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Great going. Age story aur bhi interesting hogi. Ab Pintu ki family bhi involve hogi.डाइनिंग टेबल के पास की खिड़की से रेणुका ने देखा.. वैशाली थी.. !!! अच्छा हुआ जो तुरंत दरवाजा नहीं खोल दिया.. वरना मुसीबत हो जाती.. !!!
रेणुका ने घबराकर मदन से कहा "मदन, वैशाली बाहर खड़ी है.. !! अब क्या करेंगे?"
मदन भी चोंक गया.. वैशाली तो शाम को आने वाली थी.. अभी कैसे टपक पड़ी?? अब क्या करें?
मदन: "रेणुका, तू पीछे के दरवाजे से निकल.. मैं दरवाजा खोलता हूँ.. और सुन.. बाहर जाकर शीला को फोन कर.. और उसे कहना की वो जल्दी यहाँ आ जाए.. और ये भी कहना की वैशाली उससे पूछे की कहाँ गई थी तो बताए की बाजार गई थी.. मैं भी वैशाली से यही कहूँगा.. "
जाने से पहले रेणुका ने मदन को किस कर बाहों मे भरते हुए उसका लंड दबा दिया.. और किचन के रास्ते, कंपाउंड से निकलकर वैशाली के अंदर जाने का इंतज़ार करने लगी.. जैसे ही वैशाली अंदर गई.. रेणुका ने चुपके से लोहे का दरवाजा खोला और बाहर निकली तब उसे याद आया.. गाड़ी की चाबी तो अंदर ही रह गई.. अब क्या होगा?
रेणुका ने शीला को फोन लगाया
रेणुका: "यार जल्दी आजा.. वैशाली आ चुकी है"
शीला: "कोई बात नहीं.. वैशाली को बोल दे की आज से तू ही उसकी मम्मी है"
परेशान होते हुए रेणुका ने कहा "मज़ाक का टाइम नहीं है अभी शीला.. !!"
शीला: "अरे, टेंशन मत ले.. मैं ऑलरेडी राजेश के साथ घर पहुँच ही रही हूँ.. देख पलट कर.. हमारी गाड़ी गली के अंदर आ चुकी है"
रेणुका ने मुड़कर देखा.. राजेश ने गाड़ी रेणुका के पास लाकर खड़ी कर दी..
रेणुका दौड़कर गाड़ी के पास आई.. शीला उतर गई और रेणुका तुरंत अंदर बैठ गई..
रेणुका: "शीला सुन.. मेरी गाड़ी की चाबी तेरे घर के अंदर ही छूट गई है.. मदन से बोलकर गाड़ी मेरे घर भिजवा देना.. ओके.. !! चल राजेश.. गाड़ी चला, जल्दी.. !!"
राजेश ने गाड़ी दौड़ा दी और वो लोग तुरंत ही शीला की सोसायटी के बाहर निकल गए
रेणुका राजेश से नजरें नहीं मिला पा रही थी.. दूर रहकर जो जो गुलछर्रे उड़ाये थे.. जो गंदी बातें की थी.. वो याद आते ही वो बेहद झिझकने लगी थी..
राजेश ने भी रेणुका के साथ कुछ बात नहीं की और उसे घर के पास उतारकर ऑफिस चला गया
इस तरफ शीला घर के अंदर आई
वैशाली और मदन ब्रेकफ़ास्ट करते हुए बातें कर रहे थे..
शीला: "अरे वैशाली बेटा.. तू आ गई?? कैसी रही तुम लोगों की पार्टी?"
मदन के साथ शीला न तो नजर मिला रही थी और ना ही बात कर रही थी
वैशाली: "ओह मम्मी, बहोत मज़ा आया.. कविता और पीयूष तो खुश हो गए मुझे देखकर.. और पापा को पीयूष ने एक ऑफर दी ही"
शीला ने चोंककर पूछा "कैसी ऑफर?"
वैशाली ने हंसकर कहा "तुझे नहीं.. पापा को दी है ऑफर.. पीयूष को एक अमरीकन कंपनी का ऑर्डर मिला है.. और उसी सिलसिले मे वह चाहता है की पापा उसे कन्सल्टन्सी दे.. जल्द से जल्द उसने मिलने के लिए कहा है"
"वैसे पीयूष ने सुबोधकांत का बिजनेस बड़े ही अच्छे से संभाल लिया है, वाकई बड़ा होनहार लड़का है " पीयूष की तारीफ करते हुए मदन ने कहा
शीला: "हाँ, बड़ा ही मेहनती लड़का है" कहते हुए शीला को वो दिन याद आ गया जब सिनेमा हॉल मे पीयूष ने उसके स्तनों को मसला था.. !!
वैशाली: "हाँ पापा.. वो तो है" वैशाली भी उस दिन की याद आ गई.. जब उस बन रहे मकान के अंदर.. रेत के ढेर पर पीयूष ने उसे रगड़कर चोद दिया था.. !!
वैशाली: "बाकी सब तो ठीक है मम्मी.. पर कविता बहोत ही बोर हो रही है.. पीयूष के पास टाइम ही नहीं होता उसे देने के लिए.. पूरा दिन बिजनेस मे उलझा रहता है.. कविता पुराने दिनों को बहोत मिस कर रही थी.. खास कर तुम्हें वो बहोत ही मिस कर रही थी, मम्मी"
शीला: "पीयूष को समझना चाहिए.. पैसा ही सब कुछ नहीं होता.. पुरुषों को अपने काम और गृहस्थी.. दोनों के बीच संतुलन बनाकर रखना आना चाहिए.. अब मेरी ही बात कर.. तेरे पापा विदेश थे तब मैं भी यहाँ कितना बोर होती रहती थी अकेले अकेले.. !! और कविता का बोर होना भी जायज है.. घर की चार दीवारों के बीच पूरा दिन बैठकर कोई भी तंग आ जाएगा.. !! और जब पति को तुम्हारे सामने देखने का भी टाइम न हो तो पत्नी बेचारी क्या करेगी??"
मदन: "बात तो तेरी सही है शीला.. पर आज कल की पत्नियाँ और बच्चों की जरूरतें इतनी बढ़ चुकी है की उनके खर्चों को पूरा करने के लिए मर्दों को अपनी क्षमता से भी दोगुना काम करना पड़ता है.. उसके ऊपर भी चौबीस घंटों मे अड़तालीस घंटों का काम खत्म करने का दबाव हरपल रहता है.. ये भी हमें भूलना नहीं चाहिए.. मैं तेरी उस बात से सहमत हूँ की पुरुष को दोनों तरफ ठीक से बेलेन्स बनाना आना चाहिए.. पर कहना बड़ा ही आसान है.. अगर पीयूष अपना आधा ध्यान कविता को देता. तो हो सकता है की अब तक सुबोधकांत का पूरा बिजनेस ही ठप्प हो चुका होता.. क्यों की अगर किसी काम को करने मे आप अपना १०० प्रतिशत ध्यान और प्रयास नहीं देते है.. तो आप कभी भी सफल नहीं हो पाएंगे" मदन ने पुरुषों का पक्ष रखते हुए कहा
वैशाली: "फिर तो पापा.. मर्दों को अपना १०० प्रतिशत ध्यान अपनी पत्नी को ही देना चाहिए.. क्योंकि अगर व्यापार मे घाटा हो तो उसकी भरपाई हो सकती है.. लेकिन अगर पत्नी छोड़कर भाग गई तो कभी वापिस लौटकर नहीं आएगी" अपनी बात पर खुद ही ठहाका लगाकर हंसने लगी वैशाली
खिलखिलाकर हंस रही वैशाली को देखकर.. मदन और शीला को बहोत अच्छा लगा.. पिंटू के संसर्ग मे आकर वैशाली कितना खुश लग रही थी..
वैशाली का साथ देते हुए उसकी बात पर शीला भी हंसने लगी..
वैशाली उठकर अपने कमरे मे चली गई..
शीला ने मदन के करीब आकर उसके कान मे कहा "एक रात के लिए बीवी भी छोड़कर भाग जा सकती है.. अगर उसका ध्यान ठीक से ना रखो तो.. समझे मिस्टर बेवकूफ.. !!"
मदन ने हँसते हँसते कहा "असन्तुष्ट पत्नी.. घर पर बैठे बैठे रोज नए लंडों से चुदवाये.. उससे तो यही बेहतर होगा की वो किसी एक के साथ.. एक रात के लिए भाग जाए.. हाहाहाहाहा.. पति विदेश गया हो तब.. कभी दूध वाले के साथ तो कभी सब्जी वाले के साथ.. घर पर रंगरेलियाँ मना रही पत्नी से तो अच्छा है की वो किसी के साथ कहीं भाग जाए.. !! कम से कम जिसके साथ भागी है उसे तो वफादार रहेगी.. !!!"
शीला: "अगर पत्नी की इतनी ही चिंता हो तो या तो उसे साथ ले जाना चाहिए.. या फिर घर पर ही गांड चिपकाकर बैठना चाहिए.. मदन, जब हम अपनी मकान मालकिन के बबलों का दूध चूस रहे हो ना तब अपनी बीवी के बबले याद आने चाहिए.. पत्नी बेचारी पति के याद मे उँगलियाँ डाल डालकर दिन गुजार रही हो और पति वहाँ विदेश मे.. गोरी राँडों के बबलों से दूध चूस रहा हो.. ठीक तो ये भी नहीं है.. !!"
मदन ने आखिर हथियार डाल दीये.. शीला से बहस मे जीतना नामुमकिन था
मदन: "बस भी कर शीला.. अब मैं तुझे छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला.. !!"
तब तक वैशाली कपड़े बदल कर अपने कमरे से बाहर आ गई थी
शीला: "आज ऑफिस नहीं जाना है बेटा?"
"नहीं मम्मी.. पिंटू एक दिन के लिए अपने घर ही रुक गया है.. उसके बगैर ऑफिस मे दिल नहीं लगेगा.. सोचा मैं भी आज छुट्टी इन्जॉय कर लू"
"ठीक है बेटा.. ये बता.. पिंटू के साथ तेरा कैसा चल रहा है? मेरा मतलब है कितना आगे बढ़े हो?? शादी करने के बारे मे कुछ सोचा भी है या नहीं?" मदन के अंदर का जिम्मेदारी भरा पिता बोल पड़ा
वैशाली: "दरअसल, पिंटू वही बात करने के लिए घर पर रुक गया है.. पिंटू का परिवार थोड़ा सा रूढ़िवादी है.. उसका कहना है की एक तलाकशुदा लड़की से शादी करने के लिए उसके परिवार को मनाना कठिन होगा "कहते हुए वैशाली गंभीर हो गई
शीला के चेहरे पर भी चिंता की शिकन आ गई.. मदन ने खड़े होकर वैशाली के कंधे पर हाथ रख दिया और बोला "देख बेटा.. अगर पिंटू के परिवार वाले नहीं माने.. तो तुझे वास्तविकता का स्वीकार करना ही होगा.. तेरा तलाक हो चुका है और पिंटू अभी कुंवारा है.. कोई भी माँ बाप अपने कुँवारे बेटे की शादी किसी तलाकशुदा लड़की से नहीं करना चाहेंगे.. अगर पिंटू का प्यार सच्चा होगा तो वो अपने परिवार के सामने अड़ग रहकर अपना पक्ष रखेगा तो मुझे लगता है की उसके परिवार वालों को मानना ही होगा.. हम तो बस ईश्वर से प्रार्थना कर सकते है की वो सब को सद्बुद्धि दे और तुझे अपनी पसंद का जीवनसाथी मिल जाए.. मान लो की अगर ऐसा नहीं भी होता.. तो हमें किसी और की तलाश करनी होगी.. पर तुम निराश मत होना बेटा.. याद रखना.. कुछ भी हो.. तेरे ये माँ-बाप हमेशा तेरे साथ खड़े रहेंगे" कहते हुए मदन की आँखें नम हो गई
अपनी बेटी को वास्तविकता का ज्ञान देना हर पिता का फर्ज होता है..
वैशाली की आँखों से आँसू बहने लगे.. पिंटू को खो देने का डर उसकी आँखों से साफ झलक रहा था.. उसे इस हाल मे देख शीला और मदन दोनों बेचैन हो गए.. जब खुद पर कंट्रोल न रहा तब वैशाली दौड़कर अपने कमरे मे चली गई और दरवाजा बंद कर दिया.. शीला और मदन दोनों समझ गए की अपने माँ-बाप से अपने आंसुओं को छुपाने के लिए वो अंदर चली गई थी.. वैसे सेंकड़ों किलोमीटर का अंतर भी क्यों न हो.. बेटी के आँसू तो माँ और बाप कहीं भी बैठे बैठे भांप लेते है.. मदन सब कुछ बर्दाश्त कर सकता था पर अपनी बेटी को रोते हुए नहीं देख सकता था.. और अब तक वैशाली ने बहोत दुख सहे थे.. और वो जरा भी नहीं चाहता था की वैशाली और दुखी हो.. !! सख्त और कठोर बापों को भी मैंने अपनी बेटी की जुदाई के गम मे छोटे बच्चों की तरह रोते हुए देखा है..
जब मदन से और बर्दाश्त नहीं हुआ तब उसने शीला से कहा "मैं थोड़ी देर मे आ रहा हूँ"
कहते हुए वो घर से बाहर निकल गया.. और फिर एक कोने मे खड़े रहकर बहोत रोया.. कुछ देर तक रोने के बाद दिल हल्का हो गया.. पास की दुकान से बिसलेरी की बोतल लेकर उसने अपना चेहरा धोया और ठंडा पानी पिया..
थोड़ा सा सामान्य होने के बाद, मदन ने पिंटू को फोन लगाया.. और पिंटू से उसके पिता के बारे मे.. उनके स्वभाव.. उनके कामकाज के बारे मे सारी जानकारी ले ली.. पिंटू ने भी बड़े उत्साह से उसे सब कुछ बताया..
पिंटू के पापा एक शिक्षक थे.. पिंटू ने कहा की उसने वैशाली के बारे मे घर पर बता दिया था.. उसकी मम्मी तो तैयार थी पर उसके पापा को समाज का डर सता रहा था..
पिंटू: "मुझे लगता है की मैं और मम्मी मिलकर पापा को मना लेंगे.. क्योंकी घर मे चलती तो आखिर मेरी मम्मी की ही है"
मदन: "ये तो कहानी घर घर की है.. दुनिया भर के अधिकतर घरों मे यही होता है.. पिंटू.. बेटा अगर तुझे एतराज न हो तो क्या मैं तेरे पापा से एक बार बात कर सकता हूँ?"
पिंटू: "मुझे क्यूँ एतराज होगा भला.. !! पर मैं चाहता हूँ की एक बार पापा को मना लूँ.. फिर आप बात कीजिए.. मैं नहीं चाहता की वो बेवजह आपका कोई इंसल्ट कर दे.. !!"
पिंटू की समझदारी देखकर मदन को बहुत ही अच्छा लगा.. उसने कहा "ओके बेटा.. जैसा तुम कहो.. वैसे कब तक फैसला आने की संभावना है?"
पिंटू: "अंकल, मम्मी ने कहा ही की वो आज रात को ही पापा से बात करेगी.. सुबह तक तो पता चला जाएगा.. और मुझे आशा है की फैसला हमारे पक्ष मे ही आएगा"
मदन ने फोन रख दिया.. उस पूरे दिन मदन वैशाली के भविष्य के बारे मे चिंता करता रहा.. पिंटू के साथ फोन पर हुई बातचीत के बारे मे मदन ने शीला या वैशाली को कुछ नहीं बताया.. होता कुछ नहीं और बेकार मे वह दोनों भी पूरा दिन टेंशन लेकर घूमती रहती..
दूसरी सुबह उठाते ही मदन ने पिंटू को फोन किया
पिंटू: "सॉरी अंकल.. पापा नहीं मान रहे.. उनका कहना है की एक तलाकशुदा लड़की उनकी बहु बनकर आई तो उनकी नाक कट जाएगी.. लोग कहेंगे की इकलौते लड़के के लिए एक कुंवारी लड़की भी नहीं ढूंढ पाए"
शीला और वैशाली सुन न ले इसलिए मदन ने तभी फोन काट दिया..
वैशाली के ऑफिस जाने के बाद.. मदन ने पिंटू के पापा को कॉल किया.. और वैशाली के भूतकाल.. उसकी निर्दोषता की अच्छी वकालत करते हुए.. उन्हें सारी हकीकत बता दी.. काफी समझाने के बाद पिंटू के पापा मान गए.. और बच्चों की खुशी के खातिर हाँ कह दी.. !! पिंटू की मम्मी का भी यही मानना था की उनके बेटे को उसी से ब्याह करना चाहिए जिससे वो प्यार करता हो.. !!
वैशाली और पिंटू के जीवन मे खुशी का एक स्थायी रंग जुडने वाला था.. जो आखिरी समस्या थी वह अब हल होती नजर आ रही थी
पर पिंटू के पापा ने एक शर्त रखी थी.. वह चाहते थे की रिश्ता तय करने से पहले, वैशाली एक महीने के लिए उनके घर आकर रहें.. जिससे को उनके परिवार के लोग वैशाली के स्वभाव, आदतों और चारित्र से भलीभाँति परिचित हो सके.. साथ ही वैशाली भी उनके परिवार के सदस्यों को अच्छी तरह पहचान ले..
उनकी यह शर्त शीला और मदन को बड़ी अटपटी सी लगी.. लेकिन आखिर वो भी इस बात के लिए मान ही गए..
इस शर्त को पूरा करने के लिए अब वैशाली को राजेश सर की ऑफिस वाली नौकरी छोड़नी पड़ेगी.. एक ही निर्णय से कितने सारे बदलाव आने लगे थे.. !! जीवन के कुछ परिवर्तन ऐसे होते है जिन्हें स्वीकार करने के अलावा कोई चारा नहीं होता.. !! वैशाली ने बड़े ही दुख के साथ राजेश को अपना त्यागपत्र सौंप दिया और कुछ दिनों के बाद पिंटू के घर जाने की घड़ी आ गई
शीला और मदन के लिए तो एक ही जनम मे.. एक बेटी को दूसरी बार विदा करने का मौका आया था.. जब पिंटू वैशाली को लेने आया तब वैशाली शीला से लिपट कर खूब रोई.. मदन के कंधे पर आँसू बहाए.. पिंटू के काफी प्रयासों के बाद वैशाली आखिर शांत हुई और उसके साथ चली गई
वैशाली के जाते ही.. शीला और मदन का घर एक अजीब से खलिश से भर गया.. जैसे उनके बागीचे की इकलौती चिड़िया जा चुकी हो.. !!
बेटी को विदा करने के बाद.. घर शमशान सा प्रतीत होता है.. जन्म से लेकर जवानी तक.. जिस घर मे उस लड़की की परवरिश हुई हो.. जिसके चहकने से पूरा घर हर पल गूँजता रहता हो.. वह बेटी जब घर से चली जाए.. तब घर के सदस्यों के साथ साथ घर की दीवारें भी रो पड़ती है.. !! यह दर्द तो वही जानता है जिसने महसूस किया हो.. !!
मदन और शीला बिल्कुल अकेले हो गए.. उन्हें सामान्य होने मे कई दिन लग गए..
कविता दिन मे एक-दो बार वैशाली को फोन करती और उसके हाल पूछती.. पीयूष और कविता हफ्ते मे एक बार पिंटू के घर आते.. और दोनों जोड़ें मिलकर साथ मे बहोत मजे करते.. वैशाली के आने से कविता के जीवन का खालीपन थोड़ा सा कम होने लगा था.. पीयूष पूरा दिन ऑफिस रहता.. हाँ मौसम और फाल्गुनी की कंपनी मिलती.. पर वो दोनों भी अपनी कॉलेज के आखिरी साल मे काफी बीजी रहते थे.. वैशाली के आने से कविता को एक साथ मिल गया
पीयूष को आखिर उस अमरीकन कंपनी का ऑर्डर मिल ही गया.. पर उसके कारण तो पीयूष की व्यस्तता और बढ़ गई.. !!
अगला अपडेट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
Wowww Vaishali jaisi chuddakad aurat Rasik ke lund se dar gai.दूसरी सुबह पिंटू के पापा ने मदन को फोन कर बताया की वो लोग १५ जनवरी के बाद, अच्छा सा मुहूरत देखकर, पिंटू और वैशाली की बड़े ही धूमधाम से शादी करना चाहते है..
वैशाली अपने सास-ससुर का दिल जीतकर अपने मम्मी पापा के घर लौट आई.. शादी का मुहूरत निकाला गया और शॉपिंग भी शुरू हो गई.. ज्यादातर शॉपिंग वैशाली को शीला के साथ या फिर अकेले ही करनी पड़ती थी.. काश कविता यहाँ होती.. !! और पीयूष भी होता.. तो उसके साथ ब्रा और पेन्टी की शॉपिंग करने जाने मे मज़ा आ जाता.. !! उस दिन जब वो दोनों साथ मे ब्रा-पेन्टी लेने गए थे तब की यादें ताज़ा हो गई
कितनी सारी यादें जुड़ी थी इस घर के साथ.. यहाँ के लोगों के साथ.. याद करते ही वैशाली का दिल भर आया
कविता और वैशाली फोन पर तो संपर्क मे रहते ही थे.. कभी कभार पीयूष से भी बात हो जाती थी वैशाली की
उस दौरान एक बड़ा बदलाव यह आया की मौसम ने अपना ऑफिस जॉइन कर लिया.. वैसे उसका उद्देश्य पीयूष की बिजनेस म ए मदद करना नहीं पर विशाल के करीब रहना ही था.. विशाल उसके दिल मे बस चुका था.. मौसम किसी भी तरह विशाल के साथ दोस्ती करना चाहती थी... तरुण के साथ हुए ब्रेक-अप के बाद जो पतझड़ आई थी.. वहाँ विशाल वसंत बनकर मौसम की ज़िंदगी मे आया था.. विशाल के साथ मित्रता करने मे मौसम को थोड़ी बहोत सफलता भी मिली.. हालांकि मालिक होने के नाते.. विशाल मौसम की बड़ी इज्जत करता और थोड़ी सी दूरी भी बनाए रखता.. वो हमेशा मौसम को "मैडम" कहकर संबोधित करता था..
मौसम पूरा दिन ऑफिस रहती इसलिए फाल्गुनी से उसका मिलना काफी कम हो गया था.. हालांकि वो दोनों रविवार के दिन जरूर मिलते.. बिजनेस का एक हिस्सा अब मौसम संभालने लगी थी.. पीयूष ने मौसम के लिए अलग से चैम्बर बनवा दिया था जिसमे मौसम एक बड़ी सी रिवॉलविंग कुर्सी पर शान से बैठती थी..
ऑफिस मे मौसम के दोस्ती उस रीसेप्शनिस्ट फोरम से भी हो गई थी.. वह दोनों साथ ही लंच लेते और ढेर सारी बातें करते.. वैसे भी बातुनी लड़कियों की दोस्ती होने मे देर नहीं लगती.. अब फोरम मौसम के घर भी आने लगी थी.. फाल्गुनी, फोरम और मौसम की टोली साथ मिलकर मौज मस्ती से अपने दिन व्यतीत कर रहे थे
विशाल के साथ जो कुछ भी बातें होती, वह सारी बातें मौसम घर आकर फोन पर फाल्गुनी को बताती और फिर वह दोनों मौसम विशाल के और करीब जा सकें वैसी योजनाएं बनाते..
फाल्गुनी के माता पिता बड़ी ही बेसब्री से उसका ब्याह करना चाहते थे पर फाल्गुनी किसी लड़के को पसंद ही नहीं कर रही थी.. !! यहाँ तक की उसकी मम्मी ने फाल्गुनी बता भी दिया था की अगर उसे कोई लड़का पसंद हो तो वो उसकी शादी खुशी खुशी करने को तैयार थे.. अब फाल्गुनी कैसे बताती.. उसे जो पसंद था वो तो पहले ही दुनिया छोड़कर जा चुका था
रविवार की एक सुबह.. मौसम और फाल्गुनी घर पर बैठे बोर हो रहे थे.. मौसम ने सुझाव दिया की ऑफिस जाकर बैठा जाए.. वैसे फाल्गुनी मौसम की ऑफिस कभी नहीं जाती थी.. क्योंकि वहाँ जाते ही उसे सुबोधकांत संग गुजारा वो हसीन समय याद आ जाता और वो उदास हो जाती.. लेकिन मौसम की जिद के कारण फाल्गुनी तैयार हो गई
दोनों एक्टिवा लेकर ऑफिस वाली सड़क पर पहुँच ही रहे थे की तब मौसम ने विशाल को बाइक पर जाते हुए देखा और जोर से चिल्लाई "वो देख फाल्गुनी.. विशाल जा रहा है" विशाल को देखते ही मौसम के चेहरे पर बहार आ गई
"हाय विशाल.. !!" हाथ हिलाते हुए मौसम ने विशाल की ओर देखकर जोर से आवाज लगाई..
विशाल ने सुन लिया और तुरंत अपना बाइक रोक दिया..
"अरे मैडम आप यहाँ?? आज तो संडे है फिर भी ऑफिस जा रहे है??"
मौसम: "विशाल.. बॉस के लिए कभी कोई छुट्टी नहीं होती.. उसकी नौकरी तो चौबीसों घंटे चालू ही रहती है.. तुम बताओ.. किस तरफ जा रहे थे?? अगर फ्री हो तो चलो मेरे साथ.. ऑफिस मे बैठकर साथ कॉफी पियेंगे.. "
विशाल: "मैडम.. दरअसल फोरम की तबीयत ठीक नहीं है.. बहोत तेज बुखार आया है उसे.. मैं उसे देखने ही जा रहा था"
फाल्गुनी: "ओह ये बात है.. हमें तो पता ही नहीं था.. एक काम करते है.. पहले फोरम को मिल आते है.. फिर कॉफी पियेंगे"
विशाल: "फिर चलते है.. मैं अपना बाइक आगे रखता हूँ.. आप पीछे आइए.. आपने फोरम का घर देखा नहीं होगा इसलिए"
दस मिनट के अंदर तीनों फोरम के घर पहुँच गए.. तीनों को साथ देखकर फोरम बहोत खुश हुई.. बुखार के कारण कमजोरी आ गई थी और उसका गोरा पतला चेहरा.. और दुबला लग रहा था.. फोरम का हाल जानकर वो लोग निकल ही रहे थे तब फोरम की मम्मी सब के लिए कॉफी लेकर आई
कॉफी को देखकर, मौसम और फाल्गुनी के दूसरे के सामने देखकर हंसने लगा
फोरम: "आप दोनों हंस क्यों रहे हो?"
फाल्गुनी: "दरअसल हम यहाँ से ऑफिस जाने वाले थे और वहाँ कॉफी पीने का प्लान था.. इसलिए हंस रहे थे"
विशाल ने फोरम के सर पर हाथ रखकर बड़ी ही आत्मीयता के साथ कहा "तू जल्दी ठीक हो जा.. फिर हम साब साथ बैठकर कॉफी पियेंगे"
विशाल और फोरम की इतनी करीबी देखकर मौसम के दिल मे आग सी लग गई.. विशाल जैसे जैसे फोरम के साथ बातें करता गया.. मौसम का चेहरा उतरता गया.. आखिर जब उससे बर्दाश्त नहीं हुआ था वो फाल्गुनी का हाथ पकड़कर खड़ी हो गई और बोली "अब चलें?? बहोत देर हो गई है"
फाल्गुनी: "हाँ चलते है"
मौसम: "और फोरम.. तबीयत ठीक न हो तो थोड़े दिनों तक आराम ही करना.. ऑफिस आने की जरूरत नहीं है.. वैसे भी फाल्गुनी फ्री बैठी है.. कुछ दिनों के लिए रीसेप्शन डेस्क वो संभाल लेगी"
फोरम की मम्मी ने मौसम का शुक्रियादा करते हुए कहा "वैसे भी वो बड़ी कमजोर हो गई है.. कुछ दिन लगेंगे उसे ठीक होने मे"
मौसम: "आप चिंता मत कीजिए आंटी.. बस फोरम का खयाल रखिए.. और जब तक वो पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाती उसे घर से बाहर मत निकालने देना.. और अगर कुछ काम हो तो ऑफिस फोन करना"
मन ही मन मौसम खुश हो रही थी.. जीतने दिन फोरम ऑफिस नहीं आती उतने दिन उसे विशाल के ओर करीब जाने का मौका जो मिलने वाला था..
मौसम और फाल्गुनी बाहर निकले
मौसम: "विशाल तो आया ही नहीं.. पूछ ले उसे की साथ चल रहा है या नहीं"
फाल्गुनी: "अब उसने कॉफी तो यही पी ली फिर क्यों आएगा साथ.. !!"
मौसम: "ठीक है फिर.. हम ऑफिस चलें या फिर घर जाना है?" कहते हुए मौसम ने एक्टिवा स्टार्ट किया
फाल्गुनी: "ऑफिस ही चलते है.. सिर्फ हम दोनों.. अकेले" कहते हुए फाल्गुनी अपने स्तन दबाकर मौसम के पीछे बैठ गई
दोनों ऑफिस पहुंचे..
अंदर प्रवेश करते ही फाल्गुनी बेहद उदास हो गई.. रीसेप्शन की दीवार पर सुबोधकांत के एक बड़े से फ़ोटो पर चंदन का हार चढ़ाया हुआ था.. जिसे देखते ही फाल्गुनी की आँखें भर आई..
फाल्गुनी ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा "मौसम, इसी ऑफिस मे.. यहीं पर.. अंकल के साथ कितने मजे किए थे मैंने.. !! हर रविवार को दोपहर चार से छह के बीच में हम दोनों यही रहते थे.. " फाल्गुनी ज्यादा बोल न पाई..
मौसम: "अपने आप को कंट्रोल कर फाल्गुनी"
फाल्गुनी से रहा न गया और वो मौसम से लिपट कर बहोत रोई.. मौसम ने भी उसे रो लेने दिया
सच मे.. कुछ लोग और कुछ रिशतें... छुपकर रोने के लिए ही उनका अस्तित्व होता है.. तो कुछ संबंध इतने विशिष्ट होते है की उन्हें याद कर रोने के लिए भी एक खास प्रकार के एकांत की जरूरत होती है.. फाल्गुनी के आँसू, सुबोधकांत की रूह को भी रुला दे इतने ताकतवर थे.. मौसम तो सोच रही थी.. की ऑफिस आकर.. अकेलेपन का फायदा उठाकर दोनों मस्ती करेंगे.. पर यहाँ तो कुछ और ही हो गया.. फाल्गुनी की ऐसी मनोदशा देखते हुए कुछ होने की थोड़ी बहोत उम्मीद भी चल बसी..
सुबोधकांत की ऑफिस मे कुछ ज्यादा बदलाव नहीं हुए थे.. वही सोफ़ा सेट.. वही ऑफिस टेबल, वही कुर्सियाँ और वही टेलीफोन.. फरक था तो सिर्फ इतना की इन सब का असली मालिक अब मौजूद नहीं था.. जिसके कारण इस पूरी ऑफिस की शोभा थी.. फाल्गुनी एकटक सुबोधकांत के हँसते हुए फ़ोटो को तांक रही थी.. जैसे दोनों की रूह एक दूसरे के संग बातें कर रही हो.. फाल्गुनी का यह रूप मौसम ने भी आज पहली बार देखा था..
फाल्गुनी ने बगल मे पड़ा स्टूल उठाया.. और उसपर चढ़कर सुबोधकांत की तस्वीर नीचे उतारी.. मौसम ने भी उसे रोका नहीं.. रविवार होने के कारण ऑफिस मे उन दोनों के अलावा और कोई नहीं था.. सुबोधकांत की फ़ोटो गोद मे लेकर फाल्गुनी सोफ़ा पर बैठ गई और किसी जिंदा व्यक्ति के साथ बात कर रही हो वैसे उस तस्वीर के साथ बातें करने लगी.. उसके गालों पर अश्रु की धाराएं अविरत बहती जा रही थी... मौसम भी यह द्रश्य ज्यादा देर तक देख न सकी.. फाल्गुनी के प्रेम की परवशता देखकर उसने अपनी आँखें बंद कर ली.. उसका मौन रुदन.. उसके आँसू.. मौसम को जड़ से हिला गए..
मौसम ने फाल्गुनी के कंधे पर हाथ रख दिया.. और बड़े ही प्यार से उसे अपनी गोद मे सुला दिया.. मौसम की गोद मे लेटे हुए फाल्गुनी ने सुबोधकांत की फ़ोटो अपनी छाती से लगा रखी थी, वह बोली "अंकल, आपको मेरी यही छाती बहुत पसंद थी ना.. !!"
