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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

sunoanuj

Well-Known Member
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Superb update ekdam jhakaash….
 

vakharia

Supreme
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Woooow ek aurat ki kaam agni ko esse jada ache se koi nahi dikha sakta

Par scene thode detailed hote toh ye maza kai guna hota
👍
सब से पहले तो कहानी पढ़कर आपकी प्रतिक्रिया देने के लिए धन्यवाद..

स्त्री की कामुकता एक जटिल और महत्वपूर्ण विषय है जो समाज और संस्कृति के विभिन्न आयामों से प्रभावित होती है। यह केवल शारीरिक अनुभवों तक सीमित नहीं है, बल्कि भावनात्मक, मानसिक, और सामाजिक पहलुओं से भी गहराई से जुड़ी होती है।

आशा है की आप कहानी को आगे पढ़ेंगे.. आपकी अपेक्षा अनुसार विस्तृत और सविस्तार विवरण युक्त द्रश्य आपको हर अपडेट में मिलेंगे..

फिर से एक बार.. विवेचन के लिए शुक्रिया

वखारिया :love3:
 

vakharia

Supreme
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दोपहर को कविता, मौसम और फाल्गुनी वैशाली से मिलने आए.. लड़कियां आपस में आराम से बात कर सके इसलिए शीला वहाँ से निकल गई.. वह चाहती थी की तीनों हंसी खुशी बातें करे और वैशाली का मन कुछ हल्का हो जाए.. शीला को कविता पर पूरा भरोसा था की वो किसी भी तरह वैशाली को संजय के विचारों से मुक्त करेगी.. वैशाली भी मौसम और फाल्गुनी से मिलकर खुश हो गई.. जवान लड़कियों के पास बातें करने के हजार टोपिक होते है.. उनकी बातें कभी खतम ही नहीं होती.. पढ़ाई की.. कॉलेज की.. बॉयफ्रेंड की.. उन्हे लाइन मारते लड़कों की.. नॉन-वेज जोक्स और उससे उत्पन्न होते हंसी ठहाकों से पूरा घर भर गया..

फाल्गुनी थोड़ा कम बोलती थी.. उसके चेहरे के गंभीर भाव से वो बेहद सुंदर लगती थी.. पर अनुभवी आँखें उसे देखकर ये जरूर भांप लेगी की उसकी गंभीरता के पीछे गहरी उदासी छुपी हुई थी.. पर बाकी लड़कियां ये देख पाने में असमर्थ थी इसलिए कभी उसे इस बारे में पूछा नहीं था.. सब हंसी-मज़ाक कर रहे थे.. तब फाल्गुनी सिर्फ औपचारिकता से हंस रही थी..

इस तरफ शीला अनुमौसी के घर पहुँच गई.. घूम फिरकर उनकी बात वैशाली की समस्या पर आकर अटक गई थी.. अनुमौसी अपने अनुभव के अनुसार सलाह दे रही थी

शीला के घर तीनों लड़कियां बातें कर रही थी.. तभी टेबल पर रखा हुआ शीला का मोबाइल बजा.. शीला अपना फोन साथ ले जाना भूल गई थी.. वैशाली ने फोन उठाया

वैशाली: "हैलो.. "

"हैलो भाभी.. आप तो मुझे भूल ही गए.. मुझे भी कभी याद कर लीया कीजिए.. " सामने से किसी लड़के की आवाज थी.. वैशाली को पता नहीं चला की कौन बोल रहा था

"अरे भाभी.. पहचाना नहीं? मैं पिंटू.. मिले हुए बहुत वक्त हो गया इसलियी शायद भूल गई.. "

"जी मैं शीलाजी की बेटी बोल रही हूँ.. आप रुकिए मैं उन्हे फोन देती हूँ" वैशाली उठकर अनुमौसी के घर गई और फोन देकर वापस लौटी

कविता: "तेरे पापा का फोन था क्या? कब आ रहे है वो?"

वैशाली: "पापा का नहीं था.. किसी पिंटू नाम के आदमी का था.. होगा कोई मम्मी की पहचान वाला" वैशाली के मन में विचार चलने लगे.. कितना भी चाह कर वो अपनी मम्मी के बारे में बुरे खयाल नहीं सोच सकती थी.. और शीला ने भी अपने चारित्र का पूरा ध्यान रखा था अब तक.. ये तो मदन के जाने के बाद उसकी चूत ने उसे फिसलने पर मजबूर कर दिया था.. शरीर की भूख सब को सताती है.. कुछ लोग इसलिए शरीफ रह पाते है क्योंकि उन्हे योग्य मौका नहीं मिलता.. शीला वैसे तो व्यभिचारी नहीं थी.. उसका पति उसे अलग अलग आसनों में चोदकर बेहद खुश रखता था.. शीला को अलग अलग तरीकों से चुदवाने में बेहद आनंद आता था और मदन उसे चौड़ी कर ठोंकने में कोई कसर नहीं छोड़ता था.. मदन के जाने के बाद संभोग के सुख को शीला इतना मिस कर रही थी की जैसे ही रसिक से संपर्क हुआ, उसका सब्र का बांध टूट गया.. हवस के झलझले ने उसके चारित्र को तबाह कर दिया

पिंटू का नाम सुनकर कविता के होश उड़ गई.. पिंटू और शीला भाभी?? उसे भला क्या जरूरत आन पड़ी भाभी की ? मैं और पिंटू जब भाभी के घर मिले थे तब कहीं मेरे जाने के बाद..........!!! नहीं नहीं.. शीला भाभी ऐसा क्यों करेगी? मेरे प्रेमी को पटाने जैसा हलकट काम शीला भाभी नहीं कर सकती.. और उन्होंने तो पहले से रसिक को जुगाड़ रखा है.. रोज सुबह उसका लोडा भी चूसती है.. फिर वो पिंटू पर नजर क्यों डालेगी भला!!! लेकिन प्रेमियों में असुरक्षितता का भाव होना काफी स्वाभाविक है.. आप जितना किसीको चाहते हो उतना ही उसे खोने का डर लगा रहता है..

कविता से रहा नहीं गया.. वह उठकर बोली "अरे मैं भी अपना मोबाइल घर भूल आई हूँ.. पीयूष का फोन आने वाला है.. उठाऊँगी नहीं तो गुस्सा करेगा.. " वैसे मोबाइल तो उसकी ब्रा के अंदर सुरक्षित था फिर भी वो बहाना बनाकर निकल गई.. वह तुरंत अपने घर नहीं गई.. वह सोच रही थी "अगर पिंटू का फोन होगा तो शीला भाभी मम्मीजी के सामने बात नहीं करेगी.. बरामदे में भी नहीं खड़ी होगी क्योंकि वैशाली की नजर पड़ने का खतरा था.. पक्का वो घर के पीछे की तरफ गई होगी.. " कविता चुपके से घर के पिछवाड़े की तरफ गई.. उसका अंदाजा बिल्कुल सही था.. पीछे मुड़कर शीला फोन पर बात कर रही थी.. शीला की पीठ की तरफ खड़ी कविता उसे नजर नहीं आ रही थी

शीला और पिंटू के बीच फोन पर हो रही बातें सुनकर कविता के पैरों तले से धरती खिसक गई.. उसे विश्वास नहीं हो रहा था की पिंटू और शीला भाभी उसके साथ इतना बड़े धोखा करेंगे.. उनकी बातें सुनकर कविता की सांसें थम गई..

शीला: "अरे तू पागल मत बन.. थोड़ा धीरज धर.. पीयूष अपनी साली और कविता को लेकर ४ दिन के लीये घूमने जा रहा है.. मैं कोई भी बहाना करके घर पर ही रहूँगी.. सब बाहर होंगे तब हम आराम से मजे करेंगे.. मेरी बेटी घर आई हुई है इसलिए मेरे भी सब कुछ बंद है.. मुझसे भी रहा नहीं जाता.. बस एक दिन की ही बात है"

उदास कविता की आँखों से आँसू बहने लगे.. प्रेम के नाम पर इतना बड़ा धोखा दिया पिंटू ने ?? एक ही पल में उसे अपना प्यार का महल ध्वस्त होता नजर आया.. कविता को बहोत गुस्सा आ रहा था.. हम लोग वैशाली को लेकर घूमने जाए.. और हमारे पीछे शीला भाभी मेरे ही प्रेमी के साथ रंगरेलियाँ मनाने का प्लान बनाकर बैठी है.. पर मैं भी उनका प्लान सफल नहीं होने दूँगी.. कुछ भी हो जाए.. ऐसा जुगाड़ लगाऊँगी की इन दोनों का मिलना मुमकिन ही न हो

कितनी भी बड़ी विपदा क्यों न हो.. अपने आप को संभाल लेने का कौशल सारी स्त्रीओं में जन्मजात होता है.. शीला को पता न चले उस तरह चुपके से कविता वहाँ से निकल गई और वैशाली के साथ वापिस बातें करने में ऐसे मशरूफ़ हो गई जैसे कुछ हुआ ही न हो !! मौसम, फाल्गुनी और वैशाली मिलकर अंताक्षरी खेल रहे थे

मौसम बड़े ही सुरीले अंदाज में गाना गा रही थी "अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का.. यार ने ही लूट लिया घर यार का.. " बहोत अच्छा गा रही थी मौसम.. पर गाने के बोल सुनकर कविता के टूटे हुए दिल को ठेस पहुंची.. गुमसुम होकर वो मौसम का गाना सुनती रही पर उसका दिमाग फिर से पिंटू के खयालों में खो गया.. वह सोच रही थी की ऐसा क्या किया जाएँ की शीला भाभी और पिंटू को मिलने से रोका जा सके !!

अंताक्षरी में चल रहे गानों की वजह से वो ठीक से सोच नहीं पा रही थी.. "मैं अभी आई.. " कहते हुए वह बाहर निकल गई..

घर तो जाना नहीं था क्योंकि वहाँ शीला भाभी मौजूद थी.. चलते चलते वो गली के बाहर सब्जी की रेहड़ी पर धनिया मिर्च लेने के लिए रुक गई

कविता: "साथ में १० रुपये के नींबू भी दे देना भैया.. " प्लास्टिक की थैली अपने हाथ में लाइ हुए वह कोने में पड़ी बैठक पर बैठ गई

उसका दिमाग १०० की स्पीड पर भाग रहा था.. क्या करू? जाऊ की न जाऊ?? नहीं जाऊँगी तो बेचारी मौसम और फाल्गुनी का दिल टूट जाएगा.. एक बार तय किया है तो जाकर ही आते है.. शीला भाभी कोई बहाना करके छटक जाएगी और वैशाली को हमारे साथ भेज देगी.. अगर वैशाली आने से मना करेगी तो मेरा हरामखोर पति उसे कैसे भी मना लेगा.. साला पीयूष, वैशाली के बबलों का दीवाना है.. उसके बड़े बड़े जो है.. कैसी विडंबना है.. मेरा प्रेमी शीला भाभी के साथ मजे करेगा और उसकी बेटी मेरे पति के साथ गुलछर्रे उड़ाने साथ चलेगी.. अब क्या करू मैं? ये माँ और बेटी दोनों मिलकर मेरी सारी दुनिया ही उझाड़ देंगे.. नहीं नहीं.. मैं ऐसा हरगिज होने नहीं दे सकती..

