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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

KEKIUS MAXIMUS

Supreme
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अध्याय - 99
━━━━━━༻♥༺━━━━━━

मैंने भाभी और काकी की नज़र बचा कर अनुराधा की तरफ देखा। जैसे ही हम दोनों की नज़रें मिलीं तो वो एकदम से शर्मा गई और अपनी नज़रें झुका ली। मैं उसकी यूं छुईमुई हो गई दशा को देख कर मुस्कुरा उठा और फिर ये सोच कर भाभी के पीछे चल पड़ा कि किसी दिन अकेले में तसल्ली से अपनी अनुराधा से मुलाक़ात करूंगा। कुछ ही देर में मैं भाभी को जीप में बैठाए वापस अपने गांव की तरफ चल पड़ा था।


अब आगे....



"ये क्या कह रहे हैं आप?" कमरे में पलंग पर दादा ठाकुर के सामने बैठी सुगंधा देवी हैरत से बोल पड़ीं____"हमारा बेटा एक ऐसे मामूली से किसान की बेटी से प्रेम करता है जिसकी कुछ महीने पहले उसके ही भाई ने हत्या कर दी थी?"

"हमारे आदमियों के द्वारा हमें उसकी ख़बर मिलती रहती थी।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु हमने ख़्वाब में भी ये कल्पना नहीं की थी कि वो मुरारी की लड़की से प्रेम भी करने लगेगा। आज गौरी शंकर से ही हमें ये सब बातें पता चली हैं।"

"अगर ये वाकई में सच है तो फिर ये काफी गंभीर बात हो गई है हमारे लिए।" सुगंधा देवी ने कहा____"हमें तो यकीन ही नहीं होता कि हमारा बेटा किसी लड़की से प्रेम कर सकता है। उसके बारे में तो अब तक हमने यही सुना था कि वो भी अपने दादा की तरह अय्याशियां करता है। ख़ैर, तो अब इस बारे में क्या सोचा है आपने और गौरी शंकर ने क्या कहा इस बारे में?"

दादा ठाकुर ने संक्षेप में सारी बातें बता दी जिसे सुन कर सुगंधा देवी ने कहा____"ठीक ही तो कह रहा था वो। भला कौन ऐसा बाप अथवा चाचा होगा जो ये जानते हुए भी अपनी बेटी का ब्याह हमारे बेटे से करने का सोचेगा कि वो किसी दूसरी लड़की से प्रेम करता है? उसका वो सब कहना पूरी तरह जायज़ है।"

"हां, और हम भी यही मानते हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु हमने उसे वचन दिया है कि अगले साल हम उसकी भतीजी को अपनी बहू बना कर हवेली ले आएंगे। उस लड़की ने अपने प्रेम के चलते क्या कुछ नहीं किया है वैभव के लिए। हमें उसके त्याग और बलिदान का बखूबी एहसास है इस लिए हम ये हर्गिज़ नहीं चाहेंगे कि उस मासूम और नेकदिल लड़की के साथ किसी भी तरह का कोई अन्याय हो।"

"तो फिर क्या करेंगे आप?" सुगंधा देवी की धड़कनें सहसा एक अंजाने भय की वजह से तेज़ हो गईं थी, बोलीं____"देखिए कोई ऐसा क़दम मत उठाइएगा जिसके चलते हालात बेहद नाज़ुक हो जाएं। बड़ी मुश्किल से हम सब उस सदमे से उबरे हैं इस लिए ऐसा कुछ भी मत कीजिएगा, हम आपके सामने हाथ जोड़ते हैं।"

सुगंधा देवी की बातें सुन कर दादा ठाकुर कुछ बोले नहीं किंतु किसी सोच में डूबे हुए ज़रूर नज़र आए। ये देख सुगंधा देवी की धड़कनें और भी तेज़ हो गईं। उनके अंदर एकदम से घबराहट भर गई थी।

"क...क्या सोच रहे हैं आप?" फिर उन्होंने दादा ठाकुर को देखते हुए बेचैन भाव से पूछा____"कोई कठोर क़दम उठाने के बारे में तो नहीं सोच रहे हैं ना आप? देखिए हम आपसे हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते हैं कि ऐसा.....।"

"हम ऐसा कुछ भी नहीं सोच रहे हैं सुगंधा।" दादा ठाकुर ने उनकी बात को काट कर कहा____"बल्कि हम तो कुछ और ही सोचने लगे हैं।"

"क्या सोचने लगे हैं आप?" सुगंधा देवी ने मन ही मन राहत की सांस ली किंतु उत्सुकता के चलते पूछा_____"हमें भी तो बताइए कि आख़िर क्या चल रहा है आपके दिमाग़ में?"

"आपको याद है कुछ दिनों पहले हम कुल गुरु से मिलने गए थे?" दादा ठाकुर ने सुगंधा देवी की तरफ देखा।

"हां हां हमें अच्छी तरह याद है।" सुगंधा देवी ने झट से सिर हिलाते हुए कहा____"किंतु आपने हमारे पूछने पर भी हमें कुछ नहीं बताया था। आख़िर बात क्या है? अचानक से कुल गुरु से मिलने वाली बात का ज़िक्र क्यों करने लगे आप?"

"हम सबके साथ जो कुछ भी हुआ है उसके चलते हम सबकी दशा बेहद ही ख़राब हो गई थी।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ले कर कहा____"सच कहें तो अपने छोटे भाई और बेटे की मौत के बाद हमें कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि कैसे खुद को सम्हालें और अपने साथ साथ बाकी सबको भी। रातों को नींद नहीं आती थी। ऐसे ही एक रात हमें कुल गुरु का ख़याल आया। हमें एहसास हुआ कि ऐसी परिस्थिति में कुल गुरु ही हमें कोई रास्ता दिखा सकते हैं। उसके बाद हम अगली सुबह उनसे मिलने चले गए। गुरु जी के आश्रम में जब हम उनसे मिले और उन्हें सब कुछ बताया तो उन्हें भी बहुत तकलीफ़ हुई। जब वो अपने सभी शिष्यों से फारिग हुए तो वो हमें अपने निजी कक्ष में ले गए। वहां पर उन्होंने हमें बताया कि हमारे खानदान में ऐसा होना पहले से ही निर्धारित था।"

"ये क्या कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी खुद को बोलने से रोक न सकीं।

"हमने भी उनसे यही कहा था।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमारे पूछने पर उन्होंने बताया कि शुरू में हमारे बड़े बेटे पर संकट था किंतु उसे बचाया जाना भी निर्धारित था, ये अलग बात है कि उस समय ऐसे हालात थे कि वो चाह कर भी कुछ न बता सके थे। बाद में जब उन्हें पता चला था कि हमने अपने बेटे को बचा लिया है तो उन्हें इस बात से खुशी हुई थी।"

"अगर उन्हें इतना ही कुछ पता था तो उन्होंने जगताप और हमारे बेटे की हत्या होने से रोकने के बारे में क्यों नहीं बताया था?" सुगंधा देवी ने सहसा नाराज़गी वाले भाव से कहा____"क्या इसके लिए भी वो कुछ करने में असमर्थ थे?"

"असमर्थ नहीं थे लेकिन उस समय वो अपने आश्रम में थे ही नहीं।" दादा ठाकुर ने कहा____"नियति के खेल बड़े ही अजीब होते हैं सुगंधा। होनी को कोई नहीं टाल सकता, खुद विधि का विधान बनाने वाला विधाता भी नहीं। उस समय कुल गुरु अपने कुछ शिष्यों के साथ अपने गुरु भाई से मिलने चले गए थे। उनके गुरु भाई अपना पार्थिव शरीर त्याग कर समाधि लेने वाले थे। अतः उनकी अंतिम घड़ी में वो उनसे मिलने गए थे। यही वजह थी कि वो यहां के हालातों से पूरी तरह बेख़बर थे। नियति का खेल ऐसे ही चलता है। होनी जब होती है तो वो सबसे पहले ऐसा चक्रव्यूह रच देती है कि कोई भी इंसान उसके चक्रव्यूह को भेद कर उसके मार्ग में अवरोध पैदा नहीं कर सकता। यही हमारे साथ हुआ है।"

"तो आप कुल गुरु से यही सब जानने गए थे?" सुगंधा देवी ने पूछा____"या कोई और भी वजह थी उनसे मिलने की?"

"जैसा कि हमने आपको बताया कि जिस तरह के हालातों में हम सब थे।" दादा ठाकुर ने कहा____"उससे निकलने का हमें कुल गुरु ही कोई रास्ता दिखा सकते थे। अतः जब हम उनसे अपनी हालत के बारे में बताया तो उन्होंने हमें तरह तरह की दार्शनिक बातों के द्वारा समझाया जिसके चलते यकीनन हमें बड़ी राहत महसूस हुई। उसके बाद जब हमने उनसे ये पूछा कि क्या अब आगे भी ऐसा कोई संकट हम सबके जीवन में आएगा तो उन्होंने हमें कुछ ऐसी बातें बताई जिन्हें सुन कर हम अवाक् रह गए थे।"

"ऐसा क्या बताया था उन्होंने आपसे?" सुगंधा देवी के माथे पर शिकन उभर आई।

"उन्होंने बताया कि इस तरह का संकट तो फिलहाल अब नहीं आएगा लेकिन आगे चल कर एक ऐसा समय भी आएगा जिसके चलते हम काफी विचलित हो सकते हैं।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"और अगर हमने विचलित हो कर कोई कठोर क़दम उठाया तो उसके नतीजे हम में से किसी के लिए भी ठीक नहीं होंगे।"

"आप क्या कह रहे हैं हमें कुछ समझ नहीं आ रहा।" सुगंधा देवी ने उलझन पूर्ण भाव से कहा____"कृपया साफ साफ बताइए कि आख़िर कुल गुरु ने किस बारे में आपसे ये सब कहा था?"

"हमारे बेटे वैभव के बारे में।" दादा ठाकुर ने स्पष्ट भाव से कहा_____"गुरु जी ने स्पष्ट रूप से हमें बताया था कि हमारे बेटे वैभव के जीवन में दो ऐसी औरतों का योग है जो आने वाले समय में उसकी पत्नियां बनेंगी।"

"हे भगवान! ये क्या कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी आश्चर्य से आंखें फैला कर बोलीं____"ऐसा कैसे हो सकता है भला?"

"ऐसा कैसे हो सकता है नहीं बल्कि ऐसा होने लगा है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"वर्तमान में ऐसा ही तो हो रहा है। जहां एक तरफ हमने अपने बेटे का ब्याह हरि शंकर की बेटी रूपा से तय किया है तो वहीं दूसरी तरफ हमें पता चलता है कि हमारा बेटा किसी दूसरी लड़की से प्रेम भी करता है। ज़ाहिर है कि जब वो उस लड़की से प्रेम करता है तो उसने उसको अपनी जीवन संगिनी बनाने के बारे में भी सोच रखा होगा। अब अगर हमने उसके प्रेम संबंध को मंजूरी दे कर उस लड़की से उसका ब्याह न किया तो यकीनन हमारा बेटा हमारे इस कार्य से नाखुश हो जाएगा और संभव है कि वो कोई ऐसा रास्ता अख़्तियार कर ले जिसके बारे में हम अभी सोच भी नहीं सकते।"

"ये तो सच में बड़ी गंभीर बात हो गई है।" सुगंधा देवी ने चकित भाव से कहा____"यानि कुल गुरु का कहना सच हो रहा है।"

"अगर गौरी शंकर की बातें सच हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"और हमारा बेटा वाकई में मुरारी की लड़की से प्रेम करता है तो यकीनन गुरु जी का कहना सच हो रहा है।"

"तो फिर अब आप क्या करेंगे?" सुगंधा देवी ने संदिग्ध भाव से दादा ठाकुर को देखते हुए पूछा____"क्या आप हमारे बेटे के प्रेम को मंजूरी दे कर गुरु जी की बात मानेंगे या फिर कोई कठोर क़दम उठाएंगे?"

"आपके क्या विचार हैं इस बारे में?" दादा ठाकुर ने जवाब देने की जगह उल्टा सवाल करते हुए पूछा____"क्या आपको अपने बेटे के जीवन में उसकी दो दो पत्नियां होने पर कोई एतराज़ है या फिर आप ऐसा खुशी खुशी मंज़ूर कर लेंगी?"

"अगर आप वाकई में हमारे विचारों के आधार पर ही फ़ैसला लेना चाहते हैं।" सुगंधा देवी ने संतुलित लहजे से कहा____"तो हमारे विचार यही हैं कि हमारा बेटा जो करना चाहता है उसे आप करने दें। अगर उसके भाग्य में दो दो पत्नियां ही लिखी हैं तो यही सही। हम तो बस यही चाहते हैं कि इस हवेली में रहने वालों के जीवन में अब कभी कोई दुख या संकट न आए बल्कि हर कोई खुशी से जिए। आपने हरि शंकर की बेटी से वैभव का रिश्ता तय कर दिया है तो बेशक उसका ब्याह उससे कीजिए लेकिन अगर हमारा बेटा मुरारी की बेटी से भी ब्याह करना चाहेगा तो आप उसकी भी खुशी खुशी मंजूरी दे दीजिएगा।"

"अगर आप भी यही चाहती हैं तो ठीक है फिर।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ली____"सच कहें तो हम भी सबको खुश ही देखना चाहते हैं। मुरारी की बेटी से हमारे बेटे की ब्याह के बारे में लोग क्या सोचेंगे इससे हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। हम सिर्फ ये चाहते हैं कि उस लड़की के प्रेम में पड़ कर हमारा बेटा रूपा के साथ किसी तरह का अन्याय अथवा पक्षपात न करे। हमें अक्सर वो रात याद आती है जब वो लड़की अपनी भाभी के साथ हमसे मिलने आई थी और हमें ये बताया था कि हमारे बेटे को कुछ लोग अगली सुबह जान से मारने के लिए चंदनपुर जाने वाले हैं। उस समय हमें उसकी वो बातें सुन कर थोड़ा अजीब तो ज़रूर लगा था लेकिन ये नहीं समझ पाए थे कि आख़िर उस लड़की को रात के वक्त हवेली आ कर हमें वो सब बताने की क्या ज़रूरत थी? आज जबकि हम सब कुछ जानते हैं तो यही सोचते हैं कि ऐसा उसने सिर्फ अपने प्रेम के चलते ही किया था। प्रेम करने वाला भला ये कैसे चाह सकता है कि कोई उसके चाहने वाले को किसी भी तरह का नुकसान पहुंचा दे?"

"सही कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी ने कहा____"सच में वो लड़की हमारे बेटे से बहुत प्रेम करती है। हमें आश्चर्य होता है कि इतना प्रेम करने वाली लड़की से हमारे बेटे को प्रेम कैसे न हुआ और हुआ भी तो ऐसी लड़की से जो एक मामूली से किसान की बेटी है। आख़िर उस लड़की में उसने ऐसा क्या देखा होगा जिसके चलते वो उसे प्रेम करने लगा?"

"इस बारे में हमें क्योंकि कोई जानकारी नहीं है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"इस लिए हम यही कह सकते कि उसने उसमें ऐसा क्या देखा होगा? जबकि गहराई से सोचें तो हमें एहसास होगा कि उस लड़की में कोई तो ऐसी बात यकीनन रही होगी जिसके चलते वैभव जैसे लड़के को उससे प्रेम हो गया? उसके जैसे चरित्र वाला लड़का अगर किसी लड़की से प्रेम कर बैठा है तो ये कोई मामूली बात नहीं है ठकुराईन। हमें पूरा यकीन है कि उस लड़की में कोई तो ख़ास बात ज़रूर होगी।"

"ख़ैर ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि उसमें कौन सी ख़ास बात है।" सुगंधा देवी ने जैसे पहलू बदला_____"किंतु अब ये सोचने का विषय है कि गौरी शंकर इस सबके बाद क्या चाहता है?"

"इस संसार में किसी के चाहने से कहां कुछ होता है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा_____"हर इंसान को समझौता ही करना पड़ता है और फिर उस समझौते के साथ जीवन जीना पड़ता है। गौरी शंकर को अपनी भतीजी के प्रेम के साथ साथ हमारे बेटे के प्रेम को भी गहराई से समझना होगा। उसे समझना होगा कि पत्नी के रूप में उसकी भतीजी हमारे बेटे के साथ तभी खुश रह पाएगी जब उसकी तरह हमारे बेटे को भी उसका प्रेम मिल जाए। बाकी ऊपर वाले ने किसी के लिए क्या सोच रखा है ये तो वही जानता है।"

"ये सब तो ठीक है लेकिन सबकी खुशियों के बीच आप एक शख़्स की खुशियों को भूल रहे हैं।" सुगंधा देवी ने कहा____"आप हमारी बहू को भूल रहे हैं ठाकुर साहब। उस अभागन की खुशियों को भूल रहे हैं जिसका ईश्वर ने जीवन भर दुख में डूबे रहने का ही नसीब बना दिया है। क्या उसे देख कर आपके कलेजे में शूल नहीं चुभते?"

"चुभते हैं सुगंधा और बहुत ज़ोरों से चुभते हैं।" दादा ठाकुर ने संजीदा भाव से कहा____"जब भी उसे विधवा के लिबास में किसी मुरझाए हुए फूल की तरह देखते हैं तो बड़ी तकलीफ़ होती है हमें। हमारा बस चले तो पलक झपकते ही दुनिया भर की खुशियां उसके दामन में भर दें लेकिन क्या करें? कुछ भी तो हमारे हाथ में नहीं है।"

"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी ने कहा____"क्या कुल गुरु से आपने हमारी बहू के बारे में कुछ नहीं पूछा?"

"क्या आप ऐसा सोच सकती हैं कि हम उनसे अपनी बहू के बारे में पूछना भूल सकते थे?" दादा ठाकुर ने कहा____"नहीं सुगंधा, वो हमारी बहू ही नहीं बल्कि हमारी बेटी भी है। हमारी शान है, हमारा गुरूर है वो। कुल गुरु से हमने उसके बारे में भी पूछा था। जवाब में उन्होंने जो कुछ हमसे कहा उससे हम स्तब्ध रह गए थे।"

"क्या मतलब है आपका?" सुगंधा देवी ने एकाएक व्याकुल भाव भाव से पूछा____"ऐसा क्या कहा था गुरु जी ने आपसे?"

"पहले तो उन्होंने हमसे बहुत ही सरल शब्दों में पूछा था कि क्या हम चाहते हैं कि हमारी बहू हमेशा खुश रहे और हमेशा हमारे साथ ही रहे?" दादा ठाकुर ने कहा_____"जवाब में जब हमने हां कहा तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हम उसका ब्याह अपने बेटे वैभव से कर दें।"

"क...क्या????" सुगंधा देवी उछल ही पड़ीं। फिर किसी तरह खुद को सम्हाल कर बोलीं____"य..ये क्या कह रहे हैं आप?"

"आपकी तरह हम भी उनकी बात सुन कर उछल पड़े थे।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमने भी उनसे यही कहा था कि ये क्या कह रहे हैं वो? जवाब में उन्होंने कहा कि हमारी बहू सुहागन के रूप में तभी तो हमेशा हमारे साथ रह सकती है जब हम उसका ब्याह अपने बेटे वैभव से कर दें। अन्यथा अगर हम उसे फिर से सुहागन बनाने का सोच कर किसी दूसरे से उसका ब्याह करेंगे तो ऐसे में वो भला कैसे हमारे साथ हमारी बहू के रूप में रह सकती है?"

