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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

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vakharia

Supreme
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174
I have been following this story for so long.
But I think it has become monotonic.
The story is not progressing, and every time it feels it will progress the character of sheela drags it back.
I think u are a good writer and story teller but this is not at par with your standard.
आपकी टिप्पणी के लिए मैं बहुत आभारी हूँ! ऐसी रचनात्मक आलोचनाएँ ही कहानी को और बेहतर बनाने में मदद करती हैं। दुर्भाग्य से, कहानी की दिशा पर बहुत कम लोग अपनी राय देते हैं। शीला केंद्रीय पात्र है, इसलिए उसका चरित्र कहानी में प्रमुखता से दिखाई देता है। लेकिन आपके सुझाव को मैं ज़रूर ध्यान में रखूँगा तथा और भी बेहतर लिखने की कोशिश करूँगा। आपका फीडबैक मेरे लिए वाकई कीमती है। धन्यवाद! 🙏
 

vakharia

Supreme
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20,199
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पिछले अध्याय में आपने पढ़ा की..

ऑफिस में पीयूष और पिंटू के बीच काम को लेकर बातें हो रही है.. पीयूष बेंक लोन की राह देख रहा है और पिंटू सारे विक्रेताओं को पेमेंट के लिए समझाने में झुटा हुआ है.. काम के सिलसिले में पीयूष, पिंटू को बेंगलोर भेज रहा है..

उस रात जब पिंटू बेंगलोर जाने की तैयारी कर रहा था तब प्यास से झुँझती वैशाली उसे संभोग करने के लिए उकसाती है.. वैशाली के गदराए जिस्म पर पिंटू टूट तो पड़ता है पर उसे तब शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है जब उसका हथियार तैयार होने से मना कर देता है

निराशा में डूबे पिंटू को वैशाली डॉक्टर के पास जाने की हिदायत देता है.. जिसे सुनकर पिंटू भड़क उठता है

अब आगे..
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बेंगलोर के कोरमंगला विस्तार के एक आलीशान अपार्टमेंट की २१ वी मंजिल पर अपने फ्लेट के बेडरूम में मौसम इंस्टाग्राम पर रील्स देख रही थी.. नवीनतम और अति-आधुनिक सुख सुविधाओं से लैज उस ४बीएचके फ्लेट में, बस मौसम और विशाल दो लोग ही रहते थे..!!

शादी के बाद, विशाल पीयूष की ऑफिस में नौकरी नहीं करना चाहता था क्योंकि अपने ही जीवनसाथी के अधीन काम करना उसे अजीब और असहज लग सकता था.. शायद वह खुद को एक अलग पहचान देना चाहता था और यह साबित करना भी कि उसकी सफलता उसकी मेहनत और काबिलियत का नतीजा है, न कि उसकी शादी या रिश्तेदारी के कारण.. ऑफिस में उसकी भूमिका और शादीशुदा जिंदगी के बीच वह एक सीमा-रेखा चाहता था.. शायद उसे डर भी होगा कि कहीं उसके सहकर्मी उसकी तरक्की को उसकी शादी की वजह से न जोड़ें.. इसके अलावा, उसे यह भी डर था कि ऑफिस में मौसम के नीचे काम करने से उसकी आजादी और आत्मसम्मान पर प्रभाव पड़ सकता है.. इसलिए, वह किसी नई जगह पर काम करना चाहता था, जहां वह अपनी मेहनत और क्षमता के आधार पर खुद को साबित कर सके

इस समस्या का निराकरण करने के लिए, पीयूष ने अपनी बेंगलोर वाली ब्रांच ऑफिस ही विशाल को सौंप दी.. अब वो उनका मुलाजिम नहीं था.. पर बराबरी का हिस्सेदार था.. विशाल को इस नई व्यवस्था से कोई आपत्ति नहीं थी.. वो मौसम को साथ बेंगलोर शिफ्ट हो गया था और दोनों मिलकर उस ऑफिस को चला रहे थे..

रील्स को बदलते हुए मोबाइल स्क्रीन पर उंगली चलाती मौसम, विशाल के बाथरूम से बाहर आने का इंतज़ार कर रही थी..!! तभी उसके बगल में पड़े विशाल के फोन पर नोटिफिकेशन आया और अनायास ही उसकी नजर स्क्रीन पर पड़ी..!! वैसे तो मौसम कभी विशाल का मोबाइल चेक नहीं करती थी पर स्क्रीन पर फोरम का मेसेज आया देख, उसकी आँखें चार हो गई..!! फोरम वही लड़की थी जो मौसम के पापा की ऑफिस में जॉब करती थी और विशाल के बेहद करीब भी थी.. विशाल और फोरम एक दूसरे से प्यार करते थे पर आखिर विशाल ने मौसम से शादी करना तय किया था

उसने तुरंत विशाल का फोन अनलॉक किया और मेसेज पढ़ने लगी.. विशाल और फोरम के बीच सामान्य बातचीत ही थी..लेकिन मौसम को इस बात से धक्का पहुंचा की वह दोनों अब भी संपर्क में थे और विशाल ने उसे इस बात के बारे में कभी बताया भी नहीं..!!

अंग्रेजी गाना गुनगुनाते हुए विशाल बाथरूम से बाहर निकला.. तौलिए से बाल सुखाते हुए उसने मौसम की तरफ देखा.. मौसम के हाथ में उसका मोबाइल था और उसके चेहरे की रेखाएं तंग थी

मौसम: "विशाल, यह बताने की कृपा करोगे? की तुम आज भी फोरम से क्यों बात कर रहे हो?

विशाल ने झपट्टा मारकर मौसम के हाथ से अपना फोन छीनते हुए, गुस्से में कहा "क्या बकवास है, मौसम? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे फोन को बिना बताए चेक करने की? क्या तुम्हें मेरी प्राइवेसी की कोई रिस्पेक्ट नहीं है?"

आवाज़ ऊँची करते हुए मौसम: "प्राइवेसी? सच में? प्राइवेसी की बात करने से पहले तुम्हें यह बताना चाहिए था कि तुम अपनी पुरानी प्रेमिका से अब भी जुड़े हुए हो! और तुमने मुझे यह बताना जरूरी भी नहीं समझा..!!! तुमने मुझसे यह क्यों छुपाया?"

गुस्से से विशाल ने कहा "छुपाया कुछ नहीं है! अब तुमने मेसेज पढ़ ही लिए है तो इतना तो जान ही चुकी होगी की मैं बस उसका हाल जान रहा था.. दोस्तों के बीच जो नॉर्मल बातें होती है, वही है.. फोरम मेरी पुरानी दोस्त है, और हम सिर्फ सामान्य बातचीत कर रहे हैं..!! इसमें गलत क्या है? बिना वजह सुबह सुबह ड्रामा कर रही हो..!!!"

तीखे स्वर में मौसम ने कहा "मुझे मत समझाओ.. मैं कोई दूध-पीती बच्ची नहीं हूँ.. क्या मुझे नहीं पता की पुराने दोस्तों के बीच सब कुछ सामान्य से इंटीमेट होने में ज्यादा समय नहीं लगता..!!! और अगर नॉर्मल बातें ही कर रहे हो, और तुम्हारे दिल में कुछ भी गलत नहीं था तो तुमने मुझसे यह छुपाया क्यों?

चिल्लाते हुए विशाल ने कहा "तुम ओवररिएक्ट कर रही हो, मौसम..!!! हमारे बीच ऐसा कुछ भी गलत नहीं चल रहा है जैसा तुम सोच रही हो.. मुझे अपने दोस्तों से बात करने के लिए तुम्हारी परमिशन की जरूरत नहीं है.. और हाँ, आगे से मेरे फोन को चेक करने की गलती मत करना!.. मैं करता हूँ तुम्हारा मोबाईल चेक कभी??"

थोड़ी शांत होकर, मौसम ने तीखे स्वर में कहा "तो कर ना.. मैंने कभी मना किया है तुझे..!!! वैसे भी मेरा मोबाइल खुली किताब है.. किसी से छुपछुप कर बातें नहीं करती.."

विशाल: "तेरी बेतुकी बकवास सुनने का टाइम नहीं है मेरे पास.. बहोत काम है मुझे" शर्ट पहनते हुए विशाल ने कहा

गुस्साई मौसम ने तंज कसते हुए कहा "विशाल, तुम शायद भूल रहे हो कि तुम आज जो कुछ भी हो, बिजनेस पार्टनर हो, ऑफिस चला रहे हो, यह सब मेरे और मेरे परिवार की वजह से ही संभव हुआ है..!! बीजी होने की धौंस मुझे मत दिखाना"

गुस्से से लाल होते हुए विशाल ने कहा "क्या कहा? तुम्हारे और तुम्हारे परिवार की वजह से? मैंने जो कुछ भी हासिल किया है, वह मेरी मेहनत और काबिलियत की वजह से है.. तुम्हें क्या लगता है.. अगर तुमसे शादी नहीं हुई होती तो मैं भूखा मर रहा होता..!! इस गलतफहमी में मत रहना मौसम.. हर बात में मेरी क्षमता पर सवाल उठाने के अलावा तुम करती ही क्या हो??"

