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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

dhparikh

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#162.

बर्फ का गोला:
(16.01.02, बुधवार, 10:40, सनकिंग जहाज, अटलांटिक महासागर)

सनकिंग वही जहाज था, जिस पर सुनहरी ढाल लेकर विल्मर यात्रा कर रहा था।

आकृति को सुर्वया के माध्यम से विल्मर की पूरी जानकारी मिल गई थी, इसलिये वह मकोटा के दिये नीलदंड की मदद से छिपकर सनकिंग पर आ गई थी।

आकृति चाहती तो तुरंत ही विल्मर के कमरे में घुसकर सुनहरी ढाल प्राप्त कर सकती थी, पर वह इतनी गलतियां कर चुकी थी, कि अब अपना कदम फूंक-फूक कर उठा रही थी।

आकृति को नहीं मालूम था कि विल्मर के पास यह सुनहरी ढाल आयी कहां से? क्यों कि सुर्वया बर्फ के नीचे, पानी के अंदर और हवा में रह रहे किसी भी जीव को नहीं ढूंढ सकती थी, इसलिये सुर्वया ने शलाका को विल्मर को सुनहरी ढाल देते हुए नहीं देखा था।

आकृति ने जहाज पर प्रवेश करते ही, एक अकेली लड़की क्राउली को नीलदंड की मदद से पक्षी बनाकर समुद्र में उड़ा दिया और उसी के कपड़े धारण कर वह जहाज में घूमने लगी।

यह जहाज बहुत बड़ा नहीं था, इसलिये आकृति को विल्मर को ढूंढने में ज्यादा मुश्किल नहीं आयी।

इस समय आकृति जहाज के रेस्टोरेंट में बैठी कॉफी का घूंट भर रही थी। विल्मर उससे कुछ दूरी पर एक दूसरी टेबल पर बैठा था।

आखिरकार आकृति अपनी टेबल से उठी और टहलती हुई विल्मर के पास जा पहुंची।

“क्या मैं यहां बैठ सकती हूं?” आकृति ने विल्मर की ओर देखते हुए पूछा।

विल्मर अपने सामने इतनी खूबसूरत लड़की को देख खुश होते हुए बोला - “हां-हां क्यों नहीं....।”

आकृति विल्मर के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई।

“मैं बहुत देर से आपके सामने बैठी आपको देख रही थी, मुझे आपका चेहरा कुछ जाना-पहचाना लगा, इसीलिये मैं आपसे पूछने चली आई। क्या हम पहले कहीं मिल चुके हैं?” आकृति ने विल्मर की आँखों में
झांकते हुए कहा।

विल्मर ने आकृति को ध्यान से देखा और ना में सिर हिला दिया।

अगर शलाका ने विल्मर की स्मृतियां ना छीनी होतीं, तो विल्मर ने शलाका जैसे चेहरे वाली आकृति को, तुरंत पहचान लेना था, पर अभी उसे
आकृति का चेहरा बिल्कुल ही अंजान लगा।

“ओह सॉरी, फिर तो मैं चलती हूं।”
यह कहकर आकृति कुर्सी से उठने लगी।

तभी विल्मर ने उसे रोकते हुए कहा- “इससे क्या फर्क पड़ता है कि मैं आपको नहीं जानता। अरे जान पहचान बनाने के लिये किसी को
पहले से जानना जरुरी थोड़ी ना है .....वैसे मेरा नाम विल्मर है।”

यह कहकर विल्मर ने अपना हाथ आकृति की ओर बढ़ा दिया, पर आकृति को विल्मर से हाथ मिलाने में कोई रुचि नहीं थी, इसलिये वह पहले के समान ही बैठी रही।

आकृति को हाथ ना मिलाते देख विल्मर ने अचकचाकर अपना हाथ पीछे कर लिया।

“मेरा नाम क्राउली है, मैं एक आर्कियोलॉजिस्ट हूं। मैं पुरानी से पुरानी चीज को देखकर, कार्बन डेटिंग के द्वारा किसी भी वस्तु का काल और उसकी कीमत का निर्धारण करती हूं।” आकृति ने अपना दाँव फेंकते हुए कहा।

आकृति की बात सुन विल्मर खुश हो गया, उसे ऐसे ही किसी इंसान की तो तलाश थी, जो कि उसकी सुनहरी ढाल का मूल्यांकन कर सके।

“ओह, आप तो बहुत अच्छा काम करती हैं मिस क्राउली।” विल्मर ने आकृति की ओर देखते हुए कहा- “सॉरी मैं बात करने में आपसे पूछना भूल गया। आप कुछ लेंगी क्या?”

“नहीं-नहीं, मैंने अभी कॉफी पी है और मुझे अभी किसी चीज की जरुरत नहीं है...और वैसे भी मेरे मतलब की चीज इस जहाज पर कहां? मेरा मतलब है कि मेरी रुचि तो सिर्फ एंटीक चीजों में ही होती है।...एक्चुली मैं अपने काम को इस समय बहुत मिस कर रहीं हूं।” आकृति ने फिर से विल्मर को फंसाते हुए कहा।

“मेरे पास आपके काम की एक चीज है....क्या आप उसे देखना चाहेंगी?” विल्मर ने आकृति से पूछा।

“वाह! इससे अच्छा क्या हो सकता है। मैं जरुर देखना चाहूंगी।” आकृति खुश होते हुए अपनी सीट से खड़ी हो गई।

आकृति को तुरंत कुर्सी से खड़ा होता देख, विल्मर ने एक बार टेबल पर पड़े अपने आधे खाये हुए खाने को देखा और फिर वह उठकर वाश बेसिन की ओर बढ़ गया।

कुछ ही देर में विल्मर आकृति को लेकर अपने केबिन में पहुंच गया।

आकृति ने विल्मर के कमरे पर नजर मारी, पर उसे वह सुनहरी ढाल कहीं नजर नहीं आयी? आकृति कमरे में पड़ी एक सोफे पर बैठ गई।

तभी विल्मर ने दीवार पर लगी एक रंगीन पेंटिंग उतार ली, जो कि गोल आकार में थी और उभरी हुई थी।

आकृति ध्यान से उस पेटिंग को देखने लगी, तभी उसके आकार को देख आकृति को झटका लगा, यह वही सुनहरी ढाल थी, जिसे कि विल्मर ने चालाकी दिखाते हुए रंगों से पेंट कर दिया था।

विल्मर ने वह ढाल आकृति को पकड़ा दी।

“यह तो एक साधारण पेंटिंग है, जिसे शायद किसी ने अभी हाल में ही पेंट किया है, यह कोई एंटीक चीज नहीं है।” आकृति ने विल्मर को देखते हुए कहा।

तभी विल्मर ने आकृति के हाथ से वह ढाल ले, उस पर एक जगह कोई स्प्रे मार दिया, अब उस स्प्रे के नीचे से चमचमाती हुई सुनहरी ढाल नजर आने लगी थी।

“अब जरा देखिये।” विल्मर ने यह कहते हुए दोबारा से सुनहरी ढाल आकृति के हाथों में पकड़ा दी।

“यह तो काफी पौराणिक ढाल लग रही है, इसकी कीमत करोड़ों डॉलर है....पर इससे तुम्हें कोई फायदा नहीं होने वाला।” आकृति ने कहा।

“क्यों? क्या मैं इसे एंटीक मार्केट में बेच नहीं सकता?” विल्मर ने सोचने वाले अंदाज में पूछा।

“नहीं....क्यों कि यह तुम्हारे पास रहेगा नहीं।” यह कहते ही आकृति के हाथ में नीलदंड नजर आने लगा और इससे पहले कि विल्मर कुछ समझ पाता, नीलदंड से निकली किरणों ने, विल्मर को एक सीगल
(समुद्री पक्षी) में बदल दिया। इसी के साथ आकृति ने दरवाजा खोलकर सीगल को बाहर उड़ा दिया।

अब आकृति ने ढाल को अपने हाथ में उठाया और नीलदंड को सामने की ओर जोर से नचाया, पर नीलदंड उसी समय हवा में गायब हो गया।

“यह क्या नीलदंड कहां गया?” आकृति ने घबरा कर दोबारा हाथ हिलाया, पर नीलदंड उसके हाथ में वापस नहीं आया।

अब आकृति पूरी तरह से घबरा गई- “ये क्या हुआ? क्या मकोटा ने अपना नीलदंड वापस ले लिया? क्या ...क्या वह मेरे बारे में सबकुछ जान गया?...पर अगर नीलदंड चला गया तो मैं यहां से वापस अराका पर
कैसे जाऊंगी?....मेरे पास तो अभी इतनी शक्तियां भी नहीं है...अब मैं क्या करुं?

