• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Thriller शतरंज की चाल

xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
20,846
41,532
259
#अपडेट ३

अब तक आपने पढ़ा -

वहीं उन्होंने मेरा नाम मोनू से मनीष मित्तल करवा दिया, और सरकारी दस्तावेज में मेरे पिता भी वही बन गए। मैने भी उनके इस अहसान को माना और अपने आपको पूरी तरह से पढ़ाई में झोंक दिया।

तभी एक झटका लगने से मैं अतीत से बाहर आ गया। मेरी गाड़ी मेरे अपार्टमेंट में आ चुकी थी....

अब आगे -

मैं गाड़ी से निकल कर, ऊपर अपने फ्लैट में चला गया। वहां अपनी आदत अनुसार पहले मैंने शावर लिया और बाहर आ कर किचन में चाय बना कर टीवी चला दिया।

थोड़ी देर न्यूज सुनने के बाद मैंने अपना फोन उठा कर खाने का ऑर्डर कर दिया और बाहर आ कर बालकनी में बैठ कर शहर के नजारे को देखने लगा। मन धीरे धीरे फिर से यादों में खो गया।

पुणे के स्कूल में दसवीं में ही मैंने राज्य में टॉप 5 में अपना नाम दर्ज करवा लिया था। मित्तल साहब, जिन्हे अब मैं सर बोलने लगा था, मेरी इस उपलब्धि से बहुत खुश थे। आगे मैने उनके ही कहने पर मैथ और फिजिक्स से 12वीं की, और उसी साल मेहनत से, और सर के भरोसे मैं इंजीनियरिंग करने यूएस चला गया। अगले 5 साल भी मैने अपने को पढ़ाई में पूरी तरह से झोंक दिया, मेरे दिमाग में बस मित्तल सर की हर कसौटी पर खरा उतरने का जुनून था। इन सारे दिनों में मेरा पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई में था, कोई दोस्त नही बनाया मैने अपनी जिंदगी में, ना लड़का न लड़की, हां खेल में थोड़ा अच्छा था, खास कर बैडमिंटन और स्विमिंग में, तो लोगों से जान पहचान बनी रहती थी।

इंजीनियरिंग में मैने मित्तल सर के कहने पर आईटी ली हुई थी। वहां जाने के बाद भी हर महीने एक तयशुदा रकम मेरे खाते में हर महीने बराबर आती रही। लेकिन यहां मुझे स्कॉलरशिप मिलने लगी थी, इसी कारण मैने उस रकम को ज्यादातर छुआ ही नही।

पढ़ाई खत्म करने के बाद में वापस भारत आ गया। अब LN group का हेडक्वार्टर भारत के पश्चिमी तट पर स्थित वापी में जा चुका था, और दिल्ली वाले ऑफिस को नॉर्थ डिवीजन का डिविजनल ऑफिस बना दिया गया था। सर भी अपनी पूरी फैमिली के साथ वहीं शिफ्ट हो गए थे। मैं भारत में सीधे दिल्ली उतरा और कुछ समय वहां बिता कर मित्तल साहब से मिलने वापी पहुंच गया।

वहां पहुंचते ही मित्तल साहब ने मुझे इस फ्लैट में शिफ्ट करवा दिया। और मुझसे मिलने आए।

"तो बेटे, अब तो पढ़ाई खत्म। आगे क्या इरादा है तुम्हारा?"

"सर, अब बस आपके साथ रह कर आपके साथ ही आगे बढ़ना है, आपके ही सपनों को पूरा करना है।"

"बहुत अच्छा, चलो फिर कल से ऑफिस ज्वॉइन करना फिर।"

मित्तल सर कम बोलने वाले व्यक्ति थे, ज्यादातर वो काम की ही बातें करते थे। औसत कद के सांवले रंग के शरीर से चुस्त व्यक्ति थे वो, नजर पर चढ़ा चश्मा उनको एक अच्छे बिजनेसमैन जैसा ही दिखाता था।

मैने पूछा, " सर, एक बात पूछना चाहता हूं।"

"पूछो।"

"आपका कोई ऐसा सपना जो अभी न पूरा हुआ हो, में उसे पूरा करना चाहता हूं।"

मित्तल साहब मेरी ओर मुस्कुराते हुए देखने लगे।

"मेरा एक सपना है की मैं एक ऐसी बैंक बनाऊं जो पूरी दुनिया में यूनिक हो!"

"मगर आप तो पहले से बैंकिंग में हैं न?"

