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Thanks a lot Ajju Landwalia bhai.. You have always been a great support.Behad shandar update he vakharia Bhai,
Mausam se bichadne ka dard piyush ko bada sata raha he.........
Renuka aur Sheela dono ko hi subodhkant ne pata liya he.............jab kabhi bhi mauka milega vo dono ko jarur chodega
Falguni ke sath subodhkant kuch apni secrete fantasy puri karna chahta he.............lekin yaha nahi videsh me...........
Keep rocking Bhai

सकी तंद्रा का भंग तब हुआ जब पीयूष का मोबाइल बजा.. स्क्रीन पर कविता का नाम था.. 




Thanks a lot Ajju bhaiBehad shandar update he vakharia Bhai,
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Keep rocking Bhai

बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है बेचारी कविता के अरमानों पर तो पानी फिर गया कविता वासना की आग में जल रही है उसने शीला से मदद मांगी है शीला ने तुरंत मदद के लिए हा बोल दिया है क्योंकि उसे भी रसिक की जरूरत शीला ने अपने खेल में कविता को मोहरा बना दिया है जिससे रसिक तक आसानी से पहुंचा जा सकता हैपिछले अपडेट में आपने पढ़ा की राजेश और फाल्गुनी, स्व.सुबोधकांत के फार्महाउस पर कैसे गुलछर्रे उड़ा रहें है.. राजेश कविता के नरम जवान गोश्त का लुत्फ उठाने से थक नहीं रहा, वहीं फाल्गुनी को भी राजेश के रूप में सुबोधकांत का पर्याय मिल गया..
चिंतित मदन अपने मित्र इंस्पेक्टर तपन को पिंटू के हमलावरों के बारे में पूछता है.. इंस्पेक्टर को अब तक कोई पुख्ता सबूत हाथ नहीं लगा था.. मदन को चिंता इस बात को लेकर थी की वह अमरीका जाने वाला था.. कहीं उसकी गैर-मौजूदगी में कुछ उंच-नीच न हो जाए.. शीला मदन को हिम्मत देती है और अमरीका जाने के लिए मना लेती है.. अब एक महीने के लिए शीला घर पर अकेली है पर इस स्वतंत्रता का कोई फायदा नहीं जब वैशाली और पिंटू पड़ोस में रह रहे हो..!! शीला को लगा की अब अपनी योजना का अमल करने का समय आ चुका है..
अब आगे..
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अपने विशाल बेड पर, पतली सी पिंक नाइटी पहने हुए कविता हुस्न के जलवे बिखेर रही थी.. पहले के मुकाबले, कविता का बदन अब मांसल हो चुका था.. एशोआराम की ज़िंदगी व्यतीत कर रही कविता के नाजुक बदन के खास हिस्सों पर चर्बी की एक परत चढ़ गई थी.. और वह उसे और भी खूबसूरत बना रही थी
वह अपने मोबाइल के स्क्रीन पर उँगलियाँ फेरते हुए इंस्टाग्राम पर रील्स देख रही थी.. और पीयूष का बिस्तर पर आने का इंतज़ार भी..एक महीने से लंबा अरसा बीत चुका था जब वह दोनों हम-बिस्तर हुए थे.. काफी दिनों से अपनी जिस्म की आग को दबाकर बैठी कविता, आज अपनी मुनिया का शहद गिराने के पूरे मूड में थी..
खाना खाकर, बाथरूम मे शावर लेने गए पीयूष का इंतज़ार कर रही कविता की आँखें तब चमक उठी, जब अंदर से आ रही शावर की आवाज बंद हो गई.. अब तौलिया लपेटकर वह बाहर आएगा.. और जैसे ही वो बिस्तर पर बैठेगा, वो उसके शरीर से लिपट जाएगी.. ऐसे सुहाने ख्वाब देखते हुए कविता अपनी नाइटी से दिख रहे उरोजों को और उकसाकर बाहर दिखाने लगी..
जैसी उसकी अपेक्षा थी, बिल्कुल वैसा ही हुआ.. पीयूष तौलिया लपेटकर बाहर आया.. लेकिन बिस्तर की तरफ जाने के बदले, उसने वॉर्डरोब खोला और अंदर से एक टी-शर्ट और शॉर्ट्स निकालकर पहन ली.. फिर बगल में पड़ी बेग से अपना लेपटॉप बाहर निकाला और उसे गोद मे लेकर पालती मार कर बिस्तर पर बैठ गया..
मचलती हुई कविता धीरे धीरे सरककर उसके करीब आई.. लेपटॉप के स्क्रीन में खोए हुए पीयूष की गर्दन को हल्के से चूमकर उसने उसके कानों को पीछे से चाटना शुरू कर दिया
पीयूष ने बिना अपनी नजर हटाए कहा "क्या कर रही है यार.. !!! गुदगुदी हो रही है.. प्लीज मत कर!!"
उसकी बात को अनसुना कर कविता ने अपनी एक हथेली पीयूष के टी-शर्ट के अंदर डाल दी.. और उसकी छाती को सहलाने लगी.. पीयूष की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई.. कविता ने अपनी हथेली टी-शर्ट से खींच ली.. अब उसका निशाना पीयूष की शॉर्ट्स में छुपे हुए उसके हथियार पर था..
शॉर्ट्स के ऊपर से ही उसने अपनी हथेली से टटोलकर उसके लंड को खोजने की कोशिश की जो फिलहाल सुस्त पड़ा हुआ था.. शॉर्ट्स के पतले कपड़े के ऊपर से उसने लंड को मुट्ठी में भरना चाहा और उसकी इस हरकत से पीयूष को टाइप करने में दिक्कत आने लगी
पीयूष ने परेशान होकर कहा "यार, प्लीज.. मुझे अपना काम करने देगी.. !!"
कविता ने मुस्कुरा कहा "तो पूरा दिन ऑफिस में क्या किया??"
पीयूष: "तुझे तो पता है कविता.. दिन के बारह घंटे, मैं बिना रुके काम करता रहता हूँ.. !!"
कविता: "तो फिर घर आकर भी काम करने की जरूरत क्यों पड़ती है?"
पीयूष: "अरे यार.. वह अमरीकन कंपनी वालों की सारी माथापच्ची रात को ही शुरू होती है.. तब उनका दिन जो होता है"
कविता: "तो कह दे उनको की मेरी भी पर्सनल लाइफ है.. अगर उनको काम हो तो वह तेरे टाइम पर तुझे कॉन्टेक्ट करें"
पीयूष: "ऐसा नहीं होता यार.. पता है..!! कितने पापड़ बेलने के बाद यह ऑर्डर मिला है..!! उसका पहला चरण तब शुरू होगा जब मैं और मदन भैया वहाँ जाएंगे.. उससे पहले बहोत सारी तैयारियां करनी है मुझे.. !!"
कविता अब रूठ गई और बोली "ऐसा भी क्या काम जो बीवी के लिए एक घंटे की फुरसत ना मिलें.. !!"
पीयूष: "बेकार की बात मत कर कविता.. कल रात ही तो हम डिनर पर बाहर गए थे.. और पिछले रविवार शॉपिंग पर भी तो लेकर गया था तुम्हें"
कविता: "मतलब पत्नी को खाना खिला दो और शॉपिंग करा दो.. तो हो गई तुम्हारी जिम्मेदारी पूरी??"
पीयूष: "यार तू गलत मतलब मत निकाल.. !!"
कविता: "तो क्या करूँ पीयूष.. !! दिन भर तू काम में इतना मशरूफ़ होता है की मुझसे फोन पर बात करने का टाइम भी नहीं होता.. देर रात घर पर आता है और खाना खाने के बाद तेरी हालत ऐसी हो जाती है की मुझे देखकर ही तरस आता है..!! सुबह उठकर वापिस वही रूटीन.. नाश्ता किया और ऑफिस को निकल गए..!! पहले तो रविवार के दिन तू थोड़ा फ्री रहता था.. लेकिन अब तो संडे को भी आधा दिन ऑफिस में होता है..मेरे लिए वक्त कब निकालेगा..!!"
पीयूष: "तो यह सब मैं किसके लिए कर रहा हूँ?"
कविता: "मैंने तो नहीं कहा था तुझे यह सब करने के लिए.. !!"
यह शब्द किसी भी महेनती पति का दिल तोड़ने के लिए काफी हैं.. उसकी मेहनत, त्याग और उसके समर्पण पर प्रश्नचिह्न लगना उसके लिए गहरी पीड़ा का कारण बनता है..
अगर पति पर्याप्त कमाई नहीं करता है, तो उसे अपनी आर्थिक असमर्थता के लिए बीवी ताने मारती हैं.. अगर वह दिन-रात मेहनत करता है ताकि अपने परिवार को वह सब दे सके जो उनसे अपेक्षित है, तो यह कहा जाता है कि उसके पास अपनी पत्नी को देने के लिए समय नहीं है.. यह स्थिति पुरुष के लिए मानसिक और भावनात्मक रूप से बड़ी ही कठिन हो जाती है..
इस स्थिति में, यह आवश्यक है कि पति-पत्नी एक-दूसरे की भूमिका, मेहनत और भावनाओं को समझें.. यह समझना जरूरी है कि रिश्ते को बनाए रखने के लिए सिर्फ आर्थिक स्थिरता ही नहीं, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव और एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति भी जरूरी है..
पति को चाहिए कि वह अपनी दिनचर्या में संतुलन बनाए और अपनी पत्नी के लिए समय निकाले.. वहीं पत्नी को भी पति के प्रयासों को सराहना चाहिए और उसके प्रति सम्मान और समझ का भाव रखना चाहिए.. तभी दोनों के बीच एक सशक्त और संतुलित रिश्ता कायम रह सकता है
गुस्से में आकर पीयूष ने अपना लेपटॉप साइड मे रख दिया
पीयूष: "तो क्या करूँ? बिजनेस बंद कर दूँ और पूरा दिन तेरे सामने बैठा रहूँ??"
कविता: "मैंने ऐसा तो नहीं कहा"
पीयूष ने अपना माथा पीटते हुए गुस्से से कहा "तो क्या चाहती है तू??"
पीयूष का रौद्र स्वरूप देखकर, एक पल के लिए सहम गई कविता..!!
फिर उसने हिम्मत जुटाते हुए कहा "बस थोड़ा सा वक्त बीता मेरे साथ.. मेरे भी अरमान है.. मेरी भी तो जरूरतें है.. पहले तो हमारी हर रात कितनी रंगीन होती थी.. !! जॉब से आकर बस सिर्फ तुम मेरे होकर रहते थे.. देर रात तक हमारी मस्तियाँ चलती रहती थी.. कितना मज़ा आता था.. !!" कहते हुए कविता पीयूष के गाल को चाटते हुए उसके लंड को सहलाने लगी.. पीयूष का जिस्म भी अब प्रतिक्रिया दे रहा था.. उसका सुस्त लंड धीरे धीरे रक्त से भरने लगा था.. !!
तभी पीयूष के मोबाइल की रिंग बजी..पीयूष बात करते हुए कमरे से बाहर निकल गया.. करीब पाँच मिनट बाद जब वह लौटा तब कविता को लगा की जहां दोनों ने फॉरप्ले छोड़ा था वहीं से शुरुआत करेंगे
लेकिन पीयूष ने आकर कहा "क्लाइंट का फोन था.. अभी उनकी सारी लोकेशन के लोग ऑनलाइन है और वह लोग विडिओ कॉल पर बातचीत करना चाहते है.. मैं बगल वाले कमरे मे जाता हूँ.. तू सो जा.. कॉल लंबा चलेगा और मुझे देर हो जाएगी" कहते हुए उसने लेपटॉप उठाया और बिना कविता की तरफ देखें, कमरे का दरवाजा बंद करता हुआ चला गया
स्तब्ध हो गई कविता..!! कितनी मशक्कत के बाद पीयूष वापिस लाइन पर आया था और उसे समय देने लगा था..सब ठीक चल रहा था की तभी यह अमरीकन कंपनी का ऑर्डर आते ही पीयूष वापिस बिजी हो गया..!! काफी समय से जिस्म की आग से झुलस रही कविता, आज पूरा मन बनाकर तैयार बैठी थी की किसी भी तरह पीयूष को पटाएगी और अपनी भूख शांत करेगी.. लेकिन किस्मत को यह मंजूर न था.. जिस बेरुखी से पीयूष ने उसे सो जाने के लिए कहा.. उससे यह साफ प्रतीत हो रहा था की आज रात तो कुछ होने वाला नहीं है..
एक गहरी सांस छोड़कर कविता करवट बदलकर सोने की कोशिश करने लगी.. हवस की आग में जल रहे शरीर को समझाने की नाकाम कोशिश करते हुए वह सोच रही थी.. की शीला भाभी जो भी कर रही थी वह सही था.. जब पति के पास समय न हो या तो वो लंबे अरसे के लिए मौजूद न हो तब पत्नियों को वफादारी का चोला त्याग कर खुद का कोई जुगाड़ तलाशना ही चाहिए.. !!
कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा.. सोच रही थी कविता.. और जो कुछ भी करना था उसमें शीला भाभी के अलावा और कोई उसकी मदद न कर पाता..
दूसरे दिन शीला भाभी को कॉल करने का मन बनाकर कविता सो गई..
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कुछ ही दिनों बाद, पीयूष और मदन अमरीका जाने के लिए निकले.. राजेश मदन को पीयूष के शहर तक छोड़ने भी गया.. मदन के मना करने के बावजूद.. राजेश को तो बस फाल्गुनी से मिलना था.. और उसके नशीले जिस्म का लुत्फ उठाना था..
अब शीला अकेली थी.. उसका दिमाग अब अपनी योजना को अमल में लाने के लिए मेहनत कर रहा था.. शीला सोच समझकर पासे फेंकना चाहती थी..
झूले पर बैठे बैठे सोच रही शीला का विचारभंग तब हुआ जब उसके मोबाइल की रिंग बजी
रेणुका का फोन था
शीला: "हाय मेरी जान..!! आज बड़े दिनों बाद याद किया.. !!"
रेणुका: "मैंने याद तो किया.. तू तो मुझे भूल ही गई"
शीला: "अरे नहीं यार..!! तुझे तो पता ही होगा की पिछले दिनों क्या हुआ.. पिंटू पर हमला होने के बाद लाइफ इतनी डिस्टर्ब सी रही है.. की तुझे फोन करना याद ही नहीं आया"
रेणुका: "हाँ यार.. मुझे पूरी बात बताई राजेश ने.. !! बहोत बुरा हुआ पिंटू के साथ.. फिर कुछ पता चला की कौन लोग थे वो??"
शीला: "नहीं यार.. पुलिस अब भी तहकीकात कर रही है.. !!"
रेणुका: "हम्म.. और बता..!! बाकी सब कैसा चल रहा है?? अब तो मदन भी चला गया.. तो तूने अपने पुराने यार रसिक को घर पर ही बुला लिया होगा"
शीला ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा "मेरे ऐसे नसीब कहाँ.. !! तुझे तो पता है.. पिंटू और वैशाली अब मेरे पड़ोस में ही रहते है.. उनके रहते कुछ भी कर पाना नामुमकिन सा है"
रेणुका: "हाँ यार.. पिंटू से तो तुझे संभलकर ही चलना होगा..!!"
