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जीवन के 20 साल हवा की तरह उड़ गए....फिर शुरू हुई नौकरी की खोज....ये नहीं वो...दूर नहीं पास....
ऐसा करते करते दो तीन नौकरियां छोड़ते एक नौकरी तय हुई जिसमे थोड़ी स्थिरता की शुरुआत हुई...
फिर हाथ आया पहली तनख्वाह का चेक....वह बैंक में जमा हुआ और शुरू हुआ अकाउंट में जमा होने वाले शून्यों का अंतहीन खेल....2- 3 वर्ष और निकल गए....बैंक में थोड़े और शून्य बढ़ गए....उम्र 25 हो गयी
और फिर माता पिता की छत्रछाया में विवाह हो गया....जीवन की राम कहानी शुरू हो गयी....शुरू के एक 2 साल नर्म, गुलाबी, रसीले, सपनीले गुजरे....
हाथो में हाथ डालकर घूमना फिरना, रंग बिरंगे सपने.....पर ये दिन जल्दी ही उड़ गए....
और फिर बच्चे के आने ही आहट हुई....साल के अंत तक घर में पालना झूलने लगा....अब सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया....उठना बैठना खाना पीना लाड दुलार...
समय कैसे फटाफट निकल गया....पता ही नहीं चला
इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया....बाते करना घूमना फिरना कब बंद हो गया दोनों को पता ही न चला....घर की जिम्मेदारियों और जरूरतों के भवर जाल में फस कर रह गए....
बच्चा बड़ा होता गया.....वो बच्चे में व्यस्त हो गयी
मैं अपने काम मे घर और गाड़ी की क़िस्त, बच्चे की जिम्मेदारी, पढ़ाई लिखाई और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक में शुन्य बढाने की चिंता.....उसने भी अपने आप को काम में पूरी तरह झोंक दिया और मेने भी....
इतने में मैं 35 का हो गया.....घर, गाडी, बैंक में शुन्य, परिवार सब है फिर भी कुछ कमी है ? पर वो है क्या समझ नहीं आया.....उसका चिड़चिड़ापन बढ़ता गया और मेरा मन उदासीन होने लगा....
इस बीच दिन बीतते गए....समय गुजरता गया....बच्चा बड़ा होता गया....उसका खुद का संसार तैयार होता गया....कब दसवी आई और चली गयी पता ही नहीं चला
तब तक दोनों ही चालीस बयालीस के हो गए और इधर बैंक में शुन्य बढ़ता ही गया....
एक दिन नितांत एकांत क्षण में मुझे वो गुजरे दिन याद आये और मौका देख कर उस से कहा " अरे जरा यहाँ आओ, पास बैठो....चलो हाथ में हाथ डालकर कही घूम के आते हैं।"
उसने अजीब नजरो से मुझे देखा और कहा कि "तुम्हे कुछ भी सूझता है यहाँ ढेर सारा काम पड़ा है तुम्हे घूमने की सूझ रही है ।"
कमर में पल्लू खोंस वो निकल गयी....
इसी तरह दिन बीतते गए और फिर आया पैंतालिसवा साल, आँखों पर चश्मा लग गया, बाल काला रंग छोड़ने लगे, दिमाग में कुछ उलझने शुरू हो गयी....
बेटा उधर कॉलेज में था, इधर बैंक अकाउंट में शुन्य बढ़ रहे थे....देखते ही देखते बेटे का कॉलेज ख़त्म....वह अपने पैरो पे खड़ा हो गया.....उसके पंख फूटे और उड़ गया परदेस...
इधर मेरी जीवनसंगिनी के बालो का काला रंग भी उड़ने लगा.....कभी कभी दिमाग साथ छोड़ने लगा....उसे चश्मा भी लग गया....मैं खुद बुढा हो गया....वो भी उमरदराज लगने लगी.....
दोनों पचपन से साठ की और बढ़ने लगे....बैंक के शून्यों की कोई खबर नहीं.... बाहर आने जाने के कार्यक्रम बंद होने लगे.....
अब तो डॉक्टर की दी हुई गोली और दवाइयों के दिन और समय निश्चित होने लगे....बच्चे बड़े होंगे तब हम साथ रहेंगे सोच कर लिया गया घर अब बोझ लगने लगा.....बच्चे कब वापिस आयेंगे यही सोचते सोचते बाकी के दिन गुजरने लगे....
एक शाम यूँ ही बालकनी में कुर्सी पे बैठा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था....वो दिया बाती कर रही थी....तभी फोन की घंटी बजी.....लपक के फोन उठाया....दूसरी तरफ बेटा था बोला कि उसने शादी कर ली और अब परदेस में ही रहेगा पर समय समय पर घर भी आएगा....
