• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery हवेली

Scripted

Life is So Beautiful
Staff member
Sectional Moderator
5,176
7,464
174
#18



चंदा के सामान पर नजर गडाए मैं गहरी सोच में डूबा था, वक्त के हाथो फिसली रेत में मुझे उस सुराग की तलाश थी जो हवेली की ख़ामोशी को चीखो में बदल देता. अपने वजूद की तलाश में मैं यहाँ तक आ तो गया था पर आगे बढ़ना आसान तो नहीं था . खैर, मैंने चंदा का सामान वापिस रखा और सोचने लगा की वो लड़की कौन हो सकती थी जो तस्वीर में थी , जहाँ तक मेरा अनुमान था किसी भी काण्ड के पीछे केवल तीन चीजे हो सकती थी जर, जोरू और जमीन .



हवेली के मामले में यही थ्योरी मेरी उलझन बढ़ा रही थी क्योंकि ठाकुरों के पास अथाह जमीने थी, ना ही पैसो की कोई कमी थी और चूत तो वो जिसकी चाहे मार सकते थे तो फिर आखिर ऐसा क्या हुआ था की जिसने हवेली की खुशियों को मातम में बदल दिया था , यदि ये तीन वजह नहीं थी तो फिर क्या था . पर क्या मैं गलत था मुझे चंदा ने बताया था की ठाकुर के भतीजे ने धोखे से जमीनों को हडप कर बेच दिया था ले देकर थोड़ी बहुत जमीन बची थी और फिर वो भतीजा भी गायब हो गया था . मैंने इसी कड़ी पर चलने की सोची दूसरी बात भूषण को क्यों मारा गया उसके पास ऐसा क्या था .



खैर, जब मैं गाँव वापिस आया तो एक अलग ही मुसीबत मेरा इंतज़ार कर रही थी , पता चला की अजित सिंह ने गाँव के कुछ लोगो से मारपीट की है . सरपंची का नशा सर चढ़ चूका था गाँव की बहन-बेटी संग भी बदतमीजी करने लगा था वो . हालाँकि मैं अजित सिंह पर ध्यान नहीं देना चाहता था पर हालातो से मुह भी नहीं मोड़ सकता था . मैं एक बार फिर उसके घर गया वो तो नहीं मिला पर उसका बाप जरुर था .

मैं- काका , न चाहते हुए भी मुझे आना पड़ा अजित के बहकते कदमो को रोकिये सारी बाते माफ़ हो सकती है पर अपने ही गाँव की बहन-बेटियों पर बुरी नजर है उसकी , भीखू की लड़की की चुन्नी खींची उसने भरी चौपाल पर . ठीक नहीं है ये बात , समझाओ उसे.

काका- तेरी बात सही है बेटा पर वो हमारे कहे में नहीं रहा . तुझे क्या लगता है हमें न पता ये सब बाते पर क्या करे बिगड़ी हुई औलाद की करतुते झेलना बाप के लिए कितना मुश्किल है हम ही जानते है

मैं-फिर भी कोशिश करना काका , कहीं ऐसा न हो की फिर सँभालने को कुछ बचे ही नहीं .

मैंने अपनी तरफ से इशारा तो दे दिया था पर जानता था की टकराव आज नही तो कल हो गा ही. शाम को एक बार फिर मैं अपने घर में न जाने क्या तलाश कर रहा था , ठाकुर शौर्य सिंह का नम्बर अगर बापू के पास था तो दोनों में कोई गहरी बात जुडी रही होगी इसी के इर्द-गिर्द मुझे अपनी खोज शुरू करनी थी . सोच में डूबा ही था की निर्मला आ गयी . उसके खूबसूरत चेहरे पर नजर पड़ी तो दिल ठहर सा गया .

“कब आते हो कब जाते हो कोई खबर नहीं ” उसने कहा

मैं- उलझा हूँ कुछ कामो में तुम बताओ कैसी हो

निर्मला- जैसी पहले थी वैसी ही हूँ.

मैं- लखन कहा है

निर्मला- शराबी का कहाँ ठिकाना होता है पड़ा होगा कहीं पीकर

मैं- कभी कभी सोचता हूँ लखन से ब्याह करके तुमने गलत किया ,

निर्मला- भाग्य से कहाँ कोई जीत पाया है भला. पर खुश हूँ , बेशक दारू पीता हो पर कभी तंग तो नहीं करता मुझे

मैं- सो तो है

जबसे मैंने निर्मला के होंठ चूमे थे हम दोनों से बच रहे थे एक दुसरे से सीधी नजरे मिलाने से पर मेरे दिमाग में ये बात भी थी की जब ये पहले से ही किसी और से चुद रही है तो मेरे लेने से इसको क्या फर्क पड़ जायेगा. पर शायद कुछ तो ऐसा था जो मेरे गले नहीं उतर रहा था , दरअसल बापू के साथ हुए हादसे ने मुझे हिला कर रख दिया था दूसरा हवेली के तार मुझे परेशां किये हुए थे और दूर दूर तक कोई राह दिख भी तो नहीं रही थी .