आँखों में आँसू लिए मौसम ने कहा "ठीक है, विशाल.. अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हारी सफलता में मेरा कोई योगदान नहीं है, तो न सही.. लेकिन यह बात याद रखना कि रिश्तों में ईमानदारी सबसे जरूरी है, और आज तुमने मेरा विश्वास तोड़ा है..!!"

गुस्से से विशाल ने कहा "मैंने कुछ नहीं तोड़ा है.. वाहियात सिरियलें देखकर तेरा दिमाग खराब हो गया है.. तु बस अपनी बात मनवाने के लिए मुझे गलत साबित करने पर तुली हुई है.. बहोत हुआ.. मुझे देर हो रही है.. मैं निकलता हूँ.. तुझे साथ ऑफिस आना हो तो पाँच मिनट में तैयार हो जा.. वरना यहीं पड़ी रहना.. आई डॉन्ट केर..!!"

विशाल तैयार होकर डाइनिंग टेबल पर नाश्ता करने बैठ गया.. कब से दोनों की नोक-झोंक सुन रही नौकरानी ने तुरंत नाश्ता परोस दिया.. हाथ में एक सेंडविच उठाकर विशाल चला गया और मौसम अपने बिस्तर पर पड़े रोती रही..!!

करीब एक घंटे तक बेडरूम में ही पड़े रहने के बाद, मौसम उठी और बाथरूम में जाकर तैयार हो गई.. हल्का सा नाश्ता करने के बाद, वह अपनी गाड़ी लेकर ऑफिस पहुंची.. कांच की दीवार के उस तरफ अपनी चेम्बर में बैठे विशाल की ओर बिना देखें वह मुख्य ऑफिस की ओर चल दी, जहां अन्य कर्मचारीओ की डेस्क थी..

वहीं पर पिंटू को देखकर सुखद आश्चर्य से मौसम ने कहा "पिंटू भैया.. आप कब आए?"

मौसम की ओर मुस्कुराकर देखते हुए पिंटू ने कहा " आज सुबह ही.. चार बजे की फ्लाइट थी.. यहाँ साढ़े छह बजे लेंड हो गया था.. पर एयरपोर्ट से सिटी में आते आते २ घंटे लग गए.. और यह तुम्हारे बेंगलोर का ट्राफिक.. बाप रे बाप..!! मैं तो टेकसी में ही सो गया..!! तुम बताओ.. कैसी हो?"

मौसम: "बस, सब ठीक ही है.. वहाँ सब कैसे है? तुम्हारे मम्मी पापा और वैशाली? बहोत टाइम हो गया वैशाली से बात किए हुए..!!"

पिंटू: "सब ठीक है.. और वैशाली भी तुम्हें बहोत याद करती है..!! कह रही थी की शादी के बाद मौसम तो जैसे हमें भूल ही गई..!! ऐसा तो क्या जादू कर दिया है विशाल ने तुम पर, जो हमारी याद भी नहीं आती..!!"

विशाल का जिक्र होते ही मौसम के चेहरे से मुस्कान ओझल हो गई.. लेकिन वह फिर से सहज हो गई.. उस एक क्षण के लिए चेहरे पर आया बदलाव पिंटू की नजर से बच न सका

मौसम ने हँसकर कहा "अरे नहीं, ऐसा कुछ नहीं है.. नया शहर.. नई ऑफिस.. सेट होने में कुछ महीने लग गए.. वरना मैं तो आप सब को बहोत याद करती हूँ.. शीला भाभी और मदन भैया के क्या हाल चाल?"

पिंटू: "सब बढ़िया है.. अब इतना समय हो गया है.. सब तुम्हें याद भी कर रहे है.. कुछ दिनों के लिए फ्रेश होने आ जाओ.. अब तो मैं और वैशाली भी यहीं है.. तुम आओ तो हम सब साथ कहीं घूमने जाने का प्लान बनाएंगे"

मौसम का चेहरा चमक उठा "हाँ अच्छा आइडिया है..!! वैसे भी यहाँ की भागदौड़ से ऊब चुकी हूँ.. कुछ दिन सब के साथ रहूँगी तो रिलेक्स हो जाऊँगी.. कविता दीदी भी काफी समय से पीछे पड़ी हुई है.. पर जब से जीजू ने यह नया ऑर्डर लिया है, तब से वर्कलोड बहोत बढ़ गया है.. और यह सब विशाल के बस की बात नहीं है"

जिस तरह मौसम विशाल का अवमूल्यन और अवहेलना करती जा रही थी, वह थोड़ा अटपटा तो लगा पिंटू को.. पर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया.. मियाँ-बीवी के बीच ऐसा कुछ न कुछ तो चलता ही रहता है.. पिंटू को पिछली रात की बेडरूम वाली घटना याद आ गई.. एक विचित्र सी शर्मिंदगी फिर से महसूस होने लगी.. पिंटू ने तुरंत उन सारे विचारों को दिमाग से निकाल दिया

पिंटू: "अब मटीरीअल तो एकाद दिन में पहुँच जाएगा.. एक बार प्रोडक्शन लाइन शुरू हो जाने के बाद उतना काम नहीं रहेगा.. और यहाँ का काम मैं हेंडल कर लूँगा.. तुम चिंता मत करो, सब हो जाएगा.. इत्मीनान से कुछ दिनों के लिए घर आ जाओ"

मौसम: "हाँ भैया.. अब तो मेरा भी बहोत ज़ोरों से मन हो गया है.. एक बार मटीरीअल आ जाएँ फिर मैं फ्लाइट बुक कर दूँगी"

पिंटू: "मैं वैशाली को भी बता देता हूँ इस बारे में"

मौसम ने उसे रोकते हुए कहा "मत बताना.. सबको सरप्राइज़ दूँगी"

पिंटू ने हँसकर जवाब दिया "ठीक है"

अपनी केबिन में जा रही मौसम को पीछे से देख रहा था पिंटू..!! न विशाल मौसम की ओर देख रहा था और न ही मौसम ने एक नजर उसकी तरफ देखा..!! उसकी बातों से भी यह प्रतीत हो रहा था की मौसम को विशाल की क्षमता पर भरोसा नही था..!! पिंटू ने भी यह गौर किया था की विशाल के काम करने के रवैये में नौसिखियापना था और जरूरी व्यावसायिक गंभीरता का अभाव भी था.. शायद पीयूष ने पूरी ऑफिस की जिम्मेदारी उसे देकर बड़ा जोखिम उठा लिया था.. हाँ, मौसम अपने काम की बड़ी पक्की थी और प्रोफेशनल सूझ-बुझ से भरपूर भी..!! शायद इसी लिए संतुलन बना हुआ था
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जिस्म में झुंझुनाहट.. अजीब सी तपिश.. छोटी छोटी बातों पर गुस्सा आना.. कविता जानती थी की इन सारे लक्षणों का असली कारण क्या था..!! शारीरिक असंतुष्टि अपना रंग दिखा रही थी..!! पर बेबस थी कविता..!! शरीर की आग बुझाने के लिए तत्पर होने के बावजूद कोई जरिया नजर नही आ रहा था.. पीयूष के पास तो समय ही नही था.. फाल्गुनी किसी शादी में मुंबई गई हुई थी.. रसिक के पास जाने जितनी हिम्मत नही हो रही थी.. न शीला थी और न फाल्गुनी करीब थी..!!

शारीरिक असंतोष से झूजती स्त्री, बड़ी ही जटिल और तनावपूर्ण मानसिक स्थिति से गुजरती है, वह खुद को अकेला और उपेक्षित महसूस करती है.. उसका पति अपने पेशेवर जीवन में इतना व्यस्त है कि उसे समय नहीं दे पा रहा है.. यह उपेक्षा का एहसास उसे भीतर से तोड़ रहा है.. वह चाहती है कि उसका पति उसकी भावनाओं और जरूरतों को समझे, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है.. उसकी शारीरिक इच्छाएं तीव्र हो रही हैं, और वह उन्हें नियंत्रित नहीं कर पा रही है.. यह उसके लिए एक प्रकार की यातना सी बन चुकी है.. वह चाहती तो है कि कोई उसके जिस्म को बेरहमी से रौंद दे, लेकिन उसके पास कोई विकल्प नहीं है..वह निराश और हताश है क्योंकि उसके अन्य साथी भी उपलब्ध नहीं हैं.. यह निराशा उसे और अधिक बेचैन कर देती है.. वह खुद को असहाय महसूस करती है क्योंकि उसे कोई रास्ता नजर नही आ रहा है..

इस स्थिति में उसका आत्म-सम्मान भी प्रभावित होता है.. वह खुद को अयोग्य और अवांछित महसूस कर सकती है.. वह सोचती है कि क्या उसमें कोई कमी है जो उसके पति या अन्य लोग उसकी तरफ आकर्षित नहीं हो रहे हैं.. वह अपनी इच्छाओं को लेकर ग्लानि महसूस करती है.. समाज और संस्कृति के नियम उसे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने से रोकते हैं.. तो कुछ विकल्प चुनने की उसकी हिम्मत नही हो रही है..

