• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
23,612
80,748
259
Last edited:

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
10,210
42,679
174
भाग:–131


“गुरुदेव जब नागपुर से भागे थे, तब उन्होंने किसी भी इंसान को नही फसाया था। चोरी का समान भी जो स्वामी से लिया गया था, वह मात्र स्वामी जैसे कपटी इंसान को फसाने के लिये किया गया था। लेकिन उसके बाद उस समान को जितने भी कानूनी पतों हो कर गुजरा, वहां किसी न किसी संन्यासी का ही नाम अंकित किया गया था। हमने किसी भी नायजो परिवार के इंसान का नाम इस्तमाल नही किया। कुछ तो बीच मे गलतफहमी हुई है।”..

पलक:– ऐसा कैसे कह सकते है? मेरा दोस्त श्रवण, उसके पिता मोहन जी, दोनो को अगले ही दिन मेरे आंखों के सामने तड़पा, तड़पा के मार डाला। उनसे पूछते रहे, बताओ चोरी का समान कहां है? श्रवण तो बस अमरावती से मुझसे मिलने आया था, और मिलकर चला गया। मेरा नालायक चाचा सुकेश कहता है, ताला तोड़ने में ये एक्सपर्ट है, सीसी टीवी से छिपकर इसने ही खुफिया रास्ते का ताला तोड़ा होगा। श्रवण और उसके पिता की क्या गलती थी?

आर्यमणि:– शिवम् सर ये गणना नही किये थे कि कमीने नायजो को जिनपर शक होगा, उन्हे मारेंगे... ये भूल तो हुई है।

संन्यासी शिवम्:– तुम्हारे दादा वर्धराज और लोपचे की दोस्ती नायजो को खटकती थी। तुम्हारे दादा जी और गुरु निशि दोनो को मारने का मन बना चुके थे। लोपचे के साथ मामला फसाकर उन्होंने ही न दोस्ती को दुश्मनी में बदली। तुम्हारे दादाजी और गुरु निशि को को मरवाया न। पलक ने सभी बातों का सही आकलन किया, सिवाय एक...

पलक:– क्या?

संन्यासी शिवम्:– तुमने नायजो इतिहास नही पलटा। इन लोगों के निशाने पर जो भी होता है, उन्हे किसी न किसी विधि फसाकर मार ही देते है। तुम्हे नही लगता की चोरी के मामले में जिन लोगों की जान गयी, वो कहीं दूर–दूर तक चोरी से संबंध नहीं रखते थे। फिर भी उन्हें उठाया गया। चोरी का तो एक बहाना मिल गया था, वरना चोरी नही भी हुई होती तो भी विकृत नायजो उन 700 इंसानों को मारकर उसकी जगह खुद ले लेते। उन्हे तो बस अपनी आबादी बढ़ानी है और परिवार के अंदर के कुछ इंसानों की जगह नायजो को बिठा देना था। सोचकर देखो, 700 अलग–अलग परिवार के लोगों को उठाया होगा, जिस परिवार में एक या 2 नायजो होंगे, बाकी सब इंसान...

पलक:– और वो 200 बच्चे जिन्हे खुन्नस में निगल लिये?

संन्यासी शिवम:– क्या वाकई वो खुन्नस रही होगी? क्या कोई भी अपराध इतना बड़ा हो सकता है कि उसके प्रतिशोध में नवजात को निगल लिया जाये। तुम्हे नही लगता की इस पर पुनर्विचार करना चाहिए।

पलक:– हम्मम पूरी बात अब साफ हो गयी है। वो लोग उतने लोगों को मारते ही, क्योंकि उन्हे उन परिवारों में घुसना था। नवजात शिशु तो जैसे उन कमीनो के प्रिय भोजन हो, जो किसी भी अवसर पर उन्हे बच्चों को खाने का बहाना मिल जाता है। कोई नही 700 लोगो को मारने और 200 बच्चों के निगलने वाले लगभग सभी दोषी यहीं मौजूद थे। कुछ जो बचे है, वो तो बहुत मामलों में दोषी है, जायेंगे कहां, उनका हिसाब किताब तो ले ही लेंगे। लेकिन यहां अभी जो हुआ, ये आर्यमणि, ओजल को इशारा कर रहा और वो दीवार से मेरे साथियों को काट रहा... ये बर्बरता क्या है? बात करने बैठा है फिर सबको काट क्यों रहा है?

आर्यमणि:– पहली बात तो ये की तुम्हारे एक भी दोस्त नही मरे। फिर ये झूठ क्यों बोल रही। ऊपर से तुमने भी तो बात नही किया और सीधा हमे पैरालाइज कर दिया था। उसके बाद लोगों को चाकू से मारने के विचार तक दिये। रूही, इवान और अलबेली को तो चाकू मार–मार कर अधमरा कर चुके थे।

पलक:– भिड़ की ताकत का तुम लोग भी तो मजा लो। इतना डरवाना दहाड़े थे कि मेरी सूसू निकल गयी। इतना हैवान की तरह डरवानी दहाड़ कौन निकालता है? गॉडजिला की आत्मा समा गयी थी क्या?

आर्यमणि:– दहाड़ डरावनी थी और तुम्हारी गलती नही थी। बात करने जब आयी तब बात ही करना था न...

पलक:– फिर से वही सवाल... उन्हे (संन्यासी शिवम्) सुनने के बाद भी क्या मैं तुम्हे दोषी नही मानती। सोचना भी मत। इंसानों की मौत तुम्हारे प्लान के कारण नही हुई ये मान लिया। लेकिन शादी की रात जो तुमने किया उसका हिसाब अभी बाकी है। वैसे भी शुरवात में तो उन इंसानों के मौत के जिम्मेदार भी तो तुम्हे ही मान रही थी। तो मुझसे क्या उम्मीद करते हो की मैं बैठकर तुमसे बात करूंगी?

रूही:– पलक तुम सेवियर हो। तुम तोप हो। तुम तूफान हो। तुम अपने समुदाय की अच्छी नायजो हो। चलो–चलो अब सभा खत्म करो। जर्मनी की बातचीत यहीं खत्म होती है।

पलक:– “वाकई रूही, सभा खत्म। बातचीत तो एकतरफा हुआ। तुम्हे नही जानना की आर्य ने आज की मीटिंग क्यों रखी थी? चलो मेरा क्या है, नागपुर में मैं आर्य को फांस रही थी और आर्य मुझे। इसलिए हम दोनो ने एक दूसरे को कुछ भी नही बताया। चलो ये भी मान सकती हूं कि नागपुर में तुम नई जुड़ी थी, इसलिए अहम जानकारियां नही दी जा सकती थी, लेकिन आज यहां की मीटिंग”...

“सोचो रूही सोचो... नायजो की हजार की भिड़ को मारने के लिये यदि 8 मार्च की मीटिंग होती तो क्या 2 महीने पहले आर्य को सपना आया था कि मीटिंग की बात सुनकर इतने लोग आर्या को मारने आयेंगे। और यदि नायजो को मारना ही मकसद था तो बातचीत का प्रस्ताव क्यों? क्यों सबके सामने खुलकर आना? जैसे अमेरिका और अर्जेंटीना से नायजो को साफ किया वैसे ही चुपके से भारत में साफ करते रहते। कुछ तो वजह रही होगी जो ये मीटिंग के लिये आर्य मरा जा रहा था? या मैं ये मान लूं की बिस्तर पर इसे मेरी याद आ गयी, इसलिए इस मीटिंग का आयोजन किया गया? सोचकर देखो मेरी बात”...

"बात नही अब तो लात चलेगी, लात”... कहते हुये रूही ने अपना लात कुर्सी पर ऐसे जमाई की कुर्सी चकनाचूर और आर्य सीधा जाकर दीवार से टकराया। रूही तेजी भागकर आर्यमणि के पास पहुंची और उसका गला पकड़कर दीवार से चिपकाते हुये.... “जैसा की पलक ने अपने यहां होने का मकसद बताया, तुम्हारा क्या मकसद था जान।”

आर्यमणि:– बेबी, सोना, मेरी प्यारी, पहले नीचे तो उतारो दम घुट रहा है।

रूही:– आज के मीटिंग का मकसद क्या था?

महा:– पुराना प्यार जाग उठा...

रूही, एक लात आर्यमणि के दोनो पाऊं बीच की जगह से ठीक इंच भर नीचे की दीवार पर मारी। ऐसा मारी की दीवार घुस गया.... “पुराना प्यार या पुराना हवस जाग उठा था”...

आर्यमणि:– नही रूही, तुम कितना गन्दा सोचती हो। एक इंच भी ऊपर लात लगती तो मैं किसी काम का न रहता...

रूही:– क्या वाकई तुम्हारे अंडकोष हील न होंगे... चलो एक टेस्ट कर ही लेती हूं...

आर्यमणि, चिल्लाते हुये.... “रूही नही... पागल हो क्या जो ऐसे टेस्ट का नाम भी ले रही। नीचे उतारो सब बताता हूं।”

रूही:– क्यों 2 महीने से बताने का ख्याल नही आया? (आर्यमणि को नीचे उतारती)... या फिर हर योजना की तरह इस योजना में भी हम अल्फा पैक के जानने लायक कोई बात ही नही थी। हम तो पागल है, जिसे लक्ष्य का पता हो या ना हो, वो कोई जरूरी बात नही, बस मार–काट करते रहो...

रूही मायूस थी। आर्यमणि उसके कंधे पर हाथ रखते..... “नही ऐसी कोई बात नही थी। पहले कोई बहुत बड़ा योजना नही था, लेकिन जैसे–जैसे समय नजदीक आता चला गया, योजना में बदलाव होते चले गये”...

रूही:– कमाल है ना, और मुझे एक भी बदलाव का पता नही...

आर्यमणि:– रूही मैं तुम्हे सब विस्तार से बताता हूं...

रूही:– नही जानना मुझे कुछ भी। कुछ देर में तो वैसे भी जान जाऊंगी...

आर्यमणि:– मुझे माफ कर दो। अब से जो भी बात होगी वो सबसे पहले मैं तुम्हे बताऊंगा..

रूही:– जाओ अपना बचा काम खत्म करो। नही माफ कीजिए बॉस... जाइए आप अपना काम खत्म कीजिए... हम भूल गये की पैक के मुखिया आप हो...

आर्यमणि:– क्यों दिल छोटा कर रही। कहा तो माफ कर दो... और पैक का सिर्फ एक ही बॉस है... और वो कौन है...

आर्यमणि अपनी बात कहकर अल्फा पैक के ओर देखने लगा। सबने एक जैसा ही रिएक्शन दिया.... “हुंह..” और अपना मुंह फेर लिये। आर्यमणि को गलती समझ मे आ तो रहा था लेकिन बात कुछ ज्यादा ही हाथ से निकल गयी थी। आर्यमणि और निशांत के बीच कुछ इशारे हुये। थोड़ी टेलीपैथी हुई....

“दोस्त बता ना क्या करूं?”..

“पाऊं में गिड़कर, पाऊं पकड़ ले आर्य, शायद पिघल जाये।”

“ठीक है ये भी करके देख लेता हूं।”

कुछ दिमाग के बीच संवाद हुये। थोड़े नजरों के इशारे हुये और आर्यमणि दंडवत बिछ गया। रूही झटके से अपने पाऊं पीछे करती.... “जान ये क्या कर रहे?”

