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Adultery हवेली

Thakur

Alag intro chahiye kya ?
Prime
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#18



चंदा के सामान पर नजर गडाए मैं गहरी सोच में डूबा था, वक्त के हाथो फिसली रेत में मुझे उस सुराग की तलाश थी जो हवेली की ख़ामोशी को चीखो में बदल देता. अपने वजूद की तलाश में मैं यहाँ तक आ तो गया था पर आगे बढ़ना आसान तो नहीं था . खैर, मैंने चंदा का सामान वापिस रखा और सोचने लगा की वो लड़की कौन हो सकती थी जो तस्वीर में थी , जहाँ तक मेरा अनुमान था किसी भी काण्ड के पीछे केवल तीन चीजे हो सकती थी जर, जोरू और जमीन .



हवेली के मामले में यही थ्योरी मेरी उलझन बढ़ा रही थी क्योंकि ठाकुरों के पास अथाह जमीने थी, ना ही पैसो की कोई कमी थी और चूत तो वो जिसकी चाहे मार सकते थे तो फिर आखिर ऐसा क्या हुआ था की जिसने हवेली की खुशियों को मातम में बदल दिया था , यदि ये तीन वजह नहीं थी तो फिर क्या था . पर क्या मैं गलत था मुझे चंदा ने बताया था की ठाकुर के भतीजे ने धोखे से जमीनों को हडप कर बेच दिया था ले देकर थोड़ी बहुत जमीन बची थी और फिर वो भतीजा भी गायब हो गया था . मैंने इसी कड़ी पर चलने की सोची दूसरी बात भूषण को क्यों मारा गया उसके पास ऐसा क्या था .



खैर, जब मैं गाँव वापिस आया तो एक अलग ही मुसीबत मेरा इंतज़ार कर रही थी , पता चला की अजित सिंह ने गाँव के कुछ लोगो से मारपीट की है . सरपंची का नशा सर चढ़ चूका था गाँव की बहन-बेटी संग भी बदतमीजी करने लगा था वो . हालाँकि मैं अजित सिंह पर ध्यान नहीं देना चाहता था पर हालातो से मुह भी नहीं मोड़ सकता था . मैं एक बार फिर उसके घर गया वो तो नहीं मिला पर उसका बाप जरुर था .

मैं- काका , न चाहते हुए भी मुझे आना पड़ा अजित के बहकते कदमो को रोकिये सारी बाते माफ़ हो सकती है पर अपने ही गाँव की बहन-बेटियों पर बुरी नजर है उसकी , भीखू की लड़की की चुन्नी खींची उसने भरी चौपाल पर . ठीक नहीं है ये बात , समझाओ उसे.

काका- तेरी बात सही है बेटा पर वो हमारे कहे में नहीं रहा . तुझे क्या लगता है हमें न पता ये सब बाते पर क्या करे बिगड़ी हुई औलाद की करतुते झेलना बाप के लिए कितना मुश्किल है हम ही जानते है

मैं-फिर भी कोशिश करना काका , कहीं ऐसा न हो की फिर सँभालने को कुछ बचे ही नहीं .

मैंने अपनी तरफ से इशारा तो दे दिया था पर जानता था की टकराव आज नही तो कल हो गा ही. शाम को एक बार फिर मैं अपने घर में न जाने क्या तलाश कर रहा था , ठाकुर शौर्य सिंह का नम्बर अगर बापू के पास था तो दोनों में कोई गहरी बात जुडी रही होगी इसी के इर्द-गिर्द मुझे अपनी खोज शुरू करनी थी . सोच में डूबा ही था की निर्मला आ गयी . उसके खूबसूरत चेहरे पर नजर पड़ी तो दिल ठहर सा गया .

“कब आते हो कब जाते हो कोई खबर नहीं ” उसने कहा

मैं- उलझा हूँ कुछ कामो में तुम बताओ कैसी हो

निर्मला- जैसी पहले थी वैसी ही हूँ.