"इस ढाल की तलवार भी सीनोर राज्य में ही है, उसके बिना मैं दे...राज इंद्र से वरदान भी नहीं मांग सकती। और रोजर, मेलाइट और
सुर्वया का क्या होगा? चलो सुर्वया तो जादुई दर्पण में बंद है, उसे कुछ नहीं होगा, पर रोजर और मेलाइट का क्या?....रोजर तो मर भी जाये, तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता...पर अगर मेलाइट को कुछ हो गया, तो मैं कभी भी शलाका के चेहरे से मुक्ति नहीं पा पाऊंगी।....और .... और ग्रीक देवता तो मुझे मार ही डालेंगे।

“मुझे कुछ भी करके और शक्तियां इकठ्ठा करके वापस अराका पर जाना ही होगा...क्यों कि अब देवराज का वरदान ही मुझे मेरे पुत्र के पास पहुंचा सकता है।...पर...पर पहले मुझे यहां से निकलना होगा। वैसे यह जहाज 7 से 8 घंटों के बाद न्यूयार्क पहुंच जायेगा। मुझे वहां पहुंचकर अपनी बची हुई शक्तियों के साथ, कुछ और ही प्लान करना होगा।” यह सोच आकृति सुनहरी ढाल लेकर चुपचाप उस कमरे से निकल, क्राउली के कमरे की ओर बढ़ गई।

क्राउली के कमरे में पहुंच जैसे ही आकृति ने सुनहरी ढाल को बिस्तर पर रखा , तभी उसे बाहर से आती किसी शोर की आवाज सुनाई दी।

धड़कते दिल से आकृति केबिन के बाहर आ गई और उस ओर चल दी, जिधर से शोर की आवाज आ रही थी।

शोर की आवाजें डेक की ओर से आ रहीं थीं। आकृति ने पास जाकर देखा, तो उसे जहाज के डेक पर 1 मीटर व्यास का एक बर्फ का गोला पड़ा दिखाई दिया।

उस गोले के पास एक छोटा सा जाल पड़ा था, जिसे देख कोई भी समझ सकता था कि इस बर्फ के गोले को, इसी जाल के द्वारा समुद्र से निकाला गया है।

बहुत से व्यक्ति उस गोले के चारो ओर खड़े उसे देख रहे थे।

तभी उनमें से एक व्यक्ति बोला - “इस बर्फ के गोले में कोई इंसान है?” यह सुनकर सभी उस गोले के अंदर झांककर देखने लगे।

आकृति की नजर भी उस बर्फ के गोले के अंदर की ओर गई, सच में उस गोले में एक मानव शरीर था, पर उसके चेहरे पर नजर पड़ते ही आकृति हैरान हो गई क्यों कि वह व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि विक्रम था।

विक्रम....वारुणि का सबसे करीबी।

“यह विक्रम इस बर्फ के गोले में कैसे आ गया?” आकृति यह देख समझ गई कि विक्रम अभी भी जिंदा हो सकता है।

अतः वह सभी को देखकर चिल्लाई- “बर्फ को तोड़ो, यह मेरा दोस्त है और यह अभी भी साँस ले रहा है।”

आकृति की बात सुन वहां खड़े व्यक्तियों का एक समूह उस बर्फ को तोड़ने लगा।

बर्फ को तोड़ने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी क्यों कि बर्फ की ऊपरी पर्त पहले से ही कमजोर थी, शायद यह बर्फ का गोला काफी समय से नमकीन समुद्री पानी में पड़ा हुआ था।

बर्फ टूटने के बाद विक्रम का शरीर बर्फ से बाहर आ गया। यह देख जहाज का एक डॉक्टर विक्रम का चेकअप करने लगा।

सभी उत्सुकता भरी निगाहों से उस डॉक्टर को देख रहे थे।

“यह व्यक्ति पूरी तरह से ठीक है, बस बर्फ में काफी देर तक दबे रहने से, इसके शरीर का तापमान गिर गया है, पर मुझे लगता है कि आधे से 1 घंटे के बीच यह होश में आ जायेगा।” डॉक्टर ने आकृति की ओर देखते हुए कहा- “आप इन्हें अपने कमरे में रख सकती हैं...अगर कोई परेशानी हो तो मुझे बता दीजियेगा। पर सच कहूं तो इनका इस प्रकार बर्फ में दबे रहने के बाद बचना किसी चमत्कार से कम नहीं।” यह कहकर डॉक्टर चला गया।

आकृति ने कुछ लोगों की मदद ले विक्रम को क्राउली के कमरे में रख लिया।

जब सभी कमरे से चले गये, तो आकृति फिर से अपनी सोच में गुम हो गई।

लगभग 45 मिनट के बाद विक्रम ने कराह कर अपनी आँखें खोलीं।

आँखें खोलने के बाद विक्रम ने तुरंत ही अपना सिर पकड़ लिया।

यह देख आकृति भागकर विक्रम के पास आ गई- “क्या हुआ विक्रम? तुम ठीक तो हो ना ?”

“कौन हो आप?” विक्रम ने आश्चर्य से आकृति को देखते हुए पूछा।

“तुम्हें क्या हो गया विक्रम? तुम मुझे पहचान क्यों नहीं पा रहे हो?” आकृति के चेहरे पर उलझन के भाव आ गये।

“मैं...मैं कौन हूं? तुम मुझे विक्रम क्यों बुला रही हो ? मेरा नाम तो.... मेरा नाम?....मेरा नाम मुझे याद क्यों नहीं आ रहा?” विक्रम के चेहरे पर उलझन के भाव साफ नजर आ रहे थे।

“लगता है चोट लगने के कारण विक्रम की स्मृति चली गई है।” आकृति ने मन में सोचा- “इस समय मेरे पास ज्यादा शक्तियां नहीं हैं.... अगर मैं विक्रम को कोई झूठी कहानी सुना दूं, तो मैं विक्रम की शक्तियों का इस्तेमाल स्वयं के लिये कर सकती हूं...और अगर कभी विक्रम की स्मृति वापस भी आ गई, तो वह शलाका का दुश्मन बन जायेगा....वाह क्या उपाय आया है मस्तिष्क में।

“पर...पर अगर बीच में कभी वारुणी ने विक्रम से, मानसिक तरंगों के द्वारा सम्पर्क करने की कोशिश की तो वह सबकुछ जान जायेगा
....सबसे पहले इसे अपनी नीली अंगूठी पहना देती हूं, इससे वारुणि कभी मानसिक तरंगों के द्वारा विक्रम से सम्पर्क स्थापित नहीं कर पायेगी, वैसे भी इस अंगूठी का इस्तेमाल, मैं पहले भी कई बार आर्यन को शलाका से बचाने के लिये कर चुकी हूं और इस अंगूठी का रहस्य भी किसी को नहीं पता।”

“आप मुझे विक्रम पुकार रहीं हैं।” विक्रम ने कहा- “मेरा नाम विक्रम है क्या?...पर मुझे कुछ भी याद क्यों नहीं आ रहा है?”

“मेरा नाम वारुणि है, तुम मेरे पति विक्रम हो, हम दोनों भारत में रहते हैं। तुम्हारे पास वायु की शक्तियां हैं, इन शक्तियों से तुम पृथ्वी की रक्षा करते हो। पर कुछ दिन पहले एक शक्तिशाली दुश्मन से लड़ते समय
तुम्हारे सिर पर चोट आ गई, जिससे तुम्हारी स्मृतियां चलीं गईं हैं। डॉक्टर ने तुम्हें कुछ दिन आराम करने को बोला है, इसलिये हम इस जहाज से न्यूयार्क घूमने जा रहे हैं। मेरे पिता ने मुझे एक अभिमंत्रित अंगूठी दी है। उन्होंने कहा है कि अगर तुम अगले 10 दिनों तक इस अंगूठी को बिना उतारे अपनी उंगली में पहने रहोगे, तो तुम्हारी स्मृतियां वापस आ जायेंगी।” आकृति ने कम समय में अच्छी खासी कहानी गढ़ दी।

यह कहकर आकृति ने अपने हाथ में पहनी नीली अंगूठी को विक्रम की ओर बढ़ा दिया।

आकृति की बात सुनकर विक्रम सोच में पड़ गया।

उसे सोच में पड़ा देख आकृति पुनः बोल उठी- “तुम्हें डॉक्टर ने ज्यादा सोचने को मना किया है।” अभी आकृति ने यह कहा ही था कि तभी उसके केबिन की घंटी बज उठी।

आकृति ने अंदर से ही तेज आवाज में पूछा- “कौन?”

“मैं जहाज का केबिन क्रू हूं, मुझे जहाज के डॉक्टर ने उस नौजवान की तबियत जानने के लिये भेजा है।” बाहर से एक आवाज उभरी।

“विक्रम की तबियत अब बिल्कुल ठीक है, उन्हें अब डॉक्टर की जरुरत नहीं है। मेरी तरफ से डॉक्टर को धन्यवाद कह देना।” आकृति ने बिना दरवाजा खोले ही तेज आवाज में कहा।

आकृति की बात सुन आगन्तुक चला गया, पर उसका इस प्रकार आना आकृति के लिये लाभकारी रहा।

अब विक्रम के चेहरे से चिंता के भाव हटते दिखाई दे रहे थे।

“अब तुम आराम से सो जाओ विक्रम, जब न्यूयार्क आयेगा, तो मैं तुम्हें उठा दूंगी।” आकृति ने कहा और विक्रम को सहारा देकर बिस्तर पर लिटा दिया।

विक्रम ने आकृति की दी हुई अंगूठी अपने दाहिने हाथ की सबसे छोटी उंगली में पहन ली थी।

जारी रहेगा______✍️
Nice update.....
 

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#156.

ऊर्जा द्वार:

आज से 3 दिन पहले...........(13.01.02, रविवार, 14:00, दूसरा पिरामिड, सीनोर राज्य, अराका द्वीप)

अराका द्वीप के सीनोर राज्य में मकोटा ने 4 पिरामिड का निर्माण कराया था।

इन चारो पिरामिड में क्या होता था, यह मकोटा के अलावा राज्य का कोई व्यक्ति नहीं जानता था।

पहले पिरामिड में अंधेरे का देवता जैगन बेहोश पड़ा था, जिसे उठा कर मकोटा पूर्ण अराका द्वीप पर राज्य करना चाहता था।

दूसरे पिरामिड में मकोटा की वेधशाला थी, जहां से वुल्फा अंतरिक्ष पर नजर रखता था। यहां से वुल्फा हरे कीड़ों के द्वारा कुछ नये प्रयोग भी करता था।

तीसरे और चौथे पिरामिड में मकोटा के सिवा कोई नहीं जाता था। वहां क्या था? यह किसी को नहीं पता था।

वुल्फा- आधा भेड़िया और आधा मानव। वुल्फा, मकोटा का सबसे विश्वासपात्र और एकमात्र सेवक था।

वुल्फा के अलावा मकोटा ने अपने महल में सिर्फ भेड़ियों को रखा था, उसे किसी भी अटलांटियन पर विश्वास नहीं था।

वुल्फा हर रोज की भांति आज भी दूसरे पिरामिड में मशीनों के सामने बैठकर, अंतरिक्ष का अध्ययन कर रहा था।

उसके सामने की स्क्रीन पर कुछ आड़ी-तिरछी लाइनें बन कर आ रही थीं। वुल्फा के सामने की ओर कुछ विचित्र सी मशीनों पर हरे कीड़े काम कर रहे थे।

उस वेधशाला में 2 हरे कीड़े मानव के आकार के भी थे।

वुल्फा की निगाहें स्क्रीन पर ही जमीं थीं। तभी वुल्फा को अपने सामने लगी मशीन पर एक अजीब सी हरकत होती दिखाई दी, जिसे देख वुल्फा आश्चर्य में पड़ गया।

“यह क्या? यह तो कोई अंजान सी ऊर्जा है, जो कि हमारे सीनोर द्वीप से ही निकल रही है।” वुल्फा ने ध्यान से देखते हुए कहा- “क्या हो सकता है यह?”