मौसम समझ गई.. फाल्गुनी केवल जुदाई के गम के कारण नहीं रो रही थी.. उसे पापा के मर्दाना स्पर्श की याद भी बड़ी सता रही थी.. थोड़ी देर फाल्गुनी को यूं ही पड़े रहने देने के बाद.. मौसम ने धीरे से उसके हाथों से अपने पिता की तस्वीर ले ली.. और उसे संभालकर टेबले पर रख दिया..
अब मौसम ने अपना हाथ फाल्गुनी के छाती पर रखकर उसके स्तनों को हल्के से दबा दिया
फाल्गुनी: "ओह्ह अंकल.. मैं आपको बहोत मिस कर रही हूँ.. बहोत बहोत ज्यादा.. आप प्लीज लौटकर वापिस आ जाइए.. !!"
मौसम हल्के हल्के से फाल्गुनी के स्तनों को मसल रही थी तब फाल्गुनी आँखें बंद कर फुट फुटकर रो रही थी.. मौसम का इरादा फाल्गुनी को इस दुख से मुक्त कर सामान्य करने का था.. वह धैर्यपूर्वक फाल्गुनी के स्तनों को मसलती रही
आखिर मौसम ने जैसा चाह था वैसा ही हुआ.. फाल्गुनी शांत हो गई.. आँखें बंद कर वो मौसम के स्पर्श में सुबोधकांत की झलक को ढूँढने लगी थी..
वैसे तो मौसम ने अनगिनत बार फाल्गुनी के स्तनों को दबाया था.. दोनों के लिए यह कोई नई बात नहीं थी.. पर आज जो हुआ वो आज से पहले कभी नहीं हुआ था.. मौसम के हाथों से फाल्गुनी को अंकल की अनुभूति का अजीब सा एहसास हो रहा था.. एक भावुक क्षण जब भावुक सेक्स मे परिवर्तित होती है वही तो उच्च कक्षा के प्रेम की अवस्था होती है..
फाल्गुनी और मौसम ने एक दूसरे के बेडरूम मे जितनी भी बार लेस्बियन सेक्स का आनंद लिया था.. तब फाल्गुनी हमेशा उसे सुबोधकांत की पसंद नापसंद और उनकी हरकतों के बारे मे बताती रहती थी.. इतने समय मे.. मौसम ने अपने पिता की सारी हरकतों को आत्मसात कर लिया था.. और वो सारी हरकतें करते हुए वो आज फाल्गुनी को अपने पिता की अनोखी याद दिलाना चाहती थी..
अक्सर प्रेमी जिस जगह नियमित रूप से मिलते हो... उस जगह से उन्हें एक अनूठा सा लगाव हो जाता है.. जुदाई के चरण मे.. वही जगह उन्हे फिर से बीते वक्त की याद दिलाने मे महत्वपूर्ण किरदार अदा करते है.. !! प्रेमी उस स्थान पर घंटों अकेले बैठे बैठे अपने खोए हुए प्यार की याद मे तड़प सकता है.. दुनिया की नजर मे इसे चोंचलेबाजी कहा जा सकता है.. पर उसका क्या महत्व होता है वो सिर्फ एक प्यार करने वाला ही बता सकता है
मौसम आज फाल्गुनी के साथ सुबोधकांत का किरदार निभा रही थी.. वही माहोल था.. वही जगह थी.. वही रविवार का दिन था.. बस समय बदल गया था.. जो काम दोपहर के बाद होता था वो आज दोपहर से पहले हो रहा था..
रो रो कर लाल हो चुकी आँखों के साथ.. फाल्गुनी ने अपने स्तनों को सहला रहे मौसम के हाथों को मजबूती से पकड़कर दबा दिया.. अपनी कमर उचकते हुए फाल्गुनी ने कहा "आह्ह मौसम.. तेरा हर एक स्पर्श, मुझे अंकल की याद दिला रहा है.. आह्ह.. और जोर से रगड़!!"
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मौसम ने फाल्गुनी के शर्ट के बटन खोल दीये और ब्रा के अंदर से छलक रहे उभारों को एक के बाद एक चूम लिया.. मौसम की हर एक हरकत सुबोधकांत की तरह ही थी.. यह सब मौसम ने फाल्गुनी की बातों से ही तो सीखा था..
आवेश मे आकर फाल्गुनी ने अपने स्तनों को मौसम की छाती से रगड़ते हुए कहा "यार, कुछ कर ना यार.. !!"
"क्या करना है तू ही बता फाल्गुनी" फाल्गुनी के दोनों स्तनों को ब्रा की कैद से बाहर निकालकर मसलते हुए मौसम ने कहा.. अब मौसम का खून भी तेजी से दौड़ते हुए पूरे जिस्म को गरम करने लगा.. और उसके हाथ फाल्गुनी की जांघों पर होते हुए उसकी चूत तक पहुँच चुके थे..
फाल्गुनी अब खड़ी हो गई और उसने मौसम को धक्का देकर सोफ़े पर गिरा दिया.. फिर अपने स्तनों को मौसम के चेहरे के पास झुलाते हुए मौसम के दोनों स्तनों को पकड़कर बड़े ही जालिम अंदाज मे दबाने लग गई..
मौसम ने फाल्गुनी की एक चुची को पकड़कर उसकी निप्पल पर अपनी जीभ का स्पर्श किया.. फाल्गुनी सिहर उठी.. मौसम उसकी निप्पल चूसती रही और फाल्गुनी उसके स्तनों को दबाती रही.. उस दौरान वह दोनों बार बार एक दूजे की चूत को भी सहला रहे थे.. कुंवारी चूतों पर उंगलियों का घर्षण होते ही दोनों को झड़ने मे देर नहीं लगी..
एक सुंदर कामुक सेशन के बाद.. दोनों चूतें स्खलित होकर शांत हो गई.. चार स्तन मिलकर हांफ रहे थे.. बड़ा ही मनोहर द्रश्य था.. काफी देर तक एक दूसरे की बाहों मे पड़े रहने के बाद दोनों फ्रेश होकर घर की तरफ निकल गए
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मौसम जब फाल्गुनी को छोड़कर घर पहुंची... तब कविता और पीयूष, रमिलाबहन के साथ बातें करने मे मशरूफ़ थे..
मौसम को देखते ही रमिलाबहन ने उसे प्यार से अपने पास बुलाया और कहा "बेटा.. ये तेरे जीजू जो कह रहे है वो सच है क्या?? ऑफिस का वो लड़का तुझे बहोत पसंद है ऐसा वो कह रहे है.. !!"
मौसम ने शरमाते हुए अपनी नजरें झुका ली
पीयूष: "देखा मम्मी जी, आपको उस लड़के का नाम लेने की भी जरूरत नही पड़ी.. मौसम अपने आप समझ गई.. बड़ी चालाक है आपकी बेटी"
मौसम ने मुसकुराते हुए पीयूष की तरफ देखा मगर कुछ बोली नहीं
रमिलाबहन: "बेटा.. हम विशाल की बात कर रहे है.. तेरे जीजू का कहना है की तुम उस लड़के को बहोत पसंद करती हो"
कविता: "अरे मौसम.. अपने मनपसंद साथी के साथ ब्याहने का मौका मिले उससे बेहतर इस दुनिया मे और कुछ नहीं हो सकता" कहते हुए कविता को एक पल के लिए पिंटू की याद आ गई
पीयूष: "अरे चुप क्यों बैठी है..!!"
मौसम ने नजरें झुकाकर ही कहा "आप सब मिलकर जो भी तय करेंगे वो मुझे मंजूर है"
मौसम की स्वीकृति की महोर लगते ही.. पूरे घर मे आनंद की लहर जाग उठी.. रमिलाबहन की आँखों मे आँसू आ गए
वैसे मृत स्वजनों की हर रोज याद आती है.. पर जब कोई खुशी का या दुख का मौका या प्रसंग हो तब तो उनकी याद बड़ा सताती है.. अपनी माँ के आँख में आँसू देखकर कविता भी रो पड़ी.. जैसे सुबोधकांत एक बार फिर आंसुओं के जरिए अपनी मौजूदगी का एहसास दिला रहे थे..
पीयूष: "अगर सब की हाँ हो.. तो मुझे विशाल के माँ-बाप से मिलकर बात करनी होगी"
रमिलाबहन: "कुछ देर के लिए रुक जाओ बेटा.. १५ जनवरी तक शुभ मुहूरत नहीं है"
कविता: "ठीक है फिर.. ये तय रहा.. मकरसंक्रांति के दो दिन बाद हम सब विशाल के घर जाएंगे"
पीयूष: "जैसा आप सब कहें"
कविता: "एक बात का खास ध्यान रखना.. जब तक हम विशाल के घर जाकर शादी के बात नहीं कर लेते.. तब तक तू इस बारे में किसी से बात नहीं करेगी.. टांग अड़ाने वाले बहोत होते है और ऐसे मामलों में बात बिगड़ते देर नहीं लगती.. यह बात सिर्फ हम तीनों के बीच मे ही रहेगी.. और हाँ.. विशाल से भी थोड़ी दूरी बनाए रखना.. वरना तेरा बर्ताव देखकर उसे शक हो जाएगा.. कुछ दिनों की ही तो बात है"
मौसम: "ठीक है दीदी"
अगर विशाल मिल रहा हो तो मौसम कुछ भी करने के लिए तैयार थी.. तरुण के जीवन से जाने के बाद.. विशाल हो तो बहार बनकर लौटा था मौसम के जीवन मे.. काफी समय बाद मौसम के चेहरे पर आज वही चमक नजर आ रही थी जो चमक उसके चेहरे पर तरुण से सगाई टूटने से पहले नजर आती थी
मकरसंक्रांति के दिन फाल्गुनी ने मौसम को काफी बार कहा की वो लोग विशाल के घर जाए या तो फिर विशाल को यहाँ बुला ले.. पतंग साथ उड़ाने के बहाने.. पर अपनी दीदी की सख्त हिदायत याद आते ही, दिल पर पत्थर रखकर मौसम ने मना कर दिया.. फाल्गुनी को बड़ा ताज्जुब हुआ.. विशाल के पीछे पगली बनी घूमते रहती मौसम.. आज उससे मिलने को मना क्यों कर रही होगी भला.. !!!
संक्रांति के दिन.. फोरम मौसम के घर आई थी... सब ने मिलकर साथ पतंग उड़ाई.. कविता और पीयूष के साथ फाल्गुनी भी थी.. फोरम जब अपने घर लौटी तब उसकी मम्मी ने बताया की विशाल उससे मिलने आया था पर वो नहीं थी इसलिए चला गया
फोरम ने तुरंत ही विशाल को फोन किया और दूसरे दिन मिलने का वादा किया.. विशाल संक्रांति के दूसरे दिन फोरम के घर गया.. दोनों जवान दिल एक साथ पतंग उड़ाने लगे.. विशाल पतंग उड़ा रहा था और फोरम उसका चरखा पकड़कर खड़ी थी..
एक ही पतंग से.. तीन-चार पेच काटकर खुश हुए विशाल ने.. इसका सारा श्रेय फोरम को देते हुए कहा "वाह फोरम.. क्या चरखा पकड़ा है आज तो तूने.. अगर तूने चरखा नहीं पकड़ा होता तो आज मैं इतने सारे पतंग नहीं काट पाता.. बता, पूरी ज़िंदगी मेरा चरखा पकड़ने का क्या लोगी?"
फोरम ने शरमाकर कहा "तुम्हारा दिल.. !! और कुछ नहीं.." इतना कहते हुए फोरम ने चरखा कस कर पकड़ लिया.. धागा न छूटने के कारण विशाल की पतंग कट गई.. फोरम जोर से हंस पड़ी.. और उसे अचानक एहसास हुआ की मज़ाक मज़ाक मे उसने क्या बोल दिया था..!! शर्म के मारे उसकी नजरें झुक गई..
जब विशाल फोरम के साथ उसके घर पर पतंग उड़ा रहा था.. ठीक उसी समय.. पीयूष, कविता और रमिलाबहन विशाल के घर पहुंचकर उसके माँ-बाप से मिलकर शादी की बात चला रहे थे.. विशाल के पापा ने बड़ी ही सज्जनता से उत्तर दिया की वो अपने बेटे की राय जानने के बाद जवाब देंगे.. जाते जाते रमिलाबहन की नज़रों ने पूरे घर को स्कैन कर लिया.. यह जानने के लिए की क्या यह घर मौसम के लायक था भी या नहीं..
जब वो तीनों बाहर निकले तब कविता को अंदाजा था की मौसम कितनी बेसब्री से उसके फोन का इंतज़ार कर रही होगी.. उसने तुरंत मौसम को फोन लगाकर जो भी हुआ था वो कहा.. साथ मे ये भी कहा की विशाल के पापा के बात करने के अंदाज से लग रहा था की उनकी हाँ ही होगी.. !!
इतना सुनते ही मौसम खुशी से झूम उठी.. अगर उसे पंख होते तो अभी उड़कर विशाल के पास पहुँच जाती..
दूसरे दिन से पीयूष वापिस अपने कारोबार के कामों मे व्यस्त हो गया.. और कविता फिर से अकेली हो गई..
कुछ दिनों बाद वैशाली का फोन आया और उसने बताया की १४ फरवरी के दिन उसकी और पिंटू की शादी होना तय हुआ था.. समय काफी कम था और वैशाली चाहती थी की कुछ चीजों की शॉपिंग के लिए कविता वहाँ आकर उसकी मदद करे..
कविता ने पीयूष को फोन किया.. पीयूष कविता को कुछ दिनों के लिए वहाँ भेजने को राजी हो गया.. वैसे भी वो एक हफ्ते के लिए मुंबई जा रहा था.. वैशाली से मिलना भी हो जाएगा.. और वहाँ के घर की थोड़ी सी साफ-सफाई भी हो जाएगी
दूसरे ही दिन पीयूष को एयरपोर्ट छोड़कर, अपनी गाड़ी खुद चलाकर कविता वैशाली के शहर के तरफ जाने लगी.. अब तक सिर्फ बस मे सफर करती कविता का जीवन अब समृद्ध होते ही बदल चुका था.. गाड़ी चलाते वक्त पिंटू को बहोत याद कर रही थी कविता.. और तभी कार की म्यूज़िक सिस्टम पर जगजीत सिंह की मशहूर ग़ज़ल बज रही थी
𝄞⨾𓍢ִ໋ जग ने छीना मुझसे... मुझे जो भी लगा प्यारा.. !!
सब जीता किया मुझ से... मैं हरदम ही हारा... 𝄞⨾𓍢ִ໋𝄞⨾𓍢ִ໋
तुम हार के दिल अपना.. मेरी जीत अमर कर दो..
होंठों से छु लो तुम... ♫ྀི♪⋆.✮
देखते ही देखते, कविता की गाड़ी शीला के घर के बाहर पहुँच गई.. कविता को देखकर सब खुश हो गए.. खास कर वैशाली.. !!
शीला सब के लिए खाना बनाने की तैयारी करने लगी
शीला ने कविता से पूछा "बता, क्या बनाऊ तेरे लिए? मुझे पता है की तुझे भिंडी की सब्जी बहोत पसंद है.. पर अभी भिंडी घर पर है नहीं.. तू एक काम कर.. वैशाली के साथ जाकर नाके पर बैठे सब्जी वाले से भिंडी लेकर आ.. फिर मैं तुम्हारे लिए मस्त सब्जी बना दूँगी"
कविता: "भाभी, आप वो सब टेंशन छोड़िए.. मैं तो आज वो मशहूर भगत की पानीपूरी खाने का मन बनाकर आई हूँ.. सब चटपटा खाएंगे और मैं वैशाली के साथ देर तक घूमूँगी.. गाड़ी तो है ही.. हम दोनों साथ जाएंगे"
मदन: "अरे शाम के टाइम गाड़ी लेकर जाओगे तो ट्राफिक में ही फंसे रहोगे.. उससे अच्छा यह एक्टिवा लेकर जाओ.. आसानी रहेगी"
वैशाली और कविता ने हाथ मुंह धोकर कपड़े बदल लिए.. दोनों ने मस्त टाइट सेक्सी कपड़े पहने और एक्टिवा लेकर निकल पड़े..
तंग कपड़े पहन कर यह दोनों जवान पटाखे जब रास्ते पर निकले तब उनके नजाकत भरे उभारों को देखकर.. लोग आँखें सेंकने लगे.. !! दोनों सहेलियाँ काफी देर तक भटकने के बाद रात के नौ बजे घर लौटी.. उस दौरान एक बार पिंटू का फोन आया वैशाली पर.. वैशाली थोड़ी सी सहम गई कविता की मौजूदगी मे.. पर पिंटू समझदार था.. उसने सामने से वैशाली को कहा की वो कविता को फोन दे.. कविता से थोड़ी सी यहाँ वहाँ की बातें कर पिंटू ने फिर से वैशाली से बात की.. और कहा की जब वो अकेली हो तब बात करेंगे.. अभी बात करेंगे तो कविता का दिल दुखेगा
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इस तरफ मौसम के दिल मे विशाल के प्रेम की शहनाइयाँ गूंजना शुरू हो गई थी.. रोज रात को विशाल उसके सपनों मे आता था.. पर विशाल मौसम के स्टेटस के कारण एक निश्चित दूरी बनाए रखता था.. वरना मौसम ऐसी लड़की थी जिसे पाकर कोई भी अपने आप को धन्य महसूस करता..
विशाल के पापा का भी यही मानना था, उन्हों ने विशाल को सलाह देते हुए कहा "बेटा, प्यार, विवाह और दुश्मनी... हमेशा बराबरी वालों से ही करना बेहतर होता है.. हाँ, छोटे घर की लड़की खुद से ज्यादा अमीर घर मे सेट हो जाती है.. पर बड़े घर की लड़की, एक मध्यम वर्ग के परिवार मे सेट हो सके उसकी संभावना बहोत कम होती है.. " परोक्ष रूप से उन्हों ने विशाल को जता दिया की दोनों परिवारों के बीच जो आर्थिक असमानता है, उसे ध्यान मे लेकर ही फैसला करना चाहिए
मौसम का परिवार बेहद आमिर था.. जब की विशाल के पापा बेंक मे क्लर्क थे.. लाड़-प्यार से और अत्याधिक सुख-सुविधा के बीच पली बड़ी मौसम उनके घर मे रह पाएगी भी या नहीं उसका उन्हें यकीन नहीं था..!! इसीलिए उन्होंने विशाल को बहोत ही सोच समझकर इस बारे मे आगे बढ़ने की सलाह दी
इस बात से अनजान मौसम, पूरा दिन विशाल के विचारों मे ही डूबी रहती थी.. उस दिन के बाद, विशाल की तरफ देखने का उसका सारा दृष्टिकोण ही बदल गया.. विशाल को अपने जीवनसाथी के रूप मे सोचकर ही मौसम शर्म से पानी पानी हो जाती थी..
विशाल ने अपने पापा की बातों को बड़ी ही गंभीरता से लिया.. वह समझ रहा था की पापा ने बहोत ही सोच-समझ कर उसे आगे बढ़ने के लिए क्यों कहा.. अक्सर देखा गया है की प्यार के चक्कर मे लड़कियां अपने से कम आर्थिक स्तर वाले परिवारों मे ब्याहने तैयार तो हो जाती है.. पर थोड़े ही समय मे कीट-पीट शुरू हो जाती है.. जाहीर सी बात है.. जिस लड़की ने अपने घर मे पानी का ग्लास भी न उठाया हो.. उसे सुबह जल्दी उठकर पानी भरना पड़े, बर्तन माँजने पड़े और खाना पकाना पड़े तो वो उससे हो नहीं पाएगा.. क्योंकि उसे आदत ही नहीं है.. !! दो-तीन महीनों मे जब प्यार का भूत सर से उतर जाता है, फिर शुरू हो जाती है महाभारत.. हालांकि कुछ अपवाद भी होते है.. पर ज्यादातर किस्सों मे यही होता है..
विशाल यह सब भलीभाँति जानता था.. काफी सोच विचार करने के बाद उसने अपना मन बना लिया.. वो अब मौसम के साथ नाप-तोल कर ही बातें करता और अपना ज्यादा समय फोरम के साथ गुजारता.. फोरम के साथ विशाल की बड़ी अच्छी पटती थी.. दोनों के परिवार भी समान आर्थिक स्तर के थे.. और दोनों मे ओर भी कई समानता थी..
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वैशाली और कविता टीवी देखते हुए मदन और शीला के साथ बातें करते रहे.. थोड़ी देर के बाद दोनों वैशाली के बेडरूम मे चले गए.. बेडरूम का दरवाजा अंदर से बंद होते ही दोनों के सामाजिक रूप बदल गए.. एक दूसरे की ओर देखकर.. शरारत भरी सांकेतिक मुस्कान देते हुए.. दोनों बिस्तर पर लेट गई.. !!
बेड पर पड़े पड़े दोनों बातें कर रही थी पर उनके होंठों से ज्यादा उनके हाथ बातें कर रहे थे.. कविता को वैशाली के बड़े बड़े स्तन बेहद पसंद थे.. कभी कभी तो वो ईर्ष्या से जल भी जाती वैशाली के पुष्ट पयोधर स्तनों को देखकर... !!
दोनों बिना पुरुष के संसर्ग के भूखी थी.. कविता के अमरूद और वैशाली के खरबूजे एक हो गए.. एक शानदार ऑर्गजम के बाद दोनों एक दूसरे की बाहों मे बाहें डाले सो गए.. !!
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सुबह वैशाली को अचानक पिंटू के साथ पासपोर्ट ऑफिस जाना पड़ा.. मदन भी मेरेज हॉल के बुकिंग के सिलसिले मे बाहर चला गया
अब कविता और शीला घर पर अकेले थे.. दोनों ने भरपूर लेस्बियन सेक्स का मज़ा लिया..
अगले दो दिन कविता और वैशाली ने बहोत सारी शॉपिंग की.. वैशाली की शादी के लिए जो कुछ भी जरूरी था वह सब खरीद लिया गया था.. शाम को वैशाली पिंटू के साथ घूमने जाती तब कविता और शीला एक दूसरे की आग को बुझाने मे व्यस्त हो जाते.. दोनों को भरपूर अकेलापन मिल जाता क्योंकि अब मदन घंटों बाहर रहता था... वैसे शीला को मदन की फिक्र नहीं थी क्योंकि वह जानता था की मदन रेणुका के पास ही गया होगा..
एक दिन दोपहर के समय शीला और कविता घर पर अकेले बिस्तर पर पड़े थे.. शीला की मालदार छातियों पर कविता के हाथ घूम रहे थे..
कविता: "वैशाली सच मे किस्मत वाली है.. दूसरी बार सुहागरात मनाने का मौका मिलेगा उसे"
शीला: "तो तू भी मना ले दूसरी सुहागरात... किसने रोका है.. !!"
कविता: "उसके लिए दूसरी बार शादी भी तो होनी चाहिए.. किसके साथ करूँ??"
शीला: "ढूंढेगी तो मिल जाएगा.. तेरे लिए कोई कमी थोड़ी न है.. अच्छा कविता, मुझे तुझ से एक बात पुछनी थी"
कविता: "हाँ पूछिए ना भाभी"
शीला: "मुझे वैशाली के ड्रॉअर से एक रबर का लँड मिला है.. अब मदन का कहना है की वो इंपोर्टेड डिल्डो है.. वैशाली के पास कैसे आया होगा.. !! मुझे और मदन को शक हो रहा है की कहीं वैशाली का कुछ और चक्कर तो नहीं चल रहा?? राजेश की ऑफिस के कई क्लायंट विदेशी होते है.. कहीं वैशाली किसी के साथ फंस तो नहीं गई होगी?"
कविता: "रबर का लंड?? जरा दिखाइए मुझे.. !!"
शीला जाकर वो डिल्डो ले आई.. और कविता के हाथ मे दे दिया.. !!"
रबर के लोडे को पकड़कर उसे चारों ओर से देखने लगी कविता..
कविता: "ये तो एकदम असली जैसा ही दिख रहा है भाभी"
शीला: "अरे यार, मैंने तुझ से जो पूछा उसका जवाब दे.. मुझे ये जानना है की ये वैशाली के पास आया कहाँ से.. !! वो तो तुझे सब कुछ बताती है.. कुछ जिक्र किया है उसने पहले?"
कविता: "कहीं से भी आया हो, क्या फरक पड़ता है भाभी.. !! आप समझने की कोशिश कीजिए.. संजय के साथ तलाक होने के बाद.. वैशाली की अपनी भी तो जरूरतें होंगी.. ले आई होगी कहीं से भी.. पर एक बात तो तय है... उसे ये किसी लड़की या महिला दोस्त ने ही दिया होगा.. कोई मर्द होता तो उसका असली लंड ही न ले लेती..!! इसलिए आप जिस बात की चिंता कर रही हो वैसा होने की कोई संभावना मुझे तो नजर नहीं आ रही"
शीला: "हम्म.. तेरी बात मे दम तो है.. !!"
कविता: "भाभी, मैं ये सोच रही थी की... क्यों न हम दोनों आज इसके इस्तेमाल करें?? मैंने कभी ऐसा कोई खिलौना ट्राय नहीं किया है.. !!"
और फिर.. पूरी दोपहर.. शीला ने अपनी कमर पर उस डिल्डो को बांधकर कविता की ऐसी जबरदस्त चुदाई की.. कविता की चूत से लगभग धुआँ निकलने लगा.. फिर बारी आई कविता की.. उसने कमर पर बांधकर शीला को चोदना चाहा.. पर कविता के धक्कों मे शीला को कैसे मज़ा आता.. !!! शीला ने खुद ही अपने हाथ मे डिल्डो लेकर... अपने भोसड़े को पूर्णतः तृप्त कर दिया.. खरीदा जिसने भी हो.. पैसे वसूल लिए शीला ने.. !!
शांत होकर काफी देर तक दोनों बेड पर लेटे हुए बातें करते रहे
कविता: "भाभी, आज की रात, मैं और वैशाली हमारे घर सोएंगे.. काफी समय से वो घर बंद पड़ा है.. मुझे उस घर की बहोत याद आती है.. आखिर पहली बार ब्याह कर मैं उसी घर मे तो आई थी.. हम वहाँ सोएंगे और आप तसल्ली से मदन भाई के साथ रात रंगीन करना.. !!"
शीला: "हम्म.. और तू वैशाली के साथ अपनी रात रंगीन करेगी.. हैं ना.. !!"
कविता: "हाँ जरूर करेंगे.. वैसे हम पहले भी ये कर चुके है.. वैशाली को आप कम मत आँकिए.. ऐसे ही उसके पास रबर का लंड थोड़ी न आया होगा.. मैंने तो उसे ये नहीं दिया.. मतलब उसकी और कोई महिला दोस्त होगी जिसने उसे ये दिया है.. और मुझे पक्का यकीन है की वैशाली के उस महिला के साथ भी जिस्मानी संबंध रहे होंगे"
शीला: "हाँ यार.. बात तो तेरी सही है.. पर मैं सोच सोचकर थक गई.. ऐसी कौन सी सहेली होगी वैशाली की??"
कविता: "वो तो मुझे नहीं पता.. पर आप चिंता मत कीजिए.. मैं ये डिल्डो साथ ले जाती हूँ.. रात को वैशाली को ये दिखाऊँगी और पूछ लूँगी"
शीला: "नहीं कविता.. उसे पता चल जाएगा की ये मैंने ही तुम्हें दिया है.. आखिर उसके वॉर्डरोब मे रखा डिल्डो तेरे पास कहाँ से आएगा.. !!"
कविता: "वो सब आप मुझ पर छोड़ दीजिए.. कुछ नहीं होगा.. आखिर मैं आप की शिष्या हूँ.. बात उगलवाना आप से सीख गई हूँ"
शीला की निप्पल खींचते हुए कविता खड़ी हो गई.. और फ्रेश होकर कपड़े पहनने लगी..
दोनों तैयार होकर फिर सब्जी मंडी की ओर निकल गई..
शीला और कविता दोनों के बीच आसमान जमीन का अंतर था.. शीला ताजमहल जैसी भव्य इमारत थी तो कविता का प्रभाव आधुनिक बुर्ज-खलीफा जैसा था.. काफी समय बाद इस शहर के मार्केट मे आकर कविता को बहोत अच्छा लग रहा था.. कई पुराने दुकानदारों ने कविता को पहचान लिया.. शाम के सात बजे तक दोनों मार्केट मे भटकते रहे..
घर पर लौटे तब वैशाली आ चुकी थी.. खाना खाने के बाद वैशाली और कविता.. पड़ोस के उनके पुराने मकान मे सोने के लिए चले गए
उस घर का ताला खोलते ही.. कई पुरानी यादों ने कविता को घेर लिया.. रोम रोम पुलकित हो गया कविता का... घर की प्रत्येक वस्तु के साथ कविता का गहरा लगाव था.. हर एक चीज को उठाकर कविता चूमने लगी.. शो-केस मे रखा हुआ एक पुराना टेडी-बियर को छाती से लगाते हुए कविता के आँसू निकल गए.. अलिप्त होकर वैशाली यह सब देख रही थी.. कविता को यूं रोते हुए देखकर उसे ताज्जुब हुआ.. उसने सोचा की शायद पीयूष ने उसे गिफ्ट दिया होगा.. नहीं नहीं.. ऐसा होता तो कविता रोती नहीं.. जरूर पिंटू ने ही गिफ्ट किया होगा..
ड्रॉइंगरूम को पार कर दोनों बेडरूम मे पहुंचे..
कविता: "वैशाली, यह वही कमरा है जहां मैंने और पीयूष ने शादी के बाद पहली रात मनाई थी"
वैशाली: "हम्म.. सुहागरात तो कभी भी भुलाये नहीं भूलती.. समझ सकती हूँ की इस बिस्तर से तेरी काफी यादें जुड़ी हुई होगी.. कितने सारे ऑर्गजम दीये होंगे पीयूष ने तुझे इस बिस्तर पर.. !!"
कविता: "सही कहा तूने... इस बेडरूम मे याद रखने जैसी.. और भूल जाने वाली भी... सेंकड़ों यादें जुड़ी हुई है"
वैशाली को समझ नहीं आया की कविता क्या कहना चाहती थी.. वो उससे कुछ पूछती उससे पहले घर की डोरबेल बजी.. दोनों चोंक उठी.. इतने महीनों से खाली पड़े घर पर आज कौन आ गया.. !!!
वैशाली को वहीं छोड़कर कविता अपने कपड़े ठीक करते हुए बाहर निकली.. और दरवाजा खोला.. सामने रसिक खड़ा था
रसिक: "अरे भाभी आप?? हमारे शहर मे?? आप तो हमें छोड़कर चली ही गई.. पर मुझे पक्का यकीन था.. की आप वापिस लौटकर आओगी ही.. वैसे मैं यहाँ से गुजर रहा था और मैंने पीछे के कमरे की लाइट चालू देखी तो सोचा चेक कर लूँ.. कहीं कोई घुस तो नहीं आया.. आजकल समय बड़ा खराब चल रहा है.. चोर अंदर घुसकर आराम से बंद घरों मे चोरी करते है.. खैर.. !!! आप आ गए वो बहोत अच्छा किया.. !! अब तो यहीं रहोगे ना.. !! कल से दूध देना शुरू कर दु क्या??" एक साथ कई प्रश्नों की झड़ी लगा दी रसिक ने
रसिक को देखकर थोड़ा सा परेशान हुई कविता ने कहा "अरे नहीं नहीं.. मैं तो कुछ दिनों के लिए ही आई हूँ.. और शीला भाभी के घर पर रुकी हूँ.. फिर लौट जाऊँगी.. और साथ में वैशाली को भी हमेशा के लिए साथ ले जाऊँगी.. ताकि तुम सब लोगों से उसकी जान छूटें"
रसिक का वैशाली के साथ कुछ खास संपर्क नहीं था.. बस इतना पता था की वो शीला की बेटी थी और तलाक लेकर उनके घर पर ही रह रही थी..
रसिक: "कैसी बातें कर रही हो आप भाभी.. !! हम कहाँ किसी को परेशान करते है.. चोर-लुटेरे थोड़े ही है हम... !!"
कविता: "सब पता है मुझे .. मेरा मुंह मत खुलवाओ.. कहाँ कहाँ क्या लूटा है सब जानती हूँ मैं.. !!"
रसिक सकपका गया.. इससे पहले की कविता कुछ और बोलती, उसने कहा "ठीक है भाभी.. मैं चलता हूँ.. कोई काम हो तो बताना" कहते हुए रसिक वहाँ से लगभग भाग ही गया
दरवाजा बंद कर अंदर बेडरूम मे आते हुए कविता गुस्से से बड़बड़ा रही थी "एक नंबर का हरामखोर है.. साला.. चोदू कहीं का.. !!"
वैशाली: "अरे वो जैसा भी हो.. तुझे उससे क्या लेना देना? तुझे कहाँ परेशान करता है वो.. !!"
