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Adultery राजमाता कौशल्यादेवी

vakharia

Supreme
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पसीने और तेल से लथबथ दोनों योद्धा, अपने कौशल का पूर्ण इशतेमाल करते हुए, यह यत्न कर रहे थे की अपनी मंजिल को प्राप्त कर सकें। हालांकि यह स्पष्ट था की महारानी का पलड़ा इस युद्ध में काफी भारी था और वह उलटे धक्के लगाते हुए शक्तिसिंह को परास्त कर रही थी।

"रुक जाइए महारानी... " अपना स्खलन बेहद निकट प्रतीत होते हुए शक्तिसिंह ने आवाज लगाई। वह अभी इस खेल को समाप्त नहीं करना चाहता था। जिस क्रूरता से महारानी धक्के लगा रही थी उस तेजी से शक्तिसिंह के लंड को झड़ जाने में कोई कष्ट ना होता।

यह सुनने के बाद जैसे महारानी को कोई फरक नहीं पड़ा.. वह अपनी चुत की आग के सामने लाचार थी... स्वयं को चरमसीमा को इतना करीब पाकर वह शक्तिसिंह की सुनकर रुकना नहीं चाहती थी। उन्होंने धक्के लगाना जारा रखा... शक्तिसिंह पीछे हट गया ताकि उसका लंड महारानी की चुत से निकल जाए। पर महारानी खुद भी पीछे हो गई और यह सुनिश्चित किया की इस नाजुक घड़ी में लंड बाहर ना निकल आए।

जिसका डर था वहीं हुआ... शक्तिसिंह गुर्राते हुए झड़ने लगा... बड़ी मात्र में गाढ़ा वीर्य महारानी की चुत में बरसने लगा.. इस गर्माहट का एहसास होते ही महारानी भी कांपने लगी। भेड़िये की भांति अपना चेहरा छत की तरफ करते हुए उन्होंने भी अपनी चुत बहा दी। शक्तिसिंह अब भी धक्के लगा रहा था और उसके हर झटके के साथ वीर्य की धराएं महारानी की चुत से नीचे गिर रही थी।

दोनों अभी भी चरमसीमा का सुख अनुभावित करते हुए कांप रहे थे। शक्तिसिंह ने अपना हथियार महारानी की चुत से बाहर निकाल और उनके बगल में ही ढेर हो गया। महारानी भी शक्तिसिंह की छाती पर सर रखकर लेट गई। इस अवस्था में उनकी भारी चूचियों को शक्तिसिंह की हथेलिया मसल रही थी।

इस अनोखे हसीन अनुभव का पूरा स्वाद अभी दोनों ले ही रहे थे की तभी कुटिया में राजमाता कौशल्यादेवी ने प्रवेश किया!!!

राजमाता ने देखा तो रानी की चुत से वीर्य बहता जा रहा था। निश्चित रूप से इन दोनों को यह स्थिति में देखकर वह प्रसन्न नहीं हुई थी। उन्होंने जो भी किया था उससे एक बार के लिए ध्यान हटा भी लेती... पर चुत से जिस तरह से कीमती वीर्य बाहर निकल रहा था वह उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ। अंतिम मकसद से हर कोई भलीभाँति ज्ञात था फिर वीर्य को ऐसे जाया करने की गुस्ताखी क्यों???

राजमाता ने बड़े ही क्रोध के साथ महारानी को वहाँ से बाहर चले जाने का इशारा किया। मन में ही मन वह खुश थी की शक्तिसिंह आज वापिस जा रहा था। नहीं तो इन दोनों खून चख चुके जानवारों को चोदने से रोक पाना असंभव सा था। पिछले ४८ घंटों में काफी बार चुदाई हो चुकी थी और पर्याप्त मात्रा में वीर्य महारानी के गर्भाशय को पुष्ट कर चुका था। राजमाता को यह ज्ञात था की शक्तिसिंह हर बार कितनी मात्रा में वीर्य स्खलित करता था। महारानी का गर्भवती होना अब तय था।

