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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ४५ पृष्ठ ४५८

आयी मिलन की बेला
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फागुन के दिन चार भाग २९

गुड्डी का प्लान

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कागज आया और तीन-चार फोन भी। गुड्डी प्लान बनाने में बिजी हो गयी और डीबी फोन में



आखिरी फोन शायद एस॰टी॰एफ॰ के हेड का। डी॰बी॰ का चेहरा टेंस हो गया और आवाज भी तल्ख़ थी। वो सर सर तो बोल रहे थे, लेकिन टोन साफ था की उसे ये पसंद नहीं आ रहा था।

लेकिन कुछ फोन बगल के कमरे में भी बज रहे थे, जहां उनके साथ के और जूनियर अधिकारी बैठे थे, और डीबी उधर चले गए। दरवाजा खुला हुआ था और उनकी फोन की बात चीत और जो वो इंस्ट्रक्शन दे रहे थे साफ़ सुनाई दे रहा था।



गुड्डी पेन्सिल से लाइने खींच रही थी, कभी बंद खिड़की से बाहर अपने स्कूल की ओर देखती जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रही हो और फिर कागज की ओर मुड़ जाती।



और मैं सोच रहा था, डीबी ने जो बातें बतायीं एकदम सही थीं, लेकिन जो बाते गुड्डी सोच रही थी वो भी सही थीं और ज्यादा सही थीं। फिर एक तरह से मेरी सोच भी सही थी।


डीबी अंदाज लगा रहे थे स्कूल में लड़कियों को होस्टेज बनाने वाले कौन हैं, किस तरह के लोग है और उनका मोटिव क्या है ?

इससे उनका काम करने का तरीका पता चल सकता था और उन्हें टैकल करना ज्यादा आसान होता, लेकिन वह साफ़ नहीं हो रहा था। मैंने भी फाइलों में ही सही और केस स्टडी में बहुत से आतंकी ग्रुप्स के बारे में पढ़ा था। कश्मीर के बाहर तो आतंकी सिर्फ दहशत फैलाते हैं और बम्ब का इस्तेमाल करते हैं चाहे ट्रेन में हो या कार में, और हमेशा ज्यादा भीड़ वाली जगह पर और किसी को पता चलने के पहले गायब हो जाते हैं

अब यह जो भी है,... निश्चित रूप से पकडे जाएंगे या मारे जाएंगे।

पर गुंडे बदमाश भी समझ में नहीं आते, सिद्द्की का जलवा तो मैं देख ही चुका था तो कोतवाली के इतने पास और दिन दहाड़े किस गुंडे की हिम्मत होगी? और सबसे बड़ी बात ऐसा सॉफिस्टिकेटेड बम्ब कैसे उसके पास आ सकता है,


सामने टीवी चल रहा था, भले ही म्यूट पर हो लेकिन चल रहे रनर इस घटना को पूरी तरह आतंकी बताने पर तुले थे।

और इसमें फायदा उन्ही का था, .....टी आर पी बढ़ रही थी, लोग नेशनल चैनल छोड़ के लोकल लगा के देख रहे थे और अब नेशनल चैनल पर भीशुरू हो गयी थी ब्रेकिंग न्यूज में। एक लड़कियों के स्कूल में दो गुंडे घुसे तो कोई न्यूज नहीं बनती इसलिए आतंकी, और जितना मसाला हो, तो बनारस में हुए पुराने बॉम्ब ब्लास्ट की पिक्चर्स, पुरानी तबाही, और हेडलाइंस, के अभी कुछ देर बाद स्कूल में यही मंजर होगा

और बहुत से चैनल तो अलग अलग पार्टियों से जुड़े तो सरकार के खिलाफ आग उगलने से भी वो नहीं चूक रहे थे ,

ला एंड आर्डर के नाम पर आयी सरकार फेल, कोतवाली की नाक के नीचे आतंकी हमला,

और कुछ चैनल वाले अब उसे मजहबी रंग भी देने की तैयारी में थे

होली या खून की होली

अपोजिशन पार्टी के नेता तो मैदान में आ ही गए थे रूलिंग पार्टी में जो चीफ मिनिस्टर के खिलाफ थे अंदर अंदर वो मौके का फायदा उठा तहे थे और मैं समझ रहा था की डिप्टी होम मिनिस्टर का भी हाथ है इन चैनल को हवा देकर आतंकी बुलवाने में


आतंकी होने पर ही तो एस टी ऍफ़ का रोल आता।

एस टी ऍफ़ सीधे डीप्टी चीफ होम मिनिस्टर के अंदर और उनकी प्रायरटी होस्टेज को छुड़ाना नहीं बल्कि एनकाउंटर कर के पब्लिटीसीटी लेना होता । वो तो चले जाते रायता डीबी को साफ़ करना पड़ता।