शारीरिक इच्छाओं का दबाव उसे मानसिक रूप से तनावग्रस्त कर देता है.. वह चिड़चिड़ी और बेचैन हो जाती है.. वह खुद को शांत नहीं कर पाती और हर समय इसी विचार में डूबी रहती है.. बड़ी ही दयनीय स्थिति हो जाती है..!!

किसी चीज में मन नही लग रहा था उसका..!! न टीवी देखने में.. न मोबाइल चलाने में.. न किसी से बातें करने में.. एक बार के लिए तो उसका दिल किया की वह पिंटू को फोन करें.. बड़ी मुश्किल से उसने अपने आप को रोका.. वह अपने पुराने प्रेमी पिंटू को बड़े अच्छे से जानती थी.. किसी भी सूरत में वो इस काम के लिए कविता का साथ नही देता..!!

कविता उठ खड़ी हुई और वॉशबेज़ीन के पास जाकर अपने चेहरे पर ठंडा पानी छिड़कने लगी.. थोड़ा अच्छा महसूस हुआ.. उसने अपने दृढ़ होकर, दिमाग से हवस भरे विचारों को दूर हटाना चाहा.. अपना ध्यान उन विचारों से दूर करने के लिए उसने सोचा की वो कुछ देर कहीं बाहर घूम आए.. शॉपिंग पर जाने का मन नही था.. अपनी माँ के घर भी नही जा सकती थी क्योंकि रमिलाबहन अपने बीमार भाई से मिलने दो दिनों के लिए दूसरे शहर गई थी

शरीर हवस से थरथरा रहा था.. पता ही नहीं चल रहा था की क्या करें..!! गाउन के ऊपर से ही अपने स्तनों को मसलते हुए वह सोफ़े पर आ बैठी.. पिलो पर सिर रखकर लेटते हुए उसने अपना गाउन कमर तक उठा लिया और पेन्टी को घुटनों तक सरका कर चूत को उजागर कर दिया.. अपनी उंगलियों से धीरे धीरे वह कभी दाने को सहलाती तो कभी बुर की फाँकों में उँगलियाँ फेरती.. जैसे ही आनंद की लहरें उठनी शुरू हुई, उसकी आँखें बंद हो गई

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कविता को इस समय न कोई लाज थी न शर्म, उसकी आंखे बंद थी, ओठ भींचे हुए थे, उत्तेजना का अनुभव अपने चरम पर था.. कभी निचले ओठ से ऊपर वाले को काटती, कभी उपरी ओठ से निचले वाले को.. सांसे धौकनी की तरह चल रही थी.. चूत की दरार से निकलता गीलापन अब उंगलिया भिगो रहा था, कुछ बह कर जांघो की तरफ बढ़ चला था.. रसिक द्वारा चोदे जाने की कल्पना कर कर के खुद की चूत दोनों हाथो से रगड़े जा रही थी..

अगर इस हालत में उसे कोई भी पकड़ लेता तो उसके लिए बेहद शर्मनाक होता.. वो कंफ्यूज थी जो कुछ भी हो रहा है कौन शैतान उसके शरीर को छु रहा है, कौन है जो उसके अन्दर सेक्स की सोई इच्छा बार बार जगा रहा है, इस हद तक बढाये दे रहा है की वो सारी लाज शर्म छोड़ कर, खुले कमरे में पूरी तरह नंगी होकर खुद की चूत रगड़ रगड़ कर चुदाई के बारे में सोच रही है.. कितना गलत है ये ? लेकिन ये सब सोचते हुए भी उंगलिया चूत पर तेजी से चल रही थी.. जब कोई औरत को चुदाई में मजा आने लगता है तो वो चुतड उठा उठाकर साथ देने लगती है..

इसी तरह कविता बार बार चुतड ऊपर की तरफ उछाल रही थी.. वो ये सब नहीं करना चाहती थी लेकिन शरीर की वासना के आगे बेबस थी.. एक तरफ उसकी चूत से लगातार पानी बह रहा था दूसरी तरफ तो सही गलत के उधेड़बुन में खोयी हुई थी.. उसे होश ही नहीं था की वो कहाँ है, उसका दिमाग कही और था शरीर कही और था.. ऐसा लग रहा था एक शैतान उसके शरीर से खेल रहा है और उसके हाथ पैर सब उसी शैतान के कब्जे में है.. वो ये सब नहीं करना चाहती है लेकिन चूत के पतले ओठो पर नाच रही उंगलियों पर उसका कोई बस नहीं है..!! चूत की दरार से बहते पानी को रोकने में वो लाचार है.. वासना के कारन थिरकते चुतड को रोकने में असमर्थ है.. उसे पता है ये सब रोकने का अब कोई रास्ता नहीं है.. अगर वो अपने अन्दर की वासना को तृप्त करने के लिए कुछ नहीं करेगी तो वो जी नहीं पायेगी.. सिसकारियो के बीच उसने अपने एक उंगली चूत की दरार के बीच डाली, फिर दो चार बार अंदर बाहर करने के बाद, दो हाथो से चूत के दोनों ओठ फलाये.. और फिर से उंगली अन्दर घुसेड दी.. दूसरे हाथ से दाने को रगड़ना जारी रखा..

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धीरे धीरे वो सोफे पर पूरी तरह लेट गयी.. दोनों जांघे ऊपर की तरह उठा दी और दो उंगलियों को कसी चूत के छेद में घुसेड के अन्दर बाहर करने लगी..

कविता की चूत की कसावट अब भी बिलकुल कुंवारी चूत की तरह थी.. दोनों उंगलिया को अन्दर डालने के लिए जोर लगाना पड़ रहा था.. चूत की कसी हुई मखमली दीवारे उंगलियों को कस के जकड ले रही थी.. उंगलियों की चुदाई उत्तेजना में चार चाँद लगा रही थी, इससे मिलने वाले चरम सुख की कोई सीमा नहीं थी.. मुहँ से सिसकारियो का सिलसिला लगातार चल रहा था, उगलियाँ के चूत में अन्दर बाहर होने से शरीर भी उसी अनुसार लय में आगे पीछे हो रहा था.. कविता अपनी उंगलियों से खुद को चोद कर अपनी वासना की आग बुझाने की कोशिश कर रही थी.. अब न कोई शर्म थी, न कोई हिचक थी, बस एक आग थी और उसे बुझाना था किसी भी तरह, उंगलिया अपनी चरम गति से चूत में आ जा रही थी और उसी के साथ दाने को भी अधिक ताकत और गति से रगड़ने का सिलसिला शुरू हो गया था..!!

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अब लग रहा था जैसे चरम निकट ही है, एक तूफ़ान जो अन्दर धमाल मचाये हुआ था अब बस गुजर जाने को है.. अब न कोई कल्पना थी, न किसी की सोच.. बस वासना थी वासना थी और सिर्फ वासना ही थी.. कविता अब सोफे पर तेजी से उछालने लगी.. उसकी कमर जोर जोर के झटके खाने लगी.. उंगलिया जिस गहराई तक जा सकती थी, वहां तक जाकर अन्दर बाहर होने लगी.. पहले चूत में एक उंगली भी बड़ी मुश्किल से जा रही थी अब दो भी आराम से जा रही थी.. कविता का हाथ पूरी ताकत से अन्दर बाहर के झटके दे रहा था..

अचानक उसका पूरा शरीर अकड़ गया, सिसकारियो का न रुकने वाला सिलसिला शुरू हो गया, जांघे अपने आप खुलने बंद होने लगी, जबकि उसकी उँगलियाँ अभी भी चूत की गहराई में गोते लगाकर आ जा रही थी, दाना फूलकर दोगुने साइज़ का हो गया था लेकिन कविता ने उसे रगड़ना अभी भी बंद नहीं किया था.. दाने के रगड़ने से चूत के कोने कोने तक में उत्तेजना की सिहरन थी.. चूत की दीवारों में एक नया प्रकार का सेंसेशन होने लगा, कमर और जांघे अपने आप कापने लगी, कविता को पता चल गया अब अंत निकट है, ये वासना के तूफ़ान की अंतिम लहर है.. उसने चूत से उंगलियाँ निकाल ली, चूत रस तेजी से बाहर की तरफ बहने लगा.. सारा शरीर कापने लगा, उत्तेजना के चरम का अहसास ने उसके शरीर पर से बचा खुचा नियंत्रण भी ख़त्म कर दिया..

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कमर अपने आप ही हिल रही थी, पैर काँप रहे थे, मुहँ से चरम की आहे निकल रही थी.. और फिर अंतिम झटके के साथ पुरे शरीर में कंपकपी दौड़ गयी और पूरा शरीर सोफे पर धडाम से ढेर हो दया..

कविता आनंद के सागर में गोते लगाते लगाते लगभग मूर्छा की हालत में पंहुच गयी.. धीरे धीरे सांसे काबू में आने लगी, चूत के दाना की सुजन कम होने लगी, स्तनों की कठोरता कम होने लगी.. अपनी उखड़ती सांसे संभाले कविता अपने आप के स्त्रीत्व को महसूस करने लगी, उसे अपने औरत होने का अहसास होने लगा.. उसने शरीर को ढीला छोड़ दिया.. उसने अपने ही चुचे और चूत का अहसाह पहली बार किया..उसके शरीर में होते हुए भी आज तक इनसे अनजान थी.. उसके दिमाग सेक्स को लेकर जो भी दुविधा थी दूर हो गयी.. अब वो खुद की सेक्स की चाह को दबाएगी नहीं.. वो खुद को एन्जॉय करेगी.. अपने स्त्रीत्व का पूर्ण आनंद लेगी.. उसने इतने साल दकियानुसी में काट दिए, जबकि अपनी मर्जी से मजे करना तो कोई अपराध नहीं है.. यही सोचते सोचते कब उसकी आंख लग गयी पता ही नहीं चला..!!

