#60
“आँखे खोल मनीष, मैं तुझे कुछ नहीं होने दूंगी . जब तक मैं हूँ ये साथ नहीं छुटेगा ” मीता ने मुझे थपथपाते हुए कहा.
मैंने उसके हाथ को थाम लिया. तलवार आर पार थी , खून लबालब बह रहा था . हलकी सी आंखे खोल कर मैंने मीता को इशारा दिया की थोड़ी जान बाकी है . आहिस्ता आहिस्ता मीता ने वो तलवार मेरे सीने से खींची और अपनी चुनरिया को इस तरह से बाँध दिया की वो खून को रोक सके.
आंसुओ से भरा चेहरे लिए मुझे अपनी गोद में लिए बैठी मीता सुबक रही थी . सहला रही थी मेरे तन को . सब कुछ शांत था सिवाय उसकी सुबकियो और मेरी सांसो के .
“क्या कहते है तेरे सितारे , पूछ कर बता जरा ” मैंने खांसते हुए कहा
मीता- सितारे जो भी कहे , आज मैं उनकी एक नहीं सुनने वाली.
मैं- सहारा दे जरा मुझे .
मीता ने मुझे अपने कंधे का सहारा देकर खड़ा किया. शिवाला अब भी रोशन था. जिसका मतलब था की अभी ये रात अभी और रोशन थी , कहानी अभी और बाकी थी .
“थोडा पानी पिला दे ” मैंने कहा
मीता तुरंत ही एक घड़ा उठा लाइ . ठन्डे पानी ने बदन को जैसे आराम दिया.
मीता- हमें डाक्टर के पास जाना चाहिए.
मैं- ये डॉक्टर के बस का रोग नहीं है मीता
मीता- तो क्या ऐसे ही तडपता रहेगा तू
इस से पहले की मैं मीता को जवाब दे पाता , शिवाले के सरे दिए एक झटके में बुझ गए . काले मनहूस अँधेरे ने सब कुछ अपने कब्ज़े में ले लिया. आसमान कडकने लगा. एकाएक ही घटा चढ़ आई मौसम में .
“मनीष उधर देख जरा ” मीता ने उस तरफ इशारा किया जहाँ देवता का कमरा था . बस वही पर ही उजाला था , मीता का सहारा लिए मैं वहां पर पहुंचा . अन्दर का सारा नजारा बदल गया था , इतना बदला की मीता और मैं दोनों ही हैरत में रह गए. अन्दर की दीवारे चांदी के तेज से जगमगा रही थी . देवता की मिटटी की मूर्ति काले सफ्तिक में बदल गयी थी जिस पर चन्दन का त्रिपुंड बना था . ये को शक्ति थी जो हमें वहां पर अपने होने का अहसास करवा रही थी .
मैंने अपने हाथो से सफ्टीक को छुआ, और माथे से लगाया , मीता ने भी वैसा ही किया जैसे ही हम दोनों का खून उस मूर्ति को अर्पण हुआ वहां पर आग लग गयी . शायद देवता क्रोधित हो गया था . दीवारों की चांदी पिघल कर बहने लगी. मेरे घाव में तपिश बढ़ने लगी थी . मीता की खाल जलने लगी . और फिर सब शांत हो गया जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो. पर ये सब हुआ था इसका सबूत थी दिवार पर पिघली चांदी से बनी वो आकृति .
वो आकृति जिसका वहां होना हमारे लिए कोई पहेली थी या फिर कोई सन्देश था .
“कौन होगी ये ” मीता ने पूछा
मैं- अभी तो नहीं मालूम पर पता कर लेंगे हम
मैंने अपने हाथ से उस आक्रति को छुआ ही था की एक बार फिर से हमारे कदम लडखडा गए. ऐसे लगा की भूकंप ने दस्तक दी हो .
मैं- इस से मेरा कोई तो रिश्ता है मीता , ये पहचान रही है मुझे
मैंने फिर से अपनी हथेली आक्रति पर रखी. आकृति से पानी रिसने लगा.
“पानी ” मैंने कहा
मीता- नहीं पानी नहीं आंसू .
