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अध्याय - 140
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इस बार भाभी कुछ न बोलीं। बस मेरी तरफ अपलक देखती रहीं। तभी बाहर से किसी के आने का आभास हुआ तो वो जल्दी से पलटीं और अंदर चली गईं। मैं असहाय सा बैठा रह गया। कुछ ही पलों में बाहर से एक औरत अंदर आई। मुझे देखते ही उसने झट से अपना चेहरा घूंघट कर के छुपा लिया और अंदर की तरफ चली गई।
अब आगे....
कुछ देर मैं यूं ही बैठा रहा और भाभी के बारे में सोचता रहा। उसके बाद मैं उठा और बाहर आया। भीमा बाहर सड़क के पास खड़ा था। मैंने उसे आवाज़ दे कर अंदर बुला लिया।
शाम होने में अभी क़रीब दो ढाई घंटे का समय था इस लिए मैं आराम से पलंग पर लेट गया। भीमा भी दूसरी तरफ चारपाई पर लेट गया था। इधर मैं आंखें बंद किए भाभी से हुई बातों के बारे में सोचने लगा। जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कुछ बदला बदला सा है। भाभी का बर्ताव भी मुझे कुछ बदला हुआ और थोड़ा अजीब सा लगा था। इसके पहले वो अक्सर मुझे छेड़तीं थी, मेरी टांग खींचतीं थी और तो और मेरी हेकड़ी निकाल कर आसमान से सीधा ज़मीन पर ले आतीं थी किंतु आज ऐसा कुछ भी नज़र नहीं आया था। उनके चेहरे पर कोई खुशी, कोई उत्साह, कोई चंचलता नहीं थी। अगर कुछ थी तो सिर्फ गंभीरता। उनकी आवाज़ भी धींमी थी।
मुझे लगा शायद वो अपने मायके में होने की वजह से अपने देवर से खुल कर बात नहीं कर पा रहीं थी। हां, ज़रूर यही बात होगी वरना भाभी मेरे सामने इतनी असामान्य नहीं हो सकती थीं। बहरहाल मैंने अपने ज़हन से सारी बातों को झटक दिया और आराम से सोने की कोशिश करने लगा मगर काफी देर गुज़र जाने पर भी मुझे नींद न आई। मन में एक खालीपन और एक बेचैनी सी महसूस हो रही थी।
एकाएक ही मुझे एहसास हुआ कि शाम होने से पहले मुझे वापस अपने गांव जाना है। जैसे आया था वैसे ही वापस जाना होगा मुझे। बड़ी खुशी के साथ और बड़ी उम्मीद के साथ मैं अपनी प्यारी सी भाभी को लेने आया था लेकिन भाभी खुद ही जाने को राज़ी नहीं थीं और मैं उन्हें चलने के लिए मजबूर भी नहीं कर सकता था। कुछ ही पलों में मेरी सारी खुशी और सारा उत्साह बर्फ़ की मानिंद ठंडा पड़ गया था।
मैं आंखें बंद किए ये सब सोच ही रहा था कि तभी मेरे कानों में पायल छनकने की आवाज़ें पड़ीं। कोई अंदर से आ रहा था जिसके पैरों की पायल छनक रही थी। मैंने करवट ली हुई थी इस लिए मैं देख नहीं सकता था कि कौन आ रहा है। पायल की छनकती आवाज़ एकाएक बंद हो गईं। मैंने महसूस किया कि मेरे क़रीब ही पायलों का छनकना बंद हुआ है।
"लगता है जीजा जी सो गए हैं।" तभी किसी की मधुर किंतु बहुत ही धींमी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे बोलने वाले ने किसी दूसरे से ऐसा कहा था_____"अब क्या करें? क्या हमें जीजा जी को जगाना चाहिए? वैसे दीदी ने कहा है कि हम इन्हें परेशान न करें।"
"मुझे अच्छी तरह पता है कि इन महापुरुष को इतना जल्दी यहां नींद नहीं आने वाली।" ये दूसरी आवाज़ थी। आवाज़ धीमी तो थी लेकिन लहजा थोड़ा कर्कश सा था।
मैं फ़ौरन ही पहचान गया कि ये आवाज़ भाभी की छोटी बहन कामिनी की है। मुझे हैरानी हुई कि कामिनी इस वक्त यहां क्यों आई होगी, वो भी मेरे क़रीब? उसका और मेरा तो छत्तीस का आंकड़ा था। कभी सीधे मुंह बात नहीं करती थी वो। हालाकि इसमें उसका नहीं मेरा ही दोष था क्योंकि शुरुआत से ही मेरी हवस भरी नज़रों का उसी ने सामना किया था। उसे मेरी आदतों से और मेरी हरकतों से सख़्त नफ़रत थी।
"धीरे बोलिए दीदी।" पहले वाली ने धीमें स्वर में उससे कहा____"जीजा जी सुन लेंगे तो नाराज़ हो जाएंगे।"
"मुझे फ़र्क नहीं पड़ता।" कामिनी ने जैसे लापरवाही से कहा_____"वैसे भी मैं इनकी नाराज़गी से थोड़े ना डरती हूं।"
"हां हां समझ गई मैं।" पहले वाली आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। मैं उसकी आवाज़ से उसको पहचानने की कोशिश में लगा हुआ था। अरे! ये तो कंचन थी। भैया के चाचा ससुर की बेटी। बहरहाल उसने आगे कहा____"पर अब क्या करना है? वापस चलें?"