और एस टी ऍफ़ के साथ डिप्टी होम मिनिसिटर की भी इज्जत बढ़ जाती।



लेकिन गुड्डी की सोच कुछ और थी

वो कोई भी हों उनका मोटिव कुछ भी हो, हमें अभी सिर्फ लड़कियों को छुड़ाने के बारे में सोचना चाहिए बस।
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और मेरा सोचना यह था की जो भी गुड्डी सोचती है वो ठीक है, मुझे तो बस ये सोचना है, ये होगा कैसे।

एक बार लड़कियां बच के निकल आयीं तो उन दुष्टों का कुछ भी, पुलिस पकडे, वो सरेंडर करें, पकडे जाने पर गाडी पलट जाए , एस टी ऍफ़ की फायरिंग में वो मारे जाएँ और उन के पास से वो दो चार एके ४७ बरामद करा दे, इससे हम लोगों का लेना देना नहीं, लेकिन लड़कियां किसी भी हालत में पुलिस आपरेशन से पहले बच जाए और एस टी ऍफ़ के आने पहले तो एकदम, क्योंकि जैसे ही फायरिंग शुरू होगी, वो बॉम्ब जरूर एक्सप्लोड कर देंगे, और उससे भी बड़ा खतरा ये था की कही पुलिस की फायरिंग में ही उनमे से कोई इंजर्ड न हो जाए,

तो अब ज्यादा टाइम नहीं था, शाम के पहले बल्कि एस टी ऍफ़ के आने के पहले किसी तरह लड़कियां वहां से निकल जाएँ पर उसके लिए जरूरी था बिल्डिंग प्लान, लड़कियां कहाँ होंगी और कैसे सेफली जहाँ लड़कियां हों उस जगह को एक्सेस कर सकते हैं और उन्हें निकाल सकते हैं



डीबी ने बताया था की उनके पास जो स्कूल का प्लान था उसमे बहुत चेंज हो गए हैं और वो ज्यादा काम का नहीं है

और गुड्डी वही प्लान बना रही थी।



लेकिन एक जंग और चल रही थी नैरेटिव की, आपत्ति में अवसर ढूंढने वालों की और डीबी उससे बाहर जूझ रहे थे ,

टीवी का वॉल्यूम मैंने थोड़ा बढ़ाया, और एक एंकर चीख रहा था,


" होली के मौके पर ही क्यों ? कौन है जो हमारे त्योहारों कोबर्बाद कर रहा है , होली को खून की होली बना रहा है। अपने अगल बगल देखिये, ....पड़ोस में देखिये, कौन लोग है जो आतंकियों को आश्रय देते हैं, पहचानियों उन्हें "


और मुझे याद आया, डीबी ने लो इंटेसिटी दंगो से पोलराइजेशन की बात की थी, कुछ पार्टियां यही चाहती हैं और मौका मिल गया तो

और डी बी सिटी मजिस्ट्रेट को समझा रहे थे,

"आप तब तक जो भी पीस कमिटी हैं उन्हें एक्टिवेट कर दीजिये, एक बार बात कर के ब्रीफ कर दीजिये, "

और फिर वो सिद्दीकी से बोले, ' जरा अफवाह वालों का पता कर के रखो, और ये लोकल चैनल वालों को टाइट करो। हाँ ट्रबुल स्पॉट है और ट्रबुल मेकर, सब थानों से एक बार बात कर के और पी ए सी की थोड़ी गश्त बढ़वा दो।


फिर सी ओ को उन्होंने बोला, " फायरिंग नहीं होगी, किसी भी हालत में नहीं होगी लेकिन अंदर घुसने की तैयारी पूरी कर लो, तीनो पेरिमीटर बन गए न और एस ओ दशाश्वमेध लीड करेंगे और बोट पुलिस को भी लगा दो, कहीं वो नदी के रस्ते न निकले '



और जब वो अंदर हम लोगो के पास आये तो गुड्डी प्लान ले के तैयार थी।
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guddi is intelligent and very proactive girl.
 

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गुंजा
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ब तक दो लोग आकर स्क्रीन सेट करने लगे, और एक रिमोट हम लोगों के पास लगा दिया जिससे कैमरा सेलेक्ट हो सकता था।

डी॰बी॰- “वो जो मकान बन रहा है ना, कैमरा उधर सेट करो। हाँ जूम करो। बस उसी खिड़की पे। हाँ और?”

