• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest ससुराल की नयी दिशा

prkin

Well-Known Member
5,622
6,465
189
Last edited:

prkin

Well-Known Member
5,622
6,465
189
अगला अपडेट भी लिख लिया है.
१० कमेंट या २० लाइक्स के बाद पोस्ट कर दूँगा।
 

prkin

Well-Known Member
5,622
6,465
189
अगला अपडेट भी लिख लिया है.
१० कमेंट या २० लाइक्स के बाद पोस्ट कर दूँगा।
Abhi Tak Target Puura nahin hua.
Update is ready, waiting for posting
 
  • Like
Reactions: parkas

prkin

Well-Known Member
5,622
6,465
189
ससुराल की नई दिशा

Update Tonight.
 

prkin

Well-Known Member
5,622
6,465
189
ससुराल की नयी दिशा
अध्याय ५९: पल्लू का मायका

अब तक:

मनोज मायादेवी के मित्र वैद्य से मिले और उन्हें विश्वास हो गया कि अब उनकी शारीरिक और स्वास्थ्य समस्याएं दूर हो जाएँगी. वहीं जया अपनी बेटी भावना के घर पहली पारिवारिक चुदाई का आनंद उठा चुकी थी. दिन में अपने नातियों से चुदवाकर आज रात उसे अपने पुत्र और पोतों से चुदने का सौभाग्य प्राप्त होने वाला था. मनोज को जो औषधि मिली थी उसके कारण वो सो गए और जया अपनी बहू के साथ उसके कमरे में चली गई.

अब आगे:

जब फागुनी जया को लेकर अपने शयनकक्ष में पहुंची तो दीपक, हरीश और गिरीश बैठे हुए थे. उन्होंने रात्रि में सोने के वस्त्र पहने थे, और व्हिस्की पी रहे थे. जया ने अपने पोतों को कभी मदिरापान करते नहीं देखा था. परन्तु उसने उन्हें चोदते हुए भी नहीं देखा था. दीपक खड़ा हुआ और अपनी माँ के गले मिला.

“अम्मा, आप आई हो तो अपने मन की बात बता दो. क्या आप आगे बढ़ना चाहती हो? अगर नहीं तो हम कुछ देर बैठकर बातें करेंगे, और कुछ नहीं. और अगर आप आगे बढ़ती हो तो जैसी आपकी इच्छा होगी वैसे आगे बढ़ेंगे.”

जया ने फागुनी को देखा, वो अपने बेटे को देखकर उत्तर नहीं दे सकती थी.

“मुझे आगे चलना है इस राह पर. तेरे बाबूजी का आशीर्वाद है तो कोई समस्या नहीं है.”

“ठीक है अम्मा, फिर अपने मन से झिझक निकाल दो. हम सब एक ही हैं. वैसे भी आप दोपहर में इसका स्वाद ले चुकी हो.”

फागुनी ने कहा, “माँ जी, आप कुछ पियेंगी क्या? कुछ झिझक कम हो जाएगी.”

जया ने स्वीकारोक्ति दी तो गिरीश ने उठकर दो पेग बनाये और एक अपनी दादी और एक अपनी माँ को दिया. फागुनी ने उसका हाथ पकड़ा और एक सोफे पर बैठ गई. एक ओर फागुनी तो दूसरी ओर दीपक बैठ गया.

“मुझे नहीं पता था कि ये दोनों भी पीते हैं.” जया ने कहा.

“केवल परिवार वालों के ही साथ पीते हैं. बाहर कभी नहीं. सम्भव है बाद में वो भी करें, पर अभी यहीं तक सीमित हैं.”

फागुनी ने दीपक को देखा और संकेत किया.

“हम सब कोई पिछले तीन वर्षों से इस प्रकार से मिल रहे हैं. अशोक और अमर के परिवारों के साथ. फिर पिछले दो वर्षों से बच्चे भी जुड़ गए तो और भी अच्छा हो गया. पहले पल्लू के कारण हम सब कुछ छिपकर करते थे, अशोक के ही घर पर. अमर के घर उसकी माँ रहती थीं तो यहाँ आप दोनों. तो अधिकतर हम भावना के ही घर ये सब करते थे.” दीपक ने बताया.

