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Trinity

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Boobsingh

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बाप
कल सुबह मुझे फांसी मिल जायेगी और इस दुनिया से मेरा अस्तित्व पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। मैं, अमित कुमार, दुनिया की नजरों में एक कातिल, जिसने अपनी ही पूर्व पत्नी को जान से मार दिया क्योंकि वो मुझ जैसे फेल्ड इंसान के साथ नही रहना चाहती थी और मुझसे तलाक लेने के बाद दूसरी शादी कर रही थी।

मगर किसी ने इसकी असली वजह नही मालूम की आखिर क्यों मैने उसे मारा।

हां, मैने हत्या की, मगर वो हत्या मेरे बेटे की हत्यारन की थी, ना की मेरी पूर्व पत्नी की...

कुसुम मेरी पूर्व पत्नी, जो अपने नाम की तरह ही फूलों के जैसी खूबसूरत और ताजगी से भरी थी, हम दोनो एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। पहली नजर का प्यार था हमारा। मेरे पिता का मंझोले स्तर का कारोबार था और घर में पैसों की अधिकता तो नही पर कोई कमी भी कभी नही रही, शहर के नामचीन लोगों के शुमार थे मेरे पापा, और मैं उनका इकलौता लड़का। कुसुम के पिता एक सरकारी नौकरी में थे, जिनकी सैलरी तो बहुत नही थी, पर अहोदा ऐसा था जिसमे ऊपरी कमाई की कोई कमी न थी।

मेरे पिता कारोबारी जरूर थे पर उनको कारोबार साफ सुथरे तरीके से ही करना था और ऐसे ही संस्कार मुझे भी दिए गए थे, वही कुसुम के घर में बस पैसे से मतलब होता था, सही या गलत से नही। फिर भी चूंकि मेरे घर में पैसे की कोई कमी न थी तो उसके घर वालों को भी कोई ऐसी दिक्कत नही आई हम दोनो के रिश्ते से।

हम दोनो ही पढ़ाई में अच्छे और कैरियर ओरिएंटेड थे, एक ओर जहां मुझे कारोबार में ही दिलचस्पी थी, कुसुम को सरकारी नौकरी ही करनी थी, मैने भी उसके सपनो को पूरा करने में कोई आनाकानी नही की और घर में बोल दिया की शादी दोनो के सैटल होने के बाद ही होगी, जिसपर दोनो परिवार मान गए।

इधर मैंने अपना पिता से अलग अपना कारोबार अपने एक दोस्त के साझे में खोला, जिसे पिताजी ने मना किया था की साझे का काम बाद में चलता नही है, पर हम जवानी के जोश में थे, उस समय सब सही ही लगता है, कुणाल मेरा दोस्त जिसके साथ कारोबार शुरू किया था, वो भी मेरे और कुसुम के साथ ही कॉलेज में पढ़ता था। खैर धीरे धीरे हमारे कारोबार ने पांव जमाने शुरू कर दिए और उधर कुसुम का सिलेक्शन राज्य की नौकरी में अपर डिविजन क्लर्क का हो गया, उसके पिता ने अपने संबंधों का फायदा उठा कर कुसुम की पोस्टिंग हमारे ही शहर में करा दी। अब हमारी शादी की बातें होने लगी और 2 महीने बाद की डेट निकल आई। ये 2 महीने हम दोनो को काटने मुश्किल होते जा रहे थे, पर चूंकि मेरा कारोबार नया ही था और मुझे उसे जमाने के लिए बाहर के चक्कर लगाने पड़ते थे, तो हमारा मिलना कम ही जो पाता था। खैर आखिर शादी का दिन भी आ ही गया और हमारे मिलन की रात भी।

बेड को फूलों से सजाया गया था जिसके बीचों बीच कुसुम सी कुसुम लाज की गठरी बनी बैठी थी, हालांकि इसके पहले भी हम कई बार एकांत में मिल चुके थे, पर दोनो का ही फैसला था की अपनी शारीरिक भूख हम शादी के बाद ही शांत करेंगे। मैने उसके घूंघट को हटाया, अंदर चांद का दीदार हुआ, कितनी ही बार देखा उसे मैंने मगर आज वो मांग में मेरे नाम का सिंदूर लगाए मेरे पहलू में बैठी थी, मैने आगे पढ़ कर उसका चेहरा अपने हाथ में लिया और उसके मस्तक पर एक चुम्बन अंकित कर दिया, उसने अपनी आंखे बंद कर रखी थी, जिसे देख मैने बारी बारी दोनो पलकों को भी चूम लिया। उसने आंखे खोली और मुझे देख एक बार फिर से शर्मा गई।

अब मैने पहल करते हुए उसके मांगटीका को उतार दिया और अब मेरे हाथ उसकी नाथ को खोल रहे थे, आहिस्ता से नाथ उत्तर कर साइड में रख कर मेरे होंठ उसके लराजते लबों पर कस गए और हम एक दूसरे के मुंह का स्वाद लेने लगे। तभी मैंने अपनी जीभ को उसके मुंह में धकेल दिया और वो मजे से उसको चूसने लगी। कुछ मिनटों के बाद हम दोनो हांफते हुए अलग हुए, अब मैंने उसकी साड़ी का पल्लू पकड़ कर साड़ी उतरनी चाही जिसमे उसने खुद उठ कर मेरी मदद की, अब कुसुम मेरे सामने पहली बार ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी थी, उसका वो सपाट पेट और उसकी गहरी नाभी मुझे ललचा रही थी, मैने उसे कमर से पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और अपनी जीभ उसके पेट के कुएं में डाल दी, मेरे ऐसा करते ही वो चिहुंक उठी, और अपने कांपते हाथों से मेरे बालों को सहलाने लगी। मैने अपना एक हाथ ऊपर ले जा कर उसके स्तनों को बारी बारी से मसलने लगा और दूसरे हाथ उसके नितंबों का मर्दन कर रहे थे। उसके शरीर में एक जबरदस्त जुंबिश होने लगी और उसका अपने पैरों पर खड़ा होना मुश्किल हो रहा था, वो मेरे कंधों पर झूल सी गई, और मैने आहिस्ता से उसे वापस पलंग पर बैठा दिया, अब मेरे सामने उसका ब्लाउज था जिसके हुकों को में खोलने लगा, और थोड़ी देर के बाद उसके उन्नत स्तन एक मरून रंग को ब्रा में कैद मेरी आंखों के सामने थे, मैने दोनो स्तनों की घाटी में अपनी जीभ फेर दी जिससे कुसुम एक बार फिर से कांप गई, फिर मैंने उठ कर अपने कपड़े निकालने वाला ही था की कुसुम ने मेरा हाथ पकड़ कर नीचे कर दिया और खुद से मेरे कुर्ते के बटन को खोलने लगी, और कुर्ते को उठा कर मेरे शरीर से अलग कर दिया नीचे मेरा कसरती बदन उसके सामने था, सिक्स पैक तो नही बनाए थे, पर नियमित व्यायाम से पेट के हिस्से में चर्बी नही थी, अब कुसुम ने मेरे पैजामे का नाड़ा खोल दिया और वो पलंग पर धराशाई हो गया, मैने पैर से उसे किनारे करते हुए कुसुम के पेटीकोट को खोल दिया, अब हम दोनो ही एक दूसरे के सामने पहली बार आधे नंगे खड़े थे। दोनो हैरत में थे और दोनो के ही बदन कांप रहे थे, एकदम से हम दोनो एक दूसरे की बाहों में समा कर पलंग पर लेट गए। थोड़ी दी बाद जब दोनो कुछ संयत हुए तो फिर से हमारे होंठ और जीभ एक दूसरे के से खेलने लगे और मैने उसकी ब्रा के हुक खुल दिए, और पहली बार उसके स्तनों को मैने महसूस किया, क्या मुलायम और चिकने थे वो, और निप्पल के आस पास हल्का दानेदार जैसे एक बड़ी पहाड़ी के चारों ओर छोटे छोटे टीले होते हैं। फिर हम एक दूसरे से थोड़ी दूर हुए और मेरी नजर उसके स्तनों पर गई, गुलाबी रंग के माध्यम आकार के 2 उन के गोले जैसे जिनके ऊपर भूरे रंग के निप्पल, मैने फिर से उनको हाथ में लिया और हल्के से दबा दिया, उसके मुंह से सिसकारी निकली, मैने एक स्तन को मुंह में भरा और कुसुम ने का कर मेरे बालों को पकड़ लिया, मेरी जीभ से उसके निप्पल को चाटा जिससे कुसुम जोर से चिहुंकी और मेरे सर को का कर अपने स्तनों पर दबाने लगी, मेरा एक हाथ अब उसकी पैंटी के ऊपर से उसकी योनि के टटोल रहा था और उसका भी एक हाथ मेरे लिंग को छूने लगा, दोनो की उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी, और मैने अपने हाथ और पैर की मदद से उसकी पैंटी खोल दी, वो भी मेरे अंडरवियर को खींच रही थी तो मैंने उसे भी निकल फेका। अब हम दोनो पूर्ण नग्न रूप से एक दूसरे से चिपक कर लेट थे और शरीर में झुरझुरी एक बार फिर से चालू हो गई, थोड़ा सामान्य होने पर कुसुम अपने हाथ से मेरे लिंग को पकड़ कर अपने योनि पर लगाने लगी, फिर मैंने उसे पीठ के बल लेटा कर उसकी टांगे खोल दी, और उसकी बालों रहित सुंदर गुलाबी योनि को देखने लगा, कुसुम ने कहा, बाद में देखना पहले अंदर डालो। मैं मुस्कुराते हुए आगे को झुक कर अपने लिंग को उसको योनि से लगाया, मगर खुद से अंदर नही कर पाया, तब कुसुम ने ही हाथ बढ़ा कर उसे से किया और मुझे इशारा अंदर धकेलने का इशारा किया, मैने अपनी कमर से जोर लगाया और थोड़ा सा लिंग अंदर गया और दोनो ही कराह उठे, फिर थोड़ी देर बाद कुछ राहत मिलने पर हम दोनो ने जोर लगा कर लिंग को पूरा योनि के अंदर कर दिया, दोनो में ही कुछ उत्तेजना आने लगी और कमर को हिला कर अंदर बाहर करने लगे दोनो को मजा आने लगा और करहाते हुए हम दोनो एक दूसरे फिर से चूमने चाटने और काटने लगे 10 मिनिट के बाद मुझे लगा की मेरा निकलने वाला है, और मेरे धक्के खुद ब खुद तेज होने लगे, उधर कुसुम भी चरम पर पहुंचने लगी और कुछ ही देर में दोनो ने एक दूसरे को भिगो दिया।

आज हमने एक दूसरे को पा लिया था, आज हम दोनो ही पूर्ण हो चुके थे। आगे हमारी जिंदगी हंसी खुशी चलने लगी, धीरे धीरे दोनो ही संभोग के नए आयामों को सीखने और अजमाने लगे। काम भी अच्छा चलने लगा और जिंदगी खुशियों से भर गई, 6 महीने बाद कुसुम ने खुशखबरी दी हम सबको की वो मां बनने वाली है, अब मेरे पैर ही जमीन पर नहीं पड़ते थे। लगता था की दुनिया में मैं ही सबसे ज्यादा खुशकिस्मत हूं। खुशियां लगातार बढ़ती ही जा रही थी जिंदगी में। धीरे धीरे 9 महीने बीत गए और एक रात कुसुम को लेबर स्टार्ट हो गया, हम सब आनन फानन में उसको ले कर हॉस्पिटल गए और 2 घंटे के इंतजार के बाद नर्स ने आ कर मुझे अब तक की सबसे बड़ी खुशी की खबर सुनाई की में बाप बन गया हूं।
नर्स मुझे कमरे में ले गई जहां कुसुम अपने गोद मे लेता कर हमारे बच्चे को स्तनपान करवा रही थी, मैं भरी हुई आंखों से दोनो को देख कर मुस्कुरा रहा था, कुसुम भी मुझे देख कर लगभग रो ही पड़ी और मुझे पास बुला कर हमारे बच्चे को मेरी ओर बढ़ाया, मैने उसे गोद में लिया, वो बच्चा मेरा अंश, कुसुम की तरह कोमल.. और क्या चाहिए होता है किसी को भी जिंदगी से.. खुशियां ही खुशियां..

जिंदगी में सब सही चल रहा था,बच्चा 1 साल के करीब का हो गया था, कुसुम ने ऑफिस जाना शुरू कर दिया था, और उसकी देखभाल मेरी मां ने करनी शुरू कर दी थी, उनको बच्चे की ग्रोथ में कुछ समस्या दिखने लगी। और वो उसे डॉक्टर को दिखाने ले गई, डॉक्टर ने कुछ टेस्ट्स करवाए और उसको सेलेब्रल पाल्सी से ग्रसित बताया। मतलब उसका शारीरिक विकास बहुत कम होगा, उसके आगे उसके अंगों में दर्द होगा और धीरे धीरे वो शिथिल होने लगेंगे और एक दिन बिस्तर ही उसका सब कुछ होगा, पूरी उम्र के लिए, साथ ही साथ पूरी जिंदगी दवाई और फिजियोथैरेपी भी चाहिए होगी। सब कुछ लूट चुका था हम दोनों का, दोनो ही अपने बच्चे के भविष्य को लेकर चिंतित थे, भाग दौड़ करके कई डॉक्टरों का पता किया जो इसका इलाज करते थे, बच्चे को ले कर कहां कहां नही गए, पर हर जगह से एक ही जवाब मिला, "अब कुछ नही कर सकते, अब देर हो चुकी है।"

ये जवाब हम दोनो के सीने को छलनी करता था, कुसुम अब शायद स्तिथि से समझौता करने लगी थी, उसका उतावलापन काम होता जा रहा था, पर मैंने हार नही मानी थी, मैं अब भी अपने बच्चे के लिए हर दरवाजा खटखटाने को तैयार था, हर चौखट लांघने के लिए तत्पर था। मेरा पूरा ध्यान अपने बच्चे पर ही था, कारोबार मैने पूरी तरह से कुणाल को एक तरह से सौंप दिया, और उसने भी मेरे हालतों को समझा। कुसुम अपनी नौकरी पर ज्यादा ध्यान देने लगी थी, और हम मां बेटे बच्चे की सेवा में लगे थे।

धीरे धीरे हालत ऐसे ही चलते रहे, पर कुसुम अब बच्चे के प्रति कुछ उदासीन होती जा रही थी, कई बार दबी जुबान में मुझे भी इस पर ज्यादा ध्यान न देने को बोला, वो अब अगला बच्चा चाहती थी, मगर मैं इसके लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं था, मेरा पूरा ध्यान हमारे बच्चे पर ही लगा रहता था हर समय। कुछ दिन बाद कुसुम ने भी इस बारे में बात करना कम कर दिया, उसका काम भी काफी बढ़ गया था और अब उसके कुछ कार्य बाहर के भी करने होते थे जिसके कारण उसको दौरों पर भी जान होता था। हम दोनो की शारीरिक के साथ साथ मानसिक दूरी भी बढ़ने लगी।


इसी बीच मुझे एक और झटका लगा जब मुझे पता चला की कारोबार में बहुत बड़ा नुकसान हुआ है और अब कुणाल ने हाथ खड़े कर दिए, उसका कुछ अलग काम भी था वो अब उसमे ही पूरा ध्यान लगना चाहता था, मजबूरी वश हम वो कारोबार समेटना पड़ा, वो भी अच्छा खासे नुकसान के साथ। पापा ने मुझे तब उनके कारोबार को देखने कहा, और मैं कुछ समय उधर भी देने लगा।

कुछ दिन के बाद कुसुम का एक और दौरा आया और वो बाहर चली गई, मुझे शाम को किसी का फोन आया और उसने पास के शहर में एक नए आए डॉक्टर के बारे में बताया जो इस बीमारी का।इलाज कर सकता था। मैने अगली सुबह ही वहां के लिए निकल गया, और डॉक्टर की क्लिनिक में उनसे मिला, मगर नतीजा वही निकला जो सब जगह होता था। वहां से निकल।कर में एक रेस्टुरेंट में बैठा खा रहा था। मेरी टेबल एक खंभे के पीछे थी, और सामने लगे शीशे से मुझे रेस्टुरेंट का दरवाजा दिख रहा था। कुछ समय बाद मुझे कुसुम अंदर आते दिखी, उसे देख मैं उसके पास जाने वाला ही था की उसके ठीक पीछे कुणाल था, और दोनो ने हाथ पकड़ रखा था, मुझे कुछ अजीब सा लगा इसीलिए मैंने उनसे छिप कर रहना ही सही समझा। किस्मत से दोनो खंबे के आगे वाली टेबल पर बैठ गए, अब हम एक दूसरे को देख तो नहीं सकते थे, पर मैं उनकी आवाज जरूर सुन सकता था।

कुणाल: कुसुम तुम कब उससे तलाक ले रही हो, हम कब तक ऐसे छुप छुप कर मिलते रहेंगे?

कुसुम: मैने एक वकील से बात की है, 10-12 दिन में वो केस फाइल कर देगा।

कुणाल: जल्दी करो यार, मैने तुम्हारे कहां पर कारोबार में उससे धोखा दिया, पर अब तुम देर कर रही हो।

कुसुम: वो तलाक के लिए जरूरी था, वरना किस बिना पर तलाक लूं उससे?

ये सुनते ही मेरे पैरों से जमीन खिसक गई, मेरे आंखों के सामने अंधेरा छा गया। दिमाग सुन्न हो गया। उनके जान के बाद मैं चुपचाप से अपने शहर में आ गया, देर रात तक कुसुम भी वापस आ गई। अभी भी हमारे बीच खामोशी पसरी थी। रात को सोने के पहले मैंने ही उससे बात करनी शुरू की, और सीधे पूछा क्या तुम मुझसे अलग होना चाहती हो?

कुसुम, आश्चर्य से: तुम्हे किसने कहा?

"सुना मैने कहीं से"

"तो क्या करू? तुम तो एक ऐसी आशा का दामन पकड़ कर बैठे हो जो कभी पूरी नहीं होने वाली, क्यों नही बच्चे की चिंता करना छोड़ रहे हो तुम?"

"कैसे? हमारा बच्चा है, और तुमने उसे 9 महीने अपने पेट में रखा तुमको कोई अहसास ही नही रह गया उसके लिए? मां ही तुम आखिर?"

"हां मां हूं, पर एक औरत भी हूं, और जिंदा हूं, वो आज नही तो कल मर जायेगा तो क्या मैं जीना छोड़ दूं, जैसे तुमने छोड़ा? तुमको तो अब उसके सिवा कुछ दिखता ही नही, ना अपनी पत्नी, ना अपने मां बाप, अरे उनकी भी उम्र हो गई है, पर उनसे भी उसकी सेवा करवा रहे हो, जबकि हमे उनकी सेवा करनी चाहिए। मेरा तो कुछ ध्यान ही नही तुमको? आखिरी बार कब हम दोनो गले भी लगे थे ये याद है क्या तुमको?"

मैं उसकी बातें सुन कर हैरत में था कि एक मां कैसे ऐसा सोच सकती है। मैने फिर से एक कोशिश की उसकी ममता को जगाने की, मगर कोई फायदा नही हुआ। फिर मैने उसे सारी बातें बताई जो मैने खुद सुनी थी। बहुत मनाया उसे कि साथ ही रहे और तलाक न ले, मगर वो पत्थर बन चुकी थी उसी रात वो अपने मायके चली गई। मां पापा ने भी बहुत कोशिश की मगर कोई नतीजा नहीं निकला। मैं रात को उसके मायके भी गया, मगर उसके घर वालों ने मुझे बहार से ही टरका दिया, शायद वो भी उसी के साथ थे।

खैर 5 दिन बाद मुझे तलाक का नोटिस मिल गया, अब मेरा मन भी उसके प्रति उखड़ चुका था, और मैने भी अलग ही होने का फैसला किया। मगर नोटिस में बच्चे की कस्टडी भी मांगी गई थी, जो मैं नही देना चाहता था। जिसके लिए मैं फिर एक बार उससे मिला कर इसके बारे में मानने की कोशिश की, तो उसके वकील ने जवाब दिया की बिना कस्टडी डिमांड किए उनका केस नही बनेगा। मैने म्यूचुअल कॉन्सेंट की भी बात की, मगर उसमे उनको मेरी जायदाद में से कुछ नही मिलता।

2 महीनों में हम अलग हो गए, कोर्ट में भी मैं उसके लगाए हर इल्जाम को मंजूर किया, बस अपने बच्चे की कस्टडी के लिए मिन्नतें करता रहा, उसकी, उसके वकील की, और जज के तो पैरों में लोट गया। मगर हाय ये हमारा अंधा कानून जिसको ये लागत ही नही की कोई बाप भी अपने बच्चे का ध्यान रख सकता है, उसके लिए अपना सब कुछ लुटा सकता है। खैर इतनी मिन्नते करने के कारण महीने में 1 दिन मिलने की इजाजत ही मिली। और वो मेरे बच्चे को ले कर चली गई। आज मेरी आंखे नही मेरा दिल रो रहा था। बार बार बच्चे का चेहरा, और जाते हुए उसकी आंखों की नमी मुझे रुला रही थी।

1 महीने बाद, कल मैं अपने बच्चे को देख सकता हूं, कोर्ट द्वारा निर्धारित दिन कल ही था। आज मेरी आंखो में नींद नही थी, उसके लिए मैंने नए कपड़े और उसके फेवरेट कार्टून का सॉफ्ट टॉय लिया था। सुबह 7 बजे ही मैं तैयार हो कर कुसुम के मायके पहुंचा, पर वहां मेरे बच्चे की लाश मेरे आगे कर दी गई। उसके बेजान शरीर को देख कर ही लागत था की उसकी देख भाल तो छोड़ो, किसी को उसकी सुध भी नही थी इस घर में। मैने मुंह से जोर की चीत्कार निकली, जिसे सुन कर कुसुम आई और मुझसे कहने लगी, "चुपचाप से इसकी लाश ले कर चले जाओ और कोई तमाशा मत करो, आज मेरी कुणाल से सगाई है और घर में मेहमान है।

इतना सुनते ही मैंने एक जोर का थप्पड़ उसे लगाया, "कुतिया जब अपने बच्चे का ध्यान नही रख सकती थी तो क्यों इसकी कस्टडी ली, मैंने इतनी मिन्नते की थी, मेरे पास रहता तो देखभाल तो होती। तुम लोगों ने तो शायद खाना भी नही दिया लगता है।

कुसुम: तो दे कर भी क्या करती? अच्छा हुआ कल का मरता आज ही मर गया। अब कुणाल को भी कोई प्रोब्लम नही होगी।

बस इतना सुनते ही मेरे हाथ उसकी गर्दन पर गए और कसते ही चले गए, कुछ ही पलों में उसका शरीर मेरे हाथो में झूल रहा था.....