खिड़की अच्छी तरह बंद थी।


डी॰बी॰- “इंटेलिजेंट। जाओ तुम सब…”

और उन्होंने हांक के जमूरों को बाहर कर दिया और हम लोगों को समझाया-

“उन सबों को ये अंदाज लग गया होगा की देर सबेर एंट्री प्वाइंट हमें पता चल जाएगा इसलिए उन्होंने अच्छी तरह से बंद कर दिया। ये कोई…”

तब तक एक और इंस्पेक्टर आलमोस्ट दौड़ता आया-

“सर साइटिंग हो गई। एक स्नाइपर ने देखा, ग्राउंड फ्लोर बाएं से तीसरी खिड़की। उसका कहना है की आब्जेक्ट अभी भी वहीं होगा, हालांकि खिड़की अब बंद हो गई है। वो पूछ रहा है की एंगेज करें उसे? एक्शन स्टार्ट करें?” उसने हांफते हुए पूछा- “कमांडो वाला ग्रुप भी रेडी है…”

डी॰बी॰- “अभी नहीं, कैमरा उधर करो, हाँ फोकस। दो लोगों को बोलना क्राल करके इनर पेरीमीटर के अन्दर घुसे। बट नो एक्शन नाट इवेन वार्निंग शाट, जाओ…” डी॰बी॰ ने आर्डर दिया।

अब कैमरा नीचे का फ्लोर दिखा रहा था। एक खिड़की हल्के से खुली थी लेकिन पर्दा गिरा था।

“मोबाइल। वो आप कह रहे थे न की उसका फोन…” गुड्डी भी अब पूरी तरह इन्वोल्व हो चुकी थी।

डी॰बी॰- “हाँ हाँ क्यों नहीं?” एकदम,...

और थोड़ी देर में रिकार्डिंग की कापी हमारे सामने बज रही थी।


शुरू में तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था, फिर एक कुर्सी घसीटने की आवाज, अस्फुट शब्द। फिर बैक ग्राउंड में एक हल्की सी चीख।

गुड्डी बोली-

“ये तो गुंजा लग रही है…” और उसने कान एकदम स्पीकर फोन से सटा लिए।
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फोन पर बोलने वाले ने एकाध लाइन बोली, फिर पीछे से आवाज आई-

“छोड़ो मुझे। हाथ छोड़ो…”

मेरा तो जी एकदम धक्क से रह गया, कलेजा मुंह को आ गया,



जैसे ही गुड्डी के मुंह से गुंजा निकला, मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया। न कुछ दिखाई दे रहा था न समझ में आ रहा था, कस के मैंने अपनी चेयर पकड़ ली।

डीबी ने रिवाइंड किया, एकदम गुंजा ही थी,



आज सुबह ही तो पहली बार उसे देखा, उससे मिला, एकदम झिलमिलाती, ख़ुशी से भरी, सुबह की कच्ची धूप की तरह, जवानी नहीं बस कैशोर्य के दरवाजे पर सांकल खड़काती,



वही याद आ गया, एकदम बिजली की तरह चमक गयी



एकदम बच्ची नहीं लग रही थी वो।सफेद ब्लाउज़ और नीली स्कर्ट, स्कूल यूनीफार्म में।


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मेरी आँखें बस टंगी रह गईं। चेहरा एकदम भोला-भाला, रंग गोरा चम्पई । लेकिन आँखें उसकी चुगली कर रही थी। खूब बड़ी-बड़ी, चुहल और शरारत से भरी, कजरारी, गाल भरे-भरे, एकदम चन्दा भाभी की तरह और होंठ भी, हल्के गुलाबी रसीले भरे-भरे उन्हीं की तरह। जैसे कह रहे हों- “किस मी। किस मी नाट…”

मुझे कल रात की बात याद आई जब गुड्डी ने उसका जिक्र किया था तो हँसकर मैंने पूछा था- “क्यों बी॰एच॰एम॰बी (बड़ा होकर माल बनेगी) है क्या?”

पलटकर, आँख नचाकर उस शैतान ने कहा था- “जी नहीं। बी॰एच॰ काट दो, और वैसे भी मिला दूंगी…”

मेरी आँखें जब थोड़ी और नीचे उतरी तो एकदम ठहर गई, उसके उभार।

उसके स्कूल की युनिफोर्म, सफेद शर्ट को जैसे फाड़ रहे हों और स्कूल टाई ठीक उनके बीच में, किसी का ध्यान ना जाना हो तो भी चला जाए। परफेक्ट किशोर उरोज। पता नहीं वो इत्ते बड़े-बड़े थे या जानबूझ के उसने शर्ट को इत्ती कसकर स्कर्ट में टाईट करके बेल्ट बाँधी थी।


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मुझे चंदा भाभी की बात याद आ रही थी,... चौदह की हुयी तो चुदवासी,

और जब होली में उनके मुंहबोले पड़ोस के जीजू ने उनकी चिड़िया उड़ाई थी वो गुड्डी की मंझली बहन से भी थोड़ी छोटी, मतलब गुंजा से भी कम उम्र,...