अब इस खेल का प्रेक्षक बनने की या इसे जारी रहने देने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

काफी कोशिशों के बावजूद, राजमाता की नजर शक्तिसिंह के लंड से हट ही नहीं रही थी। अपने कपड़े उठाकर जैसे ही महारानी पद्मिनी कुटिया से बाहर निकली, राजमाता का समग्र ध्यान पत्थर पर लैटे शक्तिसिंह के चिपचिपे दैत्य पर केंद्रित हो गई।

पिछले दो दिनों के दौरान हुई भरसक चुदाई के बावजूद उन्होंने एक पल के लिए भी शक्तिसिंह के लंड को सुषुप्तवस्था में नहीं देखा था। जब भी देखा यह जानवर तनकर हमला करने के लिए तैयार ही रहता!! महारानी पद्मिनी के चुत के रस और वीर्य से सना हुआ लंड, खिड़की से आते हुए प्रकाश में चमक रहा था। लंड का कड़ापन देखते ही बनता था।

"यह मेरे लिए आखिरी मौका है कुछ करने का" राजमाता ने मन में सोचा... एक बार राजमहल में वापिस लौट गए तो इस तरह के किसी भी खेल को अंजाम देना नामुमकिन था।

वह इतने प्यार से आँखें भरकर शक्तिसिंह के लंड को देखे ही जा रही थी... पूरे जिस्म में झुरझुरी सी हो रही थी.. उनक्का अनुभवी भोंसड़ा भी कपकपा रहा था... चूचियाँ सख्त हो रही थी... इस नौजवान के नंगे जिस्म और उसके तंग हथियार को देखकर... वह अपने तजुर्बेदार जिस्म को शक्तिसिंह के ऊर्जावान शरीर के लिए ज्यादा योग्य समझती थी... देखते ही देखते उनके चूतड़ ऐसे आगे पीछे होने लगे जैसे शक्तिसिंह के समग्र लंड को अपने भीतर समाने के लिए तरस रहे हो!!

वह शक्तिसिंह के करीब आई... और उसका तेल, वीर्य और योनिरस से लिप्त लंड को अपने हाथों से सहलाने लगी। उस मिश्रित गिलेपन का स्पर्श होते ही राजमाता सिहर उठी।

"आज में इस जवान घोड़े को सिखाऊँगी की असली चुदाई कैसे होती है!!" अपने भूखे भोंसड़े को तृप्त करने के लिए तैयार करते हुए वह सोच रही थी

अपनी चोली की गांठ खोलकर, एक ही पल में उन्होंने अपने दोनों स्तन आजाद कर दिए!!!

पत्थर पर लैटे हुए शक्तिसिंह की छाती को सहलाते हुए राजमाता योग्य काम आसन के बारे में सोचने लगी। वह इस चुदाई को यादगार बनाना चाहती थी।

शक्तिसिंह की छाती पर दोनों हथेलियों को टीकाकर, उन्होंने अपनी जांघें फैलाई। उस सैनिक के शरीर के दोनों तरफ अपने पैर जमाकर वह धीरे धीरे नीचे की ओर आई। शक्तिसिंह के लंड के मुख का स्पर्श अपनी चुत के होंठों पर होते ही वह कपकपा उठी। अपनी उंगलियों से चुत के होंठों को फैलाकर, गरम भांप छोड़ते उस छेद मे उन्होंने सुपाड़े को अनुकूलित किया, और एक ही झटके में जिस्म का सारा वज़न डालकर वह शक्तिसिंह के ऊपर बैठ गई... इस क्रिया से शक्तिसिंह को तो तकलीफ नहीं हुई.. किन्तु सालों बाद उनके भोंसड़े को अचानक मिले इस विकराल मूसल को अपने में समाने में उनकी चीख निकल गई... दो पल के लिए राजमाता की आँखों के सामने अंधेरा छा गया...!!

