दादा ठाकुर को कुल गुरू ने बिल्कुल सही बात कही। रागिनी की शादी वैभव से जरूर होनी चाहिए थी । यह इस फैमिली के लिए अच्छा होता ही पर खुद रागिनी के लिए इससे बढ़कर और कुछ भी अच्छा नही होता।
वो विधवा है पर बहुत ही कम उम्र की है । एक जवान लड़की को पुरी जीवन वैधव्य बनकर अपना जीवन काटना काफी मुश्किल और पीड़ादायक होता है । वो खुबसूरत है , जवान है और सबसे बड़ी बात कि उसे अपने पहले हसबैंड से कोई मातृत्व सुख प्राप्त नही हुआ है ।
अगर वो किसी बच्चे की मां होती तो कम से कम अपने बच्चे के सहारे अपना जीवन काट लेती।
गुरू जी की बात से मै पुरी तरह सहमत हूं । मै जानता हूं कि रागिनी इस नये रिश्ते को फिलहाल तो स्वीकार नही करेगी । वो वैभव को अपना भाई समान समझती है लेकिन असलियत यह है कि वो अबतक अपने दिवंगत पति की यादों को भुला नही पाई है । और यह यादें उसे ताउम्र दुखद करेगी । यदि वो फिर से अपना घर बसा ले तो समय के साथ धीरे धीरे अपने नये संसार मे रम जायेगी।
लेकिन जैसा कि गुरू जी ने कहा कि वैभव के जीवन मे दो पत्नी का सुख लिखा है । और अगर रागिनी उसकी पत्नी बनी तो फिर दूसरी पत्नी कौन ? क्या रूपा दूसरी पत्नी होगी या फिर अनुराधा ?
काफी दुविधाग्रस्त स्थिति बन गई है वैभव की । कहीं रूपा को कुर्बानी तो नही देनी होगी ? रूपा मुस्कराते हुए बिस्तर पर लेटे हुए जिस पंखे को निहार रही थी , कहीं वह पंखा ही उसके मृत्यु का निमित्त साधन तो नही ? यह सोचकर दिल दहल जा रहा है ।

बहुत कठीन सिचुएशन मे आपने इन चारों का जीवन ला खड़ा किया है आपने शुभम भाई ।
बहुत ही खूबसूरत अपडेट।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।