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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–43






संन्यासी शिवम:– मेरे ख्याल से जब पारीयान की मृत्यु हुई होगी तब तक वो लोग हिमालय का पूरा क्षेत्र छान चुके होंगे। रीछ स्त्री लगभग 5000 वर्ष पूर्व कैद हुई थी और पारीयान तो बस 600 वर्ष पुराना होगा। हमारे पास पारीयान का तो पूरा इतिहास ही है। तांत्रिक सबसे पहले वहीं से खोज शुरू करेगा जो हमारा केंद्र था। और जिस जगह तुम्हे पारीयान का तिलिस्म मिला था, हिमालय का क्षेत्र, वह तो सभी सिद्ध पुरुषों के शक्ति का केंद्र रहा है। वहां के पूरे क्षेत्र को तो वो लोग इंच दर इंच कम से कम 100 बार और हर तरह के जाल को तोड़ने वाले 100 तरह के मंत्रों से ढूंढकर पहले सुनिश्चित हुये होंगे। इसलिए पारीयान का खजाना वहां सुरक्षित रहा। वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी तांत्रिक मिल गयि होती तो तुम सोच भी नही सकते की महाजनिका क्या उत्पात मचा सकती थी।


निशांत:– क्या होता संन्यासी सर?


संन्यासी शिवम:– "वह आगे तुम खुद आकलन कर लेना। हां तो मैं रीछ स्त्री के ढूंढने की बात कर रहा था। हम कैलाश मठ से जुड़े है और यह भी मात्र एक इकाई है। ऐसे न जाने सैकड़ों इकाई पूरे भारतवर्ष में थी और सबका केंद्र पूर्वी हिमालय का एक गांव था। तांत्रिक की पीढ़ी दर पीढ़ी कि खोज पहले तो हमारे केंद्र से लेकर सभी इकाई के बीच हुई होगी। फिर जब उन्हें रीछ स्त्री इन सब जगहों में नही मिली होगी, तब ये लोग समस्त विश्व में ढूंढने निकले होंगे। आखिरकार उनके भी हजारों वर्षों की खोज समाप्त हुयि, और अध्यात को रीछ स्त्री महाजनिका मिल गयि। अब जो इतने जतन के बाद मिली थी, उसे वापस नींद से जगाने के लिए तांत्रिक और उसके सहयोगियों ने बिलकुल भी जल्दबाजी नही दिखायि। योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़े।"

"वह पुस्तक रोचक तथ्य मैने भी पढ़ी थी। जिस हिसाब से उन लोगों ने रीछ स्त्री को किताब में मात्र छोटी सी जगह देकर विदर्भ में बताया था और प्रहरी इतिहास का गुणगान किया था, हम समझ चुके थे कि यह तांत्रिक कितने दूर से निशाना साध रहा था। प्रहरी ने फिर पहले संपादक से संपर्क किया और उस संपादक के जरिये तांत्रिक और प्रहरी मिले। विष मोक्ष श्राप से किसी को जगाना आसान नहीं होता। जहां से रीछ स्त्री महाजनिका को निकाला गया था, उस जगह पर पिछले कई वर्षों से अनुष्ठान हो रहा था। कई बलि ली गयि। कइयों की आहुति दी गयि और तब जाकर वह रीछ स्त्री अपने नींद से जागी। वर्तमान समय को देखा जाय तो प्रहरी के पास पैसे ताकत और शासन का पूरा समर्थन है। तांत्रिक के अनुष्ठान में कोई विघ्न न हो इसलिए प्रहरी ने पूरे क्षेत्र को ही प्रतिबंधित कर दिया। मात्र कुछ प्रहरियों को पता था कि वहां असल में क्या खेल चल रहा और तांत्रिक अध्यात की हर जरूरत वही पूरी करते थे। बाकी सभी प्रहरी को यही पता था कि वहां कुछ शापित है जो सबके लिए खतरा है।"

"ऐडियाना का मकबरा ढूंढना तांत्रिक के लिए कौन सी बड़ी बात थी। और वहीं मकबरे में ऐसी १ ऐसी वस्तु थी जो महाजनिका को जागने के तुरंत बाद चाहिए थी, पुर्नस्थापित अंगूठी। वैसे एक सत्य यह भी है कि पुर्नस्थापित अंगूठी का पत्थर और बिजली की खंजर दोनो ही महाजनिका की ही खोज है। प्रहरी और तांत्रिक के बीच संधि हुई थी। ऐडियाना का मकबरा खुलते ही वह खंजर प्रहरी का होगा और बाकी सारा सामान तांत्रिक का। इन सबके बीच तुम चले आये और इनके सारी योजना में सेंध मार गये...


आर्य मणि:– सब कुछ तो आपने किया है, फिर मैं कहां से बीच में आया...


संन्यासी शिवम:– हमे तो किसी भी चीज की भनक ही नहीं होती। जिस दिन तुमने पारीयान के भ्रम जाल से उसके पोटली को निकाला, (आर्यमणि जब जर्मनी की घटना के बाद लौटा था, तब सबसे पहले अपने मां पिताजी से मिलने गंगटोक ही गया था), उसी दिन कैलाश मठ में पता चला था कि भ्रमित अंगूठी किसी को मिल गई है। मैं तो भ्रमित अंगूठी लेने तुम्हारे पीछे आया। और जब तुम्हारे पीछे आया तभी सारी बातों का खुलासा हुआ। तुम गंगटोक में अपनी उन पुस्तकों को जला रहे थे जो 4 साल की यात्रा के दौरान तुमने एकत्र किए थे। कुल 6 किताब जलाई थी और उन सभी पुस्तकों को हमने एक बार पलटा था। उन्ही मे से एक पुस्तक थी रोचक तथ्य। उसके बाद फिर हम सारे काम को छोड़कर विदर्भ आ गये।


आर्य मणि:– जब आपको पहले ही सब पता चल चुका था, फिर रीछ स्त्री को जागने ही क्यों दिया।


संन्यासी शिवम:– अच्छा सवाल है। लेकिन क्या पता भी है कि महाजनिका कौन थी और विष–मोक्ष श्राप से उसे किसने बंधा था? और क्या जितना वक्त पहले हमे पता चला, वह वक्त महा जनिका को नींद से न जगाने के लिये पर्याप्त थी?


आर्य मणि ने ना में अपना सर हिला दिया। संन्यासी शिवम अपनी बात आगे बढ़ाते.… "यूं तो रीछ की सदैव अपनी एक दुनिया रही है, जिसमे उन्होंने मानव समाज के लिए सकारात्मक कार्य किये और कभी भी अपने ऊपर अहम को हावी नही होने दिया। कई तरह के योद्धा, वीर और कुशल सेना नायक सिद्ध पुरुष के बताये सच की राह पर अपना सर्वोच्च योगदान दिया है। जहां भी उल्लेख है हमेसा सच के साथ खड़े रहे और धर्म के लिये युद्ध किया।"

"महाजनिका भी उन्ही अच्छे रीछ में से एक थी। वह सिद्धि प्राप्त स्त्री थी। उसकी ख्याति समस्त जगत में फैली थी। शक्ति और दया का अनोखा मिश्रण जिसने अपने गुरु के लिये कंचनजंगा में दो पर्वतों के बीच एक अलौकिक गांव बसाया। वहां का वातावरण और कठिन जलवायु आम रहने वालों के हिसाब से बिलकुल भी नहीं था। इसलिए उसने अपनी सिद्धि से वहां की जलवायु को रहने योग्य बना दी। यश और प्रसिद्धि का दूसरा नाम थी वह।"

"उसके अनंत अनुयायियों में से सबसे प्रिय अनुयायि तांत्रिक नैत्रायण था। तांत्रिक का पूरा समुदाय महाजनिका में किसी देवी जैसी श्रद्धा रखते थे। हर आयोजन का पहला अनुष्ठान महाजनिका के नाम से शुरू होता और साक्षात अपने समक्ष रखकर उसकी आराधना के बाद ही अनुष्ठान को शुरू किया करते थे। महाजनिका जब भी उनके पास जाती वह खुद को ईश्वर के समतुल्य ही समझती थी। किंतु वास्तविकता तो यह भी थी कि तांत्रिक नैत्रायण और उसका पूरा समुदाय अहंकारी और कुरुर मानसिकता के थे। सामान्य लोगों का उपहास करना तांत्रिक और उनके गुटों का मनोरंजन हुआ करता था।"

"उसी दौड़ में एक महान गुरु अमोघ देव हुआ करते थे, जो महाजनिका के भी गुरु थे, किंतु निम्न जीवन जीते थे और लोक कल्याण के लिये अपने शिष्यों को दूर दराज के क्षेत्रों में भेजा करते थे। उन्ही दिनों की बात थी जब गुरु अमोघ देव के एक शिष्य आरंभ्य को एक सामान्य मानव समझ कर तांत्रिक नैत्रायण ने उसका उपहास कर दिया। उसके प्रतिउत्तर में आरंभ्य ने उसकी सारी सिद्धियां मात्र एक मंत्र से छीन लिया और सामान्य लोगों के जीवन को समझने के लिए उसे भटकते संसार में बिना किसी भौतिक वस्तु के छोड़ दिया।"

"तांत्रिक नैत्रायण ने जिन–जिन लोगों का उपहास अपने मनोरंजन के लिए किया किया था, हर कोई बदले में उपहास ही करता। कोई उसकी धोती खींच देता तो कोई उसके आगे कचरा फेंक देता। तांत्रिक यह अपमान सहन नही कर पाया और महाजनिका के समक्ष अपना सिर काट लिया। महाजनिका इस घटना से इतनी आहत हुयि कि बिना सोचे उसने पूरे एक क्षेत्र से सभी मनुष्यों का सर काटकर उस क्षेत्र को वीरान कर दिया। उन सभी लोगों में गुरु अमोघ देव के शिष्य आरंभ्य भी था।"

"गुरु अमोघ देव इतनी अराजकता देखकर स्वयं उस गांव से बाहर आये और महाजनिका को सजा देने की ठान ली। गुरु अमोघ देव और महाजनिका दोनो आमने से थे। भयंकर युद्ध हुआ। हारने की परिस्थिति में महाजनिका वहां से भाग गयि। महाजनिका वहां से जब भागी तब एक चेतावनी के देकर भागी, "कि जब वह लौटेगी तब खुद को इतना ऊंचा बना लेगी कि कोई भी उसकी शक्ति के सामने टिक न पाय। लोग उसके नाम की मंदिर बनाकर पूजे और लोक कल्याण की एकमात्र देवी वही हो और दूसरा कोई नहीं।"

"इस घटना को बीते सैकड़ों वर्ष हो गये। महाजनिका किसी के ख्यालों में भी नही थी। फिर एक दौड़ आया जब महाजनिका का नाम एक बार फिर अस्तित्व में था। जिस क्षेत्र से गुजरती वहां केवल नर्क जैसा माहौल होता। पूरा आकाश हल्के काले रंग के बादल से ढक जाता। चारो ओर केवल लाश बिछी होती जिसका अंतिम संस्कार तक करने वाला कोई नहीं था। उसके पीछे तांत्रिक नैत्रायण के वंशज की विशाल तांत्रिक सेना थी जिसका नेतृत्व तांत्रिक विशेसना करता था। महाजनिका के पास एक ऐसा चमत्कारिक कृपाण (बिजली का खंजर) थी, जिसके जरिये वह मुख से निकले मंत्र तक को काट रही थी। सकल जगत ही मानो काली चादर से ढक गया हो, जो न रात होने का संकेत देती और ना ही दिन। बस मेहसूस होती तो केवल मंहूसियत और मौत।"

"गुरु अमोघ देव के नौवें शिष्य गुरु निरावण्म मुख्य गुरु हुआ करते थे। 8 दिन के घोर तप के बाद उन्होंने ही पता लगाया था कि महाजनिका अपनी शक्तियों को बढ़ाने के लिये, प्रकृति के सबसे बड़े रहस्य के द्वार को खोल चुकी थी... समनंतर दुनिया (parellel world) के द्वार। अपनी ही दुनिया की प्रतिबिंब दुनिया, जहां नकारात्मक शक्तियों का ऐसा भंडार था, जिसकी शक्तियां पाकर कोई भी सिद्ध प्राप्त इंसान स्वयं शक्ति का श्रोत बन जाए। इतना शक्तिशाली की मूल दुनिया के संतुलन को पूर्ण रूप से बिगाड़ अथवा नष्ट कर सकता था।"

