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Bhai nain11 ster bhai update post kr dijiye 2-3 aur jisse bharpayi ho sake itne dino ki 2 updates se kuch na hone wala. Baki apki marzi update data hm to story reader aur fan hai apke nhi bhi post krenge tb bhi fan hi rahenge.
जादूगर कड़कती आवाज में.… "मेरा इतना उपहास.. तुम.. तुम.. तुम.. जानते नही किस से उलझ रहे हो। हां मैने झूठ बोला तो और क्या करूं? तुम जैसे जानवर से वह किताब खुल गयी और मैं अब भी कैद हूं। मुझे मेरे शरीर में जाना है, फिर ये संसार वह नजारा भी देखगी जो आज से पहले कभी किसी ने सोचा न होगा.…
आर्यमणि:– जादूगर क्या तुम ईश्वर में विश्वास रखते हो।
रूही:– ये चुतिया तो कहेगा मैं ही ईश्वर हूं।
जादूगर:– बहुत उपहास कर लिया तुम लोगों ने... क्या समझाना चाह रहे वह सीधा समझाओ...
अलबेली:– ओ चीचा ये तो बेज्जती का बस ट्रेलर था। पहले तो इस मनुष्य पर से अपना वशीकरण मंत्र हटाओ और जरा विस्तार से समझाओ की तुम करने क्या वाले थे...
जादूगर:– अपनी आत्मा और उस चेन को किताब के साथ बंधे सुरक्षा मंत्र से मुक्त कर लेता। उसके बाद मेरी आत्मा मेरे शरीर में होती।
आर्यमणि:– पूरी बात बताओ जादूगर जी। आप अपने शरीर में जाते, फिर अपनी आत्मा को किसी जवान शरीर में विस्थापित कर लेते। भूल गये आपने ही बताया था, आप मोक्ष पर सिद्धि प्राप्त किये हो। यानी आप अपनी आत्मा को किसी और के शरीर में बड़ी आसानी से डाल सकते हो। वो क्या है ना हम सब ने जिंदगी का अनुभव कुछ ज्यादा ही लिया है। किताब की लिखी बात पर ही केवल अमल करेंगे, ये कैसे सोच लिया?
जादूगर:– हां तो अब क्या? मेरा क्या बिगाड़ लोगे? जबतक शरीर नष्ट नही होगा, तब तक मेरी आत्मा ये लोक नही छोड़ेगी...
आर्यमणि:– सो तो है... लेकिन वो टेलीपोर्ट करना??? क्या तुमने वाकई में सही कहा था, या फिर मुझे झांसा दिया था?
जादूगर:– हर बात सत प्रतिसत सत्य थी... झूठ बोलने पर तुम झांसे में नही आते...
आर्यमणि:– मैने कोई मंत्र सिद्ध नहीं किया लेकिन लगातार 7 वषों तक हर प्रकार की सिद्धि और साधना को सुनते आया हूं। क्या इतना काफी होगा टेलीपॉर्ट विद्या सीखने के लिये?
जादूगर:– बिलकुल नहीं... तुम्हारे सभी कुंडलिनी चक्र जबतक जागृत नही होंगे तब तक टेलीपोर्ट विधा नही सिख सकते। तुम्हे तो कुंडलिनी शक्ति जागृत करने में ही वर्षों लग जायेंगे...
आर्यमणि:– मैने सोचा था, लेकिन जब मैं टेलीपोर्ट विधा सिख ही नही सकता तो फिर सोचना ही बेकार है।
जादूगर:– क्या सोचे थे?
आर्यमणि:– यही की तुम मुझे टेलीपोर्ट करना सिखाओगे वो भी ठीक वैसे ही जैसा तुमने कहा था, ब्रह्मांड का कोई भी कोना फिर वो मूल दुनिया का हो या विपरीत दुनिया का, अपने घर–आंगन की तरह घूम सकता हूं। तब मैं तुम्हे सुरक्षा मंत्र से मुक्त कर दूंगा..
जादूगर:– मुझे ही झांसा दे रहे हो...
आर्यमणि:– मैं अटूट कसम खाने को तैयार हूं। बशर्ते तुम मुझे टेलीपोर्ट करना सीखा सको...
जादूगर:– मात्र टेलीपोर्ट होना... मुझे छोड़ने के बदले में मैं तो तुम्हे शरीर बदलना भी सीखा सकता हूं...
आर्यमणि:– रहने दो, बस मुझे टेलीपोर्ट करना सीखा दो।
जादूगर:– ठीक है फिर चलो कुछ वर्षो के लिये किसी एकांत इलाके में। या फिर एक वर्ष का जल समाधि ले लो।
आर्यमणि:– तुम्हारा दंश एलियन के संग्रहालय से गायब हो गया है। क्या वो एलियन इतना सब्र रख सकेंगे की तुम्हारे शरीर को अपने साइंस लैब में जिंदा रखे... मुझे नही पता लेकिन दिमाग में यह बात घूम रही थी?
जादूगर:– सही कहा... मेरे पास जरा भी वक्त नही। हर बीतते दिन के साथ खतरा बढ़ रहा है। ठीक है एक काम हो सकता है, मैं पूरी विधि तुम्हे बता देता हूं। एक वर्ष की जल समाधि में न सिर्फ तुम कुंडलिनी चक्र जागृत कर सकते हो, बल्कि 7 साल तक जो तुमने ज्ञान लिया है, उस पूर्ण ज्ञान को सिद्ध कर सकते हो... जल समाधि आसान साधना होगी, किसी एकांत क्षेत्र में तप की तुलना में।
आर्यमणि:– तुम भरोसे के लायक ही नहीं जादूगर, फिर तुम्हारी विधि पर यकीन कैसे कर लूं। अनंत कीर्ति की पुस्तक यदि मंत्र और सिद्धियों की सूचना देने वाली किताब होती, तो एक बार तुम्हारा काम हो भी जाता। तुम तो अटूट कसम भी नही खा सकते, क्योंकि उसके लिये शरीर चाहिए... बड़ी विडंबना है?
जादूगर:– मेरे हाथ नही वरना मैं तुम्हारे पाऊं पकड़ लेता। किसी ऐसे को लाओ जिसकी कुंडलिनी चक्र जागृत हो, उसे मैं एक दिन में टेलीपोर्ट होना सीखा दूंगा। ये चलेगा ना?
आर्यमणि:– बात फिर वही हो जाती है, बाद में वह मुझे सिखाने के लिये तैयार हो की न हो? बड़ा ही जोखिम वाला फैसला है... यदि टेलीपोर्ट होने की विधा का प्रसार हुआ होता, तो यह विधा विलुप्त ही क्यों होती?
जादूगर:– मैं उस इंसान को टेलीपोर्ट होना सीखा दूंगा जिस से यह सत्यापित हो जायेगा की मेरी विधि सही है। फिर तुम्हे उस इंसान पर आश्रित नहीं होना पड़ेगा। कुंडलिनी चक्र जागृत करने के उपरांत तुम खुद इस विधा को सिख सकते हो।
आर्यमणि:– मजा नही आया। मुझे फिर भी लंबा इंतजार करना होगा और खुद से मैं टेलीपोर्ट होना सिख भी पाऊं या नही, यह ख्याल दिमाग में आते रहेगा। ये दमदार प्रस्ताव नही लगा। एक काम करो टेलीपोर्ट होने की विधि के साथ–साथ अपने दंश को भी मुझे दे दो। कुछ ऐसा करो की यह दंश मुझे सुने।।।
जादूगर:– यह दंश सिर्फ मुझसे जुड़ी है। मेरे अलावा इसे कोई और प्रयोग नहीं कर सकता।
आर्यमणि:– सोच लो... अपना शरीर चाहिए या आजीवन इस चेन में बंधे रहना चाहते हो।
जादूगर:– तुम समझ क्यों नही रहे। मुझे हराने के बाद ही कोई इस दंश को काबू कर सकता है।
आर्यमणि:– जैसे की मुझे यकीन नही की तुम्हे इक्छाधारी नाग के राजा ने यह दंश प्रेम से दिया होगा, फिर भी तुम इसका इस्तमाल कर रहे हो ना। वैसे ही मैं भी कर लूंगा...
जादूगर:– तुम भेड़िए भी मुझसे मोल–भाव कर रहे, कमाल है... ठीक है दंश दिया.. मैं एक मंत्र बताता हूं उसे पढ़ने के बाद यदि दंश ने तुम्हे अपनाया तो ठीक, वरना उसे काबू करने की क्षमता होनी चाहिए। यदि काबू न कर पाओ तो दंश को जमीन पर छोड़ देना..
आर्यमणि:– ठीक है मंत्र बोलो...
जादूगर:– सच्चे मन से 3 बार, "सर्व लोक वश कराय कुरु कुरु स्वाहा!!" का जाप करो। यदि इस दंश को तुम्हारे पास रहना है, तो वो तुम्हारे पास रहेगा... वरना हमारी समझौता तो पहले से हो ही चुकी है।
आर्यमणि:– ठीक है जादूगर जी... एक कोशिश तो बनती है। तो बच्चो तुम तीनो में से पहले कौन आएगा...
सबने एक साथ ना कह दिया। हर किसी ने दंश और चेन के बीच की खींचातानी देखी थी। जब कोई आगे नहीं आया तब आर्यमणि चारो को घूरते हुये... "थू डरपोक" कहा और दंश को अपने हाथ से उठा लिया। दंश को हाथ में लेने के बाद आर्यमणि ने 3 बार मंत्र को पढ़ा। मंत्र ने वाकई काम किया। दंश से एक हल्की रौशनी निकली और उसके चंद क्षण बाद.… देखने वाला नजारा था। दंश हवा में ऊपर जाकर आर्यमणि को झटक रहा था। आर्यमणि, आर्यमणि न होकर छड़ी से बंधा कोई रिब्बन हो, जिसे कोई अदृश्य बालक पकड़ कर हवा में रिब्बन को लहरा रहा था।
हवा की ऊंचाई पर कभी दाएं तो कभी बाएं, आर्यमणि काफी तेजी से झटके खा रहा था। अंत में धराम से पहले आर्यमणि जमीन पर गिरा और फिर छड़ी आराम से नीचे आ गयी। आर्यमणि की हालत पर जादूगर जोड़–जोड़ से हंसने लगा। उसका यह हंसना अल्फा पैक के किसी भी वुल्फ को गवारा नहीं हुआ। रूही तुरंत आगे आकर छड़ी को अपने हाथ में थामी और मंत्र पढ़ दी। रूही का भी वही हाल हुआ जो आर्यमणि का हुआ था।
एक–एक करके सबने एक बार कोशिश कर ली। हर नाकामयाब कोशिश के बाद जादूगर हंसते हुये उपहास कर रहा था। सबसे आखरी में ओजल कोशिश करने आयी। उसने जैसे ही दंश को अपने हाथ में लिया, सर्वप्रथम दंश को नमन की और अपने क्ला को निकालकर सुखी लकड़ी में घुसाने लगी। यूं तो उस लकड़ी में नाखून का आंशिक हिस्सा भी नही घुसा लेकिन फिर भी ओजल दंश को नाखून से जकड़कर उसे हील करने लगी।
वह अपने नाखून से दंश के अंदर के टॉक्सिक को खुद में समा भी रही थी और साथ ही साथ मंत्र भी पढ़ना शुरू कर दी। इधर अल्फा पैक ने जब ओजल का चेहरा देखा, वह समझ गये की ओजल किसी प्रकार के हाई–टॉक्सिक मैटेरियल को अपने अंदर ले रही थी। वुल्फ पैक भी तैयार खड़ी, यदि ओजल इस हाई–टॉक्सिक मैटेरियल को संभाल नहीं पायी तब पूरा पैक उस टॉक्सिक को बांट लेगा।
ओजल लगातार अपने अंदर टॉक्सिक ले रही थी और मंत्र पढ़ रही थी। जैसे ही उसने तीसरी बार मंत्र पढ़ा, चारो ओर इतनी तेज रौशनी हुई की किसी को कुछ दिखा ही नही। इधर ओजल भी किसी अन्य जगह पहुंच चुकी थी, जहां चारो ओर रौशनी ही रौशनी थी। ओजल चारो ओर घूमकर वह जगह देखने लगी। अचानक ही धुएंनुमा चेहरा ओजल के सामने प्रकट हो गया.… "तुम्हे क्या चाहिए लड़की?"…
ओजल:– मुझे कुछ नही चाहिए। तुम बताओ तुम्हे क्या चाहिए?