"तू जा।" कामिनी ने उससे कहा____"मैं देखती हूं इन्हें और हां अंदर किसी को कुछ मत बताना। ख़ास कर दीदी को तो बिल्कुल भी नहीं। पहले तो वो अपने देवर का पक्ष लेतीं ही थी किंतु अब तो कहना ही क्या। ख़ैर तू जा अब।"
कामिनी की इन बातों के बाद कंचन चली गई। उसके पायलों की छम छम से मुझे पता चल गया था। इधर अब मैं ये सोचने लगा कि कामिनी क्या करने वाली है? मैं पहले से ही उसके इस बर्ताव से हैरान था किंतु अब तो धड़कनें ही बढ़ गईं थी मेरी। बहरहाल, मैं आंखें बंद किए चुपचाप लेटा रहा और उसकी तरफ से किसी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करने लगा। इसके लिए मुझे ज़्यादा देर प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। मैंने महसूस किया कि वो पीछे से घूम कर मेरे सामने की तरफ आई और मेरे सामने वाले पलंग पर बैठ गई। मेरी धड़कनें ये सोच कर धाड़ धाड़ कर के बजने लगीं कि जाने ये आफ़त अब क्या करने वाली है?
"ज़्यादा नाटक करने की ज़रूरत नहीं है।" इस बार उसकी आवाज़ स्पष्ट रूप से मेरे कानों में पड़ी_____"मुझे अच्छी तरह पता है कि आप सो नहीं रहे हैं। अब चुपचाप अपना नाटक बंद कर के आंखें खोल लीजिए, वरना इंसान को गहरी नींद से जगाना भी मुझे अच्छी तरह आता है।"
ये तो सरासर धमकी थी, वो भी मेरे जैसे सूरमा को। मैं उसकी इस धमकी पर मन ही मन मुस्कुरा उठा। हालाकि उससे डरने का तो सवाल ही नहीं था लेकिन मैं नहीं चाहता था कि कोई तमाशा हो जाए। दूसरी वजह ये भी थी कि मैं उसके बर्ताव से हैरान था और जानना चाहता था कि आख़िर वो किस मकसद से मेरे पास आई थी?
"लीजिए सरकार, हमने अपनी आंखें खोल दी।" मैंने आंखें खोल कर उसकी तरफ देखते हुए उठ कर बैठ गया, फिर बोला_____"आप इतनी मोहब्बत से हमें जाग जाने को कह रहीं हैं तो हमें उठना ही पड़ेगा। कहिए, क्या चाहती हैं आप हमसे? प्यार मोहब्बत या फिर कुछ और?"
"हद है, आप कभी नहीं सुधरेंगे।" कामिनी ने मुझे घूरते हुए कहा____"जब देखो वही छिछोरी हरकतें।"
"आप भी कीजिए।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"यकीन मानिए, बहुत मज़ा आएगा।"
कामिनी ने मुझे खा जाने वाली नज़रों से देखा। पलक झपकते ही उसका चेहरा तमतमाया गया सा नज़र आया। ऐसी ही थी वो। ऐसा नहीं था कि उसे मज़ाक पसंद नहीं था लेकिन मेरा उससे मज़ाक करना बिल्कुल पसंद नहीं था। उसके ज़हन में ये बात बैठ चुकी थी कि मैं हर लड़की को सिर्फ भोगने के लिए ही अपने मोह जाल में फंसाता हूं।
"उफ्फ! इतनी मोहब्बत से हमें मत देखिए सरकार।" मैंने उसे और गरमाया_____"वरना एक ही पल में ढेर हो जाएंगे हम।"
"क्यों करते हैं ऐसी गन्दी हरकतें?" उसने जैसे अपने गुस्से को बड़ी मुश्किल से दबाते हुए मुझसे कहा____"क्या आप कभी किसी से सभ्य इंसानों जैसी बातें नहीं कर सकते?"