"हां ये तो सच कहा था उन्होंने।" सुगंधा देवी ने गहरी सांस छोड़ते हुए सिर हिलाया____"वाकई में सुहागन के रूप में हमारी बहू हमारे पास तभी तो रह सकती है जब उसका ब्याह हमारे ही बेटे से हो। बड़ी अजीब बात है, ऐसा तो हमने सोचा ही नहीं था।"

"हमने भी कहां सोचा था सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"गुरु जी की बातों से ही हमारे अकल के पर्दे छंटे थे। काफी देर तक हम उनके सामने किंकर्तव्यविमूढ़ सी हालत में बैठे रह गए थे। फिर जब किसी तरह हमारी हालत सामान्य हुई तो हमने गुरु जी से पूछा कि क्या ऐसा संभव है तो उन्होंने कहा बिल्कुल संभव है लेकिन इसके लिए हमें बहुत ही समझदारी से काम लेना होगा।"

"हमारा तो ये सब सुन के सिर ही चकराने लगा है ठाकुर साहब।" सुगंधा देवी ने अपना माथा सहलाते हुए कहा____"तो क्या इसी लिए गुरु जी ने कहा था कि हमारे बेटे के जीवन में दो औरतें उसकी पत्नी के रूप में आएंगी?"

"हां शायद इसी लिए।" दादा ठाकुर ने सिर हिलाया____"उस दिन से हम अक्सर इस बारे में सोचते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि क्या वास्तव में हमें ऐसा करना चाहिए या नहीं?"

"क्या मतलब है आपका?" सुगंधा देवी ने हैरत से देखते हुए कहा____"क्या आप भाग्य बदल देने का सोच रहे हैं?"

"सीधी सी बात है ठकुराईन कि अगर हम अपनी बहू को एक सुहागन के रूप में हमेशा खुश देखना चाहते हैं तो हमें उसके लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा।" दादा ठाकुर ने कहा____"रागिनी जैसी बहू अथवा बेटी हमें शायद ही कहीं मिले इस लिए अगर हम चाहते हैं कि ऐसी बहू हमेशा इस हवेली की शान ही बनी रहे तो हमें किसी तरह से उसका ब्याह वैभव से करवाना ही होगा।"

"लेकिन क्या ऐसा संभव है?" सुगंधा देवी ने बेयकीनी से देखा____"हमारा मतलब है कि क्या हमारी बहू अपने देवर से ब्याह करने के लिए राज़ी होगी? वो तो वैभव को अपना देवर ही नहीं बल्कि अपना छोटा भाई भी मानती है और हमारा बेटा भी तो उसकी बहुत इज्ज़त करता है। माना कि वो बुरे चरित्र का लड़का रहा है लेकिन हमें पूरा यकीन है कि उसने भूल कर भी अपनी भाभी के बारे में कभी ग़लत ख़याल अपने मन में नहीं लाया होगा। दूसरी बात, आप ही ने बताया कि वो मुरारी की लड़की से प्रेम करता है तो ऐसे में वो कैसे अपनी भाभी से ब्याह करने वाली बात को मंजूरी देगा? नहीं नहीं, हमें नहीं लगता कि ऐसा संभव होगा? एक पल के लिए मान लेते हैं कि हमारा बेटा इसके लिए राज़ी भी हो जाएगा लेकिन रागिनी...?? नहीं, वो कभी ऐसा करने के लिए राज़ी नहीं होगी। वैसे भी, गुरु जी ने दो ही औरतों को पत्नी के रूप में उसके जीवन में आने की बात कही थी तो वो दो औरतें वही हैं, यानि रूपा और मुरारी की वो लड़की।"

"आपने तो बिना कोशिश किए ही फ़ैसला कर लिया कि वो राज़ी नहीं होगी।" दादा ठाकुर ने कहा____"जबकि आपको बहाने से ही सही लेकिन उसके मन की टोह लेनी चाहिए और रही गुरु जी की कही ये बात कि दो ही औरतें उसकी पत्नी के रूप में आएंगी तो ये ज़रूरी नहीं है। हमारा मतलब है कि रागिनी बहू का ब्याह वैभव से कर देने के बात भी तो उन्होंने कुछ सोच कर ही कही होगी।"

"ये सब तो ठीक है लेकिन बहू के मन की टोह लेने की बात क्यों कह रहे हैं आप? क्या आपको उसके चरित्र पर संदेह है?" सुगंधा देवी ने बेयकीनी से कहा____"जबकि हमें तो अपनी बहू के चरित्र पर हद से ज़्यादा भरोसा है। हम अच्छी तरह जानते हैं कि हमारी बहू उत्तम चरित्र वाली महिला है।"

"आप भी हद करती हैं ठकुराईन।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ली____"आपने ये कैसे सोच लिया कि हमें अपनी बहू के चरित्र पर संदेह है? एक बात आप जान लीजिए कि अगर कोई गर्म तवे पर बैठ कर भी कहेगा कि हमारी बहू का चरित्र निम्न दर्जे का है तो हम उस पर यकीन नहीं करेंगे। बल्कि ऐसा कहने वाले को फ़ौरन ही मौत के घाट उतार देंगे। टोह लेने से हमारा मतलब सिर्फ यही था कि उसके मन में अपने देवर के प्रति अगर छोटे भाई वाली ही भावना है तो वो कितनी प्रबल है? हालाकि एक सच ये भी है कि किसी को छोटा भाई मान लेने से वो सचमुच का छोटा भाई नहीं बन जाता। वैभव सबसे पहले उसका देवर है और देवर से भाभी का ब्याह हो जाना कोई ऐसी बात नहीं है जो न्यायोचित अथवा तर्कसंगत न हो।"

"हम मान लेते हैं कि आपकी बातें अपनी जगह सही हैं।" सुगंधा देवी ने कहा____"लेकिन ये तो आप भी समझते ही होंगे कि हमारे बेटे वैभव से रागिनी बहू का ब्याह होना अथवा करवाना लगभग नामुमकिन बात है। एक तो रागिनी खुद इसके लिए राज़ी नहीं होगी दूसरे उसके अपने माता पिता भी इस रिश्ते के लिए मंजूरी नहीं दे सकते हैं।"

"हां, हम समझते हैं कि ऐसा होना आसान नहीं है।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ले कर सिर हिलाया____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि अगर हमें अपनी बहू का जीवन खुशियों से भरा हुआ देखना है तो उसके लिए ऐसा करना ही बेहतर होगा। ऐसा होना नामुमकिन ज़रूर है लेकिन हमें किसी भी तरह से अब इसे मुमकिन बनाना होगा। वैभव के जीवन में दो की जगह अगर तीन तीन पत्नियां हो जाएंगी तो कोई पहाड़ नहीं टूट जाएगा।"

"हमारे मन में एक और विचार उभर रहा है ठाकुर साहब।" सुगंधा देवी ने सहसा कुछ सोचते हुए कहा____"हम ये जो कुछ अपनी बहू के लिए करना चाहते हैं उसमें यकीनन हमें उसकी खुशियों का ही ख़याल है किंतु ये भी सच है कि इसमें हमारा भी तो अपना स्वार्थ है।"

"य...ये क्या कह रही हैं आप?" दादा ठाकुर के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे____"इसमें भला हमारा क्या स्वार्थ है?"

"इतना तो आप भी समझते हैं न कि रागिनी बहू हम सबकी नज़र में एक बहुत ही गुणवान स्त्री है जिसके चलते हम उसे इस हवेली की शान समझते हैं।" सुगंधा देवी ने जैसे भूमिका बनाते हुए कहा____"अब क्योंकि वो विधवा हो चुकी है इस लिए हम उसकी खुशियों के लिए फिर से उसका ब्याह कर देना चाहते हैं।"

"आख़िर आपके कहने का मतलब क्या है ठकुराईन?" दादा ठाकुर न चाहते हुए भी बीच में बोल पड़े____"हम उसे खुश देखना चाहते हैं तभी तो फिर से उसका ब्याह का करवा देना चाहते हैं।"

"बिल्कुल, लेकिन उसका ब्याह अपने बेटे से ही क्यों करवा देना चाहते हैं हम?" सुगंधा देवी ने जैसे तर्क़ किया____"क्या इसका एक मतलब ये नहीं है कि ऐसा हम अपने स्वार्थ के चलते ही करना चाहते हैं? ऐसा भी तो हो सकता है कि जब वो दुबारा अपने ब्याह होने की बात सुने तो उसके मन में कहीं और किसी दूसरे व्यक्ति से ब्याह करने की चाहत पैदा हो जाए। क्या ज़रूरी है कि वो फिर से उसी घर में बहू बन कर रहने की बात सोचे जिस घर में उसके पहले पति की ढेर सारी यादें मौजूद हों और इतना ही नहीं जिसे भरी जवानी में विधवा हो जाने का दुख सहन करना पड़ गया हो?"

सुगंधा देवी की ऐसी बातें सुन कर दादा ठाकुर फ़ौरन कुछ बोल ना सके। स्तब्ध से वो अपनी धर्म पत्नी के चेहरे की तरफ देखते रह गए। चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए थे।

"क्या हुआ? क्या सोचने लगे आप?" दादा ठाकुर को ख़ामोश देख सुगंधा देवी ने कहा____"क्या हमने कुछ ग़लत कहा आपसे?"

"नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है।" दादा ठाकुर ने जल्दी ही खुद को सम्हाला____"आपके जो कुछ भी कहा है वो बिल्कुल सच कहा है और आपकी बातें तर्कसंगत भी हैं। हमने तो इस तरीके से सोचा ही नहीं था। हमें खुशी के साथ साथ हैरानी भी हो रही है कि आपने इस तरीके से सोचा और हमारे सामने अपनी बात रखी। वाकई में ये भी सोचने वाली बात है कि अगर हमारी बहू को इस बारे में पता चला तो उसके मन में कहीं दूसरी जगह किसी दूसरे व्यक्ति से भी विवाह करने का ख़याल आ सकता है।"

"और अगर ऐसा हुआ।" सुगंधा देवी ने कहा____"तो सबसे बड़ा सवाल है कि क्या आप ऐसा होने देंगे?"

"क्यों नहीं होने देंगे हम?" दादा ठाकुर ने झट से कहा____"हम अपनी बहू को खुश देखना चाहते हैं इस लिए अगर उसे दूसरी जगह किसी दूसरे व्यक्ति से विवाह करने से ही खुशी प्राप्त होगी तो हम यकीनन उसकी खुशी के लिए उसे ऐसा करने देंगे। हां, इस बात का हमें दुख ज़रूर होगा कि हमने अपनी इतनी संस्कारवान सुशील और अच्छे चरित्र वाली बहू को खो दिया। वैसे हमें पूरा यकीन है कि हमारी बहू हमसे रिश्ता तोड़ कर कहीं नहीं जाएगी। वो भी तो समझती ही होगी कि हम सब उसे कितना स्नेह करते हैं और हम उसे इस हवेली की शान समझते हैं। क्या इतना जल्दी वो हमारा प्यार और स्नेह भुला कर हमें छोड़ कर चली जाएगी?"

"सही कह रहे हैं आप।" सुगंधा देवी ने गहरी सांस ली____"हमें भी इस बात का भरोसा है कि हमारी बहू हमारे प्रेम और स्नेह को ठुकरा कर कहीं नहीं जाएगी। ख़ैर छोड़िए इन बातों को। सब कुछ समय पर छोड़ दीजिए और ऊपर वाले से दुआ कीजिए कि सब कुछ अच्छा ही हो।"

सुगंधा देवी की इस बात पर दादा ठाकुर ने सिर हिलाया और फिर उन्होंने पलंग पर पूरी तरह लेट कर अपनी आंखें बंद कर लीं। कुछ पलों तक उनके चेहरे की तरफ देखते रहने के बाद सुगंधा देवी भी पलंग के एक छोर पर लेट गईं। दोनों ने ही अपनी अपनी आंखें बंद कर ली थीं किंतु ज़हन में विचारों का मंथन चालू था।




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lovely update. sugandha ji ka sochna bhi sahi hai ki koi apne beti ka byah aise ladke se kyu karayega jo bigda hua hai aur kisi aur se prem karta hai .
ek nayi baat saamne aa gayi thakur sahab se sugandha ji ke saamne ki vaibhav ki 2 biwiya ho sakti hai .
apni bahu ke liye chinta to hai dono me par abhi faisla lene ka sahi waqt nahi hai jabtak ragini ke mann me kya hai ye pata naa lag jaaye ,,
 

KEKIUS MAXIMUS

Supreme
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lovely update ..bhabi aur vaibhav ke bich ki baate majedar thi aur kahi na kahi vaibhav ke prati ek sachcha sneh dikhayi diya bhabhi ki baato me ..

rupchandr rupa se milne aaya aur unke bich bhi pyar bhari baate huyi ..aaj rupchandr ko apne galti ka ehsas hua hai ki usne rupa ko galat samjha .par uska ye kehna ki wo rupa ke raste ki har badha ko hata dega iska matlab ye to nahi ki wo anuradha ko raste se hata dega 🤔🤔..
rupa sharm se laal ho gayi jab rupchandr ne vaibhav se mulakat karne ki baat kahi .
 

KEKIUS MAXIMUS

Supreme
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दादा ठाकुर को कुल गुरू ने बिल्कुल सही बात कही। रागिनी की शादी वैभव से जरूर होनी चाहिए थी । यह इस फैमिली के लिए अच्छा होता ही पर खुद रागिनी के लिए इससे बढ़कर और कुछ भी अच्छा नही होता।

वो विधवा है पर बहुत ही कम उम्र की है । एक जवान लड़की को पुरी जीवन वैधव्य बनकर अपना जीवन काटना काफी मुश्किल और पीड़ादायक होता है । वो खुबसूरत है , जवान है और सबसे बड़ी बात कि उसे अपने पहले हसबैंड से कोई मातृत्व सुख प्राप्त नही हुआ है ।
अगर वो किसी बच्चे की मां होती तो कम से कम अपने बच्चे के सहारे अपना जीवन काट लेती।
गुरू जी की बात से मै पुरी तरह सहमत हूं । मै जानता हूं कि रागिनी इस नये रिश्ते को फिलहाल तो स्वीकार नही करेगी । वो वैभव को अपना भाई समान समझती है लेकिन असलियत यह है कि वो अबतक अपने दिवंगत पति की यादों को भुला नही पाई है । और यह यादें उसे ताउम्र दुखद करेगी । यदि वो फिर से अपना घर बसा ले तो समय के साथ धीरे धीरे अपने नये संसार मे रम जायेगी।
लेकिन जैसा कि गुरू जी ने कहा कि वैभव के जीवन मे दो पत्नी का सुख लिखा है । और अगर रागिनी उसकी पत्नी बनी तो फिर दूसरी पत्नी कौन ? क्या रूपा दूसरी पत्नी होगी या फिर अनुराधा ?
काफी दुविधाग्रस्त स्थिति बन गई है वैभव की । कहीं रूपा को कुर्बानी तो नही देनी होगी ? रूपा मुस्कराते हुए बिस्तर पर लेटे हुए जिस पंखे को निहार रही थी , कहीं वह पंखा ही उसके मृत्यु का निमित्त साधन तो नही ? यह सोचकर दिल दहल जा रहा है । 😞
बहुत कठीन सिचुएशन मे आपने इन चारों का जीवन ला खड़ा किया है आपने शुभम भाई ।
बहुत ही खूबसूरत अपडेट।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
aisa to mat socho ,,rupa ek best character hai .
 

Sanju@

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अध्याय - 96
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"आपने बिल्कुल सही कहा ठाकुर साहब।" किशोरी लाल ने खुशी से मुस्कुराते हुए पिता जी से कहा____"छोटे कुंवर का ऐसा सोचना और इस गांव के लोगों के लिए ऐसा कार्य करना वाकई में बड़ी अच्छी बात है।"

"तो फिर ये तय रहा।" पिता जी ने कहा____"हम पंडित जी से कोई अच्छा सा मुहूर्त निकलवा कर इस कार्य को करवा देते हैं।"

थोड़ी देर और इसी संबंध में हमारी बातें हुईं उसके बाद मैं अपनी मोटर साईकिल ले कर खेतों की तरफ निकल गया। पिता जी काफी खुश और प्रभावित नज़र आए थे मुझे।



अब आगे....


साहूकार गौरी शंकर बाहर बैठक में बैठा हुआ था। उसके साथ रूपचंद्र और फूलवती भी थी। शाम हो चुकी थी। गौरी शंकर और रूपचंद्र खेतों से आने के बाद तथा हाथ पैर धोने के बाद चाय पीने बैठे हुए थे। पिछले कुछ समय से जो थोड़ा बहुत तनाव परिवार में बना हुआ था वो अब काफी हद तक मिट गया था। हालाकि इस बात को सबके लिए भूल पाना अब भी आसान न था कि दादा ठाकुर ने एक झटके में उनके परिवार के मर्दों और बच्चों को जान से मार डाला था। किंतु परिवार के मुखिया और सबसे बुजुर्ग चंद्रमणि के समझाने से अब हर कोई इस बात को समझ चुका था कि पिछली चीज़ों को ले कर बैठे रहने से अथवा किसी तरह का विकार मन में रखने से परिवार की स्थिति अच्छी होने की बजाय ख़राब ही होनी थी।

"क्या फिर तुम्हारी दादा ठाकुर से दुबारा भेंट हुई?" फूलवती ने गौरी शंकर से पूछा____"और क्या तुमने उसे ये बताया कि वो अपने जिस बेटे के साथ हमारी बेटी रूपा का ब्याह तय कर चुका है उसका वो बेटा दूसरे गांव के एक मामूली से किसान की बेटी से प्रेम करता है?"

"क्या फ़र्क पड़ता है इस बात से?" गौरी शंकर ने जैसे लापरवाही से कहा____"दादा ठाकुर ने वैभव के साथ रूपा के ब्याह को तय कर दिया है यही सबसे ज़्यादा अहम बात है। वैभव भले ही किसी किसान की लड़की से प्रेम करता हो लेकिन वो अपने पिता के फ़ैसले के खिलाफ़ नहीं जा सकता। वैसे भी उसने खुद भी तो कई बार कहा है कि वो रूपा से ब्याह करने को तैयार है। फिर आपको किस बात की फ़िक्र है?"

"हैरानी की बात है कि ऐसा तुम कह रहे हो?" फूलवती ने हैरानी ज़ाहिर करते हुए कहा____"जबकि तुम्हें इस बारे में गहराई से सोचना चाहिए।"

"अब सोचने के लिए आख़िर बचा ही क्या है भौजी?" गौरी शंकर ने कहा____"जब दोनों बाप बेटे ब्याह करने को बोल चुके हैं तो फिर आप ऐसा क्यों कह रही हैं?"

