#162.
बर्फ का गोला: (16.01.02, बुधवार, 10:40, सनकिंग जहाज, अटलांटिक महासागर)
सनकिंग वही जहाज था, जिस पर सुनहरी ढाल लेकर विल्मर यात्रा कर रहा था।
आकृति को सुर्वया के माध्यम से विल्मर की पूरी जानकारी मिल गई थी, इसलिये वह मकोटा के दिये नीलदंड की मदद से छिपकर सनकिंग पर आ गई थी।
आकृति चाहती तो तुरंत ही विल्मर के कमरे में घुसकर सुनहरी ढाल प्राप्त कर सकती थी, पर वह इतनी गलतियां कर चुकी थी, कि अब अपना कदम फूंक-फूक कर उठा रही थी।
आकृति को नहीं मालूम था कि विल्मर के पास यह सुनहरी ढाल आयी कहां से? क्यों कि सुर्वया बर्फ के नीचे, पानी के अंदर और हवा में रह रहे किसी भी जीव को नहीं ढूंढ सकती थी, इसलिये सुर्वया ने शलाका को विल्मर को सुनहरी ढाल देते हुए नहीं देखा था।
आकृति ने जहाज पर प्रवेश करते ही, एक अकेली लड़की क्राउली को नीलदंड की मदद से पक्षी बनाकर समुद्र में उड़ा दिया और उसी के कपड़े धारण कर वह जहाज में घूमने लगी।
यह जहाज बहुत बड़ा नहीं था, इसलिये आकृति को विल्मर को ढूंढने में ज्यादा मुश्किल नहीं आयी।
इस समय आकृति जहाज के रेस्टोरेंट में बैठी कॉफी का घूंट भर रही थी। विल्मर उससे कुछ दूरी पर एक दूसरी टेबल पर बैठा था।
आखिरकार आकृति अपनी टेबल से उठी और टहलती हुई विल्मर के पास जा पहुंची।
“क्या मैं यहां बैठ सकती हूं?” आकृति ने विल्मर की ओर देखते हुए पूछा।
विल्मर अपने सामने इतनी खूबसूरत लड़की को देख खुश होते हुए बोला - “हां-हां क्यों नहीं....।”
आकृति विल्मर के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई।
“मैं बहुत देर से आपके सामने बैठी आपको देख रही थी, मुझे आपका चेहरा कुछ जाना-पहचाना लगा, इसीलिये मैं आपसे पूछने चली आई। क्या हम पहले कहीं मिल चुके हैं?” आकृति ने विल्मर की आँखों में
झांकते हुए कहा।
विल्मर ने आकृति को ध्यान से देखा और ना में सिर हिला दिया।
अगर शलाका ने विल्मर की स्मृतियां ना छीनी होतीं, तो विल्मर ने शलाका जैसे चेहरे वाली आकृति को, तुरंत पहचान लेना था, पर अभी उसे
आकृति का चेहरा बिल्कुल ही अंजान लगा।
“ओह सॉरी, फिर तो मैं चलती हूं।”
यह कहकर आकृति कुर्सी से उठने लगी।
तभी विल्मर ने उसे रोकते हुए कहा- “इससे क्या फर्क पड़ता है कि मैं आपको नहीं जानता। अरे जान पहचान बनाने के लिये किसी को
पहले से जानना जरुरी थोड़ी ना है .....वैसे मेरा नाम विल्मर है।”
यह कहकर विल्मर ने अपना हाथ आकृति की ओर बढ़ा दिया, पर आकृति को विल्मर से हाथ मिलाने में कोई रुचि नहीं थी, इसलिये वह पहले के समान ही बैठी रही।
आकृति को हाथ ना मिलाते देख विल्मर ने अचकचाकर अपना हाथ पीछे कर लिया।
“मेरा नाम क्राउली है, मैं एक आर्कियोलॉजिस्ट हूं। मैं पुरानी से पुरानी चीज को देखकर, कार्बन डेटिंग के द्वारा किसी भी वस्तु का काल और उसकी कीमत का निर्धारण करती हूं।” आकृति ने अपना दाँव फेंकते हुए कहा।
आकृति की बात सुन विल्मर खुश हो गया, उसे ऐसे ही किसी इंसान की तो तलाश थी, जो कि उसकी सुनहरी ढाल का मूल्यांकन कर सके।
“ओह, आप तो बहुत अच्छा काम करती हैं मिस क्राउली।” विल्मर ने आकृति की ओर देखते हुए कहा- “सॉरी मैं बात करने में आपसे पूछना भूल गया। आप कुछ लेंगी क्या?”
