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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.7%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.4%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.5%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 42 22.7%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.8%

  • Total voters
    185
9,478
39,861
218
Ye song lambe samay tak mohabbat karne wale premi apne khato me shayari ke roop me stemaal karte rahe the....aaj bhi kahi kahi dekhne ko milta hai... :approve:
लेकिन यह गीत मैने पहली बार तब सुना था जब मेरी उम्र सात या आठ वर्ष की रही होगी । और यह 70 के दशक के शुरुआती के बाद के वर्ष थे।
उस वक्त इस उम्र मे बच्चों को इश्क मोहब्बत की समझ कहां होती थी ! हां , अगर बच्चे कुछ ज्यादा ही इंटेलिजेंट हुए तो बात अलग है। इस गीत के शब्द , इसका म्यूजिक , और इस गीत को अपनी आवाज देने वाले दो महान सिंगर - सबकुछ मंत्रमुग्ध कर देने वाला था।
यह पहला गीत था जिसे मै कई दिन के कोशिश के बाद लिख पाया था । उन दिनो रेडियो का ही जमाना हुआ करता था । टेप रिकार्डर और टेलीविजन तो बहुत दूर की बात थी।
वैसे यह फिल्म भी मैने देखा है । बहुत ही इमोशनल और दर्द भरी प्रेम स्टोरी है । आंखो से आंसू निकल आए थे ।
इस फिल्म का हर गीत ही खूबसूरत है । नूतन जी का प्रशंसक मै इसी मूवीज से हो गया था ।
 

TheBlackBlood

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आप सबको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
💐💐💐

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TheBlackBlood

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अध्याय - 105
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"फिलहाल तो मैं तुम दोनों की ही तरफ हूं।" भाभी ने कहा____"क्योंकि तुम्हें भी पता है कि मेरे बिना तुम दोनों की नैया पार नहीं लगेगी। इस लिए ज़्यादा उड़ने की कोशिश मत करना। अब जाओ तुम, मैं भी नीचे जा रही हूं।"

कहने के साथ ही भाभी मेरी कोई बात सुने बिना ही सीढ़ियों पर उतरती चली गईं। उनके जाने के बाद मैं भी उनकी बातों के बारे में सोचते हुए और मुस्कुराते हुए अपने कमरे की तरफ चला गया।



अब आगे....


अगली सुबह।
पिता जी और मैं चाय पीने के बाद चंद्रकांत के घर जाने के लिए बाहर निकले ही थे कि तभी सामने से आते शेरा पर हमारी नज़र पड़ी। शेरा के चेहरे पर अजीब से भाव थे जिसे देख पिता जी के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभर आए।

"प्रणाम मालिक।" क़रीब आते ही शेरा ने झुक कर पिता जी के पैरों को छू कर कहा।

"क्या बात है?" वो जैसे ही खड़ा हुआ तो पिता जी ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"तुम्हारे चेहरे पर मौजूद ये भाव कैसे हैं? कुछ हुआ है क्या?"

"जी मालिक।" शेरा ने नज़रें झुकाए हुए कहा____"परसों रात मैंने सफ़ेदपोश को देखा था...लेकिन।"

"लेकिन??" पिता जी के साथ साथ मैं भी चौंक पड़ा था।

"लेकिन मैं अपनी लाख कोशिश के बाद भी उसे पकड़ नहीं सका।" शेरा ने अपराध भाव से सिर झुकाए हुए कहा।

"पूरी बात बताओ।" पिता जी ने सपाट लहजे से कहा।

शेरा ने पूरी बात बता दी कि कैसे उसने परसों की रात चंद्रकांत और सफ़ेदपोश को आपस में बातें करते सुना और फिर सफ़ेदपोश के जाते ही उसने उसका पीछा किया। पीछा करते हुए वो आमों के बाग तक गया था जहां पर सफ़ेदपोश ने हमारे एक आदमी को गोली मार दी थी।

"हैरानी की बात है कि सफ़ेदपोश तुम्हारी बेवकूफी की वजह से हाथ से निकल गया।" पिता जी ने नाराज़गी जताते हुए कहा____"जब तुमने उसे चंद्रकांत से बात करते हुए देख ही लिया था तो तुम्हें उसी समय उसे दबोच लेना चाहिए था।"

"माफ़ कर दीजिए मालिक।" शेरा ने खेद भरे भाव से कहा____"मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि वो चंद्रकांत के यहां दिख जाएगा। आपके आदेश पर मैं उसे खोज ही रहा था कि अचानक वो मुझे चंद्रकांत के घर के बाहर दिख गया। पहले तो मुझे कुछ समझ ही नहीं आया था कि अंधेरे में वहां पर कोई है भी या नहीं। वो तो रात के सन्नाटे में मुझे हल्की आवाज़ें सुनाई दी थीं। आवाज़ों को सुन कर मैं चौंक गया था कि इतनी रात को कौन हो सकता है? अपनी उत्सुकता को मिटाने के लिए जब मैं आवाज़ की दिशा में गया तो अंधेरे में मुझे दो साए खड़े नज़र आए। ये तो मैं जान चुका था कि वो घर चंद्रकांत का ही है लेकिन मैं ये सोचने पर मजबूर हो गया था कि चंद्रकांत के घर के बाहर उस वक्त कौन हो सकता है। यही देखने के लिए मैं बहुत ही सावधानी से उनके क़रीब बढ़ गया था। जल्दी ही मुझे समझ आ गया कि वो कौन हैं। एक तो चंद्रकांत ही था जोकि उसकी आवाज़ से ही मैं पहचान गया था लेकिन दूसरा कौन था ये मैं थोड़ी ही देर में उसकी पोशाक से पहचान पाया। उसकी आवाज़ भी वैसी ही अजीब सी थी जैसी मैंने तब सुनी थी जब एक बार दरोगा धनंजय के यहां मैंने सफ़ेदपोश के मुख से सुनी थी। मैं ये जान कर चकित रह गया था कि सफ़ेदपोश इतनी रात को चंद्रकांत के पास कैसे है? दोनों की बातें सुनने के लिए मैं चुपचाप अपनी जगह पर खड़ा रहा। मैं जानना चाहता था कि सफ़ेदपोश का चंद्रकांत से यूं रात के उस वक्त मिलने का क्या मतलब था और साथ ही दोनों के बीच क्या संबंध है?"

"तो क्या सुना तुमने?" पिता जी ने पूछा।

पिता जी के पूछने पर शेरा ने वही सब बताया जो परसों की रात चंद्रकांत से सफ़ेदपोश ने बातें की थी। सारी बातें सुनने के बाद पिता जी कुछ पलों तक जाने क्या सोचते रहे फिर बोले_____"उसके बाद क्या हुआ? हमारा मतलब है कि चंद्रकांत से वो सब बातें करने के बाद सफेदपोश कहां गया और तुमने क्या किया?"

