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कौमार्य (virginity)

कौमार्य का मतलब तो आप सब समझ ही गए होंगे. एक लड़की का कौमार्य कब भंग होता है. या किसके साथ होता है. ये उसके लिए बहोत महत्व रखता है. किसी दोस्त या प्रेमी से, या फिर अपने पति से. कइयों के नसीब मे तो इन तीनो के आलावा एक और तरीके से भी कौमार्य भंग होता है. बलात्कार. पर मेरा विषय बलात्कार नहीं है. एक महत्व पूर्ण बात ये भी है की कौमार्य भंग कहा होता है. कोई खास जगह. शादी से पहले हुआ तो किसी घर या होटल मे. या फिर कोई खेत या झाडीयों मे.

अपने कौमार्य को बचाकर रखा तो शादी के बाद सुहाग सेज पर. हमारे कल्चर के हिसाब से तो यही बेस्ट जगह है. सुहाग सेज. अब मर्दो की फितरत की बात करें तो मर्द भी एक तमन्ना रखते होंगे की जब उनकी शादी हो. और उनकी पत्नी जब शुहागरात को उनका साथ निभाए तब ही उनका कौमार्य भंग हो. तमन्ना रखना भी वैसे बुरा नहीं है. पर मेरी मानो तो शरीर का कौमार्य भंग हो ना हो. अपनी सोच का कौमार्य भंग होना बहोत जरुरी है.

तो चलिए मुख्य कहानी पर चलते है. सुहाग सेज पर बैठी कविता अपने पति का इंतजार कर रही थी. शादी के बाद पहली रात. घुंघट मे बैठी कविता कभी तो मंद मंद मुश्कुराती. तो कभी गहेरी सोच मे डूब जाती. कविता अपने पति के साथ हुई पहली मुलाक़ात को याद कर रही थी. कुछ 2 साल पहले 22 साल की कविता अपने पिता दया शंकर शुक्ला और माँ सरिता शुक्ला के साथ माता के दर्शन कर के इलाहबाद के लिए ट्रैन मे बैठे हुए थे. 48 साल के दया शंकर शुक्ला PWD मे कार्यरत थे. वही 45 साल की माँ सरिता शुक्ला घरेलु महिला थी. उस वक्त उनकी एक लौती बेटी कविता शुक्ला 22 साल की M.S.C 1st year मे थी.


3rd क्लास के विंडो शीट पर बैठी कविता विंडो से बाहर देख रही थी. अचानक कोई आया. और उसके सामने वाली शीट पर बैठ गया. स्मार्ट हैंडसम गोरा चिट्टे चहेरे वाला वो नौजवान फौजी ही लग रहा था. छोटे छोटे बाल और क्लीन शेव उसकी पहचान बता ही रही थी. कविता ने उसपर नजर डाली. वो अपना बैग शीट के निचे घुसा रहा था. जिसपर टैग लगा हुआ था. टैग पर साफ अंग्रेजी शब्दो मे लिखा हुआ था. सिपाही वीरेंदर पांडे.

साथ मे पेट नेम भी लिखा हुआ था. वीर. कविता के फेस पर तुरंत ही स्माइल आ गई.
तभी वीर की नजर भी कविता पर गई. और वो एक टक कविता को देखता रहे गया. कविता ने अपनी भंवरे चढ़ाकर वीर से हिसारो मे पूछा. क्या देख रहे हो जनाब. वीर बहोत शर्मिला निकला. उसने तुरंत ही अपनी नजरें हटा ली. पर कविता खुद उस से नजर नहीं हटा पा रही थी. ट्रैन चाल पड़ी. ट्रेन के सफर मे अक्सर मुशाफिर दोस्त बन ही जाते है. कविता के माँ बाप ने भी वीर का इंटरव्यू चालू कर दिया. बेटा कहा रहते हो. क्या करते हो. और घर मे कौन कौन है. वगेरा वगेरा........तब कविता को पता चला की जनाब बनारस के है.

मतलब कविता के क्षेत्र के ही रहने वाले. काफ़ी वक्त बीत गया. वीर महाशय जब भी नजर चुरा कर कविता को देखते कविता उन्हें पकड़ ही लेती. सायद वीर जनाब कुछ ज्यादा ही शर्मीले थे. इस लिए वो खड़ा हुआ और वहां से टॉयलेट की तरफ चाल दिया. कुछ मिनट बाद कविता भी टॉयलेट के पास आ गई. और वीर को घेर लिया. डोर के पास ही कविता जब सामने खड़ी हो गई तो वीर का थूक निगलना भी मुश्किल हो गया.


कविता : क्या आप हमें देख रहे थे???


वीर थोडा जैसे घबरा गया हो. शरीफ इंसान अक्सर बदनामी से डरते है. वैसा डर वीर को भी लगने लगा.


वीर : ननन... नहीं तो. आआ आप को सायद गलत फेमि हुई है.


वीर को थोडा सा घभराया देख कविता समझ गई की जनाब शरीफ इंसान है. कविता हस पड़ी.


कविता : (स्माइल) हम जानते है पांडे जी. हम बहोत सुन्दर है. पर ऐसे शर्माइयेगा तो कैसे कम चलेगा. ऐसे तो लड़की हाथ से निकाल जाएगी.


कविता के बोलने का अंदाज़ बड़ा शरारती था. वीर की हालत देख कर कविता को हसीं आने लगी. कविता का ऐसा बोल्ड रूप देख कर वीर की जुबान ही हकला गई.


वीर : हमने... हमने क्या किया????


कविता : अरे यही तो.... यही तो बात है की आप कुछ कर नहीं रहे. अरे कुछ कीजिये पांडे जी. जब लड़की पसब्द है तो उनके पापा से बात कीजिये.


वीर समझ ही नहीं पा रहा था. केसी लड़की है. खुद की शादी की बात खुद ही कर रही है. पर नजाने दोनों मे क्या कॉम्बिनेशन था. वीर को कविता का ये अंदाझ बहोत पसंद भी आ रहा था. लेकिन वीर सच मे बहोत शर्मिला था. वो 10 पास करते ही फौज मे भर्ती हो गया. ट्रैन मे कविता से उस मुलकात के वक्त वो भी 22 साल का ही था. पिता सत्येंद्र पांडे का एक लौता बेटा. सतेंद्र पांडे 49 साल के थे. एक बेटी बबिता 18 साल की. बबिता के वक्त ही उनकी पत्नी उर्मिला का देहांत हो गया. उन्होंने दूसरी शादी नहीं की. वीर जैसे कविता की बात समझ ना पाया हो. वो कविता को देखते ही रहे गया. कविता ने भी अल्टीमेटम दे दिया.


कविता : देखिये कल दोपहर तक का वक्त है आप के पास. चुप चाप अपने घर का पता फोन नंबर कागज पर लिख के दे दीजिये. हम भी शुक्ला है. समझे.आगे हम संभल लेंगे.


कविता बस वीर की आँखों मे देखते हुए मुश्कुराती वहां से चली गई. रास्ते भर दोनों की नजरों ने एक दूसरे की नजरों से कई बार मिली. रात सोती वक्त भी दोनों ऊपर वाली शीट पर थे. पूरी रात ना वीर सो पाया ना कविता. दोनों ही अपनी अपनी शीट पर एक दूसरे की तरफ करवट किये एक दूसरे को देखते ही रहे. रात मे जब सब सो गए तब दोनों ने बाते भी बहोत की. बाते क्या. कविता पूछती रही और वीर छोटे छोटे जवाब देता गया. शर्मिंले वीर ने बस प्यार का इजहार नहीं किया. पर ये जरूर जाता दिया की उसे भी प्यार है.

पर सुबह मुख्य स्टेशन से पहले जब वीर लखनऊ ही उतरने लगा तो कविता को झटकासा लगा. वीर बनारस का रहने वाला था. पर अपने पिता और बहन के साथ लखनऊ मे बस गया था. शहर राजधानी मे अपना खुद का मकान बना लिया था. कविता का दिल मानो टूट ही गया. जाते वीर से मिलने वो भी डोर तक आ ही गई. दोनों की आंखे जैसे उस जुदाई से दुखी हो. जाते वीर से कविता ने आखरी सवाल पूछ ही लिया. पर इस बार अंदाज़ शरारती नहीं भावुक था.


कविता : कुछ गलती हो जाए तो माफ कीजियेगा पांडे जी. वो क्या है की हम बोलती बहोत ज्यादा ही है. हम बस इतना जानती है की आप हमें बहोत अच्छे लगे. पर आप ने ये नहीं बताया की हम आप को पसंद है या नहीं.


कोमल बड़ी उमीदो से वीर के चहेरे को देख रही थी.


कविता : (भावुक) फ़िक्र मत कीजिये पांडेजी. ये जरुरी तो नहीं की हमें आप पसंद हो तो हम भी आप को पसंद आए होंगे. आप तो बहोत शरीफ हो. (फीकी स्माइल) और हम तो बस ऐसे ही है.


वीर के फेस पर भी स्माइल आ गई. वीर भी ये समझ ही गया की कविता बिंदास है. करेक्टर लेस नहीं. जो दिल मे है. वही जुबान पर. अगर उसका साथ मिला तो जीवन मे खुशियाँ साथ साथ ही रहेगी. हस्ते खेलते जिंदगी बीतेगी. वीर ने बस एक कागज़ कविता की तरफ किया और चल दिया. कविता उसे आँखों से ओझल होने तक देखती ही रही. ओझल होने से पहले वीर रुक कर मुड़ा भी.

और दोनों ने एक दूसरे को बाय भी किया. पर उस वक्त बिछड़ते नहीं तो दोबारा कैसे मिलते. कविता ने जब उस कागज़ को देखा. उसमे सिर्फ गांव का ही नहीं शहर के घर का भी पता लिखा हुआ था.
मोबाइल उस वक्त नहीं हुआ करते थे. पर घर के लैंडलाइन के नंबर समेत रिस्तेदारो के लिंक तक लिखें थे. किस के जरिये कैसे कैसे रिस्ता लेकर वीर के घर आया जाए. अलाबाद के नामचीन पंडित से लेकर बनारस के नामचीन पंडित तक.

रिस्ता पक्का करवाने का पूरा लिंक था. कविता बोलने मे बेबाक मुहफट्टी. वो पीछे मुड़ी सीधा अपनी शीट की तरफ. पर बैठने के बजाय अपने पापा के सामने आकर खड़ी हो गई.



कविता : (शारारत ताना) आप को बेटी की फिकर है या नहीं. घर मे जवान बेटी कवारी बैठी है. और आप हो की तीर्थ यात्रा कर रहे हो.


दयाशंकर बड़ी हेरत से कविता को देखने लगे. देख तो सरिता देवी भी रही थी. मुँह खुला और आंखे बड़ी बड़ी किये. अब ये डायलॉग रोज कई बार दयाशंकर अपनी पत्नी सरिता से सुन रहे थे. पर आज बेटी ने वही डायलॉग अपने ही बाप से बोला तो जोर का झटका जोर से ही लगा.


सरिता : (गुस्सा ताना) मे ना कहती थी. लड़की हाथ से निकले उस से पहले हाथ पिले कर दो. अब भुक्तो.


दयाशंकर अपनी बेटी को अच्छे से जनता भी था. और समझता भी था. भरोसा भी था. पर बेटी के मज़ाक पर ना हसीं आ रही थी ना चुप रहा जा रहा था.


कविता : (सरारत ताना स्माइल) सुन रहे हो शुक्ला जी. सरिता देवी क्या कहे रही है. अब भी देर नहीं हुई. जल्दी बिटिया के हाथ पिले करिये और दफा करिये.


अपनी बेटी के मुँह से अपना नाम सुनकर सरिता देवी तो भड़क ही गई.


सरिता : (गुस्सा ताना) हाय राम.... माँ बाप का नाम तो ऐसे ले रही है. जैसे हम इसके कॉलेज मे पढ़ने वाले दोस्त हो. अब भुक्तो.


सरिता देवी को लगा अब दयाशंकर कविता को डांट लगाएंगे. पर सरिता देवी की बात को दोनों बाप बेटी ने कोई तवजुब नहीं दिया. कविता ने वही कागज़ का टुकड़ा अपने पापा की तरफ बढ़ाया. पापा तो कभी कागज़ को देखते तो कभी कविता को. बाप और बेटी दोनों मे बाप बेटी का रिस्ता कम दोस्ती का रिस्ता ज्यादा था. बेटी रुसवा नहीं हुई और उस छिपे हुए लव को अरेंज मैरिज मे बदल दिया गया.

रीती रीवाज और दान दहेज़ के साथ ही. घुंघट मे बैठी कविता अपने पति से हुई पहली मुलाक़ात को याद कर के घुंघट मे ही मुस्कुरा दी. की तभी डोर खुलने की आवाज आई.
कविता थोड़ी संभल गई. पारदर्शी लाल साड़ी मे से सब धुंधला दिख रहा था. तभी उसे उनकी आवाज सुनाई दी.


वीर : हमें मालूम था. कोई और रोके ना रोके ये चुड़ैल हमारा रास्ता जरूर रोकेगी.


कविता समझ गई की वीर आ गया. और एक पुराने रिवाज़ के तहत प्यारी नांदिया नेक के लिए दरवाजे पर रस्ता रोके खड़ी है. जैसी भाभी वैसी ननंद. अपनी ननंद के साथ कुछ और लड़कियों की भी हसने की आवाज सुनाई दी.


बबिता : चलिए चुप चाप 10 हजार निकाल कर हमारे हाथ मे रखिये . नहीं तो.....


वीर : नेक मांग रही हो या हप्ता. ये लो ...


कविता को भी घुंघट मे हसीं आ गई. पति और ननंद की नोक झोक सुन ने मे माझा बड़ा आया.


बबिता : अह्ह्ह....


कविता ने धुंधला ही सही. पर देखा कैसे वीर ने अंदर आते वक्त बबिता की छोटी खींची. वीर रूम का डोर बंद करने ही वाला था की बबिता फिर बिच मे आ गई.


वीर : अब क्या है???


बबिता गाना गुन गुनाने लगी.


बबिता : (स्माइल) भैया जी के हाथ मे लग गई रूप नगर की चाबी हो भाभी....


वीर ने तुरंत ही बबिता को पीछे धकेला और डोर बंद कर दिया. कविता घुंघट मै बैठी जैसे अपने आप मे सिमट रही हो. वो घुंघट मै ही बैठी मुस्कुरा रही थी. वीर आया और उसके करीब आकर बैठ गया.


वीर : नया रिश्ता मुबारक हो कविताजी.


कविता हलका सा हसीं. और बड़ी ही धीमी आवाज मे बोली.


कविता : (स्माइल शर्म) आप को भी.


वीर खड़ा हुआ और रूम की एक तरफ चले गया. कविता को थोड़ी हेरत हुई. उसने सर उठाया. चोरी से घुंघट थोडा ऊपर कर के देखा. वीर अलमारी से कुछ निकालने की कोसिस मे था. वीर जैसे मुड़ा कविता ने झट से घुंघट ढका और वापस वैसे ही बैठ गई. वीर एक बार फिर कविता के पास आकर बैठ गया. वो बोलने मे थोडा झीझक रहा था. वीर के हाथ मे एक बॉक्स था. उसने अपना हाथ कविता की तरफ बढ़ाया.


वीर : वो.... मुँह दिखाई के लिए आप का तोफा....


कविता घुंघट मे ही धीमे से हसने लगी. उसकी हसीं की आवाज सुनकर वीर भी मुश्कुराने लगा. कविता बड़ी धीमी आवाज से बोली.


कविता : (स्माइल शरारत) क्यों जनाब आप ने हमें पहले कभी देखा नहीं क्या??


वीर : नहीं..... देखा तो है. मगर.....


जैसे वीर के पास जवाब तो है. पर बता नहीं पा रहा हो. वो चुप हो गया.


कविता : अच्छा उठाइये घुंघट. देख लीजिये हमें.


वीर : ऐसे कैसे उठा दे. आप ने भी तो वादा किया था.