मैं- लखन कहा है

निर्मला- शराबी का कहाँ ठिकाना होता है पड़ा होगा कहीं पीकर

मैं- कभी कभी सोचता हूँ लखन से ब्याह करके तुमने गलत किया ,

निर्मला- भाग्य से कहाँ कोई जीत पाया है भला. पर खुश हूँ , बेशक दारू पीता हो पर कभी तंग तो नहीं करता मुझे

मैं- सो तो है

जबसे मैंने निर्मला के होंठ चूमे थे हम दोनों से बच रहे थे एक दुसरे से सीधी नजरे मिलाने से पर मेरे दिमाग में ये बात भी थी की जब ये पहले से ही किसी और से चुद रही है तो मेरे लेने से इसको क्या फर्क पड़ जायेगा. पर शायद कुछ तो ऐसा था जो मेरे गले नहीं उतर रहा था , दरअसल बापू के साथ हुए हादसे ने मुझे हिला कर रख दिया था दूसरा हवेली के तार मुझे परेशां किये हुए थे और दूर दूर तक कोई राह दिख भी तो नहीं रही थी .

निर्मला- क्या सोचने लगे, आजकल न जाने किस चिंता में खोये रहते हो .

मैं- बापू को मारने की साजिश किसने की होगी, मुझे अजीत पर शक है

निर्मला- मुझे नहीं लगता ऐसा , मैं एक बार फिर कहूँगी की उनको ऐसा करना होता तो कब का कर चुके होते इतना इंतज़ार क्यों किया

मैं- यही पर तो अटका हूँ मैं .

निर्मला-सरपंच जी की मौत का कारण चुनाव नहीं थे

मैं- पर कौन हो सकता है , जिस आदमी का कभी कोई दुश्मन नही रहा उसके खिलाफ ऐसी साजिश कौन करेगा

निर्मला- हर किसी की अपनी कहानी होती है जिसे केवल वो जानता है

मैं- तुम्हारी भी ऐसी कोई कहानी है क्या

निर्मला- ये तो सामने वाले पर निर्भर करता है की वो किस नजरिये से देखता है . मैं तुम्हे एक बात बताती हूँ की सरपंच जी और ठाकुर शौर्य सिंह का भतीजा बहुत गहरे मित्र थे .

निर्मला की इस बात ने मुझे ज्यादा हैरान तो नहीं किया पर उत्सुकता को जरूर बढ़ा दिया.

मैं- कैसे, मुझे तो मालूम हुआ है की अजीत के परिवार से हवेली के तालुकात बहुत घनिष्ट रहे है

निर्मला- सबके अपने अपने फ़साने होते है

मैं- तुम्हारे फ़साने क्या है

निर्मला-मेरे क्या फ़साने होंगे भला

मैं- तुम रुपाली ठकुराइन को जानती हो

निर्मला- शायद हाँ शायद न


निर्मला तभी कुछ उठाने के लिए झुकी और उसके ब्लाउज से बाहर को छलकती छातियो ने मेरी नजरो को पकड़ लिया वो भी जानती थी पर उसने खास तवज्जो नहीं दी उस बात को और बोली - अपने वजूद को अगर पाना है तो वक्त के आईने की धुल साफ़ करनी होगी , हवेली से जुड़े सच हवेली में ही दफ़न है ..
Aaine ke sath sath meri memory pe bhi dhul jami hui he :sigh: purane update padhne padenge ab to
 

avsji

..........
Supreme
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निर्मला- हर किसी की अपनी कहानी होती है जिसे केवल वो जानता है