तो आप क्या समझते हैं, मैं क्या हूं? अपनी पूर्व पत्नी का हत्यारा?


हां जनता हूं आप में से ज्यादातर लोग मुझे ही गलत ठहराएंगे, क्योंकि बाप था न मैं, जिससे लोग बस इतनी ही आशा रखते हैं की वो अपने बच्चों को इस दुनिया में लाने का कारण बने और बस बात खत्म, वो बच्चे को 9 महीने अपने पेट में नही रखता तो उसका कोई हक नही की अपने बच्चे की देखभाल करने का, उससे प्यार करने का, आखिर अपने बच्चा का बाप ही हूं ना मैं.....
Riky007 कहानी बहुत ही अच्छी थी एक बाप के मनोदशा को अच्छे से दिखलाया आपने और कुसुम की हत्या तो नही पर उस जैसी औरत को दुबारा मां बनने का कोई हक नही था.....पर जो भी हुआ एक तरह से ठीक ही था क्युकी उसको कुसुम और कुणाल दोनो ने धोखा दिया था.....♥️♥️
 
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sakuna

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Actress Avneet Kaur ki chudai ki kahani...



Mera naam Vayu hai Or me ek Royal Family se belong karta hu isliye mere pass paiso ki koi kami nhi hai or uper se mujhe stokes share ki bahut Acchi knowledge hai isliye Mene wha apne kuch crore Rupe lagaye or jab wo multiple times badh gaye to mene socha kyu Na Maldives ghum kar Aayi kuch din Ye soch kar me apne ghar walo se btakr Raat ko hi Maldives pahuch jata hu or resort me Sabse phle jakar Sota hu or subha uthkr Jab swimming pool ki trf Ata hu to samne ka nzara dekh kr meri Aakhe fati reh jati hai kyuki Samne meri fevrt Avneet Kaur kdhi ❣️ hoti h wo bhi Lingerie phen kar jisko dekh kar mera 8 inch land kadha ho jata hai or me apne Mann me bolta hu aaj isko chod kar rahuga ye soch kar me uske waiter ko apne pass bulata hu or uske hath me 4 Noto ki gaddi dete hua usse bolta hu tujhe mera ek kaam karna hai bs Avneet ka sara saman chupana hai mobile bhi Waiter meri baat sunkar foran ha kar deta hai kyuki jitne paise mene usko diye the wo apni puri life me bhi nhi kma sakta tha isliye wo jaldi se jata h or Avneet ka saman chupa deta hai idher jab ye baat Avneet ko pta chalti hai to bahut hangama hota h but uska saman nhi milta jiski wajah se Avneet bahut preshan ho jati h or is moke ka fayda utha kar me uske pass jata hu or usko apna naam batate hua direct bolta hu mujhe tumko chodna hai btao kitne paise logi Avneet phle to meri baat sunkar mujhe bura bhala bolti h jisko sunne ke baad me usse bolta hu dekho Avneet tumhara saman chori ho gya hai or tum star hogi India me yha in logo ke liye ek normal ladki ho isliye tumko inko paise dene to padege isliye jab tak tum yha ho me tumhara sara karcha utauga or India jakar 40 Crore duge Meri baat sunkar Avneet shocked ho jati hai or kuch soch kr mujhse bolti hai thk hai Ye sabd Uske muh se sunkar me bahut jyada khus hota hu or usko hug kar leta hu jisko dekh kar avneet dheere se mere kaan me bolti hai or abhi thoda wait karlo Raat me puri tumhari hi hu ye bolkar uske face par ek smile Aajati hai jisko dekh kar me bhi usko ek smile deta hu or sabse phle Me Avneet ka room cancel karwa deta hu or uski Waiter ko bula kar usko paise dete hua bolta hu mujhe aaj raat tak apna room full decorated cahiye idher meri baat sunkar wo smile karta hai or okay bolkar chala jata hai or me Avneet ko lekar shopping karane chala jata hu taki raat me wo mujhse khusi khusi chude !
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idher jaise hi Avneet mere land ko apne muh se nikalti hai me usko bed par lita deta hu or apni t-shirt ko nikal fekta hu or uski dono tange chodi karke uski chut par thukta hu or jaise hi apne land ko uski chut me dalne ko hota hu waise hi Avneet mujhse bolti hai
avneet- please aram se dalna mene Aaj Tak itna mota land nahi kiya hai
Avneet ki baat sunkar mere face par smile Aajati hai or me apne land ko uski chut par rub karne lagta hu jiski wajah se uske Akhe band ho jati hai or uske muh se ahhh ki awajee nikalne lagti hai or idher me moka dekh kar ek dhakka Marta hu jiski wajah se uske muh se ek ahhhhhhh mummy mar gayi ki awaj nikalti hai or sath me mujhse bolti hai please aise hi raho bahut dard ho rha hai idher uski baat sunkar me aise hi uske uper let jata hu or usko kiss karne ke sath sath uski chuchiyo ko bhi dabane lagta hu jiski wajah se wo thodi der me garam ho jati hai jiska moka dekh kar me ek ke baad ek dhakka maar deta hu jiski wajah se Mera pura land uski chut me chala jata hai jiski wajah se uski jaan nikal jati hai or wo mere niche jhatpatane lagti hai jisko dekh kar me uski Chuchiyo ko jaldi jaldi dabane lagta hu or sath me usko kiss bhi karne lagta hu but phir bhi is baar Avneet 8 se 10 mint leti hai garam hone me ! Isliye Avneet jab puri tarah garam ho jati hai to wo niche se ek dhakka Marti hai jisko dekh kar me bhi dheere dheere dhakke marne lagta hu or sath usko kiss bhi karne lagta hu jisko dekh kar me bhi usko kiss karne lagta hu or sath me Avneet se bolta hu ahhhh meri jaan mene kabhi sapne me bhi nahi socha tha teri chut itni tight hogi ye bolkar me apni puri jaan lagakar ek dhakka Marta hu jiski wajah se uski ek bahut jor se cheek nikalti hai but is baar wo bhi niche se ek dhakka Marti hai or aise hi hamari chudai puri raat chalti hai jisme me puri raat usko alag alag position me chodta hu or jitne din bhi Maldives me rehta hu daily raat me Avneet ki chudai karta hu
Tania Malik waise bhut din se apki stories ko follow kar raha hun apki story bhut achi hai ye story unexpected thi maja aya but thoda story main bhut sare plot ko ap use kar skte the
otherwise story achi hai
10/06
Ye mera personal opinion hai otherwise I'm a fan of your writing
 
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sakuna

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TEACHING TO MY SON END UP IN THE BED.

My name is Kavitha. Working in a high school. My son studying in the first year of his BSc. Biology in a college. He is a little below-average student. My husband works in a factory.
Our life was going happily, and the lockdown came. My son attended the online classes, I was also busy with my online classes. After a week I took off from work for some days. One fine morning I went to my son's room. He was sitting frustrated, I asked him if everything ok. He told me no mom, my science teacher had no brain, she took a lesson on breast and breast cancer for one hour, and she asked me to submit the project work on the subject.
I asked him, why can't you do it, he told me, I didn't understand what she explained. Then I asked him what is his doubt. He asked what is breast. I laughed at him and asked don't you know about breasts? He told me no, I laughed again at him, and he went mad and turn his face against me and mumbled like crying. Then I took pity on him and told him I will explain to him. Then he asked me will you teach me the lesson. I said yes I will teach you.
Then I went near to him and sat on the bed with him. I took my phone and searched for some breast pictures,


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I showed him the variety of breasts and explained to him about the breast. He eagerly looked at the breasts on the screen. He took the time to get an idea of the size and the shapes. I explained to him how the doctor will check for cancer.
I told him the doctor will touch all over the breast and check for the clatter of anything forming inside the breast, and they will check the nipples if they have discharging puss. He understood little by little and asked some questions, I cleared the doubt. He asked what are nipples. I showed him the nipples in the photo and explained how they looked in real. After an hour of teaching, I was getting going, and he suddenly asked me, mom, you teach me excellently, can you arrange for me to see some breasts in real? I was shocked by his question. I told him I can't do it for real, he went sad and he started to beg me to arrange one for him. I told tomorrow I will try. Then he felt happy about my answer and came to me and hugged and kissed me, telling me you are too sweet mummy, you should take a class in our college. I kissed them in return I went to my room.
The following day I waited till my hubby left for work. After he left, I went to my son's room. He was sitting on the bed eagerly waiting for me. I went to him and told him, to look son what going to happen here should remain between us only, you promise me you won't tell anyone. He promised me he won't tell anyone. Then I removed my blouse and showed him my bra-cladding boobs to him.

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He saw my boobs widely opening his eyes and he came closer to me. And looking at my boobs he said thanks to me and suddenly he pressed my boobs like pressing horn in the autos. I was shocked and shivered, I slapped him on his back and asked him why he touched me. I picked up my blouse and went to the door. He heard his sobbing sound and turn over his side and saw he started to cry, I told him you asked for me a breast, and I showed it, why are you crying, he answered why can't I touch that, I said it's like that only. He again asked sorry and told me he won't touch me again. Then halfway through putting my blouse back on I returned to him. I swept the tears from his face and sat beside him. He asked me why my boobs look so small like you showed in the picture, some of the pictures have big breasts. I told him it will vary from one person to another, and I told him I have a bigger one only, not a small one. He didn't accept that and told me, again and again, mine is small. I was frustrated by his statement so in the anxiety I opened my bra and removed my pallu, showed him my fully rounded boobs and told him to take a good look, mom's boobs are really big. He came near me and yes mom, really you got enormous breast
and his eyes went to my nipples and he gave me an ugly look on my nipples. I asked him what is it. He told your nipples are not ok, there is something not ok. I teach him about cancer I am afraid something is there in my nipple. He went and came with a mirror, and showed my nipples and told me, my nipple had a clatter like something in the tip. I took my nipples and searched for them, but I can't see anything. I asked him to show it. He came near me and he touched my boobs, his soft fingers pressed my nipples and sent waves throughout my head to toe.

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I asked him ti check properly, a there was any clatter in my boobs, he searched and pressed all over my boobs he said nothing is there mom, and one final time he pressed my nipples ans pulled them up. I lifted my body and I cummed inside me, I got shy and I turn my back to him and fell on the bed.
The next two days I was in confused status, he is my son, how could I get my orgasm by his touching? I am totally mad at myself about cummed by his touch and decided not to allow him to touch me. But my mind is not accepted that, I like his touch and thinking of him, I touched my pussy, and I was already wet. After long thinking, my mind drove me to his room. I went and sat in the bed, I asked him to check my nipples once again, and I removed my blouse and cover it with my blouse.

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He came behind me and caressed my boobs, I dropped my pallu and stood half-naked with him. He madly caressed my boobs and started to smooch simultaneously, I was becoming horny and wet, he was busy in my boobs and I felt his dick pressing over my ass. His hands moved all over my boobs and went down to my navel. I pulled out my saree and petticoat and stood stark naked with him. I send my hands back and pulled his shorts down and his throbbing dick hit my ass by springing out. I felt his hot dick between my ass crack, he pressed further deep inside my ass cheeks.

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I asked him to sit on the bed, and he went and sit on the edge I went near him, and vigorously I pulled his head on my boobs, and he sucked me like and baby, his hands caressed and tamed me to his touches. He pulled me on him and he lay on the bed. His both legs were down on the floor, and I was between them and laid myself on him. My pussy mound pressed his dick under me, his hands rugged and pressed my ass cheeks as he tore it from my body. The pleasure slowly build in my whole body and I fully went under his control. I searched his dick and took it under our thighs, I pressed it and his pre cum came out from his dick. I climbed on him by laying my legs on both sides of him and pushed his dick inside me. He filled me fully inside my pussy. My precum made it slide easily inside my pussy. He is the little thicker side than his daddy.
I took his both hand and placed them on my both boobs, pressing his hand on my boobs. I laid my hands on the bed on both sides of him and started to pound him, moaning louder I rammed my pussy on his pole, the sound filled the room, he grunting and breathing heavily lifting his body on me and moving his hands from my boobs to my ass. I teased him by swaying my nipples on his lips and he tried to catch my boobs with his mouth and got one in his mouth, bites my nipple and sucked. We both madly fucked and he splashed his thick cum inside me, and hold me on him for a long time.
Story is fabulous and i enjoyed story and this story is better than your first story
It ended up my hand on my dick 🤣
I was enjoying while reading
Otherwise
10/08
 

RAJ_K_RAVI

IT'S NOT JUST A NAME, IT'S A BRAND™🎃🎃
Supreme
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Story is fabulous and i enjoyed story and this story is better than your first story
It ended up with my hand on my dick 🤣
I was enjoying while reading
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Thanks for your compliments
 

Boobsingh

Prime
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sauda..

kehte hain ki ham insaan kabhi na kabhi kisi na kisi ke sath sauda karte hi hain.. un sab me se kuchh saude hame fayda karwate hain to kuchh hamse hamara sab kuchh chhin lete hain.. yeh kahani bhi eze hi ek saude ki hai..

jatin ayush kripal and rahul chaaro bachpan ke dost the..unhone apna school clg and yaha tak ki first job ka safar bhi ek sath tay kia tha.. waqt guzarne ke sath charo ki life ne alag turn lia and charo dost jov business etc. me lag gaye..

ek din sab fir se ikattha hue for a reunion.. charo dost apne life me successful ban chuke the and khush bhi the fir se ek dusre se mil kar.. charo dost me sab se jyada ajib nature ayush ka tha.. woh bhoot pret etc. me manta tha.. un sab chizo me manna koi ajib chiz nahi thi par jo Chiz ajib thi woh ye thi ke wo para normal world se connect hone ke lie ajib ajib rituals kia karta tha.. uske vaki ke dost use is baat ke lie kai bar daant chuke the par us par koi asar nahi hota tha..

is bar chaaro dost ek lake side villa me ruke hue the.. chaaro dosto ne pura din party ki daru pi sab kia.. par unhe nahi malum tha ki unka yeh is saal ka reunion unke lie kafi darawna and life badalne wala hoga..

khair raat ke 11baj chuke the and chaaro dost daru ke nashe me lake ke kinare ret par bethe hue the.. tino dost apni dosti ke purane lamho ko yad kar rahe the par ayush aaj kuchh had se jyada ajib behave kar raha tha.. woh bar bar apni shoulder bag me dekhta and muskurata..

jatin : kya bat hai bhai aaj esa kya laya hai apne is bag me ki tu bar bar use dekh kar yu ajib tarha se muskura raha hai.. kahi hamari hone wali bhabhi ki photo to nahi laye na sath me. 😂😅😝..

ayush ne ek devil smile ke sath apna woh bag khola and usme se ek chiz bahar nikali jo ki ek ajib si murti thi jo ki thodi darawni lag rahi thi..

kripal : abe ab yeh kya chiz hai and tu yeh sab kaha se utha lata hai bhai..

ayush : yeh ajib si murti ek zariya hai dusri dunia ke logo aatmao se baat karne ka unhe ia dunia me laane ka.. and yeh murti mujhe ek antique shop me mili hai hai na kafi khubsurat..

ayush ko esi har chiz bhale hi hadse jyada darawni ho ya ajib ho khusburat hi lagti thi and woh khud bhi yahi chahta tha ki uske dost bhi esi chizo ko khubsurat samjhe..

tino dost uski sari adato se bahot hi achhi tarha se wakif the.. unhone kuchh ba kehna hi behtar samjha par unke facial expressions se saf saf pata chal raha tha ki unhe ayush ki bato par zara sa bhi yakin nahi hai aur yeh bat ayush bhi samajh chuka tha..

ayush : mujhe pata tha ki tum sabme se koi bhi meri baat ka yakin nahi karega par mai is bar apni baat sabit karke hi rahunga.. itna keh kar woh utha and unse dur ja kar beth gaya and ajib si painting ret par banane laga.. usne woh painting banane ke baad us murti ko circle ke bicho bich apne samne rakha and zor zor se ajib bhasha me mantra padhne laga..

uske tino dost use dekh rahe the.. un sab ko yehi lag raha tha ki ayush ka yeh experiment uske pehle wale baki ke experments ke jese hi flop ho jayega par wo sab shayad bahot bure aur khaufmak tarike se galat sabit hone wale the..

thodi der bad ayush chup ho gaya and betha raha.. use kuchh na karta ya bolta dekh uske dost thoda gabhra gaye.. tino himmat karke uske pas gaye and jese hi unme se ek ne hath badha kar use chhua to woh behosh ho kar gir gaya..


tino dost kafi gabhra gaye kyu ki kabhi bhi esa kuchh nahi hua tha jabbhi ayush esi bakwas chize karta tha.. unhone mehsus kia ki ayush ka sharir barf jesa thanda ho gaya hai and uska body temperature bhi kam hota ja raha hai.. unhone jaldi se use uthaya and room me le gaye and use kambal odha kar leta dia and fire place me aag bhi jala di jisse ayush ko thand kam lage..

khair raat ke 2.30baj rahe the and tino dost bhi kambal odhe so rahe the.. jese hi ghadi me 2.45ka time hue ayush ki body me halchal honi shuru ho gai.. pehle uski body ko kai sare jhatke lage and uska sharir shant ho gaya par thodi hi der me woh achanak utha kar beth gaya..

uski aakhe ab badal chuki thi.. jaha pehle uski eyes insano ki tarha normal thi ab uski eyes puri tarha se red and black rang ki dikh rahi thi.. woh khada hua and room ka door khol kar bahar chala gaya.. thodi der bad jab jatin ki nind thodi khuli to usne ayush ko gayab dekha usne baki dosto ko jagaya and woh sab use villa me dhundane lage par woh villa me kahi nahi mila..

achanak hi jatin ko kuchh idea aya and woh usi jagah ki tarf bhaga jaha par pehle ayush behosh hua tha.. jab tino dost waha pahoche jo scene unhone dekha usse unki fat ke hath me aa gai.. ayush ek lash ki ungli chaba kar kha raha tha jese 5star hotel ki best dish kha raha ho.. jese hi use ehsas hua ki koi uske pas khada hai usne us lash ko dur fenka and unsab ki tarf lapka.. usne ek sath tino par hamla kar dia and sab ko gira dia and jatin par toot pada.. usne jatin ke gale par apne daant gada die and bite kar ke maas ka tukda kaat kar chaba chaba kar khane laga..

yeh scene dekha kar kripal and rahul dar ke mare rone lage.. jatin ghayal avastha me ab marne ki kagar par tha.. kripal ne himmat ki and use rahul ki madad se dur le aya and apne chhote se bag me se first aid kit nikal kar uske ghav par patti badh kar uska ilaaj karne ki koshish karne laga.. tino samajh chuke the ki aaj unka samna sach me kisi shaitani rooh se hua hai.. tino soch hi rahe the ki kya kia jaye tabhi kripal ko ayush ki ek ajib si kitaab ka khayal aya jise woh har waqt apne sath rakhta tha.. kripal ne woh kitab dhundi and usme problem ka solution dhundane laga.. ek page par use shayad solution mil bhi gaya par woh kafi mushkil tha..

khair usne woh ritual perform karne ka faisla kia.. usne pehle toh us jagah ke chaar kone par candles jalai and fir room me aa kar room me lage shishe par apne khoon ko girane laga and sath me ajib mantra bhi badbadane laga..

thodi der bad ek kaala saya uske pichhe hawa me dikhai dene laga usi pal shishe me ek shabd likh kar aya SAUDA.. matlab saaf tha ki kripal ko us shaitan ke sath sauda karna hoga.. thodi der tak dono ke bich na sunai dene wali bat chit chalti rahi..

abhi raat ke 3.30baj rahe the.. kripal bola, "woh shaitan ayush ko chhod dene ke lie maan gaya hai par uske sath mujhe sauda karna pada hai.. hamare pas yaha se nikalne ke lie adha ghanta (30minutes) hai jaldi karo warna ham kabhi yaha se jinda nahi nikal payenge.."

chaaro dost ne jaldi se apna sara saman pack kia and room se nikal gaye..

in room..
jese hi chaaro room se nikle woh shisha normal ki jagah poora kala pad gaya and kuchh der bad usme kripal ko koi ghasit kar le ja raha ho wesa scene dikhai dene laga.. kripal chikh raha tha par uski chikh us shishe ki dusri taraf nahi sunai de rahi thi..

in the car..
jese hi chaaro dost car me beth kar villa se bahar nikle kripal and ayush ki aakhe ek sath ek pal ke lie laal rang ki ho gai jese shaitan ki aakhe ho and fir normal ho gai.. ayush shaitani awaz me bola, "sauda pura hua"😈😈😈


kya tha woh sauda?
Fully bouncer kuch palle nahi pada pahle kewal aayush ajib tha jo ajib chije karta tha and achanak se kripal bhi usi sense ka banda nikla jo apne bag me ajib si kitaab rakhta hai.....last me sab rayta ban ke fail gaya kaun kya kiya 😑😑
 

Boobsingh

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निःशब्द

आधी रात हो रही है, लेकिन ये शहर... लगता ही नहीं कि ये शहर कभी सोता भी है। और ऊपर से इस होटल की कागज़ जैसी पतली पतली दीवारें! लगता है कि ट्रैफिक का सारा शोर बिना किसी रोक टोक अंदर आ जाता है... पूरे का पूरा।

लेकिन उस शोर में भी, बगल की कोठरी से बच्चे के रोने की दबी घुटी आवाज़ मंगल को साफ़ सुनाई दे रही थी। उधर बच्चा रो रहा था, और इधर मंगल की ममता!

“क्या हो गया रानी... तुम्हारे लिए आये हैं, लेकिन तुम तो... कहीं और ही खोई हुई हो!” अपनी नशे से भारी हुई आवाज़, और चुलबुल पाण्डे वाले फ़िल्मी अंदाज़ में उस विशालकाय आदमी ने मंगल से कहा।

क्या कहती मंगल? वो दो पल चुप रही, और उतने में ही उस आदमी ने मंगल का चेहरा, उसकी ठोढ़ी से पकड़ कर अपनी तरफ़ घुमा कर, उसको अपने और करीब खींच लिया। आदमी की साँसों से उठती सस्ती शराब और सिगरेट की दुर्गन्ध से मंगल का मन खराब हो गया। उसको उबकाई सी आने लगी।

इतनी रात हो जाने के बावज़ूद मंगल को लग रहा था कि जैसे आज की रात बीत ही नहीं रही है! उसने आदमी की घड़ी पर नज़र डाली तो देखा कि रात का एक बजा है!