ओजल की बात सुनकर वह धुवान्नुमा चेहरा बिलकुल हैरान हो गया.… "तुमने मुझे जगाया और मुझसे ही पूछ रही कि "मुझे क्या चाहिए"..
ओजल, अपने हाथ आगे बढ़ाकर उस चेहरे को छूने की कोशिश करती.… "पर मुझे सच में कुछ नही चाहिए। मैं तो तुम्हे जानती भी नही?"..
चेहरा:– बिना मुझे जाने ही यहां पहुंच गयी? मैं छड़ी की आत्मा हूं।
ओजल थोड़ी हैरान होती.… "क्या??? तुम एक आत्मा हो?? क्या तुम्हे भी यहां कैद किया गया है??? इस जादूगर महान की तो मैं बैंड बजा दूंगी।"
धुवन्नूमा वह चेहरा ओजल की बात सुनकर हंसते हुये इस बार अपना चेहरा आगे बढ़ा दिया। दरअसल ओजल लागातार अपने हाथ आगे बढ़ाकर उस चेहरे को छूने की कोशिश कर रही थी, लेकिन बार–बार वह चेहरा पीछे हो जाता। लेकिन इस बार उसने खुद ही अपना चेहरा आगे कर लिया।
ओजल, उस चेहरे को बड़े प्यार से स्पर्श करती... "मुझे सच में अफसोस है। क्या तुम्हे मारकर तुम्हारी आत्मा को छड़ी में कैद किया गया था?
चेहरा:– नही, मैं छड़ी की ही आत्मा हूं। छड़ी में आत्म कैसे हुआ इसकी लंबी कहानी है जिसका छोटा सा सार इतना है कि, …... मैं एक विशाल कल्पवृक्ष की छोटी सी शाखा के बहुत ही छोटा सा हिस्सा हूं, जिसमे जीवन था। तुम्हारे नाखून लगने से अब तो मैं और भी ज्यादा जीवंत मेहसूस कर रहा हूं। तुमने मेरे वर्षों के जहर को निकाल दिया।
ओजल:– तुम्हारा स्पर्श भी उन पेड़ों से भिन्न नहीं, जिन्हे मैं रोज हील किया करती हूं। हां लेकिन तुम्हारी तरह किसी पेड़ की आत्मा ने मुझसे बात नही की।
चेहरा:– नही ऐसा नहीं है। भले मेरी तरह उन पेड़ों की आत्मा से तुम्हारी बात न हुई हो। किंतु प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वह अपने होने के संकेत जरूर देते होंगे। तुम भी उन संकेतों को समझती जरूर होगी, लेकिन कभी इस ओर ध्यान न गया होगा की ये पेड़ की आत्मा तुमसे अपने तरीके से बात करती थी। या फिर उन्हे दर्द से मुक्ति दिलवाने के लिये तुम्हे धन्यवाद दे रही थी।
ओजल:– ओह मतलब चुनाव का अधिकार है तुम्हारे पास। किस से संपर्क करना है किस से नही ये सब तुम खुद तय करते हो। इसका तो यह मतलब भी हुआ की तुम्हारे अंदर भी अच्छाई और बुराई पनपती होगी....
चेहरा:– हाहाहाहाहा... इस विषय में सोचा ही नहीं। मुझपर काबू पाने वाला इंसान बुरा हो सकता है मैं नहीं। मैं निष्पक्ष हूं जिसका पक्ष उसका प्रयोग करने वाला तय करता है।
ओजल:– फिर मुझे ये बताओ की तुम इक्छाधारी नाग के हाथों से जादूगर के हाथ में कैसे चले गये?
चेहरा:– कौन जादूगर और कौन इक्कछाधारी नाग। मैं पहली बार तुम जैसे किसी ऐसे इंसान से मिल रहा, जो हम जैसों को समझता है। तुम्हारे अलावा कुछ देर पहले जिन सभी ने मुझे पकड़ा था, बस मुझे उन्ही का अलौकिक स्पर्श याद है। इसके पूर्व मैं किसके हाथों में था और क्यों था, मुझे नही पता।
ओजल:– तो क्या तुम्हे इस्तमाल करने वाले किसी भी इंसान के बारे में जानकारी नही?
चेहरा:– मैं किसके हाथों में था, यह मेरे अंदर संग्रहित नही होता। हां कौन–कौन से मंत्र अब तक प्रयोग हुये है और वह मंत्र किन उद्देश्यों से प्रयोग किये गये थे, ये जानकारी पूर्ण रूप से संग्रहित है। वो सब जानकारी मैं तुम्हे बता सकता हूं।
ओजल:– तो क्या अब तुम मेरे हो गये, उस जादूगर का आदेश नही मानोगे...
चेहरा:– मैं हर किसी का हूं जो मुझपर काबू पा लेगा। हां लेकिन इतने लंबे काल में मैने पहली बार किसी के स्पर्श को अनुभव किया है। मुझे प्रयोग करने वाले इंसान को मैं पहली बार मेहसूस कर सकता हूं, इसलिए मेरी इच्छा यही है कि तुम ही मेरा प्रयोग करो। अब तुम्हे अपनी आंख खोल लेनी चाहिए।
ओजल, उस चेहरे को प्रणाम करती.… "अब तो तुमसे मिलना होता रहेगा दोस्त"..
चेहरा, प्यारी सी हंसी हंसते... "वाह मेरा भी कोई दोस्त है!!! ठीक है मित्र अपनी दोस्ती का पहला भेंट के साथ अपनी आंख खोलो...”
चेहरे ने ओजल को कुछ जरूरी बात बताया और तब आंख खोलने कह दिया। बंद आंखों के अंदर जब ओजल किसी रहस्यमई दुनिया में किसी पेड़ की आत्मा से मिल रही थी, बाहर पूरा अल्फा पैक ओजल के हाथ को थामकर उसके अंदर फैलने वाले टॉक्सिक को बांट रहे थे। ओजल ने जितनी भी बातें की वह हर कोई सुन सकता था। हर कोई लगातार ओजल के शरीर में प्रवाह होने वाले टॉक्सिक को बांट रहा था और बातें भी सुन रहा था। ओजल के आंख खोलने के कुछ सेकंड पहले ही जैसे उस छड़ी का पूरा टॉक्सिक खत्म हो गया हो और सभी दंश में लगे उस लकड़ी के अंदर की राहत को मेहसूस कर रहे थे।
ओजल जैसे ही आंखें खोली उसके चेहरे पर मुस्कान थी और छड़ी चेन के ऊपर घुमाते हुये.… "एक वचन, सत्य वचन" नामक मंत्र पढ़ दी। एक विशेष मंत्र जिसके बाद चाहकर भी जादूगर की आत्मा अब झूठ नही बोल सकती थी। जादूगर मंत्र के पहले शब्द पर ही कांप गया। मुख से उसके भी मंत्र निकले, किंतु पूरा मंत्र नही बोल पाया। ओजल मंत्र पढ़ चुकी थी और जादूगर का मंत्र किसी काम का नही था...
जादूगर:– ये तुमने क्या कर दिया? किसने सिखाया यह मंत्र... इस मंत्र को सिद्ध कैसे किया?
ओजल:– मुझे प्रकृति ने यह मंत्र सिखाया जादूगर और अपने विश्वास से इस मंत्र को सिद्ध की हूं। बॉस अब जादूगर से कुछ भी पूछ लो, झूठ नही बोलेगा...
रूही:– जादूगर झूठ तो नही बोलेगा, लेकिन तुम तीनो को स्कूल नही जाना है क्या?
अलबेली:– ओ तेरी, हम तो इस चांडाल जादूगर के चक्कर में अपना गेम भी भूल गये। चलो रे स्कूल...
तीनो भागे.. सुबह के 9 बज चुके थे, अब वहां बचे थे 3 लोग.… जादूगर, आर्यमणि, और रूही...
तीनो भागे.. सुबह के 9 बज चुके थे, अब वहां बचे थे 3 लोग.… जादूगर, आर्यमणि, और रूही...
आर्यमणि:– हमारा कितना उपहास किये लेकिन नतीजा क्या निकला? छोटी सी बच्ची ने हरा दिया। गया दंश और अब झूठ भी नही बोल सकते...
जादूगर:– फालतू बात बंद करो और मुद्दे पर आओ। एक अटूट कसम लो। मैं तुम्हे टेलीपोर्ट होने की पूरी विधि का विस्तृत विवरण दूंगा। अंतर्ध्यान अर्थात टेलीपोर्ट विधा की जानकारी तुम अपने किसी ऐसे साथी को देना जिसकी सभी कुंडलिनी चक्र जागृत हो। यदि वह जानकार हुआ तो उसे मात्र २ दिन लगेंगे, वरना सैकड़ों वर्षों से तो अपने रिहाई का इंतजार वैसे भी कर रहा हूं।
आर्यमणि:– चिंता मत करो, हमारे संन्यासी शिवम काफी ज्ञानी व्यक्ति है। उम्मीद है कुछ वर्षो में हम एक ऋषि का उदय होते देखेंगे जो भारत की धरती से लगभग विलुप्त हो चुके है।
जादूगर:– ठीक है बुलाओ उसे..
आर्यमणि:– अभी बुलाता हूं... संन्यासी शिवम सर...
"हां क्या है बोल बे"…. एक जाना पहचाना आवाज जो आर्यमणि के चेहरे पर मुस्कान ले आया। निशांत पहुंच चुका था...
आर्यमणि, निशांत के गले लगते.… "संन्यासी शिवम सर को बुलाओ। हम पहले इस जादूगर का काम खत्म करते है, फिर इत्मीनान से बात करेंगे".…
पीछे से संन्यासी शिवम् आवाज लगाते.… "आज्ञा दीजिए बड़े गुरुदेव"…
आर्यमणि:– क्या मजाक है शिवम् सर... गुरुदेव..
शिवम्:– अब या तो इस बात पर बहस कर लीजिए, या फिर आगे का काम देख ले... वैसे मैंने सुना था कि ये जादूगर बड़बोला है, अभी कुछ बोल क्यों नही रहा?
आर्यमणि:– इसकी छड़ी को ओजल ने जीत लिया। छड़ी को जीतने के साथ ही उसने अपने आत्मविश्वास से पहली बार एक मंत्र पढ़ा और वो इस जादूगर पर असर कर गयी।
जादूगर:– तुमसब किस प्रकार के विचित्र जीव हो। भेड़िया होकर मंत्र सिद्ध कर रहे। गलत मंत्र बताने के बाद भी मेरी छड़ी को अपने वश में कर लिये। हो कौन तुम लोग...
