- 5,962
- 20,764
- 174
पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की..
राजेश, मदन और शीला फार्महाउस पर पहुंचते है.. जहां पहले से ही फाल्गुनी उनके इंतज़ार में थी..
आते ही राजेश और शीला अपनी लीला में मस्त हो गई तो दूसरी और मदन की आँखें जवान फाल्गुनी पर गड़ी हुई थी.. शुरुआती झिझक के बाद फाल्गुनी भी धीरे धीरे सहज होने लगी..
फिर शुरू हुआ... हवस का नंगा नाच..!! कभी मदन-फाल्गुनी के बीच.. कभी शीला और फाल्गुनी.. कभी राजेश और शीला.. तो कभी चारों मिलकर एक साथ..
इस घनघोर चुदाई का दौर पूरी रात चलता रहा और आखिर संतुष्ट होकर चारों चैन की नींद सो गए..
__________________________________________________________________________________________________
घर से ऑफिस आए हुए पीयूष का मूड आज बिना कारण ही बहोत अच्छा था.. वो किसी फिल्म का गाना गुनगुनाते हुए अंदर आया.. बाहर के फ्लोर पर करीब दस लोग बैठकर अपने वर्कस्टेशन पर काम में व्यस्त थे.. उनमें से एक वैशाली भी थी.. पिंटू भी उसके बगल में बैठकर अपने लेपटॉप पर नजरें जमाएं बैठा हुआ था.. उसकी मौजूदगी के कारण पीयूष ने बिना वैशाली की तरफ देखे अपनी केबिन का रास्ता नापा..
अपनी चैर पर जाकर बैठते ही उसने अखबार उठाया और पढ़ने लगा.. बीच में चपरासी आकर कॉफी का मग रखकर चला गया..आंतरराष्ट्रीय खबरों के पन्ने पढ़ने में पीयूष ऐसा डूब गया की उसे पता ही नहीं चला की कब कोई उसकी केबिन के अंदर आया और उसकी कुर्सी के पीछे जाकर खड़ा हो गया
अचानक दो हथेलियों ने पीयूष की आँखों को ढँक दिया.. एक पल के लिए पीयूष सोच में पड़ गया की क्या हो गया..!! फिर हथेली की कोमलता और जानी-पहचानी परफ्यूम की खुशबू महसूस होते ही उसे अंदाजा लगने में देर नहीं हुई
"अरे वाह.. मेरी शैतान साली..!! तू अंदर कब आई मुझे पता भी नहीं चला" मुस्कुराते हुए पीयूष ने कहा
रूठने का अभिनय करते हुए मौसम ने कहा "क्या जीजू..!! आपको सरप्राइज़ देने आई पर आपने तो झट से पहचान लिया..!!" मौसम पीयूष के सामने आकर कुर्सी पर बैठ गई
"अरे मेरी प्यारी साली साहेबा.. तू धरती पे चाहे जहां भी रहेगी.. तुझे तेरी खुशबू से पहचान लूँगा" चुटकी लेते हुए पीयूष ने हँसकर कहा
"आहाहा बड़े फिल्मी हो रहे हो आज तो जीजू.. लगता है दीदी ने खुश करके भेजा है ऑफिस" मौसम ने कहा
कविता का जिक्र होते ही पीयूष की मुस्कान गायब हो गई.. लेकिन उसने तुरंत ही उन विचारों को दिमाग से झटकते हुए मौसम से कहा "तू कब आई यार..!! बताना तो था, मैं ड्राइवर को एयरपोर्ट लेने भेज देता..!!"
"बता देती तो आपको सरप्राइज़ कैसे मिलता..!!! आज सुबह की फ्लाइट से आई.. सीधे यहीं पर.. अब तक तो दीदी को भी पता नहीं है की मैं यहाँ आई हूँ" मौसम ने अपनी मुस्कान का जादू बिखेरते हुए कहा
मुस्कुराती मौसम की ओर पीयूष देखता ही रह गया..!! शादी के बाद, अमूमन जिस तरह के बदलाव एक लड़की के जिस्म पर दिखते है, वैसे कुछ हसीन बदलाव मौसम के शरीर पर भी नजर आ रहे थे..!! पतले शरीर पर चर्बी की हल्की सी परत चढ़ चुकी थी.. स्तनों का नाप भी बढ़ चुका था.. जाहीर सी बात थी.. ऐसा कडक माल हाथ आने के बाद, विशाल ने अपनी सारी कसर जो उतारी होगी मौसम पर..!! किस्मत वाला है विशाल, पीयूष ने सोचा, जो ऐसी सेक्सी लड़की उसे पत्नी के रूप में मिल गई..!!
"यार, तू तो दिन-ब-दिन और भी खूबसूरत होती जा रही है" पीयूष ने दिल से प्रशंसा की..
मौसम शरमा गई, उसकी मस्कारा लगी आँखें इतनी सुंदर लग रही थी.. और उसकी लंबी लंबी पलकें.. आह्ह..!!! गोरे गुलाबी गालों वाले चेहरे को देखते ही चूमने का मन कर रहा था पीयूष का..
"क्या जीजू आप भी..!! मेरी टांग खींचने की आपकी पुरानी आदत अब तक गई नहीं" मौसम ने हँसते हुए कहा
पीयूष: "अरे मोहतरमा...
तारीफ़ में मेरी कोई चालाकी नहीं,
आपकी ख़ूबसूरती के चर्चे तो ज़माना करता है..
शरमा के कहती हो, मैं मज़ाक करता हूँ,
अरे! आईना भी तो हर रोज़, यही बात करता है.."
"वाह.. आप तो शायर हो गए जीजू" मौसम ने कहा
पीयूष:
"शायर हूँ नहीं, बस आपके हुस्न ने बना दिया,
वरना मैं तो सीधे-सादे जज़्बातों में जीता हूँ..
जबसे देखा है आपको इन आँखों से पहली बार,
शराब भूल गया.. आपके शबाब को ही पीता हूँ!"
यह सुनकर मौसम पानी-पानी हो गई, उसने कहा "क्या बात है जीजू..!! ऐसी तारीफ तो आज तक विशाल ने भी कभी नहीं की मेरी "
पीयूष:
"वो शायद रोज़ देखते-देखते आदत बना बैठे,
हम तो पहली नज़र में ही क़ायल हो बैठे..
तारीफ़ करना हमारा फ़र्ज़ बन गया,
हुस्न तेरा देख, हम लफ्जों को ही ग़ज़ल बना बैठे!"
मौसम शर्म से लाल लाल हो गई और बोली "बस जीजू.. अब और नहीं.. वरना मैं यहीं पिघल जाऊँगी"
पीयूष फिर भी न रुका और बोला:
"अरे पिघल भी गईं तो क्या हुआ, मैं संभाल लूंगा,
मेरी इन बाँहों में तुम्हें फिर से ढाल लूंगा..
एक बार मौका देकर तो देखो इस नाचीज़ को
मैं साँसों से तेरे आँचल की सिलवटें निकाल लूंगा!"
अब मौसम से ओर रहा न गया.. वह उठ खड़ी हुई और पीयूष के पास पहुँच गई.. अपनी हथेलियों में पीयूष का चेहरा भरकर उसने चूम लिया.. लब से लब मिलें.. और पुरानी चिंगारी को जैसे हवा मिल गई..!!! कुर्सी पर बैठे पीयूष ने मौसम को अपने ऊपर खींच लिया.. अपनी दोनों गदराई टांगों को कुर्सी के इर्दगिर्द जमाकर वो पीयूष पर चढ़ गई और बेताहाशा चूमने लगी..!! उसके मस्त मम्मे पीयूष की छाती पर दब रहे थे.. स्लीवलेस टॉप से खुली दिख रही उसकी काँखों से परफ्यूम और पसीने की मिश्रित मादक गंध पीयूष को पागल बना रही थी..मौसम पागलों की तरह पीयूष को चूमे जा रही थी.. विशाल के व्यवहार से त्रस्त होकर वह पीयूष की बाहों में पिघलती जा रही थी..
चूमते हुए पीयूष अपने दोनों हाथों से, मौसम के मस्त बबलों को मींजने लगा.. पतले टॉप और ब्रा के ऊपर से ही उसकी उंगलियों ने निप्पलों को ढूंढ निकाला.. जो इन हरकतों से सख्त हो चली थी..
दोनों उंगलियों से निप्पल से खेलते हुए उसने अपना दूसरा हाथ मौसम की जांघों के बीच डाल दिया.. पर कमबख्त जीन्स के सख्त कपड़े के कारण चूत की परतों का बाहर से मुआयना करना नामुमकिन था.. वह अपना हाथ जीन्स के अंदर डालने ही जा रहा था की मौसम ने उसका हाथ पकड़ लिया
"यहाँ नहीं जीजू.. कोई भी.. कभी भी अंदर आ सकता है" मौसम ने फुसफुसाते हुए उसके कानों में कहा
पीयूष को भी तभी अंदाजा हुआ की वह उसकी केबिन में बैठा था और दरवाजे पर लॉक भी नहीं लगाया था.. कोई अंदर आकर उनको इस अवस्था में देख लेगा तो गजब हो जाएगा..!! उसने तुरंत अपने होश संभाले.. और संभालकर मौसम को कुर्सी से उतारा.. मौसम ने अपना टॉप ठीक कीया और पीयूष के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई..
"यार, मन तो कर रहा है की तुझे लेकर कहीं भाग जाऊँ" अपनी टाई को ठीक करते हुए पीयूष ने धीमे से मौसम को कहा
मौसम शरमाते हुए मुस्कुराई ओर बोली "अभी कुछ दिनों के लिए मैं यहीं हूँ.. मौका मिलेगा जीजू.. चिंता मत कीजिए"
"तेरे चक्कर में कॉफी ठंडी हो गई" कॉफी का मग को छूते हुए पीयूष ने कहा
"पर आप को तो गरम कर दिया ना मैंने..!!" खिलखिलाकर हँसते हुए मौसम ने कहा
पीयूष ने घंटी बजाई और चपरासी को अपने और मौसम के लिए कॉफी लाने को कहा
"वैसे तुम वैशाली और पिंटू से बाहर मिली या नहीं?" पीयूष ने पूछा
"पिंटू भैया तो पिछले हफ्ते बेंगलोर ही थे.. उनसे तो वहीं मिल लिया.. वैशाली को हाई बोलकर सीधे अंदर ही आई आपको सरप्राइज़ देने.. अब बाहर जाकर इत्मीनान से मिलूँगी उसे.. काफी टाइम बाद आई हूँ.. ढेर सारी बातें करनी है मुझे उससे और दीदी से भी..!!" मौसम ने जवाब दिया
ठीक है.. तू कॉफी पीकर घर जा और आराम कर.. फिर रात को मिलते है" पीयूष ने कहा
"सोच रही हूँ जीजू.. ऑफिस का थोड़ा काम देख लूँ.. मैंने स्टाफ मीटिंग के लिए बोल दिया है पिंटू भैया को.. एक घंटे बाद है.. फिर सोच रही हूँ, वैशाली को लेकर कहीं बाहर लंच पर जाऊँ.. लौटते हुए शाम हो गई तो हम साथ ही घर जाएंगे.. थकान महसूस हुई तो घर चली जाऊँगी" मौसम ने कहा
"ठीक है, जैसा तुझे ठीक लगे" पीयूष ने कहा
तभी चपरासी दोनों के लिए कॉफी लेकर आया
__________________________________________________________________________________________________
अपनी माँ रमिलाबहन को फोन कर उसने उन्हें उनके नौकर को अपने घर भेजने के लिए कहा था.. यह कहकर की उसे घर की साफ-सफाई करानी है.. जाहीर सी बात थी की कुछ दिनों पहले, उस नौकर के साथ हवस का खेल खेलते हुए जब उसकी माँ के आ जाने से जो रुकावट आई थी, उसके चलते, कविता प्यासी ही रह गई थी.. उस दिन के बाद, उसे मौका ही नहीं मिला क्योंकि रमिलाबहन पूरा दिन घर पर ही रहती थी..
पीयूष की उपेक्षा झेल रही कविता के पास ओर कोई विकल्प नहीं था.. जिस्म की प्यास उसे पागल बना रही थी.. वह एक ऐसे कूकर की तरह महसूस कर रही थी जिसे पानी भरकर तेज आंच पर चढ़ाया दिया गया हो और सीटी काम न कर रही हो.. अंदर बन रही भांप का दबाव बढ़ता जा रहा था और इससे पहले की वो फट जाए.. उस भांप को बाहर निकालना बहोत जरूरी था..
पीयूष के ऑफिस जाते ही, कविता ने अपनी माँ से फोन पर बात कर, उस नौकर लड़के को भेजने के लिए कहा.. और फिर बेसब्री से इंतज़ार करने लगी.. घर की डोरबेल बजी और कविता उछलकर दरवाजा खोलने के लिए भागी..
दरवाजा खुलते ही उसने देखा की वह गोरा चिट्टा नेपाली लड़का, मैली टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहने हुए, सहमी नजर से कविता की ओर देख रहा था.. जैसा वह जानता था की उसे क्यों बुलाया गया था..!!
कविता ने उसकी ओर ऊपर से नीचे तक नजर डालकर देखा.. उसके गंदे दीदार देखकर उसने अपनी नाक सिकुड़ी.. इशारे से उसे अंदर आने के लिए कहा और दरवाजा बंद कर दिया
वह लड़का ड्रॉइंगरूम में सोफ़े के पास नजरें झुकाए खड़ा हो गया.. जैसे अगले निर्देश का इंतज़ार कर रहा हो.. कविता कुटिल मुस्कान के साथ उसके पीछे आई और उस लड़के के बिल्कुल सामने खड़ी हो गई
"नहाया नहीं है क्या?" २ फिट दूर से भी कविता को उसके पसीने की बदबू आ रही थी..
उस लड़के ने दायें बाएं सिर हिलाकर इशारे से कहा की वह नहीं नहाया था
"छी.. तू नहाता नहीं क्या?" कविता ने मुंह बिगाड़ते हुए कहा
"जी वो.. घर की साफ-सफाई हो जाने के बाद ही नहाता हूँ मैं" उसने बिना नजरें उठाए जवाब दिया..
"पहले अंदर बाथरूम में जा.. और ठीक से नहाकर बाहर आ" इशारे से बाथरूम का रास्ता दिखाते हुए कविता ने कहा
वह लड़का यंत्रवत बाथरूम की ओर गया और दरवाजा बंद कर दिया
कविता आमतौर पर घर में पंजाबी सूट या टीशर्ट-शॉर्ट्स पहनती थी, लेकिन आज उसने बेडरूम में जाकर.. रात वाली सिल्क की नाइटी पहन ली, जो घुटनों से ऊपर तक आती थी.. नाइटी उसके बदन पर दो पट्टों के सहारे कंधों पर अटकी हुई थी, जिसकी पीठ काफी खुली हुई थी.. उसे पहनकर वह बेड पर लेट गई..