तभी कविता के मोबाइल का मेसेज टोन बजा.. रेणुका का मेसेज था.. कोई नॉन-वेज जोक भेजा था उसने जिसे पढ़ने का अभी बिल्कुल मूड नहीं था कविता का.. पर रेणुका का नाम देखकर उसे विचार आया.. पिंटू भी पीयूष के साथ रेणुका के पति की कंपनी में ही जॉब करता था.. क्या रेणुका किसी तरह उसकी मदद कर सकती है इस बारे में? पर रेणुका से कहू कैसे? पिंटू और शीला भाभी की बात मैं उनसे कैसे कहू??

कविता ने रेणुका को सीधे फोन ही लगा दिया..

"हाई कविता.. कैसी है तू?" रेणुका ने बड़े प्यार से कहा

"मैं अभी तुम्हें ही याद कर रही थी रेणुका.. और तभी तेरा मेसेज आया.. ईसे संयोग ही कह सकते है"

"हाँ यार.. बता.. क्यों याद कर रही थी मुझे?"

कविता सोच में पड़ गई.. कैसे बात करू !!!

रेणुका: "इतने दिनों से कहाँ थी तू? घर पर सब कैसे है? उस दिन होटल में मिले उसके बाद तू कभी दिखी ही नहीं.. वैसे उस दिन तू बड़ी हॉट लग रही थी.. "

कविता: "थेंक्स फॉर ध कोंपलीमेन्ट.. हाहाहा.. " झूठी हंसी हँसते हुए उसने कहा और बात आगे बढ़ाई "घर पर सब ठीक है.. मम्मी जी भी तुम्हें याद करती रहती है.. वो कहती है की पूरी महिला मंडली में तुम सब से जवान हो.. वैसे उनके मण्डल में सब बूढ़ी औरतें ही है.. तुम उनके साथ कैसे जुड़ गई भला? इतनी जल्दी रीटायरमेन्ट ले लिया क्या राजेश भाई ने?"

रेणुका: "नहीं नहीं.. ऐसा कुछ नहीं है.. वो काम के सिलसिले में बाहर ज्यादा रहते है.. मैं घर पर अकेले बोर हो जाती थी.. टाइम पास करने के लिए ही तेरी सास और उनके महिला मण्डल के साथ जुड़ गई.. वैसे अब पीयूष के आ जाने से राजेश का बोझ थोड़ा कम हो गया है.. बहोत होशिया है पीयूष.. तुम खुशकिस्मत हो जो तुम्हें पीयूष जैसा लड़का मिला.. दोनों की जोड़ी भी बड़ी जचती है.. लैला मजनू की तरह.. आई हॉप की बेडरूम में भी तुम दोनों उतने ही मजे करते होंगे"

कविता: "हाँ रेणुका.. वैसे हमारी ज़िंदगी तो खुशहाल ही है.. पर तकलीफें तो आती ही रहती है.. कभी कभी मियां-बीवी के बीच जब को तीसरा आ जाएँ तब संबंधों में दरार आने का खतरा बना रहता है.. "

रेणुका: "हाँ वो तो है.. पर तुम दोनों के बीच तीसरा कौन आ गया??" घबराहट के सुर में रेणुका ने पूछा.. वह डर गई.. उस दिन उसने पीयूष से अपना स्तन चुसवाया था कहीं उसका पता तो नहीं लग गया कविता को ?? बाप रे !!!

कविता: "वही बात करने के लिए फोन किया था मैंने.. पर मोबाइल पर ऐसी बात करना ठीक नहीं रहेगा.. जब मिलेंगे तब बात करेंगे.. "

रेणुका: "तो तू अभी मेरे घर क्यों नहीं आ जाती? मैं घर पर अकेली ही हूँ"

कविता: "मैंने इसी लिए फोन किया क्योंकि मैं एक मुसीबत में फंस गई हूँ.. दोपहर के बाद आती हूँ तेरे घर"

रेणुका: "जरूर.. मैं कुछ नाश्ता बनाकर रखती हूँ.. और हाँ.. तुम आ ही रही हो तो शीला को भी साथ लेते आना"

कविता: "नहीं रेणुका.. फिलहाल तो मैं अकेली ही आने वाली हूँ"

रेणुका: "ठीक है.. मैं तेरा इंतज़ार करूंगी.. "

कविता: "ओके.. बाय रेणुका" कविता ने फोन काट दिया

कविता का फोन काटते ही राजेश का फोन आ गया रेणुका पर

राजेश: "रेणुका, मैं पीयूष को घर भेज रहा हूँ.. अलमारी से ५० हजार रुपये उसे दे देना.. जल्दी भेजना उसे.. मुझे अर्जेंट पेमेंट करना है.. पार्टी ऑफिस पर आकर बैठी है"

"ठीक है" कहते हुए रेणुका ने फोन रख दिया.. वो सोचने लगी.. पीयूष घर आ रहा है.. तब कहीं कविता भी पहुँच गई तो वो मेरे बारे में कुछ गलत ना सोच ले.. देखा जाएगा जो भी होगा वो.. आईने के सामने अपने खूबसूरत जिस्म और चेहरे पर हाथ सहलाते हुए उसने अपना मेकअप चेक किया.. कितना कसा हुआ जिस्म है मेरा.. स्तनों में अभी भी ढीलापन नहीं आया.. उस रात पीयूष को कमरे में निप्पल चुसवाई थी वो घटना याद आ गई उसे.. ऐसे अचानक मिले मौके कितना अनोखा आनंद दे जाते है !! और पीयूष भी पागलों की तरह मेरे मम्मे पर टूट पड़ा था.. निप्पल को चूस चूसकर लाल कर दिया था.. याद करते ही रेणुका गरम होने लगी..

तभी डोरबेल बजी.. दरवाजे पर आकर उसने की-होल से देखा.. पीयूष को देखते ही उसकी धड़कन थम गई.. वह उसे देखती ही रही.. पीयूष ने रुमाल से अपने चेहरे का पसीना पोंछा और फिर पेंट की ऊपर से ही अपने लंड को सेट किया.. दरवाजा न खुलने पर पीयूष ने फिर से बेल बजाई

अपना पल्लू ठीक करते हुए रेणुका ने दरवाजा खोला..

"आओ पीयूष.. " कातिल मुस्कान देते हुए उसने पीयूष का स्वागत किया.. मुड़कर चलते हुए अपने कूल्हों को उसने ऐसा मटकाया की देखकर ही पीयूष सरेन्डर हो गया.. जितना नशा रेणुका की मुस्कान में था उससे कई गुना ज्यादा नशा उसके मादक चूतड़ों में था.. जैसे व मटक मटक कर पीयूष को आमंत्रण दे रहे थे..

रेणुका: "मैं पानी लेकर आती हूँ" मुसकुराते हुए रेणुका किचन से पानी लेकर आई.. पानी का गिलास देते हुए दोनों के हाथ छु गए.. दोनों रोमांचित हो उठे..

रेणुका: "चाय लोगे या कॉफी?" सरक रहे पल्लू को ठीक करते हुए रेणुका ने पीयूष से पूछा

पीयूष: "आपको तो पता ही है भाभी.. मुझे चाय या कॉफी नहीं.. सिर्फ दूध ही पसंद है.. अगर ताज़ा दूध मिल जाता तो.. " रेणुका से आँखें लड़ाते हुए पीयूष ने कहा.. रेणुका ने शरमाकर अपनी आँखें झुका ली..

रेणुका: "राजेश तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है.. पार्टी पैसों के लिए बैठी हुई है"

पीयूष: "कोई पैसे लेने अभी नहीं आया है.. पार्टी तो शाम को ६ बजे पैसे लेने आने वाली है.. ये तो आपके जैसी खूबसूरत बीवी से मुझे दूर रखने के लिए सर ने ऐसा कहा होगा.. फिर भी अगर आप कहती हो तो मैं पैसे लेकर निकल जाता हूँ" मुंह फुलाकर पीयूष ने कहा

रेणुका सोचने लगी.. फिलहाल पीयूष और उसके अलावा घर पर कोई नहीं थी.. दोनों अकेले थे.. उस दिन पीयूष के घर इतना जोखिम होने के बावजूद उससे स्तन चुसवाया था.. तो अब यहाँ अकेले में क्या डरना?? मौका मिला है तो क्यों न फायदा उठाया जाए.. लंड के लिए तरस रही उसकी चूत ने रेणुका के दिमाग को झकझोर दिया था

"क्या सोच रही हो भाभी? जल्दी पैसे दीजिए.. तो मैं निकलूँ "

"क्यों? मेरे साथ बैठना अच्छा नहीं लगता क्या तुम्हें? "

"ऐसी बात नहीं है भाभी.. सच कहूँ तो आपको देखने के बाद मैं भी अपने आप को बड़ी मुश्किल से काबू में रख पा रहा हूँ.. उस दिन तो मैंने जिद करके आपका ब्लाउस खुलवाकर.................................... पता तो है आपको.. ऐसा कुछ फिर से न हो जाए इसलिए मैं चला जाना चाहता हूँ"

जब से रेणुका ने पीयूष को देखा था.. वो उसकी नज़रों में बस गया था.. उस दिन होटल की पार्टी में पीयूष को देखकर उसके पूरे जिस्म में सुरसुरी होने लगी थी.. जाने कितने विचार एक साथ आ रहे थे रेणुका के दिमाग में.. मौका तो बढ़िया है पर कविता कभी भी आती होती.. वो खतरा भी है.. लेकिन पीयूष चला गया तो ऐसा मौका दोबारा कब मिलेगा क्या पता !! राजेश तो अभी ऑफिस में है इसलिए उसके यहाँ आ जाने का कोई डर नहीं है.. कविता भी दोपहर के बाद ही आने वाली थी.. पीयूष भी गरम हो चुका है.. अंदर बेडरूम में मस्त नरम बिस्तर है.. नरम स्तनों जैसे तकिये है.. तो ऐसा मौका गंवाना नहीं चाहिए.. जब कुदरत ने सामने से ऐसा सेटिंग कर दिया है तब तू क्यों ज्यादा सोच रही है!! लोहा गरम है.. मरवा ले हथोड़ा !! देख देख.. पीयूष भी कैसी भूखी नज़रों से तेरे स्तनों को तांक रहा है..