"उस दौड़ में मानवता दम तोड़ रही और महाजनिका सिद्धि और बाहुबल के दम पर हर राज्य, हर सीमा और हर प्रकार की सेना को मारती हुई अपना आधिपत्य कायम कर रही थी। लोक कल्याण के बहुत से गुरुओं ने मिलकर भूमि, समुद्र तथा आकाश, तीनों मध्यम से वीरों को बुलवाया। इन तीनों मध्यम में बसने वाले मुख्य गुरु सब भी साथ आये। कुल २२ गुरु एक साथ खड़े मंत्रो से मंत्र काट रहे थे, वहीं तीनों लोकों से आये वीर सामने से द्वंद कर रहे थे। लेकिन महाजनिका तो अपने आप में ही शक्ति श्रोत थी। उसका बाहुबल मानो किसी पर्वत के समान था। ऐसा बाहुबल जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। अंधकार की दुनिया (parellel world) से उसने ऐसे–ऐसे अस्त्र लाये जो एक बार में विशाल से विशाल सेना को मौत की आगोश में सुला दिया करती थी।"

महाजनिका विकृत थी। अंधकार की दुनिया से लौटने के बाद उसका हृदय ही नही बल्कि रक्त भी काली हो चुकी थी। वह अपने शक्ति के अहंकार में चूर। उसे यकीन सा हो चला था कि वही एकमात्र आराध्या देवी है। किंतु वह कुछ भूल गयि। वह भूल गयि कि गुरु निरावण्म को समस्त ब्रह्माण्ड का ज्ञान था। ब्रह्मांड की उत्पत्ति जिन शक्ति पत्थरों से हुयि, फिर वह सकारात्मक प्रभाव दे या फिर नकारात्मक, उनको पूरा ज्ञान था। अंत में गुरु निरावण्म स्वयं सामने आये और उनके साथ था समस्त ब्रह्माण्ड का सबसे शक्तिशाली समुदाय का सबसे शक्तिशाली योद्धा, जिसे विग्गो सिग्मा कहते थे।

ब्रह्मांड के कई ग्रहों में से किसी एक ग्रह का वो निवासी था जिसे गुरु निरावण्म टेलीपोर्टेशन की जरिये लेकर आये थे। वह वीर अकेला चला बस शक्ति श्रोत के कयि सारे पत्थर संग जो युद्ध के लिये नही वरन महाजनिका को मात्र बांधने के उपयोग में आती। हर बुरे मंत्रो का काट गुरु निरावण्म पीछे खड़े रहकर कर रहे थे। उस विगो सिग्मा के बाहुबल की सिर्फ इतनी परिभाषा थी कि स्वयं महाजनिका उसके बाहुबल से भयभीत हो गयि। जैसा गुरु निरावण्म ने समझाया उसने ठीक वैसा ही किया। कई तरह के पत्थरों के जाल में महाजनिका को फसा दिया। शक्ति पत्थरों का ऐसा जाल जिसमे फंसकर कोई भी सिद्धि दम तोड़ दे। जो भी उस जाल में फसा वह अपनी सिद्धि को अपनी आखों से धुएं के माफिक हवा में उड़ते तो देखते, किंतु कुछ कर नही सकते थे। उसके कैद होते ही तांत्रिक विशेसना की सेना परास्त होने लगी।"

"महाजनिका और तांत्रिक विशेसना दोनो को ही समझ में आ चुका था की अब मृत्यु निश्चित है। तभी लिया गया एक बड़ा फैसला और तांत्रिक विशेसना के शिष्य विष मोक्ष श्राप से महाजनिका को कैद करने लगे। गुरु निरावण्म पहले मंत्र से ही भांप गये थे कि महाजनिका को कैद करके उसकी जान बचाई जा रही थी। लेकिन विष मोक्ष श्राप मात्र २ मंत्रों का होता है और कुछ क्षण में ही समाप्त किया जा सकता है। गुरु निरावण्म के हाथ में कुछ नही था, इसलिए उन्होंने टेलीपोर्टेशन के जरिये कैद महाजनिका को ही विस्थापित कर दिया।"

"कमजोर तो महाजनिका भी नही थी। उसे पता था यदि उसके शरीर को नष्ट कर दिया गया तब वह कभी वापस नहीं आ सकती। इसलिए जब गुरु निरावण्म उसे टेलीपोर्टेशन के जरिए विस्थापित कर रहे थे, ठीक उसी वक्त महाजनिका ने भी उसी टेलीपोर्टेशन द्वार के ऊपर अपना विपरीत द्वार खोल दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि महाजनिका की आत्मा समानांतर दुनिया (parellel world) के इस हिस्से में रह गयि और शरीर अंधकार की दुनिया में। यूं समझा जा सकता है कि आईने के एक ओर आत्मा और दूसरे ओर उसका शरीर। और दोनो ही टेलीपोर्टेशन के दौरान विष मोक्ष श्राप से कैद हो गये।"

"तांत्रिक विशेसना के सामने २ चुनौतियां थी, पहला अंधकार की दुनिया का दरवाजा खोलकर महाजनिका के शरीर और आत्मा को एक जगह लाकर उसे विष मोक्ष श्राप से मुक्त करना। और दूसरा ये सब काम करने के लिये सबसे पहले महाजनिका को टेलीपोर्ट करके कहां भेजा गया था, उसका पता लगाना... हां लेकिन इन २ समस्या के आगे एक तीसरी समस्या सामने खड़ी थी। अपने और अपने बच्चों की जान बचाना। टेलीपोर्टेशन विद्या आदिकाल से कई सिद्ध पुरुषों के पास रही थी किंतु तंत्रिक के पास वो सिद्धि नही थी जो उसे टेलीपोर्ट कर दे, इसलिए खुद ही उसने आत्म समर्पण कर दिया। इस आत्म समर्पण के कारण उसके बच्चों की जान बच गयि।"

"महाजनिका को विष मोक्ष श्राप उसे किसी गुरु द्वारा नही दी गई थी बल्कि तांत्रिक विशेसना के नेतृत्व में उसी के चेलों ने दी थी। हालाकि रक्त–मोक्ष श्राप से भी बांध सकते थे किंतु रक्त मोक्ष श्राप की विधि लंबी थी और समय बिलकुल भी नहीं था। महाजनिका को जगाने की प्रक्रिया कुछ वर्षों से चल रही थी। हम तो उसके आखरी चरण में पहुंचे थे। मैं आखरी चरण को विस्तार से समझाता हूं। विष–मोक्ष श्राप से जब किसी को वापस लाया जाता है तो वह उसके पुनर्जनम के समान होता है। गर्भ में जैसे बच्चा पलता है, ठीक वैसा ही एक गर्भ होता है, जहां शापित स्त्री या पुरुष 9 महीने के लिये रहते हैं। एक बार जब गर्भ की स्थापना हो जाती है, फिर स्वयं ब्रह्मा भी उसे नष्ट नही कर सकते। उसके जब वह अस्तित्व में आ जाये तभी कुछ किया जा सकता था। और हम तो गर्भ लगभग पूर्ण होने के वक्त पहुंचे।"

"आज जिस महाजनिका से हम लड़े है उसकी शक्ति एक नवजात शिशु के समान थी। यूं समझ लो की अपनी सिद्धि के वह कुछ अंश, जिन्हे हम अनुवांसिक अंश भी कहते हैं, उसके साथ लड़ी थी। यह तो उसकी पूर्ण शक्ति का मात्र १००वा हिस्सा रहा होगा। इसके अलावा वह २ बार मात खाई हुई घायल है, इस बार क्या साथ लेकर वापस लैटेगी, ये मुख्य चिंता का विषय है?"


आर्यमणि:– महाजनिका कहां से क्या साथ लेकर आयेगी? आप लोग इतने ज्ञानी है और महाजनिका इस वक्त बहुत ही दुर्बल। इस वक्त यदि छोड़ दिया तब तो वह अपनी पूरी शक्ति के साथ वापस आयेगी। आप लोगों को इसी वक्त उसे ढूंढना चाहिए...


संन्यासी शिवम:– "कहां ढूंढेंगे... वह इस लोक में होगी तो न ढूंढेंगे। महाजनिका अंधकार की दुनिया (parellel world) में है। अंधकार की दुनिया (parellel world) अपनी ही दुनिया की प्रतिबिंब दुनिया है, जिसका निर्माण प्रकृति ने संतुलन बनाए रखने के लिए किया है। जैसे की ऑक्सीजन जीवन दायक गैस लेकिन उसे बैलेंस करने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड बनाया। प्रकृति संतुलन बनाए रखने के लिए दोनो ही तरह के निर्माण करती है।"

"समांनानतर ब्रह्मांड भी इसी चीज का हिस्सा है, बस वहां जीवन नही बसता, बसता है तो कई तरह के विचित्र जीव जो उस दुनिया के वातावरण में पैदा हुए होते हैं। यहां के जीवन से उलट और सामान्य लोगों के लिए एक प्रतिकूल वातावरण जहां जीने के लिए संघर्ष करने के बारे में सोचना ही अपने आप से धोका करने जैसा है। ऐसा नहीं था कि महाजनिका वह पहली थी जो अंधकार की दुनिया (Parellel world) में घुसी। उसके पहले भी कई विकृत सिद्ध पुरुष और काली शक्ति के उपासक, और ज्यादा शक्ति की तलाश में जा चुके हैं। उसके बाद भी कई लोग गये हैं। किंतु वहां जो एक बार गया वह वहीं का होकर रह गया। किसी की सिद्धि में बहुत शक्ति होता तो वह किसी तरह मूल दुनिया में वापस आ जाता। कहने का सीधा अर्थ है उसके दरवाजा को कोई भी अपने मन मुताबिक नही खोल सकता, सिवाय महाजनिका के। वह इकलौती ऐसी है जो चाह ले तो २ दुनिया के बीच का दरवाजा ऐसे खोल दे जैसे किसी घर का दरवाजा हो।"

"टेलीपोर्टेशन (teleportation) और टेलीपैथी (telepathy) एक ऐसी विधा है जो सभी कुंडलिनी चक्र जागृत होने के बाद भी उनपर सिद्धि प्राप्त करना असंभव सा होता है। आज के वक्त में टेलीपोर्टेशन विद्या तो विलुप्त हो गयि है, हां टेलीपैथी को हम संभाल कर रखने में कामयाब हुये। महाजनिका पूरे ब्रह्मांड में इकलौती ऐसी है जो टेलीपोर्टेशन कर सकती है। जिस युग में सिद्ध पुरुष टेलीपोर्टेशन भी किया करते थे तो भी कोई अंधकार की दुनिया में रास्ता नहीं खोल सकता था। महाजनिका ने वह सिद्धि हासिल की थी जिससे वो दोनो दुनिया में टेलीपोर्टेशन कर सकती थी।
 

Death Kiñg

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अंत में गुरु निरावण्म स्वयं सामने आये और उनके साथ था समस्त ब्रह्माण्ड का सबसे शक्तिशाली समुदाय का सबसे शक्तिशाली योद्धा, जिसे विग्गो सिग्मा कहते थे।
Nischal..? :?:
 

nain11ster

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Nischal..? :?:
Nahi uska purvaj.... Nischal to baad ka hai... Planet aaynek (viggo ke planet ka naam bhul raha hun to maaf kijiyega) tab astitv me tha.... Surpmarich isi samkalin tha aur viggo ki takat dekh samjh gaya ki ise pahle hatao... Tabhi to aaynek grah ko tabah karne ke liye chal chalna shuru kar diya tha :D...

Baki iss se jyada kahin koi connection kahani me nahi... Abhi kahani apne emotion me hi aage badhegi... Sirf feel hoga connected hai... Jaise abhi hua..bus itna hi .
 
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Bloody Reaper

"A grave cannot hold me"
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भाग:–43






संन्यासी शिवम:– मेरे ख्याल से जब पारीयान की मृत्यु हुई होगी तब तक वो लोग हिमालय का पूरा क्षेत्र छान चुके होंगे। रीछ स्त्री लगभग 5000 वर्ष पूर्व कैद हुई थी और पारीयान तो बस 600 वर्ष पुराना होगा। हमारे पास पारीयान का तो पूरा इतिहास ही है। तांत्रिक सबसे पहले वहीं से खोज शुरू करेगा जो हमारा केंद्र था। और जिस जगह तुम्हे पारीयान का तिलिस्म मिला था, हिमालय का क्षेत्र, वह तो सभी सिद्ध पुरुषों के शक्ति का केंद्र रहा है। वहां के पूरे क्षेत्र को तो वो लोग इंच दर इंच कम से कम 100 बार और हर तरह के जाल को तोड़ने वाले 100 तरह के मंत्रों से ढूंढकर पहले सुनिश्चित हुये होंगे। इसलिए पारीयान का खजाना वहां सुरक्षित रहा। वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी तांत्रिक मिल गयि होती तो तुम सोच भी नही सकते की महाजनिका क्या उत्पात मचा सकती थी।


निशांत:– क्या होता संन्यासी सर?