आर्यमणि:– यहां भी झूठ। तुम पर यकीन करना यकीन को गाली देने जैसा लग रहा है। तुम तो बहुत बड़े सिद्ध पुरुष हो ना जादूगर जी, फिर स्वयं ही पता लगा लो की तुम्हारे गलत मंत्र के बावजूद छड़ी ओजल की कैसे हो गयी। अब जब तुम झूठ बोल नही पाओगे तो क्या हम आगे की प्रक्रिया पूरी कर ले।
जादूगर:– हां, लेकिन अटूट कसम मैं खिलाऊंगा।
आर्यमणि:– वो तो मैं पहले से जानता था। जो इतना बड़ा झूठा हो उसके दूसरों की बातें कब सच लगेगी। उसे यह डर तो सताएगा ही की कहीं सामने वाला शब्दों से तो नहीं खेल गया। ठीक है जादूगर जी आप ही कसम खिलावाओ।
आर्यमणि अपनी बात कहकर अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। हाथ पर गंगा जल लेकर एक मंत्र पढ़ने के बाद चेन के ओर देखने लगा। जादूगर जैसे तैयार बैठा हो। जादूगर बोलता गया और पीछे–पीछे आर्यमणि भी दोहराते रहा... "मैं आर्यमणि यह कसम लेता हूं कि जादूगर ने यदि टेलीपोर्टेशन की सही विधि बता दिया और उस विधि के द्वारा किसी ने भी यदि टेलीपोर्टेशन की विधा सिख ली, तब मैं जादूगर महान की आत्मा को उसके शरीर में प्रवेश करने के लिये मुक्त कर दूंगा। जादूगर की आत्मा को न तो छल और न ही बल पूर्वक रोकने की कोशिश करूंगा"…
आर्यमणि पूरी बात दोहराने के बाद... "अब संतुष्ट न.. चलो विधि बताओ।"…
जादूगर ने विधि बताई। आर्यमणि और संन्यासी शिवम् पूरी विधि बड़े ध्यान से सुन रहे थे। पूरी विधि विस्तार पूर्वक जानने के बाद संन्यासी शिवम् उपयुक्त स्थान का चयन करने निकल गये। उसके साथ निशांत भी चला गया। वहीं आर्यमणि ने एक बार फिर किताब को बंद करके जादूगर को निष्क्रिय कर दिया। घर में केवल 2 लोग ही रह गये थे, आर्यमणि और रूही। आर्यमणि, रूही के ओर अफसोस भरी नजरो से देखते... "माफ करना मैं तुम्हे ज्यादा वक्त नहीं दे पा रहा।"…
रूही, आर्यमणि को प्यार से देखते हुये उसके होंठ को चूम ली और उसके सर को अपने गोद में रखकर बालों में हाथ फेरती, सर को मालिश करने लगी। आर्यमणि को इतना सुकून मिला की वह सारी चिंताओं को त्याग कर सुकून से रूही की गोद में सो गया। रूही भी बालों में प्यार से हाथ फेरते–फेरते कब नींद के आगोश में चली गयी उसे भी पता न चला।
3 दिन का वक्त लगा लेकिन संन्यासी शिवम् जब लौटे तो पूरी विद्या सीखकर ही लौटे। उनके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान और आंखों में आर्यमणि के लिये अभिवादन था... "गुरुदेव वह विधा जो विलुप्त हो चुकी थी, आज वापस से जीवंत हो गयी।"
आर्यमणि:– वो सब तो ठीक है शिवम् सर, लेकिन निशांत कहां गायब हो गया। बस एक छोटी सी मुलाकात हुई उसके बाद गायब...
संन्यासी शिवम्:– आपने ही तो कहा था जादूगर का किस्सा खत्म करके इत्मीनान से बात करेंगे। इसलिए वह भी उसी से संबंधित जरूर काम में लग गया...
आर्यमणि अपनी ललाट ऊपर करते... "हां हां.. वाकई में क्या?"
संन्यासी शिवम्:– हां हां बिलकुल... शायद अब आपको अपनी कसम भी पूरी कर देनी चाहिए...
आर्यमणि:– क्यों नही जरूर...
आर्यमणि, संन्यासी शिवम् के साथ अपने कॉटेज के बेसमेंट में पहुंच गया। आर्यमणि अपने हाथ में किताब और वो चेन लिये था। संन्यासी शिवम् कंधे पर एक झोला टांगे पहुंचे और आते ही झोले से सामग्री निकलने लगे। पूरा सामग्री निकालने के बाद बेसमेंट में रखे सोफे को भस्म की रेखा से घेर दिया। चादर से ढके इस सोफे को भस्म से घेरने के बाद, संन्यासी शिवम् वहीं बैठ गये और उस चेन को भी एक घेरे में रखकर मंत्र जाप करने लगे।
पीछे से निशांत भी वहां पहुंचा। हाथ में 4 प्रकार के विशेष पुष्प थे जो दुनिया के चार अलग–अलग कोने से लाये गये ताजा फूल थे। दुनिया के चार कोनो से लाया विशेष फूल और उन चार कोनो के मध्य स्थान की मिट्टी निशांत अपने साथ लिये था। सोफे के चार कोनो पर चार फूल रखा और मध्य स्थान पर मिट्टी डालने के बाद, वह भी एक कोने में बैठकर मंत्र पढ़ने लगा। संन्यासी शिवम् का इशारा हुआ और आर्यमणि ने पहले सम्पूर्ण सुरक्षा मंत्र को ही निष्क्रिय किया उसके बाद में अनंत कीर्ति की पुस्तक को खोल दिया।
अनंत कीर्ति की पुस्तक खुलते ही अट्टहास भरी हंसी से वह जगह गूंज गयी किंतु उसके अगले ही पल... "नही–नही, ये धोखा है... बईमानी है। तुम अटूट कसम का उल्लंघन कर रहे। इसका बहुत पछतावा होगा। भेड़िए एक बार बस मुझे यहां से छूटने दो फिर मैं तुम्हारी दुनिया उजाड़ दूंगा।"
आर्यमणि सोफे का चादर उठाते.…. "मैने अपनी अटूट कसम पूरी की। हमारा करार यहीं समाप्त होता है।"..
दरअसल निशांत और संन्यासी शिवम् ने मिलकर सबसे पहले जादूगर के शरीर को ही साइंस लैब से निकाला था। जिसे बेसमेंट रखे सोफे पर लिटाकर उसके मोक्ष की संपूर्ण विधि पहले से ही वो लोग पूरा कर चुके थे। जैसे ही आर्यमणि ने सुरक्षा मंत्र हटाया जादूगर की आत्मा सीधा अपने शरीर में ही घुसी।
जादूगर:– नही, नही, नही... शर्त अभी पूरी कहां हुई है भेड़िए। तुमने तो मुझे बल और छल दोनो से रोक दिया है।
आर्यमणि:– तुमने आत्मा की बात की थी, न की शरीर की। जिस वक्त तुम्हारी आत्मा तुम्हारे शरीर में नही थी उस वक्त पूरा योजन किया गया। ना तो शरीर में प्रवेश करने के बाद और न ही शरीर में प्रवेश करने के पूर्व मैने तुम्हारी आत्मा को छला है जादूगर।
जादूगर:– आप से सीधा तुम। जादूगर जी से जादूगर...
निशांत:– हां बे लपरझांंटस, तूने सही सुना। मेरा दोस्त बस एक आत्मा की इज्जत कर रहा था वरना तू इंसान किसी इज्जत के लायक नही। शिवम् भैया इसे मुक्त करो। इतनी पुरानी चीज विलुप्त हो जाये, उसी में सबकी भलाई है।
जादूगर:– मुझे मारोगे, तुम नौसिखिए मुझे मारोगे... दम है तो एक बार ये तिलिस्म खोलकर देखो... भूलना मत मैने न जाने तुम जैसे कितने आश्रम वालों के साथ खेला है। तुम्हारे गुरुओं को जीवित अवस्था में ही, उनके सीने को अपने इन्ही हाथों से चिड़कर, उनका हृदय बाहर निकाला है और रक्तपण किया है।
आर्यमणि:– तुम्हे खोल दूं तो तुम मेरा सीना चीड़ दोगे क्या?
पीछे से पूरा अल्फा पैक भी पहुंच चुका था। ओजल, जादूगर को छड़ी दिखाती हुई कहने लगी... "सुन बे चिलगोजे, इस संसार में तेरा वक्त पूरा हुआ। कोई आखरी ख्वाइश?"
(अभिमंत्रित विलय मंत्र, वह मंत्र था जिससे जादूगर के शरीर को बंधा गया था। एक ऐसी विधि, जिसके सम्पूर्ण होने के बाद कुछ नही किया जा सकता, मृत्यु अटल है। हां लेकिन हर विधि में बचने का एक कोना अवश्य छूटा रहता है, ठीक उसी प्रकार इस विलय मंत्र में भी था।)
जादूगर:– जैसा की विलय मंत्र के योजन करने वालों को पता हो, मुझसे इच्छा पूछ ली गयी है, और मैं एक द्वंद की चुनौती देता हूं। जो भी इस विलय योजन विधि का मुखिया है, वह मूझसे लड़ने के लिये तैयार हो जाये।
आर्यमणि अपनी भुजाएं खोलते.… "वैसे तो इच्छा पूछने का अधिकार मेरा था, किसी अन्य के पूछने पर विलय मंत्र अभियोजन में विघ्न नही पड़ने वाला। लेकिन फिर भी जरा मुझे भी दिखाओ कैसे तुम सीना चिड़ते हो? मुझे तुम्हारी चुनौती स्वीकार है।
आर्यमणि अपनी बात समाप्त कर जादूगर को सोफे से निकाला। विलय मंत्र पूर्ण था और उसके सिद्धांतों के हिसाब से ही जादूगर को उसकी एक इच्छा द्वंद के लिये उठाया गया था। जादूगर अपने शरीर को ऐंठते–जोढ़ते सालो से जमी हड्डी को चटकाया। कुटिल मुस्कान हंसते हुये…. "भेड़िए शायद तुम्हे पता नही की मैं क्या हूं? तुम्हे क्या लगा मैं इक्छाधारी जानवर पर जादू नही कर सकता। बेवकूफ भेड़िए, अब तुझे तेरी गलती का एहसास होगा। और तेरे मरते ही जब विलय मंत्र का जाल टूटेगा, तब तेरी तड़पती आत्मा देखेगी की कैसे मैने तेरे बदतमीज पैक का शिकर किया।"
आर्यमणि:– लड़ने के लिये इतनी जगह काफी होगी या कहीं और चलकर अपनी तमन्ना पूरी करेगा।
जादूगर:– तुझे मारने के लिये ये जगह काफी है। ये वक्त सही है, या लड़ने की तैयारी करने के लिये तुझे वक्त चाहिए वो बता दे।
आर्यमणि:– बोल बच्चन बंद कर फिर... और शुरू हो जा...
आर्यमणि ने जैसे ही उसी जगह पर, उसी वक्त, लड़ाई के लिये हरी झंडी दिया, जादूगर भोकाली आवाज में 8–10 मंत्र पढ़ चुका था। सब के सब प्राणघाती और गहरी चोट देने वाले मंत्र थे। एक साथ 8–10 काल आर्यमणि को मारने निकल चुके थे। वहां का माहोल ऐसा हो चला था कि मानो मृत्यु देने स्वयं यमराज को ही जादूगर ने बुला लिया हो। घनघोर काले साए ने आर्यमणि को ऐसे घेरा की वह दिखना ही बंद हो गया।
मात्र क्षण भर का मामला था। आर्यमणि ने हरी झंडी दिखाई और उसके 3–4 सेकंड में यह कारनामा हो चुका था। सभी की नजरें आर्यमणि के ऊपर थी। ना तो काले धुएं के अंदर कोई हलचल थी और न ही कोई आवाज आ रहा था। रूही और बाकी सारे वुल्फ आर्यमणि के ओर दौड़ लगा चुके थे, लेकिन निशांत तुरंत उन सबके सामने खड़े होकर.… “तुम अपने मुखिया को मेहसूस कर सकते हो, फिर पागलों की तरह ऐसे दौड़कर क्यों जा रहे। एक सबक हमेशा याद रहे, परिवार की जान खतरे में हो तो खतरे को मारो, न की मरते सदस्य के ओर इस प्रकार व्याकुल दौड़ लगा दो।”
रूही की आंखें गुस्से में लाल और आंसू उसके गाल पर बह रहे थे। निशांत को खींचकर एक थप्पड़ मारती.… “जब मन व्याकुल हो तो प्रवचन नही देते। जल्दी बताओ आर्य ठीक है या नही?”