निर्मला- क्या सोचने लगे, आजकल न जाने किस चिंता में खोये रहते हो .

मैं- बापू को मारने की साजिश किसने की होगी, मुझे अजीत पर शक है

निर्मला- मुझे नहीं लगता ऐसा , मैं एक बार फिर कहूँगी की उनको ऐसा करना होता तो कब का कर चुके होते इतना इंतज़ार क्यों किया

मैं- यही पर तो अटका हूँ मैं .

निर्मला-सरपंच जी की मौत का कारण चुनाव नहीं थे

मैं- पर कौन हो सकता है , जिस आदमी का कभी कोई दुश्मन नही रहा उसके खिलाफ ऐसी साजिश कौन करेगा

निर्मला- हर किसी की अपनी कहानी होती है जिसे केवल वो जानता है

मैं- तुम्हारी भी ऐसी कोई कहानी है क्या

निर्मला- ये तो सामने वाले पर निर्भर करता है की वो किस नजरिये से देखता है . मैं तुम्हे एक बात बताती हूँ की सरपंच जी और ठाकुर शौर्य सिंह का भतीजा बहुत गहरे मित्र थे .

निर्मला की इस बात ने मुझे ज्यादा हैरान तो नहीं किया पर उत्सुकता को जरूर बढ़ा दिया.

मैं- कैसे, मुझे तो मालूम हुआ है की अजीत के परिवार से हवेली के तालुकात बहुत घनिष्ट रहे है

निर्मला- सबके अपने अपने फ़साने होते है

मैं- तुम्हारे फ़साने क्या है

निर्मला-मेरे क्या फ़साने होंगे भला

मैं- तुम रुपाली ठकुराइन को जानती हो

निर्मला- शायद हाँ शायद न


निर्मला तभी कुछ उठाने के लिए झुकी और उसके ब्लाउज से बाहर को छलकती छातियो ने मेरी नजरो को पकड़ लिया वो भी जानती थी पर उसने खास तवज्जो नहीं दी उस बात को और बोली - अपने वजूद को अगर पाना है तो वक्त के आईने की धुल साफ़ करनी होगी , हवेली से जुड़े सच हवेली में ही दफ़न है ..
Akhir aa hi gyi update.... Hum bhi jud gye hein apke sath .. bs ab gati badha do..
..
 

Sanju@

Well-Known Member
4,217
17,299
143
#18



चंदा के सामान पर नजर गडाए मैं गहरी सोच में डूबा था, वक्त के हाथो फिसली रेत में मुझे उस सुराग की तलाश थी जो हवेली की ख़ामोशी को चीखो में बदल देता. अपने वजूद की तलाश में मैं यहाँ तक आ तो गया था पर आगे बढ़ना आसान तो नहीं था . खैर, मैंने चंदा का सामान वापिस रखा और सोचने लगा की वो लड़की कौन हो सकती थी जो तस्वीर में थी , जहाँ तक मेरा अनुमान था किसी भी काण्ड के पीछे केवल तीन चीजे हो सकती थी जर, जोरू और जमीन .



हवेली के मामले में यही थ्योरी मेरी उलझन बढ़ा रही थी क्योंकि ठाकुरों के पास अथाह जमीने थी, ना ही पैसो की कोई कमी थी और चूत तो वो जिसकी चाहे मार सकते थे तो फिर आखिर ऐसा क्या हुआ था की जिसने हवेली की खुशियों को मातम में बदल दिया था , यदि ये तीन वजह नहीं थी तो फिर क्या था . पर क्या मैं गलत था मुझे चंदा ने बताया था की ठाकुर के भतीजे ने धोखे से जमीनों को हडप कर बेच दिया था ले देकर थोड़ी बहुत जमीन बची थी और फिर वो भतीजा भी गायब हो गया था . मैंने इसी कड़ी पर चलने की सोची दूसरी बात भूषण को क्यों मारा गया उसके पास ऐसा क्या था .