"मेरे ऐसा कहने की एक ठोस वजह हैं गौरी शंकर।" फूलवती ने ठोस लहजे से कहा____"और वो ये है कि वैभव के साथ हमारी बेटी रूपा का वैवाहिक जीवन तभी सफल और सुखमय हो सकता है जब उसके होने वाले पति के जीवन में किसी भी दूसरी लड़की अथवा औरत का स्थान न हो। खास कर उसका तो बिल्कुल भी नहीं जिससे वैभव खुद प्रेम करता हो। ज़रा सोचो कि इसके चलते हमारी बेटी के वैवाहिक जीवन में कितना बड़ा असर पड़ेगा। कहने के लिए तो रूपा हवेली की बहू बन जाएगी लेकिन एक पत्नी के रूप में क्या वो वैभव के साथ खुश रहेगी? क्या वैभव उसे सच्चे दिल से अपनी पत्नी मान कर उसे वो सब कुछ देगा जो उसे अपनी पत्नी को देना चाहिए? अरे! जो पति किसी दूसरी लड़की से प्रेम करता हो वो भला अपनी पत्नी को वैसा प्रेम कैसे देगा? नहीं गौरी, सच तो ये है कि ऐसी परिस्थिति में होगा ये कि हमारी बेटी उस हवेली में अपने पति से अपने प्रेम के लिए तरसती रहेगी। इसी लिए कह रही हूं कि तुम्हें इस बारे में दादा ठाकुर से बात कर लेनी चाहिए और उनसे इस बात का वचन लेना चाहिए कि वैभव के जीवन में रूपा के अलावा किसी भी दूसरी लड़की अथवा औरत का स्थान नहीं होगा। इतना ही नहीं बल्कि वैभव सच्चे दिल से रूपा को अपनी पत्नी मानते हुए उसे हर सुख देगा।"

फूलवती की लंबी चौड़ी बातें सुन कर गौरी शंकर कुछ बोल ना सका। उसके चेहरे पर सोचने वाले भाव उभर आए थे। यही हाल रूपचंद्र का भी था।

"बड़ी मां सही कह रही हैं काका।" रूपचंद्र बोल ही पड़ा____"आपको दादा ठाकुर से इस बारे में बात करना ही चाहिए। मैं भी ये बर्दास्त नहीं करूंगा कि ब्याह के बाद मेरी बहन को वैभव के किसी रवैए से दुख पहुंचे। वैसे मुझे तो अभी से ये प्रतीत हो रहा है कि ऐसा ही कुछ होगा क्योंकि जिस इंसान को मेरी बहन के समर्पण भाव और उसके प्रेम में किए गए त्याग का एहसास ही नहीं वो कैसे अपनी पत्नी के रूप में मेरी बहन को खुशियां दे सकेगा?"

"प्रेम बहुत अच्छा भी होता है और बहुत ख़राब भी।" फूलवती ने कहा____"वो अच्छा तब होता है जब वो उचित व्यक्ति से किया जाए और ख़राब तब होता है जब वो अनुचित व्यक्ति से किया जाए। वैभव रूपा से नहीं बल्कि उस मामूली से किसान की लड़की से प्रेम करता है। ज़ाहिर है उसका मन हर वक्त उसी के बारे में सोचेगा और हमारी रूपा की तरफ वो कभी ध्यान ही नहीं देगा। ऐसे में हमारी बेटी उस हवेली में बहू बन जाने के बाद भी दुखी ही रहेगी।"

"शायद आप ठीक कह रही हैं भौजी।" गौरी शंकर ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"ये प्रेम वाकई में बड़ा ख़राब भी होता है अगर अनुचित व्यक्ति से किया जाए तो। वैभव के बारे में हम सब अच्छी तरह से जानते हैं। वो कमबख़्त वो बला है जो अपने बाप से क्या बल्कि ऊपर वाले से भी नहीं डरता। आज भले ही वो सुधर गया है लेकिन प्रेम के मामले में वो किसी की नहीं सुनेगा। यकीनन ऐसे में उसके साथ हमारी बेटी का वैवाहिक जीवन बेहतर नहीं हो सकेगा। आप बिल्कुल ठीक कह रही हैं। मुझे दादा ठाकुर से इस बारे में बात करनी ही होगी।"

"तो फिर तुम्हें कल ही हवेली जा कर दादा ठाकुर से इस बारे में बात कर लेनी चाहिए।" फूलवती ने कहा____"प्रेम जैसे मामले में ज़्यादा देर करना बिल्कुल भी उचित नहीं है। हो सकता है कि उस लड़की से वैभव का ये प्रेम प्रसंग अभी ताज़ा ताज़ा ही हो, इस लिए अगर दादा ठाकुर द्वारा इस प्रेम प्रसंग पर अभी से विराम लगा दिया जाएगा तो शायद इसमें कोई समस्या नहीं होगी। किन्तु अगर ज़्यादा देर हुई तो ये समस्या गंभीर हो जाएगी।"

"सही कहा आपने।" गौरी शंकर ने सिर हिलाते हुए कहा____"इस मामले में देर करना ठीक नहीं होगा। इसके अलावा दादा ठाकुर से मैं अपने भी कुछ मुद्दों पर चर्चा कर लूंगा।"

"अपने कौन से मुद्दों पर चर्चा करोगे तुम?" फूलवती के माथे पर शिकन उभरी।

"हमने जहां पर आरती और रेखा का रिश्ता तय किया था वहां से कुछ दिन पहले एक ख़बर आई थी।" गौरी शंकर ने गंभीरता से कहा____"उन लोगों ने रिश्ता करने से इंकार कर दिया है।"

"क्या????" फूलवती का मुंह भाड़ की तरह खुल गया।

"हां भौजी।" गौरी शंकर एकाएक चिंतित भाव से कह उठा____"असल में दादा ठाकुर के साथ हमारा जो मामला हुआ था उसकी ख़बर दूर दूर तक फैल चुकी थी। उसी के चलते उन्होंने हमारे तय किए गए रिश्ते को करने से इंकार कर दिया है।"

"हाय राम!" फूलवती ने अपने भाड़ की तरह खुल ग‌ए मुंह को हथेली से बंद करते हुए कहा____"ये तो सच में बहुत बुरा हुआ लेकिन तुमने ये बात हमें बताई क्यों नहीं थी?"

"मैंने जान बूझ कर ही नहीं बताया था आप लोगों से।" गौरी शंकर ने हताश भाव से कहा____"असल में मैं आप सबको चिंता में नहीं डालना चाहता था।"

"तो अब क्या होगा फिर?" फूलवती ने चिंतित भाव से पूछा।

"मैंने पुरोहित जी को भी भेजा था वहां।" गौरी शंकर ने कहा____"लेकिन पुरोहित जी के समझाने पर भी बात नहीं बनी। उन्होंने साफ कह दिया है कि हमें ऐसे घर में अपने बेटों का रिश्ता करना ही नहीं है जिस घर के लोगों की मानसिकता इतनी निम्न दर्जे की हो।"

"सच ही कहा था उस दिन पिता जी ने।" फूलवती ने अपने ससुर चंद्रमणि की बातों को याद करते हुए कहा____"कि कोई हमारी बेटियों से ब्याह भी नहीं करेगा। हे प्रभु! अब क्या होगा? ये कैसी मुसीबत में डाल दिया है हमें?"

"फ़िक्र मत कीजिए भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"हमारी इस चिंता को अब दादा ठाकुर ही दूर कर सकते हैं। इसी लिए तो मैंने आपसे कहा है कि दादा ठाकुर से अपने भी कुछ मुद्दों पर चर्चा कर लूंगा। मुझे यकीन है कि दादा ठाकुर इस मामले में हमारी सहायता ज़रूर करेंगे।"

"ईश्वर करे ऐसा ही हो।" फूलवती ने जैसे बेबस भाव से कहा____"क्योंकि अगर ऐसा न हुआ तो हमारी बदनामी तो होगी ही किंतु साथ में ये बात भी चारो तरफ फ़ैल जाएगी जिससे हमारी बेटियों से कोई ब्याह ही नहीं करेगा।"

"सच में हमारी स्थिति बहुत दयनीय हो गई है भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"और अपनी इस दयनीय स्थिति के ज़िम्मेदार हम खुद ही हैं। काश! इतना दूर तक हमने पहले ही सोच लिया होता तो आज ना तो हमें ये दिन देखना पड़ता और ना ही हम सबकी ये दशा होती।"

गौरी शंकर की इस बात का फूलवती के पास कोई जवाब नहीं था। रूपचंद्र भी गंभीर चेहरा लिए बैठा रह गया था। कदाचित उसे भी शिद्दत से एहसास हो रहा था कि आज के समय में उसकी और उसके परिवार की हालत सच में कितनी गंभीर है।

✮✮✮✮

"ये तो सच में बहुत ही बड़ी चिंता की बात हो गई है वैभव।" रागिनी भाभी ने मेरी सारी बातें सुनने के बाद गंभीर भाव से कहा।

मैं भाभी के कमरे में था और उन्हें वो सब बातें बता चुका था जो आज सरोज से उसकी बेटी के संबंध में हुईं थी। मैंने भाभी से कुछ भी नहीं छुपाया था। ये सब बातें भाभी को बताने का मेरा यही मकसद था कि ऐसी परिस्थिति में वो या तो मेरा मार्गदर्शन करें या फिर मेरी मदद करें। मैं जानता था कि मां और पिता जी भाभी को बहुत मानते थे और मौजूदा समय में वो जिस स्थिति में थीं उसकी वजह से वो लोग उनकी कोई भी बात टाल नहीं सकते थे। यही सब सोच कर मैंने भाभी को सब कुछ बता दिया था जिसे सुनने के बाद वो एकदम से गंभीर हो गईं थी।

"मुझे समझ नहीं आ रहा भाभी कि अपनी इस समस्या को कैसे दूर करूं?" मैंने चिंतित भाव से कहा____"मैं अब ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहता जिससे आपको अथवा किसी को भी अच्छा न लगे। मैं चाहता हूं कि हवेली का हर सदस्य इस बात को समझे कि अनुराधा जैसी लड़की का मेरे जीवन में क्या महत्व है।"

"तुम अभी इस बारे में ये सब सोच कर खुद को हलकान मत करो वैभव।" भाभी ने मेरे कंधे को हल्के से दबा कर जैसे मुझे धीरज देते हुए कहा____"अभी इस सबके लिए बहुत समय बाकी है। मुझे पूरा यकीन है कि जब पिता जी को इस बारे में सब कुछ पता चलेगा तो वो तुम्हारी बातों को ज़रूर समझेंगे और अनुराधा के साथ तुम्हारे ब्याह की मंजूरी भी देंगे।"

"क्या सच में आपको लगता है कि वो इस बात को समझेंगे?" मैंने जैसे बेयकीनी से कहा____"नहीं भाभी, ये इतना आसान नहीं है। उन्होंने रूपा के साथ मेरा रिश्ता तय कर दिया है और गौरी शंकर को वचन भी दे चुके हैं कि अगले साल वो बरात ले कर उसके घर जाएंगे। क्या इसके बाद भी वो मेरे और अनुराधा के रिश्ते को स्वीकृति देंगे? क्या वो इस बात के लिए राज़ी होंगे कि मेरे जीवन में रूपा के अलावा भी अनुराधा के रूप में मेरी कोई दूसरी पत्नी भी हो?"

"बिल्कुल राज़ी होंगे वैभव।" भाभी ने मजबूती से कहा____"और उन्हें राज़ी होना ही पड़ेगा। उन्हें समझना होगा कि तुम अगर सुधर गए हो तो इसमें सिर्फ और सिर्फ अनुराधा जैसी लड़की का ही हाथ है। मैं खुद तुम्हारी पैरवी करूंगी।"

"ओह! भाभी क्या सच कह रही हैं आप?" मैं एकदम से खुश हो कर बोल पड़ा____"क्या सच में आप इस मामले में मेरी मदद करेंगी?"

"बिल्कुल करूंगी।" भाभी ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"अपने प्यारे से देवर के लिए मुझसे जो हो सकेगा करूंगी। ख़ास कर उस वैभव के लिए जो एक अच्छा इंसान बनने की जी तोड़ कोशिश कर रहा है। मैं ये बिल्कुल भी नहीं चाहूंगी कि सिर्फ इस वजह के चलते तुम अपना रास्ता भटक जाओ और फिर से पहले जैसे गंदे इंसान बन जाओ।"

"नहीं भाभी।" मैंने संजीदा हो कर कहा____"अब मैं वापस पहले जैसा नहीं बनूंगा। अनुराधा के ना मिलने से सिर्फ इतना ही होगा कि उसके बिना खुश नहीं रह पाऊंगा, बाकी रास्ता नहीं भटकूंगा। क्योंकि मैंने आपको अच्छा इंसान बनने का वचन दिया है। आपने मुझसे जो उम्मीद लगा रखी है उसे टूटने नहीं दूंगा, फिर भले ही इसके लिए मुझे चाहे कितने ही अजाब सहने पड़ें।"

"अजाब सहें तुम्हारे दुश्मन।" भाभी ने झट से मेरे दाएं गाल को सहलाते हुए स्नेह से कहा___"मैं अपने देवर को कोई अजाब नहीं सहने दूंगी। अगर वाकई में अनुराधा के मिलने से ही तुम्हें सच्ची खुशी मिलेगी तो वो तुम्हें ज़रूर मिलेगी। अगर अच्छा इंसान बनने का तुमने मुझे वचन दे रखा है तो आज मैं भी तुम्हें ये वचन देती हूं कि अनुराधा के साथ तुम्हारा ब्याह ज़रूर करवाऊंगी मैं।"

"ओह! भाभी। आपने मेरे लिए मुझको इतना बड़ा वचन दे दिया?" मैंने गदगद भाव से उनकी तरफ देखा____"आपके चरण कमल कहां हैं। मैं उन चरणों में अपना सिर रख देना चाहता हूं।"

"अरे! इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।" भाभी ने जब देखा कि मैं सच में झुक कर उनके चरणों को छूने वाला हूं तो उन्होंने झट से पीछे हटते हुए किंतु मुस्कुराते हुए कहा____"मुझे अच्छी तरह पता है कि तुम मेरा कितना अधिक सम्मान करते हो और सच कहूं तो इस बात से मुझे हमेशा गर्व महसूस होता है। ख़ैर अब ये तो बताओ कि अपनी होने वाली दोनों बीवियों से मुझे कब मिलवाओगे?"

"अनुराधा से तो मैं आपको किसी भी वक्त मिलवा सकता हूं।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"लेकिन दूसरी वाली से मिलवाना शायद मेरे लिए मुश्किल है।"

"अरे! ऐसा क्यों भला?" भाभी ने कहा___"और ये तुम दूसरी वाली क्या बोल रहे हो? जैसे एक का नाम लिया है वैसे ही उसका भी नाम लो। माना कि अनुराधा से तुम प्रेम करते हो जिसके चलते तुम उसी में अपनी खुशी समझते हो लेकिन ये मत भूलो कि रूपा का भी तुम्हारे जीवन में उतना ही महत्व है जितना कि अनुराधा का। आख़िर वो तुमसे प्रेम करती है और इतना ही नहीं अपने प्रेम को साबित करने के लिए उसने बहुत कुछ किया है तुम्हारे लिए। तुम उसके साथ कोई भेदभाव कैसे कर सकते हो?"

"ग़लती हो गई भाभी।" मैंने फ़ौरन ही अपने दोनों कान पकड़ते हुए कहा____"अब से कभी उसके साथ कोई भेदभाव नहीं करूंगा।"

"अच्छा इंसान बनने की राह पर हो तो सबके लिए अच्छा सोचना भी पड़ेगा।" भाभी ने जैसे उपदेश देते हुए कहा____"तभी समझा जाएगा कि तुम सच में अच्छे इंसान हो।"

"समझ गया भाभी, समझ गया।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"अच्छा अब बताइए कब चल रही हैं मेरे साथ अपनी देवरानी से मिलने?"

"हांय...तुम तो एक ही पल में बेशर्म बन गए।" भाभी ने आंखें फाड़ कर मेरी तरफ देखा____"अरे! कुछ तो शर्म करो। अपनी इस भाभी का कुछ तो लिहाज करो।"

"ठीक है ग़लती हो गई।" मैंने कहा____"अब से ऐसा कुछ नहीं कहूंगा आपके सामने और हां अब आप कहिएगा भी नहीं कि मैं उनमें से किसी से आपको मिलवाऊं।"

कहने के साथ ही मैंने इस तरह मुंह फेर लिया जैसे कोई छोटा बच्चा रूठ जाने पर फेर लेता है। ये देख भाभी खिलखिला कर हंस पड़ीं। उनकी हंसी मेरे कानों में मंदिर की घंटियां बजने जैसी प्रतीत हुईं तो मुझे ये सोच कर अच्छा लगा कि चलो किसी बहाने भाभी को हंसी तो आई। मैं तो चाहता ही यही था कि वो अपना दर्द भूल कर हंसती मुस्कुराती रहें।

"अगर तुम ये सोचते हो कि मैं तुम्हें मनाऊंगी तो भूल जाओ।" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"वैसे भी मेरे मनाने से तुम्हें वो खुशी नहीं मिलेगी जो एक प्रेमिका के मनाने पर मिलती है। इस लिए अगर खुद को मनवाना ही है तो अपनी अनुराधा के पास ही जाओ।"

"ये तो ग़लत बात है भाभी।" मैंने फ़ौरन ही उनकी तरफ पलट कर कहा____"उन दोनों से पहले मेरे जीवन में आपकी प्राथमिकता ज़्यादा है। मैं आपका देवर हूं और आपसे रूठने मनाने का पूरा हक़ है मेरा।"

"अच्छा जी।" भाभी ने हल्के से हंस कर कहा____"अगर ऐसी बात है तो फिर उन दोनों बेचारियों का क्या होगा? वो दोनों तो तुम्हें मनाने की आस लिए ही बैठी रह जाएंगी। क्या तुम उनके साथ इस तरह का अत्याचार करोगे?"

"उनको मुझसे जो चाहिए होगा वो उन्हें मिल जाएगा।" मैंने लापरवाही से कहा____"फिर भला कैसे उनके साथ अत्याचार होगा?"