“नहीं-नहीं, मैंने अभी कॉफी पी है और मुझे अभी किसी चीज की जरुरत नहीं है...और वैसे भी मेरे मतलब की चीज इस जहाज पर कहां? मेरा मतलब है कि मेरी रुचि तो सिर्फ एंटीक चीजों में ही होती है।...एक्चुली मैं अपने काम को इस समय बहुत मिस कर रहीं हूं।” आकृति ने फिर से विल्मर को फंसाते हुए कहा।
“मेरे पास आपके काम की एक चीज है....क्या आप उसे देखना चाहेंगी?” विल्मर ने आकृति से पूछा।
“वाह! इससे अच्छा क्या हो सकता है। मैं जरुर देखना चाहूंगी।” आकृति खुश होते हुए अपनी सीट से खड़ी हो गई।
आकृति को तुरंत कुर्सी से खड़ा होता देख, विल्मर ने एक बार टेबल पर पड़े अपने आधे खाये हुए खाने को देखा और फिर वह उठकर वाश बेसिन की ओर बढ़ गया।
कुछ ही देर में विल्मर आकृति को लेकर अपने केबिन में पहुंच गया।
आकृति ने विल्मर के कमरे पर नजर मारी, पर उसे वह सुनहरी ढाल कहीं नजर नहीं आयी? आकृति कमरे में पड़ी एक सोफे पर बैठ गई।
तभी विल्मर ने दीवार पर लगी एक रंगीन पेंटिंग उतार ली, जो कि गोल आकार में थी और उभरी हुई थी।
आकृति ध्यान से उस पेटिंग को देखने लगी, तभी उसके आकार को देख आकृति को झटका लगा, यह वही सुनहरी ढाल थी, जिसे कि विल्मर ने चालाकी दिखाते हुए रंगों से पेंट कर दिया था।
विल्मर ने वह ढाल आकृति को पकड़ा दी।
“यह तो एक साधारण पेंटिंग है, जिसे शायद किसी ने अभी हाल में ही पेंट किया है, यह कोई एंटीक चीज नहीं है।” आकृति ने विल्मर को देखते हुए कहा।
तभी विल्मर ने आकृति के हाथ से वह ढाल ले, उस पर एक जगह कोई स्प्रे मार दिया, अब उस स्प्रे के नीचे से चमचमाती हुई सुनहरी ढाल नजर आने लगी थी।
“अब जरा देखिये।” विल्मर ने यह कहते हुए दोबारा से सुनहरी ढाल आकृति के हाथों में पकड़ा दी।
“यह तो काफी पौराणिक ढाल लग रही है, इसकी कीमत करोड़ों डॉलर है....पर इससे तुम्हें कोई फायदा नहीं होने वाला।” आकृति ने कहा।
“क्यों? क्या मैं इसे एंटीक मार्केट में बेच नहीं सकता?” विल्मर ने सोचने वाले अंदाज में पूछा।
“नहीं....क्यों कि यह तुम्हारे पास रहेगा नहीं।” यह कहते ही आकृति के हाथ में नीलदंड नजर आने लगा और इससे पहले कि विल्मर कुछ समझ पाता, नीलदंड से निकली किरणों ने, विल्मर को एक सीगल
(समुद्री पक्षी) में बदल दिया। इसी के साथ आकृति ने दरवाजा खोलकर सीगल को बाहर उड़ा दिया।
अब आकृति ने ढाल को अपने हाथ में उठाया और नीलदंड को सामने की ओर जोर से नचाया, पर नीलदंड उसी समय हवा में गायब हो गया।
“यह क्या नीलदंड कहां गया?” आकृति ने घबरा कर दोबारा हाथ हिलाया, पर नीलदंड उसके हाथ में वापस नहीं आया।
अब आकृति पूरी तरह से घबरा गई- “ये क्या हुआ? क्या मकोटा ने अपना नीलदंड वापस ले लिया? क्या ...क्या वह मेरे बारे में सबकुछ जान गया?...पर अगर नीलदंड चला गया तो मैं यहां से वापस अराका पर
कैसे जाऊंगी?....मेरे पास तो अभी इतनी शक्तियां भी नहीं है...अब मैं क्या करुं?