पीयूष और रेणुका काफी देर तक एक दूसरे की तरफ देखते रहे.. पचास हजार का बंडल लेने आया पीयूष.. रेणुका के अनमोल खजाने जैसे स्तनों को देखकर होश खो चुका था.. तो दूसरी तरफ रेणुका की चूत भी हेंडसम पीयूष को देखकर पनियाने लगी थी.. दोनों चुपछाप खड़े थे.. वातावरण काफी भारी महसूस हो रहा था.. रेणुका की सांसें तेज चल रही थी और उसके बबले ऊपर नीचे हो रहे थे.. पीयूष के अंदर का मर्द तो कब का जाग चुका था.. पर उसे डर था.. मुश्किल से मिली इतनी अच्छी नौकरी गंवा देने का.. इसलिए वो भी संभलकर आगे बढ़ना चाहता था

रेणुका का दिल भी धडक रहा था.. वो सोच रही थी की अब जो होने वाला है वो ना हो तो अच्छा है.. और हो जाए तो ओर भी अच्छा है.. स्त्री हमेशा अपने इच्छाओं को बोलकर व्यक्त नहीं करती है.. वो सिर्फ अपनी आँखों के हावभाव से अपनी बात करती है..

पीयूष को रेणुका में रति के दर्शन हो रहे थे.. उसका लंड पेंट के अंदर एकदम सख्त हो चुका था.. एकांत हमेशा काम की भावनाओ को भड़का देता है.. और जब एक जवान पुरुष और स्त्री अकेले हो तब प्रकृति अपना प्रभाव जरूर दिखाती है..

रेणुका नीचे टाइल्स की तरफ देखते हुए सोफ़े पर बैठी हुई थी.. और सामने पीयूष, पचास हजार का बंडल हाथ में लिए हुए खड़ा था.. वो चाहता तो अभी चला जा सकता था.. लेकिन रेणुका के जिस्म ने उसे चुंबक की तरह पकड़ रखा था..

रेणुका अब नर्वस होकर अपने नाखून चबा रही थी.. वो चाहकर भी पीयूष की ओर देख नहीं पा रही थी.. स्त्री के चेहरे पर शर्म और उत्तेजना के मिश्रित भाव.. उसे अत्यंत सुंदर बना देते है.. उसी समय एक दूसरा भूकंप आया.. रेणुका का पल्लू सरककर नीचे गिर गया.. उफ्फ़.. राउंड नेक वाले ब्लाउस की दाईं कटोरी खुलकर सामने दिख रही थी.. पीयूष घबराहट के मारे दरवाजे की ओर चल दिया.. नॉब घुमाकर दरवाजा खोलने ही जा रहा था की तभी रेणुका ने दौड़कर उसका हाथ प अकड़ लिया..

बिखरे हुए बाल.. सरक चुके पल्लू के नीचे नजर आते उन्नत उरोज.. उत्तेजना से कांपता हुआ उसका शरीर.. ओह्ह.. !!! पीयूष धीरे से रेणुका के करीब गया.. "भाभी.. आपकी छातियाँ मुझे पागल बना रही है.. या तो आप मुझे जाने दो या फिर..........!!!"

रेणुका ने उसे आगे बोलने का मौका नहीं दिया.. वो पीयूष से लिपट पड़ी.. और उसका मदमस्त जोबन पीयूष की छाती से दबकर रह गया.. दबान इतना ज्यादा था की रेणुका की आँख से आँसू निकल गए.. रेणुका का चेहरा पकड़कर पीयूष ने उसकी सामने देखा.. रेणुका की पलके ऐसे झुकी थी जैसे उसने ढेर सारी शराब पी रखी हो.. उन पलकों पर पीयूष ने हल्के से एक किस किया.. रेणुका की खुली पीठ पर पीयूष का मर्दाना हाथ घूमने लगा.. उसका दूसरा हाथ रेणुका के पेटीकोट के अंदर घुस गया.. और उसके कूल्हों को सहलाने लगा.. रेणुका सिहर उठी
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घर के बाहर से रिक्शा में बैठकर कविता अकेली कहीं जाने को निकली ये शीला और वैशाली ने देखा.. शीला सोच में पड़ गई.. भरी दोपहर में ये कविता कहाँ गई होगी !!

इस तरफ रेणुका और पीयूष एक दूसरे के जिस्मों को सहला रहे थे.. रौंद रहे थे.. रेणुका ने पतलून के ऊपर से ही पीयूष के लंड की सख्ती को नाप लिया था.. बेहद कडक हो चुका था उसका लंड.. ऊपर से ही पकड़कर वो लंड को मुठ्ठी में लेकर मसलने लगी.. पीयूष भी आक्रामक होकर रेणुका को जगह जगह चूमे जा रहा था..

पेंट की चैन खोलकर रेणुका ने पीयूष का लंड बाहर निकाला.. रेणुका उस खड़े सिपाही जैसे लंड के लाल टोपे को देखती ही रह गई.. लंड की त्वचा को आगे पीछे करते हुए रेणुका ने कहा "ओह्ह पीयूष.. आज मसल दे मुझे.. रगड़ दे पूरी की पूरी.. !!"

sd
"ओहह भाभी..आपकी छातियाँ..इतनी जबरदस्त लग रही है..मन कर रहा है की दबा दबाकर फोड़ दूँ.. "

"आह्ह पीयूष.. "

"अब खोल भी दो भाभी.. बाहर निकालो इन्हे.. मुझे चूसने है.. आह्ह!!"

"ले पीयूष.. कर ले अपनी मनमानी.. काफी दिनों से दबे नहीं है इसलिए सख्त हो गए है.. आज मसल मसल कर ढीले कर दे इन्हे.. " अपना ब्लाउस खोलकर दोनों स्तनों को पीयूष के सामने पेश करते हुए रेणुका ने कहा

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"आह्ह भाभी.. कितने मस्त पपीते जैसे स्तन है आपके.. " कहते हुए पीयूष झुककर रेणुका के स्तनों को दबाते हुए निप्पल चूसने लगा

पीयूष के जवान लंड को सहलाते हुए रेणुका मन ही मन उसकी तुलना अपने पति राजेश के लंड के साथ करने लगी.. पीयूष ने निप्पल चूसते हुए रेणुका का ब्लाउस उतार फेंका.. और हाथ पीछे ले जाकर ब्रा के हुक भी खोल दिए.. रेणुका अब टॉपलेस हो गई.. हरे नारियल जैसे उसके बड़े बड़े स्तन मसलते हुए पीयूष कराह रहा था.. रेणुका ने भी पीयूष का पेंट उतरवा दिया.. अपना शर्ट उतारकर पीयूष रेणुका पर चढ़ गया..

उसके मर्दाना स्पर्श से सिहरते हुए रेणुका अपने खुले बदन का ऊपरी हिस्सा पीयूष की छाती के साथ रगड़ने लगी.. रेणुका के पेटीकोट का नाड़ा खोलने का प्रयास विफल रहने के बाद रेणुका ने खुद ही गांठ खोल दी.. अब वह सिर्फ पेन्टी पहने थी.. जबरदस्त हुस्न था रेणुका का.. दोनों एक दूसरे से लिपटकर चूमने चाटने लगे..

ऐसा नहीं था की रेणुका अपने पति से खुश नहीं थी.. पर जितनी मात्रा में वह संभोग करना चाहती थी उतना उसे मिल नहीं रहा था.. इस लिए आज शांत नदी अपने किनारे फांदकर पागलों की तरह बहने लगी..

पीयूष के लंड को सहलाते हुए रेणुका बोली "पीयूष.. जब से तुझे देखा था तब से इस पल की राह देख रही थी मैं.. मुझे आशा नहीं थी की इतनी जल्दी हमे ये मौका नसीब होगा.. "

"ओह भाभी.. आपका ये मदमस्त शरीर देखकर.. मैंने कई बार मूठ मारी है.. नौकरी खोने के डर से मैं आगे बढ़ नहीं रहा था.. भाभी.. प्लीज आप ये ध्यान रखना.. मेरी नौकरी को आंच नहीं आनी चाहिए.. "

"तू चिंता मत कर.. राजेश ऑफिस के काम से अक्सर बाहर जाता रहता है.. ऐसे में तू जब चाहे घर आ सकता है.. किसी को शक नहीं होगा.. और अगर तू ऐसे ही मुझे खुश करता रहा तो मैं राजेश को बोलकर तेरी तनख्वाह भी बढ़वा दूँगी.. राजेश की गैरमौजूदगी में तू मेरी आग बुझाते रहना.. बदले में तू जो मांगे मैं दूँगी तुझे.. कभी पैसों की जरूरत हो तो भी झिझकना मत.. !!"

पीयूष की छाती पर अपने स्तन रगड़ते हुए उसके जिस्म का सौदा कर लिया रेणुका ने.. फिर उसके लंड को चुंबनों से नहला दिया.. अद्भुत उत्तेजना से रेणुका पीयूष का लंड चूसने लगी.. ये देखकर पीयूष ने रेणुका की गीली हो चुकी चुत में दो उँगलियाँ डाल दी.. अपनी योनि में मर्द की उँगलियाँ जाते ही रेणुका कामातुर हो गई.. अपने चूतड़ उठाते हुए बोली "पीयूष.. मेरी भोस चाट दे यार.. अंदर जबरदस्त खुजली हो रही है.. रहा नहीं जाता.. " कहते हुए अनुभवी रंडी की तरह लंड चूसने लगी.. जिस प्रकार से वह अपने मुंह और जीभ का उपयोग कर लंड चूस रही थी.. उस पर से पीयूष को रेणुका की उत्तेजना का अंदाजा लग चुका था

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रेणुका के उरोजों पर पीयूष फ़ीदा था.. एक स्तन को पूरा पकड़ने के लिए पीयूष को अपनी दोनों हथेलियों का उपयोग करना पड़ता था.. एक हाथ से दबाए ही नहीं जाते थे.. दोनों हाथों से स्तनों को मसलते हुए निप्पल मुंह में लेकर वह पुच पुच की आवाज करते हुए चूसने लगा.. अपनी निप्पल पर पीयूष की जीभ का स्पर्श होते ही रेणुका जैसे आसमान में उड़ने लगी थी.. उसकी चुत से कामरस का झरना बहने लगा..

"अब चाट भी ले मेरी.. आह्ह प्लीज पीयूष.. " पीयूष का सर अपनी चुत के ओर ले जाते हुए रेणुका ने कहा.. रेणुका के स्तनों को अच्छे से चूसने और चाटने के बाद पीयूष ने नीचे के हिस्से की ओर ध्यान केंद्रित किया.. पहले रेणुका की नाभि के अंदर अपनी जीभ को डालकर उसने गहराई नापि.. रेणुका को गुदगुदी सी होने लगी..