"अब ये तो सबका अपना अपना सोचने का नज़रिया है सरकार।" मैंने कहा____"आपको मेरी बातें सभ्य नहीं लगती जबकि यही बातें दूसरों को सभ्य लगती हैं। प्यार मोहब्बत की चाशनी में डूबी हुई लगती हैं। आपको नहीं लगती हैं तो इसका मतलब ये है कि या तो आपका ज़ायका ख़राब है या फिर आपकी समझदानी में ही गड़बड़ी है।"
"मतलब आप स्पष्ट रूप से ये कह रहे हैं कि मेरे पास दिमाग़ नहीं है?" कामिनी ने इस बार गुस्से से मेरी तरफ देखा____"और मैं किसी की बातों का मतलब ही नहीं समझती हूं?"
"क्या आप मुझसे झगड़ा करने ही आईं थी?" मैंने विषय को बदलने की गरज से इस बार थोड़ा गंभीरता से कहा____"अगर झगड़ा ही करने आईं थी तो ठीक है मैं तैयार हूं लेकिन यदि किसी और वजह से आईं थी तो सीधे मुद्दे की बातों पर आइए। वैसे मैं हैरान हूं कि जो लड़की मुझे अपना कट्टर दुश्मन समझती है वो मुझसे गुफ़्तगू करने कैसे आई है?"
कामिनी ने इस बार फ़ौरन कुछ ना कहा। उसने सबसे पहले अपने गुस्से को काबू किया और आंखें बंद कर के गहरी गहरी सांसें ली। नीले रंग का कुर्ता सलवार पहन रखा था उसने। दुपट्टे से उसने अपने सीने के उभारों को पूरी तरह से ढंक रखा था। ऐसा हमेशा होता था, मेरे सामने आते ही वो कुछ ज़्यादा ही चौकन्नी हो जाती थी।
"अब कुछ बोलिए भी।" मैंने कहा____"मैं बड़ी शिद्दत से जानना चाहता हूं कामिनी देवी आज मेरे सामने कैसे बैठी हैं और मुझसे इतनी मोहब्बत से बातें क्यों कर रही हैं?"
"आप फिर से शुरू हो गए?" उसने मुझे घूरा।
"अगर आप बड़ी मोहब्बत से शुरू हो जातीं तो हम रुके रहते।" मैंने हौले से मुस्कुराते हुए कहा____"ख़ैर बताइए आज सूरज किस दिशा से उगा है चंदनपुर में?"
"क्या आप सच में दीदी को लेने आए हैं?" उसने जैसे मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया और पूछा।
"क्या आपको कोई शक है इसमें?" मैंने कहा____"वैसे आप भी हमारे साथ चलतीं तो क़सम से आनन्द ही आ जाता।"
"किसी कीमत पर नहीं।" कामिनी ने दृढ़ता से कहा____"आपके साथ तो किसी जन्म में कहीं नहीं जाऊंगी मैं।"
"वाह! इतनी शिद्दत से मोहब्बत आप ही कर सकती हैं मुझसे।" मैं मुस्कुराया।
"ये मोहब्बत नहीं है।" उसने घूरते हुए कहा____"बल्कि...।"
"नफ़रत है?" उसकी बता काट कर मैंने उसकी बात पूरी की_____"जानता हूं मैं लेकिन शायद आप ये नहीं जानती कि नफ़रत और मोहब्बत का जन्म एक ही जगह से होता है....दिल से। अब दिल से नफ़रत कीजिए या मोहब्बत, ये तो पक्की बात है ना कि किसी न किसी भावना से आपने मुझे अपना बना ही रखा है।"
"अपने मन को बहलाने के लिए ख़याल अच्छा है।" कामिनी ने कहा____"ख़ैर मैं आपको ये बताने के लिए आई थी कि दीदी को हम लोग अब नहीं भेजेंगे। वो यहीं रहेंगी, हमारे साथ।"
"क...क्या मतलब?" मैं एकदम से चौंक पड़ा____"ये क्या कह रही हैं आप?"