बस बस... यहीं पर आपकी कहानियों के हीरो मात खा जाते हैं बार बार 🤣🤣🤣
हर ऐरे गैरे, नत्थू खैरे को हीरो की कहानी मालूम होती है - बस हीरो को छोड़ कर!
खैर... आप लगे रहो! कहानियों का क्या? सब वाणी विलास के लिए ही लिखा पढ़ा जाता है।
बड़े दिनों बाद आए! आशा है, सब कुशल है।
 

ranipyaarkidiwani

Rajit singh
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Hope aaj ek aur big update mile thoda flash back bhi daal dete to acha rehta jinki memory weak hai unhe thoda flashback recape ke roop me mill jata pehele phir update dete to aur maja aata padhne me kyuki bahut waqt baad update diya thodi dimaag me kahi kho gayi hogi ye khanai usko thoda recape mila to puri tarah se samajh aajata hai ab aisa lag raha hai vapis se 17 update padhne padenge ise samjhne ke liye
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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#18



चंदा के सामान पर नजर गडाए मैं गहरी सोच में डूबा था, वक्त के हाथो फिसली रेत में मुझे उस सुराग की तलाश थी जो हवेली की ख़ामोशी को चीखो में बदल देता. अपने वजूद की तलाश में मैं यहाँ तक आ तो गया था पर आगे बढ़ना आसान तो नहीं था . खैर, मैंने चंदा का सामान वापिस रखा और सोचने लगा की वो लड़की कौन हो सकती थी जो तस्वीर में थी , जहाँ तक मेरा अनुमान था किसी भी काण्ड के पीछे केवल तीन चीजे हो सकती थी जर, जोरू और जमीन .



हवेली के मामले में यही थ्योरी मेरी उलझन बढ़ा रही थी क्योंकि ठाकुरों के पास अथाह जमीने थी, ना ही पैसो की कोई कमी थी और चूत तो वो जिसकी चाहे मार सकते थे तो फिर आखिर ऐसा क्या हुआ था की जिसने हवेली की खुशियों को मातम में बदल दिया था , यदि ये तीन वजह नहीं थी तो फिर क्या था . पर क्या मैं गलत था मुझे चंदा ने बताया था की ठाकुर के भतीजे ने धोखे से जमीनों को हडप कर बेच दिया था ले देकर थोड़ी बहुत जमीन बची थी और फिर वो भतीजा भी गायब हो गया था . मैंने इसी कड़ी पर चलने की सोची दूसरी बात भूषण को क्यों मारा गया उसके पास ऐसा क्या था .



खैर, जब मैं गाँव वापिस आया तो एक अलग ही मुसीबत मेरा इंतज़ार कर रही थी , पता चला की अजित सिंह ने गाँव के कुछ लोगो से मारपीट की है . सरपंची का नशा सर चढ़ चूका था गाँव की बहन-बेटी संग भी बदतमीजी करने लगा था वो . हालाँकि मैं अजित सिंह पर ध्यान नहीं देना चाहता था पर हालातो से मुह भी नहीं मोड़ सकता था . मैं एक बार फिर उसके घर गया वो तो नहीं मिला पर उसका बाप जरुर था .

मैं- काका , न चाहते हुए भी मुझे आना पड़ा अजित के बहकते कदमो को रोकिये सारी बाते माफ़ हो सकती है पर अपने ही गाँव की बहन-बेटियों पर बुरी नजर है उसकी , भीखू की लड़की की चुन्नी खींची उसने भरी चौपाल पर . ठीक नहीं है ये बात , समझाओ उसे.

काका- तेरी बात सही है बेटा पर वो हमारे कहे में नहीं रहा . तुझे क्या लगता है हमें न पता ये सब बाते पर क्या करे बिगड़ी हुई औलाद की करतुते झेलना बाप के लिए कितना मुश्किल है हम ही जानते है

मैं-फिर भी कोशिश करना काका , कहीं ऐसा न हो की फिर सँभालने को कुछ बचे ही नहीं .

