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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.7%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.4%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.5%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 42 22.7%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.8%

  • Total voters
    185

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,744
354
अध्याय - 140
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



इस बार भाभी कुछ न बोलीं। बस मेरी तरफ अपलक देखती रहीं। तभी बाहर से किसी के आने का आभास हुआ तो वो जल्दी से पलटीं और अंदर चली गईं। मैं असहाय सा बैठा रह गया। कुछ ही पलों में बाहर से एक औरत अंदर आई। मुझे देखते ही उसने झट से अपना चेहरा घूंघट कर के छुपा लिया और अंदर की तरफ चली गई।


अब आगे....


कुछ देर मैं यूं ही बैठा रहा और भाभी के बारे में सोचता रहा। उसके बाद मैं उठा और बाहर आया। भीमा बाहर सड़क के पास खड़ा था। मैंने उसे आवाज़ दे कर अंदर बुला लिया।

शाम होने में अभी क़रीब दो ढाई घंटे का समय था इस लिए मैं आराम से पलंग पर लेट गया। भीमा भी दूसरी तरफ चारपाई पर लेट गया था। इधर मैं आंखें बंद किए भाभी से हुई बातों के बारे में सोचने लगा। जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कुछ बदला बदला सा है। भाभी का बर्ताव भी मुझे कुछ बदला हुआ और थोड़ा अजीब सा लगा था। इसके पहले वो अक्सर मुझे छेड़तीं थी, मेरी टांग खींचतीं थी और तो और मेरी हेकड़ी निकाल कर आसमान से सीधा ज़मीन पर ले आतीं थी किंतु आज ऐसा कुछ भी नज़र नहीं आया था। उनके चेहरे पर कोई खुशी, कोई उत्साह, कोई चंचलता नहीं थी। अगर कुछ थी तो सिर्फ गंभीरता। उनकी आवाज़ भी धींमी थी।

मुझे लगा शायद वो अपने मायके में होने की वजह से अपने देवर से खुल कर बात नहीं कर पा रहीं थी। हां, ज़रूर यही बात होगी वरना भाभी मेरे सामने इतनी असामान्य नहीं हो सकती थीं। बहरहाल मैंने अपने ज़हन से सारी बातों को झटक दिया और आराम से सोने की कोशिश करने लगा मगर काफी देर गुज़र जाने पर भी मुझे नींद न आई। मन में एक खालीपन और एक बेचैनी सी महसूस हो रही थी।

एकाएक ही मुझे एहसास हुआ कि शाम होने से पहले मुझे वापस अपने गांव जाना है। जैसे आया था वैसे ही वापस जाना होगा मुझे। बड़ी खुशी के साथ और बड़ी उम्मीद के साथ मैं अपनी प्यारी सी भाभी को लेने आया था लेकिन भाभी खुद ही जाने को राज़ी नहीं थीं और मैं उन्हें चलने के लिए मजबूर भी नहीं कर सकता था। कुछ ही पलों में मेरी सारी खुशी और सारा उत्साह बर्फ़ की मानिंद ठंडा पड़ गया था।

मैं आंखें बंद किए ये सब सोच ही रहा था कि तभी मेरे कानों में पायल छनकने की आवाज़ें पड़ीं। कोई अंदर से आ रहा था जिसके पैरों की पायल छनक रही थी। मैंने करवट ली हुई थी इस लिए मैं देख नहीं सकता था कि कौन आ रहा है। पायल की छनकती आवाज़ एकाएक बंद हो गईं। मैंने महसूस किया कि मेरे क़रीब ही पायलों का छनकना बंद हुआ है।

"लगता है जीजा जी सो गए हैं।" तभी किसी की मधुर किंतु बहुत ही धींमी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे बोलने वाले ने किसी दूसरे से ऐसा कहा था_____"अब क्या करें? क्या हमें जीजा जी को जगाना चाहिए? वैसे दीदी ने कहा है कि हम इन्हें परेशान न करें।"

"मुझे अच्छी तरह पता है कि इन महापुरुष को इतना जल्दी यहां नींद नहीं आने वाली।" ये दूसरी आवाज़ थी। आवाज़ धीमी तो थी लेकिन लहजा थोड़ा कर्कश सा था।

मैं फ़ौरन ही पहचान गया कि ये आवाज़ भाभी की छोटी बहन कामिनी की है। मुझे हैरानी हुई कि कामिनी इस वक्त यहां क्यों आई होगी, वो भी मेरे क़रीब? उसका और मेरा तो छत्तीस का आंकड़ा था। कभी सीधे मुंह बात नहीं करती थी वो। हालाकि इसमें उसका नहीं मेरा ही दोष था क्योंकि शुरुआत से ही मेरी हवस भरी नज़रों का उसी ने सामना किया था। उसे मेरी आदतों से और मेरी हरकतों से सख़्त नफ़रत थी।

"धीरे बोलिए दीदी।" पहले वाली ने धीमें स्वर में उससे कहा____"जीजा जी सुन लेंगे तो नाराज़ हो जाएंगे।"

"मुझे फ़र्क नहीं पड़ता।" कामिनी ने जैसे लापरवाही से कहा_____"वैसे भी मैं इनकी नाराज़गी से थोड़े ना डरती हूं।"

"हां हां समझ गई मैं।" पहले वाली आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। मैं उसकी आवाज़ से उसको पहचानने की कोशिश में लगा हुआ था। अरे! ये तो कंचन थी। भैया के चाचा ससुर की बेटी। बहरहाल उसने आगे कहा____"पर अब क्या करना है? वापस चलें?"

"तू जा।" कामिनी ने उससे कहा____"मैं देखती हूं इन्हें और हां अंदर किसी को कुछ मत बताना। ख़ास कर दीदी को तो बिल्कुल भी नहीं। पहले तो वो अपने देवर का पक्ष लेतीं ही थी किंतु अब तो कहना ही क्या। ख़ैर तू जा अब।"

कामिनी की इन बातों के बाद कंचन चली गई। उसके पायलों की छम छम से मुझे पता चल गया था। इधर अब मैं ये सोचने लगा कि कामिनी क्या करने वाली है? मैं पहले से ही उसके इस बर्ताव से हैरान था किंतु अब तो धड़कनें ही बढ़ गईं थी मेरी। बहरहाल, मैं आंखें बंद किए चुपचाप लेटा रहा और उसकी तरफ से किसी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करने लगा। इसके लिए मुझे ज़्यादा देर प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। मैंने महसूस किया कि वो पीछे से घूम कर मेरे सामने की तरफ आई और मेरे सामने वाले पलंग पर बैठ गई। मेरी धड़कनें ये सोच कर धाड़ धाड़ कर के बजने लगीं कि जाने ये आफ़त अब क्या करने वाली है?

"ज़्यादा नाटक करने की ज़रूरत नहीं है।" इस बार उसकी आवाज़ स्पष्ट रूप से मेरे कानों में पड़ी_____"मुझे अच्छी तरह पता है कि आप सो नहीं रहे हैं। अब चुपचाप अपना नाटक बंद कर के आंखें खोल लीजिए, वरना इंसान को गहरी नींद से जगाना भी मुझे अच्छी तरह आता है।"

ये तो सरासर धमकी थी, वो भी मेरे जैसे सूरमा को। मैं उसकी इस धमकी पर मन ही मन मुस्कुरा उठा। हालाकि उससे डरने का तो सवाल ही नहीं था लेकिन मैं नहीं चाहता था कि कोई तमाशा हो जाए। दूसरी वजह ये भी थी कि मैं उसके बर्ताव से हैरान था और जानना चाहता था कि आख़िर वो किस मकसद से मेरे पास आई थी?

"लीजिए सरकार, हमने अपनी आंखें खोल दी।" मैंने आंखें खोल कर उसकी तरफ देखते हुए उठ कर बैठ गया, फिर बोला_____"आप इतनी मोहब्बत से हमें जाग जाने को कह रहीं हैं तो हमें उठना ही पड़ेगा। कहिए, क्या चाहती हैं आप हमसे? प्यार मोहब्बत या फिर कुछ और?"

"हद है, आप कभी नहीं सुधरेंगे।" कामिनी ने मुझे घूरते हुए कहा____"जब देखो वही छिछोरी हरकतें।"

"आप भी कीजिए।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"यकीन मानिए, बहुत मज़ा आएगा।"

कामिनी ने मुझे खा जाने वाली नज़रों से देखा। पलक झपकते ही उसका चेहरा तमतमाया गया सा नज़र आया। ऐसी ही थी वो। ऐसा नहीं था कि उसे मज़ाक पसंद नहीं था लेकिन मेरा उससे मज़ाक करना बिल्कुल पसंद नहीं था। उसके ज़हन में ये बात बैठ चुकी थी कि मैं हर लड़की को सिर्फ भोगने के लिए ही अपने मोह जाल में फंसाता हूं।

"उफ्फ! इतनी मोहब्बत से हमें मत देखिए सरकार।" मैंने उसे और गरमाया_____"वरना एक ही पल में ढेर हो जाएंगे हम।"

"क्यों करते हैं ऐसी गन्दी हरकतें?" उसने जैसे अपने गुस्से को बड़ी मुश्किल से दबाते हुए मुझसे कहा____"क्या आप कभी किसी से सभ्य इंसानों जैसी बातें नहीं कर सकते?"

"अब ये तो सबका अपना अपना सोचने का नज़रिया है सरकार।" मैंने कहा____"आपको मेरी बातें सभ्य नहीं लगती जबकि यही बातें दूसरों को सभ्य लगती हैं। प्यार मोहब्बत की चाशनी में डूबी हुई लगती हैं। आपको नहीं लगती हैं तो इसका मतलब ये है कि या तो आपका ज़ायका ख़राब है या फिर आपकी समझदानी में ही गड़बड़ी है।"

"मतलब आप स्पष्ट रूप से ये कह रहे हैं कि मेरे पास दिमाग़ नहीं है?" कामिनी ने इस बार गुस्से से मेरी तरफ देखा____"और मैं किसी की बातों का मतलब ही नहीं समझती हूं?"

"क्या आप मुझसे झगड़ा करने ही आईं थी?" मैंने विषय को बदलने की गरज से इस बार थोड़ा गंभीरता से कहा____"अगर झगड़ा ही करने आईं थी तो ठीक है मैं तैयार हूं लेकिन यदि किसी और वजह से आईं थी तो सीधे मुद्दे की बातों पर आइए। वैसे मैं हैरान हूं कि जो लड़की मुझे अपना कट्टर दुश्मन समझती है वो मुझसे गुफ़्तगू करने कैसे आई है?"

कामिनी ने इस बार फ़ौरन कुछ ना कहा। उसने सबसे पहले अपने गुस्से को काबू किया और आंखें बंद कर के गहरी गहरी सांसें ली। नीले रंग का कुर्ता सलवार पहन रखा था उसने। दुपट्टे से उसने अपने सीने के उभारों को पूरी तरह से ढंक रखा था। ऐसा हमेशा होता था, मेरे सामने आते ही वो कुछ ज़्यादा ही चौकन्नी हो जाती थी।

"अब कुछ बोलिए भी।" मैंने कहा____"मैं बड़ी शिद्दत से जानना चाहता हूं कामिनी देवी आज मेरे सामने कैसे बैठी हैं और मुझसे इतनी मोहब्बत से बातें क्यों कर रही हैं?"

"आप फिर से शुरू हो गए?" उसने मुझे घूरा।

"अगर आप बड़ी मोहब्बत से शुरू हो जातीं तो हम रुके रहते।" मैंने हौले से मुस्कुराते हुए कहा____"ख़ैर बताइए आज सूरज किस दिशा से उगा है चंदनपुर में?"

"क्या आप सच में दीदी को लेने आए हैं?" उसने जैसे मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया और पूछा।

"क्या आपको कोई शक है इसमें?" मैंने कहा____"वैसे आप भी हमारे साथ चलतीं तो क़सम से आनन्द ही आ जाता।"

"किसी कीमत पर नहीं।" कामिनी ने दृढ़ता से कहा____"आपके साथ तो किसी जन्म में कहीं नहीं जाऊंगी मैं।"

"वाह! इतनी शिद्दत से मोहब्बत आप ही कर सकती हैं मुझसे।" मैं मुस्कुराया।

"ये मोहब्बत नहीं है।" उसने घूरते हुए कहा____"बल्कि...।"

"नफ़रत है?" उसकी बता काट कर मैंने उसकी बात पूरी की_____"जानता हूं मैं लेकिन शायद आप ये नहीं जानती कि नफ़रत और मोहब्बत का जन्म एक ही जगह से होता है....दिल से। अब दिल से नफ़रत कीजिए या मोहब्बत, ये तो पक्की बात है ना कि किसी न किसी भावना से आपने मुझे अपना बना ही रखा है।"

"अपने मन को बहलाने के लिए ख़याल अच्छा है।" कामिनी ने कहा____"ख़ैर मैं आपको ये बताने के लिए आई थी कि दीदी को हम लोग अब नहीं भेजेंगे। वो यहीं रहेंगी, हमारे साथ।"

"क...क्या मतलब?" मैं एकदम से चौंक पड़ा____"ये क्या कह रही हैं आप?"

"वही जो आपने सुना है।" कामिनी ने स्पष्ट रूप से कहा____"भैया ने आपसे स्पष्ट रूप में इसी लिए नहीं कहा क्योंकि वो शायद संकोच कर गए थे लेकिन सच यही है कि दीदी अब यहीं रहेंगी। आपको अकेले ही वापस जाना होगा।"

"अरे! भला ये क्या बात हुई?" मैं बुरी तरह हैरान परेशान सा बोल पड़ा____"माना कि भाभी का ये मायका है और वो यहां जब तक चाहे रह सकती हैं लेकिन इसका क्या मतलब हुआ कि वो अब यहां से नहीं जाएंगी?"

"बस नहीं जाएंगी।" कामिनी ने अजीब भाव से कहा____"वैसे भी जिनसे उनका संबंध था वो तो अब रहे नहीं। फिर भला हम कैसे उन्हें इस दुख के साथ जीवन भर उस हवेली में विधवा बहू बन कर रहने दें? आपको शायद पता नहीं है कि पिता जी ने दीदी का फिर से ब्याह कर देने का फ़ैसला किया है। आप तो जानते ही है कि दीदी की अभी उमर ही क्या है जो वो आपके भाई की विधवा बन कर सारी ज़िंदगी दुख और कष्ट में गुज़ारें।"

कामिनी की बातें किसी पिघले हुए शीशे की तरह मेरे कानों में अंदर तक समाती चली गईं थी। मेरे दिलो दिमाग़ में एकाएक ही हलचल सी मच गई थी। मन में तरह तरह के ख़यालों की आंधी सी आ गई थी।

"अगर ये मज़ाक है।" फिर मैंने सख़्त भाव से कहा____"तो समझ लीजिए कि मुझे इस तरह का घटिया मज़ाक बिल्कुल भी पसंद नहीं है। आप भाभी के बारे में ऐसी बकवास कैसे कर सकती हैं?"

"ये बकवास नहीं है जीजा जी।" कामिनी ने कहा____"हकीक़त है हकीक़त। मैं मानती हूं कि आप अपनी भाभी के बारे में इस तरह की बातें नहीं सुन सकते हैं लेकिन खुद सोचिए कि क्या आप यही चाहते हैं कि मेरी दीदी अपना पहाड़ जैसा जीवन विधवा बन कर ही गुज़ारें? क्या आप यही चाहते हैं कि उनके जीवन में कभी खुशियों के कोई रंग ही न आएं? क्या आप यही चाहते हैं कि वो जीवन भर अकेले दुख दर्द में डूबी रहें?"

"नहीं नहीं।" मैं झट से बोल पड़ा____"अपनी भाभी के बारे में मैं ऐसा सपने में भी नहीं सोच सकता। मैं तो....मैं तो यही दुआ करता हूं कि उनकी ज़िंदगी में पहले जैसी ही खुशियां आ जाएं जिससे मेरी भाभी का चेहरा फिर से पूर्णिमा के चांद की तरह चमकने लगे। मैं तो चाहता हूं कि मेरी भाभी के होठों पर हमेशा खुशियों से भरी मुस्कान सजी रहे। उनके जीवन में दुख का एक तिनका भी कभी न आए।"

"अगर आप सच में ऐसा चाहते हैं।" कामिनी ने कहा____"तो फिर आपको इस बात से कोई एतराज़ अथवा कष्ट नहीं होना चाहिए कि उनका फिर से कहीं ब्याह हो जाए। आप भी समझने की कोशिश कीजिए कि उनके जीवन में इस तरह की खुशियां तभी आ सकती हैं जब हमेशा के लिए उनके बदन से विधवा का लिबास उतार दिया जाए और उन्हें किसी की सुहागन बना दिया जाए। पिता जी भी ये नहीं सह पा रहे हैं कि उनकी बेटी इतनी सी उमर में विधवा हो कर सारा जीवन दुख और कष्ट में ही व्यतीत करने पर मज़बूर हैं।"

सच कहूं तो मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मैं एकाएक आसमान से ज़मीन पर आ गिरा था। भाभी का फिर से ब्याह करने का कोई सोचेगा इस बारे में तो मैंने अब तक कल्पना ही नहीं की थी। सच ही तो कह रही थी कामिनी कि उनकी ज़िंदगी में खुशियां तभी आ सकती हैं जब उनका फिर से ब्याह कर दिया जाए और उन्हें किसी की सुहागन बना दिया जाए। सच ही तो था, एक विधवा के रूप में भला वो कैसे खुश रह सकती थीं? असल खुशियां तो तभी मिलती हैं जब इंसान का जीवन खुशियों के रंगों से भरा हो। एक विधवा के जीवन में सफेद रंग के अलावा दूसरा कोई रंग भरा ही नहीं जा सकता था?

मेरे मनो मस्तिष्क में धमाके से होने लगे थे। पहली बार मैं इस तरीके से सोचने पर मजबूर हुआ था। पहली बार इतनी गहराई से सोचने का मानों अवसर मिला था। अचानक ही मेरे मन में एक ख़याल बिजली की तरह आ गिरा....भाभी का फिर से ब्याह हो जाएगा, यानि वो किसी की पत्नी बन जाएंगी। उसके बाद उनसे मेरा कोई रिश्ता नहीं रह जाएगा। आज वो मेरी भाभी हैं लेकिन ब्याह के बाद वो किसी और के रिश्ते में बंध जाएंगी। हवेली की बहू और हवेली शान हमेशा के लिए किसी दूसरे के घर की शान बन जाएगी।

एक झटके में जैसे मैं वास्तविकता के धरातल पर आ गया जिसके एहसास ने मुझे अंदर तक हिला डाला। एक झटके में भाभी का प्यार और स्नेह मुझे अपने से दूर होता नज़र आने लगा। उनका वो छेड़ना, वो टांगे खींचना और एक झटके में मेरी हेकड़ी निकाल देना ये सब कभी न भुलाई जा सकने वाली याद सा बनता महसूस हुआ। पलक झपकते ही आंखों के सामने भाभी का सुंदर चेहरा उभर आया...और फिर अगले ही पल एक एक कर के वो हर लम्हें उभरने लगे जिनमें मेरी उनसे मुलाक़ातों की तस्वीरें थीं। जब भैया जीवित थे तब की तस्वीरें। भाभी तब सुहागन थीं, बहुत सुंदर और मासूम नज़र आतीं थी वो। फिर एकदम से तस्वीरें बड़ी तेज़ी से बदलने लगीं और कुछ ही पलों में उस वक्त की तस्वीर उभर आई जब कुछ देर पहले मैंने उन्हें देखा था।

एक झटके में मुझे अपनी कोई बहुत ही अनमोल चीज़ खो देने जैसा एहसास हुआ। मेरे अंदर भाभी को खो देने जैसी पीड़ा उभर आई। मैं एकदम से दुखी और उदास सा हो गया। मेरी आंखें अनायास ही बंद हो गईं और ना चाहते हुए भी आंखों की कोर से आंसू का एक कतरा छलक गया। मैंने हड़बड़ा कर जल्दी से उसे पोंछ लिया। मैं नहीं चाहता था कि कामिनी मेरी आंख से निकले आंसू के उस कतरे को देख ले।

"क्या हुआ जीजा जी?" सहसा कामिनी की आवाज़ से मैं चौंका____"आप एकदम से चुप क्यों हो गए? क्या मैंने कुछ ग़लत कह दिया है आपसे?"

"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।" मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा____"आपने भाभी के बारे में जो भी कहा वो एकदम से उचित ही कहा है। मुझसे अच्छी तो आप हैं कामिनी जो अपनी दीदी की खुशियों के बारे में इतना कुछ सोच बैठी हैं। एक मैं हूं जो अब तक यही समझ रहा था कि मैं अपनी भाभी को खुश रखने के लिए बहुत कुछ कर रहा हूं। हैरत की बात है कि मैं कभी ये सोच ही नहीं पाया कि एक औरत को असल खुशी तभी मिल सकती है जब उसका सम्पूर्ण जीवन खुशियों के अलग अलग रंगों से भर जाए और ऐसा तो तभी हो सकता है ना जब उस औरत का फिर से कहीं ब्याह हो जाए। आज मुझे अपनी ग़लती का एहसास हो गया है और इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद भी देता हूं कि आपने मुझे इस सत्य का एहसास कराया। आपके पिता जी ने अपनी बेटी की खुशी के लिए बहुत ही उम्दा कार्य करने का फ़ैसला लिया है। मुझे अपनी भाभी के लिए इस बात से बहुत खुशी हो रही है। ईश्वर से यही प्रार्थना करता था कि वो उन्हें हमेशा खुश रखें तो अब ऐसा हो जाने से वो वाकई में खुश ही रहेंगी।"

कामिनी मेरी तरफ ही देखे जा रही थी। उसके चेहरे पर थोड़े हैरानी के भाव भी उभर आए थे। शायद उसे मुझसे ऐसी गंभीर बातों की उम्मीद नहीं थी। वो तो यही समझती थी कि मैं एक बहुत ही ज़्यादा बिगड़ा हुआ लड़का हूं जिसे किसी की भावनाओं से अथवा किसी के दुख दर्द से कोई मतलब ही नहीं होता है।

"वैसे इतनी बड़ी बात हो गई और किसी ने मुझे बताया तक नहीं।" फिर मैंने कहा____"मुझे अब समझ आ रहा है कि क्यों हर बार मां मुझे भाभी को लेने आने से मना कर रहीं थी। आते समय पिता जी ने भी यही कहा था कि अगर यहां पर आप लोग भाभी को मेरे साथ भेजने से मना करें तो मैं इसके लिए किसी पर दबाव नहीं डालूंगा। इसका मतलब तो यही हुआ कि मां और पिता जी को भी इस बारे में पता है। यानि वो भी जानते हैं कि आपके पिता जी भाभी का फिर से ब्याह कर देना चाहते हैं?"

"इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है।" कामिनी ने कहा____"पर आपकी बातों से तो यही लगता है कि उन्हें इस बारे में पता है।"

"हां लेकिन मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि उन्होंने इस बारे में मुझे क्यों कुछ नहीं बताया?" मैंने उलझन पूर्ण भाव से कहा____"अगर वो उसी समय मुझे बता देते तो भला क्या हो जाता?"

कामिनी के पास जैसे मेरे इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। वो भी सोच में पड़ गई थी। कुछ देर तक हमारे बीच ख़ामोशी ही रही। मुझे बहुत अजीब महसूस हो रहा था। एकदम से अब मुझे पराएपन का एहसास होने लगा था।

"मैंने हमेशा आपके साथ ग़लत बर्ताव किया है कामिनी।" फिर मैंने गंभीरता से कहा____"हमेशा आपको परेशान किया है, इसके लिए माफ़ कर दीजिएगा मुझे।"

"अरे! ये क्या कह रहे हैं आप?" कामिनी एकदम से चौंकी____"देखिए आप इस तरह मुझसे माफ़ी मत मांगिए।"

"मेरी एक विनती है आपसे।" मैंने उसकी तरफ देखा____"मैं अपनी भाभी को आख़िरी बार देख लेना चाहता हूं। क्या आप उन्हें यहां भेज देंगी? देखिए मना मत करना।"

"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" कामिनी के चेहरे पर हैरानी और उलझन जैसे भाव उभर आए____"अच्छा ठीक है, मैं जा कर दीदी को आपकी ये बात बता देती हूं।"

"उन्हें सिर्फ बताना ही नहीं है।" मैंने ज़ोर देते हुए कहा____"उनसे कहना कि उनका देवर उनसे आख़िरी बार मिलना चाहता है।"

कामिनी ठीक है कहते हुए उठी और अंदर चली गई। इधर मैं दुखी मन से बैठा जाने क्या क्या सोचने लगा। मुझे इस बात की तो खुशी थी कि भाभी का किसी से ब्याह हो जाएगा तो वो हमेशा खुश रहेंगी लेकिन अब इस बात का बेहद दुख भी हो रहा था कि मैं अब हमेशा के लिए अपनी भाभी को खो दूंगा। मेरे बदले हुए जीवन में उनका बहुत योगदान था। आज मैं बदल कर यहां तक पहुंचा था तो इसमें भाभी का भी बहुत बड़ा हाथ था। वो हमेशा मुझे अच्छा इंसान बनने के लिए ज़ोर देती थीं। हमेशा मेरा मार्गदर्शन करतीं थी। मेरे माता पिता को तो उनके जैसी बहू पाने पर हमेशा से गर्व था ही किंतु मुझे भी उनके जैसी भाभी पाने पर नाज़ था।

काश! विधाता ने बड़े भैया का जीवन नहीं छीना होता तो आज मैं अपनी भाभी को खो नहीं रहा होता। पहले अनुराधा और अब भाभी, दोनों को ही खो दिया मैंने। एकाएक ही मेरे अंदर तीव्र पीड़ा उठी। मेरा मन रो देने का करने लगा। मैंने बड़ी मुश्किल से अपने जज़्बातों को रोका और भाभी के आने का इंतज़ार करने लगा।

आख़िर मेरी मुराद पूरी हुई और भाभी आ गईं। वही गंभीर चेहरा, कोई खुशी नहीं, कोई उत्साह नहीं। आंखों में सूनापन और होठों पर रेगिस्तान के जैसा सूखापन। वो आईं और मेरे सामने खड़ी हो गईं। मेरा जी किया कि मैं एक झटके से उनसे लिपट जाऊं और किसी बच्चे की तरफ फूट फूट कर रो पड़ूं। उनसे लिपट पड़ने से तो खुद को रोक लिया मैंने लेकिन आंखों को बगावत करने से न रोक सका। मेरे लाख रोकने के बाद भी जज़्बातों की आंधी ने आंखों से आंसुओं को छलका ही दिया। मैंने महसूस किया कि मेरी आंखों से आंसू छलका देख भाभी तड़प सी उठीं थी।

"क...क्या हुआ तुम्हें?" फिर उन्होंने झट से फिक्रमंद हो कर पूछा____"तुम...तुम रो क्यों रहे हो? क्या कामिनी ने तुम्हें कुछ कहा है?"

"नहीं नहीं।" मेरे अंदर हुक सी उठी, खुद को सम्हालते हुए बोला____"उन्होंने कुछ नहीं कहा मुझे।"

"तो फिर तुम इस तरह रो क्यों रहे हो?" भाभी बहुत ज़्यादा चिंतित नज़र आने लगीं____"क्या हुआ है तुम्हें? बताओ मुझे, तुम्हारी आंखों से आंसू क्यों बह आए हैं?"

"ये मेरा कहना नहीं माने भाभी।" मेरी आवाज़ लड़खड़ा गई____"मेरे मना करने पर भी आंखों से छलक ही गए।"

"अरे! ये कैसी बातें कर रहे हो तुम?" भाभी अभी भी चिंतित थीं____"सच सच बताओ आख़िर बात क्या है?"

"एक तरफ ये जान कर बेहद खुशी हुई कि आपके पिता जी फिर से आपका ब्याह करना चाहते हैं ताकि आप वास्तव में खुश रहने लगें।" मैंने कहा_____"दूसरी तरफ मुझे इस बात का दुख होने लगा है कि जब आपकी किसी से शादी हो जाएगी तो आप मेरी भाभी नहीं रह जाएंगी। आपको भाभी नहीं कह सकूंगा मैं। कह भी कैसे सकूंगा? आपसे भाभी का रिश्ता ही कहां रह जाएगा फिर? पहले बड़े भैया को खो दिया और अब अपनी भाभी को भी खो देने वाला हूं। यही सोच कर रोना आ गया था भाभी। समझ में नहीं आ रहा कि आपको मिलने वाली खुशियों के लिए खुश होऊं या हमेशा के लिए अपनी प्यारी सी भाभी को खो देने का शोक मनाऊं।"

"एकदम पागल हो तुम?" भाभी ने कांपती आवाज़ में कहा____"तुमसे ये किसने कहा कि मैं किसी से शादी करने को तैयार हूं?"

"क...क्या मतलब??" मैं भाभी की बात सुन कर बुरी तरह उछल पड़ा, फिर झट से बोला____"म....मतलब...ये क्या कह रही हैं आप? मुझसे कामिनी ने तो यही बताया है कि आपके पिता जी ने आपका फिर से ब्याह करने का फ़ैसला कर लिया है।"

"अरे! वो झूठ बोल रही थी तुमसे।" भाभी ने कहा____"सच यही है कि मैं किसी से शादी नहीं करने वाली। मैं दादा ठाकुर की बहू थी, हूं और हमेशा रहूंगी।"

"क...क्या सच में??" मैं जैसे खुशी से नाच उठा, किंतु फिर मायूस सा हो कर बोला_____"लेकिन भाभी आपकी खुशियों का क्या? आख़िर ये तो सच ही है ना कि एक औरत को असल खुशियां तभी मिलती हैं जब वो किसी की सुहागन हो।"

"मिलती होंगी।" भाभी ने जैसे लापरवाही से कहा____"लेकिन मुझे ऐसी खुशियां नहीं चाहिए जिसकी वजह से मेरा देवर अपनी भाभी को खो दे और दुखी हो जाए।"

"नहीं भाभी, मैं अपनी खुशी के लिए आपका जीवन बर्बाद करने का सोच भी नहीं सकता।" मैंने संजीदा हो कर कहा_____"मुझे सच्ची खुशी तभी मिलेगी जब मेरी प्यारी भाभी सचमुच में खुश रहने लगेंगी। इस लिए आप मेरे बारे में मत सोचिए और अपने पिता जी की बात मान कर फिर से शादी कर लीजिए। आप जहां भी रहेंगी मैं आपको भाभी ही मानूंगा और हमेशा आपकी खुशियों की कामना करूंगा।"

भाभी मेरी तरफ अपलक देखने लगीं। उनकी आंखें नम हो गईं थी। चेहरे पर पीड़ा के भाव नुमायां हो उठे थे। फिर जैसे उन्होंने खुद को सम्हाला।

"एक बात पूछूं तुमसे?" फिर उन्होंने अजीब भाव से कहा।

"आपको इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं है।" मैंने अधीरता से कहा।

"सच सच बताओ कितना चाहते हो मुझे?" भाभी ने अपलक मेरी तरफ देखते हुए पूछा।

"हद से ज़्यादा।" मैंने जवाब दिया____"अपनी भाभी की खुशी के लिए कुछ भी कर सकता हूं मैं। आपको पहले भी बताया था कि आपकी अहमियत और आपका मुकाम बहुत ख़ास और बहुत ऊंचा है मेरी नज़र में।"

"ये तो तुम अभी मेरा दिल रखने के लिए बोल रहे हो।" भाभी ने अपलक मेरी तरफ देखते हुए ही कहा____"लेकिन रूपा से शादी हो जाने के बाद तो भूल ही जाओगे मुझे।"

"आप जानती हैं कि ऐसा नहीं हो सकता।" मैंने दृढ़ता से कहा____"बता ही चुका हूं कि आपकी अहमियत अलग है। जहां आप हैं वहां कोई नहीं हो सकता।"

"क्या तुम्हें नहीं लगता कि ये ग़लत है?" भाभी ने कहा____"तुम्हें अपनी भाभी को इतनी अहमियत नहीं देनी चाहिए, बल्कि रूपा को देनी चाहिए। वो तुमसे बेहद प्रेम करती है। क्या नहीं किया है उसने तुम्हारे लिए। उसके प्रेम और त्याग का ईमानदारी से तुम्हें फल देना चाहिए। ठीक वैसे ही जैसे उसने तुम्हें दिया है।"

"मैंने कब इससे इंकार किया है भाभी?" मैंने कहा____"यकीन मानिए, उसके साथ कभी कोई नाइंसाफी नहीं करूंगा। किंतु यहां पर बात आपकी अहमियत की हुई थी तो ये सच है कि आपकी अहमियत मेरे लिए बहुत अहम है।"

मेरी बात सुन कर भाभी कुछ देर मुझे देखती रहीं। फिर जैसे उन्होंने इस बात को दरकिनार किया और कहा____"अच्छा अब तुम आराम करो। मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर भेजवाती हूं। अगर रुकना नहीं है तो शाम होने से पहले पहले चले जाना।"

उनकी बात पर मैंने सिर हिलाया। उसके बाद वो चली गईं। उनके जाने के बाद मुझे थोड़ी राहत सी महसूस हुई। पलंग पर मैं फिर से लेट गया और उनसे हुई बातों के बारे में सोचने लगा।

कुछ ही देर में वंदना भाभी चाय ले कर आईं। अभी मैंने उनसे चाय ली ही थी कि ससुर जी यानी भाभी के पिता जी भी आ गए। वंदना भाभी अंदर से उनके लिए भी चाय ले आईं। भीमा को उन्होंने पहले ही दे दिया था। चाय पीते समय ही भाभी के पिता जी से बात चीत हुई। उसके बाद मैं जाने के लिए उठ गया। सब घर वालों ने आ कर मेरे पांव छुए और मुझे विदाई के रूप में पैसे दिए। उसके बाद मैं और भीमा जीप में बैठ कर चल पड़े। आते समय भाभी को नहीं देख पाया था मैं।



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avsji

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Supreme
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Iska matlab ye hua ki mujhe safedposh ka raaz open nahi karna chahiye tha... :sigh:

अरे नहीं भाई!

Sanju bhaiya ki tarah aapko filme dekhne ka shauk raha hai....waah :bow:

"शौक रहा है" - यही सही कथन है। अब नहीं है।

Bilkul samajh sakta hu aapki baat....Aapne khud ka example diya ki aap pedh par nahi chadh sakte. Main aapko bata du ki meri ek dadi hain pariwar me. Wo sabse chhote Wale dada ji ki patni hain. Meri mammy se age me bas do chaar saal hi chhoti hain (chhote Wale dada ji ne bahut late shadi ki thi). Khair, chaar betiya aur ek beta hai unke. Teen betiyo ka byaah bhi ho chuka unke....Wo aaj bhi pedh par chadh jaati hain...aur ham log ashcharya se muh faade dekhte rah jate hain. To kahne ka matlab ye hai ki zaruri nahi ki ek aurat is umar me bhi pedh par nahi chadh sakti...wo bhi tab jab baagiche me itne saare aamo ke pedh ho. Aam ke pedho ki shakhaye zameen ki taraf bhi jhuki hoti hain jinke dwara asaani se pedh par chadha ja sakta hai....

हाँ ठीक है। अभ्यास हो, तो सब संभव है।
मैं बिना वजह बाल की खाल नहीं उधेड़ूँगा 😂

Andhere me wo is liye bhaag paati thi kyoki usko raaste ka pahle se pata tha, aur Shera use is liye pakad paya tha kyoki wo us raat keechad me fisal kar gur gaya tha....

Jagtap ke bete kaise safedposh ho sakte the.?? Sabse pahli baat to jagtap aur menka ne apne bachcho ko is bare me kuch bataya hi nahi tha apni safety ke chalte. Bataya bhi is liye nahi ki wo ek to apne bachcho ko is sabme shaamil nahi karna chahte the dusre unhe lagta tha ki agar bachcho ko pata rahega to wo kabhi na kabhi aisi harkate kar dete jiske chalte unka ye raaz sabko pata chal jata...

लेकिन उन्होंने ऐसी हरकतें करीं भी तो - जैसे वैभव को नपुंसक बनाने की साज़िश। इत्यादि।
जगताप के बीज से आम नहीं निकले - बस, बबूल ही बबूल निकले। खैर...

Jis byakti ka pura dimaag uske saale ke chalte ghoom gaya tha aur uski aisi mansikta ho gai thi usse na to achhe ki ummid ki ja sakti thi aur na hi kisi tarike ki. Unhe Jo sahi laga wahi kiya...dusre tarike se agar dada thakur ko unke mansube pata chal jate to kya hota??

