Update:-33(B)
आरव:- कोई बात नहीं। तुम्हे बिल्कुल भी डरने कि जरूरत नहीं है। तुम बस बैकअप पॉवर स्टेशन कहां है वो मुझे बताकर गाड़ी में इंतजार करना। जब मैं कहूं "हो गया" तब तुम्हे सिर्फ इतना करना है कि कार को रेवर्स करके लेे आना और गली के बीचों-बीच लगा देना ताकि रास्ता ब्लॉक हो जाए।
कुंजल:- बस इतना ही..
अराव:- हां बस इतना ही.. और हां कार के अंदर ही बैठी रहना क्योंकि ये बुलेट प्रूफ है। कुछ भी हो जाए बाहर मत निकालना।
कुंजल को सारी बातें समझाते-समझाते, दोनों गली के दूसरे मोड़ पर पहुंच गए। आरव अपना बैग उठाया, और चल दिया बैकअप पॉवर स्टेशन के पास। वहां बस एक छोटी सी बाधा थी जिसे आरव क्लियर करते हुए अपस्यु से कहा… रेडी.. फिर 3, 2, 1,… इधर अपस्यु ने ट्रांसफार्मर में शॉर्ट शिर्कट किया उधर अराव ने बैकअप पॉवर स्टेशन कि बैंड बजा दिया।
अराव के इशारे पर कुंजल अपना काम करके बस इंतजार करने लगी। इधर अपस्यु भी गली के दूसरे मोड़ को वहीं की एक कार से ब्लॉक करके, उसमें धमाका किया। दोनों भाई ने चेहरे पर मस्क लगाया और बाहर चारो ओर धुआं ही धुआं।
सब प्लान के मुताबिक हो रहा था। पॉवर कट और उसके 2 मिनट में ही बाहर का रास्ता ब्लॉक करके चारो ओर धुआं करना।.. अब दोनों भाई दरवाजे पर बैठकर उसके खुलने का इंतजार करने लगे।
जैसा कि उन्हें पता था, कुछ लोग पॉवर सप्लाई चेक करने बाहर अा रहे होंगे.. जैसे ही दरवाजा खुला… दोनों भाई स्मोक बॉम्ब लेे कर तैयार थे। जब उन्होंने दरवाजा खोला तो बाहर पूरा अंधेरा कोहरा जैसा लगा, जिसमें उनकी टॉर्च और फ़्लैश लाइट कोई काम कि नहीं थी।
खतरे का अंदाजा होते ही वो लोग दरवाजा बंद करने लगे लेकिन धुएं और अंधेरे की आड़ में दोनों भाई अंदर घुस चुके थे और जिन-जिन के हाथो की टॉर्च लाइट जल रही थी। सबको अंधेरे में "वन लास्ट शॉट" पड़ रहे थे। बिल्कुल साधा हुआ निशाने के साथ, कान के ठीक नीचे एक जोरदार प्रहार और बस एक चींख निकल कर आवाज़ दब जाती।
दोनों भाई एक-एक कदम बढ़ रहे थे और एक-एक स्मोक बॉम्ब डालते आगे बढ़ रहे थे। टॉर्च जला कर लोग देखने कि कोशिश तो कर रहे थे लेकिन एक इंच आगे देखने में भी परेशानी हो रही थी, गोली किसपर चलाते। और बस चंद सेकेंड का ही मोहलत होता, उसके बाद तो धुएं कि चपेट में आने वाले बेहोश होकर गिर रहे थे।
काम जैसा सोचा ठीक वैसा ही हुआ और दोनों भाई वहां से एग्रीमेंट की फाइल उड़ाने में कामयाब हो गए। एग्रीमेंट के पेपर हाथ में आते ही अराव ने अपस्यु को वहां से निकलने के लिए खिंचा। लेकिन एग्रीमेंट ढूंढ़ने के चक्कर में अपस्यु के हाथ एक कमाल कि डायरी लग गई। अपस्यु कुछ देर रुकने का संकेत दिया और उस डायरी के सारे पन्नों को अपने मोबाइल के कमरे में पैक कर लिया।
काम होते ही निकालने का इशारा मिला। इस्तमाल हुई गाडियां अलग अलग मेट्रो स्टेशन के पार्किंग में लगाकर आरव और अपस्यु मेट्रो से होटल ताज पैलेस के पास पहुंचे वही कुंजल बीएमडब्लू को लेकर होटल ताज पैलेस पहुंच गई।
तीनों ताज के बाहर मिले और वहीं से फिर अंदर सिन्हा जी के फैमिली डिनर पार्टी पर चले गए। एक पूरा हॉल एरिया ही बुक था जहां कुछ और गेस्ट भी थे। अपस्यु को देखकर सिन्हा जी अपने एक गेस्ट को छोड़कर उससे मिलने चले गए।
सिन्हा:- कातिल दिखने लगे हो तुम तो। यहां की लड़कियों का आकर्षण तुम ही हो। अपस्यु:- अरे अरे अरे… सर जी हुआ क्या है…
"हेल्लो हैंडसम, कहां रहते हो आजकल, कोई मुलाकात ही नहीं। डैड बता रहे थे कि तुम दिल्ली शिफ्ट हो गए"… पीछे से सिन्हा जी की बेटी "ऐमी" अपनी बात कहती वहीं खड़ी हो गई।
अपस्यु और सिन्हा जी के बीच कुछ नजरों का इशारा हुआ और अपस्यु, आरव की ओर देखने लगा…. "तुम दोनों बातें करो मैं आया".. और इतना कहकर सिन्हा जी आरव और कुंजल के पास पहुंच गए।.. इधर अपस्यु, ऐमी को हां में जवाब देकर इधर- उधर देखने लगा..