"इस ढाल की तलवार भी सीनोर राज्य में ही है, उसके बिना मैं दे...राज इंद्र से वरदान भी नहीं मांग सकती। और रोजर, मेलाइट और
सुर्वया का क्या होगा? चलो सुर्वया तो जादुई दर्पण में बंद है, उसे कुछ नहीं होगा, पर रोजर और मेलाइट का क्या?....रोजर तो मर भी जाये, तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता...पर अगर मेलाइट को कुछ हो गया, तो मैं कभी भी शलाका के चेहरे से मुक्ति नहीं पा पाऊंगी।....और .... और ग्रीक देवता तो मुझे मार ही डालेंगे।
“मुझे कुछ भी करके और शक्तियां इकठ्ठा करके वापस अराका पर जाना ही होगा...क्यों कि अब देवराज का वरदान ही मुझे मेरे पुत्र के पास पहुंचा सकता है।...पर...पर पहले मुझे यहां से निकलना होगा। वैसे यह जहाज 7 से 8 घंटों के बाद न्यूयार्क पहुंच जायेगा। मुझे वहां पहुंचकर अपनी बची हुई शक्तियों के साथ, कुछ और ही प्लान करना होगा।” यह सोच आकृति सुनहरी ढाल लेकर चुपचाप उस कमरे से निकल, क्राउली के कमरे की ओर बढ़ गई।
क्राउली के कमरे में पहुंच जैसे ही आकृति ने सुनहरी ढाल को बिस्तर पर रखा , तभी उसे बाहर से आती किसी शोर की आवाज सुनाई दी।
धड़कते दिल से आकृति केबिन के बाहर आ गई और उस ओर चल दी, जिधर से शोर की आवाज आ रही थी।
शोर की आवाजें डेक की ओर से आ रहीं थीं। आकृति ने पास जाकर देखा, तो उसे जहाज के डेक पर 1 मीटर व्यास का एक बर्फ का गोला पड़ा दिखाई दिया।
उस गोले के पास एक छोटा सा जाल पड़ा था, जिसे देख कोई भी समझ सकता था कि इस बर्फ के गोले को, इसी जाल के द्वारा समुद्र से निकाला गया है।
बहुत से व्यक्ति उस गोले के चारो ओर खड़े उसे देख रहे थे।
तभी उनमें से एक व्यक्ति बोला - “इस बर्फ के गोले में कोई इंसान है?” यह सुनकर सभी उस गोले के अंदर झांककर देखने लगे।
आकृति की नजर भी उस बर्फ के गोले के अंदर की ओर गई, सच में उस गोले में एक मानव शरीर था, पर उसके चेहरे पर नजर पड़ते ही आकृति हैरान हो गई क्यों कि वह व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि विक्रम था।
विक्रम....वारुणि का सबसे करीबी।
“यह विक्रम इस बर्फ के गोले में कैसे आ गया?” आकृति यह देख समझ गई कि विक्रम अभी भी जिंदा हो सकता है।
अतः वह सभी को देखकर चिल्लाई- “बर्फ को तोड़ो, यह मेरा दोस्त है और यह अभी भी साँस ले रहा है।”
आकृति की बात सुन वहां खड़े व्यक्तियों का एक समूह उस बर्फ को तोड़ने लगा।
बर्फ को तोड़ने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी क्यों कि बर्फ की ऊपरी पर्त पहले से ही कमजोर थी, शायद यह बर्फ का गोला काफी समय से नमकीन समुद्री पानी में पड़ा हुआ था।
बर्फ टूटने के बाद विक्रम का शरीर बर्फ से बाहर आ गया। यह देख जहाज का एक डॉक्टर विक्रम का चेकअप करने लगा।
सभी उत्सुकता भरी निगाहों से उस डॉक्टर को देख रहे थे।
“यह व्यक्ति पूरी तरह से ठीक है, बस बर्फ में काफी देर तक दबे रहने से, इसके शरीर का तापमान गिर गया है, पर मुझे लगता है कि आधे से 1 घंटे के बीच यह होश में आ जायेगा।” डॉक्टर ने आकृति की ओर देखते हुए कहा- “आप इन्हें अपने कमरे में रख सकती हैं...अगर कोई परेशानी हो तो मुझे बता दीजियेगा। पर सच कहूं तो इनका इस प्रकार बर्फ में दबे रहने के बाद बचना किसी चमत्कार से कम नहीं।” यह कहकर डॉक्टर चला गया।
आकृति ने कुछ लोगों की मदद ले विक्रम को क्राउली के कमरे में रख लिया।
जब सभी कमरे से चले गये, तो आकृति फिर से अपनी सोच में गुम हो गई।
लगभग 45 मिनट के बाद विक्रम ने कराह कर अपनी आँखें खोलीं।
आँखें खोलने के बाद विक्रम ने तुरंत ही अपना सिर पकड़ लिया।
यह देख आकृति भागकर विक्रम के पास आ गई- “क्या हुआ विक्रम? तुम ठीक तो हो ना ?”