शीला: "वही तो.. ना रसिक को घर बुला पा रही हूँ और ना ही राजेश को.. !! सोच रही थी की कुछ दिन तेरे यहाँ रहने आ जाऊँ"
रेणुका: "मुझे कोई दिक्कत नहीं है अगर तू आती है तो.. वैसे भी मेरी दुकान अभी बंद ही पड़ी है.. उसी बहाने तू और राजेश मजे कर सकोगे.. पर तू आकर करेगी भी क्या.. !!! राजेश तो हफ्ते के आधे दिन अब शहर से बाहर होता है.. पीयूष के अमरीका जाने के बाद, उसके बिजनेस का ध्यान रखने के लिए"
सुनकर शीला थोड़ी सी चोंक उठी.. पीयूष ने अपना बिजनेस राजेश को संभालने के लिए दिया है.. !! वैसे दोनों के संबंध काफी अच्छे थे पर फिर भी शीला को यह बात थोड़ी अटपटी सी जरूर लगी
शीला: "क्या बात कर रही है.. !! मतलब राजेश वहीं पड़ा रहता है क्या?"
रेणुका: "हाँ वैसा ही समझ.. हफ्ते में तीन चार दिन तो वो वहीं रहता है.. कभी रात को घर आता है तो कभी दूसरी सुबह को"
शीला: "उसकी नामौजूदगी में तुझे कुछ काम पड़े तो बेझिझक कॉल कर देना"
रेणुका: "ठीक है.. कभी फ्री हो तो शाम को चली आना.. बैठकर बातें करेंगे.. और कुछ तो फिलहाल हो नहीं सकता.. !!"
शीला: "ओके.. रखती हूँ फोन"
फोन काटकर शीला सोच में डूब गई.. पीयूष की गैरमौजूदगी में राजेश वहाँ जाकर उसका बिजनेस संभालता है.. यह बात उसे कुछ हजम नहीं हो रही थी..
शीला उठकर अंदर चली आई.. टीवी पर बेकार सी कोई सीरियल देखते हुए वो समय बीता रही थी..
तभी शीला का फोन एक बार और बजा.. इस बार कविता का फोन था
कविता: "कैसी हो भाभी?"
शीला: "अरे वाह कविता.. बड़े दिनों बाद याद किया"
कविता: "अब काम ही कुछ ऐसा है की आपके अलावा और कोई मदद नहीं कर सकता.. इसलिए आपको याद करना पड़ा"
शीला का दिमाग चाचा चौधरी की तरह चलने लगा.. जो योजना वह सोच रही थी उसमें कविता का किरदार काफी महत्वपूर्ण था
शीला ने हँसकर कहा "तेरे लिए तो मैं हमेशा हाजिर हूँ.. बता क्या प्रॉब्लेम है?"
कविता ने अपनी कहानी सुनाई.. पीयूष की बेरुखी.. उसका समय न दे पाना.. शारीरिक संबंध के प्रति निरुत्साह..!!
शीला ने काफी देर सोचकर कहा "समझ गई मैं.. पिछली बार के बाद मुझे लगा था की पीयूष सुधर जाएगा.. खैर.. बता कैसे मदद करूँ तेरी?"
कविता: "भाभी, बहोत मन हो रहा है.. एक बार फिर रसिक के खेत पर जाना है.. आप यहाँ आइए न.. फिर हम दोनों साथ चलेंगे"
सोच में पड़ गई शीला.. !! पिंटू पर हमले के बाद जब उसने रसिक पर गलत इल्जाम लगाया था तब से रसिक उससे नाराज चल रहा था.. ऐसी सूरत में वो कैसे उसे मनाएगी?? पर कविता के पीछे लट्टू रसिक मान जाएगा उसमें भी कोई शक नहीं था
शीला: "ठीक है कविता.. जाएंगे हम दोनों.. मैं जल्द ही कुछ प्लान करती हूँ"
कविता: "ऐसा नहीं भाभी.. आप आज ही निकलकर आ जाइए.. मुझसे अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा"
शीला: "यार, अभी शाम हो रही है.. निकलते निकलते रात हो जाएगी.. और रात को सब लोकल बसें ही मिलती है.. जो मुझे सुबह पहुंचाएगी"
कविता: "वो मैं कुछ नहीं जानती भाभी.. आप कुछ भी करो पर आज रात को निकलो"
शीला ने सोचा, अगर कविता से काम निकलवाना हो तो उसे अभी अपने उपकार के बोझ तले दबाना होगा..
शीला: "ठीक है बाबा.. तेरा काम हो और मैं मना करूँ ऐसा कभी हो सकता है क्या? मैं रात की बस लेकर सुबह तक पहुँच जाऊँगी.. पर याद रखना कविता.. मैं तेरा यह काम कर रही हूँ तो तुझे भी मेरा एक काम करना होगा"
कविता: "कौन सा काम भाभी?"
शीला: "वो सब कल आकर बताऊँगी.. अभी फोन रख.. मुझे घर के काम भी निपटाने है और फिर पेकिंग करके बस अड्डे भी पहुंचना है"
कविता: "ठीक है भाभी.. जल्दी आइएगा.. मैं इंतज़ार करूंगी"
शीला ने फोन रख दिया..
फटाफट खाना बनाया और खाकर तैयार होने लगी.. कितने दिन रहना पड़ेगा उसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल था.. फिर भी उसने तीन दिनों के लिए पेकिंग कर दी
वैशाली को उसने बताया की वह कुछ दिनों के लिए कविता के घर जा रही है.. बाहर आकर उसने ऑटो पकड़ी और बस-स्टेशन पहुँच गई.. बस का रेज़र्वैशन करने के बाद, वो बस में पहुँची तो उसने देखा की उसकी सीट काफी पीछे थी और उस सीट के पीछे सिर्फ़ एक ही कतार और थी.. उसके पास एक अधेड़ उम्र की औरत बैठी हुई थी.. उम्र कोई साठ के करीब थी.. शीला ने सीट बदलने के लिये कंडक्टर से काफी मशक्कत की मगर उसे वही सीट पर बैठना पड़ा.. शीला उसके पास जाकर बैठ गई.. खिड़की के पास वाली सीट भी नहीं मिली.. अच्छा हुआ सिर्फ़ पतली वाली साड़ी ही पहन कर आ गई, उसने सोचा, नहीं तो तो गर्मी से दम निकल जाता..
कविता को लेकर रसिक के खेत पर जाने के बारे में सोचकर ही वो मस्तिया रही थी.. उसकी चूत और गाँड रसिक का लंड खाने के लिये बिल्कुल तैयार थी.. बस चल चुकी थी.. करीब एक घंटे बाद बस रुकी थी चाय नाश्ते के लिये और फिर पंद्रह-बीस मिनट में चल दी..
अगला रोमांचक अपडेट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
प्रिय पाठक मित्रों..
नमस्कार,
जैसा कि सभी को फोरम एडमिन्स की सूचना से ज्ञात होगा, हाल ही में सर्वर में आई तकनीकी समस्या के कारण 27/05/25 से 31/05/25 के बीच की गई सभी पोस्ट्स और अपडेट्स डिलीट हो गई। दुर्भाग्यवश, इसी अवधि में मैंने अपनी कहानी का एक नया अपडेट साझा किया था, जो अब डाटा रिकवरी के दौरान खो गया है।
इसलिए, मैं अपनी कहानी का वही अपडेट पुनः पोस्ट कर रहा हूँ, ताकि पाठकों को किसी भी महत्वपूर्ण हिस्से की कमी न महसूस हो। आशा है कि आप सभी इसे फिर से पढ़ेंगे और अपनी प्रतिक्रियाएँ साझा करेंगे।
आप सभी की समझदारी और समर्थन के लिए धन्यवाद।
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पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की..
पीयूष और मदन अमरीका से लौट आए.. कविता ने शीला को यह खुशखबरी दी की उसने पीयूष को पिंटू की नौकरी के लिए मना लिया है.. शीला ने तुरंत राजेश को इस बारे में जानकारी दी.. पहले तो राजेश पिंटू को छोड़ने के लिए हिचकिचा रहा था पर शीला के मनाने पर मान गया.. शीला ने पिंटू को भी इस बात के लिए मना लिया..
इस नए बदलाव से खुश शीला, मदन के साथ जबरदस्त संभोग कर अपनी विजय का खुशी मनाती है..
कुछ दिनों बाद.. अपने बेडरूम में, शीला और राजेश की घनघोर चुदाई देख रहे मदन को अब यह सब नीरस लग रहा था.. वह राजेश को अपने लिए कुछ नया बंदोबस्त करने को कहता है.. राजेश उसे फाल्गुनी के बारे में बताता है.. और वादा करता है की वह जल्द ही फाल्गुनी को मना लेगा..
राजेश फाल्गुनी से मदन के बारे में बताता है.. फाल्गुनी पहले तो यह सुनकर ही हिल जाती है.. पर राजेश के मनाने के बाद उसके विचार भी परिवर्तित होने लगते है..
अब आगे..
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पीयूष अपनी केबिन में बैठे हुए कंप्यूटर पर उलझा हुआ था.. पास में पड़ी कॉफी ठंडी हो चुकी थी.. कपाल पर बनी शिकन साफ बता रही थी की पीयूष काफी टेंशन में था..
तभी उसकी केबिन में वैशाली की एंट्री हुई.. कुछ पल के लिए तो पीयूष को उसके आने की भनक ही नहीं लगी.. इतना घुसा हुआ था वह अपने काम में
वैशाली ने अपने मंजुल स्वर में कहा "पीयूष सर"
पीयूष ने कंप्यूटर स्क्रीन से अपनी आँख फेरी और वैशाली की तरफ देखा.. टाइट टी-शर्ट और ब्लू जीन्स पहनी वैशाली का मांसल बदन दिखते ही पीयूष का सारा टेंशन गायब हो गया
उसने मुस्कुराकर वैशाली को कहा "वैशाली, कितनी बार कहा है मैंने तुम्हें.. सर कहकर मत बुलाया करो.. बड़ा अटपटा सा लगता है मुझे.. आखिर हम बचपन के दोस्त है..!!"
वैशाली ने एक स्माइल दी और पीयूष की सामने वाली कुर्सी पर बैठते हुए बोली "पर हो तो मेरे बॉस.. अब बॉस को सर कहकर नहीं बुलाऊँगी तो क्या कहूँगी..!!"
पीयूष: "जैसे हमेशा से बुलाती थी.. सिर्फ मेरे नाम से.. प्लीज तुम मुझे सर मत कहा करो.. रीक्वेस्ट है मेरी"
वैशाली: "ओके पीयूष.. यह वर्मा टेक्सटाइल्स वाला लेटर मैंने तैयार कर दिया है.. तुम्हारे दस्तखत चाहिए" कहते हुए वैशाली खड़ी हो गई और फ़ाइल से वह कागज निकालकर पीयूष के सामने रखा.. झुकने के कारण.. उसके दोनों मांसल स्तनों के बीच की दरार साफ नजर आ रही थी.. पीयूष की नजर वहीं चिपक गई.. वैशाली के स्तन थे ही ऐसे.. वैसे तो वो वैशाली को कई बार नंगे बदन देख चुका था.. भोग चुका था.. पर उस बात को काफी साल बीत चुके थे..
पीयूष की नजर कहाँ थी वो वैशाली के ध्यान में आ गया.. वो मुस्कुराई और पीयूष को पेन थमाते हुए साइन करने का इशारा किया.. पीयूष तुरंत सचेत हो गया और उसने अपनी नजरें फेर ली.. और दस्तखत करके कागज वैशाली को वापिस दिया.. वैशाली मुड़ी और अपने कूल्हें मटकाती हुई केबिन से बाहर जाने लगी.. टाइट जीन्स के अंदर मटक रही उसकी मस्त गांड को पीयूष अंत तक देखता रहा..
सकी तंद्रा का भंग तब हुआ जब पीयूष का मोबाइल बजा.. स्क्रीन पर कविता का नाम था..
पीयूष ने फोन उठाया
पीयूष: "हाँ बोल कविता"
कविता: "क्या कर रहे हो पीयूष?"
पीयूष: "यह कैसा सवाल है यार? ऑफिस हूँ तो जाहीर सी बात है की काम कर रहा हूँ"
कविता: "यार.. तुम छोटी छोटी बातों में भड़क क्यों जाते हो?"
पीयूष: "कहाँ भड़क रहा हूँ यार.. !!! बता, फोन क्यों किया था?"
कविता: "सोच रही थी आज शाम उस नई रेस्टोरेंट में डिनर के लिए चलें? मेक्सिकन खाना खाए हुए अरसा हो गया.. और फिर मूवी देखने चलेंगे"
पीयूष: 'कविता.. तुझे पता तो है.. मेरे पास सांस लेने की फुरसत नहीं है अभी..!!"
कविता: "तो मैं भी अभी जाने के लिए कहाँ कह रही हूँ? रात को जाना है.. तुम्हारे ऑफिस से लौटने के बाद"
पीयूष: "आज पोसीबल नहीं है"
कविता: "तो कल चलें?"
पीयूष: "कल रात को मेरी टीम्स-मीटिंग है उस अमरीकन क्लायंट के साथ..!!"
कविता परेशान होकर बोली "तो कब चलेंगे?? तुम ही बताओ"
पीयूष: "यह मैं कैसे बताऊँ? मुझे भी पता नहीं होता की कब कौनसा काम आ जाएँ"
कविता: "तो तुम मेरे लिए वक्त कब निकालोगे? मैं क्या रोज तुम्हारा इंतज़ार ही करती रहूँ?? पूरा दिन घर पर बैठे ऊब जाती हूँ मैं.. न कहीं आना जाना और ना किसी से मिलना.. बदतर हो गई है मेरी ज़िंदगी"
पीयूष: "तो यह सब मैं किस लिए कर रहा हूँ?? तुम्हारे लिए ही ना..!! ये ऐशों-आराम की ज़िंदगी.. ये अमीरियत ऐसे ही नहीं मिलती"
कविता: "तुम शायद भूल रहे हो की यह बिजनेस पहले पापा भी चलाते थे.. उन्हे तो कभी दिक्कत नहीं हुई फेमिली के लिए वक्त निकालने में"
तभी पीयूष की केबिन में दो कर्मचारी आए जिन्हे पीयूष ने मीटिंग के लिए बुलाया था.. उनकी मौजूदगी में वह कविता के साथ ज्यादा बहस करना नहीं चाहता था..
पीयूष: "यार तुम्हें जो मर्जी आए करो.. पर मुझे बख्श दो.. सोफ़े पर पैर फैलाकर बैठने जितनी आसान नहीं है मेरी ज़िंदगी..ढेर सारे काम है मुझे" कहकर पीयूष ने फोन काट दिया और अपने काम में मशरूफ़ हो गया
इस तरफ, पीयूष के इस बेरूखे जवाब से कविता की आँखों में आँसू आ गए.. पीयूष के संग एक अच्छा समय बिताएं बड़ा लंबा अरसा हो गया था.. वह तो सोच रही थी की डिनर और मूवी के प्रस्ताव से पीयूष खुशी से उछल पड़ेगा और आज की रात बड़ी ही अच्छी गुजरेगी.. कविता के न मन को चैन था और न ही उसके शरीर को संतुष्टि..!!
कविता का दिमाग खराब हो रहा था.. इससे पहले की वो कुछ उल्टा सीधा कर बैठती.. अपने आप को शांत करने के लिए वह बाथरूम में स्नान करने के इरादे से घुस गई.. उस आलीशान गुसलखाने की दीवार पर आदमकद के आईने जड़े हुए थे.. ताकि नहा रहा व्यक्ति अपने नग्न शरीर के हर कोने को बखूबी देख सकें.. शुरुआती समय में कविता ने पीयूष के साथ कई बार यहीं पर शॉवर-सेक्स का आनंद लिया था.. आइनों की वजह से ऐसा प्रतीत होता जैसे उनके आसपास कई नंगे स्त्री-पुरुष उनके साथ ही संभोग कर रहे हो..