वैसे तो जब उन दोनों को प्यार हुआ. शादी हुई. उस वक्त मोबाइल का जमाना नहीं था. पर घर के लैंडलाइन से बात हो जाती. वो भी बहोत कम. क्यों की वीर के घर के ड्राइंग रूम मे ही फ़ोन था. और वहां सब होते थे. वैसा ही माहौल तो कविता के घर का भी था. बहन बबिता ने अपने भाई वीर की मदद की थी. और दोनों मे बात हुई. तब कविता ने एक वादा किया था की वो शादी की पहेली रात कुछ ऐसा करेंगी. जो पहले कभी किसी दुल्हन ने ना किया हो.

वीर भी ये जान ने को बेताब था. और वो वक्त आ गया था. कविता अपने पाऊ सामने फॉल्ट किये थी. ऐसे ही घुंघट मे भी वो दोनों पाऊ मोड़ के अच्छे से बैठ गई.


कविता : कोई चीटिंग मत करियेगा पांडे जी. आंखे बंद कीजिये और आइये. हमारी गोद मे सर रखिये.


वीर ने स्माइल की. और थोडा आगे होते हुए लेट गया. उसने कविता की गोद मे अपना सर रख दिया. कविता ने अपनी आंखे खोली और मुश्कुराते हुए वीर को देखा. गोरा चहेरा, छोटी छोटी बंद आंखे. शेव की होने के कारण गोरे चहेरे पर थोडा ग्रीन ग्रीन सा लग रहा था. जो कविता को काफ़ी अट्रैक्टिव लग रहा था.बाल भी थोड़े से बड़े हुए थे. कविता ने बहोत प्यार से वीर के सर पर अपना हाथ घुमाया. वीर की आंखे बंद ही थी. कविता ने सच मे कुछ नया किया. वो वीर के सर को पकड़ कर झूक गई. अपने सुर्ख लाल होठो को वीर के हलके गुलाबी होठो से जोड़ दिया.

ये वीर के लिए तो एकदम नया ही एहसास था. उसकी जिंदगी की सबसे पहेली और शानदार किश. कविता ने कुल 1 मिनट ही किस की और वापस घुंघट कर लिया. चहेरा ना दिखे इस लिए पल्लू को सीने मे दबा दिया. मदहोश हुआ वीर जैसे किसी और दुनिया मे पहोच गया हो. कविता वीर की ऐसी हालत देख कर हलका सा हस पड़ी.


कविता : बस अब उठीये पांडेजी. अब बताइये? ऐसा पहले कभी किसी दुल्हन ने किया क्या.


वीर : (स्माइल) अब क्या हम अपनी आंखे खोल सकते है क्या???


कविता खिल खिलाकर फिर हस पड़ी. वो थोडा खुल गई.


कविता : (स्माइल) सब हमसे ही पूछ कर करियेगा क्या. खोल लीजिये आंखे.


वीर ने अपनी आंखे खोली तो ऊपर सामने कविता ही दिखी. पर घुंघट मे.


वीर : पता है कविता जी. हमने पहेली बार किसी की गोद मे अपना सर रखा है.


कविता समझ गई की वीर की माँ बचपन मे ही गुजर गई. वो माँ की ममता से वंचित है. सायद वो उस कमी को दूर कर सके. कविता ने एक बार फिर वीर के बालो मे अपना हाथ घुमाया. वीर की आंखे एक बार फिर बंद हो गई. वो क्या फील कर रहा होगा. ये कविता बखूबी समझ रही थी.


कविता : तो अब हर रोज़ हमारी गोद मे ही अपना सर रखा कीजियेगा. पर पांडेजी. आज हमारी पहेली रात है. घुंघट नहीं उठाइयेगा क्या???


वीर : क्या जरुरी है कविताजी???


कविता : (लम्बी सॉस) हम्म्म्म. फिर रहने दीजिये. हम भी वो पहली दुल्हन होंगी. जिसका चहेरा दूल्हा देखना ही नहीं चाहते.


वीर तुरंत उठ कर बैठ गया. वो घड़ी आ गई. जिसका वीर और कविता दोनों को ही इंतजार था. दोनों की दिलो की धड़कनो ने रफ़्तार पकड़ ली. जब वीर ने कविता का घुंघट आहिस्ता से ऊपर उठाया. वो खूबसूरत चहेरा जिस से वो नजर ही नहीं हटा पा रहा था. ये वही चहेरा था. जिसे पहेली मुलाक़ात ट्रैन मे देखा था. और मन ही मन कई कल्पनाए की थी. और आज सामने श्रृंगार और सोने के जेवरो मे सजधज कर कविता को शादी के लाल जोड़े मे देखा तो वीर कविता की तारीफ किये बगैर नहीं रहे पाया.


वीर : आप बहोत सुन्दर हो कविताजी.


कविता हलका सा हसीं. और आहिस्ता से सर ऊपर कर के वीर की आँखों मे देखा.


कविता : (स्माइल) बस सिर्फ सुन्दर??


वीर दए बाए देखने लगा. जैसे कोई उलझन मे हो. फिर एकदम से कविता की आँखों मे देखा.


वीर : देखिये कविता जी. बहोत कुछ है. जो सायद हम कहे नहीं पा रहे है. पर आप बहोत सुन्दर हो. बहोत बहोत बहोत..... सुन्दर.


कविता शर्मा कर हस पड़ी. वो समझ गई की वीर के दिल दिमाग़ पर सिर्फ कविता ही बसी हुई है. वीर कविता की तारीफ करने के चक्कर मे कविता को मुँह दिखाई का तोफा देना भूल गया था. कविता ने बतियाते हुए ही वीर के हाथो से वो छोटासा बॉक्स खिंच लिया. और बाते करते हुए उसे खोलने लगी.


कविता : (स्माइल) लगता है आप लड़कियों से ज्यादा बात नहीं करते. कभी कोई दोस्त नहीं बनी क्या???


वीर : नहीं... दरसल हम बॉयज स्कूल मे पढ़े है. वो भी सिर्फ 10th तक. फिर तो फौज मे ही चले गए. अब मन तो था की आप जैसी कोई दोस्त हो. तो भगवान ने आप से मिला दिया.


कविता वीर की बात पर हस दी. वो इंतजार कर रही थी. की वीर भी पूछे. की पहले कोई बॉयफ्रेंड था या नहीं. पर वीर ने पूछा ही नहीं. आगे बात भी नहीं हो पा रही थी. कैसे मामला आगे बढ़ता. कविता ही आगे बढ़ने का सोचती है. पर उसकी नजर उस बेडशीट पर गई. जो बिछी हुई थी.


कविता : ये आफ़ेद चादर कहे बिचाई गई है. ऐसे ख़ुशी के मौके पर तो कोई बढ़िया सी रंग बिरंगी बिछानी चाहिए थी ना .


वीर भी सोच मे पड़ गया. वो बताना चाहता था. पर थोडा हिचक रहा था.


वीर : सायद.... सायद वो खून होता हे ना. वो...


कविता समझ गई की कौमार्य (virginity) जाँचने के लिए ही सफ़ेद चादर बिछाई गई हे. कविता फिर भी जानबुचकर अनजान बनती है.


कविता : पर खून कहे निकलेगा. हम थोड़े ना कोई तलवारबाज़ी कर रहे है.


वीर : (हिचक) वो लड़की को पहेली बार होता है ना.


कविता को जैसे शर्मा आ रही हो. वो अपनी गर्दन निचे कर लेती है.


कविता : (हिचक) देखिये पांडे जी. हमें आप को सायद पहले ही बता देना चाहिए था. हमें प्लीज माफ कर दीजिये. दरसल शादी से पहले हमारा एक बॉयफ्रेंड था. और उसके साथ....


कविता बोल कर चुप हो गई. वो अपना सर ऊपर नहीं उठती.


वीर : तो फिर उस से आपने कहे शादी नहीं की. क्या आप अब भी उस से ही प्यार करती हो???


वीर ने पहली बार सीधा बेहिचक सवाल किया. कविता ने ना मे सर हिलाया.


कविता : नहीं दरसल वो धोखेबाज़ था. उसका कई लड़कियों से चक्कर था. हमने ही उसे छोड़ दिया.


वीर : तो क्या आप हमसे प्यार करती हो???


कविता ने सिर्फ हा मे सर हिलाया. और वो कुछ नहीं बोली.


वीर : कविता जी अगर हम ये कहे की आप पहले किस से प्यार करती थी. करती थी या नहीं. इस से हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा. आगे आप हमसे किस तरह रिस्ता बना ना चाहती है. हम बस यही जान ना चाहते है .


कविता हेरत मे पड़ गई. वीर का दिल कितना बड़ा है. यही वो सोचने लगी की. पता होने के बावजूद वीर आगे रिस्ता बना ना चाहते है.


कविता : अगर आप हमें उस गलती के लिए माफ करदे. और हमसे प्यार करियेगा. अपनी पत्नी स्वीकार कीजियेगा.. तो हम भी जीवन भर आपको ही अपने मन के मंदिर मे बैठाए रखेंगे पांडेजी. आप ही की पूजा करेंगे. और आप के हर सुख दुख मे आप के भागीदार बनेंगे.


वीर बस इतना सुन. और खड़ा हो गया. वो वापस उसी अलमारी के पास जाकर अलमारी से कुछ खोजने लगा. वो एक कटर लेकर आया. कविता उसे देखती ही रहे गई. वीर ने उस सफ़ेद बेडशीट पर अपना हाथ काट कर खून गिराया. तर्जनी ऊँगली और अंगूठे के बिच की चमड़ी से खून टप टप बहकर उस सफ़ेद बेडशीट पर लाल दाग लगा रहा था. कविता झट से खड़ी हुई. और वीर का हाथ पकड़ लिया. वो खून रोकने की कोसिस करती है.


कविता : (सॉक) क्या फर्स्ट एड बॉक्स है???


वीर ने अलमारी की तरफ ही हिशारा किया. कविता झट से फर्स्ट एड बॉक्स लेकर मरहम पट्टी करने लगी. पट्टी बांधते वक्त वो वीर को बड़ी प्यारी निगाहो से देख भी रही थी. सोच भी रही थी. ये तो देवता है. कविता को वीर पर प्यार भी बहोत आ रहा था. दोनों ही खड़े थे. कविता ने बॉक्स को साइड रखा और झूक कर वीर के पाऊ छुए.


कविता : ये हमारे पति होने के लिए.


वीर भी तुरंत झूक गया. और उसने भी कविता के पाऊ छू लिए.


वीर : (स्माइल) तो ये लो. हमारी पत्नी होने के लिए.


कविता सॉक होकर हसने लगी. वीर को रोकती उस से पहले वीर ने कविता के पाऊ छू लिए थे.


कविता : (स्माइल) अरे नहीं...... अब आप झूकीयेगा नहीं. कभी नहीं. और सीधे खड़े रहिये.


कविता एक बार और वीर के पाऊ छूती है.


कविता : ये इंसान के रूप मे भगवान होने के लिए. आज से आप ही हमारे भगवान है. आप की बहोत सेवा करेंगे हम पांडेजी.


दोनों ही हसने लगे. कविता उस सफ़ेद चादर को खिंच कर समेट लेती है. वो वीर की आँखों मे बड़े प्यार से देखती है.


कविता : (भावुक) पांडेजी. अब ये चादर हमारे लिए सुहाग के जोड़े से भी ज्यादा कीमती है.


कविता उस चादर को फॉल्ट करने लगी तब तक तो वीर ने दूसरी नीली चादर बिछा दी. कविता हसीं और एकदम से रुक गई. पर स्माइल दोनों की बरकरार रही. दोनों ही बेड पर पास पास ही बैठ गए. तब जाकर उस चीज पर ध्यान गया. जिसे दोनों काफ़ी देर से भूल गए थे. मुँह दिखाई का तोफा. कविता वीर से नजरें नहीं मिला पा रही थी. वो मुश्कुराती इधर उधर देखती है. तब उसकी नजर उस बॉक्स पर गई. जो सुन्दर लिफाफे से कवर था.

कविता ने अपना हाथ बढ़ाया और उस बॉक्स को लेकर खोलने लगी. पर बॉक्स खोलते उसे एकदम से झटका लगा. उसमे बहोत सुन्दर पायजेब थी. पर झटका इस लिए लगा क्यों की कवर हटाते बॉक्स पर जिस सुनार का अड्रेस था. वो इलहाबाद का था. और ये वही पायजेब थी जो कविता ने शादी की खरीदारी करते वक्त पसंद की थी. लेकिन सुनार ने उसे वो पायजेब देने से मना कर दिया. क्यों की उस दुकान पर वो लौता एक ही पीस था. और वो भी किसी ने खरीद लिया था. वो बुक थी.

कविता का दिल खुश हो गया. कोनसी प्रेमिका पत्नी खुश ना हो ये जानकर की उसकी पसंद उसका पति प्रेमी बिना कहे ही जनता हो. या फिर पसंद मिलती हो. कविता ने वो पायजेब वीर की तरफ की. अपना पाऊ आगे कर के अपने घाघरे को बस थोड़ासा ऊपर किया. वीर समझ गया की कविता वो पायजेब उसके हाथ से पहेन ना चाहती है. पर कविता का गोरा सुन्दर पाऊ देख कर तो वीर मोहित ही हो गया. गोरा और सुन्दर पाऊ. महावर से रंगा हुआ तलवा. ऊपर महेंदी की जबरदस्त करामात. नाख़ून पर चमकता लाल रंग बहोत आकर्षक था.

वीर ने पायजेब तो पहना दी. पर झूक कर उसके पाऊ को चुम भी लिया. कविता के लिए ये दूसरा झटका था. मानो रोम रोम मे एकदम से गुदगुदी सी मच गई हो. वो तुरंत आंखे मिंचे सिसक पड़ी.


कविता : (आंखे बंद मदहोश) ससससस.....पाण्डेजिह्ह्ह


जब आंखे खुली तो वीर बहोत ही प्यार भरी नजरों से उसे देख रहा था. इस बार बोलना दोनों मे से कोई नहीं चाहता था.
इस बार धीरे धीरे दोनों ही एक दूसरे के करीब हुए. होठो से होठो का मिलन हुआ और दोनों एक दूसरे की बाहो मे समा गए. प्यार के उस खेल मे बहोत ही सख्तई भी महसूस हुई और दर्द भी. पर जीवन के सब से अनोखे सुख को दोनों ने महसूस किया.

वीर जैसा जाबाझ सुन्दर तंदुरस्त मर्द और अति सुन्दर कविता का मिलन हुआ तो मानो दोनों की दुनिया थम ही गई हो. पर जब दोनों अलग हुए. और वीर बैठा तब उसकी नजर कविता की सुन्दर योनि पर गई. गुलाबी चमड़ी वाली सुन्दर सी योनि से एक लाल लकीर निचे की तरफ बनी हुई थी. नीली बेडशीट पर भी कुछ गिला सा महसूस हुआ. वीर सॉक हो गया.


वीर : (सॉक) ये तो खून है.


कविता हस पड़ी और शर्म से अपने चहेरे को अपने एक हाथ से ढक लिया. बुद्धू सज्जन को अब तक तो समझ जाना चाहिए था. वीर को भी समझ आया. और वो भी मुस्कुरा उठा. उसे अब समझ आया की कविता उस से प्यार करने से पहले तक कवारी ही थी.