संन्यासी शिवम:– "वह आगे तुम खुद आकलन कर लेना। हां तो मैं रीछ स्त्री के ढूंढने की बात कर रहा था। हम कैलाश मठ से जुड़े है और यह भी मात्र एक इकाई है। ऐसे न जाने सैकड़ों इकाई पूरे भारतवर्ष में थी और सबका केंद्र पूर्वी हिमालय का एक गांव था। तांत्रिक की पीढ़ी दर पीढ़ी कि खोज पहले तो हमारे केंद्र से लेकर सभी इकाई के बीच हुई होगी। फिर जब उन्हें रीछ स्त्री इन सब जगहों में नही मिली होगी, तब ये लोग समस्त विश्व में ढूंढने निकले होंगे। आखिरकार उनके भी हजारों वर्षों की खोज समाप्त हुयि, और अध्यात को रीछ स्त्री महाजनिका मिल गयि। अब जो इतने जतन के बाद मिली थी, उसे वापस नींद से जगाने के लिए तांत्रिक और उसके सहयोगियों ने बिलकुल भी जल्दबाजी नही दिखायि। योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़े।"

"वह पुस्तक रोचक तथ्य मैने भी पढ़ी थी। जिस हिसाब से उन लोगों ने रीछ स्त्री को किताब में मात्र छोटी सी जगह देकर विदर्भ में बताया था और प्रहरी इतिहास का गुणगान किया था, हम समझ चुके थे कि यह तांत्रिक कितने दूर से निशाना साध रहा था। प्रहरी ने फिर पहले संपादक से संपर्क किया और उस संपादक के जरिये तांत्रिक और प्रहरी मिले। विष मोक्ष श्राप से किसी को जगाना आसान नहीं होता। जहां से रीछ स्त्री महाजनिका को निकाला गया था, उस जगह पर पिछले कई वर्षों से अनुष्ठान हो रहा था। कई बलि ली गयि। कइयों की आहुति दी गयि और तब जाकर वह रीछ स्त्री अपने नींद से जागी। वर्तमान समय को देखा जाय तो प्रहरी के पास पैसे ताकत और शासन का पूरा समर्थन है। तांत्रिक के अनुष्ठान में कोई विघ्न न हो इसलिए प्रहरी ने पूरे क्षेत्र को ही प्रतिबंधित कर दिया। मात्र कुछ प्रहरियों को पता था कि वहां असल में क्या खेल चल रहा और तांत्रिक अध्यात की हर जरूरत वही पूरी करते थे। बाकी सभी प्रहरी को यही पता था कि वहां कुछ शापित है जो सबके लिए खतरा है।"

"ऐडियाना का मकबरा ढूंढना तांत्रिक के लिए कौन सी बड़ी बात थी। और वहीं मकबरे में ऐसी १ ऐसी वस्तु थी जो महाजनिका को जागने के तुरंत बाद चाहिए थी, पुर्नस्थापित अंगूठी। वैसे एक सत्य यह भी है कि पुर्नस्थापित अंगूठी का पत्थर और बिजली की खंजर दोनो ही महाजनिका की ही खोज है। प्रहरी और तांत्रिक के बीच संधि हुई थी। ऐडियाना का मकबरा खुलते ही वह खंजर प्रहरी का होगा और बाकी सारा सामान तांत्रिक का। इन सबके बीच तुम चले आये और इनके सारी योजना में सेंध मार गये...


आर्य मणि:– सब कुछ तो आपने किया है, फिर मैं कहां से बीच में आया...


संन्यासी शिवम:– हमे तो किसी भी चीज की भनक ही नहीं होती। जिस दिन तुमने पारीयान के भ्रम जाल से उसके पोटली को निकाला, (आर्यमणि जब जर्मनी की घटना के बाद लौटा था, तब सबसे पहले अपने मां पिताजी से मिलने गंगटोक ही गया था), उसी दिन कैलाश मठ में पता चला था कि भ्रमित अंगूठी किसी को मिल गई है। मैं तो भ्रमित अंगूठी लेने तुम्हारे पीछे आया। और जब तुम्हारे पीछे आया तभी सारी बातों का खुलासा हुआ। तुम गंगटोक में अपनी उन पुस्तकों को जला रहे थे जो 4 साल की यात्रा के दौरान तुमने एकत्र किए थे। कुल 6 किताब जलाई थी और उन सभी पुस्तकों को हमने एक बार पलटा था। उन्ही मे से एक पुस्तक थी रोचक तथ्य। उसके बाद फिर हम सारे काम को छोड़कर विदर्भ आ गये।


आर्य मणि:– जब आपको पहले ही सब पता चल चुका था, फिर रीछ स्त्री को जागने ही क्यों दिया।


संन्यासी शिवम:– अच्छा सवाल है। लेकिन क्या पता भी है कि महाजनिका कौन थी और विष–मोक्ष श्राप से उसे किसने बंधा था? और क्या जितना वक्त पहले हमे पता चला, वह वक्त महा जनिका को नींद से न जगाने के लिये पर्याप्त थी?


आर्य मणि ने ना में अपना सर हिला दिया। संन्यासी शिवम अपनी बात आगे बढ़ाते.… "यूं तो रीछ की सदैव अपनी एक दुनिया रही है, जिसमे उन्होंने मानव समाज के लिए सकारात्मक कार्य किये और कभी भी अपने ऊपर अहम को हावी नही होने दिया। कई तरह के योद्धा, वीर और कुशल सेना नायक सिद्ध पुरुष के बताये सच की राह पर अपना सर्वोच्च योगदान दिया है। जहां भी उल्लेख है हमेसा सच के साथ खड़े रहे और धर्म के लिये युद्ध किया।"

"महाजनिका भी उन्ही अच्छे रीछ में से एक थी। वह सिद्धि प्राप्त स्त्री थी। उसकी ख्याति समस्त जगत में फैली थी। शक्ति और दया का अनोखा मिश्रण जिसने अपने गुरु के लिये कंचनजंगा में दो पर्वतों के बीच एक अलौकिक गांव बसाया। वहां का वातावरण और कठिन जलवायु आम रहने वालों के हिसाब से बिलकुल भी नहीं था। इसलिए उसने अपनी सिद्धि से वहां की जलवायु को रहने योग्य बना दी। यश और प्रसिद्धि का दूसरा नाम थी वह।"

"उसके अनंत अनुयायियों में से सबसे प्रिय अनुयायि तांत्रिक नैत्रायण था। तांत्रिक का पूरा समुदाय महाजनिका में किसी देवी जैसी श्रद्धा रखते थे। हर आयोजन का पहला अनुष्ठान महाजनिका के नाम से शुरू होता और साक्षात अपने समक्ष रखकर उसकी आराधना के बाद ही अनुष्ठान को शुरू किया करते थे। महाजनिका जब भी उनके पास जाती वह खुद को ईश्वर के समतुल्य ही समझती थी। किंतु वास्तविकता तो यह भी थी कि तांत्रिक नैत्रायण और उसका पूरा समुदाय अहंकारी और कुरुर मानसिकता के थे। सामान्य लोगों का उपहास करना तांत्रिक और उनके गुटों का मनोरंजन हुआ करता था।"

"उसी दौड़ में एक महान गुरु अमोघ देव हुआ करते थे, जो महाजनिका के भी गुरु थे, किंतु निम्न जीवन जीते थे और लोक कल्याण के लिये अपने शिष्यों को दूर दराज के क्षेत्रों में भेजा करते थे। उन्ही दिनों की बात थी जब गुरु अमोघ देव के एक शिष्य आरंभ्य को एक सामान्य मानव समझ कर तांत्रिक नैत्रायण ने उसका उपहास कर दिया। उसके प्रतिउत्तर में आरंभ्य ने उसकी सारी सिद्धियां मात्र एक मंत्र से छीन लिया और सामान्य लोगों के जीवन को समझने के लिए उसे भटकते संसार में बिना किसी भौतिक वस्तु के छोड़ दिया।"

"तांत्रिक नैत्रायण ने जिन–जिन लोगों का उपहास अपने मनोरंजन के लिए किया किया था, हर कोई बदले में उपहास ही करता। कोई उसकी धोती खींच देता तो कोई उसके आगे कचरा फेंक देता। तांत्रिक यह अपमान सहन नही कर पाया और महाजनिका के समक्ष अपना सिर काट लिया। महाजनिका इस घटना से इतनी आहत हुयि कि बिना सोचे उसने पूरे एक क्षेत्र से सभी मनुष्यों का सर काटकर उस क्षेत्र को वीरान कर दिया। उन सभी लोगों में गुरु अमोघ देव के शिष्य आरंभ्य भी था।"

"गुरु अमोघ देव इतनी अराजकता देखकर स्वयं उस गांव से बाहर आये और महाजनिका को सजा देने की ठान ली। गुरु अमोघ देव और महाजनिका दोनो आमने से थे। भयंकर युद्ध हुआ। हारने की परिस्थिति में महाजनिका वहां से भाग गयि। महाजनिका वहां से जब भागी तब एक चेतावनी के देकर भागी, "कि जब वह लौटेगी तब खुद को इतना ऊंचा बना लेगी कि कोई भी उसकी शक्ति के सामने टिक न पाय। लोग उसके नाम की मंदिर बनाकर पूजे और लोक कल्याण की एकमात्र देवी वही हो और दूसरा कोई नहीं।"

"इस घटना को बीते सैकड़ों वर्ष हो गये। महाजनिका किसी के ख्यालों में भी नही थी। फिर एक दौड़ आया जब महाजनिका का नाम एक बार फिर अस्तित्व में था। जिस क्षेत्र से गुजरती वहां केवल नर्क जैसा माहौल होता। पूरा आकाश हल्के काले रंग के बादल से ढक जाता। चारो ओर केवल लाश बिछी होती जिसका अंतिम संस्कार तक करने वाला कोई नहीं था। उसके पीछे तांत्रिक नैत्रायण के वंशज की विशाल तांत्रिक सेना थी जिसका नेतृत्व तांत्रिक विशेसना करता था। महाजनिका के पास एक ऐसा चमत्कारिक कृपाण (बिजली का खंजर) थी, जिसके जरिये वह मुख से निकले मंत्र तक को काट रही थी। सकल जगत ही मानो काली चादर से ढक गया हो, जो न रात होने का संकेत देती और ना ही दिन। बस मेहसूस होती तो केवल मंहूसियत और मौत।"

"गुरु अमोघ देव के नौवें शिष्य गुरु निरावण्म मुख्य गुरु हुआ करते थे। 8 दिन के घोर तप के बाद उन्होंने ही पता लगाया था कि महाजनिका अपनी शक्तियों को बढ़ाने के लिये, प्रकृति के सबसे बड़े रहस्य के द्वार को खोल चुकी थी... समनंतर दुनिया (parellel world) के द्वार। अपनी ही दुनिया की प्रतिबिंब दुनिया, जहां नकारात्मक शक्तियों का ऐसा भंडार था, जिसकी शक्तियां पाकर कोई भी सिद्ध प्राप्त इंसान स्वयं शक्ति का श्रोत बन जाए। इतना शक्तिशाली की मूल दुनिया के संतुलन को पूर्ण रूप से बिगाड़ अथवा नष्ट कर सकता था।"

"उस दौड़ में मानवता दम तोड़ रही और महाजनिका सिद्धि और बाहुबल के दम पर हर राज्य, हर सीमा और हर प्रकार की सेना को मारती हुई अपना आधिपत्य कायम कर रही थी। लोक कल्याण के बहुत से गुरुओं ने मिलकर भूमि, समुद्र तथा आकाश, तीनों मध्यम से वीरों को बुलवाया। इन तीनों मध्यम में बसने वाले मुख्य गुरु सब भी साथ आये। कुल २२ गुरु एक साथ खड़े मंत्रो से मंत्र काट रहे थे, वहीं तीनों लोकों से आये वीर सामने से द्वंद कर रहे थे। लेकिन महाजनिका तो अपने आप में ही शक्ति श्रोत थी। उसका बाहुबल मानो किसी पर्वत के समान था। ऐसा बाहुबल जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। अंधकार की दुनिया (parellel world) से उसने ऐसे–ऐसे अस्त्र लाये जो एक बार में विशाल से विशाल सेना को मौत की आगोश में सुला दिया करती थी।"