पता नहीं मैं कित्ती देर तक और बेशर्मों की तरह देखता रहता, अगर गुड्डी ने ना टोका होता-

“हे क्या देख रहे हो। गुंजा नमस्ते कर रही है…”

और उस के बाद जिस तरह से उसने अपने हाथ से लाल तीखे मिर्चों से भरे ब्रेड रोल खिलाये,

“जिसने बनाया है वो दे…” हँसकर गुंजा को घूरते हुए मैंने कहा।

मेरा द्विअर्थी डायलाग गुड्डी तुरंत समझ गई। और उसी तरह बोली- “देगी जरूर देगी। लेने की हिम्मत होनी चाहिए, क्यों गुंजा?”



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“एकदम…मैं उन स्सालियों में नहीं जो देने में पीछे हटजाएँ, हां लेने में, 'आपके उनके ' की हिम्मत पर डिपेंड करता है , और जिस तरह से उसने खिलाया



" जीजू आ बोलिये जैसे लड्डू खाने के लिए मुंह खोलते हैं एकदम वैसा और बड़ा, हाँ ऐसे।"

" " दी, एक बार में डाल दूँ पूरा,"

" आधे तीहै में न डालने वाले को मजा न डलवाने वाली को " बुदबुदाती गुंजा ने एक बार में बड़ा सा ब्रेड रोल खूब गरम मेरे मुंह मे।

ब्रेड रोल बहुत ही गरम, स्वाद बहुत ही अच्छा था।


लेकिन अगले ही पल में शायद मिर्च का कोई टुकड़ा। और फिर एक, दो, और मेरे मुँह में आग लग गई थी। पूरा मुँह भरा हुआ था इसलिए बोल नहीं निकल रहे थे।

वो दुष्ट , गुंजा। अपने दोनों हाथों से अपना भोला चेहरा पकड़े मेरे चेहरे की ओर टुकुर-टुकुर देख रही थी।

बस वही चेहरा मेरे आँखों के सामने घूम रहा था


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और अब, बम, होस्टेज, टेरर, बेचारी लड़की कहाँ से गुजर गयी और मैं यहाँ बैठ के समोसे खा रहा हूँ।



डीबी ने एक बार फिर से रिवाइंड कर दिया था, और गुंजा की चीख सुन के मेरे सीने में जैसे किसी ने गरम चाक़ू उतार दिया था। शाक अब गुस्से में बदल गया था। मुझे लग रहा था गुड्डी की हालत मुझसे भी ज्यादा खराब होगी, मैं तो आज मिला वो तो बचपन से ही सहेली, सगी बहन से बढ़कर



डीबी मेरी ओर पुष्टि के लिए देख रहे थे,



मैने बोला- “एकदम गुंजा ही है…”

लेकिन गुड्डी ने ध्यान नहीं दिया।

मैं समझ भी गया था और मान भी गया था गुड्डी को, वह आवाजों की रस्सी पकड़ के कमरे के अंदर घुसने की कोशिश कर रही थी,

साल भर पहले ही तो वो भी उसी क्लास में बैठती थी, एक एक आवाज को सुन के ध्यान से कमरे की हालत पढ़ने की कोशिश कर रही थी। सच में दुःख, शॉक पीने में लड़कियों का कोई मुकाबला नहीं। गुंजा है तो, मुसीबत में है, लेकिन सवाल है उसे बचाने का और ये रिकार्डिंग हेल्प कर सकती है तो चिंता से ऊपर उठ कर बस वो ध्यान से सुन रही थी।



अब फोन की आवाज साफ हो गई थी, गुड्डी ध्यान से सुन रही थी और उसकी आँखों में एक चमक सी आ गई। फिर वो एक मुश्कान में बदल गई और वो वापस कुर्सी पे आराम से बैठ गई। अब दूसरी बार के फोन की रिकार्डिंग बज रही थी।

डी॰बी॰ ने हल्की आवाज में गुड्डी से पूछा- “तुम्हें कुछ अंदाज लग रहा है?”

“हाँ…” उसी तरह गुड्डी धीमे से बोली।


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उन्होंने गुड्डी को होंठों पे उंगली रखकर चुप रहने का इशारा किया और एक मिनट। वो बोले और जाकर दरवाजा बंद कर दिया। लौटकर उन्होंने रिकार्डिंग फिर से आन की और फुसफुसाते हुए गुड्डी से बोले- “ध्यान से एक बार फिर से सुनो, और बहुत कम और बहुत धीमे बोलना…”

रिकार्डिंग एक बार फिर से बजने लगी।

खतम होने के पहले ही गुड्डी ने कहा- “बताऊँ मैं?”



डी॰बी॰ ने सिर हिलाया- “हाँ…”



चुम्मन…” गुड्डी ने बोला।
Very alert girl. Ready to catch any clue.
 

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अन्दर कौन घुसे?