उसने झूठ कहा था की उसका कोई बॉयफ्रेंड था. पर परीक्षा लेते तो कविता को एहसास हुआ की वीर जैसे इंसान को पाना उसका नशीब है. समाज की रीत के हिसाब से तो पति परमेश्वर होता है. पर यहाँ तो परमेश्वर ही पति निकले. कविता खुश थी की उसका कौमार्य (virginity) सार्थक हुआ.
Shetan devi jee
Bahut achcha laga
Aapki kahani padhke
ek tarah se aatma tript ho gayi
Duniya mein har tarah ke mard hote hain
Aurat hoti hain
Lekin mardo mein ek baat common hai
Unhein biwi kunwari chahiye hoti hai
Aur kunwari na mile toh kuchh mard gussa karte hain
Lekin kuchh mard pichhli baato ko bhula dete hain
Aapki ek baat se main sehmat nahi hoon
Ki jo mard yeh sochte ho
Ki unhein kunwari biwi mile
Woh theek nahi hote
Sabki kuchh ichchaayein hoti hain
Ab Aate hain story pe
Toh pehli najar mein pyar nahi hota
Haan attraction jarur hota hai
Pyar samay sath beetane pe hota hai
Veer ko itna sharmata dekh
Mere ko sharam aarahi thi
Main bhi aise hi sharmata tha
Purane din yaad aagaye
Mere ko ek baat samajh nahi aayi
Maan lijiye kavita ne jab bola ki woh kunwari nahi hai
Aur us samay suraj woh kar deta
Jo jyada tar mard karte hain
Toh kavita kya kar leti
Shaadi toh ho hi chuki thi
Pareeksha hi Leni thi toh shaadi se pehle leti
Nuksaan kiska jyada hota
Ladkiyo ko samajhna bada mushkil hai
Woh aapse ek sawal puchhna tha
Main yeh keh raha tha ki aap
CONTROL
Hum rating nahi deta hoon
Humari khud ki story be sar pair ki hoti hai
Mere ko achchi lagi kahani
Bas yahi bahut hai...
 
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Shetan

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Shetan devi jee
Bahut achcha laga
Aapki kahani padhke
ek tarah se aatma tript ho gayi
Duniya mein har tarah ke mard hote hain
Aurat hoti hain
Lekin mardo mein ek baat common hai
Unhein biwi kunwari chahiye hoti hai
Aur kunwari na mile toh kuchh mard gussa karte hain
Lekin kuchh mard pichhli baato ko bhula dete hain
Aapki ek baat se main sehmat nahi hoon
Ki jo mard yeh sochte ho
Ki unhein kunwari biwi mile
Woh theek nahi hote
Sabki kuchh ichchaayein hoti hain
Ab Aate hain story pe
Toh pehli najar mein pyar nahi hota
Haan attraction jarur hota hai
Pyar samay sath beetane pe hota hai
Veer ko itna sharmata dekh
Mere ko sharam aarahi thi
Main bhi aise hi sharmata tha
Purane din yaad aagaye
Mere ko ek baat samajh nahi aayi
Maan lijiye kavita ne jab bola ki woh kunwari nahi hai
Aur us samay suraj woh kar deta
Jo jyada tar mard karte hain
Toh kavita kya kar leti
Shaadi toh ho hi chuki thi
Pareeksha hi Leni thi toh shaadi se pehle leti
Nuksaan kiska jyada hota
Ladkiyo ko samajhna bada mushkil hai
Woh aapse ek sawal puchhna tha
Main yeh keh raha tha ki aap
CONTROL
Hum rating nahi deta hoon
Humari khud ki story be sar pair ki hoti hai
Mere ko achchi lagi kahani
Bas yahi bahut hai...
Jo kal hoga vo aaj hojae. Kavita do thappad kha kar bol degi. Are me to mazak kar rahi thi. Bad me bhi khoon uski agni pariksha sarthak bana hi deta. Yaar veer ko kon khona chahega. Itna mast switu golu molu ko.

Thankyou so much review ke lie
 

The Kumar

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Manhoos Gaon

"Tum kyun aaye ho yaha rehne, or vo bhi apni jawan beti ko lekar? tumhe pta nhi hai k jawan ladkiyon ke sath kya ho raha hai iss gaon me?" Partap singh ne apne bete Suraj Singh se gusse me kaha jo shehar chhodkar gao me rehne aa gya tha.
"Pta hai babu ji, par ab shehar me kuchh nahi hai, hamare liye. maine apko phone pe bhi bataya tha k bohat karaz me doob chuka hun mai; lendaaro se bachne ka ab yahi rasta tha. issliye maine yeh faisla kiya hai gaon me rehne ka. bass ab yahi rehkar apni zameen ki kheti krunga aur aap logo ki dekh-bhaal
kruga" Suraj ne apne baap se kaha.

"vo to theek hai suraj, par uss rapist ne firse un ghatnao ko anjaam dena shuru kar diya hai. abhi pichhle hi hafte ek aur ladki ka rape hua hai. raat ko unke ghar me hi ghus gya tha voh. aur sirf 19 saal ki thi voh ladki." Partap Singh ne apne
bete se kaha.

"itni chhoti umar ki ladki ke sath?" Suraj ne hairani se puchha.
"haan sirf 20-22 saal se kam umar wali ladkiyon ko hi nishana banata hai wo. pata nahi itna ghatiya kyun hai wo k itni chhoti umar ki ladkiyon ko hi apni hawas ka shikaar banata hai. ajeeb tharak hai usme chhoti umar ki ladkiyo ke sath ye sab karne ki" Shakuntla (Suraj ki maa) ne ghrina se jawab diya

"Waise wo pakda kaise nhi gya abhi takk? kabhi haath nhi laga kise ke?" Suraj ne phir puchha.
"ek baar pakda jane wala tha pichhle saal.. ek ladki thi 19 saal ki, usko paas wale jangal me pakad liya tha usne. tab kisi aadmi ne usey ladki se jor jabardasti
karte hue dekh liya to vo ladki ko bchane bhaaga or uski chhati ke uppar talwar se vaar bhi kiya. par talwar chhati pe lagne ke bawjood bhi wo kisi tra bach kar bhaag gya" Suraj ki maa Shankuntala
ne beech me hi jawab diya.

"To doosri baar logo ne pehra nahi lagaya. kuchh logo ko nigrani pe rakhkar use pakda jaa sakta tha" Suraj ne apne babuji aur maa ki taraf dekhte hue kaha.
"Asal me vo boht shatir hai.. jab bhi vo koi essi ghatna ya kisi ladki ka rape karta hai to agle kuchh mahine vo ess tarah ki koi aur ghatna ko anjaam nahi deta tha, jisse log shaant ho jate the k shayd ab essa na ho. par logo ka dhyan ess baat se hat-te hi ye rapist kisi aur young ladki ko nishana bana deta tha aur usko apni hawas ka shikar bna deta
tha" Shakuntla ne Suraj ki baat ka jawab dete hue kaha.

"achha?" Suraj ne kaha.
"Ab to gaon me sabhi apni jawan ho rahi ladkiyon ko bachakar ghar me hi kaid rakhte hain. abb kisi ladki ko raat ke time ghar se bahar nahi nikalne deta koi. phir bhi kuchh mahino baad koi na koi
esi ghatna ho jati thi jaha wo akar kisi na kisi ladki ka rape kar deta hai aur kuchh mahino ke liye phirse gayab ho jata hai" Shakuntla ne kaha.
"haan beta.. pichhle kafi saalo se yaha yehi chal raha hai. issi liye hum apni poti (Rushika) ko lekar chintit hai k eske sath kuchh galat na ho" Partap Singh ne beech me hi bolte hue kaha.

Partap aur Shakuntla apne bete Suraj se apne gaon me pichhle kuchh saalo se ho rahi ghatnao ke bare me baat kar rahe the. unke gaon me pishle kuchh 20-22 saalo se ek rapist ne boht dehshat
failayi hui thi. yeh rapist gaon ki kachi umar ki ladkiyon ke sath rape karta tha. iss rapist ka nishana sirf 18 se leke 21-22 saal ke beech ki young ladkiyaa hi hoti thi. aur isse jyada umar wali ladkiyo ko ye kabhi nishana nahi banata tha. Shyd usse kam umar wali ladkiyaa hi psand thi. ye rapist itne saalo baad bhi abhi tak pakda nhi gya tha. Ek to gaon
me cameras nahi the, dusra yeh rapist sirf raat ko hi niklta tha apne kam ko anjam dene.

Ye rapist face par mask pehn kar aata tha aur ab to itna nidar ho gya tha ke andhere me ghar me ghuskar hi ladki ko pakadkar uske mooh aur hath bandh deta tha aur phir uske sath andhere me hi rape karta tha. ye gaon issi wajah se badnam tha. pishle kuchh salo se ye ghatnaye rukne ka nam hi nahi le rahi thi. Ab jab suraj apni biwi aur apni 18 saal ki beti Rushika ko lekar gaon se shehr lekar aaya to uske babuji aur maa usse yehi baat kar rahe the.

"koi baat nahi babuji.. hum sab hai yaha, dhyan rakhege hum log. aur aap bhi to hai apni poti ka khyal rakhne ke liye. phir bhi fauji hai aap, usse jane thodi denge agar wo hamare kabu aa gya to" Suraj ne apne babuji se haste hue kaha.
Suraj ka pita Partap singh young age me special forces me tha aur 65 saal ki age me bhi abhi tak fit tha. agar vo chahe to aaj bhi kisi jawan ladke ke sath fight kar sakta tha. issi liye Suraj ne garav ke saath ye baat kahi thi.

"Haan vo to hai.. agar vo mujhe mil jaata to mai to kab ka kaabu kar leta usse" Partap singh ne bhi kaha aur esse kafi baatcheet krne ke baad wo uss ghar me rehne ki tyari karne lage.

Suraj ki beti Rushika abhi pichhle mahine hi 18 saal ki hui thi. rang ki gori, chhote chhote boobs, patli kamar, patli taange, moti gaand; 18 saal ki umar me hi ek apsara ki trah sundar lagne lagi thi. Abhi se wo itni hot lagne lagi thi to aage jaakar to aur bhi maal ban jana tha usne.

"dadaji 50 rupee dena, mera kuchh khane ka mann kar raha hai" Rushika apni cute si gaand matkaati hui Partap singh kamre me aakar boli.
"Ye lo paise par sham ke 6 bje ke baad ghar se kahi mat nikalna" partap singh ne paise jeb se nikalkar rushika ko pakdate hue kaha.
"theek hai dada ji" Rushika ne paise lete hue kaha aur dubara apni gaand matkati hui kamre se bahar chali gyi.

Aaj sara din Rushika apne dada daadi ke sath baate karte rahi thi aur unki aankhon ke samne hi rahi thi. Partap aur Shakuntla bhi Rushika ke saath baate karke kush the. Raat ka waqt ho chuka
tha, Rushika ek sexy se pink pajame me andhere me apni moti gaand matkaati hui kitchen ki taraf jaa rahi thi.
"Dadaji, dudh garam kar diya mere liye bhi?" Rushika ne kitchen me khade Partap singh ke paas jaakar puchhaa.
"haan beti kar diya hai, ye lo" Partap Singh ne garam dhoodh ko gilas me bharte hue kaha aur dhoodh ka gilaas muskurate hue Rushika ko pakda diya aur baki dhoodh apne gilaas me bhar
liya.
Rushika ne Dhoodh ka gilaas apne dada ji se pakda aur apni moti gaand ko idhar udhar matakaate hue apne kamre me chali gyi.

Raat ke 12 bajj chuke the. Sabhi log ghar me so rahe the. Suraj aur uski biwi ek kamre me the aur paas hi wale kamre me Rushika soyi hui thi. Ghar ke sabhi main darwaze lock the, koi bahr se andar daakhil nahi ho sakta tha. Partap singh ne Shakuntla ko bagal me sote hue dekha aur apne bed se uth kar bahr aaya. Partap singh Rushika ke kamre ki taraf bda aur uske kamre ka darwaza pakad kar dheere se khol diya. Darwaza kholte hi Partap Singh ne dekha k Rushika bed par ulti leti hui so rahi thi aur uski moti gaand upar ko uthi hui thi.

Partap singh ne apni shirt ke button kholte hue apni shirt utari aur apni chhati par hath phera, jiss par abhi bhi talwar ka bda sa nishan pda hua tha. Partap Singh ne nange badan hi Rushika
ke room ka darwaza andar se lock kiya aur andhere me Rushika ki taraf dekhte hue apni pant me se lund bahar nikala jo ek lohe ki rod ke jaise tanaa hua tha.
"Lagta hai neend ki goli ne apna kaam kar diya hai" Partap Singh ne apne khade lund ko hath me pakadte hue socha aur andhere me Rushika ki saaf dikh rahi moti gaand ko dekhta hua uski
taraf bada.

-----------------------------------------------

3 mahine baad

"Kitni kush hai Rushika yaha pe.. aur upar se uss rapist ne bhi koi kaand nahi kiya itne mahino se" Suraj ne Apni ek saheli ke sath khelti hui Rushika ko dekhar apne babuji Partap Singh se kaha.
Partap Singh bhi apni pant ki ek jeb me hath dale hue uske samne khel kood kar rahi Rushika ko hi upar se niche tak dekh raha tha. Kaafi hot lag rahi thi Rushika apni saheli ke sath khelti hui.

"haan.. mujhe lagta hai wo rapist abb phir kabhi waapas nhi aayega" Partap singh se suraj se kaha.
"achha?" suraj ne thoda confuse hote hue kaha.
"haan.. mujhe lagta hai jo usse chahiye tha wo usse abb bharpoor mil raha hai" Partap singh ne Rushika ki taraf dekhte hue kaha aur apni jeb me rakhe neend ki goliyo ke khaali patte ko apne hath me daba diya.

----------------The End----------------
Dadaji ke toh maze he...poti ka bharpur annad le raha he...beti ke sath uski Bahu ko bhi chodata toh aur maza aata maa ko pata hota ki uski beti ki seal uska dada hi Tod chuka he
 
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The Kumar

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कौमार्य (virginity)

कौमार्य का मतलब तो आप सब समझ ही गए होंगे. एक लड़की का कौमार्य कब भंग होता है. या किसके साथ होता है. ये उसके लिए बहोत महत्व रखता है. किसी दोस्त या प्रेमी से, या फिर अपने पति से. कइयों के नसीब मे तो इन तीनो के आलावा एक और तरीके से भी कौमार्य भंग होता है. बलात्कार. पर मेरा विषय बलात्कार नहीं है. एक महत्व पूर्ण बात ये भी है की कौमार्य भंग कहा होता है. कोई खास जगह. शादी से पहले हुआ तो किसी घर या होटल मे. या फिर कोई खेत या झाडीयों मे.

अपने कौमार्य को बचाकर रखा तो शादी के बाद सुहाग सेज पर. हमारे कल्चर के हिसाब से तो यही बेस्ट जगह है. सुहाग सेज. अब मर्दो की फितरत की बात करें तो मर्द भी एक तमन्ना रखते होंगे की जब उनकी शादी हो. और उनकी पत्नी जब शुहागरात को उनका साथ निभाए तब ही उनका कौमार्य भंग हो. तमन्ना रखना भी वैसे बुरा नहीं है. पर मेरी मानो तो शरीर का कौमार्य भंग हो ना हो. अपनी सोच का कौमार्य भंग होना बहोत जरुरी है.

तो चलिए मुख्य कहानी पर चलते है. सुहाग सेज पर बैठी कविता अपने पति का इंतजार कर रही थी. शादी के बाद पहली रात. घुंघट मे बैठी कविता कभी तो मंद मंद मुश्कुराती. तो कभी गहेरी सोच मे डूब जाती. कविता अपने पति के साथ हुई पहली मुलाक़ात को याद कर रही थी. कुछ 2 साल पहले 22 साल की कविता अपने पिता दया शंकर शुक्ला और माँ सरिता शुक्ला के साथ माता के दर्शन कर के इलाहबाद के लिए ट्रैन मे बैठे हुए थे. 48 साल के दया शंकर शुक्ला PWD मे कार्यरत थे. वही 45 साल की माँ सरिता शुक्ला घरेलु महिला थी. उस वक्त उनकी एक लौती बेटी कविता शुक्ला 22 साल की M.S.C 1st year मे थी.


3rd क्लास के विंडो शीट पर बैठी कविता विंडो से बाहर देख रही थी. अचानक कोई आया. और उसके सामने वाली शीट पर बैठ गया. स्मार्ट हैंडसम गोरा चिट्टे चहेरे वाला वो नौजवान फौजी ही लग रहा था. छोटे छोटे बाल और क्लीन शेव उसकी पहचान बता ही रही थी. कविता ने उसपर नजर डाली. वो अपना बैग शीट के निचे घुसा रहा था. जिसपर टैग लगा हुआ था. टैग पर साफ अंग्रेजी शब्दो मे लिखा हुआ था. सिपाही वीरेंदर पांडे.