Kusum to nadaan aur bholi thi bhaiya ji, bhavnaao me bah kar usne itna kar liya yahi badi baat thi...

कुसुम की नादानी अजब गजब थी।
पहले तो अपने भाईयों के दबाव में अपने सबसे अच्छे भैया को नपुंसक बनाने चली, फिर नादानी में अपनी खूनी माँ का राज़ छुपाए रखने के लिए अपनी बलि देनी चाही।
यह व्यवहार आत्मघाती आतंकवादियों में बहुत ही देखा जाता है। बाकी आगे क्या ही कहूँ।

अध्याय - 137
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रात आधे से ज़्यादा गुज़र गई थी। उनमें से किसी की भी आंखों में नींद का नामों निशान तक नहीं था। सबके सब बरामदे में ही बैठे थे और दादा ठाकुर के साथ साथ बाकी सबके आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। पूरी हवेली सन्नाटे में डूबी हुई थी।


अब आगे....


उस वक्त रात का आख़िरी पहर चल रहा था जब हम सब हवेली पहुंचे। बड़ा ही तनाव पूर्ण माहौल था। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि आगे क्या करना है और कैसे करना है? उधर मां ने जैसे ही हम सबको आया देखा तो वो भागते हुए हमारे पास आ गईं।

"क...कहां चली गई थी तू?" मेनका चाची पर नज़र पड़ते ही मां ने व्याकुल भाव से पूछा____"और अपने साथ मेरी बेटी को भी ले गई थी? ऐसा क्यों किया तूने? तुझे पता है यहां मेरी क्या हालत हो गई थी?"

चाची ने मां के इन सवालों का कोई जवाब नहीं दिया। ये अलग बात है कि उनकी आंखों से आंसू बहने लगे थे। यही हाल कुसुम का भी था। उधर मां ने जब चाची को आंसू बहाते देखा तो वो चौंक पड़ीं। घबरा कर पूछने लगीं कि वो रो क्यों रहीं हैं? आख़िर हुआ क्या है?

सच तो ये था कि कोई भी जवाब देने की हालत में नहीं था। पिता जी चुपचाप अपने कमरे की तरफ बढ़ गए। किशोरी लाल ने उनसे बहुत कुछ पूछना चाहा लेकिन हिम्मत न जुटा सका। इधर मैंने कुसुम को इशारा किया तो वो अपनी मां को ले कर उनके कमरे की तरफ बढ़ गई।

ये सब देख मां ही नहीं बल्कि सबके सब बुरी तरह चकरा गए। समझ ही न आया कि आख़िर क्यों कोई जवाब देने की जगह चुपचाप अपने अपने कमरे की तरफ चल पड़ा था? सहसा मां ने मेरी तरफ सवालिया भाव से देखा।

"आख़िर क्या चल रहा है ये सब?" मां ने लगभग झल्लाते हुए कहा____"कोई कुछ बता क्यों नहीं रहा कि हुआ क्या है? तू बता....बता कि सब चुप क्यों हैं? तेरे पिता जी चुपचाप कमरे में क्यों चले गए? तेरी चाची रो क्यों रही थी? और...और बिना कुछ बताए कुसुम उसे अपने साथ कमरे की तरफ क्यों ले गई?"

"शांत हो जाइए मां।" मां के इतने सारे सवाल एक साथ सुन कर मैंने उन्हें कंधों से पकड़ कर कहा____"इस वक्त कोई भी किसी के सवालों का जवाब देने की हालत में नहीं है। आप जाइए और आराम से सो जाइए। इस बारे में कल दिन में बात करेंगे।"

इससे पहले कि मां फिर से कुछ कहतीं मैं जबरन उन्हें खींचते हुए उनके कमरे की तरफ ले गया और उन्हें कमरे में जा कर सो जाने को कहा। मेरी इस क्रिया से मां मुझे हैरानी से देखे जा रहीं थी। चेहरे पर नाराज़गी विद्यमान थी। बहुत कुछ कहना चाह कर भी वो कुछ बोल ना सकीं। आख़िर किसी तरह वो कमरे में गईं तो मैंने दरवाज़े के पल्लों को आपस में भिड़ा दिया।

वापस आ कर मैं किशोरी लाल, उसकी बीवी और बेटी को भी बोला कि वो सब अपने कमरे में जाएं। वो तीनों मन में कई सारे सवाल लिए चुपचाप चले गए। हवेली की दोनों नौकरानियां भी चली गईं। उन सबके जाने के बाद मैं भी ऊपर अपने कमरे में आ गया।

मैं अपने कमरे में पलंग पर लेट तो गया था लेकिन ना मन शांत था और ना ही आंखों में नींद का कोई नामो निशान था। अंदर असहनीय पीड़ा थी जिसे ज़बरदस्ती दबाने की और सहने की कोशिश कर रहा था मैं। मनो मस्तिष्क में घुमड़ता तूफ़ान मानों शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था।

मैं ये कल्पना भी नहीं कर सकता था कि जिस सफ़ेदपोश से मिलने को और जिसको पकड़ने को हम सब इतने बेताब थे उसका असल चेहरा ऐसा नज़र आएगा। काश! ऐसा होता कि सफ़ेदपोश कभी हमारी पकड़ में आता ही नहीं। कम से कम इतनी भयंकर और इतनी पीड़ा दायक सच्चाई से हृदय पर वज्रपात तो ना होता।

बार बार आंखों के सामने जगताप चाचा और मेनका चाची का चेहरा उभर आता था और इसके साथ ही वो सब यादें तरो ताज़ा हो उठती थीं जो उनसे जुड़ी हुईं थी। वो सारी यादें मेरे लिए बड़ी सुखद और बड़ी अनमोल सी थीं लेकिन उन चेहरों का असली सच बड़ा ही असहनीय था। अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि जो कुछ देखा और सुना था वो सच हद से ज़्यादा कड़वा था। मैंने आंखें बंद कर के ऊपर वाले से गुहार सी लगाई कि मेरे ज़हन से इस सच्चाई की सारी यादें मिटा दे।

पता ही न चला कब मेरी आंखों की कोरों से आंसू के कतरे निकल कर मेरी कनपटियों से होते हुए नीचे तकिए में फ़ना हो गए। बाकी की रात इन्हीं पीड़ा दायक ख़यालों में गुज़र गई।

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मैंने रास्ते में कुसुम को समझा दिया था कि वो अपनी मां को अकेला न छोड़े और हमेशा उनके साथ रहे। यही वजह थी कि कुसुम आज अपनी मां के कमरे में उनके साथ ही पलंग पर लेटी हुई थी। मेनका चाची अंदर से बहुत दुखी थीं। आंखों के आंसू बार बार आंखों से छलक पड़ते थे। कुसुम खुद भी इस सब से दुखी थी किंतु वो भी समझती थी कि अब जो हो गया है उसके लिए कोई क्या कर सकता है?

"आज तुझे भी अपनी इस मां से घृणा होने लगी होगी ना मेरी बच्ची?" मेनका चाची ने दुखी लहजे से कहा____"आज तू भी सोच रही होगी ना कि ईश्वर ने तुझे ऐसे माता पिता की बेटी क्यों बनाया जिनकी सोच इतनी नीच और गिरी हुई थी?"

"नहीं मां।" कुसुम की आंखें छलक पड़ीं____"मैं ऐसा कुछ भी नहीं सोच रही। भगवान के लिए आप ऐसी बातें अपने मन में मत लाइए।"

"तो तू ही बता कि कैसे ये सब भूल जाऊं मैं?" चाची ने आहत हो कर कहा____"कैसे भूल जाऊं उस सबको जो मैंने और तेरे पिता जी ने सबके साथ किया है? मैं अच्छी तरह जानती हूं कि तू ये सब भूल जाने के लिए मुझे कोई उपाय नहीं बता सकती। पर इसमें तेरा कोई दोष नहीं है। सच तो ये है कि दुनिया में ऐसा कोई उपाय है ही नहीं जिससे इंसान अपने किए गए गुनाहों को भूल जाए। उसे तो सारी ज़िंदगी अपने गुनाहों और अपने पापों को याद करते हुए ही जीना पड़ता है....घुट घुट कर, तड़प तड़प कर।"

"ऐसा मत कहिए मां।" कुसुम को समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर वो किस तरह अपनी मां को शांत कराए, बोली____"सबसे ग़लतियां होती हैं। आपसे और पिता जी से भी हुईं लेकिन इस ग़लती के चलते आपने अथवा पिता जी ने ना तो बड़े भैया की जान ली और ना ही मेरे अच्छे वाले भैया की।"

"लेकिन जान लेने की तो पूरी कोशिश की थी ना हमने।" चाची कह उठीं____"अगर साहूकारों का दखल न हुआ होता तो उनकी जान लेने का पाप तो कर ही डालते ना हम? तू मुझे बहलाने की कोशिश मत कर कुसुम। सच यही है कि मैं और तेरे पिता भी उतने ही बड़े अपराधी और पापी हैं जितने बड़े साहूकार और चंद्रकांत थे। उन्हें तो उनके अपराधों के लिए सज़ा मिल गई लेकिन मुझे नहीं मिली है अभी। उन लोगों की तरह मुझे भी इस दुनिया में जीने का हक़ नहीं है।"

"चुप हो जाइए ना मां।" कुसुम रोने लगी____"भगवान के लिए ऐसी बातें मत कीजिए। मैं नहीं सुन सकती ऐसी बातें। अगर आपने जीने मरने की बातें की तो सोच लीजिएगा मैं भी आपके साथ साथ मर जाऊंगी। मुझे भी अपनी मां के बिना इस दुनिया में नहीं जीना।"

"नहीं मेरी बच्ची।" मेनका चाची ने तड़प कर कहा____"तू अपनी ऐसी मां के लिए खुद की जान मत लेना। तू तो मेरी सबसे अच्छी बेटी है। एक तू ही तो है जिसे अपनी कोख से जन्म देने पर गर्व महसूस करती हूं। एक तू ही तो है जिसके दिल में किसी के लिए भी कभी कोई ग़लत भावना नहीं जन्मी। मुझे गर्व है कि तू मेरी बेटी है।"

"अगर आपको सच में मुझ पर गर्व है तो मेरी क़सम खा कर कहिए कि आज के बाद जीने मरने की बातें कभी नहीं करेंगी आप।" कुसुम ने चाची का एक हाथ अपने सिर पर रखते हुए कहा।

"ठीक है।" चाची ने कहा____"अगर तू यही चाहती है कि तेरी ये मां जीवन भर इन सारी बुरी यादों के साथ ही घुट घुट कर और तड़प तड़प कर जिए तो क़सम खाती हूं मैं तेरी कि अब कभी जीने मरने की बातें नहीं करुंगी।"

"किसने कहा आप घुट घुट कर जिएंगी?" कुसुम ने चाची के आंसू पूछते हुए कहा____"अरे! आपकी ये बेटी आपको कभी कोई दुख नहीं होने देगी। और आपकी ये बेटी ही क्यों, मेरे सबसे अच्छे अच्छे वाले भैया भी आपको इस तरह दुख में नहीं जीने देंगे। देख लेना, मेरे भैया आपको कभी दुखी नहीं होने देंगे।"

"हां जानती हूं।" मेनका चाची के अंदर एक हूक सी उठी____"तेरा भैया दुनिया का सबसे अच्छा भैया है। वो सबसे अच्छा बेटा भी है। उसे अपना बेटा कहने का झूठा दंभ रखने वाली मैं ही उसकी सच्ची मां न बन सकी लेकिन वो पागल हमेशा मुझे अपनी सगी मां से भी ज़्यादा महत्व देता रहा। कितनी अभागन हूं ना मैं? जिस युग में बेटे अपने माता पिता का आदर नहीं करते वही बेटा मुझ जैसी हत्यारिन को अपनी मां कहता रहा और मान सम्मान देता रहा। और मैं...मुंह में शहद रख कर अंदर से उसे ज़हरीली नागिन बन कर डसने की कोशिश करती रही। इतना कुछ होने के बाद भी वो मुझे कहता है कि मैं उसकी प्यारी चाची हूं। इतने पर भी उसे मुझसे घृणा नहीं हुई।"

"यही तो विशेषता है उनकी।" कुसुम ने बड़े गर्व के साथ कहा____"इसी लिए तो वो मेरे सबसे अच्छे वाले भैया हैं। वो हम सबसे बहुत प्यार करते हैं। दुनिया उन्हें बुरा समझती है लेकिन मैं जानती हूं कि मेरे भैया कितने अच्छे हैं।"

"इस हवेली में सब अच्छे हैं मेरी बच्ची।" चाची ने कहा____"बस हम दोनों प्राणी ही अच्छे नहीं थे। काश! मेरे भैया ने उनके दिमाग़ में वो ज़हर न भरा होता। काश! वो मेरे भैया की बातों में न आए होते तो आज ये सब न होता। उन्होंने अपने देवता समान भाई के साथ बुरा करना चाहा और खुद मिट्टी में मिल गए। उन्हें तो उनके अपराध के लिए मिट्टी में मिल जाने की सज़ा मिल गई लेकिन मैं अभागन ज़िंदा रह गई।"

मेनका चाची सच में पश्चाताप की आग में जल रहीं थी। कुसुम उन्हें बहुत समझा रही थी लेकिन कामयाबी नहीं मिल रही थी उसे। अपनी मां के दुख से वो भी दुखी थी। जितनी उसके पास समझ थी उतना वो प्रयास कर रही थी।

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सुगंधा देवी का मन बहुत विचलित था। मन में ऐसे ऐसे ख़याल उभर रहे थे जिसके चलते उनका बुरा हाल हुआ जा रहा था। कमरे में आने के बाद जब उनकी नज़र पलंग पर सीधा लेटे दादा ठाकुर पर पड़ी तो वो फ़ौरन ही उनकी तरफ लपकीं। दादा ठाकुर छत पर झूल रहे पंखे को अपलक घूरे जा रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे पंखे पर ही उनकी नजरें चिपक कर रह गईं थी। चेहरे पर गहन वेदना के भाव थे।

"आख़िर ये सब हो क्या रहा है ठाकुर साहब?" सुगंधा देवी ने पलंग पर बैठने के बाद दादा ठाकुर से कहा_____"जब से वापस आए हैं तब से हर कोई चुप क्यों है? आख़िर ऐसा क्या हुआ है जिसकी वजह से सबके सब इतना विचित्र नज़र आने लगे हैं? मेनका रो रही थी, उससे रोने की वजह पूछी हमने लेकिन उसने कुछ नहीं बताया। ऊपर से कुसुम उसे उसके कमरे में ही ले गई। बेटे से पूछा तो उसने भी कुछ नहीं बताया, बल्कि हमें यहां कमरे में आराम करने भेज दिया। समझ में नहीं आ रहा कि आख़िर ये सब क्या है? क्यों कोई किसी बात का जवाब नहीं दे रहा? यहां आप भी एकदम से चुप हो कर लेटे हुए हैं? भगवान के लिए कुछ तो बताइए कि आख़िर हुआ क्या है? आप तो अपने बेटे के साथ उस सफ़ेदपोश के पास गए थे न? फिर ऐसा क्या हुआ कि वहां से आते ही आप सब चुप से हो गए हैं?"

सुगंधा देवी जाने क्या क्या बोलती चली जा रहीं थी किंतु उनके द्वारा इतना कुछ बोले जाने के बाद भी दादा ठाकुर की हालत पर कोई फ़र्क नहीं पड़ा। वो पहले की ही तरह छत के पंखे को अपलक घूरते रहे। ऐसा लगा जैसे उनके कानों में सुगंधा देवी की आवाज़ पहुंची ही नहीं थी। ये देख सुगंधा देवी के चेहरे पर आश्चर्य उतर आया। भौचक्की सी वो उन्हें अपलक देखने लगीं।

"ठाकुर साहब???" फिर उन्होंने एकदम से घबरा कर उन्हें झिंझोड़ ही दिया_____"आप कुछ बोलते क्यों नहीं? क्या हो गया है आपको?"

सुगंधा देवी के झिंझोड़ने और उनकी बातें सुन कर दादा ठाकुर एकदम से चौंक पड़े। गर्दन घुमा कर उन्होंने अपनी धर्म पत्नी की तरफ देखा। सुगंधा देवी चेहरे पर घबराहट लिए उन्हें ही देखे जा रहीं थी।

"क्या हुआ है आपको?" दादा ठाकुर को अपनी तरफ देखता देख उन्होंने पूछा____"कहां खोए हुए थे आप?"

"क...कहीं नहीं।" दादा ठाकुर ने अजीब भाव से कहा____"आप बैठी क्यों हैं? आराम से सो जाइए।"

"आपको ऐसी हालत में देख कर क्या हम सो पाएंगे?" सुगंधा देवी ने अधीरता से कहा____"आप बता क्यों नहीं रहे हैं कि हुआ क्या है?"

"कुछ नहीं हुआ है।" दादा ठाकुर ने पलंग पर थोड़ा दूर खिसकते हुए कहा____"आप सो जाएं।"

"नहीं, हमें नहीं सोना।" सुगंधा देवी ने जैसे ज़िद करते हुए कहा____"आपको बताना पड़ेगा कि आप क्या छुपा रहे हैं हमसे? आप अपने बेटे के साथ सफ़ेदपोश के पास गए थे। वहां से लौटने के बाद से ही आप सब चुप हैं। हम जानना चाहते हैं कि आख़िर ऐसा क्या हुआ है जिसके चलते सबकी ये हालत हो गई है?"

"हमने कहा न कुछ नहीं हुआ है।" दादा ठाकुर ने बेचैन भाव से कहा____"आप हमारी बात क्यों नहीं मान रहीं?"

"क्योंकि हमे यकीन हो चुका है कि कुछ न कुछ ज़रूर हुआ है।" सुगंधा देवी ने कहा____"और जब तक आप हमें सब कुछ बताएंगे नहीं तब तक हम शांति से नहीं बैठेंगे। हमें इसी वक्त जानना है कि ये सब क्या माजरा है? आप हमें सब कुछ बताते हैं या फिर हम आपको हमारे बेटे की क़सम दें?"

दादा ठाकुर क़सम की बात सुनते ही मानों पूरी तरह से ढेर हो गए। चेहरे पर दुख बेबसी और पीड़ा के भाव नुमायां हो उठे। अपनी पत्नी की तरफ देखते हुए उन्होंने बेबस भाव से आंखें बंद कर लीं। ऐसा लगा जैसे खुद को किसी बात के लिए मजबूत बनाने की कोशिश कर रहे हों।

सुगंधा देवी अपलक उन्हीं को देखे जा रहीं थी। उनकी आंखों में सब कुछ जानने की उत्सुकता साफ दिख रही थी। उधर कुछ पलों बाद दादा ठाकुर ने अपनी आंखें खोली और फिर संक्षेप में सब कुछ बताते चले गए।

सुगंधा देवी पूरी बात भी न सुन पाईं थी कि उन्हें चक्कर आ गया और वो पलंग पर ही लुढ़क गईं। ये देख दादा ठाकुर ने घबरा कर फ़ौरन ही उन्हें सम्हाला और फिर उन्हें पलंग पर सीधा लेटा दिया। दुख और तकलीफ़ उनके चेहरे पर भी दिख रही थी।

पलंग के पास ही टेबल पर पानी से भरा गिलास रखा हुआ था जिसके द्वारा उन्होंने सुगंधा देवी को होश में लाने का प्रयास किया जिसमें वो कुछ देर में सफल हो गए। होश में आते ही सुगंधा देवी का ज़हन जब सक्रिय हुआ तो एकाएक उनकी रुलाई फूट पड़ी। दादा ठाकुर ने फ़ौरन ही उन्हें खुद से छुपका लिया। वो नहीं चाहते थे कि रोने की आवाज़ कमरे से बाहर जाए। कुछ समय बाद सुगंधा देवी का रोना थोड़ा बंद हुआ।

"इतना बड़ा छल कोई कैसे कर सकता है?" फिर उन्होंने दर्द से सिसकते हुए कहा____"हमारे प्यार और स्नेह में आख़िर कहां कमी रह गई थी जिसकी वजह से जगताप ने हमें और हमारे बच्चों को अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझ लिया। हे विधाता! ये दिन दिखाने से पहले हमारे प्राण क्यों नहीं ले लिए तूने?"

उसके बाद बाकी की रात सुगंधा देवी को सम्हालने और समझाने में ही गुज़र गई। दादा ठाकुर की हालत भी कुछ ठीक नहीं थी लेकिन फिर भी खुद को मजबूत बनाए वो अपनी पत्नी को सम्हाले रहे।

✮✮✮✮

सुबह हुई।
एक नया दिन शुरू हुआ।
किन्तु एक अजीब सा दिन।
हवेली में सन्नाटा सा छाया हुआ था। मातम जैसा माहौल था। ऐसा आभास हो रहा था जैसे कोई मर गया हो। दादा ठाकुर से ले कर कुसुम तक के चेहरों पर मातम मिश्रित उदासी, गंभीरता और पीड़ा विद्यमान थी। एक ही रात में जैसे सब कुछ बदल गया था। चेहरे वही थे लेकिन ऐसा लगता था जैसे सबने आज पहली बार एक दूसरे को पहचाना था। इसके बावजूद एक अजनबीपन का एहसास हो रहा था।

सुबह हवेली में रहने वाली और बाहर से आने वाली नौकरानियां ख़ामोशी से अपने काम में लग ग‌ईं थी किंतु उनके चेहरों पर कौतूहल और सवालिया भाव थे। ये अलग बात है कि किसी से कुछ पूछने की उनमें हिम्मत न थी। दूसरी तरफ निर्मला और उसकी बेटी ख़ामोशी से रसोई में सबके लिए चाय नाश्ता बनाने में लगीं थी। दोनों के मन में ढेरों सवाल थे जिनके जवाब पाने की उत्सुकता हर पल के साथ बढ़ती ही चली जा रही थी।

मेनका चाची और कुसुम अपने कमरे से अभी भी नहीं निकलीं थी। ज़ाहिर था इतना कुछ पता चल जाने के बाद उनमें किसी का सामना करने की हिम्मत नहीं थी, ख़ास कर मेनका चाची में। इधर मां ख़ामोशी की प्रतिमूर्ति बनी हाल में रखी एक कुर्सी पर बैठी हुईं थी। वो बैठी तो कुर्सी पर ही थीं लेकिन ऐसा लगता था जैसे उनका अस्तित्व कहीं और था।

पिता जी, अपने बैठक में ख़ामोशी से बैठे हुए थे। उनके साथ उनका मुंशी किशोरी लाल भी बैठा हुआ था और मैं भी। किशोरी लाल बहुत कुछ पूछना चाहता था किंतु पिता जी का गंभीर चेहरा देख उसकी कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हो रही थी। हवेली में इतने सारे लोगों के रहते हुए भी अजीब सा सन्नाटा तो था ही किंतु अजीब सी सनसनी भी फैली हुई थी।

"ठ...ठाकुर साहब??" सहसा गहन सन्नाटे को भेद कर किशोरी लाल ने पिता जी की तरफ देखते हुए मानों हिम्मत जुटा कर कहा____"आप रात से ही एकदम चुप और संजीदा हैं। आख़िर बात क्या है?"

"बात कुछ ऐसी है किशोरी लाल जी।" पिता जी ने धीर गंभीर लहजे में कहा____"जिसे शब्दों में बयान करना हमारे लिए बिल्कुल भी आसान नहीं है। अपने अब तक के जीवन में हमने दूसरों की भलाई और खुशी के लिए बहुत कुछ किया, बहुत संघर्ष किया है। कभी किसी का बुरा नहीं चाहा इसके बावजूद हमारे ऐसे कर्मों का फल ईश्वर ने कुछ ऐसे रूप में दिया है जिसका हम तसव्वुर भी नहीं कर सकते थे।"

"आख़िर हुआ क्या है ठाकुर साहब?" किशोरी लाल को किसी बात की शंका तो हो ही रही थी, अतः अपनी शंका की पुष्टि करने के उद्देश्य से पूछा____"आज आप इतने गंभीर, इतने संजीदा और इतनी अजीब बातें क्यों कर रहे हैं? जहां तक मुझे पता चला है कल रात आप और छोटे कुंवर सफ़ेदपोश से मिलने गए थे। उसके बाद जब आप सब वापस आए थे तो ऐसे ही गंभीर और संजीदा थे। मझली ठकुराईन और कुसुम बिटिया भी आपके साथ ही आईं थी। मैं जानना चाहता हूं कि आख़िर ऐसा क्या हुआ है जिसके चलते सफ़ेदपोश से मिलने के बाद आप सब इतने ख़ामोश से हो गए थे?"

"इस बारे में फिलहाल हम कुछ नहीं कहना चाहते किशोरी लाल जी।" पिता जी ने बेचैनी से पहलू बदला____"और हम चाहते हैं कि आप भी हमसे इस बारे में कुछ न पूछें।"

"जैसी आपकी इच्छा ठाकुर साहब।" किशोरी लाल ने सिर हिलाया।

"हम ये भी चाहते हैं कि रात से ले कर अब तक की किसी भी घटना का ज़िक्र आप किसी से भी न करें।" पिता जी ने कहा____"आप हमारी इन बातों को अन्यथा मत लीजिएगा। बात दरअसल ये है कि हम पहले खुद अपने हालात से उबर जाना चाहते हैं। इस बारे में ना तो हम किसी से कुछ कहना चाहते हैं और ना ही किसी की कुछ सुनना चाहते हैं। अगर ऊपर वाले ने चाहा तो उचित समय पर हम खुद ही आपको सब कुछ बता देंगे।"

"जी मैं समझ गया ठाकुर साहब।" किशोरी लाल को भी हालात की गंभीरता का एहसास हुआ इस लिए उसने इस बारे में ज़्यादा कुछ कहना मुनासिब नहीं समझा____"आप बेफिक्र रहें किंतु मेरा आपसे बस इतना ही कहना है कि जो कुछ भी हुआ हो उसके लिए आप खुद को ज़्यादा तकलीफ़ ना दें।"

"हमारे भाग्य में जो लिखा है वो तो हमें मिलेगा ही किशोरी लाल जी।" पिता जी ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा____"बाकी हम तो इस बात से चकित हैं कि हमारे भाग्य में ऊपर वाले ने ये सब क्यों लिखा था? काश! मौत आ जाती तो जल्दी ही ऊपर वाले से हम ये सवाल कर पाते और उससे जवाब सुन पाते। ख़ैर जाने दीजिए, आप हमें बताएं आज का क्या कार्यक्रम है?"

"आज का तो विशेष रूप से बस एक ही काम है ठाकुर साहब।" किशोरी लाल ने खुद को सम्हालते हुए झट से कहा____"आपको शहर जाना है और वहां शिवराज सिंदे जी से मिलना है। शिवराज सिंदे जी के बड़े बेटे की विदेश जाने की आज की ही टिकट है। आपको उनके बेटे के हाथ रुपए भेजवाने हैं अपने दोनों भतीजों के लिए।"

"ठीक है।" पिता जी ने कहा____"आप रुपए ले लीजिए। उसके बाद चलते हैं।"

पिता जी की बात सुनते ही किशोरी लाल उठ कर रुपए लाने के लिए चला गया। उसके जाने के बाद पिता जी ने मेरी तरफ देखा।

"आज तुम हवेली में ही रहना।" फिर उन्होंने मुझसे कहा____"और विशेष रूप से अपनी मां का ख़याल रखना। रात से ही उनकी तबीयत थोड़ी ख़राब है। वैसे तो हमने वैद्य जी को बुलवाया है किंतु अगर उनकी दवा से भी आराम न मिले तो तुम उन्हें शहर ले जाना।"

"आप बेफिक्र हो कर जाएं पिता जी।" मैंने दृढ़ता से कहा____"मैं मां का अच्छे से ख़याल रखूंगा और हां आप भी कृपया अपना रखिएगा।"

कुछ ही समय बाद पिता जी किशोरी लाल के साथ बैठक से बाहर निकल गए। शेरा ने जीप निकाली जिसमें बैठ कर वो दोनों शहर चले गए। मैं कुछ देर बैठक में ही बैठा जाने क्या क्या सोचता रहा। उसके बाद उठ कर हवेली के अंदर चला आया।




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अध्याय - 138
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हवेली का एक नौकर वैद्य जी को अंदर ले कर आया। मैं अंदर ही था इस लिए वैद्य जी को ले कर सीधा मां के कमरे में पहुंच गया। मां पलंग पर लेटी हुईं थी। औपचारिक हाल चाल के बाद वैद्य जी ने मां की नाड़ी देखी। कुछ देर तक आंख बंद किए वैद्य जी जाने क्या महसूस करते रहे उसके बाद उन्होंने मां की कलाई को छोड़ दिया।

"चिंता की कोई विशेष बात नहीं है छोटे कुंवर।" फिर उसने मुझसे मुखातिब हो कर कहा____"मानसिक तनाव और अत्यधिक चिंता करने की वजह से इनकी ऐसी हालत है। वैसे तो मैं कुछ दवाइयां दे देता हूं किंतु इसका बेहतर उपचार यही है कि ये किसी भी प्रकार का ना तो तनाव रखें और ना ही किसी बात की इतनी ज़्यादा चिंता करें।"

"ठीक है वैद्य जी।" मैंने कहा____"आप दवा दे दीजिए। बाकी मैं देख लूंगा।"

वैद्य जी को विदा करने के बाद मैं वापस मां के पास आया। सुनंदा नाम की एक नौकरानी विशेष रूप से मां की ही सेवा में लगी रहती थी। मैंने उसे मां के लिए कुछ खाना ले आने को कहा। खाली पेट मां को दवा देना उचित नहीं था।

कुछ समय बाद जब मां ने मेरे बहुत ज़ोर देने पर थोड़ा बहुत खाया तो मैंने उन्हें दवा दे दी। मैं अच्छी तरह जानता था कि मां की ऐसी हालत किस वजह से है। उन्हें मेनका चाची और अपने देवर यानि जगताप चाचा के बारे में ये सब जान कर बहुत गहरा आघात लगा था। पिता जी ने रात में अगर उन्हें समझाया न होता तो बहुत हद तक मुमकिन था कि इस अघात की वजह से उनकी हालत बहुत ही गंभीर हो जाती।

"अब आप आराम कीजिए मां।" मैंने मां को ऊपर चादर से ओढ़ाते हुए कहा____"और अपने दिलो दिमाग़ से हर तरह की बातों को निकाल दीजिए।"

"वही तो नहीं कर पा रही मैं।" मां ने दुखी भाव से कहा____"जितना भुलाने की कोशिश करती हूं उतना ही सब कुछ याद आता है। बार बार मन में एक ही सवाल उभरता है कि क्यों किया ऐसा?"

"आप तो जानती हैं ना मां कि इंसान ग़लतियों का पुतला होता है।" मैंने उन्हें समझाने वाले अंदाज़ से कहा____"इस दुनिया में ऐसा कौन है जो अपने जीवन में ग़लतियां नहीं करता? सब करते हैं मां। मैंने भी तो न जाने कितनी ग़लतियां की हैं जिनकी वजह से आपका और पिता जी का बहुत दिल दुखा था। इसी तरह हर कोई किसी न किसी वजह से कोई न कोई ग़लतियां करता ही है। जगताप चाचा और चाची ने जो किया वो उन्होंने अपने बच्चों की भलाई के लिए किया। यकीनन उनका ऐसा करना हम सबकी नज़र में ग़लत था किंतु उनकी नज़र में तो वो सब उचित और सही ही था ना मां? आख़िर हर माता पिता अपने बच्चों का भला ही तो चाहते हैं। इस संसार में ऐसा ही तो होता है। लोग अपनों की खुशी के लिए क्या क्या कर जाते हैं। उन्होंने भी वही किया। आप उन सब बातों को इसी नज़रिए से सोचिए और अपने मन को शांत रखिए।"

"तुझे पता है।" मां ने अधीरता से कहा____"मैंने हमेशा जगताप को देवर से ज़्यादा अपने बेटे की तरह माना था और उसे स्नेह किया था। मेनका को अपनी छोटी बहन मान कर उसे प्यार दिया। उसके बच्चों को अपने बच्चों से ज़्यादा माना और प्यार किया। क्या मेरा ऐसा करना ग़लत था? क्या मैंने उन्हें अपना मान कर और उन्हें प्यार कर के कोई गुनाह किया था जिसके लिए उसने उस सबका ये सिला दिया?"

"आप फिर से वही सब सोचने लगीं।" मैंने उन्हें समझाते हुए कहा____"आप मेरी मां हैं और जीवन के साथ साथ दुनियादारी का भी मुझसे ज़्यादा आपको अनुभव है, इसके बावजूद आप ऐसा सोचती हैं? आप तो जानती हैं ना कि जब कोई इंसान सिर्फ अपने और अपने बच्चों के हितों के बारे में ही सोचते हुए आगे बढ़ता है तो फिर वो दूसरे के बारे में कुछ भी नहीं सोचता। ऐसा इंसान फिर ये नहीं सोचता कि किसने उसके साथ अच्छा किया है अथवा किसने उसे अपना माना है? जगताप चाचा और चाची की मानसिकता कुछ इसी तरह की हो गई थी। यही वजह थी कि उन्होंने ये सब नहीं सोचा। अगर सोचा होता तो आप खुद सोचिए कि क्या फिर वो ये सब करते?"

"जगताप के मन में इस तरह का ज़हर उसके साले अवधराज ने डाला था।" मां ने कहा____"उसी ने मेरे देवर के मन में ऐसी सोच डाली थी वरना वो कभी ऐसा न करता। उसी की वजह से इतना कुछ हुआ और इस हवेली की खुशियों पर ग्रहण लग गया। एक हंसते खेलते और खुशहाल परिवार में आग लगवा दी उस नासपीटे ने। उस समय आया तो था वो, उसे देख कर ज़रा भी तो एहसास नहीं हुआ था कि वो इस हवेली को तहस नहस करने वाला शकुनी है। अपने बहनोई को इस सबके चलते मौत के घाट उतार कर और अपनी बहन को विधवा बना कर क्या खुशी से जी रहा होगा वो?"