“कौन हो आप?” विक्रम ने आश्चर्य से आकृति को देखते हुए पूछा।
“तुम्हें क्या हो गया विक्रम? तुम मुझे पहचान क्यों नहीं पा रहे हो?” आकृति के चेहरे पर उलझन के भाव आ गये।
“मैं...मैं कौन हूं? तुम मुझे विक्रम क्यों बुला रही हो ? मेरा नाम तो.... मेरा नाम?....मेरा नाम मुझे याद क्यों नहीं आ रहा?” विक्रम के चेहरे पर उलझन के भाव साफ नजर आ रहे थे।
“लगता है चोट लगने के कारण विक्रम की स्मृति चली गई है।” आकृति ने मन में सोचा- “इस समय मेरे पास ज्यादा शक्तियां नहीं हैं.... अगर मैं विक्रम को कोई झूठी कहानी सुना दूं, तो मैं विक्रम की शक्तियों का इस्तेमाल स्वयं के लिये कर सकती हूं...और अगर कभी विक्रम की स्मृति वापस भी आ गई, तो वह शलाका का दुश्मन बन जायेगा....वाह क्या उपाय आया है मस्तिष्क में।
“पर...पर अगर बीच में कभी वारुणी ने विक्रम से, मानसिक तरंगों के द्वारा सम्पर्क करने की कोशिश की तो वह सबकुछ जान जायेगा
....सबसे पहले इसे अपनी नीली अंगूठी पहना देती हूं, इससे वारुणि कभी मानसिक तरंगों के द्वारा विक्रम से सम्पर्क स्थापित नहीं कर पायेगी, वैसे भी इस अंगूठी का इस्तेमाल, मैं पहले भी कई बार आर्यन को शलाका से बचाने के लिये कर चुकी हूं और इस अंगूठी का रहस्य भी किसी को नहीं पता।”
“आप मुझे विक्रम पुकार रहीं हैं।” विक्रम ने कहा- “मेरा नाम विक्रम है क्या?...पर मुझे कुछ भी याद क्यों नहीं आ रहा है?”
“मेरा नाम वारुणि है, तुम मेरे पति विक्रम हो, हम दोनों भारत में रहते हैं। तुम्हारे पास वायु की शक्तियां हैं, इन शक्तियों से तुम पृथ्वी की रक्षा करते हो। पर कुछ दिन पहले एक शक्तिशाली दुश्मन से लड़ते समय
तुम्हारे सिर पर चोट आ गई, जिससे तुम्हारी स्मृतियां चलीं गईं हैं। डॉक्टर ने तुम्हें कुछ दिन आराम करने को बोला है, इसलिये हम इस जहाज से न्यूयार्क घूमने जा रहे हैं। मेरे पिता ने मुझे एक अभिमंत्रित अंगूठी दी है। उन्होंने कहा है कि अगर तुम अगले 10 दिनों तक इस अंगूठी को बिना उतारे अपनी उंगली में पहने रहोगे, तो तुम्हारी स्मृतियां वापस आ जायेंगी।” आकृति ने कम समय में अच्छी खासी कहानी गढ़ दी।
यह कहकर आकृति ने अपने हाथ में पहनी नीली अंगूठी को विक्रम की ओर बढ़ा दिया।
आकृति की बात सुनकर विक्रम सोच में पड़ गया।
उसे सोच में पड़ा देख आकृति पुनः बोल उठी- “तुम्हें डॉक्टर ने ज्यादा सोचने को मना किया है।” अभी आकृति ने यह कहा ही था कि तभी उसके केबिन की घंटी बज उठी।
आकृति ने अंदर से ही तेज आवाज में पूछा- “कौन?”
“मैं जहाज का केबिन क्रू हूं, मुझे जहाज के डॉक्टर ने उस नौजवान की तबियत जानने के लिये भेजा है।” बाहर से एक आवाज उभरी।
“विक्रम की तबियत अब बिल्कुल ठीक है, उन्हें अब डॉक्टर की जरुरत नहीं है। मेरी तरफ से डॉक्टर को धन्यवाद कह देना।” आकृति ने बिना दरवाजा खोले ही तेज आवाज में कहा।
आकृति की बात सुन आगन्तुक चला गया, पर उसका इस प्रकार आना आकृति के लिये लाभकारी रहा।
अब विक्रम के चेहरे से चिंता के भाव हटते दिखाई दे रहे थे।
“अब तुम आराम से सो जाओ विक्रम, जब न्यूयार्क आयेगा, तो मैं तुम्हें उठा दूंगी।” आकृति ने कहा और विक्रम को सहारा देकर बिस्तर पर लिटा दिया।
विक्रम ने आकृति की दी हुई अंगूठी अपने दाहिने हाथ की सबसे छोटी उंगली में पहन ली थी।
जारी रहेगा______
Kahte hain lalach buri bala hai, ye Aakriti ki ek musibat samapt hua toh dusra musibat samne aa gaya, pahle usne Aryan aur amrit kr liye aur ab apni real face aur apne bete ke liye ek ke baad ek galti karti chali ja rahi hai.
Congratulations for being a moderator from sectional Moderator.