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Shetan devi jeeकौमार्य (virginity)
कौमार्य का मतलब तो आप सब समझ ही गए होंगे. एक लड़की का कौमार्य कब भंग होता है. या किसके साथ होता है. ये उसके लिए बहोत महत्व रखता है. किसी दोस्त या प्रेमी से, या फिर अपने पति से. कइयों के नसीब मे तो इन तीनो के आलावा एक और तरीके से भी कौमार्य भंग होता है. बलात्कार. पर मेरा विषय बलात्कार नहीं है. एक महत्व पूर्ण बात ये भी है की कौमार्य भंग कहा होता है. कोई खास जगह. शादी से पहले हुआ तो किसी घर या होटल मे. या फिर कोई खेत या झाडीयों मे.
अपने कौमार्य को बचाकर रखा तो शादी के बाद सुहाग सेज पर. हमारे कल्चर के हिसाब से तो यही बेस्ट जगह है. सुहाग सेज. अब मर्दो की फितरत की बात करें तो मर्द भी एक तमन्ना रखते होंगे की जब उनकी शादी हो. और उनकी पत्नी जब शुहागरात को उनका साथ निभाए तब ही उनका कौमार्य भंग हो. तमन्ना रखना भी वैसे बुरा नहीं है. पर मेरी मानो तो शरीर का कौमार्य भंग हो ना हो. अपनी सोच का कौमार्य भंग होना बहोत जरुरी है.
तो चलिए मुख्य कहानी पर चलते है. सुहाग सेज पर बैठी कविता अपने पति का इंतजार कर रही थी. शादी के बाद पहली रात. घुंघट मे बैठी कविता कभी तो मंद मंद मुश्कुराती. तो कभी गहेरी सोच मे डूब जाती. कविता अपने पति के साथ हुई पहली मुलाक़ात को याद कर रही थी. कुछ 2 साल पहले 22 साल की कविता अपने पिता दया शंकर शुक्ला और माँ सरिता शुक्ला के साथ माता के दर्शन कर के इलाहबाद के लिए ट्रैन मे बैठे हुए थे. 48 साल के दया शंकर शुक्ला PWD मे कार्यरत थे. वही 45 साल की माँ सरिता शुक्ला घरेलु महिला थी. उस वक्त उनकी एक लौती बेटी कविता शुक्ला 22 साल की M.S.C 1st year मे थी.
3rd क्लास के विंडो शीट पर बैठी कविता विंडो से बाहर देख रही थी. अचानक कोई आया. और उसके सामने वाली शीट पर बैठ गया. स्मार्ट हैंडसम गोरा चिट्टे चहेरे वाला वो नौजवान फौजी ही लग रहा था. छोटे छोटे बाल और क्लीन शेव उसकी पहचान बता ही रही थी. कविता ने उसपर नजर डाली. वो अपना बैग शीट के निचे घुसा रहा था. जिसपर टैग लगा हुआ था. टैग पर साफ अंग्रेजी शब्दो मे लिखा हुआ था. सिपाही वीरेंदर पांडे.
साथ मे पेट नेम भी लिखा हुआ था. वीर. कविता के फेस पर तुरंत ही स्माइल आ गई. तभी वीर की नजर भी कविता पर गई. और वो एक टक कविता को देखता रहे गया. कविता ने अपनी भंवरे चढ़ाकर वीर से हिसारो मे पूछा. क्या देख रहे हो जनाब. वीर बहोत शर्मिला निकला. उसने तुरंत ही अपनी नजरें हटा ली. पर कविता खुद उस से नजर नहीं हटा पा रही थी. ट्रैन चाल पड़ी. ट्रेन के सफर मे अक्सर मुशाफिर दोस्त बन ही जाते है. कविता के माँ बाप ने भी वीर का इंटरव्यू चालू कर दिया. बेटा कहा रहते हो. क्या करते हो. और घर मे कौन कौन है. वगेरा वगेरा........तब कविता को पता चला की जनाब बनारस के है.
