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Mobile par likhta hoon bhai, yahan CLT+z nahi hotaTo undone kar dete control +z se![]()
Mobile par likhta hoon bhai, yahan CLT+z nahi hotaTo undone kar dete control +z se![]()
Bahut hi shaandar update diya hai Riky007 bhai....#अपडेट ४
अब तक आपने पढ़ा -
कुछ देर बाद दरवाजा खुला और जो भी अंदर आया उसे देख कर मेरे दिल में एक हलचल सी होने लगी....
अब आगे -
काली साड़ी में लिपटी वो...
दूध में केसर घोल दी गई हो जैसे, वैसा रंग, जो काली साड़ी में और कहर ढा रहा था, छरहरा बदन, जो हर उस हिस्से पर सुडौल था, जहां होना चाहिए था, दरम्याना कद और चेहरे पर मासूमियत और आकर्षक मुस्कान लिए वो मीटिंगरूम में आई, और मुझे लगा जैसे एक सेकंड के लिए मेरे दिल की धड़कन रुक गई हो।
अंदर आते ही उसने चारों ओर देखा और मेरी तरफ ही देख कर आने लगी, मेरी नजरें उस बला से हट ही नहीं रही थी। ये क्या हो गया मुझे?
वो मेरी तरफ आ कर करण के पास वाली सीट पर बैठ गई और उसे सर झुका कर अभिवादन किया। मैं ये देख कर सोच में पड़ गया कि क्या ये मेरे ही डिपार्टमेंट में है? तो पहले देखा क्यों नहीं कभी इसे?
तभी मीटिंग रूम का दरवाजा फिर से एक बात खुला और मित्तल सर अंदर आए, सारे लोग अपनी कुर्सी छोड़ कर खड़े हो गए। ये हलचल देख मेरे भी होश वापस आए और मैने अभी फिलहाल उसकी ओर देखने लगभग बंद ही कर दिया।
सर ने आते ही मीटिंग चालू कर दी।
"गुड मॉर्निंग ऑल, सबसे पहले आइए मिलते हैं अपनी टीम में नई ज्वाइन हुई नेहा वर्मा से, ये HFC बैंक से आई हैं और वहां क्लाइंट रिलेशन की सीनियर मैनेजर थी, अभी 15 दिन पहले ही ज्वाइन किया है। यहां पर ये AGM बैंकिंग होंगी, करण अब से DGM बैंकिंग का कार्यभार संभालेगा।"
सब लोग नेहा को ग्रीट करते हैं। मेरे मन में तो लड्डू फूटने लगा कि ये तो मेरे ही डिपार्टमेंट में हैं।
"जैसा आप सब जानते हैं कि ये मीटिंग नई ऑटोमेटेड ब्रांच के भविष्य को देश के अन्य शहरों में देखने के बारे में है। तो इसके लिए श्रेयन ने कुछ योजनाएं बनाई है। श्रेयन इस बारे में आप बताइए।"
श्रेयन, "मैने इस बारे में 2 तरह का प्लान सोचा है, पहला एक प्रिंट और टीवी विज्ञापन जो पूरे देश में चलेगा। और दूसरा, हम कुछ ग्राउंड लेवल पर संपर्क करके इसके भविष्य को देखें कि देश के किन शहरों में इसे पहले खोला जा सकता है। हालांकि मुझे लगता है कि पहले हमें दूसरे प्लान से शुरू करना चाहिए, जिससे हमें एक आइडिया लग जाय, और उसके बाद ही हम प्रिंट और टीवी विज्ञापन पर खर्च करें।"
मित्तल सर, "बढ़िया, मैं भी यही कहने वाला था कि पहले हमें ग्राउंड वर्क ही करना चाहिए, मेरे खयाल से इसमें भी तुमने कोई प्लान बनाया होगा?"
"जी बिलकुल, मेरे खयाल से हमे 2 2 के ग्रुप में देश के हर हिस्से में अपनी एक टीम भेजनी चाहिए जो देश के लगभग हर बड़े शहर में इसके पोटेंशियल को देखे जाने। चूंकि अपनी ब्रांचेस लगभग हर शहर में हैं तो वहां पर संपर्क साधने में दिक्कत नहीं आएगी। इसके लिए मेरे खयाल से प्रिया और करण साउथ में, शिविका और महेंद्र, DGM real estate को पूर्वी भारत में, मनीष और राघव, DGM finance को नॉर्थ में, और मैं और नेहा पश्चिम में जा कर कुछ शहरों में मीटिंग रखे, और वहां के लोगों को इसके कॉन्सेप्ट से परिचित करवाएं, जिससे पता चले कि वह लोग किस हद तक इसे पसंद करते हैं।"
मित्तल सर, "परफेक्ट प्लान है श्रेयन, बस मनीष के साथ नेहा को भेजो और राघव को तुम अपने साथ रखो, क्योंकि मनीष और राघव दोनों का कस्टमर रिलेशन में ज्यादा experience नहीं है, वहीं नेहा का एक्सपीरियंस इसी फील्ड में है।"
श्रेयन, "जी ये सही रहेगा, इस बारे में मैने ध्यान नहीं दिया। मनीष के साथ नेहा और मेरे साथ राघव जाएंगे फिर।"
मित्तल सर, "चलो फिर हर जोन में कुछ शहरों को भी चुन लेते हैं कि कहां कहां इसके टारगेट कस्टमर्स मिल सकते हैं।"
फिर सारे लोगों ने देश के कई शहरों की लिस्ट बनानी शुरू कर दी, और अंत में हर जोन से 5 शहरों को चुना गया। मेरे हिस्से में लखनऊ, दिल्ली, चंडीगढ़, देहरादून और शिमला आए।
सारी टीम को हर शहर में 2 से 3 दिन दिए गए और लगभग 15 दिन का टूर बना।
श्रेयन, "आज 15 दिसंबर है और हम सब यहां से 22 दिसंबर को निकलेंगे। शिविका सारी टीम का अरेंजमेंट कर दो।"
शिविका ने फौरन अपने डिपार्टमेंट में इसकी सूचना दे दी।
मित्तल सर, "मनीष, अब तुम अपनी प्रेजेंटेशन एक बार दे कर सबको बता दो कि वहां क्या क्या बताना है, और आप लोग इस पर जितने भी सवाल हो सकते हैं वो पूछ लीजिए, ताकि वहां प्रेजेंटेशन देते समय आपको की दिक्कत न आए।"
फिर मैने बैंक के बारे में प्रेजेंटेशन दी, और सबने कई तरह के सवाल किए और मैने उनका जवाब दिया, जिसे सब लोगों ने नोट कर लिया।
अब मीटिंग खत्म हो गई थी और सब लोग धीरे धीरे बाहर निकलने लगे थे।
नेहा ने मेरे पास आ कर, "गुड मॉर्निंग सर, मुझे लगा मनीष मित्तल कोई मिडिल एज के होंगे, मैने नहीं सोचा था कि इस उम्र में आप इतना बड़ा अचीवमेंट कर लेंगे।"
मैने भी मुस्कुराते हुए कहा, "ये कोई इतनी बड़ी बात भी नहीं है, वैसे भी पूरी टीम ही young और energetic है साथ ही साथ मित्तल सर और महेश सर का एक्सपीरियंस भी है हम सबके साथ।" ये बोलते हुए मेरी दिल की धड़कन तेज हुई जा रही थी। आज हो क्या रहा था मेरे साथ ये?
