिल रहा था। माणिक का रिश्ता पलक की बड़ी बहन नम्रता से और मुक्ता का रिश्ता पलक के बड़े भाई राजदीप से होने का रहा था।


आर्यमणि सबको नमस्ते करते हुए अपने साथ आये माधव का परिचय भी सबसे करवाने लगा। आर्यमणि पीछे जाकर आराम से बैठ गया। थोड़ी ही देर बाद नम्रता और राजदीप, अपने-अपने जीवन साथी को अंगूठी पहना रहे थे और 2 महीने बाद नाशिक से इन दोनो की शादी।


पूरे रिश्तेदारों का जमावड़ा था। वो लोग भी २ घंटे बाद शुरू होने वाले पार्टी का इंतजार कर रहे थे। आर्यमणि लगभग भिड़ से दूर था और अकेले बैठकर कुछ सोच रहा था।… "क्या बात है आर्यमणि, तेरे और पलक के बीच में कोई झगड़ा हुआ है क्या, तू तो इसे देख भी नहीं रहा।"… भूमि सबके बीच से आवाज़ लगाती हुई कहने लगी।


नम्रता:- मेरा लगन मेरे पूरे खानदान ने बैठकर तय किया है। मुश्किल से मै घंटा भर भी नहीं मिली होऊंगी, लेकिन जितना उसे जाना है, अब तो घरवाले ये लगन कैंसल भी कर दे तो भी मै आर्य से ही लगन करूंगी।..


प्रहरी मीटिंग में पलक द्वारा कही गई बात जो नम्रता ने तंज कसते कहा। जैसे ही नम्रता का डायलॉग खत्म हुआ पूरे घरवाले जोड़ से हंसने लगे। पलक सबसे नजरे चुराती अपनी मां अक्षरा के पास बैठ गई। अक्षरा उसके सर पर हाथ फेरती… "राजदीप फिर उस लड़के का क्या हुआ जिससे ये मिलने उस दिन सुबह निकली थी।"..


जया:- इन दोनों के बीच में कोई लड़का भी है?


मीनाक्षी:- लव ट्राइंगल।


वैदेही:- ट्राइंगल नहीं है लव स्क्वेयर है। एक शनिवार कि सुबह तो आर्य भी किसी के साथ डेट पर निकला था।


पलक:- हां समझ गयि की आप लोगो को भूमि दीदी या राजदीप दादा ने सब कुछ बता दिया है।


अक्षरा:- मतलब तुम्हारी अरेंज मैरेज नहीं हुई?


पलक:- कंप्लीट अरेंज मैरिज है। कुछ महीने पहले मुझे दादा (राजदीप) ने कहा था दोनो परिवार के रिश्ते मजबूत करने के लिए आर्य को मै इस घर का जमाई बनाऊंगा। जिस लड़के से लगन होना है, उसी से मिल रही थी। पहले तो यही कहते ना एक दूसरे से मिलकर एक दूसरे को जान लो, सो हमने जान लिया।


नम्रता:- बहुत स्यानी है ये दादा।


जया:- स्यानि नहीं समझदार है। जब पता है कि दोनो ओर से एक ही कोशिश हो रही है, तो किसी और से मिलने नहीं गयि, किसी और को देखने नहीं गयि, बल्कि उसी को जानने गयि, जिसके साथ लोग उसका लगन करवाना चाह रहे थे।


अक्षरा:- काही ही असो, दोन्ही कुटुंब एकत्र आले (जो भी हो दोनो परिवार को एक साथ ले आयी)


जहां लोग होंगे वहां महफिल भी होगी। लेकिन इस महफिल में 2 लोग बिल्कुल ही ख़ामोश थे। एक थी भूमि और दूसरा आर्यमणि। शायद दोनो के दिमाग में इस वक़्त कुछ बात चल रही थी और दोनो एक दूसरे से बात करना भी चाह रहे थे, लेकिन भिड़ की वजह से मौका नहीं मिल रहा था।


तभी भूमि कहने लगी… "आप लोग बातें करो मै डॉक्टर के पास से होकर आती हूं। चल आर्य।"..


जया:- वो क्या करेगा जाकर, मै चलती हूं।


भूमि:- माझी भोळी मासी, बस रूटीन चेकअप है। आप अपनी बहू के साथ बैठो, और दोनो बहने बस बहू की होकर रह जाना।


मीनाक्षी:- जा डॉक्टर को दिखा कर आ, अपना खून मत जला। वैसे भी हीमोग्लोबिन कम है तेरा।


भूमि:- हाव, फिक्र मत करो आपका ब्लड ग्रुप मैच नहीं करता मुझसे। अच्छा मै छाया (पर्सनल असिस्टेंट) से मिलती हुई आऊंगी, इसलिए थोड़ी देर हो जायेगी।


भूमि अपनी बात कहकर निकल गई। दोनो कार में बैठकर चलने लगे। घर से थोड़ी दूर जैसे ही कार आगे बढ़ी….. "मुसीबत आती नहीं है उसे हम खुद निमंत्रण देते है।"


आर्यमणि:- पलक की सारी गलती मेरी है और मै उसे ठीक करके दूंगा। (सतपुरा जंगल कांड जहां पलक, भूमि की पूरी टीम को लेकर गयि थी)


भूमि:- हाहाहाहा… हां मुझे तुमसे यही उम्मीद है आर्य। वैसे पलक की ग़लती तो तू नहीं ही सुधरेगा, हां लेकिन अपने लक्ष्य के ओर जरूर बढ़ेगा.…


आर्यमणि:- कैसे समझ लेती हो मेरे बारे मे इतना कुछ..


भूमि:- क्योंकि जब तू इस दुनिया मे पहली बार आया था, तब तुझे वहां घेरे बहुत से लोग खड़े थे। लेकिन पहली बार अपने नन्ही सी उंगलियों से तूने मेरी उंगली थामी थी। बच्चा है तू मेरा, और इसी मोह ने कभी ख्याल ही नहीं आने दिया कि मेरा अपना कोई बच्चा नहीं। तुझे ना समझूं...


आर्यमणि:- हम्मम !!! जानती हो दीदी जब मै यहां आने के बारे सोचता हूं तो खुद मे हंसी आ जाती है। मैं केवल एक सवाल का जवाब लेने आया था। ऐसा फंसा की वो सवाल ही याद नहीं रहता और दुनिया भर पंगे हजार...


भूमि:- हाहाहाहाहा.. छोड़ जाने दे। बस तुझे मैं बता दूं... तू जब अपना मकसद साध चुका होगा, तब मै नागपुर प्रहरी समुदाय को अलग कर लूंगी। इनके साथ रहकर बीच के लोगो का पता करना मुश्किल है, लेकिन अलग होकर बहुत कुछ किया जा सकता है। चल बाकी बहुत कुछ आराम से तुझे सामझा दूंगी, अभी पहले कुछ और काम किया जाए..


आर्यमणि:- लेकिन दीदी आप उनके पीछे हो, जिसने ३० शिकारी को तो यूं साफ कर दिया। आप प्लीज उनके पीछे मत जाओ... मुझे बहुत चिंता हो रही है।


भूमि:– मैं अकेली कहां हूं। हमे जान लेना भी आता है और खुद की जान बचाना भी। तुझे पता हो की न हो लेकिन हम जिनका पता लगा रहे वो कोई आम इंसान नही। वो कोई वेयरवोल्फ भी नहीं लेकिन जो सरदार खान जैसे बीस्ट को पालते हो, उसे मामूली इंसान समझने की भूल नही कर सकती। इसलिए पूरे सुरक्षित रहकर खेल खेलते हैं। वैसे तेरे आने का मुझे बहुत फायदा हुआ है, सबका ध्यान बस तेरी ओर है।


आर्यमणि:– २ तरह की बात आप खुद ही बोलती हो। उस दिन की मंदिर वाली बात और आज की बात में कोई मेल ही नही है।


भूमि:– उस दिन गुस्से में थी। मुझे अपने २ सागिर्द के जाने का अफसोस हो रहा था। गुस्से में निकल गया।

भाग:–46






भूमि:– उस दिन गुस्से में थी। मुझे अपने २ सागिर्द के जाने का अफसोस हो रहा था। गुस्से में निकल गया।


आर्यमणि:– ना ना, अभी क्यों नही कहती उन सबके मौत का जिम्मेदार मैं ही हूं... लेकिन सतपुरा के जंगल में मेरी जान चली जाती उसकी कोई फिक्र नहीं...


भूमि:– मुझे सतपुरा मात्र एक यात्रा लगी। रीछ स्त्री किसी को इतनी आसानी से कैसे मिलेगी.. वो भी पता किसने लगाया था तो शुकेश भारद्वाज ने... मुझे उसपर रत्ती भर भी यकीन नही था।


आर्यमणि, आश्चर्य से... "क्या आपको मौसा जी पर यकीन नही"…


भूमि:– जैसे तुझे बड़ा यकीन था... अपना ये झूठा एक्सप्रेशन किसी और को दिखाना।


आर्यमणि:– अच्छा ऐसी बात है तो एक बात का जवाब दो, जब पलक ने टीम अनाउंस किया और आप भी जाने को इच्छुक थी, तब तो मुझे कुछ और बात ही लग रही थी..


भूमि:– क्या लगा तुझे?


आर्यमणि:– यही की आपकी पूरी टीम को जान बूझकर ले जा रहे हैं। उन्हे मारने की साजिश खुद आपके पिताजी बना रहे...


भूमि:– हां तुमने बिलकुल सही अंदाजा लगाया था।


आर्यमणि:– इसका मतलब आप भी शहिद होना चाहती थी।


भूमि:– जिस वक्त मंदिर में तुम दोनो ने मुझे शांत किया ठीक उसी वक्त मैं सारी बातों को कनेक्ट कर चुकी थी। एक पुरानी पापी नाम है "नित्या".. उसी का किया है सब कुछ। तुम्हारे दादा वर्धराज को उस वक्त बहुत वाह–वाही मिली थी, जब उन्होंने नित्या को बेनकाब किया था। एक पूर्व की प्रहरी, जो खुद विचित्र प्रकार की सुपरनैचुरल थी। नित्या जिसके बारे में पता करना था की वो किस प्रकार की सुपरनेचुरल है, वह प्रहरी के अड्डे से भाग गयि। उसे वेयरवोल्फ घोषित कर दिया गया और सबसे हास्यप्रद तो आगे आने वाला था। उसे भगाने का इल्ज़ाम भी तुम्हारे दादा जी पर लगा था।


आर्यमणि:– एक वुल्फ को भगाना क्या इतनी बड़ी बात होती है...


भूमि:– प्रायः मौकों पर तो कभी नही लेकिन जब कोई तथाकथित वेयरवोल्फ नित्या, किसी प्रहरी के अड्डे से एक पूरी टीम को खत्म करके निकली हो, तब बहुत बड़ी बात होती है।


आर्यमणि:– अतीत की इतनी बातें मुझसे छिपाई गई..


भूमि:– 8 साल की उम्र से जो लड़का जंगल में रहे और घर के अभिभावक की एक न सुने, उसके मुंह से ये सब सुनना सोभा नही देता मेरे लाल... तुझे दुनिया एक्सप्लोर करना है, लेकिन परिवार को नही जानना। तुम्हे स्वार्थी कह दूं गलत होगा क्या, जिसे अपनी मां का इतिहास पता नही। जया कुलकर्णी जब प्रहरी में शिकारी हुआ करती थी तब क्या बला थी और कैसे एक द्वंद में उसने सामने से सरदार खान और उसके गुर्गों को अपनी जूती पर ले आयि थी।


आर्यमणि, छोटा सा मुंह बनाते.… "शौली (solly), माफ कर दो...


भूमि:– तेरा अभिनय मैं खूब जानती हूं। अभी भी दिमाग बस उसी सवाल पर अटका है, कि क्यों मैं सतपुरा के जंगल साथ जाना चाहती थी? ऊपर से बस ऐसे भोली सूरत बना रहे...


