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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
13,107
92,148
259
#4

वहां पर गाँव का सुनार था . उसके हाथ में एक छोटा बक्सा था जिसे वो बार बार खोल बंद कर रहा था .लालाजी का इस समय यहाँ पर इस जंगल में होना कुछ तो ठीक नहीं था . मैं थोडा सा छिप गया और देखने लगा की सुनार आखिर कर क्या रहा है . लाला के हाथ सख्ती से उस पुराने बक्से पर जमे हुए थे, और उसकी आँखे बार बार रस्ते की तरफ देख रही थी जैसे की उसे किसी का इंतज़ार हो . पर किसका हिलते झुरमुट की आड़ में शाम अब रात में बदलने लगी थी.



कुछ देर बाद दूसरी तरफ से कदमो की आहट हुई तो मैं थोडा सा और छिप गया . लाला ने आने वाले दोनों आदमियों को देख कर एक गहरी सांस ली और बोला- कितनी देर की आने में .

आदमी जिन्होंने अपना मुह तौलिये से ढका हुआ था वो बोला- ऐसे मामलो में देर तो हो ही जाती है लाला. सामान लाया .

लाला- हाँ, पर आज पुरे 16 साल बाद ऐसी क्या बात हुई जो इस दबी बात को उखाड़नी पड़ी .

आदमी- गुजरा हुआ वक्त , कभी कभी आज बन कर आँखों के सामने आ जाता है और जब ऐसा होता है तो उस आज का सामना करना मुश्किल हो जाता है ,

लाला- तो इस राज को भी दबे रहने देते जैसे की और कितने ही राज दबा दिए हमने.

आदमी-वो दौर अलग था लाला, ये दौर अलग है . खैर, छोड़ इन बातो को तुझे तेरा हिस्सा तो मिल ही जायेगा. ला बक्सा मुझे दे.

वो कहते है न सबकी जिन्दगी में एक ऐसा लम्हा आता है जो पूरी जिन्दगी को एक झटके में बदल देता है . उस छोटे से लम्हे में मुझे न जाने क्या सोचा, मैंने वो करने का सोच लिया जिस से मेरा दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था . मैंने झोली में रेत भरी और उन लोगो की आँखों में झोंक दी. इस से पहले की वो कुछ समझ पाते मैंने बक्सा लाला के हाथ से उड़ा लिया.



पीठ पीछे वो तीनो चीख रहे थे, और मैं दौड़ लगाये जा रहा था . कभी इधर कभी उधर, मेरे फेफड़े जैसे फट ही गए थे पर मैं रुका नहीं . मैं जंगल में और अन्दर भागे जा रहा था . अँधेरा घना और घना होते जा रहा था . इतना घना की जैसे रात ने सब कुछ अपने आगोश में ले लिया था. जब मुझे पूरी तस्सली हो गयी की मैं अकेला हूँ तो मैंने एक पेड़ का सहारा लिया और सांसो को दुरुस्त करने लगा.



मैं इतना तो जान गया था की इस बक्से में कुछ बेहद खास था . कोई दो-तीन किलो का वो बक्सा अपने अन्दर कुछ ऐसा समेटा हुआ था जो 16 साल पुराणी बात का गवाह था . दिल जोर से धडक रहा था ,



जानता था की लाला और उसके साथी पूरा जोर लगा देंगे इस बक्से को हासिल करने के लिए मुझे जंगल से निकल कर सुरक्षित स्थान पर जाना था . अगले कुछ घंटे मेरे लिए बड़े मुश्किल थे हर पेड़, हर लहराती शाख मुझे लाला ही लगी. जैसे तैसे करके मैं गाँव की दहलीज पर पहुंचा. और किस्मत देखिए एक तो रात का समय ऊपर से बिजली गुल.



उस पूरी रात मैं अपने कमरे में बैठा रहा , उस बक्से को घूरता रहा. चिमनी की रौशनी में बक्सा जैसे चमक रहा था . मेरे हाथ कांप रहे थे दिल चीख रहा था की खोल कर देख इसमें क्या है .पर हिम्मत नहीं हो रही थी . घबराहट इतनी की कहीं बुखार न हो जाये. जैसे तैसे सुबह हुई. मैंने बक्से को छुपा दिया. वैसे भी मेरे कमरे में कोई आता जाता तो नहीं था .