एक के बाद एक कविता ने अपने सारे वस्त्र उतार दिए.. कमर से अपनी छोटी सी सफेद पेन्टी उतारते ही वह सम्पूर्ण नग्न हो गई.. आईने में अपने सेक्सी बदन को देखकर वह सोच रही थी की ऐसी कौन सी कमी थी उसमें जो पीयूष को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पा रहा था..!! सुंदर गौरवर्ण चेहरा.. तीखे नयन-नक्श.. सुराहीदार गर्दन.. पहले के मुकाबले थोड़े बड़े हो चुके टाइट स्तन.. पतली कमर.. क्लीन शेव चूत.. सुंदर जांघें.. कुल मिलाकर ऐसा शरीर था जिसे पाने के लिए मर्दों की लाइन लग जाएँ.. पर यह बदन जिसे समर्पित होकर संभोगरत होना चाहता था, उसके पास तो समय ही नहीं था..!!
कविता ने शॉवर ऑन किया.. ठंडे पानी की फव्वारे ने पहले तो उसके जिस्म को हल्का सा झकझोर दिया.. फिर वह शीतल धाराएँ.. कविता के त्रस्त मन को धीरे धीरे शांत करने लगी.. पूरे बदन पर शॉवर-जेल लगाकर.. लूफा से रगड़ते हुए अपने समग्र शरीर को झाग से आच्छादित करने लगी.. जांघों को रगड़ते हुए जब वह लूफा उसकी चूत तक पहुंचा.. तब कविता का जिस्म सिहर उठा.. वह काफी देर तक हल्के हल्के उस फाइबर के जालीदार गुच्छे को अपने यौनांग पर घिसती रही.. उसका चेहरा ऊपर की ओर उठा हुआ था और आँखें बंद थी.. पानी का अभिषेक निरंतर उसके चेहरे पर पड़ रहा था.. दूसरी हथेली से वह अपने नुकीले निप्पल वाले स्तन के अग्र भाग को चिकोटी में भरकर मसलने लगी.. रगड़न से उसकी प्यास तृप्त होने के बजाय और भड़क गई..
कविता ने शॉवर बंद किया.. उसकी नजरें पूरे बाथरूम में यहाँ वहाँ ढूँढने लगी.. चूत में घुसेड़ने लायक उपयुक्त साधन तलाश रही थी वो.. और कुछ तो नजर नहीं आया तब उसकी नजर टूथब्रश पर पड़ी.. ब्रश को हाथ में लेकर उसके पीछे वाला हिस्सा.. उसने अपनी संकरी सी चूत के अंदर डाल दिया.. और धीरे धीरे अंदर बाहर करने लगी..
इस क्रिया में उसे इतना मज़ा आ रहा था की उत्तेजना के मारे पैर डगमगाने लगे.. इससे पहले की वह अपना संतुलन खो बैठती.. वह अपने स्तनों को दीवार पर रगड़ते हुए, जिस्म का सारा भार डालकर, पानी भरे बाथटब में लेट गई और बेतहाशा अपनी चूत के छेद में उस टूथब्रश को अंदर बाहर करने लगी..
ब्रश के अंदर बाहर होने की गति अत्यंत तेज हो गई.. और कविता एक हल्की कराह के साथ झड़ गई.. क्लाइमैक्स इतना जबरदस्त था की उसकी आँखों के सामने एक पल के लिए अंधेरा छा गया.. थककर वह बाथटब पर सिर टिकाकर लेटी रही.. कितनी देर तक वह उसी अवस्था में पड़ी रही उसका उसे भी पता नहीं चला
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पिंटू: "यार, इतनी आवाज मत करो.. कोई सुन लेगा"
बिस्तर पर वैशाली का नंगा मांसल जिस्म फैला हुआ था.. उसके दोनों भारी स्तन, छाती के दोनों तरफ झूल रहे थे.. वैशाली के स्तनों का परिघ इतना विशाल था की पिंटू की दो हथेलियाँ भी एक स्तन को ठीक से ढँक नहीं पाती थी.. उसके बादामी रंग के ऐरोला पर उभरी हुई निप्पलें, उत्तेजना के कारण तनकर सख्त हो चुकी थी.. घुटनों से मुड़ी हुई टांगें फैलाकर, वैशाली अपनी गीली चूत खोलकर लेटी हुई थी.. उसकी गुलाबी चूत की चिपचिपी परतें खुली हुई थी.. अंदर पिंटू अपना लंड घुसाकर धक्के लगा रहा था
पीयूष की ऑफिस में शिफ्ट होने के बाद, पिंटू अपने माता पिता के साथ ही रहता था.. हालांकि उनका अलग से कमरा था पर फिर भी चुदाई के दौरान वैशाली इतनी जोर जोर से सिसकियाँ लेती थी की पिंटू को डर लगता था की उसकी आवाज कमरे से बाहर न चली जाएँ..
हर मध्यम वर्ग के परिवार में रहते पति-पत्नी की समस्या..!! मध्यम वर्गीय परिवारों के जीवन में छोटे घर एक सामान्य सच्चाई है.. इन घरों में सीमित जगह होने के कारण परिवार के सभी सदस्यों को एक-दूसरे के करीब रहना पड़ता है.. नवविवाहित जोड़ों को भले ही एक अलग बेडरूम मिल जाता है, लेकिन उनके मन में हमेशा यह डर बना रहता है कि संभोग के दौरान उनकी आवाज़ें, कराहने या अन्य शारीरिक ध्वनियाँ परिवार के अन्य सदस्यों तक पहुँच सकती हैं.. यह चिंता उनके निजी जीवन में असहजता और तनाव का कारण बनती है..
इस स्थिति का सामना करने के लिए जोड़े अक्सर कुछ उपाय अपनाते हैं.. उदाहरण के तौर पर, वे संभोग के दौरान संगीत चलाकर या टीवी की आवाज़ बढ़ाकर उनकी संभोग से उत्पन्न होती ध्वनियों को दबाने की कोशिश करते हैं.. कुछ जोड़े इस बात का ध्यान रखते हैं कि वे ऐसा समय चुनें जब घर के अन्य सदस्य सो रहे हों या घर पर न हों.. हालाँकि, ये उपाय अस्थायी समाधान होते हैं और इस समस्या का मूल कारण, यानी छोटे घर और निजी जगह की कमी, बना रहता है..
इस तरह की चिंता न केवल जोड़े के शारीरिक संबंधों को प्रभावित करती है, बल्कि उनके मानसिक सुकून को भी कम करती है.. वे हमेशा इस डर में जीते हैं कि उनकी निजता भंग हो सकती है, जिससे उनके रिश्ते में तनाव पैदा हो सकता है.. इस समस्या का समाधान करने के लिए परिवार के अन्य सदस्यों का संवेदनशील होना भी जरूरी है.. उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि नवविवाहित जोड़े को अपने निजी जीवन के लिए पर्याप्त जगह और स्वतंत्रता मिले..
वैशाली, अपनी माँ शीला की तरह, संभोग के दौरान, बिल्कुल भी चुप नहीं रह सकती थी.. अपनी उत्तेजना को वो भिन्न भिन्न आवाजों से व्यक्त करने की आदि थी.. चुपचाप संभोग करना उसे ऐसे ही लगता था जैसे प्लास्टिक की पन्नी में डालकर रसगुल्ले को बाहर से चूसना.. क्रिया तो हो जाती है पर मज़ा नहीं आता..!! उत्तेजित होने पर वह बेहद सिसकती और उसकी कराहें काफी ऊंची रहती थी..
पिंटू के लाख मना करने पर भी वैशाली अपने आप को रोक नहीं पाती थी और जोर जोर से "आह-आह" की आवाज़ें निकाल रही थी.. आखिर पिंटू ने उसके मुंह पर अपनी हथेली रख दी और जोर जोर से धक्के लगाने लगा.. उसका ध्यान अब संभोग पर कम और वैशाली की आवाज को रोकने पर ज्यादा था.. इसी तनाव के बीच वैशाली ने महसूस किया की पिंटू का लंड उसकी चूत के अंदर धीरे धीरे सिकुड़ रहा था.. वह आश्चर्य से पिंटू की आँखों में आँखें डालकर देख रही थी.. जैसे पूछ रही हो की आखिर उसका लंड, चुदाई के बीच ही ढीला क्यों पड़ रहा था..!!
कुछ ही देर के बाद लंड इस हद तक पिचक गया की वैशाली की गरम चूत से बाहर निकल गया.. हारकर पिंटू उसकी बगल में लेट गया.. और अपने लंड को हिलाकर जगाने की कोशिश करने लगा.. जब काफी देर तक हिलाने पर भी लंड ने सख्त होने के कोई संकेत नहीं दिए.. तब वैशाली उठी और उसने पिंटू का लंड अपने मुंह में ले लिया.. पाँच मिनट तक चूसने के बावजूद लंड ने कोई हरकत नहीं दिखाई.. वैशाली का जबड़ा दुखने लगा और वह थककर वापिस बिस्तर पर लेट गई..!!!!
संभोग के दौरान कभी-कभी पुरुषों को इरेक्शन खोने की समस्या का सामना करना पड़ सकता है.. यह स्थिति कई कारणों से हो सकती है, जैसे कि तनाव, चिंता, शारीरिक थकान, मानसिक दबाव, या शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ.. कई बार अत्यधिक शराब या नशीले पदार्थों के सेवन से भी यह समस्या उत्पन्न हो सकती है.. इसके अलावा, रिश्ते में तनाव या भावनात्मक दूरी भी इसका एक प्रमुख कारण हो सकती है..
जब ऐसा होता है, तो पुरुष अक्सर शर्मिंदगी या असुरक्षा महसूस करते हैं, जो उनकी समस्या को और बढ़ा सकता है.. यह जरूरी है कि इस स्थिति को समझा जाए और इसे एक सामान्य समस्या के रूप में लिया जाए.. साथी का सहयोग और समर्थन इस स्थिति को संभालने में बहुत महत्वपूर्ण होता है.. खुलकर बातचीत करने और एक-दूसरे की भावनाओं को समझने से इस समस्या को कम किया जा सकता है..
बेहद उदास मन से पिंटू मुंह लटकाए तकिये पर लेटा रहा.. वैशाली उसके करीब आई और उसके कंधे पर सर रखकर बोली
वैशाली: "टेंशन मत ले यार.. होता है ऐसा कई बार"
पिंटू: "वैशाली, तुम्हारी आवाज को रोकने के चक्कर में मेरा ध्यान भटक गया.. तुम आवाज बंद क्यों नहीं रख सकती?? हर बार मुझे यही डर लगा रहता है की कहीं मम्मी पापा सुन न ले"
वैशाली: "यार, मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ.. मुझसे नहीं होता तो मैं क्या करूँ?? और मम्मी पापा एकाद बाद सुन भी लेंगे तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा..!! हम कानूनन पति-पत्नी है और हर कोई जानता है की शादी-शुदा जोड़ों के बेडरूम में इस वक्त क्या हो रहा होगा..!!"
पिंटू भड़क गया और बोला "कैसी बात कर रही हो तुम? मम्मी-पापा सुन लेंगे तो क्या अच्छा लगेगा?"
वैशाली को भी गुस्सा आ गया.. वह बोली "तो क्या करूँ मैं?? करते वक्त मुंह पर पट्टी बांध लूँ?"
पिंटू: "जान, मैंने ऐसा कब कहा..!!! बस थोड़ी सी आवाज नीची रखने की कोशिश करो"
वैशाली: "मैं कोशिश तो कर रही हूँ न.. पर पता नहीं, एक बार एक्साइट होने के बाद मुझसे कंट्रोल ही नहीं होता"
पिंटू: "सीखना पड़ेगा तुम्हें.. पहले की बात और थी.. तब हम अलग घर में रहते थे इसलिए ऐसी कोई दिक्कत नहीं थी.. अब हम साथ रहते है तो हमें संभलना पड़ेगा"
वैशाली: "तो हम यहाँ भी तो अलग घर लेकर रह ही सकते है"
पिंटू परेशान होकर बोला "और फिर मम्मी पापा से क्या कहूँ..!!! एक ही शहर में हम अलग रहेंगे..!! और वो भी इतनी छोटी सी बात के लिए..!!"
हतप्रभ हो गई वैशाली.. पिंटू की इस असंवेदनशीलता पर उसे बेहद गुस्सा आ रहा था
वैशाली: "तुम्हारे लिए यह छोटी बात होगी.. क्या पति होने के नाते यह तुम्हारी ज़िम्मेदारी नहीं है की तुम मुझे खुश रखो?"
पिंटू: "तो कौनसी कमी छोड़ी है मैंने तुम्हें खुश रखने की..!! हर संभव कोशिश करता हूँ.. और फिर भी अगर तुम खुश नहीं हो तो मैं कुछ नहीं कर सकता"
उलटी दिशा में करवट लेकर पिंटू सो गया.. कुछ ही मिनटों में उसके खर्राटे सुनाई देने लगे.. हताश होकर वस्त्र-विहीन अवस्था में वैशाली लंबी लंबी सांसें लेने लगी.. उसकी चूत का तवा बेहद गरम था और वो चरमसुख के लिए तड़प रही थी.. उसे तृप्त करने की जिम्मेदारी जिसकी थी वह तो सो चुका था.. इसलिए वैशाली ने मामला अपने हाथों में लेने का निश्चय किया..
चिपचिपे रस से चू रही उसकी चूत के ऊपर दाने को वह रगड़ने लगी.. और दूसरे हाथ की एक उंगली चूत के अंदर बाहर करने लगी.. उसका चेहरा उत्तेजनावश लाल लाल हो रहा था.. वह बड़ी ही क्रूरता से अपनी क्लिटोरिस को घिसे जा रही थी.. अब उसने चूत में एक के बदले दो उँगलियाँ पेल दी थी.. और वह सिसक भी रही थी.. आवाज बाहर जाने की उसे बिल्कुल भी परवाह नहीं थी.. वह तो बस अपने चरमोत्कर्ष की ओर अग्रेसर होकर प्यास बुझाने की जद्दोजहत कर रही थी..
उसकी निप्पलें अपनी अवहेलना बर्दाश्त नहीं कर पाई.. दोनों स्तन ऐसे मचल रहे थे जैसे मसले जाने के लिए बेकरार हो.. अपनी चूत से उँगलियाँ निकालकर वैशाली अपने चरबीदार गोल गोल स्तनों को मसलना शुरू कर दिया.. उसकी दूसरी हथेली उसके भागोष्ठ को समझाने में मशरूफ़ थी..
उसका पूरा शरीर कांप रहा था.. कमर को मोड़ते हुए उसने अपने शरीर के निचले हिस्से को बिस्तर से उठा रखा था.. वह अपनी मंजिल के बेहद करीब थी.. उसकी चूत की मांसपेशियाँ संकुचित होकर द्रवित होने के लीये बेसब्र हो रही थी.. स्खलन बस कुछ ही दूर था की तभी..!!
उनके बेडरूम के दरवाजे पर दस्तक पड़ी.. सुनते ही वैशाली ने अपनी शारीरिक गतिविधियों को रोक दिया.. फिर से वो कान लगाकर सुनने लगी.. कहीं उसे भ्रम तो नहीं हुआ..!!