नेहा, "अच्छा सर मैं अब चलती हूं।"
मैं उसे जाता देख रहा था।
"वैसे दिखने में तो बढ़िया है न?"
मैने हड़बड़ा कर पीछे देखा, ये शिविका थी, अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ उसने मुझे आंख भी मारी।
"क्या प्लान बना है! खास कर तुम्हारा मनीष, ये उत्तर भारत की ठंड का मौसम, और ऐसी लोकेशंस, ऐसा लग रहा है ये बिजनेस टूर नहीं अंकल ने तुम्हे हनीमून टूर दिया है।"
मैने उसे आंख दिखाई।
"वैसे मजे करना।"
ये बोल कर वो भी निकल गई। और मैं भी अपने केबिन में आ गया। अब कुछ काम नहीं था मुझे तो मैने इंटरकॉम पर सर से बात की
"सर, क्या आज मैं जल्दी चला जाऊं?"
"बिलकुल मनीष, चाहो तो कल भी मत आना, वैसे भी पिछले 3 महीनों से आराम नहीं किया है तुमने।"
मैं ऑफिस से घर आ गया, शाम हो चली थी, फ्रेश हो कर मैं क्लब चला गया।
ये वापी का सबसे अच्छा क्लब था, जहां लगभग सारे इनडोर गेम्स के लिए एक बड़ा हॉल था, जिसे नेट लगा कर अलग अलग सेक्शन में बांटा गया था। हाल ऐसा था कि एक कोने से दूसरे कोने तक सब दिखाता था, उसी हाल के एक साइड स्विमिंग पूल और बार एंड रेस्टुरेंट थे। बिल्डिंग के पीछे समुद्र की तरफ गोल्फ कोर्स था।
मैं सीधे बैडमिंटन कोर्ट में पहुंचा जहां २ लोग पहले से ही खेल रहे थे। मैं बैठ कर मैच देखने लगा।
अभी बैठे कुछ देर ही हुई थी कि एक हाथ मेरे कंधे पर पड़ा, "आज फुर्सत मिल ही गई जीएम साहब को यहां आने की।"
ये समर सिंह था, वापी का ASP और कंपनी के बाहर मेरा इकलौता दोस्त।
"तुझे पता ही है कि मैं कहां बिजी था।"
"मुझे तो लगा कि मेरी भाभी ढूंढ ली है तुमने, और अब मुझे खुद ही मिलने आना पड़ेगा।"
हम ऐसे ही कुछ इधर उधर की बाते करते रहे, तब तक उन दिनों का मैच भी पूरा हो गया था। फिर हम चारों ने एक डबल खेल, जिसमे मैं और समर एक तरफ और वो दोनों दूसरी तरफ थे। ये मैच हमने 21-10 से जीता। उसके बाद वो दोनों चले गए।
समर,"देखा कैसे हराया मैने दोनों को।"
"तुमने? या मैने?"
"हाहाहा, चलो पता करते हैं। बेस्ट ऑफ थ्री।"
और इसी के साथ हम दोनो ने अपना मैच स्टार्ट कर दिया, और पहला मैच मैने बड़ी आसानी से 21-8 से जीता।
"देखा ASP साहब, किसने वो मैच जितवाया था!"
"बेस्ट ऑफ थ्री की बात हुई है GM साहब।"
और फिर दूसरा मैच शुरू हुआ और पहले 5 पॉइंट मैने आसानी से बनाए। फिर मेरी नजर समर के पीछे टेनिस कोर्ट पर पड़ी और....
ओह हो लगता है हमारे हीरो मनीष बाबू को उनकी हीरोइन मिल गई है अच्छा नाम है नेहा और अब तो कंपनी की ब्रांच खोलने की तैयारी हो गई है सभी की 2 टीम में लोग रहेगी ओर मनीष के साथ नेहा रहेगी ऐसा लगता है ये टूर काफी सुहाना होने वाला है मनीष के लिए#अपडेट ४
अब तक आपने पढ़ा -
कुछ देर बाद दरवाजा खुला और जो भी अंदर आया उसे देख कर मेरे दिल में एक हलचल सी होने लगी....
अब आगे -
काली साड़ी में लिपटी वो...
दूध में केसर घोल दी गई हो जैसे, वैसा रंग, जो काली साड़ी में और कहर ढा रहा था, छरहरा बदन, जो हर उस हिस्से पर सुडौल था, जहां होना चाहिए था, दरम्याना कद और चेहरे पर मासूमियत और आकर्षक मुस्कान लिए वो मीटिंगरूम में आई, और मुझे लगा जैसे एक सेकंड के लिए मेरे दिल की धड़कन रुक गई हो।
अंदर आते ही उसने चारों ओर देखा और मेरी तरफ ही देख कर आने लगी, मेरी नजरें उस बला से हट ही नहीं रही थी। ये क्या हो गया मुझे?
वो मेरी तरफ आ कर करण के पास वाली सीट पर बैठ गई और उसे सर झुका कर अभिवादन किया। मैं ये देख कर सोच में पड़ गया कि क्या ये मेरे ही डिपार्टमेंट में है? तो पहले देखा क्यों नहीं कभी इसे?