मतलब कविता के क्षेत्र के ही रहने वाले. काफ़ी वक्त बीत गया. वीर महाशय जब भी नजर चुरा कर कविता को देखते कविता उन्हें पकड़ ही लेती. सायद वीर जनाब कुछ ज्यादा ही शर्मीले थे. इस लिए वो खड़ा हुआ और वहां से टॉयलेट की तरफ चाल दिया. कुछ मिनट बाद कविता भी टॉयलेट के पास आ गई. और वीर को घेर लिया. डोर के पास ही कविता जब सामने खड़ी हो गई तो वीर का थूक निगलना भी मुश्किल हो गया.
कविता : क्या आप हमें देख रहे थे???
वीर थोडा जैसे घबरा गया हो. शरीफ इंसान अक्सर बदनामी से डरते है. वैसा डर वीर को भी लगने लगा.
वीर : ननन... नहीं तो. आआ आप को सायद गलत फेमि हुई है.
वीर को थोडा सा घभराया देख कविता समझ गई की जनाब शरीफ इंसान है. कविता हस पड़ी.
कविता : (स्माइल) हम जानते है पांडे जी. हम बहोत सुन्दर है. पर ऐसे शर्माइयेगा तो कैसे कम चलेगा. ऐसे तो लड़की हाथ से निकाल जाएगी.
कविता के बोलने का अंदाज़ बड़ा शरारती था. वीर की हालत देख कर कविता को हसीं आने लगी. कविता का ऐसा बोल्ड रूप देख कर वीर की जुबान ही हकला गई.
वीर : हमने... हमने क्या किया????
कविता : अरे यही तो.... यही तो बात है की आप कुछ कर नहीं रहे. अरे कुछ कीजिये पांडे जी. जब लड़की पसब्द है तो उनके पापा से बात कीजिये.
वीर समझ ही नहीं पा रहा था. केसी लड़की है. खुद की शादी की बात खुद ही कर रही है. पर नजाने दोनों मे क्या कॉम्बिनेशन था. वीर को कविता का ये अंदाझ बहोत पसंद भी आ रहा था. लेकिन वीर सच मे बहोत शर्मिला था. वो 10 पास करते ही फौज मे भर्ती हो गया. ट्रैन मे कविता से उस मुलकात के वक्त वो भी 22 साल का ही था. पिता सत्येंद्र पांडे का एक लौता बेटा. सतेंद्र पांडे 49 साल के थे. एक बेटी बबिता 18 साल की. बबिता के वक्त ही उनकी पत्नी उर्मिला का देहांत हो गया. उन्होंने दूसरी शादी नहीं की. वीर जैसे कविता की बात समझ ना पाया हो. वो कविता को देखते ही रहे गया. कविता ने भी अल्टीमेटम दे दिया.
कविता : देखिये कल दोपहर तक का वक्त है आप के पास. चुप चाप अपने घर का पता फोन नंबर कागज पर लिख के दे दीजिये. हम भी शुक्ला है. समझे.आगे हम संभल लेंगे.
कविता बस वीर की आँखों मे देखते हुए मुश्कुराती वहां से चली गई. रास्ते भर दोनों की नजरों ने एक दूसरे की नजरों से कई बार मिली. रात सोती वक्त भी दोनों ऊपर वाली शीट पर थे. पूरी रात ना वीर सो पाया ना कविता. दोनों ही अपनी अपनी शीट पर एक दूसरे की तरफ करवट किये एक दूसरे को देखते ही रहे. रात मे जब सब सो गए तब दोनों ने बाते भी बहोत की. बाते क्या. कविता पूछती रही और वीर छोटे छोटे जवाब देता गया. शर्मिंले वीर ने बस प्यार का इजहार नहीं किया. पर ये जरूर जाता दिया की उसे भी प्यार है.
पर सुबह मुख्य स्टेशन से पहले जब वीर लखनऊ ही उतरने लगा तो कविता को झटकासा लगा. वीर बनारस का रहने वाला था. पर अपने पिता और बहन के साथ लखनऊ मे बस गया था. शहर राजधानी मे अपना खुद का मकान बना लिया था. कविता का दिल मानो टूट ही गया. जाते वीर से मिलने वो भी डोर तक आ ही गई. दोनों की आंखे जैसे उस जुदाई से दुखी हो. जाते वीर से कविता ने आखरी सवाल पूछ ही लिया. पर इस बार अंदाज़ शरारती नहीं भावुक था.