खैर, जब मैं गाँव वापिस आया तो एक अलग ही मुसीबत मेरा इंतज़ार कर रही थी , पता चला की अजित सिंह ने गाँव के कुछ लोगो से मारपीट की है . सरपंची का नशा सर चढ़ चूका था गाँव की बहन-बेटी संग भी बदतमीजी करने लगा था वो . हालाँकि मैं अजित सिंह पर ध्यान नहीं देना चाहता था पर हालातो से मुह भी नहीं मोड़ सकता था . मैं एक बार फिर उसके घर गया वो तो नहीं मिला पर उसका बाप जरुर था .

मैं- काका , न चाहते हुए भी मुझे आना पड़ा अजित के बहकते कदमो को रोकिये सारी बाते माफ़ हो सकती है पर अपने ही गाँव की बहन-बेटियों पर बुरी नजर है उसकी , भीखू की लड़की की चुन्नी खींची उसने भरी चौपाल पर . ठीक नहीं है ये बात , समझाओ उसे.

काका- तेरी बात सही है बेटा पर वो हमारे कहे में नहीं रहा . तुझे क्या लगता है हमें न पता ये सब बाते पर क्या करे बिगड़ी हुई औलाद की करतुते झेलना बाप के लिए कितना मुश्किल है हम ही जानते है

मैं-फिर भी कोशिश करना काका , कहीं ऐसा न हो की फिर सँभालने को कुछ बचे ही नहीं .

मैंने अपनी तरफ से इशारा तो दे दिया था पर जानता था की टकराव आज नही तो कल हो गा ही. शाम को एक बार फिर मैं अपने घर में न जाने क्या तलाश कर रहा था , ठाकुर शौर्य सिंह का नम्बर अगर बापू के पास था तो दोनों में कोई गहरी बात जुडी रही होगी इसी के इर्द-गिर्द मुझे अपनी खोज शुरू करनी थी . सोच में डूबा ही था की निर्मला आ गयी . उसके खूबसूरत चेहरे पर नजर पड़ी तो दिल ठहर सा गया .

“कब आते हो कब जाते हो कोई खबर नहीं ” उसने कहा

मैं- उलझा हूँ कुछ कामो में तुम बताओ कैसी हो

निर्मला- जैसी पहले थी वैसी ही हूँ.

मैं- लखन कहा है

निर्मला- शराबी का कहाँ ठिकाना होता है पड़ा होगा कहीं पीकर

मैं- कभी कभी सोचता हूँ लखन से ब्याह करके तुमने गलत किया ,

निर्मला- भाग्य से कहाँ कोई जीत पाया है भला. पर खुश हूँ , बेशक दारू पीता हो पर कभी तंग तो नहीं करता मुझे

मैं- सो तो है

जबसे मैंने निर्मला के होंठ चूमे थे हम दोनों से बच रहे थे एक दुसरे से सीधी नजरे मिलाने से पर मेरे दिमाग में ये बात भी थी की जब ये पहले से ही किसी और से चुद रही है तो मेरे लेने से इसको क्या फर्क पड़ जायेगा. पर शायद कुछ तो ऐसा था जो मेरे गले नहीं उतर रहा था , दरअसल बापू के साथ हुए हादसे ने मुझे हिला कर रख दिया था दूसरा हवेली के तार मुझे परेशां किये हुए थे और दूर दूर तक कोई राह दिख भी तो नहीं रही थी .

निर्मला- क्या सोचने लगे, आजकल न जाने किस चिंता में खोये रहते हो .

मैं- बापू को मारने की साजिश किसने की होगी, मुझे अजीत पर शक है

निर्मला- मुझे नहीं लगता ऐसा , मैं एक बार फिर कहूँगी की उनको ऐसा करना होता तो कब का कर चुके होते इतना इंतज़ार क्यों किया

मैं- यही पर तो अटका हूँ मैं .

निर्मला-सरपंच जी की मौत का कारण चुनाव नहीं थे

मैं- पर कौन हो सकता है , जिस आदमी का कभी कोई दुश्मन नही रहा उसके खिलाफ ऐसी साजिश कौन करेगा

निर्मला- हर किसी की अपनी कहानी होती है जिसे केवल वो जानता है

मैं- तुम्हारी भी ऐसी कोई कहानी है क्या

निर्मला- ये तो सामने वाले पर निर्भर करता है की वो किस नजरिये से देखता है . मैं तुम्हे एक बात बताती हूँ की सरपंच जी और ठाकुर शौर्य सिंह का भतीजा बहुत गहरे मित्र थे .

निर्मला की इस बात ने मुझे ज्यादा हैरान तो नहीं किया पर उत्सुकता को जरूर बढ़ा दिया.