जब दूसरी बार दरवाजा खटखटाने की आवाज आई तब वैशाली फट से बिस्तर से उठी.. अपने नंगे बदन पर गाउन डाल दिया.. और चद्दर उठाकर पिंटू के बदन को ढँक दिया..
अपने बालों को ठीक करते हुए उसने दरवाजा खोला तो सामने उसकी सास खड़ी थी
वैशाली: "क्या हुआ मम्मी जी?"
पिंटू की मम्मी: "पापा को बुखार चढ़ा है.. जरा पिंटू के ड्रॉअर से क्रोसिन देना"
मन ही मन गुस्से से गुर्रा रही वैशाली ने दवाई निकाल कर दी.. और उसकी सास के जाने के बाद जोर से पटक कर दरवाजा बंद किया.. किनारे पर पहुंचकर उसकी कश्ती डूब गई.. वह स्खलित होते होते रह गई..!! अब उसमें उतनी ऊर्जा नहीं बची थी की फिर से अपने शरीर को उत्तेजित करें.. उसने लाइट बंद की और गाउन पहने बिस्तर पर जाकर लेट गई.. काफी देर तक करवटें बदलते रहने के बाद बड़ी ही मुश्किल से उसकी आँख लग पाई
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"यह आप क्या कह रहे है अंकल? मदन अंकल के साथ कैसे कर सकती हूँ मैं?"
राजेश ने फाल्गुनी को फोन करके अपना प्रस्ताव रखा.. जाहीर सी बात थी की फाल्गुनी के लिए यह काफी चौंकाने वाला था
राजेश: "मेरे साथ तो कभी तुम्हें ऐसा महसूस नहीं हुआ"
फाल्गुनी: 'आपकी बात और है"
राजेश: "कैसे??"
फाल्गुनी: (गंभीर होकर) "मैंने आपके साथ वो सब कुछ किया, लेकिन अब मैं सिर्फ आपके साथ ही रहना चाहती हूँ.. किसी और मर्द के साथ करना मुझे बड़ा अटपटा सा लगेगा.."
राजेश: (शांत भाव से) "फाल्गुनी, मैं तुम्हारी भावनाओं को समझता हूँ, लेकिन यह जो तुम महसूस कर रही हो, यह सिर्फ एक भावना ही है.. शारीरिक संबंध बनाना एक बड़ी ही सामान्य बात है.. जैसे हम अन्य शारीरिक जरूरतों को पूरा करते है.. पूरी ज़िंदगी हम एक ही प्रकार का खाना तो नहीं खाते..!! हररोज कुछ नया ट्राय करते है.. यह भी बिल्कुल वैसा ही है.. सुबोधकांत से संबंध के बाद अगर तुमने मेरे साथ ऐसा किया है, तो दूसरे के साथ भी क्यों नहीं? इसमें गलत क्या है?"
फाल्गुनी: (थोड़ा असहज होकर) "मैं नहीं जानती, अंकल.. मैंने आपके साथ जो किया, वह मेरे लिए खास था.. मैं इसे किसी और के साथ यह साझा नहीं करना चाहती.."
राजेश: (समझाने की कोशिश करते हुए) "देखो, फाल्गुनी, हमारे शरीर की इच्छाएँ और भावनाएँ अलग-अलग होती हैं। अगर तुमने मेरे साथ यह अनुभव किया है, तो यह तुम्हारे लिए नया नहीं है। दूसरे के साथ भी ऐसा करने में कोई बुराई नहीं है.. यह तुम्हारी स्वतंत्रता है और मैं तुम्हारे इच्छा विरुद्ध कुछ भी नहीं करूंगा"
फाल्गुनी: (उलझन में) "पर मैं ऐसा महसूस नहीं करती.. मैं सिर्फ आपके साथ ही ऐसा करना चाहती हूँ.."
राजेश: (थोड़ा ठंडे स्वर में) "फाल्गुनी, यह तुम्हारी सोच है.. लेकिन याद रखो, अगर तुम एक बार किसी के साथ ऐसा कर सकती हो, तो दूसरे के साथ भी कर सकती हो.. इसमें कोई बुराई नहीं है..और तुम्हें इसे लेकर कोई डर या शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए.. जरा सोचो.. उन अनगिनत संभावनाओ के बारे में.. हमारे सेक्स में एक अलग ही रंग जुड़ जाएगा.. एक नए तरीके का मज़ा आएगा.. बहुत ही दिलचस्प अनुभव होता है.. अनुभव से कह रहा हूँ.. और मैं तुम्हें केवल एक बार ट्राय करने के लिए कह रहा हूँ.. अगर उसके बाद तुम न चाहो तो मैं कभी इस बात के लिए तुम्हें आग्रह नहीं करूंगा"
फाल्गुनी: (चुपचाप) "शायद आप सही हो, लेकिन मैं अभी इसके लिए तैयार नहीं हूँ.. मुझे थोड़ा वक्त चाहिए, अंकल..!!"
राजेश: (मुस्कुराते हुए) "ठीक है, फाल्गुनी। मैं तुम्हारी भावनाओं का सम्मान करता हूँ.. यह तुम्हारी जिंदगी है, और तुम्हें जो सही लगे, वही करो बस खुद को किसी बंधन में मत बाँधो.. हाँ एक बात जरूर कहूँगा.. अगर तुम राजी हो जाती हो तो यह अनुभव हमेशा के लिए यादगार बन जाएगा"
फाल्गुनी: (मुस्कुराते हुए) "शुक्रिया, अंकल.. मैं आपको बताती हूँ"
राजेश: "मैं कल फोन करूंगा.. और हाँ, तुम अपने मम्मी पापा से बात कर लो.. जल्द ही मेरी ऑफिस जॉइन करनी है तुम्हें.. और यहाँ शिफ्ट भी तो होना है"
फाल्गुनी: "पर मैं रहूँगी कहाँ?"
राजेश: "सब इंतेजाम कर दूंगा..तुम बस मेरी बात के बारे में सोचो और कल बताओ"
फाल्गुनी: "ठीक है अंकल.. लव यू.."
राजेश: "लव यू टू..!!"
राजेश ने फोन रख दिया.. फाल्गुनी के सुर से उसे लग रहा था की लगभग वो मान ही जाएगी.. इस बारे में वह मदन को अभी बताना नहीं चाहता था.. फाल्गुनी की हाँ आने के बाद ही इस बारे में बात करना चाहता था ताकि मदन का दिल न टूट जाए
फोन रखकर फाल्गुनी गहरी सोच में पड़ गई..
यह क्या हो रहा है मेरे साथ? मैं खुद को कहाँ ले आई हूँ? पहले वो... उनके साथ यह रिश्ता, जो शायद गलत था, पर मैंने मान लिया.. उनकी बातों में आकर, उनके वादों में खोकर.. पर अब... अब वो और भी आगे जाना चाहते है.. मदन अंकल के साथ..!! वो चाहते है कि मैं मदन अंकल को भी हमारे बीच में जगह दूँ.. यह कैसे हो सकता है? मैं ऐसा कभी नहीं कर सकती.. पर अब... अब मैं खुद से सवाल कर रही हूँ.. क्यों नहीं? क्यों नहीं कोशिश करूँ? शायद यह एक नया अनुभव होगा, कुछ ऐसा, जो मैंने कभी महसूस नहीं किया.. पर क्या यह सही है? क्या मैं सच में यह चाहती हूँ? या फिर मैं सिर्फ उन्हें खुश करने के लिए, उनके लिए खुद को झोंक रही हूँ?
शायद... शायद यह वाकई में एक नई शुरुआत हो सकती है.. जिंदगी में कुछ अलग करने का मौका.. क्यों हमेशा वही पुराने ढर्रे पर चलते रहें? क्यों नहीं कुछ नया, कुछ रोमांचक करें? (खुद को समझाते हुए) हाँ, यह सही है.. मैं यह कर सकती हूँ.. मैं इसे एक अनुभव की तरह लूँगी.. शायद यह मुझे और मजबूत बनाएगा.. शायद यह मुझे और बेहतर जीवन जीने का और उसका आनंद उठाने का मौका देगा..
पर... पर क्या यह सच में मैं हूँ? क्या यह वही लड़की है जो मैं बनना चाहती हूँ? क्या मैं सिर्फ उनकी इच्छाओं की पूर्ति के लिए खुद को बदल रही हूँ? मैं क्यों इतनी कमजोर हो गई हूँ? क्यों मैं खुद को यह सब करने के लिए मजबूर कर रही हूँ?
नहीं.. मुझे ऐसा तो नहीं लगता..!! राजेश अंकल ने सिर्फ मेरी राय जानने के कोशिश की है.. कोई दबाव तो नहीं डाला.. अंतिम निर्णय मुझ पर ही तो छोड़ा है.. हाँ, मैं यह कर सकती हूँ.. मैं यह करूँगी.. यह एक नया रोमांच होगा, एक नया अध्याय.. मैं इसके लिए खुद को तैयार करूंगी..
मैं इसे एक चुनौती की तरह लूँगी.. और अब... अब मैं उत्सुक हूँ..!! मैं जानना चाहती हूँ कि यह अनुभव कैसा होगा..!! यह कैसा महसूस होगा..!! मैं इसके लिए तैयार हूँ और उत्साहित भी..!!
क्योंकि जिंदगी सिर्फ एक बार मिलती है, और मैं इसे पूरी तरह जीना चाहती हूँ..!! बिना किसी डर के, बिना किसी पछतावे के..!! यह मेरा फैसला है, और मैं इसके लिए तैयार हूँ..!!
Nice updateप्रिय पाठक मित्रों..
नमस्कार,
जैसा कि सभी को फोरम एडमिन्स की सूचना से ज्ञात होगा, हाल ही में सर्वर में आई तकनीकी समस्या के कारण 27/05/25 से 31/05/25 के बीच की गई सभी पोस्ट्स और अपडेट्स डिलीट हो गई। दुर्भाग्यवश, इसी अवधि में मैंने अपनी कहानी का एक नया अपडेट साझा किया था, जो अब डाटा रिकवरी के दौरान खो गया है।
इसलिए, मैं अपनी कहानी का वही अपडेट पुनः पोस्ट कर रहा हूँ, ताकि पाठकों को किसी भी महत्वपूर्ण हिस्से की कमी न महसूस हो। आशा है कि आप सभी इसे फिर से पढ़ेंगे और अपनी प्रतिक्रियाएँ साझा करेंगे।
आप सभी की समझदारी और समर्थन के लिए धन्यवाद।
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पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की..
पीयूष और मदन अमरीका से लौट आए.. कविता ने शीला को यह खुशखबरी दी की उसने पीयूष को पिंटू की नौकरी के लिए मना लिया है.. शीला ने तुरंत राजेश को इस बारे में जानकारी दी.. पहले तो राजेश पिंटू को छोड़ने के लिए हिचकिचा रहा था पर शीला के मनाने पर मान गया.. शीला ने पिंटू को भी इस बात के लिए मना लिया..
इस नए बदलाव से खुश शीला, मदन के साथ जबरदस्त संभोग कर अपनी विजय का खुशी मनाती है..
कुछ दिनों बाद.. अपने बेडरूम में, शीला और राजेश की घनघोर चुदाई देख रहे मदन को अब यह सब नीरस लग रहा था.. वह राजेश को अपने लिए कुछ नया बंदोबस्त करने को कहता है.. राजेश उसे फाल्गुनी के बारे में बताता है.. और वादा करता है की वह जल्द ही फाल्गुनी को मना लेगा..
राजेश फाल्गुनी से मदन के बारे में बताता है.. फाल्गुनी पहले तो यह सुनकर ही हिल जाती है.. पर राजेश के मनाने के बाद उसके विचार भी परिवर्तित होने लगते है..
अब आगे..
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पीयूष अपनी केबिन में बैठे हुए कंप्यूटर पर उलझा हुआ था.. पास में पड़ी कॉफी ठंडी हो चुकी थी.. कपाल पर बनी शिकन साफ बता रही थी की पीयूष काफी टेंशन में था..
तभी उसकी केबिन में वैशाली की एंट्री हुई.. कुछ पल के लिए तो पीयूष को उसके आने की भनक ही नहीं लगी.. इतना घुसा हुआ था वह अपने काम में
वैशाली ने अपने मंजुल स्वर में कहा "पीयूष सर"
पीयूष ने कंप्यूटर स्क्रीन से अपनी आँख फेरी और वैशाली की तरफ देखा.. टाइट टी-शर्ट और ब्लू जीन्स पहनी वैशाली का मांसल बदन दिखते ही पीयूष का सारा टेंशन गायब हो गया
उसने मुस्कुराकर वैशाली को कहा "वैशाली, कितनी बार कहा है मैंने तुम्हें.. सर कहकर मत बुलाया करो.. बड़ा अटपटा सा लगता है मुझे.. आखिर हम बचपन के दोस्त है..!!"
वैशाली ने एक स्माइल दी और पीयूष की सामने वाली कुर्सी पर बैठते हुए बोली "पर हो तो मेरे बॉस.. अब बॉस को सर कहकर नहीं बुलाऊँगी तो क्या कहूँगी..!!"
पीयूष: "जैसे हमेशा से बुलाती थी.. सिर्फ मेरे नाम से.. प्लीज तुम मुझे सर मत कहा करो.. रीक्वेस्ट है मेरी"
वैशाली: "ओके पीयूष.. यह वर्मा टेक्सटाइल्स वाला लेटर मैंने तैयार कर दिया है.. तुम्हारे दस्तखत चाहिए" कहते हुए वैशाली खड़ी हो गई और फ़ाइल से वह कागज निकालकर पीयूष के सामने रखा.. झुकने के कारण.. उसके दोनों मांसल स्तनों के बीच की दरार साफ नजर आ रही थी.. पीयूष की नजर वहीं चिपक गई.. वैशाली के स्तन थे ही ऐसे.. वैसे तो वो वैशाली को कई बार नंगे बदन देख चुका था.. भोग चुका था.. पर उस बात को काफी साल बीत चुके थे..
पीयूष की नजर कहाँ थी वो वैशाली के ध्यान में आ गया.. वो मुस्कुराई और पीयूष को पेन थमाते हुए साइन करने का इशारा किया.. पीयूष तुरंत सचेत हो गया और उसने अपनी नजरें फेर ली.. और दस्तखत करके कागज वैशाली को वापिस दिया.. वैशाली मुड़ी और अपने कूल्हें मटकाती हुई केबिन से बाहर जाने लगी.. टाइट जीन्स के अंदर मटक रही उसकी मस्त गांड को पीयूष अंत तक देखता रहा..
सकी तंद्रा का भंग तब हुआ जब पीयूष का मोबाइल बजा.. स्क्रीन पर कविता का नाम था..
पीयूष ने फोन उठाया
पीयूष: "हाँ बोल कविता"
कविता: "क्या कर रहे हो पीयूष?"
पीयूष: "यह कैसा सवाल है यार? ऑफिस हूँ तो जाहीर सी बात है की काम कर रहा हूँ"
कविता: "यार.. तुम छोटी छोटी बातों में भड़क क्यों जाते हो?"
पीयूष: "कहाँ भड़क रहा हूँ यार.. !!! बता, फोन क्यों किया था?"
कविता: "सोच रही थी आज शाम उस नई रेस्टोरेंट में डिनर के लिए चलें? मेक्सिकन खाना खाए हुए अरसा हो गया.. और फिर मूवी देखने चलेंगे"
पीयूष: 'कविता.. तुझे पता तो है.. मेरे पास सांस लेने की फुरसत नहीं है अभी..!!"