"चंद्रकांत को अगली रात मिलने को कह कर जब सफ़ेदपोश वहां से चल दिया तो मैं भी उसके पीछे लग गया।" शेरा ने बताना शुरू किया____"वो अंधेरे में भी बहुत तेज़ी से आगे बढ़ता चला जा रहा था। मैं ये सोच कर हैरान हो उठा था कि वो कच्चे रास्ते और कीचड़ भरी ज़मीन पर भी कैसे इतनी तेज़ी से बढ़ता चला जा रहा था। मुझे लगा कहीं वो मेरी पहुंच से बाहर हो कर अंधेरे में गायब ही न हो जाए इस लिए मैं भी तेज़ी से उसके पीछे चल पड़ा किंतु एक जगह अचानक ही कीचड़ में मेरा पैर फिसल गया और मैं खुद को हज़ार कोशिश के बाद भी सम्हाल न सका। नतीज़ा ये हुआ कि मैं वहीं कीचड़ में गिर गया। किसी तरह जल्दी से उठा और फिर से उसके पीछे दौड़ चला किंतु आगे अंधेरे में वो मुझे नज़र न आया। मुझे याद आया कि पिछली बार वो आमों के बाग की तरफ ही गया था और फिर वो वहीं गायब हो गया था। मैं तेज़ी से आगे की तरफ दौड़ता चला गया। किन्तु शायद उसे शक हो गया था कि उसके पीछे कोई है इस लिए जल्दी ही वो आमों के बाग में दाखिल हो गया। मैंने अपना एक आदमी पहले से ही बाग़ के मकान के पास तैनात कर रखा था। शायद उस आदमी को अंधेरे में सफ़ेदपोश के आने का आभास हो गया था। सन्नाटे में मैंने साफ सुना था कि उसने उस सफ़ेदपोश को आवाज़ दी थी। मैं जानता था कि सफ़ेदपोश ऐसी चीज़ नहीं है जिसे अकेला आदमी अपने काबू में कर सके। अभी मैं बाग के क़रीब पहुंचा ही था कि तभी सन्नाटे में गोली चलने की तेज़ आवाज़ गूंज उठी और साथ ही एक इंसानी चीख भी। मैं समझ गया कि गोली उस सफ़ेदपोश ने ही चलाई थी क्योंकि मेरे आदमी के पास तो बंदूक जैसी कोई चीज़ थी ही नहीं। मैं फ़ौरन ही उस जगह पहुंच गया लेकिन देर हो चुकी थी मुझे। सफ़ेदपोश बाग़ में गायब हो चुका था। अब उसे खोजना व्यर्थ था। मैं फ़ौरन ही दर्द से तड़पते अपने आदमी के पास पहुंचा और उसे ले कर वैद्य जी के पास गया। वैद्य जी ने कहा कि गोली लगी है इस लिए वो इसमें कुछ नहीं कर सकते हैं। तब मैं फ़ौरन ही उसे जीप में लाद कर उसी वक्त शहर चला गया।"

"अब कैसा है वो?" पिता जी ने गहरी सांस लेने के बाद कहा____"समय से उसका उपचार हुआ था कि नहीं?"

"ऊपर वाले की दया से वो बच गया है मालिक।" शेरा ने कहा____"हालाकि खून बहुत बह गया था उसका। लगा नहीं था कि बचेगा किंतु बच गया। अभी थोड़ी देर पहले ही उसको अस्पताल से वापस ला कर उसके घर लाया हूं। सोचा आपको भी इस बारे में ख़बर कर दूं।"

"बड़ी अजीब बात है पिता जी।" मैंने कुछ सोचते हुए कहा____"पहले भी सफ़ेदपोश को हमारे आमों के बाग़ में ही ग़ायब होते देखा गया था और शेरा के अनुसार परसों रात को भी। सोचने वाली बात है कि हमारे आमों के बाग़ में पहुंच कर वो कैसे और कहां गायब हो जाता है? ये तो पक्की बात है कि वो कोई भूत प्रेत नहीं है जो किसी जादू की तरह ग़ायब हो जाता है। अब सवाल ये है कि वो ग़ायब कैसे हो जाता है? वो भी कुछ इस तरह से कि खोजने पर भी किसी को नज़र नहीं आता?"

"सही कहा तुमने।" पिता जी के चेहरे पर गहन सोचो के भाव उभर आए थे____"सफ़ेदपोश अपने काम को अंजाम देने के बाद हमारे आमों के बाग़ की तरफ ही क्यों जाता है और फिर वहां ग़ायब कैसे हो जाता है? आख़िर आमों के उस बाग़ में वो कौन सी जगह है जो एक इंसान को किसी जादू की तरह ग़ायब कर देती है? इस बारे में यकीनन अब पता लगाना पड़ेगा।"

"मेरा भी यही कहना है।" मैंने कहा____"हमारे आमों के बाग़ में कोई तो ख़ास बात ज़रूर है जो हमारे लिए अब रहस्य बन गई है और यकीनन सफ़ेदपोश के लिए एक पनाहगाह। एक ऐसी पनाहगाह जो उसके लिए हर तरह से सुरक्षित प्रतीत होती है। तभी तो वो हर बार वहीं पर जा कर बड़े आराम से हम सबकी नज़रों से ग़ायब हो जाता है। हमें आमों के बाग़ में जा कर वहां की अच्छे तरीके से जांच पड़ताल करनी होगी।"

शेरा को वापस भेजने के बाद मैं और पिता जी जीप में बैठ कर चंद्रकांत के घर की तरफ चल पड़े। सारे रास्ते हम दोनों के बीच ख़ामोशी रही। मेरी तरह शायद पिता जी भी सफ़ेदपोश के ही बारे में सोच रहे थे। ख़ैर कुछ ही देर में हम चंद्रकांत के घर पहुंच गए जहां पर ठाकुर महेंद्र सिंह की जीप पहले से ही खड़ी नज़र आई हमें।

✮✮✮✮

"तो आख़िर वही हुआ जिसका हमें पहले से ही अंदेशा था।" ठाकुर महेंद्र सिंह की सारी बातें सुनने के बाद पिता जी ने कहा____"यानि उस सफ़ेदपोश ने बड़ी ही चालाकी से चंद्रकांत के ही हाथों उसकी बहू की हत्या करवा दी। रजनी के संबंध में उसने चंद्रकांत को जो कुछ बताया था वो सब एक ऐसा झूठ था जिसे पूरी तरह सच मान कर चंद्रकांत ने अपनी ही बहू को जान से मार डाला।"

पिता जी की ये बातें सुन कर इतने लोगों के मौजूद रहते हुए भी सन्नाटा छा गया। ये अलग बात है कि कुछ ही दूरी पर चंद्रकांत दोनों हाथों से अपना सिर पकड़े इस तरह बैठा था जैसे उसका सब कुछ लुट गया हो और वो पूरी तरह से बर्बाद हो गया हो। चेहरे पर अनंत पीड़ा के भाव थे और आंखों में आंसुओं का तैरता हुआ सैलाब। अपनी रुलाई को बड़ी मुश्किल से रोके हुए था वो।

पिता जी के आने से पहले महेंद्र सिंह ने उससे यही पूछा था कि____'क्या कल रात सफ़ेदपोश उससे मिलने आया था?' जवाब में चंद्रकांत ने बड़े ही दुख के साथ इंकार में सिर हिलाया था और फिर लगभग रोते हुए उसने बताया था कि वो सफ़ेदपोश के इंतज़ार में सारी रात घर से बाहर बैठा रहा था किंतु सफ़ेदपोश को तो जैसे न आना था और ना ही वो आया था। उसके न आने का बस यही मतलब था कि पिछले दिन उसके बारे में दादा ठाकुर ने जो कुछ अनुमान के तहत कहा था वो ही सच था।