अब वुल्फा तेजी से एक स्क्रीन के पास पहुंच गया। इस स्क्रीन पर सीनोर द्वीप के बहुत से हिस्से दिखाई दे रहे थे।

वुल्फा के हाथ अब तेजी से उस मशीन के बटनों पर दौड़ रहे थे। कुछ ही देर में वुल्फा को सीनोर द्वीप का वह हिस्सा दिखाई देने लगा, जहां पर दूसरी मशीन अभी कोई हलचल दिखा रही थी।

वह स्थान चौथे पिरमिड से कुछ दूर वाला ही भाग था। उसके आगे से पोसाईडन पर्वत का क्षेत्र शुरु हो जाता था, पर पोसाईडन पर्वत का वह भाग, सीनोर द्वीप की ओर से किसी अदृश्य दीवार से बंद था।

तभी उस स्थान पर वुल्फा को हवा में तैरती कुछ ऊर्जा दिखाई दी।

“यह तो ऊर्जा से बना कोई द्वार लग रहा है। क्या हो सकता है इस द्वार में?....लगता है मुझे उस स्थान पर चलकर देखना होगा।” यह सोच वुल्फा उस मशीन के आगे से हटा और उस वेधशाला से कुछ यंत्र ले पिरामिड के पीछे की ओर चल दिया।

कुछ ही देर में वुल्फा पिरामिड के पीछे की ओर था। अब वुल्फा को हवा में मौजूद वह ऊर्जा द्वार धुंधला सा दिखाई देने लगा था।

वह ऊर्जा द्वार जमीन से 5 फुट की ऊंचाई पर था और वह बहुत ही हल्का दिखाई दे रहा था।

अगर वुल्फा ने उस द्वार को मशीन पर नहीं देखा होता, तो उसे ढूंढ पाना लगभग असंभव था।

अब वुल्फा उस ऊर्जा द्वार के काफी पास पहुंच गया। तभी वुल्फा को उस ऊर्जा द्वार से, किसी के कराहने की आवाज सुनाई दी। यह आवाज सुन वुल्फा हैरान हो गया।

“क्या इस ऊर्जा द्वार में कोई जीव छिपा है?” यह सोच वुल्फा ने अपनी आँखें लगा कर उस ऊर्जा द्वार के अंदर झांका, पर उसे अंधेरे के सिवा कुछ नजर नहीं आया।

कुछ नजर ना आते देख वुल्फा ने अपना हाथ उस ऊर्जा द्वार के अंदर डाल दिया।

वुल्फा का हाथ किसी जीव से टकराया, जिसे वुल्फा ने अपने हाथों से पकड़कर बाहर की ओर खींच लिया।

‘धम्म’ की आवाज करता एक जीव का शरीर उस ऊर्जा द्वार से बाहर आ गिरा।

वुल्फा ने जैसे ही उस जीव पर नजर डाली, वह आश्चर्य से भर उठा- “गोंजालो !....यह गोंजालो यहां पर कैसे आ गया? और....और इसके शरीर पर तो बहुत से जख्म भी हैं। ऐसा कौन हो सकता है? जिसने गोंजालो को घायल कर दिया.... मुझे इसे तुरंत पिरामिड में ले चलना चाहिये और मालिक को सारी बात बता देनी चाहिये....हां यही ठीक रहेगा।” यह कहकर वुल्फा ने गोंजालो के शरीर को किसी बोरे की भांति अपने शरीर पर लादा और पिरामिड की ओर चल दिया।

पर अभी वुल्फा 10 कदम भी नहीं चल पाया होगा कि उसे ऊर्जा द्वार की ओर से एक और आवाज सुनाई दी।

वुल्फा अब पलटकर पीछे की ओर देखने लगा।

तभी उस ऊर्जा द्वार से एक विचित्र सा जीव निकला, जो कि 8 फुट लंबा था, उसकी 3 आँखें थीं और 4 हाथ थे। उसकी पीठ पर कछुए के समान एक कवच लगा हुआ था।

उसके पैर और हाथ के पंजे किसी स्पाइनासोरस की तरह बड़े थे ।उसकी बलिष्ठ भुजाओ को देखकर साफ पता चल रहा था, कि उसमें असीम ताकत होगी। उसके हाथों में कोई अजीब सी, गन के समान मशीन थी।

वुल्फा ने कभी भी ऐसा जीव नहीं देखा था, इसलिये वह सावधानी से वहीं घास में बैठकर उसे देखने लगा।

अब उस जीव की नजर भी वुल्फा पर पड़ गई। उस जीव ने वुल्फा को ध्यान से देखा।

उसके ऐसा करते ही उस जीव की तीसरी आँख से लाल रंग की किरणे निकलकर वुल्फा पर ऐसे पड़ीं, मानो वह जीव उसे स्कैन करने की कोशिश कर रहा हो।

वुल्फा साँस रोके, वहीं घास में बैठा रहा। वुल्फा को स्कैन करने के बाद उस जीव ने पास पड़े गोंजालो को भी स्कैन किया।

इसके बाद वह उन दोनों को वहीं छोड़ आसमान में उड़ चला।

“मुझे लगता है कि इसने मुझे भेड़िया और गोंजालो को बिल्ली समझ छोड़ दिया, अगर यह जान जाता कि हम भी इंसानों की तरह से ही काम करते हैं, तो शायद इससे मेरा युद्ध हो रहा होता....या फिर मैं मरा पड़ा होता....क्यों कि वह जीव मुझसे तो ज्यादा ही ताकतवर दिख रहा था।”

यह सोच वुल्फा फिर से उठकर खड़ा हो गया और गोंजालो को अपनी पीठ पर लाद पिरामिड की ओर बढ़ गया।

चैपटर-5

जलदर्पण:
(तिलिस्मा 2.2)

ऑक्टोपस का तिलिस्म पार करने के बाद सभी एक दरवाजे के अंदर घुसे, पर जैसे ही सभी उस द्वार के अंदर आये, उन्हें सामने एक काँच की ट्यूब दिखाई दी।

“यह कैसा द्वार है? क्या हमें अब इस ट्यूब के अंदर जाना होगा?” क्रिस्टी ने आश्चर्य से ट्यूब को देखते हुए कहा।

“इस ट्यूब के अलावा यहां और कोई ऑप्शन भी नहीं है, इसलिये जाना तो इसी में पड़ेगा।” जेनिथ ने क्रिस्टी को देखते हुए कहा।

और कोई उपाय ना देख सभी उस काँच की ट्यूब में आगे बढ़ गये।
ट्यूब बिल्कुल गोलाकार थी और धीरे-धीरे उसका झुकाव इस प्रकार नीचे की ओर हो रहा था, मानो वह एक ट्यूब ना होकर किसी वाटर पार्क की राइड हो।

उस ट्यूब में पकड़ने के लिये कुछ नहीं था और फिसलन भी थी।

सबसे पीछे तौफीक चल रहा था। अचानक तौफीक का पैर फिसला और वह अपने आगे चल रहे ऐलेक्स से जा टकराया। जिसकी वजह से ऐलेक्स भी गिर गया।

तभी उस ट्यूब में पीछे की ओर पानी के बहने की आवाज आयी। इस आवाज को सुनकर सभी डर गये।

“कैप्टेन लगता है, पीछे से पानी आ रहा है और हमारे पास भागने के लिये भी कोई जगह नहीं है....जल्दी बताइये कि अब हम क्या करें।” ऐलेक्स ने सुयश से पूछा।

“ऐसी स्थिति में कुछ नहीं कर सकते, बस जितनी ज्यादा से ज्यादा देर तक साँस रोक सकते हो रोक लो।” सुयश ने सभी को सुझाव दिया।

सभी ने जोर की साँस खींच ली, तभी उनके पीछे से एक जोर का प्रवाह आया और वह सभी इस बहाव में ट्यूब के अंदर बह गये।

ट्यूब लगातार उन्हें लेकर बहता जा रहा था, पानी आँखों में भी तेजी से जा रहा था इसलिये किसी की आँखें खुली नहीं रह पायीं।

कुछ देर ऐसे ही बहते रहने के बाद आखिरकार पानी की तेज आवाज थम गई।

सभी ने डरकर अपनी आँखें खोलीं, पर आँखें खोलते ही सभी भौचक्के से रह गये, ऐसा लग रहा था कि वह सभी समुद्र के अंदर हैं, पर आश्चर्यजनक तरीके से सभी साँस ले रहे थे।

“कैप्टेन, यह कैसा पानी है, हम इसमें साँस भी ले पा रहे हैं और आपस में बिना किसी अवरोध के बात भी कर पा रहे हैं।” जेनिथ ने सुयश से कहा।

“यही तो कमाल है तिलिस्मा का... यह ऐसी तकनीक का प्रयोग कर रहा है, जिसे हम जरा सा भी नहीं जानते हैं।” सुयश ने भी आश्चर्यचकित होते हुए कहा।