मैंने अपनी तरफ से इशारा तो दे दिया था पर जानता था की टकराव आज नही तो कल हो गा ही. शाम को एक बार फिर मैं अपने घर में न जाने क्या तलाश कर रहा था , ठाकुर शौर्य सिंह का नम्बर अगर बापू के पास था तो दोनों में कोई गहरी बात जुडी रही होगी इसी के इर्द-गिर्द मुझे अपनी खोज शुरू करनी थी . सोच में डूबा ही था की निर्मला आ गयी . उसके खूबसूरत चेहरे पर नजर पड़ी तो दिल ठहर सा गया .

“कब आते हो कब जाते हो कोई खबर नहीं ” उसने कहा

मैं- उलझा हूँ कुछ कामो में तुम बताओ कैसी हो

निर्मला- जैसी पहले थी वैसी ही हूँ.

मैं- लखन कहा है

निर्मला- शराबी का कहाँ ठिकाना होता है पड़ा होगा कहीं पीकर

मैं- कभी कभी सोचता हूँ लखन से ब्याह करके तुमने गलत किया ,

निर्मला- भाग्य से कहाँ कोई जीत पाया है भला. पर खुश हूँ , बेशक दारू पीता हो पर कभी तंग तो नहीं करता मुझे

मैं- सो तो है

जबसे मैंने निर्मला के होंठ चूमे थे हम दोनों से बच रहे थे एक दुसरे से सीधी नजरे मिलाने से पर मेरे दिमाग में ये बात भी थी की जब ये पहले से ही किसी और से चुद रही है तो मेरे लेने से इसको क्या फर्क पड़ जायेगा. पर शायद कुछ तो ऐसा था जो मेरे गले नहीं उतर रहा था , दरअसल बापू के साथ हुए हादसे ने मुझे हिला कर रख दिया था दूसरा हवेली के तार मुझे परेशां किये हुए थे और दूर दूर तक कोई राह दिख भी तो नहीं रही थी .

निर्मला- क्या सोचने लगे, आजकल न जाने किस चिंता में खोये रहते हो .

मैं- बापू को मारने की साजिश किसने की होगी, मुझे अजीत पर शक है

निर्मला- मुझे नहीं लगता ऐसा , मैं एक बार फिर कहूँगी की उनको ऐसा करना होता तो कब का कर चुके होते इतना इंतज़ार क्यों किया

मैं- यही पर तो अटका हूँ मैं .

निर्मला-सरपंच जी की मौत का कारण चुनाव नहीं थे

मैं- पर कौन हो सकता है , जिस आदमी का कभी कोई दुश्मन नही रहा उसके खिलाफ ऐसी साजिश कौन करेगा

निर्मला- हर किसी की अपनी कहानी होती है जिसे केवल वो जानता है

मैं- तुम्हारी भी ऐसी कोई कहानी है क्या

निर्मला- ये तो सामने वाले पर निर्भर करता है की वो किस नजरिये से देखता है . मैं तुम्हे एक बात बताती हूँ की सरपंच जी और ठाकुर शौर्य सिंह का भतीजा बहुत गहरे मित्र थे .

निर्मला की इस बात ने मुझे ज्यादा हैरान तो नहीं किया पर उत्सुकता को जरूर बढ़ा दिया.

मैं- कैसे, मुझे तो मालूम हुआ है की अजीत के परिवार से हवेली के तालुकात बहुत घनिष्ट रहे है

निर्मला- सबके अपने अपने फ़साने होते है

मैं- तुम्हारे फ़साने क्या है

निर्मला-मेरे क्या फ़साने होंगे भला

मैं- तुम रुपाली ठकुराइन को जानती हो

निर्मला- शायद हाँ शायद न


निर्मला तभी कुछ उठाने के लिए झुकी और उसके ब्लाउज से बाहर को छलकती छातियो ने मेरी नजरो को पकड़ लिया वो भी जानती थी पर उसने खास तवज्जो नहीं दी उस बात को और बोली - अपने वजूद को अगर पाना है तो वक्त के आईने की धुल साफ़ करनी होगी , हवेली से जुड़े सच हवेली में ही दफ़न है ..