"हां, लेकिन वो एक रेगुलर बैंक है, मुझे कुछ ऐसा चाहिए जिसे देख लोग सालों तक याद करें कि ये रजत मित्तल की देन है।"

फिर कुछ देर हम दोनो इस मुद्दे पर बात करते रहे, और कुछ बातें मुझे समझ आई।मैने उनके इस सपने पर कई दिन तक विचार किया और फिर मुझे कुछ समझ आने लगा, मैं कुछ दिनों तक उसकी रूप रेखा पर काम किया और एक ब्लूप्रिंट जैसा बना कर मित्तल सर को दिखाया।

ब्लूप्रिंट देखते ही उनके चेहरे पर एक खुशी की लहर दौड़ गई और उन्होंने मुझे तुरंत अपने गले से लगा लिया।

"मनीष, कुछ ऐसे ही बैंक का सपना मैने देखा था।"

"उम्मीद है ये आपको पसंद आया।"

"बिलकुल, और मैं ये भी चाहता हूं कि इस पर तुम काम भी शुरू कर दो।"

फिर उन्होंने मुझे जो भी चाहिए था, उसका इंतजाम करके दे दिया और मैं जी जान से उसकी साकार करने में जुट गया। 2 साल की मेहनत के बाद मैने और मेरी टीम ने एक ऐसी बैंक ब्रांच को खड़ा कर दिया जो लगभग फुल्ली ऑटोमेटेड थी।

एंट्री गेट से ही बायोमैट्रिक सिस्टम लगा था, और अंदर जाते ही पैसे जमा करने और निकलने की अलग अलग मशीनें थी, जिनमे ग्राहक का बायोमेट्रिक कार्ड ही काम आता, लोन लेने के लिए भी पूरा ऑटोमेटेड सिस्टम था जिसमे ग्राहक के सारे डॉक्यूमेंट्स अकाउंट खोलते समय ले लेते और बाकी कामों के लिए भी कोई पर्सनल इंट्रैक्शन नही होता, जो भी होना था वो बस अकाउंट खोलते समय होता, जिसके लिए बैंक के बाहर ही एक छोटा सा ऑफिस था, जिसमे 3 4 स्टाफ बैठने की जगह थी। और वहीं पर बायोमैट्रिक कार्ड देने के बाद ही ग्राहक अंदर जा कर सारा काम खुद से करते थे। अंदर बस कुछ सहायता और साफ सफाई के लिए स्टाफ थे।

अपनी समय का सबसे एडवांस सिक्योरिटी सिस्टम से युक्त ब्रांच थी वो, बिना बायोमैट्रिक के किसी का भी न सिर्फ अंदर जाना, बल्कि बाहर निकलना भी संभव नहीं था। अंदर का भी पूरा सिस्टम हाई टेक सिक्योरिटी था और जरा भी गड़बड़ी की आशंका के लिए अलार्म बटन कई जगह लगे हुए थे। और उनके बजते ही पुलिस 10 मिनिट में ही वहां पहुंच जाती।

मित्तल साहब सारा इंतजाम देख कर बहुत खुश हुए, और इसकी खूबियां के बल पर वापी शहर के कई बड़े व्यापारी अपना बड़ा अकाउंट वहां खोलने के लिए राजी हो गया। जल्दी ही वो ब्रांच न सिर्फ वापी, बल्कि देश की लीड ब्रांच में शामिल हो गई। और इसी उपलब्धि के कारण मुझे न सिर्फ वाइस प्रेसिडेंट बनाया गया, बल्कि बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में भी जगह मिल गई। और ग्रुप के बैंकिंग का GM भी बन गया।

तभी डोर बेल की आवाज से मैं वापस वर्तमान में आ गया, और गेट खोल कर देखा तो मेरा खाना आ चुका था।

खाना खा कर, मैं सो गया। अगले दिन अपने समय से उठ कर दिनचर्या के काम निपटा कर में ऑफिस चला गया।

अपने केबिन में बैठे अभी कुछ ही देर हुई थी कि इंटरकॉम बजा।

"हेलो?"

"हां, मनीष, अभी कुछ देर में मीटिंग है तैयार रहना।" ये मित्तल सर थे।

"जी सर, कितनी देर में आना है?"

"मीटिंग 1 घंटे में शुरू करेंगे, लेकिन तुम एक बार मेरे पास 15 मिनिट पहले आ जाना।"

"जी, आता हूं।"

मेरे इतना बोलते ही उन्होंने फोन रख दिया, वो वैसे भी बस काम भर ही बात करते थे। कुछ देर बाद मैं उठ कर उनके केबिन की ओर चल दिया। 5 फ्लोर की इस बिल्डिंग में मेरा केबिन टॉप फ्लोर पर था, जिसमे बैंकिंग और रियल एस्टेट डिवीजन के GM बैठते थे। मित्तल साहब का 3rd फ्लोर पर था, और उसी फ्लोर पर मीटिंग रूम भी था।

मै उनके केबिन के बाहर पहुंच कर दरवाजे को खटखटाया, "कम इन"