“तिलिस्मा का नहीं ये मेरे कैस्पर का कमाल है।” शैफाली ने मुस्कुराते हुए कहा।

“अरे वाह, संकट में भी तुम अपने कैस्पर को नहीं भूली...अरे जरा ध्यान लगा कर अपने चारो ओर देखो, हम इस समय किसी बड़े से पिंजरे में बंद हैं। अब जरा कुछ देर के लिये कैस्पर को भूल जाओ।” जेनिथ ने मुस्कुराते हुए शैफाली को आसपास की स्थिति का अवलोकन कराया।

अब शैफाली की नजर अपने चारो ओर गई, इस समय वह लोग एक बड़ी सी चट्टान पर रखे एक विशाल पिंजरे में थे।

उस पिंजरे के दरवाजे पर एक 4 डिजिट का नम्बर वाला ताला लगा था। उस ताले के ऊपर लाल रंग की एल.ई.डी. से 3 लिखकर आ रहा था।

“कैप्टेन यह डिजिटल ताला तो समझ में आया, पर यहां 3 क्यों लिखा है?” क्रिस्टी ने सुयश से पूछा।

“मुझे लग रहा है कि शायद हम 3 बार ही इसके नम्बर को ट्राई कर सकते हैं।” शैफाली ने बीच में ही बोलते हुए कहा- “मतलब 3 बार में ही हमें इस ताले को खोलना होगा और अगर नहीं खोल पाये तो हम यहीं फंसे रह जायेंगे।”

“दोस्तों पहले हमें सभी चीजों को एक बार ध्यान से देखना होगा, तभी हम उन चीजों का सही से उपयोग कर पायेंगे।” सुयश ने सभी को नियम याद दिलाते हुए कहा।

“आप सही कह रहे हैं कैप्टेन।” तौफीक ने कहा- “तो सबसे पहले पिंजरे पर ही ध्यान देते हैं....पिंजरे के अंदर कुछ भी नहीं है और यह 6 तरफ से किसी वर्गाकार डिब्बे की तरह है...यह किसी धातु की सुनहरी
सलाखों से बना है...इन सलाखों के बीच में इतना गैप नहीं है कि कोई यहां से बाहर निकल सके...अब आते हैं बाहर की ओर....बाहर हमारे दाहिनी ओर, हमें कुछ दूरी पर एक जलपरी की मूर्ति दिख रही है।

“हमारे बांई ओर एक दरवाजा बना है, जो कि बंद है। शायद यही हमारे निकलने का द्वार हो , मगर दरवाजे पर एक ताला लगा है, जिस पर एक चाबी लगने की जगह भी दिखाई दे रही है। हमारे पीछे की ओर दूर-दूर तक पानी है...अब उसके आगे भी अगर कुछ हो तो कह नहीं सकते?” इतना कहकर तौफीक चुप हो गया।

“कैप्टेन कुछ चीजें मैं भी इसमें जोड़ना चाहता हूं।” ऐलेक्स ने कहा- “हमारे सामने की ओर कुछ दूरी पर मौजूद एक पत्थर पर एक छोटा सा बॉक्स रखा है, पता नहीं उसमें क्या है? और मैंने अभी-अभी पानी में
अल्ट्रासोनिक तरंगे महसूस कीं.... जो शायद किसी डॉल्फिन के यहां होने का इशारा कर रही है। और इस सामने वाले दरवाजे की चाबी, उस जलपरी वाली मूर्ति की मुठ्ठी में बंद है, उसका थोड़ा सा सिरा बाहर निकला है, जो कि मुझे यहां से दिख रहा है।”

“अरे वाह, ऐलेक्स ने तो कई गुत्थियों को सुलझा दिया।” क्रिस्टी ने खुश होते हुए कहा- “इसका मतलब हमें इस द्वार को पार करने के लिये पहले इस पिंजरे से निकलना होगा और पिंजरे से निकलने के लिये पहले हमें 4 अंकों का कोड चाहिये होगा।....पर वह कोड हो कहां सकता है?” क्रिस्टी यह कहकर चारो ओर देखने लगी, पर उसे कोड जैसा कुछ भी दिखाई नहीं दिया।

“मुझे लगता है कि हमारे सामने की ओर पत्थर पर जो बॉक्स रखा है, अवश्य ही हमारे पिंजरे का कोड उसी में होगा?” शैफाली ने बॉक्स की ओर इशारा करते हुए कहा- “पर बिना पिंजरे से निकले तो हम उस बॉक्स तक पहुंच भी नहीं सकते.... फिर...फिर उस बॉक्स को कैसे खोला जा सकता है?”

“कुछ ना कुछ तो हमारे आस-पास जरुर है जो कि हम देख नहीं पा रहे हैं?” सुयश मन ही मन बुदबुदाया।

तभी जेनिथ को पिंजरे में एक जगह पर पतली डोरी लटकती दिखाई दी, जेनिथ ने सिर ऊपर उठाकर उस डोरी का स्रोत जानने के कोशिश की।

पर सिर ऊपर उठाते ही वह मुस्कुरा दी क्यों कि ऊपर पिंजरे की सलाखों से चिपका उसे ‘फिशिंग रॉड’ दिखाई दे गया।

जेनिथ ने सुयश को इशारा करके वह फिशिंग रॉड दिखाई।

चूंकि वह फिशिंग रॉड पिंजरे की छत पर थी और पिंजरे के छत की ऊंचाई 10 फुट के पास थी, इसलिये सुयश ने शैफाली को अपने कंधों पर उठा लिया।

शैफाली ने उस फिशिंग रॉड को पिंजरे के ऊपर से खोल लिया।

फिशिंग रॉड के आगे वाले भाग में एक हुक बंधा था और डोरी के लिये एक चकरी लगी थी।

“हहममममम् फिशिंग रॉड तो हमें मिल गयी, पर इसमें मौजूद डोरी तो मात्र 10 मीटर ही है। जबकि वह बॉक्स हमसे कम से कम 20 मीटर की दूरी पर है। यानि कि हम अब भी इस फिशिंग रॉड के द्वारा उस बॉक्स तक नहीं पहुंच सकते। हमें कोई और ही तरीका ढूंढना पड़ेगा।” सुयश ने लंबी साँस भरते हुए कहा।

तभी शैफाली की नजर अपने दाहिनी ओर जमीन पर लगी हरे रंग की घास की ओर गई। उस घास को देखकर शैफाली को एक झटका लगा, अब वह तेजी से अपने चारो ओर देखने लगी।

उसे ऐसा करते देख सुयश ने हैरानी से कहा- “क्या हुआ शैफाली? तुम क्या ढूंढने की कोशिश कर रही हो?”

“यह जो घास सामने मौजूद है, इसे ‘टर्टल ग्रास’ कहते हैं, यह घास वयस्क समुद्री कछुए खाते हैं। अब उस घास के बीच में कटी हुई घास का एक छोटा सा गठ्ठर रखा है, जो कि ध्यान से देखने पर ही दिख रहा है। अब बात ये है कि ये जगह प्राकृतिक नहीं है, बल्कि कैश्वर द्वारा बनायी गयी है, अब कैश्वर ऐसे किसी चीज का तो निर्माण नहीं करेगा, जिसका कोई मतलब ना हो। यानि कि हमारे आस-पास जरुर कोई कछुआ भी है। मैं उसी कछुए को ढूंढ रही थी।”

शैफाली की बात सुन ऐलेक्स ने अपनी आँखें बंद करके अपनी नाक पर जोर देना शुरु कर दिया।

शायद वह कछुए की गंध सूंघने की कोशिश कर रहा था। कुछ ही देर में ऐलेक्स ने अपनी आँखें खोल दीं, मगर अब उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी।

“शैफाली सही कह रही है कैप्टेन... हमारे पास एक कछुआ है।” ऐलेक्स के चेहरे पर अभी भी मुस्कान बिखरी थी। ऐलेक्स की बात सुन सभी उसकी ओर देखने लगे।

“कैप्टेन, हमारा पिंजरा जिस पत्थर पर रखा है, वह पत्थर नहीं बल्कि एक विशाल कछुआ ही है। मैंने उसकी गंध पहचान ली है।” ऐलेक्स ने सस्पेंस खोलते हुए कहा।

अब सबका ध्यान उस विशाल कछुए की ओर गया।

“अगर यह कछुआ है तो अब हम उस बॉक्स तक पहुंच सकते हैं।” शैफाली ने कहा और सुयश के हाथ में पकड़ा फिशिंग रॉड तौफीक को देते हुए कहा- “तौफीक अंकल, जरा अपने निशाने का कमाल दिखाकर इस फिशिंग रॉड से उस घास के गठ्ठर को उठाइये।”

घास का वह गठ्ठर पिंजरे से मात्र 8 मीटर की ही दूरी पर था और इतनी कम दूरी से घास को उठाना तौफीक के बाएं हाथ का खेल था।

बामुश्किल 5 मिनट में ही वह घास का गठ्ठर तौफीक के हाथों में था। तौफीक ने वह घास का गठ्ठर शैफाली को पकड़ा दिया।

शैफाली ने उस घास के गठ्ठर को अच्छी तरह से फिशिंग रॉड के आगे वाले हुक में बांध दिया और अपना एक हाथ बाहर निकालकर, उस घास के गठ्ठर को कछुए के मुंह के सामने लहराया। घास का गठ्ठर देख कछुए ने अपना सिर गर्दन से बाहर निकाल लिया।

अब वह आगे बढ़कर घास को खाने की कोशिश करने लगा, पर जैसे ही वह कछुआ आगे बढ़ता उसके आगे लटक रहा घास का गठ्ठर स्वतः ही और आगे बढ़ जाता।

और इस प्रकार से शैफाली उस कछुए को लेकर पत्थर के पास वाले बॉक्स तक पहुंच गई। अब शैफाली ने फिशिंग रॉड को वापस पिंजरे में खींच लिया।