"उन्होंने जो किया है उसका फल ऊपर वाला उन्हें एक दिन ज़रूर देगा मां।" मैंने कहा____"आप कृपया इस सबके बारे में सोच कर अपने आपको दुखी मत कीजिए। पिता जी के बारे में भी सोचिए। उन्हें भी तो इस सबके चलते बहुत गहरा सदमा लगा है। वो किसी को कुछ दिखाते नहीं हैं लेकिन मैं जानता हूं कि वो अंदर ही अंदर किस क़दर दुखी हैं।"

"दुखी तो होंगे ही।" मां की आंखें भर आईं____"जीवन भर उन्हें अपने भाई पर इस बात का गुमान था कि उनके भाई जैसा कोई नहीं हो सकता। जिस तरह तुम दोनों भाई उनके जिगर के टुकड़े थे उसी तरह उनका भाई भी उनकी जान था। बहुत गर्व करते थे वो जगताप पर। अपने भाई की नेक नीयती पर वो ख़्वाब में भी शक नहीं करते थे। खुद से ज़्यादा उन्हें अपने छोटे भाई पर भरोसा था। अपने पिता जी के बाद उन्होंने अपने भाई को अपने जैसा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। क्या जानते थे कि जिस भाई को उन्होंने छोटे से ले कर अब तक अपनी खुशियों और अपनी इच्छाओं का बलिदान दे कर इस क़ाबिल बनाया था वही एक दिन उनके भरोसे को तोड़ कर उनकी मुकम्मल दुनिया को बर्बाद करने की राह पर चल पड़ेगा। इंसान जिसे अपना सब कुछ मानता है, जिस पर खुद से ज़्यादा भरोसा करता है, अपनी औलाद से ज़्यादा प्यार करता है अगर वही एक दिन इतना बड़ा झटका दे दे तो ये गनीमत ही है उस झटके के बाद सामने वाला मौत से बच जाए।"

मां की ये बातें ऐसी थीं जिनका एक एक शब्द एक अलग ही एहसास पैदा कर रहा था। पहले भले ही कभी मैं अपनी अय्याशियों के चलते ये सब नहीं सोचता था किंतु अब सारी बातें मेरे मानस पटल पर उभरती थीं। मुझे एहसास होता था कि मेरे पिता जी ने अब तक क्या कुछ किया था और क्या कुछ सहा था।

"जब उन्हें पता चला था कि उनके भाई और बेटे की साहूकारों ने हत्या की थी तो जीवन में पहली बार वो इतना विचलित हुए थे।" मां ने आगे कहा____"औलाद का दुख तो था ही लेकिन सबसे ज़्यादा उन्हें अपने भाई की मौत का दुख हुआ था। उसकी इस तरह से हुई मौत से वो इतना ज़्यादा विचलित हुए कि अपना आपा ही खो बैठे थे। यही वजह थी कि साहूकारों का पता लगने के बाद भी उन्होंने उन्हें पकड़ कर उनका फ़ैसला पंचायत में करने का नहीं सोचा बल्कि सीधा उन्हें गोलियों से ही भून डाला था। उन्हें इस बात का कोई होश नहीं रह गया था कि उनके ऐसा करने से लोग उनके बारे में क्या सोचेंगे अथवा ऐसा करने से क्या अंजाम होगा। एक इंसान जिसने कभी अपना धैर्य और संयम नहीं खोया, जिसने कभी किसी पर बेवजह क्रोध नहीं किया उसने पहली बार इस तरह का नर संघार करने जैसा जघन्य अपराध कर दिया। आज जब उन्हें ये पता चला कि जिसकी वजह से उन्होंने ये नर संघार किया था वो तो खुद ही सबसे बड़ा क़ातिल था उनका। उनके प्रेम का, उनके भरोसे का और उनकी भावनाओं का। कल रात भर नहीं सोए वो, खुद अंदर से दुखी रहे लेकिन मुझे समझाते रहे ताकि मेरी हालत बद्तर न हो जाए।"

"इसी लिए तो कहता हूं मां कि आप इस सबके बारे में सोच कर खुद को दुखी मत कीजिए।" मैंने कहा____"पिता जी दुखी हैं तो उन्हें सहारा दीजिए। उनका बेटा होने के नाते मैं हर तरह से उनका सहारा बनने की कोशिश करूंगा, भले ही इसके लिए मुझे किसी भी हद से गुज़र जाना पड़े।"

"चिंता मत कर बेटे।" मां ने कहा____"मैं अब खुद का ख़याल रखूंगी और तेरे पिता जी को भी समझाऊंगी कि वो इस सबके बारे में सोच कर खुद को इतना दुखी न करें। ख़ैर अब तू जा, और ज़रा देख तेरी चाची के क्या हाल हैं? उसने कुछ खाया पिया है कि नहीं? उसे भी समझाना होगा कि जो हो गया उसे भूल जाए। बाकी अगर उसकी यही इच्छा है कि उसे ये हवेली और इस हवेली की सारी धन संपत्ति चाहिए तो ऐसा ही होगा। उसका पति इसी चाह में मर गया है तो ऐसा नहीं होना चाहिए कि उसके मरने के बाद उसके बीवी बच्चे उसकी उस चाहत से वंचित रह जाएं।"

"ऐसा मत कहिए दीदी।" मां ने इतना कहा ही था कि सहसा दरवाज़े से चाची की करुण आवाज़ आई।

मैंने पलट कर दरवाज़े की तरफ देखा। मेनका चाची आंखों में आंसू लिए अजीब हालत बनाए खड़ी थीं। मां ने भी गर्दन घुमा कर उन्हें देखा।

"मत कहिए दीदी ऐसा।" कहते हुए चाची आईं और मां के पैरों में सिर रख रोने लगीं, फिर बोली____"मुझे कुछ नहीं चाहिए। कुछ चाहने की वजह से ही आज मेरी ये हालत है। अपने और अपने बच्चों के बारे में सोच कर हमने जो किया ये उसी का परिणाम है कि आज वो इस दुनिया में नहीं हैं। हमने बहुत बड़ा अपराध किया है दीदी, बहुत बड़ा पाप किया है। हमने आपके प्यार और विश्वास का खून किया है। आप इसके लिए मुझे सज़ा दीजिए।"

"नहीं मेनका।" मां ने कहा____"तुझे मेरे पैरों में पड़ने की ज़रूरत नहीं है। और हां, तुझे या तेरे बच्चों को कोई कुछ नहीं कहेगा। तेरा पति जो चाहता था वो तुझे ज़रूर मिलेगा, बस कुछ समय की मोहलत दे दे हमें। थोड़ा इस दुख तकलीफ़ से उबर जाने दे हमें। उसके बाद हम दोनों प्राणी अपने इस बेटे को ले कर कहीं चले जाएंगे। विधवा बहू है तो उसे भी अपने साथ ही ले जाएंगे। उसके बाद ये हवेली और ये सारी धन संपत्ति, ज़मीन जायदाद सब तेरी और तेरे बच्चों की होगी।"

"नहीं दीदी नहीं।" मेनका चाची बुरी तरह रो पड़ीं____"मुझे कुछ भी नहीं चाहिए। मुझे सिर्फ अपनी दीदी का प्यार और स्नेह चाहिए। अपने जेठ जी का दुलार चाहिए। अपने बेटे का वैसा ही प्यार और मान सम्मान चाहिए जैसा ये मुझे अब तक देता आया था।"

"यही तो हम सब दे रहे थे तुझे।" मां ने कहा____"पर शायद ये अच्छा नहीं लगा था तुम दोनों को और ना ही ये काफ़ी था। तभी तो हमें मिटा कर सब कुछ पा लेने का मंसूबा बनाया था तुम दोनों ने।"

"मति मारी गई थी दीदी।" मेनका चाची रोते हुए बोलीं____"तभी तो सिर्फ अपने बारे में सोच बैठे और इतना घिनौना षड्यंत्र रच डाला था। ये उसी घिनौनी मानसिकता का परिणाम है कि आज मैं अपने पति को खो कर इस हाल में हूं। मेरे बच्चे बिना पिता के हो गए। मेरे बच्चों को उनके माता पिता की करनी की सज़ा मिल गई।"

"सज़ा तो हमें मिली है मेनका।" मां ने कहा____"हद से ज़्यादा प्यार करने की, हद से ज़्यादा भरोसा करने की और हद से ज़्यादा अपना समझने की। हम भूल गए थे कि पराया तो पराया ही होता है। नाग को कितना ही दूध पिलाओ वो एक दिन दूध पिलाने वाले को ही डस लेता है। इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है, दोष हमारा है। ख़ैर कोई बात नहीं, देर से ही सही अब समझ आ गया है हमें। तुझे ये हवेली और धन संपत्ति की चाह थी तो तुझे ये सब मिल जाएगा। उसके बाद जैसे चाहे अपने बच्चों के साथ यहां रहना।"

"ऐसा मत कहिए न दीदी।" चाची और बुरी तरह तड़प कर रो पड़ीं____"आप तो मेरी सबसे अच्छी दीदी हैं। मुझे अपनी छोटी बहन की तरह प्यार करती हैं। अपनी छोटी बहन के इस अपराध को क्षमा कर दीजिए ना। बस एक बार दीदी, सिर्फ एक बार माफ़ कर दीजिए ना मुझे।"

इस बार मां ने कुछ न कहा। पैरों से लिपटी रो रहीं चाची को नम आंखों से देखती रहीं। यकीनन उनके अपने दिलो दिमाग़ में भी इस वक्त आंधियां चल रहीं थी जिन्हें वो काबू में करने का भरसक प्रयास कर रहीं थी।

"मैं जानती हूं कि मेरा अपराध माफ़ी के लायक नहीं है।" उधर चाची ने फिर कहा____"किंतु आप तो मेरी सबसे अच्छी दीदी हैं ना। मुझे अपनी छोटी बहन जैसा प्यार करती हैं। मुझे यकीन है कि आप मुझे झट से माफ़ कर देंगी। मेरे अपराधों को मेरी नासमझी जान कर माफ़ कर देंगी। अगर आप मुझे माफ़ नहीं करेंगी तो यकीन मानिए अपनी बेटी की क़सम तोड़ कर मैं ज़हर खा कर खुदकुशी कर लूंगी।"

"ख़बरदार जो ऐसी मनहूस बात कही तूने।" मां ने झट से डांट दिया उन्हें____"और पैर छोड़ मेरे, दूर हट जा।"

"नहीं, आपके पैर छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी।" मेनका चाची ने कहा____"मुझे अपनी दीदी के पास रहना है। मुझे अपनी दीदी का वैसा ही प्यार और स्नेह चाहिए जैसा अब तक मेरी दीदी दे रहीं थी।"

मेनका चाची छोटी बच्ची की तरह रोए जा रहीं थी और ज़िद कर रहीं थी। उनका ये बर्ताव देख मां की नाराज़गी और गुस्सा दूर होता गया। माना कि चाचा चाची का अपराध माफ़ी के लायक नहीं था लेकिन मेरे माता पिता ऐसे थे ही नहीं जो पिघल न सकें, खास मां। आख़िर कुछ देर में मां ने चाची को मजबूरन माफ़ कर ही दिया। हालाकि मन अभी भी उनका इस सबके चलते दुखी था। बहरहाल, मां के कहने और समझाने पर चाची कमरे से चली गईं। मैं भी मां के कहने पर बाहर निकल गया।

✮✮✮✮

दिन यूं ही गुज़रने लगे।
कुछ दिनों के लिए लगा था जैसे वक्त थम गया हो और उस थमे हुए पलों में उसने हम सबको जाने कौन सी भयावह दुनिया में पहुंचा दिया हो किंतु फिर जैसे एक लहर आई और हम सबको साहिल पर ला फेंका। शायद ऊपर वाला नहीं चाहता था कि हम महज इतने में ही डूब कर मर जाएं।

हवेली के अंदर का माहौल यूं तो सामान्य हो गया था लेकिन रिश्तों में पहले जैसी पाकीज़गी नहीं महसूस होती थी। कहने के लिए भले ही हम सब दिल से सब कुछ कर रहे थे लेकिन जाने क्यों ये सब एक दिखावा सा महसूस होता था। पहले जैसा बेबाकपन, बेफिक्री, अपनापन और भरोसा नहीं महसूस होता था और ना ही दिल से कोई खुश होता था। सब कुछ बनावटी लगने लगा था।

पिता जी, बहुत गंभीर से हो गए थे। उनके चेहरे पर गंभीरता के अलावा कोई भाव नज़र नहीं आते थे। ना कोई खुशी, ना कोई उत्साह और ना ही कोई तेज़। ऐसा लगता था जैसे उनके लिए सब कुछ बेमानी और बेमतलब हो गया था। सबके सामने वो खुद को सामान्य रखते लेकिन मां और मैं अच्छी तरह समझते थे कि अंदर से वो टूट चुके थे। इंसान के भरोसे और उम्मीद का जब इस तरह से हनन हो जाता है तो इंसान ज़िंदा होते हुए भी एक लाश जैसा बन जाता है।

मां को तो किसी तरह सम्हाल लिया गया था लेकिन पिता जी को सम्हालना जैसे नामुमकिन सा हो गया था। बाहर से वो पूरी तरह सामान्य ही नज़र आते थे लेकिन अंदर से जैसे वो घुट रहे थे।

गांव में अस्पताल और विद्यालय बनवाने की मंजूरी मिल गई थी इस लिए निर्माण कार्य शुरू हो गया था। पिता जी ने गांव वालों की सुविधा को देखते हुए अस्पताल और विद्यालय गांव के अंदर ही बनवाने की मंजूरी प्राप्त की थी जिसके लिए हमने अपनी ज़मीन को सरकार के सुपुर्द की जिसका हमें मुआवजा भी मिला किंतु मुआवजे की रकम हमने निर्माण कार्य में ही लगाने का फ़ैसला किया था।

एक दिन पहले पिता जी के हुकुम पर पूरे गांव में डिग्गी पिटवा कर गांव वालों को सूचित कर दिया गया था कि गांव में सरकारी अस्पताल और सरकारी विद्यालय बनने वाला है। इसके लिए जो भी अपनी खुशी से निर्माण कार्य में मदद करेगा उसे उसका उचित मेहनताना मिलेगा।

गांव वाले इस बात से बड़ा खुश हुए। उनके चेहरों पर मौजूद खुशी और उत्साह देखते ही बनता था। सब खुशी से नाचने लगे थे और ये खुशी तब और भी ज़्यादा बढ़ गई जब सबको ये पता चला कि गांव में विद्यालय बनने के बाद हर कोई अपने बच्चों को विद्यालय में पढ़ने के लिए दाखिला दिलवा सकता है।

उस रात पूरे गांव में लोगों ने खुशी से नाच गाना किया और इसके लिए पिता जी को दुआएं दे कर उनकी लंबी उमर की कामना की। सारी रात जश्न का माहौल बना रहा। ये ख़बर जंगल की आग की तरह दूर दूर तक फैलती चली गई। हर किसी की ज़ुबान पर इसी बात की चर्चा थी कि रुद्रपुर में दादा ठाकुर की कृपा से विद्यालय और अस्पताल दोनों बन रहे हैं।

यूं तो ये सब सरकार का काम था लेकिन पिता जी ने ये सारा काम खुद करने का जिम्मा ले लिया था। सरकार का काम सिर्फ इतना ही था कि जब विद्यालय और अस्पताल बन कर तैयार हो जाए तो वो विद्यालय में बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक और अस्पताल में लोगों का बेहतर इलाज़ करने के लिए चिकित्सक नियुक्त कर दें।

गांव के पूर्व में देवी मां के मंदिर के बगल से निर्माण कार्य शुरू हुआ। मंदिर के एक तरफ विद्यालय और दूसरी तरफ अस्पताल का कार्य बड़े जोश और जुनून के साथ शुरू हो गया था। गांव के बहुत से लोग इस निर्माण कार्य में लग गए थे। मैं और रूपचंद्र दोनों तरफ का निरीक्षण करते थे। उधर पिता जी ने शहर से हमारे ट्रैक्टरों में ईंट बालू सीमेंट और पत्थर लाने के लिए भीमा और बलदेव को नियुक्त कर दिया था।

अब ये रोज़ाना की दिनचर्या सी बन गई थी। मैं और रूपचंद्र एक साथ दोनों जगह का काम धाम देखने लगे थे। हम दोनों में काफी अच्छा ताल मेल हो गया था। रूपचंद्र पहले थोड़ा संकोच करता था किंतु अब वो पूरी तरह खुल गया था मुझसे। मैंने महसूस किया था कि अब वो मुझसे मज़ाक भी करने लगा था। ज़ाहिर है उसकी बहन से अगले साल मेरा ब्याह होना था जिसके चलते हमारे बीच जीजा साले का रिश्ता बन चुका था और इसी वजह से वो मुझसे मज़ाक करने लगा था। मुझे थोड़ा अजीब तो लगता था लेकिन मैं इसका विरोध नहीं करता था। पिछले पंद्रह बीस दिनों से उसकी बहन रूपा से मेरी मुलाक़ात नहीं हुई थी। इसके लिए ना मैंने कोई पहल की थी और ना ही उसने।

ऐसे ही एक महीना गुज़र गया। इस एक महीने में अस्पताल और विद्यालय के निर्माण कार्य में काफी कुछ नज़र आने लगा था। दोनों तरफ की दीवारें आधी आधी खड़ी हो गईं थी। पहले सिर्फ मंदिर दिखता था और अब मंदिर के दोनों तरफ अस्पताल और विद्यालय की दीवारें नज़र आने लगीं थी। ज़ाहिर है जब दोनों पूरी तरह बन कर तैयार हो जाएंगे तो अलग ही दृश्य नज़र आएगा।

ठंड शुरू हो गई थी। लोगों के घर के बाहर और अंदर अलाव जलने शुरू हो गए थे। लोग अपने मवेशियों को ठंड से बचाने के लिए उचित व्यवस्था करने लगे थे। ठंड का मौसम मुझे हमेशा से पसंद था। चाहे जितना खा पी लो, चाहे जिसके साथ चिपक कर सो जाओ, चाहे जितनी मेहनत कर लो। कुल मिला कर ठंड में कोई भी काम करो उसका अलग ही आनंद मिलता था। हालाकि कभी कभी ठंड इतनी ज़्यादा होने लगती थी कि सुबह बिस्तर से उठने का भी मन नहीं करता था और सबसे ज़्यादा इसका असर काम पर पड़ता था। अक्सर इस चक्कर में जंगली जानवर फसलों को बर्बाद कर देते थे और इंसान ठंड की वजह से बिस्तर में छुपा बैठा रहता था।

रागिनी भाभी को मायके गए दो महीना हो गया था। सच कहूं तो मुझे उनकी बहुत याद आती थी। जब भी अकेले में होता था तो अक्सर उनका ख़याल आ जाता था। उनका मुझे छेड़ना, मेरी टांग खींचना और बात बात पर मुझे आसमान से ज़मीन पर ले आना बहुत याद आता था। मैं हर दिन मां से उनके बारे में पूछता कि उन्हें लेने कब जाऊं लेकिन वो हर बार मना कर देती थीं। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर वो भाभी को वापस लाने से मना क्यों कर देती थीं? एक दिन तो मैं मां से इस बात पर नाराज़ भी हो गया था। मुझे भाभी की फ़िक्र तो थी ही लेकिन मैं ये भी चाहता था कि वो हवेली में वापस आएं। मेरे काम के बारे में जानें, और मेरे काम की समीक्षा करते हुए मुझे ये बताएं कि मैं अपना काम ठीक से कर रहा हूं या नहीं? मैं उनकी उम्मीदों पर खरा उतर रहा हूं या नहीं? ऐसा नहीं था कि हवेली में कोई मेरे काम से खुश नहीं था, बल्कि सब खुश थे लेकिन जाने क्यों मैं चाहता था कि मेरे इन कामों को देख कर भाभी भी खुश हों और मेरी तारीफ़ करते हुए मेरा मनोबल बढ़ाएं।

शाम को मैं काम से थका हारा हवेली आया और खा पी कर अपने कमरे में आ गया। हवेली के इस तरफ ऊपरी हिस्से में आज कल सिर्फ मैं ही अपने कमरे में रहता था। कुसुम पिछले एक महीने से अपनी मां के साथ ही नीचे उनके कमरे में सोती थी। दूसरी तरफ हवेली के ऊपरी हिस्से में किशोरी लाल और उसकी बेटी कजरी सोती थी। मेरी तरफ का पूरा हिस्सा वीरान सा रहता था। पिछले कुछ समय से हर दूसरे या तीसरे दिन मां मेरे कमरे में आ जाती थीं और मेरा हाल चाल पूछती थीं।

पलंग पर लेटा मैं अपने कामों के बारे में सोच रहा था। उसके बाद मन जाने कहां कहां भटकते हुए रागिनी भाभी पर जा कर ठहर गया। मैं सोचने लगा कि दो महीने हो गए उन्हें गए हुए और मेरे पास उनके बारे में अब तक कोई ख़बर नहीं है। क्या उन्हें हम सबकी याद नहीं आती होगी? क्या उनका मन नहीं करता होगा वापस आने का? वहां पर उनके अपने उन्हें खुश रखने के लिए क्या करते होंगे? क्या कोई उनका ख़याल रखता होगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि वो हर किसी से अपनी पीड़ा को छुपा कर रखती हों और अंदर ही अंदर दुखी रहती हों? नहीं नहीं, वो लोग ऐसा नहीं कर सकते। भाभी उनकी बहन बेटी हैं, ज़रूर वो अच्छे से उनका ख़याल रखते होंगे।

एकाएक ही मन में उथल पुथल सी मच गई थी। भाभी के लिए पहले भी फ़िक्र थी लेकिन अब और भी ज़्यादा होने लगी थी। एक बेचैनी सी थी जो बढ़ती ही जा रही थी। मैंने फ़ैसला कर लिया कि कल सुबह मैं चंदनपुर जाऊंगा और भाभी को वापस ले आऊंगा।




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हाँ - अब आया वो अपडेट, जिसका इंतज़ार था।
रहस्य बाहर आने के बाद जो मनःस्थिति आपने दिखाई है, वो गज़ब की है भाई! अद्भुत!
मन मोह लिया आपने।

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय! टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय!!

यह अक्षरशः सत्य है! मेनका और जगताप ने प्रेम का धागा तोड़ दिया। अब उसका अंजाम तो भुगतना ही पड़ेगा।
जोर जबरदस्ती कर के किसी की माँफी तो मांगी जा सकती है, लेकिन उस क्षमा में जो निहित निर्मलता होनी चाहिए, वो अनुपस्थित होती है। और वही हो रहा है यहाँ।
पाप कुछ लोगों ने किया, लेकिन उसकी सजा भुगत रहे हैं, परिवार में सभी कोई!

बोझिल मन, पाप-बोध, भरी भारी माहौल, दबे-घुटे जज़्बात! बहुत ही अच्छे से दर्शाया है आपने सब।

वैसे यह अच्छा है - जब मन अशांत हो, तब सामाजिक/धार्मिक जैसे कार्यों में स्वयं को लगा दें, तो थोड़ा स्थायित्व आता है। स्कूल इत्यादि की व्यवस्था करना एक पुण्य कार्य है।

अन्य पाठकों की ही भाँति मुझे भी संदेह है कि, रागिनी को वैभव से विवाह के सम्बन्ध में ही उसके मायके बुलाया गया है। यह काम आसान तो नहीं है, लेकिन असंभव भी नहीं। वैसे मेनका ने एक बात सही कही - दादा ठाकुर, अपने पुरोहित की हर बात को वेद-वाक्य मान कर उसको पूरा करने पर आमादा हो जाते हैं। रागिनी की शादी किसी और से भी हो सकती है, और किसी से शादी करने की ज़रुरत भी नहीं। लेकिन फिर अगला प्रश्न आता है कि वैधव्य भरा जीवन कैसे व्यतीत कर ले वो? अनावस्यक दण्ड है ये तो।

अब वैभव भाई के अंदर भी कीड़ा कुलबुला रहा है, रागिनी को ले कर। देखते हैं, उनकी मुलाकात कैसी रहती है!
मुझे लग रहा है कि वो उसको झाड़ने वाली है। शायद अपने माँ बाप की बात से वो बुरी तरह से खीझी / खार खाए बैठी होगी। वो सारे का सारा उसके ऊपर ही उतरेगा।
और तब जा कर वैभव को भी रागिनी के प्रति आकर्षण / प्रेम का बोध होगा।

कयास है। लेकिन हम पाठक लोग और क्या करें? :)
 

Sanjuhsr

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Awesome update,
Akhir vaibhav pahunch hi gya chandarpur bhabhi ji ke pass,
Lekin YHA use alag hi najara mila bhabhi ko dekh kr ,
Shayad bhabhi ko dada Thakur ne hint de diya hoga ki uski shadi vaibhav se karvayi jayegi, jiske liye ragini apne ko teyar kar rahi hai,
Shuruaat ki bato se laga ki ragini ki shadi kisi aur se hogi kamini ne bhi yahi kaha vaibhav se lekin akhir me bhabhi ke shabdo me ye dikha ki wo sirf rupa ko lekr asamanjas me hai isliye khud ko teyar nahi kar pa rahi unhen abhi rupa ke dil ka achhe se malum nahi hai ki wo to kab ka vaibhav ko bagwan man kar pooja kar rahi hai aur uske liye bhagwan ko koi bhi puje koi fark nahi padta
 

R@ndom_guy

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एकाएक ही मन में उथल पुथल सी मच गई थी। भाभी के लिए पहले भी फ़िक्र थी लेकिन अब और भी ज़्यादा होने लगी थी। एक बेचैनी सी थी जो बढ़ती ही जा रही थी। मैंने फ़ैसला कर लिया कि कल सुबह मैं चंदनपुर जाऊंगा और भाभी को वापस ले आऊंगा।


अब आगे....


अगली सुबह।
नहा धो कर और नए कपड़े पहन कर मैं चाय नाश्ता करने नीचे आया। मुझे नए कपड़ों में देख मां और बाकी लोग मुझे अलग ही तरह से देखने लगे। मुझे अजीब तो लगा लेकिन मैं किसी से बिना कुछ बोले कुर्सी पर बैठ गया। थोड़ी ही देर में कुसुम मेरे लिए नाश्ता ले आई।

"क्या बात है, आज मेरा बेटा राज कुमारों की तरह सजा हुआ है।" मां ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा_____"कहीं बाहर जा रहा है क्या तू?"

"हां मां।" मैंने सामान्य भाव से कहा____"मैं चंदनपुर जा रहा हूं, भाभी को लेने।"

"क..क्या??" मां जैसे उछल ही पड़ीं____"ये क्या कह रहा है तू?"

"सच कह रहा हूं मां।" मैंने कहा____"लेकिन आप इतना हैरान क्यों हो रही हैं? क्या आप नहीं चाहतीं कि भाभी वापस हवेली आएं?"

"ह....हां चाहती हूं।" मां ने खुद को सम्हालते हुए कहा____"लेकिन तू इस तरह अचानक से तैयार हो कर आ गया इस लिए हैरानी हुई मुझे। तूने बताया भी नहीं कि तू रागिनी बहू को लेने जाने वाला है?"

"हां जैसे मैं आपको बता देता तो आप मुझे खुशी से जाने देतीं।" मैंने हौले से मुंह बनाते हुए कहा_____"आपसे पहले भी कई बार कह चुका हूं कि भाभी को वापस लाना चाहता हूं लेकिन हर बार आपने मना कर दिया। ये भी नहीं बताया कि आख़िर क्यों? इस लिए मैंने फ़ैसला कर लिया है कि आज चंदनपुर जाऊंगा ही जाऊंगा और शाम तक भाभी को ले कर वापस आ जाऊंगा।"

"क्या तूने इस बारे में पिता जी से पूछा है?" मां ने मुझे घूरते हुए कहा____"अगर नहीं पूछा है तो पूछ लेना उनसे। अगर वो जाने की इजाज़त दें तभी जाना वरना नहीं।"

"मुझे समझ नहीं आ रहा कि आख़िर आप भाभी को वापस लाने से मना क्यों करती हैं?" मैंने झल्लाते हुए कहा_____"क्या आपको अपनी बहू की ज़रा भी फ़िक्र नहीं है? क्या आप नहीं चाहतीं कि वो हमारे साथ इस हवेली में रहें?"

"फ़िज़ूल की बातें मत कर।" मां ने नाराज़गी से कहा____"शांति से नाश्ता कर और फिर पिता जी से इस बारे में पूछ कर ही जाना।"

मैंने बहस करना उचित नहीं समझा इस लिए ख़ामोशी से नाश्ता किया और फिर हाथ मुंह धो कर सीधा बैठक में पहुंच गया। बैठक में पिता जी, गौरी शंकर और किशोरी लाल बैठे हुए थे।

"अच्छा हुआ तुम यहीं आ गए।" पिता जी ने मुझे देखते ही कहा_____"हम तुम्हें बुलवाने ही वाले थे। बात ये है कि आज तुम्हें शहर जाना है। वहां पर जिनसे हम सामान लाते हैं उनका पिछला हिसाब किताब चुकता करना है। हम नहीं चाहते कि देनदारी ज़्यादा हो जाए जिसके चलते वो लोग सामान देने में आना कानी करने लगें। इस लिए तुम रुपए ले कर जाओ और आज तक का सारा हिसाब किताब चुकता कर देना। हमें गौरी शंकर के साथ एक ज़रूरी काम से कहीं और जाना है, इस लिए ये काम तुम्हें ही करना होगा।"

"मुझे भी कहीं जाना है पिता जी।" मैंने झिझकते हुए कहा____"लेकिन आप कहते हैं तो मैं शहर में सबका हिसाब किताब कर दूंगा उसके बाद वहीं से निकल जाऊंगा।"

"कहां जाना है तुम्हें?" पिता जी के चेहरे पर शिकन उभर आई थी।

"चंदनपुर।" मैंने धड़कते दिल से कहा____"भाभी को लेने जा रहा हूं।"

मेरी बात सुन कर गौरी शंकर ने फ़ौरन ही मेरी तरफ देखा और फिर पलट कर पिता जी की तरफ देखने लगा। पिता जी पहले से ही मेरी तरफ देख रहे थे। मेरी बात सुन कर वो कुछ बोले नहीं, किंतु चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए थे।

"ठीक है।" फिर उन्होंने गहरी सांस ले कर कहा____"अगर तुम चंदनपुर जाना चाहते हो तो ज़रूर चले जाना लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रखना कि अगर समधी साहब बहू को भेजने से मना करें तो तुम उन पर दबाव नहीं डालोगे।"

"जी ठीक है।" मैंने सिर हिला दिया।

पिता जी ने मुंशी किशोरी लाल को इशारा किया तो वो उठ कर पैसा लेने चला गया। कुछ देर बाद जब वो आया तो उसके हाथ में एक किताब थी और पैसा भी। किताब को उसने पिता जी की तरफ बढ़ा दिया। पिता जी ने किताब खोल कर हिसाब किताब देखा और फिर एक दूसरे कागज में लिख कर मुझे कागज़ पकड़ा दिया। इधर एक छोटे से थैले में पैसा रख कर मुंशी जी ने मुझे थैला पकड़ा दिया।

मैं खुशी मन से अंदर आया और मां को बताया कि पिता जी ने जाने की इजाज़त दे दी है। मां मेरी बात सुन कर हैरान सी नज़र आईं किंतु बोली कुछ नहीं। जब मैं जीप की चाभी ले कर जाने लगा तो उन्होंने बस इतना ही कहा कि भीमा को साथ ले जाना। ख़ैर कुछ ही देर में मैं भीमा को साथ ले कर जीप से शहर की तरफ जा निकला।

आज काफी दिनों बाद मुझे कुछ अच्छा सा महसूस हो रहा था। ये सोच कर खुशी हो रही थी कि दो महीने बाद भाभी से मिलूंगा। मुझे यकीन था कि जैसे मैं उन्हें बहुत याद कर रहा था वैसे ही उन्हें भी मेरी याद आती होगी। जैसे मुझे उनकी फ़िक्र थी वैसे ही उन्हें भी मेरी फ़िक्र होगी। एकाएक ही मेरा मन करने लगा कि काश ये जीप किसी पंक्षी की तरह आसमान में उड़ने लगे और एक ही पल में मैं अपनी प्यारी सी भाभी के पास पहुंच जाऊं।

✮✮✮✮

चंदनपुर गांव।
चारो तरफ खेतों में हरियाली छाई हुई थी। यदा कदा सरसो के खेत भी थे जिनमें लगे फूलों की वजह से बड़ा ही मनमोहक नज़ारा दिख रहा था। पेड़ पौधों और ऊंचे ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ गांव बड़ा ही सुन्दर लगता था। मैं इस सुंदर नज़ारे देखते हुए जीप चला रहा था। मन में तरह तरह के ख़याल बुनते हुए कुछ ही समय में मैं भाभी के घर पहुंच गया।

घर के बाहर बड़ी सी चौगान में जीप खड़ी हुई तो जल्दी ही घर के अंदर से कुछ लोग निकल कर बाहर आए। भाभी के चाचा की लड़की कंचन और मोहिनी नज़र आईं मुझे। उनके पीछे उनका बड़ा भाई वीर सिंह और चाची का भाई वीरेंद्र सिंह भी नज़र आया। मुझ पर नज़र पड़ते ही सबके चेहरे खिल से गए। उधर कंचन की जैसे ही मुझसे नज़रें चार हुईं तो वो एकदम से शर्मा गई। पहले तो मुझे उसका यूं शर्मा जाना समझ न आया किंतु जल्दी ही याद आया कि पिछली बार जब मैं आया था तो उसको और उसकी छोटी भाभी को मैंने नंगा देख लिया था। कंचन इसी वजह से शर्मा गई थी। मैं इस बात से मन ही मन मुस्कुरा उठा।

"अरे! वैभव महाराज आप?" वीर सिंह उत्साहित सा हो कर बड़ी तेज़ी से मेरी तरफ बढ़ा। मेरे पैर छू कर वो सीधा खड़ा हुआ फिर बोला____"धन्य भाग्य हमारे जो आपके दर्शन हो गए। यकीन मानिए आज सुबह ही हम लोग आपके बारे में चर्चा कर रहे थे।"

"कैसे हैं महाराज?" वीरेंद्र सिंह ने भी मेरे पांव छुए, फिर बोला____"आपने अचानक यहां आ कर हमें चौंका ही दिया। ख़ैर आइए, अंदर चलते हैं।"

मैं वीरेंद्र के साथ अंदर की तरफ बढ़ चला। उधर वीर सिंह मेरे साथ आए भीमा को भी अंदर ही बुला लिया। कुछ ही पलों में मैं अंदर बैठके में आ गया जहां बड़ी सी चौपार में कई सारे पलंग बिछे हुए थे। वीर सिंह ने झट से पलंग पर गद्दा बिछा दिया और फिर उसके ऊपर चादर डाल कर मुझे बैठाया।

कंचन और मोहिनी पहले ही घर के अंदर भाग गईं थी और सबको बता दिया था कि मैं आया हूं। एकाएक ही जैसे पूरे घर में हलचल सी मच गई थी। कुछ ही समय में घर के बड़े बुजुर्ग भी आ गए। सबने मेरे पांव छुए, वीरेंद्र सिंह फ़ौरन ही पीतल की एक परांत ले आया जिसमें मेरे पैरों को रखवा कर उसने मेरे पांव धोए। ये सब मुझे बड़ा अजीब लगा करता था लेकिन क्या कर सकता था? ये उनका स्वागत करने का तरीका था। आख़िर मेरे बड़े भैया की ससुराल थी ये, उनका छोटा भाई होने के नाते मैं भी उनका दामाद ही था। बहरहाल, पांव वगैरह धोने के बाद घर की बाकी औरतों ने मेरे पांव छुए। उसके बाद जल्दी ही मेरे लिए जल पान की व्यवस्था हुई।

भैया के ससुर और चाचा ससुर दोनों दूसरे पलंग पर बैठे थे और मुझसे हवेली में सभी का हाल चाल पूछ रहे थे। इसी बीच जल पान भी आ गया। भीमा चौपार की दूसरी तरफ एक चारपाई पर बैठा था। उसके लिए भी जल पान आ गया था जिसे वो ख़ामोशी से खाने पीने में लग गया था। काफी देर तक सब मुझे घेरे बैठे रहे और मुझसे दुनिया जहान की बातें करते रहे। सच कहूं तो मैं इन सारी बातों से अब ऊब सा गया था। मेरा मन तो बस भाभी को देखने का कर रहा था। दो महीने से मैंने उनकी सूरत नहीं देखी थी।

बातों का दौर चला तो दोपहर के खाने का समय हो गया। खाना खाने की इच्छा तो नहीं थी लेकिन सबके ज़ोर देने पर मुझे सबके साथ बैठना ही पड़ा। घर के अंदर एक बड़े से हाल में हम सब बैठे खाने लगे। घर की औरतें खाना परोसने लगीं। मैं बार बार नज़र घुमा कर भाभी को देखने की कोशिश करता लेकिन वो मुझे कहीं नज़र ना आतीं। ऐसे ही खाना पीना ख़त्म हुआ और मैं फिर से बाहर बैठके में आ गया। कुछ देर आराम करने के बाद मर्द लोग खेतों की तरफ जाने लगे। भैया के ससुर किसी काम से गांव तरफ निकल गए।

"महाराज, आप यहीं आराम करें।" वीरेंद्र ने कहा____"हम लोग खेतों की तरफ जा रहे हैं। अगर आप बेहतर समझें तो हमारे साथ खेतों की तरफ चलें। आपका समय भी कट जाएगा। हम लोग तो अब शाम को ही वापस आएंगे।"

"लेकिन शाम होने से पहले ही मुझे वापस जाना है वीरेंद्र भैया।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"आप भी जानते हैं कि काम के चलते कहां किसी के पास कहीं आने जाने का समय होता है। वैसे भी गांव में अस्पताल और विद्यालय का निर्माण कार्य चालू है जो मेरी ही देख रेख में हो रहा है। इस लिए मुझे वापस जाना होगा। मैं तो बस भाभी को लेने आया था यहां। आप कृपया सबको बता दें कि मैं भाभी को लेने आया हूं।"

मेरी बात सुनते ही वीरेंद्र सिंह के चेहरे के भाव बड़ी तेज़ी से बदले। थोड़ी दुविधा और चिंता में नज़र आया वो मुझे। कुछ देर तक जाने क्या सोचता रहा फिर बोला____"ये आप क्या कह रहे हैं महाराज? आप रागिनी को लेने आए हैं? क्या दादा ठाकुर ने इसके लिए आपको भेजा है?"

"उनकी इजाज़त से ही आया हूं मैं।" मुझे उसकी बात थोड़ी अजीब लगी____"लेकिन आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?"