"कहना तो नहीं चाहिए चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने सहसा गंभीर हो कर कहा____"लेकिन ये सच है कि तुम्हारे ही दुष्कर्मों की वजह से तुम्हारा बेटा और तुम्हारी बहू आज इस दुनिया में नहीं हैं। तुमने खुद अपने हाथों अपने परिवार का नाश कर डाला। तुमने ये जानते हुए भी कि तुम्हारे घर की औरतों का भी उतना ही कसूर था जितना वैभव का था, उसके लिए अपने घर की औरतों को कुछ न कह के सिर्फ ठाकुर साहब के साथ बुरा करने का क़दम उठाया। चंद्रकांत, अब ये नहीं कहा जा सकता कि उस मामले के चलते तुम बाप बेटों की मनोदशा ठीक नहीं थी क्योंकि अगर ठीक न होती तो तुम दोनों गौरी शंकर के साथ मिल कर ठाकुर साहब के खिलाफ़ ना तो ऐसा करने का षडयंत्र रचते और ना ही वो सब कर पाते। साफ ज़ाहिर होता है कि तुम दोनों बाप बेटों ने अपने पूरे होशो हवास में सब कुछ किया। अपने घर की औरतों को दोष देने की बजाय तुमने ठाकुर साहब के साथ हद से ज़्यादा बुरा कर डालना ज़्यादा बेहतर समझा। शुरू से ही तुम्हारी नीयत और तुम्हारी सोच ग़लत थी। अगर तुम सच में अपने साथ हुए अपमान और अन्याय का इंसाफ़ चाहते तो वैभव वाले मामले को ले कर तुम सीधे ठाकुर साहब के पास जाते और उनसे इंसाफ़ की मांग करते। हम सब जानते हैं कि ठाकुर साहब तुम्हारे साथ इंसाफ़ ज़रूर करते, फिर भले ही चाहे उसके लिए उन्हें अपने बेटे को हमेशा हमेशा के लिए त्याग ही क्यों न देना पड़ता।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह कुछ पलों के लिए रुके। आस पास ही नहीं बल्कि चौगान के बाहर भी खड़े लोगों की तरफ उन्होंने दृष्टि घुमाई, फिर छा गई ख़ामोशी को चीरते हुए पुनः कहा_____"हमें समझ नहीं आ रहा कि तुम्हारे इस अपराध के लिए हम तुम्हें सज़ा दें अथवा नहीं। इसके पहले भी तुम्हारे अपराधों के लिए तुम दोनों बाप बेटों को ये सोच कर माफ़ कर दिया था कि तुम्हारे बाद तुम्हारे घर की औरतों और तुम्हारी इकलौती बेटी का क्या होगा? किंतु ये जो तुमने किया है उसके लिए क्या फ़ैसला करें हम?"

"मुझे सूली पर चढ़ा दीजिए ठाकुर साहब।" चंद्रकांत असहनीय दुख में आंसू बहाते हुए आर्तनाद सा कर उठा____"अपने हाथों इतना भयंकर अपराध करने के बाद अब मैं खुद भी जीना नहीं चाहता। मुझे शिद्दत से एहसास हो रहा है कि आज के समय में मुझ जैसा अपराधी और मुझ जैसा पापी दुनिया में कोई नहीं होगा। ऊपर वाला भी मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा। मुझे फांसी की सज़ा दे दीजिए ठाकुर साहब। मैं अब जीना नहीं चाहता। अरे! जिसका वंश ही नष्ट हो गया हो, जिसने अपने ही हाथों अपनी बहू को जान से मार डाला हो उसे एक पल भी जीने का हक़ कैसे हो सकता है? मुझे सूली पर चढ़ा दीजिए ठाकुर साहब ताकि ऊपर जा कर अपनी बहू के क़दमों में गिर कर अपने इस जघन्य अपराध के लिए उससे माफ़ी मांग सकूं।"

"नहीं चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह सहसा अजीब भाव से कह उठे____"तुमने जो गुनाह किया है उसके लिए तुम्हें सूली पर नहीं चढ़ाया जा सकता। तुम्हें तुम्हारे अपराधों के लिए ऐसी सज़ा हर्गिज़ नहीं दी जा सकती जिसमें एक ही झटके में तुम्हारे जीवन का अंत हो जाए। तुम्हारे अपराधों के लिए तो वो सज़ा ज़्यादा मुनासिब होगी जिसमें तुम हर रोज़ तिल तिल कर मरो....तड़प तड़प कर मरो।"

"नहीं....नहीं।" चंद्रकांत आतंकित सा हो कर चीख पड़ा____"ऐसा मत कहिए ठाकुर साहब। मुझे ऐसी भयानक सज़ा मत दीजिए। आप चाहें तो मुझे भी कुल्हाड़ी से काट काट कर मार डालिए लेकिन जीवन भर तड़प तड़प कर मरने की सज़ा मत दीजिए। मैं जल्द से जल्द मर कर अपने बेटे और बहू के पास पहुंच जाना चाहता हूं। अपनी बहू के पैरों से लिपट कर उससे माफ़ी मांगना चाहता हूं और.....और अपने बेटे के पास जा कर उससे पूछना चाहता हूं कि किसने उसकी हत्या कर के मेरे वंश का नाश किया है?"

चंद्रकांत की बातें ही ऐसी थीं कि सुन कर वहां बैठे लोगों की आंखें नम हो गईं। उसके रुदन से अजीब सी सनसनी फ़ैल गई थी। बाकियों का तो मुझे नहीं पता था किंतु मेरे अंदर एक अजीब सी झुरझुरी हुई थी। उधर उसकी बातें सुनने के बाद महेंद्र सिंह कुछ पलों तक उसकी तरफ देखते रहे। यकीनन उनके अंदर का हाल भी बाकियों से जुदा नहीं रहा होगा किंतु इस वक्त वो पंच के पद पर बैठे हुए थे इस लिए उन्हें अपनी भावनाओं की तरफ ध्यान नहीं देना था।

"हमारा ख़याल है कि इतना जल्दी हमें किसी नतीजे पर नहीं पहुंच जाना चाहिए।" पिता जी ने गंभीर भाव से कहा_____"हमारा मतलब है कि इस मामले में हमें दो तीन दिन का समय और लेना चाहिए।"

"आप कहना क्या चाहते हैं ठाकुर साहब?" महेंद्र सिंह ने न समझने वाले अंदाज़ से पिता जी की तरफ देखा।

"यही कि सफ़ेदपोश अगर कल रात चंद्रकांत से मिलने नहीं आया।" पिता जी ने कहा____"तो इसका मतलब हमें फ़ौरन ही ये नहीं सोच लेना चाहिए कि उसने चंद्रकांत को रजनी के संबंध में जो कुछ बताया वो झूठ था अथवा वो चंद्रकांत के हाथों उसकी अपनी ही बहू की हत्या करवा देना चाहता था। संभव है कि कल रात वो किसी दूसरे कारण की वजह से चंद्रकांत से मिलने न आया हो और यहां हम सब ये समझ बैठे हैं कि वो चंद्रकांत को अपने किसी मकसद से वो सब बताया जिसके चलते चंद्रकांत ने अपनी बहू को मार डाला।"

"मैं दादा ठाकुर की बात से सहमत हूं बड़े भैया।" पास ही कुर्सी पर बैठा ज्ञानेंद्र बोल पड़ा____"मेरा भी यही कहना है कि इस मामले में हमें फ़ौरन ही कोई फ़ैसला नहीं लेना चाहिए। दो तीन दिन का वक्त ले कर हमें सफ़ेदपोश को परख लेना चाहिए। संभव है कि वाकई में वो किसी कारणवश कल रात यहां न आ पाया हो।"

"हालाकि हमें अब भी यही लग रहा है कि उसने चंद्रकांत को अपने किसी मकसद के चलते ही ये सब करने के लिए फंसाया है।" पिता जी ने कहा____"किंतु फिर भी दो तीन दिन परख लेने में कुछ बिगड़ नहीं जाएगा बल्कि दूध का दूध और पानी का पानी ही हो जाएगा। अगर वो अगले दो तीन दिनों के भीतर भी चंद्रकांत से मिलने नहीं आता तो फिर पक्के तौर पर ये समझ लिया जाएगा कि उसने अपने किसी खास मकसद के चलते ही ये सब किया है।"

"आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं।" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"हमें यकीनन दो तीन दिनों तक उसे परखना चाहिए। हालाकि सफ़ेदपोश अथवा किसी का कुछ भी मकसद रहा हो लेकिन ये तो सच है ना कि चंद्रकांत ने अपनी बहू की हत्या कर के अपराध किया है। इस लिए इसे इसके उस अपराध के लिए सज़ा तो मिलेगी ही और सज़ा यही है कि ये अपने दिल में अपनी बहू की हत्या का बोझ लिए जीवन पर तड़पे।"

"ऐसा मत कहिए ठाकुर साहब।" चंद्रकांत फिर से गुहार सा लगा उठा____"मैं इतने संगीन अपराध का बोझ लिए एक पल भी नहीं जी सकूंगा।"

"तुम्हें जीना होगा चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह ने सख़्त भाव से कहा____"और हां, खुदकुशी करने का ख़याल अपने ज़हन में लाने का सोचना भी मत। इस बात का ख़याल भी रहे कि अगर तुमने ऐसा किया तो तुम्हारे बाद तुम्हारी बीवी और बेटी का क्या होगा?"