कविता : कुछ गलती हो जाए तो माफ कीजियेगा पांडे जी. वो क्या है की हम बोलती बहोत ज्यादा ही है. हम बस इतना जानती है की आप हमें बहोत अच्छे लगे. पर आप ने ये नहीं बताया की हम आप को पसंद है या नहीं.
कोमल बड़ी उमीदो से वीर के चहेरे को देख रही थी.
कविता : (भावुक) फ़िक्र मत कीजिये पांडेजी. ये जरुरी तो नहीं की हमें आप पसंद हो तो हम भी आप को पसंद आए होंगे. आप तो बहोत शरीफ हो. (फीकी स्माइल) और हम तो बस ऐसे ही है.
वीर के फेस पर भी स्माइल आ गई. वीर भी ये समझ ही गया की कविता बिंदास है. करेक्टर लेस नहीं. जो दिल मे है. वही जुबान पर. अगर उसका साथ मिला तो जीवन मे खुशियाँ साथ साथ ही रहेगी. हस्ते खेलते जिंदगी बीतेगी. वीर ने बस एक कागज़ कविता की तरफ किया और चल दिया. कविता उसे आँखों से ओझल होने तक देखती ही रही. ओझल होने से पहले वीर रुक कर मुड़ा भी.
और दोनों ने एक दूसरे को बाय भी किया. पर उस वक्त बिछड़ते नहीं तो दोबारा कैसे मिलते. कविता ने जब उस कागज़ को देखा. उसमे सिर्फ गांव का ही नहीं शहर के घर का भी पता लिखा हुआ था. मोबाइल उस वक्त नहीं हुआ करते थे. पर घर के लैंडलाइन के नंबर समेत रिस्तेदारो के लिंक तक लिखें थे. किस के जरिये कैसे कैसे रिस्ता लेकर वीर के घर आया जाए. अलाबाद के नामचीन पंडित से लेकर बनारस के नामचीन पंडित तक.
रिस्ता पक्का करवाने का पूरा लिंक था. कविता बोलने मे बेबाक मुहफट्टी. वो पीछे मुड़ी सीधा अपनी शीट की तरफ. पर बैठने के बजाय अपने पापा के सामने आकर खड़ी हो गई.
कविता : (शारारत ताना) आप को बेटी की फिकर है या नहीं. घर मे जवान बेटी कवारी बैठी है. और आप हो की तीर्थ यात्रा कर रहे हो.
दयाशंकर बड़ी हेरत से कविता को देखने लगे. देख तो सरिता देवी भी रही थी. मुँह खुला और आंखे बड़ी बड़ी किये. अब ये डायलॉग रोज कई बार दयाशंकर अपनी पत्नी सरिता से सुन रहे थे. पर आज बेटी ने वही डायलॉग अपने ही बाप से बोला तो जोर का झटका जोर से ही लगा.
सरिता : (गुस्सा ताना) मे ना कहती थी. लड़की हाथ से निकले उस से पहले हाथ पिले कर दो. अब भुक्तो.
दयाशंकर अपनी बेटी को अच्छे से जनता भी था. और समझता भी था. भरोसा भी था. पर बेटी के मज़ाक पर ना हसीं आ रही थी ना चुप रहा जा रहा था.
कविता : (सरारत ताना स्माइल) सुन रहे हो शुक्ला जी. सरिता देवी क्या कहे रही है. अब भी देर नहीं हुई. जल्दी बिटिया के हाथ पिले करिये और दफा करिये.
अपनी बेटी के मुँह से अपना नाम सुनकर सरिता देवी तो भड़क ही गई.
सरिता : (गुस्सा ताना) हाय राम.... माँ बाप का नाम तो ऐसे ले रही है. जैसे हम इसके कॉलेज मे पढ़ने वाले दोस्त हो. अब भुक्तो.
सरिता देवी को लगा अब दयाशंकर कविता को डांट लगाएंगे. पर सरिता देवी की बात को दोनों बाप बेटी ने कोई तवजुब नहीं दिया. कविता ने वही कागज़ का टुकड़ा अपने पापा की तरफ बढ़ाया. पापा तो कभी कागज़ को देखते तो कभी कविता को. बाप और बेटी दोनों मे बाप बेटी का रिस्ता कम दोस्ती का रिस्ता ज्यादा था. बेटी रुसवा नहीं हुई और उस छिपे हुए लव को अरेंज मैरिज मे बदल दिया गया.