“बहुत से लोगों को बहुत सारा भ्रम हुआ”… रौबदार आवाज ऐसा की मानो आर्यमणि बोल तो रहा था काले सायों के बीच से, लेकिन ईको चारो ओर से आ रही थी।…. “तुम भी जादूगर उसी भ्रम के शिकार हो आज तुम्हारा भ्रम मैं दूर किये देता हूं।”
आर्यमणि की रौबदार डायलॉग जैसे ही समाप्त हुआ, सभी वुल्फ सीटियां और तालियां बजाने लगे। आर्यमणि जब अपनी रौबदार आवाज से अपना परिचय करवा रहा था, ठीक उसी वक्त धीरे–धीरे वह काला शाया छटने लगा और आर्यमणि के डायलॉग खत्म होने तक काले शाए की मात्र एक लड़ी भर बची थी, जो धीरे–धीरे करके आर्यमणि के पंजों में समा रही थी। जैसे आर्यमणि भूमि, पेड़ या जानवर के टॉक्सिक को हील करता था, ठीक उसी प्रकार हवा में फैले इस टॉक्सिक मंत्र को भी आर्यमणि अपने हाथ से खींच लिया।
जादूगर देखकर भौचक्का। जैसे जूस मशीन में फल को निचोड़ देते हैं, ठीक उसी प्रकार मंत्र द्वारा आर्यमणि के अंदरूनी अंग निचोड़ा जा रहा था, लेकिन आर्यमणि फिर भी बिना किसी शिकन या पीड़ा के खड़ा था। जादूगर की आंखें जैसे बाहर आ जाए, वैसे ही आंखें फाड़े देख रहा था.…
“कौन सा मंत्र पढ़ा तूने? तू ये कैसे कर रहा है?"…. आर्यमणि जादूगर के ओर जैसे ही बढ़ा वह हड़बड़ा कर, घबरा कर पूछने लगा। आर्यमणि उसकी हालत के मजे लेता जोड़–जोड़ से हंसते हुये अपने कदम धीरे–धीरे बढ़ा रहा था। जादूगर मंत्र पर मंत्र जपने लगा। प्राणघाती हवाएं आर्यमणि के हथेली के आगे जैसे बेबस थी, सब उसमे ही जाकर समा जाती। जो मंत्र शरीर को आघात पहुंचाने के लिये शरीर के अंदर प्रवेश करते, वह असर तो कर रहे थे, लेकिन आर्यमणि की हीलिंग क्षमता के आगे सब बेअसर था।
आर्यमणि 5 कदम चलकर जादूगर के ठीक सामने खड़ा हो गया और अपने पंजे से उसके पीछे गर्दन को दबोचकर, उसका चेहरा अपने चेहरे के ठीक सामने लाते.… "ये डर और तुम्हारे कांपते पाऊं इस बात के साक्षी है कि जिस वक्त तुम थे, उस वक्त भी केवल छल से सबका शिकार किया था। तुम्हारी 45 साल की विकृत सिद्धि किसी काम की नही।"…. इतना कहकर आर्यमणि ने अपना क्ला जादूगर की गर्दन में घुसा दिया। लगभग 45 मिनट तक जादूगर के दिमाग से अपने सभी काम की चीज लेने और जरूरी यादें देखने के बाद, आर्यमणि अपना क्ला गर्दन से निकालकर उसके सीने पर रख दिया...
“द... द... दे... देखो आर्यमणि... नहीईईईईईई…. आआआआआआआआआ... मुझे माफ कर दो... नहीईईईईईई.… आआआआआआआआआ.. छोड़ दो मुझेएएएएएए”…. आखिरी उस चीख के साथ जादूगर की आवाज शांत हो गयी। उसका फरफरता शरीर जमीन पर था और जादूगर का धड़कता हृदय आर्यमणि के हाथ में। जादूगर गिड़गिड़ाता रहा लेकिन आर्यमणि अपने दोनो पंजे के नाखून को, बड़े प्यार से उसके सीने में घुसाकर जादूगर का सीना फाड़ दिया और उसके धड़कते हृदय को मुट्ठी में दबोचकर बाहर निकाल लिया।
जादूगर कड़कती आवाज में.… "मेरा इतना उपहास.. तुम.. तुम.. तुम.. जानते नही किस से उलझ रहे हो। हां मैने झूठ बोला तो और क्या करूं? तुम जैसे जानवर से वह किताब खुल गयी और मैं अब भी कैद हूं। मुझे मेरे शरीर में जाना है, फिर ये संसार वह नजारा भी देखगी जो आज से पहले कभी किसी ने सोचा न होगा.…
आर्यमणि:– जादूगर क्या तुम ईश्वर में विश्वास रखते हो।
रूही:– ये चुतिया तो कहेगा मैं ही ईश्वर हूं।
जादूगर:– बहुत उपहास कर लिया तुम लोगों ने... क्या समझाना चाह रहे वह सीधा समझाओ...
अलबेली:– ओ चीचा ये तो बेज्जती का बस ट्रेलर था। पहले तो इस मनुष्य पर से अपना वशीकरण मंत्र हटाओ और जरा विस्तार से समझाओ की तुम करने क्या वाले थे...
जादूगर:– अपनी आत्मा और उस चेन को किताब के साथ बंधे सुरक्षा मंत्र से मुक्त कर लेता। उसके बाद मेरी आत्मा मेरे शरीर में होती।
आर्यमणि:– पूरी बात बताओ जादूगर जी। आप अपने शरीर में जाते, फिर अपनी आत्मा को किसी जवान शरीर में विस्थापित कर लेते। भूल गये आपने ही बताया था, आप मोक्ष पर सिद्धि प्राप्त किये हो। यानी आप अपनी आत्मा को किसी और के शरीर में बड़ी आसानी से डाल सकते हो। वो क्या है ना हम सब ने जिंदगी का अनुभव कुछ ज्यादा ही लिया है। किताब की लिखी बात पर ही केवल अमल करेंगे, ये कैसे सोच लिया?
जादूगर:– हां तो अब क्या? मेरा क्या बिगाड़ लोगे? जबतक शरीर नष्ट नही होगा, तब तक मेरी आत्मा ये लोक नही छोड़ेगी...
आर्यमणि:– सो तो है... लेकिन वो टेलीपोर्ट करना??? क्या तुमने वाकई में सही कहा था, या फिर मुझे झांसा दिया था?
जादूगर:– हर बात सत प्रतिसत सत्य थी... झूठ बोलने पर तुम झांसे में नही आते...
आर्यमणि:– मैने कोई मंत्र सिद्ध नहीं किया लेकिन लगातार 7 वषों तक हर प्रकार की सिद्धि और साधना को सुनते आया हूं। क्या इतना काफी होगा टेलीपॉर्ट विद्या सीखने के लिये?
जादूगर:– बिलकुल नहीं... तुम्हारे सभी कुंडलिनी चक्र जबतक जागृत नही होंगे तब तक टेलीपोर्ट विधा नही सिख सकते। तुम्हे तो कुंडलिनी शक्ति जागृत करने में ही वर्षों लग जायेंगे...
आर्यमणि:– मैने सोचा था, लेकिन जब मैं टेलीपोर्ट विधा सिख ही नही सकता तो फिर सोचना ही बेकार है।
जादूगर:– क्या सोचे थे?
आर्यमणि:– यही की तुम मुझे टेलीपोर्ट करना सिखाओगे वो भी ठीक वैसे ही जैसा तुमने कहा था, ब्रह्मांड का कोई भी कोना फिर वो मूल दुनिया का हो या विपरीत दुनिया का, अपने घर–आंगन की तरह घूम सकता हूं। तब मैं तुम्हे सुरक्षा मंत्र से मुक्त कर दूंगा..
जादूगर:– मुझे ही झांसा दे रहे हो...
आर्यमणि:– मैं अटूट कसम खाने को तैयार हूं। बशर्ते तुम मुझे टेलीपोर्ट करना सीखा सको...
जादूगर:– मात्र टेलीपोर्ट होना... मुझे छोड़ने के बदले में मैं तो तुम्हे शरीर बदलना भी सीखा सकता हूं...
आर्यमणि:– रहने दो, बस मुझे टेलीपोर्ट करना सीखा दो।
जादूगर:– ठीक है फिर चलो कुछ वर्षो के लिये किसी एकांत इलाके में। या फिर एक वर्ष का जल समाधि ले लो।
आर्यमणि:– तुम्हारा दंश एलियन के संग्रहालय से गायब हो गया है। क्या वो एलियन इतना सब्र रख सकेंगे की तुम्हारे शरीर को अपने साइंस लैब में जिंदा रखे... मुझे नही पता लेकिन दिमाग में यह बात घूम रही थी?
जादूगर:– सही कहा... मेरे पास जरा भी वक्त नही। हर बीतते दिन के साथ खतरा बढ़ रहा है। ठीक है एक काम हो सकता है, मैं पूरी विधि तुम्हे बता देता हूं। एक वर्ष की जल समाधि में न सिर्फ तुम कुंडलिनी चक्र जागृत कर सकते हो, बल्कि 7 साल तक जो तुमने ज्ञान लिया है, उस पूर्ण ज्ञान को सिद्ध कर सकते हो... जल समाधि आसान साधना होगी, किसी एकांत क्षेत्र में तप की तुलना में।
आर्यमणि:– तुम भरोसे के लायक ही नहीं जादूगर, फिर तुम्हारी विधि पर यकीन कैसे कर लूं। अनंत कीर्ति की पुस्तक यदि मंत्र और सिद्धियों की सूचना देने वाली किताब होती, तो एक बार तुम्हारा काम हो भी जाता। तुम तो अटूट कसम भी नही खा सकते, क्योंकि उसके लिये शरीर चाहिए... बड़ी विडंबना है?
जादूगर:– मेरे हाथ नही वरना मैं तुम्हारे पाऊं पकड़ लेता। किसी ऐसे को लाओ जिसकी कुंडलिनी चक्र जागृत हो, उसे मैं एक दिन में टेलीपोर्ट होना सीखा दूंगा। ये चलेगा ना?
आर्यमणि:– बात फिर वही हो जाती है, बाद में वह मुझे सिखाने के लिये तैयार हो की न हो? बड़ा ही जोखिम वाला फैसला है... यदि टेलीपोर्ट होने की विधा का प्रसार हुआ होता, तो यह विधा विलुप्त ही क्यों होती?
जादूगर:– मैं उस इंसान को टेलीपोर्ट होना सीखा दूंगा जिस से यह सत्यापित हो जायेगा की मेरी विधि सही है। फिर तुम्हे उस इंसान पर आश्रित नहीं होना पड़ेगा। कुंडलिनी चक्र जागृत करने के उपरांत तुम खुद इस विधा को सिख सकते हो।
आर्यमणि:– मजा नही आया। मुझे फिर भी लंबा इंतजार करना होगा और खुद से मैं टेलीपोर्ट होना सिख भी पाऊं या नही, यह ख्याल दिमाग में आते रहेगा। ये दमदार प्रस्ताव नही लगा। एक काम करो टेलीपोर्ट होने की विधि के साथ–साथ अपने दंश को भी मुझे दे दो। कुछ ऐसा करो की यह दंश मुझे सुने।।।
जादूगर:– यह दंश सिर्फ मुझसे जुड़ी है। मेरे अलावा इसे कोई और प्रयोग नहीं कर सकता।
आर्यमणि:– सोच लो... अपना शरीर चाहिए या आजीवन इस चेन में बंधे रहना चाहते हो।
जादूगर:– तुम समझ क्यों नही रहे। मुझे हराने के बाद ही कोई इस दंश को काबू कर सकता है।
आर्यमणि:– जैसे की मुझे यकीन नही की तुम्हे इक्छाधारी नाग के राजा ने यह दंश प्रेम से दिया होगा, फिर भी तुम इसका इस्तमाल कर रहे हो ना। वैसे ही मैं भी कर लूंगा...
जादूगर:– तुम भेड़िए भी मुझसे मोल–भाव कर रहे, कमाल है... ठीक है दंश दिया.. मैं एक मंत्र बताता हूं उसे पढ़ने के बाद यदि दंश ने तुम्हे अपनाया तो ठीक, वरना उसे काबू करने की क्षमता होनी चाहिए। यदि काबू न कर पाओ तो दंश को जमीन पर छोड़ देना..
आर्यमणि:– ठीक है मंत्र बोलो...
जादूगर:– सच्चे मन से 3 बार, "सर्व लोक वश कराय कुरु कुरु स्वाहा!!" का जाप करो। यदि इस दंश को तुम्हारे पास रहना है, तो वो तुम्हारे पास रहेगा... वरना हमारी समझौता तो पहले से हो ही चुकी है।
आर्यमणि:– ठीक है जादूगर जी... एक कोशिश तो बनती है। तो बच्चो तुम तीनो में से पहले कौन आएगा...