चंद्रकांत कुछ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन फिर अपने होंठ भींच लिए उसने। कदाचित बीवी और बेटी की बात सुन कर उसे एकदम से एहसास हुआ था कि वाकई में उसके बाद उनका क्या होगा.....ख़ास कर उसकी फूल सी बेटी का?

"क्या चंद्रकांत के बेटे के हत्यारे के बारे में कुछ पता चला?" पिता जी ने सामान्य भाव से महेंद्र सिंह से पूछा____"काफी समय हो गया उसकी हत्या हुए। हम भी अक्सर सोचते रहते हैं कि रघुवीर की हत्या आख़िर किसने और क्यों की होगी?"

"सच कहें तो ये बड़ा ही पेंचीदा मामला लगता है ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"ये सच है कि इतना समय गुज़र जाने के बाद भी अभी तक हमें इस बारे में कुछ भी पता नहीं चल सका है। हमारे आदमी हर उस जगह जांच पड़ताल कर रहे हैं जहां पर ज़रा सा भी रघुवीर का कोई न कोई संबंध था। हर जगह से फिलहाल एक ही ख़बर मिलती है कि रघुवीर की किसी से भी ऐसी दुश्मनी नहीं थी जिसके चलते कोई उसकी इस तरह से हत्या कर देता। हालाकि हम ये भी समझते हैं कि ऐसे मामलों में कोई भी खुल कर कोई बात स्वीकार नहीं करता है लेकिन ऐसा भी नहीं होता है कि किसी पर संदेह ही न हो सके।"

"अगर हत्या करने की वजह का पता चल जाए तो ये समझना भी बेहद आसान हो जाएगा कि रघुवीर का हत्यारा कौन है?" पिता जी ने कहा____"इस दुनिया में बेवजह कुछ नहीं होता इस लिए सबसे पहले हमें उस वजह का पता लगाना होगा जिसके तहत हत्यारे ने रघुवीर की हत्या की। एक बात और, हत्यारे को ये अच्छी तरह पता था कि मौजूदा समय में चंद्रकांत हमें अपना दुश्मन समझता है इस लिए ऐसे समय में अगर रघुवीर की हत्या होगी तो उसका सीधा शक अथवा इल्ज़ाम हम पर लगेगा, जैसा कि चंद्रकांत ने लगाया भी था। इसका फ़ायदा हत्यारे को मिला और अब वो बड़े शान से कहीं न कहीं घूम रहा होगा या ये भी हो सकता है कि हमारे आस पास ही कहीं मौजूद हो कर हमारी हर गतिविधि को देख रहा होगा।"

"पर सवाल तो अब भी वही है कि वो आख़िर है कौन?" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"ये तो निश्चित बात है कि उसे रघुवीर की हत्या करने में ये सोच कर बड़ी आसानी रही थी कि रघुवीर की हत्या का इल्ज़ाम सीधा आप पर लगेगा अथवा लगाया जाएगा किंतु खुद वो कौन है और रघुवीर से उसकी क्या दुश्मनी थी?"

"यही तो समझ में नहीं आ रहा ज्ञानेंद्र।" पिता जी ने कहा____"इतना समय गुज़र गया किंतु अभी तक हमें ये समझ नहीं आया कि रघुवीर से उसकी क्या दुश्मनी रही होगी? दूसरी सोचने वाली बात ये भी है कि सफ़ेदपोश को उस हत्यारे के बारे में कैसे पता चला? क्या सच में रजनी ने ही रघुवीर की हत्या की थी?"

"भगवान ही जाने सच क्या है और ये सब किसने किया होगा?" महेंद्र सिंह ने बेचैनी से पहलू बदला____"लेकिन अगर इन दो तीन दिनों के भीतर वो सफ़ेदपोश चंद्रकांत से मिलने आता है तो कदाचित ये समझ आ जाएगा कि सच क्या है? ख़ैर हमें लगता है कि इस बारे में ज़्यादा माथा पच्ची करने से बेहतर यही है कि दो तीन दिनों तक इंतज़ार किया जाए। अब सफ़ेदपोश के चंद्रकांत से मिलने के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है।"

उसके बाद पंचायत बर्खास्त कर दी गई। महेंद्र सिंह ने चंद्रकांत को हुकुम दिया कि वो दो तीन दिनों तक हर रात उस सफ़ेदपोश के आने का इंतज़ार करे। चंद्रकांत ने ख़ामोशी से सिर हिला दिया। उसके बाद सबको अपने अपने घर जाने को बोल दिया गया। महेंद्र सिंह भी पिता जी से इजाज़त ले कर अपने भाई और अपने आदमियों के साथ जीप में बैठ कर चले गए।

मैंने पिता जी को हवेली छोड़ा और फिर जीप ले कर खेतों की तरफ चल पड़ा। चंद्रकांत का मामला मेरे ज़हन में बसा हुआ था और साथ ही कई तरह के ख़्यालों के चलते मैं उलझन का शिकार भी होता जा रहा था। समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर सफ़ेदपोश की इस तरह से मौजूदगी का क्या मतलब हो सकता था? कहां तो वो मेरी जान लेने के पीछे पड़ा हुआ था और कहां अब वो चंद्रकांत से मिलता नज़र आने लगा था। अचानक ही मेरे ज़हन में सुबह हवेली में शेरा द्वारा कही गई बातें उभर आईं। सफ़ेदपोश को शेरा ने भी अपनी आंखों से चंद्रकांत से मिलते और बातें करते हुए देखा था। उसके बाद उसने उसका पीछा भी किया था। ये अलग बात है कि वो हमारे आमों के बाग़ में एक बार फिर से ग़ायब हो गया था और शेरा उसको पकड़ न सका था।

मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि आख़िर हमारे आमों के बाग़ में ही सफ़ेदपोश हर बार क्यों ग़ायब हो जाता है? आमों के बाग़ में ऐसी वो कौन सी जगह पहुंच जाता है जिसके बाद में वो किसी को नज़र ही नहीं आता। मतलब साफ है, आमों के बाग़ में कोई तो ऐसा रहस्यमय स्थान ज़रूर है जहां पर सफ़ेदपोश हमारी नज़रों से खुद को छुपा कर ग़ायब हो जाता है। जीप चलाते हुए मैंने फ़ैसला कर लिया कि मुझे आमों के बाग़ की अच्छे से छानबीन करनी होगी। आख़िर पता तो चले कि ये चक्कर क्या है?