रीती रीवाज और दान दहेज़ के साथ ही. घुंघट मे बैठी कविता अपने पति से हुई पहली मुलाक़ात को याद कर के घुंघट मे ही मुस्कुरा दी. की तभी डोर खुलने की आवाज आई. कविता थोड़ी संभल गई. पारदर्शी लाल साड़ी मे से सब धुंधला दिख रहा था. तभी उसे उनकी आवाज सुनाई दी.
वीर : हमें मालूम था. कोई और रोके ना रोके ये चुड़ैल हमारा रास्ता जरूर रोकेगी.
कविता समझ गई की वीर आ गया. और एक पुराने रिवाज़ के तहत प्यारी नांदिया नेक के लिए दरवाजे पर रस्ता रोके खड़ी है. जैसी भाभी वैसी ननंद. अपनी ननंद के साथ कुछ और लड़कियों की भी हसने की आवाज सुनाई दी.
बबिता : चलिए चुप चाप 10 हजार निकाल कर हमारे हाथ मे रखिये . नहीं तो.....
वीर : नेक मांग रही हो या हप्ता. ये लो ...
कविता को भी घुंघट मे हसीं आ गई. पति और ननंद की नोक झोक सुन ने मे माझा बड़ा आया.
बबिता : अह्ह्ह....
कविता ने धुंधला ही सही. पर देखा कैसे वीर ने अंदर आते वक्त बबिता की छोटी खींची. वीर रूम का डोर बंद करने ही वाला था की बबिता फिर बिच मे आ गई.
वीर : अब क्या है???
बबिता गाना गुन गुनाने लगी.
बबिता : (स्माइल) भैया जी के हाथ मे लग गई रूप नगर की चाबी हो भाभी....
वीर ने तुरंत ही बबिता को पीछे धकेला और डोर बंद कर दिया. कविता घुंघट मै बैठी जैसे अपने आप मे सिमट रही हो. वो घुंघट मै ही बैठी मुस्कुरा रही थी. वीर आया और उसके करीब आकर बैठ गया.
वीर : नया रिश्ता मुबारक हो कविताजी.
कविता हलका सा हसीं. और बड़ी ही धीमी आवाज मे बोली.
कविता : (स्माइल शर्म) आप को भी.
वीर खड़ा हुआ और रूम की एक तरफ चले गया. कविता को थोड़ी हेरत हुई. उसने सर उठाया. चोरी से घुंघट थोडा ऊपर कर के देखा. वीर अलमारी से कुछ निकालने की कोसिस मे था. वीर जैसे मुड़ा कविता ने झट से घुंघट ढका और वापस वैसे ही बैठ गई. वीर एक बार फिर कविता के पास आकर बैठ गया. वो बोलने मे थोडा झीझक रहा था. वीर के हाथ मे एक बॉक्स था. उसने अपना हाथ कविता की तरफ बढ़ाया.
वीर : वो.... मुँह दिखाई के लिए आप का तोफा....
कविता घुंघट मे ही धीमे से हसने लगी. उसकी हसीं की आवाज सुनकर वीर भी मुश्कुराने लगा. कविता बड़ी धीमी आवाज से बोली.
कविता : (स्माइल शरारत) क्यों जनाब आप ने हमें पहले कभी देखा नहीं क्या??
वीर : नहीं..... देखा तो है. मगर.....
जैसे वीर के पास जवाब तो है. पर बता नहीं पा रहा हो. वो चुप हो गया.
कविता : अच्छा उठाइये घुंघट. देख लीजिये हमें.
वीर : ऐसे कैसे उठा दे. आप ने भी तो वादा किया था.
वैसे तो जब उन दोनों को प्यार हुआ. शादी हुई. उस वक्त मोबाइल का जमाना नहीं था. पर घर के लैंडलाइन से बात हो जाती. वो भी बहोत कम. क्यों की वीर के घर के ड्राइंग रूम मे ही फ़ोन था. और वहां सब होते थे. वैसा ही माहौल तो कविता के घर का भी था. बहन बबिता ने अपने भाई वीर की मदद की थी. और दोनों मे बात हुई. तब कविता ने एक वादा किया था की वो शादी की पहेली रात कुछ ऐसा करेंगी. जो पहले कभी किसी दुल्हन ने ना किया हो.
