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Update abhiintezaar rahega next update ka Raj_sharma bhai....

Update abhiintezaar rahega next update ka Raj_sharma bhai....


Congratulations bro
Intejar hai 1st update ka bhai agar ho sake to background rural rakhna
for new story thread
Many Many Congratulations Bhai ko
Shuruaat se hi story ne pakad liya — Delhi ki thand, baarish aur Romesh ke funny style ekdum real feel diya
Anamika ki sudden entry ne to suspense aur thrill dono badha diye
Romesh ka character mujhe bahut real laga — smart bhi hai, honest bhi, aur apni harkaton se thoda mastikhor bhi
Dialogues itne natural the ki padte padte face pe smile aa gayi
Aur last me jab pistol gayab hui… uff! ekdum unexpected twist
Ab to bas dil me ek hi sawaal hai — Anamika sach me kaun hai, aur Romesh kis museebat me phansne wala hai
suspense aur humor ka perfect combo bana diya hai Raj_sharma
Waiting for next update...
Always welcome bro
Nice update.....
Shandaar update and nice story
Bhut hi shandar shuruwat kahani ki
Anamika to apne jasus babu ko hi chuna laga kar bhag gayi
Vese romesh ka style bhut funny hai
Congratulations for new thread....
Starting bahut hi badhiya huvi hai....
रोमेश …फिर से
Wah kya scene create kiya he Raj_sharma Bhai,
Pehle hi update me romesh babu ka chutiya kaat gayi laundiya...........
Nayi kahani ke Hardik Shubhkamnaye Bhai
Keep posting
रोमेश की वापसी हो गई है। ये अनामिका तो शुरूआत में ही थोड़ा चुतियापा काट गई। वैसे ये रोमेश वही पुराना वाला है या फिर पिछली कहानी का प्रीक्वल समझें जिसमें ये रोमेश अपने अर्ली करियर स्टेज में रहा होगा?
मुझे तो ये रोमेश थोड़ा नया-सा लग रहा है, क्योंकि इसका कैरेक्टर सीधा-सादा पुराने रोमेश जैसा नहीं है। ये रोमेश शुरुआत से ही थोड़ा थरकी टाइप या जवानी के लड़के वाले अंदाज़ में दिख रहा है।
साथ ही, अब कहानी देवनागरी में लिखी जा रही है, तो कुछ खतर्नाक शब्दों के मतलब तो मुझे भी डिक्शनरी में ढूँढने पड़ेंगे। “सर्द रात में” की तरह इस कहानी में भी कुछ वर्ड्स मुश्किल लग रहे हैं।
वैसे इस बार स्टोरी का राइटिंग स्टाइल थोड़ा बदला हुआ लग रहा है -शायद क्योंकि अब फोकस ज़्यादा रोमेश के पर्सपेक्टिव से होगा।
ओवरऑल, ये तो बस पहला अपडेट है, इसलिए अभी इतनी गहराई में नहीं जाया जा सकता। लेकिन स्टार्टिंग इंटरेस्टिंग लगी मुझे।
Raj_sharma मस्त रिवयू ना , इस बार प्रेज़ेंटेशन
अच्छा रखने की कोशिश रहेगी |
Kamaal hogya ye to hum dono me kitne baate same to same hai
Dono Maze me![]()
intezaar rahega next update ka Raj_sharma bhai....

#02
मनहूस सुबह:-
मैं एक घँटे के अंदर ही इस वक़्त लोकल थाने में पहुंच गया था।
जिस एस आई के पास मुझे ड्यूटी अफसर ने भेजा था, उसका नाम देवप्रिय था।
मैंने अपनी आप बीती सुनाई और अपने पिस्टल का लाइसेंस भी उसके सम्मुख प्रस्ततु किया।
"आप बोल रहे हो कि ऐसे बरसात के मौसम में कोई अनजान लडकी आपके फ्लैट पर आई, आपने उसे इंसानियत के नाते पनाह दी, और वो आपके पिस्टल को चुराकर भाग गई, मतलब आपको ही सेन्धी लगा कर चली गई" देवप्रिय ने मेरी ही बताई हुई बातो को दोहराया।
"जी" मैंने इस बार संक्षिप्त सा जवाब दिया।
"क्या जी ! पुलिस को इतना चूतिया समझा है क्या, जो आप कोई भी कहानी सुनाओगे और हम उस कहानी पर विश्वास कर लेंगे" देवप्रिय अप्रिय स्वर में बोला।
मैंने आहत नजरो से उस पुलिसिये को देखा।
"आपको क्या लगता है कि मैं आपको कोई झुठी कहानी क्यो सुनाऊंगा" मैने उल्टा देवप्रिय से ही सवाल किया।
"या तो तुम उस पिस्टल से कोई कांड करके आये हो, या फिर करने की फिराक में होंगे, पिस्टल चोरी की रपट लिखवाने इसलिए आये हो कि, कल को जब तुम्हारा किया हुआ कांड हमारी नजर में आ जाये, तो आप हमारी ही लिखी हुई रपट को हमारे ही सामने अपनी बेगुनाही का सबूत बनाकर पेश कर सको"
देवप्रिय जो भी बोल रहा था, एक पुलिसिया होने के नाते उसे वही बोलना चाहिए था।
लेकिन हमेशा किसी भी बात को एक ही नजरिए से नही देखा जाना चाहिए, ऐसा मेरा निजी विचार था, और अब अपने इस विचार से देवप्रिय को अवगत करवाना जरूरी हो गया था।
"देखिए एक पुलिस वाले की हैसियत से आपका सोचना बिल्कुल जायज है, लेकिन हमेशा तस्वीर का एक ही पहलू नही देखना चाहिए, पुलिस की तो ड्यूटी होती है कि वो हर एंगल को देखे"
मैंने ये सब देवप्रिय के चेहरे पर अपनी नजरे जमाकर बोला था।
इसी वजह से मेरी बातों से जो अप्रिय भाव उसके चेहरे पर आए थे, उन्हें में ताड़ पाया था।
"तो अब आप हमें हमारी ड्यूटी भी सिखाओगे" देवप्रिय अब अपना पुलिसिया रोब झाड़ने पर उतारू हो चुका था।
"अगर जरूरत पड़ी तो सीखा भी सकता हूँ, मुझे लगता है तुमसे तो बात करना ही समय की बर्बादी है, ये बताओ माहेश्वरी साहब अपने रूम में है, या नही" मै उसकी फिजूल की पुलिसिया गिरी से परेशान होकर बोला।
"तो अब साहब लोगो का नाम लेकर भी हमे डराओगे" देवप्रिय पता नही क्यो मुझ से पंगा लेने पर उतारू था।
"मैं डरा नही रहा हूँ, मैं उनसे पूछना चाहता हूँ, की जिन लोगो को पब्लिक डीलिंग करनी नही आती, ऐसे लोगों के पास किसी फरियादी को भेजते ही क्यो हो" मै अब उसको उसकी ही स्टाइल में जवाब दे रहा था।
"मैंने आपसे क्या गलत व्यवहार किया, मैंने अपना वही शक जाहिर किया है, जो मेरी जगह खुद माहेश्वरी साहब होते तो वो भी करते" देवप्रिय ने मेरी बात का जवाब उसी अंदाज में दिया।
"तो अपने शक के चलते आप मेरे पक्ष को नही सुनोगे, या सिर्फ अपने शक की बुनियाद पर ही मुझे फाँसी पर चढ़ा दोगे"
मेरी बात सुनकर देवप्रिय को सूझा ही नही की वो जवाब क्या दे। वो चुप्पी साधकर मेरी ओर देखता रहा।
"जनाब मैं एक प्राइवेट डिटेक्टिव हूँ, और थोड़े बहुत कानूनों की जानकारी मैं भी रखता हूँ" ये बोलकर अपना विज़िटिंग कार्ड मैंने उसके सामने उसकी टेबल पर रख दिया।
उसने मेरा विजिटिंग कार्ड उठाकर गौर से पढ़ा।
"अब तो मेरे शक की बुनियाद और ज्यादा मजबूत हो गई रोमेश बाबू, आप एक प्राइवेट डिटेक्टिव है और प्राइवेट डिटेक्टिव तो पैदाइशी खुरापाती होते है, अब सच बोल ही दो की क्या खुरापात कर चुके हों, या कौन सी खुरापात करने जा रहे हो "देवप्रिय एक कुटिल मुस्कान के साथ मुझ से रूबरू हुआ।
"मैं एक कानून का पालन करने वाला बाइज्ज्ज्त शहरी हूँ, जो हर साल बाकायदा सरकार को इनकम टैक्स भी देता है, आपको ये कुर्सी हम जैसे लोगो की मदद करने के लिए दी जाती है, न कि अपने ख्याली पुलाव पकाकर किसी शरीफ शहरी को परेशान करनें के लिए दी जाती है, खैर मैं भी आप जैसे अहमक इंसान से क्यो अपना मूॅढ मार रहा हूँ, मैं अब माहेश्वरी साहब से ही सीधा मिल लेता हूँ, और हाँ आपके किसी के साथ बर्ताव करने के तौर तरीकों की शिकायत भी बाकायदा लिखित मे करूँगा" ये बोलकर मैं तेज कदमो से
उसके कमरे से निकल गया।
वो बन्दा मेरे पीछे आवाज लगाता हुआ रह गया, लेकिन मैं अब उसकी कोई बात सुनने के मूड में नही था।
कुछ ही देर बाद .....