अपने पति के देहांत के बाद कई सालों के पश्चात, उन्होंने अपनी योनी में एक पूर्ण तंदूरस्त और तगड़ा, धड़कता हुआ लंड, अपनी चुत में महसूस किया था।

राजमाता का सिर पीछे की और झुका हुआ था और वह एकदम स्थिर रहकर अपनी चुत में शक्तिसिंह के बड़े लंड के साथ अनुकूलन प्राप्त करने का प्रयत्न कर रही थी। उनके खुले स्तन शक्तिसिंह को न्योता दे रहे थे.. उनकी चोली अभी भी कंधे पर लटक रही थी।

राजमाता ने अपनी तर्जनी और अंगूठे से निप्पलों को कुरेदना शुरू कर दिया। उनकी चुत अब स्निग्धता का रिसाव करने लगी थी और उस गिलेपन के कारण अब शक्तिसिंह का लंड अब आसानी से उनकी चुत के अंदर हलचल कर सकता था।

राजमाता के चेहरे की त्वचा एक नई ऊर्जा के साथ बहते रक्त के प्रवाह से दीप्तिमान थी।।

कुटिया में चारों ओर शांति फैली थी... पर वह तूफान से पहले की शांति जैसी प्रतीत हो रही थी। राजमाता की चुत आकुंचन और संकुचन कर शक्तिसिंह के लंड के घेरे का जायजा लेने में व्यस्त थी। खिड़की से आती हुई ठंडी हवा, राजमाता की निप्पलों को अनोखा सुकून प्रदान कर रही थी। बड़े अंगूर जैसी उनकी निप्पल, दिखने में ऐसी रसीली थी की चूसते हुए मन ना भरे।

राजमाता के पेट का निचला हिस्सा, भीतर से निकलने वाले स्पंदनों से धीरे-धीरे फड़फड़ा रहा था।

जाँघें तनाव से तनी हुई थीं और वहाँ की मांसपेशियाँ हिलने-डुलने में दर्द के कारण खिंच गई थीं। वह उस पत्ते के सिरे पर जमी ओस की बूंद की तरह थी, जो गिरने के लिए बिल्कुल ही तैयार थी।

राजमाता अब शक्तिसिंह के लंड पर आरामदायक आसन में विराजमान हो गई थी और अपने संभोग प्रवास पर निकलने के लिए उत्सुक और तैयार थी। उन्होंने उसी स्थिति में रहकर, अपने घुटनों को पत्थर पर रख दिया और चूतड़ों को थोड़ा सा ऊपर नीचे कर यह सुनिश्चित किया की वह चुदाई के झटके आसानी से लगा सके।

शक्तिसिंह का सुपाड़ा अंदर फूलकर और गहराई तक जा घुसा। लंड की इस प्रतिक्रिया से राजमाता की आह निकल गई। उन्होंने सहसा अपने कूल्हों को उठाया और पटक दिया... आनंद की एक लहर उनके पूरे जिस्म में व्याप्त हो गई। योनिमार्ग भी अब स्निग्ध और विस्तारित होकर, लंड के आवागमन के लिए तैयार हो गया।

एक के बाद एक झटके लगाते हुए राजमाता की किलकारियाँ निकलने लगी।

"हाँ.. हाँ.. ऐसे ही...आहह... अंदर कैसा चुभ रहा है.. आह.." उनके चेहरे की मुस्कान को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था की उन्हे कितना मज़ा आ रहा था। अपनी आँखें बंद कर वह बेतहाशा लंड पर कूदे जा रही थी।

राजमाता अब पूर्ण नियंत्रण से शक्तिसिंह के लंड पर धक्के लगाते हुए अपनी भूखी चुत में उसे समाते हुए, भीतर के झलझले को शांत करने का भरसक प्रयत्न कर रही थी। चुत के अंदर ऐसी ऐसी जगह पर लंड जाकर टकराया की राजमाता के आनंद की कोई सीमा ना रही।