वीर भी ये जान ने को बेताब था. और वो वक्त आ गया था. कविता अपने पाऊ सामने फॉल्ट किये थी. ऐसे ही घुंघट मे भी वो दोनों पाऊ मोड़ के अच्छे से बैठ गई.
कविता : कोई चीटिंग मत करियेगा पांडे जी. आंखे बंद कीजिये और आइये. हमारी गोद मे सर रखिये.
वीर ने स्माइल की. और थोडा आगे होते हुए लेट गया. उसने कविता की गोद मे अपना सर रख दिया. कविता ने अपनी आंखे खोली और मुश्कुराते हुए वीर को देखा. गोरा चहेरा, छोटी छोटी बंद आंखे. शेव की होने के कारण गोरे चहेरे पर थोडा ग्रीन ग्रीन सा लग रहा था. जो कविता को काफ़ी अट्रैक्टिव लग रहा था.बाल भी थोड़े से बड़े हुए थे. कविता ने बहोत प्यार से वीर के सर पर अपना हाथ घुमाया. वीर की आंखे बंद ही थी. कविता ने सच मे कुछ नया किया. वो वीर के सर को पकड़ कर झूक गई. अपने सुर्ख लाल होठो को वीर के हलके गुलाबी होठो से जोड़ दिया.
ये वीर के लिए तो एकदम नया ही एहसास था. उसकी जिंदगी की सबसे पहेली और शानदार किश. कविता ने कुल 1 मिनट ही किस की और वापस घुंघट कर लिया. चहेरा ना दिखे इस लिए पल्लू को सीने मे दबा दिया. मदहोश हुआ वीर जैसे किसी और दुनिया मे पहोच गया हो. कविता वीर की ऐसी हालत देख कर हलका सा हस पड़ी.
कविता : बस अब उठीये पांडेजी. अब बताइये? ऐसा पहले कभी किसी दुल्हन ने किया क्या.
वीर : (स्माइल) अब क्या हम अपनी आंखे खोल सकते है क्या???
कविता खिल खिलाकर फिर हस पड़ी. वो थोडा खुल गई.
कविता : (स्माइल) सब हमसे ही पूछ कर करियेगा क्या. खोल लीजिये आंखे.
वीर ने अपनी आंखे खोली तो ऊपर सामने कविता ही दिखी. पर घुंघट मे.
वीर : पता है कविता जी. हमने पहेली बार किसी की गोद मे अपना सर रखा है.
कविता समझ गई की वीर की माँ बचपन मे ही गुजर गई. वो माँ की ममता से वंचित है. सायद वो उस कमी को दूर कर सके. कविता ने एक बार फिर वीर के बालो मे अपना हाथ घुमाया. वीर की आंखे एक बार फिर बंद हो गई. वो क्या फील कर रहा होगा. ये कविता बखूबी समझ रही थी.
कविता : तो अब हर रोज़ हमारी गोद मे ही अपना सर रखा कीजियेगा. पर पांडेजी. आज हमारी पहेली रात है. घुंघट नहीं उठाइयेगा क्या???
वीर : क्या जरुरी है कविताजी???
कविता : (लम्बी सॉस) हम्म्म्म. फिर रहने दीजिये. हम भी वो पहली दुल्हन होंगी. जिसका चहेरा दूल्हा देखना ही नहीं चाहते.
वीर तुरंत उठ कर बैठ गया. वो घड़ी आ गई. जिसका वीर और कविता दोनों को ही इंतजार था. दोनों की दिलो की धड़कनो ने रफ़्तार पकड़ ली. जब वीर ने कविता का घुंघट आहिस्ता से ऊपर उठाया. वो खूबसूरत चहेरा जिस से वो नजर ही नहीं हटा पा रहा था. ये वही चहेरा था. जिसे पहेली मुलाक़ात ट्रैन मे देखा था. और मन ही मन कई कल्पनाए की थी. और आज सामने श्रृंगार और सोने के जेवरो मे सजधज कर कविता को शादी के लाल जोड़े मे देखा तो वीर कविता की तारीफ किये बगैर नहीं रहे पाया.
वीर : आप बहोत सुन्दर हो कविताजी.
कविता हलका सा हसीं. और आहिस्ता से सर ऊपर कर के वीर की आँखों मे देखा.