माहेश्वरी साहब ने मेरी बात सुनते ही देवप्रिय को अपने कमरे में तलब कर लिया था।
देवप्रिय कमरे में आकर सावधान की मुद्रा में अपने साहब के सामने खड़ा हो गया था।
"ये रोमेश साहब है, कानून के बहुत बड़े मददगार है, और महकमे में काफी लोग इनका सम्मान करते है, इनकी जो भी शिकायत है, उसे दर्ज करके उसकी एक कॉपी इनको दो" माहेश्वरी साहब ने सीधे सपाट लहजें में देवप्रिय को बोला।
"जी जनाब! मैं इनकी शिकायत दर्ज ही कर रहा था, लेकिन शिकायत ऐसी है कि उसके मद्दनेजर मेरा इनसे पूछताछ करना जरूरी हो गया था" देवप्रिय ने मरे हुए स्वर में कहा।
"जब इनकी खोई हुई पिस्टल से हुई कोई वारदात हमारे सामने आ जाये, तब आप अच्छे से अपने सामने बैठाकर इनसे पूछताछ कर लेना, उस समय मैं भी आपके साथ इनसे ढेर सारे सवाल करूँगा, लेकिन अभी सूत न कपास और जुलाहे से लठ्ठमलठ्ठा होने की क्या जरूरत है" माहेश्वरी साहब ने अपनी देशी भाषा मे देवप्रिय को समझाया।
"जी जनाब!मैं इनकी शिकायत दर्ज कर लेता हूँ" ये बोलकर देवप्रिय ने मुझे अपने साथ आने का इशारा किया।
मैं माहेश्वरी साहब का शुक्रिया अदा करते हुए देवप्रिय के पीछे प्रस्थान कर गया------!
थाने से कोई मुझे एक घँटे के बाद निजात मिली थी मैंने घड़ी में समय देखा, रात के ग्यारह बज चुके थे। मैं वापिस अपने फ्लैट पर लौट आया।
खुद को बिस्तर के हवाले करने के बाद भी अभी नींद आंखों से कोसो दूर थी।
एक बिना वजह की आफत मेरे गले बैठे बिठाए आकर पड़ी थी। बैठें बिठाए नहीं बल्कि लेटे लिटाये पड़ी थी। जब वो आफत की पुड़िया आई थी उस वक़्त मैं खुद को बिस्तर के हवाले कर चुका था।
उस लड़की के बारे में मैं कुछ भी नही जानता था। लेकिन उसकी खोज खबर निकालना तो जरूरी था।
मैने एक बार फिर से समय देखने के लिये अपनी दीवार घड़ी पर नजर डाली। साढ़े ग्यारह बज चुके थे।
मुझे पक्का यकीन था कि रागिनी अभी सोई नही होंगी। मैंने आज की पूरी घटना रागिनी को भी बताना उचित समझा।
मैंने तुरन्त रागिनी को फ़ोन मिला दिया। रागिनी ने फ़ोन को रिसीव किया तो उसकी अलसाई आवाज से पता लगा कि मोहतरमा को मैने नींद से जगा दिया था।
"क्या हुआ! अब रात को नींद नही आने की बीमारी भी हो गई क्या, जो शहर की सुंदर सुंदर लड़कियों को फोन करने लगे" रागिनी ने उठते ही तंज मारा।
"मेरी कॉलर लिस्ट में नाम भूतनी लिखा हुआ आ रहा हैं, सुंदर लड़कियो के नंबर तो मैं विश्व सुन्दरी के नाम सेव करता हूँ" मैंने रागिनी के नहले पर अपना दहला मारा।
"इस भूतनी से बच कर रहना, ये कभी कभी जिंदा इंसानों को भी हजम कर जाती है" रागिनी ने तपी हुई आवाज से बोला।
"चल अब मुझे हजम करने के सपने बाद में देखना और वो सुन जिसके लिये तुम्हे फोन किया है" मै अब बकलोली बन्द करके मतलब की बात पर आया।
"क्या हुआ" रागिनी भी अब किंचित गंभीर स्वर में बोली।
मैं रागिनी को आज जो भी मेरे साथ घटना घटी, बताता चला गया। पूरी बात सुनने के बाद भी रागिनी कुछ देर खामोश ही रही।
"गुरु या तो अब शादी करके अपने गले में घँटी बांध लो, नही तो इस शहर की लड़कियां तुम्हे फांसी के फंदे पर जरूर लटकवा देगी" रागिनी ने नसीहत भरे स्वर में बोला।
"लेकिन मैं तो एक लड़की की मदद ही कर रहा था, सबसे बड़ी बात वो खुद चलकर मेरे घर तक आई थी, मैं उसे बुलाकर नही लाया था, और जिस बदहवासी की हालत में थी, मेरी जगह कोई भी होता वो उसकी मदद करता" मैंने रागिनी के सामने अपनी सफाई दी।
"अब वो कर गई न तुम्हारी मदद ! अब ये नही पता कि वो मैडम कोई चोरनी थी, जो कुछ चुराने के इरादे से घर मे घुसी थी, और जब उसे कुछ नही मिला तो, भागतें चोर की लंगोटी सही, इसलिए वो तुम्हारी पिस्टल ले गई" रागिनी ने अपनी सोच बताई।
"तुम बहुत सतही तरीके से सोच रही हो रागिनी, ये भी तो हो सकता है, की कोई लड़कियों के बारे में मेरी कमजोरी को जानता हो, और उसी का फायदा उठाकर उस लड़की को मेरे घर भेजा गया हो, अब वो किस इरादे से आई थी, ये तो तभी पता लगेगा, जब कभी हम उसे पकड़ पायेगे" मैंने रागिनी को बोला।
"मैं आपकी बात समझ गई गुरुदेव, ये बन्दी कल सुबह 9 बजे आपके घर पर उपस्थित हो जाएगी, उसके बाद देखते है क्या होता है" रागिनी ने मेरी बात का मतलब समझते हुए बोला।
"ठीक है मेरी प्राण प्रिये विश्व सुंदरी, मुझे अपने गरीब खाने में आपके आगमन का इंतजार रहेगा" मैंने उसकी शान में चिरौरी भरे शब्दो का प्रयोग किया।
"क्यो अब आपकी लिस्ट में इस भूतनी का नाम विश्व सुंदरी दिखाई देने लगा है" उधर से रागिनी का खिलखिलाता स्वर सुनाई पड़ा।
"अब रात को अगर भूतनी का ख्याल करके सोऊंगा, तो पूरी रात सपनो में कोई भूतनी ही डेरा डालकर रहेगी, इसलिए विश्वसुन्दरी को याद किया है, ताकि सपनो में ऐश्वर्य राय आये, कैटरीना कैफ आये" मैंने हँसते हुए रागिनी को बोला।
"क्यो दिल्ली की लड़कियों ने अब घास डालना बन्द कर दिया है क्या, जो आजकल फिल्मी हसीनाओं के सपने देखने लगे हो" रागिनी ने मेरा पानी उतारने में पलभर की भी देरी नही की थी।