"वही जो आपने सुना है।" कामिनी ने स्पष्ट रूप से कहा____"भैया ने आपसे स्पष्ट रूप में इसी लिए नहीं कहा क्योंकि वो शायद संकोच कर गए थे लेकिन सच यही है कि दीदी अब यहीं रहेंगी। आपको अकेले ही वापस जाना होगा।"
"अरे! भला ये क्या बात हुई?" मैं बुरी तरह हैरान परेशान सा बोल पड़ा____"माना कि भाभी का ये मायका है और वो यहां जब तक चाहे रह सकती हैं लेकिन इसका क्या मतलब हुआ कि वो अब यहां से नहीं जाएंगी?"
"बस नहीं जाएंगी।" कामिनी ने अजीब भाव से कहा____"वैसे भी जिनसे उनका संबंध था वो तो अब रहे नहीं। फिर भला हम कैसे उन्हें इस दुख के साथ जीवन भर उस हवेली में विधवा बहू बन कर रहने दें? आपको शायद पता नहीं है कि पिता जी ने दीदी का फिर से ब्याह कर देने का फ़ैसला किया है। आप तो जानते ही है कि दीदी की अभी उमर ही क्या है जो वो आपके भाई की विधवा बन कर सारी ज़िंदगी दुख और कष्ट में गुज़ारें।"
कामिनी की बातें किसी पिघले हुए शीशे की तरह मेरे कानों में अंदर तक समाती चली गईं थी। मेरे दिलो दिमाग़ में एकाएक ही हलचल सी मच गई थी। मन में तरह तरह के ख़यालों की आंधी सी आ गई थी।
"अगर ये मज़ाक है।" फिर मैंने सख़्त भाव से कहा____"तो समझ लीजिए कि मुझे इस तरह का घटिया मज़ाक बिल्कुल भी पसंद नहीं है। आप भाभी के बारे में ऐसी बकवास कैसे कर सकती हैं?"
"ये बकवास नहीं है जीजा जी।" कामिनी ने कहा____"हकीक़त है हकीक़त। मैं मानती हूं कि आप अपनी भाभी के बारे में इस तरह की बातें नहीं सुन सकते हैं लेकिन खुद सोचिए कि क्या आप यही चाहते हैं कि मेरी दीदी अपना पहाड़ जैसा जीवन विधवा बन कर ही गुज़ारें? क्या आप यही चाहते हैं कि उनके जीवन में कभी खुशियों के कोई रंग ही न आएं? क्या आप यही चाहते हैं कि वो जीवन भर अकेले दुख दर्द में डूबी रहें?"
"नहीं नहीं।" मैं झट से बोल पड़ा____"अपनी भाभी के बारे में मैं ऐसा सपने में भी नहीं सोच सकता। मैं तो....मैं तो यही दुआ करता हूं कि उनकी ज़िंदगी में पहले जैसी ही खुशियां आ जाएं जिससे मेरी भाभी का चेहरा फिर से पूर्णिमा के चांद की तरह चमकने लगे। मैं तो चाहता हूं कि मेरी भाभी के होठों पर हमेशा खुशियों से भरी मुस्कान सजी रहे। उनके जीवन में दुख का एक तिनका भी कभी न आए।"
"अगर आप सच में ऐसा चाहते हैं।" कामिनी ने कहा____"तो फिर आपको इस बात से कोई एतराज़ अथवा कष्ट नहीं होना चाहिए कि उनका फिर से कहीं ब्याह हो जाए। आप भी समझने की कोशिश कीजिए कि उनके जीवन में इस तरह की खुशियां तभी आ सकती हैं जब हमेशा के लिए उनके बदन से विधवा का लिबास उतार दिया जाए और उन्हें किसी की सुहागन बना दिया जाए। पिता जी भी ये नहीं सह पा रहे हैं कि उनकी बेटी इतनी सी उमर में विधवा हो कर सारा जीवन दुख और कष्ट में ही व्यतीत करने पर मज़बूर हैं।"
सच कहूं तो मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मैं एकाएक आसमान से ज़मीन पर आ गिरा था। भाभी का फिर से ब्याह करने का कोई सोचेगा इस बारे में तो मैंने अब तक कल्पना ही नहीं की थी। सच ही तो कह रही थी कामिनी कि उनकी ज़िंदगी में खुशियां तभी आ सकती हैं जब उनका फिर से ब्याह कर दिया जाए और उन्हें किसी की सुहागन बना दिया जाए। सच ही तो था, एक विधवा के रूप में भला वो कैसे खुश रह सकती थीं? असल खुशियां तो तभी मिलती हैं जब इंसान का जीवन खुशियों के रंगों से भरा हो। एक विधवा के जीवन में सफेद रंग के अलावा दूसरा कोई रंग भरा ही नहीं जा सकता था?