कविता : (स्माइल) बस सिर्फ सुन्दर??
वीर दए बाए देखने लगा. जैसे कोई उलझन मे हो. फिर एकदम से कविता की आँखों मे देखा.
वीर : देखिये कविता जी. बहोत कुछ है. जो सायद हम कहे नहीं पा रहे है. पर आप बहोत सुन्दर हो. बहोत बहोत बहोत..... सुन्दर.
कविता शर्मा कर हस पड़ी. वो समझ गई की वीर के दिल दिमाग़ पर सिर्फ कविता ही बसी हुई है. वीर कविता की तारीफ करने के चक्कर मे कविता को मुँह दिखाई का तोफा देना भूल गया था. कविता ने बतियाते हुए ही वीर के हाथो से वो छोटासा बॉक्स खिंच लिया. और बाते करते हुए उसे खोलने लगी.
कविता : (स्माइल) लगता है आप लड़कियों से ज्यादा बात नहीं करते. कभी कोई दोस्त नहीं बनी क्या???
वीर : नहीं... दरसल हम बॉयज स्कूल मे पढ़े है. वो भी सिर्फ 10th तक. फिर तो फौज मे ही चले गए. अब मन तो था की आप जैसी कोई दोस्त हो. तो भगवान ने आप से मिला दिया.
कविता वीर की बात पर हस दी. वो इंतजार कर रही थी. की वीर भी पूछे. की पहले कोई बॉयफ्रेंड था या नहीं. पर वीर ने पूछा ही नहीं. आगे बात भी नहीं हो पा रही थी. कैसे मामला आगे बढ़ता. कविता ही आगे बढ़ने का सोचती है. पर उसकी नजर उस बेडशीट पर गई. जो बिछी हुई थी.
कविता : ये आफ़ेद चादर कहे बिचाई गई है. ऐसे ख़ुशी के मौके पर तो कोई बढ़िया सी रंग बिरंगी बिछानी चाहिए थी ना .
वीर भी सोच मे पड़ गया. वो बताना चाहता था. पर थोडा हिचक रहा था.
वीर : सायद.... सायद वो खून होता हे ना. वो...
कविता समझ गई की कौमार्य (virginity) जाँचने के लिए ही सफ़ेद चादर बिछाई गई हे. कविता फिर भी जानबुचकर अनजान बनती है.
कविता : पर खून कहे निकलेगा. हम थोड़े ना कोई तलवारबाज़ी कर रहे है.
वीर : (हिचक) वो लड़की को पहेली बार होता है ना.
कविता को जैसे शर्मा आ रही हो. वो अपनी गर्दन निचे कर लेती है.
कविता : (हिचक) देखिये पांडे जी. हमें आप को सायद पहले ही बता देना चाहिए था. हमें प्लीज माफ कर दीजिये. दरसल शादी से पहले हमारा एक बॉयफ्रेंड था. और उसके साथ....
कविता बोल कर चुप हो गई. वो अपना सर ऊपर नहीं उठती.
वीर : तो फिर उस से आपने कहे शादी नहीं की. क्या आप अब भी उस से ही प्यार करती हो???
वीर ने पहली बार सीधा बेहिचक सवाल किया. कविता ने ना मे सर हिलाया.
कविता : नहीं दरसल वो धोखेबाज़ था. उसका कई लड़कियों से चक्कर था. हमने ही उसे छोड़ दिया.
वीर : तो क्या आप हमसे प्यार करती हो???
कविता ने सिर्फ हा मे सर हिलाया. और वो कुछ नहीं बोली.
वीर : कविता जी अगर हम ये कहे की आप पहले किस से प्यार करती थी. करती थी या नहीं. इस से हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा. आगे आप हमसे किस तरह रिस्ता बना ना चाहती है. हम बस यही जान ना चाहते है .
कविता हेरत मे पड़ गई. वीर का दिल कितना बड़ा है. यही वो सोचने लगी की. पता होने के बावजूद वीर आगे रिस्ता बना ना चाहते है.
कविता : अगर आप हमें उस गलती के लिए माफ करदे. और हमसे प्यार करियेगा. अपनी पत्नी स्वीकार कीजियेगा.. तो हम भी जीवन भर आपको ही अपने मन के मंदिर मे बैठाए रखेंगे पांडेजी. आप ही की पूजा करेंगे. और आप के हर सुख दुख मे आप के भागीदार बनेंगे.