कविता: "वो तो इसलिए क्यों की मैंने अपने आप को परेशान होने नहीं दिया.. वरना..!!! जाने दे उस बात को.. उस हरामी की सारी करतूतों से वाकिफ हूँ मैं.. "
वैशाली: "कैसी करतूतें??"
कविता: "जाने दे ना यार.. तुझे क्या करना है जानकर.. तुझे उसका लेना है क्या?? इतना मोटा है उसका.. !!" अपनी कलाई दिखाते हुए कविता ने कहा
वैशाली चोंक उठी "तुझे कैसे पता??"
कविता: "सिर्फ मुझे ही नहीं... इस मोहल्ले की लगभग सब औरतों को पता है की उसका कितना लंबा और मोटा है.. और उसमे तेरी मम्मी और मेरी सासुमाँ भी शामिल है"
अपनी माँ का नाम सुनकर वैशाली को गुस्सा आ गया "क्या बक रही है तू नालायक..!!"
कविता: "मुझे पता ही था की तुझे सच हजम नहीं होगा.. और तू मेरी बात का विश्वास नहीं करेगी.. पर मैं झूठ क्यों बोलूँगी भला.. !! वो तो मेरी किस्मत अच्छी थी की मैं बच गई.. वरना उस रात रसिक ने मेरी जान निकाल दी होती.. मुझे तो उसको देखकर ही उलटी आती है.. उस दिन अगर तू और तेरी मम्मी नहीं आ गए होते तो वो कमीना मुझे नोच खाता.. !!"
वैशाली परेशान होते हुए बोली "यार, तू क्या बोल रही है, मुझे तो कुछ समझ मे नहीं आता.. !!"
वैशाली की जिद के आगे झुककर कविता ने उसे सारी बात बताई.. उस रात की.. जब अनुमौसी ने अपना भोसड़ा चुदवाने के चक्कर मे.. रसिक के हाथों कविता का सौदा कर दिया था.. और उसे बेहोशी की दवाई वाला आइसक्रीम खिलाकर.. चोदने का प्लान भी बनाया था..
बात करते करते कविता के कपाल पर पसीना आ गया.. पल्लू से पसीना पोंछते हुए कविता ने कहा "तेरी मम्मी, मेरी सास.. यहाँ तक की वो रेणुका भी.. रसिक के लंड की दीवानी है.. तेरी माँ और रेणुका तो फिर भी जवान है.. पर मेरी सास ने तो अपनी उम्र का भी लिहाज नहीं किया.. और वो बुढ़िया इस हरामी रसिक से चुद गई.. !!"
वैशाली: "तो क्या सच मे रसिक का लंड इतना मोटा और लंबा है??"
कविता: "तूने कभी गधे का टाइट हुआ लंड देखा है.. !! बिल्कुल वैसा ही है रसिक का.. !! विकराल राक्षस जैसा लंड है उसका"
वैशाली: "यार, क्या सच मे इतने मोटे लंबे लंड होते है?? मैंने मोबाइल पर ब्ल्यू-फिल्मों मे ऐसे लंड देखे है.. पर संजय का कहना था की वो सब नकली होते है.. हकीकत मे उतने बड़े लंड होते ही नहीं है"
कविता: "अच्छा.. !! वैसे संजय का कितना बड़ा था??"
वैशाली: "संजय का भी अच्छा खासा बड़ा था.. !!"
कविता: "कभी याद आती है उसके... उसकी.. ??"
वैशाली: "हाँ, कभी बहुत एक्साइट होती हूँ तब याद आ जाती है.. खासकर पिरियड्स के दिनों मे.. पर उससे ज्यादा कुछ नहीं.. वो मेरा गुजरा हुआ कल है और संजय से जुड़ी सभी चीजों से मुझे नफरत है.. उसका कितना भी तगड़ा क्यों न हो.. और मुझे कितनी भी खुजली क्यों न हो रही हो.. मैं मर जाऊँगी पर उसे हाथ न लगाने दूँगी.. पर ऑनेस्टली कहूँ तो.. वो साला चुदाई मे मास्टर था.. औरत के शरीर को संतुष्ट करने मे उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता.. साला ऐसे चोदता था की रुला ही देता था.. खैर.. अब छोड़ उसकी बातें"
कविता: "मतलब अभी भी वो तुझे याद आता है.. !!"
वैशाली: "वो नहीं.. उसका लंड याद आता है.. जब उसका खड़ा हो जाता तब एकदम मस्त लगता था.. मुझे बड़ा और तगड़ा लंड बहोत पसंद है.. इसीलिए तो मैं तुझे कब से रसिक के लंड के बारे मे पूछ रही हूँ"
कविता: "यार, रसिक का लंड इतना मोटा तगड़ा है की मैं क्या कहूँ.. शब्दों से बयान नहीं कर सकती.. तू एक बार देखेंगी तो पता चलेगा"
वैशाली: "वैसे, क्या तुझे पता है की मम्मी ने रसिक के साथ कितनी बार किया होगा?"
कविता: "मेरे हिसाब से तो सेंकड़ों बार किया होगा.. जब तेरे पापा विदेश थे.. उस दौरान मैं रोज उन दोनों की हरकतें देखती थी सुबह सुबह.. भाभी भी कम नहीं है.. पूरी तरह से फिदा है वो रसिक पर"
अपनी माँ और रसिक की साथ मे कल्पना करते हुए वैशाली ने आँखें बंद कर ली..
थोड़ी देर तक वैसे ही बैठे रहने के बाद जब वैशाली ने आँखें खोली तब चोंक गई.. !! कविता के हाथ मे डिल्डो था.. !! वही डिल्डो जो उसे रेणुका ने दिया था
कविता: "वैशाली, ये क्या है?"
वैशाली ने झपटते हुए वो डिल्डो कविता के हाथों से छीन लिया और बोली "तेरे पास ये कहाँ से आया???"
कविता: "यार अब तुझसे क्या छुपाना.. तेरी मम्मी को ये तेरे ड्रॉअर से मिला.. फ़ॉरेन का है.. इसलिए उन्हें चिंता होने लगी थी.. की कहीं तेरे ऑफिस के किसी विदेशी क्लायंट के साथ तेरा को चक्कर तो नहीं है.. !!"
वैशाली: "अरे यार.. लोचा हो गया.. अब मम्मी को क्या जवाब दूँगी मैं.. !!!!"
कविता: "उसकी चिंता तू मत कर.. वो सीधे सीधे कुछ नहीं पूछेगी तुझे.. पर मुझे सच सच बता की ये तेरे पास कहाँ से आया.. !! तो मुझे पता चलें की भाभी को क्या जवाब देना है"
वैशाली: "यार, एक दिन मैं रेणुका के घर गई थी.. तो वहाँ बातों बातों मे सेक्स की बात निकली.. और दोनों की इच्छा हो गई और हमने कर लिया.. बाद मे उसने मुझे ये गिफ्ट दिया.. कहा की मेरा तो तलाक हो चुका है.. तो कभी बहोत मन हो जाए तो ये काम आएगा.. "
कविता: "पर वैशाली.. ये तो रसिक के लंड जैसा मोटा है.. ये तेरी चूत में डाल पाती है तू?? अगर ये अंदर जाता है तो तू रसिक का भी ले पाएगी"
वैशाली: "शुरुआत मे डालने मे थोड़ी तकलीफ जरूर होती है.. पर एक बार गीली हो जाने के बाद मज़ा आता है.. अब तक दो बार इससे कर चुकी हूँ.. कविता, यार तेरी बातें सुनकर तो मुझे भी अब रसिक का देखने की इच्छा हो गई है"
कविता: "तो बुला ले उसे.. वैसे भी उसे जवान फेशनेबल लड़कियों को चोदने का बड़ा ही कीड़ा है.. तेरे बुलाते ही दूम हिलाता आ जाएगा.. पर हाँ.. एक बात पहले ही बता दूँ.. मैं इसमे शामिल नहीं हो सकती.. मुझे तो उसे देखकर ही डर लगता है.. और वो तुझे सिर्फ दिखाकर थोड़े ही मानेगा.. डालेगा भी.. "
वैशाली: "तू मेरा एक काम कर सकती है?"
कविता: "क्या??"
वैशाली: "मेरी शादी होने मे अब ज्यादा दिन नहीं बचे.. उसके बाद तो ये सब बंद हो जाएगा मेरा.. तू कैसे भी करके रसिक को मेरे साथ सेट कर दे एक बार.. प्लीज!! तू शामिल मत होना.. पर मुझे तो करने दे.. !!"
कविता: "अरे मर जाएगी तू.. सोच ले.. पागल मत बन.. गधे जैसा लंड अंदर डालेगा तो आँखें फटकर बाहर निकल जाएगी तेरी.. मुझे तो ये पता नहीं चलता की ऐसा तो क्या है उस भड़वे मे.. जो हर कोई उससे चुदने को तैयार हो जाता है.. !!"
वैशाली: "यार, जिस तरह तूने उसके लंड का वर्णन किया.. मैं क्या.. कोई भी होता तो उसका मन हो जाता"
कविता: "लंड आखिर लंड ही होता है.. कोई हीरे-मोती नहीं जड़े होते उसमे.. !!"
वैशाली: "पर उसका लंड अलग है ना..!! मेरा बहोत मन कर रहा है यार.. एक बार ऐसे तगड़े मोटे लंड से चुदवाना है मुझे.. पॉर्न मूवीज मे जब उन कल्लुओ के बड़े बड़े लंड देखती हूँ तब कुछ कुछ होने लगता है मुझे.. !! और अगर डलवाने मे बहुत दर्द हुआ तो नहीं करवाऊँगी"
कविता: "अच्छा.. !! और वो क्या तुझे बिना चोदे छोड़ देगा?? एक बार उसका खड़ा हो जाए फिर किसी को नहीं छोड़ता.. मेरी सास के तो आँसू निकलवा दीये थे उसने.. सोच ले.. एक बार उसका खड़ा हो गया फिर तू बच कर भाग नहीं पाएगी"
सुनकर वैशाली सोच मे पड़ गई.. थोड़ी सी घबराहट तो हुई पर तगड़ा लंड लेने की लालसा का आखिर विजय हुआ.. भले ही चुदाई न हो पाए पर एक बार करीब से देखने का.. उसे चूसने का.. हाथ मे पकड़ने का बड़ा मन था वैशाली का.. !!
कविता: "तुझे बहोत खुजली हो तो तू ही फोन करके उसे बुला ले.. मैं फोन नहीं करूंगी.. बुलाना हो तो उसे आधी रात को बुला ले.. आकर एक घंटे मे करके चला जाएगा तो किसी को पता नहीं चलेगा.. पर मुझे डर लग रहा है.. कहीं वो मेरे साथ करने की जिद ना पकड़ ले.. !! उसकी बहोत दिनों से बड़ी गंदी नजर है मेरे ऊपर.. मुझे चोदने के लिए तो उसने मेरी सास को भी पटा लिया था.. मेरे लिए तो वो चीता से उठकर भागता हुआ आएगा.. पर मुझे उसे देखकर ही घिन आती है.. और उसका वो मूसल जैसा लंड..!! बाप रे.. !! अंदर घुसे तो जान ही निकल जाए"
वैशाली: "तू चिंता मत कर.. मैं हूँ ना तेरे साथ.. कुछ नहीं होगा तुझे"
कविता: "ठीक है फिर.. बुला ले उसे.. पर उसका नंबर कहाँ से मिलेगा तुझे?"
वैशाली: "मम्मी के मोबाइल मे तो होगा ही उसका नंबर.. एक काम करते है.. मेरे घर चलते है.. तू मम्मी को बातों मे उलझाए रखना.. तब तक मैं मोबाइल से नंबर निकाल लूँगी.. !!"
कविता: "तू भी यार.. बिल्कुल अपनी मम्मी जैसी ही है.. एक बार किसी चीज को लेकर मन बना लिया.. फिर किसी भी हाल मे तुम उसे पाकर ही रहते हो.. शीला भाभी भी बिल्कुल वैसे ही है"
वैशाली: "भाषण मत दे.. और चल मेरे साथ.. आज ही ग्रांड प्रोग्राम बना देते है"
हाथ पकड़कर वैशाली कविता को अपने घर ले गई.. घर का दरवाजा खुला था और शीला किचन मे बर्तन माँझ रही थी.. शीला का ध्यान नहीं था और वैशाली ने सोफ़े पर पड़े उसके मोबाइल से नंबर निकालकर अपने मोबाइल मे सेव कर लिया..
दोनों चुपके से बाहर निकल रही थी तभी मदन वॉक लेकर वापिस लौट रहा था..
मदन: "वैशाली, कहाँ जा रहे हो तुम दोनों?"
वैशाली: "हम कविता के घर सोने जा रहे है" बिना मदन की तरफ देखे वैशाली कविता को खींचते हुए उसके घर की तरफ चली गई
घर आकर मदन ने शीला से पूछा "वैशाली और कविता उस घर मे सोने क्यों गए है?"
शीला: "वो घर अब भी कविता का है.. बेच नहीं दिया उन्हों ने.. अपने घर से उसे लगाव तो होगा ही.. इसलिए कविता को वहाँ सोना था तो वो वैशाली को भी साथ ले गई.. !!"
मदन: "फिर ठीक है" कहने के बाद मदन चुप हो गया
शीला और मदन उस रात को कड़ाके की ठंड मे.. एक दूसरे के जिस्म की गर्मी महसूस करते हुए.. बाहों मे बाहें डालकर सो गए तब वैशाली के मन मे हवस के सांप लॉट रहे थे.. कविता भी वैशाली की इच्छा पूरी करने मे उसका साथ देने वाली थी
वैशाली ने आज तक केवल पॉर्न फिल्मों मे हबसी आफ्रिकन कल्लुओ के बड़े बड़े लंड देखें थे.. चौड़ी छाती.. कसा हुआ बदन.. और नीचे लटकता काले नाग जैसा लंड.. देखकर ही वैशाली की बुर मे सुरसुरी होने लगती थी.. रसिक के लंड को लेकर वैशाली के दिल मे रोमांच भी हो रहा था और थोड़ा सा डर भी लग रहा था..
वैशाली ने बड़ी ही चालाकी से.. रसिक को फोन कर.. उसे अपने लिए नहीं पर कविता से मिलने बुलाया.. वो सोच रही थी की उसके साथ तो रसिक को कोई खास लगाव था नहीं.. पर कविता का नाम सुनकर वो दौड़ा चला आएगा.. !! कविता को पाने के लिए तो वो एक्स्पाइरी डेट वाली अनुमौसी नाम की दवाई भी पी गया था.. !!
रसिक ने वैशाली से कहा की वो रात बारह बजे के बाद कभी भी आएगा..
बिस्तर पर बैठे हुए कविता ने वो रबर के लंड को अपनी संकरी चूत मे डालने का निरर्थक प्रयत्न किया.. पर इतना दर्द हुआ की उसने वो निकाल लिया.. मन ही मन उसने तय किया था की वो आज वैशाली और रसिक की चुदाई देखकर ही खुश रह लेगी..
कविता ने देखा की वैशाली ने तो बड़ी ही आसानी से वो डिल्डो आधे से ज्यादा अपनी चूत के अंदर फिट कर लिया था.. उस पर से कविता को अंदाजा लग गया की अपनी माँ की तरह वैशाली भी चुदाई की बेहद शौकीन है.. और उसे रसिक का तगड़ा लंड लेने मे थोड़ी कठिनाई तो होगी पर वो उसे ले जरूर लेगी
जैसे जैसे रात का समय बीतता गया.. वैशाली और कविता के दिलों की धड़कन बढ़ती गई.. दोनों ने मिलकर रसिक को घर बुलाने का बहोत बड़ा साहस तो कर लिया था लेकिन अब दोनों की फट रही थी.. कहीं किसी ने रसिक को घर मे घुसते देख लिया तो.. !! वैसे सर्दी का समय था इसलिए राते के बारह बजे के बाद कोई बाहर नहीं होता था.. इसलिए किसी के देख लेने की संभावना बहुत ही कम थी.. फिर भी, डर तो लग ही रहा था.. जो होगा देखा जाएगा.. यह सोचकर दोनों सोने की तैयारी करने लगी
वैशाली: "उसके आने से पहले थोड़ा सो लेते है... फिर तो नींद ही नसीब नहीं होगी"
कविता: "मुझे तो उसके आने के डर से नींद ही नहीं आएगी.. तू सो जा.. तू ने अब तक उसका देखा नहीं है इसलिए तुझे नींद आ रही है.. मेरी तो फट के फूलगोभी हो गई थी.. यार, ऐसी हिम्मत ना की होती तो ही बेहतर होता.. वो कलमुँहा हम दोनों की आज फाड़ देगा.. और हाँ.. तुझे पहले से ही बता देती हूँ.. कुछ भी हो तो जरा सा भी चीखना चिल्लाना मत.. वरना तेरे मम्मी-पापा यहाँ दौड़े चले आएंगे.. और हम दोनों की बैंड बजा देंगे.. मैं तो कहती हूँ, अब भी वक्त है.. केन्सल कर दे.. !!"
वैशाली ने जवाब नहीं दिया.. उसे चुप देखकर कविता को ओर डर लगने लगा.. ये क्या सोच रही होगी?
कविता ने वैशाली को कंधे से पकड़कर हिलाते हुए पूछा "अरे तू कुछ बोल क्यों नहीं रही?"
वैशाली: "तेरी बातें सुनकर अब मुझे भी थोड़ा डर लग रहा है"
कविता का चेहरा देखने लायक हो गया.. वो अब तक वैशाली की हिम्मत के बलबूते पर ही इस साहस मे जुड़ी थी.. अब उसे ही डरते हुए देख, कविता के होश उड़ गए..
कुछ भी गलत करने से फेले जो डर होता है.. वो एक तरह से चेतावनी के स्वरूप ही होता है.. उस डर से आगे बढ़कर ही किसी भी गुनाह को अंजाम दिया जा सकता है.. दोनों एक दूसरे के सामने देख रहे थे.. जो भी निर्णय लेना था.. अगले पाँच या दस मिनट मे ही लेना था..
तभी रसिक का फोन आया.. दोनों जबरदस्त घबरा गई.. और फोन कट कर दिया.. कोई कुछ बोल नहीं रहा था और दोनों की आँखों मे एक ही प्रश्न था.. की अब क्या करें???
रसिक कॉल पर कॉल किए जा रहा था.. और उसके हर कॉल के बाद दोनों की धड़कनें इतनी तेज हो रही थी की लग रहा था की प्रेशर से दिल फट जाएगा..
आखिर ग्यारह बजे.. दोनों भागकर शीला के घर आ गए.. ये कहकर की वहाँ मच्छर बहुत है.. और चुपचाप वैशाली के बेडरूम मे जाकर सो गए.. रसिक की क्या हालत हुई होगी?? उसे बुलाकर ऐसे फोन न उठाने पर वो क्या सोचेगा?? इन सब सवालों का एक ही जवाब था.. बच गए.. !!
डर के मारे वैशाली के साथ साथ कविता ने भी अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर दिया.. दोनों ऐसे डर रहे थे की जैसे रसिक उनके मोबाइल से प्रकट होने वाला हो.. !!!
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Rasik se chudne ko tayyar hai ab Kavita.सामने ही एक बड़े खेत के कोने पर एक रूम बनी हुई थी.. शायद वही था रसिक का खेत..!!
कविता: "तू आगे आगे चल.. मुझे तो डर लग रहा है यार.. साली, तुझे रसिक के लंड से चुदने की बड़ी भूख है.. और परेशान मुझे होना पड़ रहा है.. सच कहा है.. कोयले की दलाली करो तो हाथ काले होंगे ही.. कुछ हो गया तो तेरे साथ साथ मैं भी फंस जाऊँगी"
पगडंडी पर संभालकर पैर बढ़ाते हुए वैशाली ने कहा "कुछ नहीं होगा यार.. ऐसा सब सोचने की कोई जरूरत नहीं है.. हम मजे करने के लिए आए है.. जो होगा देखा जाएगा.. फालतू टेंशन करके दिमाग की बैंड मत बजा"
चारों तरफ पानी छिड़के हुए खेतों के कारण.. ठंड और ज्यादा लग रही थी.. दोनों सहेलियाँ ठंड के मारे कांपते हुए पतले से रस्ते पर आगे बढ़ रही थी.. आगे चल रही वैशाली के भारी नितंब.. उसके हर कदम पर मदहोशी से थिरकते हुए देख रही थी कविता.. और सोच रही थी.. अभी तो बड़ी मटक मटक कर चल रही है.. पर वापिस जाते वक्त तेरी चाल बदल न जाए तो मेरा नाम कविता नहीं.. !!
थोड़ा सा और आगे जाते ही वो दोनों उस कमरे के नजदीक आ गए.. एक बड़ा सा बल्ब लटकते हुए पीली रोशनी फेंक रहा था.. उसके उजाले मे उन्हों ने देखा.. पास ही एक खटिया पर रसिक बैठा हुआ था.. खटिया के बगल मे उसने लकड़ियाँ जलाई हुई थी और वो बैठे बैठे हाथ पैर सेंक रहा था..
उन दोनों रूप-सुंदरियों को अपनी तरफ आते हुए देख रसिक मन मे सोच रहा था.. साला क्या किस्मत है..!! जब मैं मिलने के लिए तरस रहा था तब कुछ जुगाड़ नहीं हो पाया.. और जब मैंने कोशिश ही छोड़ दी.. तब यह दोनों सामने से चलकर खेत तक पहुँच गई.. वो भी इतनी सर्दी मे.. !! सच ही कहा है.. ऊपर वाला देता है तब छप्पर फाड़कर नहीं.. आर.सी.सी. कोन्क्रीट से बनी सीलिंग फाड़कर भी देता है..!!! एक नहीं दो दो एक साथ..!! वैशाली के बारे मे तो मैंने सोचा भी नहीं था..!!
दोनों को देखकर रसिक ने अपना लंड खुजाकर एडजस्ट किया.. इतनी ठंड मे भी वो सिर्फ देसी जाँघिया पहनकर आग के पास बैठा था.. एक छोटी सी लकड़ी की मदद से वो जल रही लकड़ियों को ठीक से जला रहा था.. रसिक को अपना लंड एड़जस्ट करते हुए कविता ने देख लिया था
सिर्फ वैशाली ही सुने ऐसी धीमी आवाज मे उसने कहा "देख, वो साला तैयार ही बैठा है.. अन्डरवेर पहने हुए.. अपना लंड खुजा रहा है.. तू भी तैयार हो जा अब.. बहुत चूल थी ना तुझे उससे चुदवाने की.. !! अब अपनी फड़वाने के लिए तैयार हो जा.. !!"
रसिक: "आइए आइए भाभी.. खेत ढूँढने मे कोई तकलीफ तो नहीं हुई??"
जलती हुई लड़कियों के अलाव के पास खड़े रहकर.. कविता और वैशाली को ठंड से थोड़ी सी राहत मिली..
कविता: "हाँ मिल गया.. वैसे रास्ता सीधा ही था इसलिए ढूँढने मे कोई दिक्कत नहीं हुई" आसपास नजरें दौड़ाते हुए कविता ने कहा.. आसपास दूर दूर तक कोई नहीं था.. एकदम सैफ जगह थी.. सब-सलामत महसूस होते ही कविता ने चैन की सांस ली.. !!
आग की एक तरफ कविता तो दूसरी तरफ वैशाली खड़ी थी.. बीच मे रसिक खटिया पर बैठा था.. आग की रोशनी मे उसका काला विकराल बदन चमक रहा था.. उस कसरती बदन का वैभव देखकर वैशाली की आँखें फटी की फटी रह गई.. अब तक पॉर्न फिल्मों मे जिन कल्लुओ को देखा था बिल्कुल वैसा ही शरीर था रसिक का.. काला गठीला बदन.. छाती पर ढेर सारे घुँघराले बाल.. आग मे तांबे की तरह तप रहा शरीर.. चौड़े मजबूत कंधे.. बड़े बड़े डोले.. वैशाली के साथ साथ कविता की जांघों के बीच भी गर्माहट होने लगी.. उसे देखकर कविता सोच रही थी.. रोज तो एकदम गंदा बदबूदार होता है रसिक.. आज तो साफ सुथरा लग रहा है.. शायद हम आने वाले थे इसलिए अभी नहाया होगा वो.. !!
रसिक: "आप दोनों खड़े क्यों हो?? बैठिए यहाँ" कहते हुए रसिक खटिया से उठकर कविता की ओर आगे बढ़ा.. कविता घबराकर तुरंत खटिया पर बैठ गई.. और उसके पीछे पीछे वैशाली भी जा बैठी.. रसिक उनके सामने पहाड़ की तरह खड़ा था.. लकड़ी की आग और रसिक के बदन को देखकर दोनों की ठंडी गायब हो चुकी थी.. इतनी ठंड मे भी कैसे वो सिर्फ जाँघिया पहने बैठा था उसका जवाब मिल गया दोनों को..!!
सफेद रंग के जांघिये से रसिक के लोडे का आकार दिख रहा था वैशाली को.. रसिक का ध्यान कविता की कमसिन जवानी पर था.. वो धीरे धीरे चलते हुए कविता के पास आकर खड़ा हो गया.. और बोला
रसिक: "आपको आज तीरछी नज़रों से नहीं देखना पड़ेगा.. शांति से मन भरकर देख लीजिए मेरा.. " सिर्फ एक कदम दूर खड़ा था रसिक.. उसका लंड ऐसा उभार बना रहा था.. की कविता चाहकर भी अपनी नजरें फेर नहीं पाई.. वो डर रही थी.. कहीं ये राक्षस उसे नोच न खाए.. कविता समझ गई की उस रात जब रसिक उसकी सास को चोद रहा था तब वो तीरछी नज़रों से हल्की सी आँखें खोलकर उसका लंड देख रही थी उसके बारे मे रसिक ने उसे ताना मारा था.. कविता ने रसिक के लंड से नजरें हटा ली..
रसिक अब वैशाली की ओर मुड़ा.. वैशाली अत्यंत रोमांचित होकर रसिक के तंबू को देख रही थी..
रसिक: "आह्ह वैशाली.. गजब की छातियाँ है तुम्हारी.. वाह.. !!" रसिक के मुख से कामुक उद्गार निकल गए
इतने करीब से रसिक का बम्बू देखकर वैशाली की पुच्ची मे गजब की चुनमुनी होने लगी.. वो रसिक के लंड को चड्डी के अंदर से निकालने के बेकरार थी पर पहल करने से डर रही थी
रसिक अब वैशाली की इतने करीब आ गया की उसके चेहरे और रसिक के लंड के बीच अब सिर्फ एक इंच की ही दूरी रह गई.. वैशाली ने घबराकर मुंह फेर लिया.. और लंड का उभरा हुआ हिस्सा.. वैशाली के गालों के डिम्पल पर जा टकराया..
रसिक अब फिर से कविता के पास आया.. और लंड को चड्डी के ऊपर से ही अपनी मुठ्ठी मे पकड़कर कविता को दिखाने लगा.. उस लंड का भव्य आकार देखकर कविता की पेन्टी गीली हो गई.. !!
रसिक अब कविता और वैशाली के बीच खटिया पर बैठ गया.. उसकी जांघें दोनों की जांघों को छूने लगी.. और दोनों को वह स्पर्श होते ही ४४० वॉल्ट का करंट सा लग गया..
कविता और वैशाली एक दूसरे की आँखों मे देखने लगी.. वैशाली ने एक शरारती मुस्कान देकर कविता को आँख मारते हुए नीचे देखने को कहा
रसिक के अन्डरवेर के साइड से.. खड़ा हुआ लंड.. बाहर झाँकने लगा था.. उसका लाल टोपा देखकर कविता कांपने लगी.. जैसे बिल के अंदर से सांप बाहर निकला हो.. ऐसा लग रहा था रसिक का लंड
दोनों के कंधों पर एक एक हाथ रखते हुए रसिक ने कहा "शर्माने की जरूरत नहीं है.. यहाँ कोई नहीं आएगा.. आप दोनों खुलकर जो भी करना चाहो कर सकते हो"
फिर उसने कविता की ओर घूमकर कहा "भाभी, अब और कितना तड़पाओगी इसे?? अब तो महरबानी कर दो" कहते हुए कविता का हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया उसने
कविता थरथर कांपने लगी.. उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसका हाथ लोहे के गरम सरिये पर रख दिया हो.. वो हाथ खींचने गई पर रसिक ने राक्षसी ताकत से उसकी कलाई को पकड़ रखा था.. आखिर कविता ने अपनी मुठ्ठी मे उसका लंड पकड़ ही लिया.. !! अभी भी उसकी हथेली और लंड के बीच मे अन्डरवेर का आवरण था पर.. जैसे हिंग-जीरे के छोंक की खुशबू से खाने के स्वाद का पता लग जाता है.. वैसे ही लंड के आकार से उसकी ताकत और चोदने की क्षमता का अंदाजा लग रहा था..
वैशाली: "बाप रे.. गजब का है.. कितना मोटा है ये तो"
कविता ने वैशाली की ओर देखा.. वैशाली आँखें बंद कर अपने स्तनों का खुद ही मर्दन करते हुए मजे कर रही थी.. रसिक ने वैशाली का हाथ उसके स्तनों से खींचते ही वैशाली ने आँखें खोल दी
"अपने हाथों को क्यों तकलीफ दे रही हो..!! मैं हूँ ना..!! आप सिर्फ इसे संभालो.. मैं आपके दोनों बबलों को संभाल लूँगा" रसिक ने कहा
रसिक ने वैशाली का भी हाथ खींचा और कविता के हाथ के साथ साथ अपने लंड पर रख दिया.. अब कविता की शर्म भी थोड़ी घटने लगी.. वैशाली और कविता की हथेलियों के बीच रसिक का लोडा मचलने लगा..
वैशाली अब बेचैन हो रही थी.. बेहद उत्तेजित होकर उसने सिसकियाँ लेते हुए रसिक का लंड पकड़ दिया.. !!!
"ओ बाप रे.. !!" लंड का आकार और कद देखकर वैशाली के मुंह से निकल गया
वैशाली इतनी जोर से चीखी थी.. कविता आसपास देखने लगी.. कहीं किसी ने सुन तो नहीं लिया.. !!
रसिक ने कविता का सुंदर चेहरा ठुड्डी से पकड़कर अपनी ओर फेरते हुए कहा "कोई नहीं है भाभी.. आप घबराइए मत.. ओह्ह भाभी.. कितनी सुंदर हो आप.. एकदम गोरी गोरी.. इन गोरे गालों को चबा जाने का मन करता है मेरा"
सुनकर कविता शरमा गई.. उसका शरीर अब भी कांप रहा था.. उसका मन अभी भी यह सोच रहा था की वैशाली के दबाव मे आकर उसे यहाँ नहीं आना चाहिए था.. !!
वैशाली अब पूरी तरह बेशर्म होकर रसिक के लंड की चमड़ी उतारकर आगे पीछे करते हुए हिलाने लगी.. रसिक के लंड को महसूस करते हुए वह पॉर्न फिल्मों मे देखे अफ्रीकन मर्दों के लोडॉ को याद करने लगी.. रसिक ने कविता के टॉप पर से उसके स्तनों को दबा दिया.. कविता से अब इतनी अधिक उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो रही थी.. वो खड़ी हो गई और खटिया के साइड पर चली गई..
कविता: "रसिक, तुम्हें जो भी करना हो वो वैशाली के साथ करो.. मुझे कुछ नहीं करवाना"
रसिक: "भाभी, आप तो मुझे पहले से बहोत पसंद हो.. ऐसा क्यों कर रही हो?? बस एक बार मुझे मेरी इच्छा पूरी कर लेने दीजिए.. !! आपको एक बार नंगा देखने की बहोत इच्छा है मुझे.. आह्ह.. देखिए.. ये आपको देखकर कैसे खड़ा हो गया है.. !!"
वैशाली रसिक के मोटे लंड को दबाते हुए बोली "हाँ यार कविता.. गजब का टाइट हो गया है.. !!"
कविता: "वैशाली प्लीज.. डॉन्ट इनवॉल्व मी.. यू इन्जॉय विद हीम.. !!" उनकी अंग्रेजी रसिक के पल्ले नहीं पड़ी..
वैशाली: "ठीक है यार.. जैसी तेरी मर्जी"
फिर रसिक की ओर मुड़कर वैशाली ने कहा "ओह रसिक.. तुम मेरे कपड़े उतारो... मुझे नंगी कर दो" वैशाली ने अपनी बीभत्स मांग रखकर रसिक का ध्यान अपनी ओर खींचा
कविता के सामने देखते हुए रसिक ने वैशाली को अपनी जांघों पर सुला दिया.. वैशाली ओर बेचैन हो गई... उसका पतला सा टॉप ऊपर कर.. अपने हाथ बाहर निकालकर.. टॉप उतार दिया.. और कमर के ऊपर से नंगी हो गई.. !! उसके मदमस्त चुचे देखकर रसिक लार टपकाने लगा..