“बच्चों के जुड़ने के बाद तो स्त्रियों में और अधिक आनंद हो गया है. शुभम, निकुंज, गिरीश और हरीश सब लड़के थे, एक अकेली नीतू ही थी जो लड़की थी. पर न जाने कब इन दोनों बदमाशों ने मायादेवी को पटा लिया और फिर पल्लू ने हमें पकड़ लिया और दोनों जुड़ गयीं. अब समीकरण कुछ संतुलन में आ रहा था. और अब आपके आने से पूरा संतुलित हो जायेगा. क्योंकि नीतू कुछ ही दिनों में अपने ससुराल चली जाएगी।”

फागुनी ने अभी ये बताना उचित नहीं समझा कि पल्लू की ससुराल में भी यही व्यभिचार चलता है.

“एक बात और है अम्मा, हम में से कुछ की कुछ विकृतियाँ हैं, परन्तु वो केवल परिवार तक ही सीमित हैं.”

“विकृतियाँ?”

“हाँ, पहले आप ये जान लो कि हम सब उन्मुक्त भाषा का प्रयोग करते हैं. जैसे आज आपकी चूत और गाँड दोनों मारी जाने वाली हैं. परन्तु कभी भी गाली इत्यादि का प्रयोग नहीं करते. चाहे वो कोई भी हो. हाँ, बहनचोद, मादरचोद को हम गालियों में नहीं गिनते.”

इस पर सब हँसने लगे.

“करना भी नहीं चाहिए!” जया ने भी हँसते हुए कहा.

फिर दीपक कुछ गंभीर हो गया.

“फागुनी की कुछ विशेष रुचियाँ हैं, अमर की माँ की भी उसमे रूचि है, ये हमें अभी ही पता चला है. उसकी एक झलक आपको आज हम दिखायेंगे, फागुनी ने भावना से भी पूछा है और उसने बताने के लिए सहमति दे दी है, परन्तु इसके आगे आपके ऊपर छोड़ दिया है. मैं भी यही कहूँगा। आप जो भी निर्णय लेंगी हम सबको मान्य होगा.”

जया चिंतन में पड़ गई कि ऐसा क्या हो सकता है. परन्तु उसने सोचा कि आज तो उसे पता चल ही जाना है.

“दीपक, चाहे जो भी हो, मैं ऐसा कुछ नहीं करुँगी जो मैं तुम्हारे बाबूजी के साथ नहीं कर सकती हूँ. अन्यथा, मुझे कोई आपत्ति नहीं है.”

“मैंने भी यही सोचा था. तो अब बातें बहुत हो चुकीं, मैं इतने वर्षों से जिसका स्वप्न देख रहा था, आज उसे पूरा करना चाहता हूँ.”

“और हम भी.” गिरीश और हरीश उनके सामने आ खड़े हुए.

फागुनी ने उनके लोयर नीचे खींच दिए और दोनों के तमतमाए लौड़े लहराने लगे.

फागुनी, “पहले तुम्हारे पापा ही दादी को चोदने वाले हैं. तब तक तुम दोनों को संयम रखना होगा.”

“आप चुदवा लो!” हरीश बोला।

“नहीं, पहले दादी उसके बाद मैं. पर मैं तुम्हें चूसकर अवश्य एक बाद झाड़ दूँगी जिससे तुम दादी की सेवा में शीघ्र न झड़ जाओ.”

उन्हें पता था कि उनकी माँ के आगे उनकी एक नहीं चलने वाली है. तो दोनों मान गए. फागुनी ने जया को खड़ा किया और उसी नाइटी को उतार दिया. उधर दीपक ने स्वतः अपने लोवर और टी-शर्ट को उतार फेंका. गिरीश ने अपने पिता के कपड़े उठाकर तह करके एक ओर रख दिए. वो नहीं चाहता था कि पापा को आज मम्मी से डांट पड़े.

कुछ देर शांति से अपने पेग समाप्त करने के बाद गिरीश ने सबके लिए एक पेग और बनाया.

परन्तु इस बार फागुनी का पेग नहीं बनाया गया.

“तुम नहीं लोगी?” जया ने पूछा.

“मेरा बनेगा अभी, आप देख लेना, पहले इसे समाप्त कीजिये.”

गिरीश ने संकेत समझा और एक ओर चला गया. कुछ देर में वो लौटा तो फागुनी को संकेत दिया.

अब तक सबके पेग समाप्त हो चुके थे.

दीपक ने फागुनी को संकेत दिया तो उसने हाँ में सिर हिलाया.

“अम्मा, आइये आपको फागुनी की रूचि के विषय में बता देते हैं, उसके बाद आपका उद्घाटन करेंगे.”