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अध्याय - 106
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दोपहर के अभी दो ही बज रहे थे जिसके चलते अच्छी खासी धूप खिली हुई थी। आसमान में बादल तो थे लेकिन शाम से पहले बारिश होने के आसार नहीं नज़र आ रहे थे। मैंने भुवन को भेज कर चार पांच मजदूरों को बुला लिया था और अब खुद भी उन सबके साथ आमों के बाग़ की जांच पड़ताल का काम शुरू कर दिया था।

हमारे बाग़ में क़रीब दो ढाई सौ के आस पास पेड़ थे। दिन में भी सूर्य की तेज़ रोशनी पूरी तरह ज़मीन पर नहीं पहुंच पाती थी। पेड़ों से छन छन कर ही सूर्य का उजाला ज़मीन पर पड़ता था। ज़मीन पर सूखे पत्तों का ढेर सा लगा रहता था जिसके चलते चलने पर आवाज़ें होती थीं।

मैंने भुवन के साथ साथ उसके साथ आए सभी मजदूरों को स्पष्ट शब्दों में हुकुम दिया कि वो सब बाग़ की ज़मीन का बहुत ही बारीकी से मुआयना करें। कहीं पर अगर किसी को कोई गड्ढा भी नज़र आए तो वो उसे अच्छे से देखें। मेरे हुकुम पर सब के सब आंखें फाड़ फाड़ कर बाग़ की ज़मीन को देखने में लग गए थे। अपने अपने हाथों में ली हुई लाठियों से पत्तों को हटा हटा कर सब बड़ी बारीकी से ज़मीन को खंगालने में लगे हुए थे।

"क्या आपको पक्का यकीन है छोटे कुंवर कि इस बाग़ में ऐसी कोई जगह ज़रूर है जिसका उपयोग सफ़ेदपोश अपने ग़ायब होने के लिए करता है?" एक घंटे की मेहनत के बाद भी जब हमें कहीं पर ऐसा कुछ न मिला तो भुवन ने मुझसे कहा_____"क़रीब एक घंटा हो चुका है हमें यहां की ख़ाक छानते हुए लेकिन ऐसी कोई संदिग्ध जगह अभी तक नहीं मिली हमें।"

"हलकान मत हो भुवन।" मैंने कहा____"छान बीन करते रहो। मुझे पूरा यकीन है कि ऐसी कोई जगह इस बाग़ में ज़रूर है। ये बाग़ बहुत बड़ा है इस लिए हमें पूरे बाग़ में देखना होगा। कहीं न कहीं तो ऐसी जगह ज़रूर मिलेगी हमें जिससे हमें ये पता चल जाएगा कि वो सफ़ेदपोश हर बार कैसे यहां आ कर ग़ायब हो जाता है और हमारी पकड़ से दूर चला जाता है?"

मेरे कहने पर भुवन कुछ न बोला। अपने हाथ में लिए लट्ठ से वो ज़मीन पर पड़े सूखे पत्तों को हटा हटा कर ज़मीन का मुआयना करने में लगा हुआ था। मैं खुद भी पूरी सतर्कता से खोज बीन कर रहा था। जैसे जैसे समय गुज़र रहा था वैसे वैसे मेरे चेहरे पर निराशा और बेचैनी बढ़ती जा रही थी। समझ में नहीं आ रहा था कि अगर बाग़ में सचमुच ऐसी कोई जगह नहीं है तो सफ़ेदपोश कैसे यहां से किसी जादू की तरह ग़ायब हो जाता होगा? यही सब सोचते हुए मैं हैरान होने के साथ साथ अब परेशान भी हो उठा था।

पूरा बाग़ छान मारा हमने लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं मिला जो ये साबित करे कि सफ़ेदपोश ऐसी किसी जगह का स्तेमाल कर के हमारी नज़रों से ग़ायब हो जाता था। थक हार कर हम सब बाग़ से निकल कर मकान के पास आ गए।

"वैसे आप किस तरह के स्थान की उम्मीद किए हुए थे छोटे कुंवर?" बाकी मजदूरों को वापस काम पर भेजने के बाद भुवन ने मुझसे पूछा____"जिसके द्वारा वो सफ़ेदपोश ग़ायब हो जाता होगा?"

"सच कहूं तो मेरा ख़याल यही था कि बाग़ में कहीं कोई गुप्त स्थान हो सकता है।" मैंने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा____"जिसका स्तेमाल कर के सफ़ेदपोश हर बार हमारी नज़रों से ग़ायब हो जाता है। ऐसा इस लिए क्योंकि अगर वो ज़मीन पर ही भागता हुआ कहीं जाता तो हमें उसकी मौजूदगी का आभास होता रहता। यानि ज़मीन पर पड़े सूखे पत्ते उसके भागने से आवाज़ पैदा करते और हम आसानी से समझते कि वो फला दिशा की तरफ भागता चला जा रहा है। जबकि असल में ऐसा होता ही नहीं है। वो बाग़ में दाखिल होता है...कुछ दूर तक ज़मीन पर पड़े सूखे पत्तों पर उसके भागने से आवाज़ भी होती है लेकिन फिर कुछ ही देर में उसके भागने की आवाज़ चमत्कारिक रूप से बंद हो जाती है। यही एक बात है जिसके चलते मैं इस नतीजे पर पहुंचा था कि बाग़ में कहीं पर कोई गुप्त स्थान होगा जहां पहुंच कर सफ़ेदपोश छुप जाता होगा। इधर हम क्योंकि उसके भागने से उत्पन्न हुई आवाज़ से उसका पीछा करते हैं और जब आवाज़ ही बंद हो जाती है तो हमारे सामने रास्ते ही बंद हो जाते हैं। उसके बाद उसे खोजना वैसा ही हो जाता है जैसे भूसे के ढेर में सुई खोजना।"

"बात तो आपकी दुरुस्त है छोटे कुंवर।" भुवन ने कहा____"लेकिन लगभग दो घंटे की खोजबीन के बाद भी हमें इस बाग़ में ऐसा कोई गुप्त स्थान नहीं मिला।"

"यही तो सोचने वाली बात है भुवन।" मैंने बाग़ की तरफ नज़र डालते हुए कहा____"यही तो आश्चर्य की बात भी है कि अगर ऐसा कोई गुप्त स्थान है ही नहीं तो कैसे वो सफ़ेदपोश इस बाग़ में आ कर हर बार ग़ायब हो जाता है और हम उसे पकड़ नहीं पाते? क्या वो सच में कोई जादू जानता है जिसके चलते वो अपनी जादुई छड़ी घुमा कर पलक झपकते ही ग़ायब हो जाता है? एक पल के लिए अगर ये मान भी लें कि उसके पास कोई जादुई छड़ी है तो फिर उसे ग़ायब होने के लिए इस बाग़ में आने की क्या ज़रूरत है? अपनी जादुई छड़ी के ज़ोर से तो वो कहीं पर भी खड़े खड़े ग़ायब हो सकता है।"

"सही कह रहे हैं आप।" भुवन ने सोच पूर्ण भाव से कहा____"उसके पास अगर कोई जादू की छड़ी होती तो यकीनन वो कहीं पर भी खड़े खड़े पल में ग़ायब हो सकता है। मगर नहीं, वो इस बाग़ में आता है और फिर कुछ ही लम्हों में ग़ायब हो जाता है। अब ऐसा वो कैसे करता है ये तो वही बता सकता है।"

"नहीं भुवन।" मैंने पुनः गहरी सांस ली____"वो भला क्यों अपना कोई भेद बताएगा हमें? उसका भेद तो हमें खुद ही पता करना होगा। कोई न कोई स्थान तो ज़रूर है जहां से वो बड़ी आसानी से ग़ायब हो कर हमारी पकड़ से दूर चला जाता है।"

"बड़ी अजीब बात है।" भुवन ने झुंझलाते हुए कहा____"आख़िर कैसे वो पल में ग़ायब हो जाता होगा? अगर उसे ज़मीन नहीं खा जाती है तो क्या आसमान निगल जाता है?"

