अब कहानी आगे..
सुगंधा बाथरूम में जाकर नहाने लगती है लेकिन पानी की एक एक बूंद उसके शरीर को आज अलग सा अहसास दिला रही थी जैसे पानी की बूंदे नहीं बल्की कोई उसके बदन को छू रहा हो। ऐसा अहसास तो जब सुगंधा नयी नयी जवान हो रही थी और पहली बार किसी ने उसके बदन को छुआ था तब भी नहीं हुआ था तो अब ये कैसा अहसास है क्यों सुगंधा इस उम्र में सुगंधा को इतनी उत्तेजना हो रही है जो कभी नहीं हुई क्या यह सच है कि इस उम्र में जाकर औरत सबसे ज्यादा कामुक हो जाती है या फिर यह सारा असर अपने बेटों की तरफ आकर्षित होने का है। सुगंधा इसी कश्मकश में नहा रही थी नहा क्या रही थी शावर के नीचे खड़ी होकर अपने शरीर को सरला रही थी कभी अपने बूबॅस को मसलती तो कभी उसका हाथ अपनी चूत पर चला जाता था। काफी देर तक सुगंधा ऐसे ही शावर के नीचे खड़ी रही फिर कुछ देर बाद कुछ होश आया तो अपना दूध सा शरीर टावल से लपेट कर बाहर आ जाती है। जिसके बाद संजय बाथरूम में चला जाता है। अब सुगंधा के मन में आता है कि आज वह क्या पहने क्या आज भी उसे कल की तरहा कुछ ऐसा ही पहनना चाहिए जिसे देख कर उसके बेटे आहे भरने पर मजबूर हो जाए जिसमें से उसके अंग और उभर कर दिखाई दे। इसी सोच में सुगंधा अपनी अलमारी खोलती है और सबसे पहले अपनी रैड़ कलर की पैंटी और ब्रॉ निकाल कर पहन लेती है
ब्राँ और पैंटी बाकी की ब्राँ पैंटी जैसी ही थी ब्राँ जालीदार थी जो बमुश्किल ही सुगंधा के बड़े और टाईट चुच्चों को खुद में समा पा रही थी और पैंटी भी टॉग ही थी जिसमें पीछे और साईड़ में मात्र एक डोरी ही थी जो पीछे सुगंधा की मोटी गाँड़ में समा गई थी। आगे से भी पैंटी काफी छोडी थी जो सुगंधा की फूली हुई चूत में समा सी गई थी चूत के दोनो होठ पैंटी से बाहर झांक रहे थे। खैर सुगंधा इसके बाद बाकी कपड़े निकाल कर पहनने लगती है और तईयार हो जाती है सुगंधा के तईयार होने के बाद संजय बाथरूम से बाहर निकलता है और सुगंधा को देखकर देखता ही रह जाता है संजय चाहता था कि सुगंधा आज भी कल की तरह कुछ ऐसा पहने जिस में से उसकी गाँड उभर कर बाहर दिखाई दे लेकिन यह क्या सुगंधा ने आज यह क्या पहन लिया लेकिन सुगंधा इसमें भी बला की खूबसूरत लग रही थी। सुगंधा कुछ ऐसी दिख रही थी।
जी हाँ सुगंधा ने आज एक सॉड़ी पहनी थी। लाल रंग की सॉड़ी जो कि उसके शरीर पर चिपक कर आई थी जिसमें से सुगंधा का शरीर बहुत ही उभर कर दिखाई दे रहा था ब्लाऊज में से मोटी मोटी चुच्ची और भी उभर कर खड़ी थी। सुड़ोल पेट बहुत ही कामुख लग रहा था सुगंधा ने आगे से सॉड़ी बहुत नीचे बांधी थी जो कि लगभग सुगंधा की चूत से बस कुछ ही इंच ऊपर बंधी हुई थी जिससे यह साड़ी सुगंधा की मादक खूबसूरती को और भी मादक बना रही थी गाँड पर भी सॉड़ी काफी कसी हुई थी जिससे गाण्ड़ भी काफी उभर कर दिख रही थी हालाकी गाँड़ कल की तरह नही दिख रही थी कल की टाईट सलवार में तो गाण्ड के जलवे ही अलग थे लेकिन आज भी कुछ कम नहीं थी। संजय एक टक सुगंधा को घूरे ही जा रहा था। तभी सुगंधा उसके कहती है
सुगंधा- क्या घूरे जा रहे हो कुछ बोलो भी कैसी लग रही हूँ?