"तुम ना अब पिटोगे मुझसे।" भाभी ने आश्चर्य से आंखें फैलाते हुए मुझे थप्पड़ दिखाया____"चलो जाओ यहां से बेशर्म। मुझे आराम करना है अब।"

भाभी का अचानक से इस तरह का बर्ताव देख मैं चौंका। मुझे समझ न आया कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा मुझसे? मैंने सोचा कि आख़िर मैंने ऐसा क्या कह दिया है उनसे? अगले कुछ ही पलों में मैं बुरी तरह चौंक पड़ा। अंजाने में मैंने उनसे ऐसी बात कह दी थी जिसमें एक अलग ही अर्थ छिपा हुआ था। मुझे अपने आप पर ये सोच कर गुस्सा आया कि मैं ऐसी बात कैसे बोल गया। मुझे बहुत शर्म आई। मैंने नज़र उठा कर भाभी की तरफ देखा तो उन्हें अपने पलंग पर बैठते पाया। उनसे कुछ कहने की हिम्मत न हुई मुझमें इस लिए चुपचाप उनके कमरे से बाहर निकल आया।

अपने कमरे में आ कर मैं पलंग पर लेट गया और भाभी से कही बात के बारे में सोचने लगा। क्या सोचा होगा भाभी ने मेरे बारे में कितना निर्लज्ज लड़का हूं मैं। मेरी नज़र में भाभी का मुकाम बहुत ऊंचा था और मैं उनका बेहद सम्मान करता था। इस तरह की द्विअर्थी बातें मैंने उनसे कभी नहीं की थीं। जाने क्यों मेरा मन एकाएक आत्मग्लानि से भर गया।




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Fantastic update
देर सवेर फूलवती और साहूकारों को भी अपने द्वारा किए कुकर्त्य समझ में आ गए । फूलवती को ये भी एहसास हो गया कि उसके ससुर ने जो कहा था वो आज सच हो गया है उनके साथ कोई भी रिश्ता जोड़ने को तैयार नहीं है
रूपा के बारे में गौरी शंकर ने जो कहा है वह एक तरह से सही है जबरदस्ती की शादी में प्यार नही होता है केवल रिश्ता एक बोझ हो जाता है लेकिन वैभव ऐसा नहीं करेगा हमे ये विश्वास है भाभी ने वैभव और अनुराधा की शादी का वादा कर दिया है वैभव और भाभी के बीच हुई वार्तालाप बहुत ही सुंदर और मजेदार था
 
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avsji

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भई - कहानी फिर से शुरू करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद! इस फ़ोरम पर कुछ ही कहानियाँ हैं, जो पढ़ने योग्य हैं (मेरे हिसाब से)। आपकी कहानी उनमें से एक है। इसलिए जब भी ये बंद होती है, खराब लगता है। बुद्धवार से आपने सात अपडेट दिए हैं, वो सब पढ़ लिए। अलग अलग सभी की समीक्षा क्या ही करी जाय! बातें शुभ हो रही हैं, इसलिए शुभ बातें ही चर्चा में होंगी।
वैभव के तो मज़े ही मज़े हो गए हैं! दो दो पत्नियों का योग बन रहा है उसका। यहाँ एक ही शादी की सोच कर मन में ऐसे ऐसे लड्डू फूटने लगते हैं, कि क्या कहें! तो यहाँ भाई की क्या हालत होगी, बयान नहीं की जा सकती।
सभी यही सोच रहे हैं कि कम से कम अनुराधा तो एक पत्नी बनेगी। इस बात पर मुझे महाराज विक्रमादित्य से सम्बंधित, बेताल पचीसी की कहानियाँ याद हो आईं। उसी लॉजिक को लगा कर मैंने सोचा कि वैभव की दो पत्नियाँ कौन हो सकती हैं? न्याय से देखें तो, रूपा ने वैभव की जान बचा कर, उसको एक तरह से जीवन / जीवन दान दिया है, इसलिए वो उसकी माँ समान हुई। ऐसे में उससे शादी संभव नहीं है। है वो बहुत ही अच्छी - किसी अन्य समय में वैभव और रूपा का संग उचित है। लेकिन फिर उन दोनों के परिवारों के इतिहास में खटास है। हाँ, उससे शादी कर के दोनों परिवारों और गाँव में शांति अवश्य आएगी, लेकिन वो एक तरह से राजनीतिक शादी होगी। वैसे भी वैभव उससे प्रेम नहीं करता - वो उसका एहसान मानता है। शादी कर के वो अपने पिता की बात का मान रखना चाहता है, और शायद उसके एहसान का बदला देना चाहता है।
अब आगे बढ़ते हैं। अनुराधा के कारण उसको सन्मार्ग मिला। उसने अपना लम्पट वाला मार्ग छोड़ा, और अच्छा आदमी बनने का प्रयास किया। उसी की ही तरह रागिनी के कारण भी उसको अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हुआ। कुल जमा, जो सही रास्ता दिखाए, वो ही सही और सच्चा साथी है। नीति के हिसाब से उसकी शादी रागिनी और अनुराधा से होनी चाहिए।
बाकी ऊपर संजू भाई ने कुछ बातें लिखी हैं, रागिनी के फ़ेवर में। वो बातें भी इंटरेस्टिंग हैं। वैसे ठकुराईन की बात सही है - रागिनी को घर की बहू के रूप में ही देखना, अपना स्वार्थ तो है!
बहुत ही बढ़िया तरीके से, और बड़ी तेजी से आपने कहानी आगे बढ़ाई है। आनंद आ गया।
 

Sanju@

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अध्याय - 97
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अगले दस पंद्रह दिन ऐसे ही गुज़र गए। इस बीच पिता जी शहर गए थे जहां पर उन्होंने अपने किसी जान पहचान वाले से मुलाक़ात की और उन्हें बताया कि वो अपने भतीजों को यानि विभोर और अजीत को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजना चाहते हैं। पिता जी की इस बात से उस व्यक्ति ने पिता जी को बताया कि इसमें कोई समस्या की बात नहीं है, बस कुछ कागज़ी कार्यवाही करनी पड़ेगी।

उस व्यक्ति के दिशा निर्देश पर पिता जी सारी कागज़ी कार्यवाही संपन्न करने के काम पर लग गए। ऐसे कामों में वक्त लगना था किंतु पिता जी के लिए कोई समस्या नहीं थी क्योंकि उनकी पहुंच काफी ऊपर तक थी इस लिए कम समय में ही सारा काम हो गया। हवेली में अब विभोर और अजीत की विदेश भेजने की तैयारी होने लगी। विभोर और अजीत का विदेश जाने का मन तो नहीं था लेकिन चाची के समझाने पर आख़िर वो दोनों मान ही गए। मैंने भी दोनों को आश्वस्त किया कि उन्हें यहां किसी की फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है। उनका काम सिर्फ इतना है कि वो दोनों हर चिंता से मुक्त हो कर विदेश में अच्छी तरह से अपनी शिक्षा ग्रहण करें।

आख़िर वो दिन आ ही गया जब विभोर और अजीत विदेश जाने लगे। दोनों अपने पिता को याद कर के बहुत रो रहे थे। उनके साथ चाची भी रो रहीं थी। हम सब भी अंदर से दुखी थे किंतु बात उनके उज्ज्वल भविष्य की थी इस लिए हम सभी को अपने आपको कठोर बनाना था। पिता जी जीप में दोनों को बैठा कर तथा अपने साथ कुछ हथियारबंद आदमियों को ले कर शहर के लिए रवाना हो गए। उस दिन हवेली में एकदम से सन्नाटा सा छा गया था। मां और भाभी मेनका चाची को सम्हालने में लगी हुईं थी। नए मुंशी किशोरी लाल की बीवी निर्मला भी वहीं थी, जबकि उसकी बेटी कजरी और कुसुम थोड़ी दूरी पर बैठी हुईं थी।

ऐसे ही दिन गुज़र गया और फिर शाम ढलते ढलते पिता जी शहर से वापस आ गए। उन्होंने सबको बताया कि दोनों बच्चे सकुशल हवाई जहाज में बैठ कर विदेश जा चुके हैं। विदेश में उनके रहने की तथा हर सुविधा संपन्न कराने की व्यवस्था पिता जी के उस परिचित को करनी थी। इसके लिए जितना भी खर्च लगने वाला था वो पिता जी ने दे दिया था उसे और साथ ही ये भी कह दिया था कि महीना पूरा होने से पहले ही वो आगे के खर्च के लिए पैसा भेजवा दिया करेंगे।

हमारे गांव से ही नहीं बल्कि आस पास गावों से भी कोई व्यक्ति अब तक उच्च शिक्षा के लिए विदेश नहीं गया था। ये हमारे लिए बड़े ही गर्व वाली बात थी। पिता जी को इस बात से बड़ा संतोष हुआ था कि उनके मरहूम छोटे भाई के दोनों बच्चों का भविष्य अब बेहतर बन जाएगा।

अगली सुबह नाश्ता करने के बाद पिता जी और मुंशी किशोरी लाल बैठक कक्ष में चले गए जबकि मैं खेतों की तरफ जाने की तैयारी करने लगा। इतने दिनों में मैंने महसूस किया था कि किशोरी लाल की बेटी कजरी कुछ अलग ही तरह से मुझसे बर्ताव करने लगी थी। मैं जब भी अपने कमरे में अकेले होता था तो वो किसी न किसी बहाने मेरे कमरे में आ धमकती थी। उसके बाद उसकी द्विअर्थी बातें शुरू हो जाती थीं जिसके चलते मैं असहज हो जाता था। अगर बात अच्छा इंसान बनने की न होती तो वो अब से पहले ही मेरे पलंग पर मेरे लंड की सवारी कर चुकी होती किंतु अब बात अलग थी। मैंने महसूस किया था कि पिछले कुछ दिनों से उसकी हिम्मत कुछ ज़्यादा ही बढ़ गई थी और मुझे डर था कि उसे अपनी इस हिम्मत के लिए मेरे द्वारा कोई बुरा ख़ामियाजा न भुगतना पड़ जाए। अगर ऐसा हुआ तो हवेली में एक बड़ा हंगामा हो जाना तय था।

मैं तैयार हो कर अपने कमरे से निकला और भाभी के कमरे की तरफ बढ़ चला। पिछले दिन मैंने भाभी से कहा था कि वो मेरे साथ खेतों पर चलेंगी और उन्हें मेरे साथ चलना ही पड़ेगा। काफी समय से वो बहाने बना रहीं थी। असल में भाभी को अपने साथ ले जाने के पीछे एक खास वजह भी थी।

बहरहाल मैं जैसे ही भाभी के कमरे की तरफ मुड़ने वाले गलियारे के पास पहुंचा तो देखा भाभी अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर रहीं थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही वो हल्के से मुस्कुराईं। सफ़ेद साड़ी में वो अलग ही नज़र आती थीं जिसके चलते मेरे अंदर एक टीस सी उभर जाया करती थी।

"आख़िर अपनी बात मनवा ही ली तुमने मुझसे।" भाभी ने दरवाज़ा बंद कर के मेरी तरफ आते हुए कहा____"अगर पिता जी ने नाराज़गी ज़ाहिर की तो तुम्हारे साथ साथ मेरी भी ख़ैर नहीं होगी।"

"अरे! कोई कुछ नहीं कहेगा।" मैंने कहा____"मां तो कब से आपको मेरे साथ खेत घूमने जाने के लिए बोल रहीं थी लेकिन आप ही नखरे दिखा रहीं थी।"

"अच्छा बच्चू।" भाभी ने आंखें फैला कर मेरी तरफ देखा____"मैं नखरे दिखा रही थी सबको?"
"और नहीं तो क्या?" मैंने हल्के से हाथ झटकते हुए कहा____"इतने नखरे तो रूपा या अनुराधा ने भी कभी मुझे नहीं दिखाए जितना आप दिखाती हैं।"

"उन्होंने इस लिए नहीं दिखाया क्योंकि वो बेचारी तुमसे डरती हैं।" भाभी ने कहा____"जबकि मैं रत्ती भर भी नहीं डरती तुमसे।"

"हां ये भी सही कहा आपने।" मैंने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया____"और मैं चाहता भी नहीं हूं कि आप मुझसे डरें, बल्कि मैं तो ये चाहता हूं कि मेरी प्यारी भाभी हमेशा मेरी टांगें खींचें ताकि उन्हें खुशी मिले।"

"बहुत बातें बनाने लगे हो आज कल।" भाभी ने मुझे घूर कर देखा____"मां जी से शिकायत करनी पड़ेगी तुम्हारी।"

"अरे! मां को तकलीफ़ क्यों देंगी आप?" मैंने चौंक कर कहा____"अगर मुझसे कोई ग़लती हो जाए तो आप खुद मुझे डांट सकती हैं और हां पीट भी सकती हैं मुझे।"

"अच्छा सच में??" भाभी ने सीढ़ियों की तरफ बढ़ने से पहले मेरी तरफ हैरानी से देखा तो मैंने कहा____"हां सच में। आप मेरी भाभी हैं, मुझसे बड़ी हैं। इस लिए आपको पूरा हक़ है मुझे डांटने और पीटने का।"

"फिर तो ठीक है।" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"अब जब मेरी दोनों देवरानियां आ जाएंगी तो उनके सामने ही तुम्हें डांटा करूंगी और तुम्हारी पिटाई भी किया करूंगी। बहुत मज़ा आएगा तब।"

"अरे! ये क्या कह रही हैं आप?" मैं उनकी बात से बुरी तरह चौंका____"मतलब आप उनके सामने मेरी इज्ज़त का कचरा करेंगी? ये तो ग़लत बात है भाभी। अपने भोले भाले और मासूम से देवर के साथ इतना बड़ा अत्याचार करेंगी आप?"

"तुम भोले भाले और मासूम?" भाभी जो आधी सीढियां उतर चुकी थीं मेरी बात सुनते ही एकदम पलट कर बोलीं____"कुछ तो शर्म करो। ये तो वैसी ही बात हो गई कि नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली हज करने चली।"

मैं भाभी की इस बात से अनायास ही मुस्कुरा उठा। इस वक्त भाभी से ऐसी बातें करने में जाने क्यों मुझे मज़ा आ रहा था। बहरहाल हम नीचे आ चुके थे इस लिए मैंने फिर कुछ नहीं कहा। आंगन से होते हुए हम दोनों जैसे ही दूसरी तरफ के बरामदे में पहुंचे तो मां और चाची ने हमें देखा।

"मां, मैं भाभी को खेतों पर घुमाने ले जा रहा हूं।" मैंने मां से कहा_____"आपको इनसे कोई काम तो नहीं है ना?"

"अरे! मुझे इससे कोई काम नहीं है।" मां ने झट से कहा____"तू ले जा इसे। मैं तो कब से कह रही हूं इसे कि वैभव के साथ घूम आया कर लेकिन ये मेरी सुने तब न।"

"आज इन्हें सुनना पड़ा मां।" मैंने इस तरह कहा जैसे मैंने बहुत बड़ा काम किया हो____"आख़िर मेरी बात टालने का साहस कौन कर सकता है यहां?"

"ज़्यादा बोलेगा तो टांगें तोड़ दूंगी तेरी।" मां ने आंख दिखाते हुए मुझसे कहा____"और हां, मेरी बेटी को अच्छे से खेत घुमाना और सम्हाल कर ले जाना।" कहने के साथ ही मां भाभी से मुखातिब हुईं____"अगर ये तुझे परेशान करे तो आ कर मुझसे बताना। मैं अच्छे से इसकी ख़बर लूंगी।"

मां की बात सुन कर भाभी के होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई। मेनका चाची, कुसुम, निर्मला काकी और उसकी बेटी कजरी भी मुस्कुरा पड़ी।

"आप तो ऐसे बोल रहीं हैं जैसे मैं अपनी भाभी का जन्मजात शत्रु हूं जो इन्हें किसी तरह की तकलीफ़ पहुंचा दूंगा।" मैंने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा____"ये तो हद हो गई। मेरे जैसे मासूम लड़के के साथ इतना बड़ा अन्याय?"

मेरी बात सुनते ही कुसुम और कजरी खिलखिला कर हंसने लगीं। मेनका चाची और निर्मला काकी भी मुस्कुरा उठीं जबकि मां ने मुझे घूर कर देखा। इससे पहले कि मां मुझे कुछ कहतीं मैंने फ़ौरन ही भाभी को चलने का इशारा किया और खुद तेज़ी से आगे बढ़ गया।

बैठक के सामने से जैसे ही मैं गुज़रा तो मेरी नज़र बैठक कक्ष में बैठे गौरी शंकर पर पड़ गई। इतने दिनों बाद उसे यहां देख मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि ये यहां किस लिए आया होगा? ख़ैर मैंने इस बात पर ज़्यादा सोचना मुनासिब नहीं समझा और बाहर निकल गया।

मैं जीप ले कर जैसे ही मुख्य द्वार के सामने आया तो भाभी सीढ़ियों से उतरते हुए जीप के पास आ गईं और फिर मेरे बगल वाली सीट पर चढ़ कर बैठ गईं। उनके चेहरे पर अजीब से भाव थे। वो कुछ असहज सी प्रतीत हो रहीं थी। सफेद साड़ी से उन्होंने हल्का सा अपना चेहरा ढंक रखा था। ज़ाहिर है वो बैठक के सामने से गुज़र कर आईं थी जहां पर पिता जी और बाकी लोग बैठे हुए थे। उनके सामने वो अपना चेहरा उजागर नहीं कर सकतीं थी। ख़ैर उनके बैठते ही मैंने जीप को आगे बढ़ा दिया। महिंद्रा कमांडर वाली जीप जल्दी ही हाथी दरवाज़े को पार कर गई। कच्ची सड़क पर मैं आराम से ही जीप को दौड़ा रहा था ताकि भाभी को ज़्यादा तकलीफ़ ना हो। भाभी चुपचाप गांव का नज़ारा देखने लगीं थी।

✮✮✮✮

"अरे! ये हम किस तरफ जा रहे हैं?" गांव से दूर आने के बाद जैसे ही मैंने जीप को पगडंडी वाले रास्ते की तरफ मोड़ा तो भाभी ने सहसा चौंक कर मुझसे पूछा।

"हम सही रास्ते पर ही जा रहे हैं भाभी।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर कहा____"वैसे आपकी जानकारी के लिए सिर्फ इतना ही बता सकता हूं कि मैं आपको आपके काम से ही कहीं ले जा रहा हूं।"

"क...क्या मतलब??" भाभी ने मेरी बात सुन कर हैरानी से मेरी तरफ देखा____"तुम मुझे मेरे ही काम से कहीं ले जा रहे हो? मेरा भला कहीं पर कौन सा काम है?"

"ज़्यादा मत सोचिए।" मैंने मन ही मन हंसते हुए कहा____"जल्दी ही आपको पता चल जाएगा।"

भाभी मेरी बात सुन कर अपलक मेरी तरफ देखने लगीं और साथ ही सोचने भी लगीं कि भला उनके ऐसे कौन से काम से मैं उन्हें ले जा रहा हूं। मैंने कनखियों से उनकी तरफ देखा तो पाया कि वो कुछ सोच रही हैं।

"ओह! अच्छा अब समझी मैं।" अचानक ही भाभी बड़े उत्साहित भाव से बोल पड़ीं____"मैं समझ गई कि तुम मुझे कहां लिए जा रहे हो लेकिन इसमें भला मेरा काम कहां हुआ? इसमें तो तुम्हारा अपना ही निजी काम है जिसे तुम्हारा स्वार्थ भी कहा जा सकता है।"

"अरे! ये आप क्या कह रही हैं?" मैंने हड़बड़ा कर उनकी तरफ देखा____"इसमें मेरा भला कौन सा निजी स्वार्थ है भाभी? आप ही ने तो कहा था कि मैं आपको उससे मिलवाऊँ।"

"अब बातें न बनाओ तुम।" भाभी ने सहसा घूरते हुए कहा____"इतनी भी बुद्धू नहीं हूं, सब समझती हूं मैं। मुझे तुमने माध्यम बनाया है जबकि सच ये है कि तुम खुद ही अपनी उस माशूका से मिलने के लिए मरे जा रहे थे।"

"नहीं भाभी ये सच नहीं है।" मैं एकदम से झेंपते हुए बोल पड़ा____"असल में आपको उससे मिलवाने का ख़याल अभी कुछ देर पहले ही मेरे ज़हन में आया था, वरना मैं तो आपको हमारे खेतों पर ही लिए जा रहा था।"

"अच्छा, क्या सच में?" भाभी ने अजीब भाव से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"पर तुम्हारे चेहरे के भाव तो यही बता रहे हैं कि तुम झूठ बोल रहे हो।"

"अब मैं आपको कैसे यकीन दिलाऊं?" मुझसे कुछ कहते ना बन पड़ा था। सच ही तो कह रहीं थी वो। मैं झूठ बोल कर अब बहाना ही तो बना रहा था। फिर भी खुद को सही ठहराने की कोशिश करते हुए कहा____"मेरा यकीन कीजिए भाभी। मैं सच में.....!"

"रहने दो।" भाभी ने बीच में ही मेरी बात काट दी____"अपने झूठ को छुपाने के लिए तुम चाहे जितने भी बहाने बना लो पर मैं यकीन करने वाली नहीं हूं। वैसे अगर तुम सच कबूल कर लोगे तो भला कौन सा गुनाह हो जाएगा तुमसे?"

भाभी की इस बात से मैं कुछ ना बोल सका। मेरे मन में ख़याल उभरा कि बात तो बिल्कुल ठीक ही है। मैं अगर सच कबूल कर लूंगा तो भला क्या हो जाएगा?

"अच्छा ठीक है।" फिर मैंने जैसे हथियार डालते हुए कहा____"मैं कबूल करता हूं कि मैं जान बूझ कर आपको उससे मिलवाने लिए जा रहा हूं। अब ठीक है ना?"

"आय हाय देखो तो।" भाभी ने मुझे छेड़ते हुए कहा____"देखो तो इन आशिक़ को। अपनी प्रेमिका से मिलने के लिए कैसे बहाने बना रहे हैं।"

"ये ग़लत बात है भाभी।" मैंने एकदम से झेंपते हुए कहा____"आप इस तरह से मेरी टांग नहीं खींच सकती।"

"क्यों नहीं खींच सकती भला?" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा_____"भूलो मत, तुमने ही कहा था कि मैं तुम्हारी टांग भी खींच सकती हूं और तुम्हारी पिटाई भी कर सकती हूं। अब क्या तुम अपनी ही कही बात से मुकर जाओगे?"