सबने एक साथ ना कह दिया। हर किसी ने दंश और चेन के बीच की खींचातानी देखी थी। जब कोई आगे नहीं आया तब आर्यमणि चारो को घूरते हुये... "थू डरपोक" कहा और दंश को अपने हाथ से उठा लिया। दंश को हाथ में लेने के बाद आर्यमणि ने 3 बार मंत्र को पढ़ा। मंत्र ने वाकई काम किया। दंश से एक हल्की रौशनी निकली और उसके चंद क्षण बाद.… देखने वाला नजारा था। दंश हवा में ऊपर जाकर आर्यमणि को झटक रहा था। आर्यमणि, आर्यमणि न होकर छड़ी से बंधा कोई रिब्बन हो, जिसे कोई अदृश्य बालक पकड़ कर हवा में रिब्बन को लहरा रहा था।
हवा की ऊंचाई पर कभी दाएं तो कभी बाएं, आर्यमणि काफी तेजी से झटके खा रहा था। अंत में धराम से पहले आर्यमणि जमीन पर गिरा और फिर छड़ी आराम से नीचे आ गयी। आर्यमणि की हालत पर जादूगर जोड़–जोड़ से हंसने लगा। उसका यह हंसना अल्फा पैक के किसी भी वुल्फ को गवारा नहीं हुआ। रूही तुरंत आगे आकर छड़ी को अपने हाथ में थामी और मंत्र पढ़ दी। रूही का भी वही हाल हुआ जो आर्यमणि का हुआ था।
एक–एक करके सबने एक बार कोशिश कर ली। हर नाकामयाब कोशिश के बाद जादूगर हंसते हुये उपहास कर रहा था। सबसे आखरी में ओजल कोशिश करने आयी। उसने जैसे ही दंश को अपने हाथ में लिया, सर्वप्रथम दंश को नमन की और अपने क्ला को निकालकर सुखी लकड़ी में घुसाने लगी। यूं तो उस लकड़ी में नाखून का आंशिक हिस्सा भी नही घुसा लेकिन फिर भी ओजल दंश को नाखून से जकड़कर उसे हील करने लगी।
वह अपने नाखून से दंश के अंदर के टॉक्सिक को खुद में समा भी रही थी और साथ ही साथ मंत्र भी पढ़ना शुरू कर दी। इधर अल्फा पैक ने जब ओजल का चेहरा देखा, वह समझ गये की ओजल किसी प्रकार के हाई–टॉक्सिक मैटेरियल को अपने अंदर ले रही थी। वुल्फ पैक भी तैयार खड़ी, यदि ओजल इस हाई–टॉक्सिक मैटेरियल को संभाल नहीं पायी तब पूरा पैक उस टॉक्सिक को बांट लेगा।
ओजल लगातार अपने अंदर टॉक्सिक ले रही थी और मंत्र पढ़ रही थी। जैसे ही उसने तीसरी बार मंत्र पढ़ा, चारो ओर इतनी तेज रौशनी हुई की किसी को कुछ दिखा ही नही। इधर ओजल भी किसी अन्य जगह पहुंच चुकी थी, जहां चारो ओर रौशनी ही रौशनी थी। ओजल चारो ओर घूमकर वह जगह देखने लगी। अचानक ही धुएंनुमा चेहरा ओजल के सामने प्रकट हो गया.… "तुम्हे क्या चाहिए लड़की?"…
ओजल:– मुझे कुछ नही चाहिए। तुम बताओ तुम्हे क्या चाहिए?
ओजल की बात सुनकर वह धुवान्नुमा चेहरा बिलकुल हैरान हो गया.… "तुमने मुझे जगाया और मुझसे ही पूछ रही कि "मुझे क्या चाहिए"..
ओजल, अपने हाथ आगे बढ़ाकर उस चेहरे को छूने की कोशिश करती.… "पर मुझे सच में कुछ नही चाहिए। मैं तो तुम्हे जानती भी नही?"..
चेहरा:– बिना मुझे जाने ही यहां पहुंच गयी? मैं छड़ी की आत्मा हूं।
ओजल थोड़ी हैरान होती.… "क्या??? तुम एक आत्मा हो?? क्या तुम्हे भी यहां कैद किया गया है??? इस जादूगर महान की तो मैं बैंड बजा दूंगी।"
धुवन्नूमा वह चेहरा ओजल की बात सुनकर हंसते हुये इस बार अपना चेहरा आगे बढ़ा दिया। दरअसल ओजल लागातार अपने हाथ आगे बढ़ाकर उस चेहरे को छूने की कोशिश कर रही थी, लेकिन बार–बार वह चेहरा पीछे हो जाता। लेकिन इस बार उसने खुद ही अपना चेहरा आगे कर लिया।
ओजल, उस चेहरे को बड़े प्यार से स्पर्श करती... "मुझे सच में अफसोस है। क्या तुम्हे मारकर तुम्हारी आत्मा को छड़ी में कैद किया गया था?
चेहरा:– नही, मैं छड़ी की ही आत्मा हूं। छड़ी में आत्म कैसे हुआ इसकी लंबी कहानी है जिसका छोटा सा सार इतना है कि, …... मैं एक विशाल कल्पवृक्ष की छोटी सी शाखा के बहुत ही छोटा सा हिस्सा हूं, जिसमे जीवन था। तुम्हारे नाखून लगने से अब तो मैं और भी ज्यादा जीवंत मेहसूस कर रहा हूं। तुमने मेरे वर्षों के जहर को निकाल दिया।
ओजल:– तुम्हारा स्पर्श भी उन पेड़ों से भिन्न नहीं, जिन्हे मैं रोज हील किया करती हूं। हां लेकिन तुम्हारी तरह किसी पेड़ की आत्मा ने मुझसे बात नही की।
चेहरा:– नही ऐसा नहीं है। भले मेरी तरह उन पेड़ों की आत्मा से तुम्हारी बात न हुई हो। किंतु प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वह अपने होने के संकेत जरूर देते होंगे। तुम भी उन संकेतों को समझती जरूर होगी, लेकिन कभी इस ओर ध्यान न गया होगा की ये पेड़ की आत्मा तुमसे अपने तरीके से बात करती थी। या फिर उन्हे दर्द से मुक्ति दिलवाने के लिये तुम्हे धन्यवाद दे रही थी।
ओजल:– ओह मतलब चुनाव का अधिकार है तुम्हारे पास। किस से संपर्क करना है किस से नही ये सब तुम खुद तय करते हो। इसका तो यह मतलब भी हुआ की तुम्हारे अंदर भी अच्छाई और बुराई पनपती होगी....
चेहरा:– हाहाहाहाहा... इस विषय में सोचा ही नहीं। मुझपर काबू पाने वाला इंसान बुरा हो सकता है मैं नहीं। मैं निष्पक्ष हूं जिसका पक्ष उसका प्रयोग करने वाला तय करता है।
ओजल:– फिर मुझे ये बताओ की तुम इक्छाधारी नाग के हाथों से जादूगर के हाथ में कैसे चले गये?
चेहरा:– कौन जादूगर और कौन इक्कछाधारी नाग। मैं पहली बार तुम जैसे किसी ऐसे इंसान से मिल रहा, जो हम जैसों को समझता है। तुम्हारे अलावा कुछ देर पहले जिन सभी ने मुझे पकड़ा था, बस मुझे उन्ही का अलौकिक स्पर्श याद है। इसके पूर्व मैं किसके हाथों में था और क्यों था, मुझे नही पता।
ओजल:– तो क्या तुम्हे इस्तमाल करने वाले किसी भी इंसान के बारे में जानकारी नही?
चेहरा:– मैं किसके हाथों में था, यह मेरे अंदर संग्रहित नही होता। हां कौन–कौन से मंत्र अब तक प्रयोग हुये है और वह मंत्र किन उद्देश्यों से प्रयोग किये गये थे, ये जानकारी पूर्ण रूप से संग्रहित है। वो सब जानकारी मैं तुम्हे बता सकता हूं।
ओजल:– तो क्या अब तुम मेरे हो गये, उस जादूगर का आदेश नही मानोगे...
चेहरा:– मैं हर किसी का हूं जो मुझपर काबू पा लेगा। हां लेकिन इतने लंबे काल में मैने पहली बार किसी के स्पर्श को अनुभव किया है। मुझे प्रयोग करने वाले इंसान को मैं पहली बार मेहसूस कर सकता हूं, इसलिए मेरी इच्छा यही है कि तुम ही मेरा प्रयोग करो। अब तुम्हे अपनी आंख खोल लेनी चाहिए।
ओजल, उस चेहरे को प्रणाम करती.… "अब तो तुमसे मिलना होता रहेगा दोस्त"..
चेहरा, प्यारी सी हंसी हंसते... "वाह मेरा भी कोई दोस्त है!!! ठीक है मित्र अपनी दोस्ती का पहला भेंट के साथ अपनी आंख खोलो...”
चेहरे ने ओजल को कुछ जरूरी बात बताया और तब आंख खोलने कह दिया। बंद आंखों के अंदर जब ओजल किसी रहस्यमई दुनिया में किसी पेड़ की आत्मा से मिल रही थी, बाहर पूरा अल्फा पैक ओजल के हाथ को थामकर उसके अंदर फैलने वाले टॉक्सिक को बांट रहे थे। ओजल ने जितनी भी बातें की वह हर कोई सुन सकता था। हर कोई लगातार ओजल के शरीर में प्रवाह होने वाले टॉक्सिक को बांट रहा था और बातें भी सुन रहा था। ओजल के आंख खोलने के कुछ सेकंड पहले ही जैसे उस छड़ी का पूरा टॉक्सिक खत्म हो गया हो और सभी दंश में लगे उस लकड़ी के अंदर की राहत को मेहसूस कर रहे थे।
ओजल जैसे ही आंखें खोली उसके चेहरे पर मुस्कान थी और छड़ी चेन के ऊपर घुमाते हुये.… "एक वचन, सत्य वचन" नामक मंत्र पढ़ दी। एक विशेष मंत्र जिसके बाद चाहकर भी जादूगर की आत्मा अब झूठ नही बोल सकती थी। जादूगर मंत्र के पहले शब्द पर ही कांप गया। मुख से उसके भी मंत्र निकले, किंतु पूरा मंत्र नही बोल पाया। ओजल मंत्र पढ़ चुकी थी और जादूगर का मंत्र किसी काम का नही था...
जादूगर:– ये तुमने क्या कर दिया? किसने सिखाया यह मंत्र... इस मंत्र को सिद्ध कैसे किया?
ओजल:– मुझे प्रकृति ने यह मंत्र सिखाया जादूगर और अपने विश्वास से इस मंत्र को सिद्ध की हूं। बॉस अब जादूगर से कुछ भी पूछ लो, झूठ नही बोलेगा...
रूही:– जादूगर झूठ तो नही बोलेगा, लेकिन तुम तीनो को स्कूल नही जाना है क्या?
अलबेली:– ओ तेरी, हम तो इस चांडाल जादूगर के चक्कर में अपना गेम भी भूल गये। चलो रे स्कूल...
तीनो भागे.. सुबह के 9 बज चुके थे, अब वहां बचे थे 3 लोग.… जादूगर, आर्यमणि, और रूही...
bahut dino baad lauta hun. Jis prakar welcome back me josh dikhaya hai aap logon ne ummid hai comments is se bhi jyada joshile aayenge.... Intzar rahega aap sab ke comment ka...