संजय- हमेशा की तरह बला सी खूबसूरत।
सुगंधा संजय से तारीफ सुनकर खुश हो जाती है। और इतराती हुई कमरे से बाहर जाने लगती है। तभी संजय पीछे से उसका हाथ पकड़ लेता है और अपनी तरफ खींच कर उसे पीछे से अपनी बाहों में भर लेता है और आगे हाथ लेजाकर उसकी चुच्चीयों को दबाने लगता है।
संजय- क्या बात है आज तो लगता है बेटों पर कहर ठाने का इरादा है।
सुगंधा- क्यों आज तो मैंने सॉड़ी पहनी है कुछ ऐसा भी नही पहना जिसमें से मेरा जिस्म दिखाई दे रहा हो फिर भी मुझे ही ऐसा क्यों कह रहे हो।
संजय अपना हाथ नीचे लेजाकर सुगंधा के पेट से होता हुआ सीधा सुगंधा की साड़ी के अंदर डालकर सुगंधा की चूत पर ले जाता है संजय का हाथ बडी आसानी से सुगंधा की चूत को छू जाता है क्योंकि सॉड़ी इतनी नीचे जो बंधी थी कि थोड़ा सा ही हाथ आंदर करते ही संजय के हाथ में सुगंधा की चूत आ जाती है। संजय सुगंधा की चूत को अपनी ऊंगलीयों से रगड़ता हुआ कहता है
संजय- अच्छीयाँ सॉडी पहनी है तो बड़ी शरीफ हो गई और यह जो सॉड़ी चूत के बिल्कुल ऊपर बांधी है और ये जो चुच्ची टाईट होकर पहाड़ की तरह खड़ी है। और यह मोडी गाँड़ जो साँड़ी में भी इतनी उछल रही है। इस सब का क्या।
सुगंधा संजय के चूत मसलने से मचलने लगी और बोली।
सुगंधा- अब ये तुमने मुझे चोद चोद कर इतने बड़े बड़े कर हि दिये है तो मैं अब इनका क्या करूँ।
संजय सुगंधा की चूत में दो ऊंगली डालता हुआ- तो आब जो तेरे बेटों का लण्ड़ तुझे देख देख कर पूरा दिन सलामी देगा उसका क्या करेंगी।
सुगंधा- मैं क्या कर सकती हूँ दो जवान मर्दों के सहामने मेरा क्या बस चलेगा जो उनका मन करेंगा करेंगे मेरे साथ।
संजय- अगर दोनो ने तेरी सॉड़ी पकड़ कर नीचे खींच दी तो सॉड़ी झट से तेरे पैरो में पडी होगी और तू दोनों के साहमने नंगी खड़ी होगी फिर अपनी चूत और गाँड़ को कैसे बचाएँगी।
सुगंधा- अपने हाथ रख लूँगी एक आगे अपनी चूत पर और दूसरा पीछे अपनी गाँड़ पर।
संजय- तेरे हाथों को तो वे एक झटके में पकड़ कर हटा देंगे और फिर एक ने तेरी चूत पर और दूसरें ने तेरी गाँड़ को चूमने और चाटना सुरू कर दिया तो।
सुगंधा इस बात पर अपना हाथ पीछे लेजाकर संजय का लण्ड पकड़ लेती है और हाथ नीचे लेजाकर संजय के आण्ड़ों को धीरे से दबा देती है जिससे संजय का हाथ सुगंधा की चूत से बाहर निकल जाता है और सुगंधा झट से संजय की पकड़ से छूटकर कमरे के दरवाजे की तरफ भागती है और दरवाजे पर पहुँच कर संजय की तरफ मुड़ कर हसती हुई संजय से कहती है।
सुगंधा- चाटते है तो चटवा लूँगी और मारते है तो मरवा भू लूंगी।
संजय इस बात पर अपना लण्ड पकड़ कर मसलने लगता है सुगंधा संजय की तरफ हंसते हुए कमरे से बाहर निकल जाती है और रसोई में जाकर नाश्ता बनाने लगती हैं।