थोड़ी देर बाद वह लड़का, जिसका नाम बाबिल था, वह नहाकर बाहर निकला.. उसने केवल अपनी शॉर्ट्स पहनी थी और उसकी मैली टीशर्ट कंधे पर डाल रखी थी.. बाहर आकर उसने कविता की ओर देखा.. वह बड़े ही मदहोश अंदाज में, पतली नाइटी पहने, बेड पर लेटे हुए थी..
नजरें झुकाएं वह बेडरूम से बाहर जा ही रहा था की कविता की आवाज ने उसे रोक दिया
"कहाँ जा रहा है..!! इधर आ..!!" आदेशात्मक आवाज में कविता ने कहा
वह लड़का मुंडी नीचे किए हुए कविता के सामने खड़ा हो गया.. कविता ने उसे शॉर्ट्स से पकड़कर खींचते हुए बिस्तर पर गिरा दिया और खुद उसके बगल में लेट गई.. अब जो होने वाला था उसकी अपेक्षा से उस लड़के की आँखें बंद हो गई..!!
कुछ देर बाद, वह धीरे से उसकी ओर मुड़ी और उसके चेहरे को देखने की कोशिश की.. उसने पाया कि हालांकि उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन उसका लंड उसकी शॉर्ट्स में उछल रहा था.. कविता ने उसका हाथ पकड़कर अपने स्तन पर रख दिया..
उस नौकर ने अपना हाथ कविता की छाती से हटाने की कोशिश की, लेकिन कविता ने उसका हाथ अपने स्तन पर और ज़ोर से दबा लिया और उसे अपनी ओर खींचने की कोशिश की.. अब वह उससे चिपकी हुई थी, और उनके बीच कोई जगह नहीं बची थी..
कविता अपना चेहरा और करीब लाई, जो अब उसके कंधे पर था और उसकी गर्दन तक पहुँच चुका था.. उसका पैर लड़के के पेट के ऊपर डाल दिया, और उसका लंड शॉर्ट्स के ऊपर से ही सहलाने लगी..
वह पीठ के बल लेटी थी, जबकि उस लड़के का हाथ उसके स्तन पर था और उसकी टाँगें लड़के के ऊपर लिपटी हुई थीं..
पिछले कई सप्ताह से कविता सेक्स से दूर थी.. धीरे-धीरे उसकी सांसें गरम होने लगी.. बाबिल के शरीर की गर्मी से उसकी कामुकता भड़क उठी..
उसकी साँसें तेज़ हो गईं, और उसके स्तन ऊपर-नीचे होने लगे.. हर बार जब उसके स्तन उठते, उसे लगता कि बाबिल के हाथ भी उन्हें धीरे से दबा रहे हैं..
कविता ने उसे देखा.. बाबिल का चेहरा उसके कंधे से सिर्फ एक इंच की दूरी पर था.. उसने उसके माथे पर एक नरम चुंबन दे दिया..
बाबिल ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.. उसने अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया, जो उसके स्तन को दबा रहा था, और धीरे-धीरे उसे अपने शरीर पर घुमाने लगी..
फिर उसने अपने मुँह में बाबिल की एक उंगली ले ली और धीरे से उस पर जीभ फिराने लगी.. उसका दूसरा हाथ उसकी गर्दन से नीचे गया, और उसे अपने शरीर के करीब खींच लिया..
अब उसका हाथ बाबिल के पेट पर था, और धीरे-धीरे उसने अपनी उंगलियों को उसके शॉर्ट्स और अपने शरीर के बीच में डाल दिया.. उसने महसूस किया कि बाबिल का लंड उसकी निकर में सख्त हो चुका था..
कामोत्तेजना से भरकर, उसने अपनी उंगलियों से उसके लंड को सहलाना शुरू कर दिया.. बाबिल ने अपनी कमर को थोड़ा हिलाया, जिससे उसे और जगह मिल गई..
जब कविता ने अपना पूरा हाथ उसके लंड पर रखा और धीरे से दबाया, तो अचानक बाबिल ने उसके कंधे, गले और छाती को चूमना शुरू कर दिया.. उसका खाली हाथ अब उसके स्तनों को मसल रहा था, और उसके निप्पल्स को नाइटी के ऊपर से दबा रहा था..
अब कविता से भी नहीं रहा गया.. उसने भी उसके चुंबनों का जवाब दिया.. उसने बाबिल के माथे को चूमा और फिर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए..
अब बाबिल का सब्र टूट चुका था.. उसने अपने दूसरे हाथ से उसके पूरे शरीर को रगड़ना शुरू कर दिया, जिससे कविता की उत्तेजना और बढ़ गई..
अब उसे लगने लगा कि वह उसे जंगली तरीके से चोदना चाहती है, ताकि उसकी महीनों की तृष्णा शांत हो जाए.. वह यह भूल चुकी थी कि वह उसका नौकर है और उससे उम्र में भी काफी छोटा है..
उसने बाबिल को अपने ऊपर खींच लिया.. अब वह उसके ऊपर था, और दोनों एक-दूसरे को जुनून से चूम रहे थे..
बाबिल उसके चेहरे, गर्दन और स्तनों को चाट रहा था.. उसका हाथ उसकी नाइटी के ऊपर से ही उसके स्तनों को मसल रहा था.. कविता के हाथ उसकी पीठ पर थे, और वह उसे और पास खींचने की कोशिश कर रही थी..
उसे अपने नंगे स्तनों पर उसका मुँह महसूस करने की तीव्र इच्छा हो रही थी.. लेकिन जब उसने देखा कि बाबिल उसकी नाइटी नहीं उतार रहा, तो उसने खुद ही एक हाथ से अपनी नाइटी नीचे खींची और एक स्तन को पूरी तरह बाहर निकाल लिया..
बाबिल उसके स्तनों पर जंगली की तरह टूट पड़ा.. वह उसके निप्पल्स को चाटने, चूसने और नोंचने लगा.. कविता कराह उठी और अपने पैरों से उसकी पीठ को जकड़ लिया..
उसने बाबिल की टी-शर्ट भी उतार दी, और अब उसके नंगे स्तन उसके नंगे शरीर से रगड़ खा रहे थे.. उसने अपना दूसरा स्तन भी नाइटी से बाहर निकाल लिया..
अब उसके दोनों स्तन खुले हुए थे, और बाबिल उन्हें चाटते हुए उस पर हावी हो चुका था..
और जब कविता ने अपना पूरा हाथ उसके लंड पर रख दिया और धीरे से उसे दबाया तो अचानक पाया कि वह उसके कन्धे के ऊपर पूरी तरह से चूम रहा था, गले पर और छाती के ऊपर सब जगह,और उसका जो हाथ खाली था उससे वह मेरे स्तनों का मर्दन कर रहा था और कविता की निप्पलों को अपनी उँगलियों से नाइटी के ऊपर से मसल रहा था ...
कविता अब अपने पूरे खुमार पर थी.. आतुर हो कर उसने अपने दूसरे हाथ से उस लड़के के पूरे गोरे शरीर को हौले हौले रगडना आरम्भ कर दिया जिससे उसकी उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी ... और अब वह चाहती थी कि वह लड़का उसे वहशियाना तरीके से चोदे जिससे उसकी आग शान्त हो जाए ...
बाबिल अब कविता के पूरे चेहरे को चूम रहा था, उसकी गर्दन और स्तनों के थोड़ा ऊपर. उसका हाथ नाइटी के ऊपर से ही स्तनों का मर्दन कर रहे थे और कविता के हाथ उसकी पीठ पर थे, उसकी पीठ के निचले हिस्से पर और वह उसे अपने ऊपर रखने की कोशिश कर रही थी. कविता की हालत खराब थी.. वह अपने नंगे स्तनों पर उस लड़के के मुंह को महसूस करना चाहती थी लेकिन तब उसने महसूस किया कि वह लड़का किसी तरह से भी मेरी नाइटी खींच कर नीचे नहीं कर रहा था.. तो उसने एक हाथ से उसके सिर को पकड़ा और दूसरे हाथ से अपनी नाइटी नीचे खींच एक स्तन पूरी तरह से बेनकाब किया और अपने नग्न स्तन की ओर उसके मुँह को रास्ता दिखाया. ...
अब वह लड़का कविता के स्तनों पर जंगली की तरह टूट पड़ा... अब वह निपल्स चाट रहा था, चूस रहा था, उसके जीभ चलाने और फिर निपल्स चूसने् से कविता ने कराहना शुरू कर दिया और फिर अपने पैरों के बीच में उसके शरीर को लाने में कामयाब रही.. कविता ने उसकी पीठ पर अपने पैर लपेट लिये और उसकी शॉर्ट्स उतार दी..
अब वह अपने नंगे स्तनों पर उसके नंगे शरीर को महसूस कर रही थी और उसने अपने दूसरे स्तन को भी नाइटी नीचे खींच कर बेनकाब करने में सफ़लता हासिल कर ली ... लड़के का मस्त ताज़ा गोरा लंड, कविता की चूत की परतों पर रगड़ खाते हुए उसे पागल बना रहा था.. चूत पर हल्की रगड़ खाते ही, कविता की चूत ने काम रस का छोटा सा फव्वारा दे मारा
"डींग-डोंग.. डींग डोंग..!!"
घर की डोरबेल बजी...!!! और कविता अपनी मदहोशी के नशे से एकदम से बाहर आई.. वह लड़का भी सहम गया और उसने कविता की निप्पल चूसना बंद कर दिया और सवालिया नज़रों से कविता की ओर देखने लगा.. कविता ने महसूस किया की डोरबेल के अचानक बजने से उस लड़के का लंड अपनी सख्ती खोता चला जा रहा था.. शायद वह डर गया था..!!
जिस मुकाम पर वह पहुँच चुकी थी.. वहाँ से वापिस लौटने की उसकी जरा भी इच्छा नहीं थी.. उसने सोचा "जो भी होगा.. चला जाएगा"
उसने वापिस बाबिल को चेहरे को अपनी निप्पल पर दबा दिया और अपनी कमर को हिलाते हुए उसके लंड को फिर से खड़ा होने के लिए उकसाने लग गई.. लड़का भी समझ गया और अपने काम में फिर से झुट गया..
"डींग-डोंग.. डींग डोंग.. डींग डोंग.. डींग डोंग..!!"
जो भी था, बार बार घंटी बजाए जा रहा था.. जैसे कसी भी तरह दरवाजा खुलवाने पर तुला हो..!!! पर कविता ने अब ध्यान देना छोड़ दिया था..उसने लड़के को अपने ऊपर से उठाया और बगल में लेटा दिया..
उस लड़के का लंड, अब चूत में घुसने लायक खड़ा हो चुका था और कविता अब ज्यादा वक्त बर्बाद करना नहीं चाहती थी.. वो खड़ी हुई और अपनी दोनों टांगें लड़के के शरीर के इर्दगिर्द जमाकर खड़ी हो गई.. धीरे से नाइटी उठाकर अपनी नाजुक सी चूत को उजागर किया.. वह लड़का हक्का-बक्का होकर, कविता की उस आकर्षक लकीर को देखता ही रहा..
अपनी जांघें चौड़ी करते हुए वह झुककर उतनी नीचे आई की लड़के के सुपाड़े की नोक उसकी चूत के होंठों को स्पर्श करें.. कविता की आह्ह निकल गई.. उसे उस लड़के के गोरे गुलाबी लंड से जैसे प्यार हो गया था.. उसने अपनी हथेली से लंड को पकड़ा और चूत की दरार पर सेट करने लगी.. अब बस उसे थोड़ा सा वज़न डालने की ही देर थी.. लंड गप्प से अंदर घुस जाता..!!
"दीदीईईईईई...!!! ओ दीदी...!!! कहाँ हो यार..!!! दरवाजा खोलो..!!!" बाहर से आवाज सुनाई दी..!!
कविता के होश उड़ गए..!!! ये तो मौसम की आवाज थी..!!! वो यहाँ... अभी... इस वक्त..!!! उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था.. निवाला बस मुंह में आने ही वाला था की... एक बार और उसकी कश्ती किनारे पर आकर डूब गई..
बाबिल का लंड छोड़कर वह कूदकर बिस्तर से उतरी.. वॉर्डरोब से उसन गाउन निकाला और नाइटी के ऊपर ही पहन लिया.. और इशारे से उस लड़के को कपड़े पहनने के लिए कहा..
बिखरे हुए बाल ठीक करते हुए वह दरवाजे पर आई और लॉक खोला..
"दीदीईईईई...!!" चीखते हुए मौसम अंदर घुसी और कविता को गले लगा लिया
कविता को संभलने में कुछ पल लगें.. थोड़ा सा सहज होने पर उसने भी मौसम को गले लगा लिया
"कब आई तू?? बताया भी नहीं...!!!" कविता ने उसके आलिंगन से छूटकर कहा
आराम से सोफ़े पर पैर पसारकर बैठते हुए मौसम ने कहा "बताकर आती तो आपको ऐसे रंगेहाथों पकड़ने के मौका कैसे मिलता??" शरारती आँखें नचाते हुए मौसम ने कहा
सुनकर कविता का खून सूख गया.. चेहरे से हंसी गायब हो गई.. चेहरे से नूर उड़ गया..!! मौसम को कैसे पता चला..!! कहीं जिस तरह उसने अपनी माँ को बेडरूम की खिड़की से देखा था वैसे मौसम ने तो नहीं देख लिया..!! पर ऐसा ऐसे कैसे मुमकिन था..!!! खिड़की पर तो बड़े वाले परदे लगे हुए थे.. और पीछे के रास्ते खिड़की तक पहुंचना भी बहोत मुश्किल था..!!! फिर भी किसी तरह उसने देख लिया होगा तो..!! कविता को चक्कर सा आने लगा
उसकी ऐसी हालत देखकर मौसम खिलखिलाकर हंसने लगी और बोली "मज़ाक कर रही हूँ दीदी.. वैसे कब से दरवाजा क्यों नहीं खोल रही थी??"
कविता की जान में जान आई.. पर उसे संभलने में कुछ वक्त लगा.. तभी बाबिल बेडरूम से बाहर निकला.. मौसम उसकी और ताज्जुब से देखने लगी.. कभी वो उस लड़के को देखती तो कभी प्रश्नसूचक नज़रों से कविता की ओर..!!