आर्यमणि:– गिल्ट फील मत करवाओ... मैं जानता हूं कि तुम भड़ास निकालने के लिए मुझे लेकर आयि हो, इसलिए सवाल के जवाब में सीधा इतिहास से शुरू कर दी...


भूमि:– मैं सतपुरा जाना चाहती थी क्योंकि किसी की शक्ति रावण के समतुल्य क्यों न हो, हम उनसे भी अपनी और अपनी टीम की जान बचा सकते हैं। मिल गया तेरा जवाब...


आर्यमणि:– क्या सच में ऐसा है?


भूमि:– यकीन करने के अलावा कोई विकल्प है क्या? यदि फिर भी तुझे इस सत्य को सत्यापित ही करना है तब जया मासी से पूछ लेना...


आर्यमणि:– अच्छा सुनो दीदी मुंह मत फुलाओ, मैं दिल से माफी मांगता हूं। दरअसल जब भी मैं दादा जी के बारे में सुनता हूं, और प्रहरी जिस प्रकार से आज भी उन्हें बेजजत करते हैं, मेरा खून खौल जाता है। इसलिए मैं किसी भी उस अतीत को नही जानना चाहता जिसकी कहानी में कहीं न कहीं वही जिक्र हो... "कैसे वर्धराज कुलकर्णी को बेज्जत किया गया।


भूमि:– शायद प्रेगनेंसी की वजह से मूड स्विंग ज्यादा हो रहा। जया मासी ने तेरे २१वे जन्मदिवस पर सब कुछ बताने के फैसला किया था, और मैं तुझे उस वक्त के लिए कोस रही थी, जब हम तुम्हे बताते भी नही...


आर्यमणि:– छोड़ो जाने दो... आप कुछ अतीत की बातें कर रही थी, वो पूरी करो..


भूमि:– तुम्हारे दादा जी जया मासी के पथप्रदर्शक रहे थे। उन्होंने ही जया मासी को एक भस्म बनाना सिखाया था। टारगेट को देखकर वह भस्म बस हवा में उड़ा दो। सामने वाला कुछ देर के लिए भ्रमित हो जाता है।…


आर्यमणि:– अच्छा एक सिद्ध किया हुआ ट्रिक। तुम्हे क्या लगता है, रावण जैसा ब्रह्म ज्ञानी इस भ्रम में फंस सकता है...


भूमि:– तो मैं कौन सा राम हुई जा रही। बस मुंह से निकल गया... दूसरे तो यकीन कर लिये इसपर..


आर्यमणि:– लोग इतने भी मूर्ख होते हैं आज पता चला। भगवान श्री राम इसलिए कहलाए क्योंकि उन्होंने रावण को मारा था। बस इस एक बात से रावण की शक्ति की व्याख्या की जा सकती है।


भूमि:– चल छोड़.. ये बता की इस ट्रिक से मैं नित्या से बच सकती थी या नही...


आर्यमणि:– मैंने उसे नही देखा इसलिए कह नही सकता.. इस ट्रिक से आप अपने दुश्मन को एक बार चौंका जरूर सकती हो, लेकिन इस से जान नही बचेगी। इसलिए कहता हूं दूर रहो प्रहरी से।


भूमि:– केवल एक भस्म ही थोड़े ना है...


आर्यमणि:– और क्या है?


भूमि:– दिमाग..


आर्यमणि:– हां वो भी देख लिया। भस्म से रावण को भरमाने का जो स्त्री दम रखे, उसके दिमाग पर तो मुझे बिल्कुल भी शक करना ही नही चाहिए...


भूमि:– मजाक मत बना... अच्छा तू बता सबसे अच्छी तकनीक क्या है?


आर्यमणि:– बिलकुल खामोश रहे। छिप कर रहे। खुद को कमजोर और डरा हुआ साबित करो। दुश्मनों की पहचान और उसकी पूरी ताकत का पता लगाती रहो। और मैं इतिहास के सबसे बड़े हथियार का वर्णन कर देता हूं। होलिका भी उस आग में जल गयि थी जिसे वह अपने काबू में समझती थी... क्या समझी...


भूमि:– क्या बात है, मेरे साथ रहकर तेरा दिमाग भी बिलकुल शार्प हो गया है।


आर्यमणि:– हां कुछ तो आपकी सोभत का असर है।


दोनो बात करते चले जा रहे थे। भूमि कार को एक छोटे से घर के पास रोकती… "आओ मेरे साथ।"..


भूमि अपने साथ उसे उस घर के अंदर ले आयी। चाभी से उस घर को खोलती अंदर घुसी। आर्यमणि जैसे ही वहां घुसा, आंख मूंदकर अपनी श्वांस अंदर खींचने लगा… भूमि उसे अपने साथ घर के नीचे बने तहखाने में ले आयी। जैसे ही नीचे पहुंचे… एक लड़का और एक लड़की भूमि के ओर दौड़कर आये, दोनो भूमि के गाल मुंह चूमते… "आई बहुत भूख लगी है कुछ खाने को दो ना।"..


भूमि, दोनो को ढेर सारे चिकन मटन देती हुई आर्य को ऊपर ले आयी… "हम्मम ! किस सोच में डूब गये आर्य।"..


आर्यमणि:- 2 टीन वुल्फ..


भूमि:- नहीं, 2 जुड़वा टीन वुल्फ..


आर्यमणि:- जो भी हो, ये आपको आई क्यों पुकार रहे है।


भूमि:- केवल दूध नहीं पिलाया है, बाकी जब ये 2 महीने के थे, तबसे पाल रही हूं। तू रूही और अलबेली को बुला ले यहां।


आर्यमणि ने रूही को सन्देश भेजने के बाद… "दीदी कुछ समझाओगी मुझे।"..


भूमि:- ये सुकेश भारद्वाज यानी के मेरा बाबा के बच्चे है।


कानो में तानपूरा जैसे बजने लगे हो। चारो ओर दिमाग झन्नाने वाली ऐसी ध्वनि जो दिमाग को पागल कर दे। आर्यमणि लड़खड़ाकर पास पड़े कुर्सी पर बैठ गया। आश्चर्य भरी घूरती नज़रों से भूमि को देखते हुए…. "मासी को इस बारे में पता है।"….


भूमि:- "शायद हां, और शायद उन्हे कोई आपत्ती भी नहीं। प्रहरी के बहुत से राज बहुत से लोगो को पता है, लेकिन किसी को भी प्रहरी के सीक्रेट ग्रुप के बारे में नही पता, जिसके मुखिया सुकेश भारद्वाज है। बड़ी सी महफिल में सुकेश, उज्जवल, अक्षरा और मीनाक्षी का नंगा नाच होता है। उसकी महफिल में और कौन–कौन होता है पता न लगा पायि। लेकिन हर महीने एक बड़ी महफिल सरदार खान महल में ही सजती है, और ये सभी बूढ़े तुझे 25–26 वर्ष से ज्यादा के नही दिखेंगे। इंसानों को जिंदा नोचकर खाना, सरदार खान के खून को अपने नब्ज में चढ़ाना इस महफिल का सबसे बड़ा आकर्षण होता है।"

"जिन-जिन को इस राज पता चला वो मारे गये और जिन्हे इनके राज के बारे में भनक लगी उन्हें प्रहरी से निकालकर कहीं दूर भेज दिया गया। सरदार खान को सह कोई और नहीं बल्कि भारद्वाज खानदान दे रहा है। फेहरीन, रूही की मां एक अल्फा हीलर थी। विश्व में अपनी जैसी इकलौती और वो २०० साल पुराने विशाल बरगद के पेड़ तक को हील कर सकती थी। उसके पास बहुत से राज थे। लेकिन मरने से कुछ समय पूर्व इन्हे। मेरे कदमों में फेंक कर इतना ही कही थी… "मै तो मरने ही वाली हूं, तुम चाहो तो अपने सौतेले भाई-बहन को मार सकती हो या बचा सकती हो।"… कुछ और बातें हो पाती उससे पहले ही वहां आहट होने लगी और मै इन दोनों को लेकर चली आयी।"


"तो ये है प्रहरी का घिनौना रूप"…. इससे पहले कि रूही आगे कुछ और बोल पाती, आर्यमणि ने अपना हाथ रूही के ओर किया और वो अपनी जगह रुक गई।…


भूमि:- उसे बोलने दो आर्यमणि। मै यहां के झूट की ज़िंदगी से थक गई हूं। मुझे सुकून दे दो।


आर्यमणि:- हमे यहां लाने का मतलब..


भूमि:- तुम्हारी, रूही और अलबेली की जान खतरे में है। रूही और अलबेली के बाहर होने के कारण ही किले कि इतनी इंफॉर्मेशन बाहर आयी है। उन्हें अब तुम खतरा लगने लगे हो और तुम्हे मारने का फरमान जारी हो चुका है।


आर्यमणि:- किसने किया ये फरमान जारी।


भूमि:- प्रहरी के सिक्रेट बॉडी ने। पलक ने मीटिंग आम कर दी है इसलिए प्रहरी की सिक्रेट बॉडी उन 22 लोगो का सजा तय कर चुकी है, साथ में सरदार खान को मारकर उसकी शक्ति उसका बेटा लेगा, फने खान। ये भी तय हो चुका है ताकि पलक को हीरो दिखाया जा सके। इन सब कांड के बीच तुम लोगो को मारकर एक दूसरे की दुश्मनी दिखा देंगे।


आर्यमणि:- हम्मम ! कितना वक़्त है हमारे पास।


भूमि:- ज्यादा वक़्त नहीं है आर्यमणि। यूं समझ लो 2 महीने है। क्योंकि जिस दिन शादी के लिए हम नाशिक जाएंगे, सारा खेल रचा जायेगा।


आर्यमणि:- आप इन दोनों ट्विन के खाने में लेथारिया वुलपिना देती आ रही हो ना।


भूमि:- नहीं, कभी-कभी देती हूं। इनका इंसान पक्ष काफी स्ट्रॉन्ग है और दोनो के पास अद्भुत कंट्रोल है। बहुत बचाकर इन्हे रखना पड़ता है।


आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है.. कोई नहीं आज से ये मेरी जिम्मेदारी है दीदी। लेकिन एक बात बताओ क्या आप यहां जिंदा हो।


भूमि:- जब तक मर नहीं जाती इनके राज का पता लगाती रहूंगी, वरना मुझे लगभग मरा ही समझो। बात यहां उतनी भी सीधी नहीं है आर्य जितनी दिखती है। तुम्हे एक बात जानकर हैरानी होगी कि प्रहरी में 12 ऐसे लोग है जिन्हें आज तक छींक भी नहीं आयी। यानी कि कभी किसी प्रकार की बीमार नहीं हुई। मुझे तो ऐसा लग रहा है मै किसी जाल में हूं, गुत्थी सुलझने के बदले और उलझ ही जाती है।


तभी वहां धड़ाम से दरवाजा खुला, जया और केशव अंदर पहुंच गए… "भूमि तुमने सब बता दिया इसे।"…


आर्यमणि:- मां मै तो यहां एक सवाल का जवाब ढूंढते हुए पहुंचा था अब तो ऐसा लग रहा है, ज़िन्दगी ही सवाल बन गई है।


केशव:- हाहाहाहा… ये तुम्हारे पैक है, रूही तो दिखने में काफी हॉट है।


जया, केशव को एक हाथ मारती…. "शर्म करो कुछ तो।"… "अरे बाबा माहौल तो थोड़ा हल्का कर लेने दो। बैठ जाओ तुम सब आराम से।"..


जया, आर्यमणि का हाथ थामती हुई…. "तुम्हे पता है तुम्हारी मीनाक्षी मासी ने और उस अक्षरा ने तुम्हारी शादी कब तय कि थी, जब तुमने मैत्री के भाई शूहोत्र लोपचे को मारा था। पलक को बचपन से इसलिए तैयार ही किया गया है। उन सबको लगता है तुम्हारे दादा यानी वर्धराज कुलकर्णी ने तुम्हारे अंदर कुछ अलोकिक शक्ति निहित कर दिया। और यही वजह थी कि तुम इन सब की नजर मे शुरू से हो...