आर्यमणि:– माफी मांग रहा हूं। प्लीज माफ कर दो...

रूही:– क्या मेरे मुंह से बोल देने से मेरे दिल का दर्द हल्का हो जायेगा आर्य। हम एक पैक है। एक परिवार है। कुछ दिनों में हमारी शादी होने वाली है। क्या मैं उस लायक भी नहीं थी कि तुम कुछ हिस्सा ही बताकर कह देते, बाकी अभी मत जानो...

आर्यमणि:– बहुत बड़ी गलती हो गयी...

रूही:– पहले खड़े हो जाओ आर्य, इतने लोगों के बीच ऐसे पाऊं पड़ने से तुम्हारा गलत सही नही हो जायेगा। मेरे दिल में चुभा है, और मुझे नही लगता की तुम्हे इस बात का एहसास भी है। तुमसे तो मात्र एक गलती हुई है, जिसकी किसी भी विधि माफी चाहिए....

आर्यमणि:– मैं अब कुछ नही कहूंगा। तुम मुझे इतना बताओ की मैं क्या करूं जो तुम्हे अच्छा महसूस होगा...

रूही:– तुमसे वो भी न हो पायेगा...

आर्यमणि:– बोलकर देखो, नही होने वाला होगा तो भी करके दिखा दूंगा...

रूही:– पलक को जान से मार दो...

आर्यमणि:– रूही, किसी को जान से मारना... तुम समझ भी रही हो क्या मांग रही हो?

रूही:– ठीक है तो मुझे छोड़ दो... ये तो कर सकते हो ना...

आर्यमणि, अपने दोनो हाथ जोड़ते.... “मुझे माफ कर दो। मुझे बोलना नहीं आता। क्या कुछ है जो मैं तुम्हारे दिल के सुकून के लिये कर सकता हूं?

रूही:– तुम नही कर पाओगे...

आर्यमणि:– तुम्हारे दिल को थोड़ा कम ही सुकून दे, लेकिन मैं जो कर सकता हूं, उस लायक बता दो...

रूही:– हम सब बिना लक्ष्य के लड़े, तुम भी पलक के साथ उतने ही सीरियस होकर बिना किसी लक्ष्य के लड़ो...

पलक:– मुझसे क्यों भिड़वा रही है... मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा...

रूही:– मेरे दिल की भावना आहत की है... कुछ भी कहती लेकिन मेरा आर्य तुम्हे बिस्तर पर याद कर रहा था, ये नही कहना चाहिए था...

आर्यमणि, मुट्ठी बंद करके झट से अपना पंजा खोला। ऊसके पंजे से झट से क्ला खुल गये... “इसी ने अभी आग लगाया था। इसके मुंह तोड़ने में बड़ा मजा आयेगा।”

पलक:– सोच ही रही थी कि सभी मकसद पूरे हो गये, पर निजी तौर पर जो सीने में आग लगी थी वो बुझानी रह गयी। पूरी तैयारी के साथ आना आर्य, वरना मैं तो तुम्हारे अंग भंग करने को तैयार हूं।

आर्यमणि रूही को बैठने का इशारा करते... “कांटेदार जबूक चलेगी या खंजर”...

पलक, अपनी कुर्सी से उठकर बीच हॉल मे पहुंची और दोनो हाथ के इशारे से बुलाते... “कुछ भी चलाऊंगी पर तुम्हारी तरह मैदान के बाहर खड़े होकर जुबान तो नही चलाऊंगी”...

“ऐसा क्या”.... कहते हुये आर्यमणि अपनी जगह से खड़े–खड़े छलांग लगा दिया। अल्फा पैक एक साथ सिटी बजाते, बिलकुल जोश में आ गये। अपनी जगह से खड़े–खड़े जब आर्यमणि ने छलांग लगाया तब वह दूसरी मंजिल के ऊपर तक छलांग लगा चुका था जिसे देख अल्फा पैक जोश में आ गया। लेकिन ठीक उसी वक्त हॉल के दूसरे हिस्से पर जब नजर गयी तब आश्चर्य से सबके मुंह खुले और मुंह से “वोओओओओ” निकल रहा था।

पलक के हाथों के बस इशारे थे और वह हवा में जैसे उड़ रही थी। हवा के बवंडर उठाने की तकनीक के दम पर पलक अलग ही कारनामा कर चुकी थी। पलक तो जैसे हवा के रथ पर सवार थी। आर्यमणि दूसरी मंजिल तक की उछाल भरा और पलक ठीक उसके माथे के ऊपर। पहला हमला पलक ने ही किया। अपने दोनो हाथ के इशारे से पलक ने हवा का तेज बवंडर आर्यमणि पर छोड़ा। आर्यमणि उस बवंडर से बचने के लिये बस अपने फूंक से उस बवंडर को दिशा दे दिया।

तेज हवा का झोंका पलक के ओर बढ़ा और आर्यमणि एक फोर्स के विपरीत फोर्स लगाने के चक्कर में हवा की ऊंचाई से नीचे धराम से गिड़ा। वहीं पलक आर्यमणि के बचाव और जवाबी हमला देखकर मुंह से शानदार कहे बिना रह नही पायी। हालांकि वह गिड़ी नही बल्कि आर्यमणि के उठाये तूफान से बचने के बड़ी तेजी से उसके रास्ते से हटी।

“क्या हुआ आर्य, अपने पहले ही दाव में कही हड्डियां तो न तुड़वा लिये”..... पलक सामने खड़ी होकर हंसते हुये कहने लगी। आर्यमणि को यह हंसी खल गयी और उसी क्षण उसने तेज दौड़ लगा दिया। आर्यमणि ने बचने तक का मौका न दिया। अपने ओर बढ़े तूफान को पलक देख तो सकती थी, लेकिन वह जिस तेजी से आर्यमणि के रास्ते से हटी, उस से भी कहीं ज्यादा तेज आर्यमणि ने अपना रास्ता बदला था। ऐसा लग रहा था जैसे उसे पहले से पता हो की पलक अपनी जगह से कितना हट सकती है।

आर्यमणि, तेज दौड़ते हुये कंधे से टक्कर लगा चुका था। एक भीषण टक्कर जिसे कुछ देर पहले आर्यमणि ने नायजो के एक्सपेरिमेंट वाले बॉडी पर मारा था। जिस टक्कर का अनुभव करने के बाद उन नायजो के खून के धब्बे दीवारों पर थे और चिथरे शरीर यहां वहां बिखरे थे। पलक खतरे को भांप चुकी थी इसलिए बचने के लिये उसने आर्यमणि के ठीक सामने अपने दोनो हाथ से हवा का मजबूत बावंडर उठा दी।

पलक का हांथ आगे और हाथ में हवा का तेज तूफान। आर्यमणि का कंधा उसी हवा की मजबूत दीवार से भिड़ा और जैसे विस्फोट सा हुआ हो। पलक हवा का शील्ड लगाने के बावजूद भी इतना तेज धक्का खाकर दीवार से टकराई की उसकी हड्डियां चटक गयी.... “क्या हुआ छुई मुई, कहीं कोई हड्डी तो न छिटक गयी”
Yha palak or arya ne apni galat fahmi dur kr li pr Jo dukh dard palak ke andar bhara hua tha arya ke kiye gye kand ke chalte, palak ne ruhi ko hi usi dard me samil kr liya, arya bistar pr palak ko yaad karta hai aisa kahkr, arya ruhi or group ko planning va real motive ko bhi nhi btata...

Ek wife ki or family ki najar se dekha jaye to yah bahut pida dayak Lagta hai ki uske ghar ke sadasy Ghar me baat share nhi karte pr ek leader ki najar se dekha jaye to use bahut se aise faisle lena padta hai jinke bare me vo kisi ko bhi pura nhi bta sakta vahi haal Ghar ke mukhiya ka bhi hai...

Ruhi ka dard bhi sahi hai, ek jivan sangni yah kabhi bardast nahi kar sakti ki uska pati uske sath wakt bitate huye kisi or ko soche ya naam bhi le...

Nishant ne pair padne ki salah di, idhar ek sabhya udahran diya jaye to sankar Ji ki ek bhul Kahe ya lila me jb Ganesh ji ke Sir ko alag kr diya gya tb mata Aadi-Shakti ke krodh ko sant karne ke liye sankar Ji Aadi-Shakti ke charno me aa gye the.

Ab Isko mauj masti vali bhavna se dekha jaye to aisa bhi kah sakte hai ki jb shiv ji ki nhi chali to Apne arya kis khet ki muli hai, yha ruhi ne arya ko palak ke sath bhidva diya, arya bhi apni galti ko samajh gya hai...

Dekhte hai kya natija nikalta hai, Vaise mujhe aisa kyo lag rha hai ki Jaise nishchal or apasyu ki match hui thi Vaisa ki kuchh yha bhi hone vala hai palak or arya ke Bich kyoki apasyu or arya ke Bich to Pahle hi ho gya match 1st mulakat me...

Superb update bhai sandar jabarjast lajvab amazing with awesome writing skills bhai
 

nain11ster

Prime
23,612
80,748
259
भाग:–132


पलक का हांथ आगे और हाथ में हवा का तेज तूफान। आर्यमणि का कंधा उसी हवा की मजबूत दीवार से भिड़ा और जैसे विस्फोट सा हुआ हो। पलक हवा का शील्ड लगाने के बावजूद भी इतना तेज धक्का खाकर दीवार से टकराई की उसकी हड्डियां चटक गयी.... “क्या हुआ छुई मुई, कहीं कोई हड्डी तो न छिटक गयी”

पलक गुस्से में खड़ी होती झटके से अपने दोनो हाथ खोली। जैसे ही अपने दोनो हाथ खोले उसके दोनो हाथ में 2 फिट लंबी और 4 इंच चौड़ी मजबूत चमचमाती धारदार तलवार थी। अदभुत और अकल्पनीय। हर कोई बस उसके हाथ ही देख रहे थे, कैसे उसने ये तलवार निकाल लिया...

आर्यमणि, अलबेली को घूरते.... “ये हमारा पहनाया कपड़ा था न, फिर इसके नीचे हथियार कहां से आ गया”...

पलक चुटकी बजाकर आर्यमणि का ध्यान अपनी ओर खींचती.... “ओ हेल्लो भेड़ियों के राजा, ज्यादा दिमाग मत लगाओ। ये तलवार मेरे शरीर में इन बिल्ट है। जब बात मेरे तलवार की हो ही रही है तो बता दूं कि ये तलवार यूनिवर्स में भट्टी कहे जाने वाले ग्रह हुर्रीएंट प्लेनेट के सूरज की विकराल तप्ती आग में बनी है। इकलौती हाइबर धातु जो उस जगह के तापमान को झेल सकती है। और उसके एक खंजर का कमाल तो पहले ही देख चुके हो।”

अलबेली:– तो क्या तुम दूसरे ग्रह पर गयी हो?

रूही:– ये क्या लगा रखा है। ऐसे रुक–रुक कर फाइट क्यों कर रहे....

पलक:– मैं तो कबसे तैयार हूं। पूछ लो अपने जान से, वो डर तो न गया...

आर्यमणि अपने पंजे का क्ला दिखाते.... “शायद ये क्ला उस से भी कहीं ज्यादा तपते भट्टी में बना है”...