कविता: "तो मैं भी अभी जाने के लिए कहाँ कह रही हूँ? रात को जाना है.. तुम्हारे ऑफिस से लौटने के बाद"
पीयूष: "आज पोसीबल नहीं है"
कविता: "तो कल चलें?"
पीयूष: "कल रात को मेरी टीम्स-मीटिंग है उस अमरीकन क्लायंट के साथ..!!"
कविता परेशान होकर बोली "तो कब चलेंगे?? तुम ही बताओ"
पीयूष: "यह मैं कैसे बताऊँ? मुझे भी पता नहीं होता की कब कौनसा काम आ जाएँ"
कविता: "तो तुम मेरे लिए वक्त कब निकालोगे? मैं क्या रोज तुम्हारा इंतज़ार ही करती रहूँ?? पूरा दिन घर पर बैठे ऊब जाती हूँ मैं.. न कहीं आना जाना और ना किसी से मिलना.. बदतर हो गई है मेरी ज़िंदगी"
पीयूष: "तो यह सब मैं किस लिए कर रहा हूँ?? तुम्हारे लिए ही ना..!! ये ऐशों-आराम की ज़िंदगी.. ये अमीरियत ऐसे ही नहीं मिलती"
कविता: "तुम शायद भूल रहे हो की यह बिजनेस पहले पापा भी चलाते थे.. उन्हे तो कभी दिक्कत नहीं हुई फेमिली के लिए वक्त निकालने में"
तभी पीयूष की केबिन में दो कर्मचारी आए जिन्हे पीयूष ने मीटिंग के लिए बुलाया था.. उनकी मौजूदगी में वह कविता के साथ ज्यादा बहस करना नहीं चाहता था..
पीयूष: "यार तुम्हें जो मर्जी आए करो.. पर मुझे बख्श दो.. सोफ़े पर पैर फैलाकर बैठने जितनी आसान नहीं है मेरी ज़िंदगी..ढेर सारे काम है मुझे" कहकर पीयूष ने फोन काट दिया और अपने काम में मशरूफ़ हो गया
इस तरफ, पीयूष के इस बेरूखे जवाब से कविता की आँखों में आँसू आ गए.. पीयूष के संग एक अच्छा समय बिताएं बड़ा लंबा अरसा हो गया था.. वह तो सोच रही थी की डिनर और मूवी के प्रस्ताव से पीयूष खुशी से उछल पड़ेगा और आज की रात बड़ी ही अच्छी गुजरेगी.. कविता के न मन को चैन था और न ही उसके शरीर को संतुष्टि..!!
कविता का दिमाग खराब हो रहा था.. इससे पहले की वो कुछ उल्टा सीधा कर बैठती.. अपने आप को शांत करने के लिए वह बाथरूम में स्नान करने के इरादे से घुस गई.. उस आलीशान गुसलखाने की दीवार पर आदमकद के आईने जड़े हुए थे.. ताकि नहा रहा व्यक्ति अपने नग्न शरीर के हर कोने को बखूबी देख सकें.. शुरुआती समय में कविता ने पीयूष के साथ कई बार यहीं पर शॉवर-सेक्स का आनंद लिया था.. आइनों की वजह से ऐसा प्रतीत होता जैसे उनके आसपास कई नंगे स्त्री-पुरुष उनके साथ ही संभोग कर रहे हो..
एक के बाद एक कविता ने अपने सारे वस्त्र उतार दिए.. कमर से अपनी छोटी सी सफेद पेन्टी उतारते ही वह सम्पूर्ण नग्न हो गई.. आईने में अपने सेक्सी बदन को देखकर वह सोच रही थी की ऐसी कौन सी कमी थी उसमें जो पीयूष को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पा रहा था..!! सुंदर गौरवर्ण चेहरा.. तीखे नयन-नक्श.. सुराहीदार गर्दन.. पहले के मुकाबले थोड़े बड़े हो चुके टाइट स्तन.. पतली कमर.. क्लीन शेव चूत.. सुंदर जांघें.. कुल मिलाकर ऐसा शरीर था जिसे पाने के लिए मर्दों की लाइन लग जाएँ.. पर यह बदन जिसे समर्पित होकर संभोगरत होना चाहता था, उसके पास तो समय ही नहीं था..!!
कविता ने शॉवर ऑन किया.. ठंडे पानी की फव्वारे ने पहले तो उसके जिस्म को हल्का सा झकझोर दिया.. फिर वह शीतल धाराएँ.. कविता के त्रस्त मन को धीरे धीरे शांत करने लगी.. पूरे बदन पर शॉवर-जेल लगाकर.. लूफा से रगड़ते हुए अपने समग्र शरीर को झाग से आच्छादित करने लगी.. जांघों को रगड़ते हुए जब वह लूफा उसकी चूत तक पहुंचा.. तब कविता का जिस्म सिहर उठा.. वह काफी देर तक हल्के हल्के उस फाइबर के जालीदार गुच्छे को अपने यौनांग पर घिसती रही.. उसका चेहरा ऊपर की ओर उठा हुआ था और आँखें बंद थी.. पानी का अभिषेक निरंतर उसके चेहरे पर पड़ रहा था.. दूसरी हथेली से वह अपने नुकीले निप्पल वाले स्तन के अग्र भाग को चिकोटी में भरकर मसलने लगी.. रगड़न से उसकी प्यास तृप्त होने के बजाय और भड़क गई..
कविता ने शॉवर बंद किया.. उसकी नजरें पूरे बाथरूम में यहाँ वहाँ ढूँढने लगी.. चूत में घुसेड़ने लायक उपयुक्त साधन तलाश रही थी वो.. और कुछ तो नजर नहीं आया तब उसकी नजर टूथब्रश पर पड़ी.. ब्रश को हाथ में लेकर उसके पीछे वाला हिस्सा.. उसने अपनी संकरी सी चूत के अंदर डाल दिया.. और धीरे धीरे अंदर बाहर करने लगी..
इस क्रिया में उसे इतना मज़ा आ रहा था की उत्तेजना के मारे पैर डगमगाने लगे.. इससे पहले की वह अपना संतुलन खो बैठती.. वह अपने स्तनों को दीवार पर रगड़ते हुए, जिस्म का सारा भार डालकर, पानी भरे बाथटब में लेट गई और बेतहाशा अपनी चूत के छेद में उस टूथब्रश को अंदर बाहर करने लगी..
ब्रश के अंदर बाहर होने की गति अत्यंत तेज हो गई.. और कविता एक हल्की कराह के साथ झड़ गई.. क्लाइमैक्स इतना जबरदस्त था की उसकी आँखों के सामने एक पल के लिए अंधेरा छा गया.. थककर वह बाथटब पर सिर टिकाकर लेटी रही.. कितनी देर तक वह उसी अवस्था में पड़ी रही उसका उसे भी पता नहीं चला
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पिंटू: "यार, इतनी आवाज मत करो.. कोई सुन लेगा"
बिस्तर पर वैशाली का नंगा मांसल जिस्म फैला हुआ था.. उसके दोनों भारी स्तन, छाती के दोनों तरफ झूल रहे थे.. वैशाली के स्तनों का परिघ इतना विशाल था की पिंटू की दो हथेलियाँ भी एक स्तन को ठीक से ढँक नहीं पाती थी.. उसके बादामी रंग के ऐरोला पर उभरी हुई निप्पलें, उत्तेजना के कारण तनकर सख्त हो चुकी थी.. घुटनों से मुड़ी हुई टांगें फैलाकर, वैशाली अपनी गीली चूत खोलकर लेटी हुई थी.. उसकी गुलाबी चूत की चिपचिपी परतें खुली हुई थी.. अंदर पिंटू अपना लंड घुसाकर धक्के लगा रहा था
पीयूष की ऑफिस में शिफ्ट होने के बाद, पिंटू अपने माता पिता के साथ ही रहता था.. हालांकि उनका अलग से कमरा था पर फिर भी चुदाई के दौरान वैशाली इतनी जोर जोर से सिसकियाँ लेती थी की पिंटू को डर लगता था की उसकी आवाज कमरे से बाहर न चली जाएँ..
हर मध्यम वर्ग के परिवार में रहते पति-पत्नी की समस्या..!! मध्यम वर्गीय परिवारों के जीवन में छोटे घर एक सामान्य सच्चाई है.. इन घरों में सीमित जगह होने के कारण परिवार के सभी सदस्यों को एक-दूसरे के करीब रहना पड़ता है.. नवविवाहित जोड़ों को भले ही एक अलग बेडरूम मिल जाता है, लेकिन उनके मन में हमेशा यह डर बना रहता है कि संभोग के दौरान उनकी आवाज़ें, कराहने या अन्य शारीरिक ध्वनियाँ परिवार के अन्य सदस्यों तक पहुँच सकती हैं.. यह चिंता उनके निजी जीवन में असहजता और तनाव का कारण बनती है..
इस स्थिति का सामना करने के लिए जोड़े अक्सर कुछ उपाय अपनाते हैं.. उदाहरण के तौर पर, वे संभोग के दौरान संगीत चलाकर या टीवी की आवाज़ बढ़ाकर उनकी संभोग से उत्पन्न होती ध्वनियों को दबाने की कोशिश करते हैं.. कुछ जोड़े इस बात का ध्यान रखते हैं कि वे ऐसा समय चुनें जब घर के अन्य सदस्य सो रहे हों या घर पर न हों.. हालाँकि, ये उपाय अस्थायी समाधान होते हैं और इस समस्या का मूल कारण, यानी छोटे घर और निजी जगह की कमी, बना रहता है..
इस तरह की चिंता न केवल जोड़े के शारीरिक संबंधों को प्रभावित करती है, बल्कि उनके मानसिक सुकून को भी कम करती है.. वे हमेशा इस डर में जीते हैं कि उनकी निजता भंग हो सकती है, जिससे उनके रिश्ते में तनाव पैदा हो सकता है.. इस समस्या का समाधान करने के लिए परिवार के अन्य सदस्यों का संवेदनशील होना भी जरूरी है.. उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि नवविवाहित जोड़े को अपने निजी जीवन के लिए पर्याप्त जगह और स्वतंत्रता मिले..
वैशाली, अपनी माँ शीला की तरह, संभोग के दौरान, बिल्कुल भी चुप नहीं रह सकती थी.. अपनी उत्तेजना को वो भिन्न भिन्न आवाजों से व्यक्त करने की आदि थी.. चुपचाप संभोग करना उसे ऐसे ही लगता था जैसे प्लास्टिक की पन्नी में डालकर रसगुल्ले को बाहर से चूसना.. क्रिया तो हो जाती है पर मज़ा नहीं आता..!! उत्तेजित होने पर वह बेहद सिसकती और उसकी कराहें काफी ऊंची रहती थी..
पिंटू के लाख मना करने पर भी वैशाली अपने आप को रोक नहीं पाती थी और जोर जोर से "आह-आह" की आवाज़ें निकाल रही थी.. आखिर पिंटू ने उसके मुंह पर अपनी हथेली रख दी और जोर जोर से धक्के लगाने लगा.. उसका ध्यान अब संभोग पर कम और वैशाली की आवाज को रोकने पर ज्यादा था.. इसी तनाव के बीच वैशाली ने महसूस किया की पिंटू का लंड उसकी चूत के अंदर धीरे धीरे सिकुड़ रहा था.. वह आश्चर्य से पिंटू की आँखों में आँखें डालकर देख रही थी.. जैसे पूछ रही हो की आखिर उसका लंड, चुदाई के बीच ही ढीला क्यों पड़ रहा था..!!
कुछ ही देर के बाद लंड इस हद तक पिचक गया की वैशाली की गरम चूत से बाहर निकल गया.. हारकर पिंटू उसकी बगल में लेट गया.. और अपने लंड को हिलाकर जगाने की कोशिश करने लगा.. जब काफी देर तक हिलाने पर भी लंड ने सख्त होने के कोई संकेत नहीं दिए.. तब वैशाली उठी और उसने पिंटू का लंड अपने मुंह में ले लिया.. पाँच मिनट तक चूसने के बावजूद लंड ने कोई हरकत नहीं दिखाई.. वैशाली का जबड़ा दुखने लगा और वह थककर वापिस बिस्तर पर लेट गई..!!!!
संभोग के दौरान कभी-कभी पुरुषों को इरेक्शन खोने की समस्या का सामना करना पड़ सकता है.. यह स्थिति कई कारणों से हो सकती है, जैसे कि तनाव, चिंता, शारीरिक थकान, मानसिक दबाव, या शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ.. कई बार अत्यधिक शराब या नशीले पदार्थों के सेवन से भी यह समस्या उत्पन्न हो सकती है.. इसके अलावा, रिश्ते में तनाव या भावनात्मक दूरी भी इसका एक प्रमुख कारण हो सकती है..
जब ऐसा होता है, तो पुरुष अक्सर शर्मिंदगी या असुरक्षा महसूस करते हैं, जो उनकी समस्या को और बढ़ा सकता है.. यह जरूरी है कि इस स्थिति को समझा जाए और इसे एक सामान्य समस्या के रूप में लिया जाए.. साथी का सहयोग और समर्थन इस स्थिति को संभालने में बहुत महत्वपूर्ण होता है.. खुलकर बातचीत करने और एक-दूसरे की भावनाओं को समझने से इस समस्या को कम किया जा सकता है..
बेहद उदास मन से पिंटू मुंह लटकाए तकिये पर लेटा रहा.. वैशाली उसके करीब आई और उसके कंधे पर सर रखकर बोली
वैशाली: "टेंशन मत ले यार.. होता है ऐसा कई बार"
पिंटू: "वैशाली, तुम्हारी आवाज को रोकने के चक्कर में मेरा ध्यान भटक गया.. तुम आवाज बंद क्यों नहीं रख सकती?? हर बार मुझे यही डर लगा रहता है की कहीं मम्मी पापा सुन न ले"
वैशाली: "यार, मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ.. मुझसे नहीं होता तो मैं क्या करूँ?? और मम्मी पापा एकाद बाद सुन भी लेंगे तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा..!! हम कानूनन पति-पत्नी है और हर कोई जानता है की शादी-शुदा जोड़ों के बेडरूम में इस वक्त क्या हो रहा होगा..!!"
पिंटू भड़क गया और बोला "कैसी बात कर रही हो तुम? मम्मी-पापा सुन लेंगे तो क्या अच्छा लगेगा?"
वैशाली को भी गुस्सा आ गया.. वह बोली "तो क्या करूँ मैं?? करते वक्त मुंह पर पट्टी बांध लूँ?"
पिंटू: "जान, मैंने ऐसा कब कहा..!!! बस थोड़ी सी आवाज नीची रखने की कोशिश करो"
वैशाली: "मैं कोशिश तो कर रही हूँ न.. पर पता नहीं, एक बार एक्साइट होने के बाद मुझसे कंट्रोल ही नहीं होता"
पिंटू: "सीखना पड़ेगा तुम्हें.. पहले की बात और थी.. तब हम अलग घर में रहते थे इसलिए ऐसी कोई दिक्कत नहीं थी.. अब हम साथ रहते है तो हमें संभलना पड़ेगा"
वैशाली: "तो हम यहाँ भी तो अलग घर लेकर रह ही सकते है"
पिंटू परेशान होकर बोला "और फिर मम्मी पापा से क्या कहूँ..!!! एक ही शहर में हम अलग रहेंगे..!! और वो भी इतनी छोटी सी बात के लिए..!!"