महाजनिका विकृत थी। अंधकार की दुनिया से लौटने के बाद उसका हृदय ही नही बल्कि रक्त भी काली हो चुकी थी। वह अपने शक्ति के अहंकार में चूर। उसे यकीन सा हो चला था कि वही एकमात्र आराध्या देवी है। किंतु वह कुछ भूल गयि। वह भूल गयि कि गुरु निरावण्म को समस्त ब्रह्माण्ड का ज्ञान था। ब्रह्मांड की उत्पत्ति जिन शक्ति पत्थरों से हुयि, फिर वह सकारात्मक प्रभाव दे या फिर नकारात्मक, उनको पूरा ज्ञान था। अंत में गुरु निरावण्म स्वयं सामने आये और उनके साथ था समस्त ब्रह्माण्ड का सबसे शक्तिशाली समुदाय का सबसे शक्तिशाली योद्धा, जिसे विग्गो सिग्मा कहते थे।

ब्रह्मांड के कई ग्रहों में से किसी एक ग्रह का वो निवासी था जिसे गुरु निरावण्म टेलीपोर्टेशन की जरिये लेकर आये थे। वह वीर अकेला चला बस शक्ति श्रोत के कयि सारे पत्थर संग जो युद्ध के लिये नही वरन महाजनिका को मात्र बांधने के उपयोग में आती। हर बुरे मंत्रो का काट गुरु निरावण्म पीछे खड़े रहकर कर रहे थे। उस विगो सिग्मा के बाहुबल की सिर्फ इतनी परिभाषा थी कि स्वयं महाजनिका उसके बाहुबल से भयभीत हो गयि। जैसा गुरु निरावण्म ने समझाया उसने ठीक वैसा ही किया। कई तरह के पत्थरों के जाल में महाजनिका को फसा दिया। शक्ति पत्थरों का ऐसा जाल जिसमे फंसकर कोई भी सिद्धि दम तोड़ दे। जो भी उस जाल में फसा वह अपनी सिद्धि को अपनी आखों से धुएं के माफिक हवा में उड़ते तो देखते, किंतु कुछ कर नही सकते थे। उसके कैद होते ही तांत्रिक विशेसना की सेना परास्त होने लगी।"

"महाजनिका और तांत्रिक विशेसना दोनो को ही समझ में आ चुका था की अब मृत्यु निश्चित है। तभी लिया गया एक बड़ा फैसला और तांत्रिक विशेसना के शिष्य विष मोक्ष श्राप से महाजनिका को कैद करने लगे। गुरु निरावण्म पहले मंत्र से ही भांप गये थे कि महाजनिका को कैद करके उसकी जान बचाई जा रही थी। लेकिन विष मोक्ष श्राप मात्र २ मंत्रों का होता है और कुछ क्षण में ही समाप्त किया जा सकता है। गुरु निरावण्म के हाथ में कुछ नही था, इसलिए उन्होंने टेलीपोर्टेशन के जरिये कैद महाजनिका को ही विस्थापित कर दिया।"

"कमजोर तो महाजनिका भी नही थी। उसे पता था यदि उसके शरीर को नष्ट कर दिया गया तब वह कभी वापस नहीं आ सकती। इसलिए जब गुरु निरावण्म उसे टेलीपोर्टेशन के जरिए विस्थापित कर रहे थे, ठीक उसी वक्त महाजनिका ने भी उसी टेलीपोर्टेशन द्वार के ऊपर अपना विपरीत द्वार खोल दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि महाजनिका की आत्मा समानांतर दुनिया (parellel world) के इस हिस्से में रह गयि और शरीर अंधकार की दुनिया में। यूं समझा जा सकता है कि आईने के एक ओर आत्मा और दूसरे ओर उसका शरीर। और दोनो ही टेलीपोर्टेशन के दौरान विष मोक्ष श्राप से कैद हो गये।"

"तांत्रिक विशेसना के सामने २ चुनौतियां थी, पहला अंधकार की दुनिया का दरवाजा खोलकर महाजनिका के शरीर और आत्मा को एक जगह लाकर उसे विष मोक्ष श्राप से मुक्त करना। और दूसरा ये सब काम करने के लिये सबसे पहले महाजनिका को टेलीपोर्ट करके कहां भेजा गया था, उसका पता लगाना... हां लेकिन इन २ समस्या के आगे एक तीसरी समस्या सामने खड़ी थी। अपने और अपने बच्चों की जान बचाना। टेलीपोर्टेशन विद्या आदिकाल से कई सिद्ध पुरुषों के पास रही थी किंतु तंत्रिक के पास वो सिद्धि नही थी जो उसे टेलीपोर्ट कर दे, इसलिए खुद ही उसने आत्म समर्पण कर दिया। इस आत्म समर्पण के कारण उसके बच्चों की जान बच गयि।"


"महाजनिका को विष मोक्ष श्राप उसे किसी गुरु द्वारा नही दी गई थी बल्कि तांत्रिक विशेसना के नेतृत्व में उसी के चेलों ने दी थी। हालाकि रक्त–मोक्ष श्राप से भी बांध सकते थे किंतु रक्त मोक्ष श्राप की विधि लंबी थी और समय बिलकुल भी नहीं था। महाजनिका को जगाने की प्रक्रिया कुछ वर्षों से चल रही थी। हम तो उसके आखरी चरण में पहुंचे थे। मैं आखरी चरण को विस्तार से समझाता हूं। विष–मोक्ष श्राप से जब किसी को वापस लाया जाता है तो वह उसके पुनर्जनम के समान होता है। गर्भ में जैसे बच्चा पलता है, ठीक वैसा ही एक गर्भ होता है, जहां शापित स्त्री या पुरुष 9 महीने के लिये रहते हैं। एक बार जब गर्भ की स्थापना हो जाती है, फिर स्वयं ब्रह्मा भी उसे नष्ट नही कर सकते। उसके जब वह अस्तित्व में आ जाये तभी कुछ किया जा सकता था। और हम तो गर्भ लगभग पूर्ण होने के वक्त पहुंचे।"

"आज जिस महाजनिका से हम लड़े है उसकी शक्ति एक नवजात शिशु के समान थी। यूं समझ लो की अपनी सिद्धि के वह कुछ अंश, जिन्हे हम अनुवांसिक अंश भी कहते हैं, उसके साथ लड़ी थी। यह तो उसकी पूर्ण शक्ति का मात्र १००वा हिस्सा रहा होगा। इसके अलावा वह २ बार मात खाई हुई घायल है, इस बार क्या साथ लेकर वापस लैटेगी, ये मुख्य चिंता का विषय है?"


आर्यमणि:– महाजनिका कहां से क्या साथ लेकर आयेगी? आप लोग इतने ज्ञानी है और महाजनिका इस वक्त बहुत ही दुर्बल। इस वक्त यदि छोड़ दिया तब तो वह अपनी पूरी शक्ति के साथ वापस आयेगी। आप लोगों को इसी वक्त उसे ढूंढना चाहिए...


संन्यासी शिवम:– "कहां ढूंढेंगे... वह इस लोक में होगी तो न ढूंढेंगे। महाजनिका अंधकार की दुनिया (parellel world) में है। अंधकार की दुनिया (parellel world) अपनी ही दुनिया की प्रतिबिंब दुनिया है, जिसका निर्माण प्रकृति ने संतुलन बनाए रखने के लिए किया है। जैसे की ऑक्सीजन जीवन दायक गैस लेकिन उसे बैलेंस करने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड बनाया। प्रकृति संतुलन बनाए रखने के लिए दोनो ही तरह के निर्माण करती है।"

"समांनानतर ब्रह्मांड भी इसी चीज का हिस्सा है, बस वहां जीवन नही बसता, बसता है तो कई तरह के विचित्र जीव जो उस दुनिया के वातावरण में पैदा हुए होते हैं। यहां के जीवन से उलट और सामान्य लोगों के लिए एक प्रतिकूल वातावरण जहां जीने के लिए संघर्ष करने के बारे में सोचना ही अपने आप से धोका करने जैसा है। ऐसा नहीं था कि महाजनिका वह पहली थी जो अंधकार की दुनिया (Parellel world) में घुसी। उसके पहले भी कई विकृत सिद्ध पुरुष और काली शक्ति के उपासक, और ज्यादा शक्ति की तलाश में जा चुके हैं। उसके बाद भी कई लोग गये हैं। किंतु वहां जो एक बार गया वह वहीं का होकर रह गया। किसी की सिद्धि में बहुत शक्ति होता तो वह किसी तरह मूल दुनिया में वापस आ जाता। कहने का सीधा अर्थ है उसके दरवाजा को कोई भी अपने मन मुताबिक नही खोल सकता, सिवाय महाजनिका के। वह इकलौती ऐसी है जो चाह ले तो २ दुनिया के बीच का दरवाजा ऐसे खोल दे जैसे किसी घर का दरवाजा हो।"

"टेलीपोर्टेशन (teleportation) और टेलीपैथी (telepathy) एक ऐसी विधा है जो सभी कुंडलिनी चक्र जागृत होने के बाद भी उनपर सिद्धि प्राप्त करना असंभव सा होता है। आज के वक्त में टेलीपोर्टेशन विद्या तो विलुप्त हो गयि है, हां टेलीपैथी को हम संभाल कर रखने में कामयाब हुये। महाजनिका पूरे ब्रह्मांड में इकलौती ऐसी है जो टेलीपोर्टेशन कर सकती है। जिस युग में सिद्ध पुरुष टेलीपोर्टेशन भी किया करते थे तो भी कोई अंधकार की दुनिया में रास्ता नहीं खोल सकता था। महाजनिका ने वह सिद्धि हासिल की थी जिससे वो दोनो दुनिया में टेलीपोर्टेशन कर सकती थी।
Amazing update bhai kya hi update likha h
Lgta h mahajanika bohot hi badi gyani thi jo usne esi sidhi hasil ki jisse wo teleport ho ske
 

Death Kiñg

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Nahi uska purvaj.... Nischal to baad ka hai... Planet aaynek (viggo ke planet ka naam bhul raha hun to maaf kijiyega) tab astitv me tha na... Surpmarich isi samkalin tha na aur viggo ki takat dekh samjh gaya ki ise pahle hatao... Tabhi to aaynek grah ko tabah karne ke liye chal chalna shuru kar diya tha :D...

Baki iss se jyada kahin koi connection kahani me... Abhi kahani apne emotion me hi aage badhegi...
Ye ek scene agar aap explain kar den bhai..

Nishant ne Mahajanika ke Portal se jaane ke baad, Arya se puchha ki wo kaunsi jagah hai, to Arya ne kaha ki Russia ka jungle. Ye log Russia kab pahunche?
 