रूही:- कमाल की बात है, मै यहां मौजूद हर किसी के इमोशन को परख सकती हूं, लेकिन पलक कई बार कॉलेज में मेरे पास से गुजरी थी और उसके इमोशंस मै नहीं समझ पायि। बॉस ने मुझे जब ये बताया तब मुझे लगा मजाक है लेकिन वाकई में बॉस की बात सच थी।


जया:- ऐसे बहुत से राज दफन है यहां, जो मै 30 सालो से समझ नहीं पायि।


भूमि:- और मै 20 सालों से।


जया:- तुझे तो तभी समझ जाना चाहिए था जब हमने तुम्हे मीनाक्षी के घर नहीं रहने दिया था। मै, भूमि और केशव तो बहुत खुश थे की तुम बिना कॉन्टैक्ट के गायब हो गये। हमे सुकून था कि कम से कम तुम इस खतरनाक माहौल का हिस्सा नहीं बने। सच तो ये है भूमि ने तुम्हे कभी ढूंढने की कोशिश ही नहीं की वरना भूमि को तुम नहीं मिलते, ऐसा हो सकता है क्या?


केशव:- फिर तुम एक दिन अचानक आ गये। हम मजबूर थे तुम्हे नागपुर भेजने के लिये, इसलिए तुम्हे यहां भेजना पड़ा।


आर्यमणि:- पापा गंगटोक मे मेरे जंगल जाने पर जो कहते थे नागपुर भेज दूंगा। नागपुर भेज दूंगा… उसका क्या...


भूमि:- मौसा और मौसी की मजबूरी थी। यदि मेरी आई–बाबा को भनक लग जाती की हमे इनके पूरे समुदाय पर शक है, तो वो तुम्हे बस जिंदा छोड़ देते और बाकी हम सब मारे जाते। ये सब ताकत के भूखे इंसान है और तुम अपने जंगल के कारनामे के कारण हीरो थे। तुम्हे नहीं लगता कि एक पुलिस ऑफिसर का बार-बार घूम फिर कर उसी जगह ट्रांसफर हो जाना, जहां तुम्हारे मम्मी पापा है, एक सोची समझी नीति होगी। जी हां राकेश नाईक मेरे आई-बाबा के आंख और कान है।


आर्यमणि:- और कितने लोगो को पता है ये बात।


भूमि:- हम तीनो के अलावा कुछ है करीबी जो इस बात की जानकारी रखते है और सीक्रेटली काम करते है।


जया, अपने बेटे के सर पर हाथ फेरती उसके माथे को चूमती…. "जनता है तुझमें सब कुछ बहुत अच्छा है बस एक ही कमी है। तुम एक काम में इतने फोकस हो जाते हो की तुम्हे उस काम के अलावा कुछ दिखता ही नहीं। मै ये नहीं कहती की ये गलत है, लेकिन तुम जिस जगह पर अपने सवाल के जवाब ढूंढ़ने आये वो एक व्यूह हैं। एक ऐसी रचना जहां राज पता करने आओगे तो अपने सवाल भूलकर यहां की चक्की में पीस जाओगे। चल मुझे तू ये मत बता की तू कौन सा सवाल का जवाब ढूंढ़ने आया था। बस ये बता दे कि तुम्हे उन सवाल के जवाब मिले कि नहीं। या ये बता दे कि कितने दिन में मिल जाएंगे


आर्यमणि:- ऐसा कोई तूफान वाले सवाल नही थे। मुझे बस मेरी जिज्ञासा ने खींचा था। मैं तो सवाल के बारे में ही भूल चुका हूं। रोज नई पहेली का पता चलता है और रोज नई कहानी सामने आती है। ऐसा लग रहा है मै पागल हो जाऊंगा।


केशव:- तुम जिस सवाल के जवाब के लिये आये और यहां आकर जो नये सवालों के उलझन में किया है, वैसे इन प्रहरी के इतिहास में पहले कभी नही हुआ। मै बता दू, तुमने कुछ महीने में यहां सबको अपना दुश्मन बना लिया। हां एक काम अच्छा किए जो हमे भूमि के पास पहुंचा दिया। हमे इससे ज्यादा चिंता किसी कि नहीं थी, और तुम्हारी तो बिल्कुल भी नहीं..


जया:- मेरी एक बात मानेगा..


आर्यमणि:- क्या मां?


जया:- यें तेरा पैक है ना..


आर्यमणि:- हां मां..


जया:- अपने पैक को लेकर नई जगह जा, कुछ साल सवालों को भुल जा। क्योंकि जब तू सवालों को भूलेगा तब जिंदगी तुझे उन सवालों के जवाब रोज मर्रा के अनुभव से हिंट करेगी। खुलकर जीना सीखा, जिंदगी को थोड़ा कैजुअली ले। फिर देख काम के साथ जीवन में भी आनंद आएगा।


आर्यमणि:- हम्मम ! शायद आप सही कहती हो मां।


जया:- और एक बात मेरे लाल, तेरे रायते को हम यहां साथ मिलकर संभाल लेंगे, तू हमारी चिंता तो बिल्कुल भी मत करना।


भूमि:- अब कुछ काम की बात। जाने से पहले तुम वो अनंत कीर्ति की पुस्तक अपने साथ लिए जाना। एक बार वो खोल लिए तो समझो यहां के बहुत सारे राज खुल जाएंगे। दूसरा यदि जाने से पहले तुम सरदार खान की शक्तियों को उसके शरीर से अलग करते चले गए तो नागपुर समझो साफ़ हो जाएगा। खैर इस पर तो तुम्हारा खुद भी फोकस है। एक बार सरदार साफ फिर हम यहां अपने कारनामे कर सकते है। तीसरी सबसे जरूरी बात, बीस्ट अल्फा मे सरदार खान सबसे बड़ा बीस्ट है। हो सकता है कि तुम उसे पहले भी मात दे चुके होगे लेकिन इस भूल से मत जाना कि इस बार भी मात दे दोगे। पहली बात उसके अंदर कुछ भी भोंक नही सकते और दूसरी सबसे जरूरी बात, उसके पीछे बहुत बड़ा दिमाग है। बस एक बात ख्याल रहे उसे मारने के चक्कर में तुम मरना मत और यदि कामयाब होते हो तो ये समझ लेना सीक्रेट प्रहरी समुदाय तुम्हारे पीछे पड़ गया, और वो तुम्हे जमीन के किसी भी कोने से ढूंढ निकालेंगे।


जया:- चल अब हंस दे और जिंदगी को जी। अपने पैक के साथ रह। रूही, तुम सब एक पैक हो, ख्याल रखना एक दूसरे का। और कहीं भी ये जाए, इसको बोलना कोई भी काम वक़्त लेकर करे, ऐसा ना हो वहां भी नागपुर जैसा हाल कर दे। 3-4 एक्शन में तो फिल्म का क्लाइमेक्स आ जाता है, और इसने तो कुछ महीने में केवल और केवल एक्शन करके रायता फैला दिया।


रूही:- आप सब जाओ… हम सब निकलने कि तैयारी करते है। आर्यमणि मै इन सबको लेकर ट्विंस के जंगल में मिलूंगी।


आर्यमणि, भूमि के साथ चला। पहले डॉक्टर, फिर छाया और वापस सीधा अपने घर। आर्यमणि को बड़ा आश्चर्य हुआ जब घर आकर उसने भूमि को देखा। अपनी माता पिता से बिल्कुल सामान्य रूप से मिल रही थी। वो साफ समझ पा रहा था कि क्या छलावा है और क्या हकीकत।


आर्यमणि अपने माता-पिता और अपनी मौसेरी बहन के अभिनय को देखकर अंदर ही अंदर नमन किया और वो भी सामान्य रूप से, बिना किसी बदलाव के सबसे बातें करता रहा। कुछ ही देर बाद पार्टी शुरू हो गई थी। उस पार्टी में आर्यमणि शिरकत करते एक ही बात नोटिस की, यहां बहुत से ऐसे लोग थे जिनकी भावना वो मेहसूस नहीं कर सकता था।
What the hell! Tha kya ye sab? Nainu bhaya aapki rago me khoon hi daudta hai na, nhi mujhe lga Sayad suspense or thrill daudta ho. Awesome mind blasting updates bhai superb amazing or last me निःशब्द :lipsrsealed:🤐 or jb sabd kam pad jaye to sajda karte hai bhaya :bow: :bow: :roflbow: :roflbow::eyes2::omg1::nocomment::mad1::yes1::o:esc::omg::shocked::shocked2::wtfrol::yourock::yourock::yourock: Kuchh is tarah ke samveg utpann huye aapke ye dono update padhkr bhaya...
 

Anubhavp14

Deku Aka 'Usless'
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भाग:–42





वायु संरक्षण भेदकर हर वेंडिगो हमला कर रहा था। ऐसा लग रहा था हर वेंडिगो काट मंत्र के साथ हमला कर रहा हो। एक–दो सहायक के नाक में काला धुवां घुसा और उसके प्राण लेकर बाहर निकला। वहां पर तांत्रिक उध्यात और ऐडियाना का प्रकोप चारो ओर से घेर–घेर कर हमला शुरू कर चुका था। सिद्ध पुरुष ओमकार नारायण ने भी मोर्चा संभाला। एक साथ 5 संन्यासी और दोनो सिद्ध पुरुष के मुख से मंत्र इस प्रकार निकल रहे थे, जैसे कोई भजन चल रहा हो। हर मंत्र के छंद का अंत होते ही १० सहायक एक साथ अपने झोले से कुछ विभूति निकालते और भूमि पर पटक देते।


भूमि पर विभूति पटकने के साथ ही नाना प्रकार की असंख्य चीजें धुवां का रूप लेकर निकलती। किसी धुएं से असंख्य उजले से साये निकल रहे थे। उनका स्वरूप ऐडियाना के आसमान से ऊंची आकृति को एक साथ ढक रही थी। आस–पास मंडराते काले साये को पूरा गिल जाते। किसी विभूति के विस्फोट से असंख्य उजले धुएं के शेर निकले। अनगिनत शेर एक बार में ही इतनी तेजी से उस बर्फ के मैदान पर फैले, की पूरा मैदान में वेंडिगो उस साये वाले शेर से उलझ गये। देखते ही देखते वेंडिगो की संख्या विलुप्त हो रही थी। रक्त, पुष्प, जल, मेघ, बिजली और अग्नि सब उस विभूति की पटक से निकले और तांत्रिक के अग्नि, बिजली और श्वेत वर्षा को शांत करते उल्टा हमला करने लगे.…


आर्यमणि और निशांत के लिए तो जैसे कोई पौराणिक कथा का कोई युद्ध आंखों के सामने चल रहा हो। दोनो ने अपने हाथ जोड़ लिये। "हमे भी कुछ करना चाहिए आर्य, वरना हमारे यहां होने का क्या अर्थ निकलता है"…. "हां निशांत तुमने सही कहा। उनके पास मंत्र शक्ति है और मेरे पास बाहुबल, हम मिलकर आगे बढ़ते है।"


निशांत:– मेरे पास भ्रमित अंगूठी है, और ट्रैप करने का समान। देखता हूं इनसे क्या कर सकता हूं।


अगले ही पल पर्वत को भी झुका दे ऐसी दहाड़ उन फिजाओं में गूंजने लगी। एक पल तो दोनो पक्ष बिलकुल शांत होकर बस उस दहाड़ को ही सुन रहे थे... दहाड़ते हुए बिजली की तेजी से आर्यमणि बीच रण में खड़ा था और उसके ठीक सामने थी महाजनिका। 1 सिद्ध पुरुष 5 और संन्यासियों को लेकर आर्यमणि के ओर रुख किया।


मंत्र से मंत्र टकरा रहे थे। चारो ओर विस्फोट का माहोल था। वेंडिगो साये के बने शेर के साथ भीड़ रहे थे। हर शेर वेंडिगो को निगलता और विजय दहाड़ के साथ गायब हो जाता। ऐडियाना का भव्य साया, असंख्य उजले साये से बांधते हुये धीरे–धीरे छोटा होने लगा था। तांत्रिक अध्यात और उसके हजार चेले भी डटे हुये थे। मंत्र से मंत्र का काट हो रहा था। इधर सिद्ध पुरुष के १० सहायकों में से एक सहायक की जान जाती तो उधर अध्यात के २०० चेले दुनिया छोड़ चुके होते।