मीता ने इशारा किया , मैंने देखा उस छाया की आँखों से आंसू बह रहे थे . पर बस दो पल के लिए फिर वो आकृति राख बन कर मिट गयी . मैंने उस राख को मुट्ठी में भर लिया. जैसे ही राख में मेरे बदन को महूसस किया मुझे अलग ही ताजगी, स्फूर्ति लगने लगी. थोड़ी देर पहले मैं दर्द में था पर अब ठीक लग रहा था . बस मेरा जख्म भरा नहीं था . जितनी भी वो राख थी मैंने अपने बदन पर लगा ली. शक्ति का संचार तो हुआ पर जख्म ताज्जा ही रहा ये अजीब बात थी .
मैं और मीता वापिस आये तब तक रीना का वहां कोई नामो निशान नहीं था . ख़ामोशी से चलते हुए मैं और मीता कुवे पर पहुंचे . मीता कमरे में गई और पट्टियों वाली थैली ले आई ,
मीता- पट्टी से काम नहीं चलेगा. डॉक्टर से तो दिखाना ही पड़ेगा
मैं- ठीक है बाबा . अब ये हुलिया बदल ले कोई देखेगा तो भूतनी समझ के खौफ से मर जाएगा.
जब मीता अपना हुलिया ठीक कर रही थी तो मैंने देखा उसको भी बहुत चोट लगी थी . कुछ देर बाद वो और मैं बिस्तर पर लेटे थे.
मैं- तो किस बात पर आपस में तकरार कर बैठी तुम लोग
मीता- तेरी जानेमन मौत का आह्वान कर रही थी मैं उसे रोक रही थी .
मैं- और वो तुझसे उलझ पड़ी
मीता- मुझसे चाहे लाख बार उलझ पड़े कोई दिक्कत नहीं है . दिक्कत बस ये है की वो जो कर रही है उसका मकसद क्या है , नाहरविरो से लड़ना चाहती है पर किसलिए ,
मैं- शायद नाहर वीर को साधना चाहती है रीना
मीता- मनीष, मैं घुमा फिरा कर नहीं कहूँगी पर मुझे लगता है की उस जमीन में कुछ है , नाहर वीर को बेहतरीन सुरक्षा करने वाले माना जाता है तो इतना तो तय है की किसी बेहद कीमती चीज की रक्षा कर रहे है वो .
मीता की बात से मुझे वो द्रश्य याद आया जब संध्या चाची ने अपना मांस जमीन पर फेंक कर कुछ किया था तो जमीन से सोना चांदी निकले थे .
मैं- उस जमीन में खजाना है
मीता- मुझे संदेह था , पर रीना क्या करेगी सोने-चांदी का
मैं- यही तो मेरे भी समझ में नहीं आ रहा , बात इतनी सरल नहीं है . संध्या चाची को भी सोने से जयादा किसी और चीज में दिलचस्पी थी . उसने कहा था मुझे नहीं चाहिए ये सब .
मीता- और हम इस काबिल नहीं है की संध्या का मुह खुलवा सके. इन सबका अतीत हमारे आज पर भारी पड़ रहा है , संध्या के अतीत को तलाश कर ही हम कुछ सुराग तलाश कर पाएंगे.
मैं- हम जरुर कामयाब होंगे.
मैंने मीता के कंधे पर सर रखा और सोने की कोशिश करने लगा. शिवाले की उस राख ने मुझे काफी राहत दे दी थी पर फिर भी अगले दिन मैं डॉक्टर के पास चला गया . उसने जैसे तैसे करके टाँके लगाये और कुछ दवाइयां भी दी. मैं वहां से ताई के पास चला गया जो घर पर ही थी .
ताई- आजकल कहाँ गायब है तू
मैं- बस ऐसे ही कुछ कामो में उलझा था .
ताई- सब ठीक है न
मैं- हाँ सब बढ़िया है .
ताई- सुन खाना खा लेना अभी बना कर ही रखा है , तेरा ताऊ आज आने वाला है तो घर पर ही रहना मैं रीना के घर पर जा रही हूँ , कुछ मेहमान आने वाले है आज कोई काम हो तो बुला लेना मुझे
मैं- कौन मेहमान आने वाले है ताई
ताई- तुझे नहीं मालूम क्या , रीना के लिए रिश्ता आया है .....