मैं- कैसे, मुझे तो मालूम हुआ है की अजीत के परिवार से हवेली के तालुकात बहुत घनिष्ट रहे है

निर्मला- सबके अपने अपने फ़साने होते है

मैं- तुम्हारे फ़साने क्या है

निर्मला-मेरे क्या फ़साने होंगे भला

मैं- तुम रुपाली ठकुराइन को जानती हो

निर्मला- शायद हाँ शायद न


निर्मला तभी कुछ उठाने के लिए झुकी और उसके ब्लाउज से बाहर को छलकती छातियो ने मेरी नजरो को पकड़ लिया वो भी जानती थी पर उसने खास तवज्जो नहीं दी उस बात को और बोली - अपने वजूद को अगर पाना है तो वक्त के आईने की धुल साफ़ करनी होगी , हवेली से जुड़े सच हवेली में ही दफ़न है ..
Welcome back fauji bhai

Bahut hi badiya update hai apna hero to abhi tak confusion me hai abhi tak use koi chabhi nahi mili hai lekin agar nirmala ke kahe shabdo par gahrayi se sochega to usko kadi mil sakti hai dekhte hai aage kya karta hai
 

Shetan

Well-Known Member
11,705
29,899
259
#१५

“खट ” की आवाज से ताला खुल गया , मैं इतना हैरान हुआ की साला ये हो क्या रहा है मुझे अमानत के रूप में इस बियाबान पंप हाउस के ताले की चाबी दी गयी थी .किस्मत गधे के लंड से लिखा जाना क्या होता है मैंने तब समझा था . धुल की वजह से खांसते हुए मैंने कमरे का दरवाजा खोला और अन्दर दाखिल हुआ. अन्दर का नजारा देख कर मुझे समझ नहीं आया की माजरा क्या है, कमरे में एक प्लास्टिक की पल्ली बिछी हुई थी, मिटटी जमा होने के बाद भी मैंने समझ लिया था की खून बिखरा था उस पर .

गाढ़ा खून जो न जाने कब बिखरा था पर आज भी निशान छोड़े हुए था , दीवारों पर भी कुछ उंगलियों के निशान थे खून से सने पर हैरानी की बात ये थी की दरवाजे या उसके आसपास खून का एक भी कतरा नहीं था .उस पल्ली के सिवाय और ज्यादा कुछ था नहीं , एक कोने में घास का गट्ठर था जो नाम मात्र का ही रह गया था . कमरे में अजीब सी बदबू थी शायद सीलन की वजह पर ये कमरा इतना महत्वपूर्ण कैसे था की इसकी चाबी मुझे दी गयी . और चाबी देने वालो को क्या वो उद्देश्य मालूम था की मुझे चाबी क्यों दी गयी .

पैरो को इधर उधर पटक रहा था की मेरे पैर में घास के तिनको के बीच कुछ अटका, मैंने उठा कर देखा एक गुलाबी रंग की ब्रा थी . ब्रा, मैं गारंटी से कह सकता था की ये ब्रा हवेली की ही किसी औरत की रही होगी. क्योंकि आमतौर पर गाँवो की औरते ब्रा का इस्तेमाल नहीं करती दूसरी बात ये बहुत महंगी रही होगी क्योंकि इस पर अंग्रेजी का मार्का था.ब्रा से मैं चुचियो के साइज का अनुमान लगाने लगा की वो कितनी बड़ी रही होंगी.

मैंने कमरे में और गहराई से निरिक्षण चालु किया मुझे एक किताब मिली जिसके पीले पड़ गए पन्ने जर्जर अवस्था में थे, कुछ पन्ने सलामत थे उन्हें देख कर समझा की वो चुदाई की किताब थी और मुझे यकीन था की वो किताब कुलदीप ठाकुर की थी क्योंकि किताब अंग्रेजी में थी , कुलदीप जरुर विलायत से ये लाया होगा. तीनो ठाकुरों का एक साथ मर जाना सामान्य तो बिलकुल नहीं था पर मारे जाने की वजह एक रही होगी. हवेली में कुछ तो ऐसा चल रहा था जो समझ से परे था. रुपाली और कामिनी दो महत्वपूर्ण कडिया गायब थी .



मैंने कमरे के दरवाजे को खुला ही छोड़ दिया , जानबूझ कर खेल के छिपे हुए खिलाडी को संदेसा देने के लिए की मेरी भी नजर है उस पर. कुलदीप बहुत चोदु टाइप का इन्सान था ये चंदा ने मुझे बताया था , और जिस तरह से उसने बात घुमाई थी मैं जानता था की चंदा को भी पेला था उसने. हो सकता था की कुलदीप घुमने के बहाने यही पर आता हो और गाँव की औरतो को चोदता हो. ज़िन्दगी ने अजीब झमेले को मेरे गले में डाल दिया था .