Welcome Back Fauji Bhai,

Apna Hero to kabhi kabhi mujhe lagta he ki kisi mandir ka ghanta he........jo chahe jab chahe baja ke chala jata he.............

Ghanghor confusion me he apna Hero.............ab dekhte he aage kya hota he............

Keep posting Bhai
 

kamdev99008

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फौजी निर्मला के संग तेरा चक्कर है। ये मुझे पता है।
निर्मला के साथ जिसका भी चक्कर होता है उसे बाकी सबका पता चल ही जाता है............ फौजी को भी बहुत पहले से पता है निर्मला से आपके चक्कर का :D


वैसे मुबारकबाद आपको............. आपका NKT अब जिला बन गया :congrats:
 

kamdev99008

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अपने वजूद को अगर पाना है तो वक्त के आईने की धुल साफ़ करनी होगी , हवेली से जुड़े सच हवेली में ही दफ़न है ..
यही है चाभी उस ताले की जो अपने हीरो के दिमाग पर लगा हुआ है .................
 

parkas

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#18



चंदा के सामान पर नजर गडाए मैं गहरी सोच में डूबा था, वक्त के हाथो फिसली रेत में मुझे उस सुराग की तलाश थी जो हवेली की ख़ामोशी को चीखो में बदल देता. अपने वजूद की तलाश में मैं यहाँ तक आ तो गया था पर आगे बढ़ना आसान तो नहीं था . खैर, मैंने चंदा का सामान वापिस रखा और सोचने लगा की वो लड़की कौन हो सकती थी जो तस्वीर में थी , जहाँ तक मेरा अनुमान था किसी भी काण्ड के पीछे केवल तीन चीजे हो सकती थी जर, जोरू और जमीन .



हवेली के मामले में यही थ्योरी मेरी उलझन बढ़ा रही थी क्योंकि ठाकुरों के पास अथाह जमीने थी, ना ही पैसो की कोई कमी थी और चूत तो वो जिसकी चाहे मार सकते थे तो फिर आखिर ऐसा क्या हुआ था की जिसने हवेली की खुशियों को मातम में बदल दिया था , यदि ये तीन वजह नहीं थी तो फिर क्या था . पर क्या मैं गलत था मुझे चंदा ने बताया था की ठाकुर के भतीजे ने धोखे से जमीनों को हडप कर बेच दिया था ले देकर थोड़ी बहुत जमीन बची थी और फिर वो भतीजा भी गायब हो गया था . मैंने इसी कड़ी पर चलने की सोची दूसरी बात भूषण को क्यों मारा गया उसके पास ऐसा क्या था .



खैर, जब मैं गाँव वापिस आया तो एक अलग ही मुसीबत मेरा इंतज़ार कर रही थी , पता चला की अजित सिंह ने गाँव के कुछ लोगो से मारपीट की है . सरपंची का नशा सर चढ़ चूका था गाँव की बहन-बेटी संग भी बदतमीजी करने लगा था वो . हालाँकि मैं अजित सिंह पर ध्यान नहीं देना चाहता था पर हालातो से मुह भी नहीं मोड़ सकता था . मैं एक बार फिर उसके घर गया वो तो नहीं मिला पर उसका बाप जरुर था .

मैं- काका , न चाहते हुए भी मुझे आना पड़ा अजित के बहकते कदमो को रोकिये सारी बाते माफ़ हो सकती है पर अपने ही गाँव की बहन-बेटियों पर बुरी नजर है उसकी , भीखू की लड़की की चुन्नी खींची उसने भरी चौपाल पर . ठीक नहीं है ये बात , समझाओ उसे.

काका- तेरी बात सही है बेटा पर वो हमारे कहे में नहीं रहा . तुझे क्या लगता है हमें न पता ये सब बाते पर क्या करे बिगड़ी हुई औलाद की करतुते झेलना बाप के लिए कितना मुश्किल है हम ही जानते है

मैं-फिर भी कोशिश करना काका , कहीं ऐसा न हो की फिर सँभालने को कुछ बचे ही नहीं .