"ऊईई माँ.. क्या कर रहा है पागल? गुदगुदी हो रही है मुझे.. वहाँ छोड़.. और जहां चाटना चाहिए वहाँ चाट न चूतिये.. !!"

रेणुका की संगेमरमरी जांघों पर जीभ फेरते हुए, लोकल ट्रेन की गति से धीरे धीरे वह चूत के मुख्य स्टेशन पर पहुंचा.. पर तब तक तो रेणुका की तड़प तड़प कर जान ही निकल गई.. जैसे ही पीयूष की जीभ का स्पर्श उसकी क्लिटोरिस पर हुआ.. रेणुका पूर्ण रूप से बेकाबू हो गई.. उसने पीयूष के अंडकोश को मुठ्ठी में जकड़ कर लंड पर हल्ला बोल दिया.. पीयूष भी चूत के इर्दगिर्द चाट कर रेणुका की कसौटी लेने लगा.. आखिर उसने अपने हाथों से चूत के होंठों को चौड़ा किया.. अंदर दिख रहे लाल गरम भाग को सूंघकर उसने अपना नाक उस हिस्से पर रगड़ दिया.. पीयूष की इन हरकतों से पागल होते हुए रेणुका अपनी गांड ऊपर उठाकर पीयूष के चेहरे पर अपनी भोस गोल गोल रगड़ने लगी.. बिना किसी भी जल्दी के.. पीयूष ने आखिर अपनी जीभ का रेणुका की चूत में गृहप्रवेश करवाया..

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चटकारे लेते हुए.. भरपूर लार का उपयोग कर पीयूष जिस तरह रेणुका की चूत को चाट रहा था.. उस सुखद अनुभूति का वर्णन करने के लिए रेणुका के पास शब्द नहीं थे.. दोनों हाथ नीचे की तरफ डालकर पीयूष ने रेणुका के दोनों कूल्हों को पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा.. अब तक तो पीयूष अपने चेहरे को आगे पीछे करते हुए चाट रहा था.. लेकिन अब उसने अपना चेहरा स्थिर ही रखा और रेणुका के चूतड़ों को आगे पीछे करते हुए रेणुका की रसीली चुत का रस पीना शुरू कर दिया

जिस तरह पीयूष चुत चाट रहा था वो देखकर ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा था की वो रेणुका के आनंद के लिए चाट रहा हो.. बल्कि वो जैसे निजानंद में चुत चाटते हुए किसी अलौकिक दुनिया में खो सा गया था.. लंड का काम अपनी जीभ से लेते हुए बड़ी मस्ती से पीयूष रेणुका की चुत के अंदरूनी हिस्सों को कुरेद कुरेद कर रसपान कर रहा था.. पीयूष को इतनी दिलचस्पी और उत्साह से चुत चाटते देख रेणुका अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ आनंद का मज़ा ले रही थी

"आह्ह पीयूष.. तू तो गजब है यार.. और जोर से चाट.. बहोत मज़ा आ रहा है.. हाय.. ओह पीयूष.. !!" रेणुका के मुख से उत्तेजना से भरे शब्द सरक गए और उसके साथ ही उसका पूरा जिस्म थरथराने लगा.. उस आखिरी पलों में उसने पीयूष के चेहरे को अपनी दोनों जांघों के बीच इतनी जोर से दबाया की पीयूष को सांस लेने में तकलीफ होने लगी.. चार से पाँच सेकंड तक उसने अपनी चुत का सारा रस पीयूष के मुँहे में छोड़ती रही.. उसके स्तन बेहद टाइट हो कर उभर गए थे.. पूरा शरीर कामसुख के ताप से तप रहा था.. अभी भी वो कांप रही थी.. जैसे बुखार चढ़ा हो..

पीयूष का लंड अब नब्बे डिग्री° का कोण बनाकर सख्त खड़ा हो गया था.. उसने रेणुका को सीधा लिटा दिया और उसकी जांघों को चौड़ी कर.. बीच में जगह बनाकर बैठ गया.. अपना लाल गरम सुपाड़ा.. रेणुका की चुत के होंठों के बीच रखकर जैसे ही उसने हल्का धक्का दिया.. उसका पूरा ६ इंच का लंड एक झटके में उस गीली रसदार चुत में अंदर धंस गया.. दोनों जिस्म अब एक हो गए.. समय भी जैसे थम सा गया.. रेणुका को अपनी चुत में जलन महसूस हो रही थी.. चुत को जोर से चाटते वक्त जहां जहां पीयूष के दांत घिसे थे.. उन्ही स्थानों पर अब लंड के घिसते ही उसे जलने लगा था.. पीड़ा के बावजूद रेणुका फिर से उत्तेजित हो रही थी.. आह्ह.. ऐसा दर्द सहे हुए भी कितने साल हो गए !! शादी के बाद सुहागरात को ऐसा मीठा मीठा दर्द हुआ था.. जीवन में फिरसे वैसा ही दर्द महसूस करने का मौका मिलेगा यह सोचा नहीं था रेणुका ने..

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रेणुका को शीला के घर हुआ समूह चोदन याद आ गया.. जहां उस दोनों गाँव के नौजवानों ने शीला, अनुमौसी और रेणुका को अपने विकराल लंडों से बराबर पेल दिया था.. जीवा और रघु के लंड की उस भीषण चुदाई को याद करते हुए वह पीयूष के लंड का अपनी बुर की दीवारों के साथ हो रहे घर्षण से मंत्रमुग्ध हो रही थी.. पीयूष के नंगे कूल्हों को हाथ से पकड़कर अपने जिस्म को इतनी जोर से भींच लिया की लंड का टोपा उसके बच्चेदानी पर जाकर टकराया..

दोनों जिस्म अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ आनंद का मज़ा लेने में इतने मशरूफ़ हो गई के कुछ पलों के लिए ये भी भूल गए की वह दोनों शादी शुदा थे और उनका अलग अलग साथी भी है..

रेणुका नीचे से उछल उछल कर पीयूष के लंड को अपनी गहराइयों में अंदर तक समाने लगी.. पीयूष भी पागलों की तरह रेणुका के चरबीदार जिस्म की सिलवटों को रौंदे जा रहा था.. काफी देर तक एक दूसरे के विविध अंगों को पूर्णता से सहलाने और मसलने के बाद.. पीयूष ने रेणुका की भोस में दमदार धक्के लगाते हुए उसे झकझोरते आखिरी चार पाँच धक्के इतने जोर से लगाए की अनुभवी रेणुका की आँखों से आँसू टपक गए.. और साथ ही पीयूष के लंड से वीर्य भी

पीड़ा और आनंद के मिश्रण के साथ रेणुका का किल्ला भी फतह हो गया.. पीयूष ने जब उसकी बुर से अपना लंड बाहर खींचा तब वह किसी अहंकारी योद्धा की अदा से उसके दोनों पैरों के बीच लटकने लगा.. अर्ध-जागृत अवस्था में वीर्य-स्त्राव के पश्चात लटक रहे लंड का एक अलग ही सौन्दर्य होता है.. रेणुका बिस्तर पर नंगी पड़ी हुई थी.. उसकी बुर से पीयूष के वीर्य की धार बहते हुए चादर को गीला कर रही थी.. हवस शांत हो जाने पर रेणुका की आँखें ढल गई थी.. उसकी छाती पर कुदरत के दिए हुए दो पहाड़.. भारी साँसों के चलते ऊपर नीचे हो रहे थे..

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"बाथरूम कहाँ है?" पीयूष ने पूछा.. रेणुका ने उंगली से इशारा करते हुए उसे बाथरूम की दिशा दिखाई.. लगभग पाँच मिनट के अंदर पीयूष पूर्ण कपड़े पहनकर तैयार होकर बाहर निकला.. ५० हजार का बंडल संभालकर जेब में रखते हुए उसने आईने में अपने आप को देखकर सब ठीक होने की तसल्ली कर ली.. ताकि राजेश सर को शक न हो जाए..

पीयूष को बेडरूम से जाता देख.. नंगी रेणुका खड़ी हुई और पीयूष को पीछे से लिपट गई.. "तुझे छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा पीयूष.. पता नहीं क्यों.. तेरे अंदर ऐसा क्या है जो मुझे तेरी तरफ खींचती ही जा रहा है.. तुझे आज मज़ा आया? मैं तुझे संतुष्ट तो कर सकी ना ?? अगली बार मैं इससे भी ज्यादा मज़ा दूँगी तुझे.. फिर कब मिलेगा मुझे? जब मैं बुलाऊ तब आ तो जाएगा न तू? " सुई की नोक जैसी तीखी निप्पल पीयूष की पीठ पर चुभ रही थी..

"ये तो मुझे भी नहीं पता भाभी.. की दोबारा कब मिलेंगे.. पर आप ध्यान रखना.. मेरी बीवी या राजेश सर को कुछ भी पता न चले.. वरना मेरी नौकरी भी जाएगी और पत्नी भी.. !!"

"और मेरा संसार भी ऊझड़ जाएगा उसका क्या?" रेणुका ने थोड़ी सी नाराजगी से कहा

"मेरे कहने का वो मतलब नहीं था भाभी.. आप तो सब कुछ समझती हो.. मुझे भी ये सब पसंद है.. पर डर भी लगता है.. बाकी आज जिस तरह आपने मुझे ओरल-सेक्स का मज़ा दिया ऐसे सुख के लिए मैं तरस रहा था.. मेरी पत्नी ने मुझे आज तक ऐसा मज़ा नहीं दिया मुझे.. मैं इतना ही बोल रहा हूँ की जो कुछ भी करो संभल कर करना भाभी.. "

"हम्म.. इसके लिए.. जैसा मैं कह रही हूँ वैसा करते रहना तो कोई तकलीफ या दिक्कत नहीं होगी कभी.. सुन.. तू कभी भी मुझे सामने से कॉल नहीं करेगा.. नेवर.. जब जरूरत होगी मैं सामने से कॉन्टेक्ट करूंगी तुझे.. और उससे पहले मैं व्हाट्सप्प पर फोरवार्डेड मेसेज भेजूँगी.. उस पर से तू समझ जाना की मैं तुझे कॉल करने वाली हूँ"

"ठीक है भाभी.. मैं वैसा ही करूंगा" पीयूष ने घूमकर रेणुका के दोनों बॉल एक बार फिर मसलकर उसे बाहों में भरकर लबज़ों को चूम लिया.. काफी देर तक चूमते रहने के बाद दोनों अलग हुए.. लेकिन उससे पहले रेणुका ने एक बार जोर से पीयूष के लंड को दबा दिया..


