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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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छुटकी -होली दीदी की ससुराल में

भाग १११ पंडित जी और बुच्ची की लिख गयी किस्मत पृष्ठ ११३८

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Chalakmanus

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बहुत बहुत आभार

पहली लाइक, पहला कमेंट और कहानी ख़त्म होने के साथ ही

कितनी बार भी धन्यवाद करूँ कम पड़ेंगे

और हाँ बात आप की सौ टके सही, सूरजु को दिन रात तो मेहनत तो करनी ही पड़ेगी, सोने ऐसी जवानी अबतक मिटटी के अखाड़े में रगड़ता रहा

और अब जब सोनपरियां एक से एक खुद चल के उसके पास आ रही है तो ये मौका सोने का नहीं है, न सोने देने का है और रतजगे में तो देख देख के रही सही झिझक भी दूर, तो बस देखिये कितनी कन्याये, कितनी महिलायें कुश्ती लड़ती हैं शादी के पहले


:thanks::thanks::thanks::thanks::thanks::thanks::thank_you::thank_you::thank_you::thank_you::thank_you::thank_you::thank_you:
Bus kuch kachi kaliya interfaith wali mil jai to sone pe suhaga ho jaiga
 

Chalakmanus

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शादी बियाह का घर जमावड़ा तो होगा और नयी उम्र की नयी फसल टाइप लड़के लड़कियों को मौका भी खूब मिलेगा,
Ek dum shadi ka ghar hai.aisha prasang dobara nahi milega.koi kami nahi honi chahiye.aap samaye lijiye par kahani se koi samjhota nahi.

Abhi mithai ka dabba to aapne chhod diya tha.aur mithai ko hi hath lagwa diya.
 

komaalrani

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Chuniya or buchi main to deal ho gayi

अदला बदली वाली, दोनों का फायदा और दोनों के भाइयों का फायदा

बहनें हो तो ऐसी,
 

komaalrani

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komaalrani

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बहुत बहतरीन…..उम्मीद से भी ज्यादा खूबसूरत और आपको लेखनी का ऐसा जादू...हर बार आपकी कायल हो जाती हूं। ऐसा हुनर बख्शा है ऊपर वाले ने आपको। शब्द कम पड़ जाता है और कुछ सूझता नहीं है कि आपकी तारीफ किन लफ़्ज़ों में करूं...कोटि कोटि नमन आपको
यह भाग आप ही को ट्रिब्यूट है, आप ने पता नहीं याद रखा की बिसरा दिया

इसी कहानी में सुगना के प्रसंग में आप की टिप्पणी के संदर्भ में मैंने कहा था, ( जस का तस दुहरा रही हूँ )

इसी कहानी का पृष्ठ ८३१ पोस्ट ८,३०५

" यह पोस्ट सुगना भौजी ,
आरुषि जी की कविता ससुर और बहू से अनुप्राणित है और आरुषि जी को ट्रिब्यूट के तौर पर समर्पित है।

कंचन और ससुर कहानी का आरुषि जी ने एक काव्य रूपांतर प्रस्तुत किया था, मेरी कहानी जोरू के गुलाम में कई भागो में। यह कविता पृष्ठ ११९५ ( पोस्ट ११९५० ) से शुरू हुयी थी जिसमे आरुषि जी ने कहा था,

"आज एक नई कविता शुरू कर रही हूं जो एक कहानी से प्रेरित है जो मैंने यहां ससुर और बहू (कंचन और ससुर) के बीच यौन संबंधों पर पढ़ी है।"


और मैंने उनकी पंक्तियों से प्रभावित होकर लिखा था

" अब जो आपने ससुर बहु का यह प्रंसग यहाँ दिखाया है, तो मुझे लग रहा है की आपकी इस कविता के ट्रिब्यूट के तौर पर छुटकी होली दीदी की ससुराल में एक छोटा ही प्रसंग, बहू और ससुर के बारे में लिखने का प्रयास करूँ, जो आपकी कविता की प्रतिछाया भी नहीं होगी पर मेरी ओर से एक छोटा सा ट्रिब्यूट होगा इस कविता को, : ( जोरू का गुलाम -पृष्ठ ११९६)

तो बस वही छोटी सी कोशिश है सुगना और ससुर के रूप में

हाँ एक बात और

इस भाग में सवाल ज्यादा उपजे हैं

क्या सुगना के ससुर ठीक हो पाए ?