साथ मे पेट नेम भी लिखा हुआ था. वीर. कविता के फेस पर तुरंत ही स्माइल आ गई.
तभी वीर की नजर भी कविता पर गई. और वो एक टक कविता को देखता रहे गया. कविता ने अपनी भंवरे चढ़ाकर वीर से हिसारो मे पूछा. क्या देख रहे हो जनाब. वीर बहोत शर्मिला निकला. उसने तुरंत ही अपनी नजरें हटा ली. पर कविता खुद उस से नजर नहीं हटा पा रही थी. ट्रैन चाल पड़ी. ट्रेन के सफर मे अक्सर मुशाफिर दोस्त बन ही जाते है. कविता के माँ बाप ने भी वीर का इंटरव्यू चालू कर दिया. बेटा कहा रहते हो. क्या करते हो. और घर मे कौन कौन है. वगेरा वगेरा........तब कविता को पता चला की जनाब बनारस के है.

मतलब कविता के क्षेत्र के ही रहने वाले. काफ़ी वक्त बीत गया. वीर महाशय जब भी नजर चुरा कर कविता को देखते कविता उन्हें पकड़ ही लेती. सायद वीर जनाब कुछ ज्यादा ही शर्मीले थे. इस लिए वो खड़ा हुआ और वहां से टॉयलेट की तरफ चाल दिया. कुछ मिनट बाद कविता भी टॉयलेट के पास आ गई. और वीर को घेर लिया. डोर के पास ही कविता जब सामने खड़ी हो गई तो वीर का थूक निगलना भी मुश्किल हो गया.


कविता : क्या आप हमें देख रहे थे???


वीर थोडा जैसे घबरा गया हो. शरीफ इंसान अक्सर बदनामी से डरते है. वैसा डर वीर को भी लगने लगा.


वीर : ननन... नहीं तो. आआ आप को सायद गलत फेमि हुई है.


वीर को थोडा सा घभराया देख कविता समझ गई की जनाब शरीफ इंसान है. कविता हस पड़ी.


कविता : (स्माइल) हम जानते है पांडे जी. हम बहोत सुन्दर है. पर ऐसे शर्माइयेगा तो कैसे कम चलेगा. ऐसे तो लड़की हाथ से निकाल जाएगी.


कविता के बोलने का अंदाज़ बड़ा शरारती था. वीर की हालत देख कर कविता को हसीं आने लगी. कविता का ऐसा बोल्ड रूप देख कर वीर की जुबान ही हकला गई.


वीर : हमने... हमने क्या किया????


कविता : अरे यही तो.... यही तो बात है की आप कुछ कर नहीं रहे. अरे कुछ कीजिये पांडे जी. जब लड़की पसब्द है तो उनके पापा से बात कीजिये.


वीर समझ ही नहीं पा रहा था. केसी लड़की है. खुद की शादी की बात खुद ही कर रही है. पर नजाने दोनों मे क्या कॉम्बिनेशन था. वीर को कविता का ये अंदाझ बहोत पसंद भी आ रहा था. लेकिन वीर सच मे बहोत शर्मिला था. वो 10 पास करते ही फौज मे भर्ती हो गया. ट्रैन मे कविता से उस मुलकात के वक्त वो भी 22 साल का ही था. पिता सत्येंद्र पांडे का एक लौता बेटा. सतेंद्र पांडे 49 साल के थे. एक बेटी बबिता 18 साल की. बबिता के वक्त ही उनकी पत्नी उर्मिला का देहांत हो गया. उन्होंने दूसरी शादी नहीं की. वीर जैसे कविता की बात समझ ना पाया हो. वो कविता को देखते ही रहे गया. कविता ने भी अल्टीमेटम दे दिया.


कविता : देखिये कल दोपहर तक का वक्त है आप के पास. चुप चाप अपने घर का पता फोन नंबर कागज पर लिख के दे दीजिये. हम भी शुक्ला है. समझे.आगे हम संभल लेंगे.


कविता बस वीर की आँखों मे देखते हुए मुश्कुराती वहां से चली गई. रास्ते भर दोनों की नजरों ने एक दूसरे की नजरों से कई बार मिली. रात सोती वक्त भी दोनों ऊपर वाली शीट पर थे. पूरी रात ना वीर सो पाया ना कविता. दोनों ही अपनी अपनी शीट पर एक दूसरे की तरफ करवट किये एक दूसरे को देखते ही रहे. रात मे जब सब सो गए तब दोनों ने बाते भी बहोत की. बाते क्या. कविता पूछती रही और वीर छोटे छोटे जवाब देता गया. शर्मिंले वीर ने बस प्यार का इजहार नहीं किया. पर ये जरूर जाता दिया की उसे भी प्यार है.

पर सुबह मुख्य स्टेशन से पहले जब वीर लखनऊ ही उतरने लगा तो कविता को झटकासा लगा. वीर बनारस का रहने वाला था. पर अपने पिता और बहन के साथ लखनऊ मे बस गया था. शहर राजधानी मे अपना खुद का मकान बना लिया था. कविता का दिल मानो टूट ही गया. जाते वीर से मिलने वो भी डोर तक आ ही गई. दोनों की आंखे जैसे उस जुदाई से दुखी हो. जाते वीर से कविता ने आखरी सवाल पूछ ही लिया. पर इस बार अंदाज़ शरारती नहीं भावुक था.


कविता : कुछ गलती हो जाए तो माफ कीजियेगा पांडे जी. वो क्या है की हम बोलती बहोत ज्यादा ही है. हम बस इतना जानती है की आप हमें बहोत अच्छे लगे. पर आप ने ये नहीं बताया की हम आप को पसंद है या नहीं.


कोमल बड़ी उमीदो से वीर के चहेरे को देख रही थी.


कविता : (भावुक) फ़िक्र मत कीजिये पांडेजी. ये जरुरी तो नहीं की हमें आप पसंद हो तो हम भी आप को पसंद आए होंगे. आप तो बहोत शरीफ हो. (फीकी स्माइल) और हम तो बस ऐसे ही है.


वीर के फेस पर भी स्माइल आ गई. वीर भी ये समझ ही गया की कविता बिंदास है. करेक्टर लेस नहीं. जो दिल मे है. वही जुबान पर. अगर उसका साथ मिला तो जीवन मे खुशियाँ साथ साथ ही रहेगी. हस्ते खेलते जिंदगी बीतेगी. वीर ने बस एक कागज़ कविता की तरफ किया और चल दिया. कविता उसे आँखों से ओझल होने तक देखती ही रही. ओझल होने से पहले वीर रुक कर मुड़ा भी.

और दोनों ने एक दूसरे को बाय भी किया. पर उस वक्त बिछड़ते नहीं तो दोबारा कैसे मिलते. कविता ने जब उस कागज़ को देखा. उसमे सिर्फ गांव का ही नहीं शहर के घर का भी पता लिखा हुआ था.
मोबाइल उस वक्त नहीं हुआ करते थे. पर घर के लैंडलाइन के नंबर समेत रिस्तेदारो के लिंक तक लिखें थे. किस के जरिये कैसे कैसे रिस्ता लेकर वीर के घर आया जाए. अलाबाद के नामचीन पंडित से लेकर बनारस के नामचीन पंडित तक.

रिस्ता पक्का करवाने का पूरा लिंक था. कविता बोलने मे बेबाक मुहफट्टी. वो पीछे मुड़ी सीधा अपनी शीट की तरफ. पर बैठने के बजाय अपने पापा के सामने आकर खड़ी हो गई.



कविता : (शारारत ताना) आप को बेटी की फिकर है या नहीं. घर मे जवान बेटी कवारी बैठी है. और आप हो की तीर्थ यात्रा कर रहे हो.


दयाशंकर बड़ी हेरत से कविता को देखने लगे. देख तो सरिता देवी भी रही थी. मुँह खुला और आंखे बड़ी बड़ी किये. अब ये डायलॉग रोज कई बार दयाशंकर अपनी पत्नी सरिता से सुन रहे थे. पर आज बेटी ने वही डायलॉग अपने ही बाप से बोला तो जोर का झटका जोर से ही लगा.


सरिता : (गुस्सा ताना) मे ना कहती थी. लड़की हाथ से निकले उस से पहले हाथ पिले कर दो. अब भुक्तो.


दयाशंकर अपनी बेटी को अच्छे से जनता भी था. और समझता भी था. भरोसा भी था. पर बेटी के मज़ाक पर ना हसीं आ रही थी ना चुप रहा जा रहा था.


कविता : (सरारत ताना स्माइल) सुन रहे हो शुक्ला जी. सरिता देवी क्या कहे रही है. अब भी देर नहीं हुई. जल्दी बिटिया के हाथ पिले करिये और दफा करिये.


अपनी बेटी के मुँह से अपना नाम सुनकर सरिता देवी तो भड़क ही गई.


सरिता : (गुस्सा ताना) हाय राम.... माँ बाप का नाम तो ऐसे ले रही है. जैसे हम इसके कॉलेज मे पढ़ने वाले दोस्त हो. अब भुक्तो.


सरिता देवी को लगा अब दयाशंकर कविता को डांट लगाएंगे. पर सरिता देवी की बात को दोनों बाप बेटी ने कोई तवजुब नहीं दिया. कविता ने वही कागज़ का टुकड़ा अपने पापा की तरफ बढ़ाया. पापा तो कभी कागज़ को देखते तो कभी कविता को. बाप और बेटी दोनों मे बाप बेटी का रिस्ता कम दोस्ती का रिस्ता ज्यादा था. बेटी रुसवा नहीं हुई और उस छिपे हुए लव को अरेंज मैरिज मे बदल दिया गया.

रीती रीवाज और दान दहेज़ के साथ ही. घुंघट मे बैठी कविता अपने पति से हुई पहली मुलाक़ात को याद कर के घुंघट मे ही मुस्कुरा दी. की तभी डोर खुलने की आवाज आई.
कविता थोड़ी संभल गई. पारदर्शी लाल साड़ी मे से सब धुंधला दिख रहा था. तभी उसे उनकी आवाज सुनाई दी.


वीर : हमें मालूम था. कोई और रोके ना रोके ये चुड़ैल हमारा रास्ता जरूर रोकेगी.


कविता समझ गई की वीर आ गया. और एक पुराने रिवाज़ के तहत प्यारी नांदिया नेक के लिए दरवाजे पर रस्ता रोके खड़ी है. जैसी भाभी वैसी ननंद. अपनी ननंद के साथ कुछ और लड़कियों की भी हसने की आवाज सुनाई दी.


बबिता : चलिए चुप चाप 10 हजार निकाल कर हमारे हाथ मे रखिये . नहीं तो.....


वीर : नेक मांग रही हो या हप्ता. ये लो ...


कविता को भी घुंघट मे हसीं आ गई. पति और ननंद की नोक झोक सुन ने मे माझा बड़ा आया.


बबिता : अह्ह्ह....


कविता ने धुंधला ही सही. पर देखा कैसे वीर ने अंदर आते वक्त बबिता की छोटी खींची. वीर रूम का डोर बंद करने ही वाला था की बबिता फिर बिच मे आ गई.


वीर : अब क्या है???


बबिता गाना गुन गुनाने लगी.


बबिता : (स्माइल) भैया जी के हाथ मे लग गई रूप नगर की चाबी हो भाभी....


वीर ने तुरंत ही बबिता को पीछे धकेला और डोर बंद कर दिया. कविता घुंघट मै बैठी जैसे अपने आप मे सिमट रही हो. वो घुंघट मै ही बैठी मुस्कुरा रही थी. वीर आया और उसके करीब आकर बैठ गया.


वीर : नया रिश्ता मुबारक हो कविताजी.


कविता हलका सा हसीं. और बड़ी ही धीमी आवाज मे बोली.


कविता : (स्माइल शर्म) आप को भी.


वीर खड़ा हुआ और रूम की एक तरफ चले गया. कविता को थोड़ी हेरत हुई. उसने सर उठाया. चोरी से घुंघट थोडा ऊपर कर के देखा. वीर अलमारी से कुछ निकालने की कोसिस मे था. वीर जैसे मुड़ा कविता ने झट से घुंघट ढका और वापस वैसे ही बैठ गई. वीर एक बार फिर कविता के पास आकर बैठ गया. वो बोलने मे थोडा झीझक रहा था. वीर के हाथ मे एक बॉक्स था. उसने अपना हाथ कविता की तरफ बढ़ाया.


वीर : वो.... मुँह दिखाई के लिए आप का तोफा....


कविता घुंघट मे ही धीमे से हसने लगी. उसकी हसीं की आवाज सुनकर वीर भी मुश्कुराने लगा. कविता बड़ी धीमी आवाज से बोली.


कविता : (स्माइल शरारत) क्यों जनाब आप ने हमें पहले कभी देखा नहीं क्या??


वीर : नहीं..... देखा तो है. मगर.....


जैसे वीर के पास जवाब तो है. पर बता नहीं पा रहा हो. वो चुप हो गया.


कविता : अच्छा उठाइये घुंघट. देख लीजिये हमें.


वीर : ऐसे कैसे उठा दे. आप ने भी तो वादा किया था.


वैसे तो जब उन दोनों को प्यार हुआ. शादी हुई. उस वक्त मोबाइल का जमाना नहीं था. पर घर के लैंडलाइन से बात हो जाती. वो भी बहोत कम. क्यों की वीर के घर के ड्राइंग रूम मे ही फ़ोन था. और वहां सब होते थे. वैसा ही माहौल तो कविता के घर का भी था. बहन बबिता ने अपने भाई वीर की मदद की थी. और दोनों मे बात हुई. तब कविता ने एक वादा किया था की वो शादी की पहेली रात कुछ ऐसा करेंगी. जो पहले कभी किसी दुल्हन ने ना किया हो.

वीर भी ये जान ने को बेताब था. और वो वक्त आ गया था. कविता अपने पाऊ सामने फॉल्ट किये थी. ऐसे ही घुंघट मे भी वो दोनों पाऊ मोड़ के अच्छे से बैठ गई.


कविता : कोई चीटिंग मत करियेगा पांडे जी. आंखे बंद कीजिये और आइये. हमारी गोद मे सर रखिये.


वीर ने स्माइल की. और थोडा आगे होते हुए लेट गया. उसने कविता की गोद मे अपना सर रख दिया. कविता ने अपनी आंखे खोली और मुश्कुराते हुए वीर को देखा. गोरा चहेरा, छोटी छोटी बंद आंखे. शेव की होने के कारण गोरे चहेरे पर थोडा ग्रीन ग्रीन सा लग रहा था. जो कविता को काफ़ी अट्रैक्टिव लग रहा था.बाल भी थोड़े से बड़े हुए थे. कविता ने बहोत प्यार से वीर के सर पर अपना हाथ घुमाया. वीर की आंखे बंद ही थी. कविता ने सच मे कुछ नया किया. वो वीर के सर को पकड़ कर झूक गई. अपने सुर्ख लाल होठो को वीर के हलके गुलाबी होठो से जोड़ दिया.

ये वीर के लिए तो एकदम नया ही एहसास था. उसकी जिंदगी की सबसे पहेली और शानदार किश. कविता ने कुल 1 मिनट ही किस की और वापस घुंघट कर लिया. चहेरा ना दिखे इस लिए पल्लू को सीने मे दबा दिया. मदहोश हुआ वीर जैसे किसी और दुनिया मे पहोच गया हो. कविता वीर की ऐसी हालत देख कर हलका सा हस पड़ी.


कविता : बस अब उठीये पांडेजी. अब बताइये? ऐसा पहले कभी किसी दुल्हन ने किया क्या.


वीर : (स्माइल) अब क्या हम अपनी आंखे खोल सकते है क्या???