आधे घंटे बाद जब वह उठी, तो एक आनंददायी थकावट महसूस हो रही थी.. पर जिस्म अब भी पूर्णतः संतुष्ट नहीं हुआ था.. बल्कि ऐसा महसूस हो रहा था की सोफ़े पर हुए उस हस्तमैथुन के सत्र के बाद, उसकी चुदने की इच्छा और भी प्रबल हो गई थी

क्या करूँ..!!! कहाँ जाऊँ..!! कैसे बुझाऊँ इस आग को..?? कविता स्वयं से यह प्रश्न करती रही जिसका कोई उत्तर या हल दिमाग को सूझ नहीं रहा था..

तभी एक विचार, कविता के मन में बिजली की तरह कौंधा..!!!!

वह बेडरूम में गई कपड़े बदलने के लिए.. एक काले रंग की मिडी स्कर्ट.. जो स्लीवलेस थी और जिसकी लंबाई घुटनों से नीचे तक जाती थी.. वह पहन ली.. बालों को हल्के से ब्रश किया.. परफ्यूम छिड़का.. और हाईहील वाले सेंडल पहनकर घर से बाहर निकली

मंजिल करीब ही थी.. उसे अपनी माँ के घर तक ही पहुंचना था.. उसका दिल तेजी से धडक रहा था.. वासना के हाथों मजबूर वह अपने कदमों को रोक नहीं पा रही थी.. उल्टा उसका हर कदम पहले कदम से ज्यादा तेज होता जा रहा था

वह अपने घर पहुंची.. लोहे के दरवाजे का किवाड़ खोलकर कम्पाउंड में दाखिल हुई.. हल्के पैरों से चलते हुए उसने डोरबेल बजाई.. एकाध मिनट के बाद दरवाजा खुला.. रमिलाबहन का नेपाली नौकर, बड़े ही आश्चर्य से कविता की ओर देखता रहा..

आज कविता ने उसे पहली बार ठीक से मुआयना करते हुए देखा.. करीब 5 फिट 4 इंच जितनी हाइट थी.. एकदम गोरा.. गुलाबी गाल.. मध्यम शरीर और चेहरे पर अब भी दाढ़ी या मूँछ के हल्के से निशान भी नहीं नजर आ रहे थे.. त्वचा एकदम चिकनी.. बालों का स्टाइल कोरियन जैसा.. हेंडसम सा लड़का था वो.. उसने एक पुरानी सी टीशर्ट और शॉर्ट्स पहन रखी थी

थोड़ी देर तक चुपचाप तांकते रहने के बाद उस नौकर ने कहा "मालकिन तो नहीं है"

उद्दंडता से कविता ने जवाब दिया "पता है मुझे" कहते हुए उसने दरवाजे के साथ साथ उस लड़के को एक तरफ धकेल दिया और अंदर प्रवेश किया..

लड़का असमंजस में खड़ा रहा.. कविता बेडरूम की तरफ चल दी तब उसने विमूढ़ अवस्था में दरवाजा बंद किया और गुड्डों की तरह ड्रॉइंग रूम में ही खड़ा रहा.. पिछली बार जब उसका कविता से मिलना हुआ था तब की याद आते ही वह कांप उठा.. कविता ने उसे अपनी माँ को चोदते हुए रंगेहाथों पकड़ा था और पुलिस को सौंप देने की धमकी भी दी थी.. तब से उसे कविता से बड़ा डर लग रहा था

कविता अंदर जाकर बिस्तर पर पैर फैलाकर लेट गई.. किसी साम्राज्ञी की तरह.. हाथों के नीचे तकिये का सहारा लेकर उसने ड्रॉइंग रूम की ओर देखा और आवाज लगाई "कोई ओर भी आने वाला है क्या?"

कविता की आवाज सुनकर वह लड़का हड़बड़ाते हुए अंदर आया और कविता के सामने नजरें झुकाकर खड़ा हो गया.. कविता ने उसे सिर से लेकर पैर तक बड़े ध्यान से देखा

"क्या नाम है तेरा..??" कविता ने रुक्षता से पूछा

थूक निगलते हुए उस लड़के की जुबान मुश्किल से चली, उसने कहा "जी.. मेरा नाम बाबिल है.. बाबिल थापा"

शॉर्ट्स के नीचे दिख रही उसकी गोरी बालरहित टांगों को देखते हुए कविता ने कहा "हम्म.. क्या कर रहा था अभी घर में?"

घबराते हुए उसने जवाब दिया "जी कुछ नहीं.. सफाई अभी खतम हुई.. अपने लिए खाना बना रहा था"

बिस्तर पर लेटी कविता ने अचानक ही अपना मिडी-स्कर्ट घुटनों के ऊपर तक इस तरह ऊपर कर दिया की जिससे उसकी जांघें स्पष्ट नजर आयें.. लड़के ने बड़े ही ताज्जुब से एक पल के लिए कविता की उजागर हुई जांघों की तरफ देखा और फिर से नजरें झुका ली..

कविता का इरादा स्पष्ट था.. आज वो इस जवान नौकर को अपनी हवस का शिकार बनाने वाली थी..!! यह लड़का इतना कच्चा सा लग रहा था की कविता को यकीन था की यह थोड़ी ही देर की हरकत से झड़ जाएगा.. इसे एक बार झड़वाकर फिर चुदवाना पड़ेगा.. वरना मज़ा नहीं आएगा..

कविता बड़ी ही प्लैनिंग के साथ आगे बढ़ रही थी.. अपनी जांघें खोलने के बाद उसने झुककर अपने डीप-नेक गले से दिख रही स्तनों की बीच की दरार को उभारकर दिखाने लगी.. पर वह लड़का तो अभी भी नजरें झुकाएं खड़ा था

"मेरे सामने देख..!!" कविता ने आदेशात्मक आवाज में कहा

लड़के ने नजरें उठाई.. कविता का यह मादक स्वरूप देखकर वह हिल गया.. पसीने छूटने लगे.. वह फिर से नजरें झुका लेना चाहता था पर कविता की बात का उल्लंघन करने की हिम्मत नहीं थी उसकी

कविता ने उंगलियों से इशारा करते हुए उसे बिस्तर पर बुलाया.. लड़के की सिट्टी पीट्टी गूम हो रही थी.. पर कविता की बात मानने के अलावा उसके पास ओर कोई चारा भी तो नहीं था..!!

वह आकर बेड के कोने पर दुबककर बैठ गया.. कविता उसके करीब आई.. लड़के को गिरहबान से पकड़ा और उसे अपनी ओर खींचकर उसके बालों को सूंघने लगी.. नथुनों को खींचकर गहरी सांस लेते हुए, आँख बंद कर कविता जैसे खो सी गई थी..

कांपते हुए स्वर में उस लड़के ने पूछा "आपके लिए पानी लेकर आऊँ?"

बाबिल की आवाज सुनकर कविता की चेतना लौटी और उसने बाबिल को गौर से देखा, उसके अन्दर एक झुनझुनी झंकार जैसी लहर दौड़ गयी जब उसने उस जवान नौकर की तरफ देखा, दिल की धड़कने तेज हो गयी थी, सांसों की गति बढ़ गयी थी, पेट में लहरे सी उठने लगी थी, सीने पर विराजमान दोनों उन्नत चोटियाँ हर साँस के साथ उठने गिरने लगी थी.. उस नौकर ने रमिलबहन के साथ जो हरकत की थी इसलिए उसे बाबिल पर बहुत गुस्सा होना चाहिए, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से ऐसा कुछ नहीं था, उसे खुद ही यकींन नहीं हो रहा था की आखिर वो बाबिल से गुस्सा क्यों नहीं है.. बजाय उस पर गुस्सा करने के कविता ने प्यार से उसकी तरफ हाथ बढाया, उसके चेहरे को सहलाया, उसके बालो में उँगलियाँ फेरने लगी..

कविता ने अपने सूखते होंठों पर जीभ फिराते हुए बाबिल को अपने नजदीक खींचा.. उस लड़के को यकीन ही नहीं हो रहा था, कि कविता उसके साथ क्या करने जा रही थी.. ऐसा लग रहा था ये कविता नहीं बल्कि कोई आत्मा उसके शरीर में घुसकर उसके शरीर को चला रही है.. वह हैरान था, कविता उसको इतने मादक तरीके से कैसे देख सकती है..