‘इन आदमियों को नींद नहीं आती?’

फिर उसको स्वयं ही अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया, ‘क्यों आएगी नींद? पैसा दिया है... वो भी चलते रेट से अधिक! अपने पैसे का मोल तो वसूलेगा ही न!’

बात उचित थी, लेकिन ये ‘पैसा वसूलवाना’ मंगल को भारी पड़ रहा था।

उस आदमी से कुछ पलों के लिए ही सही, लेकिन पीछा छुड़ाने की गरज़ से मंगल ने पूछा, “पानी लाऊँ साहब?”

पानी?” आदमी ने यह शब्द बड़ी हिकारत से बोला... जैसे कैसी निम्न, निकृष्ट वस्तु के बारे में पूछ लिया गया हो उससे!

उसकी आँखें नशे, नींद, और घुटी हुई हँसी के कारण बमुश्किल ही खुल पा रही थीं। तरंग में था वो पूरी तरह!

बहकती, भारी आवाज़ में वो बोला, “पानी नहीं रानी... अपनी प्यास बुझती है या तो शराब से,” उसने अपनी आँखों के भौंह को उचका कर बोतल की तरफ़ इशारा किया, “...या फिर तुम्हारे शबाब से...”

और यह बोल कर वो ऐसे मुस्कुराया कि जैसे उसने कोई सुपर-हिट डायलॉग बोल दिया हो।

मंगल का मन पहले ही घिनाया हुआ था, और इस बात से उसको और भी घिन आ गई। वो चुप ही रही।

“क्या रानी! तुम तो हर बात पर चुप हो जाती हो!” आदमी ने उसको छेड़ते हुए शिकायत करी, “अच्छा... चलो... ज़रा एक पेग और बनाना तो!”

मंगल जैसे तैसे उठी; तीन बार उस आदमी के भारी भरकम शरीर के तले कुचल कर मंगल का शरीर थकावट से चूर हो गया था, और उसका अंग अंग दुःख रहा था! जब वो उठ रही थी, तब उसके कपड़े उसके शरीर से सरक कर ऐसे गिरने लगे कि जैसे पानी बह रहा हो। वो हाथों से ही अपने शरीर पर पड़े इक्का दुक्का कपड़ों को सम्हाल कर अपनी नग्नता छुपाने लगी।

आदमी को मंगल की हालत देख कर जैसे अपार आनंद आ गया हो। वो ‘हूँ हूँ’ की घुटी हुई आवाज़ में हँसने लगा।

मंगल का मन जुगुप्सा से भर गया, ‘और शराब... और जानवरपन! वैसे भी इनकी हवस में कौन सी कसर बाकी रह जाती है कि शराब की ज़रुरत पड़ती हैं इन जानवरों को!’

आदमी को शराब का गिलास पकड़ाते हुए उसको बच्चे के रोने की आवाज़ धीमी पड़ती हुई लगी।

‘कब तक रोवेगा? नन्ही सी जान है! थक न जाएगा? कब से तो हलकान हुआ जाता है मेरा लाल! छः महीने का कमज़ोर बालक! ऊपर से बीमार... पिछले चार घण्टे से अकेला है।’ मंगल का मन रोने लगा।

उसके दिल में आया कि एक बार इस आदमी से विनती कर ले; आधा घण्टा अपने बच्चे के लिए छुट्टी पा ले।

‘इस गैण्डे को नहीं आती बच्चे के रोने की आवाज़?’

लेकिन क्यों ही आएगी? उसका बच्चा थोड़े ही न है! रोता भी तो वो रुक रुक कर है! कभी रोता है, तो कभी नहीं! ऊपर से वो इस कमरे से अलग, एक दूसरी कोठरी में लेटा हुआ है, जिसका दरवाज़ा बंद है। कमज़ोर सा बच्चा, जिसके रोने की आवाज़ भी इतनी धीमी है कि बगल में रोवे, तो ठीक से न सुनाई दे! गर्भावस्था की पूर्ण अवधि से पूर्व हुआ बच्चा कमज़ोर नहीं होगा तो क्या बुक्का फाड़ के रोवेगा?

‘इस आदमी के भी तो बच्चे होंगे! वो भी रोते होंगे! उनके रोने की आवाज़ सुन कर ऐसे ही पड़ा रहता होगा क्या ये? कोई दया बची हुई है, या सब ख़तम ही हो गई है!’

फिर से बच्चे के रोने की आवाज़ आई। धीमी आवाज़... लेकिन कुछ था उस आवाज़ में जो मंगल के दिल में शूल के समान धंस गया। माँ है वो... बच्चे के रोने से उसकी ममता का हनन तो होना ही है!

मंगल ने सुनने की कोशिश करी, लेकिन पुनः आवाज़ नहीं आई।

‘शायद थक कर सो गया... लेकिन बिना दूध पिए कैसे सो जाएगा? कब तो पिलाया था उसको दूध... कमज़ोर, बीमार बच्चा... ठीक से पीता भी तो नहीं जब से बीमार हुआ है! छातियाँ दूध से भरी हुई हैं... लेकिन वो तो बस कुछ बूँदें ही पी कर सो गया! ...भूखा भी होगा, और गन्दा भी! ...टट्टी पेशाब में पड़े पड़े अपनी माँ की राह देख रहा होगा।’

अपने बच्चे की हालत का अनुमान लगा कर मंगल की आँखें डबडबा आईं।

‘ऐसे ही क्या कम रोया है? कब तक रोवेगा?’

उसकी आँखों में बनने वाले आँसू, बस ढलकने को हो आए।

“अरे रानी,” आदमी को इतने नशे में भी मंगल के चेहरे पर उठने वाली भंगिमा की समझ थी, “इतनी खूबसूरत आँखों में आँसू? ...इनको सम्हाले रखना! देखो... कहीं ढलकने न लगें!”

आदमी की बेहूदा बातें सुन कर मंगल का दिल हो आया कि थूक से उसके पैसों पर! लेकिन ऐसे कैसे होता है? उसने अपना हृदय दृढ़ कर के जैसे तैसे अपने आँसुओं को सम्हाला। मंगल की यह चेष्टा आदमी को बड़ी भली लगी।

“हाय रानी! क्या अदा है तुम्हारी! कोई कैसे न मर जाए इस पर?”

कह कर वो किसी हिंसक पशु के समान मंगल पर झपटा, और एक ही गति में उसको अपनी ओर खींच लिया। लज्जा छुपाने को कुछ शेष न बचा था, तो मंगल ने अपनी बाँह से अपने आँसू छुपा लिए। कम से कम ममता के करुण क्रंदन पर तो उसका ही अधिकार है! उसको तो नहीं बेच दिया उसने इस हवसी के हाथ!

“अरे अरे मेरी रानी! रोवो मत... आई हेट टीयर्स पुष्पा!” कहते हुए उस आदमी के होंठों पर एक विजयी मुस्कान थी।

मंगल ने आँसू पोंछने की कोशिश करी, लेकिन वो रुकने के बजाए और भी बहने लगे।

“देख... तेरे इस अनोखे हुस्न के लिए ही तो इतने रुपये दिये हैं मैंने!” उसने मंगल को समझाया, “कोरी लौंडिया को ढाई सौ देता हूँ! लेकिन तुम...” उसने प्रशंसा में कहा, “तुम तो दुधारू गाय हो रानी... पैसे वसूलना होता, तो दोनों थन पीता रात भर! फिर भी मैंने एक थन छोड़ दिया तेरे बच्चे के लिए!” उसने एहसान जताते हुए कहा, “कोई और सेठ होता तो तुमको रौंद डालता... तो मेरी जान... मौज करो! क्या रोना धोना लगा रखा है?”

मंगल को आदमी की बातें सही लगीं। ठीक ही तो कह रहा है! यह विचार आते ही मंगल को लगा कि आदमी कहीं उससे नाराज़ न हो जाए। घोर आर्थिक विपत्ति में गिन चुन कर यही तो एक सहारा बचा है उसके पास!

मंगल ने बातें बनाने की फ़िल्मी कोशिश करी, “साहब... आपका प्यार पा कर अपने घरवालों की नाइन्साफ़ी याद हो आई!”

बात बनावटी थी, लेकिन वो सुन कर आदमी खुश हो गया।

उत्तेजना के मारे उसके मंगल का एक स्तन दबोच लिया। कोमल से अंग पर उसकी सख़्त और खुरदुरी उँगलियों का दबाव मंगल के लिए असहनीय हो गया। लगा कि अब उनमें से दूध नहीं, खून ही निकलने लगेगा! मंगल का मन हुआ कि उसका हाथ परे झटक दे... लेकिन साढ़े तीन सौ रुपये बहुत होते हैं!

साढ़े तीन सौ रुपए! समझो आज लाटरी लग गई थी उसकी! आज से पहले केवल तीन रोज़ ही तो सोई है वो गैर-आदमियों के नीचे! और हर बार बमुश्किल दो सौ ही मिल पाए थे उसको! कोरी कंवारी लड़कियों को ढाई से तीन सौ मिलते हैं - और वो तो एक बच्चे की माँ है! ऐसा होटल वाले ने उसको समझाया था।

लेकिन आज...!

अब इसमें से पचास तो ये होटल वाला ही रख लेगा। झोपड़ी का दो महीने का किराया बकाया ही है। घर-मालिक से मिन्नतें कर कर के वो जैसे तैसे अपने सर पर छत रखे हुए है! वो उदार हृदय आदमी है! लेकिन वो भी कब तक बर्दाश्त करेगा? निकाल देगा घर से, तो वो कहाँ कहाँ भटकेगी? ऊपर से बच्चे की दवा पर रुपया पानी की तरह बह रहा है! तिस पर अपना पेट भरना, नहीं तो बच्चे का पेट कैसे भरेगा? और अगर वो खुद सूखी, निर्जीव सी दिखाई देगी, तो ये डेढ़ - दो सौ जो इस ‘काम’ के मिल रहे हैं, वो भी मयस्सर नहीं होने वाले!

लिखा था मंगल ने अपने भाई को - लिखा क्या, समझिए मिन्नतें मांगी थीं - कि अपनी बहन की लाज रख लो और ले जाओ यहाँ से! उस चिट्ठी को लिखे तीन महीने हो गए! न तो भाई आया, और न ही उसकी तरफ से एक शब्द! क्या पता, वो उस पते पर हो ही न? या फिर सोच रहा हो कि एक नई बला अपने सर क्यों ले? उसका अपना परिवार है। यह नई मुसीबत क्यों सम्हालेगा वो? अपने ससुराल से दुत्कार ही दी गई है, तो वहाँ से कोई मतलब ही नहीं। कुल जमा यहीं रहना है मंगल और उसके बच्चे को!

भीषण विपत्ति थी, लेकिन मंगल के दिल में हिम्मत थी। सोची थी कि कोई काम ढूँढ लेगी। बच्चा आने से पहले भी तो करती ही थी काम। उसकी झोपड़ी के पास ही ऊँची ऊँची अट्टालिकाएँ थीं। संपन्न घर... और कितने सारे घर! कहीं तो काम मिलेगा ही न? लेकिन उन अट्टालिकाओं के दरबान! उफ़्फ़! वो इस पशु से भी अधिक हिंसक थे! इसने तो फिर भी उसके शरीर का मूल्य दिया है! वो तो नज़रों से ही...

शुरू-शुरू में कुछ दिन पड़ोसियों से सहारा मिला, लेकिन वो भी कितना करते? और क्यों करते? मजबूर अकेली औरत... पिछले कुछ हफ़्तों से उसको अपनी झोपड़ी के बाहर रोज़ नए नए चेहरे दिखाई देने लगे। वो उनकी नज़रें समझती थी... तिस पर ये छोटा सा बच्चा... और उसकी अपनी ज़रूरतें! कब तक सहती? कब तक संघर्ष करती वो?

आदमी खुश तो हो गया था, लेकिन उसको मंगल की रोनी सूरत देख कर ऊब होने लग गई थी।

“ए रानी! हमको खुश करो! ये रोना वोना मत करो! रोने और पकाने के लिए बीवी है घर में...” आदमी लड़खड़ाती ज़बान में, शिकायती लहज़े में बोला, “इधर भी वही रोना राग नहीं सुनना हमको!”

बात सही थी। आदमी उसके पास मनोरंजन के लिए आया था।

‘मालिक का मन तो रखना ही पड़ेगा न!’

मंगल मुस्करा दी। जबरदस्ती ही सही! लेकिन आदमी के मुँह से आती भीषण दुर्गन्ध असहनीय थी! वो जब जब भी खुद को बचाने के लिए अपना चेहरा घुमाती, तब तब आदमी का खुरदुरा हाथ उसका चेहरा अपनी ओर घुमा लेता! मंगल का साँस लेना दूभर हो रहा था! दम घुटा जा रहा था! ऐसे में वो उसको खुश कैसे रखती?

“ऐसे दूर दूर क्यों भाग रही हो रानी? कौन से काँटें लगे हुए हैं हममें?”

हार कर मंगल उसके सामने बिछ गई।

“हाँ... बढ़िया! ऐसे ही लेटी रहो।”

और अधिक जुगुप्सा!

मंगल को अपने शरीर पर उस आदमी का बदबूदार थूक लगता महसूस होने लगा। उसको खुद ही से घिन आने लगी... जैसे उस आदमी ने उसको जहाँ जहाँ छुवा हो, वहाँ वहाँ उसको कोढ़ हो गया हो। उसको लग रहा था कि जैसे उसके शरीर के हर अंग से मवाद सा रिस रहा हो! आदमी फिर से उसके ऊपर चढ़ गया। पहले से ही उसका हर अंग पीड़ित था, लेकिन इस बार सब असहनीय हो गया था। अगले दस मिनट तक वो उस असहनीय मंथन को झेलती रहती है! इस क्रिया में आनंद आता है... अपने मरद के साथ तो उसको कितना आनंद आता था। तो इस आदमी के साथ उसको आनंद क्यों नहीं आ रहा था? इस आदमी क्या, किसी भी अन्य आदमी के साथ उसको एक बार भी आनंद नहीं आया। क्या रहस्य था, मंगल समझ ही नहीं पा रही थी!

अंततः, आदमी निवृत्त हो कर मंगल को अपनी बाँह में लिए हुए, उसके बगल ही ढेर हो गया। मंगल को ऐसी राहत मिलती है कि जैसे उसको शूल-शैय्या पर से उठा लिया गया हो। अपनी बाँह से जहाँ भी संभव हो पाता है, वो अपने शरीर से बलात्कार के चिन्ह पोंछने लगती है। कोशिश कर के वो एक गहरी साँस लेती है, और फिर आदमी की तरफ़ देखती है।

आदमी की आँखें बंद थीं, और साँसे गहरी।

‘लगता है सो गया!’ सोच कर वो उठने को होती है तो आदमी की पकड़ उस पर और कस जाती है।

उसी समय मंगल को लगता है कि कोठरी से फिर से रोने की आवाज़ आई।

“क्या बात है रानी?” मंगल के शरीर की हलचल महसूस कर के आदमी बोला।

“कुछ नहीं साहब!”

“अरे! कुछ नहीं साहब!” आदमी ने मंगल की बात की नक़ल करी, “रूप में इतना नमक है लेकिन फिर भी इतनी ठंडी हो! अच्छा... एक काम कर... तुम भी मेरे साथ एक पेग लगा लो! देखना कैसी गनगनाती गरमी चढ़ जाएगी यूँ ही चुटकियों में!”

कह कर आदमी उसके मुँह से अपना मुँह लगाने की चेष्टा करने लगता है। शारीरिक बल में मंगल का उससे कोई आमना सामना नहीं था। लेकिन फिर भी उसने मुँह फेर लिया,

“नहीं साहब! हम पी नहीं सकेंगे! ...कभी नहीं पी!”

मंगल का मन खट्टा हो गया था। शरीर वैसे ही थक कर चूर था, उस पर बच्चे का रोना मचलना! वो खुद भी भूखी थी। खाना पका कर रखा ही था कि होटल वाले का संदेशा मिला कि नया ग्राहक मिला है - जिसको मंगल जैसी की ही तलाश है! बढ़िया पैसे देगा। ऐसे अचानक बुलावा आने के कारण, न वो खुद ही खा पाई, और न ही अपने बच्चे को ठीक से दूध पिला पाई। तब से अब तक साढ़े चार घण्टे से वो लगातार पिस रही थी। अब तो मंगल का भी पेट भूख से पीड़ा देने लगा।

“अरे! ऐसे कैसे? तुम्हारा आदमी नहीं पीता?”

‘उसका आदमी!’ सोच कर मंगल का दिल कचोट गया।

“उसकी बात न कीजिए साहब!” मंगल ने मनुहार करी।

होटल वाले ने मंगल को समझाया था कि कोई उसके मरद के बारे में पूछे, तो अपना रोना न रोने लगे। ग्राहकों को यह सब पसंद नहीं आता सुनने में!

उसका मरद होता, तो यह सब नौबत आती ही क्यों?

कोई डेढ़ साल पहले जब वो मंगल को ब्याह कर, इस शहर लाया था, तब उसने अपने सबसे बुरे दुःस्वप्न में भी नहीं सोचा था कि कुछ ही दिनों में वो विधवा बन जायेगी! वो फेरी लगता था फलों की! हाथ-ठेला ले कर सवेरे निकलता, तो देर शाम को ही घर आता। फिर भी मंगल खुश थी। उसका मरद स्नेही था, मेहनती था। लेकिन हाय री फूटी किस्मत! एक दिन, दो हवलदारों ने ‘अतिक्रमण हटाओ अभियान’ के चलते उसका हाथ-ठेला उलट दिया। अभी अभी ताज़ा फलों को बड़ी मेहनत से सजाया था उसने। सब से सब सड़क पर बिखर गए पल भर में! वहाँ तक भी ठीक था, लेकिन वाहनों के आवागमन से ताज़े फल कुचल कर बर्बाद होने लगे। उसको बचने, समेटने के चक्कर में वो भी एक भारी वाहन के नीचे आ गया। उस दिन तो मंगल को अपने जीवन में हो चुके अमंगल का पता भी नहीं चला! अगले दिन किसी से खबर मिली, तो उसके हाथ लगी अपने पति की दबी कुचली लाश, जो ठीक से पहचान में भी नहीं आ रही थी।

जब पुरुष का साथ रहता है, तो समाज स्त्री की इज़्ज़त पर बुरी नज़र नहीं डाल पाता। वो सुरक्षित रहती है... उसके सम्मान पर किसी ऐरे गैर की दृष्टि नहीं पड़ पाती! उसका आदमी जीवित होता, तो यह सब नौबत आती ही क्यों? गरीब अवश्य था, लेकिन वो मंगल को रानी की तरह ही रखता था। सब बातें सोच कर उसके दिल में टीस उठने लगी। लेकिन ग्राहकों को यह सब बातें पसंद नहीं आतीं।

उसने बात पलट दी, “साहब, यूँ खाली पेट कब तक पिएँगे आप? ...कुछ खा लेंगे?” मंगल ने बड़ी उम्मीद से पूछा, “कुछ मँगायें?”

“तुम भी खाओगी?” आदमी ने खुश हो कर कहा।

यह सुनते ही मंगल को अपार राहत मिली!

‘क्यों नहीं? अपना और बच्चे का पेट कैसे भरेगा नहीं तो?’

“हाँ हाँ... मैं नहीं तो फिर आपका साथ कौन देगा?” उसने उत्साह से कहा।

“सही है फिर तो... अभी मँगाता हूँ! ...क्या खाओगी?”

कह कर वो आदमी फ़ोन पर खाने का आर्डर देने लगा। नीचे खाना देने वालों को भी जैसे मालूम हो कि कभी न कभी तो हर कमरे से आर्डर आएगा ही! कोई दस मिनट में ही, थोड़ा ठंडा ही सही, लेकिन खाना आ जाता है।

भूख से परेशान मंगल खुद भी खाती है, और उस आदमी को भी खिलाती है। चार बार सम्भोग से आदमी को शायद उतना आनंद नहीं मिलता, जितना मंगल द्वारा खाना खिलाने से मिलता है। वो आनंदित हो कर खाने लगता है।

मंगल को महसूस होता है कि वो आदमी बुरा नहीं था! सम्भोग के पलों को छोड़ दें, तो वो उससे नरमी से ही पेश आ रहा था। लेकिन फिर भी, न जाने क्यों वो मंगल को मदमत्त भैंसे जैसा लग रहा था। शराब के मद में चूर, लाल लाल आँखें! भारी, विशालकाय शरीर! शोर मचाती हुई साँसें! और सबसे घिनौनी बात - उसकी साँसों और उसके शरीर से सिगरेट की दुर्गन्ध! कुल मिला कर वो बम्बईया फिल्मों का विलेन जैसा लग रहा था मंगल को!

यह सब सोच कर मंगल का मन फिर से खराब होने लगा। वैसे भी उस रात फिर से उस आदमी के नीचे पिसने की हालत में नहीं थी मंगल!

‘अब पेट भर गया है, तो शायद सो भी जाए,’ उसने उम्मीद से सोचा।

थोड़ी देर की भी मोहलत बहुत है! वो बच्चे को सम्हाल लेगी... उसको दूध पिला देगी। उसको साफ़ कर के सूखी जगह पर सुला देगी। बस, जैसे तैसे आज रात की बला टल जाए! कल वो फिर से काम ढूंढने की कोशिश करेगी! साफ़ सफाई, झाड़ू बर्तन - वो सब कर लेगी, लेकिन इस तरह का पाशविक अपमान अब वो नहीं सहेगी! जीवन के कमज़ोर क्षणों में उसने अपने शरीर का सौदा कर लिया था, लेकिन अब और नहीं! इस होटल में फिर से नहीं आएगी - मंगल ने अपने मन में यह विचार दृढ़ कर लिया।

जिन जिन लोगों की दृष्टि उसके ऊपर थी, उनमें से सबसे शरीफ़ और सबसे ज़हीन वो होटल वाला ही था। विशुद्ध व्यापारी था वो! मंगल की आपदा में उसको अवसर लगभग तुरंत ही दिखाई दे गया था। लेकिन फिर भी औरों के जैसे वो उसका फ़ायदा नहीं उठाना चाहता था... वो तो मंगल को उसकी समस्या का समाधान दे रहा था... कब से तो वो मंगल को समझा रहा था!