Vk248517

I love Fantasy and Sci-fiction story.
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भाग:–42





वायु संरक्षण भेदकर हर वेंडिगो हमला कर रहा था। ऐसा लग रहा था हर वेंडिगो काट मंत्र के साथ हमला कर रहा हो। एक–दो सहायक के नाक में काला धुवां घुसा और उसके प्राण लेकर बाहर निकला। वहां पर तांत्रिक उध्यात और ऐडियाना का प्रकोप चारो ओर से घेर–घेर कर हमला शुरू कर चुका था। सिद्ध पुरुष ओमकार नारायण ने भी मोर्चा संभाला। एक साथ 5 संन्यासी और दोनो सिद्ध पुरुष के मुख से मंत्र इस प्रकार निकल रहे थे, जैसे कोई भजन चल रहा हो। हर मंत्र के छंद का अंत होते ही १० सहायक एक साथ अपने झोले से कुछ विभूति निकालते और भूमि पर पटक देते।


भूमि पर विभूति पटकने के साथ ही नाना प्रकार की असंख्य चीजें धुवां का रूप लेकर निकलती। किसी धुएं से असंख्य उजले से साये निकल रहे थे। उनका स्वरूप ऐडियाना के आसमान से ऊंची आकृति को एक साथ ढक रही थी। आस–पास मंडराते काले साये को पूरा गिल जाते। किसी विभूति के विस्फोट से असंख्य उजले धुएं के शेर निकले। अनगिनत शेर एक बार में ही इतनी तेजी से उस बर्फ के मैदान पर फैले, की पूरा मैदान में वेंडिगो उस साये वाले शेर से उलझ गये। देखते ही देखते वेंडिगो की संख्या विलुप्त हो रही थी। रक्त, पुष्प, जल, मेघ, बिजली और अग्नि सब उस विभूति की पटक से निकले और तांत्रिक के अग्नि, बिजली और श्वेत वर्षा को शांत करते उल्टा हमला करने लगे.…


आर्यमणि और निशांत के लिए तो जैसे कोई पौराणिक कथा का कोई युद्ध आंखों के सामने चल रहा हो। दोनो ने अपने हाथ जोड़ लिये। "हमे भी कुछ करना चाहिए आर्य, वरना हमारे यहां होने का क्या अर्थ निकलता है"…. "हां निशांत तुमने सही कहा। उनके पास मंत्र शक्ति है और मेरे पास बाहुबल, हम मिलकर आगे बढ़ते है।"


निशांत:– मेरे पास भ्रमित अंगूठी है, और ट्रैप करने का समान। देखता हूं इनसे क्या कर सकता हूं।


अगले ही पल पर्वत को भी झुका दे ऐसी दहाड़ उन फिजाओं में गूंजने लगी। एक पल तो दोनो पक्ष बिलकुल शांत होकर बस उस दहाड़ को ही सुन रहे थे... दहाड़ते हुए बिजली की तेजी से आर्यमणि बीच रण में खड़ा था और उसके ठीक सामने थी महाजनिका। 1 सिद्ध पुरुष 5 और संन्यासियों को लेकर आर्यमणि के ओर रुख किया।


मंत्र से मंत्र टकरा रहे थे। चारो ओर विस्फोट का माहोल था। वेंडिगो साये के बने शेर के साथ भीड़ रहे थे। हर शेर वेंडिगो को निगलता और विजय दहाड़ के साथ गायब हो जाता। ऐडियाना का भव्य साया, असंख्य उजले साये से बांधते हुये धीरे–धीरे छोटा होने लगा था। तांत्रिक अध्यात और उसके हजार चेले भी डटे हुये थे। मंत्र से मंत्र का काट हो रहा था। इधर सिद्ध पुरुष के १० सहायकों में से एक सहायक की जान जाती तो उधर अध्यात के २०० चेले दुनिया छोड़ चुके होते।


२०० चेलों की आहुति देने के बाद भी तांत्रिक अध्यात अपने पूरे उत्साह में था। क्योंकि उसे पता था कि आगे क्या होने वाला है। उसे पता था कि फिलहाल १० हाथियों की ताकत के साथ जब महाजनिका आगे बढ़ेगी तब यहां सभी की लाश बिछी होगी। और कुछ ऐसा शायद हो भी रहा था। आर्यमणि, महाजनिका के ठीक सामने और महाजनिका मुख से मंत्र पढ़ती अपने सामने आये आर्यमणि को फुटबॉल समझकर लात मार दी। आर्यमणि उसके इस प्रहार से कोसों दूर जाकर गिरा। न केवल आर्यमणि वरन एक सिद्ध पुरुष जो अपने 5 संन्यासियों के साथ महाजनिका के मंत्र काट रहा था। उनका काट मंत्र इतना कमजोर था कि मंत्र काटने के बाद भी उसके असर के वजह वह सिद्ध पुरुष मिलो दूर जाकर गिरा। शायद उस साधु के प्राण चले गये होते, यदि आर्यमणि अपने हाथ की पुर्नस्थापित अंगूठी उसके ऊपर न फेंका होता और वह अंगूठी उस साधु ने पकड़ी नही होती।


सिद्ध पुरुष जैसे ही गिरा मानो वह फट सा गया, लेकिन अगले ही पल वह उठकर खड़ा भी हो गया। एक नजर आर्यमणि और सिद्ध पुरुष के टकराये और नजरों से जैसे उन्होंने आर्यमणि का अभिवादन किया हो। लेकिन युद्ध के मैदान में जैसे महाजनिका काल बन गई थी। एक सिद्ध पुरुष का मंत्र जाप बंद क्या हुआ, अगले ही पल महाजनिका अपने मंत्र से पांचों संन्यासियों को मार चुकी थी। 5 संन्यासियों और 10 सहायकों के साथ ओमकार नारायण दोनो ओर का मोर्चा संभाले थे। लेकिन महाजनिका अपने खोये सिद्धि और कम बाहुबल केl साथ भी इन सब से कई गुणा खतरनाक थी, जिसका परिणाम यह हुआ कि महाजनिका अकेले ही सभी मंत्रो को काटती हुई आगे बढ़ी और देखते ही देखते पर्वत समान ऊंची हो गई। उसका स्वरूप मानो किसी राक्षसी जैसा था। विशाल विकराल रूप और एक ही बार में ऐसा हाथ चलाई की उसकी चपेट में सभी आ गये। जमीन ऐसा कांपा की उसकी कंपन मिलो दूर तक मेहसूस हुई।


आर्यमणि कुछ देख तो नहीं पाया लेकिन वह सिद्ध पुरुष को अपने पीठ पर उठाकर बिजली समान तेजी से दौड़ लगा चुका था। उसने साधु को ऐडियाना के कब्र के पास छोड़ा और दौड़ लगाते हुए महाजनिका के ठीक पीछे पहुंचा। यूं तो आर्यमणि, महाजनिका के टखने से ऊंचा नही था, लेकिन उसका हौसला महाजनिका के ऊंचाई से भी कई गुणा ज्यादा बड़ा था। शेप शिफ्ट नही हुआ लेकिन झटके से हथेली खोलते ही धारदार क्ला बाहर आ गया। और फिर देखते ही देखते क्षण भर में आर्यमणी क्ला घुसाकर पूरे तेजी से गर्दन के नीचे तक पहुंच गया। आगे से तो महाजनिका बहुत हाथ पाऊं मार रही थी। मंत्र उच्चारण भी जारी था। पास खड़ा तांत्रिक अध्यात भी अब अपने मंत्रों की बौछार आर्यमणि पर कर रहा था। आर्यमणि जब ऊपर के ओर बढ़ रहा था तब बिजली बरसे, अग्नि की लपटे उठी, लेकिन कोई भी आर्यमणि की चढ़ाई को रोक न सका। जब आर्यमणि, महाजनिका के गर्दन के नीचे पहुंचा, फिर दोनो मुठ्ठी में महाजनिका के बाल को दबोचकर, एक जोरदार लात उसके पीठ पर मारा। पीठ पर वह इतना तेज प्रहार था कि महाजनिका आगे के ओर झुक गई, वहीं आर्यमणि बालों को मुट्ठी में दबोचे पीछे से आगे आ गया और इस जोड़ का बल नीचे धरातल को ओर लगाया की महाजनिका के गर्दन की हड्डियों से कर–कर–कर कर्राने की आवाज आने लगी। जोर इतना था की गर्दन नीचे झुकते चला गया। शायद टूट गई होती यदि वह घुटनों पर नही आती। महाजनिका घुटनों पर और उसका सर पूरा बर्फ में घुसा दिया।


क्या बाहुबल का प्रदर्शन था। महाजनिका अगले ही पल अपने वास्तविक रूप में आयि और सीधी खड़ी होकर घूरती नजरों से आर्यमणि को देखती... "इतना दुस्साहस".. गुस्से से बिलबिलाती महाजनिका एक बार फिर अपना पाऊं चला दी। पता नही कहां से और कैसे नयि ऊर्जा आर्यमणि में आ गई। आर्यमणि एक कदम नहीं चला। जहां खड़ा था उसी धरातल पर अपने पाऊं को जमाया और ज्यों ही अपने ऊपरी बदन को उछाला वह हवा में था। १० हाथियों की ताकत वाली महाजनिका, आर्यमणि को फुटबॉल की तरह उड़ाने के लिए लात चलायि। लेकिन ठीक उसी पल आर्यमणि एक लंबी उछाल लेकर कई फिट ऊपर हवा में था। और जब वह नीचे महाजनिका के चेहरे के सामने पहुंचा, फिर तो महाजनिका का बदन कोई रूई था और आर्यमणि का क्ला कोई रूई धुनने की मशीन। पंजे फैलाकर जो ही बिजली की रफ्तार से चमरी उधेरा, पूरा शरीर लह–लुहान हो गया। महाजनिका घायल अवस्था में और भी ज्यादा खूंखार होती अपना 25000 किलो वजनी वाला मुक्का आर्यमणि के चेहरे पर चला दी।


आर्यमणि वह मुक्का अपने पंजे से रोका। उसके मुक्के को अपने चंगुल में दबोचकर कलाई को ही उल्टा मरोड़ दिया। कर–कर की आवाज के साथ हड्डी का चटकना सुना जा सकता था। उसके बाद तो जैसे कोई बॉक्सर अपनी सामान्य रफ्तार से १०० गुणा ज्यादा रफ्तार में जैसे बॉक्सिंग बैग पर पंच मारता हो, ठीक उसी प्रकार का नजारा था। हाथ दिख ना रहे थे। आर्यमणि का मुक्का कहां और कब लगा वह नही दिख रहा था। बस हर सेकंड में सैकड़ों विस्फोट की आवाज महाजनिका के शरीर से निकल रही थी।


वहीं कुछ वक्त पूर्व जब दूसरे सिद्ध पुरुष के हाथ में जैसे ही पुनर्स्थापित अंगूठी आयि, उसने सबसे पहले अपने सभी साथियों को ही सुरक्षित किया। जिसका परिणाम यह हुआ कि महाजनिका के चपेट में आने के बाद भी वह सभी के सभी उठ खड़े हुये और इसी के साथ यह भेद भी खुल गया की पुर्नस्थापित अंगूठी कब्र में नही है। तांत्रिक अध्यात समझ चुका था कि वह युद्ध हार चुका है। लेकिन इस से पहले की वह भागता, महाजनिका, आर्यमणि के साथ लड़ाई आरंभ कर चुकी थी। मंत्र उच्चारण वह कर रही थी, लेकिन सिद्ध पुरुष उसके मंत्र को काट रहे थे और आर्यमणि अपने बाहुबल से अपना परिचय दे रहा था। कुछ देर ही उसने महाजनिका पर मुक्का चलाया था और जब आर्यमणि रुका महाजनिका अचेत अवस्था में धम्म से गिरी।


तांत्रिक अध्यात और उसके कुछ साथी पहले से ही तैयार थे। जैसे ही महाजनिका धरातल पर गिरी ठीक उसी पल ऐडियाना के मकबरे से बहरूपिया चोगा और बिजली की खंजर हवा में आ गयि। हवा में आते ही उसे हासिल करने के लिए दोनो ओर से लड़ाई एक बार फिर भीषण हो गयि। सबका ध्यान ऐडियाना की इच्छा पर थी और इसी बीच तांत्रिक अध्यात एक नया द्वार (पोर्टल) खोल दिया। वस्तु खींचने का जादू दोनो ओर से चल रहा था। एक दूसरे को घायल करने अथवा मारने की कोशिश लगातार हो रही थी। ठीक उसी वक्त आर्यमणि थोड़ा सा विश्राम की स्थिति में आया था। तांत्रिक अध्यात का इशारा हुआ और महाजनिका लहराती हुई निकली।


इसके पूर्व निशांत जो इस पूरे एक्शन का मजा ले रहा था, उसे दूर से ही तांत्रिक अध्यात की चालबाजी नजर आ गयि। उसने भी थोड़ा सा दौड़ लगाया और हवा में छलांग लगाकर जैसे ही खुद पर सुरक्षा मंत्र पढ़ा, वह हवा में उड़ गया। तेजी के साथ उसने भागने वाले रास्ते पर छोटे–छोटे ट्रैप वायर के मैट बिछा दिये और जैसे ही नीचे पहुंचा सभी किनारे पर कील ठोकने वाली गन से कील को फायर करते हर मैट को चारो ओर से ठोक दिया।


महाजनिका जब द्वार के ओर भाग रही थी तभी उसे रास्तों में बिछी ट्रैप वायर दिख गई। वह तो हवा में लहराती हुई पोर्टल में घुसी और घुसने के साथ खींचने का ताकतवर मंत्र चला दी। नतीजा यह निकला कि पोर्टल में घुसते समय बिजली की खंजर उसके हाथ में थी और बहरूपिया चोगा दो दिशाओं की खींचा तानी में फट गया। महाजनिका तो भाग गयि लेकिन तांत्रिक और उसके गुर्गे भागते हुए ट्रैप वायर में फंस गये। एक तो गिरते वक्त मजबूत मंत्र उच्चारण टूटा और छोटे से मौके को सिद्ध पुरुष ओमकार नारायण भुनाते हुये एक पल में ही तांत्रिक को उसके घुटने पर ले आये। नुकसान दोनो ओर से हुआ था। कहीं कम तो कहीं ज्यादा। महाजनिका जब भाग रही थी, तब उसके पीछे आर्यमणि भी जा रहा था, लेकिन उसे दूसरे सिद्ध पुरुष ने रोक लिया।


माहोल बिलकुल शांत हो गया था। बचे सभी तांत्रिक को बंदी बनाकर ले जाने की तैयारी चल रही थी। एक द्वार (portal) सिद्ध पुरुष ने भी खोला। वहां केवल एक संन्यासी जो आर्यमणि से शुरू से बात कर रहा था, उसे छोड़कर बाकी सब उस द्वार से चले गये। जाते हुये सभी आर्यमणि को शौर्य और वीरता पर बधाई दे रहे थे और उसकी मदद के लिये हृदय से आभार भी प्रकट कर रहे थे। उस जगह पर अब केवल ३ लोग बचे थे। संन्यासी, आर्यमणि और निशांत।


निशांत:– यहां का माहोल कितना शांत हो गया न...