"सो जा भूतनी ! नही तो सुबह आने में ग्यारह बजाएगी" जब मुझे उसकी बात का कोई जवाब नही सूझा तो मैंने ये बोलकर फोन काटना ही सही समझा।
मुझे पता था कि बातो में मैं रागिनी से नही जीत सकता था। एक वही थी, जिसके सामने अपन की गिनती न तीन में थी न तेरह में।
एक बार फिर से मुझे उस कमजर्फ हसीना का ख्याल हो आया था, जो बारिश में भीगी हुई मेरे घर मे घुस गई थी, और मुझे दो लाख की पिस्टल का चूना लगा कर चली गई थी।
मैं उसके बारे में ही सोचता हुआ नींद की आगोश में चला गया था।
जारी रहेगा______![]()
#02
मनहूस सुबह:-
मैं एक घँटे के अंदर ही इस वक़्त लोकल थाने में पहुंच गया था।
जिस एस आई के पास मुझे ड्यूटी अफसर ने भेजा था, उसका नाम देवप्रिय था।
मैंने अपनी आप बीती सुनाई और अपने पिस्टल का लाइसेंस भी उसके सम्मुख प्रस्ततु किया।
"आप बोल रहे हो कि ऐसे बरसात के मौसम में कोई अनजान लडकी आपके फ्लैट पर आई, आपने उसे इंसानियत के नाते पनाह दी, और वो आपके पिस्टल को चुराकर भाग गई, मतलब आपको ही सेन्धी लगा कर चली गई" देवप्रिय ने मेरी ही बताई हुई बातो को दोहराया।
"जी" मैंने इस बार संक्षिप्त सा जवाब दिया।
"क्या जी ! पुलिस को इतना चूतिया समझा है क्या, जो आप कोई भी कहानी सुनाओगे और हम उस कहानी पर विश्वास कर लेंगे" देवप्रिय अप्रिय स्वर में बोला।
मैंने आहत नजरो से उस पुलिसिये को देखा।
"आपको क्या लगता है कि मैं आपको कोई झुठी कहानी क्यो सुनाऊंगा" मैने उल्टा देवप्रिय से ही सवाल किया।
"या तो तुम उस पिस्टल से कोई कांड करके आये हो, या फिर करने की फिराक में होंगे, पिस्टल चोरी की रपट लिखवाने इसलिए आये हो कि, कल को जब तुम्हारा किया हुआ कांड हमारी नजर में आ जाये, तो आप हमारी ही लिखी हुई रपट को हमारे ही सामने अपनी बेगुनाही का सबूत बनाकर पेश कर सको"
देवप्रिय जो भी बोल रहा था, एक पुलिसिया होने के नाते उसे वही बोलना चाहिए था।
लेकिन हमेशा किसी भी बात को एक ही नजरिए से नही देखा जाना चाहिए, ऐसा मेरा निजी विचार था, और अब अपने इस विचार से देवप्रिय को अवगत करवाना जरूरी हो गया था।
"देखिए एक पुलिस वाले की हैसियत से आपका सोचना बिल्कुल जायज है, लेकिन हमेशा तस्वीर का एक ही पहलू नही देखना चाहिए, पुलिस की तो ड्यूटी होती है कि वो हर एंगल को देखे"
मैंने ये सब देवप्रिय के चेहरे पर अपनी नजरे जमाकर बोला था।
इसी वजह से मेरी बातों से जो अप्रिय भाव उसके चेहरे पर आए थे, उन्हें में ताड़ पाया था।
"तो अब आप हमें हमारी ड्यूटी भी सिखाओगे" देवप्रिय अब अपना पुलिसिया रोब झाड़ने पर उतारू हो चुका था।
"अगर जरूरत पड़ी तो सीखा भी सकता हूँ, मुझे लगता है तुमसे तो बात करना ही समय की बर्बादी है, ये बताओ माहेश्वरी साहब अपने रूम में है, या नही" मै उसकी फिजूल की पुलिसिया गिरी से परेशान होकर बोला।
"तो अब साहब लोगो का नाम लेकर भी हमे डराओगे" देवप्रिय पता नही क्यो मुझ से पंगा लेने पर उतारू था।
"मैं डरा नही रहा हूँ, मैं उनसे पूछना चाहता हूँ, की जिन लोगो को पब्लिक डीलिंग करनी नही आती, ऐसे लोगों के पास किसी फरियादी को भेजते ही क्यो हो" मै अब उसको उसकी ही स्टाइल में जवाब दे रहा था।
"मैंने आपसे क्या गलत व्यवहार किया, मैंने अपना वही शक जाहिर किया है, जो मेरी जगह खुद माहेश्वरी साहब होते तो वो भी करते" देवप्रिय ने मेरी बात का जवाब उसी अंदाज में दिया।
"तो अपने शक के चलते आप मेरे पक्ष को नही सुनोगे, या सिर्फ अपने शक की बुनियाद पर ही मुझे फाँसी पर चढ़ा दोगे"
मेरी बात सुनकर देवप्रिय को सूझा ही नही की वो जवाब क्या दे। वो चुप्पी साधकर मेरी ओर देखता रहा।
"जनाब मैं एक प्राइवेट डिटेक्टिव हूँ, और थोड़े बहुत कानूनों की जानकारी मैं भी रखता हूँ" ये बोलकर अपना विज़िटिंग कार्ड मैंने उसके सामने उसकी टेबल पर रख दिया।
उसने मेरा विजिटिंग कार्ड उठाकर गौर से पढ़ा।
"अब तो मेरे शक की बुनियाद और ज्यादा मजबूत हो गई रोमेश बाबू, आप एक प्राइवेट डिटेक्टिव है और प्राइवेट डिटेक्टिव तो पैदाइशी खुरापाती होते है, अब सच बोल ही दो की क्या खुरापात कर चुके हों, या कौन सी खुरापात करने जा रहे हो "देवप्रिय एक कुटिल मुस्कान के साथ मुझ से रूबरू हुआ।
"मैं एक कानून का पालन करने वाला बाइज्ज्ज्त शहरी हूँ, जो हर साल बाकायदा सरकार को इनकम टैक्स भी देता है, आपको ये कुर्सी हम जैसे लोगो की मदद करने के लिए दी जाती है, न कि अपने ख्याली पुलाव पकाकर किसी शरीफ शहरी को परेशान करनें के लिए दी जाती है, खैर मैं भी आप जैसे अहमक इंसान से क्यो अपना मूॅढ मार रहा हूँ, मैं अब माहेश्वरी साहब से ही सीधा मिल लेता हूँ, और हाँ आपके किसी के साथ बर्ताव करने के तौर तरीकों की शिकायत भी बाकायदा लिखित मे करूँगा" ये बोलकर मैं तेज कदमो से
उसके कमरे से निकल गया।
वो बन्दा मेरे पीछे आवाज लगाता हुआ रह गया, लेकिन मैं अब उसकी कोई बात सुनने के मूड में नही था।
कुछ ही देर बाद .....