ये सुन कर मैं दरवाजा खोल कर अंदर गया। सर अपने डेस्क के पीछे बैठे कोई फाइल देख रहे थे, मुझे देखते ही उन्होंने आंख से बैठने का इशारा किया। मैं उनके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया। 2 मिनिट के बाद उन्होंने वो फाइल अपने सामने से हटा कर रखी, और मुझे देख कर बोले, "ये मीटिंग मैने ऑटोमेटेड ब्रांच के लिए बुलाई है, तो तुम एक बार उसकी प्रेजेंटेशन भी इसमें दिखा देना। अब जाओ मैं आता हूं।"

मैं वहां से उठ कर मीटिंग रूम में जा कर बैठ गया, वहां पर लगभग सारे लोग आ चुके थे। मैं अपनी सीट पर जा कर बैठ गया।
मेरी सीट के बगल में मेरा असिस्टेंट और बैंकिंग का एजीएम कारण बैठा था, वो 28 29 साल का एक मेहनती और तेज दिमाग का इंसान था। मेरे LN group को ज्वाइन करने से पहले से ही वो यहां पर काम कर रहा था। मेरे सामने सर की इकलौती बेटी और रियल एस्टेट की GM, प्रिया बैठी थी। वो एक दरमायन कद की 27 साल के करीब तीखे नैन नक्श वाली लड़की थी, अपने पिता की तरह ही वो भी स्वभाव की अच्छी थी, और मुझसे हमेशा अच्छे से ही पेश आई थी अब तक।
उसके दाएं तरफ रजत मित्तल के बड़े भाई, और LN group के MD महेश मित्तल बैठे थे। मेरी बाएं ओर शिविका मित्तल, महेश मित्तल की बेटी और फाइनेंस की GM बैठी थी, वो भी प्रिया की तरह ही दिखती थी, बस उसका रंग प्रिया से ज्यादा साफ था। मित्तल परिवार के सारे बच्चों में वो सबसे ज्यादा चुलबुली थी, उसकी चेहरे पर हमेशा मुस्कान बनी रहती थी, मेरे साथ वो हमेशा एक दोस्त के जैसा व्यवहार करती, और कई बार मजाक भी करती रहती थी। उसके बगल में श्रेयन मित्तल, महेश जी का बेटा, जो केमिकल और टेक्सटाइल का GM था और हम सब में सबसे बड़ा, व्यवहार में वो भी अपने पापा और चाचा जैसा था, पर पता नही क्यों मुझसे थोड़ा खींचा खींचा रहता था।

कु
छ देर बाद दरवाजा खुला और जो भी अंदर आया उसे देख कर मेरे दिल में एक हलचल सी होने लगी....
 
Last edited:

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
20,846
41,532
259
:congrats: Time lagne per padhne ata hu :approve:

थ्रिलर + रोमांस! हम्म। इसीलिए मैंने वहाँ वो सुझाव दिया था। किसी को सूझा या नहीं, लोग आ गए मेरी सुजाने!
छोटा सा अपडेट है - उस हिसाब से कम से कम चार अपडेट आने चाहिए, तब ही मैं कुछ लिख पाऊँगा।
लिखते रहें - हम ज़रूर पढ़ेंगे! बस, चुड़ैल वाला हाल न करना इसका। हा हा! :)

:congrats: For starring new story thread....

भाई साहब update १ बढ़िया है, पात्र के नाम मनीष अथवा मोनू रखकर आप क्या कहना चाहते है😁😂 बस मोनू की बीवी का नाम मनोरमा मत चिपका देना, 😁🙏🏻

9 days fast he. Uske bad hi start hoga padhna.

Bina tag kiye pata kaise chalega bandhu? Ab dekho tag karte hi reply aaya :D Anyway Congratulations 🎊 for new story dear :congrats:
SANJU ( V. R. ) Sanju@ Samar_Singh DEVIL MAXIMUM Frieren Rekha rani


थ्रेड खुल गया है, और नया अपडेट भी पोस्ट कर दिया 🙏🏼
 

Shetan

Well-Known Member
16,507
48,624
259

rhyme_boy

Well-Known Member
5,106
5,466
189
#अपडेट ३

अब तक आपने पढ़ा -

वहीं उन्होंने मेरा नाम मोनू से मनीष मित्तल करवा दिया, और सरकारी दस्तावेज में मेरे पिता भी वही बन गए। मैने भी उनके इस अहसान को माना और अपने आपको पूरी तरह से पढ़ाई में झोंक दिया।

तभी एक झटका लगने से मैं अतीत से बाहर आ गया। मेरी गाड़ी मेरे अपार्टमेंट में आ चुकी थी....