२०० चेलों की आहुति देने के बाद भी तांत्रिक अध्यात अपने पूरे उत्साह में था। क्योंकि उसे पता था कि आगे क्या होने वाला है। उसे पता था कि फिलहाल १० हाथियों की ताकत के साथ जब महाजनिका आगे बढ़ेगी तब यहां सभी की लाश बिछी होगी। और कुछ ऐसा शायद हो भी रहा था। आर्यमणि, महाजनिका के ठीक सामने और महाजनिका मुख से मंत्र पढ़ती अपने सामने आये आर्यमणि को फुटबॉल समझकर लात मार दी। आर्यमणि उसके इस प्रहार से कोसों दूर जाकर गिरा। न केवल आर्यमणि वरन एक सिद्ध पुरुष जो अपने 5 संन्यासियों के साथ महाजनिका के मंत्र काट रहा था। उनका काट मंत्र इतना कमजोर था कि मंत्र काटने के बाद भी उसके असर के वजह वह सिद्ध पुरुष मिलो दूर जाकर गिरा। शायद उस साधु के प्राण चले गये होते, यदि आर्यमणि अपने हाथ की पुर्नस्थापित अंगूठी उसके ऊपर न फेंका होता और वह अंगूठी उस साधु ने पकड़ी नही होती।


सिद्ध पुरुष जैसे ही गिरा मानो वह फट सा गया, लेकिन अगले ही पल वह उठकर खड़ा भी हो गया। एक नजर आर्यमणि और सिद्ध पुरुष के टकराये और नजरों से जैसे उन्होंने आर्यमणि का अभिवादन किया हो। लेकिन युद्ध के मैदान में जैसे महाजनिका काल बन गई थी। एक सिद्ध पुरुष का मंत्र जाप बंद क्या हुआ, अगले ही पल महाजनिका अपने मंत्र से पांचों संन्यासियों को मार चुकी थी। 5 संन्यासियों और 10 सहायकों के साथ ओमकार नारायण दोनो ओर का मोर्चा संभाले थे। लेकिन महाजनिका अपने खोये सिद्धि और कम बाहुबल केl साथ भी इन सब से कई गुणा खतरनाक थी, जिसका परिणाम यह हुआ कि महाजनिका अकेले ही सभी मंत्रो को काटती हुई आगे बढ़ी और देखते ही देखते पर्वत समान ऊंची हो गई। उसका स्वरूप मानो किसी राक्षसी जैसा था। विशाल विकराल रूप और एक ही बार में ऐसा हाथ चलाई की उसकी चपेट में सभी आ गये। जमीन ऐसा कांपा की उसकी कंपन मिलो दूर तक मेहसूस हुई।


आर्यमणि कुछ देख तो नहीं पाया लेकिन वह सिद्ध पुरुष को अपने पीठ पर उठाकर बिजली समान तेजी से दौड़ लगा चुका था। उसने साधु को ऐडियाना के कब्र के पास छोड़ा और दौड़ लगाते हुए महाजनिका के ठीक पीछे पहुंचा। यूं तो आर्यमणि, महाजनिका के टखने से ऊंचा नही था, लेकिन उसका हौसला महाजनिका के ऊंचाई से भी कई गुणा ज्यादा बड़ा था। शेप शिफ्ट नही हुआ लेकिन झटके से हथेली खोलते ही धारदार क्ला बाहर आ गया। और फिर देखते ही देखते क्षण भर में आर्यमणी क्ला घुसाकर पूरे तेजी से गर्दन के नीचे तक पहुंच गया। आगे से तो महाजनिका बहुत हाथ पाऊं मार रही थी। मंत्र उच्चारण भी जारी था। पास खड़ा तांत्रिक अध्यात भी अब अपने मंत्रों की बौछार आर्यमणि पर कर रहा था। आर्यमणि जब ऊपर के ओर बढ़ रहा था तब बिजली बरसे, अग्नि की लपटे उठी, लेकिन कोई भी आर्यमणि की चढ़ाई को रोक न सका। जब आर्यमणि, महाजनिका के गर्दन के नीचे पहुंचा, फिर दोनो मुठ्ठी में महाजनिका के बाल को दबोचकर, एक जोरदार लात उसके पीठ पर मारा। पीठ पर वह इतना तेज प्रहार था कि महाजनिका आगे के ओर झुक गई, वहीं आर्यमणि बालों को मुट्ठी में दबोचे पीछे से आगे आ गया और इस जोड़ का बल नीचे धरातल को ओर लगाया की महाजनिका के गर्दन की हड्डियों से कर–कर–कर कर्राने की आवाज आने लगी। जोर इतना था की गर्दन नीचे झुकते चला गया। शायद टूट गई होती यदि वह घुटनों पर नही आती। महाजनिका घुटनों पर और उसका सर पूरा बर्फ में घुसा दिया।


क्या बाहुबल का प्रदर्शन था। महाजनिका अगले ही पल अपने वास्तविक रूप में आयि और सीधी खड़ी होकर घूरती नजरों से आर्यमणि को देखती... "इतना दुस्साहस".. गुस्से से बिलबिलाती महाजनिका एक बार फिर अपना पाऊं चला दी। पता नही कहां से और कैसे नयि ऊर्जा आर्यमणि में आ गई। आर्यमणि एक कदम नहीं चला। जहां खड़ा था उसी धरातल पर अपने पाऊं को जमाया और ज्यों ही अपने ऊपरी बदन को उछाला वह हवा में था। १० हाथियों की ताकत वाली महाजनिका, आर्यमणि को फुटबॉल की तरह उड़ाने के लिए लात चलायि। लेकिन ठीक उसी पल आर्यमणि एक लंबी उछाल लेकर कई फिट ऊपर हवा में था। और जब वह नीचे महाजनिका के चेहरे के सामने पहुंचा, फिर तो महाजनिका का बदन कोई रूई था और आर्यमणि का क्ला कोई रूई धुनने की मशीन। पंजे फैलाकर जो ही बिजली की रफ्तार से चमरी उधेरा, पूरा शरीर लह–लुहान हो गया। महाजनिका घायल अवस्था में और भी ज्यादा खूंखार होती अपना 25000 किलो वजनी वाला मुक्का आर्यमणि के चेहरे पर चला दी।


आर्यमणि वह मुक्का अपने पंजे से रोका। उसके मुक्के को अपने चंगुल में दबोचकर कलाई को ही उल्टा मरोड़ दिया। कर–कर की आवाज के साथ हड्डी का चटकना सुना जा सकता था। उसके बाद तो जैसे कोई बॉक्सर अपनी सामान्य रफ्तार से १०० गुणा ज्यादा रफ्तार में जैसे बॉक्सिंग बैग पर पंच मारता हो, ठीक उसी प्रकार का नजारा था। हाथ दिख ना रहे थे। आर्यमणि का मुक्का कहां और कब लगा वह नही दिख रहा था। बस हर सेकंड में सैकड़ों विस्फोट की आवाज महाजनिका के शरीर से निकल रही थी।


वहीं कुछ वक्त पूर्व जब दूसरे सिद्ध पुरुष के हाथ में जैसे ही पुनर्स्थापित अंगूठी आयि, उसने सबसे पहले अपने सभी साथियों को ही सुरक्षित किया। जिसका परिणाम यह हुआ कि महाजनिका के चपेट में आने के बाद भी वह सभी के सभी उठ खड़े हुये और इसी के साथ यह भेद भी खुल गया की पुर्नस्थापित अंगूठी कब्र में नही है। तांत्रिक अध्यात समझ चुका था कि वह युद्ध हार चुका है। लेकिन इस से पहले की वह भागता, महाजनिका, आर्यमणि के साथ लड़ाई आरंभ कर चुकी थी। मंत्र उच्चारण वह कर रही थी, लेकिन सिद्ध पुरुष उसके मंत्र को काट रहे थे और आर्यमणि अपने बाहुबल से अपना परिचय दे रहा था। कुछ देर ही उसने महाजनिका पर मुक्का चलाया था और जब आर्यमणि रुका महाजनिका अचेत अवस्था में धम्म से गिरी।


तांत्रिक अध्यात और उसके कुछ साथी पहले से ही तैयार थे। जैसे ही महाजनिका धरातल पर गिरी ठीक उसी पल ऐडियाना के मकबरे से बहरूपिया चोगा और बिजली की खंजर हवा में आ गयि। हवा में आते ही उसे हासिल करने के लिए दोनो ओर से लड़ाई एक बार फिर भीषण हो गयि। सबका ध्यान ऐडियाना की इच्छा पर थी और इसी बीच तांत्रिक अध्यात एक नया द्वार (पोर्टल) खोल दिया। वस्तु खींचने का जादू दोनो ओर से चल रहा था। एक दूसरे को घायल करने अथवा मारने की कोशिश लगातार हो रही थी। ठीक उसी वक्त आर्यमणि थोड़ा सा विश्राम की स्थिति में आया था। तांत्रिक अध्यात का इशारा हुआ और महाजनिका लहराती हुई निकली।


इसके पूर्व निशांत जो इस पूरे एक्शन का मजा ले रहा था, उसे दूर से ही तांत्रिक अध्यात की चालबाजी नजर आ गयि। उसने भी थोड़ा सा दौड़ लगाया और हवा में छलांग लगाकर जैसे ही खुद पर सुरक्षा मंत्र पढ़ा, वह हवा में उड़ गया। तेजी के साथ उसने भागने वाले रास्ते पर छोटे–छोटे ट्रैप वायर के मैट बिछा दिये और जैसे ही नीचे पहुंचा सभी किनारे पर कील ठोकने वाली गन से कील को फायर करते हर मैट को चारो ओर से ठोक दिया।


महाजनिका जब द्वार के ओर भाग रही थी तभी उसे रास्तों में बिछी ट्रैप वायर दिख गई। वह तो हवा में लहराती हुई पोर्टल में घुसी और घुसने के साथ खींचने का ताकतवर मंत्र चला दी। नतीजा यह निकला कि पोर्टल में घुसते समय बिजली की खंजर उसके हाथ में थी और बहरूपिया चोगा दो दिशाओं की खींचा तानी में फट गया। महाजनिका तो भाग गयि लेकिन तांत्रिक और उसके गुर्गे भागते हुए ट्रैप वायर में फंस गये। एक तो गिरते वक्त मजबूत मंत्र उच्चारण टूटा और छोटे से मौके को सिद्ध पुरुष ओमकार नारायण भुनाते हुये एक पल में ही तांत्रिक को उसके घुटने पर ले आये। नुकसान दोनो ओर से हुआ था। कहीं कम तो कहीं ज्यादा। महाजनिका जब भाग रही थी, तब उसके पीछे आर्यमणि भी जा रहा था, लेकिन उसे दूसरे सिद्ध पुरुष ने रोक लिया।


माहोल बिलकुल शांत हो गया था। बचे सभी तांत्रिक को बंदी बनाकर ले जाने की तैयारी चल रही थी। एक द्वार (portal) सिद्ध पुरुष ने भी खोला। वहां केवल एक संन्यासी जो आर्यमणि से शुरू से बात कर रहा था, उसे छोड़कर बाकी सब उस द्वार से चले गये। जाते हुये सभी आर्यमणि को शौर्य और वीरता पर बधाई दे रहे थे और उसकी मदद के लिये हृदय से आभार भी प्रकट कर रहे थे। उस जगह पर अब केवल ३ लोग बचे थे। संन्यासी, आर्यमणि और निशांत।


निशांत:– यहां का माहोल कितना शांत हो गया न...


संन्यासी:– हां लेकिन एक काम अब भी बचा है। जादूगरनी (ऐडियाना) को मोक्ष देना...


निशांत:– क्या उसकी आत्मा अब भी यहीं है।



संन्यासी:– हां अब भी यहीं है और ज्यादा देर तक बंधी भी नही रहेगी। मुझे कुछ वक्त दो, फिर साथ चलते हैं...