दोनों स्तनों को बेरहमी पूर्वक आंटे की तरह गूँदने लगा वो.. और फिर अपना एक हाथ उसने वैशाली की चूत वाले हिस्से पर रखकर दबाया.. वैशाली की चूत काफी मात्रा मे पानी छोड़ रही थी..
जैसे जैसे वैशाली की उत्तेजना बढ़ती गई वैसे वैसे उसकी हरकतें भी बढ़ने लगी.. रसिक की गोद मे उसने करवट लेकर अपना मुंह उसके लंड के करीब ले गई.. यह अवस्था चूसने के लिए आदर्श थी.. वैशाली अब पागलों की तरह उस मूसल लंड को चूमने लगी.. लंड को मूल से लेकर टोपे तक अपनी जीभ फेरते हुए उसने अपनी लार से लंड को गीला कर दिया.. अब तक आक्रामकता से वैशाली के बदन को रौंद रहा रसिक.. वैशाली के चाटने के कारण बेबस हो गया.. उसकी हरकतें धीमी पड़ने लगी.. और अब वैशाली आक्रामक होने लगी.. जैसे जैसे वो चूसती गई वैसे वैसे रसिक आनंद के महासागर मे गोते खाने लगा था..
अब तक जितनी भी ब्ल्यू-फिल्में देखकर ब्लो-जॉब की कला सीखी थी.. वह सारी उसने रसिक का लंड चूसने मे लगा दी थी.. वैशाली का यह स्वरूप देखकर कविता भी हतप्रभ हो गई थी.. वैशाली जिस तरह से लंड को मजे लेकर चूस रही थी.. वो देखकर कविता के लिए भी अपने आप को कंट्रोल मे रखना मुश्किल हो रहा था.. आखिर कविता खुद ही कपड़ों के ऊपर से अपनी चूत को दबाने लगी..
"ऐसे नहीं भाभी.. कपड़े उतार दीजिए ना.. !! आप कहोगे तो मैं हाथ भी नहीं लगाऊँगा.. पर एक बार आपका नंगा बदन देखने तो दीजिए.. !!" कविता को ऐसा करने मे कोई दिक्कत नहीं लगी.. जहां तक रसिक उसके जिस्म को हाथ नहीं लगाता, उसे कोई प्रॉब्लेम नहीं थी.. और वैसे भी वो जिस हद तक गरम हो चुकी थी.. वह खुद भी कपड़े उतारना चाहती थी
एक के बाद एक.. कविता ने अपने सारे कपड़े उतार दीये.. और सर से पाँव तक नंगी होकर.. खटिया के कोने पर बैठ गई.. खटिया की खुरदरी रस्सी उसकी कोमल गांड पर चुभ रही थी.. उसका गोरा संगेमरमरी बदन आग मे तांबे की तरह चमक रहा था..
रसिक का लंड मुंह से बाहर निकालकर वैशाली ने कहा "यार कविता, ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा.. चूत मे ना लेना हो तो ना सही.. एक बार चूसकर तो देख.. इतना मज़ा आ रहा है यार.. !!" बड़े ही कामुक अंदाज मे रसिक का गीला लंड पकड़कर हिलाते हुए वो बोली "एक बार देख तो सही.. !! घोड़े के लंड जैसा मोटा और तगड़ा है"
कविता ने जवाब नहीं दिया.. पर उसकी आँखों मे हवस का जबरदस्त खुमार देखते ही बंटा था..
वैशाली का सिर अपनी गोद से हटाकर खटिया पर टिकाकर रसिक खड़ा हो गया.. और अपनी अन्डरवेर उतार दी.. उसका विशाल लंड.. तगड़ा शरीर.. और काला रंग.. आग की रोशनी मे चमककर डरावना सा लग रहा था.. कविता ने सोचा की आदिकाल मे असुर ऐसे ही दिखते होंगे.. !! अब वैशाली भी खटिया से खड़ी हो गई.. और अपना लेगिंग और पेन्टी उतारकर साइड मे रख दिया.. और फिर रसिक की छाती के साथ अपने स्तनों को दबाते हुए उसे चूमने लगी.. नाग की तरह फुँकार रहे लंड को पकड़कर वो हिला भी रही थी..
पहली बार रसिक ने वैशाली के गुलाबी अधरों को चूम लिया.. इतनी लंबी और उत्तेजक किस थी की देखकर ही कविता पिघल गई.. उसकी सांसें भारी हो गई..
कविता की इस अवस्था को भांपकर रसिक ने कहा "भाभी.. आप ऐसे बैठे रहेगी तो कैसे मज़ा आएगा?? चोदने न दो तो कोई बात नहीं... एक बार चाटने तो दीजिए.. उसमें तो आपको ही मज़ा आएगा"
वैशाली ने रसिक का लंड हिलाते हुए कहा "हाँ यार.. चाटने तो दे.. मज़ा आएगा तुझे.. बेकार शरमा रही है तू.. इतना डेरिंग कर ही लिया है तो थोड़ा और सही.. अब यहाँ तक आकर तू बिना कुछ कीये वापिस चली जाएगी तो कैसे चलेगा.. !! सामने इतना मस्त लंड है और तू मुंह धोने जाने की बातें मत कर"
वैसे भी कविता मन ही मन पिघल रही थी.. ऊपर से रसिक और वैशाली के आग्रह ने उसके विरोध को ओर कमजोर किया
"ऐसा नहीं है यार.. मैं देख तो रही हूँ.. आप दोनों करते रहो जो भी करना हो.. मेरा मन करेगा तो मैं जुड़ जाऊँगी.. पर अभी नहीं.. " कविता ने ऊटपटाँग जवाब देकर खिसकना चाहा
वैशाली रसिक को छोड़कर कविता के करीब आई.. उसके नंगे स्तनों के बीच कविता का चेहरा रगड़कर उसे चूम लिया और बोली "मादरचोद.. नखरे मत कर.. चल चुपचाप.. !!" कहते हुए वो कविता को घसीटकर रसिक के पास ले आई और उसे कंधों से दबाकर घुटनों के बल नीचे बीठा दिया.. और खुद भी साथ बैठ गई..
रसिक अब पैर चौड़े कर अपने हाथ को पीछे ले जाकर विश्राम की पोजीशन मे खड़ा हो गया.. कविता और वैशाली दोनों के चेहरों के बीच उसका तगड़ा लंड सेंडविच होने के लिए तैयार था.. पर कविता उसे हाथ लगाने से झिझक रही थी.. वैशाली ने जबरन कविता के दोनों हाथों को पकड़कर अपने स्तनों पर रख दिया.. और कविता उन्हें मसलने लगी.. वैशाली की निप्पल एकदम कडक बेर जैसी हो गई थी.. अपनी पहली उंगली और अंगूठे के बीच उस सख्त निप्पल को दबाकर खींचते हुए उसने पहली बार वैशाली के होंठों के करीब आना चाहा.. धीरे धीरे माहोल मे ढल रही कविता को देखकर वैशाली ने दोगुने उत्साह से अपने होंठ उसके होंठों पर रख दीये.. कविता वैशाली के होंठों को चूसने लगी.. अपनी जीभ उसकी जीभ से मिलाकर उसका स्वाद चखने लगी..
कविता इस लिप किस मे बेतहाशा खो चुकी थी.. तभी वैशाली ने बड़ी ही चालाकी से रसिक का लँड दोनों के मुंह के बीच रख दिया.. लंड इतना कडक था की दोनों के होंठों को चीरकर आरपार निकल गया.. इतना कामुक द्रश्य था.. की कविता ने पहली बार सामने से रसिक के सुपाड़े को पकड़ लिया.. कविता के स्पर्श को पहचानकर रसिक बेहद खुश हो गया.. उसका सख्त तगड़ा लंड कविता नाम की मोरनी को रिझाने के लिए नृत्य करने लगा.. वैशाली ने उस लंड को थोड़ी देर तक चूसा और फिर कविता को देते हुए कहा "ले, अब तू चूस.. !!"
कविता ने मुंह फेर लिया "मुझे नहीं चूसना है.. !!"
वैशाली: "अब नखरे छोड़ भी दे.. !!"
कविता: "मुझे फोर्स मत कर वैशाली.. तुझे जो करना हो कर.. चूसना हो तो चूस.. आगे पीछे जहां भी लेना हो ले.. तुझे कहाँ रोक रही हूँ मैं??"
वैशाली अपना आपा खो बैठी "भेनचोद.. इतना मस्त लोडा मिला है मजे करने को.. और इस महारानी के नखरे ही खतम नहीं हो रहे है.. चल.. अब इसे चूस.. वरना तुझे उल्टा सुलाकर तेरी गांड मे दे दूँगी रसिक का लंड.. !!" कविता के मुंह मे रसिक का लंड जबरदस्ती डालकर ही चैन लिया वैशाली ने
"ओह्ह यस बेबी.. सक इट.. !!" वैशाली कविता को उकसाने लगी
कविता को शुरू शुरू मे.. बड़ा अटपटा सा लगा.. पर वो खुद भी इतनी उत्तेजित थी की जो आदमी उसे देखकर ही पसंद नहीं था.. उसका लंड चूस रही थी.. थोड़ी देर के बाद वैशाली ने कविता को धकेल दिया और खुद चूसने लगी..
काफी देर तक लंड की चुसाई के बाद वैशाली ने लंड छोड़ा.. फिर कविता को खटिया पर लेटाकर रसिक को उसकी चूत चाटने का इशारा किया.. रसिक बावरा हो गया.. और अपनी पसंदीदा चूत पर टूट पड़ने के लिए तैयार हो गया..
कविता की चूत पर रसिक की जीभ फिरते ही वो सिहर उठी.. सातवे आसमान पर उड़ने लगी कविता.. उसकी निप्पलें टाइट हो गई.. और शुरुआत मे जांघें दबाकर रखने वाली कविता ने खुद ही अपनी टांगें फैलाते हुए रसिक को चाटने मे आसानी कर दी..
पैर चौड़े होते ही कविता की नाजुक चूत के पंखुड़ियों जैसे होंठ खुल गए.. उसकी लाल क्लिटोरिस और छोटा सा छेद देखकर रसिक समझ गया की वो उसका लंड अंदर नहीं ले पाएगी..
कविता की लाल क्लिटोरिस को होंठों के बीच दबाकर रसिक ने जब चूसा... तब उत्तेजित होकर कविता अपनी गांड उछालकर गोल गोल घुमाते हुए ऊपर नीचे करने लगी.. आह्ह आह्ह आह्ह.. की आवाज़ें रसिक के खेत मे गूंजने लगी.. कविता की चूत चाट रहे रसिक के लंड को वैशाली बड़े ही प्यार से देख रही थी.. वो उसके लंड से कभी अपने गालों को रगड़ती तो कभी दो स्तनों के बीच उसे दबा देती..
"भाभी.. आप अपनी खोलकर मेरे मुंह पर बैठ जाओ.. मज़ा आएगा.. मुझे उस तरह चाटना बहोत अच्छा लगता है" पतली सी कविता के बदन को खिलौने की तरह उठाकर खड़ा कर दिया रसिक ने.. और खुद खटिया पर लेट गया.. कविता के गोरे कूल्हों पर हाथ फेरते हुए उसे अपने मुंह पर बीठा दिया रसिक ने..
कविता की कोमल चूत के वर्टिकल होंठों को चाटते हुए अंदर घुसाने का सुराख ढूंढ रही थी रसिक की जीभ.. !! कविता को तो जैसे बिन मांगे ही स्वर्ग मिल गया.. !! एक साल से ऊपर हो गया किसी मर्द ने उसकी चूत चाटे हुए.. महीने मे एक बार पीयूष मुश्किल से उसे चोदता था.. चूत चाटने का तो कोई सवाल ही नहीं था.. रसिक के प्रति उसके मन मे जो घृणा थी.. वो उत्तेजना की गर्मी से भांप बनकर उड़ गई.. !! आँखें बंद कर वो रसिक के मुंह पर सवारी कर अपनी चूत को आगे पीछे रगड़ रही थी.. ऐसा मौका दिलाने के लिए वो मन ही मन वैशाली का आभार प्रकट करने लगी.. अगर वैशाली ने इतनी हिम्मत न की होती.. तो ऐसा आनंद उसे कभी नहीं मिलता..!! लंड तो लंड.. रसिक की तो जीभ भी कितनी कडक थी.. चूत की अंदरूनी परतों को कुरेद रही थी.. माय गॉड.. इतना सख्त तो आज तक पीयूष का कभी नहीं हुआ.. यह आदमी वाकई असुर योनि का लगता है.. इसकी जीभ तो लंड से भी ज्यादा खतरनाक है..
कविता का शरीर अकड़ने लगा. और उसने अपनी चूत की मांसपेशियों को जकड़ लिया.. रसिक की जीभ और तीव्रता से कविता की चूत मे जितना अंदर जा सकती थी.. घुस गई.. !! दोनों तरफ आनंद की लहरें उठ रही थी.. दोनों हाथ ऊपर कर रसिक ने कविता के नाजुक स्तनों को पकड़ लिया और दबाते हुए अपनी जीभ उसकी चूत मे नचाने लगा..
कविता ने दोनों हाथ से रसिक का सर पकड़ लिया और अपनी चूत को ताकत के साथ उसकी जीभ पर दबाते हुए अपने शरीर को तंग कर दिया.. दूसरे ही पल.. रसिक का लोडा चूस रही वैशाली के मुंह मे.. गाढ़े लस्सेदार वीर्य की पिचकारी छूटी.. वैशाली इस प्रहार के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी.. वह उत्तेजित तो थी पर वीर्य को मुंह मे लेने की उसकी तैयारी नहीं थी.. उसने तुरंत लंड मुंह से बाहर निकाल दिया.. वीर्य थूक दिया और छी छी करते हुए खाँसने लगी..
रसिक के चेहरे से उतरकर खटिया के कोने पर बैठ गई.. वैशाली के हाल पर हँसते हुए उसने रसिक के लंड की तरफ देखा.. बाप रे.. !! वैशाली की लार और वीर्य से तरबतर लोडा, हर सेकंड पर एक झटका मार रहा था.. अद्भुत द्रश्य था.. !! वैशाली और कविता दोनों की नजर उस आसुरी लंड पर चिपक गई थी.. कविता ऐसे देख रही थी जैसी किसी दुर्लभ प्रजाति के प्राणी को देख रही हो.. और वैशाली थोड़ी सी नाराजगी से रसिक की तरफ देख रही थी
थोड़ी देर के बाद सब से पहले कविता उठी और कपड़े पहनने लगी..
"अरे भाभी.. अभी से कपड़े पहनने लगी आप? अभी तो सिर्फ शुरुआत हुई है.. " रसिक खड़ा हो गया और कविता के पीछे जाकर उसे अपनी बाहों मे जकड़कर स्तनों को दबाने लगा.. इस बार कविता को रसिक के प्रति कोई घृणा नहीं हो रही थी.. पर फिर भी रसिक को अपने शरीर से दूर धकेलते हुए कहा "मुझे ठंड लग रही है.. जरूरत पड़ी तो फिर से उतार दूँगी.. अभी पहन लेने दो मुझे.. और पहले उस रंडी की चूत चोदकर ढीली कर दो.. कब से मचल रही है चुदवाने के लिए" कविता अब बेझिझक होकर बोलने लगी थी
वैशाली खुश होकर बोली "अरे वाह.. अब तो तू भी एकदम खुल गई कविता.. !!"
रसिक: "जब कपड़े ही उतर चुके हो.. फिर किस बात की झिझक.. !! क्यों सही कहा ना भाभी.. !! आप को ठंड लग रही है ना.. रुकिए, मैं आप दोनों के लिए चाय बनाकर लाता हूँ" रसिक नंगे बदन ही वो कमरे मे गया.. उसका झूलता हुआ लंड और काले चूतड़ देखकर.. कविता और वैशाली एक दूसरे के सामने देखकर हंसने लगे..
रसिक चाय बना रहा था उस दौरान दोनों यहाँ से निकलने के समय के बारे मे बात करने लगी
कविता: "अभी साढ़े दस बजे है.. साढ़े ग्यारह बजे तो निकल जाएंगे"
वैशाली: "अरे यार.. एक बजे भी निकले तो क्या दिक्कत है?? घर पर कोई पूछने वाला तो है नहीं.. !!"
तभी चीमटे से एल्युमिनियम की पतीली पकड़कर रसिक आया और बोला "आज की रात आपको यहीं रहना है.. जाने की बात मत कीजिए.. मेरा मन भर जाएगा उसके बाद ही आप लोगों को जाने दूंगा"
प्लास्टिक के तीन कप मे रसिक ने चाय निकाली.. और तीनों पीने लगे.. कविता कपड़े पहन कर बैठी थी पर रसिक और वैशाली अभी भी सम्पूर्ण नग्न थे..
चाय पीने से शरीर गरम हुआ.. और ऑर्गजम की सुस्ती चली गई.. रसिक अब खटिया पर बैठ गया और कविता तथा वैशाली दोनों को अपनी एक एक जांघ पर बीठा दिया.. और फिर उनकी काँखों के नीचे से हाथ डालकर दोनों को स्तनों को दबाते हुए बोला "भाभी, आपको नंगा देखने की मेरी इच्छा आज पूरी हो गई.. अब एक बार आपको जीन्स और टी-शर्ट मे देखने की इच्छा है.. हो सके तो कभी वो इच्छा भी पूरी कर देना मेरी.. शहर की जवान लड़कियों को ऐसे फेशनेबल कपड़ों मे एक्टिवा पर जाते हुए देखता हूँ तब इतना मन करता है की उन्हें पकड़कर दबोच लूँ.. और सारे कपड़े उतरवाकर खड़े खड़े चोद दूँ.. !!"
वैशाली: "इसमें कौन सी बड़ी बात है.. तुम्हारी यह इच्छा तो मैं पूरी कर दूँगी, रसिक.. !!"
रसिक: "नहीं.. मुझे तो भाभी को ऐसे कपड़ों मे देखना है"
कविता: "मैं तो यहाँ से चली जाऊँगी.. तो वो इच्छा तो पूरी होने से रही.. हाँ कभी मेरे शहर आओ तो वैसे कपड़ों मे जरूर देखने मिलूँगी तुम्हें.. !!"
रसिक: "आप जब और जहां कहो.. मैं आ जाऊंगा भाभी"
वैशाली रसिक के आधे-मुरझाए लंड से खेलते हुए बोली "कविता, ये रसिक ही तेरा असली आशिक है.. मौका मिले तो उसकी यह इच्छा जरूर पूरी करना.. !!"
वैशाली के हाथों के जादू से रसिक का लंड फिर से खड़ा हो गया.. उसका विकराल रूप देखकर कविता फिर से घबरा गई "देख तो सही वैशाली.. इसके लंड की इच्छा पूरी करने मे मेरी गुलाबी कोमल चूत की धज्जियां उड़ जाएगी.. !!"
रसिक: "आपको इतना डर हो तो मैं वादा करता हूँ.. के कभी अंदर डालने के लिए मजबूर नहीं करूंगा आपको.. मुझे बस अपनी चूत पर लंड रगड़ने देगी तो भी मेरा निकल जाएगा.. !!"
कविता: "अच्छा.. फिर तो ठीक है.. मौका मिला तो तुम्हारी यह इच्छा जरूर पूरा करने की कोशिश करूंगी.. पर जब तक मैं सामने से न कहूँ..तब तक तुम मुझे हाथ भी नहीं लगाओगे.. किसी को भी कोई शक हो ऐसा कुछ भी करने की कोशिश करोगे तो जो मिल रहा होगा वो भी खोने की बारी आ जाएगी"
कविता के बात सुनते हुए वैशाली ने रसिक के लंड को अपनी चिपचिपी बुर पर रगड़ना शुरू कर दिया था.. वैशाली के इस साहस मे मदद करने के लिए रसिक की जांघ से उठकर, खटिया के छोर पर खड़ी हो गई कविता
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Behtreen shaandar jaandaar update bhaiकविता: "अच्छा.. फिर तो ठीक है.. मौका मिला तो तुम्हारी यह इच्छा जरूर पूरा करने की कोशिश करूंगी.. पर जब तक मैं सामने से न कहूँ..तब तक तुम मुझे हाथ भी नहीं लगाओगे.. किसी को भी कोई शक हो ऐसा कुछ भी करने की कोशिश करोगे तो जो मिल रहा होगा वो भी खोने की बारी आ जाएगी"
कविता के बात सुनते हुए वैशाली ने रसिक के लंड को अपनी चिपचिपी बुर पर रगड़ना शुरू कर दिया था.. वैशाली के इस साहस मे मदद करने के लिए रसिक की जांघ से उठकर, खटिया के छोर पर खड़ी हो गई कविता
रसिक की मोटी जांघों की दोनों ओर अपने पैर फैलाकर बैठते हुए.. नीचे हाथ डालकर.. अपनी जामुन जैसी क्लिटोरिस पर रगड़ रही थी वैशाली.. स्त्री के शरीर के सब से संवेदनशील हिस्से पर मर्द के जीवंत पौरुष-सभर अंग का गरमागरम स्पर्श होते ही, वैशाली का बदन लहराने लगा..
उसके बदन मे कसाव आने लगा और साथ ही साथ उत्तेजना बढ़ने लगी.. उसका साहस भी अब एक कदम आगे बढ़ने लगा था.. उत्तेजना इंसान को साहसिक बना देती है.. वैशाली ने रसिक का खंभे जैसा लंड अपनी बुर मे लेने के लिए कमर कस ली थी.. अपनी योनि के सुराख पर रसिक का लाल टमाटर जैसा सुपाड़ा टिकाते हुए उसने हल्के हल्के शरीर का दबाव बनाना शुरू किया.. योनिमार्ग के शुरुआती प्रतिरोध के बाद.. रसिक का सुपाड़ा अंदर धीरे धीरे घुस गया.. वैशाली उस विकराल लंड को बड़ी मुश्किल से आधा ही ले पाई अंदर.. वैशाली अब स्थिर हो गई.. शरीर का पूरा वज़न डालने के बावजूद लोडा ज्यादा अंदर नहीं जा पा रहा था.. उसकी चूत अपने महत्तम परिघ तक फैल चुकी थी.. इससे ज्यादा चौड़ी होना मुमकिन नहीं था..
वैशाली के चेहरे पर असह्य पीड़ा के भाव दिख रहे थे.. इतनी सर्द रात मे भी उसका बदन पसीने से तर हो रहा था..
"क्या हो रहा है तुझे वैशाली? बाहर निकाल देना है...??" वैशाली को इस हाल मे देखकर.. घबराते हुए कविता ने कहा..
वैशाली ने टूटती हुई आवाज मे कहा.. "न.. नहीं.. इस दर्द को सहने के लिए.. तो मैं.. आह्ह.. तड़प रही थी.. मर जाने दे मुझे.. पर मैं इसे अब बाहर नहीं निकालूँगी.. ओह्ह.. मज़ा आएगा अब तो.. कविता.. ओह माय गॉड.. क्या मस्त लंड है यार.. प्लीज.. जरा नीचे देखकर बता मुझे.. कितना अंदर गया और कितना बाकी है.. !!"
कविता खटिया के पास, रसिक की जांघों के बीच बैठ गई और देखने की कोशिश करने लगी.. पर अंधेरे मे घंटा कुछ नजर नहीं आ रहा था..
कविता: "कुछ दिख नहीं रहा है वैशाली.. !!"
"एक मिनट भाभी.. " रसिक ने कहा.. और वैशाली को कमर से पकड़कर वो खटिया से खड़ा हो गया.. ऐसा करने से वैशाली की चूत और फैल गई और लंड का अधिक हिस्सा अंदर घुस गया.. वैशाली की चीख निकल गई... !!!!!
"ऊईईईईईई माँ.... !!!!!! मर गईई मम्मी.. रसिक बहोत दुख रहा है मुझे... आह उतार दे मुझे" वैशाली की आँखों से आँसू बहने लगे
रसिक ने वैशाली के चूतड़ों को अपने हाथों से सहारा देकर.. अपना लंड उसकी चूत से हल्का सा बाहर निकालकर वैशाली को थोड़ी सी राहत दी.. वैशाली की जान मे जान आई..
रसिक: "लीजिए भाभी... अब आपको दिखेगा.. " फूल की तरह उठा रखा था वैशाली को रसिक ने
कविता ने नीचे झुककर देखा.. अब लिंग-योनि की महायुति अब स्पष्ट नजर आ रही थी.. कविता ने वैशाली के चूतड़ों को जितना हो सकता था.. अपने हाथों से फैलाकर देखा.. देखकर कविता की जुबान उसके हलक मे उतर गई... वैशाली की चूत के अंदर रसिक का लंड बुरी तरह फंसा हुआ था.. वीर्य से भरे अंडकोश इतने मोटे मोटे नजर आ रहे थे.. वैशाली की द्रवित हो रही चूत के रस से सराबोर होकर.. आग की रोशनी मे कंचे की तरह चमक रहे थे..
"अभी तो आधा ही अंदर गया है वैशाली.. आधा बाहर है" कविता ने रसिक के अंडकोशों पर हाथ फेर लिया.. और लंड के बाहर वाले हिस्से की मोटाई को हाथ लगाकर नापते हुए... घबराकर कहा "ओ बाप रे.. पूरा तो अंदर जाएगा ही नहीं.. फट जाएगी तेरी.. !!"
अपने राक्षसी हाथों मे वैशाली को उठाकर आग की प्रदक्षिणा करते हुए हल्के हल्के चोदने लगा रसिक.. उसके हर नाजुक धक्के के साथ वैशाली की सिसकियाँ और दर्द भरी कराहें निकलकर.. रात के अंधेरे मे ओजल हो रही थी.. बड़ा खतरनाक साहस कर दिया था वैशाली ने.. अपनी हवस को संतुष्ट करने के लिए इंसान बड़े से बड़ा जोखिम उठाने को तैयार हो जाता है.. यह उसका प्रत्यक्ष उदाहरण था..
कविता खटिया पर बैठे बैठे.. दोनों के कठिन और कामुक मिलन को विस्मय भरी नज़रों से देख रही थी.. गदराए बदन वाली वैशाली को उचककर घूम रहे रसिक के हाथ के डोले फूल गए थे.. वैशाली ने रसिक की गर्दन मे अपने दोनों हाथ पिरोते हुए अपना सारा वज़न उसके शरीर पर डाल दिया था.. रसिक और वैशाली के होंठ बस चार-पाँच इंच के अंतर पर थे.. वैशाली के मुलायम गुलाबी होंठों को अपना बनाने के इरादे से रसिक ने अपने खुरदरे काले होंठों से उसे चूम लिया.. और अनुभवहीनता से चूसने लगा.. वो ऐसे चूम रहा था जैसे पुंगी बजा रहा हो..
रसिक के चूमने के इस तरीके पर वैशाली को हंसी आ गई.. पर वो हंसी ज्यादा देर तक टिकी नहीं.. क्योंकि रसिक को किस करना आता नहीं था और वो खुद भी यह जानता था.. अब तक उसने उस क्षेत्र मे ज्यादा संशोधन किया नहीं था.. जरूरत भी नहीं पड़ी थी.. जितनी औरतों से उसका पाला पड़ा था उन्हें चूमने से ज्यादा उसके लंड से चुदने में ज्यादा दिलचस्पी थी.. उसने एक विशेष इरादे से वैशाली को किस किया था.. जो वैशाली को जल्दी ही समझ आने वाला था..
वैशाली की चूत के बाहर जो आधा लंड घुसना बाकी था.. उसे एक जबरदस्त धक्का देते हुए अंदर डालने के बाद.. वैशाली जोर से चीख न सकें इसलिए रसिक ने उसके मुंह को पकड़कर.. वैशाली के चूतड़ों के नीचे सपोर्ट देने के लिए रखे अपने दोनों हाथों को छोड़ दिया.. वैशाली के भारी शरीर का वज़न लंड पर पड़ते ही.. लंड का चार से पाँच इंच हिस्सा अंदर घुस गया.. !!!!!
वैशाली ऐसे फड़फड़ाते हुए तड़पने लगी जैसे मछली पानी से बाहर निकल ने पर फड़फड़ाती है.. रसिक की बाहों से छूटने के लिए जद्दोजहत करने लगी.. पर चूत के अंदर लंड.. नश्तर की तरह घुसे हुए उसे बहुत दर्द दे रहा था.. असह्य पीड़ा से कराहते हुए वैशली जरा सी भी हलचल करती तो उसका दर्द और बढ़ रहा था.. इसलिए अब वो हिल भी नहीं पा रही थी.. इसलिए वैशाली ने रसिक के बालों को ताकत पूर्वक पकड़कर लीप किस तोड़ दी और रसिक के कंधे पर सिर रखकर.. फुटफुटकर रोने लगी.. !!!
"ओह्ह... रसिक... मैं मर जाऊँगी..मुझे नहीं कराना.. प्लीज.. बाहर निकाल.. बहोत दर्द हो रहा है.. कविता यार.. जरा समझा रसिक को.. !!"
कविता खटिया पर बैठे बैठे एक लकड़ी की मदद से आग के अंदर लकड़ियों को सही कर रही थी.. बड़े ही आराम से उसने कहा "तुझे ही बड़ा शौक था उसका लेने का.. अब अपनी सारी तमन्ना पूरी कर.. !!"
"नहीं नहीं.. रसिक, आज नहीं.. फिर कभी जरूर करेंगे.. आज मुझे माफ कर.. मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा.. फट गई है मेरी.. मेरे शरीर के बीच से दो टुकड़े हो जाएंगे ऐसा लग रहा है मुझे.. प्लीज" वैशाली ने दर्द भरी विनती से रसिक और उत्तेजित हो गया.. उसने वैशाली को कविता के बगल मे.. खटिया पर लेटा दिया.. और उसकी दोनों टांगों को फैलाकर कविता के स्तनों को दबाने लगा और बोला "भाभी, आप इसकी दोनों टांगों को चौड़ा पकड़ रखिए.. आज तो वैशाली को पूरा मज़ा देकर ही दम लूँगा.. "
बड़ी ही स्फूर्ति से कविता खड़ी हो गई और वैशाली की दोनों टांगों को पकड़कर चौड़ा कर दिया.. पर ऐसा करते वक्त जांघों के बीच झूल रहे मस्त लंड को पकड़कर अपने मन की मुराद पूरा करना भूली नहीं.. वो भले ही चूत मे लेने के लिए समर्थ नहीं थी.. पर इस मन-लुभावन लंड को पसंद तो करने लगी थी.. कविता का हाथ लंड को छूते ही.. जैसे नेवले को देखकर सांप सचेत हो जाता है.. वैसे ही रसिक का लंड ऊपर होकर आसपास देखने लगा
"ओह् भेनचोद... भाभी, तेरे हाथ मे पता नहीं कौन सा जादू है.. हाथ लगते ही मेरा उछलने लगता है.. आह्ह भाभी, थोड़ा सहलाओ इसे.. आह आह मज़ा आ रहा है.. थोड़ा सा चूस भी ले मेरी रानी.. !!" आज पहली बार रसिक ने उसे "आप" के बदले "तू" कहकर संबोधित किया था.. कविता की प्यारी सी चूत मे जबरदस्त खुजली होने लगी..
तभी रसिक ने कविता को धक्का देकर वैशाली के बगल मे सुला दिया.. और रसिक उन दोनों के बदन पर छा गया.. भले ही अब तक एक भी चूत मे लंड घुस नहीं सका था.. पर रसिक के विशाल शरीर के तले दोनों लड़कियां ढँक गई थी.. वैशाली और कविता के स्तनों की हालत दयनीय थी.. मसल मसलकर रसिक ने स्तनों के आकार बदल दिया था.. उनके कोमल बदनो को कुचलते हुए.. अपने शरीर का तमाम वज़न उसने इन दोनों पर डाल दिया..
बारी बारी से दोनों के गालों को चूम रहा था रसिक.. वो दोनों के स्तनों को चूस रहा था.. जब वैशाली के स्तन को चूसता तब कविता के स्तन को मसलता.. उसके मर्दाना स्पर्श से दोनों कामुक सिसकियाँ निकालने लगी.. लंड बाहर निकल जाने से वैशाली का दर्द भी गायब हो चुका था.. अब वो नए दर्द के लिए तड़पने लगी थी
घनघोर अंधेरा.. कड़ाके की सर्दी... सुमसान खेत.. बीच मे जल रही आग.. पास पड़ी खटिया पर लेटी हुई.. दो अति सुंदर नग्न सुंदरियाँ.. और उनके ऊपर मंडरा रहा हेवान जैसा रसिक.. बड़ी ही अद्भुत रात थी ये कविता और वैशाली के लिए.. दोनों सहेलियाँ इतनी कामुक हो गई थी अब उन्हें रसिक के छूने से कोई संकोच नहीं हो रहा था.. जो कविता रसिक से नफरत करती थी वो उसकी मर्दानगी को सलाम करने लगी थी..