“ये तो वक्त ही बतायेगा”.... कहते हुये पलक ने दौड़ लगा दिया... आर्यमणि भी तैयार। जैसे ही पलक नजदीक पहुंची, आर्यमणि के बस हाथों के इशारे थे, और अगले ही पल तेज गति से दौड़ती पलक जड़ों के जाल में फंसकर ऐसे लड़खड़ाई की वो जबतक संभलती, आर्यमणि का मुक्का था और पलक की नाक। आर्यमणि ने कोई रहम नहीं किया। शायद कुछ ज्यादा ही जोड़ से उसने मार दिया था।

कुछ मिनट के लिये पलक उठी ही नही। सर झुकाकर बैठी रही और नीचे फर्श पर खून बह रहा था। तकरीबन 5 मिनट तक उसी अवस्था में रहने के बाद पलक अपनी नाक पकड़कर खड़ी हुई.... “दिमाग हिला दिया पंच ने”... और इतना कहकर एक बार फिर वह दौड़ लगा चुकी थी।

पलक को पता था कि यदि उसके पाऊं जमीन पर रहे तब इस बार भी वही होगा इसलिए कुछ कदम दौड़ने के बाद वह हवा के रथ पर पुनः सवार होकर, आर्यमणि के ऊपर ही छलांग लगा चुकी थी। बेचारी को पता न था की पलक झपकने से पहले जड़े कितनी दूर हवा में ऊपर उठती है। पलक आर्यमणि से कुछ फिट फासले पर रही होगी। उसके दोनो हाथ की तलवार आर्यमणि से इंच भर की दूरी पर थी। पलक लगभग हमला कर चुकी थी, लेकिन तभी क्षण भर में जड़ें जमीन से निकली। आर्यमणि जड़ों में कहीं गायब और पलक भी जड़ों के बीच ऐसी लपेटी गयी की उसमे उलझकर बस आर्यमणि के ऊपर लैंड हो रही थी।

झाड़ में फंसकर पलक, आर्यमणि के ठीक सामने आ रही थी और आर्यमणि झाड़ के बीच कहीं नजर नहीं आ रहा था। तभी झाड़ के बीच से एक लात जमकर पड़ी और हवा से आर्यमणि के ऊपर लैंड होती हुई पलक, सीधा दीवारों से जा टकराई। लात का प्रहार इतना तेज था कि रूही गुस्से से चिल्लाई “आर्य”.... वहीं आर्यमणि झाड़ के बीच से निकलकर एक बार रूही को देखा और तेज दौड़ लगा चुका था।

पलक अब तक संभली भी नही थी, लेकिन काफी तेज और जानलेवा आंधी को मेहसूस कर वह भी जान बचाने वाली तेजी दिखाती हुई अपने जगह से हटी। आर्यमणि सीधा दीवार पर टक्कर दे मारा। और दीवार के जिस हिस्से में टक्कर पड़ी, वह हिस्सा ढह गया।

पलक ने भी यह नजारा देखा। खुद की घायल अवस्था देखी। और देखते ही देखते वहां का माहोल ही बदल गया। पलक अपने दोनो हाथ हवा में की हुई थी। कड़कती बिजीली आसमान से जैसे छत फाड़कर उस घर में आ रही थी और पलक के दोनो हाथों से कनेक्ट होकर वह पलक के पूरे शरीर में घुस रही थी।

देखते ही देखते पलक के बदन के अंदर से बिजली चमकने लगी। पूरी की पूरी पलक चमकने लगी और बिजली की तेज रफ्तार से ही पलक दौड़ी। आर्यमणि खड़ा होकर यह अचंभित करने वाला नजारा देख रहा था। देखने में ऐसा गुम हुआ की उसे ध्यान न रहा की अभी–अभी उसने पलक को बहुत ही गंदे तरीके से घायल किया था। और आखरी वाले लात ने तो शायद पलक के पेट की अंतरियों को ही फाड़ दिया था।

पलक दौड़ी और जबतक आर्यमणि को ख्याल आया की उसपर हमला हो रहा है, बहुत देर हो चुकी थी। पलक दौड़ती हुई पहुंची और अपना जोरदार मुक्के से आर्यमणि के सीने पर प्रहार की। बचाव में आर्यमणि ने अपना पंजा आगे किया और उसका पंजा लटक कर झूलने लगा।

आर्यमणि हाथ के दर्द से बिलबिला गया। उसका थोड़ा सा ध्यान भटका और इसी बीच पलक मौके का फायदा उठाते हुये, आर्यमणि को अपने दोनो हाथों से हवा में उठा ली और खींचकर ऐसा फेंकी की उस बड़े से हॉल के एक दीवार से सीधा दूसरे दीवार पर धराम से टकराया। पलक उसे फेंकने के साथ ही अपने दोनो हाथ आगे कर ली। उसके दोनो हाथ से चंघारती हुई बिजली की दो चौड़ी पट्टियां निकल रही थी। उन दोनो पट्टियों ने आर्यमणि को पूरा जकड़ लिया। बिजली का इतने तेज झटका लगा था कि आर्यमणि उसे झेल न पाया और बेसुध होकर बिजली के उस जकड़न में झूलने लगा।

बिजली की चौड़ी पट्टियों में जकड़ने के बाद पलक कभी आर्यमणि को दाएं तो कभी बाएं पटक रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे पलक अपने हाथ से बिजली की रस्सी को पकड़ी हो। रस्सी जो तकरीबन 300 फिट दूर खड़े आर्यमणि को जकड़े हुई थी और उसे किसी बोरे के समान उठा–उठा कर पटक रही थी। ये ठीक वैसे ही था जैसे फर्ज कीजिए की छोटे ने रस्सी के निचले सिरे पर कुछ ठोस बांधकर तेजी से उसे उठा–उठा कर जमीन पर पटक रहा हो।

10–12 पटखनी खाने के बाद, आर्यमणि ने बस इवान से नजरे मिलाई और उसने पलक को प्लास्टिक में कैद कर दिया। पलक झपकते ही पलक कैद हो गयी और अगले ही पल वह प्लास्टिक बस धुवां बनकर हवा में उड़ गया और पलक के नजर डालने मात्र से इवान का लैपटॉप भी धुवां बनकर हवा में था और उसके बिखड़े पार्ट्स वहीं डायनिंग टेबल पर पड़े थे। पलक की आंखों से कुछ निकला हो ऐसा दिखा नही, तुलना यदि करे अन्य नायजो से जिनकी आंखों से लेजर नुमा रौशनी निकलते साफ देखी जा सकती थी।

पलक सहायकों को छोड़ एक बार फिर आर्यमणि पर ध्यान लगाई। गुस्से से बिलबिलाती.... “हारने पर चीटिंग हां। रुक भेड़िया तुझे मैं अभी बताती हूं।”.... पलक अपने गुस्से का इजहार करती आर्यमणि को झटके से खींची। बिजली की पट्टियों में बंधा आर्यमणि बिजली की तेजी खींचा आया और पलक का लात खाकर वापस दीवार से टकराया।

पलक के बिजली का संपर्क टूटा था। इसलिए पुनः वह अपने दोनो हाथ सामने की। बिजली की चौड़ी पट्टियां पुनः से आर्यमणि के ओर बढ़ी। किंतु इस बार आर्यमणि पकड़ में नहीं आया क्योंकि आर्यमणि के हाथ से भी जड़ों की विशाल पट्टियां निकल रही थी, जो सीधा बिजली से टकरा रही थी।

दोनो लगभग 300 फिट लंबी हॉल के दोनो किनारे से अपने–अपने हाथ से बिजली और जड़ निकाल रहे थे। ठीक मध्य में बिजली से जड़े टकराई। टक्कर जहां हुई वहां पर जड़ बिजली के ऊपर हावी होते हुये धीरे–धीरे बिजली को समेटकर पलक के हाथ तक वापसी का रास्ता दिखाने लगा।

पलक ने अपने दोनो हाथ का पूरा जोर लगाया। बिजली के कड़कड़ाने की आवाज तेज हो गयी। जिस पॉइंट पर जड़, बिजली से टकराया था, वहां जड़ों में आग लग गयी और वह जलकर धुवां होने लगा। पलक की बिजली आर्यमणि की जड़ों को जलाते हुये मध्य हॉल से आगे बढ़ गया। आर्यमणि ने भी अपने दोनो हाथ का जोड़ लगाया। जड़े अब जल तो रही थी लेकिन मजबूती से वह आगे बढ़ने लगी और बिजली को वापस धकेलने लगी।

पलक थोड़ा सा झुकी। अपने एक पाऊं आगे इस प्रकार की जैसे वो थोड़ा झुककर दौड़ने वाली हो। इसी मुद्रा में आने के बाद, अपने दोनो हाथ के कनेक्ट बिजली को अपने सीने तक लेकर आयी और ऐसा लगा जैसे उस बिजली को सीने से चिपका दी हो। जैसे ही बिजली सीने से चिपकी पलक खिसक कर एक कदम पीछे हुई। शायद इसलिए वह दौड़ने की मुद्रा में आयी थी ताकि संतुलन न बिगड़े।

जैसे बिजली सीने से चिपका पलक के पूरे शरीर पर ही बिजली रेंगने लगी। उसकी आंखे पूरी बिजली समान दिखने लगी। उसके बाद तो जैसे पलक के सीने से बिजली का बवंडर निकलने लगा हो। जड़ें जो जलने के बावजूद भी आगे बढ़ रही थी, इतने तेज बिजली के प्रभाव से तेजी से जली और देखते ही देखते बिजली ने जड़ों को ऐसा समेटा था की महज 10 फिट जड़ की लाइन दिख रही थी, और 290 फिट बिजली की लंबी लाइन, जो आर्यमणि से बचे फासले को भी मिटाने को तैयार थी।

बाहर खड़े दर्शक अपनी नजरें गड़ाए थे। हर किसी का दिल यह सोचकर धड़क रहा था कि इतनी तेज बिजली के एक सेकंड का झटका भी क्या आर्यमणि बर्दास्त कर पायेगा। आर्यमणि पहले से वायु विघ्न मंत्र पढ़ रहा था, लेकिन बिजली पलक के शरीर से कनेक्ट होने के कारण वायु विघ्न मंत्र काम करना बंद कर चुकी थी।

दूरी अब मात्र एक फिट रह गयी थी। सभी दर्शक दांतो तले उंगलियां चबाने लगे। तभी आर्यमणि ने अपने स्थिर पंजों की उंगलियां चलाना शुरू कर दिया। जड़े और बिजली जहां भिड़ी थी उसके ऊपर और नीचे से जड़ों ने फैलना शुरू कर दिया। बीच से जड़े धू–धू करके जल रही थी लेकिन ऊपर और नीचे से बढ़ी जड़ें तेजी से पलक के करीब पहुंच गये। पलक अपने दोनो हाथ इस्तमाल करती ऊपर और नीचे से फैल रही जड़ों पर हाथ से निकल रही बिजली का हमला की। आर्यमणि के उंगली के इशारे से निकलने वाली जड़े पलक तक पहुंचने से पहले ही रुक गयी किंतु पलक के हाथ में वो शक्ति नही थी कि जोड़ लगाकर इन जड़ों को पीछे धकेल सके क्योंकि उसकी ज्यादातर ऊर्जा तो सीने से निकल रही थी। कुछ भी न सूझ पाने की परिस्थिति में पलक भी अपने उंगली के इशारे करने लगी। उसके उंगली के इशारे पर छोटे छोटे ब्लेड निकल रहे थे, जो जड़ों को काफी तेजी से काटते हुये पीछे की ओर ले गये।