मेरा कहना था की मैं।

डी॰बी॰ का कहना था की पुलिस के कमान्डो।



मेरा आब्जेक्शन दो बातों से था।

पहला जूते, दूसरा सफारी। पुलिस वाले वर्दी पहने ना पहनें, ब्राउन कलर के जूते जरूर पहनते हैं और कोई थोड़ा स्मार्ट हुआ, स्पेशल फोर्स का हुआ तो स्पोर्टस शू। और सादी वर्दी वाले सफारी। दूर से ही पहचान सकते हैं और सबसे बढ़कर। बाडी स्ट्रक्चर और ऐटीट्युड। उनकी आँखें।

डी॰बी॰ का मानना था कि बो प्रोफेशनल हैं हथियार चला सकते हैं, और फिर बाद में कोई बात हुई तो?



मेरा जवाब था- “हथियार चलाने से ही तो बचना है। गोली चलने पे अगर कहीं किसी लड़की को लगी तो फिर इतने आयोग हैं, और सबसे बढ़कर न मैं चाहता था ना वो की ये हालत पैदा हों। दूसरी बात। अगर कुछ गड़बड़ हुआ तो वो हमेशा कह सकता है की उसे नहीं मालूम कौन था? वो तो एस॰टी॰एफ॰ का इन्तजार कर रहा था…”



लेकिन फैसला गुड्डी ने किया। वो बोली-

“साली इनकी है, जाना इनको चाहिये और ये गुंजा को जानते हैं तो इन्हें देखकर वो चौंकेगी नहीं और उसे ये समझा सकते हैं…”



तब तक एक आदमी अन्दर आया और बोला- “बाबतपुर एयरपोर्ट, बनारस का एयरपोर्ट से फोन आया है की एस॰टी॰एफ॰ का प्लेन 25 मिनट में लैन्ड करने वाला है और बाकी सारी फ्लाइट्स को डिले करने के लिये बोला गया है। उनकी वेहिकिल्स सीधे रनवे पर पहुँचेंगी…”



डी॰बी॰ ने दिवाल घड़ी देखी, कम से कम 20 मिनट यहां पहुँचने में लगेंगें यानी सिर्फ 45 मिनट। हम लोगों का काम 40 मिनट में खतम हो जाना चाहिये। फिर उस इंतेजार कर रहे आदमी से कहा- “जो एल॰आई॰यू॰ के हेड है ना पान्डेजी। और एयरपोर्ट थाने के इन्चार्ज को बोलियेगा की उन्हें रिसीव करेंगे और सीधे सर्किट हाउस ले जायेंगे। वहां उनकी ब्रीफिंग करें…”



अब डी॰बी॰ एक बार फिर। पूरी टाइम लाइन चेन्ज हो गई। डी॰बी॰ ने बोला- “जीरो आवर इज 20 मिनटस फ्राम नाउ…”



मुझे 15 मिनट बाद घुसना था, 17 मिनट बाद प्लान ‘दो’ शुरू हो जायेगा 20वें मिनट तक मुझे होस्टेज तक पहुँच जाना है और अगर 30 मिनट तक मैंने कोई रिस्पान्स नहीं मिला तो सीढ़ी के रास्ते से मेजर समीर के लोग और। छत से खिड़की तोड़कर पुलिस के कमान्डो।



डी॰बी॰ ने पूछा- “तुम्हें कोई हेल्प सामान तो नहीं चाहिये?”



मैंने बोला- “नहीं बस थोड़ा मेक-अप, पेंट…”



गुड्डी बोली- “वो मैं कर दूंगी…”



डी॰बी॰ बोले- “कैमोफ्लाज पेंट है हमारे पास। भिजवाऊँ?”



गुड्डी बोली- “अरे मैं 5 मिनट में लड़के को लड़की बना दूं। ये क्या चीज है? आप जाइये। टाइम बहुत कम है…”



डी॰बी॰ बगल के हाल में चले गये और वहां पुलिसवाले, सिटी मजिस्ट्रेट, मेजर समीर के तेजी से बोलने की आवाजें आ रही थीं।



गुड्डी ने अपने पर्स, उर्फ जादू के पिटारे से कालिख की डिबिया जो बची खुची थी, दूबे भाभी ने उसे पकड़ा दी थी, और जो हम लोगों ने सेठजी के यहां से लिया था, निकाली और हम दोनों ने मिलकर। 4 मिनट गुजर गये थे। 11 मिनट बाकी थे।



मैंने पूछा- “तुम्हारे पास कोई चूड़ी है क्या?”