अब आगे -

मैं गाड़ी से निकल कर, ऊपर अपने फ्लैट में चला गया। वहां अपनी आदत अनुसार पहले मैंने शावर लिया और बाहर आ कर किचन में चाय बना कर टीवी चला दिया।

थोड़ी देर न्यूज सुनने के बाद मैंने अपना फोन उठा कर खाने का ऑर्डर कर दिया और बाहर आ कर बालकनी में बैठ कर शहर के नजारे को देखने लगा। मन धीरे धीरे फिर से यादों में खो गया।

पुणे के स्कूल में दसवीं में ही मैंने राज्य में टॉप 5 में अपना नाम दर्ज करवा लिया था। मित्तल साहब, जिन्हे अब मैं सर बोलने लगा था, मेरी इस उपलब्धि से बहुत खुश थे। आगे मैने उनके ही कहने पर मैथ और फिजिक्स से 12वीं की, और उसी साल मेहनत से, और सर के भरोसे मैं इंजीनियरिंग करने यूएस चला गया। अगले 5 साल भी मैने अपने को पढ़ाई में पूरी तरह से झोंक दिया, मेरे दिमाग में बस मित्तल सर की हर कसौटी पर खरा उतरने का जुनून था। इन सारे दिनों में मेरा पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई में था, कोई दोस्त नही बनाया मैने अपनी जिंदगी में, ना लड़का न लड़की, हां खेल में थोड़ा अच्छा था, खास कर बैडमिंटन और स्विमिंग में, तो लोगों से जान पहचान बनी रहती थी।

इंजीनियरिंग में मैने मित्तल सर के कहने पर आईटी ली हुई थी। वहां जाने के बाद भी हर महीने एक तयशुदा रकम मेरे खाते में हर महीने बराबर आती रही। लेकिन यहां मुझे स्कॉलरशिप मिलने लगी थी, इसी कारण मैने उस रकम को ज्यादातर चूड़ा ही नही।

पढ़ाई खत्म करने के बाद में वापस भारत आ गया। अब LN group का हेडक्वार्टर भारत के पश्चिमी तट पर स्थित वापी में जा चुका था, और दिल्ली वाले ऑफिस को नॉर्थ डिवीजन का डिविजनल ऑफिस बना दिया गया था। सर भी अपनी पूरी फैमिली के साथ वहीं शिफ्ट हो गए थे। मैं भारत में सीधे दिल्ली उतरा और कुछ समय वहां बिता कर मित्तल साहब से मिलने वापी पहुंच गया।

वहां पहुंचते ही मित्तल साहब ने मुझे इस फ्लैट में शिफ्ट करवा दिया। और मुझसे मिलने आए।

"तो बेटे, अब तो पढ़ाई खत्म। आगे क्या इरादा है तुम्हारा?"

"सर, अब बस आपके साथ रह कर आपके साथ ही आगे बढ़ना है, आपके ही सपनों को पूरा करना है।"

"बहुत अच्छा, चलो फिर कल से ऑफिस ज्वॉइन करना फिर।"

मित्तल सर कम बोलने वाले व्यक्ति थे, ज्यादातर वो काम की ही बातें करते थे। औसत कद के सांवले रंग के शरीर से चुस्त व्यक्ति थे वो, नजर पर चढ़ा चश्मा उनको एक अच्छे बिजनेसमैन जैसा ही दिखाता था।

मैने पूछा, " सर, एक बात पूछना चाहता हूं।"

"पूछो।"

"आपका कोई ऐसा सपना जो अभी न पूरा हुआ हो, में उसे पूरा करना चाहता हूं।"

मित्तल साहब मेरी ओर मुस्कुराते हुए देखने लगे।

"मेरा एक सपना है की मैं एक ऐसी बैंक बनाऊं जो पूरी दुनिया में यूनिक हो!"

"मगर आप तो पहले से बैंकिंग में हैं न?"

"हां, लेकिन वो एक रेगुलर बैंक है, मुझे कुछ ऐसा चाहिए जिसे देख लोग सालों तक याद करें कि ये रजत मित्तल की देन है।"

फिर कुछ देर हम दोनो इस मुद्दे पर बात करते रहे, और कुछ बातें मुझे समझ आई।मैने उनके इस सपने पर कई दिन तक विचार किया और फिर मुझे कुछ समझ आने लगा, मैं कुछ दिनों तक उसकी रूप रेखा पर काम किया और एक ब्लूप्रिंट जैसा बना कर मित्तल सर को दिखाया।

ब्लूप्रिंट देखते ही उनके चेहरे पर एक खुशी की लहर दौड़ गई और उन्होंने मुझे तुरंत अपने गले से लगा लिया।

"मनीष, कुछ ऐसे ही बैंक का सपना मैने देखा था।"

"उम्मीद है ये आपको पसंद आया।"

"बिलकुल, और मैं ये भी चाहता हूं कि इस पर तुम काम भी शुरू कर दो।"