हिना की माँ और ठाकुर साहब, सुगना के ससुर का जिक्र भी आया है,

और सबसे बढ़कर सुगना और ससुर जी का असली किस्सा एक लाइन में निपटा दिया " रात को दावत हुयी जम कर "

तो तबियत खराब होने के पहले करीब साल भर के किस्से बस एक लाइन में

नहीं नहीं , अगर आप सब को यह हिस्सा अच्छा लगा तो यह किस्सा खूब विस्तार से सात आठ भाग में जैसे अरविंद और गीता का या रेनू और कमल का किस्सा है उसी तरह आएगा"


और आपकी जोरू का गुलाम पृष्ठ ११९६ पर ससुर बहु की अद्भुत कविता के बारे में मैंने लिखा था

" एक जबरदस्त कहानी का जबरदस्त काव्य रूपांतर,

आभार के शब्द कम पद जाते हैं

इस फोरम में अक्सर नजदीकी रिश्तों की ही कहानियां होती है जीजा साली, देवर भाभी,

कुछ हिम्मती इन्सेस्ट लिखने वाले हुए तो भाई बहन या माँ बेटा

लेकिन आपकी पिछली काव्यकथा ने चाची - भतीजे के संबंधों पर दृष्टिपात किया और इस बार ससुर बहू के संबंधो पर, मैं आपकी फैन तो पहले से थी लेकिन इन नये आयामों का असर मेरी कहानी पर भी पड़ने लगा है, खासतौर से छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

इन्सेस्ट के आँगन में मैं पर नहीं रखती थी क्योंकि मुझे मालूम था की वह विधा कितनी कठिन है लेकिन आपकी कविताओं ने इस तरह असर किया की अरविन्द और गीता का प्रसंग में भाई बहन के संबंध पर मैंने लिखने की कोशिश की फिर रेनू और कमल,... और अभी तो

अब जो आपने ससुर बहू का यह प्रसंग दिखाया है तो मुझे लग रहा है की आप की इस कविता की ट्रिब्यूट के तौर पर छुटकी - होली दीदी की ससुराल में एक छोटा ही प्रसंग बहू और ससुर के बारे में लिखने का प्रयास करूँ,... वो आपकी कविता की प्रतिच्छाया भी नहीं होंगी। पर मेरी कहानी का ट्रिब्यूट होगा आपकी कविता।"


तो इस कहानी में यह पूरा प्रसंग आपकी उस कविता के प्रति और जिसने उसे शब्द दिया उसके लिए ट्रिब्यूट है

ससुर बहु के संबधो की जिस कहानी का आपने काव्यान्तर किया था उसी से मैंने सोचा की थोड़ा विस्तार से फ्लैशबैक में जा कर ससुर के बारे में सोचना चाहिए, पाठको से साझा करना चाहिए, उसमे विमला जो थी वो एक और नाम से इस कहानी में आयी है और बहु के आने में अभी थोड़ा वक्त है, क्योंकि मेरी एक इच्छा और थी की गाँव की शादी की पृष्टभूमि का भी इस्तेमाल हो, और करीब करीब बिसराती रस्मों का गानों का भी जिक्र हो

और जो मैंने सोचा था आपकी कविता से अनुप्राणित प्रंसग ८-१० भाग में निपट जाएगा अब लगता है २० भाग तो कम से कम हो ही जाएंगे सुगना और ससुर के और इन किस्सों को पाठको का स्नेह और दुलार भी मिला जिसकी असली हकदार आप हैं