पीयूष ऑफिस पहुंचा.. राजेश को पैसे दिए.. राजेश ने उसे बिठाया और काफी देर तक चर्चा की.. पीयूष को तसल्ली हो गई की राजेश सर को जरा भी शक नहीं हुआ था.. उसकी घबराहट चली गई.. काफी देर गुफ्तगू के बाद राजेश सर ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया

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रेणुका: "मैं पानी लेकर आती हूँ" मुसकुराते हुए रेणुका किचन से पानी लेकर आई.. पानी का गिलास देते हुए दोनों के हाथ छु गए.. दोनों रोमांचित हो उठे..
इसने तो पीयूष की प्यास और बढ़ा दी
 

Rajizexy

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दोपहर को कविता, मौसम और फाल्गुनी वैशाली से मिलने आए.. लड़कियों को आराम से बात कर सके इसलिए शीला वहाँ से निकल गई.. वह चाहती थी की तीनों हंसी खुशी बातें करे और वैशाली का मन कुछ हल्का हो जाए.. शीला को कविता पर पूरा भरोसा था की वो किसी भी तरह वैशाली को संजय के विचारों से मुक्त करेगी.. वैशाली भी मौसम और फाल्गुनी से मिलकर खुश हो गई.. जवान लड़कियों के पास बातें करने के हजार टोपिक होते है.. उनकी बातें कभी खतम ही नहीं होती.. पढ़ाई की.. कॉलेज की.. बॉयफ्रेंड की.. उन्हे लाइन मारते लड़कों की.. नॉन-वेज जोक्स और उससे उत्पन्न होते हंसी ठहाकों से पूरा घर भर गया..

फाल्गुनी थोड़ा कम बोलती थी.. उसके चेहरे के गंभीर भाव से वो बेहद सुंदर लगती थी.. पर अनुभवी आँखें उसे देखकर ये जरूर भांप लेगी की उसकी गंभीरता के पीछे गहरी उदासी छुपी हुई थी.. पर बाकी लड़कियां ये देख पाने में असमर्थ थी इसलिए कभी उसे इस बारे में पूछा नहीं था.. सब हंसी-मज़ाक कर रहे थे.. तब फाल्गुनी सिर्फ औपचारिकता से हंस रही थी..

इस तरफ शीला अनुमौसी के घर पहुँच गई.. घूम फिरकर उनकी बात वैशाली की समस्या पर आकर अटक गई थी.. अनुमौसी अपने अनुभव के अनुसार सलाह दे रही थी

शीला के घर तीनों लड़कियां बातें कर रही थी.. तभी टेबल पर रखा हुआ शीला का मोबाइल बजा.. शीला अपना फोन साथ ले जाना भूल गई थी.. वैशाली ने फोन उठाया

वैशाली: "हैलो.. "

"हैलो भाभी.. आप तो मुझे भूल ही गए.. मुझे भी कभी याद कर लीया कीजिए.. " सामने से किसी लड़के की आवाज थी.. वैशाली को पता नहीं चला की कौन बोल रहा था

"अरे भाभी.. पहचाना नहीं? मैं पिंटू.. मिले हुए बहुत वक्त हो गया इसलियी शायद भूल गई.. "

"जी मैं शीलाजी की बेटी बोल रही हूँ.. आप रुकिए मैं उन्हे फोन देती हूँ" वैशाली उठकर अनुमौसी के घर गई और फोन देकर वापस लौटी

कविता: "तेरे पापा का फोन था क्या? कब आ रहे है वो?"

वैशाली: "पापा का नहीं था.. किसी पिंटू नाम के आदमी का था.. होगा कोई मम्मी की पहचान वाला" वैशाली के मन में विचार चलने लगे.. कितना भी चाह कर वो अपनी मम्मी के बारे में बुरे खयाल नहीं सोच सकती थी.. और शीला ने भी अपने चारित्र का पूरा ध्यान रखा था अब तक.. ये तो मदन के जाने के बाद उसकी चूत ने उसे फिसलने पर मजबूर कर दिया था.. शरीर की भूख सब को सताती है.. कुछ लोग इसलिए शरीफ रह पाते है क्योंकि उन्हे योग्य मौका नहीं मिलता.. शीला वैसे तो व्यभिचारी नहीं थी.. उसका पति उसे अलग अलग आसनों में चोदकर बेहद खुश रखता था.. शीला को अलग अलग तरीकों से चुदवाने में बेहद आनंद आता था और मदन उसे चौड़ी कर ठोंकने में कोई कसर नहीं छोड़ता था.. मदन के जाने के बाद संभोग के सुख को शीला इतना मिस कर रही थी की जैसे ही रसिक से संपर्क हुआ, उसका सब्र का बांध टूट गया.. हवस के झलझले ने उसके चारित्र को तबाह कर दिया

पिंटू का नाम सुनकर कविता के होश उड़ गई.. पिंटू और शीला भाभी?? उसे भला क्या जरूरत आन पड़ी भाभी की ? मैं और पिंटू जब भाभी के घर मिले थे तब कहीं मेरे जाने के बाद..........!!! नहीं नहीं.. शीला भाभी ऐसा क्यों करेगी? मेरे प्रेमी को पटाने जैसा हलकट काम शीला भाभी नहीं कर सकती.. और उन्होंने तो पहले से रसिक को जुगाड़ रखा है.. रोज सुबह उसका लोडा भी चूसती है.. फिर वो पिंटू पर नजर क्यों डालेगी भला!!! लेकिन प्रेमियों में असुरक्षितता का भाव होना काफी स्वाभाविक है.. आप जितना किसीको चाहते हो उतना ही उसे खोने का डर लगा रहता है..

कविता से रहा नहीं गया.. वह उठकर बोली "अरे मैं भी अपना मोबाइल घर भूल आई हूँ.. पीयूष का फोन आने वाला है.. उठाऊँगी नहीं तो गुस्सा करेगा.. " वैसे मोबाइल तो उसकी ब्रा के अंदर सुरक्षित था फिर भी वो बहाना बनाकर निकल गई.. वह तुरंत अपने घर नहीं गई.. वह सोच रही थी "अगर पिंटू का फोन होगा तो शीला भाभी मम्मीजी के सामने बात नहीं करेगी.. बरामदे में भी नहीं खड़ी होगी क्योंकि वैशाली की नजर पड़ने का खतरा था.. पक्का वो घर के पीछे की तरफ गई होगी.. " कविता चुपके से घर के पिछवाड़े की तरफ गई.. उसका अंदाजा बिल्कुल सही था.. पीछे मुड़कर शीला फोन पर बात कर रही थी.. शीला की पीठ की तरफ खड़ी कविता उसे नजर नहीं आ रही थी

शीला और पिंटू के बीच फोन पर हो रही बातें सुनकर कविता के पैरों तले से धरती खिसक गई.. उसे विश्वास नहीं हो रहा था की पिंटू और शीला भाभी उसके साथ इतना बड़े धोखा करेंगे.. उनकी बातें सुनकर कविता की सांसें थम गई..

शीला: "अरे तू पागल मत बन.. थोड़ा धीरज धर.. पीयूष अपनी साली और कविता को लेकर ४ दिन के लीये घूमने जा रहा है.. मैं कोई भी बहाना करके घर पर ही रहूँगी.. सब बाहर होंगे तब हम आराम से मजे करेंगे.. मेरी बेटी घर आई हुई है इसलिए मेरे भी सब कुछ बंद है.. मुझसे भी रहा नहीं जाता.. बस एक दिन की ही बात है"

उदास कविता की आँखों से आँसू बहने लगे.. प्रेम के नाम पर इतना बड़ा धोखा दिया पिंटू ने ?? एक ही पल में उसे अपना प्यार का महल ध्वस्त होता नजर आया.. कविता को बहोत गुस्सा आ रहा था.. हम लोग वैशाली को लेकर घूमने जाए.. और हमारे पीछे शीला भाभी मेरे ही प्रेमी के साथ रंगरेलियाँ मनाने का प्लान बनाकर बैठी है.. पर मैं भी उनका प्लान सफल नहीं होने दूँगी.. कुछ भी हो जाए.. ऐसा जुगाड़ लगाऊँगी की इन दोनों का मिलना मुमकिन ही न हो

कितनी भी बड़ी विपदा क्यों न हो.. अपने आप को संभाल लेने का कौशल सारी स्त्रीओं में जन्मजात होता है.. शीला को पता न चले उस तरह चुपके से कविता वहाँ से निकल गई और वैशाली के साथ वापिस बातें करने में ऐसे मशरूफ़ हो गई जैसे कुछ हुआ ही न हो !! मौसम, फाल्गुनी और वैशाली मिलकर अंताक्षरी खेल रहे थे

मौसम बड़े ही सुरीले अंदाज में गाना गा रही थी "अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का.. यार ने ही लूट लिया घर यार का.. " बहोत अच्छा गा रही थी मौसम.. पर गाने के बोल सुनकर कविता के टूटे हुए दिल को ठेस पहुंची.. गुमसुम होकर वो मौसम का गाना सुनती रही पर उसका दिमाग फिर से पिंटू के खयालों में खो गया.. वह सोच रही थी की ऐसा क्या किया जाएँ की शीला भाभी और पिंटू को मिलने से रोका जा सके !!

अंताक्षरी में चल रहे गानों की वजह से वो ठीक से सोच नहीं पा रही थी.. "मैं अभी आई.. " कहते हुए वह बाहर निकल गई..

घर तो जाना नहीं था क्योंकि वहाँ शीला भाभी मौजूद थी.. चलते चलते वो गली के बाहर सब्जी की रेहड़ी पर धनिया मिर्च लेने के लिए रुक गई

कविता: "साथ में १० रुपये के नींबू भी दे देना भैया.. " प्लास्टिक की थैली अपने हाथ में लाइ हुए वह कोने में पड़ी बैठक पर बैठ गई

उसका दिमाग १०० की स्पीड पर भाग रहा था.. क्या करू? जाऊ की न जाऊ?? नहीं जाऊँगी तो बेचारी मौसम और फाल्गुनी का दिल टूट जाएगा.. एक बार तय किया है तो जाकर ही आते है.. शीला भाभी कोई बहाना करके छटक जाएगी और वैशाली को हमारे साथ भेज देगी.. अगर वैशाली आने से मना करेगी तो मेरा हरामखोर पति उसे कैसे भी मना लेगा.. साला पीयूष, वैशाली के बबलों का दीवाना है.. उसके बड़े बड़े जो है.. कैसी विडंबना है.. मेरा प्रेमी शीला भाभी के साथ मजे करेगा और उसकी बेटी मेरे पति के साथ गुलछर्रे उड़ाने साथ चलेगी.. अब क्या करू मैं? ये माँ और बेटी दोनों मिलकर मेरी सारी दुनिया ही उझाड़ देंगे.. नहीं नहीं.. मैं ऐसा हरगिज होने नहीं दे सकती..