सुबह मैं पढने निकल गया . मन कर रहा था की बक्से वाली बात रीना को बता दू, पर फिर खुद को रोक लिया. उसे क्यों उलझाना बेवजह . दोपहर को मैंने साईकिल सुनार की दुकान की तरफ घुमाई मैं देखना चाहता था उसके हाव भाव पर वो बेखबर अपने काम में लगा था जैसे कल कुछ हुआ ही नहीं हो. तब मुझे समझ आया वो कितना घाघ था इतने सालो से बक्से को छुपाये हुआ था तो रात की बात की क्या ही औकात थी उसके सामने.



उदयपुर जाने के अब कुछ ही दिन बचे थे . दो दिन के भीतर पैसे जमा करवाने थे . और पैसे ही तो नहीं थे मेरे पास. मेरे दिमाग में ताई की कही बात बिजली की तरह कौंध रही थी . कुछ सोच कर मैं उस तरफ चल दिया जहाँ ताई काम करती थी .उस समय मुझे कहाँ मालूम था ये मेरी किस्मत थी तो मेरे करम लिख रही थी.

मुझे देखते ही ताई की आँखों में चमक आ गयी . वो मेरे पास आ गयी .

ताई- तो सोच लिया तूने.

मैं- हाँ सोच लिया.

“देख उस तरफ वो दो ट्रक खड़े है , आज ही आये है . दो कट्टे गायब हु तो भी कुछ मालूम नहीं होना किसी को .” ताई ने आँखों से इशारा करते हुए कहा.

मैं- आज रात ही करूँगा ये काम.

ताई- ठीक है , मैं तुझे सेठ की दूकान बताती हूँ, वहां बस कट्टे रख देना वो समझ जायेगा.

मैं- ठीक है . चलता हूँ फिर .

ताई- थोड़ी देर रुक , अब कहाँ पैदल जाउंगी, तेरे साथ ही चल दूंगी मैं भी.

मैं- हाँ,

आधे घंटे बाद मैं और ताई गाँव की तरफ आ रहे थे बाते करते हुए.

मैं-किसी को मालूम हो गया तो

ताई- नहीं होगा. सब ठीक रहेगा. वैसे अगर तू चाहे तो मैं आ जाती हूँ तेरे साथ रात को , मैं चोकिदारी कर लुंगी, तू कोयला उठा लेना.

मैं- ताऊ को क्या कहेगी.

ताई- कहना क्या है , दारू पी कर लुढक जायेगा.एक बार सोया तो फिर होश कहाँ रहता है उसे.

मैं- बड़ी दिलेर है तू

ताई- जरूरते सब कुछ करवा देती है .

मैं- सो तो है तो फिर ठीक रहा , रात को दस बजे तू मुझे फिरनी पर मिलना

ताई-पक्का.

, कल बक्से की वजह से धडकने बढ़ ह गयी थी आज कोयला चुराने का सोच कर. घर आया तो चाची आँगन में नलके पर हाथ मुह धो रही थी , झुक कर वो अपने चेहरे पर पानी के छींटे मार रही थी मेरी नजरे उसके ब्लाउज से झांकती चुचियो पर पड़ी. कल रात वाला सीन आँखों के सामने घूम गया. आधी दिखती गोरी चुचिया मेरे दिल में हलचल मचाने लगी. कनपटी के पास गर्मी महसूस की मैंने. तभी उसकी नजर मुझ पर पड़ी तो मैं आगे बढ़ गया. इंतज़ार था रात होने का.
 

Naik

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#4

वहां पर गाँव का सुनार था . उसके हाथ में एक छोटा बक्सा था जिसे वो बार बार खोल बंद कर रहा था .लालाजी का इस समय यहाँ पर इस जंगल में होना कुछ तो ठीक नहीं था . मैं थोडा सा छिप गया और देखने लगा की सुनार आखिर कर क्या रहा है . लाला के हाथ सख्ती से उस पुराने बक्से पर जमे हुए थे, और उसकी आँखे बार बार रस्ते की तरफ देख रही थी जैसे की उसे किसी का इंतज़ार हो . पर किसका हिलते झुरमुट की आड़ में शाम अब रात में बदलने लगी थी.