संन्यासी:– हां लेकिन एक काम अब भी बचा है। जादूगरनी (ऐडियाना) को मोक्ष देना...


निशांत:– क्या उसकी आत्मा अब भी यहीं है।


संन्यासी:– हां अब भी यहीं है और ज्यादा देर तक बंधी भी नही रहेगी। मुझे कुछ वक्त दो, फिर साथ चलते हैं...


संन्यासी अपना काम करने चल दिये। सफेद बर्फीले जगह पर केवल २ लोग बचे थे.… "आर्य क्या तुमने यह जगह पहले भी देखी है?"


आर्यमणि:– नही, ये रसिया का कोई बर्फीला मैदान है, जहां बर्फ जमी है। मैने रसिया का बोरियाल जंगल देखा है। वैसे तूने क्या सोचा...


निशांत:– किस बारे में...


आर्यमणि:– खोजी बनने के बारे में...


निशांत:– अगर मुझे ये लोग उस लायक समझेंगे तब तो मेरे लिए खुशकिस्मती होगी...


"किसी काम की तलाश में गये व्यक्ति को जितनी नौकरी की जरूरत होती है। नौकरी देने वाले को उस से कहीं ज्यादा एक कर्मचारी की जरूरत होती है। और अच्छे कर्मचारी की जरूरत कुछ ऐसी है कि रात के १२ बजे नौकरी ले लो.… क्या समझे"....


निशांत:– यही की आप संन्यासी कम और कर्मचारी से पीड़ित मालिक ज्यादा लग रहे।


सन्यासी:– मेरा नाम शिवम है और कैलाश मठ की ओर से हम, तुम्हे अपना खोजी बनाने के लिए प्रशिक्षित करना चाहते हैं? राह बिलकुल आसन नहीं होगी। कर्म पथ पर चलते हुए हो सकता है कि किसी दिन तुम्हारा दोस्त गलत के साथ खड़ा रहे और तुम्हे उसके विरुद्ध लड़ना पड़े? तो क्या ऐसे मौकों पर भी तुम हमारे साथ खड़े रहोगे?


निशांत:– हां बिलकुल.... आपके प्रस्ताव और आपके व्याख्या की हुई परिस्थिति, दोनो के लिए उत्तर हां है।


संन्यासी:– जितनी आसानी से कह गये, क्या उतनी आसानी से कर पाओगे...


निशांत:– क्यों नही... वास्तविक परिस्थिति में यदि आर्यमणि मेरे नजरों में दोषी होगा, तब मैं ही वो पहला रहूंगा जो इसके खिलाफ खड़ा मिलेगा। यदि आर्य मेरी नजर में दोषी नहीं, फिर मैं सच के साथ खड़ा रहूंगा... क्योंकि गीता में एक बात बहुत प्यारी बात लिखी है...


संन्यासी:– क्या?


निशांत:– जो मेरे लिये सच है वही किसी और के लिये सच हो, जरूरी नहीं… एक लड़का पहाड़ से गिरा... मैं कहूंगा आत्महत्या है, कोई कह सकता है एक्सीडेंट है... यहां पर जो "मरा" वो सच है... लेकिन हर सच का अपना–अपना नजरिया होता है और हर पक्ष अपने हिसाब से सही होता हैं।


संन्यासी शिवम:– और यदि इसी उधारहण में मैं कह दूं की लड़का अपने आत्महत्या के बारे में लिखकर गया था।


निशांत:– मैं कह सकता हूं कि जरूर किसी की साजिश है, और पहाड़ी की चोटी से धक्का देकर उसका कत्ल किया गया है। क्योंकि वह लड़का आत्महत्या करने वालों में से नही था।


संन्यासी:– ठीक है फिर कल से तुम्हारा प्रशिक्षण शुरू हो जायेगा। जब हम अलग हो रहे हो, तब तुम अपनी पुस्तक ले लेना निशांत।


निशांत:– क्यों आप भी हमारे साथ कहीं चल रहे है क्या?


संन्यासी:– नही यहां आने से पहले आर्यमणि के बहुत से सवाल थे शायद। बस उन्ही का जवाब देते–देते जहां तक जा सकूं...


आर्यमणि:– संन्यासी शिवम जी, अब बहुत कुछ जानने या समझने की इच्छा नही रही। इतना तो समझ में आ गया की आपकी और मेरी दुनिया बिलकुल अलग है। और आप सब सच्चे योद्धा हैं, जिसके बारे में शायद ही लोग जानते हो। अब आप सबके विषय में अभी नहीं जानना। मेरा दोस्त है न, वो बता देगा... बस जिज्ञासा सिर्फ एक बात की है... जिस रोचक तथ्य के किताब में मुझे रीछ स्त्री मिली, वह पूरा इतिहास ही गलत था।


संन्यासी शिवम:– "वहां लिखी हर बात सच थी। किंतु अलग–अलग सच्ची घटना को एक मुख्य घटना से जोड़कर पूरी बात लिखी गयि है। और वह किताब भी हाल के ही वर्षों में लिखी गयि थी। जिस क्षेत्र में रीछ स्त्री महाजनिका बंधी थी, उस क्षेत्र को तो गुरुओं ने वैसे भी बांध रखा होगा। एक भ्रमित क्षेत्र जहां लोग आये–जाये, कोई परेशानी नही हो। यदि कोई प्रतिबंधित क्षेत्र होता तब उसे ढूंढना बिलकुल ही आसान नहीं हो जाता"

"तांत्रिक अध्यात, ऐसे घराने से आता है जिसका पूर्वज रीछ स्त्री का सेवक था। महाजनिका को ढूंढने के लिये इनके पूर्वजों ने जमीन आसमान एक कर दिया। हजारों वर्षों से यह तांत्रिक घराना रीछ स्त्री को ढूंढ रहे थे। पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी संस्कृति, अपना ज्ञान और अपनी खोज बच्चों को सिखाते रहे। आखिरकार तांत्रिक अध्यात को रीछ स्त्री महाजनिका का पता चल ही गया।"


आर्यमणि:– बीच में रोकना चाहूंगा... यदि ये लोग खोजी है, तो खोज के दौरान इन्हे अलौकिक वस्तु भी मिली होगी? और जब वो लोग रीछ स्त्री की भ्रमित जगह ढूंढ सकते है, फिर उन्हे पारीयान का तिलिस्म क्यों नही मिला?


संन्यासी शिवम:– मेरे ख्याल से जब पारीयान की मृत्यु हुई होगी तब तक वो लोग हिमालय का पूरा क्षेत्र छान चुके होंगे। रीछ स्त्री लगभग 5000 वर्ष पूर्व कैद हुई थी और पारीयान तो बस 600 वर्ष पुराना होगा। हमारे पास पारीयान का तो पूरा इतिहास ही है। तांत्रिक सबसे पहले वहीं से खोज शुरू करेगा जो हमारा केंद्र था। और जिस जगह तुम्हे पारीयान का तिलिस्म मिला था, हिमालय का क्षेत्र, वह तो सभी सिद्ध पुरुषों के शक्ति का केंद्र रहा है। वहां के पूरे क्षेत्र को तो वो लोग इंच दर इंच कम से कम 100 बार और हर तरह के जाल को तोड़ने वाले 100 तरह के मंत्रों से ढूंढकर पहले सुनिश्चित हुये होंगे। इसलिए पारीयान का खजाना वहां सुरक्षित रहा। वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी तांत्रिक मिल गयि होती तो तुम सोच भी नही सकते की महाजनिका क्या उत्पात मचा सकती थी।
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nain11ster

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Ye ek scene agar aap explain kar den bhai..

Nishant ne Mahajanika ke Portal se jaane ke baad, Arya se puchha ki wo kaunsi jagah hai, to Arya ne kaha ki Russia ka jungle. Ye log Russia kab pahunche?
Wo satpura ke jungle me jab arymani vendigo se bhida tha. Uske baad sanyasi Shivam aur arya ki mulakat hui thi...

Wahin se fir jab baat karte huye aage badhe aur ek gufa ke dwar par aakar khade ho gaye... Jis gufa ka darwaja 50 fit ka dikh raha tha... Wahi arya aur nishant jaise hi wah gufa ka darwaja paar kiya tab usse barf ka maidan dikha... Wah portal darwaja hi tha na jo tantrik Adhyat banaya tha...

Usi scene me to aage sadhu omkar narayan ne bhi kah diya tha na tantrik se... Tumne darvaja bhi khola to jadugarni ke ilake me...
 

nain11ster

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सैकड़ों की तादाद में वैंडिगो का आर्य से चिपकना वैसा ही लग रहा था जैसे " द लोस्ट वर्ल्ड " में छोटे छोटे अनगिनत डायनासोर का एक व्यक्ति पर धावा बोल देना ।

वैंडिगो , एडियाना की सेनाएं थी और निर्देश एक तांत्रिक का फाॅलो कर रही थी । उस तांत्रिक का जिसने एक सालों पुरानी ताकतवर रीछ स्त्री को मुक्त करा दिया था ।
तांत्रिक उध्यात , रीछ स्त्री महाजनिका , वैंडिगो सभी के सभी एडियाना के मकबरे पर और उसके आसपास पाए गए । इसका मतलब सभी का कनेक्शन एडियाना से ही जुड़ा हुआ है ।
एडियाना ने भले ही अपना भौतिक शरीर त्याग दिया है पर उसकी आत्मा अभी भी उसके मकबरे में कैद है ।

इन सभी के बारे में इतना महत्वपूर्ण अपडेट्स यूं ही नहीं हो सकता । क्या यह बहरूपिया चोगा और बिजली का खंजर प्राप्त करने हेतु है ?
रीछ स्त्री को मुक्त कराने के पीछे तांत्रिक का मकसद क्या है ?

अच्छा हुआ जो उस समय सिद्ध और साधुओं का एक ग्रुप वहां मौजूद था । अन्यथा वो वैंडिगो से ही पार नहीं पाते । रीछ स्त्री और तांत्रिक तो दूर की कौड़ी थी ।
पर ये साधु संतो की टोली है कौन ? इन्हें तो सब कुछ पता है । सब कुछ यहां तक कि आर्य और निशांत का पुरा बायोडाटा भी इनके पास है ।
यह तो समझ में आ रहा है कि वो लोग भी रीछ स्त्री के तलाश में ही वहां पहुंचे थे । पर उनका मकसद सिर्फ रीछ स्त्री मात्र ही थी या खंजर और बहरूपिया चोगा भी ।
नाम से ही आस्था पनपने लगती है । ओमकार नारायण । काफी सिद्ध और अन्तर्यामी पुरुष लगते हैं ये । आर्य को इशारे इशारे में बहुत कुछ बता दिया था और आर्य समझ भी गया । हम ही बेचारे निकले जो कुछ समझ ही न पाए ।

ऐसा प्रतीत होता है अब बारी है तंत्र मंत्र विद्या सिखने की । आर्य को सही मायने में एक योग्य गुरु नारायण जी के रूप में प्राप्त हुआ ।

हम तो यही सोच रहे हैं कि ये प्रहरी यदि वहां मौजूद होते तो क्या करते ! लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त करते या भाग खड़े होते !

एक और बेहतरीन अपडेट नैन भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड ब्रिलिएंट एंड
जगमग जगमग ।

Aaj kal main baura gaya hun... Bina kuch type kiye reply post kar diya... Khair ..