उसने ये भी कहा कि पिताजी आपके बैंक के शून्यों को किसी वृद्धाश्रम में दे देना....और आप भी वही रह लेना....कुछ और औपचारिक बाते कह कर बेटे ने फोन रख दिया....
मैं दुबारा सोफे पर आकर बैठ गया....उसकी भी दिया बाती ख़त्म होने को आई थी....मैंने उसे आवाज दी "चलो आज फिर हाथो में हाथ लेके बात करते हुए दो चार कदम कही से घूम आते हैं "
वो तुरंत बोली " अभी आई"....
मुझे विश्वास नहीं हुआ....चेहरा ख़ुशी से चमक उठा....आँखे भर आई
आँखों से आंसू गिरने लगे और गाल भीग गए....अचानक आँखों की चमक फीकी पड़ गयी और मैं निस्तेज हो गया.....हमेशा के लिए.....
उसने अपनी बची हुई पूजा की और मेरे पास आके बैठ गयी और बोली "बोलो क्या बोल रहे थे ?"
लेकिन मेने कुछ नहीं कहा....उसने मेरे शरीर को छू कर देखा....शरीर बिलकुल ठंडा पड गया था.....मैं उसकी और एकटक देख रहा था.....
पल भर को वो भी हताश हो गयी सोची क्या करू....
उसे कुछ समझ में नहीं आया..... लेकिन एक दो मिनट में ही वो अपने आप को संभाल कर धीरे से उठी पूजा घर में गयी.....एक अगरबत्ती जला कर भगवान को प्रणाम किया..... और फिर से आके सोफे पे बैठ गयी और
मेरा ठंडा हाथ अपने हाथो में ले कर रुंधे हुए गले से बोली
"चलो कहाँ घुमने चलना है आपको ? क्या बातें करनी हैं आपको ?
बोलिए...बोलिए ना....
ऐसा कहते हुए उसकी आँखे भर आई और आंसू बह निकले वो एकटक मुझे देखती रही......एक बार को उसने मुझे हिलाया तो मेरा सर उसके कंधो पर गिर गया.....ठंडी हवा का झोंका अब भी चल रहा था....पर अब मैं नही था
क्या यही जिन्दगी है.....नहीं
जीवन अपना है तो जीने के तरीके भी अपने तरीके से रखने चाहिए और जिंदगी जीने की शुरुआत आज से करो....क्यूंकि कल कभी नहीं आएगा....और ना ही जिंदगी हार बार दूसरा मौका देती है.....
(समाप्त)
ऐसा करते करते दो तीन नौकरियां छोड़ते एक नौकरी तय हुई जिसमे थोड़ी स्थिरता की शुरुआत हुई...
फिर हाथ आया पहली तनख्वाह का चेक....वह बैंक में जमा हुआ और शुरू हुआ अकाउंट में जमा होने वाले शून्यों का अंतहीन खेल....2- 3 वर्ष और निकल गए....बैंक में थोड़े और शून्य बढ़ गए....उम्र 25 हो गयी
और फिर माता पिता की छत्रछाया में विवाह हो गया....जीवन की राम कहानी शुरू हो गयी....शुरू के एक 2 साल नर्म, गुलाबी, रसीले, सपनीले गुजरे....
हाथो में हाथ डालकर घूमना फिरना, रंग बिरंगे सपने.....पर ये दिन जल्दी ही उड़ गए....
और फिर बच्चे के आने ही आहट हुई....साल के अंत तक घर में पालना झूलने लगा....अब सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया....उठना बैठना खाना पीना लाड दुलार...
समय कैसे फटाफट निकल गया....पता ही नहीं चला
इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया....बाते करना घूमना फिरना कब बंद हो गया दोनों को पता ही न चला....घर की जिम्मेदारियों और जरूरतों के भवर जाल में फस कर रह गए....
बच्चा बड़ा होता गया.....वो बच्चे में व्यस्त हो गयी
मैं अपने काम मे घर और गाड़ी की क़िस्त, बच्चे की जिम्मेदारी, पढ़ाई लिखाई और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक में शुन्य बढाने की चिंता.....उसने भी अपने आप को काम में पूरी तरह झोंक दिया और मेने भी....
इतने में मैं 35 का हो गया.....घर, गाडी, बैंक में शुन्य, परिवार सब है फिर भी कुछ कमी है ? पर वो है क्या समझ नहीं आया.....उसका चिड़चिड़ापन बढ़ता गया और मेरा मन उदासीन होने लगा....
इस बीच दिन बीतते गए....समय गुजरता गया....बच्चा बड़ा होता गया....उसका खुद का संसार तैयार होता गया....कब दसवी आई और चली गयी पता ही नहीं चला
तब तक दोनों ही चालीस बयालीस के हो गए और इधर बैंक में शुन्य बढ़ता ही गया....