दीपक फागुनी और जया के साथ स्नानागार की ओर चल पड़ा. जया को कुछ समझ नहीं आया. जया के पीछे गिरीश और हरीश चल रहे थे. अंदर जाकर जया ने देखा कि व्हिस्की के चार पेग बने हुए थे. उनमे एक पेग के अनुसार व्हिस्की डली हुई थी. जया को अचानक समझ आया कि इसका क्या अर्थ हो सकता है. पर वो चुप ही रही.

फागुनी ने जया का हाथ पकड़ा और उसे देखकर बोली, “माँ जी, मुझे मूत्र सेवन में अत्यधिक रूचि है. और अधिकांश मैं अपनी ड्रिंक भी सादे पानी या सोडा के साथ नहीं लेती.”

“पीती और नहाती भी है या यहीं तक सीमित है?” जया ने मुस्कुराते हुए पूछा.

“वो भी.”

“ठीक है. मुझे कोई आपत्ति नहीं है. परन्तु मुझे इसमें कोई रूचि भी नहीं है. तेरे बाबूजी और मैंने इसका एक दो बार प्रयोग किया था, परन्तु उसके बाद कभी नहीं. तो क्या मेरा भी कोई योगदान रहेगा?”

“अगर आप चाहें तो.”

“ठीक है. मेरा ग्लास कौन सा है?”

गिरीश ने “D” लिखे ग्लास कोई उन्हें सौंप दिया. जया ने देखा सबपर कुछ न कुछ लिखा था, P, G और H.

“तुम्हारे नाम का ग्लास कहाँ है?”

“माँ जी इतना पियूँगी तो टल्ली हो जाऊँगी।”

जया की बातें सुनकर दीपक, हरीश और गिरीश स्तब्ध थे. उन्हें लगा था कि जया को समझना बुझाना पड़ेगा, पर यहाँ तो स्थिति ही विपरीत थी.

जया ने ग्लास अपनी चूत के नीचे लगाया और उसमें मूतने लगी. ग्लास में पर्याप्त मात्रा डालकर उसने ग्लास फागुनी को सौंप दिया.

अब फागुनी भी सकते में थी. उसने ग्लास लिया और अपने मुँह से लगाकर पीने लगी.

जया ने दीपक से कहा, "तुम सब भी इसके पेग बना दो, एक बार में तो ये पीने वाली नहीं.”

दीपक, गिरीश और हरीश ने भी जया के पेग बना दिए और एक ओर रख दिया.

“अम्मा! अब इसे सीधे पिलाना है”

जया ने फागुनी को देखा जिसकी आँखों में एक विशिष्ट चमक थी.

“अभी नहीं, मैं बहुत प्रतीक्षा कर चुकी हूँ. पहले मेरी चुदाई होनी चाहिए. अगर इसमें लगे रहे तो ये स्नान भी करेगी. बहुत समय व्यर्थ होगा. लेकिन मैं एक प्रलोभन इसे देती हूँ.”

फागुनी का मुरझाता हुआ चेहरा खिल उठा.

“मेरी चुदाई में जो भी रस निकलेगा, उसे खाने, पीने, चाटने का अधिकार केवल इसे ही होगा. और मेरी चुदाई के बाद इसकी इच्छा पूरी की जाएगी.”

“जी माँ जी.”

ये कहते हुए फागुनी ने अपना ग्लास समाप्त किया और रख दिया.

“कैसा स्वाद है?” जया ने पूछा.

“एकदम अनूठा! अगली बार आपकी चूत से सीधे पियूँगी.” फागुनी ने अपनी सास से कहा.

सब चलते हुए कमरे में आ गए. जया पलंग पर बैठी.

“आ जा दीपक, तेरे लंड का स्वाद ले लूँ.”

दीपक सामने जा खड़ा हुआ और उसके लंड को तौलते हुए जया ने उसे मुंह में लिया और चाटने लगी. अच्छे से चाटने के बाद उसने अपने मुंह में लेते हुए उसे चूसना आरम्भ कर दिया.

“तुम दोनों भी आ ही जाओ, मैं तुम्हारे लौड़े चूस देती हूँ.” फागुनी बैठ गई और हरीश और गिरीश के लंड चूसने में जुट गई.

अभी जया ने कुछ ही देर दीपक के लंड को चूसा था कि दीपक बोला, “अम्मा, अब अपनी चूत का रस भी चखने दो न?”