कविता ने अब होश संभाला "अरे यार.. वो तो मैं आज घर की साफ-सफाई कर रही थी..इसलिए मम्मी को फोन कर इसे बुला लिया था.. इस बेडरूम की सफाई सौंपकर मैं ऊपर के फ्लोर पर सफाई कर रही थी... बोर हो रही थी तो ईयरफोन्स लगाकर म्यूज़िक सुन रही थी.. इसलिए सुनाई नहीं दिया"
मौसम अब भी थोड़ी सी उलझी हुई थी.. वह बोली "वो तो ठीक है दीदी.. पर इस पगले को डोरबेल क्यों नहीं सुनाई दी? वो तो नीचे बेडरूम में ही था ना..!!"
कविता के लिए अब मौसम के जासूसीभरे प्रश्नों का जवाब देना मुश्किल हो रहा था.. कुछ सोचकर उसने कहा "अरे यार.. आजकल बहोत हादसे हो रहे है.. कोई भी अनजान घर में घुसकर चोरी, छीना-झपटी, खून.. कुछ भी कर देता है.. इसलिए मैंने इसे कहा था की जब तक मैं नीचे न आऊँ तब तक कितनी भी डोरबेल बजे, दरवाजा नहीं खोलना है"
"पर वो तुम्हें बता तो सकता था ना..!!!" मौसम के सवाल खत्म ही नहीं हो रहे थे
"अब तू यही सब माथापच्ची करती रहेगी या अपने बारे में भी कुछ बताएगी..!!! अकेली आई है या विशाल भी साथ आया है?" कविता ने चालाकी से बात को मोड दिया..
एक बहुत ही जबरदस्त गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गयापिछले अपडेट में आपने पढ़ा की
पीयूष और वैशाली के बीच ऑफिस में बातचीत हो रही थी.. कुछ पुरानी बातों को याद कर पीयूष शरारती हो उठा.. उसने वैशाली के करीब आने की कोशिश की.. प्यासी वैशाली भी सिहर उठी और दोनों के बीच बात आगे बढ़ने ही वाली थी की तब.. चपरासी के दरवाजा खटखटाने पर वह सिलसिला वहीं रुक गया..
दूसरी तरफ... आखिर वह घड़ी आ ही गई जब राजेश, शीला और मदन को लेकर, फाल्गुनी से मिलने, स्व. सुबोधकांत के फार्महाउस की ओर चल पड़ता है.. मदन गाड़ी चला रहा था और पीछे की सीट पर शीला और राजेश अपनी लीलाएँ शुरू कर देते है.. मदन को उनकी हरकतों में कोई दिलचस्पी नहीं थी.. उसे तो बस, फाल्गुनी का नरम गोश्त ही नजर आ रहा था
तीनों फार्महाउस पर पहुंचते है
अब आगे..
__________________________________________________________________________________________________
कंपाउंड के बड़े से दरवाजे को बंद करते हुए तीनों अंदर आए..!! विस्मित नज़रों से मदन चारों ओर देख रहा था.. हर कोने से समृद्धि की झलक नजर आ रही थी.. बाहर बना गार्डन.. बीच में संगेमर्मर का फव्वारा जिसके बीचोंबीच एक सुंदर नग्न सुवक्र स्त्री की मूर्ति थी.. जिसकी निप्पलों से पानी बहते हुए नीचे गिर रहा था..!! घटादार आम के पेड़ों से घिरा हुआ एक एकर का विस्तार.. और थोड़े ही दूर बना एक वैभवशाली बंगला, जिसकी बनावट में पोर्तुगीज़ व यूरोपियन स्टाइल की झलक थी..
![]()
राजेश फाल्गुनी के साथ उस बंगले की तरफ जाने लगा और मदन भी यंत्रवत उनके पीछे पीछे चल रहा था.. उसने देखा की राजेश अपनी हथेली से फाल्गुनी के चूतड़ों को सहला रहा था.. गोरी गोरी.. वेक्स की हुई चमकती टांगें.. मटकते नितंब.. पतली कमर.. सुराहीदार गर्दन और ब्राउन हाइलाइट्स वाले बाल जो फाल्गुनी के कंधों तक पहुँच रहे थे.. मदन बस उसे पीछे से देखता ही रह गया..!!
जैसे ही वह तीनों अंदर गए.. फाल्गुनी ने मुख्य दरवाजा बंद कर लिया और बोली "वेलकम मदन अंकल..!! आप पहली बार आए यहाँ.. पानी लेकर आऊँ आपके लिए?"
सामने के टेबल पर पड़ी व्हिस्की की बोतल देखकर ही मदन की आँखें चमक उठी "पानी तो नहीं पर आइसक्यूब और ग्लास लेकर आ..!! गला सूख रहा है"
फाल्गुनी मुस्कुराते हुए केबिनेट से ग्लास निकालकर, फ्रिज से बर्फ लेने गई तब राजेश ने कहा "चार ग्लास लेकर आना.. सब साथ पियेंगे"
ड्रॉइंग रूम में ए.सी. पहले से ही चल रहा था इसलिए अच्छी खासी ठंड फैल चुकी थी.. जो कुछ गर्माहट आ रही थी वो फाल्गुनी के सेक्सी जवान बदन से ही आ रही थी.. मदन और राजेश कुर्सियाँ खिंचकर, पैर पसारते हुए बैठ गए.. और फाल्गुनी टेबल पर ग्लास और आइसक्यूब का बॉक्स रखकर, थोड़ा सा नाश्ता निकालने के लिए प्लेटफ़ॉर्म की तरफ गई..
मदन की आँखें उसके बदन को कब से निहार रही थी और यह फाल्गुनी के ध्यान में भी था.. हालांकि राजेश ने यहाँ क्या होने वाला था उसके बारे में पहले ही जिक्र कर दिया था पर फिर भी फाल्गुनी को थोड़ा अटपटा सा लग रहा था.. मौसम के साथ जब वह कविता के घर वेकेशन में गई थी तब उनका हररोज मदन के घर आना जाना होता रहा था.. मदन की छवि उसके मन में केवल वैशाली के पिता के रूप में ही थी.. आज उसका नया ही रूप दिखने वाला था जिसे लेकर फाल्गुनी रोमांचित भी थी और घबराई हुई भी..
"अरे यार.. तुम लोग तो आते ही शुरू हो गए.." व्हिस्की की बोतल से पेग बनाते हुए राजेश को देखकर.. बाथरूम से बहार आई शीला ने कहा
"यार शीला.. आज हम सब मजे करने इकठ्ठा हुए है.. कोई लिमिट नहीं.. कोई परहेज नहीं.. बस मजे करने है..और शुरुआत करने का इससे बेहतर कोई ओर तरीका हो तो बता" राजेश ने एक ग्लास मदन को देते हुए शीला के सामने मुस्कुराते हुए कहा
"तरीका तो है.. इससे सौ गुना बेहतर" राजेश के लंड को शॉर्ट्स के ऊपर से दबाते हुए शीला ने कहा
"थोड़ा रंग जमने दे.. हम दोनों तो पहले ही गरम होकर आए है.. मदन और फाल्गुनी को भी हमारे रंग में रंग जाने दे.. फिर मज़ा आएगा"
शीला ने अपना दुपट्टा हटाकर सोफ़े पर फेंका और अपना ग्लास उठाकर बैठ गई.. और तब तक फाल्गुनी भी नाश्ते की प्लेटस लेकर आ पहुंची
"अरे वाह फाल्गुनी, तूने तो बढ़िया इंतेजाम कर रखा है" शीला ने खुश होते हुए कहा
"मैं तो रेस्टोरेंट से खाना भी पेक करवा कर ले आई हूँ.. जब भूख लगेगी तब माइक्रोवेव में गरम कर लेंगे.. क्या है की यह फार्महाउस मार्केट से दूर है.. ज़ोमेटो-स्वीगी कुछ नहीं आता यहाँ.. हमें कहीं बाहर जाने की जरूरत ही न पड़े इसलिए सब तैयारी कर रखी है" फाल्गुनी ने कहा
"और मेरे लिए तुम भी तैयार होकर बैठी हो.. हैं ना..!!" फाल्गुनी को खींचकर अपनी गोद में बैठाते हुए राजेश ने कहा
फाल्गुनी शरमा गई.. अब तक वो मदन और शीला के सामने सहज होने से हिचकिचा रही थी.. राजेश ने टीशर्ट के ऊपर से उसके स्तनों को मजबूती से रगड़ते हुए गालों को चूम लिया तो फाल्गुनी हड़बड़ा कर खड़ी हो गई..
"अगर भूख लगी हो तो मैं खाना गरम कर दूँ?" राजेश के चंगुल से छूटकर फाल्गुनी ने कहा
"मेरी जान.. गरम तो हम पहले से होकर ही आए है.. और फिलहाल अभी एक ही चीज की भूख है" राजेश ने फिर से फाल्गुनी को दबोचने की कोशिश की
शीला: "साले.. पूरे रास्ते गरम मुझे करता रहा और अब गर्मी निकालने की बारी आई तब फाल्गुनी को गोद में बैठा रहा है..!!"
राजेश ने फाल्गुनी को छोड़ दिया.. और अपना ग्लास खत्म कर टेबल पर रख दिया.. चलते हुए वह शीला के पास आया और उसके करीब बैठकर जांघों को सहलाने लग गया
"थोड़ी देर बैठकर दो-दो पेग लगाते है.. थोड़ा माहोल बन जाए फिर आगे की सोचेंगे.. चलो, सब अपने अपने ग्लास खत्म करो.. मैं सब के लिए दूसरा पेग बनाता हूँ" मदन ने कहा.. उसकी नजर अपने शिकार फाल्गुनी पर थी और वो देख रहा था की वह अब भी थोड़ा सा हिचकिचा रही थी.. वह चाहता था की शराब पीने के बाद फाल्गुनी थोड़ा सा खुलकर पेश आए..!!
राजेश अपना ग्लास पहले ही खत्म कर चुका था.. मदन की बात सुनते ही शीला ने बोटम्स-अप करते हुए अपना ग्लास खत्म कर दिया.. एक फाल्गुनी ही बची थी जो धीरे धीरे घूंट लगा रही थी.. राजेश शीला के नशीले बदन में उलझा हुआ था तब मदन फाल्गुनी के करीब आया और उसके कंधे पर हाथ रख दिया
"तुमने तो अभी आधा ग्लास भी पूरा नहीं किया" बातचीत शुरू करने के इरादे से मदन ने कहा
"मुझे इतनी जल्दी जल्दी पीने की आदत नहीं है, अंकल" फाल्गुनी ने जवाब दिया
"हर नई चीज की ऐसे ही शुरुआत होती है.. एक बार ट्राय करने पर.. चलो एक घूंट में खत्म करो अपना ड्रिंक" मदन का इशारा समझ गई फाल्गुनी.. उसके कहने पर एक ही घूंट में बाकी का ड्रिंक पीने की कोशिश करने पर तेजी से खाँसने लगी वो
खाँसती हुई फाल्गुनी की पीठ सहलाते हुए.. टीशर्ट के अंदर ब्रा की पट्टी से मदन की उँगलियाँ रगड़ खा गई..!! मदन के लंड में एक अजीब सी हलचल हो गई.. उसकी बेटी से भी कम उम्र थी फाल्गुनी की.. और इतनी सी उम्र में ही यह लड़की सुबोधकांत और राजेश दोनों को लपेट चुकी थी.. विश्वास नहीं हो रहा था मदन को..
पीठ पर हाथ सहलाते हुए मदन की हथेली अब थोड़ा सा नीचे फाल्गुनी की शॉर्ट्स तक पहुँच गया.. उसने अपना हाथ अंदर घुसाने की कोशिश की तो महीन सी पेन्टी का कपड़ा महसूस हुआ.. वो पेन्टी के अंदर हाथ डालने ही वाला था की...
"अंकल, अब दूसरा पेग बना दीजिए" फाल्गुनी ने मदन से कहा.. मदन समझ नहीं पाया की वो वाकई दूसरा पेग पीना चाहती थी या फिर चड्डी में अंदर घुसते उसके हाथ को रोकने के लिए उसने कहा था..
उसने अपना हाथ खींच लिया और फाल्गुनी के हाथ से ग्लास लेकर टेबल की तरफ गया.. टेबल की उस तरफ सोफ़े पर राजेश ने शीला को पूरा लेटा दिया था और खुद उस पर चढ़कर उसके शरीर से अपना जिस्म रगड़ रहा था.. दोनों ने अब तक अपने कपड़े उतारे नहीं थे..
उनकी ओर देखकर मुस्कुराते हुए मदन अपना और फाल्गुनी का पेग बनाने लगा.. फाल्गुनी चकित होकर राजेश और शीला के बीच चल रहे उस खेल को देखती ही रही..!!
दोनों ग्लास में शराब भरकर मदन फाल्गुनी की तरफ आया.. राजेश-शीला की तरफ अचंभित होकर देख रही फाल्गुनी को देखकर उसे बड़ा मज़ा आया.. फाल्गुनी की तेज होती साँसों को वह देख पा रहा था.. "लड़की अब गरम हो रही है" उसने मन ही मन सोचा.. अपनी कुर्सी को करीब खींचकर वो फाल्गुनी के बिल्कुल बगल में बैठ गया और उसके हाथों में एक ग्लास थमा दिया..
ग्लास से एक सीप लेकर फाल्गुनी अब भी शीला और राजेश की तरफ देख रही थी.. खेल को अगले पड़ाव पर ले जाने के इरादे से मदन ने फाल्गुनी के कंधे पर हाथ रखते हुए अपनी ओर खींचा.. फाल्गुनी ने मदन को हल्के से धकेलते हुए खुद को उससे दूर कर दिया
"क्या हुआ फाल्गुनी?" ताज्जुब से मदन ने पूछा
"कुछ नहीं अंकल.. बस ऐसा लग रहा है की सब कुछ बहोत जल्दी जल्दी हो रहा है.. मुझे धीरे-धीरे आगे बढ़ने में ही मज़ा आता है.. एक काम करते है.. मैं म्यूज़िक चला देती हूँ.. सब मिलकर डांस करते है.. बहोत मज़ा आएगा" कहते हुए वह उठ खड़ी हुई और म्यूज़िक सिस्टम की ओर चल दी..
मदन का मुंह उतर गया.. उसे न तो डांस आता था और ना ही पसंद था.. पर फिलहाल फाल्गुनी के ताल से ताल मिलाने के अलावा ओर कोई चारा भी तो नहीं था..!!