माहेश्वरी साहब ने मेरी बात सुनते ही देवप्रिय को अपने कमरे में तलब कर लिया था।
देवप्रिय कमरे में आकर सावधान की मुद्रा में अपने साहब के सामने खड़ा हो गया था।
"ये रोमेश साहब है, कानून के बहुत बड़े मददगार है, और महकमे में काफी लोग इनका सम्मान करते है, इनकी जो भी शिकायत है, उसे दर्ज करके उसकी एक कॉपी इनको दो" माहेश्वरी साहब ने सीधे सपाट लहजें में देवप्रिय को बोला।
"जी जनाब! मैं इनकी शिकायत दर्ज ही कर रहा था, लेकिन शिकायत ऐसी है कि उसके मद्दनेजर मेरा इनसे पूछताछ करना जरूरी हो गया था" देवप्रिय ने मरे हुए स्वर में कहा।
"जब इनकी खोई हुई पिस्टल से हुई कोई वारदात हमारे सामने आ जाये, तब आप अच्छे से अपने सामने बैठाकर इनसे पूछताछ कर लेना, उस समय मैं भी आपके साथ इनसे ढेर सारे सवाल करूँगा, लेकिन अभी सूत न कपास और जुलाहे से लठ्ठमलठ्ठा होने की क्या जरूरत है" माहेश्वरी साहब ने अपनी देशी भाषा मे देवप्रिय को समझाया।
"जी जनाब!मैं इनकी शिकायत दर्ज कर लेता हूँ" ये बोलकर देवप्रिय ने मुझे अपने साथ आने का इशारा किया।
मैं माहेश्वरी साहब का शुक्रिया अदा करते हुए देवप्रिय के पीछे प्रस्थान कर गया------!
थाने से कोई मुझे एक घँटे के बाद निजात मिली थी मैंने घड़ी में समय देखा, रात के ग्यारह बज चुके थे। मैं वापिस अपने फ्लैट पर लौट आया।
खुद को बिस्तर के हवाले करने के बाद भी अभी नींद आंखों से कोसो दूर थी।
एक बिना वजह की आफत मेरे गले बैठे बिठाए आकर पड़ी थी। बैठें बिठाए नहीं बल्कि लेटे लिटाये पड़ी थी। जब वो आफत की पुड़िया आई थी उस वक़्त मैं खुद को बिस्तर के हवाले कर चुका था।
उस लड़की के बारे में मैं कुछ भी नही जानता था। लेकिन उसकी खोज खबर निकालना तो जरूरी था।
मैने एक बार फिर से समय देखने के लिये अपनी दीवार घड़ी पर नजर डाली। साढ़े ग्यारह बज चुके थे।
मुझे पक्का यकीन था कि रागिनी अभी सोई नही होंगी। मैंने आज की पूरी घटना रागिनी को भी बताना उचित समझा।
मैंने तुरन्त रागिनी को फ़ोन मिला दिया। रागिनी ने फ़ोन को रिसीव किया तो उसकी अलसाई आवाज से पता लगा कि मोहतरमा को मैने नींद से जगा दिया था।
"क्या हुआ! अब रात को नींद नही आने की बीमारी भी हो गई क्या, जो शहर की सुंदर सुंदर लड़कियों को फोन करने लगे" रागिनी ने उठते ही तंज मारा।
"मेरी कॉलर लिस्ट में नाम भूतनी लिखा हुआ आ रहा हैं, सुंदर लड़कियो के नंबर तो मैं विश्व सुन्दरी के नाम सेव करता हूँ" मैंने रागिनी के नहले पर अपना दहला मारा।
"इस भूतनी से बच कर रहना, ये कभी कभी जिंदा इंसानों को भी हजम कर जाती है" रागिनी ने तपी हुई आवाज से बोला।
"चल अब मुझे हजम करने के सपने बाद में देखना और वो सुन जिसके लिये तुम्हे फोन किया है" मै अब बकलोली बन्द करके मतलब की बात पर आया।
"क्या हुआ" रागिनी भी अब किंचित गंभीर स्वर में बोली।
मैं रागिनी को आज जो भी मेरे साथ घटना घटी, बताता चला गया। पूरी बात सुनने के बाद भी रागिनी कुछ देर खामोश ही रही।
"गुरु या तो अब शादी करके अपने गले में घँटी बांध लो, नही तो इस शहर की लड़कियां तुम्हे फांसी के फंदे पर जरूर लटकवा देगी" रागिनी ने नसीहत भरे स्वर में बोला।
"लेकिन मैं तो एक लड़की की मदद ही कर रहा था, सबसे बड़ी बात वो खुद चलकर मेरे घर तक आई थी, मैं उसे बुलाकर नही लाया था, और जिस बदहवासी की हालत में थी, मेरी जगह कोई भी होता वो उसकी मदद करता" मैंने रागिनी के सामने अपनी सफाई दी।
"अब वो कर गई न तुम्हारी मदद ! अब ये नही पता कि वो मैडम कोई चोरनी थी, जो कुछ चुराने के इरादे से घर मे घुसी थी, और जब उसे कुछ नही मिला तो, भागतें चोर की लंगोटी सही, इसलिए वो तुम्हारी पिस्टल ले गई" रागिनी ने अपनी सोच बताई।
"तुम बहुत सतही तरीके से सोच रही हो रागिनी, ये भी तो हो सकता है, की कोई लड़कियों के बारे में मेरी कमजोरी को जानता हो, और उसी का फायदा उठाकर उस लड़की को मेरे घर भेजा गया हो, अब वो किस इरादे से आई थी, ये तो तभी पता लगेगा, जब कभी हम उसे पकड़ पायेगे" मैंने रागिनी को बोला।
"मैं आपकी बात समझ गई गुरुदेव, ये बन्दी कल सुबह 9 बजे आपके घर पर उपस्थित हो जाएगी, उसके बाद देखते है क्या होता है" रागिनी ने मेरी बात का मतलब समझते हुए बोला।
"ठीक है मेरी प्राण प्रिये विश्व सुंदरी, मुझे अपने गरीब खाने में आपके आगमन का इंतजार रहेगा" मैंने उसकी शान में चिरौरी भरे शब्दो का प्रयोग किया।
"क्यो अब आपकी लिस्ट में इस भूतनी का नाम विश्व सुंदरी दिखाई देने लगा है" उधर से रागिनी का खिलखिलाता स्वर सुनाई पड़ा।
"अब रात को अगर भूतनी का ख्याल करके सोऊंगा, तो पूरी रात सपनो में कोई भूतनी ही डेरा डालकर रहेगी, इसलिए विश्वसुन्दरी को याद किया है, ताकि सपनो में ऐश्वर्य राय आये, कैटरीना कैफ आये" मैंने हँसते हुए रागिनी को बोला।
"क्यो दिल्ली की लड़कियों ने अब घास डालना बन्द कर दिया है क्या, जो आजकल फिल्मी हसीनाओं के सपने देखने लगे हो" रागिनी ने मेरा पानी उतारने में पलभर की भी देरी नही की थी।
"सो जा भूतनी ! नही तो सुबह आने में ग्यारह बजाएगी" जब मुझे उसकी बात का कोई जवाब नही सूझा तो मैंने ये बोलकर फोन काटना ही सही समझा।
मुझे पता था कि बातो में मैं रागिनी से नही जीत सकता था। एक वही थी, जिसके सामने अपन की गिनती न तीन में थी न तेरह में।
एक बार फिर से मुझे उस कमजर्फ हसीना का ख्याल हो आया था, जो बारिश में भीगी हुई मेरे घर मे घुस गई थी, और मुझे दो लाख की पिस्टल का चूना लगा कर चली गई थी।
मैं उसके बारे में ही सोचता हुआ नींद की आगोश में चला गया था।
जारी रहेगा______![]()
Bilkul sahi kaha aapneBahut hi badhiya update he Raj_sharma Bhai,
Romesh ke sath police station me salook hua wo har aam addmi ke sath hota he
seedhe muh baat hi nahi karte varna, ye baat alag hai ki apun ki jaan pahchaan haiAgar aapki koi jaan pehchan he to thik varna............ bhagwan hi maalik he aapka
Dekhte hai bhai, waise apna Romesh babu kuch to karega hiRagini an subah aayegi............dekhte he dono kis tarah se pistol aur us ladki ka pata lagate he
Keep posting
Thank you so much for your wonderful review and support 
Yahi to khasiyat hai apni writing ki, agar maja hi na aaye padhne me to fir kya khaak likhaBhai, update acha laga, Police station wala scene full intense aur real laga aur Ragini ke saath wali baatein mast light-hearted. Dialogues bahut real feel de rahe the...