"देखिए इस बारे में मैं आपसे ज़्यादा कुछ नहीं कह सकता।" वीरेंद्र सिंह ने कहा____"कुछ देर में पिता जी आ जाएंगे तो आप उनसे ही बात कीजिएगा। ख़ैर मुझे जाने की इजाज़त दीजिए।"

वीरेंद्र सिंह इतना कह कर चला गया और इधर मैं मन में अजीब से ख़यालात लिए बैठा रह गया। मेरे लिए ये थोड़ी हैरानी की बात थी कि वीरेंद्र ऐसा क्यों बोल गया था? इसके पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ था कि मैं भाभी को लेने आऊं और ये लोग ऐसा बर्ताव करते हुए इस तरह की बातें करें। मुझे समझ न आया कि आख़िर ये माजरा क्या है? ख़ैर क्या कर सकता था? वीरेंद्र के अनुसार अब मुझे भाभी के पिता जी से ही इस बारे में बात करनी थी इस लिए उनके आने की प्रतिक्षा करने लगा।

अभी मैं प्रतीक्षा ही कर रहा था कि तभी अंदर से कुछ लोगों के आने का आभास हुआ मुझे तो मैं संभल कर बैठ गया। कुछ ही पलों में अंदर से वीरेंद्र सिंह की पत्नी वंदना और वीर सिंह की पत्नी गौरी मेरे सामने आ गईं। उनके पीछे मोहिनी और भाभी की छोटी बहन कामिनी भी आ गई।

"लगता है हमारे वैभव महाराज को सब अकेला छोड़ कर चले गए हैं।" वंदना ने मुस्कुराते हुए कहा____"इसी लिए यहां अकेले बैठे मक्खियां मार रहे हैं।"

"क्या करें भाभी मक्खियां ही मारेंगे अब।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"यहां मक्खियां भी तो बहुत ज़्यादा हैं। ख़ैर आप अपनी सुनाएं और हां आपका बेटा कैसा है? हमें भी तो दिखाइए उस नन्हें राज कुमार को।"

मेरी बात सुन कर सब मुस्कुरा उठीं। वंदना भाभी ने मोहिनी को अंदर भेजा बेटे को लाने के लिए। सहसा मेरी नज़र कामिनी पर पड़ी। वो अपलक मुझे ही देखे जा रही थी। जैसे ही मेरी नज़रें उससे टकराईं तो उसने झट से अपनी नज़र हटा ली। मुझे उसका ये बर्ताव अजीब लगा। आम तौर पर वो हमेशा मुझसे कोषों दूर रहती थी। मुझसे कभी ढंग से बात नहीं करती थी। मुझे भी पता था कि वो थोड़ी सनकी है और गुस्से वाली भी इस लिए मैं भी उससे ज़्यादा उलझता नहीं था। किंतु आज वो खुद मेरे सामने आई थी और जिस तरह से अपलक मुझे देखे जा रही थी वो हैरानी वाली बात थी।

बहरहाल, थोड़ी ही देर में मोहिनी नन्हें राज कुमार को ले के आई और उसे मेरी तरफ बढ़ा दिया। मैंने उस नाज़ुक से बच्चे को अपनी गोद में ले लिया और उसे देखने लगा। बड़ा ही प्यारा और मासूम नज़र आ रहा था वो। मैंने महसूस किया कि वो रंगत में अपनी मां पर गया था। एकदम गोरा चिट्ठा। फूले फूले गाल, बड़ी बड़ी आंखें, छोटी सी नाक और गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ। मैंने झुक कर उसके माथे पर और उसके गालों को चूम लिया। मुझे बच्चों को खिलाने का अथवा दुलार करने का कोई अनुभव नहीं था इस लिए मुझसे जैसे बन रहा था मैं उसे पुचकारते हुए दुलार कर रहा था। सहसा मुझे कुछ याद आया तो मैंने अपने गले से सोने की चैन उतार कर उसे पहना दिया।

"ये छोटा सा उपहार तुम्हारे छोटे फूफा जी की तरफ से।" फिर मैंने उसके गालों को एक उंगली से सहलाते हुए कहा____"हम चाहते हैं कि तुम बड़े हो कर अपने अच्छे कर्मों से अपने माता पिता का और अपने खानदान का नाम रोशन करो। ऊपर वाला तुम्हें हमेशा स्वस्थ रखे और एक ऊंची शख्सियत बनाए।"

कहने के साथ ही मैंने उसे फिर से चूमा और फिर वापस मोहिनी को पकड़ा दिया। उधर गौरी और वंदना भाभी ये सब देख मुस्कुरा रही थीं।

"वैसे क्या नाम रखा है आपने अपने इस बेटे का?" मैंने पूछा तो वंदना भाभी ने कहा____"शैलेंद्र....शैलेंद्र सिंह।"

"वाह! बहुत अच्छा नाम है।" मैंने कहा____"मुझे बहुत खुशी हुई इसे देख कर।"

"वैसे आप बहुत नसीब वाले हैं महाराज।" गौरी भाभी ने कहा____"और वो इस लिए क्योंकि इसने आपको नहलाया नहीं वरना ये जिसकी भी गोद में जाता है उसे नहलाता ज़रूर है।"

"हा हा हा।" मैं ठहाका लगा कर हंसा____"अच्छा ऐसा है क्या?"

"हां जी।" गौरी भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"ये शैतान किसी को भी नहीं छोड़ता। जाने कैसे आपको बचा दिया इसने?"

"अरे! भई मैंने इसके लिए रिश्वत में उपहार जो दिया है इसे।" मैंने कहा____"उपहार से खुश हो कर ही इसने मुझे नहीं नहलाया।"

"हां शायद यही बात हो सकती है।" दोनों भाभियां मेरी बात से हंस पड़ीं।

"अच्छा हुआ आप आ गए महाराज।" वंदना भाभी ने खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"हमें भी आपके दर्शन हो गए।"

"आपके आने से एक और बात अच्छी हुई है महाराज।" गौरी भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"इतने दिनों में हमने पहली बार अपनी ननद रानी के चेहरे पर एक खुशी की झलक देखी है। वरना हम तो चाह कर भी उनके चेहरे पर खुशी नहीं ला पाए थे।"

"क्या आप मेरी भाभी के बारे में बात कर रही हैं?" मैं उत्साहित सा पूछ बैठा।

"और नहीं तो क्या।" गौरी भाभी ने पहले की ही तरह मुस्कराते हुए कहा____"और भला हम किसके बारे में बात करेंगे आपसे? हम आपकी भाभी के बारे में ही आपको बता रहे हैं।"

"कैसी हैं वो?" मैं एकदम से व्याकुल सा हो उठा_____"और....और ये आप क्या कह रही हैं कि आप लोग उन्हें खुश नहीं रख पाए? मतलब आपने भाभी को दुखी रखा यहां?"

"हाय राम! आप ये कैसे कह सकते हैं महाराज?" गौरी भाभी ने हैरानी ज़ाहिर की_____"हम भला अपनी ननद को दुखी रखने का सोच भी कैसे सकते हैं?"

"तो फिर वो खुश क्यों नहीं थीं यहां?" मैंने सहसा फिक्रमंद होते हुए पूछा_____"अपनों के बीच रह कर भी वो खुश नहीं थीं, ऐसा कैसे हो सकता है? वैसे कहां हैं वो? मुझे अपनी भाभी से मिलना है। उनका हाल चाल पूछना है। कृपया आप या तो मुझे उनके पास ले चलें या फिर उन्हें यहां ले आएं।"

मेरी बात सुन कर गौरी और वंदना भाभी ने एक दूसरे की तरफ देखा। आंखों ही आंखों में जाने क्या बात हुई उनकी। उधर मोहिनी और कामिनी चुपचाप खड़ी मुझे ही देखे जा रहीं थी। ख़ास कर कामिनी, पता नहीं आज उसे क्या हो गया था?

"क्या हुआ?" उन दोनों को कुछ बोलता न देख मैंने पूछा____"आप दोनों कुछ बोल क्यों नहीं रहीं हैं? मुझे अपनी भाभी से अभी मिलना है। एक बात और, मैं यहां उन्हें लेने आया हूं इस लिए उनके जाने की तैयारी भी कीजिए आप लोग। अगर मेरी भाभी यहां खुश नहीं हैं तो मैं उन्हें एक पल भी यहां नहीं रहने दूंगा।"

"अरे! आप तो खामखां परेशान हो गए वैभव महाराज।" वंदना भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"हम दोनों तो बस आपसे मज़ाक में ऐसा कह रहे थे। सच तो ये है कि आपकी भाभी यहां खुश हैं। उन्हें किसी बात का कोई दुख नहीं है।"

"भाभी के बारे में इस तरह का मज़ाक कैसे कर सकती हैं आप?" मैं एकदम से आवेश में आ गया____"क्या आपको ज़रा भी एहसास नहीं है कि उनकी क्या हालत है और वो कैसी दशा में हैं?"

मेरी आवेश में कही गई बात सुनते ही दोनों भाभियों का हंसना मुस्कुराना फ़ौरन ही ग़ायब हो गया। उन्हें भी पता था कि मैं किस तरह का इंसान था। दोनों ने फ़ौरन ही मुझसे माफ़ी मांगी और फिर कहा कि वो मेरी भाभी को भेजती हैं मेरे पास। वैसे तो बात बहुत छोटी थी किंतु मेरी नज़र में शायद वो बड़ी हो गई थी और इसी वजह से मुझे गुस्सा आ गया था। ख़ैर दोनों भाभियां अंदर चली गईं और उनके पीछे मोहिनी तथा कामिनी भी चली गई।

चौपार के दूसरी तरफ चारपाई पर भीमा बैठा हुआ था जिसने हमारी बातें भी सुनी थी। मैंने उसे बाहर जाने को कहा तो वो उठ कर चला गया। वैसे भी उसके सामने भाभी यहां मुझसे नहीं मिल सकतीं थीं। ख़ैर थोड़ी ही देर में वंदना भाभी उन्हें ले कर आ गईं। भाभी को देखते ही मैं चौंक पड़ा।

भाभी को सलवार कुर्ते में देख मैं अवाक् सा रह गया था। दुपट्टे को उन्होंने अपने सिर पर ले रखा था और बाकी का हिस्सा उनके सीने के उभारों पर था। उधर भाभी को मेरे पास छोड़ कर वंदना भाभी वापस अंदर चली गईं। अब बैठके में सिर्फ मैं और भाभी ही थे।

मुझे उम्मीद नहीं थी कि मैं भाभी को यहां सलवार कुर्ते में देखूंगा। मेरे मन में तो यही था कि वो अपने उसी लिबास में होंगी, यानि विधवा के सफेद लिबास में। ख़ैर ये कोई बड़ी बात नहीं थी क्योंकि अक्सर शादी शुदा बेटियां अपने मायके में सलवार कुर्ता भी पहना करती हैं।

मैंने देखा भाभी सिर झुकाए खड़ीं थी। चेहरे पर वैसा तेज़ नहीं दिख रहा था जैसा इसके पहले देखा करता था मैं। लेकिन मैंने महसूस किया कि उनके चेहरे पर थोड़े शर्म के भाव ज़रूर थे। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि वो अपने देवर के सामने अपने मायके में सलवार कुर्ते में थीं।

"प्रणाम भाभी।" एकाएक ही मुझे होश आया तो मैंने उठ कर उनके पैर छुए।

शायद वो किसी सोच में गुम थीं इस लिए जैसे ही उनके पांव छू कर मैंने प्रणाम भाभी कहा तो वो एकदम से चौंक पड़ी और साथ ही दो क़दम पीछे हट गईं। उनके इस बर्ताव से मुझे तनिक हैरानी हुई किंतु मैंने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया।

"क्या हुआ भाभी?" उन्हें चुप देख मैंने पूछा____"आपने मेरे प्रणाम का जवाब नहीं दिया? क्या मेरे यहां आने से आपको ख़ुशी नहीं हुई?"

"न...नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है।" उन्होंने झट से मेरी तरफ देखते हुए धीमें स्वर में कहा____"मुझे अच्छा लगा कि तुम यहां आए। हवेली में सब कैसे हैं? मां जी और पिता जी कैसे हैं?"

"सब ठीक हैं भाभी।" मैंने गहरी सांस ली____"लेकिन वहां आप नहीं हैं तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता। आपको पता है, मैं पिछले एक महीने से आपको वापस लाने के लिए मां से आग्रह कर रहा था लेकिन हर बार वो मुझे यहां आने से मना कर देती थीं। मेरे पूछने पर यही कहती थीं कि आपको कुछ समय तक अपने माता पिता के पास रहने देना ही बेहतर है। मजबूरन मुझे भी उनकी बात माननी पड़ती थी लेकिन अब और नहीं मान सका मैं। दो महीने हो गए भाभी, किसी और को आपकी कमी महसूस होती हो या नहीं लेकिन मुझे होती है। मुझे अपनी प्यारी सी भाभी की हर पल कमी महसूस होती है। मुझे इस बात की कमी महसूस होती है कि मेरे काम के बारे में सच्चे दिल से समीक्षा करने वाली वहां आप नहीं हैं। मुझे ये बताने वाला कोई नहीं है कि मैं आपकी उम्मीदों पर खरा उतर पा रहा हूं या नहीं। बस, अब और मुझसे बर्दास्त नहीं हुआ इस लिए कल रात ही मैंने फ़ैसला कर लिया था कि सुबह यहां आऊंगा और आपको ले कर वापस हवेली लौट आऊंगा। आप चलने की तैयारी कर लीजिए भाभी, हम शाम होने से पहले ही यहां से चलेंगे।"

"ज़ल्दबाज़ी में कोई फ़ैसला मत लो।" भाभी ने पहले की भांति ही धीमें स्वर में कहा____"और वैसे भी मेरी अभी इच्छा नहीं है वापस हवेली जाने की। मैं अभी कुछ समय और यहां अपने माता पिता और भैया भाभी के पास रहना चाहती हूं। मुझे खेद है कि तुम्हें अकेले ही वापस जाना होगा।"

"य...ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" मैंने चकित भाव से उन्हें देखा____"सच सच बताइए क्या आप सच में मेरे साथ नहीं जाना चाहती हैं? क्या सच में आप अपने देवर को इस तरह वापस अकेले भेज देंगी?"

"तुम्हारी खुशी के लिए मैं ज़रूर तुम्हारे साथ चल दूंगी वैभव।" भाभी ने गंभीरता से कहा____"किंतु क्या तुम सच में नहीं चाहते कि तुम्हारी ये अभागन भाभी कुछ समय और अपने माता पिता के पास रह कर अपने सारे दुख दर्द भूली रहे?"

"ऐसा मत कहिए भाभी।" मैंने संजीदा हो कर कहा____"अगर वाकई में यहां रहने से आप अपने दुख दर्द भूल जाती हैं तो मैं बिल्कुल भी आपको चलने के लिए मजबूर नहीं करूंगा। मैं तो यही चाहता हूं कि मेरी भाभी अपने सारे दुख दर्द भूल जाएं और हमेशा खुश रहें। अगर मेरे बस में होता तो आपकी तरफ किसी दुख दर्द को आने भी नहीं देता लेकिन क्या करूं....ये मेरे बस में ही नहीं है।"

"खुद को किसी बात के लिए हलकान मत करो।" भाभी ने कहा____"मैं अच्छी तरह जानती हूं कि तुमसे जो हो सकता है वो तुम करते हो। ख़ैर छोड़ो ये सब, तुम बताओ अब कैसा महसूस करते हो? मेरा मतलब है कि क्या अब तुम ठीक हो? सरोज मां कैसी हैं और....और रूपा कैसी है? उसे ज़्यादा परेशान तो नहीं करते हो ना तुम?"

"उससे तो एक महीने से मुलाक़ात ही नहीं हुई भाभी।" मैंने कहा____"असल में समय ही नहीं मिला। एक तो खेतों के काम, ऊपर से अब गांव में अस्पताल और विद्यालय भी बन रहा है तो उसी में व्यस्त रहता हूं। बहुत दिनों से आपकी बहुत याद आ रही थी। मां की वजह से यहां आ नहीं पाता था। मैं देखना चाहता था कि आप कैसी हैं और क्यों आप वापस नहीं आ रही हैं? क्या मुझसे कोई ख़ता हो गई है जिसके चलते....।"

"ऐसी कोई बात नहीं है।" भाभी ने मेरी तरफ अपलक देखते हुए कहा____"तुमसे कोई ख़ता नहीं हुई है और अगर हो भी जाएगी तो मैं उसके लिए तुम्हें खुशी से माफ़ कर दूंगी।"

"क्या सच में आप मेरे साथ नहीं चलेंगी?" मैंने जैसे आख़िरी कोशिश की____"यकीन मानिए आपके बिना हवेली में बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता।"

"जब अच्छा न लगे तो रूपा के पास चले जाया करो।" भाभी ने कहा____"तुमसे ज़्यादा दूर भी नहीं है वो।"

"सबकी अपनी अपनी अहमियत होती है भाभी।" मैंने कहा____"जहां आप हैं वहां वो नहीं हो सकती।"

"क्यों भला?" भाभी ने नज़र उठा कर देखा।

"आप अच्छी तरह जानती हैं।" मैंने उनकी आंखों में देखा।

इस बार भाभी कुछ न बोलीं। बस मेरी तरफ अपलक देखती रहीं। तभी बाहर से किसी के आने का आभास हुआ तो वो जल्दी से पलटीं और अंदर चली गईं। मैं असहाय सा बैठा रह गया। कुछ ही पलों में बाहर से एक औरत अंदर आई। मुझे देखते ही उसने झट से अपना चेहरा घूंघट कर के छुपा लिया और अंदर की तरफ चली गई।




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अध्याय - 140
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इस बार भाभी कुछ न बोलीं। बस मेरी तरफ अपलक देखती रहीं। तभी बाहर से किसी के आने का आभास हुआ तो वो जल्दी से पलटीं और अंदर चली गईं। मैं असहाय सा बैठा रह गया। कुछ ही पलों में बाहर से एक औरत अंदर आई। मुझे देखते ही उसने झट से अपना चेहरा घूंघट कर के छुपा लिया और अंदर की तरफ चली गई।


अब आगे....


कुछ देर मैं यूं ही बैठा रहा और भाभी के बारे में सोचता रहा। उसके बाद मैं उठा और बाहर आया। भीमा बाहर सड़क के पास खड़ा था। मैंने उसे आवाज़ दे कर अंदर बुला लिया।

शाम होने में अभी क़रीब दो ढाई घंटे का समय था इस लिए मैं आराम से पलंग पर लेट गया। भीमा भी दूसरी तरफ चारपाई पर लेट गया था। इधर मैं आंखें बंद किए भाभी से हुई बातों के बारे में सोचने लगा। जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कुछ बदला बदला सा है। भाभी का बर्ताव भी मुझे कुछ बदला हुआ और थोड़ा अजीब सा लगा था। इसके पहले वो अक्सर मुझे छेड़तीं थी, मेरी टांग खींचतीं थी और तो और मेरी हेकड़ी निकाल कर आसमान से सीधा ज़मीन पर ले आतीं थी किंतु आज ऐसा कुछ भी नज़र नहीं आया था। उनके चेहरे पर कोई खुशी, कोई उत्साह, कोई चंचलता नहीं थी। अगर कुछ थी तो सिर्फ गंभीरता। उनकी आवाज़ भी धींमी थी।

मुझे लगा शायद वो अपने मायके में होने की वजह से अपने देवर से खुल कर बात नहीं कर पा रहीं थी। हां, ज़रूर यही बात होगी वरना भाभी मेरे सामने इतनी असामान्य नहीं हो सकती थीं। बहरहाल मैंने अपने ज़हन से सारी बातों को झटक दिया और आराम से सोने की कोशिश करने लगा मगर काफी देर गुज़र जाने पर भी मुझे नींद न आई। मन में एक खालीपन और एक बेचैनी सी महसूस हो रही थी।

एकाएक ही मुझे एहसास हुआ कि शाम होने से पहले मुझे वापस अपने गांव जाना है। जैसे आया था वैसे ही वापस जाना होगा मुझे। बड़ी खुशी के साथ और बड़ी उम्मीद के साथ मैं अपनी प्यारी सी भाभी को लेने आया था लेकिन भाभी खुद ही जाने को राज़ी नहीं थीं और मैं उन्हें चलने के लिए मजबूर भी नहीं कर सकता था। कुछ ही पलों में मेरी सारी खुशी और सारा उत्साह बर्फ़ की मानिंद ठंडा पड़ गया था।

मैं आंखें बंद किए ये सब सोच ही रहा था कि तभी मेरे कानों में पायल छनकने की आवाज़ें पड़ीं। कोई अंदर से आ रहा था जिसके पैरों की पायल छनक रही थी। मैंने करवट ली हुई थी इस लिए मैं देख नहीं सकता था कि कौन आ रहा है। पायल की छनकती आवाज़ एकाएक बंद हो गईं। मैंने महसूस किया कि मेरे क़रीब ही पायलों का छनकना बंद हुआ है।

"लगता है जीजा जी सो गए हैं।" तभी किसी की मधुर किंतु बहुत ही धींमी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे बोलने वाले ने किसी दूसरे से ऐसा कहा था_____"अब क्या करें? क्या हमें जीजा जी को जगाना चाहिए? वैसे दीदी ने कहा है कि हम इन्हें परेशान न करें।"

"मुझे अच्छी तरह पता है कि इन महापुरुष को इतना जल्दी यहां नींद नहीं आने वाली।" ये दूसरी आवाज़ थी। आवाज़ धीमी तो थी लेकिन लहजा थोड़ा कर्कश सा था।

मैं फ़ौरन ही पहचान गया कि ये आवाज़ भाभी की छोटी बहन कामिनी की है। मुझे हैरानी हुई कि कामिनी इस वक्त यहां क्यों आई होगी, वो भी मेरे क़रीब? उसका और मेरा तो छत्तीस का आंकड़ा था। कभी सीधे मुंह बात नहीं करती थी वो। हालाकि इसमें उसका नहीं मेरा ही दोष था क्योंकि शुरुआत से ही मेरी हवस भरी नज़रों का उसी ने सामना किया था। उसे मेरी आदतों से और मेरी हरकतों से सख़्त नफ़रत थी।

"धीरे बोलिए दीदी।" पहले वाली ने धीमें स्वर में उससे कहा____"जीजा जी सुन लेंगे तो नाराज़ हो जाएंगे।"

"मुझे फ़र्क नहीं पड़ता।" कामिनी ने जैसे लापरवाही से कहा_____"वैसे भी मैं इनकी नाराज़गी से थोड़े ना डरती हूं।"

"हां हां समझ गई मैं।" पहले वाली आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। मैं उसकी आवाज़ से उसको पहचानने की कोशिश में लगा हुआ था। अरे! ये तो कंचन थी। भैया के चाचा ससुर की बेटी। बहरहाल उसने आगे कहा____"पर अब क्या करना है? वापस चलें?"

"तू जा।" कामिनी ने उससे कहा____"मैं देखती हूं इन्हें और हां अंदर किसी को कुछ मत बताना। ख़ास कर दीदी को तो बिल्कुल भी नहीं। पहले तो वो अपने देवर का पक्ष लेतीं ही थी किंतु अब तो कहना ही क्या। ख़ैर तू जा अब।"

कामिनी की इन बातों के बाद कंचन चली गई। उसके पायलों की छम छम से मुझे पता चल गया था। इधर अब मैं ये सोचने लगा कि कामिनी क्या करने वाली है? मैं पहले से ही उसके इस बर्ताव से हैरान था किंतु अब तो धड़कनें ही बढ़ गईं थी मेरी। बहरहाल, मैं आंखें बंद किए चुपचाप लेटा रहा और उसकी तरफ से किसी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करने लगा। इसके लिए मुझे ज़्यादा देर प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। मैंने महसूस किया कि वो पीछे से घूम कर मेरे सामने की तरफ आई और मेरे सामने वाले पलंग पर बैठ गई। मेरी धड़कनें ये सोच कर धाड़ धाड़ कर के बजने लगीं कि जाने ये आफ़त अब क्या करने वाली है?

"ज़्यादा नाटक करने की ज़रूरत नहीं है।" इस बार उसकी आवाज़ स्पष्ट रूप से मेरे कानों में पड़ी_____"मुझे अच्छी तरह पता है कि आप सो नहीं रहे हैं। अब चुपचाप अपना नाटक बंद कर के आंखें खोल लीजिए, वरना इंसान को गहरी नींद से जगाना भी मुझे अच्छी तरह आता है।"

ये तो सरासर धमकी थी, वो भी मेरे जैसे सूरमा को। मैं उसकी इस धमकी पर मन ही मन मुस्कुरा उठा। हालाकि उससे डरने का तो सवाल ही नहीं था लेकिन मैं नहीं चाहता था कि कोई तमाशा हो जाए। दूसरी वजह ये भी थी कि मैं उसके बर्ताव से हैरान था और जानना चाहता था कि आख़िर वो किस मकसद से मेरे पास आई थी?

"लीजिए सरकार, हमने अपनी आंखें खोल दी।" मैंने आंखें खोल कर उसकी तरफ देखते हुए उठ कर बैठ गया, फिर बोला_____"आप इतनी मोहब्बत से हमें जाग जाने को कह रहीं हैं तो हमें उठना ही पड़ेगा। कहिए, क्या चाहती हैं आप हमसे? प्यार मोहब्बत या फिर कुछ और?"

"हद है, आप कभी नहीं सुधरेंगे।" कामिनी ने मुझे घूरते हुए कहा____"जब देखो वही छिछोरी हरकतें।"

"आप भी कीजिए।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"यकीन मानिए, बहुत मज़ा आएगा।"

कामिनी ने मुझे खा जाने वाली नज़रों से देखा। पलक झपकते ही उसका चेहरा तमतमाया गया सा नज़र आया। ऐसी ही थी वो। ऐसा नहीं था कि उसे मज़ाक पसंद नहीं था लेकिन मेरा उससे मज़ाक करना बिल्कुल पसंद नहीं था। उसके ज़हन में ये बात बैठ चुकी थी कि मैं हर लड़की को सिर्फ भोगने के लिए ही अपने मोह जाल में फंसाता हूं।

"उफ्फ! इतनी मोहब्बत से हमें मत देखिए सरकार।" मैंने उसे और गरमाया_____"वरना एक ही पल में ढेर हो जाएंगे हम।"

"क्यों करते हैं ऐसी गन्दी हरकतें?" उसने जैसे अपने गुस्से को बड़ी मुश्किल से दबाते हुए मुझसे कहा____"क्या आप कभी किसी से सभ्य इंसानों जैसी बातें नहीं कर सकते?"

"अब ये तो सबका अपना अपना सोचने का नज़रिया है सरकार।" मैंने कहा____"आपको मेरी बातें सभ्य नहीं लगती जबकि यही बातें दूसरों को सभ्य लगती हैं। प्यार मोहब्बत की चाशनी में डूबी हुई लगती हैं। आपको नहीं लगती हैं तो इसका मतलब ये है कि या तो आपका ज़ायका ख़राब है या फिर आपकी समझदानी में ही गड़बड़ी है।"

"मतलब आप स्पष्ट रूप से ये कह रहे हैं कि मेरे पास दिमाग़ नहीं है?" कामिनी ने इस बार गुस्से से मेरी तरफ देखा____"और मैं किसी की बातों का मतलब ही नहीं समझती हूं?"

"क्या आप मुझसे झगड़ा करने ही आईं थी?" मैंने विषय को बदलने की गरज से इस बार थोड़ा गंभीरता से कहा____"अगर झगड़ा ही करने आईं थी तो ठीक है मैं तैयार हूं लेकिन यदि किसी और वजह से आईं थी तो सीधे मुद्दे की बातों पर आइए। वैसे मैं हैरान हूं कि जो लड़की मुझे अपना कट्टर दुश्मन समझती है वो मुझसे गुफ़्तगू करने कैसे आई है?"

कामिनी ने इस बार फ़ौरन कुछ ना कहा। उसने सबसे पहले अपने गुस्से को काबू किया और आंखें बंद कर के गहरी गहरी सांसें ली। नीले रंग का कुर्ता सलवार पहन रखा था उसने। दुपट्टे से उसने अपने सीने के उभारों को पूरी तरह से ढंक रखा था। ऐसा हमेशा होता था, मेरे सामने आते ही वो कुछ ज़्यादा ही चौकन्नी हो जाती थी।

"अब कुछ बोलिए भी।" मैंने कहा____"मैं बड़ी शिद्दत से जानना चाहता हूं कामिनी देवी आज मेरे सामने कैसे बैठी हैं और मुझसे इतनी मोहब्बत से बातें क्यों कर रही हैं?"

"आप फिर से शुरू हो गए?" उसने मुझे घूरा।

"अगर आप बड़ी मोहब्बत से शुरू हो जातीं तो हम रुके रहते।" मैंने हौले से मुस्कुराते हुए कहा____"ख़ैर बताइए आज सूरज किस दिशा से उगा है चंदनपुर में?"

"क्या आप सच में दीदी को लेने आए हैं?" उसने जैसे मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया और पूछा।

"क्या आपको कोई शक है इसमें?" मैंने कहा____"वैसे आप भी हमारे साथ चलतीं तो क़सम से आनन्द ही आ जाता।"

"किसी कीमत पर नहीं।" कामिनी ने दृढ़ता से कहा____"आपके साथ तो किसी जन्म में कहीं नहीं जाऊंगी मैं।"

"वाह! इतनी शिद्दत से मोहब्बत आप ही कर सकती हैं मुझसे।" मैं मुस्कुराया।

"ये मोहब्बत नहीं है।" उसने घूरते हुए कहा____"बल्कि...।"

"नफ़रत है?" उसकी बता काट कर मैंने उसकी बात पूरी की_____"जानता हूं मैं लेकिन शायद आप ये नहीं जानती कि नफ़रत और मोहब्बत का जन्म एक ही जगह से होता है....दिल से। अब दिल से नफ़रत कीजिए या मोहब्बत, ये तो पक्की बात है ना कि किसी न किसी भावना से आपने मुझे अपना बना ही रखा है।"

"अपने मन को बहलाने के लिए ख़याल अच्छा है।" कामिनी ने कहा____"ख़ैर मैं आपको ये बताने के लिए आई थी कि दीदी को हम लोग अब नहीं भेजेंगे। वो यहीं रहेंगी, हमारे साथ।"

"क...क्या मतलब?" मैं एकदम से चौंक पड़ा____"ये क्या कह रही हैं आप?"

"वही जो आपने सुना है।" कामिनी ने स्पष्ट रूप से कहा____"भैया ने आपसे स्पष्ट रूप में इसी लिए नहीं कहा क्योंकि वो शायद संकोच कर गए थे लेकिन सच यही है कि दीदी अब यहीं रहेंगी। आपको अकेले ही वापस जाना होगा।"

"अरे! भला ये क्या बात हुई?" मैं बुरी तरह हैरान परेशान सा बोल पड़ा____"माना कि भाभी का ये मायका है और वो यहां जब तक चाहे रह सकती हैं लेकिन इसका क्या मतलब हुआ कि वो अब यहां से नहीं जाएंगी?"

"बस नहीं जाएंगी।" कामिनी ने अजीब भाव से कहा____"वैसे भी जिनसे उनका संबंध था वो तो अब रहे नहीं। फिर भला हम कैसे उन्हें इस दुख के साथ जीवन भर उस हवेली में विधवा बहू बन कर रहने दें? आपको शायद पता नहीं है कि पिता जी ने दीदी का फिर से ब्याह कर देने का फ़ैसला किया है। आप तो जानते ही है कि दीदी की अभी उमर ही क्या है जो वो आपके भाई की विधवा बन कर सारी ज़िंदगी दुख और कष्ट में गुज़ारें।"

कामिनी की बातें किसी पिघले हुए शीशे की तरह मेरे कानों में अंदर तक समाती चली गईं थी। मेरे दिलो दिमाग़ में एकाएक ही हलचल सी मच गई थी। मन में तरह तरह के ख़यालों की आंधी सी आ गई थी।

"अगर ये मज़ाक है।" फिर मैंने सख़्त भाव से कहा____"तो समझ लीजिए कि मुझे इस तरह का घटिया मज़ाक बिल्कुल भी पसंद नहीं है। आप भाभी के बारे में ऐसी बकवास कैसे कर सकती हैं?"

"ये बकवास नहीं है जीजा जी।" कामिनी ने कहा____"हकीक़त है हकीक़त। मैं मानती हूं कि आप अपनी भाभी के बारे में इस तरह की बातें नहीं सुन सकते हैं लेकिन खुद सोचिए कि क्या आप यही चाहते हैं कि मेरी दीदी अपना पहाड़ जैसा जीवन विधवा बन कर ही गुज़ारें? क्या आप यही चाहते हैं कि उनके जीवन में कभी खुशियों के कोई रंग ही न आएं? क्या आप यही चाहते हैं कि वो जीवन भर अकेले दुख दर्द में डूबी रहें?"

"नहीं नहीं।" मैं झट से बोल पड़ा____"अपनी भाभी के बारे में मैं ऐसा सपने में भी नहीं सोच सकता। मैं तो....मैं तो यही दुआ करता हूं कि उनकी ज़िंदगी में पहले जैसी ही खुशियां आ जाएं जिससे मेरी भाभी का चेहरा फिर से पूर्णिमा के चांद की तरह चमकने लगे। मैं तो चाहता हूं कि मेरी भाभी के होठों पर हमेशा खुशियों से भरी मुस्कान सजी रहे। उनके जीवन में दुख का एक तिनका भी कभी न आए।"

"अगर आप सच में ऐसा चाहते हैं।" कामिनी ने कहा____"तो फिर आपको इस बात से कोई एतराज़ अथवा कष्ट नहीं होना चाहिए कि उनका फिर से कहीं ब्याह हो जाए। आप भी समझने की कोशिश कीजिए कि उनके जीवन में इस तरह की खुशियां तभी आ सकती हैं जब हमेशा के लिए उनके बदन से विधवा का लिबास उतार दिया जाए और उन्हें किसी की सुहागन बना दिया जाए। पिता जी भी ये नहीं सह पा रहे हैं कि उनकी बेटी इतनी सी उमर में विधवा हो कर सारा जीवन दुख और कष्ट में ही व्यतीत करने पर मज़बूर हैं।"

सच कहूं तो मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मैं एकाएक आसमान से ज़मीन पर आ गिरा था। भाभी का फिर से ब्याह करने का कोई सोचेगा इस बारे में तो मैंने अब तक कल्पना ही नहीं की थी। सच ही तो कह रही थी कामिनी कि उनकी ज़िंदगी में खुशियां तभी आ सकती हैं जब उनका फिर से ब्याह कर दिया जाए और उन्हें किसी की सुहागन बना दिया जाए। सच ही तो था, एक विधवा के रूप में भला वो कैसे खुश रह सकती थीं? असल खुशियां तो तभी मिलती हैं जब इंसान का जीवन खुशियों के रंगों से भरा हो। एक विधवा के जीवन में सफेद रंग के अलावा दूसरा कोई रंग भरा ही नहीं जा सकता था?

मेरे मनो मस्तिष्क में धमाके से होने लगे थे। पहली बार मैं इस तरीके से सोचने पर मजबूर हुआ था। पहली बार इतनी गहराई से सोचने का मानों अवसर मिला था। अचानक ही मेरे मन में एक ख़याल बिजली की तरह आ गिरा....भाभी का फिर से ब्याह हो जाएगा, यानि वो किसी की पत्नी बन जाएंगी। उसके बाद उनसे मेरा कोई रिश्ता नहीं रह जाएगा। आज वो मेरी भाभी हैं लेकिन ब्याह के बाद वो किसी और के रिश्ते में बंध जाएंगी। हवेली की बहू और हवेली शान हमेशा के लिए किसी दूसरे के घर की शान बन जाएगी।

एक झटके में जैसे मैं वास्तविकता के धरातल पर आ गया जिसके एहसास ने मुझे अंदर तक हिला डाला। एक झटके में भाभी का प्यार और स्नेह मुझे अपने से दूर होता नज़र आने लगा। उनका वो छेड़ना, वो टांगे खींचना और एक झटके में मेरी हेकड़ी निकाल देना ये सब कभी न भुलाई जा सकने वाली याद सा बनता महसूस हुआ। पलक झपकते ही आंखों के सामने भाभी का सुंदर चेहरा उभर आया...और फिर अगले ही पल एक एक कर के वो हर लम्हें उभरने लगे जिनमें मेरी उनसे मुलाक़ातों की तस्वीरें थीं। जब भैया जीवित थे तब की तस्वीरें। भाभी तब सुहागन थीं, बहुत सुंदर और मासूम नज़र आतीं थी वो। फिर एकदम से तस्वीरें बड़ी तेज़ी से बदलने लगीं और कुछ ही पलों में उस वक्त की तस्वीर उभर आई जब कुछ देर पहले मैंने उन्हें देखा था।

एक झटके में मुझे अपनी कोई बहुत ही अनमोल चीज़ खो देने जैसा एहसास हुआ। मेरे अंदर भाभी को खो देने जैसी पीड़ा उभर आई। मैं एकदम से दुखी और उदास सा हो गया। मेरी आंखें अनायास ही बंद हो गईं और ना चाहते हुए भी आंखों की कोर से आंसू का एक कतरा छलक गया। मैंने हड़बड़ा कर जल्दी से उसे पोंछ लिया। मैं नहीं चाहता था कि कामिनी मेरी आंख से निकले आंसू के उस कतरे को देख ले।

"क्या हुआ जीजा जी?" सहसा कामिनी की आवाज़ से मैं चौंका____"आप एकदम से चुप क्यों हो गए? क्या मैंने कुछ ग़लत कह दिया है आपसे?"