ऐमी:- दिल्ली आए फिर भी कोई मुलाकात नहीं।
अपस्यु:- थोड़ा व्यस्त चल रहा था ऐमी इसलिए नहीं मिल पाया। अब तो यहीं हूं मुलाकात होते रहेगी। वैसे मैंने सुना था तुम यूएस जा रही थी वो क्या करने..
ऐमी:- बैचलर इन म्यूजिक
अपस्यु:- हां वही।
ऐमी:- नहीं जा सकी यार। डैड ने कहा म्यूजिक ही सीखना है तो यहीं सीख लो। यूएस घूमने के लिए तुम्हे वहां पढ़ने कि क्या जरूरत है.. जाओ जितने दिन तक मन हो घूम आओ..
अपस्यु:- गई थी फिर घूमने..
ऐमी:- येस.. 2 महीने का यूरोप टूर और 1 मंथ का यूएस.. लास वेगास क्या जगह है यार.. मज़ा आ गया।
अपस्यु:- तो पापा को बोलकर वहीं सैटल हो जाना था ना।
ऐमी:- नाइट लाइफ ही बढ़िया है। डे लाइफ तो बोरिंग है यार। वहां की लाइफ में वो थ्रिल और एडवेंचर नहीं जो यहां की लाइफ में है। हां घूमने के लिए मस्त जगह है पर रहने के लिए… अपने इंडिया से बेस्ट कोई जगह नहीं।
"क्या बातें हो रही है तुम दोनों में"… सिन्हा जी काम निपटाकर उनके बीच पहुंचे..
ऐमी:- कुछ नहीं डैड वो वर्ल्ड टूर वाली बातें चल रही थी...
अपस्यु:- ठीक है ऐमी, सर, अब मैं चलता हूं।
ऐमी:- डैड ये अपस्यु कितना बदल गया है ना.. पहले पार्टी खत्म होने तक रुकता था.. आज आया और जा रहा है।
सिन्हा जी:- कोई काम होगा बेटा, इसलिए जा रहा है।
अपस्यु ने फिर ज्यादा बातें नहीं बनाया और वहां से दोनों को अलविदा कहकर तीनों भाई बहन निकल गए। तीनों अपने कार में सवार होकर तेज म्यूजिक बजाया और कार अपनी रफ्तार से निकाल पड़ी "किट्टी सु" पब।
पब के अंदर पहुंचते ही तीनों बार काउंटर पर पहुंचे.. सब कुछ भूल कर मस्ती में 4 टकीला शॉट लगाया और डीजे की धुन पर थिरकने लगे। अपस्यु थोड़ी देर नाचने के बाद बार काउंटर पर बैठ गया और कॉकटेल का आंनद लेते दोनों को मस्ती में नाचते हुए देखने लगा। उन्हें नाचते देख अपस्यु मुस्कुरा भी रहा था और कॉकटेल का मज़ा भी लेे रहा था।
तीनों ने वहां खूब मस्ती की, पार्टी रात के 11:30 बजे तक चली उसके बाद तीनों वापस से फ्लैट पहुंचे। आरव और कुंजल कुछ ज्यादा ही पी लिए थे इसलिए वो दोनो आते ही सो गए और अपस्यु खिड़की के बाहर झांक कर सहर की रौशनी को देख रहा था।
"छपाक- छपाक"… श्वंस अंदर ही अटकी राह गई और आरव और कुंजल चौकते हुए उठकर बैठ गए।
"पास में नींबू पानी रखा है, पियो और जल्दी से रेडी हो जाओ"… अपस्यु ने दोनों को जगाते हुए कहा। आधे घंटे बाद दोनों तैयार होकर आए तब तक दोनों का नाश्ता भी लग चुका था। ..
अपस्यु:- मैंने कल रात सोच लिया..
अराव:- क्या सोच लिया..
