Abhishek Kumar98
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Wonderful Start#2
आँख थोड़ी देर से खुली .सूरज चढ़ आया था. . मैंने कपडे बदले और रसोई की तरफ गया , वहां पर ताला लगा था . मेरी नजर छींके पर गयी जहाँ पर कपडे में तीन रोटिया लिपटी पड़ी थी .
“हम्म,” एक गहरी साँस ली और सूखी रोटी का एक टुकड़ा चबाया. लोगो से सुना था की जब रोज़ कोई चीज़ अपने साथ हो तो उसकी आदत हो जाती है पर फिर ये रोटी के सूखे टुकड़े आसानी से गले के निचे क्यों नहीं उतरते थे . ऐसा नहीं था की मुझे शिकवे नहीं थे पर शिकायत करते भी तो किससे .
कक्षा में आज थोड़ी देर से पहुंचा, मास्टर की दो बात सुनी और फिर अपने काम में लग गया. दोपहर में मालूम हुआ की स्टूडेंट्स का एक टूर करवा रहे है उदयपुर जाने के लिए . मेरे मन में भी चाव सा उठा . एक पल की उस तम्मना को दिल की जिस गहराई में मैंने महसूस किया वो बता नहीं सकता था .
“मास्टर जी, कितना खर्चा आएगा इस टूर का ” मैंने पूछा
मास्टर- 800 रूपये
“आठ सौ. ” मैंने एक गहरी साँस ली .
दिल में एक आस लिए शाम को मैं चाची के पास गया.
“चाची , मुझे कुछ पैसे चाहिए थे . ” मैंने कहा
चाची - किसलिए
मैंने अपना प्रयोजन बताया उसे.
चाची- आठ सौ, जानता भी है कितने होते है .और बड़ा आया लाट साहब जायेगा घुमने, मैं तो दिन रात काम करके टूटी पड़ी हूँ, और इसे पैसे बर्बाद करना है . कोई जरुरत नहीं है कही जाने की अगले माह गाँव में मेला लगेगा उसमे चक्कर लगा आना. वैसे भी फिर खेत कौन देखेगा.घर के काम तो होते नहीं परसों तुझसे कहा था की गेहू चक्की पर दे आ पर वो तो हुआ नहीं तुझसे.
मैं- अभी कट्टा दे आता हूँ चाची .
मैंने गेहूं का कट्टा साइकिल पर लादा और दरवाजे के पास पहुंचा ही था की पीछे से मैंने चाची की आवाज सुनी जो मुझे ही कोस रही थी . एक नजर ऊपर आसमान पर डाली और मैं आगे बढ़ गया .ऐसा नहीं था की मुझे कोफ़्त नहीं होती थी चाची के इस रवैये से पर पिछले कुछ महीनो से तो जैसे हद्द हो गयी थी . मुझे सुनाने का कोई मौका नहीं छोडती थी वो .
“आठ सौ रुपैया , ” मैंने एक गहरी सांस ली और अपना हिसाब लगाने लगा. सब कुछ जोड़ कर मेरे पास 127 रूपये थे. तालाब किनारे बैठे बैठे मेरी गुना भाग जारी थी .
“ओ क्या सोच रहा है ”
मैंने पलट कर देखा. पानी का मटका लिए वो मेरी ही तरफ आ रही थी .
“कुछ नहीं सरकार ” मैंने कहा .
“तू क्या सोचता है , मुझसे छुपा लेगा अपने मन की बात , तुझे तुझसे ज्यादा जानती हूँ ” उसने मेरे पास बैठते हुए कहा.
मैं- तो तू ही बता मैं क्या करू. मेरे हालात तुझसे छुपे तो नहीं , चाची से पैसे मांगे थे उदयपुर जाने के लिए उसने झट से मना कर दिया.
“गलती तेरी भी तो है , कब तक चुप रहेगा. कभी न कभी अपने हक़ की बात करनी ही होगी न तुझे,जो व्यवहार तेरे साथ करती है वो मैं होती तो उसका मुह तोड़ देती ” उसने कहा .
मैं- जानती है सुख की सबसे बेकार बात क्या होती है , सुख के दिन ख़त्म हो जाते है , पर दुःख की भी एक अच्छाई होती है दुःख के दिन भी बीत जाते है.
वो- सुन तू फ़िक्र मत कर तू उदयपुर जरुर जायेगा, पैसे का इंतजाम हो जायेगा.