यह तो बाहर ढूंढने गयी टीम का ब्योरा था जिसमे सभी श्रेणी के शिकारी तथा सभी श्रेणी के एलियन थे। जबकि अंदरूनी छानबीन नागपुर में चल रही थी और आर्यमणि के हर करीबी पर 24 घंटे नजर रखी जा रही थी। किंतु सात्त्विक आश्रम का साथ और विश्वास ने आर्यमणि के किसी भी करीबी पर कोई मुसीबत नही आने दिया। कुछ महीने पूर्व ही आर्यमणि के परिवार अर्थात कुलकर्णी परिवार से मिलने पहुंचा जयदेव ने किसी प्रकार का वशीकरण विषाणु छोड़ा था, किंतु संयासियों ने उन्हे ऐसा घुमाया की जयदेव को लगा वह दिमागी तौर से पागल हो रहा है।
नाकामयाबी ने ऐसा घेरा की जयदेव ने कुछ दिन पहले जब एक बार पुनः कुलकर्णी परिवार पर हमला किया, तब एक संन्यासी वह हमला अपने ऊपर झेल गया। एक प्रकार का वशीकरण जहर छोड़ा गया था। जयदेव की सोच साफ थी, यदि वश में करने के बाद भी कुलकर्णी परिवार को आर्यमणि के बारे पता नही, तब अपने माता–पिता की मौत पर तो आर्यमणि आएगा ही। किंतु ऐसा हो उस से पहले ही संन्यासी ने जयदेव के मंसूबों पर पानी फेर दिया।
संन्यासी भी वशीकरण जहर की चपेट में था, इसलिए उसने खुद को ऐसी जगह कैद किया जहां से वह खुद भी निकल ना सके। वजह साफ थी, यदि संन्यासी को उस जगह से निकलने का तरीका पता होता, तब वह जयदेव के एक कहे पर उसके पास पहुंच जाता। खुद को ऐसे कैद किया था कि मरने के बाद ही उसकी कोई सूचना मिलती। और हुआ भी कुछ ऐसा ही। संन्यासी के मरते ही आचार्य जी को पता चल गया। आचार्य जी संन्यासी के पास खुद पहुंचे और संन्यासी द्वारा दिये संदेश को पढ़कर स्तब्ध थे।
आचार्य जी ने पूरे कुलकर्णी परिवार और आर्यमणि के करीबियों की सुरक्षा और ज्यादा बढ़ा दी। साथ ही साथ उन्होंने यह भी कहा की आर्यमणि को जल्द ही ये लुका–छिपी का खेल बंद करना होगा, ताकि परिवार पर होने वाले हमले बंद हो जाये। परंतु अभिभावक तो अभिभावक होते है। आर्यमणि जब भूमि से बात किया तब भूमि ने मात्र संन्यासी के मारे जाने का जिक्र की, लेकिन बाकी बातें नही बताई। भूमि ने नही बताया तो क्या हुआ, लेकिन आर्यमणि अपने परिवार पर चल रहे खतरे को भांप चुका था। खतरा भांप चुका था इसलिए पलक से मिलने की योजना भी बना चुका था।
पलक जो खुद को खोज–बीन के सभी मामलों से दूर रखी थी, वह अपने चारो नए दोस्तों के साथ यूरोप घूमने आयी थी। यूं तो पलक 20 दिन के टूर पर आयी थी, लेकिन आर्यमणि ने जबसे जर्मनी में मिलने की इच्छा जताया, उसी क्षण पलक अपने दोस्तो के साथ जर्मनी निकल गयी। आर्यमणि से मिलने से पहले वह जर्मनी की धरती को अपना बना लेना चाहती थी। यहां का जर्रा–जर्रा सब पलक के अनुकूल हो।
पलक तो जर्मनी के लिये निकली ही, पीछे से अक्षरा ने भी जाल बिछा दिया। उसे जब खबर मिली तब बिना देर किये नित्या के साथ–साथ उन सभी 400 शिकारी तक सूचना पहुंचा चुकी थी, जो आर्यमणि को ढूंढने निकले थे। ऐसा लग रहा था अक्षरा आर्यमणि के खिलाफ कोई युद्ध का बिगुल फूंक चुकी थी। तकरीबन 450 खतरनाक शिकारी तो सामने से लड़ते, बैकअप के लिये देवगिरी पाठक की छोटी बेटी और धीरेन स्वामी की पत्नी भारती की अगुवाई में 600 शिकारि भी जर्मनी के लिये निकल चुके थे।
एलियन समुदाय की भारती वह शिकारी थी जिसे अजय शिकारी कहा जाता था। सिद्ध पुरुषों के शिकार की साजिश से लेकर उन्हें अंजाम तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भारती की ही थी। भारती इंसानों के शिकार कर उसे खाने के लिये भी काफी प्रचलित थी। वह एक नरभक्षी थी, जिसे इंसानी मांस से काफी लगाव था।
आर्यमणि तो अपना दाव खेल चुका था। आर्यमणि के इस दाव पर अक्षरा ने पूरा रण क्षेत्र ही सजा दिया। एक के विरुद्ध 1000 से ज्यादा एलियन शिकारी जर्मनी की धरती पर उसका इंतजार कर रहे थे। वक्त किस ओर करवट लेगी, यह तो आने वाले वक्त की माया थी, लेकिन यह पलक की लोकप्रियता ही थी, जिस कारण से उन एलियन ने एक आर्यमणि के पीछे अपने 1000 से ज्यादा शिकारियों को भेज दिया, वरना उनके हिसाब से तो आर्यमणि के लिये नित्या अकेली ही काफी थी।
बर्कले, कैलिफोर्निया...
सुहानी सुबह थी। अल्फा पैक अपने समय अनुसार ही जाग रहे थे। बीते कई महीनो की कड़ी मेहनत सामने दिख रही थी। अल्फा पैक के सभी वुल्फ माउंटेन ऐश की रेखा बड़ी ही सुगमता से पार कर रहे थे। इंसानी खून के गंध का कोई असर नहीं था। अल्फा पैक अपने आस–पास के जंगल ही नही बल्कि क्ला को मिट्टी में घुसाकर जमीन के अंदर के टॉक्सिक को भी अपने अंदर समा रहे थे।
यूं तो जादूगर महान नए कला का अभ्यास आज सुबह से ही करवाता, लेकिन कितनी सुबह यह तय नहीं हुआ था। जादूगर शुरू से अल्फा पैक की ट्रेनिंग देख रहा था। ट्रेनिंग देखकर वह आश्चर्य में पड़ गया। पांचों ने खुद को प्रकृति से इस कदर जोड़ रखा था कि ये लोग हवाओं से भी अपना काम करवा ले। जादूगर की मौजूदगी को सबने भांप लिया, शायद यह किताब का कारनामा था, लेकिन फिर भी सभी अपने अभ्यास में अभ्यस्थ रहे।
जादूगर कान फाड़ सिटी की आवाज निकालते... "भूल जाओ की पहले मैने क्या कहा था। तुम सबको यहां देखने के बाद एक ही बात कहूंगा, मेरे समय में यदि तुम लोग होते तो मुझे एक जानदार दुश्मन मिलता।"…
रूही:– अच्छा !!!! तो इस दुश्मनी का नतीजा क्या होता?
जादूगर:– मैं तुम सबको मार देता क्योंकि जिन 5 लोगों को यह माटी पहचानती हो, उसे कोई भी तिलिस्म कैद नही कर सकता...
अलबेली:– बड़बोला जादूगर... कल तक हम कमजोर थे। आज कमजोर तो नही लेकिन तुम हमे मारने की क्षमता रखते हो... जरा दिखाओ तो क्या कर सकते हो?
जादूगर:– बातों में समय न जाया करो। तो कुछ नया सीखने को तैयार हो...
सभी एक साथ "हां" में अपना जवाब दिया। जैसे ही सबने हां कहा जादूगर की दंश और चेन अलग हो गयी। अलग होने के बाद दंश ऊपर हवा में आ गयी और उससे आवाज आने लगी... "यह छड़ी पकड़ लो"…
आर्यमणि:– लेकिन जादूगर महान आप तो उस चेन में थे न?
जादूगर::– मेरे लिये आत्मा को विस्थापित करना कौन सी बड़ी बात है। हां मैं कहीं भी जाने के लिये तबसे आजाद था, जबसे मैं अपने दंश से मिला था। सम्पूर्ण सुरक्षा मंत्र चेन पर था, न की मेरी आत्मा पर। मैं तो केवल किताब बंद होने के कारण फंसा हुआ था।
आर्यमणि:– फिर वो कल ऐसा क्यों कहे की आप किताब से ज्यादा दूर नही जा सकते?
जादूगर:– मुझे अपने पक्के सागिर्द ढूंढने थे जो मेरे ज्ञान को आगे बढ़ा सके। मेरा दौड़ समाप्त हो चुका है और मैं खुद भी इस लोक में नही रहना चाहता, इसलिए बस जाने से पहले अपने दुर्लभ ज्ञान को बांटना चाहता हूं, ताकि मेरे मृत्यु के पश्चात वह विलुप्त न हो।
आर्यमणि:– और उन एलियन से बदला...
जादूगर:– वो बदला तुम ले लेना। अब शुरू करे। चलो तुम में से कोई एक इस छड़ी को उठाओ...
आर्यमणि:– छड़ी कोई क्यों उठायेगा, हम सबको सबसे पहले टेलीपोर्ट होना सिखाओ... और हां मुझे पोर्टल खोलना मत सीखना... वह असली टेलीपोर्ट नही होता...
जादूगर:– उसके लिये तुम अभी तैयार नहीं हो...
आर्यमणि:– हां तो मुझे तैयार करो... ओह एक मिनट जरा रुकना... रूही उस चेन को अपने पास सुरक्षित रख लो, जादूगर महान को अब चेन का क्या काम...
जादूगर:– जैसा तुम्हारी इच्छा हो भेड़िया गुरु... पर टेलीपोर्ट जैसा ज्ञान सीखने के लिये काबिलियत भी साबित करनी होगी...
आर्यमणि:– काबिलियत के नाम पर किसी का गला काटने तो नही कहोगे न...
जादूगर:– हाहाहाहाहा.… नही टेलीपोर्ट होने के लिये किसी का गला काटने की काबिलियत नही चाहिए, बल्कि उस से भी कहीं ज्यादा... खुद को शून्य काल में लेकर जाना होगा। ध्यान ऐसा जिसमे कुछ हो ही नही... इसका अर्थ समझ रहे हो ना...
आर्यमणि:– बड़े अच्छे से... शून्यकाल मतलब कुछ नही... ना तो किसी भी प्रकार की भावना न ही इच्छा... ध्यान लगाने के बाद यदि मैने सोचा भी की यह शून्यकाल है, तब वह शून्यकाल नही रह जायेगा...
जादूगर:– तुम तो पूरा समझ गये... ठीक है फिर तुम ध्यान लगाओ और बाकी के बचे लोग, तुम्हारा काम होगा आर्यमणि का ध्यान भटकाना... यदि आर्यमणि भटकाव को पार करके शून्य काल में पहुंचता है, तब उसके अगले ही पल वह टेलीपोर्ट विधा सिख जायेगा। हां लेकिन तुम लोगों को अंत तक ध्यान भटकाने की कोशिश करते रहनी होगी, वरना आर्यमणि टेलीपोर्ट की पूरी विद्या नही सिख पायेगा.…
आर्यमणि ने सबको सुनिश्चित होकर बात मान लेने के लिये कह दिया। सभी राजी हो गये। आर्यमणि जंगल के कुछ और अंदर गया और वहीं अपना आसन लगाकर बैठ गया। चारो वुल्फ भी आर्यमणि के इर्द–गिर्द थे और आर्यमणि का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे थे। आर्यमणि ध्यान लगाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसकी कोशिश इतनी कारगर नही थी कि वुल्फ पैक के भटकाव को झेल पाये। प्रयास जारी था और आर्यमणि जी जान से असफल कोशिश कर रहा था
दंश जैसे वहां का मुखिया हो, वह हर किसी पर नजर दिये हुये था। आर्यमणि ध्यान लगाने की कोशिश कर रहा था और उसका पैक ध्यान तोड़ने के प्रयास में जुटा। सभी अपना–अपना काम कर रहे थे, तभी जोडों से तेज अलार्म बजने की आवाज आने लगी। आर्यमणि खड़ा होकर अपने पूरे पैक को घूरते.… "आखिरकार तुम लोगों ने मेरा ध्यान तोड़ ही दिया। किसने अलार्म बजाया।"
रूही:– अलार्म किसी ने बजाया नही, बल्कि अपने घर में कोई घुसा है।
जादूगर:– आर्यमणि बस इतना ही ध्यान केंद्रित कर सकते हो क्या? एक आवाज ने तुम्हारा ध्यान भंग कर दिया?
आर्यमणि:– बिलकुल नहीं... अब चाहे कोई घर को लूटकर ही क्यों न ले जाये, तब भी ध्यान नहीं टूटेगा। शून्यकाल में तो आज मैं पहुंचकर रहूंगा...
एक छोटी सी बाधा के बाद सब वापस से काम में लग गये। अलार्म लगातार बजता रहा लेकिन मजाल है जो किसी ने अपना काम रोका हो। तकरीबन आधे घंटे बाद पुलिस की 3 गाडियां आर्यमणि के घर के सामने थी। इधर पुलिस के सायरन की आवाज बंद हुई और उसके कुछ सेकंड बाद आर्यमणि के घर का अलार्म बंद हो गया। अलार्म बजने के साथ ही एक सिक्योरिटी अलर्ट नजदीकी पुलिस थाने भी पहुंचता था और नतीजा सबके सामने था। पुलिस ने घर में घुसे अपराधी को वैन में बिठाया और घर के मालिक को कॉल लगा दिए।
पुलिस के कॉल आते ही आर्यमणि को छोड़कर पूरा अल्फा पैक घर लौटा। आर्यमणि की आंखें बंद थी और जादूगर का दंश अब भी हवा में था। थोड़ी देर बाद चारो अपने साथ एक चोर को भी ला रहे थे। रूही दूर से ही चिल्लाती हुई कहने लगी.… "बॉस ये अजीब तरह का चोर है। चेहरे पर कोई भावना नहीं, बस अनंत कीर्ति की पुस्तक को देखकर हरकत में आ जाता है। मैने सोचा बेचारा पुलिस स्टेशन जाकर क्या करेगा, इसलिए दोस्त बताकर बचा ली। क्या करना है इसका?"