दोनो ही अपने शक्ति का प्रदर्शन कर रहे थे। पलक एक बार फिर पुनः हावी हो चुकी थी। 10 फिट की दूरी वापस से बन गयी। पलक कुछ और ज्यादा हावी होकर इस बार तो जैसे बिजली के साथ–साथ छोटे–छोटे ब्लेड की बारिश भी करवा रही थी। और उस बारिश में जड़ें ऐसी कटी जैसे मुलायम घास। पल भर में बिजली आर्यमणि के ऊपर हावी। अल्फा पैक ने अपने आंखे मूंद ली। बिजली लगभग टकरा ही गयी थी, लेकिन आर्यमणि ने तेजी से अपने हाथ के पोजिशन को बदला। पहले जहां ट्रैफिक हवलदार की तरह दोनो हथेली को आगे किया था, वहीं तुरंत बदलाव करते दोनो हथेली को ऐसे जोड़ा जैसे किसी गेंद को कैच करने वाला हो।



दोनो हथेली के बीच की खाली जगह से तुरंत ही मोटी जड़े निकली जो आर्यमणि के हाथ से निकलकर पहले तो फर्श पर गिरी, उसके बाद क्षण भर में ही वह जमीनी सतह से ऊपर हवा में उठकर बिजली के लाइन को पीछे धकेलने लगी। जड़ें नीचे फ्लोर पर भी तेजी से फैलते हुये पलक के पाऊं तक पहुंच गयी।

कैच लेने की पोजिशन वाली हथेली के ऊपर की उंगलियां काफी तेजी से मुड़ रही थी। उन्ही मुड़ती हुई उंगलियों से जड़ों के लहराते रेशे भी निकल रहे थे। उंगलियों के मुड़ने के इशारे से जड़ों के रेशे भीमकाय बिजली की सीधी लाइन को चारो ओर से घेर रहे थे। ये आड़ा तिरछा जड़ों के रेशे जब मजबूत हो जाती, फिर वह बिजली की लाइन के कुछ हिस्से को ऐसे ढकते की वह गायब हो जाता। इसका नतीजा यह हुआ की जो बिजली आर्यमणि से इंच भर की दूर पर थी, एक पल में फिट की दूरी में बदली और देखते ही देखते जड़ों ने बिजली को एक बार फिर पीछे धकेलना शुरू कर दिया।

नीचे फर्श से बढ़ने वाली जड़ें पलक के पाऊं को कवर कर चुकी थी। लेकिन पलक के शरीर से उत्पन्न होने वाली बिजली के कारण वह विस्फोट के साथ छूट जाती। तभी पलक ने अपने पाऊं के जूते खोल लिये... घन घन जैसे आवाज हुई। ऐसा लगा जैसे बिजली के प्रवाह से पूरा फ्लोर ही भिनभिना गया हो। पलक जहां खड़ी थी उसके आसपास का कुछ इलाका बिजली के कोहरे से ढक गया।

देखते ही देखते इस बार पलक बिजली के कोहरे में कही छिपी थी और ऊसके आस–पास जमीन से लेकर तीसरे माले की छत तक फैले धुंधले बिलजी के कोहरे को देखा जा सकता था।.... “लो मजा तुम भी बिजली का आर्य”.... और जैसे ही पलक अपनी बात पूरी की, पूरा वुल्फ हाउस ही बिजली के कोहरे में जैसे डूब गया हो... चिंह्हग, चिंह्हग, चिंह्हग, चिंह्हग, चिंह्हग की आवाज चारो ओर से आ रही थी। बाढ़ के पानी में जैसे सैकड़ों फिट ऊंचा मकान डूब जाता है ठीक उसी प्रकार 80 फिट ऊंची इमारत पूरे बिजली में डूबी हुई थी।

उसी डूबे बिजली के बीच से रूही की आवाज आयी.... “ओ कम अक्ल बिजली की रानी, सबको बिजली में डुबाकर ही मारने वाली है क्या? बंद कर ये बिजली, कुछ दिख ना रहा है।”....

पलक:– तुम लोगों के वायु सुरक्षा मंत्र कबके काट चुकी हूं, इसका मजा ले पहले...

जैसे ही पलक चुप हुई, केवल रूही के चिल्लाने की आवाज निकली। बिजली के छोटे झटके लगने के कारण रूही के मुंह से चीख निकली चुकी थी। बिजली के झटके का मजा लेने के बाद रूही गुस्से में चिल्लाती.... “कामिनी शौत, मुझे मारकर मेरे पति को हथियाना चाहती है क्या? कोई दूसरा न मिला अब तक, जो बिस्तर में मेरे पति जैसा हाहाकारी हो।”

“हिहिहिहि... हहाकारी... मेरे पास एक है चल उसका ट्राय कर ले। उसके बाद अपने होने वाले पति के लिये कहेगी, अब तो ये लाचारी है।”...

“क्यों री अपनी लाचारी में हाहाकारी ढूंढने कहीं गधे के पास तो नही चली गयी?”

“तुम दोनो बीमारी हो। अपना अश्लील शीत युद्ध बंद करके चुपचाप ये जगह को दिखने लायक बनाओ।” अलबेली चिल्लाते हुये कहने लगी।

पलक:– संन्यासी सर माफ कीजिएगा आपका मंत्र इस वायुमंडल को नही बदल सकते। ये नायजो तिलिस्म है और किसी नायजो को ही मंत्र फूंकने होंगे। बहरहाल पूरी सभा हम दोनो (पलक और रूही) को माफ करे और बस एक सवाल के साथ युद्ध विराम कर दूंगी.... “क्या मेरी शक्तियों को परखने के लिये तुम दोनो (आर्य और रूही) ने महज नाटक किया था?”

रूही:– बड़ी जल्दी समझ गयी? पता कब चला तुम्हे...

पलक:– जब आर्य ने लात मारकर मेरी पेट की अंतरियां फाड़ दी और तुम उसपर चिल्ला दी। ऐसा लगा जैसे कह रही हो, आर्य इतनी जोड़ से क्यों मारे? और उसके बाद आर्य के वो इशारे, जैसे कह रहा हो थोड़ा गुस्सा दिलाने दो...

रूही:– हां तो जब इतनी समझदारी आ ही गयी थी, फिर रोक देना था लड़ाई...

पलक:– नाक से खून अब भी निकल रहा है।अंदर की अंतरियां अब भी फटी है और इंटरनल ब्लीडिंग से मैं पागल हुई जा रही। गुस्सा तो निकालना ही था न...

रूही:– पागल कहीं की, तो अब खड़े–खड़े बात क्या कर रही है। ये कोहरा हटाओ..

पलक:– मुझे वो आर्य कहीं मिल न रहा है। कोहरे के बीच खुद को गायब किये है। उसको जबतक जोरदार झटका न दे दूं, तब तक चैन न आयेगा।

“मैं जमीनी सतह पर आ गया पलक। लो अपना गुस्सा निकाल लो... पलक.. पलक”... आर्यमणि जड़ों के बीच खुद को छिपाकर फर्श के 10 फिट नीचे था। पलक को सुनने के बाद वो भी ऊपर आया।

सब लोग उस कोहरे में पलक–पलक चिल्लाने लगे। लेकिन पलक तो बेहोश कहीं पड़ी थी। आर्यमणि तेजी से दौड़ा। उस संभावित जगह पहुंचा जहां पलक थी। लेकिन फर्श पर कितना भी हाथ टटोला पलक नही मिली। पूरा वुल्फ पैक हॉल को छान मारने लगा। कोहरे के बीच 300 फिट लंबा और 60 फिट चौड़ा हॉल में पलक को ढूंढा जा रहा था।

देखते ही देखते धीरे–धीरे पूरा बिजली का कोहरा छंटने लगा। पलक डायनिंग टेबल के नीचे बेहोश थी, जिस वजह से किसी को नहीं मिली। तुरंत ही उसे बाहर निकाला गया। रूही उसके पेट पर हाथ रखकर तुरंत हील करना शुरू कर चुकी थी।

खून लगातार पलक के मुंह से बाहर आ रहे थे।वह हील तो हो रही थी लेकिन इंटरनल ब्लीडिंग रुक नही रही थी.... “जान ऐसे तो ये मर जायेगी”...

 

nain11ster

Prime
23,612
80,748
259
Yha palak or arya ne apni galat fahmi dur kr li pr Jo dukh dard palak ke andar bhara hua tha arya ke kiye gye kand ke chalte, palak ne ruhi ko hi usi dard me samil kr liya, arya bistar pr palak ko yaad karta hai aisa kahkr, arya ruhi or group ko planning va real motive ko bhi nhi btata...

Ek wife ki or family ki najar se dekha jaye to yah bahut pida dayak Lagta hai ki uske ghar ke sadasy Ghar me baat share nhi karte pr ek leader ki najar se dekha jaye to use bahut se aise faisle lena padta hai jinke bare me vo kisi ko bhi pura nhi bta sakta vahi haal Ghar ke mukhiya ka bhi hai...

Ruhi ka dard bhi sahi hai, ek jivan sangni yah kabhi bardast nahi kar sakti ki uska pati uske sath wakt bitate huye kisi or ko soche ya naam bhi le...

Nishant ne pair padne ki salah di, idhar ek sabhya udahran diya jaye to sankar Ji ki ek bhul Kahe ya lila me jb Ganesh ji ke Sir ko alag kr diya gya tb mata Aadi-Shakti ke krodh ko sant karne ke liye sankar Ji Aadi-Shakti ke charno me aa gye the.

Ab Isko mauj masti vali bhavna se dekha jaye to aisa bhi kah sakte hai ki jb shiv ji ki nhi chali to Apne arya kis khet ki muli hai, yha ruhi ne arya ko palak ke sath bhidva diya, arya bhi apni galti ko samajh gya hai...

Dekhte hai kya natija nikalta hai, Vaise mujhe aisa kyo lag rha hai ki Jaise nishchal or apasyu ki match hui thi Vaisa ki kuchh yha bhi hone vala hai palak or arya ke Bich kyoki apasyu or arya ke Bich to Pahle hi ho gya match 1st mulakat me...

Superb update bhai sandar jabarjast lajvab amazing with awesome writing skills bhai
Bahut kuch hai jo bahut sahi hai... Mukhiya ke taur par har baat nahi batayi ja sakti lekin ruhi ka bhi to wahi kahna tha... Poori baat nahi batate, thoda sa batakar kah dete baki baad me bataunga ya khud pata chal jayega.... Khair maja yahan kahan hai... Maza to next update me hai jo chhap chuka hai... Aur poora picture clear ho gaya hai...
 

king cobra

Well-Known Member
5,258
9,926
189
भाग:–132


पलक का हांथ आगे और हाथ में हवा का तेज तूफान। आर्यमणि का कंधा उसी हवा की मजबूत दीवार से भिड़ा और जैसे विस्फोट सा हुआ हो। पलक हवा का शील्ड लगाने के बावजूद भी इतना तेज धक्का खाकर दीवार से टकराई की उसकी हड्डियां चटक गयी.... “क्या हुआ छुई मुई, कहीं कोई हड्डी तो न छिटक गयी”

पलक गुस्से में खड़ी होती झटके से अपने दोनो हाथ खोली। जैसे ही अपने दोनो हाथ खोले उसके दोनो हाथ में 2 फिट लंबी और 4 इंच चौड़ी मजबूत चमचमाती धारदार तलवार थी। अदभुत और अकल्पनीय। हर कोई बस उसके हाथ ही देख रहे थे, कैसे उसने ये तलवार निकाल लिया...