हतप्रभ हो गई वैशाली.. पिंटू की इस असंवेदनशीलता पर उसे बेहद गुस्सा आ रहा था
वैशाली: "तुम्हारे लिए यह छोटी बात होगी.. क्या पति होने के नाते यह तुम्हारी ज़िम्मेदारी नहीं है की तुम मुझे खुश रखो?"
पिंटू: "तो कौनसी कमी छोड़ी है मैंने तुम्हें खुश रखने की..!! हर संभव कोशिश करता हूँ.. और फिर भी अगर तुम खुश नहीं हो तो मैं कुछ नहीं कर सकता"
उलटी दिशा में करवट लेकर पिंटू सो गया.. कुछ ही मिनटों में उसके खर्राटे सुनाई देने लगे.. हताश होकर वस्त्र-विहीन अवस्था में वैशाली लंबी लंबी सांसें लेने लगी.. उसकी चूत का तवा बेहद गरम था और वो चरमसुख के लिए तड़प रही थी.. उसे तृप्त करने की जिम्मेदारी जिसकी थी वह तो सो चुका था.. इसलिए वैशाली ने मामला अपने हाथों में लेने का निश्चय किया..
चिपचिपे रस से चू रही उसकी चूत के ऊपर दाने को वह रगड़ने लगी.. और दूसरे हाथ की एक उंगली चूत के अंदर बाहर करने लगी.. उसका चेहरा उत्तेजनावश लाल लाल हो रहा था.. वह बड़ी ही क्रूरता से अपनी क्लिटोरिस को घिसे जा रही थी.. अब उसने चूत में एक के बदले दो उँगलियाँ पेल दी थी.. और वह सिसक भी रही थी.. आवाज बाहर जाने की उसे बिल्कुल भी परवाह नहीं थी.. वह तो बस अपने चरमोत्कर्ष की ओर अग्रेसर होकर प्यास बुझाने की जद्दोजहत कर रही थी..
उसकी निप्पलें अपनी अवहेलना बर्दाश्त नहीं कर पाई.. दोनों स्तन ऐसे मचल रहे थे जैसे मसले जाने के लिए बेकरार हो.. अपनी चूत से उँगलियाँ निकालकर वैशाली अपने चरबीदार गोल गोल स्तनों को मसलना शुरू कर दिया.. उसकी दूसरी हथेली उसके भागोष्ठ को समझाने में मशरूफ़ थी..
उसका पूरा शरीर कांप रहा था.. कमर को मोड़ते हुए उसने अपने शरीर के निचले हिस्से को बिस्तर से उठा रखा था.. वह अपनी मंजिल के बेहद करीब थी.. उसकी चूत की मांसपेशियाँ संकुचित होकर द्रवित होने के लीये बेसब्र हो रही थी.. स्खलन बस कुछ ही दूर था की तभी..!!
उनके बेडरूम के दरवाजे पर दस्तक पड़ी.. सुनते ही वैशाली ने अपनी शारीरिक गतिविधियों को रोक दिया.. फिर से वो कान लगाकर सुनने लगी.. कहीं उसे भ्रम तो नहीं हुआ..!!
जब दूसरी बार दरवाजा खटखटाने की आवाज आई तब वैशाली फट से बिस्तर से उठी.. अपने नंगे बदन पर गाउन डाल दिया.. और चद्दर उठाकर पिंटू के बदन को ढँक दिया..
अपने बालों को ठीक करते हुए उसने दरवाजा खोला तो सामने उसकी सास खड़ी थी
वैशाली: "क्या हुआ मम्मी जी?"
पिंटू की मम्मी: "पापा को बुखार चढ़ा है.. जरा पिंटू के ड्रॉअर से क्रोसिन देना"
मन ही मन गुस्से से गुर्रा रही वैशाली ने दवाई निकाल कर दी.. और उसकी सास के जाने के बाद जोर से पटक कर दरवाजा बंद किया.. किनारे पर पहुंचकर उसकी कश्ती डूब गई.. वह स्खलित होते होते रह गई..!! अब उसमें उतनी ऊर्जा नहीं बची थी की फिर से अपने शरीर को उत्तेजित करें.. उसने लाइट बंद की और गाउन पहने बिस्तर पर जाकर लेट गई.. काफी देर तक करवटें बदलते रहने के बाद बड़ी ही मुश्किल से उसकी आँख लग पाई
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"यह आप क्या कह रहे है अंकल? मदन अंकल के साथ कैसे कर सकती हूँ मैं?"
राजेश ने फाल्गुनी को फोन करके अपना प्रस्ताव रखा.. जाहीर सी बात थी की फाल्गुनी के लिए यह काफी चौंकाने वाला था
राजेश: "मेरे साथ तो कभी तुम्हें ऐसा महसूस नहीं हुआ"
फाल्गुनी: 'आपकी बात और है"
राजेश: "कैसे??"
फाल्गुनी: (गंभीर होकर) "मैंने आपके साथ वो सब कुछ किया, लेकिन अब मैं सिर्फ आपके साथ ही रहना चाहती हूँ.. किसी और मर्द के साथ करना मुझे बड़ा अटपटा सा लगेगा.."
राजेश: (शांत भाव से) "फाल्गुनी, मैं तुम्हारी भावनाओं को समझता हूँ, लेकिन यह जो तुम महसूस कर रही हो, यह सिर्फ एक भावना ही है.. शारीरिक संबंध बनाना एक बड़ी ही सामान्य बात है.. जैसे हम अन्य शारीरिक जरूरतों को पूरा करते है.. पूरी ज़िंदगी हम एक ही प्रकार का खाना तो नहीं खाते..!! हररोज कुछ नया ट्राय करते है.. यह भी बिल्कुल वैसा ही है.. सुबोधकांत से संबंध के बाद अगर तुमने मेरे साथ ऐसा किया है, तो दूसरे के साथ भी क्यों नहीं? इसमें गलत क्या है?"
फाल्गुनी: (थोड़ा असहज होकर) "मैं नहीं जानती, अंकल.. मैंने आपके साथ जो किया, वह मेरे लिए खास था.. मैं इसे किसी और के साथ यह साझा नहीं करना चाहती.."
राजेश: (समझाने की कोशिश करते हुए) "देखो, फाल्गुनी, हमारे शरीर की इच्छाएँ और भावनाएँ अलग-अलग होती हैं। अगर तुमने मेरे साथ यह अनुभव किया है, तो यह तुम्हारे लिए नया नहीं है। दूसरे के साथ भी ऐसा करने में कोई बुराई नहीं है.. यह तुम्हारी स्वतंत्रता है और मैं तुम्हारे इच्छा विरुद्ध कुछ भी नहीं करूंगा"
फाल्गुनी: (उलझन में) "पर मैं ऐसा महसूस नहीं करती.. मैं सिर्फ आपके साथ ही ऐसा करना चाहती हूँ.."
राजेश: (थोड़ा ठंडे स्वर में) "फाल्गुनी, यह तुम्हारी सोच है.. लेकिन याद रखो, अगर तुम एक बार किसी के साथ ऐसा कर सकती हो, तो दूसरे के साथ भी कर सकती हो.. इसमें कोई बुराई नहीं है..और तुम्हें इसे लेकर कोई डर या शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए.. जरा सोचो.. उन अनगिनत संभावनाओ के बारे में.. हमारे सेक्स में एक अलग ही रंग जुड़ जाएगा.. एक नए तरीके का मज़ा आएगा.. बहुत ही दिलचस्प अनुभव होता है.. अनुभव से कह रहा हूँ.. और मैं तुम्हें केवल एक बार ट्राय करने के लिए कह रहा हूँ.. अगर उसके बाद तुम न चाहो तो मैं कभी इस बात के लिए तुम्हें आग्रह नहीं करूंगा"
फाल्गुनी: (चुपचाप) "शायद आप सही हो, लेकिन मैं अभी इसके लिए तैयार नहीं हूँ.. मुझे थोड़ा वक्त चाहिए, अंकल..!!"
राजेश: (मुस्कुराते हुए) "ठीक है, फाल्गुनी। मैं तुम्हारी भावनाओं का सम्मान करता हूँ.. यह तुम्हारी जिंदगी है, और तुम्हें जो सही लगे, वही करो बस खुद को किसी बंधन में मत बाँधो.. हाँ एक बात जरूर कहूँगा.. अगर तुम राजी हो जाती हो तो यह अनुभव हमेशा के लिए यादगार बन जाएगा"
फाल्गुनी: (मुस्कुराते हुए) "शुक्रिया, अंकल.. मैं आपको बताती हूँ"
राजेश: "मैं कल फोन करूंगा.. और हाँ, तुम अपने मम्मी पापा से बात कर लो.. जल्द ही मेरी ऑफिस जॉइन करनी है तुम्हें.. और यहाँ शिफ्ट भी तो होना है"
फाल्गुनी: "पर मैं रहूँगी कहाँ?"
राजेश: "सब इंतेजाम कर दूंगा..तुम बस मेरी बात के बारे में सोचो और कल बताओ"
फाल्गुनी: "ठीक है अंकल.. लव यू.."
राजेश: "लव यू टू..!!"
राजेश ने फोन रख दिया.. फाल्गुनी के सुर से उसे लग रहा था की लगभग वो मान ही जाएगी.. इस बारे में वह मदन को अभी बताना नहीं चाहता था.. फाल्गुनी की हाँ आने के बाद ही इस बारे में बात करना चाहता था ताकि मदन का दिल न टूट जाए
फोन रखकर फाल्गुनी गहरी सोच में पड़ गई..
यह क्या हो रहा है मेरे साथ? मैं खुद को कहाँ ले आई हूँ? पहले वो... उनके साथ यह रिश्ता, जो शायद गलत था, पर मैंने मान लिया.. उनकी बातों में आकर, उनके वादों में खोकर.. पर अब... अब वो और भी आगे जाना चाहते है.. मदन अंकल के साथ..!! वो चाहते है कि मैं मदन अंकल को भी हमारे बीच में जगह दूँ.. यह कैसे हो सकता है? मैं ऐसा कभी नहीं कर सकती.. पर अब... अब मैं खुद से सवाल कर रही हूँ.. क्यों नहीं? क्यों नहीं कोशिश करूँ? शायद यह एक नया अनुभव होगा, कुछ ऐसा, जो मैंने कभी महसूस नहीं किया.. पर क्या यह सही है? क्या मैं सच में यह चाहती हूँ? या फिर मैं सिर्फ उन्हें खुश करने के लिए, उनके लिए खुद को झोंक रही हूँ?
शायद... शायद यह वाकई में एक नई शुरुआत हो सकती है.. जिंदगी में कुछ अलग करने का मौका.. क्यों हमेशा वही पुराने ढर्रे पर चलते रहें? क्यों नहीं कुछ नया, कुछ रोमांचक करें? (खुद को समझाते हुए) हाँ, यह सही है.. मैं यह कर सकती हूँ.. मैं इसे एक अनुभव की तरह लूँगी.. शायद यह मुझे और मजबूत बनाएगा.. शायद यह मुझे और बेहतर जीवन जीने का और उसका आनंद उठाने का मौका देगा..
पर... पर क्या यह सच में मैं हूँ? क्या यह वही लड़की है जो मैं बनना चाहती हूँ? क्या मैं सिर्फ उनकी इच्छाओं की पूर्ति के लिए खुद को बदल रही हूँ? मैं क्यों इतनी कमजोर हो गई हूँ? क्यों मैं खुद को यह सब करने के लिए मजबूर कर रही हूँ?
नहीं.. मुझे ऐसा तो नहीं लगता..!! राजेश अंकल ने सिर्फ मेरी राय जानने के कोशिश की है.. कोई दबाव तो नहीं डाला.. अंतिम निर्णय मुझ पर ही तो छोड़ा है.. हाँ, मैं यह कर सकती हूँ.. मैं यह करूँगी.. यह एक नया रोमांच होगा, एक नया अध्याय.. मैं इसके लिए खुद को तैयार करूंगी..
मैं इसे एक चुनौती की तरह लूँगी.. और अब... अब मैं उत्सुक हूँ..!! मैं जानना चाहती हूँ कि यह अनुभव कैसा होगा..!! यह कैसा महसूस होगा..!! मैं इसके लिए तैयार हूँ और उत्साहित भी..!!
क्योंकि जिंदगी सिर्फ एक बार मिलती है, और मैं इसे पूरी तरह जीना चाहती हूँ..!! बिना किसी डर के, बिना किसी पछतावे के..!! यह मेरा फैसला है, और मैं इसके लिए तैयार हूँ..!!
Nice updateप्रिय पाठक मित्रों..
नमस्कार,
जैसा कि सभी को फोरम एडमिन्स की सूचना से ज्ञात होगा, हाल ही में सर्वर में आई तकनीकी समस्या के कारण 27/05/25 से 31/05/25 के बीच की गई सभी पोस्ट्स और अपडेट्स डिलीट हो गई। दुर्भाग्यवश, इसी अवधि में मैंने अपनी कहानी का एक नया अपडेट साझा किया था, जो अब डाटा रिकवरी के दौरान खो गया है।
इसलिए, मैं अपनी कहानी का वही अपडेट पुनः पोस्ट कर रहा हूँ, ताकि पाठकों को किसी भी महत्वपूर्ण हिस्से की कमी न महसूस हो। आशा है कि आप सभी इसे फिर से पढ़ेंगे और अपनी प्रतिक्रियाएँ साझा करेंगे।
आप सभी की समझदारी और समर्थन के लिए धन्यवाद।
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पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की..
पीयूष और मदन अमरीका से लौट आए.. कविता ने शीला को यह खुशखबरी दी की उसने पीयूष को पिंटू की नौकरी के लिए मना लिया है.. शीला ने तुरंत राजेश को इस बारे में जानकारी दी.. पहले तो राजेश पिंटू को छोड़ने के लिए हिचकिचा रहा था पर शीला के मनाने पर मान गया.. शीला ने पिंटू को भी इस बात के लिए मना लिया..
इस नए बदलाव से खुश शीला, मदन के साथ जबरदस्त संभोग कर अपनी विजय का खुशी मनाती है..
कुछ दिनों बाद.. अपने बेडरूम में, शीला और राजेश की घनघोर चुदाई देख रहे मदन को अब यह सब नीरस लग रहा था.. वह राजेश को अपने लिए कुछ नया बंदोबस्त करने को कहता है.. राजेश उसे फाल्गुनी के बारे में बताता है.. और वादा करता है की वह जल्द ही फाल्गुनी को मना लेगा..
राजेश फाल्गुनी से मदन के बारे में बताता है.. फाल्गुनी पहले तो यह सुनकर ही हिल जाती है.. पर राजेश के मनाने के बाद उसके विचार भी परिवर्तित होने लगते है..
अब आगे..
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पीयूष अपनी केबिन में बैठे हुए कंप्यूटर पर उलझा हुआ था.. पास में पड़ी कॉफी ठंडी हो चुकी थी.. कपाल पर बनी शिकन साफ बता रही थी की पीयूष काफी टेंशन में था..
तभी उसकी केबिन में वैशाली की एंट्री हुई.. कुछ पल के लिए तो पीयूष को उसके आने की भनक ही नहीं लगी.. इतना घुसा हुआ था वह अपने काम में
वैशाली ने अपने मंजुल स्वर में कहा "पीयूष सर"
पीयूष ने कंप्यूटर स्क्रीन से अपनी आँख फेरी और वैशाली की तरफ देखा.. टाइट टी-शर्ट और ब्लू जीन्स पहनी वैशाली का मांसल बदन दिखते ही पीयूष का सारा टेंशन गायब हो गया
उसने मुस्कुराकर वैशाली को कहा "वैशाली, कितनी बार कहा है मैंने तुम्हें.. सर कहकर मत बुलाया करो.. बड़ा अटपटा सा लगता है मुझे.. आखिर हम बचपन के दोस्त है..!!"