वीर बस इतना सुन. और खड़ा हो गया. वो वापस उसी अलमारी के पास जाकर अलमारी से कुछ खोजने लगा. वो एक कटर लेकर आया. कविता उसे देखती ही रहे गई. वीर ने उस सफ़ेद बेडशीट पर अपना हाथ काट कर खून गिराया. तर्जनी ऊँगली और अंगूठे के बिच की चमड़ी से खून टप टप बहकर उस सफ़ेद बेडशीट पर लाल दाग लगा रहा था. कविता झट से खड़ी हुई. और वीर का हाथ पकड़ लिया. वो खून रोकने की कोसिस करती है.
कविता : (सॉक) क्या फर्स्ट एड बॉक्स है???
वीर ने अलमारी की तरफ ही हिशारा किया. कविता झट से फर्स्ट एड बॉक्स लेकर मरहम पट्टी करने लगी. पट्टी बांधते वक्त वो वीर को बड़ी प्यारी निगाहो से देख भी रही थी. सोच भी रही थी. ये तो देवता है. कविता को वीर पर प्यार भी बहोत आ रहा था. दोनों ही खड़े थे. कविता ने बॉक्स को साइड रखा और झूक कर वीर के पाऊ छुए.
कविता : ये हमारे पति होने के लिए.
वीर भी तुरंत झूक गया. और उसने भी कविता के पाऊ छू लिए.
वीर : (स्माइल) तो ये लो. हमारी पत्नी होने के लिए.
कविता सॉक होकर हसने लगी. वीर को रोकती उस से पहले वीर ने कविता के पाऊ छू लिए थे.
कविता : (स्माइल) अरे नहीं...... अब आप झूकीयेगा नहीं. कभी नहीं. और सीधे खड़े रहिये.
कविता एक बार और वीर के पाऊ छूती है.
कविता : ये इंसान के रूप मे भगवान होने के लिए. आज से आप ही हमारे भगवान है. आप की बहोत सेवा करेंगे हम पांडेजी.
दोनों ही हसने लगे. कविता उस सफ़ेद चादर को खिंच कर समेट लेती है. वो वीर की आँखों मे बड़े प्यार से देखती है.
कविता : (भावुक) पांडेजी. अब ये चादर हमारे लिए सुहाग के जोड़े से भी ज्यादा कीमती है.
कविता उस चादर को फॉल्ट करने लगी तब तक तो वीर ने दूसरी नीली चादर बिछा दी. कविता हसीं और एकदम से रुक गई. पर स्माइल दोनों की बरकरार रही. दोनों ही बेड पर पास पास ही बैठ गए. तब जाकर उस चीज पर ध्यान गया. जिसे दोनों काफ़ी देर से भूल गए थे. मुँह दिखाई का तोफा. कविता वीर से नजरें नहीं मिला पा रही थी. वो मुश्कुराती इधर उधर देखती है. तब उसकी नजर उस बॉक्स पर गई. जो सुन्दर लिफाफे से कवर था.
कविता ने अपना हाथ बढ़ाया और उस बॉक्स को लेकर खोलने लगी. पर बॉक्स खोलते उसे एकदम से झटका लगा. उसमे बहोत सुन्दर पायजेब थी. पर झटका इस लिए लगा क्यों की कवर हटाते बॉक्स पर जिस सुनार का अड्रेस था. वो इलहाबाद का था. और ये वही पायजेब थी जो कविता ने शादी की खरीदारी करते वक्त पसंद की थी. लेकिन सुनार ने उसे वो पायजेब देने से मना कर दिया. क्यों की उस दुकान पर वो लौता एक ही पीस था. और वो भी किसी ने खरीद लिया था. वो बुक थी.
कविता का दिल खुश हो गया. कोनसी प्रेमिका पत्नी खुश ना हो ये जानकर की उसकी पसंद उसका पति प्रेमी बिना कहे ही जनता हो. या फिर पसंद मिलती हो. कविता ने वो पायजेब वीर की तरफ की. अपना पाऊ आगे कर के अपने घाघरे को बस थोड़ासा ऊपर किया. वीर समझ गया की कविता वो पायजेब उसके हाथ से पहेन ना चाहती है. पर कविता का गोरा सुन्दर पाऊ देख कर तो वीर मोहित ही हो गया. गोरा और सुन्दर पाऊ. महावर से रंगा हुआ तलवा. ऊपर महेंदी की जबरदस्त करामात. नाख़ून पर चमकता लाल रंग बहोत आकर्षक था.