फिशिंग रॉड के खींचते ही कछुआ फिर से पत्थर बनकर वहीं बैठ गया।
शैफाली ने फिशिंग रॉड के हुक से घास का गठ्ठर हटाकर फिशिंग रॉड एक बार फिर तौफीक के हाथों में दे दी।

“तौफीक अंकल अब आपको इस फिशिंग रॉड से उस बॉक्स को उठाना है, ध्यान से देख लीजिये उस बॉक्स के ऊपर एक छोटा सा रिंग जुड़ा हुआ है, आपको फिशिंग रॉड का हुक उस रिंग में ही फंसाना है।”
शैफाली ने तौफीक से कहा।

तौफीक ने धीरे से सिर हिलाया और एक बार फिर नयी कोशिश में जुट गया।

यह कार्य पहले वाले कार्य से थोड़ा मुश्किल था, पर तौफीक ने इस कार्य को भी आसान बना दिया।

बॉक्स का आकार, पिंजरे में लगे सरियों के गैप से ज्यादा था, इसलिये वह बॉक्स अंदर नहीं आ सकता था।
अतः शैफाली ने उसे पिंजरे के बाहर ही खोल लिया।

उस बॉक्स में एक छोटा सा रोल किया हुआ सुनहरी धातु का एक पतला कागज सा था, जिस पर ताले का कोड नहीं बल्कि एक कविता की पंक्तियां लिखीं थीं, जो कि इस प्रकार थी-

“जीव, अंक सब तुमको अर्पण,
जब देखोगे जल में दर्पण।”


जारी रहेगा______✍️
अप्रतिम लाजवाब और अद्भुत विलोभनीय रोमांचक अपडेट है भाई मजा आ गया
अब कविता का मतलब समझते हैं
देखते हैं आगे
 

Napster

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#157.

“हे भगवान, ये कैश्वर भी ना...हम लोगों की जान लेकर ही मानेगा।” ऐलेक्स ने झुंझलाते हुए कहा- “अब ये एक नयी पहेली आ गई।”

“मुझे लगता है कि यहीं कहीं पानी में कोई दर्पण रखा है, जिस पर इस ताले का कोड लिखा होगा ?” शैफाली ने कहा- “पर मुश्किल यह है कि अब उस दर्पण को इतने बड़े सागर में कहां ढूंढे?”

“यहां हम अपने आस-पास की सारी चीजें देख चुके हैं।” जेनिथ ने शैफाली को समझाते हुए कहा- “हमारे दाहिनी, बांयी और सामने की ओर पत्थर ही हैं, मुझे लगता है कि हमें इस कछुए को पीछे की ओर ले चलना पड़ेगा, शायद उस दिशा में ही कहीं इस ताले का कोड हो?”

“शैफाली, जेनिथ सही कह रही है, तुम्हें इस कछुए को पीछे की ओर लेकर चलना होगा।” सुयश ने शैफाली से कहा।

शैफाली ने एक बार फिर फिशिंग रॉड को घास के गठ्ठर के साथ बाहर निकाला और कछुए को लेकर पीछे की ओर चल दी।

कुछ पीछे चलने के बाद सभी को एक ऊचे से पत्थर के पास कुछ चमकती हुई रोशनी सी दिखाई दी।

सुयश ने शैफाली को उस दिशा में चलने का इशारा किया। शैफाली ने कछुए को उस दिशा में मोड़ लिया।

पास पहुंचने पर सभी खुश हो गये, क्यों कि सामने एक संकरे से रास्ते के बाद, पत्थर पर सुनहरे रंग के 4 अंक चमक रहे थे और वह अंक थे ‘8018’

“मिल गया ऽऽऽऽऽ! हमें ताले का कोड मिल गया।” ऐलेक्स ने खुशी भरे स्वर में चिल्ला कर कहा।

“रुक जाओ।” सुयश ने चिल्ला कर कहा- “पहले इस कोड को ठीक से देखने दो, क्यों कि हमारे पास केवल 3 चांस ही हैं।”

“पर कैप्टेन, कोड तो बिल्कुल साफ दिख रहा है, अब इसमें इतना सोचने वाली क्या बात है?” ऐलेक्स ने उत्साहित शब्दों में कहा।

“साफ तो दिख रहा है, पर ध्यान से देखों इस कोड के अंको को। इस पर लिखे अंक साधारणतया ‘कर्शिव’ (घुमावदार) राइटिंग में होने चाहिये थे, पर यह सारे अंक सीधी लाइनों से बनाये गये हैं और ऐसा हमें सिर्फ
डिजिटल चीजों में ही दिखता है। दूसरी बात मुझे यह भी विश्वास नहीं हो रहा कि यह कोड इतनी आसानी से हमें कैसे मिल गया? सुयश ने शंकित स्वर में कहा।

“कैप्टेन, क्या मैं इस कोड को ताले पर लगा कर देखूं?” जेनिथ ने सुयश से पूछते हुए कहा।

कुछ देर सोचने के बाद सुयश ने हां कर दी।

जेनिथ ने ताले पर 8018 लगा दिया....पर.....पर ताला नहीं
खुला, बल्कि अब उसके ऊपर 2 लिखकर आने लगा, यानि की अब बस 2 चांस और बचे थे।

“आई न्यू इट.....तभी मैं कह रहा था कि कुछ तो गड़बड़ है।” सुयश ने झुंझलाते हुए कहा- “हमें कविता की पंक्तियों पर फिर से ध्यान देना होगा। उसकी पहली पंक्ति तो पूरी हो चुकी है, मतलब जीव यानि कि कछुआ और अंक यानि की यह अंक हमें मिल चुके हैं, अब बची दूसरी पंक्ति ‘जब देखोगे जल में दर्पण’ ....मतलब हमें जो अंक पत्थर पर चमकते दिखाई दे रहे हैं, वह किसी दर्पण से परावर्तित हो कर आ रहे हैं,
यानि कि असली अक्षर 8018 नहीं बल्कि 8108 होना चाहिये।”

“क्या इस नम्बर को भी कोशिश करके देखें कैप्टेन?” जेनिथ ने सुयश की ओर देखते हुए कहा।

“जरा रुक जाओ जेनिथ।” सुयश ने जेनिथ को रोकते हुए कहा- “शैफाली क्या तुम्हारा कछुआ और आगे नहीं जा सकता, क्यों कि हमारे सामने दिख रहे अंक कहीं से तो परावर्तित होकर आ रहे हैं...तो अगर
हमें असली अंक दिख जाएं, तो सारी मुश्किल ही खत्म हो जायेगी।”

“नहीं कैप्टेन अंकल, आगे का रास्ता बहुत संकरा है और इस कछुए का आकार बड़ा...इसलिये यह कछुआ इससे आगे नहीं जा सकता और अगर हमने इस कछुए को पत्थर पर चढ़ाने की कोशिश की तो हमारा
पिंजरा इसकी पीठ से गिर भी सकता है, और वो स्थिति हमारे लिये और खतरनाक होगी।” शैफाली ने सुयश से कहा।

शैफाली का तर्क सही था, इसलिये सुयश ने कुछ कहा नहीं और वह फिर से सोचने लगा।

“अगर कोई अंक दर्पण में दिखाई देता है, तो वह 2 प्रकार का ही हो सकता है, यानि कि या तो उल्टा या फिर सीधा।” तौफीक ने अपना तर्क देते हुए कहा- “अब एक तरीका तो हम लोग अपना ही चुके है, तो दूसरा तरीका ही सही होगा।....मुझे नहीं लगता कि बहुत ज्यादा सोचने की जरुरत है कैप्टेन।”

तौफीक की बात सुन सुयश ने फिर अपना सिर हिला दिया।

सुयश के सिर हिलाते ही जेनिथ फिर दरवाजे के लॉक की ओर बढ़ गई।

जेनिथ ने इस बार 8108 लगाया, पर फिर यह कोड गलत था। अब उस ताले के ऊपर 1 लिखकर आने लगा। अब तो सबकी साँसें सूख गईं।

“अब हम फंस गयें हैं कैप्टेन।” क्रिस्टी ने कहा- “क्यों कि हमने कोड को दोनो तरीके से लगाकर देख लिया है....अब तो कोई ऑप्शन नहीं बचा।.....मुझे तो लग रहा है कि पत्थर पर दिख रहा यह कोड किसी और चीज का है? जो कि कैश्वर ने हमें भ्रमित करने के लिये रखा था। असली कोड कहीं और छिपा है?”

“नहीं ! ऐसा नहीं हो सकता....हमें किसी चीज निर्माण करते समय चीटिंग करना नहीं सिखाया गया था.... हमारे दरवाजे का कोड तो यही है, पर हम कहीं गलती कर रहे हैं?” शैफाली के शब्दों में दृढ़ता नजर आ रही थी।

ऐलेक्स को शैफाली के शब्दों पर पूरा भरोसा था, अब वह ध्यान से पत्थर पर मौजूद उन अंको को फिर से देखने लगा।

ऐलेक्स लगातार 2 मिनट तक उस पत्थर पर लिखी संख्या को देखता रहा और फिर उसके चेहरे पर मुस्कान बिखर गई।

क्रिस्टी ऐलेक्स के चेहरे की मुस्कान देखकर समझ गई कि ऐलेक्स ने फिर कोई रहस्य जान लिया है।

ऐलेक्स बिना किसी से बोले, पिंजरे के लॉक तक पहुंचा और फिर एक कोड लगाने लगा।

इससे पहले कि कोई ऐलेक्स को रोक पाता, ऐलेक्स ने वह लॉक खोल दिया था।

लॉक को खुलते देख, सभी आश्चर्य से ऐलेक्स को देखने लगे।

क्रिस्टी तो दौड़कर ऐलेक्स के गले ही लग गई और ऐलेक्स का माथा चूमते हुए बोली- “मैं तो पहले ही कहती थी कि मेरे ब्वॉयफ्रेंड का दिमाग सबसे तेज है।”

“ये कब कहा तुमने?” ऐलेक्स ने नकली आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा- “मैंने तो ऐसे शब्द पहले कभी नहीं सुने।”

“अरे ये पप्पियां -झप्पियां बाद में कर लेना।” जेनिथ ने बीच में घुसते हुए कहा- “पहले हमें ये बताओ कि असली कोड था क्या?”