हल्की मादक कराह के साथ कविता ने बाबिल का चेहरा बिलकुल अपने सामने किया, उसकी आँखों में हल्का आश्चर्य था, इससे पहले की वो बाबिल की आंखे और पढ़ पाती, कविता ने अपने भीग चुके होठो को उस लड़के के होंठों पर रख दिया, धीरे से साँस लेते हुए कविता ने अपने होंठ खोलकर अपनी जीभ को उसके दांतों के बीच से होते हुए मुंह की तरफ ठेल दिया.. लड़के को एक झटका सा लगा, कविता उसको किस कर रही है वो भी अपनी जीभ उसके मुंह में डालकर..!!

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दोनों के मुंह की लार एक में मिलने लगी.. कविता अपनी जबान से लड़के की जबान चूस रही थी चूम रही थी.. उसकी मस्त स्तनों से भरी पूरी छाती, बाबिल के सीने से टकरा रही थी| वो कविता के दोनों स्तनों का भरपूर कसाव दबाव अपने सीने पर महसूस कर पा रहा था, कविता की सांसे तेज चल रही और उसका पूरा शरीर उत्तेजना के कारण कांप रहा था.. बाबिल ने भी अपने हाथ कविता की कमर पर रख दिए और हलके हलके सहलाते हुए पीठ पर ऊपर बांहों तक ले जाने लगा, थोड़ी देर के बाद सहलाने में कसाव बढ़ गया, पीठ पर ऊपर की तरफ हाथ जाते ही कविता को कसने की कोशिश करने लगा.. जिससे पहले से ही सीने से रगड़ रहे कुचल रहे कविता के सुदृढ़ स्तन और कसकर उस लड़के के सीने से रगड़ने लगे..

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बाबिल के शरीर की कंपकपी बता रही थी की उसकी उत्तेजना बहुत बढ़ गयी है, कविता को उस नौकर की कंपकपी से उसकी उत्तेजना पता लग रही थी, उसे पता था वो जो कर रही है वो पाप है, घोर पाप, विक्षिप्त क्रिया है, कामरोगी की लालसा है फिर भी कविता ही उस लड़के को उत्तेजित कर रही थी और बदले में बाबिल की हरकतों से उसकी उत्तेजना और बढ़ रही थी.. ये सब जानते हुए भी वो खुद को रोक नहीं पा रही थी..

कविता का शरीर, अपने अन्दर की छिपी हुई वासना और हवस का समंदर बाहर निकालने को आतुर था.. उसे पता था यह खतरनाक हो सकता था.. इस लड़के के अपनी माँ से गहरे जिस्मानी संबंधों के चलते यह अंदेशा था की आज की घटना के बारे में वह उन्हें जरूर बता देगा.. लेकिन फिर भी वो खुद को रोक पाने में असमर्थ थी..!!

कविता के अन्दर वासना का समन्दर हिलोरे मार रहा था ऐसे में वह कहाँ से खुद को रोक पाती..!!! उसने बाबिल के होंठों से होंठ हटा लिए, अपने चेहरे को उसके गालो पर रगड़ने लगी, उसके कानो में फूंक मारने लगी.. इसी बीच बाबिल का एक हाथ कविता के स्तन को मसलने दोनों के चिपके शरीरो के बीच से फिसलता हुआ कविता की छाती तक पंहुच गया, जिसे कविता ने लाल रंग की ब्रा में ढक रखा था.. कविता चाहकर भी विरोध नहीं कर पाई..!!!

कविता को पता भी नहीं चला की कब वह लड़का उसका दूसरा हाथ पकड़ कर धीरे धीरे खिसकाते हुए नीचे ले गया और अपनी दोनों जांघो के बीच बिलकुल उस जगह पर जाकर रख दिया है जहाँ उसके खड़े लंड की वजह से शॉर्ट्स के अन्दर तम्बू तन गया है.. क्या कविता को पता था की उसका एक हाथ,पेंट के ऊपर से बाबिल के तन चुके लंड को सहला रहा है..!!!!

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दूसरी तरफ कविता की कमर के आस पास एक नयी झुनझुनी दौड़ गयी जब नौकर का वो हाथ जो अब तक कविता के आकर्षक स्तनों को मसल रहा था.. कुचल रहा था, नीचे घुटने के पास से स्कर्ट खिसकाते हुए मखमली नरम जांघ पर हाथ फेरते हुए आगे कमर की तरफ बढ़ने लगा.. बाबिल ने स्कर्ट ऊपर की तरफ उड़ेल दी, कविता की झीनी पारदर्शी पैंटी दिखने लगी.. उस लड़के को यकीन नहीं हो रहा था की कविता इस तरह की पैंटी पहनती होगी..!! अब तक तो उसने सिर्फ रमिलाबहन की कच्छेनुमा चड्डियाँ ही देखी थी..

पैंटी भी इतनी छोटी थी की बमुश्किल ही कविता की चिकनी चूत को ढक पा रही थी.. पैंटी देखते ही रक्त का प्रवाह लंड की तरफ और तेज हो गया.. बाबिल की उत्तेजना और जोश का कोई ठिकाना नहीं था, उसका शरीर पर से काबू हटने लगा था.. उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था की ये सब वो अपनी मालकिन की बेटी के साथ कर रहा है और वो करने भी दे रही है..!! उसने इस तरह की पैंटी कभी नहीं देखी थी.. कविता की गोरी चिकनी जांघो के बीच पहने देखा, उसका अपनी उत्तेजना पर काबू नहीं रहा.. इधर उधर दिमाग दौड़ाने की बजाय उसने कविता के स्तनों को मसलना शुरू किया, जबकि कविता का एक हाथ उसके खड़े लंड से बने चड्डी के तम्बू पर आराम कर रहा था.. उसके लंड में खून का दौरान और तेज हो गया था..

बाबिल का, कविता के कपडे उतारकर उसकी गोल चिकनी नरम गुदाज गोरी जांघो और नितम्बो को देखने की कल्पना मात्र से रोमांच की उत्तेजना पर पंहुच गया.. ये सब कुछ उसकी उम्मीदों से बहुत अधिक था, जिसकी उसने कल्पना तक नहीं की थी.. पता नहीं इतना रोमांच और उत्तेजना वो सहन भी कर पायेगा या नहीं.. उसका लंड इतना ज्यादा कड़ा हो चूका था की उसे लग रहा था कि अगर अन्दर का दहकता लावा बाहर नहीं निकाला, अगर उसने अभी नहीं चोदा तो कही उसका लंड चड्डी में ही ना फट जाये.. बाबिल का दिमाग सातवे आसमान पर था..!!

कविता ने अपने अन्दर की सारी ताकत इकट्ठी की और बाबिल को खुद से दूर धकेला.. उसके बाद नीचे की तरफ अपने शरीर को देखने लगी.. कमर के नीचे वो पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी बस वो छोटी सी झीनी पारदर्शी पैंटी ही थी जो उसकी चूत और उसके चारो ओर के हल्के बालो को ढक पा रही थी.. बाकि उसके पैरो से लेकर जांघो और कमर तक कुछ भी उसके तन पर नहीं था.. स्कर्ट खिसक के नाभि तक पंहुच गयी थी.. उसके बाद कविता की नजर बाबिल की पेंट की तरफ गयी, पेंट के अन्दर के तने लंड के कारण बने उभार को देखकर उसकी साँस अटक गयी.. नहीं ये सच नहीं हो सकता, ये सब रियल नहीं है, ये मै कोई सपना देख रही है, ये सब सच नहीं है..अपने आप से कह रही थी कविता..!!

कविता के इस तरह अलग होने से बाबिल झुंझला गया - कविता बाबिल का झुन्झुलाहट साफ साफ देख रही थी, गलती बाबिल की नहीं थी, वही तो उसको यहाँ तक लायी थी, अब बीच में कैसे छोड़ सकती है..!! चड्डी के अन्दर खड़े लंड की तरफ देखकर उसको बाबिल पर दया आ गयी, और सोचने लगी.. अभी अगर इस जवान लड़के के खड़े लंड को शांत नहीं किया तो वो पागल हो जाएगा.. पता नहीं कितने ख्याल उसके दिमाग में आये और निकल गए.. असल में यह कविता की हवस ही थी जो उसे यहाँ तक खींच लाई थी और अब वह अपराध भावना से बचने के लिए उस लड़के पर दया का दिखावा ही कर रही थी

वह अब बाबिल की चड्डी उतारने लगी.. उतारते उतारते उसने वह पतली चड्डी लगभग फाड़ ही डाली और अपने अन्दर के कामुक मादक आहों को दबाने की कोशिश करने लगी.. कविता के हाथ उसके लंड तक पंहुच गया था उसने लंड को कसकर पकड़ लिया..