कविता खिल खिलाकर फिर हस पड़ी. वो थोडा खुल गई.


कविता : (स्माइल) सब हमसे ही पूछ कर करियेगा क्या. खोल लीजिये आंखे.


वीर ने अपनी आंखे खोली तो ऊपर सामने कविता ही दिखी. पर घुंघट मे.


वीर : पता है कविता जी. हमने पहेली बार किसी की गोद मे अपना सर रखा है.


कविता समझ गई की वीर की माँ बचपन मे ही गुजर गई. वो माँ की ममता से वंचित है. सायद वो उस कमी को दूर कर सके. कविता ने एक बार फिर वीर के बालो मे अपना हाथ घुमाया. वीर की आंखे एक बार फिर बंद हो गई. वो क्या फील कर रहा होगा. ये कविता बखूबी समझ रही थी.


कविता : तो अब हर रोज़ हमारी गोद मे ही अपना सर रखा कीजियेगा. पर पांडेजी. आज हमारी पहेली रात है. घुंघट नहीं उठाइयेगा क्या???


वीर : क्या जरुरी है कविताजी???


कविता : (लम्बी सॉस) हम्म्म्म. फिर रहने दीजिये. हम भी वो पहली दुल्हन होंगी. जिसका चहेरा दूल्हा देखना ही नहीं चाहते.


वीर तुरंत उठ कर बैठ गया. वो घड़ी आ गई. जिसका वीर और कविता दोनों को ही इंतजार था. दोनों की दिलो की धड़कनो ने रफ़्तार पकड़ ली. जब वीर ने कविता का घुंघट आहिस्ता से ऊपर उठाया. वो खूबसूरत चहेरा जिस से वो नजर ही नहीं हटा पा रहा था. ये वही चहेरा था. जिसे पहेली मुलाक़ात ट्रैन मे देखा था. और मन ही मन कई कल्पनाए की थी. और आज सामने श्रृंगार और सोने के जेवरो मे सजधज कर कविता को शादी के लाल जोड़े मे देखा तो वीर कविता की तारीफ किये बगैर नहीं रहे पाया.


वीर : आप बहोत सुन्दर हो कविताजी.


कविता हलका सा हसीं. और आहिस्ता से सर ऊपर कर के वीर की आँखों मे देखा.


कविता : (स्माइल) बस सिर्फ सुन्दर??


वीर दए बाए देखने लगा. जैसे कोई उलझन मे हो. फिर एकदम से कविता की आँखों मे देखा.


वीर : देखिये कविता जी. बहोत कुछ है. जो सायद हम कहे नहीं पा रहे है. पर आप बहोत सुन्दर हो. बहोत बहोत बहोत..... सुन्दर.


कविता शर्मा कर हस पड़ी. वो समझ गई की वीर के दिल दिमाग़ पर सिर्फ कविता ही बसी हुई है. वीर कविता की तारीफ करने के चक्कर मे कविता को मुँह दिखाई का तोफा देना भूल गया था. कविता ने बतियाते हुए ही वीर के हाथो से वो छोटासा बॉक्स खिंच लिया. और बाते करते हुए उसे खोलने लगी.


कविता : (स्माइल) लगता है आप लड़कियों से ज्यादा बात नहीं करते. कभी कोई दोस्त नहीं बनी क्या???


वीर : नहीं... दरसल हम बॉयज स्कूल मे पढ़े है. वो भी सिर्फ 10th तक. फिर तो फौज मे ही चले गए. अब मन तो था की आप जैसी कोई दोस्त हो. तो भगवान ने आप से मिला दिया.


कविता वीर की बात पर हस दी. वो इंतजार कर रही थी. की वीर भी पूछे. की पहले कोई बॉयफ्रेंड था या नहीं. पर वीर ने पूछा ही नहीं. आगे बात भी नहीं हो पा रही थी. कैसे मामला आगे बढ़ता. कविता ही आगे बढ़ने का सोचती है. पर उसकी नजर उस बेडशीट पर गई. जो बिछी हुई थी.


कविता : ये आफ़ेद चादर कहे बिचाई गई है. ऐसे ख़ुशी के मौके पर तो कोई बढ़िया सी रंग बिरंगी बिछानी चाहिए थी ना .


वीर भी सोच मे पड़ गया. वो बताना चाहता था. पर थोडा हिचक रहा था.


वीर : सायद.... सायद वो खून होता हे ना. वो...


कविता समझ गई की कौमार्य (virginity) जाँचने के लिए ही सफ़ेद चादर बिछाई गई हे. कविता फिर भी जानबुचकर अनजान बनती है.


कविता : पर खून कहे निकलेगा. हम थोड़े ना कोई तलवारबाज़ी कर रहे है.


वीर : (हिचक) वो लड़की को पहेली बार होता है ना.


कविता को जैसे शर्मा आ रही हो. वो अपनी गर्दन निचे कर लेती है.


कविता : (हिचक) देखिये पांडे जी. हमें आप को सायद पहले ही बता देना चाहिए था. हमें प्लीज माफ कर दीजिये. दरसल शादी से पहले हमारा एक बॉयफ्रेंड था. और उसके साथ....


कविता बोल कर चुप हो गई. वो अपना सर ऊपर नहीं उठती.


वीर : तो फिर उस से आपने कहे शादी नहीं की. क्या आप अब भी उस से ही प्यार करती हो???


वीर ने पहली बार सीधा बेहिचक सवाल किया. कविता ने ना मे सर हिलाया.


कविता : नहीं दरसल वो धोखेबाज़ था. उसका कई लड़कियों से चक्कर था. हमने ही उसे छोड़ दिया.


वीर : तो क्या आप हमसे प्यार करती हो???


कविता ने सिर्फ हा मे सर हिलाया. और वो कुछ नहीं बोली.


वीर : कविता जी अगर हम ये कहे की आप पहले किस से प्यार करती थी. करती थी या नहीं. इस से हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा. आगे आप हमसे किस तरह रिस्ता बना ना चाहती है. हम बस यही जान ना चाहते है .


कविता हेरत मे पड़ गई. वीर का दिल कितना बड़ा है. यही वो सोचने लगी की. पता होने के बावजूद वीर आगे रिस्ता बना ना चाहते है.


कविता : अगर आप हमें उस गलती के लिए माफ करदे. और हमसे प्यार करियेगा. अपनी पत्नी स्वीकार कीजियेगा.. तो हम भी जीवन भर आपको ही अपने मन के मंदिर मे बैठाए रखेंगे पांडेजी. आप ही की पूजा करेंगे. और आप के हर सुख दुख मे आप के भागीदार बनेंगे.


वीर बस इतना सुन. और खड़ा हो गया. वो वापस उसी अलमारी के पास जाकर अलमारी से कुछ खोजने लगा. वो एक कटर लेकर आया. कविता उसे देखती ही रहे गई. वीर ने उस सफ़ेद बेडशीट पर अपना हाथ काट कर खून गिराया. तर्जनी ऊँगली और अंगूठे के बिच की चमड़ी से खून टप टप बहकर उस सफ़ेद बेडशीट पर लाल दाग लगा रहा था. कविता झट से खड़ी हुई. और वीर का हाथ पकड़ लिया. वो खून रोकने की कोसिस करती है.


कविता : (सॉक) क्या फर्स्ट एड बॉक्स है???


वीर ने अलमारी की तरफ ही हिशारा किया. कविता झट से फर्स्ट एड बॉक्स लेकर मरहम पट्टी करने लगी. पट्टी बांधते वक्त वो वीर को बड़ी प्यारी निगाहो से देख भी रही थी. सोच भी रही थी. ये तो देवता है. कविता को वीर पर प्यार भी बहोत आ रहा था. दोनों ही खड़े थे. कविता ने बॉक्स को साइड रखा और झूक कर वीर के पाऊ छुए.


कविता : ये हमारे पति होने के लिए.


वीर भी तुरंत झूक गया. और उसने भी कविता के पाऊ छू लिए.


वीर : (स्माइल) तो ये लो. हमारी पत्नी होने के लिए.


कविता सॉक होकर हसने लगी. वीर को रोकती उस से पहले वीर ने कविता के पाऊ छू लिए थे.


कविता : (स्माइल) अरे नहीं...... अब आप झूकीयेगा नहीं. कभी नहीं. और सीधे खड़े रहिये.


कविता एक बार और वीर के पाऊ छूती है.


कविता : ये इंसान के रूप मे भगवान होने के लिए. आज से आप ही हमारे भगवान है. आप की बहोत सेवा करेंगे हम पांडेजी.


दोनों ही हसने लगे. कविता उस सफ़ेद चादर को खिंच कर समेट लेती है. वो वीर की आँखों मे बड़े प्यार से देखती है.


कविता : (भावुक) पांडेजी. अब ये चादर हमारे लिए सुहाग के जोड़े से भी ज्यादा कीमती है.


कविता उस चादर को फॉल्ट करने लगी तब तक तो वीर ने दूसरी नीली चादर बिछा दी. कविता हसीं और एकदम से रुक गई. पर स्माइल दोनों की बरकरार रही. दोनों ही बेड पर पास पास ही बैठ गए. तब जाकर उस चीज पर ध्यान गया. जिसे दोनों काफ़ी देर से भूल गए थे. मुँह दिखाई का तोफा. कविता वीर से नजरें नहीं मिला पा रही थी. वो मुश्कुराती इधर उधर देखती है. तब उसकी नजर उस बॉक्स पर गई. जो सुन्दर लिफाफे से कवर था.

कविता ने अपना हाथ बढ़ाया और उस बॉक्स को लेकर खोलने लगी. पर बॉक्स खोलते उसे एकदम से झटका लगा. उसमे बहोत सुन्दर पायजेब थी. पर झटका इस लिए लगा क्यों की कवर हटाते बॉक्स पर जिस सुनार का अड्रेस था. वो इलहाबाद का था. और ये वही पायजेब थी जो कविता ने शादी की खरीदारी करते वक्त पसंद की थी. लेकिन सुनार ने उसे वो पायजेब देने से मना कर दिया. क्यों की उस दुकान पर वो लौता एक ही पीस था. और वो भी किसी ने खरीद लिया था. वो बुक थी.

कविता का दिल खुश हो गया. कोनसी प्रेमिका पत्नी खुश ना हो ये जानकर की उसकी पसंद उसका पति प्रेमी बिना कहे ही जनता हो. या फिर पसंद मिलती हो. कविता ने वो पायजेब वीर की तरफ की. अपना पाऊ आगे कर के अपने घाघरे को बस थोड़ासा ऊपर किया. वीर समझ गया की कविता वो पायजेब उसके हाथ से पहेन ना चाहती है. पर कविता का गोरा सुन्दर पाऊ देख कर तो वीर मोहित ही हो गया. गोरा और सुन्दर पाऊ. महावर से रंगा हुआ तलवा. ऊपर महेंदी की जबरदस्त करामात. नाख़ून पर चमकता लाल रंग बहोत आकर्षक था.

वीर ने पायजेब तो पहना दी. पर झूक कर उसके पाऊ को चुम भी लिया. कविता के लिए ये दूसरा झटका था. मानो रोम रोम मे एकदम से गुदगुदी सी मच गई हो. वो तुरंत आंखे मिंचे सिसक पड़ी.


कविता : (आंखे बंद मदहोश) ससससस.....पाण्डेजिह्ह्ह


जब आंखे खुली तो वीर बहोत ही प्यार भरी नजरों से उसे देख रहा था. इस बार बोलना दोनों मे से कोई नहीं चाहता था.
इस बार धीरे धीरे दोनों ही एक दूसरे के करीब हुए. होठो से होठो का मिलन हुआ और दोनों एक दूसरे की बाहो मे समा गए. प्यार के उस खेल मे बहोत ही सख्तई भी महसूस हुई और दर्द भी. पर जीवन के सब से अनोखे सुख को दोनों ने महसूस किया.

वीर जैसा जाबाझ सुन्दर तंदुरस्त मर्द और अति सुन्दर कविता का मिलन हुआ तो मानो दोनों की दुनिया थम ही गई हो. पर जब दोनों अलग हुए. और वीर बैठा तब उसकी नजर कविता की सुन्दर योनि पर गई. गुलाबी चमड़ी वाली सुन्दर सी योनि से एक लाल लकीर निचे की तरफ बनी हुई थी. नीली बेडशीट पर भी कुछ गिला सा महसूस हुआ. वीर सॉक हो गया.


वीर : (सॉक) ये तो खून है.


कविता हस पड़ी और शर्म से अपने चहेरे को अपने एक हाथ से ढक लिया. बुद्धू सज्जन को अब तक तो समझ जाना चाहिए था. वीर को भी समझ आया. और वो भी मुस्कुरा उठा. उसे अब समझ आया की कविता उस से प्यार करने से पहले तक कवारी ही थी.


उसने झूठ कहा था की उसका कोई बॉयफ्रेंड था. पर परीक्षा लेते तो कविता को एहसास हुआ की वीर जैसे इंसान को पाना उसका नशीब है. समाज की रीत के हिसाब से तो पति परमेश्वर होता है. पर यहाँ तो परमेश्वर ही पति निकले. कविता खुश थी की उसका कौमार्य (virginity) सार्थक हुआ.

Bahot khubsurat likhavat he... Bahot sahi se likha gaya he sab...bas kami thi toh suhagraat ko thoda sa detail me likhne ki...
 
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The Kumar

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Shetan devi jee
Bahut achcha laga
Aapki kahani padhke
ek tarah se aatma tript ho gayi
Duniya mein har tarah ke mard hote hain
Aurat hoti hain
Lekin mardo mein ek baat common hai
Unhein biwi kunwari chahiye hoti hai
Aur kunwari na mile toh kuchh mard gussa karte hain
Lekin kuchh mard pichhli baato ko bhula dete hain
Aapki ek baat se main sehmat nahi hoon
Ki jo mard yeh sochte ho
Ki unhein kunwari biwi mile
Woh theek nahi hote
Sabki kuchh ichchaayein hoti hain
Ab Aate hain story pe
Toh pehli najar mein pyar nahi hota
Haan attraction jarur hota hai
Pyar samay sath beetane pe hota hai
Veer ko itna sharmata dekh
Mere ko sharam aarahi thi
Main bhi aise hi sharmata tha
Purane din yaad aagaye
Mere ko ek baat samajh nahi aayi
Maan lijiye kavita ne jab bola ki woh kunwari nahi hai
Aur us samay suraj woh kar deta
Jo jyada tar mard karte hain
Toh kavita kya kar leti
Shaadi toh ho hi chuki thi
Pareeksha hi Leni thi toh shaadi se pehle leti
Nuksaan kiska jyada hota
Ladkiyo ko samajhna bada mushkil hai
Woh aapse ek sawal puchhna tha
Main yeh keh raha tha ki aap
CONTROL
Hum rating nahi deta hoon
Humari khud ki story be sar pair ki hoti hai
Mere ko achchi lagi kahani
Bas yahi bahut hai...
Baat toh shi he pati ki exam Sadi se pahale hi legi aurate nahi toh us raat ko konsi wife virgin hote hue bhi mana karegi me nahi hu...agar pati naraz ho jata tha kham kha use puri life ye yaad aata ki uske pati ko accha nahi laga tha vo sun ke...
 
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Mak

Recuérdame!
Divine
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Review for Story: Manhoos Gaon
By - Tony269

A Dark themed story where the antagonist is in the lead role. I must say the story had a lot of potential if you had focused on its presentation. The way you have presented it and described the details, gave the hint that Pratap was the main villain. Maybe you could have shown us more about the incidents as a chain of events.

Alas! A very good plot for the story but couldn't be executed well enough. One more thing don't change paragraphs in the middle of a sentence. You have potential, just need to work on it. Hoping your other story will be better.

Good luck with the contest.
 

Samar_Singh

Conspiracy Theorist
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Review
Story - Motherly love Limitless
Writer - The Kumar

Plot - Beta bachpan se apne maa baap ke rishte ko observe kar rha hai, aur isi tarah uska najariya apni maa ke liye badal jata hai. Shadi ke baad bete ki patni baccha paida nahi kar sakti to kai jagaho se nirash hokar, vo maa bete ko sex karne ke liye manati hai.