तभी मीटिंग रूम का दरवाजा फिर से एक बात खुला और मित्तल सर अंदर आए, सारे लोग अपनी कुर्सी छोड़ कर खड़े हो गए। ये हलचल देख मेरे भी होश वापस आए और मैने अभी फिलहाल उसकी ओर देखने लगभग बंद ही कर दिया।
सर ने आते ही मीटिंग चालू कर दी।
"गुड मॉर्निंग ऑल, सबसे पहले आइए मिलते हैं अपनी टीम में नई ज्वाइन हुई नेहा वर्मा से, ये HFC बैंक से आई हैं और वहां क्लाइंट रिलेशन की सीनियर मैनेजर थी, अभी 15 दिन पहले ही ज्वाइन किया है। यहां पर ये AGM बैंकिंग होंगी, करण अब से DGM बैंकिंग का कार्यभार संभालेगा।"
सब लोग नेहा को ग्रीट करते हैं। मेरे मन में तो लड्डू फूटने लगा कि ये तो मेरे ही डिपार्टमेंट में हैं।
"जैसा आप सब जानते हैं कि ये मीटिंग नई ऑटोमेटेड ब्रांच के भविष्य को देश के अन्य शहरों में देखने के बारे में है। तो इसके लिए श्रेयन ने कुछ योजनाएं बनाई है। श्रेयन इस बारे में आप बताइए।"
श्रेयन, "मैने इस बारे में 2 तरह का प्लान सोचा है, पहला एक प्रिंट और टीवी विज्ञापन जो पूरे देश में चलेगा। और दूसरा, हम कुछ ग्राउंड लेवल पर संपर्क करके इसके भविष्य को देखें कि देश के किन शहरों में इसे पहले खोला जा सकता है। हालांकि मुझे लगता है कि पहले हमें दूसरे प्लान से शुरू करना चाहिए, जिससे हमें एक आइडिया लग जाय, और उसके बाद ही हम प्रिंट और टीवी विज्ञापन पर खर्च करें।"
मित्तल सर, "बढ़िया, मैं भी यही कहने वाला था कि पहले हमें ग्राउंड वर्क ही करना चाहिए, मेरे खयाल से इसमें भी तुमने कोई प्लान बनाया होगा?"
"जी बिलकुल, मेरे खयाल से हमे 2 2 के ग्रुप में देश के हर हिस्से में अपनी एक टीम भेजनी चाहिए जो देश के लगभग हर बड़े शहर में इसके पोटेंशियल को देखे जाने। चूंकि अपनी ब्रांचेस लगभग हर शहर में हैं तो वहां पर संपर्क साधने में दिक्कत नहीं आएगी। इसके लिए मेरे खयाल से प्रिया और करण साउथ में, शिविका और महेंद्र, DGM real estate को पूर्वी भारत में, मनीष और राघव, DGM finance को नॉर्थ में, और मैं और नेहा पश्चिम में जा कर कुछ शहरों में मीटिंग रखे, और वहां के लोगों को इसके कॉन्सेप्ट से परिचित करवाएं, जिससे पता चले कि वह लोग किस हद तक इसे पसंद करते हैं।"
मित्तल सर, "परफेक्ट प्लान है श्रेयन, बस मनीष के साथ नेहा को भेजो और राघव को तुम अपने साथ रखो, क्योंकि मनीष और राघव दोनों का कस्टमर रिलेशन में ज्यादा experience नहीं है, वहीं नेहा का एक्सपीरियंस इसी फील्ड में है।"
श्रेयन, "जी ये सही रहेगा, इस बारे में मैने ध्यान नहीं दिया। मनीष के साथ नेहा और मेरे साथ राघव जाएंगे फिर।"
मित्तल सर, "चलो फिर हर जोन में कुछ शहरों को भी चुन लेते हैं कि कहां कहां इसके टारगेट कस्टमर्स मिल सकते हैं।"
फिर सारे लोगों ने देश के कई शहरों की लिस्ट बनानी शुरू कर दी, और अंत में हर जोन से 5 शहरों को चुना गया। मेरे हिस्से में लखनऊ, दिल्ली, चंडीगढ़, देहरादून और शिमला आए।
सारी टीम को हर शहर में 2 से 3 दिन दिए गए और लगभग 15 दिन का टूर बना।
श्रेयन, "आज 15 दिसंबर है और हम सब यहां से 22 दिसंबर को निकलेंगे। शिविका सारी टीम का अरेंजमेंट कर दो।"
शिविका ने फौरन अपने डिपार्टमेंट में इसकी सूचना दे दी।
मित्तल सर, "मनीष, अब तुम अपनी प्रेजेंटेशन एक बार दे कर सबको बता दो कि वहां क्या क्या बताना है, और आप लोग इस पर जितने भी सवाल हो सकते हैं वो पूछ लीजिए, ताकि वहां प्रेजेंटेशन देते समय आपको की दिक्कत न आए।"
फिर मैने बैंक के बारे में प्रेजेंटेशन दी, और सबने कई तरह के सवाल किए और मैने उनका जवाब दिया, जिसे सब लोगों ने नोट कर लिया।
अब मीटिंग खत्म हो गई थी और सब लोग धीरे धीरे बाहर निकलने लगे थे।
नेहा ने मेरे पास आ कर, "गुड मॉर्निंग सर, मुझे लगा मनीष मित्तल कोई मिडिल एज के होंगे, मैने नहीं सोचा था कि इस उम्र में आप इतना बड़ा अचीवमेंट कर लेंगे।"
मैने भी मुस्कुराते हुए कहा, "ये कोई इतनी बड़ी बात भी नहीं है, वैसे भी पूरी टीम ही young और energetic है साथ ही साथ मित्तल सर और महेश सर का एक्सपीरियंस भी है हम सबके साथ।" ये बोलते हुए मेरी दिल की धड़कन तेज हुई जा रही थी। आज हो क्या रहा था मेरे साथ ये?
नेहा, "अच्छा सर मैं अब चलती हूं।"
मैं उसे जाता देख रहा था।
"वैसे दिखने में तो बढ़िया है न?"
मैने हड़बड़ा कर पीछे देखा, ये शिविका थी, अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ उसने मुझे आंख भी मारी।
"क्या प्लान बना है! खास कर तुम्हारा मनीष, ये उत्तर भारत की ठंड का मौसम, और ऐसी लोकेशंस, ऐसा लग रहा है ये बिजनेस टूर नहीं अंकल ने तुम्हे हनीमून टूर दिया है।"
मैने उसे आंख दिखाई।
"वैसे मजे करना।"
ये बोल कर वो भी निकल गई। और मैं भी अपने केबिन में आ गया। अब कुछ काम नहीं था मुझे तो मैने इंटरकॉम पर सर से बात की
"सर, क्या आज मैं जल्दी चला जाऊं?"