रसिक का खड़ा लंड कविता के पेट और नाभि पर चुभ रहा था.. और उसे बेहद मज़ा आ रहा था.. वैशाली इतनी उत्तेजित थी की रसिक के शरीर को कविता के ऊपर से खींचकर अपने ऊपर लेने की कोशिश कर रही थी.. रसिक के स्वागत के लिए उसने अपनी जांघें खोल रखी थी.. वैशाली का आमंत्रण समझ गया रसिक.. और कविता के ऊपर से सरककर वैशाली के शरीर के ऊपर छा गया..
वैशाली की दोनों जांघों के बीच बैठकर.. रसिक का लोडा वैशाली की चूत ढूंढकर.. बड़े ही आराम से आधा अंदर उतर गया.. वैशाली की आँखों मे मोटे लंड-प्रवेश का जबरदस्त सुरूर छाने लगा था.. रसिक के काले चूतड़ों पर हाथ फेरते हुए वो उसके कंधों पर काटने लगी
बगल मे लेटी कविता खुद ही अपनी चूत सहलाते हुए रसिक के कूल्हे और पीठ पर हाथ सहला रही थी.. और आश्चर्य भरी नज़रों से वैशाली के इस अप्रतिम साहस को देख रही थी.. एक पल के लिए उसे ऐसा मन हुआ की वो वैशाली को हटाकर खुद रसिक के नीचे लेट जाए.. जो होगा फिर देखा जाएगा.. पर दूसरे ही पल.. वैशाली की दर्द-सभर चीखें याद आ गई और उसका हौसला पस्त हो गया.. !!
थोड़ी देर पहले रसिक ने जितना लंड वैशाली की चूत मे डाला था, उतना तो इस बार आसानी से चला गया.. पर लंड का बाकी हिस्सा अंदर घुसने का नाम ही नहीं ले रहा था.. रसिक ने अब बाकी का लंड, किसी भी सूरत मे, अंदर डालने का मन बनाकर कविता से कहा "तुम इसका मुंह बंद दबाकर रखो.. मैं आखरी शॉट मारने जा रहा हूँ"
सुनते ही वैशाली की शक्ल रोने जैसी हो गई, वो बोली "नहीं रसिक.. मेरी फट जाएगी.. खून निकल जाएगा.. पूरा अंदर नहीं जाएगा.. बस जितना अंदर गया है उतना ही अंदर बाहर करते है ना.. !!! दोनों को मज़ा आएगा" अपना मुंह दबाने करीब आ रही कविता को दूर धकेलते हुए वैशाली ने कहा
कविता: "हाँ रसिक.. उसको जिस तरह करवाना हो वैसे ही करो.. जो करने मे उसे मज़ा न आए और दर्द हो.. ऐसा करने मे क्या फायदा??"
रसिक: "ठीक है भाभी.. जैसा तुम कहो.. !!"
इतना कहते हुए रसिक ने कविता का हाथ पकड़कर.. चूत से बाहर लंड के हिस्से पर रखते हुए कहा "इस आधे लंड को तुम पकड़कर रखो.. ताकि इससे ज्यादा अंदर जाए नहीं.. मैं धक्के मारना शुरू कर रहा हूँ.. वैशाली, अगर दर्द ज्यादा हो तो बता देना.. मैं पूरा बाहर निकाल दूंगा.. ठीक है.. !!"
वैशाली की चूत मे आधे घुसे लंड के बाद जो हिस्सा बाहर रह गया था, उसे मुठ्ठी मे पकड़ लिया कविता ने.. लंड के परिघ को नापते हुए कविता के रोंगटे खड़े हो गए.. इतना मोटा था की कविता अपनी हथेली से उसे पूरी तरह पकड़ भी नहीं पा रही थी..
वैशाई के भारी भरकम स्तनों को मसलते हुए.. पहले लोकल ट्रेन की गति से.. और फिर राजधानी की स्पीड से.. रसिक पेलने लगा..!! वैशाली आनंद से सराबोर हो गई.. उसके शरीर मे.. रसिक के लंड के घर्षण से एक तरह की ऐसी ऊर्जा उत्पन्न हुई की इतने भारी रसिक के नीचे दबे होने के बावजूद वो अपने चूतड़ उठाकर उछल रही थी.. रसिक को भी बहोत मज़ा आ रहा था.. बड़ी उम्र की.. फैले हुए भोसड़ों वाली औरतों के मुकाबले.. वैशाली की चूत तो काफी टाइट थी.. वो सिसकते हुए वैशाली की जवानी को रौंदने लगा..
रसिक ने धक्के लगाने की गति को और तेज कर दिया.. उसके हेवानी धक्कों की वजह से हुआ यह की.. कविता का हाथ उसके लंड से छूट गया.. जो स्टापर का काम कर रहा था.. चूत के अंदर जाने का जो तय नाप था.. वो अब नहीं रहा.. और लंड पूरा अंदर घुस गया.. और वैशाली की फिर से चीख निकल गई..
पर अब रसिक रुकने वाला नहीं था.. लगभग पाँच मिनट की जंगली चुदाई के बाद वैशाली का शरीर ढीला पड़ गया और वो रसिक के बदन से लिपट पड़ी.. "आह आह रसिक.. आह्ह आह्ह ओह्ह मैं गई अब... ऊँहह.. आह्ह.. !!!" कहते हुए वैशाली की चूत का रस झड़ गया.. इस अनोखे स्खलन को कविता बड़े ही करीब से देख रही थी
रसिक के लंड को पता चल गया की इस युद्ध मे उसकी भव्य विजय हुई है.. अब बिना एक पल का इंतज़ार कीये रसिक ने वैशाली की चूत से लंड बाहर निकाला और उसके शरीर के ऊपर से खड़ा हो गया.. हल्का सा सरककर वो कविता के ऊपर चढ़ गया.. उससे पहले की कविता को सोच या समझ पाती.. रसिक ने अपने हाथ से लंड के सुपाड़े को कविता की फुलझड़ी पर रगड़ना शुरू कर दिया.. रसिक की इस हरकत को देखकर ही कविता कांप उठी.. उसने हाथ जोड़ दीये
कविता: "नहीं नहीं रसिक.. वैशाली की बात अलग है.. मेरे अंदर डालने की कोशिश भी की तो मेरी जान निकल जाएगी"
रसिक: "तुम चिंता मत करो भाभी.. अंदर नहीं डालूँगा.. मुझे पता है की अंदर जाएगा ही नहीं.. इतनी संकरी है आपकी फुद्दी.. जहां मेरी उंगली भी मुश्किल से घुस पाती हो वहाँ ये डंडा तो जाने से रहा.. मैं तो बस ऊपर ऊपर से रगड़कर आपको मज़ा देना चाहता हूँ.. देखना अभी कितना मज़ा आता है" कहते हुए रसिक कविता के गाल को चूमता हुआ उसके होंठों को चूसकर.. कविता की क्लिटोरिस को अपने खूंखार सुपाड़े से घिसने लगा.. आनंद से फड़फड़ाने लगी कविता..
बेहद उत्तेजित होकर कविता ने कहा "बहुत मज़ा आ रहा है रसिक.. एक बार मेरी चाटो ना.. !!"
रसिक बड़ी ही सावधानी से एक एक कदम आगे बढ़ रहा था.. वो ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहता थी जिससे कविता नाराज हो.. वो खड़ा हो गया.. कविता के पूरे शरीर को सहलाते हुए पलट गया.. कविता के मुख की तरफ अपना लंड सेट करके वो उसके ऊपर लेट गया.. कविता के चूतड़ों के नीचे हाथ डालकर खिलौने की तरह ऊपर उठाते हुए वो चूत चाटने लगा
"आह्ह रसिक.. ओह ओह्ह.. " कविता ने सिसकने के लिए अपना मुंह खोला और तभी रसिक ने अपना लंड उसके होंठों के बीच दबाकर उसका मुंह बंद कर दिया.. बिना किसी घिन के रसिक का लंड पकड़कर बड़े ही प्रेम से चूसते हुए कविता ने अपना पूरा शरीर रसिक को सौंप दिया..
रसिक ने कभी सपने मे भी नहीं सोचा था कविता भाभी उसका लंड चुसेगी.. अपने बबले दबाने देगी.. गुलाब की पंखुड़ियों जैसी उसकी चूत चाटने देगी..!!
वैशाली रसिक को कविता की चूत का रस चाटते हुए देखती रही और मन ही मन सोचने लगी "मम्मी या अनुमौसी की कोई गलती नहीं है.. रसिक है ही ऐसा की कोई भी औरत उसके नीचे सोने के लिए बेताब हो जाए.. जैसे मैं और कविता सुबह सुबह दूध लेते वक्त रसिक के साथ मस्ती कर रहे थे वैसे मम्मी भी करती ही होगी.. !! और कविता का कहना था की उसने मम्मी को रसिक के साथ यह सब करते हुए काफी बार देखा है.. !! इसका मतलब यह हुआ की मम्मी अभी भी रसिक के साथ ये सब करती होगी...?? जरूर करती होगी.. ऐसे लंड को भला कौन छोड़ेगा.. !!
कविता अपनी उत्तेजना के आखरी पड़ाव पर पहुँच चुकी थी.. और इस वक्त वो इतनी बेकाबू हो गई थी की रसिक के लंड को मुंह मे आधा लेकर वो पॉर्न फिल्मों की राँडों की तरह चूसने लगी.. रसिक भी सिसकियाँ भरते हुए कविता के मुंह से अपने लंड को निकालकर उसी अवस्था मे मुठ्ठी से पकड़कर जबरदस्त स्पीड से हिलाने लगा.. फांसी की सजा हुए कैदी की जैसे आखिरी इच्छा पूरी की जाती है वैसे रसिक अपने लंड को अंतिम सत्य के लिए लयबद्ध तरीके से हिला रहा था..
वैशाली कभी उसके हाथ के डोलों को देखती.. तो कभी उसकी मुठ्ठी मे आगे पीछे होते सुपाड़े को.. !! रसिक के चौड़े कंधे और बड़ी लाल आँखें रात के अंधेरे मे बेहद डरावनी लग रही थी..
"आह्ह आह्ह भाभी... आह.. !!" झटके खाते हुए रसिक का लंड अपना मलाईदार वीर्य स्खलित करने लगा.. दो फुट दूर बैठी वैशाली के गूँदाज बबलों पर वीर्य की पिचकारी जा गिरी.. दो तीन और पिचकारियों ने कविता के सुंदर स्तनों को भी पावन कर दिया.. लस्सेदार वीर्य को अपनी छाती पर मलने के बाद कविता के स्तन, अंधेरी रात मे तारों की तरह चमक रहे थे..
"वाह, यार रसिक, मज़ा आ गया.. तू सही मे असली वाला मर्द है.. तेरे बारे मे जितना कुछ सुना था.. उससे कई ज्यादा निकला.. दिल खुश हो गया.. कविता, अब हम चलें?" हांफते हुए वैशाली ने कविता को मदहोशी से होश मे लाने की कोशिश करते हुए कहा
कविता अब भी इस दमदार चूत चटाई के नशे मे ही थी.. उसकी ढली हुई आँखें, बड़ी मुश्किल से उठाते हुए उसने कहा " जाना ही पड़ेगा क्या.. !!"
थोड़ी देर के लिए दोनों रसिक की छाती को तकिया बनाकर लेटे रहे.. और आराम करने के बाद कपड़े पहनकर निकल गए..
रात के साढ़े बारह बज चुके थे..घर के बाहर पहुंचते ही.. मदन की गाड़ी पार्किंग मे पड़ी हुई देखकर, दोनों जबरदस्त घबरा गए.. !!!
My god, your descriptive skills are unmatchable. Fantastic writing. So hot.कविता: "अच्छा.. फिर तो ठीक है.. मौका मिला तो तुम्हारी यह इच्छा जरूर पूरा करने की कोशिश करूंगी.. पर जब तक मैं सामने से न कहूँ..तब तक तुम मुझे हाथ भी नहीं लगाओगे.. किसी को भी कोई शक हो ऐसा कुछ भी करने की कोशिश करोगे तो जो मिल रहा होगा वो भी खोने की बारी आ जाएगी"
कविता के बात सुनते हुए वैशाली ने रसिक के लंड को अपनी चिपचिपी बुर पर रगड़ना शुरू कर दिया था.. वैशाली के इस साहस मे मदद करने के लिए रसिक की जांघ से उठकर, खटिया के छोर पर खड़ी हो गई कविता
रसिक की मोटी जांघों की दोनों ओर अपने पैर फैलाकर बैठते हुए.. नीचे हाथ डालकर.. अपनी जामुन जैसी क्लिटोरिस पर रगड़ रही थी वैशाली.. स्त्री के शरीर के सब से संवेदनशील हिस्से पर मर्द के जीवंत पौरुष-सभर अंग का गरमागरम स्पर्श होते ही, वैशाली का बदन लहराने लगा..
उसके बदन मे कसाव आने लगा और साथ ही साथ उत्तेजना बढ़ने लगी.. उसका साहस भी अब एक कदम आगे बढ़ने लगा था.. उत्तेजना इंसान को साहसिक बना देती है.. वैशाली ने रसिक का खंभे जैसा लंड अपनी बुर मे लेने के लिए कमर कस ली थी.. अपनी योनि के सुराख पर रसिक का लाल टमाटर जैसा सुपाड़ा टिकाते हुए उसने हल्के हल्के शरीर का दबाव बनाना शुरू किया.. योनिमार्ग के शुरुआती प्रतिरोध के बाद.. रसिक का सुपाड़ा अंदर धीरे धीरे घुस गया.. वैशाली उस विकराल लंड को बड़ी मुश्किल से आधा ही ले पाई अंदर.. वैशाली अब स्थिर हो गई.. शरीर का पूरा वज़न डालने के बावजूद लोडा ज्यादा अंदर नहीं जा पा रहा था.. उसकी चूत अपने महत्तम परिघ तक फैल चुकी थी.. इससे ज्यादा चौड़ी होना मुमकिन नहीं था..
वैशाली के चेहरे पर असह्य पीड़ा के भाव दिख रहे थे.. इतनी सर्द रात मे भी उसका बदन पसीने से तर हो रहा था..
"क्या हो रहा है तुझे वैशाली? बाहर निकाल देना है...??" वैशाली को इस हाल मे देखकर.. घबराते हुए कविता ने कहा..
वैशाली ने टूटती हुई आवाज मे कहा.. "न.. नहीं.. इस दर्द को सहने के लिए.. तो मैं.. आह्ह.. तड़प रही थी.. मर जाने दे मुझे.. पर मैं इसे अब बाहर नहीं निकालूँगी.. ओह्ह.. मज़ा आएगा अब तो.. कविता.. ओह माय गॉड.. क्या मस्त लंड है यार.. प्लीज.. जरा नीचे देखकर बता मुझे.. कितना अंदर गया और कितना बाकी है.. !!"
कविता खटिया के पास, रसिक की जांघों के बीच बैठ गई और देखने की कोशिश करने लगी.. पर अंधेरे मे घंटा कुछ नजर नहीं आ रहा था..
कविता: "कुछ दिख नहीं रहा है वैशाली.. !!"
"एक मिनट भाभी.. " रसिक ने कहा.. और वैशाली को कमर से पकड़कर वो खटिया से खड़ा हो गया.. ऐसा करने से वैशाली की चूत और फैल गई और लंड का अधिक हिस्सा अंदर घुस गया.. वैशाली की चीख निकल गई... !!!!!
"ऊईईईईईई माँ.... !!!!!! मर गईई मम्मी.. रसिक बहोत दुख रहा है मुझे... आह उतार दे मुझे" वैशाली की आँखों से आँसू बहने लगे
रसिक ने वैशाली के चूतड़ों को अपने हाथों से सहारा देकर.. अपना लंड उसकी चूत से हल्का सा बाहर निकालकर वैशाली को थोड़ी सी राहत दी.. वैशाली की जान मे जान आई..
रसिक: "लीजिए भाभी... अब आपको दिखेगा.. " फूल की तरह उठा रखा था वैशाली को रसिक ने
कविता ने नीचे झुककर देखा.. अब लिंग-योनि की महायुति अब स्पष्ट नजर आ रही थी.. कविता ने वैशाली के चूतड़ों को जितना हो सकता था.. अपने हाथों से फैलाकर देखा.. देखकर कविता की जुबान उसके हलक मे उतर गई... वैशाली की चूत के अंदर रसिक का लंड बुरी तरह फंसा हुआ था.. वीर्य से भरे अंडकोश इतने मोटे मोटे नजर आ रहे थे.. वैशाली की द्रवित हो रही चूत के रस से सराबोर होकर.. आग की रोशनी मे कंचे की तरह चमक रहे थे..
"अभी तो आधा ही अंदर गया है वैशाली.. आधा बाहर है" कविता ने रसिक के अंडकोशों पर हाथ फेर लिया.. और लंड के बाहर वाले हिस्से की मोटाई को हाथ लगाकर नापते हुए... घबराकर कहा "ओ बाप रे.. पूरा तो अंदर जाएगा ही नहीं.. फट जाएगी तेरी.. !!"
अपने राक्षसी हाथों मे वैशाली को उठाकर आग की प्रदक्षिणा करते हुए हल्के हल्के चोदने लगा रसिक.. उसके हर नाजुक धक्के के साथ वैशाली की सिसकियाँ और दर्द भरी कराहें निकलकर.. रात के अंधेरे मे ओजल हो रही थी.. बड़ा खतरनाक साहस कर दिया था वैशाली ने.. अपनी हवस को संतुष्ट करने के लिए इंसान बड़े से बड़ा जोखिम उठाने को तैयार हो जाता है.. यह उसका प्रत्यक्ष उदाहरण था..
कविता खटिया पर बैठे बैठे.. दोनों के कठिन और कामुक मिलन को विस्मय भरी नज़रों से देख रही थी.. गदराए बदन वाली वैशाली को उचककर घूम रहे रसिक के हाथ के डोले फूल गए थे.. वैशाली ने रसिक की गर्दन मे अपने दोनों हाथ पिरोते हुए अपना सारा वज़न उसके शरीर पर डाल दिया था.. रसिक और वैशाली के होंठ बस चार-पाँच इंच के अंतर पर थे.. वैशाली के मुलायम गुलाबी होंठों को अपना बनाने के इरादे से रसिक ने अपने खुरदरे काले होंठों से उसे चूम लिया.. और अनुभवहीनता से चूसने लगा.. वो ऐसे चूम रहा था जैसे पुंगी बजा रहा हो..
रसिक के चूमने के इस तरीके पर वैशाली को हंसी आ गई.. पर वो हंसी ज्यादा देर तक टिकी नहीं.. क्योंकि रसिक को किस करना आता नहीं था और वो खुद भी यह जानता था.. अब तक उसने उस क्षेत्र मे ज्यादा संशोधन किया नहीं था.. जरूरत भी नहीं पड़ी थी.. जितनी औरतों से उसका पाला पड़ा था उन्हें चूमने से ज्यादा उसके लंड से चुदने में ज्यादा दिलचस्पी थी.. उसने एक विशेष इरादे से वैशाली को किस किया था.. जो वैशाली को जल्दी ही समझ आने वाला था..
वैशाली की चूत के बाहर जो आधा लंड घुसना बाकी था.. उसे एक जबरदस्त धक्का देते हुए अंदर डालने के बाद.. वैशाली जोर से चीख न सकें इसलिए रसिक ने उसके मुंह को पकड़कर.. वैशाली के चूतड़ों के नीचे सपोर्ट देने के लिए रखे अपने दोनों हाथों को छोड़ दिया.. वैशाली के भारी शरीर का वज़न लंड पर पड़ते ही.. लंड का चार से पाँच इंच हिस्सा अंदर घुस गया.. !!!!!
वैशाली ऐसे फड़फड़ाते हुए तड़पने लगी जैसे मछली पानी से बाहर निकल ने पर फड़फड़ाती है.. रसिक की बाहों से छूटने के लिए जद्दोजहत करने लगी.. पर चूत के अंदर लंड.. नश्तर की तरह घुसे हुए उसे बहुत दर्द दे रहा था.. असह्य पीड़ा से कराहते हुए वैशली जरा सी भी हलचल करती तो उसका दर्द और बढ़ रहा था.. इसलिए अब वो हिल भी नहीं पा रही थी.. इसलिए वैशाली ने रसिक के बालों को ताकत पूर्वक पकड़कर लीप किस तोड़ दी और रसिक के कंधे पर सिर रखकर.. फुटफुटकर रोने लगी.. !!!
"ओह्ह... रसिक... मैं मर जाऊँगी..मुझे नहीं कराना.. प्लीज.. बाहर निकाल.. बहोत दर्द हो रहा है.. कविता यार.. जरा समझा रसिक को.. !!"
कविता खटिया पर बैठे बैठे एक लकड़ी की मदद से आग के अंदर लकड़ियों को सही कर रही थी.. बड़े ही आराम से उसने कहा "तुझे ही बड़ा शौक था उसका लेने का.. अब अपनी सारी तमन्ना पूरी कर.. !!"
"नहीं नहीं.. रसिक, आज नहीं.. फिर कभी जरूर करेंगे.. आज मुझे माफ कर.. मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा.. फट गई है मेरी.. मेरे शरीर के बीच से दो टुकड़े हो जाएंगे ऐसा लग रहा है मुझे.. प्लीज" वैशाली ने दर्द भरी विनती से रसिक और उत्तेजित हो गया.. उसने वैशाली को कविता के बगल मे.. खटिया पर लेटा दिया.. और उसकी दोनों टांगों को फैलाकर कविता के स्तनों को दबाने लगा और बोला "भाभी, आप इसकी दोनों टांगों को चौड़ा पकड़ रखिए.. आज तो वैशाली को पूरा मज़ा देकर ही दम लूँगा.. "
बड़ी ही स्फूर्ति से कविता खड़ी हो गई और वैशाली की दोनों टांगों को पकड़कर चौड़ा कर दिया.. पर ऐसा करते वक्त जांघों के बीच झूल रहे मस्त लंड को पकड़कर अपने मन की मुराद पूरा करना भूली नहीं.. वो भले ही चूत मे लेने के लिए समर्थ नहीं थी.. पर इस मन-लुभावन लंड को पसंद तो करने लगी थी.. कविता का हाथ लंड को छूते ही.. जैसे नेवले को देखकर सांप सचेत हो जाता है.. वैसे ही रसिक का लंड ऊपर होकर आसपास देखने लगा
"ओह् भेनचोद... भाभी, तेरे हाथ मे पता नहीं कौन सा जादू है.. हाथ लगते ही मेरा उछलने लगता है.. आह्ह भाभी, थोड़ा सहलाओ इसे.. आह आह मज़ा आ रहा है.. थोड़ा सा चूस भी ले मेरी रानी.. !!" आज पहली बार रसिक ने उसे "आप" के बदले "तू" कहकर संबोधित किया था.. कविता की प्यारी सी चूत मे जबरदस्त खुजली होने लगी..
तभी रसिक ने कविता को धक्का देकर वैशाली के बगल मे सुला दिया.. और रसिक उन दोनों के बदन पर छा गया.. भले ही अब तक एक भी चूत मे लंड घुस नहीं सका था.. पर रसिक के विशाल शरीर के तले दोनों लड़कियां ढँक गई थी.. वैशाली और कविता के स्तनों की हालत दयनीय थी.. मसल मसलकर रसिक ने स्तनों के आकार बदल दिया था.. उनके कोमल बदनो को कुचलते हुए.. अपने शरीर का तमाम वज़न उसने इन दोनों पर डाल दिया..
बारी बारी से दोनों के गालों को चूम रहा था रसिक.. वो दोनों के स्तनों को चूस रहा था.. जब वैशाली के स्तन को चूसता तब कविता के स्तन को मसलता.. उसके मर्दाना स्पर्श से दोनों कामुक सिसकियाँ निकालने लगी.. लंड बाहर निकल जाने से वैशाली का दर्द भी गायब हो चुका था.. अब वो नए दर्द के लिए तड़पने लगी थी
घनघोर अंधेरा.. कड़ाके की सर्दी... सुमसान खेत.. बीच मे जल रही आग.. पास पड़ी खटिया पर लेटी हुई.. दो अति सुंदर नग्न सुंदरियाँ.. और उनके ऊपर मंडरा रहा हेवान जैसा रसिक.. बड़ी ही अद्भुत रात थी ये कविता और वैशाली के लिए.. दोनों सहेलियाँ इतनी कामुक हो गई थी अब उन्हें रसिक के छूने से कोई संकोच नहीं हो रहा था.. जो कविता रसिक से नफरत करती थी वो उसकी मर्दानगी को सलाम करने लगी थी..
रसिक का खड़ा लंड कविता के पेट और नाभि पर चुभ रहा था.. और उसे बेहद मज़ा आ रहा था.. वैशाली इतनी उत्तेजित थी की रसिक के शरीर को कविता के ऊपर से खींचकर अपने ऊपर लेने की कोशिश कर रही थी.. रसिक के स्वागत के लिए उसने अपनी जांघें खोल रखी थी.. वैशाली का आमंत्रण समझ गया रसिक.. और कविता के ऊपर से सरककर वैशाली के शरीर के ऊपर छा गया..
वैशाली की दोनों जांघों के बीच बैठकर.. रसिक का लोडा वैशाली की चूत ढूंढकर.. बड़े ही आराम से आधा अंदर उतर गया.. वैशाली की आँखों मे मोटे लंड-प्रवेश का जबरदस्त सुरूर छाने लगा था.. रसिक के काले चूतड़ों पर हाथ फेरते हुए वो उसके कंधों पर काटने लगी
बगल मे लेटी कविता खुद ही अपनी चूत सहलाते हुए रसिक के कूल्हे और पीठ पर हाथ सहला रही थी.. और आश्चर्य भरी नज़रों से वैशाली के इस अप्रतिम साहस को देख रही थी.. एक पल के लिए उसे ऐसा मन हुआ की वो वैशाली को हटाकर खुद रसिक के नीचे लेट जाए.. जो होगा फिर देखा जाएगा.. पर दूसरे ही पल.. वैशाली की दर्द-सभर चीखें याद आ गई और उसका हौसला पस्त हो गया.. !!
थोड़ी देर पहले रसिक ने जितना लंड वैशाली की चूत मे डाला था, उतना तो इस बार आसानी से चला गया.. पर लंड का बाकी हिस्सा अंदर घुसने का नाम ही नहीं ले रहा था.. रसिक ने अब बाकी का लंड, किसी भी सूरत मे, अंदर डालने का मन बनाकर कविता से कहा "तुम इसका मुंह बंद दबाकर रखो.. मैं आखरी शॉट मारने जा रहा हूँ"
सुनते ही वैशाली की शक्ल रोने जैसी हो गई, वो बोली "नहीं रसिक.. मेरी फट जाएगी.. खून निकल जाएगा.. पूरा अंदर नहीं जाएगा.. बस जितना अंदर गया है उतना ही अंदर बाहर करते है ना.. !!! दोनों को मज़ा आएगा" अपना मुंह दबाने करीब आ रही कविता को दूर धकेलते हुए वैशाली ने कहा
कविता: "हाँ रसिक.. उसको जिस तरह करवाना हो वैसे ही करो.. जो करने मे उसे मज़ा न आए और दर्द हो.. ऐसा करने मे क्या फायदा??"
रसिक: "ठीक है भाभी.. जैसा तुम कहो.. !!"
इतना कहते हुए रसिक ने कविता का हाथ पकड़कर.. चूत से बाहर लंड के हिस्से पर रखते हुए कहा "इस आधे लंड को तुम पकड़कर रखो.. ताकि इससे ज्यादा अंदर जाए नहीं.. मैं धक्के मारना शुरू कर रहा हूँ.. वैशाली, अगर दर्द ज्यादा हो तो बता देना.. मैं पूरा बाहर निकाल दूंगा.. ठीक है.. !!"
वैशाली की चूत मे आधे घुसे लंड के बाद जो हिस्सा बाहर रह गया था, उसे मुठ्ठी मे पकड़ लिया कविता ने.. लंड के परिघ को नापते हुए कविता के रोंगटे खड़े हो गए.. इतना मोटा था की कविता अपनी हथेली से उसे पूरी तरह पकड़ भी नहीं पा रही थी..
वैशाई के भारी भरकम स्तनों को मसलते हुए.. पहले लोकल ट्रेन की गति से.. और फिर राजधानी की स्पीड से.. रसिक पेलने लगा..!! वैशाली आनंद से सराबोर हो गई.. उसके शरीर मे.. रसिक के लंड के घर्षण से एक तरह की ऐसी ऊर्जा उत्पन्न हुई की इतने भारी रसिक के नीचे दबे होने के बावजूद वो अपने चूतड़ उठाकर उछल रही थी.. रसिक को भी बहोत मज़ा आ रहा था.. बड़ी उम्र की.. फैले हुए भोसड़ों वाली औरतों के मुकाबले.. वैशाली की चूत तो काफी टाइट थी.. वो सिसकते हुए वैशाली की जवानी को रौंदने लगा..
रसिक ने धक्के लगाने की गति को और तेज कर दिया.. उसके हेवानी धक्कों की वजह से हुआ यह की.. कविता का हाथ उसके लंड से छूट गया.. जो स्टापर का काम कर रहा था.. चूत के अंदर जाने का जो तय नाप था.. वो अब नहीं रहा.. और लंड पूरा अंदर घुस गया.. और वैशाली की फिर से चीख निकल गई..
पर अब रसिक रुकने वाला नहीं था.. लगभग पाँच मिनट की जंगली चुदाई के बाद वैशाली का शरीर ढीला पड़ गया और वो रसिक के बदन से लिपट पड़ी.. "आह आह रसिक.. आह्ह आह्ह ओह्ह मैं गई अब... ऊँहह.. आह्ह.. !!!" कहते हुए वैशाली की चूत का रस झड़ गया.. इस अनोखे स्खलन को कविता बड़े ही करीब से देख रही थी
रसिक के लंड को पता चल गया की इस युद्ध मे उसकी भव्य विजय हुई है.. अब बिना एक पल का इंतज़ार कीये रसिक ने वैशाली की चूत से लंड बाहर निकाला और उसके शरीर के ऊपर से खड़ा हो गया.. हल्का सा सरककर वो कविता के ऊपर चढ़ गया.. उससे पहले की कविता को सोच या समझ पाती.. रसिक ने अपने हाथ से लंड के सुपाड़े को कविता की फुलझड़ी पर रगड़ना शुरू कर दिया.. रसिक की इस हरकत को देखकर ही कविता कांप उठी.. उसने हाथ जोड़ दीये
कविता: "नहीं नहीं रसिक.. वैशाली की बात अलग है.. मेरे अंदर डालने की कोशिश भी की तो मेरी जान निकल जाएगी"
रसिक: "तुम चिंता मत करो भाभी.. अंदर नहीं डालूँगा.. मुझे पता है की अंदर जाएगा ही नहीं.. इतनी संकरी है आपकी फुद्दी.. जहां मेरी उंगली भी मुश्किल से घुस पाती हो वहाँ ये डंडा तो जाने से रहा.. मैं तो बस ऊपर ऊपर से रगड़कर आपको मज़ा देना चाहता हूँ.. देखना अभी कितना मज़ा आता है" कहते हुए रसिक कविता के गाल को चूमता हुआ उसके होंठों को चूसकर.. कविता की क्लिटोरिस को अपने खूंखार सुपाड़े से घिसने लगा.. आनंद से फड़फड़ाने लगी कविता..
बेहद उत्तेजित होकर कविता ने कहा "बहुत मज़ा आ रहा है रसिक.. एक बार मेरी चाटो ना.. !!"
रसिक बड़ी ही सावधानी से एक एक कदम आगे बढ़ रहा था.. वो ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहता थी जिससे कविता नाराज हो.. वो खड़ा हो गया.. कविता के पूरे शरीर को सहलाते हुए पलट गया.. कविता के मुख की तरफ अपना लंड सेट करके वो उसके ऊपर लेट गया.. कविता के चूतड़ों के नीचे हाथ डालकर खिलौने की तरह ऊपर उठाते हुए वो चूत चाटने लगा
"आह्ह रसिक.. ओह ओह्ह.. " कविता ने सिसकने के लिए अपना मुंह खोला और तभी रसिक ने अपना लंड उसके होंठों के बीच दबाकर उसका मुंह बंद कर दिया.. बिना किसी घिन के रसिक का लंड पकड़कर बड़े ही प्रेम से चूसते हुए कविता ने अपना पूरा शरीर रसिक को सौंप दिया..
रसिक ने कभी सपने मे भी नहीं सोचा था कविता भाभी उसका लंड चुसेगी.. अपने बबले दबाने देगी.. गुलाब की पंखुड़ियों जैसी उसकी चूत चाटने देगी..!!