म्यूज़िक चलाकर फाल्गुनी अपनी कमर मटकाते हुए मदन की ओर आई.. कुछ पल के लिए तो मदन को पता भी नहीं चला की कैसी प्रतिक्रिया दें..!! फाल्गुनी ने मदन का हाथ पकड़कर उसे कुर्सी से खड़ा किया और उसका हाथ पकड़कर अपनी कमर पर रख दिया.. अब वह एक एक स्टेप लेते हुए मदन का मार्गदर्शन कर रही थी.. धीरे धीरे मदन को भी मज़ा आने लगा.. टाइट टीशर्ट से दिख रही दोनों स्तनों के बीच की रेखा को ताड़ते हुए.. मदन भी ताल मिलाते हुए नाचने लगाऐसे ही मस्ती का दौर चलता गया.. अब राजेश और शीला भी उठकर, इन दोनों के साथ डांस करने लगे..
जैसे ही मदन ने अपना हाथ आगे बढ़ाकर फाल्गुनी को नजदीक पाया, उसकी कमर में हाथ डालकर उसके और करीब आ गया.. उसने भी अपनी बाहे फाल्गुनी पर डाल दी और वह दोनों बिलकुल करीब होकर नाचने लगे.. उसकी मुलायम कमर को जैसे ही मदन के हाथ स्पर्श करने लगे, वो और भी पास आ गयी.. अब उसका एक हाथ उसके नितम्बों पर था और उसके वक्ष मदन के सीने से सटे हुए थे..
उसके गालों के पास अपने गाल लाकर मदन ने उसके कानों में कहा, "फाल्गुनी, आज तुम वाकई बहुत सुन्दर और प्यारी लग रही हो.."
"ओह, मदन अंकल, थैंक यू, वैसे आप भी बड़े प्यारे हो," उसने धीमी आवाज़ में कहा..
अब मदन की गर्म साँसे उसकी गर्दन, गाल और कंधों से टकराने लगी.. वो मदन के और पास आ गयी, अब तो उसके स्तन और कठोर स्तनाग्र मुझे छूने लगे..
"फाल्गुनी, मेरे साथ नाचते हुए अच्छा लग रहा हैं न तुम्हे?"
"हां अंकल, आई एम एनजोइंग .."
अब मदन ने अपने गालों से उसके गोरे गालों को स्पर्श किया.. फाल्गुनी के मुँह से एक आह निकली..
उसने नज़र घुमाकर देखा तो राजेश और शीला एक दुसरे से लिपट कर मस्त थे.. राजेश शीला के गालों पर और गर्दन पर चुम्बन किये जा रहा था और शीला अपने भरे हुए स्तन उसकी छाती पर दबा रही थी.. देखकर फाल्गुनी स्तब्ध रह गई.. हालांकि राजेश ने उसे बताया था की वह दोनों कपल्स अपने पार्टनर्स की अदला-बदली का खेल खेलते आए है, उसके लिए यह पहला मौका था की एक पत्नी को अपने पति के सामने ही किसी गैर मर्द से संबंध बनाते हुए देख रही हो
"वो दोनों...." फाल्गुनी आगे कुछ कह पाती उसके पहले मदन ने कह दिया, "उनको एन्जॉय करने दो, हम भी एन्जॉय करेंगे!"
फाल्गुनी ने कहा "आप को अटपटा सा नहीं लगता!! आपकी बीवी किसी पराये मर्द के साथ और वो भी आपकी आँखों के सामने"
मदन ने मुस्कुराकर जवाब दिया "देख फाल्गुनी, जब यह खेल खेलते हुए तुम्हें सालों का अनुभव हो जाएगा तब तुम्हें महसूस होगा की सेक्स को जितना खुलकर इन्जॉय करो उतना ही ज्यादा मज़ा आता है.. और मेरा मानना है की अगर सब की सहमति हो तो ऐसा करने में कुछ भी गलत नहीं है"
मदन ने फाल्गुनी के गर्दन को हलके से चूमा, और अब वो मुझसे पूरी तरह लिपट गयी.. दोनों डांस करते करते एक दूसरे की बाहों में आ गए थे..
"फाल्गु, तुम्हे अच्छा लग रहा हैं न?
"हां अंकल, आप बड़े हॉट हो.."
"तुम भी बहुत हॉट और सेक्सी हो फाल्गु.."
न जाने मदन ने फाल्गुनी को फाल्गु नाम से क्यों पुकारा, मगर वो उसे अच्छा लगने लगा..
अब मदन के दोनो हाथ उसकी पीठ और कमर पर फिर रहे थे और मदन ने हिम्मत करके उसके गालों को चूमना शुरू किया..
"आह अंकल, कितना अच्छा लग रहा हैं, उफ्फ़.."
अब मदन ने सोचा.. यही मौका है.. और उसका चेहरा उठाकर उसके रसीले होठों पर अपने होंठ रख दिए..
फाल्गुनी ने भी अब मदन के चुम्बन का जवाब दिया और मदन के होठों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी.. मदन ने उसे बाहोंमे जकड लिया और मदन के हाथ उसके मिनी स्कर्ट को उठाकर उसकी नितम्बों की गोलाईयाँ नापने लगे.. धीरे धीरे वह दोनों राजेश और शीला से दूर गए और फिर दोनों की जीभ का आपस में प्यार शुरू हुआ..
फाल्गुनी को चूमते हुए अब मदन ने एक हाथ उसके कड़े स्तनों पर रखके उसे सहलाने लगा..
"शीला आंटी के मुकाबले मेरे आपको छोटे लगते होंगे, हैं न अंकल?"
"नहीं फाल्गु, मुझे बहुत सेक्सी और मस्त लगते हैं ये.."
"ओह, आह, मदन, यू आर सो स्वीट..!!"
"फाल्गु डार्लिंग, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो, और सेक्सी भी.. आह, कितने कठोर और प्यारे मम्मे हैं तुम्हारे, आहहह.."
मदन और फाल्गु ऐसे ही सहलाते और चूमते हुए कुछ देर तक उत्तेजित होते रहे.. उसका दिल जोरों से धड़क रहा था.. फाल्गुनी भी अब मदन को अंकल कहने के बजाए नाम से बुलाने लगी थी
"मैंने आज तक कभी ऐसा महसूस नहीं किया हैं, मदन, मतलब सेक्स की बात नहीं कर रही.... ऐसा ग्रुप में करना.. मेरे लिए पहली बार है" फाल्गुनी ने कहा..
अब मदन और फाल्गुनी दोनों एक दुसरे को सहलाते और चूमते हुए मदहोश हो गए थे.. मदन का कड़क लंड उसकी चूत पर दब रहा था.. मदन ने देखा की फाल्गुनी भी अब अपनी चूत उसके लोडे पर दबा रही थी, जैसे की चोदने का संकेत दे रही हो.. मगर वह बहुत सावधानी से काम ले रहा था क्योंकि फाल्गुनी बेहद नाजुक थी..
कुछ देर बाद, वह चारो एक साथ सोफ़े पर बैठे हुए थे.. मदन से करीब आने के बाद, फाल्गुनी बहुत खुश लग रही थी और उसके चेहरे पर कोई अपराध की भावना बिलकुल नहीं थी.. क्योंकी मदन-शीला और राजेश काफी स्वाभाविक लग रहे थे, इसलिए मदन के साथ मस्ती करके उसे भी मज़ा आने लगा था..
हँसते हुए राजेश ने कहा, "यार मदन, बड़ा मज़ा आया शीला के साथ रोमांटिक डांस करते हुए.. क्या शीला, तुम्हे कैसे लगा?"
"मुझे तो रोमांटिक डांस हमेशा ही अच्छा लगता हैं, और तुम तो हो भी इतने हैंडसम!" खिलखिलाते हुए शीला ने कहा..
"हां यार, मुझे और फाल्गु को, मतलब फाल्गुनी को भी बड़ा मज़ा आया.. वो भी बहुत अच्छी डांसर है," मदन ने सहज भाव से कह दिया..
"तुम भी कुछ बताओ फाल्गुनी, तुम्हे कैसा लगा," राजेश उसकी आंखों में आँखे डाल कह रहा था..
"ओह राजेश अंकल, मुझे इतना मज़ा आज तक कभी नहीं आया था.. मदन अंकल ने मेरा बहुत अच्छा ख़याल रखा, वो बहुत ही अच्छे डांसिंग पार्टनर हैं.."
फिर मदन फाल्गुनी के और राजेश शीला के कमर में हाथ डालकर बैठ गया और शराब का दौर एक बार और हुआ.. अब फाल्गुनी को काफी चढ़ चुकी थी.. भूख लग रही थी.... इसलिए चारों ने साथ बैठकर खाना खाया
खाना खाने के बाद फाल्गुनी उठी और कहा "मैं नहाकर फ्रेश हो जाती हूँ.... शराब कुछ ज्यादा ही चढ़ गई है.... मैं पंद्रह मिनट मे तैयार होकर आती हूँ, ठीक है मेरे प्यारे मदन अंकल"
मदन ने मुस्कुराते हुए कहा "आराम से फ्रेश होकर आ जाओ स्वीटी.... मैं इंतज़ार करूंगा"
राजेश: "अरे यार, मेरे एक विदेश के क्लाइंट के साथ ऑनलाइन मीटिंग है.... हमारी रात होती है तब उनका सवेरा होता है.... मैं फटाफट वो निपटा लेटा हूँ" कहते हुए उसने अपनी उतारी हुई टी-शर्ट पहन ली और दरवाजा खोलकर बाहर गार्डेन मे चला गया
अब शीला और मदन अकेले थे
"क्या क्या किया तुमने अपनी फाल्गु, ओह सॉरी फाल्गुनी के साथ?" मदन की बाहों मे आते हुए शीला ने पूछा..
"कुछ ज्यादा नहीं, बस किस किया और गले लगाया.. थोड़ा उसकी गांड पर हाथ फिरा लिया, बस.. और राजेश ने तुम्हारे साथ क्या क्या किया मेरी जान?"
"खड़े खड़े और नाचते हुए जो कुछ कर सकता था, सब कुछ किया सालें ने.. तेरे सामने ही तो थे हम दोनों.. पर तेरी नजर फाल्गुनी से हटे तब हम दिखें न.. बार बार उन रातों को याद कर रहा था जब वो मुझे आकर हमारे ही घर में चोदता था.. फिर से चोदने के लिए बेताब हैं साला.."
"यार, फाल्गु की गोरी गोरी जाँघे मस्त दिख रही थी.. उन्हें चूमूंगा और फिर उसकी चूत चाटूँगा," शीला के बबलों को मसलते हुए मदन कह रहा था..
शीला और मदन एक दूसरे के जिस्मों से खेलते रहे और शराब के जाम पर जाम खाली करते गए
तभी फाल्गुनी पारदर्शक गाउन पहनकर बाहर आई.... जिसकी लंबाई मुश्किल से उसकी चूत को ढँक रही थी.... उसकी वेक्स की हुई चिकनी गोरी जांघें मस्त लग रही थी
फाल्गुनी की गोरी गोरी जांघें देखकर मदन का लंड उसे सलामी देने लगा..
"यार आज कुछ ज्यादा ही गर्मी हैं," कहकर मदन ने अपने सारे कपड़े उतार दिए और फिर बोला "लगता है राजेश को आने मे देर लगेगी.... तब तक हम तीनों तो शुरुआत करें"
शीला: "हाँ, यह भी सही है.. चलो अंदर बेडरूम मे चलते है"
तीनों अंदर वाले बेडरूम मे गए जहां मदन ने फाल्गुनी को खींचकर "ओह फाल्गु, तुम कितनी स्वीट और सेक्सी हो," कहते हुए उसके होठों को चूसना शुरू कर दिया..
फाल्गु को चूमते और सहलाते हुए मदन ने उसको स्तनों को मसलना शुरू किया.. अब मदन पलटकर ऊपर आ गया और फाल्गु को नीचे लिटा दिया..
"ओह फाल्गु, कितने मस्त हैं तुम्हारे ये मम्मे," मदन उसके निप्पल्स को चूसते हुए बोला..
अब शीला मदन की पीठ और गांड पर अपने बड़े बड़े स्तनों का स्पर्श करके मदन को और भी उत्तेजित कर रही थी.. मदन को बीचमें लिटाकर शीला और फाल्गु मदन के एक एक निप्पल को चाटने लगी..
मदन दोनों की पीठ पर हाथ फिराकर बोले जा रहा था, "आह, कितना अच्छे से चूस रही हो दोनों.. ओह शीला रानी, कितना मज़ा आ रहा है आज तो! ओ फाल्गु, जब से तुम्हारे साथ डांस किया था तबसे तुम्हे चोदने की इच्छा हो रही हैं, आह...."
शीला नीचे सरककर मदन के लौड़े के मुँहमें लेकर प्यार से चूसने लगी और मदन ने फाल्गु को ऊपर की तरफ खींचकर फिरसे उसके स्तनों को बारी बारी पीने लगा.. उसके मुख से गर्म साँसे और आहे निकल रही थी..
"आह, मदन, ऐसे ही चूसे जाओ.. मेरे यह बूब्स चूसो, कितना मज़ा आ रहा हैं, आह, आज तो बहुत कुछ नया नया करने को मिल रहा है!"
फाल्गुनी के स्तनों को मसलते हुए मदन ने उठकर उसको पीठ के बल लिटा दिया और उसकी जाँघे खोलकर उसकी गुलाबी योनि चाटने लगा.. शीला फाल्गुनी का एक स्तन मुँह में लेकर चूसने लगी.. जैसे ही फाल्गुनी को पता चला की मदन उसकी चूत चाट रहा है और सेक्सी शीला आंटी उसके बबलों को चूस रही हैं, फाल्गुनी के मुँहसे एक जबरदस्त आह निकली..
उसने शीला को अपने बूब्स पर दबा दिया और चिल्लाने लगी, "ओह, आह, मदन, शीला, तुम दोनों कितने हॉट हो, चाटो मुझे.. वहाँ नीचे... आह..., ऐसे ही, ओह माय गॉड, तुम कितनी हॉट और सेक्सी हो, आह, मदन, चाटो वहीँ पर, आह , हाँ मेरा दाना भी चूसते रहो, ऐसे ही...."
चूत चाटने के साथ मदन ने पहले एक और फिर दो उंगलिया उसकी चूत में डालकर अंदर बाहर करना शुरू कर दिया.. अब तो फाल्गुनी और भी ज्यादा उत्तेजित हो गयी..
"ओहहऽऽऽ........ आहहहऽऽ........ ओह, माय गाडऽऽऽ...... येसऽऽऽ........ मदन, चोदो मुझे, ओह, याऽऽऽऽ......ओह, फक शीला, येसऽऽऽ.........."
