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Adultery राजमाता कौशल्यादेवी

vakharia

Supreme
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बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
शक्ती सिंह ने महाराणी पद्मिनी के चुचीयों से दुग्ध पान कर के उसकी बहुत दिनों अनचुदी बुर को चोद चोद के पुरी तरहा से घायल करके उसके बुर में लगी आग को शांत कर दिया और महाराणी के आग्रह पर उसकी कसी गांड को भी चोद कर उसे अधमरी सा कर के अपनी तालिम के लिये निकल गया
बहुत ही जबरदस्त अपडेट
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Thanks ❤️❤️
 

Tri2010

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"तू मुझे अभी निचोड़ देगी... तो वहाँ राजमाता के पास पिचके हुए थन जैसा लिंग लेकर कैसे जाऊँ? निराश मत हो... में वचन देता हूँ... आने वाली रातों में, मैं तेरी सारी इच्छाएं पूर्ण कर दूंगा.... " उदास मन से चन्दा देखती ही रही और शक्तिसिंह उसकी आँखों से ओजल हो गया

राजमाता के तंबू की सारी रोशनीयां बुझा दी गई थी... कोने में केवल एक दीपक जल रहा था... उस दीपक की रोशनी में भी साफ दिखाई दे रहा था की राजमाता अपने बिस्तर पर टाँगे फैलाए लेटी हुई थी।

शक्तिसिंह ने बिस्तर तक पहुँचने से पहले ही अपना ऊपरी वस्त्र उतार फेंका और धोती की गांठ खोल दी। अब वह पूर्णतः नग्न होकर राजमाता के बिस्तर के करीब जा पहुंचा।

वह अपने कूल्हों पर हाथ रखकर और चेहरे पर मुस्कुराहट लेकर खड़ा रहा और इंतजार करता रहा। राजमाता मखमली चिकने बिस्तर पर आगे की ओर बढ़ी और उसके लिंग के उभरे हुए सिरे को अपने मुँह में ले लिया। धीरे-धीरे उसने अपना मुंह, लंड के निचले हिस्से को अपनी जीभ से चाटते हुए चलाया, जब तक कि शक्तिसिंह के झांट के बाल उनके होंठों तक नहीं पहुंच गए। लंड चूसते हुए अपनी आँखों में कुटील मुस्कान के साथ उसकी ओर देखा। हमेशा से शक्तिसिंह को यह बात चकित कर देती थी की कितनी आसानी से राजमाता उसका पूरा लंड निगल जाती थी!!

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अपने हाथ कूल्हों से हटाकर राजमाता के रेशमी काले बालों को सहलाने लगा और राजमाता अपनी जीभ से उसके लंड के निचले हिस्से को सहलाती रही। शक्तिसिंह ने अचानक अपने दोनों हाथों से राजमाता का सिर पकड़ लिया और बड़ी बेरहमी से उसे अपने लंड पर आगे-पीछे करने लगा। राजमाता कराहने लगी लेकिन अपनी जीभ से लंड के निचले हिस्से चाटती रही क्योंकि शक्तिसिंह की बढ़ती उत्तेजना ने तेजी से उसके धक्कों की गति बढ़ा दी। अचानक, एक लम्बी चीख के साथ शक्तिसिंह झड़ गया। वीर्य के फव्वारे ने राजमाता का कंठ गीला कर दिया।वह जितना निगल सकती थी, निगल गई लेकिन आज काफी ज्यादा मात्रा में वीर्यस्त्राव हुआ था और वह अतिरिक्त वीर्य, राजमाता के मुंह से छलक कर उनकी ठुड्डी और छाती पर रिस गया।

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अपना मुरझाया हुआ लंड, शक्तिसिंह ने वापस राजमाता के मुँह में डाल दिया।

आज न तो दोनों के बीच कोई संवाद हुआ और ना ही कोई शरारत... शायद युद्धभूमि में होने के एहसास ने राजमाता को गंभीर कर दिया था.. और शायद उसी कारण शक्तिसिंह ज्यादा आक्रामक बन गया था... किसी और दिन राजमाता, शक्तिसिंह को यूं मनमानी नही करने देती और खुद ही संभोग का संचालन करती.. पर आज का माहोल अलग था...

