- 29,364
- 67,724
- 304
Manish bhai aapke liye ek shayri arj hai.
कभी मै रह कर भी घर पर नहीं हू,
जहाँ मैं हूं वहाँ अकसर नही हूँ,
के किसी को चोट मुझसे क्या लगेगी,
किसी की राह का पत्थर नहीं हूँ,
रहा फूलों की संगति में निरन्तर,
बहारों का भले शायर नहीं हूं,
फोजी का दर है खुला राज के लिये,
ये क्या कम है की बे-घर नहीं हूँ।।
कभी मै रह कर भी घर पर नहीं हू,
जहाँ मैं हूं वहाँ अकसर नही हूँ,
के किसी को चोट मुझसे क्या लगेगी,
किसी की राह का पत्थर नहीं हूँ,
रहा फूलों की संगति में निरन्तर,
बहारों का भले शायर नहीं हूं,
फोजी का दर है खुला राज के लिये,
ये क्या कम है की बे-घर नहीं हूँ।।