एक दिन नितांत एकांत क्षण में मुझे वो गुजरे दिन याद आये और मौका देख कर उस से कहा " अरे जरा यहाँ आओ, पास बैठो....चलो हाथ में हाथ डालकर कही घूम के आते हैं।"
उसने अजीब नजरो से मुझे देखा और कहा कि "तुम्हे कुछ भी सूझता है यहाँ ढेर सारा काम पड़ा है तुम्हे घूमने की सूझ रही है ।"
कमर में पल्लू खोंस वो निकल गयी....
इसी तरह दिन बीतते गए और फिर आया पैंतालिसवा साल, आँखों पर चश्मा लग गया, बाल काला रंग छोड़ने लगे, दिमाग में कुछ उलझने शुरू हो गयी....
बेटा उधर कॉलेज में था, इधर बैंक अकाउंट में शुन्य बढ़ रहे थे....देखते ही देखते बेटे का कॉलेज ख़त्म....वह अपने पैरो पे खड़ा हो गया.....उसके पंख फूटे और उड़ गया परदेस...
इधर मेरी जीवनसंगिनी के बालो का काला रंग भी उड़ने लगा.....कभी कभी दिमाग साथ छोड़ने लगा....उसे चश्मा भी लग गया....मैं खुद बुढा हो गया....वो भी उमरदराज लगने लगी.....
दोनों पचपन से साठ की और बढ़ने लगे....बैंक के शून्यों की कोई खबर नहीं.... बाहर आने जाने के कार्यक्रम बंद होने लगे.....
अब तो डॉक्टर की दी हुई गोली और दवाइयों के दिन और समय निश्चित होने लगे....बच्चे बड़े होंगे तब हम साथ रहेंगे सोच कर लिया गया घर अब बोझ लगने लगा.....बच्चे कब वापिस आयेंगे यही सोचते सोचते बाकी के दिन गुजरने लगे....
एक शाम यूँ ही बालकनी में कुर्सी पे बैठा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था....वो दिया बाती कर रही थी....तभी फोन की घंटी बजी.....लपक के फोन उठाया....दूसरी तरफ बेटा था बोला कि उसने शादी कर ली और अब परदेस में ही रहेगा पर समय समय पर घर भी आएगा....
उसने ये भी कहा कि पिताजी आपके बैंक के शून्यों को किसी वृद्धाश्रम में दे देना....और आप भी वही रह लेना....कुछ और औपचारिक बाते कह कर बेटे ने फोन रख दिया....
मैं दुबारा सोफे पर आकर बैठ गया....उसकी भी दिया बाती ख़त्म होने को आई थी....मैंने उसे आवाज दी "चलो आज फिर हाथो में हाथ लेके बात करते हुए दो चार कदम कही से घूम आते हैं "
वो तुरंत बोली " अभी आई"....
मुझे विश्वास नहीं हुआ....चेहरा ख़ुशी से चमक उठा....आँखे भर आई
आँखों से आंसू गिरने लगे और गाल भीग गए....अचानक आँखों की चमक फीकी पड़ गयी और मैं निस्तेज हो गया.....हमेशा के लिए.....
उसने अपनी बची हुई पूजा की और मेरे पास आके बैठ गयी और बोली "बोलो क्या बोल रहे थे ?"
लेकिन मेने कुछ नहीं कहा....उसने मेरे शरीर को छू कर देखा....शरीर बिलकुल ठंडा पड गया था.....मैं उसकी और एकटक देख रहा था.....
पल भर को वो भी हताश हो गयी सोची क्या करू....
उसे कुछ समझ में नहीं आया..... लेकिन एक दो मिनट में ही वो अपने आप को संभाल कर धीरे से उठी पूजा घर में गयी.....एक अगरबत्ती जला कर भगवान को प्रणाम किया..... और फिर से आके सोफे पे बैठ गयी और
मेरा ठंडा हाथ अपने हाथो में ले कर रुंधे हुए गले से बोली
"चलो कहाँ घुमने चलना है आपको ? क्या बातें करनी हैं आपको ?
बोलिए...बोलिए ना....
ऐसा कहते हुए उसकी आँखे भर आई और आंसू बह निकले वो एकटक मुझे देखती रही......एक बार को उसने मुझे हिलाया तो मेरा सर उसके कंधो पर गिर गया.....ठंडी हवा का झोंका अब भी चल रहा था....पर अब मैं नही था
क्या यही जिन्दगी है.....नहीं
जीवन अपना है तो जीने के तरीके भी अपने तरीके से रखने चाहिए और जिंदगी जीने की शुरुआत आज से करो....क्यूंकि कल कभी नहीं आएगा....और ना ही जिंदगी हार बार दूसरा मौका देती है.....
(समाप्त)