‘अच्छे पैसे मिलेंगे!’

‘बस कुछ घण्टों की ही तो बात है!’

‘पूरा दिन अपने बच्चे की देखभाल कर सकती है वो!’

‘बस रात ही में...’

मंगल की अपनी समस्या का समाधान होता दिख रहा था, लेकिन वो ही थी जो सुन नहीं रही थी। कैसे मान ले वो उसकी बात? समाज का देखना पड़ता है! लेकिन जब वही समाज उसकी और उसके बच्चे की भूख और बीमारी का समाधान न कर पाए, तो वो भी क्या करती? उसके बच्चे का जीवन, उसके खुद के जीवन से मूल्यवान था! काम और आमदनी के अभाव में शीघ्र ही उसके घर में जो भी बचा खुचा था, वो सब समाप्त हो गया; एक दो छोटे मोटे ज़ेवर थे, वो भी बिक गए। बच्चे की दवाई में जो कुछ धन था, वो भी जाता रहा! ऐसे में क्या करती वो? क्या उपाय बाकी बचा था उसके पास? यह बच्चा ही तो एकलौती निचानी बची थी उसके जीवन के सबसे सुन्दर समय की!

होटल वाला वाक़ई उसका शुभचिंतक था। होटल वाले ने दया कर के उसके बच्चे के सोने की व्यवस्था बगल की कोठरी में कर दी थी, जिससे ‘काम’ में सुविधा रहे। कौन करता है यह सब? उसके बदले में वो क्या लेता है? बस, पचास रुपए! बाकी सब तो मंगल के पास ही रहता है। कम से कम वो बच्चे के इलाज का बंदोबस्त तो कर सकती है अब!

‘बच्चा!’

आवाज़ नहीं आ रही थी अब उसके रोने की।

‘सो गया होगा बेचारा।’

मंगल पूरे ध्यान को एकाग्र कर के सुनने की कोशिश करती है। न - कोई आवाज़ नहीं!

पेट भर जाने के बाद आदमी नींद से झूमने लग रहा था। मंगल दबे पाँव, बिना कोई आवाज़ किए वो उठने की कोशिश करने लगती है, कि कहीं वो जाग न जाए! जाग गया तो क्या पता, कहीं फिर से उसको नोचने न लगे!

उसके उठने की आहट पा कर आदमी उसकी तरफ़ करवट बदलता है। आदमी के बदबूदार मुँह से लार निकलने लगती है। वो दृश्य देख कर घिना गई मंगल! वितृष्णा से उसका मन भर गया।

‘कैसा जीवन है ये! न बाबा... चौका बर्तन, साफ़ सफाई वाला काम ही ठीक है। कुछ तो इज्जत मिलती है!’

जैसे किसी भैंसे ने डकारा हो, “कहाँ चल दी, रानी?”

अबकी रहा न गया मंगल से, “साहब, आपने तो सितम कर डाला आज...” उसने उस आदमी की प्रशंसा में फ़िल्मी डायलॉग बोल दिए, “मेरा अंग अंग तोड़ दिया आपने! न जाने कैसे कर लेते हैं आप... न... अब और कुछ न कह पाउँगी! बड़ी शरम आवे है...”

“हूँ...” आदमी सब सुन कर संतुष्ट हुआ; नींद की चादर उस पर पसरती जा रही थी, “तुम अच्छी हो रानी! मज़ा आया बहुत! ...चलो तुम भी आराम कर लो!” उसने पूरी दरियादिली से कहा, “लेकिन... फिर... कब?”

सुनते ही मंगल के जीवन में राहत आ गई, “जब आप बुलावेंगे, मैं तो भागी चली आऊँगी!”

आदमी कुछ बोला नहीं।

‘कहीं ज़्यादा तो नहीं बोल दिया?’

‘कहीं ये अपना मन न बदल दे!’

मंगल के मन में खटका हुआ, लेकिन बची खुची हिम्मत जुटा कर वो बोली, “अब आराम कर लीजिए साहब?”

“हूँ...”

जैसे स्कूल की आखिरी घण्टी बजी हो! बिना कोई समय व्यर्थ किए मंगल ने एक हाथ से रुपए उठाए, और दूसरे में अपने कपड़े, और कमरे से निकल भागी। न तो अपनी नग्नता का होश, और न ही उसकी कोई परवाह! बस मन में एक ही विचार - ‘मेरा बच्चा’!

द्रुत गति से कोठरी का पल्ला खोल कर वो भीतर घुसी। कोठरी में जीरो वाट का बल्ब जल रहा था, लेकिन निपट नीरवता छाई हुई थी। एक गहरा निःश्वास भर के मंगल ने बच्चे की बिछावन टटोली... पूरा बिस्तर गीला हो गया था... ठंडा भी। कहीं बच्चे को ठंडक न लग जाए, सोच कर उसने बच्चे को उठा कर अपने सीने से लगा लिया। कोई हरकत नहीं!

‘क्या हो गया?’

मंगल का दिल सहम गया! किसी अनिष्ट की आशंका से उसने बच्चे को को हिलाया, थपथपाया! लेकिन कोई अंतर नहीं! घबराते हुए उसने बच्चे को अपनी गोद में लिटाया। शायद अपनी माँ को पहचान कर बच्चा नींद से जाग जाए। लेकिन बच्चे का सर एक ओर लुढ़क गया! उसके हाथ-पाँव निर्जीव हो कर उसकी गोद से बाहर ढलक गए! उसमें अब जीवन शेष नहीं रह गया था।

जीवन तो अब मंगल के शरीर में भी शेष नहीं रह गया था!

जैसी विच्छिन्न सी दशा बच्चे की थी, वैसी ही दशा मंगल की भी थी! उसके हाथ से रुपये गिर कर कोठरी की फर्श पर बिखर गए, और वो निःशब्द, आँखें फाड़े, अपने बच्चे के निर्जीव शरीर को देखती रही!


समाप्त।
avsji आपकी कहानी पढ़ी सच में लास्ट में निःशब्द हो जाए कोई भी....ये शॉर्ट स्टोरी ये दर्शाती है की मंझे हुए राइटर को किसी बेस की जरूरत नहीं वो एक तस्वीर देख कर उससे जुड़ी पूरी की पूरी इबारत लिख डालते है....♥️🙏🏻
बहुत ही बढ़िया कहानी
 

sakuna

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HorseShoe.. ( Horror, Crime )



Present Time.. Night 12:30

Jay... Tiya beta kya hua neend nahi aa rahi...
Tiya... Nhi papa mujhe pta hai agar mai so gayi aap mujhe chod kar chale jaoge...
Jay... Beta papa ka jaana jaroori hai aur fir papa jayenge nhi toh tiya ke birthday par bada waala tedy bear kaise aayega..
Tiya... Sach papa ummha love you papa... Aap bhut aache ho...
Jay... Hmm ab jaldi se aankhen band karo... Mai jald hi tumhara gift lekar aata hoon...

Iske baad khuch der jay apni beti tiya ke saath baith uske sir par hath ferta hai jab use pata chalta hai tiya so gayi... Toh kamre se nikal room mai jata hai aur apna samaan rakhne lgta hai...

Jaana jaroori hai... ( yeh awaaz uski wife Neha ki thi jo usse peeche se aakr hug karti hui bolti hai.. Jisper jay usko aage kar ek baar use hug karke maathe par kiss krta hai.. )

Jay... Haan jaan tumko toh pata hai.. Mera kaam hi aisa hai.. Par mai jald hi lautne ki koshish karunga aur iss baar kaafi samay tumhare saath bitaunga....

Jisper Neha kuch nahi kehte aur gaal par kiss kar kitchen mai chali jaati hai... Syad woh bhi jay ko samjhti thi.. Aisi hi toh hoti hai family jha bina kahe ek dusre ki baat samjh jaya karte hai.. Abhi woh khade khade yeh sab soch hi raha tha ki use khidki ke bahar koi aadmi dikhta hai... Jo uske dekhte hi waha se hat jata use laga shayad uska weham hoga... Aur woh samaan pack karne lagta hai...

Packing khatam karke woh kitchen ki taraf jata hai.. Toh raste mai use ghar ka gate khula milta use kuch shak hota... Tabhi kitchen se cheenkh sunayi deti hai jo yakeenan Neha ki thi.. Woh bhaagta hua jata hai jab waha phunch kar dekhta hai toh Neha behosh padi milti hai.. Jay ghabara jata Neha ke sir ko goad mai rakh awaaz deta lekin koi farak nahi padta woh pass se pani uthakar uske chehre par maarta toh uske halta hosh aata lekin woh buri tarah se dari hui thi uske muhh se awaaz nahi nikal rahi thi... Jay usko gaod mai utha apne kamre mai aaker bed par lita deta hai.. Tabhi uska dhyaan Tiya ki Taraf jata hai woh jaldi se uske kamre mai jata lekin Tiya waha nahi thi... Woh cheenkhta hai awaaz deta hai.. Tabhi use bed ke neeche se kisiike sisikne ke awaaz aati.. Neeche Tiya hi thi.. Use dekh Jay ko Thodi si rahat hoti hai woh hath dekar Tiya ko bahar nikalne ki koshish karta tabhi use apne peeche koi aahat sunai deti hai... Woh palat kar dekhta hai ki dhhhmmmmm... Ek Rod uske sir par jor se lagti hai aur woh behosh ho jata hai....

Later Some Time..

Kuch der baad jab usko hosh aata hai toh uska sir dard se fata jaa raha tha woh apne chaaro tarf dekhta hai... Toh use teen log dikhayi dete hai ek ladki aur do ladke jo room ke chaaron corner par rassi se bandhe hue hai.... Ek ladke ki haalat dekh use ulti aa jati hai.. Buri tarah se uske sareer ki khaal nikli hui thi pet se khoon beh raha tha aur uske dono hooth taanke lagake sile hue the... Yeh sab dekh woh baaki dono ko bhi dekhta jo use hi dekh rakhe the tabhi woh ladki se puchta hai...

Jay... Kon ho tum log aur mai yaha kaise aaya...

Jisper woh ladki jiska naam Riya tha koi jawaab nahi deti aur ladka jiska naam Fred tha woh bhi kuch nahi bolta aur teesra toh kuch keh hi nahi sakta tha... Poore kamre mai sannata chaya hua tha.. Jay apne chaaro oar dekhta hai band badbudar kamra jiske beech ek paani se bhari hui balti rakhi hui hai.... Woh gaur se teeno ko dekhkar pehchaanne ki koshish karta lekin nahi pehchan pata jakhmi ladke ki taraf woh jayda der dekh bhi nahi paa raha qyuki uske shareer mai koi hulchal nahi ho rahi thi sirf zinda lash ke jaise pada hua tha...

Waqt beet jata hai kuch ghante baad ek choti si khidki khulti hai aur usme se koi ek bada sa maas ka tukda fenkta hai.. Jise woh ladki jaldi se bhaag kar utha leti hai fir kuch der baad hi teen hisse kar ek Fred ko aur ek Jay ki taraf fenk deti hai aur khud woh kaccha maas khane lagti hai.. Jay ko dekhkar bada ajeeb lagta hai aur woh lene se mana kar deta hai yeh kehkar..

Jay.. Mai maas nahi khata mai vegetarian hoon.... ( jisper woh ladki kehti hai)

Riya... Jo bhi hai lekin ab humme yaha khane ke liye bas yehi milne waala hai...

Jay ek baar zakhmi ladke ko dekhta jo hill bhi nahi paa raha tha woh yaha se bahar nikalne ki koshish krne lgta hai.. Apni poori lagat laga kar raasi ko todne ki nakaam koshish krta hai... Baaki dono use aisa kar dekhte rehte hai woh dono bhaagne ki koi koshish nahi krte hai yaa shayad kar chuke hoon aur uska anzaam shayad unke saamne teesre ladke jaisa ho.... Khair Jay idhar udhar apni nazren daudata hai use diwaar se halki hawa aati hui dikhti haiwoh uss jagah apne nakhoon se kharodnta hai lekin kuch fark nahi hota dwaar concrete ki thi iss chakkar mai uske hath ka nakhoon bhi ukhaad jata hai.. Use bhut dard hota hai woh cheenkhta bhi hai magar koi uski nahi sunn raha tha baaki dono bass use dekh rahe the..

Woh haar nahi maanta aur zameen ko apne ek haath se khodne lagta hai.. Kuch der baad use zameen se ek haddi aur ek kankaal milta jo kisi ka sir tha.... Use ab samjh aa jata hai yaha se nikalne ka ek hi raasta jo woh darwaja hai.. Woh chaaron taraf dekhta hai toh door deewar mai use ek camra bhi dikhayi de jata jisse woh samjh jata hai jo koi bhi iske peeche hai woh un sab ko dekh raha tha... Jay thoda Dimaag Lagta hai pata karne ke liye ki iss ke peeche kon hai woh kamre maja dekhkar aadmi ko bura bhala bolne lagta hai gaaliyaan dene lagta jisper baaki dono log use mana karte ki qyuki agar uss aadmi ko gussa aa gaya toh pta kya hoga sabke sath... Woh unhe maar kar yehi gaad dega lekin Jay bina kisi parwaah aadmi ko bura bhala bolta rehta hai..

Jise woh aadmi jiska naam David hai dekh raha use Jay par kaafi gussa aa raha Jay jab nahi rukta toh David apni seat se uthta hai aur kamre ki taraf chal padta hai... Jay soch raha jaise hi David ander aayega woh use pit kar yaha se nikal jayega... Lekin woh jaise hi David ko dekhta hai uski haalat hi kharab ho jaati hai... 7 feet ka David full body builder uske saamne khada tha jiske ek haath mai chaaku sir per mask jo bhut hi ghinona tha kisi tarh ki chamdi se bana hua jisme se David ki sirf aankhen dikh rahi thi... Ab Jay buri tarah se dar jata hai lekin woh himmat karke David se puchta hai...

Jay... Kon ho tum.. Mujhe yaha kyun band rakha hai.. Aur meri family kha hai kahi Tum be unke saath kuch kiya toh nahi..

Jisper David kuch nahi kehta chup chaap woh khada hokar use bas ghoorta rehta hai... Iske baad woh zakhmi aadmi ko utha kar kamre ke beecho beech la kar rakh deta hai... Aur chaaku Riya ke hathon pakda deta hai...

David... Iski pet ki khaali kaat kar mujhe do...

Riya ke paas koi chara nahi tha aur woh aisa hi karti hai.. aadmi pehle se hi zakhmi tha woh uske pet mai chaaku maar ke uski khaal kat kar David ko de deti hai... Jiske baad woh Riya ko wapas uski jagah par bhej deta hai aur uske baad woh chaaku Jay ki taraf fenkta hai aur use bhi aisa hi karne ko bolta hai... Jay chaaku uthata aur dheere dheere aage badhta hai woh chaku aadmi ke pet mai na maar kar David ki aur hamla karta hai jisse David aasani se bach jata hai magar uska hath jakhmi ho jata hai jo ki mamuli kharonch thi jiska matlab Jay ka humla nakayaab ho jata hai.. Jiska baad David use buri tarah peet deta hai aur utha kar uski jagah par patak deta jisper Jay ko kaafi dard hota hai...

Ab Jay ki iss harkat par woh Riya ko saza dene waala tha.... Woh use kheench kar kamre ke beech lata hai aur Fred ko bulata hai aur usko ek piece pakda kar iske muh mai fasane ko kehta hai Fred waisa hi karta hai.. Fir David Jev se ek packet nikalta hai jisme se ek zinda keeda jisper blade lagi hui thi woh nikal kar Riya ke muh mai dalne ko kehta hai Fred Waisa hi karta jiske baad jeeda uske muhh mai chala jata hai.. Riya buri tarah se chatpata rahi rahi magar David kas kar uska muh band kar rakha kuch der baad chod kar chala jata hai...

Riya buri tarah se tadap rahi use saans lene mai bhi takleef ho rahi thi thodi der mai use khoon ki ulti ho jati hai jiske baad uske muh se khoon ke saath keda bhi bahar nikal jata hai... Jise Jay apna pair rakhte hue maar deta hai aur blade nikaal kar apni rassi kaatne ki koshish karta hai... Fred use aisa karte dekh usse fir se mana krta hai magar woh nahi maanta use kaise bhi yaha se bahar nikalna tha jaha uska parivaar uski beti thi... Aur dheere dheere poori raasi kaat leta hai...

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Jab David room mai aata hai toh Jay gate ke peeche chupa hua tha use dhakka deker gate se bahaar nikal jata magar woh bahar aake dekhta hai saare darwaje majbooti se band aise woh bahar nahi nikal sakta tabhi use Ac went dikhti hai jo tuti hui thi Jay usme kisi tarah ghuss jata hai aur rengte hue aage badhne lagta hai... Lekin Jay ki karab kismet AC went purani ke saath saath majoor thi jo Jay ka wajan nahi utha sahi aur Jay dhadaam se neeche girta hai aur girte sang hi behosh ho jata hai...

Fir Jab use hosh aata hai toh woh fir se usi kamre mai wapas aa gaya tha jaha David ne use iss baar chain se bandh kar rakha hua tha... Ab woh soch hi raha tha ki aisa uske sath kyun ho raha hai woh toh janta tak nhi David kon hai.. Usne uska chehra bhi nahi dekh woh yeh sab soch hi raha tha ki tabhi Ek baar fir gate open hota hai aur David ander aa jata hai.. Jay ko uske kiye ki saja dene ke liye pehle woh Jay ko khoob maarta hai fir uske haath ki kadi khool deta hai...

David Fred ko ishara karke bulata aur samjhata hai use kya karna hai... Fred na chahte hue bhi aisa hi krta hai woh Jay ka ek hath pakad kar deewar se lagata hai aur hathode ki madat se usme keel thok deta hai.. Jay buri tarah se tadap raha tha cheekh raha tha magar David majbooti ae use pakad kar rakha tha.. Uske baad woh dusre haath par bhi aisa hi karne ko kehta hai jisper Fred waise hi karta hai... Dard ke maare Jay ka bura haal ho jata hai aur woh behosh ho jata... Fir jab use hosh aata toh use bhut jayada taklif ho rati uske hath buri tarah se zakhmi ho gaye the magar fir bhi woh dard ko sekte hue cheekh kar bhi apna ek haath keel se kheench leta hai.. Jisse keel aar paar ho gayi thi woh dusre hath ke saath bhi aisa hi karta hai aur buri tarah se karaah raha tha... Magar woh chain ki saans leta hai...

Thodi der tak woh dubaara sochane lagta un charo se teeno se kehta hai... ho na ho ham chaaron ka koi lena dena jarur hai warna woh humme isa tarh torchar nahi krta zulm ki saari hadain usne paar kar di hai...
Jisper woh dono yehi kehte hai... Nahi hum usko bilkul bhi nahi jaante... Hume bilkul yaad nahi ki hume uska kya bigaada hai jiss wajah se woh humare saath aisa kar raha hai...

Inki baatain woh Zakhmi aadmi bhi sun raha tha... Aur woh kuch bolne ki koshish kar raha tha aisa lag raha jaise woh inko kuch batana chaahta hai... Fir woh apne haath se ret par ek nishaan bana deta hai aur use haath se kheench kar apne muh ke tanke khol deta hai... Apna muh kholkar woh bas ek hi shabd bolta hai... HORSESHOE... ( jo ki ghode ki naal hoti hai jo pairon mai lagayi jati hai.. ) ab woh pehle se hi zakhmi tha aur itna dard sehne ki wajah se uski maut ho jaati hai...

Ab yeh ek sabd Horseshoe sunkar Jay buri tarah se chonk gaya tha aur usko samjh aa gay tha ki uska David se aur teeno se kya talluk hai...

Before 20 years...

Jay apni family ke sath bachpan mai chuttiyan manane ke liye jungle jaisi jagah mai gaya tha jaha uski dosti teen doston se ho gayi jo aur koi nahi wohi hai jo basement mai iske saath kaid hain... Fred, Riya aur Tommy ( jo zakhmi haalat mai tha)... Fir ek raat Jay teeno ko ek kahani sunata hai jo sacchi thi...

Jay... Jungle mai ek farmhouse hai jaha kisaan rehta hai... Kuch waqt pehle uski wife ki maut ho gayi thi tabhi se woh pagal ho gaya hai... Usne apne hi bete ko farmhouse jo ki uska ghar tha usme kaid karke rakh liya hai.. Aur use itna torcher kiya ki uski saari khaal hi utaar di aur fir tez dhaar kulhadi se ek din usne apne hi bete ko maar diya... Kaha jata hai ki woh kisaan aaj bhi zinda hai aur apne usi farmhouse mai rehta aur woh farmhouse pta hai kaha hai isi jungle mai... Aur woh isi jungle mai ghoom raha hai apne agle shikaar ke liye... .

Baaki teeno Jay ki iss kahani par wishwas nahi krte unhe lgta Jay unhe darane ke liye aisa kar raha hai... Ki Tabhi ek baccha David inke paas aata hai... Ji haan yeh wohi David hai jisne inhe band kar rakha hai...

David kehta hai... Mai bhi apni family ke saath yaha chuttiyan manane aaya hoon kya tum log mere dost banege...

Jisper woh chaaron usse dosti toh nahi karte magar pareshaan karke maje lene ka sochte hain... Woh usse kehte hain... Agar tum hamare group mai shamil hona chahte ho toh tumhe hum jo kahenge woh karna hoga bolo manjoor hai... Jise sunkar David haan kar deta hai qyuki yaha uska ab tak koi dost nahi ban pata tha..

Jisper Riya David ko ek keeda muh mai rakhne ko deti hai.. Jo majbooran David ko rakhna padta hai.. Tabhi Fred jor se uska muh band kar deta hai jisse woh keeda uske muh kar ander chala jata hai aur David ko bhut Dard bhi ho raha tha... Riya yaha nahi rukti aur woh bag se ek makdi nikaal kar David ke sir per chod deti jo reng reng kar David ke kaan mai ghus jati aur kaat leti hai.. Ab David ki halat bhut kharab ho jati hai woh rone lagta magar charon uski halat dekh meje le rahe the... David dard sehta hua waha se bhagne ki koshish karta magar yeh charon uska peecha karte hai aur use pakad lete hain... Jay aur uske dost use jameen se laga dete hai aur haathon me keel thok dete hai jisse woh bhaag bhi nahi pata... Tabhi riya apne bag se ek aur dibba nikalti hai jisme se kenchua uske muh par daal deti hai... David apni halat par kuch nahi kar sakta tha use bhut taklif ho rahi magar charon uski halat dekh maje loot rahe the... Aur use usi halat mai chod kar chale jate hai.. Fred kehta hai... Khyaal rakhna koi keeda tumhare dimaag mai na ghuss jaye... Aur haste hue waha se nikal jaate hai.. David rota chillata hai madat mangta hai lekin uski madat ke liye waha koi nahi tha...