राजमाता ने उसके लंड को ज़ोर-ज़ोर से तब तक चूसा जब तक कि वह फिर से सख्त नही हो गया। लंड कडा होते ही, शक्तिसिंह ने एक झटके से राजमाता के मुंह को अपने लंड से अलग किया और उन्हे बड़े बिस्तर पर पटक दिया। अब उसने राजमाता की ढीले घाघरे को ऊपर उठाया और उनका झांटेदार भोंसडा उजागर हो गया। बिना कोई विलंब किए वह राजमाता पर चढ़ गया।

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"आज आपको ऐसा चोदूँगा की आप बड़े लंबे काल तक याद रखेंगी!!" जैसे ही उसने अपना लंड राजमाता की गर्म और गीली योनी में डाला, उनके जिस्म में एक गरम झुरझुरी सी चल गई। शक्तिसिंह के इस आवेश को वह समझ नही पा रही थी.. कल वह लंबे अरसे तक उनसे दूर जाने वाला था इसलिए कसर पूरी कर रहा था... या फिर कुछ और कारण था.. जो भी हो... राजमाता को बड़ा ही मज़ा आ रहा था इसलिए वह शक्तिसिंह के निर्देश का पालन करती गई।

शक्तिसिंह ने अपना चेहरा नीचे किया और राजमाता के होठों को चूमा और फिर अपनी जीभ उनके मुँह में डाल दी और जैसे ही उसने अपनी जीभ को उसकी जीभ से मिलाया, उसने अपने लंड के धक्के के साथ उसे समय-समय पर अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया।

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फिर उसने राजमाता को बेरहमी से चोदना शुरू कर दिया। उसने अंदर-बाहर उनके भोसड़े पर बुरी तरह से तब तक प्रहार किया जब तक कि वह दर्द से चिल्ला नहीं उठी। राजमाता की चिल्लाहट सुनकर शक्तिसिंह का जोश उतर गया। उसने धक्के लगाना रोक दिया

"आपको दर्द हुआ राजमाता?" चिंतित शक्तिसिंह ने पूछा

"बकवास बंद कर.. और चोदना जारी रख... मूर्ख" कराहते हुए राजमाता ने कहा... उन्हे इस पीड़ा में भी बेहद मज़ा आ रहा था और इस अंतराल को वह बर्दाश्त न कर पाई

वह गुर्राती रही और पूरी ताकत के साथ अपने चूतड़ उठाकर धक्के लगाती रही, अपनी जांघों को उन्होंने पूरा फैला दिया था ताकि शक्तिसिंह का लंड ज्यादा से ज्यादा अंदर तक वार कर सके। शक्तिसिंह ने अपना चेहरा राजमाता के कोमल चेहरे पर रगड़ा, और बारी-बारी से उनके चेहरे को चाटा। अब वह थोड़ा स नीचे पहुंचा और राजमाता की कढ़ाईदार रेशमी चोली को एक ही झटके में फाड़ दिया। उनके गुलाबी निप्पलों को पागलों की तरह चूसने लगा। अतिरिक्त उत्तेजना से कराहती हुई राजमाता अपने चरमसुख तक पहुंच गई। और स्खलित होते होते उन्होंने अपनी जांघों की कुंडली में शक्तिसिंह के लंड को ऐसे फसाया की वह भी कांपते हुए झड़ गया। राजमाता की चुत, शक्तिसिंह के पौष्टिक तरल पदार्थ से भर गई थी, और अब भी वह उसके विशाल लंड को लयबद्ध तरीके से निचोड़ रही थी।

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शक्तिसिंह निढाल हो कर राजमाता के स्खलन के नशे के उतरने का इंतजार कर रहा था। उनकी चुत की माँसपेशियाँ स्खलन के कारण अकड़ गई थी और शक्तिसिंह का लंड फंस गया था। अपने लंड को चुत से बाहर निकालने में असमर्थ होने के कारण वह लेटे लेटे उनकी निप्पलों को चबाता रहा.. तब तक चूसता रहा जब तक अंततः राजमाता की चुत ने उसके विशाल लंड को छोड़ नहीं दिया।