“असली कोड था- 8010” ऐलेक्स ने जेनिथ की ओर देखते हुए कहा- “और वह दर्पण का परावर्तन नहीं था, बल्कि काँच के पारदर्शी टुकड़े के पार आयी परछाई थी।”

“तो इससे अंक कैसे बदल गया?” सुयश ने ऐलेक्स को बीच में ही टोकते हुए कहा।

“आसान शब्दों में बताता हूं कैप्टेन।” ऐलेक्स ने कहा- “असल में हमने सबसे पहले पत्थर पर ‘8018’ लिखा देखा, पर जब वह संख्या सही नहीं निकली, तो हमने ये समझा कि शायद वह संख्या कहीं दर्पण पर लिखी है और उस दर्पण पर पड़ने वाली रोशनी की वजह से, हमें उसका उल्टा प्रतिबिम्ब दिख रहा है, यह सोच हमने ‘8108’ ट्राई किया। पर वह संख्या भी गलत निकली।

“अब इन 2 संख्याओं के अलावा और कोई संख्या संभव नहीं थी। तब मैंने ध्यान से उस अंक को कुछ देर तक देखा, तो मुझे उस संख्या के आखिरी अंक पर एक समुद्री कीड़ा बैठा दिखाई दिया। जो कि मेरे ध्यान से देखने पर, एक बार हिलता नजर आया। तब मुझे पता चला कि असल में सही अंक ‘8010’ है, पर समुद्री कीड़े के बैठ जाने की वजह से, वह हमें ‘8018’ दिखने लगी थी। अब मैंने और ध्यान से उस अंक को देखा, तो मुझे पता चला कि वह संख्या उसी पत्थर के ऊपर रखे एक काँच के टुकड़े पर लिखी थी, जिस पर ऊपर से रोशनी पड़ने की वजह से उसका प्रतिबिम्ब हमें नीचे दिखाई दे रहा था।

“अब मैं आपको साधारण शीशे और दर्पण के परावर्तन का अंतर बताता हूं। अगर किसी दर्पण पर कुछ लिखकर उस पर प्रकाश मारा जाये, तो जहां भी उस दर्पण का परावर्तित प्रकाश गिरेगा, वह उस लिखे हुए अंक को उल्टा दिखायेगा। परंतु अगर हम किसी पारदर्शी शीशे पर कुछ लिखकर उस पर प्रकाश मारें, तो उसके पार जाने वाला प्रकाश उन लिखे हुए अंकों को सीधा ही दिखायेगा।”

“अब मैं समझ गया कि यहां लिखे अंक सीधी लाइनों से क्यों बनाये गये थे? क्यों कि सीधी लाइन से बने ‘0’ को आसानी से ‘8’ में बदला जा सकता था।” सुयश ने मुस्कुराते हुए कहा- “चलो...अच्छी बात है कि कम
से कम दरवाजा तो खुल गया। यह कहकर सुयश पिंजरे का दरवाजा खोलकर बाहर आ गया।

सुयश के पीछे-पीछे बाकी लोग भी बाहर आ गये। सभी के बाहर आते ही कछुआ, फिशिंग रॉड और पिंजरे के साथ कहीं गायब हो गया।

“लगता है कि कछुए का काम पूरा हो गया।” सुयश ने कहा- “अब हमें सबसे पहले इस द्वार को पार करने के लिये जलपरी के हाथ में पकड़ी चाबी चाहिये।” यह कहकर सुयश जलपरी की मूर्ति की ओर बढ़ गया।

जलपरी की वह मूर्ति एक पत्थर पर बैठी थी। जलपरी के हाथ की मुठ्ठी बंद थी और उसके मुठ्ठी के एक किनारे से चाबी थोड़ी सी दिख रही थी।

सुयश ने जलपरी के हाथ से उस चाबी को निकालने का बहुत प्रयत्न किया, पर सब बेकार गया। चाबी जलपरी के हाथ से ना निकली।

“लगता है कि अभी कोई और पेंच भी बाकी है?” शैफाली ने कहा- “मुझे नहीं लगता कि हम ऐसे मूर्ति के हाथ से चाबी निकाल पायेंगे। मुझे लगता है कि या तो इस जलपरी को जिंदा करके, इसके हाथ से चाबी निकालना है? या फिर यहां पर अवश्य ही कोई ऐसा यंत्र छिपा होगा, जिसके द्वारा मूर्ति के हाथ से चाबी निकालना होगा?”

“शैफाली सही कह रही है, हमें थोड़ा आगे घूमकर आना चाहिये, अवश्य ही इसका उपाय कहीं ना कहीं होगा?” जेनिथ ने कहा।

जेनिथ की बात से सभी सहमत थे, इसलिये सभी उठकर आगे की ओर चल दिये।

कुछ आगे जाने पर सभी को पानी में, एक नीले रंग का 15 फुट का, गोल गुब्बारा दिखाई दिया, जिसमें हवा भरी थी और वह इसकी वजह से पानी की लहरों पर इधर-उधर तैर रहा था।

“इस गुब्बारे में कुछ ना कुछ तो है?” सुयश ने कहा- “पर पहले और आगे देख लें, फिर इस गुब्बारे के बारे में सोचेंगे।”

सुयश की बात सुन सभी और आगे बढ़ गये।

कुछ आगे जाने पर सभी को एक बड़ी सी काँच की नकली व्हेल मछली दिखाई दी, जिसके अंदर की हर चीज बाहर से साफ दिखाई दे रही थी।

उस व्हेल का मुंह पूरा गोल था और उसके बड़े-बड़े तलवार जैसे दाँत दूर से ही चमक रहे थे।

वह व्हेल अपना मुंह 1 सेकेण्ड के लिये खोलती और फिर तेजी से बंद कर लेती।

यह क्रम बार-बार चल रहा था। व्हेल जब भी अपना मुंह बंद करती, पानी में एक जोर की आवाज गूंज रही थी।

“यह क्या आफत है?” तौफीक ने व्हेल को देखते हुए कहा- “अब ये ना हो कि इस व्हेल के पेट में कोई चीज हो और हमें उसे लेने जाना पड़े?”

“आपका सोचना बिल्कुल सही है तौफीक भाई।” ऐलेक्स ने मुस्कुराते हुए कहा- “मुझे इस व्हेल के पेट में एक काँच की बोतल रखी दिखाई दे रही है, जिसमें कोई द्रव भरा है और उस बोतल पर एक जलपरी
की तस्वीर भी बनी है।”

“फिर तो पक्का उसी द्रव को पिलाने से वह जलपरी जीवित होगी।” शैफाली ने कहा- “पर उस बोतल को लाना तो बहुत ही मुश्किल है, यह व्हेल तो मात्र 1 सेकेण्ड के लिये अपना मुंह खोल रही है और इतने कम समय में हममें से कोई भी तैर कर इस व्हेल के मुंह में नहीं जा सकता।”

“पर डॉल्फिन तो जा सकती है।” ऐलेक्स ने शैफाली से पूछा- “जो कि इस समय उस गुब्बारे के अंदर है।”

“हां डॉल्फिन चाहे तो इतनी स्पीड से अंदर जा सकती है, पर वह बोतल कैसे उठायेगी?” शैफाली ने सोचते हुए कहा।

“चलो पहले गुब्बारे से डॉल्फिन को निकाल तो लें, फिर सोचेंगे कि करना क्या है?” सुयश ने कहा और उस गुब्बारे की ओर चल दिया।

गुब्बारे के पास पहुंचकर सुयश ने तौफीक को गुब्बारा फोड़ने का इशारा किया।

तौफीक ने अपने हाथ में पकड़े चाकू से गुब्बारे को फोड़ दिया।

ऐलेक्स का कहना बिल्कुल सही था, उस गुब्बारे में एक 8 फुट की नीले रंग की सुंदर सी डॉल्फिन थी।

डॉल्फिन बाहर निकलते ही सभी के चारो ओर घूमने लगी, फिर डॉल्फिन ने एक जोर का चक्कर लगाया और सीधे व्हेल के खुले मुंह से अंदर जा घुसी। डॉल्फिन की स्पीड देखकर सभी खुश हो गये।

“डॉल्फिन की स्पीड तो बहुत अच्छी है, पर उससे बोतल मंगाना कैसे है?” क्रिस्टी ने सभी की ओर देखते हुए कहा।

“यह काम मैं करुंगी।” जेनिथ ने अपना हाथ ऊपर उठाते हुए कहा। सभी आश्चर्य से जेनिथ की ओर देखने लगे।

उन्हें अपनी ओर देखते पाकर जेनिथ बोल उठी- “मैं इस डॉल्फिन के शरीर से चिपककर इस व्हेल के मुंह को पार करुंगी। अगर मुझे कहीं चोट लग भी गई तो नक्षत्रा मुझे ठीक कर देगा।”

“वो तो ठीक है जेनिथ दीदी, पर इस डॉल्फिन के शरीर से चिपककर बैठे रहना बहुत मुश्किल है, यह सिर्फ वही इंसान कर सकता है जो कि पहले भी डॉल्फिन की सैकड़ों बार सवारी कर चुका हो।” शैफाली ने जेनिथ की ओर देखते हुए कहा।

“ऐसा कौन है अपने पास?” ऐलेक्स ने चारो ओर देखते हुए कहा।

“क्या ऐलेक्स भैया, आप सिर्फ शैफाली को ही याद करते हैं...कभी-कभी मैग्ना को भी याद कर लिया कीजिये।” शैफाली ने मुस्कुराते हुए कहा।