“पापा, हमें भी चखना है दादी का रस, नहीं तो कल तक रुकना होगा.” हरीश ने कहा तो जया का मन गर्व से फूल गया.

“हाँ हाँ, माँ जी. अपने बच्चों को भी तो चखने दो अपना रस.” फागुनी ने भी उनकी बात को बढ़ाया.

“ठीक है, बहू. पर पहले इसे चख लेने दे. फिर कल से एक को ही ये अवसर दूँगी।” जया ने इठलाते हुए कहा, “और तुझे तो अपना रस पिलाऊँगी ही.”

फागुनी का मन प्रफुल्लित हो गया. उसकी सास उसकी विकृति को स्वीकार कर लिया था.

दीपक ने अपने माँ को लिटाया और पैर फैलाये. दीपक ने जया की चूत की फाँको को फैलाया और अपनी जीभ फिराई. जया ने सिसकारी ली.

फागुनी ने हरीश और गिरीश से कहा, “जाओ अपनी दादी के मम्मों पर अपना प्रेम दिखाओ.”

इतना सुनना था कि दोनों ने जया के एक एक स्तन को अपने हाथों में लिया और फिर उन्हें चाटने लगे. नीचे पिता चूत का रस पी रहा था और पोते ऊपर दादी के मम्मों पर पाना प्रेम बरसा रहे थे.

कुछ ही समय में जब जय झड़ने लगी तो दीपक ने रस पीकर अपनी प्यास मिटाई और फिर खड़ा हो गया. फागुनी ने उसे पकड़ा और गिरीश का स्थान दे दिया और गिरीश अपनी दादी की चूत चाटने में व्यस्त हो गया.

सम्भवतः ये पारिवारिक मैथुन का उद्वेग था जिसने जया की उत्तेजना इतनी बढ़ा दी थी कि वो फिर से झड़ गई और इस बार गिरीश को उसके रस का प्रसाद मिला. उसके बाद यही प्रक्रिया हरीश के साथ भी हुई.

अंत में जया ने फागुनी को देखा.

“चल तेरी प्यास मिटा ही देती हूँ, पर एक बात का ध्यान रखना. चुदने से पहले तुझे न मुँह धोना है न शरीर.”

“जी माँ जी.” ये कहते हुए फागुनी अपनी सास के पीछे स्नानागार में चल दी.

जया ने फागुनी के स्वभाव को समझ लिया था. आज बहुत वर्षों के बाद वो अपने उस स्वरूप में आने को आतुर थी जिसे उसने एक प्रकार से भुला दिया था. पर अब उसकी वो इच्छाएँ जाग्रत होने लगी थीं और इसमें सबसे बड़ी सहायक उसकी अपनी बहू फागुनी ही थी. मायादेवी के विषय में जानकर उसे आश्चर्य हुआ था और सम्भवतः माया को भी वो अपनी आकाँक्षाओं की पूर्ति का हेतु बना सकती थी. उसे अपने पति से अवश्य इसकी आज्ञा लेनी होगी.

कमोड पर बैठने के बाद जया ने अपने पैरों को फैलाया और फागुनी को सामने बैठने को कहा.

“अब मेरी बात सुन. पहले मेरी चूत चाट, फिर मेरा मूत पीना और फिर मेरी गाँड चाटकर चुदने के उपयुक्त बनाना. तेरे मुँह में या जहाँ भी मूत्र लगे उसे वैसे ही रहने देना. जब तक मैं न कहूँ तू धोएगी नहीं.”

फागुनी के शरीर में मानो विद्युत का प्रवाह हो गया. उसे इसी प्रकार से आज्ञा लेना अच्छा लगता था. शयनकक्ष के बाहर चाहे वो कितनी भी शक्तिशाली होने का व्यवहार करती हो, पर इस वातावरण में उसे यही सुख देता था.

फागुनी ने जया की चूत को चाटा हुए उसके रस को पी लिया. फिर जया ने उसके चेहरे को अपनों चूत के समीप लेकर उसके मुंह में मूत्र को धार छोड़ दी. उसके बाद उसके बल पकड़कर उसके चेहरे को पीछे किया तो चेहरा भीग गया. उसके बाद जया खड़ी हुई और कमोड पर झुक गई. उसका संकेत ही फागुनी के लिए पर्याप्त था. उसने जया की गाँड को दोनों हाथों से फैलाया और चाटने लगी.

“आह, बहू! सच में तो एक हीरा है. दीपक तुझे पाकर धन्य हो गया और मैं भी.” जया ने कहा पर अधिक समय तक अपनी गाँड चाटने न दी. अब वो चुदने को आतुर थी.