वीर ने पायजेब तो पहना दी. पर झूक कर उसके पाऊ को चुम भी लिया. कविता के लिए ये दूसरा झटका था. मानो रोम रोम मे एकदम से गुदगुदी सी मच गई हो. वो तुरंत आंखे मिंचे सिसक पड़ी.
कविता : (आंखे बंद मदहोश) ससससस.....पाण्डेजिह्ह्ह
जब आंखे खुली तो वीर बहोत ही प्यार भरी नजरों से उसे देख रहा था. इस बार बोलना दोनों मे से कोई नहीं चाहता था. इस बार धीरे धीरे दोनों ही एक दूसरे के करीब हुए. होठो से होठो का मिलन हुआ और दोनों एक दूसरे की बाहो मे समा गए. प्यार के उस खेल मे बहोत ही सख्तई भी महसूस हुई और दर्द भी. पर जीवन के सब से अनोखे सुख को दोनों ने महसूस किया.
वीर जैसा जाबाझ सुन्दर तंदुरस्त मर्द और अति सुन्दर कविता का मिलन हुआ तो मानो दोनों की दुनिया थम ही गई हो. पर जब दोनों अलग हुए. और वीर बैठा तब उसकी नजर कविता की सुन्दर योनि पर गई. गुलाबी चमड़ी वाली सुन्दर सी योनि से एक लाल लकीर निचे की तरफ बनी हुई थी. नीली बेडशीट पर भी कुछ गिला सा महसूस हुआ. वीर सॉक हो गया.
वीर : (सॉक) ये तो खून है.
कविता हस पड़ी और शर्म से अपने चहेरे को अपने एक हाथ से ढक लिया. बुद्धू सज्जन को अब तक तो समझ जाना चाहिए था. वीर को भी समझ आया. और वो भी मुस्कुरा उठा. उसे अब समझ आया की कविता उस से प्यार करने से पहले तक कवारी ही थी.
उसने झूठ कहा था की उसका कोई बॉयफ्रेंड था. पर परीक्षा लेते तो कविता को एहसास हुआ की वीर जैसे इंसान को पाना उसका नशीब है. समाज की रीत के हिसाब से तो पति परमेश्वर होता है. पर यहाँ तो परमेश्वर ही पति निकले. कविता खुश थी की उसका कौमार्य (virginity) सार्थक हुआ.
Bahut achcha laga
Aapki kahani padhke
ek tarah se aatma tript ho gayi
Duniya mein har tarah ke mard hote hain
Aurat hoti hain
Lekin mardo mein ek baat common hai
Unhein biwi kunwari chahiye hoti hai
Aur kunwari na mile toh kuchh mard gussa karte hain
Lekin kuchh mard pichhli baato ko bhula dete hain
Aapki ek baat se main sehmat nahi hoon
Ki jo mard yeh sochte ho
Ki unhein kunwari biwi mile
Woh theek nahi hote
Sabki kuchh ichchaayein hoti hain
Ab Aate hain story pe
Toh pehli najar mein pyar nahi hota
Haan attraction jarur hota hai
Pyar samay sath beetane pe hota hai
Veer ko itna sharmata dekh
Mere ko sharam aarahi thi
Main bhi aise hi sharmata tha
Purane din yaad aagaye
Mere ko ek baat samajh nahi aayi
Maan lijiye kavita ne jab bola ki woh kunwari nahi hai
Aur us samay suraj woh kar deta
Jo jyada tar mard karte hain
Toh kavita kya kar leti
Shaadi toh ho hi chuki thi
Pareeksha hi Leni thi toh shaadi se pehle leti
Nuksaan kiska jyada hota
Ladkiyo ko samajhna bada mushkil hai
Woh aapse ek sawal puchhna tha
Main yeh keh raha tha ki aap
CONTROL
Hum rating nahi deta hoon
Humari khud ki story be sar pair ki hoti hai
Mere ko achchi lagi kahani
Bas yahi bahut hai...
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