मैंने अपनी तरफ से इशारा तो दे दिया था पर जानता था की टकराव आज नही तो कल हो गा ही. शाम को एक बार फिर मैं अपने घर में न जाने क्या तलाश कर रहा था , ठाकुर शौर्य सिंह का नम्बर अगर बापू के पास था तो दोनों में कोई गहरी बात जुडी रही होगी इसी के इर्द-गिर्द मुझे अपनी खोज शुरू करनी थी . सोच में डूबा ही था की निर्मला आ गयी . उसके खूबसूरत चेहरे पर नजर पड़ी तो दिल ठहर सा गया .

“कब आते हो कब जाते हो कोई खबर नहीं ” उसने कहा

मैं- उलझा हूँ कुछ कामो में तुम बताओ कैसी हो

निर्मला- जैसी पहले थी वैसी ही हूँ.

मैं- लखन कहा है

निर्मला- शराबी का कहाँ ठिकाना होता है पड़ा होगा कहीं पीकर

मैं- कभी कभी सोचता हूँ लखन से ब्याह करके तुमने गलत किया ,

निर्मला- भाग्य से कहाँ कोई जीत पाया है भला. पर खुश हूँ , बेशक दारू पीता हो पर कभी तंग तो नहीं करता मुझे

मैं- सो तो है

जबसे मैंने निर्मला के होंठ चूमे थे हम दोनों से बच रहे थे एक दुसरे से सीधी नजरे मिलाने से पर मेरे दिमाग में ये बात भी थी की जब ये पहले से ही किसी और से चुद रही है तो मेरे लेने से इसको क्या फर्क पड़ जायेगा. पर शायद कुछ तो ऐसा था जो मेरे गले नहीं उतर रहा था , दरअसल बापू के साथ हुए हादसे ने मुझे हिला कर रख दिया था दूसरा हवेली के तार मुझे परेशां किये हुए थे और दूर दूर तक कोई राह दिख भी तो नहीं रही थी .

निर्मला- क्या सोचने लगे, आजकल न जाने किस चिंता में खोये रहते हो .

मैं- बापू को मारने की साजिश किसने की होगी, मुझे अजीत पर शक है

निर्मला- मुझे नहीं लगता ऐसा , मैं एक बार फिर कहूँगी की उनको ऐसा करना होता तो कब का कर चुके होते इतना इंतज़ार क्यों किया

मैं- यही पर तो अटका हूँ मैं .

निर्मला-सरपंच जी की मौत का कारण चुनाव नहीं थे

मैं- पर कौन हो सकता है , जिस आदमी का कभी कोई दुश्मन नही रहा उसके खिलाफ ऐसी साजिश कौन करेगा

निर्मला- हर किसी की अपनी कहानी होती है जिसे केवल वो जानता है

मैं- तुम्हारी भी ऐसी कोई कहानी है क्या

निर्मला- ये तो सामने वाले पर निर्भर करता है की वो किस नजरिये से देखता है . मैं तुम्हे एक बात बताती हूँ की सरपंच जी और ठाकुर शौर्य सिंह का भतीजा बहुत गहरे मित्र थे .

निर्मला की इस बात ने मुझे ज्यादा हैरान तो नहीं किया पर उत्सुकता को जरूर बढ़ा दिया.