"बिलकुल मनीष, चाहो तो कल भी मत आना, वैसे भी पिछले 3 महीनों से आराम नहीं किया है तुमने।"
मैं ऑफिस से घर आ गया, शाम हो चली थी, फ्रेश हो कर मैं क्लब चला गया।
ये वापी का सबसे अच्छा क्लब था, जहां लगभग सारे इनडोर गेम्स के लिए एक बड़ा हॉल था, जिसे नेट लगा कर अलग अलग सेक्शन में बांटा गया था। हाल ऐसा था कि एक कोने से दूसरे कोने तक सब दिखाता था, उसी हाल के एक साइड स्विमिंग पूल और बार एंड रेस्टुरेंट थे। बिल्डिंग के पीछे समुद्र की तरफ गोल्फ कोर्स था।
मैं सीधे बैडमिंटन कोर्ट में पहुंचा जहां २ लोग पहले से ही खेल रहे थे। मैं बैठ कर मैच देखने लगा।
अभी बैठे कुछ देर ही हुई थी कि एक हाथ मेरे कंधे पर पड़ा, "आज फुर्सत मिल ही गई जीएम साहब को यहां आने की।"
ये समर सिंह था, वापी का ASP और कंपनी के बाहर मेरा इकलौता दोस्त।
"तुझे पता ही है कि मैं कहां बिजी था।"
"मुझे तो लगा कि मेरी भाभी ढूंढ ली है तुमने, और अब मुझे खुद ही मिलने आना पड़ेगा।"
हम ऐसे ही कुछ इधर उधर की बाते करते रहे, तब तक उन दिनों का मैच भी पूरा हो गया था। फिर हम चारों ने एक डबल खेल, जिसमे मैं और समर एक तरफ और वो दोनों दूसरी तरफ थे। ये मैच हमने 21-10 से जीता। उसके बाद वो दोनों चले गए।
समर,"देखा कैसे हराया मैने दोनों को।"
"तुमने? या मैने?"
"हाहाहा, चलो पता करते हैं। बेस्ट ऑफ थ्री।"
और इसी के साथ हम दोनो ने अपना मैच स्टार्ट कर दिया, और पहला मैच मैने बड़ी आसानी से 21-8 से जीता।
"देखा ASP साहब, किसने वो मैच जितवाया था!"
"बेस्ट ऑफ थ्री की बात हुई है GM साहब।"
और फिर दूसरा मैच शुरू हुआ और पहले 5 पॉइंट मैने आसानी से बनाए। फिर मेरी नजर समर के पीछे टेनिस कोर्ट पर पड़ी और....
Fir to gadbad hai, waise private area me chipka ker rakh sakte ho waha thoda thoda chaapte raho, jaisa maine kiya tha, pichli se pichli story meMobile par likhta hoon bhai, yahan CLT+z nahi hota

Nahi, I'm comfortable with mobile only.Fir to gadbad hai, waise private area me chipka ker rakh sakte ho waha thoda thoda chaapte raho, jaisa maine kiya tha, pichli se pichli story me![]()
काहानिकार 45+ का है, और 70 और 80 के दशक की manmohaan देसाई की फिल्मों का शौकीन रहा है, इसी वजह से इस update को पूरा ओल्ड is gold फिल्म की कहानी की तरह परोस दिया है।#अपडेट २
अब तक आपने पढ़ा -
अब आप सोच रहे होंगे कि कैसा नालायक बेटा हूं मैं जो अपने पिता को सर बोल रहा हूं और उनके साथ घर क्यों नही गया?
तो आपको बता दूं रजत जी मेरे पिता नही हैं....
अब आगे -
हां वो मुझे जन्म देने वाले पिता नही हैं, लेकिन पिता से कम भी नहीं हैं, ये नाम मनीष मित्तल भी उन्ही का दिया है, वरना जब से मैंने होश सम्हाल है, खुद को इस दुनिया में अकेला ही पाया है।
मुझे पता भी नही कि मेरे माता पिता कौन थे, कैसे थे। मैं उनकी ही औलाद था या नाजायज था, या उनकी किसी दुर्घटना में मौत हो गई।
होश आते ही मैंने खुद को दिल्ली की सड़कों पर भटकता पाया, पेट भरने के लिए कभी भीख मांगता, कभी कुछ छोटे मोटे काम, जैसे जूता पॉलिश करना, गाड़ी साफ करना, करते हुए गुजारा करने लगा। जब मैं कुछ बड़ा हुआ तो मुझे नई दिल्ली स्टेशन के पास एक ढाबे में काम मिल गया। वो ढाबा एक सरदार जी का था, जो उस वक्त करीब पैंतीस साल के होंगे, बड़े ही जिंदादिल इंसान और स्वभाव के बहुत ही अच्छे। उन्होंने पहले तो मुझे टेबल साफ करना का काम दिया, और बाद में मुझे पढ़ने के लिए भी उकसाया।
मुझे पढ़ाई बड़ी अच्छी लगने लगी, मैने कुछ ही साल में क्लास 5 तक की पढ़ाई पढ़ ली। पढ़ाई के साथ साथ मुझे नई चीजें सीखना का भी शौक था।
एक दिन स्टेशन के पास सौंदर्यीकरण के कारण सरदार जी को ढाबे की जगह खाली करने का आदेश आ गया, सरदार जी ने अपने ढाबे को राजेंद्र नगर में शिफ्ट कर दिया, और कई पुराने लोगों को भी वहीं काम पर बुला लिया, उनमें से मैं भी एक था, वो मुझे बहुत मानने लगे थे।
वहां ढाबे के पास ही जॉली की इलेक्ट्रॉनिक रिपेयरिंग की दुकान थी, वो समय था जब भारत में मोबाइल आया ही था, और हैप्पी भैया भी मोबाइल रिपेयरिंग का काम सीख कर अपनी दुकान में वो भी करने लगे थे। सरदार जी और मेरी उनसे बहुत बनने लगी। मैं तो अक्सर खाली समय में उनकी दुकान पर बैठा चीजों को रिपेयर होते देखता रहता था। कभी कभी हैप्पी भैया मुझे भी कुछ छोटी चीजों को रिपेयर करने देते थे।
एक दिन जब मैं उनकी दुकान पर बैठा था तो दुकान में 3 4 आदमी आए, उनमें से एक को छोड़ कर बाकी दुकान के बाहर रुक गए।
उनको देखते ही जॉली भैया अपनी सीट छोड़ कर खड़े हो गए, "अरे मित्तल साहब, नमस्ते। आइए आइए, बोलिए यहां आने की जहमत क्यों उठाई आपने, मुझे बुलवा लिया होता।"
जॉली भैया के इस तरह बोलते देख मैं समझ गया कि ये कोई बड़ी हस्ती हैं, और बाहर खड़े लोग उनके बॉडीगार्ड या मातहत हैं।
मित्तल साहब, "अरे जॉली बात ही कुछ ऐसी है, तुमको बुलाता तो आने जाने में समय बरबाद होता, इसीलिए खुद आ गया। अभी कुछ दिन पहले अमेरिका से आया हूं,वहां ये लेटेस्ट मॉडल का फोन लिया था, लेकिन आज सुबह से ये ऑन भी नही हो रहा। जरा देखो इसको, बहुत सारे जरूरी कॉन्टेक्ट इसी फोन में हैं।"
जॉली भैया तुरंत उस फोन को खोल कर देखने लगते हैं, कोई 15 20 मिनट के बाद, "मित्तल साहब ये तो कुछ समझ नही आ रहा मुझे, और ये फोन तो इतना लेटेस्ट है कि इसे फिलहाल तो अपने देश में कोई बना भी न पाए।"
मित्तल साहब जो ये सुन कर थोड़ा परेशान हो गए, "एक बार सही से कोशिश तो करो भाई, बहुत जरूरी है इस फोन का सही होना, वरना एक बहुत बड़ा कॉन्ट्रैक्ट हाथ से चला जायेगा।"
जॉली भैया फिर से कोशिश में लग जाते हैं, और फिर 10 मिनिट के बाद, "नही समझ आ रहा मित्तल साहब।"
ये सुन कर वो व्यक्ति थोड़ा निराश दिखने लगा।
तभी पता नही मुझे क्या हुआ, "जॉली भैया, एक बार मैं कोशिश करूं?"