अंदर घुसा हुआ वह खंभे जैसे लंड, सालों से अतृप्त उनकी चुत को अनोखा सुख प्रदान कर रहा था। पिछले एक दसक से उन्हों ने लंड के आकार की भिन्न भिन्न वस्तुए अपने अंदर डालकर हस्तमैथुन का प्रयत्न कर लिया था पर इस असली जननेन्द्रिय जैसा आनंद किसी में नहीं मिला था।

शक्तिसिंह के लंड में जीवंतता, गर्माहट और एक कंपन युक्त स्पंदन था जिसे वह उस पर सवार होकर बहुत स्पष्ट रूप से महसूस कर सकती थी। उन्हों ने अपनी चूत मे लंड के पूर्ण आकार का अधिक बारीकी से अनुभव करने के लिए अपने कूल्हों को आक्रामक तरीके से हिलाया।

चुत के अंदर बह रहा योनिरस का झरना इसलिए बाहर नहीं आ रहा था क्योंकी शक्तिसिंह का लंड, राजमाता की चुत पर डट्टे की तरह फंसा हुआ था। जब राजमाता ने अपने कूल्हों को झटकों के दौरान इधर उधर घुमाया तब वह रस तेजी से नीचे बह कर शक्तिसिंह के टट्टों को गीला करने लगा।

ऊपर नीचे झटके लगाने के साथ वह अब आगे पीछे भी होने लगी। उनके चेहरे पर संतृप्ति और आनंद दोनों की रेखाएं थी। अपनी योनि की मांसपेशियों को संकुचित करते हुए उन्हों ने लंड को ऐसा दबोचा की शक्तिसिंह की आह निकल गई।

स्वबचाव में शक्तिसिंह ने राजमाता की जांघों को अपने हाथों से जकड़ लिया। तुरंत ही उसका ध्यान स्तनों पर गया। महारानी पद्मिनी के मुकाबले राजमाता के स्तन थोड़े से भारी, झुके हुए और बड़े थे। निप्पलों की लंबाई भी ज्यादा थी।
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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पसीने और तेल से लथबथ दोनों योद्धा, अपने कौशल का पूर्ण इशतेमाल करते हुए, यह यत्न कर रहे थे की अपनी मंजिल को प्राप्त कर सकें। हालांकि यह स्पष्ट था की महारानी का पलड़ा इस युद्ध में काफी भारी था और वह उलटे धक्के लगाते हुए शक्तिसिंह को परास्त कर रही थी।

"रुक जाइए महारानी... " अपना स्खलन बेहद निकट प्रतीत होते हुए शक्तिसिंह ने आवाज लगाई। वह अभी इस खेल को समाप्त नहीं करना चाहता था। जिस क्रूरता से महारानी धक्के लगा रही थी उस तेजी से शक्तिसिंह के लंड को झड़ जाने में कोई कष्ट ना होता।

यह सुनने के बाद जैसे महारानी को कोई फरक नहीं पड़ा.. वह अपनी चुत की आग के सामने लाचार थी... स्वयं को चरमसीमा को इतना करीब पाकर वह शक्तिसिंह की सुनकर रुकना नहीं चाहती थी। उन्होंने धक्के लगाना जारा रखा... शक्तिसिंह पीछे हट गया ताकि उसका लंड महारानी की चुत से निकल जाए। पर महारानी खुद भी पीछे हो गई और यह सुनिश्चित किया की इस नाजुक घड़ी में लंड बाहर ना निकल आए।

जिसका डर था वहीं हुआ... शक्तिसिंह गुर्राते हुए झड़ने लगा... बड़ी मात्र में गाढ़ा वीर्य महारानी की चुत में बरसने लगा.. इस गर्माहट का एहसास होते ही महारानी भी कांपने लगी। भेड़िये की भांति अपना चेहरा छत की तरफ करते हुए उन्होंने भी अपनी चुत बहा दी। शक्तिसिंह अब भी धक्के लगा रहा था और उसके हर झटके के साथ वीर्य की धराएं महारानी की चुत से नीचे गिर रही थी।

दोनों अभी भी चरमसीमा का सुख अनुभावित करते हुए कांप रहे थे। शक्तिसिंह ने अपना हथियार महारानी की चुत से बाहर निकाल और उनके बगल में ही ढेर हो गया। महारानी भी शक्तिसिंह की छाती पर सर रखकर लेट गई। इस अवस्था में उनकी भारी चूचियों को शक्तिसिंह की हथेलिया मसल रही थी।

इस अनोखे हसीन अनुभव का पूरा स्वाद अभी दोनों ले ही रहे थे की तभी कुटिया में राजमाता कौशल्यादेवी ने प्रवेश किया!!!