भाग १०१ से यह प्रसंग शुरू हुआ , मुझे मालूम है जीवन की आपाधापी में अपने आंगन से ही फुर्सत नहीं मिलती, इतना सब कुछ फैला रहता है , पड़ोसन की सांकल कौन खटखटाये

फिर भी एक उड़ती नजर ही सही कभी जब भी थोड़ा वक्त मिले, अपनी कविता से अनुप्रेरित प्रंसगो पर जरूर डालियेगा

आभार, नमन धन्यवाद

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komaalrani

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arushi_dayal

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यह भाग आप ही को ट्रिब्यूट है, आप ने पता नहीं याद रखा की बिसरा दिया

इसी कहानी में सुगना के प्रसंग में आप की टिप्पणी के संदर्भ में मैंने कहा था, ( जस का तस दुहरा रही हूँ )

इसी कहानी का पृष्ठ ८३१ पोस्ट ८,३०५


" यह पोस्ट सुगना भौजी ,
आरुषि जी की कविता ससुर और बहू से अनुप्राणित है और आरुषि जी को ट्रिब्यूट के तौर पर समर्पित है।

कंचन और ससुर कहानी का आरुषि जी ने एक काव्य रूपांतर प्रस्तुत किया था, मेरी कहानी जोरू के गुलाम में कई भागो में। यह कविता पृष्ठ ११९५ ( पोस्ट ११९५० ) से शुरू हुयी थी जिसमे आरुषि जी ने कहा था,

"आज एक नई कविता शुरू कर रही हूं जो एक कहानी से प्रेरित है जो मैंने यहां ससुर और बहू (कंचन और ससुर) के बीच यौन संबंधों पर पढ़ी है।"


और मैंने उनकी पंक्तियों से प्रभावित होकर लिखा था

" अब जो आपने ससुर बहु का यह प्रंसग यहाँ दिखाया है, तो मुझे लग रहा है की आपकी इस कविता के ट्रिब्यूट के तौर पर छुटकी होली दीदी की ससुराल में एक छोटा ही प्रसंग, बहू और ससुर के बारे में लिखने का प्रयास करूँ, जो आपकी कविता की प्रतिछाया भी नहीं होगी पर मेरी ओर से एक छोटा सा ट्रिब्यूट होगा इस कविता को, : ( जोरू का गुलाम -पृष्ठ ११९६)

तो बस वही छोटी सी कोशिश है सुगना और ससुर के रूप में

हाँ एक बात और

इस भाग में सवाल ज्यादा उपजे हैं

क्या सुगना के ससुर ठीक हो पाए ?

हिना की माँ और ठाकुर साहब, सुगना के ससुर का जिक्र भी आया है,

और सबसे बढ़कर सुगना और ससुर जी का असली किस्सा एक लाइन में निपटा दिया " रात को दावत हुयी जम कर "

तो तबियत खराब होने के पहले करीब साल भर के किस्से बस एक लाइन में

नहीं नहीं , अगर आप सब को यह हिस्सा अच्छा लगा तो यह किस्सा खूब विस्तार से सात आठ भाग में जैसे अरविंद और गीता का या रेनू और कमल का किस्सा है उसी तरह आएगा"


और आपकी जोरू का गुलाम पृष्ठ ११९६ पर ससुर बहु की अद्भुत कविता के बारे में मैंने लिखा था
" एक जबरदस्त कहानी का जबरदस्त काव्य रूपांतर,

आभार के शब्द कम पद जाते हैं

इस फोरम में अक्सर नजदीकी रिश्तों की ही कहानियां होती है जीजा साली, देवर भाभी,

कुछ हिम्मती इन्सेस्ट लिखने वाले हुए तो भाई बहन या माँ बेटा

लेकिन आपकी पिछली काव्यकथा ने चाची - भतीजे के संबंधों पर दृष्टिपात किया और इस बार ससुर बहू के संबंधो पर, मैं आपकी फैन तो पहले से थी लेकिन इन नये आयामों का असर मेरी कहानी पर भी पड़ने लगा है, खासतौर से छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