मेरे मनो मस्तिष्क में धमाके से होने लगे थे। पहली बार मैं इस तरीके से सोचने पर मजबूर हुआ था। पहली बार इतनी गहराई से सोचने का मानों अवसर मिला था। अचानक ही मेरे मन में एक ख़याल बिजली की तरह आ गिरा....भाभी का फिर से ब्याह हो जाएगा, यानि वो किसी की पत्नी बन जाएंगी। उसके बाद उनसे मेरा कोई रिश्ता नहीं रह जाएगा। आज वो मेरी भाभी हैं लेकिन ब्याह के बाद वो किसी और के रिश्ते में बंध जाएंगी। हवेली की बहू और हवेली शान हमेशा के लिए किसी दूसरे के घर की शान बन जाएगी।
एक झटके में जैसे मैं वास्तविकता के धरातल पर आ गया जिसके एहसास ने मुझे अंदर तक हिला डाला। एक झटके में भाभी का प्यार और स्नेह मुझे अपने से दूर होता नज़र आने लगा। उनका वो छेड़ना, वो टांगे खींचना और एक झटके में मेरी हेकड़ी निकाल देना ये सब कभी न भुलाई जा सकने वाली याद सा बनता महसूस हुआ। पलक झपकते ही आंखों के सामने भाभी का सुंदर चेहरा उभर आया...और फिर अगले ही पल एक एक कर के वो हर लम्हें उभरने लगे जिनमें मेरी उनसे मुलाक़ातों की तस्वीरें थीं। जब भैया जीवित थे तब की तस्वीरें। भाभी तब सुहागन थीं, बहुत सुंदर और मासूम नज़र आतीं थी वो। फिर एकदम से तस्वीरें बड़ी तेज़ी से बदलने लगीं और कुछ ही पलों में उस वक्त की तस्वीर उभर आई जब कुछ देर पहले मैंने उन्हें देखा था।
एक झटके में मुझे अपनी कोई बहुत ही अनमोल चीज़ खो देने जैसा एहसास हुआ। मेरे अंदर भाभी को खो देने जैसी पीड़ा उभर आई। मैं एकदम से दुखी और उदास सा हो गया। मेरी आंखें अनायास ही बंद हो गईं और ना चाहते हुए भी आंखों की कोर से आंसू का एक कतरा छलक गया। मैंने हड़बड़ा कर जल्दी से उसे पोंछ लिया। मैं नहीं चाहता था कि कामिनी मेरी आंख से निकले आंसू के उस कतरे को देख ले।
"क्या हुआ जीजा जी?" सहसा कामिनी की आवाज़ से मैं चौंका____"आप एकदम से चुप क्यों हो गए? क्या मैंने कुछ ग़लत कह दिया है आपसे?"