"नहीं भाभी।" मैंने कहा____"मैं बिल्कुल भी मुकरने वाला नहीं हूं। ठीक है, आपको मेरी टांग ही खींचनी है तो जितना मर्ज़ी खींच लीजिए। बस आप इसी तरह हमेशा खुशी से मुस्कुराती रहें।"

मेरी बात सुनते ही भाभी के चेहरे के भाव बड़ी तेज़ी से बदले। वो मेरी तरफ अपलक देखने लगीं। उनकी आंखों में मेरे लिए अथाह स्नेह दिखाई देने लगा था।

"अच्छा अब ये तो बताइए कि वहां उससे मिलने पर उसके साथ क्या बात करने वाली हैं आप?" मैंने झट से माहौल को पहले जैसा बनाने की गरज से पूछा____"क्या उसके सामने भी आप मेरी टांग खींचेंगी?"

"अब ये तो परिस्थितियों पर निर्भर करता है वैभव।" भाभी ने इस बार सामान्य भाव से कहा____"मैं तो बस उस लड़की को देखना चाहती हूं जिसने तुम्हारे जैसे इंसान को बदल दिया है। मैं उसके सामने जा कर महसूस करना चाहती हूं कि उसमें ऐसी क्या ख़ास बात है?"

"क्या आपको लगता है कि एक मामूली से किसान की बेटी में कोई ख़ास बात होगी?" मैंने भाभी की तरफ देखते हुए कहा।

"बिल्कुल होगी।" भाभी ने झट से कहा____"जिसने ठाकुर वैभव सिंह जैसे महान चरित्र वाले लड़के की फितरत बदल दी उसमें ज़रूर ख़ास बात होगी। वो लड़की मामूली हो ही नहीं सकती जिसे वैभव जैसा व्यक्ति प्रेम करने लगा हो।"

मुझे समझ न आया कि भाभी की इन बातों पर क्या प्रतिक्रिया दूं अथवा क्या कहूं। जीप कच्ची पगडंडी में बढ़ी चली जा रही थी। मुरारी काका का घर नज़र आने लगा था। मैंने महसूस किया कि मेरा दिल एकाएक ही तेज़ी से धड़कने लगा था। ज़हन में सवाल उभरने लगे कि अनुराधा से मिलने के बाद भाभी क्या सोचेंगी अथवा वो उससे क्या बातें करेंगी? क्या अनुराधा मेरे साथ साथ भाभी को भी देख कर सहज महसूस करेगी?

कुछ ही देर में हम मुरारी काका के घर के सामने आ गए। मैंने जीप रोक कर उसका इंजिन बंद कर दिया। मैंने देखा घर का दरवाज़ा अंदर से बंद था। उधर भाभी अपनी तरफ के दरवाज़े से नीचे उतरीं तो उन्हें उतरता देख मैं भी धड़कते दिल से नीचे उतर आया।

"क्या यही उसका घर है?" जीप से उतरने के बाद भाभी ने बंद दरवाज़े की तरफ देखते हुए मुझसे पूछा तो मैंने हां में सिर हिला दिया। मेरे इशारा करने पर भाभी आगे बढ़ चलीं तो मैं भी उनके पीछे दरवाज़े की तरफ बढ़ चला। भाभी नज़र घुमा घुमा कर चारो तरफ देख रहीं थी।

अभी हम दरवाज़े के थोड़ा ही क़रीब पहुंचे थे कि तभी घर का दरवाज़ा एक झटके से खुला और खुले दरवाज़े के बीचो बीच जो शख्सियत नज़र आई उसे देख कर जैसे मेरी धड़कनें ही थम गईं। भाभी की नज़र भी उस पर पड़ चुकी थी। उन्होंने फ़ौरन ही पलट कर मेरी तरफ देखा और आंखों के इशारे से ही मुझसे पूछा कि क्या यही है वो? भाभी के इस तरह पूछने पर मैंने अपने धाड़ धाड़ बजते दिल के साथ पलकें झपका कर हां में जवाब दे दिया। उधर दरवाजे पर खड़ी अनुराधा की नज़र जैसे ही मुझ पर और मेरे साथ साथ भाभी पर पड़ी तो उसके चेहरे पर बड़े अजीब से भाव उभर आए।

✮✮✮✮

"ये क्या कह रहे हो तुम?" बैठक में गौरी शंकर की बातें सुनते ही दादा ठाकुर ने बड़े आश्चर्य के साथ कहा____"हमें तो यकीन ही नहीं हो रहा कि तुम जो कह रहे हो वो सच भी हो सकता है।"

"मैं तो इस बात से हैरान हूं ठाकुर साहब कि अपने बेटे के बारे में इतनी बड़ी बात आपको पता कैसे नहीं है?" गौरी शंकर ने कहा____"या फिर शायद आप अंजान बनने का दिखावा कर रहे हैं।"

"हमें इस बारे में थोड़ी बहुत जानकारी तो थी गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने गंभीर भाव से कहा____"लेकिन हमें ये नहीं पता था कि हमारा बेटा मुरारी की बेटी से प्रेम भी करता है। हमारे लिए तो ये बड़े ही आश्चर्य की बात है कि हमारा बेटा किसी लड़की से प्रेम भी कर सकता है। यकीन नहीं होता।"

"अगर आपको इस बात का यकीन नहीं हो रहा तो आप खुद वैभव से पूछ लीजिएगा।" गौरी शंकर ने दृढ़ता से कहा____"वैसे इतना तो आप भी समझते हैं कि आपका बेटा वैभव अब पहले जैसा नहीं रहा है। उसमें आए परिवर्तन को देख कर शुरू शुरू में हम सबके साथ साथ आप खुद भी तो हैरान हुए होंगे? उसके बाद से अब तक वो जो कुछ भी करता आया है वो भी हैरान कर देने वाला ही तो रहा है। अगर अब तक के उसके सारे कार्य सच हैं तो उसका किसी मुरारी की लड़की प्रेम करना भी सच ही है।"

गौरी शंकर जाने क्या क्या बोलता चला जा रहा था जबकि इधर दादा ठाकुर एकाएक ही जाने किस सोच में पड़ गए थे?

"क्या सोचने लगे ठाकुर साहब?" गौरी शंकर ने जैसे उन्हें वर्तमान में लाते हुए कहा____"अगर वाकई में आपका बेटा किसी लड़की से प्रेम करता है तो आप भी इस बात को अच्छे से समझ सकते हैं कि ऐसे में मेरी भतीजी के साथ उसका वैवाहिक जीवन कुछ ठीक नहीं होगा।"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" दादा ठाकुर ने एकदम से चौंकते हुए कहा____"आख़िर क्या कहना चाहते हो तुम?"

"यही कि एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकतीं।" गौरी शंकर ने कहा____"अगर वैभव मुरारी की लड़की के साथ ही विवाह कर के खुश रह सकता है तो उसका विवाह उस लड़की से ही कर दीजिए। आपने मेरी भतीजी रूपा के बारे में इतना सोचा यही हमारे लिए बड़ी बात है किंतु ऐसे विवाह का क्या लाभ जिसमें मेरी भतीजी को खुशियां ही न मिल सकें।"

"नहीं गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने स्पष्ट भाव से कहा____"हमने तुम्हें वचन दिया है कि तुम्हारी भतीजी इस हवेली में बहू बन कर आएगी तो समझो वो आएगी। हमारे बेटे के साथ उसका विवाह ज़रूर होगा। रही बात उस लड़की से उसके प्रेम की तो इसके बारे में भी हम जल्द ही कोई फ़ैसला करेंगे।"

"छोटा मुंह बड़ी बात किंतु आपको मेरी सलाह है ठाकुर साहब कि ऐसा कोई भी फ़ैसला नहीं कीजिएगा जिससे आपके बेटे को धक्का लग जाए और वो अपने सही रास्ते पर चलते हुए अचानक पलट जाए।" गौरी शंकर ने कहा_____"ऊपर वाले की कृपा से उसमें इतना बढ़िया सुधार आया है तो उसे अपने हिसाब से चलने दीजिए। अगर आपने दो प्रेम करने वालों को जुदा करने का सोचा तो मुझे यकीन है कि इसका अंजाम अच्छा नहीं होगा।"

"हम ये सब समझते हैं गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने गभीरता से कहा____"किंतु ऐसा भी तो नहीं हो सकता कि तुम्हें दिया हुआ अपना वचन हम तोड़ दें। ख़ैर, तुम फ़िक्र मत करो। इस बात का यकीन करो कि तुम्हारी भतीजी इस हवेली की बहू ज़रूर बनेगी और उसका वैवाहिक जीवन भी खुशी से गुज़रेगा।"

"पर ये भला कैसे संभव है ठाकुर साहब?" गौरी शंकर ने बेयकीनी से कहा____"माना कि आपके कहने पर अथवा मजबूर करने पर वैभव मेरी भतीजी से विवाह कर लेगा लेकिन प्रेम तो वो किसी और से ही करता है ना? ऐसे में वो मेरी भतीजी को वैसा प्रेम और वैसा हक़ कैसे देगा जो उसे अपनी पत्नी के रूप में मेरी भतीजी को देना चाहिए?"

"हमने कहा न गौरी शंकर कि तुम इस बारे में ज़्यादा मत सोचो।" दादा ठाकुर ने ज़ोर देते हुए कहा_____"हम पर यकीन रखो। हम ऐसा हर्गिज़ नहीं होने देंगे जैसे कि तुम्हें फ़िक्र है।"

गौरी शंकर इस बारे में अभी कहना तो और भी बहुत कुछ चाहता था लेकिन फिर ये सोच कर उसने अपना इरादा बदल लिया कि ज़्यादा बहसबाजी करने से कहीं दादा ठाकुर उससे नाराज़ ना हो जाएं। वैसे भी अब वो दादा ठाकुर से किसी भी तरह का मन मुटाव नहीं होने देना चाहता था।

उसके बाद गौरी शंकर ने अपने उस मुद्दे की बात शुरू कर दी जो उसकी भतीजियों के शादी वाले रिश्ते से संबंधित थी। उसने दादा ठाकुर को अपनी सारी परेशानी बता दी और फिर उनसे आग्रह किया कि इस मामले में दादा ठाकुर उसकी सहायता करें।

"फ़िक्र मत करो गौरी शंकर।" सारी बातें सुनने के बाद दादा ठाकुर ने कहा____"हमने पहले भी तुमसे कहा था कि तुम्हारी बेटियों को हम अपनी बेटियां ही मानते हैं इस लिए उनकी ज़िम्मेदारी भी अब हमारी ही है। तुम अपनी दोनों भतीजियों के विवाह के बारे में किसी प्रकार की चिंता मत करो। जब उचित समय आएगा तो हम खुद तुम्हारे साथ चल कर इस रिश्ते की रजामंदी करवाएंगे।"

"आपका बहुत बहुत धन्यवाद ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने अधीरता से अपने हाथ जोड़ते हुए कहा____"आपके ऐसा कहने से सच में अब मैं चिंता से मुक्त हो गया हूं।"

थोड़ी देर और इसी संबंध में गौरी शंकर की दादा ठाकुर से बातें हुईं उसके बाद वो दादा ठाकुर को प्रणाम कर के अपने घर चला गया। उसके जाने के बाद दादा ठाकुर एक गहरी सोच में डूब गए। उनके ज़हन में जाने कैसे कैसे विचार उभरने लगे थे।



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अजीत और विभोर दोनो को विदेश भेज दिया है यह ठाकुर साहब के लिए एक तरह से सही फैसला था एक तो दोनो का भविष्य सुधर जायेगा दूसरा वो वहा ज्यादा सुरक्षित रहेंगे वैभव भाभी को अनुराधा से मिलाने ले जा रहा है इस बीच दोनो के बीच जो नोक झोंक हुई वह बहुत ही सुंदर और मजेदार थी
गौरी शंकर ने ठाकुर साहब को अनुराधा और वैभव के प्रेम के बारे मे बता दिया है अब सोचने वाली बात ये है कि ठाकुर साहब क्या फैसला करते हैं
 

Sanju@

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अध्याय - 98
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"कौन आया है अनू?" अनुराधा स्तब्ध सी खड़ी हमें देखे ही जा रही थी कि तभी अंदर से सरोज काकी की आवाज़ से वो चौंकी और हड़बड़ा कर दरवाज़े से एक तरफ हट गई।

इधर मुझे भी समझ नहीं आ रहा था कि ऐसी परिस्थिति में मैं क्या कहूं अथवा क्या करूं? उधर भाभी ख़ामोशी से एकटक अनुराधा को ही देखे जा रहीं थी। दूसरी तरफ अनुराधा अजीब सी हालत में कभी मेरी तरफ देखती तो कभी भाभी की तरफ। उसके चेहरे पर अजीब सी कसमकस तारी हो गई थी और साथ ही लाज की सुर्खी भी दिखने लगी थी। बार बार वो लाज के चलते अपनी नज़रें नीचे कर लेती थी। तभी उसके पीछे सरोज काकी आती हुई दिखी। शायद अनुराधा से कोई जवाब न पा कर वो खुद ही ये देखने के लिए दरवाज़े के पास आ गई थी कि कौन आया है?

"अरे! वैभव बेटा तुम..??" काकी की आवाज़ से मेरी और भाभी की तंद्रा टूटी तो हम दोनों ही चौंक पड़े। उधर काकी की नज़र जब भाभी पर पड़ी तो उसके चेहरे पर एकदम से हैरत के भाव उभर आए। फिर एकदम से सम्हल कर तथा बड़े ही आदर सम्मान के साथ बोली____"अरे! बहू रानी आप यहां? मुझ गरीब की कुटिया के द्वार पर आप आईं ये तो मेरे लिए बड़े ही सौभाग्य की बात है। आइए आइए...अंदर आइए बहू रानी, आप इस तरह बाहर क्यों खड़ी हैं? अनू...ओ अनू....अरे कहां खोई है तू? द्वार पर बहू रानी आईं हैं और तूने इन्हें अंदर आने तक को नहीं कहा? हे भगवान! कितनी बेसहूर लड़की है ये...जाने कब अकल आएगी इसे।"

सरोज मारे हड़बड़ाहट के जाने क्या क्या बोले जा रही थी जबकि उसकी इस हड़बड़ाहट और बौखलाहट पर भाभी के होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई। उधर अनुराधा ने अपनी मां की डांट को सुन कर लाज और घबराहट के चलते अपना सिर झुका लिया था। अपने दोनों हाथों को आपस में मसलने लगी थी वो। इधर मेरी भी हालत कुछ ठीक नहीं थी। मेरी धड़कनें धाड़ धाड़ कर के बज रहीं थी और ज़हन में बड़े अजीब अजीब से ख़याल उभर रहे थे।

"अरे! क्यों डांट रही हैं आप इस मासूम को?" सरोज की बातें सुन कर भाभी ने मुस्कुराते हुए किंतु बड़े प्रेम भाव से कहा____"इसमें इसकी कोई ग़लती नहीं है। हमें यहां देख कर शायद इसे कुछ समझ ही नहीं आया होगा कि क्या करे? मैं इसकी हालत को बखूबी समझती हूं।"

कहने के साथ ही भाभी ने दरवाजे के अंदर क़दम रखा तो उनके पीछे मैं भी धड़कते दिल से अंदर की तरफ चल पड़ा। सरोज को कदाचित स्वप्न में भी उम्मीद नहीं थी कि मेरे साथ हवेली की बहू उसके घर में यूं अचानक आ टपकेंगी। यही वजह थी कि उसे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि वो उनका किस तरह से स्वागत करे? मैंने देखा वो कुछ ज़्यादा ही हड़बड़ाई और बौखलाई हुई नज़र आ रही थी। बरामदे में रखी चारपाई को जल्दी ही उसने आंगन में बिछा दिया और फिर भागते हुए वो अंदर कमरे में गई और फ़ौरन ही एक गद्दा ले आई जिसे उसने बड़े सलीके से चारपाई पर बिछा दिया। अनुराधा बरामदे के अंदर एक कोने में जा कर चुपचाप खड़ी हो गई थी। उसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उसने कोई अपराध कर दिया हो जिसके बोझ तले दबी वो एक कोने में जा दुबकी थी।

"अरे! इस सबकी कोई ज़रूरत नहीं है मां जी।" भाभी ने सरोज को मां जी कहा तो वो एकदम से उछल पड़ी, इधर मैंने भी चौंक कर भाभी की तरफ देखा। जबकि भाभी ने सामान्य भाव से आगे कहा____"मैं कोई मेहमान नहीं हूं जिसके स्वागत के लिए आपको ये सब करना चाहिए। अरे! अनू की तरह मैं भी आपकी बेटी ही हूं तभी तो आपको मां जी कहा है। मेरे मां जी कहने पर आपको बुरा तो नहीं लगा न?"

"य...ये आप क्या कह रही हैं बहू रानी?" सरोज चकित भाव से बड़ी मुश्किल से बोल पाई____"मुझ जैसी एक मामूली औरत को आप मां कह रही हैं। हे भगवान! ये कैसी लीला है तेरी?"

"आप खुद को मामूली क्यों कह रही हैं मां जी?" भाभी ने आगे बढ़ कर सरोज के कंधे पर हाथ रखते हुए बड़े आदर भाव से कहा____"इस धरती पर कोई भी व्यक्ति मामूली नहीं होता। ईश्वर ने सबको समान रूप से बना कर इस धरती पर भेजा है।"

"पर हम तो मामूली ग़रीब लोग ही हैं न बहू रानी?" सरोज ने अपनी हालत को किसी तरह सम्हालते हुए कहा____"आपके सामने हमारी क्या औकात है भला?"

"जहां प्रेम होता है वहां औकात के कोई मायने नहीं होते मां जी।" भाभी ने कहा____"बल्कि मैं तो ये कहूंगी कि सबसे बड़ी औकात प्रेम की ही होती है। उसकी औकात के सामने बड़े से बड़े औकात वाले भी घुटने टेक देते हैं। ख़ैर मेरे देवर ने आप लोगों के बारे में मुझे सब कुछ बताया है और मैं इस बात से बेहद खुश हूं कि ऊपर वाले ने मेरे देवर को इस घर तक पहुंचाया। इस धरती में अगर ये घर न होता और इस घर में रहने वाले लोग न होते तो मेरे देवर का चरित्र कभी अच्छे चरित्र में न बदलता। ये सब प्रेम के चलते ही संभव हुआ है मां जी। जिस घर में प्रेम बसता हो मेरी नज़र में वही सबसे बड़ा औकात वाला है।"

सरोज को कुछ समझ न आया कि वो भाभी की बातों का क्या जवाब दे? उनकी बातों से उसे अब ये पता चल चुका था कि उन्हें मेरे और उसकी बेटी के संबंधों का पता चल चुका है। बरामदे में खड़ी अनुराधा भी भाभी की बातों को सुन रही थी। उसे देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी सांसें उसके हलक में आ कर अटकी हुई हैं। इधर मेरे अंदर भी अजीब सा झंझावात चालू था।

"चिंता मत कीजिए मां जी।" भाभी ने फिर से सरोज काकी के कंधे को हल्के से दबाते हुए कहा____"और मुझे यहां देख कर आपको घबराने की भी कोई ज़रूरत नहीं है। मैंने आपको मां जी इसी लिए कहा है क्योंकि अब आप मेरी मां ही हैं। वैभव ने जब मुझे अपने और अनुराधा के प्रेम संबंध के बारे में बताया तो पहले तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ लेकिन फिर ये सोच कर अत्यंत खुशी हुई कि मेरे देवर का प्रेम के चलते हृदय परिवर्तन हो गया जोकि मेरी नज़र में असंभव था। मैं उस लड़की को अपनी आंखों से देखने के लिए व्याकुल हो उठी थी जिसने वैभव के चरित्र को बदल कर उसके अंदर प्रेम जगा दिया और इतना ही नहीं उसे अच्छा इंसान बनने पर भी मजबूर कर दिया। आज यहां मैं उसी लड़की को देखने आई हूं।"

कहने के साथ ही भाभी ने गर्दन घुमा कर बरामदे में चुपचाप खड़ी अनुराधा की तरफ देखा जिससे वो एकदम से सिमट गई और सिर झुका लिया। मेरी धड़कनें एक बार फिर से तेज़ हो गईं थी। उधर सरोज काकी को जैसे अभी भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या कहे। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वो जो देख सुन रही थी वो सच है या नहीं?