“पहनने का मन है क्या?” गुड्डी ने मुश्कुराकर पूछा और अपने बैग से हरी लाल चूड़ियां। जो उसने और रीत ने मिलकर मुझे पहनायी थी।



सब मैंने ऊपर के पाकेट में रख ली। मैंने फिर मांगा- “चिमटी और बाल में लगाने वाला कांटा…”



“तुमको ना लड़कियों का मेक-अप लगता है बहुत पसन्द आने लगा। वैसे एकदम ए-वन माल लग रहे थे जब मैंने और रीत ने सुबह तुम्हारा मेक अप किया था। चलो घर कल से तुम्हारी भाभी के साथ मिलकर वहां इसी ड्रेस में रखेंगें…” ये कहते हुये गुड्डी ने चिमटी और कांटा निकालकर दे दिया।



7 मिनट गुजर चुके थे, सिर्फ 8 मिनट बाकी थे। निकलूं किधर से? बाहर से निकलने का सवाल ही नहीं था, इस मेक-अप में। सारा ऐड़वान्टेज खतम हो जाता। मैंने इधर-उधर देखा तो कमरे की खिड़की में छड़ थी, मुश्किल था। अटैच्ड बाथरूम। मैं आगे-आगे गुड्डी पीछे-पीछे। खिड़की में तिरछे शीशे लगे थे। मैंने एक-एक करके निकालने शुरू किये और गुड्डी ने एक-एक को सम्हाल कर रखना। जरा सी आवाज गड़बड़ कर सकती थी। 6-7 शीशे निकल गये और बाहर निकलने की जगह बन गई।



9 मिनट। सिर्फ 6 मिनट बाकी। बाहर आवाजें कुछ कम हो गई थीं, लगता है उन लोगों ने भी कुछ डिसिजन ले लिया था। गुड्डी ने खिड़की से देखकर इशारा किया। रास्ता साफ था। मैं तिरछे होकर बाथरूम की खिड़की से बाहर निकल आया।


वो दरवाजा 350 मीटर दूर था।

यानी ढाई मिनट। वो तो प्लान मैंने अच्छी तरह देख लिया था, वरना दरवाजा कहीं नजर नहीं आ रहा था। सिर्फ पिक्चर के पोस्टर।

तभी वो हमारी मोबाईल का ड्राईवर दिखा, उसको मैंने बोला- “तुम यहीं खड़े रहना और बस ये देखना कि दरवाजा खुला रहे…”



पास में कुछ पुलिस की एक टुकडी थी। ड्राइवर ने उन्हें हाथ से इशारा किया और वो वापस चले गये। 13 मिनट, सिर्फ दो मिनट बचे थे।

मैं एकदम दीवाल से सटकर खड़ा था, कैसे खुलेगा ये दरवाजा? कुछ पकड़ने को नहीं मिल रहा था। एक पोस्टर चिपका था। सेन्सर की तेज कैन्ची से बच निकली, कामास्त्री।


हीरोईन का खुला क्लिवेज दिखाती और वहीं कुछ उभरा था। हैंडल के ऊपर ही पोस्टर चिपका दिया था। दो बार आगे, तीन बार पीछे जैसा गुड्डी ने समझाया था।

सिमसिम।

दरवाजा खुल गया। वो भी पूरा नहीं थोड़ा सा।
Action starts now. The story has become a thriller now. Very very interesting Komal ji. though we are missing erotica.
 

Sutradhar

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इस अपडेट को पढियेगा तो जवाब मिल जाएगा

बात आपकी एकदम सही है सीनियर होने का फायदा तो है ही, हाँ लेकिन वक्त की धूल बहुत कुछ धुंधला देती है तो थोड़ा बहुत,

चुम्मन और रजऊ साथ हैं लेकिन है अलग,

और कहानी के बाकी हिस्सों की तरह बहुत कुछ नया भी जुड़ा है विस्तार भी है, गुंजा के प्रसंग का भी और स्कूल का भी
ऊप्स

सही कहा कोमल मैम

थोड़ा जल्दबाजी और वक्त की धूल ने अपना काम कर दिया।

कहानी के विस्तार में बहुत कुछ नया है और उसका अलग ही मजा है।

अपडेट का इंतजार रहेगा।

सादर
 

komaalrani

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ऊप्स

सही कहा कोमल मैम

थोड़ा जल्दबाजी और वक्त की धूल ने अपना काम कर दिया।

कहानी के विस्तार में बहुत कुछ नया है और उसका अलग ही मजा है।

अपडेट का इंतजार रहेगा।

सादर
अपडेट तो पोस्ट भी हो गया, कल ही, पृष्ठ ३४७ पर

पढ़िए और झटपट कमेंट करिये
 

komaalrani

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Gajab super duper jasusi update
✔️✔️✔️✔️✔️✔️✔️
👌👌👌👌👌👌
💯💯💯💯💯
Sherlock Holmes ke jasusi novel jesi update hai, bahut pehle padhe huye jasusi novels ki yaad taza kra di aap ne didi.
Lovely update 👇
Oh Yeah Yes GIF by Mauro Gatti