संन्यासी अपना काम करने चल दिये। सफेद बर्फीले जगह पर केवल २ लोग बचे थे.… "आर्य क्या तुमने यह जगह पहले भी देखी है?"


आर्यमणि:– नही, ये रसिया का कोई बर्फीला मैदान है, जहां बर्फ जमी है। मैने रसिया का बोरियाल जंगल देखा है। वैसे तूने क्या सोचा...


निशांत:– किस बारे में...


आर्यमणि:– खोजी बनने के बारे में...


निशांत:– अगर मुझे ये लोग उस लायक समझेंगे तब तो मेरे लिए खुशकिस्मती होगी...


"किसी काम की तलाश में गये व्यक्ति को जितनी नौकरी की जरूरत होती है। नौकरी देने वाले को उस से कहीं ज्यादा एक कर्मचारी की जरूरत होती है। और अच्छे कर्मचारी की जरूरत कुछ ऐसी है कि रात के १२ बजे नौकरी ले लो.… क्या समझे"....


निशांत:– यही की आप संन्यासी कम और कर्मचारी से पीड़ित मालिक ज्यादा लग रहे।


सन्यासी:– मेरा नाम शिवम है और कैलाश मठ की ओर से हम, तुम्हे अपना खोजी बनाने के लिए प्रशिक्षित करना चाहते हैं? राह बिलकुल आसन नहीं होगी। कर्म पथ पर चलते हुए हो सकता है कि किसी दिन तुम्हारा दोस्त गलत के साथ खड़ा रहे और तुम्हे उसके विरुद्ध लड़ना पड़े? तो क्या ऐसे मौकों पर भी तुम हमारे साथ खड़े रहोगे?


निशांत:– हां बिलकुल.... आपके प्रस्ताव और आपके व्याख्या की हुई परिस्थिति, दोनो के लिए उत्तर हां है।


संन्यासी:– जितनी आसानी से कह गये, क्या उतनी आसानी से कर पाओगे...


निशांत:– क्यों नही... वास्तविक परिस्थिति में यदि आर्यमणि मेरे नजरों में दोषी होगा, तब मैं ही वो पहला रहूंगा जो इसके खिलाफ खड़ा मिलेगा। यदि आर्य मेरी नजर में दोषी नहीं, फिर मैं सच के साथ खड़ा रहूंगा... क्योंकि गीता में एक बात बहुत प्यारी बात लिखी है...


संन्यासी:– क्या?


निशांत:– जो मेरे लिये सच है वही किसी और के लिये सच हो, जरूरी नहीं… एक लड़का पहाड़ से गिरा... मैं कहूंगा आत्महत्या है, कोई कह सकता है एक्सीडेंट है... यहां पर जो "मरा" वो सच है... लेकिन हर सच का अपना–अपना नजरिया होता है और हर पक्ष अपने हिसाब से सही होता हैं।


संन्यासी शिवम:– और यदि इसी उधारहण में मैं कह दूं की लड़का अपने आत्महत्या के बारे में लिखकर गया था।


निशांत:– मैं कह सकता हूं कि जरूर किसी की साजिश है, और पहाड़ी की चोटी से धक्का देकर उसका कत्ल किया गया है। क्योंकि वह लड़का आत्महत्या करने वालों में से नही था।


संन्यासी:– ठीक है फिर कल से तुम्हारा प्रशिक्षण शुरू हो जायेगा। जब हम अलग हो रहे हो, तब तुम अपनी पुस्तक ले लेना निशांत।


निशांत:– क्यों आप भी हमारे साथ कहीं चल रहे है क्या?


संन्यासी:– नही यहां आने से पहले आर्यमणि के बहुत से सवाल थे शायद। बस उन्ही का जवाब देते–देते जहां तक जा सकूं...


आर्यमणि:– संन्यासी शिवम जी, अब बहुत कुछ जानने या समझने की इच्छा नही रही। इतना तो समझ में आ गया की आपकी और मेरी दुनिया बिलकुल अलग है। और आप सब सच्चे योद्धा हैं, जिसके बारे में शायद ही लोग जानते हो। अब आप सबके विषय में अभी नहीं जानना। मेरा दोस्त है न, वो बता देगा... बस जिज्ञासा सिर्फ एक बात की है... जिस रोचक तथ्य के किताब में मुझे रीछ स्त्री मिली, वह पूरा इतिहास ही गलत था।


संन्यासी शिवम:– "वहां लिखी हर बात सच थी। किंतु अलग–अलग सच्ची घटना को एक मुख्य घटना से जोड़कर पूरी बात लिखी गयि है। और वह किताब भी हाल के ही वर्षों में लिखी गयि थी। जिस क्षेत्र में रीछ स्त्री महाजनिका बंधी थी, उस क्षेत्र को तो गुरुओं ने वैसे भी बांध रखा होगा। एक भ्रमित क्षेत्र जहां लोग आये–जाये, कोई परेशानी नही हो। यदि कोई प्रतिबंधित क्षेत्र होता तब उसे ढूंढना बिलकुल ही आसान नहीं हो जाता"

"तांत्रिक अध्यात, ऐसे घराने से आता है जिसका पूर्वज रीछ स्त्री का सेवक था। महाजनिका को ढूंढने के लिये इनके पूर्वजों ने जमीन आसमान एक कर दिया। हजारों वर्षों से यह तांत्रिक घराना रीछ स्त्री को ढूंढ रहे थे। पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी संस्कृति, अपना ज्ञान और अपनी खोज बच्चों को सिखाते रहे। आखिरकार तांत्रिक अध्यात को रीछ स्त्री महाजनिका का पता चल ही गया।"


आर्यमणि:– बीच में रोकना चाहूंगा... यदि ये लोग खोजी है, तो खोज के दौरान इन्हे अलौकिक वस्तु भी मिली होगी? और जब वो लोग रीछ स्त्री की भ्रमित जगह ढूंढ सकते है, फिर उन्हे पारीयान का तिलिस्म क्यों नही मिला?


संन्यासी शिवम:– मेरे ख्याल से जब पारीयान की मृत्यु हुई होगी तब तक वो लोग हिमालय का पूरा क्षेत्र छान चुके होंगे। रीछ स्त्री लगभग 5000 वर्ष पूर्व कैद हुई थी और पारीयान तो बस 600 वर्ष पुराना होगा। हमारे पास पारीयान का तो पूरा इतिहास ही है। तांत्रिक सबसे पहले वहीं से खोज शुरू करेगा जो हमारा केंद्र था। और जिस जगह तुम्हे पारीयान का तिलिस्म मिला था, हिमालय का क्षेत्र, वह तो सभी सिद्ध पुरुषों के शक्ति का केंद्र रहा है। वहां के पूरे क्षेत्र को तो वो लोग इंच दर इंच कम से कम 100 बार और हर तरह के जाल को तोड़ने वाले 100 तरह के मंत्रों से ढूंढकर पहले सुनिश्चित हुये होंगे। इसलिए पारीयान का खजाना वहां सुरक्षित रहा। वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी तांत्रिक मिल गयि होती तो तुम सोच भी नही सकते की महाजनिका क्या उत्पात मचा सकती थी।
Bhot hi shaandaar update ......Meko ye nishant ki daring bhot pasand aayi jis tarha se wo aarya ko kehta hai ki hume bhi unki madad krni chahiye aur jo bond wo aarya ke saath share karta hai kya synergy dikhai hai aapne esa koi dost saath me ho to fir jyda kisi ki jarurt hi nhi .....
aur ye bhoomi pr vibhuti patak ke safad shadow laana ..... acha concept laga aap har bar jo ye naaye naye concept laate ho sahi me bhot gajab hote ..........Isko padh ke wo Bhavnr ki micro dust particles wale concept ki yaad aa gyi bhot bhot shaandaar tha litreally aur jab ye mene Bhavanr me padha tha na aap manoge nhi me fan ho gaya tha apka apki thinking ability ka aur fir Bhavanr se to ek alag hi attachment hai jis tarha usme apsyu ka charachter dikhaya hai ek ideal hai uski knowledge aur bhi bhot saari cize aur aap jis tarha sochte ho kayi baar sochne pr majboor kr dete ho jo banda esa likh sakta hai uska kitna knowledge hoga jo abhi ki life style hai uska bhi pata hai Mythology bhi padha hua hai yaaar aap Nainu bhaiya aap to class lene lago meri kasam se 1hr ki roj kuch na kuch sikhne ko mil jayega aur i promise niraash nhi hoge aur is tarj par meri bucket list me ek ciz aur jod li hai ki aapse milna hai .....like kya to moment hoga With the men himself...... jo insaan itni gajab ki thinking skill rakhta hai aur agar aap tech background se hoge fir to aap sahi me apni company khadi kar do aur kya pata ho bhi ..... koi se bhi puch lo hindi itni achi aati hai apko tech ka knowledge hai fashion sense ...mythology, innovative idea yaaar itna sab ek insaan me dusra jisa tarha se aap numerical data ka use karte ho 100 Encounter me kara tha mtlb brain ka sahi use to aap kr rahe ho ....aaj kal to wese hi kum dekhne ko milta hai ki ek me ye sab ciz ho ........ calm aur patience rakh le wohi badi baat hai ye sab to baad ki baat hai .. Sat Sat Naman Nainu Bhaiya .....
Coming to update ye fight bhi ek tarfa hi si lagi jisme aarya ne Mahajanika ko ghayal kr diya tha lekin haa wo abhi uthi hai itne varsho bad aur usne apni purn shakti paayi nhi hai .....to ab real fight ka wait hai aur ab to dragger bhi uske pass aa gaya hai jo koi se bhi dhaatu ko cheer de ab dekhna hai Aarya us dragger ko Mahajanika se kese le paata hai...... Nainu bhaiya ko bhi salam kisi ne dhyaan diya ho na ho lekin ek ciz jo ki bhot shaandar lagi ki jab sanyashi nishant aur aarya ko mile the uske bad nishant sanyashi ka diye huye mantra ko try karta hai aur yaha uska USE hawa me jaane ke liye gajab aur wo punahrsthapith ring wo sanyashi le gaye ya aarya ke pass hi hai
 

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Anubhavp14

Deku Aka 'Usless'
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Kya kare sabka khyal rakhna hota hai... Mujhe na ek khyal aaya tha... "Anubhav ye kahani jaroor padhega"... Iske baad ye bhi khyal aaya ki wah eklauta hoga jise chitra aur madav ke bich dosti milegi...

Par prahri ko to maloom hi nahi ki kisi dawa ke side effect ko arya medicine ki tarah istamal kar raha .. ye lutheria vulpina ka kaam to warewolf me sharir ko dhima maarna hai... Fir unhe arya ki ninja technique kaise pata hogi... Baki dekhte hain next
रिचा:- दुनिया एडवांस है और तुमने कुछ खेल रचा है माउंटेन एश के सर्किल को भेदने के लिए, ऐसा लोगो का विचार बना है। बातों से हम केवल निर्दोष या दोषी साबित नही कर सकते है। जैसे तुम कहोगे मेरे घाव जल्दी भर जाए यदि मैं वुल्फ होता और मैं कहूंगी तुमने लेथारिया वुलपिना इस्तमाल किया है। सो इस मौखिक चर्चा को बंद करते हुए कुछ प्रयोग कर लेते है ताकि सबको यकीन हो जाए कि तुम एक वेयरवुल्फ नहीं हो।
to fir ye kya tha jo richa keh rahi hai wo sirf richa ke thoughts hai ?
 