तभी कविता के मोबाइल का मेसेज टोन बजा.. रेणुका का मेसेज था.. कोई नॉन-वेज जोक भेजा था उसने जिसे पढ़ने का अभी बिल्कुल मूड नहीं था कविता का.. पर रेणुका का नाम देखकर उसे विचार आया.. पिंटू भी पीयूष के साथ रेणुका के पति की कंपनी में ही जॉब करता था.. क्या रेणुका किसी तरह उसकी मदद कर सकती है इस बारे में? पर रेणुका से कहू कैसे? पिंटू और शीला भाभी की बात मैं उनसे कैसे कहू??

कविता ने रेणुका को सीधे फोन ही लगा दिया..

"हाई कविता.. कैसी है तू?" रेणुका ने बड़े प्यार से कहा

"मैं अभी तुम्हें ही याद कर रही थी रेणुका.. और तभी तेरा मेसेज आया.. ईसे संयोग ही कह सकते है"

"हाँ यार.. बता.. क्यों याद कर रही थी मुझे?"

कविता सोच में पड़ गई.. कैसे बात करू !!!

रेणुका: "इतने दिनों से कहाँ थी तू? घर पर सब कैसे है? उस दिन होटल में मिले उसके बाद तू कभी दिखी ही नहीं.. वैसे उस दिन तू बड़ी हॉट लग रही थी.. "

कविता: "थेंक्स फॉर ध कोंपलीमेन्ट.. हाहाहा.. " झूठी हंसी हँसते हुए उसने कहा और बात आगे बढ़ाई "घर पर सब ठीक है.. मम्मी जी भी तुम्हें याद करती रहती है.. वो कहती है की पूरी महिला मंडली में तुम सब से जवान हो.. वैसे उनके मण्डल में सब बूढ़ी औरतें ही है.. तुम उनके साथ कैसे जुड़ गई भला? इतनी जल्दी रीटायरमेन्ट ले लिया क्या राजेश भाई ने?"

रेणुका: "नहीं नहीं.. ऐसा कुछ नहीं है.. वो काम के सिलसिले में बाहर ज्यादा रहते है.. मैं घर पर अकेले बोर हो जाती थी.. टाइम पास करने के लिए ही तेरी सास और उनके महिला मण्डल के साथ जुड़ गई.. वैसे अब पीयूष के आ जाने से राजेश का बोझ थोड़ा कम हो गया है.. बहोत होशिया है पीयूष.. तुम खुशकिस्मत हो जो तुम्हें पीयूष जैसा लड़का मिला.. दोनों की जोड़ी भी बड़ी जचती है.. लैला मजनू की तरह.. आई हॉप की बेडरूम में भी तुम दोनों उतने ही मजे करते होंगे"

कविता: "हाँ रेणुका.. वैसे हमारी ज़िंदगी तो खुशहाल ही है.. पर तकलीफें तो आती ही रहती है.. कभी कभी मियां-बीवी के बीच जब को तीसरा आ जाएँ तब संबंधों में दरार आने का खतरा बना रहता है.. "

रेणुका: "हाँ वो तो है.. पर तुम दोनों के बीच तीसरा कौन आ गया??" घबराहट के सुर में रेणुका ने पूछा.. वह डर गई.. उस दिन उसने पीयूष से अपना स्तन चुसवाया था कहीं उसका पता तो नहीं लग गया कविता को ?? बाप रे !!!

कविता: "वही बात करने के लिए फोन किया था मैंने.. पर मोबाइल पर ऐसी बात करना ठीक नहीं रहेगा.. जब मिलेंगे तब बात करेंगे.. "

रेणुका: "तो तू अभी मेरे घर क्यों नहीं आ जाती? मैं घर पर अकेली ही हूँ"

कविता: "मैंने इसी लिए फोन किया क्योंकि मैं एक मुसीबत में फंस गई हूँ.. दोपहर के बाद आती हूँ तेरे घर"

रेणुका: "जरूर.. मैं कुछ नाश्ता बनाकर रखती हूँ.. और हाँ.. तुम आ ही रही हो तो शीला को भी साथ लेते आना"

कविता: "नहीं रेणुका.. फिलहाल तो मैं अकेली ही आने वाली हूँ"

रेणुका: "ठीक है.. मैं तेरा इंतज़ार करूंगी.. "

कविता: "ओके.. बाय रेणुका" कविता ने फोन काट दिया

कविता का फोन काटते ही राजेश का फोन आ गया रेणुका पर

राजेश: "रेणुका, मैं पीयूष को घर भेज रहा हूँ.. अलमारी से ५० हजार रुपये उसे दे देना.. जल्दी भेजना उसे.. मुझे अर्जेंट पेमेंट करना है.. पार्टी ऑफिस पर आकर बैठी है"

"ठीक है" कहते हुए रेणुका ने फोन रख दिया.. वो सोचने लगी.. पीयूष घर आ रहा है.. तब कहीं कविता भी पहुँच गई तो वो मेरे बारे में कुछ गलत ना सोच ले.. देखा जाएगा जो भी होगा वो.. आईने के सामने अपने खूबसूरत जिस्म और चेहरे पर हाथ सहलाते हुए उसने अपना मेकअप चेक किया.. कितना कसा हुआ जिस्म है मेरा.. स्तनों में अभी भी ढीलापन नहीं आया.. उस रात पीयूष को कमरे में निप्पल चुसवाई थी वो घटना याद आ गई उसे.. ऐसे अचानक मिले मौके कितना अनोखा आनंद दे जाते है !! और पीयूष भी पागलों की तरह मेरे मम्मे पर टूट पड़ा था.. निप्पल को चूस चूसकर लाल कर दिया था.. याद करते ही रेणुका गरम होने लगी..

तभी डोरबेल बजी.. दरवाजे पर आकर उसने की-होल से देखा.. पीयूष को देखते ही उसकी धड़कन थम गई.. वह उसे देखती ही रही.. पीयूष ने रुमाल से अपने चेहरे का पसीना पोंछा और फिर पेंट की ऊपर से ही अपने लंड को सेट किया.. दरवाजा न खुलने पर पीयूष ने फिर से बेल बजाई

अपना पल्लू ठीक करते हुए रेणुका ने दरवाजा खोला..

"आओ पीयूष.. " कातिल मुस्कान देते हुए उसने पीयूष का स्वागत किया.. मुड़कर चलते हुए अपने कूल्हों को उसने ऐसा मटकाया की देखकर ही पीयूष सरेन्डर हो गया.. जितना नशा रेणुका की मुस्कान में था उससे कई गुना ज्यादा नशा उसके मादक चूतड़ों में था.. जैसे व मटक मटक कर पीयूष को आमंत्रण दे रहे थे..

रेणुका: "मैं पानी लेकर आती हूँ" मुसकुराते हुए रेणुका किचन से पानी लेकर आई.. पानी का गिलास देते हुए दोनों के हाथ छु गए.. दोनों रोमांचित हो उठे..

रेणुका: "चाय लोगे या कॉफी?" सरक रहे पल्लू को ठीक करते हुए रेणुका ने पीयूष से पूछा

पीयूष: "आपको तो पता ही है भाभी.. मुझे चाय या कॉफी नहीं.. सिर्फ दूध ही पसंद है.. अगर ताज़ा दूध मिल जाता तो.. " रेणुका से आँखें लड़ाते हुए पीयूष ने कहा.. रेणुका ने शरमाकर अपनी आँखें झुका ली..

रेणुका: "राजेश तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है.. पार्टी पैसों के लिए बैठी हुई है"

पीयूष: "कोई पैसे लेने अभी नहीं आया है.. पार्टी तो शाम को ६ बजे पैसे लेने आने वाली है.. ये तो आपके जैसी खूबसूरत बीवी से मुझे दूर रखने के लिए सर ने ऐसा कहा होगा.. फिर भी अगर आप कहती हो तो मैं पैसे लेकर निकल जाता हूँ" मुंह फुलाकर पीयूष ने कहा

रेणुका सोचने लगी.. फिलहाल पीयूष और उसके अलावा घर पर कोई नहीं थी.. दोनों अकेले थे.. उस दिन पीयूष के घर इतना जोखिम होने के बावजूद उससे स्तन चुसवाया था.. तो अब यहाँ अकेले में क्या डरना?? मौका मिला है तो क्यों न फायदा उठाया जाए.. लंड के लिए तरस रही उसकी चूत ने रेणुका के दिमाग को झकझोर दिया था

"क्या सोच रही हो भाभी? जल्दी पैसे दीजिए.. तो मैं निकलूँ "

"क्यों? मेरे साथ बैठना अच्छा नहीं लगता क्या तुम्हें? "

"ऐसी बात नहीं है भाभी.. सच कहूँ तो आपको देखने के बाद मैं भी अपने आप को बड़ी मुश्किल से काबू में रख पा रहा हूँ.. उस दिन तो मैंने जिद करके आपका ब्लाउस खुलवाकर.................................... पता तो है आपको.. ऐसा कुछ फिर से न हो जाए इसलिए मैं चला जाना चाहता हूँ"

जब से रेणुका ने पीयूष को देखा था.. वो उसकी नज़रों में बस गया था.. उस दिन होटल की पार्टी में पीयूष को देखकर उसके पूरे जिस्म में सुरसुरी होने लगी थी.. जाने कितने विचार एक साथ आ रहे थे रेणुका के दिमाग में.. मौका तो बढ़िया है पर कविता कभी भी आती होती.. वो खतरा भी है.. लेकिन पीयूष चला गया तो ऐसा मौका दोबारा कब मिलेगा क्या पता !! राजेश तो अभी ऑफिस में है इसलिए उसके यहाँ आ जाने का कोई डर नहीं है.. कविता भी दोपहर के बाद ही आने वाली थी.. पीयूष भी गरम हो चुका है.. अंदर बेडरूम में मस्त नरम बिस्तर है.. नरम स्तनों जैसे तकिये है.. तो ऐसा मौका गंवाना नहीं चाहिए.. जब कुदरत ने सामने से ऐसा सेटिंग कर दिया है तब तू क्यों ज्यादा सोच रही है!! लोहा गरम है.. मरवा ले हथोड़ा !! देख देख.. पीयूष भी कैसी भूखी नज़रों से तेरे स्तनों को तांक रहा है..