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उसने महसूस किया की लड़के का लंड पकड़ते ही उसकी कमर में उत्तेजना के कारण झटके लगने शुरू हो गए थे, एक हाथ से गरम, खून से भरे मांस के गरम अंग, लोहे की तरह सख्त हो चुके गोरे गुलाबी लोड़े को कसकर पकड़ा, दुसरे हाथ से अपने स्तनों को मसलने लगी.. लड़के का लंड ज्यादा बड़ा तो नहीं था लेकिन पत्थर की तरह कठोर हो चूका था.. उस नौकर लड़के के दुविधा भरे चेहरे को देखकर उसने लंड को जड़ से पकड़कर जोर से ऊपर नीचे किया और एक हल्की चिकोटी भी काट ली.. बाबिल के चहरे पर उत्तेजना और संशय दोनों ही नजर आ रहे थे.. कविता ने जीभ से अपने होंठों को गीला किया और तेज खून के बहाव के चलते कांप रहे लोहे की तरह सख्त हो चुके लंड को भूखी नजरो से देखने लगी

उसने लड़के के लंड से खेलना शुरू कर दिया, लंड की खाल को धीरे धीरे ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया.. कविता की उंगलियों की मालिश से उसे बड़ा अच्छा महसूस हो रहा था, इतना अच्छा उसे आज तक किसी दूसरी चीज से नहीं हुआ था, आज तक वह बस रमिलाबहन के बूढ़े भोसड़े को ही चोदता आया था.. कविता के कोमल हाथो से उसके लंड पर लग रहे झटके से जैसे छटपटाने लगा..

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कविता ने फुर्ती से पास के ड्रोअर से मॉइस्चराइज़र क्रीम की बोतल निकाली और लड़के के लंड पर उड़ेल दी.. क्रीम लगाते हुए वह उसके लंड के चारो और तेजी से हाथ ऊपर नीचे करने लगी.. कविता के हाथ नीचे जाते ही क्रीम से सना सुपाड़ा चमकने लगता और ऊपर आते ही अपनी ही खाल में घुस कर कही गुम सा हो जाता.. क्रीम लगाने से अब हाथ आसानी से लंड पर फिसल रहे थे..

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वह लड़का सीत्कार भरते हुए बोला "आह्ह दीदी..!!"

"दीदी" शब्द सुनकर एक कामोत्तेजक कंपकपी कविता के पुरे शरीर में दौड़ गयी.. जैसे जैसे कविता लड़के के खड़े लंड पर झटको को स्निग्ध और लयदार करती उसी तरह बाबिल की कमर साथ देते हुए झटके मारती रही.. धीरे धीरे कविता ने स्ट्रोक्स की रफ़्तार बढ़ा दी, बीच बीच में वह अपने सूख रहे होंठों पर अपनी जुबान फेरती रही.. अब उसने लंड पर हथेली की कसावट और तेज कर दी थी और अपनी पूरी स्पीड से लंड की खाल को ऊपर नीचे कर रही थी.. तभी लंड के सुपाड़े पर उसे वीर्य के निकलने से पहले निकलने वाली कुछ बूंदे नजर आई..!! उन चिपचिपी बूंदों को उंगली से लेकर चाट लिया कविता ने..!!

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कविता ने हाथो के ऊपर नीचे करने की स्पीड कम कर दी.. और फिर कलात्मक तरीके से उंगलियाँ लंड पर फिराने लगी.. हवस की आग में जलती कविता की अतृप्त कामवासना उससे कुछ नए खेल खिलवाना चाहती थी जो उसकी चेतना को खत्मकर सही गलत सबका भेद मिटा दे.. बस रह जाये तो वासना वासना और वासना..!!! उसे कभी भी इस तरह से जीवन में नहीं सोचा था..

वो जानती थी की वो जो करने जा रही है उसके परिणाम भयानक हो सकते है, लेकिन वो वासना के हाथो मजबूर थी.. जो विचार एक बार दिमाग में आ गया अब उससे पीछे हट पाना उसके लिए बहुत मुश्किल था..नया विचार बड़ा रोमांचकारी, कामुक वासनायुक्त और उत्तेजना लाने वाला था..

कविता के कलात्मक जादुई झटके लगाने से बाबिल बार बार आनंद में गोते लगाकर कराह रहा था और उसकी कमर भी बार बार झटका दे रही थी.. कविता ने थोडा सा क्रीम लंड के सुपाडे पर लगाया और धीरे धीरे उंगलियों से सहलाने लगी , सुपाड़े को क्रीम से नहलाकर उंगलियों से उसकी मालिश करने लगी.. इतने प्यार और जादुई तरीके से लंड की मालिश होने से बाबिल आनंद की सागर में गोते लगाने लगा, लेकिन कविता ने उसके चेहरे की शर्म साफ़ पढ़ ली.. लड़का काफी जवान था.. चुदाई के मामले में नौसिखिया था.. और कविता से डरता भी था.. कविता के सामने उसके हाथो द्वारा, खुद को झड़ते हुए देखना उसे बड़ा शर्मिंदगी भरा लगा..

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अब कविता ने लंड पकड़कर मुहँ में ले लिया और कसे होंठों के साथ पूरा अन्दर लेती चली गयी..अब तक उसने जीतने भी लंड देखें थे.. फिर वो पीयूष का हो.. पिंटू का या रसिक का.. उन सब में यह सब से अनोखा था..!! गोरा चिट्टा लंड.. सख्त होने पर 5 इंच जितनी लंबाई.. दो उंगलियों जितनी चौड़ाई.. और सब से मजेदार था उसका चेरी जैसा लाल गुलाबी सुपाड़ा.. जो बड़े कंचे के आकार का था.. उसके नीचे अंडकोश की छोटी सी थैली..!! देखकर ही प्यार आ गया था कविता को

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पहले जहाँ सिर्फ सुपाडे से खेल रही थी अब पूरा लंड मुहँ में लेकर चोद रही थी.. कविता ने बाबिल से इशारे में अपनी कमर हिलाने को कहा, बाबिल कमर को जोर जोर के झटके देने लगा| कविता के कसे होंठों से गुजरता हुआ लंड पूरा का पूरा मुहँ में समा जाता और फिर एक झटके में बाहर आ जाता.. लेकिन अब कविता के मुहँ और बाबिल के लंड के बीच में उसका हाथ था जिससे वो ज्यादा तेज धक्के को नियंत्रित कर सकती थी.. उसने अपने हाथ की उंगली और अंगूठे से एक छल्ला सा लंड की जड़ में बना लिया था.. इससे वह लंड के इधर उधर भागने या तिरछा हो जाने को रोक सकती थी..

जब वह लड़का नितम्बो को जोर जोर से उछालने लगा तो कविता ने अपने ओठो का कसाव थोडा कम कर दिया, और लंड की जड़ से अपने हाथ का घेराव हटा लिया ताकि लंड आसानी से पूरा का पूरा मुहँ में चला जाये और उसे मुहँ चोदने का भरपूर आनंद मिले.. दुनिया का कोई भी लंड हो वो औरत के किसी भी छेद में पूरा का पूरा समा जाने को आतुर होता है और ये बात कविता अच्छी तरह से जानती थी.. बार बार कविता को अहसाह हो रहा था की फड़कता गरम लंड उसके नरम नरम गुनगुने गीले मुहँ में ठेला जा रहा है.. वह लड़का कमर को जोर जोर हिलाने से पूरी तरह से फड़कता सुपाडा जीभ की पूरी लम्बाई तय करके मुहँ के आखिरी छोर गले तक जा रहा है..

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वासना की उत्तेजना की प्रबलता के कारण कविता ने अपनी आँखे बंद कर ली, वो भी उसकी कमर से लय मिलाकर अपना सर लंड पर ऊपर नीचे करने लगी.. अब लंड जिस अधिकतम गहराई तक मुहँ में जा सकता था जा रहा था.. लंड के अन्दर जाते ही कविता अपने जीभ लंड पर फेरने लगती.. इससे लंड गीला हो जाता था और आसानी से अन्दर बाहर हो रहा था.. कमरे में बस लंड चूसने और लड़के की कराहने की आवाजे ही सुनाई पड़ रही थी..

कविता ने अपना सारा संकोच शर्म हया सब किनारे रख दिया था, उसका सिर्फ एक ही मकसद था लड़के का लंड चूस कर उसे झड़ा देना.. ताकि लंड दोबारा खड़ा होने पर वह लंबी अवधि तक चोद सकें.. उसने अपना शरीर और आत्मा सब कुछ बस लंड चूसने में झोक दिया था, दिल आत्मा मन शरीर सब कुछ लगाकर वो बस लंड अपने मुहँ की गहराई तक ले रही थी..

अब तो बस उसका एक ही मकसद था लड़के के सख्त फूले लंड को मुहँ से चोद चोद के उसको अपने मुहँ में झड्वाना.. हालांकि कविता को वीर्य मुंह में लेना पसंद तो नहीं था.. पर पता नहीं क्यों, आज इस क्यूट से गोरे लंड को देखकर उसका मन कर गया.. वह उसकी मलाई को अपने मुहँ में लेना चाहती थी और उसकी एक बूँद भी बेकार नहीं जाने देना चाहती थी.. उसे बाबिल की पूरी मलाई अपने मुहँ के अन्दर ही चाहिए, आखिर बूंद तक.. उसने अपना पूरा ध्यान इस पर लगाया की जब बाबिल झाड़ेगा तो उसे भरपूर आनंद मिलना चाहिए..

उसने गलगलाकर अपना गला ठीक करने की कोशिश की लेकिन लड़के की चुदाई के चलते ठीक से साफ नहीं कर पाई.. लंड पर उसके होंठों का कसाव अभी भी उतना ही तगड़ा था, उसके होंठों को चीरते हुए लंड बार बार कविता के मुहँ में गले तक आ जा रहा था.. इतने सलीके से इतनी गहराई तक अपने जीवन में बाबिल शायद ही किसी लड़की का मुहँ चोद पाए, वैसे भी नौसखिये लडको का शादीशुदा या अनुभवी औरतो को चोदना ज्यादा पसंद होता है, क्योंकि वो सब सिखाती बताती है और उनके नखरे भी नहीं होते, और नए लंड को भरपूर सुख भी देती है..