फिर उन्होंने मुझे जो भी चाहिए था, उसका इंतजाम करके दे दिया और मैं जी जान से उसकी साकार करने में जुट गया। 2 साल की मेहनत के बाद मैने और मेरी टीम ने एक ऐसी बैंक ब्रांच को खड़ा कर दिया जो लगभग फुल्ली ऑटोमेटेड थी।

एंट्री गेट से ही बायोमैट्रिक सिस्टम लगा था, और अंदर जाते ही पैसे जमा करने और निकलने की अलग अलग मशीनें थी, जिनमे ग्राहक का बायोमेट्रिक कार्ड ही काम आता, लोन लेने के लिए भी पूरा ऑटोमेटेड सिस्टम था जिसमे ग्राहक के सारे डॉक्यूमेंट्स अकाउंट खोलते समय ले लेते और बाकी कामों के लिए भी कोई पर्सनल इंट्रैक्शन नही होता, जो भी होना था वो बस अकाउंट खोलते समय होता, जिसके लिए बैंक के बाहर ही एक छोटा सा ऑफिस था, जिसमे 3 4 स्टाफ बैठने की जगह थी। और वहीं पर बायोमैट्रिक कार्ड देने के बाद ही ग्राहक अंदर जा कर सारा काम खुद से करते थे। अंदर बस कुछ सहायता और साफ सफाई के लिए स्टाफ थे।

अपनी समय का सबसे एडवांस सिक्योरिटी सिस्टम से युक्त ब्रांच थी वो, बिना बायोमैट्रिक के किसी का भी न सिर्फ अंदर जाना, बल्कि बाहर निकलना भी संभव नहीं था। अंदर का भी पूरा सिस्टम हाई टेक सिक्योरिटी था और जरा भी गड़बड़ी की आशंका के लिए अलार्म बटन कई जगह लगे हुए थे। और उनके बजते ही पुलिस 10 मिनिट में ही वहां पहुंच जाती।

मित्तल साहब सारा इंतजाम देख कर बहुत खुश हुए, और इसकी खूबियां के बल पर वापी शहर के कई बड़े व्यापारी अपना बड़ा अकाउंट वहां खोलने के लिए राजी हो गया। जल्दी ही वो ब्रांच न सिर्फ वापी, बल्कि देश की लीड ब्रांच में शामिल हो गई। और इसी उपलब्धि के कारण मुझे न सिर्फ वाइस प्रेसिडेंट बनाया गया, बल्कि बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में भी जगह मिल गई। और ग्रुप के बैंकिंग का GM भी बन गया।

तभी डोर बेल की आवाज से मैं वापस वर्तमान में आ गया, और गेट खोल कर देखा तो मेरा खाना आ चुका था।

खाना खा कर, मैं सो गया। अगले दिन अपने समय से उठ कर दिनचर्या के काम निपटा कर में ऑफिस चला गया।

अपने केबिन में बैठे अभी कुछ ही देर हुई थी कि इंटरकॉम बजा।

"हेलो?"

"हां, मनीष, अभी कुछ देर में मीटिंग है तैयार रहना।" ये मित्तल सर थे।

"जी सर, कितनी देर में आना है?"

"मीटिंग 1 घंटे में शुरू करेंगे, लेकिन तुम एक बार मेरे पास 15 मिनिट पहले आ जाना।"

"जी, आता हूं।"

मेरे इतना बोलते ही उन्होंने फोन रख दिया, वो वैसे भी बस काम भर ही बात करते थे। कुछ देर बाद मैं उठ कर उनके केबिन की ओर चल दिया। 5 फ्लोर की इस बिल्डिंग में मेरा केबिन टॉप फ्लोर पर था, जिसमे बैंकिंग और रियल एस्टेट डिवीजन के GM बैठते थे। मित्तल साहब का 3rd फ्लोर पर था, और उसी फ्लोर पर मीटिंग रूम भी था।

मै उनके केबिन के बाहर पहुंच कर दरवाजे को खटखटाया, "कम इन"

ये सुन कर मैं दरवाजा खोल कर अंदर गया। सर अपने डेस्क के पीछे बैठे कोई फाइल देख रहे थे, मुझे देखते ही उन्होंने आंख से बैठने का इशारा किया। मैं उनके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया। 2 मिनिट के बाद उन्होंने वो फाइल अपने सामने से हटा कर रखी, और मुझे देख कर बोले, "ये मीटिंग मैने ऑटोमेटेड ब्रांच के लिए बुलाई है, तो तुम एक बार उसकी प्रेजेंटेशन भी इसमें दिखा देना। अब जाओ मैं आता हूं।"