कुछ देर बाद दूसरी तरफ से कदमो की आहट हुई तो मैं थोडा सा और छिप गया . लाला ने आने वाले दोनों आदमियों को देख कर एक गहरी सांस ली और बोला- कितनी देर की आने में .

आदमी जिन्होंने अपना मुह तौलिये से ढका हुआ था वो बोला- ऐसे मामलो में देर तो हो ही जाती है लाला. सामान लाया .

लाला- हाँ, पर आज पुरे 16 साल बाद ऐसी क्या बात हुई जो इस दबी बात को उखाड़नी पड़ी .

आदमी- गुजरा हुआ वक्त , कभी कभी आज बन कर आँखों के सामने आ जाता है और जब ऐसा होता है तो उस आज का सामना करना मुश्किल हो जाता है ,

लाला- तो इस राज को भी दबे रहने देते जैसे की और कितने ही राज दबा दिए हमने.

आदमी-वो दौर अलग था लाला, ये दौर अलग है . खैर, छोड़ इन बातो को तुझे तेरा हिस्सा तो मिल ही जायेगा. ला बक्सा मुझे दे.

वो कहते है न सबकी जिन्दगी में एक ऐसा लम्हा आता है जो पूरी जिन्दगी को एक झटके में बदल देता है . उस छोटे से लम्हे में मुझे न जाने क्या सोचा, मैंने वो करने का सोच लिया जिस से मेरा दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था . मैंने झोली में रेत भरी और उन लोगो की आँखों में झोंक दी. इस से पहले की वो कुछ समझ पाते मैंने बक्सा लाला के हाथ से उड़ा लिया.



पीठ पीछे वो तीनो चीख रहे थे, और मैं दौड़ लगाये जा रहा था . कभी इधर कभी उधर, मेरे फेफड़े जैसे फट ही गए थे पर मैं रुका नहीं . मैं जंगल में और अन्दर भागे जा रहा था . अँधेरा घना और घना होते जा रहा था . इतना घना की जैसे रात ने सब कुछ अपने आगोश में ले लिया था. जब मुझे पूरी तस्सली हो गयी की मैं अकेला हूँ तो मैंने एक पेड़ का सहारा लिया और सांसो को दुरुस्त करने लगा.



मैं इतना तो जान गया था की इस बक्से में कुछ बेहद खास था . कोई दो-तीन किलो का वो बक्सा अपने अन्दर कुछ ऐसा समेटा हुआ था जो 16 साल पुराणी बात का गवाह था . दिल जोर से धडक रहा था ,



जानता था की लाला और उसके साथी पूरा जोर लगा देंगे इस बक्से को हासिल करने के लिए मुझे जंगल से निकल कर सुरक्षित स्थान पर जाना था . अगले कुछ घंटे मेरे लिए बड़े मुश्किल थे हर पेड़, हर लहराती शाख मुझे लाला ही लगी. जैसे तैसे करके मैं गाँव की दहलीज पर पहुंचा. और किस्मत देखिए एक तो रात का समय ऊपर से बिजली गुल.



उस पूरी रात मैं अपने कमरे में बैठा रहा , उस बक्से को घूरता रहा. चिमनी की रौशनी में बक्सा जैसे चमक रहा था . मेरे हाथ कांप रहे थे दिल चीख रहा था की खोल कर देख इसमें क्या है .पर हिम्मत नहीं हो रही थी . घबराहट इतनी की कहीं बुखार न हो जाये. जैसे तैसे सुबह हुई. मैंने बक्से को छुपा दिया. वैसे भी मेरे कमरे में कोई आता जाता तो नहीं था .