चंदा के पास वापिस जाने का मन नही था तो मैं अपने गान वापिस लौट आया , घर पर न लखन था न निर्मला . मैंने गेट खोला और अन्दर आ गया. मरते हुए बापू ने बस एक शब्द कहा था हवेली, मतलब बापू हवेली से जुड़ा था पर कैसे. जितना उसका रुतबा था उस हिसाब से ये तो हो नहीं सकता था की वो ठाकुर के लिए काम करता हो. कहीं वो ठाकुर के किसी धंधे में साथी तो नहीं था , वो मुझे क्यों लेकर आया.एक अनाथ को अपने घर में क्यों रखेगा जब तक की उस नन्ही जान से लगाव न हो. मात्र दया तो कारण नहीं हो सकता था .



बापू वो कड़ी था जो मेरे और हवेली के बीच था , मैंने बापू के अतीत को तलाशने की सोची. मैंने फिर से बापू के सामान की तलाशी ली , एक बहुत पुरानी डायरी में मुझे एक फ़ोन नम्बर मिला. डायरी लगभग सत्रह साल पुराणी थी . सत्रह साल पहले भला कितने लोगो के घर पर फ़ोन होंगे. दूसरी बात इस घर में तो क्या पुरे गाँव में किसी के पास भी फ़ोन नहीं था . मैंने वो नम्बर याद कर लिया. पूरी डायरी में बस एक फ़ोन नम्बर जिसे इतनी हिफाजत से संभल कर रखा गया था . कोई तो खास रहा होगा.

मैं एक एसटीडी बूथ पर गया वो नम्बर मिलाया, पर वो मिला नहीं दूसरी बात कोशिश की , तीसरी बार घंटी चली गयी . घंटी जाती रही , जाती रही और जब लगा की कोई नहीं उठाएगा ठीक उसी समय फोन उठा लिया गया .

“हेल्लो ” जो आवाज मेरे कानो में गूंजी दिल तक उतर गयी .

“हेल्लो, बोलो भी ”दूसरी तरफ से फिर आवाज आई .

मैं- चांदनी ठकुराइन

“बोल रही हु, कहिये ” उसने कहा

मैं बस फ़ोन रखने को ही था की उधर से आई आवाज ने मुझे रोक लिया

“अर्जुन ये तुम हो न ” उसका ये कहना सीधा दिल में ही तो उतर गया था .

“अर्जुन तुम ही हो न ” उसने फिर कहा

मैं- और कौन होगा मेरे सिवाय

वो- तुमको किसने दिया नम्बर मेरा और कहाँ से बोल रहे हो तुम

मैं- ढूंढने वाले खुदा को तलाश लेते है ये तो मेरी जान का नम्बर है

वो- अच्छा जी . ये भी न सोचा की फ़ोन जय भैया भी उठा सकते थे

मैं- मैं क्या डरता हूँ उससे

वो- मैंने कब कहा

मैं- याद आ रही थी तुम्हारी

वो- भैया आ गये रखती हूँ .


तुरंत ही फ़ोन कट गया . पर मेरे लिए बहुत सवाल खड़े हो गए थे चांदनी के घर का फोन नम्बर बापू की डायरी में सम्भाल कर रखा गया था . बात साफ़ थी बापू का ताल्लुक जरुर था वहां से पर कैसे वो अब मैं मालूम करके ही रहूँगा.
Har kadi se kadi judi hui he.

Par ese mahatva puran topic me ye comedy seen kya dala.
से मैं चुचियो के साइज का अनुमान लगाने लगा की वो कितनी बड़ी रही होंगी.


Lekin pita ki dayri se mila no chandni ke ghar ka tha. Matlab ki pahele talukat rahe honge. Amezing
 

Raj_sharma

Well-Known Member
11,494
20,175
228
#18



चंदा के सामान पर नजर गडाए मैं गहरी सोच में डूबा था, वक्त के हाथो फिसली रेत में मुझे उस सुराग की तलाश थी जो हवेली की ख़ामोशी को चीखो में बदल देता. अपने वजूद की तलाश में मैं यहाँ तक आ तो गया था पर आगे बढ़ना आसान तो नहीं था . खैर, मैंने चंदा का सामान वापिस रखा और सोचने लगा की वो लड़की कौन हो सकती थी जो तस्वीर में थी , जहाँ तक मेरा अनुमान था किसी भी काण्ड के पीछे केवल तीन चीजे हो सकती थी जर, जोरू और जमीन .



