भाग:–131
“गुरुदेव जब नागपुर से भागे थे, तब उन्होंने किसी भी इंसान को नही फसाया था। चोरी का समान भी जो स्वामी से लिया गया था, वह मात्र स्वामी जैसे कपटी इंसान को फसाने के लिये किया गया था। लेकिन उसके बाद उस समान को जितने भी कानूनी पतों हो कर गुजरा, वहां किसी न किसी संन्यासी का ही नाम अंकित किया गया था। हमने किसी भी नायजो परिवार के इंसान का नाम इस्तमाल नही किया। कुछ तो बीच मे गलतफहमी हुई है।”..
पलक:– ऐसा कैसे कह सकते है? मेरा दोस्त श्रवण, उसके पिता मोहन जी, दोनो को अगले ही दिन मेरे आंखों के सामने तड़पा, तड़पा के मार डाला। उनसे पूछते रहे, बताओ चोरी का समान कहां है? श्रवण तो बस अमरावती से मुझसे मिलने आया था, और मिलकर चला गया। मेरा नालायक चाचा सुकेश कहता है, ताला तोड़ने में ये एक्सपर्ट है, सीसी टीवी से छिपकर इसने ही खुफिया रास्ते का ताला तोड़ा होगा। श्रवण और उसके पिता की क्या गलती थी?
आर्यमणि:– शिवम् सर ये गणना नही किये थे कि कमीने नायजो को जिनपर शक होगा, उन्हे मारेंगे... ये भूल तो हुई है।
संन्यासी शिवम्:– तुम्हारे दादा वर्धराज और लोपचे की दोस्ती नायजो को खटकती थी। तुम्हारे दादा जी और गुरु निशि दोनो को मारने का मन बना चुके थे। लोपचे के साथ मामला फसाकर उन्होंने ही न दोस्ती को दुश्मनी में बदली। तुम्हारे दादाजी और गुरु निशि को को मरवाया न। पलक ने सभी बातों का सही आकलन किया, सिवाय एक...
पलक:– क्या?
संन्यासी शिवम्:– तुमने नायजो इतिहास नही पलटा। इन लोगों के निशाने पर जो भी होता है, उन्हे किसी न किसी विधि फसाकर मार ही देते है। तुम्हे नही लगता की चोरी के मामले में जिन लोगों की जान गयी, वो कहीं दूर–दूर तक चोरी से संबंध नहीं रखते थे। फिर भी उन्हें उठाया गया। चोरी का तो एक बहाना मिल गया था, वरना चोरी नही भी हुई होती तो भी विकृत नायजो उन 700 इंसानों को मारकर उसकी जगह खुद ले लेते। उन्हे तो बस अपनी आबादी बढ़ानी है और परिवार के अंदर के कुछ इंसानों की जगह नायजो को बिठा देना था। सोचकर देखो, 700 अलग–अलग परिवार के लोगों को उठाया होगा, जिस परिवार में एक या 2 नायजो होंगे, बाकी सब इंसान...
पलक:– और वो 200 बच्चे जिन्हे खुन्नस में निगल लिये?
संन्यासी शिवम:– क्या वाकई वो खुन्नस रही होगी? क्या कोई भी अपराध इतना बड़ा हो सकता है कि उसके प्रतिशोध में नवजात को निगल लिया जाये। तुम्हे नही लगता की इस पर पुनर्विचार करना चाहिए।
पलक:– हम्मम पूरी बात अब साफ हो गयी है। वो लोग उतने लोगों को मारते ही, क्योंकि उन्हे उन परिवारों में घुसना था। नवजात शिशु तो जैसे उन कमीनो के प्रिय भोजन हो, जो किसी भी अवसर पर उन्हे बच्चों को खाने का बहाना मिल जाता है। कोई नही 700 लोगो को मारने और 200 बच्चों के निगलने वाले लगभग सभी दोषी यहीं मौजूद थे। कुछ जो बचे है, वो तो बहुत मामलों में दोषी है, जायेंगे कहां, उनका हिसाब किताब तो ले ही लेंगे। लेकिन यहां अभी जो हुआ, ये आर्यमणि, ओजल को इशारा कर रहा और वो दीवार से मेरे साथियों को काट रहा... ये बर्बरता क्या है? बात करने बैठा है फिर सबको काट क्यों रहा है?