"आ....आसमान????" भुवन की बात सुनते ही मैं एकाएक चौंका____"हां हां आसमान।"

"ये आप क्या कह रहे हैं छोटे कुंवर?" भुवन एकदम से चौंका____"कौन आसमान?"

"अरे! आसमान तो एक ही होता है भुवन।" मैं मारे खुशी के बोल पड़ा____"वही जहां पर सूरज चांद और अनगिनत तारे मौजूद होते हैं। तुमने अंजाने में आसमान का नाम लिया तो पलक झपकते ही मेरे ज़हन में बिजली की तरह ये ख़याल उभर आया कि वो हर बार आसमान से ही ग़ायब हो सकता है।"

"आ...आसमान से???" भुवन की आंखें हैरत से फैल गईं____"ये क्या कह रहे हैं आप?"

"मैं वही कह रहा हूं भुवन जो सच है।" मैं अति उत्साह के चलते एक झटके से खड़ा हो गया, फिर बोला____"अभी तक हम ये सोच रहे थे कि उसके ग़ायब होने का राज़ बाग़ की ज़मीन पर ही कहीं होगा और इसी लिए हमने बाग़ की पूरी ज़मीन को खंगाल डाला। मगर मिला कुछ नहीं लेकिन आसमान की तरफ तो हमने देखा ही नहीं।"

"मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा कि आप ये अचानक से क्या बोलते चले जा रहे हैं?" भुवन जैसे बुरी तरह उलझ गया____"हमने आसमान की तरफ देखा ही नहीं से क्या मतलब है आपका?"

"आओ मेरे साथ।" मैं तेज़ क़दमों से बाग़ की तरफ बढ़ते हुए बोला____"कुछ देर में तुम खुद ही समझ जाओगे कि मेरे कहने का क्या मतलब है?"

भुवन हैरान परेशान मेरे पीछे चल पड़ा। जल्दी ही हम दोनों बाग़ में पहुंच गए। बाग़ के अंदर कुछ दूर आने के बाद मैं रुक गया। भुवन बेवकूफों की तरह मेरी तरफ ही देखे जा रहा था।

"अब ऊपर देखो ज़रा।" मैंने भुवन को जैसे नींद से जगाया____"और बताओ क्या नज़र आ रहा है तुम्हें?"

मेरे कहने पर भुवन पहले तो चौंका और फिर जल्दी से ऊपर देखने लगा। ऊपर उसे पेड़ों की फैली हुई शाखाएं ही दिख रहीं थी जिनके बीच से निकल कर सूर्य की किरणें ज़मीन पर पहुंच रहीं थी।

"क्या नज़र आ रहा है तुम्हें?" मैंने भुवन से पूछा तो उसने ऊपर देखते हुए ही कहा____"ऊपर तो पेड़ों की बहुत सारी शाखाएं ही दिख रही हैं छोटे कुंवर।"

"उन शाखाओं को देखने से क्या महसूस होता है तुम्हें?" मैंने उससे पूछा।

"आख़िर आप कहना क्या चाहते हैं?" भुवन ने गर्दन मेरी तरफ घुमा कर पूछा____"शाखाओं को देख कर तो मुझे यही महसूस हो रहा है कि यहां सूरज की धूप नहीं है बल्कि छांव है जिसके चलते अच्छा महसूस हो रहा है। ठंडी ठंडी हवा लग रही है जिससे मन करता है कि यहीं बैठा जाएं।"

"एकदम गधे हो तुम?" मैंने उसे घूरते हुए कहा तो वो एकदम से सकपका गया।

"क्या मैंने कुछ ग़लत कहा छोटे कुंवर?" फिर उसने सिर खुजाते हुए कहा। अंदाज़ ऐसा था जैसे कुछ सोचने लगा हो।

"तुमने अभी जो कहा वो सब एक सामान्य सी बातें हैं जोकि सच हैं।" मैंने कहा____"लेकिन तुम भूल गए हो कि यहां हम सफ़ेदपोश के बारे में पता करने के उद्देश्य से आए हैं। मैंने तुमसे पेड़ों की इतनी सारी शाखाओं को देखने के बाद पूछा कि कैसा महसूस हुआ तो तुम्हें समझ जाना चाहिए था कि शाखाओं में ही वो बात है जिसे तुम्हें समझना था।"

मेरी बात सुनते ही भुवन जल्दी से सिर उठा कर पेड़ों की शाखाओं को ध्यान से देखने लगा। उसकी नज़रें पेड़ों की शाखाओं पर ही जम गईं थी। तभी उसके चेहरे के भाव बदले और वो अपनी निगाहों को एक शाख से दूसरी शाख पर इस तरह धीरे धीरे ले जाने लगा जैसे किसी चीज का पीछा कर रहा हो। अगले कुछ ही पलों में उसके चेहरे पर एक खास किस्म की चमक उभर आई जिसके चलते उसके होठों पर मुस्कान उभर आई।

"मेरा ख़याल है कि अब तुम समझ चुके हो कि मैं तुम्हें क्या महसूस कराना चाहता था?" मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा।

"देर से समझा लेकिन समझ गया छोटे कुंवर।" भुवन ने मुस्कुराते हुए कहा____"मैं समझ गया कि आसमान की बात से आपका क्या मतलब था।"

"तो बताओ।" मैंने कहा____"ये सब कुछ देख कर किस नतीजे पर पहुंचे तुम?"

"यही कि सफ़ेदपोश के ग़ायब होने का राज़ पता कर लिया है हमने।" भुवन ने खुशी से मुस्कुराते हुए कहा____"यानि अब हमें समझ आ गया है कि वो बाग़ में आने के बाद किस तरीके से एक पल में ग़ायब हो जाता है। इसके पहले हम ये सोच रहे थे कि बाग़ की ज़मीन पर ही कोई गुप्त स्थान उसने बना रखा रहा होगा जहां पहुंच कर वो छुप जाता था और इसी लिए हमने बाग़ की पूरी ज़मीन को खंगाल डाला मगर हमें कुछ न मिला। किंतु अब इन पेड़ों की शाखाओं को देख कर समझ आ गया है कि वो कैसे ग़ायब हो जाता है। यानि वो यहां आता है और फिर किसी न किसी पेड़ पर चढ़ जाता है। पेड़ों की शाखाएं क्योंकि दूसरे पेड़ों की शाखाओं से जुड़ी हुई हैं इस लिए वो शाखाओं के द्वारा यहां से दूर निकल जाता है और हम ये सोचते रह जाते हैं कि वो ग़ायब कैसे हो गया?"

"बिल्कुल सही कहा तुमने।" मैंने कहा____"लेकिन ज़रूरी नहीं कि यही सच हो। ऐसा इस लिए क्योंकि रात के वक्त अंधेरे में शाखाओं के द्वारा इतने बड़े बाग़ से बाहर निकल जाना बिल्कुल भी आसान काम नहीं है। ज़रा सी असावधानी के चलते इंसान शाखाओं से फिसल कर नीचे ज़मीन पर भी गिर सकता है और ज़ाहिर है इससे हाथ पैर मुंह नाक आदि को क्षति पहुंच सकती है। सफ़ेदपोश भी इस बात को भली भांति समझता होगा इस लिए वो रात के अंधेरे में पेड़ों की शाखाओं पर चलते हुए यहां से निकलने का ख़याल अपने ज़हन में नहीं लाएगा।"

"अगर ऐसा है।" भुवन ने कहा____"तो फिर वो यहां से निकलता कैसे होगा?"