हवेली के मामले में यही थ्योरी मेरी उलझन बढ़ा रही थी क्योंकि ठाकुरों के पास अथाह जमीने थी, ना ही पैसो की कोई कमी थी और चूत तो वो जिसकी चाहे मार सकते थे तो फिर आखिर ऐसा क्या हुआ था की जिसने हवेली की खुशियों को मातम में बदल दिया था , यदि ये तीन वजह नहीं थी तो फिर क्या था . पर क्या मैं गलत था मुझे चंदा ने बताया था की ठाकुर के भतीजे ने धोखे से जमीनों को हडप कर बेच दिया था ले देकर थोड़ी बहुत जमीन बची थी और फिर वो भतीजा भी गायब हो गया था . मैंने इसी कड़ी पर चलने की सोची दूसरी बात भूषण को क्यों मारा गया उसके पास ऐसा क्या था .



खैर, जब मैं गाँव वापिस आया तो एक अलग ही मुसीबत मेरा इंतज़ार कर रही थी , पता चला की अजित सिंह ने गाँव के कुछ लोगो से मारपीट की है . सरपंची का नशा सर चढ़ चूका था गाँव की बहन-बेटी संग भी बदतमीजी करने लगा था वो . हालाँकि मैं अजित सिंह पर ध्यान नहीं देना चाहता था पर हालातो से मुह भी नहीं मोड़ सकता था . मैं एक बार फिर उसके घर गया वो तो नहीं मिला पर उसका बाप जरुर था .

मैं- काका , न चाहते हुए भी मुझे आना पड़ा अजित के बहकते कदमो को रोकिये सारी बाते माफ़ हो सकती है पर अपने ही गाँव की बहन-बेटियों पर बुरी नजर है उसकी , भीखू की लड़की की चुन्नी खींची उसने भरी चौपाल पर . ठीक नहीं है ये बात , समझाओ उसे.

काका- तेरी बात सही है बेटा पर वो हमारे कहे में नहीं रहा . तुझे क्या लगता है हमें न पता ये सब बाते पर क्या करे बिगड़ी हुई औलाद की करतुते झेलना बाप के लिए कितना मुश्किल है हम ही जानते है

मैं-फिर भी कोशिश करना काका , कहीं ऐसा न हो की फिर सँभालने को कुछ बचे ही नहीं .

मैंने अपनी तरफ से इशारा तो दे दिया था पर जानता था की टकराव आज नही तो कल हो गा ही. शाम को एक बार फिर मैं अपने घर में न जाने क्या तलाश कर रहा था , ठाकुर शौर्य सिंह का नम्बर अगर बापू के पास था तो दोनों में कोई गहरी बात जुडी रही होगी इसी के इर्द-गिर्द मुझे अपनी खोज शुरू करनी थी . सोच में डूबा ही था की निर्मला आ गयी . उसके खूबसूरत चेहरे पर नजर पड़ी तो दिल ठहर सा गया .

“कब आते हो कब जाते हो कोई खबर नहीं ” उसने कहा

मैं- उलझा हूँ कुछ कामो में तुम बताओ कैसी हो

निर्मला- जैसी पहले थी वैसी ही हूँ.

मैं- लखन कहा है

निर्मला- शराबी का कहाँ ठिकाना होता है पड़ा होगा कहीं पीकर

मैं- कभी कभी सोचता हूँ लखन से ब्याह करके तुमने गलत किया ,

निर्मला- भाग्य से कहाँ कोई जीत पाया है भला. पर खुश हूँ , बेशक दारू पीता हो पर कभी तंग तो नहीं करता मुझे

मैं- सो तो है

जबसे मैंने निर्मला के होंठ चूमे थे हम दोनों से बच रहे थे एक दुसरे से सीधी नजरे मिलाने से पर मेरे दिमाग में ये बात भी थी की जब ये पहले से ही किसी और से चुद रही है तो मेरे लेने से इसको क्या फर्क पड़ जायेगा. पर शायद कुछ तो ऐसा था जो मेरे गले नहीं उतर रहा था , दरअसल बापू के साथ हुए हादसे ने मुझे हिला कर रख दिया था दूसरा हवेली के तार मुझे परेशां किये हुए थे और दूर दूर तक कोई राह दिख भी तो नहीं रही थी .

निर्मला- क्या सोचने लगे, आजकल न जाने किस चिंता में खोये रहते हो .