पीयूष और रेणुका काफी देर तक एक दूसरे की तरफ देखते रहे.. पचास हजार का बंडल लेने आया पीयूष.. रेणुका के अनमोल खजाने जैसे स्तनों को देखकर होश खो चुका था.. तो दूसरी तरफ रेणुका की चूत भी हेंडसम पीयूष को देखकर पनियाने लगी थी.. दोनों चुपछाप खड़े थे.. वातावरण काफी भारी महसूस हो रहा था.. रेणुका की सांसें तेज चल रही थी और उसके बबले ऊपर नीचे हो रहे थे.. पीयूष के अंदर का मर्द तो कब का जाग चुका था.. पर उसे डर था.. मुश्किल से मिली इतनी अच्छी नौकरी गंवा देने का.. इसलिए वो भी संभलकर आगे बढ़ना चाहता था

रेणुका का दिल भी धडक रहा था.. वो सोच रही थी की अब जो होने वाला है वो ना हो तो अच्छा है.. और हो जाए तो ओर भी अच्छा है.. स्त्री हमेशा अपने इच्छाओं को बोलकर व्यक्त नहीं करती है.. वो सिर्फ अपनी आँखों के हावभाव से अपनी बात करती है..

पीयूष को रेणुका में रति के दर्शन हो रहे थे.. उसका लंड पेंट के अंदर एकदम सख्त हो चुका था.. एकांत हमेशा काम की भावनाओ को भड़का देता है.. और जब एक जवान पुरुष और स्त्री अकेले हो तब प्रकृति अपना प्रभाव जरूर दिखाती है..

रेणुका नीचे टाइल्स की तरफ देखते हुए सोफ़े पर बैठी हुई थी.. और सामने पीयूष, पचास हजार का बंडल हाथ में लिए हुए खड़ा था.. वो चाहता तो अभी चला जा सकता था.. लेकिन रेणुका के जिस्म ने उसे चुंबक की तरह पकड़ रखा था..

रेणुका अब नर्वस होकर अपने नाखून चबा रही थी.. वो चाहकर भी पीयूष की ओर देख नहीं पा रही थी.. स्त्री के चेहरे पर शर्म और उत्तेजना के मिश्रित भाव.. उसे अत्यंत सुंदर बना देते है.. उसी समय एक दूसरा भूकंप आया.. रेणुका का पल्लू सरककर नीचे गिर गया.. उफ्फ़.. राउंड नेक वाले ब्लाउस की दाईं कटोरी खुलकर सामने दिख रही थी.. पीयूष घबराहट के मारे दरवाजे की ओर चल दिया.. नॉब घुमाकर दरवाजा खोलने ही जा रहा था की तभी रेणुका ने दौड़कर उसका हाथ प अकड़ लिया..

बिखरे हुए बाल.. सरक चुके पल्लू के नीचे नजर आते उन्नत उरोज.. उत्तेजना से कांपता हुआ उसका शरीर.. ओह्ह.. !!! पीयूष धीरे से रेणुका के करीब गया.. "भाभी.. आपकी छातियाँ मुझे पागल बना रही है.. या तो आप मुझे जाने दो या फिर..........!!!"

रेणुका ने उसे आगे बोलने का मौका नहीं दिया.. वो पीयूष से लिपट पड़ी.. और उसका मदमस्त जोबन पीयूष की छाती से दबकर रह गया.. दबान इतना ज्यादा था की रेणुका की आँख से आँसू निकल गए.. रेणुका का चेहरा पकड़कर पीयूष ने उसकी सामने देखा.. रेणुका की पलके ऐसे झुकी थी जैसे उसने ढेर सारी शराब पी रखी हो.. उन पलकों पर पीयूष ने हल्के से एक किस किया.. रेणुका की खुली पीठ पर पीयूष का मर्दाना हाथ घूमने लगा.. उसका दूसरा हाथ रेणुका के पेटीकोट के अंदर घुस गया.. और उसके कूल्हों को सहलाने लगा.. रेणुका सिहर उठी
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घर के बाहर से रिक्शा में बैठकर कविता अकेली कहीं जाने को निकली ये शीला और वैशाली ने देखा.. शीला सोच में पड़ गई.. भरी दोपहर में ये कविता कहाँ गई होगी !!

इस तरफ रेणुका और पीयूष एक दूसरे के जिस्मों को सहला रहे थे.. रौंद रहे थे.. रेणुका ने पतलून के ऊपर से ही पीयूष के लंड की सख्ती को नाप लिया था.. बेहद कडक हो चुका था उसका लंड.. ऊपर से ही पकड़कर वो लंड को मुठ्ठी में लेकर मसलने लगी.. पीयूष भी आक्रामक होकर रेणुका को जगह जगह चूमे जा रहा था..

पेंट की चैन खोलकर रेणुका ने पीयूष का लंड बाहर निकाला.. रेणुका उस खड़े सिपाही जैसे लंड के लाल टोपे को देखती ही रह गई.. लंड की त्वचा को आगे पीछे करते हुए रेणुका ने कहा "ओह्ह पीयूष.. आज मसल दे मुझे.. रगड़ दे पूरी की पूरी.. !!"

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"ओहह भाभी..आपकी छातियाँ..इतनी जबरदस्त लग रही है..मन कर रहा है की दबा दबाकर फोड़ दूँ.. "

"आह्ह पीयूष.. "

"अब खोल भी दो भाभी.. बाहर निकालो इन्हे.. मुझे चूसने है.. आह्ह!!"

"ले पीयूष.. कर ले अपनी मनमानी.. काफी दिनों से दबे नहीं है इसलिए सख्त हो गए है.. आज मसल मसल कर ढीले कर दे इन्हे.. " अपना ब्लाउस खोलकर दोनों स्तनों को पीयूष के सामने पेश करते हुए रेणुका ने कहा

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"आह्ह भाभी.. कितने मस्त पपीते जैसे स्तन है आपके.. " कहते हुए पीयूष झुककर रेणुका के स्तनों को दबाते हुए निप्पल चूसने लगा

पीयूष के जवान लंड को सहलाते हुए रेणुका मन ही मन उसकी तुलना अपने पति राजेश के लंड के साथ करने लगी.. पीयूष ने निप्पल चूसते हुए रेणुका का ब्लाउस उतार फेंका.. और हाथ पीछे ले जाकर ब्रा के हुक भी खोल दिए.. रेणुका अब टॉपलेस हो गई.. हरे नारियल जैसे उसके बड़े बड़े स्तन मसलते हुए पीयूष कराह रहा था.. रेणुका ने भी पीयूष का पेंट उतरवा दिया.. अपना शर्ट उतारकर पीयूष रेणुका पर चढ़ गया..

उसके मर्दाना स्पर्श से सिहरते हुए रेणुका अपने खुले बदन का ऊपरी हिस्सा पीयूष की छाती के साथ रगड़ने लगी.. रेणुका के पेटीकोट का नाड़ा खोलने का प्रयास विफल रहने के बाद रेणुका ने खुद ही गांठ खोल दी.. अब वह सिर्फ पेन्टी पहने थी.. जबरदस्त हुस्न था रेणुका का.. दोनों एक दूसरे से लिपटकर चूमने चाटने लगे..

ऐसा नहीं था की रेणुका अपने पति से खुश नहीं थी.. पर जितनी मात्रा में वह संभोग करना चाहती थी उतना उसे मिल नहीं रहा था.. इस लिए आज शांत नदी अपने किनारे फांदकर पागलों की तरह बहने लगी..

पीयूष के लंड को सहलाते हुए रेणुका बोली "पीयूष.. जब से तुझे देखा था तब से इस पल की राह देख रही थी मैं.. मुझे आशा नहीं थी की इतनी जल्दी हमे ये मौका नसीब होगा.. "

"ओह भाभी.. आपका ये मदमस्त शरीर देखकर.. मैंने कई बार मूठ मारी है.. नौकरी खोने के डर से मैं आगे बढ़ नहीं रहा था.. भाभी.. प्लीज आप ये ध्यान रखना.. मेरी नौकरी को आंच नहीं आनी चाहिए.. "

"तू चिंता मत कर.. राजेश ऑफिस के काम से अक्सर बाहर जाता रहता है.. ऐसे में तू जब चाहे घर आ सकता है.. किसी को शक नहीं होगा.. और अगर तू ऐसे ही मुझे खुश करता रहा तो मैं राजेश को बोलकर तेरी तनख्वाह भी बढ़वा दूँगी.. राजेश की गैरमौजूदगी में तू मेरी आग बुझाते रहना.. बदले में तू जो मांगे मैं दूँगी तुझे.. कभी पैसों की जरूरत हो तो भी झिझकना मत.. !!"

पीयूष की छाती पर अपने स्तन रगड़ते हुए उसके जिस्म का सौदा कर लिया रेणुका ने.. फिर उसके लंड को चुंबनों से नहला दिया.. अद्भुत उत्तेजना से रेणुका पीयूष का लंड चूसने लगी.. ये देखकर पीयूष ने रेणुका की गीली हो चुकी चुत में दो उँगलियाँ डाल दी.. अपनी योनि में मर्द की उँगलियाँ जाते ही रेणुका कामातुर हो गई.. अपने चूतड़ उठाते हुए बोली "पीयूष.. मेरी भोस चाट दे यार.. अंदर जबरदस्त खुजली हो रही है.. रहा नहीं जाता.. " कहते हुए अनुभवी रंडी की तरह लंड चूसने लगी.. जिस प्रकार से वह अपने मुंह और जीभ का उपयोग कर लंड चूस रही थी.. उस पर से पीयूष को रेणुका की उत्तेजना का अंदाजा लग चुका था

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रेणुका के उरोजों पर पीयूष फ़ीदा था.. एक स्तन को पूरा पकड़ने के लिए पीयूष को अपनी दोनों हथेलियों का उपयोग करना पड़ता था.. एक हाथ से दबाए ही नहीं जाते थे.. दोनों हाथों से स्तनों को मसलते हुए निप्पल मुंह में लेकर वह पुच पुच की आवाज करते हुए चूसने लगा.. अपनी निप्पल पर पीयूष की जीभ का स्पर्श होते ही रेणुका जैसे आसमान में उड़ने लगी थी.. उसकी चुत से कामरस का झरना बहने लगा..

"अब चाट भी ले मेरी.. आह्ह प्लीज पीयूष.. " पीयूष का सर अपनी चुत के ओर ले जाते हुए रेणुका ने कहा.. रेणुका के स्तनों को अच्छे से चूसने और चाटने के बाद पीयूष ने नीचे के हिस्से की ओर ध्यान केंद्रित किया.. पहले रेणुका की नाभि के अंदर अपनी जीभ को डालकर उसने गहराई नापि.. रेणुका को गुदगुदी सी होने लगी..

"ऊईई माँ.. क्या कर रहा है पागल? गुदगुदी हो रही है मुझे.. वहाँ छोड़.. और जहां चाटना चाहिए वहाँ चाट न चूतिये.. !!"