राजमाता ने देखा तो रानी की चुत से वीर्य बहता जा रहा था। निश्चित रूप से इन दोनों को यह स्थिति में देखकर वह प्रसन्न नहीं हुई थी। उन्होंने जो भी किया था उससे एक बार के लिए ध्यान हटा भी लेती... पर चुत से जिस तरह से कीमती वीर्य बाहर निकल रहा था वह उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ। अंतिम मकसद से हर कोई भलीभाँति ज्ञात था फिर वीर्य को ऐसे जाया करने की गुस्ताखी क्यों???

राजमाता ने बड़े ही क्रोध के साथ महारानी को वहाँ से बाहर चले जाने का इशारा किया। मन में ही मन वह खुश थी की शक्तिसिंह आज वापिस जा रहा था। नहीं तो इन दोनों खून चख चुके जानवारों को चोदने से रोक पाना असंभव सा था। पिछले ४८ घंटों में काफी बार चुदाई हो चुकी थी और पर्याप्त मात्रा में वीर्य महारानी के गर्भाशय को पुष्ट कर चुका था। राजमाता को यह ज्ञात था की शक्तिसिंह हर बार कितनी मात्रा में वीर्य स्खलित करता था। महारानी का गर्भवती होना अब तय था।

अब इस खेल का प्रेक्षक बनने की या इसे जारी रहने देने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

काफी कोशिशों के बावजूद, राजमाता की नजर शक्तिसिंह के लंड से हट ही नहीं रही थी। अपने कपड़े उठाकर जैसे ही महारानी पद्मिनी कुटिया से बाहर निकली, राजमाता का समग्र ध्यान पत्थर पर लैटे शक्तिसिंह के चिपचिपे दैत्य पर केंद्रित हो गई।

पिछले दो दिनों के दौरान हुई भरसक चुदाई के बावजूद उन्होंने एक पल के लिए भी शक्तिसिंह के लंड को सुषुप्तवस्था में नहीं देखा था। जब भी देखा यह जानवर तनकर हमला करने के लिए तैयार ही रहता!! महारानी पद्मिनी के चुत के रस और वीर्य से सना हुआ लंड, खिड़की से आते हुए प्रकाश में चमक रहा था। लंड का कड़ापन देखते ही बनता था।

"यह मेरे लिए आखिरी मौका है कुछ करने का" राजमाता ने मन में सोचा... एक बार राजमहल में वापिस लौट गए तो इस तरह के किसी भी खेल को अंजाम देना नामुमकिन था।

वह इतने प्यार से आँखें भरकर शक्तिसिंह के लंड को देखे ही जा रही थी... पूरे जिस्म में झुरझुरी सी हो रही थी.. उनक्का अनुभवी भोंसड़ा भी कपकपा रहा था... चूचियाँ सख्त हो रही थी... इस नौजवान के नंगे जिस्म और उसके तंग हथियार को देखकर... वह अपने तजुर्बेदार जिस्म को शक्तिसिंह के ऊर्जावान शरीर के लिए ज्यादा योग्य समझती थी... देखते ही देखते उनके चूतड़ ऐसे आगे पीछे होने लगे जैसे शक्तिसिंह के समग्र लंड को अपने भीतर समाने के लिए तरस रहे हो!!