"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।" मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा____"आपने भाभी के बारे में जो भी कहा वो एकदम से उचित ही कहा है। मुझसे अच्छी तो आप हैं कामिनी जो अपनी दीदी की खुशियों के बारे में इतना कुछ सोच बैठी हैं। एक मैं हूं जो अब तक यही समझ रहा था कि मैं अपनी भाभी को खुश रखने के लिए बहुत कुछ कर रहा हूं। हैरत की बात है कि मैं कभी ये सोच ही नहीं पाया कि एक औरत को असल खुशी तभी मिल सकती है जब उसका सम्पूर्ण जीवन खुशियों के अलग अलग रंगों से भर जाए और ऐसा तो तभी हो सकता है ना जब उस औरत का फिर से कहीं ब्याह हो जाए। आज मुझे अपनी ग़लती का एहसास हो गया है और इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद भी देता हूं कि आपने मुझे इस सत्य का एहसास कराया। आपके पिता जी ने अपनी बेटी की खुशी के लिए बहुत ही उम्दा कार्य करने का फ़ैसला लिया है। मुझे अपनी भाभी के लिए इस बात से बहुत खुशी हो रही है। ईश्वर से यही प्रार्थना करता था कि वो उन्हें हमेशा खुश रखें तो अब ऐसा हो जाने से वो वाकई में खुश ही रहेंगी।"
कामिनी मेरी तरफ ही देखे जा रही थी। उसके चेहरे पर थोड़े हैरानी के भाव भी उभर आए थे। शायद उसे मुझसे ऐसी गंभीर बातों की उम्मीद नहीं थी। वो तो यही समझती थी कि मैं एक बहुत ही ज़्यादा बिगड़ा हुआ लड़का हूं जिसे किसी की भावनाओं से अथवा किसी के दुख दर्द से कोई मतलब ही नहीं होता है।
"वैसे इतनी बड़ी बात हो गई और किसी ने मुझे बताया तक नहीं।" फिर मैंने कहा____"मुझे अब समझ आ रहा है कि क्यों हर बार मां मुझे भाभी को लेने आने से मना कर रहीं थी। आते समय पिता जी ने भी यही कहा था कि अगर यहां पर आप लोग भाभी को मेरे साथ भेजने से मना करें तो मैं इसके लिए किसी पर दबाव नहीं डालूंगा। इसका मतलब तो यही हुआ कि मां और पिता जी को भी इस बारे में पता है। यानि वो भी जानते हैं कि आपके पिता जी भाभी का फिर से ब्याह कर देना चाहते हैं?"
"इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है।" कामिनी ने कहा____"पर आपकी बातों से तो यही लगता है कि उन्हें इस बारे में पता है।"
"हां लेकिन मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि उन्होंने इस बारे में मुझे क्यों कुछ नहीं बताया?" मैंने उलझन पूर्ण भाव से कहा____"अगर वो उसी समय मुझे बता देते तो भला क्या हो जाता?"
कामिनी के पास जैसे मेरे इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। वो भी सोच में पड़ गई थी। कुछ देर तक हमारे बीच ख़ामोशी ही रही। मुझे बहुत अजीब महसूस हो रहा था। एकदम से अब मुझे पराएपन का एहसास होने लगा था।
"मैंने हमेशा आपके साथ ग़लत बर्ताव किया है कामिनी।" फिर मैंने गंभीरता से कहा____"हमेशा आपको परेशान किया है, इसके लिए माफ़ कर दीजिएगा मुझे।"
"अरे! ये क्या कह रहे हैं आप?" कामिनी एकदम से चौंकी____"देखिए आप इस तरह मुझसे माफ़ी मत मांगिए।"
"मेरी एक विनती है आपसे।" मैंने उसकी तरफ देखा____"मैं अपनी भाभी को आख़िरी बार देख लेना चाहता हूं। क्या आप उन्हें यहां भेज देंगी? देखिए मना मत करना।"
"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" कामिनी के चेहरे पर हैरानी और उलझन जैसे भाव उभर आए____"अच्छा ठीक है, मैं जा कर दीदी को आपकी ये बात बता देती हूं।"