Thode din baad David aone room se bahar nikal jangle mai baitha hua tha... Woh apne mom sad ke jhagade se tang aa gaya tha aur shaanti ke chakkar mai waha aa gay tha.... Tabhi Riya waha aa jati hai.. Aur David ke paas baith usse meethi meethi baatein karti hai... Tab woh David ke hath par Horseshoe ka nisaan dekhti hai... Toh David bolta hai ki yeh maine tab banaya tha jab papa ne mera manpasand ghoda bech diya tha... Kuch der aur baatein kar Riya use behla fusla kar apne saath le jati hai jo koi wohi farmhouse tha jaha pagal kisaan rehta tha.. Matlab jiski kahani Jay suna raha tha woh sach thi... Jaha uske teeno dost uska wait kar rahe the... David teeno ko dekh dar jata lekin tabhi Riya kehti hai... Daro nahi hum toh tumse dosti karne aaye hai bas tumhe ek aakhiri kaam aur karna hoga uss farmhouse mai jaake dikha do hum tumhe apna dost maan lenge... Jisper David kuch der sochta aur haan bol deta hai...

Ab jaise hi David Farmhouse mai ander jata hai woh chaaron usse ander chod kar bhaag jate hai... Jaate jate woh yeh bhi dekh lete hai ki farmhouse mai koi toh tha jo wohi pagal kisaan hoga... Aur kisaan bhi unko bhagte hue dekh leta hai aur David ko pakad leta hai... Jiske baad yeh charon log kabhi nahi mile chuttiyan khatam hote hi sab apne apne ghar chale gaye the...

Uske baad yeh seedha aaj mile tabhi toh yeh ek dusre ko pehchan nahi paa rahe the.. Aur David bhi uss din ke baad lapata ho gay tha wapas apne ghar kabhi nahi gaya... Police ne inse pucha bhi tab bhi inhone David ki madat nahi ki... Na hi inhone police ka David nahi farmhouse aur kisaan ke baare mai bataya tha....

David ko jab kisaan ne pakad liya toh pehle usne David ko kaafi torchar kiya uske baad usne David ko apne paas hi rakh liya apna beta maan liya... Aur jab woh David ko paal raha tha tab uske man mai galat cheezen bhi daal tha yeh kehkar ki... Tumhare maa baap hai yaa jo dost hai woh bhut hi bure log hai tabhi woh tumhe yaha chod kar chale gaye lekin mai hi aacha hoon tum mere paas hi raho... Magar David uski baat nahi sunta aur har kuch din mai yaha se bhagne ki koshish karta hai jise kisaan har baar usse pakad leta tha aur usse torcher karta tha... David kaafi rota hai chilla kar madat maangta hai lekin koi uski madat nahi karta dheere dheere David bhi haar maan leta hai aur uss kisaan ko apna baap maan leta hai..

Uske baad David aur kisaan hasi khushi rehne lage... Kisaan David ko ek majboot aadmi bana raha tha saath hi woh galat patthi bhi padha raha tha ki... Ek insaan ke ander se agar buraai ko nikalna ho toh aisa karo usse torcher karo tab taklif sehkar insaan woh burai chod dega... Ab iss farmhouse mai ek aisa kamra bhi tha jaha David ko jaane ki permission nahi thi... Lekin jab woh bada aur samjhdar hua toh chori chupke se akhir kaar uss kamre mai chala hi gaya... Jaha jakar woh dekhta hi ki uss kisaan ka dimag sach mai kharaab haihai aur iska dimaagi santulan theek nahi... Isme sach mai apne hi bete ko torcher karke maar diya tha.... ( newspaper cutting se pta laga ) matlab Jay ki batayi gayi khani sach thi... Yaha usse ek aur baat pata chalti hai ki... Isi pagal kisaan ne David ke maa papa ki bhi van mai aag laga di thi jisme dono ki maut ho gayi thi... Aur yeh sab isliye kiya tha qyuki David humesha uske saath rahe aur koi use dhoondhte hue na aa jaye..

Yeh sab dekhkar David ko kaafi bada dhakka lagta hai... Sath hi usse pagal kisaan par gussa bhi aa raha tabhi woh kisaan bhi waha aa jata hai aur David ko kamre mai dekh kaafi gussa aa gaya tha... Woh David ko bhut maarta hai qyuki woh samjh gaya tha ki David ko saara sach pata chal gaya isliye ab woh kabhi use pita nahi manega... Aur woh David ko badh kar kholte paani mai daalkar maarne ki koshish karta lekin David ki kismat aachi rehti usse paas me chaku mill jata jise woh dhere se utha kar apni rassi kaat leta hai aur ek jordaar prahaar kisaan par karta hai jisse kisaan behosh ho jata hai... Uske baad David kisaan ko bandh kar kholte paani mai daal deta hai jaise kisaan uske saath karna chahta tha... Kuch ki pal mai kisaan paani mai tadapta hai uske sareer se khaal nikal jaati hai aur woh mar jata hai... Uske baad David uski hi khaal nikal kar mask bana kar pehen leta hain jo aaj bhi woh pehen kar ghumta hai aur ab uski zindagi ka ek hi maksad tha un chaaron se badla lena bilkul waise hi jaise unhone uske saath kiya tha.... Isi wajah se woh unhe kidnap karke yaha laya aur unke saath wohi kiya jo unhone uske saath kiya tha... Jisse woh apne bhadaas nikaal kar unhe torcher kar raha thatha taki woh inhe inke kiye ki saja de sake...

Present Time...

Jay... Hume David se apne kiye ke liye maafi maang leni chahiye shyad woh hume maaf kar dede aur hume yaha se jane de...

Jisper Riya aur Fred ko bilkul nahi lagta ki aisa kuch hoga... Jay jor jor se David ka naam chilla raha tha... Jisper David ko aur jayada gussa aa raha tha aur woh chalkar kamre mai aata hai... Aur Jay ka muh pakad deewaar se laga deta hai aur apna muh band karne ko kehta hai... Uske baad woh jeb se ek injection nikaal kar Jay ko deta hai.. ( jisme makdi ke ande the ) fir woh Riya ko kheench kar paas lata hai aur Jay se injection kaan mai lagane ko kehta hai.... Jay samajh jata David unko waise hi torcher kar raha tha jise unhone uske saath kiya tha... Jay ke paas koi rasta nahi tha woh kapte hathon se injection leta hai aur riya ke kaan mai daal deta riya buri tarah cheekh rahi thi... Jay behosh hone ka natak kar gir jata hai aur David waha se nikal jata hai...


Uske kuch der baad woh wapas aata hai ab teeno ko apni maut dikh hi rahi thi toh aakhiri koshish karne ke liye ek saath uspar humla kar dete hai... Jisper David teeno ko ek ek karke door kar deta hai qyuki woh kaafi takatwar tha... Iss baar woh Fred ko pakad kar gira deta hai.. Aur uski aankh pakad kar khol deta hai Riya ki taraf ek keeda deta hua use Fred ki aankh mai daalne ko kehta hai... Riya waise ki karti hai aur David waha se chala jata hai lekin iss baar galti se woh ek cheeku wahi bhool gaya tha.... Fred ki cheekh poore room mai goonj rahi woh buri tarah se pagal ho gaya tha... Jay jaldi woh chaku utha kar apni aur Riya ki rassi khol deta Fred ke paas aakar dekta hai buri tarah se tadap raha tha.. Jay chaku se uski aankh par waar karta hai aur uski aankh nikal kar kaat dete hai... Jisse Fred ko kaafi dard hota magar pehle se thodi rahat bhi milti haihai qyuki keeda uski aankh ko. Kaat raha tha..

Fred... Yeh chaaku tum mujhe dedo jisse mai David se khud ko bacha lunga... Jay saaf mana kar deta aur dono mai ladai shuru ho jaati hai... Ladai rokne ke liye Riya Fred ke sir par bada sa patthar marti haihai tab galti se woh chaaku uske muh mai ghuss jata hai aur uski maut ho jati hai... Dono ko bhut dukh hota hai... Uske baad Riya Fred ke muh se chaaku nikaal leti hai aur Jay ke gale par laga deti hai...

Jay... Kya kar rahi ho tum pagal toh nahi ho gayi...
Riya... Iss sabme David ki nahi hum sab ki galti hai.. Qyuki hum log hi use uss farmhouse mai chod kar chale aaye the.. Jaha usss kisaan ne uski Parwarish karke use zaalim insaan bana diya.. Aur humne toh uske madat bhi nahi ki thi aur police ko bhi uske baare mai nahi bataya tha..

Magar tabhi David aaker Riya ko pakad leta aur usse chaaku bhi chin leta hai...

Jay... Please hume yaha se jane do hum maante hai ki humne bachpan mai jo bhi tumhare saath kiya woh galat uske mai hum kaafi sharminda hai.. magar please hume maaf kar do...

David bhi Jay ki baatein sun thoda shant ho jata hai aur Jay dhere dhere aage badh uska mask hata deta hai.. Aur dheere se uske haath se chaaku bhi cheen leta hai.. Lekin woh Riya ko nahi chodta qyuki sabse jayada agar use kisi ne pareshaan kiya tha toh woh Riya hi thi... Aur hathon se hi uska gala daba kar use marne ki koshish karta hai hai... Jise dekh Jay peeche se use ek chaaku maarta hai jisse woh gayal ho jata hai... Jay turant hi dusra waar kar deta hai jisse pehle David palat jata hai aur woh chaalu Riya ke pet ko cheer deta hai... Uske baad Riya bhi ek taraf gir jati jiske muh se makdi ke bache nikal rahe the aur woh mar jaati hai.. David turant baad hi Riya ke pet se chaaku nikaal leta hai..

Jay akela hi bacha tha.. Aur David bhi gayal tha woh turant waha se nikal kar bhaag jata hai... Magar usse farmhouse se bahar nikalne ka rasta abhi bhi nahi milta hai kuch hi der mai David fir se use pakad leta aur use bandh kar waise hi paani mai daalkar maarne ki koshish karne lagta hai lekin yaha Jay ke hath ek lohe ka pipe aata hai jise utha kar woh David ke muh par jor daar waar karta aur ek nahi do teen chaar.. Uske baad woh usi pipe se se khidki ko road deta hai aur usme se bahar nikal kar farmhouse se door bhaag jaata hai... Jungle mai David fir bhi uska peecha nahi chodta aur use pakad leta hai.. Woh gala daba kae Jay ko maarne ki koshish karta hai lekin tabhi woh chaaku jo farmhouse se utha laaya tha woh David ke seene mai maar deta hai aur waha se bhaag jata hai...

Uske baad Jay waha ke hi police station me jaake unhe sabkuch bata deta hai... Jaha police waale uski madat kar use wapas uski family ke paas pahuncha dete dete hai... Fir apni family se milta hai jo uske liye kaafi pareshaan thi... Kaafi der tak woh unke gale lag kar rota hai aur isi ke saath story khatm ho jaati hai...

After 10 years....

Jay ki beti Tiya badi ho gayi thi aur apne doston ke saath use jungle me chuttiyan manaane ke liye aa jati hai.. Tabhi woh doston ko farmhouse ki kahani suna rahi hoti hai ki police ko abhi bhi David ki lash nhi mili thi jab woh yeh baat bata hi rahi hoti hai ki David peeche se aakar unhe pakad leta hai....


The End....
Bhai yr kya likho ho story bhut achi hai ek web series ban skti hai ispe ya ek long story sex ko skip krke story bhut achi lgi
Aisa nhi lga time waste ho raha hai boring nhi tha maja aya aisa lag raha tha ab kya hoga
10/08
 

Jaguaar

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बात एक रात की
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फ़रवरी तेरह तारीख
अपना सामान क्लॉक रूम में रख कर मैं स्टेशन से बाहर निकला l बाहर ऑटो वाले मुझे घेर कर किसी होटल या लॉज में ले जाने के लिए होड़ में लग गए l मैं सबको नकारते हुए आगे बढ़ता चला जा रहा था l मेरी इस बेरुखी भरी व्यवहार से, यूँ आगे चले जाने से मेरे बारे में कुछ आपस में भद्दी गालियाँ देते हुए वापस चले गए l सीधे रास्ते पर चलने लगा तो एक बोर्ड दिखा पॉकेट मार से सावधान, मैंने तुरंत अपनी जेब टटोली, हाँ पर्स और मोबाइल अपनी जगह सुरक्षित था l चिंता की कोई बात नहीं थी क्यूंकि मैंने अपना कुछ सामान क्लाक रूम में जो रख छोड़ा था l चूँकि रात का समय था और कल सुबह मैं अपनी मंजिल की ओर चला जाने वाला था इस खुशी में रात को ही मैंने विशाखापट्टनम शहर को घुम कर देखने का निश्चय किया l हाथ घड़ी देखा रात के साढ़े ग्यारह बज रहा था l थोड़ी दूर रास्ते के किनारे मुझे एक ईरानी चाय की दुकान दिखी मैं उसी
दुकान की ओर चला l एक चाय माँगा, बहुत ही बढ़िया चाय था l शरीर में यात्रा जनित जो थकावट और चिढ़चिढ़ापन था कुछ हद तक दुर हो गया l चाय पीते पीते मुझे एक गाइड बुक दिखी जो उस दुकान पर टंगी हुई थी, ग्रेटर विशाखापट्टनम गाइड बुक, बीस रुपये की थी मैंने चाय की पेमेंट कर लेने के साथ साथ उस गाइड बुक भी ले लिया l चलते चलते बुक खंगालने लगा l आर के बीच सिर्फ दो किलोमीटर दुर था और मैप भी बना हुआ था l मैंने मोबाइल पर नैविगेशन ऑन किया और मैप पर अपनी लोकेशन को निश्चिंत करने के बाद मैप के अनुसार बीच की ओर जाने लगा l

पुरे बीस मिनट चलने के बाद मुझे समंदर की लहरों की आवाज़ सुनाई देने लगी और उमस भरी वातावरण में ठंडी ठंडी हवाओं का एहसास शरीर के साथ साथ मन में भी एक स्फूर्ति का संचार कर रही थी l मैं सड़क से नीचे उतरा तो पाया समंदर की बीच में अभी भी बहुत भीड़ थी l कहीं कुछ लड़के किसी पॉपकर्ण के दुकान पर खड़े होकर ल़डकियों को ताड़ रहे थे तो कहीं कुछ जोड़े किसी आइसक्रीम पार्लर में बैठ कर आइसक्रीम खा रहे थे l पुरा का पुरा बीच भुने चिकन और अमलेट के खुशबु से महक रहा था l मैंने घड़ी देखी बारह बज रहे थे l मैं हैरान था इतनी रात होने पर भी शहर जाग रहा था l पता नहीं इनके घरों में इन लोगों को ढूँढ भी रहे होंगे या नहीं l तभी एक पुलिस की वैन माइक पर एनाउंसमेंट किया पंद्रह मिनट में दुकानों को बंद का और लोगों को अपने घर जाने के लिए l अभी तक जो भीड़ वहां पर भिनभिना रही थी सब के सब कुछ ही पल में तितर-बितर होने लगे l दुकानें भी बंद होने लगी l मैंने एक दुकानदार से पूछा तो बोला यह यहाँ का नियम है रात के बारह बजे के बाद और सुबह पांच बजे तक बीच में कोई नहीं होना चाहिए l मैंने पुछा क्यूँ, तो उसने कहा कि रात बढ़ने के साथ साथ बीच के रेत में ही लड़के लड़कियाँ मस्ती करने में लग जाते हैं l इसलिए पुलिस पहले खदेड़ती है उसके बाद अगर कोई बीच में मस्ती करते पकड़ा गया तो पहले तो उन्हें थाने ले जाते हैं फिर उनकी जमकर धुलाई करते हैं, और फिर अच्छे से वसूली भी करते हैं l

इतना कह कर वह जल्दी जल्दी अपनी दुकान की शटर बंद कर निकल जाता है l मैं हैरान था को लोग पुलिस के वॉर्न करने तक रुक रहे हैं और वॉर्न के बाद ऐसे गायब हो रहे हैं जैसे गधे के सिर से सिंग l खैर मुझे भी अब निकलना था क्यूंकि मैं पुलिस के हत्थे चढ़ना नहीं चाहता था इसलिए मैंने भी अपना एक रास्ता चुन लिया और निकल लिया l एक जगह पहुँच कर थोड़ा कन्फ्यूज हुआ तो गाइड बुक ढूंढने लगा पर तभी मुझे मालूम हुआ कि इस आपाधापी में गाइड बुक कहीं खो गई है, मोबाइल निकाल कर देखने से अब कोई फायदा भी नहीं l खैर अब मैं बीच से थोड़ा दुर तो था चूंकि मुझे शहर में घुमते हुए रात बितानी थी इसलिए जहां जहां जैसा भी रास्ता दिखने लगा मैं आगे बढ़ता चला गया l

किसी दार्शनिक ने कहा था खुद को ढूंढने के लिए पहले खुद को खोना पड़ता है l पता नहीं कौन कहा था, किस गरज में कहा था पर आज वह बात याद आ गया l मैं मुस्कराते हुए खुद को खोने के लिए आगे बढ़ता चला गया l ताकि जब लगे के मैं खो गया हूँ तब खुद को ढूँढ निकालूँगा l ऐसे ही सोचते हुए कुछ दुर जाने के बाद देखा कि दो गुंडे मवाली किस्म के लोग एक लड़की को घेर कर छेड़ रहे थे l शायद वह लड़की बीच से निकल कर कहीं जाना चाहती थी l लड़की की वेश भूषा किसी कॉल सेंटर में काम करने वाली जैसी लग रही थी l वह लड़की उनसे डरी हुई लग नहीं रही थी, उनकी हरकत पर भद्दी गालियाँ भी दे रही थी l मैं चलते चलते उनके करीब पहुँचा l इतने में एक बंदे ने लड़की का हाथ पकड़ कर पास खड़े एक ऑटो की ले जाने लगा और दूसरा बंदा भाग कर उस ऑटो के ड्राइविंग सीट पर बैठ गया l समझते देर ना लगी वह ऑटो उन दोनों की थी लड़की चिल्ला तो नहीं रही थी पर अपनी जोर लगा कर विरोध कर रही थी l मैंने बरबस पुछ लिया

मैं - यह... यह क्या कर रहे हो तुम लोग..

पहला - तुझसे मतलब ...(वही बंदा जो लड़की को खिंच कर लिए जा रहा था) चल फुट ले यहाँ से...

मैं - कमाल करते हो.... एक तो लड़की से ज़बरदस्ती कर रहे हो... और उपर से धमका भी रहे हो...

तभी और दुसरा बंदा जो ड्राइविंग सीट पर बैठा था तुरंत ऑटो से उतर कर मुझसे कहा

दुसरा - ऐ हीरो,... फुट ले यहाँ से... चला जा यहाँ से... तेरी हीरो गिरी किसी भले घर की लड़की के लिए रख.... यह एक रंडी है... और हमें इसकी आज बजानी है...

मैं - रंडी हुई तो क्या हुआ... यूँ किसी के साथ... चाहे कोई भी हो... ज़बरदस्ती करना ठीक नहीं है....

पहला - ओए लवड़े .. तुझसे मतलब.... साली... चार्ज बहुत लेती है.... बहुत दिनों से नजर थी,.... कमिनी आज हाथ लगी है... वह भी अकेली... आज तो फ्री में ही कूटेंगे.... अगर तेरे को भी मजा लेनी हो तो लैन में रहीयो,... तेरा नंबर तीन... समझा...

मैं - अगर चार्ज लेती है तो चार्ज देने लायक तो बनो... जाओ इसे जाने दो... रोटी और बोटी के लिए गटर छाप कुत्ते ज़बरदस्ती करते हैं... मर्द नहीं...

दुसरा - अबे भोषड़ी के... ज्यादा मर्द मत बन... वर्ना ऐसा दर्द होगा के अपनी बीवी के काम भी नहीं आएगा....

मैं - अरे यार... तुम उसे जाने दो...

दुसरा - क्यूँ जाने दें... साली रोज पैसे लेकर अपनी खुजली मरवाती है... आज फ्री में मरवाएगी..

मैं - कैसी जेहनीयत है तुम्हारी... एक रंडी के लायक भी नहीं हो... तुम में और गटर में लौट रहे कुत्तों में क्या फर्क़ है... तुम जिस गली में... या मुहल्ले में रहते होगे... लड़कियाँ और औरतें ही नहीं... लोग भी ज़रूर रास्ते बदल कर चले जाते होंगे...

दुसरा - (ऑटो की टूल बॉक्स से एक रॉड निकाल कर) ऐ हरामी... बहुत हो गया... चल निकल...

मैं थोड़ा पीछे हटा, तभी पहले वाला जो लड़की को पकड़े हुए था वह अपने साथी से बोला

पहला - एक मिनट... इसको जाने मत दे... (तभी दुसरा अचानक अपनी जगह बदल कर मेरे पीछे आ गया)

दुसरा - क्या हुआ... इसे क्यूँ रोकने को बोला....

पहला - बड़ा लायक होने की बात चोद रहा था... मर्द बन रहा है... यह कितना लायक है देख लेते हैं... चल इसी के ही जेब से माल बटोर लेते हैं...

दुसरा - हाँ यार... आज तो माल भी अपना... और छोकरी भी अपनी... दोनों की बजाते हैं... (मुझसे) ऐ हीरो.... अपनी खैरियत चाहता है तो जेब में जितना भी माल है निकाल...

मैं - (अपना पर्स को आधा निकाल कर) निकाल दूँगा... पहले लड़की को जाने दो...

पहला - (अपने साथी से) बस बहुत हो गया... फोड़ साले की खोपड़ी को...