Tiger 786

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भाग:–17



पलक:– प्रहरी के कई उच्च अधिकारी को लगता है कि तुम्हारे दादा वर्घराज कुलकर्णी की सारी सिद्धियां तुम में है। तो कई लोगों का मानना है कि मैत्री लोपचे के प्यार में तुम एक वेयरवोल्फ बन गए थे। पर एक वेयरवोल्फ किसी प्रहरी के यहां कैसे रह सकता है, इसलिए खुद ही वो लोग इस बात का खंडन कर देते है। बाद में इस बात का भी खंडन कर देते हैं कि जब तुम ७–८ साल के थे तब तुम्हारे दादा जी इस दुनिया में नही रहे। फिर उनकी सिद्धि तुम्हारे अंदर कैसे आ सकती है? लेकिन हर किसी को लगता है कि तुम कुछ हो.… उनके लिए तुम किसी रिसर्च सब्जेक्ट की तरह हो, जिसपर कोई नतीजा नहीं निकलता.…



आर्यमणि, खुलकर हंसते... "फिर किस निष्कर्ष पर पहुंचे"…

पलक:– सब के सब दुविधा में है। किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके। लेकिन हर किसी को लगता है कि तुम में कुछ तो खास है...

आर्यमणि:– और मेरी रानी को क्या लगता है?

पलक, आर्यमणि के गले लगकर... "मुझे तो बस तुम्हारे साथ सुकून मिलता है।"…

आर्यमणि, अपने बाजुओं में पलक को भींचते... "और क्या लगता है?"…

पलक:– यही की हमे अब रुक जाना चाहिए वरना मैं खुद को अब रोक नही पाऊंगी...

आर्यमणि:– मैं भी तो यही चाहता हूं कि रुको मत...

अपनी बात कहकर आर्यमणि ने थोड़ा और जोड़ से पलक को अपनी बाजुओं में भींच लिया। पलक कसमसाती हुई.… "आर्य प्लीज छोड़ दो... रोमांस तो हवा हो गई, उल्टा मेरी पूरी हड्डियां चटका दिए।"

आर्यमणि, पलक को खुद से अलग करते... "तुम्हे छोड़ने की एक जरा इच्छा नहीं... जल्दी से मेरा ध्यान किसी और विषय पर ले जाओ"…


पलक:– ध्यान भटकने के लिए तो पहले से विषय है। उस वेयरवॉल्फ ने ऐसा क्यों कहा कि ये इलाका उन जैसे (वेयरवोल्फ) और हमारे जैसों (प्रहरी) के लिए प्रतिबंधित है, तुम्हारा नाम क्यों नहीं ली।


आर्यमणि:- क्योंकि मै दोनो में से कोई भी नहीं हूं।

पलक:– तो फिर तुम क्या हो?

आर्यमणि:– एक और प्रहरी जो मेरे बारे में जानना चाहती है। लेकिन मैं अपनी रानी को बता दूं कि मैं सिर्फ एक आम सा इंसान... जो न तो शिकारी है न ही वेयरवोल्फ। ठीक वैसे जैसे निशांत, चित्रा और माधव है।


पलक को किसी और जवाब की उम्मीद थी। शायद प्रहरी जो आकलन कर रहे थे.. "आर्यमणि में कुछ तो खास है।" बस इसी से मिलता–जुलता की आर्यमणि में क्या खास है। लेकिन आर्यमणि बड़ी चतुराई से बात टाल गया और उसका जवाब सुनकर पलक का खिला सा चेहरा मायूसी में छोटा हो गया। आर्यमणि, पलक के सर को अपने सीने से लगाकर, उसपर हाथ फेरते हुए कहने लगा…. "तुम क्यों इतनी बातो का चिंता करती हो। मै क्या हूं वो मत ढूंढो, हम दोनों एक दूसरे के लिए क्या है, इसमें विश्वास रखो। तुम जब आर्य और पलक को एक मानकर चलोगी ना, फिर तुम्हे पूर्ण रूप से आर्य और पूर्ण रूप से पलक भी समझ में आ जाएगी। और यदि तुम बिना पलक के अधूरे आर्य को ढूंढोगी तो ऐसे ही आर्य तुम्हे उम्र भर अजीब लगता रहेगा।


पलक, उसके पेट से लेकर पीठ तक अपनी हाथ लपेटती…. "पता नहीं ये प्रेम है या कुछ और। लेकिन तुमसे दूर होती हूं तब तुमसे लिपटकर रहने की इक्छा होती है और जब पास होते हो तो धड़कने पूरी तेज। इतनी तेज की मै अपनी भावना ठीक से जाहिर नहीं कर पाती। क्या मुझे प्यार हुआ है?"


आर्यमणि:- हां शायद...


दोनो सुकून के प्यारे से पल को भुनाने लगे। कुछ समय बीतने के बाद… "पलक यहां तो धूप बढ़ रही है, कहीं और चले क्या।"..


पलक:- चलो लॉन्ग ड्राइव पर चलते है। जहां जी करेगा वहां रुकेंगे, और ढेर सारी मस्ती करेंगे।


आर्यमणि:- किस्स के नाम पर तो ताला लगा है, मस्ती क्या खाक करेंगे। तुम्हे गोद में उठाया था तो दिल कर रहा था कि होंठ से होंठ लगाकर चूमते हुए ऊपर तक लेकर आऊं।


पलक:- और ऊपर लाकर कंट्रोल नहीं होता तो मुझे इधर-उधर हाथ लगाते और बाद में फिर..


आर्यमणि:- उफ्फ ! क्या रौंगटे खड़े करने वाले ख्याल है। पलक तुम्हारे साथ मुझे एडवांटेज है। इन सब मामले में जो बात दिमाग में भी नहीं रहती, वो भी तुम डाल देती हो। फिलहाल..


पलक:- हां फिलहाल…


आर्यमणि:- फिलहाल इस जगह पर आते ही अब कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि यह एक विकृति स्थल है और मुझे अब जरा पता लगाने दो की यहां कल रात हुआ क्या था? और क्यों ये इलाका सुपरनैचुरल और शिकारियों के लिए प्रतिबंधित है?


पलक:- और ये पता कैसे लगाएंगे?


आर्यमणि:- ये माटी है ना। लोग इसे कितनी भी मैली कर दे, अपने अंदर सब ज़हर समाकर, ऊपर से उन्हें पोषण ही देती है। मै भी इस माटी से मदद मांगता हूं, ये किसका मैल छिपाकर प्रकृति का मनमोहक नजारा दी हुई थी?


पलक आर्यमणि की बात बड़े ध्यान से सुनती हुई उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लगी। दोनो 100 कदम चले होंगे, तभी एक स्थान को देखकर आर्यमणि रुकने के लिए कहा। नीचे बैठकर उसने हाथो में मिट्टी उठाई और उसे सूंघने लगा।… "खून है यहां, किसी तरह का अनुष्ठान हुआ था। खोदने के लिए कुछ है क्या?"..


पलक:- बैग में एक छोटा सा चाकू है।


आर्यमणि, पलक को घूरते हुए… "मेरा गला काटने के लिए तो नहीं लेकर घूम रही थी।"..


पलक, अपने बैग से चाकू निकालकर उसके गले पर रखती… "ये जान और ये आर्य, दोनो मेरे है। इसपर नजर डालने वालों को छिलने के लिए रखी हूं।"..


आर्यमणि उसके हाथो से चाकू लेकर जमीन कि भुरभुरी मिट्टी हटाते… "ऐसे अदाएं मत दिखाओ की मै खुद को रोक नहीं पाऊ। तुम्हारे पास कोई ग्लोब्स या पॉलीथीन है।"


पलक:- नहीं।


आर्यमणि:- पीछे रहना और किसी चीज को छूना मत।


पलक:- हम्मम ! ठीक है।


आर्यमणि तेजी से गया और पेड़ की लंबी चौड़ी छाल छीलकर ले आया। बड़े ही ऐतिहात से मिट्टी के अंदर के समान को निकला। अंदर से फूल, माला, कुछ हड्डियां और कपाल निकली। सब समनो को देखकर पलक, आर्यमणि से पूछने लगी…. "ये सब क्या है आर्य।"..


आर्यमणि:- बताता हूं, तुम जरा पीछे हो जाओ पहले, और कुछ भी हो मुझे छूना मत। समझ गई।


पलक अपना सर हां में हिलती हुई, चार कदम पीछे हो गई… आर्यमणि अपना शर्ट उतार कर नीचे जमीन में बिछाया और पलक उसके बदन पर गुदे टैटू को गौर से देखने लगी। बांह पर राउंड शेप में, संस्कृत के कुछ शब्द लिखे हुए थे। पीठ पर भगवान शिव की बड़ी सी टैटू। जितने भी टैटू थे, दिखने में काफी आकर्षक लग रहा था।


आर्यमणि भूमि के अंदर से निकले सामान को बांधकर एक पोटली बनाया और ठीक उसके पास जमीन को 5 इंच खोदकर अपना दायां पंजा उसके अंदर डाल दिया। बाएं हाथ की मुट्ठी बनाकर पीछे कमर तक ले गया और दायां हाथ के फैले पंजे के क्लॉ भूमि के अंदर घुस गए। दिमाग के अंदर सारी छवि बननी शुरू हो गई। इधर पलक पीछे खड़ी होकर सब देख रही थी।


जैसे ही थोड़ा वक्त बिता, आर्यमणि का पूरा शरीर ही नीला दिखने लगा था और वो अपनी जगह से हिल नहीं रहा था। तकरीबन 10 मिनट तक बिना हिले एक ही अवस्था में रहने के बाद, आर्यमणि अपनी आखें खोला। आर्यमणि अपने हाथ को साफ करने के बाद, छाल का एक मजबूत कवर बनाया और पोटली को छाल के बीच डालकर… "पलक इसे ऊपर से पकड़ना और आराम से कार की डिक्की में रख देना। तुम जबतक ये सब करो मै कार के पास तुम्हे मिलता हूं।"


आर्यमणि चारो ओर का जायजा लेते पश्चिम के रास्ते चल दिया, जहां कुछ दूर आगे झील था। पूरा मुवाएना करने के बाद आर्यमणि पलक के पास पहुंचकर…. "तुम्हे तैरना आता है।"..


पलक:- हां आता है।


आर्यमणि:- चलो मेरे साथ..


पलक:- लेकिन आर्य सुनो तो…


आर्यमणि:- चलो भी..



पलक को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, वो आर्यमणि के साथ चल दी।… "आर्य अब ये तो नहीं कहोगे ना कि हम इस झील में तैरने वाले है।"..


आर्यमणि, पलक की बातो पर ध्यान ना देकर उसका हाथ पकड़ा और तेजी से दौड़ लगाते हुए झील के अंदर चला गया… "बहुत शरारती हो तुम आर्य।"


आर्यमणि अब भी कोई उत्तर नहीं दे रहा था, वो बस पलक का हाथ पकड़ कर एक दिशा में तैरते जा रहा था। आर्यमणि पलक के साथ तैरते हुए झील के इस किनारे से उस किनारे तक चला आया। और थोड़ी ही दूर आगे जाने के बाद.. एक बड़ा सा गड्ढा उसे नजर आने लगा… "पलक मोबाइल लाई हो।"..


पलक:- मुझे लगा ही था कि तुम झील में मुझसे तैराकी ना करवा दो इसलिए मैंने मोबाइल कार में ही छोड़ दिया।


आर्यमणि:- स्मार्ट गर्ल.. किसी को पकड़ो यहां की तस्वीरें लेनी है।


किसी को पकड़ना क्या था वहां पर दो लड़के पुलिस के साथ खुद ही पहुंच रहे थे। .. पुलिस आर्यमणि और पलक को देखकर… "चला रे, भिड़ ना लगाओ।"..


आर्यमणि:- हमलोग प्रेस से है सर.. ये गड्ढा हमे अजीब लग रहा है और आप भी यहां आए है, इसका मतलब कुछ तो राज ये गड्ढा समेटे है। तो बताइए सर, क्या है इसकी कहानी..


पुलिस, अपनी वर्दी टाईट करते… "देखिए वो क्या है।"..


आर्यमणि:- एक मिनट सर, आपका मोबाइल दीजिए ना। पहले यहां को बारीक तस्वीर ले लूं, फिर आप का स्टेटमेंट रिकॉर्ड करके कल अखबार में छपने के लिए भेज दूंगा।


पुलिस:- हां हां क्यों नहीं…


आर्यमणि, मंहगा मोबाइल फोन देखकर.… "क्या बात है सर काफी तरक्की में हो"


पुलिस:- मेरे साला ने गिफ्ट किया है।


आर्यमणि हर एंगल से वहां की तस्वीर लेने लगा। उसके बाद पुलिस की तस्वीर लेते हुए… "हां सर अभी कहिए।"..