वैशाली रसिक को कविता की चूत का रस चाटते हुए देखती रही और मन ही मन सोचने लगी "मम्मी या अनुमौसी की कोई गलती नहीं है.. रसिक है ही ऐसा की कोई भी औरत उसके नीचे सोने के लिए बेताब हो जाए.. जैसे मैं और कविता सुबह सुबह दूध लेते वक्त रसिक के साथ मस्ती कर रहे थे वैसे मम्मी भी करती ही होगी.. !! और कविता का कहना था की उसने मम्मी को रसिक के साथ यह सब करते हुए काफी बार देखा है.. !! इसका मतलब यह हुआ की मम्मी अभी भी रसिक के साथ ये सब करती होगी...?? जरूर करती होगी.. ऐसे लंड को भला कौन छोड़ेगा.. !!
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वैशाली कभी उसके हाथ के डोलों को देखती.. तो कभी उसकी मुठ्ठी मे आगे पीछे होते सुपाड़े को.. !! रसिक के चौड़े कंधे और बड़ी लाल आँखें रात के अंधेरे मे बेहद डरावनी लग रही थी..
"आह्ह आह्ह भाभी... आह.. !!" झटके खाते हुए रसिक का लंड अपना मलाईदार वीर्य स्खलित करने लगा.. दो फुट दूर बैठी वैशाली के गूँदाज बबलों पर वीर्य की पिचकारी जा गिरी.. दो तीन और पिचकारियों ने कविता के सुंदर स्तनों को भी पावन कर दिया.. लस्सेदार वीर्य को अपनी छाती पर मलने के बाद कविता के स्तन, अंधेरी रात मे तारों की तरह चमक रहे थे..
"वाह, यार रसिक, मज़ा आ गया.. तू सही मे असली वाला मर्द है.. तेरे बारे मे जितना कुछ सुना था.. उससे कई ज्यादा निकला.. दिल खुश हो गया.. कविता, अब हम चलें?" हांफते हुए वैशाली ने कविता को मदहोशी से होश मे लाने की कोशिश करते हुए कहा
कविता अब भी इस दमदार चूत चटाई के नशे मे ही थी.. उसकी ढली हुई आँखें, बड़ी मुश्किल से उठाते हुए उसने कहा " जाना ही पड़ेगा क्या.. !!"
थोड़ी देर के लिए दोनों रसिक की छाती को तकिया बनाकर लेटे रहे.. और आराम करने के बाद कपड़े पहनकर निकल गए..
रात के साढ़े बारह बज चुके थे..घर के बाहर पहुंचते ही.. मदन की गाड़ी पार्किंग मे पड़ी हुई देखकर, दोनों जबरदस्त घबरा गए.. !!!
Finally Vaishali ko Rasik ka lund mil hi gaya. Ab Kavita ko lene ki bari hai.कविता: "अच्छा.. फिर तो ठीक है.. मौका मिला तो तुम्हारी यह इच्छा जरूर पूरा करने की कोशिश करूंगी.. पर जब तक मैं सामने से न कहूँ..तब तक तुम मुझे हाथ भी नहीं लगाओगे.. किसी को भी कोई शक हो ऐसा कुछ भी करने की कोशिश करोगे तो जो मिल रहा होगा वो भी खोने की बारी आ जाएगी"
कविता के बात सुनते हुए वैशाली ने रसिक के लंड को अपनी चिपचिपी बुर पर रगड़ना शुरू कर दिया था.. वैशाली के इस साहस मे मदद करने के लिए रसिक की जांघ से उठकर, खटिया के छोर पर खड़ी हो गई कविता
रसिक की मोटी जांघों की दोनों ओर अपने पैर फैलाकर बैठते हुए.. नीचे हाथ डालकर.. अपनी जामुन जैसी क्लिटोरिस पर रगड़ रही थी वैशाली.. स्त्री के शरीर के सब से संवेदनशील हिस्से पर मर्द के जीवंत पौरुष-सभर अंग का गरमागरम स्पर्श होते ही, वैशाली का बदन लहराने लगा..
उसके बदन मे कसाव आने लगा और साथ ही साथ उत्तेजना बढ़ने लगी.. उसका साहस भी अब एक कदम आगे बढ़ने लगा था.. उत्तेजना इंसान को साहसिक बना देती है.. वैशाली ने रसिक का खंभे जैसा लंड अपनी बुर मे लेने के लिए कमर कस ली थी.. अपनी योनि के सुराख पर रसिक का लाल टमाटर जैसा सुपाड़ा टिकाते हुए उसने हल्के हल्के शरीर का दबाव बनाना शुरू किया.. योनिमार्ग के शुरुआती प्रतिरोध के बाद.. रसिक का सुपाड़ा अंदर धीरे धीरे घुस गया.. वैशाली उस विकराल लंड को बड़ी मुश्किल से आधा ही ले पाई अंदर.. वैशाली अब स्थिर हो गई.. शरीर का पूरा वज़न डालने के बावजूद लोडा ज्यादा अंदर नहीं जा पा रहा था.. उसकी चूत अपने महत्तम परिघ तक फैल चुकी थी.. इससे ज्यादा चौड़ी होना मुमकिन नहीं था..
वैशाली के चेहरे पर असह्य पीड़ा के भाव दिख रहे थे.. इतनी सर्द रात मे भी उसका बदन पसीने से तर हो रहा था..
"क्या हो रहा है तुझे वैशाली? बाहर निकाल देना है...??" वैशाली को इस हाल मे देखकर.. घबराते हुए कविता ने कहा..
वैशाली ने टूटती हुई आवाज मे कहा.. "न.. नहीं.. इस दर्द को सहने के लिए.. तो मैं.. आह्ह.. तड़प रही थी.. मर जाने दे मुझे.. पर मैं इसे अब बाहर नहीं निकालूँगी.. ओह्ह.. मज़ा आएगा अब तो.. कविता.. ओह माय गॉड.. क्या मस्त लंड है यार.. प्लीज.. जरा नीचे देखकर बता मुझे.. कितना अंदर गया और कितना बाकी है.. !!"
कविता खटिया के पास, रसिक की जांघों के बीच बैठ गई और देखने की कोशिश करने लगी.. पर अंधेरे मे घंटा कुछ नजर नहीं आ रहा था..
कविता: "कुछ दिख नहीं रहा है वैशाली.. !!"
"एक मिनट भाभी.. " रसिक ने कहा.. और वैशाली को कमर से पकड़कर वो खटिया से खड़ा हो गया.. ऐसा करने से वैशाली की चूत और फैल गई और लंड का अधिक हिस्सा अंदर घुस गया.. वैशाली की चीख निकल गई... !!!!!
"ऊईईईईईई माँ.... !!!!!! मर गईई मम्मी.. रसिक बहोत दुख रहा है मुझे... आह उतार दे मुझे" वैशाली की आँखों से आँसू बहने लगे
रसिक ने वैशाली के चूतड़ों को अपने हाथों से सहारा देकर.. अपना लंड उसकी चूत से हल्का सा बाहर निकालकर वैशाली को थोड़ी सी राहत दी.. वैशाली की जान मे जान आई..
रसिक: "लीजिए भाभी... अब आपको दिखेगा.. " फूल की तरह उठा रखा था वैशाली को रसिक ने
कविता ने नीचे झुककर देखा.. अब लिंग-योनि की महायुति अब स्पष्ट नजर आ रही थी.. कविता ने वैशाली के चूतड़ों को जितना हो सकता था.. अपने हाथों से फैलाकर देखा.. देखकर कविता की जुबान उसके हलक मे उतर गई... वैशाली की चूत के अंदर रसिक का लंड बुरी तरह फंसा हुआ था.. वीर्य से भरे अंडकोश इतने मोटे मोटे नजर आ रहे थे.. वैशाली की द्रवित हो रही चूत के रस से सराबोर होकर.. आग की रोशनी मे कंचे की तरह चमक रहे थे..
"अभी तो आधा ही अंदर गया है वैशाली.. आधा बाहर है" कविता ने रसिक के अंडकोशों पर हाथ फेर लिया.. और लंड के बाहर वाले हिस्से की मोटाई को हाथ लगाकर नापते हुए... घबराकर कहा "ओ बाप रे.. पूरा तो अंदर जाएगा ही नहीं.. फट जाएगी तेरी.. !!"
अपने राक्षसी हाथों मे वैशाली को उठाकर आग की प्रदक्षिणा करते हुए हल्के हल्के चोदने लगा रसिक.. उसके हर नाजुक धक्के के साथ वैशाली की सिसकियाँ और दर्द भरी कराहें निकलकर.. रात के अंधेरे मे ओजल हो रही थी.. बड़ा खतरनाक साहस कर दिया था वैशाली ने.. अपनी हवस को संतुष्ट करने के लिए इंसान बड़े से बड़ा जोखिम उठाने को तैयार हो जाता है.. यह उसका प्रत्यक्ष उदाहरण था..
कविता खटिया पर बैठे बैठे.. दोनों के कठिन और कामुक मिलन को विस्मय भरी नज़रों से देख रही थी.. गदराए बदन वाली वैशाली को उचककर घूम रहे रसिक के हाथ के डोले फूल गए थे.. वैशाली ने रसिक की गर्दन मे अपने दोनों हाथ पिरोते हुए अपना सारा वज़न उसके शरीर पर डाल दिया था.. रसिक और वैशाली के होंठ बस चार-पाँच इंच के अंतर पर थे.. वैशाली के मुलायम गुलाबी होंठों को अपना बनाने के इरादे से रसिक ने अपने खुरदरे काले होंठों से उसे चूम लिया.. और अनुभवहीनता से चूसने लगा.. वो ऐसे चूम रहा था जैसे पुंगी बजा रहा हो..
रसिक के चूमने के इस तरीके पर वैशाली को हंसी आ गई.. पर वो हंसी ज्यादा देर तक टिकी नहीं.. क्योंकि रसिक को किस करना आता नहीं था और वो खुद भी यह जानता था.. अब तक उसने उस क्षेत्र मे ज्यादा संशोधन किया नहीं था.. जरूरत भी नहीं पड़ी थी.. जितनी औरतों से उसका पाला पड़ा था उन्हें चूमने से ज्यादा उसके लंड से चुदने में ज्यादा दिलचस्पी थी.. उसने एक विशेष इरादे से वैशाली को किस किया था.. जो वैशाली को जल्दी ही समझ आने वाला था..
वैशाली की चूत के बाहर जो आधा लंड घुसना बाकी था.. उसे एक जबरदस्त धक्का देते हुए अंदर डालने के बाद.. वैशाली जोर से चीख न सकें इसलिए रसिक ने उसके मुंह को पकड़कर.. वैशाली के चूतड़ों के नीचे सपोर्ट देने के लिए रखे अपने दोनों हाथों को छोड़ दिया.. वैशाली के भारी शरीर का वज़न लंड पर पड़ते ही.. लंड का चार से पाँच इंच हिस्सा अंदर घुस गया.. !!!!!
वैशाली ऐसे फड़फड़ाते हुए तड़पने लगी जैसे मछली पानी से बाहर निकल ने पर फड़फड़ाती है.. रसिक की बाहों से छूटने के लिए जद्दोजहत करने लगी.. पर चूत के अंदर लंड.. नश्तर की तरह घुसे हुए उसे बहुत दर्द दे रहा था.. असह्य पीड़ा से कराहते हुए वैशली जरा सी भी हलचल करती तो उसका दर्द और बढ़ रहा था.. इसलिए अब वो हिल भी नहीं पा रही थी.. इसलिए वैशाली ने रसिक के बालों को ताकत पूर्वक पकड़कर लीप किस तोड़ दी और रसिक के कंधे पर सिर रखकर.. फुटफुटकर रोने लगी.. !!!
"ओह्ह... रसिक... मैं मर जाऊँगी..मुझे नहीं कराना.. प्लीज.. बाहर निकाल.. बहोत दर्द हो रहा है.. कविता यार.. जरा समझा रसिक को.. !!"
कविता खटिया पर बैठे बैठे एक लकड़ी की मदद से आग के अंदर लकड़ियों को सही कर रही थी.. बड़े ही आराम से उसने कहा "तुझे ही बड़ा शौक था उसका लेने का.. अब अपनी सारी तमन्ना पूरी कर.. !!"
"नहीं नहीं.. रसिक, आज नहीं.. फिर कभी जरूर करेंगे.. आज मुझे माफ कर.. मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा.. फट गई है मेरी.. मेरे शरीर के बीच से दो टुकड़े हो जाएंगे ऐसा लग रहा है मुझे.. प्लीज" वैशाली ने दर्द भरी विनती से रसिक और उत्तेजित हो गया.. उसने वैशाली को कविता के बगल मे.. खटिया पर लेटा दिया.. और उसकी दोनों टांगों को फैलाकर कविता के स्तनों को दबाने लगा और बोला "भाभी, आप इसकी दोनों टांगों को चौड़ा पकड़ रखिए.. आज तो वैशाली को पूरा मज़ा देकर ही दम लूँगा.. "
बड़ी ही स्फूर्ति से कविता खड़ी हो गई और वैशाली की दोनों टांगों को पकड़कर चौड़ा कर दिया.. पर ऐसा करते वक्त जांघों के बीच झूल रहे मस्त लंड को पकड़कर अपने मन की मुराद पूरा करना भूली नहीं.. वो भले ही चूत मे लेने के लिए समर्थ नहीं थी.. पर इस मन-लुभावन लंड को पसंद तो करने लगी थी.. कविता का हाथ लंड को छूते ही.. जैसे नेवले को देखकर सांप सचेत हो जाता है.. वैसे ही रसिक का लंड ऊपर होकर आसपास देखने लगा
"ओह् भेनचोद... भाभी, तेरे हाथ मे पता नहीं कौन सा जादू है.. हाथ लगते ही मेरा उछलने लगता है.. आह्ह भाभी, थोड़ा सहलाओ इसे.. आह आह मज़ा आ रहा है.. थोड़ा सा चूस भी ले मेरी रानी.. !!" आज पहली बार रसिक ने उसे "आप" के बदले "तू" कहकर संबोधित किया था.. कविता की प्यारी सी चूत मे जबरदस्त खुजली होने लगी..
तभी रसिक ने कविता को धक्का देकर वैशाली के बगल मे सुला दिया.. और रसिक उन दोनों के बदन पर छा गया.. भले ही अब तक एक भी चूत मे लंड घुस नहीं सका था.. पर रसिक के विशाल शरीर के तले दोनों लड़कियां ढँक गई थी.. वैशाली और कविता के स्तनों की हालत दयनीय थी.. मसल मसलकर रसिक ने स्तनों के आकार बदल दिया था.. उनके कोमल बदनो को कुचलते हुए.. अपने शरीर का तमाम वज़न उसने इन दोनों पर डाल दिया..
बारी बारी से दोनों के गालों को चूम रहा था रसिक.. वो दोनों के स्तनों को चूस रहा था.. जब वैशाली के स्तन को चूसता तब कविता के स्तन को मसलता.. उसके मर्दाना स्पर्श से दोनों कामुक सिसकियाँ निकालने लगी.. लंड बाहर निकल जाने से वैशाली का दर्द भी गायब हो चुका था.. अब वो नए दर्द के लिए तड़पने लगी थी
घनघोर अंधेरा.. कड़ाके की सर्दी... सुमसान खेत.. बीच मे जल रही आग.. पास पड़ी खटिया पर लेटी हुई.. दो अति सुंदर नग्न सुंदरियाँ.. और उनके ऊपर मंडरा रहा हेवान जैसा रसिक.. बड़ी ही अद्भुत रात थी ये कविता और वैशाली के लिए.. दोनों सहेलियाँ इतनी कामुक हो गई थी अब उन्हें रसिक के छूने से कोई संकोच नहीं हो रहा था.. जो कविता रसिक से नफरत करती थी वो उसकी मर्दानगी को सलाम करने लगी थी..
रसिक का खड़ा लंड कविता के पेट और नाभि पर चुभ रहा था.. और उसे बेहद मज़ा आ रहा था.. वैशाली इतनी उत्तेजित थी की रसिक के शरीर को कविता के ऊपर से खींचकर अपने ऊपर लेने की कोशिश कर रही थी.. रसिक के स्वागत के लिए उसने अपनी जांघें खोल रखी थी.. वैशाली का आमंत्रण समझ गया रसिक.. और कविता के ऊपर से सरककर वैशाली के शरीर के ऊपर छा गया..
वैशाली की दोनों जांघों के बीच बैठकर.. रसिक का लोडा वैशाली की चूत ढूंढकर.. बड़े ही आराम से आधा अंदर उतर गया.. वैशाली की आँखों मे मोटे लंड-प्रवेश का जबरदस्त सुरूर छाने लगा था.. रसिक के काले चूतड़ों पर हाथ फेरते हुए वो उसके कंधों पर काटने लगी
बगल मे लेटी कविता खुद ही अपनी चूत सहलाते हुए रसिक के कूल्हे और पीठ पर हाथ सहला रही थी.. और आश्चर्य भरी नज़रों से वैशाली के इस अप्रतिम साहस को देख रही थी.. एक पल के लिए उसे ऐसा मन हुआ की वो वैशाली को हटाकर खुद रसिक के नीचे लेट जाए.. जो होगा फिर देखा जाएगा.. पर दूसरे ही पल.. वैशाली की दर्द-सभर चीखें याद आ गई और उसका हौसला पस्त हो गया.. !!
थोड़ी देर पहले रसिक ने जितना लंड वैशाली की चूत मे डाला था, उतना तो इस बार आसानी से चला गया.. पर लंड का बाकी हिस्सा अंदर घुसने का नाम ही नहीं ले रहा था.. रसिक ने अब बाकी का लंड, किसी भी सूरत मे, अंदर डालने का मन बनाकर कविता से कहा "तुम इसका मुंह बंद दबाकर रखो.. मैं आखरी शॉट मारने जा रहा हूँ"
सुनते ही वैशाली की शक्ल रोने जैसी हो गई, वो बोली "नहीं रसिक.. मेरी फट जाएगी.. खून निकल जाएगा.. पूरा अंदर नहीं जाएगा.. बस जितना अंदर गया है उतना ही अंदर बाहर करते है ना.. !!! दोनों को मज़ा आएगा" अपना मुंह दबाने करीब आ रही कविता को दूर धकेलते हुए वैशाली ने कहा
कविता: "हाँ रसिक.. उसको जिस तरह करवाना हो वैसे ही करो.. जो करने मे उसे मज़ा न आए और दर्द हो.. ऐसा करने मे क्या फायदा??"
रसिक: "ठीक है भाभी.. जैसा तुम कहो.. !!"
इतना कहते हुए रसिक ने कविता का हाथ पकड़कर.. चूत से बाहर लंड के हिस्से पर रखते हुए कहा "इस आधे लंड को तुम पकड़कर रखो.. ताकि इससे ज्यादा अंदर जाए नहीं.. मैं धक्के मारना शुरू कर रहा हूँ.. वैशाली, अगर दर्द ज्यादा हो तो बता देना.. मैं पूरा बाहर निकाल दूंगा.. ठीक है.. !!"
वैशाली की चूत मे आधे घुसे लंड के बाद जो हिस्सा बाहर रह गया था, उसे मुठ्ठी मे पकड़ लिया कविता ने.. लंड के परिघ को नापते हुए कविता के रोंगटे खड़े हो गए.. इतना मोटा था की कविता अपनी हथेली से उसे पूरी तरह पकड़ भी नहीं पा रही थी..
वैशाई के भारी भरकम स्तनों को मसलते हुए.. पहले लोकल ट्रेन की गति से.. और फिर राजधानी की स्पीड से.. रसिक पेलने लगा..!! वैशाली आनंद से सराबोर हो गई.. उसके शरीर मे.. रसिक के लंड के घर्षण से एक तरह की ऐसी ऊर्जा उत्पन्न हुई की इतने भारी रसिक के नीचे दबे होने के बावजूद वो अपने चूतड़ उठाकर उछल रही थी.. रसिक को भी बहोत मज़ा आ रहा था.. बड़ी उम्र की.. फैले हुए भोसड़ों वाली औरतों के मुकाबले.. वैशाली की चूत तो काफी टाइट थी.. वो सिसकते हुए वैशाली की जवानी को रौंदने लगा..
रसिक ने धक्के लगाने की गति को और तेज कर दिया.. उसके हेवानी धक्कों की वजह से हुआ यह की.. कविता का हाथ उसके लंड से छूट गया.. जो स्टापर का काम कर रहा था.. चूत के अंदर जाने का जो तय नाप था.. वो अब नहीं रहा.. और लंड पूरा अंदर घुस गया.. और वैशाली की फिर से चीख निकल गई..
पर अब रसिक रुकने वाला नहीं था.. लगभग पाँच मिनट की जंगली चुदाई के बाद वैशाली का शरीर ढीला पड़ गया और वो रसिक के बदन से लिपट पड़ी.. "आह आह रसिक.. आह्ह आह्ह ओह्ह मैं गई अब... ऊँहह.. आह्ह.. !!!" कहते हुए वैशाली की चूत का रस झड़ गया.. इस अनोखे स्खलन को कविता बड़े ही करीब से देख रही थी
रसिक के लंड को पता चल गया की इस युद्ध मे उसकी भव्य विजय हुई है.. अब बिना एक पल का इंतज़ार कीये रसिक ने वैशाली की चूत से लंड बाहर निकाला और उसके शरीर के ऊपर से खड़ा हो गया.. हल्का सा सरककर वो कविता के ऊपर चढ़ गया.. उससे पहले की कविता को सोच या समझ पाती.. रसिक ने अपने हाथ से लंड के सुपाड़े को कविता की फुलझड़ी पर रगड़ना शुरू कर दिया.. रसिक की इस हरकत को देखकर ही कविता कांप उठी.. उसने हाथ जोड़ दीये
कविता: "नहीं नहीं रसिक.. वैशाली की बात अलग है.. मेरे अंदर डालने की कोशिश भी की तो मेरी जान निकल जाएगी"
रसिक: "तुम चिंता मत करो भाभी.. अंदर नहीं डालूँगा.. मुझे पता है की अंदर जाएगा ही नहीं.. इतनी संकरी है आपकी फुद्दी.. जहां मेरी उंगली भी मुश्किल से घुस पाती हो वहाँ ये डंडा तो जाने से रहा.. मैं तो बस ऊपर ऊपर से रगड़कर आपको मज़ा देना चाहता हूँ.. देखना अभी कितना मज़ा आता है" कहते हुए रसिक कविता के गाल को चूमता हुआ उसके होंठों को चूसकर.. कविता की क्लिटोरिस को अपने खूंखार सुपाड़े से घिसने लगा.. आनंद से फड़फड़ाने लगी कविता..
बेहद उत्तेजित होकर कविता ने कहा "बहुत मज़ा आ रहा है रसिक.. एक बार मेरी चाटो ना.. !!"
रसिक बड़ी ही सावधानी से एक एक कदम आगे बढ़ रहा था.. वो ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहता थी जिससे कविता नाराज हो.. वो खड़ा हो गया.. कविता के पूरे शरीर को सहलाते हुए पलट गया.. कविता के मुख की तरफ अपना लंड सेट करके वो उसके ऊपर लेट गया.. कविता के चूतड़ों के नीचे हाथ डालकर खिलौने की तरह ऊपर उठाते हुए वो चूत चाटने लगा
"आह्ह रसिक.. ओह ओह्ह.. " कविता ने सिसकने के लिए अपना मुंह खोला और तभी रसिक ने अपना लंड उसके होंठों के बीच दबाकर उसका मुंह बंद कर दिया.. बिना किसी घिन के रसिक का लंड पकड़कर बड़े ही प्रेम से चूसते हुए कविता ने अपना पूरा शरीर रसिक को सौंप दिया..
रसिक ने कभी सपने मे भी नहीं सोचा था कविता भाभी उसका लंड चुसेगी.. अपने बबले दबाने देगी.. गुलाब की पंखुड़ियों जैसी उसकी चूत चाटने देगी..!!
वैशाली रसिक को कविता की चूत का रस चाटते हुए देखती रही और मन ही मन सोचने लगी "मम्मी या अनुमौसी की कोई गलती नहीं है.. रसिक है ही ऐसा की कोई भी औरत उसके नीचे सोने के लिए बेताब हो जाए.. जैसे मैं और कविता सुबह सुबह दूध लेते वक्त रसिक के साथ मस्ती कर रहे थे वैसे मम्मी भी करती ही होगी.. !! और कविता का कहना था की उसने मम्मी को रसिक के साथ यह सब करते हुए काफी बार देखा है.. !! इसका मतलब यह हुआ की मम्मी अभी भी रसिक के साथ ये सब करती होगी...?? जरूर करती होगी.. ऐसे लंड को भला कौन छोड़ेगा.. !!
कविता अपनी उत्तेजना के आखरी पड़ाव पर पहुँच चुकी थी.. और इस वक्त वो इतनी बेकाबू हो गई थी की रसिक के लंड को मुंह मे आधा लेकर वो पॉर्न फिल्मों की राँडों की तरह चूसने लगी.. रसिक भी सिसकियाँ भरते हुए कविता के मुंह से अपने लंड को निकालकर उसी अवस्था मे मुठ्ठी से पकड़कर जबरदस्त स्पीड से हिलाने लगा.. फांसी की सजा हुए कैदी की जैसे आखिरी इच्छा पूरी की जाती है वैसे रसिक अपने लंड को अंतिम सत्य के लिए लयबद्ध तरीके से हिला रहा था..
वैशाली कभी उसके हाथ के डोलों को देखती.. तो कभी उसकी मुठ्ठी मे आगे पीछे होते सुपाड़े को.. !! रसिक के चौड़े कंधे और बड़ी लाल आँखें रात के अंधेरे मे बेहद डरावनी लग रही थी..
"आह्ह आह्ह भाभी... आह.. !!" झटके खाते हुए रसिक का लंड अपना मलाईदार वीर्य स्खलित करने लगा.. दो फुट दूर बैठी वैशाली के गूँदाज बबलों पर वीर्य की पिचकारी जा गिरी.. दो तीन और पिचकारियों ने कविता के सुंदर स्तनों को भी पावन कर दिया.. लस्सेदार वीर्य को अपनी छाती पर मलने के बाद कविता के स्तन, अंधेरी रात मे तारों की तरह चमक रहे थे..
"वाह, यार रसिक, मज़ा आ गया.. तू सही मे असली वाला मर्द है.. तेरे बारे मे जितना कुछ सुना था.. उससे कई ज्यादा निकला.. दिल खुश हो गया.. कविता, अब हम चलें?" हांफते हुए वैशाली ने कविता को मदहोशी से होश मे लाने की कोशिश करते हुए कहा
कविता अब भी इस दमदार चूत चटाई के नशे मे ही थी.. उसकी ढली हुई आँखें, बड़ी मुश्किल से उठाते हुए उसने कहा " जाना ही पड़ेगा क्या.. !!"
थोड़ी देर के लिए दोनों रसिक की छाती को तकिया बनाकर लेटे रहे.. और आराम करने के बाद कपड़े पहनकर निकल गए..
रात के साढ़े बारह बज चुके थे..घर के बाहर पहुंचते ही.. मदन की गाड़ी पार्किंग मे पड़ी हुई देखकर, दोनों जबरदस्त घबरा गए.. !!!
Awesome updateकविता: "अच्छा.. फिर तो ठीक है.. मौका मिला तो तुम्हारी यह इच्छा जरूर पूरा करने की कोशिश करूंगी.. पर जब तक मैं सामने से न कहूँ..तब तक तुम मुझे हाथ भी नहीं लगाओगे.. किसी को भी कोई शक हो ऐसा कुछ भी करने की कोशिश करोगे तो जो मिल रहा होगा वो भी खोने की बारी आ जाएगी"
कविता के बात सुनते हुए वैशाली ने रसिक के लंड को अपनी चिपचिपी बुर पर रगड़ना शुरू कर दिया था.. वैशाली के इस साहस मे मदद करने के लिए रसिक की जांघ से उठकर, खटिया के छोर पर खड़ी हो गई कविता
रसिक की मोटी जांघों की दोनों ओर अपने पैर फैलाकर बैठते हुए.. नीचे हाथ डालकर.. अपनी जामुन जैसी क्लिटोरिस पर रगड़ रही थी वैशाली.. स्त्री के शरीर के सब से संवेदनशील हिस्से पर मर्द के जीवंत पौरुष-सभर अंग का गरमागरम स्पर्श होते ही, वैशाली का बदन लहराने लगा..
उसके बदन मे कसाव आने लगा और साथ ही साथ उत्तेजना बढ़ने लगी.. उसका साहस भी अब एक कदम आगे बढ़ने लगा था.. उत्तेजना इंसान को साहसिक बना देती है.. वैशाली ने रसिक का खंभे जैसा लंड अपनी बुर मे लेने के लिए कमर कस ली थी.. अपनी योनि के सुराख पर रसिक का लाल टमाटर जैसा सुपाड़ा टिकाते हुए उसने हल्के हल्के शरीर का दबाव बनाना शुरू किया.. योनिमार्ग के शुरुआती प्रतिरोध के बाद.. रसिक का सुपाड़ा अंदर धीरे धीरे घुस गया.. वैशाली उस विकराल लंड को बड़ी मुश्किल से आधा ही ले पाई अंदर.. वैशाली अब स्थिर हो गई.. शरीर का पूरा वज़न डालने के बावजूद लोडा ज्यादा अंदर नहीं जा पा रहा था.. उसकी चूत अपने महत्तम परिघ तक फैल चुकी थी.. इससे ज्यादा चौड़ी होना मुमकिन नहीं था..
वैशाली के चेहरे पर असह्य पीड़ा के भाव दिख रहे थे.. इतनी सर्द रात मे भी उसका बदन पसीने से तर हो रहा था..
"क्या हो रहा है तुझे वैशाली? बाहर निकाल देना है...??" वैशाली को इस हाल मे देखकर.. घबराते हुए कविता ने कहा..
वैशाली ने टूटती हुई आवाज मे कहा.. "न.. नहीं.. इस दर्द को सहने के लिए.. तो मैं.. आह्ह.. तड़प रही थी.. मर जाने दे मुझे.. पर मैं इसे अब बाहर नहीं निकालूँगी.. ओह्ह.. मज़ा आएगा अब तो.. कविता.. ओह माय गॉड.. क्या मस्त लंड है यार.. प्लीज.. जरा नीचे देखकर बता मुझे.. कितना अंदर गया और कितना बाकी है.. !!"
कविता खटिया के पास, रसिक की जांघों के बीच बैठ गई और देखने की कोशिश करने लगी.. पर अंधेरे मे घंटा कुछ नजर नहीं आ रहा था..
कविता: "कुछ दिख नहीं रहा है वैशाली.. !!"
"एक मिनट भाभी.. " रसिक ने कहा.. और वैशाली को कमर से पकड़कर वो खटिया से खड़ा हो गया.. ऐसा करने से वैशाली की चूत और फैल गई और लंड का अधिक हिस्सा अंदर घुस गया.. वैशाली की चीख निकल गई... !!!!!
"ऊईईईईईई माँ.... !!!!!! मर गईई मम्मी.. रसिक बहोत दुख रहा है मुझे... आह उतार दे मुझे" वैशाली की आँखों से आँसू बहने लगे
रसिक ने वैशाली के चूतड़ों को अपने हाथों से सहारा देकर.. अपना लंड उसकी चूत से हल्का सा बाहर निकालकर वैशाली को थोड़ी सी राहत दी.. वैशाली की जान मे जान आई..
रसिक: "लीजिए भाभी... अब आपको दिखेगा.. " फूल की तरह उठा रखा था वैशाली को रसिक ने
कविता ने नीचे झुककर देखा.. अब लिंग-योनि की महायुति अब स्पष्ट नजर आ रही थी.. कविता ने वैशाली के चूतड़ों को जितना हो सकता था.. अपने हाथों से फैलाकर देखा.. देखकर कविता की जुबान उसके हलक मे उतर गई... वैशाली की चूत के अंदर रसिक का लंड बुरी तरह फंसा हुआ था.. वीर्य से भरे अंडकोश इतने मोटे मोटे नजर आ रहे थे.. वैशाली की द्रवित हो रही चूत के रस से सराबोर होकर.. आग की रोशनी मे कंचे की तरह चमक रहे थे..
"अभी तो आधा ही अंदर गया है वैशाली.. आधा बाहर है" कविता ने रसिक के अंडकोशों पर हाथ फेर लिया.. और लंड के बाहर वाले हिस्से की मोटाई को हाथ लगाकर नापते हुए... घबराकर कहा "ओ बाप रे.. पूरा तो अंदर जाएगा ही नहीं.. फट जाएगी तेरी.. !!"