आर्यमणि:– पहली बात तो ये की तुम्हारे एक भी दोस्त नही मरे। फिर ये झूठ क्यों बोल रही। ऊपर से तुमने भी तो बात नही किया और सीधा हमे पैरालाइज कर दिया था। उसके बाद लोगों को चाकू से मारने के विचार तक दिये। रूही, इवान और अलबेली को तो चाकू मार–मार कर अधमरा कर चुके थे।
पलक:– भिड़ की ताकत का तुम लोग भी तो मजा लो। इतना डरवाना दहाड़े थे कि मेरी सूसू निकल गयी। इतना हैवान की तरह डरवानी दहाड़ कौन निकालता है? गॉडजिला की आत्मा समा गयी थी क्या?
आर्यमणि:– दहाड़ डरावनी थी और तुम्हारी गलती नही थी। बात करने जब आयी तब बात ही करना था न...
पलक:– फिर से वही सवाल... उन्हे (संन्यासी शिवम्) सुनने के बाद भी क्या मैं तुम्हे दोषी नही मानती। सोचना भी मत। इंसानों की मौत तुम्हारे प्लान के कारण नही हुई ये मान लिया। लेकिन शादी की रात जो तुमने किया उसका हिसाब अभी बाकी है। वैसे भी शुरवात में तो उन इंसानों के मौत के जिम्मेदार भी तो तुम्हे ही मान रही थी। तो मुझसे क्या उम्मीद करते हो की मैं बैठकर तुमसे बात करूंगी?
रूही:– पलक तुम सेवियर हो। तुम तोप हो। तुम तूफान हो। तुम अपने समुदाय की अच्छी नायजो हो। चलो–चलो अब सभा खत्म करो। जर्मनी की बातचीत यहीं खत्म होती है।
पलक:– “वाकई रूही, सभा खत्म। बातचीत तो एकतरफा हुआ। तुम्हे नही जानना की आर्य ने आज की मीटिंग क्यों रखी थी? चलो मेरा क्या है, नागपुर में मैं आर्य को फांस रही थी और आर्य मुझे। इसलिए हम दोनो ने एक दूसरे को कुछ भी नही बताया। चलो ये भी मान सकती हूं कि नागपुर में तुम नई जुड़ी थी, इसलिए अहम जानकारियां नही दी जा सकती थी, लेकिन आज यहां की मीटिंग”...
“सोचो रूही सोचो... नायजो की हजार की भिड़ को मारने के लिये यदि 8 मार्च की मीटिंग होती तो क्या 2 महीने पहले आर्य को सपना आया था कि मीटिंग की बात सुनकर इतने लोग आर्या को मारने आयेंगे। और यदि नायजो को मारना ही मकसद था तो बातचीत का प्रस्ताव क्यों? क्यों सबके सामने खुलकर आना? जैसे अमेरिका और अर्जेंटीना से नायजो को साफ किया वैसे ही चुपके से भारत में साफ करते रहते। कुछ तो वजह रही होगी जो ये मीटिंग के लिये आर्य मरा जा रहा था? या मैं ये मान लूं की बिस्तर पर इसे मेरी याद आ गयी, इसलिए इस मीटिंग का आयोजन किया गया? सोचकर देखो मेरी बात”...
"बात नही अब तो लात चलेगी, लात”... कहते हुये रूही ने अपना लात कुर्सी पर ऐसे जमाई की कुर्सी चकनाचूर और आर्य सीधा जाकर दीवार से टकराया। रूही तेजी भागकर आर्यमणि के पास पहुंची और उसका गला पकड़कर दीवार से चिपकाते हुये.... “जैसा की पलक ने अपने यहां होने का मकसद बताया, तुम्हारा क्या मकसद था जान।”
आर्यमणि:– बेबी, सोना, मेरी प्यारी, पहले नीचे तो उतारो दम घुट रहा है।
रूही:– आज के मीटिंग का मकसद क्या था?
महा:– पुराना प्यार जाग उठा...