मैं वहां से उठ कर मीटिंग रूम में जा कर बैठ गया, वहां पर लगभग सारे लोग आ चुके थे। मैं अपनी सीट पर जा कर बैठ गया।
मेरी सीट के बगल में मेरा असिस्टेंट और बैंकिंग का एजीएम कारण बैठा था, वो 28 29 साल का एक मेहनती और तेज दिमाग का इंसान था। मेरे LN group को ज्वाइन करने से पहले से ही वो यहां पर काम कर रहा था। मेरे सामने सर की इकलौती बेटी और रियल एस्टेट की GM, प्रिया बैठी थी। वो एक दरमायन कया की 27 साल के करीब तीखे नैन नक्श वाली लड़की थी, अपने पिता की तरह ही वो भी स्वभाव की अच्छी थी, और मुझसे हमेशा अच्छे से ही पेश आई थी अब तक।
उसके दाएं तरफ रजत मित्तल के बड़े भाई, और LN group के MD महेश मित्तल बैठे थे। मेरे बाएं ओर शिविका मित्तल, महेश मित्तल की बेटी और फाइनेंस की GM बैठी थी, वो भी प्रिया की तरह ही दिखती थी, बस उसका रंग प्रिया से ज्यादा साफ था। मित्तल परिवार के सारे बच्चों में वो सबसे ज्यादा चुलबुली थी, उसकी चेहरे पर हमेशा मुस्कान बनी रहती थी, मेरे साथ वो हमेशा एक दोस्त के जैसा व्यवहार करती, और कई बार मजाक भी करती रहती थी। उसके बगल में श्रेयन मित्तल, महेश जी का बेटा, जो केमिकल और टेक्सटाइल का GM था और हम सब में सबसे बड़ा, व्यवहार में वो भी अपने पापा और चाचा जैसा था, पर पता नही क्यों मुझसे थोड़ा खींचा खींचा रहता था।

कु
छ देर बाद दरवाजा खुला और जो भी अंदर आया उसे देख कर मेरे दिल में एक हलचल सी होने लगी....
Bhai Bohot achcha likh rahe ho aap... mazedaar story hai.... set up and build up bohot achcha banaya hai.....
bas idhar udhar typo dekha kuch jagah baaki sab changa.....

Keep writing bhai...
 

Sushil@10

Active Member
736
704
93
#अपडेट ३

अब तक आपने पढ़ा -

वहीं उन्होंने मेरा नाम मोनू से मनीष मित्तल करवा दिया, और सरकारी दस्तावेज में मेरे पिता भी वही बन गए। मैने भी उनके इस अहसान को माना और अपने आपको पूरी तरह से पढ़ाई में झोंक दिया।

तभी एक झटका लगने से मैं अतीत से बाहर आ गया। मेरी गाड़ी मेरे अपार्टमेंट में आ चुकी थी....

अब आगे -

मैं गाड़ी से निकल कर, ऊपर अपने फ्लैट में चला गया। वहां अपनी आदत अनुसार पहले मैंने शावर लिया और बाहर आ कर किचन में चाय बना कर टीवी चला दिया।

थोड़ी देर न्यूज सुनने के बाद मैंने अपना फोन उठा कर खाने का ऑर्डर कर दिया और बाहर आ कर बालकनी में बैठ कर शहर के नजारे को देखने लगा। मन धीरे धीरे फिर से यादों में खो गया।

पुणे के स्कूल में दसवीं में ही मैंने राज्य में टॉप 5 में अपना नाम दर्ज करवा लिया था। मित्तल साहब, जिन्हे अब मैं सर बोलने लगा था, मेरी इस उपलब्धि से बहुत खुश थे। आगे मैने उनके ही कहने पर मैथ और फिजिक्स से 12वीं की, और उसी साल मेहनत से, और सर के भरोसे मैं इंजीनियरिंग करने यूएस चला गया। अगले 5 साल भी मैने अपने को पढ़ाई में पूरी तरह से झोंक दिया, मेरे दिमाग में बस मित्तल सर की हर कसौटी पर खरा उतरने का जुनून था। इन सारे दिनों में मेरा पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई में था, कोई दोस्त नही बनाया मैने अपनी जिंदगी में, ना लड़का न लड़की, हां खेल में थोड़ा अच्छा था, खास कर बैडमिंटन और स्विमिंग में, तो लोगों से जान पहचान बनी रहती थी।

इंजीनियरिंग में मैने मित्तल सर के कहने पर आईटी ली हुई थी। वहां जाने के बाद भी हर महीने एक तयशुदा रकम मेरे खाते में हर महीने बराबर आती रही। लेकिन यहां मुझे स्कॉलरशिप मिलने लगी थी, इसी कारण मैने उस रकम को ज्यादातर चूड़ा ही नही।

पढ़ाई खत्म करने के बाद में वापस भारत आ गया। अब LN group का हेडक्वार्टर भारत के पश्चिमी तट पर स्थित वापी में जा चुका था, और दिल्ली वाले ऑफिस को नॉर्थ डिवीजन का डिविजनल ऑफिस बना दिया गया था। सर भी अपनी पूरी फैमिली के साथ वहीं शिफ्ट हो गए थे। मैं भारत में सीधे दिल्ली उतरा और कुछ समय वहां बिता कर मित्तल साहब से मिलने वापी पहुंच गया।

वहां पहुंचते ही मित्तल साहब ने मुझे इस फ्लैट में शिफ्ट करवा दिया। और मुझसे मिलने आए।

"तो बेटे, अब तो पढ़ाई खत्म। आगे क्या इरादा है तुम्हारा?"