पुलिस:- कल रात को यहां कुछ हलचल हुई। पन ये लोग का कहना है कि यहां गड्ढे से कोई भूत निकला और लोगों को मारकर गायब हो गया। इन लोगों के हिसाब से... रात का अंधेरा था और गड्ढे के पास हलचल देखकर लोग इधर कू आए। पन जब आए तो फिर लौटकर नहीं गए। पहले गड्ढे में गिरे और लाश पानी से निकली। इधर तो आबरा का डाबरा चल रहा है।


पुलिस के पास खड़ा एक लड़का…. "साहेब मुनीर काका ने खुद देखा, जब वो भूत दोनो को मार रहे थे। 10 फिट लंबा भूत बिल्कुल काला और अजीब से आंख। मुनीर काका के साथ वो दोनो आदमी भी जा रहे थे। अचानक ही तीनों को यहां गड्ढे के पास कुछ दिखा। मुनीर काका तो रुक गए लेकिन जैसे ही वो दोनो गड्ढे के पास पहुंचे भूत ने दोनो को खींच लिया। दोनो के गर्दन को अपने २ फिट जितने बड़े पंजे में जैसे ही दबोचा ना, उन दोनों के शरीर के अंदर से लाल रंग का धुआं निकलकर, उसके नाक में समा गया और वो भूत इन दोनों को इसी गड्ढे में डालकर गायब हो गया।


आर्यमणि:- सर लाश का फिर तो पोसटमार्टम हुआ होगा।


पुलिस:- इसलिए तो अरेस्ट करने आए रे बाबा। अब मर्डर भूत ने किया या सौतन ने या किसी इंसान ने, उसका पोस्टमार्टम होना तो चाहिए था ना। अब इनको पोस्टमार्टम के लिए बोला तो पुरा गांव हमे घेरकर कहता है, लाश शापित था पुरा गांव खत्म हो जाएगा और इसलिए रात को ही जला दिया।


आर्यमणि:- छोड़ो ना साहेब मै इसे गड्ढे में फिसलकर पानी में डूबने से मौत छाप देता हूं। गड्ढा भरवा दो साहेब वरना आज रात फिर भूत आ जाएगा और इनकी कहानी सच हो की ना हो लेकिन आपकी परमानेंट ड्यूटी यहीं लग जाएगी।


आर्यमणि की बात सुनकर थानेदार हसने लगा। थानेदार ने दोनो से नाम पूछा और अपनी जीप से ले जाकर दोनो को उस पार छोड़ दिया। आर्यमणि और पलक ने थानेदार को धन्यवाद कहा और दोनो कार से वापस निकल गए। इससे पहले कि पलक अपने पजल हुए माइड को, कुछ सवाल पूछकर राहत देती आर्यमणि कहने लगा… "प्रतिबंधित क्षेत्र में एक विकृति रीछ स्त्री थी जो पिछले 2600 साल से सजा भुगत रही थी। सजा अपने पूर्ण जीवन काल तक की थी"..


पलक:- क्या मतलब है तुम्हारा एक रीछ स्त्री।


आर्यमणि:- "रामायण काल में एक प्रजाति का उल्लेख है रीछ, जिसमें जाम्बवंत जी का नाम प्रमुख था। जिन्होंने श्री हनुमान जी को उनकी शक्तियों का स्मरण करवाया था और लक्ष्मण जी जब मूर्छित थे तब हनुमान जी और विभीषण जी, जाम्बवंत जी के पास गए थे। तब उन्होंने ही हिमालय के ऋषभ और कैलाश पर्वत जाकर संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा था।"

"ये प्रजाति मानव जाति की सबसे श्रेष्ठ प्रजातियों में से एक थी जो इंजिनियरिंग और साइंस में काफी आगे थे। मना ये जाता है कि इन लोगों ने एक ऐसा यंत्र का निर्माण किया था जो विषैले परमाणु निगल जाते थे। ये लोग दीर्घ आयु होते थे। जाम्बवंत जी की उम्र बहुत लंबी थी। 5,000 वर्ष बाद उन्होंने श्रीकृष्ण के साथ एक गुफा में स्मयंतक मणि के लिए युद्ध किया था। भारत में जम्मू-कश्मीर में जाम्बवंत गुफा मंदिर है। जाम्बवंत जी की बेटी के साथ भगवान श्री कृष्ण ने विवाह किया था।


पलक:- ये विकृति रीछ स्त्री कितना खतरनाक हो सकती है।


आर्यमणि:- अगर इन लोगो की बात पर यकीन करें तो उसने केवल गला पकड़ कर दो लोगों के रक्त को कण में बदल दिया और अपने अंदर समा ली।


पलक:- ये जो प्रजाति थी वो अच्छी थी या बुरी?
Romance ke badshaah ho aap nainu bhai,
Fauji bhai,Dr saheb adultery ke badshaah hai or chothe hamare Sanju Bhai aap charo mere pasndidaa writer ho.aap charo ke liye ek hi dua nikalti hai kush raho.hamesha taraki karo life mai or aise hi hamara manoranjan karte raho best story ke sath
Bohot hi romantic update nainu bhai the 😃😃😃😃😃
 

Tiger 786

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भाग:–18





पलक:- ये जो प्रजाति थी वो अच्छी थी या बुरी?


आर्यमणि:- बुरे तो राक्षस भी नहीं थे। उन्हें पृथ्वी पर रक्षा करने के लिए भेजा गया था और रक्षा शब्द से ही राक्षस बना। अब क्या कहा जा सकता है। ये अच्छे प्रजाति की एक विकृति स्वभाव की रीछ थी, जिसे यहां कैद किया गया था। शायद वो सिद्धि प्राप्त थी इसलिए तो हिमालय से इतनी दूर लाकर इसे कैद किया गया था। मंत्र के वश में थी, जिसे कल रात आज़ाद कर दिया गया। 500 दिन का वक़्त है, उसके बाद वो क्या-क्या कर सकती है, ये तो वही बताएगी।


पलक:- तुम्हे इतना कैसे मालूम है आर्य?


आर्यमणि:- मेरे दादा, वर्धराज कुलकर्णी, विशिष्ठ प्रजातियों का अध्ययन और उनके जीवन के बारे में सोध करते थे। साथ में एक इतिहासकार भी रहे है। बचपन में उन्होंने मुझे अपनी गोद में बिठाकर बहुत सारी बातों का पुरा ज्ञान दिया था। वो मंत्र और उनकी शक्ति को भी एक साइंस ही मानते थे, जो पंचतत्व में बदलाव लाकर इक्छा अनुसार परिणाम देता था। जिसे चमत्कार कहते है, जो लोग केवल काल्पनिक मानते है।"

"घर जब पहुंचो तो एक बड़ा सा नाद लेना, उसमे पुरा पानी भरकर थोड़ा सा गंगा जल मिला देना और छाल सहित पोटली को उस नाद में डूबो देना। याद रहे बिना गंगा जाल वाले पानी में डुबोए उस कपड़े को छूने की कोशिश भी मत करना। यदि पानी का रंग लाल हुआ तो समझना रक्त मोक्ष श्राप से बंधी थी। और यदि रंग नीला हुआ तो समझना विश मोक्ष श्राप से बंधी थी।


पलक:- लेकिन तुम ये मुझसे क्यों कह रहे हो करने। तुम्हे इतनी जानकारी है तो तुम ही इस जीव को देखो ना।


आर्यमणि:- "मुझे जितना ज्ञान था मैंने बता दिया। प्रहरी के इतिहास की कई सारी पुस्तकें है। यधपी कभी किसी प्रहरी का पाला वकृत रीछ और उसके साथी किसी विकृत महाज्ञानी से नहीं हुआ हो, लेकिन किसी ना किसी के जानकारी में तो ये पुरा मामला जरूर होगा क्योंकि ऐसा तो है नहीं की वैधायाण भारद्वाज के बाद सुपरनेचुरल आए थे, और केवल उन्हें ही अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।"

"वैधायाण भारद्वाज और उनके अनुयाई ने भी कहीं ना कहीं से तो ये सब सिखा ही था। तो इतिहास में कहीं ना कहीं तो इस बांधी हुई रीछ स्त्री का भी जिक्र मिल जाएगा। बिना उसके हम कुछ नहीं कर सकते।"


पलक:- और जब मुझसे पूछेंगे की मुझे ये सब कैसे पता चला तो मै क्या जवाब दूंगी। उनके होने वाले जमाई ने पुरा रिसर्च किया है।


आर्यमणि:- उनसे कहना तुम जिस लड़के के साथ घूमने गई थी वह जबरदस्ती प्रतिबंधित क्षेत्र ले गया। मुझे भी जानने की जिज्ञासा थी कि यहां ऐसा क्या हुआ था, जो यह क्षेत्र प्रतिबंधित है? फिर सबको बताना कि तुम्हे हवा में कुछ अजीब सा महसूस हुआ और तुमने आदिकाल बंधन पुस्तिका का स्मरण किया जिसका ज्ञान प्रहरी शिक्षण के दूसरे साल में दिया जाता है।


पलक:- हां समझ गई आगे याद आ गया। वहीं लिखा हुआ है हवा में छोटी सी अजीब बदलावा का पीछा किया जाए तो बड़े रहस्य के वो करीब पहुंचा देता है। मंत्र पुस्तिका के कारण ये पोटली बनाई और अनुसंधान भेजने के लिए ले आयी। रीछ के बारे में भी पढ़ी हूं और वो गड्ढे की कहानी से जोड़ दूंगी।


आर्यमणि:- ये हुई ना मेरी रानी जैसा सोच और दबदबा।


पलक:- आर्य तुम्हे अपने परिवार को लेकर काफी दुख होता होगा ना। तुम्हारे ज्ञानी दादा जी को कितना बेइज्जत करके महाराष्ट्र से निकलने पर मजबूर कर दिया। तुम्हारी मां..


आर्यमणि:- हूं..


पलक:- माफ करना... मेरी सासू मां प्यार में थी, जैसे मै हूं, गलती मेरे मामा से हुई क्योंकि उन्होंने आत्महत्या चुना, लेकिन सजा तुम्हारी मां को मिली।


आर्यमणि:- छोड़ो बीते वक़्त को, तैयार रहना जल्द ही मै तुम्हे चूमने वाला हूं। शायद सोमवार को ही मेरा मंगल हो जाए। और एक बात, हम इतने क्लोज हो गए है कि तुम्हरे हाव-भाव अब कहीं जाता ना दे, हमारे बीच कुछ है।


पलक:- क्यों ये रिश्ता सीक्रेट रखना है क्या?


आर्यमणि:- हमारा रिश्ता अरेंज होगा और सभी लोग हाथ पकड़कर हमारा रिश्ता करवाएंगे।


पलक:- क्यों तुमने सब पहले से प्लान कर रखा है क्या?