Nice update.....#02
मनहूस सुबह:-
मैं एक घँटे के अंदर ही इस वक़्त लोकल थाने में पहुंच गया था।
जिस एस आई के पास मुझे ड्यूटी अफसर ने भेजा था, उसका नाम देवप्रिय था।
मैंने अपनी आप बीती सुनाई और अपने पिस्टल का लाइसेंस भी उसके सम्मुख प्रस्ततु किया।
"आप बोल रहे हो कि ऐसे बरसात के मौसम में कोई अनजान लडकी आपके फ्लैट पर आई, आपने उसे इंसानियत के नाते पनाह दी, और वो आपके पिस्टल को चुराकर भाग गई, मतलब आपको ही सेन्धी लगा कर चली गई" देवप्रिय ने मेरी ही बताई हुई बातो को दोहराया।
"जी" मैंने इस बार संक्षिप्त सा जवाब दिया।
"क्या जी ! पुलिस को इतना चूतिया समझा है क्या, जो आप कोई भी कहानी सुनाओगे और हम उस कहानी पर विश्वास कर लेंगे" देवप्रिय अप्रिय स्वर में बोला।
मैंने आहत नजरो से उस पुलिसिये को देखा।
"आपको क्या लगता है कि मैं आपको कोई झुठी कहानी क्यो सुनाऊंगा" मैने उल्टा देवप्रिय से ही सवाल किया।
"या तो तुम उस पिस्टल से कोई कांड करके आये हो, या फिर करने की फिराक में होंगे, पिस्टल चोरी की रपट लिखवाने इसलिए आये हो कि, कल को जब तुम्हारा किया हुआ कांड हमारी नजर में आ जाये, तो आप हमारी ही लिखी हुई रपट को हमारे ही सामने अपनी बेगुनाही का सबूत बनाकर पेश कर सको"
देवप्रिय जो भी बोल रहा था, एक पुलिसिया होने के नाते उसे वही बोलना चाहिए था।
लेकिन हमेशा किसी भी बात को एक ही नजरिए से नही देखा जाना चाहिए, ऐसा मेरा निजी विचार था, और अब अपने इस विचार से देवप्रिय को अवगत करवाना जरूरी हो गया था।
"देखिए एक पुलिस वाले की हैसियत से आपका सोचना बिल्कुल जायज है, लेकिन हमेशा तस्वीर का एक ही पहलू नही देखना चाहिए, पुलिस की तो ड्यूटी होती है कि वो हर एंगल को देखे"
मैंने ये सब देवप्रिय के चेहरे पर अपनी नजरे जमाकर बोला था।
इसी वजह से मेरी बातों से जो अप्रिय भाव उसके चेहरे पर आए थे, उन्हें में ताड़ पाया था।
"तो अब आप हमें हमारी ड्यूटी भी सिखाओगे" देवप्रिय अब अपना पुलिसिया रोब झाड़ने पर उतारू हो चुका था।
"अगर जरूरत पड़ी तो सीखा भी सकता हूँ, मुझे लगता है तुमसे तो बात करना ही समय की बर्बादी है, ये बताओ माहेश्वरी साहब अपने रूम में है, या नही" मै उसकी फिजूल की पुलिसिया गिरी से परेशान होकर बोला।
"तो अब साहब लोगो का नाम लेकर भी हमे डराओगे" देवप्रिय पता नही क्यो मुझ से पंगा लेने पर उतारू था।
"मैं डरा नही रहा हूँ, मैं उनसे पूछना चाहता हूँ, की जिन लोगो को पब्लिक डीलिंग करनी नही आती, ऐसे लोगों के पास किसी फरियादी को भेजते ही क्यो हो" मै अब उसको उसकी ही स्टाइल में जवाब दे रहा था।
"मैंने आपसे क्या गलत व्यवहार किया, मैंने अपना वही शक जाहिर किया है, जो मेरी जगह खुद माहेश्वरी साहब होते तो वो भी करते" देवप्रिय ने मेरी बात का जवाब उसी अंदाज में दिया।
"तो अपने शक के चलते आप मेरे पक्ष को नही सुनोगे, या सिर्फ अपने शक की बुनियाद पर ही मुझे फाँसी पर चढ़ा दोगे"
मेरी बात सुनकर देवप्रिय को सूझा ही नही की वो जवाब क्या दे। वो चुप्पी साधकर मेरी ओर देखता रहा।
"जनाब मैं एक प्राइवेट डिटेक्टिव हूँ, और थोड़े बहुत कानूनों की जानकारी मैं भी रखता हूँ" ये बोलकर अपना विज़िटिंग कार्ड मैंने उसके सामने उसकी टेबल पर रख दिया।
उसने मेरा विजिटिंग कार्ड उठाकर गौर से पढ़ा।
"अब तो मेरे शक की बुनियाद और ज्यादा मजबूत हो गई रोमेश बाबू, आप एक प्राइवेट डिटेक्टिव है और प्राइवेट डिटेक्टिव तो पैदाइशी खुरापाती होते है, अब सच बोल ही दो की क्या खुरापात कर चुके हों, या कौन सी खुरापात करने जा रहे हो "देवप्रिय एक कुटिल मुस्कान के साथ मुझ से रूबरू हुआ।
"मैं एक कानून का पालन करने वाला बाइज्ज्ज्त शहरी हूँ, जो हर साल बाकायदा सरकार को इनकम टैक्स भी देता है, आपको ये कुर्सी हम जैसे लोगो की मदद करने के लिए दी जाती है, न कि अपने ख्याली पुलाव पकाकर किसी शरीफ शहरी को परेशान करनें के लिए दी जाती है, खैर मैं भी आप जैसे अहमक इंसान से क्यो अपना मूॅढ मार रहा हूँ, मैं अब माहेश्वरी साहब से ही सीधा मिल लेता हूँ, और हाँ आपके किसी के साथ बर्ताव करने के तौर तरीकों की शिकायत भी बाकायदा लिखित मे करूँगा" ये बोलकर मैं तेज कदमो से
उसके कमरे से निकल गया।
वो बन्दा मेरे पीछे आवाज लगाता हुआ रह गया, लेकिन मैं अब उसकी कोई बात सुनने के मूड में नही था।
कुछ ही देर बाद .....