तभी रोहित और मोहित भी अपने कमरे से बाहर आ जाते है और आज सुगंधा को पूछे से सॉड़ी में देखते है तो थोड़े निराश से हो जाते है कि आज उन्हें सुगंधा का जिस्म देखने का ज्यादा मोहका नहीं मिलेगा। लेकिन तभी सुगंधा उनकी तरफ पलटती है तो दोनों देखते ही रह जाते है सुगंधा का सुड़ोल पेट चूत से कुछ ही इँच ऊपर बंधी साड़ी और बड़े बड़े उभर कर बाहर आये चुच्चे देखकर दोनों आखें फाड़कर सुगंधा को देखते ही रह जाते हैं। और यह भी भूल जाते है कि सुगंधा उनको ही देख रही है दोनों का यह हाल देखकर सुगंधा मन में सोचती है कि कही संजय का कही सच ना हो जाए कही दोनों सभी पकड़ कर मेरी साड़ी खीच कर मुझे नंगा ना कर दे।
सुगंधा को देखकर दोनों के मूँह खुले के खुले रह जाते है। सुगंधा दोनों को हालत देखकर खुश हो जाती है और दोनों को टोकती हुई कहती है।
सुगंधा- क्या हुआ ऐसे क्या देख रहे हो आँखे फाड़ फाड़ कर।
मोहित- हिच्किचाते हुए कहता है। कुछ नहीं माँ वो मै तो ऐसे ही देख रहा था आपको नार्मिल सॉड़ी पहने कम ही देखा है ना इस लिए।
सुगंधा- क्यों अच्छी नहीं लग रही क्यो।
मोहित- नहीं नहीं माँ बहुत अच्छी लग रही हो तभी तो ऐसे देखता रह गया।
सुगंधा- और रोहित तू क्या देख रहा था। तुझे भी मुझे सॉड़ी देखकर झटका लगा क्या?
रोहित- नहीं माँ मै तो यह सोच रहा था कि कल रात मैं एक मूवी देख रहा था उसमें जो हिरोईन थी उसने भी सेम ऐसी ही सॉड़ी पहनी थी और वह भी बला सी खूबसूरत लग रही थी।
सुगंधा- तो क्या मैं भी तुझे बला सी खूबसूरत लग रही हूँ।
रोहित- हाँ माँ लग तो रही हो।
सुगंधा हँसते हुए- चल बदमाश कही का। माँ को पता नहीं क्या क्या बोलता रहता है।
रोहित और मोहित हँसते हुए जा कर साहमने डाईनिंग टेबल पर बैठ जाते है और सुगंधा के हुश्न को निहारते रहते है। सुगंधा को भी यह पता था कि दोनों की नजर उसी पर है यह अहसास औरत के जिस्म में एक अलग ही तरंग पैदा करता है जब किसी मर्द की नजर किसी औरत के जिस्म को घूर रही हो और अगर वह दो जवान मर्द हो वो भी उसके बेटे तो यह अहसास केवल सुगंधा ही समझ सकती थी।
सुगंधा अपने काम मे लगी हुई थी लेकिन उसके मन में चल रहा ख्याल कि उसके बेटे उसके जिस्म को निहार रहे है उसके मन के साथ साथ उसके जिस्म में भी एक अलग तरह ही तरंग पैदा कर रहा था। तभी संजय भी वहा आ जाता है और मोहित और रोहित के साथ आकर डाईनिंग टेबल पर बैठ जाता है। तभी सुगंधा भी नाश्ता तईयार कर देती है और एक एक कर सामान टेबल पर लगाने लगती है दोनो बेटों के साथ साथ संजय की नजर भी सुगंधा पर ही गडी हुई थी जब भी सुगंधा मुड़ कर रसोई में जाती