दुसरा दो हाथ से रॉड पकड़ कर मुझ पर हमला बोल दिया पर था वह कच्चा l मैंने अपनी दोनों हाथों से उसके हाथों को पकड़ लिया और जान बुझ कर पीछे हटते हुए पहले वाले और लड़की दोनों से टकरा गया l लड़की के साथ साथ हम तीनों गिर गए l मैंने मौका देख कर लड़की को भाग जाने के लिए कहा l लड़की के लिए मौका बढ़िया था l वह उठ कर भागी l इससे गुस्साए दोनों पागल से हो गए l पहले वाला उठ कर मुझ पर लात और घुसों की बरसात करने लगा और मैं मार खाता गया l वह दुसरा वाला मुझ से अपना हाथ व रॉड छुड़ाने की कोशिश करता रहा यहाँ पर भी वह कच्चा निकला, कमबख्त रॉड भी नहीं छिन पाया l मार खाते खाते मेरी हालत खराब हो गई l इतने में पुलिस की एक पेट्रोलिंग वैन आ गई l हम तीनों पकड़ लिए गए l पुलिस ने हम तीनों को वैन में बिठा कर थाने ले गई l वैन के अंदर वह दोनों मुझसे बिनती भरे नजरों से सुलह की इशारे से गुहार लगा रहे थे l

~~~थाने में~~~

अब चूँकि मैं मार खाया हुआ था तो थानेदार ने पहले मेरी स्टेटमेंट लेने के लिए बुलाया l

थानेदार - क्या नाम है तुम्हारा...

मैं - जी मेरा नाम....

थानेदार - हाँ बे तेरा नाम... क्या है तेरा नाम...

मैं - झिझकते हुए... उ... उ... उषा..

थानेदार - क्या...

मैं - जी उषाकांत चौधरी...

थानेदार - नाम बताने के लिए इतना झिझक क्यूँ रहा था...

मैं - जी बचपन से ही... मेरे आसपास के लोग... दोस्त सब मुझे उषा उषा कह कर चिढ़ा रहे थे... इसलिए...

थानेदार - ह्म्म्म्म तो... (मैं चुप रहा) झगड़ा किस बात का हो रहा था...

मैं - झगड़ा... वह राहजनी का था... यह लोग मुझे लुटना चाह रहे थे... पैसे घड़ी और मोबाइल सब....

थानेदार - अच्छा... तो यह तुझे लुटना चाहते थे... रात के साढ़े बारह एक बजे तु घर में ना हो कर वहाँ क्या कर रहा था...

मैं - सर मैं वाईजाग में अभी कुछ ही घंटे पहले उतरा हूँ... बीच घूमने गया था... जब बीच से चले जाने के लिए पुलिस एनाउंसमेंट हुई... तो मैं वापस स्टेशन लौट रहा था... तो रास्ते में मुझे अकेला पा कर... यह दोनों मुझे लुटने के लिए हमला बोल दिया...

थानेदार - ओ... तो तु यहाँ का नहीं है.... घूमने आया है... (पास खड़े कांस्टेबल से) उन दोनों को बुलाकर लाओ...

कांस्टेबल तुरंत बाहर गया और उन दोनों को अपने साथ लेकर अंदर आया l थानेदार उनको देखा और पुछा

थानेदार - क्या करते हो तुम दोनों...

दोनों - जी ऑटो चलाते हैं सर...

थानेदार - इसके साथ किस बात की मार पीट हो रही थी...

पहला - सर यह आदमी एक लड़की को लेकर हमारे ऑटो के पास आया... और किसी सस्ती लॉज को ले जाने के लिए कहा... हमने मना किया तो हम से झगड़ने लगा... गंदी गंदी गालियाँ बकने लगा... हम से रहा नहीं गया... हमने कूट दिया...

उनकी यह स्टेटमेंट सुन कर मैं हैरान रह गया l अगर पुलिस उनकी बात मान लेती है तो मैं बुरी तरह से फंस जाऊँगा l

थानेदार - (कड़क आवाज़ में) बे हरामियो... मुझसे झूठ बोल रहे हो...

दुसरा - नहीं सर हम झूठ क्यूँ बोलें... यह आदमी झूठ बोल रहा है... इस दो कौड़ी के आदमी को हम क्यूँ लूटें... और हम कैसे हैं... आप चाहें तो हमारी ऑटो ड्राइवर यूनियन से... हमारे बारे में पता लगा सकते हैं...

थानेदार - तुमको कैसे मालुम हुआ... यह आदमी झूठ बोल रहा है... जब कि तुम लोग तो इस कमरे के बाहर थे...

दुसरा - साब... हम इसी कमरे के बाहर ही थे.... सब सुन रहे थे... साब... एक तो यह बाहर का... हम ठहरे लोकल... आपको हम पर ज्यादा भरोसा करना चाहिए...

थानेदार - ठीक है... (हम तीनों से) सुलह चाहते हो या केस...

वे दोनों - सर हम से नहीं... इस लड़की छाप उषा से पूछिये... यह क्या चाहता है... अगर केस चाहिए तो केस होगा... अगर सुलह चाहिए तो सुलह होगा....

थानेदार के साथ साथ उस कमरे में मौजूद सभी मेरी ओर देखने लगे l मैं गहरी सोच में था एक तो मैं बाहरी और यह लोग लोकल l अगर केस हो गया तो पता नहीं कितने दिन अंदर रहना पड़ेगा l

मैं - (हाथ जोड़ कर) सर... हाँ मैं बाहरी हूँ... आप देख सकते हैं... मार मैंने खाई है... पर मैंने कोई शराब नहीं पी हुई है... पर आपको जो सही लगे... वही कीजिए...

थानेदार - ओए हीरो.... ज्यादा फिल्मी डायलॉग मत मार.... तेरे डायलॉग से यहाँ कोई सेंटी नहीं होने वाला... (हम तीनों से) चलो जितना भी माल है... सब निकालो.... और बिना देरी किए फुटो...

वे दोनों - सर... कोई तो भाव बोलिए... घर पर ख़बर नहीं कर सकते... सर... कुछ तो रहम कीजिए... लोकल हैं...

थानेदार - बोला ना जितना भी माल तुम लोगों के पास है... सब हगो...

वे दोनों अपनी शर्ट की जेब से, पैंट की जेब से और जहां जहां कपड़ों की फ़ोल्ड थी और सिलाई हुई थी हर उस के छेद से पैसे निकाल कर दिए लगभग तीन चार हजार l उनके पास इस वक़्त इतने पैसे देख कर हम सभी हैरान थे l उनके पैसे समेट लेने के बाद थानेदार ने उन्हें तुरंत निकल जाने के लिए बोला l उनके जाने के बाद थानेदार मेरी ओर देखने लगा l

मैं - सर मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं...

थानेदार - अबे भोषड़ी के... जितना है... उतना निकाल... वर्ना थाने में जितने भी पेंडिंग केसेस है.. सब के सब तुझ पर ही चेप दूँगा...

मैं अपनी जेब टटोलने लगा l मेरा सिर चक्करा गया l मेरा पर्स गायब था l मैं बड़ी दयनीय दृष्टि से थानेदार को देखने लगा l मेरी हालत देख कर थानेदार कांस्टेबल पर चिल्लाया

- ऐ पाण्डु... इसकी मोबाइल ज़ब्त कर... फाइल ला... और अंदर डाल इस हरामी को...

वह कांस्टेबल मेरी कलर पकड़ कर मुझे खिंचते हुए हवालात की ले जाने लगा l तभी एक आवाज से वह रुक गया मैं भी उस आवाज की ओर देखने लगा

- कहाँ ले जा रहे हो इन्हें....

वही लड़की जिसके साथ वह ऑटो वाले बदतमीजी कर रहे थे l वह खड़ी थी l अंधेरे में उसे ठीक से देखा नहीं था l पर अब उसे देख रहा था l बहुत ही खूबसूरत थी l उन्हीं कपड़ों में थी l जिंस, टॉप और टॉप के ऊपर जिंस की स्लीव लेस जैकट l लड़की की आवाज़ सुन कर थानेदार अपनी केबिन से बाहर आता है l

लड़की - सर इन्हें सलाखों में क्यूँ डाल रहे हैं...

थानेदार - तुम से मतलब...

लड़की - सर इन्होंने ही मुझे उन लफंगों से बचाया...

यह सुन कर थानेदार के माथे पर बल पड़ जाता है l वह मेरी तरफ देखता फिर लड़की से पूछता है l

थानेदार - मुझे पुरी बात बताओ...

लड़की कहती है कि वह अपने दोस्त के साथ बीच गई थी l पुलिस के वार्न करने के बाद जब ऑटो से लौट रही थी वह ऑटो वाले उससे बदतमीजी करने लगे थे l तभी मैं उसे बचाते हुए यहाँ फंस गया था l

थानेदार - हूँ... तो तुम इस वक़्त क्यूँ आई... और तुम्हें कैसे मालुम हुआ कि यह यहाँ पर है...

लड़की - सर मैं वहाँ से गई नहीं थी... बस छुप गई थी.... जब पुलिस सबको उठा ले आई... तो मैं अपनी जगह से निकल कर झगड़े वाली जगह पर पहुँची तो देखा... इन साहब का पर्स गिरा हुआ था... तो लौटाने और पुलिस को सब सच बताने आ गई...

थानेदार - ह्म्म्म्म... (एक कुटील मुस्कान, मुस्कराते हुए) वाह क्या कहानी है... (मेरी ओर इशारा करते हुए) यह दो ऑटो वालों से... एक रंडी को बचाता है... और पुलिस के हत्थे चढ़ जाता है... और उसे बचाने वही रंडी थाने दौड़ी चली आती है... अरे ओ पाण्डु..

पाण्डु - जी सर...

थानेदार - कुछ समझे

पाण्डु - जी सर...

थानेदार - क्या समझे...

पाण्डु - यही की... बहुत याराना लगता है...

सब हँसने लगते हैं l एक अस्वाभाविक परिस्थिति थी l वह लड़की उन सबके हँसी के सामने शर्मिंदगी से सिकुड़ जा रही थी l

थानेदार - मैं तुझे बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ मिडल क्लास रंडी चोदुओं की मिया खलीफा... तेरा नाम सबा आलम है... है ना..

लड़की - (जबड़े भींच कर, पर नजरें मिलाते हुए) जी...

थानेदार - आह हा... क्या टाइम पर मिली है... चल दे उसका पर्स...

सबा मेरी पर्स, थानेदार को सौंप देती है l उसमें जितने भी पैसे थे वह थानेदार निकाल कर अपनी जेब में रख लेता है, वैसे ज्यादा नहीं थे सिर्फ दो हजार रुपये थे और उसमें मेरी आधार कार्ड को देखने के बाद मुझे मेरी पर्स लौटा देता है l

थानेदार - (सबा से) चल तेरे पास जितना माल है सब निकाल...

सबा - सर मेरे पास कुछ भी नहीं है....

थानेदार - क्यों... आज कोई ग्राहक नहीं मिला क्या तुझे... (सबा चुप रहती है,) (मुझसे) ऐ हीरो... अब चल निकल यहाँ से...

मैं - सर जब आप सारे पैसे रख लिए... बदले में... आप इन्हें भी छोड़ दीजिए...

थानेदार - ओ.. हो... अरे ओ पाण्डु... क्या समझे...

पाण्डु - बस इतना सर... बहुत याराना लगता है...

थानेदार - चल अंदर डाल इन दोनों को....

सबा - (एक मजबुत आवाज में, अपनी दोनों हाथ को कैंची बना कर ) क्यूँ...

थानेदार - और रिपोर्ट बनाओ दोनों पर.... रेड हैंडेड प्रस्टीट्युशन का चार्ज लगाओ...

सबा - (झल्लाहट में,चिल्लाते हुए) व्हाय एंड फॉर व्हाट...

थानेदार - साली.... चुदवाते चुदवाते बड़ी अंग्रेज़ी सीख गई है... बहुत चपड़ चपड़ कर रही है... ऐ पाण्डु... चल बता इसको... अब अंदर होगी किसलिए...

पाण्डु - तेरे पास पैसे नहीं है इसलिए.... (सब हँसने लगते हैं सिवाय मेरे और सबा के)

सबा - क्यों सरकार तुमको तनख्वाहें नहीं दे रही है... या सरकारी तनख्वाह कम पड़ रहे हैं... जो दूसरों की गाढ़ी कमाई लुट रहे हो...

सब की हँसी रुक जाती है l थानेदार गुस्से से पागल सा हो जाता है l तेजी से सबा के पास आकर उसकी गर्दन पकड़ कर दीवार से लगा देता है l अपने बाएं हाथ से सबा की एक चुची को जोर जोर से मसलने लगता है l

थानेदार - कमिनी... रंडी... हरामजादी... हजार दो हजार के लिए अपनी कपड़े उतार कर... नंगी हो जाने वाली... समाज सेवी बनने चली है... मुझे भाषण दे रही है.... आंदोलन करेगी... हूँ...

सबा - (बिना डरे) हाँ मैं रोज हजार दो हजार के लिए अपनी कपड़े उतारती हूँ... नंगी हो जाती हूँ... तुम अपना बताओ... तुम तो वर्दी पहने हुए हो... तो तुम क्यों हजार दो हजार के लिए... रोज अपनी वर्दी की इज़्ज़त उतार रहे हो....

थानेदार - कमिनी... (कह कर सबा की पहनी हुई टॉप को फाड़ देता है, और सबा को धक्का देकर नीचे गिरा देता है)

तभी अप्रत्याशित रूप में एक औरत आ पहुँचती है l कोई बड़ी अधिकारी थी, उसके साथ शूट बूट पहने कुछ और अधिकारी भी थे l

औरत - यह क्या कर रहे हो मिस्टर...

थानेदार इस वक़्त इन लोगों को देख कर पहले हैरान हो जाता है और फिर खुद को सम्भाल कर पूछता है l

थानेदार - कौन हो तुम लोग... और यहाँ क्या करने आए हो इस वक़्त...

औरत - मैं डिप्टी एसपी विजिलेंस... आरती मिश्रा हूँ... आज की रात तुम्हारे खिलाफ कार्रवाई की मैजिस्ट्रेट ऑर्डर की तामील करने आई हूँ...

थानेदार - क्या... क्या किया है मैंने... और यह क्या टाइम है... या यह कोई तरीका है...

आरती - शट अप... जस्ट कीप योर माउथ शट... तुम शाम से लड़के ल़डकियों को गैर कानूनी तरीके से परेशान कर रहे हो और उनसे पैसे ऐंठ रहे हो...

थानेदार की घिघी बंध जाती है l वह फिर भी जोर लगा कर पूछता है

थानेदार - क्या... क्या सबूत है... झूठा इल्ज़ाम मत लगाईये मुझ पर...

आरती - अच्छा तो सबूत चाहिए... तो सुनो मिस्टर इंस्पेक्टर... तुम आज शाम आठ बजे से ही लाइव चल रहे हो... पुलिस डिपार्टमेंट की साइट पर... हमने ही पाण्डुरंग को बटन कैमरा से तुम्हारा लाइव करा रहे थे... (थानेदार गुस्से से पाण्डु को खा जाने वाली नजरों से घूरने लगता है) अरेस्ट दिस बास्टर्ड...

आरती के साथ जो लोग आए थे सब थानेदार को दबोच लेते हैं l आरती सबा के पास आती है और एक चादर निकाल कर सबा को ढक देती है l

आरती - आई एम सॉरी.. बट यु आर अ ब्रेव गर्ल... तुमने अपने दोस्त को बचाने के लिए... बड़ी हिम्मत दिखाई है...

सबा - थैंक्यू मैम... और भी बहुत बुरा हो सकता था... पर आपने बचा लिया... पर एक रिक्वेस्ट है...

आरती - हाँ समझ गई... डोंट वरी... तुम लोगों का नाम नहीं आएगा...

~~~थाने के बाहर~~~

कुछ देर बाद मैं और सबा दोनों थाने से बाहर थे l रोड पर चल रहे थे l दोनों खामोश थे l मुझे लगा मुझे सबा को थैंक्स कहना चाहिए l

मैं - थैंक्स...

सबा - किस लिए...

मैं - वाकई... आप ने बहुत हिम्मत दिखाई और... मुझे बचाने चली आई...

सबा - आपने भी तो मुझे बचाया...

फिर दोनों के बीच खामोशी छा गई l हम दोनों चल रहे थे l इस बार सबा ने सवाल किया l

सबा - रात के दो बज रहे हैं.. आप अब कहाँ जाएंगे..

मैं - सोच रहा हूँ... वापस स्टेशन चला जाऊँ... वैसे भी कल वाईजाग में थोड़ा काम है... और शाम को वापसी का ट्रेन भी है...

सबा - वैसे बुरा ना मानें तो एक बात पूछूं...

मैं - जी पूछिये...

सबा - आप... बीच की ओर क्यूँ जा रहे थे...

मैं - मैं चांदवाली ओड़िशा में रहता हूँ... मुझे समंदर की हवा बहुत अच्छी लगती है... और सुबह का समंदर को चीरते हुए सूरज को निकालते हुए देखना अच्छा लगता है... इसलिए बीच की ओर जा रहा था...

सबा - ओ... अगर बुरा ना माने तो... यहाँ बीच के पास... मछुआरों के कालोनी के बगल में... मेरी एक खोली है... रात वहाँ गुज़ार कर सुबह सुरज को निकलता देख कर आप जा सकते हैं...

मैं रुक गया और सबा को हैरानी से देखने लगा l सबा मेरे मन में चल रही उथलपुथल को समझने की कोशिश करते हुए

सबा - देखिए... आपके चेहरे पर.. हाथ पर चोट लगी है... मेरे बसेरे में थोड़ी ड्रेसिंग कर लीजिए... फिर चले जाइए...

कुछ देर बाद हम सबा के खोली में थे l सबा डेटॉल से मेरे चेहरे पर जो घाव लगे थे साफ कर रही थी l

सबा - मैं... वारंगल से हूँ... गरीब घराने से हूँ... अम्मा अब्बा बचपन में ही गुजर गए... तो दादी ने पाला पोसा... (घाव में जलन होते ही मैं सिसक गया तो सबा फूंकने लगी) फिर एक दिन दादी की भी इंतकाल हो गया... मैं बड़ी हो रही थी... ऐसे में मेरे मामू मुझे अपने घर ले गए... अपने घर में काम काज के लिए मामी को एक नौकरानी की जरूरत थी... इसलिए... और एक दिन जब घर में कोई नहीं था... तब मुझे अपने बिस्तर पर लेकर मेरा अपना मामू रौंद डाला... यह बात मामी को मालुम भी हुआ... पर वह चुप रहीं... (बैनडेड निकाल कर घाव पर लगाने लगी, फिर मेरे हाथ को डेटॉल से साफ करने लगी) मैं रोज लूट रही थी... घुट रही थी... ऐसे में पड़ोस के सरफराज नाम के लड़के ने मुझसे हमदर्दी जता कर मुझसे करीबी बढ़ाई... मैं भी उससे दिल लगा बैठी... उसे मुझ पर गुजरी सारी बातेँ बताई... तो उसने मुझे हौसला दिया... अपनी मामी की सारे गहने चुरा कर उसके साथ भाग जाने के लिए कहा... और (एक बेज़ान सी हँसी हँसते हुए) मैंने वही किया... मुझे लगा मैं कैद से आजाद हो गई... हम दोनों एक लॉज में सोये हुए थे... तब अचानक कोई दरवाजा खटखटाया.. मैं उठी तो देखा बिस्तर पर मैं अकेली थी... सरफराज नहीं था... मैंने दरवाजा खोला तो सामने पुलिस थी... रेड पड़ी थी... धंधे की जुर्म में मुझे अरेस्ट किया गया... मुझे समझते देर ना लगी... सरफराज सारे पैसे और गहने लेकर फरार हो गया था... मैंने पुलिस को सब सच कहा... तहकीकात के दौरान मेरे मामू और मामी मुझे पहचानने से इंकार कर दिया... तब उसी लॉज के मालिक ने मेरी ज़मानत करायी... और उसके बाद... मैं इस धंधे में आ गई.... (मेरे हाथ पर पट्टी बाँध चुकी थी)

मैं सब सुनता रहा पर चुप रहा, मेरी चुप्पी शायद सबा को चुभ रही थी इसलिये उसने मुझसे पूछा l

सबा - वैसे आपकी क्या कहानी है... (मैं फिर भी चुप रहा, सबा को बुरा लगा) ओह सॉरी... हर किसीसे मेरी पहचान... बस एक रात की होती है... सॉरी अगैन...

इतना कह कर वह फर्श पर अपने लिए बिस्तर लगा कर सो जाती है l मुझे लगा मेरी चुप्पी से वह उखड़ गई पर मैं अपने बारे में क्या कहूँ और क्यूँ कहूँ l मेरी छोटी सी मदत के चलते सबा ने मेरे लिए अपना बिस्तर छोड़ कर नीचे सो गई थी l मैं बिस्तर पर लेट गया और अपनी जिंदगी और आज जो हुआ उन सब हादसों को याद करने लगा l शायद इसीलिए मुझे नींद ही नहीं आ रही थी l मैं बिस्तर से उठा और सबा की ओर देखने लगा l मद्धिम रौशनी में वाक़ई बहुत ही आकर्षक लग रही थी l सोई हुई बड़ी मासूम लग रही थी l मैं अपनी नजरें फ़ेर कर कमरे में नजरें घुमाने लगा l मुझे नहीं दिख रहा था l इसलिए मैंने अपनी मोबाइल की रिकॉर्डिंग ऑन किया और अपने बारे में कहने लगा...