रेणुका की संगेमरमरी जांघों पर जीभ फेरते हुए, लोकल ट्रेन की गति से धीरे धीरे वह चूत के मुख्य स्टेशन पर पहुंचा.. पर तब तक तो रेणुका की तड़प तड़प कर जान ही निकल गई.. जैसे ही पीयूष की जीभ का स्पर्श उसकी क्लिटोरिस पर हुआ.. रेणुका पूर्ण रूप से बेकाबू हो गई.. उसने पीयूष के अंडकोश को मुठ्ठी में जकड़ कर लंड पर हल्ला बोल दिया.. पीयूष भी चूत के इर्दगिर्द चाट कर रेणुका की कसौटी लेने लगा.. आखिर उसने अपने हाथों से चूत के होंठों को चौड़ा किया.. अंदर दिख रहे लाल गरम भाग को सूंघकर उसने अपना नाक उस हिस्से पर रगड़ दिया.. पीयूष की इन हरकतों से पागल होते हुए रेणुका अपनी गांड ऊपर उठाकर पीयूष के चेहरे पर अपनी भोस गोल गोल रगड़ने लगी.. बिना किसी भी जल्दी के.. पीयूष ने आखिर अपनी जीभ का रेणुका की चूत में गृहप्रवेश करवाया..

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चटकारे लेते हुए.. भरपूर लार का उपयोग कर पीयूष जिस तरह रेणुका की चूत को चाट रहा था.. उस सुखद अनुभूति का वर्णन करने के लिए रेणुका के पास शब्द नहीं थे.. दोनों हाथ नीचे की तरफ डालकर पीयूष ने रेणुका के दोनों कूल्हों को पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा.. अब तक तो पीयूष अपने चेहरे को आगे पीछे करते हुए चाट रहा था.. लेकिन अब उसने अपना चेहरा स्थिर ही रखा और रेणुका के चूतड़ों को आगे पीछे करते हुए रेणुका की रसीली चुत का रस पीना शुरू कर दिया

जिस तरह पीयूष चुत चाट रहा था वो देखकर ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा था की वो रेणुका के आनंद के लिए चाट रहा हो.. बल्कि वो जैसे निजानंद में चुत चाटते हुए किसी अलौकिक दुनिया में खो सा गया था.. लंड का काम अपनी जीभ से लेते हुए बड़ी मस्ती से पीयूष रेणुका की चुत के अंदरूनी हिस्सों को कुरेद कुरेद कर रसपान कर रहा था.. पीयूष को इतनी दिलचस्पी और उत्साह से चुत चाटते देख रेणुका अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ आनंद का मज़ा ले रही थी

"आह्ह पीयूष.. तू तो गजब है यार.. और जोर से चाट.. बहोत मज़ा आ रहा है.. हाय.. ओह पीयूष.. !!" रेणुका के मुख से उत्तेजना से भरे शब्द सरक गए और उसके साथ ही उसका पूरा जिस्म थरथराने लगा.. उस आखिरी पलों में उसने पीयूष के चेहरे को अपनी दोनों जांघों के बीच इतनी जोर से दबाया की पीयूष को सांस लेने में तकलीफ होने लगी.. चार से पाँच सेकंड तक उसने अपनी चुत का सारा रस पीयूष के मुँहे में छोड़ती रही.. उसके स्तन बेहद टाइट हो कर उभर गए थे.. पूरा शरीर कामसुख के ताप से तप रहा था.. अभी भी वो कांप रही थी.. जैसे बुखार चढ़ा हो..

पीयूष का लंड अब नब्बे डिग्री° का कोण बनाकर सख्त खड़ा हो गया था.. उसने रेणुका को सीधा लिटा दिया और उसकी जांघों को चौड़ी कर.. बीच में जगह बनाकर बैठ गया.. अपना लाल गरम सुपाड़ा.. रेणुका की चुत के होंठों के बीच रखकर जैसे ही उसने हल्का धक्का दिया.. उसका पूरा ६ इंच का लंड एक झटके में उस गीली रसदार चुत में अंदर धंस गया.. दोनों जिस्म अब एक हो गए.. समय भी जैसे थम सा गया.. रेणुका को अपनी चुत में जलन महसूस हो रही थी.. चुत को जोर से चाटते वक्त जहां जहां पीयूष के दांत घिसे थे.. उन्ही स्थानों पर अब लंड के घिसते ही उसे जलने लगा था.. पीड़ा के बावजूद रेणुका फिर से उत्तेजित हो रही थी.. आह्ह.. ऐसा दर्द सहे हुए भी कितने साल हो गए !! शादी के बाद सुहागरात को ऐसा मीठा मीठा दर्द हुआ था.. जीवन में फिरसे वैसा ही दर्द महसूस करने का मौका मिलेगा यह सोचा नहीं था रेणुका ने..

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रेणुका को शीला के घर हुआ समूह चोदन याद आ गया.. जहां उस दोनों गाँव के नौजवानों ने शीला, अनुमौसी और रेणुका को अपने विकराल लंडों से बराबर पेल दिया था.. जीवा और रघु के लंड की उस भीषण चुदाई को याद करते हुए वह पीयूष के लंड का अपनी बुर की दीवारों के साथ हो रहे घर्षण से मंत्रमुग्ध हो रही थी.. पीयूष के नंगे कूल्हों को हाथ से पकड़कर अपने जिस्म को इतनी जोर से भींच लिया की लंड का टोपा उसके बच्चेदानी पर जाकर टकराया..

दोनों जिस्म अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ आनंद का मज़ा लेने में इतने मशरूफ़ हो गई के कुछ पलों के लिए ये भी भूल गए की वह दोनों शादी शुदा थे और उनका अलग अलग साथी भी है..

रेणुका नीचे से उछल उछल कर पीयूष के लंड को अपनी गहराइयों में अंदर तक समाने लगी.. पीयूष भी पागलों की तरह रेणुका के चरबीदार जिस्म की सिलवटों को रौंदे जा रहा था.. काफी देर तक एक दूसरे के विविध अंगों को पूर्णता से सहलाने और मसलने के बाद.. पीयूष ने रेणुका की भोस में दमदार धक्के लगाते हुए उसे झकझोरते आखिरी चार पाँच धक्के इतने जोर से लगाए की अनुभवी रेणुका की आँखों से आँसू टपक गए.. और साथ ही पीयूष के लंड से वीर्य भी

पीड़ा और आनंद के मिश्रण के साथ रेणुका का किल्ला भी फतह हो गया.. पीयूष ने जब उसकी बुर से अपना लंड बाहर खींचा तब वह किसी अहंकारी योद्धा की अदा से उसके दोनों पैरों के बीच लटकने लगा.. अर्ध-जागृत अवस्था में वीर्य-स्त्राव के पश्चात लटक रहे लंड का एक अलग ही सौन्दर्य होता है.. रेणुका बिस्तर पर नंगी पड़ी हुई थी.. उसकी बुर से पीयूष के वीर्य की धार बहते हुए चादर को गीला कर रही थी.. हवस शांत हो जाने पर रेणुका की आँखें ढल गई थी.. उसकी छाती पर कुदरत के दिए हुए दो पहाड़.. भारी साँसों के चलते ऊपर नीचे हो रहे थे..

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"बाथरूम कहाँ है?" पीयूष ने पूछा.. रेणुका ने उंगली से इशारा करते हुए उसे बाथरूम की दिशा दिखाई.. लगभग पाँच मिनट के अंदर पीयूष पूर्ण कपड़े पहनकर तैयार होकर बाहर निकला.. ५० हजार का बंडल संभालकर जेब में रखते हुए उसने आईने में अपने आप को देखकर सब ठीक होने की तसल्ली कर ली.. ताकि राजेश सर को शक न हो जाए..

पीयूष को बेडरूम से जाता देख.. नंगी रेणुका खड़ी हुई और पीयूष को पीछे से लिपट गई.. "तुझे छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा पीयूष.. पता नहीं क्यों.. तेरे अंदर ऐसा क्या है जो मुझे तेरी तरफ खींचती ही जा रहा है.. तुझे आज मज़ा आया? मैं तुझे संतुष्ट तो कर सकी ना ?? अगली बार मैं इससे भी ज्यादा मज़ा दूँगी तुझे.. फिर कब मिलेगा मुझे? जब मैं बुलाऊ तब आ तो जाएगा न तू? " सुई की नोक जैसी तीखी निप्पल पीयूष की पीठ पर चुभ रही थी..

"ये तो मुझे भी नहीं पता भाभी.. की दोबारा कब मिलेंगे.. पर आप ध्यान रखना.. मेरी बीवी या राजेश सर को कुछ भी पता न चले.. वरना मेरी नौकरी भी जाएगी और पत्नी भी.. !!"

"और मेरा संसार भी ऊझड़ जाएगा उसका क्या?" रेणुका ने थोड़ी सी नाराजगी से कहा

"मेरे कहने का वो मतलब नहीं था भाभी.. आप तो सब कुछ समझती हो.. मुझे भी ये सब पसंद है.. पर डर भी लगता है.. बाकी आज जिस तरह आपने मुझे ओरल-सेक्स का मज़ा दिया ऐसे सुख के लिए मैं तरस रहा था.. मेरी पत्नी ने मुझे आज तक ऐसा मज़ा नहीं दिया मुझे.. मैं इतना ही बोल रहा हूँ की जो कुछ भी करो संभल कर करना भाभी.. "

"हम्म.. इसके लिए.. जैसा मैं कह रही हूँ वैसा करते रहना तो कोई तकलीफ या दिक्कत नहीं होगी कभी.. सुन.. तू कभी भी मुझे सामने से कॉल नहीं करेगा.. नेवर.. जब जरूरत होगी मैं सामने से कॉन्टेक्ट करूंगी तुझे.. और उससे पहले मैं व्हाट्सप्प पर फोरवार्डेड मेसेज भेजूँगी.. उस पर से तू समझ जाना की मैं तुझे कॉल करने वाली हूँ"

"ठीक है भाभी.. मैं वैसा ही करूंगा" पीयूष ने घूमकर रेणुका के दोनों बॉल एक बार फिर मसलकर उसे बाहों में भरकर लबज़ों को चूम लिया.. काफी देर तक चूमते रहने के बाद दोनों अलग हुए.. लेकिन उससे पहले रेणुका ने एक बार जोर से पीयूष के लंड को दबा दिया..


पीयूष ऑफिस पहुंचा.. राजेश को पैसे दिए.. राजेश ने उसे बिठाया और काफी देर तक चर्चा की.. पीयूष को तसल्ली हो गई की राजेश सर को जरा भी शक नहीं हुआ था.. उसकी घबराहट चली गई.. काफी देर गुफ्तगू के बाद राजेश सर ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया
Awesome romantic talk between ladies & sexy milan of Piyush with Renuka..
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vakharia

Supreme
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शीला की लीला बहुत ही रसदार है बहुत ही उत्तेजक अपडेट अगले अपडेट की प्रतीक्षा कर रही हूं
Updated💕❤️💕
 
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