अपने राक्षसी हाथों मे वैशाली को उठाकर आग की प्रदक्षिणा करते हुए हल्के हल्के चोदने लगा रसिक.. उसके हर नाजुक धक्के के साथ वैशाली की सिसकियाँ और दर्द भरी कराहें निकलकर.. रात के अंधेरे मे ओजल हो रही थी.. बड़ा खतरनाक साहस कर दिया था वैशाली ने.. अपनी हवस को संतुष्ट करने के लिए इंसान बड़े से बड़ा जोखिम उठाने को तैयार हो जाता है.. यह उसका प्रत्यक्ष उदाहरण था..
कविता खटिया पर बैठे बैठे.. दोनों के कठिन और कामुक मिलन को विस्मय भरी नज़रों से देख रही थी.. गदराए बदन वाली वैशाली को उचककर घूम रहे रसिक के हाथ के डोले फूल गए थे.. वैशाली ने रसिक की गर्दन मे अपने दोनों हाथ पिरोते हुए अपना सारा वज़न उसके शरीर पर डाल दिया था.. रसिक और वैशाली के होंठ बस चार-पाँच इंच के अंतर पर थे.. वैशाली के मुलायम गुलाबी होंठों को अपना बनाने के इरादे से रसिक ने अपने खुरदरे काले होंठों से उसे चूम लिया.. और अनुभवहीनता से चूसने लगा.. वो ऐसे चूम रहा था जैसे पुंगी बजा रहा हो..
रसिक के चूमने के इस तरीके पर वैशाली को हंसी आ गई.. पर वो हंसी ज्यादा देर तक टिकी नहीं.. क्योंकि रसिक को किस करना आता नहीं था और वो खुद भी यह जानता था.. अब तक उसने उस क्षेत्र मे ज्यादा संशोधन किया नहीं था.. जरूरत भी नहीं पड़ी थी.. जितनी औरतों से उसका पाला पड़ा था उन्हें चूमने से ज्यादा उसके लंड से चुदने में ज्यादा दिलचस्पी थी.. उसने एक विशेष इरादे से वैशाली को किस किया था.. जो वैशाली को जल्दी ही समझ आने वाला था..
वैशाली की चूत के बाहर जो आधा लंड घुसना बाकी था.. उसे एक जबरदस्त धक्का देते हुए अंदर डालने के बाद.. वैशाली जोर से चीख न सकें इसलिए रसिक ने उसके मुंह को पकड़कर.. वैशाली के चूतड़ों के नीचे सपोर्ट देने के लिए रखे अपने दोनों हाथों को छोड़ दिया.. वैशाली के भारी शरीर का वज़न लंड पर पड़ते ही.. लंड का चार से पाँच इंच हिस्सा अंदर घुस गया.. !!!!!
वैशाली ऐसे फड़फड़ाते हुए तड़पने लगी जैसे मछली पानी से बाहर निकल ने पर फड़फड़ाती है.. रसिक की बाहों से छूटने के लिए जद्दोजहत करने लगी.. पर चूत के अंदर लंड.. नश्तर की तरह घुसे हुए उसे बहुत दर्द दे रहा था.. असह्य पीड़ा से कराहते हुए वैशली जरा सी भी हलचल करती तो उसका दर्द और बढ़ रहा था.. इसलिए अब वो हिल भी नहीं पा रही थी.. इसलिए वैशाली ने रसिक के बालों को ताकत पूर्वक पकड़कर लीप किस तोड़ दी और रसिक के कंधे पर सिर रखकर.. फुटफुटकर रोने लगी.. !!!
"ओह्ह... रसिक... मैं मर जाऊँगी..मुझे नहीं कराना.. प्लीज.. बाहर निकाल.. बहोत दर्द हो रहा है.. कविता यार.. जरा समझा रसिक को.. !!"
कविता खटिया पर बैठे बैठे एक लकड़ी की मदद से आग के अंदर लकड़ियों को सही कर रही थी.. बड़े ही आराम से उसने कहा "तुझे ही बड़ा शौक था उसका लेने का.. अब अपनी सारी तमन्ना पूरी कर.. !!"
"नहीं नहीं.. रसिक, आज नहीं.. फिर कभी जरूर करेंगे.. आज मुझे माफ कर.. मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा.. फट गई है मेरी.. मेरे शरीर के बीच से दो टुकड़े हो जाएंगे ऐसा लग रहा है मुझे.. प्लीज" वैशाली ने दर्द भरी विनती से रसिक और उत्तेजित हो गया.. उसने वैशाली को कविता के बगल मे.. खटिया पर लेटा दिया.. और उसकी दोनों टांगों को फैलाकर कविता के स्तनों को दबाने लगा और बोला "भाभी, आप इसकी दोनों टांगों को चौड़ा पकड़ रखिए.. आज तो वैशाली को पूरा मज़ा देकर ही दम लूँगा.. "
बड़ी ही स्फूर्ति से कविता खड़ी हो गई और वैशाली की दोनों टांगों को पकड़कर चौड़ा कर दिया.. पर ऐसा करते वक्त जांघों के बीच झूल रहे मस्त लंड को पकड़कर अपने मन की मुराद पूरा करना भूली नहीं.. वो भले ही चूत मे लेने के लिए समर्थ नहीं थी.. पर इस मन-लुभावन लंड को पसंद तो करने लगी थी.. कविता का हाथ लंड को छूते ही.. जैसे नेवले को देखकर सांप सचेत हो जाता है.. वैसे ही रसिक का लंड ऊपर होकर आसपास देखने लगा
"ओह् भेनचोद... भाभी, तेरे हाथ मे पता नहीं कौन सा जादू है.. हाथ लगते ही मेरा उछलने लगता है.. आह्ह भाभी, थोड़ा सहलाओ इसे.. आह आह मज़ा आ रहा है.. थोड़ा सा चूस भी ले मेरी रानी.. !!" आज पहली बार रसिक ने उसे "आप" के बदले "तू" कहकर संबोधित किया था.. कविता की प्यारी सी चूत मे जबरदस्त खुजली होने लगी..
तभी रसिक ने कविता को धक्का देकर वैशाली के बगल मे सुला दिया.. और रसिक उन दोनों के बदन पर छा गया.. भले ही अब तक एक भी चूत मे लंड घुस नहीं सका था.. पर रसिक के विशाल शरीर के तले दोनों लड़कियां ढँक गई थी.. वैशाली और कविता के स्तनों की हालत दयनीय थी.. मसल मसलकर रसिक ने स्तनों के आकार बदल दिया था.. उनके कोमल बदनो को कुचलते हुए.. अपने शरीर का तमाम वज़न उसने इन दोनों पर डाल दिया..
बारी बारी से दोनों के गालों को चूम रहा था रसिक.. वो दोनों के स्तनों को चूस रहा था.. जब वैशाली के स्तन को चूसता तब कविता के स्तन को मसलता.. उसके मर्दाना स्पर्श से दोनों कामुक सिसकियाँ निकालने लगी.. लंड बाहर निकल जाने से वैशाली का दर्द भी गायब हो चुका था.. अब वो नए दर्द के लिए तड़पने लगी थी
घनघोर अंधेरा.. कड़ाके की सर्दी... सुमसान खेत.. बीच मे जल रही आग.. पास पड़ी खटिया पर लेटी हुई.. दो अति सुंदर नग्न सुंदरियाँ.. और उनके ऊपर मंडरा रहा हेवान जैसा रसिक.. बड़ी ही अद्भुत रात थी ये कविता और वैशाली के लिए.. दोनों सहेलियाँ इतनी कामुक हो गई थी अब उन्हें रसिक के छूने से कोई संकोच नहीं हो रहा था.. जो कविता रसिक से नफरत करती थी वो उसकी मर्दानगी को सलाम करने लगी थी..
रसिक का खड़ा लंड कविता के पेट और नाभि पर चुभ रहा था.. और उसे बेहद मज़ा आ रहा था.. वैशाली इतनी उत्तेजित थी की रसिक के शरीर को कविता के ऊपर से खींचकर अपने ऊपर लेने की कोशिश कर रही थी.. रसिक के स्वागत के लिए उसने अपनी जांघें खोल रखी थी.. वैशाली का आमंत्रण समझ गया रसिक.. और कविता के ऊपर से सरककर वैशाली के शरीर के ऊपर छा गया..
वैशाली की दोनों जांघों के बीच बैठकर.. रसिक का लोडा वैशाली की चूत ढूंढकर.. बड़े ही आराम से आधा अंदर उतर गया.. वैशाली की आँखों मे मोटे लंड-प्रवेश का जबरदस्त सुरूर छाने लगा था.. रसिक के काले चूतड़ों पर हाथ फेरते हुए वो उसके कंधों पर काटने लगी
बगल मे लेटी कविता खुद ही अपनी चूत सहलाते हुए रसिक के कूल्हे और पीठ पर हाथ सहला रही थी.. और आश्चर्य भरी नज़रों से वैशाली के इस अप्रतिम साहस को देख रही थी.. एक पल के लिए उसे ऐसा मन हुआ की वो वैशाली को हटाकर खुद रसिक के नीचे लेट जाए.. जो होगा फिर देखा जाएगा.. पर दूसरे ही पल.. वैशाली की दर्द-सभर चीखें याद आ गई और उसका हौसला पस्त हो गया.. !!
थोड़ी देर पहले रसिक ने जितना लंड वैशाली की चूत मे डाला था, उतना तो इस बार आसानी से चला गया.. पर लंड का बाकी हिस्सा अंदर घुसने का नाम ही नहीं ले रहा था.. रसिक ने अब बाकी का लंड, किसी भी सूरत मे, अंदर डालने का मन बनाकर कविता से कहा "तुम इसका मुंह बंद दबाकर रखो.. मैं आखरी शॉट मारने जा रहा हूँ"
सुनते ही वैशाली की शक्ल रोने जैसी हो गई, वो बोली "नहीं रसिक.. मेरी फट जाएगी.. खून निकल जाएगा.. पूरा अंदर नहीं जाएगा.. बस जितना अंदर गया है उतना ही अंदर बाहर करते है ना.. !!! दोनों को मज़ा आएगा" अपना मुंह दबाने करीब आ रही कविता को दूर धकेलते हुए वैशाली ने कहा
कविता: "हाँ रसिक.. उसको जिस तरह करवाना हो वैसे ही करो.. जो करने मे उसे मज़ा न आए और दर्द हो.. ऐसा करने मे क्या फायदा??"
रसिक: "ठीक है भाभी.. जैसा तुम कहो.. !!"
इतना कहते हुए रसिक ने कविता का हाथ पकड़कर.. चूत से बाहर लंड के हिस्से पर रखते हुए कहा "इस आधे लंड को तुम पकड़कर रखो.. ताकि इससे ज्यादा अंदर जाए नहीं.. मैं धक्के मारना शुरू कर रहा हूँ.. वैशाली, अगर दर्द ज्यादा हो तो बता देना.. मैं पूरा बाहर निकाल दूंगा.. ठीक है.. !!"
वैशाली की चूत मे आधे घुसे लंड के बाद जो हिस्सा बाहर रह गया था, उसे मुठ्ठी मे पकड़ लिया कविता ने.. लंड के परिघ को नापते हुए कविता के रोंगटे खड़े हो गए.. इतना मोटा था की कविता अपनी हथेली से उसे पूरी तरह पकड़ भी नहीं पा रही थी..
वैशाई के भारी भरकम स्तनों को मसलते हुए.. पहले लोकल ट्रेन की गति से.. और फिर राजधानी की स्पीड से.. रसिक पेलने लगा..!! वैशाली आनंद से सराबोर हो गई.. उसके शरीर मे.. रसिक के लंड के घर्षण से एक तरह की ऐसी ऊर्जा उत्पन्न हुई की इतने भारी रसिक के नीचे दबे होने के बावजूद वो अपने चूतड़ उठाकर उछल रही थी.. रसिक को भी बहोत मज़ा आ रहा था.. बड़ी उम्र की.. फैले हुए भोसड़ों वाली औरतों के मुकाबले.. वैशाली की चूत तो काफी टाइट थी.. वो सिसकते हुए वैशाली की जवानी को रौंदने लगा..
रसिक ने धक्के लगाने की गति को और तेज कर दिया.. उसके हेवानी धक्कों की वजह से हुआ यह की.. कविता का हाथ उसके लंड से छूट गया.. जो स्टापर का काम कर रहा था.. चूत के अंदर जाने का जो तय नाप था.. वो अब नहीं रहा.. और लंड पूरा अंदर घुस गया.. और वैशाली की फिर से चीख निकल गई..
पर अब रसिक रुकने वाला नहीं था.. लगभग पाँच मिनट की जंगली चुदाई के बाद वैशाली का शरीर ढीला पड़ गया और वो रसिक के बदन से लिपट पड़ी.. "आह आह रसिक.. आह्ह आह्ह ओह्ह मैं गई अब... ऊँहह.. आह्ह.. !!!" कहते हुए वैशाली की चूत का रस झड़ गया.. इस अनोखे स्खलन को कविता बड़े ही करीब से देख रही थी
रसिक के लंड को पता चल गया की इस युद्ध मे उसकी भव्य विजय हुई है.. अब बिना एक पल का इंतज़ार कीये रसिक ने वैशाली की चूत से लंड बाहर निकाला और उसके शरीर के ऊपर से खड़ा हो गया.. हल्का सा सरककर वो कविता के ऊपर चढ़ गया.. उससे पहले की कविता को सोच या समझ पाती.. रसिक ने अपने हाथ से लंड के सुपाड़े को कविता की फुलझड़ी पर रगड़ना शुरू कर दिया.. रसिक की इस हरकत को देखकर ही कविता कांप उठी.. उसने हाथ जोड़ दीये
कविता: "नहीं नहीं रसिक.. वैशाली की बात अलग है.. मेरे अंदर डालने की कोशिश भी की तो मेरी जान निकल जाएगी"
रसिक: "तुम चिंता मत करो भाभी.. अंदर नहीं डालूँगा.. मुझे पता है की अंदर जाएगा ही नहीं.. इतनी संकरी है आपकी फुद्दी.. जहां मेरी उंगली भी मुश्किल से घुस पाती हो वहाँ ये डंडा तो जाने से रहा.. मैं तो बस ऊपर ऊपर से रगड़कर आपको मज़ा देना चाहता हूँ.. देखना अभी कितना मज़ा आता है" कहते हुए रसिक कविता के गाल को चूमता हुआ उसके होंठों को चूसकर.. कविता की क्लिटोरिस को अपने खूंखार सुपाड़े से घिसने लगा.. आनंद से फड़फड़ाने लगी कविता..
बेहद उत्तेजित होकर कविता ने कहा "बहुत मज़ा आ रहा है रसिक.. एक बार मेरी चाटो ना.. !!"
रसिक बड़ी ही सावधानी से एक एक कदम आगे बढ़ रहा था.. वो ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहता थी जिससे कविता नाराज हो.. वो खड़ा हो गया.. कविता के पूरे शरीर को सहलाते हुए पलट गया.. कविता के मुख की तरफ अपना लंड सेट करके वो उसके ऊपर लेट गया.. कविता के चूतड़ों के नीचे हाथ डालकर खिलौने की तरह ऊपर उठाते हुए वो चूत चाटने लगा
"आह्ह रसिक.. ओह ओह्ह.. " कविता ने सिसकने के लिए अपना मुंह खोला और तभी रसिक ने अपना लंड उसके होंठों के बीच दबाकर उसका मुंह बंद कर दिया.. बिना किसी घिन के रसिक का लंड पकड़कर बड़े ही प्रेम से चूसते हुए कविता ने अपना पूरा शरीर रसिक को सौंप दिया..
रसिक ने कभी सपने मे भी नहीं सोचा था कविता भाभी उसका लंड चुसेगी.. अपने बबले दबाने देगी.. गुलाब की पंखुड़ियों जैसी उसकी चूत चाटने देगी..!!
वैशाली रसिक को कविता की चूत का रस चाटते हुए देखती रही और मन ही मन सोचने लगी "मम्मी या अनुमौसी की कोई गलती नहीं है.. रसिक है ही ऐसा की कोई भी औरत उसके नीचे सोने के लिए बेताब हो जाए.. जैसे मैं और कविता सुबह सुबह दूध लेते वक्त रसिक के साथ मस्ती कर रहे थे वैसे मम्मी भी करती ही होगी.. !! और कविता का कहना था की उसने मम्मी को रसिक के साथ यह सब करते हुए काफी बार देखा है.. !! इसका मतलब यह हुआ की मम्मी अभी भी रसिक के साथ ये सब करती होगी...?? जरूर करती होगी.. ऐसे लंड को भला कौन छोड़ेगा.. !!
कविता अपनी उत्तेजना के आखरी पड़ाव पर पहुँच चुकी थी.. और इस वक्त वो इतनी बेकाबू हो गई थी की रसिक के लंड को मुंह मे आधा लेकर वो पॉर्न फिल्मों की राँडों की तरह चूसने लगी.. रसिक भी सिसकियाँ भरते हुए कविता के मुंह से अपने लंड को निकालकर उसी अवस्था मे मुठ्ठी से पकड़कर जबरदस्त स्पीड से हिलाने लगा.. फांसी की सजा हुए कैदी की जैसे आखिरी इच्छा पूरी की जाती है वैसे रसिक अपने लंड को अंतिम सत्य के लिए लयबद्ध तरीके से हिला रहा था..
वैशाली कभी उसके हाथ के डोलों को देखती.. तो कभी उसकी मुठ्ठी मे आगे पीछे होते सुपाड़े को.. !! रसिक के चौड़े कंधे और बड़ी लाल आँखें रात के अंधेरे मे बेहद डरावनी लग रही थी..
"आह्ह आह्ह भाभी... आह.. !!" झटके खाते हुए रसिक का लंड अपना मलाईदार वीर्य स्खलित करने लगा.. दो फुट दूर बैठी वैशाली के गूँदाज बबलों पर वीर्य की पिचकारी जा गिरी.. दो तीन और पिचकारियों ने कविता के सुंदर स्तनों को भी पावन कर दिया.. लस्सेदार वीर्य को अपनी छाती पर मलने के बाद कविता के स्तन, अंधेरी रात मे तारों की तरह चमक रहे थे..
"वाह, यार रसिक, मज़ा आ गया.. तू सही मे असली वाला मर्द है.. तेरे बारे मे जितना कुछ सुना था.. उससे कई ज्यादा निकला.. दिल खुश हो गया.. कविता, अब हम चलें?" हांफते हुए वैशाली ने कविता को मदहोशी से होश मे लाने की कोशिश करते हुए कहा
कविता अब भी इस दमदार चूत चटाई के नशे मे ही थी.. उसकी ढली हुई आँखें, बड़ी मुश्किल से उठाते हुए उसने कहा " जाना ही पड़ेगा क्या.. !!"
थोड़ी देर के लिए दोनों रसिक की छाती को तकिया बनाकर लेटे रहे.. और आराम करने के बाद कपड़े पहनकर निकल गए..
रात के साढ़े बारह बज चुके थे..घर के बाहर पहुंचते ही.. मदन की गाड़ी पार्किंग मे पड़ी हुई देखकर, दोनों जबरदस्त घबरा गए.. !!!
vakharia ji..बहुत बढ़िया और लाजवाब अपडेट. ये कहानी भी दिन प्रतिदिन आपकी लेखन कला के कौशल को दिखा रही है। मेरी समझ के आधार पर नीचे कुछ टिप्पणियाँ दी गई हैं..कविता: "अच्छा.. फिर तो ठीक है.. मौका मिला तो तुम्हारी यह इच्छा जरूर पूरा करने की कोशिश करूंगी.. पर जब तक मैं सामने से न कहूँ..तब तक तुम मुझे हाथ भी नहीं लगाओगे.. किसी को भी कोई शक हो ऐसा कुछ भी करने की कोशिश करोगे तो जो मिल रहा होगा वो भी खोने की बारी आ जाएगी"
कविता के बात सुनते हुए वैशाली ने रसिक के लंड को अपनी चिपचिपी बुर पर रगड़ना शुरू कर दिया था.. वैशाली के इस साहस मे मदद करने के लिए रसिक की जांघ से उठकर, खटिया के छोर पर खड़ी हो गई कविता
रसिक की मोटी जांघों की दोनों ओर अपने पैर फैलाकर बैठते हुए.. नीचे हाथ डालकर.. अपनी जामुन जैसी क्लिटोरिस पर रगड़ रही थी वैशाली.. स्त्री के शरीर के सब से संवेदनशील हिस्से पर मर्द के जीवंत पौरुष-सभर अंग का गरमागरम स्पर्श होते ही, वैशाली का बदन लहराने लगा..
उसके बदन मे कसाव आने लगा और साथ ही साथ उत्तेजना बढ़ने लगी.. उसका साहस भी अब एक कदम आगे बढ़ने लगा था.. उत्तेजना इंसान को साहसिक बना देती है.. वैशाली ने रसिक का खंभे जैसा लंड अपनी बुर मे लेने के लिए कमर कस ली थी.. अपनी योनि के सुराख पर रसिक का लाल टमाटर जैसा सुपाड़ा टिकाते हुए उसने हल्के हल्के शरीर का दबाव बनाना शुरू किया.. योनिमार्ग के शुरुआती प्रतिरोध के बाद.. रसिक का सुपाड़ा अंदर धीरे धीरे घुस गया.. वैशाली उस विकराल लंड को बड़ी मुश्किल से आधा ही ले पाई अंदर.. वैशाली अब स्थिर हो गई.. शरीर का पूरा वज़न डालने के बावजूद लोडा ज्यादा अंदर नहीं जा पा रहा था.. उसकी चूत अपने महत्तम परिघ तक फैल चुकी थी.. इससे ज्यादा चौड़ी होना मुमकिन नहीं था..
वैशाली के चेहरे पर असह्य पीड़ा के भाव दिख रहे थे.. इतनी सर्द रात मे भी उसका बदन पसीने से तर हो रहा था..
"क्या हो रहा है तुझे वैशाली? बाहर निकाल देना है...??" वैशाली को इस हाल मे देखकर.. घबराते हुए कविता ने कहा..
वैशाली ने टूटती हुई आवाज मे कहा.. "न.. नहीं.. इस दर्द को सहने के लिए.. तो मैं.. आह्ह.. तड़प रही थी.. मर जाने दे मुझे.. पर मैं इसे अब बाहर नहीं निकालूँगी.. ओह्ह.. मज़ा आएगा अब तो.. कविता.. ओह माय गॉड.. क्या मस्त लंड है यार.. प्लीज.. जरा नीचे देखकर बता मुझे.. कितना अंदर गया और कितना बाकी है.. !!"
कविता खटिया के पास, रसिक की जांघों के बीच बैठ गई और देखने की कोशिश करने लगी.. पर अंधेरे मे घंटा कुछ नजर नहीं आ रहा था..
कविता: "कुछ दिख नहीं रहा है वैशाली.. !!"
"एक मिनट भाभी.. " रसिक ने कहा.. और वैशाली को कमर से पकड़कर वो खटिया से खड़ा हो गया.. ऐसा करने से वैशाली की चूत और फैल गई और लंड का अधिक हिस्सा अंदर घुस गया.. वैशाली की चीख निकल गई... !!!!!
"ऊईईईईईई माँ.... !!!!!! मर गईई मम्मी.. रसिक बहोत दुख रहा है मुझे... आह उतार दे मुझे" वैशाली की आँखों से आँसू बहने लगे
रसिक ने वैशाली के चूतड़ों को अपने हाथों से सहारा देकर.. अपना लंड उसकी चूत से हल्का सा बाहर निकालकर वैशाली को थोड़ी सी राहत दी.. वैशाली की जान मे जान आई..
रसिक: "लीजिए भाभी... अब आपको दिखेगा.. " फूल की तरह उठा रखा था वैशाली को रसिक ने
कविता ने नीचे झुककर देखा.. अब लिंग-योनि की महायुति अब स्पष्ट नजर आ रही थी.. कविता ने वैशाली के चूतड़ों को जितना हो सकता था.. अपने हाथों से फैलाकर देखा.. देखकर कविता की जुबान उसके हलक मे उतर गई... वैशाली की चूत के अंदर रसिक का लंड बुरी तरह फंसा हुआ था.. वीर्य से भरे अंडकोश इतने मोटे मोटे नजर आ रहे थे.. वैशाली की द्रवित हो रही चूत के रस से सराबोर होकर.. आग की रोशनी मे कंचे की तरह चमक रहे थे..
"अभी तो आधा ही अंदर गया है वैशाली.. आधा बाहर है" कविता ने रसिक के अंडकोशों पर हाथ फेर लिया.. और लंड के बाहर वाले हिस्से की मोटाई को हाथ लगाकर नापते हुए... घबराकर कहा "ओ बाप रे.. पूरा तो अंदर जाएगा ही नहीं.. फट जाएगी तेरी.. !!"
अपने राक्षसी हाथों मे वैशाली को उठाकर आग की प्रदक्षिणा करते हुए हल्के हल्के चोदने लगा रसिक.. उसके हर नाजुक धक्के के साथ वैशाली की सिसकियाँ और दर्द भरी कराहें निकलकर.. रात के अंधेरे मे ओजल हो रही थी.. बड़ा खतरनाक साहस कर दिया था वैशाली ने.. अपनी हवस को संतुष्ट करने के लिए इंसान बड़े से बड़ा जोखिम उठाने को तैयार हो जाता है.. यह उसका प्रत्यक्ष उदाहरण था..
कविता खटिया पर बैठे बैठे.. दोनों के कठिन और कामुक मिलन को विस्मय भरी नज़रों से देख रही थी.. गदराए बदन वाली वैशाली को उचककर घूम रहे रसिक के हाथ के डोले फूल गए थे.. वैशाली ने रसिक की गर्दन मे अपने दोनों हाथ पिरोते हुए अपना सारा वज़न उसके शरीर पर डाल दिया था.. रसिक और वैशाली के होंठ बस चार-पाँच इंच के अंतर पर थे.. वैशाली के मुलायम गुलाबी होंठों को अपना बनाने के इरादे से रसिक ने अपने खुरदरे काले होंठों से उसे चूम लिया.. और अनुभवहीनता से चूसने लगा.. वो ऐसे चूम रहा था जैसे पुंगी बजा रहा हो..
रसिक के चूमने के इस तरीके पर वैशाली को हंसी आ गई.. पर वो हंसी ज्यादा देर तक टिकी नहीं.. क्योंकि रसिक को किस करना आता नहीं था और वो खुद भी यह जानता था.. अब तक उसने उस क्षेत्र मे ज्यादा संशोधन किया नहीं था.. जरूरत भी नहीं पड़ी थी.. जितनी औरतों से उसका पाला पड़ा था उन्हें चूमने से ज्यादा उसके लंड से चुदने में ज्यादा दिलचस्पी थी.. उसने एक विशेष इरादे से वैशाली को किस किया था.. जो वैशाली को जल्दी ही समझ आने वाला था..
वैशाली की चूत के बाहर जो आधा लंड घुसना बाकी था.. उसे एक जबरदस्त धक्का देते हुए अंदर डालने के बाद.. वैशाली जोर से चीख न सकें इसलिए रसिक ने उसके मुंह को पकड़कर.. वैशाली के चूतड़ों के नीचे सपोर्ट देने के लिए रखे अपने दोनों हाथों को छोड़ दिया.. वैशाली के भारी शरीर का वज़न लंड पर पड़ते ही.. लंड का चार से पाँच इंच हिस्सा अंदर घुस गया.. !!!!!
वैशाली ऐसे फड़फड़ाते हुए तड़पने लगी जैसे मछली पानी से बाहर निकल ने पर फड़फड़ाती है.. रसिक की बाहों से छूटने के लिए जद्दोजहत करने लगी.. पर चूत के अंदर लंड.. नश्तर की तरह घुसे हुए उसे बहुत दर्द दे रहा था.. असह्य पीड़ा से कराहते हुए वैशली जरा सी भी हलचल करती तो उसका दर्द और बढ़ रहा था.. इसलिए अब वो हिल भी नहीं पा रही थी.. इसलिए वैशाली ने रसिक के बालों को ताकत पूर्वक पकड़कर लीप किस तोड़ दी और रसिक के कंधे पर सिर रखकर.. फुटफुटकर रोने लगी.. !!!
"ओह्ह... रसिक... मैं मर जाऊँगी..मुझे नहीं कराना.. प्लीज.. बाहर निकाल.. बहोत दर्द हो रहा है.. कविता यार.. जरा समझा रसिक को.. !!"
कविता खटिया पर बैठे बैठे एक लकड़ी की मदद से आग के अंदर लकड़ियों को सही कर रही थी.. बड़े ही आराम से उसने कहा "तुझे ही बड़ा शौक था उसका लेने का.. अब अपनी सारी तमन्ना पूरी कर.. !!"
"नहीं नहीं.. रसिक, आज नहीं.. फिर कभी जरूर करेंगे.. आज मुझे माफ कर.. मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा.. फट गई है मेरी.. मेरे शरीर के बीच से दो टुकड़े हो जाएंगे ऐसा लग रहा है मुझे.. प्लीज" वैशाली ने दर्द भरी विनती से रसिक और उत्तेजित हो गया.. उसने वैशाली को कविता के बगल मे.. खटिया पर लेटा दिया.. और उसकी दोनों टांगों को फैलाकर कविता के स्तनों को दबाने लगा और बोला "भाभी, आप इसकी दोनों टांगों को चौड़ा पकड़ रखिए.. आज तो वैशाली को पूरा मज़ा देकर ही दम लूँगा.. "
बड़ी ही स्फूर्ति से कविता खड़ी हो गई और वैशाली की दोनों टांगों को पकड़कर चौड़ा कर दिया.. पर ऐसा करते वक्त जांघों के बीच झूल रहे मस्त लंड को पकड़कर अपने मन की मुराद पूरा करना भूली नहीं.. वो भले ही चूत मे लेने के लिए समर्थ नहीं थी.. पर इस मन-लुभावन लंड को पसंद तो करने लगी थी.. कविता का हाथ लंड को छूते ही.. जैसे नेवले को देखकर सांप सचेत हो जाता है.. वैसे ही रसिक का लंड ऊपर होकर आसपास देखने लगा
"ओह् भेनचोद... भाभी, तेरे हाथ मे पता नहीं कौन सा जादू है.. हाथ लगते ही मेरा उछलने लगता है.. आह्ह भाभी, थोड़ा सहलाओ इसे.. आह आह मज़ा आ रहा है.. थोड़ा सा चूस भी ले मेरी रानी.. !!" आज पहली बार रसिक ने उसे "आप" के बदले "तू" कहकर संबोधित किया था.. कविता की प्यारी सी चूत मे जबरदस्त खुजली होने लगी..
तभी रसिक ने कविता को धक्का देकर वैशाली के बगल मे सुला दिया.. और रसिक उन दोनों के बदन पर छा गया.. भले ही अब तक एक भी चूत मे लंड घुस नहीं सका था.. पर रसिक के विशाल शरीर के तले दोनों लड़कियां ढँक गई थी.. वैशाली और कविता के स्तनों की हालत दयनीय थी.. मसल मसलकर रसिक ने स्तनों के आकार बदल दिया था.. उनके कोमल बदनो को कुचलते हुए.. अपने शरीर का तमाम वज़न उसने इन दोनों पर डाल दिया..
बारी बारी से दोनों के गालों को चूम रहा था रसिक.. वो दोनों के स्तनों को चूस रहा था.. जब वैशाली के स्तन को चूसता तब कविता के स्तन को मसलता.. उसके मर्दाना स्पर्श से दोनों कामुक सिसकियाँ निकालने लगी.. लंड बाहर निकल जाने से वैशाली का दर्द भी गायब हो चुका था.. अब वो नए दर्द के लिए तड़पने लगी थी
घनघोर अंधेरा.. कड़ाके की सर्दी... सुमसान खेत.. बीच मे जल रही आग.. पास पड़ी खटिया पर लेटी हुई.. दो अति सुंदर नग्न सुंदरियाँ.. और उनके ऊपर मंडरा रहा हेवान जैसा रसिक.. बड़ी ही अद्भुत रात थी ये कविता और वैशाली के लिए.. दोनों सहेलियाँ इतनी कामुक हो गई थी अब उन्हें रसिक के छूने से कोई संकोच नहीं हो रहा था.. जो कविता रसिक से नफरत करती थी वो उसकी मर्दानगी को सलाम करने लगी थी..
रसिक का खड़ा लंड कविता के पेट और नाभि पर चुभ रहा था.. और उसे बेहद मज़ा आ रहा था.. वैशाली इतनी उत्तेजित थी की रसिक के शरीर को कविता के ऊपर से खींचकर अपने ऊपर लेने की कोशिश कर रही थी.. रसिक के स्वागत के लिए उसने अपनी जांघें खोल रखी थी.. वैशाली का आमंत्रण समझ गया रसिक.. और कविता के ऊपर से सरककर वैशाली के शरीर के ऊपर छा गया..