शीला ने अपना दायाँ स्तन फाल्गु के मुँह मे दिया और वो जोर-जोर से चूसने लगी.. तभी मदन ने फाल्गु की टाँगे खोलकर उसकी चूत पर अपने लंड का सुपाड़ा रगड़ा.. रसदार चिपचिपे छेद में जल्दी से लौड़े को अंदर घुसाया और फाल्गु को चोदने लग गया..
फाल्गु चिल्लाती रह गयी, "ओह फक, मदन! फक मीऽऽऽ...... फक मी हार्ड, और जोर से , आह...... ओहह येससऽऽ...... आय ऍम सो वेट, ओह मदन, कम इनसाइड मी.. उफ्फ़..!!"
लगातार दस मिनट तक फाल्गुनी को चोदने के बाद मदन ने शीला को नीचे लिटाया और उसकी गीली और रसीली बुर चोदने लगा.. उस वक़्त शीला ने खींचकर फाल्गुनी को अपने मुँह पर बिठा दिया और शीला अपनी जीभ और होठों से फाल्गु की चूत और दाना चाटती और चूसती रही.. शीला को चोदते हुए मदन, शीला के मुंह पर सवार फाल्गुनी को चूमे जा रहा था..
आखिर जब मदन झड़ने को तैयार था, तब मदन ने फाल्गु से पूंछा, "मेरा वीर्य मुँह में लोगी क्या, फाल्गु डार्लिंग?"
वो उठकर करीब आयी और अपना मुँह खोलकर मदन के लंड के सामने आ गयी.. जैसे ही मदन ने पिचकारी मारी, उसने सारा वीर्य अंदर ले लिया..
उतने में शीला ने फाल्गु को होंठ चूसते हुए थोड़ा वीर्य चाट लिया.. अब दोनों मिलकर बारी बारी मदन के लंड को चाटती और चूसती गयी.. वीर्य की आखरी बूँद तक पी डाली..
मदन खत्म होकर बिस्तर पर ढेर हो गया और तभी राजेश की एंट्री हुई
राजेश: "यार तुम लोग तो मेरे बगैर ही शुरू हो गए!!"
शीला: "क्या करते.. तुझे चुदाई से ज्यादा अपने काम मे इन्टरेस्ट था तो हम कब तक तेरा इंतज़ार करते रहते..!! वैसे ज्यादा देर नहीं हुई, हमारा तवा तो अब भी एकदम गरम ही है, क्यों फाल्गुनी, तू तैयार है ना..!!"
फाल्गुनी कुछ बोलती उससे पहले राजेश ने अपनी टीशर्ट और शॉर्ट्स उतार दी और नंगा हो गया....
राजेश: "लगता है, अभी के लिए मदन का काम तमाम हो गया है.. हम तीनों बगल वाले कमरे मे चलते है.. मदन को आराम करने दो.."
राजेश ने फाल्गुनी को अपनी गोद मे उठा लिया और शीला के साथ तीनों बगल वाले कमरे मे आ गए
उस बेडरूम मे जाते ही, राजेश ने फाल्गुनी को बेड पर लेटा दिया और शीला को कंधों से दबाते हुए नीचे फर्श पर बिठाकर अपना लोडा उसके मुंह मे दे दिया.. शीला ने बिना वक्त गँवाए राजेश का लंड चूसना शुरू कर दिया.. बिस्तर पर लेटी हुई कमसिन फाल्गुनी की गुलाबी तनी हुई निप्पलों को राजेश मसल रहा था और फाल्गुनी बेड पर ही मचल रही थी
चूस चूस कर शीला ने एक ही मिनट में राजेश का लंड, खंबे जैसा सख्त कर दिया.. उसकी लार से लसलसित लंड बल्ब के प्रकाश में चमक रहा था..
अब राजेश बेड पर आ गया.. उसने फाल्गुनी की जांघें खोली और अपनी लपलपाती जीभ उस नाजुक मुनिया पर चलाने लगा.. शीला फाल्गुनी के बगल मे आकर लेट गई
जैसे ही राजेश की जीभ और होंठ फाल्गुनी की चूत और क्लिटोरिस को छेड़ने लगे, फाल्गुनी जोर से आहे भरने लगी और उसने बगल में लेटी हुई शीला का हाथ पकड़ लिया..
फाल्गुनी ने हाँफते हुए कहा, "आप ऐसे चाट रहे हो, मुझे सुबोध अंकल की याद आ जाती है, बड़ा मजा आता हैं आह आह......"
शीला: "सुबोधकान्त भी ऐसे ही चाटते थे तेरी?"
फाल्गुनी ने कहा "हाँ आंटी, जबरदस्त चाटते थे, शुरू शुरू में जब तक हमने पूरी चुदाई शुरू नहीं की थी तब वो चाटकर ही मेरा पानी निकाल देते थे"
राजेश फाल्गुनी की चूत की गुलाबी परतों को चाटते हुए शीला के मम्मों को मसल रहा था
शीला फाल्गुनी की कडक स्तनों को सहला रही थी और वो भी मदहोश हो जा रही थी.. फाल्गुनी अपने छूताड़ उछाल उछालकर अपनी चूत को राजेश के होंठों से दबा रही थी
राजेश: "शीला, तुम भी इसकी रसीली चूत को चाटकर देखो तुम्हें भी बहुत मजा आएगा!"
यह सुनते ही शीला फट से उठी और फाल्गुनी की जांघों के बीच जगह ले ली.. राजेश बेड से उठा और अपना लंड फाल्गुनी के मुख की ओर ले गया.. अपने सुपाड़े को फाल्गुनी के होंठों पर रगड़ते ही फाल्गुनी ने उसके लंड को मुठ्ठी में पकड़कर चूसना शुरू कर दिया
अनुभवी शीला की जीभ, फाल्गुनी की चूत के अंदरूनी हिस्सों में घुसकर ऐसे चाट रही थी की एक ही मिनट मे फाल्गुनी ने अपना पानी शीला के मुंह मे छोड़ दिया.. राजेश का लंड चूसते हुए सिहर रही थी फाल्गुनी
अब राजेश से और रहा नहीं गया.. उसने शीला को फाल्गुनी की चूत से हटाया और खुद बैठ गया.. अपने सुपाड़े को उस गीली दरार पर एक दो बार रगड़कर उसने हल्के से धक्का दिया और फाल्गुनी की सिसकियों के बीच उसने पूरा लंड उसकी चूत मे दे मारा....
राजेश अब धक्के पर धक्का लगा रहा था उस टाइट चूत में....
शीला की अंगीठी भी अब फिर से गरम हो चली थी.. राजेश फाल्गुनी को चोदता रहे और वो बैठे बैठे देखती रहें ऐसा तो हो नहीं सकता.. वो अब बेड पर खड़ी हो गई और कराह रही फाल्गुनी के चेहरे के दोनों तरफ अपने पैर जमा लिए..
अपने चूतड़ों को नीचे लाते हुए उसने अपना गरम भोसड़ा फाल्गुनी के होंठों पर रख दिया
फाल्गुनी ने इससे पहले मौसम और वैशाली की चूत को ही चाटा था.. ऐसे अनुभवी भोसड़े को इतने करीब से देखने का यह पहला मौका था उसके लिए.. बड़े ही कौतूहल से वो इस विराट गुफा के दर्शन कर रही थी की तब शीला ने उसके सर को पकड़कर अपने भोसड़े को फाल्गुनी के होंठों पर रगड़ना शुरू कर दिया
नीचे के छेद मे राजेश धनाधान शॉट लगा रहा था और ऊपर शीला अपने भोसड़े से उसका दम घोंट रही थी.. फाल्गुनी को बड़ा मज़ा आ रहा था..
राजेश अब पूरी ताकत से धक्के पर धक्के लगा रहा था और फाल्गुनी भी अपनी गांड उछाल उछाल कर उसका जोश बढ़ा रही थी..
अपना भोसड़ा चटवाते हुए शीला अब बेहद गरम हो गई थी और वो जानती थी की अनुभवहीन फाल्गुनी चाटकर उसे स्खलित नहीं कर पाएगी.. अब उसकी गुफा भी लंड का भोग मांग रही थी
शीला अब फाल्गुनी के शरीर से नीचे उतरी और उसके बगल में फिर से लेट गई.. अब उसने राजेश को हाथों से अपनी ओर खींचा.. राजेश समझ गया की शीला क्या चाहती थी.. फाल्गुनी की चूत मे एक आखिरी धक्का लगाकर उसने अपना लंड पुच से बाहर निकाल लिया
राजेश शीला के भोसड़े को पेलता उससे पहले शीला ने उसे अपने ऊपर खींच लिया और फाल्गुनी के चूत रस से गीले लोड़े को अपने दोनों महाकाय बबलों के बीच दबा दिया..
राजेश को इशारा मिल गया और वो शीला के थनों को चोदने लगा.. फाल्गुनी बड़े ही अचरज से यह द्रश्य देखने लगी.. हालांकि उसने इस बारे में सुना तो था पर कभी प्रयोग नहीं कर पाई थी.. ऐसे स्तन-संभोग के लिए शीला आंटी जैसे बड़े स्तन जो नहीं थे उसके पास..!!!
शीला के मांसल गोलों के बीच लंड घुसाकर राजेश को बड़ा मज़ा आ रहा था
तभी मदन ने कमरे मे प्रवेश किया.. वह नंगे बदन ही बिस्तर के पास आया और यहाँ का द्रश्य देखकर उसका सुस्त लोडा फिर से तन्नाने लगा
उसने राजेश और शीला की ओर देखा और बगल मे जांघें फैलाएं लेटी फाल्गुनी की ओर देखते ही उससे रहा नहीं गया
परोसी हुई थाली जैसी फाल्गुनी की चूत पर मदन ने तुरंत अपना सुपाड़ा रख दिया.. एक धक्के मे ही उसकी गीली मुनिया मे मदन का लोडा घुस गया..
इस तरफ राजेश शीला के बबले चोद रहा था और दूसरी तरफ मदन, फाल्गुनी की चूत में पंप पर पंप लगाए जा रहा था.. उन दोनों की चुदाई देखते हुए शीला अपनी तीन उँगलियाँ अपने भोसड़े मे पेले जा रही थी
![]()
जब शीला से और रहा न गया तब उसने राजेश को इशारे से अपने नीचे वाले छेद की खातिरदारी करने को कहा
राजेश नीचे की ओर गया और लंड पेलने से पहले उसने अपनी जीभ से उस गदराए भोसड़े का स्वाद लिया.... लसलसित गरम भोसड़ा हवस भरी भांप छोड़ रहा था.. अपनी उंगलियों को शीला की चूतरस से गीला करके उसने अपने लंड को चिपचिपा कर दिया.. और फिर शीला की अंगीठी में अपना लकड़ीनुमा लंड घुसेड़ दिया
फाल्गुनी और शीला अगल-बगल मे लेटी हुई थी और दोनों मर्द मिशनरी ढंग से उन्हें पेले जा रहे थे॥ बड़ा ही अनोखा द्रश्य था..!!
फाल्गुनी के मस्त स्तनों को दबाते हुए मदन का शरीर अकड़ने लगा.. और कुछ ही देर मे उसके लंड ने वीर्य की पिचकारी से उस नाजुक बाला की कमसिन चूत को पावन कर दिया.. झड़ने के बाद वो फाल्गुनी की छाती पर ढेर हो गया तब राजेश अब भी शीला के भोसड़े में शॉट पर शॉट लगा रहा था और शीला भी चुदते हुए अपने दाने को खुद ही रगड़ रही थी
एक चीख के साथ शीला झड़ी.. उसकी जांघें थरथराने लगी.. वह अपनी निप्पलों को जोर जोर से खींचने लगी और साथ ही अपनी मुठ्ठियों को बिस्तर पर पटकने लगी.. शीला की हरकतें देखकर, राजेश से और बर्दाश्त न हुआ और उसने भी शीला की परम गुफा मे अपना वीर्य अर्पण कर दिया..
इस संभोग से शीला इतनी थक गई की वो बिना कुछ साफ किए, वहीं बेड पर ढेर हो गई और एक मिनट में खर्राटे मारने लगी
शीला की नींद खराब न हो इसलिए तीनों बगल वाले बेडरूम मे चले गए और चुदाई की थकान उतारने लगे..
आधे घंटे तक आराम करने के बाद राजेश ने कहा
राजेश: "चल यार मदन.. एक एक पेग हो जाए.. मेरी तो सारी उतर गई..
राजेश और मदन के साथ फाल्गुनी भी उठ खड़ी हुई
तीनों ड्रॉइंगरूम के पास बने टेबल पर पहुंचे.. मदन ने तीनों के लिए एक ड्रिंक बनाया और सब को एक एक ग्लास दिया.. राजेश तो बोटम्स-अप करके एक घूंट में पूरा ड्रिंक पी गया
मदन: "क्या कर रहा है यार!!"
राजेश: "मुझे तो आदत है ऐसे पीने की"
फाल्गुनी: "मैं भी ट्राय करती हूँ"
इससे पहले के मदन या राजेश उसे रोकते, फाल्गुनी ने पूरा ड्रिंक अपने हलक के नीचे उतार दिया.. एक पल के लिए तो उसकी सांस अटक गई.. फिर वो बेतहाशा खाँसने लगी.. मदन तुरंत उसके लिए पानी लेकर आया.. दो घूंट पानी पीने के बाद अब फाल्गुनी को कुछ अच्छा लग रहा था
राजेश ने हँसते हुए कहा "कौआ चला हंस की चाल और अपनी चाल ही भूल बैठा"
फाल्गुनी ने नाराज होने की एक्टिंग करते हुए कहा "मैं आपको कौए जैसी दिखती हूँ क्या..!!"
मदन ने प्यार से उसके गालों को सहलाते हुए कहा "अरे नहीं नहीं.. तू तो कोयल है कोयल"
राजेश दूसरा ड्रिंक बनाने लगा और मदन पीछे से फाल्गुनी के चूतड़ों के बीच की दरार पर अपना लंड रगड़ते हुए उसकी गर्दन पर चूमने लगा
करीब ५ मिनट बाद मदन ने फाल्गुनी को अपनी गोदी में उठा लिया.. फाल्गुनी ने भी मदन को कमर पर अपने पैरों को नागिन की तरह लपेट लिया..