माहेश्वरी साहब ने मेरी बात सुनते ही देवप्रिय को अपने कमरे में तलब कर लिया था।
देवप्रिय कमरे में आकर सावधान की मुद्रा में अपने साहब के सामने खड़ा हो गया था।
"ये रोमेश साहब है, कानून के बहुत बड़े मददगार है, और महकमे में काफी लोग इनका सम्मान करते है, इनकी जो भी शिकायत है, उसे दर्ज करके उसकी एक कॉपी इनको दो" माहेश्वरी साहब ने सीधे सपाट लहजें में देवप्रिय को बोला।
"जी जनाब! मैं इनकी शिकायत दर्ज ही कर रहा था, लेकिन शिकायत ऐसी है कि उसके मद्दनेजर मेरा इनसे पूछताछ करना जरूरी हो गया था" देवप्रिय ने मरे हुए स्वर में कहा।
"जब इनकी खोई हुई पिस्टल से हुई कोई वारदात हमारे सामने आ जाये, तब आप अच्छे से अपने सामने बैठाकर इनसे पूछताछ कर लेना, उस समय मैं भी आपके साथ इनसे ढेर सारे सवाल करूँगा, लेकिन अभी सूत न कपास और जुलाहे से लठ्ठमलठ्ठा होने की क्या जरूरत है" माहेश्वरी साहब ने अपनी देशी भाषा मे देवप्रिय को समझाया।
"जी जनाब!मैं इनकी शिकायत दर्ज कर लेता हूँ" ये बोलकर देवप्रिय ने मुझे अपने साथ आने का इशारा किया।
मैं माहेश्वरी साहब का शुक्रिया अदा करते हुए देवप्रिय के पीछे प्रस्थान कर गया------!
थाने से कोई मुझे एक घँटे के बाद निजात मिली थी मैंने घड़ी में समय देखा, रात के ग्यारह बज चुके थे। मैं वापिस अपने फ्लैट पर लौट आया।
खुद को बिस्तर के हवाले करने के बाद भी अभी नींद आंखों से कोसो दूर थी।
एक बिना वजह की आफत मेरे गले बैठे बिठाए आकर पड़ी थी। बैठें बिठाए नहीं बल्कि लेटे लिटाये पड़ी थी। जब वो आफत की पुड़िया आई थी उस वक़्त मैं खुद को बिस्तर के हवाले कर चुका था।
उस लड़की के बारे में मैं कुछ भी नही जानता था। लेकिन उसकी खोज खबर निकालना तो जरूरी था।
मैने एक बार फिर से समय देखने के लिये अपनी दीवार घड़ी पर नजर डाली। साढ़े ग्यारह बज चुके थे।
मुझे पक्का यकीन था कि रागिनी अभी सोई नही होंगी। मैंने आज की पूरी घटना रागिनी को भी बताना उचित समझा।
मैंने तुरन्त रागिनी को फ़ोन मिला दिया। रागिनी ने फ़ोन को रिसीव किया तो उसकी अलसाई आवाज से पता लगा कि मोहतरमा को मैने नींद से जगा दिया था।
"क्या हुआ! अब रात को नींद नही आने की बीमारी भी हो गई क्या, जो शहर की सुंदर सुंदर लड़कियों को फोन करने लगे" रागिनी ने उठते ही तंज मारा।
"मेरी कॉलर लिस्ट में नाम भूतनी लिखा हुआ आ रहा हैं, सुंदर लड़कियो के नंबर तो मैं विश्व सुन्दरी के नाम सेव करता हूँ" मैंने रागिनी के नहले पर अपना दहला मारा।
"इस भूतनी से बच कर रहना, ये कभी कभी जिंदा इंसानों को भी हजम कर जाती है" रागिनी ने तपी हुई आवाज से बोला।
"चल अब मुझे हजम करने के सपने बाद में देखना और वो सुन जिसके लिये तुम्हे फोन किया है" मै अब बकलोली बन्द करके मतलब की बात पर आया।
"क्या हुआ" रागिनी भी अब किंचित गंभीर स्वर में बोली।
मैं रागिनी को आज जो भी मेरे साथ घटना घटी, बताता चला गया। पूरी बात सुनने के बाद भी रागिनी कुछ देर खामोश ही रही।
"गुरु या तो अब शादी करके अपने गले में घँटी बांध लो, नही तो इस शहर की लड़कियां तुम्हे फांसी के फंदे पर जरूर लटकवा देगी" रागिनी ने नसीहत भरे स्वर में बोला।
"लेकिन मैं तो एक लड़की की मदद ही कर रहा था, सबसे बड़ी बात वो खुद चलकर मेरे घर तक आई थी, मैं उसे बुलाकर नही लाया था, और जिस बदहवासी की हालत में थी, मेरी जगह कोई भी होता वो उसकी मदद करता" मैंने रागिनी के सामने अपनी सफाई दी।
"अब वो कर गई न तुम्हारी मदद ! अब ये नही पता कि वो मैडम कोई चोरनी थी, जो कुछ चुराने के इरादे से घर मे घुसी थी, और जब उसे कुछ नही मिला तो, भागतें चोर की लंगोटी सही, इसलिए वो तुम्हारी पिस्टल ले गई" रागिनी ने अपनी सोच बताई।
"तुम बहुत सतही तरीके से सोच रही हो रागिनी, ये भी तो हो सकता है, की कोई लड़कियों के बारे में मेरी कमजोरी को जानता हो, और उसी का फायदा उठाकर उस लड़की को मेरे घर भेजा गया हो, अब वो किस इरादे से आई थी, ये तो तभी पता लगेगा, जब कभी हम उसे पकड़ पायेगे" मैंने रागिनी को बोला।
"मैं आपकी बात समझ गई गुरुदेव, ये बन्दी कल सुबह 9 बजे आपके घर पर उपस्थित हो जाएगी, उसके बाद देखते है क्या होता है" रागिनी ने मेरी बात का मतलब समझते हुए बोला।
"ठीक है मेरी प्राण प्रिये विश्व सुंदरी, मुझे अपने गरीब खाने में आपके आगमन का इंतजार रहेगा" मैंने उसकी शान में चिरौरी भरे शब्दो का प्रयोग किया।
"क्यो अब आपकी लिस्ट में इस भूतनी का नाम विश्व सुंदरी दिखाई देने लगा है" उधर से रागिनी का खिलखिलाता स्वर सुनाई पड़ा।
"अब रात को अगर भूतनी का ख्याल करके सोऊंगा, तो पूरी रात सपनो में कोई भूतनी ही डेरा डालकर रहेगी, इसलिए विश्वसुन्दरी को याद किया है, ताकि सपनो में ऐश्वर्य राय आये, कैटरीना कैफ आये" मैंने हँसते हुए रागिनी को बोला।
"क्यो दिल्ली की लड़कियों ने अब घास डालना बन्द कर दिया है क्या, जो आजकल फिल्मी हसीनाओं के सपने देखने लगे हो" रागिनी ने मेरा पानी उतारने में पलभर की भी देरी नही की थी।
"सो जा भूतनी ! नही तो सुबह आने में ग्यारह बजाएगी" जब मुझे उसकी बात का कोई जवाब नही सूझा तो मैंने ये बोलकर फोन काटना ही सही समझा।
मुझे पता था कि बातो में मैं रागिनी से नही जीत सकता था। एक वही थी, जिसके सामने अपन की गिनती न तीन में थी न तेरह में।
एक बार फिर से मुझे उस कमजर्फ हसीना का ख्याल हो आया था, जो बारिश में भीगी हुई मेरे घर मे घुस गई थी, और मुझे दो लाख की पिस्टल का चूना लगा कर चली गई थी।
मैं उसके बारे में ही सोचता हुआ नींद की आगोश में चला गया था।
जारी रहेगा______![]()
Thanks brotherNice update.....