वह शक्तिसिंह के करीब आई... और उसका तेल, वीर्य और योनिरस से लिप्त लंड को अपने हाथों से सहलाने लगी। उस मिश्रित गिलेपन का स्पर्श होते ही राजमाता सिहर उठी।

"आज में इस जवान घोड़े को सिखाऊँगी की असली चुदाई कैसे होती है!!" अपने भूखे भोंसड़े को तृप्त करने के लिए तैयार करते हुए वह सोच रही थी

अपनी चोली की गांठ खोलकर, एक ही पल में उन्होंने अपने दोनों स्तन आजाद कर दिए!!!

पत्थर पर लैटे हुए शक्तिसिंह की छाती को सहलाते हुए राजमाता योग्य काम आसन के बारे में सोचने लगी। वह इस चुदाई को यादगार बनाना चाहती थी।

शक्तिसिंह की छाती पर दोनों हथेलियों को टीकाकर, उन्होंने अपनी जांघें फैलाई। उस सैनिक के शरीर के दोनों तरफ अपने पैर जमाकर वह धीरे धीरे नीचे की ओर आई। शक्तिसिंह के लंड के मुख का स्पर्श अपनी चुत के होंठों पर होते ही वह कपकपा उठी। अपनी उंगलियों से चुत के होंठों को फैलाकर, गरम भांप छोड़ते उस छेद मे उन्होंने सुपाड़े को अनुकूलित किया, और एक ही झटके में जिस्म का सारा वज़न डालकर वह शक्तिसिंह के ऊपर बैठ गई... इस क्रिया से शक्तिसिंह को तो तकलीफ नहीं हुई.. किन्तु सालों बाद उनके भोंसड़े को अचानक मिले इस विकराल मूसल को अपने में समाने में उनकी चीख निकल गई... दो पल के लिए राजमाता की आँखों के सामने अंधेरा छा गया...!!

अपने पति के देहांत के बाद कई सालों के पश्चात, उन्होंने अपनी योनी में एक पूर्ण तंदूरस्त और तगड़ा, धड़कता हुआ लंड, अपनी चुत में महसूस किया था।

राजमाता का सिर पीछे की और झुका हुआ था और वह एकदम स्थिर रहकर अपनी चुत में शक्तिसिंह के बड़े लंड के साथ अनुकूलन प्राप्त करने का प्रयत्न कर रही थी। उनके खुले स्तन शक्तिसिंह को न्योता दे रहे थे.. उनकी चोली अभी भी कंधे पर लटक रही थी।

राजमाता ने अपनी तर्जनी और अंगूठे से निप्पलों को कुरेदना शुरू कर दिया। उनकी चुत अब स्निग्धता का रिसाव करने लगी थी और उस गिलेपन के कारण अब शक्तिसिंह का लंड अब आसानी से उनकी चुत के अंदर हलचल कर सकता था।

राजमाता के चेहरे की त्वचा एक नई ऊर्जा के साथ बहते रक्त के प्रवाह से दीप्तिमान थी।।

कुटिया में चारों ओर शांति फैली थी... पर वह तूफान से पहले की शांति जैसी प्रतीत हो रही थी। राजमाता की चुत आकुंचन और संकुचन कर शक्तिसिंह के लंड के घेरे का जायजा लेने में व्यस्त थी। खिड़की से आती हुई ठंडी हवा, राजमाता की निप्पलों को अनोखा सुकून प्रदान कर रही थी। बड़े अंगूर जैसी उनकी निप्पल, दिखने में ऐसी रसीली थी की चूसते हुए मन ना भरे।

राजमाता के पेट का निचला हिस्सा, भीतर से निकलने वाले स्पंदनों से धीरे-धीरे फड़फड़ा रहा था।

जाँघें तनाव से तनी हुई थीं और वहाँ की मांसपेशियाँ हिलने-डुलने में दर्द के कारण खिंच गई थीं। वह उस पत्ते के सिरे पर जमी ओस की बूंद की तरह थी, जो गिरने के लिए बिल्कुल ही तैयार थी।