आर्यमणि, अलबेली को घूरते.... “ये हमारा पहनाया कपड़ा था न, फिर इसके नीचे हथियार कहां से आ गया”...

पलक चुटकी बजाकर आर्यमणि का ध्यान अपनी ओर खींचती.... “ओ हेल्लो भेड़ियों के राजा, ज्यादा दिमाग मत लगाओ। ये तलवार मेरे शरीर में इन बिल्ट है। जब बात मेरे तलवार की हो ही रही है तो बता दूं कि ये तलवार यूनिवर्स में भट्टी कहे जाने वाले ग्रह हुर्रीएंट प्लेनेट के सूरज की विकराल तप्ती आग में बनी है। इकलौती हाइबर धातु जो उस जगह के तापमान को झेल सकती है। और उसके एक खंजर का कमाल तो पहले ही देख चुके हो।”

अलबेली:– तो क्या तुम दूसरे ग्रह पर गयी हो?

रूही:– ये क्या लगा रखा है। ऐसे रुक–रुक कर फाइट क्यों कर रहे....

पलक:– मैं तो कबसे तैयार हूं। पूछ लो अपने जान से, वो डर तो न गया...

आर्यमणि अपने पंजे का क्ला दिखाते.... “शायद ये क्ला उस से भी कहीं ज्यादा तपते भट्टी में बना है”...

“ये तो वक्त ही बतायेगा”.... कहते हुये पलक ने दौड़ लगा दिया... आर्यमणि भी तैयार। जैसे ही पलक नजदीक पहुंची, आर्यमणि के बस हाथों के इशारे थे, और अगले ही पल तेज गति से दौड़ती पलक जड़ों के जाल में फंसकर ऐसे लड़खड़ाई की वो जबतक संभलती, आर्यमणि का मुक्का था और पलक की नाक। आर्यमणि ने कोई रहम नहीं किया। शायद कुछ ज्यादा ही जोड़ से उसने मार दिया था।

कुछ मिनट के लिये पलक उठी ही नही। सर झुकाकर बैठी रही और नीचे फर्श पर खून बह रहा था। तकरीबन 5 मिनट तक उसी अवस्था में रहने के बाद पलक अपनी नाक पकड़कर खड़ी हुई.... “दिमाग हिला दिया पंच ने”... और इतना कहकर एक बार फिर वह दौड़ लगा चुकी थी।

पलक को पता था कि यदि उसके पाऊं जमीन पर रहे तब इस बार भी वही होगा इसलिए कुछ कदम दौड़ने के बाद वह हवा के रथ पर पुनः सवार होकर, आर्यमणि के ऊपर ही छलांग लगा चुकी थी। बेचारी को पता न था की पलक झपकने से पहले जड़े कितनी दूर हवा में ऊपर उठती है। पलक आर्यमणि से कुछ फिट फासले पर रही होगी। उसके दोनो हाथ की तलवार आर्यमणि से इंच भर की दूरी पर थी। पलक लगभग हमला कर चुकी थी, लेकिन तभी क्षण भर में जड़ें जमीन से निकली। आर्यमणि जड़ों में कहीं गायब और पलक भी जड़ों के बीच ऐसी लपेटी गयी की उसमे उलझकर बस आर्यमणि के ऊपर लैंड हो रही थी।

झाड़ में फंसकर पलक, आर्यमणि के ठीक सामने आ रही थी और आर्यमणि झाड़ के बीच कहीं नजर नहीं आ रहा था। तभी झाड़ के बीच से एक लात जमकर पड़ी और हवा से आर्यमणि के ऊपर लैंड होती हुई पलक, सीधा दीवारों से जा टकराई। लात का प्रहार इतना तेज था कि रूही गुस्से से चिल्लाई “आर्य”.... वहीं आर्यमणि झाड़ के बीच से निकलकर एक बार रूही को देखा और तेज दौड़ लगा चुका था।

पलक अब तक संभली भी नही थी, लेकिन काफी तेज और जानलेवा आंधी को मेहसूस कर वह भी जान बचाने वाली तेजी दिखाती हुई अपने जगह से हटी। आर्यमणि सीधा दीवार पर टक्कर दे मारा। और दीवार के जिस हिस्से में टक्कर पड़ी, वह हिस्सा ढह गया।

पलक ने भी यह नजारा देखा। खुद की घायल अवस्था देखी। और देखते ही देखते वहां का माहोल ही बदल गया। पलक अपने दोनो हाथ हवा में की हुई थी। कड़कती बिजीली आसमान से जैसे छत फाड़कर उस घर में आ रही थी और पलक के दोनो हाथों से कनेक्ट होकर वह पलक के पूरे शरीर में घुस रही थी।

देखते ही देखते पलक के बदन के अंदर से बिजली चमकने लगी। पूरी की पूरी पलक चमकने लगी और बिजली की तेज रफ्तार से ही पलक दौड़ी। आर्यमणि खड़ा होकर यह अचंभित करने वाला नजारा देख रहा था। देखने में ऐसा गुम हुआ की उसे ध्यान न रहा की अभी–अभी उसने पलक को बहुत ही गंदे तरीके से घायल किया था। और आखरी वाले लात ने तो शायद पलक के पेट की अंतरियों को ही फाड़ दिया था।

पलक दौड़ी और जबतक आर्यमणि को ख्याल आया की उसपर हमला हो रहा है, बहुत देर हो चुकी थी। पलक दौड़ती हुई पहुंची और अपना जोरदार मुक्के से आर्यमणि के सीने पर प्रहार की। बचाव में आर्यमणि ने अपना पंजा आगे किया और उसका पंजा लटक कर झूलने लगा।

आर्यमणि हाथ के दर्द से बिलबिला गया। उसका थोड़ा सा ध्यान भटका और इसी बीच पलक मौके का फायदा उठाते हुये, आर्यमणि को अपने दोनो हाथों से हवा में उठा ली और खींचकर ऐसा फेंकी की उस बड़े से हॉल के एक दीवार से सीधा दूसरे दीवार पर धराम से टकराया। पलक उसे फेंकने के साथ ही अपने दोनो हाथ आगे कर ली। उसके दोनो हाथ से चंघारती हुई बिजली की दो चौड़ी पट्टियां निकल रही थी। उन दोनो पट्टियों ने आर्यमणि को पूरा जकड़ लिया। बिजली का इतने तेज झटका लगा था कि आर्यमणि उसे झेल न पाया और बेसुध होकर बिजली के उस जकड़न में झूलने लगा।

बिजली की चौड़ी पट्टियों में जकड़ने के बाद पलक कभी आर्यमणि को दाएं तो कभी बाएं पटक रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे पलक अपने हाथ से बिजली की रस्सी को पकड़ी हो। रस्सी जो तकरीबन 300 फिट दूर खड़े आर्यमणि को जकड़े हुई थी और उसे किसी बोरे के समान उठा–उठा कर पटक रही थी। ये ठीक वैसे ही था जैसे फर्ज कीजिए की छोटे ने रस्सी के निचले सिरे पर कुछ ठोस बांधकर तेजी से उसे उठा–उठा कर जमीन पर पटक रहा हो।

10–12 पटखनी खाने के बाद, आर्यमणि ने बस इवान से नजरे मिलाई और उसने पलक को प्लास्टिक में कैद कर दिया। पलक झपकते ही पलक कैद हो गयी और अगले ही पल वह प्लास्टिक बस धुवां बनकर हवा में उड़ गया और पलक के नजर डालने मात्र से इवान का लैपटॉप भी धुवां बनकर हवा में था और उसके बिखड़े पार्ट्स वहीं डायनिंग टेबल पर पड़े थे। पलक की आंखों से कुछ निकला हो ऐसा दिखा नही, तुलना यदि करे अन्य नायजो से जिनकी आंखों से लेजर नुमा रौशनी निकलते साफ देखी जा सकती थी।

पलक सहायकों को छोड़ एक बार फिर आर्यमणि पर ध्यान लगाई। गुस्से से बिलबिलाती.... “हारने पर चीटिंग हां। रुक भेड़िया तुझे मैं अभी बताती हूं।”.... पलक अपने गुस्से का इजहार करती आर्यमणि को झटके से खींची। बिजली की पट्टियों में बंधा आर्यमणि बिजली की तेजी खींचा आया और पलक का लात खाकर वापस दीवार से टकराया।

पलक के बिजली का संपर्क टूटा था। इसलिए पुनः वह अपने दोनो हाथ सामने की। बिजली की चौड़ी पट्टियां पुनः से आर्यमणि के ओर बढ़ी। किंतु इस बार आर्यमणि पकड़ में नहीं आया क्योंकि आर्यमणि के हाथ से भी जड़ों की विशाल पट्टियां निकल रही थी, जो सीधा बिजली से टकरा रही थी।

दोनो लगभग 300 फिट लंबी हॉल के दोनो किनारे से अपने–अपने हाथ से बिजली और जड़ निकाल रहे थे। ठीक मध्य में बिजली से जड़े टकराई। टक्कर जहां हुई वहां पर जड़ बिजली के ऊपर हावी होते हुये धीरे–धीरे बिजली को समेटकर पलक के हाथ तक वापसी का रास्ता दिखाने लगा।

पलक ने अपने दोनो हाथ का पूरा जोर लगाया। बिजली के कड़कड़ाने की आवाज तेज हो गयी। जिस पॉइंट पर जड़, बिजली से टकराया था, वहां जड़ों में आग लग गयी और वह जलकर धुवां होने लगा। पलक की बिजली आर्यमणि की जड़ों को जलाते हुये मध्य हॉल से आगे बढ़ गया। आर्यमणि ने भी अपने दोनो हाथ का जोड़ लगाया। जड़े अब जल तो रही थी लेकिन मजबूती से वह आगे बढ़ने लगी और बिजली को वापस धकेलने लगी।

पलक थोड़ा सा झुकी। अपने एक पाऊं आगे इस प्रकार की जैसे वो थोड़ा झुककर दौड़ने वाली हो। इसी मुद्रा में आने के बाद, अपने दोनो हाथ के कनेक्ट बिजली को अपने सीने तक लेकर आयी और ऐसा लगा जैसे उस बिजली को सीने से चिपका दी हो। जैसे ही बिजली सीने से चिपकी पलक खिसक कर एक कदम पीछे हुई। शायद इसलिए वह दौड़ने की मुद्रा में आयी थी ताकि संतुलन न बिगड़े।

जैसे बिजली सीने से चिपका पलक के पूरे शरीर पर ही बिजली रेंगने लगी। उसकी आंखे पूरी बिजली समान दिखने लगी। उसके बाद तो जैसे पलक के सीने से बिजली का बवंडर निकलने लगा हो। जड़ें जो जलने के बावजूद भी आगे बढ़ रही थी, इतने तेज बिजली के प्रभाव से तेजी से जली और देखते ही देखते बिजली ने जड़ों को ऐसा समेटा था की महज 10 फिट जड़ की लाइन दिख रही थी, और 290 फिट बिजली की लंबी लाइन, जो आर्यमणि से बचे फासले को भी मिटाने को तैयार थी।