मित्तल साहब ने सवालिया नजरें से जॉली को देखा।
जॉली, "अरे मोनू, आज तक तूने किसी फोन को हाथ भी नही लगाया, और ये तो इतना लेटेस्ट है कि मुझे भी नही समझ आ रहा, तू कैसे करेगा ये?"
"एक बार कोशिश तो करने दो मुझे भैया।"
जॉली भैया बड़े पसोपेश में पड़ गए
मित्तल साहब मेरे पास आ कर मेरी आंखो में झांकते हुए बोले, "क्या तुम कर लोगे।"
पता नही किस शक्ति के वशीभूत हो कर मैने भी वैसे ही उनकी आंखों में देखते हुए जवाब दिया, "मुझे लगता है कि मैं इसको सही कर सकता हूं।"
"जॉली, एक बार इसे कोशिश करने दो।"
"पर मित्तल साहब?"
"जॉली फोन तो वैसे भी अब शायद ही बने यहां, एक बार इसको दो तो।"
जॉली भैया अपनी सीट छोड़ कर खड़े हो गए और मुझे इशारा किया। मैं उनकी सीट पर जा कर बैठ गया, जहां वो फोन रखा था। मैने उसे खोला और गौर से उसे देखने लगा। मित्तल साहब और जॉली भैया बाहर जा कर बैठ गए और कुछ बातें करने लगे।
मैं उस फोन को गौर से देख रहा था और समझने की कोशिश कर रहा था, पता नही मैने किस भावना में बह कर मित्तल साहब की आंखों में झांकते हुए फोन को सही करने की बात कर दी थी, अब मेरी हालत खराब हो रही थी।
खैर कुछ समय बाद मुझे लगा की कुछ है जो शायद टूटा है, वो एक बहुत ही महीन सा तार था जो बैटरी के कनेक्शन को मेन यूनिट से जोड़ रहा था, पतली वाली चिमटी से उसे निकलने पर वो टूटा ही मिला मुझे, और मैने एक और तार से वैसे ही महीन सा तार निकल कर लगा दिया, और फोन को वापस से पैक करके धड़कते दिल से ऑन का स्विच दबा दिया। कुछ सेकंड बाद फोन में लाइट आने लगी और वो ऑन हो गया।
आवाज सुनते ही जॉली भैया और मित्तल जी अंदर आए, और आते ही जॉली भैया ने मुझे गले लगा लिया, मित्तल जी फोन के ऑन होने से बहुत खुश थे।
जॉली, "कैसे किया तूने?"
मैने फिर सारी बात बताई, जिसे सुन कर मित्तल साहब के चेहरे पर कई तरह के भाव आते जाते रहे। सारी बात सुन कर मित्तल साहब ने अपना कार्ड मुझे देते हुए कहा, "बेटा ये मेरा कार्ड रखो, और अभी मैं किसी काम से मुंबई जा रहा हूं, 2 3 दिन के बाद लौटूंगा, तुम आ कर मुझसे जरूर से मिलना।"
इसके बाद वो बाहर निकल गए। जॉली भैया बहुत खुश थे और उन्होंने ये बात तुरंत ही सरदार जी को बताई। ये सुन कर सरदार जी भी खुश हो कर मेरी पीठ थपथपाने लगे।
खैर उसके बाद में ढाबे के काम में व्यस्त हो गया और मित्तल साहब के कार्ड के बारे में लगभग भूल ही गया।
6 7 दिन बाद दोपहर के बाद मैं ढाबे की सफाई कर रहा था, तभी एक ड्राइवर की वर्दी में ढाबे पर आया और मुझे सामने देख मुझसे पूछा, "ये मोनू कहां मिलेगा?"
"बोलिए, में ही मोनू हूं।"
"चलो, तुम्हे साहब ने बुलाया है।"
"कौन साहब?"