कविता काफी देर से बेड पर झुके हुए लंड चूस रही थी इसलिए उसकी गर्दन और कंधे दर्द करने लगे थे लेकिन उसको इसकी कोई परवाह ही नहीं थी.. वो लंड को और ज्यादा कसकर पकड़कर आक्रामक तरीके से चूसने लगी, ऐसा लग रहा था जैसे सालो से इस लंड की भूखी हो..

उधर वासना के जूनून में डूबी कविता भी उत्तेजना में कुछ बडबडा रही थी लेकिन पता नहीं वो क्या बोल रही थी.. बाबिल ने इसी बीच देखा की कविता की स्कर्ट अभी भी एक तरफ से कमर पर पलटी पड़ी है, जिससे उनकी पैंटी साफ साफ दिख रही है.. उनकी झीनी पारदर्शी पैंटी से उनकी चूत के ऊपर के काले बालो की एक झलक मिल रही है.. वासना से भरे भूखे आदमी की तरह कविता के कसमसाते नितम्बो को देखकर बाबिल ने अपने लंड के धक्के कविता के नरम गीले मुहँ में और तेज कर दिए.. फिर खुद को न रोक पाते हुए उसने कापते हुए एक हाथ कविता के नितम्ब की तरफ बढ़ाया..

कविता के शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गयी जब बाबिल ने उसके गोलाकार ठोस मांसल चुतड पर एक हलकी चपत मरी और फिर पुरे हाथ में उसके बड़े से गोल चूतड़ को भरने की असफल कोशिश करने लगा.. उसके बाद उसने स्कर्ट को ऊपर की ओर और ज्यादा पलट दिया अब जांघो के बीच में उसकी पैंटी के अलावा कुछ नहीं था.. कविता ने फूले हुए लंड को चूसते चूसते बीच में एक लम्बी साँस ली, और एक पल को ठहर सी गयी, जब उसे अहसाह हुआ की बाबिल की उंगलियाँ उसके चुतड की दरार के बीच नाच रही है.. उसने खुद को पूरी तरह से परिस्थितियों पर छोड़ दिया, जो हो रहा था उसने होने दिया, जब बाबिल की उंगलियाँ उसकी जांघो के बीच जाकर नाचने लगी, तो उसके शरीर की वासना का जंगलीपन जाग उठा..

कविता ने लंड चूसने के रफ़्तार और बढ़ा दी.. इस तरह का कामुक समर्पण और काम पीड़ा उसके अन्दर भी है, उसे तो पता ही नहीं था..!! अब उसके मांसल गोरा शरीर का एक एक इंच चूमने, चटवाने, सहलाने, कुचलने, मसलें और रगड़े जाने के लिए बेताबी से मचलने लगा था.. लंड चूसने के बदले उसके शरीर को अब कुछ चाहिए, बाबिल को झाड़ने के अलावा अब उसकी इच्छा होने लगी की उसको भी तृप्ति मिले.. वो भी चरम को प्राप्त करे.. उसके शरीर का रोम रोम अब उसके खुद के झड़ने की मांग करने लगा.. उसने लंड को और ज्यादा आक्रामक तरीके से मुहँ में लेना शुरू कर दिया. इससे उसके मुहँ में चोट भी लग सकती थी लेकिन उसे परवाह ही नहीं थी..

उधर बाबिल की उंगलिया जांघो के अन्दर घुस कर उसकी पैंटी से नीचे की तरफ जांघो को सहला रही थी.. वो कमर के नीचे पूरी तरह से नंगी थी, कपड़ो के नाम पर एक छोटी सी झीनी सी पैंटी थी जो बड़ी मुश्किल से उसके चूतडो के आधे हिस्से को ढक पा रही थी थी इसके अलावा उसकी चिकनी गीली हो चुकी चूत को ढके हुए थे जिस पर के काले बाल इधर उधर से बाहर झांक रहे थे, इसके अलावा पैंटी के हल्की पारदर्शी होने के कारण उसकी चूत के बाल पैंटी के ऊपर से भी दिख रहे थे..

कविता पूरी गति से बाबिल को लंड को चूस रही थी, उसका हाथ और होंठ लंड पर ऊपर नीचे तेजी से हो रहे थे, और उधर बाबिल की उंगलिया कविता की पैंटी की इलास्टिक पार करके, चूत के हल्के जंगल में विचरण कर रही थी.. जैसे जैसे वो कविता की चूत के बाल सहला रह था वैसे वैसे चूत की फांक उत्तेजना से कम्पित होने लगी..

उसके बाद एक तेज सिसकारी कविता के मुहँ से निकली, लड़के की एक उंगली ने चूत के गीले हो चुके ओठ पर से गुजरते हुए, ठोस खून से भरे लाल, उत्तेजना से फडकते, कली नुमा चूत के दाने को छु लिया.. कविता के नितम्ब अपने आप ही हिलने लगे, उसको गोरी चिकनी गूँदाज जांघे कापने लगी.. कविता ने महसूस किया की लड़के का दूसरा हाथ धीरे धीरे पैंटी की इलास्टिक को पकड़कर नीचे खीच रहा है.. उसने चूतडो पर आधी दूर तक पैंटी खिसका भी दी है..

जब लड़के की बीच वाली उंगली, कविता के चूतडो की दारार को सहलाती हुई गांड के छेद में घुसी तो कविता के शरीर में पहले से भी ज्यादा तेज सिहरन दौड़ गयी.. वह अब पागलो की तरह लंड चूसने लगी.. और उत्तेजना के मारे लंड पर दांत भी गड़ाने लगी, फिर और जोरदार तरीके से लंड को चूसने लगी..

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कविता जिस तरह से लंड पर पूरी तरह झुककर तेजी से बेतहाशा मुहँ में पूरा का पूरा ले रही थी, इससे लड़के की कराहने की आवाज और बढ़ गयी.. कराहते हुए लड़के ने एक बार फिर अपना ध्यान कविता के लगभग नंगे हो चुके चुतड और नाजुक कली जैसी चूत की तरफ लगाया.. उसकी उंगली गांड के छेद से हटकर चूत पर आ गयी और नीचे से ऊपर की तरफ चूत के ओठो को रगड़ने लगी.. उंगली रगड़ते रगड़ते चूत के फूले दाने के पास तक जाती और फिर नीचे आ जाती.. कभी कभी दाने को भी छु लेती और तभी कविता के पुरे शरीर में सिहरन दौड़ जाती..

इसके बाद बाबिल ने कविता के चूत की फांक को अलग करते हुए, अपना अंगूठा कविता की गरम गीली मखमली गुलाबी चूत के अन्दर घुसा दी.. उस लड़के का पूरा शरीर, कविता की चूत के स्पर्श से रोमांचित हो गया.. इधर कविता ने भी लंड चूसने में कोई कोर कसर बाकि नहीं रखी..

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बाबिल: "ओह ओह्ह ओह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्हह्ह ओह्ह्ह्हह्ह्ह्ह दीदी..!!!!"

बाबिल ने अपने अब तक के जीवन में ऐसा कुछ कभी अनुभव नहीं किया था.. उसे पता था अब कभी भी कविता चाची के लंड चूसते मुहँ के अन्दर उसके अन्दर उबल रहे गरम लावे की शूटिंग शुरू हो सकती है.. उसके लंड पर कविता के जीभ और होंठों का गीला नरम स्पर्श उसके चरम आनंद की अनुभूति करा रहा था.. अब उसका नियंत्रण कभी भी टूट सकता है वो कभी भी दीदी के मुहँ में झड़ना शुरू कर सकता है.. !!

बाबिल की टांगे तनने लगी.. चूतड़ सिकुड़ने लगे, अब उसका खुद को काबू में रखना असंभव था, फिर भी कविता की चूत से खेलने के लालच में उसने खुद को थोड़ी देर और रोकने की नाकाम कोशिश की.. जितना देर वो खुद को रोक लेगा उतनी ही ज्यादा देर वो कविता की चूत से खेल पायेगा..

लेकिन कविता अपनी पूरी स्पीड से लंड को चूस रही थी, इसलिए उसका अब ज्यादा देर तक रुक पाना असंभव था.. इतनी भयानक तीव्र उत्तेजना, इस नाजुक से लड़के से संभाले नहीं संभल रही थी.. उसे यह एहसास होने लगा था.. अब गरम सफ़ेद गाढ़ा लावा, बस निकलने ही वाला है और दुनिया में कोई भी तरीका ऐसा नहीं था, जो इसे रोक सके.. अब उसे झड़ना ही है,

कविता ने महसूस किया की लड़के का शरीर अकड़ने लगा है और वो भी बेतहाशा तरीके से चूस चूस के थक चुकी थी इसलिए जल्दी से फ्री होना चाहती थी, उसको भी अब जल्दी मची थी और उसे पता था अब बाबिल को झड़ने में बस कुछ ही सेकंड बचे है..एक बार यह झड़ जाए तो उसे दोबारा तैयार कर.. उससे चुदवाकर अपनी आग बुझानी थी..