बाहर खड़े दर्शक अपनी नजरें गड़ाए थे। हर किसी का दिल यह सोचकर धड़क रहा था कि इतनी तेज बिजली के एक सेकंड का झटका भी क्या आर्यमणि बर्दास्त कर पायेगा। आर्यमणि पहले से वायु विघ्न मंत्र पढ़ रहा था, लेकिन बिजली पलक के शरीर से कनेक्ट होने के कारण वायु विघ्न मंत्र काम करना बंद कर चुकी थी।

दूरी अब मात्र एक फिट रह गयी थी। सभी दर्शक दांतो तले उंगलियां चबाने लगे। तभी आर्यमणि ने अपने स्थिर पंजों की उंगलियां चलाना शुरू कर दिया। जड़े और बिजली जहां भिड़ी थी उसके ऊपर और नीचे से जड़ों ने फैलना शुरू कर दिया। बीच से जड़े धू–धू करके जल रही थी लेकिन ऊपर और नीचे से बढ़ी जड़ें तेजी से पलक के करीब पहुंच गये। पलक अपने दोनो हाथ इस्तमाल करती ऊपर और नीचे से फैल रही जड़ों पर हाथ से निकल रही बिजली का हमला की। आर्यमणि के उंगली के इशारे से निकलने वाली जड़े पलक तक पहुंचने से पहले ही रुक गयी किंतु पलक के हाथ में वो शक्ति नही थी कि जोड़ लगाकर इन जड़ों को पीछे धकेल सके क्योंकि उसकी ज्यादातर ऊर्जा तो सीने से निकल रही थी। कुछ भी न सूझ पाने की परिस्थिति में पलक भी अपने उंगली के इशारे करने लगी। उसके उंगली के इशारे पर छोटे छोटे ब्लेड निकल रहे थे, जो जड़ों को काफी तेजी से काटते हुये पीछे की ओर ले गये।

दोनो ही अपने शक्ति का प्रदर्शन कर रहे थे। पलक एक बार फिर पुनः हावी हो चुकी थी। 10 फिट की दूरी वापस से बन गयी। पलक कुछ और ज्यादा हावी होकर इस बार तो जैसे बिजली के साथ–साथ छोटे–छोटे ब्लेड की बारिश भी करवा रही थी। और उस बारिश में जड़ें ऐसी कटी जैसे मुलायम घास। पल भर में बिजली आर्यमणि के ऊपर हावी। अल्फा पैक ने अपने आंखे मूंद ली। बिजली लगभग टकरा ही गयी थी, लेकिन आर्यमणि ने तेजी से अपने हाथ के पोजिशन को बदला। पहले जहां ट्रैफिक हवलदार की तरह दोनो हथेली को आगे किया था, वहीं तुरंत बदलाव करते दोनो हथेली को ऐसे जोड़ा जैसे किसी गेंद को कैच करने वाला हो।



दोनो हथेली के बीच की खाली जगह से तुरंत ही मोटी जड़े निकली जो आर्यमणि के हाथ से निकलकर पहले तो फर्श पर गिरी, उसके बाद क्षण भर में ही वह जमीनी सतह से ऊपर हवा में उठकर बिजली के लाइन को पीछे धकेलने लगी। जड़ें नीचे फ्लोर पर भी तेजी से फैलते हुये पलक के पाऊं तक पहुंच गयी।

कैच लेने की पोजिशन वाली हथेली के ऊपर की उंगलियां काफी तेजी से मुड़ रही थी। उन्ही मुड़ती हुई उंगलियों से जड़ों के लहराते रेशे भी निकल रहे थे। उंगलियों के मुड़ने के इशारे से जड़ों के रेशे भीमकाय बिजली की सीधी लाइन को चारो ओर से घेर रहे थे। ये आड़ा तिरछा जड़ों के रेशे जब मजबूत हो जाती, फिर वह बिजली की लाइन के कुछ हिस्से को ऐसे ढकते की वह गायब हो जाता। इसका नतीजा यह हुआ की जो बिजली आर्यमणि से इंच भर की दूर पर थी, एक पल में फिट की दूरी में बदली और देखते ही देखते जड़ों ने बिजली को एक बार फिर पीछे धकेलना शुरू कर दिया।

नीचे फर्श से बढ़ने वाली जड़ें पलक के पाऊं को कवर कर चुकी थी। लेकिन पलक के शरीर से उत्पन्न होने वाली बिजली के कारण वह विस्फोट के साथ छूट जाती। तभी पलक ने अपने पाऊं के जूते खोल लिये... घन घन जैसे आवाज हुई। ऐसा लगा जैसे बिजली के प्रवाह से पूरा फ्लोर ही भिनभिना गया हो। पलक जहां खड़ी थी उसके आसपास का कुछ इलाका बिजली के कोहरे से ढक गया।

देखते ही देखते इस बार पलक बिजली के कोहरे में कही छिपी थी और ऊसके आस–पास जमीन से लेकर तीसरे माले की छत तक फैले धुंधले बिलजी के कोहरे को देखा जा सकता था।.... “लो मजा तुम भी बिजली का आर्य”.... और जैसे ही पलक अपनी बात पूरी की, पूरा वुल्फ हाउस ही बिजली के कोहरे में जैसे डूब गया हो... चिंह्हग, चिंह्हग, चिंह्हग, चिंह्हग, चिंह्हग की आवाज चारो ओर से आ रही थी। बाढ़ के पानी में जैसे सैकड़ों फिट ऊंचा मकान डूब जाता है ठीक उसी प्रकार 80 फिट ऊंची इमारत पूरे बिजली में डूबी हुई थी।

उसी डूबे बिजली के बीच से रूही की आवाज आयी.... “ओ कम अक्ल बिजली की रानी, सबको बिजली में डुबाकर ही मारने वाली है क्या? बंद कर ये बिजली, कुछ दिख ना रहा है।”....

पलक:– तुम लोगों के वायु सुरक्षा मंत्र कबके काट चुकी हूं, इसका मजा ले पहले...

जैसे ही पलक चुप हुई, केवल रूही के चिल्लाने की आवाज निकली। बिजली के छोटे झटके लगने के कारण रूही के मुंह से चीख निकली चुकी थी। बिजली के झटके का मजा लेने के बाद रूही गुस्से में चिल्लाती.... “कामिनी शौत, मुझे मारकर मेरे पति को हथियाना चाहती है क्या? कोई दूसरा न मिला अब तक, जो बिस्तर में मेरे पति जैसा हाहाकारी हो।”

“हिहिहिहि... हहाकारी... मेरे पास एक है चल उसका ट्राय कर ले। उसके बाद अपने होने वाले पति के लिये कहेगी, अब तो ये लाचारी है।”...

“क्यों री अपनी लाचारी में हाहाकारी ढूंढने कहीं गधे के पास तो नही चली गयी?”

“तुम दोनो बीमारी हो। अपना अश्लील शीत युद्ध बंद करके चुपचाप ये जगह को दिखने लायक बनाओ।” अलबेली चिल्लाते हुये कहने लगी।

पलक:– संन्यासी सर माफ कीजिएगा आपका मंत्र इस वायुमंडल को नही बदल सकते। ये नायजो तिलिस्म है और किसी नायजो को ही मंत्र फूंकने होंगे। बहरहाल पूरी सभा हम दोनो (पलक और रूही) को माफ करे और बस एक सवाल के साथ युद्ध विराम कर दूंगी.... “क्या मेरी शक्तियों को परखने के लिये तुम दोनो (आर्य और रूही) ने महज नाटक किया था?”

रूही:– बड़ी जल्दी समझ गयी? पता कब चला तुम्हे...

पलक:– जब आर्य ने लात मारकर मेरी पेट की अंतरियां फाड़ दी और तुम उसपर चिल्ला दी। ऐसा लगा जैसे कह रही हो, आर्य इतनी जोड़ से क्यों मारे? और उसके बाद आर्य के वो इशारे, जैसे कह रहा हो थोड़ा गुस्सा दिलाने दो...

रूही:– हां तो जब इतनी समझदारी आ ही गयी थी, फिर रोक देना था लड़ाई...

पलक:– नाक से खून अब भी निकल रहा है।अंदर की अंतरियां अब भी फटी है और इंटरनल ब्लीडिंग से मैं पागल हुई जा रही। गुस्सा तो निकालना ही था न...

रूही:– पागल कहीं की, तो अब खड़े–खड़े बात क्या कर रही है। ये कोहरा हटाओ..

पलक:– मुझे वो आर्य कहीं मिल न रहा है। कोहरे के बीच खुद को गायब किये है। उसको जबतक जोरदार झटका न दे दूं, तब तक चैन न आयेगा।

“मैं जमीनी सतह पर आ गया पलक। लो अपना गुस्सा निकाल लो... पलक.. पलक”... आर्यमणि जड़ों के बीच खुद को छिपाकर फर्श के 10 फिट नीचे था। पलक को सुनने के बाद वो भी ऊपर आया।

सब लोग उस कोहरे में पलक–पलक चिल्लाने लगे। लेकिन पलक तो बेहोश कहीं पड़ी थी। आर्यमणि तेजी से दौड़ा। उस संभावित जगह पहुंचा जहां पलक थी। लेकिन फर्श पर कितना भी हाथ टटोला पलक नही मिली। पूरा वुल्फ पैक हॉल को छान मारने लगा। कोहरे के बीच 300 फिट लंबा और 60 फिट चौड़ा हॉल में पलक को ढूंढा जा रहा था।

देखते ही देखते धीरे–धीरे पूरा बिजली का कोहरा छंटने लगा। पलक डायनिंग टेबल के नीचे बेहोश थी, जिस वजह से किसी को नहीं मिली। तुरंत ही उसे बाहर निकाला गया। रूही उसके पेट पर हाथ रखकर तुरंत हील करना शुरू कर चुकी थी।

खून लगातार पलक के मुंह से बाहर आ रहे थे।वह हील तो हो रही थी लेकिन इंटरनल ब्लीडिंग रुक नही रही थी.... “जान ऐसे तो ये मर जायेगी”...

palak ko marne mat dena inna pyari hai wo buri noi hai wo nai to sabko maar dena tha usne
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
10,210
42,679
174
भाग:–132


पलक का हांथ आगे और हाथ में हवा का तेज तूफान। आर्यमणि का कंधा उसी हवा की मजबूत दीवार से भिड़ा और जैसे विस्फोट सा हुआ हो। पलक हवा का शील्ड लगाने के बावजूद भी इतना तेज धक्का खाकर दीवार से टकराई की उसकी हड्डियां चटक गयी.... “क्या हुआ छुई मुई, कहीं कोई हड्डी तो न छिटक गयी”

पलक गुस्से में खड़ी होती झटके से अपने दोनो हाथ खोली। जैसे ही अपने दोनो हाथ खोले उसके दोनो हाथ में 2 फिट लंबी और 4 इंच चौड़ी मजबूत चमचमाती धारदार तलवार थी। अदभुत और अकल्पनीय। हर कोई बस उसके हाथ ही देख रहे थे, कैसे उसने ये तलवार निकाल लिया...