आर्यमणि तुरंत अपनी आंखें खोलते.… "क्या बात कर रही हो। कहीं कोई वशीकरण मंत्र तुम में से तो किसी ने नहीं सिख लिया? अपने ही घर से किताब की चोरी...
अलबेली:– बॉस मुझे तो ओजल पर शक है...
ओजल:– ओ बावड़ी... किताब चोर का ठप्पा तो केवल बॉस पर लगा है। मैं क्या करूंगी वह किताब लेकर...
आर्यमणि:– जब तुम में से किसी को किताब से कोई फायदा ही नही फिर एक मजलूम इंसान पर क्या वशीकरण मंत्र का परीक्षण कर रहे थे?
इवान:– ये वशीकरण मंत्र पढ़ते कैसे है पहले वो तो बताओ... फिर परीक्षण भी कर लेंगे...
आर्यमणि:– अरे तुम्हे वशीकरण मंत्र नही पता.. जादूगर जी से पूछो... अभी 22 मंत्र बता देंगे... क्यों जादूगर महान के दंश जी... वशीकरण मंत्र क्या आप बताओगे या चेन में बंधी आपकी आत्मा से मैं पूछ लूं?
तभी चेन से चिल्लाने की आवाज आयी... "हां ठीक है मैं समझ गया की तुम समझ चुके हो."..
आर्यमणि:– गलत रूही... मूर्ख तो हम है जो नेक दिल जादूगर की भावना नहीं समझे... क्यों जादूगर ये मीठी–मीठी बातें करके पीछे से किताब उड़ाने की प्लैनिंग कब कर लिये? और प्लानिंग ही किये तो कम से कम घर के सिक्योरिटी सिस्टम को तो समझ लेते। मेरे घर से कीमती सामान चुराना हलवा है क्या?
जादूगर:– भूल हो गयी, मुझे विज्ञान को नजरंदाज नहीं करना चाहिए था।
आर्यमणि:– हां लेकिन अनंत कीर्ति की खुली किताब ने ऐसा आकर्षित किया की उसे पाने की जल्दबाजी में गलती कर बैठे। क्या सोचे थे, अनंत कीर्ति की खुली पुस्तक के सामने संपूर्ण सुरक्षा चक्र के मंत्र को निष्क्रिय करके खुद को आजाद कर लोगे? क्या सोचा था किताब खुल गयी तो तुम भी कैद से आजाद हो जाओगे और जाकर सीधा अपने शरीर में घुसोगे... जब तुम एलियन के हाथों मुझे पकड़वाकर बदले में अपना शरीर वापस लेने की योजना बना ही चुके थे, फिर इतनी जल्दबाजी क्यों कर गये? रूही यार मेरे ये शब्द मजा न दे रहे... तुम कुछ मजेदार शब्दों में कह सकती हो क्या?
रूही:– बिलकुल बॉस... इस झींगुर की मीठी बातें सुनकर ही समझ गयी थी की बेंचो ये जरूर हमे झांसे में ले रहा।
इवान:– इस भोसडीवाले ने क्या लुभावनी बातें कही थी... मुझे भी मोक्ष पाना है... मदरचोद दंश को ऐसा दिखाया जैसे तेरी दोगली आत्मा सच में दंश में घुस गई हो। भोसडीवाले हम वो है जो दूसरों के दिमाग की असली प्रॉक्सी बना देते है और तू हमे झूठे प्रॉक्सी में उलझा रहा था। हमे जाता रहा था कि देखो मैं कितना सुधर गया, मेरी आत्मा कहीं भी जा सकती थी लेकिन मैं गया नही।
अलबेली:– अपनी डबल डीजे मैय्या की सिंगल स्पीकर पैदाइश जादूगर, कितना भोला बनकर कह रहा था, मेरा वक्त खत्म हो गया है। सागीर्द की तलाश है। बेनचो झूठे आत्मा, सही बाप तलाशना था न पहले, तो एक खुजलीवाला झूठा कुत्ता संसार से कमती हो जाता।
जादूगर कड़कती आवाज में.… "मेरा इतना उपहास.. तुम.. तुम.. तुम.. जानते नही किस से उलझ रहे हो। हां मैने झूठ बोला.... झूठ न बोलूं तो और क्या करूं? तुम जैसे जानवर से वह किताब खुल गयी और मैं अब भी कैद हूं। मुझे मेरे शरीर में जाना है, फिर ये संसार वह नजारा भी देखगी जो आज से पहले कभी किसी ने सोचा न होगा.…
तीनो भागे.. सुबह के 9 बज चुके थे, अब वहां बचे थे 3 लोग.… जादूगर, आर्यमणि, और रूही...
आर्यमणि:– हमारा कितना उपहास किये लेकिन नतीजा क्या निकला? छोटी सी बच्ची ने हरा दिया। गया दंश और अब झूठ भी नही बोल सकते...
जादूगर:– फालतू बात बंद करो और मुद्दे पर आओ। एक अटूट कसम लो। मैं तुम्हे टेलीपोर्ट होने की पूरी विधि का विस्तृत विवरण दूंगा। अंतर्ध्यान अर्थात टेलीपोर्ट विधा की जानकारी तुम अपने किसी ऐसे साथी को देना जिसकी सभी कुंडलिनी चक्र जागृत हो। यदि वह जानकार हुआ तो उसे मात्र २ दिन लगेंगे, वरना सैकड़ों वर्षों से तो अपने रिहाई का इंतजार वैसे भी कर रहा हूं।
आर्यमणि:– चिंता मत करो, हमारे संन्यासी शिवम काफी ज्ञानी व्यक्ति है। उम्मीद है कुछ वर्षो में हम एक ऋषि का उदय होते देखेंगे जो भारत की धरती से लगभग विलुप्त हो चुके है।
जादूगर:– ठीक है बुलाओ उसे..
आर्यमणि:– अभी बुलाता हूं... संन्यासी शिवम सर...
"हां क्या है बोल बे"…. एक जाना पहचाना आवाज जो आर्यमणि के चेहरे पर मुस्कान ले आया। निशांत पहुंच चुका था...
आर्यमणि, निशांत के गले लगते.… "संन्यासी शिवम सर को बुलाओ। हम पहले इस जादूगर का काम खत्म करते है, फिर इत्मीनान से बात करेंगे".…
पीछे से संन्यासी शिवम् आवाज लगाते.… "आज्ञा दीजिए बड़े गुरुदेव"…
आर्यमणि:– क्या मजाक है शिवम् सर... गुरुदेव..
शिवम्:– अब या तो इस बात पर बहस कर लीजिए, या फिर आगे का काम देख ले... वैसे मैंने सुना था कि ये जादूगर बड़बोला है, अभी कुछ बोल क्यों नही रहा?
आर्यमणि:– इसकी छड़ी को ओजल ने जीत लिया। छड़ी को जीतने के साथ ही उसने अपने आत्मविश्वास से पहली बार एक मंत्र पढ़ा और वो इस जादूगर पर असर कर गयी।
जादूगर:– तुमसब किस प्रकार के विचित्र जीव हो। भेड़िया होकर मंत्र सिद्ध कर रहे। गलत मंत्र बताने के बाद भी मेरी छड़ी को अपने वश में कर लिये। हो कौन तुम लोग...
आर्यमणि:– यहां भी झूठ। तुम पर यकीन करना यकीन को गाली देने जैसा लग रहा है। तुम तो बहुत बड़े सिद्ध पुरुष हो ना जादूगर जी, फिर स्वयं ही पता लगा लो की तुम्हारे गलत मंत्र के बावजूद छड़ी ओजल की कैसे हो गयी। अब जब तुम झूठ बोल नही पाओगे तो क्या हम आगे की प्रक्रिया पूरी कर ले।
जादूगर:– हां, लेकिन अटूट कसम मैं खिलाऊंगा।
आर्यमणि:– वो तो मैं पहले से जानता था। जो इतना बड़ा झूठा हो उसके दूसरों की बातें कब सच लगेगी। उसे यह डर तो सताएगा ही की कहीं सामने वाला शब्दों से तो नहीं खेल गया। ठीक है जादूगर जी आप ही कसम खिलावाओ।
आर्यमणि अपनी बात कहकर अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। हाथ पर गंगा जल लेकर एक मंत्र पढ़ने के बाद चेन के ओर देखने लगा। जादूगर जैसे तैयार बैठा हो। जादूगर बोलता गया और पीछे–पीछे आर्यमणि भी दोहराते रहा... "मैं आर्यमणि यह कसम लेता हूं कि जादूगर ने यदि टेलीपोर्टेशन की सही विधि बता दिया और उस विधि के द्वारा किसी ने भी यदि टेलीपोर्टेशन की विधा सिख ली, तब मैं जादूगर महान की आत्मा को उसके शरीर में प्रवेश करने के लिये मुक्त कर दूंगा। जादूगर की आत्मा को न तो छल और न ही बल पूर्वक रोकने की कोशिश करूंगा"…
आर्यमणि पूरी बात दोहराने के बाद... "अब संतुष्ट न.. चलो विधि बताओ।"…
जादूगर ने विधि बताई। आर्यमणि और संन्यासी शिवम् पूरी विधि बड़े ध्यान से सुन रहे थे। पूरी विधि विस्तार पूर्वक जानने के बाद संन्यासी शिवम् उपयुक्त स्थान का चयन करने निकल गये। उसके साथ निशांत भी चला गया। वहीं आर्यमणि ने एक बार फिर किताब को बंद करके जादूगर को निष्क्रिय कर दिया। घर में केवल 2 लोग ही रह गये थे, आर्यमणि और रूही। आर्यमणि, रूही के ओर अफसोस भरी नजरो से देखते... "माफ करना मैं तुम्हे ज्यादा वक्त नहीं दे पा रहा।"…
रूही, आर्यमणि को प्यार से देखते हुये उसके होंठ को चूम ली और उसके सर को अपने गोद में रखकर बालों में हाथ फेरती, सर को मालिश करने लगी। आर्यमणि को इतना सुकून मिला की वह सारी चिंताओं को त्याग कर सुकून से रूही की गोद में सो गया। रूही भी बालों में प्यार से हाथ फेरते–फेरते कब नींद के आगोश में चली गयी उसे भी पता न चला।
3 दिन का वक्त लगा लेकिन संन्यासी शिवम् जब लौटे तो पूरी विद्या सीखकर ही लौटे। उनके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान और आंखों में आर्यमणि के लिये अभिवादन था... "गुरुदेव वह विधा जो विलुप्त हो चुकी थी, आज वापस से जीवंत हो गयी।"
आर्यमणि:– वो सब तो ठीक है शिवम् सर, लेकिन निशांत कहां गायब हो गया। बस एक छोटी सी मुलाकात हुई उसके बाद गायब...
संन्यासी शिवम्:– आपने ही तो कहा था जादूगर का किस्सा खत्म करके इत्मीनान से बात करेंगे। इसलिए वह भी उसी से संबंधित जरूर काम में लग गया...
आर्यमणि अपनी ललाट ऊपर करते... "हां हां.. वाकई में क्या?"
संन्यासी शिवम्:– हां हां बिलकुल... शायद अब आपको अपनी कसम भी पूरी कर देनी चाहिए...
आर्यमणि:– क्यों नही जरूर...