वैशाली ने एक स्माइल दी और पीयूष की सामने वाली कुर्सी पर बैठते हुए बोली "पर हो तो मेरे बॉस.. अब बॉस को सर कहकर नहीं बुलाऊँगी तो क्या कहूँगी..!!"
पीयूष: "जैसे हमेशा से बुलाती थी.. सिर्फ मेरे नाम से.. प्लीज तुम मुझे सर मत कहा करो.. रीक्वेस्ट है मेरी"
वैशाली: "ओके पीयूष.. यह वर्मा टेक्सटाइल्स वाला लेटर मैंने तैयार कर दिया है.. तुम्हारे दस्तखत चाहिए" कहते हुए वैशाली खड़ी हो गई और फ़ाइल से वह कागज निकालकर पीयूष के सामने रखा.. झुकने के कारण.. उसके दोनों मांसल स्तनों के बीच की दरार साफ नजर आ रही थी.. पीयूष की नजर वहीं चिपक गई.. वैशाली के स्तन थे ही ऐसे.. वैसे तो वो वैशाली को कई बार नंगे बदन देख चुका था.. भोग चुका था.. पर उस बात को काफी साल बीत चुके थे..
पीयूष की नजर कहाँ थी वो वैशाली के ध्यान में आ गया.. वो मुस्कुराई और पीयूष को पेन थमाते हुए साइन करने का इशारा किया.. पीयूष तुरंत सचेत हो गया और उसने अपनी नजरें फेर ली.. और दस्तखत करके कागज वैशाली को वापिस दिया.. वैशाली मुड़ी और अपने कूल्हें मटकाती हुई केबिन से बाहर जाने लगी.. टाइट जीन्स के अंदर मटक रही उसकी मस्त गांड को पीयूष अंत तक देखता रहा..
सकी तंद्रा का भंग तब हुआ जब पीयूष का मोबाइल बजा.. स्क्रीन पर कविता का नाम था..
पीयूष ने फोन उठाया
पीयूष: "हाँ बोल कविता"
कविता: "क्या कर रहे हो पीयूष?"
पीयूष: "यह कैसा सवाल है यार? ऑफिस हूँ तो जाहीर सी बात है की काम कर रहा हूँ"
कविता: "यार.. तुम छोटी छोटी बातों में भड़क क्यों जाते हो?"
पीयूष: "कहाँ भड़क रहा हूँ यार.. !!! बता, फोन क्यों किया था?"
कविता: "सोच रही थी आज शाम उस नई रेस्टोरेंट में डिनर के लिए चलें? मेक्सिकन खाना खाए हुए अरसा हो गया.. और फिर मूवी देखने चलेंगे"
पीयूष: 'कविता.. तुझे पता तो है.. मेरे पास सांस लेने की फुरसत नहीं है अभी..!!"
कविता: "तो मैं भी अभी जाने के लिए कहाँ कह रही हूँ? रात को जाना है.. तुम्हारे ऑफिस से लौटने के बाद"
पीयूष: "आज पोसीबल नहीं है"
कविता: "तो कल चलें?"
पीयूष: "कल रात को मेरी टीम्स-मीटिंग है उस अमरीकन क्लायंट के साथ..!!"
कविता परेशान होकर बोली "तो कब चलेंगे?? तुम ही बताओ"
पीयूष: "यह मैं कैसे बताऊँ? मुझे भी पता नहीं होता की कब कौनसा काम आ जाएँ"
कविता: "तो तुम मेरे लिए वक्त कब निकालोगे? मैं क्या रोज तुम्हारा इंतज़ार ही करती रहूँ?? पूरा दिन घर पर बैठे ऊब जाती हूँ मैं.. न कहीं आना जाना और ना किसी से मिलना.. बदतर हो गई है मेरी ज़िंदगी"
पीयूष: "तो यह सब मैं किस लिए कर रहा हूँ?? तुम्हारे लिए ही ना..!! ये ऐशों-आराम की ज़िंदगी.. ये अमीरियत ऐसे ही नहीं मिलती"
कविता: "तुम शायद भूल रहे हो की यह बिजनेस पहले पापा भी चलाते थे.. उन्हे तो कभी दिक्कत नहीं हुई फेमिली के लिए वक्त निकालने में"
तभी पीयूष की केबिन में दो कर्मचारी आए जिन्हे पीयूष ने मीटिंग के लिए बुलाया था.. उनकी मौजूदगी में वह कविता के साथ ज्यादा बहस करना नहीं चाहता था..
पीयूष: "यार तुम्हें जो मर्जी आए करो.. पर मुझे बख्श दो.. सोफ़े पर पैर फैलाकर बैठने जितनी आसान नहीं है मेरी ज़िंदगी..ढेर सारे काम है मुझे" कहकर पीयूष ने फोन काट दिया और अपने काम में मशरूफ़ हो गया
इस तरफ, पीयूष के इस बेरूखे जवाब से कविता की आँखों में आँसू आ गए.. पीयूष के संग एक अच्छा समय बिताएं बड़ा लंबा अरसा हो गया था.. वह तो सोच रही थी की डिनर और मूवी के प्रस्ताव से पीयूष खुशी से उछल पड़ेगा और आज की रात बड़ी ही अच्छी गुजरेगी.. कविता के न मन को चैन था और न ही उसके शरीर को संतुष्टि..!!
कविता का दिमाग खराब हो रहा था.. इससे पहले की वो कुछ उल्टा सीधा कर बैठती.. अपने आप को शांत करने के लिए वह बाथरूम में स्नान करने के इरादे से घुस गई.. उस आलीशान गुसलखाने की दीवार पर आदमकद के आईने जड़े हुए थे.. ताकि नहा रहा व्यक्ति अपने नग्न शरीर के हर कोने को बखूबी देख सकें.. शुरुआती समय में कविता ने पीयूष के साथ कई बार यहीं पर शॉवर-सेक्स का आनंद लिया था.. आइनों की वजह से ऐसा प्रतीत होता जैसे उनके आसपास कई नंगे स्त्री-पुरुष उनके साथ ही संभोग कर रहे हो..
एक के बाद एक कविता ने अपने सारे वस्त्र उतार दिए.. कमर से अपनी छोटी सी सफेद पेन्टी उतारते ही वह सम्पूर्ण नग्न हो गई.. आईने में अपने सेक्सी बदन को देखकर वह सोच रही थी की ऐसी कौन सी कमी थी उसमें जो पीयूष को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पा रहा था..!! सुंदर गौरवर्ण चेहरा.. तीखे नयन-नक्श.. सुराहीदार गर्दन.. पहले के मुकाबले थोड़े बड़े हो चुके टाइट स्तन.. पतली कमर.. क्लीन शेव चूत.. सुंदर जांघें.. कुल मिलाकर ऐसा शरीर था जिसे पाने के लिए मर्दों की लाइन लग जाएँ.. पर यह बदन जिसे समर्पित होकर संभोगरत होना चाहता था, उसके पास तो समय ही नहीं था..!!
कविता ने शॉवर ऑन किया.. ठंडे पानी की फव्वारे ने पहले तो उसके जिस्म को हल्का सा झकझोर दिया.. फिर वह शीतल धाराएँ.. कविता के त्रस्त मन को धीरे धीरे शांत करने लगी.. पूरे बदन पर शॉवर-जेल लगाकर.. लूफा से रगड़ते हुए अपने समग्र शरीर को झाग से आच्छादित करने लगी.. जांघों को रगड़ते हुए जब वह लूफा उसकी चूत तक पहुंचा.. तब कविता का जिस्म सिहर उठा.. वह काफी देर तक हल्के हल्के उस फाइबर के जालीदार गुच्छे को अपने यौनांग पर घिसती रही.. उसका चेहरा ऊपर की ओर उठा हुआ था और आँखें बंद थी.. पानी का अभिषेक निरंतर उसके चेहरे पर पड़ रहा था.. दूसरी हथेली से वह अपने नुकीले निप्पल वाले स्तन के अग्र भाग को चिकोटी में भरकर मसलने लगी.. रगड़न से उसकी प्यास तृप्त होने के बजाय और भड़क गई..
कविता ने शॉवर बंद किया.. उसकी नजरें पूरे बाथरूम में यहाँ वहाँ ढूँढने लगी.. चूत में घुसेड़ने लायक उपयुक्त साधन तलाश रही थी वो.. और कुछ तो नजर नहीं आया तब उसकी नजर टूथब्रश पर पड़ी.. ब्रश को हाथ में लेकर उसके पीछे वाला हिस्सा.. उसने अपनी संकरी सी चूत के अंदर डाल दिया.. और धीरे धीरे अंदर बाहर करने लगी..
इस क्रिया में उसे इतना मज़ा आ रहा था की उत्तेजना के मारे पैर डगमगाने लगे.. इससे पहले की वह अपना संतुलन खो बैठती.. वह अपने स्तनों को दीवार पर रगड़ते हुए, जिस्म का सारा भार डालकर, पानी भरे बाथटब में लेट गई और बेतहाशा अपनी चूत के छेद में उस टूथब्रश को अंदर बाहर करने लगी..
ब्रश के अंदर बाहर होने की गति अत्यंत तेज हो गई.. और कविता एक हल्की कराह के साथ झड़ गई.. क्लाइमैक्स इतना जबरदस्त था की उसकी आँखों के सामने एक पल के लिए अंधेरा छा गया.. थककर वह बाथटब पर सिर टिकाकर लेटी रही.. कितनी देर तक वह उसी अवस्था में पड़ी रही उसका उसे भी पता नहीं चला
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पिंटू: "यार, इतनी आवाज मत करो.. कोई सुन लेगा"
बिस्तर पर वैशाली का नंगा मांसल जिस्म फैला हुआ था.. उसके दोनों भारी स्तन, छाती के दोनों तरफ झूल रहे थे.. वैशाली के स्तनों का परिघ इतना विशाल था की पिंटू की दो हथेलियाँ भी एक स्तन को ठीक से ढँक नहीं पाती थी.. उसके बादामी रंग के ऐरोला पर उभरी हुई निप्पलें, उत्तेजना के कारण तनकर सख्त हो चुकी थी.. घुटनों से मुड़ी हुई टांगें फैलाकर, वैशाली अपनी गीली चूत खोलकर लेटी हुई थी.. उसकी गुलाबी चूत की चिपचिपी परतें खुली हुई थी.. अंदर पिंटू अपना लंड घुसाकर धक्के लगा रहा था
पीयूष की ऑफिस में शिफ्ट होने के बाद, पिंटू अपने माता पिता के साथ ही रहता था.. हालांकि उनका अलग से कमरा था पर फिर भी चुदाई के दौरान वैशाली इतनी जोर जोर से सिसकियाँ लेती थी की पिंटू को डर लगता था की उसकी आवाज कमरे से बाहर न चली जाएँ..
हर मध्यम वर्ग के परिवार में रहते पति-पत्नी की समस्या..!! मध्यम वर्गीय परिवारों के जीवन में छोटे घर एक सामान्य सच्चाई है.. इन घरों में सीमित जगह होने के कारण परिवार के सभी सदस्यों को एक-दूसरे के करीब रहना पड़ता है.. नवविवाहित जोड़ों को भले ही एक अलग बेडरूम मिल जाता है, लेकिन उनके मन में हमेशा यह डर बना रहता है कि संभोग के दौरान उनकी आवाज़ें, कराहने या अन्य शारीरिक ध्वनियाँ परिवार के अन्य सदस्यों तक पहुँच सकती हैं.. यह चिंता उनके निजी जीवन में असहजता और तनाव का कारण बनती है..
इस स्थिति का सामना करने के लिए जोड़े अक्सर कुछ उपाय अपनाते हैं.. उदाहरण के तौर पर, वे संभोग के दौरान संगीत चलाकर या टीवी की आवाज़ बढ़ाकर उनकी संभोग से उत्पन्न होती ध्वनियों को दबाने की कोशिश करते हैं.. कुछ जोड़े इस बात का ध्यान रखते हैं कि वे ऐसा समय चुनें जब घर के अन्य सदस्य सो रहे हों या घर पर न हों.. हालाँकि, ये उपाय अस्थायी समाधान होते हैं और इस समस्या का मूल कारण, यानी छोटे घर और निजी जगह की कमी, बना रहता है..
इस तरह की चिंता न केवल जोड़े के शारीरिक संबंधों को प्रभावित करती है, बल्कि उनके मानसिक सुकून को भी कम करती है.. वे हमेशा इस डर में जीते हैं कि उनकी निजता भंग हो सकती है, जिससे उनके रिश्ते में तनाव पैदा हो सकता है.. इस समस्या का समाधान करने के लिए परिवार के अन्य सदस्यों का संवेदनशील होना भी जरूरी है.. उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि नवविवाहित जोड़े को अपने निजी जीवन के लिए पर्याप्त जगह और स्वतंत्रता मिले..
वैशाली, अपनी माँ शीला की तरह, संभोग के दौरान, बिल्कुल भी चुप नहीं रह सकती थी.. अपनी उत्तेजना को वो भिन्न भिन्न आवाजों से व्यक्त करने की आदि थी.. चुपचाप संभोग करना उसे ऐसे ही लगता था जैसे प्लास्टिक की पन्नी में डालकर रसगुल्ले को बाहर से चूसना.. क्रिया तो हो जाती है पर मज़ा नहीं आता..!! उत्तेजित होने पर वह बेहद सिसकती और उसकी कराहें काफी ऊंची रहती थी..
पिंटू के लाख मना करने पर भी वैशाली अपने आप को रोक नहीं पाती थी और जोर जोर से "आह-आह" की आवाज़ें निकाल रही थी.. आखिर पिंटू ने उसके मुंह पर अपनी हथेली रख दी और जोर जोर से धक्के लगाने लगा.. उसका ध्यान अब संभोग पर कम और वैशाली की आवाज को रोकने पर ज्यादा था.. इसी तनाव के बीच वैशाली ने महसूस किया की पिंटू का लंड उसकी चूत के अंदर धीरे धीरे सिकुड़ रहा था.. वह आश्चर्य से पिंटू की आँखों में आँखें डालकर देख रही थी.. जैसे पूछ रही हो की आखिर उसका लंड, चुदाई के बीच ही ढीला क्यों पड़ रहा था..!!
कुछ ही देर के बाद लंड इस हद तक पिचक गया की वैशाली की गरम चूत से बाहर निकल गया.. हारकर पिंटू उसकी बगल में लेट गया.. और अपने लंड को हिलाकर जगाने की कोशिश करने लगा.. जब काफी देर तक हिलाने पर भी लंड ने सख्त होने के कोई संकेत नहीं दिए.. तब वैशाली उठी और उसने पिंटू का लंड अपने मुंह में ले लिया.. पाँच मिनट तक चूसने के बावजूद लंड ने कोई हरकत नहीं दिखाई.. वैशाली का जबड़ा दुखने लगा और वह थककर वापिस बिस्तर पर लेट गई..!!!!