"क्या मैं अपनी छोटी बहन से अकेले में मिल सकती हूं मां जी?" भाभी ने सरोज से मुखातिब हो कर पूछा।

"हां...हां क्यों नहीं बहू रानी।" सरोज ने हड़बड़ा कर जल्दी से कहा।

"मैंने आपको मां जी कहा है।" भाभी ने कहा____"तो अब मैं आपकी बेटी हो गई हूं और बेटी को आप नहीं कहा जाता। अनुराधा क्योंकि उमर में मुझसे छोटी है इस लिए अब से वो आपकी छोटी बेटी है और मैं आपकी बड़ी बेटी। ठीक है ना?"

भाभी ने इतने प्यार और स्नेह से कहा कि सरोज काकी की आंखों से आंसू छलक पड़े। कुछ कहने की उसने कोशिश तो की लेकिन अल्फाज़ उसके होठों से बाहर न निकल सके। भाभी ने जब ये देखा तो उन्होंने मुस्कुराते हुए बड़े स्नेह के साथ अपने हाथों से उसके आंसू पोंछे।

"क्या बड़ी बेटी के मिलने की खुशी में आपकी आंखों से ये आंसू निकले हैं?" फिर उन्होंने सवालिया निगाहों से देखते हुए सरोज से पूछा तो सरोज ने अपने आंचल से अपने आंसू पोंछते हुए जल्दी से हां में सिर हिलाया। उसके होठ कांप रहे थे।

"फिर तो अच्छी बात है मां जी।" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"अब मैं चाहती हूं कि आप अपनी इस बड़ी बेटी को एक बार अपने गले से भी लगा लें। बड़ी बेटी को भी तो अपनी मां से प्यार और स्नेह मिलना चाहिए, है ना?"

सरोज ने हां में सिर हिलाते हुए झट से भाभी को अपने गले से लगा लिया। एक बार फिर से उसकी आंखों से आंसू बह चले। इधर मैं ये सोच कर आश्चर्यचकित हो गया था कि भाभी ने कितनी आसानी से या फिर ये कहें की कितनी समझदारी से सरोज से अपना एक नया संबंध बना लिया था। मैं चकित तो था ही किंतु उनकी समझदारी और उनके प्रेम भाव को देख कर मंत्रमुग्ध भी हो गया था। मुझे एकदम से अपनी भाभी पर बड़ा ही गर्व महसूस हुआ। एकाएक उनकी किस्मत का ख़याल आते ही मेरे अंदर एक टीस सी उभरी जिसके चलते मुझे उनके लिए बड़ा ही दुख महसूस हुआ।

उधर भाभी कुछ देर तक सरोज के गले लगी रहीं फिर अलग हो कर उन्होंने एक बार फिर से सरोज के आंसू पोंछे और कहा____"अपनी इस बड़ी बेटी से वादा कीजिए कि अब से आप रोएंगी नहीं।"

"हां अब नहीं रोऊंगी मैं।" सरोज जबरन मुस्कुराते हुए बोली____"ऊपर वाले ने एक पल में जिसे इतना प्रेम करने वाली बेटी दे दी हो वो रोएगी क्यों? बल्कि वो तो ये सोच कर खुशी से फूली नहीं समाएगी कि उसे दुनिया की सबसे बड़ी खुशी मिल गई है।"

"मुझे भी तो एक मां मिल गई है।" भाभी ने उसी स्नेह के साथ कहा____"अच्छा अब आप वैभव के पास बैठ कर इससे बातें कीजिए। मैं भी अब अपनी छोटी बहन से अकेले में ढेर सारी बातें करने जा रही हूं।"

सरोज ने सिर हिला कर सहमति दी, जिसके बाद भाभी पलट कर अनुराधा की तरफ बढ़ चलीं। उधर अनुराधा ने जैसे ही भाभी को अपनी तरफ आते देखा तो वो और भी ज़्यादा लाज से सिमट गई और साथ ही असहज सी हो गई। ज़ाहिर है उसके अंदर अजीब सी घबराहट भर गई थी। उसकी ये हालत देख कर मुझे मन ही मन हंसी तो आई ही किंतु उस पर प्यार भी बहुत आया। आज काफी समय बाद उसे देख रहा था और सच कहूं तो अब मेरा बहुत जी कर रहा था कि उससे ढेर सारी बातें करूं। पहले की तरह उसे ठकुराईन कह कर छेड़ूं और उसे प्यार से अपने गले लगाऊं लेकिन शायद अभी इसके लिए मुझे इंतज़ार करना ही लिखा था।

भाभी अनुराधा के पास पहुंच चुकी थीं और उसे बड़े ध्यान से देखने लगीं थीं। उनके इस तरह देखने से अनुराधा और भी ज़्यादा छुईमुई नज़र आने लगी। ये देख भाभी बरबस ही मुस्कुरा उठीं। फिर उन्होंने अनुराधा से कुछ कहा जिससे अनुराधा ने सिर उठा कर उन्हें देखा और फिर वो सिर हिला कर अपने कमरे की तरफ बढ़ चली। उसके पीछे भाभी भी चल पड़ीं। इधर मेरी धड़कनें अब ये सोच कर तेज़ हो गईं कि अनुराधा के साथ अकेले में जाने भाभी क्या बातें करेंगी?

"हाय राम!" अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी काकी की आवाज़ से चौंका। उधर उसने मेरी तरफ देखते हुए लेकिन बौखलाए हुए लहजे से कहा____"अनू को अकल न होने की बात कह रही थी मैं और यहां तो मुझमें ही धेले भर की अकल नहीं है।"

"क्या हुआ काकी?" मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"ये क्या कह रही हो तुम?"

"सच ही तो कह रही हूं वैभव।" काकी ने एकाएक परेशान हो कर कहा____"मेरे घर में बहू रानी पहली बार आईं हैं और मैंने अभी तक उन्हें पानी तक नहीं पिलाया। हे भगवान! क्या सोच रही होंगी वो मेरे बारे में? हाय राम! कितनी नासमझ हूं मैं। उन्होंने मुझे अपनी मां तक बना लिया और मैंने उन्हें एक ग्लास पानी तक का नहीं पूछा।"

सरोज काकी की आंखें पलक झपकते ही छलक पड़ीं। ये देख मैं मुस्कुरा उठा। यकीनन इस वक्त वो इस बात के चलते खुद को दोषी मान रही थी और साथ ही उसे बहुत बुरा भी महसूस हो रहा था किंतु मैं समझ सकता था कि ऐसी परिस्थिति में उसे ऐसी औपचारिकता का ख़याल ही नहीं आया था।

"फ़िक्र मत करो काकी।" मैंने उसे आश्वस्त करने के इरादे से कहा____"इसमें तुम्हारी कोई ग़लती नहीं है। वैसे भी मेरी भाभी इतनी अच्छी हैं कि वो इतनी मामूली सी बात के बारे में सोचती ही नहीं हैं।"

"वो सोचें या ना सोचें लेकिन मुझे तो सोचना चाहिए था ना वैभव?" सरोज काकी जैसे अपराध बोझ से दब सी गई थी इस लिए बोली____"मुझे तो अपना धर्म निभाना चाहिए था ना। ऊपर वाला मुझे माफ़ नहीं करेगा अब।"

"अरे! तुम बेकार में ही खुद को इतना कोस रही हो काकी।" मैंने कहा____"मैंने कहा न कि इसमें तुम्हारी कोई ग़लती नहीं है।"

"ये सब तुम मेरा दिल रखने के लिए कह रहे हो वैभव।" काकी ने कहा____"जबकि मेरी अंतरात्मा तो चीख चीख कर मुझसे कह रही है कि मैंने ठीक नहीं किया है। उन्होंने मुझे मां कहा है और मैंने भी उन्हें अपनी बड़ी बेटी मान लिया है। हे भगवान! मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कि इतने बड़े खानदान की बहू ने मुझ जैसी मामूली सी औरत को मां कहा है। ये सब मेरी बेटी के भाग्य से ही हुआ है। ये सब उसी के पूर्व जन्मों के अच्छे कर्मों के फल से हुआ है। मैं तो पापिन हूं। मैंने तो....मैंने तो तुम्हारे साथ...।"

कहने के साथ ही सरोज काकी झट से अपने मुख में हथेली रख कर फूट फूट कर रोने लगी। उसकी आख़िरी बात सुन कर मुझे एकदम से झटका लगा। ज़हन में वो यादें उभर आईं जो मैंने उसके साथ ग़लत कर्म कर के बना ली थीं। एकाएक ही इस बात के चलते मुझे बेहद आत्मग्लानि सी होने लगी। मैं उस वक्त को कोसने लगा जब मैंने सरोज के साथ उस तरह का ग़लत संबंध बनाया था। हालाकि इसमें सिर्फ मेरा ही बस कसूर नहीं था बल्कि सरोज का भी बराबर का दोष था किंतु आज के वक्त में उसकी वजह से हम दोनों ही उस ग़लत कर्म की वजह से खुद को कोस रहे थे और आत्मग्लानि में डूबे जा रहे थे। सरोज की बेटी से मैंने ब्याह की बात पक्की कर दी थी, उस नाते अब वो मेरी होने वाली सास थी जोकि यकीनन मां के समान ही होती है। ये ऐसी बात थी जो अब मेरे ज़मीर को भाले के जैसे चुभने लगी थी।

सरोज काकी फूट फूट कर रोए जा रही थी और मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं कैसे उसे शांत कराऊं? सच कहूं तो उसके समीप जाने की हिम्मत ही न हुई मुझमें। एकदम से मुझे ये वक्त बड़ा ही अजीयत से भरा लगने लगा था जिसके पलक झपकते ही गुज़र जाने की मैं अब बस दुआ ही कर सकता था। ख़ैर कुछ ही देर में सरोज का रोना धीरे धीरे बंद हो गया जिससे मैंने राहत की सांस ली।

"हमारे बीच अतीत में जो कुछ हुआ है।" फिर उसने बिना मेरी तरफ देखे बेहद ही गंभीर भाव से कहा____"मैं चाहती हूं कि हम दोनों ही उसे एक बुरा सपना या बुरा हादसा समझ कर भूल जाएं।"

"तुम्हें ऐसा कहने की ज़रूरत नहीं है काकी।" मैंने भी संजीदा हो कर कहा____"मैं उस मनहूस घड़ी को खुद भी अपने ज़हन से निकाल देना चाहता हूं। वैसे सच कहूं तो मैं निकाल भी चुका हूं। मैं ऊपर वाले का शुक्र गुज़ार हूं कि उसने मुझे अनुराधा से मिलाया और मेरे दिल में उसके प्रति प्रेम पैदा किया जिसके चलते मैं ग़लत कर्मों को त्याग कर अब एक अच्छा इंसान बनने की राह पर चल पड़ा हूं। अब तो बस एक ही ख़्वाईश है कि अनुराधा हमेशा के लिए मेरी पत्नी बन कर मेरे जीवन में आ जाए और मैं उसके साथ एक खुशहाल जीवन गुज़ारने लगूं।"

"अपने साथ आज यहां बहू रानी को ला कर तुमने मुझे पूरी तरह से यकीन दिला दिया है कि तुमने मुझे जो वचन दिया है उसमें कोई फ़रेब नहीं है।" काकी ने कहा____"यकीन मानो उस दिन तुम्हारे वचन देने पर भी मुझे पूरी तरह तुम पर भरोसा नहीं हुआ था, लेकिन अब हो चुका है। अब मुझे पूरी तरह से इस बात का भरोसा हो गया है कि तुम मेरी बेटी के साथ किसी भी तरह का छल नहीं करना चाहते हो बल्कि सच में उसे अपनी पत्नी बनाना चाहते हो।"

"मैंने भाभी को अनुराधा के साथ अपने प्रेम संबंध के बारे सब कुछ बता दिया है।" मैंने सरोज की तरफ देखते हुए कहा____"और उनसे ये भी कह दिया है कि जिस लड़की की वजह से मेरे अंदर बदलाव आया है और जिससे मैं प्रेम करने लगा हूं उसी से ब्याह भी करूंगा। मेरी ये बात सुन कर भाभी ने हमारे रिश्ते को मंजूरी दे दी है। वो अनुराधा से मिलने के लिए व्याकुल थीं इस लिए मैं आज उन्हें यहां लाया हूं।"

"ये बहुत अच्छा किया तुमने बेटा।" काकी ने अधीरता से कहा____"मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरे इस घर में इतने बड़े खानदान की बहू अपने क़दम रखने खुद आएगी। अनू के बापू के जाने के बाद आज मैं पहली बार इतना खुश हुई हूं। तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद वैभव कि तुम बहू रानी को मेरे घर में ला कर मेरे साथ साथ मेरे इस घर को भी धन्य कर दिया है।"

"ये सब तो ठीक है काकी।" मैंने सहसा गंभीर हो कर कहा____"लेकिन एक ऐसी बात भी है जिसके बारे में मैं तुम्हें बता देना ज़रूरी समझता हूं।"

"क...कैसी बात बेटा?" काकी ने असमंजस जैसे भाव से मेरी तरफ देखा।

"वो बात बहुत ही गंभीर है काकी।" मैंने धड़कते दिल से सरोज की तरफ देखते हुए कहा____"हो सकता है कि उस बात को सुन कर तुम परेशान हो जाओ लेकिन पहले मेरी बात ध्यान से सुन लो।"

सरोज काकी मेरी ये बात सुन कर अजीब भाव से मेरी तरफ देखती रह गई। चेहरे पर कई तरह के भाव नाचते नज़र आए उसके। मैंने जब उसके चेहरे पर बात को सुनने की उत्सुकता को देखा तो गहरी सांस ली।

"बात दरअसल ये है कि मेरे पिता जी ने गांव के साहूकार हरि शंकर की बेटी से मेरे ब्याह की बात पक्की कर दी है।" फिर मैंने बेहद ही संतुलित भाव से कहा____"असल में ऐसा इस लिए हुआ कि साहूकार की लड़की मुझसे बहुत पहले से ही प्रेम करती आ रही है और कुछ महीने पहले जो हमारे साथ हादसे हुए थे उसमें उसने अपने ही परिवार के खिलाफ़ जा कर मेरी जान बचाने का कार्य भी किया था। अब जबकि साहूकारों से हमारे रिश्ते फिर से सुधर गए हैं तो आपसी रिश्तों को मजबूत करने के लिए उस लड़की के साथ पिता जी ने मेरा रिश्ता भी तय कर दिया। पिता जी को भी ये पता चल चुका है कि साहूकार की वो लड़की मुझसे प्रेम करती है और उसने प्रेम के चलते ही मेरी जान बचाने का काम किया था। ये सब जान कर पिता जी ने गौरी शंकर से उसकी भतीजी का हाथ अपनी बहू के रूप में मांग लिया है।"

"य....ये क्या कह रहे हो तुम?" सरोज काकी एकदम से चकित हो कर बोली____"हे भगवान! अब क्या होगा? तुम्हारे पिता जी ने खुद साहूकार की लड़की से तुम्हारा ब्याह तय कर दिया है तो अब तुम्हें उससे ब्याह करना ही पड़ेगा। ऐसे में फिर मेरी बेटी का क्या होगा....तुम्हारे वचन का क्या होगा?"

"मेरी पूरी बात तो सुनो काकी।" मैंने एकदम से ही चिंतित हो उठी काकी से कहा____"मैं जानता हूं कि इस बात के चलते मेरे सामने बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो गई है लेकिन यकीन करो, इसके बावजूद मैं अपना वचन निभाऊंगा और अनुराधा से ब्याह करूंगा।"

"म...मगर कैसे?" सरोज सहसा हताश भाव से बोल पड़ी____"भला अब ये कैसे संभव हो सकेगा वैभव? मैं तो पहले ही ये सोच कर चिंतित थी कि मुझ मामूली और ग़रीब औरत की बेटी से दादा ठाकुर अपने बेटे का ब्याह कभी करने का सोचेंगे तक नहीं। वो तो मैंने तुम पर और तुम्हारे वचन देने के चलते भरोसा कर लिया था। अब जबकि तुम्हारे पिता जी ने खुद ही साहूकार की लड़की से तुम्हारा ब्याह तय कर दिया है तो भला वो तुम्हारा ब्याह किसी और लड़की से कैसे करने का सोचेंगे? नहीं नहीं, अब ये मुमकिन नहीं है। मैं अच्छी तरह जानती हूं कि दादा ठाकुर के फ़ैसले के खिलाफ़ जा कर तुम मेरी बेटी से ब्याह नहीं कर सकते। हे ईश्वर! अब क्या होगा मेरी बेटी का?"

कहने के साथ ही सरोज काकी एकदम से हताश और दुखी हो गई। उसकी आंखों से आंसू बह चले। मैं समझ सकता था कि अपनी बेटी के उज्ज्वल भविष्य का सोच कर और साथ ही इतने बड़े खानदान की रानी ना बन पाने की बात सोच कर उसे अब बेहद दुख होने लगा था।

"अरे! तुम बेकार में ही हलकान हो रही हो काकी।" मैंने मजबूत लहजे से उसे समझाते हुए कहा____"तुम्हें ये सब सोच कर दुखी होने की कोई ज़रूरत नहीं है। हां मैं समझता हूं कि परिस्थितियां बेहद ही गंभीर हैं लेकिन तुम्हें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि मैं अनुराधा से प्रेम करता हूं। मैं ये कैसे सहन कर लूंगा कि जिससे मैं प्रेम करता हूं वो मेरे जीवन से हमेशा के लिए दूर हो जाए? नहीं काकी, ऐसा कभी नहीं होगा।"

"मुझे झूठी तसल्ली मत दो वैभव।" काकी ने दुखी भाव से कहा____"दूर दूर तक के लोग जानते हैं कि दादा ठाकुर ने एक बार जो फ़ैसला कर लिया फिर कोई उनके फ़ैसले के खिलाफ़ नहीं जा सकता। मैं ही मूर्ख थी जो उस दिन तुम्हारी बातों में आ गई और तुम्हारे साथ अपनी बेटी के रिश्ते की मंजूरी दे दी। मुझे ये नहीं भूलना चाहिए था कि मैं और मेरी बेटी क्या हैं और दादा ठाकुर के सामने हमारी औकात क्या है।"

"अपने आपको सम्हालो काकी और अपने दिमाग़ को थोड़ा शांत करो।" मैंने फिर से उसे समझाने के इरादे से कहा____"मैं भी ये मानता हूं कि दादा ठाकुर के फ़ैसले के खिलाफ़ कोई कुछ नहीं कर सकता लेकिन तुम ये क्यों भूल रही हो कि इस वक्त तुम्हारे घर में कौन मौजूद है?"