"मित्तल साहब का ड्राइवर हूं मैं, उन्होंने ही मुझे तुम्हे लाने भेजा है।"
तब तक सरदार जी भी पास आ चुके थे और मित्तल साहब का नाम सुनते ही मुझसे बोले, "जा पुत्तर, मिल कर आ मित्तल साहब से।"
मैं ड्राइवर के साथ निकल गया, वो एक बहुत ही बड़ी गाड़ी में आया था, जो दिल्ली जैसे शहर में ही बहुत कम दिखती थी। कोई एक घंटे बाद ड्राइवर ने गाड़ी एक इमारत के अंदर ले जा कर लगाई, और मुझे ले कर गाड़ी से बाहर आ कर लिफ्ट से इमारत के सबसे ऊपर वाली मंजिल पर ले गया।
वहां पहुंच कर ड्राइवर ने सामने काउंटर पर बैठी लड़की से कुछ बात की और उस लड़की ने उसे इशारे से अंदर जाने को कहा। ड्राइवर मुझे ले कर एक दरवाजे के पास ले गया और दरवाजे को खटखटाने लगा, अंदर से "आ जाओ" की आवाज आई, और ड्राइवर ने दरवाजा खोल कर मुझे अंदर जाने का इशारा किया।
अंदर जाते ही मैंने देखा, ये एक बहुत ही बड़ा और शानदार ऑफिस था, और सामने मित्तल साहब अपनी डेस्क के पीछे बैठे कोई फाइल पढ़ रहे थे। वो कमरा बहुत ही बड़ा था, इतना बड़ा की कई लोग का पूरा घर ही उतने में आ जाय।
मित्तल साहब ने मुझे देख कर साइड में रखे सोफे पर बैठने का इशारा किया, और फिर से फाइल पढ़ने लगे। मैं चुपचाप जा कर उस सोफे पर बैठने गया, और धड़कते दिल से चारों ओर देखने लगा। मुझे समझ नही आ रहा था कि आखिर इतने बड़े आदमी को मुझमें इतनी दिलचस्पी क्यों है कि मुझे लेने अपनी कार तक को भेज दिया। कोई पांच मिनट बाद मित्तल साहब अपनी कुर्सी से उठा कर मेरे सामने वाले सोफे पर आ कर बैठ गए।
"कैसे हो मोनू?"
"जी अच्छा हूं।" मैने अटकते हुए कहा।
"मैने तुमको उस दिन ही कहा था कि आ कर मुझसे मिलना, कर तुम आए नही?"
मैं निरूतर था, इसीलिए मैंने अपनी गर्दन झुका ली।
"समझ सकता हूं कि तुम सोच रहे होगे आखिर एक मामूली से तार को जोड़ कर तुमने ऐसा क्या कर दिया कि मुझ जैसा आदमी तुमको अपनी गाड़ी भेज कर अपने पास क्यों बुलाया है?"
मैं आश्चर्य से उनकी ओर देखने लगा।
" देखो मोनू, तुमने मेरा फोन बनाया, ये कोई बड़ी बात नहीं थी। उसकी खराबी शायद जॉली भी एक बार और देख कर समझा जाता। मगर जिस कॉन्फिडेंस से तुमने मेरे आंखो में आंखे डाल कर बोला कि तुमको लगता है कि तुम इस फोन को बना सकते हो, मुझे वो बहुत ही अच्छा लगा। तुम्हारी इस बात से पता लगता है कि तुम कोई साधारण लड़के नही हो, और जॉली ने भी मुझे बताया कि तुम्हारा दिमाग बहुत तेज है, और तुम्हारा पढ़ने लिखने में भी बहुत मन लगता है। इसीलिए, बस मैं तुम्हे आगे पढ़ना चाहता हूं।"
"पर मैं तो पढ़ ही रहा हूं अभी।"
"वो कोई पढ़ाई है भला, मैं चाहता हूं की तुम अपना ध्यान बस पढ़ने में लगाओ, और बस पढ़ो, और एक काबिल इंसान बनो।"
मैं आश्चर्य से उनकी ओर देखने लगा।
"देखो मोनू, मैं बस अच्छे लोगों की मदद करना चाहता हूं, मुझे लगता है कि तुम कुछ बन गए तो तुम इस समाज, इस देख के बहुत काम आ सकते हो, शायद मेरे भी।"
मैं अभी भी आंखे फाड़े उन्हें ही देखे जा रहा था। मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई मुझसे ऐसी बातें भी कर सकता है।
"ऐसा नहीं है कि तुम पहले हो जिसके साथ मैं ऐसा कर रहा हूं, मैने कई बच्चों को शिक्षा दिलाई है, हां तुम मुझे उनसे अलग लगे, इसीलिए मैंने खुद तुम्हे यहां बुलवा कर तुमसे बात कर रहा हूं। और मैं ये भी नही कह रहा कि तुम अभी ही कोई फैसला लो। अभी तुम वापस जाओ, और आराम से 2 3 दिन सोच विचार करके अपना फैसला लो। बस अपने भले की ही सोचना।"
ये बोल कर उन्होंने अपने सामने रखे फोन को उठा कर ड्राइवर को अंदर बुलाया। ड्राइवर के आते ही उन्होंने ड्राइवर को मुझे वापस छोड़ने को कहा। और मैं ड्राइवर के साथ वापस आ गया। रास्ते भर में पसोपेश में था कि क्या करूं और क्या नहीं। ऐसा नहीं था की मित्तल साहब मुझे कोई गलत आदमी लगे, लेकिन सब कुछ पीछे छोड़ कर मुझ जैसे बच्चे का ऐसा फैसला लेना...
खैर ये सब सोचते सोचते मैं ढाबे पर वापस पहुंच चुका था, शाम ढल चुकी थी, और ढाबा ग्राहकों से भरा हुआ था। पहुंचते ही मैं अपने काम में लग गया, और सरदार जी भी व्यस्त थे तो उन्होंने भी मुझे नही टोका। देर रात तक फ्री हो कर मैं सोने चला गया, और सुबह जब उठा तो सरदार जी अपने घर से वापस आ चुके थे।
उन्होंने मुझे अपने केबिन में बुलवाया, मैं अंदर गया तो उन्होंने मुझे कुर्सी पर बैठा कर मित्तल साहब से हुई मुलाकात के बारे में पूछा। मैने उन्हे सारी बात बताने लगा, जिसे सुन कर सरदार जी के आंखों की चमक बढ़ती चली गई।
"बेटा किस्मत किसी किसी को ही ऐसा मौका देती है, ज्यादा सोच मत, मित्तल साहब के साथ लग जा, जिंदगी बन जायेगी तेरी।"
" पर दार जी, आपके सात इतने दिन से रह रहा हूं, आप मुझे पढ़ने देते ही हैं, फिर?"