वैशाली की दोनों जांघों के बीच बैठकर.. रसिक का लोडा वैशाली की चूत ढूंढकर.. बड़े ही आराम से आधा अंदर उतर गया.. वैशाली की आँखों मे मोटे लंड-प्रवेश का जबरदस्त सुरूर छाने लगा था.. रसिक के काले चूतड़ों पर हाथ फेरते हुए वो उसके कंधों पर काटने लगी
बगल मे लेटी कविता खुद ही अपनी चूत सहलाते हुए रसिक के कूल्हे और पीठ पर हाथ सहला रही थी.. और आश्चर्य भरी नज़रों से वैशाली के इस अप्रतिम साहस को देख रही थी.. एक पल के लिए उसे ऐसा मन हुआ की वो वैशाली को हटाकर खुद रसिक के नीचे लेट जाए.. जो होगा फिर देखा जाएगा.. पर दूसरे ही पल.. वैशाली की दर्द-सभर चीखें याद आ गई और उसका हौसला पस्त हो गया.. !!
थोड़ी देर पहले रसिक ने जितना लंड वैशाली की चूत मे डाला था, उतना तो इस बार आसानी से चला गया.. पर लंड का बाकी हिस्सा अंदर घुसने का नाम ही नहीं ले रहा था.. रसिक ने अब बाकी का लंड, किसी भी सूरत मे, अंदर डालने का मन बनाकर कविता से कहा "तुम इसका मुंह बंद दबाकर रखो.. मैं आखरी शॉट मारने जा रहा हूँ"
सुनते ही वैशाली की शक्ल रोने जैसी हो गई, वो बोली "नहीं रसिक.. मेरी फट जाएगी.. खून निकल जाएगा.. पूरा अंदर नहीं जाएगा.. बस जितना अंदर गया है उतना ही अंदर बाहर करते है ना.. !!! दोनों को मज़ा आएगा" अपना मुंह दबाने करीब आ रही कविता को दूर धकेलते हुए वैशाली ने कहा
कविता: "हाँ रसिक.. उसको जिस तरह करवाना हो वैसे ही करो.. जो करने मे उसे मज़ा न आए और दर्द हो.. ऐसा करने मे क्या फायदा??"
रसिक: "ठीक है भाभी.. जैसा तुम कहो.. !!"
इतना कहते हुए रसिक ने कविता का हाथ पकड़कर.. चूत से बाहर लंड के हिस्से पर रखते हुए कहा "इस आधे लंड को तुम पकड़कर रखो.. ताकि इससे ज्यादा अंदर जाए नहीं.. मैं धक्के मारना शुरू कर रहा हूँ.. वैशाली, अगर दर्द ज्यादा हो तो बता देना.. मैं पूरा बाहर निकाल दूंगा.. ठीक है.. !!"
वैशाली की चूत मे आधे घुसे लंड के बाद जो हिस्सा बाहर रह गया था, उसे मुठ्ठी मे पकड़ लिया कविता ने.. लंड के परिघ को नापते हुए कविता के रोंगटे खड़े हो गए.. इतना मोटा था की कविता अपनी हथेली से उसे पूरी तरह पकड़ भी नहीं पा रही थी..
वैशाई के भारी भरकम स्तनों को मसलते हुए.. पहले लोकल ट्रेन की गति से.. और फिर राजधानी की स्पीड से.. रसिक पेलने लगा..!! वैशाली आनंद से सराबोर हो गई.. उसके शरीर मे.. रसिक के लंड के घर्षण से एक तरह की ऐसी ऊर्जा उत्पन्न हुई की इतने भारी रसिक के नीचे दबे होने के बावजूद वो अपने चूतड़ उठाकर उछल रही थी.. रसिक को भी बहोत मज़ा आ रहा था.. बड़ी उम्र की.. फैले हुए भोसड़ों वाली औरतों के मुकाबले.. वैशाली की चूत तो काफी टाइट थी.. वो सिसकते हुए वैशाली की जवानी को रौंदने लगा..
रसिक ने धक्के लगाने की गति को और तेज कर दिया.. उसके हेवानी धक्कों की वजह से हुआ यह की.. कविता का हाथ उसके लंड से छूट गया.. जो स्टापर का काम कर रहा था.. चूत के अंदर जाने का जो तय नाप था.. वो अब नहीं रहा.. और लंड पूरा अंदर घुस गया.. और वैशाली की फिर से चीख निकल गई..
पर अब रसिक रुकने वाला नहीं था.. लगभग पाँच मिनट की जंगली चुदाई के बाद वैशाली का शरीर ढीला पड़ गया और वो रसिक के बदन से लिपट पड़ी.. "आह आह रसिक.. आह्ह आह्ह ओह्ह मैं गई अब... ऊँहह.. आह्ह.. !!!" कहते हुए वैशाली की चूत का रस झड़ गया.. इस अनोखे स्खलन को कविता बड़े ही करीब से देख रही थी
रसिक के लंड को पता चल गया की इस युद्ध मे उसकी भव्य विजय हुई है.. अब बिना एक पल का इंतज़ार कीये रसिक ने वैशाली की चूत से लंड बाहर निकाला और उसके शरीर के ऊपर से खड़ा हो गया.. हल्का सा सरककर वो कविता के ऊपर चढ़ गया.. उससे पहले की कविता को सोच या समझ पाती.. रसिक ने अपने हाथ से लंड के सुपाड़े को कविता की फुलझड़ी पर रगड़ना शुरू कर दिया.. रसिक की इस हरकत को देखकर ही कविता कांप उठी.. उसने हाथ जोड़ दीये
कविता: "नहीं नहीं रसिक.. वैशाली की बात अलग है.. मेरे अंदर डालने की कोशिश भी की तो मेरी जान निकल जाएगी"
रसिक: "तुम चिंता मत करो भाभी.. अंदर नहीं डालूँगा.. मुझे पता है की अंदर जाएगा ही नहीं.. इतनी संकरी है आपकी फुद्दी.. जहां मेरी उंगली भी मुश्किल से घुस पाती हो वहाँ ये डंडा तो जाने से रहा.. मैं तो बस ऊपर ऊपर से रगड़कर आपको मज़ा देना चाहता हूँ.. देखना अभी कितना मज़ा आता है" कहते हुए रसिक कविता के गाल को चूमता हुआ उसके होंठों को चूसकर.. कविता की क्लिटोरिस को अपने खूंखार सुपाड़े से घिसने लगा.. आनंद से फड़फड़ाने लगी कविता..
बेहद उत्तेजित होकर कविता ने कहा "बहुत मज़ा आ रहा है रसिक.. एक बार मेरी चाटो ना.. !!"
रसिक बड़ी ही सावधानी से एक एक कदम आगे बढ़ रहा था.. वो ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहता थी जिससे कविता नाराज हो.. वो खड़ा हो गया.. कविता के पूरे शरीर को सहलाते हुए पलट गया.. कविता के मुख की तरफ अपना लंड सेट करके वो उसके ऊपर लेट गया.. कविता के चूतड़ों के नीचे हाथ डालकर खिलौने की तरह ऊपर उठाते हुए वो चूत चाटने लगा
"आह्ह रसिक.. ओह ओह्ह.. " कविता ने सिसकने के लिए अपना मुंह खोला और तभी रसिक ने अपना लंड उसके होंठों के बीच दबाकर उसका मुंह बंद कर दिया.. बिना किसी घिन के रसिक का लंड पकड़कर बड़े ही प्रेम से चूसते हुए कविता ने अपना पूरा शरीर रसिक को सौंप दिया..
रसिक ने कभी सपने मे भी नहीं सोचा था कविता भाभी उसका लंड चुसेगी.. अपने बबले दबाने देगी.. गुलाब की पंखुड़ियों जैसी उसकी चूत चाटने देगी..!!
वैशाली रसिक को कविता की चूत का रस चाटते हुए देखती रही और मन ही मन सोचने लगी "मम्मी या अनुमौसी की कोई गलती नहीं है.. रसिक है ही ऐसा की कोई भी औरत उसके नीचे सोने के लिए बेताब हो जाए.. जैसे मैं और कविता सुबह सुबह दूध लेते वक्त रसिक के साथ मस्ती कर रहे थे वैसे मम्मी भी करती ही होगी.. !! और कविता का कहना था की उसने मम्मी को रसिक के साथ यह सब करते हुए काफी बार देखा है.. !! इसका मतलब यह हुआ की मम्मी अभी भी रसिक के साथ ये सब करती होगी...?? जरूर करती होगी.. ऐसे लंड को भला कौन छोड़ेगा.. !!
कविता अपनी उत्तेजना के आखरी पड़ाव पर पहुँच चुकी थी.. और इस वक्त वो इतनी बेकाबू हो गई थी की रसिक के लंड को मुंह मे आधा लेकर वो पॉर्न फिल्मों की राँडों की तरह चूसने लगी.. रसिक भी सिसकियाँ भरते हुए कविता के मुंह से अपने लंड को निकालकर उसी अवस्था मे मुठ्ठी से पकड़कर जबरदस्त स्पीड से हिलाने लगा.. फांसी की सजा हुए कैदी की जैसे आखिरी इच्छा पूरी की जाती है वैसे रसिक अपने लंड को अंतिम सत्य के लिए लयबद्ध तरीके से हिला रहा था..
वैशाली कभी उसके हाथ के डोलों को देखती.. तो कभी उसकी मुठ्ठी मे आगे पीछे होते सुपाड़े को.. !! रसिक के चौड़े कंधे और बड़ी लाल आँखें रात के अंधेरे मे बेहद डरावनी लग रही थी..
"आह्ह आह्ह भाभी... आह.. !!" झटके खाते हुए रसिक का लंड अपना मलाईदार वीर्य स्खलित करने लगा.. दो फुट दूर बैठी वैशाली के गूँदाज बबलों पर वीर्य की पिचकारी जा गिरी.. दो तीन और पिचकारियों ने कविता के सुंदर स्तनों को भी पावन कर दिया.. लस्सेदार वीर्य को अपनी छाती पर मलने के बाद कविता के स्तन, अंधेरी रात मे तारों की तरह चमक रहे थे..
"वाह, यार रसिक, मज़ा आ गया.. तू सही मे असली वाला मर्द है.. तेरे बारे मे जितना कुछ सुना था.. उससे कई ज्यादा निकला.. दिल खुश हो गया.. कविता, अब हम चलें?" हांफते हुए वैशाली ने कविता को मदहोशी से होश मे लाने की कोशिश करते हुए कहा
कविता अब भी इस दमदार चूत चटाई के नशे मे ही थी.. उसकी ढली हुई आँखें, बड़ी मुश्किल से उठाते हुए उसने कहा " जाना ही पड़ेगा क्या.. !!"
थोड़ी देर के लिए दोनों रसिक की छाती को तकिया बनाकर लेटे रहे.. और आराम करने के बाद कपड़े पहनकर निकल गए..
रात के साढ़े बारह बज चुके थे..घर के बाहर पहुंचते ही.. मदन की गाड़ी पार्किंग मे पड़ी हुई देखकर, दोनों जबरदस्त घबरा गए.. !!!
Sexyyyyyyyyyyyy५५ साल की शीला, रात को १० बजे रसोईघर की जूठन फेंकने के लिए बाहर निकली... थोड़ी देर पहले ही बारिश रुकी थी। चारों तरफ पानी के पोखर भरे हुए थे... भीनी मिट्टी की मदमस्त खुशबू से ठंडा वातावरण बेहद कामुक बना देने वाला था। दूर कोने मे एक कुत्तिया... अपनी पुत्ती खुद ही चाट रही थी... शीला देखती रह गई..!! वह सोचने लगी की काश..!! हम औरतें भी यह काम अगर खुद कर पाती तो कितना अच्छा होता... मेरी तरह लंड के बिना तड़पती, न जाने कितनी औरतों को, इस मदमस्त बारिश के मौसम में, तड़पना न पड़ता...
वह घर पर लौटी... और दरवाजा बंद किया... और बिस्तर पर लेट गई।
उसका पति दो साल के लिए, कंपनी के काम से विदेश गया था... और तब से शीला की हालत खराब हो गई थी। वैसे तो पचपन साल की उम्र मे औरतों को चुदाई की इतनी भूख नही होती... पर एकलौती बेटी की शादी हो जाने के बाद... दोनों पति पत्नी अकेले से पड़ गए थे.. पैसा तो काफी था... और उसका पति मदन, ५८ साल की उम्र मे भी.. काफी शौकीन मिजाज था.. रोज रात को वह शीला को नंगी करके अलग अलग आसनों मे भरपूर चोदता.. शीला की उम्र ५५ साल की थी... मेनोपोज़ भी हो चुका था.. फिर भी साली... कूद कूद कर लंड लेती.. शीला का पति मदन, ऐसे अलग अलग प्रयोग करता की शीला पागल हो जाती... उनके घर पर ब्लू-फिल्म की डीवीडी का ढेर पड़ा था.. शीला ने वह सब देख रखी थी.. उसे अपनी चुत चटवाने की बेहद इच्छा हो रही थी... और मदन की नामौजूदगी ने उसकी हालत और खराब कर दी थी।
ऊपर से उस कुत्तीया को अपनी पुत्ती चाटते देख... उसके पूरे बदन मे आग सी लग गई...
अपने नाइट ड्रेस के गाउन से... उसने अपने ४० इंच के साइज़ के दोनों बड़े बड़े गोरे बबले बाहर निकाले.. और अपनी हथेलियों से निप्पलों को मसलने लगी.. आहहहह..!! अभी मदन यहाँ होता तो... अभी मुझ पर टूट पड़ा होता... और अपने हाथ से मेरी चुत सहला रहा होता.. अभी तो उसे आने मे और चार महीने बाकी है.. पिछले २० महीनों से... शीला के भूखे भोसड़े को किसी पुरुष के स्पर्श की जरूरत थी.. पर हाय ये समाज और इज्जत के जूठे ढकोसले..!! जिनके डर के कारण वह अपनी प्यास बुझाने का कोई और जुगाड़ नही कर पा रही थी।
"ओह मदन... तू जल्दी आजा... अब बर्दाश्त नही होता मुझसे...!!" शीला के दिल से एक दबी हुई टीस निकली... और उसे मदन का मदमस्त लोडा याद आ गया.. आज कुछ करना पड़ेगा इस भोसड़े की आग का...
शीला उठकर खड़ी हुई और किचन मे गई... फ्रिज खोलकर उसने एक मोटा ताज़ा बैंगन निकाला.. और उसे ही मदन का लंड समझकर अपनी चुत पर घिसने लगी... बैंगन मदन के लंड से तो पतला था... पर मस्त लंबा था... शीला ने बैंगन को डंठल से पकड़ा और अपने होंठों पर रगड़ने लगी... आँखें बंद कर उसने मदन के सख्त लंड को याद किया और पूरा बैंगन मुंह मे डालकर चूसने लगी... जैसे अपने पति का लंड चूस रही हो... अपनी लार से पूरा बैंगन गीला कर दिया.. और अपने भोसड़े मे घुसा दिया... आहहहहहहह... तड़पती हुई चुत को थोड़ा अच्छा लगा...
आज शीला.. वासना से पागल हो चली थी... वह पूरी नंगी होकर किचन के पीछे बने छोटे से बगीचे मे आ गई... रात के अंधेरे मे अपने बंगले के बगीचे मे अपनी नंगी चुत मे बैंगन घुसेड़कर, स्तनों को मरोड़ते मसलते हुए घूमने लगी.. छिटपुट बारिश शुरू हुई और शीला खुश हो गई.. खड़े खड़े उसने बैंगन से मूठ मारते हुए भीगने का आनंद लिया... मदन के लंड की गैरमौजूदगी में बैंगन से अपने भोंसड़े को ठंडा करने का प्रयत्न करती शीला की नंगी जवानी पर बारिश का पानी... उसके मदमस्त स्तनों से होते हुए... उसकी चुत पर टपक रहा था। विकराल आग को भी ठंडा करने का माद्दा रखने वाले बारिश के पानी ने, शीला की आग को बुझाने के बजाए और भड़का दिया। वास्तविक आग पानी से बुझ जाती है पर वासना की आग तो ओर प्रज्वलित हो जाती है। शीला बागीचे के गीले घास में लेटी हुई थी। बेकाबू हो चुकी हवस को मामूली बैंगन से बुझाने की निरर्थक कोशिश कर रही थी वह। उसे जरूरत थी.. एक मदमस्त मोटे लंबे लंड की... जो उसके फड़फड़ाते हुए भोसड़े को बेहद अंदर तक... बच्चेदानी के मुख तक धक्के लगाकर, गरम गरम वीर्य से सराबोर कर दे। पक-पक पुच-पुच की आवाज के साथ शीला बैंगन को अपनी चुत के अंदर बाहर कर रही थी। आखिर लंड का काम बैंगन ने कर दिया। शीला की वासना की आग बुझ गई.. तड़पती हुई चुत शांत हो गई... और वह झड़कर वही खुले बगीचे में नंगी सो गई... रात के तीन बजे के करीब उसकी आँख खुली और वह उठकर घर के अंदर आई। अपने भोसड़े से उसने पिचका हुआ बैंगन बाहर निकाला.. गीले कपड़े से चुत को पोंछा और फिर नंगी ही सो गई।
सुबह जब वह नींद से जागी तब डोरबेल बज रही थी "दूध वाला रसिक होगा" शीला ने सोचा, इतनी सुबह, ६ बजे और कौन हो सकता है!! शीला ने उठकर दरवाजा खोला... बाहर तेज बारिश हो रही थी। दूधवाला रसिक पूरा भीगा हुआ था.. शीला उसे देखते ही रह गई... कामदेव के अवतार जैसा, बलिष्ठ शरीर, मजबूत कदकाठी, चौड़े कंधे और पेड़ के तने जैसी मोटी जांघें... बड़ी बड़ी मुछों वाला ३५ साल का रसिक.. शीला को देखकर बोला "कैसी हो भाभीजी?"
गाउन के अंदर बिना ब्रा के बोबलों को देखते हुए रसिक एक पल के लिए जैसे भूल ही गया की वह किस काम के लिए आया था!! उसके भीगे हुए पतले कॉटन के पतलून में से उसका लंड उभरने लगा जो शीला की पारखी नजर से छिप नही सका।
"अरे रसिक, तुम तो पूरे भीग चुके हो... यहीं खड़े रहो, में पोंछने के लिए रुमाल लेकर आती हूँ.. अच्छे से जिस्म पोंछ लो वरना झुकाम हो जाएगा" कहकर अपने कूल्हे मटकाती हुई शीला रुमाल लेने चली गई।
"अरे भाभी, रुमाल नही चाहिए,... बस एक बार अपनी बाहों में जकड़ लो मुझे... पूरा जिस्म गरम हो जाएगा" अपने लंड को ठीक करते हुए रसिक ने मन में सोचा.. बहेनचोद साली इस भाभी के एक बोबले में ५-५ लीटर दूध भरा होगा... इतने बड़े है... मेरी भेस से ज्यादा तो इस शीला भाभी के थन बड़े है... एक बार दुहने को मिल जाए तो मज़ा ही आ जाए...
रसिक घर के अंदर ड्रॉइंगरूम में आ गया और डोरक्लोज़र लगा दरवाजा अपने आप बंद हो गया।
शीला ने आकर रसिक को रुमाल दिया। रसिक अपने कमीज के बटन खोलकर रुमाल से अपनी चौड़ी छाती को पोंछने लगा। शीला अपनी हथेलियाँ मसलते उसे देख रही थी। उसके मदमस्त चुचे गाउन के ऊपर से उभरकर दिख रहे थे। उन्हे देखकर रसिक का लंड पतलून में ही लंबा होता जा रहा था। रसिक के सख्त लंड की साइज़ देखकर... शीला की पुच्ची बेकाबू होने लगी। उसने रसिक को बातों में उलझाना शुरू किया ताकि वह ओर वक्त तक उसके लंड को तांक सके।
"इतनी सुबह जागकर घर घर दूध देने जाता है... थक जाता होगा.. है ना!!" शीला ने कहा
"थक तो जाता हूँ, पर क्या करूँ, काम है करना तो पड़ता ही है... आप जैसे कुछ अच्छे लोग को ही हमारी कदर है.. बाकी सब तो.. खैर जाने दो" रसिक ने कहा। रसिक की नजर शीला के बोबलों पर चिपकी हुई थी.. यह शीला भी जानती थी.. उसकी नजर रसिक के खूँटे जैसे लंड पर थी।
शीला ने पिछले २० महीनों से.. तड़प तड़प कर... मूठ मारकर अपनी इज्जत को संभाले रखा था.. पर आज रसिक के लंड को देखकर वह उत्तेजित हथनी की तरह गुर्राने लगी थी...
"तुझे ठंड लग रही है शायद... रुक में चाय बनाकर लाती हूँ" शीला ने कहा
"अरे रहने दीजिए भाभी, में आपकी चाय पीने रुका तो बाकी सारे घरों की चाय नही बनेगी.. अभी काफी घरों में दूध देने जाना है" रसिक ने कहा
फिर रसिक ने पूछा "भाभी, एक बात पूछूँ? आप दो साल से अकेले रह रही हो.. भैया तो है नही.. आपको डर नही लगता?" यह कहते हुए उस चूतिये ने अपने लंड पर हाथ फेर दिया
रसिक के कहने का मतलब समझ न पाए उतनी भोली तो थी नही शीला!!
"अकेले अकेले डर तो बहोत लगता है रसिक... पर मेरे लिए अपना घर-बार छोड़कर रोज रात को साथ सोने आएगा!!" उदास होकर शीला ने कहा
"चलिए भाभी, में अब चलता हूँ... देर हो गई... आप मेरे मोबाइल में अपना नंबर लिख दीजिए.. कभी अगर दूध देने में देर हो तो आप को फोन कर बता सकूँ"
तिरछी नजर से रसिक के लंड को घूरते हुए शीला ने चुपचाप रसिक के मोबाइल में अपना नंबर स्टोर कर दिया।
"आपके पास तो मेरा नंबर है ही.. कभी बिना काम के भी फोन करते रहना... मुझे अच्छा लगेगा" रसिक ने कहा
शीला को पता चल गया की वह उसे दाने डाल रहा था
"चलता हूँ भाभी" रसिक मुड़कर दरवाजा खोलते हुए बोला
उसके जाते ही दरवाजा बंद हो गया। शीला दरवाजे से लिपट पड़ी, और अपने स्तनों को दरवाजे पर रगड़ने लगी। जिस रुमाल से रसिक ने अपनी छाती पोंछी थी उसमे से आती मर्दाना गंध को सूंघकर उस रुमाल को अपने भोसड़े पर रगड़ते हुए शीला सिसकने लगी।
कवि कालिदास ने अभिज्ञान शाकुंतल और मेघदूत में जैसे वर्णन किया है बिल्कुल उसी प्रकार.. शीला इस बारिश के मौसम में कामातुर हो गई थी। दूध गरम करने के लिए वो किचन में आई और फिर उसने फ्रिज में से एक मोटा गाजर निकाला। दूध को गरम करने गेस पर चढ़ाया.. और फिर अपने तड़पते भोसड़े में गाजर घुसेड़कर अंदर बाहर करने लगी।
रूम के अंदर बहोत गर्मी हो रही थी.. शीला ने एक खिड़की खोल दी.. खिड़की से आती ठंडी हवा उसके बदन को शीतलता प्रदान कर रही थी और गाजर उसकी चुत को ठंडा कर रहा था। खिड़की में से उसने बाहर सड़क की ओर देखा... सामने ही एक कुत्तीया के पीछे १०-१२ कुत्ते, उसे चोदने की फिराक में पागल होकर आगे पीछे दौड़ रहे थे।
शीला मन में ही सोचने लगी "बहनचोद.. पूरी दुनिया चुत के पीछे भागती है... और यहाँ में एक लंड को तरस रही हूँ"
सांड के लंड जैसा मोटा गाजर उसने पूरा अंदर तक घुसा दिया... उसके मम्मे ऐसे दर्द कर रहे थे जैसे उनमे दूध भर गया हो.. भारी भारी से लगते थे। उस वक्त शीला इतनी गरम हो गई की उसका मन कर रहा था की गैस के लाइटर को अपनी पुच्ची में डालकर स्पार्क करें...
शीला ने अपने सख्त गोभी जैसे मम्मे गाउन के बाहर निकाले... और किचन के प्लेटफ़ॉर्म पर उन्हे रगड़ने लगी.. रसिक की बालों वाली छाती उसकी नजर से हट ही नही रही थी। आखिर दूध की पतीली और शीला के भोसड़े में एक साथ उबाल आया। फरक सिर्फ इतना था की दूध गरम हो गया था और शीला की चुत ठंडी हो गई थी।
रोजमर्रा के कामों से निपटकर, शीला गुलाबी साड़ी में सजधज कर सब्जी लेने के लिए बाजार की ओर निकली। टाइट ब्लाउस में उसके बड़े बड़े स्तन, हर कदम के साथ उछलते थे। आते जाते लोग उन मादक चूचियों को देखकर अपना लंड ठीक करने लग जाते.. उसके मदमस्त कूल्हे, राजपुरी आम जैसे बबले.. और थिरकती चाल...
एक जवान सब्जी वाले के सामने उकड़ूँ बैठकर वह सब्जी देखने लगी। शीला के पैरों की गोरी गोरी पिंडियाँ देखकर सब्जीवाला स्तब्ध रह गया। घुटनों के दबाव के कारण शीला की बड़ी चूचियाँ ब्लाउस से उभरकर बाहर झाँकने लगी थी..
शीला का यह बेनमून हुस्न देखकर सब्जीवाला कुछ पलों के लिए, अपने आप को और अपने धंधे तक को भूल गया।
शीला के दो बबलों को बीच बनी खाई को देखकर सब्जीवाले का छिपकली जैसा लंड एक पल में शक्करकंद जैसा बन गया और एक मिनट बाद मोटी ककड़ी जैसा!!!
"मुली का क्या भाव है?" शीला ने पूछा
"एक किलो के ४० रूपीए"
"ठीक है.. मोटी मोटी मुली निकालकर दे मुझे... एक किलो" शीला ने कहा
"मोटी मुली क्यों? पतली वाली ज्यादा स्वादिष्ट होती है" सब्जीवाले ने ज्ञान दिया
"तुझे जितना कहा गया उतना कर... मुझे मोटी और लंबी मुली ही चाहिए" शीला ने कहा
"क्यों? खाना भी है या किसी ओर काम के लिए चाहिए?"
शीला ने जवाब नही दिया तो सब्जीवाले को ओर जोश चढ़ा
"मुली से तो जलन होगी... आप गाजर ले लो"
"नही चाहिए मुझे गाजर... ये ले पैसे" शीला ने थोड़े गुस्से के साथ उसे १०० का नोट दिया
बाकी खुले पैसे वापिस लौटाते वक्त उस सब्जीवाले ने शीला की कोमल हथेलियों पर हाथ फेर लिया और बोला "और क्या सेवा कर सकता हूँ भाभीजी?"
उसकी ओर गुस्से से घूरते हुए शीला वहाँ से चल दी। उसकी बात वह भलीभाँति समझ सकती थी। पर क्यों बेकार में ऐसे लोगों से उलझे... ऐसा सोचकर वह किराने की दुकान के ओर गई।
बाकी सामान खरीदकर वह रिक्शा में घर आने को निकली। रिक्शा वाला हरामी भी मिरर को शीला के स्तनों पर सेट कर देखते देखते... और मन ही मन में चूसते चूसते... ऑटो चला रहा था।
एक तरफ घर पर पति की गैरहाजरी, दूसरी तरफ बाहर के लोगों की हलकट नजरें.. तीसरी तरफ भोसड़े में हो रही खुजली तो चौथी तरफ समाज का डर... परेशान हो गई थी शीला!!
घर आकर वह लाश की तरह बिस्तर पर गिरी.. उसकी छाती से साड़ी का पल्लू सरक गया... यौवन के दो शिखरों जैसे उत्तुंग स्तन.. शीला की हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे। लेटे लेटे वह सोच रही थी "बहनचोद, इन माँस के गोलों में भला कुदरत ने ऐसा क्या जादू किया है की जो भी देखता है बस देखता ही रह जाता है!!" फिर वह सोचने लगी की वैसे तो मर्द के लंड में भी ऐसा कौनसा चाँद लगा होता है, जो औरतें देखते ही पानी पानी हो जाती है!!
शीला को अपने पति मदन के लंड की याद आ गई... ८ इंच का... मोटे गाजर जैसा... ओहहह... ईशशश... शीला ने इतनी गहरी सांस ली की उसकी चूचियों के दबाव से ब्लाउस का हुक ही टूट गया।
कुदरत ने मर्दों को लंड देकर, महिलाओं को उनका ग़ुलाम बना दिया... पूरा जीवन... उस लंड के धक्के खा खाकर अपने पति और परिवार को संभालती है.. पूरा दिन घर का काम कर थक के चूर हो चुकी स्त्री को जब उसका पति, मजबूत लंड से धमाधम चोदता है तो स्त्री के जनम जनम की थकान उतर जाती है... और दूसरे दिन की महेनत के लिए तैयार हो जाती है।
शीला ने ब्लाउस के बाकी के हुक भी खोल दिए... अपने मम्मों के बीच की कातिल चिकनी खाई को देखकर उसे याद आ गया की कैसे मदन उसके दो बबलों के बीच में लंड घुसाकर स्तन-चुदाई करता था। शीला से अब रहा नही गया... घाघरा ऊपर कर उसने अपनी भोस पर हाथ फेरा... रस से भीग चुकी थी उसकी चुत... अभी अगर कोई मिल जाए तो... एक ही झटके में पूरा लंड अंदर उतर जाए... इतना गीला था उसका भोसड़ा.. चुत के दोनों होंठ फूलकर कचौड़ी जैसे बन चुके थे।
शीला ने चुत के होंठों पर छोटी सी चिमटी काटी... दर्द तो हुआ पर मज़ा भी आया... इसी दर्द में तो स्वर्गिक आनंद छुपा था.. वह उन पंखुड़ियों को और मसलने लगी.. जितना मसलती उतनी ही उसकी आग और भड़कने लगी... "ऊईईई माँ... " शीला के मुंह से कराह निकल गई... हाय.. कहीं से अगर एक लंड का बंदोबस्त हो जाए तो कितना अच्छा होगा... एक सख्त लंड की चाह में वह तड़पने लगी.. थैली से उसने एक मस्त मोटी मुली निकाली और उस मुली से अपनी चुत को थपथपाया... एक हाथ से भगोष्ठ के संग खेलते हुए दूसरे हाथ में पकड़ी हुई मुली को वह अपने छेद पर रगड़ रही थी। भोसड़े की गर्मी और बर्दाश्त न होने पर, उसने अपनी गांड की नीचे तकिया सटाया और उस गधे के लंड जैसी मुली को अपनी चुत के अंदर घुसा दिया।
लगभग १० इंच लंबी मुली चुत के अंदर जा चुकी थी। अब वह पूरे जोश के साथ मुली को अपने योनिमार्ग में रगड़ने लगी.. ५ मिनट के भीषण मुली-मैथुन के बाद शीला का भोसड़ा ठंडा हुआ... शीला की छाती तेजी से ऊपर नीचे हो रही थी। सांसें नॉर्मल होने के बाद उसने मुली बहार निकाली। उसके चुत रस से पूरी मुली सन चुकी थी.. उस प्यारी सी मुली को शीला ने अपनी छाती से लगा लिया... बड़ा मज़ा दिया था उस मुली ने! मुली की मोटाई ने आज तृप्त कर दिया शीला को!!
मुली पर लगे चिपचिपे चुत-रस को वह चाटने लगी.. थोड़ा सा रस लेकर अपनी निप्पल पर भी लगाया... और मुली को चाट चाट कर साफ कर दिया।
अब धीरे धीरे उसकी चुत में जलन होने शुरू हो गई.. शीला ने चूतड़ों के नीचे सटे तकिये को निकाल लिया और दोनों जांघें रगड़ती हुई तड़पने लगी... "मर गई!!! बाप रे!! बहुत जल रहा है अंदर..." जलन बढ़ती ही गई... उस मुली का तीखापन पूरी चुत में फैल चुका था.. वह तुरंत उठी और भागकर किचन में गई.. फ्रिज में से दूध की मलाई निकालकर अपनी चुत में अंदर तक मल दी शीला ने.. !! ठंडी ठंडी दूध की मलाई से उसकी चुत को थोड़ा सा आराम मिला.. और जलन धीरे धीरे कम होने लगी.. शीला अब दोबारा कभी मुली को अपनी चुत के इर्द गिर्द भी भटकने नही देगी... जान ही निकल गई आज तो!!
शाम तक चुत में हल्की हल्की जलन होती ही रही... बहनचोद... लंड नही मिल रहा तभी इन गाजर मूलियों का सहारा लेना पड़ रहा है..!! मादरचोद मदन... हरामी.. अपना लंड यहाँ छोड़कर गया होता तो अच्छा होता... शीला परेशान हो गई थी.. अब इस उम्र में कीसे पटाए??
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