Bahut hi shaandar update diya hai Raj_sharma bhai....#02
मनहूस सुबह:-
मैं एक घँटे के अंदर ही इस वक़्त लोकल थाने में पहुंच गया था।
जिस एस आई के पास मुझे ड्यूटी अफसर ने भेजा था, उसका नाम देवप्रिय था।
मैंने अपनी आप बीती सुनाई और अपने पिस्टल का लाइसेंस भी उसके सम्मुख प्रस्ततु किया।
"आप बोल रहे हो कि ऐसे बरसात के मौसम में कोई अनजान लडकी आपके फ्लैट पर आई, आपने उसे इंसानियत के नाते पनाह दी, और वो आपके पिस्टल को चुराकर भाग गई, मतलब आपको ही सेन्धी लगा कर चली गई" देवप्रिय ने मेरी ही बताई हुई बातो को दोहराया।
"जी" मैंने इस बार संक्षिप्त सा जवाब दिया।
"क्या जी ! पुलिस को इतना चूतिया समझा है क्या, जो आप कोई भी कहानी सुनाओगे और हम उस कहानी पर विश्वास कर लेंगे" देवप्रिय अप्रिय स्वर में बोला।
मैंने आहत नजरो से उस पुलिसिये को देखा।
"आपको क्या लगता है कि मैं आपको कोई झुठी कहानी क्यो सुनाऊंगा" मैने उल्टा देवप्रिय से ही सवाल किया।
"या तो तुम उस पिस्टल से कोई कांड करके आये हो, या फिर करने की फिराक में होंगे, पिस्टल चोरी की रपट लिखवाने इसलिए आये हो कि, कल को जब तुम्हारा किया हुआ कांड हमारी नजर में आ जाये, तो आप हमारी ही लिखी हुई रपट को हमारे ही सामने अपनी बेगुनाही का सबूत बनाकर पेश कर सको"
देवप्रिय जो भी बोल रहा था, एक पुलिसिया होने के नाते उसे वही बोलना चाहिए था।
लेकिन हमेशा किसी भी बात को एक ही नजरिए से नही देखा जाना चाहिए, ऐसा मेरा निजी विचार था, और अब अपने इस विचार से देवप्रिय को अवगत करवाना जरूरी हो गया था।
"देखिए एक पुलिस वाले की हैसियत से आपका सोचना बिल्कुल जायज है, लेकिन हमेशा तस्वीर का एक ही पहलू नही देखना चाहिए, पुलिस की तो ड्यूटी होती है कि वो हर एंगल को देखे"
मैंने ये सब देवप्रिय के चेहरे पर अपनी नजरे जमाकर बोला था।
इसी वजह से मेरी बातों से जो अप्रिय भाव उसके चेहरे पर आए थे, उन्हें में ताड़ पाया था।
"तो अब आप हमें हमारी ड्यूटी भी सिखाओगे" देवप्रिय अब अपना पुलिसिया रोब झाड़ने पर उतारू हो चुका था।
"अगर जरूरत पड़ी तो सीखा भी सकता हूँ, मुझे लगता है तुमसे तो बात करना ही समय की बर्बादी है, ये बताओ माहेश्वरी साहब अपने रूम में है, या नही" मै उसकी फिजूल की पुलिसिया गिरी से परेशान होकर बोला।
"तो अब साहब लोगो का नाम लेकर भी हमे डराओगे" देवप्रिय पता नही क्यो मुझ से पंगा लेने पर उतारू था।
"मैं डरा नही रहा हूँ, मैं उनसे पूछना चाहता हूँ, की जिन लोगो को पब्लिक डीलिंग करनी नही आती, ऐसे लोगों के पास किसी फरियादी को भेजते ही क्यो हो" मै अब उसको उसकी ही स्टाइल में जवाब दे रहा था।
"मैंने आपसे क्या गलत व्यवहार किया, मैंने अपना वही शक जाहिर किया है, जो मेरी जगह खुद माहेश्वरी साहब होते तो वो भी करते" देवप्रिय ने मेरी बात का जवाब उसी अंदाज में दिया।
"तो अपने शक के चलते आप मेरे पक्ष को नही सुनोगे, या सिर्फ अपने शक की बुनियाद पर ही मुझे फाँसी पर चढ़ा दोगे"
मेरी बात सुनकर देवप्रिय को सूझा ही नही की वो जवाब क्या दे। वो चुप्पी साधकर मेरी ओर देखता रहा।
"जनाब मैं एक प्राइवेट डिटेक्टिव हूँ, और थोड़े बहुत कानूनों की जानकारी मैं भी रखता हूँ" ये बोलकर अपना विज़िटिंग कार्ड मैंने उसके सामने उसकी टेबल पर रख दिया।
उसने मेरा विजिटिंग कार्ड उठाकर गौर से पढ़ा।
"अब तो मेरे शक की बुनियाद और ज्यादा मजबूत हो गई रोमेश बाबू, आप एक प्राइवेट डिटेक्टिव है और प्राइवेट डिटेक्टिव तो पैदाइशी खुरापाती होते है, अब सच बोल ही दो की क्या खुरापात कर चुके हों, या कौन सी खुरापात करने जा रहे हो "देवप्रिय एक कुटिल मुस्कान के साथ मुझ से रूबरू हुआ।
"मैं एक कानून का पालन करने वाला बाइज्ज्ज्त शहरी हूँ, जो हर साल बाकायदा सरकार को इनकम टैक्स भी देता है, आपको ये कुर्सी हम जैसे लोगो की मदद करने के लिए दी जाती है, न कि अपने ख्याली पुलाव पकाकर किसी शरीफ शहरी को परेशान करनें के लिए दी जाती है, खैर मैं भी आप जैसे अहमक इंसान से क्यो अपना मूॅढ मार रहा हूँ, मैं अब माहेश्वरी साहब से ही सीधा मिल लेता हूँ, और हाँ आपके किसी के साथ बर्ताव करने के तौर तरीकों की शिकायत भी बाकायदा लिखित मे करूँगा" ये बोलकर मैं तेज कदमो से
उसके कमरे से निकल गया।
वो बन्दा मेरे पीछे आवाज लगाता हुआ रह गया, लेकिन मैं अब उसकी कोई बात सुनने के मूड में नही था।
कुछ ही देर बाद .....