"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।" मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा____"आपने भाभी के बारे में जो भी कहा वो एकदम से उचित ही कहा है। मुझसे अच्छी तो आप हैं कामिनी जो अपनी दीदी की खुशियों के बारे में इतना कुछ सोच बैठी हैं। एक मैं हूं जो अब तक यही समझ रहा था कि मैं अपनी भाभी को खुश रखने के लिए बहुत कुछ कर रहा हूं। हैरत की बात है कि मैं कभी ये सोच ही नहीं पाया कि एक औरत को असल खुशी तभी मिल सकती है जब उसका सम्पूर्ण जीवन खुशियों के अलग अलग रंगों से भर जाए और ऐसा तो तभी हो सकता है ना जब उस औरत का फिर से कहीं ब्याह हो जाए। आज मुझे अपनी ग़लती का एहसास हो गया है और इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद भी देता हूं कि आपने मुझे इस सत्य का एहसास कराया। आपके पिता जी ने अपनी बेटी की खुशी के लिए बहुत ही उम्दा कार्य करने का फ़ैसला लिया है। मुझे अपनी भाभी के लिए इस बात से बहुत खुशी हो रही है। ईश्वर से यही प्रार्थना करता था कि वो उन्हें हमेशा खुश रखें तो अब ऐसा हो जाने से वो वाकई में खुश ही रहेंगी।"

कामिनी मेरी तरफ ही देखे जा रही थी। उसके चेहरे पर थोड़े हैरानी के भाव भी उभर आए थे। शायद उसे मुझसे ऐसी गंभीर बातों की उम्मीद नहीं थी। वो तो यही समझती थी कि मैं एक बहुत ही ज़्यादा बिगड़ा हुआ लड़का हूं जिसे किसी की भावनाओं से अथवा किसी के दुख दर्द से कोई मतलब ही नहीं होता है।

"वैसे इतनी बड़ी बात हो गई और किसी ने मुझे बताया तक नहीं।" फिर मैंने कहा____"मुझे अब समझ आ रहा है कि क्यों हर बार मां मुझे भाभी को लेने आने से मना कर रहीं थी। आते समय पिता जी ने भी यही कहा था कि अगर यहां पर आप लोग भाभी को मेरे साथ भेजने से मना करें तो मैं इसके लिए किसी पर दबाव नहीं डालूंगा। इसका मतलब तो यही हुआ कि मां और पिता जी को भी इस बारे में पता है। यानि वो भी जानते हैं कि आपके पिता जी भाभी का फिर से ब्याह कर देना चाहते हैं?"

"इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है।" कामिनी ने कहा____"पर आपकी बातों से तो यही लगता है कि उन्हें इस बारे में पता है।"

"हां लेकिन मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि उन्होंने इस बारे में मुझे क्यों कुछ नहीं बताया?" मैंने उलझन पूर्ण भाव से कहा____"अगर वो उसी समय मुझे बता देते तो भला क्या हो जाता?"

कामिनी के पास जैसे मेरे इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। वो भी सोच में पड़ गई थी। कुछ देर तक हमारे बीच ख़ामोशी ही रही। मुझे बहुत अजीब महसूस हो रहा था। एकदम से अब मुझे पराएपन का एहसास होने लगा था।

"मैंने हमेशा आपके साथ ग़लत बर्ताव किया है कामिनी।" फिर मैंने गंभीरता से कहा____"हमेशा आपको परेशान किया है, इसके लिए माफ़ कर दीजिएगा मुझे।"

"अरे! ये क्या कह रहे हैं आप?" कामिनी एकदम से चौंकी____"देखिए आप इस तरह मुझसे माफ़ी मत मांगिए।"

"मेरी एक विनती है आपसे।" मैंने उसकी तरफ देखा____"मैं अपनी भाभी को आख़िरी बार देख लेना चाहता हूं। क्या आप उन्हें यहां भेज देंगी? देखिए मना मत करना।"

"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" कामिनी के चेहरे पर हैरानी और उलझन जैसे भाव उभर आए____"अच्छा ठीक है, मैं जा कर दीदी को आपकी ये बात बता देती हूं।"

"उन्हें सिर्फ बताना ही नहीं है।" मैंने ज़ोर देते हुए कहा____"उनसे कहना कि उनका देवर उनसे आख़िरी बार मिलना चाहता है।"

कामिनी ठीक है कहते हुए उठी और अंदर चली गई। इधर मैं दुखी मन से बैठा जाने क्या क्या सोचने लगा। मुझे इस बात की तो खुशी थी कि भाभी का किसी से ब्याह हो जाएगा तो वो हमेशा खुश रहेंगी लेकिन अब इस बात का बेहद दुख भी हो रहा था कि मैं अब हमेशा के लिए अपनी भाभी को खो दूंगा। मेरे बदले हुए जीवन में उनका बहुत योगदान था। आज मैं बदल कर यहां तक पहुंचा था तो इसमें भाभी का भी बहुत बड़ा हाथ था। वो हमेशा मुझे अच्छा इंसान बनने के लिए ज़ोर देती थीं। हमेशा मेरा मार्गदर्शन करतीं थी। मेरे माता पिता को तो उनके जैसी बहू पाने पर हमेशा से गर्व था ही किंतु मुझे भी उनके जैसी भाभी पाने पर नाज़ था।

काश! विधाता ने बड़े भैया का जीवन नहीं छीना होता तो आज मैं अपनी भाभी को खो नहीं रहा होता। पहले अनुराधा और अब भाभी, दोनों को ही खो दिया मैंने। एकाएक ही मेरे अंदर तीव्र पीड़ा उठी। मेरा मन रो देने का करने लगा। मैंने बड़ी मुश्किल से अपने जज़्बातों को रोका और भाभी के आने का इंतज़ार करने लगा।

आख़िर मेरी मुराद पूरी हुई और भाभी आ गईं। वही गंभीर चेहरा, कोई खुशी नहीं, कोई उत्साह नहीं। आंखों में सूनापन और होठों पर रेगिस्तान के जैसा सूखापन। वो आईं और मेरे सामने खड़ी हो गईं। मेरा जी किया कि मैं एक झटके से उनसे लिपट जाऊं और किसी बच्चे की तरफ फूट फूट कर रो पड़ूं। उनसे लिपट पड़ने से तो खुद को रोक लिया मैंने लेकिन आंखों को बगावत करने से न रोक सका। मेरे लाख रोकने के बाद भी जज़्बातों की आंधी ने आंखों से आंसुओं को छलका ही दिया। मैंने महसूस किया कि मेरी आंखों से आंसू छलका देख भाभी तड़प सी उठीं थी।

"क...क्या हुआ तुम्हें?" फिर उन्होंने झट से फिक्रमंद हो कर पूछा____"तुम...तुम रो क्यों रहे हो? क्या कामिनी ने तुम्हें कुछ कहा है?"

"नहीं नहीं।" मेरे अंदर हुक सी उठी, खुद को सम्हालते हुए बोला____"उन्होंने कुछ नहीं कहा मुझे।"

"तो फिर तुम इस तरह रो क्यों रहे हो?" भाभी बहुत ज़्यादा चिंतित नज़र आने लगीं____"क्या हुआ है तुम्हें? बताओ मुझे, तुम्हारी आंखों से आंसू क्यों बह आए हैं?"

"ये मेरा कहना नहीं माने भाभी।" मेरी आवाज़ लड़खड़ा गई____"मेरे मना करने पर भी आंखों से छलक ही गए।"

"अरे! ये कैसी बातें कर रहे हो तुम?" भाभी अभी भी चिंतित थीं____"सच सच बताओ आख़िर बात क्या है?"

"एक तरफ ये जान कर बेहद खुशी हुई कि आपके पिता जी फिर से आपका ब्याह करना चाहते हैं ताकि आप वास्तव में खुश रहने लगें।" मैंने कहा_____"दूसरी तरफ मुझे इस बात का दुख होने लगा है कि जब आपकी किसी से शादी हो जाएगी तो आप मेरी भाभी नहीं रह जाएंगी। आपको भाभी नहीं कह सकूंगा मैं। कह भी कैसे सकूंगा? आपसे भाभी का रिश्ता ही कहां रह जाएगा फिर? पहले बड़े भैया को खो दिया और अब अपनी भाभी को भी खो देने वाला हूं। यही सोच कर रोना आ गया था भाभी। समझ में नहीं आ रहा कि आपको मिलने वाली खुशियों के लिए खुश होऊं या हमेशा के लिए अपनी प्यारी सी भाभी को खो देने का शोक मनाऊं।"

"एकदम पागल हो तुम?" भाभी ने कांपती आवाज़ में कहा____"तुमसे ये किसने कहा कि मैं किसी से शादी करने को तैयार हूं?"

"क...क्या मतलब??" मैं भाभी की बात सुन कर बुरी तरह उछल पड़ा, फिर झट से बोला____"म....मतलब...ये क्या कह रही हैं आप? मुझसे कामिनी ने तो यही बताया है कि आपके पिता जी ने आपका फिर से ब्याह करने का फ़ैसला कर लिया है।"

"अरे! वो झूठ बोल रही थी तुमसे।" भाभी ने कहा____"सच यही है कि मैं किसी से शादी नहीं करने वाली। मैं दादा ठाकुर की बहू थी, हूं और हमेशा रहूंगी।"

"क...क्या सच में??" मैं जैसे खुशी से नाच उठा, किंतु फिर मायूस सा हो कर बोला_____"लेकिन भाभी आपकी खुशियों का क्या? आख़िर ये तो सच ही है ना कि एक औरत को असल खुशियां तभी मिलती हैं जब वो किसी की सुहागन हो।"

"मिलती होंगी।" भाभी ने जैसे लापरवाही से कहा____"लेकिन मुझे ऐसी खुशियां नहीं चाहिए जिसकी वजह से मेरा देवर अपनी भाभी को खो दे और दुखी हो जाए।"

"नहीं भाभी, मैं अपनी खुशी के लिए आपका जीवन बर्बाद करने का सोच भी नहीं सकता।" मैंने संजीदा हो कर कहा_____"मुझे सच्ची खुशी तभी मिलेगी जब मेरी प्यारी भाभी सचमुच में खुश रहने लगेंगी। इस लिए आप मेरे बारे में मत सोचिए और अपने पिता जी की बात मान कर फिर से शादी कर लीजिए। आप जहां भी रहेंगी मैं आपको भाभी ही मानूंगा और हमेशा आपकी खुशियों की कामना करूंगा।"

भाभी मेरी तरफ अपलक देखने लगीं। उनकी आंखें नम हो गईं थी। चेहरे पर पीड़ा के भाव नुमायां हो उठे थे। फिर जैसे उन्होंने खुद को सम्हाला।

"एक बात पूछूं तुमसे?" फिर उन्होंने अजीब भाव से कहा।

"आपको इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं है।" मैंने अधीरता से कहा।

"सच सच बताओ कितना चाहते हो मुझे?" भाभी ने अपलक मेरी तरफ देखते हुए पूछा।

"हद से ज़्यादा।" मैंने जवाब दिया____"अपनी भाभी की खुशी के लिए कुछ भी कर सकता हूं मैं। आपको पहले भी बताया था कि आपकी अहमियत और आपका मुकाम बहुत ख़ास और बहुत ऊंचा है मेरी नज़र में।"

"ये तो तुम अभी मेरा दिल रखने के लिए बोल रहे हो।" भाभी ने अपलक मेरी तरफ देखते हुए ही कहा____"लेकिन रूपा से शादी हो जाने के बाद तो भूल ही जाओगे मुझे।"

"आप जानती हैं कि ऐसा नहीं हो सकता।" मैंने दृढ़ता से कहा____"बता ही चुका हूं कि आपकी अहमियत अलग है। जहां आप हैं वहां कोई नहीं हो सकता।"

"क्या तुम्हें नहीं लगता कि ये ग़लत है?" भाभी ने कहा____"तुम्हें अपनी भाभी को इतनी अहमियत नहीं देनी चाहिए, बल्कि रूपा को देनी चाहिए। वो तुमसे बेहद प्रेम करती है। क्या नहीं किया है उसने तुम्हारे लिए। उसके प्रेम और त्याग का ईमानदारी से तुम्हें फल देना चाहिए। ठीक वैसे ही जैसे उसने तुम्हें दिया है।"

"मैंने कब इससे इंकार किया है भाभी?" मैंने कहा____"यकीन मानिए, उसके साथ कभी कोई नाइंसाफी नहीं करूंगा। किंतु यहां पर बात आपकी अहमियत की हुई थी तो ये सच है कि आपकी अहमियत मेरे लिए बहुत अहम है।"

मेरी बात सुन कर भाभी कुछ देर मुझे देखती रहीं। फिर जैसे उन्होंने इस बात को दरकिनार किया और कहा____"अच्छा अब तुम आराम करो। मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर भेजवाती हूं। अगर रुकना नहीं है तो शाम होने से पहले पहले चले जाना।"

उनकी बात पर मैंने सिर हिलाया। उसके बाद वो चली गईं। उनके जाने के बाद मुझे थोड़ी राहत सी महसूस हुई। पलंग पर मैं फिर से लेट गया और उनसे हुई बातों के बारे में सोचने लगा।

कुछ ही देर में वंदना भाभी चाय ले कर आईं। अभी मैंने उनसे चाय ली ही थी कि ससुर जी यानी भाभी के पिता जी भी आ गए। वंदना भाभी अंदर से उनके लिए भी चाय ले आईं। भीमा को उन्होंने पहले ही दे दिया था। चाय पीते समय ही भाभी के पिता जी से बात चीत हुई। उसके बाद मैं जाने के लिए उठ गया। सब घर वालों ने आ कर मेरे पांव छुए और मुझे विदाई के रूप में पैसे दिए। उसके बाद मैं और भीमा जीप में बैठ कर चल पड़े। आते समय भाभी को नहीं देख पाया था मैं।




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Aaj ke samvaad se yeh ehsaas mil gya vaibhav ko ki bhabhi ki khushiyon ko pura karna itna saral aur aasan ni hoga
Or ye bhi ki uske mata pita ne use yahan aane se pehle wo sab kyun kaha tha

Khair ye bhi sachchai hi ki ek stree ki khushiyon ki purnta tb tk ni hoti jb tk use uske jeevansathi ka sneh, prem aur uske dwara ki gyi pyari pyari baaton aur tareefon ki bela shamil na ho
Or ye baat aaj vaibhav ko bhalibhanti smjh aa gyi hai


Aaj ragini bhabhi ki baato se spasht ho rha hai ki unse maa aur pitaji ne vaibhav aur unki shadi ki baat bhi kr li gyi hai
Jiske liye unhe vichar krne ko kaha gya hoga
Aur wo swayam ye sb aasani se nhi maan skti

Kintu unke samvad se lg rha h ki unhone vaibhav ke man ko tatol liya hai ayr syd wo kisi natije par pahuchi bhi hongi

Kintu ab vaibhav jb haveli wapas pahuchega tb ho na ho usse, uski aur bhabhi ki shadi ki baat ka zikr bhi kiya jayega tb dekhna hoga ki vaibhav kitna samay leta hai
Kintu ye jrur lg rha hai ki aaj sbke dwara kiye gye vyavhar aur bhabhi ke samvad syd uske dil me utpann bhabhi ko kho dene ke bhay ko door krne ke liye use mna hi lenge is vivaah ke liye


Ab pratiksha hai ki haveli me hone wale samvado aur vartalaap ki
 
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एकाएक ही मन में उथल पुथल सी मच गई थी। भाभी के लिए पहले भी फ़िक्र थी लेकिन अब और भी ज़्यादा होने लगी थी। एक बेचैनी सी थी जो बढ़ती ही जा रही थी। मैंने फ़ैसला कर लिया कि कल सुबह मैं चंदनपुर जाऊंगा और भाभी को वापस ले आऊंगा।


अब आगे....


अगली सुबह।
नहा धो कर और नए कपड़े पहन कर मैं चाय नाश्ता करने नीचे आया। मुझे नए कपड़ों में देख मां और बाकी लोग मुझे अलग ही तरह से देखने लगे। मुझे अजीब तो लगा लेकिन मैं किसी से बिना कुछ बोले कुर्सी पर बैठ गया। थोड़ी ही देर में कुसुम मेरे लिए नाश्ता ले आई।

"क्या बात है, आज मेरा बेटा राज कुमारों की तरह सजा हुआ है।" मां ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा_____"कहीं बाहर जा रहा है क्या तू?"

"हां मां।" मैंने सामान्य भाव से कहा____"मैं चंदनपुर जा रहा हूं, भाभी को लेने।"

"क..क्या??" मां जैसे उछल ही पड़ीं____"ये क्या कह रहा है तू?"

"सच कह रहा हूं मां।" मैंने कहा____"लेकिन आप इतना हैरान क्यों हो रही हैं? क्या आप नहीं चाहतीं कि भाभी वापस हवेली आएं?"

"ह....हां चाहती हूं।" मां ने खुद को सम्हालते हुए कहा____"लेकिन तू इस तरह अचानक से तैयार हो कर आ गया इस लिए हैरानी हुई मुझे। तूने बताया भी नहीं कि तू रागिनी बहू को लेने जाने वाला है?"

"हां जैसे मैं आपको बता देता तो आप मुझे खुशी से जाने देतीं।" मैंने हौले से मुंह बनाते हुए कहा_____"आपसे पहले भी कई बार कह चुका हूं कि भाभी को वापस लाना चाहता हूं लेकिन हर बार आपने मना कर दिया। ये भी नहीं बताया कि आख़िर क्यों? इस लिए मैंने फ़ैसला कर लिया है कि आज चंदनपुर जाऊंगा ही जाऊंगा और शाम तक भाभी को ले कर वापस आ जाऊंगा।"

"क्या तूने इस बारे में पिता जी से पूछा है?" मां ने मुझे घूरते हुए कहा____"अगर नहीं पूछा है तो पूछ लेना उनसे। अगर वो जाने की इजाज़त दें तभी जाना वरना नहीं।"

"मुझे समझ नहीं आ रहा कि आख़िर आप भाभी को वापस लाने से मना क्यों करती हैं?" मैंने झल्लाते हुए कहा_____"क्या आपको अपनी बहू की ज़रा भी फ़िक्र नहीं है? क्या आप नहीं चाहतीं कि वो हमारे साथ इस हवेली में रहें?"

"फ़िज़ूल की बातें मत कर।" मां ने नाराज़गी से कहा____"शांति से नाश्ता कर और फिर पिता जी से इस बारे में पूछ कर ही जाना।"

मैंने बहस करना उचित नहीं समझा इस लिए ख़ामोशी से नाश्ता किया और फिर हाथ मुंह धो कर सीधा बैठक में पहुंच गया। बैठक में पिता जी, गौरी शंकर और किशोरी लाल बैठे हुए थे।

"अच्छा हुआ तुम यहीं आ गए।" पिता जी ने मुझे देखते ही कहा_____"हम तुम्हें बुलवाने ही वाले थे। बात ये है कि आज तुम्हें शहर जाना है। वहां पर जिनसे हम सामान लाते हैं उनका पिछला हिसाब किताब चुकता करना है। हम नहीं चाहते कि देनदारी ज़्यादा हो जाए जिसके चलते वो लोग सामान देने में आना कानी करने लगें। इस लिए तुम रुपए ले कर जाओ और आज तक का सारा हिसाब किताब चुकता कर देना। हमें गौरी शंकर के साथ एक ज़रूरी काम से कहीं और जाना है, इस लिए ये काम तुम्हें ही करना होगा।"

"मुझे भी कहीं जाना है पिता जी।" मैंने झिझकते हुए कहा____"लेकिन आप कहते हैं तो मैं शहर में सबका हिसाब किताब कर दूंगा उसके बाद वहीं से निकल जाऊंगा।"

"कहां जाना है तुम्हें?" पिता जी के चेहरे पर शिकन उभर आई थी।

"चंदनपुर।" मैंने धड़कते दिल से कहा____"भाभी को लेने जा रहा हूं।"

मेरी बात सुन कर गौरी शंकर ने फ़ौरन ही मेरी तरफ देखा और फिर पलट कर पिता जी की तरफ देखने लगा। पिता जी पहले से ही मेरी तरफ देख रहे थे। मेरी बात सुन कर वो कुछ बोले नहीं, किंतु चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए थे।

"ठीक है।" फिर उन्होंने गहरी सांस ले कर कहा____"अगर तुम चंदनपुर जाना चाहते हो तो ज़रूर चले जाना लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रखना कि अगर समधी साहब बहू को भेजने से मना करें तो तुम उन पर दबाव नहीं डालोगे।"

"जी ठीक है।" मैंने सिर हिला दिया।

पिता जी ने मुंशी किशोरी लाल को इशारा किया तो वो उठ कर पैसा लेने चला गया। कुछ देर बाद जब वो आया तो उसके हाथ में एक किताब थी और पैसा भी। किताब को उसने पिता जी की तरफ बढ़ा दिया। पिता जी ने किताब खोल कर हिसाब किताब देखा और फिर एक दूसरे कागज में लिख कर मुझे कागज़ पकड़ा दिया। इधर एक छोटे से थैले में पैसा रख कर मुंशी जी ने मुझे थैला पकड़ा दिया।

मैं खुशी मन से अंदर आया और मां को बताया कि पिता जी ने जाने की इजाज़त दे दी है। मां मेरी बात सुन कर हैरान सी नज़र आईं किंतु बोली कुछ नहीं। जब मैं जीप की चाभी ले कर जाने लगा तो उन्होंने बस इतना ही कहा कि भीमा को साथ ले जाना। ख़ैर कुछ ही देर में मैं भीमा को साथ ले कर जीप से शहर की तरफ जा निकला।

आज काफी दिनों बाद मुझे कुछ अच्छा सा महसूस हो रहा था। ये सोच कर खुशी हो रही थी कि दो महीने बाद भाभी से मिलूंगा। मुझे यकीन था कि जैसे मैं उन्हें बहुत याद कर रहा था वैसे ही उन्हें भी मेरी याद आती होगी। जैसे मुझे उनकी फ़िक्र थी वैसे ही उन्हें भी मेरी फ़िक्र होगी। एकाएक ही मेरा मन करने लगा कि काश ये जीप किसी पंक्षी की तरह आसमान में उड़ने लगे और एक ही पल में मैं अपनी प्यारी सी भाभी के पास पहुंच जाऊं।

✮✮✮✮

चंदनपुर गांव।
चारो तरफ खेतों में हरियाली छाई हुई थी। यदा कदा सरसो के खेत भी थे जिनमें लगे फूलों की वजह से बड़ा ही मनमोहक नज़ारा दिख रहा था। पेड़ पौधों और ऊंचे ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ गांव बड़ा ही सुन्दर लगता था। मैं इस सुंदर नज़ारे देखते हुए जीप चला रहा था। मन में तरह तरह के ख़याल बुनते हुए कुछ ही समय में मैं भाभी के घर पहुंच गया।

घर के बाहर बड़ी सी चौगान में जीप खड़ी हुई तो जल्दी ही घर के अंदर से कुछ लोग निकल कर बाहर आए। भाभी के चाचा की लड़की कंचन और मोहिनी नज़र आईं मुझे। उनके पीछे उनका बड़ा भाई वीर सिंह और चाची का भाई वीरेंद्र सिंह भी नज़र आया। मुझ पर नज़र पड़ते ही सबके चेहरे खिल से गए। उधर कंचन की जैसे ही मुझसे नज़रें चार हुईं तो वो एकदम से शर्मा गई। पहले तो मुझे उसका यूं शर्मा जाना समझ न आया किंतु जल्दी ही याद आया कि पिछली बार जब मैं आया था तो उसको और उसकी छोटी भाभी को मैंने नंगा देख लिया था। कंचन इसी वजह से शर्मा गई थी। मैं इस बात से मन ही मन मुस्कुरा उठा।

"अरे! वैभव महाराज आप?" वीर सिंह उत्साहित सा हो कर बड़ी तेज़ी से मेरी तरफ बढ़ा। मेरे पैर छू कर वो सीधा खड़ा हुआ फिर बोला____"धन्य भाग्य हमारे जो आपके दर्शन हो गए। यकीन मानिए आज सुबह ही हम लोग आपके बारे में चर्चा कर रहे थे।"

"कैसे हैं महाराज?" वीरेंद्र सिंह ने भी मेरे पांव छुए, फिर बोला____"आपने अचानक यहां आ कर हमें चौंका ही दिया। ख़ैर आइए, अंदर चलते हैं।"

मैं वीरेंद्र के साथ अंदर की तरफ बढ़ चला। उधर वीर सिंह मेरे साथ आए भीमा को भी अंदर ही बुला लिया। कुछ ही पलों में मैं अंदर बैठके में आ गया जहां बड़ी सी चौपार में कई सारे पलंग बिछे हुए थे। वीर सिंह ने झट से पलंग पर गद्दा बिछा दिया और फिर उसके ऊपर चादर डाल कर मुझे बैठाया।

कंचन और मोहिनी पहले ही घर के अंदर भाग गईं थी और सबको बता दिया था कि मैं आया हूं। एकाएक ही जैसे पूरे घर में हलचल सी मच गई थी। कुछ ही समय में घर के बड़े बुजुर्ग भी आ गए। सबने मेरे पांव छुए, वीरेंद्र सिंह फ़ौरन ही पीतल की एक परांत ले आया जिसमें मेरे पैरों को रखवा कर उसने मेरे पांव धोए। ये सब मुझे बड़ा अजीब लगा करता था लेकिन क्या कर सकता था? ये उनका स्वागत करने का तरीका था। आख़िर मेरे बड़े भैया की ससुराल थी ये, उनका छोटा भाई होने के नाते मैं भी उनका दामाद ही था। बहरहाल, पांव वगैरह धोने के बाद घर की बाकी औरतों ने मेरे पांव छुए। उसके बाद जल्दी ही मेरे लिए जल पान की व्यवस्था हुई।

भैया के ससुर और चाचा ससुर दोनों दूसरे पलंग पर बैठे थे और मुझसे हवेली में सभी का हाल चाल पूछ रहे थे। इसी बीच जल पान भी आ गया। भीमा चौपार की दूसरी तरफ एक चारपाई पर बैठा था। उसके लिए भी जल पान आ गया था जिसे वो ख़ामोशी से खाने पीने में लग गया था। काफी देर तक सब मुझे घेरे बैठे रहे और मुझसे दुनिया जहान की बातें करते रहे। सच कहूं तो मैं इन सारी बातों से अब ऊब सा गया था। मेरा मन तो बस भाभी को देखने का कर रहा था। दो महीने से मैंने उनकी सूरत नहीं देखी थी।

बातों का दौर चला तो दोपहर के खाने का समय हो गया। खाना खाने की इच्छा तो नहीं थी लेकिन सबके ज़ोर देने पर मुझे सबके साथ बैठना ही पड़ा। घर के अंदर एक बड़े से हाल में हम सब बैठे खाने लगे। घर की औरतें खाना परोसने लगीं। मैं बार बार नज़र घुमा कर भाभी को देखने की कोशिश करता लेकिन वो मुझे कहीं नज़र ना आतीं। ऐसे ही खाना पीना ख़त्म हुआ और मैं फिर से बाहर बैठके में आ गया। कुछ देर आराम करने के बाद मर्द लोग खेतों की तरफ जाने लगे। भैया के ससुर किसी काम से गांव तरफ निकल गए।

"महाराज, आप यहीं आराम करें।" वीरेंद्र ने कहा____"हम लोग खेतों की तरफ जा रहे हैं। अगर आप बेहतर समझें तो हमारे साथ खेतों की तरफ चलें। आपका समय भी कट जाएगा। हम लोग तो अब शाम को ही वापस आएंगे।"

"लेकिन शाम होने से पहले ही मुझे वापस जाना है वीरेंद्र भैया।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"आप भी जानते हैं कि काम के चलते कहां किसी के पास कहीं आने जाने का समय होता है। वैसे भी गांव में अस्पताल और विद्यालय का निर्माण कार्य चालू है जो मेरी ही देख रेख में हो रहा है। इस लिए मुझे वापस जाना होगा। मैं तो बस भाभी को लेने आया था यहां। आप कृपया सबको बता दें कि मैं भाभी को लेने आया हूं।"

मेरी बात सुनते ही वीरेंद्र सिंह के चेहरे के भाव बड़ी तेज़ी से बदले। थोड़ी दुविधा और चिंता में नज़र आया वो मुझे। कुछ देर तक जाने क्या सोचता रहा फिर बोला____"ये आप क्या कह रहे हैं महाराज? आप रागिनी को लेने आए हैं? क्या दादा ठाकुर ने इसके लिए आपको भेजा है?"

"उनकी इजाज़त से ही आया हूं मैं।" मुझे उसकी बात थोड़ी अजीब लगी____"लेकिन आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?"

"देखिए इस बारे में मैं आपसे ज़्यादा कुछ नहीं कह सकता।" वीरेंद्र सिंह ने कहा____"कुछ देर में पिता जी आ जाएंगे तो आप उनसे ही बात कीजिएगा। ख़ैर मुझे जाने की इजाज़त दीजिए।"

वीरेंद्र सिंह इतना कह कर चला गया और इधर मैं मन में अजीब से ख़यालात लिए बैठा रह गया। मेरे लिए ये थोड़ी हैरानी की बात थी कि वीरेंद्र ऐसा क्यों बोल गया था? इसके पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ था कि मैं भाभी को लेने आऊं और ये लोग ऐसा बर्ताव करते हुए इस तरह की बातें करें। मुझे समझ न आया कि आख़िर ये माजरा क्या है? ख़ैर क्या कर सकता था? वीरेंद्र के अनुसार अब मुझे भाभी के पिता जी से ही इस बारे में बात करनी थी इस लिए उनके आने की प्रतिक्षा करने लगा।

अभी मैं प्रतीक्षा ही कर रहा था कि तभी अंदर से कुछ लोगों के आने का आभास हुआ मुझे तो मैं संभल कर बैठ गया। कुछ ही पलों में अंदर से वीरेंद्र सिंह की पत्नी वंदना और वीर सिंह की पत्नी गौरी मेरे सामने आ गईं। उनके पीछे मोहिनी और भाभी की छोटी बहन कामिनी भी आ गई।

"लगता है हमारे वैभव महाराज को सब अकेला छोड़ कर चले गए हैं।" वंदना ने मुस्कुराते हुए कहा____"इसी लिए यहां अकेले बैठे मक्खियां मार रहे हैं।"

"क्या करें भाभी मक्खियां ही मारेंगे अब।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"यहां मक्खियां भी तो बहुत ज़्यादा हैं। ख़ैर आप अपनी सुनाएं और हां आपका बेटा कैसा है? हमें भी तो दिखाइए उस नन्हें राज कुमार को।"

मेरी बात सुन कर सब मुस्कुरा उठीं। वंदना भाभी ने मोहिनी को अंदर भेजा बेटे को लाने के लिए। सहसा मेरी नज़र कामिनी पर पड़ी। वो अपलक मुझे ही देखे जा रही थी। जैसे ही मेरी नज़रें उससे टकराईं तो उसने झट से अपनी नज़र हटा ली। मुझे उसका ये बर्ताव अजीब लगा। आम तौर पर वो हमेशा मुझसे कोषों दूर रहती थी। मुझसे कभी ढंग से बात नहीं करती थी। मुझे भी पता था कि वो थोड़ी सनकी है और गुस्से वाली भी इस लिए मैं भी उससे ज़्यादा उलझता नहीं था। किंतु आज वो खुद मेरे सामने आई थी और जिस तरह से अपलक मुझे देखे जा रही थी वो हैरानी वाली बात थी।

बहरहाल, थोड़ी ही देर में मोहिनी नन्हें राज कुमार को ले के आई और उसे मेरी तरफ बढ़ा दिया। मैंने उस नाज़ुक से बच्चे को अपनी गोद में ले लिया और उसे देखने लगा। बड़ा ही प्यारा और मासूम नज़र आ रहा था वो। मैंने महसूस किया कि वो रंगत में अपनी मां पर गया था। एकदम गोरा चिट्ठा। फूले फूले गाल, बड़ी बड़ी आंखें, छोटी सी नाक और गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ। मैंने झुक कर उसके माथे पर और उसके गालों को चूम लिया। मुझे बच्चों को खिलाने का अथवा दुलार करने का कोई अनुभव नहीं था इस लिए मुझसे जैसे बन रहा था मैं उसे पुचकारते हुए दुलार कर रहा था। सहसा मुझे कुछ याद आया तो मैंने अपने गले से सोने की चैन उतार कर उसे पहना दिया।

"ये छोटा सा उपहार तुम्हारे छोटे फूफा जी की तरफ से।" फिर मैंने उसके गालों को एक उंगली से सहलाते हुए कहा____"हम चाहते हैं कि तुम बड़े हो कर अपने अच्छे कर्मों से अपने माता पिता का और अपने खानदान का नाम रोशन करो। ऊपर वाला तुम्हें हमेशा स्वस्थ रखे और एक ऊंची शख्सियत बनाए।"

कहने के साथ ही मैंने उसे फिर से चूमा और फिर वापस मोहिनी को पकड़ा दिया। उधर गौरी और वंदना भाभी ये सब देख मुस्कुरा रही थीं।

"वैसे क्या नाम रखा है आपने अपने इस बेटे का?" मैंने पूछा तो वंदना भाभी ने कहा____"शैलेंद्र....शैलेंद्र सिंह।"

"वाह! बहुत अच्छा नाम है।" मैंने कहा____"मुझे बहुत खुशी हुई इसे देख कर।"

"वैसे आप बहुत नसीब वाले हैं महाराज।" गौरी भाभी ने कहा____"और वो इस लिए क्योंकि इसने आपको नहलाया नहीं वरना ये जिसकी भी गोद में जाता है उसे नहलाता ज़रूर है।"

"हा हा हा।" मैं ठहाका लगा कर हंसा____"अच्छा ऐसा है क्या?"

"हां जी।" गौरी भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"ये शैतान किसी को भी नहीं छोड़ता। जाने कैसे आपको बचा दिया इसने?"

"अरे! भई मैंने इसके लिए रिश्वत में उपहार जो दिया है इसे।" मैंने कहा____"उपहार से खुश हो कर ही इसने मुझे नहीं नहलाया।"

"हां शायद यही बात हो सकती है।" दोनों भाभियां मेरी बात से हंस पड़ीं।

"अच्छा हुआ आप आ गए महाराज।" वंदना भाभी ने खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"हमें भी आपके दर्शन हो गए।"

"आपके आने से एक और बात अच्छी हुई है महाराज।" गौरी भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"इतने दिनों में हमने पहली बार अपनी ननद रानी के चेहरे पर एक खुशी की झलक देखी है। वरना हम तो चाह कर भी उनके चेहरे पर खुशी नहीं ला पाए थे।"

"क्या आप मेरी भाभी के बारे में बात कर रही हैं?" मैं उत्साहित सा पूछ बैठा।

"और नहीं तो क्या।" गौरी भाभी ने पहले की ही तरह मुस्कराते हुए कहा____"और भला हम किसके बारे में बात करेंगे आपसे? हम आपकी भाभी के बारे में ही आपको बता रहे हैं।"

"कैसी हैं वो?" मैं एकदम से व्याकुल सा हो उठा_____"और....और ये आप क्या कह रही हैं कि आप लोग उन्हें खुश नहीं रख पाए? मतलब आपने भाभी को दुखी रखा यहां?"

"हाय राम! आप ये कैसे कह सकते हैं महाराज?" गौरी भाभी ने हैरानी ज़ाहिर की_____"हम भला अपनी ननद को दुखी रखने का सोच भी कैसे सकते हैं?"

"तो फिर वो खुश क्यों नहीं थीं यहां?" मैंने सहसा फिक्रमंद होते हुए पूछा_____"अपनों के बीच रह कर भी वो खुश नहीं थीं, ऐसा कैसे हो सकता है? वैसे कहां हैं वो? मुझे अपनी भाभी से मिलना है। उनका हाल चाल पूछना है। कृपया आप या तो मुझे उनके पास ले चलें या फिर उन्हें यहां ले आएं।"

मेरी बात सुन कर गौरी और वंदना भाभी ने एक दूसरे की तरफ देखा। आंखों ही आंखों में जाने क्या बात हुई उनकी। उधर मोहिनी और कामिनी चुपचाप खड़ी मुझे ही देखे जा रहीं थी। ख़ास कर कामिनी, पता नहीं आज उसे क्या हो गया था?