"उन्हें सिर्फ बताना ही नहीं है।" मैंने ज़ोर देते हुए कहा____"उनसे कहना कि उनका देवर उनसे आख़िरी बार मिलना चाहता है।"
कामिनी ठीक है कहते हुए उठी और अंदर चली गई। इधर मैं दुखी मन से बैठा जाने क्या क्या सोचने लगा। मुझे इस बात की तो खुशी थी कि भाभी का किसी से ब्याह हो जाएगा तो वो हमेशा खुश रहेंगी लेकिन अब इस बात का बेहद दुख भी हो रहा था कि मैं अब हमेशा के लिए अपनी भाभी को खो दूंगा। मेरे बदले हुए जीवन में उनका बहुत योगदान था। आज मैं बदल कर यहां तक पहुंचा था तो इसमें भाभी का भी बहुत बड़ा हाथ था। वो हमेशा मुझे अच्छा इंसान बनने के लिए ज़ोर देती थीं। हमेशा मेरा मार्गदर्शन करतीं थी। मेरे माता पिता को तो उनके जैसी बहू पाने पर हमेशा से गर्व था ही किंतु मुझे भी उनके जैसी भाभी पाने पर नाज़ था।
काश! विधाता ने बड़े भैया का जीवन नहीं छीना होता तो आज मैं अपनी भाभी को खो नहीं रहा होता। पहले अनुराधा और अब भाभी, दोनों को ही खो दिया मैंने। एकाएक ही मेरे अंदर तीव्र पीड़ा उठी। मेरा मन रो देने का करने लगा। मैंने बड़ी मुश्किल से अपने जज़्बातों को रोका और भाभी के आने का इंतज़ार करने लगा।
आख़िर मेरी मुराद पूरी हुई और भाभी आ गईं। वही गंभीर चेहरा, कोई खुशी नहीं, कोई उत्साह नहीं। आंखों में सूनापन और होठों पर रेगिस्तान के जैसा सूखापन। वो आईं और मेरे सामने खड़ी हो गईं। मेरा जी किया कि मैं एक झटके से उनसे लिपट जाऊं और किसी बच्चे की तरफ फूट फूट कर रो पड़ूं। उनसे लिपट पड़ने से तो खुद को रोक लिया मैंने लेकिन आंखों को बगावत करने से न रोक सका। मेरे लाख रोकने के बाद भी जज़्बातों की आंधी ने आंखों से आंसुओं को छलका ही दिया। मैंने महसूस किया कि मेरी आंखों से आंसू छलका देख भाभी तड़प सी उठीं थी।
"क...क्या हुआ तुम्हें?" फिर उन्होंने झट से फिक्रमंद हो कर पूछा____"तुम...तुम रो क्यों रहे हो? क्या कामिनी ने तुम्हें कुछ कहा है?"
"नहीं नहीं।" मेरे अंदर हुक सी उठी, खुद को सम्हालते हुए बोला____"उन्होंने कुछ नहीं कहा मुझे।"
"तो फिर तुम इस तरह रो क्यों रहे हो?" भाभी बहुत ज़्यादा चिंतित नज़र आने लगीं____"क्या हुआ है तुम्हें? बताओ मुझे, तुम्हारी आंखों से आंसू क्यों बह आए हैं?"
"ये मेरा कहना नहीं माने भाभी।" मेरी आवाज़ लड़खड़ा गई____"मेरे मना करने पर भी आंखों से छलक ही गए।"
"अरे! ये कैसी बातें कर रहे हो तुम?" भाभी अभी भी चिंतित थीं____"सच सच बताओ आख़िर बात क्या है?"
"एक तरफ ये जान कर बेहद खुशी हुई कि आपके पिता जी फिर से आपका ब्याह करना चाहते हैं ताकि आप वास्तव में खुश रहने लगें।" मैंने कहा_____"दूसरी तरफ मुझे इस बात का दुख होने लगा है कि जब आपकी किसी से शादी हो जाएगी तो आप मेरी भाभी नहीं रह जाएंगी। आपको भाभी नहीं कह सकूंगा मैं। कह भी कैसे सकूंगा? आपसे भाभी का रिश्ता ही कहां रह जाएगा फिर? पहले बड़े भैया को खो दिया और अब अपनी भाभी को भी खो देने वाला हूं। यही सोच कर रोना आ गया था भाभी। समझ में नहीं आ रहा कि आपको मिलने वाली खुशियों के लिए खुश होऊं या हमेशा के लिए अपनी प्यारी सी भाभी को खो देने का शोक मनाऊं।"
"एकदम पागल हो तुम?" भाभी ने कांपती आवाज़ में कहा____"तुमसे ये किसने कहा कि मैं किसी से शादी करने को तैयार हूं?"