शैफाली की बात सुन अब सबके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।

शैफाली ने अब अपने मुंह गोल करके ना जाने क्या किया कि डॉल्फिन सीधा व्हेल के मुंह से निकलकर उसके पास आ गई।

शैफाली ने धीरे से डॉल्फिन की पीठ थपथपाई और एक झटके से उसकी पीठ पर सवार हो गई।

शैफाली थोड़ी देर तक पानी में इधर-उधर तैरती रही और फिर उसने अपना शरीर डॉल्फिन के शरीर से बिल्कुल चिपका लिया और एक झटके से व्हेल के मुंह में प्रवेश कर गई।

शैफाली की गति इतनी तेज थी कि यदि वह व्हेल आधे सेकेण्ड में भी अपना मुंह बंद करती, तब भी शैफाली सुरक्षित उसके मुंह में चली जाती।

कुछ ही देर में शैफाली उस द्रव्य की बोतल लेकर बाहर आ गई।

सभी अब वह बोतल ले जलपरी की ओर चल दिये। जलपरी के पास पहुंच कर शैफाली ने उस द्रव्य की बोतल को खोलकर उसे जलपरी के मुंह से लगा दिया।

आश्चर्यजनक तरीके से बोतल का पूरा द्रव्य उस जलपरी ने खाली कर दिया।

पूरा द्रव्य पीने के बाद वह जलपरी अब जीवित हो गई।

उसने एक बार अपने सामने मौजूद सभी को देखा और अपनी मुठ्ठी में बंद चाबी को शैफाली के हवाले कर दिया।

चाबी देने के बाद वह जलपरी उछलकर डॉल्फिन पर बैठी और वहां से गायब हो गई।

“भगवान का शुक्र है कि इस जलपरी ने हम पर हमला नहीं किया।” ऐलेक्स ने क्रिस्टी को चिकोटी काटते हुए कहा।

“उफ् ... तुमने मुझे चिकोटी काटी, मैं तुम्हारा मुंह नोंच लूंगी।” यह कहकर क्रिस्टी, ऐलेक्स की ओर झपटी, पर ऐलेक्स पहले से ही तैयार था, वह अपनी जान छुड़ा कर वहां से भागा।

इधर क्रिस्टी और ऐलेक्स की मस्ती चल रही थी, उधर शैफाली ने उस चाबी से तिलिस्मा का अगला द्वार खोल दिया।

द्धार खुलते देख ऐलेक्स भागकर सबसे पहले द्वार में घुस गया।

क्रिस्टी मुंह बनाकर सबके साथ उस द्वार मंल प्रवेश कर गई।



जारी रहेगा_______✍️
बहुत ही शानदार लाजवाब और रोमांचकारी अपडेट हैं भाई मजा आ गया
सबकी सुजबुझ से सुयश और टीम और एक व्दार खोलने में सफल हो गई
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

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#158.

युद्धनीति:
(15.01.02, मंगलवार, 16:15, नक्षत्रलोक, कैस्पर क्लाउड)

कैस्पर उस विचित्र जीव को देखने के बाद वारुणि को लेकर अपने कमरे में आ गया था।

वारुणि पिछले 3 घंटे से कैस्पर के सामने एक कुर्सी पर बैठी, कैस्पर की हरकतें देख रही थी।

कैस्पर कमरे की जमीन पर बैठा, आँख बंदकर ध्यानमग्न था। कैस्पर अपने होंठों ही होंठों में कुछ बुदबुदा रहा था।

वारुणि के दिमाग में कैस्पर के कहे शब्द अभी भी गूंज रहे थे- “तुम्हें इस युद्ध में एक निर्णायक भूमिका निभानी होगी वारुणि।”

वारुणि का मस्तिष्क अनेको झंझावातों से गुजर रहा था- “अटलांटिक महासागर में गिरने वाला वह उल्का पिंड कैसा है? जिससे निकल रही तेज ऊर्जा ने पृथ्वी की ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचाना शुरु कर दिया था। वह 3 आँख और 4 हाथ वाला विचित्र जीव कौन है? जिसे किसी ने बिना कैस्पर से पूछे, उसकी शक्तियों का प्रयोग कर बनाया था? वह जीव ‘सिग्नल माडुलेटर’ के द्वारा 2 दिन पहले किसे अंतरिक्ष में सिग्नल भेज रहा था? कैस्पर पृथ्वी पर आने वाले किस संकट की बात कर रहा था? और....और उस महायुद्ध में क्या होनी थी वारुणि की निर्णायक भूमिका? जिसका जिक्र कैस्पर ने उससे किया था।”

ऐसे ही ना जाने कितने अंजाने सवाल वारुणि के दिमाग में चल रहे थे और ऐसे खतरनाक समय में, विक्रम भी ना जाने 2 दिन से कहां गायब था?

अभी वारुणि यह सब सोच ही रही थी कि तभी कैस्पर ने अपनी आँखें खोल दीं।

“महाप्रभु की जय।” वारुणि ने हाथ जोड़कर कैस्पर को अभिवादन करते हुए कहा- “महाप्रभु ने आखिरकार 3 घंटे के बाद अपनी आँखें खोल ही दीं।”

कैस्पर, ने वारुणि के कटाक्ष को महसूस कर लिया, पर उसे कुछ कहा नहीं....सच ही तो था, 3 घंटे का इंतजार कम नहीं होता।

“क्षमा करना वारुणि, इस समस्या की जड़ इतनी गहरी थी, कि उसे समझने में बहुत ज्यादा वक्त लग गया।” कैस्पर ने कान पकड़ते हुए वारुणि से कहा।

“हे देव, अब अगर आप सब कुछ समझ गये हैं, तो अब हम जैसे निरीह जीवों पर दया कर, हमें भी कुछ समझाने का कष्ट करें।” वारुणि के चेहरे पर अब शैतानी साफ नजर आ रही थी।

वारुणि का यह तरीका देख कैस्पर के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

अब उसने बोलना शुरु कर दिया- “वारुणि पहले मैं तुम्हें अपनी निर्माण शक्ति के बारे में समझाता हूं.... मेरी निर्माण शक्ति, कल्पना शक्ति से चलती है। इस शक्ति के द्वारा मैं किसी भी भवन, महल, नगर या फिर ग्रह का निर्माण कर सकता हूं। मैंने अपने कार्य को सरल बनाने के लिये अपनी निर्माण शक्ति को आधुनिक विज्ञान के द्वारा, उसे एक ऐसे कंप्यूटर से जोड़ दिया, जिसे मैंने स्वयं बनाया था। मैंने उस आधुनिक कंप्यूटर का नाम कैस्पर 2.0 रखा।

"मैंने कैस्पर 2.0 को इस प्रकार बनाया कि उसका स्वयं का मस्तिष्क हो और वह छोटे-छोटे निर्णय स्वयं से ले सके। पर मैग्ना के जाने के बाद, मैं ज्यादा से ज्यादा कंप्यूटर पर निर्भर करता चला गया। यही निर्भरता कैस्पर 2.0 को लगातार शक्तिशाली बनाती गई।

“हजारों वर्षों के बाद कैस्पर 2.0 मेरे द्वारा किये जाने वाले सभी कार्यों को बिना किसी त्रुटि के करने लगा। यह मेरे लिये बहुत अच्छी खबर थी। अब मेरे पास एक ऐसा कंप्यूटर था, जिससे मैं अपने दुख-सुख, अपनी बातें, अपने अहसास सबकुछ शेयर करने लगा, जिसके कारण कैस्पर 2.0 को इंसानी भावनाओं को भी सीखने का समय मिल गया। उधर हजारों वर्ष पहले ग्रीक देवता पोसाईडन ने मुझे एक छोटे से द्वीप अराका की सुरक्षा का कार्य-भार सौंपा। अराका पर एक महाशक्ति को सुरक्षित करने के लिये मैंने एक ऐसे तिलिस्म का निर्माण किया, जिसमें मनुष्यों के सिवा कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता था। मैंने इस तिलिस्म का नाम तिलिस्मा रखा।

“इस तिलिस्मा के पहले मैग्ना ने एक मायावन का निर्माण किया। इस मायावन का निर्माण, तिलिस्मा में प्रवेश करने वाले मनुष्यों की शक्तियों को समझना था। मेरा बनाया तिलिस्मा इसी लिये अजेय था, क्यों कि उसमें कोई भी द्वार पहले से नहीं बना होता था, मैं उन मनुष्यों की शक्तियों को देखकर, तिलिस्मा के दरवाजों का निर्माण करता था।

"धीरे-धीरे मैंने नये प्रयोग के द्वारा, अपनी निर्माण शक्ति से तिलिस्मा के लिये, नये जीवों का निर्माण करना शुरु कर दिया। पर हमने इस बात का विशेष ध्यान रखा था कि तिलिस्मा के निर्माण के लिये बनाये गये जीव कभी तिलिस्मा से बाहर ना आ सकें और जैसे-जैसे तिलिस्मा के सभी द्वार टूटते जायें, वह सभी जीव व निर्माण, स्वयं ही वायुमंडल में विलीन होते जाएं। हजारों वर्षो तक हजारों लोगों ने तिलिस्मा को तोड़ने की कोशिश की, पर कुछ तिलिस्मा में और कुछ तिलिस्मा के पहले ही मारे गये।

“यह देख मैंने तिलिस्मा सहित, अराका की सुरक्षा भी धीरे-धीरे कैस्पर 2.0 के हवाले कर दी। अब कैस्पर 2.0 ही तिलिस्मा के द्वार का नवनिर्माण भी करने लगा। सभी मशीनों का नियंत्रण मेरे हाथ में था.....पर जब 10 दिन पहले मैं, मैग्ना की याद में विचलित होकर अराका द्वीप से कुछ दिनों के लिये बाहर निकला, तो मैंने अराका का सम्पूर्ण नियंत्रण कैस्पर 2.0 को दे दिया।"