राजमाता अब शक्तिसिंह के लंड पर आरामदायक आसन में विराजमान हो गई थी और अपने संभोग प्रवास पर निकलने के लिए उत्सुक और तैयार थी। उन्होंने उसी स्थिति में रहकर, अपने घुटनों को पत्थर पर रख दिया और चूतड़ों को थोड़ा सा ऊपर नीचे कर यह सुनिश्चित किया की वह चुदाई के झटके आसानी से लगा सके।

शक्तिसिंह का सुपाड़ा अंदर फूलकर और गहराई तक जा घुसा। लंड की इस प्रतिक्रिया से राजमाता की आह निकल गई। उन्होंने सहसा अपने कूल्हों को उठाया और पटक दिया... आनंद की एक लहर उनके पूरे जिस्म में व्याप्त हो गई। योनिमार्ग भी अब स्निग्ध और विस्तारित होकर, लंड के आवागमन के लिए तैयार हो गया।

एक के बाद एक झटके लगाते हुए राजमाता की किलकारियाँ निकलने लगी।

"हाँ.. हाँ.. ऐसे ही...आहह... अंदर कैसा चुभ रहा है.. आह.." उनके चेहरे की मुस्कान को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था की उन्हे कितना मज़ा आ रहा था। अपनी आँखें बंद कर वह बेतहाशा लंड पर कूदे जा रही थी।

राजमाता अब पूर्ण नियंत्रण से शक्तिसिंह के लंड पर धक्के लगाते हुए अपनी भूखी चुत में उसे समाते हुए, भीतर के झलझले को शांत करने का भरसक प्रयत्न कर रही थी। चुत के अंदर ऐसी ऐसी जगह पर लंड जाकर टकराया की राजमाता के आनंद की कोई सीमा ना रही।

अंदर घुसा हुआ वह खंभे जैसे लंड, सालों से अतृप्त उनकी चुत को अनोखा सुख प्रदान कर रहा था। पिछले एक दसक से उन्हों ने लंड के आकार की भिन्न भिन्न वस्तुए अपने अंदर डालकर हस्तमैथुन का प्रयत्न कर लिया था पर इस असली जननेन्द्रिय जैसा आनंद किसी में नहीं मिला था।

शक्तिसिंह के लंड में जीवंतता, गर्माहट और एक कंपन युक्त स्पंदन था जिसे वह उस पर सवार होकर बहुत स्पष्ट रूप से महसूस कर सकती थी। उन्हों ने अपनी चूत मे लंड के पूर्ण आकार का अधिक बारीकी से अनुभव करने के लिए अपने कूल्हों को आक्रामक तरीके से हिलाया।

चुत के अंदर बह रहा योनिरस का झरना इसलिए बाहर नहीं आ रहा था क्योंकी शक्तिसिंह का लंड, राजमाता की चुत पर डट्टे की तरह फंसा हुआ था। जब राजमाता ने अपने कूल्हों को झटकों के दौरान इधर उधर घुमाया तब वह रस तेजी से नीचे बह कर शक्तिसिंह के टट्टों को गीला करने लगा।

ऊपर नीचे झटके लगाने के साथ वह अब आगे पीछे भी होने लगी। उनके चेहरे पर संतृप्ति और आनंद दोनों की रेखाएं थी। अपनी योनि की मांसपेशियों को संकुचित करते हुए उन्हों ने लंड को ऐसा दबोचा की शक्तिसिंह की आह निकल गई।

स्वबचाव में शक्तिसिंह ने राजमाता की जांघों को अपने हाथों से जकड़ लिया। तुरंत ही उसका ध्यान स्तनों पर गया। महारानी पद्मिनी के मुकाबले राजमाता के स्तन थोड़े से भारी, झुके हुए और बड़े थे। निप्पलों की लंबाई भी ज्यादा थी।

Gazab ki uttejna aur kamukta se bharpur updates he vakharia Bhai,

Maja aa gaya.............Keep posting bro
 

sunoanuj

Well-Known Member
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Bahut hi behtarin updates… keep posting…
 
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