"बेटा, मित्तल साहब जो शिक्षा तुम्हे दे सकते हैं, वो तो शायद मैं खुद के बच्चों भी न दिलवा पाऊं, इसीलिए ज्यादा सोच मत, बस भगवान का भरोसा कर चला जा।"
मैं अभी भी पसोपेश में था। कुछ देर बाद जॉली भैया भी आ गए और सारी बात जानने के बाद वो भी मुझे मित्तल साहब के प्रस्ताव को मानने के लिए बोलने लगे।
अगले दिन मैं, सरदारजी और जॉली भैया, मित्तल साहब के ऑफिस में बैठे थे, उन दोनो ने कई तरीके की बात की मित्तल साहब से, और आखिरी में मुझे मित्तल साहब के ऑफिस में छोड़ कर दोनो वहां से चले गए।
मित्तल साहब मुझे ले कर एक बोर्डिंग स्कूल में ले गए, को LN Group का ही कोई चैरिटेबल स्कूल था, वहां मेरी बाकी बची 4 5 साल की पढ़ाई को एक साल में ही पूरा करवा दिया गया। फिर एक साल बाद मित्तल साहब मुझे ले कर पुणे गए, और एक दूसरे बोर्डिंग स्कूल में मेरा एडमिशन सीधे 10वीं में करवा दिया गया, ये स्कूल वही था जहां मित्तल साहब के घर के बच्चे भी पढ़ते थे। वहीं उन्होंने मेरा नाम मोनू से मनीष मित्तल करवा दिया, और सरकारी दस्तावेज में मेरे पिता भी वही बन गए। मैने भी उनके इस अहसान को माना और अपने आपको पूरी तरह से पढ़ाई में झोंक दिया।
तभी एक झटका लगने से मैं अतीत से बाहर आ गया। मेरी गाड़ी मेरे अपार्टमेंट में आ चुकी थी....

Tow Neha ki entry kerwa di gayi or uski qismat Kaho ya fir Manish kharab qismat yahi ladki Manish ki nayya dubwayegi#अपडेट ४
अब तक आपने पढ़ा -
कुछ देर बाद दरवाजा खुला और जो भी अंदर आया उसे देख कर मेरे दिल में एक हलचल सी होने लगी....
अब आगे -
काली साड़ी में लिपटी वो...
दूध में केसर घोल दी गई हो जैसे, वैसा रंग, जो काली साड़ी में और कहर ढा रहा था, छरहरा बदन, जो हर उस हिस्से पर सुडौल था, जहां होना चाहिए था, दरम्याना कद और चेहरे पर मासूमियत और आकर्षक मुस्कान लिए वो मीटिंगरूम में आई, और मुझे लगा जैसे एक सेकंड के लिए मेरे दिल की धड़कन रुक गई हो।
अंदर आते ही उसने चारों ओर देखा और मेरी तरफ ही देख कर आने लगी, मेरी नजरें उस बला से हट ही नहीं रही थी। ये क्या हो गया मुझे?
वो मेरी तरफ आ कर करण के पास वाली सीट पर बैठ गई और उसे सर झुका कर अभिवादन किया। मैं ये देख कर सोच में पड़ गया कि क्या ये मेरे ही डिपार्टमेंट में है? तो पहले देखा क्यों नहीं कभी इसे?
तभी मीटिंग रूम का दरवाजा फिर से एक बात खुला और मित्तल सर अंदर आए, सारे लोग अपनी कुर्सी छोड़ कर खड़े हो गए। ये हलचल देख मेरे भी होश वापस आए और मैने अभी फिलहाल उसकी ओर देखने लगभग बंद ही कर दिया।
सर ने आते ही मीटिंग चालू कर दी।
"गुड मॉर्निंग ऑल, सबसे पहले आइए मिलते हैं अपनी टीम में नई ज्वाइन हुई नेहा वर्मा से, ये HFC बैंक से आई हैं और वहां क्लाइंट रिलेशन की सीनियर मैनेजर थी, अभी 15 दिन पहले ही ज्वाइन किया है। यहां पर ये AGM बैंकिंग होंगी, करण अब से DGM बैंकिंग का कार्यभार संभालेगा।"
सब लोग नेहा को ग्रीट करते हैं। मेरे मन में तो लड्डू फूटने लगा कि ये तो मेरे ही डिपार्टमेंट में हैं।
"जैसा आप सब जानते हैं कि ये मीटिंग नई ऑटोमेटेड ब्रांच के भविष्य को देश के अन्य शहरों में देखने के बारे में है। तो इसके लिए श्रेयन ने कुछ योजनाएं बनाई है। श्रेयन इस बारे में आप बताइए।"
श्रेयन, "मैने इस बारे में 2 तरह का प्लान सोचा है, पहला एक प्रिंट और टीवी विज्ञापन जो पूरे देश में चलेगा। और दूसरा, हम कुछ ग्राउंड लेवल पर संपर्क करके इसके भविष्य को देखें कि देश के किन शहरों में इसे पहले खोला जा सकता है। हालांकि मुझे लगता है कि पहले हमें दूसरे प्लान से शुरू करना चाहिए, जिससे हमें एक आइडिया लग जाय, और उसके बाद ही हम प्रिंट और टीवी विज्ञापन पर खर्च करें।"
मित्तल सर, "बढ़िया, मैं भी यही कहने वाला था कि पहले हमें ग्राउंड वर्क ही करना चाहिए, मेरे खयाल से इसमें भी तुमने कोई प्लान बनाया होगा?"