200-31
एकदम सही कहा आपने

ये कहानी ये जबरदस्त थ्रिलर भी है

प्रेमकथा भी और एरोटिक सेक्स प्रसंगो और होली के हंगामा से भी भरी

लेकिन कहानी का असली रस तो तभी आता है जब ऐसी सिद्धहस्त लेखिका के भी यहाँ पग रज पड़ें, इस कहानी का एक नाम ये भी हो सकता था
' लव इन द टाइम ऑफ़ टेरर '

अब आनंद बाबू की स्साली खतरे में हैं और साली की सहेलियां भी तो अब देखना है क्या करते हैं आनंद बाबू
 

komaalrani

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komaalrani

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IS kahani Ke Kuch Vivesh Hisse Se ye pata chalta hai ki ye kahani 2010 ke Aas paas ki hai aur lekhani me gaharai ko dekhne par ye lagta hai ki ye kisi matured person ne likha hai koi 25-30 ke naye writer ne nahi .. ? am I Write(right ) 🥰
हाँ भी और नहीं भी,

हाँ, यह कहानी २०१० के दशक के आसपास की है और मैं कोशिश करती हूँ की समय और स्थान का आभास मेरे पाठकों को कम से कम लम्बी कहानियों में हो जिससे वो ज्यादा कहानी से जुड़ा महसूस कर सकें

और बाकी बातों के लिए नहीं।

अगर किसी कहानी की पृष्ठभमि, सिंधु घाटी की सभ्यता है तो यह कल्पना करना की लिखने वाला भी उसी समय का होगा, निश्चित रूप से गलत होगा। कई बार पौराणिक गाथाओं को आधार बना के भी कहानी लिखी जाती है, तो क्या हमें मानना चाहिए की लेखक भी सतयुग या द्वापर का होगा ? तो अगर यह कहानी किसी काल क्रम से जुडी है, और वो भी मात्र पृष्ठ्भूमि से तो लेखक के बारे में कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता।

दूसरी बात, लेखन की परिपक्वता और लेखक की बायोलॉजिकल एज से आपने जो टांका भिड़ाने की कोशिश की है वो भी गलत है और मैं उदाहरण दे रही हूँ बनारस का ही, क्योंकि ये कहानी अभी बनारस में चल रही है।

आधुनिक हिंदी के जनक भारतेन्दु हरिशचंद्र का जन्म १८५० में बनारस में हुआ और मात्र ३५ वर्ष से कम की आयु में उन्होंने हिंदी गद्य की शुरुआत की और दर्जनों नाटक, निबंध, कविता संग्रह लिखे। उनके मशहूर नाटक २२-२३ वर्ष की आयु में छप चुके थे। कविगुरु रविन्द्रनाथ टैगोर को कौन नहीं जानता, और उनका पहला कविता संग्रह २१ वर्ष की आयु में निकला था।

लेखक की परिपक्वता, उम्र से नहीं पढ़ने से आती है, किताबे भी और जिंदगी की किताब भी और उस पढ़ने से वह क्या देखता है, सीखता है उसका क्या निरूपण कहानी में कर पाता है , और यह बात सिर्फ लेखक के लिए नहीं बल्कि एक अच्छे पाठक के लिए भी जरूरी है।

मैंने पहले भी कई बार कहा है की इस कहानी को लिखने के लिए मैंने कई किताबो को आद्योपांत पढ़ा है और कई बातों की गहराई के लिए नेट का सहारा लिया, और वो सीन कहानी में एक दो लाइनों में निकल गए जैसे अभी कुछ दिन पहले पोस्ट भाग २७ मैं गुड्डी और होटल ( पृष्ठ ३२५ ) को ले

अबकी तान्या और मोंस्योर सिम्नों दोनों की मुश्कुराहट ज्यादा स्पष्ट थी। फिर दो-चार बूंदें जीभ पे रखकर एक मिनट के लिए महसूस किया और मेरी आँखें बंद हो गई। धीमे-धीमे मैंने उसे गले के नीचे उतारा और जब मैंने आँखें खोली तो मेरी आँखें चमक रही थी-

“ग्रेट। ग्रेट विंटेज मोंस्योर। इफ आई आम नाट रांग। आई थिंक। 2005। 2005 एंड सैंट मार्टिन…”

बस मोंस्योर ने ताली नहीं बजाई। प् अब वो बोले- “यस। वी हव स्पेशली सेलेक्टेड फार यू…”



मैंने दो घूँट और मुँह में डाली और बोला- “मेर्लोत…” उनकी आँखें थोड़ी सिकुड़ी लेकिन फिर मैंने बोला ब्लेंड के लिए अक्चुअली- “कब्रेंते सुव्ग्नन…”

उन्होंने हल्के से झुक के बो किया और बोले- यु आर अ रियल गूर्मे, एनी थिंग मोर?”