तो उसकी मटकती गाँड पर और सुगंधा के आते समय उसकी चुच्ची और पेट पर। नाश्ता लग जाता है सुगंधा भी सबके साथ बैठ कर नाश्ता करने लगती है। मोहित और रोहित सुगंधा के साहमने बैठे थे दोनो की नजर लगातार सुगंधा के चुच्चो को घूर रही थी जो कि लगातार सुगंधा देख रही थी। घूरे भी क्यो ना आज सुगंधा के चुच्चे लग ही उतने कामुक रहे थे। किसी भी मर्द की नजर उस पर से हटे। सुगंधा के शरीर में इस तरहा तीन मर्दों का उसे लगातार घूरना एक झनझनाहट सी पैदा कर रहा था। तभी संजय कहता है।
संजय- सुगंधा इस बार गाँव जाने का क्या प्रोग्राम है फसल तईयार हो गई है हर साल की तरह हमें अब गाँव चलना चाहिए।
सुगंधा- हाँ मेरे को तो याद ही नहीं रहा था। गाँव तो जाना ही पड़ेगा।
लेकिन सुगंधा इस बार गाँव जाने के लिए ज्यादा उत्साहित नहीं थी क्योंकि उसे अपने बेटों के साथ चल रहे लुक्का झुप्पी के सेस्सी खेल में मजा आ रहा था। लेकिन कर भी क्या सकते है। जाना तो पड़ेगा ही। रोहित और मोहित हर साल गाँव नहीं जाते थे क्योंकि माँ बाप के गाँव जाने के बाद वह घर पर अकेले हो जाया करते थे और अकेले में घर पर पूरा मजा किया करते थे कभी रण्डी को बुलाते तो कभी शराब पीते इसलिए ये दोनों घर पर रहना ही ज्यादा पसंद किया करते थे। लेकिन इस बार माँ के गाँव जाने की बात सुनकर दोनों बेटों को भी एक झटका सा लगता है और दोनों का मूँह उतर सा जाता है। क्योंकि माँ कि तरफ बड़ते आकर्षण के चलते दोनों बेटे एक दिन भी अपनी माँ से दूर रहना नहीं चाहते थे। तभी मोहित कहता है।
मोहित- माँ आपका जाना भी जरूरी है क्या वहा कोई काम तो होता नहीं है काम तो सब नौकर ही करते है तो फिर जाने की क्या जरूरत है
सुगंधा- नहीं बेटा जाना तो पड़ेगा ही फसल कटने के बाद पूजा भी तो होती है इसलिए पूजा में मेरा रहना जरूरी होता है।
मोहित- पूजा तो अकेले पापा भी कर सकते है। पापा आप ही चले जाओं ना माँ को रहने दो इस बार।
बेटों की ऐसी बेचैनी देखकर संजय को खुशी होती है वह मन ही मन मुसकुराता है। और कहता है।
संजय- नहीं बेटा हर साल पूजा तेरी माँ के हाथ से ही होती है और इस साल भी तेरी माँ ही करेगी। यही नियम है।
रोहित- तो भईया इस साल हम भी गाँव चलते है ना माँ पापा के साथ वैसे भी बहुत साल हो गए है गाँव जाए एस साल हम भी चलते है। गाँव में मजा आएगा।
सुगंधा रोहित की यह बात सुनकर खुश हो जाती है क्योंकि सुगंधा जानती है कि गाँव के खुले घर में और खेतों में बेटों के साथ मजें करने के उसे भी ज्यादा मौहके मिलेंगे।
मोहित- हाँ हाँ यह ठीक रहेंगा इस साल हम भी पापा आप के साथ गाँव जाएंगे बहुत साल हो गए है हमें भी गाँव जाए इस साल तो हम भी चल कर मजा करेंगे।