रूही, एक लात आर्यमणि के दोनो पाऊं बीच की जगह से ठीक इंच भर नीचे की दीवार पर मारी। ऐसा मारी की दीवार घुस गया.... “पुराना प्यार या पुराना हवस जाग उठा था”...
आर्यमणि:– नही रूही, तुम कितना गन्दा सोचती हो। एक इंच भी ऊपर लात लगती तो मैं किसी काम का न रहता...
रूही:– क्या वाकई तुम्हारे अंडकोष हील न होंगे... चलो एक टेस्ट कर ही लेती हूं...
आर्यमणि, चिल्लाते हुये.... “रूही नही... पागल हो क्या जो ऐसे टेस्ट का नाम भी ले रही। नीचे उतारो सब बताता हूं।”
रूही:– क्यों 2 महीने से बताने का ख्याल नही आया? (आर्यमणि को नीचे उतारती)... या फिर हर योजना की तरह इस योजना में भी हम अल्फा पैक के जानने लायक कोई बात ही नही थी। हम तो पागल है, जिसे लक्ष्य का पता हो या ना हो, वो कोई जरूरी बात नही, बस मार–काट करते रहो...
रूही मायूस थी। आर्यमणि उसके कंधे पर हाथ रखते..... “नही ऐसी कोई बात नही थी। पहले कोई बहुत बड़ा योजना नही था, लेकिन जैसे–जैसे समय नजदीक आता चला गया, योजना में बदलाव होते चले गये”...
रूही:– कमाल है ना, और मुझे एक भी बदलाव का पता नही...
आर्यमणि:– रूही मैं तुम्हे सब विस्तार से बताता हूं...
रूही:– नही जानना मुझे कुछ भी। कुछ देर में तो वैसे भी जान जाऊंगी...
आर्यमणि:– मुझे माफ कर दो। अब से जो भी बात होगी वो सबसे पहले मैं तुम्हे बताऊंगा..
रूही:– जाओ अपना बचा काम खत्म करो। नही माफ कीजिए बॉस... जाइए आप अपना काम खत्म कीजिए... हम भूल गये की पैक के मुखिया आप हो...
आर्यमणि:– क्यों दिल छोटा कर रही। कहा तो माफ कर दो... और पैक का सिर्फ एक ही बॉस है... और वो कौन है...
आर्यमणि अपनी बात कहकर अल्फा पैक के ओर देखने लगा। सबने एक जैसा ही रिएक्शन दिया.... “हुंह..” और अपना मुंह फेर लिये। आर्यमणि को गलती समझ मे आ तो रहा था लेकिन बात कुछ ज्यादा ही हाथ से निकल गयी थी। आर्यमणि और निशांत के बीच कुछ इशारे हुये। थोड़ी टेलीपैथी हुई....
“दोस्त बता ना क्या करूं?”..
“पाऊं में गिड़कर, पाऊं पकड़ ले आर्य, शायद पिघल जाये।”
“ठीक है ये भी करके देख लेता हूं।”
कुछ दिमाग के बीच संवाद हुये। थोड़े नजरों के इशारे हुये और आर्यमणि दंडवत बिछ गया। रूही झटके से अपने पाऊं पीछे करती.... “जान ये क्या कर रहे?”
आर्यमणि:– माफी मांग रहा हूं। प्लीज माफ कर दो...
रूही:– क्या मेरे मुंह से बोल देने से मेरे दिल का दर्द हल्का हो जायेगा आर्य। हम एक पैक है। एक परिवार है। कुछ दिनों में हमारी शादी होने वाली है। क्या मैं उस लायक भी नहीं थी कि तुम कुछ हिस्सा ही बताकर कह देते, बाकी अभी मत जानो...
आर्यमणि:– बहुत बड़ी गलती हो गयी...
रूही:– पहले खड़े हो जाओ आर्य, इतने लोगों के बीच ऐसे पाऊं पड़ने से तुम्हारा गलत सही नही हो जायेगा। मेरे दिल में चुभा है, और मुझे नही लगता की तुम्हे इस बात का एहसास भी है। तुमसे तो मात्र एक गलती हुई है, जिसकी किसी भी विधि माफी चाहिए....