Kahani ka plot bahut typical aur cliche hai. Same concept ki kai kahaniya forum aur baki sites par padi hai. There's nothing different in this story.

Kahani ke title se lagta hai ki Maa ka important role story me hoga, lekin puri story sirf bete ke perspective ko dikhati hai. Maa ki side se kuch nahi hota, jaise uska koi role isme nahi hai.

Aur Maa bete ke bich sex bhi bahu ki vajah se hota hai, unke apne to koi efforts hi nahi the.


Narration was Okay.
 
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Shetan

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Bahot khubsurat likhavat he... Bahot sahi se likha gaya he sab...bas kami thi toh suhagraat ko thoda sa detail me likhne ki...
Bahot bahot shukriya Kumar. Me dhyan rakhungi is par
 
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Shetan

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Motherly love - Limitless


Me Mayur ek middle class family se belong karata hu.. me ek introvert ladaka Raha hu.. Bachpan se hi me meri maa se behat karib raha hu... Ghar chota tha toh Me papa aur mummy ek kamare hi soya karate the.. mere hote hue mummy papa ek dusre ke karib nahi aa pate the.. aur kahi na kahi Mera maa se karib hona papa ko mummy se dur kar deta tha.. jab baccha tha ye baat muje kabhi samaj nahi aai lekin jese jese bada hua muje samaj aaya ki me mummy papa ke bich ki ek diwar ban Raha tha... lekin muje is baat ki Khushi he ki mere college Jane se leke abhi tak unko pura privacy mil Raha tha.. me college ki hotel me betha hua Aksar sochata ki mummy papa Aaj kya kar rahe honge.. kabhi kabhi me jaan bujh ke raat ke 11 baje ke baad unko call karta.. is liye ki 11 baje mummy ke TV show pure ho jate the..kahi baar muje kamyabi mili.. jab papa phone uthaya Karate the.. maa ki chudiyon ki aavaje muje sunai de jati ya maa ki khilkhilate hue hasi muje Aaj bhi yaad aati he...maa bahot majakiya aurat he...aur papa ek dam serious adami the..dono ke bich 14 sal ka age gap he..ye baat muje aur sochane pe majbur karti ki maa ki pahali raat me papa ke sath kese aur kya kya hua hoga... kher ye toh ek alag hi topic he...

Accha ek baar aap log bhi dekh hi lijiye ki maa ka rup rang kesa he...

desktop-wallpaper-kajol-bollywood-actresss-saree-beauty.jpg


Maa ka rang thoda sa sawala he.. ya ab ho chuka tha jab se vo gaav me thi..unka badan pahale se thoda bhari ho Chuka tha.. lekin ye unki khubsurati me aur nikhar lati thi..gaav ki sab se samjdar aurato me thi.. lekin Aaj ki duniyaa ki technology se bekhabar thi... lekin unki Bahu yahi meri wife ke aane ke baad se unki dressing change ho gai thi... mummy mummy kar me meri maa ko vo itne mordan saree blouse pahana deti... Jo sirf gaav ki Jawan ladakiya pahana karti thi...jis maa ne aaj Tak sirf bade sleeve vale blouse pahne the...vo aaj sleeveless pahane lagi thi.. backless jab maa ne pahana tha muje Aaj bhi yaad he maa ka piche ka chupa hua hissa lag hi nahi Raha tha ki maa ka skin ho... Jamin asman ka fark tha...jin dosto ki pata nahi chala unke liye me maa ke chupe hue skin ki tone ki baat kar raha hu...Jo backless blouse me muje saf saf dekh gaya tha..vo ekdam gora sa tha...meri wife ne toh maa se bola tha ki "Maa aap toh mere se bhi jada Gore ho"..

Ab aate he meri pyaari si chulbuli si.. ek bacche se Jo kam nahi thi..meri mishthi...ha jesa nam he vesi he bahot sweet... Vo ek doctor thi.. aur khule vichar vali ladaki thi..meri toh kismat khul gai thi us ke sath shaadi kar ke...aur sab se badi baat vo muj se pahale meri maa se mili thi.. maa ko vo itana pasand aa gai thi ki turant unki Bachpan ki saheli se mere liye mishthi ka haath mag liya...maa ko toh vo bachapn se janati thi... lekin me use nahi mila tha pahale...

Ab hamari shadi ko 3 saal ho gai he... Hum ek dusre se bahot khul gai the... lagati vo bacche se kam nahi thi lekin use itana knowledge tha syad hi mere pass tha..hum dono hi khule vichar rakhte the...hum ne ek dusre se vo sab share Kia tha jo hum kabhi kisi se nahi kar pate...

Are me fir se bhul gaya...ye Rahi meri misthi..

shirley-setia-latest-photos-hd-wallpapers-1080p-pb2-kkc5.jpg


Misthi ki padai abhi tak chal Rahi thi..ha vo kam me sath hi padati thi..uski PhD ki padai me khoyi rahati.. lekin muje bhi pura time deti... Hum kuch 2 sal se bacche ke liye try kar rahe the lekin hume results nahi mile...jab hum ne checkup karvaya toh pata chala ki mishthi ke liye baccha convince karana almost impossible tha...me bahot dukhi ho gaya lekin misthi ka kahana tha ki science bahot aage bad gai he hum kuch bhi kar ke karange baccha...use bhi pata tha ki muje bacche god nahi lene the..

Ek raat mere paas aati he aur bolati he "baby mene meri kuch friends se baat ki lekin surrogate mother ke liye koi mil nahi Raha he.." mene use pakad ke meri god me leta use shalata hue kaha "tum kuch jada hi soch Rahi hu baccha itana bhi important nahi he pagal.. hum god le lenge na.." me bola...

"Yaar tum ab kyu mukar rahe ho.. pahale toh tumhe bada khud ka baby chahiye tha..aur ha ab muje bhi mere pati ka hi baby chahiye...Mera bhi hak he... Yaar atleast hum dono mese kisi ek ka toh hona chahiye na"
Misthi meri baho me sar rakh ke boli...

"Mishthi lekin tum toh janti ho hum ese hi kisi bhi par trust nahi kar sakte he.. aur koi lady bhi ese nahi ready hogi" me bola

" Baby meri mom ka bhi operation ho gaya he nahi toh koi dikkat nahi hoti" misthi bahot sahajata se bol di... lekin me shock ho gaya sath me na chahte hue bhi sasu maa ka khubsurati mere aakho ke samne dekhane lagi.. lekin me is baat ko majak me lete hue bola..."kuch bhi pagal ho tum"

"Shut up me " aur vo rone lagti he.. thoda sa..
"Yaar sorry ro kyu Rahi ho..." Me bola..

Kuch der ese hi baate karte karate ho dheere se bol di..." Baby mummy ji bhi hamari help kar skati he" ye sun ke mere samne meri sari fanatsy ek sath yaad aane lagi.. kese me Mari maa ko ek baar pregnant karane ke apane dekh ke sota tha...kese maa se itana karib tha ki maa ka blouse khol deta... unki body se raatbhar khelta aur maa bhi itana bolati nahi thi...aur muje vo din bhi yaad aaya jis raat mene maa ki pyaari si chut me ungli Dali thi aur maa ke thappad ne mere gaal lal kar diye the...us din ke baad mene maa ke sath kuch esa vesa nahi kia tha bas hug kiss cuddle continue raha tha...

Me toh kuch bol hi nahi paya.. lekin syad me kuch jada hi aage soch raha tha vo bas surrogate mother ki baat kar Rahi thi...sex ki nahi... kuch discussion ke baad me ready bhi ho gaya...vese bhi me toh kab ka ha bol deta par thodasa dekha Raha tha ki muje dikkat he...

Maa gaav me thi hum ne maa ko kuch bahane se akela bula liya... Mishthi ne maa ko ese manaya ki maa bhi mana nahi kar pai... akhir bete ke liye maa itana toh Khushi se karegi..bas maa ko ye sab bahot ajib laga tha... lekin maa ko misthi ne jese tese mana hi lia...hum dono hi maa me bacche the...maa syad muje toh do chat thappad marati lekin misthi ke muh se ye sun ke maa ko sab sahi laga...vese misthi do char baar baate karte hue maa ke aage ro di thi...ha vo ek bacchi emotional blackmailer thi...


Maa ne pura sath Diya lekin fir bhi maa bhi bacche ko convince nahi kar pai.. doctor ne bola ki mere sparm tabhi women egg se mil payenge jab conventionally intercourse kia jai...kyu ki mere sparm bahar aate hi mat jate the...

Mene ye sun ke mishthi ko bol Diya ki ab kuch nahi ho sakta he...toh misthi boli ki tum mummy ke sath intercourse kyu nahi karate ho.. ek baar toh karna he...mene ek jor ka thappad use mar Diya... Lekin vo fir bhi boli..." Na mujhe problem na toh tumhe...muje pata he bas maa ka pata nahi he.."

Me aur Mishthi ne kahi sare roleplay kia Karate the us me incest relationship vale bhi hum try Kia the... syad ek us ke liye easy tha mere man ki baat ka pata lagna kyu ki...jab mene use as maa choda tha sayad me emotional ho gaya tha... fanatsy se jada hi me us raat uske sath involve tha..

Me bhi uski baat ko nahi nahi karate ho man Lia...me use jata nahi raha tha ki me Kitana khus tha lekin ese nahi bol paya me...


Pata nahi kese mishthi ne maa ko mana liya...mene kabhi pucha nahi maa tum kese ha bol skati ho khud ke bete ke sath sambhog ke liye...na kabhi mishthi se puch paya... Hume is baat ka dar nahi tha ki kisi ko pata chal jayega... Kyu ki yaha hum nai nai shift hue the.. aur mishthi ke pass sab problems ka koi na koi hal tha...humari kisi doctor ne kabhi jarurat se jada enquiry bhi nahi ki.. dar tha toh papa ka...kyu ki abhi tak maa aur papa ka sex life active tha..ye baat bhi maa me mishthi se share ki thi.. toh tay ye hua ki maa ka jab tak pet nikal nahi jata maa papa ke sath kuch time bitane jayegi lekin bas kuch din ke liye...fir wapas aati jati rahegi aur last ke kuch months hum kuch na kuch bahane se Gaav nahi jayenge... Hume pata tha ki papa bhi busy rahate the samaj seva me toh kuch months toh unko maa se dur rakhna itana bhi muskil n tha...

Tai hue ki ab me aur maa ek kamare me soyenge aur mishti ek dusare room me...maa se meri koi baat hi nahi hua thi...bas mishthi ki baat man ke me ready ho gaya tha...maa ne bhi bola tha ki vo is ke bare me koi baat nahi karegi...aur jo karana he bas muje karana tha maa bas karane ki anumati de Rahi thi...

Pura 1 week Tak toh me maa ke sath kuch nahi kar paya...uske baad mene maa ko pahle ke jese cuddle karana chalu kar diya... lekin maa ke man syad yahi chal raha hota tha ki aaj ye karega aj Karega aur in sab se unka picha chute... lekin vo bhi bol nahi pati...ek raat jab me maa ke sath sone aaya...mene dekha maa ka peticot ghotano tak tha unka blouse ke kuch button khule the...aur vo bas light on kar me leti hue sone ka natak kar Rahi thi...meri haalat kharab ho gai...mene light off ki...maa ke pass leta..

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unko cuddle karane laga...mene himmat kar ke maa ke boob press karane laga... piche se pakad ke me unki Puri body se kehlata raha...piche se kiss karne par maa ki sase ful gai..me smaj Gaya maa jagi hue he...mene bhi unse karna jaruri nahi smaja...

Mene maa me kaan me bola "maa I love you..muje maaf kar dena..."

Aur me khada hua aur mere sare Kapde nikal diye...maa ne ye bhi kapde nikalne ki aavaj suni aur unki body kap gai...kyu ki unko pata tha aaj vo sab hoga jo abhi tak nahi hua tha...

Mene dekha Mera ling pura tan ke maa ko salami de Raha thaa... agar me maa ko is halat me pahali baar dekhata toh abhi nikal deta lekin mene toh maa ke sath itana pyar Kiya tha ki ab bas mera ling maa ki sukariya sun ke maa ki bacche Dani me pani zarane ke baad hi Bethega...

Mene maa ke per utha ke muh me unki ungli Dali aur aur suck karane laga.. maa turant machal gai aur kamuk aavaj me boli.." beta Ganda he vaha mat chum.." mene maa se bola "maa

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Lekin me rula nahi aur maa ko bhi pahali baar koi ese chum raha tha...maa machal rahi thi...mene der na ki aur ko chumate hue unki chut Tak peticot chada Diya...nikala nahi kyu ki muje pata tha maa papa ese hi karate the.. lekin pata nahi mene maa ka nada khol Diya...aur unke patale aur makhane pero ko utha ke ek baar ne maa ka peticot nikal feka...maa ki chut par ek baal nahi the...maa ka blouse bhi mene nikala Diya maa puri nangi mere smane leti thi...

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Mene maa ko ese dekh ke jara bhi control kiye Bina pagal ki tarah chuma kata maa ki sukariya unke m aur tej tej unki chuchiyon ko kat aur pi Raha tha...jese mene maa ki chut me ling dala maa ki jese Jaan nikal gai...maa role lagi.. lekin me rula nahi bas unko kiss deta raha...ki tabhi achanak se lights on ho gai...meri wife room me aai...maa bhi khud ka nanga badan chupa ne ki nakam kosish ki fir na chahte hue bhi saram ke mare mere muje khud ke upar leta li...me aur Jos me maa ko chodane laga... wife ke face pe bahot chamak thi..jese uska koi bada kam ho gaya ho...vo khusi se hume dekh Rahi thi...maa bhi chud Rahi thi aur jab mene under dala maa ko bhi charam sukh mil gaya...

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Maa ke face par bas sukun ki khusi thi bete se abhi tak jakdi hue thi aur lambi aus gahari sase le Rahi thi...

Maa ko khus dekh ke me bhi maa ko aur chum raha tha unke badan ko sahla raha...

"Mujhe pata tha ek maa ko bete se acche se koi khus nahi kar sakta he I'm right yes I'm right.." misthi khusi se boli...

The end.....
Incast ke rasiyo ke lie sunhari chabi he. Mazedar erotic story
 
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Shetan

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---------- वफा का वादा ----------


" कहते है जब घर में पत्नी की जवानी करोडो की हो और नौकरी लाखों की तो नौकरी में लात मारकर पत्नी की जवानी पर ध्यान लगाना चाहिए " शायद इसके मायने मेरे पति को उस वक्त समझ आ गये होते....!!!


मै रेखा 35 वर्षीय एक शादीशुदा महिला हू।
मेरे पति संजय उम्र 42 साल, और मेरे दो जुड़वा बच्चे एक लड़का एक लड़की है मेरे परिवार में मेरे साथ मेरी सास ससुर, जेठ जेठानी, उनकी एक बेटी, हम सभी एक साथ एक दो मंजिला मकान, जिला हिसार हरियाणा में रहते है। मेरे ससुर नगर निगम में सरकारी मुलाजिम है, मेरे पति और जेठ जी मिलकर एक साड़ी का कारखाना चलाते हैं। जरूरी सुख सुविधाओ से सपंन मेरा भरा पूरा मध्यम वर्गीय परिवार है।


12-12-2014 ये तारीख मुझे आज भी याद है जिस दिन मै दुल्हन के रूप में पहली बार अपनी ससुराल आई थी। खूबसूरत हसीन सुहागरात और पांच रात - छे दिन का यादगार हनीमून आज भी मेरे जेहन में बसा हुआ है। शादी के एक साल पूरे होने से पहले ही मैने दो प्यारे जुड़वा बच्चों को जनम दिया। जुड़वा बच्चों की दोगुनी खुशी में मेरा घर आंगन खुशियों से भर गया।


जुड़वा बच्चो को संभालना कोई आसान काम नही था, एक को दूध पिला कर सुलाओ तो दूसरा जाग जाता, दूसरे को दूध पिला कर सुलाओ तो पहला जाग जाता.... जैसे तैसे दोनों को सुलाओ तो बच्चो के पापा जाग जाते फिर उन्हे दूध पिला कर सुलाओ तब तक फिर पहला जाग जाता आखिर बच्चो की माँ कब सोये....??? यही क्रम करीब तीन साल तक चलता रहा।


तीन साल बाद जब बच्चो ने परेशान करना कम किया तो हम पति पत्नी की सेक्स लाइफ दोबारा पटरी पर चलना शुरु हुयी अब हमारे बीच हफ्ते में दो तीन बार और थोड़ा लंबा सेक्स होने लगा।


"मैं खुश थी अपनी दुनिया में, अपने पति, अपने घर व अपने बच्चो के साथ. फिर क्यों, कब, कैसे 'विकास' मेरे अस्तित्व पर छाता गया और मैं उस के प्रेमजाल में उलझती चली गई. मैं मजबूर थी अपने दिल के चलते. विकास चमकते सूरज की तरह आया और मुझ पर छा गया.....!"