सुगंधा- क्या बात है हर साल जब हम तुमहें चलने के लिए कहते है तो तुम दोनों बड़े नखरें करते हो चलने में लेकिन इस साल बड़े उत्साहित हो रहे हो गाँव जाने के लिए क्यों इस साल नही रहना तुमहें अकेले घर पर।
मोहित- नहीं माँ अब हमारा मन नहीं लगेंगा आप के बिना घर पर अकेले हम तो इस साल गाँव ही चलेंगे और के साथ।
संजय हँसता हुआ- हाँ हाँ ठीक है चल लेना माँ के बिना घर पर मन नहीं लगेंगा तो गाँव चल कर माँ के साथ खूब लगाना.... मन।
सुगंधा संजय का इशारा समझ जाती है और हलका सा संजय की तरफ देख कर मुस्कुरा देती है और कहती है
सुगंधा- हाँ मन तो बहुत लगेगा उनका भी और मेरा भी।
संजय- ठीक है तो फिर आज तुम लोग जाने की तईयारी कर लो मैं भी आफिस के काम आज निपटा लेता हूँ तक निकलते है गाँव के लिए।
सुगंधा- इतनी जल्दी?
संजय- हाँ जब जाना ही है तो फिर देर क्या करनी। तईयार रहों तुम सब लोग अपना अपना मन लगाने के लिए गाँव में।
संजय जानता था कि गाँव में जिस तरह का उनका घर है और जिस तरह का वहा माहौल रहेंगा जितनी तेजी से ये माँ बेटे एक दूसरे के नजदीक आ रहे है वहा कुछ ना कुछ तो जरूर होने वाला है यहा शहर में तो यह लोग सिर्फ एक दूसरें को देखते ही रहेंगे और कोई भी आगे बड़ने की हिम्मत सायद ना दिखाई लेकिन वहा ये आपने आप को रोक नहीं पाएंगे। यह सब सोच सोच कर संजय भी बहुत उत्साहित हो रहा था गाँव जाने के लिए। इसके बाद सब लोग नाश्ता करने लगते है और दोनों बेटों की नजर फिर से माँ की चुच्चियों पर टिक जाती है।
नाश्ता खत्म करने के बाद सुगंधा उठकर बर्तन लेकर किचन में चली जाती है और संजय भी नाश्ता करने के बाद अपने ऑफिस के लिए निकल जाता है। मोहित और रोहित भी नाश्ता करने के बाद अपने कमरें में चले जाते है। और गाँव जाने की प्लानिंग करने लगते है। दोनों भाई गाँव जाने के लिए काफी अत्साहित थे। क्योंकि दोनों गाँव में माँ के साथ ज्यादा समय बिता पाएंगे और गाँव के घर में प्राईवेशी भी इतनी ज्यादा नहीं होगी कि उनकी माँ ज्यादा देर तक दोनों बेटों से दूर रह पाए।
वहीं सुगंधा भी गाँव जाने के लिए काफी खुश थी वह अपने ख्यालों में खोई हुई थी किस तरह संजय और सुगंधा गावं में खुल कर एक दूसरें के साथ रोमांश किया करते थे। और कैसे अलग अलग तरीकों से जवानी का मजा लूटा करते थे। इस बार तो उसके बेटे भी वहा उसके साथ होंगे जो बेटे पहले से ही सुगंधा की तरफ लगातार आकर्षित होते जा रहे हैं। सुगंधा को भी वहा कई और मौहके मिलेंगे दोनो बेटों को अपनी और आकर्षित करने के लिए। इसी सोच में डूबी हुई सुगंधा जल्दी ही अपना रसोई का सारा काम खत्म कर लेती है इसके बाद वह सोचती है कि इतने दिन के लिए गाँव जाना है तो पैकिंग कर ली जाए लेकिन फिर उसे थोड़ा आलस आ जाता है और वह सोचती है कि थोड़ी देर आराम करने के बाद पैकिंग शुरू करूँगी। आराम करने के लिए सुगंधा सोफा पर जाकर बैठ जाती है और दिल बहलाने के लिए टीवी ऑन कर देती है।