"जैसे हर इंसान निकलता है।" मैंने कहा____"बिल्कुल सामान्य तरीके से। मेरे कहने का मतलब है कि वो यहां आते ही किसी पेड़ पर चढ़ जाता होगा और फिर वो पेड़ की किसी शाख पर तब तक बैठा रहता होगा जब तक कि उसे ये यकीन न आ जाए कि उसके पीछे उसका पीछा करने आए लोग हताश हो कर वापस नहीं चले गए हैं। सीधी सी बात है कि अगर हमें ये एहसास हो जाए कि जिसका हम पीछा कर रहे हैं वो किसी जादू की तरह ग़ायब हो चुका है और अब हम उसे किसी भी हालत में पकड़ नही पाएंगे तो यकीनन हताश हो कर कुछ देर में हम वापस लौट जाएंगे। अब तुम समझ ही सकते हो कि इसके बाद सफ़ेदपोश के लिए यहां से निकल जाने का रास्ता कितना आसान हो जाएगा।"

"सही कह रहे हैं आप।" भुवन को जैसे अब पूरी बात समझ में आ गई थी, बोला____"वाकई ऐसे में सचमुच बड़ी आसानी से वो यहां से निकल सकता है। जब उसका पीछा करने वाला यहां कोई रहेगा ही नहीं तो उसके लिए कोई समस्या वाली बात भी नहीं रह जाएगी। यानि वो बड़े आराम से पेड़ से वापस नीचे उतरेगा और फिर बेफिक्र हो कर यहां से चला जाएगा।"

"आओ अब ज़रा ये देख लेते हैं कि वो यहां से किस तरफ जाता होगा?" मैंने आगे क़दम बढ़ाते हुए कहा____"ये तो स्पष्ट है कि पेड़ से उतरने के बाद वो वापस हमारे मकान की तरफ नहीं जाता होगा क्योंकि उसे भी इस बात का अंदेशा रहता होगा कि कोई न कोई रात में भी मकान में मौजूद हो सकता है। इस लिए वो उस तरफ वापस जा कर अपने लिए किसी भी तरह का ख़तरा मोल नहीं लेगा। यानि वो अपनी असल मंजिल पर जाने के लिए कोई दूसरा ही रास्ता चुनेगा। हमें यही देखना है कि यहां से वो किस तरफ जाता होगा?"

भुवन मेरी बात से पूर्णतः सहमत था इस लिए बिना कुछ कहे ही सिर हिला कर मेरे पीछे पीछे चल पड़ा। हम दोनों इधर उधर का जायजा लेते हुए आगे बढ़ने लगे थे। कुछ ही देर में हम घने पेड़ पौधों के बीच से चलते हुए एकाएक बाग़ से बाहर आ गए। सामने क़रीब पांच क़दम की दूरी पर एक बड़ी और मोटी सी मेढ़ थी जोकि सरहद का भी काम करती थी। मेढ़ हमारी ही थी और क़रीब सात आठ फीट ऊंची थी। मेढ़ के उस पार की ज़मीन हमारी नहीं बल्कि साहूकारों की थी। मैं और भुवन उस ऊंची मेढ़ पर चढ़ गए। सामने खेत ही खेत थे जिनमें उगी हुई धान के पौधों की हरियाली बड़ी ही खूबसूरत नज़र आ रही थी। मेरी निगाह चारो तरफ दौड़ते हुए एक तरफ जा कर ठहर गई। दूर साहूकारों के घर नज़र आ रहे थे। उनके घरों के पीछे क़रीब दो सौ मीटर की दूरी पर उनके आमों का बगीचा दिख रहा था। थोड़ी और दूर निगाह डालने पर मुझे गांव के बाकी घर नज़र आए।

"क्या आप भी वही सोच रहे हैं जो मैं सोच रहा हूं?" सहसा भुवन ने हमारे बीच की ख़ामोशी को तोड़ा तो मैंने उसकी तरफ देखा।

"तुम क्या सोच रहे हो?" मैंने सामान्य भाव से पूछा।

"यहां तक आपके ज़मीनों की सरहद है।" भुवन ने जैसे कोई भूमिका बनाते हुए कहा____"इस मेढ़ के बाद गांव के साहूकारों की ज़मीनें शुरू होती हैं और यहां से हमें उनके घर भी नज़र आ रहे हैं। मैं ये सोच रहा हूं कि क्या सफ़ेदपोश का ताल्लुक साहूकारों से हो सकता है? स्पष्ट शब्दों में ये कि क्या साहूकारों के घर का ही कोई सदस्य सफ़ेदपोश हो सकता है?"

"बहुत खूब।" मैं भुवन की दूरदर्शिता से प्रभावित हो कर बोला____"सच कहूं तो मैं भी यही सोच रहा हूं लेकिन....।"

"लेकिन??" भुवन के माथे पर शिकन उभरी।

"सोचने वाली बात है कि अगर ऐसा मान भी लें तो उनके घर का वो कौन सदस्य हो सकता है जिसे हम सफ़ेदपोश कह सकें?" मैंने कहा____"आज के समय में उनके घर में सिर्फ दो ही मर्द बचे हैं____गौरी शंकर और रूपचंद्र। गौरी शंकर को क्योंकि गोली लगी थी जिसके चलते उसका एक पैर सही से काम ही नहीं करता है और वो लंगड़ा कर चलता है। शेरा के अनुसार उस रात सफ़ेदपोश बड़ा तेज़ भागता हुआ हमारे बाग़ की तरफ जा रहा था। ज़ाहिर है अगर वो लंगड़ा होता तो इतना तेज़ नहीं भाग सकता था कि शेरा जैसा तंदुरुस्त व्यक्ति उस तक पहुंच ही ना पाता। मतलब स्पष्ट है वो गौरी शंकर नहीं हो सकता। अब बचा रूपचंद्र, तो मुझे नहीं लगता कि वो सफ़ेदपोश हो सकता है।"

"ऐसा क्यों?" भुवन ने कहा____"भला रूपचंद्र सफ़ेदपोश क्यों नहीं हो सकता? वो भी तो आपकी जान का दुश्मन था।"

"बेशक।" मैंने कहा____"लेकिन ये भी सच है कि वो मुझे अपना दुश्मन सिर्फ इसी लिए समझता था क्योंकि उसके अनुसार मैंने उसकी बहन की इज्ज़त ख़राब करके उसकी ज़िंदगी बर्बाद की थी। अब जबकि उसकी बहन से मेरा ब्याह होना ही तय हो गया है तो वो भला क्यों मेरी जान लेने का सोचेगा? उसे भी पता है कि उसकी बहन मुझे कितना प्रेम करती है। यानि एक तरह से उसकी बहन की खुशी सिर्फ मुझे हासिल कर लेने से ही है। मुझे अच्छी तरह पता है कि वो अपनी बहन की खुशियों का गला नहीं घोंट सकता। तुम्हें शायद पता नहीं है अभी, एक समय था जब रूपचंद्र अपनी बहन रूपा को अपनी जान से भी ज़्यादा चाहता था। उसकी बहन ने ये बातें खुद मुझे बताई थीं।"

"तो आप सिर्फ इसी वजह से उसे सफ़ेदपोश नहीं कह सकते?" भुवन ने कहा____"जबकि आपको ये भी नहीं भूलना चाहिए कि ये वही साहूकार हैं जो कुछ दिनों पहले तक आपको ही नहीं बल्कि आपके पूरे परिवार को ख़त्म कर देने की राह पर चले थे। छोटे ठाकुर और बड़े कुंवर को तो उन्होंने अपनी दुश्मनी के चलते मौत के घाट उतार भी दिया है। क्या आपको लगता है कि वो कभी भरोसे के लायक हो सकते हैं?"