आर्यमणि, संन्यासी शिवम् के साथ अपने कॉटेज के बेसमेंट में पहुंच गया। आर्यमणि अपने हाथ में किताब और वो चेन लिये था। संन्यासी शिवम् कंधे पर एक झोला टांगे पहुंचे और आते ही झोले से सामग्री निकलने लगे। पूरा सामग्री निकालने के बाद बेसमेंट में रखे सोफे को भस्म की रेखा से घेर दिया। चादर से ढके इस सोफे को भस्म से घेरने के बाद, संन्यासी शिवम् वहीं बैठ गये और उस चेन को भी एक घेरे में रखकर मंत्र जाप करने लगे।
पीछे से निशांत भी वहां पहुंचा। हाथ में 4 प्रकार के विशेष पुष्प थे जो दुनिया के चार अलग–अलग कोने से लाये गये ताजा फूल थे। दुनिया के चार कोनो से लाया विशेष फूल और उन चार कोनो के मध्य स्थान की मिट्टी निशांत अपने साथ लिये था। सोफे के चार कोनो पर चार फूल रखा और मध्य स्थान पर मिट्टी डालने के बाद, वह भी एक कोने में बैठकर मंत्र पढ़ने लगा। संन्यासी शिवम् का इशारा हुआ और आर्यमणि ने पहले सम्पूर्ण सुरक्षा मंत्र को ही निष्क्रिय किया उसके बाद में अनंत कीर्ति की पुस्तक को खोल दिया।
अनंत कीर्ति की पुस्तक खुलते ही अट्टहास भरी हंसी से वह जगह गूंज गयी किंतु उसके अगले ही पल... "नही–नही, ये धोखा है... बईमानी है। तुम अटूट कसम का उल्लंघन कर रहे। इसका बहुत पछतावा होगा। भेड़िए एक बार बस मुझे यहां से छूटने दो फिर मैं तुम्हारी दुनिया उजाड़ दूंगा।"
आर्यमणि सोफे का चादर उठाते.…. "मैने अपनी अटूट कसम पूरी की। हमारा करार यहीं समाप्त होता है।"..
दरअसल निशांत और संन्यासी शिवम् ने मिलकर सबसे पहले जादूगर के शरीर को ही साइंस लैब से निकाला था। जिसे बेसमेंट रखे सोफे पर लिटाकर उसके मोक्ष की संपूर्ण विधि पहले से ही वो लोग पूरा कर चुके थे। जैसे ही आर्यमणि ने सुरक्षा मंत्र हटाया जादूगर की आत्मा सीधा अपने शरीर में ही घुसी।
जादूगर:– नही, नही, नही... शर्त अभी पूरी कहां हुई है भेड़िए। तुमने तो मुझे बल और छल दोनो से रोक दिया है।
आर्यमणि:– तुमने आत्मा की बात की थी, न की शरीर की। जिस वक्त तुम्हारी आत्मा तुम्हारे शरीर में नही थी उस वक्त पूरा योजन किया गया। ना तो शरीर में प्रवेश करने के बाद और न ही शरीर में प्रवेश करने के पूर्व मैने तुम्हारी आत्मा को छला है जादूगर।
जादूगर:– आप से सीधा तुम। जादूगर जी से जादूगर...
निशांत:– हां बे लपरझांंटस, तूने सही सुना। मेरा दोस्त बस एक आत्मा की इज्जत कर रहा था वरना तू इंसान किसी इज्जत के लायक नही। शिवम् भैया इसे मुक्त करो। इतनी पुरानी चीज विलुप्त हो जाये, उसी में सबकी भलाई है।
जादूगर:– मुझे मारोगे, तुम नौसिखिए मुझे मारोगे... दम है तो एक बार ये तिलिस्म खोलकर देखो... भूलना मत मैने न जाने तुम जैसे कितने आश्रम वालों के साथ खेला है। तुम्हारे गुरुओं को जीवित अवस्था में ही, उनके सीने को अपने इन्ही हाथों से चिड़कर, उनका हृदय बाहर निकाला है और रक्तपण किया है।
आर्यमणि:– तुम्हे खोल दूं तो तुम मेरा सीना चीड़ दोगे क्या?
पीछे से पूरा अल्फा पैक भी पहुंच चुका था। ओजल, जादूगर को छड़ी दिखाती हुई कहने लगी... "सुन बे चिलगोजे, इस संसार में तेरा वक्त पूरा हुआ। कोई आखरी ख्वाइश?"
(अभिमंत्रित विलय मंत्र, वह मंत्र था जिससे जादूगर के शरीर को बंधा गया था। एक ऐसी विधि, जिसके सम्पूर्ण होने के बाद कुछ नही किया जा सकता, मृत्यु अटल है। हां लेकिन हर विधि में बचने का एक कोना अवश्य छूटा रहता है, ठीक उसी प्रकार इस विलय मंत्र में भी था।)
जादूगर:– जैसा की विलय मंत्र के योजन करने वालों को पता हो, मुझसे इच्छा पूछ ली गयी है, और मैं एक द्वंद की चुनौती देता हूं। जो भी इस विलय योजन विधि का मुखिया है, वह मूझसे लड़ने के लिये तैयार हो जाये।
आर्यमणि अपनी भुजाएं खोलते.… "वैसे तो इच्छा पूछने का अधिकार मेरा था, किसी अन्य के पूछने पर विलय मंत्र अभियोजन में विघ्न नही पड़ने वाला। लेकिन फिर भी जरा मुझे भी दिखाओ कैसे तुम सीना चिड़ते हो? मुझे तुम्हारी चुनौती स्वीकार है।
आर्यमणि अपनी बात समाप्त कर जादूगर को सोफे से निकाला। विलय मंत्र पूर्ण था और उसके सिद्धांतों के हिसाब से ही जादूगर को उसकी एक इच्छा द्वंद के लिये उठाया गया था। जादूगर अपने शरीर को ऐंठते–जोढ़ते सालो से जमी हड्डी को चटकाया। कुटिल मुस्कान हंसते हुये…. "भेड़िए शायद तुम्हे पता नही की मैं क्या हूं? तुम्हे क्या लगा मैं इक्छाधारी जानवर पर जादू नही कर सकता। बेवकूफ भेड़िए, अब तुझे तेरी गलती का एहसास होगा। और तेरे मरते ही जब विलय मंत्र का जाल टूटेगा, तब तेरी तड़पती आत्मा देखेगी की कैसे मैने तेरे बदतमीज पैक का शिकर किया।"
आर्यमणि:– लड़ने के लिये इतनी जगह काफी होगी या कहीं और चलकर अपनी तमन्ना पूरी करेगा।
जादूगर:– तुझे मारने के लिये ये जगह काफी है। ये वक्त सही है, या लड़ने की तैयारी करने के लिये तुझे वक्त चाहिए वो बता दे।
आर्यमणि:– बोल बच्चन बंद कर फिर... और शुरू हो जा...
आर्यमणि ने जैसे ही उसी जगह पर, उसी वक्त, लड़ाई के लिये हरी झंडी दिया, जादूगर भोकाली आवाज में 8–10 मंत्र पढ़ चुका था। सब के सब प्राणघाती और गहरी चोट देने वाले मंत्र थे। एक साथ 8–10 काल आर्यमणि को मारने निकल चुके थे। वहां का माहोल ऐसा हो चला था कि मानो मृत्यु देने स्वयं यमराज को ही जादूगर ने बुला लिया हो। घनघोर काले साए ने आर्यमणि को ऐसे घेरा की वह दिखना ही बंद हो गया।
मात्र क्षण भर का मामला था। आर्यमणि ने हरी झंडी दिखाई और उसके 3–4 सेकंड में यह कारनामा हो चुका था। सभी की नजरें आर्यमणि के ऊपर थी। ना तो काले धुएं के अंदर कोई हलचल थी और न ही कोई आवाज आ रहा था। रूही और बाकी सारे वुल्फ आर्यमणि के ओर दौड़ लगा चुके थे, लेकिन निशांत तुरंत उन सबके सामने खड़े होकर.… “तुम अपने मुखिया को मेहसूस कर सकते हो, फिर पागलों की तरह ऐसे दौड़कर क्यों जा रहे। एक सबक हमेशा याद रहे, परिवार की जान खतरे में हो तो खतरे को मारो, न की मरते सदस्य के ओर इस प्रकार व्याकुल दौड़ लगा दो।”
रूही की आंखें गुस्से में लाल और आंसू उसके गाल पर बह रहे थे। निशांत को खींचकर एक थप्पड़ मारती.… “जब मन व्याकुल हो तो प्रवचन नही देते। जल्दी बताओ आर्य ठीक है या नही?”
“बहुत से लोगों को बहुत सारा भ्रम हुआ”… रौबदार आवाज ऐसा की मानो आर्यमणि बोल तो रहा था काले सायों के बीच से, लेकिन ईको चारो ओर से आ रही थी।…. “तुम भी जादूगर उसी भ्रम के शिकार हो आज तुम्हारा भ्रम मैं दूर किये देता हूं।”
आर्यमणि की रौबदार डायलॉग जैसे ही समाप्त हुआ, सभी वुल्फ सीटियां और तालियां बजाने लगे। आर्यमणि जब अपनी रौबदार आवाज से अपना परिचय करवा रहा था, ठीक उसी वक्त धीरे–धीरे वह काला शाया छटने लगा और आर्यमणि के डायलॉग खत्म होने तक काले शाए की मात्र एक लड़ी भर बची थी, जो धीरे–धीरे करके आर्यमणि के पंजों में समा रही थी। जैसे आर्यमणि भूमि, पेड़ या जानवर के टॉक्सिक को हील करता था, ठीक उसी प्रकार हवा में फैले इस टॉक्सिक मंत्र को भी आर्यमणि अपने हाथ से खींच लिया।
जादूगर देखकर भौचक्का। जैसे जूस मशीन में फल को निचोड़ देते हैं, ठीक उसी प्रकार मंत्र द्वारा आर्यमणि के अंदरूनी अंग निचोड़ा जा रहा था, लेकिन आर्यमणि फिर भी बिना किसी शिकन या पीड़ा के खड़ा था। जादूगर की आंखें जैसे बाहर आ जाए, वैसे ही आंखें फाड़े देख रहा था.…
“कौन सा मंत्र पढ़ा तूने? तू ये कैसे कर रहा है?"…. आर्यमणि जादूगर के ओर जैसे ही बढ़ा वह हड़बड़ा कर, घबरा कर पूछने लगा। आर्यमणि उसकी हालत के मजे लेता जोड़–जोड़ से हंसते हुये अपने कदम धीरे–धीरे बढ़ा रहा था। जादूगर मंत्र पर मंत्र जपने लगा। प्राणघाती हवाएं आर्यमणि के हथेली के आगे जैसे बेबस थी, सब उसमे ही जाकर समा जाती। जो मंत्र शरीर को आघात पहुंचाने के लिये शरीर के अंदर प्रवेश करते, वह असर तो कर रहे थे, लेकिन आर्यमणि की हीलिंग क्षमता के आगे सब बेअसर था।
आर्यमणि 5 कदम चलकर जादूगर के ठीक सामने खड़ा हो गया और अपने पंजे से उसके पीछे गर्दन को दबोचकर, उसका चेहरा अपने चेहरे के ठीक सामने लाते.… "ये डर और तुम्हारे कांपते पाऊं इस बात के साक्षी है कि जिस वक्त तुम थे, उस वक्त भी केवल छल से सबका शिकार किया था। तुम्हारी 45 साल की विकृत सिद्धि किसी काम की नही।"…. इतना कहकर आर्यमणि ने अपना क्ला जादूगर की गर्दन में घुसा दिया। लगभग 45 मिनट तक जादूगर के दिमाग से अपने सभी काम की चीज लेने और जरूरी यादें देखने के बाद, आर्यमणि अपना क्ला गर्दन से निकालकर उसके सीने पर रख दिया...
“द... द... दे... देखो आर्यमणि... नहीईईईईईई…. आआआआआआआआआ... मुझे माफ कर दो... नहीईईईईईई.… आआआआआआआआआ.. छोड़ दो मुझेएएएएएए”…. आखिरी उस चीख के साथ जादूगर की आवाज शांत हो गयी। उसका फरफरता शरीर जमीन पर था और जादूगर का धड़कता हृदय आर्यमणि के हाथ में। जादूगर गिड़गिड़ाता रहा लेकिन आर्यमणि अपने दोनो पंजे के नाखून को, बड़े प्यार से उसके सीने में घुसाकर जादूगर का सीना फाड़ दिया और उसके धड़कते हृदय को मुट्ठी में दबोचकर बाहर निकाल लिया।