उसने भी अपनी जांघे और कुल्हे जोर जोर से झटकने शुरू कर दिए, वो चूत में घुसी बाबिल की उंगली के इर्द गिर्द अपनी कमर और कुल्हे हिलाने लगी , ताकि उसकी गीली चिकनी मखमली चूत भी साथ में झड जाये..

बाबिल- ओह ओह्ह्ह ओह्ह्ह्ह मै झड़ने वाला हूँ दीदी, आपके मुहँ में झड़ने वाला हूँ.. ओ माँ ओह्ह्ह..!!"

बाबिल का कुल्हा पहले ऊपर उठा फिर नीचे गिरा.. कविता समझ गयी ये क्या करना चाहता है.. उसे कोई अनुभव नहीं था इसलिये उसके साथ ये सब कभी हुआ नहीं.. वह नौसखियो की तरह इधर उधर हिल रहा था, लेकिन कविता ने कठोरता से उसका लंड थामे रखा और मुहँ में गले की गहराई तक ले जा कर पूरा अन्दर लेती रही.. लंड रस मुहँ में लेने को लेकर उसने फैसला कर लिया था और वो ये करके रहेगी.. वो चाहती थी की वह लड़का सिर्फ और सिर्फ उसके मुंह में झड़े..

काम उत्तेजना के चरम पर बैठे बाबिल ने बेदर्दी से अपना लंड कविता के मुहँ में पेल दिया, उसका लार से सना फुला हुआ लंड कविता के होंठों को चीरता हुआ कविता के मुंह में घुसता चला गया और जब तक कविता के होंठ, लंड की जड़ तक नहीं पंहुच गए, लंड सरसराता हुआ मुँह में जाता रहा.. लड़के ने एक लम्बी कराह ली, उसने अपने लंड को पूरी तरह कविता के हवाले कर दिया और खुद की उंगली और ज्यादा तेजी से कविता की चूत में अन्दर बाहर करने लगा.. उसे अपनी गोलियों में फट रहे ज्वालामुखी की आग साफ़ महसूस होने लगी.. लग रहा था गरम धधकते लावे की एक तेज लहर उसके गोलियों को छोड़कर आगे की तरफ निकल पड़ी थी..!!!

तभी कविता ने अपने गीले मुहँ में बाबिल के सफ़ेद गाढे लंड रस की गरम ताजा बूँद महसूस की, जिसे वो तुरंत ही गटक गयी, ताकि दम घुटने की कोई गुंजाईश न रहे और लंड अपनी गहराई तक जाकर पूरा समाये और झड़ता रहे..वीर्य का स्वाद उसे पिछले की अनुभवों के मुकाबले काफी अनोखा और अच्छा लग रहा था

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जिस तरह लड़का इस समय झड रहा था बिलकुल इसी तरह की संवेदना और करंट कविता भी अपनी कमर के आसपास महसूस कर रही थी जहाँ वो लड़का तेजी से अपनी उंगली कविता की चिकनी गीली चूत में अन्दर बाहर कर रहा था..

कविता की चूत में भी झड़ना शुरू होने का कम्पन महसूस होने लगा था, एक गुदगुदी भरी कंपकपी से उसकी चूत की दीवारे झनझनाने लगी थी.. उसका पूरा शरीर अकड़ा पड़ा था..वह भी बाबिल के लंड पर क्रूर से क्रूरतम होती जा रही थी जिसके कारण लड़के के नितम्ब तेजी से हिल रहे थे.. कांप रहे थे.. कविता के होंठों की सख्ती चरम पर थी और लंड रस के मुहँ मे झड़ने से, लंड को उसकी जड़ तक मुहँ में निगलने से कविता के मुहँ से बस गलगल्लाने की आवाज ही आ रही थी..

लंड से निकलती हर बूँद को कविता अपने मुहँ में लेकर निगलती जा रही थी, अब तक तीन-चार पिचकारियाँ छूट चुकी थी और कविता झट से लंड रस को निगलकर उसके लंड को अपने सख्त होंठों से जकडे हुए, उस पर अपनी जीभ तेजी से फिर रही थी.. लड़के के परम आनंद की सीमा नहीं थी, झड़ते लंड पर गीले मुहँ में जब लगातार गीली खुरदरी जीभ आपके लंड को अपने आगोश में लेकर सहलाये तो भला कौन नहीं काम आनंद से पागल हो जायेगा..!!! लड़के ने चार पांच बार और अपने कुल्हो को तेज झटका दिया और इसी के साथ उसके लंड रस की बची आखिरी चार पांच किश्तें भी कविता के मुहँ में जा गिरी.. कविता का पूरा मुहँ वीर्य रस से भर गया..!!

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लड़के ने अब कविता की चूत में अपनी पूरी उंगली घुसा दी और ठहर गया.. कविता का कुल्हा जोर से कांपा, मुहँ से लम्बी सिसकारी भरी आह निकली और कुछ देर तक कविता का पूरे शरीर में कंपकपी होती रही, वह लड़का कविता का कम्पन महसूस कर सकता था और कविता का अकड़ा शरीर निढाल होने लगा.. वह भी हांफते हुए बिस्तर पर निढाल हो गया,

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कविता ने अपनी आंखे बंद कर ली और उस लड़के की नाभि पर अपना सर टिका दिया, उसकी सांसे भी उखड़ रही थी.. कविता और बाबिल दोनों की ही आनंद की चरम सीमा पर पंहुचने से आंखे बंद थी..

दोनों कुछ देर अपनी सांसे काबू में आने का इंतज़ार करते रहे, थोड़ी देर बाद कविता ने धीरे से आंखे खोली, कामवासना के कारण गायब हो गयी उसकी मन की चेतना लौटने लगी, चुसाई के इस लम्बे थकावट भरे सेशन ने कविता को पूरी तरह थका डाला था.. थोड़े से आराम भरे अंतराल के बाद, वह उस लड़के के लंड को फिर से जागृत करना चाहती थी ताकि वह तसल्ली से अपनी चूत मरवाकर संतुष्ट हो सकें..

वह लड़का अपने सिकुड़ते लंड की तरफ देखता हुआ, जिसमे से लंड रस वीर्य की एक आध बूँद अभी भी निकल रही थी..

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वह दोनों बेड पर काफी देर तक पड़े रहे.. उनकी तंद्रा तब टूटी जब दरवाजे की घंटी बजी

घंटी की आवाज सुनते ही लड़का उछलकर खड़ा हो गया.. और अधनंगी कविता के सामने देखने लगा.. कविता भी जागृत होकर अपने कपड़े ठीक करते हुए बोली "जाकर देख, कौन है..!! और हाँ, सीधे दरवाजा मत खोल देना.. पहले खिड़की से देख की कौन है.. फिर मुझे बता"

लड़का सहमति में सिर हिलाते हुए उठा और ड्रॉइंगरूम की तरफ जाने लगा..

कविता को यह असमय रुकावट बिल्कुल पसंद नहीं आई.. वो बस अब फिर से उस लड़के का लंड तैयार करने ही जा रही थी ताकि उस जवान लड़के के साथ मस्त संभोग हो सकें.. तभी यह कमबख्त डोरबेल बज गई..!!

आपने नसीब को कोस रही कविता, बाबिल के आने का इंतज़ार कर ही रही थी की तब.. वह लड़का दौड़ा दौड़ा अंदर आया.. उसकी सांसें फूल रही थी

"दीदी.. मालकिन आ गई..!!" मारे डर के थरथराते हुए उसने कहा

"क्या??" कविता की चीख गले में ही अटक गई..!! मम्मी तो एक दिन बाद आने वाली थी.. अभी कैसे आ गई?? पर सोचने का समय नहीं था.. वह लड़का भी असमंजस में कविता की ओर देख रहा था की आगे क्या करें..

कविता तुरंत खड़ी हुई, अपने कपड़े ठीक किए, पर्स उठाया और बोली "मैं पीछे के रास्ते से निकल रही हूँ.. मेरे जाने के बाद ही दरवाजा खोलना.. और हाँ, अगर मम्मी को कुछ भी बताया तो तेरी खैर नहीं.. याद रखना!!!"

बिना उसके जवाब का इंतज़ार किए, कविता किचन की तरफ भागी और पीछे का दरवाजा खोलकर बाहर निकल गई.. चुपके से वह गराज वाले रास्ते से आगे का द्रश्य देखने लगी.. हाथ में बेग लिए रमिलाबहन दरवाजा खुलने का इंतज़ार कर रही थी.. बाबिल ने दरवाजा खोला.. रमिलाबहन ने बड़े ही स्नेह से उसके सामने देखते हुए एक मुस्कान दी.. उसके गाल पर हाथ थपथपाया और घर के अंदर प्रवेश किया.. दरवाजा बंद हो गया

कविता की बड़ी ही इच्छा थी की वह पीछे के रास्ते जाकर अंदर के माहौल को देखें.. पर किसी तरह उसने अपनी इस इच्छा को नियंत्रित किया और बाहर निकलकर अपने घर की ओर चल दी
 

vakharia

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