मैं- कैसे, मुझे तो मालूम हुआ है की अजीत के परिवार से हवेली के तालुकात बहुत घनिष्ट रहे है

निर्मला- सबके अपने अपने फ़साने होते है

मैं- तुम्हारे फ़साने क्या है

निर्मला-मेरे क्या फ़साने होंगे भला

मैं- तुम रुपाली ठकुराइन को जानती हो

निर्मला- शायद हाँ शायद न


निर्मला तभी कुछ उठाने के लिए झुकी और उसके ब्लाउज से बाहर को छलकती छातियो ने मेरी नजरो को पकड़ लिया वो भी जानती थी पर उसने खास तवज्जो नहीं दी उस बात को और बोली - अपने वजूद को अगर पाना है तो वक्त के आईने की धुल साफ़ करनी होगी , हवेली से जुड़े सच हवेली में ही दफ़न है ..
Bahut hi badhiya update diya hai HalfbludPrince bhai...
Nice and beautiful update...
 

Tiger 786

Well-Known Member
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#18



चंदा के सामान पर नजर गडाए मैं गहरी सोच में डूबा था, वक्त के हाथो फिसली रेत में मुझे उस सुराग की तलाश थी जो हवेली की ख़ामोशी को चीखो में बदल देता. अपने वजूद की तलाश में मैं यहाँ तक आ तो गया था पर आगे बढ़ना आसान तो नहीं था . खैर, मैंने चंदा का सामान वापिस रखा और सोचने लगा की वो लड़की कौन हो सकती थी जो तस्वीर में थी , जहाँ तक मेरा अनुमान था किसी भी काण्ड के पीछे केवल तीन चीजे हो सकती थी जर, जोरू और जमीन .



हवेली के मामले में यही थ्योरी मेरी उलझन बढ़ा रही थी क्योंकि ठाकुरों के पास अथाह जमीने थी, ना ही पैसो की कोई कमी थी और चूत तो वो जिसकी चाहे मार सकते थे तो फिर आखिर ऐसा क्या हुआ था की जिसने हवेली की खुशियों को मातम में बदल दिया था , यदि ये तीन वजह नहीं थी तो फिर क्या था . पर क्या मैं गलत था मुझे चंदा ने बताया था की ठाकुर के भतीजे ने धोखे से जमीनों को हडप कर बेच दिया था ले देकर थोड़ी बहुत जमीन बची थी और फिर वो भतीजा भी गायब हो गया था . मैंने इसी कड़ी पर चलने की सोची दूसरी बात भूषण को क्यों मारा गया उसके पास ऐसा क्या था .



खैर, जब मैं गाँव वापिस आया तो एक अलग ही मुसीबत मेरा इंतज़ार कर रही थी , पता चला की अजित सिंह ने गाँव के कुछ लोगो से मारपीट की है . सरपंची का नशा सर चढ़ चूका था गाँव की बहन-बेटी संग भी बदतमीजी करने लगा था वो . हालाँकि मैं अजित सिंह पर ध्यान नहीं देना चाहता था पर हालातो से मुह भी नहीं मोड़ सकता था . मैं एक बार फिर उसके घर गया वो तो नहीं मिला पर उसका बाप जरुर था .

मैं- काका , न चाहते हुए भी मुझे आना पड़ा अजित के बहकते कदमो को रोकिये सारी बाते माफ़ हो सकती है पर अपने ही गाँव की बहन-बेटियों पर बुरी नजर है उसकी , भीखू की लड़की की चुन्नी खींची उसने भरी चौपाल पर . ठीक नहीं है ये बात , समझाओ उसे.

काका- तेरी बात सही है बेटा पर वो हमारे कहे में नहीं रहा . तुझे क्या लगता है हमें न पता ये सब बाते पर क्या करे बिगड़ी हुई औलाद की करतुते झेलना बाप के लिए कितना मुश्किल है हम ही जानते है

मैं-फिर भी कोशिश करना काका , कहीं ऐसा न हो की फिर सँभालने को कुछ बचे ही नहीं .