वाइन के इन डिटेल्स के लिए मुझे बहुत पढ़ना और ढूंढना पड़ा

so you are not write ( right) in these respects but thanks so much for taking time, reading, enjoying and sharing comments
:thanks: :thanks: :thanks: :thanks: :thanks:
 
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Real@Reyansh

हसीनो का फेवरेट
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हाँ भी और नहीं भी,

हाँ, यह कहानी २०१० के दशक के आसपास की है और मैं कोशिश करती हूँ की समय और स्थान का आभास मेरे पाठकों को कम से कम लम्बी कहानियों में हो जिससे वो ज्यादा कहानी से जुड़ा महसूस कर सकें

और बाकी बातों के लिए नहीं।

अगर किसी कहानी की पृष्ठभमि, सिंधु घाटी की सभ्यता है तो यह कल्पना करना की लिखने वाला भी उसी समय का होगा, निश्चित रूप से गलत होगा। कई बार पौराणिक गाथाओं को आधार बना के भी कहानी लिखी जाती है, तो क्या हमें मानना चाहिए की लेखक भी सतयुग या द्वापर का होगा ? तो अगर यह कहानी किसी काल क्रम से जुडी है, और वो भी मात्र पृष्ठ्भूमि से तो लेखक के बारे में कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता।

दूसरी बात, लेखन की परिपक्वता और लेखक की बायोलॉजिकल एज से आपने जो टांका भिड़ाने की कोशिश की है वो भी गलत है और मैं उदाहरण दे रही हूँ बनारस का ही, क्योंकि ये कहानी अभी बनारस में चल रही है।

आधुनिक हिंदी के जनक भारतेन्दु हरिशचंद्र का जन्म १८५० में बनारस में हुआ और मात्र ३५ वर्ष से कम की आयु में उन्होंने हिंदी गद्य की शुरुआत की और दर्जनों नाटक, निबंध, कविता संग्रह लिखे। उनके मशहूर नाटक २२-२३ वर्ष की आयु में छप चुके थे। कविगुरु रविन्द्रनाथ टैगोर को कौन नहीं जानता, और उनका पहला कविता संग्रह २१ वर्ष की आयु में निकला था।

लेखक की परिपक्वता, उम्र से नहीं पढ़ने से आती है, किताबे भी और जिंदगी की किताब भी और उस पढ़ने से वह क्या देखता है, सीखता है उसका क्या निरूपण कहानी में कर पाता है , और यह बात सिर्फ लेखक के लिए नहीं बल्कि एक अच्छे पाठक के लिए भी जरूरी है।

मैंने पहले भी कई बार कहा है की इस कहानी को लिखने के लिए मैंने कई किताबो को आद्योपांत पढ़ा है और कई बातों की गहराई के लिए नेट का सहारा लिया, और वो सीन कहानी में एक दो लाइनों में निकल गए जैसे अभी कुछ दिन पहले पोस्ट भाग २७ मैं गुड्डी और होटल ( पृष्ठ ३२५ ) को ले

अबकी तान्या और मोंस्योर सिम्नों दोनों की मुश्कुराहट ज्यादा स्पष्ट थी। फिर दो-चार बूंदें जीभ पे रखकर एक मिनट के लिए महसूस किया और मेरी आँखें बंद हो गई। धीमे-धीमे मैंने उसे गले के नीचे उतारा और जब मैंने आँखें खोली तो मेरी आँखें चमक रही थी-

“ग्रेट। ग्रेट विंटेज मोंस्योर। इफ आई आम नाट रांग। आई थिंक। 2005। 2005 एंड सैंट मार्टिन…”

बस मोंस्योर ने ताली नहीं बजाई। प् अब वो बोले- “यस। वी हव स्पेशली सेलेक्टेड फार यू…”



मैंने दो घूँट और मुँह में डाली और बोला- “मेर्लोत…” उनकी आँखें थोड़ी सिकुड़ी लेकिन फिर मैंने बोला ब्लेंड के लिए अक्चुअली- “कब्रेंते सुव्ग्नन…”

उन्होंने हल्के से झुक के बो किया और बोले- यु आर अ रियल गूर्मे, एनी थिंग मोर?”

वाइन के इन डिटेल्स के लिए मुझे बहुत पढ़ना और ढूंढना पड़ा

so you are not write ( right) in these respects but thanks so much for taking time, reading, enjoying and sharing comments
:thanks: :thanks: :thanks: :thanks: :thanks:
इतना कौन पढ़ता है दीदी 21 साल के उम्र मे .. अपने तो Maths Physics कोडिंग और Marketing ही नहीं खत्म हुयी थी, 21 साल में 😟🥺,

Well I have Just Said It Is About Style of Writing NOT about Details .. But Thanks Once Again ..

Aap को जब भी Poke करता हूं एक नया Perception मिलता है कुछ नया सीखने को मिलता है .. Thank You For Considering My View Point Observeble .. .. 🫠🫣
 
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