"क्या हुआ?" उन दोनों को कुछ बोलता न देख मैंने पूछा____"आप दोनों कुछ बोल क्यों नहीं रहीं हैं? मुझे अपनी भाभी से अभी मिलना है। एक बात और, मैं यहां उन्हें लेने आया हूं इस लिए उनके जाने की तैयारी भी कीजिए आप लोग। अगर मेरी भाभी यहां खुश नहीं हैं तो मैं उन्हें एक पल भी यहां नहीं रहने दूंगा।"

"अरे! आप तो खामखां परेशान हो गए वैभव महाराज।" वंदना भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"हम दोनों तो बस आपसे मज़ाक में ऐसा कह रहे थे। सच तो ये है कि आपकी भाभी यहां खुश हैं। उन्हें किसी बात का कोई दुख नहीं है।"

"भाभी के बारे में इस तरह का मज़ाक कैसे कर सकती हैं आप?" मैं एकदम से आवेश में आ गया____"क्या आपको ज़रा भी एहसास नहीं है कि उनकी क्या हालत है और वो कैसी दशा में हैं?"

मेरी आवेश में कही गई बात सुनते ही दोनों भाभियों का हंसना मुस्कुराना फ़ौरन ही ग़ायब हो गया। उन्हें भी पता था कि मैं किस तरह का इंसान था। दोनों ने फ़ौरन ही मुझसे माफ़ी मांगी और फिर कहा कि वो मेरी भाभी को भेजती हैं मेरे पास। वैसे तो बात बहुत छोटी थी किंतु मेरी नज़र में शायद वो बड़ी हो गई थी और इसी वजह से मुझे गुस्सा आ गया था। ख़ैर दोनों भाभियां अंदर चली गईं और उनके पीछे मोहिनी तथा कामिनी भी चली गई।

चौपार के दूसरी तरफ चारपाई पर भीमा बैठा हुआ था जिसने हमारी बातें भी सुनी थी। मैंने उसे बाहर जाने को कहा तो वो उठ कर चला गया। वैसे भी उसके सामने भाभी यहां मुझसे नहीं मिल सकतीं थीं। ख़ैर थोड़ी ही देर में वंदना भाभी उन्हें ले कर आ गईं। भाभी को देखते ही मैं चौंक पड़ा।

भाभी को सलवार कुर्ते में देख मैं अवाक् सा रह गया था। दुपट्टे को उन्होंने अपने सिर पर ले रखा था और बाकी का हिस्सा उनके सीने के उभारों पर था। उधर भाभी को मेरे पास छोड़ कर वंदना भाभी वापस अंदर चली गईं। अब बैठके में सिर्फ मैं और भाभी ही थे।

मुझे उम्मीद नहीं थी कि मैं भाभी को यहां सलवार कुर्ते में देखूंगा। मेरे मन में तो यही था कि वो अपने उसी लिबास में होंगी, यानि विधवा के सफेद लिबास में। ख़ैर ये कोई बड़ी बात नहीं थी क्योंकि अक्सर शादी शुदा बेटियां अपने मायके में सलवार कुर्ता भी पहना करती हैं।

मैंने देखा भाभी सिर झुकाए खड़ीं थी। चेहरे पर वैसा तेज़ नहीं दिख रहा था जैसा इसके पहले देखा करता था मैं। लेकिन मैंने महसूस किया कि उनके चेहरे पर थोड़े शर्म के भाव ज़रूर थे। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि वो अपने देवर के सामने अपने मायके में सलवार कुर्ते में थीं।

"प्रणाम भाभी।" एकाएक ही मुझे होश आया तो मैंने उठ कर उनके पैर छुए।

शायद वो किसी सोच में गुम थीं इस लिए जैसे ही उनके पांव छू कर मैंने प्रणाम भाभी कहा तो वो एकदम से चौंक पड़ी और साथ ही दो क़दम पीछे हट गईं। उनके इस बर्ताव से मुझे तनिक हैरानी हुई किंतु मैंने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया।

"क्या हुआ भाभी?" उन्हें चुप देख मैंने पूछा____"आपने मेरे प्रणाम का जवाब नहीं दिया? क्या मेरे यहां आने से आपको ख़ुशी नहीं हुई?"

"न...नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है।" उन्होंने झट से मेरी तरफ देखते हुए धीमें स्वर में कहा____"मुझे अच्छा लगा कि तुम यहां आए। हवेली में सब कैसे हैं? मां जी और पिता जी कैसे हैं?"

"सब ठीक हैं भाभी।" मैंने गहरी सांस ली____"लेकिन वहां आप नहीं हैं तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता। आपको पता है, मैं पिछले एक महीने से आपको वापस लाने के लिए मां से आग्रह कर रहा था लेकिन हर बार वो मुझे यहां आने से मना कर देती थीं। मेरे पूछने पर यही कहती थीं कि आपको कुछ समय तक अपने माता पिता के पास रहने देना ही बेहतर है। मजबूरन मुझे भी उनकी बात माननी पड़ती थी लेकिन अब और नहीं मान सका मैं। दो महीने हो गए भाभी, किसी और को आपकी कमी महसूस होती हो या नहीं लेकिन मुझे होती है। मुझे अपनी प्यारी सी भाभी की हर पल कमी महसूस होती है। मुझे इस बात की कमी महसूस होती है कि मेरे काम के बारे में सच्चे दिल से समीक्षा करने वाली वहां आप नहीं हैं। मुझे ये बताने वाला कोई नहीं है कि मैं आपकी उम्मीदों पर खरा उतर पा रहा हूं या नहीं। बस, अब और मुझसे बर्दास्त नहीं हुआ इस लिए कल रात ही मैंने फ़ैसला कर लिया था कि सुबह यहां आऊंगा और आपको ले कर वापस हवेली लौट आऊंगा। आप चलने की तैयारी कर लीजिए भाभी, हम शाम होने से पहले ही यहां से चलेंगे।"

"ज़ल्दबाज़ी में कोई फ़ैसला मत लो।" भाभी ने पहले की भांति ही धीमें स्वर में कहा____"और वैसे भी मेरी अभी इच्छा नहीं है वापस हवेली जाने की। मैं अभी कुछ समय और यहां अपने माता पिता और भैया भाभी के पास रहना चाहती हूं। मुझे खेद है कि तुम्हें अकेले ही वापस जाना होगा।"

"य...ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" मैंने चकित भाव से उन्हें देखा____"सच सच बताइए क्या आप सच में मेरे साथ नहीं जाना चाहती हैं? क्या सच में आप अपने देवर को इस तरह वापस अकेले भेज देंगी?"

"तुम्हारी खुशी के लिए मैं ज़रूर तुम्हारे साथ चल दूंगी वैभव।" भाभी ने गंभीरता से कहा____"किंतु क्या तुम सच में नहीं चाहते कि तुम्हारी ये अभागन भाभी कुछ समय और अपने माता पिता के पास रह कर अपने सारे दुख दर्द भूली रहे?"

"ऐसा मत कहिए भाभी।" मैंने संजीदा हो कर कहा____"अगर वाकई में यहां रहने से आप अपने दुख दर्द भूल जाती हैं तो मैं बिल्कुल भी आपको चलने के लिए मजबूर नहीं करूंगा। मैं तो यही चाहता हूं कि मेरी भाभी अपने सारे दुख दर्द भूल जाएं और हमेशा खुश रहें। अगर मेरे बस में होता तो आपकी तरफ किसी दुख दर्द को आने भी नहीं देता लेकिन क्या करूं....ये मेरे बस में ही नहीं है।"

"खुद को किसी बात के लिए हलकान मत करो।" भाभी ने कहा____"मैं अच्छी तरह जानती हूं कि तुमसे जो हो सकता है वो तुम करते हो। ख़ैर छोड़ो ये सब, तुम बताओ अब कैसा महसूस करते हो? मेरा मतलब है कि क्या अब तुम ठीक हो? सरोज मां कैसी हैं और....और रूपा कैसी है? उसे ज़्यादा परेशान तो नहीं करते हो ना तुम?"

"उससे तो एक महीने से मुलाक़ात ही नहीं हुई भाभी।" मैंने कहा____"असल में समय ही नहीं मिला। एक तो खेतों के काम, ऊपर से अब गांव में अस्पताल और विद्यालय भी बन रहा है तो उसी में व्यस्त रहता हूं। बहुत दिनों से आपकी बहुत याद आ रही थी। मां की वजह से यहां आ नहीं पाता था। मैं देखना चाहता था कि आप कैसी हैं और क्यों आप वापस नहीं आ रही हैं? क्या मुझसे कोई ख़ता हो गई है जिसके चलते....।"

"ऐसी कोई बात नहीं है।" भाभी ने मेरी तरफ अपलक देखते हुए कहा____"तुमसे कोई ख़ता नहीं हुई है और अगर हो भी जाएगी तो मैं उसके लिए तुम्हें खुशी से माफ़ कर दूंगी।"

"क्या सच में आप मेरे साथ नहीं चलेंगी?" मैंने जैसे आख़िरी कोशिश की____"यकीन मानिए आपके बिना हवेली में बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता।"

"जब अच्छा न लगे तो रूपा के पास चले जाया करो।" भाभी ने कहा____"तुमसे ज़्यादा दूर भी नहीं है वो।"

"सबकी अपनी अपनी अहमियत होती है भाभी।" मैंने कहा____"जहां आप हैं वहां वो नहीं हो सकती।"

"क्यों भला?" भाभी ने नज़र उठा कर देखा।

"आप अच्छी तरह जानती हैं।" मैंने उनकी आंखों में देखा।

इस बार भाभी कुछ न बोलीं। बस मेरी तरफ अपलक देखती रहीं। तभी बाहर से किसी के आने का आभास हुआ तो वो जल्दी से पलटीं और अंदर चली गईं। मैं असहाय सा बैठा रह गया। कुछ ही पलों में बाहर से एक औरत अंदर आई। मुझे देखते ही उसने झट से अपना चेहरा घूंघट कर के छुपा लिया और अंदर की तरफ चली गई।




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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
वैभव चंदनपुर में रागिणी भाभी को वापस हवेली लेकर आने के लिये पहुंच गया वहा उसका अच्छा स्वागत भी हुआ जब रागिणी को ले जाने की बात की तो सब उससे कुछ छुपा रहे हैं ये महसुस किया जब भाभी से मिला तो उसे सलवार कमीज में देखकर कुछ अटपटा लगा कुछ तो गडबड है कही वैभव और रागिणी के विवाह के बारें में दादा ठाकुर और भाभी के पिता के बीच बातें तो नहीं हुई हैं और वैभव उस सबसे अंजान हैं खैर देखते हैं आगे
 

Game888

Hum hai rahi pyar ke
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अध्याय - 139
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एकाएक ही मन में उथल पुथल सी मच गई थी। भाभी के लिए पहले भी फ़िक्र थी लेकिन अब और भी ज़्यादा होने लगी थी। एक बेचैनी सी थी जो बढ़ती ही जा रही थी। मैंने फ़ैसला कर लिया कि कल सुबह मैं चंदनपुर जाऊंगा और भाभी को वापस ले आऊंगा।


अब आगे....


अगली सुबह।
नहा धो कर और नए कपड़े पहन कर मैं चाय नाश्ता करने नीचे आया। मुझे नए कपड़ों में देख मां और बाकी लोग मुझे अलग ही तरह से देखने लगे। मुझे अजीब तो लगा लेकिन मैं किसी से बिना कुछ बोले कुर्सी पर बैठ गया। थोड़ी ही देर में कुसुम मेरे लिए नाश्ता ले आई।

"क्या बात है, आज मेरा बेटा राज कुमारों की तरह सजा हुआ है।" मां ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा_____"कहीं बाहर जा रहा है क्या तू?"

"हां मां।" मैंने सामान्य भाव से कहा____"मैं चंदनपुर जा रहा हूं, भाभी को लेने।"

"क..क्या??" मां जैसे उछल ही पड़ीं____"ये क्या कह रहा है तू?"

"सच कह रहा हूं मां।" मैंने कहा____"लेकिन आप इतना हैरान क्यों हो रही हैं? क्या आप नहीं चाहतीं कि भाभी वापस हवेली आएं?"

"ह....हां चाहती हूं।" मां ने खुद को सम्हालते हुए कहा____"लेकिन तू इस तरह अचानक से तैयार हो कर आ गया इस लिए हैरानी हुई मुझे। तूने बताया भी नहीं कि तू रागिनी बहू को लेने जाने वाला है?"

"हां जैसे मैं आपको बता देता तो आप मुझे खुशी से जाने देतीं।" मैंने हौले से मुंह बनाते हुए कहा_____"आपसे पहले भी कई बार कह चुका हूं कि भाभी को वापस लाना चाहता हूं लेकिन हर बार आपने मना कर दिया। ये भी नहीं बताया कि आख़िर क्यों? इस लिए मैंने फ़ैसला कर लिया है कि आज चंदनपुर जाऊंगा ही जाऊंगा और शाम तक भाभी को ले कर वापस आ जाऊंगा।"

"क्या तूने इस बारे में पिता जी से पूछा है?" मां ने मुझे घूरते हुए कहा____"अगर नहीं पूछा है तो पूछ लेना उनसे। अगर वो जाने की इजाज़त दें तभी जाना वरना नहीं।"

"मुझे समझ नहीं आ रहा कि आख़िर आप भाभी को वापस लाने से मना क्यों करती हैं?" मैंने झल्लाते हुए कहा_____"क्या आपको अपनी बहू की ज़रा भी फ़िक्र नहीं है? क्या आप नहीं चाहतीं कि वो हमारे साथ इस हवेली में रहें?"

"फ़िज़ूल की बातें मत कर।" मां ने नाराज़गी से कहा____"शांति से नाश्ता कर और फिर पिता जी से इस बारे में पूछ कर ही जाना।"

मैंने बहस करना उचित नहीं समझा इस लिए ख़ामोशी से नाश्ता किया और फिर हाथ मुंह धो कर सीधा बैठक में पहुंच गया। बैठक में पिता जी, गौरी शंकर और किशोरी लाल बैठे हुए थे।

"अच्छा हुआ तुम यहीं आ गए।" पिता जी ने मुझे देखते ही कहा_____"हम तुम्हें बुलवाने ही वाले थे। बात ये है कि आज तुम्हें शहर जाना है। वहां पर जिनसे हम सामान लाते हैं उनका पिछला हिसाब किताब चुकता करना है। हम नहीं चाहते कि देनदारी ज़्यादा हो जाए जिसके चलते वो लोग सामान देने में आना कानी करने लगें। इस लिए तुम रुपए ले कर जाओ और आज तक का सारा हिसाब किताब चुकता कर देना। हमें गौरी शंकर के साथ एक ज़रूरी काम से कहीं और जाना है, इस लिए ये काम तुम्हें ही करना होगा।"

"मुझे भी कहीं जाना है पिता जी।" मैंने झिझकते हुए कहा____"लेकिन आप कहते हैं तो मैं शहर में सबका हिसाब किताब कर दूंगा उसके बाद वहीं से निकल जाऊंगा।"

"कहां जाना है तुम्हें?" पिता जी के चेहरे पर शिकन उभर आई थी।

"चंदनपुर।" मैंने धड़कते दिल से कहा____"भाभी को लेने जा रहा हूं।"

मेरी बात सुन कर गौरी शंकर ने फ़ौरन ही मेरी तरफ देखा और फिर पलट कर पिता जी की तरफ देखने लगा। पिता जी पहले से ही मेरी तरफ देख रहे थे। मेरी बात सुन कर वो कुछ बोले नहीं, किंतु चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए थे।

"ठीक है।" फिर उन्होंने गहरी सांस ले कर कहा____"अगर तुम चंदनपुर जाना चाहते हो तो ज़रूर चले जाना लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रखना कि अगर समधी साहब बहू को भेजने से मना करें तो तुम उन पर दबाव नहीं डालोगे।"

"जी ठीक है।" मैंने सिर हिला दिया।

पिता जी ने मुंशी किशोरी लाल को इशारा किया तो वो उठ कर पैसा लेने चला गया। कुछ देर बाद जब वो आया तो उसके हाथ में एक किताब थी और पैसा भी। किताब को उसने पिता जी की तरफ बढ़ा दिया। पिता जी ने किताब खोल कर हिसाब किताब देखा और फिर एक दूसरे कागज में लिख कर मुझे कागज़ पकड़ा दिया। इधर एक छोटे से थैले में पैसा रख कर मुंशी जी ने मुझे थैला पकड़ा दिया।

मैं खुशी मन से अंदर आया और मां को बताया कि पिता जी ने जाने की इजाज़त दे दी है। मां मेरी बात सुन कर हैरान सी नज़र आईं किंतु बोली कुछ नहीं। जब मैं जीप की चाभी ले कर जाने लगा तो उन्होंने बस इतना ही कहा कि भीमा को साथ ले जाना। ख़ैर कुछ ही देर में मैं भीमा को साथ ले कर जीप से शहर की तरफ जा निकला।

आज काफी दिनों बाद मुझे कुछ अच्छा सा महसूस हो रहा था। ये सोच कर खुशी हो रही थी कि दो महीने बाद भाभी से मिलूंगा। मुझे यकीन था कि जैसे मैं उन्हें बहुत याद कर रहा था वैसे ही उन्हें भी मेरी याद आती होगी। जैसे मुझे उनकी फ़िक्र थी वैसे ही उन्हें भी मेरी फ़िक्र होगी। एकाएक ही मेरा मन करने लगा कि काश ये जीप किसी पंक्षी की तरह आसमान में उड़ने लगे और एक ही पल में मैं अपनी प्यारी सी भाभी के पास पहुंच जाऊं।

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चंदनपुर गांव।
चारो तरफ खेतों में हरियाली छाई हुई थी। यदा कदा सरसो के खेत भी थे जिनमें लगे फूलों की वजह से बड़ा ही मनमोहक नज़ारा दिख रहा था। पेड़ पौधों और ऊंचे ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ गांव बड़ा ही सुन्दर लगता था। मैं इस सुंदर नज़ारे देखते हुए जीप चला रहा था। मन में तरह तरह के ख़याल बुनते हुए कुछ ही समय में मैं भाभी के घर पहुंच गया।

घर के बाहर बड़ी सी चौगान में जीप खड़ी हुई तो जल्दी ही घर के अंदर से कुछ लोग निकल कर बाहर आए। भाभी के चाचा की लड़की कंचन और मोहिनी नज़र आईं मुझे। उनके पीछे उनका बड़ा भाई वीर सिंह और चाची का भाई वीरेंद्र सिंह भी नज़र आया। मुझ पर नज़र पड़ते ही सबके चेहरे खिल से गए। उधर कंचन की जैसे ही मुझसे नज़रें चार हुईं तो वो एकदम से शर्मा गई। पहले तो मुझे उसका यूं शर्मा जाना समझ न आया किंतु जल्दी ही याद आया कि पिछली बार जब मैं आया था तो उसको और उसकी छोटी भाभी को मैंने नंगा देख लिया था। कंचन इसी वजह से शर्मा गई थी। मैं इस बात से मन ही मन मुस्कुरा उठा।

"अरे! वैभव महाराज आप?" वीर सिंह उत्साहित सा हो कर बड़ी तेज़ी से मेरी तरफ बढ़ा। मेरे पैर छू कर वो सीधा खड़ा हुआ फिर बोला____"धन्य भाग्य हमारे जो आपके दर्शन हो गए। यकीन मानिए आज सुबह ही हम लोग आपके बारे में चर्चा कर रहे थे।"

"कैसे हैं महाराज?" वीरेंद्र सिंह ने भी मेरे पांव छुए, फिर बोला____"आपने अचानक यहां आ कर हमें चौंका ही दिया। ख़ैर आइए, अंदर चलते हैं।"

मैं वीरेंद्र के साथ अंदर की तरफ बढ़ चला। उधर वीर सिंह मेरे साथ आए भीमा को भी अंदर ही बुला लिया। कुछ ही पलों में मैं अंदर बैठके में आ गया जहां बड़ी सी चौपार में कई सारे पलंग बिछे हुए थे। वीर सिंह ने झट से पलंग पर गद्दा बिछा दिया और फिर उसके ऊपर चादर डाल कर मुझे बैठाया।

कंचन और मोहिनी पहले ही घर के अंदर भाग गईं थी और सबको बता दिया था कि मैं आया हूं। एकाएक ही जैसे पूरे घर में हलचल सी मच गई थी। कुछ ही समय में घर के बड़े बुजुर्ग भी आ गए। सबने मेरे पांव छुए, वीरेंद्र सिंह फ़ौरन ही पीतल की एक परांत ले आया जिसमें मेरे पैरों को रखवा कर उसने मेरे पांव धोए। ये सब मुझे बड़ा अजीब लगा करता था लेकिन क्या कर सकता था? ये उनका स्वागत करने का तरीका था। आख़िर मेरे बड़े भैया की ससुराल थी ये, उनका छोटा भाई होने के नाते मैं भी उनका दामाद ही था। बहरहाल, पांव वगैरह धोने के बाद घर की बाकी औरतों ने मेरे पांव छुए। उसके बाद जल्दी ही मेरे लिए जल पान की व्यवस्था हुई।

भैया के ससुर और चाचा ससुर दोनों दूसरे पलंग पर बैठे थे और मुझसे हवेली में सभी का हाल चाल पूछ रहे थे। इसी बीच जल पान भी आ गया। भीमा चौपार की दूसरी तरफ एक चारपाई पर बैठा था। उसके लिए भी जल पान आ गया था जिसे वो ख़ामोशी से खाने पीने में लग गया था। काफी देर तक सब मुझे घेरे बैठे रहे और मुझसे दुनिया जहान की बातें करते रहे। सच कहूं तो मैं इन सारी बातों से अब ऊब सा गया था। मेरा मन तो बस भाभी को देखने का कर रहा था। दो महीने से मैंने उनकी सूरत नहीं देखी थी।

बातों का दौर चला तो दोपहर के खाने का समय हो गया। खाना खाने की इच्छा तो नहीं थी लेकिन सबके ज़ोर देने पर मुझे सबके साथ बैठना ही पड़ा। घर के अंदर एक बड़े से हाल में हम सब बैठे खाने लगे। घर की औरतें खाना परोसने लगीं। मैं बार बार नज़र घुमा कर भाभी को देखने की कोशिश करता लेकिन वो मुझे कहीं नज़र ना आतीं। ऐसे ही खाना पीना ख़त्म हुआ और मैं फिर से बाहर बैठके में आ गया। कुछ देर आराम करने के बाद मर्द लोग खेतों की तरफ जाने लगे। भैया के ससुर किसी काम से गांव तरफ निकल गए।

"महाराज, आप यहीं आराम करें।" वीरेंद्र ने कहा____"हम लोग खेतों की तरफ जा रहे हैं। अगर आप बेहतर समझें तो हमारे साथ खेतों की तरफ चलें। आपका समय भी कट जाएगा। हम लोग तो अब शाम को ही वापस आएंगे।"

"लेकिन शाम होने से पहले ही मुझे वापस जाना है वीरेंद्र भैया।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"आप भी जानते हैं कि काम के चलते कहां किसी के पास कहीं आने जाने का समय होता है। वैसे भी गांव में अस्पताल और विद्यालय का निर्माण कार्य चालू है जो मेरी ही देख रेख में हो रहा है। इस लिए मुझे वापस जाना होगा। मैं तो बस भाभी को लेने आया था यहां। आप कृपया सबको बता दें कि मैं भाभी को लेने आया हूं।"

मेरी बात सुनते ही वीरेंद्र सिंह के चेहरे के भाव बड़ी तेज़ी से बदले। थोड़ी दुविधा और चिंता में नज़र आया वो मुझे। कुछ देर तक जाने क्या सोचता रहा फिर बोला____"ये आप क्या कह रहे हैं महाराज? आप रागिनी को लेने आए हैं? क्या दादा ठाकुर ने इसके लिए आपको भेजा है?"

"उनकी इजाज़त से ही आया हूं मैं।" मुझे उसकी बात थोड़ी अजीब लगी____"लेकिन आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?"

"देखिए इस बारे में मैं आपसे ज़्यादा कुछ नहीं कह सकता।" वीरेंद्र सिंह ने कहा____"कुछ देर में पिता जी आ जाएंगे तो आप उनसे ही बात कीजिएगा। ख़ैर मुझे जाने की इजाज़त दीजिए।"

वीरेंद्र सिंह इतना कह कर चला गया और इधर मैं मन में अजीब से ख़यालात लिए बैठा रह गया। मेरे लिए ये थोड़ी हैरानी की बात थी कि वीरेंद्र ऐसा क्यों बोल गया था? इसके पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ था कि मैं भाभी को लेने आऊं और ये लोग ऐसा बर्ताव करते हुए इस तरह की बातें करें। मुझे समझ न आया कि आख़िर ये माजरा क्या है? ख़ैर क्या कर सकता था? वीरेंद्र के अनुसार अब मुझे भाभी के पिता जी से ही इस बारे में बात करनी थी इस लिए उनके आने की प्रतिक्षा करने लगा।

अभी मैं प्रतीक्षा ही कर रहा था कि तभी अंदर से कुछ लोगों के आने का आभास हुआ मुझे तो मैं संभल कर बैठ गया। कुछ ही पलों में अंदर से वीरेंद्र सिंह की पत्नी वंदना और वीर सिंह की पत्नी गौरी मेरे सामने आ गईं। उनके पीछे मोहिनी और भाभी की छोटी बहन कामिनी भी आ गई।

"लगता है हमारे वैभव महाराज को सब अकेला छोड़ कर चले गए हैं।" वंदना ने मुस्कुराते हुए कहा____"इसी लिए यहां अकेले बैठे मक्खियां मार रहे हैं।"

"क्या करें भाभी मक्खियां ही मारेंगे अब।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"यहां मक्खियां भी तो बहुत ज़्यादा हैं। ख़ैर आप अपनी सुनाएं और हां आपका बेटा कैसा है? हमें भी तो दिखाइए उस नन्हें राज कुमार को।"

मेरी बात सुन कर सब मुस्कुरा उठीं। वंदना भाभी ने मोहिनी को अंदर भेजा बेटे को लाने के लिए। सहसा मेरी नज़र कामिनी पर पड़ी। वो अपलक मुझे ही देखे जा रही थी। जैसे ही मेरी नज़रें उससे टकराईं तो उसने झट से अपनी नज़र हटा ली। मुझे उसका ये बर्ताव अजीब लगा। आम तौर पर वो हमेशा मुझसे कोषों दूर रहती थी। मुझसे कभी ढंग से बात नहीं करती थी। मुझे भी पता था कि वो थोड़ी सनकी है और गुस्से वाली भी इस लिए मैं भी उससे ज़्यादा उलझता नहीं था। किंतु आज वो खुद मेरे सामने आई थी और जिस तरह से अपलक मुझे देखे जा रही थी वो हैरानी वाली बात थी।

बहरहाल, थोड़ी ही देर में मोहिनी नन्हें राज कुमार को ले के आई और उसे मेरी तरफ बढ़ा दिया। मैंने उस नाज़ुक से बच्चे को अपनी गोद में ले लिया और उसे देखने लगा। बड़ा ही प्यारा और मासूम नज़र आ रहा था वो। मैंने महसूस किया कि वो रंगत में अपनी मां पर गया था। एकदम गोरा चिट्ठा। फूले फूले गाल, बड़ी बड़ी आंखें, छोटी सी नाक और गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ। मैंने झुक कर उसके माथे पर और उसके गालों को चूम लिया। मुझे बच्चों को खिलाने का अथवा दुलार करने का कोई अनुभव नहीं था इस लिए मुझसे जैसे बन रहा था मैं उसे पुचकारते हुए दुलार कर रहा था। सहसा मुझे कुछ याद आया तो मैंने अपने गले से सोने की चैन उतार कर उसे पहना दिया।

"ये छोटा सा उपहार तुम्हारे छोटे फूफा जी की तरफ से।" फिर मैंने उसके गालों को एक उंगली से सहलाते हुए कहा____"हम चाहते हैं कि तुम बड़े हो कर अपने अच्छे कर्मों से अपने माता पिता का और अपने खानदान का नाम रोशन करो। ऊपर वाला तुम्हें हमेशा स्वस्थ रखे और एक ऊंची शख्सियत बनाए।"

कहने के साथ ही मैंने उसे फिर से चूमा और फिर वापस मोहिनी को पकड़ा दिया। उधर गौरी और वंदना भाभी ये सब देख मुस्कुरा रही थीं।

"वैसे क्या नाम रखा है आपने अपने इस बेटे का?" मैंने पूछा तो वंदना भाभी ने कहा____"शैलेंद्र....शैलेंद्र सिंह।"

"वाह! बहुत अच्छा नाम है।" मैंने कहा____"मुझे बहुत खुशी हुई इसे देख कर।"

"वैसे आप बहुत नसीब वाले हैं महाराज।" गौरी भाभी ने कहा____"और वो इस लिए क्योंकि इसने आपको नहलाया नहीं वरना ये जिसकी भी गोद में जाता है उसे नहलाता ज़रूर है।"

"हा हा हा।" मैं ठहाका लगा कर हंसा____"अच्छा ऐसा है क्या?"

"हां जी।" गौरी भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"ये शैतान किसी को भी नहीं छोड़ता। जाने कैसे आपको बचा दिया इसने?"

"अरे! भई मैंने इसके लिए रिश्वत में उपहार जो दिया है इसे।" मैंने कहा____"उपहार से खुश हो कर ही इसने मुझे नहीं नहलाया।"

"हां शायद यही बात हो सकती है।" दोनों भाभियां मेरी बात से हंस पड़ीं।

"अच्छा हुआ आप आ गए महाराज।" वंदना भाभी ने खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"हमें भी आपके दर्शन हो गए।"

"आपके आने से एक और बात अच्छी हुई है महाराज।" गौरी भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"इतने दिनों में हमने पहली बार अपनी ननद रानी के चेहरे पर एक खुशी की झलक देखी है। वरना हम तो चाह कर भी उनके चेहरे पर खुशी नहीं ला पाए थे।"

"क्या आप मेरी भाभी के बारे में बात कर रही हैं?" मैं उत्साहित सा पूछ बैठा।

"और नहीं तो क्या।" गौरी भाभी ने पहले की ही तरह मुस्कराते हुए कहा____"और भला हम किसके बारे में बात करेंगे आपसे? हम आपकी भाभी के बारे में ही आपको बता रहे हैं।"

"कैसी हैं वो?" मैं एकदम से व्याकुल सा हो उठा_____"और....और ये आप क्या कह रही हैं कि आप लोग उन्हें खुश नहीं रख पाए? मतलब आपने भाभी को दुखी रखा यहां?"

"हाय राम! आप ये कैसे कह सकते हैं महाराज?" गौरी भाभी ने हैरानी ज़ाहिर की_____"हम भला अपनी ननद को दुखी रखने का सोच भी कैसे सकते हैं?"

"तो फिर वो खुश क्यों नहीं थीं यहां?" मैंने सहसा फिक्रमंद होते हुए पूछा_____"अपनों के बीच रह कर भी वो खुश नहीं थीं, ऐसा कैसे हो सकता है? वैसे कहां हैं वो? मुझे अपनी भाभी से मिलना है। उनका हाल चाल पूछना है। कृपया आप या तो मुझे उनके पास ले चलें या फिर उन्हें यहां ले आएं।"

मेरी बात सुन कर गौरी और वंदना भाभी ने एक दूसरे की तरफ देखा। आंखों ही आंखों में जाने क्या बात हुई उनकी। उधर मोहिनी और कामिनी चुपचाप खड़ी मुझे ही देखे जा रहीं थी। ख़ास कर कामिनी, पता नहीं आज उसे क्या हो गया था?

"क्या हुआ?" उन दोनों को कुछ बोलता न देख मैंने पूछा____"आप दोनों कुछ बोल क्यों नहीं रहीं हैं? मुझे अपनी भाभी से अभी मिलना है। एक बात और, मैं यहां उन्हें लेने आया हूं इस लिए उनके जाने की तैयारी भी कीजिए आप लोग। अगर मेरी भाभी यहां खुश नहीं हैं तो मैं उन्हें एक पल भी यहां नहीं रहने दूंगा।"

"अरे! आप तो खामखां परेशान हो गए वैभव महाराज।" वंदना भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"हम दोनों तो बस आपसे मज़ाक में ऐसा कह रहे थे। सच तो ये है कि आपकी भाभी यहां खुश हैं। उन्हें किसी बात का कोई दुख नहीं है।"

"भाभी के बारे में इस तरह का मज़ाक कैसे कर सकती हैं आप?" मैं एकदम से आवेश में आ गया____"क्या आपको ज़रा भी एहसास नहीं है कि उनकी क्या हालत है और वो कैसी दशा में हैं?"

मेरी आवेश में कही गई बात सुनते ही दोनों भाभियों का हंसना मुस्कुराना फ़ौरन ही ग़ायब हो गया। उन्हें भी पता था कि मैं किस तरह का इंसान था। दोनों ने फ़ौरन ही मुझसे माफ़ी मांगी और फिर कहा कि वो मेरी भाभी को भेजती हैं मेरे पास। वैसे तो बात बहुत छोटी थी किंतु मेरी नज़र में शायद वो बड़ी हो गई थी और इसी वजह से मुझे गुस्सा आ गया था। ख़ैर दोनों भाभियां अंदर चली गईं और उनके पीछे मोहिनी तथा कामिनी भी चली गई।

चौपार के दूसरी तरफ चारपाई पर भीमा बैठा हुआ था जिसने हमारी बातें भी सुनी थी। मैंने उसे बाहर जाने को कहा तो वो उठ कर चला गया। वैसे भी उसके सामने भाभी यहां मुझसे नहीं मिल सकतीं थीं। ख़ैर थोड़ी ही देर में वंदना भाभी उन्हें ले कर आ गईं। भाभी को देखते ही मैं चौंक पड़ा।

भाभी को सलवार कुर्ते में देख मैं अवाक् सा रह गया था। दुपट्टे को उन्होंने अपने सिर पर ले रखा था और बाकी का हिस्सा उनके सीने के उभारों पर था। उधर भाभी को मेरे पास छोड़ कर वंदना भाभी वापस अंदर चली गईं। अब बैठके में सिर्फ मैं और भाभी ही थे।

मुझे उम्मीद नहीं थी कि मैं भाभी को यहां सलवार कुर्ते में देखूंगा। मेरे मन में तो यही था कि वो अपने उसी लिबास में होंगी, यानि विधवा के सफेद लिबास में। ख़ैर ये कोई बड़ी बात नहीं थी क्योंकि अक्सर शादी शुदा बेटियां अपने मायके में सलवार कुर्ता भी पहना करती हैं।

मैंने देखा भाभी सिर झुकाए खड़ीं थी। चेहरे पर वैसा तेज़ नहीं दिख रहा था जैसा इसके पहले देखा करता था मैं। लेकिन मैंने महसूस किया कि उनके चेहरे पर थोड़े शर्म के भाव ज़रूर थे। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि वो अपने देवर के सामने अपने मायके में सलवार कुर्ते में थीं।

"प्रणाम भाभी।" एकाएक ही मुझे होश आया तो मैंने उठ कर उनके पैर छुए।

शायद वो किसी सोच में गुम थीं इस लिए जैसे ही उनके पांव छू कर मैंने प्रणाम भाभी कहा तो वो एकदम से चौंक पड़ी और साथ ही दो क़दम पीछे हट गईं। उनके इस बर्ताव से मुझे तनिक हैरानी हुई किंतु मैंने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया।

"क्या हुआ भाभी?" उन्हें चुप देख मैंने पूछा____"आपने मेरे प्रणाम का जवाब नहीं दिया? क्या मेरे यहां आने से आपको ख़ुशी नहीं हुई?"

"न...नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है।" उन्होंने झट से मेरी तरफ देखते हुए धीमें स्वर में कहा____"मुझे अच्छा लगा कि तुम यहां आए। हवेली में सब कैसे हैं? मां जी और पिता जी कैसे हैं?"