मैं- बापू को मारने की साजिश किसने की होगी, मुझे अजीत पर शक है

निर्मला- मुझे नहीं लगता ऐसा , मैं एक बार फिर कहूँगी की उनको ऐसा करना होता तो कब का कर चुके होते इतना इंतज़ार क्यों किया

मैं- यही पर तो अटका हूँ मैं .

निर्मला-सरपंच जी की मौत का कारण चुनाव नहीं थे

मैं- पर कौन हो सकता है , जिस आदमी का कभी कोई दुश्मन नही रहा उसके खिलाफ ऐसी साजिश कौन करेगा

निर्मला- हर किसी की अपनी कहानी होती है जिसे केवल वो जानता है

मैं- तुम्हारी भी ऐसी कोई कहानी है क्या

निर्मला- ये तो सामने वाले पर निर्भर करता है की वो किस नजरिये से देखता है . मैं तुम्हे एक बात बताती हूँ की सरपंच जी और ठाकुर शौर्य सिंह का भतीजा बहुत गहरे मित्र थे .

निर्मला की इस बात ने मुझे ज्यादा हैरान तो नहीं किया पर उत्सुकता को जरूर बढ़ा दिया.

मैं- कैसे, मुझे तो मालूम हुआ है की अजीत के परिवार से हवेली के तालुकात बहुत घनिष्ट रहे है

निर्मला- सबके अपने अपने फ़साने होते है

मैं- तुम्हारे फ़साने क्या है

निर्मला-मेरे क्या फ़साने होंगे भला

मैं- तुम रुपाली ठकुराइन को जानती हो

निर्मला- शायद हाँ शायद न


निर्मला तभी कुछ उठाने के लिए झुकी और उसके ब्लाउज से बाहर को छलकती छातियो ने मेरी नजरो को पकड़ लिया वो भी जानती थी पर उसने खास तवज्जो नहीं दी उस बात को और बोली - अपने वजूद को अगर पाना है तो वक्त के आईने की धुल साफ़ करनी होगी , हवेली से जुड़े सच हवेली में ही दफ़न है ..
Awesome Update bhai And welcome back 💯💯💯💯💯💯💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,053
83,848
259
#१९



निर्मला की बात में दम था पर एक खामोश ईमारत जो वक्त की मार से जूझ रही थी अपनी चारदीवारी में भला ऐसा क्या छिपाए हुए थी जिसने मेरे वर्तमान को ठोकर मार दी थी , जब से मुझे अपने वजूद की तलाश के बारे में मालूम हुआ था मैं बेहद परेशान था एक ऐसी तलाश जिसका न कोई ओर था ना कोई छोर , उन किरदारों की तलाश जिन्हें मरे हुए मुद्दत हो चुकी थी.



पर मैंने भी ठानी थी की इस राज की बात चाहे कितनी भी गहराई में दबी हो उस को खोद निकालूँगा. मैंने एक सूची बनाई तमाम लोगो की जिसमे सबसे पहला नाम सोलह साल से कोमा में पड़े सक्श ठाकुर शौर्य सिंह का था . उसके तीन मर चुके बेटे, गायब बहु और बेटी. और दो नौकर जिसमे से एक अभी हाल ही में मरा और एक गाँव के बाहर तंगहाली में जी रही थी . और सबसे बड़ा सवाल की सरपंच जी का हवेली से क्या रिश्ता था , क्यों पाला उन्होंने मुझे . मैंने अपने प्राथमिक सवाल बना लिए थे बस अब इनके जवाब चाहिए थे मुझे और मैं जानता था की जवाब अगर कहीं है तो बस उसी हवेली में ही है .

एक बार फिर मैं कुवे पर बने उसी कमरे में मोजूद था ,इतना तो मैं जान गया था की यही पर ठाकुर लोग चुदाई करते थे पर किसकी हो सकता था गाँव की बहन-बेटियों की पर यहाँ बिखरे खून के सूख चुके कतरे मुझसे जैसे कह रहे थे की हमारी तरफ भी देख ले जरा. अगर किसी को यहाँ पर मारा गया था तो फिर उसके लिए ये जगह मुरीद नहीं थी , शौर्य सिंह चाहते तो किसी को दिन दिहाड़े मार सकते थे तो फिर ऐसे छुपा कर ये काम क्यों किया गया . टांड पर पड़ी ब्रांडेड ब्रा मेरी गाँव की किसी औरत की चुदाई की थ्योरी को मुह चिढ़ा रही थी , वो सच जिसे मैं मानना नहीं चाहता था वो सच ये था की यहाँ हवेली की ही कोई औरत चुदती थी .