"क...क्या मतलब??" मैं भाभी की बात सुन कर बुरी तरह उछल पड़ा, फिर झट से बोला____"म....मतलब...ये क्या कह रही हैं आप? मुझसे कामिनी ने तो यही बताया है कि आपके पिता जी ने आपका फिर से ब्याह करने का फ़ैसला कर लिया है।"
"अरे! वो झूठ बोल रही थी तुमसे।" भाभी ने कहा____"सच यही है कि मैं किसी से शादी नहीं करने वाली। मैं दादा ठाकुर की बहू थी, हूं और हमेशा रहूंगी।"
"क...क्या सच में??" मैं जैसे खुशी से नाच उठा, किंतु फिर मायूस सा हो कर बोला_____"लेकिन भाभी आपकी खुशियों का क्या? आख़िर ये तो सच ही है ना कि एक औरत को असल खुशियां तभी मिलती हैं जब वो किसी की सुहागन हो।"
"मिलती होंगी।" भाभी ने जैसे लापरवाही से कहा____"लेकिन मुझे ऐसी खुशियां नहीं चाहिए जिसकी वजह से मेरा देवर अपनी भाभी को खो दे और दुखी हो जाए।"
"नहीं भाभी, मैं अपनी खुशी के लिए आपका जीवन बर्बाद करने का सोच भी नहीं सकता।" मैंने संजीदा हो कर कहा_____"मुझे सच्ची खुशी तभी मिलेगी जब मेरी प्यारी भाभी सचमुच में खुश रहने लगेंगी। इस लिए आप मेरे बारे में मत सोचिए और अपने पिता जी की बात मान कर फिर से शादी कर लीजिए। आप जहां भी रहेंगी मैं आपको भाभी ही मानूंगा और हमेशा आपकी खुशियों की कामना करूंगा।"
भाभी मेरी तरफ अपलक देखने लगीं। उनकी आंखें नम हो गईं थी। चेहरे पर पीड़ा के भाव नुमायां हो उठे थे। फिर जैसे उन्होंने खुद को सम्हाला।
"एक बात पूछूं तुमसे?" फिर उन्होंने अजीब भाव से कहा।
"आपको इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं है।" मैंने अधीरता से कहा।
"सच सच बताओ कितना चाहते हो मुझे?" भाभी ने अपलक मेरी तरफ देखते हुए पूछा।
"हद से ज़्यादा।" मैंने जवाब दिया____"अपनी भाभी की खुशी के लिए कुछ भी कर सकता हूं मैं। आपको पहले भी बताया था कि आपकी अहमियत और आपका मुकाम बहुत ख़ास और बहुत ऊंचा है मेरी नज़र में।"
"ये तो तुम अभी मेरा दिल रखने के लिए बोल रहे हो।" भाभी ने अपलक मेरी तरफ देखते हुए ही कहा____"लेकिन रूपा से शादी हो जाने के बाद तो भूल ही जाओगे मुझे।"
"आप जानती हैं कि ऐसा नहीं हो सकता।" मैंने दृढ़ता से कहा____"बता ही चुका हूं कि आपकी अहमियत अलग है। जहां आप हैं वहां कोई नहीं हो सकता।"
"क्या तुम्हें नहीं लगता कि ये ग़लत है?" भाभी ने कहा____"तुम्हें अपनी भाभी को इतनी अहमियत नहीं देनी चाहिए, बल्कि रूपा को देनी चाहिए। वो तुमसे बेहद प्रेम करती है। क्या नहीं किया है उसने तुम्हारे लिए। उसके प्रेम और त्याग का ईमानदारी से तुम्हें फल देना चाहिए। ठीक वैसे ही जैसे उसने तुम्हें दिया है।"
"मैंने कब इससे इंकार किया है भाभी?" मैंने कहा____"यकीन मानिए, उसके साथ कभी कोई नाइंसाफी नहीं करूंगा। किंतु यहां पर बात आपकी अहमियत की हुई थी तो ये सच है कि आपकी अहमियत मेरे लिए बहुत अहम है।"
मेरी बात सुन कर भाभी कुछ देर मुझे देखती रहीं। फिर जैसे उन्होंने इस बात को दरकिनार किया और कहा____"अच्छा अब तुम आराम करो। मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर भेजवाती हूं। अगर रुकना नहीं है तो शाम होने से पहले पहले चले जाना।"
उनकी बात पर मैंने सिर हिलाया। उसके बाद वो चली गईं। उनके जाने के बाद मुझे थोड़ी राहत सी महसूस हुई। पलंग पर मैं फिर से लेट गया और उनसे हुई बातों के बारे में सोचने लगा।
कुछ ही देर में वंदना भाभी चाय ले कर आईं। अभी मैंने उनसे चाय ली ही थी कि ससुर जी यानी भाभी के पिता जी भी आ गए। वंदना भाभी अंदर से उनके लिए भी चाय ले आईं। भीमा को उन्होंने पहले ही दे दिया था। चाय पीते समय ही भाभी के पिता जी से बात चीत हुई। उसके बाद मैं जाने के लिए उठ गया। सब घर वालों ने आ कर मेरे पांव छुए और मुझे विदाई के रूप में पैसे दिए। उसके बाद मैं और भीमा जीप में बैठ कर चल पड़े। आते समय भाभी को नहीं देख पाया था मैं।
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