मैं- कैसे
उसने अपनी चांदी की पायल उतारी और मेरे हाथ में रख दी.
“इसे बेच देते है ” बोली वो .
एक नजर मैंने उसकी हथेली पर रखी पायल को देखा और एक नजर मैंने मेरी मजबूरियों को देखा.ना जाने कब आँख से गिरे पानी के कतरे उसकी हथेली को भिगो गए. उसने कस के मेरे हाथ को थाम लिया. और मेरे काँधे पर अपना सर टिका दिया.
“बहुत याद आती है माँ-बाप की मुझे , बापू कहता था चाचा चाची का उतना ही मान रखना जितना हमारा करता, कभी भी इनका कहा टालना मत , बस वही तो कर रहा हूँ, तू नहीं जानती , मैं हर रोज़ मरता हूँ अपने ही घर में. चाची अपने बच्चो को इतना लाड करती है , उनकी हर फरमाइश पूरी करती है . मुझे कभी गले नहीं लगाती, गले लगाना तो दूर, कभी सर पर हाथ भी नहीं फेरा. बापू कहता था थोडा बड़ा होजा मेरे पूत फिर तुझे फौज में ले चलूँगा. 9 साल हो गए देखते देखते बापू ही नहीं आया फौज से वापिस . क्या करू मैं तू बता. गर्म रोटी मेरे भाग में उस दिन होती है जब किसी और के घर मैं जीमने जाता हु तू कहती है की मैं कहता नहीं , किस से कहूँ चाचा से , उसे नहीं पता क्या उसके घर में क्या हालात है मेरे ” मेरी रुलाई छुट पड़ी .
“मैं जानती हूँ तेरे हालात , देखना एक दिन आयेगा. ये सब झुक कर सलाम करेंगे तुझे , ये रब्ब सब देख रहा है ” उसने कहा .
“छोड़ इन बातो को , देर हो रही है तू जा घर ” मैंने कहा
वो- तू भी चल
मैं- आता हूँ थोड़ी देर बाद.
रात जब गहराने लगी तो मैं भी थके कदमो से घर की तरफ चल दिया. मोहल्ले में जाके देखा अलग ही तमाशा चल रहा था . पडोसी जो नाते में मेरा ताऊ लगता था , अपनी घर वाली को दारू पीकर पीट रहा था . गालिया दे रहा था . मोहल्ले वाले बजाय उनको अलग करने के खड़े होकर तमाशे का मजा ले रहे थे .
“ओ ताया , बहुत हुआ अब बस करो छोड़ दे ताई को ” मैंने कहा
ताऊ- न, आज न छोडू इस कुतिया ने मेरी इज्जत तार तार कर दी है .
मैं-कोई न अन्दर चल के बात कर ,
मैंने ताऊ को अन्दर की तरफ खिसकाया और कमरे में ले आया.
मैं- ताया, दुनिया तमाशा देख रही है . तेरी ही तो तोर हलकी होती है न ताऊ- तोर बची ही नहीं इस रंडी ने सब बर्बाद कर दिया .
मैं- सो जा ताऊ, सुबह आराम से बात करना ताई से जो भी बात है .
ताऊ- तू कहता है तो सुबह देखूंगा इसे .
ताऊ ने जेब से दारू का पव्वा निकाला और खींच गया उसे, थोड़ी देर बाद बडबडाते हुए ताऊ पलंग पर लुढक गया .मैंने कमरे की कुण्डी लगाई और फिर ताई को आँगन में ले आया. उसे पानी पिलाया .
मैं- न रो ताई.
ताई- मेरे तो नसीब में ही रोना लिखा है .
मैं- हुआ क्या .
ताई- ये तो सारा दिन दारू पीकर पड़ा रहता है . घर कैसे चले . तुझे तो मालूम है ही हमारा हाल. मजदूरी से आते आज देर हो गयी तो उल्टा सीधा बोलने लगा.
मैं- कोई न तू हाथ मुह धो ले. खाना खा और आराम कर . सब ठीक होगा.
मैंने उसे छोड़ा और अपने घर आ गया. पुरे घर में अँधेरा था बस चाची के कमरे में रौशनी थी . प्यास के मारे गला सूख रहा था . मैं मटके के पास गया गिलास अपने हलक में उडेला ही था की मेरी नजर खिड़की जो की थोड़ी सी खुली हुई थी उस से अन्दर की तरफ गयी और जो मैंने देखा देखता ही रह गया.