आर्यमणि, अलबेली को घूरते.... “ये हमारा पहनाया कपड़ा था न, फिर इसके नीचे हथियार कहां से आ गया”...

पलक चुटकी बजाकर आर्यमणि का ध्यान अपनी ओर खींचती.... “ओ हेल्लो भेड़ियों के राजा, ज्यादा दिमाग मत लगाओ। ये तलवार मेरे शरीर में इन बिल्ट है। जब बात मेरे तलवार की हो ही रही है तो बता दूं कि ये तलवार यूनिवर्स में भट्टी कहे जाने वाले ग्रह हुर्रीएंट प्लेनेट के सूरज की विकराल तप्ती आग में बनी है। इकलौती हाइबर धातु जो उस जगह के तापमान को झेल सकती है। और उसके एक खंजर का कमाल तो पहले ही देख चुके हो।”

अलबेली:– तो क्या तुम दूसरे ग्रह पर गयी हो?

रूही:– ये क्या लगा रखा है। ऐसे रुक–रुक कर फाइट क्यों कर रहे....

पलक:– मैं तो कबसे तैयार हूं। पूछ लो अपने जान से, वो डर तो न गया...

आर्यमणि अपने पंजे का क्ला दिखाते.... “शायद ये क्ला उस से भी कहीं ज्यादा तपते भट्टी में बना है”...

“ये तो वक्त ही बतायेगा”.... कहते हुये पलक ने दौड़ लगा दिया... आर्यमणि भी तैयार। जैसे ही पलक नजदीक पहुंची, आर्यमणि के बस हाथों के इशारे थे, और अगले ही पल तेज गति से दौड़ती पलक जड़ों के जाल में फंसकर ऐसे लड़खड़ाई की वो जबतक संभलती, आर्यमणि का मुक्का था और पलक की नाक। आर्यमणि ने कोई रहम नहीं किया। शायद कुछ ज्यादा ही जोड़ से उसने मार दिया था।

कुछ मिनट के लिये पलक उठी ही नही। सर झुकाकर बैठी रही और नीचे फर्श पर खून बह रहा था। तकरीबन 5 मिनट तक उसी अवस्था में रहने के बाद पलक अपनी नाक पकड़कर खड़ी हुई.... “दिमाग हिला दिया पंच ने”... और इतना कहकर एक बार फिर वह दौड़ लगा चुकी थी।

पलक को पता था कि यदि उसके पाऊं जमीन पर रहे तब इस बार भी वही होगा इसलिए कुछ कदम दौड़ने के बाद वह हवा के रथ पर पुनः सवार होकर, आर्यमणि के ऊपर ही छलांग लगा चुकी थी। बेचारी को पता न था की पलक झपकने से पहले जड़े कितनी दूर हवा में ऊपर उठती है। पलक आर्यमणि से कुछ फिट फासले पर रही होगी। उसके दोनो हाथ की तलवार आर्यमणि से इंच भर की दूरी पर थी। पलक लगभग हमला कर चुकी थी, लेकिन तभी क्षण भर में जड़ें जमीन से निकली। आर्यमणि जड़ों में कहीं गायब और पलक भी जड़ों के बीच ऐसी लपेटी गयी की उसमे उलझकर बस आर्यमणि के ऊपर लैंड हो रही थी।

झाड़ में फंसकर पलक, आर्यमणि के ठीक सामने आ रही थी और आर्यमणि झाड़ के बीच कहीं नजर नहीं आ रहा था। तभी झाड़ के बीच से एक लात जमकर पड़ी और हवा से आर्यमणि के ऊपर लैंड होती हुई पलक, सीधा दीवारों से जा टकराई। लात का प्रहार इतना तेज था कि रूही गुस्से से चिल्लाई “आर्य”.... वहीं आर्यमणि झाड़ के बीच से निकलकर एक बार रूही को देखा और तेज दौड़ लगा चुका था।

पलक अब तक संभली भी नही थी, लेकिन काफी तेज और जानलेवा आंधी को मेहसूस कर वह भी जान बचाने वाली तेजी दिखाती हुई अपने जगह से हटी। आर्यमणि सीधा दीवार पर टक्कर दे मारा। और दीवार के जिस हिस्से में टक्कर पड़ी, वह हिस्सा ढह गया।

पलक ने भी यह नजारा देखा। खुद की घायल अवस्था देखी। और देखते ही देखते वहां का माहोल ही बदल गया। पलक अपने दोनो हाथ हवा में की हुई थी। कड़कती बिजीली आसमान से जैसे छत फाड़कर उस घर में आ रही थी और पलक के दोनो हाथों से कनेक्ट होकर वह पलक के पूरे शरीर में घुस रही थी।

देखते ही देखते पलक के बदन के अंदर से बिजली चमकने लगी। पूरी की पूरी पलक चमकने लगी और बिजली की तेज रफ्तार से ही पलक दौड़ी। आर्यमणि खड़ा होकर यह अचंभित करने वाला नजारा देख रहा था। देखने में ऐसा गुम हुआ की उसे ध्यान न रहा की अभी–अभी उसने पलक को बहुत ही गंदे तरीके से घायल किया था। और आखरी वाले लात ने तो शायद पलक के पेट की अंतरियों को ही फाड़ दिया था।

पलक दौड़ी और जबतक आर्यमणि को ख्याल आया की उसपर हमला हो रहा है, बहुत देर हो चुकी थी। पलक दौड़ती हुई पहुंची और अपना जोरदार मुक्के से आर्यमणि के सीने पर प्रहार की। बचाव में आर्यमणि ने अपना पंजा आगे किया और उसका पंजा लटक कर झूलने लगा।

आर्यमणि हाथ के दर्द से बिलबिला गया। उसका थोड़ा सा ध्यान भटका और इसी बीच पलक मौके का फायदा उठाते हुये, आर्यमणि को अपने दोनो हाथों से हवा में उठा ली और खींचकर ऐसा फेंकी की उस बड़े से हॉल के एक दीवार से सीधा दूसरे दीवार पर धराम से टकराया। पलक उसे फेंकने के साथ ही अपने दोनो हाथ आगे कर ली। उसके दोनो हाथ से चंघारती हुई बिजली की दो चौड़ी पट्टियां निकल रही थी। उन दोनो पट्टियों ने आर्यमणि को पूरा जकड़ लिया। बिजली का इतने तेज झटका लगा था कि आर्यमणि उसे झेल न पाया और बेसुध होकर बिजली के उस जकड़न में झूलने लगा।

बिजली की चौड़ी पट्टियों में जकड़ने के बाद पलक कभी आर्यमणि को दाएं तो कभी बाएं पटक रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे पलक अपने हाथ से बिजली की रस्सी को पकड़ी हो। रस्सी जो तकरीबन 300 फिट दूर खड़े आर्यमणि को जकड़े हुई थी और उसे किसी बोरे के समान उठा–उठा कर पटक रही थी। ये ठीक वैसे ही था जैसे फर्ज कीजिए की छोटे ने रस्सी के निचले सिरे पर कुछ ठोस बांधकर तेजी से उसे उठा–उठा कर जमीन पर पटक रहा हो।

10–12 पटखनी खाने के बाद, आर्यमणि ने बस इवान से नजरे मिलाई और उसने पलक को प्लास्टिक में कैद कर दिया। पलक झपकते ही पलक कैद हो गयी और अगले ही पल वह प्लास्टिक बस धुवां बनकर हवा में उड़ गया और पलक के नजर डालने मात्र से इवान का लैपटॉप भी धुवां बनकर हवा में था और उसके बिखड़े पार्ट्स वहीं डायनिंग टेबल पर पड़े थे। पलक की आंखों से कुछ निकला हो ऐसा दिखा नही, तुलना यदि करे अन्य नायजो से जिनकी आंखों से लेजर नुमा रौशनी निकलते साफ देखी जा सकती थी।

पलक सहायकों को छोड़ एक बार फिर आर्यमणि पर ध्यान लगाई। गुस्से से बिलबिलाती.... “हारने पर चीटिंग हां। रुक भेड़िया तुझे मैं अभी बताती हूं।”.... पलक अपने गुस्से का इजहार करती आर्यमणि को झटके से खींची। बिजली की पट्टियों में बंधा आर्यमणि बिजली की तेजी खींचा आया और पलक का लात खाकर वापस दीवार से टकराया।

पलक के बिजली का संपर्क टूटा था। इसलिए पुनः वह अपने दोनो हाथ सामने की। बिजली की चौड़ी पट्टियां पुनः से आर्यमणि के ओर बढ़ी। किंतु इस बार आर्यमणि पकड़ में नहीं आया क्योंकि आर्यमणि के हाथ से भी जड़ों की विशाल पट्टियां निकल रही थी, जो सीधा बिजली से टकरा रही थी।

दोनो लगभग 300 फिट लंबी हॉल के दोनो किनारे से अपने–अपने हाथ से बिजली और जड़ निकाल रहे थे। ठीक मध्य में बिजली से जड़े टकराई। टक्कर जहां हुई वहां पर जड़ बिजली के ऊपर हावी होते हुये धीरे–धीरे बिजली को समेटकर पलक के हाथ तक वापसी का रास्ता दिखाने लगा।

पलक ने अपने दोनो हाथ का पूरा जोर लगाया। बिजली के कड़कड़ाने की आवाज तेज हो गयी। जिस पॉइंट पर जड़, बिजली से टकराया था, वहां जड़ों में आग लग गयी और वह जलकर धुवां होने लगा। पलक की बिजली आर्यमणि की जड़ों को जलाते हुये मध्य हॉल से आगे बढ़ गया। आर्यमणि ने भी अपने दोनो हाथ का जोड़ लगाया। जड़े अब जल तो रही थी लेकिन मजबूती से वह आगे बढ़ने लगी और बिजली को वापस धकेलने लगी।

पलक थोड़ा सा झुकी। अपने एक पाऊं आगे इस प्रकार की जैसे वो थोड़ा झुककर दौड़ने वाली हो। इसी मुद्रा में आने के बाद, अपने दोनो हाथ के कनेक्ट बिजली को अपने सीने तक लेकर आयी और ऐसा लगा जैसे उस बिजली को सीने से चिपका दी हो। जैसे ही बिजली सीने से चिपकी पलक खिसक कर एक कदम पीछे हुई। शायद इसलिए वह दौड़ने की मुद्रा में आयी थी ताकि संतुलन न बिगड़े।

जैसे बिजली सीने से चिपका पलक के पूरे शरीर पर ही बिजली रेंगने लगी। उसकी आंखे पूरी बिजली समान दिखने लगी। उसके बाद तो जैसे पलक के सीने से बिजली का बवंडर निकलने लगा हो। जड़ें जो जलने के बावजूद भी आगे बढ़ रही थी, इतने तेज बिजली के प्रभाव से तेजी से जली और देखते ही देखते बिजली ने जड़ों को ऐसा समेटा था की महज 10 फिट जड़ की लाइन दिख रही थी, और 290 फिट बिजली की लंबी लाइन, जो आर्यमणि से बचे फासले को भी मिटाने को तैयार थी।

बाहर खड़े दर्शक अपनी नजरें गड़ाए थे। हर किसी का दिल यह सोचकर धड़क रहा था कि इतनी तेज बिजली के एक सेकंड का झटका भी क्या आर्यमणि बर्दास्त कर पायेगा। आर्यमणि पहले से वायु विघ्न मंत्र पढ़ रहा था, लेकिन बिजली पलक के शरीर से कनेक्ट होने के कारण वायु विघ्न मंत्र काम करना बंद कर चुकी थी।