अब मदन फाल्गुनी को सोफे पर ले आया जहां उसने फाल्गुनी को अपना लंड डाले हुए ही सोफे पर गिरा दिया और चूत में लंड अंदर बाहर करना जारी रखा.. मदन इस बार बड़े ही आराम से फाल्गुनी के बदन का लुत्फ उठाना चाहता था.. फाल्गुनी को कुछ देर चोदने के बाद मदन ने लंड डाले हुए ही फाल्गुनी को अपने ऊपर ले लिया और वह सोफे पर बैठ गया.. फाल्गुनी उसके उपर बैठ गई और मदन के होंठों को चूसने लगी..
मदन उसकी गोरी चिकनी पीठ पर हाथ घुमा रहा था..
तभी राजेश बेडरूम से बाहर आया और फाल्गुनी के करीब आकर खड़ा हो गया.. उसने फाल्गुनी के चूतड़ पर एक हल्की सी चपत लगाई.. मदन के लंड पर उछल रही फाल्गुनी ने पलटकर राजेश की ओर देखा और बोली "यह क्या कर रहे हो?"
राजेश ने मुस्कुराते हुए अपना लंड फाल्गुनी की गांड के छेद पर रखते हुए कहा "क्यों..!! एक ही तरफ से मजे लोगी?" और उसने फाल्गुनी की गांड के सुराख पर लन्ड रख कर अंदर दबाया.. अभी सुपाड़े का अग्र भाग अंदर गया भी नहीं था कि फाल्गुनी दर्द से मिमियाने लगी....
फाल्गुनी ने राजेश को रुकने के लिए कहा..
राजेश: "यार ये पहली बार थोड़े ले रही हो.. !! हम पहले भी कर चुके है पीछे.... आज अचानक क्यों दर्द होने लगा?"
फाल्गुनी: "अंकल, इससे पहले हमने पीछे किया तब आगे कुछ घुसा हुआ नहीं था.... आप अभी मेरा हाल तो देखिए....!! मदन अंकल का लंड जड़ तक अंदर घुसा हुआ है.... इसलिए पीछे डालने पर दर्द हो रहा है"
राजेश: "देख फाल्गुनी, कोई भी चीज पहली बार करने पर दर्द तो होता ही है.... इतना अनुभव तो अब तुझे भी है.... मैं थोड़ा आराम से डालता हूँ....!!"
राजेश ने सुपाड़ा बाहर खींच लिया और अपने थूक से उसे गीला कर दिया....
राजेश: "मदन, तू कुछ देर के लिए धक्के लगाना बंद कर.... ताकि मैं इसके पीछे डाल सकूँ.... !! एक बार मेरा घुस जाएँ बाद में हम दोनों एक साथ धक्के लगाएंगे...... आह्ह फिर देखना.... कितना मज़ा आएगा फाल्गुनी.... !!"
मदन ने धक्के लगाना बंद कर दिया.... फाल्गुनी के चूतड़ स्थिर होते ही राजेश ने अपना गीला सुपाड़ा फाल्गुनी की गांड के छेद पर रख दिया और एक धक्का लगाया
फाल्गुनी दर्द से कराह उठी "ऊईईई माँ.... बाहर निकाल लीजिए अंकल.... बहुत दुख रहा है"
लेकिन अब वो कहां रुकने वाला था…!! उसने दो-तीन बार धीरे-धीरे करके अपना लंड फाल्गुनी की गांड में पूरी तरह डाल ही दिया.. अब फाल्गुनी की दोनों तरफ से चुदाई शुरू हो गई.. शुरुआती दर्द के बाद, फाल्गुनी की गांड अब आदि हो गई और वह पतली लड़की बड़े मजे से दो दो लंड लेते हुए सेंडविच मुद्रा में चुदवाने लगी..
राजेश-मदन दोनों के ही लंड उसकी गांड और चूत में थे..
मदन फाल्गुनी को नीचे से पेलता … उधर राजेश गांड में पूरे जोर से अपना लन्ड देता.. इस डबल चुदाई में अब फाल्गुनी को बहुत ही मजा आने लगा था और वो दोनों का साथ दे रही थी.. दोनों फाल्गुनी के शरीर पर अपने हाथ भी चला रहे थे.. राजेश ने उसकी गांड, कमर, और पीठ पर हाथ जमाए रखा था.. उधर मदन ने फाल्गुनी के चेहरे और स्तनों पर अपना हाथ दबा रखा था..
राजेश पूरे जोश में था, वह पूरे जोर से फाल्गुनी की गांड में अपना लन्ड पेल रहा था.. १० मिनट की घनघोर चुदाई के बाद दोनों हल्का हल्का हांफने लगे थे,
फाल्गुनी की गुलाबी चूत बहने लगी थी, उनके लंड पूरी तरह गीले हो गए थे..
राजेश और मदन दोनों ने आपस में कहा- "चलो अब जल्दी निकालते हैं.." और दोनों पूरी ताकत से मेरी चूत और गांड मारने लगे.. फाल्गुनी भी दोनों का पूरी तरह साथ दे रही थी, दोनों को उकसाने का कोई मौका नहीं छोड़ रही थी..
अब फाल्गुनी के मुंह से सिसकियों की आवाज़े आने लगी थी- आह आह आह..!
मदन ने अब फाल्गुनी के होंठों को अपने दांतों से पकड़ लिया और चूसने लगा.. उधर राजेश फाल्गुनी के बालों को पकड़ कर खींचते हुए चोदे जा रहा था.. फाल्गुनी के बूब्स पूरी तरह मदन की छाती से दब गए थे और वे दोनों इसी तरह फाल्गुनी को चोद रहे थे..
आखिर १५-२० धक्कों के बाद सब से पहले राजेश ने फाल्गुनी की गांड को अपने गुनगुने वीर्य से गीला कर दिया तो थोड़ी ही देर में मदन ने फाल्गुनी की बच्चेदानी पर अपने वीर्य का अभिषेक कर दिया..
दोनों ने हंसते हुए फाल्गुनी को सेंडविच बनाकर अपने सीने से लगा लिया..
फाल्गुनी पीछे हाथ करते हुए राजेश के सर को सहला रही थी, दूसरे हाथ से मदन के सर को! कुछ देर बाद जब वो भी थोड़ा नॉर्मल हुई.. दोनों मर्दों के लंड धीरे धीरे सिकुड़ कर उसकी चूत और गांड से निकल गए..
फिर फाल्गुनी ने दोनों के गालों पर एक-एक किस करते हुए कहा "मैं फ्रेश होकर आती हूँ.."
वो बाथरूम चली गई फ्रेश होने के लिए.. वापिस लौटकर वो दोनों के बीच जाकर बैठ गई.. तीनों ने एक एक पेग शराब और पी.. फाल्गुनी ने म्यूज़िक चला दिया और वह तीनों संगीत के ताल पर झूमते हुए शराब पी रहे थे..
फाल्गुनी ने केवल एक टी-शर्ट पहन रखा था.. नीचे न ब्रा थी और ना ही पेन्टी.. केवल एक टाइट टी-शर्ट..
राजेश ने मदन से कहा- "मदन … उठा इसे और ले चल बेडरूम में!"
मदन ने फाल्गुनी को झुक कर उठा लिया.. उसने फाल्गुनी को कंधे पर टांग रखा था.. मदन फाल्गुनी को लेकर बेडरूम की ओर निकल पड़ा.. राजेश भी पीछे पीछे आ गया.. बेड के पास जाकर मदन ने फाल्गुनी को उतारा.. फाल्गुनी जल्दी से मदन से दूर हुई..
उधर राजेश भी बेड तक आ चुका था..
राजेश पीछे आकर बैठ गया और पीछे से फाल्गुनी की पीठ को सहलाते हुए उसने उसकी टी-शर्ट को उतार दिया और उसकी नंगी गोरी पीठ को चाटने लगा.. तीनों नंगे ही बेड पर थे..
फाल्गुनी को बेड पर बिठाकर दोनों उसके दायें बाएं बैठ गए.. मदन फाल्गुनी के चेहरे पर किस करते हुए अपने दोनों हाथों से फाल्गुनी के बूब्स को जोर-जोर से दबाने में लग गया.. फाल्गुनी अपने मुंह से सिसकारियां निकाल रही थी..
राजेश थोड़ा पीछे होकर टिक कर बैठ गया और फाल्गुनी को इशारा करते हुए कहा "इसे मुंह मे लेकर खड़ा कर फाल्गुनी.... तुझे चोदते हुए मेरा तो जी ही नहीं भर रहा.."
फाल्गुनी ने पलटकर राजेश की तरफ अपना मुंह कर लिया और डॉगी स्टाइल में राजेश के लंड को जीभ से चाटने लगी.. कुछ ही पल में राजेश के लन्ड को अपने मुंह में ले लिया.. राजेश अपने हाथों को फाल्गुनी के सर पर रख कर अपना लंड फाल्गुनी के मुंह में अंदर बाहर कर रहा था..
उधर मदन ने भी पीछे से फाल्गुनी की गांड पकड़ते हुए उसकी पीठ चूम लिया और अपना लंड उसकी गांड में डाल दिया.. एक बार अच्छी तरह गांड ठुकाई हो जाने के कारण, वह छेद फेला हुआ था.. थोड़ी कोशिश के बाद मदन को लंड उसकी गांड के छेद के अंदर घुसाने मे सफलता मिल गई और वो अंदर बाहर करने लगा..
दोनों मर्द दो दो बार झड़ चुके थे इसलिए इस राउंड में दोनों को टाइम भी काफी लगना था.. मदन फाल्गुनी की गांड मारे जा रहा था लेकिन उसका निकलने का नाम नहीं ले रहा था.. काफी देर बाद मदन की स्पीड बढ़ने लगी.. लेकिन उसने तभी अपने आप को रोक लिया और लंड को गांड से बाहर निकाल लिया..
मदन: "राजेश, तुम लेट जाओ! फाल्गुनी, अब तुम राजेश के लंड पर बैठ जाओ"
राजेश लेट गया और उसने फाल्गुनी को उठा कर खड़ा किया और अपने लंड पर बैठा दिया.. अब फाल्गुनी राजेश के लंड के ऊपर थी और हल्का हल्का कूद रही थी..
उधर मदन ने फाल्गुनी के चेहरे को पकड़कर अपना लंड फाल्गुनी के मुंह में देने की कोशिश करते ही फाल्गुनी ने अपना चेहरा पीछे की ओर खींच लिया..
फाल्गुनी: "छीईई.. अंकल.. अभी आपने पीछे डाला था.. मैं ऐसे मुंह मे नहीं लूँगी.. इसे धोकर आइए.."
मदन के पास और कोई चारा नहीं था.. वो उठकर बाथरूम मे गया और साबुन से रगड़कर अपना लंड धोकर वापिस आया.. वापिस आकर वो बेड पर चढ़ा और फाल्गुनी के मुंह मे अपना लंड दे दिया.. राजेश के लंड पर धीरे धीरे ऊपर नीचे करते हुए वो मदन का लंड चूसने लगी
काफी देर तक दोनों ने इसी पोजीशन में फाल्गुनी की चूत और मुंह की चुदाई की.. इस दौरान फाल्गुनी का एक बार पानी भी बह चुका था..
मदन ने फाल्गुनी के बालों को खोलते हुए लंड मुंह में देना जारी रखा.. काफी देर बाद मदन ने पीछे से फाल्गुनी को राजेश के ऊपर से उठाकर बिस्तर पर लेटा दिया.. फिर वह सामने से फाल्गुनी के ऊपर आकर उसकी चूत मारने मे लग गया..
फाल्गुनी अब बहुत थक रही थी लेकिन फिर भी वो पूरे जोश से उसके साथ दे रही थी.. शराब का सुरूर भी था.. काफी देर की चुदाई के बाद मदन की स्पीड थोड़ा कम होने लगी तो राजेश उसे हटा कर खुद चढ़ गया और उसकी चूत को पेलने लगा..उधर मदन लेट कर फाल्गुनी के स्तनों को चूसने में लगा हुआ था.. साथ ही साथ वह फाल्गुनी के होंठों को चूसे जा रहा था, काटे जा रहा था..
उसी पोजीशन में काफी देर चुदाई करने के बाद फाल्गुनी अब मदन के ऊपर आकर उसके लंड पर बैठ गई और राजेश उसकी गांड में लंड डालकर पीछे से शुरू हो गया.. इस बार बहुत देर तक दोनों ने फाल्गुनी की गांड और चूत का बाजा बजाया..
अब फाल्गुनी की थकान हद से ज्यादा बढ़ गई थी.. लंड पर उछलते हुए और गांड मरवा मरवाकर वो जबरदस्त थक चुकी थी..
फाल्गुनी: "अब आप दोनों बस भी करो.. मन न भरा हो तो मैं शीला आंटी को जगाकर आती हूँ"
लेकिन दोनों अपनी चुदाई में लगे थे.. कुछ ही देर में दोनों ने अपना अपना वीर्य उसकी गांड और चूत में फिर से उंडेल दिया..
फाल्गुनी अपना अगवाडा पिछवाड़ा साफ करके आई और फिर तीनों एक बेड पर सो गए
अगला अपडेट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
Mast kamuk update thanks guruji bahut bahut dhanyawadपिछले अपडेट में आपने पढ़ा की..
राजेश, मदन और शीला फार्महाउस पर पहुंचते है.. जहां पहले से ही फाल्गुनी उनके इंतज़ार में थी..
आते ही राजेश और शीला अपनी लीला में मस्त हो गई तो दूसरी और मदन की आँखें जवान फाल्गुनी पर गड़ी हुई थी.. शुरुआती झिझक के बाद फाल्गुनी भी धीरे धीरे सहज होने लगी..
फिर शुरू हुआ... हवस का नंगा नाच..!! कभी मदन-फाल्गुनी के बीच.. कभी शीला और फाल्गुनी.. कभी राजेश और शीला.. तो कभी चारों मिलकर एक साथ..
इस घनघोर चुदाई का दौर पूरी रात चलता रहा और आखिर संतुष्ट होकर चारों चैन की नींद सो गए..
__________________________________________________________________________________________________
घर से ऑफिस आए हुए पीयूष का मूड आज बिना कारण ही बहोत अच्छा था.. वो किसी फिल्म का गाना गुनगुनाते हुए अंदर आया.. बाहर के फ्लोर पर करीब दस लोग बैठकर अपने वर्कस्टेशन पर काम में व्यस्त थे.. उनमें से एक वैशाली भी थी.. पिंटू भी उसके बगल में बैठकर अपने लेपटॉप पर नजरें जमाएं बैठा हुआ था.. उसकी मौजूदगी के कारण पीयूष ने बिना वैशाली की तरफ देखे अपनी केबिन का रास्ता नापा..