"सब ठीक हैं भाभी।" मैंने गहरी सांस ली____"लेकिन वहां आप नहीं हैं तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता। आपको पता है, मैं पिछले एक महीने से आपको वापस लाने के लिए मां से आग्रह कर रहा था लेकिन हर बार वो मुझे यहां आने से मना कर देती थीं। मेरे पूछने पर यही कहती थीं कि आपको कुछ समय तक अपने माता पिता के पास रहने देना ही बेहतर है। मजबूरन मुझे भी उनकी बात माननी पड़ती थी लेकिन अब और नहीं मान सका मैं। दो महीने हो गए भाभी, किसी और को आपकी कमी महसूस होती हो या नहीं लेकिन मुझे होती है। मुझे अपनी प्यारी सी भाभी की हर पल कमी महसूस होती है। मुझे इस बात की कमी महसूस होती है कि मेरे काम के बारे में सच्चे दिल से समीक्षा करने वाली वहां आप नहीं हैं। मुझे ये बताने वाला कोई नहीं है कि मैं आपकी उम्मीदों पर खरा उतर पा रहा हूं या नहीं। बस, अब और मुझसे बर्दास्त नहीं हुआ इस लिए कल रात ही मैंने फ़ैसला कर लिया था कि सुबह यहां आऊंगा और आपको ले कर वापस हवेली लौट आऊंगा। आप चलने की तैयारी कर लीजिए भाभी, हम शाम होने से पहले ही यहां से चलेंगे।"

"ज़ल्दबाज़ी में कोई फ़ैसला मत लो।" भाभी ने पहले की भांति ही धीमें स्वर में कहा____"और वैसे भी मेरी अभी इच्छा नहीं है वापस हवेली जाने की। मैं अभी कुछ समय और यहां अपने माता पिता और भैया भाभी के पास रहना चाहती हूं। मुझे खेद है कि तुम्हें अकेले ही वापस जाना होगा।"

"य...ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" मैंने चकित भाव से उन्हें देखा____"सच सच बताइए क्या आप सच में मेरे साथ नहीं जाना चाहती हैं? क्या सच में आप अपने देवर को इस तरह वापस अकेले भेज देंगी?"

"तुम्हारी खुशी के लिए मैं ज़रूर तुम्हारे साथ चल दूंगी वैभव।" भाभी ने गंभीरता से कहा____"किंतु क्या तुम सच में नहीं चाहते कि तुम्हारी ये अभागन भाभी कुछ समय और अपने माता पिता के पास रह कर अपने सारे दुख दर्द भूली रहे?"

"ऐसा मत कहिए भाभी।" मैंने संजीदा हो कर कहा____"अगर वाकई में यहां रहने से आप अपने दुख दर्द भूल जाती हैं तो मैं बिल्कुल भी आपको चलने के लिए मजबूर नहीं करूंगा। मैं तो यही चाहता हूं कि मेरी भाभी अपने सारे दुख दर्द भूल जाएं और हमेशा खुश रहें। अगर मेरे बस में होता तो आपकी तरफ किसी दुख दर्द को आने भी नहीं देता लेकिन क्या करूं....ये मेरे बस में ही नहीं है।"

"खुद को किसी बात के लिए हलकान मत करो।" भाभी ने कहा____"मैं अच्छी तरह जानती हूं कि तुमसे जो हो सकता है वो तुम करते हो। ख़ैर छोड़ो ये सब, तुम बताओ अब कैसा महसूस करते हो? मेरा मतलब है कि क्या अब तुम ठीक हो? सरोज मां कैसी हैं और....और रूपा कैसी है? उसे ज़्यादा परेशान तो नहीं करते हो ना तुम?"

"उससे तो एक महीने से मुलाक़ात ही नहीं हुई भाभी।" मैंने कहा____"असल में समय ही नहीं मिला। एक तो खेतों के काम, ऊपर से अब गांव में अस्पताल और विद्यालय भी बन रहा है तो उसी में व्यस्त रहता हूं। बहुत दिनों से आपकी बहुत याद आ रही थी। मां की वजह से यहां आ नहीं पाता था। मैं देखना चाहता था कि आप कैसी हैं और क्यों आप वापस नहीं आ रही हैं? क्या मुझसे कोई ख़ता हो गई है जिसके चलते....।"

"ऐसी कोई बात नहीं है।" भाभी ने मेरी तरफ अपलक देखते हुए कहा____"तुमसे कोई ख़ता नहीं हुई है और अगर हो भी जाएगी तो मैं उसके लिए तुम्हें खुशी से माफ़ कर दूंगी।"

"क्या सच में आप मेरे साथ नहीं चलेंगी?" मैंने जैसे आख़िरी कोशिश की____"यकीन मानिए आपके बिना हवेली में बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता।"

"जब अच्छा न लगे तो रूपा के पास चले जाया करो।" भाभी ने कहा____"तुमसे ज़्यादा दूर भी नहीं है वो।"

"सबकी अपनी अपनी अहमियत होती है भाभी।" मैंने कहा____"जहां आप हैं वहां वो नहीं हो सकती।"

"क्यों भला?" भाभी ने नज़र उठा कर देखा।

"आप अच्छी तरह जानती हैं।" मैंने उनकी आंखों में देखा।

इस बार भाभी कुछ न बोलीं। बस मेरी तरफ अपलक देखती रहीं। तभी बाहर से किसी के आने का आभास हुआ तो वो जल्दी से पलटीं और अंदर चली गईं। मैं असहाय सा बैठा रह गया। कुछ ही पलों में बाहर से एक औरत अंदर आई। मुझे देखते ही उसने झट से अपना चेहरा घूंघट कर के छुपा लिया और अंदर की तरफ चली गई।




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Game888

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अध्याय - 140
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इस बार भाभी कुछ न बोलीं। बस मेरी तरफ अपलक देखती रहीं। तभी बाहर से किसी के आने का आभास हुआ तो वो जल्दी से पलटीं और अंदर चली गईं। मैं असहाय सा बैठा रह गया। कुछ ही पलों में बाहर से एक औरत अंदर आई। मुझे देखते ही उसने झट से अपना चेहरा घूंघट कर के छुपा लिया और अंदर की तरफ चली गई।


अब आगे....


कुछ देर मैं यूं ही बैठा रहा और भाभी के बारे में सोचता रहा। उसके बाद मैं उठा और बाहर आया। भीमा बाहर सड़क के पास खड़ा था। मैंने उसे आवाज़ दे कर अंदर बुला लिया।

शाम होने में अभी क़रीब दो ढाई घंटे का समय था इस लिए मैं आराम से पलंग पर लेट गया। भीमा भी दूसरी तरफ चारपाई पर लेट गया था। इधर मैं आंखें बंद किए भाभी से हुई बातों के बारे में सोचने लगा। जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कुछ बदला बदला सा है। भाभी का बर्ताव भी मुझे कुछ बदला हुआ और थोड़ा अजीब सा लगा था। इसके पहले वो अक्सर मुझे छेड़तीं थी, मेरी टांग खींचतीं थी और तो और मेरी हेकड़ी निकाल कर आसमान से सीधा ज़मीन पर ले आतीं थी किंतु आज ऐसा कुछ भी नज़र नहीं आया था। उनके चेहरे पर कोई खुशी, कोई उत्साह, कोई चंचलता नहीं थी। अगर कुछ थी तो सिर्फ गंभीरता। उनकी आवाज़ भी धींमी थी।

मुझे लगा शायद वो अपने मायके में होने की वजह से अपने देवर से खुल कर बात नहीं कर पा रहीं थी। हां, ज़रूर यही बात होगी वरना भाभी मेरे सामने इतनी असामान्य नहीं हो सकती थीं। बहरहाल मैंने अपने ज़हन से सारी बातों को झटक दिया और आराम से सोने की कोशिश करने लगा मगर काफी देर गुज़र जाने पर भी मुझे नींद न आई। मन में एक खालीपन और एक बेचैनी सी महसूस हो रही थी।

एकाएक ही मुझे एहसास हुआ कि शाम होने से पहले मुझे वापस अपने गांव जाना है। जैसे आया था वैसे ही वापस जाना होगा मुझे। बड़ी खुशी के साथ और बड़ी उम्मीद के साथ मैं अपनी प्यारी सी भाभी को लेने आया था लेकिन भाभी खुद ही जाने को राज़ी नहीं थीं और मैं उन्हें चलने के लिए मजबूर भी नहीं कर सकता था। कुछ ही पलों में मेरी सारी खुशी और सारा उत्साह बर्फ़ की मानिंद ठंडा पड़ गया था।

मैं आंखें बंद किए ये सब सोच ही रहा था कि तभी मेरे कानों में पायल छनकने की आवाज़ें पड़ीं। कोई अंदर से आ रहा था जिसके पैरों की पायल छनक रही थी। मैंने करवट ली हुई थी इस लिए मैं देख नहीं सकता था कि कौन आ रहा है। पायल की छनकती आवाज़ एकाएक बंद हो गईं। मैंने महसूस किया कि मेरे क़रीब ही पायलों का छनकना बंद हुआ है।

"लगता है जीजा जी सो गए हैं।" तभी किसी की मधुर किंतु बहुत ही धींमी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे बोलने वाले ने किसी दूसरे से ऐसा कहा था_____"अब क्या करें? क्या हमें जीजा जी को जगाना चाहिए? वैसे दीदी ने कहा है कि हम इन्हें परेशान न करें।"

"मुझे अच्छी तरह पता है कि इन महापुरुष को इतना जल्दी यहां नींद नहीं आने वाली।" ये दूसरी आवाज़ थी। आवाज़ धीमी तो थी लेकिन लहजा थोड़ा कर्कश सा था।

मैं फ़ौरन ही पहचान गया कि ये आवाज़ भाभी की छोटी बहन कामिनी की है। मुझे हैरानी हुई कि कामिनी इस वक्त यहां क्यों आई होगी, वो भी मेरे क़रीब? उसका और मेरा तो छत्तीस का आंकड़ा था। कभी सीधे मुंह बात नहीं करती थी वो। हालाकि इसमें उसका नहीं मेरा ही दोष था क्योंकि शुरुआत से ही मेरी हवस भरी नज़रों का उसी ने सामना किया था। उसे मेरी आदतों से और मेरी हरकतों से सख़्त नफ़रत थी।

"धीरे बोलिए दीदी।" पहले वाली ने धीमें स्वर में उससे कहा____"जीजा जी सुन लेंगे तो नाराज़ हो जाएंगे।"

"मुझे फ़र्क नहीं पड़ता।" कामिनी ने जैसे लापरवाही से कहा_____"वैसे भी मैं इनकी नाराज़गी से थोड़े ना डरती हूं।"

"हां हां समझ गई मैं।" पहले वाली आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। मैं उसकी आवाज़ से उसको पहचानने की कोशिश में लगा हुआ था। अरे! ये तो कंचन थी। भैया के चाचा ससुर की बेटी। बहरहाल उसने आगे कहा____"पर अब क्या करना है? वापस चलें?"

"तू जा।" कामिनी ने उससे कहा____"मैं देखती हूं इन्हें और हां अंदर किसी को कुछ मत बताना। ख़ास कर दीदी को तो बिल्कुल भी नहीं। पहले तो वो अपने देवर का पक्ष लेतीं ही थी किंतु अब तो कहना ही क्या। ख़ैर तू जा अब।"

कामिनी की इन बातों के बाद कंचन चली गई। उसके पायलों की छम छम से मुझे पता चल गया था। इधर अब मैं ये सोचने लगा कि कामिनी क्या करने वाली है? मैं पहले से ही उसके इस बर्ताव से हैरान था किंतु अब तो धड़कनें ही बढ़ गईं थी मेरी। बहरहाल, मैं आंखें बंद किए चुपचाप लेटा रहा और उसकी तरफ से किसी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करने लगा। इसके लिए मुझे ज़्यादा देर प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। मैंने महसूस किया कि वो पीछे से घूम कर मेरे सामने की तरफ आई और मेरे सामने वाले पलंग पर बैठ गई। मेरी धड़कनें ये सोच कर धाड़ धाड़ कर के बजने लगीं कि जाने ये आफ़त अब क्या करने वाली है?

"ज़्यादा नाटक करने की ज़रूरत नहीं है।" इस बार उसकी आवाज़ स्पष्ट रूप से मेरे कानों में पड़ी_____"मुझे अच्छी तरह पता है कि आप सो नहीं रहे हैं। अब चुपचाप अपना नाटक बंद कर के आंखें खोल लीजिए, वरना इंसान को गहरी नींद से जगाना भी मुझे अच्छी तरह आता है।"

ये तो सरासर धमकी थी, वो भी मेरे जैसे सूरमा को। मैं उसकी इस धमकी पर मन ही मन मुस्कुरा उठा। हालाकि उससे डरने का तो सवाल ही नहीं था लेकिन मैं नहीं चाहता था कि कोई तमाशा हो जाए। दूसरी वजह ये भी थी कि मैं उसके बर्ताव से हैरान था और जानना चाहता था कि आख़िर वो किस मकसद से मेरे पास आई थी?

"लीजिए सरकार, हमने अपनी आंखें खोल दी।" मैंने आंखें खोल कर उसकी तरफ देखते हुए उठ कर बैठ गया, फिर बोला_____"आप इतनी मोहब्बत से हमें जाग जाने को कह रहीं हैं तो हमें उठना ही पड़ेगा। कहिए, क्या चाहती हैं आप हमसे? प्यार मोहब्बत या फिर कुछ और?"

"हद है, आप कभी नहीं सुधरेंगे।" कामिनी ने मुझे घूरते हुए कहा____"जब देखो वही छिछोरी हरकतें।"

"आप भी कीजिए।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"यकीन मानिए, बहुत मज़ा आएगा।"

कामिनी ने मुझे खा जाने वाली नज़रों से देखा। पलक झपकते ही उसका चेहरा तमतमाया गया सा नज़र आया। ऐसी ही थी वो। ऐसा नहीं था कि उसे मज़ाक पसंद नहीं था लेकिन मेरा उससे मज़ाक करना बिल्कुल पसंद नहीं था। उसके ज़हन में ये बात बैठ चुकी थी कि मैं हर लड़की को सिर्फ भोगने के लिए ही अपने मोह जाल में फंसाता हूं।

"उफ्फ! इतनी मोहब्बत से हमें मत देखिए सरकार।" मैंने उसे और गरमाया_____"वरना एक ही पल में ढेर हो जाएंगे हम।"

"क्यों करते हैं ऐसी गन्दी हरकतें?" उसने जैसे अपने गुस्से को बड़ी मुश्किल से दबाते हुए मुझसे कहा____"क्या आप कभी किसी से सभ्य इंसानों जैसी बातें नहीं कर सकते?"

"अब ये तो सबका अपना अपना सोचने का नज़रिया है सरकार।" मैंने कहा____"आपको मेरी बातें सभ्य नहीं लगती जबकि यही बातें दूसरों को सभ्य लगती हैं। प्यार मोहब्बत की चाशनी में डूबी हुई लगती हैं। आपको नहीं लगती हैं तो इसका मतलब ये है कि या तो आपका ज़ायका ख़राब है या फिर आपकी समझदानी में ही गड़बड़ी है।"

"मतलब आप स्पष्ट रूप से ये कह रहे हैं कि मेरे पास दिमाग़ नहीं है?" कामिनी ने इस बार गुस्से से मेरी तरफ देखा____"और मैं किसी की बातों का मतलब ही नहीं समझती हूं?"

"क्या आप मुझसे झगड़ा करने ही आईं थी?" मैंने विषय को बदलने की गरज से इस बार थोड़ा गंभीरता से कहा____"अगर झगड़ा ही करने आईं थी तो ठीक है मैं तैयार हूं लेकिन यदि किसी और वजह से आईं थी तो सीधे मुद्दे की बातों पर आइए। वैसे मैं हैरान हूं कि जो लड़की मुझे अपना कट्टर दुश्मन समझती है वो मुझसे गुफ़्तगू करने कैसे आई है?"

कामिनी ने इस बार फ़ौरन कुछ ना कहा। उसने सबसे पहले अपने गुस्से को काबू किया और आंखें बंद कर के गहरी गहरी सांसें ली। नीले रंग का कुर्ता सलवार पहन रखा था उसने। दुपट्टे से उसने अपने सीने के उभारों को पूरी तरह से ढंक रखा था। ऐसा हमेशा होता था, मेरे सामने आते ही वो कुछ ज़्यादा ही चौकन्नी हो जाती थी।

"अब कुछ बोलिए भी।" मैंने कहा____"मैं बड़ी शिद्दत से जानना चाहता हूं कामिनी देवी आज मेरे सामने कैसे बैठी हैं और मुझसे इतनी मोहब्बत से बातें क्यों कर रही हैं?"

"आप फिर से शुरू हो गए?" उसने मुझे घूरा।

"अगर आप बड़ी मोहब्बत से शुरू हो जातीं तो हम रुके रहते।" मैंने हौले से मुस्कुराते हुए कहा____"ख़ैर बताइए आज सूरज किस दिशा से उगा है चंदनपुर में?"

"क्या आप सच में दीदी को लेने आए हैं?" उसने जैसे मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया और पूछा।

"क्या आपको कोई शक है इसमें?" मैंने कहा____"वैसे आप भी हमारे साथ चलतीं तो क़सम से आनन्द ही आ जाता।"

"किसी कीमत पर नहीं।" कामिनी ने दृढ़ता से कहा____"आपके साथ तो किसी जन्म में कहीं नहीं जाऊंगी मैं।"

"वाह! इतनी शिद्दत से मोहब्बत आप ही कर सकती हैं मुझसे।" मैं मुस्कुराया।

"ये मोहब्बत नहीं है।" उसने घूरते हुए कहा____"बल्कि...।"

"नफ़रत है?" उसकी बता काट कर मैंने उसकी बात पूरी की_____"जानता हूं मैं लेकिन शायद आप ये नहीं जानती कि नफ़रत और मोहब्बत का जन्म एक ही जगह से होता है....दिल से। अब दिल से नफ़रत कीजिए या मोहब्बत, ये तो पक्की बात है ना कि किसी न किसी भावना से आपने मुझे अपना बना ही रखा है।"

"अपने मन को बहलाने के लिए ख़याल अच्छा है।" कामिनी ने कहा____"ख़ैर मैं आपको ये बताने के लिए आई थी कि दीदी को हम लोग अब नहीं भेजेंगे। वो यहीं रहेंगी, हमारे साथ।"

"क...क्या मतलब?" मैं एकदम से चौंक पड़ा____"ये क्या कह रही हैं आप?"

"वही जो आपने सुना है।" कामिनी ने स्पष्ट रूप से कहा____"भैया ने आपसे स्पष्ट रूप में इसी लिए नहीं कहा क्योंकि वो शायद संकोच कर गए थे लेकिन सच यही है कि दीदी अब यहीं रहेंगी। आपको अकेले ही वापस जाना होगा।"

"अरे! भला ये क्या बात हुई?" मैं बुरी तरह हैरान परेशान सा बोल पड़ा____"माना कि भाभी का ये मायका है और वो यहां जब तक चाहे रह सकती हैं लेकिन इसका क्या मतलब हुआ कि वो अब यहां से नहीं जाएंगी?"

"बस नहीं जाएंगी।" कामिनी ने अजीब भाव से कहा____"वैसे भी जिनसे उनका संबंध था वो तो अब रहे नहीं। फिर भला हम कैसे उन्हें इस दुख के साथ जीवन भर उस हवेली में विधवा बहू बन कर रहने दें? आपको शायद पता नहीं है कि पिता जी ने दीदी का फिर से ब्याह कर देने का फ़ैसला किया है। आप तो जानते ही है कि दीदी की अभी उमर ही क्या है जो वो आपके भाई की विधवा बन कर सारी ज़िंदगी दुख और कष्ट में गुज़ारें।"

कामिनी की बातें किसी पिघले हुए शीशे की तरह मेरे कानों में अंदर तक समाती चली गईं थी। मेरे दिलो दिमाग़ में एकाएक ही हलचल सी मच गई थी। मन में तरह तरह के ख़यालों की आंधी सी आ गई थी।

"अगर ये मज़ाक है।" फिर मैंने सख़्त भाव से कहा____"तो समझ लीजिए कि मुझे इस तरह का घटिया मज़ाक बिल्कुल भी पसंद नहीं है। आप भाभी के बारे में ऐसी बकवास कैसे कर सकती हैं?"

"ये बकवास नहीं है जीजा जी।" कामिनी ने कहा____"हकीक़त है हकीक़त। मैं मानती हूं कि आप अपनी भाभी के बारे में इस तरह की बातें नहीं सुन सकते हैं लेकिन खुद सोचिए कि क्या आप यही चाहते हैं कि मेरी दीदी अपना पहाड़ जैसा जीवन विधवा बन कर ही गुज़ारें? क्या आप यही चाहते हैं कि उनके जीवन में कभी खुशियों के कोई रंग ही न आएं? क्या आप यही चाहते हैं कि वो जीवन भर अकेले दुख दर्द में डूबी रहें?"

"नहीं नहीं।" मैं झट से बोल पड़ा____"अपनी भाभी के बारे में मैं ऐसा सपने में भी नहीं सोच सकता। मैं तो....मैं तो यही दुआ करता हूं कि उनकी ज़िंदगी में पहले जैसी ही खुशियां आ जाएं जिससे मेरी भाभी का चेहरा फिर से पूर्णिमा के चांद की तरह चमकने लगे। मैं तो चाहता हूं कि मेरी भाभी के होठों पर हमेशा खुशियों से भरी मुस्कान सजी रहे। उनके जीवन में दुख का एक तिनका भी कभी न आए।"

"अगर आप सच में ऐसा चाहते हैं।" कामिनी ने कहा____"तो फिर आपको इस बात से कोई एतराज़ अथवा कष्ट नहीं होना चाहिए कि उनका फिर से कहीं ब्याह हो जाए। आप भी समझने की कोशिश कीजिए कि उनके जीवन में इस तरह की खुशियां तभी आ सकती हैं जब हमेशा के लिए उनके बदन से विधवा का लिबास उतार दिया जाए और उन्हें किसी की सुहागन बना दिया जाए। पिता जी भी ये नहीं सह पा रहे हैं कि उनकी बेटी इतनी सी उमर में विधवा हो कर सारा जीवन दुख और कष्ट में ही व्यतीत करने पर मज़बूर हैं।"

सच कहूं तो मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मैं एकाएक आसमान से ज़मीन पर आ गिरा था। भाभी का फिर से ब्याह करने का कोई सोचेगा इस बारे में तो मैंने अब तक कल्पना ही नहीं की थी। सच ही तो कह रही थी कामिनी कि उनकी ज़िंदगी में खुशियां तभी आ सकती हैं जब उनका फिर से ब्याह कर दिया जाए और उन्हें किसी की सुहागन बना दिया जाए। सच ही तो था, एक विधवा के रूप में भला वो कैसे खुश रह सकती थीं? असल खुशियां तो तभी मिलती हैं जब इंसान का जीवन खुशियों के रंगों से भरा हो। एक विधवा के जीवन में सफेद रंग के अलावा दूसरा कोई रंग भरा ही नहीं जा सकता था?

मेरे मनो मस्तिष्क में धमाके से होने लगे थे। पहली बार मैं इस तरीके से सोचने पर मजबूर हुआ था। पहली बार इतनी गहराई से सोचने का मानों अवसर मिला था। अचानक ही मेरे मन में एक ख़याल बिजली की तरह आ गिरा....भाभी का फिर से ब्याह हो जाएगा, यानि वो किसी की पत्नी बन जाएंगी। उसके बाद उनसे मेरा कोई रिश्ता नहीं रह जाएगा। आज वो मेरी भाभी हैं लेकिन ब्याह के बाद वो किसी और के रिश्ते में बंध जाएंगी। हवेली की बहू और हवेली शान हमेशा के लिए किसी दूसरे के घर की शान बन जाएगी।

एक झटके में जैसे मैं वास्तविकता के धरातल पर आ गया जिसके एहसास ने मुझे अंदर तक हिला डाला। एक झटके में भाभी का प्यार और स्नेह मुझे अपने से दूर होता नज़र आने लगा। उनका वो छेड़ना, वो टांगे खींचना और एक झटके में मेरी हेकड़ी निकाल देना ये सब कभी न भुलाई जा सकने वाली याद सा बनता महसूस हुआ। पलक झपकते ही आंखों के सामने भाभी का सुंदर चेहरा उभर आया...और फिर अगले ही पल एक एक कर के वो हर लम्हें उभरने लगे जिनमें मेरी उनसे मुलाक़ातों की तस्वीरें थीं। जब भैया जीवित थे तब की तस्वीरें। भाभी तब सुहागन थीं, बहुत सुंदर और मासूम नज़र आतीं थी वो। फिर एकदम से तस्वीरें बड़ी तेज़ी से बदलने लगीं और कुछ ही पलों में उस वक्त की तस्वीर उभर आई जब कुछ देर पहले मैंने उन्हें देखा था।

एक झटके में मुझे अपनी कोई बहुत ही अनमोल चीज़ खो देने जैसा एहसास हुआ। मेरे अंदर भाभी को खो देने जैसी पीड़ा उभर आई। मैं एकदम से दुखी और उदास सा हो गया। मेरी आंखें अनायास ही बंद हो गईं और ना चाहते हुए भी आंखों की कोर से आंसू का एक कतरा छलक गया। मैंने हड़बड़ा कर जल्दी से उसे पोंछ लिया। मैं नहीं चाहता था कि कामिनी मेरी आंख से निकले आंसू के उस कतरे को देख ले।

"क्या हुआ जीजा जी?" सहसा कामिनी की आवाज़ से मैं चौंका____"आप एकदम से चुप क्यों हो गए? क्या मैंने कुछ ग़लत कह दिया है आपसे?"

"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।" मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा____"आपने भाभी के बारे में जो भी कहा वो एकदम से उचित ही कहा है। मुझसे अच्छी तो आप हैं कामिनी जो अपनी दीदी की खुशियों के बारे में इतना कुछ सोच बैठी हैं। एक मैं हूं जो अब तक यही समझ रहा था कि मैं अपनी भाभी को खुश रखने के लिए बहुत कुछ कर रहा हूं। हैरत की बात है कि मैं कभी ये सोच ही नहीं पाया कि एक औरत को असल खुशी तभी मिल सकती है जब उसका सम्पूर्ण जीवन खुशियों के अलग अलग रंगों से भर जाए और ऐसा तो तभी हो सकता है ना जब उस औरत का फिर से कहीं ब्याह हो जाए। आज मुझे अपनी ग़लती का एहसास हो गया है और इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद भी देता हूं कि आपने मुझे इस सत्य का एहसास कराया। आपके पिता जी ने अपनी बेटी की खुशी के लिए बहुत ही उम्दा कार्य करने का फ़ैसला लिया है। मुझे अपनी भाभी के लिए इस बात से बहुत खुशी हो रही है। ईश्वर से यही प्रार्थना करता था कि वो उन्हें हमेशा खुश रखें तो अब ऐसा हो जाने से वो वाकई में खुश ही रहेंगी।"

कामिनी मेरी तरफ ही देखे जा रही थी। उसके चेहरे पर थोड़े हैरानी के भाव भी उभर आए थे। शायद उसे मुझसे ऐसी गंभीर बातों की उम्मीद नहीं थी। वो तो यही समझती थी कि मैं एक बहुत ही ज़्यादा बिगड़ा हुआ लड़का हूं जिसे किसी की भावनाओं से अथवा किसी के दुख दर्द से कोई मतलब ही नहीं होता है।

"वैसे इतनी बड़ी बात हो गई और किसी ने मुझे बताया तक नहीं।" फिर मैंने कहा____"मुझे अब समझ आ रहा है कि क्यों हर बार मां मुझे भाभी को लेने आने से मना कर रहीं थी। आते समय पिता जी ने भी यही कहा था कि अगर यहां पर आप लोग भाभी को मेरे साथ भेजने से मना करें तो मैं इसके लिए किसी पर दबाव नहीं डालूंगा। इसका मतलब तो यही हुआ कि मां और पिता जी को भी इस बारे में पता है। यानि वो भी जानते हैं कि आपके पिता जी भाभी का फिर से ब्याह कर देना चाहते हैं?"

"इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है।" कामिनी ने कहा____"पर आपकी बातों से तो यही लगता है कि उन्हें इस बारे में पता है।"

"हां लेकिन मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि उन्होंने इस बारे में मुझे क्यों कुछ नहीं बताया?" मैंने उलझन पूर्ण भाव से कहा____"अगर वो उसी समय मुझे बता देते तो भला क्या हो जाता?"

कामिनी के पास जैसे मेरे इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। वो भी सोच में पड़ गई थी। कुछ देर तक हमारे बीच ख़ामोशी ही रही। मुझे बहुत अजीब महसूस हो रहा था। एकदम से अब मुझे पराएपन का एहसास होने लगा था।

"मैंने हमेशा आपके साथ ग़लत बर्ताव किया है कामिनी।" फिर मैंने गंभीरता से कहा____"हमेशा आपको परेशान किया है, इसके लिए माफ़ कर दीजिएगा मुझे।"

"अरे! ये क्या कह रहे हैं आप?" कामिनी एकदम से चौंकी____"देखिए आप इस तरह मुझसे माफ़ी मत मांगिए।"

"मेरी एक विनती है आपसे।" मैंने उसकी तरफ देखा____"मैं अपनी भाभी को आख़िरी बार देख लेना चाहता हूं। क्या आप उन्हें यहां भेज देंगी? देखिए मना मत करना।"

"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" कामिनी के चेहरे पर हैरानी और उलझन जैसे भाव उभर आए____"अच्छा ठीक है, मैं जा कर दीदी को आपकी ये बात बता देती हूं।"

"उन्हें सिर्फ बताना ही नहीं है।" मैंने ज़ोर देते हुए कहा____"उनसे कहना कि उनका देवर उनसे आख़िरी बार मिलना चाहता है।"

कामिनी ठीक है कहते हुए उठी और अंदर चली गई। इधर मैं दुखी मन से बैठा जाने क्या क्या सोचने लगा। मुझे इस बात की तो खुशी थी कि भाभी का किसी से ब्याह हो जाएगा तो वो हमेशा खुश रहेंगी लेकिन अब इस बात का बेहद दुख भी हो रहा था कि मैं अब हमेशा के लिए अपनी भाभी को खो दूंगा। मेरे बदले हुए जीवन में उनका बहुत योगदान था। आज मैं बदल कर यहां तक पहुंचा था तो इसमें भाभी का भी बहुत बड़ा हाथ था। वो हमेशा मुझे अच्छा इंसान बनने के लिए ज़ोर देती थीं। हमेशा मेरा मार्गदर्शन करतीं थी। मेरे माता पिता को तो उनके जैसी बहू पाने पर हमेशा से गर्व था ही किंतु मुझे भी उनके जैसी भाभी पाने पर नाज़ था।

काश! विधाता ने बड़े भैया का जीवन नहीं छीना होता तो आज मैं अपनी भाभी को खो नहीं रहा होता। पहले अनुराधा और अब भाभी, दोनों को ही खो दिया मैंने। एकाएक ही मेरे अंदर तीव्र पीड़ा उठी। मेरा मन रो देने का करने लगा। मैंने बड़ी मुश्किल से अपने जज़्बातों को रोका और भाभी के आने का इंतज़ार करने लगा।

आख़िर मेरी मुराद पूरी हुई और भाभी आ गईं। वही गंभीर चेहरा, कोई खुशी नहीं, कोई उत्साह नहीं। आंखों में सूनापन और होठों पर रेगिस्तान के जैसा सूखापन। वो आईं और मेरे सामने खड़ी हो गईं। मेरा जी किया कि मैं एक झटके से उनसे लिपट जाऊं और किसी बच्चे की तरफ फूट फूट कर रो पड़ूं। उनसे लिपट पड़ने से तो खुद को रोक लिया मैंने लेकिन आंखों को बगावत करने से न रोक सका। मेरे लाख रोकने के बाद भी जज़्बातों की आंधी ने आंखों से आंसुओं को छलका ही दिया। मैंने महसूस किया कि मेरी आंखों से आंसू छलका देख भाभी तड़प सी उठीं थी।

"क...क्या हुआ तुम्हें?" फिर उन्होंने झट से फिक्रमंद हो कर पूछा____"तुम...तुम रो क्यों रहे हो? क्या कामिनी ने तुम्हें कुछ कहा है?"

"नहीं नहीं।" मेरे अंदर हुक सी उठी, खुद को सम्हालते हुए बोला____"उन्होंने कुछ नहीं कहा मुझे।"

"तो फिर तुम इस तरह रो क्यों रहे हो?" भाभी बहुत ज़्यादा चिंतित नज़र आने लगीं____"क्या हुआ है तुम्हें? बताओ मुझे, तुम्हारी आंखों से आंसू क्यों बह आए हैं?"

"ये मेरा कहना नहीं माने भाभी।" मेरी आवाज़ लड़खड़ा गई____"मेरे मना करने पर भी आंखों से छलक ही गए।"

"अरे! ये कैसी बातें कर रहे हो तुम?" भाभी अभी भी चिंतित थीं____"सच सच बताओ आख़िर बात क्या है?"

"एक तरफ ये जान कर बेहद खुशी हुई कि आपके पिता जी फिर से आपका ब्याह करना चाहते हैं ताकि आप वास्तव में खुश रहने लगें।" मैंने कहा_____"दूसरी तरफ मुझे इस बात का दुख होने लगा है कि जब आपकी किसी से शादी हो जाएगी तो आप मेरी भाभी नहीं रह जाएंगी। आपको भाभी नहीं कह सकूंगा मैं। कह भी कैसे सकूंगा? आपसे भाभी का रिश्ता ही कहां रह जाएगा फिर? पहले बड़े भैया को खो दिया और अब अपनी भाभी को भी खो देने वाला हूं। यही सोच कर रोना आ गया था भाभी। समझ में नहीं आ रहा कि आपको मिलने वाली खुशियों के लिए खुश होऊं या हमेशा के लिए अपनी प्यारी सी भाभी को खो देने का शोक मनाऊं।"

"एकदम पागल हो तुम?" भाभी ने कांपती आवाज़ में कहा____"तुमसे ये किसने कहा कि मैं किसी से शादी करने को तैयार हूं?"

"क...क्या मतलब??" मैं भाभी की बात सुन कर बुरी तरह उछल पड़ा, फिर झट से बोला____"म....मतलब...ये क्या कह रही हैं आप? मुझसे कामिनी ने तो यही बताया है कि आपके पिता जी ने आपका फिर से ब्याह करने का फ़ैसला कर लिया है।"

"अरे! वो झूठ बोल रही थी तुमसे।" भाभी ने कहा____"सच यही है कि मैं किसी से शादी नहीं करने वाली। मैं दादा ठाकुर की बहू थी, हूं और हमेशा रहूंगी।"

"क...क्या सच में??" मैं जैसे खुशी से नाच उठा, किंतु फिर मायूस सा हो कर बोला_____"लेकिन भाभी आपकी खुशियों का क्या? आख़िर ये तो सच ही है ना कि एक औरत को असल खुशियां तभी मिलती हैं जब वो किसी की सुहागन हो।"

"मिलती होंगी।" भाभी ने जैसे लापरवाही से कहा____"लेकिन मुझे ऐसी खुशियां नहीं चाहिए जिसकी वजह से मेरा देवर अपनी भाभी को खो दे और दुखी हो जाए।"

"नहीं भाभी, मैं अपनी खुशी के लिए आपका जीवन बर्बाद करने का सोच भी नहीं सकता।" मैंने संजीदा हो कर कहा_____"मुझे सच्ची खुशी तभी मिलेगी जब मेरी प्यारी भाभी सचमुच में खुश रहने लगेंगी। इस लिए आप मेरे बारे में मत सोचिए और अपने पिता जी की बात मान कर फिर से शादी कर लीजिए। आप जहां भी रहेंगी मैं आपको भाभी ही मानूंगा और हमेशा आपकी खुशियों की कामना करूंगा।"

भाभी मेरी तरफ अपलक देखने लगीं। उनकी आंखें नम हो गईं थी। चेहरे पर पीड़ा के भाव नुमायां हो उठे थे। फिर जैसे उन्होंने खुद को सम्हाला।

"एक बात पूछूं तुमसे?" फिर उन्होंने अजीब भाव से कहा।

"आपको इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं है।" मैंने अधीरता से कहा।

"सच सच बताओ कितना चाहते हो मुझे?" भाभी ने अपलक मेरी तरफ देखते हुए पूछा।

"हद से ज़्यादा।" मैंने जवाब दिया____"अपनी भाभी की खुशी के लिए कुछ भी कर सकता हूं मैं। आपको पहले भी बताया था कि आपकी अहमियत और आपका मुकाम बहुत ख़ास और बहुत ऊंचा है मेरी नज़र में।"

"ये तो तुम अभी मेरा दिल रखने के लिए बोल रहे हो।" भाभी ने अपलक मेरी तरफ देखते हुए ही कहा____"लेकिन रूपा से शादी हो जाने के बाद तो भूल ही जाओगे मुझे।"

"आप जानती हैं कि ऐसा नहीं हो सकता।" मैंने दृढ़ता से कहा____"बता ही चुका हूं कि आपकी अहमियत अलग है। जहां आप हैं वहां कोई नहीं हो सकता।"

"क्या तुम्हें नहीं लगता कि ये ग़लत है?" भाभी ने कहा____"तुम्हें अपनी भाभी को इतनी अहमियत नहीं देनी चाहिए, बल्कि रूपा को देनी चाहिए। वो तुमसे बेहद प्रेम करती है। क्या नहीं किया है उसने तुम्हारे लिए। उसके प्रेम और त्याग का ईमानदारी से तुम्हें फल देना चाहिए। ठीक वैसे ही जैसे उसने तुम्हें दिया है।"

"मैंने कब इससे इंकार किया है भाभी?" मैंने कहा____"यकीन मानिए, उसके साथ कभी कोई नाइंसाफी नहीं करूंगा। किंतु यहां पर बात आपकी अहमियत की हुई थी तो ये सच है कि आपकी अहमियत मेरे लिए बहुत अहम है।"

मेरी बात सुन कर भाभी कुछ देर मुझे देखती रहीं। फिर जैसे उन्होंने इस बात को दरकिनार किया और कहा____"अच्छा अब तुम आराम करो। मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर भेजवाती हूं। अगर रुकना नहीं है तो शाम होने से पहले पहले चले जाना।"

उनकी बात पर मैंने सिर हिलाया। उसके बाद वो चली गईं। उनके जाने के बाद मुझे थोड़ी राहत सी महसूस हुई। पलंग पर मैं फिर से लेट गया और उनसे हुई बातों के बारे में सोचने लगा।

कुछ ही देर में वंदना भाभी चाय ले कर आईं। अभी मैंने उनसे चाय ली ही थी कि ससुर जी यानी भाभी के पिता जी भी आ गए। वंदना भाभी अंदर से उनके लिए भी चाय ले आईं। भीमा को उन्होंने पहले ही दे दिया था। चाय पीते समय ही भाभी के पिता जी से बात चीत हुई। उसके बाद मैं जाने के लिए उठ गया। सब घर वालों ने आ कर मेरे पांव छुए और मुझे विदाई के रूप में पैसे दिए। उसके बाद मैं और भीमा जीप में बैठ कर चल पड़े। आते समय भाभी को नहीं देख पाया था मैं।




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Behtareen update bro 👌
Iss purey kahani ka yeh episode best of best update hai Bhai.
Wah Bhai emotions ko sahi tarike se pesh kiya hai apne....
Marvelous update bro
 

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इस बार भाभी कुछ न बोलीं। बस मेरी तरफ अपलक देखती रहीं। तभी बाहर से किसी के आने का आभास हुआ तो वो जल्दी से पलटीं और अंदर चली गईं। मैं असहाय सा बैठा रह गया। कुछ ही पलों में बाहर से एक औरत अंदर आई। मुझे देखते ही उसने झट से अपना चेहरा घूंघट कर के छुपा लिया और अंदर की तरफ चली गई।


अब आगे....