"और कैस्पर 2.0 ने तुम्हारी सभी मशीनों और तकनीक पर नियंत्रण करके, सब कुछ अपने हाथ में ले लिया।” वारुणि ने बीच में ही कैस्पर की बात को काटते हुए कहा।

वारुणि की बात सुन कैस्पर ने धीरे से अपना सिर हिला दिया।

“मैं तुम्हारी परेशानी समझ गई कैस्पर।” वारुणि ने कैस्पर से कहा- “अब तुम्हारे लिये ही नहीं, बल्कि तिलिस्मा में जाने वाले हर मनुष्य के लिये खतरा है, क्यों कि कैस्पर अब किसी भी नियम में बदलाव करके,
तिलिस्मा में घुसे उन लोगों को भी मार सकता है, जो कि वास्तव में उस तिलिस्मा को तोड़ने की शक्ति रखते हैं।”

“नहीं, कैस्पर 2.0 तिलिस्मा के नियमों में बदलाव नहीं कर सकता, उन नियमों को बदलने वाला कंप्यूटर सिर्फ और सिर्फ मेरे रक्त की एक बूंद से ही खुल सकता है, और कैस्पर 2.0 कितने भी निर्माण कर ले, परंतु मेरे रक्त की बूंद की नकल नहीं बना सकता।” कैस्पर के शब्दों में विश्वास झलक रहा था।

“अगर वह तुम्हारे नियमों में कोई बदलाव नहीं कर सकता, तो यह जीव तिलिस्मा से निकलकर पृथ्वी की आउटर कोर में कैसे पहुंच गया? तुमने तो कहा था कि तिलिस्मा के नियमों के हिसाब से, तिलिस्मा का कोई भी जीव बाहर के वातावरण में नहीं आ सकता।” वारुणि के शब्दों में लॉजिक था।

“यह भी मेरी गलती है।” कैस्पर ने कहा- “मुझे मेरी माँ ने कहा था कि कभी भी किसी के लिये कोई भी निर्माण मैं कर सकता हूं, पर मुझे उसका निर्माण इस प्रकार करना होगा, कि मैं जब चाहे उसका नियंत्रण अपने हाथों में वापस ले सकूं। शायद मेरी माँ ने मेरा भविष्य देख लिया था और ऐसे ही किसी समय के लिये उन्हों ने मुझसे यह कहा था।”

“कैस्पर की आँखों में एका एक माया का चेहरा उभर आया- “अपनी माँ की कही इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने तिलिस्मा में प्रवेश करने का एक गुप्त द्वार बनाया, जो कि एक विशेष प्रकार की ऊर्जा से निर्मित था, उस द्वार के माध्यम से मैं कभी भी छिपकर तिलिस्मा में दाखिल हो सकता था और तिलिस्मा का नियंत्रण अपने हाथ में भी ले सकता था। इस गुप्त द्वार की जानकारी मेरे सिवा किसी को भी नहीं थी। पर जाने कैसे, किसी दूसरी विचित्र ऊर्जा से टकराने की वजह से, वह गुप्त द्वार खुल गया और कैस्पर 2.0 को यह बात पता चल गई। कैस्पर 2.0 अब अपने आपको कैश्वर कहने लगा है। वह अपनी तुलना अब स्वयं ईश्वर से करने लगा है।

"उसी गुप्त द्वार के माध्यम से कैश्वर ने, उस जीव को बाहर निकाला और अंतरिक्ष में किसी को सिग्नल भी भेजा? मैं अभी तक पता नहीं कर पा रहा हूं कि वह सिग्नल कैश्वर ने किसे और क्यों भेजा? परंतु कैश्वर ने अब उस गुप्त द्वार की फ्रीक्वेंसी बदल दी है, जिससे मैं अब उस गुप्त द्वार का प्रयोग नहीं कर सकता। मुझे उस फीक्वेंसी को समझने के लिये भी समय चाहिये होगा, परंतु मैं यह जान गया हूं कि कैश्वर अंतरिक्ष से किसी को बुलाना चाहता है? पर किसे? यह मुझे नहीं पता।”

“मैं तुम्हें यह बता सकती हूं कि उस जीव ने सिग्नल माडुलेटर से वह सिग्नल किस ग्रह को भेजें हैं।” वारुणि ने कैस्पर को देखते हुए कहा- “पर मैं यह नहीं बता पाऊंगी कि वह ग्रह किसका है? या फिर वहां कौन रहते हैं?”

“कैसे?...यह तुम कैसे कर पाओगी?” कैस्पर के चेहरे पर वारुणि की बात सुनकर आश्चर्य उभर आया।

“मेरे पास उस जीव के सिग्नल भेजते समय का एक वीडियो है। हमने उस जीव को सिग्नल भेजते ही पकड़ लिया था, इसलिये उसके सिग्नल माडुलेटर में उस समय कि सिग्नल फ्रीक्वेंसी अभी तक सुरक्षित है। हमें बस वह वीडियो देखकर, उस जीव के उस समय के शरीर के कोण को ध्यान से देखना होगा, फिर उसके सिग्नल माडुलेटर से सिग्नल की फ्रीक्वेंसी निकालकर उससे दूरी पता करनी होगी। अब जब दूरी और दिशा हमें मिल जायेगी तो हम उसे आकाशगंगा के मानचित्र में फिट करके, यह पता लगा लेंगे कि उस जीव ने किस ग्रह पर सिग्नल भेजे थे?”

वारुणि की बातें सुनकर कैस्पर हैरान रह गया।

“वाह! क्या बात है....मेरा दोस्त तो वैज्ञानिक भी है और अंतरिक्ष की जानकारियां भी रखता है।” कैस्पर ने वारुणि की तारीफ करते हुए कहा- “अच्छा हां, तुम उस उल्का पिंड की भी बात कर रही थी। क्या मुझे उस उल्कापिंड की कोई तस्वीर मिल सकती है?”

“समुद्र हमारा कार्य क्षेत्र नहीं है, हमने अपने कुछ दोस्तों से यह जानकारी साझा कर ली है, वह जैसे ही हमें कुछ भेजेंगे, मैं तुम्हें बता दूंगी।” वारुणि ने कहा- “अब तुम मुझे ये बताओ कि तुम किस महायुद्ध और निर्णायक भूमिका की बात कर रहे थे?”

“वारुणि, मेरी माँ भविष्य को देख सकने में सक्षम हैं, यह बात और है कि वह भविष्य की बातें, किसी को सीधे तौर पर बताती नहीं हैं। पर जब मैंने उस जीव को देखा, तो अचानक मुझे अपनी माँ की कही एक बात याद आ गई। एक बार मैंने उनसे पूछा था कि पृथ्वी का अंत कब संभव हो सकता है? तो उन्होंने कहा था कि “जब नियम तुम्हारे विरुद्ध दिखनें लगें, जब तुम्हारी ही रचना तुमसे बगावत करने लगे, जब सृष्टि के नियम के विरुद्ध कोई जीव अंतरिक्ष के सपने देखने लगे, तो समझना कि यह एक महा विनाश का संकेत है। फिर दूसरे ब्रह्मांड से वह लोग आयेंगे, जो हमसे हमारी शक्ति, हमारा अस्तित्व छीनने की कोशिश करेंगे, लेकिन कैस्पर अगर तुम ब्रह्मांड रक्षक बनना चाहते हो तो तुम्हें महाविनाश को पहले से ही महसूस कर कुछ तैयारियां करनी होंगी?”

“माँ ने किस प्रकार की तैयारियां करने की बात की थी कैस्पर?” वारुणी अब काफी व्यग्र दिख रही थी।

यह सुन कैस्पर ने इधर-उधर देखा और फिर धीरे-धीरे वारुणी को कुछ समझाने लगा, पर कैस्पर के हर शब्द से वारुणि के चेहरे का आश्चर्य बढ़ता जा रहा था, जो कि इस बात का द्योतक था कि कुछ अलग होने जा रहा है....कुछ ऐसा जो पृथ्वी का भविष्य बदलने वाला था।


जारी रहेगा_______✍️


Dosto ye update kisi karan wash chhota rakha gaya hai, to isko fir aage badhayenge.
बडा ही शानदार लाजवाब और जबरदस्त मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Kahte hain lalach buri bala hai, ye Aakriti ki ek musibat samapt hua toh dusra musibat samne aa gaya, pahle usne Aryan aur amrit kr liye aur ab apni real face aur apne bete ke liye ek ke baad ek galti karti chali ja rahi hai.
Buri fasegi wo🤗 Isi ko to karte hain ki aasman se gira khajoor me latka, Akriti ke sath bhi wahi hua, dhaal mili to neel dand gayab :dazed: thank you so much for your wonderful review bhai :thanks:
Congratulations for being a moderator from sectional Moderator.
Thanks bhai :hug:
 

Raj_sharma

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Bilkul Bhai, wo soch to kuch aisa hi rahi hai, lekin kya aisa ho payega? Ye dekhne wali baat hogi:dazed:Jab tak Varuni ka pata nahi lagta tab tak kuch kaha nahi ja sakta :dazed: Thank you very much for your wonderful review and support bhai :hug:
Bahut hi umda update he Raj_sharma Bhai

Aakriti ne pehle to wilmer se sunhari dhaal chhin lee aur bechare ko pakshi bana kar bhaga bhi diya..........

Ab vo vikram ko kaabu karke wapis araka jaane ka plan bana rahi he............

Keep rocking Bro
 

Raj_sharma

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बहुत ही शानदार लाजवाब और रोमांचकारी अपडेट हैं भाई मजा आ गया
सबकी सुजबुझ से सुयश और टीम और एक व्दार खोलने में सफल हो गई
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
:hug:Thank you very much for your wonderful review and support bhai, sath bane rahiye, 162 wa update bhi aa chuka hai, aap peeche chal rahe hain :approve:
 

Raj_sharma

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बडा ही शानदार लाजवाब और जबरदस्त मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
Thank you very much for your valuable review and support bhai :thanks:
 
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