अपनी चैर पर जाकर बैठते ही उसने अखबार उठाया और पढ़ने लगा.. बीच में चपरासी आकर कॉफी का मग रखकर चला गया..आंतरराष्ट्रीय खबरों के पन्ने पढ़ने में पीयूष ऐसा डूब गया की उसे पता ही नहीं चला की कब कोई उसकी केबिन के अंदर आया और उसकी कुर्सी के पीछे जाकर खड़ा हो गया
अचानक दो हथेलियों ने पीयूष की आँखों को ढँक दिया.. एक पल के लिए पीयूष सोच में पड़ गया की क्या हो गया..!! फिर हथेली की कोमलता और जानी-पहचानी परफ्यूम की खुशबू महसूस होते ही उसे अंदाजा लगने में देर नहीं हुई
"अरे वाह.. मेरी शैतान साली..!! तू अंदर कब आई मुझे पता भी नहीं चला" मुस्कुराते हुए पीयूष ने कहा
रूठने का अभिनय करते हुए मौसम ने कहा "क्या जीजू..!! आपको सरप्राइज़ देने आई पर आपने तो झट से पहचान लिया..!!" मौसम पीयूष के सामने आकर कुर्सी पर बैठ गई
"अरे मेरी प्यारी साली साहेबा.. तू धरती पे चाहे जहां भी रहेगी.. तुझे तेरी खुशबू से पहचान लूँगा" चुटकी लेते हुए पीयूष ने हँसकर कहा
"आहाहा बड़े फिल्मी हो रहे हो आज तो जीजू.. लगता है दीदी ने खुश करके भेजा है ऑफिस" मौसम ने कहा
कविता का जिक्र होते ही पीयूष की मुस्कान गायब हो गई.. लेकिन उसने तुरंत ही उन विचारों को दिमाग से झटकते हुए मौसम से कहा "तू कब आई यार..!! बताना तो था, मैं ड्राइवर को एयरपोर्ट लेने भेज देता..!!"
"बता देती तो आपको सरप्राइज़ कैसे मिलता..!!! आज सुबह की फ्लाइट से आई.. सीधे यहीं पर.. अब तक तो दीदी को भी पता नहीं है की मैं यहाँ आई हूँ" मौसम ने अपनी मुस्कान का जादू बिखेरते हुए कहा
मुस्कुराती मौसम की ओर पीयूष देखता ही रह गया..!! शादी के बाद, अमूमन जिस तरह के बदलाव एक लड़की के जिस्म पर दिखते है, वैसे कुछ हसीन बदलाव मौसम के शरीर पर भी नजर आ रहे थे..!! पतले शरीर पर चर्बी की हल्की सी परत चढ़ चुकी थी.. स्तनों का नाप भी बढ़ चुका था.. जाहीर सी बात थी.. ऐसा कडक माल हाथ आने के बाद, विशाल ने अपनी सारी कसर जो उतारी होगी मौसम पर..!! किस्मत वाला है विशाल, पीयूष ने सोचा, जो ऐसी सेक्सी लड़की उसे पत्नी के रूप में मिल गई..!!
"यार, तू तो दिन-ब-दिन और भी खूबसूरत होती जा रही है" पीयूष ने दिल से प्रशंसा की..
मौसम शरमा गई, उसकी मस्कारा लगी आँखें इतनी सुंदर लग रही थी.. और उसकी लंबी लंबी पलकें.. आह्ह..!!! गोरे गुलाबी गालों वाले चेहरे को देखते ही चूमने का मन कर रहा था पीयूष का..
"क्या जीजू आप भी..!! मेरी टांग खींचने की आपकी पुरानी आदत अब तक गई नहीं" मौसम ने हँसते हुए कहा
पीयूष: "अरे मोहतरमा...
तारीफ़ में मेरी कोई चालाकी नहीं,
आपकी ख़ूबसूरती के चर्चे तो ज़माना करता है..
शरमा के कहती हो, मैं मज़ाक करता हूँ,
अरे! आईना भी तो हर रोज़, यही बात करता है.."
"वाह.. आप तो शायर हो गए जीजू" मौसम ने कहा
पीयूष:
"शायर हूँ नहीं, बस आपके हुस्न ने बना दिया,
वरना मैं तो सीधे-सादे जज़्बातों में जीता हूँ..
जबसे देखा है आपको इन आँखों से पहली बार,
शराब भूल गया.. आपके शबाब को ही पीता हूँ!"
यह सुनकर मौसम पानी-पानी हो गई, उसने कहा "क्या बात है जीजू..!! ऐसी तारीफ तो आज तक विशाल ने भी कभी नहीं की मेरी "
पीयूष:
"वो शायद रोज़ देखते-देखते आदत बना बैठे,
हम तो पहली नज़र में ही क़ायल हो बैठे..
तारीफ़ करना हमारा फ़र्ज़ बन गया,
हुस्न तेरा देख, हम लफ्जों को ही ग़ज़ल बना बैठे!"
मौसम शर्म से लाल लाल हो गई और बोली "बस जीजू.. अब और नहीं.. वरना मैं यहीं पिघल जाऊँगी"
पीयूष फिर भी न रुका और बोला:
"अरे पिघल भी गईं तो क्या हुआ, मैं संभाल लूंगा,
मेरी इन बाँहों में तुम्हें फिर से ढाल लूंगा..
एक बार मौका देकर तो देखो इस नाचीज़ को
मैं साँसों से तेरे आँचल की सिलवटें निकाल लूंगा!"
अब मौसम से ओर रहा न गया.. वह उठ खड़ी हुई और पीयूष के पास पहुँच गई.. अपनी हथेलियों में पीयूष का चेहरा भरकर उसने चूम लिया.. लब से लब मिलें.. और पुरानी चिंगारी को जैसे हवा मिल गई..!!! कुर्सी पर बैठे पीयूष ने मौसम को अपने ऊपर खींच लिया.. अपनी दोनों गदराई टांगों को कुर्सी के इर्दगिर्द जमाकर वो पीयूष पर चढ़ गई और बेताहाशा चूमने लगी..!! उसके मस्त मम्मे पीयूष की छाती पर दब रहे थे.. स्लीवलेस टॉप से खुली दिख रही उसकी काँखों से परफ्यूम और पसीने की मिश्रित मादक गंध पीयूष को पागल बना रही थी..मौसम पागलों की तरह पीयूष को चूमे जा रही थी.. विशाल के व्यवहार से त्रस्त होकर वह पीयूष की बाहों में पिघलती जा रही थी..
चूमते हुए पीयूष अपने दोनों हाथों से, मौसम के मस्त बबलों को मींजने लगा.. पतले टॉप और ब्रा के ऊपर से ही उसकी उंगलियों ने निप्पलों को ढूंढ निकाला.. जो इन हरकतों से सख्त हो चली थी..
दोनों उंगलियों से निप्पल से खेलते हुए उसने अपना दूसरा हाथ मौसम की जांघों के बीच डाल दिया.. पर कमबख्त जीन्स के सख्त कपड़े के कारण चूत की परतों का बाहर से मुआयना करना नामुमकिन था.. वह अपना हाथ जीन्स के अंदर डालने ही जा रहा था की मौसम ने उसका हाथ पकड़ लिया
"यहाँ नहीं जीजू.. कोई भी.. कभी भी अंदर आ सकता है" मौसम ने फुसफुसाते हुए उसके कानों में कहा
पीयूष को भी तभी अंदाजा हुआ की वह उसकी केबिन में बैठा था और दरवाजे पर लॉक भी नहीं लगाया था.. कोई अंदर आकर उनको इस अवस्था में देख लेगा तो गजब हो जाएगा..!! उसने तुरंत अपने होश संभाले.. और संभालकर मौसम को कुर्सी से उतारा.. मौसम ने अपना टॉप ठीक कीया और पीयूष के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई..
"यार, मन तो कर रहा है की तुझे लेकर कहीं भाग जाऊँ" अपनी टाई को ठीक करते हुए पीयूष ने धीमे से मौसम को कहा
मौसम शरमाते हुए मुस्कुराई ओर बोली "अभी कुछ दिनों के लिए मैं यहीं हूँ.. मौका मिलेगा जीजू.. चिंता मत कीजिए"
"तेरे चक्कर में कॉफी ठंडी हो गई" कॉफी का मग को छूते हुए पीयूष ने कहा
"पर आप को तो गरम कर दिया ना मैंने..!!" खिलखिलाकर हँसते हुए मौसम ने कहा
पीयूष ने घंटी बजाई और चपरासी को अपने और मौसम के लिए कॉफी लाने को कहा
"वैसे तुम वैशाली और पिंटू से बाहर मिली या नहीं?" पीयूष ने पूछा
"पिंटू भैया तो पिछले हफ्ते बेंगलोर ही थे.. उनसे तो वहीं मिल लिया.. वैशाली को हाई बोलकर सीधे अंदर ही आई आपको सरप्राइज़ देने.. अब बाहर जाकर इत्मीनान से मिलूँगी उसे.. काफी टाइम बाद आई हूँ.. ढेर सारी बातें करनी है मुझे उससे और दीदी से भी..!!" मौसम ने जवाब दिया
ठीक है.. तू कॉफी पीकर घर जा और आराम कर.. फिर रात को मिलते है" पीयूष ने कहा
"सोच रही हूँ जीजू.. ऑफिस का थोड़ा काम देख लूँ.. मैंने स्टाफ मीटिंग के लिए बोल दिया है पिंटू भैया को.. एक घंटे बाद है.. फिर सोच रही हूँ, वैशाली को लेकर कहीं बाहर लंच पर जाऊँ.. लौटते हुए शाम हो गई तो हम साथ ही घर जाएंगे.. थकान महसूस हुई तो घर चली जाऊँगी" मौसम ने कहा
"ठीक है, जैसा तुझे ठीक लगे" पीयूष ने कहा
तभी चपरासी दोनों के लिए कॉफी लेकर आया
__________________________________________________________________________________________________
अपनी माँ रमिलाबहन को फोन कर उसने उन्हें उनके नौकर को अपने घर भेजने के लिए कहा था.. यह कहकर की उसे घर की साफ-सफाई करानी है.. जाहीर सी बात थी की कुछ दिनों पहले, उस नौकर के साथ हवस का खेल खेलते हुए जब उसकी माँ के आ जाने से जो रुकावट आई थी, उसके चलते, कविता प्यासी ही रह गई थी.. उस दिन के बाद, उसे मौका ही नहीं मिला क्योंकि रमिलाबहन पूरा दिन घर पर ही रहती थी..
पीयूष की उपेक्षा झेल रही कविता के पास ओर कोई विकल्प नहीं था.. जिस्म की प्यास उसे पागल बना रही थी.. वह एक ऐसे कूकर की तरह महसूस कर रही थी जिसे पानी भरकर तेज आंच पर चढ़ाया दिया गया हो और सीटी काम न कर रही हो.. अंदर बन रही भांप का दबाव बढ़ता जा रहा था और इससे पहले की वो फट जाए.. उस भांप को बाहर निकालना बहोत जरूरी था..
पीयूष के ऑफिस जाते ही, कविता ने अपनी माँ से फोन पर बात कर, उस नौकर लड़के को भेजने के लिए कहा.. और फिर बेसब्री से इंतज़ार करने लगी.. घर की डोरबेल बजी और कविता उछलकर दरवाजा खोलने के लिए भागी..
दरवाजा खुलते ही उसने देखा की वह गोरा चिट्टा नेपाली लड़का, मैली टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहने हुए, सहमी नजर से कविता की ओर देख रहा था.. जैसा वह जानता था की उसे क्यों बुलाया गया था..!!
कविता ने उसकी ओर ऊपर से नीचे तक नजर डालकर देखा.. उसके गंदे दीदार देखकर उसने अपनी नाक सिकुड़ी.. इशारे से उसे अंदर आने के लिए कहा और दरवाजा बंद कर दिया
वह लड़का ड्रॉइंगरूम में सोफ़े के पास नजरें झुकाए खड़ा हो गया.. जैसे अगले निर्देश का इंतज़ार कर रहा हो.. कविता कुटिल मुस्कान के साथ उसके पीछे आई और उस लड़के के बिल्कुल सामने खड़ी हो गई
"नहाया नहीं है क्या?" २ फिट दूर से भी कविता को उसके पसीने की बदबू आ रही थी..
उस लड़के ने दायें बाएं सिर हिलाकर इशारे से कहा की वह नहीं नहाया था
"छी.. तू नहाता नहीं क्या?" कविता ने मुंह बिगाड़ते हुए कहा
"जी वो.. घर की साफ-सफाई हो जाने के बाद ही नहाता हूँ मैं" उसने बिना नजरें उठाए जवाब दिया..
"पहले अंदर बाथरूम में जा.. और ठीक से नहाकर बाहर आ" इशारे से बाथरूम का रास्ता दिखाते हुए कविता ने कहा
वह लड़का यंत्रवत बाथरूम की ओर गया और दरवाजा बंद कर दिया
कविता आमतौर पर घर में पंजाबी सूट या टीशर्ट-शॉर्ट्स पहनती थी, लेकिन आज उसने बेडरूम में जाकर.. रात वाली सिल्क की नाइटी पहन ली, जो घुटनों से ऊपर तक आती थी.. नाइटी उसके बदन पर दो पट्टों के सहारे कंधों पर अटकी हुई थी, जिसकी पीठ काफी खुली हुई थी.. उसे पहनकर वह बेड पर लेट गई..
थोड़ी देर बाद वह लड़का, जिसका नाम बाबिल था, वह नहाकर बाहर निकला.. उसने केवल अपनी शॉर्ट्स पहनी थी और उसकी मैली टीशर्ट कंधे पर डाल रखी थी.. बाहर आकर उसने कविता की ओर देखा.. वह बड़े ही मदहोश अंदाज में, पतली नाइटी पहने, बेड पर लेटे हुए थी..
नजरें झुकाएं वह बेडरूम से बाहर जा ही रहा था की कविता की आवाज ने उसे रोक दिया
"कहाँ जा रहा है..!! इधर आ..!!" आदेशात्मक आवाज में कविता ने कहा
वह लड़का मुंडी नीचे किए हुए कविता के सामने खड़ा हो गया.. कविता ने उसे शॉर्ट्स से पकड़कर खींचते हुए बिस्तर पर गिरा दिया और खुद उसके बगल में लेट गई.. अब जो होने वाला था उसकी अपेक्षा से उस लड़के की आँखें बंद हो गई..!!
कुछ देर बाद, वह धीरे से उसकी ओर मुड़ी और उसके चेहरे को देखने की कोशिश की.. उसने पाया कि हालांकि उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन उसका लंड उसकी शॉर्ट्स में उछल रहा था.. कविता ने उसका हाथ पकड़कर अपने स्तन पर रख दिया..