कुछ देर मैं यूं ही बैठा रहा और भाभी के बारे में सोचता रहा। उसके बाद मैं उठा और बाहर आया। भीमा बाहर सड़क के पास खड़ा था। मैंने उसे आवाज़ दे कर अंदर बुला लिया।

शाम होने में अभी क़रीब दो ढाई घंटे का समय था इस लिए मैं आराम से पलंग पर लेट गया। भीमा भी दूसरी तरफ चारपाई पर लेट गया था। इधर मैं आंखें बंद किए भाभी से हुई बातों के बारे में सोचने लगा। जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कुछ बदला बदला सा है। भाभी का बर्ताव भी मुझे कुछ बदला हुआ और थोड़ा अजीब सा लगा था। इसके पहले वो अक्सर मुझे छेड़तीं थी, मेरी टांग खींचतीं थी और तो और मेरी हेकड़ी निकाल कर आसमान से सीधा ज़मीन पर ले आतीं थी किंतु आज ऐसा कुछ भी नज़र नहीं आया था। उनके चेहरे पर कोई खुशी, कोई उत्साह, कोई चंचलता नहीं थी। अगर कुछ थी तो सिर्फ गंभीरता। उनकी आवाज़ भी धींमी थी।

मुझे लगा शायद वो अपने मायके में होने की वजह से अपने देवर से खुल कर बात नहीं कर पा रहीं थी। हां, ज़रूर यही बात होगी वरना भाभी मेरे सामने इतनी असामान्य नहीं हो सकती थीं। बहरहाल मैंने अपने ज़हन से सारी बातों को झटक दिया और आराम से सोने की कोशिश करने लगा मगर काफी देर गुज़र जाने पर भी मुझे नींद न आई। मन में एक खालीपन और एक बेचैनी सी महसूस हो रही थी।

एकाएक ही मुझे एहसास हुआ कि शाम होने से पहले मुझे वापस अपने गांव जाना है। जैसे आया था वैसे ही वापस जाना होगा मुझे। बड़ी खुशी के साथ और बड़ी उम्मीद के साथ मैं अपनी प्यारी सी भाभी को लेने आया था लेकिन भाभी खुद ही जाने को राज़ी नहीं थीं और मैं उन्हें चलने के लिए मजबूर भी नहीं कर सकता था। कुछ ही पलों में मेरी सारी खुशी और सारा उत्साह बर्फ़ की मानिंद ठंडा पड़ गया था।

मैं आंखें बंद किए ये सब सोच ही रहा था कि तभी मेरे कानों में पायल छनकने की आवाज़ें पड़ीं। कोई अंदर से आ रहा था जिसके पैरों की पायल छनक रही थी। मैंने करवट ली हुई थी इस लिए मैं देख नहीं सकता था कि कौन आ रहा है। पायल की छनकती आवाज़ एकाएक बंद हो गईं। मैंने महसूस किया कि मेरे क़रीब ही पायलों का छनकना बंद हुआ है।

"लगता है जीजा जी सो गए हैं।" तभी किसी की मधुर किंतु बहुत ही धींमी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे बोलने वाले ने किसी दूसरे से ऐसा कहा था_____"अब क्या करें? क्या हमें जीजा जी को जगाना चाहिए? वैसे दीदी ने कहा है कि हम इन्हें परेशान न करें।"

"मुझे अच्छी तरह पता है कि इन महापुरुष को इतना जल्दी यहां नींद नहीं आने वाली।" ये दूसरी आवाज़ थी। आवाज़ धीमी तो थी लेकिन लहजा थोड़ा कर्कश सा था।

मैं फ़ौरन ही पहचान गया कि ये आवाज़ भाभी की छोटी बहन कामिनी की है। मुझे हैरानी हुई कि कामिनी इस वक्त यहां क्यों आई होगी, वो भी मेरे क़रीब? उसका और मेरा तो छत्तीस का आंकड़ा था। कभी सीधे मुंह बात नहीं करती थी वो। हालाकि इसमें उसका नहीं मेरा ही दोष था क्योंकि शुरुआत से ही मेरी हवस भरी नज़रों का उसी ने सामना किया था। उसे मेरी आदतों से और मेरी हरकतों से सख़्त नफ़रत थी।

"धीरे बोलिए दीदी।" पहले वाली ने धीमें स्वर में उससे कहा____"जीजा जी सुन लेंगे तो नाराज़ हो जाएंगे।"

"मुझे फ़र्क नहीं पड़ता।" कामिनी ने जैसे लापरवाही से कहा_____"वैसे भी मैं इनकी नाराज़गी से थोड़े ना डरती हूं।"

"हां हां समझ गई मैं।" पहले वाली आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। मैं उसकी आवाज़ से उसको पहचानने की कोशिश में लगा हुआ था। अरे! ये तो कंचन थी। भैया के चाचा ससुर की बेटी। बहरहाल उसने आगे कहा____"पर अब क्या करना है? वापस चलें?"

"तू जा।" कामिनी ने उससे कहा____"मैं देखती हूं इन्हें और हां अंदर किसी को कुछ मत बताना। ख़ास कर दीदी को तो बिल्कुल भी नहीं। पहले तो वो अपने देवर का पक्ष लेतीं ही थी किंतु अब तो कहना ही क्या। ख़ैर तू जा अब।"

कामिनी की इन बातों के बाद कंचन चली गई। उसके पायलों की छम छम से मुझे पता चल गया था। इधर अब मैं ये सोचने लगा कि कामिनी क्या करने वाली है? मैं पहले से ही उसके इस बर्ताव से हैरान था किंतु अब तो धड़कनें ही बढ़ गईं थी मेरी। बहरहाल, मैं आंखें बंद किए चुपचाप लेटा रहा और उसकी तरफ से किसी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करने लगा। इसके लिए मुझे ज़्यादा देर प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। मैंने महसूस किया कि वो पीछे से घूम कर मेरे सामने की तरफ आई और मेरे सामने वाले पलंग पर बैठ गई। मेरी धड़कनें ये सोच कर धाड़ धाड़ कर के बजने लगीं कि जाने ये आफ़त अब क्या करने वाली है?

"ज़्यादा नाटक करने की ज़रूरत नहीं है।" इस बार उसकी आवाज़ स्पष्ट रूप से मेरे कानों में पड़ी_____"मुझे अच्छी तरह पता है कि आप सो नहीं रहे हैं। अब चुपचाप अपना नाटक बंद कर के आंखें खोल लीजिए, वरना इंसान को गहरी नींद से जगाना भी मुझे अच्छी तरह आता है।"

ये तो सरासर धमकी थी, वो भी मेरे जैसे सूरमा को। मैं उसकी इस धमकी पर मन ही मन मुस्कुरा उठा। हालाकि उससे डरने का तो सवाल ही नहीं था लेकिन मैं नहीं चाहता था कि कोई तमाशा हो जाए। दूसरी वजह ये भी थी कि मैं उसके बर्ताव से हैरान था और जानना चाहता था कि आख़िर वो किस मकसद से मेरे पास आई थी?

"लीजिए सरकार, हमने अपनी आंखें खोल दी।" मैंने आंखें खोल कर उसकी तरफ देखते हुए उठ कर बैठ गया, फिर बोला_____"आप इतनी मोहब्बत से हमें जाग जाने को कह रहीं हैं तो हमें उठना ही पड़ेगा। कहिए, क्या चाहती हैं आप हमसे? प्यार मोहब्बत या फिर कुछ और?"

"हद है, आप कभी नहीं सुधरेंगे।" कामिनी ने मुझे घूरते हुए कहा____"जब देखो वही छिछोरी हरकतें।"

"आप भी कीजिए।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"यकीन मानिए, बहुत मज़ा आएगा।"

कामिनी ने मुझे खा जाने वाली नज़रों से देखा। पलक झपकते ही उसका चेहरा तमतमाया गया सा नज़र आया। ऐसी ही थी वो। ऐसा नहीं था कि उसे मज़ाक पसंद नहीं था लेकिन मेरा उससे मज़ाक करना बिल्कुल पसंद नहीं था। उसके ज़हन में ये बात बैठ चुकी थी कि मैं हर लड़की को सिर्फ भोगने के लिए ही अपने मोह जाल में फंसाता हूं।

"उफ्फ! इतनी मोहब्बत से हमें मत देखिए सरकार।" मैंने उसे और गरमाया_____"वरना एक ही पल में ढेर हो जाएंगे हम।"

"क्यों करते हैं ऐसी गन्दी हरकतें?" उसने जैसे अपने गुस्से को बड़ी मुश्किल से दबाते हुए मुझसे कहा____"क्या आप कभी किसी से सभ्य इंसानों जैसी बातें नहीं कर सकते?"

"अब ये तो सबका अपना अपना सोचने का नज़रिया है सरकार।" मैंने कहा____"आपको मेरी बातें सभ्य नहीं लगती जबकि यही बातें दूसरों को सभ्य लगती हैं। प्यार मोहब्बत की चाशनी में डूबी हुई लगती हैं। आपको नहीं लगती हैं तो इसका मतलब ये है कि या तो आपका ज़ायका ख़राब है या फिर आपकी समझदानी में ही गड़बड़ी है।"

"मतलब आप स्पष्ट रूप से ये कह रहे हैं कि मेरे पास दिमाग़ नहीं है?" कामिनी ने इस बार गुस्से से मेरी तरफ देखा____"और मैं किसी की बातों का मतलब ही नहीं समझती हूं?"

"क्या आप मुझसे झगड़ा करने ही आईं थी?" मैंने विषय को बदलने की गरज से इस बार थोड़ा गंभीरता से कहा____"अगर झगड़ा ही करने आईं थी तो ठीक है मैं तैयार हूं लेकिन यदि किसी और वजह से आईं थी तो सीधे मुद्दे की बातों पर आइए। वैसे मैं हैरान हूं कि जो लड़की मुझे अपना कट्टर दुश्मन समझती है वो मुझसे गुफ़्तगू करने कैसे आई है?"

कामिनी ने इस बार फ़ौरन कुछ ना कहा। उसने सबसे पहले अपने गुस्से को काबू किया और आंखें बंद कर के गहरी गहरी सांसें ली। नीले रंग का कुर्ता सलवार पहन रखा था उसने। दुपट्टे से उसने अपने सीने के उभारों को पूरी तरह से ढंक रखा था। ऐसा हमेशा होता था, मेरे सामने आते ही वो कुछ ज़्यादा ही चौकन्नी हो जाती थी।

"अब कुछ बोलिए भी।" मैंने कहा____"मैं बड़ी शिद्दत से जानना चाहता हूं कामिनी देवी आज मेरे सामने कैसे बैठी हैं और मुझसे इतनी मोहब्बत से बातें क्यों कर रही हैं?"

"आप फिर से शुरू हो गए?" उसने मुझे घूरा।

"अगर आप बड़ी मोहब्बत से शुरू हो जातीं तो हम रुके रहते।" मैंने हौले से मुस्कुराते हुए कहा____"ख़ैर बताइए आज सूरज किस दिशा से उगा है चंदनपुर में?"

"क्या आप सच में दीदी को लेने आए हैं?" उसने जैसे मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया और पूछा।

"क्या आपको कोई शक है इसमें?" मैंने कहा____"वैसे आप भी हमारे साथ चलतीं तो क़सम से आनन्द ही आ जाता।"

"किसी कीमत पर नहीं।" कामिनी ने दृढ़ता से कहा____"आपके साथ तो किसी जन्म में कहीं नहीं जाऊंगी मैं।"

"वाह! इतनी शिद्दत से मोहब्बत आप ही कर सकती हैं मुझसे।" मैं मुस्कुराया।

"ये मोहब्बत नहीं है।" उसने घूरते हुए कहा____"बल्कि...।"

"नफ़रत है?" उसकी बता काट कर मैंने उसकी बात पूरी की_____"जानता हूं मैं लेकिन शायद आप ये नहीं जानती कि नफ़रत और मोहब्बत का जन्म एक ही जगह से होता है....दिल से। अब दिल से नफ़रत कीजिए या मोहब्बत, ये तो पक्की बात है ना कि किसी न किसी भावना से आपने मुझे अपना बना ही रखा है।"

"अपने मन को बहलाने के लिए ख़याल अच्छा है।" कामिनी ने कहा____"ख़ैर मैं आपको ये बताने के लिए आई थी कि दीदी को हम लोग अब नहीं भेजेंगे। वो यहीं रहेंगी, हमारे साथ।"

"क...क्या मतलब?" मैं एकदम से चौंक पड़ा____"ये क्या कह रही हैं आप?"

"वही जो आपने सुना है।" कामिनी ने स्पष्ट रूप से कहा____"भैया ने आपसे स्पष्ट रूप में इसी लिए नहीं कहा क्योंकि वो शायद संकोच कर गए थे लेकिन सच यही है कि दीदी अब यहीं रहेंगी। आपको अकेले ही वापस जाना होगा।"

"अरे! भला ये क्या बात हुई?" मैं बुरी तरह हैरान परेशान सा बोल पड़ा____"माना कि भाभी का ये मायका है और वो यहां जब तक चाहे रह सकती हैं लेकिन इसका क्या मतलब हुआ कि वो अब यहां से नहीं जाएंगी?"

"बस नहीं जाएंगी।" कामिनी ने अजीब भाव से कहा____"वैसे भी जिनसे उनका संबंध था वो तो अब रहे नहीं। फिर भला हम कैसे उन्हें इस दुख के साथ जीवन भर उस हवेली में विधवा बहू बन कर रहने दें? आपको शायद पता नहीं है कि पिता जी ने दीदी का फिर से ब्याह कर देने का फ़ैसला किया है। आप तो जानते ही है कि दीदी की अभी उमर ही क्या है जो वो आपके भाई की विधवा बन कर सारी ज़िंदगी दुख और कष्ट में गुज़ारें।"

कामिनी की बातें किसी पिघले हुए शीशे की तरह मेरे कानों में अंदर तक समाती चली गईं थी। मेरे दिलो दिमाग़ में एकाएक ही हलचल सी मच गई थी। मन में तरह तरह के ख़यालों की आंधी सी आ गई थी।

"अगर ये मज़ाक है।" फिर मैंने सख़्त भाव से कहा____"तो समझ लीजिए कि मुझे इस तरह का घटिया मज़ाक बिल्कुल भी पसंद नहीं है। आप भाभी के बारे में ऐसी बकवास कैसे कर सकती हैं?"

"ये बकवास नहीं है जीजा जी।" कामिनी ने कहा____"हकीक़त है हकीक़त। मैं मानती हूं कि आप अपनी भाभी के बारे में इस तरह की बातें नहीं सुन सकते हैं लेकिन खुद सोचिए कि क्या आप यही चाहते हैं कि मेरी दीदी अपना पहाड़ जैसा जीवन विधवा बन कर ही गुज़ारें? क्या आप यही चाहते हैं कि उनके जीवन में कभी खुशियों के कोई रंग ही न आएं? क्या आप यही चाहते हैं कि वो जीवन भर अकेले दुख दर्द में डूबी रहें?"

"नहीं नहीं।" मैं झट से बोल पड़ा____"अपनी भाभी के बारे में मैं ऐसा सपने में भी नहीं सोच सकता। मैं तो....मैं तो यही दुआ करता हूं कि उनकी ज़िंदगी में पहले जैसी ही खुशियां आ जाएं जिससे मेरी भाभी का चेहरा फिर से पूर्णिमा के चांद की तरह चमकने लगे। मैं तो चाहता हूं कि मेरी भाभी के होठों पर हमेशा खुशियों से भरी मुस्कान सजी रहे। उनके जीवन में दुख का एक तिनका भी कभी न आए।"

"अगर आप सच में ऐसा चाहते हैं।" कामिनी ने कहा____"तो फिर आपको इस बात से कोई एतराज़ अथवा कष्ट नहीं होना चाहिए कि उनका फिर से कहीं ब्याह हो जाए। आप भी समझने की कोशिश कीजिए कि उनके जीवन में इस तरह की खुशियां तभी आ सकती हैं जब हमेशा के लिए उनके बदन से विधवा का लिबास उतार दिया जाए और उन्हें किसी की सुहागन बना दिया जाए। पिता जी भी ये नहीं सह पा रहे हैं कि उनकी बेटी इतनी सी उमर में विधवा हो कर सारा जीवन दुख और कष्ट में ही व्यतीत करने पर मज़बूर हैं।"

सच कहूं तो मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मैं एकाएक आसमान से ज़मीन पर आ गिरा था। भाभी का फिर से ब्याह करने का कोई सोचेगा इस बारे में तो मैंने अब तक कल्पना ही नहीं की थी। सच ही तो कह रही थी कामिनी कि उनकी ज़िंदगी में खुशियां तभी आ सकती हैं जब उनका फिर से ब्याह कर दिया जाए और उन्हें किसी की सुहागन बना दिया जाए। सच ही तो था, एक विधवा के रूप में भला वो कैसे खुश रह सकती थीं? असल खुशियां तो तभी मिलती हैं जब इंसान का जीवन खुशियों के रंगों से भरा हो। एक विधवा के जीवन में सफेद रंग के अलावा दूसरा कोई रंग भरा ही नहीं जा सकता था?

मेरे मनो मस्तिष्क में धमाके से होने लगे थे। पहली बार मैं इस तरीके से सोचने पर मजबूर हुआ था। पहली बार इतनी गहराई से सोचने का मानों अवसर मिला था। अचानक ही मेरे मन में एक ख़याल बिजली की तरह आ गिरा....भाभी का फिर से ब्याह हो जाएगा, यानि वो किसी की पत्नी बन जाएंगी। उसके बाद उनसे मेरा कोई रिश्ता नहीं रह जाएगा। आज वो मेरी भाभी हैं लेकिन ब्याह के बाद वो किसी और के रिश्ते में बंध जाएंगी। हवेली की बहू और हवेली शान हमेशा के लिए किसी दूसरे के घर की शान बन जाएगी।

एक झटके में जैसे मैं वास्तविकता के धरातल पर आ गया जिसके एहसास ने मुझे अंदर तक हिला डाला। एक झटके में भाभी का प्यार और स्नेह मुझे अपने से दूर होता नज़र आने लगा। उनका वो छेड़ना, वो टांगे खींचना और एक झटके में मेरी हेकड़ी निकाल देना ये सब कभी न भुलाई जा सकने वाली याद सा बनता महसूस हुआ। पलक झपकते ही आंखों के सामने भाभी का सुंदर चेहरा उभर आया...और फिर अगले ही पल एक एक कर के वो हर लम्हें उभरने लगे जिनमें मेरी उनसे मुलाक़ातों की तस्वीरें थीं। जब भैया जीवित थे तब की तस्वीरें। भाभी तब सुहागन थीं, बहुत सुंदर और मासूम नज़र आतीं थी वो। फिर एकदम से तस्वीरें बड़ी तेज़ी से बदलने लगीं और कुछ ही पलों में उस वक्त की तस्वीर उभर आई जब कुछ देर पहले मैंने उन्हें देखा था।

एक झटके में मुझे अपनी कोई बहुत ही अनमोल चीज़ खो देने जैसा एहसास हुआ। मेरे अंदर भाभी को खो देने जैसी पीड़ा उभर आई। मैं एकदम से दुखी और उदास सा हो गया। मेरी आंखें अनायास ही बंद हो गईं और ना चाहते हुए भी आंखों की कोर से आंसू का एक कतरा छलक गया। मैंने हड़बड़ा कर जल्दी से उसे पोंछ लिया। मैं नहीं चाहता था कि कामिनी मेरी आंख से निकले आंसू के उस कतरे को देख ले।

"क्या हुआ जीजा जी?" सहसा कामिनी की आवाज़ से मैं चौंका____"आप एकदम से चुप क्यों हो गए? क्या मैंने कुछ ग़लत कह दिया है आपसे?"

"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।" मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा____"आपने भाभी के बारे में जो भी कहा वो एकदम से उचित ही कहा है। मुझसे अच्छी तो आप हैं कामिनी जो अपनी दीदी की खुशियों के बारे में इतना कुछ सोच बैठी हैं। एक मैं हूं जो अब तक यही समझ रहा था कि मैं अपनी भाभी को खुश रखने के लिए बहुत कुछ कर रहा हूं। हैरत की बात है कि मैं कभी ये सोच ही नहीं पाया कि एक औरत को असल खुशी तभी मिल सकती है जब उसका सम्पूर्ण जीवन खुशियों के अलग अलग रंगों से भर जाए और ऐसा तो तभी हो सकता है ना जब उस औरत का फिर से कहीं ब्याह हो जाए। आज मुझे अपनी ग़लती का एहसास हो गया है और इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद भी देता हूं कि आपने मुझे इस सत्य का एहसास कराया। आपके पिता जी ने अपनी बेटी की खुशी के लिए बहुत ही उम्दा कार्य करने का फ़ैसला लिया है। मुझे अपनी भाभी के लिए इस बात से बहुत खुशी हो रही है। ईश्वर से यही प्रार्थना करता था कि वो उन्हें हमेशा खुश रखें तो अब ऐसा हो जाने से वो वाकई में खुश ही रहेंगी।"

कामिनी मेरी तरफ ही देखे जा रही थी। उसके चेहरे पर थोड़े हैरानी के भाव भी उभर आए थे। शायद उसे मुझसे ऐसी गंभीर बातों की उम्मीद नहीं थी। वो तो यही समझती थी कि मैं एक बहुत ही ज़्यादा बिगड़ा हुआ लड़का हूं जिसे किसी की भावनाओं से अथवा किसी के दुख दर्द से कोई मतलब ही नहीं होता है।

"वैसे इतनी बड़ी बात हो गई और किसी ने मुझे बताया तक नहीं।" फिर मैंने कहा____"मुझे अब समझ आ रहा है कि क्यों हर बार मां मुझे भाभी को लेने आने से मना कर रहीं थी। आते समय पिता जी ने भी यही कहा था कि अगर यहां पर आप लोग भाभी को मेरे साथ भेजने से मना करें तो मैं इसके लिए किसी पर दबाव नहीं डालूंगा। इसका मतलब तो यही हुआ कि मां और पिता जी को भी इस बारे में पता है। यानि वो भी जानते हैं कि आपके पिता जी भाभी का फिर से ब्याह कर देना चाहते हैं?"

"इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है।" कामिनी ने कहा____"पर आपकी बातों से तो यही लगता है कि उन्हें इस बारे में पता है।"

"हां लेकिन मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि उन्होंने इस बारे में मुझे क्यों कुछ नहीं बताया?" मैंने उलझन पूर्ण भाव से कहा____"अगर वो उसी समय मुझे बता देते तो भला क्या हो जाता?"

कामिनी के पास जैसे मेरे इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। वो भी सोच में पड़ गई थी। कुछ देर तक हमारे बीच ख़ामोशी ही रही। मुझे बहुत अजीब महसूस हो रहा था। एकदम से अब मुझे पराएपन का एहसास होने लगा था।

"मैंने हमेशा आपके साथ ग़लत बर्ताव किया है कामिनी।" फिर मैंने गंभीरता से कहा____"हमेशा आपको परेशान किया है, इसके लिए माफ़ कर दीजिएगा मुझे।"

"अरे! ये क्या कह रहे हैं आप?" कामिनी एकदम से चौंकी____"देखिए आप इस तरह मुझसे माफ़ी मत मांगिए।"

"मेरी एक विनती है आपसे।" मैंने उसकी तरफ देखा____"मैं अपनी भाभी को आख़िरी बार देख लेना चाहता हूं। क्या आप उन्हें यहां भेज देंगी? देखिए मना मत करना।"

"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" कामिनी के चेहरे पर हैरानी और उलझन जैसे भाव उभर आए____"अच्छा ठीक है, मैं जा कर दीदी को आपकी ये बात बता देती हूं।"

"उन्हें सिर्फ बताना ही नहीं है।" मैंने ज़ोर देते हुए कहा____"उनसे कहना कि उनका देवर उनसे आख़िरी बार मिलना चाहता है।"

कामिनी ठीक है कहते हुए उठी और अंदर चली गई। इधर मैं दुखी मन से बैठा जाने क्या क्या सोचने लगा। मुझे इस बात की तो खुशी थी कि भाभी का किसी से ब्याह हो जाएगा तो वो हमेशा खुश रहेंगी लेकिन अब इस बात का बेहद दुख भी हो रहा था कि मैं अब हमेशा के लिए अपनी भाभी को खो दूंगा। मेरे बदले हुए जीवन में उनका बहुत योगदान था। आज मैं बदल कर यहां तक पहुंचा था तो इसमें भाभी का भी बहुत बड़ा हाथ था। वो हमेशा मुझे अच्छा इंसान बनने के लिए ज़ोर देती थीं। हमेशा मेरा मार्गदर्शन करतीं थी। मेरे माता पिता को तो उनके जैसी बहू पाने पर हमेशा से गर्व था ही किंतु मुझे भी उनके जैसी भाभी पाने पर नाज़ था।

काश! विधाता ने बड़े भैया का जीवन नहीं छीना होता तो आज मैं अपनी भाभी को खो नहीं रहा होता। पहले अनुराधा और अब भाभी, दोनों को ही खो दिया मैंने। एकाएक ही मेरे अंदर तीव्र पीड़ा उठी। मेरा मन रो देने का करने लगा। मैंने बड़ी मुश्किल से अपने जज़्बातों को रोका और भाभी के आने का इंतज़ार करने लगा।

आख़िर मेरी मुराद पूरी हुई और भाभी आ गईं। वही गंभीर चेहरा, कोई खुशी नहीं, कोई उत्साह नहीं। आंखों में सूनापन और होठों पर रेगिस्तान के जैसा सूखापन। वो आईं और मेरे सामने खड़ी हो गईं। मेरा जी किया कि मैं एक झटके से उनसे लिपट जाऊं और किसी बच्चे की तरफ फूट फूट कर रो पड़ूं। उनसे लिपट पड़ने से तो खुद को रोक लिया मैंने लेकिन आंखों को बगावत करने से न रोक सका। मेरे लाख रोकने के बाद भी जज़्बातों की आंधी ने आंखों से आंसुओं को छलका ही दिया। मैंने महसूस किया कि मेरी आंखों से आंसू छलका देख भाभी तड़प सी उठीं थी।

"क...क्या हुआ तुम्हें?" फिर उन्होंने झट से फिक्रमंद हो कर पूछा____"तुम...तुम रो क्यों रहे हो? क्या कामिनी ने तुम्हें कुछ कहा है?"

"नहीं नहीं।" मेरे अंदर हुक सी उठी, खुद को सम्हालते हुए बोला____"उन्होंने कुछ नहीं कहा मुझे।"

"तो फिर तुम इस तरह रो क्यों रहे हो?" भाभी बहुत ज़्यादा चिंतित नज़र आने लगीं____"क्या हुआ है तुम्हें? बताओ मुझे, तुम्हारी आंखों से आंसू क्यों बह आए हैं?"

"ये मेरा कहना नहीं माने भाभी।" मेरी आवाज़ लड़खड़ा गई____"मेरे मना करने पर भी आंखों से छलक ही गए।"

"अरे! ये कैसी बातें कर रहे हो तुम?" भाभी अभी भी चिंतित थीं____"सच सच बताओ आख़िर बात क्या है?"

"एक तरफ ये जान कर बेहद खुशी हुई कि आपके पिता जी फिर से आपका ब्याह करना चाहते हैं ताकि आप वास्तव में खुश रहने लगें।" मैंने कहा_____"दूसरी तरफ मुझे इस बात का दुख होने लगा है कि जब आपकी किसी से शादी हो जाएगी तो आप मेरी भाभी नहीं रह जाएंगी। आपको भाभी नहीं कह सकूंगा मैं। कह भी कैसे सकूंगा? आपसे भाभी का रिश्ता ही कहां रह जाएगा फिर? पहले बड़े भैया को खो दिया और अब अपनी भाभी को भी खो देने वाला हूं। यही सोच कर रोना आ गया था भाभी। समझ में नहीं आ रहा कि आपको मिलने वाली खुशियों के लिए खुश होऊं या हमेशा के लिए अपनी प्यारी सी भाभी को खो देने का शोक मनाऊं।"

"एकदम पागल हो तुम?" भाभी ने कांपती आवाज़ में कहा____"तुमसे ये किसने कहा कि मैं किसी से शादी करने को तैयार हूं?"

"क...क्या मतलब??" मैं भाभी की बात सुन कर बुरी तरह उछल पड़ा, फिर झट से बोला____"म....मतलब...ये क्या कह रही हैं आप? मुझसे कामिनी ने तो यही बताया है कि आपके पिता जी ने आपका फिर से ब्याह करने का फ़ैसला कर लिया है।"

"अरे! वो झूठ बोल रही थी तुमसे।" भाभी ने कहा____"सच यही है कि मैं किसी से शादी नहीं करने वाली। मैं दादा ठाकुर की बहू थी, हूं और हमेशा रहूंगी।"

"क...क्या सच में??" मैं जैसे खुशी से नाच उठा, किंतु फिर मायूस सा हो कर बोला_____"लेकिन भाभी आपकी खुशियों का क्या? आख़िर ये तो सच ही है ना कि एक औरत को असल खुशियां तभी मिलती हैं जब वो किसी की सुहागन हो।"

"मिलती होंगी।" भाभी ने जैसे लापरवाही से कहा____"लेकिन मुझे ऐसी खुशियां नहीं चाहिए जिसकी वजह से मेरा देवर अपनी भाभी को खो दे और दुखी हो जाए।"

"नहीं भाभी, मैं अपनी खुशी के लिए आपका जीवन बर्बाद करने का सोच भी नहीं सकता।" मैंने संजीदा हो कर कहा_____"मुझे सच्ची खुशी तभी मिलेगी जब मेरी प्यारी भाभी सचमुच में खुश रहने लगेंगी। इस लिए आप मेरे बारे में मत सोचिए और अपने पिता जी की बात मान कर फिर से शादी कर लीजिए। आप जहां भी रहेंगी मैं आपको भाभी ही मानूंगा और हमेशा आपकी खुशियों की कामना करूंगा।"

भाभी मेरी तरफ अपलक देखने लगीं। उनकी आंखें नम हो गईं थी। चेहरे पर पीड़ा के भाव नुमायां हो उठे थे। फिर जैसे उन्होंने खुद को सम्हाला।

"एक बात पूछूं तुमसे?" फिर उन्होंने अजीब भाव से कहा।

"आपको इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं है।" मैंने अधीरता से कहा।

"सच सच बताओ कितना चाहते हो मुझे?" भाभी ने अपलक मेरी तरफ देखते हुए पूछा।

"हद से ज़्यादा।" मैंने जवाब दिया____"अपनी भाभी की खुशी के लिए कुछ भी कर सकता हूं मैं। आपको पहले भी बताया था कि आपकी अहमियत और आपका मुकाम बहुत ख़ास और बहुत ऊंचा है मेरी नज़र में।"

"ये तो तुम अभी मेरा दिल रखने के लिए बोल रहे हो।" भाभी ने अपलक मेरी तरफ देखते हुए ही कहा____"लेकिन रूपा से शादी हो जाने के बाद तो भूल ही जाओगे मुझे।"

"आप जानती हैं कि ऐसा नहीं हो सकता।" मैंने दृढ़ता से कहा____"बता ही चुका हूं कि आपकी अहमियत अलग है। जहां आप हैं वहां कोई नहीं हो सकता।"

"क्या तुम्हें नहीं लगता कि ये ग़लत है?" भाभी ने कहा____"तुम्हें अपनी भाभी को इतनी अहमियत नहीं देनी चाहिए, बल्कि रूपा को देनी चाहिए। वो तुमसे बेहद प्रेम करती है। क्या नहीं किया है उसने तुम्हारे लिए। उसके प्रेम और त्याग का ईमानदारी से तुम्हें फल देना चाहिए। ठीक वैसे ही जैसे उसने तुम्हें दिया है।"

"मैंने कब इससे इंकार किया है भाभी?" मैंने कहा____"यकीन मानिए, उसके साथ कभी कोई नाइंसाफी नहीं करूंगा। किंतु यहां पर बात आपकी अहमियत की हुई थी तो ये सच है कि आपकी अहमियत मेरे लिए बहुत अहम है।"

मेरी बात सुन कर भाभी कुछ देर मुझे देखती रहीं। फिर जैसे उन्होंने इस बात को दरकिनार किया और कहा____"अच्छा अब तुम आराम करो। मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर भेजवाती हूं। अगर रुकना नहीं है तो शाम होने से पहले पहले चले जाना।"

उनकी बात पर मैंने सिर हिलाया। उसके बाद वो चली गईं। उनके जाने के बाद मुझे थोड़ी राहत सी महसूस हुई। पलंग पर मैं फिर से लेट गया और उनसे हुई बातों के बारे में सोचने लगा।

कुछ ही देर में वंदना भाभी चाय ले कर आईं। अभी मैंने उनसे चाय ली ही थी कि ससुर जी यानी भाभी के पिता जी भी आ गए। वंदना भाभी अंदर से उनके लिए भी चाय ले आईं। भीमा को उन्होंने पहले ही दे दिया था। चाय पीते समय ही भाभी के पिता जी से बात चीत हुई। उसके बाद मैं जाने के लिए उठ गया। सब घर वालों ने आ कर मेरे पांव छुए और मुझे विदाई के रूप में पैसे दिए। उसके बाद मैं और भीमा जीप में बैठ कर चल पड़े। आते समय भाभी को नहीं देख पाया था मैं।




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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत अद्वितीय अपडेट हैं भाई मजा आ गया
वैभव को कामिनी ने अपनी बहन के जीवन में रंग भरने के उसके पिताजी के फैसले के बारें में बताया तो वैभव तुट सा गया लेकीन रागिणी भाभी से मिलने के और उनके विचार सुनने के बाद कुछ अच्छा महसुस किया
शायद रागिणी कुछ कहना चाहती थी लेकीन वो वैभव से बोल ना सकी
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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