"जी बिलकुल, मेरे खयाल से हमे 2 2 के ग्रुप में देश के हर हिस्से में अपनी एक टीम भेजनी चाहिए जो देश के लगभग हर बड़े शहर में इसके पोटेंशियल को देखे जाने। चूंकि अपनी ब्रांचेस लगभग हर शहर में हैं तो वहां पर संपर्क साधने में दिक्कत नहीं आएगी। इसके लिए मेरे खयाल से प्रिया और करण साउथ में, शिविका और महेंद्र, DGM real estate को पूर्वी भारत में, मनीष और राघव, DGM finance को नॉर्थ में, और मैं और नेहा पश्चिम में जा कर कुछ शहरों में मीटिंग रखे, और वहां के लोगों को इसके कॉन्सेप्ट से परिचित करवाएं, जिससे पता चले कि वह लोग किस हद तक इसे पसंद करते हैं।"
मित्तल सर, "परफेक्ट प्लान है श्रेयन, बस मनीष के साथ नेहा को भेजो और राघव को तुम अपने साथ रखो, क्योंकि मनीष और राघव दोनों का कस्टमर रिलेशन में ज्यादा experience नहीं है, वहीं नेहा का एक्सपीरियंस इसी फील्ड में है।"
श्रेयन, "जी ये सही रहेगा, इस बारे में मैने ध्यान नहीं दिया। मनीष के साथ नेहा और मेरे साथ राघव जाएंगे फिर।"
मित्तल सर, "चलो फिर हर जोन में कुछ शहरों को भी चुन लेते हैं कि कहां कहां इसके टारगेट कस्टमर्स मिल सकते हैं।"
फिर सारे लोगों ने देश के कई शहरों की लिस्ट बनानी शुरू कर दी, और अंत में हर जोन से 5 शहरों को चुना गया। मेरे हिस्से में लखनऊ, दिल्ली, चंडीगढ़, देहरादून और शिमला आए।
सारी टीम को हर शहर में 2 से 3 दिन दिए गए और लगभग 15 दिन का टूर बना।
श्रेयन, "आज 15 दिसंबर है और हम सब यहां से 22 दिसंबर को निकलेंगे। शिविका सारी टीम का अरेंजमेंट कर दो।"
शिविका ने फौरन अपने डिपार्टमेंट में इसकी सूचना दे दी।
मित्तल सर, "मनीष, अब तुम अपनी प्रेजेंटेशन एक बार दे कर सबको बता दो कि वहां क्या क्या बताना है, और आप लोग इस पर जितने भी सवाल हो सकते हैं वो पूछ लीजिए, ताकि वहां प्रेजेंटेशन देते समय आपको की दिक्कत न आए।"
फिर मैने बैंक के बारे में प्रेजेंटेशन दी, और सबने कई तरह के सवाल किए और मैने उनका जवाब दिया, जिसे सब लोगों ने नोट कर लिया।
अब मीटिंग खत्म हो गई थी और सब लोग धीरे धीरे बाहर निकलने लगे थे।
नेहा ने मेरे पास आ कर, "गुड मॉर्निंग सर, मुझे लगा मनीष मित्तल कोई मिडिल एज के होंगे, मैने नहीं सोचा था कि इस उम्र में आप इतना बड़ा अचीवमेंट कर लेंगे।"
मैने भी मुस्कुराते हुए कहा, "ये कोई इतनी बड़ी बात भी नहीं है, वैसे भी पूरी टीम ही young और energetic है साथ ही साथ मित्तल सर और महेश सर का एक्सपीरियंस भी है हम सबके साथ।" ये बोलते हुए मेरी दिल की धड़कन तेज हुई जा रही थी। आज हो क्या रहा था मेरे साथ ये?
नेहा, "अच्छा सर मैं अब चलती हूं।"
मैं उसे जाता देख रहा था।
"वैसे दिखने में तो बढ़िया है न?"
मैने हड़बड़ा कर पीछे देखा, ये शिविका थी, अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ उसने मुझे आंख भी मारी।
"क्या प्लान बना है! खास कर तुम्हारा मनीष, ये उत्तर भारत की ठंड का मौसम, और ऐसी लोकेशंस, ऐसा लग रहा है ये बिजनेस टूर नहीं अंकल ने तुम्हे हनीमून टूर दिया है।"
मैने उसे आंख दिखाई।
"वैसे मजे करना।"
ये बोल कर वो भी निकल गई। और मैं भी अपने केबिन में आ गया। अब कुछ काम नहीं था मुझे तो मैने इंटरकॉम पर सर से बात की
"सर, क्या आज मैं जल्दी चला जाऊं?"
"बिलकुल मनीष, चाहो तो कल भी मत आना, वैसे भी पिछले 3 महीनों से आराम नहीं किया है तुमने।"
मैं ऑफिस से घर आ गया, शाम हो चली थी, फ्रेश हो कर मैं क्लब चला गया।
ये वापी का सबसे अच्छा क्लब था, जहां लगभग सारे इनडोर गेम्स के लिए एक बड़ा हॉल था, जिसे नेट लगा कर अलग अलग सेक्शन में बांटा गया था। हाल ऐसा था कि एक कोने से दूसरे कोने तक सब दिखाता था, उसी हाल के एक साइड स्विमिंग पूल और बार एंड रेस्टुरेंट थे। बिल्डिंग के पीछे समुद्र की तरफ गोल्फ कोर्स था।
मैं सीधे बैडमिंटन कोर्ट में पहुंचा जहां २ लोग पहले से ही खेल रहे थे। मैं बैठ कर मैच देखने लगा।
अभी बैठे कुछ देर ही हुई थी कि एक हाथ मेरे कंधे पर पड़ा, "आज फुर्सत मिल ही गई जीएम साहब को यहां आने की।"
ये समर सिंह था, वापी का ASP और कंपनी के बाहर मेरा इकलौता दोस्त।
"तुझे पता ही है कि मैं कहां बिजी था।"
"मुझे तो लगा कि मेरी भाभी ढूंढ ली है तुमने, और अब मुझे खुद ही मिलने आना पड़ेगा।"
हम ऐसे ही कुछ इधर उधर की बाते करते रहे, तब तक उन दिनों का मैच भी पूरा हो गया था। फिर हम चारों ने एक डबल खेल, जिसमे मैं और समर एक तरफ और वो दोनों दूसरी तरफ थे। ये मैच हमने 21-10 से जीता। उसके बाद वो दोनों चले गए।
समर,"देखा कैसे हराया मैने दोनों को।"
"तुमने? या मैने?"
"हाहाहा, चलो पता करते हैं। बेस्ट ऑफ थ्री।"
और इसी के साथ हम दोनो ने अपना मैच स्टार्ट कर दिया, और पहला मैच मैने बड़ी आसानी से 21-8 से जीता।
"देखा ASP साहब, किसने वो मैच जितवाया था!"
"बेस्ट ऑफ थ्री की बात हुई है GM साहब।"
और फिर दूसरा मैच शुरू हुआ और पहले 5 पॉइंट मैने आसानी से बनाए। फिर मेरी नजर समर के पीछे टेनिस कोर्ट पर पड़ी और....
कैसे पता नैया डुबवाएगी?Tow Neha ki entry kerwa di gayi or uski qismat Kaho ya fir Manish kharab qismat yahi ladki Manish ki nayya dubwayegi
Filhal tow dono pehle Kafi masti or Maza Lene wale uske baad bagwan bhala kare

शिविका ने तो हिंट दे ही दिया मनीष को कि हनीमून मन लेनाओह हो लगता है हमारे हीरो मनीष बाबू को उनकी हीरोइन मिल गई है अच्छा नाम है नेहा और अब तो कंपनी की ब्रांच खोलने की तैयारी हो गई है सभी की 2 टीम में लोग रहेगी ओर मनीष के साथ नेहा रहेगी ऐसा लगता है ये टूर काफी सुहाना होने वाला है मनीष के लिए
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बहुत हे मजेदार अपडेट दिया अपने Riky007 भाई मजा आग गया
लास्ट में लगत है मनीष बाबू को नेहा दिख गई है ऐसा लगता है मुझे