उस नौकर ने अपना हाथ कविता की छाती से हटाने की कोशिश की, लेकिन कविता ने उसका हाथ अपने स्तन पर और ज़ोर से दबा लिया और उसे अपनी ओर खींचने की कोशिश की.. अब वह उससे चिपकी हुई थी, और उनके बीच कोई जगह नहीं बची थी..
कविता अपना चेहरा और करीब लाई, जो अब उसके कंधे पर था और उसकी गर्दन तक पहुँच चुका था.. उसका पैर लड़के के पेट के ऊपर डाल दिया, और उसका लंड शॉर्ट्स के ऊपर से ही सहलाने लगी..
वह पीठ के बल लेटी थी, जबकि उस लड़के का हाथ उसके स्तन पर था और उसकी टाँगें लड़के के ऊपर लिपटी हुई थीं..
पिछले कई सप्ताह से कविता सेक्स से दूर थी.. धीरे-धीरे उसकी सांसें गरम होने लगी.. बाबिल के शरीर की गर्मी से उसकी कामुकता भड़क उठी..
उसकी साँसें तेज़ हो गईं, और उसके स्तन ऊपर-नीचे होने लगे.. हर बार जब उसके स्तन उठते, उसे लगता कि बाबिल के हाथ भी उन्हें धीरे से दबा रहे हैं..
कविता ने उसे देखा.. बाबिल का चेहरा उसके कंधे से सिर्फ एक इंच की दूरी पर था.. उसने उसके माथे पर एक नरम चुंबन दे दिया..
बाबिल ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.. उसने अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया, जो उसके स्तन को दबा रहा था, और धीरे-धीरे उसे अपने शरीर पर घुमाने लगी..
फिर उसने अपने मुँह में बाबिल की एक उंगली ले ली और धीरे से उस पर जीभ फिराने लगी.. उसका दूसरा हाथ उसकी गर्दन से नीचे गया, और उसे अपने शरीर के करीब खींच लिया..
अब उसका हाथ बाबिल के पेट पर था, और धीरे-धीरे उसने अपनी उंगलियों को उसके शॉर्ट्स और अपने शरीर के बीच में डाल दिया.. उसने महसूस किया कि बाबिल का लंड उसकी निकर में सख्त हो चुका था..
कामोत्तेजना से भरकर, उसने अपनी उंगलियों से उसके लंड को सहलाना शुरू कर दिया.. बाबिल ने अपनी कमर को थोड़ा हिलाया, जिससे उसे और जगह मिल गई..
जब कविता ने अपना पूरा हाथ उसके लंड पर रखा और धीरे से दबाया, तो अचानक बाबिल ने उसके कंधे, गले और छाती को चूमना शुरू कर दिया.. उसका खाली हाथ अब उसके स्तनों को मसल रहा था, और उसके निप्पल्स को नाइटी के ऊपर से दबा रहा था..
अब कविता से भी नहीं रहा गया.. उसने भी उसके चुंबनों का जवाब दिया.. उसने बाबिल के माथे को चूमा और फिर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए..
अब बाबिल का सब्र टूट चुका था.. उसने अपने दूसरे हाथ से उसके पूरे शरीर को रगड़ना शुरू कर दिया, जिससे कविता की उत्तेजना और बढ़ गई..
अब उसे लगने लगा कि वह उसे जंगली तरीके से चोदना चाहती है, ताकि उसकी महीनों की तृष्णा शांत हो जाए.. वह यह भूल चुकी थी कि वह उसका नौकर है और उससे उम्र में भी काफी छोटा है..
उसने बाबिल को अपने ऊपर खींच लिया.. अब वह उसके ऊपर था, और दोनों एक-दूसरे को जुनून से चूम रहे थे..
बाबिल उसके चेहरे, गर्दन और स्तनों को चाट रहा था.. उसका हाथ उसकी नाइटी के ऊपर से ही उसके स्तनों को मसल रहा था.. कविता के हाथ उसकी पीठ पर थे, और वह उसे और पास खींचने की कोशिश कर रही थी..
उसे अपने नंगे स्तनों पर उसका मुँह महसूस करने की तीव्र इच्छा हो रही थी.. लेकिन जब उसने देखा कि बाबिल उसकी नाइटी नहीं उतार रहा, तो उसने खुद ही एक हाथ से अपनी नाइटी नीचे खींची और एक स्तन को पूरी तरह बाहर निकाल लिया..
बाबिल उसके स्तनों पर जंगली की तरह टूट पड़ा.. वह उसके निप्पल्स को चाटने, चूसने और नोंचने लगा.. कविता कराह उठी और अपने पैरों से उसकी पीठ को जकड़ लिया..
उसने बाबिल की टी-शर्ट भी उतार दी, और अब उसके नंगे स्तन उसके नंगे शरीर से रगड़ खा रहे थे.. उसने अपना दूसरा स्तन भी नाइटी से बाहर निकाल लिया..
अब उसके दोनों स्तन खुले हुए थे, और बाबिल उन्हें चाटते हुए उस पर हावी हो चुका था..
और जब कविता ने अपना पूरा हाथ उसके लंड पर रख दिया और धीरे से उसे दबाया तो अचानक पाया कि वह उसके कन्धे के ऊपर पूरी तरह से चूम रहा था, गले पर और छाती के ऊपर सब जगह,और उसका जो हाथ खाली था उससे वह मेरे स्तनों का मर्दन कर रहा था और कविता की निप्पलों को अपनी उँगलियों से नाइटी के ऊपर से मसल रहा था ...
कविता अब अपने पूरे खुमार पर थी.. आतुर हो कर उसने अपने दूसरे हाथ से उस लड़के के पूरे गोरे शरीर को हौले हौले रगडना आरम्भ कर दिया जिससे उसकी उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी ... और अब वह चाहती थी कि वह लड़का उसे वहशियाना तरीके से चोदे जिससे उसकी आग शान्त हो जाए ...
बाबिल अब कविता के पूरे चेहरे को चूम रहा था, उसकी गर्दन और स्तनों के थोड़ा ऊपर. उसका हाथ नाइटी के ऊपर से ही स्तनों का मर्दन कर रहे थे और कविता के हाथ उसकी पीठ पर थे, उसकी पीठ के निचले हिस्से पर और वह उसे अपने ऊपर रखने की कोशिश कर रही थी. कविता की हालत खराब थी.. वह अपने नंगे स्तनों पर उस लड़के के मुंह को महसूस करना चाहती थी लेकिन तब उसने महसूस किया कि वह लड़का किसी तरह से भी मेरी नाइटी खींच कर नीचे नहीं कर रहा था.. तो उसने एक हाथ से उसके सिर को पकड़ा और दूसरे हाथ से अपनी नाइटी नीचे खींच एक स्तन पूरी तरह से बेनकाब किया और अपने नग्न स्तन की ओर उसके मुँह को रास्ता दिखाया. ...
अब वह लड़का कविता के स्तनों पर जंगली की तरह टूट पड़ा... अब वह निपल्स चाट रहा था, चूस रहा था, उसके जीभ चलाने और फिर निपल्स चूसने् से कविता ने कराहना शुरू कर दिया और फिर अपने पैरों के बीच में उसके शरीर को लाने में कामयाब रही.. कविता ने उसकी पीठ पर अपने पैर लपेट लिये और उसकी शॉर्ट्स उतार दी..
अब वह अपने नंगे स्तनों पर उसके नंगे शरीर को महसूस कर रही थी और उसने अपने दूसरे स्तन को भी नाइटी नीचे खींच कर बेनकाब करने में सफ़लता हासिल कर ली ... लड़के का मस्त ताज़ा गोरा लंड, कविता की चूत की परतों पर रगड़ खाते हुए उसे पागल बना रहा था.. चूत पर हल्की रगड़ खाते ही, कविता की चूत ने काम रस का छोटा सा फव्वारा दे मारा
"डींग-डोंग.. डींग डोंग..!!"
घर की डोरबेल बजी...!!! और कविता अपनी मदहोशी के नशे से एकदम से बाहर आई.. वह लड़का भी सहम गया और उसने कविता की निप्पल चूसना बंद कर दिया और सवालिया नज़रों से कविता की ओर देखने लगा.. कविता ने महसूस किया की डोरबेल के अचानक बजने से उस लड़के का लंड अपनी सख्ती खोता चला जा रहा था.. शायद वह डर गया था..!!
जिस मुकाम पर वह पहुँच चुकी थी.. वहाँ से वापिस लौटने की उसकी जरा भी इच्छा नहीं थी.. उसने सोचा "जो भी होगा.. चला जाएगा"
उसने वापिस बाबिल को चेहरे को अपनी निप्पल पर दबा दिया और अपनी कमर को हिलाते हुए उसके लंड को फिर से खड़ा होने के लिए उकसाने लग गई.. लड़का भी समझ गया और अपने काम में फिर से झुट गया..
"डींग-डोंग.. डींग डोंग.. डींग डोंग.. डींग डोंग..!!"
जो भी था, बार बार घंटी बजाए जा रहा था.. जैसे कसी भी तरह दरवाजा खुलवाने पर तुला हो..!!! पर कविता ने अब ध्यान देना छोड़ दिया था..उसने लड़के को अपने ऊपर से उठाया और बगल में लेटा दिया..
उस लड़के का लंड, अब चूत में घुसने लायक खड़ा हो चुका था और कविता अब ज्यादा वक्त बर्बाद करना नहीं चाहती थी.. वो खड़ी हुई और अपनी दोनों टांगें लड़के के शरीर के इर्दगिर्द जमाकर खड़ी हो गई.. धीरे से नाइटी उठाकर अपनी नाजुक सी चूत को उजागर किया.. वह लड़का हक्का-बक्का होकर, कविता की उस आकर्षक लकीर को देखता ही रहा..
अपनी जांघें चौड़ी करते हुए वह झुककर उतनी नीचे आई की लड़के के सुपाड़े की नोक उसकी चूत के होंठों को स्पर्श करें.. कविता की आह्ह निकल गई.. उसे उस लड़के के गोरे गुलाबी लंड से जैसे प्यार हो गया था.. उसने अपनी हथेली से लंड को पकड़ा और चूत की दरार पर सेट करने लगी.. अब बस उसे थोड़ा सा वज़न डालने की ही देर थी.. लंड गप्प से अंदर घुस जाता..!!
"दीदीईईईईई...!!! ओ दीदी...!!! कहाँ हो यार..!!! दरवाजा खोलो..!!!" बाहर से आवाज सुनाई दी..!!
कविता के होश उड़ गए..!!! ये तो मौसम की आवाज थी..!!! वो यहाँ... अभी... इस वक्त..!!! उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था.. निवाला बस मुंह में आने ही वाला था की... एक बार और उसकी कश्ती किनारे पर आकर डूब गई..
बाबिल का लंड छोड़कर वह कूदकर बिस्तर से उतरी.. वॉर्डरोब से उसन गाउन निकाला और नाइटी के ऊपर ही पहन लिया.. और इशारे से उस लड़के को कपड़े पहनने के लिए कहा..
बिखरे हुए बाल ठीक करते हुए वह दरवाजे पर आई और लॉक खोला..
"दीदीईईईई...!!" चीखते हुए मौसम अंदर घुसी और कविता को गले लगा लिया
कविता को संभलने में कुछ पल लगें.. थोड़ा सा सहज होने पर उसने भी मौसम को गले लगा लिया
"कब आई तू?? बताया भी नहीं...!!!" कविता ने उसके आलिंगन से छूटकर कहा
आराम से सोफ़े पर पैर पसारकर बैठते हुए मौसम ने कहा "बताकर आती तो आपको ऐसे रंगेहाथों पकड़ने के मौका कैसे मिलता??" शरारती आँखें नचाते हुए मौसम ने कहा
सुनकर कविता का खून सूख गया.. चेहरे से हंसी गायब हो गई.. चेहरे से नूर उड़ गया..!! मौसम को कैसे पता चला..!! कहीं जिस तरह उसने अपनी माँ को बेडरूम की खिड़की से देखा था वैसे मौसम ने तो नहीं देख लिया..!! पर ऐसा ऐसे कैसे मुमकिन था..!!! खिड़की पर तो बड़े वाले परदे लगे हुए थे.. और पीछे के रास्ते खिड़की तक पहुंचना भी बहोत मुश्किल था..!!! फिर भी किसी तरह उसने देख लिया होगा तो..!! कविता को चक्कर सा आने लगा
उसकी ऐसी हालत देखकर मौसम खिलखिलाकर हंसने लगी और बोली "मज़ाक कर रही हूँ दीदी.. वैसे कब से दरवाजा क्यों नहीं खोल रही थी??"
कविता की जान में जान आई.. पर उसे संभलने में कुछ वक्त लगा.. तभी बाबिल बेडरूम से बाहर निकला.. मौसम उसकी और ताज्जुब से देखने लगी.. कभी वो उस लड़के को देखती तो कभी प्रश्नसूचक नज़रों से कविता की ओर..!!
कविता ने अब होश संभाला "अरे यार.. वो तो मैं आज घर की साफ-सफाई कर रही थी..इसलिए मम्मी को फोन कर इसे बुला लिया था.. इस बेडरूम की सफाई सौंपकर मैं ऊपर के फ्लोर पर सफाई कर रही थी... बोर हो रही थी तो ईयरफोन्स लगाकर म्यूज़िक सुन रही थी.. इसलिए सुनाई नहीं दिया"
मौसम अब भी थोड़ी सी उलझी हुई थी.. वह बोली "वो तो ठीक है दीदी.. पर इस पगले को डोरबेल क्यों नहीं सुनाई दी? वो तो नीचे बेडरूम में ही था ना..!!"
कविता के लिए अब मौसम के जासूसीभरे प्रश्नों का जवाब देना मुश्किल हो रहा था.. कुछ सोचकर उसने कहा "अरे यार.. आजकल बहोत हादसे हो रहे है.. कोई भी अनजान घर में घुसकर चोरी, छीना-झपटी, खून.. कुछ भी कर देता है.. इसलिए मैंने इसे कहा था की जब तक मैं नीचे न आऊँ तब तक कितनी भी डोरबेल बजे, दरवाजा नहीं खोलना है"
"पर वो तुम्हें बता तो सकता था ना..!!!" मौसम के सवाल खत्म ही नहीं हो रहे थे
"अब तू यही सब माथापच्ची करती रहेगी या अपने बारे में भी कुछ बताएगी..!!! अकेली आई है या विशाल भी साथ आया है?" कविता ने चालाकी से बात को मोड दिया..