आर्यमणि:- लक्ष्य पता है, कर्म कर रहा हूं, बस दिमाग खुले रखने है और सही वक़्त पर सही नीति… फिर तो ठीक वैसा ही होगा जैसा सोचा है, बस तुम ये जाहिर नहीं होने देना की हम एक दूसरे में डूब चुके है।


पलक:- जो आज्ञा महाराज।


पलक, आर्यमणि को तेजस दादा के शॉपिंग मॉल, बिग सिटी मॉल के पास छोड़ दी और खुद घर लौट गई। पलक जिस अंदाज़ में गई थी और जिस अंदाज़ में लौटी उसे देखकर तो पूरे घरवाले हसने लगे।… "क्या हुआ पलकी, उस लड़के ने तुझे पानी में धकेल दिया क्या।"


पलक:- मै वाकी वुड्स के प्रतिबंधित क्षेत्र में गई थी।


उज्जवल और नम्रता हड़बड़ा कर उसके पास पहुंचे। उनके आखों में गुस्सा साफ देखा जा सकता था। पलक सारी बातें बताती हुई एक नाद मंगवाई और छाल में बंद उस पोटली को डूबो दी। पोटली का रंग नीला पड़ गया। नीला रंग देखकर पिता उज्जवल और पलक दोनो के मुंह से निकल गया… "विष मोक्ष श्राप"।


किसी असीम शक्ति को बांधने के लिए २ तरह के श्राप विख्यात थे। पहला बंधन श्राप था "रक्त मोक्ष श्राप"। इस बंधन को बांधने के लिए 5 अलग–अलग जीवों के साथ एक इंसान की बलि दी जाती थी। इंसानी बलि भी केवल तब मान्य थी, जब वह स्वेक्षा से दी जाए। यूं तो लोग उन असीम शक्तियों वालों से इतना सताए हुए होते थे कि उसे मिटाने की चाह में हंसी–खुशी तैयार हो जाते थे। परंतु असीम सिद्धि प्राप्त या शक्तियों वाले किसी भी ऐसे प्राणी को छुड़ाने वाले, उनके अनुयाई की भी कमी नही थी। सभी मंत्रो के सुरक्षित जाप के बाद बंधन बांधने वाले ज्ञानियों की बलि चढ़ाकर श्राप मुक्त किया जा सकता था।


वहीं दूसरी ओर "विष मोक्ष श्राप" में 5 ज्ञानी सुरक्षित मंत्र जाप करते थे और अनुष्ठान पूर्ण होने के बाद सभी विष पीकर अपने प्राण त्याग देते थे। वह विष इतना खास था की सेवन के कुछ क्षण बाद तो उनके हड्डियों तक के सबूत नहीं मिलते थे। इतिहास में विष मोक्ष श्राप की विधि तो बताई गई है, लेकिन कितनो को विष मोक्ष श्राप से बंधा गया, इसका कोई उल्लेख नहीं। क्यूंकि गुप्त रूप से विष मोक्ष श्राप की अनुष्ठान होता था और कहीं कोई प्रमाण ही नही बचता... साथ ही साथ इस बंधन को तोड़ तो खुद उन ज्ञानियों के पास भी नहीं था, जो हर तरह के श्राप का ज्ञान रखते थे। इसलिए यदि कोई विष मोक्ष श्राप से बंधा है, तब तो वह जरूर असीम शक्तियों का मालिक होगा। और यदि किसी ने विष मोक्ष श्राप को उलट कर, किसी विकृत को कैद से बाहर निकाला है, फिर तो वह साधक और भी ज्यादा खतरनाक होगा...


विष मोक्ष श्राप का नाम सुनकर पलक और उज्जवल एक दूसरे का मुंह देखने लगे। पलक मन ही मन रीछ स्त्री के शक्तियों की कल्पना कर अपने पिता से पूछने लगी… "बाबा ये रीछ स्त्री कितनी खतरनाक हो सकती है।"..


उज्जवल:- रीछ प्रजाति को इतिहास में श्रेष्ठ मानव माना गया था। कहा जाता है भालू के पूर्वज यही है। इनका क्षेत्र उस समय के तात्कालिक भारतवर्ष में से दक्षिण और हिमालय की तराई में था। दक्षिण में रीछ प्रजाति के बड़े–बड़े राज्य थे, जिसपर रावण ने अपना आधिपत्य जमा लिया था। ऐसे श्रेष्ठ जाती का कोई शापित विकृति है तो उसका अंदाजा लगा पाना भी मुश्किल होगा कि ये हम सब के लिए कितना ख़तरनाक हो सकती है। रिक्ष स्त्री को विष मोक्ष श्राप से मुक्त करने वाला भी कोई विकृति ज्ञानी होगा। घातक जोड़ी है जो समस्त पृथ्वी पर राज कर सकती है। हमे अपात कालीन बैठक बुलानी होगी और इतिहास के ज्ञानियों से हमे बात करनी होगी। पलक तुमने बहुत अच्छा काम किया है। मै तुम्हे प्रहरी की उच्च सदस्यता देते हुए, तुम्हे विशिष्ठ जीव खोजी साखा का अध्यक्ष नियुक्त करता हूं। प्रहरी उच्च सदस्यों के होने वाले बैठक में तुम्हारा आना अनिवार्य होगा।


पलक:- हम्मम ! ठीक है बाबा।


नम्रता:- 3 लाख खर्च तो नहीं कि ना.. चल अब पार्टी दे। उच्च सदस्य। मतलब कई साल का सफर तूने 4 घंटे में तय कर लिया।


पलक:- ठीक है ले लेना पार्टी। अब खुश ना।


नम्रता:- बेहद ही खुश हूं। और बाबा का चेहरा तो देख अंदर ही अंदर कितना खुश हो रहे है।


उज्जवल:- पलक के लिए तो खुश हूं, लेकिन आने वाले संकट को लेकर चिंतित। हमारा काम केवल पोस्ट बांटना नहीं बल्कि दो दुनिया के बीच दीवार की तरह खड़ा रहना है, ताकि कोई एक दूसरे को परेशान ना करे।


पलक से मिली जानकारी को उज्जवल ने प्रहरी के सभी उच्च सदस्यों से साझा कर दिया। विषय की गंभीरता को देखते हुए, अध्यक्ष विश्व देसाई ने आपातकालीन बैठक बुलाई, जिसमे तात्कालिक सभी सदस्य के साथ संन्यास लिए जीवित सदस्य भी सामिल होंगे। शुरवात मीटिंग की अध्यक्षता विश्व देसाई लेंगे, उसके बाद कमान संभालेंगे सुकेश भारद्वाज।


आपातकालीन बैठक की बात सुनकर भूमि भी वापस नागपुर लौट चुकी थी। भूमि के लौटते ही आर्यमणि को ना चाहते हुए भी अपनी मासी के घर से दीदी के घर वापस आना पड़ा। सोमवार को कॉलेज में फिर एक बार जिल्लत झेलने के बाद आर्यमणि भूमि के घर लौट आया था।


शाम का वक्त था जब भूमि लौटी। आर्यमणि अपने दीदी के गले लगते पूछने लगा कैसा रहा ट्रिप। भूमि मुस्कुराकर जर उसे कही अच्छा रहा। फिर वो थोड़ा आराम करने चली गई और रात के तकरीबन 10 बजे पूरे फुरसत के साथ, अपने भाई के साथ बैठी।


भूमि:- क्या मेरा बच्चा, अब बता क्या बात है?


आर्यमणि:- मेरी छोड़ो और अपनी परेशानी बताओ। मै जानता हूं आप जिस काम से गई थी, उसे अधूरा छोड़कर आयी हो। कोई न, मै फ्री ही बैठा हूं। आपका वो काम मैं कर दूंगा, भरोसा रखो मुझपर।


भूमि:- तू तो आएगा नहीं प्रहरी बनने। मै, जयदेव और रिचा बस प्रहरी के बीच पल रहे आस्तीन के सांप को ढूंढ रही हूं।


आर्यमणि:- आप भी वही सोच रही है ना जो मै सोच रहा हूं।


भूमि:- और मेरा भाई क्या सोच रहा है?


आर्यमणि:- यही की कैसे भारद्वाज खानदान गुमनामी में जाता रहा है? कैसे उसके करीबी ठीक उसी वक़्त परेशान कर दिए जाते है जब भारद्वाज अपनी जड़ें प्रहरी में मजबूत कर रहा होता है? क्यों शुरू से प्रहरी के नेक्स्ट जेनरेशन के बीच झगड़ा होता रहा है और इन्हीं झगड़ों को देखकर मौसा जी ने अपने दो पैदा हुए बेटो का गला घोंटा, ताकि जब ये बड़े हो तो तीनों भाई दुश्मन बनकर परिवार में शक्ल ना देखे और समुदाय मे एक दूसरे का विरोध करते रहे?


भूमि:- तुम्हारे दादा को प्रहरी से बेज्जत करके निकाला, इसलिए ऐसा सोच रहा है ना?


आर्यमणि:- केवल मेरे दादा के साथ ऐसा हुआ था। मेरी मां का मायका कितना सुदृढ़ था। उनके बाबा ने कितनी संपत्ति अर्जी थी मुंबई में। यदि बीते जेनरेशन के मनीष मिश्रा (अक्षरा भारद्वाज का छोटा भाई और पलक का छोटा मामा) की शादी जया जोशी से होती, तो भारद्वाज का करीबी इकलौता मिश्र परिवार और भी सुदृढ़ होता, ऊपर से सुना है मां उस समय की बेस्ट थी, जैसा कि आप आज है। यदि मनीष मिश्रा के साथ जया जोशी की शादी होती तो भारद्वाज के करीबी, इकलौता मिश्रा परिवार भी आज खड़ा होता।


भूमि:- हम्मम ! मतलब तू यहां आया है अपने परिवार के आशुओं का हिसाब लेने।


आर्यमणि:- इतने साल बाद जब लौटा तो लगा कि मैंने कितना बड़ा पाप किया है। लेकिन जब गौर किया तो मां ने अपना अस्तित्व खोया था। भारद्वाज परिवार के करीबी मेरे दादा को किसी की साजिश का शिकार होना पड़ा था। कोई एक कुल तो है जो भारद्वाज को शुरू से तोड़ने का काम करते आ रहा है और पीढ़ी दर पीढ़ी अपने परिवार के पाठसाला में सबको यही सिक्षा से रहा है या रही है।


भूमि:- "हां मै भी बिल्कुल यही सोच रही थी। इसलिए 10 दिन के लिए बाहर गई थी ताकि उन्हें लग जाए कि तुम्हरे ऊपर मेरा हाथ बिल्कुल भी नहीं। जो लड़का पैदल एक पुरा देश के बराबर जंगल को लांघ गया है, उसका तो ये लोग कुछ नहीं बिगाड़ पाते लेकिन जबतक तू पुरा उलझता नहीं, तबतक उसे तुम्हारे पूरे ताकत का अंदाज़ा होता नहीं। जब तुम्हारे ताकत का अंदाजा होता तब वो जरूर किसी ना किसी शिकारी को ये काम देते। मै बस उसी के इंतजार में थी।


आर्यमणि:- खैर आपको पहले ये बात करनी थी। कल आपके बहुत से प्रहरी कम हो जाएंगे। क्योंकि जिसने मेरे परिवार के साथ जाने अंजाने में साजिश रची, उसका पता तो मुझे कबका चल चुका है।


भूमि:- सुन मेरे भाई, तुम कल जो भी पता करना है वो करो, लेकिन किसी प्रहरी को मारना मत। अभी हम बहुत बड़ी मुसीबत में है। कोई कमीना भी हुआ, तो क्या हुआ। हो सकता है उसकी जानकारी से हम उस जीव पर विजय प्राप्त ले।


आर्यमणि:- कौन सा जीव दीदी।


भूमि:- अभी जाकर सो जा, आराम से सब बता दूंगी। सुन मै यहां 3 दिन बाद आने वाली हूं, तो लोगों को पता नहीं चलना चाहिए। और एक बात, मै यहां नहीं हूं ये सोचकर तुझे उकसाने के लिए डायरेक्ट अटैक होंगे। हो सके तो 2-3 दिन कॉलेज ना जा। प्रहरी की मीटिंग से फ्री होकर मै कॉलेज को देखती हूं।


आर्यमणि:- दीदी जाकर सो जाओ और मेरी चिंता छोड़ दो। रही बात कॉलेज की तो वहां का लफड़ा मै खुद निपट लूंगा। हां मेरे एक्शन का इंपैक्ट देखना हो तो कल कॉलेज का सीसी टीवी कैमरा हैक कर लेना। मुख्य साजिशकर्ता का पता मिले या ना मिले लेकिन मैंने किसी को प्रोमिस किया है कि कल ही काम खत्म होगा।
Nainu bhai kya kehte ho har update pe zwaab du ya sare update padh lu non stop kya karu yaar jab padne bethta hu rukne ka mann nahi karta to aap hi salah do

Bhai aap ki lekhni ke liye to sale shabd bi Kam pad jaye.nishchal wali dono story 2 bar padh chuka hu par dil nahi barta jaise hum apni pasndida film ko bar bar dekhte hai waise hi
 
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