दो बार झड़ने के बावजूद शक्तिसिंह का लंड बैठने का नाम ही नही ले रहा था... उसने राजमाता को अपने हाथों और घुटनों के बल पलट दिया और वह उनके पीछे बिस्तर पर चढ़ गया और अपने घुटनों को उनके घुटनों के साथ मिला दिया।

शक्तिसिंह ने हौले से राजमाता के नितंबों को अलग किया और वहाँ उसका सिकुड़ा हुआ गुलाबी असुरक्षित द्वार नजर आते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने अपने हाथों पर थूका और राजमाता की गाँड़ के छिद्र की मांसपेशियों को महसूस करते हुए थूक को छेद के चारों ओर घुमाया। अचानक राजमाता की गाँड़ का छिद्र सिकुड़ गया, और उस कसाव को अपनी उंगली पर महसूस कर वह रोमांचित हो गया।

उसने अपनी तर्जनी को छेद पर रखा और धीरे-धीरे उसे अंदर धकेला जब तक कि उनका छेद फिर से शिथिल न हो गया। अब उसने अपनी दूसरी उंगली अंदर डाल दी। राजमाता भी इन एहसासों को बड़े ही मजे से महसूस कर रही थी। शक्तिसिंह ने उन्हे धीरे-धीरे अपनी गांड के छेद को भरने की अनुभूति का आदी बना दिया। राजमाता अब उस कगार पर आ गई थी की वह चिल्लाकर कहना चाहती थी कि शक्तिसिंह उसके लंड को अपनी गुदा में घुसाए, पर वह अपनी गांड मराने की तड़प को जताना नही चाहती थी।

अब शक्तिसिंह ने अपनी उँगलियाँ हटाईं, अपने लंड पर थूका और फिर उसकी गांड के छेद पर भी थूका और फिर अपना लंड राजमाता के उस झुर्रीदार छेद पर रख दिया। धीरे-धीरे उसने अपना शिश्नमणि अंदर घुसाय। जब उसका सुपाड़ा छेद के पार गया तो राजमाता दर्द से कराह उठी।

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पर इस बार शक्तिसिंह ने निश्चय कर लिया था की राजमाता कितना भी चिल्लाए, वह नही रुकेगा... उसने अपना आधा लंड अंदर घुसेड़ा तब राजमाता छटपटाने लगी पर फिर भी उन्होंने शक्तिसिंह को नही रोका... इस दर्द से कैसे आनंद उठाते है, वह शायद सिख चुकी थी।

आख़िरकार उसने अपना पूरा लंड अंदर घुसा दिया और फिर अंदर बाहर करना शुरू किया। मंत्रमुग्ध होकर वह लंड को आते जाते देखता रहा। बाहर निकालते वक्त उसका लंड तब तक फिसलता रहा जब तक कि केवल उसका सुपाड़ा ही उसमें नहीं फंसा रह गया। वह एक पल के लिए रुका और फिर लंड को जोर से अंदर घुसा दिया, इसबार राजमाता की वास्तविक चीख निकल गई। राजमाता की गांड पर उसने लगातार हमला करना शुरू कर दिया, उनके सिर को जबरदस्ती पकड़कर उनकी गर्दन के पिछले हिस्से को काटने लगा। इस स्थिति से संतुष्ट नहीं होने पर उसने राजमाता को पेट के बल लिटा दिया और उनकी गांड को धमाधम पेलने लगा। । राजमाता के चेहरे पर वासना से भरे भाव उसे और अधिक ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए उत्साहित कर रहे थे।

ताव में आकर जबरदस्त धक्के लगाते हुए शक्तिसिंह तीसरी बार झड़ गया... राजमाता की गांड को पावन कर उसने अपना लंड बाहर खींचा और उनके बगल में लाश की तरह ढल गया...


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Awesome update
 
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