"सबा जी
आपकी कहानी में आप बहुत हिम्मत वाली हो l रिश्तों में, एहसासों में, जज्बातों में धोखे के बावजुद ना आपने कभी हिम्मत हारी ना ही कभी खुद को अपनी नजरों से गिराया l पर मेरी कहानी में मेरा किरदार आपकी उलट है l

मैं एक लोअर मिडल क्लास परिवार से था l दो बहनों में एक भाई l दीदी को ब्याहने के बाद पिताजी चल बसे l ऐसे में माँ पर सारा बोझ आ गया l जीजाजी की नीयत मेरी दूसरी बहन पर खराब हो गई थी l जब भी मौका मिलता था अपनी हवस पुरा कर लेते थे l मैं तब चौदह साल का था l एक दिन घर पर माँ नहीं थी मैं अपनी दीदी के साथ घर पर था l डोर बेल बजी l दीदी दरवाजे तक जा कर फिर दौड़ कर वापस आई l मुझसे कहने लगी मिन्नत करने लगी के भाई प्लीज कुछ भी हो जाए आज तु घर से जाना नहीं l मैंने उसे हाँ कहा l दीदी जाकर दरवाजा खोला तो जीजाजी आए हुए थे l पता नहीं उन दोनों के बीच क्या बातचीत हुई l जीजाजी सीधे मेरे पास आए और पाँच सौ रुपये देकर बोले उषा... जा मेरी स्कूटर लेकर जा... बगल वाली सिनेमा हॉल में... xxxx सिनेमा लगी है... देख कर आ...
मैं तब स्कूटर चलाने के लालच में आ गया l मेरी दीदी रोनी सूरत में मुझसे ना जाने के लिए इशारा कर रही थी पर मुझ पर स्कूटर चलाने की और सिनेमा देखने की लालच हावी हो गई थी l मैं बाहर चला गया l जब घर वापस लौटा तो पता चला मेरे जाने के बाद माँ आई थी जीजाजी को रंगे हाथों पकड़ लिया था l रिश्ते और विश्वास में धोखे के चलते माँ और दीदी दोनों ने आत्महत्या कर ली थी l मैं उसी दिन अपनी नजरों से गिर गया था l सबकी क्रिया कर्म के बाद मैं वह गांव छोड़ कर चांदवाली चला गया l वहीँ पर मेरे एक दोस्त ने मुझे एक होटल में साफ सफाई के काम में लगा दिया l एक दिन कुछ लड़के उसे मारने आए थे l उन्हें देख कर मैं डर के मारे छुप गया l वह लड़के उसे मार मार कर अधमरा करने के बाद उसे वहीँ छोड़ कर चले गए l मैं जब अपने उस दोस्त को उठाने के लिए गया तो उसने मेरे मुहँ पर थूक दिया और मेरी बुजदिली पर गाली देने लगा l मैं पहले ही अपनी नजरों में गिरा हुआ था और भी गिर गया, क्यूँकी अपने दोस्त को मुसीबत में देख कर भी उसे अकेला छोड़ दिया l तुम्हें हैरानी हो रही होगी इतना डरपोक कैसे आज तुम्हारे लिए गुंडों से भीड़ गया l वज़ह तुम नहीं थी l मेरा अपना एक निजी स्वार्थ था l मेरे मालिक ने मुझ पर विश्वास कर दस लाख रुपये वाईजाग में श्री राम चिट में जमा देने के लिए भेजा था l मेरे मन में लालच आ गया l इसलिए मैं उन गुंडों से थोड़ी मार खा कर पुलिस के केस के दम पर अपने मालिक को विश्वास दिला कर पैसे हड़प लेना चाहता था l पर किस्मत को कुछ और ही मंजुर था l सबा जिंदगी में पहली बार मैंने बुरे काम के लिए ही सही हिम्मत तो कि l पर उस हिम्मत के पीछे तुम थी l तुम्हारे और मेरे बीच में अंतर यह है कि l तुमने हर जगह विश्वास खोया है और मैंने हमेशा विश्वास हरा है l तुमने कभी हिम्मत नहीं हारी और मैंने कभी हिम्मत नहीं की l पर आज सच में हिम्मत कर रहा हूँ l अपने मालिक का पैसा जमा कर रिसीट ले लूँगा और फिर देर शाम को ईस्ट कोस्ट ट्रेन में चांदवाली चला जाऊँगा l मुझे तुम्हारे अतीत से कोई लेना-देना नहीं है l मुझे तुम्हारे वर्तमान से कोई सरोकार नहीं है l पर मेरी जिंदगी का कल तुम्हारे कल से जुड़ा हुआ देखना चाहता हूँ l ना मैं तुम्हारे दीन का हूँ ना मैं तुम्हारे कॉम का l पर मैं सरफराज जैसा नहीं हूँ l अगर तुम्हें मुझ पर भरोसा हो तो क्या "WILL YOU BE MY VALENTINE"
कल xx कोच में xx नंबर बर्थ पर तुम्हारा इंतजार करूँगा l बस तुम्हारा उषाकांत l

इतना लिख कर टेबल पर सीलबट्टा का सील उठा कर पेपर रख दिया और चुपके से घर से निकल गया l

~~~स्टेशन~~~


शाम को स्टेशन में बेंच पर बैठा कभी अपनी कोच को तो कभी स्टेशन की एंट्रेस की ओर देख रहा था l पर मुझे सबा नहीं दिखी l ट्रेन की आखिरी एनाउंसमेंट हो गई l बुझे मन से अपनी कोच की बढ़ा l खुद को कोसते हुए अपनी कोच तक पहुँचा l अंतिम बार मुड़ कर देखा शायद सबा दिख जाए l पर नहीं नहीं दिखी l खुद से सवाल जवाब करने लगा l

क्या सबा को खत मिला होगा l कहीं मुझे सुबह ना देख कर मुझे सरफराज जैसा तो नहीं समझ लिया l या फिर मैं सच में किसीके भरोसे के लायक नहीं हूँ l हाँ शायद मैं किसी के भरोसे के लायक नहीं हूँ l मन मसोस कर कोच पर चढ़ा और अपनी बर्थ पर पहुँचा l मुहँ फूलाये सबा बैठी थी l
Yeh baat ek raat ki nhi thi balki zindagi bhar ki thi. Ushakant aur Saba ke zindagi bhar ki baat thi. Dono ka hi past kahi na kahi ek jaisa hi tha. Dono ke saath hi kahi na kahi anyaay hua tha. Jaha Saba ek himmatwali thi toh wahi Ushakant ek darpok.
Bahot hi khubsoorat kahani thi. Maza aaya padhkar. Mujhe sabse jyaada achha laga woh inspector wala scene. Jis tarah se uss inspector ka pardafash hua aur woh arrest hua woh mujhe sabse jyaada apsand aaya.
 
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Story- " बात एक रात की "
Writer- " Black Nag.


कभी-कभार ऐसे भी हादसे हो जाते है जो हमे वो सीख दे जाते है जो हम पुरी जीवन प्राप्त नही कर पाते।
ऐसे ही एक वाक्या उषा कांत के साथ हुआ। वाइजाक की एक रात ने उसके चरित्र का कायापलट कर दिया।
न सिर्फ उसके कायरतापूर्ण स्वभाव से मुक्ति मिली अपितु जीवन के फलसफे भी समझने मे सक्षम हुआ।

एक बार फिर से बुज्जी भाई ने अपनी बेहतरीन लेखनी का नजराना पेश किया। उषा कांत और सबा के किरदार को बहुत अच्छी तरह से प्रस्तुत किया आपने।
इंस्पेक्टर का किरदार नेगेटिव शेड लिए हुए था और इस किरदार के थ्रू आपने पुलिस डिपार्टमेन्ट के चंद पुलिस आफिसर के भ्रष्ट आचरण को दर्शाने का प्रयास किया।

उषाकांत की मां और एक बहन की सुसाइड बेहद ही अफसोसजनक थी। लेकिन यह भी सत्य है कि सुसाइड किसी समस्या का समाधान नही होता। जीवन संघर्ष का ही दूसरा नाम है। और संघर्ष से मुक़ाबला करना जीवन की सार्थकता है।
' सबा ' इसकी जीती जागती मिसाल थी।

कहानी का क्लाइमेक्स बहुत ही खूबसूरत लगा मुझे। हैप्पी एंडिग किसे अच्छा नही लगता ! वास्तव मे कहानी का आनंद ही क्लाइमेक्स मे था।

कहानी मुझे बहुत ही पसंद आया।

Rating- 10/9.
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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बात एक रात की
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फ़रवरी तेरह तारीख
अपना सामान क्लॉक रूम में रख कर मैं स्टेशन से बाहर निकला l बाहर ऑटो वाले मुझे घेर कर किसी होटल या लॉज में ले जाने के लिए होड़ में लग गए l मैं सबको नकारते हुए आगे बढ़ता चला जा रहा था l मेरी इस बेरुखी भरी व्यवहार से, यूँ आगे चले जाने से मेरे बारे में कुछ आपस में भद्दी गालियाँ देते हुए वापस चले गए l सीधे रास्ते पर चलने लगा तो एक बोर्ड दिखा पॉकेट मार से सावधान, मैंने तुरंत अपनी जेब टटोली, हाँ पर्स और मोबाइल अपनी जगह सुरक्षित था l चिंता की कोई बात नहीं थी क्यूंकि मैंने अपना कुछ सामान क्लाक रूम में जो रख छोड़ा था l चूँकि रात का समय था और कल सुबह मैं अपनी मंजिल की ओर चला जाने वाला था इस खुशी में रात को ही मैंने विशाखापट्टनम शहर को घुम कर देखने का निश्चय किया l हाथ घड़ी देखा रात के साढ़े ग्यारह बज रहा था l थोड़ी दूर रास्ते के किनारे मुझे एक ईरानी चाय की दुकान दिखी मैं उसी
दुकान की ओर चला l एक चाय माँगा, बहुत ही बढ़िया चाय था l शरीर में यात्रा जनित जो थकावट और चिढ़चिढ़ापन था कुछ हद तक दुर हो गया l चाय पीते पीते मुझे एक गाइड बुक दिखी जो उस दुकान पर टंगी हुई थी, ग्रेटर विशाखापट्टनम गाइड बुक, बीस रुपये की थी मैंने चाय की पेमेंट कर लेने के साथ साथ उस गाइड बुक भी ले लिया l चलते चलते बुक खंगालने लगा l आर के बीच सिर्फ दो किलोमीटर दुर था और मैप भी बना हुआ था l मैंने मोबाइल पर नैविगेशन ऑन किया और मैप पर अपनी लोकेशन को निश्चिंत करने के बाद मैप के अनुसार बीच की ओर जाने लगा l

पुरे बीस मिनट चलने के बाद मुझे समंदर की लहरों की आवाज़ सुनाई देने लगी और उमस भरी वातावरण में ठंडी ठंडी हवाओं का एहसास शरीर के साथ साथ मन में भी एक स्फूर्ति का संचार कर रही थी l मैं सड़क से नीचे उतरा तो पाया समंदर की बीच में अभी भी बहुत भीड़ थी l कहीं कुछ लड़के किसी पॉपकर्ण के दुकान पर खड़े होकर ल़डकियों को ताड़ रहे थे तो कहीं कुछ जोड़े किसी आइसक्रीम पार्लर में बैठ कर आइसक्रीम खा रहे थे l पुरा का पुरा बीच भुने चिकन और अमलेट के खुशबु से महक रहा था l मैंने घड़ी देखी बारह बज रहे थे l मैं हैरान था इतनी रात होने पर भी शहर जाग रहा था l पता नहीं इनके घरों में इन लोगों को ढूँढ भी रहे होंगे या नहीं l तभी एक पुलिस की वैन माइक पर एनाउंसमेंट किया पंद्रह मिनट में दुकानों को बंद का और लोगों को अपने घर जाने के लिए l अभी तक जो भीड़ वहां पर भिनभिना रही थी सब के सब कुछ ही पल में तितर-बितर होने लगे l दुकानें भी बंद होने लगी l मैंने एक दुकानदार से पूछा तो बोला यह यहाँ का नियम है रात के बारह बजे के बाद और सुबह पांच बजे तक बीच में कोई नहीं होना चाहिए l मैंने पुछा क्यूँ, तो उसने कहा कि रात बढ़ने के साथ साथ बीच के रेत में ही लड़के लड़कियाँ मस्ती करने में लग जाते हैं l इसलिए पुलिस पहले खदेड़ती है उसके बाद अगर कोई बीच में मस्ती करते पकड़ा गया तो पहले तो उन्हें थाने ले जाते हैं फिर उनकी जमकर धुलाई करते हैं, और फिर अच्छे से वसूली भी करते हैं l

इतना कह कर वह जल्दी जल्दी अपनी दुकान की शटर बंद कर निकल जाता है l मैं हैरान था को लोग पुलिस के वॉर्न करने तक रुक रहे हैं और वॉर्न के बाद ऐसे गायब हो रहे हैं जैसे गधे के सिर से सिंग l खैर मुझे भी अब निकलना था क्यूंकि मैं पुलिस के हत्थे चढ़ना नहीं चाहता था इसलिए मैंने भी अपना एक रास्ता चुन लिया और निकल लिया l एक जगह पहुँच कर थोड़ा कन्फ्यूज हुआ तो गाइड बुक ढूंढने लगा पर तभी मुझे मालूम हुआ कि इस आपाधापी में गाइड बुक कहीं खो गई है, मोबाइल निकाल कर देखने से अब कोई फायदा भी नहीं l खैर अब मैं बीच से थोड़ा दुर तो था चूंकि मुझे शहर में घुमते हुए रात बितानी थी इसलिए जहां जहां जैसा भी रास्ता दिखने लगा मैं आगे बढ़ता चला गया l

किसी दार्शनिक ने कहा था खुद को ढूंढने के लिए पहले खुद को खोना पड़ता है l पता नहीं कौन कहा था, किस गरज में कहा था पर आज वह बात याद आ गया l मैं मुस्कराते हुए खुद को खोने के लिए आगे बढ़ता चला गया l ताकि जब लगे के मैं खो गया हूँ तब खुद को ढूँढ निकालूँगा l ऐसे ही सोचते हुए कुछ दुर जाने के बाद देखा कि दो गुंडे मवाली किस्म के लोग एक लड़की को घेर कर छेड़ रहे थे l शायद वह लड़की बीच से निकल कर कहीं जाना चाहती थी l लड़की की वेश भूषा किसी कॉल सेंटर में काम करने वाली जैसी लग रही थी l वह लड़की उनसे डरी हुई लग नहीं रही थी, उनकी हरकत पर भद्दी गालियाँ भी दे रही थी l मैं चलते चलते उनके करीब पहुँचा l इतने में एक बंदे ने लड़की का हाथ पकड़ कर पास खड़े एक ऑटो की ले जाने लगा और दूसरा बंदा भाग कर उस ऑटो के ड्राइविंग सीट पर बैठ गया l समझते देर ना लगी वह ऑटो उन दोनों की थी लड़की चिल्ला तो नहीं रही थी पर अपनी जोर लगा कर विरोध कर रही थी l मैंने बरबस पुछ लिया

मैं - यह... यह क्या कर रहे हो तुम लोग..

पहला - तुझसे मतलब ...(वही बंदा जो लड़की को खिंच कर लिए जा रहा था) चल फुट ले यहाँ से...

मैं - कमाल करते हो.... एक तो लड़की से ज़बरदस्ती कर रहे हो... और उपर से धमका भी रहे हो...

तभी और दुसरा बंदा जो ड्राइविंग सीट पर बैठा था तुरंत ऑटो से उतर कर मुझसे कहा

दुसरा - ऐ हीरो,... फुट ले यहाँ से... चला जा यहाँ से... तेरी हीरो गिरी किसी भले घर की लड़की के लिए रख.... यह एक रंडी है... और हमें इसकी आज बजानी है...

मैं - रंडी हुई तो क्या हुआ... यूँ किसी के साथ... चाहे कोई भी हो... ज़बरदस्ती करना ठीक नहीं है....

पहला - ओए लवड़े .. तुझसे मतलब.... साली... चार्ज बहुत लेती है.... बहुत दिनों से नजर थी,.... कमिनी आज हाथ लगी है... वह भी अकेली... आज तो फ्री में ही कूटेंगे.... अगर तेरे को भी मजा लेनी हो तो लैन में रहीयो,... तेरा नंबर तीन... समझा...

मैं - अगर चार्ज लेती है तो चार्ज देने लायक तो बनो... जाओ इसे जाने दो... रोटी और बोटी के लिए गटर छाप कुत्ते ज़बरदस्ती करते हैं... मर्द नहीं...

दुसरा - अबे भोषड़ी के... ज्यादा मर्द मत बन... वर्ना ऐसा दर्द होगा के अपनी बीवी के काम भी नहीं आएगा....

मैं - अरे यार... तुम उसे जाने दो...

दुसरा - क्यूँ जाने दें... साली रोज पैसे लेकर अपनी खुजली मरवाती है... आज फ्री में मरवाएगी..

मैं - कैसी जेहनीयत है तुम्हारी... एक रंडी के लायक भी नहीं हो... तुम में और गटर में लौट रहे कुत्तों में क्या फर्क़ है... तुम जिस गली में... या मुहल्ले में रहते होगे... लड़कियाँ और औरतें ही नहीं... लोग भी ज़रूर रास्ते बदल कर चले जाते होंगे...

दुसरा - (ऑटो की टूल बॉक्स से एक रॉड निकाल कर) ऐ हरामी... बहुत हो गया... चल निकल...

मैं थोड़ा पीछे हटा, तभी पहले वाला जो लड़की को पकड़े हुए था वह अपने साथी से बोला

पहला - एक मिनट... इसको जाने मत दे... (तभी दुसरा अचानक अपनी जगह बदल कर मेरे पीछे आ गया)

दुसरा - क्या हुआ... इसे क्यूँ रोकने को बोला....

पहला - बड़ा लायक होने की बात चोद रहा था... मर्द बन रहा है... यह कितना लायक है देख लेते हैं... चल इसी के ही जेब से माल बटोर लेते हैं...

दुसरा - हाँ यार... आज तो माल भी अपना... और छोकरी भी अपनी... दोनों की बजाते हैं... (मुझसे) ऐ हीरो.... अपनी खैरियत चाहता है तो जेब में जितना भी माल है निकाल...

मैं - (अपना पर्स को आधा निकाल कर) निकाल दूँगा... पहले लड़की को जाने दो...

पहला - (अपने साथी से) बस बहुत हो गया... फोड़ साले की खोपड़ी को...

दुसरा दो हाथ से रॉड पकड़ कर मुझ पर हमला बोल दिया पर था वह कच्चा l मैंने अपनी दोनों हाथों से उसके हाथों को पकड़ लिया और जान बुझ कर पीछे हटते हुए पहले वाले और लड़की दोनों से टकरा गया l लड़की के साथ साथ हम तीनों गिर गए l मैंने मौका देख कर लड़की को भाग जाने के लिए कहा l लड़की के लिए मौका बढ़िया था l वह उठ कर भागी l इससे गुस्साए दोनों पागल से हो गए l पहले वाला उठ कर मुझ पर लात और घुसों की बरसात करने लगा और मैं मार खाता गया l वह दुसरा वाला मुझ से अपना हाथ व रॉड छुड़ाने की कोशिश करता रहा यहाँ पर भी वह कच्चा निकला, कमबख्त रॉड भी नहीं छिन पाया l मार खाते खाते मेरी हालत खराब हो गई l इतने में पुलिस की एक पेट्रोलिंग वैन आ गई l हम तीनों पकड़ लिए गए l पुलिस ने हम तीनों को वैन में बिठा कर थाने ले गई l वैन के अंदर वह दोनों मुझसे बिनती भरे नजरों से सुलह की इशारे से गुहार लगा रहे थे l

~~~थाने में~~~

अब चूँकि मैं मार खाया हुआ था तो थानेदार ने पहले मेरी स्टेटमेंट लेने के लिए बुलाया l

थानेदार - क्या नाम है तुम्हारा...

मैं - जी मेरा नाम....

थानेदार - हाँ बे तेरा नाम... क्या है तेरा नाम...

मैं - झिझकते हुए... उ... उ... उषा..

थानेदार - क्या...

मैं - जी उषाकांत चौधरी...

थानेदार - नाम बताने के लिए इतना झिझक क्यूँ रहा था...

मैं - जी बचपन से ही... मेरे आसपास के लोग... दोस्त सब मुझे उषा उषा कह कर चिढ़ा रहे थे... इसलिए...

थानेदार - ह्म्म्म्म तो... (मैं चुप रहा) झगड़ा किस बात का हो रहा था...

मैं - झगड़ा... वह राहजनी का था... यह लोग मुझे लुटना चाह रहे थे... पैसे घड़ी और मोबाइल सब....

थानेदार - अच्छा... तो यह तुझे लुटना चाहते थे... रात के साढ़े बारह एक बजे तु घर में ना हो कर वहाँ क्या कर रहा था...

मैं - सर मैं वाईजाग में अभी कुछ ही घंटे पहले उतरा हूँ... बीच घूमने गया था... जब बीच से चले जाने के लिए पुलिस एनाउंसमेंट हुई... तो मैं वापस स्टेशन लौट रहा था... तो रास्ते में मुझे अकेला पा कर... यह दोनों मुझे लुटने के लिए हमला बोल दिया...

थानेदार - ओ... तो तु यहाँ का नहीं है.... घूमने आया है... (पास खड़े कांस्टेबल से) उन दोनों को बुलाकर लाओ...

कांस्टेबल तुरंत बाहर गया और उन दोनों को अपने साथ लेकर अंदर आया l थानेदार उनको देखा और पुछा

थानेदार - क्या करते हो तुम दोनों...

दोनों - जी ऑटो चलाते हैं सर...

थानेदार - इसके साथ किस बात की मार पीट हो रही थी...

पहला - सर यह आदमी एक लड़की को लेकर हमारे ऑटो के पास आया... और किसी सस्ती लॉज को ले जाने के लिए कहा... हमने मना किया तो हम से झगड़ने लगा... गंदी गंदी गालियाँ बकने लगा... हम से रहा नहीं गया... हमने कूट दिया...

उनकी यह स्टेटमेंट सुन कर मैं हैरान रह गया l अगर पुलिस उनकी बात मान लेती है तो मैं बुरी तरह से फंस जाऊँगा l

थानेदार - (कड़क आवाज़ में) बे हरामियो... मुझसे झूठ बोल रहे हो...

दुसरा - नहीं सर हम झूठ क्यूँ बोलें... यह आदमी झूठ बोल रहा है... इस दो कौड़ी के आदमी को हम क्यूँ लूटें... और हम कैसे हैं... आप चाहें तो हमारी ऑटो ड्राइवर यूनियन से... हमारे बारे में पता लगा सकते हैं...

थानेदार - तुमको कैसे मालुम हुआ... यह आदमी झूठ बोल रहा है... जब कि तुम लोग तो इस कमरे के बाहर थे...

दुसरा - साब... हम इसी कमरे के बाहर ही थे.... सब सुन रहे थे... साब... एक तो यह बाहर का... हम ठहरे लोकल... आपको हम पर ज्यादा भरोसा करना चाहिए...

थानेदार - ठीक है... (हम तीनों से) सुलह चाहते हो या केस...

वे दोनों - सर हम से नहीं... इस लड़की छाप उषा से पूछिये... यह क्या चाहता है... अगर केस चाहिए तो केस होगा... अगर सुलह चाहिए तो सुलह होगा....

थानेदार के साथ साथ उस कमरे में मौजूद सभी मेरी ओर देखने लगे l मैं गहरी सोच में था एक तो मैं बाहरी और यह लोग लोकल l अगर केस हो गया तो पता नहीं कितने दिन अंदर रहना पड़ेगा l

मैं - (हाथ जोड़ कर) सर... हाँ मैं बाहरी हूँ... आप देख सकते हैं... मार मैंने खाई है... पर मैंने कोई शराब नहीं पी हुई है... पर आपको जो सही लगे... वही कीजिए...