"लगता तो नहीं भुवन लेकिन मैं ये भी जानता हूं कि हर व्यक्ति को एक दिन अपनी ग़लतियों का एहसास होता है।" मैंने कहा____"और जिस दिन व्यक्ति को अपनी ग़लतियों का एहसास हो जाता है समझ लो उसी दिन उसका कायाकल्प हो जाता है। वो सुधर जाता है और फिर कभी ग़लत करने का ख़याल भी अपने ज़हन में नहीं लाता। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मैं खुद हूं। तुम मेरे बारे में तो सब कुछ जानते हो। क्या तुम कभी कल्पना कर सकते थे कि मेरे जैसा इंसान एक दिन यूं बदल जाएगा और एक अच्छा इंसान बनने की राह पर चलने लगेगा? जब मेरे जैसा इंसान बदल सकता है तो मैं यही समझता हूं कि दुनिया का हर व्यक्ति बदल सकता है। देर से ही सही लेकिन इंसान बदलता ज़रूर है।"

"चलिए मान लिया मैंने।" भुवन ने कहा____"अब सवाल ये है कि अगर सफ़ेदपोश गौरी शंकर या रूपचंद्र में से कोई नहीं है तो फिर कौन हो सकता है? इतना ही नहीं हर बार वो हमारे ही बाग़ की तरफ आ कर यहां से ग़ायब क्यों होता है?"

"यकीनन, ये सवाल किसी चकरघिन्नी की तरह मेरे अपने मन में भी घूम रहा है।" मैंने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"अगर उसे ग़ायब ही होना होता है तो उसको हमारे बाग़ में आने की क्या ज़रूरत है? वो किसी दूसरी जगह से भी तो ग़ायब हो सकता है? हमारे बाग़ में आने के पीछे उसका मकसद क्या सिर्फ ये हो सकता है कि वो हमें अपने बारे में हमेशा उलझाए रखना चाहता है? यानि वो नहीं चाहता कि हम सही दिशा में चल कर उस तक पहुंच पाएं। हां शायद यही हो सकता है। तभी तो उस रात चंद्रकांत से मिलने के बाद उल्टा वो हमारे बाग़ की तरफ आया। उस वक्त भले ही उसे शेरा द्वारा अपना पीछा किए जाने का आभास न हुआ हो लेकिन बाद में तो हो ही गया था। इसके बावजूद वो हर बार इतना बड़ा ख़तरा मोल लेता है और खुद को ग़ायब करने के साथ साथ हमें इसी तरह उलझाने के लिए हमारे बाग़ की तरफ आता है। क्या तुम सोच सकते हो कि उसके जैसा शातिर व्यक्ति हमें उलझाने के लिए ही नहीं बल्कि अपनी असलियत छुपाने एक लिए भी इतना बड़ा ख़तरा मोल ले सकता है?"

"शातिर तो वो है छोटे कुंवर और इसमें कोई शक वाली बात नहीं है।" भुवन ने कहा____"मगर सबसे बड़ा सवाल यही है कि वो आख़िर है कौन?"

"यहां आने से पहले हम ये सोच भी नहीं सकते थे कि वो ऐसा सिर्फ हमें उलझाने के लिए करता है।" मैंने कहा____"अभी तक हम यही सोच रहे थे कि वो बाग़ में ही कहीं ग़ायब हो जाता है। मैंने तो ये तक सोच लिया था कि उसने बाग़ में ही कहीं कोई सुरंग बना रखी होगी जो अंदर ही अंदर उसे उसके घर तक पहुंचा देती होगी। लेकिन यहां आने के बाद अब ऐसा भी प्रतीत होता है जैसे वो हमें इसके अलावा भी कुछ और संदेश देना चाहता है।"

"क..कैसा संदेश?" भुवन चौंका।

"हो सकता है कि मेरा ऐसा सोचना महज वहम के सिवा कुछ न हो।" मैंने कहा____"लेकिन ये भी हो सकता है कि उसमें सच्चाई भी हो। ख़ैर ये तो अब पक्का हो चुका है कि सफ़ेदपोश हर बार इसी तरीके से और इसी रास्ते से निकल जाता रहा है लेकिन सवाल है कि इसी रास्ते से ही क्यों? क्या वो मेरे दिमाग़ में ये बात बैठाना चाहता है कि मैं ये सोचूं कि सफ़ेदपोश साहूकार के घर का ही कोई है?"

"वो जान बूझ कर भला खुद ही क्यों अपने बारे में ऐसा ज़ाहिर कर देना चाहेगा?" भुवन ने हैरानी से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"ये तो वही बात हुई कि आ बैल मुझे मार अथवा अपने ही हाथों अपने पांव में कुल्हाड़ी मार लेना।"

"बिल्कुल सही कहा तुमने।" मैंने खुशी से झूमते हुए कहा____"असल में अपने सवाल के जवाब में तुमसे यही सुनना चाहता था मैं। यकीनन वो ऐसा नहीं कर सकता। मतलब साफ है, वो जान बूझ कर हमारी सोच के दायरे को साहूकारों की तरफ मोड़ देना चाहता था। मकसद स्पष्ट था कि हम उसके ऐसा करने से उलझ तो जाएं ही किंतु साथ ही असल रास्ते से भी भटक जाएं।"

"फिर तो घूम फिर कर हम फिर से वहीं आ गए छोटे कुंवर।" भुवन ने गहरी सांस ली____"इतनी सारी बातें सोच डाली हम दोनों ने लेकिन लगता है इससे और भी ज़्यादा उलझ गए हैं हम जबकि सवाल ये था कि आख़िर कौन हो सकता है वो सफ़ेदपोश?"

सच ही तो कहा था भुवन ने। मैं वाकई इतनी सारी बातें सोच कर और भी ज़्यादा उलझ गया था और उसके बारे में किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाया था। मैंने फ़ौरन ही अपने ज़हन को झटका और वापस चल पड़ा। कुछ ही देर में हम दोनों अपने मकान के पास पहुंच गए। भुवन को यहां का काम देखने का बोल कर मैं जीप ले कर निकल गया।



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avsji

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Supreme
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सबसे पहले तो कहानी को वापस शुरू करने के लिए धन्यवाद भाई। मेरी सबसे पसंदीदा, चुनिंदा कहानियों में से एक है ये और मेरे सिग्नेचर में भी इसका लिंक है जिससे मेरे पाठक भी इस कहानी को पढ़ सकें। इसलिए 🙏
अभी तक की कहानी में सबसे रोमांचक अपडेट लगा यह। रहस्यमय!! और दिमाग़ लगाने वाला। फिर भी समझ नहीं आ रहा कि कौन हो सकता है वो सफ़ेदपोश!
बहुत ही बढ़िया दो अपडेट हैं शुभम। बहुत ही बढ़िया 👍
 

Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
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नए साल की बधाई और एक साथ दो नए अपडेट देने के लिए धन्यवाद।
उम्मीद करता हूं की इस बार ये कहानी खत्म होने के बाद ही रुकेगी क्योंकि इस फोरम में दो तीन कहानियां ही है जिन्हे मैं पढ़ने के लिए वक्त निकाल कर आता हूं और या उन कहानियों में भी सबसे ज्यादा प्रिय हैं।

रही बात सफेद नकाबपोश की तो मुझे लगता है की जिस हिसाब से उसकी कद काठी है वो ठाकुरों के बीच का ही कोई है और देखने लायक रहेगा की घर में से कौन उसके साथ शामिल है।


अपडेट के लिए फिर से धन्यवाद भाई,
प्रतीक्षा रहेगी अगले अपडेट की ❣️
 
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