"क...क्या मतलब??" काकी एकदम से मूर्खों की तरह मुझे देखने लगी।

"इस वक्त तुम्हारे घर में दादा ठाकुर की बहू मौजूद है काकी।" मैंने ठोस लहजे में कहा____"और दादा ठाकुर की उस बहू को मेरा और अनुराधा का रिश्ता मंज़ूर है।"

"हां लेकिन बहू रानी भी तो दादा ठाकुर के फ़ैसले के खिलाफ़ नहीं जा सकतीं।" काकी ने अभी भी हताश भाव से कहा।

"ऐसा तुम सोचती हो काकी।" मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"जबकि तुम्हें अभी ये पता ही नहीं है कि हवेली में भाभी की अहमियत क्या है। हां काकी, हवेली में भाभी को हर कोई बड़ा स्नेह देते हैं और उनकी हर खुशी का ख़याल रखते हैं। जब दादा ठाकुर को ये पता चलेगा कि उनकी बहू को तुम्हारी बेटी के साथ मेरा रिश्ता मंज़ूर है और वो चाहती हैं कि मेरा ब्याह अनुराधा से हो तो यकीन मानो दादा ठाकुर को उनकी खुशी के आगे झुकना पड़ जाएगा।"

"क....क्या तुम सच कह रहे हो?" काकी के चेहरे पर आश्चर्य के साथ साथ पहली बार राहत और खुशी के भाव उभरते नज़र आए।

"क्या तुम्हें लगता है कि ऐसी गंभीर परिस्थिति में मैं तुमसे झूठ बोलूंगा?" मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा____"मैं तुमसे जो कुछ भी कह रहा हूं वो सोलह आने सच है काकी। भाभी को ये रिश्ता मंज़ूर है और वो इस बात से बेहद खुश भी हैं कि तुम्हारी बेटी ने उनके देवर को बदल कर एक अच्छा इंसान बनने पर मजबूर कर दिया है। उन्होंने मुझसे खुद कहा है कि वो इस रिश्ते के लिए मेरे साथ हैं और इतना ही नहीं वो अनुराधा से मेरा ब्याह करवाने के लिए खुद दादा ठाकुर से बात करेंगी।"

"अगर ऐसी बात है तो फिर ठीक है बेटा।" काकी ने राहत की गहरी सांस लेते हुए कहा____"लेकिन साहूकार की उस लड़की का क्या जिससे दादा ठाकुर ने तुम्हारा ब्याह तय कर दिया है? क्या वो उस लड़की से फिर तुम्हारा ब्याह नहीं करेंगे?"

"ऐसा नहीं है काकी।" मैंने ठंडी सांस खींचते हुए कहा____"दादा ठाकुर क्योंकि गौरी शंकर को वचन दे चुके हैं और वो खुद भी चाहते हैं कि जिस लड़की ने अपने प्रेम के चलते उनके बेटे की जान बचाई है वो उनकी बहू बने। मतलब कि उस लड़की से मेरा ब्याह होना पक्का है लेकिन उसके साथ साथ अनुराधा से भी मेरा ब्याह होगा ये भी पक्की बात है।"

"तुम्हारा मतलब है कि दो दो लड़कियों से ब्याह करोगे तुम?" सरोज काकी ने एकाएक आश्चर्य से देखा मेरी तरफ।

"शायद यही नियति में लिखा है काकी।" मैंने गंभीरता से कहा____"वैसे अगर गहराई से सोचा जाए तो ऐसा होना भी चाहिए। जैसे मैं अनुराधा से प्रेम करता हूं और चाहता हूं कि वो पत्नी बन कर हमेशा मेरे साथ रहे उसी तरह साहूकार की लड़की रूपा भी तो मुझसे प्रेम करती है। ज़ाहिर है उसके मन में भी यही हसरत होगी। तुम खुद सोचो काकी कि क्या ऐसी लड़की के प्रेम को मुझे ठुकरा देना चाहिए? क्या ऐसी लड़की को मुझे ठुकरा देना चाहिए जिसने अपने प्रेम के चलते अपना सब कुछ मुझे समर्पण कर दिया हो और इतना ही नहीं मेरी जान भी बचाई हो? अगर मैं ही न रहता इस दुनिया में तो क्या कोई कुछ कर लेता?"

"सही कह रहे हो तुम?" सरोज काकी ने गहरी सांस ली____"ऐसी लड़की को ठुकरा देना बिल्कुल भी अच्छा नहीं होगा। तुम्हारी बातें सुन कर तो मुझे भी अब ये लग रहा है कि तुम्हारे जीवन पर सबसे ज़्यादा हक़ उस लड़की का ही है। मैं तो अभी भी ये सोच के हैरत में पड़ जाती हूं कि मेरी बेटी ने तो ऐसा कुछ किया ही नहीं है जिसके चलते तुम उसे प्रेम करने लगे और उसे अपना बनाना चाहते हो।"

"ऐसा तुम्हें लगता है काकी।" मैं अनायास ही मुस्कुरा उठा____"जबकि सच तो ये है कि अनुराधा ने वो किया है जो अब से पहले कोई नहीं कर सका था। उसने मेरे जैसे इंसान का चरित्र बदल दिया है काकी। उसने मेरे जैसे इंसान को एक अच्छा इंसान बनने के लिए मजबूर कर दिया है। हालाकि मैं इसे मजबूर कर देना भी नहीं समझता क्योंकि मैं तो खुशी खुशी पूरी ईमानदारी से अपनी ज़िम्मेदारियां निभाने लगा हूं।"

मेरी बात सुन कर काकी अभी कुछ बोलने ही वाली थी कि तभी हमने देखा कि भाभी अनुराधा के कमरे से निकल कर हमारी तरफ ही आ रहीं थी। उनके पीछे अनुराधा भी थी जो सिर झुकाए और हल्की मुस्कान होठों पर सजाए चली आ रही थी। भाभी के चेहरे पर भी अलग ही तरह के खुशी के भाव नज़र आ रहे थे।

भाभी हमारे क़रीब आ कर काकी से जाने की इजाज़त मांगने लगीं तो काकी हड़बड़ाते हुए बोली कि ऐसे कैसे? अभी तो उसने उनका कोई स्वागत ही नहीं किया है। काकी के बहुत ज़ोर देने पर भाभी ने मुस्कुराते हुए सिर्फ इतना ही कहा कि वो किसी दिन फिर आएंगी और वैसे भी अब तो वो इस घर की बड़ी बेटी हैं इस लिए स्वागत करने की कोई ज़रूरत नहीं है। काकी जब इतने पर भी न मानी तो उन्होंने एक ग्लास पानी पिया और फिर मुझे इशारा कर दरवाज़े की तरफ बढ़ चलीं।

मैंने भाभी और काकी की नज़र बचा कर अनुराधा की तरफ देखा। जैसे ही हम दोनों की नज़रें मिलीं तो वो एकदम से शर्मा गई और अपनी नज़रें झुका ली। मैं उसकी यूं छुईमुई हो गई दशा को देख कर मुस्कुरा उठा और फिर ये सोच कर भाभी के पीछे चल पड़ा कि किसी दिन अकेले में तसल्ली से अपनी अनुराधा से मुलाक़ात करूंगा। कुछ ही देर में मैं भाभी को जीप में बैठाए वापस अपने गांव की तरफ चल पड़ा था।




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भाभी को अनुराधा की सादगी पसंद आ गई है इसलिए भाभी ने सरोज काकी को अपनी मां और अनुराधा को अपनी छोटी बहन मान लिया है सरोज काकी से हुई वार्तालाप से यह तो बात स्पष्ट हो गई कि रागिनी भाभी एक सभ्य सरल और गुणवान है उनकी बातो से उनकी सादगी झलकती है सरोज काकी को भी वैभव ने रूपा के बारे में बता दिया है और वचन दिया है कि वह अनुराधा से शादी जरूर करेगा अब देखते हैं आगे क्या होता है
 

Sanju@

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अध्याय - 99
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मैंने भाभी और काकी की नज़र बचा कर अनुराधा की तरफ देखा। जैसे ही हम दोनों की नज़रें मिलीं तो वो एकदम से शर्मा गई और अपनी नज़रें झुका ली। मैं उसकी यूं छुईमुई हो गई दशा को देख कर मुस्कुरा उठा और फिर ये सोच कर भाभी के पीछे चल पड़ा कि किसी दिन अकेले में तसल्ली से अपनी अनुराधा से मुलाक़ात करूंगा। कुछ ही देर में मैं भाभी को जीप में बैठाए वापस अपने गांव की तरफ चल पड़ा था।


अब आगे....



"ये क्या कह रहे हैं आप?" कमरे में पलंग पर दादा ठाकुर के सामने बैठी सुगंधा देवी हैरत से बोल पड़ीं____"हमारा बेटा एक ऐसे मामूली से किसान की बेटी से प्रेम करता है जिसकी कुछ महीने पहले उसके ही भाई ने हत्या कर दी थी?"

"हमारे आदमियों के द्वारा हमें उसकी ख़बर मिलती रहती थी।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु हमने ख़्वाब में भी ये कल्पना नहीं की थी कि वो मुरारी की लड़की से प्रेम भी करने लगेगा। आज गौरी शंकर से ही हमें ये सब बातें पता चली हैं।"

"अगर ये वाकई में सच है तो फिर ये काफी गंभीर बात हो गई है हमारे लिए।" सुगंधा देवी ने कहा____"हमें तो यकीन ही नहीं होता कि हमारा बेटा किसी लड़की से प्रेम कर सकता है। उसके बारे में तो अब तक हमने यही सुना था कि वो भी अपने दादा की तरह अय्याशियां करता है। ख़ैर, तो अब इस बारे में क्या सोचा है आपने और गौरी शंकर ने क्या कहा इस बारे में?"

दादा ठाकुर ने संक्षेप में सारी बातें बता दी जिसे सुन कर सुगंधा देवी ने कहा____"ठीक ही तो कह रहा था वो। भला कौन ऐसा बाप अथवा चाचा होगा जो ये जानते हुए भी अपनी बेटी का ब्याह हमारे बेटे से करने का सोचेगा कि वो किसी दूसरी लड़की से प्रेम करता है? उसका वो सब कहना पूरी तरह जायज़ है।"

"हां, और हम भी यही मानते हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु हमने उसे वचन दिया है कि अगले साल हम उसकी भतीजी को अपनी बहू बना कर हवेली ले आएंगे। उस लड़की ने अपने प्रेम के चलते क्या कुछ नहीं किया है वैभव के लिए। हमें उसके त्याग और बलिदान का बखूबी एहसास है इस लिए हम ये हर्गिज़ नहीं चाहेंगे कि उस मासूम और नेकदिल लड़की के साथ किसी भी तरह का कोई अन्याय हो।"

"तो फिर क्या करेंगे आप?" सुगंधा देवी की धड़कनें सहसा एक अंजाने भय की वजह से तेज़ हो गईं थी, बोलीं____"देखिए कोई ऐसा क़दम मत उठाइएगा जिसके चलते हालात बेहद नाज़ुक हो जाएं। बड़ी मुश्किल से हम सब उस सदमे से उबरे हैं इस लिए ऐसा कुछ भी मत कीजिएगा, हम आपके सामने हाथ जोड़ते हैं।"

सुगंधा देवी की बातें सुन कर दादा ठाकुर कुछ बोले नहीं किंतु किसी सोच में डूबे हुए ज़रूर नज़र आए। ये देख सुगंधा देवी की धड़कनें और भी तेज़ हो गईं। उनके अंदर एकदम से घबराहट भर गई थी।

"क...क्या सोच रहे हैं आप?" फिर उन्होंने दादा ठाकुर को देखते हुए बेचैन भाव से पूछा____"कोई कठोर क़दम उठाने के बारे में तो नहीं सोच रहे हैं ना आप? देखिए हम आपसे हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते हैं कि ऐसा.....।"

"हम ऐसा कुछ भी नहीं सोच रहे हैं सुगंधा।" दादा ठाकुर ने उनकी बात को काट कर कहा____"बल्कि हम तो कुछ और ही सोचने लगे हैं।"

"क्या सोचने लगे हैं आप?" सुगंधा देवी ने मन ही मन राहत की सांस ली किंतु उत्सुकता के चलते पूछा_____"हमें भी तो बताइए कि आख़िर क्या चल रहा है आपके दिमाग़ में?"

"आपको याद है कुछ दिनों पहले हम कुल गुरु से मिलने गए थे?" दादा ठाकुर ने सुगंधा देवी की तरफ देखा।

"हां हां हमें अच्छी तरह याद है।" सुगंधा देवी ने झट से सिर हिलाते हुए कहा____"किंतु आपने हमारे पूछने पर भी हमें कुछ नहीं बताया था। आख़िर बात क्या है? अचानक से कुल गुरु से मिलने वाली बात का ज़िक्र क्यों करने लगे आप?"

"हम सबके साथ जो कुछ भी हुआ है उसके चलते हम सबकी दशा बेहद ही ख़राब हो गई थी।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ले कर कहा____"सच कहें तो अपने छोटे भाई और बेटे की मौत के बाद हमें कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि कैसे खुद को सम्हालें और अपने साथ साथ बाकी सबको भी। रातों को नींद नहीं आती थी। ऐसे ही एक रात हमें कुल गुरु का ख़याल आया। हमें एहसास हुआ कि ऐसी परिस्थिति में कुल गुरु ही हमें कोई रास्ता दिखा सकते हैं। उसके बाद हम अगली सुबह उनसे मिलने चले गए। गुरु जी के आश्रम में जब हम उनसे मिले और उन्हें सब कुछ बताया तो उन्हें भी बहुत तकलीफ़ हुई। जब वो अपने सभी शिष्यों से फारिग हुए तो वो हमें अपने निजी कक्ष में ले गए। वहां पर उन्होंने हमें बताया कि हमारे खानदान में ऐसा होना पहले से ही निर्धारित था।"

"ये क्या कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी खुद को बोलने से रोक न सकीं।

"हमने भी उनसे यही कहा था।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमारे पूछने पर उन्होंने बताया कि शुरू में हमारे बड़े बेटे पर संकट था किंतु उसे बचाया जाना भी निर्धारित था, ये अलग बात है कि उस समय ऐसे हालात थे कि वो चाह कर भी कुछ न बता सके थे। बाद में जब उन्हें पता चला था कि हमने अपने बेटे को बचा लिया है तो उन्हें इस बात से खुशी हुई थी।"

"अगर उन्हें इतना ही कुछ पता था तो उन्होंने जगताप और हमारे बेटे की हत्या होने से रोकने के बारे में क्यों नहीं बताया था?" सुगंधा देवी ने सहसा नाराज़गी वाले भाव से कहा____"क्या इसके लिए भी वो कुछ करने में असमर्थ थे?"

"असमर्थ नहीं थे लेकिन उस समय वो अपने आश्रम में थे ही नहीं।" दादा ठाकुर ने कहा____"नियति के खेल बड़े ही अजीब होते हैं सुगंधा। होनी को कोई नहीं टाल सकता, खुद विधि का विधान बनाने वाला विधाता भी नहीं। उस समय कुल गुरु अपने कुछ शिष्यों के साथ अपने गुरु भाई से मिलने चले गए थे। उनके गुरु भाई अपना पार्थिव शरीर त्याग कर समाधि लेने वाले थे। अतः उनकी अंतिम घड़ी में वो उनसे मिलने गए थे। यही वजह थी कि वो यहां के हालातों से पूरी तरह बेख़बर थे। नियति का खेल ऐसे ही चलता है। होनी जब होती है तो वो सबसे पहले ऐसा चक्रव्यूह रच देती है कि कोई भी इंसान उसके चक्रव्यूह को भेद कर उसके मार्ग में अवरोध पैदा नहीं कर सकता। यही हमारे साथ हुआ है।"

"तो आप कुल गुरु से यही सब जानने गए थे?" सुगंधा देवी ने पूछा____"या कोई और भी वजह थी उनसे मिलने की?"

"जैसा कि हमने आपको बताया कि जिस तरह के हालातों में हम सब थे।" दादा ठाकुर ने कहा____"उससे निकलने का हमें कुल गुरु ही कोई रास्ता दिखा सकते थे। अतः जब हम उनसे अपनी हालत के बारे में बताया तो उन्होंने हमें तरह तरह की दार्शनिक बातों के द्वारा समझाया जिसके चलते यकीनन हमें बड़ी राहत महसूस हुई। उसके बाद जब हमने उनसे ये पूछा कि क्या अब आगे भी ऐसा कोई संकट हम सबके जीवन में आएगा तो उन्होंने हमें कुछ ऐसी बातें बताई जिन्हें सुन कर हम अवाक् रह गए थे।"

"ऐसा क्या बताया था उन्होंने आपसे?" सुगंधा देवी के माथे पर शिकन उभर आई।

"उन्होंने बताया कि इस तरह का संकट तो फिलहाल अब नहीं आएगा लेकिन आगे चल कर एक ऐसा समय भी आएगा जिसके चलते हम काफी विचलित हो सकते हैं।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"और अगर हमने विचलित हो कर कोई कठोर क़दम उठाया तो उसके नतीजे हम में से किसी के लिए भी ठीक नहीं होंगे।"

"आप क्या कह रहे हैं हमें कुछ समझ नहीं आ रहा।" सुगंधा देवी ने उलझन पूर्ण भाव से कहा____"कृपया साफ साफ बताइए कि आख़िर कुल गुरु ने किस बारे में आपसे ये सब कहा था?"

"हमारे बेटे वैभव के बारे में।" दादा ठाकुर ने स्पष्ट भाव से कहा_____"गुरु जी ने स्पष्ट रूप से हमें बताया था कि हमारे बेटे वैभव के जीवन में दो ऐसी औरतों का योग है जो आने वाले समय में उसकी पत्नियां बनेंगी।"

"हे भगवान! ये क्या कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी आश्चर्य से आंखें फैला कर बोलीं____"ऐसा कैसे हो सकता है भला?"

"ऐसा कैसे हो सकता है नहीं बल्कि ऐसा होने लगा है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"वर्तमान में ऐसा ही तो हो रहा है। जहां एक तरफ हमने अपने बेटे का ब्याह हरि शंकर की बेटी रूपा से तय किया है तो वहीं दूसरी तरफ हमें पता चलता है कि हमारा बेटा किसी दूसरी लड़की से प्रेम भी करता है। ज़ाहिर है कि जब वो उस लड़की से प्रेम करता है तो उसने उसको अपनी जीवन संगिनी बनाने के बारे में भी सोच रखा होगा। अब अगर हमने उसके प्रेम संबंध को मंजूरी दे कर उस लड़की से उसका ब्याह न किया तो यकीनन हमारा बेटा हमारे इस कार्य से नाखुश हो जाएगा और संभव है कि वो कोई ऐसा रास्ता अख़्तियार कर ले जिसके बारे में हम अभी सोच भी नहीं सकते।"

"ये तो सच में बड़ी गंभीर बात हो गई है।" सुगंधा देवी ने चकित भाव से कहा____"यानि कुल गुरु का कहना सच हो रहा है।"

"अगर गौरी शंकर की बातें सच हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"और हमारा बेटा वाकई में मुरारी की लड़की से प्रेम करता है तो यकीनन गुरु जी का कहना सच हो रहा है।"

"तो फिर अब आप क्या करेंगे?" सुगंधा देवी ने संदिग्ध भाव से दादा ठाकुर को देखते हुए पूछा____"क्या आप हमारे बेटे के प्रेम को मंजूरी दे कर गुरु जी की बात मानेंगे या फिर कोई कठोर क़दम उठाएंगे?"

"आपके क्या विचार हैं इस बारे में?" दादा ठाकुर ने जवाब देने की जगह उल्टा सवाल करते हुए पूछा____"क्या आपको अपने बेटे के जीवन में उसकी दो दो पत्नियां होने पर कोई एतराज़ है या फिर आप ऐसा खुशी खुशी मंज़ूर कर लेंगी?"