आर्यमणि:– मैं अब कुछ नही कहूंगा। तुम मुझे इतना बताओ की मैं क्या करूं जो तुम्हे अच्छा महसूस होगा...
रूही:– तुमसे वो भी न हो पायेगा...
आर्यमणि:– बोलकर देखो, नही होने वाला होगा तो भी करके दिखा दूंगा...
रूही:– पलक को जान से मार दो...
आर्यमणि:– रूही, किसी को जान से मारना... तुम समझ भी रही हो क्या मांग रही हो?
रूही:– ठीक है तो मुझे छोड़ दो... ये तो कर सकते हो ना...
आर्यमणि, अपने दोनो हाथ जोड़ते.... “मुझे माफ कर दो। मुझे बोलना नहीं आता। क्या कुछ है जो मैं तुम्हारे दिल के सुकून के लिये कर सकता हूं?
रूही:– तुम नही कर पाओगे...
आर्यमणि:– तुम्हारे दिल को थोड़ा कम ही सुकून दे, लेकिन मैं जो कर सकता हूं, उस लायक बता दो...
रूही:– हम सब बिना लक्ष्य के लड़े, तुम भी पलक के साथ उतने ही सीरियस होकर बिना किसी लक्ष्य के लड़ो...
पलक:– मुझसे क्यों भिड़वा रही है... मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा...
रूही:– मेरे दिल की भावना आहत की है... कुछ भी कहती लेकिन मेरा आर्य तुम्हे बिस्तर पर याद कर रहा था, ये नही कहना चाहिए था...
आर्यमणि, मुट्ठी बंद करके झट से अपना पंजा खोला। ऊसके पंजे से झट से क्ला खुल गये... “इसी ने अभी आग लगाया था। इसके मुंह तोड़ने में बड़ा मजा आयेगा।”
पलक:– सोच ही रही थी कि सभी मकसद पूरे हो गये, पर निजी तौर पर जो सीने में आग लगी थी वो बुझानी रह गयी। पूरी तैयारी के साथ आना आर्य, वरना मैं तो तुम्हारे अंग भंग करने को तैयार हूं।
आर्यमणि रूही को बैठने का इशारा करते... “कांटेदार जबूक चलेगी या खंजर”...
पलक, अपनी कुर्सी से उठकर बीच हॉल मे पहुंची और दोनो हाथ के इशारे से बुलाते... “कुछ भी चलाऊंगी पर तुम्हारी तरह मैदान के बाहर खड़े होकर जुबान तो नही चलाऊंगी”...
“ऐसा क्या”.... कहते हुये आर्यमणि अपनी जगह से खड़े–खड़े छलांग लगा दिया। अल्फा पैक एक साथ सिटी बजाते, बिलकुल जोश में आ गये। अपनी जगह से खड़े–खड़े जब आर्यमणि ने छलांग लगाया तब वह दूसरी मंजिल के ऊपर तक छलांग लगा चुका था जिसे देख अल्फा पैक जोश में आ गया। लेकिन ठीक उसी वक्त हॉल के दूसरे हिस्से पर जब नजर गयी तब आश्चर्य से सबके मुंह खुले और मुंह से “वोओओओओ” निकल रहा था।
पलक के हाथों के बस इशारे थे और वह हवा में जैसे उड़ रही थी। हवा के बवंडर उठाने की तकनीक के दम पर पलक अलग ही कारनामा कर चुकी थी। पलक तो जैसे हवा के रथ पर सवार थी। आर्यमणि दूसरी मंजिल तक की उछाल भरा और पलक ठीक उसके माथे के ऊपर। पहला हमला पलक ने ही किया। अपने दोनो हाथ के इशारे से पलक ने हवा का तेज बवंडर आर्यमणि पर छोड़ा। आर्यमणि उस बवंडर से बचने के लिये बस अपने फूंक से उस बवंडर को दिशा दे दिया।
तेज हवा का झोंका पलक के ओर बढ़ा और आर्यमणि एक फोर्स के विपरीत फोर्स लगाने के चक्कर में हवा की ऊंचाई से नीचे धराम से गिड़ा। वहीं पलक आर्यमणि के बचाव और जवाबी हमला देखकर मुंह से शानदार कहे बिना रह नही पायी। हालांकि वह गिड़ी नही बल्कि आर्यमणि के उठाये तूफान से बचने के बड़ी तेजी से उसके रास्ते से हटी।