सुबह मैं पढने निकल गया . मन कर रहा था की बक्से वाली बात रीना को बता दू, पर फिर खुद को रोक लिया. उसे क्यों उलझाना बेवजह . दोपहर को मैंने साईकिल सुनार की दुकान की तरफ घुमाई मैं देखना चाहता था उसके हाव भाव पर वो बेखबर अपने काम में लगा था जैसे कल कुछ हुआ ही नहीं हो. तब मुझे समझ आया वो कितना घाघ था इतने सालो से बक्से को छुपाये हुआ था तो रात की बात की क्या ही औकात थी उसके सामने.



उदयपुर जाने के अब कुछ ही दिन बचे थे . दो दिन के भीतर पैसे जमा करवाने थे . और पैसे ही तो नहीं थे मेरे पास. मेरे दिमाग में ताई की कही बात बिजली की तरह कौंध रही थी . कुछ सोच कर मैं उस तरफ चल दिया जहाँ ताई काम करती थी .उस समय मुझे कहाँ मालूम था ये मेरी किस्मत थी तो मेरे करम लिख रही थी.

मुझे देखते ही ताई की आँखों में चमक आ गयी . वो मेरे पास आ गयी .

ताई- तो सोच लिया तूने.

मैं- हाँ सोच लिया.

“देख उस तरफ वो दो ट्रक खड़े है , आज ही आये है . दो कट्टे गायब हु तो भी कुछ मालूम नहीं होना किसी को .” ताई ने आँखों से इशारा करते हुए कहा.

मैं- आज रात ही करूँगा ये काम.

ताई- ठीक है , मैं तुझे सेठ की दूकान बताती हूँ, वहां बस कट्टे रख देना वो समझ जायेगा.

मैं- ठीक है . चलता हूँ फिर .

ताई- थोड़ी देर रुक , अब कहाँ पैदल जाउंगी, तेरे साथ ही चल दूंगी मैं भी.

मैं- हाँ,

आधे घंटे बाद मैं और ताई गाँव की तरफ आ रहे थे बाते करते हुए.

मैं-किसी को मालूम हो गया तो

ताई- नहीं होगा. सब ठीक रहेगा. वैसे अगर तू चाहे तो मैं आ जाती हूँ तेरे साथ रात को , मैं चोकिदारी कर लुंगी, तू कोयला उठा लेना.

मैं- ताऊ को क्या कहेगी.

ताई- कहना क्या है , दारू पी कर लुढक जायेगा.एक बार सोया तो फिर होश कहाँ रहता है उसे.

मैं- बड़ी दिलेर है तू

ताई- जरूरते सब कुछ करवा देती है .

मैं- सो तो है तो फिर ठीक रहा , रात को दस बजे तू मुझे फिरनी पर मिलना

ताई-पक्का.


, कल बक्से की वजह से धडकने बढ़ ह गयी थी आज कोयला चुराने का सोच कर. घर आया तो चाची आँगन में नलके पर हाथ मुह धो रही थी , झुक कर वो अपने चेहरे पर पानी के छींटे मार रही थी मेरी नजरे उसके ब्लाउज से झांकती चुचियो पर पड़ी. कल रात वाला सीन आँखों के सामने घूम गया. आधी दिखती गोरी चुचिया मेरे दिल में हलचल मचाने लगी. कनपटी के पास गर्मी महसूस की मैंने. तभी उसकी नजर मुझ पर पड़ी तो मैं आगे बढ़ गया. इंतज़ार था रात होने का.
Har update k baad kahani dilchasp hoti jaa rahi h kia tha uss bakse m jese itna bada lhadam utha lemin abhi tak khol ker dekha kyon nahi
Baherhal dekhte h raat m jo kerne ka socha h woh ho pata h h ya nahi
Behtareen shaandaar update Musafir bhai
 

Kumar Abhi

Member
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#4

वहां पर गाँव का सुनार था . उसके हाथ में एक छोटा बक्सा था जिसे वो बार बार खोल बंद कर रहा था .लालाजी का इस समय यहाँ पर इस जंगल में होना कुछ तो ठीक नहीं था . मैं थोडा सा छिप गया और देखने लगा की सुनार आखिर कर क्या रहा है . लाला के हाथ सख्ती से उस पुराने बक्से पर जमे हुए थे, और उसकी आँखे बार बार रस्ते की तरफ देख रही थी जैसे की उसे किसी का इंतज़ार हो . पर किसका हिलते झुरमुट की आड़ में शाम अब रात में बदलने लगी थी.