माहेश्वरी साहब ने मेरी बात सुनते ही देवप्रिय को अपने कमरे में तलब कर लिया था।
देवप्रिय कमरे में आकर सावधान की मुद्रा में अपने साहब के सामने खड़ा हो गया था।
"ये रोमेश साहब है, कानून के बहुत बड़े मददगार है, और महकमे में काफी लोग इनका सम्मान करते है, इनकी जो भी शिकायत है, उसे दर्ज करके उसकी एक कॉपी इनको दो" माहेश्वरी साहब ने सीधे सपाट लहजें में देवप्रिय को बोला।
"जी जनाब! मैं इनकी शिकायत दर्ज ही कर रहा था, लेकिन शिकायत ऐसी है कि उसके मद्दनेजर मेरा इनसे पूछताछ करना जरूरी हो गया था" देवप्रिय ने मरे हुए स्वर में कहा।
"जब इनकी खोई हुई पिस्टल से हुई कोई वारदात हमारे सामने आ जाये, तब आप अच्छे से अपने सामने बैठाकर इनसे पूछताछ कर लेना, उस समय मैं भी आपके साथ इनसे ढेर सारे सवाल करूँगा, लेकिन अभी सूत न कपास और जुलाहे से लठ्ठमलठ्ठा होने की क्या जरूरत है" माहेश्वरी साहब ने अपनी देशी भाषा मे देवप्रिय को समझाया।
"जी जनाब!मैं इनकी शिकायत दर्ज कर लेता हूँ" ये बोलकर देवप्रिय ने मुझे अपने साथ आने का इशारा किया।
मैं माहेश्वरी साहब का शुक्रिया अदा करते हुए देवप्रिय के पीछे प्रस्थान कर गया------!
थाने से कोई मुझे एक घँटे के बाद निजात मिली थी मैंने घड़ी में समय देखा, रात के ग्यारह बज चुके थे। मैं वापिस अपने फ्लैट पर लौट आया।
खुद को बिस्तर के हवाले करने के बाद भी अभी नींद आंखों से कोसो दूर थी।
एक बिना वजह की आफत मेरे गले बैठे बिठाए आकर पड़ी थी। बैठें बिठाए नहीं बल्कि लेटे लिटाये पड़ी थी। जब वो आफत की पुड़िया आई थी उस वक़्त मैं खुद को बिस्तर के हवाले कर चुका था।
उस लड़की के बारे में मैं कुछ भी नही जानता था। लेकिन उसकी खोज खबर निकालना तो जरूरी था।
मैने एक बार फिर से समय देखने के लिये अपनी दीवार घड़ी पर नजर डाली। साढ़े ग्यारह बज चुके थे।
मुझे पक्का यकीन था कि रागिनी अभी सोई नही होंगी। मैंने आज की पूरी घटना रागिनी को भी बताना उचित समझा।
मैंने तुरन्त रागिनी को फ़ोन मिला दिया। रागिनी ने फ़ोन को रिसीव किया तो उसकी अलसाई आवाज से पता लगा कि मोहतरमा को मैने नींद से जगा दिया था।
"क्या हुआ! अब रात को नींद नही आने की बीमारी भी हो गई क्या, जो शहर की सुंदर सुंदर लड़कियों को फोन करने लगे" रागिनी ने उठते ही तंज मारा।
"मेरी कॉलर लिस्ट में नाम भूतनी लिखा हुआ आ रहा हैं, सुंदर लड़कियो के नंबर तो मैं विश्व सुन्दरी के नाम सेव करता हूँ" मैंने रागिनी के नहले पर अपना दहला मारा।
"इस भूतनी से बच कर रहना, ये कभी कभी जिंदा इंसानों को भी हजम कर जाती है" रागिनी ने तपी हुई आवाज से बोला।
"चल अब मुझे हजम करने के सपने बाद में देखना और वो सुन जिसके लिये तुम्हे फोन किया है" मै अब बकलोली बन्द करके मतलब की बात पर आया।
"क्या हुआ" रागिनी भी अब किंचित गंभीर स्वर में बोली।
मैं रागिनी को आज जो भी मेरे साथ घटना घटी, बताता चला गया। पूरी बात सुनने के बाद भी रागिनी कुछ देर खामोश ही रही।
"गुरु या तो अब शादी करके अपने गले में घँटी बांध लो, नही तो इस शहर की लड़कियां तुम्हे फांसी के फंदे पर जरूर लटकवा देगी" रागिनी ने नसीहत भरे स्वर में बोला।
"लेकिन मैं तो एक लड़की की मदद ही कर रहा था, सबसे बड़ी बात वो खुद चलकर मेरे घर तक आई थी, मैं उसे बुलाकर नही लाया था, और जिस बदहवासी की हालत में थी, मेरी जगह कोई भी होता वो उसकी मदद करता" मैंने रागिनी के सामने अपनी सफाई दी।
"अब वो कर गई न तुम्हारी मदद ! अब ये नही पता कि वो मैडम कोई चोरनी थी, जो कुछ चुराने के इरादे से घर मे घुसी थी, और जब उसे कुछ नही मिला तो, भागतें चोर की लंगोटी सही, इसलिए वो तुम्हारी पिस्टल ले गई" रागिनी ने अपनी सोच बताई।
"तुम बहुत सतही तरीके से सोच रही हो रागिनी, ये भी तो हो सकता है, की कोई लड़कियों के बारे में मेरी कमजोरी को जानता हो, और उसी का फायदा उठाकर उस लड़की को मेरे घर भेजा गया हो, अब वो किस इरादे से आई थी, ये तो तभी पता लगेगा, जब कभी हम उसे पकड़ पायेगे" मैंने रागिनी को बोला।
"मैं आपकी बात समझ गई गुरुदेव, ये बन्दी कल सुबह 9 बजे आपके घर पर उपस्थित हो जाएगी, उसके बाद देखते है क्या होता है" रागिनी ने मेरी बात का मतलब समझते हुए बोला।
"ठीक है मेरी प्राण प्रिये विश्व सुंदरी, मुझे अपने गरीब खाने में आपके आगमन का इंतजार रहेगा" मैंने उसकी शान में चिरौरी भरे शब्दो का प्रयोग किया।
"क्यो अब आपकी लिस्ट में इस भूतनी का नाम विश्व सुंदरी दिखाई देने लगा है" उधर से रागिनी का खिलखिलाता स्वर सुनाई पड़ा।
"अब रात को अगर भूतनी का ख्याल करके सोऊंगा, तो पूरी रात सपनो में कोई भूतनी ही डेरा डालकर रहेगी, इसलिए विश्वसुन्दरी को याद किया है, ताकि सपनो में ऐश्वर्य राय आये, कैटरीना कैफ आये" मैंने हँसते हुए रागिनी को बोला।
"क्यो दिल्ली की लड़कियों ने अब घास डालना बन्द कर दिया है क्या, जो आजकल फिल्मी हसीनाओं के सपने देखने लगे हो" रागिनी ने मेरा पानी उतारने में पलभर की भी देरी नही की थी।
"सो जा भूतनी ! नही तो सुबह आने में ग्यारह बजाएगी" जब मुझे उसकी बात का कोई जवाब नही सूझा तो मैंने ये बोलकर फोन काटना ही सही समझा।
मुझे पता था कि बातो में मैं रागिनी से नही जीत सकता था। एक वही थी, जिसके सामने अपन की गिनती न तीन में थी न तेरह में।
एक बार फिर से मुझे उस कमजर्फ हसीना का ख्याल हो आया था, जो बारिश में भीगी हुई मेरे घर मे घुस गई थी, और मुझे दो लाख की पिस्टल का चूना लगा कर चली गई थी।
मैं उसके बारे में ही सोचता हुआ नींद की आगोश में चला गया था।
जारी रहेगा______![]()