साल 2017 नोवम्बर का महिना मेरे पति और जेठ ने दिसंबर में होने वाली शादियों के सीजन को देखते हुए 15 लाख की बीसी (बीसी व्यापारियों द्वारा अवैध रूप से चलाई जाने वाली लॉटरी लोन योजना होती हैं) उठा ली । शाम छे बजे मेरे पति और जेठ नगद 15 लाख रुपए चार हिस्सों में बाटकर रात को दस बजे की ट्रेन से गुजरात के लिए रवाना होने वाले थे तभी अचानक मेरे जेठ के मोबाइल पर एक फोन आया।


जेठ : हैलो.. सैनी साहब


जल्दी से टीवी खोल कर न्यूज़ देखो।


जेठ : क्यों क्या हुआ..???


सभी व्यापारी बर्बाद हो गये न्यूज़ देखो सब पता चल जायेगा।


जैसे ही टीवी ऑन कर न्यूज़ चैनल लगाया तो सामने प्रधानमंत्री जी के दिये गये संबोधन की ब्रेकिंग न्यूज चल रही थी। नोट बंदी का ऐलान हो चुका था। मेरे जेठ और पति मेज पर रखे 500-1000 के नोटों की गड्डियों को आँसू भर देख कर रहे थे। वो दोनों समझ चुके थे कि हम बर्बाद हो गये क्योकि ये मेज पर पड़ा पैसा अब किसी काम का नही।


दुनिया की पांचवी अर्थ व्यवस्था बनने के चक्कर में हमारे प्रधान ने देश के लगभग 90% परिवारों की अर्थ व्यवस्था के पकौड़े (लो...) लगा दिये। व्यापार में पड़े इस अक्समात् आर्थिक संकट की वजह से मेरे पति अब अवसाद में रहने लगे, बीसी की रकम वसूलने वाले आये दिन हंगामा खड़ा करते, उनके इस हंगामा को मेरे ससुर ने अपने प्रोविडेंट फंड की रकम को गिरवी रख जैसे तैसे खतम किया। दिन महीने गुजरने लगे, मेरी सेक्स लाइफ भी प्रभावित होने लगी, हमारे बीच अब बातें कम होती।


" पति के चरित्र की पहचान पत्नी की बीमारी में और पत्नी के चरित्र की पहचान पति की गरीबी में होती है"


मुझसे बुरा हाल मेरी जेठ की फैमिली का था... जेठानी मेरी इस आर्थिक संकट की वजह से लगाई गई अनावश्यक, बेफिजूल के खर्चो पर रोक को बर्दाश्त नही कर पाई और जेठ से लड़ झगड़ कर अपने मायके में रहने लगी। और जेठ, ससुर के खिलाफ 498, 498A का मुकदमा दर्ज करवा दिया जेठ जी, जेल जाने के डर से मानसिक संतुलन खो बैठे और दिन भर पागलो की तरह घूमते रहते।


इसी तरह तीन साल गुजर गये मेरे ससुर, मेरे पति को होंसला देते कि ज्यादा चिंता मत करो सब कुछ ठीक हो जाएगा लेकिन ये उनका 'भ्रम' था क्योकि अब हमारी आर्थिक हालत ठीक नहीं इससे अधिक बुरी होने वाली थी।


साल 2020 पहला लॉक डाउन जिसने मेरे ससुर का 'भ्रम' तोड़ कर उन्हे सत्यता से परिचय करवा दिया और उनको अंदर से इतना घायल कर दिया कि उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया, जिससे वक्त से पहले VRS रिटरमेंट लेना पड़ा। अब पूरे घर की जिम्मेदारी मेरे पति के कंधे पर आ गयी। कारखाना तो बंद हो ही चुका था अब बंद कारखाने को बेंचने के अलावा कोई रास्ता नही बचा।


जैसे तैसे ये साल निकला तो अगले साल दूसरा लॉक डाउन, पहले लॉक डाउन ने ससुर को बिस्तर पर पटक दिया था लेकिन दूसरे लॉक डाउन ने उन्हे बिस्तर से उठा कर चिता पर लिटा दिया। आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो गयी और मेरी शादीशुदा जिंदगी भी।


कमाई का जरिया सिर्फ मेरी सास को मिलने वाली ससुर की पेंशन थी, मेरे पति और ज्यादा डिप्रेशन में रहने लगे और हमारे बीच कम हो चुकी बातचीत पूर्ण रूप से खतम हो गयी, एक कमरे, एक बिस्तर पर साथ साथ सोते हुए भी हम दोनों एक दूसरे की तरफ देखते तक नहीं थे। बेमतलब की छोटी छोटी सी बातों जैसे रात को 'पाद' मारने पर हमारे बीच झगड़े शुरु हो गये।

ऐसे ही दिन कट रहे थे मेरे पति सुबह से निकल जाते और देर रात तक घर आते। और एक सुबह जब मै सोकर उठी तो देखा मेरे पति मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे, मै भी उन्हे देख मुस्करा कर सुबह के नित्य कर्म से मुक्त होने बाथरूम में चली गई। नहा धोकर जब वापिस कमरे में आई तो मेरे पति वही बिस्तर पर बैठे हुए थे, उन्हे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरा ही इंतजार कर रहे हो और शायद कुछ कहना चाहते है।

बातचीत तो हमारे बीच खतम ही हो गयी थी तो मसला ये था कि बात की शुरवात कौन, कब और कैसे शुरु करे... मै अपने साड़ी ब्लाउस पहनने के बाद बिना अपने पति की ओर देखे, तोलिया से अपने बाल सुखाने लगी।

'पुरुष प्रधान समाज में पत्नियों का पति के सामने झुकना या हार मान लेना कोई नयी बात नही है।'

मै अपने पति से कहना तो चाहती थी कि ताल्लुक रखना है तो, झगडा कैसा..? ताल्लुक रखना ही नही, तो झगडा कैसा.." पत्नियों ने कभी नहीं मांगा अथाह प्रेम, उन्होंने बस ये चाहा है कि उनके हिस्से में आये प्रेम को बस प्रेम से उन्हें सौंप दिया जाये " लेकिन शायद मेरे होंठ ये कहने से डर रहे थे कि कही सुबह सुबह झगडा ना शुरू हो जाये।

कमरे में मौजूद पति पत्नी की खामोशी को बच्चो ने आकर खतम किया, दोनों बच्चे एक साथ कमरे में आये, बेटी बाप से और बेटा माँ से आकर चिपक गया ....।

बेटा शौर्य मै आज रात को 'दुबई' जा रहा हु

अपने पति के बेटे से कहे गये शब्दो को सुनकर मुझे जोर का झटका लगा.... मैने पलट कर उनकी ओर देखा वो मेरी ओर ही देख रहे थे, उनकी आँखों में आँसू थे। मैने अपने बच्चो से कहा तुम दोनों जाओ चाय नाश्ता करो।

साल डेढ़ साल की चुप्पी को मैने पल भर में तोड़ दिया..!इन शब्दो के साथ मेरा मौन व्रत टूटा

सुनो अब हमारे बीच क्या कुछ भी नही....??

वो बोले... है ना, गिले शिकवे, शिकायते और बिछड़ने का गम.....???

क्या मै इतनी बुरी हू जो मुझे छोड़कर जा रहे हो...?? बरसती आँखों से मैने सवाल किया।

नही;...रेखा, मै तुम्हे छोड़कर नही जा रहा हूँ, मै जिंदगी भर तुम्हारे साथ रहने के लिए ही तुम्हे छोड़कर जा रहा हूँ। मेरी आँखों के आँसू पौछते हुए वो बोले।

मतलब... मै समझी नही. . ???!

रेखा घर की हालत तो तुम्हे पता ही है, तीन चार साल से, मै बेकार घर पर बैठा रहता हूँ या फिर इधर उधर चप्पल चटकाता फिरता हूँ..... एक साल से ज्यादा हो गया हमारे बीच एक बात नही हुयी, हमारे झगड़े इतने बढ़ गये है कि मुझे डर लगता हैं कि जैसे भाभी, 'भाई साहब' को छोड़ गयी, तुम भी मुझे 'भाभी' की तरह छोड़ कर नही चली जाओ....?? बोलते बोलते मेरे पति का गला रुंध गया और वो सिसकने लगे।

मै : तो तुम यही रहकर कोई छोटा-मोटा काम शुरु क्यो नहीं कर लेते...???


मुझे नया व्यापार करने के लिए ज्यादा रुपए चाहिए। अभी दुबई में नौकरी कर पैसा कमाने के लिए ही मै जा रहा हूँ, छे महीने से एजेंट को बोल कर रखा था। कल रात ही उसने मुझे बताया कि एक कंपनी में नौकरी और वीज़ा मिल गया है, आज की दिल्ली से flight है।


मै : तुम यहाँ रहकर ही कोई नौकरी क्यों नही कर लेते..??


वो : इस शहर में रहकर, मै नौकरी नहीं कर सकता???


क्यों. . ???


वो : जिसके कारखाने में 25-30 लोग नौकरी करते थे, वो खुद अब किसी और के कारखाने में नौकरी करे, बस यही बात मेरे दिल में दर्द पैदा कर देती हैं।


मेरे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था आखिर में क्या बोलू, मेरे पति की कही बात सच थी,


फिर भी आप....... इतनी दूर इंडिया के बाहर जाने की क्या जरूरत है.. यही बंबई, दिल्ली में भी नौकरी मिलती होगी।


मिलती है लेकिन पैसे दुबई जितने नही मिलते मुझे ज्यादा और जल्द से जल्द पैसा कमाना है, दुबई की एक दीनार यहाँ के 28 रु के बराबर है। वैसे भी दुबई, बंबई से पास है, हिसार से दिल्ली तीन घंटे, दिल्ली से दुबई दो घंटे का रास्ता है, वो समझाते हुए मुझसे बोले।


उनकी बातों से मेरा मन हल्का तो हुआ था लेकिन दिल में एक डर था।


मै तुम्हारे बिना कैसे जिंदा रहूँगी..???


मेरे गाल को प्यार से चूमते हुये वो बोले रेखा बस एक साल की बात है, एक साल की जुदाई और जिंदगी भर का साथ...!


उसी शाम को मेरे पति दुबई चले गए, दिन बीतने लगे हमारी फोन पर 'व्हाट्स अप' मे रोज बात होती थी, उनका बीच में आना संभव नहीं था. हर रात पति के आलिंगन को तरसती, मैं अपने को रोकती, संभालती रही. फिर बातचीत का सिलसिला थमने लगा अब हफ्ते में एक दो बार ही बात होती..... एक शादीशुदा स्त्री का अकेलापन एक कुंवारी लड़की से ज्यादा खतरनाक होता है, रात को बिस्तर पर तन्हा करवट बदलते हुए अपने को जीवन के अन्य कामों में व्यस्त रखते हुए समझाती रही कि यह तन, यह मन पति के लिए है. किसी की छाया पड़ना, किसी के बारे में सोचना भी गुनाह है. लेकिन यह गुनाह कर गयी मै...!

बच्चे भी बड़े हो गये थे अपने काम खुद ही कर लेते.... दिन भर घर में अकेली सोने से अच्छा मैने अपनी एक सहेली अर्चना के साथ मिल कर 'स्व सहायता समूह' से लोन लेकर अर्चना के साथ मिलकर उसके घर पर टिफिन सेंटर खोल लिया।

हम बाहर से आये हुये अकेले रहने वाले स्टूडेंट और जॉब वाले लड़के लड़किया को खाने का टिफिन सप्लाई करते कभी कभी लड़के लड़किया सेंटर पर भी आकर खाना खाते।

टिफिन सेंटर अब अच्छा चलने लगा था। एक दिन 'विकास' आया. बैंक में जॉब करता था. अकेला ही रहता था. खूबसूरत बांका जवान, गोरा रंग, 6 फुट के लगभग हाइट. उस की आंखें जब जब मुझ से टकरातीं, मेरे दिल में तूफान सा उठने लगता. रात का खाना वह हमारे टिफिन सेंटर पर आकर ही खाता और दिन का बैंक में.....!

विकास अकसर मुझ से हंसीमजाक करता. मुझे यू ट्यूब में नये नये डिशेज का वीडियो दिखाता। हमेशा मेरे हाथों की उंगलियों की तारिफ करता, कभी कभी खाने में जानबूजकर नुस्ख निकाल कर छेड़छाड़ करता और यही हंसीमजाक, छेड़छाड़ मुझे विकास के बहुत करीब ले आई.

इतवार के दिन टिफिन सप्लाई कम होती थी ज्यादा तर स्टूडेंट और जॉब वाले वीकेंड पर अपने गाँव चले जाया करते थे उसी दिन दोपहर में विकास सेंटर पर ही खाना खाने आया। अर्चना कहीं गई हुई थी काम से. विकास ने खाना खा लिया. ढेर सारी बातें हुईं और बातों ही बातों में विकास ने कह दिया, ‘मैं तुम से प्यार करता हूं.’

मुझे उसे डांटना चाहिए था, मना करना चाहिए था. लेकिन नहीं, मैं भी जैसे बिछने के लिए तैयार बैठी थी. मैंने कहा, ‘विकास, मैं शादीशुदा हूं.’

विकास ने तुरंत कहा, ‘क्या शादीशुदा औरत किसी से प्यार नहीं कर सकती? ऐसा कहीं लिखा है? क्या तुम मुझ से प्यार करती हो?’

मैं ने कहा, ‘हां.’ और उस ने मुझे अपनी बांहों में समेट लिया. फिर मैं भूल गई कि मैं दो बच्चो की मां हूं. मैं किसी की ब्याहता हूं. जिस के साथ जीने मरने की मैंने अग्नि के समक्ष सौगंध खाई थी. लेकिन यह दिल का बहकना, विकास की बांहों में खो जाना, उस ने मुझे सबकुछ भुला कर रख दिया. दिन रात किसी 16 साल की लड़की की तरह हरियांवि रोमांटिक गाने गुनगुनाती।


"मैं तन्नै सूं प्यारी, तू प्यारा मेरा मैं तेरी गिरी, तू छुआरा मेरा मैं तन्नै सूं प्यारी, तू प्यारा मेरा मैं तेरी गिरी तू छुआरा मेरा, जी तो मेरा इसा करै, हाय जणू काच्चे नै खा ल्यूं तनै हाय रै तू छाती कै लाग्या रहिये तावीज बणा ल्यूं तनै हाँ छाती कै लाग्या रहिये तावीज बणा ल्यूं तनै"


मैं और विकास अकसर मिलते. प्यारभरी बातें करते. विकास ने एक कमरा किराए पर लिया हुआ था. जब अर्चना ने पूछताछ करनी शुरू की तो मैं विकास के साथ बाहर मिलने लगी. कभी उस के घर पर, कभी किसी होटल में तो कभी कहीं हिल स्टेशन पर. और सच कहूं तो मैं उसे अपने घर पर भी ले कर आई थी.