संभोग के दौरान कभी-कभी पुरुषों को इरेक्शन खोने की समस्या का सामना करना पड़ सकता है.. यह स्थिति कई कारणों से हो सकती है, जैसे कि तनाव, चिंता, शारीरिक थकान, मानसिक दबाव, या शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ.. कई बार अत्यधिक शराब या नशीले पदार्थों के सेवन से भी यह समस्या उत्पन्न हो सकती है.. इसके अलावा, रिश्ते में तनाव या भावनात्मक दूरी भी इसका एक प्रमुख कारण हो सकती है..
जब ऐसा होता है, तो पुरुष अक्सर शर्मिंदगी या असुरक्षा महसूस करते हैं, जो उनकी समस्या को और बढ़ा सकता है.. यह जरूरी है कि इस स्थिति को समझा जाए और इसे एक सामान्य समस्या के रूप में लिया जाए.. साथी का सहयोग और समर्थन इस स्थिति को संभालने में बहुत महत्वपूर्ण होता है.. खुलकर बातचीत करने और एक-दूसरे की भावनाओं को समझने से इस समस्या को कम किया जा सकता है..
बेहद उदास मन से पिंटू मुंह लटकाए तकिये पर लेटा रहा.. वैशाली उसके करीब आई और उसके कंधे पर सर रखकर बोली
वैशाली: "टेंशन मत ले यार.. होता है ऐसा कई बार"
पिंटू: "वैशाली, तुम्हारी आवाज को रोकने के चक्कर में मेरा ध्यान भटक गया.. तुम आवाज बंद क्यों नहीं रख सकती?? हर बार मुझे यही डर लगा रहता है की कहीं मम्मी पापा सुन न ले"
वैशाली: "यार, मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ.. मुझसे नहीं होता तो मैं क्या करूँ?? और मम्मी पापा एकाद बाद सुन भी लेंगे तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा..!! हम कानूनन पति-पत्नी है और हर कोई जानता है की शादी-शुदा जोड़ों के बेडरूम में इस वक्त क्या हो रहा होगा..!!"
पिंटू भड़क गया और बोला "कैसी बात कर रही हो तुम? मम्मी-पापा सुन लेंगे तो क्या अच्छा लगेगा?"
वैशाली को भी गुस्सा आ गया.. वह बोली "तो क्या करूँ मैं?? करते वक्त मुंह पर पट्टी बांध लूँ?"
पिंटू: "जान, मैंने ऐसा कब कहा..!!! बस थोड़ी सी आवाज नीची रखने की कोशिश करो"
वैशाली: "मैं कोशिश तो कर रही हूँ न.. पर पता नहीं, एक बार एक्साइट होने के बाद मुझसे कंट्रोल ही नहीं होता"
पिंटू: "सीखना पड़ेगा तुम्हें.. पहले की बात और थी.. तब हम अलग घर में रहते थे इसलिए ऐसी कोई दिक्कत नहीं थी.. अब हम साथ रहते है तो हमें संभलना पड़ेगा"
वैशाली: "तो हम यहाँ भी तो अलग घर लेकर रह ही सकते है"
पिंटू परेशान होकर बोला "और फिर मम्मी पापा से क्या कहूँ..!!! एक ही शहर में हम अलग रहेंगे..!! और वो भी इतनी छोटी सी बात के लिए..!!"
हतप्रभ हो गई वैशाली.. पिंटू की इस असंवेदनशीलता पर उसे बेहद गुस्सा आ रहा था
वैशाली: "तुम्हारे लिए यह छोटी बात होगी.. क्या पति होने के नाते यह तुम्हारी ज़िम्मेदारी नहीं है की तुम मुझे खुश रखो?"
पिंटू: "तो कौनसी कमी छोड़ी है मैंने तुम्हें खुश रखने की..!! हर संभव कोशिश करता हूँ.. और फिर भी अगर तुम खुश नहीं हो तो मैं कुछ नहीं कर सकता"
उलटी दिशा में करवट लेकर पिंटू सो गया.. कुछ ही मिनटों में उसके खर्राटे सुनाई देने लगे.. हताश होकर वस्त्र-विहीन अवस्था में वैशाली लंबी लंबी सांसें लेने लगी.. उसकी चूत का तवा बेहद गरम था और वो चरमसुख के लिए तड़प रही थी.. उसे तृप्त करने की जिम्मेदारी जिसकी थी वह तो सो चुका था.. इसलिए वैशाली ने मामला अपने हाथों में लेने का निश्चय किया..
चिपचिपे रस से चू रही उसकी चूत के ऊपर दाने को वह रगड़ने लगी.. और दूसरे हाथ की एक उंगली चूत के अंदर बाहर करने लगी.. उसका चेहरा उत्तेजनावश लाल लाल हो रहा था.. वह बड़ी ही क्रूरता से अपनी क्लिटोरिस को घिसे जा रही थी.. अब उसने चूत में एक के बदले दो उँगलियाँ पेल दी थी.. और वह सिसक भी रही थी.. आवाज बाहर जाने की उसे बिल्कुल भी परवाह नहीं थी.. वह तो बस अपने चरमोत्कर्ष की ओर अग्रेसर होकर प्यास बुझाने की जद्दोजहत कर रही थी..
उसकी निप्पलें अपनी अवहेलना बर्दाश्त नहीं कर पाई.. दोनों स्तन ऐसे मचल रहे थे जैसे मसले जाने के लिए बेकरार हो.. अपनी चूत से उँगलियाँ निकालकर वैशाली अपने चरबीदार गोल गोल स्तनों को मसलना शुरू कर दिया.. उसकी दूसरी हथेली उसके भागोष्ठ को समझाने में मशरूफ़ थी..
उसका पूरा शरीर कांप रहा था.. कमर को मोड़ते हुए उसने अपने शरीर के निचले हिस्से को बिस्तर से उठा रखा था.. वह अपनी मंजिल के बेहद करीब थी.. उसकी चूत की मांसपेशियाँ संकुचित होकर द्रवित होने के लीये बेसब्र हो रही थी.. स्खलन बस कुछ ही दूर था की तभी..!!
उनके बेडरूम के दरवाजे पर दस्तक पड़ी.. सुनते ही वैशाली ने अपनी शारीरिक गतिविधियों को रोक दिया.. फिर से वो कान लगाकर सुनने लगी.. कहीं उसे भ्रम तो नहीं हुआ..!!
जब दूसरी बार दरवाजा खटखटाने की आवाज आई तब वैशाली फट से बिस्तर से उठी.. अपने नंगे बदन पर गाउन डाल दिया.. और चद्दर उठाकर पिंटू के बदन को ढँक दिया..
अपने बालों को ठीक करते हुए उसने दरवाजा खोला तो सामने उसकी सास खड़ी थी
वैशाली: "क्या हुआ मम्मी जी?"
पिंटू की मम्मी: "पापा को बुखार चढ़ा है.. जरा पिंटू के ड्रॉअर से क्रोसिन देना"
मन ही मन गुस्से से गुर्रा रही वैशाली ने दवाई निकाल कर दी.. और उसकी सास के जाने के बाद जोर से पटक कर दरवाजा बंद किया.. किनारे पर पहुंचकर उसकी कश्ती डूब गई.. वह स्खलित होते होते रह गई..!! अब उसमें उतनी ऊर्जा नहीं बची थी की फिर से अपने शरीर को उत्तेजित करें.. उसने लाइट बंद की और गाउन पहने बिस्तर पर जाकर लेट गई.. काफी देर तक करवटें बदलते रहने के बाद बड़ी ही मुश्किल से उसकी आँख लग पाई
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"यह आप क्या कह रहे है अंकल? मदन अंकल के साथ कैसे कर सकती हूँ मैं?"
राजेश ने फाल्गुनी को फोन करके अपना प्रस्ताव रखा.. जाहीर सी बात थी की फाल्गुनी के लिए यह काफी चौंकाने वाला था
राजेश: "मेरे साथ तो कभी तुम्हें ऐसा महसूस नहीं हुआ"
फाल्गुनी: 'आपकी बात और है"
राजेश: "कैसे??"
फाल्गुनी: (गंभीर होकर) "मैंने आपके साथ वो सब कुछ किया, लेकिन अब मैं सिर्फ आपके साथ ही रहना चाहती हूँ.. किसी और मर्द के साथ करना मुझे बड़ा अटपटा सा लगेगा.."
राजेश: (शांत भाव से) "फाल्गुनी, मैं तुम्हारी भावनाओं को समझता हूँ, लेकिन यह जो तुम महसूस कर रही हो, यह सिर्फ एक भावना ही है.. शारीरिक संबंध बनाना एक बड़ी ही सामान्य बात है.. जैसे हम अन्य शारीरिक जरूरतों को पूरा करते है.. पूरी ज़िंदगी हम एक ही प्रकार का खाना तो नहीं खाते..!! हररोज कुछ नया ट्राय करते है.. यह भी बिल्कुल वैसा ही है.. सुबोधकांत से संबंध के बाद अगर तुमने मेरे साथ ऐसा किया है, तो दूसरे के साथ भी क्यों नहीं? इसमें गलत क्या है?"
फाल्गुनी: (थोड़ा असहज होकर) "मैं नहीं जानती, अंकल.. मैंने आपके साथ जो किया, वह मेरे लिए खास था.. मैं इसे किसी और के साथ यह साझा नहीं करना चाहती.."
राजेश: (समझाने की कोशिश करते हुए) "देखो, फाल्गुनी, हमारे शरीर की इच्छाएँ और भावनाएँ अलग-अलग होती हैं। अगर तुमने मेरे साथ यह अनुभव किया है, तो यह तुम्हारे लिए नया नहीं है। दूसरे के साथ भी ऐसा करने में कोई बुराई नहीं है.. यह तुम्हारी स्वतंत्रता है और मैं तुम्हारे इच्छा विरुद्ध कुछ भी नहीं करूंगा"
फाल्गुनी: (उलझन में) "पर मैं ऐसा महसूस नहीं करती.. मैं सिर्फ आपके साथ ही ऐसा करना चाहती हूँ.."
राजेश: (थोड़ा ठंडे स्वर में) "फाल्गुनी, यह तुम्हारी सोच है.. लेकिन याद रखो, अगर तुम एक बार किसी के साथ ऐसा कर सकती हो, तो दूसरे के साथ भी कर सकती हो.. इसमें कोई बुराई नहीं है..और तुम्हें इसे लेकर कोई डर या शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए.. जरा सोचो.. उन अनगिनत संभावनाओ के बारे में.. हमारे सेक्स में एक अलग ही रंग जुड़ जाएगा.. एक नए तरीके का मज़ा आएगा.. बहुत ही दिलचस्प अनुभव होता है.. अनुभव से कह रहा हूँ.. और मैं तुम्हें केवल एक बार ट्राय करने के लिए कह रहा हूँ.. अगर उसके बाद तुम न चाहो तो मैं कभी इस बात के लिए तुम्हें आग्रह नहीं करूंगा"
फाल्गुनी: (चुपचाप) "शायद आप सही हो, लेकिन मैं अभी इसके लिए तैयार नहीं हूँ.. मुझे थोड़ा वक्त चाहिए, अंकल..!!"
राजेश: (मुस्कुराते हुए) "ठीक है, फाल्गुनी। मैं तुम्हारी भावनाओं का सम्मान करता हूँ.. यह तुम्हारी जिंदगी है, और तुम्हें जो सही लगे, वही करो बस खुद को किसी बंधन में मत बाँधो.. हाँ एक बात जरूर कहूँगा.. अगर तुम राजी हो जाती हो तो यह अनुभव हमेशा के लिए यादगार बन जाएगा"
फाल्गुनी: (मुस्कुराते हुए) "शुक्रिया, अंकल.. मैं आपको बताती हूँ"
राजेश: "मैं कल फोन करूंगा.. और हाँ, तुम अपने मम्मी पापा से बात कर लो.. जल्द ही मेरी ऑफिस जॉइन करनी है तुम्हें.. और यहाँ शिफ्ट भी तो होना है"
फाल्गुनी: "पर मैं रहूँगी कहाँ?"
राजेश: "सब इंतेजाम कर दूंगा..तुम बस मेरी बात के बारे में सोचो और कल बताओ"
फाल्गुनी: "ठीक है अंकल.. लव यू.."
राजेश: "लव यू टू..!!"
राजेश ने फोन रख दिया.. फाल्गुनी के सुर से उसे लग रहा था की लगभग वो मान ही जाएगी.. इस बारे में वह मदन को अभी बताना नहीं चाहता था.. फाल्गुनी की हाँ आने के बाद ही इस बारे में बात करना चाहता था ताकि मदन का दिल न टूट जाए
फोन रखकर फाल्गुनी गहरी सोच में पड़ गई..
यह क्या हो रहा है मेरे साथ? मैं खुद को कहाँ ले आई हूँ? पहले वो... उनके साथ यह रिश्ता, जो शायद गलत था, पर मैंने मान लिया.. उनकी बातों में आकर, उनके वादों में खोकर.. पर अब... अब वो और भी आगे जाना चाहते है.. मदन अंकल के साथ..!! वो चाहते है कि मैं मदन अंकल को भी हमारे बीच में जगह दूँ.. यह कैसे हो सकता है? मैं ऐसा कभी नहीं कर सकती.. पर अब... अब मैं खुद से सवाल कर रही हूँ.. क्यों नहीं? क्यों नहीं कोशिश करूँ? शायद यह एक नया अनुभव होगा, कुछ ऐसा, जो मैंने कभी महसूस नहीं किया.. पर क्या यह सही है? क्या मैं सच में यह चाहती हूँ? या फिर मैं सिर्फ उन्हें खुश करने के लिए, उनके लिए खुद को झोंक रही हूँ?
शायद... शायद यह वाकई में एक नई शुरुआत हो सकती है.. जिंदगी में कुछ अलग करने का मौका.. क्यों हमेशा वही पुराने ढर्रे पर चलते रहें? क्यों नहीं कुछ नया, कुछ रोमांचक करें? (खुद को समझाते हुए) हाँ, यह सही है.. मैं यह कर सकती हूँ.. मैं इसे एक अनुभव की तरह लूँगी.. शायद यह मुझे और मजबूत बनाएगा.. शायद यह मुझे और बेहतर जीवन जीने का और उसका आनंद उठाने का मौका देगा..
पर... पर क्या यह सच में मैं हूँ? क्या यह वही लड़की है जो मैं बनना चाहती हूँ? क्या मैं सिर्फ उनकी इच्छाओं की पूर्ति के लिए खुद को बदल रही हूँ? मैं क्यों इतनी कमजोर हो गई हूँ? क्यों मैं खुद को यह सब करने के लिए मजबूर कर रही हूँ?
नहीं.. मुझे ऐसा तो नहीं लगता..!! राजेश अंकल ने सिर्फ मेरी राय जानने के कोशिश की है.. कोई दबाव तो नहीं डाला.. अंतिम निर्णय मुझ पर ही तो छोड़ा है.. हाँ, मैं यह कर सकती हूँ.. मैं यह करूँगी.. यह एक नया रोमांच होगा, एक नया अध्याय.. मैं इसके लिए खुद को तैयार करूंगी..
मैं इसे एक चुनौती की तरह लूँगी.. और अब... अब मैं उत्सुक हूँ..!! मैं जानना चाहती हूँ कि यह अनुभव कैसा होगा..!! यह कैसा महसूस होगा..!! मैं इसके लिए तैयार हूँ और उत्साहित भी..!!
क्योंकि जिंदगी सिर्फ एक बार मिलती है, और मैं इसे पूरी तरह जीना चाहती हूँ..!! बिना किसी डर के, बिना किसी पछतावे के..!! यह मेरा फैसला है, और मैं इसके लिए तैयार हूँ..!!