कुछ देर बाद दूसरी तरफ से कदमो की आहट हुई तो मैं थोडा सा और छिप गया . लाला ने आने वाले दोनों आदमियों को देख कर एक गहरी सांस ली और बोला- कितनी देर की आने में .

आदमी जिन्होंने अपना मुह तौलिये से ढका हुआ था वो बोला- ऐसे मामलो में देर तो हो ही जाती है लाला. सामान लाया .

लाला- हाँ, पर आज पुरे 16 साल बाद ऐसी क्या बात हुई जो इस दबी बात को उखाड़नी पड़ी .

आदमी- गुजरा हुआ वक्त , कभी कभी आज बन कर आँखों के सामने आ जाता है और जब ऐसा होता है तो उस आज का सामना करना मुश्किल हो जाता है ,

लाला- तो इस राज को भी दबे रहने देते जैसे की और कितने ही राज दबा दिए हमने.

आदमी-वो दौर अलग था लाला, ये दौर अलग है . खैर, छोड़ इन बातो को तुझे तेरा हिस्सा तो मिल ही जायेगा. ला बक्सा मुझे दे.

वो कहते है न सबकी जिन्दगी में एक ऐसा लम्हा आता है जो पूरी जिन्दगी को एक झटके में बदल देता है . उस छोटे से लम्हे में मुझे न जाने क्या सोचा, मैंने वो करने का सोच लिया जिस से मेरा दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था . मैंने झोली में रेत भरी और उन लोगो की आँखों में झोंक दी. इस से पहले की वो कुछ समझ पाते मैंने बक्सा लाला के हाथ से उड़ा लिया.



पीठ पीछे वो तीनो चीख रहे थे, और मैं दौड़ लगाये जा रहा था . कभी इधर कभी उधर, मेरे फेफड़े जैसे फट ही गए थे पर मैं रुका नहीं . मैं जंगल में और अन्दर भागे जा रहा था . अँधेरा घना और घना होते जा रहा था . इतना घना की जैसे रात ने सब कुछ अपने आगोश में ले लिया था. जब मुझे पूरी तस्सली हो गयी की मैं अकेला हूँ तो मैंने एक पेड़ का सहारा लिया और सांसो को दुरुस्त करने लगा.



मैं इतना तो जान गया था की इस बक्से में कुछ बेहद खास था . कोई दो-तीन किलो का वो बक्सा अपने अन्दर कुछ ऐसा समेटा हुआ था जो 16 साल पुराणी बात का गवाह था . दिल जोर से धडक रहा था ,



जानता था की लाला और उसके साथी पूरा जोर लगा देंगे इस बक्से को हासिल करने के लिए मुझे जंगल से निकल कर सुरक्षित स्थान पर जाना था . अगले कुछ घंटे मेरे लिए बड़े मुश्किल थे हर पेड़, हर लहराती शाख मुझे लाला ही लगी. जैसे तैसे करके मैं गाँव की दहलीज पर पहुंचा. और किस्मत देखिए एक तो रात का समय ऊपर से बिजली गुल.



उस पूरी रात मैं अपने कमरे में बैठा रहा , उस बक्से को घूरता रहा. चिमनी की रौशनी में बक्सा जैसे चमक रहा था . मेरे हाथ कांप रहे थे दिल चीख रहा था की खोल कर देख इसमें क्या है .पर हिम्मत नहीं हो रही थी . घबराहट इतनी की कहीं बुखार न हो जाये. जैसे तैसे सुबह हुई. मैंने बक्से को छुपा दिया. वैसे भी मेरे कमरे में कोई आता जाता तो नहीं था .



सुबह मैं पढने निकल गया . मन कर रहा था की बक्से वाली बात रीना को बता दू, पर फिर खुद को रोक लिया. उसे क्यों उलझाना बेवजह . दोपहर को मैंने साईकिल सुनार की दुकान की तरफ घुमाई मैं देखना चाहता था उसके हाव भाव पर वो बेखबर अपने काम में लगा था जैसे कल कुछ हुआ ही नहीं हो. तब मुझे समझ आया वो कितना घाघ था इतने सालो से बक्से को छुपाये हुआ था तो रात की बात की क्या ही औकात थी उसके सामने.