Aap jaise shabdon ki rachna karte hain padhkar maza aa jata hai... Aisa lagta hai ki bus samapt hi na ho... Padhte jaye... Padhte jaye.. Aisa mere liye likhna tha... Aaj kal meri tarif karna bhul gaye hain... Har 10 update me ek tarif ke pool jaroor baandh de... Pool kya main to kahta hun poora nahar hi bandh dijiye... :D

Baharhal... Ek baar fir thoda clear kar dun... Aidiyana ke makbara se restore Ring gayab hai ye aapko aur hume pata hai... Us tantrik aur omkar narayan ji ko nahi pata... So makbare ke saman ke liye ladai ho rahi ... Ye sahi hai... Kintu khanjar aur choga secondry chijen hain.. na bhi mile to koi fark nahi padta bus wo punarsthapit ring mil jani chahiye ..

Ab ladai aidiyana ke makbare me rakhe saman ke liye to ho rahi lekin motive yahi hai ki Mahajanika ko takatwar banne se rokna aur use nasht kar den...isliye ladai ka kendr bindu Mahajanika hi hai...

Aapko bhi samjhaya hua hai Death Kiñg bro ne pahle bhi charcha kiya tha... "Palak ki bhavna na padh pana" ... Yahan bhi pahla highlighted point tha... "Meri bhavna na samjho to compaire mat karna"...

Itne clear hint ke sath kaun writer apni kahani likhta hai .. ab kya sidha hi bata dun... To wo bhi thik hai aage ab sidha hi charcha hoga :D... Haan lekin kahani me kuch bhi bahar se achanak nahi hota... Main sabke clue chhodte chalta hun taki aap sahi guess maar sake ..

Baharhaal.... ThNkoo so much for your lovely words .. sach me aapke shabd man moh lete hain... Bus kabhi kabhi aisa lagta hai ki 2 peg ke baad kahani padhkar revoo kar rahe:D
 
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भाग:–43






संन्यासी शिवम:– मेरे ख्याल से जब पारीयान की मृत्यु हुई होगी तब तक वो लोग हिमालय का पूरा क्षेत्र छान चुके होंगे। रीछ स्त्री लगभग 5000 वर्ष पूर्व कैद हुई थी और पारीयान तो बस 600 वर्ष पुराना होगा। हमारे पास पारीयान का तो पूरा इतिहास ही है। तांत्रिक सबसे पहले वहीं से खोज शुरू करेगा जो हमारा केंद्र था। और जिस जगह तुम्हे पारीयान का तिलिस्म मिला था, हिमालय का क्षेत्र, वह तो सभी सिद्ध पुरुषों के शक्ति का केंद्र रहा है। वहां के पूरे क्षेत्र को तो वो लोग इंच दर इंच कम से कम 100 बार और हर तरह के जाल को तोड़ने वाले 100 तरह के मंत्रों से ढूंढकर पहले सुनिश्चित हुये होंगे। इसलिए पारीयान का खजाना वहां सुरक्षित रहा। वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी तांत्रिक मिल गयि होती तो तुम सोच भी नही सकते की महाजनिका क्या उत्पात मचा सकती थी।


निशांत:– क्या होता संन्यासी सर?


संन्यासी शिवम:– "वह आगे तुम खुद आकलन कर लेना। हां तो मैं रीछ स्त्री के ढूंढने की बात कर रहा था। हम कैलाश मठ से जुड़े है और यह भी मात्र एक इकाई है। ऐसे न जाने सैकड़ों इकाई पूरे भारतवर्ष में थी और सबका केंद्र पूर्वी हिमालय का एक गांव था। तांत्रिक की पीढ़ी दर पीढ़ी कि खोज पहले तो हमारे केंद्र से लेकर सभी इकाई के बीच हुई होगी। फिर जब उन्हें रीछ स्त्री इन सब जगहों में नही मिली होगी, तब ये लोग समस्त विश्व में ढूंढने निकले होंगे। आखिरकार उनके भी हजारों वर्षों की खोज समाप्त हुयि, और अध्यात को रीछ स्त्री महाजनिका मिल गयि। अब जो इतने जतन के बाद मिली थी, उसे वापस नींद से जगाने के लिए तांत्रिक और उसके सहयोगियों ने बिलकुल भी जल्दबाजी नही दिखायि। योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़े।"

"वह पुस्तक रोचक तथ्य मैने भी पढ़ी थी। जिस हिसाब से उन लोगों ने रीछ स्त्री को किताब में मात्र छोटी सी जगह देकर विदर्भ में बताया था और प्रहरी इतिहास का गुणगान किया था, हम समझ चुके थे कि यह तांत्रिक कितने दूर से निशाना साध रहा था। प्रहरी ने फिर पहले संपादक से संपर्क किया और उस संपादक के जरिये तांत्रिक और प्रहरी मिले। विष मोक्ष श्राप से किसी को जगाना आसान नहीं होता। जहां से रीछ स्त्री महाजनिका को निकाला गया था, उस जगह पर पिछले कई वर्षों से अनुष्ठान हो रहा था। कई बलि ली गयि। कइयों की आहुति दी गयि और तब जाकर वह रीछ स्त्री अपने नींद से जागी। वर्तमान समय को देखा जाय तो प्रहरी के पास पैसे ताकत और शासन का पूरा समर्थन है। तांत्रिक के अनुष्ठान में कोई विघ्न न हो इसलिए प्रहरी ने पूरे क्षेत्र को ही प्रतिबंधित कर दिया। मात्र कुछ प्रहरियों को पता था कि वहां असल में क्या खेल चल रहा और तांत्रिक अध्यात की हर जरूरत वही पूरी करते थे। बाकी सभी प्रहरी को यही पता था कि वहां कुछ शापित है जो सबके लिए खतरा है।"

"ऐडियाना का मकबरा ढूंढना तांत्रिक के लिए कौन सी बड़ी बात थी। और वहीं मकबरे में ऐसी १ ऐसी वस्तु थी जो महाजनिका को जागने के तुरंत बाद चाहिए थी, पुर्नस्थापित अंगूठी। वैसे एक सत्य यह भी है कि पुर्नस्थापित अंगूठी का पत्थर और बिजली की खंजर दोनो ही महाजनिका की ही खोज है। प्रहरी और तांत्रिक के बीच संधि हुई थी। ऐडियाना का मकबरा खुलते ही वह खंजर प्रहरी का होगा और बाकी सारा सामान तांत्रिक का। इन सबके बीच तुम चले आये और इनके सारी योजना में सेंध मार गये...


आर्य मणि:– सब कुछ तो आपने किया है, फिर मैं कहां से बीच में आया...


संन्यासी शिवम:– हमे तो किसी भी चीज की भनक ही नहीं होती। जिस दिन तुमने पारीयान के भ्रम जाल से उसके पोटली को निकाला, (आर्यमणि जब जर्मनी की घटना के बाद लौटा था, तब सबसे पहले अपने मां पिताजी से मिलने गंगटोक ही गया था), उसी दिन कैलाश मठ में पता चला था कि भ्रमित अंगूठी किसी को मिल गई है। मैं तो भ्रमित अंगूठी लेने तुम्हारे पीछे आया। और जब तुम्हारे पीछे आया तभी सारी बातों का खुलासा हुआ। तुम गंगटोक में अपनी उन पुस्तकों को जला रहे थे जो 4 साल की यात्रा के दौरान तुमने एकत्र किए थे। कुल 6 किताब जलाई थी और उन सभी पुस्तकों को हमने एक बार पलटा था। उन्ही मे से एक पुस्तक थी रोचक तथ्य। उसके बाद फिर हम सारे काम को छोड़कर विदर्भ आ गये।


आर्य मणि:– जब आपको पहले ही सब पता चल चुका था, फिर रीछ स्त्री को जागने ही क्यों दिया।


संन्यासी शिवम:– अच्छा सवाल है। लेकिन क्या पता भी है कि महाजनिका कौन थी और विष–मोक्ष श्राप से उसे किसने बंधा था? और क्या जितना वक्त पहले हमे पता चला, वह वक्त महा जनिका को नींद से न जगाने के लिये पर्याप्त थी?


आर्य मणि ने ना में अपना सर हिला दिया। संन्यासी शिवम अपनी बात आगे बढ़ाते.… "यूं तो रीछ की सदैव अपनी एक दुनिया रही है, जिसमे उन्होंने मानव समाज के लिए सकारात्मक कार्य किये और कभी भी अपने ऊपर अहम को हावी नही होने दिया। कई तरह के योद्धा, वीर और कुशल सेना नायक सिद्ध पुरुष के बताये सच की राह पर अपना सर्वोच्च योगदान दिया है। जहां भी उल्लेख है हमेसा सच के साथ खड़े रहे और धर्म के लिये युद्ध किया।"

"महाजनिका भी उन्ही अच्छे रीछ में से एक थी। वह सिद्धि प्राप्त स्त्री थी। उसकी ख्याति समस्त जगत में फैली थी। शक्ति और दया का अनोखा मिश्रण जिसने अपने गुरु के लिये कंचनजंगा में दो पर्वतों के बीच एक अलौकिक गांव बसाया। वहां का वातावरण और कठिन जलवायु आम रहने वालों के हिसाब से बिलकुल भी नहीं था। इसलिए उसने अपनी सिद्धि से वहां की जलवायु को रहने योग्य बना दी। यश और प्रसिद्धि का दूसरा नाम थी वह।"

"उसके अनंत अनुयायियों में से सबसे प्रिय अनुयायि तांत्रिक नैत्रायण था। तांत्रिक का पूरा समुदाय महाजनिका में किसी देवी जैसी श्रद्धा रखते थे। हर आयोजन का पहला अनुष्ठान महाजनिका के नाम से शुरू होता और साक्षात अपने समक्ष रखकर उसकी आराधना के बाद ही अनुष्ठान को शुरू किया करते थे। महाजनिका जब भी उनके पास जाती वह खुद को ईश्वर के समतुल्य ही समझती थी। किंतु वास्तविकता तो यह भी थी कि तांत्रिक नैत्रायण और उसका पूरा समुदाय अहंकारी और कुरुर मानसिकता के थे। सामान्य लोगों का उपहास करना तांत्रिक और उनके गुटों का मनोरंजन हुआ करता था।"

"उसी दौड़ में एक महान गुरु अमोघ देव हुआ करते थे, जो महाजनिका के भी गुरु थे, किंतु निम्न जीवन जीते थे और लोक कल्याण के लिये अपने शिष्यों को दूर दराज के क्षेत्रों में भेजा करते थे। उन्ही दिनों की बात थी जब गुरु अमोघ देव के एक शिष्य आरंभ्य को एक सामान्य मानव समझ कर तांत्रिक नैत्रायण ने उसका उपहास कर दिया। उसके प्रतिउत्तर में आरंभ्य ने उसकी सारी सिद्धियां मात्र एक मंत्र से छीन लिया और सामान्य लोगों के जीवन को समझने के लिए उसे भटकते संसार में बिना किसी भौतिक वस्तु के छोड़ दिया।"

"तांत्रिक नैत्रायण ने जिन–जिन लोगों का उपहास अपने मनोरंजन के लिए किया किया था, हर कोई बदले में उपहास ही करता। कोई उसकी धोती खींच देता तो कोई उसके आगे कचरा फेंक देता। तांत्रिक यह अपमान सहन नही कर पाया और महाजनिका के समक्ष अपना सिर काट लिया। महाजनिका इस घटना से इतनी आहत हुयि कि बिना सोचे उसने पूरे एक क्षेत्र से सभी मनुष्यों का सर काटकर उस क्षेत्र को वीरान कर दिया। उन सभी लोगों में गुरु अमोघ देव के शिष्य आरंभ्य भी था।"

"गुरु अमोघ देव इतनी अराजकता देखकर स्वयं उस गांव से बाहर आये और महाजनिका को सजा देने की ठान ली। गुरु अमोघ देव और महाजनिका दोनो आमने से थे। भयंकर युद्ध हुआ। हारने की परिस्थिति में महाजनिका वहां से भाग गयि। महाजनिका वहां से जब भागी तब एक चेतावनी के देकर भागी, "कि जब वह लौटेगी तब खुद को इतना ऊंचा बना लेगी कि कोई भी उसकी शक्ति के सामने टिक न पाय। लोग उसके नाम की मंदिर बनाकर पूजे और लोक कल्याण की एकमात्र देवी वही हो और दूसरा कोई नहीं।"