“आ जा, अब मेरी चुदाई करवा. सबका पानी तुझे ही पीने दूँगी आज. और कल से तुझे कुछ नया सिखाऊँगी।”

सास बहू कमरे में आईं तो दीपक ने अपनी पत्नी के चेहरे पर संतुष्टि के भाव देखे. जया ने अब मोर्चा संभाला.

“देखो अब चूमा चाटी और चूसना हो गया. अब मेरा मन सही ढंग से चुदने का है. तो जैसा सोचा है पहले दीपक चोदेगा फिर तुम दोनों समझ लेना, पर मेरी चूत खाली नहीं रहनी चाहिए. और मेरे अंदर ही झड़ना है जिससे मेरी बहू को भी कुछ खाने पीने को मिले. ठीक है?”

सबने सिर हिलाकर स्वीकृति दी. किसी ने जया के इस रूप की कल्पना नहीं की थी.

जया लहराती हुई पलंग पर लेटी और अपने घुटनों को मोड़ा और पैर फैला दिया. दीपक का लौड़ा जो इस विराम से कुछ ढीला हो गया था फिर से तमतमा गया.

उसने अपनी माँ के पैरों के बीच में बैठते हुए अपने लंड को चूत पर लगाया और उनकी आँखों देखा.

“आजा बेटा लौट आ अपने जन्मस्थान पर.” जया ने मुस्कुराकर कहा तो दीपक का लौड़ा फड़फड़ा गया और उसने अपने लंड का दबाव बनाया और जया की चूत समा गया.

“अब चोद मुझे. और तुम दोनों मेरे मम्मों को मसलो.” जया अब परिस्थिति पूरे नियंत्रण में थी. दोनों भाई एक एक ओर आकर अपनी दादी के मम्मों को हाथों से निचोड़ने लगे. जया आनंद से दूभर हो गई. उसने एक बार फागुनी को देखा जो अपने विशेष पेग की चुस्कियाँ ले रही थी. फिर उसने अपनी चुदाई पर ध्यान लगा लिया.

दीपक ने चुदाई प्रेम से आरम्भ की. अपनी माँ से उसे असीम प्रेम था और ये उनके इस शारीरिक मिलन में चरितार्थ हो रहा था. जया भी दीपक की भावनाओं को समझ रही थी इसी कारण वो भी उसी प्रेम के साथ उसका साथ दे रही थी. फागुनी अपना पेग समाप्त कर चुकी थी और दूसरे पेग के विषय में सोच रही थी. हालाँकि उसके तीन पेग हो चुके थे पर इन घटनाओं ने उसे इतना उत्तेजित किया हुआ था कि मदिरा का नशा पता भी नहीं चल रहा है.

दीपक ने जया की चुदाई लगभग दस मिनट करने पश्चात अपना रस चूत में उढेल दिया. उसने फिर ऊपर उठकर अपनी माँ के होंठों को चूमा.

“आप अद्भुत हो, अम्मा!”

जया ने उसका सिर पकड़ा और अपनी ओर खींचकर एक और प्रगाढ़ चुम्बन लिया.

“तू भी अद्भुत है, मेरा लाल!” माँ की ममता ने दीपक के मन को आनंदित कर दिया.

“अब बहू को बुला ले, उसे भी तो कुछ खिलाना है.”

“मैं यहीँ हूँ, माँ जी.” फागुनी ने अपनी सास की चूत पर मुंह रखने से पहले बताया.

फागुनी अपनी सास और अपने पति के संगम के मिश्रण को चाटने में व्यस्त हो गई. अभूतपूर्व स्वाद और गंध ने फागुनी को प्रसन्न कर दिया. अपनी सास की चूत को पूर्ण रूप से निर्मल करने के बाद वो हटी और दीपक की ओर आशा से देखने लगी.

जया ने अपने पोतों की ओर देखा, “चूत खाली क्यों है?”

क्रमशः
 
  • Like
Reactions: badepapa and Mass

prkin

Well-Known Member
5,622
6,465
189

prkin

Well-Known Member
5,622
6,465
189
Wonderful update bhai...रात्रि अभी शेष है और जाया का चुदना भी बाकी है. ..अगला अपडेट धमाकेदार होना चाहिए :)

prkin
Update Posted
 

Mass

Well-Known Member
11,076
23,413
229
Wonderful update bhai...super!!!

prkin
 
Top