दूरी अब मात्र एक फिट रह गयी थी। सभी दर्शक दांतो तले उंगलियां चबाने लगे। तभी आर्यमणि ने अपने स्थिर पंजों की उंगलियां चलाना शुरू कर दिया। जड़े और बिजली जहां भिड़ी थी उसके ऊपर और नीचे से जड़ों ने फैलना शुरू कर दिया। बीच से जड़े धू–धू करके जल रही थी लेकिन ऊपर और नीचे से बढ़ी जड़ें तेजी से पलक के करीब पहुंच गये। पलक अपने दोनो हाथ इस्तमाल करती ऊपर और नीचे से फैल रही जड़ों पर हाथ से निकल रही बिजली का हमला की। आर्यमणि के उंगली के इशारे से निकलने वाली जड़े पलक तक पहुंचने से पहले ही रुक गयी किंतु पलक के हाथ में वो शक्ति नही थी कि जोड़ लगाकर इन जड़ों को पीछे धकेल सके क्योंकि उसकी ज्यादातर ऊर्जा तो सीने से निकल रही थी। कुछ भी न सूझ पाने की परिस्थिति में पलक भी अपने उंगली के इशारे करने लगी। उसके उंगली के इशारे पर छोटे छोटे ब्लेड निकल रहे थे, जो जड़ों को काफी तेजी से काटते हुये पीछे की ओर ले गये।

दोनो ही अपने शक्ति का प्रदर्शन कर रहे थे। पलक एक बार फिर पुनः हावी हो चुकी थी। 10 फिट की दूरी वापस से बन गयी। पलक कुछ और ज्यादा हावी होकर इस बार तो जैसे बिजली के साथ–साथ छोटे–छोटे ब्लेड की बारिश भी करवा रही थी। और उस बारिश में जड़ें ऐसी कटी जैसे मुलायम घास। पल भर में बिजली आर्यमणि के ऊपर हावी। अल्फा पैक ने अपने आंखे मूंद ली। बिजली लगभग टकरा ही गयी थी, लेकिन आर्यमणि ने तेजी से अपने हाथ के पोजिशन को बदला। पहले जहां ट्रैफिक हवलदार की तरह दोनो हथेली को आगे किया था, वहीं तुरंत बदलाव करते दोनो हथेली को ऐसे जोड़ा जैसे किसी गेंद को कैच करने वाला हो।




दोनो हथेली के बीच की खाली जगह से तुरंत ही मोटी जड़े निकली जो आर्यमणि के हाथ से निकलकर पहले तो फर्श पर गिरी, उसके बाद क्षण भर में ही वह जमीनी सतह से ऊपर हवा में उठकर बिजली के लाइन को पीछे धकेलने लगी। जड़ें नीचे फ्लोर पर भी तेजी से फैलते हुये पलक के पाऊं तक पहुंच गयी।

कैच लेने की पोजिशन वाली हथेली के ऊपर की उंगलियां काफी तेजी से मुड़ रही थी। उन्ही मुड़ती हुई उंगलियों से जड़ों के लहराते रेशे भी निकल रहे थे। उंगलियों के मुड़ने के इशारे से जड़ों के रेशे भीमकाय बिजली की सीधी लाइन को चारो ओर से घेर रहे थे। ये आड़ा तिरछा जड़ों के रेशे जब मजबूत हो जाती, फिर वह बिजली की लाइन के कुछ हिस्से को ऐसे ढकते की वह गायब हो जाता। इसका नतीजा यह हुआ की जो बिजली आर्यमणि से इंच भर की दूर पर थी, एक पल में फिट की दूरी में बदली और देखते ही देखते जड़ों ने बिजली को एक बार फिर पीछे धकेलना शुरू कर दिया।

नीचे फर्श से बढ़ने वाली जड़ें पलक के पाऊं को कवर कर चुकी थी। लेकिन पलक के शरीर से उत्पन्न होने वाली बिजली के कारण वह विस्फोट के साथ छूट जाती। तभी पलक ने अपने पाऊं के जूते खोल लिये... घन घन जैसे आवाज हुई। ऐसा लगा जैसे बिजली के प्रवाह से पूरा फ्लोर ही भिनभिना गया हो। पलक जहां खड़ी थी उसके आसपास का कुछ इलाका बिजली के कोहरे से ढक गया।

देखते ही देखते इस बार पलक बिजली के कोहरे में कही छिपी थी और ऊसके आस–पास जमीन से लेकर तीसरे माले की छत तक फैले धुंधले बिलजी के कोहरे को देखा जा सकता था।.... “लो मजा तुम भी बिजली का आर्य”.... और जैसे ही पलक अपनी बात पूरी की, पूरा वुल्फ हाउस ही बिजली के कोहरे में जैसे डूब गया हो... चिंह्हग, चिंह्हग, चिंह्हग, चिंह्हग, चिंह्हग की आवाज चारो ओर से आ रही थी। बाढ़ के पानी में जैसे सैकड़ों फिट ऊंचा मकान डूब जाता है ठीक उसी प्रकार 80 फिट ऊंची इमारत पूरे बिजली में डूबी हुई थी।

उसी डूबे बिजली के बीच से रूही की आवाज आयी.... “ओ कम अक्ल बिजली की रानी, सबको बिजली में डुबाकर ही मारने वाली है क्या? बंद कर ये बिजली, कुछ दिख ना रहा है।”....

पलक:– तुम लोगों के वायु सुरक्षा मंत्र कबके काट चुकी हूं, इसका मजा ले पहले...

जैसे ही पलक चुप हुई, केवल रूही के चिल्लाने की आवाज निकली। बिजली के छोटे झटके लगने के कारण रूही के मुंह से चीख निकली चुकी थी। बिजली के झटके का मजा लेने के बाद रूही गुस्से में चिल्लाती.... “कामिनी शौत, मुझे मारकर मेरे पति को हथियाना चाहती है क्या? कोई दूसरा न मिला अब तक, जो बिस्तर में मेरे पति जैसा हाहाकारी हो।”

“हिहिहिहि... हहाकारी... मेरे पास एक है चल उसका ट्राय कर ले। उसके बाद अपने होने वाले पति के लिये कहेगी, अब तो ये लाचारी है।”...

“क्यों री अपनी लाचारी में हाहाकारी ढूंढने कहीं गधे के पास तो नही चली गयी?”

“तुम दोनो बीमारी हो। अपना अश्लील शीत युद्ध बंद करके चुपचाप ये जगह को दिखने लायक बनाओ।” अलबेली चिल्लाते हुये कहने लगी।

पलक:– संन्यासी सर माफ कीजिएगा आपका मंत्र इस वायुमंडल को नही बदल सकते। ये नायजो तिलिस्म है और किसी नायजो को ही मंत्र फूंकने होंगे। बहरहाल पूरी सभा हम दोनो (पलक और रूही) को माफ करे और बस एक सवाल के साथ युद्ध विराम कर दूंगी.... “क्या मेरी शक्तियों को परखने के लिये तुम दोनो (आर्य और रूही) ने महज नाटक किया था?”

रूही:– बड़ी जल्दी समझ गयी? पता कब चला तुम्हे...

पलक:– जब आर्य ने लात मारकर मेरी पेट की अंतरियां फाड़ दी और तुम उसपर चिल्ला दी। ऐसा लगा जैसे कह रही हो, आर्य इतनी जोड़ से क्यों मारे? और उसके बाद आर्य के वो इशारे, जैसे कह रहा हो थोड़ा गुस्सा दिलाने दो...

रूही:– हां तो जब इतनी समझदारी आ ही गयी थी, फिर रोक देना था लड़ाई...

पलक:– नाक से खून अब भी निकल रहा है।अंदर की अंतरियां अब भी फटी है और इंटरनल ब्लीडिंग से मैं पागल हुई जा रही। गुस्सा तो निकालना ही था न...

रूही:– पागल कहीं की, तो अब खड़े–खड़े बात क्या कर रही है। ये कोहरा हटाओ..

पलक:– मुझे वो आर्य कहीं मिल न रहा है। कोहरे के बीच खुद को गायब किये है। उसको जबतक जोरदार झटका न दे दूं, तब तक चैन न आयेगा।

“मैं जमीनी सतह पर आ गया पलक। लो अपना गुस्सा निकाल लो... पलक.. पलक”... आर्यमणि जड़ों के बीच खुद को छिपाकर फर्श के 10 फिट नीचे था। पलक को सुनने के बाद वो भी ऊपर आया।

सब लोग उस कोहरे में पलक–पलक चिल्लाने लगे। लेकिन पलक तो बेहोश कहीं पड़ी थी। आर्यमणि तेजी से दौड़ा। उस संभावित जगह पहुंचा जहां पलक थी। लेकिन फर्श पर कितना भी हाथ टटोला पलक नही मिली। पूरा वुल्फ पैक हॉल को छान मारने लगा। कोहरे के बीच 300 फिट लंबा और 60 फिट चौड़ा हॉल में पलक को ढूंढा जा रहा था।

देखते ही देखते धीरे–धीरे पूरा बिजली का कोहरा छंटने लगा। पलक डायनिंग टेबल के नीचे बेहोश थी, जिस वजह से किसी को नहीं मिली। तुरंत ही उसे बाहर निकाला गया। रूही उसके पेट पर हाथ रखकर तुरंत हील करना शुरू कर चुकी थी।

खून लगातार पलक के मुंह से बाहर आ रहे थे।वह हील तो हो रही थी लेकिन इंटरनल ब्लीडिंग रुक नही रही थी.... “जान ऐसे तो ये मर जायेगी”...
Oye hoye hoye hoye kya baat kya baat kya baat siti bjate huye imagin kr lena Nainu bhaya :respekt::vhappy1::vhappy1::fight::drummer::fight3::boxing::toohappy::toohappy::bounce::bow::bow::ecs::ecs::dancing2::happy::happy::happy::hug:

Yadi palak ne yah btaya na hota ki Vo ruhi va arya ke ishare ka mtlb samajh gyi thi to mai puchhne vala tha ki ye jo ishare kiye inka mtlb kya tha, Pr update pura hone tk palak ne bta hi diya...

Kya fight rhi mind blowing amazing bhai har pal rochakta se bharpur, Har paragraph me ek nya move nya josh tha...

Palak ne yah jante huye bhi ki arya ne Uski power ko janne parakhne ke liye is fight ka natak kiya tha fir bhi vo dati rhi or ek jabardast takkar di arya ko behosh hone ke pahle tk, internal bleeding Jo lgatar ho rhi thi, Uski pida me hote huye bhi...

Ab arya ko samjhana hoga ki Vo abhi kis level pr hai or use aage or kitna Jana padega inke RAJA ko harane yadi jarurat padi to...

Mujhe ummid hai ki meri tarah baki readers ko bhi palak ke prati ijjat Kai guna badh gyi hogi, apne sanju bhai to Pahle se hi ijajat karte hai us kirdar palak ki...

:applause: :applause: :applause:
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
10,210
42,679
174
Superb bhai sandar jabarjast lajvab amazing wonderful update bhai with awesome writing skills Nainu bhaya
 
Top