"इस घटना को बीते सैकड़ों वर्ष हो गये। महाजनिका किसी के ख्यालों में भी नही थी। फिर एक दौड़ आया जब महाजनिका का नाम एक बार फिर अस्तित्व में था। जिस क्षेत्र से गुजरती वहां केवल नर्क जैसा माहौल होता। पूरा आकाश हल्के काले रंग के बादल से ढक जाता। चारो ओर केवल लाश बिछी होती जिसका अंतिम संस्कार तक करने वाला कोई नहीं था। उसके पीछे तांत्रिक नैत्रायण के वंशज की विशाल तांत्रिक सेना थी जिसका नेतृत्व तांत्रिक विशेसना करता था। महाजनिका के पास एक ऐसा चमत्कारिक कृपाण (बिजली का खंजर) थी, जिसके जरिये वह मुख से निकले मंत्र तक को काट रही थी। सकल जगत ही मानो काली चादर से ढक गया हो, जो न रात होने का संकेत देती और ना ही दिन। बस मेहसूस होती तो केवल मंहूसियत और मौत।"

"गुरु अमोघ देव के नौवें शिष्य गुरु निरावण्म मुख्य गुरु हुआ करते थे। 8 दिन के घोर तप के बाद उन्होंने ही पता लगाया था कि महाजनिका अपनी शक्तियों को बढ़ाने के लिये, प्रकृति के सबसे बड़े रहस्य के द्वार को खोल चुकी थी... समनंतर दुनिया (parellel world) के द्वार। अपनी ही दुनिया की प्रतिबिंब दुनिया, जहां नकारात्मक शक्तियों का ऐसा भंडार था, जिसकी शक्तियां पाकर कोई भी सिद्ध प्राप्त इंसान स्वयं शक्ति का श्रोत बन जाए। इतना शक्तिशाली की मूल दुनिया के संतुलन को पूर्ण रूप से बिगाड़ अथवा नष्ट कर सकता था।"

"उस दौड़ में मानवता दम तोड़ रही और महाजनिका सिद्धि और बाहुबल के दम पर हर राज्य, हर सीमा और हर प्रकार की सेना को मारती हुई अपना आधिपत्य कायम कर रही थी। लोक कल्याण के बहुत से गुरुओं ने मिलकर भूमि, समुद्र तथा आकाश, तीनों मध्यम से वीरों को बुलवाया। इन तीनों मध्यम में बसने वाले मुख्य गुरु सब भी साथ आये। कुल २२ गुरु एक साथ खड़े मंत्रो से मंत्र काट रहे थे, वहीं तीनों लोकों से आये वीर सामने से द्वंद कर रहे थे। लेकिन महाजनिका तो अपने आप में ही शक्ति श्रोत थी। उसका बाहुबल मानो किसी पर्वत के समान था। ऐसा बाहुबल जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। अंधकार की दुनिया (parellel world) से उसने ऐसे–ऐसे अस्त्र लाये जो एक बार में विशाल से विशाल सेना को मौत की आगोश में सुला दिया करती थी।"

महाजनिका विकृत थी। अंधकार की दुनिया से लौटने के बाद उसका हृदय ही नही बल्कि रक्त भी काली हो चुकी थी। वह अपने शक्ति के अहंकार में चूर। उसे यकीन सा हो चला था कि वही एकमात्र आराध्या देवी है। किंतु वह कुछ भूल गयि। वह भूल गयि कि गुरु निरावण्म को समस्त ब्रह्माण्ड का ज्ञान था। ब्रह्मांड की उत्पत्ति जिन शक्ति पत्थरों से हुयि, फिर वह सकारात्मक प्रभाव दे या फिर नकारात्मक, उनको पूरा ज्ञान था। अंत में गुरु निरावण्म स्वयं सामने आये और उनके साथ था समस्त ब्रह्माण्ड का सबसे शक्तिशाली समुदाय का सबसे शक्तिशाली योद्धा, जिसे विग्गो सिग्मा कहते थे।

ब्रह्मांड के कई ग्रहों में से किसी एक ग्रह का वो निवासी था जिसे गुरु निरावण्म टेलीपोर्टेशन की जरिये लेकर आये थे। वह वीर अकेला चला बस शक्ति श्रोत के कयि सारे पत्थर संग जो युद्ध के लिये नही वरन महाजनिका को मात्र बांधने के उपयोग में आती। हर बुरे मंत्रो का काट गुरु निरावण्म पीछे खड़े रहकर कर रहे थे। उस विगो सिग्मा के बाहुबल की सिर्फ इतनी परिभाषा थी कि स्वयं महाजनिका उसके बाहुबल से भयभीत हो गयि। जैसा गुरु निरावण्म ने समझाया उसने ठीक वैसा ही किया। कई तरह के पत्थरों के जाल में महाजनिका को फसा दिया। शक्ति पत्थरों का ऐसा जाल जिसमे फंसकर कोई भी सिद्धि दम तोड़ दे। जो भी उस जाल में फसा वह अपनी सिद्धि को अपनी आखों से धुएं के माफिक हवा में उड़ते तो देखते, किंतु कुछ कर नही सकते थे। उसके कैद होते ही तांत्रिक विशेसना की सेना परास्त होने लगी।"

"महाजनिका और तांत्रिक विशेसना दोनो को ही समझ में आ चुका था की अब मृत्यु निश्चित है। तभी लिया गया एक बड़ा फैसला और तांत्रिक विशेसना के शिष्य विष मोक्ष श्राप से महाजनिका को कैद करने लगे। गुरु निरावण्म पहले मंत्र से ही भांप गये थे कि महाजनिका को कैद करके उसकी जान बचाई जा रही थी। लेकिन विष मोक्ष श्राप मात्र २ मंत्रों का होता है और कुछ क्षण में ही समाप्त किया जा सकता है। गुरु निरावण्म के हाथ में कुछ नही था, इसलिए उन्होंने टेलीपोर्टेशन के जरिये कैद महाजनिका को ही विस्थापित कर दिया।"

"कमजोर तो महाजनिका भी नही थी। उसे पता था यदि उसके शरीर को नष्ट कर दिया गया तब वह कभी वापस नहीं आ सकती। इसलिए जब गुरु निरावण्म उसे टेलीपोर्टेशन के जरिए विस्थापित कर रहे थे, ठीक उसी वक्त महाजनिका ने भी उसी टेलीपोर्टेशन द्वार के ऊपर अपना विपरीत द्वार खोल दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि महाजनिका की आत्मा समानांतर दुनिया (parellel world) के इस हिस्से में रह गयि और शरीर अंधकार की दुनिया में। यूं समझा जा सकता है कि आईने के एक ओर आत्मा और दूसरे ओर उसका शरीर। और दोनो ही टेलीपोर्टेशन के दौरान विष मोक्ष श्राप से कैद हो गये।"

"तांत्रिक विशेसना के सामने २ चुनौतियां थी, पहला अंधकार की दुनिया का दरवाजा खोलकर महाजनिका के शरीर और आत्मा को एक जगह लाकर उसे विष मोक्ष श्राप से मुक्त करना। और दूसरा ये सब काम करने के लिये सबसे पहले महाजनिका को टेलीपोर्ट करके कहां भेजा गया था, उसका पता लगाना... हां लेकिन इन २ समस्या के आगे एक तीसरी समस्या सामने खड़ी थी। अपने और अपने बच्चों की जान बचाना। टेलीपोर्टेशन विद्या आदिकाल से कई सिद्ध पुरुषों के पास रही थी किंतु तंत्रिक के पास वो सिद्धि नही थी जो उसे टेलीपोर्ट कर दे, इसलिए खुद ही उसने आत्म समर्पण कर दिया। इस आत्म समर्पण के कारण उसके बच्चों की जान बच गयि।"

"महाजनिका को विष मोक्ष श्राप उसे किसी गुरु द्वारा नही दी गई थी बल्कि तांत्रिक विशेसना के नेतृत्व में उसी के चेलों ने दी थी। हालाकि रक्त–मोक्ष श्राप से भी बांध सकते थे किंतु रक्त मोक्ष श्राप की विधि लंबी थी और समय बिलकुल भी नहीं था। महाजनिका को जगाने की प्रक्रिया कुछ वर्षों से चल रही थी। हम तो उसके आखरी चरण में पहुंचे थे। मैं आखरी चरण को विस्तार से समझाता हूं। विष–मोक्ष श्राप से जब किसी को वापस लाया जाता है तो वह उसके पुनर्जनम के समान होता है। गर्भ में जैसे बच्चा पलता है, ठीक वैसा ही एक गर्भ होता है, जहां शापित स्त्री या पुरुष 9 महीने के लिये रहते हैं। एक बार जब गर्भ की स्थापना हो जाती है, फिर स्वयं ब्रह्मा भी उसे नष्ट नही कर सकते। उसके जब वह अस्तित्व में आ जाये तभी कुछ किया जा सकता था। और हम तो गर्भ लगभग पूर्ण होने के वक्त पहुंचे।"

"आज जिस महाजनिका से हम लड़े है उसकी शक्ति एक नवजात शिशु के समान थी। यूं समझ लो की अपनी सिद्धि के वह कुछ अंश, जिन्हे हम अनुवांसिक अंश भी कहते हैं, उसके साथ लड़ी थी। यह तो उसकी पूर्ण शक्ति का मात्र १००वा हिस्सा रहा होगा। इसके अलावा वह २ बार मात खाई हुई घायल है, इस बार क्या साथ लेकर वापस लैटेगी, ये मुख्य चिंता का विषय है?"


आर्यमणि:– महाजनिका कहां से क्या साथ लेकर आयेगी? आप लोग इतने ज्ञानी है और महाजनिका इस वक्त बहुत ही दुर्बल। इस वक्त यदि छोड़ दिया तब तो वह अपनी पूरी शक्ति के साथ वापस आयेगी। आप लोगों को इसी वक्त उसे ढूंढना चाहिए...


संन्यासी शिवम:– "कहां ढूंढेंगे... वह इस लोक में होगी तो न ढूंढेंगे। महाजनिका अंधकार की दुनिया (parellel world) में है। अंधकार की दुनिया (parellel world) अपनी ही दुनिया की प्रतिबिंब दुनिया है, जिसका निर्माण प्रकृति ने संतुलन बनाए रखने के लिए किया है। जैसे की ऑक्सीजन जीवन दायक गैस लेकिन उसे बैलेंस करने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड बनाया। प्रकृति संतुलन बनाए रखने के लिए दोनो ही तरह के निर्माण करती है।"

"समांनानतर ब्रह्मांड भी इसी चीज का हिस्सा है, बस वहां जीवन नही बसता, बसता है तो कई तरह के विचित्र जीव जो उस दुनिया के वातावरण में पैदा हुए होते हैं। यहां के जीवन से उलट और सामान्य लोगों के लिए एक प्रतिकूल वातावरण जहां जीने के लिए संघर्ष करने के बारे में सोचना ही अपने आप से धोका करने जैसा है। ऐसा नहीं था कि महाजनिका वह पहली थी जो अंधकार की दुनिया (Parellel world) में घुसी। उसके पहले भी कई विकृत सिद्ध पुरुष और काली शक्ति के उपासक, और ज्यादा शक्ति की तलाश में जा चुके हैं। उसके बाद भी कई लोग गये हैं। किंतु वहां जो एक बार गया वह वहीं का होकर रह गया। किसी की सिद्धि में बहुत शक्ति होता तो वह किसी तरह मूल दुनिया में वापस आ जाता। कहने का सीधा अर्थ है उसके दरवाजा को कोई भी अपने मन मुताबिक नही खोल सकता, सिवाय महाजनिका के। वह इकलौती ऐसी है जो चाह ले तो २ दुनिया के बीच का दरवाजा ऐसे खोल दे जैसे किसी घर का दरवाजा हो।"

"टेलीपोर्टेशन (teleportation) और टेलीपैथी (telepathy) एक ऐसी विधा है जो सभी कुंडलिनी चक्र जागृत होने के बाद भी उनपर सिद्धि प्राप्त करना असंभव सा होता है। आज के वक्त में टेलीपोर्टेशन विद्या तो विलुप्त हो गयि है, हां टेलीपैथी को हम संभाल कर रखने में कामयाब हुये। महाजनिका पूरे ब्रह्मांड में इकलौती ऐसी है जो टेलीपोर्टेशन कर सकती है। जिस युग में सिद्ध पुरुष टेलीपोर्टेशन भी किया करते थे तो भी कोई अंधकार की दुनिया में रास्ता नहीं खोल सकता था। महाजनिका ने वह सिद्धि हासिल की थी जिससे वो दोनो दुनिया में टेलीपोर्टेशन कर सकती थी।
 
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