इन्सेस्ट के आँगन में मैं पर नहीं रखती थी क्योंकि मुझे मालूम था की वह विधा कितनी कठिन है लेकिन आपकी कविताओं ने इस तरह असर किया की अरविन्द और गीता का प्रसंग में भाई बहन के संबंध पर मैंने लिखने की कोशिश की फिर रेनू और कमल,... और अभी तो

अब जो आपने ससुर बहू का यह प्रसंग दिखाया है तो मुझे लग रहा है की आप की इस कविता की ट्रिब्यूट के तौर पर छुटकी - होली दीदी की ससुराल में एक छोटा ही प्रसंग बहू और ससुर के बारे में लिखने का प्रयास करूँ,... वो आपकी कविता की प्रतिच्छाया भी नहीं होंगी। पर मेरी कहानी का ट्रिब्यूट होगा आपकी कविता।"


तो इस कहानी में यह पूरा प्रसंग आपकी उस कविता के प्रति और जिसने उसे शब्द दिया उसके लिए ट्रिब्यूट है

ससुर बहु के संबधो की जिस कहानी का आपने काव्यान्तर किया था उसी से मैंने सोचा की थोड़ा विस्तार से फ्लैशबैक में जा कर ससुर के बारे में सोचना चाहिए, पाठको से साझा करना चाहिए, उसमे विमला जो थी वो एक और नाम से इस कहानी में आयी है और बहु के आने में अभी थोड़ा वक्त है, क्योंकि मेरी एक इच्छा और थी की गाँव की शादी की पृष्टभूमि का भी इस्तेमाल हो, और करीब करीब बिसराती रस्मों का गानों का भी जिक्र हो

और जो मैंने सोचा था आपकी कविता से अनुप्राणित प्रंसग ८-१० भाग में निपट जाएगा अब लगता है २० भाग तो कम से कम हो ही जाएंगे सुगना और ससुर के और इन किस्सों को पाठको का स्नेह और दुलार भी मिला जिसकी असली हकदार आप हैं

भाग १०१ से यह प्रसंग शुरू हुआ , मुझे मालूम है जीवन की आपाधापी में अपने आंगन से ही फुर्सत नहीं मिलती, इतना सब कुछ फैला रहता है , पड़ोसन की सांकल कौन खटखटाये

फिर भी एक उड़ती नजर ही सही कभी जब भी थोड़ा वक्त मिले, अपनी कविता से अनुप्रेरित प्रंसगो पर जरूर डालियेगा

आभार, नमन धन्यवाद

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कोमल जी...आप पाठकों की जैसी नस नस पहचानती हैं। सच कहूं तो सुगना और उसके ससुर के बीच की अंतरंगता के पलो का विवरण केवल एक लाइन में देख निराशा हुई थी लेकिन मुझे यकीन था कि आपके मन में कुछ ऐसा होगा जो निश्चित रूप से बेहतर स्थिति में आएगा। आज आपने इसकी पुष्टि की है...बहुत ख़ुशी है कि आपने मेरे काम की सराहना की है और कहानी का यह भाग मेरे काम को समर्पित किया है..फिर से धन्यवाद
 

Chalakmanus

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aage aage dekhiye
Threesome likhne main aap mahir hai.
Nanad bhojai ke sath(issi main).maa beti ke sath(manju or Geeta.).do dosto ke sath(is kahani ke pehle part main sayad yaad Nahi achhe se.)

Bus do behne ka nahi hua hai abhi tak.do behne hai bhi Rampur wali bhabhi or unki behena.sali hi lagegi.

Ek gadraya phul, kaam saastra main mahir.wahi ek kamsin kali,bus kaam saastra ki jankari.


Maza aa jaiga.

Baki aap to scene aisha create kar deti hai ki.



Agle post ka besabri se intjar rahega.😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊🪔😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊
 
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