"सर, अब बस आपके साथ रह कर आपके साथ ही आगे बढ़ना है, आपके ही सपनों को पूरा करना है।"

"बहुत अच्छा, चलो फिर कल से ऑफिस ज्वॉइन करना फिर।"

मित्तल सर कम बोलने वाले व्यक्ति थे, ज्यादातर वो काम की ही बातें करते थे। औसत कद के सांवले रंग के शरीर से चुस्त व्यक्ति थे वो, नजर पर चढ़ा चश्मा उनको एक अच्छे बिजनेसमैन जैसा ही दिखाता था।

मैने पूछा, " सर, एक बात पूछना चाहता हूं।"

"पूछो।"

"आपका कोई ऐसा सपना जो अभी न पूरा हुआ हो, में उसे पूरा करना चाहता हूं।"

मित्तल साहब मेरी ओर मुस्कुराते हुए देखने लगे।

"मेरा एक सपना है की मैं एक ऐसी बैंक बनाऊं जो पूरी दुनिया में यूनिक हो!"

"मगर आप तो पहले से बैंकिंग में हैं न?"

"हां, लेकिन वो एक रेगुलर बैंक है, मुझे कुछ ऐसा चाहिए जिसे देख लोग सालों तक याद करें कि ये रजत मित्तल की देन है।"

फिर कुछ देर हम दोनो इस मुद्दे पर बात करते रहे, और कुछ बातें मुझे समझ आई।मैने उनके इस सपने पर कई दिन तक विचार किया और फिर मुझे कुछ समझ आने लगा, मैं कुछ दिनों तक उसकी रूप रेखा पर काम किया और एक ब्लूप्रिंट जैसा बना कर मित्तल सर को दिखाया।

ब्लूप्रिंट देखते ही उनके चेहरे पर एक खुशी की लहर दौड़ गई और उन्होंने मुझे तुरंत अपने गले से लगा लिया।

"मनीष, कुछ ऐसे ही बैंक का सपना मैने देखा था।"

"उम्मीद है ये आपको पसंद आया।"

"बिलकुल, और मैं ये भी चाहता हूं कि इस पर तुम काम भी शुरू कर दो।"

फिर उन्होंने मुझे जो भी चाहिए था, उसका इंतजाम करके दे दिया और मैं जी जान से उसकी साकार करने में जुट गया। 2 साल की मेहनत के बाद मैने और मेरी टीम ने एक ऐसी बैंक ब्रांच को खड़ा कर दिया जो लगभग फुल्ली ऑटोमेटेड थी।

एंट्री गेट से ही बायोमैट्रिक सिस्टम लगा था, और अंदर जाते ही पैसे जमा करने और निकलने की अलग अलग मशीनें थी, जिनमे ग्राहक का बायोमेट्रिक कार्ड ही काम आता, लोन लेने के लिए भी पूरा ऑटोमेटेड सिस्टम था जिसमे ग्राहक के सारे डॉक्यूमेंट्स अकाउंट खोलते समय ले लेते और बाकी कामों के लिए भी कोई पर्सनल इंट्रैक्शन नही होता, जो भी होना था वो बस अकाउंट खोलते समय होता, जिसके लिए बैंक के बाहर ही एक छोटा सा ऑफिस था, जिसमे 3 4 स्टाफ बैठने की जगह थी। और वहीं पर बायोमैट्रिक कार्ड देने के बाद ही ग्राहक अंदर जा कर सारा काम खुद से करते थे। अंदर बस कुछ सहायता और साफ सफाई के लिए स्टाफ थे।

अपनी समय का सबसे एडवांस सिक्योरिटी सिस्टम से युक्त ब्रांच थी वो, बिना बायोमैट्रिक के किसी का भी न सिर्फ अंदर जाना, बल्कि बाहर निकलना भी संभव नहीं था। अंदर का भी पूरा सिस्टम हाई टेक सिक्योरिटी था और जरा भी गड़बड़ी की आशंका के लिए अलार्म बटन कई जगह लगे हुए थे। और उनके बजते ही पुलिस 10 मिनिट में ही वहां पहुंच जाती।