"अगर आप वाकई में हमारे विचारों के आधार पर ही फ़ैसला लेना चाहते हैं।" सुगंधा देवी ने संतुलित लहजे से कहा____"तो हमारे विचार यही हैं कि हमारा बेटा जो करना चाहता है उसे आप करने दें। अगर उसके भाग्य में दो दो पत्नियां ही लिखी हैं तो यही सही। हम तो बस यही चाहते हैं कि इस हवेली में रहने वालों के जीवन में अब कभी कोई दुख या संकट न आए बल्कि हर कोई खुशी से जिए। आपने हरि शंकर की बेटी से वैभव का रिश्ता तय कर दिया है तो बेशक उसका ब्याह उससे कीजिए लेकिन अगर हमारा बेटा मुरारी की बेटी से भी ब्याह करना चाहेगा तो आप उसकी भी खुशी खुशी मंजूरी दे दीजिएगा।"

"अगर आप भी यही चाहती हैं तो ठीक है फिर।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ली____"सच कहें तो हम भी सबको खुश ही देखना चाहते हैं। मुरारी की बेटी से हमारे बेटे की ब्याह के बारे में लोग क्या सोचेंगे इससे हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। हम सिर्फ ये चाहते हैं कि उस लड़की के प्रेम में पड़ कर हमारा बेटा रूपा के साथ किसी तरह का अन्याय अथवा पक्षपात न करे। हमें अक्सर वो रात याद आती है जब वो लड़की अपनी भाभी के साथ हमसे मिलने आई थी और हमें ये बताया था कि हमारे बेटे को कुछ लोग अगली सुबह जान से मारने के लिए चंदनपुर जाने वाले हैं। उस समय हमें उसकी वो बातें सुन कर थोड़ा अजीब तो ज़रूर लगा था लेकिन ये नहीं समझ पाए थे कि आख़िर उस लड़की को रात के वक्त हवेली आ कर हमें वो सब बताने की क्या ज़रूरत थी? आज जबकि हम सब कुछ जानते हैं तो यही सोचते हैं कि ऐसा उसने सिर्फ अपने प्रेम के चलते ही किया था। प्रेम करने वाला भला ये कैसे चाह सकता है कि कोई उसके चाहने वाले को किसी भी तरह का नुकसान पहुंचा दे?"

"सही कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी ने कहा____"सच में वो लड़की हमारे बेटे से बहुत प्रेम करती है। हमें आश्चर्य होता है कि इतना प्रेम करने वाली लड़की से हमारे बेटे को प्रेम कैसे न हुआ और हुआ भी तो ऐसी लड़की से जो एक मामूली से किसान की बेटी है। आख़िर उस लड़की में उसने ऐसा क्या देखा होगा जिसके चलते वो उसे प्रेम करने लगा?"

"इस बारे में हमें क्योंकि कोई जानकारी नहीं है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"इस लिए हम यही कह सकते कि उसने उसमें ऐसा क्या देखा होगा? जबकि गहराई से सोचें तो हमें एहसास होगा कि उस लड़की में कोई तो ऐसी बात यकीनन रही होगी जिसके चलते वैभव जैसे लड़के को उससे प्रेम हो गया? उसके जैसे चरित्र वाला लड़का अगर किसी लड़की से प्रेम कर बैठा है तो ये कोई मामूली बात नहीं है ठकुराईन। हमें पूरा यकीन है कि उस लड़की में कोई तो ख़ास बात ज़रूर होगी।"

"ख़ैर ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि उसमें कौन सी ख़ास बात है।" सुगंधा देवी ने जैसे पहलू बदला_____"किंतु अब ये सोचने का विषय है कि गौरी शंकर इस सबके बाद क्या चाहता है?"

"इस संसार में किसी के चाहने से कहां कुछ होता है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा_____"हर इंसान को समझौता ही करना पड़ता है और फिर उस समझौते के साथ जीवन जीना पड़ता है। गौरी शंकर को अपनी भतीजी के प्रेम के साथ साथ हमारे बेटे के प्रेम को भी गहराई से समझना होगा। उसे समझना होगा कि पत्नी के रूप में उसकी भतीजी हमारे बेटे के साथ तभी खुश रह पाएगी जब उसकी तरह हमारे बेटे को भी उसका प्रेम मिल जाए। बाकी ऊपर वाले ने किसी के लिए क्या सोच रखा है ये तो वही जानता है।"

"ये सब तो ठीक है लेकिन सबकी खुशियों के बीच आप एक शख़्स की खुशियों को भूल रहे हैं।" सुगंधा देवी ने कहा____"आप हमारी बहू को भूल रहे हैं ठाकुर साहब। उस अभागन की खुशियों को भूल रहे हैं जिसका ईश्वर ने जीवन भर दुख में डूबे रहने का ही नसीब बना दिया है। क्या उसे देख कर आपके कलेजे में शूल नहीं चुभते?"

"चुभते हैं सुगंधा और बहुत ज़ोरों से चुभते हैं।" दादा ठाकुर ने संजीदा भाव से कहा____"जब भी उसे विधवा के लिबास में किसी मुरझाए हुए फूल की तरह देखते हैं तो बड़ी तकलीफ़ होती है हमें। हमारा बस चले तो पलक झपकते ही दुनिया भर की खुशियां उसके दामन में भर दें लेकिन क्या करें? कुछ भी तो हमारे हाथ में नहीं है।"

"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी ने कहा____"क्या कुल गुरु से आपने हमारी बहू के बारे में कुछ नहीं पूछा?"

"क्या आप ऐसा सोच सकती हैं कि हम उनसे अपनी बहू के बारे में पूछना भूल सकते थे?" दादा ठाकुर ने कहा____"नहीं सुगंधा, वो हमारी बहू ही नहीं बल्कि हमारी बेटी भी है। हमारी शान है, हमारा गुरूर है वो। कुल गुरु से हमने उसके बारे में भी पूछा था। जवाब में उन्होंने जो कुछ हमसे कहा उससे हम स्तब्ध रह गए थे।"

"क्या मतलब है आपका?" सुगंधा देवी ने एकाएक व्याकुल भाव भाव से पूछा____"ऐसा क्या कहा था गुरु जी ने आपसे?"

"पहले तो उन्होंने हमसे बहुत ही सरल शब्दों में पूछा था कि क्या हम चाहते हैं कि हमारी बहू हमेशा खुश रहे और हमेशा हमारे साथ ही रहे?" दादा ठाकुर ने कहा_____"जवाब में जब हमने हां कहा तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हम उसका ब्याह अपने बेटे वैभव से कर दें।"

"क...क्या????" सुगंधा देवी उछल ही पड़ीं। फिर किसी तरह खुद को सम्हाल कर बोलीं____"य..ये क्या कह रहे हैं आप?"

"आपकी तरह हम भी उनकी बात सुन कर उछल पड़े थे।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमने भी उनसे यही कहा था कि ये क्या कह रहे हैं वो? जवाब में उन्होंने कहा कि हमारी बहू सुहागन के रूप में तभी तो हमेशा हमारे साथ रह सकती है जब हम उसका ब्याह अपने बेटे वैभव से कर दें। अन्यथा अगर हम उसे फिर से सुहागन बनाने का सोच कर किसी दूसरे से उसका ब्याह करेंगे तो ऐसे में वो भला कैसे हमारे साथ हमारी बहू के रूप में रह सकती है?"

"हां ये तो सच कहा था उन्होंने।" सुगंधा देवी ने गहरी सांस छोड़ते हुए सिर हिलाया____"वाकई में सुहागन के रूप में हमारी बहू हमारे पास तभी तो रह सकती है जब उसका ब्याह हमारे ही बेटे से हो। बड़ी अजीब बात है, ऐसा तो हमने सोचा ही नहीं था।"

"हमने भी कहां सोचा था सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"गुरु जी की बातों से ही हमारे अकल के पर्दे छंटे थे। काफी देर तक हम उनके सामने किंकर्तव्यविमूढ़ सी हालत में बैठे रह गए थे। फिर जब किसी तरह हमारी हालत सामान्य हुई तो हमने गुरु जी से पूछा कि क्या ऐसा संभव है तो उन्होंने कहा बिल्कुल संभव है लेकिन इसके लिए हमें बहुत ही समझदारी से काम लेना होगा।"

"हमारा तो ये सब सुन के सिर ही चकराने लगा है ठाकुर साहब।" सुगंधा देवी ने अपना माथा सहलाते हुए कहा____"तो क्या इसी लिए गुरु जी ने कहा था कि हमारे बेटे के जीवन में दो औरतें उसकी पत्नी के रूप में आएंगी?"

"हां शायद इसी लिए।" दादा ठाकुर ने सिर हिलाया____"उस दिन से हम अक्सर इस बारे में सोचते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि क्या वास्तव में हमें ऐसा करना चाहिए या नहीं?"

"क्या मतलब है आपका?" सुगंधा देवी ने हैरत से देखते हुए कहा____"क्या आप भाग्य बदल देने का सोच रहे हैं?"

"सीधी सी बात है ठकुराईन कि अगर हम अपनी बहू को एक सुहागन के रूप में हमेशा खुश देखना चाहते हैं तो हमें उसके लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा।" दादा ठाकुर ने कहा____"रागिनी जैसी बहू अथवा बेटी हमें शायद ही कहीं मिले इस लिए अगर हम चाहते हैं कि ऐसी बहू हमेशा इस हवेली की शान ही बनी रहे तो हमें किसी तरह से उसका ब्याह वैभव से करवाना ही होगा।"

"लेकिन क्या ऐसा संभव है?" सुगंधा देवी ने बेयकीनी से देखा____"हमारा मतलब है कि क्या हमारी बहू अपने देवर से ब्याह करने के लिए राज़ी होगी? वो तो वैभव को अपना देवर ही नहीं बल्कि अपना छोटा भाई भी मानती है और हमारा बेटा भी तो उसकी बहुत इज्ज़त करता है। माना कि वो बुरे चरित्र का लड़का रहा है लेकिन हमें पूरा यकीन है कि उसने भूल कर भी अपनी भाभी के बारे में कभी ग़लत ख़याल अपने मन में नहीं लाया होगा। दूसरी बात, आप ही ने बताया कि वो मुरारी की लड़की से प्रेम करता है तो ऐसे में वो कैसे अपनी भाभी से ब्याह करने वाली बात को मंजूरी देगा? नहीं नहीं, हमें नहीं लगता कि ऐसा संभव होगा? एक पल के लिए मान लेते हैं कि हमारा बेटा इसके लिए राज़ी भी हो जाएगा लेकिन रागिनी...?? नहीं, वो कभी ऐसा करने के लिए राज़ी नहीं होगी। वैसे भी, गुरु जी ने दो ही औरतों को पत्नी के रूप में उसके जीवन में आने की बात कही थी तो वो दो औरतें वही हैं, यानि रूपा और मुरारी की वो लड़की।"

"आपने तो बिना कोशिश किए ही फ़ैसला कर लिया कि वो राज़ी नहीं होगी।" दादा ठाकुर ने कहा____"जबकि आपको बहाने से ही सही लेकिन उसके मन की टोह लेनी चाहिए और रही गुरु जी की कही ये बात कि दो ही औरतें उसकी पत्नी के रूप में आएंगी तो ये ज़रूरी नहीं है। हमारा मतलब है कि रागिनी बहू का ब्याह वैभव से कर देने के बात भी तो उन्होंने कुछ सोच कर ही कही होगी।"

"ये सब तो ठीक है लेकिन बहू के मन की टोह लेने की बात क्यों कह रहे हैं आप? क्या आपको उसके चरित्र पर संदेह है?" सुगंधा देवी ने बेयकीनी से कहा____"जबकि हमें तो अपनी बहू के चरित्र पर हद से ज़्यादा भरोसा है। हम अच्छी तरह जानते हैं कि हमारी बहू उत्तम चरित्र वाली महिला है।"

"आप भी हद करती हैं ठकुराईन।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ली____"आपने ये कैसे सोच लिया कि हमें अपनी बहू के चरित्र पर संदेह है? एक बात आप जान लीजिए कि अगर कोई गर्म तवे पर बैठ कर भी कहेगा कि हमारी बहू का चरित्र निम्न दर्जे का है तो हम उस पर यकीन नहीं करेंगे। बल्कि ऐसा कहने वाले को फ़ौरन ही मौत के घाट उतार देंगे। टोह लेने से हमारा मतलब सिर्फ यही था कि उसके मन में अपने देवर के प्रति अगर छोटे भाई वाली ही भावना है तो वो कितनी प्रबल है? हालाकि एक सच ये भी है कि किसी को छोटा भाई मान लेने से वो सचमुच का छोटा भाई नहीं बन जाता। वैभव सबसे पहले उसका देवर है और देवर से भाभी का ब्याह हो जाना कोई ऐसी बात नहीं है जो न्यायोचित अथवा तर्कसंगत न हो।"

"हम मान लेते हैं कि आपकी बातें अपनी जगह सही हैं।" सुगंधा देवी ने कहा____"लेकिन ये तो आप भी समझते ही होंगे कि हमारे बेटे वैभव से रागिनी बहू का ब्याह होना अथवा करवाना लगभग नामुमकिन बात है। एक तो रागिनी खुद इसके लिए राज़ी नहीं होगी दूसरे उसके अपने माता पिता भी इस रिश्ते के लिए मंजूरी नहीं दे सकते हैं।"

"हां, हम समझते हैं कि ऐसा होना आसान नहीं है।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ले कर सिर हिलाया____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि अगर हमें अपनी बहू का जीवन खुशियों से भरा हुआ देखना है तो उसके लिए ऐसा करना ही बेहतर होगा। ऐसा होना नामुमकिन ज़रूर है लेकिन हमें किसी भी तरह से अब इसे मुमकिन बनाना होगा। वैभव के जीवन में दो की जगह अगर तीन तीन पत्नियां हो जाएंगी तो कोई पहाड़ नहीं टूट जाएगा।"

"हमारे मन में एक और विचार उभर रहा है ठाकुर साहब।" सुगंधा देवी ने सहसा कुछ सोचते हुए कहा____"हम ये जो कुछ अपनी बहू के लिए करना चाहते हैं उसमें यकीनन हमें उसकी खुशियों का ही ख़याल है किंतु ये भी सच है कि इसमें हमारा भी तो अपना स्वार्थ है।"

"य...ये क्या कह रही हैं आप?" दादा ठाकुर के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे____"इसमें भला हमारा क्या स्वार्थ है?"

"इतना तो आप भी समझते हैं न कि रागिनी बहू हम सबकी नज़र में एक बहुत ही गुणवान स्त्री है जिसके चलते हम उसे इस हवेली की शान समझते हैं।" सुगंधा देवी ने जैसे भूमिका बनाते हुए कहा____"अब क्योंकि वो विधवा हो चुकी है इस लिए हम उसकी खुशियों के लिए फिर से उसका ब्याह कर देना चाहते हैं।"

"आख़िर आपके कहने का मतलब क्या है ठकुराईन?" दादा ठाकुर न चाहते हुए भी बीच में बोल पड़े____"हम उसे खुश देखना चाहते हैं तभी तो फिर से उसका ब्याह का करवा देना चाहते हैं।"

"बिल्कुल, लेकिन उसका ब्याह अपने बेटे से ही क्यों करवा देना चाहते हैं हम?" सुगंधा देवी ने जैसे तर्क़ किया____"क्या इसका एक मतलब ये नहीं है कि ऐसा हम अपने स्वार्थ के चलते ही करना चाहते हैं? ऐसा भी तो हो सकता है कि जब वो दुबारा अपने ब्याह होने की बात सुने तो उसके मन में कहीं और किसी दूसरे व्यक्ति से ब्याह करने की चाहत पैदा हो जाए। क्या ज़रूरी है कि वो फिर से उसी घर में बहू बन कर रहने की बात सोचे जिस घर में उसके पहले पति की ढेर सारी यादें मौजूद हों और इतना ही नहीं जिसे भरी जवानी में विधवा हो जाने का दुख सहन करना पड़ गया हो?"

सुगंधा देवी की ऐसी बातें सुन कर दादा ठाकुर फ़ौरन कुछ बोल ना सके। स्तब्ध से वो अपनी धर्म पत्नी के चेहरे की तरफ देखते रह गए। चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए थे।

"क्या हुआ? क्या सोचने लगे आप?" दादा ठाकुर को ख़ामोश देख सुगंधा देवी ने कहा____"क्या हमने कुछ ग़लत कहा आपसे?"

"नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है।" दादा ठाकुर ने जल्दी ही खुद को सम्हाला____"आपके जो कुछ भी कहा है वो बिल्कुल सच कहा है और आपकी बातें तर्कसंगत भी हैं। हमने तो इस तरीके से सोचा ही नहीं था। हमें खुशी के साथ साथ हैरानी भी हो रही है कि आपने इस तरीके से सोचा और हमारे सामने अपनी बात रखी। वाकई में ये भी सोचने वाली बात है कि अगर हमारी बहू को इस बारे में पता चला तो उसके मन में कहीं दूसरी जगह किसी दूसरे व्यक्ति से भी विवाह करने का ख़याल आ सकता है।"

"और अगर ऐसा हुआ।" सुगंधा देवी ने कहा____"तो सबसे बड़ा सवाल है कि क्या आप ऐसा होने देंगे?"

"क्यों नहीं होने देंगे हम?" दादा ठाकुर ने झट से कहा____"हम अपनी बहू को खुश देखना चाहते हैं इस लिए अगर उसे दूसरी जगह किसी दूसरे व्यक्ति से विवाह करने से ही खुशी प्राप्त होगी तो हम यकीनन उसकी खुशी के लिए उसे ऐसा करने देंगे। हां, इस बात का हमें दुख ज़रूर होगा कि हमने अपनी इतनी संस्कारवान सुशील और अच्छे चरित्र वाली बहू को खो दिया। वैसे हमें पूरा यकीन है कि हमारी बहू हमसे रिश्ता तोड़ कर कहीं नहीं जाएगी। वो भी तो समझती ही होगी कि हम सब उसे कितना स्नेह करते हैं और हम उसे इस हवेली की शान समझते हैं। क्या इतना जल्दी वो हमारा प्यार और स्नेह भुला कर हमें छोड़ कर चली जाएगी?"

"सही कह रहे हैं आप।" सुगंधा देवी ने गहरी सांस ली____"हमें भी इस बात का भरोसा है कि हमारी बहू हमारे प्रेम और स्नेह को ठुकरा कर कहीं नहीं जाएगी। ख़ैर छोड़िए इन बातों को। सब कुछ समय पर छोड़ दीजिए और ऊपर वाले से दुआ कीजिए कि सब कुछ अच्छा ही हो।"

सुगंधा देवी की इस बात पर दादा ठाकुर ने सिर हिलाया और फिर उन्होंने पलंग पर पूरी तरह लेट कर अपनी आंखें बंद कर लीं। कुछ पलों तक उनके चेहरे की तरफ देखते रहने के बाद सुगंधा देवी भी पलंग के एक छोर पर लेट गईं। दोनों ने ही अपनी अपनी आंखें बंद कर ली थीं किंतु ज़हन में विचारों का मंथन चालू था।




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बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
कुलगुरु की बाते सच हो रही है वैभव का दो से ज्यादा औरतों से शादी का योग बन रहा है कुलगुरू ने रागिनी के लिए सही कहा है अगर उसकी शादी वैभव के साथ हुई तो रागिनी भी खुश रहेगी और वैभव भी एक अच्छा इंसान बनकर रहेगा ठाकुर साहब ने सुगंधा से रागिनी के मन की बात जानने के लिए कहा है देखते हैं सुगंधा रागिनी को वैभव से शादी के लिए मना पाएगी या नहीं ???
 
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