उदयपुर जाने के अब कुछ ही दिन बचे थे . दो दिन के भीतर पैसे जमा करवाने थे . और पैसे ही तो नहीं थे मेरे पास. मेरे दिमाग में ताई की कही बात बिजली की तरह कौंध रही थी . कुछ सोच कर मैं उस तरफ चल दिया जहाँ ताई काम करती थी .उस समय मुझे कहाँ मालूम था ये मेरी किस्मत थी तो मेरे करम लिख रही थी.

मुझे देखते ही ताई की आँखों में चमक आ गयी . वो मेरे पास आ गयी .

ताई- तो सोच लिया तूने.

मैं- हाँ सोच लिया.

“देख उस तरफ वो दो ट्रक खड़े है , आज ही आये है . दो कट्टे गायब हु तो भी कुछ मालूम नहीं होना किसी को .” ताई ने आँखों से इशारा करते हुए कहा.

मैं- आज रात ही करूँगा ये काम.

ताई- ठीक है , मैं तुझे सेठ की दूकान बताती हूँ, वहां बस कट्टे रख देना वो समझ जायेगा.

मैं- ठीक है . चलता हूँ फिर .

ताई- थोड़ी देर रुक , अब कहाँ पैदल जाउंगी, तेरे साथ ही चल दूंगी मैं भी.

मैं- हाँ,

आधे घंटे बाद मैं और ताई गाँव की तरफ आ रहे थे बाते करते हुए.

मैं-किसी को मालूम हो गया तो

ताई- नहीं होगा. सब ठीक रहेगा. वैसे अगर तू चाहे तो मैं आ जाती हूँ तेरे साथ रात को , मैं चोकिदारी कर लुंगी, तू कोयला उठा लेना.

मैं- ताऊ को क्या कहेगी.

ताई- कहना क्या है , दारू पी कर लुढक जायेगा.एक बार सोया तो फिर होश कहाँ रहता है उसे.

मैं- बड़ी दिलेर है तू

ताई- जरूरते सब कुछ करवा देती है .

मैं- सो तो है तो फिर ठीक रहा , रात को दस बजे तू मुझे फिरनी पर मिलना

ताई-पक्का.


, कल बक्से की वजह से धडकने बढ़ ह गयी थी आज कोयला चुराने का सोच कर. घर आया तो चाची आँगन में नलके पर हाथ मुह धो रही थी , झुक कर वो अपने चेहरे पर पानी के छींटे मार रही थी मेरी नजरे उसके ब्लाउज से झांकती चुचियो पर पड़ी. कल रात वाला सीन आँखों के सामने घूम गया. आधी दिखती गोरी चुचिया मेरे दिल में हलचल मचाने लगी. कनपटी के पास गर्मी महसूस की मैंने. तभी उसकी नजर मुझ पर पड़ी तो मैं आगे बढ़ गया. इंतज़ार था रात होने का.
Nice update
 

sunoanuj

Well-Known Member
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Bahut hi behtarin kahani hai…
 

Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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Bhai update aap thoda bada do....itna chhota shuru hua nhi ki khatam ho gya...

Aur bhai ye story puri hogi ya aadhe pe band ho jayegi....
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Har update k baad kahani dilchasp hoti jaa rahi h kia tha uss bakse m jese itna bada lhadam utha lemin abhi tak khol ker dekha kyon nahi
Baherhal dekhte h raat m jo kerne ka socha h woh ho pata h h ya nahi
Behtareen shaandaar update Musafir bhai
उम्मीद है कि सब सही ही होगा कहानी मे
 

tanesh

New Member
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Badiya update bhai , ab kahani me thrill aana start ho chuka h , or vo 3rd update ke last me झाड़ियों में हलचल का अंदाजा बहुतो ne meri tarah galat hi lagaya hoga 😁😅, but kahani abhi tk badiya ja rhi h , waiting for next update
 
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