मित्तल साहब सारा इंतजाम देख कर बहुत खुश हुए, और इसकी खूबियां के बल पर वापी शहर के कई बड़े व्यापारी अपना बड़ा अकाउंट वहां खोलने के लिए राजी हो गया। जल्दी ही वो ब्रांच न सिर्फ वापी, बल्कि देश की लीड ब्रांच में शामिल हो गई। और इसी उपलब्धि के कारण मुझे न सिर्फ वाइस प्रेसिडेंट बनाया गया, बल्कि बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में भी जगह मिल गई। और ग्रुप के बैंकिंग का GM भी बन गया।

तभी डोर बेल की आवाज से मैं वापस वर्तमान में आ गया, और गेट खोल कर देखा तो मेरा खाना आ चुका था।

खाना खा कर, मैं सो गया। अगले दिन अपने समय से उठ कर दिनचर्या के काम निपटा कर में ऑफिस चला गया।

अपने केबिन में बैठे अभी कुछ ही देर हुई थी कि इंटरकॉम बजा।

"हेलो?"

"हां, मनीष, अभी कुछ देर में मीटिंग है तैयार रहना।" ये मित्तल सर थे।

"जी सर, कितनी देर में आना है?"

"मीटिंग 1 घंटे में शुरू करेंगे, लेकिन तुम एक बार मेरे पास 15 मिनिट पहले आ जाना।"

"जी, आता हूं।"

मेरे इतना बोलते ही उन्होंने फोन रख दिया, वो वैसे भी बस काम भर ही बात करते थे। कुछ देर बाद मैं उठ कर उनके केबिन की ओर चल दिया। 5 फ्लोर की इस बिल्डिंग में मेरा केबिन टॉप फ्लोर पर था, जिसमे बैंकिंग और रियल एस्टेट डिवीजन के GM बैठते थे। मित्तल साहब का 3rd फ्लोर पर था, और उसी फ्लोर पर मीटिंग रूम भी था।

मै उनके केबिन के बाहर पहुंच कर दरवाजे को खटखटाया, "कम इन"

ये सुन कर मैं दरवाजा खोल कर अंदर गया। सर अपने डेस्क के पीछे बैठे कोई फाइल देख रहे थे, मुझे देखते ही उन्होंने आंख से बैठने का इशारा किया। मैं उनके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया। 2 मिनिट के बाद उन्होंने वो फाइल अपने सामने से हटा कर रखी, और मुझे देख कर बोले, "ये मीटिंग मैने ऑटोमेटेड ब्रांच के लिए बुलाई है, तो तुम एक बार उसकी प्रेजेंटेशन भी इसमें दिखा देना। अब जाओ मैं आता हूं।"

मैं वहां से उठ कर मीटिंग रूम में जा कर बैठ गया, वहां पर लगभग सारे लोग आ चुके थे। मैं अपनी सीट पर जा कर बैठ गया।
मेरी सीट के बगल में मेरा असिस्टेंट और बैंकिंग का एजीएम कारण बैठा था, वो 28 29 साल का एक मेहनती और तेज दिमाग का इंसान था। मेरे LN group को ज्वाइन करने से पहले से ही वो यहां पर काम कर रहा था। मेरे सामने सर की इकलौती बेटी और रियल एस्टेट की GM, प्रिया बैठी थी। वो एक दरमायन कया की 27 साल के करीब तीखे नैन नक्श वाली लड़की थी, अपने पिता की तरह ही वो भी स्वभाव की अच्छी थी, और मुझसे हमेशा अच्छे से ही पेश आई थी अब तक।
उसके दाएं तरफ रजत मित्तल के बड़े भाई, और LN group के MD महेश मित्तल बैठे थे। मेरे बाएं ओर शिविका मित्तल, महेश मित्तल की बेटी और फाइनेंस की GM बैठी थी, वो भी प्रिया की तरह ही दिखती थी, बस उसका रंग प्रिया से ज्यादा साफ था। मित्तल परिवार के सारे बच्चों में वो सबसे ज्यादा चुलबुली थी, उसकी चेहरे पर हमेशा मुस्कान बनी रहती थी, मेरे साथ वो हमेशा एक दोस्त के जैसा व्यवहार करती, और कई बार मजाक भी करती रहती थी। उसके बगल में श्रेयन मित्तल, महेश जी का बेटा, जो केमिकल और टेक्सटाइल का GM था और हम सब में सबसे बड़ा, व्यवहार में वो भी अपने पापा और चाचा जैसा था, पर पता नही क्यों मुझसे थोड़ा खींचा खींचा रहता था।

कु
छ देर बाद दरवाजा खुला और जो भी अंदर आया उसे देख कर मेरे दिल में एक हलचल सी होने लगी....
Awesome update and nice story
 
Top