दोनों भाई तो इसी पल का इंतजार कर रहे थे अपने कमरें में दिल थाम कर जहा दोनों भाईयों के दिल में थोड़ा डर भी था कि पता नहीं आगे क्या होने वाला है कहीं माँ गुस्सा ना करें। दोनों भाई अपने कमरे का दरवाजा थोड़ा सा खोलकर झांक कर सुगंधा को बाहर सोफा पर बैठा देख रहे थे बड़े सोफा पर बैठी थी जिस से वह रोहित और मोहित को साहमने से नहीं बल्की साईड़ से दिखाई दे रही थी।
सुगंधा जैसे ही टीवी ऑन करती है रोहित के द्वारा की गई प्लानिंग के अनुसार टीवी में वैब पेज खुल जाता है जिसमें पॉर्न पेज खुला हुआ था एक माँ सन्न पॉर्न पेज टीवी चलते ही अपने आप एक पॉर्न टीवी की सक्रिन पर चालू हो जाती है। सुगंधा विडियो के शुरू होते ही समझ जाती है कि यह एक पॉर्न है क्योंकि सुगंधा को भी पॉर्न देखने का अच्छा खासा तजुर्बा था पॉर्न में जो एक्ट्रस थी उसने एक लाल रंग की साड़ी पहनी थी जिसे देखते ही सुगंधा को रोहित की कही गई सुबहा की बात याद आ जाती है जब रोहित ने सुगंधा को देखकर कहा था कि माँ मै रात एक मूवी देख रहा था जिसमें हीरोईन ने ऐसी ही लाल सॉड़ी पहनी थी और बला सी खूबसूरत लग रही थी। तो रोहित एक पॉर्न एकट्रैस से साथ अपनी माँ की तुलना कर रहा था वह भी उसी के साहमने यह सोच कर सुगंधा के चहरें पर एक कामुक सी मुस्कान आ जाती है। खैर सुगंधा वह पॉर्न आगे देखने लगती है मूवी में माँ बेटा एक ही बिस्तर पर सो रहे थे और बेटा माँ के सोने के बाद उसे छूने लगता है माँ भी जाग रही थी और आँखे बंद कर इस सब का मजा ले रही थी।
धीरे धीरे बेटा माँ को नंगा कर देता है और माँ भी आँखे खोल देती है खुल कर माँ बेटे की चुदाई सुरू हो जाती है बेटा माँ की चूत चाट रहा था सुगंधा एक बार अपने बेटों के कमरे की तरफ देखती है लेकिन उसे वहा रोहित और मोहित नहीं दिखाई देते है हालाँकि कमरे का दरवाजा हलका सा खुला हुआ जरूर था सुगंधा समझ जाती है कि जरूर इस दरवाजे के पीछे छिपकर दोनों मुझे देखने की कोशिश जरूर कर रहे होंगे। सुगंधा अपने आप पर काबू रखने की कोशिश करती है और पॉर्न देखने लगती है देखते देखते सुगंधा को सुबहा का वह नजारा याद आ जाता है जब सुगंधा रोहित और मोहित के कमरे के बाहर बिल्कुल नंगी खड़ी होकर अपनी चूत में ऊंगली कर रही थी और अपने बेटों के लण्ड देख रही थी यह सब सोचते सोचते सुगंधा का हाथ कब उसकी चूत पर चला जाता है उसे इसका