यह गुनाह इतना खूबसूरत लग रहा था कि मैं भूल गई कि जिस बिस्तर पर मेरे पति संजय का हक था, उसी बिस्तर पर मैं ने बेशर्मी के साथ विकास के साथ कई रातें गुजारीं. विकास की बांहों की कशिश ही ऐसी थी कि संजय के साथ बंधे विवाह के पवित्र बंधन मुझे बेडि़यों की तरह लगने लगे.


मैं ने एक दिन विकास से कहा भी कि क्या वह मुझ से शादी करेगा? उस ने हंस कर कहा, ‘मतलब यह कि तुम मेरे लिए अपने पति को छोड़ सकती हो. इस का मतलब यह भी हुआ कि कल किसी और के लिए मुझे भी.’


मुझे अपने बेवफा होने का एहसास विकास ने हंसी हंसी में करा दिया था. एक बार विकास के आगोश में मैं ने शादी का जिक्र फिर छेड़ा. उस ने मुझे चूमते हुए कहा, ‘शादी तो तुम्हारी हो चुकी है. दोबारा शादी क्यों? बिना किसी बंधन में बंधे सिर्फ प्यार नहीं कर सकतीं.’


‘मैं एक स्त्री हूं. प्यार के साथ सुरक्षा भी चाहिए और शादी किसी भी स्त्री के लिए सब से सुरक्षित व्यवस्था है.’


यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था.


‘विकास, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम बच्चो को अपने साथ रख लें?’


विकास ने हंसते हुए कहा, ‘क्या तुम्हारे बच्चे, मुझे अपना पापा मानेंगे? कभी नहीं. क्या मैं उन्हे, उन के बाप जैसा प्यार दे सकूंगा? कभी नहीं. क्या तलाक लेने के बाद अदालत बच्चे तुम्हें सौंपेगी? कभी नहीं. क्या वह बच्चे मुझे हर घड़ी इस बात का एहसास नहीं दिलायेगे कि तुम पहले किसी और के साथ…किसी और की निशानी…क्या बच्चो में तुम्हें अपने पति की यादें…देखो रेखा, मैं तुम से प्यार करता हूं. लेकिन शादी करना तुम्हारे लिए तब तक संभव नहीं जब तक तुम अपना अतीत पूरी तरह नहीं भूल जातीं.


‘अपने मातापिता, भाईबहन, सासससुर, जेठ जेठानी, अपनी शादी, अपनी सुहागरात, अपने पति के साथ बिताए पल पल. यहां तक कि अपने बच्चे भी क्योंकि यह बच्चे सिर्फ तुम्हारे नहीं है. इतना सब भूलना तुम्हारे लिए संभव नहीं है.

‘कल जब तुम्हें मुझ में कोई कमी दिखेगी तो तुम अपने पति के साथ मेरी तुलना करने लगोगी, इसलिए शादी करना संभव नहीं है. प्यार एक अलग बात है. किसी पल में कमजोर हो कर किसी और में खो जाना, उसे अपना सबकुछ मान लेना और बात है लेकिन शादी बहुत बड़ा फैसला है. तुम्हारे प्यार में मैं भी भूल गया कि तुम किसी की पत्नी हो. किसी की मां हो. किसी के साथ कई रातें पत्नी बन कर गुजारी हैं तुम ने. यह मेरा प्यार था जो मैं ने इन बातों की परवा नहीं की. यह भी मेरा प्यार है कि तुम सब छोड़ने को राजी हो जाओ तो मैं तुम से शादी करने को तैयार हूं. लेकिन क्या तुम सबकुछ छोड़ने को, भूलने को राजी हो? कर पाओगी इतना सबकुछ?’ विकास कहता रहा और मैं अवाक खड़ी सुनती रही.

‘यह भी ध्यान रखना कि मुझ से शादी के बाद जब तुम कभी अपने पति के बारे में सोचोगी तो वह मुझ से बेवफाई होगी. क्या तुम तैयार हो?’

‘तुम ने मुझे पहले क्यों नहीं समझाया ये सब?’

‘मैं शादीशुदा नहीं हूं, कुंआरा हूं. तुम्हें देख कर दिल मचला. फिसला और सीधा तुम्हारी बांहों में पनाह मिल गई. मैं अब भी तैयार हूं. तुम शादीशुदा हो, तुम्हें सोचना है. तुम सोचो. मेरा प्यार सच्चा है. मुझे नहीं सोचना क्योंकि मैं अकेला हूं. मैं तुम्हारे साथ सारा जीवन गुजारने को तैयार हूं लेकिन "वफा के वादे के साथ."

मैं रो पड़ी. मैं ने विकास से कहा, ‘तुम ने पहले ये सब क्यों नहीं कहा.’

‘तुम ने पूछा नहीं.’

‘लेकिन जो जिस्मानी संबंध बने थे?’

‘वह एक हम दोनों की तन्हाई का पल था. वह, वह समय था जब तुम कमजोर पड़ गई थीं. मैं कमजोर पड़ गया था. वह पल अब गुजर चुका है. उस तन्हाई के पल में हम प्यार कर बैठे. इस में न तुम्हारी खता है न मेरी. दिल पर किस का जोर चला है. लेकिन अब बात शादी की है.’

विकास की बातों में सचाई थी. वह मुझ से प्यार करता था या मेरे जिस्म से बंध चुका था. जो भी हो, वह कुंआरा था. तनहा था. उसे हमसफर के रूप में कोई और न मिला, मैं मिल गई. मुझे भी उन तन्हाई के पलों को भूलना चाहिए था जिन में, मैंने अपने विवाह को अपवित्र कर दिया. मैं परपुरुष के साथ सैक्स करने के सुख में, देह की तृप्ति में ऐसी उलझी कि सबकुछ भूल गई. अब एक और सब से बड़ा कदम या सब से बड़ी बेवकूफी कि मैं अपने पति से तलाक ले कर विकास से शादी कर लूं. क्या करूं मैं, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था.

हां, मैं एक साधारण नारी हू, मुझ पर भी किसी का जादू चल सकता है. मैं भी किसी के मोहपाश में बंध सकती हूं, ठीक वैसे ही जैसे कोई बच्चा नया खिलौना देख कर अपने पास के खिलौने को फेंक कर नए खिलौने की तरफ हाथ बढ़ाने लगता है.

नहीं…मैं कोई बच्ची नहीं. पति कोई खिलौना नहीं. घरपरिवार, शादीशुदा जीवन कोई मजाक नहीं कि कल दूसरा मिला तो पहला छोड़ दिया. यदि अहल्या को अपने भ्रष्ट होने पर पत्थर की शिला बनना पड़ा तो मैं क्या चीज हूं. मैं भी एक औरत हूं, मेरे भी कुछ अरमान हैं. इच्छाएं हैं. यदि कोई अच्छा लगने लगे तो इस में मैं क्या कर सकती हूं.

मैं ने विकास से पूछा, ‘मेरी जगह तुम होते तो क्या करते?’

विकास हंस कर बोला, ‘ये तो दिल की बातें हैं. तुम्हारी तुम जानो. यदि तुम्हारी जगह मैं होता तो शायद मैं तुम्हारे प्यार में ही न पड़ता या अपने कमजोर पड़ने वाले क्षणों के लिए अपने आप से माफी मांगता. पता नहीं, मैं क्या करता?’

विकास ये सब कहीं इसलिए तो नहीं कह रहा कि मैं अपनी गलती मान कर वापस चली जाऊं, सब भूल कर. फिर जो इतना समय इतनी रातें विकास की बांहों में बिताईं. वह क्या था? प्यार नहीं मात्र वासना थी? दलदल था शरीर की भूख का? कहीं ऐसा तो नहीं कि विकास का दिल भर गया हो मुझ से, अपनी हवस की प्यास बुझा ली और अब विवाह की रीतिनीति समझा रहा हो? यदि ऐसी बात थी तो जब मैं ने कहा था कि मैं ब्याहता हूं तो फिर क्यों कहा था कि किस किताब में लिखा है कि शादीशुदा प्यार नहीं कर सकते?

विकास ने आगे कहा, ‘किसी स्त्री के आगोश में किसी कुंआरे पुरुष का पहला संपर्क उस के जीवन का सब से बड़ा रोमांच होता है. मैं न होता कोई और होता तब भी यही होता. हां, यदि लड़की कुंआरी होती, अकेली होती तो इतनी बातें ही न होतीं. तुम उन क्षणों में कमजोर पड़ीं या बहकीं, यह तो मैं नहीं जानता लेकिन जब तुम्हारे साथ का साया पड़ा मन पर, तो प्यार हो गया और जिसे प्यार कहते हैं उसे गलत रास्ता नहीं दिखा सकते.’

मैं रोने लगी, ‘मैं ने तो अपने हाथों अपना सबकुछ बरबाद कर लिया. तुम्हें सौंप दिया. अब तुम मुझे दिल की दुनिया से दूर हकीकत पर ला कर छोड़ रहे हो.’

‘तुम चाहो तो अब भी मैं शादी करने को तैयार हूं. क्या तुम मेरे साथ मेरी वफादार बन कर रह सकती हो, सबकुछ छोड़ कर, सबकुछ भूल कर?’ विकास ने फिर दोहराया.

इधर, संजय, मेरे पति वापस आ गए. मैं अजीब से चक्रव्यूह में फंसी हुई थी. मैं क्या करूं? क्या न करूं? संजय के आते ही घर के काम की जिम्मेदारी ली. एक पत्नी बन कर रहना. मुझे मां और पत्नी दोनों का फर्ज निभाना था. मैं निभा भी रही थी. और ये निभाना किसी पर कोई एहसान नहीं था. ये तो वे काम थे जो सहज ही हो जाते थे.

लेकिन टिफिन सेंटर पर जाते ही विकास आ जाता या मैं उस से मिलने चल पड़ती, दिल के हाथों मजबूर हो कर.

मैं ने विकास से कहा, ‘‘मैं तुम्हें भूल नहीं पा रही हूं.’’

‘‘तो छोड़ दो सबकुछ.’’

‘‘मैं ऐसा भी नहीं कर सकती.’’

‘‘यह तो दोतरफा बेवफाई होगी और तुम्हारी इस बेवफाई से होगा यह कि मेरा प्रेम किसी अपराधकथा की पत्रिका में अवैध संबंध की कहानी के रूप में छप जाएगा. तुम्हारा पति तुम्हारी या मेरी हत्या कर के जेल चला जाएगा. हमारा प्रेम पुलिस केस बन जाएगा,’’ विकास ने गंभीर होते हुए कहा.

मैं भी डर गई और बात सच भी कही थी विकास ने. फिर वह मुझ से क्यों मिलता है? यदि मैं पूछूंगी तो हंस कर कहेगा कि तुम आती हो, मैं इनकार कैसे कर दूं. मैं भंवर में फंस चुकी थी. एक तरफ मेरा हंसताखेलता परिवार, मेरी सुखी विवाहित जिंदगी, मेरा पति, मेरे बच्चे और दूसरी तरफ उन तन्हाई के पलों का साथी विकास जो आज भी मेरी कमजोरी है.

इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. एक दिन पति को भनक लग ही गयी....!

अब क्या होगा? मै सोच रही थी, क्या कहेगा पति? क्यों किया तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा? क्या कमी थी मेरे प्यार में? क्या नहीं दिया मैं ने तुम्हें? घरपरिवार, सुखी संसार, पैसा, इज्जत, प्यार किस चीज की कमी रह गई थी जो तुम्हें बदचलन होना पड़ा? क्या कारण था कि तुम्हें चरित्रहीन होना पड़ा? मैं ने तुम से प्यार किया. शादी की. हमारे प्यार की निशानी हमारे दो प्यारे बच्चे. अब क्या था बाकी? सिवा तुम्हारी शारीरिक भूख के. तुम पत्नी नहीं वेश्या हो, वेश्या.


और उस रात मेरे पति शाराब पी कर आये गुस्से में कहा " बोलती थी तुम्हारे बिना मर जाऊंगी, मरी तो नही..पर मरवा खूब रही हो.... ।

पापा की तेज आवाज सुनकर बच्चे भी कमरे में झांकने लगे, बच्चो को यू झांकता देख उन्होंने बच्चों के सर पर हाथ फेरते हुए उन्हे वापस कमरे में जाकर सोने के लिए कहा।

मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे वो मेरे करीब आये और बोले " रेखा बफादार बीवी मर्द की सबसे बड़ी दोलत होती है, तुम्हारे अलावा शायद अब मै किसी और से तुम जैसा प्यार कर पाऊ, पर हा, ये यकीन है मुझे, तुम जितना दुखी अब कोई और नही कर पायेगा मुझे...!

इक बार मेरी बात तो सुनिये...!

ना.... तुम मेरी बात सुनो ‘‘रहना है तो तरीके से रहो वरना तलाक लो और जहां मुंह काला करना हो करो. दो में से कोई एक चुन लो, प्रेमी या पति. दो नावों की सवारी तुम्हें डुबो देगी और हमें भी.’’

उन्होंने दोटूक कहा था,

मैं शर्मिंदा थी. मैं गुनाहगार थी. मैं चुप रही. मैं सुनती रही. रोती रही.

अगले दिन मै फिर विकास से मिली...

मै तुम से शादी नहीं कर सकता. मैं एक ऐसी औरत से शादी करने की सोच भी नहीं सकता जो दोहरा जीवन जीए. तुम मेरे लायक नहीं हो. आज के बाद मुझ से मिलने की कोशिश मत करना. वे तन्हाई के पल मेरी पूरी जिंदगी को तन्हा बना कर खतम कर देंगे. आज के बाद आईं तो बेवफा कहलाओगी दोनों तरफ से. उन तन्हाई के पलों को भूलने में ही भलाई है.’’ मैं चली आई. उस के बाद कभी नहीं मिली विकास से.....!

अर्चना ने ही एक बार बताया कि वह शहर छोड़ कर चला गया है. हां, अपनी बेवफाई, चरित्रहीनता पर अकसर मैं शर्मिंदगी महसूस करती रहती हूं. खासकर तब जब कोई वफा का किस्सा निकले और मैं उस किस्से पर गर्व करने लगूं तो पति की नजरों में कुछ हिकारत सी दिखने लगती है. मानो कह रहे हों, तुम और वफा. पति सभ्य थे, सुशिक्षित थे और परिवार के प्रति समर्पित.

कभी कुलटा, चरित्रहीन, वेश्या नहीं कहा. लेकिन अब शायद उन की नजरों में मेरे लिए वह सम्मान, प्यार न रहा हो. लेकिन उन्होंने कभी एहसास नहीं दिलाया. न ही कभी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह छिपाया.

मैं सचमुच आज भी जब उन तन्हाई के पलों को सोचती हूं तो अपनेआप को कोसती हूं. काश, उस क्षण, जब मैं कमजोर पड़ गई थी, कमजोर न पड़ती तो आज पूरे गर्व से तन कर जीती. लेकिन क्या करूं, हर गुनाह सजा ले कर आता है. मैं यह सजा आत्मग्लानि के रूप में भोग रही थी. विकास जैसे पुरुष बहका देते हैं लेकिन बरबाद होने से बचा भी लेते हैं.

स्त्री के लिए सब से महत्त्वपूर्ण होती है घर की दहलीज, अपनी शादी, अपना पति, अपना परिवार, अपने बच्चे. शादीशुदा औरत की जिंदगी में ऐसे मोड़ आते हैं कभी कभी. उन में फंस कर सबकुछ बरबाद करने से अच्छा है कि कमजोर न पड़े और जो भी सुख तलाशना हो, अपने घरपरिवार, पति, बच्चों में ही तलाशे. यही हकीकत है, यही रिवाज, यही उचित भी है.


समाप्त
Archna se galti hui. Fir bhi us se hamdardi mahesus ho rahi he. Uske pas koi rasta na bacha ho. Lekin sara kusur to archna ka nahi.

Kher jane do. Jo me aapki story padhkar mahesus kar rahi hu. Vo jata nahi paungi.

Aap amezing ho. Bahot badhiya story he.
 
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