मैं हवेली में घुसने के लिए भूषण की झोपडी के पास पहुंचा ही था की मुझे लगा अन्दर कोई है मैं दबे पाँव उस तरफ पहुंचा तो देखा की चंदा पूरी नंगी अलसाई सी पड़ी है , उसकी आँखे बंद थी, विशाल छतिया साँस लेने की वजह से ऊपर निचे हो रही थी .उसके पैर हलके से खुले और मेरी नजर उसकी गहरे झांटो से भरी चूत पर पड़ी जिस से रिस कर पानी जैसी बूंदे जांघो पर जम गयी थी . मामला साफ़ था थोड़ी देर पहले ही इसने चुदाई करवाई थी . और मैं बड़ी शिद्दत से ये जानना चाहता था की वो कौन था .



“खुले में ऐसे भोसड़ा खोल कर पड़ी रहोगी तो किसी का भी दिल करेगा न तुम्हारे ऊपर चढ़ने का ” मैंने उसकी तरफ निहारते हुए कहा .

चंदा ने झट से अपनी आँखे खोली पर वो मुझे देख कर चौंकी नहीं , उसने आराम से अपनी साडी उठाई , पहनी नहीं बस उस से बदन को ढक लिया और बोली- तुम यहाँ कैसे

मैं- यही बात मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ .

चंदा- तुम क्या मेरे लोग हो जो तुमको बताऊ , अकेली औरत को जीने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है ये सब भी उनमे से एक ही है .

मैं- मानता हूँ बस उत्सुकता है

चंदा- उत्सुकता की बत्ती बनाओ और अपने पिछवाड़े में डाल लो, मेरे घर में मेरे सामान की तलाशी लेकर तुमने अपनी औकात दिखाई है . मुझसे ही पूछ लेते क्या चाह थी तुमको

मैं- गलती थी मेरी , मैं बस जानना चाहता था की कहीं तुम ही तो वो औरत नहीं थी जो खेत वाले कमरे में ठाकुरों संग चुदती थी . तुम्हारे बक्से में रखे सामान ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया .

चंदा- हवेली बर्बाद हुई तो बहुत से लोगो के हिस्से में काफी कुछ आया , किसी के हिस्से में धन आया किसी के जमीन मेरे हिस्से में वो सब सामान आया .

मैं- हवेली में उस रात हुआ क्या था ये बताती क्यों नहीं तुम और तुम किस संग सो रही हो

चंदा- उस रात मौत आई थी हवेली में और मैं जिसके साथ भी सो रही हूँ ये मेरा निजी मामला है , मैं तुमको एक सलाह देती हूँ अपनी जिन्दगी जियो हवेली की दीवारों पर सर पटकने का कोई फायदा नहीं है .

मैं- मेरी जिन्दगी हवेली से ही जुडी है अब , मैं अपने वजूद की तलाश कर रहा हूँ

मेरी बात चुन कर चंदा उठी और थोडा झुक कर उसने मिटटी उठाई अपने हथेली में , जब वो ऐसा कर रही थी तो झुकने की वजह से उसकी गांड का घेराव मेरी आँखों से होते हुए सीने में आग को सुलगा गया . मैंने अपनी पेंट में हलचल मचते हुए महसूस की , पर अगले ही पल उसने अपनी हथेली में उठाई मिटटी को फूंक मार कर उड़ा दिया और बोली- ये है तुम्हारा वजूद . तुमको क्या लगता है की तुम हवेली के वारिस हो सकते हो रुपाली या कामिनी के बेटे . पर तुम ज्यादा से ज्यादा ठाकुरों का पाप हो सकते हो जिसे न जाने किसकी चूत में छोड़ दिया गया था . तुम्हे पालने की वजह तो मैं नहीं जानती पर दुआ करुँगी की ये खुमारी जल्दी ही उतर जाए .

मैं- जिस आदमी से तुम चुदती हो वो हवेली से ही जुड़ा है न , कहीं वो चांदनी के पिता तो नहीं

चंदा- अगली बार जब मुझे उसके साथ देखे तो उसी से पूछ लेना पर तेरी बात में मुझे दम लगता है क्योंकि मैं भी इस बारे में सोचती हूँ क्योंकि अगर सरपंच जी ने तुझे पाला तो बात गहरी रही होगी पर तू समझ नहीं पाया क्योंकि तुझमे वो काबिलियत नहीं है सरपंच जी ठाकुर इन्दर सिंह भाई थे रुपाली ठकुराइन के ...........................
 
Top