“क्या हुआ आर्य, अपने पहले ही दाव में कही हड्डियां तो न तुड़वा लिये”..... पलक सामने खड़ी होकर हंसते हुये कहने लगी। आर्यमणि को यह हंसी खल गयी और उसी क्षण उसने तेज दौड़ लगा दिया। आर्यमणि ने बचने तक का मौका न दिया। अपने ओर बढ़े तूफान को पलक देख तो सकती थी, लेकिन वह जिस तेजी से आर्यमणि के रास्ते से हटी, उस से भी कहीं ज्यादा तेज आर्यमणि ने अपना रास्ता बदला था। ऐसा लग रहा था जैसे उसे पहले से पता हो की पलक अपनी जगह से कितना हट सकती है।
आर्यमणि, तेज दौड़ते हुये कंधे से टक्कर लगा चुका था। एक भीषण टक्कर जिसे कुछ देर पहले आर्यमणि ने नायजो के एक्सपेरिमेंट वाले बॉडी पर मारा था। जिस टक्कर का अनुभव करने के बाद उन नायजो के खून के धब्बे दीवारों पर थे और चिथरे शरीर यहां वहां बिखरे थे। पलक खतरे को भांप चुकी थी इसलिए बचने के लिये उसने आर्यमणि के ठीक सामने अपने दोनो हाथ से हवा का मजबूत बावंडर उठा दी।
पलक का हांथ आगे और हाथ में हवा का तेज तूफान। आर्यमणि का कंधा उसी हवा की मजबूत दीवार से भिड़ा और जैसे विस्फोट सा हुआ हो। पलक हवा का शील्ड लगाने के बावजूद भी इतना तेज धक्का खाकर दीवार से टकराई की उसकी हड्डियां चटक गयी.... “क्या हुआ छुई मुई, कहीं कोई हड्डी तो न छिटक गयी”
Yha palak or arya ne apni galat fahmi dur kr li pr Jo dukh dard palak ke andar bhara hua tha arya ke kiye gye kand ke chalte, palak ne ruhi ko hi usi dard me samil kr liya, arya bistar pr palak ko yaad karta hai aisa kahkr, arya ruhi or group ko planning va real motive ko bhi nhi btata...
Ek wife ki or family ki najar se dekha jaye to yah bahut pida dayak Lagta hai ki uske ghar ke sadasy Ghar me baat share nhi karte pr ek leader ki najar se dekha jaye to use bahut se aise faisle lena padta hai jinke bare me vo kisi ko bhi pura nhi bta sakta vahi haal Ghar ke mukhiya ka bhi hai...
Ruhi ka dard bhi sahi hai, ek jivan sangni yah kabhi bardast nahi kar sakti ki uska pati uske sath wakt bitate huye kisi or ko soche ya naam bhi le...
Nishant ne pair padne ki salah di, idhar ek sabhya udahran diya jaye to sankar Ji ki ek bhul Kahe ya lila me jb Ganesh ji ke Sir ko alag kr diya gya tb mata Aadi-Shakti ke krodh ko sant karne ke liye sankar Ji Aadi-Shakti ke charno me aa gye the.
Ab Isko mauj masti vali bhavna se dekha jaye to aisa bhi kah sakte hai ki jb shiv ji ki nhi chali to Apne arya kis khet ki muli hai, yha ruhi ne arya ko palak ke sath bhidva diya, arya bhi apni galti ko samajh gya hai...
Dekhte hai kya natija nikalta hai, Vaise mujhe aisa kyo lag rha hai ki Jaise nishchal or apasyu ki match hui thi Vaisa ki kuchh yha bhi hone vala hai palak or arya ke Bich kyoki apasyu or arya ke Bich to Pahle hi ho gya match 1st mulakat me...
Superb update bhai sandar jabarjast lajvab amazing with awesome writing skills bhai