मैंने अपनी तरफ से इशारा तो दे दिया था पर जानता था की टकराव आज नही तो कल हो गा ही. शाम को एक बार फिर मैं अपने घर में न जाने क्या तलाश कर रहा था , ठाकुर शौर्य सिंह का नम्बर अगर बापू के पास था तो दोनों में कोई गहरी बात जुडी रही होगी इसी के इर्द-गिर्द मुझे अपनी खोज शुरू करनी थी . सोच में डूबा ही था की निर्मला आ गयी . उसके खूबसूरत चेहरे पर नजर पड़ी तो दिल ठहर सा गया .

“कब आते हो कब जाते हो कोई खबर नहीं ” उसने कहा

मैं- उलझा हूँ कुछ कामो में तुम बताओ कैसी हो

निर्मला- जैसी पहले थी वैसी ही हूँ.

मैं- लखन कहा है

निर्मला- शराबी का कहाँ ठिकाना होता है पड़ा होगा कहीं पीकर

मैं- कभी कभी सोचता हूँ लखन से ब्याह करके तुमने गलत किया ,

निर्मला- भाग्य से कहाँ कोई जीत पाया है भला. पर खुश हूँ , बेशक दारू पीता हो पर कभी तंग तो नहीं करता मुझे

मैं- सो तो है

जबसे मैंने निर्मला के होंठ चूमे थे हम दोनों से बच रहे थे एक दुसरे से सीधी नजरे मिलाने से पर मेरे दिमाग में ये बात भी थी की जब ये पहले से ही किसी और से चुद रही है तो मेरे लेने से इसको क्या फर्क पड़ जायेगा. पर शायद कुछ तो ऐसा था जो मेरे गले नहीं उतर रहा था , दरअसल बापू के साथ हुए हादसे ने मुझे हिला कर रख दिया था दूसरा हवेली के तार मुझे परेशां किये हुए थे और दूर दूर तक कोई राह दिख भी तो नहीं रही थी .

निर्मला- क्या सोचने लगे, आजकल न जाने किस चिंता में खोये रहते हो .

मैं- बापू को मारने की साजिश किसने की होगी, मुझे अजीत पर शक है

निर्मला- मुझे नहीं लगता ऐसा , मैं एक बार फिर कहूँगी की उनको ऐसा करना होता तो कब का कर चुके होते इतना इंतज़ार क्यों किया

मैं- यही पर तो अटका हूँ मैं .

निर्मला-सरपंच जी की मौत का कारण चुनाव नहीं थे

मैं- पर कौन हो सकता है , जिस आदमी का कभी कोई दुश्मन नही रहा उसके खिलाफ ऐसी साजिश कौन करेगा

निर्मला- हर किसी की अपनी कहानी होती है जिसे केवल वो जानता है

मैं- तुम्हारी भी ऐसी कोई कहानी है क्या

निर्मला- ये तो सामने वाले पर निर्भर करता है की वो किस नजरिये से देखता है . मैं तुम्हे एक बात बताती हूँ की सरपंच जी और ठाकुर शौर्य सिंह का भतीजा बहुत गहरे मित्र थे .

निर्मला की इस बात ने मुझे ज्यादा हैरान तो नहीं किया पर उत्सुकता को जरूर बढ़ा दिया.

मैं- कैसे, मुझे तो मालूम हुआ है की अजीत के परिवार से हवेली के तालुकात बहुत घनिष्ट रहे है

निर्मला- सबके अपने अपने फ़साने होते है

मैं- तुम्हारे फ़साने क्या है

निर्मला-मेरे क्या फ़साने होंगे भला

मैं- तुम रुपाली ठकुराइन को जानती हो

निर्मला- शायद हाँ शायद न


निर्मला तभी कुछ उठाने के लिए झुकी और उसके ब्लाउज से बाहर को छलकती छातियो ने मेरी नजरो को पकड़ लिया वो भी जानती थी पर उसने खास तवज्जो नहीं दी उस बात को और बोली - अपने वजूद को अगर पाना है तो वक्त के आईने की धुल साफ़ करनी होगी , हवेली से जुड़े सच हवेली में ही दफ़न है ..
Lazwaab update
 
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