अपस्यु:- कुंजल रिहैब सेंटर जाएगी।
कुंजल:- भाई नहीं.. प्लीज.. देखो कल रात मैंने कहां कुछ भी लिया।
अपस्यु:- एक बार का नशेड़ी हमेशा का नशेड़ी
कुंजल:- जी नहीं … मैं एडिक्ट नहीं हूं।
आरव:- प्रूफ करो।
कुंजल:- कैसे प्रूफ करना होगा।
अपस्यु:- 15 दिन रोज सुबह ब्लड टेस्ट…
कुंजल:- ठीक है मुझे मंजूर है।
"चलो फिर बैग पैक करो। और हां मां को आज मैं चिल्ड्रंस केयर घुमाने ले जा रहा हूं, तो जबतक हम लौटे, कुंजल को सभी बुनियादी बातें बताकर ट्रेनिंग का आइडिया दे देना। कल सुबह से इसकी ट्रेनिंग शुरू होगी।"… अपस्यु अपना बैग पैक करते हुए बोला।
सुबह के तकरीबन 11 बज रहे थे। नंदनी और अपस्यु दोनों सुनंदा चिल्ड्रंस केयर पहुंचे। जैसे ही अपस्यु वहां के कैंपस में पहुंचा सभी दौड़े चले आए।.... अपस्यु उनके साथ थोड़ी देर तक बात किया फिर नंदनी को लेकर वहां की सारी व्यवस्था दिखाने लगा। वहां रहने वाले सभी बच्चे नंदनी को अपना-अपना कमरा दिखाने लगे। वहां उनका रहन-सहन देखकर नंदनी काफी खुश हुई।
सबके कमरे घूमने के बाद अपस्यु जैसे ही गैलरी में आया.. सामने से वैभव दौड़ता हुआ आया और अाकर सीधा नीचे बैठ गया। उसे देखते ही अपस्यु मुस्कुराने लगा और खुद तो बैठा ही साथ में नंदनी को भी बैठने का इशारा किया..
वैभव:- भैय्या… (थोड़ा सांस लिया)… भैय्या… (फिर सांस लिया)
अपस्यु:- रुक जा बाबा.. पहले पूरा सांस लेले फिर बोल…
"इक मिनट".. बोलकर वैभव अपने सीने पर हाथ रखकर अपनी सासें सामान्य करते हुए… "भैय्या यहां मन नहीं लगता है। बस स्कूल से कैंपस और कैंपस से स्कूल होता रहता है। यहां तो कहीं बाहर भी नहीं जा सकते और तो और इतना बड़ा ग्राउंड भी नहीं है कि खेल सकते है।"
अपस्यु:- बाप रे इतनी ज्यादा प्रॉबलम।
वैभव:- और नहीं तो क्या? अगर ऐसा ही चलता रहा तो हम तो खेलना ही भूल जाएंगे।
अपस्यु:- आप इनसे मिले.. ये देखिए मेरी मां अाई हैं।
विभव:- मां .. वो जो आप ने उस दिन फिल्म में दिखाया था वैसा ही ना।
नंदनी:- इधर अा जाओ… मै यहां नहीं थी ना इसलिए आपने फिल्मों में ही मां को देखा है। अब मै अा गई हूं ना तो आप को मां कहीं और ढूंढनी नहीं पड़ेगी।
वैभव:- सच्ची में…
नंदनी:- हां बिल्कुल सच्ची।
वैभव ने नंदनी के गालों पर किस किया और वो फिर से भाग गया खेलने के लिए। नंदनी, वैभव को सुनकर काफी खुश हुई फिर वहां से दोनों आफिस में पहुंचे… वहां के सारे स्टाफ और सुपरवाइजर से मिलने के बाद दोनों शाम के 6 बजे तक लौट आए।
नंदनी बहुत खुश नजर आ रही थी। वो अपने सभी बच्चों के साथ बैठकर चिल्ड्रंस केयर का अपना अनुभव साझा करने लगी। अपस्यु और आरव भी वहां के कुछ खट्टे-मीठे यादें साझा करने लगे। रविवार का खुशहाल परिवारिक माहौल चलता रहा और सब बैठकर एक दूसरे की खिचाई और बातचीत में मशगूल थे।
परिवार के साथ वक़्त कैसे बीता पता भी नहीं चला। बात करते-करते शाम गुजर गई और बात करते-करते सभी सो भी गए, किंतु अपस्यु अब भी जाग रहा था। अपनी सोच में डूबा वो देर रात 2 बजे बालकनी से फिर से वो झरोखा एक बार देखा… उसके चेहरे पर एक संतोषजनक मुस्कान थी और चंद दिल के अल्फ़ाज़…
रूप आकर्षण में जो मोह गया मन
सो प्रेम परिभाषित कहां से होय ।
हृदय संग जो प्रीत का मेल भय
फिर रूप मोह रहा ना कोय ।।
(जो किसी के रूप को देख कर आकर्षित हो जाए, उसे सच्चे प्रेम की कल्पना नहीं करनी चाहिए। और जहां दिल से दिल मिल जाते हैं, फिर रूप रंग कोई मायने नहीं रखता)