अहसास ही नहीं होता। सुगंधा अपनी साड़ी जो की चूत से थोड़ा ही ऊपर बंधी थी उसके अंदर आथ डालकर अपनी चूत नंगी चूत को मसलने लगती है और अपनी टांगे उठाकर सोफा पर रख लेती है। रोहित और मोहित जैसे ही यह नजारा देखते है मानो पागल से हो जाते है। दोनों साफ देख सकते थे कि उनकी माँ सोफा पर बैठी अपनी साड़ी के अंदर हाथ डालकर अपनी चूत को सहला रही है। मूवी आगे बड़ती है और माँ कि चुदाई पॉर्न में शुरू हो जाती है। सुगंधा भी यह देखकर रोमांचित हो जाती है अपनी चूत में अपनी एक ऊंगली डाल देती है और अंदर बाहर कर चोदने लगती है। हाथ की हरकत देख कर बेटे भी समझ जाते है कि माँ अपनी चूत में ऊंगली कर रही है।
सुगंधा की चूत गीली हो गई थी जिससे ऊंगली करने के कारण उसकी चूत में से चप चप की आवाज आने लगी थी जैसे जैसे सुगंधा अपनी ऊंगली की गती को बड़ा रही थी आवाज तेज हो रही थी जो की बेटों के कानों तक भी जा रही थी। दोनों बेटे नजारा देख कर पागल हो रहे थे। और अपना अपना लण्ड बाहर निकाल कर तेजी से हिलाने लगते हैं। माँ बेटे एक साथ एक दूसरे से ख्यालों में खोए अपने चूत और लण्ड को मसल रहे थे। सुगंधा के मुहँ से भी अब सिस्कारियाँ निकलतने लगती है जो की पूरे हाँल में गूंजने लगती है। बेटे जो अभी तक थोड़े से दरवाजे में से झांक कर मुस्कुल से माँ को देख रहे थे मोहित कमरे का दरवाजा थोड़ा और खोल देता है। अगर अब सुगंधा ने कमरे की तरफ देखा तो साफ साफ बेटों को वहा खडा होकर अपने लण्ड को मुठ्याते देख सकती थी। लेकिन सुगंधा की नजरे अभी बंद थी और वह तेजी से अपनी चूत में ऊंगली कर रही थी। वह भी यह अच्छे से जानती थी कि उसके बेटे जरूर छिप कर उसे देख रहे होंगे। लेकिन वह यह नहीं जानती थी कि अब बेटे गेट खोलकर बिंदास उससे कुछ ही दूर खड़े उसे देख कर अपना लंण्ड बाहर निकाल कर हिला रहे है और उनके साहमने सुगंधा अपनी साड़ी में हाथ देकर चप चप की आवाज के साथ अपनी चूत चोद रही है और जोर जोर से आंहे भर रही है। कुछ ही देर में सुगंधा झड़ने लगती है। और बेटे भी अपने आप पर बहुत देर तक काबू नहीं कर पाते लगभग एक साथ ही तीनों झड़ जाते है। झड़ने के बाद सुगंधा सोफा पर ही आख बंद किए कुछ देर के लिए पड़ी रहती है। रोहित मोहित भी झड़ने के बाद कमरे के अंदर आकर दरवाजा बंद कर लेते है लेकिन हड़बड़ी में दरवाजा बंद कुछ ज्यादा जोर से कर देते है जिसकी आवाज सुगंधा साफ सुन पाती है दरवाजा बंद होते ही सुगंधा कमरे की तरफ देखती है और दरवाजा पूरा बंद पाकर मुस्कुराती है कुछ देर बाद सुगंधा भी सोफा से खड़ी होकर टीवी बंद करती है और अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट जाती है।