थानेदार - ओए हीरो.... ज्यादा फिल्मी डायलॉग मत मार.... तेरे डायलॉग से यहाँ कोई सेंटी नहीं होने वाला... (हम तीनों से) चलो जितना भी माल है... सब निकालो.... और बिना देरी किए फुटो...

वे दोनों - सर... कोई तो भाव बोलिए... घर पर ख़बर नहीं कर सकते... सर... कुछ तो रहम कीजिए... लोकल हैं...

थानेदार - बोला ना जितना भी माल तुम लोगों के पास है... सब हगो...

वे दोनों अपनी शर्ट की जेब से, पैंट की जेब से और जहां जहां कपड़ों की फ़ोल्ड थी और सिलाई हुई थी हर उस के छेद से पैसे निकाल कर दिए लगभग तीन चार हजार l उनके पास इस वक़्त इतने पैसे देख कर हम सभी हैरान थे l उनके पैसे समेट लेने के बाद थानेदार ने उन्हें तुरंत निकल जाने के लिए बोला l उनके जाने के बाद थानेदार मेरी ओर देखने लगा l

मैं - सर मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं...

थानेदार - अबे भोषड़ी के... जितना है... उतना निकाल... वर्ना थाने में जितने भी पेंडिंग केसेस है.. सब के सब तुझ पर ही चेप दूँगा...

मैं अपनी जेब टटोलने लगा l मेरा सिर चक्करा गया l मेरा पर्स गायब था l मैं बड़ी दयनीय दृष्टि से थानेदार को देखने लगा l मेरी हालत देख कर थानेदार कांस्टेबल पर चिल्लाया

- ऐ पाण्डु... इसकी मोबाइल ज़ब्त कर... फाइल ला... और अंदर डाल इस हरामी को...

वह कांस्टेबल मेरी कलर पकड़ कर मुझे खिंचते हुए हवालात की ले जाने लगा l तभी एक आवाज से वह रुक गया मैं भी उस आवाज की ओर देखने लगा

- कहाँ ले जा रहे हो इन्हें....

वही लड़की जिसके साथ वह ऑटो वाले बदतमीजी कर रहे थे l वह खड़ी थी l अंधेरे में उसे ठीक से देखा नहीं था l पर अब उसे देख रहा था l बहुत ही खूबसूरत थी l उन्हीं कपड़ों में थी l जिंस, टॉप और टॉप के ऊपर जिंस की स्लीव लेस जैकट l लड़की की आवाज़ सुन कर थानेदार अपनी केबिन से बाहर आता है l

लड़की - सर इन्हें सलाखों में क्यूँ डाल रहे हैं...

थानेदार - तुम से मतलब...

लड़की - सर इन्होंने ही मुझे उन लफंगों से बचाया...

यह सुन कर थानेदार के माथे पर बल पड़ जाता है l वह मेरी तरफ देखता फिर लड़की से पूछता है l

थानेदार - मुझे पुरी बात बताओ...

लड़की कहती है कि वह अपने दोस्त के साथ बीच गई थी l पुलिस के वार्न करने के बाद जब ऑटो से लौट रही थी वह ऑटो वाले उससे बदतमीजी करने लगे थे l तभी मैं उसे बचाते हुए यहाँ फंस गया था l

थानेदार - हूँ... तो तुम इस वक़्त क्यूँ आई... और तुम्हें कैसे मालुम हुआ कि यह यहाँ पर है...

लड़की - सर मैं वहाँ से गई नहीं थी... बस छुप गई थी.... जब पुलिस सबको उठा ले आई... तो मैं अपनी जगह से निकल कर झगड़े वाली जगह पर पहुँची तो देखा... इन साहब का पर्स गिरा हुआ था... तो लौटाने और पुलिस को सब सच बताने आ गई...

थानेदार - ह्म्म्म्म... (एक कुटील मुस्कान, मुस्कराते हुए) वाह क्या कहानी है... (मेरी ओर इशारा करते हुए) यह दो ऑटो वालों से... एक रंडी को बचाता है... और पुलिस के हत्थे चढ़ जाता है... और उसे बचाने वही रंडी थाने दौड़ी चली आती है... अरे ओ पाण्डु..

पाण्डु - जी सर...

थानेदार - कुछ समझे

पाण्डु - जी सर...

थानेदार - क्या समझे...

पाण्डु - यही की... बहुत याराना लगता है...

सब हँसने लगते हैं l एक अस्वाभाविक परिस्थिति थी l वह लड़की उन सबके हँसी के सामने शर्मिंदगी से सिकुड़ जा रही थी l

थानेदार - मैं तुझे बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ मिडल क्लास रंडी चोदुओं की मिया खलीफा... तेरा नाम सबा आलम है... है ना..

लड़की - (जबड़े भींच कर, पर नजरें मिलाते हुए) जी...

थानेदार - आह हा... क्या टाइम पर मिली है... चल दे उसका पर्स...

सबा मेरी पर्स, थानेदार को सौंप देती है l उसमें जितने भी पैसे थे वह थानेदार निकाल कर अपनी जेब में रख लेता है, वैसे ज्यादा नहीं थे सिर्फ दो हजार रुपये थे और उसमें मेरी आधार कार्ड को देखने के बाद मुझे मेरी पर्स लौटा देता है l

थानेदार - (सबा से) चल तेरे पास जितना माल है सब निकाल...

सबा - सर मेरे पास कुछ भी नहीं है....

थानेदार - क्यों... आज कोई ग्राहक नहीं मिला क्या तुझे... (सबा चुप रहती है,) (मुझसे) ऐ हीरो... अब चल निकल यहाँ से...

मैं - सर जब आप सारे पैसे रख लिए... बदले में... आप इन्हें भी छोड़ दीजिए...

थानेदार - ओ.. हो... अरे ओ पाण्डु... क्या समझे...

पाण्डु - बस इतना सर... बहुत याराना लगता है...

थानेदार - चल अंदर डाल इन दोनों को....

सबा - (एक मजबुत आवाज में, अपनी दोनों हाथ को कैंची बना कर ) क्यूँ...

थानेदार - और रिपोर्ट बनाओ दोनों पर.... रेड हैंडेड प्रस्टीट्युशन का चार्ज लगाओ...

सबा - (झल्लाहट में,चिल्लाते हुए) व्हाय एंड फॉर व्हाट...

थानेदार - साली.... चुदवाते चुदवाते बड़ी अंग्रेज़ी सीख गई है... बहुत चपड़ चपड़ कर रही है... ऐ पाण्डु... चल बता इसको... अब अंदर होगी किसलिए...

पाण्डु - तेरे पास पैसे नहीं है इसलिए.... (सब हँसने लगते हैं सिवाय मेरे और सबा के)

सबा - क्यों सरकार तुमको तनख्वाहें नहीं दे रही है... या सरकारी तनख्वाह कम पड़ रहे हैं... जो दूसरों की गाढ़ी कमाई लुट रहे हो...

सब की हँसी रुक जाती है l थानेदार गुस्से से पागल सा हो जाता है l तेजी से सबा के पास आकर उसकी गर्दन पकड़ कर दीवार से लगा देता है l अपने बाएं हाथ से सबा की एक चुची को जोर जोर से मसलने लगता है l

थानेदार - कमिनी... रंडी... हरामजादी... हजार दो हजार के लिए अपनी कपड़े उतार कर... नंगी हो जाने वाली... समाज सेवी बनने चली है... मुझे भाषण दे रही है.... आंदोलन करेगी... हूँ...

सबा - (बिना डरे) हाँ मैं रोज हजार दो हजार के लिए अपनी कपड़े उतारती हूँ... नंगी हो जाती हूँ... तुम अपना बताओ... तुम तो वर्दी पहने हुए हो... तो तुम क्यों हजार दो हजार के लिए... रोज अपनी वर्दी की इज़्ज़त उतार रहे हो....

थानेदार - कमिनी... (कह कर सबा की पहनी हुई टॉप को फाड़ देता है, और सबा को धक्का देकर नीचे गिरा देता है)

तभी अप्रत्याशित रूप में एक औरत आ पहुँचती है l कोई बड़ी अधिकारी थी, उसके साथ शूट बूट पहने कुछ और अधिकारी भी थे l

औरत - यह क्या कर रहे हो मिस्टर...

थानेदार इस वक़्त इन लोगों को देख कर पहले हैरान हो जाता है और फिर खुद को सम्भाल कर पूछता है l

थानेदार - कौन हो तुम लोग... और यहाँ क्या करने आए हो इस वक़्त...

औरत - मैं डिप्टी एसपी विजिलेंस... आरती मिश्रा हूँ... आज की रात तुम्हारे खिलाफ कार्रवाई की मैजिस्ट्रेट ऑर्डर की तामील करने आई हूँ...

थानेदार - क्या... क्या किया है मैंने... और यह क्या टाइम है... या यह कोई तरीका है...

आरती - शट अप... जस्ट कीप योर माउथ शट... तुम शाम से लड़के ल़डकियों को गैर कानूनी तरीके से परेशान कर रहे हो और उनसे पैसे ऐंठ रहे हो...

थानेदार की घिघी बंध जाती है l वह फिर भी जोर लगा कर पूछता है

थानेदार - क्या... क्या सबूत है... झूठा इल्ज़ाम मत लगाईये मुझ पर...

आरती - अच्छा तो सबूत चाहिए... तो सुनो मिस्टर इंस्पेक्टर... तुम आज शाम आठ बजे से ही लाइव चल रहे हो... पुलिस डिपार्टमेंट की साइट पर... हमने ही पाण्डुरंग को बटन कैमरा से तुम्हारा लाइव करा रहे थे... (थानेदार गुस्से से पाण्डु को खा जाने वाली नजरों से घूरने लगता है) अरेस्ट दिस बास्टर्ड...

आरती के साथ जो लोग आए थे सब थानेदार को दबोच लेते हैं l आरती सबा के पास आती है और एक चादर निकाल कर सबा को ढक देती है l

आरती - आई एम सॉरी.. बट यु आर अ ब्रेव गर्ल... तुमने अपने दोस्त को बचाने के लिए... बड़ी हिम्मत दिखाई है...

सबा - थैंक्यू मैम... और भी बहुत बुरा हो सकता था... पर आपने बचा लिया... पर एक रिक्वेस्ट है...

आरती - हाँ समझ गई... डोंट वरी... तुम लोगों का नाम नहीं आएगा...

~~~थाने के बाहर~~~

कुछ देर बाद मैं और सबा दोनों थाने से बाहर थे l रोड पर चल रहे थे l दोनों खामोश थे l मुझे लगा मुझे सबा को थैंक्स कहना चाहिए l

मैं - थैंक्स...

सबा - किस लिए...

मैं - वाकई... आप ने बहुत हिम्मत दिखाई और... मुझे बचाने चली आई...

सबा - आपने भी तो मुझे बचाया...

फिर दोनों के बीच खामोशी छा गई l हम दोनों चल रहे थे l इस बार सबा ने सवाल किया l

सबा - रात के दो बज रहे हैं.. आप अब कहाँ जाएंगे..

मैं - सोच रहा हूँ... वापस स्टेशन चला जाऊँ... वैसे भी कल वाईजाग में थोड़ा काम है... और शाम को वापसी का ट्रेन भी है...

सबा - वैसे बुरा ना मानें तो एक बात पूछूं...

मैं - जी पूछिये...

सबा - आप... बीच की ओर क्यूँ जा रहे थे...

मैं - मैं चांदवाली ओड़िशा में रहता हूँ... मुझे समंदर की हवा बहुत अच्छी लगती है... और सुबह का समंदर को चीरते हुए सूरज को निकालते हुए देखना अच्छा लगता है... इसलिए बीच की ओर जा रहा था...

सबा - ओ... अगर बुरा ना माने तो... यहाँ बीच के पास... मछुआरों के कालोनी के बगल में... मेरी एक खोली है... रात वहाँ गुज़ार कर सुबह सुरज को निकलता देख कर आप जा सकते हैं...

मैं रुक गया और सबा को हैरानी से देखने लगा l सबा मेरे मन में चल रही उथलपुथल को समझने की कोशिश करते हुए

सबा - देखिए... आपके चेहरे पर.. हाथ पर चोट लगी है... मेरे बसेरे में थोड़ी ड्रेसिंग कर लीजिए... फिर चले जाइए...

कुछ देर बाद हम सबा के खोली में थे l सबा डेटॉल से मेरे चेहरे पर जो घाव लगे थे साफ कर रही थी l

सबा - मैं... वारंगल से हूँ... गरीब घराने से हूँ... अम्मा अब्बा बचपन में ही गुजर गए... तो दादी ने पाला पोसा... (घाव में जलन होते ही मैं सिसक गया तो सबा फूंकने लगी) फिर एक दिन दादी की भी इंतकाल हो गया... मैं बड़ी हो रही थी... ऐसे में मेरे मामू मुझे अपने घर ले गए... अपने घर में काम काज के लिए मामी को एक नौकरानी की जरूरत थी... इसलिए... और एक दिन जब घर में कोई नहीं था... तब मुझे अपने बिस्तर पर लेकर मेरा अपना मामू रौंद डाला... यह बात मामी को मालुम भी हुआ... पर वह चुप रहीं... (बैनडेड निकाल कर घाव पर लगाने लगी, फिर मेरे हाथ को डेटॉल से साफ करने लगी) मैं रोज लूट रही थी... घुट रही थी... ऐसे में पड़ोस के सरफराज नाम के लड़के ने मुझसे हमदर्दी जता कर मुझसे करीबी बढ़ाई... मैं भी उससे दिल लगा बैठी... उसे मुझ पर गुजरी सारी बातेँ बताई... तो उसने मुझे हौसला दिया... अपनी मामी की सारे गहने चुरा कर उसके साथ भाग जाने के लिए कहा... और (एक बेज़ान सी हँसी हँसते हुए) मैंने वही किया... मुझे लगा मैं कैद से आजाद हो गई... हम दोनों एक लॉज में सोये हुए थे... तब अचानक कोई दरवाजा खटखटाया.. मैं उठी तो देखा बिस्तर पर मैं अकेली थी... सरफराज नहीं था... मैंने दरवाजा खोला तो सामने पुलिस थी... रेड पड़ी थी... धंधे की जुर्म में मुझे अरेस्ट किया गया... मुझे समझते देर ना लगी... सरफराज सारे पैसे और गहने लेकर फरार हो गया था... मैंने पुलिस को सब सच कहा... तहकीकात के दौरान मेरे मामू और मामी मुझे पहचानने से इंकार कर दिया... तब उसी लॉज के मालिक ने मेरी ज़मानत करायी... और उसके बाद... मैं इस धंधे में आ गई.... (मेरे हाथ पर पट्टी बाँध चुकी थी)

मैं सब सुनता रहा पर चुप रहा, मेरी चुप्पी शायद सबा को चुभ रही थी इसलिये उसने मुझसे पूछा l

सबा - वैसे आपकी क्या कहानी है... (मैं फिर भी चुप रहा, सबा को बुरा लगा) ओह सॉरी... हर किसीसे मेरी पहचान... बस एक रात की होती है... सॉरी अगैन...

इतना कह कर वह फर्श पर अपने लिए बिस्तर लगा कर सो जाती है l मुझे लगा मेरी चुप्पी से वह उखड़ गई पर मैं अपने बारे में क्या कहूँ और क्यूँ कहूँ l मेरी छोटी सी मदत के चलते सबा ने मेरे लिए अपना बिस्तर छोड़ कर नीचे सो गई थी l मैं बिस्तर पर लेट गया और अपनी जिंदगी और आज जो हुआ उन सब हादसों को याद करने लगा l शायद इसीलिए मुझे नींद ही नहीं आ रही थी l मैं बिस्तर से उठा और सबा की ओर देखने लगा l मद्धिम रौशनी में वाक़ई बहुत ही आकर्षक लग रही थी l सोई हुई बड़ी मासूम लग रही थी l मैं अपनी नजरें फ़ेर कर कमरे में नजरें घुमाने लगा l मुझे नहीं दिख रहा था l इसलिए मैंने अपनी मोबाइल की रिकॉर्डिंग ऑन किया और अपने बारे में कहने लगा...

"सबा जी
आपकी कहानी में आप बहुत हिम्मत वाली हो l रिश्तों में, एहसासों में, जज्बातों में धोखे के बावजुद ना आपने कभी हिम्मत हारी ना ही कभी खुद को अपनी नजरों से गिराया l पर मेरी कहानी में मेरा किरदार आपकी उलट है l

मैं एक लोअर मिडल क्लास परिवार से था l दो बहनों में एक भाई l दीदी को ब्याहने के बाद पिताजी चल बसे l ऐसे में माँ पर सारा बोझ आ गया l जीजाजी की नीयत मेरी दूसरी बहन पर खराब हो गई थी l जब भी मौका मिलता था अपनी हवस पुरा कर लेते थे l मैं तब चौदह साल का था l एक दिन घर पर माँ नहीं थी मैं अपनी दीदी के साथ घर पर था l डोर बेल बजी l दीदी दरवाजे तक जा कर फिर दौड़ कर वापस आई l मुझसे कहने लगी मिन्नत करने लगी के भाई प्लीज कुछ भी हो जाए आज तु घर से जाना नहीं l मैंने उसे हाँ कहा l दीदी जाकर दरवाजा खोला तो जीजाजी आए हुए थे l पता नहीं उन दोनों के बीच क्या बातचीत हुई l जीजाजी सीधे मेरे पास आए और पाँच सौ रुपये देकर बोले उषा... जा मेरी स्कूटर लेकर जा... बगल वाली सिनेमा हॉल में... xxxx सिनेमा लगी है... देख कर आ...
मैं तब स्कूटर चलाने के लालच में आ गया l मेरी दीदी रोनी सूरत में मुझसे ना जाने के लिए इशारा कर रही थी पर मुझ पर स्कूटर चलाने की और सिनेमा देखने की लालच हावी हो गई थी l मैं बाहर चला गया l जब घर वापस लौटा तो पता चला मेरे जाने के बाद माँ आई थी जीजाजी को रंगे हाथों पकड़ लिया था l रिश्ते और विश्वास में धोखे के चलते माँ और दीदी दोनों ने आत्महत्या कर ली थी l मैं उसी दिन अपनी नजरों से गिर गया था l सबकी क्रिया कर्म के बाद मैं वह गांव छोड़ कर चांदवाली चला गया l वहीँ पर मेरे एक दोस्त ने मुझे एक होटल में साफ सफाई के काम में लगा दिया l एक दिन कुछ लड़के उसे मारने आए थे l उन्हें देख कर मैं डर के मारे छुप गया l वह लड़के उसे मार मार कर अधमरा करने के बाद उसे वहीँ छोड़ कर चले गए l मैं जब अपने उस दोस्त को उठाने के लिए गया तो उसने मेरे मुहँ पर थूक दिया और मेरी बुजदिली पर गाली देने लगा l मैं पहले ही अपनी नजरों में गिरा हुआ था और भी गिर गया, क्यूँकी अपने दोस्त को मुसीबत में देख कर भी उसे अकेला छोड़ दिया l तुम्हें हैरानी हो रही होगी इतना डरपोक कैसे आज तुम्हारे लिए गुंडों से भीड़ गया l वज़ह तुम नहीं थी l मेरा अपना एक निजी स्वार्थ था l मेरे मालिक ने मुझ पर विश्वास कर दस लाख रुपये वाईजाग में श्री राम चिट में जमा देने के लिए भेजा था l मेरे मन में लालच आ गया l इसलिए मैं उन गुंडों से थोड़ी मार खा कर पुलिस के केस के दम पर अपने मालिक को विश्वास दिला कर पैसे हड़प लेना चाहता था l पर किस्मत को कुछ और ही मंजुर था l सबा जिंदगी में पहली बार मैंने बुरे काम के लिए ही सही हिम्मत तो कि l पर उस हिम्मत के पीछे तुम थी l तुम्हारे और मेरे बीच में अंतर यह है कि l तुमने हर जगह विश्वास खोया है और मैंने हमेशा विश्वास हरा है l तुमने कभी हिम्मत नहीं हारी और मैंने कभी हिम्मत नहीं की l पर आज सच में हिम्मत कर रहा हूँ l अपने मालिक का पैसा जमा कर रिसीट ले लूँगा और फिर देर शाम को ईस्ट कोस्ट ट्रेन में चांदवाली चला जाऊँगा l मुझे तुम्हारे अतीत से कोई लेना-देना नहीं है l मुझे तुम्हारे वर्तमान से कोई सरोकार नहीं है l पर मेरी जिंदगी का कल तुम्हारे कल से जुड़ा हुआ देखना चाहता हूँ l ना मैं तुम्हारे दीन का हूँ ना मैं तुम्हारे कॉम का l पर मैं सरफराज जैसा नहीं हूँ l अगर तुम्हें मुझ पर भरोसा हो तो क्या "WILL YOU BE MY VALENTINE"
कल xx कोच में xx नंबर बर्थ पर तुम्हारा इंतजार करूँगा l बस तुम्हारा उषाकांत l

इतना लिख कर टेबल पर सीलबट्टा का सील उठा कर पेपर रख दिया और चुपके से घर से निकल गया l

~~~स्टेशन~~~


शाम को स्टेशन में बेंच पर बैठा कभी अपनी कोच को तो कभी स्टेशन की एंट्रेस की ओर देख रहा था l पर मुझे सबा नहीं दिखी l ट्रेन की आखिरी एनाउंसमेंट हो गई l बुझे मन से अपनी कोच की बढ़ा l खुद को कोसते हुए अपनी कोच तक पहुँचा l अंतिम बार मुड़ कर देखा शायद सबा दिख जाए l पर नहीं नहीं दिखी l खुद से सवाल जवाब करने लगा l

क्या सबा को खत मिला होगा l कहीं मुझे सुबह ना देख कर मुझे सरफराज जैसा तो नहीं समझ लिया l या फिर मैं सच में किसीके भरोसे के लायक नहीं हूँ l हाँ शायद मैं किसी के भरोसे के लायक नहीं हूँ l मन मसोस कर कोच पर चढ़ा और अपनी बर्थ पर पहुँचा l मुहँ फूलाये सबा बैठी थी l
Superb...

बहुत सुंदर कहानी, उषा ने आखिर सही काम के लिए हिम्मत दिखाई और उसे भरोसा भी मिला।

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